उर्मिलादेवी की तलाश में वे सभी विभिन्न दिशाओं में निकल पड़े, मगर टकराई रैना को—तब, जबकि वह बदवास-सी भागती दो पहाड़ों के बीच से गुजर रही थी, एकाएक उसकी नजर दाईं तरफ के पहाड़ पर पड़ी।

उर्मिलादेवी उस पर चढने का प्रयत्न कर रही थीं।
खुद से करीब बीस गज ऊपर मौजूद उर्मिलादेवी को रैना ने आवाज दी—उन्होंने एक बार, सिर्फ एक बार पलटकर रैना की तरफ देखा फिर पहले से कहीं ज्यादा तेजी के साथ चढ़ने का प्रयत्न करने लगीं।
"ठहरिए आंटी।" चिल्लाती हुई रैना ने उनके पीछे पहाड़ पर चढ़ना शुरू किया—"ये क्या कर रही हैं आप? रुक जाइए!"
मगर!
उर्मिलादेवी रुकीं नहीं।
जाने क्या जुनून सवार था उन पर!
लगातार चीखती हुई रैना उनके पीछे थी—यह शायद दोनों की उम्र का ही फर्क था कि उनके बीच की दूरी कम होने लगी, तब एक स्थान पर ठहरकर उर्मिलादेवी ने रैना की तरफ पलटकर देखा।
उफ!
उनके चेहरे पर आग-ही-आग थी।
ग्लानि की आग।
बोलीं—"तू लौट जा रैना बेटी, इस संसार में मेरे लिए अब बचा ही क्या है—इतनी जिल्लत के बाद कैसे अपने बच्चों से आंखें मिला सकूंगी—जाने क्या पाप किए थे मैंने, जाने कौन-से गुनाह का बदला लेना चाहते हैं वे?"
"ऐसा मत कहो आंटी, अंकल को तो जाने क्या हो गया है—यदि आप भी इस तरह छोड़कर चली गईं तो हम सबका क्या होगा?"
किंतु!
उर्मिलादेवी ने न कुछ कहा, न रुकीं।
पत्थरों का सहारा लेती हुई वे पुनः ऊपर चढ़ने लगीं—रैना ने दुगने जोश के साथ उनके पीछे लपकना चाहा, परंतु पहाड़ पर चढ़ना इतना दुष्कर था कि काफी प्रयत्न के बावजूद अपनी रफ्तार न बढ़ा सकीं।
अचानक वह पत्थर अपने स्थान से उखड़ा जिस पर इस वक्त उर्मिलादेवी के दोनों पैर थे और पहाड़ के नीचे लुढ़कता चला गया—उनके हाथ ऊपर वाले एक नुकीले पत्थर पर थे—उसे पकड़े वे चीखती रह गईं।
पैर हवा में झूल गए थे।
"स...संभलो आंटी, मैं आ रही हूं—उस पत्थर को पकड़े रखना। यदि छूट गया तो आप सीधी तीस गज नीचे जा गिरेंगी।" कहती हुई रैना लपकी।
जबकि उसके शब्दों का उर्मिलादेवी पर उल्टा ही असर हुआ। उन्हें लगा कि ये पत्थर छोड़ देना ही काफी है—पत्थरों से टकराती
जब तीस गज नीचे पहुंचेंगी तो वे किसी से नजरें मिलाने लायक न बचेंगी, यही तो वे चाहती थीं।
सो पत्थर छोड़ दिया।
"अ...आंटी।" भयंकर कल्पना से रैना चिंघाड़ उठी। भूसे के बोरे की तरह वे एक-दो पत्थरों से टकराती हुई नीचे फिसलीं, मगर इसे शायद उनका दुर्भाग्य और रैना का सौभाग्य ही कहा जाएगा कि नीचे तक लुढ़कती नहीं चली गईं।
बीच ही में दो बड़े पत्थरों के बीच बना 'गैप' रैना के नजदीक ही और इतना बड़ा था कि कम-से-कम चार व्यक्ति आराम से बैठ सकें—अगर उर्मिलादेवी वहां न फंस जातीं तो निश्चय ही अपने साथ रैना को लिए पच्चीस गज नीचे तक फिसलती चली जातीं, क्योंकि गैप ठीक रैना के ऊपर था।
उस हालत में शायद दोनों में से एक भी जीवित न बचती।
मगर तब हुआ ये कि उर्मिलादेवी के संभलने से पूर्व ही रैना उनके नजदीक पहुंची—उन्हें अपनी भुजाओं में कसकर रो पड़ने के लिए तैयार बोली—''प्लीज आंटी.....प्लीज.....ऐसा न कीजिए, हम सब यतीम हो जाएंगे।"
"य...ये कम्बख्त भाग्य भी तो मेरा दुश्मन हो गया है।" कहने के बाद उर्मिलादेवी फूट-फूटकर रो पड़ीं। उन्हें अपने आलिंगन में समेटकर रैना कह उठी—"आप तो हम सबकी मां हैं.......और मां अपने बच्चों के सामने चाहे जिस रूप में आए.......मां ही रहती है। सबकी सम्मानित......सबके लिए पूजनीय।"
उर्मिलादेवी की हिचकियां रुकने का नाम न ले रही थीं।
¶¶
आठ सशस्त्र सिपाहियों की टुकड़ी के साथ इंस्पेक्टर आरo श्रीवास्तव के गांव लौटकर आने तक रैना उर्मिलादेवी के साथ चौपाल पर पहुंच चुकी थी—विजय आदि भी वहां इकट्ठे हो गए—पुलिस की गिरफ्त में दो जीवित ड़ाकू पहले ही से थे।
इंस्पेक्टर ने आते ही कहा—"साले भागने में कामयाब हो गए।"
"कोई फिक्र नहीं इंस्पेक्टर!" अशरफ ने कहा—"हम सब आपके बहुत एहसानमंद हैं। आपने ऐसे समय पर मदद की जबकि अनर्थ होने जा रहा था।"
इंस्पेक्टर श्रीवास्तव ने एक-एक को ध्यानपूर्वक देखा, फिर मोन्टो से बोला—"इन लोगों में राजनगर के आईoजीo साहब कौन हैं?"
उसके इस सवाल पर सबकी नजरें मिलीं।
एक-दूसरे से पूछने के अंदाज में कि इंस्पेक्टर को क्या जवाब दिया जाए?
एकाएक ब्लैक ब्वॉय आगे बढ़कर बोला—"क्या आप उस डाकू को जानते हैं जो सफेद घोड़े पर सवार था?"
"नहीं—मेरे ख्याल से इस गिरोह की सरगना फूलो है—सफेद घोड़े गिरोह के सरदार का प्रतीक है—मैं खुद हैरान हूं कि वह कौन था और फूलो ने उसे सफेद घोड़े पर सवारी कैसे करने दी?"
"भले ही सारे सवालों का न सही, मगर हम आपके कुछ सवालों का जवाब दे सकते हैं इंस्पेक्टर!" विक्रम ने कहा—"मगर इसके लिए हमें कहीं आराम से बैठकर बातचीत करनी होगी।"
"क्या मतलब?"
"ये देखिए, हमारे एक साथी के जख्म से कितना खून बह रहा है।" ब्लैक ब्वॉय ने कहा—"बाकी बातों से पहले अगर इसे गांव के वैद्य का इलाज मिल जाए तो बेहतर होगा।"
"वह तो ठीक है।" इंस्पेक्टर ने कहा—"मगर मैं फिलहाल सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि आपमें से आई.जी. साहब कौन हैं? दरअसल मैं अभी तक सैल्यूट न देने की धृष्टता किए हुए हूं।"
"इस बारे में वहीं चलकर बात होगी।" विजय ने कहा। दोनों डाकुओं के हाथों में हथकड़ियां डाल दी गईं—उन्हें साथ लिए यह काफिला वैद्य के घर पहुंचा—उन्हें देखकर वैद्य ने रात जैसा व्यवहार बिल्कुल न किया, बल्कि आदरपूर्वक अंदर ले गया।
विजय को लगा कि यह रात की उसकी उदारता का फल है।
विकास के जख्म पर उसने लेप लगाया।
श्रीवास्तव बेचारा एक ही बात जानने के लिए व्यग्र था। सो, विकास की मरहम-पट्टी होते ही उसने पुनः सवाल ठोक दिया—इस बार जब वे सब पुनः प्रश्नवाचक दृष्टि से एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे तो उर्मिलादेवी ने स्वयं कहा—"तुम लोग इतने हिचक क्यों रहे हो? क्या उनकी करतूत छुपाने का प्रयत्न करके तुम भी उनके जुर्म में भागीदार बनना चाहते हो?”
सन्नाटा व्याप्त रहा।
"मैं समझा नहीं।" श्रीवास्तव ने कहा—"आखिर आईoजीo साहब को अपना परिचय देने में हिचक किस बात की है?"
