ए.सी.पी. चंपानेरकर ने सामने बैठे कामेश्वर और खेमकर को गम्भीर निगाहों से देखा।
दोनों चंपानेरकर को सब कुछ, सारे हालात बता चुके थे। वो सोच भी नहीं सकते थे कि ए.सी.पी. चंपानेरकर ही वो इन्सान है, जिसने संगीन डकैती में अपराधी की सहायता की थी। ये बात जुदा थी कि तब वो खुद ही नहीं जानता था कि देवराज चौहान क्या करने वाला है। परन्तु इन दोनों की बातें सुनकर उसका सिर घूम गया था और वो उलझन में पड़ गया था कि जिसके लिए उसने काम किया क्या वो असली देवराज चौहान था या नकली?
“चंपानेरकर साहब।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा –“हमने सब कुछ आपको बता दिया है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती के मामले में क्या बातें हमारे सामने आई है। परन्तु हमें आपकी सलाह चाहिये। क्योंकि मेरा मानना है कि जो देवराज चौहान हमसे मिला, जो अपने आपको बेगुनाह बता रहा है, वो असली हो सकता है। परन्तु कामेश्वर का सोचना है कि दोनों देवराज चौहान एक ही हैं। वो ऐसी बातें हमें कहकर हमारी तफ्तीश में उलझन डालना चाहता है।”
चंपानेरकर के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
वो खुद गहनता से सारे हालातों पर विचार कर रहा था।
“मैं कामेश्वर की बात से सहमत होता, परन्तु दो बातें मुझे सहमत होने से रोक रही हैं।” चंपानेरकर बोला।
“क्या?” कामेश्वर के होंठ खुले।
“एक तो ये कि संगीन डकैती में पकड़े गये एकमात्र अपराधी का कहना कि जगमोहन की कद-काठी उससे मिलने आये जगमोहन की कद-काठी पहले वाले जगमोहन की कद-काठी से तगड़ी थी। परेरा धोखा नहीं खा सकता कि इतनी बड़ी बात कह दे।”
“मतलब कि तुम मानते हो कि परेरा ने सच कहा।” खेमकर बोला।
“ख्याल तो ये ही है मेरा।” चंपानेकर सोच भरे स्वर में बोला –“फिर देवराज चौहान और जगमोहन इस संगीन डकैती के बाद किसी भी कीमत पर खतरा मोल न लेकर परेरा के पास नहीं जा सकते। परन्तु वो गये। उन्होंने उन देवराज चौहान और जगमोहन के बारे में बात की, जिनके साथ परेरा ने मिलकर डकैतियां की थीं। ऐसे में वो दोनों सच कहते हो सकते हैं।”
खेमकर ने कामेश्वर को देखा।
कामेश्वर के चेहरे पर गम्भीरता थी। चुप रहा वो।
“सबसे बड़ी बात तो ये है,कि उस मकान में मिले पांचों की उंगलियों के निशान वीरेन्द्र त्यागी नाम के मुजरिम की उंगलियों से मिलते हैं और देवराज चौहान ने तुम लोगों के सामने पहले ही उसका नाम ले लिया था। तुमने बताया कि देवराज चौहान ने कहा था कि वीरेन्द्र त्यागी एक बार पहले भी, उसका चेहरा अपनाकर ऐसे काम कर चुका है।”
“हां!”
“तो हमें देवराज चौहान की बात पर भरोसा करना चाहिये कि वो ठीक कह रहा है। परेरा की बात पर भी यकीन करना चाहिये कि उसने सही कहा है कि दोनों जगमोहनों की कद-काठी में फर्क है। स्पष्ट है कि परेरा के साथी देवराज चौहान और जगमोहन, असली देवराज चौहान और जगमोहन नहीं हैं। उनमें से एक वीरेन्द्र त्यागी नाम का अपराधी है।”
“पूरा विश्वास है तुम्हें इस बात पर?” कामेश्वर बोला।
“पूरा तो नहीं कह सकता, परन्तु जो बातें तुमने मुझे बताई हैं, उन्हें सामने रखकर ये ही नतीजा निकलता है।”
“अब तो तुम्हारी तसल्ली हो जानी चाहिये कामेश्वर।” खेमकर बोला।
“देखते हैं।” कामेश्वर उठ गया –“मैं वो फोन नम्बर, दामोलकर को देकर फोन कम्पनी में भेजता हूं कि उस नम्बर को ट्रेस करके उसकी लोकेशन का पता लगाया जाये। हमें तेजी दिखानी होगी।”
“चलो! मैं भी चलता हूं।”
दोनों चंपानेरकर से विदा लेकर बाहर निकल गये।
जबकि चंपानेरकर के चेहरे पर सख्ती दिख रही थी। वो गहरी सोचों में डूबा लग रहा था। कुछ पलों बाद उसने टेबल का ड्राज खोला तो उसमें चार मोबाईल फोन रखे दिखे। उनमें से एक फोन उसने उठाया और नम्बर मिलाने लगा। चेहरे पर अब कड़वी मुस्कान नाच उठी थी।
☐☐☐
तीन कमरे के खूबसूरत फ्लैट में वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत मौजूद थे। फ्लैट में जरूरत की हर चीज थी। किराये में ये सब सामान भी शामिल था। खाने-पीने का सामान कल ही जगजीत बाजार से ले आया था और फ्रिज भर दिया था। टी.वी. चला रखा था और हर वक्त वो खबरें देखते रहते।
न्यूज टी.वी. चैनल वाले हर वक्त देवराज चौहान और जगमोहन की तस्वीरें दिखा रहे थे। ये चेहरे वो ही थे जो कि C.C.T.V में डकैती के दौरान आ गये थे।
त्यागी के चेहरे पर कड़वी मुस्कान नाच उठती, जब भी वो टी.वी. में देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे देखता। जगजीत भी खुश था कि सब ठीक हो गया और मैदान मार लिया।
“देवराज चौहान और जगमोहन अब बचने वाले नहीं त्यागी।”
“उन्हें सांस लेने को जगह नहीं मिल रही होगी। पूरी सरकारी मशीनरी इन्हें ही ढूंढ रही है। पुलिस, C.B.I. और क्राइम ब्रांच हाथ धोकर देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश में लगे हैं। साला मुझसे दुश्मनी लेता है। अब बच के दिखा। मैंने संगीन डकैती देवराज चौहान के नाम पर थोप दी है। बहुत जल्द मरेगा ये।”
“वो समझ तो गया होगा कि हम ही इसके पीछे हैं।”
“समझता रहे। परन्तु हम उन्हें मिलने वाले कहां हैं।” त्यागी ठठाकर हंस पड़ा –“कानून बुरी तरह उसके पीछे है कि उसे हमें ढूंढने का वक्त भी नहीं मिल पा रहा होगा। अपने को बचाने को दोनों छिपते फिर रहे होंगे।”
“ये बात तो है।”
“त्यागी का मुकाबला करना आसान नहीं है। मेरे से पंगा लेकर देवराज चौहान ने –।”
“त्यागी!” जगजीत सोच भरे स्वर में कह उठा –“अब हमें बाकी का काम भी निपटा देना चाहिये।”
त्यागी ने जगजीत को देखा।
“डिवाइस को बेच देना चाहिये।”
त्यागी ने हौले से सिर हिलाया।
“लेकिन एक बात मैं कल से सोच रहा हूं।” जगजीत बोला।
“क्या?”
“पार्टियों को पता है कि तू डिवाइस पर हाथ डालने वाला है?”
“हां। मैं उन्हें बता चुका था –और अब वो खबर सुनकर समझ भी गये होंगे कि मैं कामयाब रहा।”
“तो अभी तक किसी का फोन क्यों नहीं आया?”
“मैंने किसी को अपना फोन नम्बर नहीं दिया। उनके मांगने पर भी नहीं दिया, ये ही कहा कि डिवाइस हाथ में आ जाने के बाद उन्हें फोन करूंगा और अब वो तड़प रहे होंगे कि मेरा फोन क्यों नहीं आया? खास तौर से अमेरिका वाले तड़प रहे होंगे –क्योंकि उनके साथ तो मैंने 800 करोड़ में ‘डील’ फाईनल कर ली थी।” त्यागी ने हंसकर कहा।
“मेरे ख्याल में तो तुम्हें काम निपटा देना चाहिये।” जगजीत ने कहा –“उसके बाद हम भी कहीं जाकर आराम से बैठे।”
“इतनी आसानी से नहीं निपटने वाला काम। मैं अमेरिका, पाकिस्तान और पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों के बीच डिवाइस की नीलामी करूंगा। जो सबसे ज्यादा रकम देगा, वो डिवाइस ले जायेगा।” त्यागी सोच भरे स्वर में बोला –“वैसे भी अब न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का राज खुल चुका है। दुनिया भर के देश डिवाइस के बारे में जान गये हैं। ऐसे में और भी कई देश सामने आ जायेंगे जो इस करिश्मे से भरी डिवाइस को हासिल करना चाहेंगे। रूस, जर्मनी, इंग्लैंड, सऊदी अरब के देशों से मैं बात करूंगा। वो भी नीलामी में आयेंगे और हमें आश्चर्यजनक रूप से बहुत बड़ी रकम हासिल होगी। जिस देश के साथ डिवाइस का सौदा होगा, उसी देश में हम अपना जबर्रदस्त कारोबार खड़ा करेंगे। वहीं रहेंगे और हिन्दुस्तान घूमने आया करेंगे।
जगजीत मुस्कराया। परन्तु चेहरे पर गम्भीरता थी।
“तेरा प्लान बुरा नहीं, परन्तु मैं कहना चाहता हूं कि 800 करोड़ की रकम ही हमारे लिये बहुत है। चुपचाप अमेरिका से ही डिवाइस का सौदा कर लेना चाहिये। ज्यादा ढोल पीटना ठीक नहीं होगा। हिन्दुस्तान की सरकार बेवकूफ नहीं है। ये बात जान ही जायेगी कि डिवाइस को बेचने की चेष्टा की जा रही है।
“तो हमारा क्या जायेगा –।” त्यागी जहरीले स्वर में बोला –“हम तो ये काम नहीं कर रहे। ये काम तो देवराज चौहान और जगमोहन कर रहे हैं। उस वक्त हमारे चेहरों पर देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे वाला मास्क होगा। बल्कि मैं तो चाहूंगा कि हिन्दुस्तान सरकार को इस बात की खबर जरूर मिले कि देवराज चौहान और जगमोहन ने फलां देश के साथ सौदा करके डिवाइस बेच दी है। मैं देवराज चौहान को –।”
“कहीं ऐसी कोशिश में हम ना फंस जायें।”
“हम नहीं फंस सकते।” त्यागी ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
“800 करोड़ जानता है त्यागी कितनी बड़ी रकम होती है?” जगजीत ने गम्भीर स्वर में कहा –“हमें चुपचाप 800 करोड़ लेकर एक तरफ बैठ जाना चाहिये और ये बात किसी को पता भी नहीं लगनी चाहिये। ऐसे में हिन्दुस्तान सरकार तब भी ये ही सोचेगी कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस देवराज चौहान और जगमोहन ने बेच दी है। वैसे भी इतनी बड़ी खबर छिपने वाली नहीं। देर-सवेर में ये बात बाहर आ ही जायेगी कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस किस देश के पास है। ये बात जुदा है कि वो देश इन्कार करता रहेगा कि उसके पास खोजी डिवाइस नहीं है।”
“जगजीत!” त्यागी गम्भीर स्वर में कह उठा –“800 करोड़ बहुत बड़ी रकम होती है, इसमें कोई शक नहीं। परन्तु अगर 800 करोड़ के बदले हम 1500 करोड़ हासिल कर सकते हैं तो क्यों ना करें?”
“कोई गड़बड़ ना हो जाये –।”
“मुझ पर भरोसा रख, सब ठीक रहेगा।” त्यागी बोला –“मैं सब ठीक कर दूंगा।”
“तुझ पर भरोसा है, तभी तो...।”
उसी पल कुछ दूर पड़ा फोन बज उठा।
दोनों की निगाह मोबाईल की तरफ उठी।
“तूने ये नम्बर किसी को दे रखा है?” जगजीत बोला।
“ये नया नम्बर है। इस काम को शुरू करने से पहले, इस काम के लिये ही नया नम्बर लिया था। बाहरी किसी आदमी के पास नहीं है नम्बर।” त्यागी उठता हुआ बोला –“लखानी, परेरा, वाडेकर के ही पास था।”
“ओह! परेरा पुलिस कस्टडी में है। उसने तुम्हारा नम्बर पुलिस को दे दिया होगा।” जगजीत बेचैन हो उठा।
“ओह!” त्यागी ने पास पहुँचकर मोबाइल उठाया –“ये तो मैंने सोचा ही नहीं था।”
“तुम्हें इस फोन से छुटकारा पा लेना –।”
“चंपानेरकर का फोन है।” स्क्रीन पर आया नम्बर देखते त्यागी कह उठा –“हमारा कारनामा सुनकर साले का चैन हराम हो गया होगा।” कहने के साथ ही कॉलिंग स्विच दबाकर त्यागी ने फोन कान से लगाया –“हैलो!”
“देवराज चौहान कहूँ या वीरेन्द्र त्यागी कहूँ?” चंपानेरकर की शांत आवाज कानों में पड़ी!
ये सुनते ही त्यागी बुरी तरह चौंका।
अविश्वास के भाव आये त्यागी के चेहरे पर।
“चंपानेरकर?” त्यागी ने सब्र के साथ कहा –“अब क्या जरूरत पड़ी मुझे फोन करने की?”
“जवाब नहीं दिया तुमने मुझे कि देवराज चौहान कहूं या वीरेन्द्र त्यागी?”
“मैं देवराज चौहान हूं। तुम मिल चुके हो। परन्तु वीरेन्द्र त्यागी कौन है? क्या कहना चाहते हो?”
“तुम वीरेन्द्र त्यागी हो।” उधर से चंपानेरकर ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
मन ही मन सिटपिटा उठा त्यागी।
“क्या बकवास कर रहे हो!”
“तुम अच्छी तरह समझ रहे हो कि मैं बकवास नहीं कर रहा। अब सारे हालातों पर गौर करके सोचता हूं तो सब कुछ समझ में आता है मेरी। तुम मेरे से, वाडेकर से, लखानी से, परेरा से सबसे मिले, परन्तु खुद को छिपाने की चेष्टा नहीं की कि तुम देवराज चौहान हो जबकि तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को डकैती करने जा रहे हो। तुमने तो ढोल पीटा कि तुम देवराज चौहान लो, क्योंकि तुम देवराज चौहान थे ही नहीं, तुम तो उसे इस संगीन डकैती में फंसाना चाहते थे। तुम तो वीरेन्द्र त्यागी हो। एक बार पहले भी तुम देवराज चौहान के चेहरे का मास्क ओढ़कर डकैती मास्टर देवराज चौहान को मुसीबत में डालने की चेष्टा कर चुके हो। तुम अब भी ये ही कहोगे कि तुम देवराज चौहान ही हो तो जल्दी ही बड़ी मुसीबत में फंस जाओगे।” .
