7 दिसम्बर : शनिवार

दोपहरबाद विमल मेडंस होटल पहुंचा जो कि सिविल लाइन्स के इलाके में शामनाथ मार्ग पर था। होटल की विशाल इमारत ब्रिटिश राज के वक्त की थी और एक सौ पन्द्रह साल पहले स्थापित हुआ वो होटल अब ओबराय चेन आफ होटल्स द्वारा संचालित था और ‘ओबराय मेडंस’ कहलाता था।
होटल के सामने एक विशाल कम्पाउन्उ था जिसके बायें कोने में कुछ केबिंस थे जिनमें से एक पर उस ट्रैवल एजेंसी का बोर्ड लगा हुआ था जिसके साथ अशरफ का टाईअप था। केबिंस के करीब पार्किंग थी जिसमें कई कारों के बीच अशरफ की प्राइवेट टैक्सी भी खड़ी थी लेकिन अशरफ वहां नहीं था।
ट्रैवल एजेंसी से उसने अशरफ के बारे में दरयाफ्त किया तो जवाब मिला कि सड़क के पास एक टी-स्टाल था वो, अशरफ का वहां पता करे।
अशरफ वहां मौजूद था।
टी-स्टाल एक बड़े छप्पर के नीचे था जिसके एक तिहाई हिस्से में स्टाल था और बाकी दो तिहाई में फोल्डिंग कुर्सियां, मेजें थीं। अशरफ उस हिस्से में स्टाल से पहले सिरे पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। विमल की आहट पाकर उसने मुंह पर से अख़बार हटाया, विमल को देखा तो अख़बार मेज़ पर डालता उछल कर खड़ा हुआ।
“बैठ, बैठ।” – विमल बोला – “मैं भी बैठता हूं।”
दोनों एक झोलझाल मेज पर आमने-सामने बैठे।
“चाय पियेंगे!” – अशरफ ने पूछा।
“तुम पियोगे तो पी लूंगा।” – विमल बोला।
“अबे, लमडे!” – अशरफ टी स्टाल की तरफ मुंह करके उच्च स्वर में बोला – “दो चाय ले के आ इस्पेशल! दूध ज़्यादा, पत्ती तेज़, चीनी कम! फटाफट!”
चाय पहुंचने तक दोनों ख़ामोश बैठे।
विमल ने चाय की एक चुसकी ली।
“कैसी है?” – अशरफ आशापूर्ण स्वर में बोला।
“बढ़िया।” – विमल बोला – “उम्मीद से ज़्यादा बढ़िया।”
“इस्पेशल जो ठहरी!”
“वो दूध, पत्ती, चीनी की हिदायात सुनी थी मैंने। उसके अलावा स्पैशल कुछ है?”
“हां।”
“क्या?”
“राज़ की बात है।”
“तो रहने दे।”
“अरे, आप से राज़ थोड़े ही है!”
“तो बोल?”
“चाय में अपनीम का चूरा मिलाता है।”
“क्या बोला?”
“टी-स्टाल का मालिक, जो कि खुद चाय बनाता है, चाय में अनीम का चूरा मिलाता है। जो कोई भी इसकी चाय एक बार पी लेता है, रास्ते में भले ही दस टी-स्टाल हों, यहीं पीने आता है।”
“कमाल है!”
“टी-स्टाल वाला कहता है कि बनारस से ये गुण सीख के आया।”
“तो इस वक्त मैं अफीम मिली चाय पी रहा हूं?”
“जनाब, बरायनाम अफीम का चूरा।”
“तो कमाल चाय का नहीं है, चौथे इंग्रीडियेट का है!”
“जनाब, कुछ भी कहिये। मज़ा आ जाता है!”
“यानी मुझे भी अब दस टी-स्टाल छोड़के यहां आना पड़ा करेगा!”
अशरफ हंसा।
“अब मतलब की बात हो जाये?” – विमल बदले स्वर में बोला।
“जी हां। ज़रूर!” – अशरफ एक क्षण चुप रहा – जैसे जो कहना हो उसे तरतीब दे रहा हो – फिर बोला – “मालूम पड़ा है कि सिन्धी सेठ की लड़की का कोई लफड़ा था।”
“था?”
“हां। लड़की अब इस दुनिया में नहीं है।”
“ओह!”
“उन्नीस साल की थी, कॉलेज में फर्स्ट इयर में थी जब एक नौजवान म्यूज़ीशियन के चक्कर में पड़ गयी थी।”
“कैसा म्यूज़ीशियन।”
“इलैक्ट्रिक गिटार तोड़ म्यूज़ीशियन। पलाश सेन समझता था अपने आपको। इश्किआई हुई सिन्धी सेठ की लड़की कहती थी कि पलाश सेन तो कुछ भी नहीं था, वो तो उससे कहीं आगे जायेगा।”
“लड़के का नाम?”
“विकी। विकी जैगर।”
“मिकी जेरथ?”
“नहीं, जनाब। विकी जैगर। अपने आप को इंगलिश सिंगर-सौंग राइटर-म्यूज़ीशियन-कम्पोजर-एक्टर मिक जैगर का ग़ैरऐलानिया शागिर्द बताता था।”
“वो भी ये सब?”
“पता नहीं। अपने गाने तो लोग कहते हैं खुद लिखता था, बाकी तो बस गिटार ही बजाता था।”
“मिक जैगर जैसा नाम रखा तो विकी जैगर असली नाम तो न होगा उसका!”
“ज़ाहिर है।”
“असली नाम क्या था?”
“वो तो मालूम नहीं!”
“लड़की का?”
“उसका तो असली नकली एक ही नाम था, सुजाता सुखनानी।”
“लड़के की माली हैसियत कैसी थी?”
“कमज़ोर। लड़की की हैसियत के मुकाबले में तो बहुत कमज़ोर। बाप किसी सरकारी महकमें में छोटा-मोटा अफसर था।”
“बढ़िया इलैक्ट्रिक गिटार सत्तर-पिचहत्तर हज़ार रुपये की आती है, अफोर्ड कर सकता था?”
“बढ़िया नहीं अफोर्ड कर सकता होगा तो कामचलाऊ से काम चलाता होगा।”
“बहरहाल माली हैसियत मामूली थी!”
“हां। ऊपर से मां बाप के साथ नहीं रहता था, दिल्ली यूनीवर्सिटी में कॉलेज में पढ़ता था इसलिये नज़दीकी मुखर्जीनगर में एक कमरा किराये पर लेकर अकेला रहता था।”
“कॉलेज में पढ़ता था?”
“हां। वहीं तो सुजाता से सैटिंग हुई थी।”
“उसी की उम्र का था?”
“उससे बड़ा था। एम.ए. प्रिवियस में था तब जब की कहानी मैं आप से कर रहा हूं।”
“पैसा बाप भेजता होगा!”
“वो तो भेजता ही होगा लेकिन कुछ खुद भी कमाता था।”
“वो कैसे?”
“शादी-ब्याहों में आर्केस्ट्रा में गिटार बजाता था।”
“ओह!”
“फिर कहते हैं, सुजाता से दोस्ती हो जाने के बाद उसे कोई माली दुश्वारी तो रही ही नहीं थी। बड़े सेठ की बेटी अपने चाहने वाले पर जब खुल्ला खर्चा करती थी तो गाहेबगाहे माली इमदाद से क्या इंकार कर देती होगी!”
“यानी परजीवी था, पैरासाइट था?”
“उससे भी खराब। लोगबाग कहते थे कि जिगोलो था, फी-मेल था।”
“क्या बोला?”
“फीस चार्ज करने वाला मर्द।”
“ओह! फी . . . फी-मेल।”
“और बेहूदगी से कहूं तो मेल प्रास्टीच्यूट।”
“क्या कहने! और मैं समझता था तुम सब में सिर्फ हाशमी ही पढ़ा लिखा था।”
“सब पढ़े लिखे हैं। अनपढ़ कोई नहीं। लेकिन तालीम का अर्क निकालना सिर्फ हाशमी ने सीखा। ऊपर से अल्लाह मियां ने उसे सदा संजीदा सूरत दी है। और ऊपर से हम सबमें से निगाह का चश्मा सिर्फ वो लगाता है। लिहाज़ा कोई फासले से भी देखेगा तो बेहिचक कहेगा कि ज़हीन है, आलम फाज़िल है।”
“हूं। अब मेन मुद्दे पर ही लौट। बाप को अफेयर की खबर थी?”
‘‘जब हर किसी को थी तो बाप को क्यों न होती! ऊपर से लड़की मां-बाप की लाडली थी, इकलौती थी, उसे घर से कुछ ज्यादा ही आजादी थी।’’
‘‘ठीक!’’
