शनिवार : 22 मई
अगले रोज के लिये जीतसिंह अलार्म लगा कर सोया—और सुबह साढ़े सात बजे उठा—ताकि दोपहर तक ही न सोया रहता।
नित्यकर्म से निवृत होने तक और नाश्ता-पानी करने तक आठ बज गये।
उसने गाइलो को फोन किया।
‘‘किधर है?’’—उसने पूछा।
‘‘जम्बूवाडी ।’’—जवाब मिला—‘‘अपनी खोली में। कैसे फोन किया?’’
‘‘सोचा, शायद तूने मेरे को गुडलक विश करना हो!’’
‘‘और तरीके से विश किया न!’’
‘‘कैसे!’’
‘‘आर्ली मार्निंग चर्च गया। तेरे वास्ते प्रे कर के आया ।’’
‘‘अरे! सच में!’’
‘‘जीते, गॉड के घर से लौटा मैं क्या झूठ बोलेगा?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘अभी बोल काहे वास्ते फोन किया?’’
‘‘बुधवार सुबह मैं तेरे को कुछ बोला था!’’
‘‘सुपारी किलर का बारे में! कि सिन्धी सेठ का कोई क्लोज रिलेटिव सुपारी लगाया!’’
‘‘यानी भूल नहीं गया!’’
‘‘कैसे भूलेंगा! इम्पार्टेंट कर के भीड़ू इम्पार्रेंट कर के काम बोला, कैसे भूलेंगा!’’
‘‘क्या पता लगा?’’
‘‘जीते, किधर से भी कोई हिंट नहीं मिला कि कोई सुपारी उठाया। मैं कल रात को तेरे को बोलने लगा था पण सोचा अभी और पक्की करूँ। अभी बोले तो या तो सुपारी किलर किधर बाहर से, किसी डिस्टेंस प्लेस से आया—जैसे गोवा से ऐसा भीड़ू लोग अक्सर इधर आता है—या फिर जो किया, क्लोज रिलेटिव ने खुद किया, जो कोई भी वो है ।’’
‘‘खुद खून से हाथ रंगे!’’
‘‘यहीच बोला मैं ।’’
जीतसिंह के जेहन पर कत्ल के सम्भावित कैण्डीडेट्स के अक्स उभरे।
‘‘वैसे अभी मैटर क्लोज्ड नहीं है। मैं और एफर्ट करता है अभी ।’’
‘‘ठीक है। थैंक्यू ।’’
उसने लाइन काटी और झिझकते हुए नवलानी को काल लगाई।
जवाब उसकी अपेक्षा से जल्दी मिला।
‘‘गुड मार्निंग बोलता है, साहब ।’’—वो विनीत भाव से बोला—‘‘और अली मार्निंग डिस्टर्ब करने के वास्ते सॉरी बोलता है ।’’
‘‘नो प्राब्लम। बोले तो’’—नवलानी के स्वर में विनोद का पुट आया—‘‘वान्दा नहीं। अभी बोलो कैसे फोन किया?’’
‘‘ऐसीच, साहब। सोचा शायद मेरे वास्ते कोई खबर हो!’’
‘‘है, भई, बराबर है। एक दो बहुत धमाकेदार बातें जानकारी में आयी हैं। सोचा था दिन में किसी वक्त तुम्हें बुला के रूबरू उस बारे में बात करूँगा लेकिन अब बात हो ही रही है तो सुनो ।’’
‘‘सुनता है, साहब ।’’
‘‘इंगलैण्ड की जिस प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी से मेरा रेसीप्रोकल बिजनेस अरेंजमेंट है, उसकी कल लेट नाइट में मेरे पास मेल पहँुची है। उनकी रिपोर्ट कहती है कि बड़े लड़के आलोक चंगुलानी की शनिवार नौ मई की ओमान एयरलाइन्स की अर्ली मानिंग फ्लाइट से दुबई की बुकिंग थी। दुबई में उसने तीन दिन चलने वाली एक कान्फ्रेन्स अटेंड करनी थी...’’
‘‘कान्फ्रेन्स! वो कोई बिजनेस करता है!’’
‘‘नहीं, सर्विस करता है। जिस कम्पनी की र्सिवस करता है, उन के भेजे वो वो कान्फे्रन्स अटेंड करने दुबई पहँुचा था लेकिन मानचेस्टर-दुबई-मानचेस्टर रिटर्न टिकट लेकर रवाना नहीं हुआ था। उसकी वापसी मुम्बई से थी और वापसी का उसके पास मुम्बई से ओपन टिकट था ।’’
‘‘ओपन टिकट बोले तो?’’
‘‘ओपन टिकट वो होता है जिसकी सफर की कोई तारीख मुकरर्र न हो। पैसेंजर के कहने पर टिकट उस दिन की बना दी जाती है जो दिन वो सफर के लिये चुने ।’’
‘‘उसने कौन सा दिन चुना था?’’
‘‘शुक्रवार पन्द्रह मई का। मुम्बई से उसकी लेट नाइट की फ्लाइट थी जिससे शनिवार सुबह को मानचेस्टर में था ।’’
‘‘शनिवार शाम को कत्ल हुआ था। इतवार को वो फिर मुम्बई में था। इसका मतलब है वो उलटे पाँव वापिस लौटा था!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘उसकी ये आवाजाही पक्की है, साहब?’’
‘‘हाँ, पक्की है। कनफर्म है। लेकिन जो बात अभी कनफर्म नहीं हो सकी है वो ये है कि दुबई में तीन दिन की कान्फ्रेन्स खत्म हो जाने के बाद मंगल से शुक्र तक वो कहाँ था! दुबई में था या मुम्बई में था! आखिर तो ये बात कनफर्म होगी—दुबई से होगी या मुम्बई से होगी—लेकिन अभी कनफर्म नहीं है ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘कहने का मतलब ये है, जीतसिंह, कि जैसे कि तुम कहते हो कि ये सुपारी किलिंग हो सकती है तो बड़े लड़के आलोक चंगुलानी के भी इधर सुपारी अरेंज किये होने का पूरा-पूरा चांस दिखाई देता है ।’’
‘‘साहब, उस बात में अब फच्चर है ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘शायद ये सुपारी किलिंग न हो!’’
‘‘यानी जो कोई भी सेठ जी को जबरन, फौरन, दूसरी दुनिया में भेजने का तमन्नाई था, उसने जो किया खुद किया?’’
‘‘हो सकता है ।’’
‘‘फिर बड़ा लड़का तो कातिल नहीं हो सकता। क्योंकि कत्ल के रो़ज, कत्ल के वक्त वो यकीनी तौर पर इंगलैण्ड में था ।’’
‘‘साहब, कोई मेरे को बोला की सुपारी किलर अगर बाहर से—जैसे कि गोवा से—बुलाया जाये तो अन्डरवल्र्ड के लोकल टपोरी लोगों को उसकी खबर नहीं लग पाती। वो क्विक इन एण्ड आउट करे तो बिल्कुल ही नहीं लग पाती ।’’
‘‘क्विक इन एण्ड आउट! क्या कहने! भई, नौ हजार किलोमीटर से आया कोई शख्स ऐसे इम्पोर्टिड सुपारी किलर का इन्तजाम क्योंकर कर पायेगा!’’
‘‘साहब, मुश्किल तो बरोबर पण नामुमकिन तो नहीं!’’
‘‘ये भी ठीक है। कोई नेपोलियन का शागिर्द होगा तो यही कहेगा कि उसकी डिक्शनरी में नामुमकिन लफ्ज है ही नहीं ।’’
‘‘साहब, बड़ा लड़का आपने बताया उधर विलायत में सर्विस करता है, छोटा क्या करता है, मालूम?’’
‘‘मालूम। और इस जानकारी के लिये मुझे ब्रिटिश प्राइवेट डिटेक्टिव एजेन्सी का मँुह भी नहीं देखना पड़ा था, ये जानकारी मुझे मुम्बई में ही सेठ जी के पड़ोसी और दोस्त रामास्वामी से हासिल हो गयी थी। छोटा लन्दन में ‘टेस्ट ऑफ इण्डिया’ नाम से इण्डियन रेस्टोरेंट चलाता है जो कि बकौल रामास्वामी कोई खास चलता नहीं। खुद सेठ जी अक्सर उसे बताते थे कि उस सिलसिले में अक्सर माली इमदाद माँगता रहता था। सुना है जो थोड़ी बहुत कमाई रेस्टोरेंट से होती थी उससे जगह का किराया और स्टाफ की सैलरी भी नहीं निकलती थी ।’’
‘‘जब रेस्टोरेन्ट चलता नहीं था तो बन्द क्यों नहीं कर देता था?’’
‘‘रामास्वामी ने दो वजह बतार्इं। एक तो उसकी उम्मीद बड़ी थी, कहता था आज नहीं तो कल चल पड़ेगा, चल के रहेगा; दूसरे, रेस्टोरेंट बन्द कर देता तो उस का लन्दन जैसे मंहगे शहर में रहना मुहाल हो जाता। ऊपर से आदतें वाहियात! खतरनाक!’’
‘‘आदतें क्या?’’
‘‘सुनोगे तो हमदर्दी होगी सेठ जी से कि क्या औलाद पायी थी!’’
‘‘क्या?’’
‘‘जुआ खेलता है। दीवानगी की हद तक। बे़जवाटर के इलाके में जिस इमारत में रेस्टोरेंट है, उसको अपना बता कर कैसीनो से क्रेडिट हासिल करता रहता है ।’’
‘‘बीवी नहीं रोकती?’’
‘‘बीवी है ही नहीं। यहाँ से सिंगल गया था, वहीं किसी अंग्रेज लड़की से शादी की थी जो कि चली नहीं थी, डेढ़ साल बाद ही डाईवोर्स हो गया था और डाईवोर्स सेटलमेंट में उस लड़की ने भी उसकी अच्छी चमड़ी उधेड़ी थी। सुना है उसका र्आिथक पतन उस तलाक के बाद से ही शुरू हुआ था ।’’
‘‘ओह! बड़ा?’’
‘‘वो शादीशुदा है, उसकी बीवी इण्डियन है, उसकी शादी ठीक चल रही है और उससे उसके तीन बच्चे भी हैं ।’’
‘‘उसकी रोकड़े की कोई प्राब्लम नहीं?’’
‘‘है तो जाहिर नहीं है ।’’
‘‘छोटे की जाहिर है! बड़ी प्राब्लम है!’’
‘‘तुम्हारी कल्पना से ज्यादा बड़ी प्राब्लम है। ब्रिटिश डिटेक्टिव एजेन्सी की रिपोर्ट है कि छ: लाख पौंड का कर्जाई है वो लड़का ।’’
‘‘रकम लाखों में है तो ज्यास्ती तो न हुई!’’
‘‘अरे, भई, पौंड में—जो कि वहाँ की करेंसी है—लाखों में है, रुपयों में ये रकम तकरीबन पाँच करोड़ बनती है ।’’
‘‘देवा! उन लोगों को इतना कर्जा मंजूर हो गया?’’
‘‘लैंडलार्ड होने की धौंस में—यहाँ उन से चूक हुई कि उसका दावा उन्होंने ठीक से चैक न किया—और बड़े, दौलतमन्द बाप का बेटा होने की धौंस में ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘अब ये बात भी खुल चुकी है कि बाप का बेटे की इतनी मोटी माली इमदाद करने का कोई इरादा नहीं था। नतीजतन उन लोगों ने लड़के का केस अपने एनफोर्सर्स के हवाले कर दिया है ।’’
‘‘एनफोर्सर्स बोले तो!’’
‘‘वसूली स्पेशलिस्ट! जो रोकड़ा वसूल करने के लिये ठोकते ही नहीं, खल्लास भी कर देते हैं ।’’
‘‘वो लन्दन छोड़ के भाग जाये तो?’’
‘‘बहुत एक्सपर्ट होते हैं वो लोग अपने काम में। पाताल से खोद निकालते हैं ।’’
‘‘यानी वो परमानेन्ट कर के इण्डिया आ जाये तो पीछे आ जायेंगे?’’
‘‘बिल्कुल!’’
‘‘अब तो बेशक आ जायें। अब तो बहुत जल्द एक बहुत बड़ी रकम उसके कब्जे में होगी ।’’
‘‘जब होगी तब होगी। वैसे उन्होंने कोशिश शुरू कर दी है कि ये काम जल्दी से जल्दी हो ।’’
‘‘क्या किया है?’’
‘‘कल उन्होंने सिविल जज के कोर्ट में सक्सेशन की अर्जी लगाई है कि दोनों लड़के और एक लड़की तीनों मरने वाले के इकलौते वारिस हैं इसलिये उन्हें कानूनी तौर पर उसकी सम्पत्ति का उत्तराधिकारी घोषित किया जाये ।’’
‘‘और वो पुरानी वसीयत जिसकी आपने कापी निकलवाई?’’
‘‘उसका नाम नहीं ले रहे। उन्होंने कोर्ट में सबमिट किया है कि उन्हें किसी वसीयत की कोई खबर नहीं ।’’
‘‘जब कि ये बात झूठ है!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘चल जायेगा?’’
‘‘कोई ऐतराज करने वाला सामने नहीं आयेगा तो चल जायेगा ।’’
‘‘सुष्मिता! वो सामने आये तो?’’
‘‘तो फौरन उसके खिलाफ वो कदम उठाया जायेगा जिसकी उसको धमकी मिली हुई है ।’’
‘‘कत्ल उसने करवाया! मैंने किया!’’
‘‘हाँ ।’’
जीतसिंह खामोश हो गया।
‘‘दिल छोटा करने वाली बात नहीं है ।’’—नवलानी की आवाज आयी—‘‘कल्याण से वापिसी पर कल लेट नाइट में मैं गुंजन शाह से मिला था और उसे रजिस्टर्ड विल की कापी दिखाई थी। वो यकीनन उन की साजिश का कोई तोड़ निकाल लेगा ।’’
‘‘कब?’’
‘‘भई, वो तो तुम्हारे पर मुनहसर है ।’’
‘‘मैं समझा नहीं, साहब ।’’
‘‘क्योंकि तुम्हारा ध्यान कहीं और है। जीतसिंह, पहली मीटिंग फ्री थी, अब वो फीस लिये बिना बात नहीं करने लगा ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘तुम फीस का इन्तजाम हो गया होने की गुड न्यूज दो, फिर मालूम करता हूँ क्या तोड़ निकालेगा, या क्या तोड़ निकाल चुका है ।’’
‘‘ठीक है, साहब। मैं बोलेगा। अभी कट करता है ।’’
असहाय भाव से गर्दन हिलाते उसने फोन को जेब के हवाले किया।
फीस के जिक्र से ही उसे घबराहट होती थी, उसका दिल डूबने लगता था।
भायखला का रुख करने के लिये वो फ्लैट को ताला लगा रहा था जब कि मोबाइल की घण्टी फिर बजी।
लाइन पर फिर नवलानी साहब था।
‘‘एक बात का जिक्र करना मैं भूल गया था, वो भी सुन लो ।’’
‘‘सुनता है, साहब ।’’
‘‘तिवारी की—चंगुलानी सेठ के मैनेजर की—किसी रेलवे रिजर्वेशन की कोई जानकारी पकड़ में नहीं आ पायी है ।’’
‘‘वो बोले तो इधरीच है?’’
‘‘नहीं, जरूरी नहीं। बिना रिजर्वेशन रेल में सवार होने पर कोई पाबन्दी नहीं है। दूसरे, हो सकता है टिकट उसने ब्लैक में हासिल की हो और वो किसी दूसरे के नाम हो ।’’
‘‘ठीक ।’’
‘‘या हो सकता है किसी नजदीकी एयरपोर्ट तक—जैसे बनारस तक—प्लेन से गया हो!’’
‘‘काहे को? उसे शहर छोड़ने की क्या जल्दी होगी भला?’’
‘‘शहर छुड़वाने वालों की होगी न!’’
‘‘ओह!’’