वीरेन्द्र त्यागी ने गहरी लम्बी सांस ली।
जगजीत पास आ गया था। वो नहीं समझा था कि क्या बात है।
“ठीक है।” त्यागी ने गंभीर स्वर में कहा –“मैं वीरेन्द्र त्यागी ही हूं। ये तुम्हें कैसे पता चला?”
“ये पुलिस को भी पता चल गया है। उस मकान से मिले तुम्हारे फिंगरप्रिंट, पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद तुम्हारे फिंगरप्रिंट्स से मिल गये हैं। पुलिस का ध्यान अब वीरेन्द्र त्यागी की तरफ हो रहा –।”
“ये नहीं हो सकता।” त्यागी गुर्रा उठा।
“क्यों नहीं हो सकता?”
“पुलिस को कैसे ध्यान आया कि वहां मिले फिंगरप्रिंट मेरी उंगलियों के निशान से मिलाने चाहिये?”
“तुमने देवराज चौहान जैसे डकैती मास्टर को बेवकूफ क्यों समझा वीरेन्द्र त्यागी?” चंपानेरकर की आवाज कानों में पड़ रही थी –“तुमने कैसे सोच लिया कि तुम ये सब करोगे तो वो आराम से बैठ जायेगा?”
“क्या किया है देवराज चौहान ने?” त्यागी के दांत भिंच गये।
जगजीत माथे पर बल डाले त्यागी को देखने लगा।
“देवराज चौहान बार-बार उन पुलिस वालों से मिल रहा है जो ये केस देख रहे...।”
“असंभव! इन हालातों में देवराज चौहान पुलिस वालों से मिलेगा तो वो उसे छोड़ेंगे नहीं।”
“हो सकता है देवराज चौहान जब उनसे मिलता हो तब वो देवराज पर हाथ डालने के काबिल ना हों। देवराज चौहान ने उनसे कहा कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती और बैंक और ज्वैलर्स शॉप पर डकैती उसने नहीं की। ये काम वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत ने उसके और जगमोहन के फेसमास्क लगाकर किया है। जगजीत बहुत अच्छे फेसमास्क बनाता है और इस तरह का काम त्यागी एक बार पहले भी कर चुका है।”
“सत्यानाश!” त्यागी गुर्रा उठा।
“पुलिस ने देवराज चौहान की बात पर यकीन नहीं किया, परन्तु जब उस मकान से मिलने वाले फिंगरप्रिंट देवराज चौहान और जगमोहन के फिंगरप्रिंट से नहीं मिले तो तब पुलिस ने पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद हर वीरेन्द्र त्यागी नाम के अपराधी की उंगलियों से मिलाये और तुम्हारी उंगलियों से मिल गये। अब पुलिस के पास तुम्हारी तस्वीर है।”
त्यागी का चेहरा गुस्से से धधक रहा था।
पास खड़ा जगजीत कह उठा–
“क्या हुआ?”
“चुप कर!” त्यागी गुर्रा उठा।
जगजीत समझ गया कि भारी गड़बड़ हो गई है।
“नहीं।” त्यागी ने गुस्से से भरी गहरी सांस ली –अब पुलिस क्या करेगी?”
“पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो –।”
“क्या?”
“देवराज चौहान और जगमोहन पुलिस कस्टडी में घायल पड़े परेरा से भी मिल आये। डॉक्टर बनकर गये थे दोनों और परेरा ने पुलिस को बयान दिया है कि देवराज चौहान और जामोहन उससे मिलने आये और जगमोहन की कद-काठी उस जगमोहन की कद-काठी से नहीं मिलती, जिस जगमोहन के साथ उसने डकैतियां की थीं। पुलिस के लिए ऐसी बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं –जैसे कि उस मकान से मिले उंगलियों के निशान देवराज चौहान से ना मिलकर तुम्हारी उंगलियों के निशानों से मिलना। परेरा का कहना कि जिस जगमोहन के साथ डकैती की थी और जिस जगमोहन को अब देखा दोनों की कद-काठी में फर्क-।”
“अब पुलिस क्या देवराज चौहान को नहीं ढूंढ रही?” त्यागी ने बेचैनी से कहा।
“ये केस मेरे पास नहीं है। परन्तु जो मुझे पता है, वो तुम्हें बता रहा हूं कि पुलिस का ध्यान थोड़ा-सा बंटा है और तुम्हारी तरफ हो गया है।” चंपानेरकर ने कड़वे स्वर में कहा –“परन्तु मैंने तुम्हें किसी और बात के लिए फोन किया।”
“क्या बात?”
“मैंने तुम्हारे लिए लखानी, वाडेकर और परेरा का इन्तजाम किया। क्योंकि तुम मुझे मोटी रकम देने का वादा कर चुके थे। परन्तु तुमने मुझे एक पैसा भी नहीं दिया त्यागी।” चंपानेरकर ने कहा।
“तुम्हें वाडेकर का करोड़ों रुपया मिल गया...।”
“वो बात रहने दो, मैं तुम्हारी बात कर रहा हूं। वादा करके भी तुमने मुझे कुछ नहीं दिया। अब हालात ये हैं कि पुलिस शाम तक तुम तक पहुंच जायेगी, बेशक तुम कहीं भी जाकर छिप जाओ। विश्वास करना मेरी बात का कि पुलिस के हाथ ऐसा क्लू लगा है कि तुम शाम तक पुलिस की गिरफ्त में होगे, चाहें कहीं भी भाग लो।”
“ये नहीं हो सकता।” त्यागी के होंठों से निकला।
“ये होने वाला है।”
“तुम पागल हो, भला कोई मुझ तक कैसे पहुंच –।”
“बहुत तगड़ा क्लू है पुलिस के पास और उस पर पुलिस ने काम करना भी शुरू कर दिया है। समझो पुलिस के कदम तुम्हारी तरफ बढ़ने शुरू हो गये हैं, जो शाम तक तुम तक पहुंच जायेंगे। परन्तु मैं तुम्हें बचा सकता हूं।”
“कै...से?” त्यागी ने बेचैनी से सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“तुम्हारे जो काम मैंने पहले किए और अब भी तुम्हें बचाऊंगा –उसकी कीमत पांच करोड़ तुम्हें देनी होगी।”
“बहुत ज्यादा मुंह फाड़ रहे हो।” वीरेन्द्र त्यागी दांत भींचकर बोला।
उधर से चंपानेरकर ने फोन बंद कर दिया था।
होंठ भींचे त्यागी ने कान से फोन हटा लिया।
“क्या बात है?” जगजीत ने पूछा।
“गड़बड़ लग रही है कुछ।”
“तुम मुझे ये बताओ कि चंपानेरकर ने ऐसा क्या कहा कि तुम चिन्तित हो उठे?”
त्यागी ने सारी बात बताई।
परेशान सा खड़ा जगजीत सब कुछ सुनता रहा।
“वो कहता है कि शाम तक पुलिस हमारे पास पहुंच जायेंगी, बेशक हम कहीं भी चले जायें।” त्यागी बोला।
“ये कैसे हो सकता है? हम मुंबई से बाहर निकल –।”
“चंपानेरकर कहता है कि कहीं भी जायें, पुलिस हम तक पहुंच जायेगी।” त्यागी गुर्राया।
“बकवास करता है साला।”
“उसकी आवाज में विश्वास था। हमारे पास पहुंचने के लिए पुलिस के पास कुछ खास क्लू हैं।”
“खास क्लू?” जगजीत व्याकुल था।
त्यागी ने जगजीत को देखा।
“ठीक है, उसे पांच करोड़ दे दे।” जगजीत बोला –“इन हालातों में पांच करोड़ हमारे लिए मामूली रकम है।”
“मैं भी यही सोच रहा हूँ।” कहकर त्यागी ने वापस चंपानेरकर का नम्बर मिलाया।
बेल बजने के बाद चंपानेरकर की आवाज कानों में पड़ी–
“तेरे में समझदारी होती तो पहले ही मेरी बात मान जाता।”
“हमें मिलना पड़ेगा?” त्यागी ने उखड़े स्वर में पूछा।
“मिलना तो पड़ेगा। पांच करोड़ लेने हैं और तेरा चेहरा भी देखना है।” उधर से चंपानेरकर की आवाज आई –“तू तो गुरू बंदा है। पहले मैं भी तेरे को देवराज चौहान समझता रहा। अगर पता होता कि तू देवराज चौहान नहीं, कोई और है तो अपने पैसे लेने के लिए मैं तभी तेरी गर्दन पकड़ लेता।”
“मैं देवराज चौहान से खतरनाक हूं। बात याद रख।” त्यागी गुर्रा उठा।
“तू कुछ भी नहीं है। इस वक्त तेरी जान मेरी मुट्ठी में है। पुलिस के अन्दर की बात तेरे को न बताऊं तो शाम तक तू सलाखों के पीछे बैठा फड़फड़ा रहा होगा। इस वक्त तो मैं दस करोड़ मांगू तो तू वो भी देगा।”
त्यागी के होंठ भिंचे रहे।
“क्या कह रहा है?” जगजीत ने पूछा।
“बकवास कर रहा है।” त्यागी ने कड़वे स्वर में कहा।
तभी उधर से चंपानेरकर की आवाज कानों में पड़ी– “क्या कहा तुमने?”
“जगजीत पूछ रहा था कि तुम क्या कह रहे हो। मैंने उसे बताया कि तुम बकवास कर रहे हो।” त्यागी गुर्राया।
“मैं तुम्हारी बात का बुरा नहीं मानूंगा। क्योंकि तुम मुझे पांच करोड़ देने वाले हो।”
“कहां मिलेगा?”
जगह तय हो गई।
वक्त एक घंटे बाद का था।
त्यागी ने फोन बंद किया तो जगजीत गम्भीर स्वर में कह उठा–
“ये सब करने के पीछे चंपानेरकर की चाल तो नहीं हमें गिरफ्तार कर लेने की?”
“वो ऐसा सोच भी नहीं सकता। क्योंकि इस काम में उसने अनजाने में हमारी सहायता की थी। परेरा, वाडेकर, लखानी का इन्तजाम उसने ही मुझे करके दिया था। वो जानता है कि हम चंपानेरकर द्वारा ही गड़बड़ से पकड़े गये तो पुलिस को कह सकते हैं कि इस सारे काम का मास्टरमाइंड चंपानेरकर था। हम तो उसके इशारे पर काम कर रहे थे। मिलने वाले पैसे का वो दस परसेंट हमें देने वाला था।”
“फिर भी हमें सावधान रहना होगा।” जगजीत व्याकुल स्वर में कह उठा।
☐☐☐
लोअर परेल इलाके के एक फुटपाथ पर वे मिले। त्यागी ही मिला। हाथ में छोटा-सा ब्रीफकेस था। जगजीत दूर खड़ा आसपास नजर रख रहा था कि चंपानेरकर कोई चाल तो नहीं चल रहा।
चंपानेरकर को वहां खड़े पन्द्रह मिनट से वो देख रहे थे। आसपास से लोग निकल रहे थे। सड़क पर ट्रैफिक था। पास ही चंपानेरकर की वो कार खड़ी थी जिसमें वो आया था। पन्द्रह मिनट नजर रखने के बाद भी उन्हें ऐसा कोई नहीं दिखा, जो चंपानेरकर के साथ हो । फुटपाथ पर खड़ा चंपानेरकर आते-जाते लोगों को देख रहा था।
तब ब्रीफकेस थामे त्यागी चंपानेरकर के पास जा पहुंचा था।
दोनों की नजरें मिलीं।
“कैसे हो चंपानेरकर?” त्यागी बोला।
चंपानेरकर ने आवाज से उसे पहचाना और मुस्करा पड़ा।
“ओह तुम! सच में तुम्हें देखकर मैं सोच भी नहीं सकता कि तुम हू-ब-हू देवराज चौहान बन सकते हो।”
त्यागी उसे घूरता रहा।
“वीरेन्द्र त्यागी नाम है तुम्हारा। खूब! तुम्हारा साथी जगजीत कहां है?”
“वो इस वक्त तुम्हें निशाने पर लिए हुए है कि तुम कोई चालाकी करो और वो तुम्हें शूट कर दे।”
“देवराज चौहान ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो उसके पीछे –।”
“सिर्फ काम की बात करो ए.सी.पी.। मैं तुमसे दोस्ती करने नहीं आया।” त्यागी कठोर स्वर में बोला।
चंपानेरकर ने उसके हाथ में दबे ब्रीफकेस को देखकर कहा–
“इसमें हैं पांच करोड़?”
“हां!”
“दिखाओ।”
“कार में चलो।”
दोनों पास ही खड़ी चंपानेरकर वाली कार में बैठे।
त्यागी ने ब्रीफकेस खोलकर चंपानेरकर की तसल्ली कराई।
चंपानेरकर ने ब्रीफकेस लेकर पीछे वाली सीट पर रखते हुए कहा–
“अगर तुमने पहले मुझे पैसा दे दिया होता तो ये खबर तुम्हें मुफ्त में दे देता।”
“बताओ कि मैं पुलिस के हाथों कैसे फंस सकता हूं?” त्यागी ने कठोर स्वर में पूछा।
“अगर मुझे इस बात का जरा-सा शक भी होता कि तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती करने वाले हो तो मैं तुम्हारे लिए लखानी, वाडेकर, परेरा को इकट्ठा करने में अपनी सहायता नहीं देता। मैंने तो सोचा था कि तुम देवराज चौहान हो और पैसे के लिये डकैती करने के लिए तुम्हें इन लोगों की जरूरत है।”
“तुम कितने कमीने हो, ये बात मैं अच्छी तरह जानता हूं।” त्यागी ने कड़वे स्वर में कहा।
“तुम अभी मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानते त्यागी। लेकिन ये तो तय है कि मैं तुमसे कम कमीना हूं।” चंपानेरकर ने सख्त स्वर में कहा –“पुलिस के हाथ में नहीं पड़ना चाहते तो अपना मोबाईल फोन अपने से दूर कर दो। इस फोन का नम्बर परेरा को पता था और उससे नंबर जानकर पुलिस फोन कम्पनी द्वारा इन नम्बर के फोन की लोकेशन ट्रेस कर रही है। इस तरह पुलिस को तुम्हारी लोकेशन पता चल जायेगी और तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि कब पुलिस ने तुम्हें आ घेरा।”
त्यागी के होंठों से गहरी सांस निकल गई।
ये बात उसे पहले सोच लेनी चाहिये थी। परन्तु सोच ही नहीं पाया था इस बात को।
“ठीक है।” त्यागी बोला –“कोई और बात?”
