“नहीं हो सकता ।”
“उसे फंसाया जा रहा है ? बलि का बकरा बनाया जा रहा है ?”
“हां ।”
“अब जवाब देता हूं मैं तुम्हारे सवाल का । मैं ये बात अपने अखबार में छापूंगा तो महाबोले मेरी वाट लगा देगा । मुझे अखबार छापने लायक नहीं छोडे़गा । मैं दरिया में रह के मगर से वैर नहीं कर सकता ।”
“कमाल है ! पत्रकार तो बडे़ निर्भीक होते हैं !”
“वो, जिनके पावरफुल सरपरस्त होते हैं जिनके अखबारों के मालिकान ऐसे बडे़ बडे़ इंडस्ट्रियलिस्ट्स होते हैं जो प्राइम मिनिस्टर से हाथ मिलाते हैं, होम मिनिस्टर के साथ उठते बैठते हैं । और मैं मंजूनाथ मेहता ! बोले तो क्या पिद्दी, क्या पिद्दी का शोरबा !”
“मैं तुम्हारी साफगोई की दाद देता हूं ।”
“मैं तुम्हारी दाद कुबूल करता हूं । अब बोलो, क्यों तुम समझते हो कि पाण्डेय बेगुनाह है !”
“इस शर्त पर बोलता हूं कि खाली सुनोगे, जो सुनोगे उसका कैसा भी कोई इस्तेमाल नहीं सोचने लगोगे ।”
“आई प्रामिस, पार्टनर ।” - उसने निहायत संजीदगी से अपने गले की घंटी को छुआ ।
नीलेश ने सब बयान किया जो जाहिर करता था कि पाण्डेय कातिल नहीं हो सकता था ।
“देवा !” - मेहता नेत्र फैसला बोला - “नत्था मरेगा ।”
“क्या बोला ?”
“आई एम सारी । पाण्डेय मरेगा । पुलिस केस बनाती है, सजा नहीं देती । सजा देना कोर्ट का काम है जहां मुलजिम को पेश किया जाना लाजमी होता है । जो कुछ तुमने कहा है, उसकी रू में कोर्ट में पाण्डेय के खिलाफ केस पांच मिनट नहीं ठहरने वाला । इस हकीकत से महाबोले नावाकिफ हो, ये नहीं हो सकता । लिहाजा केस कोर्ट में पहुंचेगा ही नहीं ।
“ऐसा कैसे होगा ?”
“मुलजिम लॉकअप में पंखे से लटका पाया जायेगा । महाबोले बयान देगा अपने निश्चित अंजाम से घबरा कर खुदकुशी कर ली । ईजी !”
“तौबा !”
“कहते हैं दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है । पता नहीं ये बात बेचारे पाण्डेय पर लागू होती है या नहीं !”
“आने वाला वक्त बतायेगा ।”
“यानी महाबोले आने वाला वक्त है !”
“कमाल के आदमी हो ! कमाल की बातें करते हो !”
उसने सिग्रेट का आखिरी कश लगाया और उसे परे उछाल दिया ।
“चलता हूं ।” - फिर बोला - “बहुत खुशी हुई तुमसे मिल कर । कभी आफिस आना । टाउन हाल के ऐन सामने है । टाउन हाल मालूम ?”
“मालूम ।”
“उसके सामने सैकण्ड फ्लोर पर । आइलैंड न्यूज । बोर्ड लगा है । आते जाते दर्शन देना कभी ।”
“जरूर ।”
करीब खड़े अपने स्कूटर पर सवार होकर वो वहां से रुखसत हो गया ।
नीलेश अपनी कार में सवार होने ही लगा था कि आबादी की ओर से एक वैगन-आर वहां पहुंची और उसकी आल्टो के करीब आ कर रुकी ।
कार में श्यामला मोकाशी सवार थी ।
नीलेश ठिठका खड़ा रहा ।
श्यामला कार से बाहर निकली । उसकी निगाह दायें बायें घूमी और फिर नीलेश पर आकर ठिठकी ।
नीलेश ने उंगली से पेशानी छू कर उसका अभिवादन किया और फिर नीलेश उसके करीब पहुंचा ।
“हल्लो !” - वो मुस्कराता हुआ बोला ।
हल्लो का जवाब श्यामला ने जबरन मुस्करा कर दिया ।
“इस वक्त कुछ और भी मांगता तो मिल जाता ।”
श्यामला की भवें उठीं ।
“तुमसें मिलना चाहता था । सोच रहा था तुम्हारे घर जाना मुनासिब होगा या नहीं !”
“क्यों मिलना चाहते थे, सरकारी आदमी साहब ?”
“क्या बोला ?”
“क्या सुना ?”
“म-मैं सरकारी आदमी !”
“हां ।”
“वो कौन होता है ?”
“जो सरकार के लिये काम करता है । जैसे जासूस, भेदिया, सीक्रेट एजेंट, अंडरकवर आपरेटर ।”
“वो मैं ?”
“हां ।”
“कौन बोला ऐसा ?”
“कोई तो बोला ही !”
“तुम्हारा पिता बोला । मोकाशी साहब ने ऐसा कहा ?”
“तो क्या गलत कहा ! बहुत बढि़या कल्टीवेट किया मेरे को अपने मकसद की खातिर ! बाकायदा ट्रेनिंग मिलती होगी ऐसे कामों की ।”
“तुम मुझे गलत समझ रही हो ।”
“क्या गलत समझ रही हूं मैं ?”
“ये कि मैंने किसी नापाक मकसद से तुम्हारे से ताल्लुकात बनाये ।”
“न सही । लेकिन जब ताल्लुकात बन गये तो नापाक मकसद भी सिर उठाने लगा । किसी के एक काम करते कोई दूसरा काम भी हो जाये तो ऐसा करने पर कोई पाबंदी तो नहीं लागू न ! या होती है ?”
नीलेश ने उत्तर न दिया ।
“मैंने तुम्हें सरकारी आदमी कहा, तुमने इधर उधर की दस बातें की लेकिन एक बार भी इस बात से इंकार न किया, मजबूती से न कहा कि तुम नहीं हो सरकारी आदमी ।”
“किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं ।”
“अभी भी वही कर रहे हो । महाबोले ठीक कहता था...”
“ओह ! तो तुम्हारा कोच तुम्हारा पिता नहीं, महाबोले है !”
“...कि तुम मेरे पीछे पडे़ ही इसलिये थे कि मेरे जरिये उसकी बाबत-या मेरे पापा की बाबत-अपने मतलब की कोई जानकारी निकलवा सको । अच्छा उल्लू बनाया मुझे ।”
“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।”
“मेरे से मुलाकात के पीछे तुम्हारा कोई नापाक मकसद नहीं था ?”
“नहीं था ।”
“तुम्हारी दिलचस्पी मुझ में और सिर्फ मुझ में थी ?”
“हां ।”
“हमारी मुलाकात में तुम्हारे किसी खुफिया मिशन का हाथ नहीं था ? वो प्योरली सोशल काल थी ?”
“हां ।”
“तो फिर जवाब दो तुम कौन हो ! अगर मेरे से कोई दिली लगाव महसूस करते हो तो सच सच बताओ तुम कौन हो !”
“मैं मैं हूं । नीलेश गोखले । एक्स एम्पलाई कोंसिका क्लब ।”
“तुम नहीं बाज आओगे । जाती हूं ।”
“अरे, रुको, रुको ।”
“किसलिये ?”
“मेरी बात सुनने के लिये ।”
“सुनाओ ।”
“जैसे तुमने मेरे पर इलजाम लगाया कि मैं सरकारी एजेंट हूं वैसे तुम भी इस वक्त महाबोले की एजेंट नहीं बनी हुई हो !”
“क्या !”
“या मोकाशी साहब की ! या उस रैकेटीयर फ्रांसिस मैग्नारो की !”
“यू आर टाकिंग नानसेंस ।”
“महाबोले का तो तुमने नाम भी लिया !”
“नाम लेने से मैं उसकी एजेंट हो गयी ?”