‘‘पहले मैं या कोबरा वाले तिवारी की कल्पना प्लेन पैसेन्जर के तौर पर नहीं कर रहे थे, कोई रेलवे रिजर्वेशन न कनफर्म होने के बाद ही प्लेन का ख्याल आया। तब ये भी सूझा कि प्लेन टिकट उसे हाथ में थमाई गयी हो सकती है। अब आदिनाथ घनेकर प्लेन रिजर्वेशन भी चेक करवा रहा है। कुछ हाथ आयेगा तो खबर करूँगा ।’’
‘‘थैंक्यू बोलता है, साहब ।’’
नौ बजने में अभी पाँच मिनट बाकी थे जबकि जीतसिंह भायखला और आगे माउन्ट रोड वाली छ:मंजिला इमारत पर पहँुचा। लिफ्ट पर सवार होकर वो टॉप फ्लोर पर पहँुचा, उसने काल बैल बजाई।
दरवाजा मिर्चू ने खोला, जीतसिंह को देख कर उसने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘हाल में जा ।’’—वो भावहीन स्वर में बोला।
‘‘अभी कौन है उधर?’’—जीतसिंह सशंक भाव से बोला।
‘‘जा के देख ।’’
जीतसिंह भीतर दाखिल हुआ, झिझकते हुए उसने भीतर हाल में कदम रखा।
किसी पर उसकी आमद की कोई प्रतिक्रिया न हुई।
बड़ा बाप महबूब फिरंगी आफिस टेबल के पीछे चमड़ा मंढी कुर्सी पर पिछले रोज की तरह ही विराजमान था और पिछले रोज जैसी ही झक सफेद पोशाक पहने था—जरूर वो बड़े भाई लोगों की यूनीफार्म थी—और पिछले रोज से ज्यादा गुस्से में लग रहा था। उसके सामने कागज सा सफेद चेहरा लिये अनिल घुमरे खड़ा था जिस के एक बाजू मंगेश गाबले खड़ा था और दूसरे बाजू अहसान और ओमराजे खड़े थे। उन से थोड़ा परे खिड़की की तरफ मुरली चेराट खड़ा था।
जीतसिंह की टूल किट और पगड़ी वगैरह बिग बॉस के सामने टेबल पर पड़ी थी।
उसने मन ही मन चैन की सांस ली। उन चीजों की बरामदी जरूरी थी, उन के बिना उसके द्वारा अपेक्षित स्टोरी सैट नहीं हो सकती थी, घुमरे और उसके जोड़ीदार की—जो कोई भी वो था—फुल वाट नहीं लग सकती थी।
‘‘तो’’—फिरंगी सांप की तरह फुँफकारा—‘‘तू है ताला-चाबी मास्टर!’’
‘‘नहीं, बाप ।’’—घुमरे गिड़गिड़ाता सा बोला।
‘‘टॉप का! कुछ भी खोल लेता है!’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘ये ताले खोलने के औजार तेरे नहीं?’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘ये सिख के मेकअप का सामान तेरा नहीं?’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘ये तेरे घर से बरामद हुआ!’’
‘‘मेरे को नहीं मालूम, बाप, उधर कैसे पहँुचा!’’
‘‘बढ़िया जगह छुपा के रखा। बिगड़ी हुई पानी की टंकी में। हमेशा उधरीच छुपा के रखता है या खाली ये टेम रखा?’’
‘‘मैं नहीं रखा, बाप। मेरे को इस सामान की कोई खबर नहीं। वो टंकी कब की बिगड़ी हुई है। मेरे को तो कभी खयाल तक नहीं आया उस में झांकने का ।’’
‘‘ये टेम आया बरोबर!’’
‘‘नहीं, बाप। कोई मेरे को सैट करने के वास्ते ये सामान उधर रखा ।’’
‘‘खोली को ताला नहीं लगाता?’’
‘‘लगाता है, बाप, बरोबर ।’’
‘‘जब घर पहँुचा तो तेरे को ताला खुला मिला?’’
‘‘न-नहीं, बाप ।’’
‘‘तो कोई चिड़िया कबूतर उधर रोशनदान से आया और वो सामान टंकी में छोड़ कर गया। क्या!’’
‘‘बाप, कोई तो कुछ किया! मेरे को तो ताले-चाबी का हुनर आता हैइच नहीं। अगर वो जौहरी बाजार वाला काम मैं किया होता तो काम हो जाने के बाद ये सामान काहे कू पास रखता!’’
‘‘बहस करता है काला कोट का माफिक साला हलकट!’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘गाबले, जो तेरे को थामा और रात को इधर ले के आया, जो तेरे बाजू में खड़ेला है, बोलता है ये टूल किट विलायती। जर्मनी की। कीमत एक पेटी! साला कैसे नक्की करेगा! फिर जरूरत पड़ेगा तो फिर एक पेटी रोकड़ा खर्च करेगा!’’
‘‘बाप नहीं जरूरत पड़ेगा। ये मेरा काम हैइच नहीं। मैं कभी इन औजारों को हैंडल नहीं किया। मैं इन की शक्ल नहीं पहचानता। इन्हें मेरी खोली में छुपा के रख के कोई मेरे को फिट किया ।’’
‘‘कौन?’’
‘‘मालूम नहीं, बाप। सच्ची करके बोलता है ।’’—उसने अपने गले की घण्टी छुई—‘‘और बोले तो, बाप, औजार तो कीमती पण पगड़ी दाढ़ी मूँछ की क्या कीमत है, उसको काम हो चुकने के बाद मेरे को काहे वास्ते छुपा के रखने का था?’’
‘‘फिर बहस करता है वकील का माफिक साला हरामी। लम्बी लम्बी छोड़ता है माँ का दीना। साला अभी कुछ निकलवाने का तेरे से वर्ना जुबान खींच लेता ।’’
घुमरे सिर से पांव तक कांपा।
‘‘तो तेरे को मेरे माल की कोई खबर नहीं?’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘वाल्ट में नहीं घुसा?’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘ये नहीं पूछा कौन सा वाल्ट!’’
‘‘बाप, एक ही वाल्ट तो है जो...जो...जिधर...’’
‘‘साला श्याना!’’
घुमरे ने सूखे होंठों पर जुबानफेरी।
‘‘प्रीमियर वाल्ट! जौहरी बाजार! मालूम?’’
‘‘हाँ, बाप ।’’
‘‘कभी गया उधर?’’
‘‘नहीं, बाप ।’’
‘‘काहे?’’
‘‘मेरे को उधर कभी कोई काम नहीं पड़ा ।’’
‘‘एक काम तो पड़ा परसों रात को। जो तू किया बरोबर ।’’
‘‘नहीं, बाप, बिल्कुल नहीं। मैं तो...’’
‘‘इधर किसी भीड़ू को पहचानता है?’’
उसकी निगाह झिझकती, पैन होती हाल में फिरी, जीतसिंह पर अटकी, चेराट पर ठिठकी, फिर उसने इंकार में गर्दन हिलाई।
‘‘गाबले को भी नहीं,’’—फिरंगी गर्जा—‘‘जो रात तेरे को इधर पकड़ के लाया!’’
‘‘उ-उ-उसको तो...प-प-पहचानता है न!’’
‘‘साला फटेला!’’—उसने चेराट पर निगाह डाली—‘‘तू बोल ।’’
चेराट ने डरते, झिझकते इंकार में सिर हिलाया।
‘‘तू?’’—बिग बॉस जीतसिंह से मुखातिब हुआ।
‘‘साहब’’—जीतसिंह दबे स्वर में बोला—‘‘कान में बोलने का ।’’
‘‘क्या!’’
‘‘कान में बोलने का। प्लीज कर के बोलता है, साहब ।’’
‘‘गाबले के कान में बोल। गाबले!’’
सहमति में सिर हिलाता, लम्बे डग भरता, गाबले जीतसिंह के करीब पहँुचा।
‘‘मेरे बाद’’—जीतसिंह गाबले के कान में फुसफुसाया—‘‘इधर कोई एक्सपर्ट तालातोड़ है, तो ये है। मैं ये काम नक्की किया परमानेंट करके, बोले तो रिटायर हो गया इस वास्ते जिसको भी ऐसा सर्विस माँगता होता है, वो इसके पास पहँुचता है। आजकल बहुत डिमांड में है भीड़ू ।’’
‘‘और?’’
‘‘इसका गैंग है पूरा। मैं इसके मँुह पर ये सब नहीं बोल सकता। मेरे को खल्लास करा देगा ।’’
‘‘इस काबिल रहेगा तब न!’’
‘‘फिर भी...मेरे को पंगा नहीं माँगता न! ये डेंजर भीड़ू...दूर रहना माँगता है मेरे को ।’’
‘‘और?’’
‘‘और ये तरह तरह के भेष बदलने में माहिर। हमेशा कोई नया हुलिया बना के काम करता है। जैसे ये टेम सरदार बन के किया ।’’
‘‘और?’’
‘‘बस ।’’
गाबले उसके पास से हटा, बिग बॉस के पास उसकी कुर्सी के पहलू में पहँुचा और उसके कान में फुसफुसाया।
फिरंगी के चेहरे पर फौरन संजीदगी के भाव आये, इस बार उसने खुर्दबीनी निगाह से घुमरे को देखा।
घुमरे अपने आप में सिकुड़ के रह गया।
‘‘ये सामान उठा’’—फिरंगी पगड़ी वगैरह उसकी तरफ सरकाता बोला—‘‘सिख बना इसे ।’’
गाबले सब सामान उठा कर घुमरे के पास पहँुचा। उसके इशारे पर मिर्चू एक कुर्सी उठा के लाया और उसने घुमरे को उस पर धकेल दिया। गाबले ने हाथ में दाढ़ी थामी और बाकी सामान मिर्चू को पकड़ा दिया।
‘‘मुंडी ऊपर ।’’—गाबले बोला।
‘‘पण’’—घुमरे ने फरियाद की—‘‘पण काहे को मेरे को...’’
गाबले ने ऐसा झन्नाटेदार थप्पड़ उसके चेहरे पर रसीद किया कि उसकी खोपड़ी घूम गयी। उसने मुंडी वापिस घुमाई तो जीतसिंह ने देखा उसकी आँखों में आँसू छलक आये थे और गाबले की पाँचों उंगलियों की छाप उसके गाल पर दिखाई दे रही थी।
उसके बाद गाबले के काम में अड़ंगा लगाने की उसकी मजाल न हुई।
दाढ़ी मूँछ में सेल्फ एडिसिव—खुद चिपकने वाला—टेप लगा हुआ था जिसकी वजह से वो काम आसान था और झटपट हो जाने वाला था। फिर उसने उसके माथे पर फिफ्टी बान्धी और सिर पर पगड़ी रखी। घुमरे ने तसल्ली की कि सब ठीक ठाक था, फिर उसने उसे बाँह पकड़ कर एक झटके से कुर्सी पर से उठा दिया।
मिर्चू ने फौरन कुर्सी उसके पीछे से हटा ली।
घुमरे भी परे हट गया।
‘‘मुंडी दाये बाजू ले ।’’—फिरंगी ने हुक्म दिया—‘‘खिड़की की तरफ ।’’
सस्पेंस से हलकान घुमरे ने बहुत यत्न से गर्दन खिड़की की तरफ घुमाई।
‘‘अब देख ।’’—फिरंगी चेराट से बोला।
चेराट तत्काल जल्दी-जल्दी सहमति में सिर हिलाने लगा।
जीतसिंह की जान में जान आयी। आखिरी क्षण तक उसे अन्देशा था कि चेराट कहीं रात के वादे से मुकर न जाये। उसने बहुत शिद्दत से उसे समझाया था कि उसकी—खुद जीतसिंह की भी—जान तभी मुकम्मल तौर से सांसत से निकलती जबकि वो गलाटा हमेशा के लिये फिनिश होता और ऐसा तभी हो सकता जब कि चोरों पर पड़े मोर एक्सपोज हो जाते, पकड़े जाते और बिग बॉस महबूब फिरंगी का माल वापिस बिग बॉस के पास पहँुच जाता।
‘‘मुंडी नहीं हिला ।’’—फिरंगी डपट कर बोला—‘‘मँुह से बोल ।’’
‘‘वही है ।’’—चेराट बोला।
‘‘वही कौन?’’
‘‘जो परसों रात वाल्ट का लाकर 243 खोला ।’’
‘‘नहीं! नहीं!’’—घुमरे विक्षिप्तों की तरह चिल्लाया—‘‘ये झूठ है! ये...’’
‘‘गाबले, पगड़ी उतार के इसके मँुह में ठूँस। फिर भी बाज न आये तो मुंडी उतार के हाथ में दे ।’’
गाबले आगे बढ़ा।
घुमरे सहम कर चुप हो गया।
गाबले ने पगड़ी, फिफ्टी फिर भी उतार दी और दाढ़ी मूँछ भी उखाड़ फेंकी। पगड़ी पकड़े वो उसके सिर पर यूं तैयार खड़ा रहा जैसे अगला हुक्म होते ही सच में पगड़ी उसके हलक में उतार देने वाला था।
‘‘तेरे को कैसे मालूम? कैमरा तू बोला साला खराब हो गया, मानीटर पर इस वास्ते कुछ दिख रयेला नहीं था, कोई वाल्ट खोलता हो तो तू उधर होता नहीं फिर तेरे को कैसे मालूम?’’
‘‘वाल्ट में कस्टमर को रिसीव तो मैं करता है न, बॉस! उसको लॉकर पर पहँुचा कर उधर से नक्की करता है न!’’
‘‘ठीक! दो भीड़ू उधर पहँुचा। तेरे को क्या मालूम वाल्टबस्टर कौन?’’
‘‘इसके हाथ में ये टूल किट थी ।’’
घुमरे ने फिर बोलने के लिये मँुह खोला लेकिन गाबले की भाले र्बिछयां बरसाती आँखें अपने पर टिकी पा कर तत्काल होंठ भींच लिये।
‘‘इतने से साला पक्की को गया कि वाल्टबस्टर ये! साला टूल किट दूसरे भीड़ू के वास्ते थामे होयेंगा ।’’
‘‘बॉस, मैं सीढ़ियों पर से एक बार घूम कर नीचे वाल्ट में देखा था। तब दूसरा भीड़ू तो लॉकर से परे मेरी चेयर पर बैठेला था ।’’
‘‘हूँ ।’’
‘‘अभी और बोले तो वो दूसरा भीड़ू वाल्टबस्टर होता तो मेकअप उसके थोबड़े पर होता! या दोनों के थोबड़े पर होता!’’
‘‘साला श्याना! दूसरे के थोबड़े पर कोई मेकअप नहीं था?’’
‘‘नहीं था, बॉस। वो तो क्लीनशेव्ड था ।’’
‘‘हूँ। तो वाल्टबस्टर ये!’’
‘‘डेफिनिटली ।’’
‘‘दूसरे भीड़ू को देखेगा तो पहचान लेगा?’’
‘‘यस, बॉस। लाइक ए शॉट ।’’
असल में चेराट उसे नहीं पहचान सकता था—उसने कभी उसकी सूरत नहीं देखी थी—जीतसिंह ने उसे समझाया था कि अव्वल तो उसे दूसरे भीड़ू की पहचान करने को बोला जाता, ऐसी नौबत नहीं आने वाली थी, फिर भी आती तो घुमरे के उसकी बाबत मँुह खोलने के बाद जो भीड़ू भी वहाँ पकड़ के लाया जाता, वो दूसरा भीड़ू होता जो कि सारे शो का असल आर्गेनाइजर था। दूसरे, जीतसिंह ने हवलदार बने दूसरे को भी देखा था इसलिये एहतियात के तौर पर उसने चेराट के लिये उसका हुलिया बयान कर दिया था।
‘‘बढ़िया ।’’—फिरंगी बोला, फिर घुमरे की तरफ घूमा—‘‘अब बोल! जो बोलने को तड़प रहा था, वो अब बोल ।’’
‘‘ये आदमी झूठ बोल रयेला है ।’’—घुमरे लगभग रोता हुआ बोला—‘‘ये किसी खास मकसद से मेरी मुखबिरी कर रयेला है। ये किसी दूसरे भीड़ू के साथ मिला हुआ है जो मेरे को इतने बड़े बखेड़े में फंसाना मांगता है। वही भीड़ू तालातोड़ों की टूल किट और सिख वाला मेकअप मेरी खोली में प्लांट किया और आगे रेड लगवाने के वास्ते खबर सरकाई। ये सब एक साजिश है जो मेरी समझ से बाहर है। मैंने कभी वाल्ट में कदम नहीं रखा...’’
तत्काल उसने होंठ काटे।
‘‘तो क्या किया?’’
‘‘कुछ नहीं ।’’
‘‘तो काहे को बोला कभी वाल्ट में कदम नहीं रखा?’’
‘‘क्योंकि ये भीड़ू बोलता है कि रखा ।’’
‘‘वाल्ट में परसों रात जो कुछ हुआ, तेरा उससे कोई वास्ता नहीं?’’
‘‘बिल्कुल कोई वास्ता नहीं ।’’
‘‘क्यों कोई तेरी मुखबिरी किया? क्यों कोई तेरे को फंसाना माँगता है?’’
‘‘मेरे को नहीं मालूम। कसम गणपति की, नहीं मालूम ।’’
‘‘तेरा जोड़ीदार कौन है?’’
‘‘कोई नहीं ।’’
‘‘ब्रीफकेस किधर है?’’
‘‘कौन सा ब्रीफकेस?’’
‘‘उसका माल किधर है?’’
‘‘मेरे को किसी ब्रीफकेस, किसी माल के बारे में कुछ नहीं मालूम ।’’
‘‘ये तेरा फाइनल जवाब है?’’
‘‘ये मेरा इकलौता जवाब है ।’’
‘‘जबाव पर फिर सोच विचार करना माँगता है तो अभी टेम है ।’’
‘‘ये मेरा सच्चा जवाब है। मेरा ईश्वर मेरा इंसाफ करेगा कि...’’
‘‘नक्को। मैं करेगा। करता है। गाबले!’’