“अगर फिर से अपने काम की कोई बात जानना चाहते हो तो हर बार तुम्हें एक करोड़ देना होगा।”
“मंजूर है।” त्यागी कार का दरवाजा खोलता कह उठा।
“परन्तु तुम्हारा नया फोन नम्बर मेरे पास नहीं होगा।” चंपानेरकर ने कहा।
“मैं तुम्हें फोन कर लिया करूंगा।”
“ऐसे बात नहीं बनेगी। जैसे आज एमरजेंसी रही, उस तरह फिर कभी एमरजेंसी हुई तो तुम्हें नुकसान हो जायेगा।”
“मैं तुम्हें फोन पर नया नम्बर दे दूंगा।” बाहर निकलकर त्यागी ने कार का दरवाजा बंद किया।
तभी चंपानेरकर की कार स्टार्ट हुई और आगे बढ़ गई।
त्यागी ने आसपास देखा, फिर उस तरफ बढ़ गया जिधर जगजीत था। उसने जेब में रखे मोबाईल फोन को थपथपाकर टटोला जो कि कभी भी उसके लिए फंसने का कारण बन सकता था।
☐☐☐
दोपहर के ढाई बज रहे थे।
ए.सी.पी. खेमकर कुछ देर पहले ही पुलिस हेडक्वार्टर अपने ऑफिस में पहुंचा था और चपरासी को चाय लाने को कह दिया था। कुर्सी पर बैठा और सोचों में उलझा टेबल पर पड़ी चीजों को देखने लगा। उसका मन उलझा हुआ । चेहरे पर थकान से भरी लकीरें दिखाई दे रही थीं। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती ने उसे परेशान कर रखा था।
सभी फोन की बेल बजने लगी।
खेमकर ने हाथ बढ़ाकर टेबल पर पड़े फोन का रिसीवर उठाया।
“हैलो!”
“खेमकर।” उधर से भारी भरकम आवाज कानों में पड़ी।
“सर!” खेमकर तुरन्त सतर्क भाव से कह उठा।
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती के मामले में तुमने अभी तक रिपोर्ट नहीं दी?”
“मैं उसी पर काम कर रहा हूं। ए.सी.पी. कामेश्वर मेरे साथ हैं। पूरी मुम्बई में हमारे मुखबिरों का जाल फैला है। कभी भी –।”
“मैंने पूछा है कि देवराज चौहान पकड़ा गया कि नहीं? न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को कब वापस हासिल कर रहे हो? मुझे पॉजिटिव जवाब चाहिये। मैं ये नहीं सुनना चाहता कि तुम क्या कर रहे हो –।” उधर से कहा गया।
“एक-दो दिन में कुछ ना कुछ हो जायेगा सर।” खेमकर गम्भीर स्वर में कह उठा।
“तेजी दिखाओ। ये संगीन मामला है। जल्दी से कुछ करो और मुझे बताओ।” इसके साथ ही लाईन कट गई।
खेमकर ने होंठ भींचे रिसीवर वापस रखा।
चपरासी चाय रख गया।
खेमकर ने प्याला अपनी तरफ सरकाया और घूँट भरा। वो जानता था कि मामला बहुत ज्यादा उलझ चुका है। अभी ये किसी को बताई भी नहीं जा सकती कि इस मामले के पीछे देवराज चौहान ना होकर, किसी और के होने का शक था। क्योंकि ये बात कोई नहीं सुनेगा। इस बात को साबित करने के लिए सबूत चाहिये और जो सबूत हैं, वो अधूरे हैं। कम हैं। दो ही तो बात सबूत थे पास में, एक ये कि उस मकान से देवराज चौहान की उंगलियों के निशान नहीं मिले, वीरेन्द्र त्यागी के मिले हैं। निशानों का मिलान हो चुका था। दूसरे, परेरा का कहना था कि पहले वाले जगमोहन की और अब उसके पास आये जगमोहन की कद-काठी में फर्क था। ये बातें खेमकर तो समझ सकता था, परन्तु किसी को समझा नहीं सकता था।
चाय समाप्त करके खेमकर ने कामेश्वर के मोबाईल पर फोन किया। बात हुई।
“इंस्पेक्टर दामोलकर ने फोन कम्पनी के ऑफिस से कोई रिपोर्ट दी?”
“दो घंटे पहले दामोलकर ने फोन पर बताया था कि वो फोन नम्बर लोकेशन चेकिंग पर लगाया जाने वाला है।” उधर से कामेश्वर ने कहा।
“उसके बाद उसका फोन नहीं आया?”
“अभी तो नहीं आया। मैं पता करता हूं। उसे फोन करता हूं।”
खेमकर ने फोन बंद किया। टेबल पर रखा। चेहरे पर गंभीरता और परेशानी थी।
उसी पल दरवाजे को धकेलकर इंस्पेक्टर पवन कुमार वानखेड़े ने भीतर प्रवेश किया।
खेमकर उसे एकाएक सामने पाकर चौंका।
“तुम?”
“सीधा एयरपोर्ट से आ रहा हूं सर। नेपाल का काम अधूरा छोड़कर आया हूं कि देवराज चौहान के मामले को समझ सकूँ।”
वानखेड़े आगे आ पहुंचा।
“बैठो! सांस तो ले लो। क्या लोगे, चाय-कॉफी। लंच तो नहीं किया...।”
“ये बातें बाद में सर-पहले।”
“मुझे सर मत कहो। तुम्हें पहले भी मना कर चुका –।”
“लेकिन आपका ओहदा मेरे से बड़ा...!”
“ये ही ओहदा तुम्हारा भी होता अगर तुमने तरक्की लेने से इन्कार ना किया होता।” खेमकर मुस्कराया।
“ठीक है। आप मुझे देवराज चौहान के बारे में बताईये और सारे मामले के बारे में...।” वानखेड़े गम्भीर दिखने लगा।
खेमकर ने मोबाईल उठाकर कामेश्वर को फोन किया और बात होते ही बोला– “मेरे ऑफिस में आ जाओ। वानखेड़े आ पहुंचा है, वो सारा मामला जानना चाहता है। तुम भी पास रहो तो ठीक होगा।”
उसके बाद खेमकर ने बाहर बैठे चपरासी से तीन कॉफी लाने को कहा।
पांच मिनट में ही कामेश्वर आ पहुंचा और वानखेड़े से उखड़े स्वर में बोला–“ये सब कुछ तुम्हारी लापरवाही की वजह से हो रहा है।”
“मेरी लापरवाही?
“सालों से देवराज चौहान की फाईल तुम्हारे पास है, परन्तु वो अभी भी आजाद है, क्यों?”
“देवराज चौहान सतर्क रहने वाला इन्सान है। वो ऐसा कोई रास्ता नहीं छोड़ता कि जिस पर चलकर उसके पास पहुंचा जा सके।”
“ये बकवास है। मैं तुम्हारी इस बात को नहीं मान सकता।”
“मैं सच कह रहा।”
“मुझे तो लगता है कि देवराज चौहान और तुममें कोई टांका है!” कामेश्वर गुस्से में था
“वो कैसे सर?” वानखेड़े एकाएक मुस्कराया।
“दो दिन पहले देवराज चौहान हमें मिला और उसने कहा कि आप वानखेड़े से पूछ लीजिये, ये काम मैंने नहीं किया। तुम दोनों इतने घुले-मिले हो कि ये बात भी दावे के साथ कह सकते हो कि ये काम उसने किया है और ये नहीं किया।”
“क्योंकि मैं देवराज चौहान के हर पैंतरे से वाकिफ हो चुका हूं।”
“तुम –!”
“कामेश्वर!” खेमकर ने टोका –“हमें काम की बात करनी –।”
“तो क्या अब मैं काम की बात नहीं कर रहा?” कामेश्वर उखड़ा।
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती पर बात होनी चाहिये।” खेमकर ने पुनः कहा।
दो पलों के लिए वहां खामोशी उभरी फिर वानखेड़े कह उठा– “मैंने नेपाल के अखबारों में पढ़कर इस मामले के बारे में जाना है। मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि ये काम देवराज चौहान ने नहीं किया।”
“फोन पर बात की होगी देवराज चौहान से। तभी तुम वापस लौटे। देवराज चौहान ने कहने की कीमत दे दी या देगा अभी? कामेश्वर ने गुस्से से कहा –“क्या यही कहने नेपाल से आये हो?”
वानखेड़े ने गम्भीर नजरों से खेमकर को देखा।
“कामेश्वर!” खेमकर पहलू बदलता कह उठा –“ये तुम क्या कह रहे हो। वानखेड़े जिम्मेदार ऑफिसर है।”
“तभी अभी तक सालों से देवराज चौहान आजाद है।”
“आप लोगों को भी तो मिला देदराज चौहान।” वानखेड़े ने कहा –“उसे पकड़ा क्यों नहीं?”
कामेश्वर ने होंठ भींचकर वानखेड़े को देखा।
“ये बात तो मैं आएको भी कह सकता हूं कि पकड़ने की अपेक्षा उससे पैसा लेकर उसे जाने दिया –।”
“क्या?” कामेश्वर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ –“तुम मुझ पर रिश्वत लेने का इल्जाम...।”
“तुम ऐसा कर सकते हो तो मैं ऐसा क्यों नहीं कर सकता।” वानखेड़े ने शांत स्वर में कहा।
“मैं तुमसे देवराज चौहान का केस लेकर एंटी रॉबरी सेल को दे दूंगा।” कामेश्वर ऊंचे स्वर में कह उठा।
“मुझे इस पर कोई एतराज नहीं।”
“ये मत भूलो कि तुम इंस्पेक्टर हो और मेरे मुंह लग रहे हो।”
वानखेड़े के चेहरे पर मुस्कान उभरी।
खेमकर उठकर कामेश्वर के पास पहुंचा और उसे कुर्सी पर बिठाता कह उठा– “शांति से बैठे जाओ। बहुत हो गया। हम यहां पर न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का मामला सुलझाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। लड़ने के लिए नहीं। अभी मुझे ऊपर से फोन आया था और वो पूछ रहे थे कि इस मामले में मैंने क्या किया। इस तरह हमें वक्त बरबाद करने का कोई हक नहीं। हमें सिर्फ इस मामले पर बात करनी है।”
तभी दरवाजा खोलकर चपरासी ने भीतर प्रवेश किया।
ट्रे में रखे वो कॉफी के तीन प्याले लाया था और टेबल पर रखकर चला गया।
“कॉफी लो।” खेमकर एक प्याला अपनी तरफ सरकाता कह उठा।
दोनों ने कॉफी के प्याले अपनी तरफ सरकाये।
खेमकर ने कॉफी का घूंट भरा और कामेश्वर को देखा जो अभी तक उखड़ा हुआ था।
“तुम अपने को संभालो कामेश्वर। इस हाल में रहकर तुम मामला हल नहीं कर सकोगे।”
कामेश्वर ने कुछ नहीं कहा। कॉफी का घूंट भरा।
“वानखेड़े!” खेमकर ने कहा –“तुम देवराज चौहान के बारे में क्या कह रहे थे?”
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती देवराज चौहान ने नहीं की।” वानखेड़े गम्भीर स्वर में बोला।
कामेश्वर ने तीखी नजरों से वानखेड़े को देखा।
“ये तुम कैसे कह सकते हो?” खेमकर के माथे पर बल पड़े।
“मैं देवराज चौहान की नस-नस से वाकिफ हूं। वो कभी भी ऐसा काम नहीं करता कि पुलिस वालों की या सरकार की व्यक्तिगत निगाह उस पर पड़े। यही वजह है कि देवराज चौहान को कभी खतरनाक नहीं माना गया और वो अभी तक आजाद है। वो ना तो कभी पुलिस वालों के रास्ते में आता है, ना ही सरकार के। वो सिर्फ डकैतियां करता है पैसे के लिए, परन्तु डकैती के दौरान वो किसी की भी कभी जान नहीं लेता। अगर ऐसी नौबत आये तो वो अपना काम वहीं का वहीं छोड़ देता है।”
“काफी दोस्ताना जानकारी है देवराज चौहान के बारे में।” कामेश्वर ने मुंह बनाकर कहा।
“देवराज चौहान की फाईल कुछ साल आप भी रखते तो आप भी ये ही कहते।” वानखेड़े बोला।
“देवराज चौहान ने दस दिन में तीन डकैतियां कीं।” कामेश्वर बोला –“उसके साथ परेरा, लखानी, वाडेकर और जगमोहन थे। पहली डकैती बैंक में की। बैंक में लगे C.C.T.V कैमरों ने उनके चेहरे रिकॉर्ड कर लिए। दूसरी डकैती ज्वैलर्स के यहां की। वहां भी लगे C.C.T.V कैमरों ने उनके चेहरे पकड़ लिए। फिर इन सब ने उस सरकारी इमारत ग्रीन हाउस में बेहतरीन प्लानिंग के साथ डकैती की। वहां भी C.C.T.V कैमरों ने इनके चेहरे रिकॉर्ड कर लिए। वो ही देवराज चौहान, वो ही उसके साथी। दस दिन में तीन डकैती-और तीसरी डकैती न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की थी। C.C.T.V कैमरों ने स्पष्ट रिकॉर्डिंग की है। सत्रह लोगों की वहां हत्या की गई। तुम उन तीनों जगहों की C.C.T.V रिकार्डिंग देखना चाहोगे?”
“जरूर देखूंगा।” वानखेड़े गंभीर था।
“तुम कहते हो कि ये काम देवराज चौहान ने नहीं किया। रिकॉर्डिंग देखने के बाद तुम ऐसा नहीं कह सकोगे।”
वानखेड़े कामेश्वर को देखता रह गया।
“देवराज चौहान का एक साथी परेरा, जिन्दा हमारे हाथ लग गया है। तुम्हें उसके बयान भी लेने चाहिये। वो देवराज चौहान को भर-भर के गालियां दे रहा है कि उसे घायल हालत में देवराज चौहान छोड़कर भाग गया।”
“घायल हाल में छोड़कर देवराज चौहान चला गया?” वानखेड़े की आंखें सिकुड़ी।
“क्यों?” कामेश्वर ने उसे देखा।
“देवराज चौहान अपने साथियों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करता। वो उनकी पूरी चिन्ता करता है।”
“तो मैं या परेरा क्या झूठ कह रहे हैं।”
“पता नहीं।” वानखेड़े बेचैन दिखा।
“वानखेड़े!” कामेश्वर ने गम्भीर स्वर में कहा –“तुम हमसे बेहतर जानते हो देवराज चौहान के बारे में। क्योंकि सालों से उसकी फाईल तुम्हारे पास है। लेकिन तुम्हारा ये कहना अजीब है कि देवराज चौहान न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती नहीं कर सकता।”
वानखेड़े ने होंठ भींच लिये।
“कभी भी किसी इन्सान की आदतें बदल सकती हैं। सोचें और विचार बदल सकते हैं। हालात बदल सकते हैं और वो वो काम कर देता है जिसे कि उसने कभी भी किया नहीं होता।” कामेश्वर एक-एक शब्द पर जोर देता गम्भीर स्वर में कह उठा –“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की हकीकत जानते हो कि उससे क्या काम लिया जा सकता है?”
“अखबार में पढ़ा था।”
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को किसी देश के हाथों में बेचकर खरबों में पैसा लिया जा सकता है और इतना पैसा किसी का भी ईमान खराब करने के लिए बहुत है। तुम ही बताओ कि क्या मैं गलत कह रहा हूं?”