“न सही । वो तुम्हारा पुराना वाकिफ है, करीबी है, पति बनने वाला है...”
“वाट द हैल !”
“....जबकि मेरे से तुम अभी हाल ही में वाकिफ हुई हो । इस लिहाज से तुम्हारी निष्ठा महाबोले के साथ होगी या मेरे साथ ! जवाब दो !”
“जब सवाल ही नहीं समझ में आया तो जवाब क्या दूं ?”
“मैं तुमसे कुछ कहता हूं, कुछ कुबूल करता हूं, कुछ कनफैस करता हूं, तुम जा कर महाबोले को बोल दोगी ।”
“खामखाह !”
“अपने पिता को तो जरूर ही ।”
“नहीं ।”
“वादा करती हो कि अभी जो कुछ मेरे से सुनोगी, उसे अपने पास ही रखोगी, आगे कहीं - कहीं भी - पास आन नहीं करोगी ?”
“करती हूं ।”
“जैसे तुम समझती हो, कहती हो, कि तुम्हारे से मिलना मेरी कोई स्ट्रेटेजी थी, तसलीम करती हो कि इस वक्त मेरे से मिलना तुम्हारी-तुम्हारी और महाबोले कि-कोई स्ट्रेटेजी नहीं ?”
“करती हूं ।”
“ये महज इत्तफाक है कि मैं तुम्हें यहां मिला ?”
“हां ।”
“क्या काम था इधर तुम्हारा ?”
“कोई काम नहीं था । परेशानी थी । ड्राइव पर निकली थी । इस काम के लिये ये मेरा पसंदीदा रूट है । यहां से गुजर रही थी कि तुम्हारी आल्टो खड़ी दिखाई दे गयी । फिर तुम दिखाई दे गये ।”
नीलेश को वो सच बोलती लगी । झूठ बोल रही थी तो कमाल की अभिनेत्री थी ।
“मुझे उम्मीद थी” - वो बोली - “कि वकीलों जैसी इतनी जिरह के सिरे पर तुम कुछ कहोगे ।”
“कहता हूं । श्यामला, कहर, क्राइम, करप्शन कागज की नाव है जो बहुत देर तक बहुत दूर तक नहीं चलती । यूं समझो कि यहां की मशहूर त्रिमूर्ति की नाव ने जितना चलता था, चल चुकी । और मुझे दुख है कि उस नाव का एक सवार तुम्हारा पिता भी है । करप्शन का तरफदार तुम्हारा पिता है, कहर का झंडाबरदार महाबोले है, क्राइम का कारोबार समझो गोवानी रैकेटियर मैग्नारो की टैरीटेरी है ।”
“नानसेंस ! मैग्नारो कैसीनो चलाता है, तोप दिखा कर लोगों को उधर आने के लिये मजबूर नहीं करता । ये टूरिस्ट टाउन है, ऐसी जगह पर वो पर्यटकों एंटरटेनमेंट का जरिया मुहैया कराता है तो क्या गुनाह करता है ?”
“तुम नादान हो । मुल्क के कायदे कानून को नहीं समझती हो । कैसीनो चलाने के लिये सरकार लाइसेंस जारी करती है जिसके लिये अप्लाई करना होता है, उसकी फीस भरना होता है । ये फैसला भी सरकार करती है कि कौन सी जगह पर कैसीनो होना चाहिये, कौन-सी जगह पर नहीं होना चाहिये । उस रैकेटियर मैग्नारो ने तो सारे फैसले खुद ही कर लिये ! काहे को ? इज ही अबोव दि लॉ ऑफ दि लैंड, दि गवर्नमेंट ! इज ही गॉड ! ऑर जीसस क्राइस्ट !”
श्यामला परे देखने लगी ।
“फिर लीगल जुए की - जैसे कि लॉटरी, हार्स रेसिंग, ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा कांटैस्ट विनिंग पर कमाई पर टैक्स भरना होता है । मालूम !”
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“वो नॉरकॉटिक्स समगलर है, डिस्ट्रीब्युटर है । आर्म्स डीलर भी बताया जाता है । हथियारों की गैरकानूनी खरीद कौन लोग करते हैं ? उग्रवादी । आतंकवादी । दंगई । डकैत । ऐसे लोगों को हथियार मुहैया कराना शुभ कारज है ! नॉरकाटिक्स का व्यापार, जो नौजवान नसल को निश्चित मौत की तरफ धकेलता है, शुभ कारज है !”
“तुम्हें क्या पता आइलैंड पर ये सब होता है ?”
“पाप का घड़ा फूटने दो-जो कि बस फूटने ही वाला है-फिर सबको पता होगा ।”
“ऐसा है भी तो क्या है ! जिसके करम हैं वो भुगतेगा ।”
“मैग्नारो ।”
“और कौन ?”
“उसको आइलैंड पर पनाह देने वाले कौन हैं ? प्रोटेक्शन देने वाले कौन हैं ? उसके काले कारनामों की पर्दादारी करने वाले कौन हैं ? काले कारोबार में बाकायदा उसके शेयरहोल्डर्स कौन हैं ? क्या नाम लेने की जरुरत है ?”
“म-मेरे पापा ऐसे नहीं है ।”
“औलाद के लिये कोई पापा ऐसा नहीं होता - ‘माई डैडी बैस्टैस्ट, माई डैडी ग्रेस्टैस्ट, माई प्योरैस्ट’ जैसा ही होता है - लेकिन एक मात्रा हट जाये तो पापा ही पाप बन जाता है ।”
“मेरे पापा की सदारत में आइलैंड ने तरक्की की है । यहां टूरिस्ट इन्फलक्स बढ़ा है । उसकी वजह से रेवेन्यू बढ़ा है । और आगे उसकी वजह से यहां खुशहाली आयी है ।”
“ये इलैक्शन कैम्पेन जैसे स्लोगन हैं जो तुम्हें पढ़ाये गये हैं, सिखाये गये हैं, रटाये गये हैं । करप्ट लोगों ने तुम्हारे माईंड को भी करप्ट कर दिया है । जुए से, नॉरकॉटिक्स से, हथियारों के गैरकानूनी व्यापार से खुशहाली नहीं आती, बर्बादी आती है । खुशहाली आती है तो मोमाशी-महाबोले-मैग्नारो की त्रिमूर्ति के लिये । कितने बेगुनाह लोग आये दिन होने वाली उग्रवादी घटनाओं में जान से जाते है ! कितने लोग हेरोइन, एलएसडी, एस्टेसी, कोकिन, फॉक्सी, जीएचबी, जैसे नशों के शिकार हो कर सरेराह मरते हैं । कौन लोग है इतनी मौतों के लिये जिम्मेदार ! कौन हैं लाशों के सौदागर ! कौन हैं जो नौजवान नसल को को चरस के सिग्रेट, हेरोइन की पुड़िया, एस्टेसी की गोली पहले फ्री थमाते हैं, फिर जब लत मजबूत हो जाती है तो अंधाधुंध चार्ज करते हैं । जो चार्ज नहीं दे पाते, वो मजबूरन क्राइम की राह पर चलते हैं । एक गोली, एक पुड़िया, एक इंजेक्शन की खातिर चाकू घोंप देते हैं, गोली मार देते हैं । कौन हैं जो टैरेरिस्ट्स को हथियारबंद करते है ! क्या ऐसे लोग शरेआम चौराहे पर फांसी पर लटका देने के काबिल नहीं ? तुम्हें इस बात पर अभिमान है कि तुम्हारा महान पापा ऐसे लोगों में से एक है ?”
“मेरे पापा ऐसे नहीं हैं ।” - वो कांपती आवाज में बोली, उसकी आंखें डबडबा आई ।
“जब भरम टूटेगा तो खून के आंसू रोना पड़ेगा ।”
“यू आर एग्जैजरेटिंग । बढ़ा चढ़ा कर कह रहे हो ।”
“अब मैं क्या कहूं !”
“तुम बर्बादी का पैगाम ले कर आइलैंड पर आये हो । मौत का फरिश्ता बन कर यहां पहुंचे हो ।”
“मैं !”
