एक झटके के साथ टैक्सी रुक गई।
मिक्की चौंका, तंद्रा भंग हो चुकी थी।
यह वह टैक्सी थी जिसे उसने बस अड्डे से कनॉटप्लेस तक के लिए लिया था, उसने पूछा—"क्या बात है ड्राइवर, रुक क्यों गए?"
जवाब में हल्की-सी 'कट' की आवाज के साथ अन्दर की लाइट ऑन हो गई और ऐसा होते ही मिक्की बुरी तरह उछल पड़ा।
मुंह से बरबस ही निकला—''त.....तुम?"
"हां.....मैं।" ड्राइवर की सीट पर बैठे रहटू ने एक-एक शब्द को बुरी तरह चबाते हुए कहा— "शुक्र है कि तुमने मुझे पहचान तो लिया, मगर यकीन मानो, मैं तुम्हारी लाश की शक्ल इस कदर बिगाड़ दूंगा कि तुम्हारी बीवी भी उसे पहचानने से इन्कार कर देगी।"
मिक्की के रोंगटे खड़े हो गए।
काटो तो खून नहीं।
रहटू की अंगारे-सी आंखें देखकर मिक्की के जिस्म में झुरझुरी दौड़ गई—उसके तमतमाते चेहरे पर हिंसक भाव इस कदर खतरनाक थे कि मिक्की को अपनी रीढ़ की हड्डी में मौत की सिहरन दौड़ती महसूस हुई।
हक्का-बक्का रह गया वह।
मुंह से निकला—"त.....तुम यह क्या कह रहे हो, रहटू?"
"तुझे ही तलाश कर रहा था कुत्ते—रहटू तुझे पाताल में भी नहीं छोड़ेगा—तू मेरे यार का हत्यारा है, अलका की मौत का जिम्मेदार भी तू ही है, मगर मैं अलका की तरह बेवकूफ नहीं जो मिक्की की मौत का बदला लिए बगैर मर जाऊं—मैं तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा—तू मेरे उस दोस्त का हत्यारा है हरामजादे, जिसने एक बार मुझे मौत के मुंह से बचाया था।"
मिक्की के दिलो-दिमाग में सनसनी दौड़ गई।
वह पलभर में रहटू के खतरनाक इरादों को भांप गया। समझ गया कि वह उसे सुरेश ही समझ रहा है। मिक्की का हत्यारा सुरेश। निश्चय ही बदले की आग में सुलगता रहटू उसके टुकड़े-टुकड़े कर देने वाला है।
रहटू के सामने से भाग जाने के अलावा मिक्की को कुछ न सूझा। बड़ी तेजी से उसने दरवाजा खोला और बाहर जम्प लगा दी—जख्मी होने के बावजूद वह सिर पर पैर रखकर भागा। पीछे से रहटू की दहाड़ सुनाई दी—"भागता किधर है सूअर के बच्चे, आज तू मेरे हाथों से नहीं बच सकता।"
मिक्की रुका नहीं।
मगर—।
अत्यन्त नाटे कद के रहटू ने जब उसके पीछे जम्प लगाई तो मिक्की की दौड़ फीकी पड़ गई—उस वक्त रहटू केवल दो कदम पीछे था जब नाटा जिस्म किसी गेंद के समान हवा में उछला।
उसके दोनों बूट मिक्की की पीठ पर पड़े।
एक चीख के साथ मिक्की मुंह के बल सड़क पर गिरा।
अभी वह उठने का प्रयत्न कर ही रहा था कि उसके नजदीक पहुंचकर रहटू के बाल पकड़े, गुर्राया—"तुझे मेरे दोस्त के खून की एक-एक बूंद का हिसाब देना होगा। कुत्ते, भागता कहां है—उस वक्त पुलिस से खुद कह रहा था कि मैं मिक्की की मौत का जिम्मेदार हूं, मुझे सजा दो—वह ड्रामा था, जानता था कि पुलिस तेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती—तुझे मैं सजा दूंगा।"
दर्द से बिलबिलाते मिक्की ने प्रतिरोध किया।
रहटू से टक्कर लेने की कोशिश भी की, मगर व्यर्थ।
पहली बात तो वे है कि मारा-मारी में वह रहटू जितना दक्ष नहीं था और उस पर इस वक्त जख्मी भी था—सो रहटू उस पर बीस नहीं बल्कि इक्कीस पड़ा।
मिक्की के हलक से चीखें निकलने लगीं।
मौका मिलते ही वह चीखने लगता था—"रुको......रुको रहटू, मेरी बात तो सुनो, मैंने कुछ नहीं किया है।"
मगर—।
रहटू सुने तो तब जब होश में हो।
उस पर तो जुनून सवार था।
वह मिक्की पर लात, घूंसे और टक्करों की बरसात करता रहा, जब तक कि पिटता-पिटता बेहोश न हो गया।
¶¶
होश आने पर मिक्की ने खुद को एक कुर्सी पर बंधा पाया इस स्थान को भी वह अच्छी तरह पहचानता था।
रहटू का कमरा था वह।
सामने रहटू खड़ा था।
मिक्की का समूचा जिस्म ही नहीं बल्कि दिमाग की नसें तक बुरी तरह झनझना रही थीं—रहटू नाम की एक ऐसी मुसीबत अचानक ही उसके सिर पर आ पड़ी थी, जिसे वह लगभग भूल चुका था।
उसने कल्पना भी नहीं की थी कि सुरेश को मिक्की बनाकर मारने और स्वयं सुरेश बनने पर इस मुसीबत से भी उसे दो-चार होना पड़ेगा।
बुरी तरह बौखला गया था वह।
रहटू का प्यार ही इस वक्त उसके लिए सबसे खतरनाक था।
हकीकत वह रहटू को बता नहीं सकता था और लग रहा था कि रहटू यदि उसे सुरेश ही समझता रहा तो जाने उसकी क्या गत बनाए?
मिक्की की इच्छा दहाड़े मार-मारकर रोने की हुई।
जबकि—।
खूंखार नजरों से घूरता हुआ रहटू उसके अत्यन्त नजदीक आ गया। झपटकर दोनों हाथों से उसने मिक्की का गिरेबान पकड़ा और दांत पीसता हुआ गुर्राया—"कत्ल तो मैं तुझे वहां सड़क पर भी कर सकता था, मगर मुझे तेरी लाश के इतने टुकड़े करने हैं, जिन्हें कोई गिन भी न सके—यह काम सड़क पर नहीं हो सकता था, इसीलिए तुझे यहां लाने की जरूरत पड़ी।"
"म.....मगर रहटू भाई, मुझसे आखिर तुम्हारी दुश्मनी क्या है?"
"द.....दुश्मनी।" वह गर्जा—"दुश्मनी पूछता है हरामजादे, मेरे सबसे प्यारे दोस्त को मारने के बाद पूछता है कि दुश्मनी क्या है, मगर तू
क्या जाने कि दोस्ती क्या होती है—जब दौलतमन्द बनकर तू अपने भाई को पैसे-पैसे के लिए मोहताज कर सकता है तो दोस्ती की कीमत क्या समझेगा।"
"मिक्की की मौत का जितना दुख तुम्हें है, उतना ही मुझे भी है, मगर.....।"
"मगर—?"
"किसी की मौत के बाद उससे प्यार करने वाले दुखी होने से ज्यादा और कर भी क्या सकते हैं?"
"कातिल का कत्ल कर सकते हैं, उसकी खाल में भुस भर सकते हैं—इससे मरने वाले की आत्मा को शान्ति मिलेगी।"
"म.....मगर तुम मुझे मिक्की का हत्यारा क्यों समझते हो?"
