देवराज चौहान की नींद खुली तो साढ़े आठ बज रहे थे। उसने देखा कि जगमोहन वहां नहीं है । स्पष्ट था कि रात को वो लौटा ही नहीं । जबकि वो रात ग्यारह बजे यहां पहुंच गया था । ताला लगा था, जिसे कि उसने अपने पास मौजूद खास तार से खोल लिया था। खाना खाकर आया था वो। सो गया। परंतु अब जगमोहन को ना देखकर उसने मोबाइल उठाया, जगमोहन को फोन किया। परंतु उनका फोन बंद मिला। उठ कर नहा-धोकर सूटकेस में से कपड़े निकाल कर पहने और पुनः जगमोहन को फोन किया ।
फोन नहीं लगा ।
देवराज चौहान को उलझन हुई कि जगमोहन का फोन क्यों नहीं मिल रहा ।
ताला लगाकर देवराज चौहान कमरे से बाहर निकला और बाजार की तरफ बढ़ गया। दिन के ग्यारह बजे थे। रैस्टोरेंट से नाश्ता करने के बाद उसने पुनः जगमोहन को फोन किया परंतु कोई फायदा नहीं हुआ फिर उसने सूर्य थापा को फोन किया ।
"कहां से बोल रहे हो ?" उसकी आवाज सुनते ही उधर से सूर्य थापा खुशी से बोला--- "जगमोहन ने बताया था कि तुम आने वाले हो काठमांडू ।"
"मैं रात ही आ गया था ।" देवराज चौहान ने कहा--- "जगमोहन कहां है ?"
"जगमोहन? अपने कमरे में होगा। रात उसे कसीनो में देखा था। तुम उसके कमरे पर गए ?"
"रात मैं वहीं था। उसका फोन भी बंद आ रहा है ।"
"कह नहीं सकता। कल तो मेरी उससे कोई बात नहीं हुई । मैं उसका फोन ट्राई करता हूं मिल गया तो कह दूंगा उसे ।"
"इस कमरे के अलावा भी उसका कोई ठिकाना है ?"
"मुझे नहीं पता। हो सकता है, रात कसीनो में रुक गया हो।" उधर से सूर्य थापा ने कहा ।
"तो फोन क्यों नहीं लग रहा उसका ?"
"मेरी जरूरत हो तो मैं आ जाता हूं देवराज चौहान। कहां हो तुम ?"
"जरूरत पड़ी तो तुम्हें फोन करूंगा ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद कर दिया ।
जगमोहन को पता था कि रात वो काठमांडू पहुंच रहा है। बात हुई थी उससे। ऐसे में उसके रात को कमरे पर न लौटने का कोई मतलब ही नहीं था। किसी वजह से नहीं लौट सका तो उसका फोन तो चालू रहना चाहिए । अब तक उसका फोन आ जाना चाहिए था। परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ था और जगमोहन की कोई खबर नहीं थी। उसके बारे में पूछताछ करने कसीनो जाना ठीक नहीं था। देवराज चौहान ने अभी और इंतजार करने की सोची और वापस कमरे पर पहुंच गया। दोपहर के ढाई बजे उसका फोन बजा। दूसरी तरफ जगमोहन था ।
"तुम कहां थे । देवराज चौहान ने कहा--- "तुम्हारा फोन भी नहीं लग रहा था ।"
"मेरा फोन गिर कर खराब हो गया था । अब नया फोन खरीद कर 'सिम' उस में डाला तो बात कर रहा हूं। तुम कहां हो ?"
"तुम्हारे कमरे पर ही "
"मैं आ रहा हूं । रास्ते में हूं ।" कहकर उधर से जगमोहन ने फोन बंद कर दिया था ।
बीस मिनट बाद जगमोहन वहां आ पहुंचा ।
"कहां थे तुम ?"
"मैं एक, दूसरे ही मामले में फंस गया हूं ।" जगमोहन मुस्कुराया और बैठते हुए गहरी सांस ली ।
"कैसा मामला ?" देवराज चौहान की निगाह जगमोहन के चेहरे पर जा टिकी ।
"मुझे माला मिली। वो बहुत अच्छी लड़की है ।" जगमोहन ने कहा--- "मैं उससे ब्याह करने जा रहा हूं ।"
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
जगमोहन भी मुस्कुराया ।
"पक्का फैसला कर लिया ?" देवराज चौहान ने कहा ।
"हां । माला बहुत अच्छी लड़की है। मैं उससे प्यार करने लगा हूं।"
"ये तो अच्छी खबर है। रात क्या तुम माला के साथ ही थे ? कसीनो से निकलने के बाद...।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा और गम्भीर स्वर में बोला।
"माला के मामले में कुछ झंझट है । उसका भाई बंधु । वो सब ठीक करने की कोशिश में हूं ।"
"मुझे बताओ, क्या बात है ?" देवराज चौहान कह उठा ।
जगमोहन ने देवराज चौहान को सब कुछ बताया ।
देवराज चौहान सुनता रहा ।
अंत तक सारी बात चौहान को बता दी जगमोहन ने ।
सब कुछ जान लेने के बाद देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और कश लिया ।
"चूंकि ये मामला माला से वास्ता रखता है, इसलिए मैं मामले को आराम से निबटा लेना चाहता हूं। मैं चाहता हूं माला का भाई अपनी खुशी से माला का हाथ, मेरे हाथ में दे । वो कमीना है, बदमाश है, परंतु मैं इस बारे में नहीं सोच रहा । वो कसीनो के स्ट्रांग रूम में पड़ा पैसा चाहता है तो ये डकैती मैं उसके लिए कर रहा हूं। काम कैसे करना है, मैं बताऊंगा, परंतु करेगा वो ।"
"ये काम अगर हमें भी करना पड़े तो क्या समस्या है ?" देवराज चौहान बोला--- "हम कर सकते हैं कसीनो में डकैती । फिर तुम माला से शादी करना चाहते हो तो इस मामले में हम सब कुछ कर सकते हैं ।"
"और बाल्को खंडूरी वाले काम का क्या होगा ?" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा ।
"वो भी पूरा होगा ।"
"मेरे ख्याल में तो तुम बाल्को खंडूरी वाला काम पूरा करो, ये मामूली-सा काम है, मैं देख लूंगा । मैं इस डकैती में सीधे-सीधे हाथ नहीं डाल रहा । बंधु को सिर्फ रास्ता बता रहा हूं, सब कुछ वो ही करेगा। इस तरह काम निबट जाएगा ।" जगमोहन ने कहा ।
"अगर कहीं डकैती में अड़चन आ गई तो बंधु तुम्हारे सामने समस्या खड़ी कर देगा ।"
"अड़चन नहीं आएगी ।" जगमोहन ने विश्वास भरे स्वर में कहा--- "काम हो जाएगा। अगर बंधु की वजह से काम बिगड़ता है तो फिर मैं उसकी परवाह नहीं करूंगा और माला को ले आऊंगा। मेरे ख्याल में ये काम किसी तरह हो लेने दो ।"
"बाज बहादुर रस्ते पर आ गया क्या ?" देवराज चौहान ने पूछा।
"देखते हैं । कोशिश तो शुरू कर दी है ।"
"स्ट्रांग रूम की पोजीशन का भी पता करो । बाज बहादुर इस तरह नहीं माना तो तुम्हें दूसरी तरह काम करना पड़ेगा ।"
"हां, स्ट्रांग रूम की पोजीशन जानने की भी कोशिश में हूं ।" जगमोहन ने सिर हिलाया ।
"तुम इस काम को निबटो, बाल्को खंडूरी का मामला मैं संभाल लूंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"तुम शाम को कसीनो आ जाना, कसीनो मैनेजर बाज बहादुर से तुम्हें मिलवा दूंगा। मैंने तुम्हारी नौकरी की बात कर...।"
"अब मुझे काम करने का ढंग बदलना होगा ।"
"क्या मतलब ?" देवराज चौहान को देखने लगा जगमोहन ।
"पहले हम दोनों इस काम को कर रहे थे, हमारी प्लानिंग कुछ और थी । बाल्को खंडूरी को घेरने की। परंतु अब मैंने ही इस काम को निबटाना है तो दूसरे ढंग से काम करूंगा। क्योंकि तुम कसीनो में डकैती का मामला तैयार कर रहे हो । ऐसे में मेरा कसीनो में नौकरी करते हुए, बाल्को खंडूरी को घेरना ठीक नहीं होगा। मैं ब्लू स्टार होटल में ठहरुंगा और सीधे-सीधे बाल्को खंडूरी को पकडूंगा ।"
"इस तरह खतरा बढ़ जाएगा । वो नहीं माना तो ?" जगमोहन ने कहा ।
"ये मैं उस वक्त देखूंगा, अगर वो नहीं माना तो...।"
"वो नहीं मानेगा। उस कीमती माइक्रोफिल्म को तुम्हारे हवाले नहीं करेगा। उत्तरी कोरिया उस माइक्रोफिल्म की कीमत उसे पांच करोड़ डॉलर दे रहा है। उसकी तो वो अपनी जान से भी ज्यादा हिफाजत करेगा ।" जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा ।
"मैं बाल्को खंडूरी को संभाल लूंगा। वो जापान से 24 दिसम्बर को काठमांडू पहुंचेगा और ब्लू स्टार होटल में ठहरेगा यहीं पर उसने उत्तरी कोरिया देश के उन खास लोगों से मिलना है जो उसे पांच करोड़ डॉलर के ब्रांड देकर उससे माइक्रोफिल्म लेंगे । उन ब्रांडो को दुनिया के किसी भी देश में कैश कराया जा सकता है। परंतु मैं उनका सौदा नहीं होने दूंगा। वो माइक्रोफिल्म बाल्को खंडूरी से लेनी बहुत जरूरी है ।" देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"मैं हर वक्त तो डकैती के काम पर नहीं लगा रहूंगा । तुम मुझसे भी इस काम में बारे में काम ले सकते हो ।" जगमोहन बोला ।
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर जगमोहन से कहा ।
"तुम माला से वास्ता रखते काम देखो । बाल्को खंडूरी की जरा भी फिक्र मत करो। माला और बंधु कहां रहते हैं, ये मुझे बताओ ।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को माला के घर के बारे में बताया कि वो कहां पड़ता है ।"
