रात को तुली का फोन बजा। दूसरी तरफ राघव था।

"कहो।" तुली बोला।

"हम कल मिलेंगे तुली!"

"जगह?"

"राव तुला मार्ग पर एंथनी का बार है। शाम आठ बजे।" राघव की आवाज कानों में पड़ी।

"वहां काफी भीड़ होती है।"

"तभी वो जगह चुनी। तुम्हें अकेले आना है तुली! हम झगड़े के लिए नहीं। कुछ बात करने के लिए मिल रहे हैं।"

"मुझे यकीन है कि तुम कोई चालाकी नहीं करोगे।" तुली ने कहा।

"इसका डर हमें होना चाहिए। तुम्हारे पीछे तो F.I.A. है। तुम्हें कुछ हुआ तो F.I.A. वाले हमारे पीछे पड़ जायेंगे। मतलब कि हम बचने वाले नहीं इसलिए तुम्हें चिंता छोड़ देनी चाहिए कि तुम्हें कुछ होगा।"

"कल शाम को मिलेंगे।" तुली ने कहा और फोन बंद कर दिया।

तुली के चेहरे पर सोचें नाचती रहीं, फिर उसने फोन थामा और कपूर का नम्बर मिलाने लगा।

■■■

अगले दिन!

राघव, मन्नू और तीरथ होटल में ही रहे।

राघव और मन्नू दिन बीतने का इंतजार कर रहे थे। क्योंकि आज शाम आठ बजे एंथनी बार में तुली से मिलना था। वक्त और जगह धर्मा-एक्स्ट्रा ने ही फिक्स करके उसे बताई थी। राघव को भला इसमें क्या एतराज था।

उधर तीरथ मन-ही-मन उलझता जा रहा था। दिन-भर वो इसी सोच में रहा कि माईक से मिले कि नहीं? ये ठीक था कि माईक से उसे मोटी रकम मिल रही थी, परंतु ऐतराज भी तगड़ा था। अमेरिका के हक में गवाही देने के बाद बेशक वो अमेरिका में बस जाये, परंतु F.I.A. उसे छोड़ने वाली नहीं। एक-न-एक दिन उसे शूट कर ही देगी, जबकि यहाँ पर उसका ड्रग्स का धंधा जमा हुआ था। अच्छे नोट कमा रहा था तो उसे क्या जरूरत थी माईक के लफड़े में पड़ने की?

परंतु F.I.A. उन्हें वैसे भी खत्म करने पर उतारू है।

F I.A. जो उसके साथ करेगी, वो ही दूसरों के साथ करेगी। F.I.A. से बचने का तो एक प्रतिशत चांस है, परंतु माईक के चक्कर ने पड़ जाने के पश्चात् तो देर-सवेर F.I.A. वाले उसकी लाश पक्का गिरा देंगे?

इसी तरह की उलझनों में रहा दिन-भर तीरथ और दोपहर तक इस फैसले पर जा पहुंचा था कि माईक से मिलना ठीक नहीं होगा। आज के बाद उसे कभी फोन नहीं करेगा। राघव अपने दोस्तों के साथ मामला सुलझाने में लगा ही हुआ है। जो मन्नू और राघव के साथ होगा, वो ही उसके साथ होगा। ऐसे में उसका कोई भी कदम उठाना गलत होगा। खास तौर से माईक से मिल जाना तो बिल्कुल ही गलत होगा। उसे राघव और मन्नू का साथ पूरे दिल से देना चाहिए।

"तू किस सोच में डूबा है?" मन्नू की आवाज उसके कानों में पड़ी।

"कुछ नहीं।"

"सोच तो रहा है।" मन्नू मुस्कुराया--- "लेकिन तेरा निशाना मैं अभी तक भूला नहीं हूँ, जो तूने आठ साल पहले अमेरिकन विदेश मंत्री ड्यूक हैरी और ब्रिगेडियर छिब्बर पर लगाया था। दो गोलियां, दोनों खत्म।"

"वहीं से तो सारी मुसीबतें शुरू हुईं।"

"वहीं से नहीं। मुसीबत तो तब शुरू हुई, जब मार्शल ने जैनी को कैद में करके एक लाख डॉलर वापस मांगा और मेरे पास उसे देने को एक पैसा नहीं था और जैनी भी मुझे वापस चाहिए थी, तब मजबूरी में मैंने C.I.A. से...।"

"छोड़ो इन बातों को।" तीरथ बोला--- "हमें आगे के बारे में सोचना चाहिए।"

"मेरी गलती पर तू मुझे गालियां नहीं देगा?"

"तूने माईक के सामने मुंह क्यों नहीं खोला?"

"उसे कुछ बताने का मेरा इरादा था ही नहीं। जैनी को मार्शल से वापस लेने के वास्ते मैं किसी तरह उससे लाख डॉलर ले लेना चाहता था। वो मैंने ले लिए और खिसक गया।" मन्नू ने गहरी साँस ली--- "लेकिन जैनी अब F.I.A. के हाथों में है, जहाँ से मैं उसे नहीं निकाल सकता और जैनी भी वहां से फरार होकर नहीं बच सकती। छोटी मुसीबत के हाथों से निकलकर बड़ी के हाथों में आ फंसा।"

"माईक तेरे को दस लाख डॉलर दे रहा था। तूने क्यों उसे कुछ नहीं बताया?" तीरथ ने पूछा।

"मालूम नहीं, लेकिन मन में कभी आया ही नहीं कि मैं 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में उसे बता दूँ। मेरा ध्यान एक लाख डॉलर पाने तक था।"

"सोने दो यार!" आँखें बंद किये लेटा राघव कह उठा।

"तुम्हें तुली के बारे में सोचना चाहिए, जिससे रात को मिलना है।" मन्नू ने कहा।

"सोच चुका हूँ।" राघव ने आँखें नहीं खोलीं--- "उसके दिमाग में सिर्फ ये बात डालनी है कि हमारी मौत के बाद F.I.A. उसे भी नहीं छोड़ेगी। माईक उस तक भी पहुंच सकता है क्योंकि वो भी फील्ड में हमारे साथ था।"

"लेकिन माईक को तुली के बारे में तभी पता चलेगा, जब हममें से कोई मुंह खोलेगा।" तीरथ बोला।

राघव ने आंखें खोलीं। दोनों को देखा, फिर कह उठा।

"F.I.A. तो यही सोचकर चल रही है कि मन्नू ने माईक के सामने मुंह खोल दिया है।"

"मैंने माईक को कुछ नहीं बताया।" मन्नू गुस्से से कह उठा।

"F.I.A. इस बात का भरोसा नहीं करती। वो सोचती होगी कि तुम क्रोशिया में माईक से मिले, जब उसके एजेंट को मारा। तुमने और जैनी ने प्लेन में माईक के साथ सफर किया, तब तुमने माईक को बताया होगा।"

"सब बकवास है।" मन्नू क्रोध में था।

"तुम्हारी या जैनी की बातें F.I.A. की समझ में नहीं आएंगी। वो अपना सोचा करके ही रहेगी।" राघव ने गंभीर स्वर में कहा--- "तभी तो तुली हमें खत्म करने के लिए हमारी तलाश में है। अगर तुली को हमने समझा दिया कि F.I.A. उसे भी नहीं छोड़ेगी तो शायद हालात बदल जाएंगे।"

"तब भी हालात नहीं बदलेंगे।" तीरथ बोला।

"देखते हैं।"

■■■

शाम के चार बजे... राव तुला मार्ग पर।

एंथनी के बार के पीछे वाली गली में एक्स्ट्रा ने कार रोकी। धर्मा बगल में बैठा था। इंजन बंद किया गया। दोनों बाहर निकले और पीछे के दरवाजे से भीतर प्रवेश किया तो वहां मौजूद एक आदमी ने टोका।

"सर, इधर कहां जा रहे हैं। ये रास्ता नाइट क्लब के कर्मचारियों के लिए है। आपको आना है तो सामने की तरफ से आइये। वैसे भी क्लब खुलने का समय शाम के पांच बजे का है। अभी एंट्री शुरू नहीं हुई।"

एक्स्ट्रा और धर्मा ने ठिठककर उसे देखा।

"एंथनी है?' धर्मा ने पूछा।

"साहब? हैं, वे तो आज दो बजे ही आ गए थे।" उसने बताया।

"इस वक्त कौन से फ्लोर पर हैं?"

"दूसरे या तीसरे पर होंगे।" वो बोला।

"शुक्रिया।" धर्मा ने कहा और एक्स्ट्रा के साथ आगे बढ़ गया।

वे भीतर पहुंचे तो एक आदमी ने टोका।

"कहां जा रहे हैं आप? अभी क्लब नहीं खुला और...।"

"एंथनी से मिलना है।" धर्मा बोला

"आप कौन?"

"R.D.X.।'

"यहां रुकिए। मैं बात करता हूं।" कहकर वह कुछ दूर टेबल पर पहुंचा और इंटरकॉम पर बात करके वापस आ गया--- "आप जा सकते हैं सर! एंथनी साहब तीसरी मंजिल पर अपने ऑफिस में हैं।"

धर्मा और एक्स्ट्रा सामने नजर आ रही लिफ्ट की तरफ बढ़ गए। चंद पलों में ही तीसरी मंजिल पर एक दरवाजा धकेलकर भीतर प्रवेश किया।

सामने टेबल थी। इस बार तीन कुर्सियां थीं और उस पार की बड़ी कुर्सी पर पचास बरस का पतला-लंबा व्यक्ति एंथनी बैठा था। उन्हें देखते ही मुस्कुरा कर खड़े होते हुए बोला।

"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम लोग मेरे पास आए हो। राघव कहां रह गया---वो...।"

"वो हमारे साथ नहीं है।" एक्स्ट्रा बोला।

उन्होंने हाथ मिलाए।

"बैठो।" एंथनी वापस अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोला--- "राघव भी साथ होता तो बढ़िया रहता।"

धर्मा और एक्स्ट्रा बैठे।

"क्या चलेगा? मैंने अभी लंच नहीं लिया। एक साथ लंच करें तो बढ़िया रहेगा।" एंथनी ने दोनों को देखा।

"ये लंच का वक्त नहीं है। कॉफी और स्नैक्स मंगवा लो।"

एंथनी ने इंटरकॉम पर ये सामान लाने को कहा।

"धंधा कैसा चल रहा है?"

"बढ़िया।" एंथनी मुस्कुराया--- "शाम को ऐसी भीड़ लगती है कि सुबह तीन बजे तक यहां मेले का माहौल रहता है।"

"दबा के ड्रग्स बेच रहे हो।"

"ड्रग्स?" एंथनी अचकचा उठा।

"बेटे!" धर्मा बोला--- "हम जानते हैं कि तुमने अपने लोग हर शिक्षण संस्थान, कॉलेजों के बाहर खड़े कर रखे हैं। वो पहले मुफ्त, फिर सस्ते में कम उम्र के युवक-युवतियों को ड्रग्स देते हैं, उन्हें आदत डलवाते हैं, जब उन्हें आदत पड़ जाती है तो ड्रग्स पाने के लिए उन्हें तुम्हारे नाइट क्लब का रास्ता दिखा दिया जाता है। वे यहां आते हैं, महंगे में तुम्हारे आदमियों से ड्रग्स खरीदते हैं और क्लब का खर्चा भी चुकाते हैं। इस तरह तुम दोनों हाथों से कमाई कर रहे हो एंथनी! गलत तो नहीं कहा?"

एंथनी सकपकाया-सा दोनों को देखता रहा।

"क्या हुआ?' एक्स्ट्रा ने सिगरेट सुलगाई।

"यार, तुम तो सब कुछ जानते हो।" एंथनी के होंठों से निकला--- "फिर मुझसे क्यों पूछते हो?"

"बुरा धंधा है ये।" धर्मा बोला।

"यार धंधा तो धंधा ही होता है। अच्छा-बुरा क्या! कोई सेवा हो तो कहो।" एंथनी जल्दी से बोला।

"आज शाम 8:00 बजे तुम्हारे क्लब में राघव की एक मीटिंग रखी है। वो आएगा और कुछ लोगों से मिलेगा। हम उस मीटिंग में शामिल नहीं हैं, परंतु हर जगह पर हम नजर रखना चाहते हैं। तुम बताओ कि ये सब कैसे होगा?"