"इनमें से कोई नहीं बोलेगा इंस्पेक्टर, मैं बताती हूं।" कहते वक्त उर्मिलादेवी का चेहरा पत्थर की तरह सख्त और खुरदरा नजर आ रहा था—"राजनगर के आई.जी. साहब मेरे पति हैं और वे वही थे, जिन्हें तुमने फूलवती के गिरोह में सफेद घोड़े पर सवार देखा था।"
"क...क्या?" श्रीवास्तव मारे हैरत के उछल पड़ा।
"वे मेरे पिता हैं, इनके ससुर, इनके अंकल और उसके नाना जिसके जख्म पर पट्टी बंधी है—मैं राजनगर में प्राइवेट जासूसी का धंधा करता हूं और बाकी लोग उस धंधे में मेरे सहायक हैं। मेरा नाम विजय है।"
"म...मगर आई.जी. साहब डाकुओं के साथ।"
श्रीवास्तव की खोपड़ी घूम गई—"उनके सरदार के रूप में—आप ही सब लोगों को उन्होंने बांध रखा था—पहेली कुछ समझ में नहीं आई मिस्टर विजय?"
"जिस पहेली ने हमारे दिमाग का कचूमर निकाला हुआ है, वह भला दस-पांच मिनट में ही तुम्हारी समझ में कैसे आ सकती है इंस्पेक्टर?"
"क्या मतलब?"
"संक्षेप में यूं समझो कि किसी माध्यम से हमें यह पता लगा कि गुमटी नामक गांव में हमारे आई.जी. पिता की अवपूजा होती है, पुतला...।"
"कहीं आप ठाकुर निर्भयसिंह की बात तो नहीं कर रहे हैं?"
"करेक्ट—मगर तुम इतनी जल्दी कैसे पहुंच गए?"
"मैं पिछले दो साल से डिक्की थाने पर हूं, इसलिए जानता हूं कि जिस व्यक्ति को गुमटी वाले 'रावण' कहते हैं, उसका नाम ठाकुर निर्भयसिंह है, मगर इसकी तो मैंने कल्पना भी न की थी कि वे हमारे ही विभाग के एक आई.जी. होंगे।"
"तब तो तुम यह भी जानते होंगे कि ये लोग ठाकुर निर्भयसिंह को रावण क्यों मानते और कहते हैं?"
"हां!"
"बस—ये समझ लो कि वह सब हमें पता लगा, तब हमने राजनगर पहुंचकर इस बारे में अपने पिता से बात की—उन्होंने अनभिज्ञता प्रकट की—सच्चाई जानने का बहाना करके वे हम सबको यहां ले आए मगर रात को गायब हो गए—गांव वालों ने उन्हें पहचान लिया था और चूंकि इन लोगों की नजरों में हम उनके साथी थे—सो, ये लोग हमारी जान के भी ग्राहक बन गए—सुबह होते ही फूलवती गिरोह के मुखिया बनकर कुछ इतनी ताकत जुटाकर प्रकट हुए कि जो गांव वाले रात को उन्हें मारने के लिए पगलाए फिर रहे थे, वे भीगी बिल्ली बन गए—हमें इसलिए मार डालना चाहते हैं, क्य़ोंकि हमने उनकी जिंदगी का ये काला अध्याय जान लिया है। वे खुद स्वीकार कर चुके हैं कि गुमटी वाले उनके बारे में जो कुछ कहते हैं, वह सब सच है।"
इंस्पेक्टर श्रीवास्तव की आंखें हैरत से फटी रह गईं।
बोला—"अजीब रहस्यमय, भयानक और अविश्वसनीय कहानी सुना रहे हैं आप। एक ही रात में भला फूलो ने निर्भयसिंह को अपना सरदार कैसे मान लिया?"
"यह सवाल हमारे लिए भी हैरतअंगेज है। मगर इसका जवाब फूलो के गिरोह के ये दो डाकू दे सकते हैं, इन्हें जरूर पता होगा कि अड्डे पर हमारे बापूजान और डाकू रानी फूलवती के बीच ऐसी क्या बातें हुईं जो रातोंरात उसने बापूजान को अपने गिरोह का सरगना बना दिया?"
"क्यों बे?" इंस्पेक्टर ने कड़कदार पुलिसिया आवाज में उनमें से एक से पूछा—"रातोंरात ठाकुर निर्भयसिंह तुम्हारे सरदार कैसे बन गए?"
"हमें नहीं मालूम।" उनमें से एक बोला।
"क्या मतलब?"
"हम लोग खुद, गिरोह का हर सदस्य यह सोचकर हैरान था कि आखिर फूलो एक अजनबी को इतना महत्व क्यों दे रही थी—उस वक्त रात के करीब तीन बजे होंगे, जब ठाकुर हमारे अड्डे पर पहुंचा—सबसे पहला आश्चर्य तो हम लोगों को इसी बात पर हुआ, क्योंकि अड्डे का रास्ता इतनी भूल-भुलैया वाला है कि हम लोग खुद धोखा खा जाते हैं—वहां पहुंचते ही ठाकुर फूलो से मिला—अकेले में जाने इनकी क्या बात हुई कि करीब एक घंटे बाद फूलों ने सभी को इकट्ठा करके ऐलान कर दिया कि आज से वे ही इस गिरोह के मुखिया हैं।"
विजय ने कहा—"हम अक्षरशः फूलो का वह ऐलान सुनना चाहते हैं।"
"उसने कहा था।" डाकू ने बताया—"वे जो कुछ ही देर पहले हमारे अड्डे पर आए हैं इनका नाम निर्भयसिंह है—ठाकुर निर्भयसिंह—ठाकुर सुनकर चौंको मत, क्योंकि ठाकुर हम मल्लाहों के दुश्मन हैं। मगर ये सिर्फ जन्म और नाम से ठाकुर हैं, असल में ये ठाकुरों के हमसे भी बड़े दुश्मन हैं—आज से ये ही हमारे गिरोह की अगवानी करेंगे, ये ही हम सबके सरदार हैं।"
"क्या इन शब्दों पर किसी डाकू ने आपत्ति नहीं की?"
"नहीं—हमारे लिए फूलो की सबकुछ है, गिरोह का एक-एक डाकू उसके हुक्म का गुलाम है, अतः आपत्ति का कोई सवाल ही नहीं उठता था—हां, ठाकुर के इस तरह सरदार बन जाने पर सबको हैरत जरूर थी—ऐलान के बाद काफी देर तक हम लोग इस बारे में आपस में बातें जरूर करते रहे, मगर अभी किसी नतीजे पर न पहुंचे थे कि गुमटी पर धावा बोलने और नए सरदार के कुछ खास दुश्मनों का कत्ल करने का हुक्म मिला—दिन अभी ठीक से निकला भी नहीं था कि गुमटी की ओर रवाना हो गए।"
विजय ने पूछा—"क्या तुममें से पहले कभी किसी ने ठाकुर को फूलो से मिलते-जुलते नहीं देखा था?"
"नहीं।"
"तुम कितने दिनों से फूलो के साथ हो?"
"मैं चार साल से और 'ये' पिछले बरस ही गिरोह में शामिल हुआ है।"
"अजीब बात है।" विजय बड़बड़ाया—"रात जब बापूजान जा रहे थे और हमने रोकने की कोशिश की, तब उन्होंने साफ-साफ कहा था कि मदद हासिल करने फूलवती के अड्डे पर जा रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि उनके और फूलवती के बीच पहले ही से कोई सांठ-गांठ थी, जबकि उसका चार साल पुराना साथी कह रहा है कि उसने कल रात से पहले बापूजान की सूरत तक नहीं देखी।"
"आप क्या बड़बड़ा रहे हैं, मिस्टर विजय?"
"आं!" विजय चौंका—"क...कुछ नहीं—दरअसल बातों के बीच में हमें बड़बड़ाने की आदत है—हां, तो प्यारे श्रीवास्तव, आया कुछ समझ में?
"ज...जी—मेरी तो कुछ समझ में नहीं आया।"
"हमारी समझदारी में भी कोई चूहा नहीं फंस रहा है।" विजय ने कहा—"रातो-रात बापूजान एक अजीब पहेली में बदल गए हैं, समझ में न आने वाली पहेली।"
सब चुप रहे। बोले तो कोई तब जब किसी को समझ में कुछ आ रहा हो। काफी देर बाद वहां छाई खामोशी इंस्पेक्टर श्रीवास्तव ने ही तोड़ी—"अब आप लोग इस बारे में क्या सोचते हैं?"
"किस बारे में?"
"नहीं सब, जो यहां चल रहा है।"
"दूसरी बहुत-सी बीमारियों के अलावा हम एक और बीमारी से पीड़ित रहे हैं इंस्पेक्टर!" विजय ने कहा—"और वह बीमारी ये है कि जिस मामले का सिरा हमारे हाथ में आ जाता है, उसकी तह में पहुंचे बिना चैन से नहीं बैठते हैं यहां तो मामला अपने बापूजान का है। इसकी तह में पहुंचे बिना हम लोग गुमटी से लौटने वाले नहीं हैं।"
"म...मगर आप लोगों का यहां रहना खतरनाक हो सकता है।"
"वह कैसे?"