"बाल्को खंडूरी परसों काठमांडू पहुंचेगा। परंतु मुझे ब्लू स्टार होटल में जाकर कमरा ले लेना चाहिए। इन दिनों वहां कमरा मिलना कठिन हो जाता है। हमें जब भी जरूरत पड़ेगी हम फोन पर बात कर सकते हैं । अगर तुम्हें डकैती के काम में कहीं भी मेरी जरूरत पड़े तो बता देना ।"
जवाब में जगमोहन सिर हिला कर रह गया ।
■■■
देवराज चौहान को ब्लू स्टार की तीसरी मंजिल पर डबल बेड पर कमरा मिल गया। रिसैप्शनिस्ट ने बताया कि अगले दो-तीन दिनों में सब कमरे बुक हो जाने वाले हैं । देवराज चौहान ने उसे बताया था कि वो कसीनो में खेलने के लिए आया है, वरना पहले तो उससे कह दिया गया था कि कमरे फुल हैं। कमरे में पहुंचकर वेटर ने सूटकेस रखा और सर्विस के लिए पूछा तो उसे कॉफी लाने को कह दिया। शाम के साढ़े पांच बज रहे थे। वो कुर्सी पर जा बैठा। दस मिनट में ही वेटर चला गया। देवराज ने कॉफी का घूंट भरा। चेहरे पर सोचों के भाव नजर आ रहे थे । उसे इस बात की खुशी थी कि जगमोहन को उसका प्यार मिल गया है और वो कसीनो की डकैती को आसानी से संभाल लेगा। कोई समस्या आई तो चिंता की कोई बात नहीं, वो भी तो यहां था। फिर देवराज चौहान का ध्यान बाल्को खंडूरी की तरफ चला गया।
15 दिसम्बर थी उस दिन। वो और जगमोहन दोपहर एक बजे, मुम्बई में अपने बंगले पर कार से निकले थे कि कुछ ही देर बाद उन्हें पीछा किए जाने का पता चला । पीछे लगी कार खुद को छिपाने की जरा भी चेष्ठा नहीं कर रही थी । वो ब्राउन कलर की एस्टीम कार थी ।
"पीछा करने वाले कौन हो सकते हैं ?" जगमोहन बोला ।
"पता नहीं ।" देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा--- "कहीं ये हमारे बंगले पर पहले से तो नजर नहीं रखे थे । क्योंकि हमारे बंगले से निकलने के पांच-सात मिनट बाद ही हमें उस कार के पीछे आने का पता चला ।"
जगमोहन होंठ भींच कर रह गया ।
"मेरे ख्याल में हमें देखना चाहिए कि वो कौन है । वो खुद को छिपाने की चेष्ठा नहीं कर रहा ।" जगमोहन ने कहा ।
देवराज चौहान ने कार की गति धीमी की और सड़क के किनारे कार रोक दी ।
वो एस्टीम कार भी पीछे आ कर रुक गई।
देवराज चोहान और जगमोहन की नजरें मिली । वो सतर्क हो गए ।
"पीछा करने वाला हमसे बात करना चाहता है ।" कहने के साथ ही जगमोहन ने रिवॉल्वर निकाल ली ।
देवराज चौहान शीशे से कार के पीछे का दृश्य देख रहा था । उसने एस्टीम के दरवाजे खुलते देखे और दो आदमी बाहर निकले । दोनों की उम्र पचास-पचपन के करीब थी । वो चुस्त दिख रहे थे और संभ्रांत लग रहे थे । वे ऐसे लोग नहीं लगे कि जिनसे किसी तरह की बुरी बात की आशा रखी जाए ।
"वो आ रहे हैं ।" देवराज चौहान बोला--- "दो हैं ।"
जगमोहन ने रिवॉल्वर को दोनों हाथों में छिपा रखा था । जिसे वो कभी भी इस्तेमाल कर सकता था ।
वो दोनों, कार के दोनों तरफ पहुंचे। एक देवराज चौहान की तरफ, दूसरा जगमोहन की तरफ ।
देवराज चौहान की तरफ वाले व्यक्ति ने झुककर देवराज चौहान को, फिर जगमोहन को देखा और उनके हाथ में दबी रिवॉल्वर को भी देखा फिर मुस्कुराकर देवराज चौहान से बोला ।
"तुम देवराज चौहान हो । डकैती मास्टर देवराज चौहान ।"
"हां ।" देवराज चौहान सतर्क था ।
"मैं माथुर हूं। आई.बी. का चीफ डिटैक्टिव ।" कहकर उसने कार्ड निकाला और देवराज चौहान के सामने करके खोला ।
देवराज चौहान ने खुले कार्ड को देखा। पढ़ा फिर माथुर को देखा ।
माथुर ने कार्ड जेब में डालते हुए कहा ।
"वो मेरा साथी कदम सिंह है । हम चाहते हैं तुम्हारे बंगले में भी आ जाते, परंतु वहां आकर...।"
"तो मैं खुद को गिरफ्तार समझूं ?" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला ।
"गिरफ्तार ? नहीं-नहीं, ऐसा कुछ नहीं है ।" माथुर ने गम्भीर स्वर में कहा--- "हम आई.बी. वाले हैं । हमारा डिपार्टमेंट देश के बाहर के मामलों को देखता है। देश के भीतरी मामले देखना हमारे डिपार्टमेंट का काम नहीं है ।"
देवराज चौहान प्रश्न-भरी निगाहों से उसकी तरफ देखने लगा ।
"तुमसे कुछ बात करनी है देवराज चौहान । एतराज ना हो तो हम तुम्हारी कार के पीछे वाली सीट पर बैठ जाएं ।
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा ।
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा ।
"बैठ जाओ ।" देवराज चौहान बोला ।
"थैंक्स।" माथुर ने कहा और पीछे का दरवाजा खोलकर भीतर आप बैठा। कदम सिंह भी पीछे वाली सीट पर बैठ गया ।
देवराज चौहान ने कार का इंजन बंद किया और सिग्रेट सुलगा कर बोला ।
"कब से हम पर नजर रख रहे हो ?"
"दो घंटे से ।"
"हमारे ठिकाने के बारे में कैसे पता चला ?"
"मार्शल ने बताया था ।"
"मार्शल ने ?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।
"हां । बात ही कुछ ऐसी है कि एक काम के लिए हमें किसी काबिल आदमी की जरूरत थी, परंतु हमें कोई आदमी नहीं मिल रहा था तो मैंने मार्शल को फोन किया और उसे अपनी समस्या बताई तो उसने तुम्हारे बारे में बताया। अब बात ये है कि अगर तुम्हें मेरी बात पसंद आती है तो ठीक है, नहीं तो हम चले जाएंगे और तुम्हें भूल जाएंगे। मार्शल ने कहा कि तुमसे बात करके देखने में कोई हर्ज नहीं है। उसने ये भी कहा कि हमारी तरफ से तुम्हें कोई समस्या ना आए ।"
"क्या चाहते हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"सबसे पहले तो मैं ये बता दूं कि जो काम मैं तुम लोगों को कहने जा रहा हूं, उसका कोई पैसा नहीं मिलेगा ।" माथुर बोला।
"पैसा नहीं मिलेगा?" जगमोहन ने गर्दन घुमा कर माथुर को देखा ।
"मजबूरी है । विभाग की तरफ से मैं तुम लोगों को कुछ नहीं दे सकता । अपनी जेब से देना ठीक नहीं होगा ।"
"अपनी जेब से देना क्यों ठीक नहीं होगा ?" जगमोहन बोला ।
"सरकारी नौकरी में बचता ही कितना है जो तुम लोगों को...।"
"काम क्या है ?" देवराज चौहान बोला ।
"मार्शल ने मुझे कहा था कि तुम दोनों पर हर तरह का भरोसा किया जा सकता है । इसलिए गोपनीय बात तुम लोगों को बता रहा हूं जबकि इस बात को आई.बी. के तीन-चार लोग ही जानते हैं ।" माथुर बोला--- "आज कल दुनिया-भर में परमाणु कार्यक्रमों की गुप्त तौर पर बाढ़-सी आई हुई है। हर देश दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है परमाणु कार्यक्रमों में । अधिकतर देश अपने गुप्त प्रोग्रामों को चालू रखते हैं और चोरी-छिपे अपने परमाणु काम चालू रखते हैं । इन्हीं में से आजकल चीन और जापान उभरे हैं। दिखावे के तौर पर तो इन दोनों देशों के आपसी संबंध खास नहीं है, परंतु हमारे पास इस बात की पक्की खबर है कि जापान और चीन गुप्त रूप से मिलकर परमाणु कार्यक्रमों को अंजाम देने की फिराक में हैं। परंतु हम नहीं जानते कि वो क्या योजनाएं हैं ।"
माथुर चंद पल के लिए रुका ।
देवराज चौहान ने कश लिया ।
"परंतु अब एक रास्ता हाथ लगा है जानने का । बाल्को खंडूरी नाम का आदमी, जापानी नागरिकता लिए हुए हैं । उसकी मां जापानी रही है और बाप नेपाली । अपने बाप का 'सरनेम' नाम के बाद लगाता है । बाल्को खंडूरी जापान में ठाठ से रहता है । दिखावे के तौर पर जापान में ट्रेवल एजेंसी खोल रखी है, परंतु असल में दुनिया-भर के दो नम्बर के धंधे करता है । ड्रग्स के काम में काफी ज्यादा दिलचस्पी लेता है। एशिया के देशों से ड्रग्स को अमेरिका पहुंचाता है और बहुत पैसा कमाता है जापान में ये सुरक्षित है क्योंकि वहां पर जरा भी गैरकानूनी काम नहीं करता । इसी बाल्को खंडूरी का संबंध जापान के एक ऐसे परमाणु वैज्ञानिक से है, जो कि जापान के परमाणु कार्यक्रमों से जुड़ा हुआ है। ऐसे में उस वैज्ञानिक के दम पर बाल्को खंडूरी ने जापान के परमाणु संयंत्रों के भीतरी जानकारी के अलावा जापान का भविष्य का प्रोग्राम हासिल कर लिया है, कि जापान-चीन के साथ गुप्त तौर पर मिलकर परमाणु योजनाएं बना रहा है जो कि भविष्य में दुनिया के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं। इस सारी जानकारी की उसने माइक्रोचिप तैयार कर ली है। उस माइक्रोचिप को वो उत्तरी कोरिया को बेचेगा। हमारे सूत्रों ने हमें पक्की खबर दी है । उत्तरी कोरिया का इस मामले में आना और भी खतरनाक हो जाएगा । उत्तरी कोरिया इस मामले से जितना दूर रहे, उतना ही बेहतर है ।"
"ये बात आई.बी. को कैसे पता चली ?"
