रात को 'पार्टी ऑन’ बार में फिर उसकी और निरंजन की महफिल सजी।

हालांकि इस बार वे बार के मुख्य हॉल में बैठने की जगह एक प्राइवेट रूम में बैठे थे, जो थोड़े एक्स्ट्रा चार्ज पर लोगों को उपलब्ध कराया जाता था।

उन दोनों ने वो जगह इसलिए चुनी थी क्योंकि आज उनका इरादा प्रताप मर्डर केस पर चर्चा करने का था, जो कि बाहर मुख्य हॉल में अन्य ग्राहकों की उपस्थिति में करना थोड़ा अजीब होता।

वैसे भी ऋषभ और निरंजन को तो उस कमरे के लिए एक्स्ट्रा चार्ज भी नहीं देना था।

उन्हें तो वहां शराब भी महीने भर मुफ्त मिल सकती थी। देवेश शुरूआत में उनके बिल भरने को लेकर बहुत नाराज होता था। लेकिन ऋषभ और निरंजन भी इस बात पर अड़ जाते थे कि वे पिएंगें तो मुफ्त की नहीं पिएंगें।

आखिरकार एक शर्त पर तीनों के बीच मामला सैटल हुआ।

हफ्ते में दो-दो दिन का बिल ऋषभ और निरंजन भरते थे और तीन दिन का देवेश भरता था।

हालांकि ऋषभ और निरंजन को उसके तीन दिन बिल भरने को लेकर भी आपत्ति थी लेकिन देवेश ने कड़ाई से कह दिया था कि चूंकि वो बार का मालिक था इसलिए एक दिन का एक्स्ट्रा बिल तो वो भरेगा ही।

ऋषभ और निरंजन का ऑफर था कि तीनों दो-दो दिनों का बिल भरा करते और हफ्ते के सातवें दिन का बिल तीनों आपस में बांट लेते।

''कम्बख्तों।’’-उनके इस ऑफर पर देवेश ने वितृष्णा के साथ कहा था-''ऐसे खाने-पीने की चीजों का हिसाब-किताब लड़कियां करतीं हैं। कुछ तो शरम करो।’’

देवेश फिलहाल उनके साथ नहीं था। वैसे भी अपराधिक मामलों से जुड़ी चर्चाओं में वो रस नहीं लेता था। वो या तो उनका मजाक उड़ा देता था या उनकी बातों को बिल्कुल ही नजरअंदाज कर देता था।

ऋषभ निरंजन को आज सनशाइन अपार्टमेंट्स में उसने जो कुछ देखा था, रूपाली, कमलकांत और गार्ड रामधन से जो कुछ भी पता चला था, वो सब बता चुका था।

''हूं।’’-निरंजन ने अपने गिलास से व्हिस्की का घूंट भरते हुए गम्भीरता से सिर हिलाया-''तो शरलॉक होम्स बनने की राह पर अग्रसर हो? वैरी गुड।

''बकवास मत करो, यार।’’

वो हंसा, फिर तत्काल ही संजीदा भी हुआ।

''मैंने अभिलाष से तुम्हारे काम के लिए कहा था।’’-उसने कहा।

''कौन अभिलाष? कौन-सा काम?’’

''अरे मेरा साइबर टीम वाला दोस्त। कमलकांत का बायोडाटा चैक करने के लिए कहा है उससे। उसने बताया थोड़ा समय लगेगा।’’

''समय लगेगा? साइबर एक्सपर्ट को भी समय लगता है? मैं तो सोचता था कि इंटरनेट से जानकारी निकालने के काम चुटकियोंं में हो जाते होंगें।’’

''बोलने की बातें हैं। इंटरनेट से जुड़े सारे काम भी चुटकियों में नहीं होते। कभी-कभी तो बहुत समय लग जाता है। साइबर एक्सपर्ट भी सारा-सारा दिन कम्प्यूटरों पर सिर खपाते रहते हैं, तब जाकर जानकारी निकाल पाते हें। वैसे अभिलाष का कहना था कि ऊपरी तौर पर तो कमलकांत का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं मिला है। गहराई से टटोलने पर शायद कुछ पता चले।’’

''ठीक है।’’

''वैसे मैंने उसे केस की जानकारी भी दी थी।’’

''तुमने उसे बताया कि हम लोग प्रताप वाली घटना को लेकर उसके बारे में जानकारी चाहते हैं?’’

''हां भई। बताना पड़ा। वो पुलिस स्टेशन में ही काम करता है। और इस वक्त ये मर्डर केस ताजा मामला है। पुलिस वालों के बीच इसी केस की चर्चा रहती है।’’

''उसने कुछ कहा नहीं? कि तुम कमलकांत के बारे में जानकारी क्यों निकलवाना चाहते हो?’’

''कहा। मैंने कह दिया कि एक न्यूज रिपोर्टर दोस्त मामले में दिलचस्पी ले रहा है। वही कमलकांत को टटोलना चाहता है। वैसे भी अभिलाष मेरे बारे में भी जानता है। क्राइम केसेज की इन्वेस्टिगेशन को लेकर मेरी खब्त को भी जानता है। इसलिए उसने ज्यादा पूछताछ नहीं की।’’

''यानि अभी और इंतजार करना पड़ेगा।’’

''कमलकांत की हिस्ट्री-अगर कोई है तो-जानने के लिए तो इंतजार करना ही पड़ेगा। लेकिन एक मजेदार चीज है। शायद तुम देखना चाहो।’’

''कैसी मजेदार चीज?’’

निरंजन ने अपना मोबाइल निकाला और उससे छेड़छाड़ करते हुए बोला-कमलकांत के सोशल मीडिया एकाउंट्स को खंगालने पर कुछ मजेदार चीजें पता चली हैं।

''तुमने उसका सोशल मीडिया एकाउंट ढूंढ लिया?’’

''मैंने नहीं ढूंढा। ढूंढा अभिलाष ने ही। आजकल सोशल मीडिया एकाउंट चैक करना किसी अपराध की इन्वेस्टिगेशन में बहुत फायदे का हथियार साबित हो रहा है। जिसके बारे में भी पता लगाना हो, वो सोशल मीडिया पर किन लोगों के संपर्क में था, किस तरह की पोस्ट करता था, सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताता था या कम, यहां तक कि कभी-कभी तो किस वक्त किस जगह पर मौजूद था, ये भी पता लग जाता है। तुम्हारे कमलकांत के सोशल मीडिया रिकॉर्ड की जांच में भी कुछ अजीब चीजें सामने आईं हैं।’’

''कैसी अजीब चीजें?’’

