सोमवार : पन्द्रह मई : मुम्बई दिल्ली

अट्ठारहवीं मंजिल पर, ब्रजवासी और शिवांगी शाह को जो नया सुइट मिला था, उसका नम्बर 1804 था और वो गलियारे की उसी साइड में था जिसमें कि सुइट नम्बर 1808 था। यानी कि उसमें और उनके सुइट के बीच तीन कमरे और थे जिसकी वजह से पिछली रात को 1808 की कोई निरन्तर निगाहबीनी कर पाना सम्भव नहीं हुआ था अलबत्ता आधी रात तक गाहेबगाहे वो उधर तांक झांक करते रहे थे जिसका नतीजा कुछ नहीं निकला था। शिवांगी महसूस कर रही थी कि उन्हें सामने की कतार में कोई कमरा मिला होता तो वो 1808 की निगाहबीनी करने के सिलसिले में सहूलियत का काम साबित होता — ऐन सामने मिलता तो बात ही क्या थी — लेकिन वो जानती थी कि पिछली रात ऐसी कोई खास फरमायश शक्की निगाहों से देखी जा सकती थी, नाकुबूल की जा सकती थी और उनके मिशन को फेल कर सकती थी। अभी भी वो लिफ्ट, सीढ़‍ियों और फायर एस्केप का झमेला डाल कर गलियारे के बिल्कुल कोने में ही फंसने से बच गये थे।
शोलू उनके उस फ्लोर पर शिफ्ट किये जाने से पहले ही अपनी ड्यूटी खत्म करके जा चुका था, इसलिये पिछली रात उससे भी कोई मदद हासिल हो पाना मुमकिन नहीं रहा था।
लिहाजा आधी रात के बाद वो इस सस्पेंस के साथ ही सोये थे कि उनसे चार कमरे दूर सोहल की बीवी या बच्चा मौजूद थे या नहीं?
अगली सुबह शिवांगी अपने बलबूते पर स्थापित करने में कामयाब जरूर हो गयी कि सुइट नम्बर 1808 के मामले में दाल में कहीं काला जरूर था।
सुबह नौ बजे लापरवाही से टहलती वो लॉबी में पहुंची। वहां उसने रिसेप्शन के पीछे बने चार सौ पचास कमरों के विशाल की बोर्ड पर निगाह डाली तो पाया कि सुइट नम्बर 1804 की इन्डैक्स विंडो में मिसेज एण्ड मिस्टर शाह का कार्ड लगा हुआ था लेकिन वैसा कोई कार्ड 1808 की इन्डेक्स विंडो में नहीं लगा हुआ था।
लॉबी में कई पब्लिक टेलीफोन बूथ मौजूद थे जिनमें से एक में वो दाखिल हुई और वहां से उसने होटल का जनरल टेलीफोन नम्बर मिलाया।
“सी-व्यू। गुड मार्निग।” — तत्काल आपरेटर का उत्तर मिला।
“सुइट नम्बर 1808 में लगाइये।” — शिवांगी अधिकारपूर्ण स्वर में बोली।
“वो तो खाली है!” — अप्रत्याशित जवाब मिला।
“क्या?”
“मैडम, दैट रूम इज नाट आकूपाइड।”
“मैं अट्ठारहवीं मंजिल के सुइट नम्बर 1808 की बात कर रही हूं।”
“मैडम, मैं भी उसी की बात कर रही हूं।”
“ये होटल सी-व्यू ही है न? जो कि जुहू पर है?”
“यस, मैडम।”
“लगता है मेरे से कोई गलती हुई है। सॉरी।”
“यू आर वैलकम, मैडम।”
वो वापिस अट्ठारहवीं मंजिल पर अपने सुइट में पहुंची।
“डैडियो” — वो ब्रजवासी से बोली — “हमें बच्चे की मां की शक्ल दिखाई दे या न दे, हमें सोहल उर्फ कौल, उर्फ राजा साहब उर्फ काला चोर उस कमरे में आता दिखाई दे या न दे लेकिन अब मुझे यकीन है कि हमारी कबूतरी 1808 में ही है।”
“कैसे जाना?” — ब्रजवासी उल्सुक भाव से बोला।
शिवांगी ने बताया।
“ओह!” — ब्रजवासी बोला — “लेकिन अब कबूतरी को काबू में कैसे किया जाये?”
“डैडियो, हमारी खुशकिस्मती है कि हमें अट्ठारहवीं मंजिल पर शिफ्ट करने के मामले में किसी ने अड़ंगा नहीं लगाया वरना वो मालिक की बीवी है, उसके लिये तो पूरा फ्लोर भी खाली रखा जा सकता है!”
“ऐसी कोई कोशिश नहीं की गयी, इसका मतलब ये तो नहीं कि वो हमारी कबूतरी नहीं?”
“नहीं। इसका मतलब बेध्यानी है, लापरवाही है, जो कि हमारे हक में है।”
“हक तो हुआ, हक का इस्तेमाल कैसे हो?”
“रिस्क लेना पड़ेगा।”
“कैसे?”
“उठ कर बाल्कनी में चलो, बताती हूं।”
वे बाल्कनी में पहुंचे।
“डैडियो” — शिवांगो बोली — “जो औरत गलियारे में कदम नहीं रखती, उसके बाल्कनी में आने की सम्भावना भी कम ही है।”
“तो?”
“बीच की तीन बाल्कनियां फांद के यहां से उसकी बाल्कनी में पहुंचा जा सकता है।”
“कैसे पहुंचा जा सकता है? ये आपस में जुड़ी हुई कहां हैं?”
“तभी तो फांद के कहा! देखो, हमारी और अगली बाल्कनी की साइड की मुंडेरों में सिर्फ तीन फुट का फासला है। इधर की मुंडेर से चढ़कर उधर की मुंडेर पर पांव रखा जा सकता है।”
“और पूरी सहूलियत से अट्ठारह मंजिल नीचे गिरा जा सकता है।”
“अरे, नहीं गिरोगे। सिर्फ तीन फुट का तो फासला लांघना है!”
“किसने लांघना है?”
“तुमने लांघना है और किसने लांघना है?”
“पागल हुई है! मैं मुंडेर पर चढ़ूंगा! मैं चढ़ कर दूसरी मुंडेर पर पहुंचूंगा! अरे, मुझे तो बाल्कनी से नीचे झांकने में डर लगता है।”
“फिर कैसे बीतेगी?”
“तू कोशिश कर।”
“मेरा काम बाल्कनियां फांदना नहीं है।”
“अरे, नौजवान है तू। तेरी कुलांच तो हिरणी जैसी होगी!”
“पटा रहे हो?”
“पटी तो तू पहले से हुई है, अब तो जरा हवा भर रहा हूं तेरे में।”
“मैं तुम्हारी साफगोई की दाद देती हूं।”
“तो फिर...”
“बाल्कनी के दरवाजे की चिटकनी भीतर से बन्द हो सकती है। वहां पहुंच जाने के बाद भीतर दाखिला न हो सका तो हिरणी की कुलांचें किस काम आयीं?”
“इस समस्या का भी कोई हल सोच।”
“सब कुछ मैं ही सोचूं?”
“क्या हर्ज है?”
“चुपचाप शीशा काट कर भीतर हाथ डालकर चिटकनी खोली जा सकती है।”
“शीशा काट कर?”
“हीरे की कलम का और एक सक्शन पम्प का इन्तजाम करना होगा ताकि कटने के बाद शीशा भीतर न जा गिरे।”
“जीती रह, पट्ठी।” — वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला — “वैसे इरादा क्या है?”
“ये भी कोई पूछने की बात है? इरादा यूं उसके सुइट में पहुंच कर उसे और बच्चे को काबू में करना है और यहां लाना है।”
“उसे बाल्कनी फांदने पर कैसे मजबूर करेगी?”
“बुढ़‍या गये हो, डैडी। अरे, वापिस हम धड़ल्ले से उसके साथ आयेंगे। सीधे रास्ते से। साथ रिवॉल्वर किस लिये लाये हैं!”
“ओह!”
दोपहरबाद फोन पर विमल की लूथरा से बात हुई।
“फार्म में जिस मुतवातर आवाजाही का कल मैंने जिक्र किया था” — लूथरा की आवाज आयी — “उसकी वजह मामूली हो सकती है।”
“क्या?” — विमल बोला।
“वहां कंस्ट्रक्शन मैटीरियल — जैसे कि बदरपुर, मिट्टी, सीमेंट वगैरह — पहुंच रहा है। फार्म के पिछवाड़े के एक काफी बड़े हिस्से में पेड़ पौधे, झाड़ झंखाड़ काटे जा रहे हैं और वहां जमीन को हमवार करके मिट्टी, बदरपुर की तहें जमायी जा रही हैं। एक रोडरोलर भी उधर पहुंचा है जो कि जरूर उन तहों को हमवार बनाने के लिये मंगाया गया है।”
“कोई इमारत उठाई जाने की तैयारी है?”
“ऐसा ही कुछ जान पड़ता है, अगर बुनियाद भी खोदी जाने लगी तो तसदीक हो जायेगी।”
“और?”
“कल और आज में झामनानी फार्म के तीन फेरे लगा चुका है। आज पवित्तर सिंह और भोगीलाल भी पहुंचे थे।”
“कंस्ट्रक्शन को दादा लोग खुद सुपरवाइज कर रहे हैं?”
“पिकनिक करते तो नहीं लगे थे! मेरे खयाल से उनकी वहां आमद का तो कोई खास ही मतलब होना चाहिये! खासतौर से झामनानी की आमद का। कंस्ट्रक्शन के किसी काम को वो भला खुद क्यों सुपरवाइज करेगा?”
“ठीक।”
“जानकारी हासिल करने के हमारे साधन सीमित हैं इसलिये असलियत जानने में वक्त लग सकता है।”
“कोई बात नहीं।”
“जनकराज से गोपनीयता का वादा करके मैंने तरसेम लाल की जानकारी निकलवाई है। वो हवलदार झामनानी के हाथों बिका हुआ निकला था और उसकी ये पोल उसके एस.एच.ओ. पर खुल गयी थी। उसने कुबूल किया है कि पचास हज़ार रुपये की रिश्वत की एवज में उसने मायाराम बावा की बाबत मुकम्मल जानकारी झामनानी को दी थी।”
“झामनानी का साफ नाम लिया था उसने?”
“लिया तो साफ ही था लेकिन बाद में मुकर गया था। बाद में कहने लगा था कि उसकी बात किसी बिचौलिये के जरिये हुई थी जिसकी बाबत उसने खुद ही सोच लिया था कि वो झामनानी का आदमी था जबकि असल में ऐसा कतई जरूरी नहीं था।”
“यूं झामनानी को सेव किया उसने?”
“बिल्कुल! न करता तो उसका बयान ही काफी होता पुलिस के लिये झामनानी पर चढ़ दौड़ने के लिये।”
“हूं।”
“पुलिस सबूत बिना काम नहीं करती, इसलिये झामनानी पर हाथ नहीं डाल सकती वरना इस बात में अब कोई दो राय नहीं हो सकती कि मायाराम का अगवा झामनानी की सदारत में दिल्ली के बिरादरीभाइयों का ही कारनामा था।”
“यकीनन था। और इस हरकत के पीछे उनका मिशन मेरी बाबत ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करना था जो कि उन्होंने कर भी ली और उसका विध्वंसक इस्तेमाल भी कर दिखाया जो कि अभी तक जारी है।”
“झामनानी तरसेम लाल के जरिये आपके नये पुराने चेहरों की तसवीरें हासिल करने की भी फिराक में था।”
“तरसेम लाल कहां से हासिल करता?”
“जनकराज कहता है कि उसके पास आपकी ऐसी तसवीरें हैं जो कि उसे मायाराम से हासिल हुई थीं। झामनानी ने पहले जनकराज को ही पटाने की कोशिश कराई थी लेकिन उसकी वो कोशिश कामयाब नहीं हो सकी थी।”
“तरसेम लाल की कोशिश कामयाब हो गयी थी?”
“उसकी भी नहीं हुई थी। जनकराज कहता है कि उसने उसे उस कोशिश में रंगे हाथों पकड़ा था लेकिन तरसेम लाल फिर भी नहीं फंसा था। आखिरकार वो उस जाल में फंसा था जो कि उसके एस.एच.ओ. ने खास उसे फंसाने के लिये फैलाया था। उसी वजह से उसके खड़े पैर इस्तीफा देने की नौबत आयी थी।”
“सिर्फ इस्तीफा देने की?”
“जनकराज कहता है कि एस.एच.ओ. उसकी रहम की फरियाद से पिघल गया था और इसलिये उसने तरसेम लाल का ये लिहाज किया था कि उससे इस्तीफा लिखवा के उसे सस्ता छोड़ दिया था लेकिन वो कम्बख्त अगले ही दिन उसी शख्स की चाकरी में पहुंच गया था जिसकी वजह से कि उसकी नौकरी गयी थी।”
“कैरेक्टरलैस लोगों की यही कारगुजारियां होती हैं।”
“ठीक कहा।”
“कोई और बात?”