"जापान स्थित हमारे एक एजेंट ने बाल्को खंडूरी के नौकर को पटा लिया था । वो नौकर को तगड़ी रकमें देता रहा और उसके कहने पर नौकर बाल्को खंडूरी के प्राइवेट कमरे में माइक्रोफोन लगा देता था। इस तरह हम ये जान पाए कि बाल्को खंडूरी किस चक्कर में है। उसका उत्तरी कोरिया के साथ दो-सौ करोड़ डॉलर में उस माइक्रो फिल्म का सौदा हुआ है और लेन-देन नेपाल के काठमांडू शहर के ब्लूस्टार कसीनो में होगा। उत्तरी कोरिया के आदमी वहां से उसे दो सौ करोड़ के ब्रांड देंगे और उससे माइक्रोफिल्म ले लेंगे। ये काम न्यू ईयर पर कसीनो में होगा ।"
"उत्तरी कोरिया उस माइक्रोफिल्म का क्या करेगा ?"
"उत्तरी कोरिया परमाणु मामलों में पहले से ही बदनाम है । वो पहले देखेंगे कि जापान और चीन परमाणु मामले में कितना आगे निकल गए हैं। उन कार्यक्रमों में उत्तरी कोरिया अपने काम की बातें चुन लेगा और कि भविष्य में उसे कैसी-कैसी परमाणु योजना तैयार करनी है। उस माइक्रोफिल्म से वो जापान और चीन के गुप्त परमाणु ठिकाने जान लेगा । फिर वो दोनों देशों को ब्लैकमेल करके भारी मात्रा में परमाणु सामग्री हासिल कर सकता है और उत्तरी कोरिया के हाथ ऐसी सामग्री लग जाए जाना दुनिया के लिए खतरनाक होगा ।"
"इस सौदे का लेन-देन काठमांडू में ही क्यों होगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"बाल्को खंडूरी का नेपाल से लगाव है । क्योंकि उसका पिता काठमांडू का नेपाली था । इस कारण वो दस-बारह सालों में हर क्रिसमस पर नेपाल के काठमांडू में आता है और ब्लू स्टार कसीनो में जुआ खेलता है । ब्लू स्टार होटल में ठहरता है । इन दोनों जगहों का मालिक अजीत गुरंग नाम का नेपाली व्यक्ति है और दोनों इमारतें आपस में जुड़ी हुई हैं। होटल से कसीनो जाने के लिए भीतर ही भीतर से रास्ता है। बाल्को खंडूरी, उत्तरी कोरिया वालों से किसी जगह मुलाकात नहीं करना चाहता कि कोई देख न ले। ऐसे में सबसे सुरक्षित जगह काठमांडू का ब्लू स्टार कसीनो है। उसे जानने वाले जानते हैं कि वो हर साल काठमांडू के कसीनो में जुआ खेलने जाता है । अगर उस पर कोई नजर रख रहा होगा तो वो भी ये ही सोचेगा कि छुट्टियां मनाने वो नेपाल जा रहा है। कसीनो में ढेरों लोगों से मुलाकात होती है और ऐसी मुलाकात को कोई शक से नहीं देखता । बाल्को खंडूरी आराम से कसीनो में अपने सौदे को पूरा कर सकता है ।"
"तुम हमसे क्या चाहते हो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"बाल्को खंडूरी से वो माइक्रोफिल्म हासिल करना। वो माइक्रोफिल्म उत्तरी कोरिया वालों को न दे सके ।"
"ये काम करने के लिए, तुम्हारे पास लोग नहीं हैं क्या ?" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा ।
"एजेंट हैं। बहुत काबिल एजेंट है इस काम के लिए। परंतु बाल्को खंडूरी से माइक्रोफिल्म लेना आसान नहीं है । जरा भी हंगामा हो गया तो बात खुल जाएगी कि आई.बी. वाले इस मामले में दखल दे रहे हैं । ऐसे में जब अमेरिका को पता चलेगा कि हम क्या कर रहे हैं तो वो शिकायत करेगा कि इतनी बड़ी बात उससे क्यों छिपाई गई और सारा मामला खुल जाएगा। जो कि हम नहीं चाहते। मामला खुलते ही अमेरिका, जापान चीन के विरुद्ध हो जाएगा। जबकि वो दोनों देश झुकने वाले नहीं। इस तरह दुनिया भर में एक नई लड़ाई का जन्म हो जाएगा और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। चीन और जापान, हिन्दुस्तान को भी अपना दुश्मन समझने लगेंगे और हम एक नई लड़ाई में फंस जाएंगे ।"
"इसलिए तुम लोग सीधे-सीधे इस मामले में नहीं आना चाहते ?" जगमोहन बोला ।
"हां । ये ही बात है ।"
"और तुम लोग इस माइक्रोफिल्म को लेकर क्या करोगे ?"
"तब देशों के स्तर पर गुप्त वार्ता होगी और हमारी सरकार खामोशी से चीन और जापान को कहेगी कि वो अपने परमाणु कार्यक्रमों को पूरी तरह रोक दे, वरना माइक्रोफिल्म अमेरिका के हवाले कर दी जाएगी ।"
"ऐसा सुनकर वो पीछे हट जाएंगे ?"
"उन्हें हटना ही पड़ेगा वरना दुनिया के सामने उनकी पोल खुल जाएगी। वैसे अभी हम देख लेना चाहते हैं कि उस माइक्रोफिल्म में क्या है । इतना तो जाहिर है कि कुछ खास ही होगा जो उत्तरी कोरिया उसके बदले बाल्को खंडूरी को 200 करोड डॉलर दे रहा है ।"
जगमोहन कुछ नहीं बोला ।
देवराज चौहान भी चुप रहा ।
"तुम लोग सब कुछ सुनकर चुप क्यों हो गए ।" खामोश बैठा कदम सिंह कह उठा ।
"ये खतरनाक काम है ।" देवराज चौहान बोला--- "बाल्को खंडूरी आसानी से माइक्रोफिल्म देने वाला नहीं ।"
"ये बात तो हमें भी पता है ।" कदम सिंह बोला--- "परंतु मार्शल का कहना है कि तुम लोग ये काम कर सकते हो ।"
"मुफ्त में हम काम नहीं करते। ये बात मार्शल जानता है ।" जगमोहन बोला--- "उसने बताया नहीं ।"
"बताया था ।" पदम सिंह ने कहा--- "परंतु हम तुम लोगों को पैसा देने की स्थिति में नहीं हैं। इसके लिए हमें अपने विभाग के कई ऐसे लोगों को सारा मामला बताना पड़ेगा कि बात बाहर निकल सकती है। उनमें से कोई भी अमेरिका को खबर देने वाला हो सकता है। ऐसे में हमारी सारी मेहनत मिट्टी में मिल जाएगी ।"
"तुम्हारे विभाग में ऐसे लोग भी हैं ।"
"हो सकते हैं। आई.बी. का काम विदेशी मामलों को देखना-संभलना होता है। ऐसे में अमेरिकी एजेंट जरूर हमारे विभाग पर नजर रखते होंगे । किसी को, खबर पाने के लिए, पैसा देकर फंसा भी रखा हो सकता है ।"
कदम सिंह ने कहा--- "मार्शल कहता है कि तुम लोग कभी-कभार देश के लिए काम कर देते हो ।"
"मुफ्त में तो नहीं ।"
कदम सिंह या माथुर ने कुछ नहीं कहा।
"भला होगा तुम्हारा।" कुछ पलों बाद माथुर बोला--- "अगर बाल्को खंडूरी से माइक्रोफिल्म लाकर हमारे हवाले कर सको।"
"बाल्को खंडूरी काठमांडू कब पहुंचेगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"24 दिसम्बर को वो ब्लू स्टार होटल में ठहरेगा और पहली जनवरी तक वो हमेशा वहीं रहता है और जुआ खेलता है ।"
"ब्लू स्टार कसीनो में ही जुआ खेलता है ?"
"हां। वो अपना पूरा समय कसीनो में बिताता है और उत्तरी कोरिया के लोगों से भी कसीनो में ही मिलेगा ।"
देवराज चौहान ने कश लेकर सिगरेट खिड़की से बाहर गिरा दी और कहा ।
"हम कोशिश करेंगे कि बाल्को खंडूरी से वो वाली माइक्रोफिल्म ले सकें ।"
"कोशिश ?" माथुर बेचैनी से बोला--- "सिर्फ कोशिश करोगे ?"