"मिक्की ने अपनी डायरी में साफ-साफ लिखा है कि उसकी मौत के जिम्मेदार तुम हो—मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता कि यदि उस दिन तुमने उसे दस हजार रुपये दे दिए होते तो वह कभी आत्महत्या नहीं करता—सचमुच उसने सुधर जाने का निश्चय कर लिया था।"
"मुझे उसकी बात पर यकीन नहीं हुआ था, लगा कि हमेशा की तरह वह मुझे आज भी बेवकूफ बना रहा है—अफसोस तब हुआ जब उसकी लाश देखी, ये सच है कि अपनी समझ में मैं उसे सुधारने का उपाय कर रहा था।"
"झूठ.....।" चीखने के साथ ही उसने एक घूंसा मिक्की के चेहरे पर जड़ दिया और गुर्राया—"मैं मिक्की की तरह सफेद झूठ में फंसकर तुझे बख्शने वाला नहीं हूं—मिक्की तो बेवकूफ था जो उसने तुझे जिन्दा छोड़कर खुद आत्महत्या कर ली—अरे, अगर उसे मरना ही था तो तुझे मारने के बाद मरता।"
"मुझे छोड़ दो रहटू, अपनी जान के बदले मैं तुम्हें वह सबकुछ देने के लिए तैयार हूं जो तुम चाहो.....मैं तुम्हें मालामाल कर सकता हूं।"
"हरामजादे!" रहटू के मुंह से लफ्जों की आग निकली, "अपनी जान की कीमत मुंहमांगी देने को तैयार है और मिक्की को दस हजार नहीं दिए गए—सच, तू कभी नहीं समझ सकता कि प्यार करने वाले बिका नहीं करते।"
"र.....रहटू।"
"खामोश!" रहटू दहाड़ा—"अब मैं तेरी नापाक जुबान से एक भी अल्फाज़ सहन नहीं कर सकता.....मरने के लिए तैयार हो जा।" कहने के साथ रहटू जेब से चाकू निकाला।
क्लिक—।
चमचमाता फल देखकर मिक्की के होश उड़ गए।
उसे लग रहा था कि कुछ ही देर बाद चाकू का चमकदार फल उसके खून से अपनी प्यास बुझा रहा होगा—मिक्की को अपनी अंतड़ियां कटती-सी महसूस हुईं, मुंह से बोल नहीं फूट रहा था।
रहटू का चाकू वाला हाथ ऊपर उठा।
उसके चेहरे पर मौजूद भावों ने मिक्की को बता दिया कि उसका कत्ल कर देने के लिए वह दृढ़-प्रतिज्ञ है—मिक्की को लगा कि हकीकत बताने के अलावा अब बचने का कोई रास्ता नहीं है। यदि उसने हकीकत नहीं बताई तो रहटू उसे मार डालेगा और यदि वह मर ही गया, तो अपना राज बनाए रखने का उसे लाभ ही क्या होगा, अतः बोला— "सुनो रहटू, ध्यान से सुनो—मैं सुरेश नहीं, मिक्की हूं, तुम्हारा दोस्त मिक्की।"
रहटू को एक झटका-सा लगा।
हाथ जहां-का-तहां रुक गया, बुरी तरह चौंका था वह, चेहरे पर से बड़ी तेजी के साथ भूकम्प के भाव गुजरे और फिर वह चीख पड़ा—"क्या बकवास कर रहा है हरामजादे, होश में तो है तू?"
"हां, रहटू, मैं ठीक कह रहा हूं।" मिक्की बड़ी तेजी से एक ही सांस में कहता चला गया—"मैं मिक्की हूं, मेरे कमरे से जो लाश बरामद हुई थी वह सुरेश की थी—मैंने स्वयं उसे मारकर ऐसा दर्शाया था जैसे मिक्की ने आत्महत्या कर ली हो—वास्तव में मैंने सुरेश बनकर सुरेश से अपना नसीब बदल लिया है।"
रहटू अवाक् रह गया।
हक्का-बक्का।
इसके बाद सच्चाई को साबित करने में मिक्की को देर न लगी—उस अविश्वसनीय सच्चाई को सुनकर मारे अचम्भे के रहटू का बुरा हाल हो गया, इस बात की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी कि जिसे मिक्की का हत्यारा समझकर वह मारने पर आमादा है, वह मिक्की ही निकलेगा।
हैरतअंगेज अन्दाज़ में वह बड़बड़ाया—"त.....तू ठीक कह रहा है न—तू मिक्की ही है न—मेरा दोस्त—मेरा यार मिक्की?"
"हां रहटू, मैं वही हूं।"
"तो इस रूप में क्यों है?"
"डायरी में लिखा हर अक्षर मेरी चाल थी, सुरेश की लाश को अपनी लाश दर्शाकर स्वयं सुरेश बन जाने की चाल—मेरठ की ठगी से पहले ही मैं उस बाजी को पलट देने की योजना बना चुका था जो बचपन में जानकीनाथ से सुरेश को गोद लेने से बनी थी—बड़ी खूबसूरती से सुरेश की जगह पहुंचकर मैंने अपना नसीब बदल लिया—उसकी हत्या कर, अपनी आत्महत्या 'शो' करके।'' विस्तारपूर्वक सबकुछ बताने के बाद मिक्की ने कहा— "मैं ये राज किसी को बताना नहीं चाहता था—मगर तेरे प्यार ने मजबूर कर दिया—जिस दीवानगी के तहत मुझे सुरेश समझकर मेरी मौत का बदला लेना चाहता था तू, उसने मुझे हिलाकर रख दिया—सोचा कि ऐसे वफादार दोस्त से भी अपना राज छुपाए रखना दोस्ती के मुंह पर कालिख होगी सो, तुझे वह सब बता रहा हूं जो किसी को न बताने की कसम खाई थी।"
"अलका के बारे में भी तुझे कुछ पता है?"
"हां।" एकाएक मिक्की ने खुद को बेहद रंज में डूबा दर्शाया—"आज शाम के अखबार में उसके बारे में पढ़ा—तबसे मैं बेहद दुखी हूं, उसकी शहादत से जाहिर है यार कि वह मुझसे कितना प्यार करती थी, परन्तु अब मैं कर भी क्या सकता हूं—वह मुझे छोड़कर चली गई, मैं उसकी मौत पर खुलकर रो भी नहीं सकता—ऐसा करने से लोगों को शक हो जाएगा कि मैं मिक्की हूं।"
"म.....मगर मिक्की, तुझे हम दोनों को अपनी स्कीम में राजदार बनाना चाहिए था, अगर तू ऐसा करती, बेचारी अलका आत्महत्या क्यों करती?"
"तुझे तो पता हैं रहटू, शुरू से ही मेरी आदत अपनी स्कीम पर बिना किसी को कुछ बताए अकेले काम करने की रही है—वही मैंने इस बार भी किया, मैं ये जरूर जानता था कि अलका मुझसे प्यार करती है, मगर ये नहीं मालूम था कि इतना प्यार करती है, इतना कि मेरी मौत के बाद वह स्वयं भी आत्महत्या कर लेगी—अगर इतना इल्म होता तो निश्चय ही इस स्कीम में मैंने तुम दोनों को राजदार बनाया होता।"
"इसका मतलब अब तू सुरेश बन चुका है और इस राज को दुनिया में मेरे अलावा और कोई नहीं जानता।"
"हां।"
"यानी इस बार तेरे नसीब ने साथ दिया, स्कीम में तुझे पूरी कामयाबी मिली?"
"सारी योजना सफल है, मैंने कहीं भी ऐसा हल्का-सा पॉइंट भी नहीं छोड़ा है, जिससे पुलिस को यह पता लग सके कि मैं सुरेश नहीं मिक्की हूं, मगर.....।"
"मगर—।"
"सुरेश बनने के बाद से अब तक एक पल के लिए भी चैन नहीं मिला है।"
"मैं समझा नहीं।"
"मुझे देखकर, मेरी कहानी सुनकर तुझे यही लग रहा होगा न कि मैं करोड़ों की दौलत का मालिक बन चुका हूं, बेहद खुश होऊंगा।"
"इसमें क्या शक है, इस वक्त तो तेरी पांचों उंगलियां ही घी में नहीं, बल्कि सिर भी कढ़ाई में होगा—एक ही झटके में करोड़पति बन गया।"
एक धिक्कार भरी हुंकार के साथ मिक्की के होंठों पर अत्यन्त फीकी मुस्कान दौड़ गई, बोला— "ऐसा ही लगता है रहटू, दूर से ऐसा ही लगता है—सुरेश को देखकर मुझे भी ऐसा ही लगा करता था कि वह सर्वसाधन सम्पन्न और सर्वमुख सम्पन्न है, उसे कोई दुख नहीं हो सकता, उसे कोई समस्या नहीं हो सकती, मगर यह सब दृष्टिभ्रम होता है, हमाम में सब नंगे है, रहटू—अब सुरेश बनने के बाद मुझे पता लगा है कि सुरेश के जिस नसीब से मैं रश्क किया करता था, वह वास्तव में क्या था?"
