भयानक बूढ़ा
राजरूप नगर में नवाब वजाहत मिर्ज़ा की आलीशान कोठी बस्ती से लगभग डेढ़ मील की दूरी पर खड़ी थी। नवाब साहब बहुत शौक़ीन आदमी थे। इसलिए उन्होंने इस क़स्बे को नन्हा-मुन्ना-सा ख़ूबसूरत शहर बना दिया था। बस, सिर्फ़ इलेक्ट्रिक लाइट की क़सर रह गयी थी। लेकिन उन्होंने अपनी कोठी में एक ताक़तवर डाइनैमो लगा कर इस कमी को पूरा कर दिया था। अलबत्ता, क़स्बे वाले बिजली की रोशनी से महरूम थे। कोठी के चारों तरफ़ चार फ़र्लांग के इलाके में ख़ुशनुमा बाग़ लगे हुए थे। नवाब साहब की कोठी से डेढ़ फ़र्लांग की दूरी पर एक पुरानी इमारत थी जिसमें एक छोटा-सा मीनार था। किसी ज़माने में इस मीनार का ऊपरी हिस्सा खुला रहा होगा और नवाब साहब के पूर्वज उस पर बैठ कर मौज-मस्ती करते होंगे। लेकिन अब यह बन्द कर दिया गया था, सिर्फ़ दो खिड़कियाँ खुली रह गयी थीं। एक खिड़की में एक बड़ी-सी दूरबीन लगी हुई थी जिसका व्यास लगभग एक फ़ुट रहा होगा। इस इमारत में मशहूर अन्तरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर इमरान रहता था। नवाब साहब ने यह पुरानी इमारत उसे किराये पर दे रखी थी। उसने इस मीनार की ऊपरी मंज़िल को चारों तरफ़ से बन्द कराके उस पर सितारों की रफ़्तार का जायज़ा लेने वाली अपनी बड़ी दूरबीन फ़िट करा ली थी। क़स्बे वालों के लिए वह एक सन्दिग्ध आदमी था। बहुतों का ख़याल था कि वह पागल है। उसे आज तक किसी ने इस चार फ़र्लांग के इलाक़े से बाहर जाते न देखा था।
इन्स्पेक्टर फ़रीदी कोठी के क़रीब पहुँच कर सोचने लगा कि किस तरह अन्दर जाये। अचानक एक नौकर बरामदे में आया। फ़रीदी ने आगे बढ़ कर उससे पूछा। ‘‘अब नवाब साहब की कैसी तबीयत है?’’
‘‘अभी वही हाल है।’’ नौकर उसे घूरता हुआ बोला। ‘‘आप कहाँ से तशरीफ़ लाये हैं?’’
‘‘मैं ‘डेली न्यूज़’ का रिपोर्टर हूँ और कुँवर सलीम से मिलना चाहता हूँ।’’
‘‘यहाँ अन्दर हॉल में आ जाइए। मैं उन्हें ख़बर करता हूँ।’’
फ़रीदी बरामदे से गुज़र कर हॉल में दाख़िल हुआ। हॉल की दीवारों पर चारों तरफ़ नवाब साहब के पूर्वजों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगी हुई थीं। फ़रीदी उनको देखने लगा। तभी वह चौंक पड़ा। उसकी नज़रें एक पुरानी तस्वीर पर जा टिकी थीं। उसे ऐसा मालूम हुआ जैसे घनी मूँछों और दाढ़ी के पीछे कोई जाना-पहचाना चेहरा है।
‘‘अरे, वह मारा, बेटा फ़रीदी।’’ वह आप-ही-आप बड़बड़ाया।
वह क़दमों की आहट से चौंक पड़ा। सामने के दरवाज़े में एक लम्बा-तड़ंगा नौजवान क़ीमती सूट पहने खड़ा था। पहले तो वह फ़रीदी को देख कर झिझका, फिर मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ा।
‘‘साहब, आप रिपोर्टरों से तो मैं तंग आ गया हूँ।’’ वह हँस कर बोला। ‘‘कहिए, आप क्या पूछना चाहते हैं?’’
‘‘शायद मैं कुँवर साहब से बात कर रहा हूँ।’’ फ़रीदी ने अदब से कहा।
‘‘जी हाँ...मुझे कुँवर सलीम कहते हैं।’’ उसने बेदिली से कहा। ‘‘जो कुछ पूछना हो, जल्द पूछिए। मैं बहुत बिज़ी आदमी हूँ।’’
‘‘नवाब साहब का अब क्या हाल है?’’
