रतन मर्डर केस की फाइल हमारे सामने थी ।
विभा उसे यूं खंगाल रही थी जैसे किसी खास चीज की तलाश हो ।
हममें से किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह उसमें क्या ढूंढ रही है | पूरी फाइल खंगालने के बावजूद जब इच्छित चीज नहीं मिली तो उसने उसे मेज पर रख दिया।
मेरी निगाह अभी भी फाइल पर ही जमी थी बल्कि अगर यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा कि मैं खासतौर पर रतन की नंगी लाश के फोटो को देख रहा था । रतन के दोनों हाथ अपनी गर्दन पर थे ।
आंखें और जीभ बाहर को निकली हुईं ।
जैसे अपनी ही गर्दन दबा रहा हो ।
उसके पेट पर लिखा 'क्यों' बहुत ही स्पष्ट रूप से पढ़ा जा रहा था । सचमुच वह स्केच पेन से लिखा गया था ।
मैं विभा से उस 'क्यों' का मतलब पूछने ही वाला था कि उसने इंस्पेक्टर जमील अंजुम से कहा ---- “क्या तुम्हें लाश के साथ कार की डिक्की से कोई अंगूठी मिली थी ?”
“अंगूठी?” जमील चौंका।
“मिली थी या नहीं?"
“ अंगूठी तो मुझे कोई नहीं मिली । ”
“मिलनी चाहिए थी।”
“मैं समझा नहीं कि आप क्या कह रही हैं । "
“ रतन अपने बाएं हाथ की तर्जनी में अंगूठी पहनता था जो लाश की उंगली में नजर नहीं आ रही है।"
“क... क्या आप इसे जानती थीं ?”
“नहीं, मैं इससे कभी नहीं मिली ।”
“फिर आप कैसे कह रही हैं कि ये अंगूठी पहनता था ? ”
“फाइल में लगे फोटो ने बताया । "
“फ... फोटो ने आपको ये बता दिया कि ये अंगूठी पहनता था ?”
“ चीजों को ध्यान से देखा करो इंस्पेक्टर, इसके बाएं हाथ की तर्जनी में अंगूठी नहीं लेकिन उसका निशान है । वही निशान जो उन लोगों की उंगलियों में आमतौर पर बन जाता है जो लंबे समय से अंगूठी पहने होते हैं। जैसे तुम्हारी उंगली में भी अंगूठी के नीचे होगा ।”
अब मेरा ध्यान भी फोटो में मौजूद रतन के बाएं हाथ की तर्जनी पर गया। सचमुच उसमें अंगूठी का निशान था ।
“खैर।” विभा ने अंगूठी के टॉपिक को दरकिनार करने के साथ कहा ---- “फाइल में पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं है।”
“प... पोस्टमार्टम रिपोर्ट ?” अच्छे-खासे, अपनी कुर्सी पर बैठे जमील अंजुम को जैसे अचानक बिच्छु ने डंक मार दिया था ।
“रतन बिड़ला की बॉडी का पोस्टमार्टम तो हुआ होगा न!” विभा जिंदल ने बेहद शांत और संयत स्वर में कहा ---- “अस्वाभाविक मौत मरने पर सभी का होता है। "
“ह... हुआ तो था ।”
“मैं उसी की रिपोर्ट देखना चाहती हूं ।”
जमील के मुंह से लफ्ज न निकल सका ।
विभा की तरफ यूं देखता रह गया था वह, जैसे उसे नहीं बल्कि अचानक ही उसके सिर पर उग आने वाले सींगों को देख रहा हो ।
और मैं और शगुन देख रहे थे उसके चेहरे को ।
उस चेहरे को जिसका 'तेज' पलक झपकते ही जाने कहां गायब हो गया था ? 'तेज' का स्थान 'मलिनता' ने ले लिया था।
हवाईयों ने ले लिया था।
इससे आगे बढ़कर अगर यह लिखूं तब भी गलत नहीं होगा कि जमील अंजुम के चेहरे पर खौफ और आंखों में आतंक नाचता साफ नजर आ रहा था। उसकी यह हालत विभा द्वारा पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखने की ख्वाहिश रखते ही हुई थी । वरना, उससे पहले तक तो वह केस के बारे में खूब चहक चहककर बता रहा था ।
पूरी फाइल ही हमारे सामने रख दी थी ।
हमें लगा----पोस्टमार्टम रिपोर्ट में जरूर कुछ गड़बड़ है।
“क्या सोचने लगे मिस्टर जमील ?” विभा ने खुद को उसकी भाव-भंगिमा से अंजान दर्शाया ---- "क्या आपको पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाने में एतराज है?”
