मैंने मनोज माथुर का नाम लिया ।
मालूम हुआ कि छोटे मालिक घर पर नहीं थे ।
आखिर में मैंने सुधा माथुर से बात करनी चाही तो मुझे एक और नंबर बता दिया गया ।
मैंने वो नया नंबर डायल किया तो सुधा माथुर से मेरी बात हुई ।
“सुधा जी ।” अपना परिचय देने के बाद मैं बोला, “मैं दरअसल मनोज से बात करना चाहता था । आप बता सकती हैं कि वो इस वक्त कहां मिल सकता है ?”
“किसी डिस्को में होगा ।” जवाब मिला, “शाम को तकरीबन ऐसी ही जगहों पर जाता है वो ।”
“डिस्को तो शहर में कई हैं । सबका चक्कर लगाने में तो रात बीत जाएगी ।”
“शुरूआत अब्बा से कर के देखो । उसके वहां होने के ज्यादा चांसेज हैं । अब्बा डिफेंस कालीनी में...”
“मुझे मालूम है कहां है । घर कब लौटता है वो ?”
“आधी रात के बाद । कभीर कभार तो सुबह चार बजे । यहां आके उसका इंतजार करना बेकार होगा ।”
“ओह !”
“बात क्या है ? क्यों मिलना चाहते हो उससे ?”
“कोई खास वजह नहीं । यूं ही मालूमात की खातिर । तकलीफ माफ सुधा जी । गुड़ नाइट ।”
मैंने एक ऑटो पकड़ा और डिफेंस कालोनी के लिए रवाना हो गया ।
मैं पहुंचा पडारा रोड ।
मंदिर मार्ग से रवाना मैं डिफेंस कालोनी जाने के लिए हुआ था लेकिन इण्डिया गेट के राउंड अबाउट पर पहुंचने पर ही मेरा इरादा डिसूजा के घर झांकने का बना था ।
वो अपने घर पर मौजूद था ।
मैंनै भाड़ा चुकाकर ऑटो को विदा कर दिया ।
डिसूजा कोई तीस-बत्तीस साल का विलायती पाप सिंगरों जैसे रख-रखाव वाला नौजवान था, जो एक कान में बाली पहनता था और माइकल जैक्सन की तरह अपने झबेदार बालों में से एक कुंडल अपने माथे पर लटका के रखता था । मुझे उसकी आंखों में काजल और होंठों पर लिपस्टिक की हल्की-सी परत तक दिखाई दी । अपनी दोनों नंगी बांहों पर उसने छत्तीस तरह के गोदने गुदवाए हुए थे ।
मैंने उसे अपना परिचय दिया ।
उसने खामोशी से मेरे से हाथ मिलाया और एक फोल्डिंग चेयर खोलकर उस पर मुझे बिठाया ।
“कहां गायब रहे सारा दिन ?” मैंने बड़े आत्मीयतापूर्ण स्वर में पूछा, “सुजाता भी तुम्हारी फिक्र कर रही थी ।”
“लाकअप में बंद था ।” वो बोला, “अभी छूटा एक घंटा पहले ।”
“लाकअप में ।” मैं हैरानी से बोला, “कहां ?”
“तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन ।”
“क्या किया था ?”
“पी के गाड़ी चलाता था । ड्रंकन ड्राइविंग । बलडी होल नाइट लाकअप में कटा । आज भी पैसा देकर छूटा । बहुत डिफीकल्टी हुआ ।”
“कितनी पी ली थी ?”
“वन बाटल । देट्स आल । ज्यास्ती नहीं ।”
“पकडे क्यों गए ?”
“ट्रैफिक पोलीस वाला पकड़ा । बोला गाड़ी ठीक नहीं चलाता । एक्सीडेंट करना मागता ।”
“ट्रैफिक पुलिस वाले तो चालान करके छोड़ देते हैं ।”
“नशे में मैं कुछ लफड़ा किया ।”
“ओह ! तुम्हें मालूम है शशिकांत का कत्ल हो गया है ?”
उसके चेहरे पर हैरानी के बड़े जेनुइन भाव आए ।
“कब !” - उसके मुंह से निकला ।
“कल रात को । कोई साढ़े आठ बजे ।”
“कौन किया ?”
“अभी पता नहीं चला । पुलिस की तफ्तीश जारी है । मेरी असाइनमेंट भी कातिल का पता लगाने की ही है ।”
“ओह !”
“पुलिस को ये खबर लगे बिना नहीं रहने वाली कि कल शाम तुम भी शशिकांत की कोठी पर गए थे । उनका बुलावा भी बस आता ही होगा तुम्हें । इसलिए बेहतर यही होगा कि अपने बयान का मेरे साथ रिहर्सल कर लो ।”
“बयान !”
“जो तुम्हें पुलिस को देना होगा ।”
“ओह !”
“तुम्हारी सुजाता से सात बजे की अपोइंटमेंट थी, लेट कैसे हो गए थे ?”
“कार की वजह से ।”
“क्या मतलब ?”
“मेरे पास मोटरसाइकल है । कल मैं एक फ्रेंड का कार उधारी मांगा । फ्रेंड शाम को कार तो दिया - प्रॉमिस था - पर उसमें पैट्रोल कम था । पंप पर पेट्रोल डलवाने में बीस मिनट वेस्ट द्रुआ । क्लोजिंग का टाइम था । कुछ रश था । पैट्रोल ही लेट किया मेरे को । सात बजे उधर मैटकाफ रोड़ पहुंचने का था बट शाम सात बजे से पंदरह मिनट ज्यास्ती पर पहुंचा । मैं उधर उसकी कोठी के कम्पाउंड में क्या घुस गया, ब्लडी वास्टर्ड मेरा फुल इनसल्ट करके रख दिया । मैं ब्लडी कोठी में तो कदम भी न रखा । बोला, कम्पाउंड भी काहे एंट्री किया । बहुत इन्सल्ट हुआ मेरा । वो तो मिस्टर खेतान मेरे को बोला कि सुजाता उधर से चली गई थी और मेरे को उसे बाहर रोड पर कहीं देखने का था ।”
“तुम खेतान को, पुनीत खेतान को जानते हो ?”
“यस ।”
“कैसे ?”
“मैन, वो शशिकांत का लीगल एडवाइजर है । जब नाईट क्लब ओपन था तो वो उधर राजेंद्र प्लेस में आता था । सैवरल टाइम्स ।”
“फिर आगे क्या हुआ ?”
“मैं उधर कोठी से बाहर निकलकर रोड पर आया । मैं रोड पर देखा, बस स्टैंड पर देखा, रोड के दोनों कॉर्नर तक देखा बट, यू सी, सुजाता उधर किधर भी मेरे को नहीं मिली । या मेरे को दिखाई नहीं दी ।”
“उसे मालूम था तुम आने वाले हो । वो तो सात बजे ही कोठी से बाहर निकल आई थी । अगर वो तुम्हारी ही राह तकती वहां मौजूद थी तो उसे तो तुम आते दिखाई देने चाहिए थे ?”
“मैं भी ऐसा सोचा । मेरे को ऐसा फीलिंग है कि वो मेरे को कार पर एक्सपेक्ट नहीं करती थी । उसको मेरी मोटर बाइक मालूम । शी मस्ट बी आन दि लुक आउट फार ए मोटर बाइक । मैं उधर कार में गया । सो, कन्फ्यूजन ।”
“हो सकता है । सुजाता तुम्हें मैटकाफ रोड पर न मिली तो फिर तुमने क्या किया ?”
“मेरे को ब्लडी बहुत एजिटेशन हुआ । ब्लडी खुद बुलाया मेरे को और वेट नहीं किया ।”
“तुम टाइम पर जो नहीं आए थे ।”
“ओनली फिफटीन मिनट्स लेट था मैं ।”
“ऊपर से शशिकांत से उसका तीखा झगड़ा हो गया था । वैसा कुछ न हुआ होता तो तुम और भी लेट आते तो वो वहीं होती । झगड़े की वजह से ही गुस्से से आग-बबूला होकर वो एकाएक वहां से चली गई थी ।”
“आई अंडरस्टैंड नाओ । बट ऐट दैट टाइम आई वाज वैरी अपसेट ।”
“फिर जब वो मैटकाफ रोड पर न मिली तो तुमने क्या किया ?”
“मै सोचा कि उधर से वो किधर जाएगी तो अपना होस्टल में जाएगी । मैं मंदिर मार्ग पहुंचा । वो उधर पहुंची ही नहीं थी ।”
“तो ?”
“मैन, आई वाज गेटिंग मैड ।”
“वाई ?”
“आई वाज स्टुड अप ।”
“तुमने ऐसा सोचा कि शायद वो जानबूझकर तुम्हें अवायड कर रही थी, वो तुम्हारे साथ डेट फिक्स कर बैठी थी और फिर ऐन मौके पर तुम्हारे साथ शाम बिताने का उसका इरादा बदल गया था ?”
“एग्जेक्टली । यू सैड इट, मैन । मैं ऐग्जेक्टली ये ही सोचा । तब मेरे को लगा कि वो उधर कोठी में ही थी और उसी के बोलने पर शशि मेरे को उलटा-सीधा बोलकर उधर से भगाया और वो खेतान मेरे को बोला कि वो बाहर रोड पर कहीं होगी ।”
“फिर ?”
“फिर मैं कार में ही बैठकर व्हिस्की का बाटल खोला और दो-तीन ड्रिंक लिया । फिर मैं बैक मैटकाफ रोड गया ।”
“क्यों ?”
“मेरे को कनफर्म होना मांगता था कि सुजाता उधर थी या नहीं । मैन आई वांटिड टु क्रियेट ए सीन देयर । मैं उधर जबरदस्ती घुसना मांगता था और सुजाता को उधर देखना मांगता था ।”
“किया ऐसा तुमने ? घुसे तुम जबरन भीतर ?”
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“क्यों ?”
“मेरे से पहले उधर अपनी फेमस लाल मारुति पर पिंकी माथुर पहुंच गई ।”
“फेमस लाल मारुति ?”
“यस, मैन । ब्लडी जितने का कार, उससे ज्यादा का असेसरी । ऐवरीबॉडी नोज ।”
“तुम पिंकी माथुर को जानते हो ?”
“मैं पहचानता ।”
“कैसे ?”
“शशि का नाइट क्लब जब ओपन तो वो उधर रेगुलर आती । हर कोई पहचानता उसे । फेबुलस फैमिली बैकग्राउंड । रोटन हैबिट्स । बैग्ज ऑफ मनी टु स्पेंड । यु नो दि टाइप ।”
“यस ।”
“ऐवरी बॉडी इज आफ्टर सच चिक्स ।”
“आई नो । वो अपनी लाल मारुति पर वहां पहुंची । फिर ?”
“वो कार बाहर पार्क किया और कम्पाउंड में एंटर किया । फिर वो कोठी के मेन गेट पर पहुंची, डोर को ओपन किया और इनसाइड एंटर कर गया । मैं समझ गया कि सुजाता भीतर नहीं थी ।”
“वो कैसे ?”
“मैन, शशि एक छोकरी की प्रेजेंस में दूसरी छोकरी को नहीं बुलाना सकता ।”
“दूसरी छोकरी बिन-बुलाए आई हो सकती थी !”
“ऐसा होता तो वो बैल करती । आयरन गेट से नहीं तो इन साईड कोठी के मेन गेट से बैल करती । होस्ट दरवाजा खोलता, कम इन बोलता तो एंट्री लेती । पिंकी तो ऐसा कुछ नहीं किया ।”
ये महज इत्तफाक था कि पिंकी ने ऐसा कुछ नहीं किया था लेकिन जो कुछ डिसूजा ने देखा था, उसके मुताबिक उसने जो नतीजा निकाला था वो गलत नहीं था ।
“फिर ?” प्रत्यक्षत: मैं बोला ।
“फिर मै उधर से मूव कर गया” वो बोला, “और बैंगलो रोड पहुंचा जिधर मेरी एक और लेडी फ्रेंड होती । ब्लडी बैड लक कि वो भी नहीं मिली । फिर मैं ब्लडी व्हिस्की बाटल को ओपन किया और फुल बाटल कंज्यूम किया । बैक इधर आ रहा था तो तिलक मार्ग पर पुलिस पकड़ लिया । ड्रंकन ड्राइविंग में होल नाइट लाकअप में ब्लडी होल डे लाकअप में । पैसा दिया तो छूटा । वाट लक ! वाट लाउजी लक !”
“च.. .च ।” मैंने हमदर्दी जताई ।
“एंड नाओ मैन” उसने जोर से जम्हाई ली, “इफ यू डोंट माइंड ।”
“ओह नो । नाट ऐट आल ।आई एम थैंकफुल टू यू फॉर युअर कोआपरेशन ।”
“नैवर माइंड । मेक दि सीन सम अदर टाइम । यू आर मोस्ट वेलकम ।”
वो मुझे दरवाजे तक छोड़ने आया ।
“मैन ।” वहां एकाएक वह बोला, “युअर फेस...”
“क्या हुआ मेरे चेहरे को ?” मैं अपने मुंह पर हाथ फेरता हुआ बोला ।
“हुआ कुछ नहीं । बट... यू नो...एकदम शशि का माफिक लगता है । लाइक डबल-रोल ।”
“ओह !” मैं हंसा, “तो आखिरकार सूझ गया तुम्हें !”
“सूझा तो पहले भी बट...बोला अब ।”
“इत्तफाक की बात है ।” मैं बोला और उससे हाथ मिलाकर वहां से विदा हो गया ।
***
मैं अब्बा पहुंचा ।
वो मेरी जानी-पहचानी जगह थी । उसकी आधी ग्रीक आधी हिंदोस्तानी हसीनतरीन बेली डांसर, पार्टनर सिल्विया ग्रेको से मेरी पुरानी वाकफियत थी । हजरात भूले न हों तो सिल्विया ग्रेको वही मेमसाहब हैं आप के खादिम इस पंजाबी पुत्तर ने मलिका के ताज वाले केस के दौरान जिन्हें बाकायदा चैलेंज करके उनकी मर्जी के खिलाफ उन्हें हासिल करके दिखाया था । उस केस में यूअर्स ट्रूली ने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि सिल्विया ग्रेको खुद चलकर मेरे साथ सोने आई थी । तब खाकसार ने अपने फ्लैट के बैडरूम में उसका जैसा निर्वसन बैली डांस देखा था, वैसा शायद ही कभी किसी को देखना नसीब हुआ होगा ।
अब्बा का दूसरा पार्टनर नरेंद्र कुमार भी मेरा जिगरी यार था लेकिन वो साइलेंट पार्टनर था और वहां कभी-कभार ही आता था ।
अब्बा डिफेंस कालोनी की एक दोमंजिला इमारत में स्थापित था जिसके ग्राउंड फ्लोर पर डिस्कोथेक था और पहली मंजिल पर सिल्विया का आवास था ।
अब्बा में आपके खादिम की कितनी पूछ थी, उसका ये भी सबूत था कि खुद फ्लोर मैनेजर ने आकर मुझे रिसीव किया ।
“मैडम कहां है ?” मैंने पूछा ।
“'ऊपर हैं ।” मैनेजर बोला, “मैं खबर कर देता हूं ।”
“कोई जल्दी नहीं । आराम से करना । मैं यहां ठहरूंगा थोड़ी देर ।”
“यू आर वैलकम, सर ।”
“मनोज माथुर को जानते हो ? वो फ्लैग स्टाफ रोड वाले के बी माथुर साहब का लड़का और .....”
“मैं जानता हूं सर ।”
“पहचानते भी हो ?”
“यस, रेगुलर पैट्रन है यहां का ।”
“इस वक्त है यहां ?”
“यस, सर । है ।”
“मैं नहीं पहचानता उसे । चुपचाप बताओ कहां है !”
उसने डांस फ्लोर के एक कोने के साथ लगी एक मेज की ओर इशारा किया जहां कि वो दो निहायत खूबवसूरत, नौजवान, जींसधारी हसीनाओं के साथ बैठा बतिया रहा था और ठहाके लगा रहा था ।
“सर” मैनेजर बोला, “कोई ड्रिंक...”
“अभी नहीं । बाद में । थैंक्यू सो मच फॉर नाओ ।”
वो अभिवादन करके परे हट गया ।
सीधे मनोज की टेबल पर पहुंचने की जगह मैंने रंगं-बिरंगी रोशनियों से जगमगाते, धुएं और शोर से भरे हॉल में एक चक्कर लगाया ।
मुझे दो और परिचित चेहरे दिखाई दिए ।
पुनीत खेतान डांस फ्लोर से थोड़ा परे बिछी टेबल पर एक सुंदर युवती से घुट-घुटकर बातें कर रहा था । दोनों के सामने ड्रिंक्स के गिलास थे ।
हॉल के एक बिल्कुल ही अलग-थलग कोने में एक मेज पर माथुर का प्राइवेट सैक्रेट्री नायर अकेला बैठा था । वो खामोशी से व्हिस्की चुसक रहा था और सिगरेट पी रहा था । डांस फ्लोर पर विलायती बैंड की धुनों पर थिरकते नोजवान जोड़ों में उसकी कोई दिलचस्पी मालूम नहीं होती थी ।
अब्बा वास्तव में एक थ्री-इन-वन जगह थी । वो डिस्को भी था, नाइट क्लब भी था और कैबरे जायंट भी था । यही वजह थी कि वहां के पैट्रन मनोज माथुर जैसे नौजवान भी थे, नायर जैसे उम्रदराज व्यक्ति भी थे और दोनों के बीच की उम्र वाले पुनीत खेतान जैसे व्यक्ति भी थे ।
मैंने घड़ी पर निगाह डाली । पौने नौ बजे थे । मुझे मालूम था कि नौ बजे डिस्को प्रेमी युवक युवतियों से डांस फ्लोर खाली करा लिया जाता था और फिर वहां एक घंटे के लिए कैब्रे कलाकारों की परफारमेंस चलती थी जिसे सिल्विया ग्रेको खुद इंट्रोड्यूस करती थी । दस से साढ़े ग्यारह बजे तक फिर डिस्को का शोर-शराबा चलता था और फिर कैब्रे की रात की आखिरी परफारमेंस होती थी । सिल्विया ग्रेको का बैली डांस देखना हर किसी को नसीब नहीं होता था । वो केवल आमंत्रित मेहमानों के सामने आधी रात के बाद होता था, पहले होता था तो पहली मंजिल पर होता था जहां हर किसी का आना-जाना संभव नहीं था ।
फ्लोर मैनेजर फिर मेरे करीब आया ।
“मैंने आपके लिए टेबल अरेंज कर दी है ।” वो बोला ।
“मैंने सहमति में सिर हिलाया और उसके साथ हो लिया । मैं नायर की टेबल के करीब से गुजरा तो मैंने एक गुप्त इशारा उसकी ओर किया ।
“इसे भी जानते हो ?” मैं दबे स्वर में बोला ।
“इसका नाम नायर है ।” मैनेजर ने बताया, “माथुर इंडस्ट्रीज में किसी ऊंचे औहदे पर बताता है अपने आपको ।”
“मालिक का प्राइवेट सैक्रेट्री है ।”
“आप भी जानते हैं इसे ?”