“मैं सहमत हूं आपकी बात से।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा।
“जबर्दस्त प्लानिंग के साथ न्यूक्लियर खोजी डिवाईस की डकैती की...।”
“देवराज चौहान इस तरह डकैती नहीं करता।” वानखेड़े ने कहा।
कामेश्वर के चेहरे पर झल्लाहट के भाव उभरे।
खेमकर के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी। वो दोनों की बातें सुन रहा था।
“तो कैसे करता है वो डकैती?” कामेश्वर ने उसे घूरा।
“ग्यारहवीं मंजिल लूटने के लिए वो कभी भी दसवीं मंजिल पर आग नहीं लगाएगा। वो इस तरह काम नहीं करता। खामोशी से काम करके निकल जाना पसन्द करता है। वो इतनी खतरनाक चीज पर कभी भी हाथ नहीं डालेगा, जबकि उसे पता हो कि इस काम के बाद देश की सरकार उसके पीछे हाथ धोकर पड़ जायेगी। मेरा कहने का ये मतलब नहीं कि आप गलत कह रहे हैं। ये बातें अब जांच का विषय हैं। इस काम में मैं आप लोगों के साथ काम करना चाहता हूं। आपको एतराज तो नहीं?”
“हमें खुशी होगी। मैं तुमसे कहने ही वाला था कि तुम हमारे साथ इस केस पर काम करो।” खेमकर कह उठा।
“तो मुझे यहां के हालात बताईये कि आप लोगों ने अभी तक इस मामले की क्या-क्या तफ्तीश की?” वानखेड़े गम्भीर स्वर में बोला।
खेमकर उसे बताने लगा।
जरूरत पड़ने पर कामेश्वर भी बोल पड़ता था।
वानखेड़े ने सब कुछ सुना। चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
वो खेमकर से बोला– “सर, मुझे पूरा विश्वास है कि डकैती करने वाला देवराज चौहान नहीं है, वीरेन्द्र त्यागी ही है। देवराज चौहान आप लोगों के पास आकर ठीक सफाई दे रहा है कि ये काम उसने नहीं किया। मामले के हालातों को जानकर मैंने पहले ही आशंका जाहिर कर दी थी कि ये काम देवराज चौहान का किया नहीं हो सकता। अब आपकी बातें सुनकर ये बातें स्पष्ट हो गईं।”
“तुम बहुत जल्दी नतीजे पर पहुंच रहे हो।” कामेश्वर बोला।
“मैं आप लोगों के साथ इस मामले की तफ्तीश करूंगा।” वानखेड़े बोला।
“जो दो बातें हमें पता चली हैं वो इस बात का सबूत नहीं हैं कि ये काम वीरेन्द्र त्यागी ने किया है। उस मकान से वीरेन्द्र त्यागी की उंगलियों के निशान मिलना कोई बड़ी बात नहीं है। वो भी अपराधी ही तो है। जिस तरह ये बात सामने आ रही है कि उसने देवराज चौहान के चेहरे का मास्क पहनकर ये काम किया। उसी तरह हम ये भी तो सोच सकते हैं कि शायद त्यागी, वाडेकर के चेहरे में हो और उसकी उंगलियों के निशान मिले हों।” खेमकर ने कहा।
“हाँ। कुछ भी हो सकता है। परन्तु वहां से देवराज चौहान की उंगलियों के निशान भी तो मिलने –।”
“ये कोई जरूरी नहीं है कि वहां से देवराज चौहान की उंगलियों के निशान क्यों नहीं मिले। आम बात ये है कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती के दौरान C.C.T.V कैमरों ने देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरों को स्पष्ट कैच किया, जो कि आग बुझाने वाले कर्मचारियों के कपड़े पहने थे।” खेमकर बोला।
गम्भीरता में डूबा वानखेड़े का चेहरा हिला।
“अब हम परेरा के बयान पर आते हैं कि जिस जगमोहन के साथ उसने डकैती की और जो जगमोहन, देवराज चौहान के साथ उससे अस्पताल में मिलने डॉक्टरों के वेश में आया था, यानि कि दोनों जगमोहनों की सेहत, कद-काठी में फर्क था। परेरा का ये बयान भी इतना महत्वपूर्ण नहीं है। हम कह सकते हैं कि वो घायल है। तीन-तीन गोलियां लगी हैं उसे। उसे सदमा पहुंचा है कि सफल होने की अपेक्षा वो कानून की पकड़ में आ गया और ऐसे में वो जो मुंह में आता है, कहे जा रहा है। भला दोनों जगमोहनों में फर्क कैसे हो सकता है। दोनों एक ही इन्सान तो हैं।”
वानखड़े के होंठ सिकुड़े। वो कह उठा– “आप ठीक कहते हैं कि इन बातों के दम पर केस की जांच में टर्न नहीं आ सकता।”
“हमारे पास इस वक्त महत्वपूर्ण सुराग C.C.T.V कैमरों की फुटेज है, जो ये बताती है कि इस काम के पीछे देवराज चौहान, जगमोहन, लखानी, परेरा और वाडेकर थे। लखानी, वाडेकर वहां के गनमैनों का मुकाबला करते मारे गये। परेरा घायल होकर पुलिस के हाथों में पड़ गया और देवराज चौहान, जगमोहन न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती करके ले गये। यानि कि इस संगीन डकैती के मुख्य अपराधी देवराज चौहान और जगमोहन हैं। पूरे मुम्बई में ही नहीं, बल्कि देश भर की पुलिस के पास देवराज चौहान और जगमोहन की तस्वीरें पहुंच चुकी हैं। वो किसी भी हाल में बचे नहीं रह सकते। या तो वो पकड़े जायेंगे या किसी भी वक्त पुलिस से मुठभेड़ करते वक्त मारे जायेंगे। परन्तु हम चाहते हैं कि वो जिन्दा हाथ लगें ताकि उनसे न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को वापस पाया जा सके।”
“ये भी हो सकता है कि उसने न्यूक्लियर खोजी डिवाइस किसी देश को बेच दी हो –।”
“अभी नहीं।” कामेश्वर ने सिर हिलाया –“अभी सौदा नहीं हुआ होगा। परेरा का कहना है कि देवराज चौहान ने कहा था कि वो अमेरिका से बात कर चुका है और अमेरिका उसे 800 करोड़ रुपये देने को तैयार है। परन्तु देवराज चौहान का इरादा कीमत बढ़ाने का था। इसलिये उसने पाकिस्तानी सरकार से भी बात कर रखी है और पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों से भी। उसने कहा कि वो डिवाइस की नीलामी करेगा। जो ज्यादा पैसा देगा, वो ही डिवाइस लेगा और हम सोच सकते हैं कि इस तरह सौदा होने में कुछ वक्त लग सकता है। अभी डिवाइस देवराज चौहान के पास ही होगी।”
वानखेड़े के होंठ भिंचे पड़े थे। चेहरा कठोर दिख रहा था।
“चाहे जैसे भी हो, हमें हर हाल में डिवाइस को वापस पाना है।” वानखेड़े सख्त स्वर में बोला।
“हमें ज्यादा वक्त नहीं मिलेगा। जो करना है तुरन्त करना होगा। वरना डिवाइस हाथ से निकल जायेगी।” खेमकर बोला।
“फौरन ही करेंगे।” वानखेड़े बोला –“देवराज चौहान का फोन कब आया था?”
“क्यों?”
“जब फोन आये तो उससे मेरी बात कराइएगा।”
“क्या बात करना चाहते हो?”
“सुन लेना।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा –“लेकिन ये बात तो पक्की है कि ये डकैती देवराज चौहान ने नहीं की। उसे फंसाया जा रहा है। मुझे देवराज चौहान के साथ कोई सहानुभूति नहीं है। परन्तु मेरी समझ के हिसाब से हालात ही ये कह रहे हैं। मैं अभी C.C.T.V. कैमरों की फुटेज देखूंगा और परेरा से भी मिलना चाहूंगा। एक काम आपको और भी करना चाहिये कि वीरेन्द्र त्यागी की जो तस्वीर पुलिस रिकॉर्ड में है, उसकी सैकड़ों कॉपियों बनवा कर पुलिसवालों में बांट दें। ये काम वीरेन्द्र त्यागी ने देवराज चौहान का चेहरा अपना कर किया है या वैसे किया है, परन्तु किया है, क्योंकि उस मकान से उसकी उंगलियों के निशान भी मिले हैं। उसका भी पकड़ा जाना बहुत जरूरी है। बेशक वो किसी भी रूप में इस संगीन डकैती से जुड़ा हो।”
खेमकर ने कामेश्वर को देखा।
“ये काम मैं अभी कर देता हूं।” कहते हुए कामेश्वर ने जेब से मोबाईल निकाला। उसी पल मोबाईल की बेल बजने लगी।
“हैलो।” कामेश्वर ने बात की।
“सर।” इंस्पेक्टर विजय दामोलकर की आवाज कानों में पड़ी –“उस नम्बर की लोकेशन पता चल गई है। नवी मुम्बई में माउंट अपार्टमेंट के पास के फ्लैटों में है लोकेशन।”
“वैरी गुड। उन फ्लैटों का कोई खास हिस्सा जहां –।”
“सर, आप लोग वहां पहुंचिए, तब मैं आपको बताऊंगा कि फ्लैटों के कौन से हिस्से से हमें सिग्नल मिल रहा है।”
“ठीक है। हम अभी वहां पहुंच कर तुम्हें फोन करते हैं।” कामेश्वर ने कहकर फोन बंद किया और खेमकर को देखकर बोला –“देवराज चौहान वाले उसे फोन नम्बर की लोकेशन पता चली है, जिसका नम्बर परेरा ने बताया था। वो नवी मुम्बई में माउंट अपार्टमेंट के पास के फ्लैटों की है। हमें तुरन्त वहां जाना होगा। हम उसे पकड़ सकते हैं।”
“जल्दबाजी मत करो।” खेमकर गम्भीर स्वर में बोला –“हमें पूरे दल-बल के साथ, पूरे इन्तजाम के साथ वहां पहुंचना होगा। वो लोग कोई मामूली चोर नहीं हैं। उनके पास न्यूक्लियर खोजी डिवाइस है।”
☐☐☐
शाम के छः बज रहे थे।
दिन का उजाला पूरी तरह फैला था। सूर्य पश्चिम की तरफ सरकता जा रहा था।
नवी मुम्बई के एक खास हिस्से के फ्लैट इस वक्त पुलिस के घेरे में थे। हर तरफ पुलिस ही पुलिस नजर आ रही थी। खाकी वर्दियों का बोलबाला था। लोगों को वहां से दूर कर दिया गया था। फ्लैटों में रहने वाले हैरान थे कि पुलिस क्या कर रही है। इतना तो हर कोई समझ चुका था कि किसी अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस ये कार्यवाही कर रही है।
दस मिनट पहले ही हथियारबंद पुलिस को बताया गया था कि कौन से फ्लैट में उनका शिकार है।
वानखेड़े, कामेश्वर और खेमकर पुलिस वालों को निर्देश दे रहे थे।
कामेश्वर इस वक्त फोन पर दामोलकर से बात कर रहा था।
“फोन अभी भी फ्लैट में ही है सर। हमें सिग्नल मिल रहा है।”
“ठीक है। मैं तुमसे फिर बात करता हूं।” इसके साथ ही कामेश्वर ने फोन बंद किया और खेमकर और वानखेड़े को देखकर कह उठा –“अब हमें अपना काम कर देना चाहिये।”
“फ्लैट के भीतर जो है, उसे बाहरी हलचल का पता चल चुका होगा।” वानखेड़े बोला –“वो भी गोलियां चला सकता है।”
“ये रिस्क तो हमें उठाना होगा। तुम पुलिस वालों को एक्शन में आने को कहो।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा।
वानखेड़े पुलिस वालों की तरफ बढ़ गया।
“वानखेड़े ठीक कहता है कि फ्लैट वाले गोलियां चला सकते हैं।” कामेश्वर बोला।
“परन्तु जीत हमारी ही होगी। वो मारे जायेंगे या पकड़े जायेंगे।”
“कौन होगा भीतर? देवराज चौहान या वीरेन्द्र त्यागी?”
“कोई भी मिल जाये। हमें दोनों की जरूरत है।” खेमकर की नजरें सामने लगी थीं।
तभी उन्होंने पुलिस वालों को उस फ्लैटों का दरवाजा खोलकर गने थामें भीतर जाते देखा।
फ्लैट का दरवाजा लॉक नहीं था।
एक के बाद एक दस जवान गने थामें तीन सेकेंड में भीतर प्रवेश करते चले गये थे।
तब वानखेड़े एक तरफ हटकर खड़ा नजर आ रहा था।
सबको गोलियां चलाने का इन्तजार था।
परन्तु मिनट भर बीत जाने के बाद भी गोलियों की आवाजें नहीं आईं।
खेमकर और कामेश्वर ने सोचा कि अपराधियों ने हथियार डाल दिए होंगे।
परन्तु वानखेड़े कुछ भी नहीं सोच रहा था। उसे आने वाले वक्त का इन्तजार था।
तभी दो जवान फ्लैट के दरवाजे से बाहर निकले और एक ने ऊंचे स्वर में कहा– “भीतर कोई भी नहीं है।”
उस फ्लैट के साधारण से ड्राइंग रूम की सेन्टर टेबल पर मोबाईल फोन पड़ा हुआ था।
फ्लैट में कोई भी नहीं था।
पांच-छ: जवान भीतर खड़े थे। खेमकर, कामेश्वर और वानखेड़े थे।
“मोबाईल फोन तो पड़ा है।” कामेश्वर ने परेशान स्वर में कहा –“परन्तु यहां कोई भी नहीं है!”
“ये बहुत खतरनाक बात है।” वानखेड़े बोला।
“क्या मतलब ?” कामेश्वर ने वानखेड़े को देखा।
“फोन यहां होने और किसी और के यहां नहीं होने का मतलब है कि यहां जो भी था, उसे पता था कि हम मोबाइल के दम पर उनकी लोकेशन पता करते हुए यहां पहुंचने वाले हैं। ये बात जरूर उसे किसी ने बताई।” वानखेड़े ने दोनों को देखा।
“किसने?”
“फोन की लोकेशन ट्रेस की जा रही है-ये बात किसे पता थी?” वानखेड़े ने पूछा।
“हम दोनों को।” खेमकर ने कामेश्वर को देखकर कहा –“इंस्पेक्टर दामोलकर को और कमिश्नर चंपानेरकर को।”
“तो इन चारों में से कोई गद्दार है।” वानखेड़े शांत स्वर में बोला।
“वानखेड़े!” कामेश्वर ने नाराजगी से कहना चाहा।
“चुप हो जाओ।” खेमकर गम्भीर स्वर में बोला –“तुम्हें नहीं, वो चार में से एक के गद्दार होने की बात कह रहा है। चारों में से किसी ने तो बात बाहर की है, तभी तो यहां हमें सिर्फ मोबाईल पड़ा दिख रहा है।”
होंठ भींचे कामेश्वर ने अपना मोबाईल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।
चंद पलों के बाद टेबल पर पड़ा मोबाईल बजने लगा।
“यही है, जिसे ट्रेस करते हम यहां पहुंचे।” कामेश्वर ने उखड़े स्वर में कहा और मोबाईल काट कर जेब में रखा।
टेबल पर पड़े मोबाईल की बेल बजनी बंद हो गई।
“यहां पर किसी चीज को कोई हाथ न लगाए।” वानखेड़े बोला –“यहां से फिंगरप्रिंट उठाये जायेंगे। ताकि हमें मालूम हो सके कि कौन था यहां पर। यहां जो भी था, वो ही असली अपराधी है। क्योंकि परेरा के पास असली अपराधी का नम्बर ही होगा, जो कि उसने दिया था। यहां से देवराज चौहान या वीरेन्द्र त्यागी में किसी एक के फिंगरप्रिंट जरूर मिलेंगे।”
“हमारी सारी भागदौड़ बेकार –।” खेमकर ने कहना चाहा।
तभी टेबल पर पड़ा मोबाईल बजने लगा।
तीनों की नज़रें मिलीं।
एकाएक कामेश्वर आगे बढ़ा। मोबाइल उठाया और कॉलिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।
“हैलो –!”
