ओमारू पहाड़ के भीतर उसी मूर्ति वाले हॉल में, चबूतरे के पास बैठा दो लोगों से बात कर रहा था कि एक आदमी उसके पास आता कह उठा।

“ओमारू। हमारा एक योद्धा, युद्ध कला सीखते हुए अभी-अभी जान गंवा बैठा।”

“बुरा हुआ।” ओमारू ने अफसोस भरे स्वर में कहा –“पर ये कैसे हो गया?”

“हथियार लिए दूसरे योद्धा से मुकाबला कर रहा था और फुर्ती से खुद को बचा न सका।”

“इससे दूसरों को सबक जरूर मिलेगा कि मौत के इस खेल में फुर्ती जरूरी है। बोबला से कहो उसे बाहर दफन कर दे।”

वो चला गया कि उसी समय सामने से होम्बी आती दिखी।

ओमारू फौरन खड़ा हो गया।

सात फुट लम्बी होम्बी ने कंघा पकड़ रखा था और काले बाल आगे को किए उस पर कंघा कर रही थी। चेहरे पर झुर्रियों भरी लकीरें झूल रही थीं। ओमारू तुरंत उसके पास पहुंचकर बोला।

“कहो जादूगरनी?”

“सोलाम तेरे से बात करने वाला है।” होम्बी ने कहा।

“सोलाम? ओह उसने लड़की को जरूर खत्म कर दिया होगा। मुझे बताना चाहता होगा।

होम्बी के चेहरे पर न समझ में आने वाली मुस्कान उभरी।

“मुझे उस कमरे में जाना चाहिए।” कहने के साथ ही ओमारू आगे बढ़ गया।

ओमारू पास ही मौजूद उस कमरे में पहुंचा, जहां दीवार पर दो स्क्रीनें लगी हुई थी। एक स्क्रीन रोशन थी और उस पर झिलमिलाहट नजर आ रही थी। तीन आदमी बोर्ड पर लगे स्विचों पर व्यस्त थे।

“सोलाम ने हमसे सम्पर्क बनाया?” ओमारू ने पूछा।

“नहीं।” एक ने कहा।

“जादूगरनी कहती कि वो सम्पर्क बनाने वाला है।” ओमारू बोला।

“तो सम्पर्क बनते ही पता चल जाएगा।”

“रानी ताशा की तरफ से कोई संदेश आया?” ओमारू ने पूछा।

“नहीं। हम वो ही चेक कर रहे हैं। बीस दिन से अभी तक उन्होंने हमसे बात नहीं की।”

“रानी ताशा व्यस्त होगी। तभी हमसे बात नहीं कर...।”

उसी बात एक तरफ लगा छोटा-सा बल्ब जलने-बुझने लगा।

“किसी ने हमसे सम्पर्क बनाया है।” वो आदमी बल्ब की तरफ बढ़ता बोला।

“सोलाम होगा।” ओमारू बोला।

उस आदमी ने बल्ब के पास लगे स्विच को दबाया और नीचे रखा, तारों से जुड़ा हेडफोन जैसी चीज उठाकर सिर पर रख ली तो उधर से सोलाम की आवाज कानों में पड़ी।

“हैलो-हैलो।”

“कौन हो तुम?” उस व्यक्ति ने पूछा, हेडफोन लगाए।

“मैं सोलाम हूं। ओमारू से बात कराओ।”

“बात करो। ओमारू यहीं पर है।” कहने के साथ ही उसने हेडफोन उतारकर ओमारू की तरफ बढ़ाया –“सोलाम है।”

ओमारू ने फौरन हेडफोन लगाकर बात की।

“कहो सोलाम? लड़की को मार दिया क्या?” ओमारू ने कहा।

“बबूसा ने बहुत समस्या पैदा कर दी है। उसने हमारे कई योद्धा मार दिए...।”

“ये कैसे हो सकता है।”

“बबूसा उस लड़की को अपने साथ रखे हुए, उसे हमसे बचा रहा है।” सोलाम की आवाज आई।

“बचा रहा है।” ओमारू के माथे पर बल पड़े –“लड़की का बबूसा से क्या रिश्ता?”

“ये मैं नहीं जानता। परंतु लड़की को बबूसा का संरक्षण मिला हुआ है। वो हमारे उन लोगों को मार रहा है जो लड़की को मार देना चाहते हैं। बबूसा हमारे खिलाफ उठ खड़ा हुआ है।”

“ये असम्भव है सोलाम। बबूसा ऐसा नहीं कर सकता।” ओमारू परेशान-सा कह उठा।

“वो ऐसा ही कर रहा है।”

“तुम्हारी बबूसा से बात हुई?”

“थोड़ी-सी। वो लड़की को बचाए रखने को कहता है।”

“ये तो गलत कर रहा है बबूसा। सीधा-सीधा हमारे खिलाफ मैदान में उतर रहा है। वो पागल तो नहीं हो गया?”

“वो पूरे होश में था और ठीक था। उसने मुझे भी चेतावनी दी।”

“ओह।” ओमारू का चेहरा कठोर हो गया –“तो लड़की के साथ बबूसा को भी खत्म कर दो।”

“ऐसा किया तो सदूर ग्रह वाले नाराज हो सकते हैं। बबूसा उन्हें प्यारा है।”

“लेकिन बबूसा हमारे नियमों के खिलाफ चल रहा है। उसे लड़की को नहीं बचाना चाहिए।”

“उसने हमारे आदमी भी मारे।” उधर से सोलाम की आवाज आई।

ओमारू के होंठों से गुर्राहट निकली।

“मुझे बताओ ओमारू अब हम क्या करें?” सोलाम की आवाज आई।

“बबूसा कहां है?”

“उसे हम ढूंढ़ लेंगे। तुम मुझे हुक्म दो कि अब हम क्या करें?”

“मैं तुमसे कुछ देर बाद बात करता हूं। जादूगरनी से सलाह लेनी पड़ेगी।

“एक घंटे बाद दोबारा सम्बंध बनाऊं?”

“हाँ।” ओमारू ने कहा और सिर से हेडफोन जैसा यंत्र उतारकर रखा और बाहर निकल गया।

होम्बी मूर्ति वाले चबूतरे पर बैठी थी। अभी भी सिर के बाल आगे की तरफ करके कंधी फेर रही थी। उसकी निगाह इधर-उधर जाते कामों में व्यस्त अन्य लोगों पर फिर रही थी कि नजर ओमारू पर टिक गई, जो कि उसकी तरफ आ रहा था। होम्बी के चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कान नाच उठी। मूर्ति वाले चबूतरे पर सिर्फ होम्बी ही बैठ सकती थी। कोई और वहां नहीं बैठ सकता था। ओमारू भी नहीं। होम्बी को डोबू जाति में विशेष दर्जा प्राप्त था।

“जादूगरनी मैं कुछ परेशान हो रहा हूं।” पास पहुंचकर ओमारू ने सख्त स्वर में कहा।

“पता है मुझे।”

“पता है-क्या पता है?”

“वो लड़की तेरे लिए मुसीबतें खड़ी कर रही है। मैंने तो पहले ही कह दिया था कि ऐसा होगा। वो ही हो रहा है। तूने मेरी बात सुनकर भी कोई इंतजाम नहीं किया था पूरे चांद की रात। ये तेरी गलती थी। मैंने तो पहले ही कह दिया था कि पूरे चांद की रात कोई मुसीबत आने वाली है। तू मेरी बात सुनकर सतर्क रहता तो आज सब ठीक होता।”

“तुम सही कहती हो, ये गलती जरूर मेरे से हुई।”

“तो अब भुगत भी...।”

“बबूसा उस लड़की को मुम्बई में बचा रहा है। उसने हमारे कई योद्धा मार डाले हैं।”

होम्बी मुस्कराई। नजरें ओमारू पर थीं।

“मैंने तुझे ये भी कहा था कि बबूसा को यहां से मत जाने देना।”

“पर बबूसा को रोक पाना आसान नहीं था।” ओमारू गुस्से से बोला।

“तू सरदार है यहां का। तेरे लिए क्या कठिन है।” होम्बी मुस्कराई।

“मैंने तब बबूसा पर ज्यादा सख्ती इसलिए नहीं की कि सदूर ग्रह वाले नाराज न हो जाएं।”

“तो बबूसा की शिकायत सदूर ग्रह वालों से कर।”

“मुझे सलाह दो जादूगरनी।”

“बोल।”

“सोलाम पूछता है कि अब वो क्या करे? बबूसा लड़की को बचाता जा रहा है। वो हमारे रास्ते में आ रहा है। उसने हमारे कई योद्धाओं को मार दिया है। मैं चाहता हूं कि बबूसा को मारने का आदेश दे दूं।” ओमारू बोला।

“दे दे।”

“परंतु सदूर ग्रह वाले बबूसा को चाहते हैं। बबूसा मर गया तो वो हमसे नाराज हो सकते हैं। जब भी वो पोपा पर आते हैं तो हमें ढेर सारी काम की चीजें देते हैं। हमारे आदमी मुम्बई से हमसे फौरन बात कर लेते हैं तो ये यंत्र भी हमें सदूर ग्रह वालों ने ही दिए हैं। उन यंत्रों को चलाने के लिए हमें बिजली देते हैं। वो हमारे दोस्त हैं जादूगरनी।”

“तो तू क्या चाहता है सरदार?”

“मैं अब क्या करूं?”

“तेरे को सदूर ग्रह के लोग प्यारे हैं या अपनी जाति और जाति के नियम?”

“अपनी जाति से प्यार है जादूगरनी।”

“तो सोलाम से कह दे कि बबूसा को भी मार दे।” जादूगरनी मुस्कराई।

“बबूसा मरा तो सदूर ग्रह वाले हमसे नाराज...।”

“वो नाराज नहीं होंगे।” होम्बी हंस पड़ी –“बबूसा मरेगा तो वो नाराज होंगे, परंतु मैं देख रही हूं वो नहीं मरेगा।”

“नहीं मरेगा?” ओमारू के दांत भिंच गए –“ये कैसे हो सकता है, हमारे कितने ज्यादा योद्धा वहां पहुंच चुके हैं। किस-किस से बचेगा बबूसा। कोई-न-कोई वार तो उस पर सफल होगा ही।”

होम्बी ने आंखें बंद कर लीं।

ओमारू की निगाह होम्बी के झुर्रियों वाले चेहरे पर टिकी रही।

मिनट भर बाद होम्बी ने आंखें खोली और कहा।

“सोलाम से कह दे कि बबूसा को कैद करने की कोशिश करें, ऐसा न हो सके तो उसे मार दें।”

“हम लोग बबूसा को मारने में सफल हो जाएंगे न?”