“अ... आप होती कौन हैं मुझसे पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिखाने के लिए कहने वाली ?” बात जब उसने कहनी शुरू की थी तो लहजे में हल्की सी हकलाहट थी लेकिन शब्दों के साथ ही लहजे की कठोरता बढ़ती चली गई ---- “वह रिपोर्ट सरकारी सम्पत्ति है और उसे मैं यूं ही किसी ऐरे-गेरे को नहीं दिखा सकता । ”
“इंस्पेक्टर ।” मुझे हस्तक्षेप करना पड़ा ---- “जुबान संभालकर बात कीजिए । ये अचानक हो क्या गया है आपको? क्या इतनी जल्दी भूल गए कि आपके सामने जिंदलपुरम की बहूरानी बैठी हैं?”
“मुझे याद है। अच्छी तरह याद है कि..
“अजीब बात है अंकल ।” शगुन बोला- - - - “आपने तो गिरगिट की तरह रंग बदल लिया है। कुछ देर पहले आप हमारे द्वारा आंटी का परिचय देते ही कुर्सी से खड़े हो गए थे। कहा था कि आपने इनका नाम खूब सुना है और अब..
“किसी को सम्मान देने का मतलब यह नहीं है कि वह मेरे सिर पर चढ़कर नाचेगा !” भन्नाया हुआ सा वह शगुन की बात पूरी होने से पहले ही बोला ---- "इन्होंने कहा था कि ये रतन मर्डरकेस के बारे में कुछ जानकारियां चाहती हैं। मैंने सारी कहानी सुना दी । पूरी फाइल सामने रख दी । लेकिन मैं हर कागज दिखाने के लिए बाध्य नहीं हूं । "
“यही तो कमी है मुझमें, मैं किसी को बाध्य नहीं किया करती । सामने वाला जो करता है अपनी मर्जी से करता है।” कहने के साथ विभा ने सफेद साड़ी के ऊपर पहने अपने काले रंग के लांग कोट की जेब से मोबाइल निकालकर कोई नंबर मिलाना शुरु कर दिया था ।
“क... किसे फोन कर रही हैं आप ?” जमील अंजुम के अंदाज में अजीब किस्म की बौखलाहट थी ।
विभा ने बहुत आराम से जवाब दिया ---- “आपके कमीश्नर को, मुझे न सही ---- उन्हें तो रिपोर्ट दिखाने के लिए बाध्य होंगे ! ”
“न... नहीं। प्लीज... प्लीज बहूरानी । उन्हें फोन मिलाने को रहने दीजिए ।” एक बार फिर गिरगिट की तरह रंग बदलने के साथ उसने मेज के ऊपर से हाथ डालकर विभा के हाथ से मोबाइल ले लिया था।
“ये क्या बदतमीजी है ?” भन्नाकर मैं खड़ा हो गया ।
“प्लीज वेद जी, मेरी इस हरकत को अदरवाइज न लें।" उसने कॉल डिस्कनेक्ट की ---- “मैं रिपोर्ट दिखाने के लिए तैयार हूं । ”
“अगर आप ही तैयार हैं तो मुझे भला कमीश्नर से बात करने की क्या जरूरत है!” कहते वक्त विभा के होठों पर बहुत ही चित्ताकर्षक मुस्कान थिरक रही थी ।
जमील अंजुम एक अल्मारी की तरफ बढ़ा ।
विभा ने मुझे वापस कुर्सी पर बैठने का इशारा किया ।
वह वापस लौटा |
अपनी कुर्सी पर बैठने के साथ अल्मारी से निकालकर लाया गया कागज इस तरह मेज पर रखता हुआ बोला जैसे जो कर रहा था वह करने के अलावा कोई चारा नहीं रह गया था ---- “बात ये है बहूरानी कि ये रिपोर्ट मुझे चार दिन बाद मिली थी जबकि अपनी समझ में केस को उसी रात हल कर चुका था । अगली सुबह तो अभियुक्त के रूप में मैंने चांदनी को कोर्ट में भी पेश कर दिया था।”
“जबकि बाद में, पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने पर तुम्हारी समझ में यह बात आई कि गलती कर चुके हो !”
