वोमाल जगवामा के कमरे का नजारा देखने वाला था। पूरा शहर जिनसे कांपता था। शहर के बाहर भी जिनका दबदबा चलता था वो सब लोग यहां मौजूद थे, जो कि खतरनाक बात थी। इन सब लोगों का इकट्ठे होना शायद ही कभी पहले हुआ हो, हुआ हो तो याद नहीं। सिर्फ एक आदमी कम था इनमें। वो था मुमरी माहू। मुमरी माहू रास्ते में था और पूर्व के जंगलों से वापस आ रहा था।

हकाकाब, सिटवी और मैगवी लम्बे सोफे पर बैठे थे।

लूचर, पैथिन और केली अलग-अलग कुर्सियों पर इधर-उधर बैठे थे।

वोमाल जगवामा बेड पर टेक लगाए अधलेटा-सा था।

इनके अलावा और कोई भी कमरे में नहीं था।

एक घंटा हो गया था इनकी बातचीत चलते।

“गाठम जैसे लोग हमारे खिलाफ ये सब करते रहे तो लोग हमसे डरना बंद कर देंगे। हमारा काम ही इसी दम पर चलता है कि लोग हमसे डरते हैं। सरकार हमसे घबराती है।” वोमाल जगवामा ने कहा –“मैंने सारे हालात बता दिए हैं। अब हमारे लिए जरूरी हो गया है कि हम गाठम पर वार करें। बेशक गाठम बेवू का अपहरण करने में नाकाम रहा है लेकिन लोग तो ये ही जानते हैं कि गाठम ने बेवू का अपहरण किया है। वो इस बात की आशा जरूर करेंगे कि वोमाल जगवामा एक्शन लेगा। जरूरी भी है ये, अपनी हुकूमत की जड़ मजबूत करने के लिए।”

“मैं गाठम का नामोनिशान मिटा दूंगा।” मैगवी गुर्रा पड़ा।

“अवश्य।” वोमाल जगवामा उत्साह से कह उठा –“परंतु हमारा पूर्व के जंगलों में जाना अभी ठीक नहीं, क्योंकि वहां पर गाठम की ताकत ज्यादा है। वहां गाठम से मुकाबला करना, हमें नुकसान दे जाएगा। ये अंतिम रास्ता होगा कि हम गाठम को मारने के लिए पूर्व के जंगलों में जाएं। हमें कोशिश करनी है कि हम गाठम पर ऐसा वार करें कि गाठम ही यहां आ जाए। जिससे कि हम आसानी से उसका शिकार कर लें।”

“गाठम ने बहुत बड़ी हिम्मत दिखा दी बेवू सर का अपहरण करके।” पैथिन खतरनाक स्वर में कह उठा –“इसकी सजा गाठम को दी जाएगी सर। बेशक हमें पूर्व के जंगलों में ही क्यों न जाना पड़े।”

उसी पल लोएस ने कॉफी की ट्रे थामे भीतर प्रवेश किया। साथ में एक और नौकर ट्रे उठाए हुए था। दोनों ट्रे में कॉफी के प्याले खाने-पीने का सामान था। लोएस सबको काफी सर्व करने लगा।

“हमारा फौरन कुछ करना जरूरी हो गया है।” जगवामा ने कहा –“हम पहले ही लेट हो गए हैं। अब तक हमें गाठम पर वार कर देना चाहिए था। फौरन से भी जल्दी गाठम के इस शहर में ठिकानों का पता करो। उन्हें नष्ट करो। उसके आदमियों को खत्म कर दो। गाठम के आदमियों का कत्लेआम कर दो। जितनी बेरहमी दिखाओगे। उतनी ही हमारी हुकूमत के पांव पक्के होंगे। हो सकता है हमारी बर्बरता देखकर गाठम बदला लेने शहर में आ पहुंचे। इससे हमारा काम आसान हो...।”

केली का फोन बजने लगा।

जगवामा ने केली को देखा।

“हैलो।” केली ने बात की। सुनता रहा। जवाब देता रहा उसके बाद फोन बंद करके वोमाल जगवामा को देखता कह उठा –“हमारे आदमियों ने गाठम के दो अड्डों के बारे में बताया है। हम वहां हमला कर सकते हैं।”

“खूब।” वोमाल जगवामा मुस्करा पड़ा –“तो काम शुरू करने का वक्त आ गया। ये काम दिन में नहीं रात में करना है। रात को ठिकाने पर ज्यादा लोग होते हैं और लापरवाह भी होते हैं। अपने आदमियों से कहो कि पता करते रहें गाठम के और ठिकाने भी हैं तो कहां पर हैं। अगर दूसरे शहरों में गाठम के ठिकानों का पता चलता है तो वहां भी हमला करो। सिटवी मेरे पास ही रहेगा। केली तुमने रात को डिसूजा से हथियारों की डिलीवरी लेनी है। बाकी सब गाठम के ठिकानों पर हमला करने का प्रोग्राम बनाएंगे। ऐसे काम करना है कि शहर के लोग कई दिनों तक इसी मुद्दे पर बात करते रहें।”

लोएस और दूसरा नौकर सबको कॉफी और खाने का सामान देकर बाहर निकल गए।

“पैथिन, मैगवी, तुम दोनों ने खूब ऐश कर ली। अब ये काम ऐसे करो कि मैं खुश हो जाऊं।”

“जरूर।” पैथिन दरिंदगी से कह उठा –“आप जरूर खुश हो जाएंगे सर।”

“और गाठम का तो सुनकर ही बुरा हाल हो जाएगा।” मैगवी गुर्रा उठा।

हकाकाब उठते हुए बोला।

“हमें रात की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। हम यहां क्यों हैं?”

“चलो।” लूचर फुर्ती से उठा –“तुम बताओ केली कि वो दोनों ठिकाने कहां हैं।”

केली ने बताया।

“हमारे आदमी अब वहां पर नजर रख रहे हैं?”

“हां। मैं तुम्हें निगरानी करने वाले आदमियों के नम्बर, कुछ देर में मैसेज कर दूंगा।”

“पहले हमें ठिकानों की स्थिति देखनी होगी।” पैथिन खड़ा हुआ –“फिर हमले का प्लान करेंगे।”

“तो निकल चलो।” मैगवी भी उठ गया –“दिन बीत जाएगा, इन्हीं कामों में।”

वो चारों बाहर निकल गए।

वोमाल जगवामा ने खुद को हलका महसूस किया।

“तुम जाओ केली। हथियारों की डिलीवरी लेकर, उन्हें गोदाम में पहुंचा देना।” जगवामा ने कहा।

केली जाने लगा कि फिर फोन आ गया।

बात करने के बाद केली ने मुस्कराकर जगवामा से कहा।”

“गाठम के एक और ठिकाने का पता चला है।"

"पैथिन को बता देना।"

केली चला गया।

वोमाल जगवामा ने आंखें बंद कर ली।

सिटवी सोफे पर बैठा था कि कुछ देर बाद जगवामा आंखें खोलकर कहा।

“सिगरेट दो सिटवी। आज बहुत जरूरत महसूस हो रही है।”

सिटवी ने जगवामा को सिगरेट दी। उसे सुलगाई। जगवामा ने चैन भरे अंदाज में लम्बा कश लिया। चेहरे पर राहत जैसे भाव नजर आ रहे थे। सिटवी को देखकर बोला।

“तुम्हारी बेटी रोही की तबीयत अब कैसी है?”

“पहले से ठीक है। एक-दो दिन में वो कॉलेज जाने लगेगी।” सिटवी सिर हिलाकर कह उठा।

☐☐☐

पुलिस चीफ जामास की जेब में रखा मोबाइल बजा तो उसने टहलना छोड़कर फोन निकाला और बात की। दूसरी तरफ लोएस था। मिनट भर लोएस से बात करने के बाद फोन जेब में रख लिया। जामास के चेहरे पर मुस्कराहट थी और पास खड़े रत्ना ढली को देखकर कह उठा।

“जगवामा को गाठम के दो ठिकानों का पता चल गया है। वे रात को वहां हमला करने का प्लान कर रहे हैं।”

“फिर तो रात के लिए हमें तैयारी करने की जरूरत नहीं?”

“कोई जरूरत नहीं। तुम लोगों ने सिर्फ हथियारों पर कब्जा जमाना है।”

“वोमाल जगवामा अब खुलकर सामने आ रहा है और ये ही हम चाहते थे। जो भी हो रहा है अच्छा हो रहा है।”

“इस हिन्दुस्तानी का क्या करें?”

जामास की निगाह जगमोहन की तरफ उठी।

जगमोहन अभी भी तकिए के सहारे दीवार से टेक लगाए था। उन दोनों को ही देख रहा था।

“तुम मुंह खोलने को तैयार हो या नहीं?”

“मुझे एक फोन करने दो। उसके बाद ही इस बारे में कोई फैसला ले सकूँगा कि तुम्हें कुछ बताना है या नहीं?” जगमोहन बोला।

“साहब जी।” रत्ना ढली ने कठोर स्वर में कहा –“इसे एक बार फिर तारे दिखा देते...।”

“अभी आराम से काम लो ढली। अगर ये नहीं माना तो इसे तारे दिखाने का बहुत वक्त होगा हमारे पास।” जामास ने गम्भीर स्वर में

कहा –“इससे हमें बेवू वापस लेना है। इससे ये जानना है कि ये कौन हैं और किस चक्कर में हैं। ये भी पता करना है कि ये कैसे जानता है कि मैंने ही बेवू और पाकिस्तानी लोगों के बीच सौदेबाजी कराई है।”

जगमोहन दोनों को देखता रहा।

“तुम अपने साथियों को फोन करना चाहते हो?”

जगमोहन चुप रहा।

“ठीक है, मैं तुम्हें फोन कॉल करने दूंगा, परंतु तुम ये नहीं बताओगे उन्हें कि तुम किन लोगों के बीच हो। हमारे बारे में जरा भी जिक्र किया तो तुम्हारी उसी वक्त छुट्टी।” जामास के स्वर में खतरनाक भाव आ गए।

“ये तो मैं पहले ही कह चुका हूं कि मेरे पास रिवॉल्वर लेकर खड़े हो जाओ।”

उसी वक्त होपिन ने भीतर प्रवेश किया।

“साहब जी। रात की तैयारी के लिए हमें यहां से चलना होगा।”

“तुम सब जाओ। मैं इसके पास रहूंगा।” जामास की निगाह जगमोहन पर थी।

“अकेले?”

