“एक बात याद रखना।” राजदान ने चेतावनी सी दी- “तुम्हें हमारे बैडरूम में मुख्य द्वार से नहीं, बाथरूम के रास्ते से पहुंचना है। चोरों की तरह।"
“ठकरियाल की खोपड़ी घूम गई बोला- “आप क्यों पुलिस वाले को चोर बनाने पर तुले हैं राजदान साहब ।” “बात ही कुछ ऐसी है, यहां आओगे तो पता लगेगी।"
“आप तो मारे सस्पैंस के खोपड़ी फाड़े दे रहे हैं मेरी। जी चाह रहा है, पलक झपकते और रात का एक बज जाये ताकि आपसे रुबरू हो सकूं "
उसकी बात पर ध्यान दिये बगैर राजदान ने पूछा“तुम्हें मालूम है न, हमारे बाथरूम की खिड़की लॉन में किस तरफ है ?”
“बिल्कुल मालूम है साहब।"
“धन्यवाद ।”
“लेकिन बाथरूम ओर बैडरूम के बीच का दरवाजा बन्द रहेगा। तुम ठीक एक बजे उसे खटखटाओगे, हमें आवाज भी दे सकते हो मगर याद रहे, तुम्हारे पैदा की जाने वाली कोई भी आवाज ऐसी न हो जिसे हमारे कमरे के अलावा कहीं और सुना लगे ।”
“किसी से मतलब?”
“हमारा मतलब विशेष रूप से दिव्या और देवांश से है ।”
“ऐसी क्या बात है जिसे आप अपनी जान से प्यारी जीवन साथी और उस भाई से छुपाना चाहते हैं जिसे असल में खुद से भी ज्यादा प्यार करते हैं?”
“यहां आओग तो बात भी पता लग जायेगी ।”
“आ जाऊंगा राजदान साहब। कोई और बुलाता तो आता न आत मगर आप बुला रहे हैं तो जरूर हाजिर हो जाऊंगा। बहरराल, सोने के अंडे देने वाली मुर्गी हैं आप। क्या पता, रात के एक बजे अंडे टपकने लगे।”
“एक बात याद रखना।” राजदान ने चेतावनी सी दी- “तुम्हें हमारे बैडरूम में मुख्य द्वार से नहीं बाथरूम के रास्ते से पहुंचना हैचोरों की तरह।"
। ठकरियाल की खोपड़ी घूम गई बोला- “आप क्यों पुलिस वाले को चोर बनाने पर तुले
“बात ही कुछ ऐसी है, यहां आओगे तो पता लगेगी।"
हैं राजदान साहव ।"
“आप तो मारे सस्पैंस के खोपड़ी फाड़े दे रहे हैं मेरी। जी चाह रहा है, पलक झपकते और रात का एक बज जाये ताकि आपसे रूबरू हो सकूं । "
उसकी बात पर ध्यान दिये बगैर राजदान ने पूछा- “तुम्हें मालूम है न, हमारे बाथरूम की खिड़की लॉन में किस तरफ है ?” “बिल्कुल मालूम है साहब। तभी से मालूम है जब विचित्रा और शांतिबाई के बयानों के बाद इन्वेस्टिगेशन करते आपके बाथरूम में जा धमके थे।”
“खिड़की तुम्हें खुली मिलेगी ताकि आराम से बाथरूम में पहुंच सको।"
“धन्यवाद ।”
“लेकिन बाथरूम और बैडरूम के बीच का दरवाजा बन्द रहेगा। तुम ठीक एक बजे उसे खटखटाओगे, हमें आवाज भी दे सकते हो मगर याद रहे, तुम्हारे द्वारा पैदा की जाने वाली कोई भी आवाज ऐसी न हो जिसे हमारे कमरे के अलावा कहीं और सुना जा सके। तुम्हारे द्वारा पैदा की जाने वाली कोई भी आवाज ऐसी न हो जिसे हमारे कमरे के अलावा कहीं और सुना जा सके। तुम्हारे खटखटाते ही हम दरवाजा खोल देंगे।”
हालांकि आपकी कोई भी बात हमारी समझदानी में घुस नहीं रही है। बावजूद इसके हम आयेंगे। कारण वही है- सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी को बात न मानने का पाठ नहीं पढ़ा हमने ।”
“याद रहे, ठीक एक बजे | मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा।" कहने के बाद रिसीवर रख दिया गया।
खोपड़ी घूम गई देवांश की।
उसे मालूम था—उस वक्त एक बनजे के मुश्किल से दो मिनट थे जब राजदान ने खुद कोट किया और ठीक एक बजे उसने ठकरियाल से दरवाजा खटपटाने के लिए कहा था। क्यों? ऐसा क्यों किया है उसने?