"लफड़े वाला काम तो नहीं है?' एंथनी बोला।

"लफड़े वाला भी हो सकता है। अभी कुछ पता नहीं।"

"परवाह नहीं। यारों के लिए तो हर मुसीबत सह लूंगा। पुलिस से बढ़िया रिश्ता चल रहा है। मेरे इस ऑफिस के बगल वाला कमरा पूरे नाइट क्लब में नजर रखने के लिए काम आता है। नाइट क्लब में जगह-जगह सी.सी.टी.वी. कैमरे लगे हैं। नाइट क्लब में चक्कर लगाने की अपेक्षा उसी कमरे से हर तरफ नजर रखता हूं। तुम कहो तो राघव को मैं ऐसी खास टेबल पर बिठा दूंगा कि उसके नीचे माइक्रोफोन लगा होगा। उसकी बातें भी सुन सकते हो।"

"ये बढ़िया रहेगा।" एक्स्ट्रा ने सिर हिलाया।

"सी.सी.टी.वी. कैमरे का कंट्रोल बगल वाले कमरे में है?" धर्मा ने कहा।

"हां, वहां से क्लब के भीतर की हर जगह स्पष्ट तौर पर आराम से देख सकते हो।"

"मुझे दिखाओ वो कमरा।" धर्मा ने उठते हुए कहा

"ठहर यार! कॉफी तो हो जाए। राघव की मीटिंग शाम को आठ बजे है, इतनी जल्दी भी क्या है।"

धर्मा गहरी सांस लेकर बैठ गया।

कुछ ही देर में ट्रे में कॉफी और स्नैक्स लेकर एक आदमी वहां आ पहुंचा था।

■■■

रात के 8:20 हुए थे।

तुली ने एंथनी के बार के पार्किंग में कार रोकी। इंजन बंद किया। चेहरे पर गंभीरता और कठोरता नजर आ रही थी। इसके साथ ही उसने एक निगाह प्रवेश द्वार पर डाली, जहां शीशे के दरवाजे पर दरबान खड़ा दिखा। भीतर तीव्र रोशनी हो रही थी। कुछ पलों तक तुली स्टेयरिंग सीट पर ही बैठा रहा, फिर दरवाजा खोला और बाहर निकला। तभी उसका फोन बजा।

"हैलो!" तुली ने बात की।

"तुम अभी तक एंथनी के बार पर नहीं पहुंचे?" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"पार्किंग में हूं भीतर जा रहा हूं।"

"हमारे पांच एजेंट भीतर हैं। वे तीनों अभी नहीं दिखे। तुम्हें उनसे सावधान रहना होगा। वे बचने नहीं चाहिए। तुम सिर्फ उन्हें बातों में उलझाए रखना। हमारे लोग उन्हें शूट कर देंगे।" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

क्षण भर की सोच के बाद तुली ने कहा।

"मेरे इशारे से पहले उन पर गोली न चलाई जाए।"

"क्यों?"

"पहले मैं उनसे बात करना चाहता हूं। मैंने उनकी बात सुननी है कि वो क्या कहना चाहते हैं।"

"उनके पास कहने को कुछ नहीं है। तुम क्यों...?"

"मैंने उसके साथ काम किया है। उन्हें मैं ज्यादा जानता हूं। वे खतरा उठाकर मुझसे मिल रहे हैं तो कुछ खास ही कहना चाहते हैं।"

"बेकार की बात है--- तुम...।"

"जब मैं दोनों हाथ सिर के बालों पर फेरूं तो उन्हें शूट किया जाए। उससे पहले नहीं।" तुली बोला।

"तुम वक्त जाया करोगे।"

"जैसा मैंने कहा है वैसा ही करना कपूर!" तुली अब नाइट क्लब के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ने लगा था।

"ठीक है। उनसे कह देता हूं।"

"कौन-कौन है भीतर?"

"पांच एजेंट हैं। जिनमें एक नारंग भी है।"

"ठीक है। तुली ने कहा और फोन बंद करके जेब में रखा। वो शीशे के दरवाजे तक आ पहुंचा था।

■■■

कपूर ने नारंग को फोन किया।

"तुली वहां पहुंच रहा है। वो बाहर है, मेरी उससे बात हुई नारंग!"

"मेरी नजर दरवाजे पर ही है।" नारंग की आवाज कपूर के कानों में पड़ी।

"वो कहता है कि मेरे इशारे से पहले गोलियां न चलाई जाएं। इशारा होगा, तुलीअपने दोनों हाथ सिर के बालों में फेरेगा।"

"समझ गया।"

"लेकिन तुमने उसके इशारे की जरा भी परवाह नहीं करनी है। जब ठीक समझो, काम कर देना।"

"ऐसा ही होगा कपूर।"

"वे तीनों और तुली चारों में से कोई भी न बचे। उनकी मौत के बाद C.I.A. को कुछ नहीं मिलेगा।"

"बंद करो फोन। तुली आ गया है। मैं देख रहा हूं।"

कपूर ने फोन करके पास खड़े दीवान को देखा।

"तुली नाइट क्लब के भीतर आ गया है।"

"अब सब ठीक हो जाएगा।" दीवान ने सिर हिलाकर कहा।

"मैं अब भी कहता हूं कि तुली की जान लेना गलत होगा दीवान!" कपूर गंभीर स्वर में बोला--- "नारंग को हम अभी भी रोक सकते हैं।"

"ये करना जरूरी है। मैं ये सोचकर चल रहा हूं कि मन्नू ने माईक को सब कुछ बता दिया होगा, तुली के बारे में भी। वे तीनों मर गए तो C.I.A. देर-सवेर तुली पर हाथ डाल देगी। तुली का जिंदा रहना F.I.A. के लिए खतरनाक है।"

"क्या पता जैनी ठीक कह रही हो। मन्नू ने माईक को कुछ न बताया हो।"

"पक्की खबर नहीं है हमारे पास। इसलिए तुली का खत्म हो जाना ही ठीक है।" दीवान ने होंठ भींचकर कहा।

■■■

नाइटक्लब तीसरी मंजिल पर, उस कमरे में एक्स्ट्रा-धर्मा और एंथनी थे, जहां पर टी.वी. स्क्रीनें लगी हुई थीं और सी.सी.टी.वी. कैमरे हर तरफ का दृश्य स्क्रीनों पर दिखा रहे थे।

"एंथनी!" एक्स्ट्रा बोला--- "तुम तो रोज ही अपने क्लब में आने-जाने वालों को देखते हो। इस वक्त उन चेहरों को पहचान कर हमें बताओ जो पहले कभी तुम्हारे क्लब में न आए हों।"

"क्या मतलब?'

"कुछ लोग राघव की मीटिंग को रोकना चाहते हैं। शायद गोलियां भी चला दें उन पर।"

"समझा।" एंथनी ने कहने के पश्चात ही अपनी निगाह स्क्रीनों पर जमा दी।

तभी धर्मा के फोन की बेल बजी।

"कहो।"

"अब क्या पोजीशन है।" राघव का स्वर कानों में पड़ा।

"तुली अभी आया नहीं।" धर्मा स्क्रीनों पर निगाह डालता कह उठा--- "उसके आते ही मैं तुम्हें खबर कर दूंगा। याद रहे, प्रवेश द्वार से भीतर आते ही दाएं तरफ की तीसरी टेबल पर तुम्हें बैठना है, जिस पर रिजर्व की तख्ती रखी है। उस टेबल के नीचे माइक्रोफोन लगा है। हम तुम्हारी बातें आसानी से सुन सकेंगे। एंथनी पूरा साथ दे रहा है।"

"वहां जिन्न के एजेंट होंगे। पक्का है।"

"उनकी पहचान करने की कोशिश की जा रही है।" धर्मा बोला--- "क्या पता तुली ने शराफत इस्तेमाल की हो। वो अकेला ही यहां आए।"

"नहीं, तुल अकेला नहीं आएगा। उसके आदमी पहले ही वहां पहुँच गए होंगे।"

"ऐसा है तो पता चल जायेगा। मैं तुम्हें तुली के आते ही फोन करूंगा।"

"वक्त क्या हुआ?"

"8:25---- ठहरो--- वो..,।" धर्मा की निगाह उस स्क्रीन पर थी, जहां से प्रवेश द्वार स्पष्ट नजर आ रहा था। वहां से उसने तुली को भीतर प्रवेश करते देख लिया था--- "तुली ने अभी-अभी भीतर प्रवेश किया है। मैंने उसे पहचान लिया।"

राघव के गहरी सांस लेने की आवाज आई।

"तो अब हमें भी भीतर आ जाना चाहिए।"

धर्मा ने एक्स्ट्रा को देखा।

"तुली आ गया है। वे तीनों भीतर आना चाहते हैं।"

"राघव से कहो कि पांच मिनट बाद वो भीतर आ जाए।" एक्स्ट्रा गंभीर स्वर में कह उठा।

धर्मा ने एक्स्ट्रा की बात राघव को दोहरा दी।

एंथनी ने सात ऐसे लोगों की निशानदेही की, जो आज पहली बार उसके क्लब में आए थे।

धर्मा ने भी उन सातों को स्क्रीन ऊपर देखा।

"ये लोग F.I.A. वाले हो सकते हैं।" एक्स्ट्रा बोला।

"या इन सातों में से कुछ।" धर्मा कह उठा।

"एंथनी तुम्हारा काम इन सातों पर स्क्रीनों द्वारा नजर रखना है।" एक्स्ट्रा बोला।

'ठीक है।"

"हम नीचे चलें?' धर्मा बोला।

"नहीं।" एक्स्ट्रा ने इंकार में सिर हिलाया--- " तुली के साथी हमें अवश्य जानते होंगे। हमारा अभी नीचे जाना ठीक नहीं होगा। हमें यहां से हालात पर नजर रखनी होगी, जरूरत पड़ने पर ही...।"

"वहां अगर कुछ हुआ तो दस सेकंड में ही सब कुछ हो जाएगा।" एंथनी बोला--- "तुम लोगों को कुछ भी करने का मौका नहीं मिलेगा।"

धर्मा और एक्स्ट्रा की नजरें मिलीं।

"क्या कहना चाहते हो?" धर्मा ने एंथनी को देखा।

"तुली के साथियों की परवाह मत करो कि वे तुम्हें जानते हैं या नहीं। तुम दोनों नीचे जाओ। तुम दोनों राघव को गड़बड़ होने पर बचाना चाहते हो तो नीचे चले जाओ और हालात के प्रति सतर्क रहो।" एंथनी ने दोनों को देखा।

"एंथनी का दिमाग भी काम करता है धर्मा।" एक्स्ट्रा कह उठा।

"चल, नीचे चलें। हमें उन सातों पर नजर रखनी है, जो एंथनी के मुताबिक पहली बार इस क्लब में दिखाई दे रहे हैं।"

धर्मा और एक्स्ट्रा बाहर निकल गए।

■■■

तुली भीतर प्रवेश करके ठिठका और वहां मौजूद भीड़ में नजरें दौड़ाईं। वहां युवक-युवतियों की संख्या ज्यादा थी। सौ से ज्यादा लोग वहां मौजूद थे और हॉल इतना बड़ा था कि एक हजार के करीब लोग आ सकते थे। एक तरफ छोटे-से स्टेज पर ड्रम बज रहा था। कुछ जोड़े स्टेज पर थिरक रहे थे। दूसरी तरफ बार काउंटर बना हुआ था, जहां दस-बारह लोग अपना गिलास तैयार करवा रहे थे।

करीब तीस टेबल बिछी थी। कहीं चार कुर्सियां थीं तो कहीं चार कुर्सियां थीं तो कहीं छः कुर्सियां। एक ही निगाह में तुली ने तीन लोगों को पहचाना, जो F.I.A. के थे।

कुछ देर बाद नारंग भी दिखा।

परंतु राघव, मन्नू और तीरथ के न दिखने पर तुली बार काउंटर की तरफ बढ़ गया। ड्रम की मद्धिम-सी आवाज, लोगों की आवाजें, वहां का माहौल, कुल मिलाकर ये जगह शानदार पार्टी की तरह लग रही थी। छतों और दीवारों पर सजावट के सामान के नाम पर गुब्बारे और अन्य चीजें लटक रहे थीं।

तुली बार काउंटर पर पहुंचा और पेमेंट देकर लार्ज पैग लिया। घूंट भरा, फिर पलटा।

दो-तीन मिनट ही बीते होंगे कि तुली ने राघव, मन्नू और तीरथ को भीतर आते देखा। फौरन ही तुली अपनी जगह से हिला और गिलास थामें उनकी तरफ बढ़ने लगा। वे तीनों ठिठके से नजरें दौड़ा रहे थे। उन्होंने भी तुली को अपनी तरफ आते देख लिया तो उस टेबल की तरफ बढ़े, जहां रिजर्व की तख्ती लगी थी। पास पहुंचकर राघव ने बैठते हुए और तख्ती उठाकर टेबल के नीचे रख दी। मन्नू और तीरथ भी बैठ गए, तभी तुली पास आ पहुंचा।

तीनों ने तुली को देखा।

तुली भी कुर्सी पर बैठ गया। घूंट भरा और ग्लास टेबल पर रखा। नजरें तीनों पर गईं।

उनके बीच खामोशी आ ठहरी, तब राघव बोला।

"तुम आठ सालों में बूढ़े लगने लगे हो तुली! जब हम साथ में क्रोशिया गए थे तो जवान दिखते थे।"

"मेरे दो आदमी धर्मा और एक्स्ट्रा पर नजर रख रहे थे कि वे तुमसे मिले तो मुझे तुम्हारे बारे में पता चले या तुम मुझसे मिलो तो मुझे तुम्हारे ठिकाने का पता चल जाए।" तुली के चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था--- "उन्होंने मुझे दोपहर में ही फोन करके बता दिया था कि धर्मा और एक्स्ट्रा एंथनी के क्लब में यानि कि यहां पहुंचे हैं और दोपहर से लेकर अब तक वे यहीं हैं।"

"वे दोनों तुम्हारे लिए यहां नहीं हैं।" राघव बोला।

"तो किसके लिए हैं वे यहां?"

