जीवन पाल फार्म हाउस के गेट पर चहलकदमी करता मिला ।
दरबार एक तरफ खड़ा था ।
जीवन पाल ने तीनों को ध्यान से देखा और महसूस किया कि इनमें से पहले किसी को नहीं देखा । बसई को उसने आवाज से पहचाना कि इसी ने ही उससे फोन पर बात की थी ।
“तुम तब तक हम तीनों के बीच रहोगे, जब तक कि हमारी बातचीत खत्म नहीं हो जाती। हम यहां से चले नहीं जाते।” देवराज चौहान ने कहा-“इस दौरान अगर तुमने किसी भी तरह की चालाकी दिखाई या तुम्हारे छिपे आदमियों ने हमारा निशाना लेने की चेष्टा की तो सबसे पहले तुम्हें भूलेंगे फिर…।”
“यहां पर मेरा कोई आदमी मौजूद नहीं है। तुम लोगों को मुझसे इसी तरह का खतरा नहीं।” जीवन पाल ने शब्दों को चबाकर कहते हुए बारी-बारी तीनों को देखा-“बल्कि मैं तुम लोगों से खुद के लिए खतरा महसूस कर रहा हूं।”
“जल्दी ही समझ जाओगे कि हमारे से तुम्हें कोई खतरा नहीं।” जगमोहन ने उसे घूरा ।
तीनों में से घिरा जीवन पाल बंगले के भीतर पहुंचा और एक कमरे में जा पहुंचा। वहां गहरी खामोशी छाई हुई थी। खुला इलाका होने के कारण सन्नाटे ने अपने पांव फैला रखे थे ।
जगमोहन ने भीतर से दरवाजा बंद किया।खिड़कियां चैक की।
तब तक देवराज चौहान जीवन पाल की तलाशी ले चुका था। उसकी जेब से रिवॉल्वर हासिल की । जिसकी गोलियां निकाल कर, खाली रिवॉल्वर जीवन पाल की जेब मे ठूंस दी।
जगमोहन और बसई कुर्सी पर बैठ चुके थे ।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
“बैठो।” जगमोहन बोला ।
जीवन पाल के प्रति तीनों सतर्क थे ।
उलझन में फंसा जीवन पाल बैठा और बसई को देखकर सपाट स्वर में कह उठा ।
“तुमने फोन पर तीन बातें मुझे कहीं। पहली-तुम लोगों ने बारी-बारी उन दोनों को मारा, जिनसे मैं अपना काम लेने वाला था। दूसरी-तुम लोगों को जिसने ये काम करने को कहा, उसके बारे में मुझे बताओगे। तीसरी- ये कि मेरे कष्टों को तुम लोग दूर कर दोगे।” कहते हुए उसकी निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर भी गई।
“हां। ये बातें मैंने कहीं।” बसई ने शांत भाव में कहा ।
“मेरे मामले में दखल देते, मेरे खिलाफ काम करते हुए तुम लोगों को डर नहीं लगा। ” जीवन पाल ने कठोर स्वर में कहा ।
“चुप कर । फालतू मत बोल ।” जगमोहन दांत भींच कर बोला-“वरना तेरे को अभी गोली मार दूंगा।”
जीवन पाल ने उसे घूरा।
“ऐसे क्या देखता है।” जगमोहन उखड़ा ।
तभी देवराज चौहान ने कश लेते हुए सख्त स्वर में कहा ।
“तुम इस बात को भूल जाओ कि तुम जीवन पाल हो। केशोपुर की हस्ती हो। इस बात को याद रखो कि तुम कई बार खिड़की पर आए और हम तुम्हारा निशाना बहुत आसानी से लगा सकते थे।”
जीवन पाल की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी।
“किसने कहा तुम लोगों से कि मैं जिस आदमी का इंतजाम करु, उसे खत्म कर दो। मेरा काम पूरा ना होने दो। ”
“ये बात मुझसे पूछना और बाद में पूछना। बोला बसई-“इस वक्त काम की बात करो ।”
“काम की बात ?”
“अपने कष्टों को दूर करने की बात।”
जीवन पाल की भिंची नजरें बारी-बारी तीनों पर गई ।
“अभी तो तुम लोग मेरे दुश्मनों के लिए काम कर रहे थे। ऐसे में मेरे कष्ट क्या दूर करोगे।” जीवन पाल ने उसे घूरा ।
“जीवन ।” जगमोहन ने कहा- “पहले हम तेरे दुश्मन के लिए काम कर रहे थे, जो चाहता था कि तुम अपने काम के लिए जिस आदमी का इंतजाम करो, उसे हम खत्म कर दें ताकि तुम्हारा काम पूरा ना हो सके। अब तुम ये काम आगे नहीं करना चाहते। ये तुमने आशाराम, प्रमोद सिंह और अपनी पत्नी मीरा पाल को बताया। उसके साथ ही हमें इस बात से दूर कर दिया गया कि, अब हमारी जरूरत नहीं, इस काम के लिए । क्योंकि तुमने अब किसी आदमी का इंतजाम करने का इरादा छोड़ दिया है।”
“तो तुम लोग नहीं बताओगे कि कौन पीछे से मेरी गर्दन पर छुरी फेर रहा है।”
“मैं बताऊंगा । बोला तो…।” बसई ने कहा- “लेकिन फुर्सत में। अभी काम की बात कर लें।”
जीवन पाल के होंठ भिंचे रहे ।
“बोलो ।” जगमोहन बोला- “हमारी सेवाओं की जरूरत हो तो कहो।”
जीवन पाल ने सख्त से अंदाज में सिगरेट सुलगाई।
“तुम लोग किसी भी तरह से विश्वास के काबिल नहीं हो।”
“वो कैसे ?” जगमोहन बोला ।
“कुछ देर पहले तुम लोग मेरे दुश्मन के लिए काम कर रहे थे और मेरे आदमीयों की हत्या कर रहे…।”
“हां हमने ही तेरे को बताई ये बात। उस पार्टी का काम हमने पूरा कर दिया।” जगमोहन बोला- “फुर्सत मिल गई हमें। हमें मालूम है कि तेरे को अपने काम के लिए खास आदमी की जरूरत है तो मौके का फायदा उठा कर तेरे से बात कर ली। हम बहुत बढ़िया लोग हैं विश्वास के काबिल है तेरे को काम कराना है तो बोल। नहीं तो चलते हैं। तो मजे ले और हम अपने।”
जीवन पाल, जगमोहन को घूरने लगा ।
“तेरे को पहले भी बोला है कि ऐसे मत देख। मुंह से बोल। नहीं तो मुंह घुमा ले।”
“कौन हो तुम लोग ?” जीवन पाल के माथे पर बल नजर आने लगे थे ।
“नहीं जानते ।” कह उठा बसई-“देवराज चौहान है ये डकैती मास्टर। नाम नहीं सुना क्या ? ”
“देवराज चौहान।” जीवन पाल हड़बड़ा कर फौरन उठ खड़ा हुआ ।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिली ।
“बैठ जा। बैठ जा। सलाम बाद में मार लेना।” बसई-“बोला-सौदा पटाता है ।”
“तुम तीनों में देवराज चौहान है कौन ?”
“ये। ”
जीवन पाल की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी ।
“नाम सुना है तुम्हारा । देख पहली बार रहा हूं।” जीवन पाल के होठों से निकला-“कई बार सोचा था कि मेरे काम में जो दखल दे रहा है, वो मामूली बंदा तो होगा नहीं। देवराज चौहान होगा । ये नहीं सोचा था।”
“काम की बात करो जीवन पाल।” देवराज चौहान ने कहा-“तुम्हें हम से कोई काम है ?”
“हां ।”
“क्या ?”
“मेरी बेटी रोनिका का अपहरण हुआ पड़ा है। वो खतरे में है।”
“क्या ? बसई जोरों से चौंका ।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं ।
“तुम्हारी बेटी का अपहरण हो चुका है?” देवराज चौहान ने पूछा।
“हां।”
“कब हुआ?”
“कई दिन हो गए।” जीवन पाल एकाएक परेशान-सा हो उठा था ।
“कहां से उसका अपहरण किया गया ?”
“मुंबई से।”
“वो वहां थी तब ?”
“हां। रोनिका मुंबई के कॉलेज में पढ़ती है। छोटी बेटी जर्मनी में हॉस्टल में पढ़ती है।”
देवराज चौहान ने कश लेकर सिगरेट ऐश-ट्रे में डाल दी।
“मुझे नहीं मालूम था कि बात यहां तक की है।” बसई ने धीमे स्वर में कहा।
जीवन पाल भारी तौर पर व्याकुल था और बार-बार पहलू बदलने लगा।
“ये बात किसे मालूम है कि तुम्हारी बेटी का अपहरण हुआ पड़ा है ।”
“कोई भी नहीं जानता ।”
“तुम्हारे दोनों आदमी और तुम्हारी पत्नी…।”
“वो भी नहीं जानते। मेरे अलावा दो से मैंने बारी-बारी बात की। परंतु वो दोनों मारे गए। तुम लोगों ने उन्हें मार दिया।” जीवन पाल धीमे स्वर में शब्दों पर जोर देकर कह उठा ।
“तुम्हारी पत्नी मीरा पाल, आशाराम या प्रमोद सिंह को शक हो गया होगा कि रोनिका का अपहरण हो चुका…।”
“नहीं ।” जीवन पाल ने बात काटकर विश्वास भरे स्वर में कहा-“किसी को भी इस बात का शक नहीं हो सकता। मैंने होने ही नहीं दिया। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि बात बाहर निकलने का मतलब है रोनिका की जान को खतरा । अपहरणकर्ता नहीं जानते कि बात फैले। पुलिस तक पहुंचे। बात फैली तो रोनिका की जान को खतरा हो सकता है। इसलिए मैंने बात को बाहर नहीं निकलने दिया ।”
कुछ पलों के लिए वहां चुप्पी छा गई।
“मैं अपनी बेटी को खोना नहीं चाहता।” कहते हुए जीवन पाल की आंखें गीली हो गई ।
“रोनिका का अपहरण करने वाले दौलत चाहते हैं ?”
देवराज चौहान ने पूछा ।
“हां।”
“तुम दौलत देने को तैयार हो ?”
“तैयार क्या-“मैंने तो दौलत तैयार रखी हुई है।”
“हूँ।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा- “तुम्हारी बेटी वापस नहीं लौटे तो किसे फायदा है ?”
“मेरी पत्नी को फायदा है। मेरी दूसरी बेटी को फायदा है कि उसके हिस्से की दौलत उनमें बंट जाएगी।” जीवन पाल ने कहा-“ लेकिन मेरे पास इतनी दौलत है कि पैसे के लिए कोई भी ये काम नहीं करेगा।”
“अपहरणकर्ता से तुम्हारी बात होती है ?”
“हां।”
“अब तुम क्या चाहते हो ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“मैं अपनी बेटी को वापस पाना चाहता हूं। मेरी बेटी को वापस ला दो। मुझे किसी ऐसी हिम्मती इंसान की जरूरत है जो उन लोगों की मांगी रकम उनके हवाले करे और रोनिका को उनसे ला दे ।”
“हम कर देंगे ये काम ।” जगमोहन ने फौरन कहा– “खतरे वाला काम है। कोई बात नहीं। कर देंगे तेरे को दुखी नहीं देख सकते। लेकिन इस खतरे से भरे काम कर देगा क्या। हमारे काम की कीमत कुछ ज्यादा ही होती है।”
चंद पलों की चुप्पी के बाद जीवन पाल ने कहा ।
“काम खतरे वाला तो है। लेकिन इतना ज्यादा नहीं कि इस काम की खास कीमत तय की जाए।”
“बेवकूफी वाली बात मत करो ।जगमोहन ने सिर हिलाया-“कैसे खतरे वाला वाला काम नहीं है। हम तेरी बेटी को छुड़ाने के लिए, पैसे लेकर जाएं और वो पैसे लेकर हमें खत्म कर…।”
“क्या चाहते हो तुम?” जीवन पाल ने टोका ।
“तुमने कितना सोचा था देने को?”