"हम इस काम को करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा--- "किसी वजह से काम न हो पाया तो हम जिम्मेवार नहीं होंगे ।"
"जिम्मेवार तब होते हम जब हमें काम के नोट भी मिलते ।" जगमोहन कह उठा ।
"मार्शल ने कहा था कि अगर तुम लोग हां कह देते हो तो समझो काम हो गया ।" माथुर बोला ।
"पूरी कोशिश करेंगे कि काम हो जाए ।" देवराज चौहान ने कहा।
माथुर ने जेब से एक लिफाफे में से तस्वीर निकाल कर उन्हें दी।
"ये बाल्को खंडूरी की तस्वीर है ।"
तस्वीर में वो पैंतीस वर्ष का व्यक्ति लग रहा था । चेहरा गोरा था।
"रख लो ।" देवराज चौहान बोला--- "हमने तस्वीर देख ली है ।"
फिर माथुर ने अपना कार्ड उन्हें दिया और कहा ।
"काम हो जाए तो इस नम्बर पर मुझे फोन कर देना ।"
जगमोहन कार्ड जेब में रखता कह उठा ।
"नेपाल तक जाने के लिए, विमान का किराया भी मिलेगा या वो भी हमें अपने पल्ले से जाएगा ।"
"इतना तो मैं दे दूंगा ।" माथुर ने सिर हिलाकर कहा ।
"बहुत-बहुत मेहरबानी ।"
देवराज चौहान सोचों से बाहर आ गया। उसके बाद उन्होंने बाल्को खंडूरी से माइक्रोफिल्म हासिल करने की योजना बनाई और जगमोहन पहले ही काठमांडू पहुंच गया। काम पर लग गया और किसी प्रकार ब्लू स्टार कसीनो में नौकरी पा ली और देवराज चौहान के लिए भी वहां जगह पक्की कर ली बाज बहादुर को पटाकर। परंतु जगमोहन को माला के मिलने पर बंधु के बीच में आ जाने की वजह से उन्हें प्लान बदलना पड़ गया। जगमोहन कसीनो में डकैती की तैयारी करने में लग गया था और देवराज चौहान ने अब बाल्को खंडूरी को संभालना था।
तभी कॉलबेल बजी ।
"आ जाओ ।" वहीं बैठे देवराज चौहान बोला ।
दरवाजा खोलकर वेटर भीतर आया और मुस्कुरा कर बोला ।
"सर, अगर आप कसीनो में कुछ खेलना चाहें तो वहां अच्छा वक्त बीत जाएगा ।"
देवराज चौहान ने वक्त देखा। शाम के आठ बज चुके थे। जगमोहन भी वहीं होगा। उसने सोचा कि उसे कसीनो को अच्छी तरह देख-परख लेना चाहिए। इसके साथ ही देवराज चौहान उठते हुए बोला ।
"याद दिलाने के लिए शुक्रिया । मैं अभी कसीनो जाने की सोच ही रहा था ।"
"आइए सर । मैं आपको कसीनो का रास्ता दिखा देता हूं । होटल के भीतर से ही कसीनो का रास्ता जाता है ।"
■■■
देवराज चौहान ने कसीनो में प्रवेश किया और ठिठककर हर तरफ का नजारा देखने लगा। कसीनो की रौनक चरम सीमा पर थी। बाहर बेहद सर्दी थी, परंतु भीतर पर्याप्त गर्मी का एहसास हो रहा था। देवराज चौहान आगे बढ़ा और कसीनो के रास्तों को देखने-पहचानने में लग गया। साढ़े आठ बज रहे थे। धीरे-धीरे कसीनो में आने वाली संख्या बढ़ रही थी । करीब आधा घंटा देवराज चौहान मशीनों वाले जुआ घर के हॉल में रहने के पश्चात, खेल वाले हॉल में आ गया। जहां बिलियर्ड टेबल पर बड़ी रकमें लगा कर जुआ खेले जा रहा था। दूसरी जगह निशानेबाजी में जुआ लग रहा था। यहां काफी लोगों की भीड़ लगी हुई थी। पन्द्रह मिनट वहां रहने के बाद देवराज चौहान वहां से हटने की सोच रहा था कि उसे सूर्यथापा हॉल में प्रवेश करता दिखा ।
उसके साथ दो विदेशी व्यक्ति थे। उन्हें जुए के खेलों के पास ले जाकर जुआ कैसे खेलना है, गेम के बारे में बताने लगा ।
देवराज चौहान की नजर सूर्य थापा पर ही रही ।
दस मिनट बाद सूर्य थापा की निगाह उस पर पड़ी तो विदेशियों को छोड़कर उसके पास आ गया ।
"तुम यहां हो ।" सूर्य थापा बोला--- "तुमसे फिर मिलकर खुशी हुई । जगमोहन मिल गया न ?"
"हां ।"
सूर्य थापा ने आस-पास देखा फिर धीमे स्वर में कह उठा।
"तुम लोग किस चक्कर में हो? जगमोहन ने तो इस बारे में बताया ही नहीं ।"
"कुछ काम है इधर । कसीनो में किसी से मुलाकात करनी है ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"मतलब कि कसीनो में डकैती वगैरह का चक्कर तो नहीं है ?"
देवराज चौहान चुप रहा ।
"मैंने जगमोहन से पूछा था, वो कहता है कि डकैती नहीं कर रहे।" सूर्य थापा ने फिर कहा--- "मैंने तो सोचा था कि शायद डकैती का कोई इरादा हो और मेरी भी कुछ कमाई हो जाएगी।" वो देवराज चौहान को, जवाब के इंतजार में देखता रहा ।
"मेरा कोई प्रोग्राम नहीं है डकैती करने का।" देवराज चौहान बोला ।
"ओह ।"
"पर जगमोहन दूसरे ही चक्कर में फंसा है । वो अपना काम कर रहा है ।"
"दूसरा चक्कर ?"
"वो उसका मामला है, मेरा उसकी बात से कोई वास्ता नहीं है । मेरे पास दूसरा काम है ।
"तुम दोनों यहां पर अलग-अलग काम कर रहे हो ?"
"ऐसा ही समझो । तुम यहां पर क्या कर रहे हो ?"
"क्रिसमस और न्यू ईयर का वक्त तो अपने सीजन का वक्त होता है ।"
सूर्य थापा मुस्कुरा कर बोला--- "विदेशी लोग काठमांडू के कसीनो में जुआ खेलने और न्यू ईयर मनाने आते हैं। ऐसे विदेशियों का मैं गाइड बन जाता हूं । दो-तीन हजार की कमाई हर रोज हो जाती है । इसी तरह काम चल रहा है ।"
"मैं तुम्हें एक काम देता हूं । दस हजार रुपया रोज का...।"
"ओह । जल्दी बोलो, काम क्या है ।" सूर्य थापा उत्सुक दिखा ।
"एक जगह की निगरानी करनी है। वहां जो देखो, जो महसूस करो, मुझे बताना है ।"
"दिन में नजर रखनी है रात में ?"
"दिन-रात हर, वक्त। ये काम सिर्फ तुम ही करोगे। और किसी की सहायता नहीं लोगे ।"
"कठिन है ।" सूर्य थापा ने सोच-भरे स्वर में कहा--- "इतनी सर्दी में चौबीसों घंटे खुले में रहकर नजर रखना...।"
"दस हजार हर रोज का मिलेगा ।" देवराज चौहान ने उसे याद दिलाया और सिग्रेट सुलगा ली ।
"ठीक है। कहां नजर रखनी है ?" सूर्यथापा तैयार हो गया ।
देवराज चौहान ने माला के घर का पता बताया । रास्ता बताया।
"समझ गया । मैं इस इलाके को अच्छी तरह जानता हूं ।"
"पहाड़ों पर बने इस घर में कौन-कौन रहता है। कौन आता-जाता है । और भी जो महसूस करो सब बताना है ।"
सूर्य थापा ने सिर हिलाकर कहा ।
"कब से काम पर लगना है ?"
"कल सुबह से लग जाना ।"
"दस हजार रुपया हर रोज का है न ?"
"हां ।"
"मैं कल सुबह से काम पर लग जाऊंगा। अब जरा उन विदेशियों के पास जाता हूं । उनसे आज की कमाई तो कर लूं।" सूर्य थापा ने कहा और वहां से चला गया । देवराज चौहान ने कश लिया और जगमोहन की तलाश में नजर घुमाई । परंतु वो नहीं दिखा ।
■■■
जगमोहन काले सूट में अपनी ड्यूटी देता कसीनो में टहल रहा था परंतु उसका ध्यान तो बाज बहादुर की तरफ था, जो कि अभी तक कसीनो में नहीं पहुंचा था । स्पष्ट था कि अपने बेटे की तलाश में मारा-मारा फिर रहा होगा ।
जगमोहन को लग रहा था कि उसका तीर निशाने पर बैठा है । बाज बहादुर अपने बेटे के गायब हो जाने और उसके न मिलने से परेशान था। जगमोहन चाहता था कि बाज बहादुर थक जाए कि उसका बेटा शायद न मिले । ये विचार मन में आने के बाद ही वो प्लान का दूसरा हिस्सा शुरू करना चाहता था । अभी न्यू ईयर की रात आने में एक सप्ताह बाकी था। काफी वक्त था । सात दिनों में काफी कुछ हो सकता था या किया जा सकता था। इस बारे में उसे कोई जल्दी नहीं थी ।
तभी उसने अजीत गुरंग को नीले सूट में, कसीनो में देखा। वो कीन्हीं दो लोगों से बात कर रहा था। जगमोहन कुछ पल उसे देखता रहा फिर गुरंग की तरफ बढ़ गया। जब वो दोनों व्यक्ति गुरंग के पास से चले गए तो जगमोहन उसके पास जा पहुंचा और मुस्कुरा कर दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा---
"नमस्कार साहब जी ।"
गुरंग ने उसे देखकर सिर हिलाया ।
"साहब जी, मैनेजर साहब का बेटा मिल गया ?" जगमोहन ने धीमे स्वर में पूछा ।
"अभी नहीं मिला । "गुरंग गम्भीर स्वर में बोला ।
"मैनेजर साहब अभी तक कसीनो में नहीं पहुंचे तो मैंने भी ये ही सोचा कि उनका बेटा नहीं मिला होगा । वो उसे ढूंढ रहे होंगे ।"
"तुम ठीक से ड्यूटी करते रहो ।"
"जी साहब जी। वैसे पुलिस कोशिश तो कर रही होगी, उनके बेटे को ढूंढने को ।"
"हां ।" गुरंग ने कहा और आगे बढ़ गया ।
जगमोहन वहां से चल पड़ा कि तभी ओम नाटियार पास आ पहुंचा ।
"गुरंग साहब तुमसे क्या कह रहे थे ?"