“हां । रोज आता है यहां ?”
“रोज तो नहीं, अलबत्ता हफ्ते में तीन-चार बार तो आता ही है ।”
“डिस्को में फिट बैठने वाली तो इसकी उम्र नहीं । कैब्रे का शौकीन होगा ।”
“डांस का नहीं” मैनेजर बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला, “डांसरों का । उनके नंगे जिस्मों के दर्शनों का ।”
“वो क्या प्राब्लम है ?”
“डांस फ्लोर पर नहीं, सर ।”
“तो ?”
“डांसरों के ड्रैसिंग रूम्स में । पता नहीं कैसा आदमी है ! कपड़े उतारती और कपड़े पहनती औरत का नजारा करके खुश हो जाता है । नाममात्र के तो कपड़े पहनकर कैब्रे डांसर फ्लोर पर आती है । लेकिन उसे देखकर इसको मजा नहीं आता है । इसको मजा आता है ये देखकर कि वो अपनी रोजमर्रा की पोशाक उतारकर उस कास्ट्यूम वाली स्टेज तक कैसे पहुंचती है और उस कास्ट्यूम को उतारकर अपनी रोजमर्रा की पोशाक कैसे पहनती है !”
“कमाल है !”
“मेंटल मालूम होता है, सर । लड़की फ्लोर पर कैब्रे कर रही होती है तो उसकी तरफ आंख नहीं उठाता । वो अपने ड्रेसिंग रूम में चेंज के लिए जाती है तो उससे पहले जाकर वहां छुप के बैठ जाता है ।”
“लड़की को पता नहीं लगता ?”
“आज तक तो लगा नहीं ।”
“लेकिन वो लेडीज के ड्रेसिंग कम में पहुंच कैसे जाता है ?”
“यहां के किसी वेटर की मेहरबानी से । सौ रुपए वेटर को देता है । पचास रुपए अटेंडेंट को । उसका काम बन जाता है ।”
“और तुम्हें ये बात मालूम है ।”
“हार्मलेस गेम है सर, किसी का कुछ नहीं बिगड़ता । स्टाफ चार पैसे कमा लेता है ।”
“लेकिन....”
“सर, जितने पैसे वेटरों को देता है, उतने वो कैब्रे डांसर को दे तो वो वैसे ही उसके सामने नंगी खड़ी हो जाए ।”
“फिर भी किसी को एतराज हो सकता है । कोई ऐसी तांक-झांक को नापंसद कर सकती है ।”
“पता लगेगा तो वो नौबत आएगी न, सर !”
“कभी आ गई वो नौबत तो ?”
“तो पकड़ के इसकी खातिर कर देंगे ।”
“बहुत बेइज्जती होगी बेचारे की ।”
“हमें क्या ! वैसे ऐसी नौबत न ही आए तो अच्छा है ।”
“आज आएगी ।”
“जी !”
“ये जब ड्रेसिंग रूम में जा छुपे तो मुझे खबर करना ।”
“सर !”
“डू ऐज आई से ।”
“यस, सर ।”
मैं एक टेबल पर पहुंचा । टेबल पर रिजर्वड की तख्ती रखी हुई थी जिसे मेरे बैठते ही मैंनेजर ने वहां से उठा लिया ।
“मैं बैठ गया । मैंने डनहिल का एक सिगरेट सुलगा लिया ।
फिर जैसे जादू के जोर से । ड्रिंक का एक गिलास मेरी कोहनी के करीब प्रकट हुआ ।
“मनोज माथुर के पास मेरा कार्ड ले जाओ ।” मैंने अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मैनेजर को सौंपा, “उसे बोलो मैं एक मिनट के लिए उससे मिलना चाहता हूं । पूछो वो यहां आता है य मैं उसकी टेबल पर आऊं ?”
मैनेजर सहमति में सिर हिलाता चला गया ।
दो मिनट बाद वो वापस लौटा ।
“आपको बुला रहा है ।” उसने बताया ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और सिगरेट और ड्रिंक संभाले उठ खड़ा हुआ ।
तत्काल वेटर ने रिजर्वड वाली तख्ती वापस मेरी मेज पर रख दी ।
मैं मनोज माथुर की मेज पर पहुंचा ।
“हल्लो !” जींसधारी बालाओं को नजरअंदाज करके मैं उससे संबोधित हुआ, “बंदे को सुधीर कोहली कहते हैं ।”
“प्लीज सिट डाउन, मिस्टर कोहली ।” वो सुसंयत स्वर में बोला ।
“थैंक्यू ।” मैं चौथी, खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
“वाट डु वांट, मिस्टर कोहली ?”
“मैं आज आपके पापा से मिला था । उन्होंने आपसे मेरा जिक्र किया होगा ।”
“मेरी आज डैडी से मलाकात नहीं हुई ।”
“दैट्स टू बैड । बहरहाल मेरा पेशा क्या है, ये आपने मेरे कार्ड पर पढ़ा ही होगा । आगे मैं बता देता हूं कि उन्होंने मुझे रिटेन किया है ।”
“अच्छा ! उन्हें प्राइवेट डिटेक्टिव का सेवाओं की क्या जरुरत पड़ गई ?”
“ये सवाल जरा नाजुक है ।” मैं एक उड़ती निगाह युवतियों पर डालता हुआ बोला, “मिक्सड कम्पनी में इसका जवाब देना मुनासिब नहीं होगा ।”
“नैवर माइंड । आई विल आस्क डैडी ।”
“जरूर ।”
“मेरे से क्या बात करना चाहत थे आप ?”
“मैं आपसे सिर्फ एक सवाल पूछना चाहता हूं ।”
“पूछिए ।”
“आपको शशिकांत के कत्ल की खबर है ?”
“है ।” वो नि:संकोच बोला ।
“कैसे ?”
“इसका जवाब” वो मुस्कराया और उसने अपनी सहेलियों की तरफ हाथ हिलाया, “मिक्स्ड कम्पनी में देना मुनासिब न होगा ।”
“आप शशिकांत को जानते थे ?”
“सिर्फ नाम से वाकिफ था ।”
“नाम से कैसे वाकिफ थे ?”
“वो मेरी सौतेली मां का कोई दूरदराज का रिश्तेदार होता था ।”
“कभी मुलाकात हुई आपकी उससे ?”
“न । कभी नहीं ।”
“कल शाम को भी नहीं ?”
“मिस्टर कोहली, कभी नहीं में क्या कल शाम शामिल नहीं होती ?”
“मुलाकात हुई न सही लेकिन होने तो वाली थी ! कल शाम साढ़े आठ बजे !”
“कौन कहता है ?”
“अभी तो मैं ही कहता हूं ।”
“गलत कहते हो ।”
“कल शाम चार बजे आपकी उससे फोन पर बात नहीं हुई ?”
“नहीं हुई । मैं भला क्यों फोन करूंगा उसे ?”
“उसने आपको किया हो ?”
“नो । नेवर ।”
“आपकी उससे फोन पर कोई बात नहीं हुई ? आपने उसे फोन पर ये नहीं कहा कि अगर आपको उसके घर जाना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगे ?”
“कहां बहक रहे हो, मिस्टर कोहली ! जब मैं कह रहा हूं कि...”
“आप ऐसे किसी वार्तालाप से इंकार करते है ?”
“हां । सरासर इंकार करता हूं ।”
“बहुत मुमकिन है, यही सवाल आपसे पुलिस भी पूछे ।”
“चाहे फौज पूछे । मेरा जवाब यही होगा ।”
“आपके पापा के पास एक बाइस कैलीबर की, हाथी दांत की मूठ वाली रिवॉल्वर है जिसका सीरियल नम्बर डी- 241436 है ।”
“होगी ।” वो लापरवाही से बोला, “मुझे फायरआर्म में कोई दिलचस्पी नहीं ।”
“हाल ही में आपने उस रिवॉल्वर को हैंडल किया था ?”
“शशिकांत को शूट करने के लिए ?” वो ठठाकर हंसा ।
“हां ।” मैं जिदभरे स्वर में बोला ।
“बड़े ढीठ हो, यार ! फिर वहीं पहुंच गए !”
“जवाब दीजिए ।”
“अरे, मैंने कभी डैडी के गन कलेक्शन की ओर झांका तक नहीं । मैंने आज तक अपने हाथ में कभी कोई रिवॉल्वर पकड़कर नहीं देखी । मैं कैलीबर नहीं समझता । मैं पिस्तौल और रिवॉल्वर में फर्क नहीं समझता । मैं ये भी आज ही सुन रहा हूं कि फायरआर्म पर सीरियल नम्बर भी होते हैं ।”
“आप...”
“देखो, मेरे भाई । शाम का वक्त है । सारा दिन ऑफिस के काम में माथा फोड़ने के बाद मैं तफरीह के लिए यहां आया हूं । इसीलिए तुम भी यहां आए होंगे । अब क्यों रंग मैं भंग डाल रहे हो सिरफिरी, बेमानी, वाहियात बात करके ? अब क्यों चाहते हो कि मुझे अफसोस होने लगे कि मैंने तुम्हारे से मिलने के लिए हामी भरी ?”
“नहीं चाहता । तकलीफ की माफी ।” मैं उठ खड़ा हुआ, “मैं इजाजत चाहता हूं ।”
“अरे बैठो । एनजाय करो । हमारे साथ ड्रिंक लो । लेकिन वो किस्सा छोड़ो ।”
“थैंक्यू । ड्रिंक्स फिर कभी । और अगर जरूरत पड़ी तो वो किस्सा भी फिर कभी ।”
“तौबा !” वो वितृष्णापूर्ण स्वर में बोला, “अभी भी फिर कभी ।”
“जनाब, ये एक काम है जो आपके डैडी ने मुझे सौंपा है । आप इससे तौबा कर सकते हैं, मैं नहीं कर सकता । मेरी रोजी-रोटी का सवाल है । बहरहाल नमस्ते ।”
मैं वहां से हट गया ।
मैं पुनीत खेतान की टेबल पर पहुंचा ।
“हल्लो !” मैं मुस्कराकर बोला ।
पुनीत खेतान ने सिर उठाकर मेरी तरफ देखा ।
“ओ, हल्लो वो बोला, “कमाल है, भई । चंद घंटों में तीन बार मुलाकात हो गई ।”
“पहली तो यूं ही हड़बड़ी भरी मुलाकात थी ।” मैं बोला, “तीसरी तो अभी होगी । जायकेदार मुलाकात तो दूसरी ही थी ।”
उसके नेत्र सिकुड़े ।
“बैठो ।” वह बोला ।
“थैंक्यू ।” मैं एक खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
मीट माई फ्रेंड । निशा ।” वह बोला फिर वह युवती की ओर घूमा, “डार्लिग, ये कोहली है, सुधीर कोहली । फेमस डिटेक्टिव है । प्राइवेट ।”
हम दोनों में हल्लो का आदान-प्रदान हुआ ।
“मैंने” फिर मैं बोला, “रंग में भंग तो नहीं डाला ?”
युवती के तेवरों से साफ लगा कि मैंने रंग में भंग ही डाला था लेकिन खेतान तत्काल चहककर बोला, “नहीं, नहीं । ये तो जा रही हैं ।”
युवती ने सकपकाकर उसकी तरफ देखा ।
“ठीक है न डार्लिंग !” वह बोला, “लेकिन आज जाना तुम्हें खुद पड़ेगा । ये लो” उसने पर्स निकाला और सौ-सौ के कुछ नोट जबरन उसकी मुट्ठी में ठूंसे, “टैक्सी कर लेना । और कल फोन करना ।”
युवती उठी और भुनभुनाती हुई वहां से रुखसत हो गई ।
“ड्रिंक मंगाते हैं,” वो बोला ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया ।
उसने एक वेटर को इशारा किया । उसने वेटर को मुट्ठी मे एक पचास का नोट खोंसा और बोला, “ये तुम्हारी एडवांस टिप । एक मिनट में ड्रिंक लाओ ।”
वेटर जैसे जादू के जोर से वहां से गायब हुआ ।
“वो लड़की “ मैं बोला, “आपकी फ्रेंड । दिल्ली में नहीं रहती ?”
“दिल्ली में ही रहती है ।” वो बोला, “क्यों ?”
“टैक्सी के किराए की वजह से पूछा जो कि आपने उसे दिया । वो तो देहरादून पहुचने के लिये काफी था ।”
वो हो-हो करके हंसा ।
तभी वेटर ड्रिंक सर्व कर गया हम दोनों ने चियर्स बोला । “वहां, बाराखम्बा” फिर मैं सहज स्वर में बोला, “मदान के आने तक तो रुके ही होंगे आप ?”
“नहीं । मैं पहले चला गया था ।” उतने बड़ी संजीदा शक्ल बनाकर मेरी ओर देखा, “कोहली, कुछ उलटा-सीधा मत सोचना ।”
“किस बाबत ?” मैं जानबूझकर अनजान बनता हुआ बोला ।
“तुम्हें मालूम है । सोचना तो जो सोचना उसे दिल में रखना । मदान के आगे कुछ अनाप-शनाप न बोल देना ।”
“हुक्म दे रहे हो ?”
“दरखास्त कर रहा हूं ।”
“एक शर्त पर तुम्हारी दरख्वास्त कबूल हो सकती है ।”
“क्या ?”
“अपनी जुबानी कबूल करो कि मदान की बीवी से तुम्हारा अफेयर है ।”
“भई, मैं उसे मदान से भी पहले से जानता हूं । अब हर पुरानी जानकारी कोई अफेयर ही तो.....”
“फुंदनेबाजी छोड़ो । तुम उसे उसकी पैदाइश के वक्त से जानते हो लेकिन आज की तारीख में वो तुम्हारे से फंसी हुई है । कबूल करो ।”
“ठीक है । किया ।”
“और ये भी कबूल करो कि शशिकांत की बीमा पॉलिसी के बारे में उसे तुम्हारे से ही मालूम हुआ था ।”
“ये भी कबूल किया ।”
“क्यों बताया ?”
“इत्तफाक से कभी मुंह से निकल गया था । किसी खास मकसद से नहीं बताया था ।”
“तुम्हें ये बात मानूम हूं कि असल में शशिकांत मदान का कुछ नहीं लगता था”
“पहले नहीं मालूम थी । अब मालूम है ।”
“अब कैसे मालूम हुआ ?”
“मधु ने बताया । तुम्हारे जाने को बाद ।”
“तुम शशिकांत के वकील भी हो फाईनान्शल एडवाइजर भी हो.....”
“ऑडीटर भी हूं । स्टाक ब्रोकर भी हूं । जनरल एजेंट भी हूं । ट्रबल शूटर भी हूं । मेरी कंसल्टेंसी आल-इन-वन है । वो क्लायंट के लिए बहुत फील्ड कवर करती है ।”
“इस लिहाज से तो शशिकांत के पास अगर कोई ऐसा डोक्युमेंट होता जिसे वो बहुत हिफाजत से, बहुत महफूज रखना चाहता होता तो वो तुम्हारी ही सेवाएं इस्तेमाल करता ।”
“हां । लेकिन ऐसा कोई डोक्युमेंट उसने मेरे पास नहीं रखवाया हुआ । मदान भी बहुत बार मेरे से ये सवाल पूछता है । लेकिन वजह नहीं बताता कि क्यों पूछ रहा है । कम-से-कम तुम तो वजह बताओ ।”
“शशिकान्त के पास अपने बचपन से ही कुछ ऐसे कागजात थे ये साबित करते थे कि असल में वो किन्हीं और मां-बाप का बेटा था और यह कि लेखराज मदान से उसका दूर-दराज का भी कोई रिश्ता नहीं ।”
“ओह । लेकिन मरे पास ऐसे कोई कागजात नहीं ।”
“शायद वो सीलबंद हों । इस वजह से तुम्हें मालूम न हो कि भीतर क्या है !”
“मेरे पास शशिकांत का दिया कोई सीलबंद लिफाफा है ही नहीं । मेरे पास तो सिर्फ उसकी फाइनान्शल होल्डिंग्स हैं - जैसे सिक्योरिटीज । शेयर सर्टिफिकेट्स । ऐसी चीजें हम बाकी क्लायंट्स की भी रखते हैं ।”
“कितने का माल होगा वो ?”
“होगा कोई बीस-बाईस लाख रुपए का ।”
“अब उसका क्या होगा ?”
“अब तो मैं खुद हैरान हूं क्या होगा ? पहले तो मैं उसे मदान को ही सौंपता लेकिन अब जबकि तुम कहते हो कि वो शशिकांत का भाई था ही नहीं, तो फिर वो सब कागजात मदान को सौंपना गलत होगा ।”
“और किसे सौंपोगे ?”