निरंजन ने उसे मोबाइल पर कुछ फोटुएं और पोस्ट्स दिखाईं।

उन फोटुओं में कमलकांत एक युवती के साथ था, जिसने अपना चेहरा उस तरह के मास्क से ढंका हुआ था, जैसा बीमारी से बचाव के लिए आजकल आमतौर पर बाजारों में बिकता है। चेहरे पर मास्क के अलावा युवती ने सनग्लासेज भी पहन रखे थेे। हालांकि उसके बाल खुले हुए थे। उसने स्कूल ड्रैस पहन रखी थी।

''कौन है ये लड़की?’’-ऋषभ ने पूछा।

''ये पार्टी गर्ल के नाम से मशहूर हो रक्खी है। मशहूर मतलब एकदम ज्यादा भी मशहूर नहीं। लेकिन तुम तो जानते हो, आजकल सोशल मीडिया पर लोग दस फॉलोअर भी बना लेते हैं तो खुद को सेलीब्रिटी समझने लगते हैं। और लड़कियां तो अपनी सैंडल का भी फोटो डाल देती हैं तो उन पर सैंकड़ों लाइक आ जाते हैं। कुछ ऐसी ही हालत इस पार्टी गर्ल की भी है। इसे भी इसी तरह की एक सेलीब्रिटी समझ लो।’’

''पार्टी गर्ल? इसका असली नाम क्या है?’’

''असली नाम सुनीता है। वैसे ये पार्टी गर्ल के नाम से ही सोशल मीडिया पर फेमस है। और कमलकांत इसका दीवाना है।’’

''दीवाना है?’’

''हां। पिछले काफी अरसे से इसकी हर पोस्ट पर अपनी नियमित उपस्थिति दर्ज कराता रहा है। लव रिएक्शन, कमेंट, शायरी से बढ़ते-बढ़ते बात दोनों की एंगेजमेंट तक पहुंच गई।’’

''कमलकांत ने इस लड़की से सगाई कर ली?’’

''फेसबुक पर तो कर ही ली। लेकिन मुद्दा इन दोनों की सगाई का नहीं है। मुद्दा है’’-उसने एक और तस्वीर ओपन की, जिसमें कमलकांत एक दूसरी लड़की के साथ नजर आ रहा था-''ये लड़की कौन है?’’

''ये तो कोई और लड़की है।’’

''हां। इस लड़की के साथ कमलकांत की येे एक ही पोस्ट मिली है फिलहाल। लेकिन नीचे कमेंट में इनकी जो बातचीत है, उससे लगता है इनके बीच भी लंबे अरसे से बातचीत होती रही है। इस लड़की वाली पोस्ट और पार्टी गर्ल वाली सभी पोस्ट के लिंक मैं तुम्हें सेंड कर रहा हूं। उन्हें चैक करना। शायद कुछ काम की बात निकल आए।’’

''बहुत सारी पोस्ट्स हैं।’’-ऋषभ अपना मोबाइल निकालकर स्क्रीन स्क्रॉल करते हुए बोला-''इन्हें रात में फुर्सत में ही चैक करूंगा।’’

''चैक करना। और बताना क्या-क्या दिखा।’’

''ठीक है।’’

अब इस पोस्ट को फिर देखो।-निरंजन ने वो वाली पोस्ट फिर दिखाई, जिसमें कमलकांत पार्टी गर्ल के अलावा दूसरी लड़की के साथ था-देखो लड़की का नाम क्या है?

ऋषभ ने पोस्ट की हैडिंग पर नजर मारी।

''पोस्ट से तो लगता है कि इस लड़की का नाम सुनीता है।’’-वो हैडिंग पढ़कर बोला।

''गुड। अब जरा लड़के का नाम पढऩे का भी कष्ट कर लो।’’

''लड़के का नाम? पर वो क्यों? कमलकांत का नाम तो हमें पता है।’’

''पता है लेकिन पोस्ट में तो पढ़ो।’’

ऋषभ ने पोस्ट के नीचे लिखी पंक्तियों पर नजर मारी।

उसकी आंखें फैल गईं।

वहां लिखा था-

मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती। हम दोनों जल्द ही नई जिंदगी की शुरूआत करेंगें। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं, अमर।

घर लौटने के बाद ऋषभ रात में देर तक निरंजन के भेजे उन लिंक्स वाली पोस्ट्स को खंगालता रहा।

उन पोस्ट्स को देखने के बाद वो इस नतीजे पर पहुंचा कि-

कमलकांत 'पार्टी गर्ल’ सुनीता को काफी समय से फॉलो कर रहा था।

दोनों एक-दूसरे को टैग करके रूमानी पोस्ट्स किया करते थे।

और उन पोस्ट्स से तो यही लग रहा था कि कमलकांत और पार्टी गर्ल के बीच बात बहुत आगे बढ़ चुकी थी।

अगले दिन ऋषभ के बुलाने पर निरंजन उससे मिलने उसके स्टूडियो वाले रूम में पहुंचा, जहां उसने निरंजन को बताया कि उन पोस्ट्स का विश£ेषण करने के बाद वो किस नतीजे पर पहुंचा था।

''एग्जैक्टली।’’-निरंजन ने कहा-''मेरा भी यही ख्याल है।’’

''क्या ख्याल है?’’

''कि कमलकांत और इस पार्टी गर्ल के बीच मामला बहुत आगे बढ़ गया है।’’

''बढ़ भी गया है तो उससे क्या?’’

निरंजन ने घूरकर उसे देखा।

''क्या हुआ?’’-ऋषभ ने मासूमियत से कहा।

''अंधे को भी साफ दिखाई दे रहा है कि ये कमलकांत कुछ गड़बड़ कैरेक्टर है। और तू कह रहा है कि क्या हुआ?’’

''गड़बड़ कैरेक्टर? तूने ही तो कहा था कि उसके कागजात चौकस पाए गए थे। कैनेडा में जॉब करता है। वीजा, पासपोर्ट सब ओके है उसका।’’

''कैनेडा में जॉब करने वालों के बारे में एक बात शायद तुझे नहीं पता।’’

''और वो कौन-सी बात है?’’