वह ठकरियाल से वास्तव में कुछ बातें करना चाहता था। या उसे मालूम था ठीक दो मिनट पहले वह मर चुका होगा। उस वक्त वह और दिव्या उसकी मौत के कारण वहां हकबकाये खड़े होंगे।
क्या यह सब एक प्लान था। प्लान के तहत राजदान ने एक बजने से दो मिनट पहले अपनी हत्या की ताकि दरवाजा खटखटाये जाने पर उसकी और दिव्या की वह हालत हो जो हुई ऐसा क्यों चाहता था राजदान ? सीधी सी बात है - जो कुछ उन्होंने उसके साथ किया, वह उसका बदला लेना चाहता होगा परन्तु बदला लेने का यह कौन सा स्टाईल था? क्या उसने खुद मारकर बदला लेने का प्लान बनाया था? क्या इस ढंग से भी सोच सकता है कोई कि मैं मरने के बाद अपनी मौत को फलां-फलां के लिये बवाल जान बना दूंगा?
देवांश ने जितना सोचा उसे यही लगा, ठकरियाल से कोई बात नहीं करनी थी। राजदान को। उसने पहले से ही निर्धारित कर लिया था। कि वह एक बजने में दो मिनट पहले मर जायेगा और ठीक एक बजे ठकरियाल दरवाजा खटपटायेगा ताकि उसकी और दिव्या की हालत खराब हो जाये। जो हुआ राजदान के सोचे समझे प्लान के तहत हुआ।
उसे राजदान के अंतिम् शब्द याद आये। उसने कहा था-"जी चाहता है अपने हाथों से तुम दोनों की खोपड़िया खोल दूं। इस काम को करने से दुनिया की कोई ताकत इस वक्त मुझे रोक भी नहीं सकती। मगर नहीं इतनी आसान सजा नहीं दे सकता मैं तुम्हें। तुम्हारे गंदे खून से अपन हाथ रंगने का मैं जरा भी ख्वाहिशमंद नहीं हूँ जो गुनाह तुमने किया है। उसकी सज़ा इतनी आसान नहीं हो सकती कि दो धमाके हो और तुम्हें हर मुसीबत से निजात मिल जाये यह अंत नहीं छोटे, यह तो शुरूआत है, तुम्हारे अंत की शुरूआत। तुम्हारी सजा तो 'वो' हैं वो, जो मैंने मुकर्रर की है। जो कदम-कदम पर तुम्हें मारेगी। याद रखना मेरी बात-मरने के बाद अगर मैंने तुम्हें तड़प-तड़पकर मरने पर मजबूर नहीं कर दिया तो मेरा नाम राजदान नहीं।”
इन शब्दों को याद करने के बाद देवांश को लगा राजदान ने पूरा प्लान बनाने के बाद आत्महत्या की थी। मौत के तुरन्त बाद ठकरियाल का दरवाजा खटखटाना उसके प्लान का पहला 'चिन्ह' था। ठकरियाल ठीक एक बजे ऐसा करे - यह इन्तजाम वह पहले ही, रात आठ वजे कर चुका था। उन्हें फंसाने के लिए और क्या-क्या इंतजाम करने के बाद मरा है वह? यह सवाल बड़ी तेजी से जहरीला सर्प बनकर देवांश के दिमाग में रेंगा। मगर जवाब दूर-दूर तक नहीं था। केवल एक ही बात स्पष्ट थी- यह कि वह उसके लिए कोई जाल बिछाकर गया है। कैसा जाल था वह? कैसे-कैसे पैंतरे सामने आने वाले हैं?