“हां, तुम ।”
“मौत का फरिश्ता !”
“आफकोर्स ।”
“बेचारी रोमिला सावंत बेवजह जान से गयी, उसकी मौत की वजह मैं !”
“तुम जानते हो कातिल गिरफ्तार है ।”
“लेकिन वजह मैं ! क्योंकि मैं बर्बादी का पैगाम ले कर यहां आया ! मौत का फरिश्ता बन कर यहां पहुंचा !”
“मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहती ।”
“मैं करना चाहता हूं । जो गिरफ्तार है, वो कातिल नहीं है ।”
“तुम्हारे कहने से क्या होता हैं ?”
“होता है । इसीलिये कह रहा हूं ।”
“तो आइलैंड का कोई भी एक बाशिंदा उसकी मौत की वजह हो सकता है । किसी एक जने की नापाक हरकत के लिये सारे आइलैंड को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । सारे आइलैंड के वजूद पर कालिख नहीं पोती जा सकती ।”
“तुम ऐसा कह सकती हो क्योंकि तुम जानती नहीं हो वो लड़की असल में कौन थी और इस आइलैंड को क्या समझ कर यहां आयी थी !”
“पहेलिया न बुझाओ ।”
“वो लड़की कालगर्ल थी और कोई ये समझा कर उसे गोवा से यहां लाया था कि यहां उसके धंधे के बैटर प्रास्पैक्ट्स थे । ये खास किस्म के मौजमेले के शौकीन पर्यटकों का बड़ा अड्डा था इसलिये वो यहां चांदी काट सकती थी । और इस सोच के तहत खास तौर से यहां पहुंची वो अकेली भी नहीं थी । ये जगह प्रास्टीच्यूट्स की बड़ी वर्क प्लेस है और लोकल एडमिनीस्ट्रेशन को उनके यहां फंक्शन करने से कोई ऐतराज नहीं, कोई परेशानी नहीं, क्योंकि इस वजह से भी यहां टूरिस्ट इंफलक्स और बढ़ता है । कर्टसी लोकल एडमिनिस्ट्रेशन, कोनाकोना आइलैंड बैंकाक का कोना बन गया हुआ है । अब कहो जो कहना है अपने आइलैंड के ऊंचे किरदार की बाबत ।”
“सब स्टंट है, पब्लिसिटी है, बल्कि आइलैंड और उसके बाशिंदों के खिलाफ साजिश है । ये एक डीसेंट जगह है जहां डीसेंट लोग रहते है । मेरे पापा यहां के सम्मानित व्यक्ति है इसलिये हमेशा इलैक्शन में जीतते हैं । महाबोले सरकारी आदमी है, मैग्नारो बाहरी आदमी है, मेरे पापा यहां के लोगों के इलैक्टिव रिप्रेजेंटेटिव हैं । अगर उनका किरदार बेदाग नहीं है तो क्यों पब्लिक उन्हें वोट देती है ? क्यों उन्हें रिजेक्ट नहीं करती ?”
“जब सभी कुछ करप्ट है, जब आवां ही खराब है तो करप्शन से इलैक्शन जीत जाना क्या बहुत बड़ी बात है !”
“और इस सो काल्ड करप्ट जगह पर सांस लेते लेते तुम समझने लगे हो कि तुम मुझे मेरे पापा के खिलाफ करप्ट कर सकते हो !”
“मैं महज तुम्हारी आंखें खोलने की कोशिश कर रहा हूं ।”
“गैरजरुरी कोशिश कर रहे हो । मेरी आंखें पहले से खुली हैं ।”
“ठीक है फिर ।”
“हां, ठीक ही है । थोड़ी देर के लिये मुझे लगा था तुम्हारे मेरे साथ में किसी अदृश्य शक्ति का हाथ था, ये साथ और मजबूत हो सकता था क्योंकि इसमें ऊपर वाले की रजा थी । लेकिन लगता है गलत लगा था । हम दोनों एक राह के राही नहीं हो सकते । जो शख्स मेरे पिता के खिलाफ हो, वो मेरी तरफ नहीं हो सकता । जिसका मेरे पिता का कोई अहित करने का मंसूबा हो, वो मेरा कोई हित नहीं कर सकता ।”
“लेकिन, श्यामला...”
“एनफ ! एनफ आफ दैट । ये हमारी आखिरी मुलाकात है इसलिये गुडबाई कबूल करो । हमेशा के लिये ।
अंतिम शब्द कहते कहते उसका गला रुंध गया । एकाएक वो घूमी, कार में सवार हुई और कार को वहां से उड़ा ले चली ।
बुत बना वो उसे जाता देखता रहा ।
पितृभक्ति की बड़ी उम्दा मिसाल पेश करके वो लड़की वहां से गयी थी ।
***
नीलेश सेलर्स बार पहूंचा ।
परसों रात के अंधेरे में वो वहां ठीक से कुछ नहीं देख पाया था, न ही ऐसा कुछ करने की तब जरुरत थी। तब उसकी तवज्जो का मरकज सिर्फ और सिर्फ रोमिला सावंत थी जिससे मिलने के वाहिद काम से वो वहां पहुंचा था ।
उस घड़ी सूरज डूबने में अभी टाइम था इसलिये उसकी निगाह पैन होती हुई चारों तरफ घूमी । तब उसने महसूस किया कि वो जगह बिल्कुल ही उजाड़ नहीं थी । सड़क से पार, उससे परे हट कर, उससे काफी ऊंचे लैवल पर छितरे हुए कुछ मकान थे जो बसे हुए जान पड़ते थे ।
बार का ग्लास डोर ठेल कर वो भीतर दाखिल हुआ ।
हाल उस घड़ी लगभग खाली पड़ा था, सिर्फ दो तीन मेजों पर ही कुछ लोग बैठे बीयर और बीयर पीते गप्पें लडा़ते दिखाई दे रहे थे ।
वो बार काउंटर पर पहुंचा ।
बार से पार जो व्यक्ति मौजूद था, वो अपनी तरफ से चलता उसके सामने पहुंचा ।
“क्या मांगता है ?” - वो बोला ।
“बोलेगा । मैं अभी इधरीच है । अभी ड्रिंक से पहले कुछ और मांगता है ।”
नीलेश उस व्यक्ति जैसी ही जुबान उससे भाईचारा जोड़ने के लिये बोल रहा था ।
“क्या ?”
“रामदास मनवार ।”
“मनवार से क्या मांगता है ?”
“बात करना मांगता है । परसों लेट लेट नाइट में मैं उसके रेजीडेंस पर फोन लगा कर उससे बात किया, अभी और बात करना मांगता है ।”
“तुम वो भीङू है जो रात को उस कड़का छोकरी की बाबत पूछता था जो इधर किसी फिरेंड का वेट करता था, जिसको मेरे को बाई फोर्स इधर से बाहर करना पड़ा था ?”
“हां । और मैं वो फ्रेंड है जिसका वो रात को इधर वेट करता था, जो टेम पर इधर न पहुंच पाया ।”
“ओह ! मैं है रामदास मनवार ।”
नीलेश ने उससे हाथ मिलाया ।
“आई एम सारी फार दि गर्ल ।” - मनवार खेदपूर्ण स्वर में बोला - “मेरे को हिंट भी होता कि मेरे पीठ फेरते ही उसके साथ ये कुछ होना था तो मैं उसको कभी आउट न बोलता । थोड़ा टेम और बार खोल के रखता, उसका फिरेंड-जो कि अभी मालूम पड़ा कि तुम थे-आ जाता तो ये टेम वो जिंदा होती ।”
“तुम्हें क्या पता था आगे क्या होने वाला था !”
“वही तो ! बस यहीच बात मैं मेरे को समझाता है वर्ना गिल्टी फील करता है कि थोड़ा टेम और क्यों न रुक गया !”
“पीछे वो अकेली यहां खड़ी रही ?”
“क्या करती ! जब फिरेंड इधर आने वाला था तो इधरीच वेट करती न !”
“तुमने उसे लिफ्ट आफर की थी ?”