''कैनेडा में जॉब करने वाले अपने रिश्ते के लिए भटकते नहीं। बल्कि लोग उनके साथ रिश्ता करने के लिए भटकते हैं।’’

''ओह।’’-ऋषभ ने समझने वाले भाव से सिर हिलाया।

''ये कैसा कैनेडा से आया हुआ, बड़ी कंपनी में काम करने वाला इंसान है, जो इतना हैण्डसम, इतना बांका जवान होने के बाद भी सोशल मीडिया पर रील डालने वाली लड़की के प्यार में ऐसा पागल हुआ पड़ा है कि यहीं आकर पड़ा हुआ है। इसके लिए लड़कियों की कोई कमी होनी थी?’’

''कहते हैं लैला काली थी। पर मजनू फिर भी उस पर मर मिटा था।’’

''तुझे ये लैला मजनू की जोड़ी दिखाई देती है?’’

''दिखाई तो नहीं देती। बल्कि मुझे तो पता भी नहीं था कि इन दोनों की जोड़ी भी है। कल तूने बताया और लिंक भेजे, तभी पता चला।’’

''अब पता चल गया न? अब बता। तुझे ये लैला-मजनू की जोड़ी दिखाई देती है?’’

ऋषभ ने इनकार में सिर हिलाया।

''गुड। हमें इस कमलकांत के बारे में और खुदाई करनी होगी।’’

''फायदा?’’

''फायदा हो भी सकता है। और नहीं भी हो सकता है। अब कोई हमें यहां आकर गारंटी तो देने से रहा कि हम जो सोच रहे हैं, वो सही ही है। हो सकता है इनकी प्रेम कहानी का प्रताप के मर्डर से दूर-दूर तक का कोई वास्ता न हो।’’

''ठीक है। खुदाई कहां से स्टार्ट करेंगें?’’

''और कहां से स्टार्ट करेंगें? एक ही तो जगह है।’’

''कौन-सी?’’

''उसका फ्लैट।’’

''फ्लैट? उसके फ्लैट की खुदाई कैसे करेंगें? एक बार तो जा चुका हूं उससे मिलने। बार-बार जाऊंगा तो वो शक नहीं करेगा?’’

''उसकी उपस्थिति में मत जाना भाई। जब वो घर पर नहीं हो, तब जाना।’’

''घर पर नहीं हो? गार्ड ने तो बताया था कि उसका घर पर होने या न होने का कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं होता।’’

''ये तो गड़बड़ है।’’

''वैसे’’-ऋषभ ने सोचते हुए कहा-''गार्ड ने कहा था कि शाम में 5 बजे वो नियम से कहीं जाता है।’’

''किसी रेस्टोरेंट वगैरह में जाता होगा। घूमने, तफरीह करने जाता होगा।’’

''यानि वो टाइम उसके फ्लैट में घुसकर तलाशी लेने के लिए बढिय़ा है।’’

''हां। हम एक साथ दो काम करेंगेें।’’

''दो काम?’’

''एक आदमी उसके फ्लैट की तलाशी लेगा। एक उसका पीछा करके ये पता लगाएगा कि वो कहां जाता है?’’

''पीछा करके? ये तो बिल्कुल जासूसी करने वाली बात हो गई।’’

''भाई मेरे, ये जो हम कर रहे हैं, ये सत्संग नहीं है। जासूसी ही है।’’

''ठीक है। लेकिन हमें ये पता लग भी गया कि वो रोज शाम 5 बजे कहां जाता है तो वो हमारे किस काम का साबित होगा?’’

''वो जहां जाता है, ये भले ही हमारे काम का नहीं हो। लेकिन हमारा उद्देश्य है उस पर नजर रखना। जिससे फ्लैट में तलाशी लेने के दौरान वो एकदम से तलाशी लेने वाले के सिर पर न सवार हो जाए।’’

''तलाशी कौन लेगा?’’

''तू बता। अगर तू उसका पीछा करना चुनता है तो तलाशी मैं लूंगा। अगर तू तलाशी लेना चुनता है तो मैं पीछा करूंगा।’’

''ये पीछा-वीछा मुझसे नहीं हो पाएगा। वैसे भी तेरी उससे कहां बात हुई होगी? पीछा करते हुए तेरी एकाध झलक उसने देख भी ली तो भी वो शायद ध्यान न दे। लेकिन मुझे देख लेगा तो जरूर शक करेगा कि उस दिन ये आदमी मेरे फ्लैट पर आकर पूछताछ कर रहा था। आज मेरे पीछे क्यों लगा हुआ है।’’

''गुड। सही दिमाग दौड़ाया। तो तय रहा। तुम उसके फ्लैट की तलाशी लेना। और मैं उसका पीछा करूंगा।’’

''लेकिन मैं उसके फ्लैट में घुसूंगा कैसे?’’

''उसकी चिंता मुझ पर छोड़ दो।’’

निरंजन और ऋषभ सनशाइन अपार्टमेंट्स के बाहर डेरा डाले हुए थे।

वे बिल्डिंग के सामने सड़क पार दाहिनी ओर से थोड़ी दूरी पर एक चाय दुकान के बगल में खाली जगह पर दीवार से टिके खड़े थे, जहां से बिल्डिंग का प्रवेशद्वार तो साफ-साफ दिखाई देता था लेकिन प्रवेशद्वार से निकलते हुए किसी शख्स की एकदम से उस दुकान पर नजर पडऩे की संभावना कम ही थी।

निरंजन ने ऋषभ की ओर एक छोटी सी थैली जैसी बढ़ाई, जिसकी चैन बंद थी।

ऋषभ ने थैली उससे लेकर चैन खोलकर अंदर झांका तो अंदर उसे एक चाभी दिखाई दी।

''ये क्या है?’’-उसने निरंजन की ओर देखा।

''चाभी।’’

''वो तो मुझे भी दिख रहा है। कैसी चाभी है ये?’’

''मास्टर की। सारे फ्लैट के तालों को खोलने वाली। जिसे कहते हैं न, सारे मर्जों की एक ही दवा।’’

''ये तेरे पास कहां से आई?’’

''मैंने बनवाई है।’’

''किससे?’’

''अपने एक दोस्त से। जो इस तरह के कामों में माहिर है।’’

''तेरा ऐसा भी कोई दोस्त है?’’

''तुझे क्या पता मेरे कैसे-कैसे दोस्त हैं? एक तो तू ही है। और तू भी कुछ कम नहीं है।’’

''लेकिन तुझे ऐसी चाभी की जरूरत क्यों पड़ी?’’

''मुझे नहीं। तुझे।’’

''मुझे क्या जरूरत पड़ेगी?’’

''तूने ही तो कहा था तुझे कमलकांत के फ्लैट में घुसना है।’’

''हां।’’

''तो बिना चाभी के कैसे घुसेगा, मेरे बाप?’’

