रानी ताशा ने फोन एक तरफ रखा, आंखों में आंसू थे। उसका भोला भाला खूबसूरत चेहरा आंसुओं से भरा अच्छा नहीं लग रहा था।
सोमाथ एक तरफ खड़ा था। सोमारा पास ही बैठी कह उठी।
“क्या हुआ रानी ताशा?”
“राजा देव मेरे पास आना चाहते हैं। वो मुझसे मिलने को बेकरार हैं।” रानी ताशा भीगे स्वर में बोली।
“आपने तो उन्हें होटल का नाम भी बता दिया है, वो आते ही होंगे।”
“नहीं।” रानी ताशा ने इंकार में सिर हिलाया –“वो नहीं आ सकेंगे।”
“क्यों?”
“कोई उन्हें रोक रहा है। कोई है जो राजा देव की बात, मेरे से पूरी नहीं होने देता। हर बार बात अधूरी रह जाती है। अब भी किसी ने उनसे फोन छीन लिया था। मुझे किसी औरत की आवाज सुनाई दी थी। वो राजा देव की इस जन्म की पत्नी है। राजा देव ने ही मुझे ये बात कही। पता नहीं राजा देव इस वक्त किस हाल में होंगे।”
“क्या पता वो यहां आते ही हों।”
“नहीं सोमारा, राजा देव की पत्नी उन्हें मेरे पास नहीं आने देगी। बबूसा भी वहां है, वो भी राजा देव को जरूर रोकेगा मेरे पास आने को। अगर बबूसा ने विद्रोह न किया होता तो अब तक सब ठीक हो गया होता।”
“मैं बबूसा को सीधा कर दूंगी रानी ताशा। एक बार वो मेरे सामने तो पड़े।” सोमारा बोली –“राजा देव को वो जन्म कुछ याद आया कि नहीं? क्या वो सच में आपके पास आना चाहते हैं?”
“राजा देव ने ऐसा ही कहा। वो उतावले हो रहे थे। व्याकुल थे मेरे पास आने को। परंतु उन्हें याद नहीं आया कि सदूर ग्रह पर कभी वो अपना जीवन जिया करते थे लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि उन्हें याद आ जाएगा। सोमारा, मैं भी राजा देव के पास जाना चाहती हूं। अब उन्हें देखे बिना चैन नहीं मिलता। मन तड़प रहा है मेरा।”
“लेकिन राजा देव कहां हैं, ये तो हमें पता नहीं। हम उनके पास कैसे जाएंगे?”
“महापंडित बताएगा। जैसे भी हो उसे बताना ही होगा कि...।”
तभी कुछ दूर पड़े रानी ताशा के यंत्र से कुछ आवाज-सी आने लगी।
रानी ताशा फौरन उठी और आगे बढ़कर यंत्र उठाकर उसके दो बटनों को दबाया। आवाज बंद हो गई और दूसरी तरफ से किलोरा की आवाज आ रही थी जो रानी ताशा को पुकार रहा था।
“कहो किलोरा।” रानी ताशा ने कहा –“वहां पर सब ठीक तो है?”
“सब ठीक है रानी ताशा। डोबू जाति वाले पूरी तरह हमारे इशारे पर चल रहे हैं।”
“ये अच्छी बात है, कोई लापरवाही मत कर देना।”
“हम इस बारे में सतर्क हैं।”
“होम्बी की कोई खबर?”
“वो अपने कमरे में ही रहती है। बाहर नहीं निकलती। किसी से बात नहीं करती।” किलोरा की आवाज ट्रांसमीटर जैसे यंत्र से निकली।
“कुछ और कहना है तुमने?”
“अभी-अभी महापंडित ने हमसे सम्पर्क करके बात की है। आपको संदेश देने को कहा है।”
“बताओ।”
“महापंडित का कहना है कि सदूर ग्रह और पृथ्वी में दूरी ज्यादा होने के कारण उसकी दो मशीनें जवाब दे गई हैं। उन्हें ठीक करने में वक्त लगेगा। ऐसे में राजा देव का पता बताना कठिन होगा। इस बारे में कुछ दिन रुकने को कहा है।”
“ओह।” रानी ताशा गम्भीर हो उठी –“ये तो बुरी बात हुई।”
“मेरे लिए क्या हुक्म है रानी ताशा?” किलोरा की आवाज यंत्र से निकली
“डोबू जाति को ठीक से काबू में रखो। हम अपना काम पूरा करके वापस लौट आएंगे।”
उसके बाद बातचीत समाप्त हो गई। रानी ताशा ने यंत्र वापस रखा और सोफे की तरफ बढ़ती गम्भीर स्वर में बोली।
“बहुत बुरा हुआ सोमारा। महापंडित की दो मशीनें खराब हो गई हैं। ठीक करने में ज्यादा वक्त लगेगा। वो अभी राजा देव का पता नहीं बता सकता।”
“तो अब हम क्या करेंगे?” सोमारा कह उठी –“मैं तो सोच रही थी कि बबूसा से जल्दी ही मिलूंगी।”
“हमें खुद ही राजा देव की तलाश करनी होगी।”
“पर कैसे? हमें क्या पता वो कहां होंगे, या कौन हमें उनके बारे में बता सकता है।” सोमारा बोली।
“जैसे भी हो, हमें राजा देव को ढूंढ़ना होगा। इस बीच महापंडित ने मशीनें ठीक कर ली तो वो बता देगा। वरना तब तक हम हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठे रह सकते।” रानी ताशा ने सोच भरे स्वर में कहा फिर सोमाथ को देखा –“सोमाथ...।”
“जी रानी ताशा।” सोमाथ एक कदम आगे आया।
“हमने राजा देव को ढूंढ़ना है, कैसे ढूंढ़े?”
“हमें होटल से बाहर निकलकर राजा देव की तलाश करनी होगी।” सोमाथ ने कहा।
“पर कैसे? पृथ्वी ग्रह पर तो लोग ही बहुत हैं। हम कैसे ढूंढ़ पाएंगे राजा देव को?”
“राजा देव पृथ्वी ग्रह पर किस नाम से रहते हैं, हमें तो ये भी नहीं पता।” सोमारा बोली।
“ये समस्या तो सही है। हमारे पास राजा देव की तस्वीर भी नहीं।” रानी ताशा व्याकुल हो उठी –“हमारे लिए राजा देव को ढूंढ़ना बेहद कठिन होगा। कैसे करें सोमाथ?”
“मेरे ख्याल में।” सोमाथ ने सोच भरे स्वर में कहा –“हमें इस ग्रह के निवासी की सहायता लेनी चाहिए। वो ही हमें रास्ता बता सकता है। हम इस ग्रह के सिस्टम के बारे में ज्यादा नहीं जानते।”
“इस ग्रह का आदमी भी राजा देव को कैसे ढूंढ़ पाएगा। हमारे पास तो न राजा देव का, यहां का नाम है, न ही उनके चेहरे की तस्वीर।” रानी ताशा ने कहा –“मुझे ये काम बहुत कठिन लग रहा है।”
“सोमाथ ठीक कहता है रानी ताशा।” सोमारा ने सोच भरे स्वर में कहा –“अगर इस हाल में हमारी कोई सहायता कर सकता है तो वो इस ग्रह का इंसान ही है। उसके सामने हम सारे हालात रखकर, उससे सलाह लेंगे कि हमें क्या करना चाहिए।”
“ये ही बेहतर रास्ता है, क्यों सोमाथ?” रानी ताशा ने सोमाथ को देखा।
“मुझे भी ये बात जंची।”
“तो इस ग्रह के ऐसे किसी इंसान को ढूंढ़ो जो हमारी सहायता कर सकें।”
“मैं किसी को ढूंढ़ कर लाता हूं रानी ताशा।” सोमाथ ने कहा और बाहर निकल गया।
रानी ताशा ने सोमारा से कहा।
“कितने नाजुक मौके पर महापंडित की मशीनें खराब हो गईं। सदूर और पृथ्वी में दूरी भी तो बहुत ज्यादा है। पृथ्वी के बारे में कोई बात जानने की चेष्टा में मशीनों पर जोर पड़ा होगा और वो खराब हो गईं।”
“मैं अपने भाई को जानती हूं।” सोमारा बोली –“वो जल्दी ही मशीनें
ठीक कर लेगा।”
“पर हम खाली नहीं बैठेंगे। हम भी अपने ढंग से राजा देव की तलाश शुरू कर देंगे।” रानी ताशा का स्वर भर्रा उठा –“मैं अब ज्यादा देर राजा देव से दूर नहीं रह सकती। कितने दुख की बात है कि राजा देव मेरे से ज्यादा दूर नहीं हैं, परंतु मैं समझ नहीं पा रही कि वो कहां पर हैं, राजा देव भी मेरे बिना तड़प रहे होंगे। मेरी आवाज सुनते ही पागल जैसे हो उठते हैं राजा देव। ताशा-ताशा कहकर पुकारते हैं, सुनकर कितना अच्छा लगता है कि राजा देव, मुझे पुकार रहे हैं।” रानी ताशा की आंखें आंसुओं से भर आईं –“देव, मेरे देव-मेरे प्यारे मुझे अपनी बांहों में ले लो। तुम्हारा बहुत इंतजार किया है मैंने। अब रहा नहीं जाता।”
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विजय बेदी ने जब से रानी ताशा को देखा था, तभी से रानी ताशा पर नजर रखे हुए था। परंतु तब से रानी ताशा उसे नजर नहीं आई थी। वो होटल के कमरे में ऐसी बंद हुई कि बाहर नहीं निकली थी। बेदी मन-ही-मन उसकी सुंदरता का कायल हो चुका था। परंतु उसे सुंदरता से ज्यादा मतलब नहीं था, उसे तो इस बात से मतलब था कि वो पैसे वाली है। अगर उससे किसी तरह बात हो जाए तो सिर में फंसी गोली निकलवाने के लिए डॉक्टर वधावन से ऑप्रेशन करा सकता है। पैसे वसूल सकता है इससे। विजय बेदी सोच रहा था कि कैसे वो उस औरत से मुलाकात करे कि वो उसे अपने पास बैठा ले। उसे नोट दे दे। तरह-तरह के प्लान सोच रहा था और होटल में ही जमा हुआ था। किराए पर ले रखे कमरे में सिर्फ कपड़े बदलने जाता था। इस वक्त वो होटल की तीसरी मंजिल पर रानी ताशा वाले कमरे के सामने से निकल रहा था। कमरे का दरवाजा बंद था। कुछ आगे जाकर वो फिर वापस आया कि तभी कमरे का दरवाजा खुलते और सोमाथ को बाहर निकलते देखा। उसने दरवाजा बंद कर दिया और गैलरी में आगे बढ़ गया।
बेदी ने सोमाथ को फौरन पहचाना।
उस दिन इसे भी रानी ताशा के साथ देखा था।
बेदी के दिमाग में घूमती कई योजनाओं में से एक योजना ने उछाल मारी और तेजी से सोमाथ के पीछे चलता उसके पास पहुंच गया और जेब से पैकेट निकालता, मुस्कराकर बोला।
“सर, आपके पास लाइटर होगा?”
सोमाथ ने ठिठककर बेदी को देखा।
बेदी खुलकर मुस्कराया। सोमाथ को देखता रहा।
“क्या बोला तुमने?”
“लाइटर।” विजय बेदी पैकेट से सिगरेट निकालकर, होंठों पर लगाता कह उठा।
सोमाथ ने उसके होंठों के बीच फंसी सिगरेट को ध्यान से देखा फिर कह उठा।
“मैं नहीं जानता, लाइटर क्या होता है।”
“लाइटर नहीं जानते आप?” बेदी अजीब-से अंदाज में मुस्कराया।
“नहीं।”
“आप मजाक कर रहे हैं।” बेदी हौले-से हंस पड़ा –“चलिए नीचे चलते हैं, आप भी तो नीचे ही जा रहे थे।”
लिफ्ट पास ही में थी। दोनों वहां पहुंचे। लिफ्ट खड़ी मिली। वो भीतर सवार हुए और बेदी ने ग्राउंड फ्लोर का बटन दबा दिया। लिफ्ट नीचे सरकने लगी। बेदी ने सिगरेट पैकेट में डाली कि सोमाथ बोला।
“तुम इस ग्रह पर क्या करते हो?”
“ग्रह पर?” विजय बेदी ने न समझने वाली निगाहों से सोमाथ को देखा।
“पृथ्वी ग्रह पर।”
बेदी अचकचाकर सोमाथ को देखने लगा।
“क्या मैंने कुछ गलत कह दिया?” सोमाथ शांत स्वर में बोला।
“तुम मुझसे पूछ रहे हो कि मैं पृथ्वी ग्रह पर क्या करता हूं।” बेदी कह उठा।
“हां।”
“तुम्हारी बात में पृथ्वी ग्रह का क्या मतलब हुआ। क्या तुम किसी दूसरे ग्रह से आए हो?”
सोमाथ चुप रहा।
लिफ्ट नीचे पहुंची और दरवाजा खुल गया। दोनों बाहर निकले। यहां
ज्यादा रौनक दिख रही थी। वे दोनों एक तरफ बढ़ गए। विजय बेदी कह उठा।
“अगर फुर्सत हो तो कॉफी ले लेते हैं।”
“मैं कॉफी नहीं पीता।”
“व्हिस्की तो लेते होगे।”
“व्हिस्की? वो क्या होता है?” सोमाथ चलते-चलते बोला।
“कमाल है, तुम दारू नहीं जानते।” बेदी ने अजीब-से स्वर में कहा।
“दारू क्या होती है?”