“बरोबर । फोन पर बोला न मैं ! मैं तो ये भी बोला बरोबर कि उसका वास्ते मैं आउट आफ वे जाने को तैयार था । जिधर बोलती, उधर ड्रॉप करता । पण वो नक्की बोली । बोली, लिफ्ट नहीं मांगता था । इधरीच ठहरने का था ।”
“किसी सवारी के बिना वो इधर पहुंच कैसे गयी ?”
“कोई आटो, टैक्सी किया होगा...”
“नहीं हो सकता । जब बार के ड्रिंक का बिल भरने के लिये उसके पास रोकड़ा नहीं था तो आटो, टैक्सी का बिल भरने के लिये किधर से आता !”
“तो किसी ने लिफ्ट दिया ?”
“यही मुमकिन जान पड़ता है । पहुंची कब थी ?”
“क्लोजिंग टाइम से कोई दो सवा दो घंटे पहले । ग्यारह बजे । टैन मिनट्स ये बाजू या टैन मिनट्स वो बाजू ।”
“मिजाज कैसा था ?”
“परेशान थी । डरी हुई भी लगती थी । बात बात पर चौंकती थी ।”
“इधर किसी से मिली ? किसी से कोई बातचीत की ?”
“नहीं । अक्खा टेम वो उधर-पब्लिक टेलीफोन के करीब बार स्टूल पर बैठी रही, बेचैनी से पहलू बदलती रही । जिस टेम भी ग्लास डोर खुलता था, उसकी निगाह अपने आप ही उधर उठ जाती थी, फिर चेहरे पर और उदासी और नाउम्मीदी छा जाती थी ।”
“उसके कत्ल के इलजाम में एक भीङू गिरफ्तार है । मालूम ?”
“हां । हेमराज पाण्डेय । छापे में पढ़ा न ! फोटू भी देखा ।”
“रात को उसको इधर कभी मंडराते देखा हो ! बार के अंदर या बाहर !”
“नहीं । देखा होता तो छापे में फोटू देखने के बाद मेरे को वो भीङू जरुर याद आया होता । किधर बाहर अंधेरे में छुप के खड़ेला हो तो...कैसे दिखाई देगा !”
“कोई पुलिस कार देखी ?”
“पुलिस कार !”
“पैट्रोल कार ! जो गश्त लगाती है ! या कोई पुलिस की जीप !”
“न ! रात के उस टेम इधर ट्रैफिक न होने जैसा । इसी वास्ते तो मैं उस लड़की को लिफ्ट आफर किया । वापिसी में मेरे को रोड पर खाली एक ट्रक मिला था जिसको कि घर पहुंचने की जल्दी में मैंने ओवरटेक किया था ।”
“हूं । कोई और बात जो तुम्हें जिक्र के काबिल लगती हो !”
वो सोचने लगा ।
“अभी ड्रिंक मांगता है ?” - फिर एकाएक यूं बोला जैसे कोई भूली बात याद आयी हो ।
“मांगता है । लार्ज जानीवाकर ब्लैक लेबल विद हाफ वाटर, हाफ सोडा ।”
“सारी ! इधर फॉरेन लिकर की क्लायंटेल नक्को । रखता नहीं है ।”
“तो ?”
“दि बैस्ट आई कैन आफर यू इज वैट-69 ।”
वो भी तो फॉरेन लिकर है ?”
“नाट ओरीजिनल । जो बाहर से बाटल्स आता है, वो नहीं । जो इधर ही बनती है, बाहर से मंगाये गये कंसंट्रेट्स से । कंसंट्रेट्स को स्पैशल लैवल तक डाइल्यूट करके बाटलिंग इधरीच होती है ।”
“अच्छा । मेरे को नहीं मालूम था ।”
“ऐसे और भी ब्रांड हैं कंसंट्रेट्स मंगा कर जिनकी बाटलिंग इंडिया में होती है । जैसे टीचर्स, ब्लैक डॉग, हण्डर्ड पाइपर्स, ब्लैक एण्ड वाइट ।”
“कमाल है । आके ! वैट-69 ।”
मनवार ने उसे ड्रिंक सर्व किया ।
नीलेश ने चियर्स के अंदाज से गिलास ऊंचा किया, विस्की का एक घूंट भरा और गिलास को वापिस अपने सामने बार काउंटर पर रखा ।
“कुछ याद आया ?” - फिर पूछा ।
“एक बात है तो सही सोचने लायक ।” - विचारपूर्ण मुद्रा बनाये वो बोला ।
“क्या ?”
“रात जब तुम लड़की से मिलने के वास्ते इधर आया था तो किधर से आया था ?”
“मेन हाइवे से ही आया था जो कि न्यू लिंक रोड कहलाता है ।”
“ठीक । इधर लड़की वेट करती थक गयी तो उसने बोले तो पैदल, वाक करके घर पहुंचने का फैसला किया । इस लिहाज से उसको न्यू लिंक रोड पर होना चाहिये था जहां उसको कोई लिफ्ट मिल जाने का भी चानस था । वो रूट फिफ्टीन पर काहे को पहुंच गयी ?”
नीलेश ने संजीदगी से उस बात पर विचार किया ।
“दो ही बातें हो सकती हैं ।” - फिर बोला - “या तो रात के टाइम भटक गयी या उसने समझा कि वो शार्ट कट था ।”
“ऐन ओपोजिट है ।”
“क्या मतलब ?”
“लांग कट है । आबादी में पहुंचने के लिये छोटा रास्ता न्यू लिंक रोड है ।”
“ऐसा ?”
“हां ।”
“रुट फिफ्टीन पर कोई नहीं जाता ?”
“बहुत लोग जाते हैं । वो सड़क सीनिक ब्यूटी के लिये मशहूर है और आशिक-माशूकी के लिये मशहूर है । बोले तो आइलैंड की लवर्स लेन है । नौजवान जोड़े उधर हाथापायी, चूमाचाटी के लिये जाते हैं । और भी कुछ करें तो किसी को खबर नहीं लगती । जनरल ट्रेफिक के लिये जनरल रोड न्यू लिंक रोड है जो कि काफी बाद में बनी थी, उसके बनने से पहले अक्रॉस दि आइलैंड जो एक रोड थी वो रुट फिफ्टीन थी ।”
“तो रुट फिफ्टीन पर कैसे पहुंच गयी ?”
“मेरे को तो एक ही वजह सूझती है ।”
“क्या ?”
“खुदकुशी करने के लिये ।”
“क्या !”
“वो बहुत परेशान थी पण क्यों परेशान थी, ये तो वहीच जानती थी ।”
“तुम्हारा वजह को कोई अंदाजा ?”
“प्रेग्नेंट होगी । ब्वायफ्रेंड ने धोखा दिया, मदद की फरियाद तुम्हारे से लगाई, तुम पहुंचे नहीं, हैरान परेशान रूट फिफ्टीन पर चल दी । उसकी बैडलक खराब कि उधर कहीं वो कनफर्म्ड बेवड़ा पाण्डेय मिल गया जिसने अकेली पाकर उसे लूट लिया और फिर जो काम लड़की ने खुद करना था, वो उसने कर दिया ।”
“तुमने दिमाग का घोड़ा बढिया दौड़ाया है पर इसमें एक फच्चर है ।”
“क्या ?”
“लड़की प्रेग्नेंट नहीं थी ।”
“नहीं थी !”
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि वो प्रेग्नेंट नहीं थी ।”
“तुम्हें क्या मालूम पोस्टपार्टम रिर्पोट क्या कहती है !”
“था एक जरिया मेरा मालूम करने का ।”
“बोल तो काफी जुगाङू आदमी हो ।”
नीलेश हंसा ।
“प्रेग्नेंट न सही” - मनवार बोला - “ऐसीच सीरियस कोई और लफड़ा होगा उसका । जिस लड़की का लाइफ का लाइफ स्टाइल रात के एक बजे तक बार में अकेले बैठने की इजाजत देता हो, उसकी लाइफ लफड़ों का कोई तोड़ा होगा ?”