“यहां, दूसरे पुलिस वालों को बुला लूंगा। तीन-चार लोग यहां पहुंच जाएंगे। परंतु अभी रुको पहले इसे फोन पर अपने साथियों से बात कर लेने दो। रिवॉल्वर निकालो और पास खड़े हो जाओ। अगर ये फोन पर हमारे बारे में जरा भी संकेत देने की कोशिश करे तो मेरे से पूछना मत, उसी पल इसे शूट कर देना। अपना फोन इसे दो।”

रत्ना ढली ने रिवॉल्वर निकाली और होंठ भींचे जगमोहन की बांहों के बंधन खोले और जगमोहन को फोन दिया।

“कर लो बात।” जामास शब्दों को चबाकर कह उठा।

जगमोहन ने बारी-बारी से तीनों को देखा फिर जल्दी से सोहन गुप्ता का नम्बर मिलाने लगा।

☐☐☐

बात करने के बाद सोहन गुप्ता ने फोन बंद करके रोशन, भसीन को देखकर कहा।

“मिर्जा कहता है कि जगवामा के पास संगठन के ओहदेदार इकट्ठे हो चुके हैं। वे लोग जिनके कंधों पर संगठन को ठीक से चलाने की जिम्मेवारी है और वे सब एक-से-बढ़कर-एक दरिंदे हैं।”

“कौन-कौन है वहां?” रोशन की आंखें सिकुड़ी।

“पैथिन, मैगवी, केली, लूचर, हकाकाब और सिटवी।”

"ये सब एक ही जगह पर..."

“मुमरी माहू नहीं है इनमें।"

"वो अभी पूर्व के जंगलों से वापस आ रहा है। मिर्जा कहता है कि इनकी मीटिंग का मुद्दा गाठम है, जिसने बेवू का अपहरण कर लिया है और ये लोग गाठम के खिलाफ कुछ करने के लिए इकट्ठे हुए हैं। अब बात बढ़ रही है। पता नहीं क्यों, जगवामा, बेवू को वापस नहीं ला पा रहा। गाठम ने फिरौती मांगी है, मिर्जा पहले ही बता चुका है तो जगवामा देर क्यों लगा रहा है, या देर क्यों हो रही है। इससे जगमोहन को खतरा बढ़ता जा रहा है। उसका गाठम की कैद में रहना ठीक नहीं। समझ में नहीं आता कि जगवामा क्या कर रहा है।”

“हमारे लोग गाठम के लोगों की कोई खबर नहीं ला सके कि जगमोहन को कहां रखा है।” रोशन ने कहा।

“हम बाहरी लोग हैं। गाठम पर हमने पहले कोई कोशिश भी नहीं की कि उसका कोई ठिकाना हमारी नजर में हो। गाठम के बारे में जांच-पड़ताल करने के लिए हमें शुरू से शुरू होना होगा और इतना वक्त नहीं हमारे पास। वक्त कम है। गाठम जगमोहन को जिंदा वापस नहीं भेजेगा, बेशक उसे फिरौती मिल जाए। ये भी सम्भव है कि जगवामा ने गाठम को फिरौती दे दी हो और गाठम बेवू (जगमोहन) को वापस न दे रहा हो। ऐसे में जगवामा, गाठम के खिलाफ कोई योजना बना रहा हो। स्पष्ट है कि गाठम और जगवामा की लड़ाई में जगमोहन की जान जाने वाली है।”

“और हम कुछ नहीं कर सकते।” भसीन बोला।

“क्योंकि हम नहीं जानते कि जगमोहन कहां पर है। पता होता तो उसे बचाने की कोशिश जरूर...।”

“दिन के दो बज रहे हैं।” रोशन घड़ी पर निगाह मारकर बोला –“एक घंटे तक देवराज चौहान यहां पहुंच जाएगा।”

“सब बेकार है। देवराज चौहान कुछ नहीं कर सकेगा। करने को कुछ है ही नहीं। हम नहीं जानते कि गाठम कहां है, जगमोहन कहां है? उसे क्या बताएंगे। इतने मजबूर तो हम कभी भी नहीं हुए।” भसीन बोला।

“अगर हमारे पास ज्यादा वक्त होता तो शायद कुछ कर जाते। परंतु ये तो सिर्फ कुछ दिनों का खेल है और सब कुछ खत्म।” सोहन गुप्ता ने कहा –“जगवामा के हरकत में आने का मतलब है कि गाठम से उसकी बात बिगड़ रही है।”

“मिर्जा जगवामा के बारे में कुछ और बताएगा कि वहां पर क्या चल रहा है?” रोशन ने कहा।

“मिर्जा ने कहा तो कुछ नहीं, पर उसे कुछ पता लगेगा तो जरूर बताएगा।”

आधे घंटे बाद मिर्जा का फोन आया। उसने बताया कि सिटवी को छोड़कर सब चले गए हैं और उसने थोड़ा-सा सुना है कि जैसे रात को गाठम के किसी ठिकाने पर हमला किया जाएगा।

मिर्जा की बात बताकर सोहन गुप्ता गम्भीर स्वर में बोला।

“शायद जगमोहन न बच सके। जगवामा के लोग रात को गाठम के ठिकाने पर हमला करने वाले हैं।”

☐☐☐

जगमोहन ने नम्बर मिलाया और फोन कान से लगाकर जामास और रत्ना ढली को देखा।

जामास के होंठ भिंचे थे और नजरें जगमोहन पर थी।

रत्ना ढली रिवॉल्वर थामे कठोर अंदाज में जगमोहन के पास आ पहुंचा था।

“मैं ये तो कह सकता हूं कि मैं गाठम के पास हूं।” जगमोहन बोला।

“बेशक, ये कह सकते हो।” जामास ने कहा।

तभी दूसरी तरफ से कॉल रिसीव की गई और सोहन गुप्ता की आवाज कानों में पड़ी।

“हैलो।”

“गुप्ता।” जगमोहन ने गहरी सांस ली –“मैं-जगमोहन।”

“तुम?” सोहन गुप्ता के स्वर में हैरानी उभरी –वो चौंका –“तुम-तुम कहां हो, कहां से बोल रहे...।”

“गड़बड़ हो गई थी गुप्ता। उस दिन शूटआउट हुआ और छः गनमैनों को मारकर, मेरा अपहरण कर लिया गया।”

“मालूम है, खबर है मेरे पास। गाठम ने तुम्हारा अपहरण किया, परंतु अब तुम कहां पर...।”

“अभी मैं गाठम की ही कैद में हूं।”

“क्या –तो फोन कैसे कर रहे हो?”

“इजाजत लेकर। मेरे सिर पर इस वक्त रिवॉल्वर लगी है कि कुछ फालतू न बोल दूं।”

सोहन गुप्ता ने गहरी सांस लेने का स्वर आया।

“हुआ क्या –जगवामा ने गाठम को तुम्हारी फिरौती नहीं दी?” सोहन गुप्ता की आवाज आई।

“जगवामा ने पहली बार में ही पहचान लिया था कि मैं बेवू नहीं हूं कोई और हूं।”

“नहीं...।”

“ये सच है।”

“फिर?”

“उसी शाम मेरा अपहरण हो गया और अब गाठम के लोग भी जान चुके हैं कि मैं बेवू नहीं हूं। मेरी प्लास्टिक सर्जरी उतरवा ली गई है। मेरा असली चेहरा अब सामने है।”

“समझा-समझा। तुम तो भारी मुसीबत में फंस चुके हो...।”

“जगवामा फिरौती नहीं दे रहा गाठम को।”

“मैं तुम्हारी स्थिति समझ रहा हूं कि तुम किस हाल में हो। ये बताओगे कि तुम कहां पर हो?”

“मैं नहीं जानता।”

“मेरी सुनो अब जगवामा और गाठम में झगड़ा शुरू होने जा रहा है, शायद रात में ही ये सब शुरू हो जाएगा। इस झगड़े में तुम पिस सकते हो। वहां से निकल सकते हो तो निकल आओ।”

“नहीं निकल सकता। बेवू कहां है?”

“हमारे पास।”

“उसने मुंह खोला?”

“नहीं। वो कुछ भी बताने को तैयार नहीं।”

“तो अब मुझे क्या करना चाहिए? मैं सोचता हूं कि असली बेवू को इनके हवाले करके, मैं यहां से निकल जाऊं?”

“क्या ये बात तुमने इन लोगों से की है?” सोहन गुप्ता की आवाज कानों में पड़ी।

“नहीं। अभी तो तुमसे बात कर रहा हूं।”

“और ये लोग जानते हैं कि तुम्हें पता है कि बेवू कहां पर है?”

“पता है। मैंने बताया। ये न बताता तो फिरौती न मिलते पाकर, ये मुझे मार देते।”

सोहन गुप्ता की तरफ से चुप्पी रही।

जगमोहन ने जामास और रत्ना ढली पर निगाह मारी।

दोनों की कठोर निगाह जगमोहन पर टिकी थी।

“गुप्ता।” जगमोहन फोन पर बोला।

“देवराज चौहान पर तुम्हें कितना भरोसा है?”

“देवराज चौहान?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी –“क्या कहना चाहते हो?”

“मैंने पूछा है देवराज चौहान पर तुम्हें भरोसा है?”

“बहुत।”

“मतलब कि मुझ से ज्यादा तुम उस पर भरोसा करते हो?”

“हर हाल में, परंतु तुम...।”

“कुछ ही देर में देवराज चौहान मेरे पास पहुंचने वाला है, बेहतर होगा कि इस मामले को अब वो ही संभाले। आगे क्या करना है, ये वो ही बताएगा। तुम्हें । क्या तुम दोबारा फोन करते हो?”

“दोबारा कब?” देवराज चौहान का नाम सुनते ही जगमोहन की आंखों में चमक आ गई थी।

“करीब आधे घंटे बाद।”

जगमोहन ने फोन कान से हटाकर जामास से कहा।

“मैं आधे घंटे बाद दोबारा फोन कर सकता हूं।”

“क्यों?”

“मुझे जिससे बात करनी है, वो आधे घंटे तक वहां पहुंचेगा।” जगमोहन ने सूख रहे होंठों पर जीभ फेरी।

जामास ने चंद पल जगमोहन को गहरी निगाहों से देखने के बाद, सहमति से सिर हिला दिया।

“ठीक है गुप्ता। मैं आधे घंटे बाद फोन करूंगा।” कहकर जगमोहन ने फोन बंद कर दिया।

रत्ना ढली ने उससे फोन लिया। होपिन कुर्सी पर खामोशी से बैठा था।

“बेवू तुम लोगों के पास है?” जामास ने पूछा।

“हां।”

“तुमने फोन पर पूछा कि उसने मुंह खोला? तुम लोग बेवू से क्या जानना चाहते हो?”

“आधा घंटा रुक जाओ। मैं बात कर लूं फिर कुछ तय कर पाऊंगा कि तुमसे क्या बात करनी है।”

“देवराज चौहान कौन है?”

“मेरा साथी। उसी से मुझे बात करनी है।” जगमोहन ने कहा।

“तुम लोग आखिर हो कौन?” जामास के होंठ भिंच गए।

“इंतजार करो। अभी मैं कुछ नहीं बता सकता। वैसे तुम लोगों ने क्या सोचा है कि मेरा क्या करोगे?”