“मैंने?”
“हां इस काम के लिए तुम दो से बात कर चुके हो। रकम की बात भी होगी।
“दस लाख।”
“दस लाख । बस।” जगमोहन ने मुंह बनाया-“ये हमारे बस का नहीं है।”
“क्या मतलब ।”
जगमोहन अपनी जगह से उठा और आगे बढ़कर जीवन पाल के कंधे पर हाथ रखा ।
“इधर आ । "
जीवन पाल को एक कोने में ले गया ।
“अच्छी तरह सुन ले मेरी बात। फिर तेरे को लगेगा कि मैं ठीक कह रहा हूं कि ये काम हमारे बस का नहीं है । दस लाख तू गली छाप दादाओ को दे रहा है। देवराज चौहान और गली छाप में कितना फर्क है ।”
“बहुत ज्यादा।”
“ठीक कहा तूने। बहुत ज्यादा फर्क है तो तू उठाई गिरों को हमसे मिला रहा है। जो उन्हें दे रहा था।वो कीमत तू हमें दे रहा है।” जगमोहन ने मुंह बनाया-“ये तो शराफत है देवराज चौहान की की जोरदार चांटा तेरे को नहीं मारा । दस लाख की तो तूने उसकी उसकी इज्जत खराब कर दी, दस लाख देने की बात कह कर।”
जीवन पाल से कुछ कहते ना बना।
“फिक्र मत कर ।” जगमोहन ने उसका कंधा थपथपाया-“हम यूं भागने वाले नहीं। तेरा काम करके ही जाएंगे। काम की रकम ठीक बोल। सारी रकम एडवांस में हमारे हवाले कर, फिर देख कैसे फटाफट तेरा काम होता है और तेरी बेटी रोनिका फौरन तेरे पास होगी।”
“क्या दूं ?” जीवन पाल के होठों से निकला।
“पचास।”
“अबे पचास लाख कह रहा हूं। तेरी जान तो नहीं मांग रहा। बेटी को वापस पाने का सौदा कितने में किया ?”
“छः करोड़ में ।”
“छः करोड़ उन्हें दे सकता है तो पचास लाख हमें क्यों नहीं। जब कि हमने तो तेरी बेटी को ठीक-ठाक लाकर तुम्हारे हवाले करना है। ढेर सारी दौलत है तेरे पास। पैसा ज्यादा बड़ा होता है या औलाद ।”
“मैं…मैं अपनी बेटी को बहुत प्यार करता हूं। वो…।”
“प्यार करता होता तो पचास लाख देने से मना नहीं करता ।”
“मैंने कब मना किया है।”
“ओह। सच में तूने मना तो नहीं किया नहीं ।ठीक है। पूरी रकम एडवांस में लेंगे। आधी पहले-बाद वाला काम हम नहीं करते।”
जीवन पाल ने कहना चाहा कि अभी पचास लाख कर उसने हां नहीं कि ।
“उन लोगों को देने वाले छःकरोड़ तैयार हैं ? ” जगमोहन ने जल्दी से पूछा की।
“तैयार रखें…।”
“ठीक है। साथ में पचास लाख हमारी भी दे दे।” जगमोहन पलट कर देवराज चौहान से बोला-“लेन-देन की बात मैंने तय कर ली है। बाकी काम क्या है, कैसा होगा। तय कर लो।”
दो पल के लिए तो हक्का-बक्का रह गया जीवन पाल । फिर गहरी सांस लेकर रह गया ।
“कितने में मामला तय हुआ ? ” बसई बोला ।
“चुप कर। तेरा चुग्गा मिल जाएगा।”
बसई ने फौरन फोन बंद कर लिया।
देवराज चौहान ने जीवन पाल को देखा ।
“किसके पास तुम्हारी बेटी ?”
“कुछ समझ में नहीं आता। ” जीवन पाल ने दोनों हाथ अपने चेहरे पर रगड़े-“रोनिका पहले सोनू भाटिया के कब्जे में थी। उससे बात हो रही थी कि अब मुखिया नाम का आदमी मेरे से बात करने लगा कि रोनिका उसके कब्जे में है। सौदा उसने छः करोड़ का ही रखा। इससे पहले मुझे एहसास हो रहा है कि रोनिका ज्यादा खतरे में है। वो दौलत की खातिर खतरनाक लोगों का मोहरा बन रही है।” ऐसे में कभी भी उसकी जान जा सकती है।”
“रकम लेकर तुम क्यों नहीं गए अपनी बेटी को लेने।” देवराज चौहान बोला-“देर क्यों कर रहे हो ?”
“मजबूरी है। सावधानी इस्तेमाल करनी पड़ रही है। मुझ पर और मेरे खास आदमियों पर केशोपुर के लोग नजर रखते हैं कि उन्हें मेरी कोई बात पता चले और उस बात को उछाल कर मेरी छवि खराब की जा सके। आने वाले चुनावों में मैं खड़ा हो रहा हूं और मेरे खिलाफ अखबार का मालिक सुदर्शन सेठी खड़ा हो रहा है। वो इस बात की पूरी कोशिश कर रहा है कि किसी बात को लेकर मेरी बदनामी हो और मेरी छवि खराब हो जाए। यही वजह है कि रोनिका के मामले में मैं ऐसा आदमी इस्तेमाल करना चाहता था कि जो केशोपुर के बाहर का हो और चुपचाप मेरा काम पूरा करके चला जाए। इस बात का जिक्र किसी से भी ना करें।”
“ये परेशानियां तुम्हारी है। इससे हमारा कोई मतलब नहीं।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा-“अगर तुम्हारी बेटी सही सलामत है तो, हम उसे लाकर तुम्हारे हवाले कर देंगे।”
जीवन पाल ने आंखें बंद करके गहरी सांस ली।
“रोनिका से तुमने बात की ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“नहीं ।” जीवन पाल ने आंखें खोली ।
“क्यों ?”
“मैंने उससे कहा था कि बेटी से बात कराओ लेकिन मुखिया ने बात कराने से मना कर दिया। बोला लेन-देन आमने सामने होगा। बात की कोई जरूरत नहीं।” जीवन पाल के चेहरे पर थकान के भाव आ गए।
देवराज चौहान और जगमोहन की गंभीर निगाहें मिली ।
“ये भी हो सकता है कि उन्होंने रोनिका को मार डाला हो।” जगमोहन गंभीर स्वर में कह उठा ।
जीवन पाल ने दांत भींच लिए ।
देवराज चौहान ने जीवन पाल को देखा ।
“तुम्हें कैसे पता चला कि तुम्हारी बेटी का अपहरण कर लिया गया है।”
“अपहरणकर्ता का फोन आया था। असली तसल्ली के लिए उसके बाद मैंने मुंबई में रोनिका से बात करने की कोशिश की। वहां मौजूद अपने आदमी से कहा कि वो रोनिका का पता लगाये। परंतु उसकी खबर नहीं मिल पाई कि वो कहां है। तब मुझे विश्वास हो गया कि उसका अपहरण कर लिया गया है।”
“रोनिका है कहां ?”
“रथपुर में ?”
“मुखिया भी वही का है ?”
“हां, ये बात तो उसने अपने मुंह से कही है। उसकी बातों से स्पष्ट लगता है कि बहुत खतरनाक आदमी है वो। मैं उसके कब्जे से अपनी बेटी को निकला देखना चाहता हूं।”
“पैसे वो नोटों में मांग रहा है ?”
“नहीं । हीरों के रूप में।”
“उसे पता कैसे चलेगा कि तुमने पैसे देकर किसी को रथपुर भेजा है ?”
“उसने कहा था कि उसके आदमी केशोपुर में मौजूद रहकर, मुझ पर नजर रख रहे हैं। जब वो किसी को भेजेगा तो उसे खबर मिल जाएगी।” जीवन पाल के दांत भिंच गए। वो मजबूर सा दिखाई देने लगा-“इस कारण में अपनी मर्जी से कोई काम नहीं कर पा रहा। उसके खिलाफ तो कुछ कर ही नहीं सकता।”
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई और कश लेकर सोच भरे स्वर में बोला।
“अपनी बेटी की तस्वीर और छः करोड़ के हीरे दे दो । रथपुर कहां जाना है। वो बता दो।”
“रथपुर पहुंचने का कोई ठिकाना मुझे नहीं मालूम। मुखिया कहता है कि मैं अपने आदमी को हाथ छः करोड़ के हीरे भेंजू बाकी का काम वो रास्ते में संभाल लेगा।”
“ये बात मेरी समझ से बाहर है कि ठिकाना मालूम नहीं और छः करोड़ कि हीरे लेकर चल पड़े।”
जीवन पाल होठं भींचे देवराज चौहान को देखता रहा ।
“वो जानता होगा कि हीरे पास में है।” जगमोहन बोला-“वो हमसे हीरे छीनने की चेष्टा कर सकता है। ”
देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया । फिर जीवन पाल से बोला ।
“और जो भी बताना चाहते हो बता दो। हम आज रात ही रथपुर के लिए निकल जाएंगे।”
“छः करोड़ के हीरों के साथ, पचास लाख भी दे देना।” जगमोहन बोला ।
“और जाने से पहले तुम मेरा चुग्गा…।” बसई कह उठा।
“सब्र कर। गर्म बर्तन में चोंच मारने की कोशिश मत कर।”
“देवराज चौहान। छः करोड़ के हीरों से मन में बेईमानी भी आ सकती है।” जीवन पाल बोला ।
“इतना भरोसा तो तुम्हें किसी ना किसी पर करना ही पड़ेगा।” मुस्कुरा पड़ा देवराज चौहान ।
“चिंता मत कर जीवन पाल।” जगमोहन बोला-“पचास लाख में इस बात की भी गारंटी है कि हमारी तरफ से तेरे साथ कोई हेराफेरी नहीं होगी।पच्चीस का पचास हम ले लें। वो अलग बात है। लेकिन धोखेबाजी का खाता हमारे यहां नहीं खुलता। ईमानदारी से काम करते हैं हम।”
जीवन पाल हर वो बात बताने लगा जो सोनू भाटिया और मुखिया से हुई थी।
■■
“ये बात मेरी समझ से बाहर है कि सोनू भाटिया ने छः करोड़ की डिमांड रखी।” जगमोहन ने कहा- “फिर अचानक ही सोनू भाटिया मामले से हट गया और मुखिया सामने आ गया।”
“इसका एक ही मतलब है कि रोनिका सोनू भाटिया के हाथों से निकलकर मुखिया नाम के आदमी के हाथ लग गई। उसे इस बात की पूरी जानकारी थी कि भाटिया, रोनिका को लेकर क्या सौदेबाजी कर रहा है।” देवराज ने कहा-“उसने भाटिया वाली ही सौदेबाजी कायम रखी। छः करोड़ से रकम कम करने का तो मतलब ही नहीं था। मुखिया ने रकम को ज्यादा इसलिए नहीं किया कि कहीं सौदा बिगड़ ना जाए।”
“यही बात होगी।” बसई ने फौरन सिर हिलाया ।
“छः करोड़ के हीरे कहां है ? ” जगमोहन ने पूछा ।
“दूसरे कमरे में रखे हैं।”
“आओ। वो हीरे ले आए।” जगमोहन ने दरवाजे की तरफ चलने का इशारा किया।
दोनों कमरे से निकल गए ।
देवराज चौहान ने कश लिया ।
“इसकी बेटी को वापस लाना खतरे से भरा काम है।” बसई बोला।
“ये काम खतरे वाले ही होते हैं।”
“इस काम में ज्यादा खतरा ही लग रहा है।”
देवराज चौहान ने बसई को देखा फिर सोच भरे ढंग से सिर हिला दिया ।
“रोनिका, भाटिया के पास है या मुखिया के पास। ये बात स्पष्ट नहीं हो रही। रथपुर पहुंचकर हालत सामने आएगें।” देवराज चौहान कह उठा-“जीवन भी अभी हालातों से पूरी तरह वाकिफ नहीं लगता ।
तभी जगमोहन और जीवन पाल ने भीतर प्रवेश किया ।
हाथ में छोटा सा काला ब्रीफकेस था ।
“छः करोड़ के हीरे ब्रीफकेस में है। ” जगमोहन ने देवराज चौहान से कहा-“लेकिन हमें मिलने वाला पचास लाख अभी यहां नहीं है। ये कहता है दो घंटे में पचास लाख ला देता है।”
“पचास लाख काम के बाद ले लेंगे।” देवराज चौहान ने कहा।
“लेकिन…।” जगमोहन ने कहना चाहा।
“बाद में लेना ही ठीक है। ये अब लेने गया तो किसी को शक पड़ सकता है कि कुछ हो रहा है।”
जगमोहन ने देवराज चौहान का मतलब समझा ।
“शाम के छः बज रहे हैं । हमारा केशोपुर से निकल लेना ठीक रहेगा।
जगमोहन ने गहरी सांस ली। कहा कुछ नहीं ।
“मेरा चुग्गा बाद में…?” बसई ने जगमोहन को देखा ।
“चुप कर।” जगमोहन तीखे स्वर में बोला- “पहले हांडी तो चूल्हे पर चढ़ लेने दे।”
फार्म हाउस के बंगले के एक कमरे में देवराज चौहान और जगमोहन इस बारे में बातचीत करते रहे कि इस काम को, आने वाले वक्त में कैसे अंजाम देना है।
फिर अंधेरा होते ही छः करोड़ के हीरों के साथ योजना के मुताबिक केशोपुर से रथपुर जाने की तैयारियां करने लगे। चलने के वक्त जगमोहन ने ब्रीफकेस खोला। दो नीली थैलियों में हीरे भरे पड़े थे । जगमोहन के उठा ।
“हीरें देख लिए हैं। असली है और छः करोड़ का माल है।”
जगमोहन ने ब्रीफकेस में रखी तस्वीर उठाई। जो कि उस वक्त उल्टी पड़ी थी ।
“ये जीवन पाल की बेटी रोनिका की तस्वीर है।”
तस्वीर देखते ही देवराज चौहान चौका । चेहरे पर अजीब से भाव आकर गए ।
“क्या हुआ ? ” उसके चेहरे पर फैले भावों को देखकर जगमोहन के होठों से निकला ।
“ये जीवन पाल की बेटी रोनिका है?”