"ठीक से ड्यूटी देने को कह रहे थे ।" जगमोहन बोला ।
"मैनेजर साहब नहीं आए अभी तक ?" ओम नाटियार ने पूछा ।
"क्या मैनेजर साहब, अभी तक नहीं आए ?" जगमोहन ने नाटियार को देखा ।
"नहीं। कल भी देर से आए थे, जबकि वो समय के पाबंद हैं।" नाटियार बोला ।
"कोई काम पड़ गया होगा ।"
जगमोहन ताश वाले हॉल में पहुंचा ।
नौ से ऊपर का वक्त हो गया था। यहां सबसे ज्यादा भीड़ थी । क्योंकि असली जुआ तो यहां ही खेला जाता था। वेटर ड्रिंक सर्व करने के लिए इधर-उधर भागे फिर रहे थे ।
जगमोहन हर तरफ नजर रखे था कि कुछ देर बाद उसकी नजर देवराज चौहान पर पड़ी, जो कि एक टेबल के पास खड़ा, गेम देख रहा था। वो गेम बहुत बड़ी हो गई थी। टेबल पर टोकनों का ढेर लगा था। तीन खिलाड़ी अभी भी पत्ते थामे डटे हुए थे ।
जगमोहन, देवराज चौहान के पास जा खड़ा हुआ और गेम देखने का दिखावा करते हुए उसने देवराज चौहान की कोहनी को हिलाया और पीछे होता चला गया। कुछ ही देर में देवराज चौहान उसके पास जा पहुंचा ।
"बाज बहादुर का क्या रहा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"अभी वो कसीनो नहीं पहुंचा। अपने बेटे की तलाश में भागा फिर रहा होगा ।" जगमोहन ने धीमे स्वर में कहा ।
"मतलब कि अभी तक तुम्हारा दांव ठीक चल रहा है ।
"शायद ।"
"इस काम में मेरी जब भी जरूरत पड़े बता देना ।"
"तुम पास में हो, मुझे इसी बात का बहुत हौसला है । जरूरत पड़ी तो बताऊंगा ।"
"यहां स्ट्रांग रूम किस तरफ है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।"
"तुम्हारी दाईं तरफ, कोने में एलुमिनियम का दरवाजा दिख रहा है। वहां दो गनमैन खड़े हैं। वो स्ट्रांग रूम के भीतर जाने का प्रवेश द्वार है । कसीनो वालों ने जानबूझकर स्ट्रांग रूम को ऐसी जगह बनाया है कि जहां हर समय ढेरों लोग मौजूद रहें और कोई चोरी-छिपे स्ट्रांग रूम में न पहुंच सके। जो ऐसी कोशिश करेगा, वो तुरंत नजर में आ जाएगा ।"
"मेरे पास ज्यादा मत रुको । इस वक्त तुम कसीनो के कर्मचारी हो ।" देवराज चौहान बोला ।
"बाल्को खंडूरी कल आएगा। आई.बी. वालों ने उसके 24 तारीख को यहां पहुंचने को कहा था। वो काम आसान नहीं है तुम अपना ध्यान उस काम पर लगाओ। डकैती का काम मैं संभाल लूंगा ।" कहकर जगमोहन वहां से हटता चला गया ।
दस मिनट बाद ही जगमोहन को वहां बाज बहादुर दिखा । जो कि लोगों से मिलता हुआ स्ट्रांग रूम की तरफ बढ़ रहा था । उसके चेहरे पर अभी चिंता स्पष्ट दिखाई दे रही थी कि वो परेशान है ।
जगमोहन फौरन बाज बहादुर के पास जा पहुंचा ।
"नमस्कार साहब जी । वो आपका बेटा...।" जगमोहन ने कहना चाहा ।
"चुप रहो, यहां बात मत करो ।" बाज बहादुर ने सब्र भरे स्वर में कहा--- "कल तुम स्ट्रांग रूम देखने को कह रहे थे । आओ तुम्हें स्ट्रांग रूम दिखाता हूं । गोपाल के बारे में ऑफिस में बात करेंगे।"
जगमोहन उनके साथ चल पड़ा ।
बाज बहादुर स्ट्रांग रूम के दरवाजे के पास खड़े गनमैनों के पास पहुंचा ।
"सब ठीक है ?" बाज बहादुर ने उनसे पूछा ।
"जी साहब जी ।"
बाज बहादुर आगे बढ़ा और एल्यूमीनियम का वो दरवाजा खोलता भीतर प्रवेश कर गया । जगमोहन उसके साथ ही था । सामने साफ-सुथरी गैलरी नजर आ रही थी । जिसके दोनों तरफ दो दरवाजे नजर आ रहे थे । बाज बहादुर बाईं तरफ का दरवाजा धकेल कर भीतर प्रवेश कर गया। जगमोहन साथ रहा। उसकी नजर हर तरफ जा रही थी । इत्तेफाक से स्ट्रांग रूम में आने का उसे मौका मिल गया था तो वो सब कुछ अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहता था कि जाने कब इन बातों की जरूरत पड़ जाए । ये कमरा स्ट्रांग रूम में लगे कैमरों का कंट्रोल रूम था और चार स्क्रीनें रोशन थी । वहां पांच आदमी व्यस्त दिख रहे थे। उनकी पर्याप्त निगाह स्क्रीन पर थी। जगमोहन उस कमरे का जायजा लेने लगा ।
"गुड इवनिंग सर ।" उन लोगों ने बाज बहादुर के स्वागत में कहा।
बाज बहादुर ने उन्हें जवाब देने के बाद पूछा ।
"सब कुछ कैसा चल रहा है ?"
"एकदम ठीक सर ।"
"कोई समस्या हो तो मुझे बताना ।" कहने के साथ ही बाज बहादुर पलट कर बाहर निकल आया ।
जगमोहन भी बाहर निकला ।
दोनों गैलरी में आगे बढ़ने लगे ।
तीस फुट के बाद ही गैलरी आगे से बाईं तरफ बढ़ रही थी ।
"यहां बहुत पक्के इंतजाम है जगमोहन । कोई भीतर नहीं आ सकता । आ जाए तो फौरन पता चल जाता है । यहां जगह-जगह कैमरे लगे हैं और उन कैमरों का कंट्रोल रूम ऊपर पहली मंजिल पर ही है ।" बाज बहादुर चलते हुए कह रहा था--- "दो आदमी वहां स्क्रीन पर नजर रखते हैं। मान लो अगर कोई यहां घुस भी आता है, सब कुछ अपने कंट्रोल में कर लेता है तो ऊपर के कंट्रोल रूम वालों को भीतर की पोजीशन पता चलती रहेगी कि भीतर क्या हो रहा है। यानी कि हम भीतर की हरकतों से अंजान नहीं रहेंगे ।"
"ये तो अच्छा इंतजाम है सर ।"
वे दोनों गैलरी में बाएं मुड़ गए ।
सामने की गैलरी में जो हथियारबंद व्यक्ति टहलते दिखे ।
"इस गैलरी में चौबीसों घंटे दो गनमैन मौजूद रहते हैं ।" बाज बहादुर बोला--- "इन्हें सिर्फ दो मत समझना । दाएं-बाएं के जो दो बंद दरवाजे नजर आ रहे हैं, उनमें भी दो-दो गनमैन हैं। यानी कि ये कुल छः हैं ।
पास से गुजरते हुए बाज बहादुर ने गनमैन का सलाम लिया ।
"साहब जी, क्या कभी किसी ने भीतर आने की चेष्टा की ?" साथ चलते जगमोहन ने पूछा ।
"दो बार ।" बाज बहादुर ने सिर हिलाया--- "दो बार स्ट्रांग रूम को लूटने की चेष्टा की गई । दोनों ही बार दिसम्बर का आखिरी सप्ताह था। न्यू ईयर के मौके पर लोग ज्यादा आते हैं जुआ खेलने और काफी बड़ी रकम स्ट्रांग रूम में इकठ्ठी हो जाती है । हमारे कई खास और पुराने मेहमान जब इन दिनों यहां खेलने आते हैं तो उनके पास काफी पैसा होता है। सुरक्षा के नाते वो पैसा भी स्ट्रांग रूम में रखवा देते हैं। परंतु दोनों बार स्ट्रांग रूम लूटने की कोशिश असफल रही। एक बात तो इसी गैलरी में गनमैनों ने उन तीनों लुटेरों को गोलियों से उड़ा दिया। हमारा एक भी आदमी नहीं मरा। परंतु दूसरी बार हमारे दो गनमैन मारे गए। तब भी वो इस गैलरी से आगे न जा सके और मारे गए । तब वो पांच थे ।
"फिर तो सुरक्षा का पक्का इंतजाम रखना चाहिए साहब जी ।" जगमोहन बोला ।
"बहुत पक्का इंतजाम है। कोई भी स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंच सकता ।"
आगे वो गैलरी पुनः बाईं तरफ मुड़ी और दस कदमों पर सामने दीवार आ गई ।
बाज बहादुर जगमोहन के साथ उस दीवार के सामने रुका और एक तरफ लगे बटन को दबाकर कहा ।
"सोमदत्त । दरवाजा खोलो ।"
"कौन है ?" एक मध्यम-सी आवाज वहां गूंजी ।
"बाज बहादुर ।" बाज बहादुर ने अभी तक उस बटन को दबा रखा था ।
चंद पल बीते कि वो छोटी-सी दीवार मध्यम-सी आवाज के साथ सरकती, पास की दीवार में प्रवेश कर गई । सामने मोटी लोहे की सलाखों वाला दरवाजा दिखा। जिसके पार एक बड़ा कमरा था। वहां चार-पांच लोग टेबल पर रखे नोटों की गड्डियां बनाते, उन्हें दीवार के साथ लगे स्टील के खानों में रखने में व्यस्त थे ।
गेट के भीतर की तरफ पचास वर्ष का सोमदत्त खड़ा था। उसने एक निगाह जगमोहन पर डाली फिर भीतर लगा रखा मोटा ताला खोलने के बाद लोहे की मोटी कुंडी खोली और दरवाजा खोल दिया ।
बाज बहादुर और जगमोहन भीतर प्रवेश कर गए ।
सोमदत्त ने पुनः लोहे की सलाखों वाला गेट बंद किया और दीवार में लगा एक बटन दबाने पर वो दीवार सलाखों वाले गेट के पार, पहले की तरह के खिसक आई थी। अब बाहर का कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। जगमोहन वहां की हर चीज को, हर इंतजाम को नोट करता जा रहा था ।
टेबल पर खुले नोट बिखरे थे। जिन्हें गड्डियों के रूप में बनाया जा रहा था। वहां हिन्दुस्तान की करेंसी थी, डॉलर थे, पौंड थे, यूरो थे । जिन्हें सिलसिलेवार लगाया जा रहा था ।
उन चारों के साथ बाज बहादुर की दुआ-सलाम हुई ।
"कितना पैसा इकट्ठा हुआ है ?" बाज बहादुर बोला ।
"बीस करोड़ के करीब है ।" एक ने कहा ।
"बढ़िया है।" बाज बहादुर बोला--- "पिछले साल क्रिसमस पर चालीस करोड़ हमारे स्ट्रांग रूम में था और न्यू ईयर पर पैंसठ करोड़ परसों क्रिसमस है। मेरे ख्याल में इस बार पचास करोड़ तक रकम पहुंच जाएगी और न्यू ईयर पर आंकड़ा अस्सी को छू सकता है । तुम लोगों को तेजी से हाथ चलाना है। यहां पर मैं काम के लिए किसी और को नहीं भेजूंगा ।"
"हम संभाल लेंगे।" एक ने मुस्कुरा कर कहा--- "सोमदत्त भी हमारी सहायता कर देता है ।"
तभी दूसरा व्यक्ति कह उठा ।
"मुझे दो दिन की छुट्टी चाहिए सर । मेरे भाई की शादी है ।"
"सीजन के इस वक्त छुट्टी नहीं मिलेगी। मैंने पहले ही कहा है कि किसी नए आदमी को मैं यहां काम पर नहीं लाऊंगा ।"
"जरूरी है सर । भाई की शादी...।"
"कब है ?" बाज बहादुर ने पूछा ।
"कल और परसो दो दिन ।"
"बारात कब है ?"