“नहीं।” होम्बी ने गम्भीर निगाहों से ओमारू को देखकर कहा –“बबूसा का बाल भी बांका नहीं होगा। मैं जिस तूफान को उठते हुए देख पा रही हूँ तू अभी तक उस तूफान की हवा को भी महसूस नहीं कर पाया। बबूसा राजा देव को तलाश कर रहा है और तूफान तब उठेगा जब राजा देव उसके सामने होगा। मैं रानी ताशा का भी आभास पा रही हूं। वो आने वाली है यहां और उसके साथ एक बेहद खतरनाक इंसान होगा, जिसे कोई भी संभाल नहीं पाएगा। शायद उसी से बबूसा परास्त हो सकेगा। परंतु अभी ज्यादा स्पष्ट नहीं देख पा रही हूं भविष्य में। लेकिन जो कहा है वो पूरी तरह सही है, ज्यों-ज्यों वक्त करीब आता जाएगा, मेरे लिए भविष्य में देखना स्पष्ट हो जाएगा। राजा देव जो भी है वो अपने आप में खतरनाक इंसान है। जब वो बबूसा से मिलेगा तो उसके बाद खतरनाक वक्त शुरू हो जाएगा।”

ओमारू होम्बी को देखे जा रहा था।

“तू आजाद है। सोलाम को जो भी आदेश दे। परंतु कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

“मैं सोलाम को बबूसा को मारने का आदेश दूंगा।”

“दे दे।”

“और उस लड़की का अंत कब तक होगा?”

“ये सवाल मेरे से क्यों पूछता है।” होम्बी मुस्कराई –“क्या तेरे को अपने योद्धाओं पर भरोसा नहीं रहा?”

“पूरा भरोसा है।”

“तो सब कुछ मेरे से मत पूछ। जा...।”

ओमारू खड़ा रहा।

“अब क्या है?”

“जादूगरनी मेरे दिमाग में एक बात आई है। सलाह दे मुझे।” ओमारू बोला।

“कह...।”

“बबूसा, राजा देव को ढूंढ़ रहा है। तो क्यों न हम राजा देव को उठाकर यहां ले आएं।”

“उससे क्या होगा?”

“राजा देव के यहां होने की खबर पाकर, बबूसा यहां आएगा तो हम बबूसा को पकड़कर तब तक के लिए कैद कर लेंगे जब तक रानी ताशा पोपा में बैठकर इधर नहीं आ जाती। इस तरह हम बबूसा की तरफ से खड़ी होने वाली परेशानियों से बच सकते हैं। इस तरह बबूसा भी जिंदा रहेगा और...।”

“सरदार।” होम्बी बोली –“राजा देव, बबूसा से भी खतरनाक है। उसे पकड़ना तो दूर तुम लोग उस तक पहुंच भी नहीं पाओगे। अगर राजा देव को पकड़कर यहां ले आए तो ये जगह नष्ट हो जाएगी।”

“नष्ट हो जाएगी–वो कैसे?”

“राजा देव के खास साथी हैं वो पीछे-पीछे यहां आएंगे और उनके पास हमारा मुकाबला करने को अजीब-अजीब से खतरनाक हथियार होंगे। वो हमारे इन खोखले पहाड़ों को भी तबाह-बर्बाद कर देंगे। ऐसा वो इसलिए करेंगे कि वो राजा देव के सच्चे साथी हैं। राजा देव को छुड़ाकर ले जाएंगे। इस काम में बबूसा उनकी सहायता करेगा। इसलिए व्यर्थ की सोच मन में मत लाओ। राजा देव यहां से जितना दूर रहे, उतना ही बेहतर है।”

“तुम हमारे योद्धाओं को कम तो नहीं आंक रही जादूगरनी?” ओमारू कठोर स्वर में बोला।

“मैं कुछ भी नहीं आंकती सरदार।” होम्बी मुस्कराई –“मुझे सिर्फ पूर्वाभास हो जाता है और मैं तुम्हें सतर्क कर देती हूं। अगर तुम्हें मेरी बातों पर यकीन नहीं तो अपनी मर्जी से काम कर सकते हो। मैं तुम्हें रोकूंगी तो नहीं।”

“मुझे तुम्हारी बात पर यकीन है जादूगरनी।”

होम्बी मुस्कराती हुई ओमारू को देखने लगी।

“अभी सोलाम फिर बात करेगा तो उसे कहूंगा कि बबूसा को कैद करने या फिर मारने की चेष्टा करे और उस लड़की को खत्म कर दे कि वो किसी को हमारे बारे में खुलासा तौर पर कोई बात न बता सके। रानी ताशा के लोगों ने कहा था कि स्क्रीनों वाला कमरा कोई बाहर का आदमी न देख सके, वरना हमारे लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी।”

होम्बी उसी मुद्रा में ओमारू को देखती रही।

ओमारू पलटकर वापस चला गया।

‘बेकार में ही परेशान हो रहा है ओमारू। सारे खेल की डोर तो बबूसा के हाथ में है।’ होम्बी बड़बड़ा उठी।

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देवराज चौहान और जगमोहन की निगाह सोहनलाल पर थी।

सोहनलाल के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थी।

सोहनलाल ने बबूसा और धरा के बारे में उन्हें सब बता दिया था और देवराज चौहान ने भी उसे बबूसा के बारे में बताया कि किस तरह वो बिना शरीर के, उसके पास आकर बात करता है। परंतु इस वक्त सबसे खास बात तो ये थी कि सोहनलाल, बबूसा को आमने-सामने देख चुका था।

“बबूसा कैसा लगता है देखने में। उसका हुलिया बताओ।” देवराज चौहान ने कहा।

“वो सत्ताईस-अठाइस वर्ष का सांवले रंग का युवक है। शरीर तगड़ा है जैसे कि तमाम उम्र वो कसरत करता रहा हो। नैन-नक्श तीखे हैं और वो आकर्षक है। मैंने जो महसूस किया, वो कुछ कठोर जैसा है। जैसे कि मरने-मारने पर उतारू हो। मैंने उसे तुम्हारे बारे में नहीं बताया तो उसने मुझ पर सख्ती करने का इरादा बना लिया था। ये बात मैंने भांप ली और घर से खिसक आया। वो डरने वाला इंसान नहीं है।” सोहनलाल ने सोच भरे स्वर में कहा।

“उसने जो बातें तुम्हें कहीं, उस दौरान उसके बारे में तुमने क्या महसूस किया?”

“वो गम्भीरता से अपनी बात कह रहा था। उसके साथ धरा नाम की जो लड़की थी, वो उसकी बात पर सहमति जता रही थी कि वो सच कह रहा है। जबकि लड़की से उसका वास्ता ज्यादा पुराना नहीं है। मेरे ख्याल

में लड़की, उसे तुम तक पहुंचाने के लिए, अपनी कोशिशों में लगी हुई है।”

“उसकी बातें सच लगी तुम्हें?”

“शायद।” सोहनलाल ने सिर हिलाया –“मुझे तो वो सच कहता लगा, परंतु उसकी बातें ऐसी थी कि उस पर यकीन करना आसान नहीं है। सदूर ग्रह के राजा-वहां की रानी ताशा ने तुम्हें धोखा देकर, ग्रह से बाहर फिंकवा दिया था। अब वो तुम्हें लेने आ रही है। इसे बारे में जाने कब से वो तैयारियां कर रही है। इसी तैयारी के तहत बबूसा का जन्म कराकर उसे इस ग्रह पर छोड़ दिया गया। और भी कई बातें हैं, पर कौन विश्वास करेगा उन पर।”

“बबूसा ने मुझे कहा था कि रानी ताशा ने उसका जन्म ही इसलिए कराया था कि, वो मेरे मुकाबले पर उतारा जा सके।” देवराज चौहान बोला –“क्या पता वो किस सोच के तहत मुझ तक पहुंचना चाहता है।”

“तुम्हें लगता है कि वो तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता है?” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला।

“ऐसा भी सम्भव है। तुम्हें नहीं लगता क्या?”

“कुछ भी हो सकता है। परंतु तुम्हें बबूसा के सामने तो जाना ही होगा। वो तुम्हें ढूंढ़ने की पूरी चेष्टा कर रहा है। वानखेड़े से मिला। सोहनलाल के पास गया। ऐसे में वो तुम्हारा पता लगा लेगा।”

“तुम्हें उससे मिल लेना चाहिए।” सोहनलाल बोला –“अगर उसके इरादे बुरे हैं तो उसे संभाल लिया जाएगा।”

“वो मिलने पर भी ये ही बातें करेगा जो अब कर रहा है। जबकि मेरा उन बातों से कोई वास्ता नहीं है। उसकी कही किसी भी बात का मैं भरोसा नहीं कर सकता। मेरी, बबूसा की मुलाकात का कोई फायदा नहीं होगा। अगर उसकी बातें मेरी समझ में आ रहीं होती तो अब तक मैं उससे मिल चुका होता।” देवराज चौहान ने कहा।

“वो बिना शरीर के तुम्हारे पास आकर बातें कैसे कर लेता है?”

सोहनलाल ने पूछा।

“इस बात के जवाब में वो कहता है कि समाधि लगाकर ऐसा करता है और उसके जन्म के समय किसी महापंडित ने उसके भीतर कुछ शक्तियां डाल दी थीं, जिससे कि वो ऐसा कर पाता है।” देवराज चौहान ने बताया।

“हैरानी की बात है।” सोहनलाल मुस्करा पड़ा।

“ये ही तो बात है कि बबूसा की कोई बात गले से नीचे नहीं उतर रही कि उससे मिलने का फायदा हो...।”

“परंतु उसके व्यक्तित्त्व को हम हल्के में भी नहीं ले सकते।” जगमोहन बोला –“मुझे नहीं लगता कि वो कोई मजाक कर रहा है ऐसा करके। या तो उसे अपनी बात कहनी नहीं आ रही कि वो...।”

“वो अपनी बात बहुत अच्छी तरह से समझा रहा है।” सोहनलाल ने कहा –“उसने अदृश्य स्थिति में देवराज चौहान से बातें कीं। मेरे सामने बैठकर बातें कीं। परंतु बातों का मतलब तो एक ही निकलता है। बात सिर्फ ये है कि देवराज चौहान कभी किसी सदूर ग्रह का राजा था और उसका वो जन्म अब वहां के लोगों के साथ सामने आ रहा है, इन सब बातों पर हमें भरोसा नहीं हो रहा। जबकि बबूसा कहता है कि वो राजा देव का खास सेवक हुआ करता था।”

“मेरे ख्याल में तो एक बार बबूसा से मिल लेना चाहिए।” जगमोहन ने कहा।

देवराज चौहान ने सोच भरे ढंग से सिगरेट सुलगाई।

खामोशी-सी आ ठहरी।

“मेरे ख्याल में तो मिलने में कोई हर्ज नहीं है।” सोहनलाल कह उठा।

“परंतु मैं जरूरत नहीं समझता।” देवराज चौहान बोला –“वजह सिर्फ ये ही है कि उसकी कही बातें मेरे गले से नीचे नहीं उतर रहीं। मिलने पर भी उसने ऐसी ही बातें करनी हैं जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं होगा, बात करने के लिए।”

“तो तुम बबूसा से नहीं मिलना चाहते?”