“हां। लेकिन ये सवाल तुमने क्यों किया?”
“इससे दस-बारह दिन पहले मेरी मुलाकात हो चुकी है।”
“कहां?”
“मुंबई में। कुछ लोग इसकी जान लेने वाले थे । मैंने बचाया इसे।” देवराज चौहान की निगाह तस्वीर पर टिकी हुई थी-“तब इसे सुरक्षा की जरूरत थी। लेकिन उस वक्त मेरे पास इसके लिए वक्त नहीं था। ये तब की बात है, जब मैं उस जगह पर जा रहा था, जहां दास के बेटे की वापसी का सौदा होना था।”
“समझा ।”
“इसके पास टेप लगा लिफाफा था, अपने साथ-साथ ये उस लिफाफे को भी बचाना चाहती थी।” देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के सख्त भाव नाच रहे थे-“मतलब कि ये किसी ऐसे दुश्मन के हाथ लग गई, जो इसे रथपुर ले गया और फिर जीवन पाल से फिरौती की रकम मांगने लगा। लेकिन उस वक्त ये मामला फिरौती का नहीं था। रोनिका को जान से खत्म कर देना चाहते थे वे लोग। ऐसे में अपहरण का किस्सा बीच में कैसे आ गया।”
जगमोहन होंठ सिकोड़े देवराज चौहान को देखता रहा।
“इस बात का जवाब रथपुर पंहुचकर ही मिलेगा।” देवराज चौहान ने उसे देखा-“जो मैंने समझाया है, उसी ढंग से ही इस मामले में आगे बढ़ना है। रथपुर में कई तरह के खतरे हमारे सामने आ सकते हैं।”
■■
मीरा पाल नहा-धोकर बाहर निकली। आधे शरीर पर लंबा टॉवल लिपटा था। इस उम्र में भी उसका जिस्म देखने के लायक था। अपने से दस बरस की औरतों को मात कर रही थी। उसने गीले बालों को झटका दिया और गीले पांव फर्श पर रखती हुई फोन की तरफ बढ़ी।
लेखा के जाने के बाद वो बाथरूम में गई थी ।
चारों तरफ से शांति पा लेने के बाद भी लेखा जाने को तैयार नहीं था। मीरा पाल ने का कठिनता से लेखा को भेजा था। लेखा ने सच में उनके पूरे बदन को तोड़ डाला था ।
मीरा पाल ने रिसीवर उठाकर नंबर मिलाया। तुरंत ही बात हो गई।
“हैलो।” मर्द का का शांत स्वर कानों में पड़ा ।
“सेठी ।”
“ये सुदर्शन सेठी था। रथपुर की हस्ती था। यहां के सबसे बड़े अखबार का मालिक था जिसके बारे में जीवन पाल का दबे स्वर में कहना था कि वो उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा है कि उसके खिलाफ ऐसी कोई बात मिले कि जिसे अखबार में छाप कर उसका नाम बदनाम कर सके कि आने वाले चुनावों में उसकी हार हो।”
“कहो उस दूसरे आदमी का क्या हुआ?”
“देवराज चौहान ने उसे शूट कर दिया।”
“गुड । कमाल का बंदा है देवराज चौहान भी।” सुदर्शन सेठी के हंसने की आवाज आई-“बढ़िया काम करता है।”
“जीवन पाल ने अब तीसरे बंदे का इंतजाम करने का ख्याल छोड़ दिया है। मीरा पाल ने कहा ।
“ये कैसे हो सकता है ?”
“यही तो मैं सोच रही हूं कि…।”
“मीरा। जीवन पाल की बेटी रथपुर में किसी के पंजे में है। रोनिका से बहुत प्यार करता है वो। रोनिका को पाने के लिए अपनी दौलत लुटा सकता है और तुम कहती हो कि रथपुर भेजने के लिए अब वो किसी आदमी का इंतजाम नहीं करेगा।”
“जीवन पाल ने यही कहा है।”
“जीवन पाल को तुम पर आशाराम या प्रमोद पर शक हो रहा होगा कि तुम तीनों में से ही कोई बीच की बातें हत्यारे तक पहुंचा रहा है। उसकी बातें बाहर जा रही है। ऐसे में ये बात कह कर उसने तुम तीनों को अपने से दूर किया है कि वो जो भी अब करेगा। खुद ही करेगा।” सुदर्शन सेठी की आवाज आई।
“तुम्हारा कहना ठीक हो सकता है।” मेरा पाल ने गंभीरता से सिर हिलाया-“क्योंकि जाने क्यों जीवन पाल खुद फार्म हाउस पर ही रह गया और बाकी सब को वहां से भेज दिया यहां तक कि गनमैनों को भी भेज दिया।”
“इसका मतलब वो कुछ करने जा रहा है।” सुदर्शन सेठी की तेज आवाज कानों में पड़ी ।
“मेरा भी ऐसा ही ख्याल है।” मीरा पाल के दांत भिंच गए
दो पलों तक लाइन पर खामोशी रही।
“लेखा क्या कर रहा ?” सेठी की आवाज आई।
“वो पूरी तरह मेरे कब्जे में है।” मीरा पाल के भिंचे स्वर में जहरीलापन आ गया ।
“लेखा के हाथों, जीवन पाल को खत्म करवा दो। बाकी के मामले निपट लेंगे।”
“जीवन पाल को खत्म करना, लेखा के लिए मामूली काम है। लेखा कहीं भी आ-जा सकता है।”
“बोलो लेखा को ।”
“उसके बाद रोनिका का क्या करना है ?” मीरा पाल की आंखों में वहशी भाव दिखाई देने लगे।
“उसे भी खत्म करना पड़ेगा। मैं अपने आदमी भेज देता…।”
“मेरे ख्याल में रोनिका को खत्म करने का काम भी लिखा से करवा लें। रोनिका जानती है कि लेखा उसके पापा का खास आदमी है। वो उसे देख कर भागेगी नहीं। यही सोचेगी कि लेखा को उसके पापा ने भेजा है। ऐसे में लेखा आसानी से रोनिका को मौत की नींद सुला सकता है।”
“रोनिका से लिफाफा लेना है।”
“समझा दूंगी लेखा को ।”
“जीवन पाल और रोनिका के कत्ल करने के लिए लेखा मान जाएगा ?”
“इसके लिए तो मेरा इशारा ही बहुत होगा और वो काम कर देगा।” मीरा पाल ने कड़वे स्वर में कहा- “वो मेरे शरीर के लटके झटके तुमने बहुत अच्छी तरह देखे हैं सेठी । उसके बाद बच सके हो मेरे से।”
सुदर्शन सेठी के हंसने की आई।
“इतनी हिम्मत कहां से बचने की सोचूं।”
“वही सब, लेखा भी देख चुका है। उम्र बीस बरस है उसकी। उसे ज्यादा अच्छा लगा होगा।”
“नागिन हो ।”
“मीठा जहर है मेरा। खाना भी जरूरी और मरना भी जरूरी। लेखा से बात करके तुम्हें बताऊंगी।” कहने के साथ ही मीरा पाल ने रिसीवर रख दिया।
लेखा ने अपने शांत चेहरे पर हाथ फेरा और मीरा पाल को देखा।
“मालिक को आज रात ही खत्म कर दूंगा।” लेखा ने कहा-“इस तरह मारूंगा कि उसकी मौत आत्महत्या लगे।”
“यही तो मैं चाहती हूं।” मीरा पाल ने गहरी सांस ली और उससे सट गई ।
“मेरे को क्या मिलेगा, इस काम का ?”
“तुम्हें ?”
