मैंने पार्टी के अगले दिन देव, सोनू और भोपले को घर बुलाया। मैंने मन बना लिया था की अब निधि की बेवफाई से बाहर निकल के एक ही काम करना है वो है पढ़ाई। मुझे इस प्यार की मुसीबत से निकलना है। मुझे अपने मन के दर्द से बाहर आ कर इतनी मेहनत करनी है जो मैं वंश और निधि को नीचा दिखा सकूँ। मैं जानता था ये काम मन पर काबू करकेही किया जा सकता है। जैसे की, सन्यासी करते हैं।

सभी मेरे दोस्त सुबह दस बजे मेरे घर आ गए। मैंने देव और सब को ग्रुप बनाकर पढ़ने को कहा। सब राजी थे। देव ने पूछा, “कब से पढ़ाई करनी है?”

“कल से, आज हम मूवी देखने चलते हैं जिससे अगले दिन सबका मूड पढ़ने का अच्छा बन जाए। साथ में हम रात का खाना भी बाहर खाएँगे। अगर कोई नहीं जाना चाहता है तो वो मना कर सकता है।" मैं ये इसलिए कर रहा था जिससे मेरे दिमाग से निधि का प्यार निकल सके। मैं सारा फोकस पढ़ाई पर करना चाहता था।

सबसे पहले भोपला बोला, “मैं तैयार हूँ।” सोनू और देव भी राजी हो गए। साथ में तय कर लिया गया कि रात दस बजे का शो पी.वी.आर. अनुपम पर देखेंगे। रात आठ बजे सब को मिलना है, यह तय करके वे सब चले गए। 

इतवार का दिन था। अमित की छुट्टी थी। उसने कहा, “क्या मैं भी मूवी देखने जा सकता हूँ?” 

मैंने कहा, “हाँ क्यों नहीं जा सकते हो।” 

हम आठ बजे मूवी के लिए निकले। मैंने अपनी बुलेट नहीं निकाली क्योंकि बाहर बहुत ठंड थी। देव और सोनू के घर कार थी, पर वे उसे नहीं ला सकते थे। क्योंकि दोनों के घर से कार ड्राइव की मनाही थी। बचा भोपला, वो अपनी होंडा सिटी कार लेकर आ गया। हम भी तैयार थे। हम कार में बैठ गए और चल पड़े। रास्ते भर भोपले को खींचते हुए हम साकेत के पी.वी.आर. में पहुँचे। वहाँ एक रेस्टोरेंट है पिंड बलूची, हम वहाँ खाना खाने चले गए। इस रेस्टोरेंट में शराब भी पी सकते थे। हम एक टेबल पर जाकर बैठ गए। रेस्टोरेंट को लकड़ी और काँच से सजाया गया था। टेबल और कुर्सियों पर भी नक्काशी थी, साथ में बार भी बना था। वहाँ धीमा-धीमा संगीत बज रहा था। एक वेटर हमारे पास आया और में मेन्यू दे गया। मैंने रेस्टोरेंट में सभी लोगों को देखा, जिस मेजवान ज्यादा थे। एक जोड़े में बैठी लड़की ने तो कुछ ज्यादा ही ऊँची स्कर्ट पहनी थी।

देव ने कहा, “क्या मँगाना है देख लो। मैं तो चिकन खाऊँगा।” 

सोनू ने कहा, “एक बटर चिकन के साथ पुलाव और एक बटर शाही पनीर क्योंकि राघव और अमित चिकन नहीं खाएँगे, साथ में पाँच बटर नान भी।” 

मैंने भी हाँ कर दी और साथ में रायता भी बोल दिया। भोपले ने बोला, “पाँच नान से क्या होगा और मैं तो ड्रिंक भी लूँगा।” 

देव ने कहा, “तेरी ड्रिंक के पैसे हम नहीं देंगे, वो तुम्हें अलग से मँगानी पड़ेगी।”

“जब राघव चिकन नहीं खा रहा पर वो तब भी चिकन के पैसे दे रहा है तो मेरी ड्रिंक के पैसे भी सभी देंगे।” 

इस तरह तू-तू मैं-मैं के बाद कुछ देर में तय हुआ कि‍ ड्रिंक के पैसे भोपले को अलग से ही देने होंगे। ये सब भोपले को समझाने में देव को समय लगा। तब जाकर वेटर को हमने ऑर्डर दिया। 

भोपले ने टेबल के नीचे से मेरे पैर से पैर छूकर उस छोटी स्कर्ट वाली लड़की की तरफ इशारा किया। मैंने भी उसे देखा जो नशे में थी। वो अपने साथी की बाँहों में झूल गई तो भोपले की हँसी छूट गई। मैं भी थोड़ा हँसा। अमित ने भी उसके हील वाले सैंडल की तरफ इशारा किया। मैं भी उसके सैंडल देखकर हैरान रह गया कि वो इतने हील के साथ कैसे घर जाएगी। सोनू ने कहा, “यार जब वो जाएगी तो चली जाएगी, ये उसका रोज का काम है।”

देव ने कहा इशारों में कहा, “निगाहें अपनी तरफ रखो।” 

भोपले ने कहा, “डर मत मेरे साथ है।” 