“दारू भी नहीं जानते।” बेदी ने मुस्कराकर सोमाथ के चेहरे पर नजर मारी –“लगता है मजाक करना तुम्हारी आदत है। चलो कुछ खा लेते हैं।”
“मैं कुछ भी नहीं खाता।”
“खाते तुम नहीं, पीते तुम न हीं फिर तुम जिंदा कैसे रहते हो?”
“मेरी बैटरी मुझे जीवन देती है।”
“बैटरी?”
“हां, वो मेरे भीतर लगी है।”
“मान गए। तुम तो पहुंचे हुए लगते हो।”
सामने लॉबी दिखी तो सोमाथ ने कहा।
“चलो वहां बैठकर बातें करते हैं।”
“लॉबी में, हां-हां वहीं बैठते हैं।”
दोनों लॉबी के सोफों पर जा बैठे।
“तुम क्या करते हो?”
विजय बेदी ने सोमाथ को देखा।
“अब तो मैंने अपना सवाल ठीक ढंग से पूछा?”
“हां।” बेदी मुस्कराया –“तुम मजाक करने वाले इंसान हो। वैसे मैं तो ऐश करता हूं।”
“ऐश?”
“हां, खाता-पीता हूं। मजे करता हूं। मेरे पास बहुत पैसा है। खत्म नहीं होता।”
“समझ गया। क्या तुम मेरी सहायता करोगे?” सोमाथ ने पूछा।
“सहायता?”
“एक आदमी को ढूंढ़ना है परंतु उसका नाम-पता नहीं मालूम।”
“नाम-पता नहीं मालूम और ढूंढना है। ये कैसे हो सकता है बिना नाम-पते के...”
“ये तुम्हें पता होगा कि इस ग्रह पर कैसे किसी को ढूंढ़ा जा सकता है।” सोमाथ ने कहा।
विजय बेदी को लगा कि ये अच्छा मौका है उस औरत के करीब जाने का।
“ठीक है। मैं कोशिश करूंगा। उस आदमी की तस्वीर होगी?”
“नहीं है।”
“कुछ भी नहीं है और एक आदमी को ढूंढ़ना है।” बेदी ने आहत भाव से सोमाथ को देखा।
“तुम बताओ कि कैसे ढूंढा जाए?”
“उसका नाम क्या है?”
“उसका इस ग्रह का नाम नहीं पता।”
“इस ग्रह का नाम नहीं पता?” विजय बेदी ने उसे घूरा –“तो दूसरे ग्रह का नाम क्या है?”
“राजा देव।”
“कौन-सा ग्रह है तुम्हारा?” बेदी ने उखड़े स्वर में पूछा।
“सदूर ग्रह...”
विजय बेदी, सोमाथ को टकटकी बांधे देखने लगा।
“उस आदमी को ढूंढना है।”
“नाम-पता नहीं मालूम। उसकी तस्वीर भी नहीं है। कुछ भी नहीं है और उसे ढूंढ़ना है।” विजय बेदी कह उठा –“ये काम तो कठिन है और तुम दूसरे ग्रह का उसका नाम बता रहे हो, राजा देव। वैसे ये ग्रह है कहां पर?”
सोमाथ ने उंगली ऊपर की।
बेदी ने छत को देखा। फिर सोमाथ को देखा।
“मेरे से मजाक करना बंद करो। सीधी तरह कहो कि बात क्या है?” बेदी बोला।
“क्या मेरी बात समझ नहीं आई?” सोमाथ ने पूछा।
“समझकर भी समझ नहीं आई।” बेदी ने हाथ हिलाया –“तुम्हारे दूसरे ग्रह की बात तो जरा भी समझ नहीं आई।”
“तुम मेरा कहा काम करने को तैयार हो?”
“तैयार तो हूं पर समझ में नहीं आया कि काम क्या है।”
“मेरे साथ चलो। रानी ताशा तुम्हें समझा देगी, जो तुम्हारी समझ में
नहीं आ रहा।”
“रानी ताशा?” बेदी का दिल धड़का। उस औरत का खूबसूरत चेहरा आंखों के सामने नाचा –“वो कौन है?”
“सदूर ग्रह की रानी है।”
“वो ग्रह जो ऊपर है?”
“हां। क्या तुम रानी ताशा से इस बारे में बात करना पसंद करोगे?”
“क्यों नहीं।” अपनी खुशी पर काबू पाकर, बेदी ने सामान्य स्वर में कहा।
“मेरे साथ चलो।” सोमाथ कहते हुए खड़ा हुआ।
बेदी भी उठा। जानते हुए भी पूछा।
“रानी ताशा कहां पर है?”
“इसी होटल के एक कमरे में।”
“क्या वो भी तुम्हारी तरह ही बातें करती है। ग्रह की बातें या कुछ खाती-पीती नहीं, या...”
“रानी ताशा खाती है। कॉफी भी पीती है।” सोमाथ ने कहा।
“दारू भी।”
“दारू होती क्या है?”
“उसे पीने से सिर पर नशा सवार हो जाता है।”
“रानी ताशा ऐसी चीजों का सेवन नहीं करती।”
“तुम रानी ताशा के क्या लगते हो?”
“मैं उनका सेवक हूं। उनका हुक्म मानना मेरा काम है।”
विजय बेदी को ठीक से सोमाथ की बातें समझ में नहीं आईं। परंतु मन-ही-मन वो खुश था कि उस खूबसूरत औरत से उसका सामना होने जा रहा है। वो किसी को तलाश करवाना चाहती है। यानी कि नोटों का जुगाड़ हो सकता है कि वो वधावन से ऑपरेशन करा सके। बेदी सोचता जा रहा था कि रानी ताशा नाम की औरत को कैसे फंसाए।
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विजय बेदी ने सोमाथ के साथ उस होटल के कमरे में प्रवेश किया। कमरा काफी बड़ा था और बेडरूम के साथ-साथ ड्राइंग रूम का भी काम दे रहा था। एक तरफ सोफे लगे थे और रानी ताशा, सोमारा के साथ सोफों पर ही बैठी थी। उनकी निगाह भी पास आते दोनों पर गई। उनकी निगाह बेदी पर टिक चुकी थी।
“रानी ताशा।” सोमाथ ने कहा –“ये हमारा काम करने को तैयार है।”
“राजा देव को ढूंढ़ लेगा ये।” सोमारा कह उठी।
“परंतु ये आपसे बातचीत करना चाहता है। मेरी बातों से इसे तसल्ली
नहीं हुई।”
रानी ताशा अपनी जगह से उठी। विजय बेदी को देखकर मुस्कराई।
“स्वागत है।” रानी ताशा बोली।
अपनी धड़कनों पर काबू पाए विजय बेदी आगे बढ़ा। हाथ आगे करके बोला।
“हैलो।”
रानी ताशा ने उसका बढ़ा हाथ देखा और फिर उसका हाथ थाम लिया।
“यहां के लोग इस तरह, नए लोगों से मिलते हैं।” रानी ताशा बोली।
“यहां के लोग?” बेदी के चेहरे पर उलझन उभरी।
“मेरा मतलब इस ग्रह के लोग।”
विजय बेदी दो पल के लिए सकपका-सा उठा फिर कह उठा।
“ये ग्रह वाली बात मेरी समझ में नहीं आई।”
“तुमने इसे कुछ बताया नहीं सोमाथ?” रानी ताशा ने सोमाथ को देखा।
“बता दिया है ग्रह के बारे में।”
रानी ताशा की निगाह विजय बेदी पर जा टिकी। बेदी ने रानी ताशा का हाथ छोड़ा और सोमारा को अपनी तरफ देखते पाकर हैलो कहा।
जवाब में सोमारा सिर्फ उसे देखती रही।
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“विजय-विजय बेदी।” बेदी ने कहा।
“बैठो, मैं तुम्हें सब कुछ बताती हूं।” कहते हुए रानी ताशा बैठ गई।
विजय बेदी भी बैठा।
सोमाथ खड़ा रहा था।
“मैं सदूर ग्रह पर कभी राजा देव के साथ रहती थी, परंतु राजा देव...”
“सदूर ग्रह?” बेदी का सिर घूम गया कि ये भी किसी ग्रह की बात कर
रही है –“मैं ग्रह वाली बात नहीं समझा मैडम।”
“तुम मुझे मैडम क्यों कह रहे हो?”
“यहां किसी औरत को इज्जत देते हुए मैडम ही कहते हैं।”
“पर तुम मुझे रानी ताशा कहो। सब मुझे ये ही कहते हैं।” रानी ताशा ने कहा।
“ठीक है मैं रानी ताशा कहूंगा तुम्हें। तो मैं पूछ रहा था कि ये ग्रह वाली बात...”
“हम पृथ्वी के रहने वाले नहीं हैं।”
“क्या?” विजय बेदी की आंखें सिकुड़ीं –“तुम लोग पृथ्वी ग्रह पर नहीं रहते?”
“नहीं, हम सदूर ग्रह पर रहते हैं। पोपा में बैठकर आए हैं।”
“पोपा?” बेदी का सिर घूम गया।
“जब एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर जाते हैं तो पोपा का इस्तेमाल करते हैं।” रानी ताशा ने कहा।
“समझा। हमारे यहां पोपा को अंतरिक्ष यान कहते हैं।” विजय बेदी को ये सब पागलों वाली बातें लग रही थीं, लेकिन वो रानी ताशा की हां में हां मिलाता बोला –“तो आप लोग अंतरिक्ष यान में बैठकर यहां पृथ्वी पर आए हैं।”
“हां, क्योंकि हमें यहां पर राजा देव की तलाश है। उसे यहां से वापस सदूर ग्रह पर ले जाना है।”
“साली, मुझे पागल बना रही है।” बेदी बड़बड़ा उठा –“मुझे क्या मुझे तो नोटों से मतलब है।”
“क्या कहा तुमने?” रानी ताशा बोली।
“मैं तुम्हारी बात याद कर रहा था कि तुम सदूर ग्रह से आई हो। पर तुम्हारा पोपा कहां है?” बेदी ने पूछा।
“वो डोबू जाति के पास खड़ा है।”
“डोबू जाति?”
“उससे तुम्हें कोई मतलब नहीं। तुमने तो राजा देव को ढूंढ़ना है, जिनका यहां पर क्या नाम है, मालूम नहीं...”
“ये राजा देव कौन है?”
“वो ही तो तुम्हें बता रही थी कि सदूर ग्रह के राजा हैं, राजा देव और मैं उनकी रानी थी।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा –“परंतु कभी कुछ ऐसा हुआ कि राजा देव सदूर ग्रह से पृथ्वी पर आ गए।”
“पोपा में बैठकर?” बेदी के होंठों से निकला।
दो क्षण चुप रहने के बाद रानी ताशा कह उठी।
“ये तो मुझे पता नहीं कि राजा देव पृथ्वी पर कैसे पहुंचे, परंतु वो पृथ्वी ग्रह पर आ गए।”
“फिर?”
“अब मैं पोपा में बैठकर पृथ्वी पर आई हूं कि राजा देव को वापस ले जा सकूँ।”
“समझ गया, सब समझ गया।” विजय बेदी ने कुछ ज्यादा ही सिर हिलाया –“पर मैंने तो सुना है कि ब्रह्मांड के किसी भी ग्रह पर लोग नहीं रहते।”
“हम रहते हैं सदूर ग्रह पर।”
“जरूर रहते होंगे।” बेदी ने पुनः सिर हिलाया जैसे बातों को हजम कर रहा हो –“तो आपको राजा देव को तलाश करना है। क्या राजा देव को याद है कि वो सदूर ग्रह पर राजा थे?”
“नहीं याद।”
“कैसे पता कि उसे नहीं याद।”
“मेरी उनसे बात हुई थी।”
“कब? कैसे?” बेदी के होंठों से निकला।
“कुछ देर पहले ही फोन पर बात हुई...”
“तुम्हारे पास उसका फोन नम्बर है?” बेदी हैरान-सा कह उठा।
“हाँ।”
“कहां से मिला?”
कुछ चुप रहकर रानी ताशा ने कहा।
“कहीं से मिल गया था।”
“तो फोन पर उनसे पूछा क्यों नहीं कि वो कहां रहता है। आप जैसी खूबसूरत युवती को देखकर वो धन्य हो जाएगा और आप उसको अपना पति कह रही हैं तो, उसकी तो लॉटरी ही खुल गई। वो तो खुश हो जाएगा।”
“बबूसा राजा देव के पास है, वो उन्हें मेरे पास आने से रोक रहा है।”
“बबूसा कौन?”
“सदूर ग्रह पर राजा देव का सेवक हुआ करता था।”
“तो क्या वो भी आपके साथ ही पृथ्वी ग्रह पर आया है?” रानी ताशा ने बेदी को देखते गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम्हें इन बातों से कोई मतलब नहीं होना चाहिए। सारी बातें जानने की जरूरत भी क्या है।”
विजय बेदी ने सिर हिलाया। उसे लगा कि पागल और बेवकूफ लोगों में आ फंसा है। जिनका दिमाग अपनी जगह से हिला हुआ है। परंतु उसे तो नोटों से मतलब था कि अपना ऑपरेशन करा सके।
“रानी ताशा।” विजय बेदी ने अपने स्वर को गम्भीर बनाकर कहा –“ये बहुत मुश्किल काम है क्योंकि आपको राजा देव का आज का नाम भी नहीं पता। उसकी कोई तस्वीर भी नहीं है। उसके यारों दोस्तों की भी जानकारी नहीं है। सिर्फ उसका फोन नम्बर ही है। परंतु वहां बबूसा बैठा है जो कि टांग फंसा रहा है। मतलब कि राजा देव को ढूंढ़ना आसान काम नहीं। क्या पता वो मुम्बई शहर में है या कहीं और रहता...”