“मुझे जरूरत महसूस नहीं हो रही। मुझे ढूंढ़ने में, जब वो थक जाएगा तो चुप बैठ जाएगा।”

सोहनलाल ने फिर कुछ नहीं कहा।

जगमोहन भी इस बारे में चुप रहा।

“मैं आज रात यहीं रहूंगा।” सोहनलाल बोला।

“क्यों?” जगमोहन ने मुंह बनाया।

“वो बबूसा मेरे पास जरूर आएगा दोबारा। दमदार बंदा है वो। मैं उसके हाथों में नहीं पड़ना चाहता।” सोहनलाल मुस्कराया।

तभी सोहनलाल का फोन बजने लगा

“हैलो।” सोहनलाल ने बात की। दूसरी तरफ नानिया थी।

“मैंने टिंडे बना दिए हैं।” नानिया ने छूटते ही कहा।

“टिंडे?” सोहनलाल ने सकपकाकर देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।

दोनों के चेहरों पर मुस्कान आ ठहरी।

“आप ही तो कह रहे थे कि टिंडे आपको बहुत अच्छे लगते हैं। बना दूं। बहुत बढ़िया बने हैं। टमाटर डालकर...।”

“मैंने तुम्हें मना किया था कि टमाटर डालकर टिंडों का स्वाद खराब हो जाता है।”

“आपने तो कहा था मेरे से टमाटर के बिना खाए नहीं जाते। बहुत स्वादिष्ट बने हैं, खाकर तो देखिए।”

“टमाटर डाल दिए तो डाल दिए। अब खाने ही पड़ेंगे।”

“मुझे पता था आप खा लेंगे। तभी तो टमाटर डाल दिए। अब घर आ जाओ।”

“वो आया तो नहीं?”

“दोबारा नहीं आया।”

“वो जरूर आएगा और अभी मेरा वापस आना ठीक नहीं। मैं देवराज चौहान के यहां हूं।”

“मिल गया बहाना घर से बाहर रहने का।”

सोहनलाल ने गहरी सांस ली।

“कब आओगे?”

“रात यहीं रहूंगा। सुबह तुम्हारे पास आकर ही नाश्ता करूंगा। उसका ध्यान रखना, वो आ सकता है मुझे पूछने।”

“उसकी आप फिक्र मत करो। मैं संभाल लूंगी।” कहकर नानिया ने फोन बंद कर दिया था।

सोहनलाल ने फोन बंद करके जेब में रखा और कह उठा।

“नानिया खबर दे रही थी कि टिंडे बन गए हैं।”

“तो टिंडे बन जाना भी खबर होती है।” जगमोहन मुस्कराया।

“औरतें ऐसी खबरें ही देती हैं। तूने शादी की होती तो ऐसी बातों का अनुभव हो चुका होता।”

“तुम्हारी बातें सुनकर बिना शादी के ही अनुभव हो रहे हैं।”

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखते हुए कहा।

“बबूसा से मिलने का तुम्हारा कोई इरादा नहीं है?”

“उसकी बातों पर मुझे विश्वास नहीं है। तुम्हें भरोसा है तो कहो।” देवराज चौहान बोला।

“मुझे भी नहीं है।”

“तो बबूसा को भूल जाओ।” देवराज चौहान ने कहा और उठ खड़ा हुआ।

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बबूसा और धरा होटल के कमरे में पहुंचे।

बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता ठहरी हुई थी। जबकि धरा अपने ही विचारों और भय में उलझी हुई थी। चक्रवती साहब और प्रकाश के सिर कटे शरीर उसे बार-बार कंपा रहे थे। उन दोनों की मौत का उसे दुख था परंतु उसकी अपनी जान पर बनी हुई थी। वो महसूस कर चुकी थी कि डोबू जाति के योद्धा कितने खतरनाक हैं। इस बार तो बबूसा ने उसे बचा लिया परंतु जरूरी तो नहीं कि अगली किसी बार भी बबूसा उसे बचा ले।

बबूसा कुर्सी पर बैठ गया था।

धरा व्याकुल-सी बबूसा का हाथ पकड़कर कह उठी।

“शुक्रिया तुमने मुझे बचा लिया।”

बबूसा कुछ पल धरा को देखता रहा, फिर मुस्कराकर बोला।

“ये तो शुरुआत है।”

धरा ने उसका हाथ थपथपाकर छोड़ा और कहा।

“मतलब कि वो फिर आएंगे?”

“वो बार-बार, तब तक आते रहेंगे, जब तक कि वो सफल नहीं हो जाते।”

“ओह।” धरा ने गहरी सांस ली –“मतलब कि वो हर हाल में मुझे मार के ही रहेंगे।”

“मैं तुम्हें बचाऊंगा।”

“कब तक। एक दिन तो वो मुझे मारने में सफल हो ही जाएंगे।”

“इसमें कोई शक नहीं।”

“उनसे माफी मांग लेने का कोई रास्ता नहीं है?” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा।

“तुमने वहां पर बिजली वाला कमरा देखा।” बबूसा बोला।

“हां।”

“स्क्रीनें देखीं?”

“हां।”

“उसकी वजह से ही वो तुम्हें मारना चाहते हैं कि, तुम उस बारे में किसी को बता न सको। वो जानते हैं कि उनके पास ऐसी चीजें होने की भनक, बाहरी लोगों को मिलेगी तो उनके पास कई लोग आएंगे, ये जानने के लिए कि उन चीजों का वो क्या करते हैं। वो नहीं चाहते कि उनके रहस्य लोग जाने।”

“वो उन चीजों का क्या करते हैं?”

“उन चीजों से वो सदूर ग्रह वालों से सम्पर्क बनाते हैं, बात करते हैं। सदूर ग्रह वाले भी उनसे बात करते हैं।”

“पर वहां बिजली तो है नहीं?”

“सदूर ग्रह वालों ने डोबू जाति को बिजली दे रखी है।”

“ये भला कैसे सम्भव है?”

“पता नहीं कैसे सम्भव है। पर वो ही बिजली देते हैं। छोटा-सा डिब्बा जैसी कोई चीज है, उसमें तारें जोड़ देने से बिजली आ जाती है। वो डिब्बा कई साल तक काम देता है। ऐसे कई डिब्बे उन्होंने डोबू जाति को दे रखे हैं कि जब बिजली का एक डिब्बा खत्म हो जाए तो दूसरे में तारें लगा लें।” बबूसा ने बताया।

“फिर तो वो बैटरी जैसी कोई चीज होगी।” धरा कह उठी।

“तुमने अभी मेरा हाथ पकड़ा था।”

“हां।”

“फिर से पकड़ो।”

“क्यों?” धरा ने बबूसा को देखते होंठ सिकोड़े।

“मुझे अच्छा लगता है।” बबूसा का स्वर शांत था।

“क्या पहले कभी किसी औरत ने तुम्हारा हाथ नहीं पकड़ा?”

“मैंने किसी को पकड़ने नहीं दिया। मैं औरतों से दूर रहता था।”

“डोबू जाति में?”

“हां।”

“और अपने ग्रह पर?”

“वहां तो मैंने शादी कर रखी थी। परंतु वो रिश्ता खत्म हो गया। महापंडित ने मेरा नया जन्म कराने के लिए मेरे प्राण ले लिए और वो जीवन मेरा समाप्त हो गया। अब इस जीवन में तुम्हारा स्पर्श मुझे अच्छा लगा।”

धरा, बबूसा को देखती रही।

“मेरा हाथ पकड़ो।” बबूसा ने पुनः कहा।

धरा ने कदम आगे बढ़ाया और बबूसा का हाथ पकड़ लिया।

कुछ पल बबूसा शांत बैठा रहा, फिर उसने आंखें बंद कर लीं।

धरा उसका हाथ हटाते कह उठी।

“मेरे स्पर्श से तुम आंखें बंद करके मजा ले रहे हो।”

जवाब में बबूसा मुस्कराया। उसे देखता रहा। कहा कुछ नहीं।

“मेरे ये कपड़े मैले हो चुके हैं। मुझे नए कपड़े खरीदने पड़ेंगे।” धरा ने कहा।

“जब भी बाहर निकलेंगे। तुम कपड़े ले लेना।”

“कॉफी लोगे तुम?” इंटरकॉम की तरफ बढ़ती धरा कह उठी।

“हां।”

धरा ने इंटरकॉम पर दो कॉफी के लिए कहा और नहाने के लिए बाथरूम में चली गई।

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धरा नहा आई थी। कपड़े वो ही पहन लिए थे। वो अभी भी चुप-चुप सी थी। रह-रहकर वो सिहर उठती थी चक्रवती साहब और प्रकाश की लाशों का हाल देखकर कि उसके देखते ही देखते, कैसे उनकी गर्दनें कटकर सिर से अलग जा गिरे थे और वहां से खून-ही-खून निकलने लगा था।

“कॉफी ले लो।” बबूसा ने कहा।

धरा ने देखा बबूसा के हाथ में कॉफी का प्याला था। उसका प्याला सेंटर टेबल पर रखा था।

धरा सोफे पर बैठी और कॉफी का प्याला उठा लिया।

“तुम चिंतित किस वजह से हो?” बबूसा ने पूछा।

“मैं डर रही हूं डोबू जाति के लोगों से।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“इस तरह डरने से काम नहीं चलेगा। मैं हूं तुम्हारी रक्षा के लिए।”

“तुम कब तक मुझे बचा सकोगे। एक दिन तो वो कामयाब हो ही जाएंगे।”

“जब तक जिंदा हो, जीवन का आनंद लो। डरकर जिया नहीं जा सकता।” बबूसा बोला –“वो तुम्हें मार देंगे या तुम मर जाओगी, ये सोचना छोड़कर ये सोचो कि तुम अभी जिंदा हो।”

धरा ने कॉफी का घूंट भरा। चुप रही।

“शाम होने वाली है। अंधेरा होते ही सोहनलाल के घर जाना है। उससे राजा देव का पता पूछना है।”

“हां।” धरा ने सिर हिलाया –“वो न बताए तो थोड़ी-सी सख्ती करना उससे। परंतु उसकी जान नहीं लेना।”

“तब वो खिसक नहीं गया होता तो अब तक मैं राजा देव के पास पहुंच गया होता।”

“वो जरूर सीधा देवराज चौहान के पास गया होगा। उसे तुम्हारे बारे में सब बता दिया होगा।”

“मैं इन बातों की परवाह नहीं...।” कहते-कहते बबूसा ठिठक गया। उसने एक-दो गहरी सांसें ली जैसे हवा में कुछ सूंघने की कोशिश कर रहा हो फिर उसके होंठों से निकला –“वो आ गए।”

“क-कौन?” धरा का स्वर कांप उठा।

बबूसा ने शांत भाव से कॉफी का प्याला टेबल पर रखा और बोला।

“डोबू जाति वाले। वो मेरा रहने का ठिकाना पहले से ही जानते हैं। वो आएंगे, जानता था परंतु इतनी जल्दी आ जाएंगे पता नहीं था। ओमारू से बात कर ली होगी सोलाम ने। ये ही हुआ होगा।”

“ओमारू कौन?”