भोपले को नशा हो गया था ड्रिंक पीने से। उसने एक और बीयर मँगवाई। मेरा भी मन बीयर पीने का था पर मैं अमित के सामने बीयर नहीं पी सकता था तो चुप ही रहा। 

वेटर ने भोपले को देखकर ड्रिंक डालने को कहा, “सर ड्रिंक मग में डालें?” भोपले ने हाँ कहा तो वो बीयर डालकर चला गया। साथ में वेटर पीनट भी लाया था। जब तक हमारे लिए खाना आया भोपला दो बीयर के प्वॉइंट गटक चुका था।

देव ने भोपले से कहा, “यार ऐसे बीयर नहीं पी जाती है गटागट। इसे धीरे-धीरे पीना चाहिए।” 

“मेरी बीयर है। मैं कैसे भी पीऊँ? ये मेरे पैसों में आई है।” भोपले ने फटाक से कहा। देव कुछ बोलता उससे पहले मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। वो समझ गया कि भोपले नशे में है।

खाना शुरू हुआ तब अमित ने कहा, “मैं चिकन ले सकता हूँ?” 

“हाँ ले सकते हो।” देव ने कहा। मैं अमित को देखने लगा कि इसने ये सब कब शुरू किया फिर सोचा कि पहली बार है शायद। उसने चिकन का लेग पीस अपनी प्लेट में डाल दिया। मैंने अमित से पूछा, “तुमने ये सब कब से खाना शुरू किया?”

“मेरा एक दोस्त सरदार है, वो स्कूल में चिकन लाता है। मैंने भी उसके साथ कई बार चिकन खाया है।” 

मैंने सोचा कि मैं भी आज चिकन खाकर देखता हूँ। ऐसा क्या है इस में जो लोग इतने चाव से खाते हैं। मैंने भी एक पीस चिकन का प्लेट में डाला। थोड़ा-सा चिकन का पीस तोड़कर खाया तो मुझे भी चिकन टेस्टी लगा।

सोनू ने कहा, “दो नान और मँगा लो कम पड़ रही है।” मैंने दो नान का ऑर्डर दिया। अभी तक नान खत्म हो गई थी पर भोपला और बीयर मँगा रहा था। मैंने उसे कहा, “यार अभी मूवी देखनी है कहीं तुम्हें ज्यादा चढ़ गई तो?” 

भोपले ने कहा, “ये बीयर क्या है मैं चार-चार बीयर पी जाता हूँ ये तो लाइट बीयर है फिर भी।” मैंने देखा उसकी आँखें चढ़ गई थी। लगता था उठाकर ना ले जाना पड़े।

सभी ने खाना खा लिया था। सबने बिल के पैसे इकट्ठे किए मगर बिल देखकर सब की फट गई। बिल आठ हजार का था। हमने पैसे दे तो दिए, साथ में सौ रुपये की टिप भी वेटर को देव के कहने पर दे दी। हम बाहर आ गए। मैंने भोपले से कहा, “यार तू अब मूवी देखने के लायक तो नहीं लग रहा है। फिर भी देख ले।” मेरी इस बात पर सभी तेज-तेज हँसने लगे। 

अमित ने कहा, “टिकट जल्दी ले लेना कभी खत्म ना हो जाए। सभी ने पर्स से पैसे निकाले और अमित सीधा टिकट खिड़की की लाइन मेलग गया। मूवी बहुत अच्छी थी इसीलिए लोगों की भीड़ लगी थी। लाइन में धक्का-मुक्की भी हो रही थी। भीड़ को देखकर लग रहा था कि टिकट की कमी ना पड़ जाए। लाइन धीरे-धीरे बढ़ रही थी। भोपले ने कहा, “यार एक सिगरेट पीनी है, पान के खोखे पर चलो।” मैंने कहा, “बीयर का नशा कम है जो अब सिगरेट भी पीनी है?”

“सिगरेट में कौन-सा नशा रहता जो तुम परेशान हो रहे हो?” 

देव ने कहा, “चलो चलते हैं, मैं जानता हूँ जब तक ये सिगरेट ना पी ले, पीछे पड़ा रहेगा।”

“यार हम स्कूल से निकल चुके हैं, अब इस में क्या बुराई है? हम एटीन प्लस हैं और मैं तो बीस का हूँ।” 

भोपला सिगरेट पीने लगा तो हम लड़कियों को देखने लगे। लेकिन भोपला तो ऐसे देख रहा था कि कोई गुंडा हो, तभी उसको एक लड़की ने पहले स्माइल दी फिर थप्पड़ दिखाया। लड़की स्कर्ट में थी जिसकी गोरी टाँगों को भोपला काफी देर से निहार रहा था। लड़की के थप्पड़ दिखाने पर हम सभी हँसने लगे। अमित भी लाइन में हँस रहा था पर भोपले को कोई फर्क नहीं पड़ा। वो ऐसे ही लड़कियों को निहारता रहा जब तक अमित पाॅच टिकट नहीं ले आया।

टिकट मिलते ही सभी अंदर जाने की लाइन मेलग गए। मुझे डर था कि‍ कहीं भोपले को कोई चेकिंग करने वाला गार्ड ना रोक ले, क्योंकि वो नशे में था। नशे में होने पर मूवी देखने की मनाही होती है।

