फ्रांसिस मैग्‍नारो झील के साउथएण्‍ड वे करीब के एक आलीशान मैंशन में रहता था ।

वो एक पचास साल का लम्‍बा, दुबला-पतला गोवानी था जो घर पर भी पूरी सजधज के साथ रहने का आदी था । रात को सोने जाने से पहले जब अपना सजावटी तामझाम उतार देता था तो किसी सूरत में किसी से नहीं मिलता था क्‍योंकि सजावट के बिना वो रिक्‍शा पुलर जान पड़ता था ।

उस घड़ी वो मैंशन के विशाल ड्राईंगरूम में मौजूद था और वहां उसके साथ दो व्‍यक्‍ति और मौजूद थे ।

एक खूबसूरत, तंदुरूस्‍त नौजवान रोनी डिसूजा था जिसके जिम्‍मे इम्‍पीरियल रिट्रीट के कैसीनो की ही सिक्‍योरिटी नहीं थी, अपने बॉस मैग्‍नारो की सिक्‍योरिटी भी थी । यानी वो मैग्‍नारो का बॉडीगार्ड था । आईलैंड पर उसका कोई दुश्‍मन नहीं था, धंधे में कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था इसलिये वहां उसकी जान को कोई खतरा नहीं था लेकिन गोवा की आदत बनी हुई थी जो कि जाती ही नहीं थी इसलिये उसके साथ बॉडीगार्ड की हाजिरी लाजमी थी, बॉडीगार्ड के बिना वो खुद को एक्‍सपोज्‍ड महसूस करता था । बल्कि नंगा महसूस करता था ।

दूसरा व्‍यक्‍ति लोकल स्‍टेशन हाउस का स्‍टेशन हाउस आफिसर अनिल महाबोले था ।

मैग्‍नारो ने एक किमती हवाना सिगार सुलगाया, उसका एक ही कश लगाया और उसे एक नजदीकी ऐश ट्रे पर रख दिया ।

उसका हर घड़ी का जोड़ीदार रोनी डिसूजा ही उसकेक उस एक्‍शन का मतलब समझता था जो कि ये था कि उसका बॉस बहुत गुस्‍से में था ।

“मैं साला इधर इतना रोकड़ा इनवैस्‍ट किया” - “मैग्‍नारो फुंफकारता सा बोला - “साला ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ खड़ा किया, उसमें कैसीनो चलाने का डेंजर काम हैंडल किया । रिडिक्‍यूलसली हाई प्राइस पर ये मैंशन खरीदा, क्‍योंकि मेरे सन को पसंद ये मैंशन और इधर से लेक का मैग्‍नीफिशेंट व्‍यू । उसके फ्रेंड्स इधर पार्टी में आते हैं तो व्‍यू से ही फ्लैट हो जाते हैं । इस वास्‍ते मैंशन पर साला रोकड़ा ज्‍यास्‍ती खर्च हुआ, मेरे को वांदा नहीं । माई फर्स्‍ट बार्न खुश, बोले तो मैं खुश । साला सब कुछ ऐन फिट, ऐन पीसफुली चलता था, अभी साला फच्‍चर क्‍यों पड़ा ? महाबोले, तेरे को जवाब देने का ।”

“जवाब आपको मालूम है ।”

“महाबोले, मेरे को इधर पुलिस को सीनियर आफिसर नहीं मांगता । जितना सीनियर आफिसर, उतना ही ज्‍यास्‍ती मेरे को उससे लोचा ।”

“मैं भी किधर मांगता है, बॉस ! पण मर्डर हुआ न ! इस वास्‍ते डीसीपी लोग आया, चला जायेगा । इधर लंगर डाल के बैठने का तो नहीं है किसी को भी !”

“समझता नहीं है ।”

महाबोले हड़बड़ाया । उसने मुंह बाये मैग्‍नारो की तरफ देखा 

“क्‍या नहीं समझता मैं ? - फिर बोला ।”

“साला टूरिस्‍ट्स लोग भी तो इधर से बिग लॉट्स में नक्‍की करता जा रहा है, ये नहीं समझता । जिधर साला जान का खतरा हो, जिधर टूरिस्‍ट साला खुद को सेफ महसूस न करे, उधर काहे वास्‍ते रूकेगा वो ?”

“बॉस इधर से टूरिस्‍ट्स जो निकलने लग गये हैं, उसकी वजह जुदा है ।”

“बोले तो ?”

“उसकी वजह यहां हुई कत्‍ल की वारदात उतनी नहीं है जितनी कि स्‍टार्म वार्निंग है ।”

“अभी भी बोले तो ?”

“बॉस, तुम्‍हें नहीं मालूम ?”

“अरे, क्‍या नहीं मालूम ? महाबोले, मेरे को साला क्‍विज प्रोग्राम नहीं मांगता ।”

“बॉस, रोजाना वायरलेस पर हवा पानी के महकमे की अनाउंसमेंट आती है कि आने वाले दिनों में मियामर और बंगलादेश में सुनामी जैसा समुद्री तूफान उठने वाला है जो पूरे अरेबियन सी तक मार कर सकता है ।”

“ऐसा ?”

“हां । सुनामी की तरह उसका नाम भी रख दिया गया हुआ है । हरीकेन ल्‍यूसिया ।”

“वो तूफान इस आइलैंड तक मार कर सकता है ?”

“बॉस, ये आइलैंड अरेबियन सी में ही है न !”

“मैं सुना ऐसे तूफान का असर कोस्‍टल एरियाज पर होता है ।”

“ठीक सुना लेकिन कोस्‍टल एरिया से दूर वाकया किसी आइलैंड पर असर होने पर कोई पाबंदी तो नहीं !”

“हूं ।”

“ऐसे तूफान यहां आते ही रहते हैं लेकिन वो लोकल बाशिेंदो को परेशान नहीं करते, खाली टूरिस्‍ट्स अलार्म्‍ड फील करते हैं इसलिये वक्‍त रहते यहां से कूच कर जाना पसंद करते हैं । सारे टूरिस्‍ट्स कोस्‍टल एरियाज से तो नहीं आते न ! कोस्‍ट के दूर के भी होते हैं जहां समुद्री तूफान का कोई खतरा नहीं होता । ऐसे लोगों का वक्‍त रहते आइलैंड से निकल लेने का मन बना लेना नैचुरल है ।”

“हूं ।”

“अब बोलिये, समुद्री तूफान पर मेरा क्‍या जोर है ? किसी का भी क्‍या जोर है ?”

“तूफान बाद की बात है - वो जब आयेगा तब आयेगा - सीनियर पुलिस आफिसर्ज की आइलैंड पर मौजूदगी अभी की बात है । उनकी मौजूदगी में कैसीनो नहीं चल सकता, ड्रग्‍स की बल्‍क मूवमेंट नहीं सो सकती । इस वास्‍ते मेरे को कैसीनो बंद करके रखने का, उसका सारा इक्‍विपमेंट, ड्रग्‍स का सारा जखीरा कंसील करके रखने का । दिस इज ब्‍लडी बिग जॉब । बिग एक्‍सपैंडीचर एण्‍ड जीरो इंकम । साला कौन मांगता है !”

“बॉस, मै बोला, दो तीन दिन में सब नार्मल हो जायेगा ।”

“अभी क्‍यों अबनार्मल है ? मेरे को इधर मूव इन करने को एनकरेज करने का वास्‍ते साला तुम, तुम्‍हारा जोड़ीदार मोकाशी बड़ा बड़ा प्रामिस किया, बड़ा बड़ा अश्‍योरेंस दिया, बड़ा बड़ा बोल बोला कि इधर साला सब सेफ, साला सब तुम्‍हारे कंट्रोल में । अभी लगता है साला खाली पीली बोम मारता था ।”

“ऐसी कोई बात नहीं, बॉस । इधर एक नया काम हुआ, पहली बार एक नया काम हुआ, मर्डर हुआ । मर्डर को कोई एंटीसिपेट नहीं कर सकता । साला जो काम इधर कभी नहीं हुआ, वो अब हो गया । यहीच प्राब्‍लम । मर्डर को हैण्‍डल करने का इधर कोई इंतजाम नहीं । टैक्‍नीशियंस, मैडीकल एक्‍सपर्टस, फिंगरप्रिंट्स एक्‍सपर्टस, वायलेंट डैथ इनवैस्‍टीगेशन एक्‍सपर्ट्‌स सब साले मुरूड से आये, साथ में पुलिस वालों की टीम आयी-डीसीपी जठार तो आया ही-साला मेला लग गया इधर । बस, यहीच प्राब्‍लम । दो तीन दिन में सब लौट जायेंगे, फिर सब ठीक हो जायेगा ।”

“दो तीन दिन में । अभी क्‍या करने का ?”

“अभी ! अभी क्‍या है ?”

“साला, कैसा पुलिस चीफ है ! कुछ जानता हैइच नहीं ।”

“बॉस, कुछ बोलो तो सही ! क्‍या नहीं जानता मैं ?”

“दो भीङू, नवां भीङू, ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ को वाच करता है ।”

“क-कौन बोला ?”

मैग्‍नारो से अपने बॉडीगार्ड की तरफ देखा ।

डिसूजा ने खामोशी से सहमति में सिर हिलाया ।

“क्‍यों करता है ?” - महाबोले बड़बड़ाया - “क्‍या वजह होगी ?”

“ये साला मैं बोले ?” - मैग्‍नारो गुर्राया ।

“न-हीं....”

“तुम साला बड़ा बोल बोलता है कि इधर पत्ता भी खड़के तो तुम्‍हेरे को मालूम होता है । अभी साला घंटा खड़कता है बड़े वाला, तुम्‍हेरे को घंटा मालूम है ?”

“मैं मालूम करूंगा ।” - महाबोले चिंतित भाव से होंठों में बुदबुदाया ।

“मालूम करेगा, दिस इज नॉट एनफ । महाबोले, उनको हर हाल में उधर से हटाने का । जब वो दोनों साला उधर वाच करता है, मैं उधर से अपना गेम्‍बलिंग का इक्‍विपमेंट-रॉलेट टेबल, स्‍लॉट मैंशीस, दि वर्क्‍स-मूव नहीं कर सकता । वो एक्‍व‍िपमेंट उधर पकड़ा गया, सीज हो गया तो बहुत गलाटा होगा । साला बिग फाइनांशल लॉस तो होगा ही, मेरे कई भीडू पकडे़ जायेंगे । फिर उनको छुड़ाने में बिगर फाइनांशल लॉस होगा ।”

“कुछ नहीं होगा, बॉस । मैं सब हैण्‍डल करता है न !”

“हैण्‍डल करता है या गारंटी करता है कुछ नहीं होगा ?”

“बॉस, आप जानते हैं, ऐसे मामलों मे गारंटी कोई नहीं कर सकता, बस दिलोजान से कोशिश कर सकता है ।”

“फिर क्या फायदा हुआ ?”

“माफी के साथ बोलता है, बॉस, आप बात को बहुत ज्यास्ती करके सोचता है । बोले तो अभी कुछ हुआ हैइच नहीं । समुद्री तूफान आते आते आयेगा-शायद न भी आये-बाकी क्या हुआ है ? एक साले बेवड़े ने एक मामूली रंडी को, एक टू बिट बिच को, टपका दिया, बस ये हुआ है ।”

“मैं बात को ज्यास्ती करके सोचता है तो, महाबोले, तुम साला बात को बहुत कमती करके बोलता है । वो लड़की जिसको तुम टू बिट बिच बोला, तुम जनता था उसको ।”

“वो...वो...”

“खूब वाकिफ था ।”

“कभी कभार की मुलाकात थी ।”

“मस्ती मारता था उसके साथ ।”

“वो...बोले तो...”

“थानेदार की माशूक टू बिट बिच कैसे हो गयी ! फिर भी हो गयी तो, महाबोले, इट्स ए बैड कमैंट्री अपान यू । क्या !”

महाबोले से जवाब न दिया गया, उसने बेचैनी से पहलू बदला ।

“रोमिला हाई क्लास आइटम थी । अपना रोनी उसे पोंडा से इधर ले के आया था । रोनी ने तुम्हारी उससे वाकफियत कराई थी । अभी बोलो, क्या टू बिट बिच से कराई थी ?”

न-नहीं ।”

“जिंदा था तो साला उस पर घुटनों तक लार टपकता था, अभी मर गयी तो डिफेम करता है, डिग्रेड क‍रता है । जिसके साथ सोता था, अब उसको मामूली रंडी बोलता है, टू बिट बिच बोलता है ।”

“बॉस, बहुत रिग्रेट के साथ पूछता हूं, आप किसकी तरफ हो ?”

“क्‍या बोला ?”

“अगर ऐसे मुझे ह्यूमीलियेट करना है, डिसूजा के सामने मेरा कचरा करना है तो मैं” - महाबोले ने विस्‍की का गिलास साइड टेबल पर रख दिया और उठ खड़ा हुआ - “जाता हूं ।”

“सि‍ट डाउन !” - मैग्‍नारो कर्कश स्वर में बोला - “मैं बोलेगा तुम्हेरे को कब जाने का । क्या !”

महाबोले धीरे से वापिस बैठ गया, विस्‍की के गि‍लास कि तरफ हाथ बढ़ाने की कोशिश उसने न की ।

“मैं साला इधर अपना इतना रोकड़ा इनवैस्‍ट किया” - मैग्‍नारो बोला - “जो मैं किधर भी कर सकता था पण मैं इधर किया क्योंकि मैं तुम लोगों की- तुम्हेरे और मोकाशी की - बातों में आ गया कि तुम मेरे को बिग प्रोटेक्शन दे सकता था क्‍योंकि तुम साला इधर का बिग गन था, इधर साला सब कुछ तुम दोनों साला सब कुछ तुम दोनों के कब्जे में था, तुम दोनें साला इधर का बिग गन था बिना इधर पत्ता नहीं हिलता था । कोई डिफ्रेंट वे से सांस भी लेता था तो तुमको साला मालूम पड़ जाता था । कितना कानविंसिंग सीनेरियो था मेरा वास्ते । इसी वास्ते मैं इधर मूव किया । अभी सोचता है मैं साला अक्‍खा ईडियट ! साला लम्बी लम्बी छोड़ने वालों का ऐतबार किया ।”

“बॉस, ऐसी कोई बात नहीं...”

“है भी तो क्या करेगा ! वाट इज डन कैन नाट बी अनडन । बैल तो बज गया ! अब उसको अनबजा कैसे करना सकता !”

महाबोले खामोश रहा ।

“गोखले !”

महाबोले ने हड़बड़ा कर सिर उठाया ।

“नीलेश गोखले पूरा नाम । क्या बोलता है उसके बारे में ? कौन है वो ?”

महाबोले ने तुरंत उत्तर न दिया, उसके चेहरे पर गहन अनिश्‍चि‍य के भाव आये ।

“मैं वेट करता है जवाब का ।” - मैग्‍नारो उतावले स्वर में बोला ।

“बॉस, अभी क्या बोलेगा !”

“ये मेरे को मालूम ?”

“नहीं, मालूम तो मेरे को ही है, पर...बहुत कनफ्‍यूजन है ।”

“महाबोले, कुछ बोलेगा तो कनफ्‍यूजन नक्‍की होगा न !”