“फिलहाल नहीं। रात को फिर फोन करूंगा।”
“ठीक है।”
सम्बन्धविच्छेद हो गया।“
दो बजे शिवांगी सफेद सलैक्स, सफेद स्कीवी और रबड़ सोल के सफेद जूते पहने तैयार थी। उसने गले में एक एयरबैग लटकाया हुआ था जिसमें एक रिवॉल्वर, एक खंजर, एक शीशा काटने की हीरे की कलम और एक फनल जैसे चौड़े मुंह वाला सक्शन पम्प मौजूद था।
उस वक्त फ्लोर वेटर की ड्यूटी पर शोलू था जिसने इस बात की तसदीक की थी कि एक बजे 1808 में लंच की ट्रे और फीडर की बोतल पहुंची थी।
अपने अभियान के लिये मौजूदा वक्त शिवांगी को इसलिये मुनासिब लगा था क्योंकि तब खा पीकर मां बच्चा आराम फरमा रहे हो सकते थे।
ब्रजवासी दिनदहाड़े की उस हरकत के खिलाफ था लेकिन शिवांगी ने उसे आश्वासन दिया था कि पलक झपकते हो जाने वाले उस काम में दिन और रात में कोई फर्क नहीं था। वास्तव में भी वो पलक झपकते ही अपनी बाल्कनी से 1808 की बाल्कनी में पहुंची। उसने शीशे के दरवाजे में से भीतर झांका तो बच्चे को बेडरूम में रखे एक पालने में सोया पाया। बेडरूम में और कोई नहीं था और काफी दायें बायें से झांकने पर भी वो बीच के दरवाजे से — जो कि खुला था — दूसरे कमरे में किसी को मौजूद न देख पायी।
तब उसने अपनी मूल योजना को छोड़ कर एक नये ही इरादे पर अमल करने का फैसला किया।
उसने खिड़की के शीशे पर चिटखनी के करीब सक्शन पम्प को फिक्स किया और फिर उसके गिर्द हीरे की कलम फिराई। उसने यूं कटे दायरे पर हौले से दस्तक देकर सक्शन पम्प को अपनी तरफ खींचा तो शीशे का कटा हुआ गोल टुकड़ा पम्प से चिपका बाकी शीशे से अलग होकर उसके हाथ में आ गया। उसने खाली गोल दायरे में हाथ डालकर भीतर से चिटखनी खोली और दरवाजे को धक्का दिया।
दरवाजा निशब्द खुला।
उसने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली और दबे पांव भीतर कदम रखा।
वो पालने के पास पहुंची, वहां से उसने खुले दरवाजे से बाहर झांका तो फिर भी कोई उसकी निगाहों के दायरे में न आया।
उसने रिवॉल्वर को सलैक्स की बैल्ट में खोंसा, और बच्चे को उठा लिया। खाली पालने में उसने सक्शन पम्प — जिस पर कि शीशे का गोल टुकड़ा तब भी चिपका हुआ था — हीरे की कलम और क्षणिक हिचकिचाहट के बाद खंजर रख दिया। फिर बच्चे को सम्भाले पूर्ववत् दबे पांव वो वापिस बाल्कनी में पहुंची। उसने अपने पीछे द्वार भिड़का दिया, सोते बच्चे को एयरबैग में डाल कर एयरबैग गले में लटका लिया और फिर जैसे हिरणी की तरह कुलांचे भरती वो वहां तक पहुंची थी, वैसे ही वापिस अपने सुइट की बाल्कनी में पहुंच गयी।
उसे लौटा पाकर ब्रजवासी के चेहरे पर तत्काल रौनक आयी लेकिन फिर उसकी जगह उलझन के भावों ने ले ली।
उसका वापिस भी उधर से लौटना अपेक्षित जो नहीं था!
शिवांगी भीतर कमरे में पहुंची तो ब्रजवासी ने जल्दी से बाल्कनी का दरवाजा बन्द करके उसके आगे पर्दा व्यवस्थित कर दियी।
“क्या हुआ?” — वो व्यग्र भाव से बोला।
“बच्चा आसानी से काबू में आ रहा था” — शिवांगी तनिक हांफती हुई बोली — “इसलिये मैंने स्कीम बदल दी।”
“लेकिन बच्चा! सिर्फ बच्चा!”
“मां, देखना, कच्चे धागे से बन्धी चली आयेगी।” — वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली — “और बाप भी।”
“ओह!”
“यहां अब एक सैकेंड भी फालतू रुकना मुसीबत को दावत देना है। किसी भी क्षण कोहराम खड़ा हो सकता है। फिर निकलना मुमकिन ही नहीं रह पायेगा।”
“ठीक है। मैं चैक आउट...”
“जरूरत नहीं। सूटकेस में तुम्हारा तो कुछ है नहीं, मेरी दो तीन ड्रेसें हैं जो कि पुरानी हैं, जिनका कि मैं गम खा सकती हूं। तुम ये एयरबैग सम्भलो और यहां से निकल जाओ।”
“बच्चा एयरबैग में?”
“और क्या जेब में रखोगे?”
“ये रास्ते में कहीं जाग गया और रो पड़ा तो?”
“तो बहुत बुरा होगा।”
“मैं गला घोंट दूंगा साले का।”
“जो मर्जी करना। अब निकलो यहां से।”
“तुम?”
“थोड़ी देर बाद मैं भी निकलती हूं।”
“साथ ही क्यों नहीं?”
“अरे, समझो। फंसें तो दोनों क्यों फंसें? एक आजाद होगा तो दूसरे की रिहाई की कोई जुगत लगा सकेगा।”
“ओह!”
“अब चलो।”
“तुम्हारी ‘थोड़ी देर बाद’ होने से पहले ही यहां कोहराम मच गया तो?”
“मैं इस फ्लोर पर नहीं टिकने वाली। मैं नीचे जाकर बार में या कहीं किसी रेस्टारेंट में बैठूंगी।”
“बढ़िया।”
फिर एयरबैग सम्भाले ब्रजवासी वहां से रुखसत हो गया।
दरवाजे पर एक हल्की सी दस्तक पड़ी।
नीलम ने मैगजीन पर से निगाह उठाकर उधर झांका तो पाया कि एक लिफाफा दरवाजे के नीचे से सरक कर भीतर आ पड़ा था।
उसने मैगजीन एक तरफ डाली और जाकर लिफाफा उठाया। ये देखकर उसे सख्त हैरानी हुई कि लिफाफे पर उसका नाम लिखा था। उसने जल्दी से लिफाफा खोला और उसने भीतर मौजूद दो बार तह किया कागज बाहर निकाला। उसने कागज को खोल कर सीधा किया तो पाया कि वो एक चिट्ठी थी। उसने जल्दी जल्दी चिट्ठी को पढना शुरू किया। लिखा था:
डियर मैडम,
आप से टेलीफोन पर बात करना सम्भव न हो सका इसलिये आप से सम्पर्क बनाने के लिये चिट्ठी का सहारा लेना पड़ा। आप से प्रार्थना है कि चिट्ठी को आगे पढ़ने से पहले आप भीतर बैडरूम में रखे पालने में पड़े अपने बच्चे को थपकी दे आयें ताकि चिट्ठी आप निर्विरोध पढ़ सकें।
नीलम हकबकाई सी कभी चिट्ठी को तो कभी भीतर बेडरूम की तरफ देखने लगी। फिर वो लपक कर बेडरूम में पहुंची।
पालने में बच्चा नहीं था।
उसको अपने दिल की धड़कन रुकती महसूस हुई। तत्काल वो उसकी पसलियों में धाड़ धाड़ बजने लगा।
“हाय रब्बा!” — उसके मुंह से निकला — “सूरज कहां गया!”
वो जानती थी कि उतना छोटा बच्चा पालने से निकल कर कहीं नहीं जा सकता था फिर भी उसने उसके लिये दायें बायें निगाह दौड़ाई। उसकी निगाह वापिस पालने में लौटी तो उसे पालने में पड़ी ऐसी चीजें दिखाई दी जिन्हें कि वहां नहीं होना चाहिये था। उसने उनमें से किसी चीज को पहचाना तो वो खंजर था।
खंजर!
सूरज की जगह खंजर!
क्या मतलब था इसका?
क्या वो कोई सन्देशा था? कोई चेतावनी थी?
उसे सूरज के घोर अनिष्ट की आशंका सताने लगी।
फिर उसकी तवज्जो हाथ में थमी चिट्ठी की तरफ गयी जिसकी कि उसने अभी चन्द सतरें ही पढ़ी थीं। उसने कांपते हाथों से चिट्ठी को आंखों के सामने किया और लरजती निगाहों से उसे पढ़ना शुरू किया। आगे लिखा था:
आप तसदीक कर चुकी हैं कि आपका नौनिहाल पालने में नहीं है। वो होटल में भी नहीं है। वो आपसे कहीं दूर हमारे कब्जे में है। लेकिन इतनी दूर भी नहीं है कि आप उस तक न पहुंच सकें। आपका बच्चा सुरक्षित है और अगर आप फौरन, फौरन से पेश्तर, उसे खुद लेने आयेंगी तो वो सुरक्षित ही रहेगा। आप से अनुरोध है कि आप चुपचाप, अकेले, होटल से निकलें और एक टैक्सी में सवार हो जायें। टैक्सी तक पहुंचने की कोशिश में आपको कोई रोके तो आपने नहीं रुकना है। कोई सवाल करे तो आपने जवाब नहीं देना है। कोई आपके साथ चलने की पेशकश करे तो आपने उसे नाकुबूल करना है। इन तमाम निर्देशों का आप निष्ठा से पालन करेंगी तो टैक्सी के होटल से निकल कर मेन रोड पर पहुंचते पहुंचते आपको अपना बच्चा दिखाई दे जायेगा।
आपके अपने हित में आपको आगाह किया जाता है कि आप इस चिट्ठी को पढ़ते ही फाड़ दें और इस बाबत किसी से कोई बात न करें, खासतौर से बच्चे के बाप से जो कि हम जानते हैं कि सोहल है और होटल में मौजूद है। इस बाबत राजा गजेन्द्र सिंह से, उसके सैक्रेट्री कौल से या काले चोर से बात करना भी सोहल से बात करना ही होगा। आप एक नामचीन गैंगस्टर की बीवी हैं इसलिये समझ सकती हैं कि अक्लमन्द को इशारा किसे कहते हैं। इशारा नहीं समझेंगी, फौरन नहीं समझेंगी तो सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल जूनियर का कटा हुआ सिर तश्तरी में सजाकर आपकी खिदमत में पेश कर दिया जायेगा।
नीचे किसी के हस्ताक्षर नहीं थे।
नीलम ने चिट्ठी के टुकड़े हवा में उछाल दिये और फौरन बाहर को लपकी।
होटल की तरफ से आती सड़क के टी-जंक्शन पर एक मारुति एस्टीम में ब्रजवासी और शिवांगी मौजूद थे।
आगे ड्राइविंग सीट पर हुमने मौजूद था और उसके पहलू में कोली बैठा हुआ था।
पिछले रोज शाम होने से पहले — ‘भाई’ की असीम शक्तियों के सुबूत के तौर पर — टोकस, चिरकुट और हुमने जमानत पर छूट गये थे और अब कोली समेत वो सब ब्रजवासी के एक्सप्रैस बुलावे पर वहां पहुंचे हुए थे।
उनकी कार से थोड़ा परे एक बन्द मैटाडोर वैन खड़ी थी जिसमें टोकस और चिरकुट मौजूद थे।
बच्चा तब भी सो रहा था लेकिन अब वो एयरबैग में नहीं, शिवांगी की गोद में था।
ब्रजवासी रह रहकर पीछे होटल की ओर वाली सड़क पर निगाह दौड़ा रहा था और पहलू बदल रहा था।
“आयेगी, डैडियो, आयेगी।” — शिवांगी जैसे उसकी बेचैनी की वजह भांपती हुई बोली।
“उम्मीद तो मुझे भी पूरी पूरी है लेकिन एक अन्देशा सता रहा है।” — ब्रजवासी बोली।
“क्या?”
“अपने बच्चे की खैर मनाती मां आयेगी या सोहल की बीवी आयेगी?”
“तुम्हें अभी भी शक है कि वो सोहल की बीवी नहीं है, ये सोहल का बच्चा नहीं है?”
“अन्देशा है।”
“हमने चिट्ठी में साफ उसे एक नामचीन गैंगस्टर की बीवी बताया है और बच्चे के बाप को सोहल बताया है। ये भी हमने साफ लिखा है कि सोहल ही राजा गजेन्द्र सिंह है और वो ही उसका सैक्रेट्री कौल है। अगर वो औरत सोहल की बीवी न हुई तो आते ही सबसे पहले वो यही हालदुहाई देगी कि वो किसी सोहल को नहीं जानती थी और इस बच्चे का बाप तो फलां आदमी था।”
“हूं।”
“तब उसे इस बात की भी कोई सफाई देनी होगी कि क्यों वो होटल में छुप कर रह रही थी और क्यों होटल वाले यूं छुप कर रहने में उसकी मदद कर रहे थे? अगर वो इन बातों का कोई माकूल जवाब न दे सकी तो...”
“आ रही है।” — ब्रजवासी एकाएक बोला।
तत्काल शिवांगी की निगाह पीछे सड़क की तरफ उठ गयी जिधर से एक टैक्सी उधर आ रही थी और जिसकी पिछली सीट पर बैठी नीलम उन्हें साफ दिखाई दे रही थी।
तभी एक काली एम्बैसेडर उनकी बगल से गुजरी।
“अरे!” — काली एम्बैसेडर में शोहाब की बगल में बैठा इरफान एकाएक बोला — “ये तो बॉस की बीवी है!”