“वो मुम्बई में ही रहते हैं।”
“कैसे पता?”
“बबूसा के मुम्बई में होने का ये ही मतलब निकलता है। महापंडित ने भी मुम्बई में ही होने के बारे में कहा था।”
“महापंडित कौन?” बेदी ने सामान्य स्वर में पूछा
“ये है कोई, तुम्हें बताने की जरूरत नहीं । तुम राजा देव को ढूंढ़ने की
बात करो। उन्हें ढूंढ सकते हो?”
“आपके लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूं।”
“मतलब कि राजा देव को तलाश कर लोगे?” रानी ताशा का चेहरा
चमक उठा।
“हां। आराम से। परंतु इसमें बीस लाख का खर्चा आएगा।”
“बीस लाख, क्या बीस लाख?” रानी ताशा के होंठों से निकला।
तभी सोमारा कह उठी।
“ये इस ग्रह के पैसों की बात कर रहा है। यहां हर कोई पैसे लेता है
हमने कपड़े लिए तो पैसे दिए। हम होटल में ठहरे तो हमने पैसे दिए। इसी प्रकार ये भी पैसे मांग रहा है।”
“सही कहा आपने।” बेदी सोमारा को देखकर मुस्कराया।
“यहां हर काम के पैसे लगते हैं?” सोमारा ने पूछा।
बेदी ने सहमति से सिर हिला दिया फिर बोला।
“इस काम का बीस लाख रुपया लगेगा। पांच लाख मैं पहले लूंगा।”
रानी ताशा ने सोमाथ को देखकर कहा।
“क्या हमारे पास इतना पैसा है?”
“जरूर है, रानी ताशा।” सोमाथ बोला।
“तो इसे दे दो। ये पहले पांच लाख लेगा।” रानी ताशा ने बेदी से कहा –“बाकी कब लोगे?”
“जब आपको राजा देव तक पहुंचा दूंगा। मुझे राजा देव का फोन नम्बर दे दीजिए।”
रानी ताशा ने फोन नम्बर बता दिया।
“अब पांच लाख।”
रानी ताशा ने सोमाथ को देखा तो सोमाथ कमरे के वार्डरौब की तरफ बढ़ गया। विजय बेदी सोफे पर बैठा सोमाथ को देखता रानी ताशा से कह उठा।
“जब तक मैं राजा देव को तलाश करूंगा, तब तक मैं आपके साथ ही रहूंगा।”
“हमें कोई एतराज नहीं।”
“क्या इसी कमरे में रहूंगा या मुझे कोई अलग से कमरा लेकर देंगी।”
“जैसा तुम चाहो। मैं तो कहूंगी कि तुम हमारे साथ ही रहो। तुमसे बातचीत करके हमें पृथ्वी ग्रह को जानने का मौका मिलेगा।”
“फिर पृथ्वी ग्रह।” बेदी बड़बड़ा उठा –“चुप कर बेदी, नोट आने दे। तेरा ऑपरेशन हो जाएगा। कहने दे जो ये कहते हैं। पृथ्वी हो या सदूर, तेरा काम तो हो रहा है न।”
“क्या कहा तुमने?” रानी ताशा ने पूछा।
बेदी ने सोमाथ को वार्डरोब से सूटकेस निकालते देखा तो खड़ा हो गया।
“उस सूटकेस में रुपए हैं?” बेदी ने पूछा।
“हां।”
सोमाथ ने वहीं पर सूटकेस रखकर उसे खोला तो आधा सूटकेस नोटों की गड्डियों से भरा था।
विजय बेदी की आंखें फैल गईं।
ये नोट रानी ताशा को डोबू जाति के ठिकाने पर से ही मिले थे। पहाड़ों में मिले कीमती पत्थर (हीरे) बेचकर ओमारू रुपया अपने पास रखकर जाति के लोगों की जरूरत का सामान अपने लोगों से आसपास के कस्बों से मंगाया करता था। तो ये वहां से रानी ताशा अपने साथ ले आई थी तो कुछ वहां पर अपने लोगों को दे आई थी कि जरूरत पड़ने पर वो इस्तेमाल कर सकें।
“इधर आओ।” सोमाथ ने बेदी को पुकारा।
बेदी उठकर सोमाथ के पास पहुंचा।
“तुम कितना पैसा लेना चाहते हो पहले।” सोमाथ ने पूछा।
“पांच लाख।”
“ले लो।”
विजय बेदी फौरन झुका और हजार-हजार के नोटों की पांच गड्डियां ईमानदारी से उठा लीं। जबकि सोमाथ, रानी ताशा या सोमारा नहीं जानती थी कि पांच लाख कितना होता है। ये बात अगर बेदी को पता होती तो बेदी ने एक ही बार में बीस-पच्चीस लेकर निकल जाना था। बहरहाल उसने पांच लाख ही निकाला और कहा।
“बंद कर लो।”
सोमाथ ने सूटकेस बंद किया और उसे वापस वार्डरोब में रख लिया।
“तुम ये पैसा यहीं पर रखते हो।” बेदी ने पूछा।
“हां।”
सोमाथ ने वार्डरोब का दरवाजा बंद किया।
बेदी ने हसरत भरी निगाहों से वार्डरोब को देखा।
“अब तुम कैसे ढूंढ़ोगे राजा देव को?” रानी ताशा ने पूछा।
बेदी नोटों की गड्डियां थामे रानी ताशा के पास आ पहुंचा।
“मैं थोड़ी देर में वापस आता हूं।” विजय बेदी ने कहा।
“कहां जा रहे हो?” रानी ताशा ने पूछा।
“ये पैसा रखने। उसके बाद राजा देव को...”
“तुम कहीं पैसा लेकर भाग तो नहीं जाओगे?” रानी ताशा कह उठी।
विजय बेदी की निगाह वार्डरोब की तरफ उठी फिर रानी ताशा से मुस्कराकर बोला।
“भागने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं बहुत ईमानदार बंदा हूं। आने वाले वक्त में आप समझ जाएंगी बेदी को।”
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विजय बेदी डेढ़ घंटे में लौट आया। चेहरे पर सदाबहार मुस्कान बिछी थी।
“सोमारा कह रही थी तुम पैसा लेकर भाग गए। अब नहीं लौटोगे।” रानी ताशा बोली।
“सोमारा गलत कह रही थी।” बेदी ने सोमारा को देखा –“मैं बहुत शरीफ बंदा हूं।”
“अब हमें तुम पर भरोसा हो गया।” सोमारा कह उठी।
“शुक्रिया।” बेदी आगे बढ़ा और चेयर पर बैठता कह उठा –“मुझे भूख लगी है। इस होटल का खाना बढ़िया होता है। मंगवा लो।”
“हम नहीं जानते कि इस ग्रह पर खाने को क्या-क्या होता है।” रानी ताशा ने कहा –“बेहतर है तुम ही आर्डर दो। हमारे लिए भी मंगवा लेना। सोमाथ कुछ नहीं खाएगा।”
विजय बेदी ने इंटरकॉम पर रूम सर्विस को खाने का ऑर्डर दे दिया।
“अब राजा देव को कैसे ढूंढ़ोगे?” रानी ताशा गम्भीर स्वर में बोली।
“ये काम तो मैं अभी निबटा देता हूं। बाकी का पंद्रह लाख लेकर, ऑपरेशन करवाकर, सिर में फंसी गोली निकलवानी है।”
“गोली क्या होती है?” सोमाथ ने पूछा।
“रिवॉल्वर की गोली।”
“रिवॉल्वर क्या होती है?”
बेदी, सोमाथ को टकटकी बांधे देखने लगा, फिर धैर्य से बोला।
“रिवॉल्वर, एक हथियार का नाम है। वहां से गोली निकलती है और जिसे लगती है, वो मर जाता है।”
“तुम्हें गोली लगी है।”
“हां। सिर के बीच, दोनों दिमागों के हिस्सों के बीच फंसी है। कई साल हो गए। अभी तो गोली वहीं की वहीं सेट है अगर वहां से हिल गई तो सिर में जहर फैल जाएगा और मैं मर जाऊंगा। इसलिए गोली निकलवानी जरूरी है। उसके लिए पैसों की जरूरत है और अब पैसे तुमसे मिल रहे हैं। लगता है इस बार मेरा काम हो ही जाएगा।”
“पर तुमने तो कहा था कि तुम्हारे पास बहुत पैसे हैं।” सोमाथ शांत स्वर में बोला।
“वो पैसे ऑपरेशन कराने के लिए नहीं हैं। ऐश करने के लिए हैं।” बेदी ने मुस्कराकर कहा।
“राजा देव को ढूंढ़ो।” रानी ताशा ने गम्भीर स्वर में कहा –“मुझे उनकी बहुत जरूरत है।”
“अभी लो।” कहने के साथ ही विजय बेदी ने फोन निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
“किसे फोन कर रहे हो?” रानी ताशा ने पूछा।
“उसी नम्बर पर फोन कर रहा हूं जो तुमने ये कहकर दिया था कि ये
राजा देव का नम्बर है।”
“तुम राजा देव से बात करने जा रहे हो।”
“देखती जाओ।” कहने के बाद विजय बेदी ने फोन को कान से लगा लिया।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी।
बेदी ने कलाई पर बंधी घड़ी में वक्त देखा। रात के बारह बजने जा रहे थे।
‘साला सो गया होगा।’ बेदी बड़बड़ा उठा।
रानी ताशा, सोमारा और सोमाथ की निगाह बेदी पर ही थी।
उधर बेल जा रही थी।
फिर बेल जानी बंद हो गई। कॉल रिसीव नहीं की गई।
बेदी ने दोबारा नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया। बेल जाने लगी।
“हैलो।” फौरन ही नगीना की आवाज कानों में पड़ी।
“आपका चोरी गया सामान बरामद कर लिया गया है मैडम।” बेदी ने फौरन कहा।
“चोरी गया सामान?”
“पुलिस स्टेशन में आपने रिपोर्ट...”
“रॉंग नम्बर, हमारा कोई सामान चोरी नहीं हुआ।” उधर से नगीना ने कहा।
“मैं सब-इंस्पेक्टर तौलपड़े बोल रहा हूं। आप कहां से बोल रही हैं, पता बताइए।”
“क्यों?”
“आपने रिपोर्ट के साथ अपना ये ही नम्बर दिया था, अब आप कहती हैं कि सामान चोरी नहीं हुआ। जबकि सामान के साथ हमने चोर को भी गिरफ्तार कर लिया है। उसका कहना है कि आपके यहां से ही सामान चोरी किया...”
“चोर ऐसा कहता है।”
“हां।”
“तो चोर ही आपको बता देगा कि उसने कहां से सामान चोरी किया...”
“वो कहता है आपके यहां से ही सामान चोरी किया है।”
“तो चोर आपको हमारे घर तक ले आएगा। आप आइए, हम आपका इंतजार कर रहे हैं।”
“आप अपने पति से बात कराइए।”
“क्यों?”
“आप मेरी बात नहीं समझ रहीं...”
“हमने पुलिस में चोरी की रिपोर्ट लिखाई थी? नगीना ने उधर से व्यंग्य भरे स्वर में कहा।
“हां।”
“फिर तो रिपोर्ट में भी हमारा एड्रेस होगा। सीधा चले आइए हमारे पास।” कहकर उधर से नगीना ने फोन बंद कर दिया।
बेदी गहरी सांस लेकर बड़बड़ाया।
“समझदार है।” इसके साथ ही पुनः नम्बर मिलाकर, फोन कान से लगा लिया।
बेल गई फिर जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
“बोलो।”
“सर जी, आपका सामान चोरी...”
“कौन हो तुम?” जगमोहन का तीखा स्वर कानों में पड़ा।
“सब-इंस्पेक्टर तौलपड़े...”
“तुम पुलिस वाले नहीं हो। किसके कहने पर फोन कर रहे हो?”
“किसके कहने पर?” बेदी संभला –“अरे भाई मैं सब-इंस्पेक्टर तौलपड़े...”
“भूतनी के, तू पुलिस वाला नहीं है। पुलिस वालों का लहजा मैं अच्छी तरह पहचानता हूं। तू किसी के कहने पर फोन कर रहा है। मैं सब समझ रहा हूं। कौन खड़ा है तुम्हारे पास।”
बेदी ने रानी ताशा पर नजर मारकर कहा।
“एक बात कहूं मालको।”
“कह।”
“तुम्हारी तो किस्मत खुल गई है।”
“वो कैसे?”