"परसों ।"
"परसों दो घंटे की तुम्हें छुट्टी मिल जाएगी कि शादी में जा सको। इससे ज्यादा नहीं ।" बाज बहादुर ने गम्भीर स्वर में कहा--- "इससे ज्यादा छुट्टी चाहीए तो गुरंग साहब से बात करना ।"
वो चुप कर गया ।
बाज बहादुर पलट कर जगमोहन से बोला ।
"कैसा लग रहा है यहां ?"
"बहुत अच्छा साहब जी ।" जगमोहन कह उठा--- "इतने सारे नोट मैंने कभी नहीं देखे ।"
उसके बाद बाज बहादुर और जगमोहन । स्ट्रांग रूम से बाहर निकल कर, ताश वाले हॉल में आ पहुंचे ।
बाज बहादुर गम्भीर और व्याकुल दिख रहा था। किसी पहचान वाले से मिलता तो जबर्दस्ती मुस्कुराता वो ।
"साहब जी। जगमोहन धीमे स्वर में बोला--- "वो आपका बेटा...।"
"तुम कुछ देर बाद ऑफिस में आना ।" कहकर बाज बहादुर आगे बढ़ गया ।
जगमोहन उसी हॉल में टहलने लगा कि नाटियार पास आया ।
"तुम स्ट्रांग रूम में गए थे? मैंने मैनेजर साहब के साथ तुम्हें बाहर निकलते देखा ।" नाटियार बोला ।
"मैनेजर साहब ही ले गए थे । "जगमोहन ने कहा ।
"मुझे भी एक बार मैनेजर साहब भीतर ले गए थे । वहां सुरक्षा के तगड़े इंतजाम हैं ।"
"हां । स्ट्रांग रूम को कोई लूट नहीं सकता ।" जगमोहन ने कहा और आगे बढ़ गया ।
तभी सूर्य थापा जगमोहन से टकरा गया ।
"तुम तो रोज ही यहां दिखाई देते हो ।" जगमोहन बोला ।
"ये सीजन चल रहा है। इन दिनों मैं बहुत व्यस्त रहता हूं ।" कहते हुए सूर्य थापा वहां से चला गया ।
जगमोहन ने देवराज चौहान की तलाश में नजरें घुमाई। वहां काफी भीड़ हो चुकी थी। हर टेबल फुल थी और खिलाड़ियों के पास खड़े, गेम देख रहे लोगों की काफी भीड़ थी। देवराज चौहान नहीं दिखा। जगमोहन को माला की याद आई। उसका खूबसूरत चेहरा आंखों में उभरा तो उसने फोन निकालकर बंधु को फोन किया ।
दूसरी तरफ कई बार बेल गई तो उसके बाद बंधु की आवाज आई ।
"हैलो ।"
"ये तुम्हारे लिए आखिरी मौका है। कोई गड़बड़ मत कर देना ।"
जगमोहन ने चेतावनी उसे याद दिलाई ।
"अब मैंने क्या किया है ?" बंधु की आवाज आई ।
"कुछ मत करो, ये ही तुम्हारे लिए अच्छा है । माला से मेरी बात कराओ ।" जगमोहन ने कहा ।
जगमोहन ने बंधु को कहते सुना कि माला की जगमोहन से बात करा दे ।
कुछ क्षणों के बाद माला की आवाज कानों में पड़ी ।
"हैलो ।"
"मैं हूं ।" जगमोहन के चेहरे पर मुस्कान उभरी--- "बंधु ने फिर तो कुछ नहीं किया ?"
"अभी तक तो नहीं ।"
"उस लड़के के साथ ?"
"उसे भी कुछ नहीं कहा। विजय उसकी पहरेदारी पर कमरे में है। लेकिन मेरे को बंधु से डर लगा रहता है ।" माला की आवाज आई ।
"तुम जरा भी मत डरो ।" बंधु ने अब कुछ गड़बड़ की तो उसे भुगतना पड़ेगा ।"
"तुम कब आओगे ?" माला का प्यार भरा स्वर कानों में पड़ा ।
"कल । मेरे लिए नाश्ता तैयार रखना ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
"दोपहर का खाना खिला कर भेजूंगी। तुम्हारे बिना दिल नहीं लगता ।"
"कुछ दिन की बात है फिर तो हमने हमेशा ही साथ रहना है ।"
"भाई साहब आ गए क्या ?"
"हां। वो खुश हैं कि हमारी शादी होने वाली है। कल मिलूंगा माला। बाय...।" कहकर जगमोहन ने फोन बंद किया और बाज बहादुर के ऑफिस में जा पहुंचा। बाज बहादुर कुर्सी पर बैठा, चिंतित अंदाज में पेपरवेट को गोल-गोल घुमा रहा था। उसने जगमोहन को देखा ।
"साहब जी। मुझे आपके बेटे की बहुत चिंता है।" जगमोहन बोला--- "वो मिल गया होगा ।"
"नहीं ।" बाज बहादुर ने होंठ भींच लिए--- "गोपाल का कुछ पता नहीं चल रहा ।"
"ओह ।"
"पुलिस पूरी कोशिश कर रही है। मैं भी दिन भर भागदौड़ करता हूं परंतु गोपाल का...।"
"आपने बताया था कि आपके बेटे को कार पर उठा ले गए । कार का नम्बर तो किसी ने देखा...।"
"नहीं देख पाए। कार नम्बर पर मिट्टी लगी थी ।" बाज बहादुर ने होंठ भींच कर कहा ।
"काली कार भी नहीं मिली पुलिस को ?"
"पुलिस ने कई काली कारें पकड़ी हैं। उनसे सख्ती से पूछताछ की है । लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ ।"
"जिन लोगों ने आपके बेटे को उठाया है, उनका फोन भी नहीं आया ?"
"ये ही बात तो मुझे परेशान कर रही है कि उनका फोन भी नहीं आया। जब भी फोन बजता है तो लगता है अपहरणकर्ताओं का फोन होगा। परंतु नहीं होता। उनका फोन आया होता तो दस-बीस लाख में अपने बेटे को वापस पा लेता। परंतु फोन न आना तो मुझे और भी परेशानी में डाल रहा है । मेरे ख्याल में ये वो लोग नहीं हैं ।"
"कौन लोग ?"