शोहाब ने उस टैक्सी की तरफ देखा जो कि उसी क्षण उनके पहलू से गुजरी थी।
“ये अकेली कहां जा रही है?” — इरफान बोला।
“कोई शापिंग वगैरह करने जा रही होगी!” — शोहाब लापरवाही से बोला।
“नहीं, बिरादर। कुछ गड़बड़। बॉस उसे ऐसे कहीं नहीं जाने देने वाला।”
“तो?”
“गाड़ी रोक।”
तत्काल ब्रेकों की चरचराहट के साथ एम्बैसेडर रुकी।
“मैं यहीं उतरता हूं और पैदल होटल जाता हूं। मैं जाकर बॉस से पता करता हूं कि क्या माजरा है! तू गाड़ी घुमा और खामोशी से उसके पीछे लग। वो शापिंग को भी निकली है तो तेरे खामोशी से पीछे होने में कोई वान्दा नहीं। समझा गया?”
शोहाब ने सहमति में सिर हिलाया।
इरफान टैक्सी से उतर गया।
एम्बैसेडर यू टर्न काट कर जिधर से आयी थी, उधर ही वापिस चल दी।
नीलम की टैक्सी मारुति एस्टीम के करीब पहुंची तो उसे उसके पिछले शीशे में से सूरज की झलक दिखाई दी। कोई नौजवान लड़की सूरज को थामे थी और लगता था कि नीलम को दिखाने के लिये ही वो बच्चे को ऊंचा कर रही थी।
फिर एस्टीम स्टार्ट हुई और टैक्सी से आगे सड़क पर दौड़ने लगी।
सूरज पिछले शीशे से दिखना बन्द हो गया। शीशे में से उसे लड़की का हाथ यूं हिलता दिखाई दिया जैसे वो उसे पीछे आने को कह रही हो।
“उस गाड़ी के पीछे चलो।” — नीलम व्यग्र भाव से ड्राइवर से बोली।
“एस्टीम के?” — ड्राइवर बोला — “जो अभी उस मैटाडोर वैन के बाजू से गुजरी?”
“हां। वही। पीछे चलो उसके।”
“कहां तक?”
“जहां तक वो जाये।”
“ठीक।”
आशंकित इरफान होटल में दाखिल हुआ।
एक हाउस टेलीफोन से उसने ‘राजा साहब’ का नम्बर लगाया।
कोई जवाब न मिला।
तभी ‘राजा साहब’ उसे लॉबी में दिखाई दिये।
वो रेस्टोरेंट से निकल कर साइड की लिफ्टों की ओर बढ़ रहे थे।
इरफान ने फोन वापिस क्रेडल पर पटका और लपक कर विमल के पास पहुंचा।
विमल ने उसके आशंकित चेहरे पर निगाह डाली तो वो भी आशंकित हो उठा।
“क्या बात है?” — वो सकपकाया सा बोला।
इरफान ने बताया।
“तूने ठीक से नहीं पहचाना।” — विमल तीखे स्वर में बोला — “तुझे वहम हुआ।”
“धीरे, बाप, धीरे।”
“नीलम ऐसे नहीं जा सकती।”
“मेरे को वहम हुआ तो वो इधरीच होगी?”
“हां। देख।”
इरफान फ्रंट की लिफ्टों की ओर लपका।
कुछ सोच कर विमल भी उसके साथ हो लिया।
एक्सप्रैस लिफ्ट पर सवार होकर वो सीधे अट्ठारहवीं मंजिल पर पहुंचे।
नीलम अपने सुइट में नहीं थी।
लेकिन और बहुत कुछ वहां था जो नहीं होना चाहिये था।
पालने में खंजर वगैरह।
हवा में उड़ते कागज के टुकड़े।
उनसे अलग पड़ा एक लिफाफा जिस पर सिर्फ एक शब्द नीलम लिखा था।
विमल ने कागज के टुकड़ों को इकट्ठे करके उन्हें किश्तों में पढ़ा, औना पौना पढ़ा, तो भी तमाम माजरा उसकी समझ में आ गया।
“चोट हो गयी।” — वो कम्पित स्वर में बोला।
“कैसे हो गया ये करतब?” — इरफान के मुंह से निकला।
“लिफाफे पर नीलम का नाम लिखा है। चिट्ठी यकीनन इस लिफाफे में पहुंची थी। सिर्फ नाम लिखी चिट्ठी दस्ती ही पहुंच सकती है। यानी कि लिखने वाला यकीनी तौर पर जानता था कि नीलम यहां इस कमरे में मौजूद थी। तभी उसने सिर्फ उसका नाम लिख कर ये चिट्ठी यहां या पहुंचाई या पहुंचवाई। फ्लोर वेटर को बुला। शायद वो कुछ जानता हो!”
इरफान ने सहमति में सिर हिलाया और बाहर को लपका।
जब वो वापिस लौटा तो शोलू उसके साथ था।
शोलू को विमल ने फौरन पहचाना। वो ‘कम्पनी’ के उन चार प्यादों में से एक था दिल्ली, जो माडल टाउन में नीलम की ताक में मौजूद थे, जिन्हें मुबारक अली ने उसकी मौजूदगी में थामा था लेकिन जिनकी उसने इस शर्त पर जानबख्शी कर दी थी कि वो फौरन दिल्ली से कूच कर जाये।
उसके सामने वेटर की यूनीफार्म में खड़ा प्यादा बाबू कामले का जोड़ीदार था।
यानी कि होटल अभी भी प्यादों की घुसपैठ से आजाद नहीं था।
“क्या नाम है तेरा?” — विमल कर्कश स्वर में बोला।
“शोलू, साहब।” — वो अदब से बोला।
“कम्पनी’ का पुराना प्यादा है?”
तत्काल शोलू के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। एकाएक अपने सामने खड़ा होटल का सरदार मालिक उसे शेर जैसा खूंखार लगने लगा।
“‘कम्पनी’!” — वो हकलाया सा बोला — “प्यादा!”
“पुराना प्यादा है तो जानता होगा कि नीचे बेसमेंट में ‘कम्पनी’ का जल्लाद जोजो बखिया के हुक्म से उस शख्स से क्या सलूक करता था जो कि अपनी बद्किस्मती से बखिया के कहर को दावत दे बैठता था! भूल गया हो तो मैं याद दिला देता हूं। जोजो उसे बेसमेंट में एक हुक के सहारे उल्टा लटका देता था और फिर चाकू से यूं उसके जिस्म से गोश्त उतारता था जैसे कि कलाल बकरे पर से गोल बोटी उतारता है। आखिर में जब तक उसके प्राण निकलते थे, तब तक हुक से उसकी हड्डियों का पिंजर टंगा होता था और फर्श पर उसके गोश्त की परतों का ढेर लगा होता था। तुझे ये भी मालूम होगा कि बेसमेंट से उठी कैसी भी चीख पुकार की आवाज बाकी इमारत में कतई सुनाई नहीं देती। शोलू नाम बोला तू अपना! शोलू, इस होटल की बदनाम बेसमेंट बहुत अरसे से खामोश है, आज उसकी दीवारें तेरी चीखों से थरथरायेंगी। इरफान, इसे नीचे पहुंचाने का इन्तजाम कर।”
“सर! सर!” — आतंकित शोलू बोला — “मैंने क्या किया है?”
“साले!” — इरफान ने घुड़का — “ये राजा साहब तेरे को नहीं, तू राजा साहब को बोलेगा।”
“मैंने कुछ नहीं किया।”
“फिर डरता क्यों है?”
“गरीबमार होगी, इसलिये डरता हूं।”
“तू” — विमल बोला — “‘कम्पनी’ का प्यादा नहीं है?”
“न... हीं। ...हां... हूं।”
“तो फिर होटल में क्या कर रहा है? चार दिन पहले, जब ‘कम्पनी’ के और एक सौ छप्पन प्यादों को यहां से बाइज्जत छुट्टी करने का मौका दिया गया था तो तू क्यों पीछे बना रहा? परसों जब ग्यारह और प्यादे निकाले गये थे तब भी तू क्यों पीछे छुप कर बैठा रहा? तू समझता था कि राजा साहब अन्धे और मूर्ख हैं, एक तू ही सयाना है जो यहां बना रहेगा?”
शोलू के मुंह से बोल न फूटा।
“जवाब दे!” — इरफान बोला।
“मैं क्या बोलूं, साहब?” — वो गिड़गिड़ाया।
“अपनी करतूत बोल। क्या किया? किसके लिये किया? जल्दी बोल। टेम खोटी न कर।”
“एक बात और याद रख।” — विमल बोला — “परसों जो ग्यारह प्यादे निकाले गये थे, उनकी पीछे बचे तेरे जैसों की बाबत मारवाडे इसलिये जुबान नहीं खुलवा सका था क्योंकि उसने पूछताछ के शराफत के तरीके आजमाये थे। तेरे से कोई शराफत से नहीं पेश आने वाला। तू जुबान अपनी मर्जी से खोलेगा। फैसला तूने ये करना है कि ऐसा तू अपने पैरों पर खड़ा खड़ा करेगा या बेसमेंट में हुक से उल्टा लटका बकरे की तरह जिबह होता करेगा।”
बेसमेंट के जिक्र पर शोलू का शरीर फिर सिर से पांव तक कांपा।
इरफान एक क्षण उसके बोलने की प्रतीक्षा करता रहा, फिर दृढ़ कदमों से उसकी तरफ बढ़ता बोला — “ये ऐसे नहीं मानेगा।”
“साहब!” — शोलू घिघियाया — “साहब, मैंने कुछ नहीं किया। मैंने तो सिर्फ...”
“क्या सिर्फ?” — इरफान उसके सामने ठिठकता बोला।
“मैंने तो सिर्फ चिट्ठी भीतर सरकाई थी और...”
“और क्या?”
“...फीडर की बाबत बताया था।”
“फीडर?”
“दूध की बोतल! बच्चे की!”
“फीडर का क्या किस्सा है?” — विमल उसे घूरता हुआ बोला।
शोलू ने झिझकते हुए बताया।
विमल हक्का बक्का सा उसका मुंह देखने लगा।
“मैंने बस इतना किया?”
“इतना भी क्यों किया?” — इरफान बोला।
“जीवाने बोला।”
“जीवाने! वो कौन है?”
“इधर ही वेटर है मेरी तरह।”
“पण प्यादा है?”
“हां।”
“आज ड्यूटी पर है?”
“हां।”
“ऐसे और कितने हैं?”
“बस दो और हैं।”
“नाम बोल।”
“एक सिक्योरिटी गार्ड है, एक बैलब्वाय है।”
“नाम बोल।”
“रामदेव। पाण्डु।”
“ये बाद की बातें हैं।” — विमल उतावले स्वर में बोला — “असल सवाल पूछ।”
“जो किया” — सहमति में सिर हिलाता इरफान बोला — “किस के लिये किया?”
तब सूरत के मिसेज एण्ड मिस्टर शाह का जिक्र आया जिन्होंने परसों रात छठी मंजिल के एक सुइट में चैक इन किया था लेकिन कल शाम को सुइट तब्दील कराकर उस फ्लोर के 1804 में पहुंच गये थे।
“हैं कौन ये लोग?” — इरफान बोला।
“मैं नहीं जानता। मेरे को उनकी बाबत जो बोला, जीवाने बोला।”
“वो जानता है?”
शोलू ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
“इधर मंगवा।” — विमल बोला।
सहमति में सिर हिलाता इरफान टेलीफोन पर पहुंचा।
“वो दोनों” — पीछे विमल शोलू से सम्बोधित हुआ — “इस वक्त अपने कमरे में हैं?”
“नहीं, सर।” — शोलू बोला।
“कहां हैं?”
“मालूम नहीं। मैंने तो बस उन्हें जाते देखा था।”
“इकट्ठे?”
“नहीं। अलग अलग। पहले एक एयरबैग के साथ मिस्टर शाह गये थे, उनसे थोड़ी देर बाद मिसेज शाह भी चली गयी थीं। वो जाती बार खाली हाथ थीं।”
“उनका कमरा दिखा।”
शोलू उसे 1804 के सामने लेकर गया।
विमल ने दरवाजे का हैंडल घुमाया तो पाया कि वो खुला था। वो भीतर दाखिल हुआ। उसने पाया कि चाबी दूसरी तरफ की-होल में लटक रही थी। मामूली पड़ताल से उसे मालूम हुआ कि सामान के नाम पर वहां सिर्फ एक सूटकेस था जिसमें कुछ जनाना पोशाकें थीं।
मरदाना कपड़ा वहां एक भी नहीं था।
यही बात ये सिद्ध करने के लिये काफी थी कि होटल के वो कोई साधारण मेहमान नहीं थे , वो वहां पहुंचे ही नीलम की फिराक में थे।
नीलम की?
या उसकी?
तभी जीवाने के साथ इरफान वहां पहुंचा। उनके साथ दो सशस्त्र सिक्योरिटी गार्ड थे लेकिन जीवाने जरा भी भयभीत नहीं लग रहा था। जो थोड़ा बहुत विचलित वो हुआ, वो शोलू की कागज की तरह सफेद सूरत देखकर हुआ।
“उन शाह करके औरत आदमी के बारे में जो कुछ जानता है” — विमल कर्कश स्वर में बोला — “एक सैकेंड में बोल।”
जवाब में मजबूती से होंठ भींच कर जीवाने ने जैसे अपनी ढिठाई का परिचय दिया।
“दिल्ली में तुम्हारा उस्ताद बाबू कामले तुम सब की तरफ से बोला था कि तुम सिर्फ हुक्मबरदार प्यादे थे जो सोहल और गजरे के बीच लगी बाजी में बिछे हुए थे...”