“डोबू जाति का सरदार।”

“सरदार क्या मुम्बई में है?”

“सरदार कभी भी अपने ठिकाने से दूर नहीं जाता।”

“तो सोलाम ने बात कैसे...।”

“सदूर ग्रह वालों ने कुछ यंत्र दे रखे हैं डोबू जाति को। उसी के सहारे बातचीत की जाती है।”

“वो-वो मुझे मारने आए हैं न?”

“इस बार तो वो मुझे भी मारने आए हैं।” बबूसा मुस्कराया, परंतु चेहरे पर खतरनाक भाव दिखे –“तुम्हें बचाने के लिए मैंने डोबू जाति के योद्धाओं को मारा है। ये बात सरदार को बहुत बुरी लगी होगी।”

धरा का चेहरा फक्क हो गया। उसने कॉफी का प्याला रख दिया।

बबूसा उठा और अपनी कमीज खोलते बोला।

“इस मुकाबले के बाद हम इस होटल में नहीं रह पाएंगे। तुम्हारे पास कोई जगह हो तो याद कर लो। जगह नहीं भी है तो कोई जगह सोच लो जहां हम रुक सकते है। अगर कोई भी इंतजाम नहीं है तो तब भी कोई बात नहीं। हम मिलकर किसी जगह का इंतजाम कर लेंगे।” बबूसा ने कमीज उतारकर एक तरफ फेंक दी। उसके सीने पर बनियान जैसे चिपके लैदर पर सैकड़ों नन्हे चाकू फंसे दिखने लगे।

धरा अभी तक घबराई-सी खड़ी थी।

“डरो मत। वरना मर जाओगी।” बबूसा बोला –“अपने को मजबूत रखो। वो करीब आ पहुंचे हैं।”

“करीब कहां?” धरा के होंठों से सूखा-सा स्वर निकला।

बबूसा की खतरनाक निगाह दरवाजे की तरफ बढ़ी।

तभी दरवाजा थपथपाया गया।

बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली। कह उठा।

“तुम हर पल मेरे करीब ही रहना। तभी तुम्हें बचा पाऊंगा।” इसके साथ ही वो दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

धरा तुरंत उसके साथ चल दी। टांगों में कम्पन-सा हो रहा था। मौत का भय उसकी आंखों में स्पष्ट नजर आ रहा था। दिल धाड़-धाड़ बज रहा था।

पास पहुंचकर बबूसा ने दरवाजा खोला तो सोलाम को खड़े पाया। दोनों की नजरें मिलीं।

बबूसा के चेहरे पर कठोरता थी और सोलाम गम्भीर दिखा। वो मुस्कराया। बोला।

“मैं आ गया बबूसा।

“तुम अकेले तो नहीं होंगे?” बबूसा ने शब्दों को चबाकर कहा।

“तुम जानते ही हो कि शिकार करते वक्त हम समूह में रहते हैं। मेरे योद्धाओं ने ये जगह घेर रखी है।”

बबूसा के चेहरे पर खतरनाक भाव उभरे।

“ये कहकर तुम मुझे डराने की चेष्टा कर रहे हो सोलाम?”

“मैं जानता हूं बबूसा किसी से नहीं डरता। मैंने तो तुम्हारे सवाल का जवाब दिया है।”

बबूसा वहीं खड़ा कहर भरी निगाहों से सोलाम को देखता रहा।

“मुझे भीतर आने दो।” सोलाम बोला –“कुछ बात हो जाए।”

“क्या बात?”

“ऐसी बात कि जिसमें हम दोनों का भला हो।”

“इस स्थिति में तुम मेरा भला नहीं सोच सकते।”

“मैंने कहा है ऐसी बात जिसमें हम दोनों का भला हो।”

बबूसा दरवाजे से पीछे हटा। सोलाम भीतर आया।

बबूसा ने दरवाजा बंद किया और पीछे हटता चला गया।

सोलाम कमीज-पैंट पहने था। उसकी आधी बांह की कमीज, पैंट से बाहर झूल रही थी।

धरा खुद को बबूसा की ओट में रखने की चेष्टा करती बार-बार सोलाम को देख रही थी।

सोलाम के चेहरे पर गम्भीरता थी।

बबूसा बेहद सतर्क और खतरनाक नजर आ रहा था।

“हमने एक साथ युद्ध कला सीखी बबूसा। एक साथ ही बड़े हुए।” सोलाम बोला।

बबूसा की निगाह सोलाम पर ही रही।

“हममें झगड़ा होना अच्छी बात नहीं होगी। मैं जानता हूं कि युद्ध में तुम मेरे से कहीं बेहतर हो। तुमने युद्ध कला को बहुत तेजी से सीखा। मेरे से ज्यादा काबिल हो तुम। मैं ज्यादा देर तुम्हारे मुकाबले पर नहीं ठहर सकता।”

बबूसा उसे देखता रहा।

“हमारी जाति के नियम तो तुम जानते ही हो। दुश्मन का साथ देने वाला भी दुश्मन मान लिया जाता है। तुमने इस लड़की को बचाने के लिए हमारे कई योद्धाओं की जान ले ली। गलत किया तुमने। ऐसा क्यों किया बबूसा?”

“मुझे डोबू जाति पसंद नहीं।”

“सारा जीवन तुमने वहीं बिताया है।”

“परंतु अब पसंद नहीं।” बबूसा गुर्राया –“मैं तुम लोगों में से नहीं हूं।”

“सुना तो मैंने भी है कि तुम पोपा पर सवार होकर आए थे। वो लोग तुम्हें हमारे पास छोड़ गए। तब तुम नन्हे-से बच्चे थे। ऐसा क्यों किया तुम्हारे लोगों ने। तुम्हें यहां क्यों छोड़ा?”

“ये तुम्हारे जानने लायक बात नहीं है।”

सोलाम ने बबूसा को देखा और गम्भीर स्वर में बोला।

“मैंने सुना है रानी ताशा पोपा पर बैठकर इस ग्रह पर आने वाली है। वो किसी को अपने साथ अपने ग्रह पर ले जाना चाहती है।”

“तुम्हारे लिए ये बातें जाननी जरूरी नहीं है सोलाम। मतलब की बात करो।” बबूसा ने कठोर स्वर में कहा।

“तुम इस बारे में सब जानते हो?” सोलाम ने पूछा।

“हाँ।”

“किसने बताया?”

“किसी ने नहीं। मेरे भीतर ही कुछ है, जो मुझे मेरा हाल बता देता है।”

“तुम्हारी जाति से विद्रोह करने का कारण भी, इन्हीं बातों से वास्ता रखता है?”

“ऐसा ही समझो।”

“रानी ताशा को जानते हो?”

“अच्छी तरह से।”

“राजा देव को?”

“उन्हें भी बेहतर ढंग से जानता हूं। हम सब एक ही ग्रह के हैं। काम की बात बोलो सोलाम।”

“मैंने कुछ देर पहले ओमारू से बात की। वो तुम्हें मार देने को कहता है।” सोलाम बोला।

“तो सोचते क्या हो सोलाम, वार करो।” बबूसा के होंठों से फुंफकार निकली।

“सामने बबूसा हो तो सोचना पड़ता है।” सोलाम मुस्कराया-फिर गम्भीर हो गया –“ये लड़की मुझे दे दो।”

ये सुनते ही धरा कांप उठी।

“क्यों?”

“तुम बेहतर जानते हो क्यों? ये हमारे निवास में आ गई। इसने वहां सब कुछ देखा और...।”

“अब ये मेरी पनाह में है।”

“जाति के दुश्मन को जो पनाह देगा वो हमारा दुश्मन बन जाएगा।”

“मैं इसे कुछ नहीं होने दूंगा।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा।

सोलाम, बबूसा को कुछ पल देखता रहा फिर बोला।

“इस लड़की से तुम्हारा मतलब क्या है?”

“मुझे किसी की तलाश है, ये मेरी सहायता कर रही है। ये मुझे ठीक से समझती है।”

“तुमने इस लड़की को हमें न दिया तो झगड़ा होगा बबूसा।”

“करो झगड़ा।”

“मैं तुमसे झगड़ा नहीं चाहता।”

“तो चले जाओ।”

“इस लड़की के लिए जाति से दुश्मनी मत लो।”

“तुम लोग, मेरे लोग नहीं हो। रानी ताशा ने मुझे किसी योजना के तहत यहां भेजा था।”

“मुझे सरदार का हुक्म मानना है कि लड़की को खत्म करो। जो रास्ते में आए उसे भी मार दो।”

“तो ओमारू के हुक्म का पालन करो।” बबूसा ने दांत पीसकर कहा।

“झगड़ा होगा बबूसा?”

“लड़की मांगोगे तो झगड़ा होगा।”

“हमारी संख्या बहुत है। तुम अकेले हो। लड़की को बचा नहीं सकोगे।” सोलाम बोला।

“मैं तुम सबको खत्म कर दूंगा।” बबूसा ने सोलाम की आंखों में झांका।

“तुम मेरी बात नहीं मान पाए तो झगड़ा अब होगा ही।” सोलाम ने गम्भीर और चिंता भरे स्वर में कहा।

उसी पल बबूसा के हाथ में नन्हा-सा चाकू चमका और तेजी से हवा में सोलाम की तरफ लपका।

सोलाम खड़ा रहा।

चाकू उसकी छाती से जा टकराया और नीचे जा गिरा।

बबूसा की आंखें सिकुड़ गईं।

“तुमने सुरक्षा कवच पहन रखा है।” बबूसा के होंठों से निकला।

“ये ही मेरा बचाव है।” सोलाम का स्वर कठोर हो गया –“वरना तुम्हारे जहर से बुझे चाकू मुझे जिंदा कहां रहने देंगे।” कहने के साथ ही सोलाम दरवाजे की तरफ बढ़ा।

तभी बबूसा ने दूसरा चाकू उसकी टांग की तरफ फेंका।

सोलाम सावधान था। चाकू से बच गया और दरवाजा खोला, फुर्ती से बाहर निकल गया।

बबूसा का चेहरा दहक उठा।

“ये-ये अब क्या करेगा?” धरा ने कांपते स्वर में कहा।

“सोलाम बहुत खतरनाक है।” बबूसा गुर्राया –“उसकी अगुवाई में योद्धा बाहर मौजूद हैं। वो हमें मारने की कोशिश करेंगे।”

“त-तो?”