“जो कोई भी उसका वारिस होगा शायद उसकी कोई वसीयत बरामद हो ।”
“कोई वारिस न निकला तो ?”
“ऐसा हो तो नहीं सकता । कोई तो हर किसी का होता ही है ।”
“शशिकांत का न हुआ तो ?”
“तो जो उसकी बाकी जमीन-जायदाद का होगा, वो ही उसकी सिक्योरिटीज का हो जाएगा ।”
“यानी कि तुम वो सब कुछ सरकार का सौंप दोगे ?”
“हां ।”
“वैसे तुम लोग चाहो तो क्लायंट्स की सिक्योरिटीज को या सर्टीफिकेटस को कैश करा सकते हो ?”
“करा तो सकते हैं । हमारे पास क्लायंट की ऑथोरिटी होती है । हर स्टाक ब्रोकर के पास अपने क्लायंट ऑथोरिटी होती है ।”
“क्यों ?”
“शेयर बाजार में एकाएक आ जाने वाली तेजी का फायदा उठाने के लिए । या मंदी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए । शेयर मार्केट में कई बार सिर्फ कुछ घंटों के लिए या कुछ दिनों के लिए रेट एकदम शूट कर जाते हैं । या एकदम नीचे आ जाते हें । तब शेयरों को फौरन बेचना या खरीदना होता है । ऐसा तभी हो सकता है जब क्लायंट की हमारे पास ऑथोरिटी हो । उसके हमें निर्देश होते हैं कि फलां शेयर का रेट फलां कीमत तक पहुंचे तो बेच दो या फिर कोई शेयर फलां कीमत तक गिर जाए तो खरीद लो ।”
“ये जो बीमे की रकम है, ये मिल जाएगी मदान को ?”
“देखो अगर शशिकांत का कातिल पकड़ा गया तब तो रकम न मिलने की कोई वजह नहीं होगी । तब तो ये ओपन एंड शट केस होगा । कातिल न पकड़ा गया तो बीमा कम्पनी वाले केस को लटकाएंगे । तब वो इस शक को हवा देने की कोशिश करेंगे कि शायद मदान ने कत्ल किया हो । कानून किसी को अपने ही गुनाह से फायदा उठाने की इजाजत जो नहीं देता ।”
“मदान ने कत्ल किया हो सकता है ?”
“नहीं ।” उसने बड़ी मजबूती से इन्कार में सिर हिलाया ।
“और कौन हो सकता है कातिल ?”
“ये तो तुम बताओ । आखिर जासूस हो और इसी काम के लिए तो तुम्हें इंगेज किया गया है ।”
“अभी तो ये बात अपने ही लोगो के बीच में है कि शशिकांत मदान का भाई नहीं था । लेकिन अगर ये बात जाहिर हो जाए तो फिर ये ही रकम की अदायगी में मजबूत अडंगा नहीं बन जाएगी ?”
“बन तो सकती है, यार ।” कई क्षण खामोश रहने के बाद वो बोला, “इतनी बड़ी रकम की अदायगी में अड़ंगा लगाने की तो हरचंद कोशिश करेंगे बीमा कम्पनी वाले । कोहली, हमारे कामन क्लायंट के हक में अच्छा वैसे ये ही होगा कि ये बात जाहिर न हो ।”
“हमारा एक कामन क्लायंट और भी है ।”
“और कौन ?”
मैंने उसे कृष्णबिहारी माथुर के बारे में बताया ।
“कमाल है !” वो मंत्रमुग्ध स्वर में बोला, “तुम तो यार बहुत ही पहुंची हुई चीज हो ।”
“माथुर साहब तुम्हारी शूटिंग की बहुत तारीफ कर रहे थे । पक्का निशानेबाज बता रहे थे वो तुम्हें । क्रैक शोट !”
“उन्हीं की मेहरबानी से बन गया । शूटिंग रेंज उनका अपना न होता तो मुझे तो शौक तक न पड़ता शूटिंग का ।” वो तनिक आगे को झुका और बड़े रहस्यपूर्ण स्वर में बोला, “एक भेद की बात बताऊं ?”
“बताओ ?”
“दस में से छ: बार तो मैं वहां जाता ही शूटिंग के लालच में हूं ।”
“अच्छा !”
“फ्री हथियार । फ्री गोलियां । जीरो हाय तौबा । किसी कमर्शियल शूटिंग रेंज में जाऊं तो मैम्बरशिप भरने के अलावा पहले तो मुझे कोई गन ही खरीदनी पड़े ।”
“आपके पास गन नहीं है ?”
“गन क्या मेरे पास तो फायरआर्म्र रखने का लाइसेंस तक नहीं है ।”
“क्यों ?”
“कभी कोशिश ही नहीं की हासिल करने की । जरूरत ही नहीं महसूस हुई कभी ।”
मैंने देखा डांस फ्लोर डिस्को दीवानों से खाली कराया जाने लगा था ।
“कैब्रे शौक से देखते हो ?” मैंने पूछा ।
“कैब्रे नहीं ।” वो बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला ।
“तो और क्या ?”
“यहां की मलिका । सिल्विया ग्रेको । उसे शौक से देखता हूं । यहां आता ही उसके लिये हूं । वो आज यहां से रुखसत हो जाए तो मैं दोबारा रुख न करूं अब्बा का ।”
“इतने दीवाने हो उसके ?”
“इतने से कहीं ज्यादा । मेरी दीवानगी लफ्जों में तो बयान ही नहीं की जा सकती । पहले कभी यहां आए हो ?”
“नहीं ।”
“फिर तो सिल्विया को देखा नहीं होगा ।”
तभी डांस फ्लोर पर सिल्विया प्रकट हुई । वो एक लाल रंग का लो नैक का टखनों तक आने वाला गाउन पहने थी और गाउन के अलावा कुछ नहीं पहने थी । गाउन में कूल्हे से नीचे दोनों तरफ लंबी झिरियां थीं जिस्म में जरा-सी हरकत होते ही जिनमें से उसकी लंबी सुडौल टांगें जांघों तक दिखाई देने लगती थीं और स्तन यूं मादक अंदाज में हौलै-हौले हिलने लगते थे कि कद्रदानों के मुंह से हाय निकल जाती थी ।
जैसे उस घड़ी खेतान के मुंह से निकल रही थी ।
“हाय !” वो बोला “साली एक बार हमारी टेबल पर ही आ जाए ।”
“नशे में बोल रहे हो ?”
“अरे, दिल की गहराइयों से बोल रहा हूं ।”
“उसे बुला लो ।”
“नहीं आती । टेबल पर नहीं आती वो । किसी की टेबल पर भी नहीं आती वो । बड़ी हद हल्लो कहती करीब से गुजर जाती है ।”
“टेबल पर आ जाए तो खुश हो जाओगे ?”
“तुम तो यूं कह रहे हो जैसे उसे बुला सकते हो ।”
“बुला सकता हूं ।”
“बुला के दिखाओ ।” वो चैलेन्ज भरे स्वर मे बोला, “मुंह चूम लूंगा ।”
“मेरा ?”
“हां । नहीं, उसका । मेरा मतलब है तुम्हारा भी या सिर्फ उसका या दोनों का । या पहले.....”
“बहक रहे हो ।”
उसे ब्रेक लगी । वह कुछ क्षण आंखों-ही-आंखों में सिल्विया को हजम करता रहा और फिर बोला, “भगवान औरत को इतनी शानदार क्यों बनाता है ?”
“ताकि तुम्हारे जैसे कद्रदानों मेहरबानों को इस झूठ पर एतबार न आने लगे कि सब औरतें एक जैसी होती हैं ।”
“वो तो कहा जाता है कि कमर के नीचे तमाम औरतें एक जैसी होती हैं ।”
“अभी तुम सिल्विया को कमर से ऊपर-ऊपर देख रहे हो ?”
“पागल हुए हो ! मैं तो उसे नख से शिख तक देख रहा हूं ।”
“सो देयर यू आर ।”
“यार, वो कमर से नीचे तमाम औरतें एक जैसी होने की बात का मतलब कुछ और है जो कि इस वक्त शराब और सिल्विया दोनों के नशे में मुझे सूझ नहीं रहा ।”
“अच्छा है नहीं सूझ रहा । वो गुमराह करने वाला मतलब है ।”
“यानी कि तुम्हें सूझ रहा है ।”
“न सिर्फ सूझ रहा है मुझे उसकी हकीकत पर भी एतबार है । उसी बात को लार्ड बायरन ने इस तरह से कहा है कि आल कैट्स आर ग्रे इन डार्क ।”
“यहां डार्क कहां ! यहां तो जगमग रोशनी है ।”
“तभी तो । वैसे एक बात है ।”
“क्या ?”
“तुम्हारा नौ नकद और तेरह उधार वाली मिसाल पर एतबार नहीं मालूम होता ।”
“क्यों ?”
“तभी तो निशा को रुखसत कर दिया । वो नौ नकद थी । सिल्विया ग्रेको तेरह उधार है ।”
“पागल हुए हो ! निशा जैसी चीज रोज मिलती है । मैं रोज बटुवे में हाथ डालता हूं और एक निकल आती है । सिल्विया जैसी मिलती ही नहीं ।”
“तभी तो उसके लिए लार टपका रहे हो । इससे ये जाहिर होता है कि माल का भाव सिर्फ अच्छा होने से ही नहीं वढ़ता, दुर्लभ और अनुपलब्ध होने से भी बढ़ता है ।”
“मुझे सिर्फ एक बार हासिल हो जाए ये, फिर चाहे...”
“सुनो ! वो कुछ बोल रही है ।”
वो डांस फ्लोर की ओर देखने लगा ।
सिल्विया अपने जिस्म जैसी ही सैक्सी आवाज में अपने कैब्रे स्टार्स को इंट्रोड्यूस कर रही थी । उस वक्त बैंड खामोश था । लेकिन स्पॉट लाइट ऐन उसके ऊपर थी और हॉल की बेशुमार रोशनियां मद्धम हो चुकी थीं ।
फिर एकाएक ड्रम जोर से बजा और सिल्विया झुककर अपने पैटर्न्स को अभिवादन करती और उन्हें अपने उन्नत वक्ष का नजारा कराती स्टेज से हट गई ।
“हाय !” खेतान बोला ।
“असली रंगीले राजा हो ।” मैं बोला ।
उसने मेरी बात की ओर जरा भी तवज्जो नहीं दी ।
म्यूजिक बजने लगा । दो कैब्रे डांसर्स स्टेज पर थिरकने लगीं ।
मैंने वेटर को करीब बुलाया ।
“जरा” मैं बोला, “सिल्विया मैडम को सुधीर कोहली का सलाम बोलो ।”
वेटर सहमति में सिर हिलाता तत्काल वहां से हट गया ।
“बुल गया सलाम ।” खेतान व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला, “वो यूं सलाम कबूलती होती तो मैं क्या मर गया था !”
“ऐसा हो भी गया होता” मैं बोला, तो कोई बात नहीं थी । फिर जिंदा हो जाते सिल्विया को अपनी टेबल पर वैठी पाकर ।”
वो हो-हो करके हंसा ।
दो मिनट बाद बेशुमार तारीफी निगाहों का मरकज बनी सिल्विया मेरे करीब पहुंची । खेतान को कतई नजरअंदाज करके उसने मेरे गाल पर एक चिकोटी काटी और मद भरे स्वरे में बोली, “हल्लो माई हनी चाइल्ड । माई टूटी-फ्रूटी । लांग टाइम नो सी ।”
“बैठो ।” मैं बोला ।
वो मेरे साथ सटकर बैठ गई । उसका एक वक्ष मेरी बांह को धक्का देने लगा और एक जांघ मेरी जांघ के साथ सट गई ।
खेतान यूं हक्का-बक्का सा कभी मुझे और कभी सिल्विया को देखने लगा जैसे उसे एतबार न आ रहा हो कि जो वो देख रहा था वो हकीकत थी ।
“सिल्विया ।” मैं बोला, “मीट माई फ्रेंड, मिस्टर पुनीत खेतान ।”
“फैन वाला ।” वो बोली ।
“फैन वाले जैसा । ये वकील है ।”
“ओह, हल्लो देयर ।”
“हल्लो !” खेतान फंसे स्वर में बोला । उसने मेज पर दोहरा होकर सिल्विया का अभिवादन किया ।
“डार्लिंग !” सिल्विया फिर यूं मेरे से सम्बोधित जैसे खेतान वहां था ही नहीं, “आई हैव नो टाइम । वो उधर स्टेज पर ...”
“आई अंडर स्टैंड ।” मैं बोला, “एक बार हमारे साथ चियर्स बोल जाओ, फिर चली जाना ।”
“नो प्राब्लम ।”
उसकी भृकुटी के एक इशारे की देर थी कि हमें नए जाम सर्व हो गए । उसने हमारे साथ चियर्स बोला, अपने जाम को होठों से लगाया और फिर उसे मेज पर रखकर उठ खड़ी हुई ।
“एनजाय युअरसेल्फ ।” वो बोली, “डांस देखो, खाओ पियो लेकिन खिसक न जाना । इतने दिनों बाद मिले हो ।”
“नहीं खिसकूंगा ।”
“बाई टिल दैन बाई मिस्टर.... मिस्टर.... ”
“खेतान ।” वो बड़े आतुर स्वर में बोला, “पुनीत खेतान ।”
एक चमचम करती मुस्कराहट में उसे निहाल करके वो वहां से विदा हो गई ।
“यार”, फिर वो मेरे से बोला, “तुम तो कह रहे थे कि तुम यहां कभी नहीं आए ।”
“मेरा मतलब था कि मैं यहां नीचे कभी नहीं आया ।” मैं बोला, “मै तो सीधा ऊपर जाता हूं ।”
“ऊपर ! यानी कि तुम उसकी प्राइवेट परफारमेंस भी देख चुके हो ?”
“कई बार ।”
“कभी मुझे भी दिखाओ न !”
“दिखा देंगे ।”
“सुना है स्टार्क नेकड बैली डांस करती है ।”
“हां । अब जरा स्टेज की तरफ तवज्जो दो वहां की सुंदरियां भी उसी हालत में पहुंचने वाली हैं ।”
वो स्टेज की तरफ देखने लगा ।
पन्द्रह मिनट बाद पहली परफोरमंस खत्म हुई और सिल्विया फिर स्टेज पर प्रकट हुई । उतने में ही वो अपना गाउन बदल आई थी । अब वो पहले जैसा ही स्याह काला गाउन पहने थी । पहले की तरह दो मिनट उसने स्टेज से हॉल में अपना जादू बिखेरा और फिर नई डांसरों के लिए स्टेज छोड़कर वहां से हट गई ।
इस बार नई डांसरों के साथ दो मेल डांसर भी थे ।
मुझे मालूम था कि परफोरमेंस के समापन के बाद जब सिल्विया ने फिर स्टेज पर आना था तो उसके जिस्म पर फिर नई ड्रेस होनी थी ।
मैंने हॉल में परे उधर नजर दौड़ाई जिधर मैंने नायर को अकेले बैठे देखा था ।
वो अपनी टेबल पर मौजूद नहीं था ।
मैं कुछ क्षण सोचता रहा फिर मैंने अपना व्हिस्की का गिलास खाली किया, सिगरेट को ऐश-ट्रे में झोंका और उठ खड़ा हुआ ।
“मैं अभी आया ।” मैं बोला ।
उसने सहमति में सिर हिला दिया ।
मैं हॉल के पिछवाड़े की ओर बढा ।
उधर शनील के भारी परदे से ढका एक बंद दरवाजा था जिसके आगे एक लम्बा गलियारा था जिसके दोनों तरफ, मुझे पहले से मालूम था कि कैब्रे स्टार्स के ड्रेसिंग रूम थे । उस गलियारे के सिरे पर एक और दरवाजा था जो बाहर इमारत की पिछली गली में खुलता था ।
मैंने एक ड्रेसिंग रूम का दरवाजा ट्राई किया । वो खुल गया । मेंने भीतर निगाह डाली तो उसे खाली पाया ।
अगला दरवाजा पहले से ही तनिक खुला था और उसमें से कई लड़कियों के हंसने खिलखिलाने की आवाजें आ रही थी । मैंने तीसरा दरवाजा ट्राई किया ।
मुझे भीतर शीशे के आगे एक स्टूल पर बैठी सिल्विया दिखाई दी । उसका काला गाउन एक ढेर की सूरत में एक कुर्सी पर पड़ा था । उस घड़ी उसके जिस्म पर एक सिल्क का ढीला-ढाला चोगा था और वह शीशे में अपना अक्स देखकर अपना मेकअप दुरुस्त कर रही थी । खुलते दरवाजे का प्रतिबिम्ब उसने शीशे में देखा । वो तत्काल मेरी ओर घूमी, उसका मुंह बोलने के लिए खुला तो मैने अपने होंठो पर उंगली रखके उसे चुप रहने का इशारा किया । वो सकपकाई-सी खामोश बैठी रही ।
मैंने अपने पीछे दरदाजा भिडकाया और दबे पांव आगे वढा । वो ड्रेसिंग रूम मेरा देखा भाला था । नायर अगर वहां कहीं हो सकता था तो दाईं ओर एक दीवार से दूसरी दीवार तक खिंचे परदे के पीछे ही हो सकता था । उस पर्दे के पीछे इस्तेमालशुदा ड्रेस और वैसा ही कबाड़ भरा रहता था । वो पर्दा तीन भागों में था । मैं बीच वाले भाग के करीब पहुंचा और मैंने एक झटके से परदा खींचा ।
वहां से कपड़ों के एक गट्ठर पर बैठा नायर नुमाया हुआ । परदा हटते ही उसकी घिग्घी बंध गई और वो फटी-फटी आंखों से मुझे देखने लगा ।
मैने उसे टाई से पकड़कर उसके पैरों पर जबरन खड़ा किया और फिर बाहर घसीटा ।
“ओ माई गॉड ।” सिल्विया घबराकर उठ खड़ी हुई और आतंकित भाव से बोली, “थीफ । पोलीस ।”
“मैं माफी चाहता हूं ।” घिघियाए स्वर में नायर बोला । “प्लीज फारगिव मी । आई बैग आफ यू । मेरा कोई गलत इरादा नहीं था ।”
“काल दि पोलीस ।” सिल्विया फिर चिल्लाई ।
“ऐसा न करना ।” नायर बोला - “प्लीज ! प्लीज मैडम मेरा कोई गलत इरादा नहीं था ।”
“यहां चोरों की तरह घुसे बैठे हो ।” मैं बोला “और गलत इरादा क्या होता है ?”