“रानी ताशा तुम्हें अपना पति कह रही है। कसम से बम चीज है। देखते ही मर जाओगे। माल भी बहुत है। मैंने अभी-अभी नोटों से भरा सूटकेस उसके पास देखा है। तेरे तो न्यारे-व्यारे हो गए। औरत के पास बेपनाह दौलत भी हो, ऐसी औरतें कभी-कभी ही मिलती हैं। मेरी मान तो लपक ले। मौका मत छोड़। ये वक्त गया तो सब कुछ गया।”
जगमोहन की आवाज नहीं आई।
“सोचता क्या है।” बेदी ने फौरन कहा –“सही कह रहा हूं ऐसी चीज तूने पहले नहीं देखी होगी। भोग ले। तुझे देखे बिना कह सकता हूं रानी ताशा तेरी औकात से कहीं ऊंची चीज है। भोले की फौज, करेगी मौज वाली बात है। पूरा आनंद मिलेगा। साथ में नोट भी मिलेंगे। ये ही तो चाहिए होता है जिंदगी में। थोड़ी-सी सनकी जरूर है। वो अपने को दूसरे ग्रह से आया बताती है। बताने दे, तेरा या मेरा क्या जाता है। तू अपना काम निबटा, मैं अपना निबटा रहा हूं।”
जगमोहन ने उधर से कुछ नहीं कहा।
“बात समझ में नहीं आई?” बेदी पुनः बोला।
“आई।”
“तो सोचता क्या है, होटल सी व्यू पर्ल के कमरा नम्बर...”
“तू कौन है?”
“मैं विजय बेदी हूं।”
“कौन विजय बेदी?”
“अब क्या बताऊं तेरे को, मुसीबत का मारा हूं ये साली सिर में गोली फंसी है, उसे निकलवाने के लिए बारह लाख की जरूरत है, वो बारह लाख ही इकट्ठे करता फिर रहा हूं। पांच-सात किसी प्रकार इकट्ठे कर लेता हूं जब तक बारह पूरे होते हैं तो पहले के पांच-सात खर्च हो जाते हैं। ये ही हो रहा है मेरे साथ।” विजय बेदी ने समझाने वाले स्वर में कहा –“अब ये रानी ताशा से इस बात का बीस लाख मिल रहा है कि उसे तुम तक पहुंचा दूं। तुम्हारा पता बता दूं कि तुम कहां रहते हो। मेरी मानो तो सौदा घाटे का नहीं है। ऐसी कयामत चीज मैंने तो पहले नहीं देखी, तुम भी उसे देखते ही गश खा जाओगे। साथ में नोटों से भरा सूटकेस है। मुझे तो लगता है कि ऐसे और भी सूटकेस होंगे। भाव क्यों खाता है तू। आकर गले मिल ले, फायदे में रहेगा।”
“तू बढ़िया बातें करता है।”
“मैं बंदा भी बढ़िया हूं, ये साली सिर में फंसी गोली ने मुझे बेकार कर दिया, हर वक्त ये ही चिंता रहती है कि सिर से गोली निकाल लूं। अगर ये चिंता न होती तो अब तक मैं ही रानी ताशा को लेकर उड़ गया होता। तेरे को तो पता ही है कि खूबसूरत औरत और नोटों की हर मर्द को जरूरत होती है। लपक ले, मौका मत चूक।”
“रानी ताशा ने तुझे क्या-क्या बताया अपने बारे में?”
“पूछ मत।”
“बता तो।”
“ये ही कि ये किसी दूसरे ग्रह से आई है। राजा देव को ढूंढकर अपने साथ ले जाने।”
“और तूने मान लिया?”
“क्यों न मानूं, तुझे ढूंढ़ने के बीस लाख दे रही है। मैं तो उसकी हर बात मानूंगा।”
“तेरे को ये पागल नहीं लगती।” उधर से जगमोहन ने कहा।
“पूरी तरह।” बेदी ने रानी ताशा पर निगाह मारी।
“इसकी बातें विश्वास के काबिल हैं?”
“जरा भी नहीं।”
“फिर तू इसके साथ क्यों चिपक गया?”
“पांच लाख एडवांस ले चुका हूं। अब तू मेहरबानी करे तो बाकी का
पंद्रह भी मिल जाएगा।” बेदी बोला।
“ये तुझे कहां मिल गए? “
“इसी होटल में। तू राजा देव बनकर, सज-धजकर इधर आ-जा। सारे
काम ठीक हो जाएंगे।”
“मेरे आने से बात नहीं बनेगी। क्योंकि मैं वो नहीं हूं जो तू समझ रहा
है।”
“तो कौन है तू?” बेदी के माथे पर बल पड़े।
“उसका दोस्त।”
“ये तूने पहले क्यों नहीं कहा?”
“सुनना चाहता था कि आखिर बात क्या है।”
“अब तो सुन लिया। जरा उसे फोन दे। उससे भी बात कर...”
उधर से जगमोहन ने फोन बंद कर दिया।
बेदी के होंठ सिकुड़ गए। उसने कान से फोन हटा लिया।
“राजा देव से बात कर रहे थे तुम अभी।” रानी ताशा व्याकुलता से कह उठी।
“नहीं। उसके दोस्त से।” बेदी पुनः नम्बर मिलाता कह उठा।
“राजा देव से बात क्यों नहीं हुई?”
“हो जाएगी।” कहने के साथ ही बेदी ने पुनः फोन कान से लगा लिया।
“तुम उससे कैसी बातें कर रहे थे। कई बातें मेरी समझ में नहीं आईं।” रानी ताशा ने कहा।
दूसरी तरफ बेल जाने लगी थी।
“मुझे अपना काम करने दो। मैं कैसी बातें करता हूं इस पर ध्यान मत दो।”
लम्बी बेल जाने के बाद जगमोहन की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम इसी तरह फोन करते रहे तो मुझे फोन का स्विच ऑफ करना पड़ेगा।”
“मैं तुम्हारा नाम पूछना भूल गया।”
“जगमोहन।”
“और तुम्हारे दोस्त का नाम क्या है?”
“क्यों जानना चाहते हो? रानी ताशा ने नहीं बताया?” दूसरी तरफ से जगमोहन ने कहा।
“बता दे यार। इस तरह हमारी जान-पहचान पक्की हो जाएगी।”
“देवराज चौहान।”
“देवराज चौहान।” बेदी ने नाम दोहराया –“अब जरा उससे बात भी करा दे।”
“दोबारा फोन मत करना।”
“मेरी मानो तो एक बार रानी ताशा से मिल...”
परंतु बात पूरी होने से पहले ही उधर से जगमोहन ने फोन बंद कर दिया था।
बेदी ने फोन वाला हाथ नीचे कर लिया। चेहरे पर सोच के भाव थे।
“क्या हुआ?” रानी ताशा ने बेचैन स्वर में पूछा।
“तुम्हारे राजा देव का नाम, देवराज चौहान है।”
“तो इस ग्रह पर राजा देव का नाम देवराज चौहान है।” सोमारा कह उठी।
‘ग्रह का भूत इनके सिरों से कब उतरेगा।’ बेदी बड़बड़ा उठा।
“इस बार भी राजा देव से बात नहीं हुई?” रानी ताशा ने व्याकुल स्वर में कहा।
“नहीं। देवराज चौहान के दोस्त जगमोहन से बात हुई थी।” बेदी ने सोच-भरे स्वर में कहा।
“तो अब क्या करोगे?”
“काम हो रहा है। अभी मैंने उसका नाम पता किया है। धीरे-धीरे उसका पता भी मालूम हो जाएगा। इसमें एक-दो दिन का वक्त तो लगेगा ही। तुमसे ज्यादा जल्दी मुझे है कि बाकी का पंद्रह लाख लूं और चलता बनूं। ऐसे बेवकूफ वो नहीं लगते कि सीधे-सीधे अपना पता बता दें। उन्हें धीरे-धीरे ही किसी प्रकार झांसे में लूंगा। वो तो...”
तभी डोर बेल बजी।
वेटर खाना ले आया था। बातें रुक गईं।
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अगले दिन देवराज चौहान ने नहा-धोकर, नगीना के साथ बेडरूम में ही नाश्ता किया। तब नगीना बोली।
“रात आपको क्या हो गया था?”
“पता नहीं। मुझे याद नहीं।” देवराज चौहान गम्भीर स्वर में बोला –“फोन पर ताशा की आवाज सुनने के बाद मेरे होश गुम हो जाते हैं। मुझे कुछ भी याद नहीं रहता। समझ में नहीं आता कि ये सब क्या हो रहा है। फोन पर उसकी आवाज सुनते ही मैं सब कुछ भूल क्यों जाता हूं। बाद में मुझे किसी के बताने से पता चलता है कि मैंने क्या किया तब।”
“आप ताशा का फोन मत सुना करें।” नगीना गम्भीर स्वर में बोली।
“ऐसा ही करूंगा।”
“रात आपका नया रूप देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई।” नगीना ने गहरी सांस ली।
“मैंने तुम्हारा गला दबाने की कोशिश की, उसका मुझे दुख...”
“तब आप होश में नहीं थे। मैं ये ही समझ नहीं पा रही कि तब आपको हो क्या गया था।”
देवराज चौहान कुछ नहीं बोला।
“क्या आप भी जगमोहन की तरह मानते हैं कि जो हो रहा है, वो सब सच है।” नगीना ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“मुझे सच ही लगता है।”
“कोई वजह तो होगी सच लगने की?”
“वजह मैं नहीं जानता, परंतु अब तक के हालातों पर गौर करता हूं तो सब सच ही लगता...।”
“तो मेरी मानिए। हम सब रानी ताशा के पास चलकर बात करते हैं।” नगीना बोली।
देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।
“इस सारे मामले को बबूसा देख रहा...।”
“आपको बबूसा पर विश्वास है?”
“पहले नहीं था लेकिन फिर विश्वास होने लगा।”
“मेरा ख्याल है कि बबूसा और रानी ताशा आपसे मिलकर, आपको पागल करने की कोशिश...”
“बबूसा को झूठा मत कहो नगीना। वो सच्चा इंसान लगा है मुझे।” देवराज चौहान बोला।
“वो प्राइवेट जासूस आ रहा है। मेरी उससे कुछ देर पहले बात हुई थी। वो रास्ते में होगा।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा।
“अर्जुन भारद्वाज।” देवराज चौहान के होंठों से निकला।
“हां। वो इस सारे मामले की छानबीन करेगा। रानी ताशा एक बहुत बड़ा फ्रॉड है। उसने बबूसा के साथ मिलकर बहुत ही चालाकी भरा जाल, आपके गिर्द बिछाया गया है और आप उस जाल में उलझकर रह गए हैं।”
“मेरे ख्याल में तो इस मामले में किसी प्राइवेट जासूस को लाने की जरूरत नहीं थी।” देवराज चौहान ने कहा।
“मेरे ख्याल में जरूरत है।” नगीना दृढ़ स्वर में कह उठी।
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वीरेंद्र त्यागी, देवराज चौहान के बंगले के बाहर, एक तरफ कार की स्टेयरिंग सीट पर बैठा वहां नजर रख रहा था कि अर्जुन भारद्वाज, नीना के साथ टैक्सी पर वहां पहुंचा। बंगले के बाहर ही टैक्सी को छोड़ा। किराया दिया और बंगले के गेट से भीतर प्रवेश कर गए। अर्जुन की निगाह हर तरफ जा रही थी। नीना बोली।
“मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि इतना बड़ा डकैती मास्टर यहां भीड़-भरे इलाके में रहता है और किसी को उसका पता नहीं जबकि पुलिस को उसकी तलाश है। देखना एक दिन पकड़ा जाएगा।”
“वो बेहतर जानता है कि उसका कहां पर रहना ठीक है।” अर्जुन बोला।
“पता नहीं देवराज चौहान देखने में कैसा होगा?” नीना ने कहा।
“वो हम जैसे लोगों की ही तरह होगा।”
वे सदर द्वार पर पहुंचे। दरवाजा बंद था। नीना ने कॉलबेल के बटन पर उंगली रख दी।
भीतर कहीं बेल बजी।
कुछ क्षणों बाद जगमोहन ने दरवाजा खोला। दोनों को देखा।
“हैलो।” अर्जुन भारद्वाज शांत स्वर में बोला –“नगीना जी ने मुझे यहां आने को कहा था। मैं प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज हूं और ये मेरी असिस्टेंट नीना है।”
जगमोहन के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया, पर वो एक तरफ हटकर बोला।
“आइए।”
अर्जुन भारद्वाज और नीना भीतर प्रवेश कर गए। सामने ड्राइंग हॉल था, जहां बबूसा और धरा बैठे दिखे। तभी एक तरफ से नगीना आती नजर आ गई।
जगमोहन ने दरवाजा बंद करने के बाद कहा।
“खड़े क्यों हैं मिस्टर अर्जुन, आइए।” जगमोहन ने सोफों की तरफ इशारा किया।
तब तक अर्जुन और नीना की निगाह, इसी तरफ आती नगीना पर पड़ चुकी थी। वे आगे बढ़े।
नगीना उनके पास आई और मुस्कराकर बोली।
“हैलो। मिस्टर अर्जुन-हैलो नीना।” नगीना ने दोनों से हाथ मिलाया फिर कहा –“चलिए उधर सोफों पर बैठते हैं।” वो सब उसी तरफ चल पड़े। नगीना पुनः बोली –“नाश्ते में क्या लेंगे...”