“ठीक !”
“बाहर बारिश होने लगी है । कस्टमर साला पहले ही नहीं है, अब आयेगा भी नहीं ।”
नीलेश ने बाहर की ओर निगाह उठाई ।
ग्लास डोर के बाजू में ही प्लेट ग्लास की विशाल विंडो थी जिससे बाहर का अच्छा नजारा किया जा सकता था । बाहर बारिश नहीं, मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
“स्टॉम वार्निंग पहले से है ।” - मनावार बड़बड़ाया - “आगे किसी दिन साली ऐसीच बारिश स्टॉर्म बन जायेगी ।”
“वो जो सामने सड़क पार हाइट पर पेड़ों के बीच मकान हैं...”
“कॉटेज ।”
“ओके, कॉटेज । वो काफी हैं उधर ?”
“हैं कोई दर्जन भर । यहां से तो तीन ही दिखते हैं, बाकी आगे ढ़लान पर हैं ।”
“उन तक पहुंचने का रास्ता किधर से है ?”
“दायें बाजू सड़क पर कोई तीन सौ गज आगे जाने का । उधर ओकवुड रोड । वो उन काटेजों के बाजू से गुजरती है ।”
“थैंक्यू ।”
नीलेश ने अपना गिलास खाली किया, बिल चुकता किया और वहां से बाहर निकला ।
कार पर सवार होकर वो निर्देशित रास्ते पर बढ़ा ।
ओकवुड रोड कच्ची-पक्की, ऊबड़-खाबड़ सड़क निकली जिस पर कार चलाता वो कॉटेजों तक पहुंचा । उसने कार को एक जगह खड़ा किया और फिर पहले कॉटेज पर पहुंचा ।
बारिश बदस्तूर हो रही थी, सिर्फ दस गज का फासला तय करने में वो तकरीबन भीग गया था ।
कॉटेज के बाहरी जाली वाले दरवाजे पर उसे कहीं कालबैल न दिखार्इ दी । उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।
कोई जवाब न मिला ।
बारिश से बचता, दीवार के साथ साथ चलता वो पिछवाड़े मे पहुंचा ।
वहां भी उसे सन्नाटा मिला ।
लगता था कॉटेज आबाद नहीं था ।
वो फ्रंट में वापिस आया, उसने और अगले कॉटेज तरफ निगाह दौड़ाई जो कि वहां से कोई दो सौ गज दूर था ।
कार पर सवार होकर वो उस कॉटेज तक पहुंचा जो कि कदरन बड़ा था।
वहां घंटी बजाने की जरूरत ही न पड़ी । उसने सामने के बरामदे में बैठी एक अधेड़ महिला चाय चुसक रही थी और बारिश का आनंद ले रही थी ।
नीलेश ने कार की खिड़की का शीशा गिरा कर उसका अभिवादन किया और उच्च स्वर में बोला - “मैडम, मैं एक मिनट आपसे बात करना चाहाता हूं ।”
“क्या बात ?” - वो सशंक स्वर में बोली ।”
“बोलूंगा न !”
महिला के चेहरे पर अनिश्चय के भाव आये ।
“मैं आपका ज्यादा वक्त नहीं लूंगा ।” - अनुनयपूर्ण स्वर में बोला - “सिर्फ दो तीन मिनट ।”
“ओके ।” - वो बोली - “करो ।”
“यहीं से ?”
उसने उस बात पर विचार किया ।
“यहां आ जाओ ?” - फिर बोली ।
नीलेश कार से उतरा और लपक कर बरामदे में पहुंचा ।
“मैं नीलेश गोखले ।” - वो अदब से बोला ।
“मिसेज जगतियानी ।” - वो बोली - “बैठो ।”
“थैंक्यू ।” - वो उसके सामने बैंत की एक कुर्सी पर बैठा ।
“मैं तुम्हें चाय आफर नहीं कर रही हूं” - महिला बोली - “क्योंकि फिर तुम अपने ‘सिर्फ दो तीन मिनट’ वाले वादे पर खरे नहीं उतर पाओगे ।”
“हा हा । मजाक किया !”
“जहमत बचाई । बोलो अब, क्या चाहते हो ?”
“मैडम, वो उधर सड़क पर एक बार है-सेलर्स बार-जो यहां से दिखाई देता है । सड़क के मुकाबले में आप हाइट पर हैं इसलिये उम्मीद है यहां के अलावा कॉटेज के फ्रंट से भी दिखाई देता होगा ।”
“तो ?”
“मेरा उसी की बाबत एक सवाल है । अगर आप लेट स्लीपर हैं...”
“कितना लेट ?”
“पास्ट मिडनाइट !”
“नो । इधर मैं, मेरा हसबैंड और एक मेड है, कोई खास वजह न हो तो ग्यारह बजे से पहले हम सब सो जाते हैं ।”
“ओह !”
“लोकिन मिसेज परांजपे बेचारी को अनिद्रा की बीमारी है, वो लेट नाइट-बल्कि लेट लेट नाइट मजबूरन जागती है । आज मार्निंग में इधर आयी थी, उस लड़की की बात करती थी जिसका रूट फिफ्टीन पर मर्डर हुआ । तभी बोली बेचारी कि रात को तो कहीं तीन बजे जा कर उसको नींद आयी ।”
“मिसेज परांजपे कौन ?”
“वो जो हमारे से अगला कॉटेज है, परांजपेज वहां रहते हैं ।”
“मर्डर की क्या बात थी ?”
“उस रात को कोई डेढ़ बजे के करीब उसने एक पुलिस जीप को सेलर्स बार पर पहुंचते देखा था । मेरे से पूछ रही थी कि क्या कातिल उधर से गिरफ्तार हुआ था ?”
“मिसेज परांजपे ने एक पुलिस जीप को परसों रात के डेढ़ बजे सेलर्स बार पर पहुंचये देख था !”
“यही बोला उसने मेरे को आज सुबह ।”
“इस वक्त वो घर पर होंगी ?”
“भई, अभी बारिश शुरू होने से पहले तो दिखाई दी थीं ।”
“थैंक्यू मैम ।” - नीलेश उठ खड़ा हुआ - “देखा लीजिये, मैंन तीन मिनट से ज्यादा नहीं लिये ।”
“काफी चालक हो !”
“जी !”
“मैंने बोला होता पुलिस जीप मैंने देखी थी तो टल के न देते ।”
नीलेश हंसा ।
अगले कॉटेज में रहती मिसेज परांजपे एक डाई किये हुए बालों वाली उम्रदराज औरत निकली । नीलेश ने उसे मिसेज जगतियानी का हवाला यूं दिया जैसे वो उसकी पुरानी वाकिफ हो । उस बात का वृद्धा पर असर हुआ, उसने उसे भीतर ड्राईंगरूम में ले जा कर बिठाया ।
“मैं आपका बहुत थोड़ा वक्त लूंगा ।” - नीलेश बोला ।
“काहे को ।” - वो विनोदपूर्ण स्वर में बोला - “वक्त का कोई तोड़ा मेरे को ?”
“तो परसों रात इंसोम्निया ने आपको आधी रात से भी बहुत बाद तक जगाया !”
“तीन बजे तक ।” - वो पशेमान लहजे से बोली - “रोज की बात है, कभी कभी तो सवेरा हो जाता है ।”
“कोई गोली-वोली नहीं खातीं ?”
“खाती हूं । सब हज्म ।”
“तो परसों रात आपने सेलर्स बार पर पुलिस जीप को पहुंचते देखा था ?”