“चोरी के इरादे से नहीं ।”
“तो फिर किस इरादे से ?”
“मैं .....मैं ....”
“सुधीर ।” सिल्विया बोली, “इसको पकड़ के रखना । मैं पुलिस को फोन करके आती हूं ।”
और वो दृढ कदमों से दरवाजे की ओर बढी ।
“मिस्टर कोहली” नायर गिड़गिड़ाया, “प्लीज सेव मी । मैडम को रोको । तुम मैडम को जानते लगते हो । मैडम तुम्हारी तुम्हारी सुनेंगी । प्लीज, मिस्टर कोहली ।”
मैंने उसकी टाई छोड़ दी और सिल्विया को रोका ।
ऐब भी क्या लानती चीज थी । दिन में जो आदमी मेरे साथ बात करता शेर जैसा शाही मिजाज दिखा रहा था, वह उस घड़ी बकरी की तरह मिमिया रहा था ।
“इसे” सिल्विया रुक तो गई लेकिन कहर भरे स्वर में बोली, “अपनी करतूत की सजा जरूर मिलनी चाहिए ।”
“माफी ।” नायर ने फरियाद की, “माफी ।”
“दो शर्तों पर माफी मिल सकती है ।” मैं बोला ।
“बोलो” वो आतुर भाव से बोला, “बोलो ।”
“दोबारा कभी अब्बा में पांव न रखना ।”
“नहीं रखूंगा ।”
“और मेरे चंद सवालों का जवाब दो । जवाब झूठे या टाल-मटोल वाले हुए तो फिर रात तो हवालात में कटेगी ही, इज्जत आबरू का जनाजा यहीं से निकलता हुआ जाएगा । यहां के सारे स्टाफ ने मिलकर एक-एक हाथ भी जमाया तो दर्जनों की तादाद में हाथ पड़ेंगें । बाकी खबर थाने में पुलिस लेगी ।”
“ओह, नो ! नो !”
“न नहीं, हां करो ।”
“क्या पूछना चाहते हो ?”
मैंने सिल्विया की ओर देखा ।
“सामने का कमरा खाली है ।” वो बोली ।
“दरवाजा अंदर से बंद रखा करो ।”
“मेरे ड्रेसिंगरूम में कदम रखने की किसी की मजाल नहीं होती लेकिन अब रखा करूंगी ।”
“चलो ।” मैं नायर से बोला ।
नायर के साथ मैं निर्देशित कमरे में पहुंचा । वहां हम एक सोफे पर अगल-बगल बैठ गए, मैंने उसे सिगरेट पेश किया जो उसने कांपती उंगलियों से थामा । उसका नशा उड़ चुका था और उसके हवास अभी भी उसके काबू में नहीं थे ।
“तो शुरू करें ?” हम दोनों सिगरेट सुलगा चुके तो तो मैं बोला ।
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“तुम्हारा एम्पलायर कह रहा था कि जब से वो अपाहिज हुआ है, तुम उसके हाथ-पांव दिमाग सब कुछ हो ।”
“कल शाम तुम माथुर साहब को घर से बाहर कहीं लेकर गए थे ?”
“नहीं ।”
“कभी लेकर जाते हो ?”
“कई बार । दफ्तर के काम से तो हमेशा ।”
“लेकिन कल कहीं नहीं लेकर गए थे ?”
“नहीं ।”
“कोई और लेकर गया हो ?”
“और कौन ?”
“कोई फैमिली मेम्बर ? कोई मुलाजिम ?”
“मुझे उम्मीद नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो एकाएक उठके चल देने वाले तो शख्स नहीं । कोई पहले से अप्वायंटमेंट होती तो मुझे उसकी खबर होती । आखिर सारा दिन तो मैं वहीं होता हूं ।”
“वो अकेले जाते हैं कहीं ?”
“नहीं ।”
“जा सकते हैं ?”
वो हिचकिचाया ।
“टालमटोल नहीं चलेगी ।” मैं चेतावनी भरे स्वर में बोला, “पहले ही बोला है । दोबारा न कहना पड़े ।”
“जा तो सकते हैं ।” वो बोला ।
“कैसे ? व्हील चेयर लुढ़काते हुए ही ?”
“नहीं । स्टाइल से ।”
“वो कैसे ?”
“उनके पास एक होंडा अकार्ड है जो बनी ही अपाहिज व्यक्ति के चलाने के लिए है । उसके सारे कंट्रोल - क्लच, ब्रेक, एक्सीलेटर वगैरह - हाथ से ओपरेट किये जाने वाले हैं और उसमें उनकी व्हील चेयर ऐन कार की ड्राइविंग सीट की जगह जाकर फिट हो जाती है । कार में पीछे की सीट नहीं है । वहां ऐसा इंतजाम है कि दरवाजा खोलने पर एक प्लेटफार्म-सा बाहर जमीन पर सरक आता है जिसके जरिए वो अपनी व्हील चेयर को कार के भीतर ले जा सकते हैं । तुमने देखा होगा कि उनकी व्हील चेयर भी छोटी-मोटी कार ही है । कार की तरह उसमें ब्रेक, एक्सीलेटर, क्लच, गियर वगैरह फिट हैं, और पेट्रोल से चलती है । एक कार्डलेस टेलीफोन तक फिट है उसमें ।”
“आई सी । यानी कि मर्जी होने पर माथुर साहब का अकेले कहीं निकल पड़ना उनके लिए, कोई खास दिक्कत की बात नहीं ।”
“खास क्या मामूली दिक्कत की भी बात नहीं ।”
“सुधा का किस से अफेयर है ?”
वो चौंका ।
“किसने कहा” वो बोला, “सुधा का किसी से अफेयर है ?”
“मैंने कहा । मैं सुधा की बहन मधु को जानता हूं । दोनों के खाविंद उम्रदराज व्यक्ति हैं । मुझे ऐसा एक हिंट मिला है कि अपने खाविंदों को धोखा देने के लिए वो एक-दूसरे की मदद करती हैं । इस मामले में उन दोनों की कोई मिलीभगत जरूर है । जरूर सुधा से मिलने के बहाने घर से अक्सर निकलती है । ऐसा ही कुछ सुधा भी जरूर करती होगी । बोलो क्या सिलसिला है ?”
वो खामोश रहा ।
“नायर” मैं कर्कश स्वर में बोला, “कोई सिलसिला है, इतना तो मैं तुम्हारे चेहरे से ही पढ़ सकता हूं ।”
“कुछ है भी तो उसकी बाबत जानकर तुम्हें क्या हासिल होगा ?”
“होगा । कुछ तो हासिल होगा ।”
“यूं दूसरे की जाती जिंदगी के बखिए उधेड़ना....”
“मुझे पसंद है । तुम्हारी जाती जिंदगी के भी बखिए उधेड़े हैं अभी मैंने । नंगी औरत को कपड़े पहनते देखकर या औरत को नंगी होते देखकर निहाल हो जाते हो । जरूर अपने एम्पलायर के घर की औरतों को भी यूं ताड़ते होवोगे ।”
“नैवर ।”
“फिर भी माथुर साहब बहुत खुश होंगे तुम्हारे इस अनोखे शौक की बाबत सुनकर ।”
“मत बताना उन्हें । प्लीज ।”
“इतनी खिदमत मेरे से करा रहे हो, खुद कोई खिदमत नहीं करना चाहते हो । मैं तुम्हें पुलिस के हवाले न करूं । मैं तुम्हारी करतूत की खबर तुम्हारे एम्पलायर से न करूं । मैं इतना कुछ करूं । बदले में तुम कुछ भी न करो ।”
“ये विश्वासघात होगा । मालिक के साथ नमक हरामी होगी । मिस्टर कोहली, प्लीज मुझे नमक हराम बनने पर मजबूर न करो ।”
“तुम खामखाह जज्बाती हो रहे हो । इस पूछताछ में भी तुम्हारे मालिक की ही भलाई है । जाती तौर पर मैंने इन बातों से कुछ लेना देना नहीं है । तुम्हारे मालिक ने मुझे ये काम सौंपा है कि मैं मालूम करूं कि शहर में हुए एक कत्ल में उनकी फैमिली के किसी मैम्बर का तो कोई हाथ नहीं है । ये न भूलो कि तुम्हारा मालिक ही मेरे कहने पर तुम्हें ये हुक्म दे सकता है कि तुम मेरे हर सवाल का जवाब दो ।”
वो सोचने लगा । उसने सिगरेट का एक गहरा कश लगाया ।
“तुम” आखिरकार वह बोला, “हासिल जानकारी का कोई बेजा इस्तेमाल तो नहीं करोगे ?”
“नहीं ।”
“वादा करते हो ?”
“हां । बेजा क्या, मुमकिन है कि जानकारी के कैसे भी इस्तेमाल की कोई नौबत न आए ।”
“बात ऐसी है कि उसकी खबर अगर माथुर साहब को लग गई तो उनके दिल को बहुत सदमा पहुंचेगा ।”
“नहीं लगेगी । बशर्ते कि बात का सीधा ताल्लुक कत्ल से न हुआ ।”
“तो सुनो । सुधा का मनोज से अफेयर है ।”
अब चौंकने की मेरी बारी थी ।
“मां का” मैं धीरे से बोला, “अपने सौतेले बेटे से अफेयर है ?”
“ऐसे सौतेले बेटे से जो उम्र में मां से तीन साल बड़ा है ।”
कितना फैशनेबल हो गया था बंदे का गुनहगार होना ! कितनी पोल थी दिल्ली शहर के बाशिंदों के कैरेक्टर के ढोल में । साहबान, कभी भी आप किसी गुनहगार बंदे के फौरी दीदार के तलबगार हों तो बरायमहरबानी महज इतना कीजिएगा कि किसी शीशे के सामने जाकर खड़े हो जाइएगा ।
“चलता कैसे है वो सिलसिला ?” प्रत्यक्षत: मैंने पूछा, “मधु की मदद से ?”
“नहीं ।” वो बोला ।
“तो ?”
“उनके अपने बलबूते चलता है । बिना किसी की मदद से ।”
“कहां ?”
“कोठी में ही ।”
“कैसे ?”
“हर दूसरे-तीसरे दिन मनोज शाम को दफ्तर से लौटकर नए सिरे से तैयार होकर तफरीहन घर से निकलता है और आधी रात के बहुत बाद वापस लौटता है । ऐसा उसने कोठी के हाउसहोल्ड में अच्छी तरह से स्थापित किया हुआ है । अपनी एक कार का साइलेंसर उसने बिगाड़ा हुआ है जिसकी वजह से कार खूब शोर करती है । वो शाम को उस कार पर खूब शोर मचाता घर से निकलता है और वैसे ही शोर मचाता घर लौटता है । असल में वो कार को कोठी से दूर कहीं छुपाकर खड़ी कर देता है और चुपचाप वापस लौट आता है । पिछवाड़े से चोरों की तरह कोठी में घुसता है और सुधा के कमरे में पहुंच जाता है । फिर चोरों की तरह ही बाहर निकलता है, गाड़ी काबू में करता है और शोर मचाता वापस लौट आता है । हर कोई यही समझता है कि वो शाम का गया तभी वापस लौटा था ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है ?”
“खानसामे ने देखा अपनी आंखों से आधी रात को ।”
“नौकर-चाकर भी कोठी में ही रहते हैं ?”
“नहीं । उनके लिए अलग इमारत है । उस रात मिस्टर माथुर ने आधी रात को खानसामे को फोन करके उनके लिए दूध लाने को कहा था । उस रोज उन्हें कोई तकलीफ थी जिसकी वजह से आधी रात को ही उनकी नींद खुल गई थी । खानसामा दूध लेकर उनके कमरे में जा रहा था तो उसने मनोज को दबे पांव सुधा के कमरे से निकलते देख था ।”
“ओह !”
“लेकिन ये बात उसने किसी को बताई नहीं ।”
“सिवाय तुम्हारे ?” मैं उसे घूरता हुआ बोला ।
“हां ।”
“तुम्हें किसलिए ?”
“वो मेरा भांजा है ।”
“ओह !”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“माथुर साहब को” फिर मैंने पूछा, “अपनी बीवी पर शक है ?”
“तुम बताओ, नहीं होना चाहिए ?”
“तुम्हीं बताओ ।”
“शक तो वो तब भी करते थे जबकि अभी वो अपाहिज नहीं हुए थे । अपाहिज होने के बाद से तो वो बहुत ही शक्की हो गए थे । बात को अपने तक ही रखोगे, इस उम्मीद में बता रहा हूं कि पिछले डेढ़ साल से उन्होंने ऐसा इंतजाम किया हआ है कि सुधा के घर से बाहर गुजरे एक-एक मिनट की रिपोर्ट उन्हें मिले ।”
“तौबा ! इतनी लम्बी निगरानी !”
“हां ।”
“इतनी लम्बी निगरानी तो छुप भी नहीं सकती । सुधा को शर्तिया खबर होगी ऐसी निगरानी की ।”
“हो सकता है ।”
“हो सकता है नहीं, है । उसे कोठी से बाहर मनोज से मिलने की सुविधा होती तो वो दोनों कोठी के भीतर मिलने का यूं पेचीदा रास्ता न अख्तियार करते ।”
“यू आर राइट ।”
“मिस्टर नायर, अपनी जानकारी का तुम कोई बेजा इस्तेमाल तो नहीं करते ?”
“कौन सी जानकारी का ?”
“सुधा और मनोज की आशनाई की जानकारी का । जो नजारा यहां वेटरों को रिश्वत देकर छुप-छुपके करते हो, पीछे फ्लैग स्टाफ रोड पर उसी नजारे की धौंस से मांग तो नहीं करते हो ?”
“ओह माई गॉड नैवर ।”
“आगे करने का इरादा होगा !”
“मिस्टर कोहली” वो बहुत दयनीय स्वर में बोला, “आई एम नाट ए ब्लैकमेलर । आई एम ए सिक मैन । मेरा मनोविशेषज्ञ कहता है कि यह एक बीमारी होती है ।”
“ओह !”
“आई एम डिवोटीड टू माथुर फैमिली । मैं माथुर परिवार के किसी सदस्य के हित के खिलाफ जाने का सपने में भी ख्याल नहीं कर सकता । जो कुछ अभी मैंने तुम्हें बताया है, उसके लिए भी मुझे उम्र-भर पछतावा रहेगा । अब, फॉर गॉड सेक, मेरी जान छोड़िये ।
“अभी एक मिनट में । सिर्फ एक सवाल और ।”
“वो भी पूछो ।”
“मैं माथुर फैमिली के लिए तुम्हारी निष्ठा की कद्र करता हूं । अब ये बताओ किसी फैमिली मेम्बर की खातिर कत्ल कर सकते हो ?”
“बेहिचक । गोली की तरह । एक नहीं, अनेक ।”
“किया है ?”
“नहीं ।”
“कल रात साढ़े आठ बजे के करीब कहां थे ?”
“यहीं था । जिससे मर्जी पूछ लो ।”
“पुनीत खेतान तुम्हारे सामने यहां आया था ?”
“हां ।”
“कितने बजे ?”
“साढ़े आठ ।”
“और मनोज ?”
“वो कल यहां नहीं आया था ।”
“तुम तीनों एक दूसरे से वाकिफ हो । कभी यहां इकट्ठे नहीं बैठते ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“तीनों के मिजाज नहीं मिलते । जरूरतें नहीं मिलती । उम्र नहीं मिलती ।”
“ओह !”
“मेरी तो पूरी कोशिश होती है कि उनमें से किसी को पता तक न लगे कि मैं यहां हूं ।”
“हूं ।” फिर मैं एकाएक उठ खड़ा हुआ, “ओ के, नायर । फिर मिलेंगें ।”
“जरूर ।” वो भी उठा ।
“लेकिन अब्बा में नहीं ।” मैं चेतावनीभरे स्वर में बोला, “याद रखना ।”
“नेवर । यू हैव माई वर्ड ।”
***
आधी रात को मैं ग्रेटर कैलाश अपने घर जाकर लगा ।
पिंकी माथुर से आठ बजे की अप्वाइंटमेंट मैं भूला नहीं था लेकिन निर्धारित समय पर घर का रुख न करने की मेरे पास कई वजह थीं । मसलन: मैंने आधा जमा एक बराबर डेढ़ लाख रुपए की फीस कमानी थी और पिंकी से अप्वाइंटमेंट फिक्स होने के बाद से इस दिशा में मैंने बड़े अहम काम किए थे, निहायत कारआमद मालुमात की थीं ।
पिंकी ने फिर मेरे पास आना ही आना था, मेरी जेब में मौजूद वीडियो कसेट में उसकी जान जो अटकी हुई थी ।
कुछ मामलों में आपका खादिम बहुत संतोषी जीव है । बंदा एक दिन में दो भोग नहीं लगाता ।
अपने फ्लैट में पहुंचकर मैंने कपड़े तब्दील किए और फिर बैडरूम में जाकर विडियो फिल्म चलाई । विडियो फिल्म आधे से ज्यादा खाली निकली । बाकी में मैने पहले पिंकी की शशिकांत से शादी होते देखी और फिर पहले मैटकाफ रोड पर शशिकांत के विडियो पर देखे सीन का विस्तृत संस्करण देखा ।
अगले रोज नौ बजे मैने लेखराज मदान को उसके अपार्टमंट पर फोन किया ।
“ओए, कोल्ली,” मेरी आवाज सुनते ही वो भड़ककर बोला, “कहां मर गया था ?”