‘‘बोलो, बाप ।’’—गाबले तत्पर स्वर में बोला।
‘‘थाम इसको। साइड में ले। साथ में अहसान और ओमराजे को भी ले। अभी तेरे को मालूम क्या करने का, कैसे करने का कि मैं बोले? सैम्पल दे?’’
‘‘मालूम, बाप ।’’
‘‘ये तोता है। गाने वाला तोता है। जो गाना गाता है वो तुम तीनों सुना। जब ट्यून बदले तो ले के आने का। क्या!’’
‘‘अभी, बाप। चल, भीड़ू ।’’
‘‘क-कहाँ?’’
‘‘दूर नहीं। पास ही। उधर बैक में एक कमरा है न, वहाँ चल के कोरस गाते हैं ।’’
दहशत से अधमरा पहले ही होते घुमरे को लेकर वो तीनों पिछवाड़े में चले।
पीछे बिग गॉस ने एक चुरुट सुलगा लिया।
पाँच सात मिनट पीछे से ऐसी आवाजें आती रहीं जैसे धोबी घाट पर कपड़े कूटे जा रहे हों। फिर पीछे का बन्द दरवाजा खुला और अपने बायें हाथ से दायें हाथ को सहलाते दबाते गाबले ने बाहर कदम रखा। उसके पीछे दोनों टपोरी थे जो घुमरे को आजू बाजू से थामे अपने बीच सम्भाल कर चला रहे थे। वो करीब पहँुचे तो गाबले एक बाजू हट गया और दोनों टपोरी घुमरे को उसकी पहले वाली जगह पर आँधी में झूमते पेड़ की तरह हिलता छोड़ कर अलग हट गये।
जीतसिंह ने देखा उसकी नाक सूज कर पकौड़ा हो गयी थी, बायीं आँख के नीचे एक कट था जिसमें से खून रिस रहा था, तकरीबन चेहरे की रंगत बैंगनी हो गयी थी और कमीज पर कई जगह खून के धब्बे दिखाई दे रहे थे।
‘‘अभी क्या बोलता है?’’—बिग बॉस बोला।
‘‘मैं बेगुनाह हूँ ।’’—घूमरे बड़ी मुश्किल से बोल पाया—‘‘मैंने कुछ नहीं किया। मेरे को फंसाया जा रहा है। मैं...’’
‘‘साला ठोकना भी नहीं आता ।’’—बिग बॉस भड़का—‘‘ये तो वहीच गाना गाता है जो पहले गाता था। अभी मैं लैसन दे तेरे को या इसको?’’
‘‘बाप’’—गाबले चिन्तित भाव से बोला—‘‘उधर तो साफ लगा मेरे को कि ट्यून बदले के वास्ते तैयार था। अभी फिर ले के जाता है, ये टेम...’’
‘‘नहीं माँगता ।’’—बिग बॉस ने चुरुट फेंका ओर उठ खड़ा हुआ—‘‘अभी मैं देखता है इसको ।’’
‘‘बाप, तुम! तुम काहे...’’
‘‘मैं काहे बोलता है! साला ठीक से कुछ कर सकता हैइच नहीं। एक मामूली भीड़ू को हैंडल नहीं कर सकता। अभी मैं लैसन देता है इसको सिम्पल, स्ट्रेट और ब्रीफ। वाच करने का। और कुछ सीखने का ।’’
‘‘बरोबर, बाप ।’’
‘‘मेरे को अहसान और ओमराजे का आवाज सुनाई नहीं दिया!’’
‘‘बरोबर, बाप ।’’—दोनों सम्वेत् स्वर में बोले।
महबूब फिरंगी घुमरे के सामने जा खड़ा हुआ। वो इतना विशालकाय था कि घुमरे उसके सामने पिद्दी सा लग रहा था। फिरंगी ने उसकी छाती पर हाथ रख के उसको जोर का धक्का दिया तो वो फर्श पर ढेर हो गया। फिरंगी ने झुक कर दोनों हाथों में टखनों के पास से उसकी दोनों टाँगें जकड़ीं, उसे सिर नीचे टाँगें ऊपर उठाया और खिड़की के पास जाकर उसे छ: मंजिल की ऊँचाई से बाहर लटका दिया। वो काम उसने ऐसी सादगी से किया जैसे मरे हुए चूहे को पूंछ से उठाये हो और कूड़े के ड्रम में डाल रहा हो।
‘‘अभी बोल’’—वो खूँखार लहजे से बोला—‘‘क्या बोलता है?’’
‘‘छोड़ दो ।’’—घुमरे बिलखता सा बोला—‘‘छोड़ दो ।’’
‘‘ठीक है ।’’
फिरंगी ने उसकी एक टाँग छोड़ दी।
‘‘नही! नहीं!’’
‘‘अरे! अभी बोला बरोबर तू कि छोड़ दो ।’’
‘‘माफ कर दो! बकश दो! रहम कर दो!’’
‘‘ईश्वर करेगा न, जिसके इंसाफ को याद करता था! अभी पहँुचता है उधर!’’
‘‘नहीं! नहीं! मैं सब बोलता हूँ ।’’
‘‘अभी पक्की तेरे को कि सब बोलता है?’’
‘‘हाँ। हाँ। हाँ ।’’
‘‘कोई चक्कर नहीं देने का अभी! सब स्ट्रेट बोलने का! कुछ नहीं छुपाने का!’’
‘‘हाँ। हाँ। हाँ ।’’
फिरंगी ने उसे वापिस खींच लिया और पैरों पर खड़ा किया।
‘‘इसे कुर्सी दे ।’’—वापिस अपनी एग्जीक्यूटिव सीट की ओर बढ़ता फिरंगी बोला—‘‘टावॅल दे! पानी पिला!’’
उसके अपनी जगह पर वापिस पहुंचने तक घुमरे पहले जहाँ खड़ा था, वहाँ कुर्सी पर बैठा हुआ था, उसकी गोद में एक तौलिया था और दोनों हाथों में थमा एक पानी का गिलास था जिसे वो मँुह लगाता था तो वो छलक छलक जाता था।
‘‘अभी मेरे को स्टोरी नहीं माँगता ।’’—बिग बॉस यूं बोला जैसे बरसने वाले बादल गम्भीर गर्जन कर रहे हों—‘‘डायलॉग नहीं माँगता। उस भीड़ू का नाम पता बोल जो परसों रात वाल्ट में तेरे साथ था और जिसके पास ब्रीफकेस है, मेरा माल है ।’’
घुमरे बड़ी मुश्किल से बोल पाया, पर उसने बोला।
एक घण्टे बाद जोड़ीदार बमय ब्रीफकेस बिग बॉस महबूब फिरंगी के दरबार की हाजिरी भर रहा था। वहाँ मौजूद घुमरे को देख कर, उसकी हालत को देख कर ही वो समझ गया था कि पासा पलटने की नौबत क्योंकर आयी थी। बहरहाल जिगरेवाला आदमी था, वहाँ लाया जाने पर हत्थे से नहीं उखड़ गया था। उसके भीतर कुछ भी घुमड़ रहा था, ऊपर से वो शान्त और संजीदा लग रहा था। उसकी सूरत से जीतसिंह को ये भी लगा कि वो महबूब फिरंगी को जानता नहीं तो पहचनाता बराबर था।
खुद जीतसिंह ने उसे हवलदार, मौनव्रतधारी हवलदार, गनपतराव टिंगरे के तौर पर फौरन पहचाना।
‘‘नाम बोल ।’’—उसे घूरता बिग बॉस फिरंगी सख्ती से बोला।
‘‘जमाल हैदरी, जनाब ।’’—वो अदब से तनिक सिर नवा कर बोला।
‘‘जमाल हैदरी! वो भीड़ू जिसने शेर की मूँछ का बाल उखाड़ने का हौसला किया!’’
‘‘इत्तफाक से—बल्कि मेरी बद्किस्मती से—जनाब, मुझे नहीं मालूम था वो सैट अप आपका था। मालूम होता तो पास भी न फटकता, कोस दूर से गुजरता ।’’
अब जीतसिंह ने वो लहजा, वो अन्दाजेबयां भी पहचाना। वो ऐन वैसी जुबान बोल रहा था जो वो भीड़ू बोलता था जो उसको बतौर वाल्टबस्टर एंगेज करना चाहता था और जिस ने उस बाबत उसे कई बार फोन लगाया था।
तो ये था वो उर्दू जैसी जुबान बोलने वाला भीड़ू जिसने बाजरिया डुप्लीकेट मंगेश गाबले गाइलो को शीशे में उतार कर घुमावदार तरीके से उसके हुनर तक पहँुच बनाई थी, बाकायदा उन दोनों को टोपी पहनाई थी!
फिरंगी ने ब्रीफकेस के लॉक ट्राई किये तो पाया कि वो अनलाक्ड था। उसने ढक्कन उठा कर भीतर झांका और जो कुछ भीतर था उसका मुआयना किया।
‘‘माल तो पूरा है!’’—फिर बोला।
‘‘क्योंकि डालर में है। इसको रुपयों में तब्दील करने का मेरा इन्तजाम अभी मुकम्मल नहीं हो पाया था ।’’
‘‘गिना?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘क्या गिना?’’
‘‘सौ सौ डालर की बाइस गड्डियाँ हैं। यानी दो लाख बीस हजार डालर ।’’
‘‘एक करोड़ बीस लाख रुपया। डालर में। उम्मीद थी इतना माल काबू में आयेगा?’’
‘‘नहीं, जनाब ।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘दो वजह थीं। एक तो डालर की उम्मीद नहीं थी, दूसरे माल आप जैसे टॉप के डॉन का होगा, इस बात की उम्मीद नहीं थी ।’’
जमाल हैदरी यूं शान्त, सुसंयत स्वर में बोल रहा था जैसे बिग बॉस के गुनहगार के तौर पर वहाँ न खड़ा हो, उसके दोस्त के, करीबी के तौर पर वहाँ मौजूद उससे गपशप कर रहा हो, फाइनाँस के मुद्दे पर नोट्स एक्सचेंज कर रहा हो।
‘‘उम्मीद होती तो कहाँ तक उठती?’’
‘‘कहीं तक न उठती, जनाब, मेरी मजाल न होती आप के माल पर निगाह भी मैली करने की ।’’
‘‘बातें बढ़िया करता है। अब क्या करे मैं तेरा?’’
‘‘आपकी रियाया हैं, छोड़ दीजिये, जनाब ।’’
‘‘क्या कहने!’’
‘‘जनाब, माल भले ही हमारे पास से बरामद हुआ है लेकिन यकीन जानिये हमने आप के...आप के माल पर हाथ नहीं डाला था ।’’
‘‘तो किस के माल पर हाथ डाला था?’’
‘‘उन भीड़ूओं के जिन्होंने असल काम को अंजाम दिया था ।’’
‘‘बोले तो!’’
‘‘लॉकरबस्टर कोई और थे। हमने उनको बस्ट किया था ।’’
‘‘स्टोरी है ।’’—जीतसिंह करीब खड़े मंगेश गाबले के कान में फुसफुसाया।
गाबले ने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘बन्द करा न, बाप!’’
‘‘मेरा बोलना जरूरी नहीं। बड़ा बाप सब समझता है ।’’
‘‘पण...’’
‘‘अभी खामोश रहने का ।’’
‘‘मेरे को स्टोरी नहीं मांगता ।’’—फिरंगी बोला तो जैसे उसने गाबले की सोच की तसदीक की—‘‘डिटेल नहीं माँगता। खुफियापन्ती नहीं माँगता। तेरा जोड़ीदार तेरी तरफ उंगली किया और ठीक किया क्योंकि मेरा माल तेरे पास से बरामद हुआ बराबर। तू सजा से नहीं बच सकता...’’
तब पहली बार जमाल हैदरी के मिजाज में फर्क आया।
‘‘जनाब, आप जरा मेरी बात सुनिये...’’
‘‘नहीं, नहीं सुनने का। सुनने का वास्ते कुछ हैइच नहीं। तू स्टोरी को फुंदने लगा के मेरे को चक्कर देगा, नहीं माँगता ।’’
‘‘जनाब आप सुनिये तो सही!’’
‘‘मेरे को और भीड़ू लोगों को लैसन देने का इस वास्ते तेरे को सजा जरूरी। तेरी सजा से ही मिसाल कायम होगी और फिर किसी की शेर की मूँछ का बाल उखाड़ने की मजाल नहीं होगी ।’’
‘‘लेकिन, जनाब...’’
‘‘ले के जा ।’’—बिग बॉस गाबले से बोला—‘‘ये कहानी करने का शौकीन, कहानी फिनिश कर। दूसरे को भी ।’’
चार जनों ने—गाबले, अहसान, ओमराजे और मिर्चू ने—दो जनों को—जमाल हैदरी और अनिल घुमरे को—सम्भाला और उन्हें वहाँ से ले गये।
पीछे शान्ति छा गयी।
जीतसिंह और मुरली चेराट सिर झुकाये अदब से खड़े रहे।
‘‘ताला-चाबी मास्टर’’—फिरंगी बोला—‘‘अभी तेरे को क्या माँगता है?’’
‘‘साहब’’—जीतसिंह विनीत भाव से बोला—‘‘गाबले बोला होगा!’’
‘‘हूँ ।’’
‘‘साहब, मैं इतना सालिड टिप सरकाया, जो टिप सरकाया, उस का इतना सालिड रिजल्ट निकला, अभी शाबाशी तो होने का न!’’
‘‘शाबाशी!’’
‘‘ईनाम! साहब, परसों आप मेरे को बोला दूसरा वाल्टबस्टर मेरी मेहनत से पकड़ाई में आ गया तो मेरे वो बड़ा इनाम!’’
‘‘बड़ा भी बोला मैं?’’
‘‘साहब, बड़े काम का ईनाम बड़ा ही होता है!’’
‘‘इस वास्ते बड़ा खुद जोड़ लिया!’’
‘‘साहब, मिस्टेक किया तो सॉरी बोलता है ।’’
‘‘हूँ ।’’
‘‘साहब, मैं बहुत काम का भीड़ू। आगे भी बहुत काम आयेंगा। देखना आप!’’
‘‘काम तो तू बरोबर आया ये टेम भी। बहुत फास्ट वर्क किया ।’’
‘‘आपका माफिक फास्ट तो न किया, साहब, पण जो किया, जान लड़ा के किया, दिन रात एक करके किया। और ऐन सालिड किया ।’’
‘‘गाबले फाइन्डर्स फी कर के कुछ बोला। तो अब तेरे को फीस माँगता है!’’
‘‘साहब, बहुत डर के बोलता है, माँगता तो है! मिल जाये तो लाइफ बन जायेगी गरीब की ।’’
‘‘दस फीसदी!’’
‘‘साहब, गाबले बोला आप खुशी से देंगा ।’’
‘‘खुश तो है मैं बरोबर। परसों से अन्डरवल्र्ड में मेरी किरकिरी हो रही है कि कोई साला हरामी मेरे मँुह पर मूत के चला गया। मैं एक्सप्रैस करके सब फिनिश किया, शाम तक मेरे बताये बिना ही सब को मालूम पड़ जायेगा। फिर जो किरकिरी करते थे, वही बधाईयाँ देंगे। खुश तो मैं है बरोबर ।’’
‘‘तो साहब, मेहरबानी करके खुशी का एक छींटा इधर भी मारो न!’’
‘‘ये दो लाख बीस हजार डालर हैं—सौ सौ डालर के नोटों की बाइस गड्डियाँ—डालर समझता है?’’
‘‘समझता है, बाप। अमरीका का रुपिया है ।’’
‘‘पण रुपिया से पचपन टेम ज्यादा है। दो लाख बीस हजार डालर बोले तो एक करोड़ बीस लाख रुपिया। कभी देखा एक टेम में?’’
‘‘नहीं, साहब, पण दस फीसदी दिखा दो तो समझेगा रिजर्व बैंक का वाल्ट खुल गया मेरे सामने ।’’
‘‘साला हरामी! स्टाइल से मस्का मारता है!’’
‘‘नहीं, साहब ।’’
‘‘इधर आ ।’’
झिझकता सा जीतसिंह टेबल के पार जा कर खड़ा हुआ।
‘‘ये एक’’—फिरंगी ने ब्रीफकेस में से निकाल के एक गड्डी उसकी तरफ उछाली जो जीतसिंह ने बड़ी मुश्किल से लपकी—‘‘बोले तो दस हजार डालर। ये दो...बीस हजार। और सौ डालर के बीस नोट...कुल जमा बाइस हजार। दो लाख बीस हजार डालर का दस फीसदी। बोले तो बारह लाख दस हजार रुपिया। अभी राजी?’’
जीतसिंह को यकीन नहीं आ रहा था वो रकम उसे मिल गयी थी। उसे अन्देशा था गोवा के मार्सेलो जैसा ही कोई छल फिर उसके साथ होगा—आखिर महबूब फिरंगी उसी का साइलेंट पार्टनर था—लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ था। न सिर्फ ईनाम मिला था, भरपूर मिला था।
चेराट फटी-फटी आँखों से सब नजारा कर रहा था।
जीतसिंह ने मेज के नीचे घुस कर मवाली के पाँव छुए।
‘‘अरे! क्या करता है साला!’’