जीवाने ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।
“...और ये कि तुम लोग मजबूर थे, ‘कम्पनी’ की चाकरी और गजरे की ताबेदारी वो मक्खी थी जिसे न तुम उगल सकते थे और न निगल सकते थे। अब न ‘कम्पनी’ बाकी है, न गजरे बाकी है। अब किस की चाकरी है और किस की ताबेदारी है?”
“अ... आ... आप को क.. कैसे मालूम?”
“क्या?”
“कि बाबू कामले ऐसा बोला था?”
“मैं गलत बोला?”
जीवाने खामोश रहा।
“तू अपनी जुबान बन्द रख सकता है लेकिन फिर जिन्दा नहीं रह सकता।”
जीवाने फिर भी खामोश रहा।
“इरफान! इसे उठा के नीचे फेंक दे।”
इरफान ने तत्काल उसे दबोचा।
जीवाने उसकी पकड़ में हाथ पांव पटकने लगा।
दोनों गार्ड उसकी मदद के लिये आगे बढ़े तो इरफान ने उन्हें परे ही रहने का इशारा किया और फिर अपनी पकड़ में तड़पते जीवाने को लेकर बाल्कनी में पहुंचा जहां उसने जीवाने को बाल्कनी से बाहर उल्टा लटका दिया।
जीवाने ने अट्ठारह मंजिल नीचे सड़क का नजारा किया तो उसके प्राण कांप गये।
“छोड़ दो।” — वो चिल्लाया — “छोड़ दो।”
“छोड़ ही तो रहा हूं।” — इरफान बोला।
उसने उसकी एक टांग पर से हाथ हटा लिया। अब जीवाने सिर्फ उसके हाथ में थमे अपने टखने के सहारे नीचे लटका हुआ था।
“बताता हूं।” — वो बिलखता सा बोला — “बताता हूं।”
“कोई जल्दी नहीं है। नीचे पहुंच के बतायेगा तो भी चलेगा।”
“बताता हूं, बाप, बताता हूं।”
इरफान ने उसे वापिस खींचा, उसे उसके पैरों पर खड़ा किया और वापिस कमरे में धकेला।
इस बार विमल को उससे कोई सवाल न करना पड़ा।
पहले ही उसकी वाणी मुखर हो उठी।
मारुति एस्टीम और नीलम की टैक्सी आगे पीछे तुलसी पाइप रोड पर दौड़ रही थीं।
नीलम व्याकुल थी, भयभीत थी।
पता नहीं वो सिलसिला कहां जाकर खत्म होने वाला था?
वो अपने टैक्सी ड्राइवर को रफ्तार बढ़ाकर टैक्सी को एस्टीम के पहलू में पहुंचाने को कहती थी तो या तो एस्टीम और तेज हो जाती थी और या हमेशा उनके आसपास ही चलती दिखाई देती एक बन्द मैटाडोर वैन एस्टीम और टैक्सी के बीच में आ जाती थी।
तब तक एक भी ऐसा मौका नहीं आया था जबकि रैड ट्रैफिक लाइट या किसी और वजह से गाड़ियों को रुकना पड़ा था।
लेकिन आखिरकार ऐसा एक मौका बना।
एक चौराहे पर पहुंचती एस्टीम के मुंह पर ट्रैफिक लाइट लाल हो गई।
उससे दो कारें पीछे नीलम की टैक्सी भी रुकी।
नीमल को एस्टीम तक पहुंचने का वो अच्छा मौका लगा।
लेकिन अभी उसने टैक्सी का दरवाजा ही खोला था कि पहलू में आ खड़ी हुई मैटाडोर वैन का उस ओर का स्लाइडिंग डोर खुला और उसमें से टोकस और चिरकुट बाहर निकले। चिरकुट टैक्सी का अगला दरवाजा खोल कर भीतर दाखिल हुआ और उसने ड्राइवर की पसलियों में रिवॉल्वर की नाल सटा दी। पिछले खुले दरवाजे से टोकस ने नीलम को बाहर घसीट लिया और पलक झपकते उसे लेकर मैटाडोर वैन में सवार हो गया। उनके पीछे मैटाडोर का दरवाजा बन्द होते ही चिरकुट भी टैक्सी से निकला और मैटाडोर की ड्राइविंग सीट पर जा बैठा।
तभी सामने बत्ती हरी हुई और फिर मैटाडोर ये जा वो जा।
एस्टीम भी चौराहा पार कर गयी।
सब कुछ सरेराह, दिन दहाड़े, पलक झपकते हुआ।
भय से टैक्सी ड्राइवर की घिग्घी बन्धी हुई थी। वो तभी सचेत हुआ जबकि पीछे कई वाहनों के हॉर्न निरन्तर बजने लगे। हड़बड़ा कर उसने टैक्सी को गियर में डाला और आगे बढ़ाया।
जब तक वो चौराहे के पार पहुंचा, तब तक सड़क पर न कहीं मैटाडोर का नामोनिशान था और न एस्टीम का।
वो तमाम ड्रामा टैक्सी के पीछे लगे शोहाब ने भी स्टेज होता देखा।
कई बार उसे एस्टीम की पिछली खिड़की से बच्चे की झलक मिली थी जिसे कि बिना पहचाने भी वो समझ सकता था कि वो नीलम का था। अब ये भी उसके सामने स्पष्ट हो चुका था कि बच्चे की वजह से ही नीलम एस्टीम के पीछे थी। यानी कि वो शापिंग जैसे किसी अपनी मर्जी के काम की वजह से नहीं, बच्चे की सलामती की वजह से मजबूरन होटल से अकेली निकली हुई थी।
शोहाब ने उसे मैटाडोर में सवार कराया जाता देखा तो उस बाबत उसके मन में कोई शंका थी तो वो भी दूर हो गयी।
ट्रैफिक के फ्लो के साथ उसने भी चौराहा पार किया।
अब उसके सामने एक भारी दुविधा थी।
क्या वो पुलिस की मदद लेने की कोशिश करे?
उसकी अक्ल ने जवाब दिया कि ऐसी किसी कोशिश में बच्चे की जान जा सकती थी, मां की जान जा सकती थी, दोनों की जान जा सकती थी।
तो क्या करे?
पीछे लगा रहे?
किसके? बच्चे के या मां के?
मां बालिग औरत थी, अपने बचाव की खुद भी कोई सूरत निकाल सकती थी। बच्चा लाचार था, मदद का मोहताज था।
फिलहाल तो मैटाडोर और एस्टीम एक ही रास्ते जा रही थीं लेकिन आगे कहीं उनके दो रास्ते पकड़ने की सूरत में उसने एस्टीम के पीछे लगने का फैसला किया।
आकरे ने उस टैक्सी के नम्बर का पता लगा लिया था जिस पर सवार होकर नीलम होटल से रवाना हुई थी। तत्काल कई गाड़ियां चारों दिशाओं में फैल जाने के लिये भेज दी गयी थीं ताकि वो टैक्सी जहां भी दिखाई देती, उसे काबू में किया जा सकता।
इरफान ने अपने आफिस में बेचैनी से चहलकदमी करते विमल को देखा तो उसका दिल भर आया।
“बाप” — वो धीरे से बोला — “शोहाब तेरी बीवी के पीछू। वो जल्दी कोई खबर देगा। जब तक शोहाब से बात नहीं हो जाती, तब तक नाउम्मीदी नक्को।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
“वो लड़की शिवांगी शाह... जिसका हुलिया इतनी बारीकी से मैं उस वेटर जीवाने से और दूसरे वेटर शोलू से निकलवाया... उससे मेरे को कुछ याद आ रहा है।”
“क्या?”
“ये वो ही लड़की जान पड़ती है जो तीन दिन पहले चैम्बूर के श्मशान घाट पहुंची थी और हंगामा करती मांग करने लगी थी कि उसको उसके मामू की लाश के अन्तिम दर्शन कराये जायें। तब उसके साथ एक आदमी भी था जो लड़की की हिमायत कर रहा था। उस आदमी का हुलिया भी जीवाने और शोलू के बताये मिस्टर शाह के हुलिये से मिलता है।”
“क्या कहना चाहता है?”
“बाप, मैं तेरे दिल्ली के दादा ब्रजवासी को नहीं पहचानता, मैं शिवांगी को नहीं पहचानता जिसे कि जीवाने ने ‘भाई’ के गैंग की छोटा अंजुम जैसी मजबूत इकाई बताया पण अब मेरे को जान पड़ता है कि ब्रजवासी ही मिस्टर शाह था और ‘भाई’ के गैंग की वो लड़की शिवांगी ही मिसेज शाह बनी उसके साथ थी।”
“हूं।”
“बाप, तेरे को बोलने का टेम नहीं लगा था पण एक बात और भी है।”
“क्या?”
“यतीमखाने की वारदात के बाद तू विक्टर और शोहाब को उधर चर्चगेट भेजेला था। वो ये जानने के लिये उधर बहुत देर रुके थे कि वहां वारदात कैसे हुई थी। बाप, विक्टर जो बोला, शोहाब जो बोला उससे अब मेरे को लगता है कि यतीमखाने में बम लगाने के लिये भी वो छोकरी शिवांगी और वो दिल्ली का दादा ब्रजवासी ही पहुंचे थे।”
“कैसे जाना? कौन था उनकी बाबत बताने वाला? फिरोजा तो मर गयी! उसका चपरासी भी मर गया!”
“यतीमखाने के दो कदरन बड़ी उम्र के बच्चा लोग से जाना जो कि लकड़ी की चार पेटियां एक वैन से निकाल कर भीतर फिरोजा के आफिस में पहुंचाने में वैन के डिरेवर और यतीमखाने के चपरासी का मदद किया। वो बच्चा लोग दानी सेठ और उसके साथ आयी छोकरी का जो हुलिया बोला, वो ब्रजवासी और शिवांगी का है।”
“आई सी।”
“बाप, अब तो मेरे को लगता है कि लोहिया के कत्ल में भी किसी न किसी तरीके से इसी जोड़ी का हाथ था।”
“क्या पता लगता है? सुना है वो बहुत बड़ी पार्टी थी। ऐसी बड़ी पार्टी में गेट क्रैशर्स घुस ही आते हैं। जहां सैकड़ों की तादाद में मेहमान जमा होने वाले हों, वहां तो मेजबान भी हर किसी पर निगाह नहीं रख सकता।”
“बरोबर बोला, बाप।”
विमल ने व्याकुल भाव से टेलीफोन की तरफ देखा।
“आयेगा।” — इरफान बोला — “अभी आयेगा। बस आया ही समझ, बाप।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया और खामोशी से फिर चहलकदमी करने लगा।
अगली दोनों गाड़ियां मेरिन ड्राइव पर नटराज होटल के सामने रुकीं।
एस्टीम में से पीछे से सूटबूटधारी व्यक्ति और आगे से ड्राइवर के साथ बैठा व्यक्ति बाहर निकले। सूट वाले ने एक क्षण को पीछे बैठी युवती से कोई बात की और फिर दूसरे व्यक्ति के साथ मैटाडोर में जा बैठा।
तत्काल मैटाडोर नटराज होटल के ड्राइव वे में दाखिल हो गयी।
तब शोहाब और भी आश्वस्त हो गया कि उसे एस्टीम के पीछे लगना चाहिये था क्योंकि वो जानता था कि नटराज पर निगरानी के लिये बुझेकर और पिचड तैनात था।
एस्टीम ने थोड़ा आगे जाकर यू टर्न लिया और फिर जिधर से आयी थी, उधर ही वापिस दौड़ चली।
तत्काल शोहाब ने एम्बैसेडर उसके पीछे लगा दी।
मैटाडोर होटल की मारकी में रुकी तो ब्रजवासी उसमें से उतर कर होटल के भीतर दाखिल हुआ। वो सीधा रिसेप्शन पर पहुंचा। वहां से उसने अपने कमरे की चाबी क्लैक्ट की।
लॉबी में रिसेप्शन पर ही ताक लगाये मौजूद बुझेकर ब्रजवासी को नहीं पहचानता था लेकिन उसकी होटल से लम्बी गैरहाजिरी के दौरान वो मालूम कर चुका था कि वो कौन से कमरे में बुक था। उसी कमरे की चाबी किसी को कलैक्ट करते उसने देखा तो उसने सहज ही अनुमान लगा लिया कि वो ही ब्रजवासी था।
“मैं यहां से जा रहा हूं।” — उसने ब्रजवासी को कहते सुना — “मेरा बिल फौरन तैयार कराओ।”
“यस, सर।” — रिसेप्शनिस्ट तत्पर स्वर में बोला।
“बिल मुझे तैयार मिले। मैं पांच मिनट में यहां लौट रहा हूं। मैं यही पेमेंट करूंगा।”
“यस, सर।”
ब्रजवासी तत्काल लिफ्टों की तरफ बढ़ गया।
बुझेकर बाहर को लपका।
तब तक मैटाडोर दरवाजे के आगे से हट चुकी थी और ड्राइव वे पर थोड़ा परे जा खड़ी हुई थी।
बुझेकर लपकता हुआ पार्किंग में पहुंचा।
पार्किंग में एक फियेट खड़ी थी जिसके भीतर आराम की मुद्रा में पिचड पसरा पड़ा था।
बुझेकर ने उसे झिंझोड़ कर सजग किया और जल्दी से बोला — “हमारा आदमी आ गया है।”
“आ गया आखिरकार!” — पिचड उठता हुआ बोला।
“हां लेकिन फौरन कूच कर जाने वाला है। बिल मांग रहा है।”
“यानी कि यहां हम उस पर हाथ नहीं डाल सकते?”