“हां । मास्टर बैडरूम में मेरे हसबैंड सोते हैं, अपनी अनिद्रा के दौर में मै उधर रहूं तो उनकी नींद डिस्टर्ब होती है इसलीये उनके सो चुकने के बाद जब मुझे नींद नहीं आ रही होती तो अमूमन मैं ड्राईंगरूम में आ जाती हूं । कल भी मैं यहीं थी और वहां खिड़की के पास बैठी एक नावल पढ़ रही थी जिसमें मेरा बिल्कुल मन नहीं लग रहा था इसलीये मेरी निगाह बार बार खिड़की से बाहर की ओर भटक जाती थी । परसों मेरी तवज्जो सेलर्स बार की तरफ इसलिये ज्यादा जा रही थी क्योंकि परसों रात वो अपने नार्मल क्लोजिंग टाइम के बाद भी खुला था ।”
“आई सी ।”
“आखिर बार बंद हुआ था और मैंने रामदास मनवार को - जो कि बार का मालिक है - अपनी खटारा जेन पर वहां से रवाना होते देखा था । उसको गये अभी दो-तीन मिनट ही हुए थे कि एक पुलिस जीप वहां पहुंच गयी, तब मेरे खयाल से वहां क्लोज्ड बार के सामने सायबान के नीचे कातिल-जिसका नाम अब मुझे मालूम है कि हेमराज पाण्डेय है-मौजूद था जो उसकी बद्किस्मती कि पुलिस की निगाह में आ गया था...”
“आपके कैसे मालूम ?”
“कैसे मालूम ! भई, उसको थामने के लिये एक पुलिस वाला निकला न जीप में से !”
“आपने उसको पहचाना ?”
“वर्दी को पहचाना । क्योंकि जीप से निकलते वक्त उसने हैडलाइट्स आफ नहीं की थीं और वो उनके आगे से गुजरा था ।”
“उसने जा कर मुलजिम पाण्डेय को थाम लिया ।”
“हं-हां ।”
“आपने मुलजिम को भी देखा ?”
“वो कुछ क्षण खामोशी रही, फिर उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“लेकिन पुलिस ने” - फिर बोली - “किसी को थामा तो उधर बराबर । जीप में भी बिठाया लेकिन जो हुआ हैडलाइट्स की बैक में हुआ इसलीये मुझे हिलडुल ही दिखाई दी, हलचल ही दिखाई दी, कोई सूरत न दिखाई दी ।”
“फिर आप कैसे कहती हैं कि गिरफ्त में आने वाला शख्स पाण्डेय था ?”
“और कौन होगा ?”
“आपकी जानकारी में नहीं आया जान पड़ता, पाण्डेय को पुलिस ने जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया था ।”
“फिर वो कौन था जिसको किसी बावर्दी पुलिस वाले ने सेलर्स क्लब पर पकड़ा था और जबरन जीप में बिठाया था ।”
“आप बताइये ।”
“मैं कैसे बताऊं ?”
“कोई ऐसी बात सोचिये, ध्यान में लाइये, जो उसकी आइडेंटिटी की तरफ इशारा करती हो लेकिन जिसकी तरफ पहले आपकी तवज्जो न गयी हो ! तवज्जो गयी हो तो जिसे पहले आपने अहमियत न दी हो !”
वो सोचने लगी ।
नीलेश धीरज से उसके दोबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा ।
“मैंने एक चीख की आवाज सुनी थी ।” - एकाएक वो बोली ।
“वहीं से आती ?”
“हां ।”
“जो आपको यहां इतने फासले पर सुनाई दी ?”
“बहुत तीखी होगी न ! दूसरे, रात का सन्नाटा था । मद्धम सी आवाज यहां पहुंची ।”
“आई सी ।”
“उस वक्त मेरे को लगा था कि मैंने जनाना चीख की आवाज सुनी थी । लेकिन सुबह जब मुझे गिरफ्तारी की खबर लगी तो मुझे ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि रात को मुझे मुगालता लगा था । जरूर मैंने मर्दाना चीख की आवाज सुनी थी ।”
“मैडम, मैंने पहले ही अर्ज किया कि कातिल यहां सामने सेलर्स बार पर से नहीं, यहां से बहुत दूर जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया गया था ।”
“तब मुझे नहीं मालूम था । अभी भी नहीं मालूम था ।”
“अब जब मालूम है तो क्या कहती हैं ?”
“मर्दाना चीख थी । फासले से आयी, धीमी सुनाई दी इसलीये लगा कि जनाना थी ।”
“चीख मर्दाना थी लेकिन कोई मर्द न देखा !”
“न । बोला न, उसने हैडलाइट्स की रोशनी को क्रॉस नहीं किया था, जैसे कि पुलिस वाले ने किया था । लेकिन अंधरे के बावजूद इतना मैंने फिर भी देखा था कि पुलिस वाला किसी को जबरन जीप में सवार करा रहा था ।”
“किसी मर्द को ! जिसे तब आपने कातिल समझा !”
“हां ।”
“किसी औरत को नहीं ?”
“औरत ! औरत का रात की उस घड़ी-जबकि बार भी बंद हो चुका था-क्या काम !”
“तफ्तीश से ये स्थापित हुआ है कि मकतूला बार बंद हो चुकने के बाद भी उधर किसी का इंतजार करती थी ।”
“मकतूला बोले तो ?”
“जिसका कत्ल हुआ । रोमिला सावंत ।”
“कत्ल तो रूट फिफ्टीन पर हुआ ।”
“जहां हुआ, वो जगह सेलर्स बार से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर है ।”
“लेकिन ये कैसे हो सकता है कि पुलिस ने बार के सामने से वो जो मतकूला करके तुम कुछ बोला...”
“मकतूला !”
“वही । कैसे हो सकता है रात पुलिस ने बार के सामने से मतकूला...मकतूला को पिक किया ? वो लड़की अगर पुलिस कस्टडी में थी तो उसका मर्डर कैसे हो गया ? वो पाण्डेय करके भीङू कैसे उसको खल्लास किया ?”
“सोचने की बात है ।”
“सोचो ।”
‘’आपको ये पक्का है जो वाहन आपने रात को बार के सामने आ कार रूकते देखा था, वो पुलिस जीप थी ?”
“हां, भई । पुलिस जीप मील से पहचानी जाती है । ये...बड़ा उस पर ‘पुलिस’ लिखा था । ऊपर लाल बत्ती थी ...”
“जल रही थी ?”
“नहीं ।”
“फिर भी आपको दिखाई दी ?”
“हां । वो बत्ती फ्रंट में होती है न ! इस वास्ते हैडलाइट्स की रिफ्लेक्शन में दिखाई दी ।”
“हैडलाइट्स में आपने पुलिस की खाकी वर्दी देखी, पहनने वाले की सूरत न देखी !”
“न । सूरत न देखी ।”
“रैंक पहचाना ?”
“रैंक बोले तो ?”
“बाजू पर एक, दो या तीन फीती थीं ? कंधों पर एक, दो या तीन स्टार थे ?”
“अच्छा वो ! नहीं, ये सब मेरे को नहीं दिखाई दिया था ।”
“अपने बंदी को जीप में जबरन बिठाने के बाद पुलिस वाले ने क्या किया था ?”
“कार को स्टार्ट किया था, उसको यु टर्न दिया था और जिधर से आया था, उधर वापिस लौट चला था ।”
“वापिस किधर ? रूट फिफ्टीन पर या न्यू लिंक रोड पर ?”
“ये मेरे को इधर से कैसे दिखाई देता !”
“ठीक ! कत्ल के बारे में आपका क्या खयाल है ?”
“ऐसे लाइफ जाना गलत है । पण ये बाहर से आने वाला छोकरी लोग भी तो…अभी क्या बोलूं मैं ! ...दे इनवाइट ट्रबल । ड्रिंक करती हैं, स्मोक करती हैं, सैक्सी ड्रेसिज पहनती हैं, कुछ वैसे ही दिखता है तो कुछ इरादतन दिखाती हैं । लेट नाइट में अकेली घूमती हैं । मेल लिबिडो को उकसाती, इनवाइट करती जान पड़ती हैं । दे आर रेडी केस फार रेप, फार मर्डर ।”
“रोमिला सावंत ऐसी लड़की थी ?”
“ये मरने वाली का नाम है ?”
“जी हां ।”
“बराबर ऐसी लड़की थी । तभी तो जान से गयी !”