“तुम फिक्र मत करो। हमें मारना आसान नहीं होगा उनके लिए। मुझे तुम्हारी चिंता है।”

“व-वो मुझे-मार देंगे।” धरा की हालत बुरी हो रही थी।

“हिम्मत रखो और मेरे साथ रहो। हमें इस कमरे से निकल जाना चाहिए।”

“क-कैसे निकलेंगे, बाहर तो वो लोग...।”

तभी खुले दरवाजे से एक के बाद एक छः लोग भीतर आ गए। किसी के हाथ में खंजर था तो कोई तलवार जैसा हथियार लिए हुए था। दो के हाथ में चौकोर लोहे की मोटी पत्ती थी, जो कि गला पलक झपकते ही काट देती थी। कमरे में पहुंचते ही वो इधर-उधर फैलते चले गए।

बबूसा ने मौत भरी निगाहों से उन्हें देखा। सबको पहचानता था वो।

तभी चौकोर पत्ती लिए दोनों व्यक्तियों ने बेहद फुर्ती के साथ उसकी तरफ पत्ती फेंकी।

बबूसा ने उसी पल धरा को जोरों का धक्का दिया, और खुद भी नीचे जा गिरा।

धरा के होंठों से जोरों की चीख निकली और वो ‘धड़ाम’ से नीचे जा गिरी थी।

दोनों पत्तियां उनके सिरों से गुजरकर दीवार से जा टकराईं।

उसी पल एक ने अपने हाथ में दबा लम्बा चाकू बबूसा पर फेंका।

बबूसा करवट ले गया।

वो चाकू फर्श से टकराया और दूर गिरता गया।

दोबारा मौका नहीं दिया बबूसा ने। उसके हाथों में, जादू की भांति शरीर से चिपकी लैदर की बनियान से निकलकर चाकू आए और हवा में लहराते उनकी तरफ लपके। पूरे छः चाकू फेंके थे।

पांच के शरीरों में जा धंसे।

छठा बच गया। उसके हाथ में छोटी तलवार जैसा हथियार था।

नन्हे चाकू छातियों में धंसते ही, दो पलों बाद वो एक-एक करके नीचे गिरने लगे। देखते ही देखते वो मृत होते चले गए। चाकू पर लगे तीव्र जहर ने अपना असर दिखा दिया था।

बबूसा तुरंत उठ खड़ा हुआ।

आखिरी बचा व्यक्ति कुछ परेशान हो गया था, कुछ घबरा गया था।

बबूसा उसकी तरफ बढ़ा।

उसने फौरन तलवार जैसा हथियार फेंका और तेज स्वर में कह उठा।

“मुझे मत मारना।”

बबूसा उसके पास पहुंचा। दायां हाथ आगे बढ़ाया। गर्दन पकड़ी और झटके के साथ गर्दन को एक तरफ मोड़ा तो ‘कड़ाक’ की आवाज आई। गर्दन छोड़ी तो वो गुड़मुड़-सा जा नीचे गिरा था।

बबूसा के चेहरे पर दरिंदगी नाच रही थी। वो धरा की तरफ पलटा।

धरा नीचे पड़ी, आंखें फाड़े सब देख रही थी।

“खड़ी हो जाओ।”

धरा तुरंत खड़ी हो गई। उसकी टांगें कांप रही थी। चेहरा फक्क था।

“संभालो खुद को।” बबूसा का स्वर पहले जैसा था –“बाहर और भी हैं।”

“अ-अब क्या होगा?”

“हमें यहां से निकलना है। इस कमरे में मुकाबला करना कठिन है।” बबूसा ने दांत पीसते हुए कहा और कमरे की खिड़की की तरफ बढ़ा और खिड़की खोलकर नीचे देखा।

सामने सड़क थी। वाहन आ-जा रहे थे।

खिड़की से ठीक नीचे एक टैम्पू खड़ा था, जिस पर कि होटल की मैली चादरें, पर्दे, वगैरह धोने के लिए ले जाए जा रहे थे। ऐसे कपड़ों से टैम्पू भरा पड़ा था।

“इधर आओ।” बबूसा कहते हुए पलटा। अगले ही पल तेजी से नीचे झुक गया।

दरवाजे पर दो लोग थे और एक ने चौकोर पत्ती बबूसा पर फेंकी थी।

नीचे झुकते ही चौकोर पत्ती खिड़की से टकराई और लकड़ी में धंसकर अटक गई। तब तक बबूसा के दो चाकू निकल चुके थे, जो कि उन दोनों को लगे और वो नीचे गिर गए।

बबूसा उनके पास पहुंचा।

तब तक वो नीचे गिर चुके थे।

दोनों को पकड़कर कमरे में खींचा, फिर दरवाजे के बाहर झांका। वहां कोई नहीं था। बबूसा ने दरवाजा बंद किया और पलटकर धरा को देखा, जो सफेद चेहरे से उसे देख रही थी।

“हमें यहां से निकल चलना होगा, वरना बचना कठिन हो जाएगा।” कहते हुए बबूसा खिड़की के पास पहुंचा।

“हम निकलेंगे कैसे, बाहर तो वो लोग हैं।” धरा भय से चीख उठी।

बबूसा खिड़की से बाहर झांकने के बाद बोला।

“इधर आओ।”

धरा लड़खड़ाती टांगों से बबूसा के पास पहुंची।

“क-क्या है?”

“खिड़की से बाहर कूद जाओ। बाहर टैम्पो...।”

“मैं नहीं कूद सकती। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है।” धरा के होंठों से निकला।

“नीचे लांड्री वाला टैम्पो खड़ा है। उसमें चादरें भरी हैं।” बबूसा ने कहा –“चोट नहीं लगेगी।”

“मैं नहीं कूद...।”

“वक्त नहीं है इतना।” बबूसा के होंठ भिंच गए।

तभी बाहर से दरवाजा खटखटाया गया।

धरा ने घबराकर दरवाजे की तरफ देखा।

“अगर खुद कूदोगी तो चोट नहीं लगेगी। मैंने उठा के फेंका तो हाथ पांव टूट सकता...।”

“क्या? तुम मुझे फेंकोगे।”

दरवाजे को तोड़ा जाने लगा।

बबूसा ने दांत भींचकर धरा को बांह से पकड़ा उठाया।

धरा चीखी।

उसने धरा को खुली खिड़की की चौखट पर जबरन खड़ा किया।

“मैं मर जाऊंगी।” धरा की आंखों से आंसू निकल गए।

“कूदो। नीचे देखो-टैम्पो में।”

सामने सड़क पर जाते दो-तीन लोगों ने खिड़की की चौखट पर धरा को खड़े देखा तो वो थम गए और मामला समझने का प्रयास करने लगे।

भय से कांपती धरा ने नीचे चादरों से भरे टैम्पो को देखा।

“देखा टैम्पो को। वो चादरों से भरा है। तुम्हें चोट नहीं लगेगी। कूदो...।”

“न-हीं...।”

तभी पीछे से दरवाजा टूटने की आवाज आई।

बबूसा ने फौरन धरा को धक्का दे दिया।

देखते-ही-देखते धरा खिड़की पर से गायब हो गई। फिर उसकी चीख सुनाई दी।

उसी पल दरवाजा टूट गया। वहां दो-तीन लोग दिखे।

बबूसा के हाथों में जहर से बुझे नन्हे चाकू चमके और एक के बाद एक हाथों से निकलते चले गए। जो दरवाजे से भीतर प्रवेश हो रहे थे, उनके जिस्मों में जा धंसे। वहां देखने के लिए बबूसा रुका नहीं, वो तुरंत खिड़की पर चढ़ा और नीचे खड़े टैम्पो पर कूदता चला गया।

धरा तब तक टैम्पो से उतर चुकी थी। उसे एक खरोंच भी नहीं आई थी। टैम्पो के पास खड़े होटल के दो कर्मचारी हैरानी से धरा को देख रहे थे कि बबूसा टैम्पू पर आ कूदा। लेकिन संभलते ही तुरंत बनियान जैसी जैकेट में फंसे कुछ चाकू हाथ में आए और अलग-अलग दिशाओं से इधर आते चार लोगों को जा लगे।

बबूसा टैम्पू से नीचे कदा और धरा का हाथ पकड़कर चिल्लाया।

“भागो।”

दोनों तेजी से सड़क की तरफ भाग निकले। परंतु तभी बबूसा ने धरा को बांह से अपने साथ समेटा और नीचे गिरता चला गया। धरा के होंठों से चीख निकल गई। वो नहीं समझ सकी कि क्या हुआ लेकिन अगले ही पल उसके रोंगटे खड़े हो गए। पांच कदमों की दूरी पर एक आदमी का सिर नीचे आ गिरा था, फिर उसने बिना सिर वाले एक शरीर को भी नीचे गिरते देखा।

धरा स्तब्ध सी रह गई। तब तक कई लोगों की उसने चीखें सनीं।

ये ही वो पल था कि बबूसा ने कुछ कदमों की दूरी पर खड़े व्यक्ति पर चाकू फेंका था, जो कि उसके कंधे पर जा लगा था। तब वो दूसरी वाली चौकोर घातक पत्ती वाला हथियार फेंकने जा रहा था। बबूसा ने अगर वक्त रहते उसे देख न लिया होता तो अब तक उसकी या धरा की गर्दन कटी होनी थी। परंतु उन दोनों के नीचे गिर जाने से उस घातक हथियार ने आगे जाते व्यक्ति की गर्दन अलग कर दी थी। बबूसा और धरा उठे और पुनः सड़क की तरफ भाग निकले। उसी पल बबूसा ने सोलाम को देखा जो दोनों हाथ कमर पर रखे, कुछ दूरी पर खड़ा उन्हें देख रहा था।

उसी पल दौड़ते दो आदमी सोलाम के पास पहुंचे। एक बोला।

“बबूसा हम लोगों को मार रहा है और तुम खड़े मुंह देख रहे हो सोलाम।”

“मैं लड़की को खत्म करने की तरकीब सोच रहा हूं।”

“खड़े रहकर?” दूसरा नाराजगी से बोला।

“तुम लोग सबसे कह दो कि बबूसा को उस लड़की से अलग करने की कोशिश की जाए।”

“इससे क्या होगा?”