धीरे-धीरे लाइन चलती रही और भोपला भी लटकता-मटकता चलता रहा। लाइन में सबसे आगे अमित था जिसकी तलाशी के बाद वो अंदर चला गया। और हम भी अंदर चले गए। पर तभी भोपला जो लाइन के आखिरी में था उसे गार्ड ने रोक लिया और उसे कहा, “आप ने ड्रिंक कर रखी है।” 

भोपले ने एक बार हाँ तो एक बार ना कहा। भोपले को गार्ड ने रोक लिया और कहा, “आप अंदर नहीं जा सकते हैं।” 

भोपला के लिए हम भी रुक गए। भोपले ने हमें कहा, “तुम सब अंब अंदर जाओ मैं भी जुगाड़ से अंदर आ जाऊँगा।” भोपले को वहीं छोड़कर हम हँसते हुए अंदर थियेटर में चले गए। हम थिएटर के हॉल के बाहर खड़े रहे क्योंकि अभी अंदर हॉल खाली नहीं था। अभी शायद मूवी का एंड बाकी था पहले लगे शो का।

अमित ने कहा, “यार भोपला भाई अभी तक नहीं आया, वो मूवी तक आ पाएगा?” 

देव ने कहा, “आ जाएगा उसके बहुत से जुगाड़ हैं। उसकी तुम फिक्र मत करो।” 

ठीक दस मिनट बाद हम हॉल मेजाने लगे और फिर अपनी सीट पर बैठ गए। तब तक पर्दे पर विज्ञापन चलते रहे। जैसे ही मूवी शुरू हुई किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, मैंने पीछे देखा तो भोपला खड़ा था। 

“यार ऐसे ही नहीं हूँ मैं, बहुत चलती है दिल्ली में। मेरी सीट छोड़ो।” मैं उसकी ही सीट पर बैठा था ताकि कोई और आकर उसकी सीट घेर ना ले। 

मूवी स्टार्ट हो गई। मजेदार सीन चलने लगे। उस रोमांचकारी मूवी में हम खोए रहे। जब इंटरवल हो गया हम सब के चेहरे पर मुस्कान थी। मैं अपनी सीट से उठकर बाथरूम चला गया। बाथरूम करके भोपला मेरे पास आकर बोला, “बीयर के बाद प्रेशर बढ़ जाता है।” 

बाथरूम से आकर मैंने देखा सब गरमा-गरम कॉफी पी रहे हैं। अमित ने मेरे लिए पहले से ही कॉफी ले रखी थी। हम मूवी की बातें करने लगे। अब तक भोपले का नशा उतर चुका था और वो भी कॉफी पी रहा था। कुछ देर में मूवी फिर शुरू हो गई। 

एक घंटे बाद जैसे ही मूवी खत्म हुई भोपला तेजी से भागता हुआ बाहर निकला। मैंने सोनू से कहा, “इसे इतनी क्या जल्दी है?” सोनू ने कहा, “बीयर पी है, प्रेशर लगा होगा।”

अमित, मैं, सोनू और देव सिनेमा हॉल से बाहर आ गए। सभी गाड़ी में बैठ गए। भोपले ने कहा, “यार मुझे गाड़ी नहीं चलानी। मुड़ते ही पुलिस वाले बैरीकेट पर मिलेंगे।” इस पर सभी ने कहा कि किसी को भी गाड़ी चलानी नहीं आती यहाँ। अमित ने कहा, “पुलिस वाले तुम्हारा क्या करेंगे?”

“अरे समझ नहीं रहा है तू, मुँह से शराब की स्मेल आ रही है इसलिए।” 

मैंने कहा, “तेरे तो इतने जुगाड़ है, जो होगा देख लेना।” 

“है तो सही पर पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना।” 

तभी अमित ने कहा, “मुझे गाड़ी चलानी आती है, कहो तो मैं ड्राइव करूँ?” सभी एक-दूसरे को देखने लगे। सोनू हँस पड़ा और हम भी हँसने लगे। अमित चुप-चाप हमें हँसते हुए देखता रहा पर भोपले ने अमित को गाड़ी चलाने नहीं दी क्योंकि वो उम्र में छोटा था। उसके पास लाइसेंस भी नहीं था इसलिए मैंने अमित से पूछा, “तुझे तो बुलेट भी नहीं चलानी आती, तू कब से गाड़ी चलाने लगा?”

“एक दोस्त से सीखी थी।” 

तभी वहाँ गाड़ी पार्किंग वाला लड़का आया। भोपले ने कहा, “यार कोई पार्किंग के पैसे दो मेरे पास नहीं हैं, सभी अपनी जैब देखने लगे पर किसी के पास पैसे नहीं थे। सबने हाथ खड़े कर दिए। 

“यार ये दो हजार का आखिरी नोट है इसे भी छुट्टा करना पड़ेगा।” कहते हुए भोपले ने नोट निकाला। सभी हँसने लगे। पार्किंग वाले ने कहा कि छुट्टा नहीं है। 

“छुट्टा नहीं है तो हमेजाने दो।” उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी। हम पुलिस के बैरीकेट पर मुड़ते ही पहुँचे तो पुलिस ने हाथ के इशारे से गाड़ी रुकवाई और पुलिस के एक आदमी ने पूछा, “कहाँ जा रहे हो?” 