"तुम अगर यहां अपने आदमियों को लाए हो तो वे दोनों उनके लिए हैं।" राघव ने गंभीर स्वर में कहा।

"तुम्हारे आदमी हैं यहां?" तीरथ बोला।

"हैं।" तुली ने सिर हिलाया--- "इंतजाम तो करना ही पड़ता है।"

"मेरे पास आठ साल पहले बहुत अच्छा मौका था, बहुत अच्छा मौका था, तेरे सिर पर गोली मारने के लिए।" मन्नू बोला--- "जब तू फोन पर बातें कर रहा था और मैं पीछे वाली सीट पर दुबका पड़ा था। वो मौका चूककर मैंने गलती की।"

तुली ने तीनों को देखा, फिर बोला।

"हमें बात शुरु कर देनी चाहिए।"

"जरूर।" राघव बोला--- "बात यहां से शुरु करते हैं कि तुम हम तीनों को क्यों मारना चाहते हो?"

"मैं नहीं F.I.A. मारना चाहती है।"

"तेरी तो हमें परवाह नहीं।" राघव ने उसे घूरा--- "मैं F.I.A. यानी कि 'जिन्न' की ही बात कर रहा हूं।"

तुली ने मन्नू को देखते हुए कहा।

"इसने C.I.A. एजेंट माईक को 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में सब बता दिया है।"

"बकवास मत करो।" मन्नू ने दांत भींचकर कहा--- "मैंने कुछ नहीं बताया।"

"जैनी ने हमें सब कुछ बता दिया है।" तुली ने कठोर निगाहों से मन्नू को देखा।

"उल्लू के पट्ठे! तेरा मुंह तोड़ दूंगा अगर झूठ बोला तो। जब मैंने माईक को कुछ बताया ही नहीं तो जैनी कैसे कह देगी कि मैंने बताया है।" मन्नू का चेहरा गुस्से से लाल हो गया था। लगा जैसे वह तुली पर झपट पड़ेगा।

तुली बेहद शांत था। वो बोला।

"तो जैनी ने ऐसा क्यों कहा?"

जैनी ऐसा कह ही नहीं सकती क्योंकि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं।"

"तुम माईक से क्यों मिले क्रोशिया में?"

"तब मुझे एक लाख डॉलर की सख्त जरूरत थी। और कोई रास्ता न पाकर मैं माईक से मिला। उसे डॉलर मांगे। वो दस लाख डॉलर  दे रहा था 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में बताने के लिए, लेकिन मैंने उससे अपनी जरूरत के लाख डॉलर लिए और खिसक गया। मैंने उसे कुछ भी नहीं बताया। तब तक F.I.A. को हमारी मुलाकात की खबर लग गई और F.I.A. से बचने के लिए मैं जैनी के साथ मुंबई आ गया। ये है सारी बात। उधर माईक को किसी तरह पता चल गया कि मैं उस फिल्म में मुंबई जा रहा हूं तो वो भी उसी प्लेन में आ मिला मुझसे। सफर के दौरान उसने बहुत कोशिश की, मेरा मुंह खुलवाने की, परंतु मैंने उसे कुछ नहीं बताया।"

"क्यों?"

"नहीं बताया तो नहीं बताया, इस क्यों का कोई जवाब नहीं बनता। माईक मुझे तगड़े लालच दे रहा था। मैंने उसकी बात नहीं मानी।" मन्नू ने खा जाने वाली नजरों से तुली को देखते हुए कहा--- "अगर मैंने माईक के सामने मुंह खोल दिया होता तो इस वक्त राघव, तीरथ के साथ न होता। तुम्हारे सामने बैठा सफाई न दे रहा होता। माईक ने मुझे कहीं सुरक्षित रखा होता।"

तुली मन्नू को देखता रहा।

"मैं मानता हूं कि मैंने गलती की। इसी गलती की वजह से राघव और तीरथ भी खतरे में पड़ गए, परंतु सच मानो कि माईक को कुछ नहीं बताया मैंने, बल्कि कमीने तुम हो, जो आठ साल पहले क्रोशिया में काम खत्म हो जाने के बाद तुम हम सब को मारने की सोच रहे थे। तुमने हमें ये नहीं बताया था कि तब तुम 'जिन्न' से संबंध रखते हो और...।"

"पहले की बातें मत करो।" तीरथ ने टोका।

मन्नू ने होंठ भींच लिए।

"तुम खामखाह हमारे पीछे पड़े हो।" तीरथ गंभीर स्वर में कह उठा।

"मैं F.I.A. के आर्डर पर चल रहा हूं। F.I.A. सोचती है कि माईक तुम तीनों को देर-सवेर ढूंढ लेगा और मुंह भी खुलवा लेगा, इसलिए F.I.A. की नजरों में तुम लोगों का खत्म होना जरूरी है।" तुली का स्वर कठोर था।

"हमें सिर्फ इसी बात के लिए तुमसे नहीं मिले।" राघव बोला।

तुली ने राघव को देखा।

"तुमने अपने बारे में सोचा है?"

"अपने बारे में?" तुली ने उसके शब्द दोहराये।

"हां, 'ऑपरेशन टू किल' मे हम पांच लोग थे। तीन हम, एक जैनी, एक तुम। जैनी F.I.A. के कब्जे में है। हम तीनों को मारने के बाद सिर्फ तुम बचते हो। F.I.A  तुम्हें क्यों छोड़ेगी? माईक तुम तक भी तो पहुंच सकता है। तुम भी तो इस मिशन में फील्ड में थे। माईक आसानी से तुम्हारे बारे में पता लगा सकता है। C.I.A.का कोई भेदिया तो F.I.A. में होगा ही। तुम माईक से कब तक छुपे रह सकते हो।"

तुली ने घूंट भरा। उसके माथे पर बाल आ गए थे।

"क्या कहना चाहते हो?"

"तुम जान चुके हो कि मैं क्या कहना चाहता हूं।"

"मुंह से बोलो।"

"F.I.A. तुम्हें भी नहीं छोड़ेगी। हमारे बाद तुम्हें मारना भी जरूरी होगा, तभी ये काम खत्म हो सकेगा।"

तुली राघव को देखता रहा।

"तुमने सोचा है इस बारे में?"

"नहीं।" तुली के होंठ हिले।

"माईक को अगर मामला पता लग गया है या जब भी लगेगा तो हमारे साथ उसे तुली का नाम भी पता चलेगा। क्या F.I.A. नहीं जानती कि तुम्हारा मुंह बंद करना भी जरूरी है। मेरे ख्याल में तो F.I.A. तुम्हें बकरा बना रही है। पहले तुम हम तीनों को खत्म करो उसके बाद वो तुम्हें खत्म कर देगी। मेरी बात पर गौर करो, सच है ये।"

"ऐसा कुछ नहीं है।" तुली बोला।

"ऐसा ही है। तुम्हें इस सच को स्वीकार करना चाहिए। तुम...।"

"इस तरह की बातें करके तुम लोग खुद को बचा नहीं सकते।" तुली ने घूंट भरा।

"मतलब कि ये बात तुम्हारे गले से नीचे नहीं उतरती कि हमारे बाद F.I.A. तुम्हें मारेगी।"

"ठीक कहा F.I.A. ऐसा सोचेगी भी नहीं। तुम तीनों को खत्म करते ही ये काम खत्म हो जाएगा।" तुली बोला।

"समझो तुली!" मन्नू बोला--- "F.I.A. तुम्हें भी नहीं छोड़ेगी।"

"तुम लोग मेरा दिमाग खराब करने की कोशिश कर रहे हो।" तुली मुस्कुरा पड़ा।

"हम हकीकत से तुम्हें वाकिफ करा रहे हैं। यही बात समझानी थी तुम्हें कि...।"

"तुम लोगों को अपनी चिंता करनी चाहिए।"

राघव, मन्नू और तीरथ की नजरें मिलीं।

"ये समझ नहीं रहा या फिर समझना नहीं चाहता।" तीरथ बोला।

"कोई और बात करनी है तुम लोगों को?" तुली अपना गिलास खाली करता कह उठा।

"जा रहे हो?"

"अब मेरा यहां कोई काम नहीं।"

"बेवकूफ हो तुम जो...।"

'बेवकूफ तुम लोग हो। तुम लोगों ने सोचा कि ऐसी बात कहकर मेरा दिमाग खराब कर...।"

तुली के शब्द अधूरे ही रह गए।

तभी एक अंगारा उसके सिर को हवा देता निकल गया। तुली का हाथ फौरन सर पर पहुंचा, जहां उसे जलन की गर्मी महसूस हुई। इसके साथ ही वह फुर्ती से कुर्सी से उठकर घूमा। न घूमता तो आने वाली दूसरी गोली उसकी छाती पर लगनी थी, जो कि उसकी बांह में जा धंसी थी। इसके साथ ही तुली की निगाह नारंग से मिली। जो पंद्रह कदम दूर उसका निशाना फिर से लगाने की चेष्टा कर रहा था। तुली दांत किटकिटाकर नीचे बैठता चीखा।

"बचो।"

तभी एक गोली मन्नू की छाती में आ लगी।

एक गोली राघव की बांहों में लगी। साइलेंसर लगे रिवाल्वरों का इस्तेमाल हो रहा था।

तीरथ तब तक अपनी कुर्सी पीछे लुढ़काकर नीचे दुबक चुका था। उसी पल वहां गोलियां चलने की आवाजें गूंजने लगीं।

लोगों की चीख-पुकार मच गई।

"देखा तुमने...।" तीरथ नीचे दुबके पड़े तुली से गुर्राकर कर बोला--- "यही समझाना चाहते थे तुम्हें। हमारे साथ-साथ तुम्हारे लोग तुम्हें भी मार देना चाहता हैं। उल्लू के पट्ठे। पहले ही हमारी बात मान लेता तो तब क्या बुरा था।

तभी एक गोली आई और पास की कुर्सी से लगकर, कहीं गुम हो गई।

फायरों की आवाजें बराबर गूंज रही थीं।

लगता था जैसे दो पार्टियां भिड़ गई हों। एक साइलेंसर लगी रिवाल्वर से गोलियां चला रही थी और दूसरी पार्टी बिना साइलेंसर लगे रिवाल्वरों से। लोगों की चीख-पुकार बढ़ती ही जा रही थी। किसी की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।

दो-तीन मिनट तक यही सब चलता रहा, फिर एकाएक लाइट गुल हो गई।

तभी तुली की बांह किसी ने थामी और कहा।

"गोली मत चलाना। मैं एक्स्ट्रा हूं। राघव का साथी। मेरे साथ आओ। तुम भी खतरे में हो।"

"तुम कैसे हो राघव?" धर्मा की आवाज कानों में पड़ी।

"मैं ठीक हूं। बांह में गोली लगी है, लेकिन मैंने मन्नू की छाती में गोली लगते देखी है। वो शायद मर गया होगा।"

"मैं देखता हूं उसे। तुम सब यहां से निकलो।"

"तीरथ तुम कैसे हो?" राघव ने पूछा।

"एकदम फिट। बच गया।"

"चलो यहां से।"

■■■

पांच मिनट बाद ही लाइट आ गई।

नाइट क्लब का हाल देखते ही बनता था।

पहले वो सजा-सजाया शानदार लग रहा था और अब उजड़ा हुआ। टेबल-कुर्सियां बिखरी-गिरी पड़ी थी। सामान, बोतलें, गिलास लुढ़के पड़े थे कारपेट पर। जो लोग निकल सकते थे निकल गए थे, बाकि इधर-उधर कोनों में दुबके पड़े थे। सबके चेहरों पर मौत का डर छाया हुआ था। गोलियां चलनी तो कब की बंद हो चुकी थीं।

राघव, धर्मा, एक्स्ट्रा, तीरथ, मन्नू, तुली में से कोई भी वहां नहीं था। दो लाशें अलग-अलग जगह पर पड़ी थीं। वे दोनों F.I.A. के एजेंट थे। नारंग वहीं था, परंतु उसके चेहरे पर हार के निशान स्पष्ट नजर आ रहे थे। बाकी बचे दो एजेंट नारंग के पास पहुंचे।

"हमारे दो साथी मारे गए।" एक ने नारंग से कहा--- "वे कौन थे, जिन्होंने हम पर गोलियां चलाईं?"

"धर्मा और एक्स्ट्रा। राघव के साथी।" नारंग ने होंठ भींच कर कहा।

"तुली कहां है?"

"पता नहीं।" नारंग वहां नजरें दौड़ाता बोला--- "उनमें से कोई मरा क्या?"