“सवाल ही पैदा नहीं होता। वो पांच मिनट में रिसेप्शन पर वापिस लौटने को कह रहा था। इसका मतलब है कि वो अपने कमरे में बस सामान उठाने गया है।”
“तो?”
“तो क्या? हम उसके पीछे लगेंगे और देखेंगे कि वो कहां पहुंचता है? फिर आगे की आगे देखी जायेगी।”
“ठीक।”
“तू कार यहां से निकाल और ड्राइव वे में ले के जा। मेरा इशारा मिलते ही उसे मारकी में ले आना।”
“ठीक है। वो इधर पहुंचा कैसे था?”
“मालूम नहीं। जब रवाना होगा तो पता लग जायेगा। अब मैं चलता हूं।”
पिचड ने सहमति में सिर हिलाया और जल्दी से स्टियरिंग के पीछे सरक गया।
बुझेकर वापिस लपका।
अपने कमरे में पहुंचते ही ब्रजवासी ने ‘भाई’ को उसके मोबाइल पर फोन लगाया।
“अच्छी खबर है।” — जवाब मिलते ही वो बोला — “सोहल की बीवी और बच्चे को काबू में कर लिया है।”
“ये तो वाकेई बहुत अच्छी खबर है!” — उसे ‘भाई’ की आवाज आयी — “फिर तो ये समझो कि सोहल को ही काबू में कर लिया है!”
“भड़का हुआ सोहल बहुत कहर बरपा सकता है। वो मेरे तक पहुंच तो नहीं सकता लेकिन किसी करिश्माई तरीके से ऐसा कुछ हो गया तो मेरा अंजाम बुरा होगा। इसलिये मैं अब फौरन मुम्बई से कूच कर जाना चाहता हूं। मेरी समस्या ये है कि मैं ऐसा सोहल की बीवी के साथ कैसे कर पाऊंगा?”
“सिर्फ बीवी का जिक्र किया, बच्चे का क्या सोचा?”
“बच्चे की वजह से ही बीवी पर दबाव बना हुआ है इसलिये मेरी समझ में बीवी और बच्चा एक ही जगह नहीं होने चाहियें। इसीलिये मैंने बच्चा शिवांगी के हवाले कर दिया है जो कहती है कि वो उसे सम्भाल लेगी।”
“तुम्हारी सोच एकदम दुरुस्त है और बच्चे को शिवांगी के हवाले करके तुमने भारी दानिशमन्दी का काम किया है। तुम मुम्बई से कहां कूच कर जाना चाहते हो?”
“जाहिर है कि दिल्ली।”
“सोहल का क्या होगा?”
“उसे उसकी बीवी की दिल्ली में मौजूदगी का हवाला देंगे तो वो सिर के बल दौड़ा दिल्ली आयेगा जहां उसे हम कुत्ते की मौत मारेंगे।”
“ओह! लिहाजा तुम बीवी को भी दिल्ली साथ ले जाना चाहते हो?”
“हां। लेकिन इस कोशिश में पकड़ा नहीं जाना चाहता। ‘भाई’, एयरपोर्ट की निगरानी हो रही हो सकती है।”
“निगरानी तो कई जगहों की हो रही हो सकती है लेकिन... इस वाकये को हुए कितनी देर हुई?”
“यही कोई तीस चालीस मिनट।”
“बढ़िया। इतने थोड़े वक्फे में निकासी के सारे रास्ते ब्लॉक नहीं किये जा सकते। तुम इस वक्त कहां हो?”
“मेरिन ड्राइव पर। अपने होटल में।”
“फौरन वहां से कूच करो और पूना की सड़क पकड़ो।”
“पूना?”
“वहां तुमने सीधे एयरपोर्ट पर पहुंचना है। वहां से तुम्हें मैक्सवैल इन्डस्ट्रीज का एक प्राइवेट प्लेन दिल्ली ले जायेगा।”
“ये तो बहुत उम्दा इन्तजाम होगा लेकिन वो प्लेन...”
“खास तुम्हें पिक करने के लिये वहां तैयार खड़ा होगा। सड़क के रास्ते तुम तीन, साढ़े तीन घन्टे में पूना पहुंचोगे। इतने में मैं सब इन्तजाम कर दूंगा।”
“बढ़िया।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया।
एस्टीम के पीछे लगा शोहाब परेल के इलाके में पहुंचा।
एस्टीम एक मल्टीस्टोरी हाउसिंग कम्पलैक्स के कम्पाउन्ड में जाकर रुकी।
बच्चे को सम्भाले शिवांगी बाहर निकली।
ड्राइवर ने बाहर निकलने का उपक्रम न किया।
शिवांगी ने ड्राइवर साइड की खिड़की के करीब झुक कर ड्राइवर को कुछ कहा और फिर भीतर को चल दी।
शोहाब ने एस्टीम से थोड़ा परे एम्बैसेडर खड़ी की और लापरवाही से चलता आगे बढ़ा।
उसके देखते देखते शिवांगी ग्राउन्ड फ्लोर पर ही खड़ी एक लिफ्ट में सवार हो गयी।
शोहाब के लिफ्ट के करीब पहुंचने तक उसका दरवाजा बन्द हो चुका था और वो ऊपर को चलने लगी थी। उसके इन्डैक्स पर निगाह जमाये शोहाब बन्द दरवाजे के सामने खड़ा रहा।
इन्डैक्स के मुताबिक लिफ्ट सीधी नौवीं मंजिल पर जाकर रुकी।
शोहाब ने नोट किया कि इन्डैक्स के मुताबिक लिफ्ट बारहवीं मंजिल तक जाती थी लेकिन नौवीं मंजिल से आगे नहीं चली थी।
फिर लिफ्ट वापिस नीचे को आने लगी।
तभी उसकी निगाह कम्पाउन्ड की तरफ उठी तो उसने पाया कि एस्टीम घूम कर बाहर की बढ़ी जा रही थी।
वो दौड़ता हुआ अपनी कार के पास पहुंचा, झपट कर उसमें सवार हुआ और उसे स्टार्ट करके सड़क पर दूर होती जा रही एस्टीम के पीछे दौड़ा दिया। वो कुछ क्षण एस्टीम के पीछे लगा रहा, फिर एकाएक उसने उसकी रफ्तार तेज की। उसकी कार एस्टीम के पहलू में पहुंची तो उसने हार्न बजाया।
हुमने ने उसकी तरफ देखा।
“भीड़ू” — शोहाब उच्च स्वर में बोला — “पिछला चक्का बैठेला है।”
तत्काल एस्टीम की रफ्तार कम होने लगी। फिर वो सड़क की साइड में होकर रुकी।
शोहाब ने भी अपनी कार को ब्रेक लगाई।
हुमने एस्टीम से निकला और उसके परले पहलू में जाकर उसके पिछले पहिये का मुआयना करने लगा।
शोहाब ने अपनी कार को रिवर्स गियर में डाला और उसे एस्टीम के पहलू में ले आया।
हुमने सीधा हुआ, उसने सन्दिग्ध भाव से शोहाब की तरफ देखा।
“बोम मारता है।” — वो गुस्से से बोला — “चक्का तो ठीक है!”
“अरे, इधर का।” — शोहाब बोला — “तभी तो लौट के आया तेरे को बोलने।”
हुमने एस्टीम का घेरा काट कर उधर को बढ़ा।
शोहाब अपनी कार से निकल कर उसके करीब पहुंचा। ज्यों ही हुमने उधर का पहिया देखने के लिये नीचे झुका शोहाब ने उसकी पसलियों से रिवॉल्वर सटा दी।
“आवाज न निकले।” — वो दबे स्वर में बोला।
“ओह!” — हुमने बोला — “तो ये बात है!”
“आवाज निकली तो गोली।”
“चलती सड़क है। तेरी मजाल नहीं हो सकती।”
“आवाज निकाल के देख। परख मेरी मजाल को।”
“क्या मांगता है।”
“गाड़ी में बैठ।”
हुमने ने एम्बैसेडर की ओर देखा।
“अपनी में।” — शोहाब बोला, फिर वो उसे रिवॉल्वर की नाल से टहोकता हुआ एस्टीम की पैसेंजर सीट वाली साइड में लाया। उसने उधर से हुमने को भीतर धकेला और खुद भी भीतर दाखिल हो गया।
“वापिस चल।” — उसने आदेश दिया।
“कहां वापिस चलूं?” — हुमने बोला।
“उस हाउसिंग कम्पलैक्स में, जहां अभी पैसेंजर उतार के आया।”
हुमने के नेत्र फैले।
“कब से पीछे लगा है?” — वो बोला।
शोहाब ने रिवॉल्वर पसलियों से हटाकर उसकी नाक से टकराई।
हुमने पीड़ा से बिलबिलाया।
“क्या!” — शोहाब रिवॉल्वर वापिस उसके पहलू से सटाता बोला।
हुमने ने जोर से थूक निगली, उसने कार का इंजन स्टार्ट किया और उसे यू टर्न देकर वापिस ले चला।
एस्टीम वापिस मल्टीस्टोरी बिल्डिंग कम्पलैक्स के कम्पाउन्ड में पहुंची।
शोहाब ने पिछली सीट पर पड़ा एयरबैग उठाया और कार से बाहर निकला। उसने एयरबैग को यूं थामा कि रिवॉल्वर उसकी ओट में हो गयी।
“बाहर निकल।” — वो बोला।
हुमने बाहर निकला तो शोहाब उसे अपने साथ चलाता लिफ्टों तक लाया और एक में सवार होकर उसके साथ नौवीं मंजिल पर पहुंचा।
वहां छ: फ्लैट थे।
“उसके फ्लैट की घन्टी बजा।”
“किसके?” — हुमने सकपकाया।
“तुझे मालूम है किस के!”
हुमने के नेत्र फैले।
“तू जो कोई भी है” — वो बोला — “एक बात सुन ले।”
“सुन लेता हूं। एक बात का क्या है! बोल।”
“तेरी मौत आयी है।”
“अभी तो तेरी आयी है।”
“तू नहीं जानता तू किससे पंगा ले रहा है!”
“जान लूंगा। अभी टेम है। ये बैग पकड़। कार में रह गया था। लौटाने आया। समझ गया?”
वो खामोश रहा। उसके चेहरे पर उलझन के ऐसे भाव थे जैसे समझ न पा रहा हो कि उसका हमलावर क्या जानता था, कितना जानता था?
“घन्टी बजा।” — शोहाब ने आदेश दिया।
हुमने ने सख्त अनिच्छापूर्ण ढंग से एक फ्लैट की घन्टी बजायी।
“कौन?” — तुरन्त भीतर से पूछा गया।
शोहाब ने जोर से रिवॉल्वर की नाल उसकी पसलियों में चुभोई।
“हुमने!” — वो थूक निगलता बोला — “बैग लेकर आया। गाड़ी में रह गया था।”
“ओह!”
दरवाजा खुला।
शोहाब ने जोर से हुमने को सामने धक्का दिया तो वो चौखट पर प्रकट हुई शिवांगी के ऊपर जाकर गिरा। शोहाब ने तत्काल दरवाजे के भीतर छलांग लगाई और पांव की ठोकर से पीछे दरवाजा बन्द कर दिया।
तब तक बड़ी मुश्किल से सम्भल कर सीधी हुई बौखलाई सी शिवांगी नेत्र फैलाये रिवॉल्वर वाले आततायी को देखने लगी।
“भीतर।” — शोहाब पीछे के दरवाजे की ओर इशारा करता बोला।
“क्या मांगता है?” — शिवांगी बोली। बावजूद रिवॉल्वर के वो भयभीत कम थी, बौखलाई हुई ज्यादा थी — “इधर लूटने को कुछ नहीं है।”
“तू है न?” — शोहाब जबरन मुस्कराता हुआ बोला।
“तेरी, मजाल नहीं हो सकती।”
“तौबा! हर कोई मेरी मजाल को ही ललकारता है। भला क्यों नहीं हो सकती मजाल मेरी?”
शिवांगी ने हुमने की तरफ देखा।
“इसकी वजह से?” — शोहाब बोला।
“हां।” — शिवांगी निडर भाव से बोली — “तू एक साथ दो जनों को काबू में नहीं कर सकता।”
“वो तो है।”
उसने हुमने को गोली मार दी।
हुमने पछाड़ खाकर फर्श पर ढेर हुआ और गिरते ही मर गया।
शिवांगी के नेत्र फट पड़े। उस अप्रत्याशित एक्शन ने उसकी सारी दिलेरी हवा कर दी। भय से उसकी घिग्घी बन्ध गयी। वो कभी धराशायी हुए पड़े हुमने को तो कभी शोहाब को देखने लगी जिसके एक ही एक्शन ने जाहिर कर दिया था कि वो कोई मामूली चोर या लुटेरा नहीं था।
“बच्चा कहां है?” — शोहाब बोला।
उस एक सवाल ने रही सही कसर भी पूरी कर दी।
“भी... भीतर।” — उसके मुंह से निकला — “बेडरूम में।”
“चल।”
आगे पीछे चलते दोनों बेडरूम में पहुंचे।
बच्चा पलंग पर सोया पड़ा था।
“नीलम कहां गयी?”