“बॉस, वो क्या है कि मैं पहले नहीं मानता था कि उसमें कोई भेद है-मोकाशी मेरे को बोला वो भीङू नवां सीक्रेट एजेंट लेकिन मेरे को न लगा, मैं बोला आम भीङू, मामूली भीङू, स्ट्रेट, भीङू-लेकिन अब मेरे को पक्‍की, कोई भेद बराबर है ।”

“बोले तो ?”

“बॉस, मुम्बई से एक डीसीपी इधर आता है और बोलता है प्रैस रिपोर्टर है, बोलता है गोखले उसका फ्रेंड, जो बाई चांस उसको इधर मिला । ये कोई मानने लायक बात है, यकीन में आने लायक बात है !”

“नहीं । तो अब तुम्हारा खयाल है ये भीङू सरकारी अंडरकवर एजेंट हो सकता है ?”

“कुछ भी हो सकता है । नहीं हो सकता तो कोई आम आदमी नहीं हो सकता । कोई स्ट्रेट भीङू नहीं हो सकता ।”

“हूं ।”

मैग्‍नारो ने कब से तिरस्कृत अपना सिगार ऐश ट्रे पर से उठाया तो पाया वो बुझ चुका था । उसने उसे फिर से सुलगाया और विचारपूर्ण मुद्रा बनाये उसके कश लगाने लगा ।

“साला कोई सीक्रेट करके भीङू” - आखिर वो बोला - “डीसीपी का फिरेंड भीङू इधर आ के एम्पालयमेंट पकड़ा तो किधर ! मोकाशी के अपने ठीये पर !”

“उसे मालूम होगा कि कोंसिका क्लब का असली मालिक मोकाशी था ? उसने जानबूझ कर नौकरी हासिल करने के लिये कोंसिका क्लब को चुना था ?”

“आई डोंट नो । पण ऐसा इत्तफाक मेरे को इधर” - उसने अपने पेट पर हाथ फेरा - “प्राब्लम करता है । और ये सोचने को फोर्स करता है कि उसने जान बूझ कर एम्पालयमेंट के लिये कोंसिका क्लब को चुना क्योंकि वो ‘इम्पीरीयल रिट्रीट’ के ऐन सामने है । मेरे को अभी का अभी ये भी मालूम पड़ा है कि वो साला खुफिया कैमरे से ‘इम्पीरीयल रिट्रीट’ में आने जाने वालों की फोटू निकालता था । पता नहीं साला क्या शूट किया ! कितना डैमेज होयेंगा !”

“बॉस, ऐसा नहीं होगा ।”

“मैं भी यहीच सोच कर अपना बिजनेस आपरेशंस इधर स्‍टैण्‍ड किया कि ऐसा नहीं होयेंगा । क्योंकि इधर मेरे फिरेंड्‍स - मोकाशी करके, महाबोले करके-जो मेरे को प्रोटेक्शन देने का । कैसे देगा साला प्रोटेक्शन ! साला इतना टेम में ये तक तो जान न सका कि कोई नवां सीक्रेट एजेंट इधर पाहुंच गयेला था । कोई साला उस भीङू को मेरा नॉलेज में लाता, मैं साला खुद सैट करता न उसको पर्फेक्ट करके !”

“बॉस, फिक्र नहीं करने का । मैं...”

“क्योंकि मेरा फिरेंड महाबोले फिक्र करता है मेरा वास्ते भी ! नो ?”

महाबोले ने जोर से थूक निगली ।

“क-क्या ?”

“जब तुम्हारे को अर्ली मार्निंग मालूम पड़ गया कि उस भीङू में कोई भेद, वो भीङू डेंजर, तो इधर क्यों न पहुंचा साला बुलेट का माफिक ?”

“त-तो...तो क्या होता ?”

“सांता मारिया ! लुक ऐट दिस गाय ! पूछता है तो क्या होता ! अरे, मैं वार फुटिंग पर कैसीनो से अपना एक्सपैंसिव इक्विपमेंट किसी सेफ, सीक्रेट जगह पर शिफ्ट करता और सैकण्ड फ्लोर को ऐसा सैट करता जैसे कैसीनो कभी उधर थाइच नहीं । ऐसीच मैं अपना ड्रग्स का स्टॉक किसी सीक्रेट प्लेस पर शिफ्ट करता । अब कैसे होयेंगा साला ! मैं बोला कि नहीं बोला कि साला दो नवां भीङू दो मिस्टीरियस भीङू उधर वाच करता है ! क्या !”

महाबोले ने बेचैनी से पहलू बदला ।

“अभी बोलता काहे नहीं है ?”

“बॉस, आप फिक्र न करे ।” - महाबोले कठिन स्वर में बोला - “गोखले को मै हैंडल करूंगा बराबर । कैसे भी करूंगा । जो दो भीङू ‘इम्पीरियल रिट्रीट’ को वाच करते हैं उन पर मैं अपनी वाच लगाऊंगा ताकि उनके कोई गलत कदम न उठा पाने कि गारंटी हो सके । मैं ये भी पता निकालने कि कोशिश करूंगा कि वो दो भीङू हैं कौन, किसको रिपोर्ट करते है !”

“कर लेगा तुम ?”

“बॉस - महाबोले आहत भाव से बोला - “मैं आइलैंड का पोलीस चीफ हूं । रिमेम्बर !”

मैग्‍नारो ने जवाब न दिया, उसने सिगार का लम्बा कश लागाया ।

“इधर सब साला मेरे कंट्रोल में है ।”

“प्रूव !”

“क्या बोला ?”

“साबित करके दिखाने का ।”

“कैसे ?”

“वो गोखले करके भीङू जिसमें तुम बोला कि कोई भेद, मेरे को इधर मंगता है ।”

“क्या !”

“अभी बोलो, उसको इधर लाना सकता ?”

“बॉस, ये क्या मुनासिब होगा ?”

“होगा । अपना बिजनेस, अपना पिराब्लम हैंडल करके का मेरा अपना इस्टाइल है । मैं बात करेगा न उससे ! मालूम करेगा न कि क्या मांगता है ! साला आमने सामने बैठ के नोट्स एक्सचेंज करेगा न !”

“कुछा हाथ नहीं आयेगा ।”

“देखेगा ।”

“अगर वो वाकेई सीक्रेट एजेंट है तो उसे आप से बात करना ही कुबूल नहीं होगा । वो...”

“बोलो तो मेरे को तुम्हारे से सीखने का कि मेरे को अपना बिजनेस कैसे कंडक्ट करने का !”

“वो बात नहीं, बॉस, लेकिन...”

“वो बात नहीं तो कोई बात नहीं । कोई बात है तो ये कि तुम मेरे को उस भीङू की बाबत लेट - टू लेट- इनफार्म किया वैल्‍यूएबल टेम वेस्ट किया ।”

“आ-आई एम सारी !”

“यू ऑट टु बी । तुम बोलता है मुम्बई का कोई डीसीपी इधर है और वो भीङू डीसीपी का फिरेंड । फिरेंड माई फुट । वो साला डीसीपी का अपना भीङू जो इधर सीक्रेटली फंक्शन करता था । अभी पता नहीं वो डीसीपी को क्या बोला, क्या नहीं बोला । इसी वास्ते डीसीपी को भी सैट करने का ।”

“जी !”

“टपकाना जरुरी तो टपकाने का ! दोनों को ।”

“जी !!” - इस बार महाबोले हाहाकारी स्‍वर में बोला 

“आइलैंड के पुलीस चीफ का वास्ते डिफीकल्ट तो अपना रोनी हैंडल करेगा न ऐन पर्फेक्ट करके !”

रोनी डिसूजा ने पुरे इत्मीनान के साथ सहमति में सिर हिलाया ।

“दुश्मन गन से ही फ्लैट नहीं किया जाता” - मैग्‍नारो दार्शनिक से बोला - “मगज से भी किया जाता है ।”

महाबोले के चेहरे पर उलझन के भाव आये ।

“नहीं समझा तुम ?”

महाबोले ने इंकार में सिर हिलाया ।

“हर भीङू का कोई पास्ट होता है जिसको वो बाई आल कास्ट्स छुपा कर रखना मांगता है । जो साला नहीं छुपा रहेगा तो भीङू को बर्बाद कर देगा । बर्बाद कौन होता मांगता है ! मांगता है क्या ?”

महाबोले ने फिर इंकार में सिर हिलाया ।

“साला बुलेट काहे ऐसे भीङू को मारेगा ? उसका डार्क सीक्रेट उसको फिनिश करेगा । फिनिश नहीं होना मांगता तो जो बोला जायेगा, करेगा । अभी आया कुछ मगज में ?”

“आया तो सही कुछ कुछ ।” - महाबोले इस बार बोला तो उसके स्वर में स्पष्ट अनिश्‍चय का पुट था 

“तुम्हारा डार्क सीक्रेट क्या है, महाबोले ?”

“नहीं है, बॉस, मेरा कोई डार्क सीक्रेट नहीं है ।”

“एक तो है बरोबर, जो मेरे को मालूम ।”

“क्या ?”

“नोन रैकेटियर को प्रोटेक्ट करता है । अपनी आफिशियल कपैसिटी में उसके इललीगल कैसीनो को प्रोटेक्शन देता है ।”

“मजाक मत करो, बॉस ।”

“हा हा हा ।”

महाबोले ने बुरा सा मुंह बनाया ।

“अभी बोलो, मुम्बई का डीसीपी इधर तुम्हेरे सिर पर डांस करता है, उसका सीक्रेट एजेंट तुम्हारा आंख में डंडा शायद कर भी चुका है, तुमको फिकर ?”

“है तो सही कुछ कुछ”

“साला अंडरटोन में बोलता है । सच्‍ची बोलेगा तो बोलेगा दहशत ।”

“अरे, नहीं, बॉस...”

“आई नो । इसी वास्ते तुम्हारे काम का एक लैसन है मेरा पास । मांगता है क्या ?”

“क्या लैसन है ?”

“दुश्मन को अपना भेद नहीं देने का । उसको अपने इन साइड में नहीं झांकने देने का । इन साइड में साला कुछ भी होता हो-फिकर, डर, दहशत-दुश्मन को नहीं भांपने देने का । साला बैक आउट नहीं करने का । बैक आउट करेगा तो दुश्मन समझ जायेगा कि तुम साला इनसाइड में पिलपिल ! कावर्ड ! फिर साला दौड़ा दौड़ा के मारेगा । इन साइड में साला कुछ भी चालता हो, मजबुती से तन कर खड़ा होयेंगा, आईज से आईज लॉक करके बात करेंगा तो दुश्मन साला कनफ्यूज होयेंगा, फिर साला वो बैक आउट करेगा । क्या !”

महाबोले का सिर मशीनी अंदाज से सहमति में हिला ।

“एम आई राइट, रोनी ?”

“यू नो यू आर, बॉस ।” - डिसूजा बोला - “बोले तो बराबर !”

“देखा ! रोनी फालो किया । तुम साला मेरे को दिखाने को खाली मुंडी हिलाता है ।”

“ऐसी कोई बात नहीं, बॉस ।” - महाबोले हड़बड़ा कर बोला - “आई हार्ड यू लाउड एण्ड क्लियर । एण्ड आई एग्री विद युवर वर्ड्स आफ विजडम वन हण्‍डर्ड पर्सेट ।”

“थैंक्यू ! एग्री करता है तो एक्ट भी करने का । जा कर अपने थाने में बैठने का और जैसे दुश्मन भीङू लोग         इधर का खुफिया जानकारी निकालता है, वैसेच उन भीङू लोगों की कोई खुफिया जानकारी निकालने का और मेरे-खस तौर से गोखले के अगेंस्ट-हाथ मजबूत करने का । फिर मैं गोखले से इधरीच, इसी रूम में बात करेगा और देखेगा वो कितना श्याना ! क्या करना सकता ! क्या !”

“ठीक !”

“अभी नक्‍की करने का ।”

महाबोले ने उसका अभिवादन किया और वहं से रुखसत हुआ 

वापिसी में सारे रास्ते वो बड़बड़ाता रहा और अपनी आगे कि कोई स्ट्रेटेजी निर्धारित करने के लिये मगज मारता रहा 

‘गोखले से बात करेगा’ - मन हि मन वो भुनभुनाया - ‘काहे को ! गोखले के साथ कोई डील सैट करने बैठ गया तो मुझे मंजूर होगा ! मैग्‍नारो का मेरी हैसियत घटाने वाला कदम मैं कैसे उठने दूंगा ! पता नहीं क्यों साला गोवानी मेरे को एकाएक कमजोर, पिलपिलाया हुआ समझने लगा है ! मैं मोकाशी को हैंडल कर सकता हूं, उसकी ऐंठ तोड़ सकता हूं, रोमिला सावंत का वजूद मिटा सकता हूं तो उस साले गोखले को हैंडल नहीं कर सकता ! मैग्‍नारो कभी गोखले से नहीं मिल पायेगा । वैसी नौबत आने से पहले ही मैं गोखले को उसी राह का राही बना दूंगा जिसका रोमिला को बनाया । साला मवाली मेरे को लेक्चर देता है ! उंगली पकड़ के चलना सिखाता है ! जैसे सारी जिंदगी मैंने उसी से पूछ पूछ कर गुजारी कि बॉस, आगे क्या करूं ? बात करता है, साला...’