"ये तुम क्या कह रहे हो?"
"सच्चाई यही है—दोस्त—मेरे कहने पर भी शायद तुम यकीन नहीं करोगे—कीमती लिबास में लिपटा सुरेश देखने में भोला-भाला मासूम जरूर लगता था, जबकि था हम ही जैसा—एक मुजरिम, शायद हमसे कई गुना ज्यादा खतरनाक मुजरिम और हमारी समस्या तो सिर्फ पैसा होती है, मगर सुरेश की समस्याएं अजीब थीं, अनेक थीं—खुद को जिन्दा रखना भी उसके लिए समस्या थी।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है।"
मिक्की अपनी ही धुन में कहता चला गया—"सुरेश बनने के बाद मैंने महसूस किया है कि उसके मुकाबले मेरी अपनी समस्याएं कुछ भी नहीं थीं—कई बार यह अहसास हो चुका है कि सुरेश बनकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है—अनजाने ही में मैं एक ऐसे चक्रव्यूह में घुस गया हूं जिसे तोड़ना मुझे बिल्कुल नहीं आता—वे फसलें भी मुझे काटनी पड़ रही हैं, जिनके बीज सुरेश ने बोए थे—लग रहा है कि उस जुर्म में तो मुझे कोई पकड़ नहीं सकेगा जो मैंने खुद किए हैं, मगर वे जुर्म मुझे फांसी के फंदे पर पहुंचाकर ही दम लेंगे जो सुरेश ने किए थे और जिन्हें अपनी—सुरेश बनने की—बेवकूफी से मैंने अपने सिर मढ़ लिया है।"
"साफ-साफ बताओ मिक्की, सुरेश ने क्या किया था?"
"अपने बाप, सेठ जानकीनाथ का मर्डर।"
"क.....क्या?" रहटू चिहुंक उठा।
"यह सच है, धैर्य की कमी के कारण सुरेश ने एक वेश्या के साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या कर दी—अब एक तरफ उसकी इन्वेस्टिगेशन चल रही है, दूसरी तरफ वेश्या मुझे सुरेश समझकर ब्लैकमेल कर रही है—यह सब मुझे बाद में पता चला, अगर पहले पता होता तो सुरेश बनने की बात ख्वाब में भी न सोचता।"
"अजीब बात है।"
"बिजनेस और चरित्रहीन बीवी के अलावा सुरेश की एक समस्या खुद को कातिलाना हमलों से बचाए रखना भी थी जो अब मेरी समस्या है। कोई सुरेश की हत्या का तलबगार है और अब कातिलाना हमले मुझ पर हो रहे हैं, क्योंकि मैं सुरेश हूं—है न ट्रेजडी.....जब मिक्की था, तब कम-से-कम मेरी हत्या का तलबगार तो कोई न था?"
"क्या तेरा इशारा मेरी तरफ है?"
"अब मुझे यकीन है, क्योंकि तू मेरे साथ है, मगर सच, कुछ देर पहले तक मैं सुरेश बनने के अपने फैसले पर पछता रहा था—शायद अकेला होने की वजह से—मैं सुरेश बन जरूर चुका हूं मगर उसकी करोड़ों की सम्पत्ति से अभी मीलों दूर हूं—दौलत तक मैं तब पहुंचूंगा जब जानकीनाथ से सम्बन्धित फाइल पुनः बन्द करा दूंगा—सुरेश की हत्या के तलबगार को कानून के हवाले कराके मैं राहत की सांस ले सकता हूं।"
"तू मुझे विस्तार से सबकुछ बता।" रहटू ने कहा— "वादा करता हूं कि हर तरह से मदद करूंगा।"
मिक्की को रहटू की ईमानदारी पर कोई शक नहीं था।
सो, सुरेश बनने के बाद से अब तक की हर घटना उसने विस्तार से बता दी—अलका का उसने कोई जिक्र नहीं किया, क्योंकि जानता था कि यदि उसे यह मालूम हो गया कि अलका का हत्यारा भी वही है तो उसके तेवर एकदम बदल जाएंगे। सुनने के बाद रहटू ने कहा— "इन घटनाओं से तो वास्तव में ऐसा लगता है, सुरेश बनना तेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल है।"
¶¶
"मेरा तो दिमाग घूमकर रह गया है।" नसीम बानो ने कहा— "समझ में नहीं आ रहा कि आखिर चक्कर क्या है, सुरेश सबकुछ स्वीकार क्यों करता जा रहा है?"
विमल बोला— "समझ में आने वाली बात ही नहीं है, जो कुछ सुरेश ने किया नहीं, उसे स्वीकार कर रहा है, इससे ज्यादा हैरत की बात और क्या हो सकती है?"
"कहीं ऐसा तो नहीं कि सुरेश हमें बेवकूफ बना रहा हो?" यह सम्भावना विनीता ने व्यक्त की थी।
विमल ने पूछा—"क्या मतलब?"
"मुमकिन है कि किसी रास्ते से उसे पता लगा गया हो कि हम क्या षड़यंत्र रच रहे हैं और उस पर वह हमें चकरा डालने के लिए हमसे भी बड़ा षड्यंत्र रच रहा हो।"
"ऐसा नहीं हो सकता।"
"क्यों?"
"यदि वह हकीकत से वाकिफ हो जाता तो सीधा हम तीनों को कानून के हवाले कर देता.....जो उसने नहीं किया, उसे स्वीकार करके आखिर उसे क्या मिलने वाला है?"
"इसी पर गौर करने के लिए तो हमारी यह आपातकालीन मीटिंग हुई है।" विनीता ने कहा—"जैसे ही नसीम ने फोन पर मुझसे कहा कि समस्त आशाओं के विपरीत सुरेश सबकुछ स्वीकार करता जा रहा है, तो मैं दौड़ी हुई यहां चली आई।"
नसीम ने राय दी—"मेरे ख्याल से हमें सारे मामले पर पुनर्विचार करना चाहिए, तब शायद ये झमेला कुछ समझ में आए।"
"क्या मतलब?"
"मेरे कोठे पर जानकीनाथ का आना-जाना था।" नसीम ने कहना शुरू किया—"एक दिन विमल मेरे पास आया और जानकीनाथ के मर्डर में शामिल होने की दावत पांच लाख के साथ दी—मैं तैयार हो गई, तुमने (विमल) खुद कील और हथौड़ी से नाव में छेद किए—खैर, वह सारी योजना कामयाब हो गई—जानकीनाथ मर गया, सबने उसे दुर्घटना ही समझा—यहां तक कि पुलिस ने भी उसे दुर्घटना मानकर फाइल बन्द कर दी।"
"मगर पांच लाख रुपये लेने के बावजूद तुम मेरे साथ चाल चल गईं।" विमल ने कहा— "तुमने नाव की तली में छेद करते मेरा फोटो ले लिया था और काल्पनिक गुण्डों का नाम लेकर फोटो के आधार पर मुझे ब्लैकमेल करती रहीं।"
नसीम ने बेहयाई के साथ कहा— "अपने चंगुल में फंसे शिकार को सारी जिन्दगी के लिए गुलाम बना लेना मेरी आदत है—खैर, जानकीनाथ की मौत के बाद मैं सुरेश से भी मिली और अपने तरीके से मैंने यह पता लगा लिया कि तुम दोनों यानी सुरेश का सेक्रेटरी और बीवी आपस में मुहब्बत करते हो—इस भेद को खोल देने की धमकी देकर एक दिन मैंने तुम दोनों को यहां इकट्ठा बुला लिया, ठीक है न?"
दोनों की गर्दन उसके साथ स्वीकृति में हिली।
"उस दिन मैंने तुमसे पूछा था कि तुमने जानकीनाथ की हत्या क्यों की—तब तुमने क्या जवाब दिया था, बोलो—मैं वही जवाब इस वक्त भी सुनना चाहती हूं।"
"मेरे ख्याल से पिछली बातों की चर्चा करने से हमें कोई लाभ होने वाला नहीं है नसीम, वर्तमान समस्या पर गौर करना जरूरी है।"
"वर्तमान समस्या दिमाग में ठीक से फिट तभी होगी, जब पिछली बातें स्पष्ट होंगी, अतः जवाब दो, तुमने जानकीनाथ की हत्या क्यों की?"