शोहाब के उस अगले सवाल ने शिवांगी के बिल्कुल ही छक्के छुड़ा दिये।
“कौन हो, भई!” — वो बड़े दयनीय भाव से बोली।
“जैसे मैंने तेरे को पहचाना, तूने मेरे को नहीं पहचाना?”
“म... मेरे को पहचाना?”
“हां। तू वो लड़की है जो तीन दिन पहले विलाप करती हुई श्मशान घाट पहुंची थी और अपने आपको वागले की बहन की रत्नागिरी से आई बेटी बता रही थी।”
शिवांगी के चेहरे पर हवार्इयां उड़ने लगीं।
“अभी तेरे साथ एक आदमी था जो मेरिन ड्राइव पर कार से उतर कर मैटाडोर वैन में बैठ गया था, वही आदमी उस दिन श्मशान घाट पर भी तेरा हिमायती बना तेरे साथ था। नाम बोल उसका?”
“ब.. ब्रजवासी।”
“कौन है?”
शिवांगी ने बताया।
“नीलम को कहां ले गया?”
“मालूम नहीं।”
“मैटाडोर नटराज में दाखिल हुई थी। वो वहां क्यों गया?”
“वो... वो वहां ठहरा हुआ है। वो नीलम को भी अपने कमरे में ले गया होगा।”
“यहां टेलीफोन है?”
“हां।” — उसने बेडरूम की एक साइड टेबल की तरफ इशारा किया।
“मालूम कर।”
“मा... मालूम करूं?”
“हकलाना बन्द कर। नटराज में फोन लगा उसे।”
उसने लगाया।
“चैक आउट कर गया।” — फिर वो बोली।
शोहाब ने रिसीवर उसके हाथ से लिया और खुद इस बात की तसदीक की। फिर उसने फोन वापिस क्रेडल पर पटक दिया।
“कहां गया होगा?” — वो बोला — “कहां ले के गया होगा वो नीलम को?”
“मुझे नहीं मालूम।”
“अपने आइन्दा इरादों की बाबत उसने कुछ तो बताया होगा! आखिर तू उसकी जोड़ीदार थी!”
“नहीं बताया था। न मैंने जानना जरूरी समझा था।”
“जब तू उसकी जोड़ीदार है, उसके गैंग की है तो क्यों जानना जरूरी न समझा?”
“मैं उसके गैंग की नहीं हूं।”
“क्या?”
“मैं ‘भाई’ के गैंग की हूं।”
शिवांगी को ये देखकर बहुत मायूसी हुई कि आततायी ने ‘भाई’ के जिक्र का कोई रौब न खाया।
“तो ब्रजवासी की जोड़ीदार कैसे बन गयी?”
“‘भाई’ के हुक्म से।”
“है क्या बला ये ब्रजवासी? चाहता क्या था?”
शिवांगी ने बताया।
“ओह!” — शोहाब बोला — “लिहाजा आज की तारीख में हर किसी की वाहिद तमन्ना सोहल की लाश गिराना ही है!”
“तु... तुम.... तुम सोहल के आदमी हो?”
“अब कहां गया होगा ये ब्रजवासी? अपने आइन्दा प्रोग्राम की बाबत वो कुछ तो बका होगा!”
“वो दिल्ली लौट जाने की बात कर रहा था।”
“नीलम को साथ लेकर?”
“मालूम नहीं।”
“सोहल की लाश गिराये बिना?”
वो खामोश रही।
“बच्चे का क्या करती?”
“क... कुछ नहीं।”
“कब तक कुछ नहीं करती?”
“जब तक कि दिल्ली से कोई खबर न आ जाती।”
“कैसी खबर?”
“समझो।”
“सोहल की लाश गिरा दी जाने की खबर?”
वो खामोश रही। उसने बेचैनी से पहलू बदला।
“उसके बाद बच्चे को मार डालती?”
उसने जोर से थूक निगली।
“या खुद गोद ले लेती?”
उससे जवाब देते न बना।
“कभी ‘भाई’ से मिली है?”
‘भाई’ के नाम पर उसके नेत्रों में चमक आयी।
“हां।” — वो बोली — “कई बार।”
“खुश है ‘भाई’ तेरे काम से?”
“हां। बहुत।”
“जो तू उसके साथ सो कर करती है?”
“शट अप।”
“बहुत याद आया करेगी तू उसे।”
“क्या मतलब?”
“ये मतलब।”
शोहाब ने रिवॉल्वर का घोड़ा खींच दिया।
विमल होटल की चौथी मंजिल पर आफिस में मौजूद था।
सूरज उसकी गोद में बैठा हुमक रहा था।
उस घड़ी सात बजे हुए थे और तब तक नीलम का कोई पता नहीं था।
शोहाब ने लौट कर जो कहानी सुनायी थी, उसके मुताबिक नीलम ब्रजवासी के कब्जे में थी लेकिन हैरानी की बात थी कि उस बाबत अभी तक उससे कोई सम्पर्क करने की कोशिश नहीं की गयी थी।
फोन की घन्टी बजी।
इरफान ने झपट कर फोन उठाया और माउथपीस में बोला — “हल्लो! कौन?”
“पिचड बोलता है, बाप।” — दूसरी ओर से आवाज आयी।
“कहां गायब हो गया था?” — इरफान झल्लाया — “इधर कब से इन्तजार हो रहा है कि तू आये या तेरा फोन आये!”
“मैं पूना से बोलता है।”
“क्या! पूना कैसे पहुंच गया?”
“उस ब्रजवासी के पीछू लगा था। वो नटराज आया, अपना सामान उठाया, जाके एक बन्द मैटाडोर वैन में बैठा और चल दिया उधर से। मैं और बुझेकर मैटाडोर के पीछे लगे तो वो इधर पूना में पहुंचकर ही रुकी।”
“पूना में कहां?”
“एयरपोर्ट पर। वो हमारे सामने एक प्राइवेट हवाई जहाज पर सवार होकर इधर से उड़ गया।”
“अकेला?”
“साथ में एक खूबसूरत लड़की थी। एक मवाली सा लगने वाला लम्बा चौड़ा भीड़ू था।”
“लड़की का हुलिया बोल।”
पिचड ने बोला।
तत्काल इरफान का चेहरा गम्भीर हो गया।
“जहाज किधर को उड़ गया?” — वो बोला।
“मालूम नहीं।”
“होल्ड रख। लाइन छोड़ने का नहीं है। कट जाये तो दोबारा फोन लगाने का है।”
इरफान ने रिसीवर मुंह पर से हटाया और जल्दी जल्दी विमल को सब बताया।
“इसको बोल” — विमल व्यग्र भाव से बोला — “कि ये... फोन मुझे दे।”
“पिचड” — इरफान माउथपीस में बोला — “बॉस बात करेगा।”
फिर उसने फोन विमल को थमा दिया।
“हल्लो।” — विमल माउथपीस में बोला।
“मैं पिचड, बाप। सलाम बोलता है।”
“पिचड, प्राइवेट प्लेन पर कम्पनी का, मालिक का नाम लिखा होता है। तूने ऐसा कोई नाम देखा?”
“देखा, बाप। प्लेन के दोनों बाजू में मैक्सवैल इन्डस्ट्रीज लिखेला था।”
“लिहाजा वो मैक्सवैल इन्डस्ट्रीज का प्राइवेट प्लेन था। प्राइवेट प्लेन को भी फ्लाइट लेने के लिये फ्लाइट प्रोग्राम दर्ज कराना पड़ता है, एयर कन्ट्रोलर से इजाजत लेना पड़ता है। तू समझा मेरी बात?”
“बराबर समझा, बाप।”
“एयरपोर्ट के एयर कन्ट्रोल आफिस से किसी भी तरह मालूम कर कि मैक्सवैल इन्डस्ट्रीज का वो जहाज किधर के लिये इधर से उड़ा और वापिस फोन कर।”
“करता है, बाप।”
लाइन कट गयी।
विमल ने रिसीवर वापिस इरफान को थमा दिया।
“ब्रजवासी दिल्ली से था।” — इरफान बोला — “वो दिल्ली ही गया होगा।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
“नीलम को साथ ले गया कमीना।” — फिर वो बोला — “नीलम चुपचाप उसके साथ चल दी क्योंकि उसे बच्चे की फिक्र थी। वो बेचारी कैसे जान सकती थी कि बच्चा सुरक्षित मेरे पास पहुंच गया था!”
इरफान ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया।
“कोई बात नहीं।” — विमल जैसे अपने आपको तसल्ली देता बड़बड़ाया — “कोई बात नहीं। ये भी एक इम्तहान है जिसका पास फेल ऊपर वाले की मर्जी पर मुनहसर है। जो तुध भावे नानका सोई भली कार। ”
कोई कुछ न बोला।
“कल मेरे ओपन एयर टिकट का क्या हुआ?”
“तैयार है।” — इरफान बोला।
“शोहाब को दे।”
इरफान ने एक मेज का दराज खोला और वहां से टिकट निकाल कर शोहाब को सौंपा।
“इसको” — विमल बोला — “किसी भी तरह दिल्ली की अर्लियेस्ट फ्लाइट के लिये कनफर्म करा के ला।”
“बाप” — इरफान धीरे से बोला — “पिचड का फोन तो आ ले!”
“मेरा दिल कहता है कि उसका भी वही जवाब होगा कि वो प्राइवेट प्लेन दिल्ली के लिये उड़ा था।”
“पण...”
“उसका जवाब कुछ और होगा तो टिकट कैंसल करा लेंगे।”
“ठीक।”
शोहाब टिकट लेकर चला गया।
फोन की घन्टी बजी।
इरफान ने फोन रिसीव किया।
“इधर ले के आओ।” — फिर वो बोला और रिसीवर रख दिया।
विमल की भवें उठीं।
“जनरल आफिस से फोन था।” — इरफान बोला — “उधर फैक्स से एक चिट्ठी आया है जो उधर किसी का समझ में नहीं आया। मैं इधर मंगाया।”
“ओह!”
एक क्लर्क फैक्स मैसेज के साथ वहां पहुंचा। इरफान ने कागज ले के उसे दरवाजे से ही रुखसत कर दिया और फिर कागज विमल को थमाया।
विमल ने उस पर छपी तहरीर पढ़ी। लिखा था :
कलगी वाले राजा साहब को दिल्ली वालों का सलाम पहुंचे। सूरत अहवाल ये है कि राजा साहब की शरीकेहयात उनके खास खादिमों के कब्जे में पहुंच गयी है और फाख्ता की तरह फड़फड़ा रही है। राजा साहब क्योंकि अनोखी सलाहियात के मालिक और काल पर फतह पायी हुई शख्सियत माने जाते हैं इसलिये जाहिर है कि जान ही लेंगे कि उनकी फाख्ता कहां है और हम कहां हैं! राजा साहब से दरख्वास्त है कि वो जल्द-अज-जल्द अपनी फाख्ता के करीब-करीबतर होने की जहमत फरमायें ताकि हम अदना इंसान भी उनके दीदार का फख्र हासिल करके बाग-बाग हो सकें।
राजा साहब को खास हिदायत है कि वो हमें अपनी कलगी वाली सूरत के ही दीदार से नवाजें क्योंकि हममें से किसी ने भी आज तक कोई राजा साहब नहीं देखा। दूसरी खास हिदायत है कि वो जब भी आयें, अकेले आने की जहमत फरमायें। हुजूर के साथ किसी की परछाईं भी देखी गयी तो रानी साहिबा को ताबूत में और वलीअहद को जूते के डिब्बे में बन्द करके राजा साहब की नजर कर दिया जायेगा।
इन्तजार में पलक पांवड़े बिछाये बैठे,
दिल्ली वाले।
विमल ने फैक्स को एक बार और पढ़ा और फिर उसे सामने मेज पर उछाल दिया।
“क्या है, बाप?” — इरफान आशंकित भाव से बोला।
“नीलम की रसीद है” — विमल बोला — “और मुझे उसके पीछे आने का न्योता है।”
“कहां है वो?”
“लिखा नहीं लेकिन चिट्ठी से साफ जान पड़ता है कि दिल्ली में है।”
“इतनी जल्दी कैसे दिल्ली में ....”
“होगी। ये फैक्स ब्रजवासी के ओछेपन का नतीजा मालूम होता है। इसे जरूर उसने प्लेन में सवार होने से पहले पूना से इधर लगवाया होगा।”
तभी फोन की घन्टी बजी।
इरफान ने झपट कर फोन उठाया, सुना और फिर बोला — “पिचड का फोन है। वो प्राइवेट जहाज दिल्ली के लिये ही उड़ा था।”
“हूं।” — विमल बोला।
“मैं पिचड को क्या बोलूं?”
“बोल, वापिस आ जाये।”
इरफान ने माउथपीस में वो निर्देश दोहराया और फिर फोन वापिस रख दिया। वो कई क्षण अपलक विमल को देखता रहा और फिर बोला — “अकेला जायेगा, बाप?”
“ऐसा ही हुक्म है। हुक्म है कि मेरे साथ किसी की परछाईं भी दिखाई दी तो नीलम खत्म।”
“फिर भी...”