युं ही कलपता, बड़बड़ाता, भुनभुनाता महाबोले थाने पाहुंचा ।

***

नीलेश अपनी किराये की आल्टो चलाता कोस्‍ट गार्ड्स की छावनी से निकला और रूट फिफ्टीन से होता आगे आइलैंड की घनी आबादी वाले इलाके में पहुंचा जो कि वैस्टएण्ड कहलाता था ।

म्यूनीसिपैलिटी की इमारत के काले नोटिस बोर्ड पर चाक से बड़े बड़े अक्षरों में ‘स्‍टार्म वार्निंग’ लिखा था । हैडिंग के आगे की तहरीर के अक्षर छोटे थे इसलिये फासले से वो उन्हें न पढ़ सका ।

आइलैंड के मेन पायर पर खड़ी बड़ी मोटर बोट्‍स के लंगर दोहरे किये जा रहे थे और छोटी मोटारबोट्स को घसीट कर किनारे कि खुश्की पर लाया जा रहा था । मुम्बई और मुरुड जाने वाले स्टीमर खचाखच भरे हुये थे जो कि इस बात का साबूत था कि हरीकेन ल्यूसिया की दहशत में पर्यटक थोक में आइलैंड से पलायन कर रहे थे ।

वो ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट के सामने से गुजरा तो उसकी निगाह स्वयमेव हि उन कोस्ट गार्ड्स कि तलाश में इधर उधर भटकी, जायंट कमिश्‍नर बोमन मोरावाला के अनुरोध पर और उन के सर्वोच्‍च अधिकारी के हुक्म पर जो वहां की निगरानी पर तैनात थे ।

जल्दी ही वे दोनों उसे दिखाई दे गये ।

वो बड़ी मुस्तैदी से अपना काम कर रहे थे और दोनों-वो बाखूबी जनता था-सशस्‍त्र थे 

ड्राइव करता वो मिसेज वालसंज बोर्डिंग हाउस पर पाहुंचा ।

कोस्ट गार्ड्स वहां की निगरानी के लिये भी तैनात थे 

वो कार से निकला, उनके करीब पहुंचा और उन्हें अपने वहां आगमन का मंतव्य समझाया 

तुरंत सहमति में सिर हिलाता एक गार्ड उसके साथ हो लिया ।

दोनों दूसरी मंजिल पर पहुंचे 

रोमिला के कमरे का दरवाजा तब भी अनलॉक्‍ड था जो पुलिस की बेपरवाही का नतीजा था । दरवाजा खोल कर वो भीतर दाखिल हुआ तो कोस्ट गार्ड बाहर ही ठिठक गया । इस बात में उसे कोई दिलचस्‍पी नहीं थी कि नीलेश वहां क्यों आया था और क्या चाहता था ! उसको नीलेश से हर तरह का सहयोग करने का निर्देश था और वो निर्देश का पालन कर रहा था 

पिछली बार जब नीलेश सिपाही दयाराम भाटे के साथ वाहां पहुंचा था तो उसने उस जगह को सरसरी तौर से टटोला था क्योंकि तब भाटे कि वजह से उससे ज्यादा की कोई गुंजायश नहीं थी लेकिन अब वहां कैसी भी तलाशी कि उसे खुली छूट हासिल थी ।

उसने बरीकी से कमरे की हर चीज को टटोलना शुरू किया ।

एक दाराज से कुछ चिटि्‌ठयां बरामद हुईं जिनके मुआयाने से मालूम पड़ा कि वो उसके भाई ने पोंडा से लिखी थी । चिटि्‌ठयों में मोटे तौर पर इसी बात पर जोर था कि मां की तबीयत बहुत खराब रहने लगी थी और जो पैसा वो भेजती थी, उससे घर का ही खर्चा चलता था, उसमें मां के मुनासिब इलाज की गुंजयश नहीं थी ।

दो चिटि्‌ठयां बैंगलोर से थीं जो उसकी ऐंजीला नाम की सखी ने वहां से लिखी थीं । दोनों में इस बात पर जोर था कि वहां पैसा कमाने के बेहतर चांसिज थे और उसे अपना मौजूदा मुकाम छोड़ कर बैंगलोर शिफ्ट करने पर विचार करना चाहिये था ।

उसी दराज से रूम रैंट की कुछ रसीदें बरामद हुईं 

कमरे का माहाना किराया तीन हजार रुपये ।

जबकि उसके इंडीपेंडेंट काटेज का महाना किराया बाइस सौ रुपये था ।

बाथरूम में जनाना इस्तेमाल के कीमती शैम्पू, कंडीशनर्स, बाडी लोशंस, स्क्रब्स, परफ्युम वगैरह थे ।

उसका खुला सूटकेस अपनी पूर्व स्थिति में तब भी बैड पर मौजूद था और उसके अंदर बाहर उसकी पोशाकें और अंडरगारर्मेट्‍स भी पूर्ववत बिखरे हुए थे ।

दो तीन ड्रैसें अभी वार्डरोब में भी हैंगरों पर टंगी मौजूद थीं और वर्डरोब के नीचे के हिस्से में बने एक बड़े से दराज में कई जोड़े बैली, चप्पल और सैंडल मौजूद थी ।

बैड की मैट्रेस के नीचे से एक बैंक की पास बुक बरामद हुई जिसके मुताबिक उसके सेविंग बैंक एकाउंट में ग्यारह हजार आठ सौ पिच्‍चासी रुपये साठ पैसे जमा थे 

लेकिन जिस चीज कि उसे असल में तलाश थी, वो वहां उसे कहीं न मिली 

रोमिला का कोई हैण्डबैग-जनाना सामान समेत या खाली - वहां नहीं था ।

जो कि हैरानी की बात थी ।

हैण्डबैग के बिना वो एक नौजवान लड़की कल्पना नहीं कर सकता था ।

वो रोमिला के साथ नहीं था-सिद्ध हो चुका था कि नहीं था-तो उसे वहां होना चाहिये था ।

क्यों नहीं था ?

वो कमरा खुला दरबार बना हुआ था, कोई आया और उठा के ले गया ।

कोई चोर !

या पुलिस !

वो महाबोले का करतब हो सकता था क्योंकि उसका इसी बात पर जोर था कि हैण्हबैग रोमिला के पास था और वो ही-उसमें मौजूद रोकड़ा ही - उसके कत्ल की वजह बना था ।

अगर सच में ये बात थी तो फिर तो हैण्डबैग की बरामदी भी महज वक्‍त की बात थी । वो जब बरामद होता तो रोकड़े के नाम पर उसमे झाङू फिरा होता और यूं कथित कातिल हेमराज पाण्डेय के ताबूत में एक कील और ठुक जाता ।

वो कमरे से निकला, उसने अपने पीछे दरवाजा बंद किया । फिर वो और गार्ड दोनों वापिस सड़क पर पहुंचे । नीलेश ने गार्ड को थैंक्यू बोला और फ्रंट डोर से इमारत में दखिल हुआ । भीतर लगे एक इंडेक्स बोर्ड से पता लगा कि लैंडलेडी मिसेज वालसन का आवास पहली मंजिल पर था ।

नीलेश पहली मंजिल पर पहुंचा 

बड़ी मुश्किल से मिसेज वालसन उससे बात करने को तैयार हुई ।

वो कोई पचपन साल की, कटे बालों वाली, सख्त मिजाज - बल्कि चिड़चिड़ी - ऐंग्लोइंडियन महिला थी । उसने असहिष्णुतापूर्ण भाव से नीलेश की तरफ देखा ।

नीलेश ने भी वैसे ही 

उसकी निगाह का मुकाबला किया 

वो हड़बड़ाई, तत्‍काल उसकी निगाह नीलेश की सूरत पर से भटकी ।

“क्‍या प्राब्‍लम है तुम लोगों का ?” - फिर भुनभुनाती सी बोली ।

“प्राब्‍लम !” - नीलेश की भवें उठीं

“कितना टेम मेरे को क्‍वेश्‍चन करने का ? कभी हवलदार आता है, कभी सब-इंस्‍पेक्‍टर आता है, कभी मरुड से इधर पहुंचा कोई पुलिस आफिसर आता है...”

“कभी थानेदार आता है ।”

“क्‍या बोला ?”

“थानेदार बोला । थानेदार नहीं समझतीं तो एसएचओ ! महाबोले !”

“उसका इधर क्‍या काम !”

“मैं बताऊं ! अरे, मैं...”

“आप जानती तो हैं न इंस्‍पेक्‍टर महाबोले को ?”

“हां । वो मर्डर केस का इनवैस्टिगेशन का वास्‍ते इधर आया न ! अपना टीम के साथ !”

“उसके बाद अकेला भी आया ?”

“नो !”

“रोमिला के रूम में गया ?”

“नैवर ।”

“यानी खुद न आया, किसी को भेजा ?”

“काहे वास्ते ?”

“एडीशनल इनवैस्टिगेशन के वास्ते ! तफ्तीश कि जो बचत खुचत रह गयी थी, उसको समेटने के वास्ते !”

“मैन, यू आर टाकिंग इन रिडल्स । फर्स्ट टेम के बाद इधर कोई नहीं आया । पण” - वो एक क्षण ठिठकी, फिर बोली - “आया भी !”

“जी !”

“अभी तुम आया न ! क्या प्राब्लम है तुम लोगों का ?”

“पहले भी पूछा ।”

“अभी फिर पूछता है न !”

“कोई प्राब्लम नहीं ।”

“तो काहे डिस्टर्ब करता है ! इधर का म्यूनीसिपैलिटी का प्रेसिडेंट-बिग गन बाबूराव मोकाशी मेरा पर्सनल फ्रेंड । मालूम !”

“अब मालूम ।”

“मै एक टेलीफोन काल लागायेगा तुम ब्लडी इधर से ऐसे क्‍व‍िट करेगा जैसे कभी आया ही नहीं था ।”

“ओके ।”

“वाट ओके ?”

“जो कहा,वो कीजिये । जो रिजल्ट आपको देखने का, वो मेरे को भी देखने का ।”

वो हड़बड़ाई, तड़फड़ाई, कई बार मुंह खोला, बंद किया ।

“अभी क्या प्राब्लम है ?” - फिर बोली - “मैं मर्डर सस्पैक्ट है ?”

“नहीं ।” - नीलेश पूर्ववत्‍ इत्‍मीनान से बोला ।

“तो ?”

“सीटा सस्पैक्ट है ।”

“क्या बोला ?”

“सीटा बोला । सप्रेशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट ।”

“वाट !”

“बोर्डिंग हाउस नहीं चलाता, कालगर्ल्स की पनाहगाह चलाता है इस वास्ते नार्मल से डबल, ट्रिपल रैंट चार्ज करता है ।”

“वाट नानसेंस !”

“हजार बारह सौ किराये के काबिल कमरे के तीन हजार रुपये महाना चार्ज करता है । थ्री थाउजेंड बक्स फार ए पिजन होल !”

“वाट द हैल !”

“रोमिला सावंत ने किराये की रसीदें सम्भाल के रखीं जो कि अपनी कहानी खुद कहती हैं । बाकी डीसीपी के सामने बोलना । उधर अपने पसर्नल फ्रेंड मोकाशी को भी बुला लेना । कम आन ! मूव नाओ ।”

“अरे, काहे खाली पीली बोम मारता है ! रैंट पर कोई गवर्नमेंट कंट्रोल है ! अपना रूम को मैं कोई भी रैंट फिक्‍स कर सकता है । किसी को ज्‍यास्‍ती लगता है तो नक्‍की करे । आइलैंड पर और भी बोर्डिंग हाउस हैं, उधर ट्राई करे ।”

“और बोर्डिंग हाउस किसी को भी रूम रैंट पर देते हैं, आप खाली नौजवान लड़कियों को देती हैं । वो सब धंधे वाली होती हैं, इसलीये आपके हाई रैंट से एतराज नहीं करती ।”

“वाट !”

“आप प्रास्‍टीच्‍यूट्स को पनाह देती हैं, दिस इज वाट !”

उसका मुंह खुले का खुला रह गया । फिर धीरे धीरे उसके चेहरे से असहिष्‍णुता के भाव छंटने लगे ।

“मैन, आई एम एन ओल्‍ड

“उनके कस्‍टमर इधर विजि‍ट करते हैं, आपको मालूम नहीं पड़ता ? या आंखें बंद कर लेती हैं ?”

“आ-आ-आई डोंट इंटरफियर ।”

“यानी मालूम सब पड़ता है, दखल नहीं देती ?”

उसने झिझकते हुए सहमति‍ में सिर हिलाया ।

नीलेश ने जेब से एक तसवीर निकाली जो कि उसने लोकल अखबार ‘आइलैंड न्‍यूज’ में से काटी थी । तसवीर कत्‍ल के अपराधी हेमराज पाण्‍डेय की थी जो कि कत्‍ल की ‘सनसनीखेज’ न्यूज के साथ छपी थी । उसे मालूम पड़ा था कि ‘आइलैंड न्‍यूज’ के प्रकाशन की कोई फ्रीक्‍वेंसी निर्धारित नहीं थी, यानी कभी वो रोज छपता था, कभी दो दिन में एक बार तो कभी हफ्ते में दो बार छपता था, उसका प्रकाशन प्रकाशित की जाने लायक खबर उपलब्ध होने पर निर्भर था जो कि उस शांत आइलैंड पर अक्‍सर नहीं भी उपलब्‍ध हो पाती थी ।

“ये तसवीर देखिये ।” - नीलेश ने कटिंग उसके सामने की - “क्‍या ये आदमी कभी इधर आया ?”

“क्‍या करने ?” - मिसेज वालसन ने पूछा ।

“रोमिला सावंत से मिलने !”

“मेरे खयाल से तो नहीं !”

“आपकी नजदीक की निगाह ठीक है ?”

“नहीं । इस उम्र में कैसे होगी !”

“पढ़ने लिखने के लिये चश्‍मा लगाती हैं ?”

“हां ।”

“ले के आइये ।”

वो भीतर कहीं गयी और रीडिंग ग्‍लासिज के साथ लौटी 

“पहनिये । और तसवीर को फिर से, ठीक से देखिये ।”

उसने निर्देश का पालन किया 

“अब क्‍या कहती हैं ?”

“वही, जो पहले कहा ।” - तसवीर लौटाती वो बोली - “ये आदमी कभी इधर नहीं आया ।”

“पहले आपने खयाल से कहा था, अब यकीन से कह रही हैं ?

“हां ।”

“लेकिन” - नीलेश सावधान स्‍वर में बोला - “अनिल महाबोले अक्‍सर आता था ।”

“भई, वो पुलिस आफिसर है । लोकल थाने का एसएचओ है । उसके पास अथारिटी है । चैकिंग के लिये वो किधर भी जा सकता है ।”

“चैकिंग के लिये ?”

“हां ।”

“कैसी चैकिंग !”

“जैसी बोर्डिंग एण्‍ड लॉजिंग की कमर्शियल एस्‍टैब्लिशमैंट्स की होती है ।”

“आई सी । दयाराम भाटे से वाकिफ हैं ?”

“पुलिस कांसटेबल है ।”

“परसों रात इधर वाच करता था । मालूम ?”

“मालूम ।”

“क्‍यों ?”

“ये तो बोला नहीं !”

“इधर जो कुछ भी होता है, आपको उसकी खबर रहती है । ठीक !”

“भाटे मेरे को नहीं बोला काहे वो इधर था ।”

“लेकिन आपको मालूम । उसके बोले बिना आपको मालूम ।”

“क्‍या बात करता है, मैन !”

“आपको मालूम कि वो रोमि‍ला सावंत की फिराक में इधर था ।”

“कैसे मालूम होयेंगा !”

“आप झूठ बोल रही हैं ।”

“नो, मैंन, मैं …”

“अंजाम बुरा होगा । जब होगा तो आपका पर्सनल फ्रेंड मोकाशी भी हाथ खडे़ कर देगा । अपनी हरकत आ बैल मुझे मार जैसी करेंगी तो पछतायेंगी ।”

मिस्‍टर वालसन के चेहरे पर कोई नया भाव न आया लेकिन उसके शरीर में सिहरन दौड़ती नीलेश ने साफ देखी 

“कबूल कीजिये कि आपको मालूम था कल रात को इंस्‍पेक्‍टर महाबोले को रोमिला की बड़ी शिद्‌दत से तलाश थी ।”

“थी तो क्‍या ! मेरे को क्‍या ! बट आई स्वियर बाई जीसस, मेरी एण्‍ड जोसेफ, मेरे को नहीं मालूम क्यों तलाश थी ! वो मेरे को इस बारे में कुछ न बोला ।”

“महाबोले यहां अक्‍सर आता था ?”

“यहां ?”

“अरे, यहां नहीं, आपके बोर्डिंग हाउस में ! रोमि‍ला सावंत के पास ! उसके कमरे में !”

“बोले तो आता तो था !”

“अक्‍सर ?”

“हां ।”

“पीसफुली आता था, पीसफुली जाता था ?”

“आई डोंट अंडरस्‍टैंड ।”

“अरे, कभी झगड़ा होता था दोनों में । तू तू मैं मैं होती थी ?”