“हम नाश्ता करके आए हैं।” नीना ने कहा –“अर्जुन साहब काम शुरू कर देना चाहते हैं। आपका ये मामला बहुत ही उलझा हुआ है। कल से अर्जुन जी इसी बारे में सोच रहे हैं।”
वे सोफों के पास पहुंचे।
बबूसा और धरा, अर्जुन और नीना को ही देख रहे थे।
“ये बबूसा हैं।” नगीना परिचय कराती कह उठी –“जो कि खुद को किसी डोबू जाति से वास्ता रखते बताते हैं और कहते हैं कि इनका जन्म किसी सदूर ग्रह पर हुआ था परंतु अंतरिक्ष यान इन्हें पृथ्वी पर तभी छोड़ गया था।”
जगमोहन शांत-सा खड़ा देख-सुन रहा था।
“और ये धरा है। इसके बारे में मैं आपको बता ही चुकी हूं। और ये प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज हैं, ये इनकी असिस्टेंट नीना है। इस मामले की जांच करने के लिए मैंने ही इन्हें यहां बुलाया है।” नगीना ने सामान्य स्वर में कहा।
अर्जुन ने जगमोहन को देखकर कहा।
“ये साहब कौन हैं?”
“ये जगमोहन हैं। देवराज चौहान के दोस्त, भाई और सबसे करीबी।” नगीना बोली।
“देवराज चौहान कहां हैं?”
“वो उधर बेडरूम में हैं, उन्हें बुलाऊं क्या?”
“मैं वहीं पर उनसे मिलूंगा।” अर्जुन बोला।
“आइए।”
वे चल पड़े, बंगले के भीतर की तरफ।
अर्जुन भारद्वाज, जगमोहन से बोला।
“मैंने आपका नाम, देवराज चौहान के साथ ही सुन रखा है।”
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
“नगीना जी।” अर्जुन बोला –“कल के बाद कोई नई बात हुई या सब कुछ वैसा ही चल रहा है।”
“कल रात को रानी ताशा का फोन आया था और देवराज चौहान उससे बातें करते, पागलपन की हद तक जा पहुंचे।”
“कैसा पागलपन?”
“रानी ताशा के पास जाने को व्याकुल हो उठे और मेरा गला दबाने लगे।”
अर्जुन के होंठ सिकुड़ गए।
“सर।” नीना बोली –“ये पागलपन का मामला भी हो सकता है।”
ये सुनकर जगमोहन के होंठों पर मुस्कान उभरी।
अर्जुन ने उसकी मुस्कान को देखा और सिर हिलाकर रह गया।
वे सब देवराज चौहान के कमरे में पहुंचे।
देवराज चौहान कुर्सी पर बैठा, सोचों में डूबा था कि खड़े होकर अर्जुन और नीना से हाथ मिलाए।
“मुझे परिचय देने की तो जरूरत नहीं।” अर्जुन भारद्वाज मुस्कराकर बोला।
“नहीं। आप दोनों का परिचय नगीना मुझे पहले ही दे चुकी है।”
देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
“मैं किस सिलसिले में यहां आया हूं ये भी आपको पता होगा।” देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।
“आप देवराज चौहान हैं। मशहूर डकैती मास्टर।” अर्जुन बोला।
“आप ऐसा भी कह सकते हैं मिस्टर अर्जुन।”
“इनकी न तो बड़ी-बड़ी मूंछे हैं। न बड़े-बड़े बाल।” नीना बोली –“मैं तो कुछ और ही सोच रही थी सर।”
“बैठिए आप लोग...” देवराज चौहान ने कहा।
“ऐसे ही ठीक है, मुझे आपसे ज्यादा बातें नहीं करनी हैं। ये ही पूछना है कि इस सारे मामले में आपका क्या विचार है?”
देवराज चौहान चुप रहा।
“ये सब कुछ सच है या झूठ। आपने इस बारे में कुछ तो सोचा होगा।” अर्जुन पुनः बोला।
“बबूसा के बारे में पूछ रहे हैं या रानी ताशा के बारे में?” देवराज चौहान ने पूछा।
“दोनों के बारे में।”
“बबूसा जो कहता है वो सही है, वो सच्चा है।” देवराज चौहान ने कहा –“मुझे उसकी बातों पर भरोसा है। अभी तक उसने जो-जो कहा, वो ही सामने आ रहा है। मुझे वो झूठा नहीं लगता।”
“और रानी ताशा?”
“उसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। मैंने उसे अभी तक देखा नहीं है। परंतु बबूसा उसका जिक्र करता है तो वो ठीक ही कहता होगा। मैं बबूसा की बातों को चेक करते हुए उस पर विश्वास करता जा रहा हूं।”
“रानी ताशा के आने वाले फोनों के बारे में क्या कहते हैं मिस्टर देवराज चौहान।”
“दो बार रानी ताशा के फोन आए हैं।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा –“फोन पर उसकी आवाज सुनते ही मुझे जाने क्या हो जाता है मैं होश खो बैठता हूं। पहली बार मैंने बबूसा को घूसा मारा। दूसरी बार कल रात मैंने नगीना का गला दबाने की कोशिश की, जबकि ऐसा मैं सोच भी नहीं सकता। पता नहीं कैसे हो गया ऐसा।”
अर्जुन भारद्वाज की निगाह देवराज चौहान पर थी।
“रानी ताशा से बात करते आपके होश गुम हो जाते हैं।”
“हां। जबकि दूसरी बार मैंने कोशिश की थी कि मैं होश गुम नहीं होने दूंगा, परंतु मिनट भर ठीक रहने के बाद मेरी हालत बिगड़ गई। उसके बाद मुझे याद नहीं कि मैंने क्या किया।”
“तो आप संभले कैसे?”
“बबूसा ने घूंसा मारकर इन्हें बेहोश कर दिया था।” नगीना बोली।
“और होश आने पर...?” अर्जुन ने नगीना को देखा।
“होश आने पर ये सामान्य थे।” नगीना ने कहा।
“देवराज चौहान जी, जब आप रानी ताशा से बात करते हैं तो कैसा महसूस करते हैं?” अर्जुन ने पूछा।
“कैसा महसूस करता हूं।” देवराज चौहान सोच भरे स्वर में बोला –“महसूस करने तक तो मैं पहुंच ही नहीं पाता। बातें शुरू होती हैं और उसके बाद जैसे मैं कहीं गुम हो जाता हूं, मुझे कुछ भी याद नहीं रहता।”
“ऐसा कुछ पहले कभी महसूस हुआ है?”
“पहले? नहीं, ताशा से बात करने से पहले, ऐसा कभी नहीं हुआ। ये सब मेरे साथ पहली बार ही हो रहा है।”
अर्जुन भारद्वाज ने क्षणिक चुप्पी के बाद कहा।
“अगर मैं कहूं कि बबूसा और रानी ताशा मिलकर आपके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं तो आप क्या कहेंगे?”
“मैं कभी नहीं मानूंगा। क्योंकि बबूसा को मैंने हमेशा सच्चा पाया है। मुझे बेवकूफ बनाना आसान नहीं है।”
अर्जुन ने सिर हिलाया फिर बोला।
“और रानी ताशा के बारे में आपकी क्या राय है?”
“जिसे मैंने देखा नहीं, उसके बारे में कैसे राय कायम कर सकता हूं।”
“बबूसा पर आपको भरोसा है और बबूसा ने आपको रानी ताशा के बारे में सब कुछ बताया देवराज चौहान जी।”
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे, फिर कह उठा।
“बबूसा की बातों पर मुझे पूरी तरह यकीन है।”
“तो आप मानते हैं इस बात को कि रानी ताशा किसी दूसरे ग्रह से आई है। वो सदूर ग्रह पर कभी आपकी पत्नी हुआ करती थी। किसी तरह से आप इस ग्रह पर आ गए तो अब वो आपको वापस ले जाने आई है।” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।
“हां, मुझे बबूसा की बातों पर यकीन है।” देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।
“बबूसा से पहले कभी मिल चुके हैं आप?”
“नहीं।”
“ताशा से कभी वास्ता पड़ा हो?”
“नहीं।”
अर्जुन भारद्वाज जगमोहन की तरफ पलटकर बोला।
“इन बातों पर मैं आपकी राय लेना चाहूंगा मिस्टर जगमोहन।”
“मैं देवराज चौहान की हर बात से सहमत हूं।”
“आप देवराज चौहान से सहमत हैं या बबूसा की बातों से भी सहमत हैं।”
“बबूसा की बातों से भी सहमत हूं।” जगमोहन दृढ़ स्वर में बोला
“इसका मतलब कि बबूसा आप दोनों पर अपनी बातों से अधिकार पा चुका है। वो...”
“अधिकार पा चुका से आपका क्या मतलब।” जगमोहन तीखे स्वर में बोला –“हम उसकी बातों के जाल में नहीं फंसे हैं, बल्कि करते-करते ही, उसकी बातों पर भरोसा किया है। कोई हम पर अधिकार नहीं पा सकता।”
अर्जुन ने सिर हिलाया। देवराज चौहान को देखकर कहा।
“आप लोग बेहद समझदार हैं। मेरा ख्याल है कि देवराज चौहान और जगमोहन बेवकूफ नहीं हैं जो किसी की बातों में इस तरह फंस जाएं।” स्वर में गम्भीरता थी –“आप दोनों ने बबूसा की बातों पर यकीन किया तो जरूर उस यकीन की भी वजह होगी। क्या मैं उस यकीन के बारे में कुछ जान सकता हूं मिस्टर देवराज चौहान?”
“यकीन यही है कि हमने बबूसा को कभी भी झूठ बोलते हुए महसूस नहीं किया।” देवराज चौहान ने कहा।
“एक बात तो उसकी झूठी लगी होगी?”
“एक भी नहीं।”
“तो आप इस बात पर पूरी तरह यकीन कर रहे हैं कि बबूसा ने जो कहा, सच कहा। रानी ताशा वास्तव में किसी दूसरे ग्रह से आई है और आपको ले जाने आई है, क्योंकि कभी आप उस सदूर ग्रह पर उसके पति थे।”
“रानी ताशा के बारे में सच्चाई सामने आनी अभी बाकी है।” देवराज
चौहान ने कहा –“इस बारे में हम बबूसा की बातों पर ही भरोसा कर रहे हैं और हमें ये ही लगता है कि बबूसा गलत नहीं कहता।”
अर्जुन भारद्वाज ने नगीना से कहा।
“और आपको इन सब बातों पर जरा भी यकीन नहीं है।”
“नहीं। मुझे ये सब षड्यंत्र का हिस्सा लगता है। बबूसा चालबाज है। रानी ताशा के साथ मिला हुआ है। दोनों अपने प्लान के मुताबिक काम करते, देवराज चौहान के पीछे लगे हैं। शायद इससे दौलत पाना चाहते हैं मैं आपको एक और बात बताना चाहती हूं मिस्टर अर्जुन कि रानी ताशा मुम्बई के सी व्यू पर्ल होटल में ठहरी है।”
अर्जुन भारद्वाज संभला।
“कैसे पता लगाये?” अर्जुन ने पूछा।
“कल रात को जब देवराज चौहान, ताशा से बात कर रहे थे तो इनके मुंह से सी व्यू पर्ल होटल का नाम निकला था। ये वहां जाने को कह रहे थे। एक बात और, इसके दो घंटे बाद विजय बेदी नाम के व्यक्ति का फोन आया था। वो फोन पहले मैंने सुना फिर जगमोहन भैया ने सुना। विजय बेदी यहां का पता पूछ रहा था, उसका कहना था कि वो बीस लाख रुपए के लिए, रानी ताशा के वास्ते देवराज चौहान को ढूंढ़ रहा है, पांच लाख वो एडवांस भी ले चुका है। जगमोहन भैया से उसने देवराज चौहान समझकर बात की थी कि ताशा बहुत खूबसूरत है और उसके पास नोट भी हैं, उससे मिलने में नुकसान नहीं होगा। अपने बारे में उसने बताया कि उसके सिर के बीच गोली फंसी हुई है, वो निकलवानी है, इसलिए वो रानी ताशा का ये काम कर रहा है। वो काफी जोर लगा रहा था कि देवराज चौहान, ताशा से मुलाकात कर ले। उसका कहना था कि ताशा से मुलाकात होते ही उसे बाकी का पंद्रह लाख मिल जाएगा।”
“दिलचस्प।” अर्जुन भारद्वाज के होंठ सिकुड़े –“ये विजय बेदी तो और भी मजेदार इंसान है। ताशा का रूम नम्बर कितना है?”
नगीना ने जगमोहन को देखा।
“रूम नम्बर जानने तक बात नहीं आई। वो बताना चाहता था, पर मैंने नहीं सुना।”
“सर।” नीना बोली –“वो तो हम रिसेप्शन से भी पता कर लेंगे।”
अर्जुन ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखकर कहा।
“मेरी नजर में बबूसा और रानी ताशा पूरी तरह संदिग्ध हैं। मैं नहीं मानता कि रानी ताशा किसी दूसरे ग्रह से आई है। रही बात बबूसा की तो वो मुझे ज्यादा खतरनाक लगता है, जो आप लोगों के पास आ टिका। इस मामले की किसी भी बात पर मुझे भरोसा नहीं हो रहा, न ही आप लोगों से बात करके मुझे तसल्ली मिली। आप दोनों महज एक इंसान पर ही भरोसा करके चल रहे हैं और भरोसे की वजह सिर्फ इतनी है कि आपका दिल कहता है कि बबूसा सच्चा है। जबकि आज की दुनिया में दिल का कोई महत्व नहीं बचा, सिवाय इसके कि वो शरीर को जिंदा रखने का काम करता है। मैं इस मामले में अपने ढंग से काम करूंगा। बबूसा से भी पूछताछ करूंगा। उसके बाद...”