“कौन-सा कमिश्नर बोल रहा है?” उधर से त्यागी की कड़वी आवाज आई –“खेमकर या कामेश्वर?” कामेश्वर के होंठ भिंच गये।
वानखेड़े और खेमकर की निगाहें उस पर टिकी थी।
“कामेश्वर।” कामेश्वर ने सख्त स्वर में कहा –“तुम कौन हो?”
“मुझे नहीं पहचाना कमिश्नर?”
“नहीं –।”
“मैं वो ही हूं जिसे तुम इतने ताम-झाम के साथ पकड़ने आये थे। कितनी मेहनत की तुमने, परन्तु तुम मुझे पकड़ नहीं पाये। देवराज चौहान को तुम पकड़ लोगे, ये तुमने कैसे सोच लिया। मुझे पकड़ना इतना आसान नहीं है।”
“तुम देवराज चौहान हो?”
“वाह, अभी तक तुमने मुझे पहचाना नहीं क्या?”
तभी वानखेड़े आगे बढ़ा और कामेश्वर से मोबाईल लेने की चेष्टा की।
“तुम देवराज चौहान नहीं हो –।” कामेश्वर ने कठोर स्वर में कहा।
तभी वानखेड़े ने उससे मोबाईल लेकर अपने कान से लगा लिया।
उधर से वीरेन्द्र त्यागी कह रहा था– “मैं देवराज चौहान ही हूं। तुम कभी मुझसे मिले होते तो मेरी आवाज को–।”
वानखेड़े ने कामेश्वर को फोन दे दिया।
कामेश्वर ने फोन कान से लगाते हुए कहा– “तुम देवराज चौहान नहीं हो। बीते तीन दिनों में मैंने देवराज चौहान से बात की है। उससे मिला भी हूं परन्तु।”
“बकवास!” उधर से त्यागी का तीखा स्वर कानों में पड़ा –“तुम भला देवराज चौहान से कैसे मिल सकते हो? वो तो पुलिस से अपनी जान बचाने के लिए भागा फिर रहा होगा। उसे तो कहीं छिपने की भी जगह नहीं मिल रही...।”
“मैं उससे मिला। उसने एक जगह रोक कर मुझसे बात की। वो मेरे सामने था और खेमकर मेरे साथ था। जगमोहन भी तब देवराज चौहान के साथ था और उसकी और तुम्हारी अब की आवाज में बहुत फर्क है। तुम वो नहीं हो।”
“हैरानी है कि तुम देवराज चौहान को कह रहे हो कि वो देवराज चौहान नहीं है।”
कामेश्वर ने कुछ नहीं कहा। वानखेड़े को देखा।
वानखेड़े के चेहरे पर तीखी मुस्कान नाच रही थी।
“वो नकली देवराज चौहान होगा, जिससे तुम मिले –।”
“वो मुझे असली लगा।”
“अच्छा। परन्तु वो तुमसे मिला क्यों?”
“वो मुझे बताना चाहता था कि न्यूक्लिर खोजी डिवाइस की डकैती उसने नहीं बल्कि तुमने की है।” कामेश्वर होंठ भींच कर बोला।
“मैंने?”
“वीरेन्द्र त्यागी ने। तुम्हारे साथ जगजीत भी है जो लोगों के चेहरों के फेसमास्क बनाने में एक्सपर्ट है। उसने जगमोहन के चेहरे का फेसमास्क डाल लिया था डकैती के दौरान । तुम ये संगीन डकैती, कानून की निगाहों में देवराज चौहान के नाम लिख देना चाहते थे कि कानून देवराज चौहान को न छोड़े।” कामेश्वर के चेहरे पर सख्ती के भाव थे।
“ये बातें तुम्हें नकली देवराज चौहान ने कहीं और तुमने मान ली?” उधर से त्यागी ने हंसकर कहा –“बेवकूफ कमिश्नर, मैं ही असली हूं। वीरेन्द्र त्यागी नहीं। वो कोई नकली –।”
“देवराज चौहान और जगमोहन वेश बदलकर घायल परेरा से भी मिले।”
“अच्छा। तुम लोगों की सुरक्षा व्यवस्था बहुत लचर है कि कोई भी उसमें छेद कर देता है।”
“परेरा ने मुझे बताया कि उसने जिस जगमोहन के साथ काम किया था और जो जगमोहन उससे मिलने आया था, दोनों की कद-काठी में बहुत फर्क है। परेरा की बात को हमें गम्भीरता से लेना पड़ा।”
“पुलिस इस मामले में क्या सोच रही...?”
“तुम वीरेन्द्र त्यागी हो। देवराज चौहान नहीं। तुमने देवराज चौहान का मुखौटा ओढ़कर डकैती की।”
“पागल हो तुम। तुम्हारी इस बात को कौन मानेगा? कानून सबूत मांगता है।” वीरेन्द्र त्यागी की व्यंग्य से भरी आवाज कानों में पड़ी।
“सबूत है हमारे पास। तुम्हारी उंगलियों के निशान।”
“वो कैसे?”
“जिस मकान को तुमने संगीन डकैती से पहले अपने साथियों के साथ ठिकाना बना रखा था, उसके बारे में परेरा ने हमें बताया तो वहां से हमने उंगलियों के निशान उठाये। वहां से हमें देवराज चौहान के फिंगरप्रिंट नहीं, वीरेन्द्र त्यागी के फिंगरप्रिंट मिले। पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद तुम्हारी उंगलियों के निशानों से, वहां मिले निशानों का मिलान हो चुका है। समझे वीरेन्द्र त्यागी! वो तुम थे। देवराज चौहान नहीं था। तुमने ये काम करके देवराज चौहान को फंसाने की चेष्टा की और कानून की आंखों में धूल झोंकने की चेष्टा की।”
“एक गड़बड़ हो गई मुझसे।” त्यागी की कड़वी आवाज आई।
“क्या?”
“मुझे देवराज चौहान के फिंगरप्रिंट वाले दस्ताने पहनने चाहिये थे। जगजीत आसानी से ये सब तैयार कर देता –।”
“तुम बच नहीं सकते त्यागी, तुम –।”
“कमिश्नर! इन बातों को कहना आसान है, परन्तु कोर्ट में इन्हें साबित करना बेहद कठिन है।”
“सब कुछ साबित हो जायेगा। तुम्हें पकड़ने के बाद, तब –।”
“पुलिस तो मेरी हवा भी नहीं पा सकती और इन खोखली बातों के सहारे तुम पुलिस डिपार्टमेंट और मीडिया को नहीं समझा सकते कि ये काम वीरेन्द्र त्यागी ने किया है। क्योंकि C.C.T.V. कैमरे में देवराज चौहान को डकैती करते देखा जा सकता है।”
“जब मैं समझ गया हूं तो ये बात दूसरे भी समझ सकते हैं।” कामेश्वर के सख्त स्वर में ठहराव था –“मेरी सलाह है कि खुद को कानून के हवाले कर दो और न्यूक्लियर खोजी डिवाइस भी कानून के हवाले।”
उधर से त्यागी ठठाकर हंस पड़ा।
कामेश्वर को अपनी बात अधूरी छोड़नी पड़ी।
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को बेच कर इतना कमा लूंगा कि दुनिया का शानदार आदमी बन कर जीवन बिताऊंगा। मैंने तुम्हारे घटिया कानून का कोई डर नहीं है। बहुत जल्दी मैं डिवाइस का सौदा करने जा रहा...।”
“अब से तुम ये समझना शुरू कर दो कि कानून के लम्बे हाथ तुम्हारे आस-पास ही हैं –।”
“खोखली बातें हैं।”
“बहुत जल्दी तुम्हें पता लग जायेगा कि मेरी बातों में कितना दम है।” कामेश्वर ने सख्त स्वर में कहा –“तुम जानते थे कि तुम्हारे फोन नम्बर के सहारे पुलिस तुम तक पहुंचने वाली है, ये बात तुम्हें किसने बताई?”
“पुलिस डिपार्टमेंट में ऐसे बहुत मूर्ख हैं जो खबरें बाहर निकालते रहते हैं।” इसके साथ ही उधर से त्यागी ने फोन बंद कर दिया था।
उसी पल वानखेड़े कह उठा– “ये देवराज चौहान नहीं है। मैंने इसकी आवाज सुनी है।”
“ये वीरेन्द्र त्यागी ही है। उसने इस बात को स्वीकार किया है।” कामेश्वर गम्भीर स्वर में कह उठा –“अब मैं इस बात को मानता हूं कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती देवराज चौहान ने नहीं, वीरेन्द्र त्यागी ने की है।”
वानखेड़े ने गम्भीरता से सिर हिलाया।
“त्यागी को किसी पुलिस वाले ने बता दिया था कि पुलिस उसके मोबाईल की लोकेशन पता लगा कर उस तक पहुंचने वाली है –और वो सतर्क हो गया। हमारे हाथों से दूर पहुंच गया।” कामेश्वर ने होंठ भींच कर कहा।
“कौन पुलिस वाला?” वानखेड़े बोला।
“ये उसने नहीं बताया।”
“इस बारे में तुम्हें, खेमकर, चंपानेरकर और इंस्पेक्टर विजय दामोलकर को पता था कि क्या हो रहा है।” वानखेड़े बोला।
“इन चारों में ही कोई गद्दार है।” कामेश्वर ने कहा।
“दामोलकर हो सकता है।” खेमकर बोला।
“हम क्यों नहीं हो सकते?” कामेश्वर के चेहरे पर गम्भीरता थी।
खेमकर ने गहरी सांस ली।
“कोई हममें से, त्यागी के साथ मिला हुआ है।” कामेश्वर बोला –“परन्तु वो शख्स दामोलकर नहीं हो सकता। वो उत्साही पुलिस वाला है और कुछ कर दिखाने में लगा रहता है। गद्दार मैं, खेमकर या चंपानेरकर है।”
“जब ऐसा शक मन में हो तो फिर काम कैसे किया जा सकता है।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“काम ऐसे ही होगा जैसे हम कर रहे हैं और गद्दार का भी पता चल जायेगा।” कामेश्वर ने कहा।
“तुम मुझे गद्दार समझ रहे हो?” खेमकर के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“मैं सिर्फ इतना जानता हूं कि ये काम मैंने नहीं किया।”
“मैंने भी नहीं किया।” खेमकर के होंठों से निकला।
चंद पल उनके बीच खामोशी रही।
“वक्त के साथ ये बात सुलझ जायेगी कि गद्दार कौन है।” वानखेड़े बोला –“हमें त्यागी तक पहुंचने की चेष्टा करनी चाहिये।”
“देवराज चौहान का क्या होगा?” खेमकर बोला –“C.B.I. और क्राइम ब्रांच उसके पीछे है। इस तरह वो वक्त खराब कर रहे हैं।”
“मैं इन लोगों से बात करूंगा।” कामेश्वर ने गम्भीर स्वर में कहा –“हकीकत इनके सामने रखूंगा ताकि अपनी जांच की दिशा ठीक कर सकें।”
“ये आसान काम नहीं होगा।” खेमकर बोला।
“फिर भी मैं कोशिश करूंगा। तुम वानखेड़े के साथ त्यागी और न्यूक्लियर डिवाइस को ढूंढो।”
“तुम खुद को इस काम से अलग कर रहे हो।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“हम एक साथ काम नहीं कर सकते। क्योंकि किसी ने त्यागी को बता दिया कि हम उस तक पहुंचने वाले हैं। मुझे उस गद्दार को भी ढूंढना है। मैं इसी काम में हूँ परन्तु अब अपने ढंग से काम करूंगा।” कामेश्वर ने अपनी बात स्पष्ट की।
“ठीक है।” खेमकर के चेहरे पर छोटी-सी मुस्कान उभरी –“ऐसा ही सही।”
वानखेड़े ने खेमकर से कहा।
“मैं C.C.T.V. कैमरों की फुटेज देखना चाहता हूं। उसके बाद परेरा से मिलूंगा।”
“चलो। पहले हेडक्वार्टर चलते हैं। वहां फुटेज देखने के बाद परेरा के पास चलते हैं।” खेमकर ने कहा।
“मैं यहां के काम देखता हूं।” कामेश्वर बोला –“फिंगरप्रिंट उठवाता हूं। त्यागी के खिलाफ मुझे पक्के सबूत इकट्ठे करने हैं।”
वानखेड़े और खेमकर वहां से बाहर निकले।
बाहर हर तरफ पुलिस फैली थी। अब यहां पुलिस की जरूरत नहीं थी।
खेमकर दस जवानों के यहीं रहने की बात कहकर अन्यों को जाने के लिए कहने लगा।
वानखेड़े मन ही मन सोच रहा था कि चाहे कैसे भी हो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को जल्द से जल्द हासिल करना होगा।
देर हो गई तो डिवाइस देश के हाथों से दूर जा सकती है।
☐☐☐
शाम के सात बज रहे थे।
ए.सी.पी. चंपानेरकर अकेला था। सादे कपड़ों में था। उसने दरवाजा खोल कर परेरा के कमरे में प्रवेश किया और दरवाजा बन्द किया। परेरा आंखें बंद किए लेटा था। चेहरे से लग रहा था कि वो बेहतर हाल में है। आहट पाकर उसने आंखें खोली तो चंपानेरकर पर नजर पड़ी। चंद पल तो ना समझने वाली नज़रों से उसे देखता रहा। फिर एकाएक चेहरे पर गुस्सा नाच उठा।
“तुम-तुम यहां –।” परेरा गुस्से से कह उठा –“तुमने मुझे फंसाने की चेष्टा...।”
“खामोश हो जाओ। मैं तुम्हें यहां से निकालने आया हूं।” चंपानेरकर मुस्कराकर धीमे स्वर में बोला। ।
परेरा हड़बड़ाकर एकाएक खामोश हो गया। उसे देखने लगा। फिर बोला–
“तुम मुझे यहां से निकालने आये हो?”
“हां...।”
“परन्तु पहले तो तुमने मुझे फंसाने की चेष्टा –।”
“जैसा देवराज चौहान चाहता था मैंने वैसा ही किया।” चंपानेरकर धीमे स्वर में कह उठा।
“क्या मतलब?”