‘‘थैंक्यू बोलता है, साहब ।’’
‘‘ठीक है। ठीक है। अभी निकल ले। इसको भी लेके जा ।’’
‘‘साहब, इतना बड़ा मेहरबानी किया, एक और करो न!’’
‘‘क्या? और रोकड़ा माँगता है?’’
‘‘अरे, नहीं साहब। मेरे को तो पहले ही मेरी औकात से ज्यादा मिला ।’’
‘‘तो?’’
‘‘साहब, ये टूल किट...आपके किसी काम की नहीं, आप ने तो फेंक ही देनी है...ये मेरे काम के औजार हैं, मेरे को दे दो ।’’
‘‘उठा ले ।’’
जीतसिंह ने झपट कर टूल किट उठाई।
‘‘टल!’’
‘‘साहब, थैंक्यू बोलता है ।’’
‘‘बोल तो चुका, हठेले!’’
‘‘साहब ये लास्ट टेम बोलता है और...जाता है ।’’
सलाम ठोकर जीतसिंह घूमा और बाहर को चल दिया।
चेराट उसके पीछे लपका।
दोनों लिफ्ट में सवार होकर ग्राउण्ड फ्लोर पर पहँुचे।
जीतसिंह आगे बढ़ा तो चेराट वहाँ भी उसके पीछे लपका।
जीतसिंह ठिठका, घूमा और गुस्से से बोला—‘‘अभी टल न! क्या लसूड़े का माफिक चिपक रयेला है!’’
‘‘एक मिनट रुको ।’’—चेराट हाँफता सा बोला।
‘‘काहे?’’
‘‘बात करने का है ।’’
‘‘क्या बात करने का है?’’
‘‘बोलता है न! इधर बाजू में आ ।’’
‘‘अरे, काहे?’’
‘‘बोलता है न, बोला ।’’—एकाएक चेराट भी झल्लाया—‘‘बोलता है न!’’
‘‘टेम नहीं है मेरे पास। मेरे को ये टेम तेरे से कोई बात नहीं करने का ।’’
‘‘मेरे को करने का। और करके रहने का ।’’
‘‘करना। पीछे से चिल्लाना। सबको सुनाना। मैं जाता है ।’’
‘‘मैं भी जाता है ।’’
‘‘अच्छा करता है न! पहले निकल ले ।’’
‘‘वापिस लिफ्ट में। ऊपर बिग बॉस के पास ।’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘और जा के तुम्हारी सब पोल पट्टी खोलता है ।’’
‘‘क्या!’’
‘‘बिग बॉस को बोलता है असल विलेन तू। फिर बिग बॉस उस भीड़ू जमाल हैदरी की वो बात भी सुनेगा जो हैदरी सुनाना माँगता था, बिग बॉस सुनना नहीं माँगता था। सुनेगा कि साला लॉकरबस्टर तू, उसने वाल्ट की इमारत में कदम तक नहीं रखा था, बाहर सड़क पर कहीं तेरे से ब्रीफकेस छीना था। अभी आगे तेरी जुबान तेरे को बोलता है...फिर तेरा क्या होगा रे, कालिया!’’
‘‘तेरा क्या होगा! जो तेरी इतनी पोल पट्टी है...’’
‘‘मैं फिर तेरा जवाब तेरे को देता है। बुरा होगा। बहुत बुरा होगा। पण तू देखने को सलामत नहीं होगा, पहले ही ऊपर अपने गॉड की काल बैल बजाता होगा, बोलता होगा बिग बॉस महबूब फिरंगी ने भेजा। क्या!’’
जीतसिंह ने खा जाने वाली निगाह से उसको देखा।
चेराट विचलित न हुआ, उसने पूरी दिलेरी से जीतसिंह से निगाह मिलाई। आखिर जीतसिंह की ही निगाह भटकी।
‘‘क्या चाहता है?’’—वो लहजे में नर्मी लाता बोला।
‘‘हाफ!’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘फिफ्टी फिफ्टी ।’’
‘‘माथा फिरेला है!’’
‘‘इट इज वैरी फेयर...’’
‘‘मैं साला इतना काम किया बिग बॉस के वास्ते। तूने क्या किया?’’
‘‘मैंने तुझे काम करने के काबिल छोड़ा। कल इधर फस्र्ट इंसटेंस में शिनाख्त न की तेरी। अभी फिर नहीं बोलने का फिर मेरा क्या होता! मेरा वही जवाब। बुरा होता। पण तू देख पाने को जिन्दा न होता ।’’
‘‘मैं साला इधरीच तेरे को टपकाता है ।’’
‘‘कहना आसान। इधर लॉबी में इतना रश। बाहर सड़क पर इतना रश। ठीक है, टपका। दोनों आगे पीछे ही ऊपर पहँुचेंगे। मैं तो साला चैन से मरेगा, तेरे को पब्लिक पीट पीट के खल्लास करेगी। चल, शुरू कर ।’’
जीतसिंह के मँुह से बोल न फूटा, उसने बेचैनी से पहलू बदला।
‘‘मेरे को’’—चेराट शुष्क स्वर में बोला—‘‘होल डे इधर ही नहीं ठहरने का ।’’
‘‘बहुत दिलेरी दिखा रहा है, भीड़ू!’’
‘‘बिकाज इट्स ए मैटर आफ मनी। रोकड़े का मामला है। मेरे पर फाइनेंशल प्रेशर। परसों रात भी बोला। ये वंस इन ए लाइफ टाइम का चांस है, नहीं मिस कर सकता ।’’
‘‘तू अभी उधरीच था, सब वाच करता था, साला मेरे मगज में ही न आया वर्ना पहले तेरे को उधर से आउट होता देखता फिर बड़ा बाप से ईनाम का बात करता ।’’
‘‘नाओ डोंट वैस्ट टाइम ।’’
‘‘टायलेट में चल ।’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘उधर देगा न तेरे को फिफ्टी-फिफ्टी का फिफ्टी ।’’
‘‘इधर क्या है?’’
‘‘माथा फिरेला है! मेरे जैसी हैसियत के भीड़ू के पास कोई इतना फारेन करेंसी देख लिया तो...’’
‘‘ठीक है, चल ।’’
दोनों टायलेट में पहँुचे और यूरीनल्स की लम्बी कतार के परले कोने पर आजू-बाजू के दो स्टाल्स पर जा खड़े हुए।
जीतसिंह ने सावधानी से ग्यारह हजार डालर उसे सौंपे।
‘‘थैक्यू ।’’—नोट पतलून की जेब के हवाले करता चेराट बोला।
‘‘जो होना था, वो तो हो गया’’—स्टाल पर से हटता जीतसिंह गमगीन लहजे से बोला—‘‘पण मैं कभी सपने में नहीं सोचा था कि जिन्दगी में कभी ऐसा दिन देखना पड़ेगा जब तेरे जैसा चींटा मेरे को इतनी बड़ी डिफीट देगा ।’’
‘‘चींटा हाथी को मार गिराता है। मालूम!’’
‘अभी तू अपनी कामयाबी पर खुश हो ले पण मैं देखेगा तेरे को ।’’
‘‘देखना। कुछ दिखाई नहीं देगा ।’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘इधर से मैं सीधा जौहरी बाजार जाऊँगा और नौकरी से रिजाइन करूँगा। शाम तक घर बार से किनारा कर लूँगा और बीवी के साथ त्रिवेन्द्रम की फ्लाइट पकड़ लूँगा, चाहे टिकट ब्लैक में मिले। अफोर्ड कर सकता है न मैं! छ: लाख पाँच हजार रुपया है मेरे पास। सो नो प्राब्लम ।’’
जीतसिंह मँुह बाये उसे देखने लगा।
‘‘थ्री इयर्स से मैं इधर है, साला एक दिन कम्फर्टेबली नहीं गुजरा। अभी होम टाउन जा के सैटल होने का और नये सिरे से कम्फर्ट तलाश करने का। केरल आ के ढूँढ़ना मेरे को ।’’
जीतसिंह फिर न बोला।
जीतसिंह गाइलो के साथ उसकी टैक्सी में सवार था।
‘‘क्या हुआ?’’—उत्सुक, आशंकित गाइलो ने पूछा।
‘‘बोलता है। इधर से निकल ।’’
‘‘पहले बोल। मेरे को सस्पेंस ।’’
‘‘बुरा हुआ ।’’
‘‘वो तो तेरी शक्ल पर लिख रयेला है पण हुआ क्या?’’
‘‘इतना बुरा भी न हुआ ।’’
‘‘अभी क्विज प्रोग्राम करता है तो मेरे को वान्दा नहीं। जब टेम लगे, बोलना ।’’—गाइलो एक क्षण ठिठका फिर बोला—‘‘ये तेरे हाथ में क्या है?’’
‘‘क्या है?’’
‘‘तेरी टूल किट जान पड़ती है ।’’
‘‘वही है ।’’
‘‘साली घूम फिर के फिर तेरे पास पहँुच गयी!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘फिर भी बोलता है बुरा हुआ!’’
‘‘ये भी तो बोला इतना बुरा नहीं हुआ!’’
‘‘क्या किस्सा है? टूल किट का ही नहीं, टोटल किस्सा बोल मेरे को ।’’
जीतसिंह ने बोला। सब। सविस्तार।
‘‘गाइलो’’—फिर बोला—‘‘तू बोलता था बड़ा बाप झुनझुना थमायेगा। वो हैरान किया मेरे को। मैं साला टोटल फ्लैट जब बिना हुज्जत के मेरे को फुल अमाउन्ट थमाया। साला बाइस हजार डालर। इतना डालर कभी देखा थाइच नहीं ।’’
‘‘बाइस हजार डालर रूपिया में बोले तो?’’
‘‘बारह लाख से ऊपर ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘ऐन उतना जितना मेरे को इमीजियेट कर के माँगता था। आधा मलयाली झपट के ले गया ।’’
‘‘हैरानी है ।’’
‘‘साली हमेरी बिल्ली हमेरे को ही म्याऊँ बोल गयी। जो हमेरे से सीखा, वही मेरे पर ठोक दिया ।’’
‘‘मैं थामेगा साले को ।’’
‘‘अब हाथ नहीं आने का। नौकरी से इस्तीफा देने को बोलता था। बोलता था शाम तक मुम्बई से बाहर होगा ।’’
‘‘शाम तक न!’’
‘‘तब तक खबरदार होगा साला हरामी। जैसे पहले था—जब किसी को सीडी थमा दी, जब बीवी को फोन लगा दिया—अभी भी जरूर कोई एहतियात बरतता होगा रोकड़ा वापिस छिन जाने के खिलाफ। टपकाये जाने के खिलाफ ।’’
‘‘ठीक!’’
‘‘साला लक फुल साथ दिया होता तो ब्रीफकेस में से डबल अमाउन्ट निकल सकता था। फिर फिफ्टी फिफ्टी के बाद भी साला मेरी जरूरत का रोकड़ा मेरे पास होता ।’’
‘‘डबल बिरीफकेस में आ जाता?’’
‘‘क्या पता! न आ जाता तो ब्रीफकेस बड़ा होता या डालर की जगह पाउण्ड होता, वो आ जाता। जब बैडलक ही खराब तो साला ब्रीफकेस कैसे बड़ा होता, रोकड़ा कैसे डबल होता!’’
‘‘फिर भी जीते, कुछ तो मिला! और जो मिला, वो भी कम तो नहीं!’’
‘‘वो तो है पण अब मैं तेरे साथ हिस्सा नहीं बँटा सकता ।’’
‘‘वान्दा नहीं। वान्दा नहीं ।’’
‘‘फिर तो थैंक्यू बोलता है। पण मैं तेरा हिस्सा तेरे को देगा बराबर ।’’
‘‘मैं असैप्ट करेगा विद थैंक्स पण अभी ये टेम वान्दा नहीं ।’’
‘‘अब चल। मेरे को खार पहँुचा ।’’
‘‘पीडी के पास जाने का?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘अभी ।’’
नवलानी अपने आफिस में मौजूद था।
मालूम हुआ कि तभी पहँुचा था।
जीतसिंह ने रकम उसके सामने मेज पर रखी।
‘‘डालर!—नवलानी सकपकाया।
‘‘हाँ, साहब ।’’
‘‘कितने हैं?’’
‘‘ग्यारह हजार ।’’
‘‘आजकल डालर पचपन रुपये के करीब है। यानी’’—नवलानी ने अपने मोबाइल के केलकुलेटर पर हिसाब लगाया—‘‘छ: लाख रुपये। पाँच हजार ऊपर ।’’
‘‘इतने ही होंगे, साहब ।’’
‘‘मेरे सामने क्यों रखे?’’
‘‘साहब, एक लाख आप अपनी और कोबरा की पार्ट पेमेंन्ट मान के कबूल कर लीजिये, अगर वकील साहब पार्ट पेमेंट कबूल कर लें तो बाकी उन को पहँुचा दीजिये ।’’
‘‘डालर कहाँ से आये?’’
‘‘लम्बी कहानी है, साहब ।’’
‘‘गुंजन शाह कामयाबी से ऐंठा हुआ वकील है। काम की उसे कोई कमी नहीं। पता नहीं पार्ट पेमेंट उसे मंजूर होगी या नहीं!’’
‘‘साहब आपके दोस्त हैं वकील साहब, दोस्ती का कुछ तो लिहाज करेंगे!’’
‘‘उम्मीद तो है! मैं बात करता हूँ ।’’
नवलानी ने मोबाइल सम्भाला।
कुछ क्षण वो फोन पर मसरूफ रहा।
फिर एकाएक उसने फोन बन्द किया और उठ खड़ा हुआ।
‘‘वो कोर्ट में है ।’’
‘‘कोर्ट में है!’’—जीतसिंह हड़बड़ाया—‘‘कौन?’’
‘‘गुंजन शाह। चलो, वहीं मिलते हैं और उसे ये रकम वहीं थमाते हैं ।’’
‘‘साहब, ये कोर्ट वाली बात पर कुछ कनफ्यूजन है...’’
‘‘मेरे को भी है—इस बात पर नहीं कि वो कोर्ट पहँुचा हुआ है, इस बात पर कि सुष्मिता वाले केस में कोर्ट पहँुचा हुआ है ।’’
‘‘जी!’’
‘‘सिविल जज के कोर्ट में है। चलो। टाइम वेस्ट न करो ।’’
‘‘बिना फीस वसूले...’’
‘‘मालूम करते है न क्या माजरा है! अब उठो तो सही!’’
जीतसिंह तत्काल पीडी के साथ हो लिया।
कोर्ट में गुंजन शाह के साथ सुष्मिता भी मौजूद थी।
जीतसिंह को हैरानी हुई। बड़े वकील की उस कोर्ट में हाजिरी की खबर नवलानी को भी नहीं थी—जो कि वकील के साथ निरन्तर कान्टैक्ट में था—लेकिन सुष्मिता को थी। मालूम पड़ा कि चंगुलानी सेठ के वारिसों की अर्जी पर सुनवाई में अभी वक्त था।
‘‘सर’’—नवलानी बोला—‘‘यू नैवर सीज टु गिव ए सरपराइज टु लैसर मॉर्टल्स ।’’
‘‘क्या हुआ!’’—जानबूझ के अंजान बनता शाह बोला।
‘‘उम्मीद नहीं थी कि फीस के मामले में यूँ अपना नियम तोड़ेंगे ।’’
‘‘अरे, ये तुम्हारी रिकमैंडिड क्लायन्ट है न!’’—वकील ने सुष्मिता की तरफ इशारा किया।
‘‘फिर भी...’’
‘‘फिर भी नथिंग। आई मे असैप्ट माई फी इन कैश ऑर इन काइन्ड। शी इज वैरी काइन्ड लेडी। आई होप टु कलैक्ट इन काइन्ड ।’’—वो सुष्मिता की तरफ घूमा—‘‘नो, माई डियर!’’
सुष्मिता ने जवाब न दिया, उसका चेहरा लाल होने लगा, जीतसिंह से निगाह चुराती वो परे देखने लगी।
गनीमत थी कि वो सब सम्वाद जीतसिंह की समझ से बाहर था।
‘‘शाह साहब’’—नवलानी बोला—‘‘आपका बड़प्पन, आपकी दयानतदारी अपनी जगह कायम है, फीस की अदायगी से पहले आप की यहाँ मौजूदगी बड़ी घटना है लेकिन मैडम के वैलविशर्स का जो फर्ज है वो, यकीन जानिये, वो जरूर निभायेंगे...’’
‘‘भई, अब मैं भी उसी जमात में शामिल हूँ ।’’
‘‘खुशी की बात है। मैडम खुशकिस्मत हैं जो आज की तारीख में इतनी बड़ी हस्ती इनकी वैलविशर है। लेकिन प्रैक्टीकल फिर भी होना पड़ता है इसलिये...जरा इधर आइये ।’’
नवलानी वकील को उन से परे ले चला।
‘‘कैसे आये?’’—पीछे सुष्मिता बोली।
‘‘बोलूँगा ।’’—जीतसिंह ने संक्षिप्त जवाब दिया और परे देखने लगा।
वकील को परे ओट में ले जाकर नवलानी ने उसे वो लिफाफा सौंपा जिसमें डालर भरे थे।
शाह ने लिफाफे का मँुह खोल कर नोटों को आधा बाहर खींचा और वापिस लिफाफे में धकेला।
‘‘डालर!’’—वो सकपकाया—‘‘कितने?’’