“क्या हुआ ?” मैं बोला ।
“पूछता है क्या हुआ । ओए, सारी रात तेरे फोन का इन्तजार करता रहा मैं ।”
“मैं पहुंचा तो था तुम्हारे फ्लैट पर ।”
“क्या फायदा तब पहुंचने का । तब तो अभी मैं पुलिस के साथ फंसा हुआ था ।”
“अब मुझे क्या पता था ?”
“'कहता है क्या पता था ! वीर मेरे, फोन तो फिर भी करना चाहिए था । कुछ बताने के लिए नहीं तो कुछ पूछने के लिए ही सही ।”
“सॉरी । अब पूछ लेता हूं । कैसी बीती पुलिस के साथ ?”
“बढ़िया” अब उसके लहजे में तब्दीली आई, “खास कुछ नहीं पूछा उन्होंने मेरे से । मैंने यही कहा कि मैं तो घर पर था । बीमार था । लेटा पड़ा था ।”
“वो मान गए ? होटल में तुम्हारे बयान की तसदीक करने नहीं आए ?”
“अभी तो नहीं आए लेकिन तसदीक हो जाएगी । होटल से भी और बीवी से भी । मेरी गारंटी ।”
“फिर क्या बात है ?”
“तू क्या कर रहा है ?”
“बहुत कुछ कर रहा हूं ।”
“ओए, कुछ नतीजा भी निकल रहा है कि नहीं ?”
“निकलेगा ।”
“यानी कि अभी नहीं निकला ।”
“अभी वक्त ही कितना हुआ है !”
“वीर मेरे, फिर भी ।”
“सुनो, सुनो । पहले मेरी सुनो । पहले उसकी सुननी चाहिए जो फोन करता है ।”
“सुनाओ ।”
“लाश का पोस्टमार्टम हो गया ?”
“अभी नहीं । दस बजे होगा । तफ्तीश कर रहे यादव नाम के इंस्पेक्टर ने मुझे ग्यारह बजे पुलिस हैडक्वार्टर बुलाया है ।”
“गुड ! मैं भी वहीं पहुंचूंगा । मुझे बाहर ही मिलना । मेरे पहुंचने से पहले भीतर इंस्पेक्टर यादव के ऑफिस में मत जाना ।”
“क्यो ?”
“मैं उससे मिलना चाहता हूं । मिलने का मुझे बहाना चाहिए । खुद ही पहुंच जाऊंगा तो वो शक करेगा कि जरूर मुझे कत्ल की खबर है । तुम साथ ले के जाओगे तो शक तो वो फिर भी करेगा लेकिन तब ये सोचेगा कि तुमने अपने भाई के कत्ल की तफ्तीश के लिए मेरी सेवाएं प्राप्त की हैं और जो कुछ मुझे मालूम है वो तुमने लाश की बरामदी के बाद बताया है ।”
“मैं उसे यही कहूं कि तू मेरे लिए काम आकर रहा है ?”
“नहीं । तुम कहना कि मैं तुम्हारा दोस्त हूं और दोस्त के तौर पर ही तुम्हारे साथ आया हूं । आगे जो नतीजा वो निकालता है, निकालता रहे ।”
“वो तुझे जानता है ?”
“बहुत अच्छी तरह से ।”
“फिर तो जरा भांपने की कोशिश करना कि केस की बाबत उसकी क्या राय है ।”
“और क्या मैं उसकी सेहत का हाल पूछने वहां जाना चाहता हूं ? यही इरादा है मेरा ।”
“ठीक है । ग्यारह बजे मैं तुझे हैडक्वार्टर के बाहर मिलूंगा ।”
“ठीक है ।”
“एक बात और, कोल्ली ।”
“फिर कोल्ली !”
“सुधीर ।”
“बोलो ।”
“भई, मेरी गैरहाजिरी में तेरा मेरे यहां आना मैं पसंद नहीं करता ।”
“और मैं तुम्हारी हाजिरी में भी वहां आना पसंद नहीं करता । तभी तो तुम्हारे साथ चलने वहां नहीं आ रहा । तुम्हें पुलिस हैडक्वार्टर बुला रहा हूं ।”
“तू तो खफा हो रहा है ।”
“बिल्कुल नहीं । वैसे एक बात बताओ । ये पाबंदी, मेरा मतलब है तुम्हारी ये नापसंदगी, सिर्फ मेरे लिए है या हर किसी के लिए है ?”
“हर किसी के लिए है । औरों को ये बात मालूम है । तुझे अब बता रहा हूं ।”
“घर आए-गए के बारे में बीवी से ही खबर लगती होगी ?”
“हां ।”
“वो बताए तो बताए, न बताए तो न बताए !”
“की मतलब ?”
“कुछ नहीं । नमस्ते ।”
मैंने लाइन काट दी ।
अपनी सैकेंड हैंड फिएट कार पर मैं नेहरू प्लेस में स्थित यूनिवर्सल इन्वेस्टीगेशन्स के नाम से जाने वाले अपने ऑफिस में पहुंचा ।
रजनी वहां पहले से मौजूद थी और हमेशा की तरह जगमग जगमग कर रही थी ।
उसे भीतर आने को कहता हुआ मैं अपने निजी कक्ष में पहुंचा । वो भी मेरे पीछे-पीछे ही वहां पहुंची । वो शलवार कमीज पहने थी और निहायत कमसिन लग रही थी ।
“दरवाजा भीतर से बंद करके कुंडी लगा दे ।” मैं सहज भाव से बोला ।
“वो किसलिए ?” वो बड़ी मासूमियत से बोली ।
“ताकि बिना विघ्न बाधा आकर मेरी गोद में बैठ सके ।”
“शर्म कीजिए । अभी तो दिन चढा है ।”
“जैसे शाम को कहता तो आके गोद मे बैठ ही जाती ।”
वो हंसी ।
“एक बात तो है !” मैं अपलक उसे निहारता हुआ बोला ।
“क्या ?” वो बोली ।
“बहुत खूबसूरत है तू ।”
“हां ।”
“क्या हां ?”
“बहुत खूबसूरत हूं मैं ।”
“हद है मॉडेस्टी तो छू तक नहीं गई तुझे ।”
“क्यों ? क्या डुआ ?”
“अरे, यूं हामी भरते हैं ? यूं गोली की तरह दनदना देते हैं हां ।”
“तो और क्या करते हैं ?”
“अरे, शरमाकर, सकुचाकर निगाह झुकाकर, झुकी निगाहें फड़फड़ाकर कहते हैं कि ऐसी तो कोई बात नहीं ।”
“लेकिन जब बात ऐसी ही हो तो ?”
“अब कौन मुकाबला करे तेरी कतरनी का सवेरे-सवेरे । बैठ ।”
“गोद में आकर ?”
“अरे, कहीं भी मर ।”
वो मेरे सामने एक कुर्सी पर बैठ गई ।
“अब राजी है ?” मैं भुनभुनाया ।
“हां ।” वो बड़े इत्मीनान से बोली ।
“एक बात बता ?”
“पूछिए ।”
“मेरी पहुंच से बाहर रहना तू अपनी खूबी समझती है ?”
“हां ।”
“कहती है हां ।” मैं असहाय भाव से गर्दन हिलाता हुआ बोला ।
“जी हां ।”
“मूर्ख है तू । अरे, आदमी के बच्चे को इतना नहीं हड़काना चाहिए कि वो गेरुवें वस्त्र धारण करके हर की पौड़ी पर जा बैठने की सोचने लगे ।”
वो होंठ दबाकर हंसी ।
फिर मैंने अपनी जेब से मदान का दिया वो लिफाफा निकाला जिसमें पचास हजार रूपये के नोट थे और उसके नाम मेरे जाली हस्ताक्षरों वाली चिट्ठी थी । मैंने लिफाफा उसे सौंपा ।
“क्या है ?” वो तत्काल गंभीर होती हुई बोली ।
“खोल, देख ।”
उसने लिफाफा खोला और नोट और चिट्ठी निकाली । वो चिट्ठी पढने लगी । मैंनै एक सिगरेट सुलगा लिया ।
चिट्ठी पढ चुकने के वाद उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा ।
“आप वाकई जा रहे हैं ?” वो बोली ।
“पागल है !” मैं बोला, “जा रहा होता तो ये चिट्ठी मैं तुझे खुद देता ! जब रूबरू मुलाकात मुमकिन हो तो चिट्ठी का क्या मतलब ?”
“तो फिर ?”
“रजनी, मेरा सवाल ये है कि अगर ये चिट्ठी तुझे डाक से मिलती या कोई तेरे पास इसे लेके आता तो
“मेरा भी यही ख्याल था । मेरे दुश्मनों का भी ।”
“जी !”
“ये चिट्ठी बोगस है । मैंने नहीं लिखी । इस पर हुए मेरे हस्ताक्षर जाली हैं ।”
“ऐसा क्यों ?” उसने बड़ी मासूमियत से पूछा ।
मैंने उसे चिट्ठी और नोटों से सम्बंधित किस्सा सुनाया ।
“हाय राम !” वो बोली, “तभी कल आप फोन पर कह रहे थे कि आप मरते-मरते बचे हैं ।”
“और तू मेरा मजाक उड़ा रही थी ।”
“अब मुझे क्या पता था कि सच में ही ......”
“खैर छोड़ । और मतलब की बात सुन । आगे से कभी तेरे पास मेरा कोई सन्देश या चिट्ठी आए तो उसकी तसदीक किए बिना उस पर अमल शुरू न कर देना समझ गईं ।”
“हां ।”
“आखिर एक डिटेक्टिव की सैक्रेटरी है, छोटी-मोटी धोखाधडियों से खुद भी सावधान रहना सीख ।”
“सीखूंगी ।”
“एक बात बता ।”
“पूछिए ।”
“मैं मर जाता तो तुझे अफसोस होता ?”
तब पहली बार मैंने उसके चेहरे पर गहन अनुराग के भाव देखे लेकिन वो तत्काल ही एक छलावे की तरह लुप्त हो गए ।
“अभी तो नहीं होता” फिर वो सपाट सूरत के साथ बोली, “अलबत्ता एक साल बाद जरूर होता ।”
“क्या मतलब ?”
“चिट्ठी की तरह अगर ये नोट जाली नहीं है तो साल-भर की तनखाह तो हासिल थी ही मुझे । साल-भर क्या अफसोस होता ।”
“लानत ।” मैं भुनभुनाता हुआ उठ खड़ा हुआ, “लानत ।”
“कहीं जा रहे हैं ?”
“हां । दरिया में डूबने जा रहा हूं । चलोगी ?”
“पानी ठंडा होगा । मई में चलें तो कैसा रहे ?”
“अब थोबड़ा बंद कर । रिजक कमाने जा रहा हूं मैं । वो काम करने जा रहा हूं जिसके कि तु मुझे काबिल नहीं समझती ।”
“वैसे तो गलत घड़ी भी दिन में दो बार ठीक टाइम देती ही है ।” उसने मुझे नोट दिखाए, “सबूत ये रहा ।”
“लानत हई । मुझे गलत घड़ी कहती है । पता नहीं मेरे कौन से बुरे कर्मों का फल है तू ?”
“अच्छे कर्मों का ।”
“अच्छा, अच्छा । नोट संभाल के रखना ।”
“इन में से चार पैसे में खर्च लूं तो ?”
“जितने मर्जी खर्च ले । सब तनखाह में से काट लूंगा ।”
“सारे खर्च कर लूं तो जब तक आप मेरी तनखाह में से आखिरी किश्त काटेंगें, मैं चार बच्चे खिला रही होउंगी ।”
“मेरे ?” मैं आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“आप के कैसे । दोनों काम कैसे हो सकते हैं । बच्चों का बाप बच्चों की मां से कहीं किश्तें वसूल करता है !”
“बहुत हाजिरजवाब हो गई है ।”
“सोहबत का असर है ।”
“अच्छा, अच्छा । मैं चला । ऑफिस में ही रहना ।”
“शाम को तो क्या लौटेंगें ?”
“शाम को !” मैं आखें निकालकर बोला, “मैं दोपहरबाद ही लौटूंगा । और तेरे ब्वाय फ्रेंड के साथ तुझे रंगे हाथों पकडूंगा ।”
वो जोर से हंसी ।
फिर मेरी भी हंसी निकल गई ।
***
इंस्पेक्टर देवेन्द्र कुमार यादव एक कोई पैंतीस साल का हट्टा-कट्टा नौजवान था । वो किसी थाने से सम्बद्ध नहीं था । वो पुलिस हैडक्वार्टर में वहां की नौंवी मंजिल के एक कमरे में बैठता था और फ्लाइंग स्क्वाड के उस दस्ते से बतौर इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर सम्बद्ध था जो केवल कत्ल के केसों की तफ्तीश के लिए भेजा जाता था । पहले मेरा उसका छत्तीस का आंकड़ा ही रहता था लेकिन, कर्टसी सुधीर कोहली, जबसे वो इंस्पेक्टर बना था मेरी थोड़ी बहुत कद्र करने लगा था ।
मुझे मदान के साथ आया देखकर वो बहुत हैरान हुआ ।
“कोल्ली मेरा यार है ।” मदान बोला, “पुराना । खास ।”
उसने हत्प्राण से मेरी शक्ल मिलती होने पर भी हैरानी जाहिर की ।
“कहते हैं” मैं बोला, “इस दुनिया में कहीं-न-कहीं हर किसी का डबल है । मेरा राजधानी में ही निकल आया ।”
उसने बड़ी गंभीरता से सहमति में सिर हिलाया ।
खाकसार की जाती राय है कि सरकारी मुलाजमत में आदमी का ज्यों-ज्यों रुतबा बुलंद होता जाता है, वो संजीदा और ज्यादा संजीदा होता जाता है । संजीदगी उसकी कुर्सी से मैच करता एक अलंकरण बन जाता है ।
“पोस्टमार्टम हो गया ?” मैंने सीधा सवाल किया ।
“कत्ल की” वो मुझे घूरता हुआ बोला, “कितनी वाकफियत है तुम्हें ?”
“उतनी ही जितनी मदान साहब को है । कल रात ही मेरी इन से बात हुई है ।”
“कोई ऐसी बात” वो मदान से बोला, “जो आपने इसे बताई हो, हमें न बताई हो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” मदान बोला, फिर उसने भी पूछा, “पोस्टमार्टम हो गया ?”
“हां, हो गया ।” यादव बोला, “लाश इर्विन की मोर्ग में है, जाके क्लेम कर सकते हैं आप । मैं आपको चिट्ठी दे दूंगा ।”
मदान ने सहमति में सिर हिलाया ।
“क्या पता लगा पोस्टमार्टम से ?” - मैं बोला ।
“यही कि कत्ल” यादव बोला, “बाइस कैलिबर की गोली दिल में जा लगने से हुआ है । डॉक्टर ने कत्ल का वक्त परसों रात सात और नौ के बीच का मुकर्रर किया है । लाश बहुत देर में बरामद हुई । कत्ल से अगले दिन दोपहर बाद । इसीलिए डॉक्टर कत्ल का इस वक्फे से ज्यादा क्लोज वक्त निर्धारित नहीं कर सका । वैसे हमें एक और साधन से निश्चित रूप से मालूम है कि कत्ल आठ बजकर अट्ठाइस मिनट पर हुआ था ।”
“मदान साहब ने किसी एंटीक टाइमपीस का जिक्र किया था । क्या वही है वो साधन ?”
“हां । वो घड़ी गोली लगने की वजह से आठ अट्ठाइस पर रुकी पाई गई थी ।”
“मुझे मौका-ए-वारदात पर एक निगाह डालने की इजाजत मिल सकती है ?”
हकीकतन मौकाएवारदात पर एक ‘और’ निगाह डालने का आपका खादिम कतई ख्वाहिशमंद नहीं था । ऐसा मैंने महज यादव के जेहन में ये स्थापित करने के लिए कहा था कि मौका-ए -वारदात पर मैं अभी तक गया नहीं था और अब जा पाता तो उसके जैरेकरम ही जा पाता ।
उसने घूरकर मुझे देखा ।
“प्लीज ।” मैं बोला ।
“लंच आवर में यहां आ जाना । ले चलूंगा ।”
“शुक्रिया ।”
“पहले फोन करके आना ।”
“जरूर । अब अपनी तफ्तीश के बारे में कुछ बताओ ।”
“मेरी तफ्तीश के मुताबिक इस केस का बेसिक क्लू या तो पैट्रन ऑफ शूटिंग है, या फिर रिवॉल्वर का कैलीबर है । ये दोनों ही बातें इस बात की तरफ बड़ा मजबूत इशारा करती हैं कि कातिल कोई औरत थी । वो मकतूल से परिचित थी इसलिए मकतूल ने उसे स्टडी में रिसीव किया था जहां कि उसने रिवॉल्वर मकतूल की तरफ तानकर आंखें बंद करके गोलियां बरसानी शुरू कर दी थीं । मकतूल उस वक्त सकते की हालत में पहुंच गया होगा और इसी वजह से अपने बचाव के लिए कुछ नहीं कर सका होगा । जैसे अनाप शनाप गोलियां चली है, उसमें ये कातिल की खुश्किस्मती ही कही जा सकती है कि एक गोली, कोई सी एक गोली उसके दिल में जा धंसी ।”
“कातिल का कोई अंदाजा ?”