"सबसे पहली बात तो आपने खुद ही बताई कि गांव वाले आपके खून के प्यासे हैं।"
"साथ ही यह भी कहा था माई डियर कि ऐसा तब था जब वे हमें अपने रावण का साथी ही नहीं, बल्कि हिमायती भी समझ रहे थे—अब जबकि सारे गांव के सामने बापूजान हमें उल्टा लटकाकर पतंगा बना चुके हैं तो जाहिर है कि गांव वालों के जेहन से वह गलतफहमी दूर हो गई होगी—अब उनकी नजर में हम भी निर्भयसिंह के उतने ही बड़े दुश्मन हैं जितने वे, अतः शायद वे हमारे साथ पिछली रात जैसा व्यवहार न करें।"
"मगर यहां रहने पर आपको हर पल ठाकुर साहब का खतरा बना रहेगा। वे पुनः किसी भी समय अपनी पूरी ताकत के साथ आप लोगों पर हमला कर सकते हैं।"
"हम उस शुभ क्षण का इंतजार करेंगे।"
"क्या मतलब?" श्रीवास्तव ने आश्चर्य के साथ पूछा।
"उनके राज को जानने के लिए कम-से-कम एक बार टकराना जरूरी है।"
"मैं आपकी भावनाओं को समझ सकता हूं मिस्टर विजय।" श्रीवास्तव ने गंभीर स्वर में कहा—"मगर ये खतरनाक फैसला लेने से पहले कम-से-कम आपको यह समझ लेना चाहिए कि पुलिस आज तक इस इलाके से मुकम्मल रूप से डाकुओं का सफाया क्यों नहीं कर पाई।"
"समझा दो।"
"गुमटी के अलावा आसपास चार गांव और हैं। जिस तरह गुमटी मल्लाहों का गांव कहलाता है, उसी तरह वे गांव भी भिन्न जातियों के हैं—ठाकुर ब्राह्मण, हरिजन और कुर्मी—शहरों से हालांकि जातियों का भेदभाव काफी हद तक मिट गया है, मगर यहां आज भी पूरे यौवन पर है—हर जाति दूसरी जाति पर अपना अंकुश रखना चाहती है। इसी प्रयास में इस इलाके में अक्सर फौजदारियां होती हैं—एकमात्र थाना क्योंकि सिर्फ डिक्की में है और पुलिस के लिए वहां से किसी गांव में क्योंकि पहुंचना ही बहुत बड़ी समस्या है, अतः पुलिस किसी की कोई उचित मदद नहीं कर पाती—यही कारण है कि यह इलाका 'कानून की दुनिया' से बहुत बाहर है और फौजदारियों के परिणामस्वरूप अक्सर डाकू पैदा होते रहते हैं।"
"क्या तुम यह कहना चाहते हो कि हमारी मदद के लिए यहां नहीं पहुंच सकोगे?"
"प्रत्यक्ष रूप से आप ऐसा ही समझ लीजिए। यदि मैं अपने पुलिसिएपने पर आऊं तो कहना चाहिए कि हम हर मुसीबत में आपके काम आएंगे, किंतु हकीकत ये है कि ऐसा कहना झूठी दिलासा देना होगा—आप मोन्टो से पूछ सकते हैं कि यहां तक पहुंचने का इंतजाम करने में हमें कितनी दिक्कत आई—भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि कोई खून-खराबा होने से पहले पहुंच गए—जानता हूं कि कोशिश करने के बावजूद हम भविष्य में सही समय पर आपकी मदद के लिए न पहुंच सके।"
विजय ने झटके से कहा—"हमें आपकी मदद की जरूरत भी नहीं है।"
"ज...जी।" श्रीवास्तव चकरा गया।
"जी हां।" विजय एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला—"आपने सही समय पर मदद की इसके लिए आपको जितने धन्यवाद दिए जाएं कम हैं, मगर हम भी इतनी बुरी तरह बापूजान के लपेटे में इस भ्रम के कारण आ गए कि वे हमारे बापूजान हैं—उनमें उस सबकी कल्पना न कर सके थे जितना सबकुछ करने पर वे आमादा हो गए—अब हम उनकी तरफ से ठीक उसी तरह सतर्क हैं जिस तरह किसी भी दुश्मन से होना चाहिए—और जब हम सतर्क होते हैं तो कोई माई का लाल हमें इस कदर मजबूर नहीं कर सकता कि स्वेच्छापूर्वक हाथ-पैर भी न हिला सकें—अब तो सिर्फ यही कहना है कि अगर बापूजान यही साबित करने पर तुल गए हैं कि वे हर मोर्चे पर हमारे 'बाप' हैं तो हम भी यह साबित करने पर 'नप' जाएंगे कि हम उनके 'सुपुत्र' हैं।"
"यानि आपने टकराव का पक्का निश्चय कर लिया है?"
"पक्का ।"
"मेरी सलाह यह नहीं है बेटे!" एकाएक उर्मिलादेवी ने विजय से कहा—"उनके पास डाकू फूलवती के गिरोह की ऐसी ताकत है जिसे यदि इस इलाके का सर्वोच्च शक्ति केन्द्र कहा जाए तो गलत न होगा। तुम देख चुके हो कि जो गांव वाले रात तक उनके खून के प्यासे थे, वे गिरोह की ताकत के सामने कैसे भीगी बिल्ली नजर आने लगे—माना ये कोई मदद नहीं कर सकते—इंस्पेक्टर श्रीवास्तव ने भी अपनी स्थिति लगभग स्पष्ट कर दी है—इन सब हालातों में हम उनसे बहुत कमजोर हैं, अतः टकराव का यह निश्चय बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं है।"
"आपकी सलाह क्या है?"
"यहां से वापस राजनगर चलते हैं, पुलिस के उच्चाधिकारियों को सारी स्थिति बता देंगे—इसके बाद वे जानें कि क्या करना उचित होगा।"
विजय ने बड़े आराम से कह दिया—"आप ऐसा कर सकती हैं।"
"क्या मतलब?" उर्मिलादेवी चौंक पड़ीं।
"आप, रैना बहन और आशा इंस्पेक्टर के साथ यहां से निकल जाएं—तुम हिफाजत के लिए इनके साथ रहोगे तुलाराशि।" अपना उल्लू सीधा करने के लिए विजय उन्हें समझाने लगा—"राजनगर पहुंचकर जो भी संभव हो सके, मदद भिजवाने की कोशिश करना।"
"और तुम?"
"हमने बापूजान को यह समझाने का पक्का निश्चय कर लिया है कि हम उनके सुपुत्र हैं।"
"त...तुम्हें यहां, इस तरह खतरे में छोड़कर मैं कही नहीं जाऊंगी।" उर्मिलादेवी ने दृढ़तापूर्वक कहा।
विजय जानता था कि उनका जवाब यही होगा, अतः बिना ज्यादा हील-हुज्जत किए बोला—"तो फिर यहीं, हमारे साथ खतरों के बीच रहना होगा।"
"अगर तुम जिद पर अड़ रहे हो तो मजबूरी है।"
"सुना इंस्पेक्टर?" उसने श्रीवास्तव से कहा—"हम सब यहीं रहेंगे और जो होगा, उसे भुगतेंगे।"
"अपना कोई भी निर्णय लेने के लिए आप स्वतंत्र हैं—मगर जहां तक मेरा सवाल है, व्यक्तिगत रूप से मेरी राय आपके साथ नहीं है।"
"खैर, हनुमान की पूंछ के समान लंबे होते जा रहे इस टॉपिक को अब छोड़ो।" कहने के साथ ही विजय अपने स्थान से खड़ा हो गया और हथकड़ीयुक्त दोनों डाकुओं के नजदीक पहुंचकर बोला—"अगर हम तुमसे यह कहें प्यारे कि हमें तुम्हारे अड्डे पर पहुंचना है तो वहां पहुंचाने का क्या लोगे?"
"क...कुछ भी नहीं।" एक डाकू के होठों पर रहस्यमय मुस्कान उभर आई।
"क्या मतलब?"
"हम आपको वहां ले जाएंगे।"
 विजय ध्यानपूर्वक उसे घूरता हुआ बोला—"इस मुस्कान का अर्थ क्या है?"
"म...मुस्कान—मैं कहां मुस्करा रहा हूं?"
सख्ती बरतने की गरज से दोनों हाथ बढ़ाकर विजय ने अभी उसका गिरेबान पकड़ा था कि इंस्पेक्टर श्रीवास्तव खड़ा होता हुआ बोला—"मैं आपकी इनकी रहस्यमय मुस्कान का अर्थ समझा सकता हूं मिस्टर विजय।"
"तुम?"
"दरअसल जो आप चाहते हैं, वह प्रयोग हम एक नहीं अनेक बार कर चुके हैं और हर बार पुलिस ने मुंह की खाई हैं।"
"हम समझे नहीं?"