अभी देवांश इसी किस्म के सवालो में उलझा था कि ठकरियाल की आवाज हथोड़े की तरफ कानों के पर्दों से टकराई- “आप फिर नींद में कहीं मटरगश्ती करने चले गये देवांश बाबू!”
“ओ! हां!” देवांश चौंका।
“मेरी बातें सुनकर तो जैसे लकवा ही मार गया आपको ऐसे गुम हो गये जैसे कूदकर सीधे 'आठ बजे' पर पहुंच गये हो ।' ठकरियाल ने उसे बहुत गौर से देखते था- "क्या मैं जान सकता हूं- ऐसी हालत क्यों हो गई आपकी?”
“क-कमाल है ।" शुरूआती हकलाहट के बाद देवांश ने खुद को संभाल लिया - "मैं यह सोचकर हैरान हूं, भैया तुम्हें ऐसी क्या बात बताना चाहते थे। जिसे उन्हें मुझसे और भाभी से छुपाने को जरूरत पड़ी? कम से कम हम दोनों को तो यही विश्वास है, वो हम से कुछ नहीं छुपाते थे। और तुम्हें रात के एक बजे, चोरों की तरह आने के लिए कहना। बात सिरे से ही समझ में नही आ रही।"
“इसके अलावा समझ में न आने वाली एक बात और है।”
“व-यह क्या?” देवांश बड़ी मुश्किल से पूछा सका।
“तुमने बताया-वे नींद को गोली गटककर सोते हैं।"
“यह सच है।"
“फिर भी मुझसे एक बजे आकर दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। यह भी कहा, मेरे खटखटाते ही वे दरवाजा खोल देंगे। मतलब साफ है-कम से कम आज की रात उनका नींद की गोली गटककर अंटागाफिल होने का इरादा नहीं था।"
देवांश को कहना पड़ा-“लगता तो ऐसा ही है । "
“बावजूद इसके वे अंटागाफिल हुए पड़े है, वरना दरवाजा जरूर खोलते।” “बात तो ठीक है- अगर उन्होंने मुझे बुलाया था तो गोली नहीं खानी चाहिए थी और अगर गोली नहीं खाई तो दरवाजा क्यों नहीं खोला?" “राम-नाम सत्य तो नहीं हुई पड़ी उसकी?"
“ज-जी?” भरसक चेष्टा के बावजूद देवांश भरभराकर पसीने से नहा गया।
“एड्स के मरीज हैं बेचारे। क्या पता किस पल ‘हैडमास्टर’ का बुलावा आ जाये।”
“प-प्लीज! प्लीज।” देवांश ने खुद को भाई से अत्यधिक प्यार करने वाला जताया। “ऐसा मत कहो। उनकी मौत की कल्पना तक मेरे लिए असहनीय है। मगर
मगर नाम का जानवर हमेशा पानी में रहता है। हम दोनों की बातों के बीच कहां से आ टपका?"
उसे चकित नजरों से देखते देवांश ने पूछा-"तुम्हें कैसे मालूम भैया को एड्स था“
"ओह! अच्छा!" यहा अटक गये तुम ।” ठकरियाल उसका सेन्टेन्स काटकर कह उठा-"पुलिस इंस्पैक्टर हैं जनाब, घसियारे नहीं। उड़ती चिड़िया के पंख गिन सकते हैं।"
“फिर भी तुम्हें एड्स के बारे में कैसे मालूम ? इस बारे में केवल चार आदमियों को पता था। मुझे, भाभी को, खुद भैया और डॉक्टर भट्टाचार्य को । तुम्हें किसने बताया ?”
“खुद राजदान साहव ने।”
"भैया ने ?”
“जी।”
“मगर क्यों? भैया तो खुद हम सबसे इस बात को छुपाने के लिए कहते थे ।”
“इस बात को छोड़ो प्यारे। आदमी कभी-कभी इतना भावुक हो जाता है कि सब कुछ उसे बता बैठता है जिसे कभी कुछ नहीं बताना चाहता। कुछ ऐसे ही क्षणों में राजदान साहब एक दिन मुझसे 'खुल' गये थे। बस यूं समझो-मुझे मालूम था, वे मौत के एन्ट्री गेट पर खड़े हैं।
देवांश ने खामोश रहकर अपने चेहरे पर 'वेदना' कायम करने में भी भलाई समझी।
“पर एक बात खटक रही है मुझे।" अचानक ठकरियाल का सुर बदला ।
गड़वड़ा सा गया देवांश - “क-क्या?”