‘‘जनाब, ऐसे मां-बाप जो हो रहा होता है, पहले ये सोच के उससे आंखें मूंद लेते हैं कि मॉडर्न सोसायटी की आजकल की रवायत थी, जब पानी सिर से ऊंचा हो जाता है तो हालात इतने बिगड़े जाते हैं कि उन को अपने काबू में कुछ आता दिखाई नहीं देता। तब ये सोच के अपने आपको तसल्ली देते हैं कि बच्ची है, नादान है, बड़ी होगी तो भले बुरे की ख़ुद ही अक्ल आ जायेगी और जब अक्ल आ जायेगी तो ख़ुद ही सुधर जायेगी, अभी जवान लड़की की टोकाटाकी का कोई फायदा नहीं था।’’
‘‘अक्ल आ गयी?’’
‘‘रही सही भी चली गयी। दोनों ने इकट्ठे रहना शुरू कर दिया।’’
‘‘लिव-इन रिलेशनशिप?’’
‘‘मेरे ख़याल से यही कहते हैं।’’
‘‘बाप ने तब भी नकेल न कसी?’’
‘‘कोशिश की तो पेश न चली। लड़की उलटा धमकाने लगी कि अगर उसकी आजादी में, उसके लाइफ़-स्टाइल में दखल दिया गया, उस सिलसिले में उस पर कोई पाबन्दियां लागू की गयीं, तो ख़ुदकुशी कर लेगी।’’
‘‘इमोशनल ब्लैकमेल! यानी इमोशनल ब्लैकमेल की, इकलौती औलाद होने की ताकत को समझती थी!’’
‘‘ऐसा ही था लेकिन अभी तो आगे सुनिये लड़की ने क्या गुल खिलाया!’’
‘‘क्या किया?’’
‘‘फाइनल में पहुंची तो उसे एक और लड़के से प्यार हो गया जिसका नाम मनु रायजादा था और जो किसी इन्डस्ट्रियलिस्ट की औलाद था लेकिन कोढ़ में खाज ये कि पहले से, विकी जैगर से, रिश्ता न तोड़ा।’’
‘‘पहले को ख़बर न लगी?’’
‘‘लगी। बराबर लगी। कैसे न लगती? लगे बिना रह ही नहीं सकती थी।’’
‘‘तो? दूसरे लड़के के साथ फौजदारी की?’’
‘‘न, जी। जात दिखाई।’’
‘‘क्या किया?’’
‘‘लड़की को धुन दिया।’’
‘‘दाता!’’
‘‘फिर ऐसी तकरारें उन में होने लगीं तो आखिर लिव-इन रिलेशन खत्म हो गया।’’
‘‘वो तो होना ही था! लड़की मार ही तो खाती नहीं रह सकती थी! लेकिन अगर दूसरा आशिक वफादार था . . .’’
‘‘वो तो पहले से भी ख़राब निकला।’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘बिल्कुल ही रस का लोभी भंवरा निकला। रस भोगा, मन भर गया तो सिरे से ही गायब हो गया, ढूंढे न मिला।’’
‘‘यानी लड़की न इधर की रही, न उधर की।’’
‘‘कहां! पहले से फिर प्यार की पींगें बढ़ाने लगी, आम उसके साथ सोने लगी। लड़के ने फिर उस पर कोई ऐसा जादू किया कि लड़की ने उसका म्यूजिक का पहला स्टेज शो सौ फीसदी फाइनांस किया। शो बुरी तरह फ्लॉप हुआ। तीन घन्टे का शो एनाउन्स हुआ था, लोग आधे घन्टे में ही उठकर जाने लगे। नतीजतन मिक जैगर-इन-मेकिंग, पलाश सेन-इन-मेकिंग डिप्रेशन में पहुंच गया।’’
‘‘लड़की?’’
‘‘कंसोलेशन मोड में पहुंच गयी। देवदास के लिये चन्द्रमुखी बन गयी। नतीजा फिर भी हाहाकारी निकला।’’
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘एक सुबह लड़के ने लड़की को चाकू घोंप दिया। लड़की ठौर मारी गयी। तब लड़के के जुनून को झटका लगा। उसने अपने पेट में भी चाकू घोंपा और पुलिस को फोन कर दिया। पुलिस आयी, लड़के को फौरन हस्पताल पहुंचाया गया, नतीजतन लड़की की तरह जान से न गया, बच गया।’’
‘‘जान से जाने से ही बचा न! कानून से तो न बचा होगा!’’
‘‘कत्ल का केस उसके ख़िलाफ बाकायदा कोर्ट में लगा। उसके बाप ने बड़ी फीस लेने वाला एक शातिर वकील उसके डिफेंस में खड़ा किया।’’
‘‘जबकि कहते हो कि वो एक सरकारी अफसर था, मिडल क्लास फैमिली से था।’’
‘‘बराबर था। लेकिन, जनाब सलाहियात से कोरा इतना मिडल क्लास में भी कोई नहीं होता कि औलाद की जान पर बनी हो और वो उसकी जान बचाने के लिये जो बेहतरीन हो सकता हो, वो वो न करे।’’
‘‘ठीक! शातिर वकील ने कोर्ट में क्या डिफेंस पेश किया?’’
‘‘उसने केस को दूसरे सिरे से पकड़ा। लड़के को उजला साबित करने पर जोर देने की जगह लड़की को काला, स्याह काला रंग दिया। उसने साबित कर दिखाया कि लड़की कैरेक्टरलेस थी, आधी दर्जन से ज्यादा तो उसके नोन लवर थे, अननोन की तो कोई गिनती ही नहीं थी। कहा कि लड़की का किरदार लिमिटिड क्लायंटेल वाली बाई वाला था जिसमें और प्रोफेशनल में इतना ही फर्क था कि प्रोफेशनल की तरह वो अपनी सर्विसिज के लिये चार्ज नहीं करती थी। उस बेग़ैरत लड़की ने ये कह के लड़के की ग़ैरत को ललकारा, उसका मुंह चिड़ाया, कि वो उसकी प्राइवेट लिमिटिड कम्पनी नहीं, पब्लिक एन्टरप्राइस थी, हवा थी जिसको वो मुट्ठी में जकड़ना चाहता था, बहती धारा थी जिसे वो ऐसा पोखर बना देने के ख़्वाब देखता था जिसका पानी सिर्फ और सिर्फ उसके लिये हो। ऐसी बद्अख़लाक, बड़े घर की बिगड़ी हुई बेख़ौफ लड़की अपने सच्चे प्रेमी को दग़ा देने के अलावा और कर ही क्या सकती थी! लड़की ने लड़के को प्यार में धोखा दिया जिसकी वजह से वो भावुक, कविहृदय, संगीत पुजारी लड़का अपना दिमागी तवाजन खो बैठा और वो सब कर बैठा जो उससे एक जुनून की, दीवानगी की हालत में हो गया। तुरन्त बाद उसकी ख़ुदकुशी की कोशिश ही उसकी उस वक्त की काबिलेरहम दिमागी हालत का सबूत थी। उसकी ख़ुद को भी मार डालने की कोशिश ही जाहिर करती थी कि अपने किये पर उसे कितना पश्चाताप था। पश्चाताप की आग में झुलसते अब वो ऐसा ख़ुदा का बन्दा बन गया था जो इस फानी दुनिया से अपने तमाम रिश्ते तोड़ कर, अपना सर्वस्व त्याग कर, अपनी हस्ती मिटा कर साधु बन जाना चाहता था।’’
‘‘आख़िर हुआ क्या?’’
‘‘लड़का टैम्परेरी इनसेनिटी की प्ली पर रिहा हो गया।’’
‘‘बस?’’
‘‘इस शर्त के साथ कि पुलिस की देखरेख में उसे सैनेटोरियम में भरती किया जाये और तब तक वहां रखा जाये जब तक कि वहां के डॉक्टर उसकी दिमागी तन्दुरुस्ती की बाबत क्लीन चिट न जारी कर दें। दो महीने बाद सैनेटोरियम के डॉक्टर्स के एक पैनल का जारी किया मैडिकल सर्टिफिकेट कोर्ट में जमा हुआ और कत्ल का आरोपी नौजवान हवा की तरह आजाद हो गया।’’
‘‘सैशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील न हुई?’’
‘‘मालूम नहीं। इस बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हो सकी। लेकिन ये जानकारी जरूरी है तो हम और कोशिश कर सकते हैं।’’
‘‘नहीं जरूरी। इतनी जानकारी काफी है कि सिन्धी सेठ की नौजवान लड़की बुरे अंजाम को पहुंची और उसे उस अंजाम तक पहुंचाने वाला लड़का आजाद है। अब ये बताओ, अशरफ मियां, कि इसमें मेरे काम का क्या है?’’