“बबूसा जो कहता है सही कहता है।” जगमोहन बोला –“तब मैं धरा के साथ कार में था, जब डोबू जाति वालों ने अपने अजीब से हथियारों से हम पर जानलेवा हमला किया था जो कि चौकोर पत्ती जैसे, तेज धार के...।”
“धरा सिर्फ इसलिए बबूसा के साथ है कि डोबू जाति से, बबूसा ही उसे बचा सकता है।” अर्जुन बोला।
“सही कहा।”
“बहुत अजीब और उलझा मामला है देवराज चौहान साहब, मैं आपसे सहयोग की आशा करता हूं।”
“कैसा सहयोग?”
“रानी ताशा का फोन आए तो आप जरूर बात करें उससे।” अर्जुन भारद्वाज बोला।
“क्या?” नगीना के होंठों से निकला –“बात करें, परंतु इन्हें तो तब अपने पर काबू नहीं रहता कि...”
“नगीना जी, ये ही तो देखना है मैंने कि बेकाबू होकर ये क्या करते हैं। आगे कुछ होगा तो इस मामले के रहस्य की परतें खुलेंगी।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा –“इन्हें रानी ताशा से बात करने दें। बबूसा से बात करने के बाद मैं रानी ताशा से मिलने सी व्यू पर्ल होटल भी जाऊंगा। मैं पूरी कोशिश करूंगा कि जल्द-से-जल्द सच को सामने ला सकूं। इस केस को समझकर भी मैं समझ नहीं पा रहा हूं। दूसरे ग्रह की बातें मुझे हजम नहीं हो रहीं। कम-से-कम मेरे लिए तो यकीन करना कठिन है कि दूसरे ग्रह से अंतरिक्ष यान आये और यहां की दुनिया को खबर ना लगे। देवराज चौहान जी आपने रानी ताशा का फोन आने पर उससे बात करनी है और आप बाकी लोग ये देखेंगे कि देवराज चौहान बात करके क्या करते हैं। कहां जाते हैं। रानी ताशा अगर पता मांगे तो उसे पता दीजिए। वो बुलाए तो देवराज चौहान को जाने दें और खुद इन पर नजर रखें। इनके आसपास रहें और उस वक्त मुझे फोन कर दें।”
“सर।” नीना बोली –“हम रानी ताशा से मिलने वाले हैं। रानी ताशा को हम यहां का पता दे सकते हैं।”
“नहीं नीना। हम ऐसा नहीं करेंगे।” अर्जुन भारद्वाज सिर हिलाकर कह उठा –“रानी ताशा अपना काम जैसे कर रही है, उसे करने देंगे। हमें देखना है कि वो कब क्या कर रही है और हम अपना काम करेंगे। ये बहुत ही उलझा हुआ मामला है। अभी तक ऐसी कोई बात सामने नहीं आई कि उस पर विश्वास कर सकें। इस केस में लोग खुद को दूसरे ग्रह से आया बता रहे हैं जो कि कोरी बकवास के अलावा कुछ नहीं है। मुझे इस मामले का सच सबके सामने लाना होगा।”
खामोश खड़ा जगमोहन कह उठा।
“अर्जुन साहब। बेशक आप मामले की छानबीन करें, परंतु जो सच है वो ही आप सुन रहे हैं।”
“हैरानी है कि आप और देवराज चौहान इन बातों पर यकीन कर रहे हैं।”
“आप भी करेंगे।” जगमोहन मुस्कराया –“जैसे कि हम कर रहे हैं।”
“सर।” नीना ने कहा –“हमें बबूसा से बात करनी चाहिए।”
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अर्जुन भारद्वाज, नीना और नगीना, उस बेडरूम से निकलकर ड्राइंग हॉल में पहुंचे जहां पर बबूसा और धरा मौजूद थे। अर्जुन मुस्कराया और अपना कार्ड निकालकर बबूसा की तरफ बढ़ाया।
“मैं प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज हूं।”
बबूसा ने कार्ड को देखा, लिया नहीं। धरा कह उठी।
“उसे क्या दिखाते हो। मुझे दिखाओ।”
अर्जुन ने कार्ड धरा की तरफ बढ़ाया।
“मुझे नहीं देखना।” धरा ने मुंह बनाकर कहा –“मैंने सुन रखा है कि प्राइवेट जासूस चोर होते हैं।”
अर्जुन भारद्वाज ने मुस्कराकर कार्ड वापस जेब में रखा। नीना तीखे स्वर में कह उठी।
“तुम हमें चोर कह रही हो। हम तुम्हें चोर दिखते हैं।”
“मैंने सुनी हुई बात कही है।” धरा ने नीना को देखा
“तुमने गलत सुना है। प्राइवेट जासूस बहुत शरीफ होते हैं। पुलिस से ज्यादा तेजी से काम करते हैं और तुम जैसे लोगों का षड्यंत्र खोलकर रख देते हैं, जैसे कि अब तुम लोगों का खेल हम खराब करेंगे।”
“तुम्हारा मतलब कि हम खेल खेल रहे हैं।” धरा बोली।
“इस बारे में तो ‘सर’ ही बात करेंगे।” नीना ने शराफत से कहा।
अर्जुन भारद्वाज ने बबूसा को देखकर कहा।
“मैं तुमसे कुछ सवाल पूछना चाहता हूं।”
बबूसा ने समझने वाले भावों से धरा को देखा तो धरा कह उठी।
“जो पूछता है बता दो। तुम नहीं समझोगे कि प्राइवेट जासूस क्या होता है। मैंने अक्सर अखबारों में पढ़ा है कि ये लोग आधे से ज्यादा ब्लैकमेलर होते हैं।” धरा का स्वर तीखा था -उसने नगीना को देखकर कहा –“तुम्हें बबूसा की बातों पर यकीन नहीं आ रहा, जबकि ये हर बात सच कहता है।”
अर्जुन बबूसा से कह उठा।
“ये सब क्या हो रहा है, मुझे बताओ।”
“सब पता है तुम्हें।” धरा ने कड़वे स्वर में कहा –“फिर भी पूछ रहे हो।”
“मैं तुम्हें कुछ भी बात क्यों बताऊं?” बबूसा शांत स्वर में बोला।
अर्जुन ने नगीना को देखा।
“मैं चाहती हूं तुम सब बातें मिस्टर अर्जुन से कहो।” नगीना ने कहा।
“इससे बात करो बबूसा।” धरा बोली –“इसे यकीन दिला दो कि तुम जो कह रहे हो वो सही है।”
बबूसा ने अर्जुन भारद्वाज को शुरू से अंत तक सारी बात, सब कुछ बताया।
अर्जुन गम्भीरता से सुनता रहा।
नीना और नगीना ने भी सब सुना। धरा शांत थी।
बबूसा के खामोश होने पर अर्जुन ने कहा।
“तो तुम अपने को किसी सदूर ग्रह का बताते हो।”
“मैं हूं। परंतु इस जन्म में मेरी परवरिश डोबू जाति में हुई। रानी ताशा ने अपने प्लान के तहत ही मुझे जन्म करवाकर पृथ्वी पर पोपा में भेजा था कि ये वाला वक्त आने पर मैं उनकी सहायता करता।”
“और तुम रानी ताशा का साथ देने से इंकार कर रहे हो।” अर्जुन बोला।
“हां।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“मैं राजा देव का सेवक हूं। जो भी करूंगा, उन्हीं के भले के लिए करूंगा। रानी ताशा ने राजा देव को बहुत बुरा धोखा दिया था। ग्रह से बाहर फेंक दिया था। अब रानी ताशा अपनी उस करतूत पर पर्दा डालना चाहती है। महापंडित रानी ताशा का पूरा साथ दे रहा है। रानी ताशा, राजा देव को धोखे में रखकर, पोपा में बैठाकर सदूर ग्रह पर ले जाएगी और वहां महापंडित, राजा देव के दिमाग के उस हिस्से को साफ कर देगा, जहां रानी ताशा के धोखे वाली बात दर्ज है। परंतु मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। राजा देव को तब तक रानी ताशा से बचाता रहूंगा जब तक कि राजा देव को सदूर के जन्म की बातें याद नहीं आ जातीं।”
“देवराज चौहान को वो बातें कब याद आएंगी?” अर्जुन भारद्वाज ने पूछा।
“जब राजा देव, रानी ताशा को देखेंगे तो उसके बाद सदूर ग्रह का जन्म और रानी ताशा की धोखेबाजी कभी भी याद आ सकती है। महापंडित ने मुझे ऐसा ही बताया था कि ऐसा ही होगा।” बबूसा ने कहा।
“रानी ताशा के चेहरे पर ऐसा क्या है कि चेहरा देखकर देवराज चौहान को सब याद आने लगेगा।” अर्जुन ने पूछा।
“महापंडित ने ही बताया था कि रानी ताशा के चेहरे पर उसने ऐसी शक्ति डाल रखी है कि राजा देव जब भी रानी ताशा का चेहरा देखेंगे तो उन्हें सदूर ग्रह का जन्म याद आने लगेगा।” बबूसा ने बताया।
“महापंडित ने ऐसा क्यों किया? वो रानी ताशा के चेहरे पर शक्ति न डालता तो देवराज चौहान को कुछ भी याद नहीं आता और रानी ताशा किसी तरह जुगाड़ भिड़ाकर देवराज चौहान को सदूर ग्रह पर ले जाती फिर...”
“इसका जवाब तो महापंडित ही दे सकता है।”
“और महापंडित से मैं पूछताछ कर नहीं सकता।” अर्जुन भारद्वाज मुस्करा पड़ा।
“वो तो सदूर ग्रह पर है।” बबूसा बोला।
“तो तुमने देवराज चौहान को उसकी गंध से ढूंढ़ निकाला।” अर्जुन बोला।
“हां। महापंडित ने मेरे भीतर जन्म कराते समय, राजा देव की गंध डाल दी थी और गंध को पहचानने की शक्ति भी डाल दी थी। इसी वजह से मैं राजा देव को तलाश कर सका, परंतु इसमें मुझे महीनों का वक्त लग गया।”
(ये सब विस्तार से जानने के लिए पढ़ें राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित अनिल मोहन का उपन्यास ‘बबूसा’।)
“ये महापंडित तो कोई देवता लगता है।” अर्जुन बराबर मुस्करा रहा था।
“पता नहीं देवता कौन होते हैं, पर महापंडित तो मेरे जैसा ही इंसान है। लेकिन वो बहुत विद्वान है। वो लोगों के जन्म कराता है। वो मशीनें बनाता है, मशीनों से बातें करता है। वो आने वाले वक्त के बारे में पहले ही बता देता है। महापंडित जैसा सदूर पर दूसरा कोई नहीं है। राजा देव भी उसका बहुत आदर करते थे।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“और रानी ताशा के बारे में मुझे क्या बताना चाहोगे?”
“रानी ताशा झूठी-मक्कार और बेईमान औरत है। परंतु ग्रह की सबसे खूबसूरत औरत मानी जाती है। शायद इसलिए कि वो राजा देव की पत्नी है राजा देव, रानी ताशा से बहुत प्यार करते थे परंतु उसने राजा देव को धोखा दिया। लेकिन बाद में बहुत पछताई, क्योंकि राजा देव जैसे शानदार व्यक्ति को खो देना, बहुत दुख वाली बात थी। जब राजा देव को ग्रह से बाहर फेंका गया तो मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी। मैं राजा देव को बहुत चाहता था। कहने को मैं राजा देव का सेवक मात्र था, परंतु हर समय उनके साथ रहने के कारण मैं उनका दोस्त बन गया था। राजा देव अपने दिल की बात भी मुझसे कर लिया करते थे। मुझ पर राजा देव को पूरा विश्वास था और मैंने कभी उनका विश्वास तोड़ा भी नहीं। राजा देव दिल के बहुत अच्छे थे। बहुत अच्छे ताकतवर योद्धा थे। राजा बनने के लिए ग्रह के ताकतवर लोग अक्सर उन्हें चुनौती दिया करते...”
“कैसी चुनौती? मैं समझा नहीं...।”
“ग्रह का नियम है कि कोई भी राजा बन सकता है, अगर वो वर्तमान राजा को चुनौती देकर मैदान में परास्त कर दे तो। ऐसे मुकाबलों के लिए एक बहुत बड़ा मैदान बना रखा है, जहां ऐसे वक्त में सदूर ग्रह के लोग भी इस लड़ाई को देख सकते हैं। तो ग्रह के ताकतवर लोग, जो ये सोचता है कि वो युद्ध में राजा देव को हराकर राजा बन सकता है तो वो राजा देव को चुनौती देने किले पर जाता था। किले के कर्मचारी उसका नाम-पता नोट करके कुछ दिन बाद की तारीख दे देते थे कि इस दिन सुबह नौ बजे वो मुकाबले के लिए मैदान में पहुंच जाए। फिर वहां मुकाबला होता था। राजा देव ग्रह के सबसे ताकतवर इंसान थे और मुकाबले में योद्धा की जान ले लेते थे।”
“जान ले लेते थे?”
“ये भी मुकाबले का नियम था कि ऐसे मुकाबले में एक योद्धा की जान जाएगी ही। अगर हारने वाला जिंदा रहा तो वो भविष्य में किसी तरह से राजा के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है। राजा देव ने ही ये नियम बनाया था।”
“जब राजा देव ग्रह से बाहर फेंक दिए गए तो उस स्थिति में ऐसे मुकाबलों का क्या हुआ?”