“क्या दिव्या जी भी नींद की गोली गटककर सोती हैं?”
“न-नहीं तो।”
“फिर उनकी नींद में खलल क्यों नहीं पड़ा?"
“ओह! वे उस कमरे में नहीं सोती ।"
सुकड़ गई ठकरियाल की आंखें- “पति के साथ नहीं सोती?”
“खुद भैया ने उनसे दूसरे कमरे में सोने के लिए कहा था।”
“क्यों?”
“ अपनी बीमारी के कारण।"
“पति ने कहा और वे अलग सोने लगी।" ठकरियाल ने इस तरह कहा जैसे कहने के साथ-साथ कुछ सोचता भी जा रहा हो-“खैर, क्या मैं जान सकता हूं वे कहाँ...!
देवांश ने उसका वाक्य पूरा होने से पहले कहा - "भैया के एकदम बराबर वाले कमरे में।"
“ और आपका शयन कक्ष ?”
“गैलरी के दूसरे छोर पर।” देवांश ने जल्दी से कहा । वह जानता था - ठकरियाल उसके और दिव्या के सम्बन्धों पर तब से शक करता है जब वास्तव में उनके बीच वे सम्बन्ध थे भी नहीं जो आज हैं। देवांश समझता था- अगर ठकरियाल को जरा भी इल्म हो गया तो जिस अवस्था में उसे लाश मिलने वाली थी, उसमें वह कूदकर उन्हें ही राजदान का कातिल समझ बैठेगा और यह स्थिति उनके लिए भयावह होगी।
“क्या यह बात कम आश्यचर्यजनक नहीं है कि मेरे बार-बार बल्कि सात चार घंटी टनटनाये जाने के बावजूद तुम्हारी तरह दिव्या जी की नींद नहीं टूटी जबकि वे नींद की गोलियां लेकर भी नहीं सोती?”
“मैं यही हूं मिस्टर ठकरियाल।" देवांश के कुछ कहने से पहले वहां दिव्या की आवाज गूंजी - “तुम्हारी सारे बातें सुन रही हूं।"
दोनों ने एक साथ आवाज की दिशा में देखा - दिव्या नाईट गाऊन के ऊपर फर का एक कोट डाले हुए थी। नाइट गाऊन भी वह नहीं जो उसने राजदान की मौत के वक्त पहन रखा था।
ठकरियाल ने कहा- 'कमाल है। औरत के बावजूद आप इतनी देर तक केवल सुनती रहीं, बोली नहीं कुछ। मैंने तो सुना था औरतों की जुबान में खुजली होने लगती है।'
“जरूरत ही नहीं पड़ी बोलने की। जो सवाल मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे वे सब एक-एक करके देवांश पूछ रहा था और तुम जवाब दे रहे थे।” कहने के साथ धीरे-धीरे चहलकदमी करती वह उनके नजदीक पहुंच गई। उसके चेहरे पर जो दृढ़ता और लापरवाही थी उसने देवांश को हैरान कर दिया। बड़ी ही खूबसूरत एक्टिंग कर रही थी वह। चेहरे पर मौजूद किसी भी चिन्ह ने नहीं लगता था कि उसे राजदान के बैडरूम में पड़ी उसकी लाश के बारे में जानकारी है। इस क्षण से पहले जितनी नर्वस वह थी, उसे देखकर देवांश को हर पल वह चिंता सता रही थी कि दिव्या किसी भी इन्वेसिटगेशन का सामना कैसे कर सकेगी। कहीं उसे भी न ले डूबे । परन्तु इस वक्त की दिव्या को देखकर उसे लगा-उससे कोई गलती होने वाली नहीं है। उल्टा वही, भरसक चे टा के बावजूद खुद को उतना नार्मल नहीं दिखा पा रहा था, जितनी दिव्या नजर आ रही थी।
“यानी आपको अपने हर सवाल का जवाब बगैर सवाल किये मिल गया है?”