“बोले तो मोस्‍ट आफ दि टाइम यहीच होता था। दोंनो बैड टैम्‍पर्ड थे । बहुत जल्‍दी भड़कते थे । सैवरल टाइम्‍स मेरे को जा के बोलना पड़ा गलाटा न करें, बाकी बोर्डर्स को डिस्‍टर्बेंस होता था ।”

“झगड़ते किस बात पर थे ?”

“मालूम नहीं । आनेस्‍ट, नहीं मालूम ।”

“कोई अंदाजा ?”

“अंदाज बोले तो रोकड़ा !”

“झगडे़ की वजह रोकड़ा होता था ?”

“अंदाजा पूछा न ! मैं अंदाजा बोला । दैट गर्ल …रोमिला …शी वाज ग्रीडी । बोले तो लालची थी । रोकड़े पर जान देती थी । बोलती थी बहुत जिम्‍मेदारि‍यां । इस वास्‍ते मजबूरी । बोले तो वो छोकरी रोकडे़ के वास्‍ते कुछ भी कर सकती थी ।”

“आई सी । आप बोर्डिंग हाउस चलाती हैं, ऐसा बोर्डिंग हाउस चलाती हैं जिसकी चैकिंग के लिये गाहे बगाहे पुलिस को आना पड़ता है । आप खुद कुबूल करती हैं ये कैसा बोर्डिंग हाउस है, फिर भी पुलिस आती है, चली जाती है, आपको डिस्‍टर्ब नहीं करती, आपके बोर्डर्स को डिस्‍टर्ब नहीं करती, वर्ना चाहे तो आपको समेत सबको अंदर कर दे । प्रास्‍टीच्‍यूशन बेलेबल ऑफेंस हैं, बाईयां तो ओवरनाइट में छूट जायेंगी, आपको जमानत कराने में दिक्‍कत होगी । धंधा चौपट होगा सो अलग ।”

“मैन” - वो घबराये स्‍वर में बोली - “क्‍या कहना मांगता है ?”

“ये कि ऐसी कोई मिसएडवेंचर आपके साथ नहीं हुई तो इसका मतलब है पुलिस के साथ आपकी कोई सैटिंग है । महाबोले इधर का पुलिस चीफ है, लिहाजा उसको कभी आपसे कोई फेवर-जो कि जाहि‍र है कि रैसीप्रोकल होगी; यू स्‍क्रैच माई बैक, आई स्‍क्रैच युअर बैक सरीखी होगी - मांगता हो तो आप मना नहीं कर पायेंगी । नो ?”

“कैसा फेवर ?”

“कैसा भी । जवाब दीजिये । मना कर पायेंगी ?”

उसने हिचकिचाते हुए इंकार में सिर हिलाया ।

“इफ आई से नो” - फिर दबे स्‍वर में बोली - “ही विल फाल अपान मी लाइक ए टन आफ ब्रिक्‍स । बर्बाद कर देगा ।”

“मैं आपकी साफगोई की दाद देता हूं ।”

वो खामोश रही ।

“बर्बाद कौन होना मांगता है !”

“कोई नहीं ।” - वो बोली ।

“इसलिये महाबोले जो बोले वो सिर माथे !”

“सिर माथे बोले तो ?”

“यस, सर । राइट अवे, सर । युअर वर्ड माई कमांड, सर’ । नो?”

“ओह, दैट ! यस, पण मजबूरी …”

“आई अंडरस्‍टैंड । रोमिला के कमरे से उसका हैण्‍डबैग गायब है । किधर गया ?”

“मेरे को कैसे मालूम होयेंगा ? बोले तो कोई चोर …”

“उसके कमरे में और भी कीमती सामान है । हैण्‍डबैग ही क्‍यों चुराया चोर ने ?”

“मैं क्‍या बोलेगा ! पण” - उसकी आवाज में संदेह का पुट आया - “तुम्‍हेरे को कैसे मालूम उधर ये कोई हैण्‍डबैग मिसिंग है !”

“कल जब आप शापिंग के लिये गयी हुई थी तो मैं डीसीपी साहब के साथ इधर आया था …”

“डीसीपी ! डीसीपी इधर किधर है ? इधर तो टॉप पुलिस ऑफिसर इंस्‍पेक्‍टर है जो कि महाबोले है ।”

“मुम्‍बई से आया ।”

“काहे ?”

“बोलेगा खुद । आप कोआपरेट नहीं करेंगी तो जो मैं पूछ रहा हूं, वो खुद डीसीपी आके पूछेगा ।”

“ओह, नो !”

“देखना आप !”

“तुम…तुम कौन है ?”

“पूछना सूझ गया !”

“पुलिस वाला तो है बराबर । पण … कौन है ! इधर थाने से ही है न !”

“नहीं ।”

“तो ?”

“मुम्‍बई से आया । डीसीपी के साथ । डीसीपी का चीफ असिस्‍टेंट है मैं ।”

“ओह ! पण मुम्‍बई से काहे …?”

“मालूम पडे़गा । अभी छोडि़ये वो किस्‍सा ।”

“इधर का थाना मुरुड के डीसीपी के अंडर । इतना मेरे को मालूम । फिर मुम्‍बई से …”

“बोला न, छोड़िये वो किस्‍सा । अभी मैं क्‍या बोला ? मैं बोला कि कल जब आप शापिंग के लिये गयी हुई थीं तो मैं डीसीपी के साथ इधर आया था । रोमिला का हैण्‍डबैग उसके कमरे में नहीं था ।”

“किधर गया ?”

“यही सवाल तो मैं आपसे कर रहां हूं । आप बताइये किधर गया ?”

“आई हैव नो आइडिया ।”

“मैडम, ये बात महाबोले के इंटरेस्‍ट में है कि वो बैग इधर से बरामद न हो । लिहाजा उसको इधर से हटाने के लिये कल या वो खुद आया, या उसका कोई आदमी आया या …”

“या क्‍या ?”

“या ये काम उसके लिये आपने किया ।”

“वाट !”

“उसको ओब्‍लाइज करने के लिये । इधर आपके करोबार में पंगा न करने आपको ओब्‍लाइज करता है न बराबर ! तो बदले में आपको भी तो लोकल पुलिस चीफ के साथ गुडविल बना के रखने का या नहीं ?”

“यू आर टाकिंग नानसेंस । आई डिड नथिंग आफ दि काइंड ।”

“श्‍योर ?”

“ऐज गॉड इज माई जज, आई डिड नो सच थिंग ।”

“चर्च जाती हैं ?”

“हां । ऐवरी संडे ।”

“गले में क्रॉस पहनती हैं, गॉड को जज बना कर जो अभी बोला, वो क्रॉस को छू के बोलिये ।”

झिझकते हुए उसने क्रॉस को छुआ और कांपती आवाज में बोला ।

“आल राइट !” - नीलेश बोला - “मैने यकीन किया आपकी बात पर ।”

वो खामोश रही । एकाएक उसके चेहरे पर टेंशन के ऐसे भाव पैदा हुए थे कि चेहरा विकृत हो उठा था । बड़ी मुश्किल से उसने खुद पर काबू पाया 

नीलेश ने तभी उसका पीछा न छोड़ दिया । उसने खोद खोद कर और भी कई सवाल महाबोले और रोमिला के बारे में उससे पूछे लेकिन कुछ हाथ न आया । उसका दिल गवाही देता था, उसका बैटर जजमेंट गवाही देता था कि रोमिला के कत्‍ल में महाबोले का बराबर कोई दखल था लेकि‍न उस पर किधर से भी कोई मजबूत उंगली नहीं उठ रही थी ।

असंतुष्‍ट वो वालसंज बोर्डिंग हाउस से रुखसत हुआ ।

पीछे पश्‍चाताप से विचलित, अवसाद की प्रतिमूर्ति बनी मिसेज वालसन बुत की तरह कुर्सी पर ढे़र हुई बैठी थी । उसका रोम रोम इंस्‍पेक्‍टर महाबोले के लिये नफरत से जल रहा था जिसकी वज‍ह से उसे क्रॉस को छू कर झूठ बोलना पड़ा था ।

“मैरी, मदर आफ गॉड !” - कांपती आवाज में वो बार बार कहने लगी - “फारगिव माई सिंज ।”

***

नीलेश वापि‍स रूट फिफ्टीन पर और आगे मौकायवारदात पर पहुंच 

पुलिस ने मौकायवारदात को ऊपर रेलिंग के साथ और नीचे पेड़ों के साथ रस्सियां बांध बांध कर घेरा हुआ था । उस घेरे के बाहर कई तमाशबीन मौजूद थे । वो जानते थे लाश कब की वहां से हटाई जा चुकी थी, फिर भी वो उस जगह को देखने के इच्छुक थे जहां कि लाश पायी गयी थी । वहां एक इकलौता पुलिसिया मौजूद था जो रेलिंग पर टांगें लटकाये बैठा बड़ी निर्लिप्‍तता से सिग्रेट के कश लगा रहा था । उसे न तमाशाईयों से मतलब था, न मौकायवारदात से, वो महज वहां अपनी ड्‌यूटी की रसमअदायगी कर रहा था, खानापूरी कर रहा था

नीलेश कुछ क्षण कार में बैठा सिग्रेट के कश लगाता रहा फिर कुछ सोच कर उसने सिग्रेट को तिलांजली दी और कार से बाहर निकाला 

नीचे ढ़लान पर जिस जगह से लाश बरामद हुई थी, वो रेलिंग पर से नहीं दिखाई देती थी लेकिन, सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी का दावा था, उस ट्रक ड्राइवर को दिखाई दी थी, जिसने थाने फोन लगा कर हादसे की खबर की थी, क्‍योंकि ट्रक की सीट ऊंची होती थी ।

कि‍तनी ऊंची होती थी !

जेहन में ट्रक का तसव्‍वुर करके उसने उस बात पर गौर किया ।

फिर वो कार की छत पर चढ़ गया और उस पर खड़ा हो गया ।

क्‍या इतनी ऊंची !

ठीक !

उसने रेलिंग के पार ढ़लान से नीचे की तरफ निगाह दौड़ाई ।

वो चट्‌टान उसे फिर भी न दिखाई दी जिसके करीब लाश पड़ी पायी गयी थी 

जो उसे दिन की रोशनी में नहीं दिखाई दिया था, वो किसी ट्रक ड्राइवर को रात के अंधेरे में दिखाई दिया था । अंधेरी का ये जवाब बनता था कि किसी तरीके से ट्रक का ऐंगल ऐसा बन गया था कि हैडालाईट्स की रोशनी से ढ़लान नीचे दूर तक चमक गयी थी लेकिन वो जगह तो फिर भी नहीं देखी जा सकती थी जहां कि लाश पड़ी पायी गयी थी !

तो क्‍या काल की कहानी फर्जी थी ?

क्‍या बड़ी बात थी ! बाकी सब कुछ भी तो फर्जी ही जान पड़ता था !

हैट में से खरगोश निकालने जैसी जादूगरी से हाथ के हाथ कातिल मुहैया हो गया - ऐसा ईडियट कातिल मुहैया हो गया जिसने रोकड़ा निकाल कर हैण्‍डबैग तो फेंक दिया लेकिन कायन पर्स, जिसमें चंद सिक्‍कों के सिवाय कुछ भी नहीं था, पास रखे रहा । अब इस बात की भी तसदीक हो चुकी थी कि पिछली रात को किसी बार ने लेट लेट नाइट आवर्स में बार रेट्स पर किसी को विक्‍की की बोतल नहीं बेची थी । इस लिहाज से हैण्‍डबैग से निकाला रोकड़ा पाण्‍डेय के पास होना चाहि‍ये था लेकिन नहीं बरामद हुआ था । न वो रकम कोई मुद्दा बनी थी क्‍योंकि महाबोले की एक ही जिद थी कि वो उसने बाटली की खरीद में सर्फ कर दी थी । कैसे खरीद पाया वो बाटली, कैसे सर्फ कर दी थी, इस बाबत उससे सवाल करने वाला कोई नहीं था ।

न ये बात किसी के लिये मुद्दा थी कि अपनी मौत से पहले रोमि‍ला निहायत खौफजदा थी, इतनी कि छुपती फिर रही थी, घर लौटने की हिम्‍मत नहीं कर पा रही थी ।

फिर लाख रुपये का सवाल था कि उसका हैण्‍डबैग कहां गया ? कैसे वो उसके कमरे से गायब हुआ ? महाबोले ने किया - या करवाया - तो क्‍योंकर ये करतब वो कर पाया !

बाजरिया मिसेज वालसन !

तो क्‍या वो औरत झूठ बोले रही थी ! क्रास को छू कर भी झूठ बोले रही थी !

क्‍या पता लगता था ?

खुदा के नाम पर झूठ बोलने वाले पर बिजली तो गिर नहीं पड़ती थी !

तभी उसकी निगाह एक अपनी ही उम्र के व्‍यक्‍ति‍ पर पड़ी जो कार के करीब खड़ा मुंह बाये उसे देख रहा था ।

खिसियाया सा नीलेश कार की छत से नीचे उतरा ।

“हल्‍लो !” - वो बोला 

“हल्‍लो !” - वो व्‍यक्‍ति मथुर स्‍वर में बोला - “हाइट से सीनरी एनजाय कर रहे थे !”

नीलेश फिर खिसियाया सा हंसा 

“या क्राइम सीन का अक्‍स जेहन में उतार रहे थे !”

“आपकी तारीफ ?”

“मैं मंजुनाथ मेहता । आइलैंड के इकलौते टेबलायड ‘आइलैंड न्‍यूज’ का एडीटर, पब्लिशर, रिपोर्टर, आफिस असिस्‍टेंट वगैरह ।”

“तो आप निकालते हैं वो पर्चा ?”

“हां । देखा कभी ?”

“देखा तो सही !”

“कैसा लगा ?”

“पर्चा था ।”

मेहता हंसा ।

“नाइस मीटिंग यू । मेरे को नीलेश गोखले कहते हैं ।”

“नाम से वाकि‍फ हूं । सूरत से भी वाकि‍फ हूं ।”

“अच्‍छा !”

“पत्रकार घूंट न लगाये तो उसकी कलम नहीं चलती न, इसलिये शाम ढ़ले कभी कभार कोंसिका क्‍लब का फेरा लगता है ।”

“ओह !”

“कल सुबह भी मैं यहां था, तब तुम एक बड़ी रोबदार शख्सियत के साथ थे । बाद में सब-इंस्‍पेक्‍टर जोशी से, कांसटेबल भाटे से बात की तो उसकी बाबत पहले एक जवाब मिला, फिर दूसरा जवाब मिला । पहला जवाब मिला कि वो मुम्‍बई से आये कोई पत्रकार थे और तुम उनके लोकल फ्रेंड और गाइड थे । दूसरा जवाब मिला कि डिप्‍टी कमिश्‍नर आफ पुलिस थे ।”

“हूं ।”

“अब आइडेंटिटी चेंज हो जाने से ताल्‍लुकात तो चेंज नहीं हो जाते न !”

“मतलब ?”

“डीसीपी साहब के लोकल फ्रेंड तो तुम फिर भी रहे न !”