‘‘नौ हजार एक सौ ।’’—नवलानी बोला—‘‘इक्विवालन्ट टु फाइव लैक रुपीज ।’’
‘‘पाँच लाख क्यों? दस क्यों नहीं?
‘‘अभी पाँच कबूल कीजिये, अहसान होगा, बाकी रकम बहुत जल्दी आपके पास पहँुच जायेगी ।’’
‘‘क्लायन्ट का काम तुम क्यों कर रहे हो? ये रकम तुम्हारे पास क्यों है?’’
‘‘आप बात को राज रखें तो अर्ज करूँ?’’
‘‘करो ।’’
‘‘क्लायन्ट को पेमेंट की खबर नहीं है ।’’
‘‘क्या!’’
‘‘उसका ये भ्रम बना रहने दीजिये कि आपकी र्सिवसिज उसे ‘पेमेन्ट इन कैश’ से नहीं ‘पेमेन्ट इन काइन्ड’ से हासिल हैं ।’’
‘‘लेकिन इतनी बड़ी रकम तुम क्यों अपने पल्ले से अदा करोगे?’’
‘‘मैं नही। मैं नहीं। मैं दरिया में डालने के लिये इतनी बड़ी नेकी नहीं कर सकता ।’’
‘‘कमाल है! असल में दाता कौन है?’’
‘‘वो लड़का जो मेरे साथ आया, जिसको हम पीछे सुष्मिता के पास छोड़ के आये। जीतसिंह नाम है ।’’
‘‘क्या करता है?’’
‘‘बिगड़े ताले ठीक करता है। खोई चाबियों का डुप्लीकेट तैयार करता है ।’’
‘‘फिर भी पाँच लाख रुपया एकमुश्त अदा कर सकता है! डालर में! गुप्तदान के तौर पर!’’
‘‘सर, वो लम्बी कहानी है ।’’
‘‘जिस की समरी की मेरे को खबर है ।’’
‘‘खबर है!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘किसने की?’’
‘‘क्लायन्ट ने। क्लायन्ट ने की। कल चार बजे की मीटिंग में की ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘ये वो लड़का है जो...’’
‘‘वही है ।’’
‘‘जीतसिंह!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘एकतरफा लव अफेयर में गिरफ्तार!’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘अभी कुर्बानी करता है! प्रेमिका को प्रेमपुष्प चढ़ाता है!’’
‘‘सर, बात को इतना लम्बा न खींचिये। यही खत्म कीजिये कि दिल का मामला है ।’’
‘‘ओके ।’’—उसने एक क्षण ठिठक कर अपनी रौलेक्स की कलाई घड़ी पर निगाह डाली—‘‘मेरे खयाल से हमारी पेशी का टाइम हो गया है ।’’
‘‘सर’’—नवलानी व्यग्र भाव से बोला—‘‘मैं निश्चिन्त हो जाऊँ कि जिस भ्रम की मैंने अभी बात की थी, आप उसे बना रहने देंगे?’’
‘‘तुम निश्चिन्त हो जाओ?’’
‘‘वो...वो लड़का निश्चिन्त हो जाये?’’
‘‘अगर वो ऐसा चाहता है तो...’’
‘‘चाहता है। शिद्दत से चाहता है ।’’
‘‘...हो जाये ।’’
‘‘थैक्यू, सर ।’’
‘‘चलो अब ।’’
दोनों वापिस लौटे।
जिला न्यायाधीश के कोर्ट में अपने वकील के साथ हत्प्राण की बेटी, दामाद और दोनों बेटे मौजूद थे।
शाह ने बताया कि परिवार के वकील का नाम रणजीत लाकरा था और ज्यूडीशियरी में उस की रिप्यूट क्रुकड लायर की थी। लिहाजा बद्अखलाक फैमिली ने अपने मिजाज से मेल खाता वकील चुना था।
रणजीत लाकरा जब तक सक्सेशन का अपना केस प्रस्तुत करता रहा, तब तक गुंजन शाह बिल्कुल खामोश बैठा रहा। कई बार तो उसे देख कर यूं लगा जैसे वो कुछ सुन ही नहीं रहा था। कई बार वो ऊंघता लगा, कई बार उसने स्पष्ट, दर्शनी, जमहाई ली।
‘‘ये क्या हो रहा है?’’—सुष्मिता व्याकुल भाव से जीतसिंह के कान में फुसफुसाई।
‘‘श श!’’—तत्काल नवलानी चेतावनीपूर्ण स्वर में बोला।
रणजीत लाकरा ने सविस्तार कोर्ट को बताया कि हत्प्राण पुरसूमल चंगुलानी के तीन बच्चे—दो बेटे और एक दोनों से बड़ी बेटी—थे। सक्सेशन की अर्जी दायर करने वाला बड़ा बेटा आलोक चंगुलानी था और उस अर्जी की रू में उसके साथ उसके हक में पेश होने वाले छोटा बेटा अशोक चंगुलानी और बेटी शोभा अटलानी थे। उन के अलावा हत्प्राण का और कोई वारिस नहीं था। लिहाजा सक्सेशन की अर्जी को प्रतिवादरहित मान कर उस पर कार्यवाही की जाये।
उस घड़ी शाह अलसाता सा उठ कर खड़ा हुआ।
जज कानून की दुनिया में गुंजन शाह की मकबूलियत से नावाकिफ नहीं था, वो तो बाकायदा हैरान था कि सक्सेशन के मामूली केस में इतना बड़ा वकील खुद उस कोर्ट की हाजिरी भर रहा था।
‘‘योर ऑनर’’—शाह बोला तो लगा जैसे बड़ी मुश्किल से जमहाई रोक पा रहा था—‘‘आई डोंट वांट टु इन्ट्रप्ट माई लर्नेड फ्रेंड, बट आई रिक्वेस्ट टु बी हर्ड ऐट दिस स्टेज ।’’
‘‘आप कुछ कहना चाहते है?’’—जज बोला।
‘‘जी हाँ ।’’
‘‘किस हैसियत से? किस को रिप्रेजेंट कर रहे हैं? किसके वकील हैं आप? और आप के क्लायन्ट का इस केस से क्या रिश्ता है?’’
‘‘योर ऑनर, मैं मकतूल की बेवा का वकील हूँ। और जब मैंने इन मोहतरमा को’’—उसने सुष्मिता की तरफ इशारा किया—‘‘मकतूल की बेवा कहा तो केस से मोहतरमा का रिश्ता अपने आप ही जाहिर हो जाता है ।’’
‘‘आई आब्जेक्ट, योर ऑनर ।’’—रणजीत लाकरा आवेशभरे स्वर में बोला—‘‘ये...’’
‘‘आई एम नाट फिनिश्ड यैट ।’’—शाह शुष्क स्वर में बोला—‘‘मेक युअर आब्जेक्शन वैन आई एम फिनिश्ड ।’’
‘‘प्रार्थी के वकील धीरज से काम लें ।’’—जज बोला।
चेहरे पर असंतोष के स्पष्ट भाव लिये लाकरा ने होंठ भींचे।
‘‘प्रोसीड, मिस्टर शाह ।’’
‘‘थैंक्यू, योर ऑनर। योर ऑनर, आई बैग टु सबमिट कि सक्सेशन का ये केस मेनटेनेबल नहीं है क्योंकि मकतूल की औलाद का ये कहना गलत है कि उन तीनों के सिवाय मकतूल का कोई वारिस नहीं। आई रीइंस्टेट, योर ऑनर, कि मेरी क्लायन्ट सुष्मिता चंगुलानी मकतूल की जिन्दगी में उसकी बीवी थी और अब उसका दर्जा मकतूल की बेवा का है ।’’
‘‘आई मस्ट स्पीक, योर ऑनर’’—लाकरा पूर्ववत् आवेशपूर्ण स्वर में बोला—‘‘ऐज आई इंटेंड टु रेज एन ऑब्जेक्शन ।’’
जज ने एक उड़ती निगाह शाह पर डाली जो कि अब खामोश था और बोला—‘‘यू मे ।’’
‘‘थैंक्यू, योर ऑनर ।’’—लाकरा बोला—‘‘योर ऑनर, मेरे फाजिल दोस्त ने जो कहा वो सरासर गलतबयानी है। ये औरत मकतूल की जिन्दगी में उसकी बीवी नहीं, लिव-इन पार्टनर थी और इसी वजह से उसकी मौत के बाद अपनी राजी से तुलसी चैम्बर्स, कोलाबा में स्थित उसका घर छोड़ के चली गयी थी ।’’
‘‘अगर गलतबयानी कोई है, योर ऑनर’’—शाह बुलन्द आवाज में बोला—‘‘तो वो ये है कि मेरी क्लायन्ट राजी से अपने खाविन्द का घर छोड़ के चली गयी थी। वो राजी से नहीं गयी थी, उसे जबरन घर से निकाला गया था। उसे मजबूर किया गया था घर छोड़ कर जाने के लिये। और मजबूर करने के लिये जो तरीके इस्तेमाल किये गये थे, वो किसी फौजदारी से कम नहीं थे ।’’
‘‘ये बेजा इलजाम है! नाजायज इलजाम है! शरारती इलजाम है!’’
‘‘भुक्तभोगी यहाँ मौजूद है, वो कठघरे में खड़ी होकर, शपथ ग्रहण करके अपना बयान देने को तैयार है ।’’
‘‘एक ओपन एण्ड शट केस में फच्चर डालने के लिये वो कुछ भी कह सकती है ।’’
‘‘मेरी क्लायन्ट पढ़ी लिखी औरत है, वो बाखूबी जानती है कि झूठ साबित होने पर वो परजुरी की गुनहगार होगी ।’’
‘‘परजुरी एक कदरन छोटा गुनाह है, गुनहगार तो वो इससे बड़े, बहुत बड़े गुनाह की है। इस पर कत्ल का इलजाम है ।’’
‘‘किसने लगाया? कब लगा? मैं माँग करता हूँ कि इलजाम लगाने वाले के हलफनामे के साथ एफआईआर की सार्टिफाइड कापी इस कोर्ट के रिकार्ड में दाखिल की जाये ।’’
‘‘एफआईआर दर्ज होना अभी बाकी है ।’’
‘‘क्यों बाकी है? कत्ल हुए आठ दिन हो गये, मेरी क्लायन्ट के खिलाफ एफआईआर अगर दर्ज होनी थी तो अभी तक दर्ज क्यों नहीं हुई?’’
‘‘क्योंकि पुलिस की तफ्तीश अभी जारी है ।’’
‘‘योर ऑनर, माई लर्नेड फ्रेंड इज पुटिंग दि कार्ट बिफोर दि हॉर्स। घोड़े के आगे बग्घी जोत रहे हैं। क्या ये नहीं जानते कि पहले एफआईआर होती है, फिर तफ्तीश होती है!’’
‘‘कोई जरूरी नहीं। तफ्तीश इस निगाह से भी की जाती है कि केस एफआईआर दर्ज किये जाने के काबिल है या नहीं!’’
‘‘ऐसा है तो उस शख्स का—ऐसे लोग एक से ज्यादा हैं तो सब का—नाम लिया जाये जो एफआईआर दर्ज कराना चाहते हैं ।’’
‘‘मकतूल की औलाद, उसके तीन और सिर्फ तीन वारिस हैं वो शख्स। नाम आलोक चंगुलानी, अशोक चंगुलानी, शोभा अटलानी ।’’
‘‘मैं इन में से किसी एक को जिरह के लिये बुलाना चाहता हूँ एण्ड माई प्रेफ्रेंस इज कम्पलेनेंट आलोक चंगुलानी ।’’
‘‘ये कोर्ट ये जरूरी नहीं समझता ।’’—जज बोला—‘‘मिस्टर शाह की माँग सक्सेशन के मौजूदा केस की सुनवाई के स्कोप में नहीं आती। इस कोर्ट की मिस्टर शाह के लिये राय है कि वो एफआईआर दर्ज होने का और उसके मुनासिब कोर्ट में सुनवाई के लिये लगने का इन्तजार करें ।’’
‘‘आई इन्टेंड टु डू एग्जैक्टली दैट, योर ऑनर, लेकिन मेरी दरख्वास्त है कि ऐसा होने तक सक्सेशन की कार्यवाही को मुल्तवी रखा जाये ।’’
‘‘योर ऑनर’’—लाकरा गर्जा—‘‘आई आब्जेक्ट...’’
‘‘अगर ऐसा न किया गया’’—तब शाह भी मैच करती आवाज में बोला—‘‘तो इस बेवा को अपने हक से महरूम होना पड़ सकता है ।’’
‘‘इसका हक तो तभी स्थापित होगा जब ये साबित होगा कि ये बेवा है, बीवी थी!’’
‘‘माई डियर फ्रेंड, मैं अभी साबित कर सकता हूँ लेकिन क्या करूँ, हिज ऑनर इस लाइन पर इस केस की सुनवाई के लिये तैयार नहीं ।’’
‘‘आप’’—लाकरा हकबकाया—‘‘साबित कर सकते है! अभी साबित कर सकते हैं!’’
‘‘यकीनी तौर पर। बशर्ते कि हिज ऑनर सुनवाई को तैयार हों ।’’
‘‘कैसे...कैसे करेंगे?’’
‘‘ये आप को समझाने सिखाने के लिये मुझे आपकी क्लास लेना होगा और ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं ।’’—शाह जज से मुखातिब हुआ—‘‘योर ऑनर, आप सुनना चाहें तो बात जुदा है ।’’
‘‘नो ।’’—जज निर्णायक भाव से बोला—‘‘ये बात इस केस के स्कोप में नहीं आती ।’’
‘‘सो देयर!’’—शाह विजेता के से भाव से बोला।
‘‘ब्लफ है ।’’—लाकरा बड़बड़ाया।
‘‘दैन काल माई ब्लफ ।’’—शाह के स्वर में चैलेंज का पुट आया—‘‘गो अहेड। काल माई ब्लफ। आई डेयर यू ।’’
‘‘आई बिल टेक दि चैलेंज इन सैशन ।’’
‘‘आई बिल मीट यू देयर। आप मुझे वहाँ मौजूद पायेंगे ।’’
‘‘आई एडवाइज बोथ काउन्सल्ज’’—जज बोला—‘‘टु रिफ्रेन फ्राम पर्सनैलिटीज। आल कमैंट्स आफ दि काउन्सल्ज मस्ट बी अड्रेस्ड टु दि कोर्ट एण्ड नॉट टु ईच अदर ।’’
दोनों वकीलों ने खेदप्रकाश किया।
‘‘मिस्टर शाह, आप अभी कुछ और कहना चाहते हैं?’’
‘‘योर ऑनर’’—शाह इस बार पूरी संजीदगी से बोला—‘‘मैं अभी बहुत कुछ और कहना चाहता हूँ ।’’
‘‘प्लीज, प्रोसीड ।’’
‘‘योर ऑनर, अब मैं उस सब्जेक्ट पर आना चाहता हूँ जो कि इस केस के स्कोप में है। ये’’—शाह ने कोर्ट क्लर्क को एक कागज सौंपा जो कि उसने आगे जज को फारवर्ड किया—‘‘मकतूल पुरसूमल चंगुलानी की—जिसके सक्सेशन का केस इस वक्त कोर्ट के सामने है—रजिस्टर्ड विल की फोटोकापी है जो उसने दस साल पहले की थी, सब-रजिस्ट्रार के कोर्ट में रजिस्टर कराई थी और जिसके बाद की गई किसी विल का कोई वजूद सामने नहीं आया है इसलिये ये मरने वाले की वैलिड विल है, लास्ट विल एण्ड टैस्टामेंट है। योर ऑनर गौर फरमायेंगे तो इसमें साफ दर्ज पायेंगे कि वसीयतकर्ता की मौत की सूरत में उसकी तमाम चल और अचल सम्पत्ति के चार बराबर हिस्से किये जाने का प्रावधान है। यानी चार हिस्से चार हिस्सेदारों के लिये जो कि दो बेटे, एक बेटी और एक पत्नी है। अब योर आनर खुद विचार कर सकते हैं कि इस वैलिड, लीगल, इमपैकेबल विल की रू में कैसे इन तीन प्रार्थियों को—एक बेटी और दो बेटों को—सिर्फ इन तीन प्रार्थियों को वसीयतकर्ता का वारिस करार दिया जा सकता है, कैसे इन के हक में सक्सेशन सार्टिफकेट जारी किया जा सकता है!’’