“बंद हो गए। ग्रह की मालकिन रानी ताशा बन गई। औरतों के साथ मुकाबले का कोई रिवाज नहीं है ग्रह पर। उसके बाद ऐसे मुकाबले बंद हो गए। राजा नहीं तो मुकाबला भी नहीं।” बबूसा ने कहा।
“तुम बहुत अजीब बातें कह रहे हो?” अर्जुन भारद्वाज गम्भीर स्वर में बोला।
“मैंने जो कहा है, सच कहा है।”
“ग्रह से बाहर किसी को कैसे फेंका जाता है?” अर्जुन ने पूछा।
“सदूर ग्रह की जमीन ज्यादा मोटी नहीं है। वो लगभग एक प्लेट के आकार की है, पतली जैसी है। ग्रह पर कुछ लोग ऐसे भी होते थे जिन्हें फैसलों के बाद राजा देव मौत की सजा देते थे। परंतु राजा देव को किसी की जान लेना पसंद नहीं था। ऐसे में उनके आदेश पर किले से कुछ दूर जमीन में सीधी सुरंग बनाई गई। पंद्रह दिन में ही आर-पार सुरंग खोद कर उसमें छः फुट व्यास का एक पाइप तैयार करके लगा दिया गया। वहां पर बड़ा-सा कमरा बना दिया गया कि कोई इंसान अंजाने में भीतर न गिर जाए। उसके बाद जिस किसी को भी मौत की सजा दी जाती तो किले के कर्मचारी उसे उसी पाइप में फेंक देते। इस तरह नीचे से निकलकर वो ग्रह के बाहर चला जाता।”
अर्जुन भारद्वाज ने गहरी सांस लेकर कहा।
“तुमने तो हर बात का जवाब तैयार रखा हुआ है।”
“ये जवाब नहीं, हकीकत बता रहा है तुम्हें।” धरा बोली।
“तुम्हें कैसे पता कि ये हकीकत है।” अर्जुन ने धरा को देखा।
“क्योंकि मुझे ये पता है कि बबूसा कभी झूठ नहीं बोलता। मैं कब से इसके साथ हूं।”
“तुम इसके साथ कैसे हो?” अर्जुन ने पूछा।
“ये लम्बी कहानी है।” धरा ने गहरी सांस ली।
“मैं जानना चाहता हूं।”
“मेरे बारे में जानकर तुम्हें क्या मिलेगा जासूस साहब?”
“क्योंकि तुम भी संदिग्ध हो और बबूसा के साथ जुड़ी हुई हो। अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा।
तब धरा ने अपने बारे में सब कुछ बताया कि वो सरकार के पुरातत्व विभाग में काम करती थी और उसका काम गुमशुदा जातियों को ढूंढ़कर उन्हें मुख्य धारा में मिलाना होता था और कैसे वो डोबू जाति जैसे खतरनाक लोगों में जा पहुंची थी। सब कुछ बताया। (ये सब विस्तार से जानने के लिए अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा’ अवश्य पढ़ें।) सब कुछ बताकर धरा रुकी तो उसकी आंखों में आंसू थे। वो बोली।
“डोबू जाति वालों ने मुम्बई पहुंचकर मेरी मां की जान ले ली। मेरे ऑफिस पहुंचकर चक्रवर्ती साहब और प्रकाश को मार दिया। मैं भी मारी जाती अगर बबूसा मुझे न बचाता। ये मुझे बचाता रहा और मैं देवराज चौहान की तलाश में इसकी सहायता करती रही। एक बार मैं बबूसा से अलग हो गई और जगमोहन से जा मिली। तब मैं और जगमोहन डोबू जाति वालों के हाथों मरते-मरते बचे थे।”
धरा ने आंखों से बह निकले आंसुओं को साफ किया।
अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। नीना भी गम्भीर थी।
जबकि नगीना के चेहरे पर उलझन की लकीरें दिखाई दे रही थीं।
“तुम।” धरा भीगे स्वर में बोली –“मेरी बातों की आसानी से छानबीन कर सकते हो। लाहौल स्पिति के टाकलिंग ला कस्बे में जाओ और मेरे बारे में पूछो। डोबू जाति के बारे में पता करो। चाहो तो डोबू जाति की तरफ जा सकते हो, परंतु वहां जाने में चार दिन लगते हैं। दुर्गम रास्ता है और कोई तुम्हें वहां ले जाने को भी तैयार नहीं होगा। क्योंकि टाकलिंग ला कस्बे के लोग डोबू जाति को रहस्यमय बताते हैं और उनसे डरते भी हैं। मैंने किसी तरह दस लाख रुपया देकर जोगाराम को साथ चलने को तैयार कर लिया था। लेकिन वापसी पर डोबू जाति वाले हमारे पीछे हमारी जान लेने को लगे थे और जोगाराम मारा गया, मैं बच निकली।” धरा ने झुरझुरी ली फिर सूखे होंठों पर जीभ फेरी –“वो वक्त याद करके मैं आज भी कांप जाती हूं। मैं पागल थी जो डोबू जाति में चली गई। मेरा फैसला बहुत गलत था। मैंने बहुत बड़ी भूल की ऐसा करके।”
अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर निगाहों से बबूसा को देखा।
“तुमने बताया कि रानी ताशा पोपा (अंतरिक्ष यान) पर पृथ्वी ग्रह पर आई है।” अर्जुन बोला।
बबूसा ने सहमति से सिर हिलाया।
“तो पोपा इस वक्त कहां है?”
“डोबू जाति के पहाड़ के सामने-दो पहाड़ों के बीच वो उतरता है और छिप-सा जाता है कि बाहरी लोग उसे न देख सके। मैंने तीन बार देखा है। पोपा वहीं पर ही उतरता है।” बबूसा ने कहा।
“तुम्हें यकीन है कि पोपा इस वक्त वहीं पर होगा।”
“पूरा यकीन है।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा –“पोपा वहीं पर होगा।”
“हैरानी है कि दूसरे ग्रह से कोई अंतरिक्ष यान आता है और पृथ्वी वाले उसे देख नहीं पाते...”
“अर्जुन साहब।” धरा गम्भीर स्वर में बोली- “अगर तुम डोबू जाति में गए होते तो कभी भी ऐसा न कहते। डोबू जाति ऐसी जगह पर स्थित है कि वहां कोई नहीं पहुंच सकता। हर तरफ बर्फ ही बर्फ है। वहां जीवन बिताना भी कठिन है परंतु डोबू जाति वाले वहां आराम से जीवन बिताते हैं।”
“पोपा जब भी वहां आता है तो रात का अंधेरा फैला होता है।” बबूसा बोला –“ऐसे में उसे देख पाना आसान नहीं होता।”
अर्जुन कुछ पल चुप-सा रहकर गम्भीर स्वर में बबूसा से बोला।
“और तुम कहते हो कि मैं तुम्हारी बातों का विश्वास कर...”
“मैंने कुछ भी झूठ नहीं कहा।” बबूसा बोल पड़ा।
“सच-झूठ जानने का बहुत आसान रास्ता है तुम्हारे पास।” धरा बोली –“डोबू जाति तक जाओ और वहां खड़ा अंतरिक्ष यान देख लो। अंतरिक्ष यान न मिले तो हम झूठे, नहीं तो तुम झूठे।”
अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर निगाहों से धरा को देखा।
“कम-से-कम मैं तो तुम्हें डोबू जाति तक नहीं ले जा सकती। मैं मरना नहीं चाहती।” धरा बोली।
“डोबू जाति कहां पर रहती है मुझे बताओ।” अर्जुन ने कहा।
धरा ने बताया। दस मिनट तक समझाने के बाद बोली।
“अगर ऐसा सफर तुम कर सकते हो तो जाओ। मरना चाहते हो तो जाओ। परंतु मार्गदर्शक के बिना तुम वहां नहीं पहुंच सकते। यूं भी आज के हालात वहां कुछ और हैं। अब तो और भी खतरनाक है वहां जाना।”
“वो कैसे?”
धरा ने बबूसा पर नजर मारी फिर अर्जुन को देखकर कह उठी।
“डोबू जाति में रानी ताशा ने सब कुछ अपने अधिकार में ले लिया है। डोबू जाति के मुख्य लोगों को खत्म करके, उन पर अपनी हुकूमत कायम कर ली है रानी ताशा ने। अब वहां रानी ताशा के लोग ही सब कुछ संभाल रहे हैं।”
“तुम्हें कैसे पता?” अर्जुन भारद्वाज के होंठ सिकुड़े।
“बबूसा ने बताया।”
“बबूसा को कैसे पता?” अर्जुन भारद्वाज की निगाह बबूसा की तरफ उठी।
“ये बात डोबू जाति के मेरे साथी सोलाम ने मुझे बताई।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला –“रानी ताशा ने डोबू जाति वालों को धोखा दिया है। रानी ताशा की फितरत ही ऐसी है कि कभी भी कुछ भी कर दे। धोखा देना तो उसका शौक है। राजा देव को धोखा दिया। डोबू जाति वालों को धोखा दिया। उससे किसी भी बात की अपेक्षा की जा सकती है।”
“सोलाम कहां है?” अर्जुन ने पूछा।
“मुम्बई में ही है। वो यहां बिखरे डोबू जाति के उन लोगों को इकट्ठे कर रहा है जो धरा को मारने के लिए भेजे गए थे। उन्हें बताया गया है कि डोबू जाति पर क्या किया है रानी ताशा ने। वो मेरे से भी सम्बंध बनाए हुए है। हम इस बात की तैयारी कर रहे हैं कि डोबू जाति को रानी ताशा की हुकूमत से मुक्त कराया जा सके।” बबूसा ने कहा।
“तुम्हें चिंता है डोबू जाति की?”
“क्यों नहीं होगी। बेशक मैं सदूर ग्रह का रहने वाला हूं परंतु इस जन्म में मेरा सारा जीवन डोबू जाति में ही बीता है। मुझे लगाव है उन लोगों से। कम-से-कम रानी ताशा की हुकूमत तो मैं वहां नहीं देख सकता।” बबूसा गुस्से से भर उठा।
“रानी ताशा ने ऐसा क्यों किया?”
“मैं नहीं जानता।”
“तुम जानते हो अब रानी ताशा कहां है?” अर्जुन भारद्वाज ने पूछा।
“वो मुम्बई के एक होटल सी-व्यू पर्ल में है। कल रात फोन करके वो राजा देव को वहीं बुला रही थी।”
“वो देवराज चौहान को ढूंढ़ रही है।”
“हां।”
“तो तुम देवराज चौहान और रानी ताशा को आमने-सामने क्यों नहीं कर देते। फिर देखते हैं कि क्या होता है।”
“वो तबाही का वक्त होगा।” बबूसा का चेहरा कठोर हो गया।
“कैसे?”
“राजा देव को सदूर के जन्म का कुछ भी याद नहीं। ऐसे में रानी ताशा के सामने जाना, उनके लिए ठीक नहीं होगा। महापंडित ने जाने कौन-सी चाल चल रखी है कि जब राजा देव, रानी ताशा को देखें तो जाने क्या हो जाए। राजा देव सदूर ग्रह पर रानी ताशा के दीवाने हुआ करते थे। रानी ताशा को बहुत चाहते थे। मुझे डर है कि रानी ताशा को देखते ही राजा देव फिर से दीवाने न हो जाएं। ऐसा हो गया तो हालातों को संभालना बहुत कठिन हो जाएगा और रानी ताशा की राह आसान हो जाएगी। फोन पर रानी ताशा की आवाज सुनकर ही राजा देव का हाल दीवानों जैसा हो रहा है। समझ में नहीं आता कि क्या करूं। मुझे बहुत चिंता हो रही है कि जब रानी ताशा, राजा देव के सामने पड़ेगी तो तब क्या होगा?”
“तुमने कहा था कि रानी ताशा का चेहरा देखने पर देवराज चौहान को वो जन्म याद आ जाएगा।”
“महापंडित ने मुझे ऐसा ही कहा था। परंतु जन्म याद आ जाएगा नहीं, याद आना धीरे-धीरे शुरू होगा। कुछ वक्त लगेगा परंतु राजा देव अगर रानी ताशा के दीवाने हो गए तो फिर कैसे जन्म याद आएगा। रानी ताशा उन्हें अपने में उलझाकर सदूर ग्रह पर ले जाएगी। पर जब तक मैं हूं, ऐसा नहीं होने दूंगा। मैं राजा देव को बचाऊंगा...”
“पर तुम कब तक रानी ताशा और देवराज चौहान का आमना-सामना होने से रोक सकोगे?” अर्जुन भारद्वाज ने कहा।
“ज्यादा देर तक ऐसा नहीं कर सकूँगा मैं।” बबूसा के होंठ भिंच गए –“वो बुरा वक्त कभी भी आ सकता है।”
अर्जुन भारद्वाज बबूसा को देखता रहा। चेहरे पर सोच के भाव थे।
नीना भी बबूसा को देख रही थी।
जबकि नगीना के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“मैं तुम्हारी बातों की सच्चाई जानने की कोशिश करूंगा।” अर्जुन ने गम्भीर स्वर में कहा।
नगीना के साथ अर्जुन और नीना वहां से दूर हट गए।
“सर।” नीना गम्भीर स्वर में बोली –“बबूसा और धरा के हाव-भाव बता रहे हैं कि वो झूठ नहीं बोल रहे।”
“मुझे भी ऐसा ही लगता है।” अर्जुन भारद्वाज ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तो आप दोनों भी उनकी बातों में फंस गए।” नगीना के होंठों से निकला।
“मेरा काम सच जानना है और मैं अपना काम कर रहा हूं नगीना जी।”
अर्जुन बोला –“मैं आपकी राय जानना चाहता हूं कि आपने सब कुछ सुना, आपको क्या लगता है?”