"नहीं मालूम, वे लोग जिंदा या लाश के रूप में, कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे।"

"हम उनसे मात खा गए। ऐसे वक्त के लिए उन्होंने पहले ही तैयारी कर रखी थी।" नारंग बोला--- 'बहुत बुरा हुआ।"

■■■

चूंकि तुली, राघव और मन्नू घायल थे इसलिए रहने के लिए उन्हें सुरक्षित जगह चाहिए थी। जहां पर उनका इलाज भी हो सके। अब न तो होटल सुरक्षित था, न ही R.D.X. का फ़्लैट। F.I.A. ने अब उन्हें शिकारी कुत्तों की तरह हर जगह ढूंढना था।

एक ही कार में ठूँसकर वे छः-के-छः चल पड़े थे।

तीरथ कार चला रहा था। उसकी बगल वाली सीट पर तुली और एक्स्ट्रा बैठे थे। पीछे वाली सीट पर राघव,धर्मा कुछ इस तरह बैठे थे कि घायल मन्नू को कम-से-कम तकलीफ हो।

"तुम कैसे हो अब?" धर्मा ने पूछा।

"दर्द हो रहा है छाती में।" मन्नू ने तड़पते स्वर में कहा।

"तुम जल्दी ही डॉक्टर के पास पहुंच जाऊंगे। कुछ देर अपने पर काबू रखो।"

राघव बांह थामें पीछे देख रहा था।

"कोई आ रहा है पीछे?" धर्मा ने पूछा।

"नहीं।" राघव की निगाह पीछे ही रही।

"जाना कहां है।" धर्मा बोला--- "F.I.A. से छिपने के लिए हम मजबूत ठिकाना चाहिए।"

"घायलों को रखने के लिए खास जगह चाहिए।" एक्स्ट्रा बोला।

"मेरे पास कई जगह हैं। उनमें से एक सुरक्षित हो सकती है। वहीं चलते हैं।" तीरथ ने कहा।

"कौन-सी जगह?" धर्मा बोला।

"चल रहे हैं।"

"मुझे बताओ। मन्नू को डॉक्टर की फौरन जरूरत है। मैं डॉक्टर के साथ वहां पहुंचता हूं।"

तीरथ ने बताया।

"ठीक है। तुम लोग वहीं पहुंचो। मैं डॉक्टर को लेकर आता हूं। मुझे उतार दो।"

तीरथ ने कार रोकी।

धर्मा उतर गया तो तीरथ ने पुनः कार आगे बढ़ा दी।

'हम कुछ समय पहले ही मौत के मुंह से बचे हैं।" तीरथ गहरी सांस लेकर बोला।

"बुरी तरह।" राघव ने कहा।

"तुली ने तो आज मरवा ही दिया था।"

"मैंने कुछ नहीं किया। मेरे इशारे पर गोलियां नहीं चलीं।" तुली ने गंभीर स्वर में कहा।

"वे तुम्हें भी मार देना चाहते थे।" राघव बोला।

"हां।" तुली ने सिर हिलाया।

"कहीं तुम ये तो नहीं सोच रहे कि गलती से गोलियां लगीं। या ऐसा ही कुछ?" एक्स्ट्रा ने कहा।

"मैं ऐसा नहीं सोच रहा।" तुली का स्वर शांत था।

"वहां सी.सी.टी.वी. कैमरा लगे थे। चाहो तो मैं तुम्हें वहां की रिकॉर्डिंग की कैसेट दिलवा सकता हूं कि अपने पर गोली चलाने वाले को पहचान सको।"

"मैंने उसे देखा था।"

"जिसने तुम पर गोलियां चलाईं?"

"हां, देख लिया था मैंने उसे। वो F.I.A. का ही एजेंट था।"

"कौन?"

"F.I.A. के बारे में मुझसे कोई सवाल मत पूछना। मैं जवाब नहीं दूंगा।" तुली ने शांत स्वर में कहा--- "जो भी हुआ, वो करना F.I.A. की नजरों में जरूरी हो गया होगा, तभी ऐसा किया गया।"

"तो हमारी बात सच निकली कि F.I.A. तुम्हें भी नहीं छोड़ेगी। तुम्हें दुख तो हुआ होगा। F.I.A. की हरकत पर।"

"दुख क्यों नहीं होगा?" तुली बोला--- "मैं अपने लोगों से ऐसी आशा नहीं रखता था।"

"अभी ये बातें रहने दो।" एक्स्ट्रा बोला---- "मन्नू की हालत देखो।"

"मन्नू!" राघव बोला--- "कैसे हो?"

मन्नू की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।

"मन्नू!" राघव ने उसे हिलाया।

चुप्पी ही रही।

"कार रोको। मन्नू को कुछ हो गया लगता है।" राघव तेज स्वर में बोला।

तीरथ ने फौरन सड़क के किनारे कार रोकी।

सड़क पर ट्रैफिक आ-जा रहा था। रात के साढ़े दस बज रहे थे।

एक्स्ट्रा फौरन बाहर निकला और पीछे पड़े मन्नू को चैक किया।

"ये नहीं रहा।" एक्स्ट्रा ने गहरी सांस लेकर कहा।

"अच्छी तरह चैक करो।" तीरथ बेचैनी से बोला।

एक्स्ट्रा ने पुनः उसे देखा। चैक किया, परंतु मन्नू की सांसें रुक चुकी थीं।

"मन्नू मर गया है।" एक्स्ट्रा पीछे हटा और कार का दरवाजा बंद कर दिया।

तभी पास से तेजी से कार निकलती चली गई।

एक्सट्रा एक तरफ हटा और कार में झांककर कह उठा।

"लाश को साथ ले जाने का कोई फायदा नहीं।"

"लाश तो अब बना है। पहले मन्नू था ये।" तीरथ का स्वर भर्रा उठा था।

एक्स्ट्रा ने दरवाजा खोला और तुली के साथ बैठता, दरवाजा बनद करके बोला।

कार को ऐसी जगह ले चलो, जहां हम लाश को छोड़ सकें।"

तीरथ कार आगे बढ़ाते कह उठा।

"हालात ऐसे हैं कि उसका अंतिम संस्कार भी नहीं कर सकते।"

■■■

शीशे के पास लाइट ऑन थी।

तुली ने शीशे में अपने सिर के बालों को देखा। पतली-सी रेखा बनी नजर आ रही थी। गर्म गोली ने उसके सिर के बालों को झुलसा दिया था।

अगर गोली आधा इंच भी नीचे होती तो उसके सिर में धंस जानी थी।

ये सोच कर तुली मुस्कुरा पड़ा कि नारंग का निशाना चूक गया।

दूसरी बार भी चूक गया, जब वो घूमा और गोली उसकी छाती की अपेक्षा बांह में जा लगी।

उसने बांह को देखा, जहां डॉक्टर बैंडेज कर चुका था। गोली उसकी बांह को घायल करती निकल गई थी, परंतु राघव की बांह में गोली धंसी हुई थी जिसे डॉक्टर निकालकर बैंडेज कर दी थी।

एंथनी के नाइटक्लब में हुई घटना ने तुली की जिंदगी के मायने बदल दिए थे। क्या F.I.A. में देश की सेवा के लिए था परंतु अब F.I.A. उसे खत्म कर देना चाहती थी। उसकी सालों की सेवा की F.I.A. ने परवाह नहीं की थी। इसी बात को उसे बहुत मलाल हो रहा था। F.I.A. के लिए उसने कई बार अपनी जान को जोखिम में डाला था, परंतु अब वो सब मिट्टी में मिल गया था।

तुली अब खुद को आजाद महसूस कर रहा था।

अब कोई बंधन नहीं था उस पर।

उसे अब किसी की ड्यूटी नहीं बजानी थी। कोई मिशन पूरा नहीं करना था। अब वो सिर्फ अपने लिए था। उसका परिवार भी था, परंतु इन हालात में परिवार के पास जाना खतरनाक था। F.I.A. हर उस जगह पर बिछ चुकी होगी, जहां उसके जाने का अंदेशा होगा।

तुली F.I.A. की कार्यप्रणाली से पूरी तरह परिचित था।

कदमों की आहट सुनकर तुली ने अपने बालों पर हाथ फेरा, फिर पलटा।

धर्मा वहां आ पहुंचा।

"डॉक्टर गया?" पूछा तुली ने।

हाँ, उसे छोड़ आया।"

"बहुत धन्यवाद, जो तुमने मेरी जान बचाई।" तुली हल्की-सी मुस्कान के साथ बोला।

"सच बात तो ये है कि मैंने जो भी किया राघव को बचाने के लिए किया।" धर्मा ने कहा।

"मैं भाग्यशाली रहा, जो बच गया।"

"हां ,तुम्हें पहले ही जान लेना चाहिए था कि F.I.A  तुम्हें भी खत्म कर सकती है।"

"मैं गफलत में रहा। इस तरह सोचा ही नहीं। एक बेटा जैसे इस बात का शक नहीं कर सकता कि उसका बाप उससे दगा करेगा, उसी तरह मैं F.I.A. पर ऐसा कोई शक नहीं कर सकता था कि मेरे साथ ऐसा सलूक किया जाएगा।" तुली ने गंभीर स्वर में कहा।

"F.I.A. अभी भी तुम्हारे पीछे है।"

"जानता हूं।"

"क्या करोगे?"

"बहुत कुछ सोच रहा हूं, परंतु अभी फैसला नहीं किया।" तुली ने कहा।

"तुम्हें सबके साथ मिलकर F.I.A. का मुकाबला करना चाहिए।"

"F.I.A. एक इंसान नहीं है जिसका मुकाबला किया जा सके। वो एक सरकारी संगठन है, जिसकी हकीकत सिर्फ मैं जानता हूं। उससे बचा नहीं जा सकता। उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। होगा वही जो F.I.A. चाहेगी।"

"बचने की कोशिश तो की जा सकती है।"

"अवश्य।" तुली मुस्कुराया।

"तुम हमें F.I.A. के ओहदेदारों के बारे में बताओ तो हम शायद उनसे बात करके उन्हें समझा सकें कि...।"

"मुझसे इस बात की आशा मत रखो कि मैं तुम्हें F.I.A. के बारे में कुछ बताऊंगा।"

"जरा भी नहीं?"

"नहीं।" इंकार में सिर हिलाया तुली ने--- "मुझे गद्दारी नहीं आती। F.I.A.  ने मेरे साथ कुछ गलत किया है इसका ये मतलब नहीं कि मैं भी गलत करूँ। मैं F.I.A. का बुरा नहीं सोच सकता क्योंकि वो लोग देश की सेवा के लिए अपनी जान तक दे देते हैं।"

"परंतु तुम्हारी जान वे लेना चाहते हैं।"

"बीस अच्छे काम किये जाएं तो एक गलत काम भी हो जाता है। मुझे इसका कोई दुःख नहीं।"

"क्या तुम F.I.A. से खुद को बचा लोगे?"

"कोशिश तो यही करूँगा। राघव, तीरथ का क्या होगा?"

"वो उनकी किस्मत कि वो खुद को बचा पाते हैं या नहीं?" तुली ने गंभीर स्वर में कहा।

धर्मा का चेहरा धधक उठा।

"F.I.A. R.D.X. को जानती है?" गुर्राया था धर्मा।

"हाँ।"

"तो पहले उन्हें R.D.X. से टकराना होगा, राघव का कुछ बिगाड़ने के लिए।"

"F.I.A. के सामने तुम लोग बच्चे हो।" तुली ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया।

जबकि धर्मा के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी।

तुली दूसरे कमरे में पहुंचा। राघव कुर्सी पर बैठा था।घायल बांह उसने अपने शरीर से सटा रखी थी।

"तुम कैसे हो तुली?"

"तुमसे बेहतर। गोली मेरी बांह में जख्म बनाती चली गई थी, जबकि तुम्हारी बांह में फंसी रही।

राघव तुली को देखता रहा।

"मन्नू अब हमारे बीच नहीं रहा।" राघव ने थके स्वर में कहा।

"इसका मुझे अफसोस है।"

"तुम्हें अफसोस कैसा? मेरे ख्याल में हमसे बात करने के बाद तुमने हमें मार देना था। F.I.A. के एजेंट वहां थे।"

"हाँ, परंतु ये सब तब होना था, जब मेरा तयशुदा इशारा उन्हें मिलता, लेकिन उन्होंने पहले ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं।"

"क्योंकि वे हमारे साथ तुम्हें भी खत्म कर देना चाहते थे।" राघव ने कहा।

राघव को देखते तुली मुस्कुरा पड़ा।

"सो जाओ। आधी रात हो चुकी है।" राघव ने मुंह फेर लिया।

"कितना अजीब लग रहा है मुझे इस वक्त मैं तुम लोगों के साथ हूँ। मेरी तो दुनियां ही बदल गई, शाम की घटना के बाद से।" तुली बोला।

तभी तुली का फोन बजा। स्क्रीन पर आया नम्बर देखा तो वो कपूर का नम्बर था।

"हैलो!" तुली ने बात की--- "कैसे हो कपूर?"

"तुम ठीक हो?" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"मुझे क्या होना था कपूर!" तुली का स्वर गंभीर था।

"मुझे पता चला कि क्लब में तुम्हें भी गोली लगी और...।"

"बस भी करो अब।" तुली ने शांत स्वर में कहा--- "नारंग का निशाना चूक गया था। मैंने उसे गोलियां चलाते देखा था।"

"वो उन तीनों पर फायर कर रहा...।"

"ज्यादा बात करके क्यों झूठे बनते हो कपूर! नारंग मुझे मारना चाहता था। मैं जान चुका हूँ। तुम्हारा प्रोग्राम था कि उन तीनों के साथ मुझे भी खत्म करके C.I.A. का रास्ता पूरी तरह बंद कर दिया जाये। खास बात तो ये रही कि मैं बच गया। मन्नू जरूर मर गया। बाकि सब जिन्दा हैं। F.I.A. इस काम में कामयाब नहीं हो सकी।"

"बात को समझो तुली, तुम्हें गलती से गोली लगी, तब नारंग...।"

"जब नारंग गोली चला रहा था तो मेरी आँखें उससे मिलीं थीं। नारंग से पूछ लेना ये बात। वो जानता है कि मैं सब समझ गया हूँ।"

"होश में आओ तुली--- तुम क्यों...?"