‘‘योर ऑनर’’—रणजीत लाकरा बोला—‘‘ये दस साल पुरानी विल है और इसमें जिस बीवी का जिक्र है, उस का नाम सुजाता चंगुलानी है जो कि छ: साल पहले मर चुकी है ।’’
‘‘योर ऑनर, आई एप्रिशियेट दि सुपीरियर नॉलेज आफ माई लर्नेड फ्रेंड इन दिस मैटर। कबूल करता हूँ कि बीवी के नाम के मामले में इनका ज्ञान मेरे से बेहतर है ।’’
‘‘थैंक्यू ।’’—लाकरा शुष्क स्वर में बोला।
‘‘बट आई हैव थ्री ऑब्जेक्शंस टु हिज स्टेटमेंट। एक तो मेरे फाजिल दोस्त जरूर नजूमी हैं जो कि जानते हैं कि वसीयत में कौन सी बीवी का जिक्र है। दूसरे, ये समझते है कि बीवी मर जाये तो खाविन्द की जो कोई भी वसीयत उस वक्त वजूद में हो, वो अपने आप खारिज हो जाती है। तीसरे, अपनी अभी की स्टेटमेंट में ये खुद कबूल करते जान पड़ते हैं कि मकतूल पुरसूमल चंगुलानी की एक वसीयत—ऐन चौकस वसीयत—वजूद में है ।’’
‘‘प्लीज इलैब्रेट ।’’—जज बोला।
‘‘योर ऑनर, जब फोटोकापी पर निगाह तक डाले बिना इन्हें वसीयत के कन्टैंट्स और प्रोविजंस की जानकारी है तो ये यकीनन मकतूल की रजिस्टर्ड विल के वजूद से वाकिफ हैं। वाकिफ हैं तो इस कोर्ट में ये कहने क्या मतलब हुआ कि डिसीज्ड डाइड इनटैस्टेट, वो कोई वसीयत किये बिना मरा, इसलिये औलाद को उसका वारिस करार देते हुए उन के नाम सक्सेशन सार्टिफकेट जारी किया जाये?’’
जज की तीखी निगाह लाकरा पर पड़ी।
‘‘वो...वो क्या है कि ’’—लाकरा नर्वस भाव से बोला—‘‘हमें वसीयत की खबर सक्सेशन की अर्जी दाखिल करने के बाद लगी थी ।’’
‘‘तो फिर’’—शाह बोला—‘‘अर्जी वापिस क्यों न ली?’’
‘‘हम अब वापिस लेने को तैयार हैं। वापिस लेते हैं और नयी अर्जी दाखिल करते हैं कि इस वसीयत की बिना पर—उस रजिस्टर्ड विल की बिना पर जिसकी ये फोटोकापी है—वसीयतकर्ता की पीछे बची फैमिली के नाम—एक बेटी और दो बेटों के नाम—सक्सेशन सार्टिफिकेट जारी किया जाये क्योंकि चौथा बैनीफिशियेरी मर चुका है ।’’
‘‘आई स्ट्रांगली ऑब्जेक्ट, योर ऑनर। दिस इज अज्यूमिंग फैक्ट्स नॉट इन इवीडेंस। चौथा बेनीफिशियेरी नहीं मर चुका, पहली बीवी मर चुकी है ।’’
‘‘क्या फर्क हुआ?’’
‘‘बहुत फर्क हुआ। जमीन आसमान का फर्क हुआ। योर ऑनर, ये गौरतलब बात है कि विल में—जिसकी कि ये फोटोकापी है—बीवी का बाई नेम जिक्र नहीं है। लिहाजा ये सेफली अज्यूम किया जा सकता है कि जो कोई भी मोहतरमा वसीयतकर्ता की मौत के वक्त उसकी बीवी का दर्जा रखती थी, उसी का दर्जा अब चौथे बैनीफिशियेरी का है यानी मेरी क्लायन्ट मिसेज सुष्मिता चंगुलानी का है ।’’
‘‘योर ऑनर’’—लाकरा बोला—‘‘मिस्टर शाह के क्लायन्ट के दावे को पुख्ता करने वाला, सबस्टैंशियेट करने वाला, कोई सबूत नहीं कि मकतूल ने अपनी जिन्दगी में इस औरत से शादी की थी ।’’
‘‘सबूत मैं पेश करूँगा न!’’—शाह पूरे विश्वास के साथ बोला—‘‘हिज ऑनर सुनने को तैयार हों तो पेश करूँगा न!’’
‘‘नो!’’—जज बोला—‘‘दैट्स आउट आफ क्वेश्चन ।’’
‘‘सो देयर!’’
लाकरा खामोश रहा।
‘‘योर ऑनर’’—शाह फिर जज से मुखातिब हुआ—‘‘इस वसीयत में यही एक घुंडी है, यही एक मेरे क्लायन्ट के हक में जाता लीगल लूपहोल है कि वसीयत में बतौर बैनीफिशियेरी बीवी का नाम दर्ज नहीं। वसीयत करते वक्त भले ही मकतूल के जेहन में अपनी उस वक्त की बीवी का अक्स था लेकिन उस अक्स को मकतूल अमली जामा न पहना सका, तहरीर न दे सका। इस वजह से बीवी का रिश्ते से जिक्र किया, नाम से जिक्र न किया। अब मैं नहीं समझता कि वसीयतकर्ता की इस चूक को, इस ओवरसाइट को मेरी क्लायन्ट पर बाइंडिंग बनाया जा सकता है। जाहिर है कि वसीयत करते वक्त वसीयतकर्ता के जेहन में ये सम्भावना नहीं आयी थी कि उसकी बीवी उससे पहले मर जायगी और आइन्दा कभी वो दूसरी शादी कर लेगा। इस इत्तफाक को, कर्म की इस गति को, मेरी क्लायन्ट के खिलाफ खड़ा करना उसके साथ गम्भीर नाइंसाफी होगी। जमा, कोई मुझे बताये कि क्यों कोई औरत किसी गैर मर्द को अपना खाविन्द करार देगी!’’
‘‘उसकी दौलत की खातिर ।’’—लाकरा बोला।
‘‘वो उसे क्योंकर हासिल होती जब कि वो खुद को बीवी साबित न कर पाती! ऐसा कोई कदम उठाने का क्या फायदा सिवाय बदनामी और थुक्का फजीहत के जिसका कोई हासिल नहीं! योर ऑनर, अब मैं इस मुद्दे का इस बिना पर समापन चाहता हूँ कि या तो योर आनर मेरी जिरह को, मेरी दलीलों को खुद सुनें या मुनासिब कोर्ट में सुनाने का मुझे वक्त दें ।’’
‘‘इस कोर्ट की रूिंलग है’’—जज बोला—‘‘कि अगर प्रार्थी अपनी मौजूदा अर्जी को बरकरार रखते हैं तो केस को दो हफ्ते के लिये मुल्तवी किया जाता है। इस दौरान अगर सैशन कोर्ट में कुछ किसी भी पार्टी के हक में या खिलाफ होता है तो उसकी कापी अगली सुनवाई से पहले फाइल की जाये। अगर प्रार्थी अपनी मौजूदा अर्जी को वापिस लेते हैं तो नयी अर्जी दाखिल करते वक्त दूसरे कोर्ट में केस की स्टेटस रिपोर्ट—अगर ऐसी कोई रिपोर्ट हो—को नयी अर्जी के साथ नत्थी किया जाये। दि कोर्ट इज एडजन्र्ड टिल नैक्स्ट हियिंरग ।’’
जिला जज ने उठ कर अभी कोर्ट की तरफ पीठ भी नहीं फेरी थी कि चंगुलानी फैमिली सुष्मिता पर—और गुंजन शाह पर भी—निगाह से भाले र्बिछयां बरसाने भी लगे थे।
सब कोर्ट से बाहर पहँुचे।
‘‘मुबारक हो, वकील साहब ।’’—नवलानी जोश से बोला।
‘‘किस बात की?’’—शाह की भवें उठीं।
‘‘इतनी बढ़िया जिरह करने की ।’’
‘‘कहां की बढ़िया जिरह मैंने! बढ़िया जिरह की तो भीतर गुंजायश ही नहीं थी! जज अपनी नाक की फुंगी से आगे की बात सुनने को तैयार ही नहीं था!’’
‘‘तो सक्सेशन में फच्चर डालने की। अब कम से कम दो हफ्ते तो वो बात टली, दो हफ्ते तो मकतूल की सम्पत्ति पर उन का कब्जा टला!’’
शाह हँसा।
‘‘शादी का सबूत पेश करने पर भीतर आप का बड़ा जोर था। कर सकते थे?’’
‘‘नहीं, यहाँ नहीं...’’
‘‘यानी उस वकील लाकरा ने ठीक पहचाना था कि सबूत की बाबत आपका दावा ब्लफ था!’’
‘‘लेकिन नौबत आने पर सैशन में कुछ करके दिखाऊँगा जादूगरी की ट्रिक जैसा ।’’
‘‘ऐसा?’’
‘‘हाँ। लाकरा ने मेरे ब्लफ को तो पहचाना लेकिन उसे काल करने की मजाल उसकी न हुई ।’’
‘‘काल करता तो?’’
‘‘तो जज सुनने को तैयार न होता। इसी वजह से तो मैंने वो ब्लफ खेला, एक ग्रैंडस्टैंड के तौर पर सबूत पेश करने का दावा किया क्योंकि मुझे मालूम था जज नहीं सुनेगा ।’’
‘‘वैरी क्लैवर! शाह साहब, वसीयत में बीवी का बाई नेम जिक्र न होने के संयोग को भी आपने बहुत उम्दा कैश किया!’’
‘‘मैंने किया या इत्तफाक से हो गया—जज प्रोसीडिंग्स से साफ बोर हो रहा था इसलिये उसने तवज्जो न दी, लाकरा का भड़कने पर जोर था—वर्ना वो दलील बहुत कमजोर थी। देर सबेर कमजोरी उसकी पकड़ में आयेगी तो देखना, बहुत हल्ला करेगा ।’’
‘‘कमजोरी क्या?’’
‘‘ये बात दिन की तरह साफ है कि जब मरहूम ने वसीयत अपनी बीवी की जिन्दगी में की थी तो उसमें एक चौथाई सम्पत्ति के वारिस के तौर पर जिक्र उस बीवी का ही था। ये महज संयोग था—आगे भी एक टैक्नीकलिटी से ज्यादा इसकी कोई औकात नहीं थी—कि न वसीयतकर्ता का और न वसीयत ड्राफ्ट करने वाले वकील का ध्यान इस ओमिशन की तरफ, इस कमी की तरफ गया कि वसीयत में किसी भी बैनीफिशियेरी का जिक्र बाई नेम नहीं था। कमजोरी ये है, पीडी साहब, कि किसी एक बैनीफिशियेरी के वसीयतकर्ता से पहले मर जाने की सूरत में वसीयत खारिज नहीं हो जाती। मौजूदा केस में बीवी के मर जाने की सूरत में वसीयत को वायड करार नहीं दिया जा सकता। कोई तब्दीली आयेगी तो सिर्फ ये कि मरने वाले वारिस का हिस्सा भी बाकी वारिसों में बराबर-बराबर बँट जायेगा। मौजूदा केस में अब बेटी और बेटे एक चौथाई के नहीं, एक तिहाई के हिस्सेदार होंगे ।’’
‘‘ये तो’’—जीतसिंह दबे स्वर में बोला—‘‘दूसरी बीवी के साथ ज्यादती है ।’’
‘‘है तो बैनीफिशियेरीज ने नहीं की, वसीयतकर्ता ने की। अगर पुरसूमल चंगुलानी मरहूम नयी बीवी के साथ इंसाफ करना चाहता था, उसका जिम्मेदार प्रोवाइडर बनना चाहता था तो शादी के फौरन बाद उसे नयी वसीयत करनी चाहिये थी ।’’
‘‘वैसे ब्याहता बीवी के’’—नवलानी बोला—‘‘ऐसे मामलात में कोई अधिकार नहीं होते?’’
‘‘होते हैं। लेकिन उन को पाने के लिये कन्टैस्ट करना पड़ता है जो कि लम्बी प्रक्रिया साबित हो सकती है। ऐसे दीवानी मुकद्दमे सालों लटक सकते हैं। विरसे पर काबू पाने के लिये क्यों कि वारिस भी उतावले होते हैं इसलिये उन में और नाइंसाफी का शिकार हुई बीवी में कोई औना-पौना फाइनांशल कम्प्रोमाइज हो जाता है ।’’
‘‘इस केस में हो सकता है?’’
‘‘हो सकता है, क्यों कि लड़कों को वापिस इंगलैंड लौटने की जल्दी होगी लेकिन पहले यकीनन वो अपनी वो स्ट्रेटेजी मैडम के खिलाफ आजमायेंगे जो उन्होंने पुलिस से मिलीभगत में इतनी मेहनत से गढ़ी है। जब तक उनका वो दाँवफेल नहीं हो जाता, मुझे उम्मीद नहीं कि वो कम्प्रोमाइज पर विचार करेंगे ।’’
‘‘फेल होगा?’’
‘‘देखेंगे। सच पूछो तो हारजीत का सारा दारोमदार इस बात पर है कि हम उन की इस बात का कोई कारआमद तोड़ निकाल पाते हैं या नहीं कि मैडम मरने वाले की बीवी नहीं, लिव-इन पार्टनर थीं। शादी बाकायदा हुई थी, हम ये साबित करने में कामयाब हो गये तो कत्ल वाला फर्जी केस अपने आप ही कमजोर पड़ जायेगा ।’’
‘‘ओह!’’
‘‘विरसे का कायदा कानून ये कहता है कि कोई व्यक्ति, जो अपने पूरे होशोहवास में हो, अपनी स्वअर्जित सम्पत्ति का वारिस बाजरिया वसीयत किसी को भी करार दे सकता है—वो उसे दान कर सकता है, ट्रस्ट बना कर उसके हवाले कर सकता है, काले चोर के लिये छोड़ के जा सकता है, कुछ भी कर सकता है। जब ऐसा होता है तो मतलबी, लालची रिश्तेदार—करीबी या दूर के—ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि वसीयत करने के वक्त बुजुर्गवार की मैंटल फैकल्टीज उन के काबू में नहीं थीं, उन्हें बरगलाया गया था, उन की दिमागी कमजोरी का नाजायज फायदा उठा कर वसीयत में उन से वो सब कुछ लिखवा लिया गया था जो वो अपने पूरे होशोहवास में होते तो कभी न लिखते ।’’
‘‘चल जाता है?’’
‘‘कभी चल जाता है, कभी नहीं चलता, अलबत्ता कोशिश से कोई बाज नहीं आता। बहरहाल वसीयत की मैंने जनरल बात की थी, वैसा कोई सिलसिला मैडम पर लागू नहीं। इन पर लागू बात ये है कि ये अपने पति के साथ चैन और संतोष से जीवन यापन कर रहीं थीं, पति की दयालुता का सुख पा रही थीं—इतना कि इनकी दिवंगत बड़ी बहन के तीन बच्चे लोनावला के उम्दा रेजीडेंशल स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे। ऐसी पत्नी को दिन प्रति दिन अपने मेहरबान पति की लम्बी उम्र की प्रार्थना करते होना चाहिये या उसके कत्ल की साजिश रचनी चाहिए! कहने का मतलब ये है कि मैडम के बीवी साबित हो जाने के बाद कत्ल का केस नहीं ठहरने वाला। ठहरने वाला तो वैसे भी नहीं है लेकिन वैसे मशक्कत ज्यादा, बहुत ज्यादा करनी पड़ेगी। खर्चा भी ढेर होगा जो पता नहीं ये अफोर्ड कर पायेंगी भी या नहीं! दूसरी स्थिति में इन की गिरफ्तारी भी हो के रहेगी ।’’—वकील ने ठिठक कर जीतसिंह पर निगाह डाली—‘‘इसकी भी ।’’
जीतसिंह पर तो उस बात की कोई प्रतिक्रिया न हुई लेकिन सुष्मिता का चेहरा फक पड़ गया।
‘‘डोंट यू वरी, माई डियर’’—शाह ने उसे अपने अंक में भर कर अपने साथ भींचा और एक गाल थपथपाया—‘‘मैं हूँ न!’’
नवलानी और जीतसिंह की सूरत में दर्शक न होते तो ढांढस का वो ड्रामा अभी और आगे बढ़ता लेकिन तब शाह जल्दी ही उससे परे हट गया।
‘‘अब आप क्या करेंगे?’’—नवलानी बोला।
‘‘अच्छा सवाल है। अब मेरा पहला और प्रमुख कदम तो ये है कि मैडम के साथ जो जुल्म हुआ है उसकी रू में जुल्म करने वालों के खिलाफ इन की शिकायत दर्ज हो ।’’
‘‘कैसे होगी! एफआईआर दर्ज करने वाले थाने का थानेदार तो बिका हुआ है!’’
‘‘मुझे इस बात की खबर है। इस वजह से मुझे उस डिस्ट्रिक्ट के डीसीपी को अप्रोच करना पड़ेगा। वो थानेदार अपने डीसीपी का लाडला न निकला तो काम वहीं बन जायेगा वर्ना हो सकता है मुझे कमिश्नर तक पहँुचना पड़े ।’’
‘‘पहँुच पायेंगे?’’