नीलेश खामोश रहा ।

“एक लोकल बार बाउंसर का फ्रेंड डीसीपी ! मैने दो में दो जोडे़ और बडे आराम से जवाब …छत्‍तीस निकाल लिया ।”

“ग्रेट !” - भीतर से चिंतित नीलेश प्रत्‍यक्षत: उपहासपूर्ण स्‍वर में बोला - “सिग्रेट पीते हो, मेहता सा‍हब ?”

“आम हालात में नहीं ।”

“खास हालात क्‍या हुए ?”

“कोई पिलाये ।”

नीलेश फिर हंसा, उसने जेब से अपना पैकेट निकाला और उसे सिग्रेट पेश किया । उसने पहले उसका और फिर अपना सिग्रेट सुलगाया ।

“थैंक्‍यू ।” - मेहता बोला 

“वैलकम !”

मेहता ने एक बार दायें बायें देखा और फिर दबे स्‍वर में बोला - “मैं आइलैंड के करप्‍ट निजाम के खिलाफ हूं । उस त्रिमूर्ति के खिलाफ हूं जो आजकाल यहां ट्रिपल एम के नाम से मशहूर है । एक ही दुश्‍मन के दुश्‍मन दोस्‍त होते हैं । हाथ मिलाओ, पार्टनर ।”

नीलेश ने गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया ।

एकाएक उसके दिलोदिमाग से बोझ हट गया था ।

मंजुनाथ मेहता ठीक आदमी था, भरोसा करने के लायक आदमी था ।

“मुम्‍बई पुलिस के टॉप ब्रास का फेरा लगा है” - मेहता सिग्रेट का कश लगाता बोला - “उम्‍मीद है जल्‍दी ही इधर कोई उथल-पुथल होगी ।”

“डीसीपी साहब की बात कर रहे हो ?”

“और जायंट कमिश्‍नर साहब की, जो अभी नेपथ्‍य में हैं ।”

नीलेश ने हैरानी से उसकी तरफ देखा ।

“पत्रकार हूं, भई, छोटी जगह का छोटा पत्रकार हूं, लेकिन सूंघ तो पत्रकारों वाली है न बराबर !”

“जो कोस्‍ट गार्ड्स की छावनी तक मार कर गयी !”

“अब है तो ऐसा ही कुछ कुछ ।”

“कमाल है !”

“मैं तुम से तुम्‍हारी असलियत के बारे में सवाल नहीं करुंगा । खुद बताना चाहोगे तो मेरा जवाब होगा मैं नहीं सुनना चाहता । फिर भी बताओगे तो हाथ के हाथ भूल जाऊंगा । क्‍या समझे ?”

“वही, जो तुम समझाना चाहते हो । थैंक्‍यू ।”

“पार्टनर, केस में तुम्‍हारी दिलचस्‍पी तो प्रत्‍यक्ष है । राय क्‍या है तुम्‍हारी उसके बारे में ?”

“ऐसे केस के बारे में” - नीलेश लापरवाही से बोला - “मेरी क्‍या राय होनी है जो पहले ही क्‍लोज हो चुका है ! कातिल पुलिस के कब्‍जे में है, अपना जुर्म कबूल कर चुका है, इकबालिया बयान तक दर्ज करा चुका है, और क्‍या चाहिये पुलिस को !”

“कातिल, यानी कि वो कनफर्म्‍ड अल्‍कोहलिक पाण्‍डेय !”

“जानते हो उसे ?”

“मैं क्‍या, आइलैंड के परमानेंट बाशिंदे तकरीबन सब जानते हैं। इतना काबिल इलैक्‍ट्रीशियन है, बाटली से बर्बाद है । बाटली की वजह से काम में कोताही करता है । कोई मुंह मांगी फीस के वादे पर काम के लिये बुलाये, और वो महकता हुआ पहुंचे तो कोई दोबारा बुलायेगा ?”

नीलेश ने इंकार में सिर हिलाया ।

“किसी अनाड़ी से, नौसिखिये से, अपना काम करा लेगा, पाण्‍डेय को फिर नहीं बुलायेगा। इसी वजह से इतने हुनरमंद आदमी को रोकडे़ का सदा तोड़ा रहता था । कभी चार पैसे ज्‍यादा कमा लेता था तो कोशिश करता था कि चार दिन की इकट्‌ठी ही पी ले ।”

“तौबा !”

“तुम्‍हें महाबोले की इनवैस्टिगेशन से इत्तफाक है कि वो कातिल है ?”

“हो सकता है, नहीं भी हो सकता, बाटलीमार के मिजाज का क्‍या पता लगता है !”

“पार्टनर, डिप्‍लोमैटिक जवाब न दो ।”

“तुम अपने अखबार में छाप दोगे ।”

“पहले स्‍ट्रेट जवाब दो, फिर जवाब दूंगा इस बात का ।”

“नहीं हो सकता ।”

“उसे फंसाया जा रहा है ? बलि का बकरा बनाया जा रहा है ?”

“हां ।”

“अब जवाब देता हूं मैं तुम्‍हारे सवाल का । मैं ये बात अपने अखबार में छापूंगा तो महाबोले मेरी वाट लगा देगा । मुझे अखबार छापने लायक नहीं छोडे़गा । मैं दरिया में रह के मगर से वैर नहीं कर सकता ।”

“कमाल है ! पत्रकार तो बडे़ निर्भीक होते हैं !”

“वो, जिनके पावरफुल सरपरस्‍त होते हैं जिनके अखबारों के मालिकान ऐसे बडे़ बडे़ इंडस्ट्रियलिस्‍ट्स होते हैं जो प्राइम मिनिस्‍टर से हाथ मिलाते हैं, होम मिनिस्‍टर के साथ उठते बैठते हैं । और मैं मंजूनाथ मेहता ! बोले तो क्‍या पिद्दी, क्‍या पिद्दी का शोरबा !”

“मैं तुम्‍हारी साफगोई की दाद देता हूं ।”

“मैं तुम्‍हारी दाद कुबूल करता हूं । अब बोलो, क्‍यों तुम समझते हो कि पाण्‍डेय बेगुनाह है !”

“इस शर्त पर बोलता हूं कि खाली सुनोगे, जो सुनोगे उसका कैसा भी कोई इस्‍तेमाल नहीं सोचने लगोगे ।”

“आई प्रामिस, पार्टनर ।” - उसने निहायत संजीदगी से अपने गले की घंटी को छुआ 

नीलेश ने सब बयान किया जो जाहि‍र करता था कि पाण्‍डेय कातिल नहीं हो सकता था ।

“देवा !” - मेहता नेत्र फैसला बोला - “नत्‍था मरेगा ।”

“क्‍या बोला ?”

“आई एम सारी । पाण्‍डेय मरेगा । पुलिस केस बनाती है, सजा नहीं देती । सजा देना कोर्ट का काम है जहां मुलजिम को पेश किया जाना लाजमी होता है । जो कुछ तुमने कहा है, उसकी रू में कोर्ट में पाण्डेय के खिलाफ केस पांच मिनट नहीं ठहरने वाला । इस हकीकत से महाबोले नावाकिफ हो, ये नहीं हो सकता । लिहाजा केस कोर्ट में पहुंचेगा ही नहीं ।

“ऐसा कैसे होगा ?”

“मुलजिम लॉकअप में पंखे से लटका पाया जायेगा । महाबोले बयान देगा अपने निश्‍चित अंजाम से घबरा कर खुदकुशी कर ली । ईजी !”

“तौबा !”

“कहते हैं दुनिया में नहीं जिसका कोई उसका खुदा है । पता नहीं ये बात बेचारे पाण्डेय पर लागू होती है या नहीं !”

“आने वाला वक्‍त बतायेगा ।”

“यानी महाबोले आने वाला वक्‍त है !”

“कमाल के आदमी हो ! कमाल की बातें करते हो !”

उसने सिग्रेट का आखिरी कश लगाया और उसे परे उछाल दिया ।

“चलता हूं ।” - फिर बोला - “बहुत खुशी हुई तुमसे मिल कर । कभी आफिस आना । टाउन हाल के ऐन सामने है । टाउन हाल मालूम ?”

“मालूम ।”

“उसके सामने सैकण्ड फ्लोर पर । आइलैंड न्यूज । बोर्ड लगा है । आते जाते दर्शन देना कभी ।”

“जरूर ।”

करीब खड़े अपने स्कूटर पर सवार होकर वो वहां से रुखसत हो गया ।

नीलेश अपनी कार में सवार होने ही लगा था कि आबादी की ओर से एक वैगन-आर वहां पहुंची और उसकी आल्टो के करीब आ कर रुकी ।

कार में श्यामला मोकाशी सवार थी ।

नीलेश ठिठका खड़ा रहा ।

श्यामला कार से बाहर निकली । उसकी निगाह दायें बायें घूमी और फिर नीलेश पर आकर ठिठकी ।

नीलेश ने उंगली से पेशानी छू कर उसका अभिवादन किया और फिर नीलेश उसके करीब पहुंचा ।

“हल्लो !” - वो मुस्कराता हुआ बोला ।

हल्लो का जवाब श्यामला ने जबरन मुस्करा कर दिया ।

“इस वक्‍त कुछ और भी मांगता तो मिल जाता ।”

श्यामला की भवें उठीं ।

“तुमसें मिलना चाहता था । सोच रहा था तुम्हारे घर जाना मुनासिब होगा या नहीं !”

“क्यों मिलना चाहते थे, सरकारी आदमी साहब ?”

“क्या बोला ?”

“क्या सुना ?”

“म-मैं सरकारी आदमी !”

“हां ।”

“वो कौन होता है ?”

“जो सरकार के लिये काम करता है । जैसे जासूस, भेदिया, सीक्रेट एजेंट, अंडरकवर आपरेटर ।”

“वो मैं ?”

“हां ।”

“कौन बोला ऐसा ?”

“कोई तो बोला ही !”

“तुम्हारा पिता बोला । मोकाशी साहब ने ऐसा कहा ?”

“तो क्या गलत कहा ! बहुत बढि़या कल्टीवेट किया मेरे को अपने मकसद की खातिर ! बाकायदा ट्रेनिंग मिलती होगी ऐसे कामों की ।”

“तुम मुझे गलत समझ रही हो ।”

“क्या गलत समझ रही हूं मैं ?”

“ये कि मैंने किसी नापाक मकसद से तुम्हारे से ताल्लुकात बनाये ।”

“न सही । लेकिन जब ताल्लुकात बन गये तो नापाक मकसद भी सिर उठाने लगा । किसी के एक काम करते कोई दूसरा काम भी हो जाये तो ऐसा करने पर कोई पाबंदी तो नहीं लागू न ! या होती है ?”

नीलेश ने उत्तर न दिया 

“मैंने तुम्हें सरकारी आदमी कहा, तुमने इधर उधर की दस बातें की लेकिन एक बार भी इस बात से इंकार न किया, मजबूती से न कहा कि तुम नहीं हो सरकारी आदमी ।”

“किसी ने तुम्हारे कान भरे हैं ।”

“अभी भी वही कर रहे हो । महाबोले ठीक कहता था...”

“ओह ! तो तुम्हारा कोच तुम्हारा पिता नहीं, महाबोले है !”

“...कि तुम मेरे पीछे पडे़ ही इसलिये थे कि मेरे जरिये उसकी बाबत-या मेरे पापा की बाबत-अपने मतलब की कोई जानकारी निकलवा सको । अच्छा उल्लू बनाया मुझे ।”

“मैंने ऐसा कुछ नहीं किया ।”

“मेरे से मुलाकात के पीछे तुम्हारा कोई नापाक मकसद नहीं था ?”

“नहीं था ।”

“तुम्हारी दिलचस्पी मुझ में और सिर्फ मुझ में थी ?”

“हां ।”

“हमारी मुलाकात में तुम्हारे किसी खुफिया मिशन का हाथ नहीं था ? वो प्योरली सोशल काल थी ?”

“हां ।”

“तो फिर जवाब दो तुम कौन हो ! अगर मेरे से कोई दिली लगाव महसूस करते हो तो सच सच बताओ तुम कौन हो !”

“मैं मैं हूं । नीलेश गोखले । एक्स एम्पलाई कोंसिका क्लब ।”

“तुम नहीं बाज आओगे । जाती हूं ।”

“अरे, रुको, रुको ।”

“किसलिये ?”

“मेरी बात सुनने के लिये ।”

“सुनाओ ।”

“जैसे तुमने मेरे पर इलजाम लगाया कि मैं सरकारी एजेंट हूं वैसे तुम भी इस वक्‍त महाबोले की एजेंट नहीं बनी हुई हो !”

“क्या !”

“या मोकाशी साहब की ! या उस रैकेटीयर फ्रांसिस मैग्‍नारो की !”

“यू आर टाकिंग नानसेंस ।”

“महाबोले का तो तुमने नाम भी लिया !”

“नाम लेने से मैं उसकी एजेंट हो गयी ?”

“न सही । वो तुम्हारा पुराना वाकिफ है, करीबी है, पति बनने वाला है...”

“वाट द हैल !”

“....जबकि मेरे से तुम अभी हाल ही में वाकिफ हुई हो । इस लिहाज से तुम्हारी निष्ठा महाबोले के साथ होगी या मेरे साथ ! जवाब दो !”

“जब सवाल ही नहीं समझ में आया तो जवाब क्या दूं ?”

“मैं तुमसे कुछ कहता हूं, कुछ कुबूल करता हूं, कुछ कनफैस करता हूं, तुम जा कर महाबोले को बोल दोगी ।”

“खामखाह !”

“अपने पिता को तो जरूर ही ।”

“नहीं ।”

“वादा करती हो कि अभी जो कुछ मेरे से सुनोगी, उसे अपने पास ही रखोगी, आगे कहीं - कहीं भी - पास आन नहीं करोगी ?”

“करती हूं ।”

“जैसे तुम समझती हो, कहती हो, कि तुम्हारे से मिलना मेरी कोई स्ट्रेटेजी थी, तसलीम करती हो कि इस वक्‍त मेरे से मिलना तुम्हारी-तुम्हारी और महाबोले कि-कोई स्ट्रेटेजी नहीं ?”

“करती हूं ।”

“ये महज इत्तफाक है कि मैं तुम्हें यहां मिला ?”

“हां ।”

“क्या काम था इधर तुम्‍हारा ?”

“कोई काम नहीं था । परेशानी थी । ड्राइव पर निकली थी । इस काम के लिये ये मेरा पसंदीदा रूट है । यहां से गुजर रही थी कि तुम्हारी आल्टो खड़ी दिखाई दे गयी । फिर तुम दिखाई दे गये ।”

नीलेश को वो सच बोलती लगी । झूठ बोल रही थी तो कमाल की अभिनेत्री थी ।

“मुझे उम्मीद थी” - वो बोली - “कि वकीलों जैसी इतनी जिरह के सिरे पर तुम कुछ कहोगे ।”

“कहता हूं । श्यामला, कहर, क्राइम, करप्शन कागज की नाव है जो बहुत देर तक बहुत दूर तक नहीं चलती । यूं समझो कि यहां की मशहूर त्रिमूर्ति की नाव ने जितना चलता था, चल चुकी । और मुझे दुख है कि उस नाव का एक सवार तुम्हारा पिता भी है । करप्शन का तरफदार तुम्हारा पिता है, कहर का झंडाबरदार महाबोले है, क्राइम का कारोबार समझो गोवानी रैकेटियर मैग्‍नारो की टैरीटेरी है ।”

“नानसेंस ! मैग्‍नारो कैसीनो चलाता है, तोप दिखा कर लोगों को उधर आने के लिये मजबूर नहीं करता । ये टूरिस्ट टाउन है, ऐसी जगह पर वो पर्यटकों एंटरटेनमेंट का जरिया मुहैया कराता है तो क्या गुनाह करता है ?”