“केवल एक सवाल को छोड़कर जिसे देवांश ने अब तक नहीं पूछा "
“आप पूछ डालिये।”
“जब ' उन्होंने ' तुमसे यह कहा था, तुम्हें चोरों की तरह उनसे मिलना है। खासतौर पर मुझसे और देवांश से छुपकर, तो उनके दरवाजा न खोलने पर मेनगेट का रास्ता क्यों पकड़ा? इतनी जोर-जोर से घंटी बजाकर विला में आने का फैसला क्यों किया कि मेरी ओर देवांश की नींद खुल गई। साथ ही वह सब बता भी दिया जो उन्होंने हमें पता न लगने की हिदायत दी थी। क्या मैं जान सकती हूं इंस्पैक्टर-उनकी हिदायत के ठीक उल्टा क्यों चले तुम?"
“क्या करता?” ठकरियाल ने कहा- “जब बार-बार की कोशिश के बावजूद बाथरूम और बैडरूम के बीच का दरवाजा नहीं खुला तो ठीक यही सोचा मैंनें कि अब क्या किया जाये? खूब सोच-समझकर मेनगेट पर और घंटी टनटनाने का निश्चय किया। कारण एक ही था कि कहीं राम नाम सत्य तो नहीं हुई पड़ी है राजदान साहब की ? काफी कोशिश के बावजूद इसके अलावा उनके द्वारा द्वार न खोलने का और कोई कारण नहीं सोच सका मैं । और यह कारण ऐसा था कि चुपचाप लौट जाना बेतुका लगा।"
“फिर भी जो कुछ उन्होंने हमसे छुपाने के लिए कहा था यह बताने की क्या तुक हुई?"
“अगर आप यहीं थी तो जरूर देखा-सुना होगा - दरवाजा खोलते ही देवांश बाबू ने अपने सवालों के मिसाइल इस तरह दागने शुरू कर दिये थे जैसे 'टाईगर हिल' से पाकिस्तानी सेना के गोले भारतीय गांवों पर गिर रहे हो। उनसे बचने का एक ही रास्ता था मेरे पास यह कि सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र बनकर इनके हर सवाल का जवाब देता चला जाऊं। सच न बोलता तो इस एक ही सवाल के साथ ये मेरी बखिया उधेड़ देते कि रात के इस वक्त आखिर में यहां कर क्या रहा था? कम्पनी गार्डन तो यह था नहीं जहां टहलने का बहाना मारकर बरी हो जाता।”
उसके जवाब के बाद काफी देर तक खामोशी छाई रही।
अचानक ठकरियाल ने कहा“आप लोगों की इजाजत हो तो राजदान साहब के कमरे में जाकर यह जानने की कोशिश कर ली जाये, वे नींद की गोली के नशे में अंटागाफिल हुए पड़े हैं या राम नाम सत्य हो चुकी है ?” सुरसुरी सी दौड़ गई दिव्या और देवांश के जिस्मों में।
वे जानते थे-ठकरियाल के वहां कदम पड़ते ही खेल शुरू हो जायेगा | क्या वहां वे स्थिति देखकर वह उसी नतीजे पर पहुंचेगा जिस पर वे उसे पहुंचाना चाहते हैं यह कुछ ओर ही कुछ ऐसा सोच बैठेगा जिसकी वे कल्पना नहीं कर सके हैं। कहीं इस पहली ही सीढ़ी पर पांच करोड़ कमाने की उनकी योजना पर पानी तो नहीं फिर जाने वाला है ? ऐसी सैकड़ों आशंकाएं उनके दिमाग में घुमड़ रही थीं।
उन तीनों के अलावा एक शख्स और था वहां। वह, जो फर्स्ट फ्लोर की बालकनी के एक पिलर की बैक में छुपा सब कुछ सुन रहा था । वह, जिसके गले में एक साधारण कैमरा और हाथों में वीडियो कैमरा था। वह, जिस पर ठकरियाल, दिव्या और देवांश में से किसी को नजर नहीं पड़ सकी थी। और, वह जिसने खुद को उनके सामने लाने की कोई कोशिश नहीं की।
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