सोनू ने कहा, “महरौली।”

पुलिस वाले ने सभी को टॉर्च से देखा, “कहाँ से आ रहे हो?” 

“मूवी देखने गए थे।” उसने बैरीकेट से रास्ता देने को दूसरे पुलिस वाले से इशारा किया। हम वहाँ से आगे बढ़ गए।

देव ने कहा, “कब से ग्रुप में पढ़ाई करनी है प्लान बना ले।” 

मैंने ने कहा, “हम बारी-बारी से सब के घर पर पढ़ेंगे।” 

भोपले ने कहा, “कल ग्यारह बजे से सुबह पढ़ाई करते हैं।”

“क्यों दस बजे से नहीं?” देव ने चुटकी लेते हुए कहा। 

“यार देर तक सोने के लिए।” सब हँसने लगे।

सब के सब ग्यारह बजे अगले दिन मेरे घर पहुँच गए। देव के कहने पर मैंने सबसे पहले भूगोल के नोट्स निकाला, क्योंकि भूगोल उनका सबसे कमजोर प्वॉइंट था। सबने भूगोल के नोट्स की कॉपी की, फिर सभी ने दो घंटे में बीस पेज लिखने के बाद पढ़ाई शुरू की। पर मेरे लिए ये तीसरी बारी रटना था। देव ने कहा, “इस सब्जेक्ट पर सबसे ज्यादा टाइम देना है।”

हम कोई तीन घंटे पढ़ने के बाद भोपले ने कहा, “यार ऊपर चलते हैं।” 

मैंने कहा, “जब तक हम पढ़ाई करेंगे तब तक कोई भी मेरे घर की छत पर नहीं जाएगा।” 

सब राजी हो गए। सभी जानते थे कि भोपला ये क्यों कर रहा था। वो निधि से मुझे मिलाना चाहता था। सब ये जानते थे कि निधि ने उसे ये करने को कहा था मेरे सिवा। शाम के चार बजे थे। निधि भी चार बजे ही कॉलेज से आती थी। जाने क्यों भोपला फिर से हमारी दोस्ती चाहता था, पर अब मैं उससे दूर ही रहना चाहता था, जब से वंश ने उल्टा-सीधा कहा था उसके बारे में।

हम शाम छह बजे तक पढ़ते रहे। शाम को मम्मी सब के लिए चाय और बिस्किट ले आई। सबने चाय पी फिर सब के सब घर जाने लगे। मैंने कहा, अभी से घर जा रहे हो?” 

देव बोला, “अब और पढ़ाई मुझसे नहीं हो पाएगी।” 

सभी किताबों से सर मारकर थक चुके थे। वे हैरान थे कि मैं अभी भी पढ़ना चाहता था। देव घर के लिए निकल गया। सोनू जो अभी पढ़ना चाहता था वो भी चल पड़ा देव के जाने से। भोपला तो चाहता ही छुट्टी था, वो भी निकल लिया जब वे चले गए। मैं अपने ट्यूशन के अंग्रेजी के नोट्स पढ़ने लगा। मैंने अब ट्यूशन भी छोड़ दिया था ताकि परीक्षा की अच्छे से तैयारी कर सकूँ। 

अमित ने आठ बजे खाना खाने को कहा। मैंने और अमित ने खाना अपने कमरे में खाया। अमित ने कहा, “यार तुम निधि से बात क्यों नहीं करते हो? चार मिस कॉल आए हैं।” मैंने उसे कुछ नहीं कहा तो उसने फिर से कहा, “क्या बात हो गई जो इतनी दूरी बना ली है उससे?”

मैंने कहा, “परीक्षा के बाद ही बात करूँगा उससे।” इतना कहकर मैंने टीवी को ऑन कर दिया। अमित नहीं जानता था कि हमारा मिलन कभी नहीं होगा। यही सब सोचते हुए मैं टीवी पर न्यूज देखने लगा। सुबह से पढ़ते-पढ़ते थक जाने से मैं जल्दी ही सो गया।

मुझे एक महीना हो गया था ग्रुप में पढ़ते हुए। अब एक महीना ही बचा था परीक्षा का तो मैं और ज्यादा पढ़ने लगा। देव और सोनू मेरे पढ़ने की कैपेसिटी देखकर दंग थे। वे सोचते थे कि जो एक सामानय-सा लड़का था वो अब चैप बन गया था और पढ़ने से कभी थकता ही नहीं था। कई बार हम में से कोई पूछ लेता था कि सबसे ज्यादा किसके नंबर आएँगे। तो मैं कहता था कि सोनू के तो बाकी सब कहते कि मेरे। मैं नहीं जानता था कि वे सब मुझे सबसे अच्छा विद्यार्थी क्यों मान रहे थे। कुछ फर्क मुझे भी लगा पर इतना नहीं।

जिस अंग्रेजी विषय में मैं बहुत कमजोर था उस में भी मैं तेज हो गया था। जानता मैं भी था इसका कारण, क्योंकि सब आठ घंटे पढ़ते थे और मैं उनसे चार घंटे ज्यादा पढ़ रहा था। साथ में मैं थोड़ा समय योग और जॉगिंग के लिए भी निकाल लेता था।