"जब फूलो के गिरोह से पुलिस की पहली मुठभेड़ हुई तो तीन जीवित डाकू पुलिस ने गिरफ्तार किए—उनकी मदद से जबरदस्त पुलिस फोर्स के साथ फूलो के अड्डे को घेरने और समूचे गिरोह को नेस्तनाबूद करने के प्लान पर अमल किया गया, मगर उन पहाड़ियों में पहुंचते ही फोर्स पर ऐसा भीषण आक्रमण हुआ कि गिरफ्त में फंसे तीन डाकू तो पुलिस के हाथ से जाते ही रहे, उल्टे फोर्स के उच्चाधिकारी बड़ी मुश्किल से अपनी जान बचाकर भाग आने में कामयाब हो सके—उसके बाद भी यह प्रयोग अनेक बार किया गया, किंतु परिणाम हर बार उल्टा ही निकला—गिरफ्त में फंसे डाकुओं के अलावा हर बार पुलिस को अपने जवानों की बलि देनी पड़ी।"
"कहना क्या चाहते हो, प्यारे?"
"इनकी रहस्यमय मुस्कान का अर्थ था कि यदि पुलिस की गिरफ्त में फंसे फूलो के किसी डाकू से यह कहा जाए कि वह पुलिस को अड्डे तक का रास्ता दिखाए तो यह हालात गिरफ्त में फंसे डाकू को अपने लिए पुनर्जीवन के लगते हैं।"
"वह कैसे?"
"क्योंकि पुलिस के चंगुल से निकलकर वे पुनः अपने गिरोह से जा मिलते हैं।"
"हर बार यही हुआ है?"
"जी हां।"
"ऐसा आखिर कैसे हो जाता है?"
"फूलो के अड्डे के आसपास जो घनी पहाड़ियों है, उनकी भौगोलिक स्थिति आज तक पुलिस नहीं समझ सकी—जबकि डाकू चप्पे-चप्पे से वाकिफ होते हैं—पता नहीं इन लोगों ने वहां सुरंगें बिछा रखी हैं या क्या है कि अभी एक डाकू आपके ठीक सामने इतनी दूर खड़ा होगा कि आप हाथ से उसे छू सकें, मगर पलक झपकने तक की देर में छलावे की तरह गायब हो जाएगा। बता ही चुका हूं कि उन पहाड़ियों के बीच से अड्डे पर पहुंचना शायद दुनिया की सबसे बड़ी भूल-भूलैया है—पुलिस यह तो जानती है कि दस मील फैले क्षेत्र की पहाड़ियों में कहीं इनका अड्डा है मगर आज तक—अनेक बार आक्रमण करने पुरजोर कोशिश के बावजूद वह 'एक्यूरेट स्पॉट' का पता न लगा सकी कि अड्डा कहां है—जितनी बार पकड़े गए डाकुओं की मदद से पुलिस ने अड्डे पर छापा मारने की कोशिश की, मुंह की खाई क्योंकि पुलिस दल के उन पहाड़ियों में प्रवेश करते ही दल पर गोलियां बरसने लगती हैं—मजें की बात ये गोलियां बरसाने वाले कही नजर नहीं आते—यूं लगता है जैसे वे आसमान से बरस रही हैं, या हर पत्थर एक बंदूक है—संयोग से अगर कोई डाकू नजर आ भी गया तो पलक झपकते ही छलावे की तरह ऐसा गायब होगा कि लाख सिर पटकने पर आप दुबारा उसकी छाया तक नहीं पा सकते—आक्रमण इतना तीखा और करारा होगा कि अपनी जान बचाने के फेर में उन डाकुओं के रहमो-करम की वजह से जिंदा लौटे—आप ही सोचिए, जब आप पर गोलियां बरसाता दुश्मन नजर ही न आए तो आप क्या कर सकते हैं?"
विजय सहित सब चुप रह गए।
केवल डाकू मुस्करा रहे थे। कुछ देर बाद विजय ने ऐसे सांस छोड़ी जैसे काफी देर से रोके खड़ा था, बोला—"हमने सांस रोककर सारा वृत्तांत सुना है प्यारे, तुमने तो इनके अड्डे का ऐसा खाका खींच दिया कि जिस तरह सूरज पर पहुंचना मुश्किल है उसी तरह इनके अड्डे पर।"
"क्या मतलब?"
"मतलब फाइव स्टार होटल के स्वीमिंग पूल में भरे पानी की तरह साफ है। आज हम विज्ञान के जरिए विभिन्न ग्रहों पर टहलकर आ रहे हैं। मगर सूरज पर टहलकर आने की आज तक किसी ने कल्पना नहीं की, क्योंकि सब जानते हैं कि उसके
आसपास फटकते ही सबकुछ जलकर राख हो जाएगा—कुछ वैसा ही खाका तुमने इनके अड्डे का खींचा है।"
"हां—बिल्कुल सही। आपने बिल्कुल सटीक उदाहरण सोचा है—वास्तव में जिस तरह सूरज पर उतरने की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह इनके अड्डे पर पहुंचने की भी नहीं—जिस तरह उसके इर्द-गिर्द पहुंचते ही सबकुछ जलकर खाक हो सकता है उसी तरह अड्डे के आसपास की पहाड़ियों में पहुंचते ही सबकुछ खत्म हो जाता है।"
"सूरज पर पहुंचने का दावा तो हम नहीं करते प्यारे, मगर उन साली पहाड़ियों और अड्डे को जरूर भुगतना है।"
"मैं फिर कहूंगा कि यह विचार अपने दिमाग से निकाल दें।" श्रीवास्तव ने कहा—"आप कहीं अन्य स्थान पर तो डाकू गिरोह का मुकाबला करने और उन पर अंकुश पाने की कल्पना कर सकते हैं, मगर उन पहाड़ियों में हरगिज नहीं।"
"फिलहाल तुम्हारी बात मान ली है। हम 'इनसे' नहीं कहेंगे कि ये हमें अपने 'अड्डे' का रास्ता दिखाएं—रास्ता भी हमें स्वयं देखना है और जाएंगे भी खुद—इतनी सब और महत्वपूर्ण जानकारियां देने के लिए शुक्रिया, शायद इस अभियान में ये जानकारियां हमारे काफी काम आएंगी।"
"मुझे हैरत है कि मेरे इतना सबकुछ स्पष्ट करने के बावजूद आप डाकुओं से टकराने के अपने निश्चय को नहीं बदल रहे हैं।"
"हमारे निश्चयों पर लोग अक्सर हैरत करते हैं।"
¶¶
दोनों डाकू, दो सिपाहियों की लाशों और अपनी फोर्स के साथ इंस्पेक्टर श्रीवास्तव गुमटी से डिक्की के लिए रवाना हो गया—विजय आदि उसे चौपाल तक छोड़ने आए थे और चौपाल पर ही ग्रामवासियों की भीड़ भी लगनी शुरू हो गई।
ग्रामीण उन्हें अजीब नजरों से देख रहे थे।
वे लोग भी यह भांपने की चेष्टा कर रहे थे कि अब, नए परिवेशों में ग्रामीणों की उनके बारे में क्या सोच है—मगर इससे संबंधित सवाल वे किसी से नहीं कर सकते थे, अतः वैद्य के साथ उसके घर की तरफ लौटने लगे।
अभी मुश्किल से दस-पांच कदम ही चले होंगे कि गांव के एक बुजुर्ग ने पूछा—"इन्हें कहां लिए जा रहे हो वैद्यजी?"
"अपने घर और कहां?" वैद्य ने ठिठककर जवाब दिया।
"वहां इनका क्या करोगे?"
"ये लोग कुछ दिन इसी गांव में रहना चाहते हैं।"
"क्यों?"
इस सवाल पर वैद्य विजय ग्रुप का मुंह ताकने लगा और ऐसे ही किसी पल का इंतजार कर रहे विजय ने दो कदम आगे बढ़कर कहा—"रात आप लोग हमें ठाकुर निर्भयसिंह के साथी या हिमायती समझकर मारने पर आमादा थे, सो अपनी जान बचाने के लिए हमने बनवारी की झोंपड़ी में शरण ली—हालांकि हमारा उद्देश्य सिर्फ आप लोगों के गुस्से से खुद को बचाए रखना था, किसी गांव वाले को कोई नुकसान पहुंचाने की हमारी कतई मंशा नहीं थी—यह बात आपके चंगुल में फंसे अपने एक साथी को बचाने के लिए हमारे से इस्तेमाल की गई तरकीब से स्पष्ट हो जाती है, मगर फिर भी रात की जंग में हमारी तरफ से यदि गांव को कोई क्षति पहुंची हो तो माफी मांगते हैं।"
"यह सारी बातें हमारी समझ में आ चुकी हैं।" रामधन बोला—"इसलिए इतनी देर से तुम लोग हमारे बीच सुरक्षित खड़े हो—अगर हम समझ न गए होते तो रात मारे गए तीन ग्रामीणों का बदला इस वक्त हम तुमसे ले रहे होते।"
"पुलिस के आने से पहले चौपाल पर जो कुछ हो रहा था उससे आप समझ ही गए होंगे कि मामला क्या है?"
