“वह फियेट कार देख रहे हैं आप ?" - आत्माराम ने फुटपाथ पर चढा कर खड़ी की हुई फियेठ की ओर संकेत किया ।


"हां ।" - प्रमोद बोला ।


"जिस वक्त आप यहां पहुंचे थे, उस वक्त भी यह कार यहीं खड़ी थी ?"


"हां ।”


"क्या आपको यह सूझा था कि शायद वह जीवन गुप्ता की कार हो ?"


"मैंने इस विषय में कुछ नहीं सोचा था ।"


"यह कार उसी की है । "


"आपने मालूम किया है ?"


"हां"


प्रमोद चुप रहा ।


जीवन "इसका मतलब यह हुआ कि आपने वादे के अनुसार गुप्ता अपनी कार पर यहां पहुंचा था। जिस वक्त आप बिना मीटर देखे टैक्सी वाले को बीस का नोट दे रहे थे, उस वक्त वह भीतर आफिस में मरा पड़ा था ।”


"ऐसा ही लगता है।"


"आपने टैक्सी को घूमकर वापिस लौटते देखा था ?"


"नहीं।"


"नहीं ?"


"मैं सड़क पर खड़ा नहीं रहा था । मैं फौरन गोदाम के दरवाजे की ओर बढ़ गया था ।"


"बिना इस बात का खयाल किये कि इमारत में अन्धेरा था और जिस आदमी से आप मिलने आये थे वह कहीं दिखाई नहीं दे रहा था !"


"हां ।”


"क्या यह अजीब बात नहीं, प्रमोद साहब, कि आपने एक ऐसी इमारत में घुसने की कोशिश की जो अन्धेरी थी और जो..."


" मैंने यह नहीं कहा कि मैंने इमारत में घुसने की कोशिश की थी ।”


"लेकिन आप इमारत में घुसे तो थे न ?"


"हां ।”


"तो आप यह कहना चाहते हैं कि आप इमारत में घुसने की कोशिश किये बिना भीतर घुस गए थे ? हा हा हा । यह कैसे हो सकता है, साहब ?"


“इन्स्पेक्टर साहब, ज्यादा अच्छा हो अगर आप मुझे अपने ढंग से बात कह लेने की इजाजत दे दें । मैं आपको एक ही बार में सब कुछ..."


"सवाल-जवाब का ही सिलसिला चलने दीजिए, साहब । मुझे यही तरीका पसन्द है ।”


प्रमोद चुप हो गया ।


"हां तो कहां थे हम ? हां आप गोदाम में प्रवेश द्वार की ओर बढ़ रहे थे। लेकिन आपका भीतर घुसने का इरादा नहीं था । ठीक है ?"


"सड़क पर खड़े रहने के स्थान पर गोदाम के दरवाजे पर खड़ा होकर गुप्ता का इन्तजार करना मुझे ज्यादा मुनासिब लगा था ।”


“हां ।" - आत्माराम प्रशंसात्मक स्वर में बोला - " अब समझ में आई न बात । मैं भी तो कहूं यह कैसे हो सकता है कि कोई इमारत में घुसने की कोशिश किए बिना भीतर घुस जाए । आपने सोचा होगा कि सड़क पर खड़ा होने से क्या फायदा ? क्यों न आप गोदाम के दरवाजे के आगे की सीढियों पर जाकर बैठ जाएं ?"


“हां !”


"तो फिर आप दरवाजे पर पहुंचे और जाकर सीढियों पर बैठ गए !"


"नहीं।"


"नहीं ? लेकिन अभी तो आपने कहा था कि... ओह आई सी । यानी कि दरवाजे पर पहुंचने के बाद आपका इरादा बदल गया ? आपको कोई ऐसी असाधारण बात दिखाई दी जिसकी वजह से आपने सीढियों पर बैठकर इन्तजार करने का खयाल छोड़ दिया ?"


" जी हां । "


"क्या देखा आपने ?"


"दरवाजे पर पहुंचकर मैंने देखा कि दरवाजा थोड़ा सा खुला हुआ था ।"


"वैरी गुड । देखा ? सवाल-जवाब के तरीके से हमें कितनी दिलचस्प बातें मालूम हो रही हैं । आप एक ही बार में अपना बयान दे डालते तो कितनी ही बातें हमें बताना भूल जाते आप ।"


प्रमोद चुप रहा ।


"फिर आप खुले दरवाजे से भीतर दाखिल हो गए । "


"नहीं। पहले मैंने आवाज दी ।"


"बड़ा समझदारी का काम किया आपने। कैसे आवाज दी आपने ?"