“अभी तफ्तीश जारी है । वैसे दो जनाना कैरेक्टर सामने आए हैं । एक सुजाता मेहरा जिसने कि लाश बरामद की और दूसरी सुधा माथुर नाम की एक महिला जिसकी खबर हमें पुनीत खेतान नाम के उस वकील से लगी है जो कि कत्ल से कोई पौना घंटा पहले तक मकतूल के साथ था ।”
“कत्ल का हथियार बरामद हुआ ?” मैंने खामखाह सवाल किया । कैसे बरामद होता, वो तो, कर्टसी सुधीर कोहली, मंदिर मार्ग पर सुजाता मेहरा के होस्टल के कमरे में उसकी बरसाती की जेब में पड़ा था ।
लेकिन यादव का जवाब फिर भी चौंका देने वाला निकला ।
“हथियार बरामद नहीं हुआ” वो बोला, “लेकिन हमें मालूम है कि वो हथियार कैसा था और उसका मालिक कौन है ।”
“वो कैसे ?”
“सुधा माथुर के बयान खातिर हम उसके पति कृष्ण बिहारी माथुर की फ्लैग स्टाफ रोड पर स्थित कोठी पर गए थे । वहां हमें मिस्टर माथुर का हथियारों का विशाल कलैक्शन दिखाई दिया था । हमने तमाम हथियारों की लिस्ट हासिल की थी और उन्हें फायर आर्म्स के रजिस्ट्रेशन के रिकॉर्ड से मिलाकर देखा था तो हमें मालूम था कि लिस्ट में एक बाइस कैलिबर की सीरियल नम्बर डी -211436 की रिवॉल्वर दर्ज नहीं की गई थी । मिस्टर माथुर से दोबारा सवाल किए जाने पर उन्होंने कहा था कि ऐसा गलती से हो गया था । लेकिन और हथियारों की तरह वो उस रिवॉल्वर को पेश नहीं कर सके थे । रिवॉल्वर कहां गायब हो गई थी, इसका कोई संतोषजनक जवाब भी वो नहीं दे सके थे । असलियत की तसदीक तो रिवॉल्वर की बरामदगी के बाद और उसके बैलेस्टिक एग्जामिनेशन के बाद ही होगी लेकिन फिलहाल मुझे पूरी-पूरी गारंटी है कि वही गुमशुदा रिवॉल्वर मर्डर वैपन है । और इसी वजह से मिस्टर माथुर के हाउसहोल्ड का हर मैम्बर और उनके यहां आने वाला हर रिश्तेदार और वाकिफकार सस्पैक्ट है ।”
“वो मेरे लिए बुरी खबर थी । पुलिस की तवज्जो इतनी जल्दी और इतनी गंभीरता से माथुर के हाउसहोल्ड की तरफ हो जाना वहां से हासिल होने वाली मेरी मोती फीस में विघ्न डाल सकता था ।
“बातचीत किस किससे हुई ?” मैंने पूछा ।
“सरसरी तौर पर अभी मिस्टर माथुर से, उनकी पत्नी सुधा माथुर से, पुनीत खेतान से और सुजाता मेहरा से हुई । बाकियों से अभी होगी । बारीकी से अभी इनसे भी होगी ।”
जो कि मेरे लिए चिंता की बात थी । कल सारा दिन जिन लोगों के पीछे मैं पड़ा रहा था, उनमें से कोई भी सहज स्वाभाविक ढंग से ही कोई ऐसी बात उगल सकता था जिससे पुलिस को ये मालूम हो जाता कि कत्ल की खबर आम होने से बहुत पहले ही मैं उन लोगों से कत्ल की बाबत पूछताछ करता फिर रहा था ।
फुर्ती बरतने में ही मेरा कल्याण था ।
वहां से अब कुछ और हासिल होता मुझे दिखाई नहीं दे रहा था । वहां टिके रहना अब बेमानी था ।
“चलें ?” मैं मदान से बोला ।
तभी एकाएक मेज पर रखे फोन की घंटी बज उठी ।
यादव ने अपना हाथ बढाकर रिसीवर उठाया और उसे कान से लगा लिया । वह कुछ क्षण हां हूं करता दूसरी ओर से आती आवाज सुनता रहा । हां हूं के अलावा जो एक पूरा फिकरा उसके मुंह से निकला था ‘आपको कैसे मालूम’ लेकिन लगता था कि तभी लाइन कट गई थी क्योंकि यादव ने बुरा-सा-मुंह बनाकर फोन वापस क्रेडल पर रख दिया ।
“मेरे महकमे में ये बड़ा नुक्स है ।” वो बोला, “सारा दिन गुमनाम टेलीफोन कॉल आती रहती हैं । और साले अपनी कहना चाहते हैं, दूसरे की नहीं सुनना नहीं चाहते । कुछ पूछने लगो तो लाइन काट देते हैं ।”
मैंने बड़े सहानुभूतिपूर्ण ढंग से गरदन हिलाई ।
“क्या कह रहे थे तुम ?” वो बोला ।
“तुम्हारे से नहीं, मदान साहब से कह रहा था ।” मैं फिर मदान से संबोधित हुआ, “चलें ?”
“ये तो अभी ठहरेंगें ।” यादव मदान के बोलने से पहले बोल पड़ा, “इन्होंने लाश क्लेम करने के लिए चिट्ठी ले के जानी है ।”
“तो फिर” मैं उठ खड़ा हुआ, “मैं चलता हूं ।”
***
मैं फ्लैग स्टाफ रोड पहुंचा ।
मैंने अपनी कार बाहर सड़क पर ही खड़ी कर दी । उसे भीतर ले जाकर मैं उसकी तौहीन नहीं कराना चाहता था । भीतर खड़ी दर्जन भर चमचम करती देसी विलायती कारों के सामने जरूर मेरी खटारा फियेट शर्म से पानी-पानी हो जाती ।
मैं आयरन गेट पर पहुंचा तो सशस्त्र गोरखे ने मुझे पहचान कर दरवाजा खोला । मैं भीतर दाखिल हुआ ।
“गोरखा ! इस आदमी को पकड़ के रखना । खिसकने न पाए । भागने की कोशिश करे तो गोली मार देना ।”
मैंने अचकचाकर आवाज की दिशा में सिर उठाया तो कोठी की विशाल टेरेस पर मुझे ड्रेसिंग गाउन पहने पिंकी खड़ी दिखाई दी । उसकी मुट्ठियां भिंची हुई थीं और वो आंखों से मेरे ऊपर भाले बर्छियां बरसा रही थी ।
मैंने मुस्कुराकर उसकी तरफ हाथ हिलाया ।
उसने यूं एक उंगली से मुझे ऊपर आने का इशारा किया जैसे कोई मलिका किसी गुलाम को तलब कर रही हो ।
मैं ड्राइव वे में आगे बढा ।
मैं कोठी के करीब पहुंचा तो उसी क्षण मनोज बाहर निकला । मुझे देखते ही वो मेरे करीब आया और मेरी बांह पकड़कर मुझे मार्की के एक खंभे की ओट में ले गया ।
“मिस्टर कोहली !” फिर वो धीरे से बोला, “टैल मी फ्रैंकली । वाट इज युअर गेम ?”
“क्या मतलब ?” मैं बोला ।
“मेरी डैडी से बात हुई है । वो कहते हैं कि हमारी एक मिल में एक मोटी रकम का घोटाला हुआ है जिसकी तफ्तीश के लिए तुम्हारी सेवाएं प्राप्त की गई हैं ।”
“ठीक है ।”
“नहीं ठीक है । मैं माथुर इंडस्ट्रीज का एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हूं । ऐसा कोई घोटाला हुआ है तो उसकी खबर मेरे तक क्यों नहीं पहुंची ?”
“मैं क्या जानूं क्यों नहीं पहुंची । मैं तो कॉर्पोरेट फंक्शनिंग को कोई खास समझता नहीं ।”
“रात को अब्बा में तुम मेरे से शशिकांत के कत्ल की बाबत सवाल पूछ रहे थे । हमारी मिल के रकम के घोटाले में शशिकांत के कत्ल का क्या रिश्ता !”
मैंने उत्तर न दिया ।
“मिस्टर कोहली” उसने मेरी बांह थाम कर हिलाई, “कम क्लीन ।”
“मैं” मैं अपनी बांह छुड़ाता हुआ बोला, “एक वक्त में दो केसों की तफ्तीश नहीं कर सकता ?”
“कर सकते हो । एक क्या दस केसों की तफ्तीश कर सकते हो । लेकिन फिर भी हो सकता है कि जो केस मेरे डैडी ने तम्हें सौंपा है, वो उन दसों में से कोई भी न हो ।”
“ऐसा कौन-सा केस होगा ?”
“तुम्हें मालूम है । देखो, मेरे से ठीक से पेश आओगे तो घाटे में नहीं रहोगे, बल्कि बहुत फायदे में रहोगे ।”
“मैं समर्थ आदमी की दोस्ती में पूरा-पूरा यकीन रखता हूं ।”
“ये की न समझदारी की बात ।”
“लेकिन क्या ठीक से पेश आऊं मैं आपके साथ ?”
“मुझे वो असल वजह बताओ जो तुम्हें डैडी के पास लाई है ।”
“असल वजह ?”
“मेरी सौतेली मां । मिसेज सुधा माथुर ! यही है न असल वजह ?”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
“झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं । यही है असल वजह । डैडी ने तुम्हें सुधा को इन्वेस्टिगेट करने के लिए रिटेन किया है ।”
“नहीं ।”
“खामखाह इन्कार न करो । खामखाह झूठ न बोलो ।”
“लेकिन........”
“सुनो । पहले पूरी बात सुनो । अपने प्राइवेट डिटेक्टिव के धंधे में किसलिए हो तुम ? चार पैसे कमाने के लिए । हो या नहीं ?”
“वो तो है ।”
“मैं तुम्हें आठ पैसे कमाने का मौका देता हूं । सुनो” उसका स्वर एकाएक इतना धीमा हो गया कि मैं बहुत कठिनाई से सुन सका, “सुधा के बारे में जो भी जानकारी हासिल करो, उसे डैडी के पास ले जाने की जगह पहले मेरे पास लाओ । मैं तुम्हें डबल फीस दूंगा । ओ के ।”
“आपने ये तो पूछा ही नहीं कि सिंगल फीस क्या है ?”
“कुछ भी हो ।”
“अपने डैडी से पूछेंगें ?”
“हरगिज भी नहीं । आई विल टेक युअर वर्ड फार इट । अपने और मेरे डैडी के बीच सैटल हुई जिस रकम का भी नाम तुम लोगे, मैं उससे दुगनी तुम्हें दूंगा ।”
“चाहे मैं झूठ बोल दूं ?”
“चाहे तुम झूठ बोल दो ।”
“मैं आपकी ऑफर पर विचार करूंगा ।”
“अभी भी विचार करोगे ?” वो आंखें निकालकर बोला ।
“सिर्फ शाम तक । शाम को आपको मेरा जवाब मिल जाएगा ।”
“कहां ?”
“जहां भी आप होंगें । मैं ढूंढ लूंगा आपको । आई एम ए डिटेक्टिव । रिमेम्बर ?”
वो कुछ क्षण अनिश्चित सा मुझे देखता रहा और फिर सहमति में गर्दन हिलाने लगा ।
उसे यूं ही गर्दन हिलाता छोड़कर मैं कोठी में दाखिल हुआ । सीढ़ियों के रास्ते मैं ऊपर पहुंचा ।
वैसे ही फुम्फ्कारती वो मुझे सीढ़ियों के दहाने पर मिली ।
“साले ।” वो फुम्फ्कारी, “हरामजादे ।”
“वो तो मैं हूं ही ।” मैं तनिक सिर नवाकर मुस्कराता हुआ बोला ।
“सन ऑफ बिच !”
“अग्रेजी में भी वही ।”
“यू लाउजी डबल क्रासिंग सन ऑफ बिच ।”
“ओरिजिनल । वैरी फर्स्ट । इस जगत प्रसिद्ध बिच ने जितने सन पैदा किए हैं, सब मेरे बाद पैदा किए पहलोठी का सिर्फ मैं हूं ।
उसका हाथ हवा में घूमा जो कि मैंने रास्ते में ही थाम लिया ।
“जुबानी-जुबानी ठीक है ।” मैं क्रूर स्वर में बोला, “हाथ चालकी नहीं चलेगी । समझ गई ?”
मैंने उसकी कलाई तनिक मरोड़ी ।
“छोड़ो ।” वो पीड़ा से बिलबिलाती हुई बोली, “छोड़ो ।”
मैंने कलाई छोड़ दी ।
“अब बोलो क्या कहना है ?” मैं बोला ।
“तुम्हें नहीं पता क्या कहना है ?” वो चीखी ।
“धीरे । धीरे ।”
“कल रात आठ बजे कहां मर गये थे ?”
“मर ही गया था ।” मैं बड़े दयनीय स्वर में बोला ।
“क्या हुआ था ?” वो गुस्सा छोड़कर सकपकाई ।
“पुलिस ने पकड़ लिया था ।”
“क्या ?”
“बोले उग्रवादी है । बोलो, मैं उग्रवादी लगता हूं ?”
“नहीं ।”
“घंटा बैठाए रखा तो कहीं जाके छोड़ा ।”
“मैं डेढ़ घंटा तुम्हारे फ्लैट के सामने एडियां घिसती रही ।”
“छूटने के बाद आधा घंटा रास्ते में ही लग गया था न ।” मैंने जल्दी से जोड़ा, “बस तुम गई ही होगी तो मैं पहुंच गया होऊंगा ।”
“मैं और इन्तजार कर लेती । तब मुझे पता थोड़े ही था कि तुम...”
“वही तो । आई एम सॉरी, स्वीटहार्ट । तुम्हें तकलीफ हुई ।”
“तकलीफ तो बहुत हुई ।” वो अनमने स्वर में बोली, “कभी ऐसे किसी का इन्तजार नहीं किया मैंने । लेकिन....खैर । फिल्म कहां है ?”
“तुम्हारा कमरा कहां है ?”
उसने पीछे एक बंद दरवाजे की ओर इशारा किया ।
“वहां टीवी, वीसीआर हैं ?”
“हैं ।”
“इस वक्त अपने कमरे में जाकर फिल्म देख सकती हो ?”
“बड़े आराम से ।”
“तो ये लो कैसेट ।” मैं बोला, “जाकर फिल्म देखो । मैंने जरा तुम्हारे डैडी से मिलना है ।”
उसने बड़ी व्यग्रता से सहमति में सिर हिलाते हुए कैसेट ले लिया ।
“कहां मिलेंगे, माथुर साहब ?” मैंने पूछा ।
“नीचे नायर के पास चले जाओ । मिलवा देगा ।”
मैं वापस सीढियां उतर गया ।
उस रोज भी कृष्ण बिहारी माथुर से मेरी मुलाकात शूटिंग रेंज पर ही हुई । उस रोज भी मैंने उसे रायफल से टारगेट प्रैक्टिस करते पाया जो कि मेरे लिए अच्छा ही था । जो कुछ मैं उससे कहने वाला था उसके लिए मेरा उससे तनहाई में मिलना जरूरी था ।
मैं हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया ।
उसने गर्दन के हल्के से झटके से मेरा अभिवादन स्वीकार किया, अपनी व्हील चेयर का रुख थोड़ा मेरी तरफ किया और रायफल को व्हील चेयर के साथ टिकाकर खड़ा किया ।
“आओ, मिस्टर कोहली” वो बोला, “जरूर कोई अच्छी खबर लाए हो ।”
“अभी नहीं, सर ।” मैं अदब से बोला ।
“तो” वो तनिक रुष्ट स्वर में बोला, “फिर कैसे आए हो ?”
“कुछ कहने आया हूं, कुछ पूछने आया हूं कुछ याद दिलाने आया हूं ।”
“हम सुन रहे हैं ।”
“मैंने आपसे कल भी कहा था कि क्लायंट और प्राइवेट डिटेक्टिव का रिश्ता मरीज और डॉक्टर जैसा होता है । जैसे ....”
“हमें याद है । भूले नहीं हैं हम । तुम्हारी बात से इत्तफाक भी है हमें ।”
“फिर भी आपने मेरे से झूठ बोला ।”
“क्या बकते हो ?”
“एक नहीं, दो बातों में । परसों शाम चार बजे आपने शशिकांत से फोन पर बात की थी । लेकिन आपने मुझे नहीं बताया । परसों रात आप उसकी कोठी पर भी गए थे लेकिन आपने ये बात मेरे से छुपा कर रखी ।”
“झूठ ।”
“कौन-सी बात झूठ है, टेलीफोन कॉल वाली या शशिकांत से मिलने जाने वाली या दोनों ?”
उसने उत्तर न दिया ।
मैने जेब से कल हासिल हुआ दस हजार रुपये का चैक निकाला और उसकी कुर्सी के पहलू में पड़ी उस टेबल पर रख दिया जिस पर कारतूस के डिब्बे और रिवॉल्वर पड़ी थीं ।
“ये आपका चैक है” मैं बोला, “जो कल आपने मिस्टर नायर से बतौर रिटेनर मुझे दिलवाया था । साफगोई से परहेज रखने वाले क्लायंट की कोई खिदमत कर पाने में मैं अपने आपको नाकाबिल पाता हूं ।”
“तुम्हें फीस से मतलब होना चाहिए ।”
“दुरुस्त फरमाया आपने । अमूमन फीस से ही मतलब होता है । हराम के पैसे से भी मुझे परहेज नहीं । लेकिन हराम की फीस से मुझे परहेज है । मेरी ये हरकत मेरा धंधा बिगाड़ सकती है । जैसे कल आपने मेरे बारे में किसी से पुछवाया तो आपको अच्छा-अच्छा सुनने को मिला, वैसे ही आइन्दा दिनों में कोई आपसे मेरे बारे में सवाल करेगा तो आपका जवाब यही होगा कि निकम्मा आदमी है सुधीर कोहली । मोटी फीस भी खा गया और कोई काम भी करके न दिखा सका । सर, मेरा धंधा माउथ टू माउथ रिक्मेंडेशन से चलता है । लोग मेरा कोई इश्तिहार पढ के मेरे पास नहीं आते । एक संतुष्ट क्लायंट ही दूसरा क्लायंट भेजता है मेरे पास । आप समझ रहे हैं न मेरी बात ?”