“देवराज चौहान तुम्हें अपने साथ लेना चाहता था काम में। उसके कहने पर मैंने उसकी सहायता की थी।”
“ओह, समझा...।”
“अब देवराज चौहान ने मुझे कहा है कि तुम्हें यहां से निकाल लूं।”
“तुम सच में मुझे निकाल दोगे यहां से?” परेरा कुछ शांत हुआ।
“हां।” चंपानेरकर मुस्कराया।
परेरा चंपानेरकर को देखता रहा।
“तुमने किसी को बताया तो नहीं कि हम पहले मिले हैं?” चंपानेरकर ने पूछा।
“नहीं। मुझे नहीं पता था कि वो सब तुमने जानबूझकर किया कि मैं, देवराज चौहान के नजदीक पहुंच सकूं।”
“ये तो अच्छी बात है। अब तुम यहां से से बाहर निकल...।”
“अभी चलो।”
“मैं तुम्हें कोई दवा दे दूंगा। उससे तुम्हारा पेट खराब होगा। तकलीफ होगी, तुम चीखोगे। ऐसे में तुम्हें दूसरे कमरे में इलाज के लिए ले जाया जायेगा। वहां पर मैंने सब सेटिंग कर ली है।”
“कैसी सेटिंग?”
“तुम ज्यादा सवाल-जवाब मत करो। जो मैं कहता रहूं, वो ही करो।”
“ठीक है।”
चंपानेरकर ने शांत भाव से जेब में हाथ डाला और इंजेक्शन निकाला।
“ये क्या है?” परेरा ने पूछा।
“पेट खराब करने की दवा।”
“ये जरूरी है?”
“बहुत जरूरी है। तभी तो प्लानिंग सफल होगी।” कामेश्वर इंजेक्शन की कैप उतारता कह उठा –“अब शाम है। इसकी दवा का असर कुछ घंटों बाद शुरू होगा। रात को तुम्हारे पेट में दर्द होगा और –।”
“तुम सच में मुझे यहां से निकाल ले जाओगे?” परेरा ने पूछा।
“क्यों नहीं।” चंपानेरकर मुस्कराया –“इस काम का मैंने देवराज चौहान से पच्चीस लाख लिया है।”
“ओह –।”
चंपानेरकर परेरा की कलाई पकड़ी और इंजेक्शन लगाने के लिए नस की तलाश करने लगा।
“देवराज चौहान और जगमोहन मुझसे मिलने आये थे।” परेरा ने कहा।
नस ढूंढकर उसमें इंजेक्शन की सुईं डाली और चंपानेरकर इंजेक्शन लगाने लगा।
“अच्छा –।” चंपानेरकर बोला।
“तब तो वो अजीब-सी बातें कर रहे थे। कह रहे थे कि वो वो देवराज चौहान और जगमोहन नहीं हैं, जिन के साथ मैंने डकैती की।”
इंजेक्शन लगाकर चंपानेरकर ने निडल निकाली और सीरिंज अपनी जेब में रख ली।
“वो तुमसे मजाक कर रहे थे –।” चंपानेरकर मुस्कराया।
“मजाक? परन्तु देवराज चौहान ने तो रिवॉल्वर निकाल ली थी गुस्से में...।”
“उन बातों की परवाह मत करो।” चंपानेरकर शांत स्वर में बोला –“बाहर निकल कर इस बारे में देवराज चौहान से ही पूछना। मेरा काम तो तुम्हें आजाद कराना है। यहां से बाहर ले जाना है।”
“बाहर निकल कर मैं जाऊंगा कहां, मुझे नहीं मालूम कि देवराज चौहान कहां पर...।”
“वो तुम्हें मैं बता दूंगा। मुझे मालूम है देवराज चौहान कहां पर है।”
“ओह! शुक्रिया। तुम मुझ पर एहसान कर रहे हो –मुझे यहां से फरार करवा कर।” परेरा ने खुशी भरे स्वर में कहा –“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के बारे में तुम्हें कोई जानकारी है कि देवराज चौहान ने उसे बेच दिया या रखा है।”
“मुझे कोई जानकारी नहीं।” चंपानेरकर ने कहा –“अब मैं चलता हूं। कोई तुमसे पूछे कि मैं यहां क्या करने आया था तो कह सकते हो कि देवराज चौहान के बारे में पूछताछ कर रहा था कि वो कहां हो सकता है।”
“मैं सब संभाल लूंगा।” परेरा ने बेचैनी से कहा –“क्या तुम मुझे रात में बाहर निकाल ले जाओगे?”
“हां, आधी रात के बाद किसी भी वक्त तुम यहां से निकाल लिए जाओगे।”
“मेरे पेट में दर्द कब होगा?”
“तुम इस बारे में मत सोचो। जब दवा असर करेगी तो तब होगा। तुम सामान्य ढंग से अपनी रात बिताओ।” चंपानेरकर ने मुस्करा कर कहा –“सिर्फ ये सोचो कि तुम यहां से रात-रात में बाहर निकल जाओगे।”
परेरा के चेहरे पर चमक आ गई। उसने सिर हिलाया।
चंपानेरकर बाहर निकल गया।
☐☐☐
पिंटो की नज़रों में थे वीरेन्द्र त्यागी और जगजीत।
पिंटो ने उन्हें देवराज चौहान और जगमोहन से त्यागी और जगजीत बनते देखा था। कार में जब उन्होंने अपने चेहरों से मास्क उतारे थे। तब तो पिंटो ये देखकर हक्का-बक्का रह गया था कि जिन्हें वो देवराज चौहान और जगमोहन समझ रहा है, हकीकत में वो कोई और हैं।
चक्कर क्या है?
पिंटो को ये तो समझ में नहीं आया, परन्तु वो पीछे लगा रहा दोनों के। चौबीसों घंटों की पक्की ड्यूटी दे रहा था उन पर नज़र रखने की। थकान उस पर हावी होती जा रही थी, परन्तु वो पांच मिनट के लिए भी त्यागी और जगजीत को नज़रों से ओझल नहीं होने देना चाहता था।
जो कुछ भी हुआ, वो पिंटो की नज़रों के सामने हुआ था।
देवराज चौहान और जगमोहन बनकर इन दोनों ने डकैती की और बाद में पता चला कि हकीकत में दोनों कोई और थे। पिंटो इनके नामों से वाकिफ नहीं था कि ये त्यागी और जगजीत हैं। वो तो बस इन पर नज़र रखे अपना ताना-बाना बुन रहा था।
पिंटो जान चुका था कि मामला संगीन है।
इन लोगों ने न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती की थी और इससे देश भर में हड़कंप मचा हुआ था कि अगर वो गलत हाथों में चली गई तो बहुत बड़ी तबाही पैदा हो सकती है। देश भर की पूरी सरकारी मशीनरी देवराज चौहान और जगमोहन की तलाश में लगी थी। और पिंटो के सामने थे इस संगीन डकैती के अपराधी। पिंटो समझ चुका था कि चेहरे पर लगा रखे देवराज चौहान और जगमोहन की शक्ल के मास्क उतारकर ये दोनों पूरी तरह सुरक्षित हो गये थे।
कोई सोच भी नहीं सकता था कि डिवाइस इनके पास है।
परन्तु पिंटो जानता था कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस इनके पास है और ये दोनों उसकी नज़रों के सामने थे। जब इनके फ्लैट को पुलिस ने घेरा तो वो दोनों कुछ ही दूर पर कार में मौजूद थे। कार एक तरफ खड़ी थी। दो घंटे पहले ही फ्लैट से गठरी जैसा सामान लाकर कार में रखा था और खुद कार के साथ दूर जाकर खड़े हो गये थे। पुलिस आई। इलाके में घेरा पड़ा। फ्लैट को घेरा गया। ये सब होता देखते रहे वे और पिंटो इन्हें देख रहा था। वो नहीं समझ पाया कि पुलिस कैसे उस फ्लैट पर पहुंच गई और कैसे पुलिस को उनके वहां होने का पता चला।
बहरहाल अंधेरा होने पर पिंटो ने उनकी कार आगे बढ़ती देखी तो अपनी टैक्सी उनके पीछे लगा दी। पिंटो ने अपनी पहचान वाले से टैक्सी किराये पर चलाने को कहकर ले ली थी और त्यागी-जगजीत पर नज़र रखने में टैक्सी उसके बहुत काम आ रही थी।
पिंटो समझ गया कि ये दोनों अब किसी नये ठिकाने पर जा रहे हैं।
उनके पीछे लगे पिंटो के मन में भारी हलचल मची थी।
उसके सामने सबसे बड़ा सवाल था कि अब क्या करे?
क्या इनके बारे में पुलिस को बताये या खुद ही इनके पास जाकर सौदेबाजी करे? इनके पास जाना खतरे से खाली नहीं था। वो अकेला था। ये लोग उसे खत्म कर सकते थे। पिंटो को आदमियों की कमी नहीं थी। एक फोन पर कई लोगों को बुला सकता था, परन्तु उन्हें भी हिस्सा देना पड़ता, ये बात पिंटो को पसन्द नहीं थी।
ऐसे में पिंटो अपनी प्लानिंग की उधेड़-बुन में लगा हुआ था कि क्या करे? परन्तु ये बात तो वो तय कर चुका था कि इन लोगों से मोटी कीमत लेनी है मुंह बंद रखने की, क्योंकि मामला संगीन है।
त्यागी और जगजीत का पीछा करते हुए उसी दौरान उनका फोन बजने लगा।
“हैलो...।” पिंटो ने बात की।
“तू कहां है।” युवती की नाराजगी भरी आवाज आई –“तूने जो दस हजार दिए थे, वो खत्म हो गये।”
“खत्म हो गये?” पिंटो का ध्यान आगे जाती कार पर था –“कब खत्म हुए जूली?”
“कब क्या, खत्म हो गये तो हो गये। तू आ ना। और दे जा ना। तीन दिन से तू आया भी नहीं।”
“अभी मैं नहीं आ सकता जूली।”
“मुझे पैसे चाहिये। देख, तूने कहा था कि मेरे खर्चों को तू पूरा करेगा, अगर मैं किसी और से सम्बन्ध नहीं रखती तो –मैंने तेरी बात मानी। तीन दिन से मैं किसी से नहीं मिली। अब तू पैसा देने से मना कर रहा –।”
“मैं पैसा देने से इन्कार नहीं कर रहा। परन्तु इस वक्त मैं आ नहीं सकता।” पिंटो बोला।
“बात तो एक ही हुई ना...।”
“समझा कर जूली। मैं किसी काम पर हूं और पैसा बना रहा हूं। एक-दो दिन किसी तरह अपना काम चला ले। उसके बाद मैं आकर तेरे को पैसे दे दूंगा। तेरे को तीन दिन से देखा भी नहीं।” पिंटो के होंठों पर मुस्कान उभरी –“तेरे को देखूंगा भी। दोनों काम हो जायेंगे...।”
“मैं तेरे को अच्छी लगती हूं।” उधर से जूली ने नखरे वाले स्वर में पूछा।
“बहुत...।”
“तो मेरे से मैरिज बना ले...।”
“तेरे को कितनी बार कहा है ज्यादा नशा मत किया कर।”
पिंटो ने कहा और फोन बंद कर के बड़बड़ाया –“उल्लू की पट्ठी! जिन्दगी भर का राशन एक साथ क्यों घर पे डलवा लूं...! जबकि रोज का रोज ताजा माल बाजार में मिलता हो।”
☐☐☐
वानखेड़े के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी।
उसने ए.सी.पी. खेमकर के साथ तीनों डकैतियों के C.C.T.V. फुटेज देखे थे और उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि ये काम देवराज चौहान ने नहीं किया है। जबकि ये बात स्पष्ट हो चुकी थी कि वीरेन्द्र त्यागी ने देवराज चौहान के फेसमास्क लगाकर इन डकैतियों को अंजाम दिया है। जगमोहन के चेहरे का फेसमास्क जगजीत ने पहना था।
इस वक्त रात के नौ बज रहे थे और वानखेड़े, खेमकर के साथ परेरा से मिलने जा रहा था।
“वीरेन्द्र त्यागी ने बहुत ही जबर्दस्त चाल खेली है।” वानखेड़े ने गहरी सांस लेकर गम्भीर स्वर में कहा –“हम जान चुके हैं कि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती वीरेन्द्र त्यागी ने की है, परन्तु ये बात साबित नहीं कर सकते। किसी से कह नहीं सकते। क्योंकि इस डकैती में C.C.T.V. कैमरों की फुटेज अहम सबूत है और उसमें देवराज चौहान और जगमोहन दिख रहे हैं।”
“वीरेन्द्र त्यागी शातिर अपराधी है।” खेमकर भी गम्भीर था।
“देवराज चौहान इस मामले में बुरी तरह फंसा पड़ा है। जबकि ये काम उसने नहीं किया।”
“वीरेन्द्र त्यागी के बारे में कुछ जानकारी है तुम्हें?”
“नहीं।” वानखेड़े ने इन्कार में सिर हिलाया –“उसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।”
“पुलिस के पास मौजूद उसकी फाईल को पढ़ा है मैंने। वो पहले भी कई डकैतियां अपहरण कर चुका है। आठ हत्याएं उसके नाम पर दर्ज हैं और फाईल में लिखा है कि ये खतरनाक मुजरिम है।”
“पकड़ा नहीं गया कभी ?”
“एक बार कई साल पहले पकड़ा गया था। अदालत से जमानत पर छूटा और फरार हो गया। तब से अब तक फरार ही चल रहा है। साढ़े तीन साल पहले पूना पुलिस ने इसे एक जगह घेर लिया था। मुठभेड़ हुई। जिसमें इसके दो साथी मारे गये और वहां से निकल जाने में कामयाब रहा था।” खेमकर ने बताया।
“खेमकर साहब! ये न्यूक्लियर डिवाइस का मामला है। संगीन मामला है। त्यागी जहां भी है, उसे डिवाइस के साथ पकड़ना है।”
“मुझे नहीं लगता कि त्यागी आसानी से हाथ आयेगा।”
वानखेड़े ने खेमकर को देखा।
“वो शातिर है। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस का महत्व उसे पता है, तभी तो उसने डकैती की। अब वो जल्द से जल्द डिवाइस को बेचने की चेष्टा करेगा। परेरा के मुताबिक, अमेरिका 800 करोड़ में इस डिवाइस को खरीदने को तैयार है, परन्तु वो ज्यादा कीमत चाहता है।”
होंठ भींचे वानखेड़े कार ड्राईव करता रहा।
“इस वक्त वो डिवाइस का सौदा करने में लगा होगा!”