“तुम नादान हो । मुल्क के कायदे कानून को नहीं समझती हो । कैसीनो चलाने के लिये सरकार लाइसेंस जारी करती है जिसके लिये अप्लाई करना होता है, उसकी फीस भरना होता है । ये फैसला भी सरकार करती है कि कौन सी जगह पर कैसीनो होना चाहिये, कौन-सी जगह पर नहीं होना चाहिये । उस रैकेटियर मैग्‍नारो ने तो सारे फैसले खुद ही कर लिये ! काहे को ? इज ही अबोव दि लॉ ऑफ दि लैंड, दि गवर्नमेंट ! इज ही गॉड ! ऑर जीसस क्राइस्ट !”

श्यामला परे देखने लगी ।

“फिर लीगल जुए की - जैसे कि लॉटरी, हार्स रेसिंग, ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा कांटैस्ट विनिंग पर कमाई पर टैक्स भरना होता है । मालूम !”

उसने इंकार में सिर हिलाया 

“वो नॉरकॉटिक्स समगलर है, डिस्ट्रीब्युटर है । आर्म्स डीलर भी बताया जाता है । हथियारों की गैरकानूनी खरीद कौन लोग करते हैं ? उग्रवादी । आतंकवादी । दंगई । डकैत । ऐसे लोगों को हथियार मुहैया कराना शुभ कारज है ! नॉरकाटिक्स का व्यापार, जो नौजवान नसल को निश्‍चित मौत की तरफ धकेलता है, शुभ कारज है !”

“तुम्हें क्या पता आइलैंड पर ये सब होता है ?”

“पाप का घड़ा फूटने दो-जो कि बस फूटने ही वाला है-फिर सबको पता होगा ।”

“ऐसा है भी तो क्या है ! जिसके करम हैं वो भुगतेगा ।”

“मैग्‍नारो ।”

“और कौन ?”

“उसको आइलैंड पर पनाह देने वाले कौन हैं ? प्रोटेक्शन देने वाले कौन हैं ? उसके काले कारनामों की पर्दादारी करने वाले कौन हैं ? काले कारोबार में बाकायदा उसके शेयरहोल्डर्स कौन हैं ? क्या नाम लेने की जरुरत है ?”

“म-मेरे पापा ऐसे नहीं है ।”

“औलाद के लिये कोई पापा ऐसा नहीं होता - ‘माई डैडी बैस्टैस्ट, माई डैडी ग्रेस्टैस्ट, माई प्योरैस्ट’ जैसा ही होता है - लेकिन एक मात्रा हट जाये तो पापा ही पाप बन जाता है ।”

“मेरे पापा की सदारत में आइलैंड ने तरक्‍की की है । यहां टूरिस्ट इन्फलक्स बढ़ा है । उसकी वजह से रेवेन्यू बढ़ा है । और आगे उसकी वजह से यहां खुशहाली आयी है ।”

“ये इलैक्शन कैम्पेन जैसे स्लोगन हैं जो तुम्हें पढ़ाये गये हैं, सिखाये गये हैं, रटाये गये हैं । करप्ट लोगों ने तुम्हारे माईंड को भी करप्ट कर दिया है । जुए से, नॉरकॉटिक्स से, हथियारों के गैरकानूनी व्यापार से खुशहाली नहीं आती, बर्बादी आती है । खुशहाली आती है तो मोमाशी-महाबोले-मैग्‍नारो की त्रिमूर्ति के लिये । कितने बेगुनाह लोग आये दिन होने वाली उग्रवादी घटनाओं में जान से जाते है ! कितने लोग हेरोइन, एलएसडी, एस्टेसी, कोकिन, फॉक्सी, जीएचबी, जैसे नशों के शिकार हो कर सरेराह मरते हैं । कौन लोग है इतनी मौतों के लिये जिम्मेदार ! कौन हैं लाशों के सौदागर ! कौन हैं जो नौजवान नसल को को चरस के सिग्रेट, हेरोइन की पुड़िया, एस्टेसी की गोली पहले फ्री थमाते हैं, फिर जब लत मजबूत हो जाती है तो अंधाधुंध चार्ज करते हैं । जो चार्ज नहीं दे पाते, वो मजबूरन क्राइम की राह पर चलते हैं । एक गोली, एक पुड़िया, एक इंजेक्शन की खातिर चाकू घोंप देते हैं, गोली मार देते हैं । कौन हैं जो टैरेरिस्ट्स को हथियारबंद करते है ! क्या ऐसे लोग शरेआम चौराहे पर फांसी पर लटका देने के काबिल नहीं ? तुम्हें इस बात पर अभिमान है कि तुम्हारा महान पापा ऐसे लोगों में से एक है ?”

“मेरे पापा ऐसे नहीं हैं ।” - वो कांपती आवाज में बोली, उसकी आंखें डबडबा आई ।

“जब भरम टूटेगा तो खून के आंसू रोना पड़ेगा ।”

“यू आर एग्जैजरेटिंग । बढ़ा चढ़ा कर कह रहे हो ।”

“अब मैं क्‍या कहूं !”

“तुम बर्बादी का पैगाम ले कर आइलैंड पर आये हो । मौत का फरिश्ता बन कर यहां पहुंचे हो ।”

“मैं !”

“हां, तुम ।”

“मौत का फरिश्ता !”

“आफकोर्स ।”

“बेचारी रोमिला सावंत बेवजह जान से गयी, उसकी मौत की वजह मैं !”

“तुम जानते हो कातिल गिरफ्तार है ।”

“लेकिन वजह मैं ! क्योंकि मैं बर्बादी का पैगाम ले कर यहां आया ! मौत का फरिश्ता बन कर यहां पहुंचा !”

“मैं तुमसे बहस नहीं करना चाहती ।”

“मैं करना चाहता हूं । जो गिरफ्तार है, वो कातिल नहीं है ।”

“तुम्हारे कहने से क्या होता हैं ?”

“होता है । इसीलिये कह रहा हूं ।”

“तो आइलैंड का कोई भी एक बाशिंदा उसकी मौत की वजह हो सकता है । किसी एक जने की नापाक हरकत के लिये सारे आइलैंड को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता । सारे आइलैंड के वजूद पर कालिख नहीं पोती जा सकती ।”

“तुम ऐसा कह सकती हो क्योंकि तुम जानती नहीं हो वो लड़की असल में कौन थी और इस आइलैंड को क्या समझ कर यहां आयी थी !”

“पहेलिया न बुझाओ ।”

“वो लड़की कालगर्ल थी और कोई ये समझा कर उसे गोवा से यहां लाया था कि यहां उसके धंधे के बैटर प्रास्पैक्ट्स थे । ये खास किस्म के मौजमेले के शौकीन पर्यटकों का बड़ा अड्‍डा था इसलिये वो यहां चांदी काट सकती थी । और इस सोच के तहत खास तौर से यहां पहुंची वो अकेली भी नहीं थी । ये जगह प्रास्टीच्यूट्स की बड़ी वर्क प्लेस है और लोकल एडमिनीस्ट्रेशन को उनके यहां फंक्शन करने से कोई ऐतराज नहीं, कोई परेशानी नहीं, क्योंकि इस वजह से भी यहां टूरिस्ट इंफलक्स और बढ़ता है । कर्टसी लोकल एडमिनिस्ट्रेशन, कोनाकोना आइलैंड बैंकाक का कोना बन गया हुआ है । अब कहो जो कहना है अपने आइलैंड के ऊंचे किरदार की बाबत ।”

“सब स्टंट है, पब्लिसिटी है, बल्कि आइलैंड और उसके बाशिंदों के खिलाफ साजिश है । ये एक डीसेंट जगह है जहां डीसेंट लोग रहते है । मेरे पापा यहां के सम्मानित व्यक्‍ति है इसलिये हमेशा इलैक्शन में जीतते हैं । महाबोले सरकारी आदमी है, मैग्‍नारो बाहरी आदमी है, मेरे पापा यहां के लोगों के इलैक्टिव रिप्रेजेंटेटिव हैं । अगर उनका किरदार बेदाग नहीं है तो क्यों पब्लिक उन्हें वोट देती है ? क्यों उन्हें रिजेक्ट नहीं करती ?”

“जब सभी कुछ करप्ट है, जब आवां ही खराब है तो करप्शन से इलैक्शन जीत जाना क्या बहुत बड़ी बात है !”

“और इस सो काल्ड करप्ट जगह पर सांस लेते लेते तुम समझने लगे हो कि तुम मुझे मेरे पापा के खिलाफ करप्ट कर सकते हो !”

“मैं महज तुम्हारी आंखें खोलने की कोशिश कर रहा हूं ।”

“गैरजरुरी कोशिश कर रहे हो । मेरी आंखें पहले से खुली हैं ।”

“ठीक है फिर ।”

“हां, ठीक ही है । थोड़ी देर के लिये मुझे लगा था तुम्हारे मेरे साथ में किसी अदृश्य शक्‍ति का हाथ था, ये साथ और मजबूत हो सकता था क्योंकि इसमें ऊपर वाले की रजा थी । लेकिन लगता है गलत लगा था । हम दोनों एक राह के राही नहीं हो सकते । जो शख्स मेरे पिता के खिलाफ हो, वो मेरी तरफ नहीं हो सकता । जिसका मेरे पिता का कोई अहित करने का मंसूबा हो, वो मेरा कोई हित नहीं कर सकता ।”

“लेकिन, श्यामला...”

“एनफ ! एनफ आफ दैट । ये हमारी आखिरी मुलाकात है इसलिये गुडबाई कबूल करो । हमेशा के लिये ।

अंतिम शब्द कहते कहते उसका गला रुंध गया । एकाएक वो घूमी, कार में सवार हुई और कार को वहां से उड़ा ले चली ।

बुत बना वो उसे जाता देखता रहा ।

पितृभक्‍ति की बड़ी उम्दा मिसाल पेश करके वो लड़की वहां से गयी थी ।

***

नीलेश सेलर्स बार पहूंचा ।

परसों रात के अंधेरे में वो वहां ठीक से कुछ नहीं देख पाया था, न ही ऐसा कुछ करने की तब जरुरत थी। तब उसकी तवज्जो का मरकज सिर्फ और सिर्फ रोमिला सावंत थी जिससे मिलने के वाहिद काम से वो वहां पहुंचा था ।

उस घड़ी सूरज डूबने में अभी टाइम था इसलिये उसकी निगाह पैन होती हुई चारों तरफ घूमी । तब उसने महसूस किया कि वो जगह बिल्कुल ही उजाड़ नहीं थी । सड़क से पार, उससे परे हट कर, उससे काफी ऊंचे लैवल पर छितरे हुए कुछ मकान थे जो बसे हुए जान पड़ते थे ।

बार का ग्लास डोर ठेल कर वो भीतर दाखिल हुआ 

हाल उस घड़ी लगभग खाली पड़ा था, सिर्फ दो तीन मेजों पर ही कुछ लोग बैठे बीयर और बीयर पीते गप्‍पें लडा़ते दिखाई दे रहे थे ।

वो बार काउंटर पर पहुंचा 

बार से पार जो व्यक्‍ति मौजूद था, वो अपनी तरफ से चलता उसके सामने पहुंचा 

“क्‍या मांगता है ?” - वो बोला ।

“बोलेगा । मैं अभी इधरीच है । अभी ड्रिंक से पहले कुछ और मांगता है ।”

नीलेश उस व्‍यक्‍ति जैसी ही जुबान उससे भाईचारा जोड़ने के लिये बोल रहा था ।

“क्‍या ?”

“रामदास मनवार ।”

“मनवार से क्‍या मांगता है ?”

“बात करना मांगता है । परसों लेट लेट नाइट में मैं उसके रेजीडेंस पर फोन लगा कर उससे बात किया, अभी और बात करना मांगता है ।”

“तुम वो भीङू है जो रात को उस कड़का छोकरी की बाबत पूछता था जो इधर किसी फिरेंड का वेट करता था, जिसको मेरे को बाई फोर्स इधर से बाहर करना पड़ा था ?”

“हां । और मैं वो फ्रेंड है जिसका वो रात को इधर वेट करता था, जो टेम पर इधर न पहुंच पाया ।”

“ओह ! मैं है रामदास मनवार ।”

नीलेश ने उससे हाथ मिलाया 

“आई एम सारी फार दि गर्ल ।” - मनवार खेदपूर्ण स्‍वर में बोला - “मेरे को हिंट भी होता कि मेरे पीठ फेरते ही उसके साथ ये कुछ होना था तो मैं उसको कभी आउट न बोलता । थोड़ा टेम और बार खोल के रखता, उसका फिरेंड-जो कि अभी मालूम पड़ा कि तुम थे-आ जाता तो ये टेम वो जिंदा होती ।”

“तुम्‍हें क्‍या पता था आगे क्‍या होने वाला था !”

“वही तो ! बस यहीच बात मैं मेरे को समझाता है वर्ना गिल्‍टी फील करता है कि थोड़ा टेम और क्‍यों न रुक गया !”

“पीछे वो अकेली यहां खड़ी रही ?”

“क्‍या करती ! जब फिरेंड इधर आने वाला था तो इधरीच वेट करती न !”

“तुमने उसे लिफ्ट आफर की थी ?”

“बरोबर । फोन पर बोला न मैं ! मैं तो ये भी बोला बरोबर कि उसका वास्‍ते मैं आउट आफ वे जाने को तैयार था । जिधर बोलती, उधर ड्रॉप करता । पण वो नक्‍की बोली । बोली, लिफ्ट नहीं मांगता था । इधरीच ठहरने का था ।”

“किसी सवारी के बिना वो इधर पहुंच कैसे गयी ?”

“कोई आटो, टैक्‍सी किया होगा...”

“नहीं हो सकता । जब बार के ड्रिंक का बिल भरने के लिये उसके पास रोकड़ा नहीं था तो आटो, टैक्‍सी का बिल भरने के लिये किधर से आता !”

“तो किसी ने लिफ्ट दिया ?”

“यही मुमकिन जान पड़ता है । पहुंची कब थी ?”

“क्‍लोजिंग टाइम से कोई दो सवा दो घंटे पहले । ग्‍यारह बजे । टैन मिनट्स ये बाजू या टैन मिनट्स वो बाजू ।”

“मिजाज कैसा था ?”

“परेशान थी । डरी हुई भी लगती थी । बात बात पर चौंकती थी ।”

“इधर किसी से मिली ? किसी से कोई बातचीत की ?”

“नहीं । अक्‍खा टेम वो उधर-पब्लिक टेलीफोन के करीब बार स्‍टूल पर बैठी रही, बेचैनी से पहलू बदलती रही । जिस टेम भी ग्‍लास डोर खुलता था, उसकी निगाह अपने आप ही उधर उठ जाती थी, फिर चेहरे पर और उदासी और नाउम्‍मीदी छा जाती थी ।”

“उसके कत्‍ल के इलजाम में एक भीङू गिरफ्तार है । मालूम ?”