"क्योंकि उसने हमें एक रात अभिसार की अवस्था में देख लिया था।"
"यह सुनकर मैंने पूछा था कि अब आगे आपका क्या प्लान है, तब जवाब में तुम दोनों चुप रह गए थे—मेरे बार-बार पूछने पर तुमने कहा कि भविष्य की कोई योजना तुमने नहीं बना रखी है—तब मैंने तुम्हें मूर्ख ठहराया था और कहा था कि तुम्हारे बीच का सबसे बड़ा कांटा सुरेश है—अगर तुमने जरा-सी भी होशियारी से काम लिया होता तो जानकीनाथ की मौत के साथ ही सुरेश से भी छुट्टी पा जाते—तुमने पूछा, कैसे—जवाब में मैं समझ गई कि तुम दोनों के दिल में सुरेश से छुटकारा पाने की इच्छा है और होती भी क्यों नहीं—उसके हट जाने के बाद तुम्हारे प्यार का खेल न सिर्फ खुलेआम चलने वाला था, बल्कि करोड़ों की सम्पत्ति के मालिक भी तुम्हीं बनने वाले थे, क्या मैं गलत कह रही हूं?"
विनीता बोली— "समझ में नहीं आता कि इस सबको तुम दोहरा क्यो रही हो?"
"तुम्हारी इच्छा भांपते ही मैंने प्रस्ताव रखा कि जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में सुरेश अब भी फंस सकता है—तुमने पूछा—कैसे, जवाब में मैंने तुम्हें पूरी एक स्कीम बताई, बताई थी न?"
"हां।"
"क्या स्कीम थी वह?"
"सबसे पहले हमने एक अज्ञात आदमी के नाम से पुलिस अधीक्षक से लेकर कमिश्नर तक उस पत्र की प्रतियां डाक से भेजीं, जिनमें पत्र-लेखक को जानकीनाथ का शुभचिन्तक बताकर यह सन्देह व्यक्त किया था कि जानकीनाथ की हत्या की गई है—नए सिरे से जांच की मांग करते हुए पत्र में हमने यह भी लिखा था कि हम अपना नाम लिखकर अज्ञात हत्यारों से दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते—अन्त में पत्र में हमने यह भी लिखा था कि किसी को यह पता नहीं लगना चाहिए कि जांच ऊपर से शुरू हुई है, क्योंकि इससे हत्यारे सतर्क होकर जांच पर राजनैतिक दबाव डलवा सकते हैं—इस पत्र के चंद दिन बाद ही सम्बन्धित थाने पर इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे की नियुक्ति हुई और उसने ऐसा दर्शाते हुए केस की फाइल पुनः खोल ली जैसे इससे सम्बन्धित उसे ऊपर से कोई आदेश न मिला हो, बल्कि पर्सनल रूप से उसने जांच शुरू की हो—हमारे ख्याल से वास्तविकता ये है कि म्हात्रे की हर एक्टीविटी हमारे पत्र पर प्रशासन की प्रक्रिया है।"
"इसके बाद क्या हुआ?"
"हमने अनुमान लगा लिया था कि गोविन्द म्हात्रे सबसे पहले नाव को चैक करने और नाव के मालिक महुआ का बयान लेने पहुंचेगा, अतः योजना के अनुसार म्हात्रे से पहले तुम (नसीम) महुआ से मिलीं—उससे कहा कि यदि कोई पुलिस वाला तेरह नवम्बर की घटना के बारे में पूछे तो उसे कुछ बताना नहीं है, यदि उसने सारी घटना से अनिभिज्ञता प्रकट की तो जानकीनाथ का लड़का सुरेश उसे माला-माल कर देगा और उसके ठीक विपरीत अगर कोई गड़बड़ बयान देगा तो सुरेश उसे ही नहीं, बल्कि उसके बीवी-बच्चों को भी मौत की नींद सुला देगा।"
"ऐसा मैंने उससे यह सोचकर कहा था कि वह घबराकर इस घटना को म्हात्रे को बता देगा, म्हात्रे का ध्यान यहीं से सुरेश पर केन्द्रित हो जाएगा—इसके बाद वह बयान हेतु मेरे पास आएगा, मैं थोड़ी ना-नुकुर के बाद कहूंगी कि यदि वह मुझे वादामाफ गवाह बना ले तो मैं उसे हकीकत बताने के लिए तैयार हूं, और अपनी मांग मान लेने पर मैं उसे यह बयान देने वाली थी कि जानकीनाथ का कातिल सुरेश ही है और मुझे उसने पांच लाख का लालच देकर अपनी मदद करने के लिए तैयार किया था, इसी सांस में मुझे यह भी कहना था कि महुआ के पास भी मुझे सुरेश ने ही भेजा था।"
"मगर यह स्कीम कामयाब नहीं हुई।"
"क्यों?"
"क्योंकि हमारी मदद के मुताबिक महुआ ने घबराकर म्हात्रे को हकीकत नहीं बताई, बल्कि सारी घटना से अनभिज्ञता प्रकट करता रहा—म्हात्रे वहां से नाव की तली में मौजूद छेदों का निरीक्षण करके लौट गया।"
नसीम ने कहा—"जो धमकी मैं महुआ को देकर आई थी, शायद वह वास्तव में उससे डर गया था। तभी तो उसने मुझसे मुलाकात का कोई जिक्र इंस्पेक्टर म्हात्रे से नहीं किया।"
"इसके बाद म्हात्रे तुम्हारे बयान लेने कोठे पर पहुंचा, उस वक्त तक क्योंकि हमारी आगे की रणनीति स्पष्ट नहीं थी, अतः तुमने साफ-साफ कुछ न कहकर घटना से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए ऐसे गोल-मोल जवाब दिए कि म्हात्रे तुम्हारी तरफ से सन्देह की स्थिति में रहे।"
"करेक्ट।"
"इसके बाद हमारी रणनीति बनी और उस पर अमल शुरू हुआ।"
"वह रणनीती क्या थी?"
"सुरेश को चूंकि मालूम नहीं था—इसलिए अपने कमरे में एक पेन्टिंग टांगने के बहाने विनीता ने उस कील और हथौड़ी पर सुरेश की उंगलियों के निशान ले लिए जिनसे नाव की तली में छेद किए गए थे—इन दो चीजों को सुरक्षित तरीके से बड़कल लेक के किनारे ठीक उस स्थान पर जमीन में गाड़ दिया गया, जहां महुआ की नाव खड़ी रहती है—उधर, नाव में छेद करते मेरे फोटो पर ट्रिक फोटोग्राफी से सुरेश का चेहरा पेस्ट कर दिया गया—ये दोनों सुरेश को जानकीनाथ का हत्यारा साबित करने के पुख्ता सबूत थे।"
"मगर चूंकि हमें मालूम था। कि सुरेश हत्यारा नहीं है, अतः अपनी अप्रत्याशित गिरफ्तारी पर वह बुरी तरह चौंकेगा, साथ ही वह ऐसा कोई सबूत भी पेश कर सकता है जिससे हमारी सारी योजना धराशायी हो जाए।" नसीम बानो कहती चली गई—"इसलिए मैंने उसे फोन किया।"
"ये फोन की जरूरत स्पष्ट नहीं हुई।"
"दरअसल हम यह चाहते थे कि जब म्हात्रे सुरेश को गिरफ्तार करने पहुंचे तो वह इतने स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके, जिस देखकर म्हात्रे हमारी दी हुई लाइन से बाहर सोचने लगे।" नसीम ने कहा— "साथ ही फोन पर बात करके मैं ये भी जानना चाहती थी कि अपनी गिरफ्तारी के वक्त सुरेश अपने हक में म्हात्रे को क्या दलील या सबूत दे सकता है, ताकि उसकी काट सोचने के बाद ही हम म्हात्रे को उसके पास तक पहुंचाएं।"
विनीता बोली— "हमने योजना बनाई थी कि एक तरफ झूठे गवाहों और कील-हथौड़ी बरामद कराकर म्हात्रे के दिमाग में ठूंस-ठूंसकर सुरेश का नाम भर देंगे—दूसरी तरफ फोन कर-करके सुरेश को इतना प्रिपेयर कर लेंगे कि म्हात्रे के गिरफ्तार करने पर वह स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके—साथ ही अपने पक्ष में वह जो दलील और सबूत पेश करे, उसे काट सके।"
"मैंने यह सोचा था कि जब मैं फोन पर सुरेश से इस ढंग से बात करूंगी जैसे उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है तो वह बुरी तरह चौंकेगा।" नसीम बानो ने कहना शुरू किया—"चीखेगा, चिल्लाएगा—कहेगा कि मैं ये क्या बेपर की उड़ा रही हूं—तब मैं उससे कहूंगी—कि इस तरह मुझसे धोखा करके वह बच नहीं सकता—मैं ये भी कहती कि मुझ अकेली को हत्या के जुर्म में फंसाने का उसका ख्वाब पूरा नहीं होगा—बौखलाकर वह चीखता-चिल्लाता ही रह जाता, जबकि मैं म्हात्रे को वादामाफ गवाह बनकर बयान देती कि सुरेश ने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है और अब मुकर रहा है, मुझे पहचानने तक से इंकार कर रहा है—मेरी गवाही, फोटो और कील-हथौड़ी बरामद उसके फिंगर प्रिन्ट्स मुझे सच्ची और सुरेश को झूठा साबित करके मुकम्मल रूप से उसे हत्यारा साबित कर देते मगर.....।"
"मगर—?"
"ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे हम हैरत में फंस गए हैं, पूछो कैसे—पूछो।"
"कैसे?"
"जब मैंने सुरेश को फोन किया और ऐसी बातें कहीं जैसे उसने मेरे साथ मिलकर कोई अपराध किया है, तो चौंकने के स्थान पर हमारी समस्त आशाओं के विपरीत उसने भी इस तरह की बातें कीं जैसे सचमुच वह मेरे साथ किसी अपराध में शामिल रहा हो।" नसीम ने बताया—"अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं चौंकी ही नहीं, बल्कि यह सोचकर भौंचक्की रह गई कि जब मेरे साथ मिलकर उसने कुछ किया ही नहीं है तो इस ढंग से बातें क्यों कर रहा है?"
"बात थी ही हैरतअंगेज।"
"म्हात्रे के साथ ही काल्पनिक मनू और इला के नाम मैंने इस ढंग से लिए जैसे उनके सम्बन्ध में उससे मेरी बातचीत पहले भी हो चुकी हो, मुझे उम्मीद थी कि बुरी तरह चौंककर ढेर सारे सवाल करेगा, परन्तु उसने उल्टे इस तरह बात की मानो मेरे और उसके बीच सचमुच पहले से ही इस सम्बन्ध में बातचीत होती रही हो, उससे बात करने के बाद जब मैंने रिसीवर क्रेडिल पर रखा, तब मेरा बुरा हाल था, हाथ-पैर कांप रहे थे, चेहरे पर पसीना-ही-पसीना।"
"ऐसी हालत होना स्वाभाविक ही था।" विमल ने कहा— "सामने वाले से जब हम झूठ बोल रहे हैं और जानते हैं कि वह जानता है कि हम झूठ बोल रहे हैं तो यही उम्मीद करेंगे कि वह हमारे झूठ का प्रतिवाद करेगा—मगर जब वह झूठ का प्रतिवाद करने के स्थान पर उसे स्वीकार करने लगे तो कल्पना की जा सकती है कि झूठ बोलने वाले की हालत कितनी दयनीय हो जाएगी?"
"फोन रखने के बाद मुझे लगा कि कहीं मैं किसी भ्रम की शिकार तो नहीं हो गई हूं, अतः शाम के वक्त पुनः फोन किया—सुरेश ने सुबह की तरह ही सबकुछ स्वीकार करते हुए बातें कीं—मैंने मनू और इला का हवाला देकर बीस हजार रुपये के साथ बस अड्डे पर आने की दावत दी, इस उम्मीद में कि देखूं उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है, मगर वह आने के लिए तैयार हो गया—सच बात तो ये है कि बस अड्डे पर उससे मिलने जाने पर मुझे डर लग रहा था, परन्तु यह सोचकर गई कि देखूं तो सही वह क्या बात करता है—बातें हुईं, आजमाने के लिए मैंने उससे कहा कि 'तुम मनू और इला से मिल चुके हो'—पट्ठा फौरन सहमत ही नहीं हो गया, बल्कि यह भी कहने लगा कि 'अब मैं ज्यादा दिन तक ब्लैकमेल होता नहीं रह सकता, अतः जल्दी ही मनू और इला का कोई इलाज सोचूंगा'—गजब की बात तो ये है कि मनू और इला से उसके मिलने की बात तो दूर, इस नाम के गुण्डे दुनिया में कहीं हैं भी, ये मैं नहीं जानती—मुझसे पांच लाख में सौदा और एक लाख बकाया की बात भी उसने स्वीकार कर ली—उल्टा आगे बढ़-बढ़कर इस तरह की बातें करने लगा जैसे सममुच उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की हो—इस वक्त कैफियत ये है कि जो झूठ हम बोलते हैं, उसे सुरेश हमसे भी दो-चार कदम आगे बढ़कर स्वीकार कर रहा है।"
"जबकि हम सीधे-सीधे उसे उसके बाप का हत्यारा कह रहे हैं।"
"और वह स्वीकार भी कर रहा है, जो उसने किया ही नहीं, उसे मान रहा है—सोचने वाली बात तो ये है कि आखिर क्यों है, क्या चक्कर है ये?"
विनीता ने कहा— "मेरी एक राय है।"
"क्या?" एक साथ दोनों के मुंह से निकला।
"हमारा उद्देश्य सुरेश को जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसाना ही तो है न?"
"बेशक।"
"और वह स्वयं फंसने के लिए तैयार है तो क्यों न फाइनल मोहरा आगे बढ़ा दें?"
"क्या मतलब?" विमल ने पूछा।
"नसीम बस अड्डे पर सुरेश से हुई बातें जेबी टेपरिकॉर्डर के जरिये टेप कर चुकी है, वह टेप अभी कुछ देर पहले इसने हम दोनों को सुनाया—उससे सुरेश खुद को साफ-साफ जानकीनाथ का हत्यारा स्वीकार कर रहा है। क्यों न अपने पूर्व प्लान के मुताबिक नसीम म्हात्रे के पास जाकर वादामाफ गवाह बनकर यह टेप भी उसके हवाले कर दे, किस्सा ही खत्म हो जाएगा।"
"इससे बढ़कर बेवकूफी-भरी राय और क्या हो सकती है?"
"क्यों?"
"सबसे पहले हमें यह जानना है कि सुरेश स्वयं हमारे बेसिर-पैर के झूठ को आखिर क्यों स्वीकार कर रहा है?" नसीम ने कहा।
विनीता बोली— "इस ऊल-जलूल सवाल में उलझने की क्या जरूरत है?"
"जरूरत है विनीता, बेहद सख्त जरूरत है” , विमल ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा— "इस सवाल का जवाब तलाश किए बिना हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते।"
"क्यों?"
"मुमकिन है कि इस सवाल के पीछे सुरेश की कोई गहरी साजिश छुपी हो, कोई उससे भी जटिल और खतरनाक साजिश—जैसी हम उसके विरुद्ध रच रहे थे—सम्भव है कि उसकी कामयाबी पर उल्टे हम ही बुरी तरह फंस जाएं।"
"ऐसी क्या साजिश हो सकती है?"
"यह पता लगाना ही हमारा पहला कदम होना चाहिए।"
विनीता चुप रह गई।
नसीम ने कहा— "सुरेश की यह हैरतअंगेज स्वीकारोक्ति बेवजह नहीं हो सकती और जब तक हम उस वजह की तलाश नहीं कर लेंगे, तब तक ऊहापोह की इसी स्थिति में रहेंगे जिसमें इस वक्त हैं—आगे की कोई भी रणनीति हम तभी बना पाएंगे जब जान लेंगे कि वह हमारे झूठ को स्वीकार क्यों कर रहा है?"
"क्या यह जरूरी है कि ऐसी साजिश नहीं है तो ऐसा कर ही क्यों रहा हो?"