‘‘है तो सही कुछ?’’
‘‘क्या?’’
‘‘उस वाकये को दो साल होने को आ रहे हैं लेकिन बाप – सिन्धी सेठ कीमतराय सुखनानी कोर्ट के फैसले को लेकर आज भी पशेमान है, आज भी कहता है कि कोई उस लड़के की मौत की ख़बर उसे लाकर दे तो जो चाहे मांग ले।’’
‘‘ये तो कत्ल का दावतनामा है!’’
‘‘पशेमान बाप के जज्बात हैं। औलाद औलाद पहले होती है और भली बुरी बाद में होती है। कोई उसके जिगर का टुकड़ा नोच कर ले गया और उसका बाल भी बांका न हुआ, ये बाप को बेतहाशा तड़पाने वाली बात है।’’
‘‘वो हैसियत वाला, औकात वाला आदमी है, चाहे तो लड़के का नामोनिशान मिटवा सकता है।’’
‘‘आपका इशारा कत्ल की सुपारी लगाने की तरफ है?’’
‘‘है तो सही!’’
‘‘नहीं जानता होगा कि इस काम को कैसे अंजाम दिया जाता है।’’
‘‘जनवाने वाले मिल जाते हैं।’’
‘‘पब्लिसिटी की दहशत होगी! फैसले पर उसका गुस्सा, उसकी नाउम्मीदी जगजाहिर है। लड़का जहन्नुमरसीद हो जाता – कर दिया जाता – तो उसकी तरफ अंगली उठना लाजमी होता।’’
‘‘वो तो लड़के को अब कुछ हो जाये तो अब भी लाजमी होगा!’’
‘‘उसके किये या कराये न हो तो उसे क्या परवाह होगी!’’
‘‘हूं। यानी दो साल गुजर जाने के बाद भी उसका गुस्सा ठण्डा नहीं हुआ!’’
‘‘ऐसा ही जान पड़ता है।’’
‘‘लड़के का अंजाम बद् हो तो ऐसा करने वाला उससे जो चाहे मांग ले, सिन्धी सेठ अपने इस ऐलान पर खरा उतरेगा?’’
‘‘जनाब, लोकल अन्डरवर्ल्ड से हाथ आयी ख़बर है, किसी ने सिन्धी सेठ के ऐलान पर शुबह तो जाहिर नहीं किया!’’
‘‘दो साल में किसी ने, किसी ने भी, सेठ से जो चाहे मांगना न चाहा?’’
‘‘लड़का सलामत है तो नहीं ही चाहा होगा!’’
‘‘तेरे को क्या पता, सलामत है?’’
‘‘ऐलान सलामत है न! लड़के को सेठ के मनमाफिक कुछ हो चुका होता तो उसके कलेजे को ठण्ड पड़ गयी होती, वो अभी भी तड़प न रहा होता।’’
‘‘ठीक! मुलाकात की कोई सूरत?’’
‘‘उसमें क्या दिक्कत आयेगी! जो कोई उसकी मर्जी के मुताबिक कुछ कर सकता हो, उससे मुलाकात से उसे क्या गुरेज होगा?’’
‘‘उससे मेरी मुलाकात फिक्स कर।’’
‘‘मैं करूं?’’
‘‘तेरी उस तक पहुंच है। तेरी मार्फत ये काम कदरन आसानी से हो सकता है।’’
‘‘कब की?’’
‘‘कभी की भी। भले ही आज की।’’
‘‘आज की तो मुमकिन नहीं। बुलावे पर ही मैं उसकी कोठी में जा सकता हूं।’’
‘‘करना इन्तजार बुलावे का।’’
‘‘ठीक है।’’
‘‘क्या पता बुलावा आज ही आ जाये!’’
‘‘मुमकिन है। ऐसा हुआ तो मैं आज ही की मुलाकात फिक्स करूं?’’
‘‘कर।’’
‘‘आप कहां होंगे? मॉडल टाउन?’’
‘‘नहीं। मैं यहां से किसी अख़बार के दफ्तर में जाऊंगा और दो साल पुराने वो अख़बार स्टडी करने की जुगत करूंगा जिनमें सुजाता सुखनानी के कत्ल के केस का ब्योरा छपा था। लम्बा, वक्तखाऊ काम है, हो सकता है शाम वहीं हो जाये।’’
‘‘आप पुराने अख़बार देखेंगे?’’
‘‘आजकल सब कुछ डिजिटाइज्ड है, कम्प्यूटर स्कैन देखूंगा।’’
‘‘वो देखने देंगे?’’
‘‘न देखने देने की कोई वजह तो नहीं दिखाई देती!’’
‘‘ओह!’’
‘‘चलता हूं।’’ – विमल उठ खड़ा हुआ – ‘‘वैसे . . .’’
अशरफ की भवें उठीं।
‘‘चाय वाकई बढ़िया थी। लेकिन अच्छा होता तू अफीम के चूरे वाली बात न बताता।’’
अशरफ हंसा।
‘‘मैं चाय के पैसे . . .’’
‘‘अरे, क्या गजब करते हैं, जनाब! . . . अबे, लमडे!’’ – अशरफ उच्च स्वर में बोला – ‘‘तीन चाय मेरे नाम लिख।’’
‘‘तीन!’’ – विमल बोला।
‘‘मैंने दो पी न!’’
‘‘ओह!’’
इत्तफ़ाक ऐसा हुआ कि कीमत राय सुखनानी से विमल की मुलाकात उसी रोज हुई।
शाम को वो अभी हिन्दुस्तान टाइम्स की मोर्ग में ही था कि उस बाबत अशरफ का फोन उसे आया।
शाम सात बजे वो सुखनानी की विशाल कोठी के एक आफिसनुमा कमरे में उसके सामने मौजूद था।
उसने सिर से पांव तक विमल का बारीक मुआयना किया।
विमल ने ख़ामोशी से उसकी ख़ुर्दबीनी निगाह को झेला।
‘‘बैठो।’’ – आख़िर सुखनानी बोला।
उसका शुक्रिया अदा करता विमल उसके सामने एक कुर्सी पर बैठा।
‘‘कौन हो, भाई!’’ – सुखनानी तनिक विरक्त स्वर में बोला।
‘‘मैं वो शख़्स हूं’’ – विमल शान्ति से बोला – ‘‘जो आपका वो काम कर सकता है, अपने तमाम रुतबे, रसूख, सलाहियात के बावजूद जिसके होने का इन्तजाम आप ख़ुद न कर सके।’’
सुखनानी हड़बड़ाया।
‘‘मैं वही समझ रहा हूं न’’ – फिर बोला – ‘‘जो तुम कह रहे हो?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘यानी सुजाता के, मेरी बेटी के, मर्डर के केस से वाकिफ हो!’’
‘‘अब हूं।’’
‘‘क्या मतलब?’’
‘‘यहां मैं सीधा एक नेशनल डेली के आफिस से उठ कर आ रहा हूं।’’
‘‘ख़ास इसी वास्ते वहां गये? केस से वाकिफ होने के वास्ते?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘ताकि उस सिलसिले में मैं आपके किसी काम आ सकूं। मैं आपके काम आऊंगा तो आप मेरे काम आयेंगे न!’’
सुखनानी फिर हड़बड़ाया।
‘‘तुम’’ – उसने विमल को घूरा – ‘‘मेरे से अपना कोई काम निकलवाना चाहते हो?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘कैसे मालूम कि निकलवा पाओगे?’’
‘‘आपके ऐलान की वजह से मालूम। कोई सुजाता के कातिल के बुरे अंजाम की ख़बर आप को लाकर दे तो जो चाहे आप से मांग ले, आपके इस ऐलान की वजह से मालूम।’’
‘‘क्या चाहते हो?’’
‘‘बोलूंगा। आपके मनमाफिक कुछ कर दिखाऊंगा तो बोलूंगा।’’
‘‘वो टैक्सी ड्राइवर, जिसने ये अपौयन्टमेंट फ़िक्स की, उसे कैसे जानते हो?’’
‘‘लम्बी कहानी है। बोर करेगी।’’
‘‘नहीं, मुझे बोर नहीं करेगी। कैसे ...’’
‘‘मैं अपनी बात कर रहा था।’’
सुखनानी ने अपलक उसे देखा।
विमल ने खामोशी से, निडरता से उससे आंख मिलाई।
‘‘हूं।’’ – आखिर सुखनानी ने लम्बी हुंकार भरी – ‘‘नाम बोलो।’’
‘‘वैसे तो भगवान श्रीकृष्ण की तरह मेरे कई नाम हैं लेकिन आप मुझे विमल के नाम से याद रख सकते हैं।’’
‘‘विमल!’’
‘‘जी हां।’’
‘‘पूरा नाम?’’