“पहले ये तो जान लें कि तुम हो कौन, यहां क्या कर रहे हो। उसके बाद ही तुम्हारा फैसला होगा।”

☐☐☐
 

उस वक्त कमरे में होपिन, रत्ना ढली, आदिन और जामास थे। जामास कुर्सी पर बैठा कॉफी के घूंट ले रहा था। जगमोहन के हाथ खुले हुए थे और वो उसी तरह दीवार से टेक लगाए बैठा था। आधा घंटा निकल चुका था। जगमोहन की नजर बार-बार रत्ना ढली के हाथ में थमे मोबाइल पर जा रही थी।

तभी मोक्षी ने कॉफी का प्याला थामे भीतर प्रवेश किया और घूंट भरकर बोला।

“साहब जी, हम यहां से जाने को तैयार हैं। रात की तैयारी करनी है। तीन बज रहे हैं।”

“तुम लोग जाओ। बढ़िया काम करना रात को। बाकी लोग कहां पर मौजूद हैं, ये तुम्हें पता ही है। एक-से-एक बढ़िया हथियार उनके पास हैं। गाठम के नाम पर वो हथियार ले भागने में सफल रहना है तुम सबने। हथियारों को भूसे के उसी गोदाम में रख देना। उसके बाद इस काम से फुर्सत मिलने पर उन हथियारों की बरामदगी सड़क पर खड़े किसी वाहन में दिखाकर मालखाने में भेज देंगे।” इसके साथ ही जामास ने फोन निकाला और नम्बर मिलाकर फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल गई फिर कानों में आवाज पड़ी।

“हैलो।”

“ओका।” जामास बोला –“पता सुनो और समूशा के साथ यहां पहुंच जाओ।” जामास ने पता बताकर फोन बंद कर दिया।

“आधा घंटा बीत चुका है।” जगमोहन बोला –“मुझे फोन करने दो।”

“तुम लोग जाओ।” जामास ने उन चारों से कहा।

“आप इसके पास अकेले रहेंगे साहब जी?” आदिन ने पूछा।

“अभी ओका और समूशा आ जाएंगे। इसके लिए तब तक मैं काफी हूं। तुम लोग जाओ।”

“इसने।” रत्ना ढली ने कहा –“कहां फोन किया, ये हम पता कर सकते हैं। नम्बर मेरे मोबाइल में है।”

“जरूरत नहीं।” जामास ने गम्भीर स्वर में कहा –“जब तक ये हमारे पास है तब तक हमें कुछ भी पता करने की जरूरत नहीं है। ये अपने मुंह से ही हमें सब कुछ बताएगा।”

जगमोहन चुप रहा।

वे चारों वहां से चले गए।

जामास और जगमोहन अकेले रह गए।

जामास ने फोन निकाला और आगे बढ़कर जगमोहन को दिया।

जगमोहन ने फौरन नम्बर मिलाना शुरू कर दिया। जामास ने रिवॉल्वर निकाली और जगमोहन की तरफ करके बोला।

“इस रिवॉल्वर को मत भूल जाना। कभी भी गोली निकलकर तुम्हें लग सकती है।”

“मैं ऐसी कोई बात फोन पर नहीं करूंगा कि तुम्हें गोली चलानी पड़े।” जगमोहन ने कहा।

जल्दी ही सोहन गुप्ता से बात हो गई।

“देवराज चौहान आया?” जगमोहन ने व्याकुलता से पूछा।

“हां। अभी-अभी उसे सब कुछ बताकर हटा हूं तुम...।”

“देवराज चौहान से मेरी बात कराओ।”

अगले ही पल देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

“तुम ठीक हो?”

“अभी तक तो ठीक हूं। तुम बहुत मौके पर आए। यहां बड़ी मुसीबत चल रही है।”

“सोहन गुप्ता से सब कुछ पता चला। मुझे बताओ तुम्हें वहां से निकालने में मैं क्या कर...।”

“ये लोग जानना चाहते हैं कि बेवू कहां है और हम जगवामा के यहां क्या कर रहे हैं। ये बातें इन्हें पता चल गई तो मैं इनके काम का नहीं रहूंगा। मुझे ये भी नहीं पता कि ये मेरे साथ क्या करने का इरादा रखते हैं।”

“कितने लोग हैं ये?”

“काफी लोग हैं। इनकी संख्या से हमें कोई मतलब नहीं...।”

“बता सकते हो कि तुम इस वक्त कहां हो?”

“नहीं बता सकता। मेरे सिर पर अभी भी रिवॉल्वर लगी है। कुछ बताया तो खेल खत्म।”

“मैं किस प्रकार तुम्हारी सहायता करा सकता हूं?”

“मेरे ख्याल में तो बातचीत से ही कोई रास्ता निकल सकता है।” जगमोहन ने जामास पर निगाह मारी।

“तुम गाठम से मिले?”

“नहीं।” जगमोहन ने गहरी सांस ली।

“चिकी से?”

“नहीं।”

कुछ पल खामोशी रही। देवराज चौहान की आवाज नहीं आई।

“वोमाल जगवामा की तरफ से तुम्हें कोई आशा है?” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

“नहीं। पता लगा कि उसने कहा है, बेशक मुझे मार दो।”

“मतलब कि जगवामा और गाठम के बीच तुम बुरी तरह फंस चुके हो, क्योंकि अपहरण के वक्त तुम बेवू बने बैठे थे और जगवामा जान चुका था कि तुम बेवू नहीं हो। तब वो तुम्हें छुड़ाने के लिए पैसा क्यों देगा?”

“पर जगवामा समझता है कि मैं ये जानता हूं कि बेवू कहां पर है। वो चार मिलियन डालर देने को तैयार है। जबकि ये लोग अठारह मिलियन की बात कर रहे हैं। फासला बहुत ज्यादा है।”

“इन लोगों से मेरी बात कराओ।” देवराज चौहान के शब्द कानों में पड़े।

जगमोहन ने जामास से कहा।

“मेरा साथी तुमसे बात करना चाहता है।”

“क्यों नहीं।” जामास ने फोन लेने के लिए हाथ बढ़ाया –“मुझे क्यों एतराज होगा।”

जगमोहन ने फोन दे दिया।

जामास कुर्सी पर जा बैठा। रिवॉल्वर हाथ में थी। नजरें जगमोहन पर।

“बात करो।" जामास फोन पर बोला।

“कौन हो तुम?”

“तुम सिर्फ बात करो। नाम-पता पूछने की कोशिश छोड़ दो।” जामास ने शांत स्वर में कहा।

“मेरा पूछने का मतलब है कि क्या मैं गाठम के किसी जिम्मेवार व्यक्ति से बात कर रहा हूं।”

“हां। तुम मुझसे कैसी भी बात कर सकते हो। जवाब देने के लिए मुझे किसी की इजाजत की जरूरत नहीं।” जामास बोला।

“तुम चाहते क्या हो?”

“मैं पूछंगा और तुम जवाब दोगे।” जामास शांत स्वर में बोला।

“पूछो।”

“ये जगमोहन, प्लास्टिक सर्जरी करवाकर, बेवू बना, बेवू की जगह पर क्या कर रहा था?” जामास ने पूछा।

“तुम्हें इससे क्या, ये हमारा मामला है।”

“तुम्हारे मामले मेरे साथ जुड़ चुके हैं क्योंकि हमने बेवू का अपहरण किया और हमें बेवू नहीं मिला। हम बेवकूफ बन गए। अब तुम्हारा साथी, मेरे सामने है, बोलो, इसका क्या करूं? मार दूं इसे?”

“ऐसा सोचना भी मत।”

“तब तो तुम्हें वो सब बताना चाहिए, जो मैं जानना चाहता हूं।”

“उसके बाद जगमोहन को छोड़ दोगे?”

“कोई गारंटी नहीं। ये सब कुछ हमारी बातचीत पर निर्भर होगा कि तुम कितना सच कहते हो और कितना झूठ।”

“क्या हम मिलकर बात नहीं कर सकते।”

“हम लोगों से तभी मिलते हैं, जब हमें जरूरत महसूस होती है। तुमसे मिलने की जरूरत महसूस हो ही नहीं रही। तो मैं अपने सवाल शुरू करूं?” जहां भी तुमने झूठ बोला, मैं अपना फोन बंद कर दूंगा।”

“सच बोला तो?”

“जगमोहन को छोड़ने के बारे में सोचा जाएगा। इस बात पर गम्भीरता से विचार होगा।”

“तुम गाठम से मेरी बात कराओ।”

“समझो तुम गाठम से ही बात कर रहे हो।” जामास का स्वर कठोर हो गया –“तुम लोग किस चक्कर में हो –बोलो।”

चंद क्षणों की खामोशी के बाद जामास के कानों में देवराज चौहान की आवाज पड़ी।

“बेवू अपने पिता वोमाल जगवामा की मौत के बाद पाकिस्तान के लोगों को संगठन बेचने जा रहा है। पुलिस चीफ जामास इस काम में बिचौलिए का काम कर रहा है। हम ये जानना चाहते थे कि पाकिस्तान के वो लोग कौन हैं, जो संगठन खरीद रहे हैं। हम लोगों के यहां होने, जगमोहन के बेवू बनने की ये ही एक वजह थी।”

जामास की आंखें सिकुड़ी।

“तो तुम लोग उन पाकिस्तानियों के नाम जानना चाहते हो?”

“हां।”

“ये बात तो बेवू ही बता देता। इतना लम्बा खेल रचने की क्या जरूरत थी।”

“बेवू इस बारे में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं।”

“ये तो मामूली-सी बात है, तुम मेरे से पूछ सकते थे।”

“तुम्हारे से? मुझे क्या पता कि तुम्हें ये बात मालूम है।”

“क्यों जानना चाहते हो ये बात?”

“हिन्दुस्तान की खुफिया जासूसी एजेंसी को इस बात की जानकारी चाहिए। उनका कहना है कि पाकिस्तानी लोग वोमाल जगवामा के संगठन को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने का इरादा रखते हैं। उनके पास इस बात की खबर है।”

“खबर सही है। पाकिस्तान के उन लोगों का इरादा ये ही है।”

“तुम ये बात कैसे जानते...।”

“सवाल मत पूछो सिर्फ जवाब देते रहो।” जामास बोला –“तो तुम लोग भारतीय जासूस हो?”

“मैं और जगमोहन नहीं।”

“क्या मतलब?”