''ओह।’’-ऋषभ ने चाभी उठाकर उसे गौर से देखते हुए कहा।

उसके फ्लैट में घुसेगा तो ध्यान रखना। कोई देख न ले। चीजों से कम से कम छेड़छाड़ करना। वहां रखी चीजें ज्यादा इधर उधर हुईं तो लौटने पर उसे शक हो जाएगा कि उसकी पीठ पीछे फ्लैट में कोई घुसा था। और काम जल्दी निबटाने की कोशिश करना। वैसे तो मैं उसके पीछे जाऊंगा तो अगर वो जल्दी वापस लौटने लगा तो तुझे कॉल करूंगा। लेकिन फिर भी फ्लैट में ज्यादा समय नहीं लगाना।

''चिंता मत कर। उसके फ्लैट में ही सारा दिन गुजारने का कोई इरादा नहीं है मेरा। वैसे ऐसी कमाल की चीज तूने बनवा कैसे ली?’’-ऋषभ ने पूछा।

''तू आम खाने से मतलब रख। गुठलियां मत गिन। मैंने जिस बंदे से ये चाभी बनवाई है, वो बहुत करामाती है। ऐसी चाभियां बनाना तो उसके लिए मामूली कामों की श्रेणी में आता है। बड़ी बड़ी तिजोरियां चुटकियों में खोल लेता है बंदा।’’

''वाह। इतनी तारीफ कर रहा है तब तो इस शख्स से मिलने की इच्छा जाग गई।’’

''मिल भी लेना। फिलहाल जो काम हाथ में है उस पर फोकस कर।’’

''ठीक है।’’

''तलाशी लेना। मगर ध्यान रखना। कहीं होम करते, हाथ जले वाली स्थिति न हो जाए।’’

''मैं ध्यान रखूंगा।’’

निरंजन ने कलाई पर बंधी घड़ी पर नजर मारी। उन्हें वहां इंतजार करते काफी देर हो गई थी।

''ये साला कहीं काम-वाम करने जाता है या नहीं?’’-निरंजन ने मुंह बिसूरते हुए कहा।

''अमीर आदमी है। पैसों की क्या कमी होगी उसके पास? उसे काम करने की क्या जरूरत?’’

''फिर जब उसे कहीं जाना ही नहीं है तो हम यहां खड़े होकर क्या झक मार रहे हैं?’’

''अरे रिजक कमाने के लिए नहीं, लेकिन किसी-न-किसी काम से, तफरीह करने तो जाता होगा। सारा दिन घर में कैद होकर थोड़े ही रहता होगा?’’

''रहेगा तो हम क्या रोक लेंगेें उसे?’’

''फिर कुछ और आइडिया सोचेंगें।’’

''तू सचमुच ये करना चाहता है?’’

''करना तो नहीं चाहता। लेकिन इस बंदे में मुझे कुछ लोचा लग रहा है। वो लोचा इसके कमरे की तलाशी लेने पर ही पता चल सकता है।’’

''जब इसका कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं मिला तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि तू इस पर फालतू में शक कर रहा हो?’’

''हो सकता है मैं फालतू में ही शक कर रहा होऊं। लेकिन इस वक्त मेरा मूड ठीक नहीं है। जो कर रहा हूं, करने दे।’’

''लेकिन हम कब तक ऐसे...।’’

''वो आ रहा है।’’-ऋषभ ने तीव्र स्वर में कहा।

निरंजन की नजर भी बिल्डिंग के गेट की ओर घूम गई।

कमलकांत उसके दरवाजे से निकलकर सीढिय़ां भी उतर चुका था और अब पार्किंग की ओर बढ़ रहा था।

दोनों ने चेहरा दूसरी ओर फेर लिया, जिससे दूर से कोई देखे तो यही समझे कि वे आपस में बात कर रहे थे।

हालांकि उतनी दूर कमलकांत की उन पर ही नजर जाने की संभावना कम ही थी।

फिर उनके देखते-ही-देखते वो पार्किंग से अपनी कार लेकर रफू चक्कर हो गया।

''मैं चला’’-निरंजन ने बाइक स्टार्ट की-"तू अपना मोर्चा संभाल।"

उसके कमलकांत के पीछे जाने के बाद ऋषभ सनशाइन अपार्टमेंट्स की ओर बढ़ गया।

वो दूसरी मंजिल पर पहुंचा।

गलियारा उस वक्त खाली था।

ऋषभ सामान्य ढंग से चलते हुए कमलकांत के फ्लैट के सामने पहुंचा, फिर उसने एक सतर्क निगाह गैलरी के दोनों सिरों पर डाली।

फिलहाल तो वहां कोई नहीं था।

उस मंजिल पर स्थित फ्लैटों के दरवाजे भी बंद थे।

फिर भी उसे जो करना था, जल्दी करना था।

उसने निरंजन की दी हुई चाभी दरवाजे के लॉक में लगाई और घुमा दी।

इस दौरान उसके कान किसी भी तरह के खटके को लेकर सतर्क थे।

अगर कोई दरवाजा खुलता या सीढिय़ों या लिफ्ट से कोई ऊपर आ रहा होता तो उसे इस तरह कमलकांत के फ्लैट में घुसते देख लेने पर लेने के देने पड़ सकते थे।

लेकिन उसकी किस्मत से वैसा कुछ भी नहीं हुआ।

चाभी भी काम कर गई। अगले ही पल वो फ्लैट के अंदर था।

उसने खामोशी से फ्लैट की तलाशी लेनी शुरू की। उसकी कोशिश यही थी कि चीजों की स्थिति कम-से-कम परिवर्तित किए उन्हें देख सके।

अंदर वाले कमरे में उसे टेबल पर एक बैग रखा हुआ मिला।

बैग की ऊपर की चैन खुली हुई थी, जिससे कुछ कागज बाहर झांकते दिख रहे थे।

ऋषभ ने उन कागजों को निकालकर देखा।

वे कोर्ट मैरिज के कागज थे। हालांकि उन्हें देखकर पता चल रहा था कि वे कोर्ट मैरिज के लिए बनवाए गए थे। प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई थी। यानि वे कोर्ट मैरिज करने के लिए तैयार किए गए कागज ही थे। कोर्ट मैरिज अभी हुई नहीं थी।

उसे फ्लैट में और कोई भी उल्लेखनीय चीज नहीं मिली।

फिर वो जितनी खामोशी से फ्लैट में घुसा था, उतनी ही खामोशी से बाहर निकल कर फ्लैट का दरवाजा लॉक करके लिफ्ट की ओर बढ़ गया।