विजय ने उन्हें प्रभावित करने की गरज से कहा—"फिर भी मैं संक्षेप में आप लोगों के सामने स्पष्ट कर देता हूं—निर्भयसिंह मेरे पिता हैं, इनक पति, इनके ताऊ, इनके ससुर और बाकी मेरे दोस्त हैं—आपने देखा ही है यह सब होने के बावजूद वे हमारे इतने बड़े दुश्मन बन गए जितने शायद इस गांव के भी नहीं हैं—ऐसा दरअसल इसलिए हुआ क्योंकि वे जानते हैं कि हम लोग सिद्धांत के पक्के हैं—यह जानने के बाद कि बीस साल पहले उन्होंने गुमटी में इतना नरसंहार किया था कि हम उन्हें कानून के हवाले कर देंगे—इसलिए हम सबको खत्म कर देना चाहते हैं।"
"हमारे सामने इस सारे बयान का मकसद क्या है?"
"सिर्फ यह समझाना कि जिस तरह बीस साल से इस गांव के बच्चे-बच्चे का उद्देश्य ठाकुर साहब से बदला लेना है—उसी तरह हमारा उद्देश्य आज ये बन गया है कि उन्हें उनके गुनाहों की सजा दें—जो कुछ उन्होंने किया है, उसकी मात्र सजा 'मौत' है, वह चाहे गोली से हो या फांसी के फंदे पर—अतः हमारा और गांव वालों का लक्ष्य अब एक ही है।''
"अब हमारा लक्ष्य ये नहीं है।" रामधन ने कहा।
"क्या मतलब?" विजय चौंक पड़ा।
"नरसंहार की जो वजह ठाकुर ने बताई वह बिल्कुल सच है और अब हम यह भी अत्याचार के बदले में जो कुछ उसने किया, जायज ही था—बीस साल पहले ही वह उन सब परिवारों को खत्म कर चुका है जिनके मुखियाओं ने उसकी बीवी और बेटी पर जुल्म किए, अतः अब गुमटी के किसी निवासी से उसे कोई शिकायत नहीं है—वह यहां के किसी आदमी को नहीं मारना चाहता, अतः हमारी भी उससे कोई दुश्मनी नहीं रह गई है।"
विजय अवाक् रह गया, दरअसल ऐसी उसने कल्पना नहीं की थी कि गांव वालों का दृष्टिकोण इतना बदल गया होगा—उसके चुप रह जाने की वजह से हर तरफ एक सन्नाटा खिंच गया। एकाएक हरिया आगे बढ़कर बोला—"ये तो कोई बात नहीं हुई सरपंच चचा।"
"क्या मतलब?"
"जिसके किस्से सुना-सुनाकर आप बुजुर्ग लोग हम बच्चों के खून में नफरत का जहर भरते रहे—सारा गांव हर सुबह जिसकी अवपूजा करता रहा है—हर साल जिसका पुतला जलाकर गांव के लोग गांव पर हुए अत्याचार का बदला लेने की कमस खाते रहे क्या उसे इतनी जल्दी, इतनी आसानी से माफ कर दिया जाए? क्या उसकी सुनाई गई छोटी-सी कहानी से हमारे सारे अरमान, सारे अंगार राख हो गए?"
"समझने की कोशिश कर हरिया बेटे, आज से पूर्व हमें मालूम नहीं था कि वह नरसंहार उसने क्यों किया—आज मालूम हुआ है कि वह नरसंहार उसने क्यों किया—आज मालूम हुआ है और मानना पड़ता है कि उसने जो किया गलत नहीं था—उसने नरसंहार गांव के लोगों का नहीं, बल्कि सिर्फ उन परिवारों का किया जो उसकी नजर में दोषी थे।"
"यह झूठ है, रामधन।" एक अन्य बुजुर्ग बोल पड़ा—"केवट, बलराम और मनसुख ने आरती और सुलभा के साथ क्या किया था जो निर्भयसिंह ने उनके परिवारों को आग के हवाले कर दिया?"
रामधन चुप रह गया।
"आप सिर्फ इसलिए ऐसी बातें कर रहे हैं सरपंच चचा, क्योंकि एक बार फिर आप उस रावण की ताकत से खौफ खा गए हैं।" हरिया कहता चला गया—"डाकुओं का सरगना बना देखकर आप उससे डर गए हैं, सोच रहे है कि क्रुद्ध होकर कहीं वह पुनः गुमटी में बीस साल पुराना खेल न खेल बैठे।"
"हां—हम डर गए हैं।" अचानक रामधन यूं चीख पड़ा जैसे ज्वालामुखी फटा हो—"हम खौफ खा गए हैं उससे—मैं इस गांव का सरपंच हूं, किसी भी खतरे से गांव की हिफाजत करना मेरा फर्ज है—मैंने बीस साल पहले का मंजर देखा है—अपने मुंह से यह कहकर कि हम निर्भयसिंह से दुश्मनी रखते हैं—मैं उस मंजर को न्यौता नहीं दे सकता।"
"आप कुछ भी कहें सरपंच चचा, वह दरिंदा हम पर रहम नहीं करेगा—उसे सारे गांव से नफरत है, सिर्फ इसलिए कि उसकी बीवी और बेटी पर हो रहे जुल्म का गांव में किसी ने विरोध नहीं किया—दुश्मनी खत्म करने का ऐलान करके भी आप कहर से बच नहीं सकते—फिर हम क्यों कहें कि वह हमारा दुश्मन नहीं रहा या अब हम क्यों बदला नहीं लेना चाहते?"
"शायद इसी तरह वह हमें माफ कर दे।"
"माफी हमें उससे नहीं, बल्कि उसे हमसे मांगनी पड़ेगी चचा।"
"त...तुम...तुम उससे माफी मंगवाओगे?" रामधन खिल्ली उड़ाने के-से अंदाज में कहता चला गया—"कुछ ही देर पहले जब वह इस चौपाल पर गरज रहा था तब भीगी बिल्ली बने खड़े लोगों में तुम भी तो थे—उस वक्त तुम्हारा बोल क्यों नहीं निकला—अब भला तुम्हारी इन बहादुरीभरी बातों का क्या मतलब है?"
गुस्से में भन्नाता हरिया कसमसाकर चुप रह गया।
जबकि एक अन्य युवक ने कहा—"वह अचानक इस तरह गांव में आ घुसा कि हमें कुछ करने की तो बात दूर, सोचने-समझने तक का मौका न मिला और हम हतप्रभ रह गए। मगर भविष्य में ऐसा नहीं होगा—हम पूरी तैयारी से रहेंगे और पूरी ताकत से उसका मुकाबला करेंगे।"
"ये बात ठीक है।" एक अन्य युवक आगे आया—"आज गुमटी बीस साल पहले वाला गांव नहीं है कि वह नरसंहार करके चला भी जाए और कोई चूं तक न करे—हम युवकों की लाश के ऊपर से गुजरकर ही वह गांव के किसी बुजुर्ग, महिला या बच्चे को हाथ लगा सकता है—क्यों साथियों?"
"बिल्कुल ठीक—बिल्कुल ठीक।" जोश में भरे युवकों के हाथ हवा में उछले।
हरिया चीखा—"हमारे जिस्म की नसों में बहता खून ठंडा नहीं पड़ा है—हम उससे एक-एक हत्या का बदला लेंगे—खून की एक-एक बूंद का हिसाब देना होगा उसे।"
"तुम लोग पागल हो गए हो।" रामधन चीखा—"विवेक सो गए हैं तुम्हारे। जोश में भरे एक ऐसी आफत को ललकार रहे हो जो इस गांव की ईंट-से-ईंट बजा देगा—खून का दरिया बहा देगा यहां।"
"यह सब तो उसे तब भी करना है चचा, जब हम उसे न ललकारें—बीस साल पहले अपने बुजर्गों की तरह बिना विरोध किए मर जाना कहां की बहादुरी है—जब मरना ही है तो क्यों न दुश्मन का मुकाबला करते मरें?"
"मैं तो एक ऐसा रास्ता सुझा रहा था, जिससे गांव बच सकता था।"
"यह तुम्हारा भ्रम है सरपंच चचा, उसे हर हाल में वही करना है—भूल गए उसने क्या कहा था, यह कि दुनिया के नक्शे से गुमटी नामक गांव का नाम मिट जाना चाहिए।"
रामधन चुप रह गया।
काफी देर से खामोश खड़ा विकास मौका मिलने पर अब बोला—"मैं इस गांव के युवकों से यह कहना चाहता हूं कि हमें दुश्मन से लड़ते-लड़ते जान गंवा देने वाली बात नहीं सोचनी है, बल्कि दुश्मन की जान लेने की बात सोचनी है।"
सन्नाटा खिंच गया।
अपने पति के लिए अपने ही बेटे और नाती के मुंह से उर्मिलादेवी को ये बातें बड़ी अजीब लग रही थीं—दिल के किसी कोने से आवाज उठ रही थी कि वे उन्हें ऐसा करने से रोकें, परंतु पति का वीभत्स रूप स्मरण करके चुप रह जातीं।
सारे गांव की नजरें विकास पर स्थिर थीं। एकाएक काशीनाथ आगे बढ़कर बोला—"क्या कहना चाहते हो तुम?"