“ऐसा ही कर रहा होगा वो –।” वानखेड़े ने कठोर स्वर में कहा।
“देवराज चौहान से उसकी क्या दुश्मनी है –? जो उसने इस काम में देवराज चौहान को फंसाने की चेष्टा की? देवराज चौहान ने बताया कि त्यागी एक बार पहले भी उसका चेहरा लगाकर उसके लिए परेशानी खड़ी कर चुका है।” खेमकर बोला।
“मैं नहीं जानता। इसका जवाब तो देवराज चौहान ही दे सकता है। परन्तु ये जरूर कह सकता हूं कि दोनों में जो भी बात हो, गलती त्यागी की होगी। उसी ने ही कुछ गलत किया होगा देवराज चौहान के साथ।”
“तुम्हारे मन में देवराज चौहान के लिए सहानुभूति है।”
“सिर्फ न्यूक्लियर खोजी डिवाइस के मामले में। क्योंकि त्यागी ने उसे बुरी तरह फंसा दिया है।”
“तुमने अब तक बड़ी मुहिम चलाकर उसे गिरफ्तार क्यों नहीं किया या मारा नहीं?”
“मेरी उससे जाती दुश्मनी नहीं है। वो जनता के लिए खतरनाक नहीं है। लोग उसे डकैती मास्टर के नाम से जानते हैं। उसे खतरनाक कहते हैं। परन्तु वो कभी कानून के रास्ते में नहीं आया। पुलिस को कभी नहीं मारा। कभी ऐसा वक्त आता है तो वो रास्ता बदल लेता है। बेगुनाह लोगों का उसने कभी खून नहीं बहाया। किसी को मारा तो वो पहले से ही कानून की नजरों में अपराधी था। सरकार ने उसे कभी भी खतरनाक घोषित नहीं किया कि...।”
“अब कर दिया।” खेमकर बोला।
“परन्तु न्यूक्लियर डिवाइस के मामले में वो निर्दोष है।”
“इस बात को साबित नहीं कर सकते हम।”
“कोशिश जरूर करेंगे खेमकर साहब।”
“तुम उसे मुसीबत से निकालना चाहते हो?”
“मैं अपना फर्ज पूरा कर रहा हूं। मेरा काम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को वापस पाना और अपराधी को गिरफ्तार करना है। और जानता हूं कि असली अपराधी वीरेन्द्र त्यागी है। वैसे देवराज चौहान में इतना दम तो है ही कि इस मामले से बच सके।”
“वो कैसे बचेगा?”
“वीरेन्द्र त्यागी और न्यूक्लियर डिवाइस को तलाश करके।”
खेमकर ने गहरी निगाहों से वानखेड़े को देखा।
“देवराज चौहान आराम से नहीं बैठेगा इस मामले में।”
“वो पूरी कोशिश करेगा।” वानखेड़े का स्वर सख्त था।
“मान लो, त्यागी से उसने डिवाइस हासिल कर ली, तो फिर वो क्या करेगा?”
“डिवाइस सरकार को वापस देगा।”
“यकीन नहीं आता। वो तो डिवाइस को बेचकर पैसा कमा लेगा।”
“वो ऐसा नहीं करेगा।” वानखेड़े ने दृढ़ स्वर में कहा।
“तुम ये बात दावे के साथ कैसे कह सकते हो?”
“क्योंकि उसकी फाइल मेरे पास है। मैंने सालों से देवराज के बारे में जाना है। अब तक उसके बारे में इतना जान चुका हूं जितना कि वो खुद अपने बारे में जानता है।”
“हैरानी है कि तुम एक अपराधी की हरकतों की जिम्मेवारी अपने ऊपर दावे के साथ ले रहे हो।”
“वो आम अपराधियों से हटकर है। वो बेहतर इन्सान है। उसमें यही खराबी है कि वो मुजरिम है और डकैतियां करता है। इसके अलावा उसमें कोई खराबी नहीं है।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम्हारी बातों पर मुझे हैरानी है।”
वानखेड़े खामोशी से कार चलाता रहा।
“कभी मिले हो उससे?”
“कुछ बार। हर बार वो ही मेरे सामने आया, जब मैं उसके मामले पर काम कर रहा होता हूं और आमना-सामना होने की गुंजाइश होने लगती है तो वो मिल लेता है, मौका पाकर। परन्तु वो कभी मेरे रास्ते में नहीं आया। अपने रास्ते पर मुझे पाकर वो पीछे हट जाता है। वो पुलिस के मुकाबले पर नहीं उतरता।” वानखेड़े कह रहा था –“मुझे वो वक्त भी अच्छी तरह याद है जब मैं उसे गिरफ्तार करने के लिए भागादौड़ी कर रहा था, ये जानते हुए भी, उसने दो बार मेरी जान बचाई।”
“अजीब बात है! तुमने कभी रिश्वत-नोट लिए उससे?”
“मैंने उससे तो क्या जिन्दगी में किसी से भी रिश्वत नहीं ली।” वानखेड़े मुस्करा पड़ा।
खेमकर भी मुस्कराया फिर बोला– “परन्तु तुम अपनी जिन्दगी तो शान से बिता रहे हो। बड़े घर में रहते हो और–।”
“मैं पुलिस में पैसा कमाने नहीं आया। जिन्दगी में वक्त काटने के लिए कोई काम करना था तो देश-सेवा की सोचकर पुलिस वाला बन गया, जबकि मेरे पिता-मां नही चाहते थे कि मैं ये काम करूं। क्योंकि हमारी जमीनें बहुत हैं। पुश्तैनी पैसा इतना है कि मुझे काम करने की जरूरत नहीं थी। खासतौर से पुलिस का खतरे वाला काम मां-बाप अब रहे नहीं। गांव में पत्नी ही सब कुछ संभालती है। रुपये-पैसे का हिसाब वो ही रखती है। हर महीने मैं उसके पास चला जाता हूं, परन्तु अब वो नाराज रहती है। वो चाहती है कि पुलिस की नौकरी छोड़कर उसके पास आ जाऊं। बच्चे भी अब बड़े होने लगे हैं। सब कुछ उसे ही संभालना पड़ता है।”
“कितने बच्चे हैं?”
“दो। दोनों ही अब कॉलेज में पढ़ रहे हैं। परन्तु पुलिस की नौकरी में मेरा मन लगा हुआ है। और में ये नौकरी छोड़ने वाला नहीं। बच्चे कॉलेज कर लेंगे तो उन्हें मुम्बई ही बुला लूंगा, कि यहां नौकरी कर सकें। तब तो पत्नी को भी यहीं आना पड़ेगा। जो भी हो, मेरा जीवन, घर-परिवार बढ़िया चल रहा है।” वानखेड़े मुस्कराया।
खेमकर खामोश रहा।
“मुझे त्यागी से ज्यादा डिवाइस की चिन्ता है। त्यागी को पकड़ने के लिए तो जिन्दगी पड़ी है। परन्तु डिवाइस को फौरन पाना होगा। त्यागी ने उसे बेच दिया तो कहीं बड़ी तबाही ना आ जाये दुनिया पर –।”
वानखेड़े और खेमकर, परेरा से मिले।
बाहर मौजूद पुलिस वालों ने खेमकर को, ए.सी.पी. चंपानेरकर के शाम को आने की खबर दे दी थी।
परेरा अब बेहतर हाल में आता जा रहा था। परन्तु मन ही मन उसे राहत थी कि रात-रात में चंपानेरकर उसे अस्पताल से फरार करवा देगा और वो देवराज चौहान के पास पहुंच कर, पुलिस के हाथों से दूर हो जायेगा और देवराज चौहान से पैसा लेकर, जिन्दगी बिताने के लिए कहीं दूर निकल जायेगा। जब से उसने चंपानेरकर से ये जाना कि देवराज चौहान उसे आजाद करा लेना चाहता था, तब से देवराज चौहान के लिए उसके मन में शिकायतें हट गई थी।
परेरा ने खेमकर को देखा, वानखेड़े को देखा।
“अब तुम ठीक लगते हो।” खेमकर ने कहा –“कोर्ट में पेश करने लायक हो गये हो। उसके बाद –।”
“अब यही सब तो मुझे सहना होगा।” परेरा ने गहरी सांस ली। मन ही मन खुश था कि रात को वो यहां से निकल जाने वाला है।
वानखेड़े नज़रों ही नज़रों में परेरा का जायजा ले रहा था।
“शाम को ए.सी.पी. चंपानेरकर तुम्हारे पास क्या बात करने आया ?” खेमकर ने पूछा।
“वो ही, जो बात बाकी सब करने आते हैं।”
“क्या?”
“ये ही कि देवराज चौहान कहां है? उसे कैसे पकड़ा जाये? यही सब बातें...।”
“तुम बदले-बदले से लग रहे हो।” खेमकर ने होंठ सिकोड़ कर पूछा।
“मैं? नहीं तो...।”
“पहले जब भी तुमसे बात की, तुम डरे से थे –लेकिन अब तुम काफी निश्चिंत दिख रहे हो।”
“पुलिस कस्टडी में कोई निश्चिंत कैसे रह सकता है? मैं तो घबराया-डरा पड़ा हूं। तुम मुझे कोर्ट में पेश करने को कह रहे हो। फिर जेल चला जाऊंगा मैं। बहुत बड़ा जुर्म है मेरा। मैं बच नहीं सकूँगा।” परेरा मुंह लटका कर बोला।
“सच बताओ, ए.सी.पी. चंपानेरकर से तुम्हारी क्या बात हुई ?” खेमकर बोला।
“बता तो दिया –।”
“चंपानेरकर को तुम पहले से जानते हों?”
“नहीं तो, मैंने उसे आज पहली बार देखा, जब वो मेरे पास आया था।”
खेमकर ने वानखेड़े को देख कर कहा– “इसमें कुछ बदलाव आया पड़ा है। अब इसमें डर नहीं दिख रहा।”
परेरा ने वानखेड़े को देखा।
“तुम क्या काम करते थे इस काम के पहले?” वानखेड़े ने पूछा।
“बता चुका हूं...।”
“फिर बता दो।”
“ये कौन साहब हैं?” परेरा ने खेमकर से पूछा।
“ये बड़े साहब हैं।” खेमकर ने शांत स्वर में कहा।
परेरा की नज़र वानखेड़े पर थी।
“तो तुम पहले क्या करते थे ?”
“चोरी का धंधा रहा है मेरा।”
“किन लोगों के साथ चोरी किया करते थे?”
“ज्यादातर अकेला ही किया करता था।”
“फिर भी तुम्हारा कोई खास साथी तो होगा –?”
परेरा की आंखों के सामने पिंटो का चेहरा नाचा। फिर उसे दस लाख की याद आई जो पिंटो ने उससे झाड़ा था। साला गोवा में किसी लड़की के साथ ऐश कर रहा होगा! और वो यहां फंसा पड़ा है।
“बोलो, तुम्हारा खास साथी कौन है?”
“पिंटो...।” परेरा ने जानबूझकर पिंटो को फंसाने के लिए उसका नाम ले लिया। साला ना भी फंसा तो भी पुलिस के हाथों इतना परेशान हो जायेगा कि अक्ल ठिकाने लग जायेगी। वो जानता था कि पिंटो हमेशा उससे जलता रहा है। ब्लैकमेल करके दस लाख भी झाड़ लिया था उसने।
“कौन पिंटो?”
“मेरा चचेरा भाई और अक्सर मेरे साथ चोरियां करने जाता था।” परेरा ने गहरी सांस ली –“कमीना है वो।”
“पिंटो को तुमने इस काम में साथ क्यों नहीं लिया?”
“ये देवराज चौहान का काम था। उसे सिर्फ मेरी ही जरूरत थी। पिंटो की नहीं।”
“तो पिंटो को पता था कि तुम क्या कर रहे हो?”
“हां...।” परेरा ने कहा। वो पिंटो का जीना हराम कर देना चाहता था।
“उसे मालूम था कि तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की डकैती, देवराज चौहान के साथ मिलकर कर रहे हो?”
“वो डकैती होते ही जान गया था। क्योंकि वो हम पर नज़र रख रहा था। वो खुन्दक में था कि उसे इस काम में साथ क्यों नहीं लिया। वो जानता था कि ये मोटा काम है। उसने मुझे ब्लैकमेल भी किया।”
“ब्लैकमेल-कैसे?”
“वो जानता था कि हम कहां हैं और क्या कर रहे हैं। वो हम पर नज़र रखता रहा और मझे फोन किया कि वो हम पर नज़र रख रहा है। अगर हमें दस लाख नहीं दिये तो पुलिस को हमारे बारे में बता देगा।”
वानखेड़े की आंखें सिकुड़ी।
खेमकर भी सतर्क हुआ।
“तो तुमने उसे दस लाख दिए?”
“देने पड़े। लूट का माल रखा था, उसी में से दस लाख दिया उसे।” परेरा कह रहा था –“कमीना कहता तो था कि दस लाख के साथ गोवा जाने वाला है, परन्तु मैं जानता हूं कि वो गोवा नहीं गया होगा। हम पर नज़र रख रहा होगा।”
“नज़र रख रहा होगा?” वानखेड़े के होंठों से निकला।
“हां।”
“तो हो सकता है कि वो अब भी देवराज चौहान पर नजर रख रहा हो।”
ये सुनकर परेरा कुछ बैचेन हुआ।
“पता नहीं।” परेरा ने कठिनता से कहा। उसे लगा उसने पुलिस से गलत बात कह दी है।
“पिंटो कहां रहता है?”
“म-मेरे घर से कुछ दूर –सब जानते हैं उसे...।”
“पता बोलो।”
परेरा चुप रहा। उसे ये बात सताने लगी कि कहीं पिंटो अब भी देवराज चौहान पर नजर ना रख रहा हो।
“पता बताओ पिंटो का।” वानखेड़े की आवाज में सख्ती आई।
“जरूरी है क्या जो –।” परेरा ने कहना चाहा।
“पुलिस के मुंह मत लगो।” वानखेड़े ने बेहद सख्त स्वर में कहा –“जो पूछ रहे हैं, वो जवाब दो।”
परेरा ने पता बता दिया पिंटो का।
“तुमने ये बात पहले क्यों नहीं बताई?” खेमकर शिकायती लहजे में कह उठा।
“मेरा दिमाग खराब था जो अब ये बात कह दी।” परेरा को अपने पर गुस्सा आ रहा था कि आज रात वो आजाद हो रहा था। चंपानेरकर ने उसे देवराज चौहान के पास पहुंचा देना था। ऐसे मे पिंटो अगर देवराज चौहान पर नजर रख रहा हुआ, तो वो फिर ब्लैकमेल करेगा। और अगर पुलिस पिंटो तक पहुंच गई तो देवराज चौहान पकड़ा जायेगा। वो भी पकड़ा जायेगा। उसने खामखां ही पिंटो को फंसाने के लिए अंट-शंट कहना शुरू कर दिया।
“मैं तुमसे फुर्सत में बात करूंगा।” खेमकर ने चुभते स्वर में कहा।
परेरा होंठ भींचकर रह गया।
वानखेड़े और खेमकर कमरे से बाहर निकल कर आगे बढ़ गये।
“हमें बहुत ही काम की बात मालूम हुई है।” वानखेड़े बोला –“हो सकता है पिंटो अभी भी वीरेन्द्र त्यागी पर नजर रखे हो। किसी तरह हमें पिंटो तक पहुंचना होगा। इस तरह शायद हम वीरेन्द्र त्यागी तक पहुंच जायें।”
“ये बात पक्की नहीं कही परेरा ने। अपना अंदेशा जाहिर किया है कि ऐसा हो सकता है। क्या पता वो गोवा चला गया हो।”
☐☐☐
वानखेड़े और ए.सी.पी. खेमकर परेरा के बताये पते पर, पिंटो के घर पहुंचे।
रात के ग्यारह बज रहे थे
शिवाजी कॉलोनी में बना वो सौ गज का मकान था। घर के किसी कमरे में रोशनी हो रही थी। ये छोटी गलियों का तंग इलाका था। कभी कभार ही कोई गली से आता-जाता दिखता था। वो पुलिस कार को बाहर ही सड़क पर छोड़ आये थे। मकान पर नजर मारने के बाद खेमकर बोला– “घर पर कोई है। पिंटो भी हो सकता है।”
“आओ, देखते हैं।” वानखेड़े ने कहा और आगे बढ़कर दरवाजे के पास लगी कॉल बेल बजाई। भीतर बेल बजने की आवाज आई। वानखेड़े ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली।
खेमकर ने पीछे देखा गर्दन घुमाकर।
सब ठीक था।
दरवाजे को देखते वानखेड़े सतर्क था। भीतर से कुछ आहटें उठी थीं। कोई दरवाजे के पास आया था। फिर दरवाजा खुला। वानखेड़े पल भर के लिए ठिठक गया। दरवाजा खोलने वाली 65 बरस की औरत थी।
“पुलिस।” वानखेड़े ने रिवॉल्वर थामे उस औरत को पीछे करते हुए कहा और तेजी से भीतर प्रवेश कर गया।
“ये क्या हो रहा...।”
“पिंटो कहां है?” खेमकर ने औरत से पूछा।
“मुझे क्या पता। वो तो कई दिन से घर नहीं आया। क्या कर दिया है उसने?”