"मैंने गुप्ता का नाम लेकर पुकारा । मुझे कोई जवाब नहीं मिला । फिर मैं भीतर दाखिल हो गया।”


“अन्धेरे में हो ?"


"मेरे पास टार्च थी। मैंने उसे जला लिया था । "


"आप तो बहुत तैयार होकर पहुंचे यहां । जैसे आपको पहले ही मालूम था कि आगे अन्धेरा मिलेगा ।”


“टार्च साथ रखना मेरी आदत में शुमार है । जब मैं चीन में था तो कभी टार्च के बिना घर से बाहर नहीं निकलता था।”


"ओहो । मैं तो भूल ही गया था कि आप चील में रहकर आए हुए हैं। हमारे यहां तो जब कोई आदमी किसी से मिलने जाता है तो साथ टार्च लेकर जाना जरूरी नहीं समझता लेकिन चीन के रीति-रिवाज और जरूरतें और हैं और आप एक लम्बा अरसा चीन में रहे हैं। ठीक है, ठीक है । मैं माफी चाहता हूं कि मैंने आपको टोका । तो फिर आपने टार्च जलाई और उसकी रोशनी में आफिस में दाखिल हो गए ?"


"नहीं । मैंने टार्च के प्रकाश में बिजली का स्विच तलाश किया । स्विच दरवाजे के पास ही था। मैंने उसे ऑन कर दिया, प्रत्यक्षत: वह मास्टर स्विच था जिससे गोदाम की सारी बत्तियां जल जाती थीं ।”


" आई सी । वैसे आप यहां अकेले ही आए थे न, मिस्टर प्रमोद ?"


“जाहिर है । अगर टैक्सी में मेरे साथ कोई आया होता तो मैंने आपको पहले ही बता दिया होता।"


"बिल्कुल । बिल्कुल । लेकिन क्या करू साहब, मेरी नौकरी ही ऐसी है । तफ्तीश की रिपोर्ट मुझे अपने आला अफसरों को भेजनी पड़ती है। इसलिए मुझे कई बार बड़े आबवियस सवाल भी पूछने पड़ते हैं क्योंकि मैं यह नहीं चाहता कि बाद में मेरा कोई अफसर मुझे टोक दे कि फलां सवाल तो मैंने गवाह से पूछा ही नहीं । हां तो फिर आपने बिजली का स्विच ऑन किया और सारा गोदाम आपकी आंखों के सामने रोशन हो गया । ठीक ?”


"ठीक ।"


"उस समय दफ्तर का दरवाजा किस स्थिति में था ?"


"थोड़ा सा खुला था ।”


"फिर आप भीतर दाखिल हो गए ?"


"नहीं। पहले मैंने फिर गुप्ता को आवाज दी। जवाब नहीं मिला तो मैं भीतर दाखिल हुआ।"


“लाश आपको फौरन दिखाई दे गई थी ?"


"पहले तो मैंने कमरे में ही चारों ओर निगाह डाली थी । उसके बाद ही मुझे लाश दिखाई दी थी ।"


"लाश देखकर आपने जो पहली बात कही, वह क्या थी ?" 


"मैंने कोई बात नहीं कही । "


"कुछ भी नहीं कहा आपने ?"


"नहीं।"


नहीं ।" "क्या आप लाश को देखकर चौंके नहीं । बौखलाए


"चौंका | बौखलाया । "


"फिर भी आपने कुछ नहीं कहा ।”


"मैं किसको कुछ कहता, इन्स्पेक्टर साहब ? "


"ओहो ।" - आत्माराम ने अपने माथे पर हाथ मारा - "मैं तो भूल ही गया था । आपने तो कहा था कि आप वहां अकेले थे । क्या आपके साथ वाकई कोई नहीं था ?"


"कौन हो सकता था मेरे साथ ?"


"कोई महिला ।”


"इन्स्पेक्टर साहब, मैं पहले ही कह चुका हूं कि यहां मेरे साथ कोई नहीं आया था ।”


" 'ओह हां, आपने कहा था। कितनी खराब हो गई है मेरी याददाश्त । ऐसी बुरी याददाश्त के साथ मैं कर चुका पुलिस की नौकरी । फिर लाश देखकर आपने क्या किया ?"