“जगमोहन का चेहरा बेवू से काफी हद तक मिलता है। ऐसे में भारतीय खुफिया एजेंसी ने हमें पकड़ा और जगमोहन को ये काम करने को कहा। हम इंकार करने की स्थिति में नहीं थे और जगमोहन ये काम करने लग गया।”

“भारतीय जासूसी संस्था यूं ही किसी को पकड़कर बेवू का चेहरा बनाकर बेवू की जगह नहीं बैठा सकती। जगवामा के आस-पास फटकना भी खतरे से खाली नहीं। इस काम के लिए काबिल बंदा चाहिए...।”

“हमें ऐसे काम करने की आदत है।”

“तुम कौन हो?”

“मैं हिन्दुस्तान का डकैती मास्टर देवराज चौहान हूं और वो मेरा साथी, मेरा दोस्त जगमोहन।”

“डकैती मास्टर?” जामास के होंठों से निकला।

“हां।“

जामास चुप रहा। नजरें जगमोहन पर टिक गईं, जो उसे देख रहा था।

“तुम चुप क्यों हो गए?” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।

“तुम्हारी बातों पर ही सोच रहा हूं कि कहां के तार, कहां आकर मिल रहे हैं। तुम हिन्दुस्तान के डकैती मास्टर हो और तुम्हारा नाम देवराज चौहान है। ये ही नाम है न तुम्हारा?” जामास ने पूछा।

“हां।”

“जो तुमने कहा, वो कितना सच है।”

“पूरी तरह सच है।”

“झूठ निकला तो तुम्हारा ये जगमोहन तो गया।”

“मंजूर है।”

“तुम्हारे साथ बाकी जो लोग हैं, वो कौन हैं?”

“वो उस जासूसी संस्था के एजेंट हैं।”

“जासूसी संस्था के चीफ का नाम क्या है?”

“ये मैं तुम्हें नहीं बता सकता। जो बता सकता था, वो बताया। ये मेरे दायरे से बाहर की बात है।”

“बताना नहीं चाहते?”

“सही कहा। वैसे भी ये बात तुम्हें जानने की जरूरत नहीं है। ये तुम्हारे मतलब की बात जरा भी नहीं है।”

जामास के चेहरे पर सोचें दौड़ रही थीं।

“हमारा गाठम और जगवामा से कोई मतलब नहीं है। ये इत्तेफाक ही रहा कि जगमोहन इस तरह फंस गया। तुम लोगों ने ऐसे वक्त पर बेवू का अपहरण किया, जब जगमोहन अपने काम में लगा था।”

“बेवू कहां है?”

“यहीं। मैंने अभी उसे देखा नहीं। क्योंकि मैं घंटा भर पहले यहां पहुंचा हूं हिन्दुस्तान से।”

“जगमोहन के अपहरण की खबर सुनकर आए?” जामास गहरी सोच में दिख रहा था।

“हां।”

“छुड़ाने आए?”

“हां।”

“हूं।” जामास ने सिर हिलाया –“मैं तुम्हें दो घंटे बाद फोन करूंगा।”

“दो घंटे बाद फोन क्यों? तुमने सब जान लिया है कि जगमोहन कैसे तुम्हारे हाथों में आया। अब इसे छोड़ दो।”

“ये सब इतना आसान होता तो बात ही क्या थी। अभी मुझे गाठम से बात करनी पड़ेगी।”

“दो घंटे बाद फोन करोगे?”

“हां। नहीं किया तो तुम भी कर सकते हो। मेरा नम्बर तो तुम्हारे पास आ ही गया है।” कहने के साथ ही जामास ने फोन बंद किया और जगमोहन से बोला –“ये देवराज चौहान डकैती मास्टर हैं?”

“एक नम्बर का। मशहूर है। पुलिस को कब से तलाश है हमारी।”

“फिर तो काफी काबिल होगा।”

“हर तरफ से।” जगमोहन ने कहा –“अब तो तुम्हें पता चल गया कि सारा मामला क्या है।”

तभी बेल बजी।

जामास मुख्य दरवाजे पर पहुंचा और दरवाजा खोला।

सामने दो सेहतमंद लम्बे-चौड़े व्यक्ति खड़े थे।

वो पुलिस वाले थे। ओका और समूशा। वे भीतर आ गए। दरवाजा बंद कर दिया गया।

“बेवू बने उस आदमी को यहां रखा गया है?” समूशा ने पूछा।

“हां।” जामास ने कहा।

वे तीनों उस कमरे में जा पहुंचे।

जगमोहन वैसे ही बैठा था।

“मैंने तो सोचा कि तुम अपने हाथों से, पांवों के बंधन खोल रहे होगे।” जामास कह उठा।

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

“तुम दोनों इस पर नजर रखो।” जामास ने कहने के साथ ही हाथ में थमे मोबाइल से नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ बेल जाने लगी थी। फोन कट गया। दोबारा फोन करने पर बात हो सकी।

“हैलो।” उधर से आवाज आई।

“मोसाल।” जामास बोला –“मेरा एक काम तुम्हें जल्दी-से पूरा करना है।”

“हुक्म करें साहब जी?”

“हिन्दुस्तान का नामी डकैती मास्टर देवराज चौहान है और उसका साथी जगमोहन है। इन दोनों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठी करो। हर तरह की जानकारी। इंडिया स्थित अपने एजेंटों से पूछो। वहां के पुलिस डिपार्टमेंट से पूछो और देवराज चौहान की तस्वीर भी ई-मेल के जरिए मंगवाओ। ये सब कुछ मुझे जल्दी चाहिए।”

“मैं अभी शुरू हो जाता हूं साहब जी।”

“कितना वक्त लोगे?”

“एक घंटा तो लग ही जाएगा साहब जी।”

“ये काम शुरू कर दो। मैं समूशा को भेज रहा हूं उसे देवराज चौहान की तस्वीर दे देना।”

☐☐☐

देवराज चौहान ने सिगरेट का कश लिया और सोहन गुप्ता, भसीन, रोशन पर नजर मारी।

“तुम्हें क्या लगता है गाठम, जगमोहन को छोड़ देगा?” भसीन ने पूछा।

“कह नहीं सकता। पूरी बातचीत में मैं समझ नहीं पाया कि वो लोग आखिर क्या चाहते हैं।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा –“हालात ज्यादा बेहतर नहीं लग रहे। मुझे बेवू के पास ले चलो।”

“वो कुछ भी बताने को तैयार नहीं है।”

“गाठम के जिस आदमी से बात हुई, वो जानता है उन पाकिस्तानियों के बारे में।”

“उसने ऐसा कहा?”

“हां।”

“हैरानी है कि गाठम इस बात को कैसे जानता है?” भसीन ने कहा।

“क्या पता, गाठम पहले ही बेवू की हरकतों पर नजर रख रहा हो, क्योंकि वो बेवू का अपहरण करने की तैयारी में था।”

“चलो, बेवू से मिल लो।” सोहन गुप्ता उठते हुए बोला।

वे सब पीछे के कमरे की तरफ बढ़ गए।

“तुम्हें लगता है कि वो दो घंटे बाद फोन करेगा।” सोहन गुप्ता ने पूछा।

“कह नहीं सकता। उसने नहीं किया तो मुझे करना होगा। उससे बातचीत चलती रहनी चाहिए। हमारे पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है। जगमोहन उनके पास है। उसे हर हाल में वहां से निकालना है।

वे बेवू वाले कमरे में पहुंचे।

बेवू के हाथ-पांव बंधे हुए थे। वो फर्श पर बुरे हाल में पड़ा था।

“इसके बंधन खोल दो।” देवराज चौहान चौहान बेवू को गहरी निगाहों से देखता कह उठा –“इसे नहाने का मौका दो। कपड़े दो और अच्छा खाना खिलाओ। तुम लोगों ने इसकी काफी धुनाई कर रखी है।”

“ये ऐसे ही ठीक है, वरना भागने की कोशिश कर सकता है।” भसीन बोला।

“भागने की कोशिश करे तो गोली मार देना। तुम लोग भी तो कुछ करोगे।”

“बेहतर होगा कि बेवू को तुम हम पर छोड़ दो। तुम अपना ध्यान जगमोहन पर लगाओ।” सोहन गुप्ता ने कहा।

कुछ चुप रह कर देवराज चौहान ने कहा।

“जैसा मैंने कहा है, वैसा कर दो। बाद में इसके हाथ-पांव बांध सकते हो।” देवराज चौहान ने सोहन गुप्ता को देखा।

सोहन गुप्ता ने सिर हिला दिया।

“बेवू।” देवराज चौहान चौहान बोला –“जो बात तुमसे पूछी जा रही है उसे बता देने में कोई हर्ज नहीं है। वो छिपी हुई बात नहीं है। उन पाकिस्तानियों के बारे में गाठम के लोग भी जानते हैं और वो हमें उनके नाम बताने को तैयार हैं।”

“तो उन्हीं से पूछ लो। तुम्हारे लिए तो रास्ता आसान हो गया।” बेवू बोला –“मेरे ख्याल में वो लोग नहीं जानते।”

“गाठम के लोगों ने मुझसे कहा है ये। वो झूठ नहीं कहेंगे।”

“तो उनसे बात कर लो। फिर तो मेरी जरूरत रही ही नहीं।” बेवू ने गहरी सांस ली।

“इसे नहला-धुला दो। अब यातना मत देना। मेरे ख्याल में हमारा काम, गाठम से बन जाएगा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

☐☐☐

डेढ़ घंटे बाद पुलिस चीफ जामास को मोसाल का फोन आया।

मोसाल, जामास को देवराज चौहान के बारे में जानकारी देने लगा। जामास सुनता रहा। बीस मिनट तक ये बात चली। इस बीच जामास ने एक-आध बार ही मोसाल को टोका होगा, कुछ पूछा होगा। सब कुछ सुना जामास ने। जब मोसाल चुप हुआ तो जामास गहरी सांस लेकर बोला।

“समूशा पहुंचा तुम्हारे पास?”

“वो आया और चला भी गया। ई-मेल से आई तस्वीर देवराज चौहान की, उसे दे दी है।”

“ठीक है मोसाल शुक्रिया।” कहकर जामास ने फोन बंद किया।

जगमोहन, जामास को ही देख रहा था।

ओका एक तरफ कुर्सी पर बैठा था।

“तुम लोग।” जामास ने जगमोहन से कहा –“तुम और देवराज चौहान तो बहुत काम के लोग हो। मैंने हिन्दुस्तान से तुम दोनों की जानकारी मंगाई है। सुनकर मुझे तो मजा आ गया।”

“मजा क्यों आ गया?” जगमोहन बोला।

“पता चल जाएगा।” जामास मुस्कराया –“अब मेरी समस्या हल हो जाएगी।”

“समस्या?” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।

जामास ने देवराज चौहान को फोन किया। बात हो गई।

“हैलो।” देवराज चौहान की आवाज आई।

“देवराज चौहान हो?”

“हां। मैंने तुम्हारी आवाज से तुम्हें पहचान लिया है। बात की गाठम से। जगमोहन को छोड़ रहे हो?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा।

“गाठम तुमसे मिलना चाहता है।”

“मुझसे?”