"जो भी हुआ, उसका मुझे दुःख है। मैं जानता हूँ कि मेरी मौत F.I.A. का मिशन है। तुम अपना मिशन पूरा करो कपूर। मैं अपनी जान बचाने की पूरी चेष्टा करूँगा। तुली से गद्दारी की उम्मीद मत करना। F.I.A. के राज मेरे भीतर ही रहेंगे। मैंने F.I.A. का बुरा कभी नहीं चाहा, आगे भी नहीं चाहूंगा, परंतु अपने को बचाने के लिए अवश्य इधर-उधर हाथ मारूंगा।"

कपूर की गहरी सांस लेने की आवाज गूंजी।

"जो हुआ उसका मुझे अफसोस है। वापस आ जाओ तुली!" कपूर की आवाज कानों में पड़ी।

"अब मन खट्टा हो गया। वापसी की कोई गुंजाइश नहीं। F.I.A. ने मेरे साथ धोखा किया है।" तुली गंभीर था।

"F.I.A. के दरवाजे तुम्हारे लिए खुले रहेंगे।"

"इस बात की उम्मीद छोड़ दो कि तुली F.I.A. के दरवाजे को लांघकर कभी भीतर आएगा। हमारा नाता हमेशा के लिए टूट चुका है।"

"इतनी जल्दी फैसला मत लो।"

"इन बातों को अलग रहने दो कपूर! बंद करता हूं। हमारे रास्ते अलग-अलग हैं।" तुली ने कहने के साथ फोन बंद कर दिया।

उसे देखता राघव कह उठा।

"दुःख हो रहा होगा तुम्हें कि F.I.A. से रिश्ता खत्म हो गया।"

"दुख इस बात का है कि F.I.A. ने मेरे साथ धोखा किया। मेरी जान लेने की चेष्टा की, जबकि मैं F.I.A. का वफादार था। वैसे F.I.A. ने बहुत बड़ी गलती की कि जो मुझे तुम तीनों के साथ खत्म करने का प्रोग्राम बनाया। उन्हें जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी। पहले तुम तीनों को मारते। उसके बाद मुझे तो वे आराम से कहीं भी खत्म कर सकते थे। जल्दबाजी F.I.A. को ले डूबी।"

"मेरे ख्याल में F.I.A. ने कोई जल्दबाजी नहीं की।" राघव ने कहा--- "गड़बड़ यहां हुई कि नारंग का निशाना चूक गया। उसकी गोली तुम्हारे सिर में लग जाती तो तब कोई समस्या ही नहीं होनी थी।"

"हां।" तुली मुस्कुरा पड़ा--- "ये बात भी तुमने ठीक कही।"

■■■

"तुम्हारा निशाना चूक गया नारंग!" कपूर ने कठोर निगाहों से नारंग को देखा।

"मैंने ठीक निशाना लिया था।"" नारंग ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा--- "लेकिन उस वक्त, ठीक उसी तरह वक्त तुली ने बात करते हुए अपना सिर थोड़ा-सा नीचे कर लिया, तब तक मैं ट्रेगर दबा चुका था।"

"दूसरी गोली भी तुमने उसकी बांह पर...।"

"मैंने छाती पर मारी थी।" नारंग झल्लाए स्वर में बोला--- "परंतु तभी वो घूम गया और गोली बांह  में जा लगी।"

"तुम असफल रहे।" कपूर के चेहरे पर कठोरता थी।

नारंग ने दांत भींचकर मुंह फेर लिया।

"जवाब दो।"

"हां, मैं असफल रहा।" नारंग के होंठों से फंसा-फंसा सा स्वर निकला।

"तुली F.I.A. का बेहतरीन एजेंट था। उसे खत्म करना हमारी मजबूरी बन गया था कि C.I.A. के हाथ उस तक न पहुंच सकें, परंतु वो खत्म नहीं किया जा सका और वो ये भी जान गया कि F.I.A. उसे खत्म करना चाहती है। हमारा खेल पूरी तरह खुल गया और वो आजाद भी है।"

"मुझे दुख है कि ये सब हो गया।"

दीवान दोनों हाथ जेबों में डाले इस तरह टहल रहा था। जैसे उनकी बातों से उसे कोई मतलब ही न हो।

"ये तुम्हारी पहली गलती है नारंग!" कपूर का स्वर कठोर ही रहा--- "दूसरी गलती तुम्हारी आखिरी गलती होगी।"

नारंग को जैसे अपने पर गुस्सा आ रहा था।

"जाओ।" कपूर पुनः कह उठा।

"मैं तुली को ढूंढकर खत्म...।"

"तुम तुली से अच्छी तरह वाकिफ हो कि वो क्या है। वो F.I.A. से सतर्क हो चुका है। अब उस पर हाथ डालना आसान नहीं होगा।"

"लेकिन मैं उसे खत्म कर...।"

"रहने दो नारंग!" दीवान ठिठककर उसे देखता शांत स्वर में बोला--- "तुम इस मामले से अलग हो जाओ। हम देखेंगे कि अब हमें क्या करना है, सिर्फ इतना याद रखो F.I.A. सफलता को सलाम करती है। F.I.A. कोई भी एजेंट असफल होकर लौटे ये हमें पसंद नहीं। हमारे दो आदमी क्लब में मारे गए। तुम्हें ये सोचना चाहिए था कि इस मामले में राघव है तो धर्मा-एक्स्ट्रा भी जरूर दखल देंगे, परंतु तुमने कुछ भी नहीं सोचा और...।"

"इस बारे में मुझसे अवश्य भूल हुई।"

"कहीं तो तुमने अपनी गलती मानी।" कपूर ने तीखे स्वर में कहा।

नारंग खामोश रहा।

"हमें अकेला छोड़ दो अब।"

नारंग उठा और बाहर निकल गया।

कपूर और दीवान की नजरें मिलीं।

"हमें अपनी सारी कोशिशें छोड़कर F.I.A. के स्पेशल एजेंट सैवन इलैवन से संपर्क बनाना चाहिए। हालात बिगड़ चुके हैं अब सैवन इलैवन ही इन हालात पर काबू पा सकता है ठीक है।"

"ठीक है। फोन करो सैवन इलैवन को।" कपूर बोला--- "इस वक्त वो जाने कहां होगा।"

दीवान ने जेब से मोबाइल निकाला और सैवन इलैवन से संपर्क बनाने के लिए उसका नंबर मिलाने लगा।

■■■

वे तीनों युवक धूप से बचते हुए एक वीरान रेलवे पुल के नीचे छाया में बैठे ताश खेल रहे थे। तीनों आवारा जैसे लग रहे थे। दो के मुंह में बीड़ी फंसी थी, तीसरा सिगरेट सुलगाए हुए था। ये नोनू-दया और शम्मी थे।

तीनों के बीच दस, बीस के कुछ नोट पड़े थे। एक सौ का नोट भी रखा था।

"ये ले मेरी चाल।" शम्मी ने चालीस रूपये उन नोटों पर फेंके।

"मेरी ब्लाइंड।" नोनू ने कहते हुए बीस रूपये नोटों पर रखे।

"मेरी साठ की चाल।" दया ने नोट बीच में रखे--- "आओ मैदान में।"

"तू हर बार ऐसा ही कहता है, लेकिन तेरे पत्ते बाद में बेकार निकलते हैं।" शम्मी कहकर हंसा।

"इस बार तुम दोनों को मजा चखाऊंगा।"

"ये बात भी तू हर बार कहता है। फिर बाद में फुस्स हो जाता है।" शम्मी फिर हंसा।

"दांत मत दिखा, चाल चल।" दया ने मुंह बनाकर कहा।

शम्मी ने साठ रुपए नोटों पर रखे।

"मेरी भी साठ की।"

"मेरी ब्लाइंड।" कहकर नोनू ने नोट बीच में रखे।

"मेरी सौ की चाल।" दया ने सौ का नोट बीच में रखा।

"माल ज्यादा आ गया लगता है।" नोनू ने दया को देखा।

"रात उस बुढ़िया के घर से अच्छा माल मिला। तीस हजार तो नकद ही मिल गए थे।" दया हंस पड़ा--- "हमारे हाथ में चाकू देखकर कितनी डर गई थी वो, चुपचाप सारा सोना निकाल कर हमारे चरणों में रख दिया।"

"तिवारी को सोना बेचने भी जाना है। वो हमारा इंतजार कर रहा होगा।"

"बेच देंगे। अपना माल अपने पास ही पड़ा है--- चाल चल।"

"परसों जो चश्मे वाले को लूटा था, उसके पास से पचास हजार नकद मिले थे। वो तो तेरे पास ही रखे होंगे।"

"वो तो मैंने रानी को दे दिए।"

"रानी को--- सारे दे दिए।"

"हां। साली को साल-भर का खर्चा एक साथ दे दिया।" दया ने कहा।

नोनू और शम्मी खेलना छोड़ कर उसे देखने लगे।

"तूने वो सब रानी को क्यों दिए? उसमें हमारा भी हिस्सा था--- वो...।"

"ले लेना यार! मैं भागा तो नहीं जा रहा। अगला हाथ मारेंगे तो पिछला हिसाब भी कर लेंगे। चाल चल। खेल मत बिगाड़।"

"वो देख।" तभी नोनू सामने देखता हड़बड़ा कर कह उठा--- "वो कौन है, जो इधर आ रहा है।"

"पुलिस वाला तो नहीं?" शम्मी की निगाह भी उस तरफ उठी।

"पुलिस वाला तो नहीं लगता।" दया के होंठ सिकुड़े।

तीनों की निगाह उस पर टिक चुकी थी।

"पहले कभी नहीं देखा इसे।"

"लेकिन ये साला पुल के नीचे, हमारी तरफ क्या करने आ रहा है।"

उसने जींस की पैंट और काले जूते पहन रखे थे। सिर के बाल न छोटे न बड़े। पांच फीट दस इंच कद। कॉटन की मोटी कमीज पैंट के बाहर झूल रही थी। आंखें बिल्लोरी थीं। रंग साफ था। क्लीन शेव्ड चेहरा। नैन-नक्श इस कदर खूबसूरत कि युवतियों को मोह लेने की सारी दवा जैसे उसके चेहरे पर थी। होठों पर सदाबहार मुस्कान छाई हुई थी।

यही था F.I.A. का स्पेशल एजेंट सैवन इलैवन।

सैवन इलैवन अपनी शांत-मीठी मुस्कान के साथ उनके पास पहुंचा।

"बढ़िया खेल चल रहा है, मैं भी खेलूं क्या?" सैवन इलैवन कह उठा।

"तुम कौन हो?"

"सैवन इलैवण।"

"ये क्या हुआ?"

"यही मेरा नाम है।" सैवन इलैवन ने जेब से सौ के नोटों की गड्डी निकाली--- "हारने के लिए मेरे पास काफी माल है।"

तीनों ने नोटों को देखा, फिर आपस में नजरें मिलीं।

"और भी है जेब में।" सैवन इलैवन ने मुस्कुराकर कहा।

"सुना।" शम्मी के चेहरे पर जहरीली मुस्कान थिरक उठी--- "और भी हैं।"

उसी पर दया उछलकर खड़ा हुआ जेब से चाकू निकालकर हवा में हिलाता कह उठा।

"यहां से सलामत वापस जाना चाहता है तो सारा माल चुपचाप हमारे हवाले कर दे।"

तब तक शम्मी ने भी खड़े होकर चाकू निकाल लिया था।

नोनू वहीं बैठा ये सब देखने लगा।

सैवन इलैवन के चेहरे पर मुस्कान थिरक रही थी। वो नोनू से बोला।

"तुम भी खड़े हो जाओ। चाकू निकाल लो।"

"तुम्हारे लिए ये दोनों ही बहुत हैं।" नोनू ने मुंह बनाकर कहा।

"नोट निकाल।" दया चाकू लहराकर गुर्राया।

सैवन इलैवन ने नोटों की गड्डी नीचे, उनके नोटों के बीच फेंक दी।

"और निकाल।" दया पुनः गुर्राया।

सैवन इलैवन ने पैंट की दूसरी जेब से पांच सौ के नोटों की गड्डी निकाली और उछाल दी।

"तुम्हारी किस्मत बुरी थी जो तुम यहां आ गए।" नोनू ने मुस्कुराकर नोटों की दोनों गड्डियां थामता कह उठा।

"और निकाल।" दया पुनः गुर्रा उठा।

"इतना ही है।" सैवन इलैवन ने मुस्कुरा कर कहा--- "ये तुम लोगों को देने के लिए ही लाया था।"

"साठ हजार। हमें देने के लिए।"

"हां। सौदा दस लाख में होगा। बाकी का नौ-चालीस काम होने के बाद।"

"दस लाख?"

"बाकी का नौ-चालीस।"

तीनों की नजरें मिलीं।

"कौन हो तुम?"

"सैवन इलैवन।" उसके होठों पर मुस्कान थी--- "सौदा पसंद आया। पूरे दस लाख मिलेंगे।"

"ये मुझे कोई घिसा हुआ हरामी लगता है।" नोनू कह उठा।

"तुम हमसे कोई काम लेना चाहते हो?"

"हां।"

"अगर हम तुम्हारा काम न करें तो?"

"करोगे। दस-बीस-पचास हजार तक का हाथ मारने वाले लोग हो तुम लोग और मैं दस लाख दूंगा तो तुम लोग काम क्यों नहीं करोगे?"

"मैंने ठीक कहा है कि ये घिसा हुआ बंदा है।" नोनू ने पुनः अपनी राय दी।

"हमारे बारे में तुम्हें किसने बताया?"

"मैंने खुद ढूंढा है तुम तीनों को। पिछले दो दिन से तुम लोगों पर नजर रख रहा हूं।"

"दो दिन से?" दया के माथे पर बल बड़े--- "बता, क्या किया हमने दो दिनों में?"