‘‘अरे भई, मैं गुंजन शाह हूँ ।’’
आगे उसने कुछ न जोड़ा, जैसे उतना भर कह देना काफी से ज्यादा हो, सब कुछ स्थापित करने में सक्षम हो।
‘‘सही फरमाया आपने ।’’—नवालानी प्रभावित स्वर में बोला—‘‘मैडम, यू शुड बी प्लीज्ड दैट यू आर इन गुड हैण्ड्स ।’’
‘‘इन गुड हैण्ड्स ।’’—शाह मुदित मन से बोला—‘‘यू सैड इट, माई डियर, बट दैट इज ए डिफ्रेंट स्टोरी ।’’
सुष्मिता से कृतज्ञ भाव से मुस्करा कर दिखाया।
‘‘नवलानी’’—फिर शाह संजीदगी से बोला—‘‘पीडी मोटे तौर पर कानून का ज्ञाता भी बन ही जाता है इसलिये तुम तो जानते ही होगे कि कानून किसी को अपने ही क्राइम से फायदा उठाने की इजाजत नहीं देता। नो वन कैट बी अलाओड टु बैनीफिट बाई हिज ओन क्राइम। यही मेरी आइन्दा लीगल स्ट्रेटजी की बुनियाद है ।’’
‘‘यानी’’—नवलानी बोला—‘‘वारिसों में से कोई कातिल निकल आये?’’
‘‘ऐग्जैक्टली! मैडम ने मकतूल के मिस्ट्रीरियस विजिटर और उसके बीच का जो डायलॉग तहरीरी तौर पर दर्ज किया था, उसकी रू में ऐसा हो जाना कोई बड़ी बात भी नहीं। यहाँ तुम, नवलानी, बड़ा रोल अदा कर सकते हो। कोशिश करो कि ऐसा कुछ तुम्हारी पकड़ में आये। उन तीनों में से कोई एक जना कातिल निकल आये तो बाकी दो को उसके साथ लपेट कर मैं दिखा दूँगा ।’’
‘‘यानी मैडम अपने डियर डिपार्टिड हसबैंड की सोल बैनीफिशियेरी!’’
‘‘अच्छा ख्वाब है। हकीकत में तब्दील हो गया तो तुम्हारी प्रोफेशनल फी़ज में भारी इजाफा होगा ।’’
‘‘जैसे आपकी में नहीं होगा!’’
शाह हँसा, उसने घूम कर सुष्मिता की तरफ देखा—‘‘चियर अप, माई ब्यूटीफुल हायरेस!
‘‘सर, आई कैननाट ।’’—सुष्मिता बोली—‘‘आप भूल रहे हैं कि मैं विधवा हूँ, मेरे पति को मरे अभी सिर्फ आठ रोज हुए हैं ।’’
‘‘ओह! भई, तुमने तो हमें शार्मिंदा कर दिया। देखो तो! तुम सोगवार हो और हम से तुम्हें खुशगवार समझने की नादानी हो गयी!’’
‘‘नैवर माइन्ड ।’’
‘‘बट आई डू माइन्ड। बड़ी भूल हुई। अब माफी मिले तो बात है ।’’
‘‘अरे सर, आप गुंजन शाह हैं, शाह कहीं माफी माँगते हैं...’’
बड़े लोगों की किलोल थी, तफरीह थी जिस में जीतसिंह के लिये कोई जगह नहीं थी। लगता था किसी को याद ही नहीं था कि वो भी वहाँ मौजूद था। उस घड़ी उन लोगों की कोई अपनी ही दुनिया थी—सुष्मिता जिसका नया नग था—जिस में वो विचर रहे थे और जिस में जीतसिंह जैसे टपोरी का, तालातोड़ का दाखिला मना था।
अभी विधवा होने की दुहाई देकर हटी सुष्मिता अब हँस रही थी।
क्यों था वो वहाँ! अब उसका वहाँ क्या काम था! पहले भी क्या काम था! जो था उसे तो वो खार में ही मुक्कमल कर चुका था! अब उन लोगों के बीच उसका कोई मुकाम नहीं था।
जीतसिंह!
जीता!
तकदीर का हेठा, अहसासेकमतरी का मारा, खोटा सिक्का क्यों जीता कहलाता था! क्या सोच कर उस की माँ ने उसका नाम जीता रखा था! कि बड़ा होगा तो दुनिया फतह कर लेगा! जीत वाला जीता वो था ही नहीं, जिन्दा था इसलिये जीता था।
क्या कर रहा था वो वहाँ! अब क्या जरूरत थी उसकी वहाँ!
खामोशी से वो वहाँ से रुखसत हुआ तो पता नहीं कितनी देर किसी को पता भी न लगा कि वो वहाँ नहीं था।
जिस डिस्ट्रिक्ट के तहत कोलाबा का थाना आता था, संयोगवश उसके डीसीपी का आफिस कोलाबा थाने के परिसर में ही था।
डीसीपी का नाम अंकुश जामवाल था और वो गुंजन शाह से वाकिफ था। शायद इसीलिये, वाकफियत की लाज रखने की खातिर, उसने उठ कर बड़ी गर्मजोशी से शाह से हाथ मिलाया।
‘‘दिस इज सुष्मिता चंगुलानी’’—शाह ने साथ आयी सुष्मिता का परिचय दिया—‘‘माई क्लायन्ट ।’’
सुष्मिता ने अदब से हाथ जोड़े, डीसीपी ने मुस्करा कर वो अभिवादन स्वीकार किया।
‘‘प्लीज, हैव ए सीट ।’’—फिर बोला।
दोनों सधन्यवाद दो विजिटर्स चेयर्स पर अगल बगल बैठे।
‘‘अब फरमाइये’’—डीसीपी बोला—‘‘मैं आप की क्या खिदमत कर सकता हूँ?’’
‘‘सर’’—शाह बोला—‘‘जैसा कि मैंने अर्ज किया, मैडम मेरी क्लायन्ट हैं...’’
‘‘किस सिलसिले में?’’
‘‘सिलसिला इन के नाम से आप को सूझना चाहिये था। नहीं सूझा तो मुझे लम्बी कथा करनी पड़ेगी ।’’
‘‘क्या नाम बताया था?’’
‘‘सुष्मिता चंगुलानी ।’’—शाह ने उपनाम पर विशेष जोर दिया।
‘‘मकतूल पुरसूमल चंगुलानी की लिव-इन पार्टनर?’’
‘‘धर्म पत्नी ।’’
‘‘फैमिली तो ऐसा नहीं मानती!’’
‘‘इसीलिये जुल्म ढाया। धक्के देकर निकाल बाहर किया—निजी सामान तक न उठाने दिया—मार कुटाई में कसर न छोड़ी। यानी बाकायदा फौजदारी की जिसकी ये थाने में रिपोर्ट दर्ज कराना चाहती हैं तो आपके थानेदार साहब—शायद देवताले नाम है, चन्द्रकांत देवताले—दर्ज नहीं करते ।’’
‘‘कब गयीं थाने?’’
‘‘आज ही गयीं। डाँट के भगा दिया गया ।’’
‘‘हूँ। कत्ल, जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, पिछले शनिवार सोलह तारीख को हुआ था। इनके साथ जो आप कहते हैं हुआ, वो कब हुआ?’’
‘‘सोमवार को। दिवगंत आत्मा के अन्तिम संस्कार के तुरन्त बाद ।’’
‘‘अपने साथ हुई ज्यादती की, कथित फौजदारी की, रपट लिखाने ये आज थाने पहँुचीं, सोमवार से अब तक कहाँ थीं?’’
‘‘यहीं थीं आप के शहर में। लेकिन खौफजदा थीं क्योंकि सिर पर फैमिली की धमकी की तलवार लटक रही थी कि अगर इन्होंने थाने का रुख भी किया तो इनका अंजाम बुरा होगा। ये तक सुनने में आया है कि इस धमकी में आपके थानेदार साहब की भी हामी थी ।’’
‘‘नानसेंस! ऐसा कहीं होता है!’’
‘‘होता तो इसी फानी दुनिया में है लेकिन कौन मानता है!’’
‘‘वो जुदा मसला है। जब पूरा हफ्ता इनकी थाने का रुख करने की हिम्मत न हुई तो आज क्योंकर हुई?’’
‘‘क्यों कि आज मैं साथ था ।’’
‘‘किस हैसियत से?’’
‘‘इनके लीगल काउन्सल की हैसियत से। मैंने अर्ज किया न मैडम मेरी क्लायन्ट हैं ।’’
‘‘थाने में एफआईआर न दर्ज की जाने की कोई वजह बताई गयी होगी!’’
‘‘जी हाँ, बताई गई थी ।’’
‘‘क्या?’’
‘‘ये कि इनका दावा गलत है, फरेबी है, शरारती है, मोटिवेटिड है, ये हत्प्राण की बीवी नहीं, लिव-इन पार्टनर थीं जिसका हत्प्राण के विरसे पर कोई दावा नहीं बनता ।’’
‘‘क्या खराबी है इस वजह में?’’
‘‘खराबी ही खराबी है। ये इनके खिलाफ साजिश है जिसकी वजह ये है कि फैमिली नहीं चाहती कि ये—सिर्फ सात महीने की पत्नी—मरने वाले के विरसे की शेयरहोल्डर बनें ।’’
‘‘फैमिली के चाहने से क्या होता है! उन के पास कोई बुनियाद होगी इनका बीवी का—अगर ये हैं बीवी—हक नकारने की!’’
‘‘थी तो नहीं लेकिन बना ली गयी, फौजदारी के तरीकों से गढ़ ली गयी ।’’
‘‘वो कैसे?’’
‘‘आप केस से वाकिफ जान पड़ते हैं, आप को मालूम होगा!’’
‘‘आप बोलिये ।’’
‘‘शादी के दो गवाह गायब कर दिये गये, एक गवाह को बहला फुसला कर अपनी तरफ कर लिया गया और शादी की बाबत झूठ बोलने के लिये, परजुरी के लिये, तैयार कर लिया गया, शादी की एक एलबम का वजूद था जो इन की आँखों के सामने नष्ट कर दी गयी और एलबम तैयार करने वाले फोटोग्राफर को खुद आप के थानेदार साहब ने जाकर जलावतन कर दिया ।’’
‘‘ये पुलिस पर बेजा इलजाम है। आप इस बात को साबित कर सकते है?’’
‘‘एक गवाह के जरिये साबित कर सकता हूँ लेकिन जब नौबत आयेगी तो मैं तब उसे कोर्ट में पेश करूँगा ।’’
‘‘पुलिस के सामने क्यों नहीं?’’
‘‘क्योंकि पहले से गायब तीन गवाहों की तरह वो भी ऐसा गायब होगा कि ढूँढे नहीं मिलेगा ।’’
‘‘नानसेंस! ऐसा कहीं होता है!’’
‘‘क्यों नहीं होता? कब नहीं होता? बराबर होता है। मुलजिम रुतबे वाले हों, रसूख वाले हों तो पुलिस से उनकी मिलीभगत एक आम वाकया है। गवाह या गायब हो जाते हैं या मुकर जाते हैं। आप पुलिस के टॉप ब्रास में आते हैं, आप को तो याद होगा कि एक हाई फाई सियासी केस में एक नहीं, दो नहीं, दस नहीं, अट्ठासी गवाह मुकर गये थे। जेसिका लाल मर्डर केस में क्या हुआ था! परजुरी से कोई डरता ही नहीं। किसी बड़े नेता की, किसी बड़े पुलिस अधिकारी की औलाद का केस हो या खुद उसका केस हो तो कौन नहीं जानता कि कैसे गवाह कोर्ट में अपनी तसदीकशुदा गवाही से मुकरने के लिये खरीदे जाते हैं...’’
‘‘मिस्टर शाह, प्लीज कन्ट्रोल युअर एन्थुजियाज्म। आप एक सीनियर पुलिस आफिसर के सामने बैठ कर ऐसी बातें नहीं कर सकते। जिन बातों पर कोर्ट को एतराज न हुआ हो, आप उन बातों को पुलिस को डिफेम करने के लिए नहीं उठा सकते ।’’
‘‘मैंने महज आपके एक सवाल का जवाब दिया था ।’’
‘‘मैं ऐसा जवाब सुनने को तैयार नहीं जो पूरी पुलिस फोर्स पर लांछन लगाती उंगली उठाता हो ।’’
‘‘तो फिर वो सुनने को तो तैयार होइये जो आपकी ड्यूटी है, जो बतौर सीनियर पुलिस आफिसर आप की नौकरी का हिस्सा है!’’
‘‘वो क्या?’’
‘‘खुद आपका पुलिस कमिश्नर तसलीम करता है कि एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार हर नागरिक के मौलिक अधिकारों में से एक है। कहता है—दावा करता है—कि कोई थानाध्यक्ष एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकता। गलत कहा मैंने?’’
‘‘न-हीं ।’’
‘‘तो फिर इसी परिसर में बैठा आपका कोलाबा थाने का एसएचओ क्यों मैडम की, इनके साथ हुए जुल्म की, फौजदारी की रपट को दर्ज नहीं करता! न सिर्फ दर्ज नहीं करता, डराता है, धमकाता है, बद्तमीजी से पेश आता है क्योंकि दूसरी पार्टी के हाथों बिका हुआ है ।’’
‘‘मिस्टर शाह!’’
‘‘आप उसे अभी यहाँ बुलाइये, मैं पाँच मिनट में उसका असली चेहरा उजागर कर के दिखाता हूँ, उसी के मँुह से कबुलवा के दिखाता हूँ कि...’’
‘‘यू विल डू नो सच थिंग। आपको ऐसा कुछ करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। आप मेरे आफिसर के गले नहीं पड़ सकते, उसे हयूमीलियेट नहीं कर सकते। आप की नाजायज क्रॉसक्वेश्चिंनग के लिये एसएचओ देवताले को यहाँ नहीं बुलाया जा सकता ।’’
‘‘नाजायज नहीं, जायज...’’
‘‘जायज है तो कोर्ट में कीजियेगा ।’’
‘‘मैं ऐसा ही करूँगा। एफआईआर की बाबत मुझे जवाब मिल जाये कि वो दर्ज होगी या नहीं फिर ऐन यही होगा। फिर मैं सब से पहले कोर्ट में यही शिकायती अर्जी लगाऊँगा कि कोलाबा थाने में मेरे क्लायन्ट की एफआईआर दर्ज किये जाने से इंकार किया गया और सम्बन्धित उच्चाधिकारी डीसीपी अंकुश जामवाल की जानकारी में किया गया। आप का काम अपने मातहतों की अट्रासिटीज पर, ज्यादियों पर, हाईहैंडिडनैस पर, उनके इललीगल कन्डक्ट पर अंकुश लगाना है, अपने नाम को सार्थक कीजिये, डीसीपी साहब ।’’
डीसीपी कसमसाया, कुछ क्षण विचारपूर्ण मुद्रा बनाये खामोश रहा।
‘‘देयर मस्ट बी सम मिसअन्डरस्टैडिंग ।’’—फिर बोला—‘‘एफआईआर दर्ज किये जाने में देर हो सकती है लेकिन उससे इंकार नहीं किया जा सकता। थाने में बहुत काम होता है। कई बार एफआईआर के काबिल कई केस इकट्ठे आ जाते हैं, ऐसा होने पर एफआईआर बारी बारी ही तो दर्ज होंगी! इस केस में भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ हो और आपने डिले को डिनायल समझ लिया हो। वकील जो ठहरे ।’’—डीसीपी खोखली हँसी हँसा—‘‘यू एडवोकेट्स आर यूज्ड टु जिंम्पग टु दि कनक्लूजन। नो!’’
‘‘तो अब हमारे लिये क्या हुक्म है?’’
‘‘मैडम को थाने में छोड़ के जाइये, मैं सुनिश्चित करता हँ कि इन की रपट दर्ज होगी ।’’
‘‘ये नहीं हो सकता ।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘अकेली ये थाने में सेफ नहीं हैं ।’’
‘‘क्या बोला?’’
‘‘वही, जो आपने सुना। आपके थानेदार साहब खुन्दक में इन्हें रात तक बिठाये रखेंगे। जानबूझ कर दस मिनट के काम को दस घण्टे में करेंगे। अगले दिन फिर आने को बोल दें तो भी कोई बड़ी बात नहीं ।’’
‘‘प्रोसीजरली इसमें कोई खराबी नहीं ।’’
‘‘ये हैरेसमैंट है ।’’
‘‘जिसे झेलने के लिये यहाँ कोई इन्हें मजबूर नहीं कर रहा ।’’
‘‘सहज ही हो जाने वाला काम जब इरादतन वक्त पर न किया जाये तो ये हैरेसमैंट झेलने के लिये मजबूर करना ही तो हुआ!’’
‘‘मैं आप से बहस नहीं करना चाहता...’’
‘‘मैं खुद आप से बहस नहीं करना चाहता। सर, आप कोई सवाल पूछें, मैं जवाब दूँ, आप कोई एतराज उठायें, मैं उसे क्लियर करूँ, इसे आप बहस का दर्जा दें तो मैं क्या कर सकता हूँ!’’