“हां।”

“कहां है गाठम?”

“यहीं, इसी शहर में। क्या तुम गाठम से मिलने को तैयार हो?” जामास ने पूछा।

कुछ चुप्पी के बाद देवराज चौहान की आवाज आई।

“मैं तो सोच रहा था कि अब जगमोहन को छोड़ दिया जाएगा।”

“गाठम किसी से मिलता नहीं । तुम्हें मौका मिल रहा है तो तुम्हें जरूर मिल लेना चाहिए।”

“कैसे मिलूंगा मैं गाठम से?”

“तुम्हें एक जगह से ‘पिक’ कर लिया जाएगा। लेकिन मेरी बताई जगह पर तुम अकेले आओगे। बिल्कुल अकेले। अगर तुम्हारा कोई साथी तुम पर निगाह रखता, हमारे पीछे आने की कोशिश की तो हमें पता चल जाएगा और हम जगमोहन को मार देंगे। वहां हमारे कई आदमी नजर रख रहे होंगे। जगमोहन की जिंदगी के लिए तुम गलत हरकत नहीं करोगे। की तो हमारी कोई जिम्मेवारी नहीं होगी।” जामास का स्वर कठोर हो गया।

“मैं अकेला आऊंगा। आसपास कोई नहीं होगा।”

“तब तो जगमोहन की जिंदगी बची रहेगी। ये तुम पर है। अब सुनो तुमने कहां आना है। इसके साथ ही जामास, देवराज चौहान को जगह समझाने लगा कि उसे कहां पहुंचना है फिर बोला –“तुमने किस रंग की कमीज पहनी होगी? ताकि मेरे लोग तुम्हें पहचान सकें। वो तुम्हारा चेहरा नहीं जानते।”

“सफेद कमीज।”

“ठीक है। इस जगह पर एक घंटे बाद तुम्हें मेरे आदमी मिल जाएंगे। वो तुम्हें गाठम के पास ले आएंगे।” जामास ने कहा और फोन बंद करके ओका से बोला –“तुमने सुन लिया होगा कि मैंने देवराज चौहान को कहां आने को कहा है।”

ओका ने हां में सिर हिलाया।

“वहां जाओ और उसे लेकर यहां आ जाओ। वो सफेद कमीज में होगा। आस-पास नजर रखना। एक घंटे बाद वो वहीं पर मिलेगा। तुम उधर पहले पहुंच कर नजर रखो तो ठीक होगा। कोई संदिग्ध वहां दिखे तो तब देवराज चौहान के पास मत जाना।”

ओका चला गया।

जामास ने जगमोहन को देखकर कहा।

“कॉफी पीना चाहोगे?”

“तुम किस चक्कर में हो?” जगमोहन ने पूछा।

“सब कुछ तुम्हारे सामने हो रहा है, देखते रहो।” जामास मुस्कराकर अजीब भाव से कह उठा –“देवराज चौहान के बारे में जो जानकारी मिली है, उससे मैं प्रभावित हुआ हूं कि वो मेरे काम आ सकता है।”

“तुम्हारे काम? क्या डकैती करवानी है?” जगमोहन के होंठ सिकुड़े।

जामास अभी मुस्करा रहा था। जवाब में कुछ कहा नहीं।

☐☐☐

ओका डेढ़ घंटे बाद देवराज चौहान को ले आया।

तब तक समूशा आ चुका था। उसने कागज पर निकली, देवराज चौहान की तस्वीर जामास को दे दी थी। जामास वो तस्वीर जगमोहन को दिखा चुका था कि क्या ये ही है देवराज चौहान । जगमोहन ने हां कह दिया था। जामास ने जब देवराज चौहान को देखा तो तुरंत पहचान लिया कि ये ही देवराज चौहान है, क्योंकि उसकी तस्वीर उसके पास पहले ही आ चुकी थी।

“बातचीत से पहले तुम जगमोहन से जरूर मिलना चाहोगे।” जामास ने देवराज चौहान से कहा।

“हां। जरूर मिलूंगा।”

जामास, देवराज चौहान को उस कमरे में ले आया, जहां जगमोहन मौजूद था।

ओका और समूशा इस वक्त बेहद सतर्क दिख रहे थे।

जगमोहन को देखते ही देवराज चौहान उसके पास पहुंचा और जामास से बोला।

“तुम लोगों ने जगमोहन का क्या हाल बना रखा है?”

“कैदी जब मुंह न खोले तो उसका ये ही हाल होता है।” जामास ने सरल स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने गहरी निगाहों से जगमोहन की चोटों को देखा।

“बुरा हाल किया इन लोगों ने तुम्हारा।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“मैं ठीक हूं।” जगमोहन कुछ बेचैन दिखा –“आगे जो होने वाला है, उसकी चिंता करो।”

“क्या होने वाला है?”

“ये गाठम के लोग नहीं हैं। गाठम से इनका कोई वास्ता नहीं, ये पुलिस वाले हैं।”

“पुलिस वाले?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“बर्मा (म्यांमार) पुलिस। इस शहर की पुलिस। तुम जिससे बातें कर रहे थे वो पुलिस चीफ जामास है।”

“जामास?” देवराज चौहान सतर्क दिखने लगा –“जामास ही तो बेवू और पाकिस्तानियों के बीच बिचौलिया बना हुआ है।”

“वो ही है ये।”

“क्या चाहता है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“मैं नहीं जानता। पर इसके दिमाग में कुछ चल रहा है। हमारे बारे में हिन्दुस्तान से इसने एक घंटे में जानकारी इकट्ठी कर ली। तुम्हारी तस्वीर मंगवा ली। जामास ऐसा बहुत कुछ कर रहा है, जो मेरी समझ से अभी तक बाहर है।”

देवराज चौहान जगमोहन को देखता रहा फिर बोला।

“मतलब कि इस मामले में गाठम नहीं है। तुम्हारा अपहरण इसी जामास ने किया था?”

“हां।”

“परंतु इसने तो बेवू का अपहरण किया होगा। तब तो ये नहीं जानता होगा कि बेवू की जगह पर तुम हो।”

“नहीं जानता था। परंतु ये सारे काम गाठम के नाम पर कर रहा है। तो जगवामा गाठम से झगड़ा कराने की तैयारी कर रहा है। जामास बहुत खतरनाक खेल खेल रहा...।”

“बहुत हो गया।” जामास कह उठा –“अब कुछ बातें हममें भी हो जाएं देवराज चौहान।”

देवराज चौहान उठा और पलटकर जामास को देखा।

“एक बात तो जान लो कि तुम यहां आ गए हो तो यहां से मेरी मर्जी के बिना बाहर नहीं जा सकते।” जामास ने ओका को देखकर कहा –“इसकी तलाशी ली?”

“जी साहब जी। एक रिवॉल्वर मिली है इसके पास से। अब इसके पास कुछ भी नहीं है।”

“सतर्क रहो, ये खतरनाक इंसान है।” जामास देवराज चौहान को देखकर बोला।

“तुम इस शहर के पुलिस चीफ जामास हो?”

“हां। जामास हूं मैं। लगता है तुम मुझे पहले से जानते हो। मेरा नाम सुन रखा है।”

“इतना ही जानता हूं कि बेवू और पाकिस्तानी लोगों के बीच तुम बिचौलिए का काम कर रहे हो, संगठन खरीदने-बेचने के लिए।”

“चलो, कुछ तो जानते हो।”

“इसके बावजूद भी तुमने बेवू का अपहरण किया। ये हैरानी की बात है। क्या तुम्हें कमीशन नहीं देने वाला था वो।”

जामास चुप-सा, देवराज चौहान को देखता रहा।

“अपहरण में गाठम का नाम आगे कर दिया। आखिर तुम चाहते क्या हो, क्या कर रहे हो। तुम पुलिस वाले हो। इस शहर की देखभाल करना तुम्हारा काम है और खुद ही ऐसे काम कर रहे हो कि शहर के बुरे हाल हो जाएं। जगवामा ये बात कैसे सहन करेगा कि गाठम उसके बेटे का अपहरण कर ले। तुमने गाठम का नाम आगे कर दिया या फिर ये कहूं कि वर्दी की आड़ में तुम अपहरण और फिरौती का काम भी करते हो।”

“साहब जी। ये बहुत ज्यादा बोल रहा है।” समूशा गुर्रा उठा –“दांत तोड़ दूं इसके।”

“हमारे लिए दो कॉफी बना लाओ। इसकी किसी बात का बुरा मत मानो।”

देवराज चौहान को घूरता समूशा बाहर निकल गया।

“इस देश में पासपोर्ट से आए हो या गैरकानूनी ढंग से?” जामास ने पूछा।

“गैरकानूनी ढंग से। समंदर के रास्ते।”

“तुम्हारा साथी जगमोहन?”

“वो भी ऐसे ही। क्या तुम इस बिना पर हमें गिरफ्तार करने की सोच रहे हो?”

“मेरा दिमाग खराब नहीं है जो मैं ऐसा करूं। मन में बात आई तो पूछ लिया। इधर आओ, कुर्सी पर बैठो, हमें आराम से बात करनी चाहिए।” जामास खुद भी एक कुर्सी पर बैठता कह उठा –“आओ बैठो।”

देवराज चौहान कुर्सी पर जा बैठा।

“जगमोहन को खोल दो।” देवराज चौहान ने कहा।

“उसके हाथ खोल रखे हैं। पैर ही तो बंधे हैं। बंधे रहने में उसका ही मला है। पैर खुले हों और वो समझदारी दिखाते हुए कोई हरकत कर दे तो मेरे आदमी उसे शूट कर देंगे। ऐसा न हो, इसलिए पांव बांध रखे हैं।”

देवराज चौहान ने ओका को देखकर कहा।

“ये भी पुलिस वाला है?”

“सब पुलिस वाले हैं। मेरे आस-पास सिर्फ पुलिस वालों को ही देखोगे देवराज चौहान।”

देवराज चौहान ने जामास की आंखों में देखकर कहा।

“तुम मुझसे इतने प्यार से क्यों पेश आ रहे हो?”

“क्योंकि तुम हिन्दुस्तान के जाने-माने डकैती मास्टर हो। खतरनाक इंसान हो। तुम्हारी अपनी हस्ती है।”

“मैं क्या हूं और क्या नहीं, इससे तुम्हें क्या मतलब?”

जामास, देवराज चौहान को देखने लगा।

“मैं जगमोहन को यहां से ले जाना चाहता हूं।”

“ये इतना आसान नहीं है। जगमोहन चाहिए तो तुम्हें उसकी कीमत भी चुकानी होगी।”

“क्या कीमत चाहते हो तुम?”