“उधर मुबारक अली है न!”
“जब कोई ठीया ठिकाना नहीं बोला, कोई पता नहीं बोला तो जायेगा किधर?”
“एक जगह है मेरी निगाह में।”
“वो लोग वहां न हुए तो?”
“तो मुश्किल होगी।”
“बाप, तू अकेला उधर जाकर क्या कर पायेगा?”
“देखूंगा।”
“ये तो आगे बढ़ कर मौत को गले लगाने जैसी बात है!”
“जौहर ज्वाला। जौहर ज्वाला सामने है। कूदना जरूरी है। जरूरी है। पुर्जा कट्ट मरे, कभी न छाडे खेत सूरा सोही।”
“बच्चे का क्या होगा?”
“यही एक फिक्र है जो मुझे सता रही है। साथ नहीं ले जा सकता इसे। यही अभागा हर किसी की दुश्वारी का बायस बना। जी चाहता है गला घोंट दूं।”
“पागल हुआ है? कैसा लानती बात बोलता है, बाप? ये तेरे घर का रौशन चिराग है, तू उसे खुद बुझायेगा!”
विमल खामोश रहा।
“मुसलमान पर एतबार करेगा, बाप?”
विमल की भवें उठीं।
“सरदार के बच्चे के लिये इस मुसलमान के झोंपड़े की छत कुबूल होगी तुझे?”
“क्या कहता है, इरफान अली? तू पहले मेरा दोस्त है, भाई, बाकी सब कुछ बाद में है। मानस की जात सबै एकै पहिचानबो, यही मेरे धर्म की, मेरे गुरु की सीख है।”
“फिर तू बेखौफ जा। बेखौफ जा, सरदार। जा और कूद जा जौहर ज्वाला में। देख लेना तेरा बाल भी बांका नहीं होगा। जौहर की ज्वाला तेरे लिये ओस की बून्द बन जायेगी। तू फतह का परचम लहराता जायेगा और फतह का परचम लहराता लौटेगा।”
“न लौटा तो?”
“ऐसा नहीं होगा। मेरा दिल बोलता है कि ऐसा नहीं होगा। इसलिये अब तू न लौटने की बात दोबारा न बोलना। मैं रब्बल आलामीन से दुआ करूंगा कि वो रहती दुनिया तक तुझे, तेरी बेगम और तेरे लख्तेजिगर को सलामत रखे। बाप, ये एक सच्चे मुसलमान की दुआ है जो जरूर कुबूल होगी। जरूर कुबूल होगी।”
तभी शोहाब वापिस लौटा।
“साढे आठ बजे की फ्लाइट है।” — वो बोला — “आनन फानन एयरपोर्ट पहुंचना होगा।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
चोरों की तरह तरसेम लाल एस.एच.ओ. नसीब सिंह के क्वार्टर पर पहुंचा जो कि थाने के परिसर में ही था।
टेलीफोन के जरिये वो पहले ही जान चुका था कि नसीब सिंह थाने में नहीं था।
उस घड़ी दस से ऊपर का टाइम था।
उसने घन्टी बजाई तो नसीब सिंह ने उसके लिये खुद दरवाजा खोला। तरसेम लाल को आया देख कर वो एक तरफ हटा। फिर दोनों बैठक में जाकर बैठे।
“क्या खबर है?” — नसीब सिंह बोला।
“पहले समझ में नहीं आ रहा था” — तरसेम लाल धीरे से बोला — “लेकिन अब आ गया है। उधर फार्म में हैलीपैड बन रहा है।”
“हैलीपैड!”
“हां।”
“इसका क्या मतलब हुआ?”
“मतलब साफ है, साहब। कोई खास ही मेहमान उधर हैलीकाप्टर पर पहुंचने वाला है।”
“कौन होगा वो खास मेहमान?”
“मैं ताड़ में हूं। आयेगा तो मालूम पड़ जायेगा।”
“अभी नहीं आया?”
“आया भी नहीं है और लगता है कि अभी टाइम भी नहीं हुआ उसके आने का। क्योंकि अभी हैलीपैड तैयार नहीं है।”
“कब तक होगा?”
“तेजी से काम हो रहा है। कल दोपहर तक हो जाने की उम्मीद है। शाम तक तो जरूर ही हो जायेगा।”
“और?”
“ब्रजवासी वापिस लौट आया है। साथ में एक नौजवान लड़की थी।”
“कौन?”
“मालूम नहीं। अन्धेरे में ठीक से शक्ल न देख सका लेकिन वो कोई साथिन या संगिनी नहीं थी।”
“कैसे जाना?”
“उसे वहां पहुंचते ही फार्म हाउस के एक कमरे में बन्द करके बाहर से ताला लगा दिया गया था।”
“यानी कि कैदी है?”
“ऐसा ही लगता है।”
“किसी तरह के बन्धन में थी?”
“नहीं। कोई होहल्ला भी नहीं कर रही थी। एकदम खामोश थी। चाल भी ऐसी थी जैसी नींद में चल रही हो।”
“कौन होगी?”
“अभी तो पहुंची है, मैं मालूम कर लूंगा।”
“आगे बढ़।”
“मेरे वहां से आने तक झामनानी, भोगीलाल और पवित्तर सिंह भी वहां पहुंच चुके हुए थे। वहां कोई आल नाइट जश्न का प्रोग्राम जान पड़ता है। हयात से डिनर मंगाया गया है और लीडो से दो कैब्रे डांसर बुलाई गयी हैं।”
“हूं।”
“लेकिन साहब आज के जश्न की बात छोटी मोटी जान पड़ती है। फार्म हाउसों के ऐय्याश मालिक लोग ऐसे खाते पीते ही रहते हैं, ऐसी पार्टियों के मौके जबरन गढ़ते ही रहते हैं। मेरे से ज्यादा आप खुद ऐसी बातों को जानते समझते हैं।”
“आगे बढ़।”
“आज का तो, साहब, लोकल लोगों का लोकल जश्न लगता है। असल तैयारी तो वहां किसी और ही बात की है!”
“और क्या बात हो सकती है?”
“कल सामने आने की उम्मीद है, साहब।”
“तू आंखें खुली रखेगा और कान खड़े रखेगा?”
“बिल्कुल। ये भी कोई कहने की बात है!”
“झामनानी का तेरे पर विश्वास बन गया?”
“कुछ बन गया, कुछ चालाकी से बनाया।”
“क्या चालाकी की?”
“बेखौफ कहूं?”
“हां।”
“उसकी खातिर अपनी बर्बादी की मुतवातर हाल दुहाई मचाई और जब आमना सामना हुआ, एक सांस में दस गालियां आपको दीं।”
“तेरे से यही उम्मीद थी मुझे, साले।”
“जरूरी था, साहब, जरूरी था। अपना मतलब जो निकालना है!”
“ठीक कह रहा है तू।”
“और सेवा बताइये।”
“सेवा अभी वो ही चौकस कर जो कर रहा है।”
“वो तो मैं जी जान से करूंगा। आखिर आप से अपनी खता बख्शवानी है, अपनी नौकरी बचानी है।”
“सब हो जायेगा। वक्त आने दे।”
“साहब, मैं निश्चिन्त तो हो जाऊं न?”
“हां। हो जा।”
“शुक्रिया, साहब। बहुत बहुत शुक्रिया, साहब।”
“अपने और झामनानी के बीच की कड़ी के तौर पर तूने जिस आदमी का नाम लिया था और पता बताया था, उस पते पर तो वो आदमी नहीं पाया जाता!”
“साहब, जो पता वो मेरे को बोला, वो मैंने आपको आगे बोल दिया।”
“वो आदमी तेरे खुराफाती दिमाग की ही तो उपज नहीं?”
“तौबा, साहब! उसकी बाबत झूठ बोल कर मुझे क्या मिलेगा?”
“जब उसने पता गलत बताया तो हो सकता है कि नाम भी गलत बताया हो!”
“हां। ये तो हो सकता है!”
“कभी सामने आया तो सूरत से तो उसे पहचान लेगा न?”
“जरूर पहचान लूंगा लेकिन, साहब, झामनानी का जो बड़ा खेल सामने आने वाला है, उसके मुकाबले में ये एक ऐसी छोटी मोटी बात साबित होगा जिसकी तरफ, देख लीजियेगा, आप ही तवज्जो नहीं देंगे। जब बड़े मगरमच्छ फंस रहे हों तो क्या कोई छोटी मोटी मछली की तरफ तवज्जो देता है!”
“ये तो सयानी बात कही तूने! ठीक है, अब तू चल।”
“चलता हूं, साहब।”
“वैसे कहां जायेगा अब?”
“वापिस फार्म पर ही जाऊंगा। झामनानी ने लीडो तक भेजा था, दांव लगाकर इधर भी चला आया।”
“वो तो तूने अच्छा किया लेकिन जब भी इधर का रुख करे, एक बात का खास खयाल रखना। यहां आता तुझे कोई न देखे। झामनानी को तेरे दोतरफा रोल की खबर लग गयी तो फिर तेरी खैर नहीं।”
“मैं होशियार रहूंगा, साहब।”
“हां। अपनी खातिर। साहब की खातिर नहीं।”
“साहब, अब वो मेरा इस्तीफा तो फाड़ दो।”
“वो अभी नहीं हो सकता।”
“वजह, साहब?”
“इस्तीफा डी.सी.पी. के पास है। वापिस मंगाना होगा।”
“वापिस आ तो जायेगा न साहब?”
“आ जायेगा। मेरा एतबार कर। जो कुछ हो रहा है, सब डी.सी.पी. की मंजूरी से हो रहा है, इसलिये आ जायेगा।”
“शुक्रिया, साहब।”
जैसे चोरों की तरह तरसेम लाल वहां पहुंचा था, वैसे ही चोरों की तरह वो वहां से रुखसत हुआ।
आधी रात होने को थी जबकि अपनी मंजिल की तलाश में कई तरह के धक्के खा चुकने के बाद विमल झामनानी के फार्म के बन्द फाटक पर जाकर लगा।
फैक्स में दर्ज निर्देश के मुताबिक उस घड़ी वो अकेला था और राजा गजेन्द्र सिंह वाले बहुरूप में था।
वाहे गुरू सच्चे पातशाह! — वो होंठों में बुदबुदाया — तू मेरा राखा सबनी थांहीं।
उसने फाटक के पहलू में लगे कालबैल के बटन को दबाया।
फाटक में एक झरोखा खुला जिसमें से एक वर्दी पहने गार्ड ने बाहर झांका।
“राजा राजेन्द्र सिंह।” — विमल बोला — “भीतर खबर करो।”
गार्ड ने झरोखा बन्द किया और फाटक में बनी एक खिड़की खोली।
“भीतर खबर है।” — वो खिड़की से परे हटता बोला — “आ जाओ।”
विमल के चेहरे पर हैरानी के भाव आये।
“फाटक खोलो।” — वो बोला।
“टैक्सी नहीं जा सकती।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया, फिर उसने भाड़ा चुका कर टैक्सी को रुखसत किया और खुली खिड़की से भीतर कदम डाला।
गार्ड ने पीछे खिड़की बन्द कर दी।
“सीधे चले जाओ।” — गार्ड बोला — “मैं इधर से फोन कर देता हूं। तुम्हारे वहां पहुंचने तक सब तुम्हारे स्वागत के लिये तैयार होंगे।”
“सब?”
“हां, सब।”
सहमति में सिर हिलाते विमल ने अर्धवृत्ताकार लम्बी राहदारी पर, जिसके दायें बायें बराबर फासलों पर पेड़ उगे हुए थे, आगे कदम बढ़ाया।
“इधर उधर भटकना नहीं।” — पीछे से गार्ड चेतावनीभरे स्वर में बोला — “मोड़ आने तक मेरी तुम्हारे पर निगाह रहेगी, उसके बाद उधर से भी किसी की तुम्हारे पर निगाह रहेगी। कोई होशियारी की तो गोली। समझ गये?”
“हां।”
विमल आगे बढ़ा।
लम्बी राहदारी के सारे रास्ते उसके जेहन में आरती के शब्द गूंजते रहे :
गगन में थालु रवि चन्दु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती।। धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती।। कैसी आरती होई।। भवखंडना तेरी आरती।। अनहता सबद वाजंत भेरी।। सहस तव नैन नन नैन हहि तोहि कउ सहस मूरित नना एक तोहि।। सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोहि।। सभ महि जोति जोति है सोइ।। तिसदै चानणि सभ महि चानणु होइ।। गुरसाखी जोति परगटु होइ।। जो तिसु भावे सु आरती होइ .....
राहदारी एक बहुत बड़े कम्पाउन्ड में खत्म हुई जिसके परले सिरे पर फार्म हाउस की इमारत थी।
कम्पाउन्ड लांघ कर वो फार्म हाउस के सामने पहुंचा।
भीतर से म्यूजिक और अट्टहास की आवाजें आ रही थीं।
उसने इमारत के बरामदे की तरफ कदम बढ़ाया।
तभी बरामदे के कई दरवाजों में से एक दरवाजा खुला और हाथों में विस्की के गिलास थामे झामनानी, ब्रजवासी, भोगीलाल और पवित्तर सिंह प्रकट हुए।
दाता! जिसके सिर ऊपर तू स्वामी वो दुख कैसा पावे।
“राजा साहब!” — झामनानी व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला।
“हां।” — विमल सहज और संतुलित भाव से बोला।
“यानी कि सोहल?”