‘‘अब आप चाहते क्या हैं?’’
‘‘मैं चाहता हूँ चंगुलानी फैमिली के खिलाफ इन की एफआईआर दर्ज हो, अभी दर्ज हो और मेरे सामने दर्ज हो ।’’
‘‘मैं कहना तो नहीं चाहता लेकिन कहना पड़ रहा है, मिस्टर शाह, कि अब आप ज्यादा ही पसर रहे हैं। और गाइड करने की जगह मैडम को मिसगाइड कर रहे हैं। पता नहीं मैडम ने आपको बताया या नहीं, नहीं बताया तो मेरे से सुनिये, ये गिरफ्तार हो सकती हैं ।’’
‘‘किस इलजाम में?’’
‘‘गम्भीर इलजाम में। कत्ल के इलजाम में ।’’
‘‘लिहाजा मैंने गलत कहा था कि आप केस से वाकिफ जान पड़ते हैं। आप तो केस से पूरी तरह से वाकिफ हैं। जो है उससे भी और जो नहीं है उससे भी ।’’
‘‘नहीं है क्या मतलब?’’
‘‘जो इन को तोड़ने के लिये इनके खिलाफ बनाया जाना तय है ।’’
‘‘आप ऐसा समझते हैं तो वो घड़ी अभी आ सकती है ।’’
‘‘मतलब?’’
‘‘ये यही रहेंगी। आप जा सकते हैं ।’’
‘‘आप इन्हें गिरफ्तार कर रहे हैं?’’
‘‘और क्या दावत के लिये यहाँ रहेंगी? नागरिक सम्मान के लिये यहाँ रहेंगी?’’
‘‘गुड। कीजिये गिरफ्तार। यूँ मेरा काम आसान होगा ।’’
‘‘आपका काम आसान होगा!’’
‘‘बतौर इनके वकील मेरा काम आसान होगा। एक वक्तखाऊ काम यूँ फटाफट होगा। गिरफ्तारी के चौबीस घण्टे के भीतर आपने इन्हें कोर्ट में पेश न किया तो मैं कोर्ट में बन्दी प्रत्यक्षीकरण की याचिका लगाऊँगा। आप इन्हें कोर्ट में पेश करना, फिर देखना कैसे मैं इनके खिलाफ आपके फर्जी मर्डर केस की धज्जियाँ उड़ाता हूँ ।’’
‘‘मिस्टर शाह, आप बात का बतगंड़ बना रहे हैं। आप असल बात की बुनियाद छोड़कर दायें बायें की उड़ा रहे हैं क्योंकि वकील हैं। असल बात एफआईआर है जो आप दर्ज कराना चाहते हैं। एफआईआर दर्ज हो जायेगी लेकिन कायदे के मुताबिक होगी, आप की धौंस पट्टी के मुताबिक नहीं होगी। ये बात मंजूर हो तो थाने पहँुच जाइये और कार्यवाही के लिये अपनी बारी का इन्तजार कीजिये। आप क्लायन्ट के साथ मौजूद रहने की वहाँ जिद कर लीजियेगा लेकिन तब जो इन्तजार क्लायन्ट को करना पड़ सकता है वो आपको भी करना पड़ेगा। जो कि लम्बा खिंच सकता है, और लम्बा खिंच सकता है। बहरहाल मैंने आपकी शिकायत दूर कर दी है कि थाने वालों ने आपकी एफआईआर दर्ज न की। मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि अब आप को ये शिकायत नहीं होगी। अब फैसला आपके हाथ में है कि आप क्या करना चाहते हैं। एफआईआर दर्ज कराना चाहते हैं या कोर्ट में कम्पलेंट डालना चाहते हैं कि कोलाबा पुलिस थाने ने एफआईआर दर्ज न की। दूसरी आप्शन पिक करते वक्त एक बात का ध्यान रखियेगा—कोर्ट से भी पुलिस को कोई फाँसी नहीं लग जायेगी, वहाँ से भी ये हुक्म ही जारी होगा कि एफआईआर दर्ज की जाये। जो काम सीधे सीधे अभी हो रहा है, उसको आप घुमा के करना चाहते हैं तो खुशी से कीजिये। उँगली से अँगूठे तक पहँुचने के लिये कोहनी तक का—बल्कि कन्धे तक का—चक्कर लगाना चाहते हैं तो खुशी से लगाइये। बड़े वकील हैं न आप! आम मामूली ढ़ंग से किसी काम को अंजाम देने से तो आप का बड़प्पन उजागर होगा नहीं, आप तो जो करेंगे, शानदार करेंगे, स्पैक्टेकुलर करेंगे। नो?’’
‘‘आपकी स्पीच पसन्द आयी, जामवाल साहब। यूँ लगा जैसे किसी बड़े कोर्ट में किसी बड़े वकील से मुकाबिल हूँ। जो आप्शन आपने दीं, वो भी हमारे सिर माथे लेकिन एक आप्शन रह गयी है, उसका इजाजत हो तो मैं जिक्र करूँ!’’
‘‘कहिये, क्या कहना चाहते हैं?’’
‘‘अगर एफआईआर के लिये बाजरिया वकील तहरीरी अर्जी लगाई जाये तो प्रार्थी की इस काम के लिये हाजिरी जरूरी नहीं होती लेकिन फरदर क्वेश्चिंनग के लिये उसे कभी भी थाने तलब किया जा सकता है। मैने ठीक कहा?’’
‘‘ठीक कहा तो?’’
‘‘तो ये’’—शाह ने अपने ब्रीफकेस से निकाल कर एक फूलस्केप शीट डीसीपी के सामने रखी—‘‘मैडम की डाकुमेन्ट्री कम्पलेंट है और एफआईआर के लिये एप्लीकेशन है। आपके नाम है, इसलिये कबूल फरमाइये ।’’
‘‘मेरे नाम क्यों है? एसएचओ के नाम होनी चाहिये ।’’
‘‘आपके नाम होने में कोई हर्ज है?’’
‘‘सवाल हर्ज का नहीं है, सवाल...’’
‘‘गुस्ताखी माफ, डीसीपी साहब, लेकिन मुझे आप की बात आपको वापिस लौटानी पड़ रही है कि अब आप ज्यादा पसर रहे हैं। हर सरकारी अफसर पब्लिक सर्वेंट होता है। वो अपने महकमे से ताल्लुक रखती पब्लिक की किसी कम्यूनीकेशन को रिसीव करने से इंकार नहीं कर सकता। आप मेरे क्लायन्ट की ये अर्जी कबूल नहीं फरमायेंगे तो कमिश्नर साहब का आफिस यहाँ से कोई ज्यादा दूर नहीं हैं, मैं ये उनके आफिस में पहँुचा के आऊँगा जहाँ यहाँ की तरह हुज्जत भी नहीं होगी। ऐसा करने से पहले मैं इसमें वजह भी जोड़ दूँगा कि हमें कमिश्नर साहब के आफिस को इसलिये अप्रोच करना पड़ा क्योंकि इस डिस्ट्रिक्ट के डीएसपी साहब ने ये अर्जी लेने से न सिर्फ इंकार कर दिया बल्कि भड़क के दिखाया कि क्यों इसे उनको अड्रैस किया गया ।’’
डीएसपी अवाक शाह का मँुह देखने लगा।
‘‘नाइस मीटिंग यू, सर ।’’—शाह उठता हुआ बोला, उस की देखा देखी सुष्मिता भी उठ खड़ी हुई—‘‘थैंक्यू फार गीविंग अस युअर वैल्युएबल टाइम, सर ।’’
‘‘बाहर मेरा पीए बैठा है’’—डीसीपी बोला—‘‘ये उसे देकर जाइयेगा, वो मोहर लगा के इसे आफिशियली रिसीव करेगा ।’’
‘‘थैंक्यू, सर। सो काइन्ड आफ यू, सर ।’’
सिर नवाते, अभिवादन करते दोनों वहाँ से रुखसत हुए।
‘‘मेरा तो दम ही निकल गया था’’—वे सड़क पर पहँुचे तो सुष्मिता बोली—‘‘जब डीसीपी ने तभी मेरी गिरफ्तारी की बात की थी ।’’
‘‘माई डियर’’—शाह चिन्तित भाव से बोला—‘‘वो खतरा अभी तुम्हारे सिर पर से टल नहीं गया। किसी को गिरफ्तार कर लेना—नाहक गिरफ्तार कर लेना भी—बाकायदा उनके अधिकार क्षेत्र में आता है। वो जब चाहेंगे तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे। भीतर डीसीपी के आफिस में जो तकरार जैसा डायलॉग हुआ, उसकी रू में वो घड़ी जल्दी, बहुत जल्दी आ सकती है ।’’
‘‘देवा!’’
‘‘लेकिन घबराओ नहीं, वो तुम्हें गिरफ्तार कर सकते हैं लेकिन गिरफ्तार किये नहीं रह सकते। भीतर मैंने गलत नहीं कहा था कि तुम्हारी गिरफ्तारी से मेरा काम आसान होगा। मेरा कार्यक्षेत्र—बल्कि युद्धक्षेत्र—चौकी थाना नहीं, कोर्ट कचहरी है। वहाँ मुझे परफार्म करता देखोगी तो तुम्हे पता लगेगा कि गुंजन शाह क्यों गुंजन शाह है!’’
‘‘लेकिन गिरफ्तारी!’’
‘‘झेलनी पड़ेगी। लेकिन यकीन जानो, मामूली जहमत है। बड़ा दर्द ठीक करने के लिये डाक्टर इन्जेक्शन लगाता है तो सिंरिज का दर्द झेलना पड़ता है या नहीं झेलना पड़ता! गिरफ्तारी को तुम बस उसी निगाह से देखो। ठीक?’’
सुष्मिता ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
‘‘बहरहाल मुझे खुशी है कि जिस काम के लिये हम यहाँ आये थे, वो हो गया। अब मैं कोशिश करूँगा कि तुम्हारी एफआईआर की बिना पर पुलिस जल्द-अज-जल्द चार्जशीट कोर्ट में दाखिल करे ।’’
‘‘ऐसा न हुआ तो?’’
‘‘तो मैं केस की फौरी सुनवाई के लिये सैशन में अर्जी लगाऊँगा। सैशन में सुनवाई के काबिल कोई कहानी मुझे गढ़नी पड़ेगी लेकिन इत्तफाक से कल इतवार को मेरे पास दूसरा कोई काम नहीं, इसलिये गढ़ लूँगा ।’’
‘‘ग्रेट!’’
‘‘अब तुम निश्चित हो जाओ। तुम गुंजन शाह की क्लायन्ट हो इसलिये इट गोज विदाउट सेइंग कि बेगुनाह हो और आखिरी जीत तुम्हारी होगी ।’’
‘‘थैंक्यू, सर ।’’
‘‘नाशुक्री तो नहीं हो?’’
‘‘क्या! ओह नो, सर! आई विल बी वैरी ग्रेटफुल...ग्रेटफुल फ्रॅाम कि कोर आफ माई हार्ट ।’’
‘‘आई विल बी वैरी ग्लैड टु सी दि कोर आफ यूअर हार्ट। अब चलो ।’’
सुष्मिता वकील के साथ कार में सवार हो गयी।
आलोक और अशोक चंगुलानी लेमिंगटन रोड पर स्टोर में अपने पिता के आफिस में बैठे थे, बाहर स्टोर को बन्द कराये जाने की प्रक्रिया जारी थी, जब कि अशोक को बाहर सौन्दर्य प्रसाधनों के डिस्पले के पास विशालकाय आर्थर फिंच खड़ा दिखाई दिया। उसकी निगाह पैन होती स्टोर में फिर रही थी और अशोक को मालूम था उसी को तलाश कर रही थी।
अशोक उछल कर खड़ा हुआ और बाहर को लपका।
बड़ा भाई चेहरे पर हैरानी और उलझन के भाव लिये उसे जाता देखता रहा।
उनके पिता की जिन्दगी में स्टोर रात ग्यारह बजे बन्द होता था लेकिन बेटों की क्योंकि स्टोर में, उसके कारोबार में, कोई रुचि नहीं थी इसलिये वो स्टोर को शाम सात और नौ के बीच में कभी भी बन्द कर दिये जाने का हुक्म जारी कर देते थे।
अशोक फिंच के पास पहँुचा और बांह पकड़ कर उसे एक सिर से ऊँचे रैक की ओट में ले गया।
‘‘आई सैड आइल कम आन सैटरडे ।’’—फिंच शुष्क स्वर में बोला—‘‘नो?’’
‘‘यस ।’’—अशोक फंसे कण्ठ से बोला। उसकी भरपूर कोशिश थी कि उस के भीतर की दहशत उसके चेहरे पर नुमायां न हो।
‘‘क्या हुआ कोर्ट में?’’
‘‘कुछ नहीं हुआ। तारीख पड़ गयी ।’’
‘‘कल संडे है। मीनिंग मंडे को होगा कुछ?’’
‘‘नहीं ।’’
‘‘वाट!’’
‘‘जज ने केस को दो हफ्ते के लिये पोस्टपोन कर दिया है ।’’
‘‘वाट नानसेंस!’’
‘‘नो नानसेंस। हम दो हफ्ते इन्तजार नहीं करने वाले ।’’
‘‘मीनिंग?’’
‘‘हम तब तक हाथ पर हाथ रखे नहीं बैठने वाले ।’’
‘‘क्या करेगा तुम?’’
‘‘ऐसा इन्तजाम करेंगे कि केस जल्द-अज-जल्द सैशन सुपुर्द हो। पुलिस हमारे साथ है, वो लोग भी इसी लाइन पर कार्यवाही की तैयारी कर रहे हैं ।’’
‘‘क्या तैयारी!’’
‘‘हमारी एडवर्सरी औरत कल या परसों गिरफ्तार हो जायेगी। उसका ब्वायफ्रेंड भी गिरफ्तार हो जायेगा। उन के खिलाफ मर्डर केस की एफआईआर होगी। सरकारी वकील मंगल या बुध को केस सैशन में डाल देगा। फिर अगले दिन सुनवाई होना निश्चित है क्योंकि नये केस को सैशन में डिले नहीं किया जाता ।’’
‘‘हूँ। और?’’
‘‘आज प्रासीक्यूशन अटर्नी कमजोर था। दूसरी तरफ से हाजिर हुआ वकील बहुत जबर था, इस वजह से भी सिविल कोर्ट में हमारी न चल सकी, हमें सैटबैक का सामना करना पड़ा। सैशन में ऐसा नहीं होगा। पुलिस में अपने तरफदारों से हमने खास डिमाण्ड की है कि सरकारी वकीलों की पैनल से कोई बड़ा, मकबूल वकील डिफेंस के खिलाफ खड़ा किया जाये ।’’
‘‘यू मीन अब मेरे को थर्सडे तक वेट करने का?’’
‘‘हाँ ।’’
‘‘नहीं माँगता ।’’
‘‘मजबूरी है ।’’
‘‘हूँ। यू श्योर यू आर नाट गीविंग मी ए रन अराउन्ड?’’
‘‘नो। नैवर। यकीन जानो, केस पर बहुत काम हो रहा है, अर्जेंट करके बहुत काम हो रहा है। विरसे के फैसले की हम लोगों को तुम्हारे से ज्यादा जल्दी है ।’’
‘‘आई कैन नाट वेट दैट लांग। मेरे को वापिस जाना माँगता है ।’’
‘‘मैंने बोला तो था, बेशक चले जाओ। मैं इनहैरिटेंस क्लेम कर के उधर पहँुचता हूँ ।’’
‘‘नो। दैट्स आउट आफ क्वेश्चन ।’’
‘‘तो...’’
‘‘आइल वेट एण्ड वाच ।’’
‘‘थैंक्यू ।’’
‘‘डोंट। बिकाज इफ आई कम टु नो दैट यू आर गीविंग मी ए रन अराउन्ड, आइल किल यू विद माई बेयर हैण्ड्स ।’’
अशोक का समूचा शरीर पत्ते की तरह काँपा।
उसने कलाई जैसी मोटी तर्जनी उँगली से एक बार खंजर की तरह अशोक की छाती को टहोका, आखिरी बार शोले बरसाती निगाह उस पर डाली, घूमा और लम्बे डग भरता बाहर को चल दिया।
अशोक वापिस आफिस में लौटा।
‘‘कौन था?’’—आलोक उत्सुक भाव से बोला।
‘‘लन्दन का एक वाकिफ था ।’’—अशोक लापरवाही जताता बोला—‘‘मैं बाई चांस दिख गया तो हल्लो बोलने चला आया ।’’
‘‘यहाँ बुलाना था! मेरे से मिलवाना था!’’
‘‘अरे, इतना इम्पार्टेंट आदमी नहीं था। मेरे रेस्टोरेन्ट के कैशियर का कुछ लगता था, कभी कभार बे़जवाटर से गुजरता था तो रेस्टोरेंट में आ जाता था। बस इतनी ही वाकफियत थी। कोई यार थोड़े ही था जो यहाँ बुलाता! तुम्हारे से मिलवाता!’’
‘‘हूँ ।’’
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