समय बीत रहा था। मैं मेहनत के घंटे बढ़ा रहा था। पंद्रह दिन में ही मैं बारह से अठारह घंटे पढ़ने लगा कि बस ये समझ लो मैं हर वक्त पढ़ता ही रहता था। अजीब बात ये थी कि मैं थकता ही नहीं था जैसे कि कोई यू.पी.एस.ई. की तैयारी कर रहा हो। किताबें पढ़-पढ़ के कम हो रही थी पर मेरी पढ़ाई और किताबें माँग रही थी। सच पूछो तो मुझे अब पढ़ाई धीरे-धीरे छोड़ देनी चाहिए थी, पर मैं था कि किसी ढीठ की तरह पढ़ रहा था।

थोड़े ही टाइम में परीक्षाएँ आ गई। सबसे पहले हम स्कूल से रोल नंबर लेकर आए। मैं भोपले के साथ अपना स्कूल का सेंटर देखकर आया। हमें हमारी डेट शीट भी मिल गई थी। सबसे पहले परीक्षा अंग्रेजी की थी, तो हम सब साथ में परीक्षा देने के लिए ग्रीन पार्क के स्कूल में गए।

हम सब अपनी सीट पर बैठे और हमें आंसर शीट दी गई। मैंने सबसे तेज अपना नाम, रोल नंबर आदि‍ अपनी शीट पर भर दिया। सभी बच्चों ने भी यही किया। मैंने जब क्वेश्चन पेपर को देखा तो मुझे सभी आंसर आते थे। मैं लगातार आंसर शीट भरता रहा। जैसे ही शीट भर गई, मैंने और आंसर शीट टीचर से माँगी, उसके बाद एक और शीट ली। अचानक टाइम देखा तो पंद्रह मिनट ही बचे थे, पर मेरे चार क्वेश्चन रह गए थे। मैं इतने समय में एक का ही आंसर दे पाया। मुझे बड़ा धक्का लगा। टीचर ने सब की कॉपी ले ली। मैंने भी मजबूरी में अपनी आंसर शीट टीचर को दे दी। ऐसे ही बाकी चार पेपरों में भी हुआ। मैंने सबसे ज्यादा शीट तो भरी, पर तीन-चार क्वेश्चन छूट गए।

आखिरी पेपर में मैंने देखा कि‍ सोनू और देव मुझसे कम शीट भरकर भी सारा क्वेश्चन पेपर हल कर रहे थे। तब मेरी समझ में आया कि मैं दो और तीन नंबर के क्वेश्चन ज्यादा शब्दों मेलिख रहा था। मेरा दिमाग जितना जानता था, सब लिख रहा था। जबकि भोपला, सोनू और देव संतुलित शब्दों में आंसर दे रहे थे लेकिन मैंने ज्यादा ध्यान इस पर नहीं दिया। एक तो आखिरी पेपर था, साथ में इतने नंबर तो आ ही जाएँगे परिणामों से कि‍ कॉलेज में दाखिला मिल जाएगा। 

आखिरी पेपर था। पेपर के बाद हमें सेलीब्रेट भी करना था। इस परीक्षा के बाद बस भूगोल का प्रैक्टिकल के लिए फाइल ही जमा करानी रह गई थी ये प्रैक्टिकल तीस नंबर का था।

जैसे ही हम आखिरी पेपर देकर आए, हमने बाजार मेजाकर खूब जमकर खाया। खूब मस्ती करने के बाद ही हम अपने-अपने घर पहुँचे। 

दो दिन बाद हम स्कूल में भूगोल का प्रैक्टिकल देने गए। सबने अपनी फाइल बारी-बारी से टीचर को दी। भूगोल के टीचर के पास एक-दूसरे स्कूल का टीचर बैठा था। उसे ही प्रैक्टिकल लेना था। टीचर सभी से बारी-बारी से मिले। हमारे ग्रुप में पहला नंबर देव का आया। फिर सोनू का आया और फिर भोपले का। सभी प्रैक्टिकल देकर खुश थे। पर मेरे नसीब में ये खुशी नहीं थी। एक तो मेरे से ये भूगोल के टीचर चिढ़ते थे, साथ में मैं उन टीचर की बुराई सब के सामने कर देता था। ये बात भूगोल के सर भी जानते थे कि मैं उनके बारे में क्या सोचता हूँ।

मेरा नंबर भी आ गया। मैं जैसे ही अपनी फाइल लेकर उनके पास गया तो चुप-चाप अपनी फाइल बाहर से आए टीचर को थमा दी। उसने कुछ सवाल मुझसे किए। मैंने भी वैसे ही उतर दे दिए। हमारे भूगोल के टीचर ने दूसरे टीचर से कहा, “एकदम हरामी लड़का है जी ये सर, आप इसे फेल कर दो।” 

ये सुनकर मेरे तोते उड़ गए। उन्होंने कहना जारी रखा, “क्या करने जाता था खारी बावड़ी? बड़े धूएँ के छल्ले उड़ाता था वहाँ जाकर।” 