वो लिफ्ट से चौथी मंजिल पर पहुंचा।

रामधन से ही उसे पता चला था कि निरूपम शास्त्री फ्लैट नंबर 24 में रहते थे। उसने उक्त फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचकर डोरबेल बजाई।

दरवाजा खोलने वाले एक बुुजुर्ग शख्स थे, जो चेहरे से ही काफी प्रभावशाली लग रहे थे।

''मुझे निरूपम शास्त्री जी से मिलना है।’’-ऋषभ ने विनम्र स्वर में कहा।

''कहो? मैं ही हूं।’’

''मैं प्रैस से हूं।’’-ऋषभ ने अपना हाल ही में मिला प्रैस कार्ड-जो कि उसे बिना प्रैस की स्थाई नौकरी के ही प्राप्त हो गया था-उसे दिखाते हुए कहा-''दूसरी मंजिल पर प्रताप सालुंके का खून हुआ था। मुझे उस केस के संबंध में आपसे चंद सवालात करने थे। अगर आप बुरा न मानें तो।’’

''अरे मैं क्या बुरा मानूंगा।’’-शास्त्री ने दरवाजे के सामने से हटते हुए कहा-''आओ, आओ। अंदर आओ।’’

उसने ऋषभ को सोफे पर बिठाया, फिर खुद भी उसके बगल में बैठते हुए बोला-''अपनी चाची के हाथ की चाय पिओगे?’’

''जी?’’-पहले ऋषभ को हैरानी हुई, फिर वो जल्दी से बोला-''नहीं नहीं। चाय-कॉफी की कोई जरूरत नहीं है। मुझे गार्ड से पता चला कि उस रात आप दस बजकर दस मिनट पर बिल्डिंग के अंदर आए थे?’’

''हां।’’-उसने सहमति में सिर हिलाया-''ऐसा ही कुछ समय हुआ होगा।’’

''प्रताप के कत्ल का समय भी इसके आसपास का ही था।’’

''तो?’’

''आप तो चौथी मंजिल पर रहते हैं।’’

''हां भई। वहीं जहां तुम बैठे हो।’’

''जी। उस रात ऊपर आते समय आपने कुछ संदिग्ध गतिविधि या किसी संदिग्ध व्यक्ति को देखा था?’’

''संदिग्ध को तो नहीं। लेकिन एक शख्स को देखा था।’’

''किसे? कहां?’’

''सौरभ को। दूसरी मंजिल के गलियारे में। करीब दस बजे प्रताप के फ्लैट से बाहर निकलते हुए।’’





इंस्पैक्टर प्रधान ने पलक की ओर देखा।

वो पुलिस स्टेशन में उसके ऑफिस में उसके सामने बैठी थी।

उसे प्रधान ने ही बुलाया था।

''तो उस दिन आप झूठ बोल रहीं थीं।’’-प्रधान ने कहा-''कि ऋषभ ने सौरभ को सनशाइन अपार्टमेंट्स के पिछले गेट से बाहर आते हुए नहीं देखा था।’’

पलक को दिल डूबता महसूस हुआ।

ऋषभ ने तो कहा था कि वो उसकी मदद करेगा।

क्या वो फिर पुलिस के पास दुहाई देता पहुंच गया था कि पलक ने फोटुएं गायब कर दी थीं? कैमरे का मेमोरी कार्ड चोरी कर लिया था?

''नहीं।’’-ऊपर से उसने दिलेरी से कहा-''आपसे ऐसा किसने कहा?’’

''जरूरी नहीं किसी ने कहा ही हो। कुछ बातें बिना कहे भी समझनी होती हैं।’’

पलक खामोश रही।

''खैर, मैंने आपको ये बताने के लिए यहां तलब किया है कि जेल में सौरभ पर कातिलाना हमला हुआ है।’’

ऋषभ को अपनी रीढ़ की हड्डी में चींटियां रेंगतीं-सी अनुभव हुईं।

पुलिस ने जो कत्ल का एग्जैक्ट समय निर्धारित किया था...

निरूपम शास्त्री के अनुसार उन्होंने करीब-करीब उसी समय सौरभ को प्रताप के फ्लैट से बाहर निकलते देखा था।

तो क्या सौरभ सचमुच...?

वो सब जो इतनी भागदौड़ कर रहे थे, वो जाया थी? बेकार थी?

सौरभ भी शुरू से लगातार कुछ छिपाता आ रहा था।

यहां तक कि पलक से भी।

''आपको पक्का यकीन है कि वो सौरभ ही था?’’-उसने पूछा-''कोई और नहीं था?’’

''आंखों के मामले में मैं थोड़ा कमजोर हूं। दूर से चेहरा धुंधला दिखाई देता है। पहचान नहीं पाता। लेकिन फिर भी मुझे पक्का यकीन है कि जिसे मैंने प्रताप के फ्लैट से बाहर आते हुए देखा था, वो सौरभ ही था।’’

''जब आप खुद कह रहे हैं कि आपकी नजर कमजोर है तो इसका मतलब आप यकीन से नहीं कह सकते कि वो सौरभ ही था?’’

''यकीन से तो कह रहा हूं कि वो सौरभ ही था। लेकिन मैं उसका चेहरा नहीं देख पाया था। बाकी कद-काठी से वो मुझे सौरभ ही लगा।’’

''जब वो फ्लैट से निकल रहा था, उस वक्त आप कहां थे?’’

''मैं सीढिय़ों से ऊपर जा रहा था। चौथी मंजिल पर। चौथी मंजिल पर जाते-जाते बीच में ही दूसरी मंजिल पर जाने लगा था।’’

''क्यों?’’