"मैंने पुलिस हैडक्वार्टर फोन कर दिया ।”


"गुड, गुड | कमरे में मौजूद चारपाई, कम्बल, स्टोव बर्तन वगैरह पर भी आपकी निगाह पड़ी होगी । आखिर जब आपने दीवार में धंसी गोली जैसी छोटी-सी चीज खोज निकाली थी तो ये चीजें आपने जरूर देखी होंगी ।"


"गोली मैंने खोज नहीं निकाली थी, वह मुझे इत्तफाक से दिख गई थी क्योंकि वह टेलीफोन के पास ही दीवार में धंसी हुई थी ।"


"आप ठीक फरमा रहे हैं । हां तो मैं चारपाई वगैरह के बारे में कह रहा था । आपने देखी थीं वे चीजें ?"


"देखी थीं ।”


" उन चीजों को देखकर आपने क्या नतीजा निकाला, प्रमोद साहब ?"


“यही कि वहां कोई रहता रहा था ।"


“कोई ! कोई अन्दाजा कि वह कोई कौन हो सकता है?"


"मुझे कोई अन्दाजा नहीं । "


“मैं आपको अपना अन्दाजा बताऊं ?"


"शौक से बताइए । अपना अन्दाजा बताने से कौन रोक सकता है आपको ?"


"ही ही ही । आप तो बुरा मान गए मालूम होते हैं । " प्रमोद चुप रहा ।


"मेरा अन्दाजा है कि इस गोदाम में फरार मुजरिम जोगेन्द्रपाल रह रहा था । सावंत के कत्ल के समय जरूर उसके हाथ इस गोदाम की चाबी लग गई होगी जो उसके अब काम आई होगी । आखिर सावंत उस कम्पनी का पार्टनर था जिसका कि यह गोदाम है । इसकी चाबी सावंत के पास होना स्वाभाविक था । क्यों ?"


"मुझे ऐसी कोई बात नहीं दिखाई देती जो इस तथ्य की पुष्टि करती हो कि यहां जोगेन्द्र रह रहा था । और फिर आपको यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि मैं जोगेन्द्र को जानता तक नहीं । मैंने कभी उसकी सूरत नहीं देखी ।"


"अच्छा !"


“जी हां ।"


“कमाल है ! यह तो बड़ी नई बात बताई आपने । यह तो मैंने सोचा ही नहीं था । मैं तो...'


"इन्स्पेक्टर साहब, पहले ही बहुत रात हो चुकी है और मैं आज ही एक लम्बे सफर से थका मांदा राजनगर आया हूं । अगर आप मुझे जल्दी फारिग कर देने की दिशा में कोई कोशिश करें तो मैं आपका भारी अहसान मानूंगा ।"


"अरे हां, मैं तो भूल ही गया था । आप तो आराम करना चाहते होंगे । बस मैं चन्देक सवाल और पूछूंगा और फिर आप अपने फ्लैट में जाकर आराम फरमाइयेगा ।"


"मेहरबानी आपकी ।"


"लेकिन कितनी अजीब बात है कि आज ही आप स्वदेश लौटे हैं और आज ही आप कत्ल के इस केस में उलझ गए हैं... ओफ्फोह, मैं फिर भटक गया। हां तो, क्या आपको वाकई नहीं मालूम था कि जोगेन्द्र पाल यहां रह रहा था । कहीं आप यहां जीवन गुप्ता की जगह जोगेन्द्र पाल से मिलने तो नहीं आए थे ?”


"मैं पहले ही अर्ज कर चुका हूं कि मुझे जीवन गुप्ता ने फोन करके यहां पहुंचने को कहा था ।"


"और आप यहां पहुंच गए थे ?"


"हां ।”


"अकेले ?"


"हां ।”


“आप अपने साथ कोई ऐसी चीज तो नहीं लाए थे जो औरतों के इस्तेमाल में आने वाली हो ?"


"नहीं।"


एकाएक आत्माराम जीप से बाहर खड़े एक सिपाही की ओर घूमा और बोला- "यह बैग देना।"


सिपाही ने उसे एक लाल रंग का जनाना हैंडबैग थमा दिया ।


बैग पर निगाह पड़ते ही प्रमोद उसे पहचान गया । वह सुषमा का बैग था । वह बैग उसने सुषमा के पास थोड़ी ही देर पहले देखा था ।


- "यह हैंडबैग घटनास्थल से बरामद हुआ है ।” आत्माराम गम्भीर स्वर में बोला- "बैग में मौजूद ड्राइविंग लाइसेन्स पर सुषमा ओबेराय का नाम लिखा है । इसमें से सौ-सौ के नोटों में दस हजार रुपये भी बरामद हुए हैं । आप इस बारे में कुछ जानते हैं ?"