दोनों कई पलों तक एक दूसरे की आंखों में देखते रहे ।
एकाएक मुस्कुराई मीरा पाल ।
“सब कुछ तो तुम्हें दे दिया। बचा क्या है आर देने को ? ”
“मालिक की मौत के बाद आप शादी नहीं करेंगी। मेरे साथ ही प्यार करेंगी।” लेखा ने सपाट स्वर में कहा ।
“मंजूर।”
“मालिक का सारा पैसा आपको मिलेगा। पचास लाख मुझे दे देना।”
“ये भी मंजूर।”
“आज रात मालिक आत्महत्या कर लेंगे।” लेखा ने उसी भाव में कहा और बाहर निकल गया ।
मीरा पाल के चेहरे पर मौत भरी मुस्कान आ ठहरी।
“औरत और दौलत।” खतरनाक स्वर में वो बड़बड़ा उठी-“जो करादे दे, वो ही कम है।”
■■
देवराज चौहान और जगमोहन, हीरों वाले ब्रीफकेस के साथ रथपुर के लिए वहां से चले गए ।
बसई को साथ नहीं लिया उन्होंने। फार्म हाउस पर जीवन पाल और बसई ही रहे ।
“तुम भी जाओ।” जीवन पाल ने गंभीर स्वर में कहा-“अब यहां तुम्हारी जरूरत नहीं।”
बसई सोच चुका था कि उसे क्या करना है। जगमोहन ने पचास लाख में से उसे जो चुग्गा देना था, उससे ज्यादा वो वैसे ही बना सकता था।
“ये जानने की तो जरूरत होगी कि किसने, तुम्हारे काम में रूकावट डालने के लिए, देवराज चौहान को तुम्हारे खिलाफ खड़ा किया। कौन नहीं चाहता कि तुम अपना काम पूरा करो।”
बसई जहरीले स्वर में बोला।”
“कौन है वो जीवन पाल के होठों से निकला। आंखें सिकुड़ गई ।
“ऐसा नहीं । ये सवाल कीमती है।”
“ चाहिए तुम्हें ? ” जीवन पाल बेसब्र हुआ जा रहा था।
बसई ने उसकी बेसब्री को पहचाना ।
“अगर जवाब अब लेना है तो बीस लाख। दस दिन बाद जवाब चाहिए तो दस लाख लूंगा।”
“जवाब अभी चाहिए।” जीवन पाल का सख्त हो गया-“और दस लाख दूंगा।”
“बीस लाख।”
“दस लाख,जरा से काम के लिए बहुत ज्यादा है।”
“निकालो। दस सामने रखो जवाब लो।”
“यहीं रुको।” कहने के साथ ही तेज-तेज कदमों से जीवन पाल बाहर निकलता चला गया ।
दस मिनट बाद वापस आया और एक बड़ा सा लिफाफा टेबल पर रखा ।
“दस लाख है।”
बसई फौरन आगे बढ़ा और लिफाफा खोल कर देखा ।
नोटों की गड्डियां लिफाफे में भरी पड़ी थी बसई की आंखों में चमक आ गई।
“गिनने की जरूरत नहीं, पूरे हैं। बताओ वो कौन है, जिसने देवराज चौहान से हत्याएं करवा कर मेरे काम में रुकावट डाली।”
“तुम्हारी पत्नी मीरा पाल।”
“क्या ?” जीवन पाल अचकचाया।
“मेरी बात पर विश्वास करना तुम्हारा काम है।” बसई लिफाफा संभालते हुए कह उठा-“साथ में छोटी सी सलाह दूंगा कि अभी चुप रहने में ही समझदारी है। तुम्हारी पत्नी जाने के चक्कर में है। देवराज चौहान तुम्हारी बेटी को लेने गया है। रोनिका को सही-सलामत वापस घर जाने दो। उसके बाद ही अपनी पत्नी से बात करना। कहीं ऐसा ना हो कि तुम्हारी कोई हरकत तुम्हारी बेटी की दुश्मन बन जाए।”
जीवन पाल के दांत भिंच गए।
“चलता हूं।” बसई ने नोटों का लिफाफा संभाला और बाहर निकल गया। वो खुश था कि आसानी से कमा लिया। वरना जगमोहन ने तो पचास लाख में से दस लाख भी उसे नहीं देना था।
फार्म हाउस के एक तरफ खड़ी कार में उसने नोटों वाला लिफाफा रखा और अगली सोच पर चलते हुए उसने मोबाइल निकाल कर मीरा पाल को फोन किया।
“हैलो।” मीरा पाल की आवाज कानों में पड़ी।
“मैडम । बसई बोल रहा हूं।”
“मालूम किया, जीवन फार्म हाउस पर किससे मिला ?”
“बोलो।”
“मैडम । खबर महंगी है।”
“क्या मतलब ?”
“मतलब कि जो आपको बताऊंगा, वो आपके बहुत काम की बात है और मुझे पैसे की सख्त जरूरत है।” बसई ने शांत स्वर में कहा-“किसी का उधार चुकाना है मुझे।”
“क्या चाहिए ? ” मीरा पाल के स्वर में सख्ती आ गई ।
“दस लाख लूंगा।अगर मेरी बात बेकार लगे तो सारा दाम उसी वक्त वापस ले लेना।”
“इस वक्त मेरे पास इतने पैसे नहीं है।” मीरा पाल का उखड़ा स्वर कानों में पड़ा ।
“जेवरात तो होंगे वहीं ले आओ।”
“कहां ?”
बसई ने बताया कहां आना है और फोन बंद कर दिया।
■■
“क्या ?” मीरा पाल का मुंह खुला का खुला रह गया। बसई ने शांत भाव में दस लाख के जेवरातों वाले लिफाफे को संभाल रखा था। जेवरातों को एक नजर देखा था और यही सोचा कि के पूरे नहीं तो,सात-आठ के जेवरात तो होंगे ही।
“तुम्हारा मतलब कि देवराज चौहान अब, जीवन के लिए काम कर रहा है।” मीरा पाल के होठों से निकला ।
“मनाही तो है नहीं देवराज चौहान को, कोई काम करने को।” बसई ने धीमे स्वर में कहा-“आपने तो उससे काम ले लिया था। देवराज चौहान रथपुर गया है, जीवन पाल की बेटी रोनिका को लेने।”
सड़क के किनारे अंधेरे में फैली मध्यम-सी रोशनी में मीरा पाल के चेहरे पर गुस्सा और हड़बड़ाहट के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे।
“मैंने सोचा ये बात आपको मालूम हो जाए तो अच्छा रहेगा। इसलिए बता दी। चलता हूं, किसी को उधार चुकाने का वायदा किया है, आज। वो इंतजार कर रहा है।” कहने के साथ जेवरातों वाला लिफाफा थामे कार में बैठा और कार आगे बढ़ा दी।
पांच लाख पहले लिया था मीरा पाल से। दस, जीवन पाल से। दस के करीब के जेवरात कुल पच्चीस लाख बना लिया था उसने कुत्ते- बिल्ली के झगड़े में।
“ये क्या कह रही हो मीरा-“सुदर्शन सेठी का तेज स्वर कानों में पड़ा-“देवराज चौहान जीवन पाल के लिए रोनिका को लेने रथपुर गया है। बहुत बुरी खबर सुनाई तुमने।”
“अगर देवराज चौहान ने रोनिका को बचा लिया तो हम दोनों तबाह हो जाएंगे।” मीरा पाल दांत भींचे कह उठी।
“सच कहती हो। सब कुछ खत्म हो जाएगा।”
“कुछ करो सेठी। मैं…।”
“क्या करूं। कुछ समझ में नहीं आता।” सुदर्शन सेठी का दरिंदगी भरा स्वर कानों में पड़ा- “अब तो यही रास्ता है कि कुछ लोगों को रथपुर भेजा जाए जो देवराज चौहान को भी खत्म करें और रोनिका को भी और उससे वो सामान ले लें। रोनिका के पास मौजूद लिफाफा हमें मिल जाए तो हमारी सारी परेशानियां दूर हो जाएं। परंतु…?”
“परन्तु क्या ?”
“मेरे पास इस वक्त फौरन ऐसा आदमी नहीं है जिसे इस काम के लिए रथपुर भेज सकूं। ये काम फौरन होना चाहिए।”
मीरा पाल के दांत भिंच गए ।
“सेठी, वक्त कम है। हम दोनों तलवार की धार पर खड़े हैं।” मीरा पाल के होठों से सर्द स्वर निकला।
“ठीक कहती हो तुम ? तुम…तुम इस काम के लिए लेखा को इस्तेमाल करो।”
“लेखा ?”
“हां, वो रथपुर जाकर सब ठीक कर देगा।”
“वो तो जीवन पाल को खत्म करेगा अब और…।”
“जीवन पाल मर गया तो लेखा का यहां रहना भी जरूरी होगा। पुलिस हर उस आदमी को चैक करेगी, जो बंगले पर रहता है। ऐसे में लेखा का रथपुर जाना, उसे शक में ला खड़ा कर सकता है।”
“समझी। जीवन पाल की हत्या के लिए लेखा को रोककर, उसे रथपुर भेजती हूं। जीवन पाल को फिर भी मारा जा सकता है।”
“यही मैं कहना चाहता हूं। तुम फौरन लेखा से बात करो। कहीं वो जीवन पाल को मारना दें।
“यहां से सीधा बंगले पर जाती हूं। शायद जीवन पाल अभी ना लौटा हो।”
कार को पंख लगा कर मीरा पाल बंगले पर पहुंची। अंधेरा कब का हो चुका था। मन में था कि कहीं लेख ने जीवन पाल की हत्या न कर दी हो।
परंतु सब ठीक पाकर उसने चैन की सांस ली ।
कुछ पहले ही जीवन पाल लौटा था और नहाकर हटा था उसके चेहरे पर उभरी सोच और गंभीरता स्पष्ट नजर आ रही थी ।
“आ गए आप ।” मीरा पाल ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा-“फार्म हाउस पर क्यों रुक गए थे ?”
“यूं ही ।” जीवन पाल का सामान्य स्वर गंभीर था-“कुछ देर के लिए एकांत चाहता था। परंतु उसकी आंखों में मीरा पाल के प्रति नफरत के भाव थे ।
“अब आप मुझसे भी बात छुपाने लगे हैं।” मीरा पाल के लहजे में शिकायती भाव आ गया ।
“ऐसा कुछ नहीं।” जीवन पाल ने अनमने भाव में कहा।
“आखिर आप मुझे बताते क्यों नहीं कि किस काम के लिए आपको आदमी की जरूरत है।”
“ये बातें तुम्हारे काम की नहीं है।” जीवन पाल मुस्कुराया-“मेरी परेशानियां मेरे लिए रहने दो।”
“मैं आपकी पत्नी हूं और आप पराया समझते हैं मुझे की…।”
“गलत मत कहो तुमसे करीब और है ही कौन ? छोड़ो इन बातों को।” जीवन पाल ने कुर्सी पर बैठते हुए सिगरेट सुलगाई-“किचन में देखो। क्या तैयार हो रहा है डिनर में। आज हम साथ ही डिनर करेंगे।”
“अच्छी बात है। आप आराम कीजिए। थके लग रहे हैं।” मीरा पाल ने कहा और पलट कर बाहर निकल गई।
जीवन पाल के चेहरे पर नफरत के स्पष्ट भाव झलके। नजरें खुले दरवाजे पर टिकी रही, जहां से मीरा पाल बाहर गई थी। आंखों में जहर के भाव आ ठहरे थे ।
गैलरी में लेखा आता दिखा दो उसे इशारे से कमरे में आने को कहा ।
लेखा, मीरा के कमरे में पहुंचा ।
“आपका काम हो जाएगा मालकिन ।” लेखा ने सपाट स्वर में कहा ।
“अभी ये काम नहीं करना।” मीरा पाल ने धीमे स्वर में कहा ।
लेखा ने सहमति से सिर हिला दिया ।
“तुमने पूछा नहीं कि मैंने तो मना किया।”
“पूछने की क्या जरूरत है।” लेखा के सपाट चेहरे पर शांत सी मुस्कान उभरी-“आपने कहा कि काम करना है तो मैंने हां कर दी। आपने कहा नहीं करना है तो मैंने मान लिया।”
“पूरी बात मानते हो मेरी ?” मीरा पाल अदा से मुस्कुरा पड़ी ।
लेखा कि निगाह उसके जिस्म और फिरी।
“जो मेरा ध्यान रखता है। मैं उसका पूरा ध्यान रखता हूं।” लेखा के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था ।
मीरा पाल दो कदम करीब आई और धीमे स्वर में बोली।
“इस काम से पहले बहुत जरूरी काम करना है। करोगे लेखा ? ”
“हुकुम कीजिए मालकिन।”
“रथपुर जाना है तुमने। खतरे वाला काम है। मेरी खातिर तुमने हर हाल में पूरा करना है।”
लेखा मीरा पाल को देखता रहा।
“मैं तुम्हें वो बातें बताती हूं, जो तुम जानते नहीं।” कहने के साथ ही मेरा पाल ने लेखा को बताया कि रोनिका का अपहरण हो चुका है। कैसे उसने देवराज चौहान को बुलाया और…।सारी बात बताई ।
सुनने के बाद लेखा शांत-सा खड़ा, मीरा पाल को देखता रहा।
“बात समझे?”
“सब समझ गया।” लेखा के होंठ हिले ।
“तुमने पूछा नहीं कि मैंने क्यों देवराज चौहान से कहा कि जीवन जिस आदमी का इंतजाम करें, उसे खत्म कर दे। जबकि रोनिका को वापस लाने के लिए…।”
“आप जो कर रही हैं। ठीक कर रही हैं मालकिन। मैं आपके साथ हूं।”
“फिर भी तुम्हें बताती हूं क्योंकि अब सारा मामला तुमने संभालना है।” मीरा पाल भिंचे गंभीर धीमे स्वर में कहा-“दरअसल रोनिका के पास एक लिफाफा है। वो लिफाफा,रोनिका जीवन पाल के हवाले करना चाहती है। अगर ऐसा होगा तो बहुत बुरा हो जाएगा, मेरे लिए।”
“समझ गया।” लेखा के होंठ हिले।
“तो अब क्या करोगे?”