“बबूसा के रहते, हमें सफल होने में परेशानी आएगी। जैसे कि अब आ रही है। वो हमारे योद्धाओं को मार रहा है।”

“अब बबूसा भी तो हमारा अपराधी है।”

“पहले लड़की को खत्म करना है। उसके बाद बबूसा को देखेंगे। जल्दी जाओ।”

दोनों उसी तरफ भागते चले गए जिधर बबूसा और धरा गए थे।

इस दौरान सोलाम ने अपने कई योद्धाओं को बबूसा और धरा के पीछे जाते देख लिया था। कुछ पल सोलाम गम्भीरता से खड़ा रहा फिर वो भी उसी तरफ भाग निकला। वहां मौजूद लोग दहशत से भर चुके थे। सामने सिर कटी लाश पड़ी थी।

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बबूसा ने धरा का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था। दोनों ने किसी तरह हुए, वाहनों से भरी उस सड़क को पार किया। कई कारों के पहिए ब्रेकों से चीख उठे थे। धरा हांफ रही थी, परंतु पूरी हिम्मत से बबूसा के संग भाग रही थी।

वो जान चुकी थी कि मौत करीब है। बबूसा के संग न भागी तो मारी जाएगी। पीछे कोई आ रहा है या नहीं, ये देखने का उसे होश नहीं था। लेकिन बबूसा यदा-कदा नजर पीछे डाल लेता था। वो जानता था कि पीछे योद्धा आ रहे हैं। सोलाम भी पीछे है। उसे मालूम था कि सोलाम जिद्दी इंसान है। वो हर काम को पूरा करने की अंत तक कोशिश करता था। वो इतनी जल्दी उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। धरा को खत्म करने का काम हाथ में लिया है तो काम को हर हाल में पूरा करने की चेष्टा करेगा।

तभी पुलिस सायरन सुनाई देने लगा।

“ये पुलिस सायरन की आवाज है।” धरा ने ऊंचे स्वर में बबूसा को बताया।

बबूसा उसका हाथ पकड़े भागता रहा।

“इस तरह कब तक भागते रहेंगे। हमें कार चाहिए।” धरा बोली।

“वो तुम देखो।” बबूसा ने कहा।

उसी समय बाईं तरफ दस फुट चौड़ी गली दिखी तो बबूसा उस तरफ मुड़ गया।

पुलिस सायरन की आवाज ठीक उनके पीछे आ गई।

“पुलिस हमारे पीछे है।” धरा चीखी –“हे भगवान मैं कहां फंस गई।” दौड़ते-दौड़ते धरा ने कहा।

वो गली में प्रवेश कर गए।

पुलिस कार भी उनके पीछे गली में आ गई।

धरा ठिठकने लगी तो बबूसा उसे खींचते हुए बोला।

“रुको मत, भागो।”

“पुलिस से बचकर कहां भागेंगे-रुक जाओ।”

“डोबू जाति वाले पुलिस से ज्यादा खतरनाक...।”

परंतु धरा रुक गई। बबूसा को भी रुकना पड़ा। दोनों पलटे।

पीछे पुलिस कार आ रुकी थी। सायरन अब भी बज रहा था कि एकाएक सायरन बजना रुका और पुलिस कार का दरवाजा खुला। एक पुलिस वाला बाहर निकला। हाथ में रिवॉल्वर थी। जिसका रुख उनकी तरफ था।

“हाथ ऊपर उठा लो। तुम लोगों ने गला काटकर एक आदमी की हत्या की है। हाथ ऊपर...।” पुलिस वाला कठोर स्वर में बोला।

उसी वक्त कार चलाने वाला पुलिस वाला भी बाहर निकला। उसके हाथ में पिस्तौल दबी थी।

बबूसा के होंठ भिंचे थे। उसकी लैदर की बनियान पर फंसे नन्हे चाकू नजर आ रहे थे।

धरा का चेहरा फक्क हो उठा था।

“हिलना मत। हाथ ऊपर।” पहले वाला पुलिस वाला पुनः कठोर स्वर में कह उठा।

“हमने किसी को नहीं मारा।” धरा तेज स्वर में कह उठी –“हम तो खुद जान बचाकर भाग रहे हैं। वो लोग...।”

“चुप रहो।” दूसरा पुलिस वाला कह उठा –“अपने हाथ पीछे की तरफ करो और पीठ हमारी तरफ कर लो।”

पहले वाले ने कार में से हथकड़ी निकाल ली।

परंतु धरा और बबूसा खड़े पुलिस वालों को देखते रहे।

“जैसा कहा है, वैसा करो, वरना हमें तुम दोनों की टांगों पर गोली मारनी पड़ेगी।”

धरा ने घबराकर बबूसा को देखा।

“ये हमें नहीं छोड़ेंगे।” धरा रो देने वाले स्वर में बोली –“ये सोचते हैं हमने उसकी गर्दन काटी है।”

“इन्हें मारना होगा।”

“न-हीं। ये पुलिस वाले...।”

“मेरे रास्ते में जो आएगा, वो...।” कहते-कहते बबूसा ठिठका। उसकी निगाह पुलिस वालों के पीछे गली के किनारे पर जा टिकी, जहां से अभी-अभी तीन व्यक्तियों ने तेजी से भीतर प्रवेश किया था और वहीं रुक गए थे।

बबूसा सतर्क हो उठा।

वो डोबू जाति के योद्धा थे।

“वो लोग यहां पहुंच गए।” बबूसा ने दबे स्वर में कहा।

धरा ने भी उन्हें देखा फिर पुलिस वालों से कह उठी।

“उन लोगों ने वो हत्या की है।”

दोनों पुलिस वालों ने उनकी तरफ रिवॉल्वर ताने, गर्दन घुमाकर पीछे देखा। तब तक उन तीनों ने फुर्ती से अपने हाथों को कपड़ों के भीतर डालकर हथियार निकाले और तेजी से उन पर चला दिए। दो ने चौकोर पत्ती फेंकी थी और एक ने लम्बा खंजर।

चौकोर पत्तियां किसी पंखे की भांति हवा में तेजी से घूमती उनकी तरफ बढ़ी।

खंजर तो दिखा ही नहीं कि वो हवा में कहां पर है।

“नीचे बैठ जाओ।” बबूसा, धरा का हाथ पकड़े नीचे बैठता कह उठा।

धरा घबराकर कूल्हों के बल नीचे जा गिरी।

तभी उन्होंने एक पुलिस वाले की गर्दन कटकर उड़ती, उछलकर एक तरफ गिरते देखी।

दूसरे पुलिस वाले की पीठ में पूरा का पूरा खंजर आ धंसा।

एक अन्य फेंकी गई पत्ती बबूसा और धरा के सिरों पर से निकल गई और उसके कहीं गिरने की आवाज आई। गर्दन कटे पुलिस वाले का शरीर बेजान-सा नीचे जा गिरा था।

दूसरा पुलिस वाला भी नीचे जा गिरा था।

“भागो।” बबूसा दांत भींचे गुर्रा उठा।

धरा जल्दी-से उठ बैठी।

परंतु तब तक बबूसा के हाथ में दो नन्हे चाकू चमक उठे।

“ये क्या कर रहे हो।” धरा बोली –“भाग जाते हैं यहां से।”

“हम भागे तो वो आसानी से हमारा निशाना ले लेंगे। तुम उन्हें ठीक से नहीं जानती। वो पक्के निशानेबाज हैं।” कहने के साथ ही बबूसा ने हाथ में दबे चाकुओं को खास अंदाज में झटका दिया।

चाकू बबूसा के हाथ से निकल गए।

अगले ही पल उन्होंने दो को चाकू लगते देखा।

तीसरा फौरन गली से बाहर भागा और पास की दीवार की ओट में हो गया।

तब तक वो दोनों नीचे गिर चुके थे।

“चलो।” बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली।

दोनों उठे और पलटकर गली में भाग निकले।

“तुम चाकू से निशाना बहुत अच्छा लगाते हो।” धरा भागते हुए कह उठी।

बबूसा ने कुछ नहीं कहा।

“चाकुओं पर लगा जहर कैसा है जो फौरन असर कर जाता है।” धरा बोली।

“बहुत घातक जहर है, खून में मिलते ही फौरन असर कर देता है।” बबूसा बोला।

दोनों तब तक गली से बाहर आ गए थे। शाम हो चुकी थी। गली पार करते ही उधर दूसरी तरफ की सड़क थी, जहां वाहन आ-जा रहे थे। वो दोनों बिना रुके सड़क पार करने लगे। ऐसा होते ही कई वाहनों के ब्रेक लगे। टायर चीखे। हॉर्न पर हॉर्न बजने लगे। परंतु यो सड़क पार करते, इस तरह भागते रहे, जैसे मैदान हो।

सड़क पार कर गए। दूसरी तरफ मार्केट थी।

बबूसा ने ठिठककर गर्दन घुमाई और पीछे देखा।

परंतु उसे कोई नहीं दिखा।

“कितने हैं पीछे?” धरा ने जल्दी से पूछा।

“एक भी नहीं दिखा, परंतु वो पीछे हैं। वो पीछा नहीं छोड़ेंगे।”

“टैक्सी लेते हैं, उधर आगे टैक्सी स्टैंड है।”

दोनों तेजी से आगे बढ़ गए।

बबूसा बार-बार पीछे और आसपास देख रहा था।

“तुम चाकू पर लगाने के लिए जहर कहां से लाए?” धरा बोली।

“डोबू जाति के पहाड़ों से दूर जंगल में खास जाति के जहरीले सांपों को पकड़कर निकाला था।”

“तुम्हारे चाकू कम होते जा रहे हैं। खत्म हो गए तो कहां से और...।”

“बहुत हैं मेरे पास। चाकू भी जहर भी। मैं पूरी तैयारी के साथ निकला था डोबू जाति से। मैं जानता था कि कैसी भी समस्या आ सकती है। परंतु तब ये नहीं सोचा था कि डोबू जाति के योद्धाओं से ही मुकाबला करना पड़ेगा।”

“परंतु उनसे तो तुम मेरी वजह से लड़ रहे हो।”

“मुझे गुस्सा है उन पर।”

“क्या?”

“वो रानी ताशा की सहायता कर रहे हैं राजा देव के खिलाफ। रानी ताशा बहुत चालाक औरत है। उनकी सहायता से राजा देव को वो वापस सदूर ग्रह पर ले जा सकती है और राजा देव धोखे में फंस सकते हैं। सबसे ज्यादा चिंता तो मुझे इस बात की है कि राजा देव, रानी ताशा के रूप जाल में न फंस जाएं।”

“मैं तो बहुत उलझन में और मुसीबत में आ फंसी हूं जबसे डोबू जाति में गई हूं।”

बबूसा और धरा तेजी से आगे बढ़ते रहे।

“तुमने जहर और चाकू कहीं रखे हुए हैं?”