"नहीं।”


"यह बैग आप तो अपने साथ नहीं लाए थे न ?"


"सवाल ही नहीं पैदा होता ।”


“जी हां, जी हां, सवाल ही नहीं पैदा होता । आप यहां किस वक्त पहुंचे थे ?"


"आधी रात के करीब पहुंचा था । बारह बजे से चार या पांच मिनट पहले ।"


"आपको यहां कोई महिला दिखाई दी थी ?" 


"नहीं।"


"आप सुषमा ओबेराय को तो जानते हैं न ?”


“हां ।”


"खूब अच्छी तरह से ?"


"हां ।”


"उससे आपकी गहरी मित्रता है ?"


"हां ।”


"कहीं ऐसा तो नहीं आपको जीवन गुप्ता ने नहीं, सुषमा ओबेराय ने फोन किया हो ? वो यहां जोगेन्द्र के साथ मौजूद हो और उसने आपको यहां आने के लिए कहा हो।”


"मैं कम से कम दर्जन बार बता चुका हूं कि मुझे किसने फोन किया था । "


“जी हां, जी हां । आप बता चुके हैं लेकिन फिर भी मैं यह सवाल दोहरा कर पूछने की गुस्ताखी कर रहा हूं । क्योंकि मैं पूरा भरोसा कर लेना चाहता हूं कि कहीं कोई गलती नहीं हो रही है। हां तो टेलीफोन आपको गुप्ता ने किया था ?"


"हां ।”


"आप कभी मिले उससे ?"


"हां"


"कभी बात की ?"


“हां ।”


"आखिरी बार ऐसा इत्तफाक कब हुआ था ? मेरा मतलब है जीवन गुप्ता से मिलने का ! बात करने का !"


“आज शाम को ।"


“आज शाम को । अच्छा ! बड़ी बढिया बात बताई आपने । कैसे हुआ यह इत्तफाक ?"


"आज शाम मेरी जीवन गुप्ता और कम्पनी के सीताराम नरूला और राकेश टन्डन नामक दो अन्य पार्टनरों के साथ अप्वायन्टमेंट थी । टन्डन वहां नहीं आया था लेकिन बाकी दो से मैं मिला था ।”


“किस सन्दर्भ में ?"


“मुझे उनसे कोई धन्धे की बात करनी थी ।"


"मुलाकात कहां हुई थी ?"


"कम्पनी के दफ्तर में । सीताराम नरूला के कमरे में


"मीटिंग कितनी देर चली थी ?"


“यही कोई दस-पन्द्रह मिनट | "


“कमाल है ! शाम को आपकी जीवन गुप्ता से बात हुई और आधी रात को उसने फिर आपको फोन कर दिया। फोन किस वक्त आया था ?"


"यही कोई ग्यारह - सवा ग्यारह बजे ।"


"गुप्ता ने आपको यहां आने को कहा ?"


"हां ।”


" और आप फौरन यहां चले आए ?"


"फौरन नहीं। मैंने कपड़े वगैरह पहन कर तैयार होने में भी कुछ समय लगाया था।"


"जरूर लगाया होगा । मुमकिन है आप उस वक्त पाजामा पहन कर बैठे हुए हों । कोई पाजामा पहने हो तो उठकर किसी से मिलने नहीं चल देता है । आपने उसे कोई वक्त बताया था कि आप कब तक वहां पहुंच जायेंगे ?"


"उसे तो मैंने यही कहा था कि मैं फौरन आ रहा था ।”


"लेकिन वास्तव में आप वहां फौरन पहुंचे नहीं थे ?" "नहीं।"


“आपको अपने फ्लैट से निकलने के कुछ क्षण बाद ही एक चलती-फिरती टैक्सी मिल गई थी और उस पर सवार होकर आप बारह बजे के करीब यहां पहुंचे थे ?"