"सिर्फ यह कि हम लोग भी तुम्हारे साथ हैं।" विजय ने कहा—"आज से हमारे लिए भी वे रावण हैं और चाहे जो हो जाए, उस वक्त तक इस गांव से नहीं जाएंगे जब तक कि यह गांव रावण के भय से मुक्त नहीं हो जाता।"
"तुम लोग भला क्या कर सकोगे?"
"तुम्हारे कंधे-से-कंधा मिलाकर निर्भयसिंह का मुकाबला और सच, हम यह नहीं सोचते कि वह हमें मार डालेंगे, बल्कि यह सोचते हैं कि निर्भयसिंह के साथ-साथ फूलो के समूचे दस्यु दल का सफाया करने में हमें कामयाबी मिलेगी।"
"ये लोग एक और नई मुसीबत हैं।" रामधन बोला—"अगर वैसे ठाकुर गुमटी का रुख न करता तो इनकी वजह से जरूर आएगा।"
"ये तो अच्छा है, इस बार हम अपनी पूरी तैयारी रखेंगे।"
हरिया बोला—"ये लोग शिकार को फंसाने के लिए जरूरी हैं, अतः इऩ्हें यहीं रहने दिया जाए।"
¶¶
दोपहर का खाना उन्होंने वैद्य के घर ही खाया—खाने के बाद विजय, विकास और ब्लैक ब्वॉय को अपने साथ चलने का इशारा करके खड़ा हुआ ही था कि उर्मिलादेवी ने पूछा—"तुम लोग कहां चल दिए?"
"यूं ही, जरा बाहर की आबो-हवा का सेवन करने।" विजय बोला—"मेरे ख्याल से इस खाली समय में हमें अपनी आगे की योजना पर विचार-विमर्श करना चाहिए—कहीं ऐसा न हो कि वे पुनः हमला करें और हम फिर एकसाथ इस कदर उनके चंगुल में फंस जाएं कि कुछ करने की स्थिति में ही न रहें। यह देखकर आऩे के बाद विचार-विमर्श करते हैं कि डाकुओं के हमले से बचने के लिए गांव के जोशीले युवक क्या तैयारी कर रहे हैं।" कहने के बाद जवाब सुने बिना वह बाहर निकल गया।
विकास और ब्लैक ब्वॉय उसके साथ थे।
बाहर, जोश में भरे गांव के युवक पेड़ों पर मचान बना रहे थे—उन्होंने इन्हें देखा और बिना किसी खास प्रतिक्रिया के अपने कार्य में मग्न हो गए—"आपने हमें बाहर आने का इशारा क्यों किया था गुरु?"
"अब तक घटी घटनाओं और आगे के प्रोग्राम पर विचार करने के लिए।"
"क्या मतलब?"
"दरअसल गहराई तक सोचने के बाद हमें मामला उतना सीधा-सीदा नजर नहीं आ रहा, जितना ऊपर से देखने पर लगता है।" विजय बोला—"कुछ बातें इतना विरोधाभास पैदा कर रही हैं कि कहानी जम नहीं रही।"
"जैसे?"
"रात बनवारी की झोंपड़ी में पहुंचने, पुलिस हैल्प के लिए दिलजले और मोन्टो को डिक्की भेजने, फिर हमें सुच्चाराम के अंत की कहानी सुनाने तक बापूजान बिल्कुल सामान्य थे—यानि ऐसे बिल्कुल नजर नहीं आ रहे थे जैसे अब आ रहे हैं, बल्कि वे बार-बार यही कह रहे थे कि गांव वाले किसी भ्रम का शिकार हैं, उन्होंने बीस साल पहले वैसा कुछ नहीं किया जैसा गांव वाले कहते हैं।"
"वे आज चौपाल पर कह तो चुके हैं कि यह उनकी चाल थी।"
"भटकाओ मत प्यारे, सिरे से चलो।" विजय ने कहा—"असली रंग उन्होंने पहली बार तब दिखाया जब झोंपड़ी के बाहर हमसे मिले। सवाल ये उठता है कि उसी वक्त क्यों—उससे पहले या बाद में क्यों नहीं?"
"हम समझे नहीं।"
"मैं ये पूछना चाहता हूं कि जो कुछ उन्होंने किया या कह रहे हैं, तुम्हारे ख्याल से उसके बारे में वे राजनगर से ही कोई प्लान बनाकर आए थे या अचानक झोंपड़ी में बना?"
"इस बारे में वे बता ही चुके हैं कि सबकुछ पहले से ही प्लान था—वे राजनगर में ही समझ गए थे कि रश्मि वाला ड्रामा तुम्हारा है।"
विकास ने कहा—"झोंपड़ी के बाहर जब आपने यह सवाल किया कि कहां जा रहे हो तो जवाब में उन्होंने कहा कि 'मदद के लिए फूलवती के अड्डे पर।' इससे भी जाहिर है कि सारा प्लान पहले ही से था—यदि फूलवती से उनकी पहले से कोई सांठ-गांठ न होती तो इतने कॉन्फिडेंस से उसकी मदद हासिल करने की बात कैसे कह सकते थे?"
"यानि तुम दोनों की राय ये है कि उन्होंने सारा काम पूर्वनियोजित योजना के साथ किया?"
"जाहिर है।"
"तो फिर तुम्हें और मोन्टो को उन्होंने पुलिस हैल्प हासिल करने के लिए डिक्की क्यों भेजा?" विजय ने सवाल उठाया।
"शायद अपने नाटक को पक्का बनाए रखने के लिए।"
"गलत।" विजय ने पूरी सख्ती से विरोध किया—"उनके जिस नाटक पर कोई शक नहीं कर रहा था—उसे पक्का बनाए रखने के लिए उन्हें ऐसा कोई कदम उठाने की जरूरत हरगिज नहीं थी, जिसके परिणामस्वरूप उनके भविष्य के प्लान में कोई व्यवधान पहुंचने की संभावना शत-प्रतिशत थी।"
"व्यवधान कैसा?"
"तुम्हारे मुताबिक उन्हें मालूम था कि रात के किसी वक्त उन्हें झोंपड़ी छोड़कर मदद के लिए फूलवती के अड्डे पर जाना है और सुबह होते ही पूरे दल-बल के साथ हम लोगों को घेरना—दूसरी तरफ स्वयं ही इन दोनों को पुलिस की मदद के लिए भेजते हैं, जबकि उन्हें मालूम है कि ये लोग सुबह तक पुलिस को लेकर गांव में पहुंच जाएंगे और उस वक्त जो कुछ वे कर रहे होंगे, उसमें व्यवधान पड़ेगा—ये दोनों बातें एक-दूसरे से तालमेल नहीं खातीं। भला अपने ही प्लान में वे व्यवधान उत्पन्न क्यों करेंगे?"
"मैं समझा नहीं।" ब्लैक ब्वॉय ने कहा।
"इसमें दूसरी अटपटी बात ये है कि वे गांव वालों के प्रति करुणा से भरकर पुलिस हैल्प चाहते थे। ध्यान रहे—उन गांव वालों के प्रति करुणा से भरकर जिनके खून के प्यासे वे आज से नहीं, बल्कि बीस साल पहले से रहे हैं।"
"वाकई ये बातें एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं और...।"
"और ?"
"इससे पुनः मेरी वही धारणा पुष्ट होती है कि आपको झोंपड़ी के बाहर मिलने से अब तक ठाकुर साहब जो कुछ गा रहे हैं, वह सब झूठ है—कोई नाटक कर रहे हैं वे—आप पर यह साबित करने के लिए कि वे वास्तव में आपके 'बाप' हैं।''
''हमें नहीं लगता।"
"क्यों?"
"अगर ये नाटक होता तो, भले ही वे चाहे जो करते परंतु भरी चौपाल पर, हम सब लोगों के सामने माताजी को द्रौपदी बनाने वाली हरकत न करते—वह गिरी हुई हरकत किसी नाटक का हिस्सा नहीं हो सकती।"
ब्लैक ब्वॉय चुप रह गया और उसका चुप रहना इस बात को द्योतक था कि वह सहमत है, जबकि विकास बोला—"इन सब बातों के परिप्रेक्ष्य में तो यह सब मुझे बहुत ही बारीकी से सोचा-समझा नाटक लगता है गुरु।"
"तुम भी बोलो।"
विकास ने कहना शुरू किया—"क्योंकि ठाकुर नाना जानते थे कि अपनी योजना के मुताबिक सुबह को उन्हें चौपाल पर नानी को द्रौपदी बनाने का नाटक करना है और इसमें व्यवधान डलवाना वे स्वयं ही चाहते थे, ताकि मामले के 'क्लाईमैक्स' तक न पहुंच पाने की वजह अचानक पहुंच गई पुलिस नजर आए, जबकि वास्तव में उस वक्त पुलिस को वहां हमारे जरिए स्वयं उन्हीं ने बुलाया था।''
"यानि वे वह व्यवधान चाहते थे, जो हुआ?"