''हम लोग पहले दूसरी मंजिल पर ही रहते थे। लेकिन उस फ्लैट में प्लंबिंग की प्रॉब्लम थी। बार-बार ठीक कराने पर ठीक नहीं होती थी। इसके अलावा कमरे और किचन भी थोड़ा छोटा लगता था। मेरी पत्नी हमेशा जिद करती थी कि उसे बड़ा किचन चाहिए। इस मंजिल के फ्लैट के कमरे बड़े हैं। जब हमने इस बिल्डिंग में फ्लैट लिया था, तभी उसने इस मंजिल का फ्लैट पसंद किया था। लेकिन इसका किराया ज्यादा था। उस वक्त यही सोचकर दूसरी मंजिल पर फ्लैट लिया था कि किसी तरह काम चला लेंगें। अभी बेटे का प्रमोशन हो गया है तो उसने ज्यादा पैसे भेजने शुरू कर दिए हैं। अब हम भी चौथी मंजिल के फ्लैट का किराया अफोर्ड कर सकते हैं। इसलिए पत्नी के कहने पर-उसकी सुविधा को भी ध्यान में रखते हुए-हम लोग इस मंजिल पर ही शिफ्ट हो गए थे। लेकिन लंबे समय तक दूसरी मंजिल पर आना-जाना करने के कारण ही अब भी मेरी आदत सीढिय़ों से ऊपर आते समय दूसरी मंजिल की गैलरी में चले जाने की ही है। गैलरी में जाने के बाद ध्यान आता है कि अब तो चौथी मंजिल पर शिफ्ट हो चुके हैं। उस रात भी ऐसा ही हुआ था। मैंने गैलरी में कदम ही रखा था, जब मुझे याद आया था कि मुझे तो और ऊपर चौथी मंजिल पर जाना है। मैं सीढिय़ों की ओर मुढऩे ही लगा था, जब प्रताप के फ्लैट का दरवाजा खुला और सौरभ उससे बाहर निकला।’’

''वो शख्स बाहर निकला, जिसे आपने दूर से सौरभ समझा।’’

''वो सौरभ ही था।’’-शास्त्री ने विश्वास भरे स्वर में कहा।

''आपकी नजर कमजोर है तो आप चश्मा नहीं पहनते?’’

''पहनता हूं। लेकिन पहनना अच्छा नहीं लगता। आदत नहीं डालना चाहता। इसलिए चश्मा होते हुए भी बहुत कम ही पहनता हूं।’’

''बिल्डिंग में लिफ्ट होते हुए भी आप सीढिय़ों से ऊपर क्यों जा रहे थे?’’

''डॉक्टर ने काम करते रहने, शरीर को चलाते रहने के लिए कहा है। बहुत सारी बीमारियां शरीर को काम में लगाए रखने से भी दूर होती हैं। मुझे पता है मेरी उम्र के बहुत से लोगों को डॉक्टर सीढिय़ां ज्यादा चढऩे-उतरने से मना करते हैं। लेकिन मेरे साथ मामला उल्टा है। मैं लिफ्ट होते हुए भी सीढिय़ों का ही इस्तेमाल करता हूं। हां, कभी-कभार जल्दी हो, तब जरूर लिफ्ट का इस्तेमाल कर लेता हूं।’’

''फिर क्या हुआ? प्रताप के फ्लैट से वो सौरभ जैसा दिखने वाला शख्स बाहर निकला, उसके बाद क्या हुआ?’’

''सीढिय़ों से वापस ऊपर की ओर जाने से पहले मैंने देखा कि वो लिफ्ट की ओर जा रहा था। फिर मैं सीढिय़ों से चौथी मंजिल पर अपने फ्लैट में आ गया।’’

ऋषभ की आंखों के आगे कमलकांत की कद-काठी घूम गई।

वो भी तो सौरभ जैसा ही दिखता था।

बाकी उसकी शक्ल में काईयांपन झलकता था, जबकि सौरभ तो चेहरे से ही सीधा-सादा दिखता था।

लेकिन शास्त्री ने फ्लैट से निकलने वाले शख्स का चेहरा देखा ही कहां था?

''एक आखिरी सवाल और।’’

''वो भी पूछो।’’

''आपने ये सब पुलिस को क्यों नहीं बताया?’’

''क्योंकि पुलिस ने मुझसे पूछा नहीं।’’-उन्होंने निर्णायक स्वर में कहा।

''पूछा नहीं?’’

''हां।’’

''ऐसा कैसे हो सकता है? पुलिस तो उस रात बिल्डिंग में मौजूद हर व्यक्ति से पूछताछ कर रही है।’’

''मुझसे भी की थी।’’

''फिर?’’

''उन्होंने पूछा था-क्या मैंने किसी संदिग्ध व्यक्ति-या किसी तरह की संदिग्ध हरकत-को देखा था? मैंने कहा-नहीं।’’

''जबकि आपने देखा था।’’

''मैंने सौरभ को देखा था। और मैं उसे संदिग्ध नहीं मानता।’’

''लेकिन वो उस फ्लैट से निकल रहा था, जिसमें एक खून हुआ था।’’

''ये मुझे बाद में पता चला।’’

''लेकिन पता तो चला न? तब आपने पुलिस को क्यों नहीं बताया?’’

''पुलिस ने मुझसे पूछा ही नहीं कि मैंने प्रताप के फ्लैट से किसी को निकलते देखा था या नहीं?’’

ऋषभ ने आहत भाव वे उसकी ओर देखा।

''अंकल जी।’’-वो बोला-''पता नहीं आपको बात को उलझाने में क्या मजा आ रहा है। कृपा करके साफ-साफ बताइए, आपने जो देखा, वो पुलिस को क्यों नहीं बताया?’’

''तुम मेरे बेटे की उम्र के हो। तुम्हें वही समझकर जवाब दूं?’’

''बताइए।’’

''सौरभ भी मेरे बेटे की उम्र का ही है। और मुझे विश्वास है कि वो खूनी नहीं हो सकता। प्रताप का खून चाहे जिसने किया हो, सौरभ ने नहीं किया।’’

''लेकिन आपको पुलिस को सच तो बताना चाहिए था।’’

''मेरा सच सौरभ को ऐसे अपराध के इल्जाम में फंसा देता, जो उसने नहीं किया है। और वो पहले ही फंसा हुआ है। मैं उसकी गढ्ढे से निकलने में मदद करना चाहता हूं। उसे गढ्ढे में और धकेलने में मदद नहीं करना चाहता।’’

''ऐसा आप को लगता है कि सौरभ निर्दोष है।’’

''बेटा, वक्त की मार से ये आंखें कमजोर जरूर हो गईं हैं। लेकिन इन्होंने बहुुत दुनिया देखी है। मैं दूसरी मंजिल पर उस लड़के से थोड़ी दूर वाले फ्लैट में ही रहता था। मैं उससे मिला हूं। मैंने उससे बात की है। और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि उसने प्रताप का खून नहीं किया। अरे, मैं तो ये तक कहने के लिए तैयार हूं कि प्रताप से जो उसका झगड़ा होता था, वो सब भी ड्रामा था। वो नाटक कर रहा था। हालांकि वो नाटक वो किसलिए कर रहा था, ये मुझे नहीं मालूम।’’