"जिन्होंने पहले मेरा और तुम्हारा अपहरण किया था। वो लोग होते तो जरूर उन्होंने फोन कर दिया होता। ये दूसरे लोग हैं, परंतु मुझसे क्या चाहते हैं, फोन क्यों नहीं कर रहे । गोपाल पर जाने क्या बीत रही होगी ।" बाज बहादुर ने थके स्वर में कहा--- "17-18 वर्ष का ही तो है । वो कभी भी घर से इस तरह दूर नहीं रहा...।"
"आप ठीक कहते हैं, अगर वो ही लोग होते तो उन्होंने फोन कर दिया होता ।" जगमोहन बोला ।
"गोपाल की मां का तो बुरा हाल है रो-रो कर । कसीनो में आने का मन नहीं करता। सीजन का वक्त है आना भी पड़ता है ।"
"मुझे बताइए साहब जी, मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं । मेरी जान भी हाजिर है ।"
बाज बहादुर ने जगमोहन को देखा फिर इंकार में सिर हिला उठा ।
"तुम कुछ नहीं कर सकते मेरे लिए। शायद पुलिस को कोई कामयाबी मिल जाए।" बाज बहादुर ने गहरी सांस ली ।
जगमोहन गम्भीर बना, बाज बहादुर को देखता रहा ।
"जाओ, तुम अपनी ड्यूटी दो ।"
जगमोहन उस ऑफिस से बाहर निकल आया। वो जो चाहता था वैसा ही हो रहा था। अपहरणकर्ताओं की तरफ से छाई खामोशी, बाज बहादुर को परेशान कर रही थी ।
कल तक उसे पुलिस पर भरोसा था परंतु आज भरोसा कुछ टूटा-टूटा सा लग रहा था। आज उसकी आवाज में दम भी नहीं था। जगमोहन चाहता था कि और थक जाए और मायूस हो जाए। उसे लगा कि कल तक बाज बहादुर की रही-सही आशा भी खत्म हो जाएगी। बाज बहादुर के उसके काबू में आ जाने की संभावना दिखाई दे रही थी। कुछ और वक्त बीतने पर उसने और भी टूट जाना था ।
■■■
अगले दिन 11:30 बजे जगमोहन माला के घर पहुंचा । मौसम सर्द था, कोहरा जगह-जगह बादलों के रूप में जमीन को छू रहा था । हवा नहीं चल रही थी परंतु कड़ाके की ठिठुरन थी । माला उसे दरवाजे के पास कुर्सी पर बैठे इंतजार करती मिली । आज उसका सूजा गाल बहुत कम हो गया था। वो मुस्कुराई तो जगमोहन उसकी खूबसूरती को देखता रह गया। पास पहुंचा तो माला ने कुर्सी छोड़ी और उसके गले से आ लगी। जगमोहन ने भी उसे बांहों में ले लिया ।
"इतनी सर्दी में क्यों बैठी हो ?" जगमोहन ने प्यार से कहा ।
"तुम्हारा इंतजार कर रही हूं। मुझे तो सर्दी लगी नहीं। तुम्हारी यादों में खोई थी ।" माला ने प्यार में डूबे स्वर में कहा ।
जगमोहन ने माला को अलग किया। उसके मासूम चेहरे को देखा ।
"तुमने मुझे कैद कर लिया है माला। तुममें जाने क्या है कि तुम्हारे पास आकर सब कुछ भूल जाता हूं ।"
माल ने शरमाकर चेहरा झुका लिया ।
"बंधु ने कुछ कहा तो नहीं ?" जगमोहन ने पूछा ।
"नहीं ।"
"सीधा हो गया लगता है वो ।"
"उस जैसा कमीना और बुरा इंसान कभी भी सीधा नहीं हो सकता ।" माला ने गहरी सांस ली ।
"डकैती होने तक वो सीधा रहे। उसके बाद मुझे उससे कोई मतलब नहीं । तुम्हें लेकर मुम्बई चला जाऊंगा ।"
माला ने मुस्कुराकर जगमोहन को देखा ।
"मेरा नाश्ता कहां है ?" जगमोहन ने शरारत-भरे स्वर में पूछा ।
"ओह, अंदर आओ। आज मैं तुम्हें मूली के परांठे खिलाऊंगी। सब तैयार कर रखा है मैंने ।"
जगमोहन और माला भीतर प्रवेश कर गए ।
सामने ही ड्राइंग रूम में बंधु, पदम सिंह और विजय दिखे ।
"मैं तुम्हारे लिए नाश्ता बनाती हूं ।" कहते हुए माला किचन की तरफ बढ़ गई ।
जगमोहन आगे बढ़ा और सोफे पर जा बैठा ।
"माला के हाथ का बना माल,खा-कर सेहत बन गई लगती है इसकी ।" विजय ने हंसकर कहा ।
"आज माला तेरे को ठीक मिली न ?" बंधु बोला ।
"वो हर रोज मुझे ठीक मिलनी चाहिए ।"
"ठीक ही मिलेगी। गलती मेरी ही है कि मैं कोई पंगा खड़ा कर देता हूं । अब ऐसा नहीं होगा ।"
"गोपाल ठीक है ?" जगमोहन ने पूछा ।
"वो भी ठीक है। उसके बाप का क्या हाल है ?" बंधु की निगाह जगमोहन पर थी ।
"उसे अपने बेटे की चिंता हो रही है, वो इस चिंता में है कि उसके बेटे का अपहरण करने वालों ने उसे फोन क्यों नहीं किया ?"
"क्या ख्याल है तुम्हारा कि वो हमारी बात मानेगा ?"
"अभी पता नहीं। आसान नहीं है उसके लिए, हमारी बात मानना ।" जगमोहन बोला ।
"तुमने बहुत दूर की सोची कि उसके बेटे को उठा कर आराम से बैठ जाओ ।" बंधु ने सोच-भरे स्वर में कहा ।
"लोहे को अपने मनपसंद अंदाज में ढालना हो तो उसे पूरी तरह गर्म करना जरूरी है ।"
"मतलब कि वो हमारी बात मान जाएगा ।"
"बोला तो, अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता । पुलिस पर से उसका भरोसा कम हो रहा है ।
"पुलिस के बारे में नई खबर ?"
"वो तुम लोगों की तलाश में लगी है। बेहतर होगा कि अभी सावधानी के नाते बाहर निकलो ही नहीं ।"
"हम नहीं निकल रहे। किसी चीज की जरूरत होती है तो माला ले आती है। वैसे भी हमने चेहरे को ढांपकर काम किया था । हमें कोई खतरा नहीं होगा बाहर निकलने पर। काली कार तो अभी हम इस्तेमाल करेंगे नहीं । दूसरी कार है वो...।"
"बेहतर है बाहर मत निकलो ।"
बंधु सिर हिला कर रह गया ।
"कल मैंने स्ट्रांग रूम देखा ।" जगमोहन बोला ।
"देखा ?"
"हां । बाज बहादुर जाने किस मूड में था कि मुझे स्ट्रांग रूम के भीतर ले गया ।" जगमोहन ने कहा ।
"वहां, भीतर कैसे इंतजाम है सुरक्षा के ?"
"तगड़े ।"
"अगर हम सीधे स्ट्रांग रूम पर धावा बोले तो ?"
"तो खतरनाक हालात पैदा हो सकते हैं। भीतर कई कठिनाइयां हैं। स्ट्रांग रूम के लिए दो कंट्रोल रूम बने हैं । एक नीचे, दूसरा ऊपर की मंजिल पर। दोनों के कनैक्शन अलग-अलग हैं। एक पर काबू पा लें तो दूसरा भीतर होने वाली हरकतों को देख लेगा।"
"अगर दोनों कंट्रोल रूम पर काबू पा लें तो ?"
"तब भी कोई खास फायदा नहीं होने वाला। वहां छः गनमैन हर वक्त तैयार रहते हैं। जो कि स्ट्रांग रूम के रास्ते में खड़े रहते हैं । वहां खून-खराबा होना जरूरी है। मतलब कि स्ट्रांग रूम तक पहुंच पाना असंभव है। फिर भी हम ये मानकर चलें कि स्ट्रांग रूम तक पहुंच गए तो उसके भीतर प्रवेश कर पाना असंभव नहीं। क्योंकि उसका दरवाजा भीतर से खुलता है। भीतर मौजूद लोग दरवाजा तब खोलते हैं जब बाहर खड़े व्यक्ति के बारे में उन्हें तसल्ली हो जाए। वैसे वो दरवाजा बाहर से भी बंद होता होगा परंतु मैं नहीं जानता, वो कैसे बंद होता होगा। स्ट्रांग रूम के भीतर भी ऐसा इंतजाम अवश्य होगा कि बाहर खड़े व्यक्ति को सी.सी.टी.वी. कैमरे द्वारा देखा जा सके। स्ट्रांग रूम का रास्ता, ताश खेलने वाले जुआघर के हॉल से होकर आ जाता है। मतलब कि अगर वहां जरा भी गड़बड़ होती है तो फौरन नजर में आ जाएगी ।"
बंधु उनकी निगाह जगमोहन पर थी ।
पदम सिंह और विजय शांत से बैठे थे ।
"तुम्हारा मतलब कि अगर सीधे-सीधे कसीनो में डकैती हो तो नहीं की जा सकती ।" बंधु बोला ।
"क्यों नहीं की जा सकती । परंतु उसके लिए योजना बनाने के लिए लम्बा वक्त चाहिए । ये आनन-फानन वाला काम नहीं है ।"
"तुम्हारा मतलब कि अगर बाज बहादुर तैयार न हुआ तो हम कसीनो का स्ट्रांग रूम नहीं लूट सकते ।"
"इस तरफ से तुम निश्चिंत रहो। काम हो जाएगा।" जगमोहन बोला ।
"वो कैसे ?"
"स्ट्रांग रूम की छत से रास्ता बनाकर स्ट्रांग रूम में जाना, सबसे सुरक्षित रास्ता है ।" जगमोहन ने कहा ।
"स्ट्रांग रूम की छत से रास्ता ?" बंधु की आंखें सिकुड़ी ।
जगमोहन मुस्कुराया ।
कई पलों तक वहां चुप्पी रही ।
"स्ट्रांग रूम की छत से रास्ता कैसे बनेगा ?"