सैवन इलैवण ने मुस्कुराते हुए अपने कान की लौ मसली और कह उठा।

"परसों तुम तीनों ने चाकू दिखाकर उस आदमी को लूटा जो बैंक से निकला था। उसने चश्मा पहन रखा था जब वो अपनी कार में बैठकर वहां से जाने लगा तो तुम लोगों ने उसे घेर लिया और उसके नोट ले भागे।"

"कल क्या किया?" शम्मी की आंखें सिकुड़ी।

"रात दस बजे के बाद तुम लोग उस बूढ़ी औरत के घर में जा घुसे, जिसका बेटा घंटे भर पहले बिजनेस टूर पर गया था। उसके घर में नकदी और सोना लूट कर भाग निकले।" सैवन इलैवन ने कहा।

"ये साला तो अपने बारे में सब कुछ जानता है।" नोनू कह उठा--- "पूरी तरह घिसा हुआ है।"

"दस लाख वाली क्या बात है?" दया बोला।

"चाकू जेब में रखो। आराम से बात करते हैं।" सैवन इलैवन ने कहा और वहीं पड़े पत्थर पर बैठ गया।

नोनू, दया और शंभू की नजरें मिलीं।

उन्होंने चाकू जेब में रखे और बैठ गए।

"अब बोलो।"

"एक कत्ल करना है।" सैवन इलैवन बोला।

"कत्ल?" नोनू चौंका।

"हम किसी की जान नहीं लेते।" शम्मी के होंठों से निकला।

"हमने कभी किसी की जान नहीं ली।" दया कह उठा।

"नहीं ली तो आने वाले वक्त में लोगे।" सैवन इलैवन ने कहा।

"जरूरी तो नहीं।"

"जरूरी है। बात-बात पर चाकू निकाल लेते हो। आज तक सामने वाले ने मुकाबला करने की कोशिश नहीं की। जब कोई तगड़ा अड़ गया तो तब क्या करोगे? चाकू का इस्तेमाल करोगे। पहले उसे घायल करोगे। वो मुकाबला करता रहा तो फिर उस पर जानलेवा वार करोगे। करना ही पड़ेगा। खुद को बचाना जो है। शुरुआत ऐसे ही होती है, फिर धीरे-धीरे हाथ खुलता चला जाता है।"

"नोनू ठीक कहता है।" दया ने कहा--- "ये तो सच में घिसा हुआ है।"

सैवन इलैवन मुस्कुराकर बोला।

"कुछ हजार रुपए पाने के लिए तुम लोग आए दिन चाकू निकाल लेते हो। देखना किसी भी दिन चाकू का घातक इस्तेमाल हो सकता है, तब तुम लोग सोचोगे कि पांच-सात हजार रूपये पाने के लिए खामखाह किसी की जान ले ली। यही अगर दस लाख लेकर किसी की जान लो तो मन में इस बात की तो तसल्ली रहेगी कि जान ली तो क्या हुआ दस लाख भी तो मिले हैं।"

नोनू-शम्मी और दया की नजरें मिलीं।

"कहता तो ये सही है।" शम्मी कह उठा।

"दस लाख सच में बड़ी रकम है।" नोनू ने कहा।

"छोटे-छोटे काम कब तक करते रहोगे? बड़ा काम करो, ताकि कुछ वक्त बीत जाया करे। दस लाख मिलेंगे तो दो-चार महीने तुम लोग नोटों का बढ़िया मजा ले सकोगे। तब तक कोई दूसरा काम नजर में आ जाएगा।"

"नाप-तौल कर बातें इसकी ठीक लगती हैं।"

"तुम लोग ये काम नहीं करोगे तो मैं दूसरे लोग तलाश कर लूंगा, परंतु तुम्हारे हाथ से दस लाख पाने का मौका निकल जाएगा।"

तीनों की निगाह एक दूसरे पर गई।

"सैवन इलैवन की शांत मुस्कुराती निगाह तीनों पर थीं।

"क्यों दोस्तों!" दया बोला--- "हो जाए एक कत्ल भी।"

"देर-सवेर होना तो ही है।" नोनू बोला--- "ये ठीक कह रहा है। तो क्यों न दस लाख लेकर किया जाए।"

"मंजूर!" शम्मी ने जैसे सबकी सहमति दे दी।

"तुम अपने बारे में बताओ कि तुम कौन...।"

"काम करो। नोट गिनो। मेरे बारे में सिर्फ इतना ही जान लो कि मुझे सैवन इलैवन कहते हैं।"

"सात सौ ग्यारह (711) ये क्या नाम हुआ? ये तो नंबर है।"

"मेरे लिए यही नंबर सब कुछ है। सैवन इलैवन मतलब कि 711। तो दस लाख के बारे में बात करें?"

"किसकी जान लेनी है?" दया बोला।

"बलबीर नाम के आदमी की।"

"पूछ सकते हैं कि क्यों तुम उसकी हत्या करवाना चाहते हो?" नोनू ने कहा।

"जरूरी नहीं कि मैं बताऊं, फिर भी बता देता हूं कि वो ड्रग्स बेचता है और मुझे ये धंधा पसंद नहीं।"

"पागल हो तुम। उसे मारकर क्या होगा। वो मरेगा तो उसकी जगह दूसरा ड्रग्स बेचने लगेगा।"

"ठीक कहते हो। इस तरह ड्रग्स बेचने वाले जाने कितने होंगे।" सैवन इलैवन ने मुस्कुरा कर कहा--- "परंतु जिस ढंग से वो ड्रग्स बेचता है, मुझे उसका वो ढंग पसंद नहीं। गलत काम को और भी गलत ढंग से करता है।"

"वो कैसे?"

"बलवीर ड्रग्स के लिए शिक्षण संस्थान, जैसे कि कॉलेज को चुनता है। पहले वो 17-18-19 वर्ष के युवक-युवतियों को मुफ्त में ड्रग्स देता है और उन्हें युवक-युवतियां भी तैयार करने को कहता है, जो ड्रग्स देना शुरू कर दें। इस तरह वो महीने भर में दस-बीस को ड्रग्स की आदत डलवा देता है, जब वो ड्रग्स के बिना नहीं रह पाते तो बलवीर उन्हें रेस्टोरेंट हॉल या किसी ऐसे ही ठिकाने के बारे में बता देता है जहां ड्रग्स मिलती है। कहता है, वहां जाकर मेरा नाम ले लेना ड्रग्स मिल जाएगी। फिर वो युवक-युवतियां वहां से ड्रग्स महंगे दामों पर लेते हैं और उनके पक्के ग्राहक बन जाते हैं। बलवीर उस ठिकाने से ग्राहक भेजने की एवज में कमीशन के तौर पर मोटी रकम ले लेता है। जो कि पहले से ही तय होता है कि एक ग्राहक के बदले उसे क्या रकम मिलनी है। उसके बाद बलवीर फिर नए सिरे से कॉलेज के युवक-युवतियों को फंसाने में व्यस्त हो जाता है। महीने में पांच-दस को ड्रग्स की आदत लगवा ही देता है।"

"तो इससे तुम्हें क्या फर्क पड़ता है?"

"आज के युवक-युवतियां देश का भविष्य हैं। वे ड्रग्स की आदत में फंस गए तो देश खत्म हो जाएगा।"

"तुम क्यों चिंता करते हो?"

"मेरी चिंता को छोड़ो। तुम लोग दस लाख की चिंता करो। वो चाहिए कि नहीं?" सैवन इलैवन मुस्कुराकर कह उठा।

"चाहिए।"

"साठ हजार मिल गया है, बाकी काम होने के बाद।"

"नौ लाख, चालीस हजार बाकी हैं?"

"हां, नौ-चालीस। मेरे साथ चलो शिकार दिखा दूं।" सैवन इलैवन उठते हुए बोला।

"चाकू से मारने में इस बात का खतरा है कि वो बच सकता है।" दया कह उठा।

"हां। जल्दबाजी में, घातक वार न हुआ तो?" शम्मी ने दया को देखा।

"अब दस लाख मिलेंगे तो रिवाल्वर खरीद लेंगे एक।" नोनू बोला--- "अब बड़े काम ही किया करेंगे।"

सैवन इलैवन मुस्कुरा कर उन्हें देखे जा रहा था।

"लेकिन इस काम के लिए रिवाल्वर कहां से लें?" शम्मी ने कहा।

"चाकू से भी काम चल सकता है।" सैवन इलैवन बोला।

'फिर न कहना कि वो मरा नहीं। अस्पताल जाकर बच गया।"

"उसे पूरी तरह मरना चाहिए।" सैवन इलैवन ने कमीज उठाकर पैंट के भीतर फंसी रिवाल्वर निकाली।

रिवाल्वर देखकर तीनों हड़बड़ा उठे।

"ये लो।" सैवन इलैवन ने रिवाल्वर उनकी तरफ बढ़ाई--- "काम के बाद ये मुझे वापस मिल जानी चाहिए।"

नोनू ने तुरंत रिवाल्वर थामी और उसे देखने लगा।

"तुम्हारे पास कहां से आई रिवाल्वर?" शम्मी बोला।

"विदेशी है।" नोनू बोला--- "महंगा माल है। दो-चार लाख से कम की नहीं है।"

"मैं रख लेता हूं कभी-कभी।" सैवन इलैवन ने शम्मी की बात का जवाब दिया।

"तुम नहीं मार सकते बलबीर को?"

"मार सकता हूं, लेकिन फिर तुम लोगों का क्या होगा? मैं चाहता हूं तुम्हारी भी रोटी-पानी चलती रहे।"

"जरूरत से ज्यादा ही घिसा हुआ है ये।" नोनू गहरी सांस लेकर कह उठा।

"बहुत चिंता है तुम्हें हमारी?" दया मुस्कुराया।

"तभी तो इस काम के लिए तुम लोगों को चुना।"

"हमने पहले कभी चलाई नहीं रिवाल्वर।" नोनू बोला।

"जरा भी मुश्किल नहीं है।" सैवन इलैवन ने कहा--- "तुम लोग बलबीर के पास जाना और नाम उनके सिर से लगाकर ट्रिगर दबा देना। मन में कोई शंका रहे तो दूसरी बार उसके दिल वाले हिस्से पर नाल रखकर गोली चला देना।"

"अगर तीसरी बार जरूरत पड़े तो?" शम्मी बोला।

"तीसरी बार जरूरत भी पड़ेगी। इस पर भी अगर तीसरी बार जरूरत महसूस करो तो नाल अपने सिर से लगाकर ट्रिगर दबा देना।"

शम्मी हड़बड़ा-सा गया।

"अपने सिर पर नाल रखकर गोली चला दें?" उसके होंठों से निकला।

"अबे घोड़ी के।" नोनू मुंह बनाकर कह उठा--- "अब एक बार रिवाल्वर उसके सिर से सटाकर गोली चला दी। दूसरी बार उसके दिल से नाल सटाकर गोली चला दी तो तीसरी बार जरूरत ही कहां पड़ेगी? तू कभी तरक्की नहीं कर सकता।"

"बलवीर का पता है इस वक्त वो कहां होगा?" दया ने पूछा।

सैवन इलैवन ने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मारकर कहा।

"इस वक्त वो शिवाजी मार्ग पर एक प्राइवेट कॉलेज के आसपास में मंडराता मिलेगा। मेरे साथ चलो। अभी दिखा देता हूं उसे। चाहो तो हाथों-हाथ काम खत्म कर देना।"

"हम तो काम निपटा देंगे लेकिन तेरे पास क्या बाकी के नौ-चालीस हैं?" नोनू कह उठा।

"है। उसी पुल के ऊपर कार खड़ी है मेरी। उसमें है।"

"नोट हम पहले देखेंगे।"

"देख लेना।"

उसके बाद तीनों ने आनन-फानन से नीचे पड़े नोट उठाकर अपनी जेब में ठूंसे और सैवन इलैवन के साथ चल पड़े।

■■■

उनकी कार शिवाजी रोड पर खड़ी थी।

सामने ही एक प्राइवेट कॉलेज था। युवक-युवतियां भीतर-बाहर मंडरा रहे थे। वो सफेद पैंट और नीली कमीज पहने दो युवकों से बात कर रहा था, फिर उसने युवकों को पुड़िया जैसी चीज दी।

"वही है बालवीर।" सैवन इलैवन बोला--- "नीली कमीज वाला।"

"अभी साले का काम निबटाते हैं।" नोनू कह उठा।

"गोली कौन चलाएगा?" दया ने पूछा।

"जो गोली चलाएगा, उसे दस लाख के बंटवारे में एक लाख ज्यादा मिलेगा।" शम्मी ने कहा।

"मतलब कि तीन-तीन लाख तीनों को, आखिरी लाख उसे जो गोली मारेगा?" नोनू बोला।

"हां।"

'मैं गोली चलाऊंगा।" दया कह उठा।

"देख तो साला एक लाख से ज्यादा ऐंठने के लिए कैसे मुंह खोल रहा है!" नोनू हंसकर बोला।

सैवन इलैवन खिड़की से बाहर देखता, शांत बैठा था।

"मेरे साथ कौन चलेगा?" दया बोला।

"साथ की क्या जरूरत है। जा और गोली मारकर आजा।"

'नोनू ठीक कहता है।" दया बोला--- "अगर तू एक लाख में पचास हजार मुझे देता है तो मैं साथ चलता हूं।"

"कोई जरूरत नहीं। मैं अकेला ही काफी हूं।" दया ने नोनू के हाथ में से रिवाल्वर ले ली।

"शेरनी का दूध पिया लगता है।" नोनू पुनः हंसा।

दया ने रिवाल्वर कमीज में छिपाई। उतरने लगा तो सैवन इलैवन ने कहा।

"गोली चलाने के बाद तुम मेरी कार में वापस नहीं आओगे। हम जा रहे हैं।"

"कहां?"