“हां। जिस होटल में मैं ठहरा था उसी के वेटर को अपना सामान संभाल के रखने को दिया था। मैंने उसे काफी पैसे भी दिए थे। उसके घर का पता और फोन नम्बर जानता हूं। जब लेना होगा, सामान मिल जाएगा मुझे।”

“तुमने अपना सामान उसे रखने को क्यों दिया?”

“क्योंकि मेरे लिए वो कीमती था। होटल के कमरे को मैंने कभी भी सुरक्षित नहीं माना। मुझे डर था कि डोबू जाति वाले मुझे ढूंढ़ते वहां तक मांगते हैं। डोबू जाति से बाहर आकर मैंने रानी ताशा से विद्रोह किया है। ऐसे में रानी ताशा डोबू जाति के सरदार ओमारू को मेरे बारे में कैसा भी आदेश दे सकती है।”

“लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।” धरा बोली –“मेरी वजह से डोबू जाति से तुम्हारा झगड़ा खड़ा हो गया।”

बबूसा ने कुछ नहीं कहा। बातों के दौरान चलते हुए वो आस-पास और पीछे भी नजरें दौड़ा रहा था। शाम का वक्त था और सड़कों पर लोगों का आना-जाना बढ़ गया था।

“कोई दिखा?”

“नहीं। परंतु वो हमारे पास ही हैं। उन्हें कभी भी अपने से दूर मत समझना। वो अपना काम पूरा करके ही रहते हैं।”

“तो क्या वो मुझे मार देंगे?” धरा ने थके स्वर में कहा।

बबूसा चुप रहा।

टैक्सी स्टैंड आ गया। धरा ने वहां से टैक्सी ली और ड्राइवर को एक दूर की जगह बता दी कि वहां जाना है। दोनों पीछे बैठ गए। टैक्सी आगे बढ़ गई।

बबूसा की निगाह हर तरफ घूम रही थी और अंत में उसने टैक्सी स्टैंड के पास एक आदमी को खड़े देखा। वो डोबू जाति का था और टैक्सी को जाता देख रहा था। बबूसा के होंठ भिंच गए।

“सोहनलाल के घर भी जाना है।” धरा कह उठी।

“पहले इन लोगों से तो बच लें। ये काफी संख्या में हैं।” बबूसा ने सख्त स्वर में कहा।

“तुम मेरे लिए काफी परेशानी उठा रहे हो। है न?” धरा ने बबूसा के हाथ पर अपना हाथ रख दिया।

बबूसा ने धरा को देखा।

“तुम न होते तो अब तक उन्होंने मेरी जान ले ली होती। तुमने ही मुझे बचाए रखा हुआ है।”

“आगे पता नहीं क्या होगा।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

“तुम आगे भी मुझे बचाए रखोगे।”

“कोशिश करूंगा। परंतु वो हमेशा ही संख्या में बहुत होते हैं। वो कभी भी सफल हो सकते हैं।”

“मुझे यकीन है कि तुम उन्हें हरा दोगे।”

बबूसा ने अपने हाथ पर पड़े धरा के हाथ को देखते हुए कहा।

“तुम जब मुझे छूती हो तो मुझे बहुत अच्छा लगता है।”

धरा ने हाथ को फौरन पीछे कर लिया।

“हाथ क्यों हटाया?”

“मैं नहीं चाहती कि इन हालातों में तुम्हारा ध्यान मेरी तरफ हो जाए।” धरा बोली।

“मैं तुम्हें कैसा लगता हूं?”

“पता नहीं।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्या मतलब?”

“मैंने तुम्हारे बारे में ऐसा कुछ कभी भी नहीं सोचा। सोच ही नहीं पाई। सोचने का मौका ही नहीं मिला। वो लोग मेरी जान ले लेना चाहते हैं। मेरी मां की जान ले ली उन्होंने। चक्रवती साहब और प्रकाश को मेरे ही सामने मार दिया। इन सब बातों के होते हुए मैं तुम्हारे बारे में कभी भी सोच नहीं पाई।”

“ठीक कहती हो।” बबूसा गम्भीर था –“तुम बहुत तनाव में हो। मैं समझता हूं।”

“जब से डोबू जाति में मैंने कदम रखा है, मेरा चैन, आराम, परिवार सब खत्म हो गया।” धरा का स्वर भर्रा उठा –“मैं घर से बेघर हो गई। हर समय डरी रहती हूं कि मेरी जान चली जाएगी...।”

“मैं तुम्हें बचाए रखने की पूरी चेष्टा करूंगा।”

“कब तक बबूसा।” धरा ने थकी-सी सांस ली –“तुम भी कब तक मुझे बचाए रख सकोगे।”

“तुमने मेरा नाम लिया तो मुझे बहुत अच्छा लगा।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।

धरा ने बबूसा को देखा, परंतु कहा कुछ नहीं।

टैक्सी सड़क पर ट्रैफिक के बीच दौड़े जा रही थी।

“तुमने शादी क्यों नहीं की?” बबूसा ने पूछा।

“कभी इस बारे में सोचा नहीं।” धरा बोली –“डोबू जाति में तो शादी नहीं होती। किसी से भी सम्बंध बनाया जाता है वहां।”

“हां ऐसा होता है। परंतु ये बात मुझे कभी भी पसंद नहीं आई।”

“क्यों?”

“सदूर ग्रह पर भी शादी होती है। तभी औरत मिलती है। वहां दो शादियां की जा सकती हैं।”

“नया जन्म लेने के बाद भी तुम्हें सदूर ग्रह के बारे में सब पता है?” धरा ने पूछा।

“महापंडित ने मेरा जन्म कराते समय मेरे दिमाग में ऐसा कुछ डाल दिया था कि मुझे इन बातों का ज्ञान रहे।”

“महापंडित जो भी है, बहुत समझदार है।”

“बहुत। वो विद्वान है। अक्लमंद है, परंतु अब उसकी बुद्धि ठीक से

काम नहीं कर रही।”

“क्यों?”

“वो रानी ताशा का साथ दे रहा है। वो सब जानता है कि रानी ताशा ने कभी कैसा धोखा दिया था राजा देव को। परंतु वो रानी ताशा की हर बात मान रहा है और रानी ताशा, राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाने का षड्यंत्र रच रही है। जबकि मैं चाहता हूं कि राजा देव इस बारे में स्वयं फैसला लें और वो फैसला तभी ले सकते हैं जब उन्हें बीती बातों का ज्ञान हो।”

“ज्ञान कैसे होगा?”

“जब वो रानी ताशा का चेहरा देखेंगे तो उस जन्म की बातें उन्हें याद आने लगेंगी।”

“ऐसा क्या है रानी ताशा के चेहरे में जो...।”

“महापंडित ने इस बार रानी ताशा का जन्म कराते समय उसके चेहरे पर ऐसा कुछ डाला था कि जिससे चेहरा देखते ही राजा देव को सब कुछ याद आ जाए। महापंडित को ज्ञान हो जाता है कि भविष्य में क्या होने वाला है, तभी...।”

“तुम्हारी बातों पर तो देवराज चौहान भरोसा ही नहीं कर रहा।” धरा बोली।

“तभी तो समस्या आ रही है। अगर राजा देव ने मेरी बात का भरोसा कर लिया होता तो फिर रानी ताशा की राह कठिन हो जाती। छ: महीने की चेष्टा के बाद मैं राजा देव की गंध पाने में कामयाब हो सका। समाधि के सहारे, महापंडित की दी शक्तियों के दम पर राजा देव से बात की, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। अब तो सोहनलाल ही मुझे राजा देव तक पहुंचा सकता है। राजा देव से मेरा सामना हो जाए तो शायद उन्हें अपनी बातों का विश्वास दिला सकूं।”

“रानी ताशा कब इस ग्रह पर पहुंचने वाली है?”

“कभी भी। रानी ताशा के इस ग्रह पर आने का समय हो चुका है।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“वो जानती है कि तुमने उनसे विद्रोह कर दिया है।”

“अवश्य। सरदार ओमारू ने यंत्रों के सहारे बात करके, उन्हें तभी बता दिया होगा। अब रानी ताशा, इस धरती पर आकर राजा देव पर पाने के लिए डोबू जाति के योद्धाओं का सहारा लेगी। बुरा वक्त आने वाला है। मुझे तो सबसे बड़ी चिंता ये है कि कहीं राजा देव पहले की तरह रानी ताशा के रूप के दीवाने होकर, सब कुछ भूल न बैठे। पहले भी राजा देव की दीवानगी का रानी ताशा ने खूब फायदा उठाया था। अब भी कहीं ऐसा न हो जाए।”

“क्या किया रानी ताशा ने?”

बबूसा ने धरा को देखा और कह उठा।

“इस बारे में तुम्हें कुछ नहीं बता सकता।”

“क्यों?”

“ये राजा देव का मामला है। उनकी बात मैं किसी को नहीं बता...।”

तभी टैक्सी जोरों से लड़खड़ाई। उन्हें तीव्र झटके लगे। ड्राइवर ने टैक्सी को कठिनता से संभाला और उसे रोका। पीछे आती कारें अगल-बगल से रास्ता बनाकर निकलने लगीं।

“साब जी।” टैक्सी ड्राइवर दरवाजा खोलता बोला –“लगता है टायर ब्रस्ट हो गया है।”

धरा ने घबराकर बबूसा को देखा।

बबूसा के चेहरे पर खतरनाक भाव दिखे। दरवाजा खोलते धरा से बोला।

“बाहर निकलो।”

बबूसा बाहर निकला तो ड्राइवर परेशान-सा कह उठा।

“साब जी। ये तो किसी ने टायर पर चाकू मारा है।”

बबूसा ने टैक्सी के पिछले टायर में छोटा-सा खंजर धंसे देखा। इस खंजर को वो बखूबी पहचानता था।

‘डोबू जाति के योद्धा आस-पास ही हैं।’ बबूसा बड़बड़ा उठा।

दूसरी तरफ से धरा टैक्सी से बाहर निकली। दरवाजा बंद किया और टैक्सी के संग घूमकर दूसरी तरफ खड़े बबूसा की तरफ जाने लगी कि तभी उसे गर्दन के पिछले हिस्से पर, हवा की तीव्र लहर के टकराने का एहसास हुआ। वो तुरंत पलटी तो अगले ही पल ठक की आवाज उभरी और धरा ने जो देखा, उससे उसकी आंखें फैल गईं।

लोहे की कुछ भारी चौकोर पत्ती, टैक्सी के दरवाजे के ऊपर बॉडी में धंस चुकी थी और तेजी से हिलती कांप रही थी। धरा फौरन समझ गई कि बाल-बाल बची है वरना उसका गला कट चुका होता।