उसने कोई उत्तर न दिया ।
“सर, मैं ऐसे क्लायंट के लिए काम करना अफोर्ड नहीं कर सकता जो खुद ही नहीं चाहता कि मैं कामयाब होऊं ।”
“ऐसी बात नहीं है ।”
“तो फिर झूठ क्यों ? छुपाव क्यों ? पर्दादारी किस लिए ? जो बातें मैने कही, उन दोनों की हकीकत के सबूत हैं मेरे पास ।”
“क्या सबूत हैं ?”
“मैं अभी पेश करता हूं । पहले कौन-सी बात का सबूत चाहते हैं आप ?”
“पहले पहली बात की बाबत ही बोलो ।”
“जो मैं कहूंगा, वो अगर सच होगा तो आप हामी भरेंगें ?”
“जरूर ।”
“परसों शाम चार बजे आपने शशिकांत को उसकी कोठी पर फोन किया था ।”
“झूठ । हम कभी किसी ऐरे-गैरे को फोन नहीं करते ।”
“तो उसने आपको किया होगा ।”
वो फिर खामोश हो गया ।
“उस वार्तालाप का एक गवाह है ।” मैं बोला, “जिसने साफ शशिकांत को माथुर नाम लेते सुना था । वो माथुर या आप हो सकते हैं या आपके साहबजादे । कल मैंने ज्यादा दबाव देकर इस बाबत आपसे इसलिए नहीं पूछा था क्योंकि मैं पहले आपके साहबजादे से बात कर लेना चाहता था । आपके साहबजादे उस टेलीफोन कॉल से इन्कार करते हैं । चाहे तो बुलाकर खुद तसदीक कर लें ।”
“कोई जरूरत नहीं । वो माथुर हम ही थे जिनसे उस शख्स ने बात की थी । वो कई दिनों से हमसे बात करने को तड़प रहा था परसों उसकी कॉल आई थी तो हमने उस बेहूदगी को खत्म करने के लिए उससे बात करना गवारा कर लिया था ।”
“आई अंडरस्टेंड । बात क्या हुई ?”
“कुछ भी नहीं । वो घटिया आदमी फोन पर कुछ बताना ही नहीं चाहता था । वो तो बातचीत के लिए शाम साढ़े आठ बजे हमें अपनी कोठी पर आने को कह रहा था । यूं दबाव में आकर तो हम कभी किसी अमीर उमरा से मिलने नहीं गए । हम तो उसकी इस गुस्ताखी पर ही भड़क उठे थे कि वो हमें अपने यहां आने के लिए कह रहा था ।”
“नतीजतन आपने उससे कहा था कि अगर आपको उसके घर आना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने आएंगें ।”
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा ।
“वो वार्तालाप किसी तीसरे शख्स ने सुना था । मैंने पहले ही अर्ज किया है ।”
“ओह ।”
“सर, आपको पहले मालूम नहीं था लेकिन क्या अभी भी नहीं मालूम कि शशिकांत आपसे क्या चाहता था ?”
“नहीं । अभी भी नहीं मालूम ।”
“जानना चाहते हैं ?”
“हां । जरूर ।”
“वो आपके सामने आपका दामाद होने का दावा पेश करना चाहता था ।”
“क्या !”
“और इस बिना पर आपको ब्लैकमेल करना चाहता था ।”
“क्या बकते हो ?”
“उसका कहना था कि उसने नेपाल में पिंकी से शादी की थी और उस शादी के सबूत के तौर पर उसके पास शादी की वीडियो फिल्म उपलब्ध थी ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“सर, मेरी हर जानकारी पर सवालिया निशान न लगाइए । मालूमात से ही तो मेरा कारोबार चलता है ।”
“ऐसा नहीं हो सकता । हम पिंकी से बात करेंगे । हम अभी पिंकी से बात करेंगें ।”
“अब वो बातचीत बेमानी होगी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि आपका दामाद होने का दावा करने वाला शख्स मर चुका है ।”
“लेकिन ....लेकिन...वो वीडियो फिल्म....”
“मेरे पास है ।”
“तु... तुम्हारे पास ?”
“जी हां ।”
“तुमने देखी वो फिल्म ?”
“जी हां ।”
“क्या वाकई उस आदमी ने.... पिंकी से.... शादी...”
“शादी तो दर्ज है उस कैसेट में लेकिन सर, पिंकी की हालात से साफ जाहिर होता था कि उसे तो खबर तक न थी कि उसके साथ क्या बीत रही थी । वो किसी तीखे नशे की गिरफ्त में मालूम होती थी और यंत्रचालित मानव की तरह उससे जो कहा जा रहा था, वो कर रही थी । कहने का मतलब ये है कि वो फिल्म धोखे से तैयार की गई थी आप पर दबाव बनाने के लिए ।”
“लेकिन जब तुम कहते हो कि साफ पता लग रहा था कि वो शादी फर्जी थी तो फिर दबाव कैसे बनता ? जब पिंकी को नशा कराके, उसे बेसुध करके वो सब कुछ .....”
“वही सब कुछ होता, सर, तो कोई बात नहीं थी लेकिन उस कैसेट में और भी कुछ था ।”
“और क्या था ?”
“और वही था जो शादी के बाद होता है । सुहागरात ।”
“ओह, माई गॉड ।”
“आप पर मेन प्रेशर पॉइंट तो वही साबित होता, सर ।”
“तुमने कहा कि वो कैसेट तुम्हारे पास है ?”
“जी हां ।”
“हमें दो ।”
“आप क्या करेंगें ?”
“हम खुद तसदीक करेंगे कि उस कैसेट में वो सब कुछ है जो कि तुम कह रहे हो कि है ।”
“बेटी की उरियानी देख सकेंगें ?”
वो खामोश हो गया । उसने जोर से थूक निगली ।
“वो...... वो कैसेट” कई क्षण बाद वो फंसे स्वर में बोला, “नष्ट होना चाहिए ।”
“हो जाएगा ।” मैं बोला ।
“हमें तसल्ली होनी चाहिए कि वो नष्ट हो गया है वरना हमें उम्र भर फिक्र लगी रहेगी कि किसी दिन कहीं तुम ही... तुम ही ....”
“कहीं मैं ही ब्लैकमेलिंग पर न उतर आऊं ? यही कहने जा रहे थे न आप ?”
उसने उत्तर न दिया ।
“मेरा ऐसा इरादा होता तो मैं आइन्दा किसी दिन का इन्तजार क्यों करता ? आज के दिन में क्या खराबी है ?”
“हम शर्मिंदा हैं, बेटा लेकिन हम भी क्या करें ! हम सिर्फ कृष्ण बिहारी माथुर नहीं, एक बेटी के बाप भी हैं । औलाद कितनी ही नालायक क्यों न हो, उसकी फिक्र मां-बाप ने ही करनी होती है, उसके रास्ते के कांटे मां बाप ने ही बीनने होते हैं । अब पिंकी की मां तो है नहीं ....”
“आई अंडरस्टैंड, सर । वो कैसेट मैंने पिंकी को सौंप दिया है । इस वक्त अपने कमरे में बैठी वो उस कैसेट की फिल्म ही देख रही है । आप खुद ही कल्पना कर सकते हैं कि देख चुकने के बाद वो फिल्म की क्या गत बनाएगी ।”
“क्या गत बनाएगी ?”
“समझदार होगी तो फिल्म की राख तक का पता नहीं लगने देगी ।”
“होगी समझदार ?”
“क्यों नहीं होगी ? आखिर बेटी किस की है !”
उसने सहमति में सिर हिलाया । वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला, “हम शर्मिंदा हैं कि हमने तुम्हारी नीयत पर, तुम्हारे कैरेक्टर पर शक किया ।”
“जाने दीजिए । मेरी नीयत बद है और कैरेक्टर खराब है ।”
“तुम मजाक कर रहे हो ।”
“यही समझ लीजिए ।”
“हम तुम्हारी फीस में कोई इजाफा......”
“फिर वो फीस नहीं, रिश्वत बन जाएगी ।”
“तुम हमारी समझ से बाहर हो ।”
“बात कुछ और हो रही थी । बात दूसरी बात की, शशिकांत से आपके मिलने जाने की, हो रही थी ।”
“दूसरी बात झूठ है ।” पलक झपकते ही वो फिर पहले वाला सर्वशक्तिमान माथुर बन गया, “हम उसके यहां कभी नहीं गए ।”
“लेकिन साढे आठ बजे की अपोइंटमेंट.....”
“वाट अपोइंटमेंट ?” वो झुंझलाया, “देयर वाज नो अपोइंटमेंट, मिस्टर कोहली । वो चाहता था हम उसके यहां जाएं । हम नहीं चाहते थे कि हम उसके यहां जाएं । हम ऐसे बिलो डिग्निटी आदमी की मेजबानी कबूल करते जिसकी हमें सूरत भी देखना गवारा नहीं था ?”
“तो आप नहीं गए थे ?”
“हमने ख्याल तक नहीं किया था जाने का ।”
“सच कह रहे हैं ?”
“वाट नानसेन्स !”
“आप एक बार झूठ बोल चुके हैं । कल आपने शशिकांत से वाकफियत होने से इन्कार किया था ।”
“क्या वाकफियत थी हमारी उस शख्स से? हमने कभी सूरत तक नहीं देखी उसकी ।”
“आपने नाम तक से नावाकफियत जाहिर की थी ।”
“हां, उस मामूली-सी गलतबयानी के खतावार हम हैं ।”
“लेकिन ये आप सच कह रहे हैं कि आप कल रात वहां नहीं गए थे ?”
“हां ।”
“चाहे तो जा सकते थे ? अकेले ?”
वो हिचकिचाया ।
“'मेरे को आपकी उस हैंडीकैपड पर्सन वाली होंडा अकॉर्ड की खबर है जिसके स्टीयरिंग के पीछे तक आपकी ये व्हील चेयर चढ़ जाती है और जिसके सारे कंट्रोल हाथों से आपरेट किए जाते हैं ।”
“कैसे जाना ?” वो मुंह बाए मुझे देखता हुआ बोला ।
“आई एम ए डिटेक्टिव । रिमेम्बर !”
“कैसे जाना ?”
“दैट इज बिसाइड दि पॉइंट , सर । कैसे भी जाना । जाना । पहले भी अर्ज किया है, फिर अर्ज करता हूं, सर कि मेरी हर जानकारी पर सवालिया निशान न लगाइए । बात सच नहीं है तो साफ कहिए ।”
“बात सच है और तुम्हारे सवाल का जवाब भी ये है कि हम चाहते तो बिना किसी की मदद के वहां जा सकते थे ।”
“आप गए थे ?”
“नहीं ।”
“मेरे पास सबूत है कि आप वहां गए थे ।”
“क्या सबूत है ?”
“आपकी व्हील चेयर के टायरों के निशान शशिकांत की कोठी के ड्राइव-वे में बने पाए गए हैं ।”
वो खामोश हो गया ।
“पुलिस ने तो” फिर वो बोला, “ऐसे निशानों का कोई जिक्र नहीं किया था ।”
“पुलिस की तवज्जो नहीं गयी होगी उन निशानों की तरफ ।”
“जब तुम्हारी गई थी तो उनकी तवज्जो....”
“न जाना कोई बड़ी बात नहीं । उन्हें केस की तफ्तीश की लाख रुपया फीस नहीं मिलती ।”
“वो निशान कहां पाए गए थे ?”
“बताया तो था । ड्राइव-वे पर ।”
“मेरा मतलब है कहां से कहां तक ?”
“पूरे ड्राइव-वे पर । बाउंड्री वाल में बने आयरन गेट से लेकर कोठी के प्रवेशद्वार तक । आगे भीतर पक्का फर्श था या कार्पेट था इसलिए वहां निशान नहीं बन पाए थे ।”
“आयरन गेट बंद नहीं रहता ?”
“नहीं । उसमें कोई नुक्स है । वो झूलकर अपने आप खुल जाता है और अमूमन खुला ही रहता है । भीतर से ताला ही लगाया जाए वो अपनी जगह पर टिकता है । और ताला सुना है कि रात में ही लगाया जाता है ।”
“और तुम कहते हो कि निशान हमारी व्हील चेयर से बने थे ।”
“क्या ऐसा नहीं है ?”
“बात को समझो । वो निशान व्हील चेयर के थे, कबूल । लेकिन वो हमारी ही व्हील चेयर के थे, ये कैसे कह सकते हो ?”
“क्योंकि व्हील चेयर इस्तेमाल करने वाले इस केस से ताल्लुक रखते वाहिद शख्स आप हैं ।”
उसने अट्टहास किया ।
मैंने सकपकाकर उसकी तरफ देखा ।
“मिस्टर” वो पूर्ववत हंसता हुआ बोला, “जैसे हम टांगों से लाचार हैं, वैसे ही तुम हमें दिमाग से भी लाचार तो नहीं समझ रहे हो ?”
“मैं कुछ समझा नहीं ।”
“फर्ज करो हम वहां गए । अपनी हैंडीकैपड पर्सन वाली होंडा अकार्ड खुद चलाते हुए हम वहां गए । अब वहां आयरन गेट या बंद रहा होगा या खुला रहा होगा । बंद वो तभी रह सकता है जबकि उसे ताला लगा होगा । ओ के ?”
“यस सर ।”
“अपनी आमद की तरफ उसकी तवज्जो दिलाने के लिए हम क्या करेंगे ?”
“आप घंटी बजाएंगें ।”
“वहां आयरन गेट पर घंटी भी है ?”
“जी हां । वहां भी और भीतर भी ।”
“हमें नहीं मालूम था । हम तो कार के हार्न की बाबत सोच रहे थे । बहरहाल चाहे होर्न बजा हो, चाहे घंटी बजी हो, वो कोठी से निकलकर आयरन गेट तक जरूर आएगा ।”
“जाहिर है । फाटक खुलेगा तो आप भीतर दाखिल होंगें ।”
“वो ही आएगा । क्योंकि अखबार में भी छपा है कि वो उस वक्त घर में अकेला था ।”
“जी हां ।”
“तो फिर हमने उसे आयरन गेट पर ही गोली क्यों नहीं मार दी ?”
“सड़क पर आवाजाही होगी ।”
“पागल हुए हो ! हम क्या मैटकाफ रोड को जानते नहीं । इस मौसम में उधर अंधेरा होने के बाद वहां सड़क पर बंदा नहीं दिखाई देता ।”
मैं खामोश रहा ।
“वैसे हमारे पास आवाजाही का भी जवाब है । वहां ऐसा कोई माहौल होता तो चलने-फिरने से लाचार होने की दुहाई देकर हम शशिकांत को कार में अपने साथ बिठाते, उसे कार में ही शूट करते और रात में किसी सुनसान जगह पर लाश को धकेल कर घर आ जाते । अब बोलो, मिस्टर डिटेक्टिव ?”
“गेट खुला होगा ।”
“उस सूरत में हम कार बाहर छोडकर अपनी कुर्सी लुढ़काते हुए अंदर तक क्यों जाते, व्हील चेयर पर लुढकते फिरने का क्या हमें शौक है? तब कार को ही कोठी के भीतर ऐन प्रवेश द्वार तक ले जाना आसान काम न होता ?”
“होता ।” मैंने कबूल किया ।
“और फिर सौ बातों की एक बात । फोन पर हम कह नहीं सकते थे कि हम अपाहिज थे, आ जा नहीं सकते थे, इसलिए मुलाकात के लिए वो आए ।”
“मुलाकात के लिए उसे यहां आने को कहा जा रुकता था लेकिन कत्ल के लिए तो जाना पड़ता है न, सर !”
“बाईस कैलिबर की खिलौना रिवॉल्वर साथ ले के, कुल जहान के फायर आर्म हमारे यहां उपलब्ध हैं । शूटिंग हमारी हॉबी है और कत्ल के लिए हम चुनते हैं एक मामूली, नाकाबिलेएतबार, जनाना हथियार । और उससे भी अपने मकसद में कामयाब होने के लिए हमें छः गोलियां चलानी पड़ी तो लानत है हमारी मार्क्समैनशिप पर ।”
“मैं आपसे सहमत हूं सर, लेकिन ये हकीकत फिर भी अपनी जगह पर कायम है कि मौकाएवारदात पर व्हील चेयर के पहियों के निशान थे ।”
“वो जरूर किसी ने हमें फसाने के लिए बनाए थे ।”
“किसने ?”
“जिस किसी ने भी हमारा और शशिकांत का टेलीफोन पर हुआ वार्तालाप सुना होगा । मसलन तम्हारे उस गवाह ने जिसने तुम्हें बताया है कि हमने फोन पर कहा था कि अगर हमें शशिकांत के घर जाना पड़ा तो हम उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगे । तुम्हारा वो गवाह क्या कोई औरत है ?”
“है तो औरत ही ।”
“तो फिर ये जरूर उसी की करतूत है । उसी ने घटनास्थल पर व्हील चेयर के निशान बनाकर हमें फंसाने की कोशिश की है । उसी ने ये स्थापित करने की कोशिश की है कि हम सच में ही शशिकांत को गोली मार देने के लिए उसकी कोठी पर पहुंच गए थे ।”
“आई सी ।”
“हमें वैसे भी पुलिस की इस थ्योरी पर एतबार है कि ये काम किसी औरत का है जिसने कि रिवॉल्वर का रुख मरने वाले की और किया और आखें बंद करके उसका घोड़ा खींचना शुरू कर दिया ।”
“यूं खौफ खाकर रिवॉल्वर चलाने वाली औरत से आप उम्मीद करते हैं कि कत्ल के बाद भी घटनास्थल पर व्हील चेयर के पहियों के निशान प्लांट करने के लिए ठहरी होगी वो । वो क्या गोलियां खत्म होते ही रिवॉल्वर फेंककर भाग न खड़ी हुई होगी ?”