“हां । हेमराज पाण्‍डेय । छापे में पढ़ा न ! फोटू भी देखा ।”

“रात को उसको इधर कभी मंडराते देखा हो ! बार के अंदर या बाहर !”

“नहीं । देखा होता तो छापे में फोटू देखने के बाद मेरे को वो भीङू जरुर याद आया होता । किधर बाहर अंधेरे में छुप के खड़ेला हो तो...कैसे दिखाई देगा !”

“कोई पुलिस कार देखी ?”

“पुलिस कार !”

“पैट्रोल कार ! जो गश्‍त लगाती है ! या कोई पुलिस की जीप !”

“न ! रात के उस टेम इधर ट्रैफिक न होने जैसा । इसी वास्‍ते तो मैं उस लड़की को लिफ्ट आफर किया । वापिसी में मेरे को रोड पर खाली एक ट्रक मिला था जिसको कि घर पहुंचने की जल्‍दी में मैंने ओवरटेक किया था ।”

“हूं । कोई और बात जो तुम्‍हें जिक्र के काबिल लगती हो !”

वो सोचने लगा ।

“अभी ड्रिंक मांगता है ?” - फिर एकाएक यूं बोला जैसे कोई भूली बात याद आयी हो ।

“मांगता है । लार्ज जानीवाकर ब्‍लैक लेबल विद हाफ वाटर, हाफ सोडा ।”

“सारी ! इधर फॉरेन लिकर की क्‍लायंटेल नक्‍को । रखता नहीं है ।”

“तो ?”

“दि बैस्‍ट आई कैन आफर यू इज वैट-69 ।”

वो भी तो फॉरेन लिकर है ?”

“नाट ओरीजिनल । जो बाहर से बाटल्‍स आता है, वो नहीं । जो इधर ही बनती है, बाहर से मंगाये गये कंसंट्रेट्स से । कंसंट्रेट्स को स्‍पैशल लैवल तक डाइल्‍यूट करके बाटलिंग इधरीच होती है ।”

“अच्‍छा । मेरे को नहीं मालूम था ।”

“ऐसे और भी ब्रांड हैं कंसंट्रेट्स मंगा कर जिनकी बाटलिंग इंडिया में होती है । जैसे टीचर्स, ब्‍लैक डॉग, हण्‍डर्ड पाइपर्स, ब्‍लैक एण्‍ड वाइट ।”

“कमाल है । आके ! वैट-69 ।”

मनवार ने उसे ड्रिंक सर्व किया ।

नीलेश ने चियर्स के अंदाज से गिलास ऊंचा किया, विस्‍की का एक घूंट भरा और गिलास को वापिस अपने सामने बार काउंटर पर रखा ।

“कुछ याद आया ?” - फिर पूछा ।

“एक बात है तो सही सोचने लायक ।” - विचारपूर्ण मुद्रा बनाये वो बोला ।

“क्‍या ?”

“रात जब तुम लड़की से मिलने के वास्‍ते इधर आया था तो किधर से आया था ?”

“मेन हाइवे से ही आया था जो कि न्‍यू लिंक रोड कहलाता है ।”

“ठीक । इधर लड़की वेट करती थक गयी तो उसने बोले तो पैदल, वाक करके घर पहुंचने का फैसला किया । इस लिहाज से उसको न्‍यू लिंक रोड पर होना चाहिये था जहां उसको कोई लिफ्ट मिल जाने का भी चानस था । वो रूट फिफ्टीन पर काहे को पहुंच गयी ?”

नीलेश ने संजीदगी से उस बात पर विचार किया ।

“दो ही बातें हो सकती हैं ।” - फिर बोला - “या तो रात के टाइम भटक गयी या उसने समझा कि वो शार्ट कट था ।”

“ऐन ओपोजिट है ।”

“क्‍या मतलब ?”

“लांग कट है । आबादी में पहुंचने के लिये छोटा रास्‍ता न्‍यू लिंक रोड है ।”

“ऐसा ?”

“हां ।”

“रुट फिफ्टीन पर कोई नहीं जाता ?”

“बहुत लोग जाते हैं । वो सड़क सीनिक ब्‍यूटी के लिये मशहूर है और आशिक-माशूकी के लिये मशहूर है । बोले तो आइलैंड की लवर्स लेन है । नौजवान जोड़े उधर हाथापायी, चूमाचाटी के लिये जाते हैं । और भी कुछ करें तो किसी को खबर नहीं लगती । जनरल ट्रेफिक के लिये जनरल रोड न्‍यू लिंक रोड है जो कि काफी बाद में बनी थी, उसके बनने से पहले अक्रॉस दि आइलैंड जो एक रोड थी वो रुट फिफ्टीन थी ।”

“तो रुट फिफ्टीन पर कैसे पहुंच गयी ?”

“मेरे को तो एक ही वजह सूझती है ।”

“क्‍या ?”

“खुदकुशी करने के लिये ।”

“क्‍या !”

“वो बहुत परेशान थी पण क्‍यों परेशान थी, ये तो वहीच जानती थी ।”

“तुम्‍हारा वजह को कोई अंदाजा ?”

“प्रेग्‍नेंट होगी । ब्‍वायफ्रेंड ने धोखा दिया, मदद की फरियाद तुम्‍हारे से लगाई, तुम पहुंचे नहीं, हैरान परेशान रूट फिफ्टीन पर चल दी । उसकी बैडलक खराब कि उधर कहीं वो कनफर्म्‍ड बेवड़ा पाण्‍डेय मिल गया जिसने अकेली पाकर उसे लूट लिया और फिर जो काम लड़की ने खुद करना था, वो उसने कर दिया ।”

“तुमने दिमाग का घोड़ा बढिया दौड़ाया है पर इसमें एक फच्‍चर है ।”

“क्‍या ?”

“लड़की प्रेग्‍नेंट नहीं थी ।”

“नहीं थी !”

“पोस्‍टमार्टम रिपोर्ट कहती है कि वो प्रेग्‍नेंट नहीं थी ।”

“तुम्‍हें क्‍या मालूम पोस्‍टपार्टम रिर्पोट क्‍या कहती है !”

“था एक जरिया मेरा मालूम करने का ।”

“बोल तो काफी जुगाङू आदमी हो ।”

 नीलेश हंसा ।

“प्रेग्‍नेंट न सही” - मनवार बोला - “ऐसीच सीरियस कोई और लफड़ा होगा उसका । जिस लड़की का लाइफ का लाइफ स्‍टाइल रात के एक बजे तक बार में अकेले बैठने की इजाजत देता हो, उसकी लाइफ लफड़ों का कोई तोड़ा होगा ?”

“ठीक !”

“बाहर बारिश होने लगी है । कस्‍टमर साला पहले ही नहीं है, अब आयेगा भी नहीं ।”

नीलेश ने बाहर की ओर निगाह उठाई ।

ग्‍लास डोर के बाजू में ही प्‍लेट ग्लास की विशाल विंडो थी जिससे बाहर का अच्‍छा नजारा किया जा सकता था । बाहर बारिश नहीं, मूसलाधार बारिश हो रही थी 

“स्‍टॉम वार्निंग पहले से है ।” - मनावार बड़बड़ाया - “आगे किसी दिन साली ऐसीच बारिश स्‍टॉर्म बन जायेगी ।”

“वो जो सामने सड़क पार हाइट पर पेड़ों के बीच मकान हैं...”

“कॉटेज ।”

“ओके, कॉटेज । वो काफी हैं उधर ?”

“हैं कोई दर्जन भर । यहां से तो तीन ही दिखते हैं, बाकी आगे ढ़लान पर हैं ।”

“उन तक पहुंचने का रास्‍ता किधर से है ?”

“दायें बाजू सड़क पर कोई तीन सौ गज आगे जाने का । उधर ओकवुड रोड । वो उन काटेजों के बाजू से गुजरती है ।”

“थैंक्‍यू ।”

नीलेश ने अपना गिलास खाली किया, बिल चुकता किया और वहां से बाहर निकला ।

कार पर सवार होकर वो निर्देशित रास्‍ते पर बढ़ा ।

ओकवुड रोड कच्‍ची-पक्‍की, ऊबड़-खाबड़ सड़क निकली जिस पर कार चलाता वो कॉटेजों तक पहुंचा । उसने कार को एक जगह खड़ा किया और फिर पहले कॉटेज पर पहुंचा ।

बारिश बदस्‍तूर हो रही थी, सिर्फ दस गज का फासला तय करने में वो तकरीबन भीग गया था ।

कॉटेज के बाहरी जाली वाले दरवाजे पर उसे कहीं कालबैल न दिखार्इ दी । उसने दरवाजे पर दस्‍तक दी ।

कोई जवाब न मिला ।

बारिश से बचता, दीवार के साथ साथ चलता वो पिछवाड़े मे पहुंचा ।

व‍हां भी उसे सन्‍नाटा मिला 

लगता था कॉटेज आबाद नहीं था ।

वो फ्रंट में वापिस आया, उसने और अगले कॉटेज तरफ निगाह दौड़ाई जो कि वहां से कोई दो सौ गज दूर था ।

कार पर सवार होकर वो उस कॉटेज तक पहुंचा जो कि कदरन बड़ा था।

वहां घंटी बजाने की जरूरत ही न पड़ी । उसने सामने के बरामदे में बैठी एक अधेड़ महिला चाय चुसक रही थी और बारिश का आनंद ले रही थी ।

नीलेश ने कार की खिड़की का शीशा गिरा कर उसका अभिवादन किया और उच्‍च स्‍वर में बोला - “मैडम, मैं एक मिनट आपसे बात करना चाहाता हूं ।”

“क्‍या बात ?” - वो सशंक स्‍वर में बोली ।”

“बोलूंगा न !”

महिला के चेहरे पर अनिश्‍चय के भाव आये ।

“मैं आपका ज्‍यादा वक्‍त नहीं लूंगा ।” - अनुनयपूर्ण स्‍वर में बोला - “सिर्फ दो तीन मिनट ।”

“ओके ।” - वो बोली - “करो ।”

“यहीं से ?”

उसने उस बात पर विचार किया ।

“यहां आ जाओ ?” - फिर बोली ।

नीलेश कार से उतरा और लपक कर बरामदे में पहुंचा 

“मैं नीलेश गोखले ।” - वो अदब से बोला ।

“मिसेज जगतियानी ।” - वो बोली - “बैठो ।”

“थैंक्‍यू ।” - वो उसके सामने बैंत की एक कुर्सी पर बैठा ।

“मैं तुम्‍हें चाय आफर नहीं कर रही हूं” - महिला बोली - “क्‍योंकि फिर तुम अपने ‘सिर्फ दो तीन मिनट’ वाले वादे पर खरे नहीं उतर पाओगे ।”

“हा हा । मजाक किया !”

“जहमत बचाई । बोलो अब, क्‍या चाहते हो ?”

“मैडम, वो उधर सड़क पर एक बार है-सेलर्स बार-जो यहां से दिखाई देता है । सड़क के मुकाबले में आप हाइट पर हैं इसलिये उम्‍मीद है यहां के अलावा कॉटेज के फ्रंट से भी दिखाई देता होगा ।”

“तो ?”

“मेरा उसी की बाबत एक सवाल है । अगर आप लेट स्‍लीपर हैं...”

“कितना लेट ?”

“पास्‍ट मिडनाइट !”

“नो । इधर मैं, मेरा हसबैंड और एक मेड है, कोई खास वजह न हो तो ग्यारह बजे से पहले हम सब सो जाते हैं ।”

“ओह !”

“लोकिन मिसेज परांजपे बेचारी को अनिद्रा की बीमारी है, वो लेट नाइट-बल्कि लेट लेट नाइट मजबूरन जागती है । आज मार्निंग में इधर आयी थी, उस लड़की की बात करती थी जिसका रूट फिफ्टीन पर मर्डर हुआ । तभी बोली बेचारी कि रात को तो कहीं तीन बजे जा कर उसको नींद आयी ।”

“मिसेज परांजपे कौन ?”

“वो जो हमारे से अगला कॉटेज है, परांजपेज वहां रहते हैं ।”

“मर्डर की क्‍या बात थी ?”

“उस रात को कोई डेढ़ बजे के करीब उसने एक पुलि‍स जीप को सेलर्स बार पर पहुंचते देखा था । मेरे से पूछ रही थी कि क्‍या कातिल उधर से गिरफ्तार हुआ था ?”

“मिसेज परांजपे ने एक पुलिस जीप को परसों रात के डेढ़ बजे सेलर्स बार पर पहुंचये देख था !”

“यही बोला उसने मेरे को आज सुबह ।”

“इस वक्‍त वो घर पर होंगी ?”

“भई, अभी बारिश शुरू होने से पहले तो दिखाई दी थीं ।”

“थैंक्‍यू मैम ।” - नीलेश उठ खड़ा हुआ - “देखा लीजिये, मैंन तीन मिनट से ज्‍यादा नहीं लिये ।”

“काफी चालक हो !”

“जी !”

“मैंने बोला होता पुलिस जीप मैंने देखी थी तो टल के न देते ।”

नीलेश हंसा ।

अगले कॉटेज में रहती मिसेज परांजपे एक डाई किये हुए बालों वाली उम्रदराज औरत निकली । नीलेश ने उसे मिसेज जगतियानी का हवाला यूं दिया जैसे वो उसकी पुरानी वाकिफ हो । उस बात का वृद्धा पर असर हुआ, उसने उसे भीतर ड्राईंगरूम में ले जा कर बिठाया ।

“मैं आपका बहुत थोड़ा वक्‍त लूंगा ।” - नीलेश बोला 

“काहे को ।” - वो विनोदपूर्ण स्‍वर में बोला - “वक्‍त का कोई तोड़ा मेरे को ?”

“तो परसों रात इंसोम्‍निया ने आपको आधी रात से भी बहुत बाद त‍क जगाया !”

“तीन बजे तक ।” - वो पशेमान लहजे से बोली - “रोज की बात है, कभी कभी तो सवेरा हो जाता है ।”

“कोई गोली-वोली नहीं खातीं ?”

“खाती हूं । सब हज्‍म ।”

“तो परसों रात आपने सेलर्स बार पर पुलिस जीप को पहुंचते देखा था ?”

“हां । मास्‍टर बैडरूम में मेरे हसबैंड सोते हैं, अपनी अनिद्रा के दौर में मै उधर रहूं तो उनकी नींद डिस्‍टर्ब होती है इसलीये उनके सो चुकने के बाद जब मुझे नींद नहीं आ रही होती तो अमूमन मैं ड्राईंगरूम में आ जाती हूं । कल भी मैं यहीं थी और वहां खिड़की के पास बैठी एक नावल पढ़ रही थी जिसमें मेरा बिल्‍कुल मन नहीं लग रहा था इसलीये मेरी निगाह बार बार खिड़की से बाहर की ओर भटक जाती थी । परसों मेरी तवज्‍जो सेलर्स बार की तरफ इसलिये ज्‍यादा जा रही थी क्‍योंकि परसों रात वो अपने नार्मल क्‍लोजिंग टाइम के बाद भी खुला था ।”

“आई सी ।”

“आखिर बार बंद हुआ था और मैंने रामदास मनवार को - जो कि बार का मालिक है - अपनी खटारा जेन पर वहां से रवाना होते देखा था । उसको गये अभी दो-तीन मिनट ही हुए थे कि एक पुलिस जीप वहां पहुंच गयी, तब मेरे खयाल से वहां क्‍लोज्‍ड बार के सामने सायबान के नीचे कातिल-जिसका नाम अब मुझे मालूम है ‍कि हेमराज पाण्‍डेय है-मौजूद था जो उसकी बद्‍किस्‍मती कि पुलिस की निगाह में आ गया था...”