धरा का चेहरा दहशत से भर उठा।

“बबूसा।” वो गला फाड़कर चीखी और टैक्सी के गिर्द भागकर बबूसा के पास जा पहुंची।

“तुम इतना क्यों डर रही...।”

“वो-वो मेरा गला—गला कटते-कटते बचा है।” धरा कांपती-सी कह उठी।

बबूसा की निगाह फौरन आस-पास घूमी।

ड्राइवर न समझने वाली निगाहों से बबूसा को देख रहा था।

“ये खंजर।” तभी धरा की निगाह टायर में धंसे खंजर पर पड़ी –“ऐसे खंजर मैंने डोबू जाति के यहां देखे थे।”

“वो लोग हमारे पास ही हैं।” बबूसा गुर्रा उठा और धरा का हाथ थामते बोला –“आओ।”

बबूसा, सड़क से धरा को खींचता एक तरफ बढ़ गया। लोग अजीब सी निगाहों से बबूसा और धरा को देख रहे थे। बबूसा की लैदर जैसी बनियान पर फंसे छोटे-छोटे चाकू सबको नजर आ रहे थे।

घरा ये बात महसूस करके कह उठी।

“तुम्हें कमीज पहन लेनी चाहिए। नाहक ही तुम लोगों की नजरों के आकर्षण का केंद्र बन रहे हो।”

“तुम सिर्फ अपनी जान की सोचो। लोगों को ये नहीं पता कि तुम कभी भी मारी जा सकती हो।”

सड़क के किनारे पर आते ही बबूसा, धरा का हाथ पकड़े भागने लगा।

धरा ने उसका पूरा साथ दिया।

उसी पल धरा के सिर पर हवा देता कुछ निकला और उसके कुछ जागे मौजूद एक व्यक्ति के सिर पर जा लगा। पलक झपकते ही उस व्यक्ति का आधा सिर कटकर अलग हो गया।

धरा के होंठों से चीख निकल गई।

आसपास के और लोगों ने भी ये नजारा देखा तो दहशत से चीखें निकल गईं उनकी।

वो व्यक्ति ‘धड़ाम’ से नीचे जा गिरा।

परंतु बबूसा रुका नहीं। धरा का हाथ थामे भागता चला गया।

धरा की हिम्मत जवाब देने लगी थी। उसे अपनी मौत दिखाई दे रही थी। वो समझ चुकी थी कि डोबू जाति के योद्धा उसकी जान लिए बिना मानने वाले नहीं। कब तक बच सकेगी वो।

अब शाम का अंधेरा फैलना शुरू हो गया था।

वे दोनों भागते जा रहे थे।

“तुम इन्हें मार क्यों नहीं देते?” धरा दौड़ते-दौड़ते कह उठी।

“वो संख्या में ज्यादा हैं। इस भीड़ भरी जगह पर उनका मुकाबला किया तो बेकार में कई लोग मरेंगे।” बबूसा ने कहा।

“दो बार मेरी गर्दन कटते-कटते बची है।”

“इतना खतरा तो रहेगा ही।”

आगे मोड़ आया।

दोनों मुड़े और एक आठ फुट चौड़ी गली में प्रवेश करते चले गए।

“रुकना मत।” बबूसा दौड़ते हुए कह उठा –“ये गली पार कर लो।”

गली दो सौ फुट लम्बी थी। वो पार की। तब तक अंधेरा काफी फैल चुका था। पार करते ही बबूसा दाईं तरफ की दीवार से सट कर गया। धरा ने भी ऐसा ही किया। वो जोरों से हांफ रही थी।

“अब-अब-वो यहां भी आ जाएंगे।” हांफते हुए धरा ने कहा।

“वो आ रहे हैं।” बबूसा गुर्राया –“तुम दीवार के साथ नीचे लेट जाओ।”

“क्यों?”

“ताकि बच सको। अंधेरे का फायदा हमें मिलेगा। नीचे लेटकर हिलना नहीं। इस तरह उन्हें पता नहीं चलेगा कि तुम भी यहीं हो। मैं उन्हें खत्म करने की चेष्टा करता हूं।” बबूसा ने सतर्क स्वर में कहा।

“तुम मुझे बचा लोगे?”

“हां। नीचे लेट जाओ वो आ रहे हैं।”

धरा फौरन दीवार के साथ नीचे जा लेटी। चेहरा इस तरफ कर लिया कि देख सके। इस वक्त वो नीचे लेटी अंधेरे का हिस्सा लगने लगी थी। बबूसा वैसे ही दीवार के साथ सटा खड़ा था और उसके दोनों हाथों में तीन-तीन नन्हे चाकू आ गए थे। चंद पल बीते कि गली में से भागते कदमों की आवाजें आने लगीं।

बबूसा सतर्क हो गया।

देखते-ही-देखते चार लोगों ने गली से बाहर कदम रखा।

बबूसा ने अपने दाएं हाथ को झटका दिया।

तीनों चाकू हाथ की उंगलियों से निकलकर उन चारों की तरफ लपके

और तीन के जिस्म में जा धंसे। दो पल बीते कि वो तीनों एक-एक करके नीचे गिरने लगे।

तब तक चौथे की निगाह उस पर पड़ चुकी थी।

उसी पल बबूसा ने बाएं हाथ को झटका दिया तो उंगलियों में दबे तीनों के तीनों नन्हे चाकू हवा में उसकी तरफ लपके और उसके शरीर में प्रवेश कर गए। अब तक गली से और भागते कदमों की आवाजें आने लगीं।

चौथा भी नीचे जा गिरा था।

बबूसा ने अपनी जगह छोड़ी और गली के मुहाने पर जा खड़ा हुआ।

गली से पांच-छः लोग भागकर आते दिखे। बेशक अंधेरा था परंतु उन्होंने बबूसा को पहचान लिया था। उनमें से दो तो रुके नहीं, भागते आते सीधा बबूसा से आ टकराए। बबूसा के पांव उखड़ गए। वो पीछे को नीचे जा गिरा। वो दोनों भी गिरे।

परंतु तीनों उसी पल खड़े हो गए।

बबूसा एक पर झपटा और उसके सिर के बाल पकड़कर, गले पर कैरेट चॉप मारी तो कड़ाक की आवाज उभरी। उसे छोड़ा तो वो नीचे जा गिरा। तब तक दूसरा खंजर हाथ में थामे बबूसा पर झपट चुका था। बबूसा ने उसका खंजर वाला हाथ पकड़ा और उसके पेट की तरफ घुमा दिया।

वो खंजर स्वयं उस व्यक्ति के ही पेट में जा घुसा।

बाकी के पांच जो अभी गली के किनारे पर ही खड़े थे, वो अपने-अपने हथियार निकालकर खतरनाक अंदाज में बबूसा की तरफ बढ़ने लगे।

बबूसा शांत-सा खड़ा रहा।

तभी एक ने लोहे की चौकोर पत्ती उस पर फेंकी। उसके हाथ की हरकत देखते ही बबूसा को पता चल गया था कि वो क्या करने जा रहा है।

बबूसा ने फौरन खुद को नीचे गिराया और उसी फुर्ती से उठकर खड़ा हो गया। लोहे की वो चौकोर पत्ती ऊपर से निकल चुकी थी। इसके साथ ही बबूसा चौंका।

उसने धरा को एकाएक खड़े होकर, एक तरफ भागते देखा और उसके पीछे दौड़ते एक आदमी को देखा तो बबूसा समझ गया कि धरा देखी जा चुकी है। उसकी जान खतरे में है। एकाएक वो खूंखारता से भर गया। पलक झपकते ही उसके हाथों में नन्हे चाकू चमकते और सामने वालों को लगते रहे।

वो पांचों नीचे गिर चुके थे।

बबूसा ने एक की कमीज उतारी और उसे पहनते हुए तेजी से उस तरफ दौड़ पड़ा जिस तरफ धरा और वो आदमी दौड़े थे। बबूसा हर हाल में धरा को बचा लेना चाहता था।

तभी पीछे से बबूसा की पीठ पर कोई आ गिरा।

बबूसा जोरों से लड़खड़ाया। परंतु संभल नहीं पाया और नीचे जा गिरा। पीठ पर पड़े आदमी ने उसकी गर्दन पर बांह लपेट ली और उसे जोर से भींच लिया।

बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली और तेजी से करवट ले ली। उसकी पीठ पर पड़ा आदमी उसके नीचे दब गया, बांह कुछ ढीली हुई तो बबूसा ने उसकी बांह को अलग किया और छिटककर लुढ़कता चला गया और फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। वो आदमी भी तब तक खड़ा हो चुका था।

बबूसा ने इस अंधेरे में भी उसे पहचाना, वो डोबू जाति का योद्धा था।

एकाएक बबूसा ने दाएं हाथ की दो लम्बी उंगलियां किसी खंजर की भांति सीधी की कि तभी सामने वाला व्यक्ति बहुत तेजी के साथ उस पर झपट पड़ा। बबूसा ने खंजर के समान तनी उंगलियों को खास अंदाज में टेढ़ा किया और हाथ को आगे कर दिया।

अगले ही पल वो व्यक्ति करीब आकर चीख उठा।

बबूसा की खंजर समान तनी उंगलियां उसके पेट के भीतर तक धंस गईं। तभी बबूसा ने उंगलियों को मरोड़ा और पूरी ताकत के साथ वापस खींच लिया।

वो व्यक्ति पुनः गला फाड़कर चीख उठा।

बबूसा के हाथ में मांस का बड़ा-सा टुकड़ा, उसके पेट का आ गया था। वो पेट थामे चीखता हुआ नीचे गिरा और तड़पने लगा। बबूसा ने हाथ में पकड़े मांस के टुकड़े को फेंका और तेजी से उस तरफ भागा, जिधर धरा गई थी। हर तरफ अंधेरा फैला था। वहां आते-जाते लोगों ने चीखें सुनी थीं, परंतु समझ नहीं पाए कि बात क्या है, तब तक बबूसा वहां से जा चुका था। बबूसा भागता रहा। भागता रहा।

धरा की चिंता थी उसे।

उसने देखा था कि उसके सामने डोबू जाति का योद्धा उसके पीछे भागा था।

धरा खतरे में थी।

बबूसा वहां, आस-पास की जगहों में दौड़ता रहा। धरा को ढूंढ़ता रहा। भरपूर कोशिश की बबूसा ने धरा को पा लेने की। परंतु धरा कहीं भी नहीं दिखी। पसीने से भरे बबूसा ने ठिठककर धरा की गंध का एहसास पाने के लिए तेज-तेज सांसें ली, परंतु सफलता नहीं मिली। बबूसा के होंठों से गुर्राहट निकली। धरा का इस तरह से हाथ से निकल जाना, उसकी हार थी और उसे हार पसंद नहीं थी। उसे लगा कि धरा को उसने हमेशा के लिए खो दिया है।

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