"उसी पुल के नीचे मिलेंगे। वहीं पहुंच जाना।"

"मैं साले को अभी गोली मारकर आता हूं। तुम्हारी कार में एक साथ चलते हैं वापस।"

"नहीं। गोली चलाने के बाद तुम हमें पुल के नीचे ही मिलोगे।" सैवन इलैवन बोला।

"ठीक है, ऐसा ही सही।" दया ने कहकर कार का दरवाजा खोला और बाहर निकल कर दरवाजा बंद करके बोला--- "इस सैवन इलैवन का ध्यान रखना, कहीं ये खिसक न जाए। नौ-चालीस लेना है इससे।"

"फिक्र मत कर। ये साहब ऐसे नहीं हैं। ईमानदार हैं।" नोनू कह उठा।

दया उधर बढ़ गया, जहां बलबीर खड़ा था।

"देखें तो साला दया, कैसे गोली मारता है?" शम्मी कह उठा।

उसी पल सैवन इलैवन ने कार वहां से बढ़ा दी।

"देखने भी नहीं दिया।" शम्मी नाराजगी से बोला।

"फिर देख लेना। अब से हम, इसी तरह के बड़े काम किया करेंगे।' नोनू कह उठा।

■■■

दया बलवीर के पास पहुंचा। वे दोनों युवक जा चुके थे और बलबीर किसी नए शिकार की तलाश में नजरें दौड़ा रहा था कि दया को पास आते पाकर नजरें उसी पर जा टिकीं।

"बलबीर?" दया पास आकर कह उठा।

"हां, तुम कौन...।"

उसी पल दया ने फुर्ती से जेब में से रिवाल्वर निकाली और बलवीर की खोपड़ी से नाल सटाकर ट्रिगर दबा दिया बलवीर मरते दम तक नहीं समझ सका कि उसके साथ क्या हो रहा है।

गोली उसके सिर में ही अटक गई थी।

वो उसी पल कटे पेड़ की तरह नीचे जा गिरा था।

गोली की आवाज वहां गूंजी थी। कई लोगों का ध्यान इस तरफ गया। दया को पता चल गया था कि बलबीर मर चुका है। उसने रिवाल्वर वापस पैंट की जेब में रखी और दौड़ पड़ा वहां से। चंद पलों में ही वहां से काफी दूर आ गया। फिर आराम से चलने लगा। चेहरे पर अभी भी घबराहट थी। तभी उसे खाली टैक्सी मिल गई।

■■■

उसी पुल के नीचे सैवन इलैवन, नोनू और शम्मी मौजूद थे। सैवन इलैवन के हाथ में ब्रीफकेस था। और वे दोनों बेचैनी से टहल रहे थे, तभी नोनू कह उठा।

"तुम पैसे दो हमें और जाओ।"

"पता तो चले कि काम हो गया।" सैवन इलैवन बोला।

"दया आकर कहेगा तो तुम मान जाओगे कि काम हो गया?" शम्मी बोला।

"अगर वो झूठ बोलेगा तो दोबारा आकर मैं तुम लोगों को नहीं छोडूंगा।" सैवन इलैवन मुस्कुरा कर बोला।

"वो झूठ क्यों बोलेगा, क्यों शम्मी?"

"हां, वो काम निपटाकर ही लौटेगा।" शम्मी ने फौरन सिर हिलाया।

"मुझे रिवाल्वर भी लेनी है उससे।"

"वो तो मैं भूल ही गया था।" नोनू ने कहा--- "तुम पचास हजार में रिवाल्वर हमें बेच दो। अब तो हमें जरूरत पड़ती ही रहेगी।"

"तूने ठीक कहा नोनू।"

सैवन इलैवन मुस्कुराया, खामोश रहा।

ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा दया का। कुछ देर बाद ही वो वहां आ पहुंचा।

"काम कर दिया मैंने।" दया बोला--- "एक ही गोली सिर में मारकर निबटा दिया।

"रिवाल्वर दो।" सैवन इलैवन बोला।

दया ने उसे रिवाल्वर दी।

सैवन इलैवन ने नाल सूंघी, फिर दया को देखकर बोला।

"तुमने तो सच में उसका काम कर दिया होगा।"

"नोट दो।"

सैवन इलैवन ने बारी-बारी तीनों को देखा। चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी थी।

"अब तुम लोगों को बड़े काम करने की आदत पड़ जाएगी। ठीक कहा मैंने!"

"वो तो है ही। तुमने हमें बढ़िया रास्ता दिखा दिया।" नोनू मुस्कुराकर बोला।

"मैंने रास्ता नहीं दिखाया। तुम लोग जिस रास्ते पर चल रहे हो उसकी वजह से तुम दूसरों की जान लेने का काम भी देर-सवेर में शुरू कर देते। मेरे बीच में आ जाने से फर्क ये रहा कि इस रास्ते पर जल्दी आ गए।"

"क्या कहना चाहते हो तुम?"

"बाकी का नौ-चालीस दो हमें।"

"तुम तीनों ने जिंदगी भर ऐसे ही काम करने हैं। सुधरने की कोई आशा मुझे दिखाई नहीं देती।"

तीनों की नजरें मिलीं।

"दिमाग खराब हो गया है इसका।" दया गुर्रा उठा।

"मन में बेईमानी आ गई है। पैसे देना नहीं चाहता।" नोनू ने गुस्से से कहा।

"ब्रीफकेस छीन लो हरामी से।" शम्मी ने दांत भींचकर कहा और सैवन इलैवन पर झपट पड़ा।

सैवन इलैवन ने ट्रिगर दबा दिया।

गोली शम्मी की छाती में जा लगी।

शम्मी को मरते पाकर नोनू और दया के होश उड़ गए।

"ये तुम क्या कर रहे हो?" नोनू ने घबराकर कहा--- "पैसे नहीं देना चाहते तो मत दो, हमें क्यों मार रहे हो? हमने तुम्हारा काम किया है।"

"ये ही तो गलती कर दी जो मेरे कहने पर, तुम लोगों ने एक आदमी की जान ले ली।" सैवन इलैवन ने खतरनाक स्वर में कहा और हाथ में दबी रिवाल्वर से एक के बाद एक दो ट्रिगर दबा दिया।

दो धमाके हुए।

एक गोली नानू के माथे पर लगी, दूसरी शम्मी के गले में प्रवेश कर गई। दोनों तीव्र झटके के साथ नीचे जा गिरे।

सैवन इलैवन ने रिवाल्वर वापस पैंट में फंसाई और पलट कर वापस चल पड़ा।

पुल के ऊपर खड़ी कार में जा बैठा। ब्रीफकेस पीछे वाली सीट पर रखा और कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी। शाम हो चुकी थी अब धीरे-धीरे अंधेरा घिरने लगा था। मुंबई की रोशनियों ने जगमगाना शुरू कर दिया था।

तभी सैवन इलैवन का मोबाइल फोन बज उठा।

सैवन इलैवन ने स्क्रीन पर आया नंबर देखा फिर कॉलिंग स्विच दबाता फोन कान से लगाया।

"कहो दीवान!"

"मैं कब से तुम्हारा फोन ट्राई कर रहा हूं सैवन इलैवन!" दीवान की आवाज कानों में पड़ी।

"काम की बात करो।" सैवन इलैवन का स्वर शांत था।

"एक काम बिगड़ गया है।"

"बिगड़ गया है--- खूब--- तुम्हारे मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं।" सैवन इलैवन ने कहा।

"हो जाता है कभी-कभी ऐसा भी।"

"नहीं होना चाहिए। बताओ क्या बात है?"

उधर से दीवान ने 'ऑपरेशन टू किल' के बारे में सब कुछ बताया।

अंत तक सारी बात बताई, फिर कह उठा।

"मैं चाहता हूं ये मामला तुम अपने हाथ में ले लो।"

"दूध बिखेर दिया। उसे बिल्ली से चटवा दिया। फर्श भी साफ कर दिया और अब मुझे कहते हो कि मैं दूध की तलाश करूं।"

"क्या मतलब?"

"दीवान! तुमने ये मामला पूरी तरह बिगाड़ दिया है। मैं इसमें क्या करूंगा?"

"तुम सब कुछ कर सकते हो। तुली को खत्म करोगे, उसके पास F.I.A. के राज हैं। राघव और तीरथ को खत्म...।"

"जो ग़लतियां तुमने कीं, अब वही गलतियां मुझे करने को कह रहे हो।" सैवन इलैवन बोला--- "काम मुझसे करवाना चाहते हो?"

"तभी तो फोन किया है।"

"तो काम कैसे होगा, ये मुझ पर छोड़ दो। मैं तुम्हारी तरह गलतियां नहीं करता।"

"ठीक है। तुम काम करो।"

"इस काम से सबको हटा लो।" सैवन इलैवन बोला।

"अभी हटा लेता हूं।"

"इस काम को मैं अपने ढंग से पूरा करूंगा।"

"धन्यवाद! तुम कभी तो मुझसे मिलो।" दीवान ने उधर से कहा--- "मैंने आज तक तुम्हें देखा नहीं है।"

सैवन इलैवन ने फोन बंद कर दिया।

अब तक पूरी तरह अंधेरा छा गया था।

आधे घंटे बाद सैवन इलैवन ने कार को 'सी-व्यू' सोसाइटी के भीतर ले जाकर रोका। यहां पंद्रह मंजिल ऊंची चार इमारतें बनी हुई थीं। हर फ्लोर में छः-छः फ्लैट थे और सातवीं मंजिल के एक फ्लैट में वह रहता था।

लिफ्ट से वो सातवीं मंजिल पर पहुंचा, हाथ में ब्रीफकेस था।

फ्लैट का दरवाजा खोलते-खोलते एकाएक वो ठिठका।

भीतर किसी के होने का एहसास हुआ।

सैवन इलैवन के होंठ भिंच गए। आंखों में चमक आ गयी। उसने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ली। और कानों को दरवाजे से लगाकर भीतर की आहट ली। मद्धिम-सी आवाज कानों में पड़ी। उसने दरवाजे का हैंडल दबाया तो दरवाजा खुलता चला गया। कोई आवाज नहीं हुई। उसने ब्रीफकेस नीचे रखा और रिवाल्वर थामे नजरें घुमाईं।

हॉल ड्राइंगरूम की लाइट जल रही थी। परंतु वहां कोई नहीं था।

रिवाल्वर थामे सैवन इलैवन दबे पांव ड्राइंगरूम पार करके एक बेडरूम के खुले दरवाजे पर पहुंचकर ठिठका यहां भी भीतर की लाइट ऑन थी। कमरे के भीतर झांका। परंतु वहां भी कोई नहीं था।

सैवन इलैवन के होंठ सिकुड़ गए। उसकी निगाह कमरे में फिरने लगी।

इसी कमरे में छोटा-सा बार था। जिसके काउंटर पर एक खुली बोतल पड़ी हुई थी। उसकी पसंदीदा रैड वाइन की बोतल! स्पष्ट था कि उसकी गैरहाजिरी में किसी ने रेड वाइन का मजा लिया है।

सैवन इलैवन दूसरे, फिर तीसरे कमरे में पहुंचा। कोई न मिला।

तभी उसकी निगाह बॉलकनी पर पड़ी जिसका दरवाजा खुला हुआ था। वो दबे पांव बॉलकनी की तरफ बढ़ गया। वहां से समंदर का स्पष्ट नजारा दिखाई देता था। वहां पहुंचकर उसने बाहर झांका। कानों में जहाज के भोंपू की आवाज पड़ी। जो कहीं दूर बज रहा था। दूर कहीं समंदर में टिमटिमाती रोशनी नजर आ रही थी। शायद वो ही जहाज होगा, परंतु सैवन इलैवन की निगाह उस पर टिक चुकी थी।

वो बॉलकनी की रेलिंग से सटी, समुद्र को दिख रही थी। हाथ में रेड वाइन का गिलास था। जिक्र के काबिल खास बात तो ये थी कि वो ब्रा और पैंटी में थी। उसके सिर के बाल कंधों से नीचे तक आ रहे थे। सैवन इलैवन ने मुस्कुराकर गहरी सांस ली और रिवाल्वर वापस जेब में रखकर उसकी खूबसूरती को निहारने लगा। वो उसके पड़ोस में रहती थी।

उसकी खूबसूरत टांगे। मछली के उभार उसकी पिंडलियों पर स्पष्ट नजर आ रहे थे। पीछे को उभरे छोटे-छोटे कूल्हे। पतली कमर। चौड़े कंधे। कुल मिलाकर लाजवाब थी वो। सैवन इलैवन इस शह का स्वाद पहले भी चख चुका था। वो आगे बढ़ा और उसे बाहों के घेरे में लेकर, उसके कंधे को चूमा।

"मेरे फ्लैट की चाबी खो गई है। तुम्हारे फ्लैट का दरवाजा खुला मिला तो यहां आ गई।" वो कह उठी।

"तुम हमेशा के लिए मेरे फ्लैट में क्यों नहीं आ जाती?" सैवन इलैवन उससे सट गया।

"शादीशुदा हूं। इतना ही बहुत है।" वो खिलखिलाई।

"वो कहां गया है?"