‘‘विमल।’’
‘‘बताना नहीं चाहते। ख़ैर! क्या करते हो?’’
‘‘ऐसा कुछ नहीं करता जिस पर मुझे फख़्र हो।’’
‘‘जरायमपेशा आदमी हो?’’
‘‘आदमी हूं।’’
‘‘जवाब दो।’’
‘‘लोग ऐसा समझते हैं।’’
‘‘तुम क्या समझते हो?’’
‘‘हालात का सताया आदमी हूं। तकदीर का मारा आदमी हूं, एक सुबह जिसकी आंख खुली तो जिसने ख़ुद को किसी और ही दुनिया में पाया। एक बवंडर यकायक उठा जो मुझे जुर्म की दुनिया में धकेल गया। अब मैं तो कम्बल को छोड़ता हूं लेकिन कम्बल मुझे नहीं छोड़ता।’’
‘‘इसी वजह से यहां हो?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘ताकि जो करो – जो कर सको – उसका ईनाम हासिल हो सके?’’
‘‘जी हां।’’
‘‘मैं तुम्हारी साफ़गोई की दाद देता हूं।’’
‘‘शुक्रिया।’’
‘‘यानी कत्ल से कोई गुरेज नहीं?’’
‘‘डिपेंड करता है।’’
‘‘ये गोलमोल जवाब है। अभी करोगे। तभी तो यहां हो!’’
‘‘बेगुनाह के कत्ल से गुरेज है। गुनहगार के कत्ल से नहीं।’’
‘‘कुबूल! लेकिन जो शख़्स इस वक्त सब्जेक्ट ऑफ डिसकशन है, वो तुम्हारा गुनहगार तो नहीं!’’
‘‘हो सकता है कत्ल की नौबत न आये . . .’’
‘‘नामंजूर।’’
‘‘... और जो नौबत आये, वो आप को कुबूल हो!’’
‘‘ऐसा हो सकता है?’’
‘‘अभी क्या कहा जा सकता है? आप कुछ कहेंगे, मैं कुछ सुनूंगा, तभी इस बात का फैसला होगा।’’
‘‘न हुआ तो?’’
‘‘तो आप अपने घर, मैं अपने घर।’’
‘‘हूं। तुम्हारी बातें मुझे पसन्द आयीं, इसलिये तुम मुझे पसन्द आये।’’
‘‘शुक्रिया।’’
‘‘तुम्हारी पर्सनैलिटी में, तुम्हारे मुकम्मल वजूद में ऐसा कुछ है जो आम नहीं है, ख़ास है, बहुत ख़ास है इसलिये तुम्हें भी आम नहीं, ख़ास बनाता है। तुम्हारी सादगी, संजीदगी जिसके भी रूबरू होवो – जैसे कि अब मेरे रूबरू हो – उस पर असर डाले बिना नहीं रह पाती।’’
विमल खामोश रहा।
‘‘ज़हीन आदमी जान पड़ते हो, शायद अलग से कुछ कर सको – ऐसा कुछ कर सको जो मेरे कयास में भी नहीं है लेकिन जो आज तक मेरे कलेजे में लगी आग तो ठण्डा कर सके।’’
‘‘वाहे गुरु ने चाहा तो ऐसा ही होगा।’’
‘‘सिख हो?’’
‘‘लगता हूं?’’
‘‘नहीं।’’
‘‘मैंने वाहे गुरु को याद किया तो वाहे गुरु ने कोई ऐतराज दर्ज कराया?’’
‘‘ऐनफ ऑफ दैट।’’
‘‘राइट, सर।’’
‘‘तो मेरी बेटी के अंजाम से तुम वाकिफ हो?’’
‘‘जो अख़बार में छपा, उससे वाकिफ हूं लेकिन उनकी रिपोर्टिंग से साफ जाहिर हो रहा था कि वो लड़के से हमदर्दी के जेरेसाया की गयी थी। उसमें लड़के का पक्ष ज्यादा उजागर था, आप की बेटी का कम। इसलिये तमाम वाकया मैं आप की जुबानी तफसील से सुनना चाहता हूं।’’
‘‘ठीक है। सुनो।’’
पांच मिनट वो बोला।
ज्यो-ज्यों वो बोलता गया, उसका मिजाज संजीदा, और संजीदा होता गया।
मोटे तौर पर उसने वही बोला जो वो अशरफ की जुबानी सुन चुका था।
‘‘कोर्ट के फैसले से’’ – वो आद्र स्वर में बोला – ‘‘मेरा, एक बाप का, दिल बहुत टूटा। मेरी फूल जैसी, इकलौती, नौजवान, लेकिन नादान, बेटी एक दरिन्दे की दरिन्दगी का शिकार हो गयी। वो कदरन आजादखयाल थी तो क्या इसी गुनाह की वजह से मार डालने के काबिल थी? एक तो इंसाफ न हुआ दूसरे, मीडिया ने मेरे जले पर नमक छिड़का।’’
विमल की भवें उठीं।
‘‘उन्होंने शैतान के जने लड़के को तो ऐसा उजला रंगा, हालात के हवाले जिसके दामन पर एक बद्नुमा स्याह दाग लग गया था और मेरी बेटी को काजल की कोठरी साबित करने में कसर न छोड़ी। वो चाण्डाल जज्बाती, शायरमिजाज, कोमल मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत। और मेरी बेटी! मेरी बेटी सैक्स स्टावर्ड वूमन! ए बिच आलवेज इन हीट! निम्फोमैनियैक!’’
उसका गला भर आया।
कुछ क्षण ख़ामोशी रही।
‘‘ऐंड हाउ कनिंग दैट सन आफ ए बिच वॉज!’’ – वो फिर बोला – कत्ल के बाद ख़ुद को चाकू मार लिया। लेकिन पूरी एहतियात के साथ कि उसका कुछ न बिगड़े, कोई वाइटल ऑर्गन डैमेज न हो। बस, ये लगे कि मरने वाली के साथ मर जाना चाहता था लेकिन कमबख़्त पुलिस ने ऐन वक्त पर पहुंचकर उसका मंसूबा फेल कर दिया। उसको माशूक के साथ शहादत का सुख पाने से रोक लिया वर्ना इस लोक का साथ परलोक तक बना रहता। ऐसा शातिर ड्रामेबाज था कमीना! उस तमाशबीन हरकत से सबकी – मीडिया की, पुलिस की, यहां तक कि जज की – हमदर्दी बटोर ले गया। वारदात को इनएडवरटेंट क्राइम आफ पैशन करार दिया गया और वो साफ छूट गया। थोड़ी जहमत हुई तो ये कि दो महीने सैनेटोरियम में रहना पड़ा।’’
‘‘आपने सैशन के फैसले के ख़िलाफ अपील न की?’’
‘‘करना चाहता था लेकिन पुलिस ने साथ न दिया। मेरा वकील कहता था कि पुलिस के साथ के बिना अपील में कोई दम नहीं था।’’
‘‘अपील तो ख़ुद पुलिस को करनी चाहिये थी!’’
‘‘पुलिस कैसे करती! वो तो उसकी हमदर्द बनी हुई थी। जो हुआ उसे डेलीब्रेट, कोल्ड-ब्लडिड मर्डर का केस मानती तो कुछ करती न! वो कमीना तो क्या पुलिस, क्या मीडिया, सबका लाडला बना हुआ था।’’
‘‘ओह!’’
‘‘मुझे बेटी की मौत का उतना ग़म नहीं’’ – उसका कण्ठ फिर भर्रा गया – ‘‘जितना इस बात का ग़म है कि इंसाफ़ न हुआ। कुछ हुआ तो बस, इंसाफ़ का तमाशा हुआ, मखौल हुआ। इंसाफ़ मेरी अभागी बेटी को न मिला जो आज भी जहां होगी तड़प रही होगी, इंसाफ़ उस बद्बख़्त लड़के को मिला जो इस घड़ी, सुजाता जैसी किसी और मासूम, भटकी हुई लड़की की एडवांटेज ले रहा होगा, उसके साथ गुलछर्रे उड़ा रहा होगा। उस लड़के का अक्स मेरे जेहन पर उबरता है तो मेरा खून खौलता है। बेटी के अंजाम ने मुझे तोड़ कर रख दिया है, ऊपर से मैं उम्रदराज हूं, नौजवान होता तो अपने अंजाम की परवाह किये बिना जाकर कहीं से भी कमीने को काबू में करता और ख़ुद अपने हाथों से उसकी बोटी-बोटी नोच कर चील कौवों को खिला देता।’’
‘‘ख़ून से हाथ रंगते!’’