नसीम बोली— "अगर कोई साजिश नहीं है तो ऐसा कर ही क्यों रहा हैं?"
"साजिश है।" विमल ने कहा— "मेरे पास एक ऐसी दलील है, जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि वह सबकुछ निश्चय ही किसी साजिश के तहत कर रहा है।"
"कैसी दलील?"
"उसने खुद कहा कि उंगलियों के जो निशान इंस्पेक्टर ले गया है, वे कील और हथौड़ी से बरामद निशानों से बिल्कुल मेल नहीं खाएंगे—सोचने वाली बात ये है कि ऐसा क्योंकर होगा—इतने विश्वासपूर्वक यह बात उसने किस आधार पर कही, जबकि दोनों स्थानों पर फिंगर प्रिन्ट्स उसी के हैं।"
"मुमकिन है कि इंस्पेक्टर को फिंगर प्रिन्ट्स देते वक्त उसने प्लास्टिक सर्जरी वाली नकली उंगलियों का इस्तेमाल किया हो?"
"निश्चय ही उसने ऐसा किया है।" विमल बोला— "और जब ऐसा किया है तो जाहिर है कि वह हर कदम सोच-समझकर किसी साजिश के तहत उठा रहा है।"
विनीता भी सहमत हुए बिना न रह सकी।
कुछ सोचती-सी नसीम ने कहा— "मेरे दिमाग में एक ख्याल आ रहा है।"
"क्या?" विमल ने पूछा।
"मान लो किसी सोर्स से सुरेश को यह पता लग गया हो कि म्हात्रे जानकीनाथ के मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहा है और उसने जो कील-हथौड़ी बरामद की हैं, वे वही हैं जिससे एक रोज विनीता ने उससे कील ठोकने में मदद ली थी, तो क्या उसके दिमाग में तुरन्त यह बात नहीं आ गई कि कील-हथौड़ी पर से उसी के फिंगर प्रिन्ट्स बरामद होने जा रहे हैं, और क्या इसी समझ के तहत उसने प्लास्टिक फिंगर प्रिन्ट्स का इस्तेमाल नहीं किया होगा?"
"हो सकता है।" विमल के मुंह से निकला।
"यह केवल एक सम्भावना है जो सही भी निकल सकती है और गलत भी—यदि यह सम्भावना सही है तो जाहिर है कि उसे पक्के तौर पर यह पता लग गया होगा कि उसकी बीवी उसे हत्या के जुर्म में फंसाने की कोशिश करने वाले षड्यंत्रकारियों से मिली हुई है।"
विनीता का चेहरा धुंआ-धुंआ।
नसीम कहती चली गई—"इसका मतलब ये हुआ कि षड्यंत्रकारी के रूप में वह मुझे भी जान गया है, बाकी रह जाता है—विमल—।"
विमल के शुष्क हलक से डरी हुई आवाज निकली—"यदि हम इसी तरह बेवकूफियां करते रहे तो एक दिन वह मेरे बारे में जान जाएगा।"
जवाब में कोई कुछ नहीं बोला।
सन्नाटा छा गया वहां।
इतना गहरा कि अपने ही नहीं बल्कि एक-दूसरे के धड़कते दिल की आवाज वे स्पष्ट सुन सकते थे—ये दिल आतंकित होकर धड़क रहे थे, चेहरे ही बता रहे थे कि उक्त विचारों ने उनके भीतर हड़कम्प मचा दिया है।
राहत नसीम ने पहुंचाई, बोली— "मैंने सिर्फ एक सम्भावना कही है, अत: जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि सम्भावना सही है तब तक हममें से किसी को नर्वस नहीं होना चाहिए।"
"मगर गौर तो किया जाना चाहिए कि अगर ये सम्भावना सही हुई तो हमारा अगला कदम क्या होगा?" विनीता ने कहा।
"उस हालत में सुरेश का मर्डर कर देने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं रहेगा।"
"म.....मर्डर!" विनीता का हलक सूख गया।
"हां, इस बात पर याद आया।" विमल ने कहा— "कोई और है जो सुरेश के मर्डर की कोशिश कर रहा है, उसने मर्सडीज के ब्रेक फेल किए—ड्राइवर बेचारा तो मर ही गया—सुरेश तब भी बच गया तो एक सफेद एम्बेसडर ने उसे कुचलने की कोशिश की—सवाल उठता है कि सफेद एम्बेसडर किसकी थी, कौन है जो सुरेश का मर्डर करना चाहता है?"
दोनों चुप।
जवाब हो तो बोलें भी।
"यह एक और सवाल है जिसका हमें जवाब तलाश करना है।" विमल ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा— "मेरे और विनीता के अलावा ऐसा कौन है जिसको सुरेश की मौत से कुछ फायदा हो सकता है?"
"किसी की हत्या करने की वजह केवल फायदा ही नहीं होता।" नसीम ने कहा— "दूसरी कई वजहें हो सकती हैं।"
"मसलन?"
"कोई किसी से बेइन्तहा नफरत या ईर्ष्या करता हो।"
"अगर वह कोशिश मिक्की की मौत से पहले हुई होती तो इस वक्त मैं फौरन कहती कि ऐसा एक आदमी मिक्की है।" विनीता ने कहा— "वह सुरेश से इतनी ईर्ष्या करता था कि मर्डर तक की बात सोच सकता था।"
"इसके अलावा कोई अन्य ऐसा है, जिस पर तुम्हें शक हो?"
"नहीं।"
"मगर ऐसी कोशिश हुई है, अतः जाहिर है कि कोई सुरेश की हत्या का तलबगार है, वह कौन है और सुरेश की हत्या क्यों करना चाहता है—यह पता लगाना भी उतना ही जरूरी है जितना सुरेश की स्वीकारोक्ति के बारे में पता लगाना।"
"मामला बहुत उलझ गया है नसीम।" विमल ने बहुत थके स्वर में कहा— "जब हमने सुरेश को फंसाने की स्कीम बनाई थी, तब किस्सा बिल्कुल सीधा-सादा और साफ था, मगर अब तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मामला आखिर है क्या?"
विनीता कह उठी—"मुझे लगता है कि हमने नसीम की बातों में आकर गलती की।"
"क्या मतलब?" नसीम गुर्राई।
"जानकीनाथ की हत्या तक का मामला ठीक-ठाक निपट गया था, तुम्हारी ही सलाह पर हमने सुरेश को फंसाने के लिए पुलिस को पत्र लिखकर इस दबे-दबाए मामले को पुनः उखड़वाया और आज हम मुसीबत में फंस गए हैं।"
"हां, दूध पीते बच्चे हो तुम लोग तो कि जो मैंने कहा, तुमने मान लिया।" नसीम बिगड़ गई—"अपने पति का मर्डर करके उसकी दौलत पर अपने यार के साथ रंगरेलियां मनाने का सपना तो तुमने देखा ही नहीं था।"
"यह सपना तुमने देखा, मैंने तो उसे पूरा करने का रास्ता दिखाया था।"
"जैसे उसमें तुम्हारा अपना कोई लालच ही नहीं था।"
नसीम गुर्राई—"मैंने कभी नहीं कहा कि मैं बिना किसी लालच के कभी कोई काम करती हूं—सुरेश को फंसाने के लिए वादामाफ गवाह के रूप में ही सही मगर मैंने खुद को पुलिस के सामने हत्यारिन के रूप में प्रस्तुत करने का फैसला किया तो क्या इसकी कोई कीमत भी न लेती, दस लाख इस काम के लिए ज्य़ादा नहीं थे।"
विनीता के कुछ कहने से पहले ही हस्तक्षेप करते हुए विमल ने कहा— "इन बेकार के मुद्दों पर हमें आपस में लड़ने की जगह आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए।"
कुछ देर खामोशी रही। फिर नसीम ने कहा— "मेरे ख्याल से जब तक सुरेश की स्वीकारोक्ति की सही वजह पता नहीं लग जाती, तब तक हमें वह नाटक जारी रखना चाहिए, जो सुरेश के साथ चल रहा है।"
विमल बोला— "इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है।"
¶¶
अगले दिन।
शाम के वक्त।
ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी नसीम बानो मुजरे के लिए खुद को सजाने-संवारने में व्यस्त थी कि एक साजिन्दे ने आकर सूचना दी- "रहटू आया है मोहतरमा।"
"रहटू......रहटू?" वह हल्के से चौंकी।
"जी।"
"क्या तुम चांदनी चौक वाले रहटू की बात कर रहे हो.....वह गुट्टा?"