नगीना ने होंठ भींच लिए।
“मुझे ये लोग सच्चे लग रहे हैं।” अर्जुन बोला।
नगीना बेचैन हो उठी।
“रानी ताशा से मिलने के बाद, स्पष्ट तौर पर कुछ कह सकूँगा।” अर्जुन ने कहा।
नगीना कुछ क्षण अर्जुन भारद्वाज को देखती रही फिर धीमे स्वर में बोली।
“मैंने आज ध्यान से बातें सुनीं। मुझे बबूसा झूठ बोलता नहीं लगा।”
अर्जुन ने गम्भीर निगाहों से नगीना को देखा।
“तब तो आपको ये खतरा सताने लगा होगा कि रानी ताशा कहीं आपके पति को अपने ग्रह पर न ले जाए।” नीना बोली।
“अगर देवराज चौहान ताशा के साथ जाना चाहेगा तो मैं रोकूंगी नहीं। उनकी खुशी में मेरी खुशी है।”
“फिर चिंता क्या है?” नीना के होंठों से निकला।
“देवराज चौहान को उस जन्म का कुछ भी याद नहीं, ऐसे में ताशा, इन्हें ले गई तो...?”
“इस काम के लिए मैं आपके साथ हूं।” अर्जुन बोला –“जब तक देवराज चौहान को वो जन्म याद नहीं आता, तब तक मैं रानी ताशा को, देवराज चौहान को नहीं ले जाने दूंगा।”
“सच कह रहे हैं आप?” नगीना बोली।
“हां, पूरी कोशिश करूंगा कि ऐसा न हो। ऐसा हो गया तो फीस नहीं लूंगा।” अर्जुन गम्भीर था।
“बबूसा भी तो इसी कोशिश में है।” नीना बोली।
“मैंने कल रात।” नगीना व्याकुल स्वर में बोली –“ताशा का फोन आने पर देवराज चौहान की हालत देखी। वो जैसे पूरी तरह पागल-सा हो गया था ताशा से बात करके। उसके होश गुम हो गए थे। मैं तभी समझ गई कि बबूसा की बातों में कुछ सच्चाई जरूर है। अब ध्यान से बबूसा की बातें सुनी तो लगा जैसे वो हर बात सच कह रहा है।”
अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर गम्भीरता छाई हुई थी।
“आप इस मामले में मेरे साथ रहिए अर्जुन साहब।”
“मैं आपके साथ हूं और अंत तक इस केस पर काम करूंगा।” अर्जुन ने कहा।
“जब तक देवराज चौहान को सदूर ग्रह वाला जन्म याद नहीं आ जाता, तब तक रानी ताशा उसे ले जा न सके।”
“मेरी ये ही कोशिश होगी कि ऐसा ही हो।” अर्जुन ने कहा –“अब मैं रानी ताशा से मिलने जा रहा हूं। उससे मेरा बात करना जरूरी हो गया है। आप चाहें तो रानी ताशा से मिलने के लिए चल सकती हैं।”
नगीना के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर बोली।
“मैं जानती हूं कि रानी ताशा से जल्दी ही मुलाकात होगी। वो कभी भी देवराज चौहान के लिए यहां आ सकती है।”
“हां। वो यहां जरूर आएगी।” अर्जुन ने कहा।
“मेरा उसके पास जाना ठीक नहीं होगा।” नगीना बोली।
“तो हम चलें सर।” नीना कह उठी।
“हां। मैं रानी ताशा को देखने और उससे बात करने को उत्सुक हूं।”
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अर्जुन भारद्वाज और नीना कार पर वहां से निकले । अर्जुन ने नगीना से कार मांग ली थी। पहले से ही बाहर मौजूद वीरेंद्र त्यागी ने उन्हें कार में
जाते देखा तो अपनी कार उनके पीछे लगा दी।
“सर, आप सच में दूसरे ग्रह वाली बात पर यकीन कर रहे हैं?” नीना
कह उठी।
“बबूसा और धरा मुझे झूठ बोलते नहीं लगे। बातों के दौरान ये बात मैंने खास तौर से नोट की।”
“मतलब सदूर ग्रह पर आप यकीन कर रहे हैं।”
“पूरी तरह नहीं।” अर्जुन सोच भरे स्वर में बोला –“रानी ताशा से बात करने के बाद ही कुछ कह सकूँगा।”
“वहां पर विजय बेदी नाम का आदमी भी होगा, जिसने रात फोन पर नगीना और जगमोहन से बात की थी।”
“वो तो वहां अपने नोट भुनाने के लिए बैठा है। पांच लाख ले चुका है और पंद्रह लाख की बाट जोह रहा है।” अर्जुन ने होंठ सिकोड़कर कहा –“देखते हैं उसे भी।”
अर्जुन और नीना जुहू बीच पर स्थित होटल सी-व्यू पर्ल पहुंचे। पांच सितारा शानदार होटल था। अर्जुन ने पार्किंग में कार ले जा रोकी और बाहर निकलकर नीना के साथ होटल के प्रवेश दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
जहां लम्बा-सा दरबान खड़ा था। अन्य लोग भी आ-जा रहे थे। उनके पास पहुंचते ही दरबान ने शीशे का दरवाजा खोला तो वो भीतर प्रवेश कर गए।
ए.सी. की ठंडक ने उनका स्वागत किया।
वे रिसेप्शन पर पहुंचे। रानी ताशा के बारे में पूछा।
पता चला कि वो तीसरी मंजिल पर 204 नम्बर कमरे में ठहरी है।
अर्जुन और नीना लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। वहां चार लिफ्टें थीं। चारों
इस समय व्यस्त थी तो दोनों लिफ्ट के आने का इंतजार करने लगे। तभी
नीना कह उठी।
“सर, मैं मां से क्या कहूं?”
“मां से?”
“वो शादी के बारे में पूछ रही थी मेरे से। आप मेरी छोटी-सी समस्या
हल नहीं कर सकते।”
“कर लो शादी।”
“किससे?”
“ये तुम जानो। मेरी नजर में तो सब शादीशुदा हैं, किसी कुंवारे को मैं नहीं जानता।” अर्जुन ने मुस्कराकर मुंह फेर लिया।
“अपने आस-पास ध्यान से देखिए सर, शायद बिना शादी का लड़का दिख जाए।”
अर्जुन ने अपने आगे-पीछे देखा।
तभी त्यागी उनके पास आ खड़ा हुआ। अर्जुन से नजरें मिली तो त्यागी मुस्कराकर बोला।
“मैंने आपको शायद पहले भी देखा है।”
“सारी, मैंने नहीं देखा आपको।” अर्जुन कह उठा।
“मैं दिल्ली से हूँ। पंडित तीरथराम रस्तोगी। चेहरा देखकर दिल का हाल बता देता हूं।” त्यागी बेहद मीठे स्वर में कह रहा था –“जैसे कि इन दिनों आप बेहद अजीब से मामले में उलझे हुए हैं। दूसरे ग्रह जैसा मामला।”
अर्जुन भारद्वाज की आंखें सिकुड़ीं।
“सर, सुना आपने?” नीना कह उठी।
“आपके आसपास एक खतरनाक माना जाने वाला इंसान भी है। कोई चोर या बहुत बड़ा डकैती मास्टर।”
“खूब।” अर्जुन मुस्कराया –“आप तो बहुत पहुंचे हुए पंडित लगते हैं।”
“पंडित जी मेरी शादी कब होगी?” नीना कह उठी।
परंतु त्यागी की निगाह, अर्जुन पर ही थी।
“इस वक्त हालात क्या हैं अर्जुन साहब।” त्यागी ने शांत स्वर में पूछा।
“आप तो मेरा नाम भी जानते हैं।”
“प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज का नाम जान लेना कोई बड़ी बात नहीं है।” त्यागी बोला –“देवराज चौहान के हालात क्या हैं?”
“वो ही हैं जो पहले थे।” अर्जुन ने त्यागी को भांपने की कोशिश की।
“रानी ताशा से देवराज चौहान की मुलाकात हुई?”
“नहीं।”
“आपने इस मामले में क्या तीर मारा?”
अर्जुन भारद्वाज ने त्यागी की आंखों में झांका।
नीना सतर्क हो चुकी थी।
लिफ्ट आई और भरकर चली गई।
“आप कौन हैं?”
“पंडित तीरथ राम रस्तोगी।” वीरेंद्र त्यागी मुस्कराकर बोला।
“दिलचस्प इंसान हैं आप।” अर्जुन भी मुस्कराया।
“आपको कई मजेदार बातें बता सकता हूं अगर आप मेरी बात का जवाब दें।”
“पूछो।”
“इस मामले में आपने क्या पाया? देवराज चौहान की क्या स्थिति है?”
“वो बुरी तरह फंसा पड़ा है।”
“वो कैसे?”
“पंडित जी पहले आप अपनी कोई मजेदार बात बताइए और अपना नाम भी...”
“क्या रानी ताशा वाली बातें सच हैं?” त्यागी ने गम्भीर स्वर में पूछा।
“शायद।”
“हैरानी है कि ये बातें भी सच हो सकती हैं। दूसरे ग्रह के लोग...”
“आप कौन हैं?”
“मैं देवराज चौहान का जानी दुश्मन हूं।” वीरेंद्र त्यागी मुस्करा पड़ा –“मैं देवराज चौहान को बर्बाद कर देना चाहता हूं और ऐसा करने के मुझे कई मौके मिले और उन मौकों का इस्तेमाल भी किया। परंतु पूरी तरह सफल नहीं हो सका। लेकिन देर-सबेर में सफल होकर रहूंगा।” कहने के साथ ही पलटा और त्यागी एक तरफ बढ़ गया।
अर्जुन तेजी से आगे बढ़ा और त्यागी की बांह पकड़ ली।
त्यागी ने ठिठककर अर्जुन को देखा।
“भाई साहब।” अर्जुन मीठे स्वर में बोला –“लेकिन इस मामले में
आपकी क्या दिलचस्पी है?”
त्यागी ने बांह छुड़ाई, उसे झाड़ा और शांत स्वर में बोला।
“मैं नहीं चाहता कि मेरे जानी दुश्मन पर कोई और हाथ मार ले। वो मेरा माल है उसे मैं ही तबाह करूंगा।” कहने के साथ त्यागी फिर आगे बढ़ गया। परंतु अर्जुन जल्दी से आगे बढ़ा और साथ चलते त्यागी से कहा।
“अपना नाम तो बता दो।”
“त्यागी। वीरेंद्र त्यागी कहते हैं मुझे।” इसके साथ ही त्यागी आगे बढ़ता चला गया।
अर्जुन भारद्वाज गम्भीर निगाहों से उसे जाता देखता रहा।
तभी नीना पास आ पहुंची।
“क्या हुआ सर?” नीना ने पूछा।
“ये आदमी बहुत खतरनाक है।” अर्जुन भारद्वाज कह उठा।
“लेकिन ये है कौन?”
“वीरेंद्र त्यागी, देवराज चौहान का दुश्मन। लेकिन इसे रानी ताशा वाले मामले का कैसे पता चला?” अर्जुन के होंठ सिकुड़े।
“इसे हमारे बारे में भी पता है।” नीना बोली।
“कम-से-कम नगीना से तो बात बाहर नहीं जाने वाली। इसके बारे में देवराज चौहान ही बता सकता है कि वीरेंद्र त्यागी कौन है। आओ, हमें अपना काम करना है।” अर्जुन ने कहा और नीना के साथ लिफ्ट की तरफ बढ़ा।
“सर। डकैती मास्टर देवराज चौहान के मामले में हाथ डालकर आपने गलती तो नहीं कर दी।”
“अभी तक तो मुझे गलती का एहसास नहीं हुआ। बल्कि ये मामला
बहुत ही दिलचस्प है मेरे लिए।”
“और ये वीरेंद्र त्यागी?”
“इससे हमें कोई मतलब नहीं। वो देवराज चौहान और उसका मामला है।” अर्जुन भारद्वाज बोला। लिफ्टों के पास पहुंचकर ठिठक गए। वहां तीन लोग और भी खड़े थे लिफ्ट आने के इंतजार में –“त्यागी के मामले में मुझे एक ही बात उलझन में डाल रही है कि उसे कैसे पता चला देवराज चौहान और रानी ताशा के मामले के बारे में।”
“इसका जवाब तो वो वीरेंद्र त्यागी ही दे सकता है।” नीना बोली।
“जो भी हो ऐसे मौके पर, खतरनाक इरादे के साथ त्यागी का सामने
आना ठीक नहीं। वो देवराज चौहान का दुश्मन है तो बुरा ही सोचेगा। अच्छा तो करने से रहा। वो इन हालातों में भी कोई मौका ढूंढ़ेगा देवराज चौहान को तकलीफ देने का।”
तभी एक लिफ्ट नीचे आ पहुंची। लोग बाहर निकले तो अर्जुन, नीना के साथ तीन और लोग भी भीतर प्रवेश कर गए। दरवाजे बंद हुए और लिफ्ट ऊपर सरकने लगी। अर्जुन भारद्वाज के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
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