“ज... जी ।” वह इतना ही कह सका ।
“ उस वक्त तुम्हें लगा कि अब इस केस को उलटना मुनासिब नहीं होगा बल्कि अगर यह कहा जाए तो ज्यादा उचित होगा कि खुद तुम्हारे ही हित में नहीं होगा क्योंकि इतने हाई प्रोफाइल मर्डर केस को एक ही रात में हल कर डालने के कारण तुम्हारे अपने विभाग में तुम्हारी 'वाह-वाह' हो रही थी। अफसर तारीफें कर रहे थे। है न !”
उसके मुंह से फिर इतना ही “जी ।” ————
“इसलिए रिपोर्ट दबा ली, फाइल में नहीं लगाई !”
“जी । ” पुनः इतना ही ।
“अगर तुमने उसी रात थोड़ा-सा दिमाग इस्तेमाल किया होता तो कभी इस मुसीबत में न फंसते । ”
“म... मैं समझा नहीं बहूरानी।"
“उस रात का किस्सा बताओ।"
“अभी तो बताया है।"
“ एक बार फिर बता दो । क्या बुराई है ?”
“रात के दो बजे अवंतिका ने रिपोर्ट लिखवाई कि आधा घंटा पहले दो बदमाशों ने उसके पति को किडनेप कर लिया है ।”
“यानी किडनेप करीब डेढ़ बजे हुआ ?”
“जी।”
“अवंतिका की रिपोर्ट लिखने और उसे घर भेजने के बाद तुम अपनी मोटरसाइकिल पर निकल पड़े। मुश्किल से आधे घंटे बाद यानी ढाई बजे रतन की लाश के साथ छंगा - भूरा हाथ लग गए !”
" तुरंत ही ऐसा हो जाना खटका तो मुझे भी था बहूरानी लेकिन उस वक्त इसे मैंने अपना सौभाग्य समझा ।”
विभा ने उसकी बात पर जरा भी ध्यान दिए बगैर कहा ---- "छंगा भूरा ने बताया कि रतन के मर्डर की सुपारी उन्हें चांदनी ने दी थी!”
“जी।" “कितने बजे?”
“करीब साढ़े बारह बजे ।”
“मतलब साढ़े बारह बजे सुपारी मिली और डेढ़ बजे उन्होंने रतन को किडनेप भी कर लिया ? एक घंटे में सुपारी पर अमल! इतनी फास्ट सर्विस तो आइ. एस. आइ. वालों की भी नहीं है।”
" ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि बकौल छंगा- भूरा----चांदनी ने उन्हें सुपारी देने के साथ ही यह भी बता दिया था कि इस वक्त रतन
बिड़ला अपनी पत्नी के साथ होटल पैराडाइज में है। उनकी गाड़ी का नंबर आदि भी बता दिया था उसने । रकम हाथ में आते ही वे निकल पड़े। लाल रंग की मारूति चुराई और पैराडाइज की पार्किंग में पहुंचकर रतन और उसकी पत्नी के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे। जैसे ही रतन और अवंतिका अपनी गाड़ी में बैठकर वहां से रवाना हुए, उन्होंने पीछा करना शुरु कर दिया और मौका लगते ही एक सुनसान सड़क पर वारदात कर डाली ।”
“एक बार फिर याद रखो ---- रतन का अपहरण उन्होंने डेढ़ बजे किया । ढाई बजे लाश सहित तुम्हारे हाथ भी लग गए। यानी हत्या उन्होंने इसी एक घंटे में कर दी थी !”
“बकौल उनके तो----किडनेप करते ही । पकड़े जाते वक्त तो वे लाश को ऐसी जगह ठिकाने लगाने ले जा रहे थे जहां से ..