‘‘परवाह न होती मुझे। मैं उसको जहन्नुम की आग में झुलसता देखना चाहता हूं। मैं उसे ऐसी मार मारना चाहता हूं कि मरे नहीं, तड़पे, और तड़पे; और, और तड़पे और जब सम्भलने लगे तो मैं उसको फिर मारूं, फिर तड़पाऊं, लूला लंगड़ा करके छोडूं, उसकी जिन्दगी ऐसी नर्क बना दूं कि वो मौत की भीख मांगे और वो भी न मिले। मेरा बस चले तो मैं उस जज का भी वही हाल करूं जिसने उसे बरी कर दिया, उस इन्स्पेक्टर का भी वही हाल करूं जिसने जानबूझ कर उसके खिलाफ केस कमजोर बनाया, जिसने जानबूझ कर सैशन के फैसले के ख़िलाफ हाईकोर्ट में अपील लगाने में दिलचस्पी न ली।’’
वो हांफने लगा।
मेज पर मिनरल वाटर की एक बोतल पड़ी थी जिसे उठाकर उसने गटागट पानी के तीन चार घूंट यूं पिये कि पानी पिया कम ठोडी पर, शर्ट फ्रंट पर बिखराया ज्यादा।
विमल धीरज से उसके फिर बोलने की प्रतीक्षा करता रहा।
नहीं – उसके दिल से आवाज उठी – ये शख़्स न समगलर हो सकता था, न छोकरीबाज हो सकता था। इस बाबत उससे कोई सवाल करना नादानी ही न होता, उसकी हत्तक करना होता। उस बाबत जो उसने और अशरफ ने सोचा था, वो जनरल टर्म्स पर सोचा था, वो टर्म्स, जाहिर था कि, इस एक इनडिविजुअल पर लागू नहीं थीं, लागू नहीं हो सकती थीं।
‘‘वो लड़का’’ – आखिर उसने बोतल वापिस मेज पर रखी – ‘‘मुझे एक आंख नहीं सुहाता था लेकिन औलाद का दिल रखने की ख़ातिर मैंने फिर भी उसे आदर-मान दिया। औलाद की ख़ातिर उस मोरी के कीड़े को अपने दस्तररव़्वान पर जगह दी। वीकैण्ड पर हमारे यहां डिनर पर इनवाइटिड होता था, रात को लेट हो जाता था तो औलाद की ख़ातिर मैं उसे ओवरनाइट स्टे के लिये बोलता था और उसके लिये गैस्ट बैडरूम खुलवाता था। सिविल लाइन्स से मुखर्जी नगर कितनी दूर है जहां कि वो रहता था? लेकिन वो जानबूझ कर अपनी रुख़सती को लटकाता रहता था। क्यों? क्योंकि उसने मेरी छाती पर मूंग दलना होता था। मेरे ही घर में, मेरी ही छत्रछाया में मेरी बेटी के साथ सोना होता था। झूले लाल!’’ – उसके मुंह से कराह-सी निकली – ‘‘ये कैसा इंसाफ़ है तेरी दुनिया का कि मेरी बेटी मर गयी – उस राक्षस ने मार दी – और वो जिन्दा है!’’
उसकी आंखों से आंसुओं की दो बून्दें ढुलक पड़ीं।
‘‘वक्त बड़े बड़े ग़म भुला देता है।’’ – विमल धीरे से बोला।
‘‘ये ग़म नहीं भुला सकता। उस लड़के ने मुझे ऐसा जख़्म दिया है जो मैं ही नहीं चाहता कि भरे। यूं समझो कि वो सूखने को आता है तो मैं उसे ख़ुद खुरच देता हूं, ख़ुद जख़्म को फिर हरा कर लेता हूं।’’
‘‘आपको ख़ुद को सम्भालना होगा।’’
‘‘नहीं सम्भाल सकता। मैं पूरी तरह से टूट चुका हूं, बुजदिली को अपनी पनाह बना चुका हूं। ऐसा न होता तो मैं एक गन मुहैया करता और उसके घर में घुस कर उसे मारता, फिर भले ही मेरा कुछ भी अंजाम होता। लेकिन नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता। मैं हिम्मत खो चुका हूं। लेकिन हिम्मत ही खो चुका हूं, उसके सर्वनाश की ख़्वाहिश नहीं खो चुका। तू क्यों यहां मेरे सामने बैठा है?’’
सवाल यूं एकाएक हुआ कि विमल हड़बड़ा गया।
‘‘जी!’’ – उसने मुंह से निकला।
‘‘क्योंकि तू समझता है कि इस सिलसिले में तू कोई करतब करके दिखा सकता है। नहीं?’’
‘‘हां।’’
‘‘कुछ कर सकता है तो दिखा कर के। बदले में तू जो मांगेगा मैं तुझे दूंगा।’’
‘‘जो मांगूंगा? जो भी मांगूंगा?’’
‘‘हां! हां।’’
‘‘मुकर तो नहीं जायेंगे?’’
‘‘कीमतराय अपनी जुबान से कभी नहीं फिरा। कसम झूले लाल साईं की, नहीं मुकरूंगा।’’
‘‘भले ही मांग कितनी भी बेढ़ब हो, कितनी ही विकट हो?’’
‘‘हो। तू मेरी चमड़ी की जूती पहनने की मांग करेगा तो तेरी मांग पूरी होगी।’’
‘‘मुझे आप की बात पर यकीन है। अब ये बताइये कि आज की तारीख में वो कहां पाया जाता है? वारदात को दो साल हो गये, यूनीवर्सिटी, मुखर्जी नगर का अपना किराये का कमरा तो वो छोड़ चुका होगा?’’
‘‘हां। वो अपने मां बाप के पास गुडगांव चला गया था लेकिन बीच में सुना था कि सारा परिवार ही दिल्ली आकर बस गया था। लेकिन उन के दिल्ली के पते की मुझे कोई खोज ख़बर नहीं।’’
‘‘खोज ख़बर हासिल करने का कोई तरीका?’’
उसने उस बात पर विचार किया।
‘‘सुजाता के फोन में उसका मोबाइल नम्बर है। अगर नम्बर उसने बदल न लिया हो तो उस नम्बर के जरिये उसका मौजूदा पता जाना जा सकता है। वो नम्बर बजा कर भी और मोबाइल लोकेशन ट्रैकिंग सिस्टम से भी।’’
‘‘यानी सुजाता का फोन आपके पास है!’’
‘‘हां, भई, है।’’
‘‘हो सकता है उसमें उस लड़के की तसवीर भी हो!’’
‘‘हो क्या सकता है! है।’’
‘‘दैट्स गुड न्यूज। कहां है फोन?’’
‘‘यहीं है लेकिन चार्ज करना पड़ेगा?’’
‘‘कीजिये। इतना चार्ज कीजिये कि ऑन हो जाये। काफ़ी होगा।’’
उसने सहमति में सिर हिलाया, वहीं मेज के एक दराज में से एक मोबाइल बरामद किया और उसे चार्ज पर लगाया।
‘‘लड़का अपना नाम विकी जैगर बताता था क्योंकि ख़ुद को इंगलिश सिंगर मिक जैगर का ग़ौरएलानिया शागिर्द मानता था। लेकिन ये उसका असली नाम तो न होगा!’’