"जी ।"
"फिर फूलवती से उनके संबंध कब कैसे और क्यों बने?" विजय ने पूछा—"संबंध भी ऐसे कि फूलों ने रातोंरात उन्हें अपने गिरोह का सरदार बना दिया—हालांकि गिरफ्तार डाकू के मुताबिक पिछले चार साल में कल रात से पहले उसने कभी बापूजान की शक्ल तक नहीं देखी, किंतु जो कुछ सामने आया है, उसके सामने उसका बयान कोई महत्त्व नहीं रखता और जो सामने आया वह यह है कि वे झोंपड़ी से ही फूलो के अड्डे पर जाने का लक्ष्य लेकर निकले—उस अड्डे पर पहुंचे जिसके बारे में श्रीवास्तव का दावा है कि आज तक कोई पुलिस वाला वहां नहीं पहुंच सका—डाकू के मुताबिक उन्होंने कुछ देर अकेले में फूलवती से कोई बात की और उन बातों के बाद फूलवती ने उन्हें सारे दल का सरदार घोषित कर दिया—क्या वे सब बातें यानि फूलवती से उनका संबंध भी किसी नाटक का हिस्सा हो सकता है?"
"कमाल की बात है कि फूलवती का आदर्श सुच्चाराम है।" ब्लैक ब्वॉय ने इस संदर्भ में और पेंच जोड़े—"वही सुच्चाराम जिसके गिरोह को ही नहीं, बल्कि परिवार को भी ठाकुर साहब ने बीस साल पहले नेस्तनाबूद किया था—जब गांव में आए थे तो सुना था कि फूलवती और डाकू बंतासिंह ठाकुर साहब के खून के प्यासे हैं—उन्हीं में से एक यानि फूलवती उनकी इतनी मदद करे—क्या ये हैरतअंगेज नहीं है?"
"बेहद हैरतअंगेज है, प्यारे!" विजय बोला—"यही तो हम कह रहे हैं कि बहुत-से विरोधाभास होने की वजह से सारा मामला बड़ा अटपटा-सा लग रहा है—फूलवती से ये प्रगाढ़ संबंध जाहिर करते हैं कि जो कुछ चल रहा है, वह नाटक नहीं, बल्कि कुछ और मामला है, कुछ इतना गहरा कि फिलहाल हमारी बुद्धि में फिट नहीं बैठ रहा है।"
"यानि आप मानते हैं कि नाना ने ही यहां बीस साल पहले नरसंहार किया था?"
"जब वे बार-बार स्वीकार कर रहे हैं तो न मानने की क्या वजह है?"
"बात फिर वही आ जाती है।" विकास ने कहा—"मुमकिन है कि वे आप पर सिक्का जमाने के लिए कोई नाटक कर रहे हों?"
"भूल रहे हो प्यारे, कुछ देर पहले साबित कर चुके हैं कि फूलवती के कारण समस्त घटनाओं के नाटक होने की संभावना पूरी तरह समाप्त हो जाती है।" विजय ने कहा—"बापूजान और फूलवती के संबंधों के बीच हमने प्रगाढ़ शब्द का प्रयोग किया है—और प्रगाढ़ संबंध किसी के बीच एक-दो दिन में नहीं बन जाते—ये संबंध बापूजान की वर्षों की कमाई है और वर्षों पहले उन्हें नहीं मालूम था एक दिन यहां लेकर उन्हें हम पर सिक्का जमाना है।"
"बात कांटे की है गुरु।"
"उस वक्त और भी कांटे की हो जाती है जब बापूजान बीस साल पहले किए गए नरसंहार के पीछे वजह बताते हैं और गांव वाले उस वजह पर 'सच' होने की मोहर लगा देते हैं।''
"यानि?"
"माताजी के अलावा भी बापूजान की कोई पत्नी थी और हमारे अलावा भी कोई औलाद—यह बात गांव वालों ने भी प्रमाणित की है और वह बीस साल पहले की गई उनकी करतूत की मुकम्मल वजह है।"
ब्लैक ब्वॉय बोला—"इसमें भी एक पेंच है सर!"
"वह क्या?"
"ठाकुर साहब के मुताबिक बीस साल पहले उन्होंने सिर्फ उन परिवारों को अपना निशाना बनाया जिनके मुखियाओं ने आरती और सुलभा के साथ मुंह काला किया था, जबकि गांव वालों के अनुसार अन्य परिवार भी उनका निशाना बने थे।"
"तुम भूल रहो हो कि उस घटना की वजह से बापूजान की नजरों में सारा गांव दोषी है—क्योंकि वे चुपचाप खड़े सारा तमाशा देखते रहे—किसी ने आगे बढ़कर उनकी कथित बेटी और पत्नी की मदद नहीं की।"
"करेक्ट।"
"अब आता है सबसे अहम और खोपड़ी नचा देने वाला पॉइंट।" विजय ने कहा—"बापूजान कहते हैं कि वे हम सबका क्रियाकर्म सिर्फ इसलिए कर देना चाहते हैं क्योंकि हम उनकी जिंदगी के सबसे काले अध्याय को जान गए हैं। क्या तुम लोग उनके इस कथन से सहमत हो?"
"अगर सच्चाई पूछें गुरु तो वह ये है कि सहमत होने को जी नहीं चाहता।" विकास ने कहा—"यह कोई ऐसी वजह न हुई कि वे हम सबका कत्ल कर देने पर आमादा हो जाएं—अगर उनको इल्म हुआ है कि हम उनकी जिंदगी के काले अध्याय को जान गए हैं तो उन्हें करना यह चाहिए था कि सबकुछ खुले दिल से हमारे सामने स्वीकार करते और खुद को कानून के हवाले कर देते।"
"अपने मन और उनके करेक्टर को खूंटी पर टांगकर बात करो प्यारे।" विजय ने बुरा-सा मुंह बनाते हुए कहा—"क्योंकि इस वक्त हम मन से नहीं दिमाग से तर्क-वितर्क कर रहे हैं—और यदि बापूजान का कोई करेक्टर होता तो अपना गुनाह कबूल करके खुद को कानून के हवाले करने वाला काम बीस साल पहले कर चुके होते।"
विकास चुप रह गया।
"अब जरा दिमाग से सोचकर बताओ कि क्या सिर्फ इसीलिए बापूजान हमारा कत्ल करने पर आमादा हो सकते हैं—क्योंकि हम उनकी जिंदगी का काला अध्याय जान गए?"
"माफ करना गुरु, मुझे ये वजह पर्याप्त नहीं लग रही।"
"हमें भी नहीं लग रही, इसी बात पर तो हमारा जोर है।" विजय ने कहा—"लेकिन यदि फिर भी मान लिया जाए कि बापूजान का दिमाग जरूरत से कुछ ज्यादा खराब हो गया है और वे महज इसी वजह से हम सबका क्रियाकर्म करने पर आमादा हो गए हैं तो सीधे-सीधे हम सबको गोली मार देनी चाहिए।"
"मतलब ?"
"उसकी वजह कहां है जो कुछ वे चौपाल पर करना चाहते थे?" विजय ने सवाल किया—"वे हमें तड़पा-तड़पाकर मारना चाहते हैं, माताजी का बुरी तरह अपमान करते हैं—उन्हें गालियां ही नहीं देते, बल्कि अश्लील बातें भी करते हैं—कहां है इन सबकी 'वजह'— केवल उनके काले अध्याय के बारे में हमारा जान लेना इसकी मुकम्मल 'वजह' हरगिज नहीं हो सकती—तुम्हारा क्या ख्याल है काले लड़के, क्या उस सबकी ये मुकम्मल वजह हो सकती है?"
"हरगिज नहीं।"
"तो फिर कहां है 'वजह'?"
दोनों चुप।
"वह कोई दूसरी ही वजह है और उस वजह को तलाश करना हमारा काम है।" विजय ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा—"शायद उस वजह के पीछे ही इस पहेली का हल छुपा है कि बापूजान इतने क्रूर, इतने हिंसक और जंगली भेड़िए की तरह पागल क्यों हो उठे हैं—उस मुख्य और मुकम्मल वजह को वे छुपा रहे हैं, किंतु छुपाने के लिए 'वजह' का सहारा उन्होंने लिया है, वह बहुत लचीली है।''
"मैं आपसे सहमत हूं गुरु।" विकास ने कहा।
"दूसरी तरफ अभी तक हम यह नहीं जान पाए हैं कि वे हम सबके सीक्रेट एजेंट होने का राज कब जाने—उन्होंने कैसे जाना कि काला लड़का सिर्फ 'डमी' है, वास्तविक चीफ मैं हूं।"
"वाकई—यह बात बड़ी रहस्यमय है सर, यह पता लगाना अलग बात है कि हम सब सीक्रेट एजेंट हैं, जबकि यह पता लगाना अलग कि वास्तविक चीफ कौन है? इतनी अंदर की बात उऩ्हें कहां से और कैसे पता लगी?"