मैं स्तब्ध रह गया क्योंकि मेरे अलावा ये कोई नहीं जानता था कि मैं कभी-कभी सिगरेट भी पीता था। पर मैं अकड़कर बैठा रहा। भूगोल के टीचर ने कहना जारी रखा, “तुमने तो नहीं बनाई ये फाइल!” टीचर ने एक और इलजाम मेरे ऊपर मढ़ दिया 

मैंने कहा, “नहीं सर मैंने ही बनाई है बड़ी मेहनत से।” भूगोल के सर ने फिर से कहा, “सर आप फेल कर दो इसे, ये कक्षा का हरामी है।” 

तभी दूसरे टीचर ने कुछ लिखा पेपर पर और मुझे जाने को कहा। मैं फेल होने से डरा हुआ था। जब सब बच्चे जा चुके थे प्रैक्टिकल देकर मैं बाहर से आए टीचर के पास गया जब वे अकेले थे, “सर फेल मत करना नहीं तो मेरी जिंदगी खराब हो जाएगी।” 

उस सर ने कहा, “किस बात से चिढ़ते हैं तुमसे तुम्हारे टीचर?” 

“सर, मैं इनकी बुराई जो कर देता हूँ इसलिए। सर, इन्होंने कुछ नहीं पढ़ाया है साल भर से।” 

ये सुनकर टीचर ने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा, “घबराओ नहीं, मैंने किसी को फेल नहीं किया है।” इतना कहकर वो वहाँ से चले गए। मैंने ये सब बातें अपने दोस्तों को बताई तो वे भी बोले कि मुझे डरने की जरूरत नहीं है। 

परीक्षा समाप्त हुए चार दिन हो गए थे। इन चार दिनों में हम रोज सुबह से शाम तक क्रिकेट खेलते रहे थे। साथ में मैं निधि को भी भूलने लगा था अब तो याद भी नहीं था की वो भी है मेरी जिन्दगी में इस की वजह थी क्रिकेट, साथ में मेरे दोस्त जो मुझे उस की याद आने ही नहीं देते थे। मेरे मन में शायद उसके लिए प्यार उतना नहीं रह गया था मुझे बस अब क्रिकेट से प्यार था। मैं लगातार क्रिकेट खेल रहा था। 

आज दूसरे मुहल्ले वालों से मैच था। हम बाग में एक मैदान में थे जहाँ आम के पेड़ों के पास लंबा-चौड़ा मैदान था। आम के पेड़ों पर आमिया लगी थी, जिन्हें कुछ बच्चे तोड़ रहे थे। आम का बाग किसी का नहीं था यानी ये एक सरकारी जगह थी। मैदान के बीच में किसी ने सिमेंट की पट्टी बना रखी थी जिसे हम विकेट कहते थे। 

महरौली में एक पहाड़ी क्षेत्र पड़ता है, जहाँ पर लावे के पत्थर की छोटी-छोटी चट्टानें मिल ही जाती है जो कि ऐसे मैदान पर बैठने के काम आती है। मैदान के बाउंड्री के पास ये पत्थर पेड़ के नीचे थे जहाँ पर बैटिंग कर रही टीम बैठती थी। मेरे चारों दोस्तों के अलावा हम आठ लड़के और खेल रहे थे। भोपला तो कभी अंपायर बन जाता तो कभी स्कोर लिखने लगता था। अमित भी इस काम में भोपले की मदद कर रहा था और खेल में देव हमारा कैप्टन था।

उनकी तरफ से भी एक बंदा स्कोर लिख रहा था ताकि कोई गड़बड़ी ना हो। अंपायर सबका एक भोपला था। देव ने इक्कीस सौ रुपये का मैच रखा था। यानी हारने वाली टीम द्वारा जीतने वाली टीम को इक्कीस सौ रुपये देने थे। जिसको ये पैसे देने होते थे, वही टीम का कैप्टन होता था। क्योंकि पैसे हारने पर वही भुगतता। उधर दूसरी टीम का कैप्टन राजू था।

हम पहले बल्लेबाजी कर चुके थे और हमने बीस ओवर में कुल 54 रन बनाए थे।

जब दूसरी टीम ने खेलना शुरू किया तो तीन ही ओवर में उसके दो विकेट गिर गए। स्कोर भी तीन रन था। हम जानते थे कि इस मैदान में 55 रन का लक्ष्य काफी था क्योंकि मैदान बड़ा था। इस मैदान में छक्के-चौके मारना आसान नहीं था, इसलिए खिलाड़ि‍यों को बड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। विपक्षी टीम के दोनों विकेट इसीलिए गिर गए थे, क्योंकि वे बाउंड्री पर लपक लिए गए थे। अगला ओवर देव ने डालना था। वे दबाव में थे कि कहीं फिर से विकेट ना गिर जाए, इसलिए वे धीरे-धीरे खेल रहे थे। 

धीरे-धीरे सात ओवर हो गए और स्कोर दस रन पहुँच गया। आठवें ओवर में स्कोर बढ़ाने के चक्कर में एक बल्लेबाज ने बॉल हवा में उड़ा दी। मैदान बड़ा होने के कारण बॉल को मैदान के बीच में ही लपक लिया गया और वो आउट हो गया।

फिल्डिंग करते हुए मैंने अचानक देखा कि मैदान के बाहर मर्सिडीज आकर रुकी। मैं समझ गया कि वंश था। देव भागकर दूसरे कप्तान के पास गया। हम भी साथ गए। देव ने पूछा, “तुमने रणजी का खिलाड़ी बुलाया है?” 