‘‘नहीं। असली नाम तो कुछ और ही था। लेकिन, सॉरी, वो मुझे भूल गया।’’
‘‘फोन में होगा।’’ – उसने चार्ज होते सुजाता के फोन की तरफ इशारा किया।
‘‘इसमें उसका मोबाइल नम्बर सिर्फ मिक नाम से दर्ज है। मुझे तो सूझता ही नहीं कि उसका नम्बर कौन-सा था अगरचे कि ‘मिक’ के साथ उसकी मटर के दाने जितनी आइकॉनिक तसवीर भी न होती।’’
‘‘अब फोन ऑन कीजिये। चार्जर ऑन रहेगा तो अभी ऑन हो जायेगा।’’
उसने सब किया। फोन की ‘फेवरेट्स’ पर लिया और स्क्रीन विमल को दिखाई।
विमल ने मिक की ऐन्ट्री देखी और उसके आगे लिखा मोबाइल नम्बर नोट कर लिया।
साथ की तसवीर इतनी सूक्षम थी कि तसवीर वाले को पहले से न देखा हुआ हो तो उसकी शिनाख़्त मुश्किल थी।
लेकिन उस तसवीर का ‘फोटोज’ में होना लाजमी था और जितनी शिनाख़्त उस आइकॉनिक इमेज में हो सकती थी, वो पोज-पोशाक की वजह से भी ‘फोटोज’ में पहचानी जा सकती थी।
वो तसवीर तलाश करके उसे पूरी स्क्रीन पर लेने में उसे पांच मिनट लगे।
तसवीर को उसने फौरन पहचाना।
‘‘ये है वो लड़का?’’ – उसने स्क्रीन सुखनानी को दिखाई।
‘‘हां।’’ – सुखनानी बेहिचक बोला।
वो तसवीर भगवानदास दोड के अगवा और जबरजिना के केस – जो कि सत्ताइस अक्टूबर को विमल की आंखों के सामने हुआ था – के तीन आरोपियों में से एक की थी जो कि चश्मदीद गवाह के अपनी रिकार्डिड गवाही से मुकर जाने की वजह से बरी हो गये थे।
म्यूजीशियन विकी जैगर का असली नाम विकास जिन्दल था।
कोई फ़र्क था तो ये कि पहले वो कलाकारों वाली दाढ़ी रखता था, अब क्लीनशेव्ड था।
अब उसका पता पटियाला कोर्ट के रिकार्ड से भी जाना जा सकता था।
विमल घर लौटा।
उस वक्त साढ़े आठ बजने को थे।
हमेशा की तरह उसने कार का यूं ऐंगल बनाया कि वो सीधी गेट से भीतर दाखिल हो पाती और हॉर्न बजाया।
हॉर्न की आवाज सुनकर भीतर से कोई – नीलम या मेड, अमूमन नीलम – गेट खोलने आता था और विमल कार को सीधे गैराज में ले जाकर खड़ी करता था।
उस रोज ऐसा न हुआ।
उसने फिर हॉर्न बजाया।
जवाब सन्नाटे से मिला।
फिर उसकी तवज्जो इस बात की तरफ भी गयी कि बरामदे की बत्ती नहीं जल रही थी जैसा कि कभी नहीं होता था।
क्या माजरा था!
कार से निकल कर उसने ख़ुद गेट खोला और कार में वापिस आकर उसे भीतर गैराज में ले जा कर खड़ा कर दिया।
बरामदे में पहुंच कर उसने वहां की ट्यूब लाइट जलायी।
शायद घर में कोई नहीं था, नीलम मेड को लेकर शायद कहीं गयी थी वर्ना हॉर्न क्या, कार के गेट पर आकर रुकने की आवाज ही उसे गेट पर ले आती थी।
जरूर यही बात थी।
प्रवेशद्वार की चाबी उसके पास भी थी जो कि उसने जेब से निकाली और उस पर पहुंचा। उसने चाबी वाला हाथ आगे बढ़ाया तो पाया दरवाजा चौखट के साथ नहीं लगा हुआ था। दरवाजे में ऑटोमैटिक लॉक था जो दरवाजा खींचने पर ख़ुद लग जाता था। जरूर नीलम ने पीछे दरवाजा ठीक से नहीं भिड़काया था, जिसकी वजह से वो चौखट से जाकर नहीं लगा था और लॉक सैट नहीं हुआ था।
जरूर यही बात थी। ऐसी कोताही किसी से भी हो सकती थी।
फिर भीतर अन्धेरा होने का आभास भी तो मिल रहा था!
जरूर यही बात थी।
घर में कोई होता तो सारी नहीं तो कुछ तो बत्तियां जल रही होतीं!
उसने भीतर कदम डाला।
आगे ड्राईंगरूम था।
घुप्प अन्धेरा।
उसने स्विच बोर्ड टटोलकर उस पर के कुछ स्विच ऑन किये। तत्काल ड्राईंगरूम में तीखी रौशनी फैली।
उसने आगे कदम बढ़ाया तो थमक कर खड़ा हो गया।
आगे सेंटर टेबल के करीब कार्पेट पर औंधे मुंह मेड पड़ी थी। उसकी टांगें फिरी हुई थीं और बाहें फैली हुई थीं। वो पूर्णतया निश्चेष्ट थी।
‘‘फ्रान!’’
जवाब नदारद।
वो झपट कर उसके करीब पहुंचा। उसके पहलू में झुककर, उकड़ू होकर उसने उसको हिलाया डुलाया लेकिन मेड के जिस्म में कोई हरकत पैदा न हुई।
उसने नब्ज टटोली।
चल रही थी।
शाह रग टटोली।
फड़क रही थी।
शुकर!
शायद वो अन्धेरे में ठोकर खाकर गिरी थी, सिर सेंटर टेबल से जा टकरायी थी और वो बेहोश हो गयी थी।
अन्धेरे में!
क्या बड़ी बात थी?
कभी-कभार तो रात के वक्त सर्दियों में भी इलाके की बत्ती चली ही जाती थी।
लेकिन नीलम कहां थी? उसको मेड की उस दशा की ख़बर क्यों नहीं थी? बत्ती जाकर आ गयी थी तो भी वहां अन्धेरा क्यों था? वहां के बिजली के स्विच ऑफ क्यों थे? बाकी कोठी में अन्धेरा क्यों था?
किसी अज्ञात आशंका से उसका दिल लरजा।
वो मास्टर बैडरूम के दरवाजे की तरफ लपका। उसने धकेल कर उसका दरवाजा खोला और वहां के स्विच ऑन किये।
आगे जो नजारा उसे दिखाई दिया, उसने उसके प्राण कंपा दिये।
दाता! दाता!
खून से लथपथ नीलम बैड पर चित्त पड़ी थी। उसके आसपास भी खून ही खून दिखाई दे रहा था।
बैड के करीब ही ड्रैसिंग टेबल थी। उसके शीशे पर – प्रत्यक्षतः नीलम के ही खून से – बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था:
पिल्ला अभी बाकी है।
ढूंढ़ लेंगे।
फिर तेरी बारी।
वो सन्न रह गया।
अब तक वो समझ रहा था कि घर में लुटेरे घुस आये थे जिन्होंने वो उत्पात मचाया था, लेकिन शीशे पर दर्ज तहरीर तो कुछ और ही कह रही थी।
दाता! ये कैसा इम्तहान था?
उसके लिये इम्तहान था लेकिन दुश्मन के लिये पलटवार था।
पलटवार!
जो उस पर करने के लिये नीलम को जरिया बनाया गया।
और साफ ये हिन्ट छोड़ा गया कि वो लोग जब चाहते उसकी भी वैसी ही गत बना सकते थे।
उसकी तवज्जो फिर नीलम की तरफ गयी।
इतना खून बह चुका हो तो कोई कैसे जिन्दा हो सकता था!
वो लपक कर बैड के करीब पहुंचा।
‘‘नीलम! नीलम!’’
नीलम ने सप्रयास आंखें खोली।
धन्न करतार! जिन्दा थी!
वो उसके करीब बैड पर बैठ गया और व्याकुल भाव से बोला – ‘‘नीलम!’’
उसके कागज की तरह सफेद हो चुके होंठ फड़फड़ाये, आंखों की पुतलियां उसकी तरफ घूमीं।
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘शु . . . शुक्र . . . ह-है . . . तु-तुम . . . आ . . . आ . . . आ . . . गये।’’
‘‘क्या हुआ?’’
‘‘प-प्राण . . . तु . . . तुम्हारे ही . . . आ-आ . . . आखिरी दरस . . . क-के लिये . . . अ-अ-अटके . . . अटके हुए थे।’’
‘‘पर हुआ क्या? किसने . . .?’’
‘‘म-मुझे अपनी . . . बा-बांहों में ले ले।’’
विमल ने हाथ पसारे और उसे अपनी बाहों भर लिया।
‘‘म-मेरा . . . स-स-सपना . . . प-पूरा हुआ। म-मैं . . . तु-तुम्हारी . . . बांहों में . . . मर रही हूं। . . . सु-सुहागन . . . सुहागन मर . . . मर रही हूं।’’
‘‘लेकिन क्यों? क्यों? क्या हुआ तुझे? किसने किया?’’
‘‘अ-अ-अलविदा . . . अल-विदा . . . म-मेरे साईं . . . मेरे सर-सरदार जी। . . . सू-सू-सूरज का . . . ख-ख-खयाल . . .’’
उसकी आंखें उलट गयीं।
उसका चिश्चेष्ट शरीर विमल की बांहों में झूल गया।
‘‘मैं दस बार मर के फिर जन्म लूं तो तुम्हारे जैसा पति नहीं पा सकती; पाना तो दूर, तुम्हारे जैसा पति पाने की कल्पना नहीं कर सकती। तुम्हें पा लिया, समझो कायनात पा ली। अब तो एक ही ख़्वाहिश है – जब मैं मरूं, मेरी मांग में सिन्दूर हो।’’
विमल सकते की हालत में था, उसे ख़बर ही न लगी कि कब उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहने लगे थे।
‘‘मेरी किस्मत में अभी सुहाग का बहुत सुख पाना लिखा है। जब तक मैं अपनी आंखों से अपने बूटे को बाप सरीखा पेड़ बनता नहीं देख लूंगी, इस जहान से नहीं हिलूंगी।’’
आंसुओं का सैलाब दोबाला हो गया, उस का गला रुंधने लगा, उसे अपनी सांस फंसती महसूस होने लगी।
‘‘मेरी माता भगवती से प्रार्थना है कि हर जन्म में मेरा इस जन्म का साईं ही मेरा पति हो।’’
‘‘लो! अगले जन्मों की फिक्र पड़ गयी। पहले इस जन्म की शिफ्ट तो पूरी कर ले!’’