''आपने नहीं बताया लेकिन पुलिस मुझसे पूछेगी तो मुझे तो बताना पड़ेगा न? या न्यूज में तो लिखना पड़ेगा।’’

''अगर तुमने ये सब पुलिस को बताया’’-शास्त्री ने कहा-''तो मैं साफ मुकर जाऊंगा। मैं पुलिस के सामने कह दूंगा कि मैंने इसमें से एक शब्द भी नहीं कहा। हां, अगर कातिल का पता लगाने में तुम्हें मेरे बयान से कोई मदद मिल जाए तो मुझे सचमुच बहुत खुशी होगी।’’

''कातिल का पता? अंकल जी, मैं प्रैस से हूं। कोई जासूस नहीं हूं।’’

बुजुर्गवार के होंठों पर वात्सल्यपूर्ण मुस्कान उभरी।

उन्होंनेे ऋषभ की पीठ पर इतनी जोर की धौल जमाई कि वो आगे को झुक गया।

''ये बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं, बेटे।’’-उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा-''तुम एक बार किसी काम को हाथ में ले लो, फिर उसे पूरा करके ही छोडऩे वालों में से हो। अब मैं निश्चिंत हूं कि बेगुनाह गुनाहगार को सजा नहीं होगी। तुम असली कातिल को जरूर ढूंढ निकालोगे। और जल्द ही ढूंढ निकालोगे।’’

ऋषभ अवाक-सा बुजुर्गवार को देखता रह गया।


निरूपम शास्त्री से मिलने के बाद सनशाइन अपार्टमेंट्स से निकलते हुए ऋषभ असमंजस में था।

कई सवाल उसके दिमाग में चक्कर काट रहे थे।

बेगुनाह गुनाहगार?

शास्त्री ने शायद वो शब्द सौरभ के लिए प्रयोग किया था।

लेकिन उस शब्द का अर्थ क्या था?

जो बेगुनाह हो वो गुनहगार कैसे हो सकता है?

और जो गुनहगार हो, वो बेगुनाह कैसे हो सकता है?

लेकिन वो ये नहीं जानता था कि उसे इसका अर्थ जल्द ही पता चलने वाला था।

ऋषभ स्टूडियो पहुंचा तो उसने स्टूडियो के दरवाजे पर पलक और निरंजन दोनों को अपना इंतजार करते पाया।

''क्या हो गया?’’-उसने दरवाजा खोलते हुए कहा।

''सौरभ पर जेल में एक कैदी ने हमला किया।’’-पलक ने व्याकुल स्वर में कहा।

दरवाजा खोलते हुए ऋषभ के हाथ ठिठक गए।

''वो ठीक तो है न?’’-उसने पूछा।

''वो ठीक है।’’-निरंजन ने कहा-''जिस कैदी ने सौरभ पर हमला किया था, वो ठीक नहीं है। दोनों के बीच मारपीट हुई। सौरभ ने उसका सिर दीवार में मार दिया। अब वो कैदी हॉस्पिटल में है।’’

''अरे।’’

''जेल में ऐसी घटनाएं होती रहतीं हैं। सौरभ ने भी पुलिस को बताया है कि वो कैदी एक-दो दिन से उससे खटक रहा था। आज उसने अचानक सौरभ पर हमला कर दिया तो सौरभ ने भी मुंह तोड़ जवाब दिया। कहावत वाला नहीं। सचमुच मुंह तोड़ दिया उसका।’’

ऋषभ ने समझने वाले भाव से सिर हिलाते हुए दरवाजा खोलकर स्टूडियो में प्रवेश किया। उसे याद हो आया, जब बार में सौरभ ने उसे धक्का दिया था तो वो बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल पाया था।

''तुम दोनों इसीलिए यहां हो?’’-उसने अपने रूम में आकर सोफे पर बैठते हुए कहा।

''इंस्पैक्टर मुझसे पूछ रहा था’’-पलक ने कहा, वो और निरंजन भी उसके सामने अगल-बगल पड़े सोफे पर बैठ गए-''कि तस्वीरों के बारे में मैंने झूठ बोला था।’’

''तो इसमें गलत क्या है? तुमने बोला तो था झूठ।’’

पलक ने आहत भाव से उसे देखा।

''सौरभ ने उस कैदी की जो हालत की है, उससे पुलिस को शक होने लगा है कि वो आदतन खूनी है।’’-निरंजन ने कहा।

''सौरभ कैसा भी खूनी नहीं है।’’-पलक ने कहा।

''वैसे मेरे पास भी एक लेटेस्ट न्यूज है।’’-ऋषभ ने कहा।

''कैसी न्यूज?’’

''सनशाइन अपार्टमेंट्स में रहने वाले निरूपम शास्त्री जी ने ऐन कत्ल के समय के आसपास सौरभ को प्रताप के फ्लैट से बाहर निकलते हुए देखा था।’’

कमरे में सन्नाटा छा गया।

''ऐसा कैसे हो सकता है?’’-पलक के मुंह से निकला।

''ऐसा ही है। हालांकि उन्होंने सौरभ का चेहरा नहीं देखा है। लेकिन फिर भी वे यकीन के साथ कह चुके हैं कि वो सौरभ ही था।’’

''तो अब क्या?’’-निरंजन मजाक उड़ाने वाले लहजे में बोला-''पहले बिल्डिंग के पिछले गेट से उसे निकलते तुमने देखा। तब सौरभ को बचाने के लिए पलक ने जी-जान लगा दी। इंस्पैक्टर प्रधान के सामने ऋषभ को झूठा बना दिया। अब तो उसे प्रताप के फ्लैट से बाहर निकलते हुए देखने वाला भी मिल गया है। अब क्या करना है?’’

''नहीं।’’-पलक ने कहा-''कुछ गलतफहमी हुई है। प्रताप के फ्लैट से जो बाहर निकल रहा होगा, वो सौरभ नहीं होगा।’’

''एक लेटेस्ट न्यूज मेरे पास भी है।’’-निरंजन ने कहा।

''तुम भी बको।’’

''मर्डर वैपन बरामद हो गया है।’’

''अरे।’’

''जिस गन से प्रताप को शूट किया गया था, वो मिल चुकी है। पुलिस ने उस पर पाए गए उंगलियों के निशान भी चैक कर लिए हैं।’’

''निशान किसके हैं।’’

''सौरभ के।’’

पलक ने मुंह पर हाथ रख लिया।

''ये नहीं हो सकता।’’-वो बोली।

''ये हो चुका है।’’-निरंजन ने कहा।

''गन कहां मिली?’’-ऋषभ ने पूछा।

''बिल्डिंग के पिछले गेट के पास दीवार में नीचे की ओर डिजाइन जैसी आयाताकार खाली जगह है, जिसमें कबाड़ टाइम का सामान पड़ा हुआ है। प्रधान मर्डर वैपन की तलाश में बिल्डिंग के आसपास तलाश करवा रहा था। गन वहीं से बरामद हो गई।’’

''पिछले गेट के पास? गेट के बाहर की ओर?’’