“वही।”
“वडी, देक्खो, नी, कौन आया है? तुम सब कहते थे ये इधर नहीं पहुंच सकता। पहुंचा भी पड़ा है, कर्मांमारा। वडी, उड़ के आया, नी?”
“या” — ब्रजवासी बोला — “उधर आंखें बन्द कीं तो अन्तर्ध्यान हो गया। आंखे खोलीं तो इधर मौजूद।”
“मायावी मानस है, भई।” — भोगीलाल बोला — “माया ही दीखे है कोई ये इसकी।”
“फेर वी, वीर भ्रावो” — पवित्तर सिंह बोला — “कैसे जान गया ये इधर का पता?”
“मालूम कर लेंगे।” — ब्रजवासी बोला — “अभी तो आया है। पहुंचा है।”
“हां।” — भोगीलाल बोला — “जल्दी क्या है?”
“आया तो कल्ला ही है न?” — पवित्तर सिंह बोला।
“वडी, बोल, नी।” — झामनानी बोला — “जवाब दे, नी।”
“मैं” — विमल धीर गम्भीर स्वर में बोला — “अकेला आया हूं।”
“साथ कोई तोप तो नहीं लाया?”
“मैं निहत्था हूं।”
“वडी, इसे कहते हैं, नी, ऊंट पहाड़ के नीचे आना। क्यों, साईं लोगो?”
सब के सिर सहमति में हिले।
“कितना बढ़ बढ़ के बोलता था गुरुबख्शलाल की पार्टी में नये साल की रात को!”
“हमें सुधारने चला था।” — ब्रजवासी बोला।
“कह रिया था ड्रग्स का धन्धा नहीं।” — भोगीलाल बोला।
“हुन रोक के वखा सानू ड्रग्स के धन्धे से!” — पवित्तर सिंह बोला।
“वडी, दिखा, नी अपनी धमकी पर खरा उतर कर।” — झामनानी बोला — “अब मार हम सब को। दिखा ऐसा करतब अपना कि हममें से हर कोई चार भाइयों के कन्धों पर सवार होकर यहां से जाये।”
“तब धमकी दे रिया था।” — भोगीलाल बोला — “अब उस पर खरा उतर कर नहीं दिखा रिया।”
“बोलता था” — ब्रजवासी बोला — “किसी ने वादाखिलाफी की तो प्रेत बन के उसके सिरहाने आ खड़ा होगा।”
“इक कुशवाहा नू गद्दारी वास्ते राजी कर लीत्ता” — पवित्तर सिंह बोला — “तो समझा किला फतह कर लीत्ता।”
“वडी, दी न हमने उस कर्मांमारे कुशवाहा को उसकी गद्दारी की सजा!”
“बराबर दी।” — ब्रजवासी बोला।
“वडी, कोई इसे बताओ, नी, कि हमने भी कसम खायी थी कि हम इसे नंगा करके मारेंगे।” — झामनानी बोला — “अब ये खड़ा है हमारे सामने नंगा।”
“मजबूर।” — ब्रजवासी बोला।
“बेयारोमददगार।” — भोगीलाल बोला।
“बेआसरा।” — पवित्तर सिंह बोला।
“जिस हथ जोर कर वेखै सोई।” — विमल के मुंह से निकला।
“वडी, क्या बोला, नी?” — झामनानी बोला।
“कुछ नहीं। तो सब कत्ल आप लोगों ने करवाये? कुशवाहा, सुमन वर्मा, शिवशंकर शुक्ला, जगत नारायण, तुकाराम, वागले, फिरोजा, शेषनारायण लोहिया, सब की मौत के लिये आप जिम्मेदार हैं?”
“सब के लिये अभी नहीं, नी। अभी कई बच गये। जैसे वो टैक्सी ड्राइवर मुबारक अली, वो कालगर्ल सीमा सिकंद, वो तेरा सरकारी जोड़ीदार योगेश पाण्डेय और उधर मुम्बई में वो मराठा होटल वाला सलाउद्दीन और वो अकरम लाटरीवाला।”
“सब मायाराम से जाना?”
“हां।”
“ओ ई ते सी तेरा जानीजान!” — पवित्तर सिंह बोला।
“अब जिन्दा तो वो होगा नहीं!”
“मतलब ई कोई नईं।”
विमल खामोश रहा।
“अब बोल” — झामनानी बोला — “तेरी क्या खातिर करें?”
“यही खातिर करो कि नीलम को यहां से रुखसत करो....”
“वडी, ये तो आर्डर कर रहा है, नी!”
“...और मेरे साथ जैसा जी में आये सलूक करो।”
“पहले तेरी मूंडी न काटें?” — ब्रजवासी बोला।
“मुझे कोई एतराज नहीं।” — विमल बोला — “और मैं आया किस लिये हूं यहां?”
“क्या! ऐसी दीदादिलेरी!”
“साधनि हेति इती जिनि कारी। सीस दिया पर सी न उचारी।”
“वडी, क्या बोला नी?”
“गुरु तेग बहादुर जी का बोल बोल रहा है।” — पवित्तर सिंह धीरे से बोला — “कहता है सिर कटेगा तो सी नहीं निकलेगी।”
“धर्म हेत साका जिनि किया। सीस दिया पर सिरड न दिया।”
“कहता है, सिर देगा, स्वाभि‍मान न देगा।” — पवि‍त्तर सिंह बोला।
“सिर दीने सिर रहत है” — विमल ओज़पूर्ण स्वर में बोला — “सिर राखे सिर जाये।”
“बस कर, अोये!” — पवित्तर सिंह भड़का — “आया वड्डा सूरमा!”
विमल ने होंठ भींच लिये।
“देखेंगे।” — भोगीलाल बोला — “देखेंगे इसकी सूरमाई।”
“हां।” — ब्रजवासी बोला — “जल्दी क्या है!”
“वडी, कोई घूंट वूंट लगवा दें इसे?” — झामनानी बोला — “कोई बोटी वोटी चबवा दें?”
“शायद आराम करना चाहता हो!” — भोगीलाल बोला — “सेज बिछवा दें?”
“जरूरत नहीं।” — पवित्तर सिंह बोला — “नींद न औंदी चोर नूं, आशिक न लगदी भुक्ख।”
“वडी, मैं तो भूल ही गया था, नी।” — झामनानी बोला — “ये तो औरत के इश्क का मारा इधर पहुंचा है, नी!”
कितनी देर वे चारों यूं ही विमल पर फबतियां कसते रहे, उसकी खिल्ली उड़ाते रहे।
उस घड़ी विमल की दुर्दशा पर अफसोस करने वाला कोई शख्स वहां मौजूद था तो वो तरसेम लाल था। हमेशा मवालियों का मैला चाटने को तत्पर रहने वाले तरसेम लाल को तब पहली बार उन लोगों से नफरत हुई और बावजूद इसके कि विमल इश्तिहारी मुजरिम था, कई डकैतियों, कई हत्याओं के लिये जिम्मेदार था, उसके मन में विमल के लिये गहरी हमदर्दी की भावना पनपी। उस घड़ी उसे वो निहत्था आदमी शेर लग रहा था और चारों दादा सियार लग रहे थे।
“हुकमनी!” — फिर झामनानी बोला — “सब को बाहर बुला, नी। हमारी तरह उन्होंने भी कभी राजा साहब नहीं देखा होगा। सब को बोलो आ के राजा साहब को देखें और फिर घर जा के बच्चों को बतायें कि राजा साहब ऐसा होता है।”
“बुलाता हूं, साहब।” — हुकमनी बोला।
“और बजाज!”
“हां, साहब।” — मुकेश बजाज बोला।
“इसकी मजाल तो नहीं हो सकती हुक्मअदूली की, फिर भी देख कोई हथियार तो नहीं छुपाये हुए ये! मुकम्मल तलाशी ले इसकी।”
सहमति में सिर हिलाता बजाज विमल के पास पहुंचा। उसने बड़ी सावधानी से उसका अंग अंग टटोलना शुरू किया।
ब्रजवासी के पीछे खड़ा टोकस ये देख देखकर कुढ़ रहा था कि उसकी दिल्ली से गैरहाजिरी के दौरान उसके अन्डर में चलने वाले हुकमनी और बजाज जैसों की पूछ हो गयी थी।
“ये खाली है।” — आखिरकार बजाज बोला।
“तू चड़या है।” — झामनानी बोला।
बजाज हड़बड़ाया।
“वडी, मैं मुकम्मल तलाशी को बोला। मुकम्मल तलाशी ली तूने?”
“हां, साहब।”
“कहता है, हां साहब। इधर हट।”
झामनानी खुद विमल के सामने पहुंचा, उसने यूं एक हाथ उसके सिर पर चलाया कि सिर से पगड़ी उतर कर परे जा गिरी।
“ओह!” — बजाज बोला — “सॉरी, बॉस।”
“वडी, अब हुई, नी, तलाशी मुकम्मल। पगड़ी में भी कुछ नहीं है।”
“साहब, आप महान हैं।”
“ये हथियार हमारे पर इस्तेमाल करने के लिये ही नहीं, खुद अपने पर इस्तेमाल करने के लिये भी ला सकता है। इससे ‘भाई’ ने मिलना है। इससे ‘भाई’ से भी बड़े साहब ने मिलना है। इससे कई बड़े साहबों ने मिलना है। उन लोगों के आने से पहले इसे कुछ हो गया तो समझता है हमारी कितनी किरकिरी होगी?”
“ओह!”
विमल ने जमीन पर से पगड़ी उठाई, उस पर से धूल झाड़ी और उसे जैसे तैसे वापिस अपने सिर पर टिकाया।
रावण रथी — तरसेम लाल मन ही मन बोला — विरथ रघुवीरा।
तब तक दादा लोगों के अगल बगल इतने लोग इकट्ठे हो गये थे कि वो उस विशाल बरामदे में भी बड़ी मुश्किल से समा पा रहे थे।
इतने लोगों की — जो कि कम से कम पचास तो यकीनन थे, ज्यादा भी हो सकते थे — वहां मौजूदगी विमल के लिये सर्वदा अप्रत्याशित थी।
क्यों इतने लोग वहां जमा थे?
“वडी, देखो, नी, राजा साहब को।” — झामनानी उच्च स्वर में बोला — “बंदर देखा होगा, नी, लंगूर देखा होगा, नी, राजा साहब नहीं देखा होगा। वडी, अब देखो, नी। देखो और तालियां बजाओ।”
ताली तो किसी ने न बजायीं, अलबत्ता अट्टहास सबने किया।
“वडी, अब कोई करतब भी तो करके दिखा राजा साहब वाला!” — कोलाहल शान्त हुआ तो झामनानी बोला — “तू तो बस खड़ा है खम्बे की तरह! अब कोई डुगडुगी बजायेगा तो हिले डुलेगा?”
“मैं फिर दरख्वास्त करता हूं” — विमल धैर्य से बोला — “कि आप लोग नीलम को यहां से रवाना करें और मेरे साथ जैसा जी में आये, सलूक करें। आपकी अदावत मेरे से है, नीलम से नहीं। आप नीलम को रिहा कीजिये और जो भी बदला उतारना चाहते हैं, मेरे से उतारिये।”
“सिन्धी भाई” — ब्रजवासी धीरे से बोला — “ये नीलम नीलम ही भज रहा है, बच्चे का नाम नहीं ले रहा!”
“वडी, कहीं इसे मालूम तो नहीं पड़ गया” — सहमति में सिर हिलाता झामनानी बोला — “कि बच्चा इधर नहीं है?”
“कैसे मालूम पड़ जायेगा, जी?” — भोगीलाल बोला — “कोई नजूमी है ये!”
“वडी, ये बच्चे को मां में शामिल समझ कर बात कर रहा होगा, नी!”
“हां।” — ब्रजवासी को बात जंची — “ये हो सकता है।”
“तो क्या फैसला किया आप लोगों ने?” — विमल बोला।
“वडी, फैसला भी कर लेंगे।” — झामनानी बोला — “जल्दी क्या है?”
“मुझे कोई जल्दी नहीं। मैं सिर पर कफन बान्ध के यहां आया हूं। आप मुझे अब मारें या ठहर के, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन एक लाचार औरत को मेरी वजह से हलकान करना...”
“ओये, मां सदके” — पवित्तर पुचकारता सा बोला — “हलकान कित्थे हो रही है ओ! ओ ते फसकड़ा मार के पलंगे चढी बैठी होई ए।”
“मेरी आप से हाथ जोड़ के बिनती है कि आप उसे जाने दें।”
“वडी, कहां जायेगी तेरी बेचारी रात के वक्त इस उजाड़ बियाबन से” — झामनानी बोला — “चार किलोमीटर तक तो कोई आबादी तक नहीं है इधर। आधी रात को सूनी सड़क पर निकलेगी तो डाकू पड़ जायेंगे।”
“सवेरे भेजेंगे।” — भोगीलाल बोला।
“अब तू भी आराम कर।” — ब्रजवासी बोला — “थका हुआ होगा।”
“वडी, बहुत उम्दा जगह सूझी है मुझे तेरे आराम के लिये।” — झामनानी बोला — “बजाज!”
“हां, साहब।” — बजाज बोला।
“कलगी वाले राजा साहब को कुयें में डाल। और जाल को ताला लगा के चाबी पास रख।”
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