“पर उसके कत्ल की वजह तो लूट बताई जाती है । कातिल की नजर उसकी फिजीकल असैट्स पर नहीं, उसकी मानीटेरी असैट्स पर थी ।”
“क्योंकि बेवड़ा था । सुना है फुल टुन्न था । जरा होश में होता तो पहले फिजीकल असैट्स पर घात लगता, बोले तो रेप करता, और फिर लूटता ।”
“मैडम, आपने बहुत सहयोग दिया लेकिन ये बात फिर भी क्लियर न हो सकी कि पुलिस वाले ने कल रात बार के सामने से जिसको जबरन जीप पर बिठाया था, वो कातिल था या मकतूला थी या कोई तीसरा ही शख्स था ।”
“जाकर थाने से पता करो ।”
“कैसे पता करूं ? थाने में दर्जनों की तादाद में पुलिस वाले हैं । एक एक से इस बारे में सवाल करना क्या मुमकिन होगा ? फिर सवाल करने पर क्या कोई जवाब देगा ? आप रैंक की शिनाख्त कर पायी होतीं तो बात जुदा थी ।”
“मेरे को खाली खाकी वर्दी दिखाई दी थी ।”
“बोला आपने । एक आखिरी सवाल । अपकी दूर की निगाह कैसी है ?”
“पर्फेक्ट है । सिक्स बाई सिक्स है ।”
“इस उम्र में...”
“क्या हुआ है मेरी उम्र को !”
“कुछ नहीं ।” - वो उठ खड़ा हुआ - “मैम, आई एम ग्रेटफुल फार दि कोआपरेशन । इजाजत चाहता हूं ।”
उसने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
नीलेश वहां से रुखसत हुआ ।
मिसेज परांजपे के बयान से उसे कोई नाउम्मीदी नहीं हुई थी । उसे गारंटी थी जो पुलिस वाला पुलिस जीप पर रात के डेढ़ बजे बंद हो चुके सेलर्स बार पहुंचा था, वो इंस्पेक्टर अनिल महाबोले था और जिसे उसने जबरन जीप पर सवार कराया था, वो रोमिला सावंत थी ।
***
बारिश को शुरु हुए चौबीस घंटे हो गये थे और वो अभी बंद होने को नाम नहीं ले रही थी ।
फ्रांसिस मैग्नारो की शानदार स्पीड बोट कोनाकोना आइलैंड की ओर बढ़ रही थी ।
स्पीड बोट में तीन पैसेंजर सवार थे । रोनी डिसूजा व्हील सम्भाले था और उसके पीछे फ्रांसिस मैग्नारो और अनिल महाबोले मौजूद थे ।
“बारिश बहुत तेज है ।” - डिसूजा उच्च स्वर में बोला ताकि बारिश के शोर में उसकी आवाज दब न जाती - “हम आइलैंड के करीब हैं पण मेरे को अपना पायर दिखाई नहीं दे रहा ।”
“दीदे फाड़ के देखने का ।” - मैग्नारो झुंझलाये स्वर में बोला - “जब आइलैंड दिखाई दे रहा है तो साला पायर क्यों नहीं दिखाई दे रहा ?”
डिसूजा ने गर्दन आगे निकाल के सच में ही आंखें फाड़ फाड़ के सामने देखा ।
“इस बार पायर उसे दिखाई दिया ।”
“अभी बोले तो ?” - मैग्नारो बोला ।
“दिखाई दिया बरोबर, बॉस ।” - डिसूजा बोला - “नो प्राब्लम नाओ ।”
“गुड ! महाबोले !”
“यस, बॉस !”
“स्टार्म की...क्या नाम बोला था आफिशियल करके ?”
“हरीकेन ल्यूसिया ।”
“उसकी क्या पोजीशन है ? उस बाबत वार्निंग की क्या पोजीशन है ?”
“बॉस, हालात खराब जान पड़ते हैं । लोगों को आइलैंड से टैम्परेरी करके निकल लेने की सलाह दी जा रही है । वार्निंग है कि बारिश अभी ऐसीच चलेगी ।”
“तूफान तो साला आते आते आयेगा, बारिश ऐसीच चली तो ये तो अभी बर्बाद कर देगी ।
“कुछ नहीं होगा, बॉस । थोड़े टाइम की परेशानी है ।”
“लगनी हो तो थोड़ा टेम में भी वाट लग जाती है ।”
“आपके पास तो सेफ जगह है इसलिये...”
“बोले तो ?”
‘इम्पीरियल रिट्रीट’ का टॉप फ्लोर बिल्कुल सेफ है । हर लिहाज से । हर काम के लिये ।”
तब तक मोटर बोट पायर पर जा लगी थी । सेफ मूरिंग के लिये उसे डिसूजा के हवाले छोड़कर दोनों पायर पर उतर गये और लपकते हुए उसके ढंके हुए हिस्से में पहुंचे । वहां मैग्नारो ने जेब से चांदी की फ्लास्क निकाल कर उसमें से स्काच का नीट घूंट भरा और एक सिगार सुलगाया ।
महाबोले को बहुत मायूसी हुई कि दोनों में कोई भी चीज मैग्नारो ने उसके आफर करने की कोशिश न की ।
“मेरा कुछ आइटम्स ऐसा है जिसका वास्ते ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ भी सेफ नहीं । मेरे को वो ऑफ दि आइलैंड मांगता है । महाबोले, तुम्हारे को ये काम हैंडल करने का ।”
“जी !”
“उन आइट्म्स को बोट में लोड करवाने का और मुरुड में किसी सेफ ठीये पर पहुंचा के आने का ।”
“मेरे को ?”
“अभी मैं किससे बात करता है ?”
“बॉस, स्टार्म वार्निंग की वजह से मेरे को थाने में बहुत काम...”
“करना । करना । मेरा काम हो जाये, करना ।”
वो खामोश रहा ।
“यस, बॉस ।”
“तुम्हेरे को गोखले करके भीङू को मेरे पास ले के आने का था !”
“बॉस, मिले तो इस बाबत कुछ करूं न ! अक्खा नाइट ये सोचा के उसके रेन्टिड कॉटेज पर विजिल बिठा के रखा कि आइलैंड पर कहीं भी हो, रात को सोने तो उधर ही आयेगा ! नहीं आया ।”
“किसी होटल में...”
“आइलैंड के एक एक होटल में पता करवाया, कहीं नहीं था ।”
“किधर गया ?”
“क्या पता किधर गया ! मिले तो साले को नक्की करें । फिर बोल देंगे कि फ्लड मे फंस के मर गया ।
“साला मेरे सामने आने से पहले ही ?”
“उसके बाद । आप इजाजत देंगे तो उसके इमीजियेट बाद ।”
“हूं ।”
“आजकल जो हाल इधर है, उसमें किसी के डूब मरने के, समुद्र में बह जाने के चांसिज बहुत है । जब कभी भी इधर तूफान वाले हालात बनते है, सात-आठ लोकल भीङू लापता हो जाते हैं । सब समझते हैं कि तूफान में फंस गये, डूब मरे, बह गये । ऐसा ही हाल गोखले का हो जाना क्या बड़ी बात होगी ! हादसा किसी के साथ भी हो सकता है ।”
“हूं ।”
“पर वो पहले मिले तो सही !”
“ये गारंटी कि है वो आइलैंड पर ही ?”
“हां । मेन पायर पर मैंने वाच का इंमजाम किया हुआ है ।
“आइलैंड से निकलने के लिये उधर पहुंचना जरूरी है । अभी तक नहीं पहुंचा ।”
“वांदा नहीं । मैं वेट करता है । अभी मेरे काम का बोलो ।”
“मैं हवलदार जगन खत्री को लगाता हूं ।”
“पण...”