खेमकर सतर्क अंदाज में भीतर प्रवेश कर आया।
“तुम लोग भीतर क्यों चले आ रहे हो?” औरत ने नाराजगी से कहा।
तभी रिवॉल्वर थामे भीतर का चक्कर लगाकर, वानखेड़े वापस आया।
“इस वक्त ये अकेली औरत ही घर में है।” वानखेड़े ने कहा।
“कहां है पिंटो?” खेमकर ने सख्त स्वर में उस औरत से पूछा।
“बोला तो, वो कई दिन से घर नहीं आया।”
“कहां गया है?”
“मुझे क्या पता! उसका कहीं चले जाना नई बात तो है नहीं। मुझे नहीं पता वो क्या करता रहता...।”
“तुम उसकी क्या लगती हो?”
“मां हूं।”
“वो कहां मिलेगा?”
“मुझे क्या पता कि वो कहां –।”
“सीधी तरह सही जवाब दो।” खेमकर गुर्राया –“वरना तुम्हें थाने ले जाना पड़ेगा।”
“सही तो बता रही हूं। वो इसी तरह कई-कई दिनों के लिए घर से चला जाता है। उसके और मेरे लिए ये मामूली बात है। ऐसा होना आम बात है। लेकिन उसने अब क्या कर दिया है?”
“तुमसे कुछ तो कह कर गया होगा...कि वो कहां जा रहा...।”
“मुझे नहीं बताता वो! मुझे तो कुछ समझता ही नहीं! घर को तो उसने सराय बना रखा है!” औरत गुस्से से कह उठी –“मैं तो कब से दुखी हूं उससे। गलत कामों में तो वो सालों से पड़ा है। समझाओ तो सुनता नहीं...।”
“उसके किसी दोस्त का नाम बताओ। जो उसका खास...।”
“मैं तो परेरा के अलावा किसी को जानती नहीं...।”
“कौन परेरा?”
“पिंटो के ताऊ का लड़का है। उसी से कभी-कभी मिलता है। और मुझे कुछ नहीं पता...।”
“तुम झूठ बोल रही हो –।”
“मैं झूठ क्यों बोलूंगी। तुम लोग परेरा से क्यों नहीं पूछ...।”
“वो गिरफ्तार हो चुका है।”
“ओह, तो दोनों ने मिलकर कुछ किया! क्या किया?” औरत का मुंह खुला का खुला रह गया –“मैं जानती थी कि परेरा कभी बुरा फंसेगा। चोरी-चकारी के कामों में ऐसा ही होता...।”
“परेरा के अलावा कोई और जिससे पिंटो मिलता हो?”
“नहीं जानती मैं –। कसम से मुझे कुछ नहीं पता पिंटो क्या करता-फिरता है, मैं तो –।”
“चलो।” वानखेड़े ने खेमकर ने कहा –“पिंटो तक पहुंचने में हमें काफी मेहनत करनी पड़ेगी।”
“लेकिन किया क्या पिंटो ने?” औरत ने पूछना चाहा।
वानखेड़े और खेमकर वहां से बाहर निकल आये।
“पिंटो आसानी से हाथ नहीं आने वाला।” खेमकर बोला –“उसे भी शायद पता होगा कि परेरा उसके बारे में बता सकता है।”
“हमारा पिंटो तक पहुंचना बहुत जरूरी है।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा –“इस बात की संभावना ज्यादा है कि वो इस वक्त भी वीरेन्द्र त्यागी पर नज़र रखे हो। हमें वो रास्ता ढूंढना होगा, जिससे पिंटो तक पहुंचा –।”
“उसका मोबाईल नम्बर।” खेमकर ठिठका –“उसकी मां से पूछते हैं।”
दोनों वापस उस मकान के दरवाजे पर पहुंचे। कॉल बेल बजाई।
पिंटो की मां ने दरवाजा खोला।
“अब क्या है?” वो दोनों को देखकर कह उठी।
“पिंटो का मोबाईल नम्बर बताओ।” खेमकर ने कहा।
“वो मुझे नहीं पता।”
“ये कैसे हो सकता है कि तुम्हें –।”
“वो महीने में पांच-पांच बार तो अपने फोन का नम्बर बदलता है।” वो उखड़े स्वर में बोली –“अब तो मैंने उससे पूछना भी छोड़ दिया है कि तेरे मोबाईल का नम्बर क्या है। आज उसका नम्बर कुछ होता है तो कल कुछ और।”
बात नहीं बनी।
वो दोनों वापस चल पड़े।
“किसी से तो हमे पिंटो का फोन नम्बर –।”
“मिल भी जाये तो नम्बर से फायदा नहीं होगा।” वानखेड़े बोला –“वो घिसा हुआ पुराना पापी है। तुम क्या समझते हो कि फोन पर वो हमसे ठीक बात करेगा? वो हमें बता देगा कि वो त्यागी दूसरे पर नज़र रख रहा है या नहीं?”
“वो तो ठीक है, परन्तु कोशिश तो हमें करनी –।”
खेमकर के शब्द अधूरे रह गये।
मोबाईल बजा उसका।
“हैलो...।”
“खेमकर!” दूसरी तरफ से कामेश्वर बोल रहा था –“उस फ्लैट से मिले उंगलियों के निशान वीरेन्द्र त्यागी से मिलते हैं। दूसरे व्यक्ति की उंगलियों के निशान जो मिले हैं, वो उस मकान में पाये गये निशानों में से एक से मिलते हैं। अगर हम देवराज चौहान की बात पर यकीन करें तो त्यागी के साथी जगजीत के हाथ की उंगलियों के निशान हो सकते हैं।”
“चंपानेरकर परेरा से मिलने गया था उसके पास।”
“चंपानेरकर! वो परेरा से क्यों मिलेगा? इस केस से उसका क्या वास्ता?”
“वो परेरा से मिला। पूछने पर परेरा ने बताया कि वो इसी मामले के बारे में पूछताछ कर रहा था।”
“अजीब बात है!” कामेश्वर की बड़बड़ाहट कानों में पड़ी।
“बंद करता हूं...।”
“लेकिन चंपानेरकर...।”
“उसके बारे में तुम सोचो। मैंने जो कहना था, कह दिया।”
“वानखेड़े तुम्हारे साथ है?”
“हाँ...।”
“क्या किया तुम दोनों ने?”
“सुबह ऑफिस में मिलेंगे –तब बात करूंगा।” कह कर खेमकर ने फोन बंद किया –“उस फ्लैट से त्यागी की उंगलियों के निशान मिले हैं।”
“उसके क्यों नहीं मिलेंगे।” वानखेड़े कठोर स्वर में बोला –“वो ही तो देवराज चौहान बना सब कुछ कर –!”
इसी पल खेमकर का मोबाईल पुनः बजा।
“हैलो...।” खेमकर ने बात की।
“पता चला कि त्यागी तुम लोगों के हाथ से निकल गया।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम?” खेपकर के होंठों से निकला –“क्या तुम तब वहां थे?”
“नहीं। परन्तु यो ऐन मौके पर हाथ से कैसे निकल गया?” उधर से देवराज चौहान ने पूछा।
“मेरे ख्याल में उसे किसी ने खबर कर दी थी कि पुलिस उस तक पहुंचने वाली है।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा।
“किसने खबर दी उसे?”
“पता नहीं।” खेमकर ने कहा –“तुम इंस्पेक्टर वानखेड़े से बात करना चाहोगे?”
“हां। क्या वो तुम्हारे पास है?”
“बात करो...।” खेमकर ने कहकर मोबाईल वानखेड़े की तरफ बढ़ाया।
वानखेड़े समझ चुका था कि दूसरी तरफ देवराज चौहान है।
“कैसे हो देवराज चौहान?” वानखेड़े ने फोन कान से लगाते गम्भीर स्वर में कहा।
“अच्छा हूं। कई सालों बाद हमारी बात हो रही है।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
“मैं तुम्हें पकड़ कर रहूंगा। तुम ज्यादा देर कानून से बचे नहीं रह सकते।” वानखेड़े का स्वर शांत था।
“मैं जानता हूं कि एक दिन ऐसा होगा ही। क्या तुम न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वाले केस पर काम कर रहे हो?”
“सरकार को न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वापस चाहिये देवराज चौहान।” वानखेड़े की आवाज में गम्भीरता थी।
“वो मेरे पास नहीं है।” देवराज चौहान की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी –“ये काम मैंने नहीं किया...।”
“जानता हूं। हमें ऐसे सबूत मिल चुके हैं कि ये काम वीरेन्द्र त्यागी ने किया है।”
“सबूत मिल गये?”
“हां...।”
“फिर तो पुलिस ने मेरी तलाश छोड़ दी होगी।”
“नहीं। ऐसा अभी नहीं हुआ। जो सबूत हमारे हाथ लगे हैं, उन्हें हम ही समझ सकते हैं, परन्तु उनसे किसी दूसरे को समझ आयेगा, ये बहुत ही कठिन बात है। अभी हमारे पास इतना वक्त भी नहीं कि दूसरों को समझाते फिरें...।”
“ओह!”
“न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को पाना इस वक्त पुलिस की पहली जरूरत है।”
“जो भी हुआ बहुत गलत हुआ...।”
“वीरेन्द्र त्यागी को तुम जरूर तलाश कर रहे होंगे।” वानखेड़े ने पूछा।
“मैं उस तक पहुंचने की हर सम्भव कोशिश कर रहा हूं। हमें शक है कि परेरा का कज़न पिंटो इस वक्त भी त्यागी पर नज़र रखे हो सकता है। परन्तु पिंटो की कोई खबर नहीं मिल पा रही। वो कई दिन से घर से गायब है। अगर तुम भी पिंटो की तलाश करो तो...।”
“मुझे पूरी बात बताओ।”
वानखेड़े ने परेरा की कही, पिंटो की सारी बात देवराज चौहान को बताई।
“फिर तो संभव है कि पिंटो शायद त्यागी पर नज़र रख रहा हो।”
“बेहतर होगा कि तुम पिंटो तक पहुंचने की चेष्टा करो।”
“मैं उसे ढूंढने की चेष्टा करता हूं।”
“सरकार न्यूक्लियर खोजी डिवाइस वापस चाहती है।” वानखेड़े ने गम्भीर स्वर में कहा।
“अगर वो मुझे मिली तो सरकार को भी वापस मिल जायेगी।” देवराज चौहान की आवाज कानों में पड़ी।
चंद पल दोनों के बीच खामोशी रही।
“अगर तुम्हें इस काम में सफलता मिली तो फौरन इसी नम्बर पर खबर देना।” वानखेड़े बोला।
“दूंगा।” कहने के साथ ही उधर से देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया था।
वानखेड़े ने कान से फोन हटाया और खेमकर की तरफ बढ़ा दिया।
खेमकर ने मोबाईल लेकर जेब में रखा और शांत स्वर में कह उठा– “तुमने देवराज चौहान से बहुत दोस्ताना भरे ढंग से बात की।”
“इन हालातों में तो मुझे ऐसे ही बात करनी चाहिये थी। क्योंकि हमें न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की जरूरत है और देवराज चौहान भी दिन-रात की भाग-दौड़ करके त्यागी को तलाश कर रहा है।”
“क्या पता वो त्यागी तक पहुंचने से पहले ही पुलिस के हाथों में पड़ जाये या मारा जाये।”
“कुछ भी हो सकता है। इन हालातों में देवराज चौहान से सम्पर्क बनाए रखना जरूरी है। ताकि न्यूक्लियर खोजी डिवाइस उसके हाथ लगे तो वो हमें डिवाइस दे दे। हालात ये ही कहते हैं कि देवराज चौहान से इस वक्त बना कर रखो।”
“अगर देवराज चौहान के हाथ न्यूक्लियर खोजी डिवाइस लग गई तो वो हमें क्यों देगा? वो तो उसका सौदा करके बहुत बड़ी दौलत...।”
“देवराज चौहान दौलत पाने के लिए डकैती जरूर करता है। परन्तु न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को बेच कर किसी भी हाल में दौलत पाना नहीं चाहेगा। क्योंकि वो डिवाइस की हकीकत से वाफिक है कि वो गलत हाथों में पड़ गई तो दुनिया को तबाह किया जा सकता है। ऐसा हो, वो कभी नहीं सहेगा। वैसे भी इस मामले में वो निर्दोष है तो न्यूक्लियर खोजी डिवाइस हाथ आते ही सरकार को जरूर वापस करेगा।”
“उसे पिंटो के बारे में बता कर तुमने ठीक किया?”
“बुरा क्या किया? पिंटो तक वो पहुंचे या हम-हम दोनों ने काम एक ही करना है। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस को हासिल करके त्यागी को पकड़ना।”
“वीरेन्द्र त्यागी ने देवराज चौहान को सिर तक फंसा दिया है। ऐसे में वो त्यागी को देखते ही खत्म कर देगा।”
“देवराज चौहान ऐसा नहीं करेगा।” वानखेड़े ने विश्वास भरे स्वर में कहा –“वो त्यागी को हर हाल में जिन्दा रखना चाहेगा और हमारे हवाले करेगा। ताकि वो निर्दोष साबित हो सके। न्यूक्लियर खोजी डिवाइस की संगीन डकैती का इल्जाम उस पर से हट सके।” वानखेड़े ने कहा।
“परन्तु हमें कोशिश करनी चाहिये कि पहले हम ही पिंटो तक पहुंचे।” खेमकर ने गम्भीर स्वर में कहा।
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