"हां ।”


एकाएक आत्माराम ने अपना हाथ बढाकर प्रमोद का हाथ थाम लिया और उसे ऊपर-नीचे झटके देता हुआ बोला "आपकी बहुत-बहुत मेहरबानी, प्रमोद साहब । बहुत सहयोग दिया आपने हमें । मैं आपका अब और समय नहीं लूंगा । इतनी रात गए आपको यहां से कोई सवारी तो मिलेगी । मैं कर्मचन्द से कहता हूं, वह आपको जीप पर आपके फ्लैट पर छोड़ आएगा ।" नहीं ।


"थैंक्यू ।"


आत्माराम जीप से उतर गया । वह ए एस आई से सम्बोधित हुआ - “कर्मचन्द, साहब को इनके फ्लैट पर ले जाओ।"


"जी, बहुत अच्छा ।”


'और यहां से रवाना होते वक्त अपनी घड़ी में वक्त भी देख लेना और जीप का स्पीडोमीटर भी देख लेना । वापिस आकर तुमको मुझे प्रमोद साहब के फ्लैट और इस गोदाम के बीच का फासला बताना है और यह बताना है कि साधारण रफ्तार से गाड़ी चलाकर यह फासला कितने समय में तय किया जा सकता है ! नमस्ते प्रमोद साहब । सहयोग का बहुत-बहुत शुक्रिया ।”


***

अगले दिन सुबह जब प्रमोद ने बाथरूम का दरवाजा खोलने की कोशिश की तो उसने उसे भीतर से बन्द पाया।


“यांग टो।" - प्रमोद ने आवाज लगाई ।


यांग टो किचन से भागता हुआ आया ।


“यस सावी ।" - वह बोला ।


“बाथरूम में कौन है ?"


"मिस्सी पेन्टर लेडी ।"


"कौन ?" - प्रमोद हैरानी से बोला ।


“मिस्सी पेन्टर लेडी | शुश... शुश..."


"सुषमा ?"


"यस, सावी ।"


"वह कब आई थी ?"


"रात को आपके जाने से थोड़ी देर बाद ।”


"और रात से वह यहीं है ?"


"यस, सावी ।"


“कमाल है !"


प्रमोद ने दरवाजा खटखटाया और आवाज दी - "सुषी उत्तर में तुरन्त सुषमा के बड़े बेसुरे अन्दाज में गाने की आवाज आई - "बहारो फूल बरसाओ मेरा खरगोश आया है, मेरा खरगोश आया है । "


प्रमोद वहां से हटा और एक अन्य बाथरूम में घुस गया । जब वह ब्रेकफास्ट टेबल पर वापिस लौटा तो सुषमा पहले ही वहां मौजूद थी । उसने प्रमोद का एक नाइट सूट पहना हुआ था जो उससे कम से कम छ: साइज बड़ा था ।


"हल्लो ।" - वह मधुर स्वर में बोली- "गुड मार्निंग ।”


"गुड मार्निंग।" - प्रमोद गम्भीर स्वर में बोला - "तुम कब आई यहां ?"


“पिछली रात को तुमने मुझे गोदाम से भगाया था तो मैंने सीधे यहीं आकर डेरा जमाया था ।”


"यहां आने की क्या जरूरत पड़ गई थी ?"


" और कहां जाती ?" - वह भोलेपन से बोली ।


प्रमोद चुप रहा । वह एक टोस्ट पर मक्खन लगाने लगा


“और फिर तुमने ऐसा कोई नोटिस तो मुझे कभी दिया ही नहीं था कि तुम्हारे फ्लैट पर मेरा आना मना था ।”


प्रमोद चुप रहा ।


“और फिर यह कोई मानने की बात है कि सारी रात मैं तुम्हारे फ्लैट पर रही और तुम्हें खबर ही नहीं हुई । "


"छोड़ो । अब जो पूछूं उसका जवाब दो ।” "अरे, जो मर्जी पूछो, बादशाहो ।”


"अब मजाक छोड़ कर बताओ कि असल में पिछली रात तुम यहां क्यों आई थीं ?"


"अपने हैण्डबैग की वजह से।" - सुषमा ने गम्भीरता से उत्तर दिया - "गोदाम से रवाना होने के बाद आधे रास्ते में आकर मुझे सूझा था कि हड़बड़ाहट में मेरा हैण्डबैग गोदाम में ही रह गया था । वापिस जाने से कोई लाभ नहीं था क्योंकि तब तक पुलिस वहां पहुंच चुकी होती । मैं यह सोचकर यहां चली आई कि शायद हैण्डबैग पर तुम्हारी निगाह पड़ गई हो और पुलिस के आने से पहले तुमने उसे कहीं छुपा दिया हो ।”


"मैंने तो उसे देखा तक नहीं था। मुझे तो वह इन्स्पेक्टर ने दिखाया था तो मुझे उसके बारे में मालूम हुआ था।"


"ओह !"