“जो आप कहेंगी।”
मीरा पाल ने लेखा की आंखों में देखा फिर उसके करीब आ गई। लेखा शांत खड़ा रहा। वो पंजों के बल ऊपर हुई और लेखा के होंठो पर हाथ रख दिए। लेखा ने उसकी कमर में बाहें डाल ली।
“दरवाजा खुला है।” मीरा पाल फुसफुसाई।
“मालिक भी बंगले में है।” लेखा का स्वर सपाट था।
“रोनिका को खत्म करना है लेखा। उसके बाद जीवन पाल को, जरूरत पड़ी तो देवराज चौहान को भी।मीरा पाल फुसफुसाई-“उसके बाद हम दोनों के बीच में कोई भी नहीं आ पाएगा। हमे किसी का डर नही होगा।
“मेरे लिए ये सब करना मामूली काम है मालकिन।”
“जब ये काम पूरा कर दोगे फिर मुझे मालकिन नहीं मेरा कहना।” कहने के साथ ही उसने होठों को पुनः चूमा फिर पीछे हट गई- “सावधानी से काम करना। इस मामले में फंसना नहीं है तुम्हें।”
“मैं कभी भी फंसने वाला काम नहीं करता मालकिन। एक घंटे में मैं रथपुर के लिए निकल जाता हूं।”
“जीवन पूछेगा कि कहां जा…।”
“कोई परेशानी नहीं मालकिन। मालिक कुछ दिन के लिए छुट्टी दे देंगे। पूछेंगे भी नहीं कि कहां जा रहा हूं।”
मीरा पाल फौरन आगे बढ़ी और लेखा को बांहों में भींच लिया।
“जल्दी आना लेखा। मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी।”
लेखा ने बेहद शांत भाव में उसके कूल्हे को थापथपाया। मुस्कुराया फिर बाहर निकल गया।
मीरा पाल के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाच रूठी। आंखों में खतरनाक चमक।
“अब मुसीबतें मेरे से दूर हो जाएंगी।” वो बड़बड़ा उठी।
■■
तेज रफ्तार के साथ ट्रेन दौड़े जा रही थी। पटरियों पर से ठक-ठक की तीव्र आवाजें उभर रही थी। कुछ पलों पूर्व ही स्टेशन छोड़कर ट्रेन ने गति पकड़ी थी।
चेयर कार की बोगी की आराम देह सीट पर देवराज चौहान बैठा था। टांगों पर जीवन पाल का दिया ब्रीफकेस रखा था । खिड़की के बाहर नजरें थी। जहां अंधेरा-ही-अंधेरा दिखाई दे रहा था। कहीं-कहीं तीव्र रोशनियां चमकती नजर आ जाती थी। बोगी में आधी चेयर कार खाली थी।
तभी एक व्यक्ति हाथ में अखबार लपेटे वहां पहुंचा और बगल में खाली पड़ी सीट पर बैठ गया।
देवराज चौहान ने एक नजर उस पर मारी फिर बाहर देखने लगा।
वो पैंतीस बरस का, कुछ पेट निकला, व्यक्ति था। आंखों पर नजर का चश्मा चढ़ा रखा था। चेहरा ऐसा सपाट था, जैसे कभी वहां कोई भाव ही ना आता हो। वो अखबार खोलकर पढ़ने लगा।
देवराज चौहान ने ब्रीफकेस टांगो के पास रखा और सिगरेट सुलगा ली ।
“सिगरेट भी क्या चीज है।” वो कह उठा-“इच्छा न भी हो तो बगल बैठे व्यक्ति को कश लेते देखकर इच्छा हो जाती है।”
देवराज चौहान ने उसे देखा। कहा कुछ नहीं। पैकिट उसकी तरफ बढ़ा दिया।
“धन्यवाद ।” उसने सिगरेट निकाली और सुलगाकर कश लिया-“मेहता कहते हैं मुझे ।”
देवराज चौहान खामोश रहा।
“आपने अपना नाम नहीं बताया।”
“कुछ भी कह लो।” देवराज चौहान ने उसकी तरफ देखे बिना कहा ।
“जैसी आपकी मर्जी । रथपुर कब पहुंचेगी गाड़ी।”
“मालूम नहीं।” देवराज चौहान ने उसे देखा-“इस वक्त बातचीत करने का मेरा मन नहीं है।”
“अवश्य-अवश्य।” मेहता मुस्कुराया-“मेरी तो आदत ही नहीं है फालतू की बात करने की। वो क्या है कि सफर तो तय करना ही है। ज्यादा देर चुप भी तो नहीं बैठा जाता।”
देवराज चौहान पुनः खिड़की के बाहर देखने लगा ।
“खाना सर्व कर दिया ट्रेन में ?” वो पुनः बोला ।
“वक्त क्या हुआ है ?” देवराज चौहान ने उसे देखा ।
घड़ी पर निगाह मारकर मेहता ने कहा-
“बारह।”
“रात के बारह बजे ट्रेन में खाना सर्व नहीं होता।”
“ओह।” मेहता ने मुंह बनाया-“बहुत भूख लगी है। आपके ब्रीफकेस में क्या है ?”
देवराज चौहान ने उसे घूरा ।
“मेरा मतलब है, खाने को कुछ भी हो तो मेरा काम चल जाएगा।”
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
“लगता है ब्रीफकेस में खाने को कुछ नहीं है।” मेहता ने सिर हिलाकर कहा- “कोई बात नहीं। सुना है लोग उपवास के बहाने पेट खाली रखते हैं। कहते हैं इससे भी ठीक रहता है। आज मेरा पेट भी ठीक हो जाएगा। एक बात तो बताइए। सोच-सोच कर मैं परेशान हो रहा हूं कि मेरे से टिकट के पैसे ज्यादा ले लिए हैं क्लर्क ने। अस्सी रूपए दस पैसे लिए मुझसे। आपने कितने की टिकट ली ?”
“मैंने टिकट नहीं ली ?” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।
“नहीं ली ?” मेहता ने हैरानी से कहा।
“नहीं ।”
“ओह।” मेहता ने दाएं-बाएं सिर हिलाया-“फिर मैंने क्यों ले ली। अस्सी दस पैसे का नुकसान हो गया। अगर टिकट चैक करने वाला आ गया तो आप क्या करेंगे।”
“वो आया था ।”
“फिर ?”
“सौ का नोट लेकर चला गया।”
“खूब ! अच्छा हुआ जो मैंने टिकट ले ली।”
तभी ट्रेन धड़धड़ाती हुई सुरंग में प्रवेश कर गई। ऐसा होते ही ट्रेन की आवाज कई गुना ज्यादा बढ़ गई। तभी ट्रेन की लाइटें गुल हो गई ।घुप्प अंधेरा छा गया वहां। ये अंधेरा ज्यादा देर नहीं रहा और दूसरे ही मिनट लाइट वापस आ गई। ट्रेन भी सुरंग से बाहर आ गई थी। गूंजती आवाज कम हो गई।
देवराज चौहान चौका। आंखें सिकुड़ गई ।
मेहता की सीट खाली थी ।
वो वहां नहीं ।
देवराज चौहान ने सिर उठाकर बोगी में हर तरफ निगाह मारी। वो कहीं ना दिखा ।
बाथरूम गया होगा ।
उसी पल ही देवराज चौहान के होंठ भिंच गए आंखें टांगों के पास ठहर गई। जहां ब्रीफकेस रखा था । ब्रीफकेस वहां नही था। यानी कि मेहता, उसका ब्रीफकेस लेकर खिसक गया था । वो जो भी था। ब्रीफकेस लेने ही आया था और उसे खबर थी कि जीवन पाल के दीए ब्रीफकेस में छः करोड़ के हीरे हैं। देवराज चौहान जानता था कि मेहता अब ढूढ़ने पर भी नहीं मिलेगा। ट्रेन में वो जाने कहां निकल गया होगा। देवराज चौहान सीट की पुश्त से सिर टिकाया और आंखें बंद कर ली।
उस पर नजर रखी जा रही थी। ये स्पष्ट हो चुका था ।
ट्रेन की रफ्तार और भी तेज हो चुकी थी ।
भोर के उजाले के साथ ट्रेन रथपुर स्टेशन पर जा रुकी ।
सुबह के वक्त कम ही भीड़ थी स्टेशन पर। अंतिम पड़ाव यही था ट्रेन का। मुसाफिर अपने सामान के साथ प्लेटफार्म पर उतरने लगे। बाहर की तरफ बढ़ने लगे। कुलियों की आवाजें । चाय और नाश्ते की आवाजें एकाएक हर तरफ से सुनाई देने लगी थी।
देवराज चौहान ट्रेन से उतरा और बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गया। दोनों हाथ पैंट की जेबों में डाले हुए थे ।लापरवाही भरे ढंग से वो आगे बढ़ा जा रहा था। रथपुर में कहां जाना है। रोनिका कहां है। मुखिया कहां है। कुछ भी मालूम नहीं था उसे।
जीवन पाल ने कहा था कि मुखिया के आदमी, रथपुर पहुंचते ही, उससे संबंध बना लेंगे। परंतु संबंध तो किसी ने नहीं बनाया, अलबत्ता जीवन पाल का दिया ब्रीफकेस मेहता नाम का आदमी ले उड़ा था। मेहता कौन था। मुखिया का आदमी था या कोई राह चलता चोर उचक्का ?
देवराज चौहान स्टेशन से बाहर निकला।
सुबह का वक्त होने के कारण कम भीड़ थी। जो लोग ट्रेन से उतरे थे, वो ही ऑटो-टैक्सी या पैदल जाते नजर आ रहे थे। उठा शोर कुछ ही पलों में थम जाना था, अगली ट्रेन आने तक।
देवराज चौहान ने किसी होटल में ठहरने का इरादा बनाया ।
तभी उसकी आंखें सिकुड़ गई। चेहरे पर सख्ती से भरा कसाव आ गया ।
दाईं तरफ मेहता खड़ा मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था। हाथ में वो ही ब्रीफकेस थमा था। उसे अपनी तरफ देखते पाकर मेहता सिर हिलाते हुए आगे बढ़ा और पासा आ पहुंचा।
“माफ कीजिए साहब। रात को गलती से आपका ब्रीफकेस मैं ले गया ।आपको परेशानी तो हुई होगी।” कहने के साथ ही उसने ब्रीफकेस देवराज चौहान की तरफ बढ़ाया-“आपकी अमानत।”
“शुक्रिया । देवराज चौहान मुस्कुराया-“मैं समझा कोई चोर ले गया।”
“मैं चोर नहीं, शरीफ आदमी हूं। वैसे मुझे हैरानी है कि आप खाली-खाली ब्रीफकेस लेकर घूम रहे हैं।”
“हां, बिल्कुल ही खाली है।” देवराज चौहान ने उसे देखा ।
“इसमें कम-से-कम छः करोड़ के हीरे होने चाहिए।”
“जरूर होनी चाहिए थे। लेकिन मुझे डर था कि आप जैसा शरीफ आदमी रास्ते में ब्रीफकेस खिसका ना ले ।इसलिए हीरों को ब्रीफकेस में नहीं रखकर अच्छा ही किया।”
“तो निकाल लिया हीरों को।” मेहता ने उसे घुरा ।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
“हीरे कहां है ?” मेहता ने सपाट स्वर में पूछा ।
“जीवन पाल की बेटी रोनिका कहां है ?” देवराज चौहान ने उसे देखा।
तभी मेहता ने हाथ उठाकर, खास ढंग में हिलाया।
मिनट भर भी ना बीता की एक कार पास आकर रुकी। ड्राइवर के अलावा एक और व्यक्ति बगल में बैठा था। उसके हाथ में रिवॉल्वर थी। वो खतरनाक निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था ।
मेहता ने शब्दों को चबाकर कहा ।
“ये रिवॉल्वर तुम्हारे लिए है ।सरेआम गोली खाना पसंद करोगे या कार में बैठना ।”
देवराज चौहान बिना कुछ कहे आगे बढ़ा और कार के पीछे वाली सीट पर बैठ गया ।
मेहता बगल में बैठा।
कार आगे बढ़ गई।
“हमारे खास मेहमान जब रथपुर आते हैं तो उसका इसी तरह स्वागत करते हैं।” मेहता ने कहा।
“ऐसे ही स्वागत की आशा थी। कोई हैरानी नहीं हुई मुझे ? ”
“जीवन पाल जैसी घिसे आदमी ने भेजा है तो, समझदार आदमी को ही भेजा होगा ।लगते भी समझदार हो। मेहता शांत स्वर में उठा-“कम -से-कम अब तो नाम बता दो।”
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
मेहता ने फिर नहीं पूछा ।
कार सुनसान जगह पर रुकी ।
सब बाहर निकले । देवराज चौहान भी। रिवॉल्वर वाला चंद कदमों के फासले पर खड़ा हो गया। हाथ में पकड़े रिवॉल्वर का रुख उसकी तरफ था । चेहरे पर ऐसे भाव थे, जैसे अभी गोली चला देगा।
“वो हीरे तुम्हारे ब्रीफकेस में नहीं तो, तुम्हारे जेब में होंगे। अपने पास छुपा रखे होंगे।” मेहता ने कहा-“अगर तुमने किसी तरह की गड़बड़ की तो ये गोली चला देगा। पक्का नशेबाज है।”
“हीरे चाहिए ?”