‘‘वो तो तभी पूरी होगी जब मैं सूरज सिंह सोहल का पोता खिला रही होऊंगी।’’
वाहे गुरु सच्चे पातशाह! ये वैसा इम्तहान है? अभी और कितने इम्तहान बाकी हैं इस गुनहगार बन्दे के!
‘‘आधी रात को चौंक कर सोते से जागती हूं कि चन्न मेरा कुंडा खड़का रहा है और मैं अभागी, कर्मांमारी सोई पड़ी हूं। रात को
चांद बादलों में जा छुपता है तो ये उम्मीद भी ख़त्म हो जाती है कि सूरज का बापू भी उस घड़ी चांद को देख रहा होगा।’’
दशमेश पिता! पहले जो सजायें मिलीं, उनमें क्या कोई कसर रह गयी थी जो अब इतनी बड़ी सजा दी! यही सजा कम थी कि कभी कोई सुख न दिया अपनी भार्या को . . .
‘‘क्यों न दिया?’’ – उसे साफ यूं लगा जैसे नीलम बोली हो – ‘‘इससे बड़ा सुख और क्या हो सकता है कि मैं तुम्हारी बांहों में हूं!’’
पागलों की तरह उसने नीलम के जिस्म को झिंझोड़ा।
क्या फायदा!
पिंजरा तो खाली था!
पंछी तो उड़ चुका था!
उसने अजीत लूथरा को फोन लगाया।
फिर उसने मेड की सुध ली।
उसने उसके मुंह पर ठण्डे पानी के छीेंटे मारे तो वो कुनमुनाई।
विमल ने उसे बांह पकड़कर हिलाया, गाल थपथपाया।
उसने आंखें खोलीं, बन्द की, फिर खोलीं। ऐसा उसने तीन चार बार किया। फिर बड़े यत्न से उसने अपनी निगाह को विमल पर फोकस किया।
‘‘सा’ब!’’ – उसके मुंह से क्षीण-सा स्वर निकला।
‘‘कैसी तबीयत है!’’ – विमल सहानुभूतिपूर्ण स्वर में बोला।
‘‘सिर चकरा रहा है। खोपड़ी में सांय-सांय हो रही है।’’
‘‘उठ के बैठ सकती है?’’
उसने कोशिश की। विमल के सहारे बिना वो न बैठ पायी। फिर विमल की जिद पर वो सोफे पर बैठी।
‘‘ले, पानी पी।’’
उसने विमल के हाथ से पानी का गिलास लिया और आधा पिया, आधा बिखेरा।
कई क्षण खामोशी में गुजरे।
‘‘अब ठीक है कुछ?’’
मेड का सिर सहमति में हिला।
‘‘क्या हुआ था?’’
‘‘वो . . . वो . . . मैडम . . .’’
‘‘मैडम ठीक है। हर दुख तकलीफ से परे है अब। तू बोल, क्या हुआ था?’’
‘‘वो . . . वो . . . आठ बजने को ये जब कोई कॉल बैल बजाया। मैं बरामदे में जाकर देखा तो गेट पर एक . . . एक आदमी खड़ा था। . . . बोला, मीटर रीडर था, इलैक्ट्रिक मीटर रीड करने का वास्ते आया।’’
‘‘ऐसे लोग दिन में आते हैं।’’
‘‘माईंड में आया मेरे। मैं बोला ऐसा। बोला, वो कम्पनी का रेगुलर एम्पलॉई नहीं था, कान्ट्रैक्ट पर मीटर रीड करता था और एक दिन में
प्रीिफ़क्स्ड नम्बर ऑफ मीटर्स रीड करना जरूरी वर्ना उस का कान्ट्रैक्ट कैंसल हो सकता था। बोला, डे टाइम में प्रेग्नेंट वाइफ को हस्पताल ले के गया जिधर सारा दिन लग गया। इसलिये मीटर रीडिंग का अपना कोरम कॉल ये टाइम करता था।’’
‘‘ओह!’’
‘‘मैं जाकर उसको गेट खोला तो . . . तो . . . ही जम्प्ड मी। मेरे को दबोच लिया, मुंह बन्द कर दिया और अन्दर की तरफ घसीटने लगा। तभी तीन जने और भीतर घुस आये। मेरे को घसीटते सब ड्राईंगरूम में आये। उधर कोई पीछू से मेरा हैड को किसी भारी . . . बहुत भारी आइटम से हिट किया। फिर टोटल ब्लैक आउट।’’
‘‘ओह!’’
‘‘अभी . . . अभी होश आया जब आप . . . आप . . . अभी क्या टाइम?’’
‘‘पौने नौ बजने को हैं।’’
‘‘तो . . . मैं फॉर्टी फाइव मिनट्स से उधर बेहोश . . .’’
‘‘हां।’’
‘‘वो . . . मैडम . . .’’
‘‘क्या मैडम?’’
‘‘किधर है?’’
‘‘क्यों पूछती है?’’
‘‘चार मवाली लोग इधर घुस आया। मेरे पर अटैक किया। इज शी ऑल राइट?’’
विमल खामोश रहा।
‘‘सा’ब! कुछ गड़बड़ . . .’’
‘‘बैडरूम में है। वहां तक चल पायेगी?’’
उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया।
‘‘जा के देख।’’
उसने उठने की कोशिश की लेकिन भरभरा कर वापिस सोफे पर ढेर हो गयी।
‘‘जाने दे। अभी जाने दे।’’
‘‘बट . . .’’
‘‘सिर देख। फटा तो नहीं?’’
कांपती उंगलियों से उसने सिर को टटोला। सिर के पृष्ठभाग में बालों के बीच बहुत बड़ा गूमड़ था जो विमल ने भी देखा। ये भी देखा कि खोपड़ी खुल नहीं गयी थी, सिर्फ चमड़ी छिली थी जिसमें से हल्का-हल्का ख़ून तब भी रिस रहा था। शायद बोलने की कोशिश में ऐसा हुआ था।
‘‘अभी मैं तुझे तेरे रूम में छोड़ के आता हूं। उधर तब तक रैस्ट करना जब तक चलने फिरने की हिम्मत न आ जाये। ओके?’’
उसने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘कोई और भी पूछेगा कि क्या हुआ था . . .’’
‘‘क-कौन?’’
‘‘देखना। उसको आनेस्टली वो सब बोलना, जो मेरे को बोला। ओके?’’
‘‘वो तो मैं बोलेगा बट . . . मैडम . . .’’
‘‘अभी तू मैडम के पास नहीं जा सकती। जायेगी तो फिर बेहोश हो जायेगी।’’
‘‘मैडम . . . सा’ब, इज शी ओके?’’
‘‘यस। मोर ओके दैन यू कैन इमेजिन . . . दैन ऐनीबाडी कैन इमेजिन। चल अब।’’
मेड को सहारा देकर विमल ने उसे उसके रूम में पहुंचाया।
वो वापिस लौटा तो उसने लूथरा को ड्राईंगरूम में कदम रखता पाया।
विमल उसके करीब पहुंचा।
‘‘आपके हुक्म के मुताबिक अकेला आया।’’ – वो संजीदगी से बोला – ‘‘अकेला आया, बेवर्दी आया, अपनी प्राइवेट मोटरसाइकल पर आया।’’
‘‘थैंक्यू।’’ – विमल धीरे से बोला।
‘‘लगता है कोई गम्भीर मसला है!’’
‘‘ठीक लगता है।’’
‘‘कुछ . . . ऐसा हो गया जो . . . नहीं होना चाहिये था?’’
‘‘हं-हां।’’
‘‘क्या?’’
विमल ने बोलने की कोशिश की लेकिन मुंह से बोल न फूटा, ख़ामोशी से उसने मास्टर बैडरूम की तरफ इशारा किया।
सस्पेंस के हवाले लूथरा उधर बढ़ा।
विमल वहीं खड़ा रहा।
लूथरा बैडरूम में गया।
वापिस लौटा।
‘‘कैसे हुआ?’’ – उसने पूछा।
‘‘मालूम नहीं।’’ – विमल दबे स्वर में बोला – ‘‘घर लौटा तो ये सब हुआ पड़ा था।’’
‘‘मेड!’’