‘‘अभी तक होश नहीं आया...और कुछ...?’’
‘‘कब से बेहोश हैं?’’
‘‘पन्द्रह दिन से... फ़ैमिली डॉक्टर की राय है कि ऑपरेशन किया जाय। लेकिन कर्नल तिवारी इसके हक़ में नहीं हैं। अच्छा, अब मुझे इजाज़त दीजिए।’’ वह फिर उसी दरवाज़े की तरफ़ घूम गया जिस तरफ़ से आया था।
फ़रीदी के पास वापस जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था।
जब वह पुरानी कोठी के पास से गुज़र रहा था तो एकदम से उसकी हैट उछल कर उसकी गोद में आ गयी। हैट में बड़ा-सा छेद हो गया था। उसने धीमे से कहा, ‘‘बाल-बाल बचे, फ़रीदी साहब...अब कभी मोटर की छत गिरा कर सफ़र न करना। अभी तो इस बेआवाज़ राइफ़ल ने तुम्हारी जान ही ले ली थी।’’ थोड़ी दूर चल कर उसने कार रोक ली और पुरानी कोठी की तरफ़ पैदल वापस लौटा। बाड़ की आड़ से उसने देखा कि पुरानी कोठी के बाग़ में एक अजीबो-ग़रीब बूढ़ा एक छोटी नाल वाली राइफ़ल लिये गिलहरियों के पीछे दौड़ रहा था।
फ़रीदी बाड़ लाँघ कर अन्दर पहुँच गया। बूढ़ा चौंक कर उसे हैरत से देखने लगा। बूढ़े को देख कर ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई मुर्दा क़ब्र से उठ कर आ गया हो या फिर जैसे वह कोई भूत हो। उसका रंग हल्दी की तरह पीला था। बाल क्या, भँवें तक सफ़ेद हो गयी थीं। चेहरा लम्बा था और गालों की हड्डियाँ उभरी हुई थीं। दाढ़ी-मूँछ साफ़...होंट बहुत पतले थे, लेकिन आँखों में बला की चमक और जिस्म में ज़बर्दस्त फुर्ती थी। वह उछल कर फ़रीदी के क़रीब आ गया।
‘‘मुझसे मिलिए...मैं प्रोफ़ेसर इमरान हूँ। अन्तरिक्ष वैज्ञानिक... और आप...’’
‘‘मुझे आपके नाम से दिलचस्पी नहीं।’’ फ़रीदी उसे घूर कर बोला। ‘‘मैं तो उस ख़ौफ़नाक हथियार में दिलचस्पी ले रहा हूँ जो आपके हाथ में है।’’
‘‘हथियार....!’’ बूढ़े ने ख़ौफ़नाक क़हक़हा लगाया। ‘‘यह तो मेरी दूरबीन है।’’
‘‘वह दूरबीन ही सही, लेकिन अभी उसने मुझे दूसरी दुनिया में पहुँचा दिया होता।’’
फ़रीदी ने अपनी हैट का सूराख़ उसे दिखाया। बूढ़े की आँखों से ख़ौफ़ झाँकने लगा। उसने एक बार ग़ौर से राइफ़ल की तरफ़ देखा और फिर हँस कर कहने लगा।
‘‘शायद आप ठीक कह रहे हैं। यह वाक़ई राइफ़ल है। मैं गिलहरियों का शिकार कर रहा था। माफ़ी चाहता हूँ और अपनी दोस्ती का हाथ आपकी तरफ़ बढ़ाता हूँ।’’ बूढ़े ने फ़रीदी का हाथ अपने हाथ में ले कर इस ज़ोर से दबाया कि उसके हाथ की हड्डियाँ तक दुखने लगीं। उस बूढ़े में इतनी ताक़त देख कर फ़रीदी बौखला गया।
‘‘आइए...अन्दर चलिए...आप एक अच्छे दोस्त साबित हो सकते हैं।’’ वह फ़रीदी का हाथ पकड़े हुए पुरानी कोठी में घुस गया।