"मैंने वहां भीतर प्रवेश करने के बाद कदमों को गिना है कि कितने कदमों के बाद, किधर मुड़ना है और फिर कितने कदम चलकर मुड़ना है। कसीनो की ऊपरी मंजिल पर पहुंचकर मैं आसानी से स्ट्रांग रूम की छत वाली जगह पर पहुंच सकता हूं।"
"वहां रास्ता कैसे बनेगा ?" बंधु ने पूछा ।
"बारूद से ।"
"पागल हो क्या ?" बारूद का धमाका सबको बता देगा कि हम क्या कर रहे हैं ।"
"इसका भी रास्ता है मेरे पास ।" जगमोहन ने कहा--- "न्यू ईयर की रात ठीक बारह बजे कसीनो की तरफ से जबर्दरस्त बम-पटाखे कसीनो के बाहर छोड़े जाते हैं, ताकि विदेशी सैलानी खुश हो जाएं। काफी धूम-धड़ाका होता है। ऐसे में कसीनो का भी मामूली-सा विस्फोट उसी शोर में गुम हो जाएगा। हम सिर्फ छोटा-सा धमाका करेंगे ढाई फुट चौड़ा-ढाई फुट लम्बा फर्श उड़ाना है। थोड़ा-सा बारूद लगेगा और धमाका एक बम से ज्यादा शोर नहीं करेगा ।" जगमोहन ने कहा ।
"पहली मंजिल पर क्या होता है ?"
"ये मैं अभी नहीं जानता। कल कसीनो की पहली मंजिल पर जाकर देखूंगा कि स्ट्रांग रूम के ऊपर क्या बना हुआ है ।"
"अगर वहां ऐसा कुछ हुआ कि उधर से हम रास्ता न बना सके तो ?" बंधु की निगाह जगमोहन पर जा टिकी ।
"चिंता मत करो। हर अड़चन से निकलने का रास्ता होता है । जब तक कल मैं कसीनो की पहली मंजिल पर नजर नहीं मार लेता तब तक कुछ नहीं कह सकता। ये योजना भी मैंने तब तैयार की जब स्ट्रांग रूम वाले रास्ते से वापस आ रहा था । हमारे पास कई दिन पड़े हैं और सब ठीक कर लेंगे हम ।"
"क्या पता कसीनो का मैनेजर ही हमारी मुट्ठी में आ जाए ।" पदम सिंह बोला ।
जगमोहन चुप रहा ।
बंधु ने सिगरेट सुलगा ली ।
"जो भी हो, तुम कमाल के हो ।" विजय मुस्कुरा कर कह उठा ।
तभी माला नाश्ते की प्लेट जगमोहन को थमा गई ।
जगमोहन नाश्ता करने लगा ।
"देवराज चौहान अभी आया कि नहीं ?" बंधु ने पूछा ।
"तुम्हें इससे क्या ?" जगमोहन खाते-खाते बोला ।
"अगर देवराज चौहान को भी इस काम में ले लेते तो...।"
"तुम्हें मेरे काम करने के ढंग में कोई कमी नजर आ रही है तो बोलो ।" जगमोहन ने कहा ।
"कमी तो कोई नहीं । मैं आश्वस्त हो जाना चाहता हूं कि ये काम हो जाएगा ।"
"होगा । जितनी डकैतियां मैंने की है, उतनी लड़कियां भी तुमने नहीं देखी होंगी ।" जगमोहन का स्वर शांत था ।
विजय हंस पड़ा ।
बंधु सोचों में डूबा कश लेता रहा ।
तभी गोरखा वहां पहुंचते बोला ।
"मैं थक गया हूं उस लड़के पर नजर रखते। अब तू जा विजय।"
"वो कमरे में है ?" विजय बोला ।
"हां ।"
"दरवाजा बाहर से बंद है ?"
"हां ।"
"ठीक है । बैठ जा यहीं। मैं कुछ देर में वहां जाता हूं ।" विजय ने कहा ।
"मुझे एक बंदर टोपी दो ।" नाश्ता करता जगमोहन बोला--- "मैं उस लड़के को देखना चाहता हूं ।"
किसी ने कुछ नहीं कहा। माला दूसरा परांठा दे गई और जगमोहन ने तीसरा लेने को मना कर दिया ।
"न्यू ईयर की रात स्ट्रांग रूम में कितना पैसा होता है मालूम किया इस बारे में ?" बंधु ने मुंह खोला ।
"सत्तर से अस्सी करोड़ तक हो सकता है ।" जगमोहन ने कहा ।
"कैसे पता ?"
"बाज बहादुर ने बताया ।"
विजय दांत फाड़ कर हंसने लगा ।
बंधु के चेहरे पर मुस्कान नाच उठी ।
"ये तो बहुत बढ़िया रकम है ।" बंधु कह उठा--- "अगर तुम सच में इतनी रकम मुझे दिलाने में कामयाब हो गए तो मैं तुम्हारा नौकर बन जाऊंगा सारी उम्र के लिए। इतने पैसे से तो मेरी सारी मुसीबत दूर हो जाएगी ।"
"मुझे, तुम जैसे नौकर की जरूरत नहीं है ।" जगमोहन एकाएक तीखे स्वर में कह उठा--- "तुम मुझसे जितना दूर रहो, तुम्हारे लिए उतना ही बेहतर है। हमारा वास्ता अगले कुछ दिनों का ही है ।"
विजय हंस पड़ा ।
"ऐसा मत कहो।" बंधु ने मुस्कुराकर कहा--- "तुम मेरी बहन से शादी करने वाले हो। हमारा रिश्ता तो...।"
"हममें कोई रिश्ता नहीं बन रहा बंधु। तुमने रिश्ते वाली कोई बात ही नहीं की। हमारे बीच एक सौदा है कि मैं तुम्हें कसीनो की दौलत लूट कर दूंगा और तो माला का हाथ मेरे हाथ में दे दोगे। उसके बाद हममें कोई रिश्ता नहीं रहेगा। माला भी शायद तुमसे रिश्ता ना रखना चाहे ।"
"ये तुम्हारी मर्जी।" बंधु ने कंधे उचकाकर कहा--- "पैसा मेरी जरूरत है। मैं कब से बड़े पैसे की तलाश कर रहा था। इसलिए तुमसे ये काम लेने की सोची। तुम और माला रिश्ता ना रखना चाहो तो तुम दोनों की मर्जी ।"
जगमोहन ने नाश्ता समाप्त किया। तब तक माला, जगमोहन के लिए चाय बना लाई ।
"मुझे चाय नहीं पिलाओगी ।" बंधु ने माला से कहा ।
माला ने मुंह फेर लिया ।
विजय हंसा ।
माला जगमोहन के पास ही बैठ गई ।
जगमोहन ने चाय समाप्त की और उठता हुआ बोला ।
"मुझे बंदर टोपी दो । मैं उस लड़के को देखना चाहता हूं ।"
माला भी उठ गई । बोली ।
"चलो, मैं तुम्हें वहां ले चलती हूं ।"
पदम सिंह ने जगमोहन को बंदर टोपी दी तो जगमोहन ने टोपी सिर पर लेकर चेहरा छिपा लिया । सिर्फ आंखें ही नजर आ रही थी। वो माला के साथ घर के भीतरी हिस्से की तरफ बढ़ गया। पीछे से बंधु को कहते सुना ।
"तू साथ जा विजय और लड़के के पास ही रहना ।"
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माला ने दरवाजा खोला और जगमोहन के साथ भीतर प्रवेश कर गई। दरवाजे पर विजय खड़ा हुआ था। उसके चेहरे पर भी बंदर टोपी थी ।
गोपाल बेड पर पड़ा था। उसके ऊपर कंबल दिया हुआ था। दरवाजा खुलते ही उसकी नजर इन लोगों पर जा टिकी । जगमोहन ने आगे बढ़कर उस पर से कम्बल हटाया तो उसके हाथ-पांव बंधे देखे । वो स्कूल की यूनिफार्म में था। जगमोहन ने वापस उस पर कम्बल दे दिया । जगमोहन कुछ पल उसे देखता रहा फिर बोला ।
"तुम्हारा नाम गोपाल है ?"
"हां ।"
"तुम्हारे पिता का नाम बाज बहादुर है ?" वो कसीनो में मैनेजर है ?"
"हां ।"
"तुम्हें यहां तकलीफ तो नहीं ?"
"देख नही रहे मेरा क्या हाल है ।" गोपाल ने शिकायत भरे स्वर में कहा--- "मैं घर जाना चाहता हूं ।"
"तुम जल्दी घर जाओगे। यहां से भागने की कोशिश मत करना।" जगमोहन ने कहा और बाहर आ गया। माला उसके साथ थी। जगमोहन ने टोपी उतार दी। साथ चलती माला कह उठी ।
"तुम कुछ वक्त मेरे साथ बैठो। मुझसे बातें करो ।"
जगमोहन ने मुस्कुरा कर माला को देखा ।
माला उसे अपने कमरे में ले गई । वो गम्भीर दिख रही थी ।
"क्या बात है माला ?"
"ये जो हो रहा है। इन सब बातों से मुझे डर लग रहा है ।" माला ने कहा ।
"किसी तरह के वहम में मत पड़ो ।
"सोचती हूं कि अगर तुम कामयाब न हो सके तो बंधु, हमारी शादी नहीं होने देगा ।"
"हमारी शादी तो होकर रहेगी माला ।" जगमोहन ने उसका हाथ पकड़ लिया--- "और ये काम भी हो जाएगा ।"
"रात बंधु मुझसे पूछ रहा था कि तुम कसीनो को लूट पाओगे या नहीं। वो सोचता है कि मुझे जैसे सब पता है। तुमने मुझे बता रखा है ।"
"अब पूछे तो कह देना कि काम पक्का होगा ।" जगमोहन ने उसका हाथ थपथपाया ।
"मैं बंधु के पास नहीं रहना चाहती। मुझे यहां से ले चलो ।" माला की आंखें भर आई--- "मुझे हर समय तुम्हारा ही ध्यान आता रहता है ।"
"तुम सिर्फ 31 दिसम्बर की रात तक ही यहां हो उसके बाद मेरे ही साथ रहोगी । सारी उम्र ।" जगमोहन मुस्कुराया ।
माला, जगमोहन के सीने से जा लगी ।
"ये थोड़े-से दिन मुझे सालों की तरह लग रहे हैं। एक-एक दिन जैसे साल के बराबर भारी हो ।" माला भीगे स्वर में कह उठी ।
जगमोहन ने उसे सीने से लगाए रखा। बांहों का घेरा बांधे रखा।
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