"पता लगाने के बाद बापूजान के साथ-साथ उस जरिए को भी खत्म करना होगा।"
विजय बड़बड़ाया—"समझ में नहीं आता कि वह बात उन्हें कैसे पता लग गई जो सिर्फ और सिर्फ हम तीनों को पता है।"
"तो प्यारे हमारी इस बहसम—बहस का लब्बो-लुआब ये कि बापूजान का क्रियाकर्म करने के अलावा उनकी सनक की 'मुकम्मल वजह' फूलवती से उनके प्रगाढ़ संबंधों की गहराई और उस जरिए को जानना भी हमारा काम है, जिससे उन्हें इतने तगड़े-तगड़े रहस्य पता लगे—अब यही हमारा अभियान है।"
"हमें निर्धारित कर लेना चाहिए कि इन सब उद्देश्यों में किस तरह कामयाबी हासिल करेंगे?" ब्लैक ब्वॉय ने राय दी।
विजय बोला—"रात हम ठीक से नहीं समझ पाए थे कि बापूजान और हमारे बीच इस स्तर की जंग जारी हो चुकी है, कदाचित्त् इसीलिए सुबह होते ही इतनी बुरी तरह फंस गए कि किसी के वश में कुछ नहीं रहा—पुनः ये स्थिति न बन पाए, इसके लिए सबसे पहले हमें अपने दिमाग में यह ठूंसना होगा कि जिससे मुकाबला है वे हमारे 'कोई' नहीं, बल्कि विशुद्ध मुजरिम हैं। ऐसा मुजरिम जो अपना दांव लगने पर हमारे साथ कोई रहम नहीं बरतेगा, अतः हमें पूरी तरह तैयार ही नहीं रहना है, बल्कि आक्रमण भी करना है—हमारे और उनके बीच खूनी जंग जारी हो चुकी है।"
"मैं आपसे सहमत हूं।"
विजय ने विकास से पूछा—"और तुम?"
"म...मैं भी।" बौखलाकर विकास ने कहा।
उसे बुरी तरह घूरते हुए विकास ने कहा—"तुम कुछ 'हिचकते' से नजर आ रहे हो प्यारे दिलजले।''
"ऐसी बात नहीं गुरु!" विकास संभलकर बोला—"सिर्फ यह सोच रहा था कि इस बार मुजरिम के रूप में सामने कौन है, ठाकुर नाना—उनके बारे में पहले शायद ही किसी ने कोई ऐसी कल्पना की हो—हम लोग स्वप्न में भी नहीं सोच सकते थे कि एक दिन ऐसा भी आएगा—गुमटी की यात्रा पर रवाना होते वक्त हम जिससे टकराने जा रहे हैं, वे हमारे बीच में से हैं, हम सबके पूजनीय हैं—ठाकुर निर्भयसिंह।"
"आज एक रहस्य की बात बताएं प्यारे!"
"क्या?" विकास चौंका।
"इस दुनिया में व्यक्ति कहलाने वाले जितने जीव घूम रहे हैं, तुम इनके गाल, आंख, नाक, कान और होंठ आदि देखकर कहते हो कि मैं फलां का चेहरा देख रहा हूं मगर नहीं, ये गलत है—आप उस वक्त भ्रमित हो रहे होते हैं—वास्तव में आपकी आंखों के समाने उसका चेहरा नहीं, बल्कि सिर्फ 'मुखौटा' होता है—अपना असली चेहरा तो हर व्यक्ति उस मुखौटे के पीछे छुपाए हुए है—ठीक उसी तरह जैसे बापूजान छुपाए हुए थे—गुमटी में हुए नरसंहार की बात तो छोड़ो—क्या आज से पहले उन्होंने हममें से किसी को यहां तक कि अपनी पत्नी को भी इल्म होने दिया कि उनकी एक और पत्नी और बेटी भी हैं—नहीं, अपने इस सच्चे चेहरे को वे उस मुखौटे के पीछे छुपाए रहे जिसे हम 'बुद्धि भ्रम' के कारण चेहरा कहते है—लगभग हर व्यक्ति ने यह मुखौटा चढ़ाया हुआ है—मैंने और तुमने भी—तुम अपने मुखौटे के पीछे सीक्रेट एजेंट हो और मैं भारतीय सीक्रेट सर्विस का चीफ—अतः जब किसी का भी मुखौटा हटे और तुम्हें उसका वास्तविक चेहरा दिखाई दे तो हैरत मत करो, ये सोचो कि ऐसा तो होता ही है—हां, इस बात पर अफसोस जरूर करो कि मुखौटे के पीछे छुपे हम सामने वाले के वास्तविक चेहेरे को पहले क्यों नहीं देख पाए?"
"आज तो अजीब दार्शनिक किस्म की बातें कर रहे हो गुरु!"
एक ठंडी सांस लेने के बाद विजय ने कहा—"अब हम एक और ऐसी बात कहने जा रहे हैं प्यारे! जो तुम दोनों के होश उड़ा देगी, हमारे होश तो वह पहले ही उड़ाए हुए है।"
"ऐसी क्या बात है?"
"इस केस के अंत में हम तीनों के चेहरे से भी कोई मुखौटा हटने वाला है।"
"क्या मतलब?" ब्लैक ब्वॉय चौंका।
"हम तीनो में से कोई एक 'गद्दार' है।"
"क...क्या?"
"कुछ देर पहले तुमने खुद कहा था प्यारे दिलजले कि बापूजान को एक ऐसा रहस्य भी पता है जिसे दुनिया में सिर्फ हम तीनों ही जानते हैं—जाहिर है कि वह रहस्य हम तीनों में से ही किसी से कहीं लीक हुआ।"
"न...नहीं।" एक साथ दोनों ने एक-दूसरे के मुंह से सख्त किस्म का प्रतिरोध निकला और फिर उन दोनों ने एक-दूसरे को बड़ी ही गहरी नजरों से देखा। विकास पुनः पलटकर विजय की तरफ देखता हुआ बोला—"मैं कुछ भी कर सकता हूं गुरु, मगर आपकी कसम झूठी नहीं खा सकता और आप ही की कसम खाकर कहता हूं कि मुझसे यह राज कहीं और किसी भी हालत में लीक नहीं हुआ।"
ब्लैक ब्वॉय ने कहा—"और मेरा यह दावा है सर कि यदि मैं इस राज को लीक करने का गुनाहगार पाया जाऊं तो आप मेरे जिस्म के इतने टुकड़े कर देना, इतने कि जिन्हें सदियों तक गिना न जा सके।"
"तो फिर खुद मुझसे लीक हुआ होगा।"
"हरगिज नहीं।" दोनों एक साथ बोल उठे—"ऐसा तो हम सोच भी नहीं सकते।"
"अभी-अभी लंबी स्पीच देकर समझाया था प्यारों! कि होगा वही जो हमने कभी सोचा नहीं—जब मुखौटा हटता है तो हम चकित रह जाते हैं—किसने सोचा था कि बापूजान का असली चेहरा ये होगा—गुनहगार हम तीनों में से ही कोई नहीं है। वह कौन है? यह तब खुलेगा जब पता लगेगा कि बापूजान को हमारे सीक्रेट चीफ होने का पता कहां से लगा, मुमकिन है कि तुम दोनों में से किसी को आश्चर्य हो, मगर हमें नहीं होगा, क्योंकि बापूजान की घटना ने हमें यही सिखाया है कि किसी भी मुखौटे के पीछे से कोई भी चेहरा प्रकट हो सकता है। मुखौटा जितना खूबसूरत होता है, चेहरा उतना ही वीभत्स, बापूजान की तरह।"
उनके बीच गहरा सन्नाटा खिंच गया।
काफी देर तक किसी के मुंह से कोई लफ्ज न निकला—दिल अजीब शंकित से अंदाज में धड़क रहे थे और फिर इस तनावपूर्ण सन्नाटे पर वार विजय ने ही किया। बोला—"खैर, इस बारे में सोचकर अभी से अपना दिमाग खराब करने से बेहतर है ये सोचा जाए कि आगे की जंग किस तरह लड़ी जानी है?"
कोई कुछ न बोला, दिमाग वहीं मंड़रा रहे थे।
विजय ने पुनः कहा—"हमारी जंग का सबसे पहला कदम माताजी, रैना बहन, मोन्टो और तुलाराशि से छुटकारा पाना होना चाहिए।
"क्या मतलब ?" ब्लैक ब्वॉय के मुंह से निकला।
"इन चारों को अपने साथ रखकर हम ये जंग सही ढंग से नहीं लड़ सकते।"
"क्यों ?"
"सबसे पहली बात तो ये कि जंग में कहीं भी ऐसा स्पॉट आ सकता है कि बापूजान हममें से किसी को सीक्रेट एजेंट कहकर पुकारें या उन्हें गिरफ्त में लेकर हम उनसे यह जानना चाहें कि उन्हें हमारे सीक्रेट एजेंट होने का पता कब और कैसे लगा—इस संबंध में कोई बात इन चारों के सामने नहीं की जा सकेगी—दूसरी वजह ये कि माताजी, रैना जंग में कोई मदद तो कर नहीं पाएंगी, उल्टे उनके साथ रहते हम कमजोर बने रहेंगे—वैसे ही किसी हालात से बचने के लिए जैसे आज सुबह चौपाल पर थे, हमें उन्हें खुद से दूर रखना चाहिए।"
"मैं सहमत हूं सर।"
विकास ने पूछा—"मगर ये होगा कैसे?"