"बैग में दस हजार रुपये मौजूद थे। इतनी बड़ी रकम बैग में क्या कर रही थी ?"


"वह रकम मैंने बैक से निकालती थी। मैंने सोचा था शायद जोगेन्द्र को जरूरत पड़े ।"


"तुम्हारी कार कहां है ? "


“घबराओ नहीं । उसे मैं यहां से बहुत दूर खड़ी करके आई हूं । उसे कहीं दूर खड़ी करने के चक्कर में मुझे कोई डेढ मील पैदल चलना पड़ा था । "


"टैक्सी ले लेतीं ।”


“पैसे कहां थे किराए के ! पर्स तो गोदाम में रह गया था।"


“यांग टो दे देता ।”


“अरे, तो क्या हुआ ? थोड़ा पैदल चल लिया तो क्या मेरी टांगें टूट गई । "


"हूं।" - प्रमोद चाय की चुस्की लेता हुआ बोला ।


"प्रमोद, यांग टो कहता है कि मेरे यहां पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही कितने ही सादी वर्दी वाले पुलिस वाले यहां पहुंच गए थे । वे सारे इलाके में इस प्रकार फैल गए थे कि तुम्हारे फ्लैट की पूरी तरह निगरानी कर सकें ।"


"फ्लैट में तो नहीं आये थे वे ?"


“आए थे लेकिन मैं उन्हें फ्लैट में नहीं मिली थी । "


"कैसे ?”


"मैंने वही हंटर वाली जैसी पुरानी ट्रिक आजमा दी जो मैं पुलिस की निगाहों में आने से बचने के लिए एक बार पहले भी यहां आजमा चुकी हूं।"


" यानी कि तुम फिर बैडरूम की बाहरी दीवार के साथ-साथ पिछवाड़े में लगे पाइप को पकड़ कर चौथी मंजिल वाले फ्लैट में चढ गई !" - प्रमोद हैरानी से बोला ।


"नहीं ।" - वह इत्मीनान से बोली- "इस बार मैं पाइप के सहारे एक मंजिल नीचे उतर गई थी ।"


"सुषमा, तुम बहुत बुरी मौत मरोगी ।"


"यह कैसे हो सकता है ! हेरोइन या एल एस डी का नशा तो मैं करती नहीं । बस कभी कभार चरस का दम..."


"शटअप ।"


“यस सर ।" - सुषमा तत्पर स्वर में बोली ।


"पुलिस वाले अभी भी फ्लैट की निगरानी कर रहे हैं?"


“जरूर कर रहे होंगे । उनका जल्दी टलने का इरादा तो नहीं मालूम होता था ।”


"तो फिर अब यहां से निकलोगी कैसे ?"


"निकलने की जरूरत क्या है। ऐसे ही बड़ा मजा आ रहा है। एक कमरे में न सही एक फ्लैट में तो हम बन्द हैं ही बस चाबी खोने की कसर है । "


"ऊपर से होशियारी दिखा रही हो, लेकिन भीतर से भय के मारे दम निकला जा रहा होगा ।”


"बड़े उस्ताद हो, खरगोश, दूसरों के मन की बात जान लेते हो लेकिन मन मे तो और भी बेशुमार बातें हैं । उन्हें नहीं जान पाते तुम ।"


"मजाक मत करो।"


"यह मजाक नहीं है। इससे ज्यादा गम्भीर बात मैंने जिंदगी में कभी नहीं की।"


" तुम्हें फिर इश्क का बुखार तो नहीं चढने लगा ।”


"इश्क का बुखार उतरा ही कब था । "


प्रमोद चुप हो गया ।


 "एक बात बताओ । तुम्हारे पाजामा सूट में कैसी लग रही हूं मैं ?"


"बड़ी कमसिन, बड़ी हसीन । "


“तो फिर मुझसे कोई छेड़खानी करो ।”


"मुझे नहीं आते ये काम | "


"मैं सिखा देती हूं । कविता दीदी भी खुश हो जाएंगी क्योंकि फिर तुम उनके साथ भी..."


"सुषमा, विल यू प्लीज शट अप ।”


सुषमा ने फौरन होंठ भींच लिए और बड़े अजीब अन्दाज से प्रमोद को सैल्यूट मारा ।


प्रमोद बड़ी कठिनाई से अपनी हंसी रोक पाया ।


“अब क्या इरादा है ?" - प्रमोद ने पूछा ।