‘‘यहां बेहोश पड़ी थी।’’
‘‘अब कहां है?’’
‘‘अपने रूम में।’’
‘‘क्या कहती है?’’
विमल ने बताया।
‘‘हूं।’’ – लूथरा बोला – ‘‘चार आदमी?’’
‘‘मेड के लिये अजनबी।’’
‘‘कत्ल के इरादे से आये! मैडम को मार डालने के लिये आये। शीशे पर जो लिख के गये, उस से यही जाहिर होता है।’’
‘‘हां।’’
‘‘आप से दुश्मनी थी तो आपको ही क्यों न मार डाला! ख़ुद की परवाह न हो तो . . . तो कत्ल करना क्या मुश्किल काम होता है!’’
‘‘मेरे लिये चैलेंज उछाल के गये। ये जाहिर कर के गये कि वो जब चाहते बड़ी सहूलियत से मेरा भी वही हाल कर सकते थे जो उन्होंने . . . उन्होंने . . .’’
विमल का गला रूंध गया।
‘‘यानी ये ख़ून-ख़राबा अभी आगे भी चलेगा?’’
‘‘हां। वो नहीं चलायेंगे तो मेरे चलाये चलेगा।’’
‘‘कौन?’’
‘‘अन्दाजा है मुझे। लेकिन मैं तुम्हें भी नहीं बताना चाहता।’’
‘‘मैं सुनना भी नहीं चाहता। इस घड़ी नहीं सुनना चाहता।’’
‘‘ठीक करोगे।’’
‘‘लेकिन आप अपने आप को सम्भालिये तो सही! आप तो मेरी आंखों के आगे टूट के बिखरे जा रहे हैं!’’
विमल खामोश रहा।
‘‘मैं आपकी केस हिस्ट्री से वाकिफ हूं। आप ऐसे टूटने वाले नहीं हैं। अभी आपने कहा कि ख़ून-ख़राबा ये . . . ये वारदात करने वाले नहीं चलायेंगे तो वो आपके चलाये चलेगा। कैसे कर पायेंगे? जिस हालत में हैं, उसमें कैसे कर पायेंगे?’’
‘‘ये . . . ये हालत हमेशा . . . हमेशा नहीं रहने वाली।’’
‘‘अभी भी क्यों है? हौसला रखिये। मजबूत बनिये। आप उस बहादुर, जांबाज, सूरमा कौम से हैं जूझना ही जिसका धर्म है, जिसका खालिस सिपाही . . . खालसा किसी से नहीं डरता। जो शत्रु से जूझता है तो निश्चय कर के अपनी जीत करता है। जिसका पूर्जा-पूर्जा कट जाये, जो मैदान नहीं छोड़ता। आप ऐसे पिलपिला जायेंगे जैसे पिलपिलाये मुझे दिखाई दे रहे हैं तो ये सब कैसे करेंगे! सम्भालिये अपने आप को।’’
विमल ख़ामोश रहा।
‘‘आप को अपने वाहे गुरु की कसम!’’
उसने तमक कर सिर उठाया।
‘‘सम्भाल सकेंगे अपने आपको?’’
‘‘हां।’’
‘‘सम्भालेंगे?’’
‘‘हां।’’
‘‘शुकर। अब बताइये, मुझे बेवर्दी अकेले आने को क्यों कहा?’’
‘‘जो हुआ, वो बड़ा वाकया है। जो शीशे पर लिखा है, वो मेरे लिये आइन्दा ख़ूनख़राबे की बड़ी वार्निंग है। केस पुलिस और आगे मीडिया तक इसी रंग में पहुंचा तो ये अन्डरवर्ल्ड किलिंग जैसा रुख़ अख़ि्तयार कर लेगा। ऐसा हुआ तो मेरे पर गम्भीर फोकस बनेगा। बड़ा सवाल उठ खड़ा होगा कि क्योंकर एक मामूली, सफेदपोश बाबू का अन्डरवर्ल्ड किलिंग में दख़ल था! मेरे पर ऐसे सवालों की बौछार होगी जिनके जवाब या मेरे पास होंगे नहीं या मैं देना नहीं चाहूंगा। मीडिया तूल देगा। फिर हो सकता है किसी को सोहल याद आ जाये। फिर गड़े मुर्दे उखाड़े जायेंगे और यूं जो कब्र ख़ुदेगी, उसी में मेरा मुकाम होगा।’’
‘‘बात तो आपकी ठीक है! इस केस को गैंग किलिंग माना गया, क्राइम आफ रेवेंज माना गया तो आपकी गुजश्ता जिन्दगी पर फोकस बन सकता है, जो कि ठीक न होगा।’’
‘‘यही तो मैं कह रहा हूं!’’
‘‘कोई हल सोचा?’’
‘‘हां। तभी तो तुम्हें पहले अकेले आने को बोला।’’
‘‘क्या सोचा?’’
‘‘इसे चोरी की वारदात का रंग देना होगा जिसमें ग़ैरइरादतन कत्ल की नौबत आ गयी।’’
‘‘चोरी की वारदात!’’
‘‘घर में दो औरतों को अकेली जानकर चोर घर में घुसे; एक को काबू कर पाये, दूसरी काबू में न आयी तो उसको स्टैब कर दिया। स्टैबिंग जानलेवा साबित हुई। तब उनहोंने भाग निकलना ही कारगर जाना।’’
‘‘लेकिन जो शीशे पर दर्ज है . . .’’
‘‘कुछ दर्ज नहीं है। वो सिर्फ तुम्हें दिखाने के लिये अभी तक वहां है। अभी उस लिखे का वजूद मिटा दिया जायेगा।’’
‘‘मैडम के जिस्म पर जेवर हैं – ख़ास तौर से दोनों कलाईयों में भारी कड़े और गले में कीमती नैकलेस।’’
‘‘नहीं होंगे। मैं बयान दूंगा कि थे ताकि आतताईयों का चोरी का मंसूबा अन्डरलाइन हो सके। बैडरूम में छोटी मोटी बेतरतीबी भी फैला दूंगा।’’
‘‘ठीक।’’
‘‘वॉर्डरोब में एक नम्बर्ड लॉकर है जिसके बारे में बोल दूंगा कि चोरों से खुला नहीं।’’
‘‘ठीक।’’
‘‘इसे चोरी और ग़ैरइरादतन कत्ल की वारदात करार दिया जायेगा तो असल में जिनकी ये करतूत है, वो भी कनफ्यूज होंगे। समझेंगे मैं डर गया। डर के सच छुपाया ताकि वो लोग मेरा पीछा छोड़ दें।’’
‘‘आप ऐसा चाहते हैं?’’
‘‘हां। ऐसा होगा तो वो गाफिल होंगे। जो गाफिल हो, उससे निपटना आसान होता है।’’
‘‘मुझे अभी से आईन्दा के किसी बड़े ख़ूनख़राबे की बू आ रही है।’’
अनायास विमल की तवज्जो नीलम की तरफ गयी, अनायास ओजपूर्ण ढंग से उसके मुंह से निकला – ‘‘जाके बैरी सन्मुख जीवै, ताके जीवन को धिक्कार।’’
‘‘हां’’ – लूथरा संतोषपूर्ण भाव से बोला – ‘‘ये मूड, ये मिजाज ठीक है। मुझे तो आप से नाउम्मीदी हो चली थी!’’
विमल ख़ामोश रहा।
‘‘मेड को मेरी आमद की ख़बर है?’’
‘‘नहीं। मैं जब उसको उसके रूम में छोड़ के आया था, तो ताजा-ताजा सिर पर आयी चोट की वजह से वो तभी ऊंघ रही थी, अब तक नींद के हवाले होगी।’’
‘‘गुड! मैं थाने वापिस जाता हूं। आप पहले बैडरूम में वो स्टेज सैट कीजिये जिसका अभी जिक्र आया, फिर ‘100’ नम्बर पर वारदात की ख़बर कीजिये – उस फोन काल को भूल जाइये जो आप ने मेरे मोबाइल पर की – फिर मैं अपने मातहतों के साथ बावर्दी यहां पहुंचूंगा और तफतीश अपने हाथ में लूंगा।’’
विमल ने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘आपने दावा करना है कि ‘100’ नम्बर खड़काने से पांच मिनट पहले ही आप यहां पहुंचे थे। मेड को उस टाइम की बावत कोच कर के रखियेगा।’’
विमल ने फिर सहमति में सिर हिलाया।
‘‘आपको शायद ख़बर नहीं है कि आप की ड्रैस के सारे फ्रंट पर खून लगा है जो चुगली करता है कि मैडम आपकी बांहों में मरीं। फौरन ड्रैस तब्दील कीजिये। मैं जाता हूं।’’
लूथरा चला गया।