‘‘आजकल गिलहरियों और दूसरे छोटे जानवरों मेरी ख़ास दिलचस्पी है। आइए, मैं आपको उनके नमूने दिखाऊँ।’’ वह फ़रीदी को एक अँधेरे कमरे में ले जाता हुआ बोला। कमरे में अजीब तरह की बदबू फैली हुई थी। बूढ़े ने कई मोमबत्तियाँ जलायीं। कमरे में चारों तरफ़ मुर्दा जानवरों के ढाँचे रखे हुए थे। बहुत-से छोटे जानवर कीलों की मदद से लकड़ी के तख़्तों में जकड़ दिये गये थे। इनमें से कई ख़रगोश और कई गिलहरियाँ तो अभी तक ज़िन्दा थीं। जिनकी तड़प बहुत ही ख़ौफ़नाक मंज़र पेश कर रही थी। कभी-कभी कोई ख़रगोश दर्द से चीख़ उठता था। फ़रीदी को ऊब-सी होने लगी और वह घबरा कर कमरे से निकल आया।
‘‘अब आइए, मैं आपको अपनी दूरबीन दिखाऊँ।’’ यह कह कर वह मीनार की सीढ़ियाँ चढ़ने लगा। फ़रीदी भी उसके पीछे चल रहा था। मीनार लगभग पच्चीस फ़ुट चौड़ा रहा होगा। आखिर में वह एक कमरे में दाख़िल हुए जो ऊपरी मंज़िल पर था। वहीं एक खिड़की में दूरबीन लगी थी।
‘‘यहाँ आइए...!’’ वह दूरबीन के शीशे पर झुक कर बोला। ‘‘मैं इस वक़्त नवाब साहब के कमरे का मंज़र इतना साफ़ देख रहा हूँ जैसे वे यहाँ से सिर्फ़ पाँच फ़ुट की दूरी पर हों। नवाब साहब लेटे हैं। उनके सरहाने उनकी भानजी बैठी है। यह लीजिये देखिए।’’
फ़रीदी ने अपनी आँख शीशे से लगा दी। सामने वाली कोठी की बड़ी-सी खिड़की खुली हुई थी और कमरा बिलकुल साफ़ नज़र आ रहा था। कोई आदमी सिर से पैर तक मख़मल का लिहाफ़ ओढ़े लेटा था और एक ख़ूबसूरत लड़की उसके सरहाने बैठी थी।
‘‘मैं सामने वाले कमरे के बहुत से राज़ जानता हूँ, लेकिन तुम्हें क्यों बताऊँ।’’ बूढ़ा फ़रीदी के कन्धे पर हाथ रखते हुए बोला। ‘‘बस करो, अब आओ, चलें।’’
‘‘मुझे किसी के राज़ जानने की ज़रूरत ही क्या है?’’ फ़रीदी अपने कन्धे उचकाता हुआ बोला।
बूढ़ा क़हक़हा लगा कर बोला। ‘‘क्या मुझे बेवकूफ़ समझते हो। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि यह जुमला तुमने सिर्फ़ इसीलिए कहा है कि मैं सारे राज़ उगल दूँ। तुम ख़तरनाक आदमी मालूम होते हो। अच्छा, अब चलो, मैं तुम्हें बाहर जाने का रास्ता दिखा दूँ।’’
दोनों नीचे उतर आये। अभी वे हॉल ही में थे कि दरवाज़े पर कुँवर सलीम की सूरत दिखायी दी।
‘‘आप यहाँ कैसे...?’’ उसने फ़रीदी से पूछा। ‘‘क्या आप प्रोफ़ेसर को जानते हैं।’’
‘‘जी नहीं...लेकिन आज उन्हें इस तरह जान गया हूँ कि ज़िन्दगी भर न भुला सकूँगा।’’
‘‘क्या मतलब...?’’
‘‘आप गिलहरियों का शिकार करते-करते आदमी का शिकार करने लगे थे।’’ फ़रीदी प्रोफ़ेसर के हाथ में दबी हुई राइफ़ल की तरफ़ इशारा करके बोला। ‘‘मेरी हैट देखिए।’’
‘‘ओह समझा...!’’ कुँवर सलीम तेज़ आवाज़ में बोला। ‘‘प्रोफ़ेसर तुम हमारी कोठी ख़ाली कर दो, वरना मैं तुम्हें पागलख़ाने भिजवा दूँगा...समझे।’’
बूढ़े ने डरते हुए कुँवर सलीम की तरफ़ देखा और भाग कर मीनार के ज़ीनों पर चढ़ता चला गया।
‘‘माफ़ कीजिएगा...यह बूढ़ा पागल है। बेकार ही में हमारी परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। अच्छा, ख़ुदा हाफ़िज़।’’
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