"बैंकॉक।"

"तभी तो तुम्हारे फ्लैट की चाबी खो गई।" बातों के दौरान सैवन इलैवन के हाथ और होंठ बराबर चल रहे थे। वो उसके कंधे, गले, पीठ,कान हर जगह चूमता जा रहा था--- "मेरे फ्लैट का दरवाजा कैसे खोला?"

"मेरे पास कई चाबियां हैं। एक लग गई।" बांहों में फंसी वो पलटी। चेहरा सामने आया।

दोनों ने एक-दूसरे को देखा।

वो सच में खूबसूरत थी।

अगले ही पल सैवन इलैवन ने उसके होंठों को अपने होंठों के बीच दबा लिया।

पल भर के लिए दोनों सुलग-से उठे।

वो अलग हुई। दो गहरी सांसें लीं।

"तुम्हारा मिसेज मेहरा के साथ क्या चक्कर चल रहा है?"

"मैंने उसे एक दिन लिफ्ट दी थी।" सैवन इलैवन उसे चूमता कह उठा।

"तुम उसके घर भी गए थे।"

"उसने थैंक्स कहने के लिए मुझे चाय पर बुलाया था।"

"ओह!"

"हां।"

"तब वो अकेली थी घर में?"

"बिल्कुल अकेली।" सैवन इलैवन नीचे झुकता उसके गले पर जा पहुंचा था।

"कुछ किया तुमने उसके साथ?"

"वही किया जो अब हम करने वाले हैं। जब तुम वाइन पी लेती हो तो मुझे बहुत परेशानी होती है।"

"क्यों?"

"जब तक वो उतरती नहीं, तुम मुझे छोड़ती नहीं।"

"मिसेज मेहरा भी वाइन पीती है?"

"मुझे तो तुम्हारा पता है।"

"वो मुझे जरा भी अच्छी नहीं लगती। तुम उससे मिलना छोड़ दो।"

"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो।" सैवन इलैवन का चेहरा अब गले से भी नीचे पहुंच रहा था।

वो हंसी और वाइन का गिलास एक ही सांस में खाली कर दिया।

"सब कुछ नहीं कर दोगे क्या?"

"यहां भी क्या हर्ज है।" सैवन इलैवन ने कहा और उसे लिए नीचे बैठता चला गया।

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रात के 12:30 से।

सैवन इलैवन ने एंथनी के नाइटक्लब में कदम रखा।

वहां भरपूर रौनक थी। ड्रम बज रहा था। युवक-युवतियों की भीड़ नाचने पर आमादा थी। शोर हो रहा था। बार काउंटर पर भी काफी लोग खड़े थे। यहां की हालत देखकर ऐसा लगता ही नहीं था कि बीती रात यहां गोलियां चलीं और दो आदमी मारे गए थे।

सैवन इलैवन ने पास से जाते वेटर की बांह थामी।

"एंथनी किधर मिलेगा?"

"मुझे क्या पता?" कहकर वेटर ने आगे बढ़ना चाहा कि सैवन इलैवन की उंगलियां उसकी बांह पर कस गईं।

वेटर ने हड़बड़ाकर उसे देखा।

"एंथनी!" सैवन इलैवन का स्वर कठोर हो गया।

"तीसरी मंजिल पर अपने ऑफिस में होगा।" वेटर ने कहा।

"मैं उसका दोस्त हूं।" सैवन इलैवन ने मुस्कुराकर कहा और उसे छोड़ कर आगे बढ़ गया।

लिफ्ट के जरिए सैवन इलैवन तीसरी मंजिल पर पहुंचा। वहां एक आदमी जाता दिखा तो सैवन इलैवन ने टोका।

"एंथनी किधर है?"

"वो उसका ऑफिस है।" उसने कहा--- "लेकिन वो उसके साथ वाले कमरे में है।" कहकर वो आगे बढ़ गया।

सैवन इलैवन उस व्यक्ति के बताए अनुसार एक दरवाजे को धकेलकर भीतर प्रवेश कर गया।

ये वो ही स्क्रीनों वाला कमरा था, जहाँ से नाइट क्लब के हर हिस्से पर नजर रखी जा सकती थी। आठ स्क्रीनें सामने रोशन थीं और एंथनी मस्ती भरे ढंग में कुर्सी पर बैठा स्क्रीनों पर नजर दौड़ा रहा था।

दरवाजा खुलते ही एंथनी की नजर घूमी।

भीतर का हाल देखकर सैवन इलैवन ठिठका और कह उठा।

"तो नाइट क्लब के नजारे किये जा रहे हैं।"

"कौन हो तुम और यहां तक कैसे आ पाए?" एंथनी के माथे पर बल पड़े।

सैवन इलैवन पास पड़ी खाली कुर्सी पर बैठता कह उठा।

"यहां के हालात देखकर कोई नहीं कह सकता कि कल यहां गोलियां चली थीं और दो मारे गए थे।"

एंथनी ने सैवन इलैवन को घूरा।

"पुलिस से अच्छी पटती है तुम्हारी, जो आजाद घूम रहे हो।"

"कौन हो तुम?"

"F.I.A. का स्पेशल एजेंट सैवन इलैवन।"

"तुम्हारा मतलब कि 'जिन्न' एंथनी चौंक कर बोला।

"सही समझे।" सैवन इलैवन ने जहरीले स्वर में कहा--- "क्या धंधा चला रहे हो तुम अपने क्लब में?"

"मेरे क्लब में कोई बुरा काम नहीं होता--- मैं...।"

"सब जानता हूं मैं। तुम्हें सफाई देने की जरूरत नहीं।" सैवन इलैवन का स्वर कठोर हो गया।

एंथनी भारी बेचैनी महसूस करने लगा।

"हम सीधे काम की बात करें?" सैवन इलैवन एकाएक मुस्कुराया।

एंथनी का सिर फौरन हिला।

"ये याद रखना कि इस क्लब में क्या-क्या काम होते हैं, मुझसे छिपे नहीं हैं। ज्यादा तमाशा दिखाया तो आधे घंटे में यहां ताला लगवा दूंगा और वो ताला कभी खुलेगा भी नहीं।" सैवन इलैवण बोला--- "R.D.X. को खास जानते हो?"

"न---नहीं...।"

"थोड़ा जानते हो?"

"हां।" एंथनी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"कल धर्मा और एक्स्ट्रा यहां पहले से ही तैयार थे। तुमने उनकी सहायता की, तभी तो वे यहां टिके पड़े थे।"

"मैं उन्हें मना कैसे करता। वे मुझे मार देते।"

"क्या हुआ था कल?"

"कल दोपहर को धर्मा और एक्स्ट्रा मेरे पास आ गए। कहने लगे कि रात राघव ने किसी से मिलना है। उसे खतरा भी हो सकता है इसलिए उस पर पूरी तरह नजर रखने के लिए यहां घेरा डालना है। मैं इंकार कैसे करता?"

"फिर?"

"फिर क्या, शाम को गोलियां चल गईं।"

"मामला क्या था?"

"मुझे नहीं मालूम कि असल बात क्या थी। मैंने तो कठिनता से पुलिस को समझाया कि इस मामले में मेरा कोई मतलब नहीं।"

"नोट भी दिए होंगे।"

"उसके बिना पुलिस वाले कहां समझते हैं।" एंथनी ने बेचैन स्वर में कहा।

"मैं R.D.X. से मिलना चाहता हूं।"

"मुझे नहीं मालूम कि वे कहां होंगे।"

"झूठ--- तुम...।"

"मैं सच कह रहा हूं। भला वे अपना ठिकाना मुझे क्यों बताएंगे।" एंथनी ने जोर देकर कहा।

"सोच लो, क्या तुम अपना क्लब बंद करवाना चाहते...।"

"मेरे पास एक्स्ट्रा का फोन नंबर है। फोन पर बात कर लो उससे।" एंथनी ने कहा।

"कराओ।"

एंथनी ने उसी पल फोन निकाला एक्स्ट्रा का नंबर मिलाया। उधर बेल जाने लगी।

"तुम बहुत जल्द बुरे फंसोगे।" सैवन इलैवन बोला।

"तुम जो कह रहे हो, वो कर तो रहा हूं मैं।" एंथनी आहत भाव से बोला।

"अपने धंधे की वजह से फंसोगे। तुमने अपने क्लब को नशेड़ियों का ठिकाना बना रखा है।"

"थोड़ा-बहुत तो चलता है, इतना नहीं जितना कि तुम कह रहे...।"

"बोल एंथनी?" उसी पल एक्स्ट्रा की आवाज कानों में पड़ी।

"ये जरा बात करो।" कहकर एंथनी ने फोन सैवन इलैवन की तरफ बढ़ाया।

फोन लेकर सैवन इलैवन ने बात की।

"मैं F.I.A. का स्पेशल एजेंट सैवन इलैवन हूं।" सैवन इलैवन बोला।

"सेवा बताओ।" उधर से एक्स्ट्रा का स्वर कानों में पड़ा।

"तुमने F.I.A. के साथ झगड़ा मोल ले लिया है।"

"F.I.A. ने गलत खेल खेला। वो...।"

"मानता हूं। कभी-कभी कुछ काम गलत भी हो जाते हैं। राघव और तीरथ तुम्हारे पास है?"

"हां। मन्नू को तुम लोगों ने मार दिया।"

"तुमने भी F.I.A. के दो एजेंट मारे।"

"न मारता तो वो राघव को मार देते।"

"लेकिन इतना तो जानते हो कि तुममें से कोई भी F.I.A. से मुकाबला नहीं कर सकता।"

"तुम शिक्षा देने वाली बातें मत करो।"

"तुली भी तुम लोगों के पास है?"

"हां। उसे गोली लगी है, परंतु वो मरेगा नहीं। तुमने यही बात करने के लिए फोन किया?"

"मैं सब कुछ ठीक करने की चेष्टा कर रहा हूं। मैं C.I.A. से नहीं डरता।"

"आगे कहो।"

'जो हुआ उसे भूल जाओ। तुम लोगों को F.I.A से डरने की जगह की जरूरत नहीं।"

"फंसा रहे हो हमें कि तुम्हारी बात मानकर यहां से बाहर निकलें और तुम लोग...।"

"मेरी बात में कोई चाल नहीं है।"

"तुम्हारी बात विश्वास करने के लायक नहीं है। कोई भी तुम्हारी बात नहीं मानेगा।"

"मान लो। मैं सच कह रहा हूं।" सैवन इलैवन ने कहा।

"तुम हमारी जगह पर होते तो मान जाते?"

"शायद नहीं।"

"तो हम कैसे मान सकते हैं।"

"मेरी बात माननी ही पड़ेगी, वरना कब तक F.I.A. से भागते रहोगे। जबकि अब F.I.A. तुम्हें तलाश नहीं कर रही।"

"जो भी सच है, हमें पता चल जाएगा।"

"मुझे सिर्फ इस बात का वादा चाहिए कि C.I.A. के सामने कोई मुंह नहीं खोलेगा।"

"पहले भी कोई ऐसा नहीं कर रहा था।"

"बीते दिन में तुममें से ही किसी ने माईक से बात की है।" सैवन इलैवन ने कहा।

"नहीं।"

"ये सच है।"

"मैं नहीं जानता। मन्नू अब मर चुका है। राघव माईक से नहीं बात करेगा। तीरथ के बारे में कुछ नहीं कह सकता।"

"तुली से बात कराओ।"

"वो नींद में है। मैं उसे नहीं लगाना चाहता।"

"अभी वो सोया नहीं हो सकता। तुम उससे मेरी बात नहीं कराना चाहते।"

"कुछ भी समझो। अभी तो हमें तुम्हारे इस फोन का मतलब निकालना है कि तुम क्या चाहते हो?"

"मैं सब कुछ शांत कर देना चाहता हूं। ये मामला इतना बड़ा नहीं है जितना कि बना दिया गया है।"

"अपने उन लोगों से बात करो जिन्होंने सबको मारना चाहा।"

"वो भी अपनी जगह पर ठीक थे। बड़े ओहदों पर बैठकर फैसले लेना आसान नहीं होता। जो हुआ उसे याद मत रखो। मैं तुमसे कल बात करूंगा। इतना याद रखो कि F.I.A. तुम लोगों को भूल चुकी है।"

"यकीन नहीं होता।"

"मुझ पर यकीन कर लो।"

"सैवन इलैवन हो तुम है?"

"हां।"

"ये सैवन इलैवन यानी कि 711 क्या है?"

"F.I.A. के एजेंट का नंबर है।"

"तुम्हारा नाम क्या है?"

"तुम मुझे सिर्फ सैवन इलैवन के नाम से जानोगे। नाम जानने की जरूरत नहीं। अब सब ठीक है। ये ही कह रहा हूं बार-बार।"

एक्स्ट्रा की तरफ से आवाज नहीं आई।

"अगर तुम लोग मुझसे एक मुलाकात कर लो तो ज्यादा बेहतर रहेगा।"

"मेरा दिमाग खराब नहीं है जो F.I.A. के एजेंट से इन हालात में मिलने की सोचूं।" एक्स्ट्रा की आवाज उसके कानों में पड़ी।

सैवन इलैवन मुस्कुरा पड़ा।

तब तक एक्स्ट्रा ने उधर से फोन बंद कर दिया था।

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