“अब हम क्या कहें, भई ! डिटेक्टिव तुम हो, हम तो नहीं ।”
“आप को मालूम है कि कत्ल के संभावित वक्त पर मिसेज माथुर घर पर नहीं थी ?”
वो कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“कैसे मालूम हुआ ? पुनीत खेतान के बयान के बाद पुलिस के मिसेज माथुर से पूछताछ करने आने से ?”
“नहीं । हमें तो परसों से मालूम था । तभी मालूम था जबकि वो कोठी से गई थी ।”
“तब आप जाग रहे थे ?”
“हां ।”
“आपने मिसेज माथुर का दिया सिडेटिव नहीं खाया था ?”
“खाया था । फिर भी जाग रहे थे । हमारे दिमाग पर फिक्र का बोझ हो तो सिडेटिव हमारे पर असर नहीं करता । परसों उस आदमी की फोन कॉल ने हम बहुत डिस्टर्ब किया था । सिडेटिव खाने के बावजूद हमें नींद नहीं आई थी ।”
“या शायद आपने सिडेटिव खाया ही नहीं था ।” मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला, “इसलिए क्योंकि मिसेज माथुर के लिए आई फोन कॉल के बाद ही वो आपको सिडेटिव देने पहुंच गई थीं ।”
उसने उत्तर न दिया । वो परे देखने लगा ।
“खैर छोड़िये ।” मैं बोला, “तो परसों रात आपने मिसेज माथुर को यहां से निकलकर चुपचाप कहीं जाते देखा था ?”
“हां ।”
“लौटते भी देखा था ?”
“हां ।”
“आपने पूछा था कि वो कहां गई थी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो मेरी उम्मीद से बहुत जल्दी लौट आई थी । किसी फाश इरादे से वो घर से निकली होती तो इतनी जल्दी न लौटी होती ।”
“फौरन न सही, बाद में भी कुछ नहीं पूछा था आपने इस बाबत ? शक की बिना पर नहीं तो उत्सुकतावश ही सही ।”
“बाद में भी नहीं पूछा था ।” वो धीरे से बोला ।
“आपके कहने के ढंग से लगता है कि बाद में भी न पूछने की कोई जुदा वजह थी ।”
“हां । वजह तो जुदा ही थी ।”
“क्या ?”
“अब क्या बताऊं ?”
“मैं बताता हूं । तब तक आपको शशिकांत के कत्ल की खबर लग चुकी थी और उस बाबत जो बातें मालूम हुई थीं, उन्होंने आपको ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि शायद मिसेज माथुर ने ही कत्ल किया था । देखिए न, रिवॉल्वर उन्हें आसानी से उपलब्ध । ऐन कत्ल के वक्त वो मौकाएवारदात पर उपलब्ध । हालात का इशारा कातिल किसी औरत के होने की तरफ । आपने ऐसा सोचा हो तो क्या बड़ी बात थी ?”
“यही बात थी । हमने इसीलिए सुधा से कोई सवाल नहीं किया था । इसीलिए हमने उस पर ये भी जाहिर नहीं होने दिया था कि हमें मालूम था कि वह परसों शाम को चुपचाप घर से निकली थीं ।”
“मिसेज माथुर के पास कत्ल का क्या उद्देश्य रहा होगा ?”
“शायद पिंकी की खातिर उसने ऐसा किया हो ।”
“कमाल है, सर ! एक तरफ आप बीवी के कैरेक्टर पर शक करते हैं और दूसरी तरफ आप उसके कैरेक्टर को इतना ऊंचा उठा रहे हैं कि समझते हैं कि वो आपकी औलाद की खातिर, जो कि उसकी कुछ भी नहीं लगती, अपनी जान जोखिम में डालकर किसी का कत्ल कर सकती है । एक ही औरत बीवी के रोल में तो हर्राफा और सौतेली मां के रोल में सती सावित्री !”
वो खामोश रहा । एकाएक वो कुछ विचलित दिखाई देने लगा ।
“ये तो आप मानते हैं न कि जिस किसी ने भी कत्ल किया होगा, मौकाएवारदात पर व्हील चेयर के पहिये के निशान भी उसी ने बनाए होंगे ?”
“और कौन बनाएगा ?”
“एग्जेक्टली । अब आप ये बताइये कि ऐसा क्योंकर मुमकिन है कि कोई औरत बेटी को बचाने के लिए कत्ल करे और उसी कत्ल में बाप को फंसाने का सामान कर दे ?”
“हो तो नहीं सकता ऐसा ।
“कबूल करते हैं फिर भी बीवी पर कातिल होने का शक करते हैं ।”
वो खामोश रहा । उसने बेचैनी से व्हील चेयर पर पहलू बदला ।
“मुझे लगता है कि आपको तो खुशी होगी कि अगर आपकी बेटी किसी स्कैंडल का शिकार होने से बच जाए और आपकी बीवी कत्ल के इलजाम में पकड़ी जाए, बीवी का क्या है, वो तो और आ जाती है । लेकिन औलाद और वो भी पली-पलाई ......”
“ओह, शटअप ।” वो चिढकर बोला “अब इतने भी कमीने नहीं हैं हम ।”
“जरूर नहीं होंगे । दरअसल मैं इतना ही कमीना हूं । कमीने आदमी को कमीनी बात जरा जल्दी सूझती है न ।”
“मिस्टर कोहली, तुम हमारी समझ से बाहर हो ।”
“सर, आप जरा शशिकांत वाली टेलीफोन कॉल को फिर अपनी तवज्जो में लाइए । हर टेलीफोन कॉल के दो सिरे होते हैं । शशिकान्त वाले सिरे की बाबत मैंने आपको बताया । अब अपने सिरे की बाबत आप मुझे बताइए ।”
“क्या बताऊं ?”
“उस फोन कॉल के दौरान आपके करीब कौन था ?”
“कई जने थे । सुधा थी, जिसने कि फोन मुझे दिया ही था । नायर था जो कि होता ही है यहां । खेतान था । मनोज भी था शायद । हां, था ।”
“इन सबको मालूम था कि आप शशिकांत से बात कर रहे थे और इन सब ने आपको फोन पर ये कहते सुना था कि अगर आपको शशिकांत के घर जाना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगें ?”
“हां ।”
“मिसेज माथुर और मनोज शाम चार बजे घर होते हैं ?”
“मनोज नहीं होता । वो तो इत्तफाक से ही उस रोज, उस वक्त घर था । सुधा का कोई नियमित कार्यक्रम नहीं होता । कई बार तो वो ऑफिस जाती ही नहीं । जाती है तो जल्दी लौट आती है । दरअसल इंटीरियर डेकोरेटर का कारोबार उसका कैरियर नहीं, हॉबी है । वक्त गुजारी का शगल है ।”
“आई अंडरस्टैंड । और खेतान साहब उस रोज....”
मैं बोलता-बोलता रुक गया ।
मेरी निगाह पुनीत खेतान पर पड़ी जो कि उधर ही चला आ रहा था ।
वो करीब पहुंचा । उसने माथुर का अभिवादन किया और मेरे से हाथ मिलाया ।
“बड़े बेमुरब्बत हो, यार ।” वो शिकायतभरे स्वर में बोला, “कल चुपचाप ही खिसक आए ।”
“सॉरी ।” मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैं तो इंतजार करता रहा । घर चले गए थे या मैडम ने रोक लिया था ?”
“घर चला गया था ।”
“केस की क्या प्रोग्रेस है ?”
“अभी तफ्तीश जारी है ।”
“सर” वो माथुर से सम्बोधित हुआ, “डिटेक्टिव आपने स्मार्ट चुना है ।”
माथुर ने मुस्कराते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“मुजरिम की खैर नहीं ।” खेतान बोला ।
“मुजरिम की खैर तो कभी भी नहीं होती ।” मैं बोला ।
“मेरा मतलब है तुम्हारे सदके मुजरिम की खैर नहीं ।”
“वो भी कभी नहीं होती ।”
खेतान हंसा ।
“आदमी दिलचस्प हो ।”
“पुलिस से आपकी बात हुई ?”
“हां । तुम्हारे सामने ही तो मैं गया था मैटकाफ रोड शक्ति नगर से ।”
“मेरा मतलब है उसके बाद ?”
“उसके बाद और तो कोई बात नहीं हुई ।”
“आई सी ।”
“सर !” वो माथुर से सम्बोधित हुआ, “यहां भी तो आए थे वो ?”
“हां ।” माथुर बोला, “एक यादव करके इंस्पेक्टर आया था । बहुत कान खा के गया । पिंकी और मनोज से भी बात करना चाहता था लेकिन वो कल घर पर नहीं थे । आज फिर आने को कह कर गया था । अभी तक तो आया नहीं ।”
“वक्त ही खराब करेगा अपना ।”
“उसकी ड्यूटी है । उसे बजाने दो ।”
“आज शूटिंग कैसी चली, सर ?”
“वैसी ही जैसी हमेशा चलती है । नथिंग अनयूजल ।”
“मैं ट्राई करूं जरा ?”
“हां, हां । क्यों नहीं ।”
खेतान ने मुझे आंख मारी और रायफल उठा ली ।
अगले पांच मिनट में उसने टारगेट पर दस फायर किए जिसमें से चार, एन सेंटर में लगे, पाच सेंटर से अगले दायरे में लगे और सिर्फ एक टारगेट के बिल्कुल बाहरले दायरे में लगा ।
“आप ट्राई कीजिए सर ।” फिर वह माथुर से बोला ।
“मिस्टर डिटेक्टिव को दो ।” माथुर बोला ।
“ओह, नो, सर ।” मैंने तत्काल प्रतिवाद किया, “मैंने कभी रायफल नहीं चलाई, सर ।”
“कोई बात नहीं । अब चला लो ।”
“सर, सुना है अनाड़ी पहली वार रायफल चलाए तो रिकायल से कंधा तोड़ बैठता है ।”
दोनों ने बड़ा फरमायशी अट्टहास किया ।
“किससे सुना है ?” खेतान बोला ।
“ये तो ध्यान नहीं लेकिन बात तो सच है न ?”
“भई, बट का धक्का तो लगता है लेकिन यूं किसी का कंधा टूट गया हो, ये तो तुम्हारे से ही सुन रहे हैं ।”
मैं हंसा ।
खेतान ने रायफल माथुर को दी ।
माथुर ने भी दस फायर टारगेट पर किए ।
उसकी तीन गोलियां तो टारगेट से टकराई ही नहीं, पांच बाहरले रिंग में लगीं और दो उससे अगले रिंग में ।
“आज आपका मूड नहीं मालूम होता, सर ।” खेतान बड़े अदब से बोला ।
“ऐसा ही है कुछ ।”
“रिवॉल्वर ट्राई करें सर ?”
माथुर ने सहमति में सिर हिलाया और मेज पर से एक रिवॉल्वर उठाकर उसमें गोलियां भरने लगा । मैंने नोट किया कि वो जर्मन मोजर रिवॉल्वर थी जो कि दस फायर करती थी ।
“मैं मूविंग टारगेट चालू करता हूं । खेतान बोला और एक तरफ बढा ।
उधर एक ऊंची दीवार थी जिसके दाएं-बाएं एक-दूसरे से कोई बीस फुट के फासले पर दो केबिन थे और उनके बीच में एक कोई चार फुट ऊंचा संकरा-सा प्लेटफार्म था । उस प्लेटफार्म पर कन्वेयर बैल्ट चलती थी जिस पर कि एक-एक फुट के फासले पर चीनी मिट्टी की बनी बत्तखें लगी हुई थीं । खेतान ने बाएं केबिन में जाकर एक स्विच आन किया तो कनवेयर बैल्ट तत्काल बाएं से दाएं चलने लगी और यूं उन पर लगी मिट्टी की बत्तखें भी भी बाएं से दाएं गुजरती दिखाई देने लगीं ।
माथुर अपनी व्हील चेयर उस मूविंग टारगेट से तीस फुट की दूरी पर ले आया ।
खेतान ने दूसरी रिवॉल्वर उठा ली, उसमें गोलियां भरी और माथुर के करीब पहुंचा ।
मैं भी उत्सुकतावश उनके पास जा खड़ा हुआ ।
“सर, पहले आप ।” खेतान खास मुसाहिबी वाले स्वर में बोला ।
माथुर ने सहमति में सिर हिलाया ।
उसने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ मूविंग टारगेट की तरफ किया और एक के बाद एक दस फायर किए ।
केवल तीन बत्तखें उड़ीं ।
फिर वही क्रिया अपने हाथ में थमी रिवॉल्वर से खेतान ने दोहराई ।
उससे केवल दो फायर मिस हुए, आठ गोलियां बत्तखों से टकराई ।
“वंडरफुल ।” माथुर बोला ।
“थैंक्यू सर ।” खेतान सिर नवाकर बड़े अदब से बोला ।
“मैं” एकाएक मैं बोला, “इजाजत चाहूंगा ।”
“मिस्टर कोहली !” माथुर बोला, “एक बार तुम भी रिवॉल्वर चलाओ ।”
“सर...”
“फिक्र मत करो । इससे कंधा नहीं टूटता ।”
खेतान हंसा ।
“कभी रिवॉल्वर भी नहीं चलाई ?” वो बोला ।
“चलाई है । लेकिन मजबूरन ।”
“अच्छे डिटेक्टिव हो !”
“वो तो मैं हूं ही मैं । तभी तो यहां मौजूद हूं ।”
“मेरा मतलब है रिवॉल्वर चलानी तो एक डिटेक्टिव को आनी चाहिए, यार ।”
“खेतान साहब, मैं दिमाग से लड़ता हूं, हथियार से नहीं ।”
“वो ठीक है । लेकिन फिर भी आज एक बार यहां रिवॉल्वर से टारगेट प्रैक्टिस करो । माथुर साहब की ख्वाहिश है । वाट डू यु से, सर ।”
“हां । जरूर ।” माथुर बोला, “ये पकड़ो ।”
उसने जबरन अपनी भरी हुई रिवॉल्वर मुझे थमा दी ।
मैंने उन महारथियों के ही अंदाज से अपनी बांह मूविंग टारगेट की ओर तानी और और ताक ताक दस फायर किए ।
“वंडरफुल !” खेतान बोला “परफेक्ट स्कोर ।”
“क्या ?”
“दस फायर । दस मिस ।”
“घिस रहे हो, यार ।” मैं झुंझलाकर बोला, “खिल्ली उड़ा रहे हो । मैंने कहा तो है कि मुझे फायर आर्म्स का कोई तजुर्बा नहीं ।”
“नहीं है तो हो जाएगा । लो, एक बार फिर ट्राई करो ।”
उसने माथुर वाली रिवॉल्वर मेरे हाथ से ले ली और भरी हुई रिवॉल्वर जबरन मेरे हाथ में थमा दी ।
“लेकिन ......”
“सब्र करो मैं टार्गेट बढाता हूं ।”
वो लपककर फिर बाएं केबिन के करीव पहुंचा । इस बार उसने बिजली के दो तीन स्विच ऑन किए ।
तत्काल पहली कनवेयर बैल्ट के पीछे लेकिन उससे कोई दो ढाई फुट की ऊंचाई पर एक और कनवेयर बैल्ट उभरी । उस पर भी बत्तख लगी थीं लेकिन उनकी रंगत काली थी ।
प्लेटफार्म के नीचे से बीसेक डंडे से प्रकट हुए जिन पर कि चीनी मिट्टी के छोटे-छोटे कबूतर टंगे हुए थे । वो डंडे भी प्लेटफार्म की ओट में से किसी कनवेयर बैल्ट से ही जुड़े हुए थे जोकि जरूर ऊंचे-नीचे फिट किए गए रोलरों से गुजर रही थी जिसकी वजह से कबूतर विपरीत दिशा में चलती बत्तखों की कतारों के बीच में ऊपर नीचे फुदकते मालूम हो रहे थे ।
वो वापस लौटा ।
“अब तो टार्गेट तीन गुणा हो गए हैं ।” वो बोला ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और उधर रिवॉल्वर तानी । अब मेरे सामने तीन तरह के टार्गेट थे । एक, बाएं से दाएं चलती सफेद बत्तखें । दो, दाएं से बाएं चलती काली बत्तखें । और तीन, उनके बीच में नीचे ऊपर फुदकते सफेद कबूतर ।
मैं फायरिंग शुरू करने ही वाला था कि ठिठक गया । मेरा रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।
“क्या हुआ ?” खेतान बोला ।
“कुछ नहीं ।” मैं बोला । मैंने हाथ फिर सीधा किया और आखें मीचकर आनन-फानन सारे फायर सामने झोंक दिए । मैंने आंखें खोलीं ।
नतीजा फिर वो ही निकला था । सारी गोलियां पीछे दीवार से टकराई थीं । एक भी गोली निशाने पर नहीं लगी थी । लेकिन इस बार मैं मायूस होने की जगह खुश था । इस बार मुझे अपने जीरो स्कोर का जीरो अफसोस था । मुझे ये जो सूझ गया था कि हत्यारा कौन था ।
मैंने रिवॉल्वर टेबल पर रख दी और बोला, “मैं अब इजाजत चाहता हूं । मुझे एक बहुत जरूरी काम याद आ गया है । मैं फिर हाजिर होउंगा ।”
मेरे बदले तेवरों को दोनों ने नोट किया ।
उनका अभिवादन करके मैंने वापसी के लिए कदम बढाया ही था कि माथुर बोल पड़ा, “अपना चैक तो लेते जाओ ।”
“अब इसकी जरूरत नहीं ।” मैं बोला ।
“क्या मतलब ?” माथुर सकपकाया ।
“अब मैं पूरी फीस का चैक लेने आऊंगा ।”
“कब ?”
“बहुत जल्द । शायद आज ही ।”
लम्बे डग भरता हुआ मैं वहां से रुखसत हो गया ।
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