“सुना नहीं क्या ?” मेहता ने मुंह बनाया और सावधानी से आगे बढ़कर, देवराज चौहान की तलाशी लेने लगा ।
देवराज चौहान ने जरा भी ऐतराज नहीं उठाया ।
हीरे मेहता को नहीं मिले।
“खाली ब्रीफकेस लेकर, जीवन पाल की बेटी को लेने आए हो ? ” मेहता के माथे पर बल आ ठहरे थे।
“छः करोड़ के हीरे लेकर आया हूं।”
“हीरे तुम्हारे पास नहीं है।”
“है, लेकिन तुम्हें नजर नहीं आएंगे। मिलेंगे नहीं । रोनिका मेरे सामने आएगी तो तुम्हें हीरे भी नजर आने लगेंगे। देवराज चौहान ने बेहद शांत स्वर में शब्दों पर जोर देकर कहा।
मेहता उसे कुछ पल घूरता रहा फिर होंठ सिकोड़े कह उठा ।
“मुझे विश्वास है कि तुम सच कह रहे हो। चालाक इंसान हो। कम पहचाना मैंने तुम्हें ।”
“रोनिका कहां है ? ” देवराज चौहान ने पूछा।
“रोनिका के पास तो तुम पहुंच ही जाओगे। परंतु पहले हीरे दिखाने होंगे ।” मेहता सख्त स्वर में कह उठा ।
“दिखा दूंगा। कोई एतराज नहीं।”
“जबकि हीरे तुम्हारे पास है नहीं।”
“सही वक्त आने पर हीरे सबको नजर आने लगेंगे।”
“आओ । तुम्हें वहां ले चलता हूं, जहां तुम्हारा इंतजार हो रहा है। ”
“तुम्हें कैसे पता चला कि जीवन पाल ने मुझे भेजा है।” देवराज चौहान ने पूछा।
“बच्चे हो । अभी हमारे लंबे हाथों का एहसास नहीं है तुम्हें ।”
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान उभर आई ।
“रोनिका और हीरो के लेन-देन का ढंग तय हो गया था तो फिर मुझसे हीरों को छीनने की कोशिश क्यों की गई ? ”
“सब चलता है। बैठो कार में और…।”
तभी एक के बाद एक दो बार हुए।
एक गोली मेहता को लगी। दूसरी का ड्राइवर को। गोली चलाने वाला उन्हीं का साथी था जिसने रिवॉल्वर थामें हुई थी । उसके चेहरे पर खतरनाक भाव दिखाई दे रहे थे। उसने देवराज चौहान को देखा।
“भाग ले।”
“क्या मतलब ? ” देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी ।
“मतलब मत समझ। खिसक जा ।”
“तुमने इन्हें क्यों मारा । ये मुझे रोनिका के पास ले जाने वाले थे। तुम्हारे साथी थे।”
“मन में आया, मार दिया इसे। तेरे को मारने की इच्छा मन में उठी तो मैं तेरे को भी मार दूंगा।”
देवराज चौहान इस वक्त झगड़ा नहीं लेना चाहता था । रथपुर में वो रोनिका को सही-सलामत वापस लेने आया था। ऐसी में उसने अपना ध्यान पूरी तरह रोनिका पर ही रखना था। देवराज चौहान ने उसे देखा। मुस्कुराया। वो जानता था अभी तो शुरुआत है। शुरुआत बता रही थी कि रथपुर में आने वाला वक्त अवश्य खतरो में डूबा होगा।
दूसरे ही पल देवराज चौहान शांत अंदाज में आगे बढ़ गया। जीवन पाल वाला ब्रिफकेस कार में ही छोड़ दिया था। चेहरे पर सोच और गंभीरता के भाव थे कि इस तरह मेहता को मार देने का क्या मतलब हो सकता है ?
रिवॉल्वर थामें खड़ा वो देवराज चौहान को जाते देखता रहा जो अगले दो मिनट में मोड़ पर मुड़कर नजरों से ओझल हो गया था। फिर उसने मेहता और कार चलाने वाले की लाश को देखा उसके बाद ड्राइवर की लाश बाहर फेंक कर उसी कर पर शहरी इलाके में पहुंचा और कार छोड़ कर आगे बढ़ गया ।
उसे फोन बुथ दिखा तो वहां से फोन किया ।
“मैं बोल रहा हूं राजा। काम हो गया। वो बोला ।
“किसे मारा ? ” उसके कानों में राजा की आवाज आई ।
“मेहता और उसके साथी को। मेरा माल, मेरे हवाले कर।पूरा दो लाख रुपया।”
“कहां पर है तू ?”
उसने बताया ।
“आधे घंटे में मेरा आदमी दो लाख लेकर आ रहा है। उसके बाद तैयार रहना। तेरे को खबर मिल जाएगी कि वो कहां ठहरा है।” राजा की आवाज उसके कानों में पड़ी-“नाम क्या है उसका ? ”
“उसने बताया नहीं ?”
“हीरे ?”
“उसके पास से नहीं मिले।”
“चालाक आदमी है। तभी उस ब्रिफकेस में हीरे नहीं मिले। मुखिया को क्या बोलना है सोच ले।”
“उससे निपट लूंगा। मेरे दो लाख भेज। इंतजार कर रहा हूं।” कहने के साथ ही उसने लाइन काटी और पुनः नंबर मिलाने लगा। लाइन मिली-“युवसिंह बोल रहा हूं, मुखिया । बहुत बुरा हुआ।”
“बोला ।” तीखा स्वर उसके कानों में पड़ा ।
“वो खतरनाक आदमी है। उसने मेहता और दूसरे को गोली मार दी। मैं किसी तरह जान बचाकर भागा हूं।”
“उसने दोनों को मैं क्यों मारा ?”
“उससे हीरे लेना चाहते थे, वो उसके पास नहीं थे । कहता है रोनिका को दो और हीरे लो। मेहता ने उससे जबरदस्ती हीरों के बारे में जानना चाहा तो, गुस्से में उसने दोनों को गोली मार दी। मैं ना भागता तो वो मुझे भी…।”
“मैंने मेहता से कहा था कि जबरदस्ती मत कर उसके साथ। जीवन पाल जैसे इंसान ने भेजा है उसे। वो खतरनाक आदमी होगा।”
युवसिंह ने कुछ नहीं कहा ।
“तुम मेरे अगले आदेश का इंतजार करो। मैं उसे तलाश करवाता हूं । तुमने मोबाइल फोन क्यों बंद कर रखा है।” मुखिया का उखड़ा स्वर कानों में पड़ा-“कितनी बार कहा है कि मोबाइल फोन बंद मत रखा करो।”
“मैं अभी खोल देता हूं ।”
“उसके बारे में मालूम होते ही तुम्हें मोबाइल फोन पर खबर करूंगा । उस पर नजर रखनी है।”
“ठीक है। मैं अभी फोन खोल लेता हूं।” युवराज ने रिसीवर रखा और फोन बुथ से बाहर आ गया। जेब से मोबाइल फोन निकालकर उसे चालू किया और वापस जेब में रख लिया। चेहरे पर सख्त भाव उभरे थे।
■■
संतसिंह ने भीतर प्रवेश किया। चेहरे पर खड़े से भाव थे। जुगल किशोर पुराने सोफे पर पसरा सिगरेट के कश ले रहा था रोनिका अभी- अभी नहा कर आई थी। बहुत सुंदर लग रही थी। परंतु जुगल किशोर के मस्तिष्क में पच्चीस लाख घूम रहे थे कि ये मामला निपटा और माल उसके हाथ में आए । संत सिंह को देखकर जुगल किशोर ने आंखें बंद कर ली। रोनिका उसे देखते ही कह उठी ।
“तुम किसी तरह पापा से मेरी बात करा दो।” मैं
“मैं तो अभी बात करा दूं। उधर चौराहे पर ही फोन है।” संतसिह ने कहा-“लेकिन कोई आपको गोली ना मार दे। ”
जुगल किशोर ने आंखें खोल कर उसे देखा ।
“तुम दोनों मेरे बच्चों के बराबर हो। मैं नहीं चाहता कि किसी तरह से तुम दोनों का बुरा हाल हो।” संत सिंह आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठा-“एक खबर है। अच्छी भी-बुरी भी ।”
“क्या ? ” जुगल किशोर फौरन सीधा हुआ। जाने क्यों उसे दे संतसिंह के चेहरे से महसूस हो रहा था कि कोई बात है।
“रोनिका बेटी के पिता जीवन पाल का भेजा आदमी आज सुबह ही रथपुर आ पहुंचा है।”
“सच ? ” रोनिका का चेहरा खिल उठा ।
जुगल किशोर ने रोनिका को देखा फिर संतसिंह से कह उठा।
“दूसरी खबर क्या है ?”
“उसने मुखिया के आदमियों ने बात करनी चाही कि, उसने दोनों आदमियों को गोली मार दी।”
रोनिका के माथे पर बल पड़े ।
“मुखिया कौन है ? ” जुगल किशोर के होठों से निकला ।
“मुखिया।” संतसिंह जल्दी से बोला-“मेरा दोस्त है। मैंने उसे कहा था कि जीवन पाल जिस आदमी को भेजें, उस पर ध्यान रखना और उसे मेरे पास ले आना। वो अपने दोस्त के साथ गया। जिसे तुम्हारे पिता ने भेजा था। उससे मेरे दोस्तों ने कहा कि वो उसे रोनिका के पास ले जाते हैं, इतने में ही उसने दोनों को गोली मार दी।”
“ये कैसे हो सकता है।” रोनिका के होठों से निकला ।
“तुम ठीक कहती हो। मेरा काम तुम्हें बचाना है।”
“दो घंटे बाद पापा को फोन करके फिर चलेंगे। मैं तब तक आराम कर लेती हूं।”
जुगल किशोर ने हौले से सिर हिलाया।
तभी दरवाजे पर थपथपाहट उभरी।
दोनों ने एक दूसरे को देखा।
“कोई तुम्हारा पीछा करके तो यहां तक नहीं आ पहुंचा।”
“मेरे ख्याल में ऐसा नहीं है।” जुगल किशोर उठा-“देखता हूं।”
“बाहर खतरा भी हो सकता है। कुछ है तुम्हारे पास। रिवॉल्वर-चाकू ? ” रोनिका कह उठी।
“नहीं देखना…।”
“रोनिका बेटी।” बाहर से संत सिंह की आवाज आई।
आ गया साला कमीना।
“संतसिंह आया है।” कहने के साथ ही रोनिका आगे बढ़ी और दरवाजा खोल दिया।
संतसिंह भीतर आ गया। चेहरे पर बुजुर्गों जैसे भाव थे ।
“कैसी है मेरी बेटी ? खाना खाया ?”