“बताऊंगा। जल्दी मत करो। आज मेरे पास भी वक्त है और तुम्हारे पास भी। आराम से बातें करेंगे।”

“करो बात।”

“तुम्हें ये बात जान लेनी चाहिए कि मैं क्या कर रहा हूं इन सब बातों में पड़कर।”

“मुझे नहीं जानना। इस देश के भीतरी मामलों से मेरा कोई मतलब नहीं। मेरा देश हिन्दुस्तान है।”

“पर मेरा देश बर्मा (म्यांमार) है। और मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि मैं यहां क्या कर रहा हूं तो तुम्हें जरूर सुनना चाहिए। ये बात जाने बिना तुम जगमोहन की आजादी की कीमत नहीं चुका सकते।”

“तुम्हारा मतलब कि तुम्हारे हालात जानने मेरे लिए जरूरी है।” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।

“जरूरी न होते तो मैं बताता ही क्यों?”

“तुम्हारी बात सुनकर मुझे उलझन होने लगी है जामास। अगर मेरा सुनना जरूरी है तो कहो।”

समूशा ने दोनों को कॉफी लाकर दी और चंद कदमों के फासले पर सतर्क खड़ा हो गया।

जगमोहन का पूरा ध्यान इन दोनों की बातों पर था।

जामास ने कॉफी का घूंट मारा और देवराज चौहान से बोला।

“कॉफी लो।”

“तुम अपनी बात शुरू करने में बहुत वक्त ले रहे हो।” देवराज चौहान बोला।

जामास ने दो घूंट और भरे फिर गम्भीर स्वर में बोला।

“मैं –यानी कि हम सब पुलिस वाले। कुछ पुलिस वाले जिन पर मुझे भरोसा है, हम सब मिलकर इस प्लानिंग पर काम कर रहे हैं कि वोमाल जगवामा और गाठम के बीच लड़ाई छिड़ जाए।”

“तुम्हारा मतलब कि गैंगवार?” देवराज चौहान चौंका।

“सही कहा।”

“पर इससे तो शहर के हालात बिगड़ जाएंगे। दोनों ही ताकत रखते हैं। पुलिस को समस्या आ जाएगी।”

“शहर के हालात बिगड़ जाएंगे तो सुधर भी जाएंगे। पुलिस को कोई समस्या नहीं आने वाली। क्योंकि पुलिस ही तो इस गैंगवार को जन्म देने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है। जानते हो इस काम में हम सब पुलिस वाले कितना खतरा उठा रहे हैं। अगर जगवामा को पता चल गया कि ये हमारा काम है, तो वो चुन-चुनकर एक-एक पुलिस वाले को मारेगा। हमारे परिवार तक को खत्म कर देगा फिर भी हम ये काम कर रहे हैं देवराज चौहान।”

“मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम पुलिस वाले ये सब क्यों कर रहे हो?” देवराज चौहान ने अजीब-से स्वर में कहा।

“जब गैरकानूनी काम करने वाले लोग पुलिस से ज्यादा ताकतवर हो जाएं, पुलिस उनका कुछ बिगाड़ न सके। बल्कि ऐसे लोग पुलिस पर हुकूमत करने लगें तो पुलिस अपना काम नहीं कर पाती।” जामास ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम्हारे बारे में मुझे जो जानकारी मिली, उसमें एक बात का मैं कायल हो गया।”

“ऐसी क्या बात है?”

“तुम पुलिस से कभी झगड़ा नहीं करते।”

देवराज चौहान ने कॉफी का घूंट भरा।

“तुम पुलिस से हमेशा दूर रहते हो और तुम्हारा कहना है कि पुलिस से पंगा मत लो। किसी पुलिस वाले की जान मत लो, क्योंकि पुलिस एक व्यक्ति का नाम नहीं है, संस्था का नाम है। अगर पुलिस किसी के खिलाफ कुछ करने पर आ जाए तो उसे कोई नहीं बचा सकता। ऐसा कहते हो न तुम?” जामास की निगाह देवराज चौहान पर थी।

“हां, इसमें गलत ही क्या है।”

“कुछ भी गलत नहीं है। तुम्हारी बात को ही मैं आगे बढ़ाते हुए कहता हूं कि पुलिस तो पुलिस ही होती है, बेशक बर्मा की हो या हिन्दुस्तान की। तुम्हारी बात हर देश की पुलिस पर लागू होती है। अब यहां पर क्या हुआ है कि वोमाल जगवामा और गाठम हर रोज ही पुलिस से पंगा लेते हैं और पुलिस कुछ नहीं कर पाती। पुलिस सब जानती है परंतु कुछ भी करने की हिम्मत नहीं रखती। जगवामा के सामने कोई सिर नहीं उठा सकता और गाठम पूर्व के जंगलों में रहकर अपना अपहरण का धंधा चला रहा है और पुलिस की हिम्मत नहीं कि पूर्व के जंगल में गाठम को पकड़ने जा सके। शुरू-शुरू में दो-चार बार पुलिस वालों ने ऐसा कुछ करने की कोशिश की तो उनकी लाशें ही मिलीं। तो मैं कह रहा था कि तुम सही कहते हो कि पुलिस से झगड़ा मत लो, वरना पुलिस कुछ भी कर सकती है। जैसे कि अब हम, यहां की पुलिस कर रही है कि जगवामा बहुत ताकत रखता है, उधर गाठम बहुत ताकत रखता है, इन दोनों में झगड़ा शुरू करवाकर पुलिस खामोश बैठकर तमाशा देखे। जब इन दोनों में से एक खत्म हो जाए तो, जो बचा है, घात लगाकर उसे भी खत्म कर दो तो शहर में चैन आ जाएगा।”

“तुम बहुत खतरनाक बातें सोच रहे हो जामास।”

“जिन्हें तुम खतरनाक बातें कर रहे, वो शुरू हो चुकी है। तब शुरू हुई जब छोटा-सा शूटआउट करके, जगवामा के छः गनमैनों को शूट करके बेवू का अपहरण गाठम के नाम पर कर लिया गया।”

“जगवामा को ये पता चल गया तो...।”

“इस काम के लिए जिन-जिन पुलिस वालों को चुना है, वो सब मेरे भरोसे के हैं। उनमें कांस्टेबल भी है, हवलदार भी, सब-इंस्पेक्टर भी और इंस्पेक्टर भी। इस काम के लिए छ: महीने की मेहनत से एक टीम बनाई गई है। अपनी तरफ से हमने फूंक-फूंककर कदम उठाया है। अपनी प्लानिंग पर बार-बार गौर किया है। अभी तक तो सब ठीक चल रहा है। मेरे खास-खास भरोसेमंद मुखबिर इस काम की खबरें दे रहे हैं। सब ठीक है और तुम्हारी बात सच निकली कि कभी भी पुलिस से पंगा मत लो। पुलिस करने पर आ जाए तो वो कुछ भी कर सकती है।”

देवराज चौहान ने गम्भीरता से कॉफी का घूंट भरा।

“हालात इतने बुरे हो गए कि पुलिस को कुछ करने की सोचना पड़ा। जगवामा और गाठम की हरकतें अब और सहन नहीं हो सकती थीं।” जामास ने गम्भीर और कठोर स्वर में कहा –“साल भर पहले हमारे कानून मंत्री के बीस साल के बेटे का अपहरण गाठम के लोगों ने किया। भारी फिरौती मांगी जाने लगी नहीं तो कानून मंत्री के बेटे को खत्म कर देने की धमकी मिलने लगी। हमारे कानून मंत्री जरा शरीफ किस्म के हैं। ज्यादा पैसा उनके पास नहीं था। फिरौती कैसे देते। बेटे को मोह में उन्हें वोमाल जगवामा के पास जाना पड़ा। जगवामा ने गाठम को फिरौती देकर कानून मंत्री के बेटे को बचा लिया। कानून मंत्री जी जगवामा के एहसान में दब गए और जगवामा ने इसका खूब फायदा उठाया और अपनी मनमानी बढ़ा दी। यहां तक कि हर दो-चार दिन के बाद मुझे जगवामा के दरबार में हाजिर होकर उनका हाल-चाल पूछना पड़ता है। जगवामा अपने व्यक्तिगत काम पुलिस वालों से लेने लगा। उसके ड्रग्स और हथियार जाने होते हैं तो अक्सर साथ में एक पुलिस वाला जाता है कि रास्ते में किसी भी तरह की पूछताछ न हो। हम तो नौकर बन गए जगवामा के। तनख्वाह सरकार से लेते हैं और काम जगवामा के करते हैं। ये ही सब करना है तो पुलिस की जरूरत क्या है शहर में? जगवामा ने पुलिस का सांस लेना कठिन कर रखा है।”

देवराज चौहान, जामास की एक-एक बात सुन रहा था।

“आज से आठ महीने पहले कानून मंत्री ने अकेले में मुझसे मुलाकात की और कहा कि जगवामा और गाठम का कोई इलाज करना जरूरी है। मैंने कहा कि कानूनी तौर पर तो हम कुछ करने की हिम्मत नहीं रखते। तो कानून मंत्री ने कहा कि चाहे जैसे भी करो, पर करो, इन दोनों को किसी तरह मिटा दो।”

“तो तुमने ये रास्ता निकाल लिया।” देवराज चौहान बोला।

“निकालना पड़ा। कानून मंत्री जी का इशारा था तो फिर क्या चिंता। कानून के पास ताकत बहुत होती है परंतु कानून की समस्या ये है कि वो अपने दायरे से बाहर नहीं निकल सकता। लेकिन जब दायरे से बाहर निकलता है तो ऐसे-ऐसे काम कर देता है कि जो काम जगवामा और गाठम जैसे लोग नहीं कर सकते।” जामास दांत भींचे कह उठा –“कानून की खामोशी को कमजोरी समझ लेना गलत बात है। कानून के रूप में, वर्दी में, बड़े-से-बड़ा गुण्डा मौजूद है, जो शहर के जुर्मों को मिटा सकता है। लेकिन कानून इसकी इजाजत नहीं देता। तब हमें गुपचुप तौर पर काम करना पड़ता है, जैसे कि अब कर रहे हैं। ये काम हम जान हथेली पे लेकर कर रहे हैं। जगवामा और गाठम का खतरा हमारे सिरों पर लटक रहा है।”

“लेकिन अभी तक नतीजा सामने नहीं आया।” देवराज चौहान ने कहा।

“आज रात के बाद शहर की तस्वीर बदलने लगेगी।”

“वो कैसे?”