“तुम्हें इस बात पर जरा भी यकीन नहीं करना चाहिए था।"
“क... क्यों?”
“क्योंकि लाश पर 'क्यों' लिखा था ।"
“क्या मतलब?”
“दिमाग लगाकर बताओ।” विभा ने कहा ---- “मर्डर करने वाले ने लाश के सारे कपड़े क्यों उतारे? उसके पेट पर 'क्यों' क्यों लिखा?”
“यह गुत्थी तो मैं आजतक नहीं सुलझा पाया हूं।"
“ऐसा करने के पीछे हत्यारे का एक मकसद तो बहुत ही स्पष्ट है - - - - यह कि वह लाश को लोगों के सामने लाना चाहता था ताकि लोग उसके द्वारा लिखे गए 'क्यों' की गुत्थी में उलझें । यह सोचें कि ये 'क्यों' क्यों लिख गया? अगर उसका मकसद इन्वेस्टीगेटर्स को इस उलझन में फंसाना न होता तो वह ऐसा करता ही नहीं और अगर उसका मकसद यह था तो लाश को किसी ऐसी जगह ठिकाने लगाने की कोशिश करने का कोई मतलब नहीं हुआ जहां से वह कभी किसी को बरामद ही न हो सके। अगर लाश बरामद ही नहीं होगी तो लोग उसके 'क्यों' में कैसे उलझेंगे?”
जमील अंजुम चुप ।
“तुम समझ रहे हो न ! दोनों बातों में कोई मेल नहीं है।”
“म... मैं समझ रहा हूं।” जमील हकला उठा----“म...मगर मैं इतनी गहराई से नहीं सोच पाया था बहूरानी।"
“दूसरी बात ---- रात में छंगा- भूरा ने उस जहर का इंतजाम कब और कहां से किया जिससे हत्या की गई ?”
“यह सवाल मैंने नहीं पूछा ।”
“जबकि पूछा जाना चाहिए था ----- -- तुम्हारी दूसरी चूक| "
“हत्या जहर से हुई पाकर मैं चौंका जरूर था। मेरे सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए किया क्योंकि गोली से हत्या होने पर आवाज होती। मैं संतुष्ट हो गया । यह बात तो दिमाग में ही नहीं आई कि रात के उस वक्त उनके पास जहर कहां से आ गया ?”
“ए. टी. एम. से पैसे बारह के आसपास निकले, साढ़े बारह बजे वे बतौर सुपारी छंगा - भूरा को मिले, डेढ़ से पौने दो के बीच उन्होंने रतन की हत्या भी कर दी और फिर ढाई बजे लाश सहित पकड़ भी लिए गए। इतना सबकुछ केवल ढाई घंटे के अंदर हो गया । क्या तुमने सोचा नहीं, यह सब क्यों इतनी जल्दी-जल्दी होता चला गया? क्या इसे भी तुम अपना सौभाग्य समझते रहे?”
“सोचा तो था बहूरानी।" जमील को कहना पड़ा ---- “सबकुछ चमत्कार-सा भी लग रहा था लेकिन..
“लेकिन जो खटक रहा था उसे इसलिए गटक गए क्योंकि दिमाग पर यह नशा सवार होने लगा था कि तुमने एक ही रात में इतने हाई प्रोफाइल मर्डर केस को हल कर लिया है !”
जमील अंजुम ने नजरें झुका लीं।
“नशे में चूर होकर तुमने जो किया, ठीक नहीं किया ।”
“आप समझ सकती हैं बहूरानी।" जमील अंजुम गिड़गिड़ा-सा उठा----“हम जैसे छोटे अफसरों की कुछ मजबूरियां होती हैं। उतना आगे बढ़ जाने के बाद अगर मैं इस रिपोर्ट को प्रकाश में लाता तो मेरी नौकरी जा सकती थी। अफसर लोग..
“यही तो कमी है तुम लोगों में, अपनी नौकरी तुम्हें किसी बेगुनाह की जिंदगी से ज्यादा इंपोर्टेन्ट लगती है ।”
“मुझे माफ कर दीजिए बहूरानी ।”
विभा इस बार चुप रह गई।
0 Comments