"जी हां।"
बुरा-सा मुंह बनाकर नसीम ने कहा— "फक्कड़ आदमियों के लिए मेरे पास टाइम नहीं है, तुमसे कह रखा है कि ऐसे लीचड़ लोगों को बगैर पूछे दरवाजे से टरका दिया करो।"
"मैंने कोशिश की थी मगर टला नहीं—कहता है कि बहुत जरूरी बात करनी है। आपसे मिलकर ही जाऊंगा।"
"हुंह.....कह दो हमारी तबीयत नासाज है, फिर कभी आए।"
"तुम भूल गईं नसीम बानो कि रहटू जहां जिस लिए जाता है, वहां से अपना काम किए बगैर लौटता नहीं है।" इन शब्दों के साथ
अत्यन्त नाटा रहटू कमरे के दरवाजे पर नजर आया, कुटिल मुस्कराहट के साथ वह कह रहा था—"मुझे सामने देखकर अच्छे-अच्छों की नासाज तबियत दुरुस्त हो जाती है।"
"अरे रहटू, तुम.....आओ.....आओ.....बैठो।" नसीम बानो ने गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसका स्वागत करते हुए कहा—"बहुत दिनों बाद हमारी याद आई?"
रहटू अजीब ढंग से मुस्कराया।
आगे बढ़ते हुए उसने साजिन्दे की तरफ देखकर चुटकी बजाई, यह उसके लिए कमरे से बाहर चले जाने का हुक्म था।
यहां रहटू के खौफ का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साजिन्दा नसीम बानो की इजाजत लिए बिना ही कमरे से बाहर चला गया—उसकी अनुपस्थिति में भले ही नसीम बानो ने चाहे जो कहा हो, मगर फिलहाल वह भी बटरिंग कर रही थी, बोली— "बैठो रहटू।"
"मैं खड़ा हुआ भी उतना ही ऊंचा हूं, जितनी तुम बैठकर हो।"
नसीम ही-ही करके हंसने लगी।
उस पर ध्यान देने के स्थान पर रहटू ने कमरे का दरवाजा बन्द किया और उस वक्त सांकल लगा रहा था, जब नसीम ने पूछा—"ये क्या कर रहे हो, रहटू?"
"क्यों?" वह पलटकर बोला— "क्या मैं ऐसा कुछ कर रहा हूं जो यहां कोई नहीं करता?"
"न.....नहीं, ये बात नहीं है।"
"फिर क्यों कुंवारी कन्या की तरह मरी जा रही हो, दरवाजा बन्द कर लेना यहां कोई नई बात तो नहीं है—माना कि तुम्हें दरवाजा खुला रखने में भी कोई शर्म नहीं आती होगी, मगर यहां आने वालों को कम-से-कम इतनी शर्म तो होती है।"
"तुम गलत समझ रहे हो रहटू।" नसीम गिड़गिड़ा-सी उठी—"दरअसल तुम जानते हो....यह टाइम मुजरे का है।"
रहटू ने सपाट स्वर में कहा— "आज तुम मुजरा नहीं कर सकोगी।"
"क.....क्यों?" वह चिहुंक उठी।
"सबसे पहली बात ये कि दरवाजा मैंने उसके लिए बन्द नहीं किया है जिस लिए तुम समझ रही हो।" निरन्तर उसकी तरफ बढ़ रहे रहटू ने कहा— "दरअसल मैं तुमसे कुछ ऐसी बातें करने आया हूं, जिन्हें किसी अन्य ने सुन लिया तो शायद तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं होगा और वे बातें ऐसी भी हैं कि सुनने के बाद तुम्हारा मूड इतना उखड़ जाए कि आज के बाद मुजरा भी न कर सको।"
"ऐसी क्या बात है?"
"मैं सुरेश के बारे में बात करने आया हूं।"
"स.....सुरेश।" नसीम बानो उछल पड़ी—"क.....कौन सुरेश?"
"करोड़पति सेठ जानकीनाथ का लड़का सुरेश, मेरे मरहूम दोस्त मिक्की का भाई सुरेश, बल्कि यह कहूं तो ज्यादा उचित होगा कि मिक्की का हत्यारा सुरेश।"
"म.....मगर मेरा उस सुरेश से क्या संबंध?"
"अच्छा!" रहटू ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा— "उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं है?"
धाड़-धाड़ करते दिल पर काबू पाने का प्रयास करती नसीम ने कहा— "सेठ जानकीनाथ तो मेरे पास आता था, एक दिन हम बड़कल लेक में नौका विहार कर रहे थे कि नाव डूबने से उसकी मृत्यु हो गई—उस दौरान एक-दो बार सुरेश से मुलाकात हुई थी, इससे ज्यादा मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं है।"
उसे घूरते हुए रहटू ने अजीब स्वर में कहा— "सच?"
"स...सच।" नसीम बानो बड़ी मुश्किल से कह पाई।
“ ये है कि तुम अपने रसभरी गुलाबी होंठों से कुछ और बता रही हो और तुम्हारा ये हसीन चेहरा, नशीली आंखें और सुर्ख गाल कुछ और ही कह रहे हैं।"
"क.....क्या मतलब?"
"शीशे के सामने बैठी हो, जरा पलटकर गौर से अपना अक्स देखो—अपने हसीन मुखड़े पर तुम्हें हवाइयां उड़ती नजर आएंगी, आंखें शेर की मांद में फंसी हिरनी-की-सी लग रही हैं—और ये सब लक्षण इस बात के गवाह हैं कि मुझसे सरासर झूठ बोलते वक्त तुम बेहद डरी हुई हो।"
"न.....नहीं तो।" वह कुछ और ज्यादा बौखला गई।
"खैर.....न सही, थोड़ी देर के लिए उसी को सच मान लेता हूं—जो तुम होंठों से कह रही हो।" रहटू अपने एक-एक शब्द पर इतना जोर डालता हुआ कह रहा था कि नसीम के होश उड़े जा रहे थे—"यह तो मानती हो कि सेठ जानकीनाथ के लड़के सुरेश से तुम अपरिचित नहीं हो?"
"हां।" नसीम बानो का हलक सूख गया था।
"मुझे उसका मर्डर करना है।"
"क्या!" नसीम अन्दर तक हिल उठी।
"हां।"
नसीम बानो हक्की-बक्की रह गई।
बोले भी तो क्या?
जबकि रहटू ने पुनः कहा— "तुमने पूछा नहीं, पूछो.....क्यों?"
"क.....क्यों?" उसके मुंह से मानो जबरदस्ती निकला।
"क्योंकि वह मेरे यार का हत्यारा है, मिक्की की मौत का जिम्मेदार वही है—अगर उस कमीने ने मिक्की को दस हजार रुपये दे दिए होते तो मेरे यार ने आत्महत्या न की होती....दस हजार रुपये लोग उसके हाथ के मैल के दे सकते हैं।"
"म.....मगर इन सब बातों का मुझसे क्या मतलब?"
रहटू ने साफ शब्दों में कहा— "इस मर्डर में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"
"म.....मेरी मदद?" नसीम बानो के छक्के छूटे जा रहे थे, काटो तो खून नहीं, इतनी ज्यादा नर्वस हो चुकी थी वह कि बड़ी मुश्किल से
कह पाई—"भला मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं?"
"क्यों, जब जानकीनाथ के मर्डर में तुम उस हरामजादे की मदद कर सकती हो तो उसके मर्डर में मेरी मदद क्यों नहीं कर सकतीं?"