“बॉस, वो पर्फेक्ट काम करेगा । मैं उसकी जिम्मेदारी लेता हूं । कोई फच्चर पड़े तो मेरे को पनिश करना । भले ही गोली मार देना ।”
“हूं । ओके ।”
महाबोले ने चैन की सांस ली ।गार्ड्
***
उस घड़ी नीलेश कोस्ट गार्ड्स की छावनी में डिप्टी कमांडेंट की स्पैशल टेलीफोन लाइन पर मुम्बई, डीसीपी नितिन पाटिल से बात कर रहा था ।
जायंट कमिश्नर मोरावाला और डीसीपी पाटिल पिछले राजे ही मुम्बई लौट गये हुए थे ।
लाइन पर डिस्टर्बेंस थी इसलिये नीलेश को ऊंचा बोलना पड़ रहा था, दोहरा कर बोलना पड़ रहा था ।
“सर” - वो कह रहा था - “यही टाइम है स्ट्राइक का । अब जरा भी देरी ठीक न होगी ।”
“अभी मुमकिन नहीं । ऐसे आपरेशंस को सैट करने में टाइम लगता है ।”
“सर आवाज नहीं आ रही ।”
“वेट करना पडे़गा ।”
“वेट से काम खराब हो सकता है, सर । आइलैंड का माहौल खराब है । स्टॉर्म वार्निंग की वजह से इधर भगदड़ मची है । यहां की त्रिमूर्ति भी किसी भी घड़ी इधर से पलायन कर सकती है ।”
“महाबोले ऐसा नहीं कर सकता । वो सरकारी आदमी है । सरकारी हुक्म के बिना उधर से नहीं हिल सकता, चाहे कुछ हो जाये ।”
“लेकिन, सर...”
“तुम समझते नहीं हो । ऐसी बातों में टाइम लगता है । तैयारी में भी और स्ट्राइक की बाकायदा परमिशन हासिल करने में भी । ये काम मेरे खुद के करने का होता तो मैं उधर से जाता ही नहीं ।”
“मैं समझता हूं, सर, लेकिन...”
“मैं वार फुटिंग पर तैयारी कराता हूं । तुम बस दो घंटे इंतजार करो ।”
“उतने में वो कहीं के कहीं होंगे ।”
लाइन पर खामोशी छा गयी ।
“तुम उन पर वाच रखो ।” - आखिर डीसीपी बोला - “अगर वो पलायन करेंगे तो इकट्ठे करेंगे । मैं डिप्टी कमांडेंट अधिकारी को इधर से स्पैशल ऑर्डर जारी करवाने का इंतजाम करता हूं कि इमरजेंसी में कोस्ट गार्ड्स पुलिस का काम करें, तुम्हारी मदद करें ।”
“अच्छा !”
“यूं तुम्हारे हाथ मजबूत होंगे और सूझबूझ से काम लोगे तो तुम्हीं वो सब कर गुजरोगे जो हमने वहां आकर करना है । ऐसा कर सके तो तुम्हारे और सिर्फ तुम्हारे सिर कामयाबी का सेहरा होगा ।”
“मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोङूंगा, कोई कोशिश उठा नहीं रखूंगा ।”
“यस, दैट्स दि स्पिरिट ।”
“सर, मौसम खराब है, और खराब होता जा रहा है, आप लोग इधर पहुंच सकेंगे ?”
“पहुंचना ही होगा, चाहे तबाही आ जाये ।”
“थैंक्यू, सर ।”
डीसीपी नितिन पाटिल जायंट कमिश्नर बोमन मोरावाला के कमरे में पहुंचा ।
“सर, क्या हो रहा है ?” - उसने चिंतित भाव से पूछा ।
“स्ट्राइक की रिटन परमिशन आ गयी है ।” - मोरावाला बोला - “जवान तैयार हैं ।”
“गुड ! फिर देर किस बात की है ?”
“मूवमेंट में फच्चर है ।”
“जी !”
“उधर मौसम इतना खराब हो गया है कि हैलीकाप्टर से नहीं पहुंचा जा सकता । स्ट्राइक के तमाम साजोसामान के साथ और जवानों के साथ वहां के मौजूदा मौसम में, जो कि अभी और बिगड़ रहा है, पांच हैलीकाप्टर उधर लैंड नहीं कर सकते । कोशिश के डिजास्ट्रस रिजल्ट्स हो सकते हैं ।”
“फिर ?”
“कमिश्नर साहब नेवी की मदद हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं । नेवी की कोई स्ट्रांग, वैदरप्रूफ वैसल हमें उधर पहुंचा सकती है ।”
“सर, वो मदद तो हासिल होते होते होगी, तब तक क्या होगा ?”
“इंतजार के सिवाय कोई चारा नहीं पाटिल, वुई ऑर टु वेट ।”
“सर, एक घंटा पहले डिप्टी कमांडेंट हेमंत अधिकारी को आर्डर इशु कराये जाने की बात हुई थी !”
“उसमें तो और भी बड़ा फच्चर पड़ा है ।”
“क्या ?”
“हेमंत अधिकारी को हुक्म हुआ है कि वो फौरन चौकी खाली कर दे । अपने तमाम के तमाम आदमियों के साथ एक मिनट भी जाया किये बिना आइलैंड से सेफर प्लेस के लिये कूच कर जाये ।”
“ओह, नो ।”
“दिस इज राइट फ्रॉम हार्सिज माउथ । कोस्ट गार्ड्स का टॉप बॉस खुद मेरे को इस आर्डर की बाबत बोला ।”
“सर, वुई आर लैटिंग डाउन अवर मैन देयर ।”
“वाट्स दैट ?”
“गोखले वहां अकेला है । बेमददगार है । मैंने उसे इस उम्मीद पर अपने बलबूते पर एक्ट करने को बोला था कि तब तक उसे कोस्ट गार्ड्स की आफिशियल मदद हासिल हो जायेगी । उसे नहीं मालूम फिलहाल ऐसी कोई मदद उसे हासिल नहीं होने वाली । मैंने उसे भरोसा दिलाया था हम दो घंटे में वहां होंगे, अब लगता है कि वो भी नहीं हो पायेगा ।”
“मजबूरी है ।”
“हमारी मजबूरी है और गोखले की जान सूली पर है । वो बेमौत मारा जायेगा ।”
“उसको खबरदार करो । बोलो फिलहाल कोई कदम न उठाये । आस्क हिम टु होल्ड ऐवरीथिंग ।”
“अब ये भी मुमकिन नहीं । खराब मौसम की वजह से उधर से हमारा हर कांटैक्ट टूट गया है ।”
“हमने उस आदमी को मौत के मुंह में धकेला ।”
“नाहक जज्बाती हो रहे हो, पाटिल । ये असाइनमेंट कुबूल करने से पहले वो उसके हर अंजाम से वाकिफ था । उसको साफ बोला गया था, बाकायदा खबरदार किया गया था कि वो शेर की मांद में कदम रखने जा रहा था, जिंदा लौटने की कोई गारंटी नहीं थी । हमने कोई जोर नहीं दिया था, कोई दबाव नहीं डाला था, उसके सामने खुली आप्शन थी असाइनमेंट को नाकबूल करने की । उसने अपने कंधों पर सलीब उठाया है तो वो ही तो ढ़ोयेगा !”
“अभी तो उसके साथ धोखा हुआ ! हमने उसे आश्वासन दिया कि उसे कोस्ट गार्ड्स की मदद मुहैया होगी...”
“क्या फर्जी आश्वासन दिया ? कया ऐसा करते वक्त तुम्हारी जुबान पर कुछ और था, मन में कुछ और था ?”
मशीनी अंदाज से डीसीपी का सिर इंकार में हिला ।
“ऐसा करते वक्त तुम्हें इल्म था कि कोस्ट गार्ड्स को फौरन चौकी खाली कर देने का आर्डर हो जायेगा ?”
“नहीं । कैसे हो सकता था ?”
“क्या हमारे पास उस आर्डर को रिवर्स करने की अथारिटी है ?”
“नहीं ।”
“तो फिर ?”
“सर, आई स्टिल फील गिल्टी । अवर ऑपरेशन इज डूम्ड । अवर मैन इज डूम्ड ।”
“आल पार्ट आफ गेम, पाटिल, आल पार्ट आफ प्रोविडेंस ।”
“कैसी मजबूरी है !” - डीसीपी आह भर कर बोला - “हम उसकी कोई मदद नहीं कर सकते।”
“गॉड विल हैल्प हिम ।”
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