दूसरे कप्तान ने कहा, “मेरी मर्जी, मैं किसी को भी खेलने को बुला सकता हूँ तुम्हें क्या?” 

हमारे बीच में ऐसी कोई बात नहीं हुई थी।” 

लेकिन तभी वंश गाड़ी से उतरकर मैदान में आकर पैड बाँधने लगा। सोनू ने देव से कहा, “हम नहीं खेलेंगे, ये चीटिंग है।” 

मैंने दोनों को समझाते हुए कहा, “हम खेलेंगे। ये खेल एक खिलाड़ी का नहीं है जो हम डरें उससे।”

पर देव नहीं मान रहा था। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर आश्वासन दिया और सोनू को भी समझाया तब यह तय हुआ कि खेल खेला जाएगा। वंश बस मेरा दुश्मन नहीं था, वो हम सबका दुश्मन था। तभी हमारी टीम का एक खिलाड़ी बोला, “ये हमारी टीम को ताश के पत्तों की तरह यहाँ से वहाँ उड़ाता रहेगा।” 

मैं यह बात जानता था क्योंकि मैंने एक मैच में ऐसा होते देखा था, पर मैंने उसे समझाया कि वो कोई देवता नहीं है जो हर बार चलेगा।

बहरहाल, मैच फिर से शुरू हो गया। मैंने देव से कहा, “अगला ओवर मैं डालूँगा।”

ये सुनकर सबकी हँसी छूट गई। देव ने कहा, “यार तुम समझते नहीं हो, ये तेरा मजाक बना देगा। तेरे हर बॉल पर छह मारेगा।” 

“अरे तू समझता नहीं है देव, मैं स्पिन डालूँगा, कुछ नहीं होगा।” 

उसका ओवर खत्म होते ही मैं तैयार था। और वंश भी। मैंने पहली बॉल वंश को फेंकी जिसे मैंने लेग स्पिन डाला था। बॉल को देखने के लिए वंश ने डिफेंस किया। मैंने दूसरी बॉल फेंकी तो इस बार भी वंश ने बॉलर और बॉल को समझने के लिए फिर से डिफेंस किया। मैं समझ गया कि अगली बॉल पर वंश छह के लिए जाएगा। इसलिए पहले तो मैंने सभी खिलाड़ियों को बाउंडरी पर सतर्क कर दिया, फिर बॉल डाली। वंश ने सोचा कि बॉल फिर से लेग स्पिन आएगी तो उसने बॉल को आसमान पर उड़ाना चाहा, पर मैंने बॉल को चतुराई से धीमा डाल दिया साथ में मैंने बॉल को लेग स्पिन ना डाल कर सीधी फेंक दी। वंश समझ नहीं पाया कि बॉल स्पिन नहीं होगी और उसने बल्ला घुमा दिया। बॉल चकमा देकर उसके पैड और बल्ले के बीच से सीधे स्टंप पर जा लगी। वंश देखता ही रह गया और मैं वंश को उँगली दिखाकर उछलने और शोर करने लगा। मेरे साथी भी उछल-कूद करने के साथ मुझे कंधों पर उठा लिए। 

ये सब देखकर वंश ने वहाँ से खिसकना ठीक समझा। जब तक वंश और उसके चेले वहाँ से नहीं गए तब तक शोर होता रहा। मुझे ऐसा लगा कि‍ मैंने अपना बदला उससे ले लिया। कुछ देर बाद बाकी का खेल खेला गया मगर हम आसानी से जीत गए।

मैच खेलकर घर आते हुए हमने बहुत हँसी-मजाक किया। उसके बाद जब भी हमने किसी से भी मैच रखा तब पहले ही तय कर लिया कि‍ वंश मैदान पर खेलने नहीं आएगा।

देखते-देखते हम रिजल्ट के पास पहुँच गए थे। इसके अलावा हम दस मैचों में से आठ जीतकर बीस हजार रुपये भी इकट्ठे कर लिए थे। इन पैसों से हमने क्रिकेट की किट खरीदी थी जिस में बैट, बॉल, पैड, ग्लव्स आदि थे। इसी बीच निधि के फोन भी मेरे पास आते रहे पर मैंने उससे बात नहीं की। वो सारे फोन अमित ने ही उठाए थे।

अमित को अब भी समझ में नहीं आया कि‍ हमारे बीच बात क्या हुई थी जिससे कई साल पुरानी दोस्ती टूट गई थी। इसीलिए उसने कई बार मुझसे पूछा पर मैं बताता भी क्या। मेरे साथी भी यही चाहते थे कि हमारी दूरी बनी रहे। अमित ने निधि से भी पूछा कि बात क्या हुई थी, पर वो भी समझ नहीं पाई कि क्या बताएँ। लेकिन निधि अब वंश नामी बीमारी से दूर थी, शायद मेरी तरह वो भी वंश को समझ चुकी थी। 