“हां । जैसा बना, बनाकर खा लिया।”
संतसिंह भीतर आ गया।
“तुम कहां घुसते रहते हो ? ” जुगल किशोर बोला ।
“मैंने कहां घूमना है।” मुस्कुराया संतसिंह। आगे बढ़कर कुर्सी पर बैठा-“दोस्त की बेटी की अंगूठी की रस्म थी। वहीं से आ रहा हूं। मेहमानों को खाना खिलाने का काम मेरे हवाले था।”
“उस आदमी का कुछ पता चला, जिसे पापा ने मुझे लाने के भेजा है ? ” रोनिका ने पूछा ।
“मेरे दो दोस्त पता चला रहे हैं। वो किसी होटल में ही ठहरा होगा। दोस्तों के ऊपर भी खर्चा करना पड़ रहा है। जेब में पैसा है नहीं। तुम ही कुछ दे दो।” संतसिंह अपनी जेब में हाथ मारता है उठा।
रोनिका ने फौरन जेब से नोट निकालें और पांच सौ के दस नोट संतसिंह को थमा दिए ।
बेटा ये नोट तेरे को हजम नहीं होने दूंगा।
जुगल किशोर के चेहरे पर एतराज के काबिल कोई भाव नहीं था ।
“उसे जल्दी ढूंढो संतसिंह। मैं अपने पापा के पास पहुंच जाना चाहती हूं।”
“सब काम छोड़कर यही काम कर रहा हूं रोनिका बेटी। एक-आध दिन में सब ठीक हो जाएगा।”
छः करोड़ के हीरे लेने का सपना पूरा नहीं होने दूंगा। जितनी भी कोशिश कर ले।
“मैं तुम दोनों को बढ़िया चाय बनाकर…।”
तभी मोबाइल फोन की बेल बज उठी।
पल भर के लिए संतसिंह सकपकाया फिर दांत फाड़ कर बोला।
“जिसका मोबाइल लिया है। उसी का फोन होगा। अब वो अपना फोन वापस मांगने लगा है।” कहने के साथ ही उसने फोन निकाला और बात की-“हैलो।”
“संते ।” दूसरी तरफ से मुखिया की आवाज कानों में पड़ी।
“ओह ! तुम।” संतसिंह ने चेहरे के भावों पर फौरन काबू पाया-“कैसे हो ?”
“क्या कर रहा है ?”
“करना क्या है इधर-उधर घूम कर वक्त बिता रहा हूं।” कहते हुए उसने दोनों पर नजर मारी।
“मेरे पास पहुंच। काम है।”
“अभी ?”
“हां । कहीं व्यस्त है क्या ?”
“मेरे जैसे लोगों के पास काम ही नहीं तो व्यस्त कहां से होंगे। आता हूं। कहने के साथ ही संतसिंह ने फोन बंद किया और जुगल किशोर को देखा-“पुराना दोस्त याद कर रहा है। मैं वही चाय पी लूंगा। तुम अपनी बनाकर पी लो। रोनिका बेटी का ध्यान रखना। बाहर निकलने का खतरा मत लेना। एक-दो दिन और बंद रह लो। फिर सब ठीक हो जाएगा।”
उल्लू का पट्ठा सोच रहा है कि छः करोड़ के हीरे मिल जाएंगे इसे ।
“फल-फ्रूट चाहिए तो कहो, आते वक्त लेते आऊंगा।” संतसिंह ने प्यार से कहा।
“हमारे नाम पर तू खा आना।” जुगल किशोर ने उखड़े स्वर में कहा-“ज्यादा प्यार दिखाने की जरूरत नहीं है। हमें फल-फ्रूट की खिला रहा है तू। कभी खुद खाकर देखे हैं।”
“क्या मतलब ? ” संतसिंह के होठों से निकला ।
“संतसिंह।” रोनिका फौरन कह उठी-“इसकी बातों पर मत जाओ। मेरी देखभाल की वजह से ये यहां बंद रहने को मजबूर है। इसलिए सुबह से ही तीखा बोल रहा है।”
“जुगल । हौसला रख। एक-आध दिन की बात और है फिर…।”
उल्लू के पट्ठे घंटे भर से ज्यादा का दखल नहीं बचा। रोनिका का गला काटकर मैं मौज रहा हूं। फिर लाश और पुलिस को संभालते रहना।
जुगल किशोर ने सिगरेट सुलगाई और गहरी सांस लेकर बोला ।
आते वक्त पांच-दस गोलियां सिर दर्द की लेते आना।”
पूरा पत्ता ले आऊंगा ।”
दिल तो करता है मोटा डंडा उठाकर इसके सिर में तब तक मारता रहूं, जब तक कि गायब ना हो जाए। हरामि तो बड़े देखे। घटिया हरामि है ये।
जल्दी लौटने को कहकर संतसिंह बाहर निकल गया ।
रोनिका ने जुगल किशोर को देखा ।
“उससे इस तरह उल्टा-सीधा क्यों बोल रहे थे।”
“मालूम नहीं । उसे देख कर मुझे गुस्सा आने लगता है।” जुगल किशोर कड़वे ढंग में मुस्कुराया।
“इसलिए कि मैंने उसे पांच हजार दे दिए।”
“कुछ भी समझो।”
“जुगल हम उसके घर पर रह रहे हैं। उसका खा रहे हैं। ऐसे में वो किसी बहाने कुछ पैसे ले लेता है तो क्या बुरा करता है। हमें भी मुफ्त का नहीं खाना चाहिए।” रोनिका ने सामान्य स्वर में कहा ।
जुगल किशोर कुछ नहीं बोला। कश लेता रहा।
“मैं कुछ देर आराम करने जा रही हूं।” कहने के साथ रोनिका दूसरे कमरे में चली गई ।
जुगल किशोर की नजरें उस दरवाजे पर टिकी रहीं, जहां से वो दूसरे कमरे में गई थी ।
उसके चेहरे पर सख्ती झलक उठी थी। आंखों में क्रूरता। रोनिका को मार कर पचहत्तर लाख कमाना था उसे। वो लिफाफा उसके पास ही होगा। आसानी से मिल जाएगा। दौलत कमाने का ऐसा मौका उसे बार-बार नहीं मिलेगा। एक हत्या और पचहत्तर लाख । वरना चंद हजार की ठगी के लिए लोगों को बेवकूफ बनाते हुए अपनी सारी उम्र बिता देगा।
इस मौके को जुगल किशोर हाथ से नहीं जाने देना चाहता था ।
वक्त बर्बाद करना ठीक नहीं था। कहीं संतसिंह ना पलट आए। संतसिंह तो चुपके से छः करोड़ पाने का खेल खेल रहा था। रोनिका की सहायता को संतसिंह ने अपहरण का नाम देकर जीवन पाल से, रोनिका की वापसी का सौदा छः करोड़ में कर लिया था। ऐसे मौके पर संतसिंह उसके साथ नहीं मिलाएगा। उसे भी पसंद नहीं आएगा कि उसका खेल, खुल गया है। ऐसे में जुगल किशोर ने पचहत्तर लाख पर ही सब्र करना समझदारी समझी।
वो उठा।
होंठ भिंचे हुए थे जुगल किशोर के। आंखों में क्रूरता। चेहरे पर जहान भर की सख्ती।
खामोशी छाई हुई थी हर तरफ। घर के बाहर से उठती आवाजे कभी-कभाद कानों में पड़ जाती थी। कुछ पलों तक वो उसी दरवाजे को देखता रहा, जिसमें रोनिका गई थी। फिर अपनी जगह से हिला और दबे पांव किचन में जा पहुंचा ।
किचन में सामान बिखरा हुआ था। खाना बनाने के बाद रोनिका ने सामान को समेटने का कष्ट नहीं किया था। वहां निगाहें दौड़ाता रहा। कुछ देर बाद उसकी निगाह चाकू पर जा टिकी। उसकी तलाश पूरी हो गई। चाकू लेने ही आया तो था वहां ।
आगे बढ़कर जुगल किशोर ने चाकू थामा। क्रुरता आ गई थी उसकी आंखों में। भिंचे दांत। दरीदगी में लिपटा चेहरा काला-भद्दा सा हो चुका था। चाकू सब्जी काटने वाला अवश्य था, परंतु तेज था। किसी की गर्दन या पेट काटा जा सकता था इससे ।
जुगल किशोर की आंखों के सामने रोनिका का चेहरा उभरा।
बहुत आसान था उसे मारना ।
एक हाथ मुंह पर की चीख ना सके ।चाकू से गला अलग एक मिनट से ज्यादा का मामला नहीं था ये सब । पचहत्तर लाख कमाने बहुत आसान हो गए थे उसके लिए।
चाकू थामे चेहरे पर क्रुरता समेटे किचन से निकला जुगल किशोर और दबे पांव उस कमरे में जा पहुंचा जहां रोनिका मौजूद थी। वो नींद में थी। शायद वो थकी सी थी । बैड पर लेटते ही नींद में जा पहुंची थी।
जुगल किशोर बैड के पास उसके सिर पर जा खड़ा हुआ।
नींद में वो और भी खूबसूरत-मासूम लग रही थी। बाल बिखरे से आधे चेहरे को ढांप रहे थे। पैंट -कमीज पहनी हुई थी। वो टेप लगा बंद लिफाफा कमर के पास ही पड़ा था। शायद नींद लेने से पहले वो लिफाफा पैंट में फंसा रखा था। परंतु नींद के दौरान पैंट से निकलकर, बैड पर आ गया।
शिकार सामने था ।
पच्चीस लाख की कीमत वाला वो लिफाफा सामने था ।
कोई दिक्कत परेशानी नहीं थी।
किसी तरह की रुकावट नहीं थी, काम पूरा होने में।
जुगल किशोर ने हाथ में दबे चाकू को देखा। खूंखारता मैं सिमट गया सिर से पांव तक। वो जरा सा आगे आया। ठीक-ठाक इंसान को वो लाश में बदलने जा रहा था।
तभी जुगल किशोर के शरीर में तीव्र कंपकपी उभरी। दांत भिंच गए उसके। किसी की जान लेना बड़ी बात नहीं थी उसके लिए। झगड़ों में या खुद को बचाने के लिए वह कईयों को मार चुका था। परंतु दौलत पाने के लिए पहली बार किसी की जान ले रहा था। वो भी मासूम- निर्दोष की जान।जो उसके साथ इस विश्वास के दम पर थी कि वो उसकी रक्षा करेगा।
लेकिन वो ही उसकी जान लेने जा रहा है ? ”
दौलत पाने के लिए खून ?
क्या हत्यारा है वो ?
नहीं । ठग है । लोगों को बेवकूफ बनाकर पैसा ऐंठना उसका धंधा है। पेशेवर हत्यारा नहीं कि दूसरे की जान का सौदा करें, पचहत्तर लाख में ।
इन सोचो ने जुगल किशोर की हर हरकत को रोक दिया था।
चाकू हाथ में थामे, खूंखारता चेहरे पर समेटे, नींद में डूबे रोनिका के चेहरे को देखता रहा।
इसे खत्म करता है तो पचहत्तर लाख मिलेंगे ।
नहीं तो रोनिका उसे पच्चीस लाख देगी।
ये भी हो सकता है रोनिका से कुछ भी ना मिले ?
नहीं । जो भी हो, वो हत्यारा नहीं बनेगा। पैसे पाने की खातिर किसी की हत्या नहीं करेगा। दांत भींच कर जुगल किशोर ने गुस्से में चाकू फेंका थके से अंदाज में बैड पर ही बैठ गया।
चाकू फेंकने की तेज आवाज से रोनिका की आंख खुली। वो जल्दी से उठ बैठी। पास में जुगल किशोर को बैठा पाकर वो हैरान हुई। चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे।
“क्या हुआ ?” रोनिका के होठों से निकला ।
जुगल किशोर का शरीर हिला। बोला कुछ नही।
तभी रोनिका की निगाह कोने में पड़े चाकू पर पड़ी ।उसकी आंखें सिकुड़ी। वो धीरे से बैड से उतरिबोर आगे बढ़ कर चाकू उठा लिया । चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे थे ।
“ये चाकू तो किचन में छोड़ कर आई थी ।” रोनिका के होठों से निकला ।
जुगल किशोर ने सिगरेट सुलगा कर कश लिया और खड़ा होते हुए पलटा। चेहरे पर जहान भर की गंभीरता नजर आ रही थी। आंखों में व्याकुलता थी ।
“चाकू को मैं लाया हूं यहां।” जुगल किशोर के होठों से निकलने वाला स्वर धीमा था ।
“क्यों ?”