“जगवामा के यहां, लोएस नाम का बावर्ची है, जो कि हमें खबरें देता है वहां की और उसके नोट उसके बैंक खाते में जमा हो जाते हैं। उसने बताया कि आज वोमाल जगवामा के छः खतरनाक ओहदेदार जगवामा के पास पहुंचे। मीटिंग हुई। लोएस ने सुना कि उन्हें इस शहर में गाठम के दो ठिकानों का पता चल गया है, रात जगवामा के लोग वहां हमला करेंगे और कत्लेआम मचाएंगे। इसके जवाब में गाठम, दो घंटे बाद जगवामा इस्टेट पर गोलियां चलवा देगा।”

“ये गोलियां चलवाना, मैं समझा नहीं।” देवराज चौहान ने पूछा।

“जगवामा की इस्टेट पर, गाठम के ठिकानों पर हमला होने के बाद, मेरे आदमी फायरिंग करेंगे...।”

“ताकि जगवामा समझे कि जवाबी कार्यवाही के रूप में गाठम ने ऐसा किया है।”

“बिल्कुल सही।” जामास ने सिर हिलाया –“इसी रात, समंदर किनारे जगवामा के हथियार भारी मात्रा में पहुंच रहे हैं, हमारी एक टीम वहां से उन हथियारों को लूट लेगी और जगवामा के लोगों को मारा जाएगा। ये सारा काम भी गाठम के नाम पर होगा और दिन के उजाला फैलने तक जगवामा और गाठम एक-दूसरे के दुश्मन बन चुके होंगे।”

“दोनों में गैंगवार करवाने के लिए योजना बुरी नहीं है। पर इसके लिए गाठम को इस शहर में आना पड़ेगा।”

“वो आएगा। क्यों नहीं आएगा। जगवामा उसके आदमियों को मार रहा है तो वो बदला क्यों नहीं लेगा। मेरे एक मुखबिर की पहुंच गाठम के संगठन के भीतर तक है। गाठम जब आएगा यहां तो मुझे खबर मिल जाएगी।” जामास बोला।

“तुमने इस काम में काफी मेहनत की है।”

“मैंने ही नहीं, इस काम के लिए जो टीम बनी है, उन सब पुलिस वालों ने बहुत मेहनत की है। अब ये हमारी भी जिंदगी और मौत का सवाल है कि जगवामा, गाठम पर कहीं हमारी प्लानिंग खुल न जाए।”

“लेकिन जगवामा जान चुका है कि जिस बेवू का अपहरण किया गया, वो बेवू नहीं है।”

“इससे हमारी प्लानिंग पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा। दोनों एक-दूसरे के दुश्मन बन जाएंगे। गैंगवार छिड़ जाएगी। आज रात के बाद ये सब कुछ खुद ही होता चला जाएगा। हमें कुछ करने की जरूरत नहीं होगी।”

“तो तुम कहना चाहते हो कि तुम अपनी वर्दी के प्रति वफादार हो।” देवराज चौहान बोला।

“पूरी तरह।”

“ऐसा है तो तुमने बेवू और पाकिस्तानियों के बीच बिचौलिए का काम क्यों किया?”

“ऐसा करना जरूरी हो गया था।” जामास ने गम्भीर स्वर में कहते हुए सिर हिलाया –“बेवू फैसला ले चुका है कि अपने पिता वोमाल जगवामा की मौत के बाद संगठन नहीं संभालेगा। उसे बेच देगा और इस सिलसिले में वो पाकिस्तान के एक संगठन के आकाओं से बातचीत करने लगा। ये बात मुझे पता चली तो मैं फौरन समझ गया कि अगर पाकिस्तानी लोगों ने जगवामा का संगठन संभाल लिया तो बर्मा में आतंकवाद शुरू हो जाएगा। क्योंकि दुनिया भर में मौजूद अस्सी प्रतिशत आतंकवादी पाकिस्तान की फैक्ट्री से ही तैयार होकर निकलते हैं। ये खतरनाक बात थी कि पाकिस्तानी लोग, जगवामा की मौत के बाद संगठन को खरीदने की कोशिश में थे। उन लोगों को तैयार संगठन मिल रहा था जिससे कि वे हर तरह का काम कर सकते थे। मैं चिंतित हो उठा कि ऐसा नहीं होना चाहिए। मैं नहीं जानता था कि बेवू की पाकिस्तानी लोगों से क्या बात चल रही है। जब तक मुझे बातों का पता न हो तब तक मैं कुछ नहीं कर सकता था। ऐसे में मैं बेवू से मिला। उसे बताया कि मुझे ऐसी खबर मिली है। बेवू ने कहा कि ये बात सही है कि मैं संगठन को आगे नहीं बढ़ाना चाहता, परंतु मुझे ये भी चिंता है कि पापा की मौत के बाद, संगठन से जुड़े हजार से ऊपर लोग बेकार हो जाएंगे। वो अपना परिवार नहीं चला सकेंगे। इसलिए संगठन बेच रहा हूं कि उन्हें काम मिलता रहे। उसका कहना था कि संगठन बेचने पर जो पैसा मिलेगा, वो सारा पैसा संगठन के लोगों में ही बांट देगा। उसे कुछ नहीं चाहिए क्योंकि पापा का इकट्ठा किया पैसा ही, इतना है कि वो तीन बार जीवन बिता सकता है। ऐसे में मैंने बेवू से कहा कि इतना बड़ा काम उसे अकेले नहीं करना चाहिए। इस काम में उसका सहायक होना चाहिए। पाकिस्तानी लोग चालाक होते हैं। अगर उसे एतराज न हो तो मैं बिचौलिए के रूप में इस मामले में पड़कर, उसकी सहायता करता रहूंगा। सीधी-सी बात मैंने कही थी। बेवू ने कोई एतराज नहीं किया और मुझे बिचौलिए के रूप में इस मामले में ले आया। जबकि मेरा इरादा तो सिर्फ ये था कि मुझे दोनों पार्टियों के बीच होने वाली बातों की जानकारी मिलती रहे। दिल से मैं ये ही चाहता था कि पाकिस्तानी लोग बर्मा की जमीन पर पांव न रखें। पर मेरी नहीं चल सकती थी। अपनी बात मैंने दिल में ही रखी। अब मुझे संगठन बेचने के सौदे की पूरी जानकारी है। सब बातें मेरे सामने, तय की गई हैं। परंतु मुझे ऐसा कोई मौका नहीं मिल रहा था कि मैं संगठन बेचने के सौदे को खराब कर सकूँ। जब मैंने गैंगवार की प्लानिंग की तो तब मौका निकलता दिखा।”

“कैसा मौका?”

“प्लानिंग में बेवू का अपहरण तो शामिल ही था। ऐसे में ये तय कर लिया गया कि गैंगवार में जब जगवामा और गाठम दोनों खत्म हो जाएंगे तो, उसके बाद बेवू की हत्या भी कर दी जाएगी कि वो संगठन पाकिस्तानी लोगों को न बेच सके।”

देवराज चौहान, जामास को देखता रहा।

“यकीन नहीं होता कि तुम पुलिस वाले हो।” आखिरकार देवराज चौहान कह उठा।

“मैं सच्चा पुलिस वाला हूं।” जामास बोला –“जो कर रहा हूं देश के भले के लिए कर रहा हूं।”

“तुम कई लोगों की हत्या करते जा रहे हो।”

“जरूरी है। तुम इस तरह सोचो कि वो मैं नहीं कर रहा, वो सब गैंगवार की शुरुआत है।”

“तुम बहुत सख्त हो?”

“अपने फर्ज के लिए। जगवामा, गाठम ने तबाही मचा रखी है। अब बेवू अपनी हरकत से पाकिस्तानियों के पांव बर्मा में जमा रहा है। ऐसा हो गया तो समझो बर्मा (म्यांमार) तबाह हो जाएगा। कानून को जनता का भला सोचना होता है। लोगों की रक्षा करनी होती है और मैं जो कर रहा हूं, शांति के लिए ही कर रहा हूं।”

“मैंने सुना है कि जगवामा का संगठन खरीदने वाले लोग, संगठन को हिन्दुस्तान के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे।”

“तुमने सही सुना है।”

“कैसे कह सकते हो कि मैंने सही सुना है।”

“ये बात मैंने उन पाकिस्तानी लोगों के सामने उठाई थी कि वो संगठन का इस्तेमाल बर्मा के खिलाफ कर सकते हैं परंतु उन्होंने जवाब दिया कि हम संगठन का इस्तेमाल हिन्दुस्तान के खिलाफ करेंगे। तब मैं चुप हो गया।”

“उन पाकिस्तानी लोगों के नाम मुझे बताओगे कि वो कौन हैं?” देवराज चौहान ने कहा।

“क्यों नहीं। वो पहले से ही पाकिस्तान में एक संगठन चला रहे हैं।”

“उस संगठन का नाम और उन लोगों के नाम बताओ।”

जामास ने उनके बारे में सब कुछ बता दिया।

देवराज चौहान ने सब कुछ सुना। चेहरे पर गम्भीरता थी।

जामास ने जगमोहन को देखकर कहा।

“तुम ये सब ही जानना चाहते थे न?”

जगमोहन ने हां में सिर हिला दिया।

“मैं फोन पर बात कर सकता हूं।” देवराज चौहान बोला।

“उन एजेंटों को पाकिस्तान के संगठन का नाम और संगठन खरीदने वाले लोगों के नाम बताना चाहते हो।” जामास मुस्कराया।

“हां।”

“बता दो। मुझे एतराज क्यों होगा। वैसे इंडिया सरकार क्या कदम उठाएगी?”

“इंडियन एजेंट इस काम के लिए पाकिस्तान में फैल चुके हैं। वो इन सब लोगों को खत्म कर देंगे।” देवराज चौहान ने कहा।

“ये तो और भी अच्छी बात है। इसमें बर्मा का भी भला है कि उन लोगों के पांव यहां की जमीन पर नहीं पड़ेंगे।” जामास ने मोबाइल निकालकर देवराज चौहान को दे दिया।

देवराज चौहान ने सोहन गुप्ता को फोन किया।

सोहन गुप्ता को पाकिस्तानी संगठन का नाम और उन लोगों के नाम बताए जो वोमाल की मौत के बाद, वोमाल का संगठन खरीदने के लिए बेवू से मुलाकात करते रहे थे।

सब कुछ नोट करने के बाद उधर सोहन गुप्ता उत्साह भरे स्वर में बोला।

“तुमने बहुत अच्छा काम कर दिया देवराज चौहान । तुमने तो...।”

“बेवू का ध्यान रखना।”

“ठीक है। तुम जगमोहन के साथ कब आ रहे हो?” सोहन गुप्ता ने पूछा था।

“अभी कुछ पता नहीं।”

“सब ठीक तो है न? कोई खतरा तो नहीं?”