नसीम बानो हतप्रभ।
जैसे लकवा मार गया हो उसे।
होश उड़ गए, मस्तिष्क में धमाके से हो रहे थे—नसों में दौड़ता समूचा खून जैसे पानी में तब्दील होता चला गया—सामने खड़े अत्यन्त नाटे रहटू को वह ऐसी नजरों से देख रही थी मानों वह उसे कुतुबमीनार से कई गुना ज्यादा लम्बा नजर आ रहा हो, उसके मुंह से बोल न फूटा, जबकि उस अत्यन्त नाटे शैतान ने कहा— "यह कहकर टाइम बर्बाद करने की चेष्टा मत करना नसीम बानो कि मैं गलत कह रहा हूं।"
"क.....क्या मतलब?" बुत बनी खड़ी नसीम बानो के मुंह से निकला।
"मैं जानता हूं कि वह दुर्घटना नहीं, बल्कि सुरेश और तुम्हारी साजिश थी, जानकीनाथ क्योंकि तैरना नहीं जानता था, अतः सुरेश ने पहले ही उस नाव की तली में छेद कर दिए थे जिसमें तेरह नवम्बर को तुम्हें नौका-विहार करना था।"
"य.....ये झूठ है, गलत है।" तंद्रा टूटते ही नसीम चीख पड़ी—"तुम्हें किसी ने गलत इन्फॉरमेशन दी है, रहटू, इस बात में रत्ती बराबर भी सच्चाई नहीं है।"
"तुम्हारी ये कोशिश बिल्कुल बेकार है।" रहटू ने आराम से कहा।
"क्यों?"
"क्योंकि सच्चाई मुझे ठीक उसी तरह पता है जिस तरह तुम्हें.....इस काम के सुरेश से तुमने पांच लाख तय किए थे, चार मिल चुके थे—एक अभी बाकी है—मनू और इला का नाम लेकर जो रुपये तुम उससे ऐंठ रही हो, वह इस हिसाब से अलग है।"
"क.....कहना क्या चाहते हो?"
"सुरेश भले ही तुम्हारे झांसे में आया हुआ हो मगर मैं नहीं आ सकता। जानता हूं कि दिल्ली के इस छोर से उस छोर तक मनू और इला नाम के बदमाश कहीं नहीं पाए जाते और यदि बाहर से बदमाश दिल्ली में कदम रखता है तो उसका नाम रहटू को सबसे पहले पता
लगता है—मनू और इला वास्तव में तुम्हारे दिमाग की कल्पनाओं से पैदा हुए ऐसे बदमाश हैं, जिनका नाम लेकर तुम अपने गुर्गों से खिंचवाए हुए एक फोटो के जरिए सुरेश से नम्बर दो की कमाई करती हो।"
नसीम बानो को सांप सूंघ गया।
एक बात भी तो ऐसी नहीं थी जो रहटू को पता न हो, मगर ये सब वे बातें थीं, जो पट्टी सुरेश को पढ़ाई जा रही थी—इस वास्तविकता की जानकारी रहटू को भी नहीं थी कि वास्तव में उसके साथी विनीता और विमल हैं, सुरेश नहीं।
मगर।
यह ख्याल नसीम बानो के होश उड़ाए दे रहा था कि इतनी सब जानकारियां थर्ड ग्रेड के बदमाश, इस रहटू को मिल कहां से और कैसे गईं? सो, अपनी इसी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए उसने पूछा—"य.....सब तुम्हें किससे पता चला?"
बड़ी ही गहरी मुस्कराहट के साथ रहटू ने कहा— "मतलब ये कि तुम स्वीकार कर रही हो कि जो कुछ मैं कह रहा हूं, वह सच है?"
नसीम सोच में पड़ गई।
तुरन्त नतीजे पर न पहुंच सकी कि स्वीकार करे या नहीं और उसकी दुविधा भांपकर रहटू ने पुनः कहा— "मैं फिर कहूंगा जानेमन कि इंकार करने से समय बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं होगा—मैं इतना सब और इतनी अच्छी तरह जानता हूं कि अन्ततः मेरे सामने तुम्हें घुटने टेकने ही पड़ेंगे—और फिर मैं कोई पुलिस वाला तो हूं नहीं, जो तुम्हारे 'हां' कहते ही हथकड़ियां डालकर घसीटता हुआ थाने ले जाऊंगा—मैं स्वयं भी एक मुजरिम हूं और यदि एक मुजरिम दूसरे को कुछ बता भी दे तो दूसरा मुजरिम अपनी भलाई के लिए उसे पचाना खूब जानता है।"
मजबूरी थी।
हथियार डाल देने में ही नसीम ने भलाई समझी। विवशता-भरी एक लम्बी—सांस लेने के बाद उसने कहा— "समझ लो कि मैं वह सब स्वीकार कर रही हूं, जो तुमने कहा।"
"गुड।" रहटू की आंखें चमक उठीं।
"अब यह बताओ कि तुम्हें ये सब जानकारियां कहां से मिलीं?"
पूरी योजना बनाकर आए रहटू ने बताया—"मिक्की की जलती चिता पर मैंने कसम खाई थी कि सुरेश से उसकी मौत का बदला हर हालत में लूंगा—तभी से मैं सुरेश के पीछे था, कल रात जब वह कोठी से निकला तो मैंने उसका पीछा किया और बस अड्डे पर एक थम्ब के पीछे छुपकर मैंने तुम्हारी एक-एक बात सुनी।"
"ओह!" नसीम के मुंह से निकला, फिर अचानक उसे कोई बात याद आई और उसने सवाल कर दिया—"क्या सुरेश की मर्सडीज के ब्रेक फेल करके और उसके बाद सफेद एम्बेसेडर से तुम्हीं ने उसके मर्डर की कोशिश की थी?"
"हां।" उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए रहटू ने झूठ बोला— "इतने इन्तजाम के बावजूद साला बच गया, मगर बचेगा कब तक.....मैं जब तक उस स्थान पर सुरेश के जिस्म के टुकड़े नहीं बिखेर दूंगा, जहां मिक्की की चिता जली थी—तब तक चैन से नहीं बैठूंगा।"
नसीम बानो चुप रही।
रहटू ने पुनः कहा— "कल बस अड्डे पर तुम लोगों की बातें सुनने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि सुरेश का मर्डर करने में तुम मेरी मदद कर सकती हो, खासतौर से उस स्थिति में जबकि मर्डर करने के बाद मैं पकड़ा भी नहीं जाना चाहता।"
"मगर मैं समझी नहीं कि तुम किस किस्म की मदद मांग रहे हो?"
"वैसी ही जैसी जानकीनाथ के मर्डर में सुरेश की की थी, जिस तरह तुम जानकीनाथ को कहीं भी ले जाने की सहूलियत की वजह से तेरह नवम्बर को बड़कल लेक ले गईं और उसी नाव में बैठीं जिसमें योजनानुसार सुरेश छेद कर चुका था, ठीक उसी तरह तुम्हारा पास यह सहूलियत है कि जहां चाहो सुरेश को ला सकती हो, बोलो.....तुम्हारे पास यह सहूलियत है न?"
नसीम को कहना पड़ा—"हां।"
"बस.....जब वह मेरी इच्छित जगह आ जाएगा तो मर्डर करने में क्या दिक्कत होगी?"
"अभी तुम कह रहे थे कि मर्डर करने के बाद पकड़े जाना नहीं चाहते।"
"करेक्ट?"
"कत्ल की कोई सॉलिड स्कीम सोची?"
"वह भी तुम ही सोचोगी।"
"म.....मैं?" वह हकला गई।
"क्यों.....क्या जानकीनाथ मर्डर की स्कीम तुम्हारे दिमाग की उपज नहीं थी?"
"बिल्कुल नहीं, स्कीम तो सुरेश की ही थी—मैंने तो सिर्फ उस पर अमल किया था।"
"फिर ठीक है।" रहटू ने कहा— "स्कीम बनाने का काम मेरा सही।"
"क्या अभी तक इस बारे में तुमने कुछ नहीं सोचा है?"
"मैं सीढ़ी-दर-सीढ़ी सोचना पसन्द करता हूं, जानेमन—यहां आने से पहले सिर्फ यह सोचता था कि तुम्हें मर्डर के लिए किस तरह तैयार
करना है—यह काम हो चुका है, अब एकाध दिन में मर्डर की स्कीम भी सोच लूंगा।"
"ठीक है।"
"ओ. के.।" कहकर रहटू खड़ा होता हुआ बोला— "अब स्कीम सोचने के बाद ही तुमसे मिलूंगा और याद रखना, सुरेश से तुम्हारा सौदा भले ही पांच लाख में हुआ हो, मगर मैं पांच टके भी देने वाला नहीं हूं।"
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