मैं कई बार सोचता था कि‍ ऐसा क्या हो गया था कि‍ वंश मेरा दुश्मन बनकर स्कूल की पार्टी में मुझे इस तरह से निधि के बारे में कहा था जिसे में घोर बेइज्जती समझ रहा था। मैं सोच रहा था कि वो निधि के साथ सो चुका है, ये बात वंश ने क्यों कही। हमारे बीच कोई दुश्मनी भी नहीं थी। मेरे दिमाग में ये बात घूमती रही, पर जवाब नहीं मिला। कोई आदमी ऐसा व्यवहार ऐसे ही नहीं करता। जरूर निधि ने ही उसे मेरे खिलाफ भड़काया होगा, नहीं तो वो मेरे से बिना बात पंगा क्यों लेता। अब निधि और वंश में क्या हो गया, जो वे दूरी बनाए हुए थे। मैं काफी समय से देख रहा था कि वे अब नहीं मिलते थे।

दरअसल, वंश ने निधि से शादी का वादा करके ये सब किया था। जब वंश उसके साथ ये सब कर चुका तो उसके बाद वो हर बार की तरह उसका मन बदल गया। वंश ने तो उसे इसलिए ही शादी के जाल में फँसाया था। जब निधि शादी करके घर बसाने की बात करने लगी तो वंश उससे बोर होने लगा। जैसे-जैसे समय बीता वंश ने उसे इग्नोर करना शुरू कर दिया। इसीलिए वंश और निधि में झगड़ा होने लगा।

धीरे-धीरे मुझे सारी बात का पता चल गया। एक दिन निधि ने वंश से कहा, “तुम तो उन्हीं लड़कों की तरह हो जो लड़कियों को शादी का झाँसा देकर उनके साथ सोना चाहते हैं। तुम्हारे अंदर गुण नाम की चीज नहीं है। मैं तो वंश तुम्हें कुछ और ही समझती थी, पर तुझे प्यार नाम का भी मतलब पता नहीं है। तेरे से कहीं अच्छा राघव है, जिसने मेरी इजाजत के बिना मुझे आज तक छुआ भी नहीं। तेरे जैसे इंसान के लिए मैंने अपने प्यार को भी छोड़ दिया। तू राघव जैसा कभी नहीं बन सकता। उस में और तुझ में रात-दिन का फर्क है। तू रात है तो वो दिन है। तू अंधेरी गली है तो वो रात में टिमटिमाने वाला तारा है।”

यह भी मालूम हुआ कि वंश इसके बाद से ही राघव से चिढ़ा बैठा था। वो अपने को राघव से कैसे कम मान सकता था, इसलिए उसने राघव के साथ ये सब किया था।

निधि एक बात तो जानती थी कि उसका अहंकार एक दिन टूटेगा। निधि तो कहती भी थी अहंकार तो रावण का भी नहीं रहा, वंश क्या चीज है। 

निधि एक सुलझी हुई लड़की थी, पर वंश इसका उल्टा था। वो अपने आगे किसी को कुछ समझता ही नहीं था। वो अपने को किसी सचिन तेंदुलकर से कम नहीं मानता था। हालाँकि ये बात सच भी थी कि‍ वो एक अच्छा खिलाड़ी था, पर सचिन नहीं था।

निधि के मन में राघव के लिए था कि उसका मन वंश से सुंदर था। वो ये भी जानती थी कि राघव उससे कुछ दिन ही दूर रह सकता था, पर उसे स्कूल की पार्टी वाली बात का पता नहीं था कि वहाँ क्या हुआ था। पर निधि को ये बात पता थी कि राघव में अभी अहंकार का मिलन नहीं हुआ था, वो अपने को एक सामान्य लड़का मानता था और इसीलिए वो किसी को भी भा जाता था। उसे पैसे का भी लोभ-लालच नहीं था।

निधि ये भी अंदर से मानती थी कि‍ राघव कभी अपने से निधि को दूर नहीं कर सकता था, वो एक दिन उसे जरूर मिलेगा। ये उसका विश्वास था, या शायद उसका प्यार था।

वंश ने जब से राघव के बारे में निधि के विचार सुने थे, तभी से वंश घायल शेर की तरह हो गया था। वो राघव को अपने से नीचा दिखाना चाहता था। निधि के सामने वो दिखाना चाहता था कि वो कितना बड़ा था, पर जब उसे ये मौका पार्टी में हीं मिला तो उसने ये सब तमाशा किया था। 

उस दिन वो मैदान में भी तभी आया था जब उसे पता चला कि‍ राघव भी खेल रहा था। इसलिए उसने सोच लिया था कि‍ वो मैदान में ऐसी पारी खेलेगा कि‍ राघव अपने को उसके सामने छोटा समझे। पर जीरो पर आउट होकर हुआ इसका उल्टा। वो एक साधारण क्रिकेटर बनकर रह गया था। जीरो पर आउट, वो भी राघव से! यही सोचकर वो कई रात नहीं सोया था। वो ऐसा मौका फिर चाहता था, जब वो राघव को मैदान पर बल्ले से रन के लिए पीटे या उसकी बॉलों पर छक्के-चौके उड़ाए, पर देव ने उसे ये मौका नहीं दिया कि वो राघव के साथ क्रिकेट खेल सके। इसलिए वो तड़प रहा था।