“पता नहीं।” कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया।

जामास ने फोन लेकर जेब में रखा और कह उठा।

“तुम खुद को हल्का महसूस कर रहे होगे कि उन लोगों के बारे में पता चल गया। मामूली बात थी ये।” जामास ने जगमोहन को देखकर कहा –“तुम ये बात सीधे मेरे से आकर पूछते तो तब भी मैं ये बता देता।”

“मुझे क्या पता तुम इतने बड़े दयालु हो।” जगमोहन ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा।

जामास मुस्कराया और देवराज चौहान से बोला।

“अब तो तुम सब जान गए हो कि मैं क्या कर रहा हूं, क्यों कर रहा हूँ।”

देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया।

“मैं अपने देश के प्रति वफादार हूं। जगवामा और गाठम की बहुत चली, अब पुलिस की चलेगी।”

“तुमने ये सब बातें मुझे क्यों बताई?” देवराज चौहान ने कहा।

“सुनकर अच्छा नहीं लगा?”

“अच्छे-बुरे की बात नहीं, ये बातें मेरे मतलब की नहीं हैं। मुझे क्या लेना इन बातों से...।”

“इन बातों से तुम्हारा गहरा वास्ता जुड़ने वाला है।”

“मेरा वास्ता –कैसे?”

“जगवामा और गाठम में से एक तो पक्का मरेगा। इस गैंगवार में।” जामास बोला –“है न?”

“तो?”

“एक बच जाएगा देवराज चौहान। आखिर उसे भी तो खत्म करना है। जरूरी तो नहीं कि हर काम मैं अपने पुलिस वालों से ही लूं। तुम जैसा काबिल आदमी मेरे पास है तो फिर मैं चिंता क्यों करूं?” जामास मुस्कराया।

देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी। माथे पर बल उभरे।

“क्या मतलब?”

“तुम बखूबी, मतलब समझ चुके हो।”

“तुम्हारा मतलब कि जो बच जाएगा, उसकी जान मैं लूं?”

“हां।”

“नहीं। मैं ये काम नहीं करूंगा।” देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता आ गई –“मैं क्यों किसी की हत्या करूं?”

“क्योंकि जगमोहन तुम्हें जिंदा चाहिए। चाहिए न मिस्टर देवराज चौहान।” जामास का चेहरा गम्भीर हो उठा –“जगमोहन तुम्हारा खास है, बेहद खास और ये कभी नहीं चाहोगे कि ये जान गंवा बैठे।”

“तुम हद से आगे बढ़ रहे हो। मैं इस तरह बे-वजह हत्या नहीं करता।” देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा।

“इतने भोले मत बनो। मैं जान चुका हूं कि किसी की जान लेना तुम्हारे लिए मामूली बात है।”

“तुम गलत सोच रहे हो। मैं इस तरह किसी की जान नहीं...।”

“तुमने ढेरों हत्याएं नहीं कर रखी?” जामास ने देवराज चौहान को घूरा।

“उन लोगों की, जो मुझे मारना चाहते थे। जिनके साथ मेरी दुश्मनी हो गई। ऐसा सब कुछ जब होता है तो होता चला जाता है लेकिन मैं किसी के कहने पर, किसी की जान नहीं लेता। जान लेने की ठोस वजह मेरे सामने हो तो...।”

“तुमने पैसे लेकर भी लोगों की हत्या की है।”

“एक-दो बार ही ऐसा हुआ। इसके लिए भी मैंने ये बात देखी कि जिसे मारने जा रहा हूं क्या वो इस लायक है कि उसे मारा जाए। जब मुझे सब कुछ सही लगा, तभी मैंने ये किया।” देवराज चौहान ने कहा –“अब तुम चाहते हो कि जगमोहन को बचाने के लिए मैं ऐसे इंसान की हत्या करूं, जिससे मेरा कोई वास्ता नहीं । दुश्मनी नहीं...।”

“फिर तो तुम्हें जगमोहन की मौत देखनी पड़ेगी।”

“तुम ऐसा नहीं कर सकते।”

“तुम देख ही रहे हो कि मैं सब कुछ कर सकता हूं। खासतौर से इन हालातों में सब कुछ कर सकता हूं। मुझे अपना ये छोटा-सा मिशन सफल बनाना है। गुंडों का खौफ शहर से हटाना है। तुम्हें मेरा काम करना ही होगा।” जामास ने कठोर स्वर में कहा –“वोमाल जगवामा और गाठम में से जो जिंदा बचेगा, उसे तुम मारोगे।”

देवराज चौहान ने जामास की आंखों में झांका।

दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे।

“तुम मेरे साथ गलत कर रहे हो।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“ऐसा मत करो।”

“तुम्हें ये ही करना होगा कि जगमोहन बच सके।”

“नुकसान तुम को ही होगा।”

“वो कैसे?”

“मेरे से जबर्दस्ती किसी की हत्या करवाओगे तो तुम भी नहीं बचोगे तब मैं तुम्हें नहीं छोड़ने वाला।”

जामास की आंखें सिकुड़ी।

“मुझे धमकी दे रहे हो।”

“सच बात बता रहा हूं। मैं ऐसा ही करता हूं जब कोई मुझे मजबूर कर दे।”

“इसका मतलब तुम्हें जगमोहन नहीं चाहिए।”

“अपना मामला खुद संभालो। मुझे और जगमोहन को बीच में मत लो। जगमोहन को मेरे हवाले करो कि मैं यहां से चला जाऊं। मुझे बर्मा (म्यांमार) के मामलों से कुछ नहीं लेना।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“इस तरह तो मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगा। जो मैं चाहता हूं वो तो तुम्हें करना ही होगा।”

“मैं बिना वजह किसी की जान नहीं लेता।”

“बिना वजह?” जामास के होंठ सिकुड़े –“मतलब कि तुम्हारी दुश्मनी पैदा हो तो तुम ये काम खुशी से कर दोगे।”

“पर मेरी दुश्मनी जगवामा या गाठम से क्यों होगी?”

“वो मैं पैदा कर दूंगा।”

“तुम?” देवराज चौहान ने जामास को देखा।

“तुम्हें वजह चाहिए मिस्टर देवराज चौहान कि तुम सामने वाले को मार सको। किसी को मारने के लिए तुम्हारी नजर में, कोई खास वजह होनी चाहिए। दुश्मनी होनी चाहिए। ठीक है, ऐसा भी हो जाएगा।”

देवराज चौहान ने गहरी सांस ली। जामास को देखकर बोला।

“तुम सच में बहुत खतरनाक हो। तुम्हारा दिमाग अपराधियों की तरह चलता है।”

“सारी उम्र ऐसे ही लोगों में बिताई है। लेकिन हो सकता है कि वो दुश्मनी तुम्हें भारी पड़ जाए। तब मैं तुम्हारी सहायता करने वाला नहीं। अपना मामला तुम्हें ही निबटाना होगा। तुम्हारे बारे में जो रिपोर्ट मेरे पास आई है, उसे देखते हुए कह सकता हूं कि तुम अपना मामला निबटाने में सक्षम हो। फिर भी तुम हार गए। मारे गए तो फिर इस काम को हम अपने ढंग से पूरा कर लेंगे।” जामास गम्भीर स्वर में बोला।

“तुम्हारा दिमाग तो ठीक है।” जगमोहन कह उठा।

“ठीक है, तभी तो तुम दोनों यहां पर मौजूद हो।” जामास ने जगमोहन को घूरा –“अपने यार को समझाओ कि वो मेरा काम कर दे। दोनों में से जो बचे उसे मार दे। इसी में बेहतरी है।”

“देवराज चौहान इस तरह काम नहीं करता।”

“तो जिस तरह करता है, वैसे ही सही। जो बचेगा उससे देवराज चौहान की दुश्मनी मैं करा दूंगा। तब इसे मजबूर होकर उसकी जान लेनी ही पड़ेगी। मेरा काम पूरा होना चाहिए। बेशक जैसे भी हो।”

“तुम बहुत घटिया इंसान हो।”

“कुछ भी कहो। मुझे अपना प्लान सफल होते हुए देखना है। हम पुलिस वालों ने इस काम पर बहुत मेहनत की है और देवराज चौहान, तुम यहां से बाहर नहीं जाओगे। अब तुम सब कुछ जान चुके हो। तुम्हारा बाहर जाना ठीक नहीं होगा हमारे लिए। यहां तुम्हारे साथ हर वक्त ओका रहेगा। जबकि जगमोहन इसी तरह बंधा रहेगा। अगर तुमने यहां से भागने की कोशिश की या भाग गए तो हम जगमोहन को खत्म करके ये ठिकाना छोड़ देंगे। समूशा, जगमोहन के हाथ भी बांध दो और जगमोहन पर नजर रखो। दोनों में से कोई भी शरारत न कर सके।”

समूशा जगमोहन की तरफ बढ़ गया।

“तुम मेरे साथ ठीक से पेश नहीं आ रहे जामास।” देवराज चौहान बोला।

“तुम यहां के पुलिस चीफ होते तो हालातों को ठीक से समझते। लेकिन तुम कुछ नहीं समझ रहे । जगवामा और गाठम दोनों ही बेहद क्रूर लोग हैं। लोगों का जीना हराम कर रखा है इन दोनों ने। जगवामा कई पुलिस वालों की हत्याएं कर चुका है। अन्य लोगों की हत्याएं भी वो करता रहता है। जो भी उसके काम में बाधा बना, वो गया। जगवामा कई हदें पार कर चुका है। इस शहर को नर्क बना दिया है उसने, और गाठम, वो दरिंदों जैसा है। अपहरण करता है, फिरौती नहीं मिलती तो शिकार को मार देता है। लोग गाठम से दहशत खाते हैं। उसको फिरौती देने वाले, अपना सब कुछ बेचकर उसे पैसा देते हैं। अगर पुलिस उसके आदमियों पर हाथ डालने की चेष्टा करती है तो पुलिस वालों को मार दिया जाता है। इन दोनों को खत्म करने के लिए मुझे कुछ भी करना पड़े, मैं करूंगा। इसी में देश की और जनता की भलाई है। पुलिस जब करने पर आती है तो बड़े-से-बड़ा दादा भी छोटा पड़ जाता है। एक बात ईमानदारी से बताओ कि ये सब कुछ हिन्दुस्तान में हो रहा होता और पुलिस तुम्हें इसी तरह पकड़कर कहती कि जो बचे उसे खत्म करना है तो तुम क्या करते?”

“मैं पुलिस की बात मानता। क्योंकि वहां के हालातों से मैं वाकिफ हूं और जानता हूं कि किसे खत्म करना ठीक रहेगा या किसे नहीं। परंतु ये देश मेरे लिए अंजान है। जगवामा या गाठम मेरे लिए अंजान...।”

“और तुम्हें मेरे पर भरोसा नहीं कि मैं जो कर रहा हूं वो सही है।” जामास कड़वे अंदाज में मुस्कराया –“ठीक है मिस्टर देवराज चौहान । इन दोनों में से जो बचेगा, उससे तुम्हारी दुश्मनी करा दी जाएगी फिर तुम उसे मेरे लिए नहीं, अपने लिए, अपने को बचाने के लिए, उसकी जान लोगे।”

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