''नहीं अंदर की ओर।’’

''गेट से बाहर निकलते समय उसने गन उसमें डाल दी होगी।’’

''तुम लोग तो ऐसे बोल रहे हो’’-पलक ने मरे हुए-से स्वर में कहा-''जैसे सौरभ ही खूनी है।’’

दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया। वे बस खामोशी से उसे देखते रहे।

''अब क्या करना है?’’-कुछ देर बाद पलक ने कहा।

''क्या किया जा सकता है?’’-ऋषभ ने कहा-''सारे सबूत सौरभ के खिलाफ इक_े हो रहे हैं। उसके खिलाफ सबूत पहले भी कम नहीं थे। लेकिन अब तो मामला बिल्कुल ही हाथ से निकलता लग रहा है।’’

कुछ देर तक वे चुपचाप बैठे रहे। फिर पलक ने अपना हैण्डबैग उठाया और बिना किसी से कुछ बोले वहां से चली गई।

उसके जाने के बाद निरंजन ऋषभ की ओर पलटा और बोला-

''अब भी तुम्हें लगता है कि सौरभ खूनी नहीं है?’’



ऋषभ शिवापुर पहुंचा।

वो पुणे से 26 किलोमीटर दूर एक छोटा सा टाउन था। बाइक से मुश्किल से आधे घंटे का रास्ता था।

वहां उसे श्वेता माधवन का घर ढूंढने में ज्यादा कठिनाई नहीं हुई।

हां, घर देखकर हैरानी जरूर हुई।

पुणे जैसी जगह में पांच मंजिला बिल्डिंग के मालिक का घर देखने में बहुत ही साधारण-सा था।

उसने घर के ग्रिल गेट के बगल में लगा डोरबेल का बटन दबाया।

अंदर दरवाजे का पर्दा हटाकर साधारण सलवार सूट पहने सीधी-सादी सी लगने वाली एक युवती नजर आई।

''मेरा नाम ऋषभ सक्सेना है।’’-ऋषभ ने विनम्र स्वर में कहा-''मैं पुणे से आया हूं। मुझे श्वेता जी से मिलना है।’’

''कहिए?’’-वो बोली-''मैं ही श्वेता हूं। क्या काम है आपको?’’

''पुणे में आप लोगों का सनशाइन अपार्टमेंट है, उसके बारे में कुछ जरूरी बात करनी थी।’’

''कैसी जरूरी बात?’’

ऋषभ ने गहरी सांस ली, फिर अपना प्रैस कार्ड दिखाते हुए बोला-''देखिए, मैं आपसे साफ लफ्जों में कहता हूं। मैं प्रैस से हूं। उस बिल्डिंग में रहने वाले प्रताप सालुंके नाम का पिछले दिनों खून हो गया था। मैं उसी केस की न्यूज स्टोरी कवर कर रहा हूं। पता चला है कि आप भी प्रताप से मिलने जाती रहती थीं। अगर मेरे कुछ सवालों का जवाब दे दें तो...।’’

उसने एक झटके से गेट खोल दिया।

शिवापुर से लौटते समय ऋषभ का मस्तिष्क सांय-सांय कर रहा था।

श्वेता ने उसे जो कुछ भी बताया था, वे सब बातें एक ही चीज की ओर इशारा कर रहीं थीं।

लेकिन उसकी पुष्टि के लिए उसका एक बार सौरभ से मिलना बहुत जरूरी था।


वो सौरभ से मिलने जेल पहुंचा।

बाइक उसने जेल की पार्किंग मे ही रोकी थी कि उसका मोबाइल बजने लगा।

उसने मोबाइल की स्क्रीन पर नजर मारी। नम्बर उसके लिए अनजान था।

''हैलो।’’-उधर से इंस्पैक्टर प्रधान की आवाज सुनाई दी।

''हैलो, इंस्पैक्टर साहब।’’-ऋषभ ने कहा-''कहिए कैसे फोन किया?’’

''तुम्हारा नंबर निरंजन से मिला है। तुम्हें कमलकांत के बारे में कुछ बताने के लिए फोन किया।’’

''कमलकांत के बारे में? उसके बारे में क्या बताना है? और मुझे क्यों बताना है?’’

''अच्छा। अब इतने भोले बनकर भी मत दिखाओ। साइबर टीम से कमलकांत के बारे में जानकारी किसे चाहिए थी?’’

''आपको पता चल गया?’’

''मेरे थाने में मेरी नाक के नीचे कुछ होता रहे और मुझे पता न चले, ऐसा अमूमन होता तो नहीं है।’’

''चलिए, पता चल ही गया तो छिपाना क्या? क्या बताने वाले थे आप कमलकांत के बारे में?’’

प्रधान ने बताया।

ऋषभ ने उसकी पूरी बात सुनी, फिर बोला-''ये तो बहुत कमाल की जानकारी है।’’

''है न कमाल की। इसीलिए सोचा उस कमाल के इंसान को बता दूं, जो इस कमाल के केस में कुछ कमाल का करने की कोशिश कर रहा है।’’

''आप तो शर्मिंदा कर रहे हैं।’’

''फोन पर शर्मिंदा करने में मजा नहीं आ रहा। पुलिस स्टेशन आओ। यहां आमने-सामने बैठकर शर्मिंदा करता हूं।’’

''अभी तो नहीं आ सकता। क्योंकि अभी मैं वहां हूं, जहां मामा लोग पुलिस स्टेशन आने के बाद पहुंचते हैं। मैं थोड़ी ज्यादा पहुंची हुई चीज हूं तो पुलिस स्टेशन की जगह सीधे यहां पहुंच गया।’’

''जेल किस काम से गए हो?’’

''सौरभ से मिलने। उससे कुछ जरूरी बातें करनी हैं।’’

''ठीक है फिर। वहां से फुर्सत मिले तो यहां आना।’’

''जरूर।’’

प्रधान ने कॉल डिस्कनेक्ट कर दी।