“तुम्हें मारने के लिए।”
रोनिका देखती रह गई जुगल किशोर को ।
कुछ लंबा वक्त बीत गया चुप्पी में, उनके बीच ।
फिर रोनिका ने बैड पर पड़े लिफाफे को देखा तो तुरंत आगे बढ़कर वो लिफाफा उठाया और कमीज उठाकर पैंट के आगे के हिस्से में फंसा लिया ।
“मुझे मार कर तुम्हें क्या मिलता।” रोनिका गंभीर थी।
“पचहत्तर लाख।”
“पचहत्तर लाख ? ” रोनिका की आंखें सिकुड़ गई-“कौन देता तुम्हें ये पैसे ? ”
“मीरा पाल ।” जुगल किशोर ने कश लिया-“क्या लगती है वो तुम्हारी ?”
“सौतेली मां ।” दांत किटकिटा उठी रोनिका- “जिसे तुम कमीनी औरत कह सकते हो। मेरे पापा ने उससे शादी करके अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा बेवकूफी वाला काम किया है। वो तो औरत के नाम पर कलंक है।”
जुगल किशोर उसके धधकते चेहरे को देखता रहा ।
“तो फोन पर उस कमीनी से तुम्हारी बात हुई ?” रोनिका ने एक-एक शब्द चबाकर कहा।
“हां।”
“मुझे खत्म करने को कहा।”
“हां। पचास लाख तुम्हें खत्म करने के दे रही है। तुम्हारे पास जो लिफाफा है, पच्चीस लाख लिफाफे के। कुल मिलाकर पचहत्तर लाख अब तक उसने मेरे लिए तैयार रख लिए होंगे।”
रोनिका ने जुगल किशोर की आंखों में झांका ।
“तो मारा क्यों नहीं मेरे को।”
“कोशिश की थी।” जुगल किशोर ने मुंह फेर लिया-“लेकिन मन नहीं माना। मैं लोगों को ठगने के काम करता हूं। दो-चार की जान भी ले चुका हूं, इसलिए कि वो मुझे मार देना चाहते थे। अपने धंधे से मुझे कोई एतराज नहीं रहा । लेकिन किसी की जान लेकर पैसा कमाने के लिए मेरे मन ने हां नहीं की ।”
रोनिका देखती रही जुगल किशोर को।
तुमने ये तो साबित कर दिया कि जानवर नहीं बने अभी तक। वरना दौलत के लिए, वो भी पचहत्तर लाख के लिए किसी की जान लेना, बहुत मामूली बात है। लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि दोबारा तुम्हारे दिमाग में लालच सवार नहीं होगा। तुम मेरी जान लेने की कोशिश नहीं करोगे ।” रोनिका गंभीर स्वर में बोली ।
“ऐसा कुछ नहीं है। कुछ देर के लिए मेरा दिमाग बदला जरूर था। परंतु सब ठीक है। अब ऐसी सोच मेरे मस्तिष्क में टिकेगी नहीं।” जुगल किशोर के होठों पर हल्की से मुस्कान उभरी ।
“जो भी हो । अब तुम पहले की तरह विश्वास के काबिल तो नहीं रहे।”
“वहम मत पड़ो। मैं…।”
“एक बार तुम मेरे जेवर और रुपए लेकर भागने वाले थे। मैंने तुम्हें पकड़ा। दूसरी बार खुद कहा कि अभी तुम मेरी हत्या करने जा रहे थे। जबकि मैंने तुम्हें अपने साथ इसलिए रखा हुआ है कि तुम दूसरों से मुझे बचा सको। लेकिन मुझे दूसरों से कम और अब तुम से ज्यादा खतरा लगने लगा है।
“तुम गलत नतीजे पर जा पहुंची।”
“क्या गलत सोचा मैंने। ” रोनिका हाथ के अंगूठे से चाकू की धार को छू रही थी ।
जुगल किशोर ने उसकी आंखों में देखा।
“मैं तुमसे मिलने वाला पच्चीस लाख चाहता हूं।” जुगल किशोर ने कहा।
“इनकार नहीं करती जुगल। मिलेगा। मेरे पापा के पास पहुंच लेने दो। जब भी तुम्हें खबर मिल जाएगी मैं केशोवपुर में पापा के पास हूं। आ जाना ।उसी वक्त तुम्हें पच्चीस लाख मिल जाएगा।”
जुगल किशोर ने कश लिया। चेहरे पर मुस्कान उभरी।
“पीछा छुड़ा रही हो मुझसे ?”
“जो भी कहो।”
“अगर तुम पच्चीस लाख देने पर कायम हो तो तुम्हारे साथ चिपके रहने की मैं जरूरत भी नहीं समझता।” जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा-“लेकिन मेरे जाने के बाद खतरा तुम्हारे लिए बढ़ जाएगा ।”
“मुझे अपनी बातों में फंसाना चाहते हो।”
“मैं तुम्हें नहीं कहूंगा कि मेरे बारे में गलत मत सोचो। मेरी छाप तुम पर ऐसी पड़ चुकी है कि मेरी हर हरकत हर बार तुम्हें धोखे से भरी लगेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं है। ”जुगल किशोर ने गहरी सांस ली।
“तुम अपनी कहो और जाओ।” रोनिका की आवाज में तीखापन आ गया ।
“संतसिंह ने तुम्हारे पापा से फिरौती के रूप में छः करोड़ के हीरे मांगे हैं। तुम यहां मेरे पास आराम से हो। मैं तुम्हारा ध्यान रख रहा हूं ।उधर उसने तुम्हारे पापा को ये कह रखा है कि उसने तुम्हारा अपहरण कर लिया है।”
“ओह।”
“तुम्हारे पापा ने जिस आदमी को तुम्हें लेने भेजा है, उसके पास छः करोड़ के हीरे हैं । वो हीरे देगा और तुम्हें लेगा। उसने उन दो को क्यों मारा। मैं नहीं जानता।” जुगल किशोर ने कड़वे स्वर में कहा-“अब संत सिंह क्या कह रहा है, मैं नहीं जानता। लेकिन आने वाले वक्त में तुम्हारे लिए खतरा बढ़ेगा । जो छः करोड़ के हीरे लेकर आया है, वो आसानी से हीरे नहीं देगा। इधर संतसिंह आसानी से तुम्हें उसके हवाले नहीं करेगा। उनमें जो भी हो-सिर तुम्हारा ही फटेगा। ”
“छः करोड़ के होरों की बात तुम्हें किसने बताई ?” रोनिका सख्त स्वर में कह उठी ।
“तुम्हारी सौतेली मां, मीरा पाल ने ।” जुगल किशोर ने कहा-“संतसिंह कभी भी तुम्हें अपने हाथों से निकलने नहीं देखा। तुम्हारी शक्ल में उसके सामने छः करोड़ रखे हैं।”
रोनिका, जुगल किशोर को देखती रही ।
खामोशी लम्बी होने लगी उनके बीच।
“मैं तुम्हें छोड़ गया तो मेरा पचीस लाख दुब जाएगा।” का जुगल किशोर बोला-“संतसिंह मजा हुआ खिलाड़ी नहीं है कि इतने बड़े सौदे को निपटा सके। वो तुम्हें भी ले डूबेगा।”
“मैं तो इतना जानती हूं कि तुम पर विश्वास किया तो तुम मुझे धोखा देने के नए-नए तरीके निकाल रहे हो। संतसिंह पर भरोसा किया तो वो…।”
“मेरी तरफ से अब तुम्हें परेशानी नहीं होगी। मैं…।”
“पचहत्तर लाख कमाने की इच्छा, तुम्हारे दिमाग में फिर जोर मार सकती।”
“तुम मेरा विश्वास तो करोगी नहीं।” जुगल किशोर ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा-“परंतु अब आगे ऐसा कुछ नहीं होगा। अगर मैं बुरा इंसान होता तो जब तुम नींद में थी, तब तुम्हें मार देता।”
“मुझे मारने मेरे सिर पर तो आ ही गए थे।”
“चाकू तो मैंने ही फेंका। ठीक वक्त पर पचहत्तर लाख कमाने का भूत मेरे सिर से उतर गया। तब भी मेरे होशो-हवास कायम थे, जब चाकू लेकर तुम्हारे सिर पर खड़ा था।”
“तुम्हारी झूठी या सच्ची बात मानने के अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।” रोनिका ने दांत भींचकर, तीखे स्वर में कहा-“अब की बार मुझे लेकर, मन में कोई गलत ख्याल मत लाना।”
जुगल किशोर ने गहरी सांस ली।
कुछ पलों बाद रोनिका बोली ।
“संतसिंह छः करोड़ पाने के लिए भागदौड़ कर रहा है तो वो मुझे इस तरह क्यों छोड़ जाता है।”
“संतसिंह ये सोचकर चल रहा है कि मैं तुम्हें लेकर यहां छिपा हूं । यहां से बाहर हम नहीं निकलेंगे। बाहर हमारे लिए खतरा है। हमें दिखावा कर रहा है कि वो तुम्हारे लिए चिंतित है। ये बात तो वो सोच भी नहीं सकता कि उसका छः करोड़ वाला मामला, हमें मालूम हो सकता है।”
रोनिका सख्त सी निगाहों से जुगल किशोर को देखती रही ।
“ये सारा काम वो अकेला नहीं कर सकता। इस काम में दो-चार लोगों की सहायता अवश्य ले रहा होगा।”
“कौन लोग ?”
“पैसे के दम पर ऐसे काम के लिए दो-चार को तैयार किया जा सकता है। पैसा पल्ले नहीं तो कह दिया होगा कि माल हाथ में आते ही दे देगा। ” जुगल किशोर ने रोनिका को देखा।
“अब तुम क्या करोगे ?”
“तुम्हारे पापा का भेजा आदमी तुम्हें लेने के लिए रथपुर तो मैं आ चुका है। दो को मार दिया तो खतरनाक बंदा होगा। मेरे ख्याल में बहुत जल्द वो तुम तक पहुंच जाएगा । या जैसे भी हो, हम उसे ढूंढ लेंगे। परंतु अब यहां पर रहना मुसीबत मोल लेना है। संत सिंह हम दोनों के लिए खतरा बन सकता है। छः करोड़ के लिए वो कोई भी हद पार कर देगा। यहां से निकल जाना ही हमारे लिए ठीक है।”
“कहां जाएंगे।”
“कहीं भी। होटल या किसी और जगह। यहां से निकल कर देखेंगे।”
“मेरी जान लेने वाले मिल गए तो ?”
“इतना खतरा तो लेना ही पड़ेगा।” जुगल किशोर ने गंभीर स्वर में कहा ।
रोनिका ने जुगल किशोर की आंखों में झांका ।
“छः करोड़ वाली बात सच कह रहे हो कि संतसिंह गड़बड़ कर रहा है। कहीं तुम कोई चाल चलकर मुझे यहां से बाहर तो नहीं ले जाना चाहते। ” रोनिका शब्दों में शक के भाव कूट-कर भरे हुए थे ।
जुगल किशोर के होठों पर शांत सी मुस्कान उभरी ।
“मैंने तुम्हें सच कहा है। विश्वास करना या न करना, तुम पर है। ”
“ठीक कह रहे हो जुगल। मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।” रोनिका फैसला कर चुकी थी-“लेकिन ये बात अपनी जगह है कि मुझे तुम पर जरा भी भरोसा नहीं रहा ।”
“वक्त आने पर भरोसा फिर से काम हो जाएगा।”
“चलो यहां से संतसिंह लौट सकता है।”
दूसरे ही मिनट जुगल किशोर और रोनिका, संतसिंह के घर से निकल कर, आगे बढ़ गए थे।
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