“आपके कैसे मालूम ?”

“कैसे मालूम ! भई, उसको थामने के लिये एक पुलिस वाला निकला न जीप में से !”

“आपने उसको पहचाना ?”

“वर्दी को पहचाना । क्‍योंकि जीप से निकलते वक्‍त उसने हैडलाइट्स आफ नहीं की थीं और वो उनके आगे से गुजरा था ।”

“उसने जा कर मुलजिम पाण्‍डेय को थाम लिया ।”

“हं-हां ।”

“आपने मुलजिम को भी देखा ?”

“वो कुछ क्षण खामोशी रही, फिर उसने इंकार में सिर हिलाया ।

“लेकिन पुलिस ने” - फिर बोली - “किसी को थामा तो उधर बराबर । जीप में भी बिठाया लेकिन जो हुआ हैडलाइट्स की बैक में हुआ इसलीये मुझे हिलडुल ही दिखाई दी, हलचल ही दिखाई दी, कोई सूरत न दिखाई दी ।”

“फिर आप कैसे क‍हती हैं कि गिरफ्त में आने वाला शख्‍स पाण्‍डेय था ?”

“और कौन होगा ?”

“आपकी जानकारी में नहीं आया जान पड़ता, पाण्‍डेय को पुलिस ने जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया था ।”

“फिर वो कौन था जिसको किसी बावर्दी पुलिस वाले ने सेलर्स क्‍लब पर पकड़ा था और जबरन जीप में बिठाया था ।”

“आप बताइये ।”

“मैं कैसे बताऊं ?”

“कोई ऐसी बात सोचिये, ध्‍यान में लाइये, जो उसकी आइडेंटिटी की तरफ इशारा करती हो लेकिन जिसकी तरफ पहले आपकी तवज्‍जो न गयी हो ! तवज्‍जो गयी हो तो जिसे पहले आपने अ‍हमियत न दी हो !”

वो सोचने लगी ।

नीलेश धीरज से उसके दोबारा बोलने की प्रतीक्षा करने लगा 

“मैंने एक चीख की आवाज सुनी थी ।” - एकाएक वो बोली ।

“वहीं से आती ?”

“हां ।”

“जो आपको यहां इतने फासले पर सुनाई दी ?”

“बहुत तीखी होगी न ! दूसरे, रात का सन्‍नाटा था । मद्धम सी आवाज यहां पहुंची ।”

“आई सी ।”

“उस वक्‍त मेरे को लगा था कि मैंने जनाना चीख की आवाज सुनी थी । लेकिन सुबह जब मुझे गिरफ्तारी की खबर लगी तो मुझे ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि रात को मुझे मुगालता लगा था । जरूर मैंने मर्दाना चीख की आवाज सुनी थी ।”

“मैडम, मैंने पहले ही अर्ज किया कि कातिल यहां सामने सेलर्स बार पर से नहीं, यहां से बहुत दूर जमशेद जी पार्क से गिरफ्तार किया गया था ।”

“तब मुझे नहीं मालूम था । अभी भी नहीं मालूम था ।”

“अब जब मालूम है तो क्‍या कहती हैं ?”

“मर्दाना चीख थी । फासले से आयी, धीमी सुनाई दी इसलीये लगा कि जनाना थी ।”

“चीख मर्दाना थी लेकिन कोई मर्द न देखा !”

“न । बोला न, उसने हैडलाइट्स की रोशनी को क्रॉस नहीं किया था, जैसे कि पुलिस वाले ने किया था । लेकिन अंधरे के बावजूद इतना मैंने फिर भी देखा था कि पुलिस वाला किसी को जबरन जीप में सवार करा रहा था ।”

“किसी मर्द को ! जिसे तब आपने कातिल समझा !”

“हां ।”

“किसी औरत को नहीं ?”

“औरत ! औरत का रात की उस घड़ी-जबकि बार भी बंद हो चुका था-क्‍या काम !”

“तफ्तीश से ये स्‍थापित हुआ है कि मकतूला बार बंद हो चुकने के बाद भी उधर किसी का इंतजार करती थी ।”

“मकतूला बोले तो ?”

“जिसका कत्ल हुआ । रोमिला सावंत ।”

“कत्ल तो रूट फिफ्टीन पर हुआ ।”

“जहां हुआ, वो जगह सेलर्स बार से सिर्फ आधा किलोमीटर दूर है ।”

“लेकिन ये कैसे हो सकता है कि पुलिस ने बार के सामने से वो जो मतकूला करके तुम कुछ बोला...”

“मकतूला !”

“वही । कैसे हो सकता है रात पुलिस ने बार के सामने से मतकूला...मकतूला को पिक किया ? वो लड़की अगर पुलिस कस्‍टडी में थी तो उसका मर्डर कैसे हो गया ? वो पाण्‍डेय करके भीङू कैसे उसको खल्‍लास किया ?”

“सोचने की बात है ।”

“सोचो ।”

 ‘’आपको ये पक्‍का है जो वाहन आपने रात को बार के सामने आ कार रूकते देखा था, वो पुलिस जीप थी ?”

“हां, भई । पुलिस जीप मील से पहचानी जाती है । ये...बड़ा उस पर ‘पुलिस’ लिखा था । ऊपर लाल बत्ती थी ...”

“जल रही थी ?”

“नहीं ।”

“फिर भी आपको दिखाई दी ?”

“हां । वो बत्ती फ्रंट में होती है न ! इस वास्‍ते हैडलाइट्स की रिफ्लेक्‍शन में दिखाई दी ।”

“हैडलाइट्स में आपने पुलिस की खाकी वर्दी देखी, पहनने वाले की सूरत न देखी !”

“न । सूरत न देखी ।”

“रैंक पहचाना ?”

“रैंक बोले तो ?”

“बाजू पर एक, दो या तीन फीती थीं ? कंधों पर एक, दो या तीन स्‍टार थे ?”

“अच्‍छा वो ! नहीं, ये सब मेरे को नहीं दिखाई दिया था ।”

“अपने बंदी को जीप में जबरन बिठाने के बाद पुलिस वाले ने क्या किया था ?”

“कार को स्‍टार्ट किया था, उसको यु टर्न दिया था और जिधर से आया था, उधर वापिस लौट चला था ।”

“वापिस किधर ? रूट फिफ्टीन पर या न्यू लिंक रोड पर ?”

“ये मेरे को इधर से कैसे दिखाई देता !”

“ठीक ! कत्‍ल के बारे में आपका क्‍या खयाल है ?”

“ऐसे लाइफ जाना गलत है । पण ये बा‍हर से आने वाला छोकरी लोग भी तो…अभी क्‍या बोलूं मैं ! ...दे इनवाइट ट्रबल । ड्रिंक करती हैं, स्‍मोक करती हैं, सैक्‍सी ड्रेसिज पहनती हैं, कुछ वैसे ही दिखता है तो कुछ इरादतन दिखाती हैं । लेट नाइट में अकेली घूमती हैं । मेल लिबिडो को उकसाती, इनवाइट करती जान पड़ती हैं । दे आर रेडी केस फार रेप, फार मर्डर ।”

“रोमिला सावंत ऐसी लड़की थी ?”

“ये मरने वाली का नाम है ?”

“जी हां ।”

“बराबर ऐसी लड़की थी । तभी तो जान से गयी !”

“पर उसके कत्‍ल की वजह तो लूट बताई जाती है । कातिल की नजर उसकी फिजीकल असैट्स पर नहीं, उसकी मानीटेरी असैट्स पर थी ।”

“क्‍योंकि बेवड़ा था । सुना है फुल टुन्‍न था । जरा होश में होता तो पहले फिजीकल असैट्स पर घात लगता, बोले तो रेप करता, और फिर लूटता ।”

“मैडम, आपने बहुत सहयोग दिया लेकिन ये बात फिर भी क्‍ल‍ियर न हो सकी कि पुलिस वाले ने कल रात बार के सामने से जिसको जबरन जीप पर बिठाया था, वो कातिल था या मकतूला थी या कोई तीसरा ही शख्‍स था ।”

“जाकर थाने से पता करो ।”

“कैसे पता करूं ? थाने में दर्जनों की तादाद में पुलिस वाले हैं । एक एक से इस बारे में सवाल करना क्‍या मुमकिन होगा ? फिर सवाल करने पर क्‍या कोई जवाब देगा ? आप रैंक की शिनाख्‍त कर पायी होतीं तो बात जुदा थी ।”

“मेरे को खाली खाकी वर्दी दिखाई दी थी ।”

“बोला आपने । एक आखिरी सवाल । अपकी दूर की निगाह कैसी है ?”

“पर्फेक्‍ट है । सिक्‍स बाई सिक्‍स है ।”

“इस उम्र में...”

“क्‍या हुआ है मेरी उम्र को !”

“कुछ नहीं ।” - वो उठ खड़ा हुआ - “मैम, आई एम ग्रेटफुल फार दि कोआपरेशन । इजाजत चाहता हूं ।”

उसने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।

नीलेश वहां से रुखसत हुआ 

मिसेज परांजपे के बयान से उसे कोई नाउम्‍मीदी नहीं हुई थी । उसे गारंटी थी जो पुलिस वाला पुलिस जीप पर रात के डेढ़ बजे बंद हो चुके सेलर्स बार पहुंचा था, वो इंस्‍पेक्‍टर अनिल महाबोले था और जिसे उसने जबरन जीप पर सवार कराया था, वो रोमिला सावंत थी 

***

बारिश को शुरु हुए चौबीस घंटे हो गये थे और वो अभी बंद होने को नाम नहीं ले रही थी 

फ्रांसिस मैग्‍नारो की शानदार स्‍पीड बोट कोनाकोना आइलैंड की ओर बढ़ रही थी ।

स्‍पीड बोट में तीन पैसेंजर सवार थे । रोनी डिसूजा व्‍हील सम्‍भाले था और उसके पीछे फ्रांसिस मैग्‍नारो और अनिल महाबोले मौजूद थे ।

“बारिश बहुत तेज है ।” - डिसूजा उच्‍च स्‍वर में बोला ताकि बारिश के शोर में उसकी आवाज दब न जाती - “हम आइलैंड के करीब हैं पण मेरे को अपना पायर दिखाई नहीं दे रहा ।”

“दीदे फाड़ के देखने का ।” - मैग्‍नारो झुंझलाये स्‍वर में बोला - “जब आइलैंड दिखाई दे रहा है तो साला पायर क्‍यों नहीं दिखाई दे रहा ?”

डिसूजा ने गर्दन आगे निकाल के सच में ही आंखें फाड़ फाड़ के सामने देखा 

“इस बार पायर उसे दिखाई दिया ।”

“अभी बोले तो ?” - मैग्‍नारो बोला ।

“दिखाई दिया बरोबर, बॉस ।” - डिसूजा बोला - “नो प्राब्‍लम नाओ ।”

“गुड ! महाबोले !”

“यस, बॉस !”

“स्टार्म की...क्‍या नाम बोला था आफिशियल करके ?”

“हरीकेन ल्‍यूसिया ।”

“उसकी क्‍या पोजीशन है ? उस बाबत वार्निंग की क्‍या पोजीशन है ?”

“बॉस, हालात खराब जान पड़ते हैं । लोगों को आइलैंड से टैम्‍परेरी करके निकल लेने की सलाह दी जा रही है । वार्निंग है कि बारिश अभी ऐसीच चलेगी ।”

“तूफान तो साला आते आते आयेगा, बारिश ऐसीच चली तो ये तो अभी बर्बाद कर देगी ।

“कुछ नहीं होगा, बॉस । थोड़े टाइम की परेशानी है ।”

“लगनी हो तो थोड़ा टेम में भी वाट लग जाती है ।”

“आपके पास तो सेफ जगह है इसलिये...”

“बोले तो ?”

‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ का टॉप फ्लोर बिल्‍कुल सेफ है । हर लिहाज से । हर काम के लिये ।”

तब तक मोटर बोट पायर पर जा लगी थी । सेफ मूरिंग के लिये उसे डिसूजा के हवाले छोड़कर दोनों पायर पर उतर गये और लपकते हुए उसके ढंके हुए हिस्‍से में पहुंचे । वहां मैग्‍नारो ने जेब से चांदी की फ्लास्‍क निकाल कर उसमें से स्‍काच का नीट घूंट भरा और एक सिगार सुलगाया 

महाबोले को बहुत मायूसी हुई कि दोनों में कोई भी चीज मैग्‍नारो ने उसके आफर करने की कोशिश न की 

“मेरा कुछ आइटम्‍स ऐसा है जिसका वास्‍ते ‘इम्‍पीरियल रिट्रीट’ भी सेफ नहीं । मेरे को वो ऑफ दि आइलैंड मांगता है । महाबोले, तुम्‍हारे को ये काम हैंडल करने का ।”

“जी !”

“उन आइट्म्‍स को बोट में लोड करवाने का और मुरुड में किसी सेफ ठीये पर पहुंचा के आने का ।”

“मेरे को ?”

“अभी मैं किससे बात करता है ?”

“बॉस, स्‍टार्म वार्निंग की वज‍ह से मेरे को थाने में बहुत काम...”

“करना । करना । मेरा काम हो जाये, करना ।”

वो खामोश रहा ।

“यस, बॉस ।”

“तुम्‍हेरे को गोखले करके भीङू को मेरे पास ले के आने का था !”

“बॉस, मिले तो इस बाबत कुछ करूं न ! अक्खा नाइट ये सोचा के उसके रेन्टिड कॉटेज पर विजिल बिठा के रखा कि आइलैंड पर कहीं भी हो, रात को सोने तो उधर ही आयेगा ! नहीं आया ।”

“किसी होटल में...”

“आइलैंड के एक एक होटल में पता करवाया, कहीं नहीं था ।”

“किधर गया ?”

“क्‍या पता किधर गया ! मिले तो साले को नक्‍की करें । फिर बोल देंगे कि फ्लड मे फंस के मर गया ।

“साला मेरे सामने आने से पहले ही ?”

“उसके बाद । आप इजाजत देंगे तो उसके इमीजियेट बाद ।”

“हूं ।”

“आजकल जो हाल इधर है, उसमें किसी के डूब मरने के, समुद्र में बह जाने के चांसिज बहुत है । जब कभी भी इधर तूफान वाले हालात बनते है, सात-आठ लोकल भीङू लापता हो जाते हैं । सब समझते हैं कि तूफान में फंस गये, डूब मरे, बह गये । ऐसा ही हाल गोखले का हो जाना क्‍या बड़ी बात होगी ! हादसा किसी के साथ भी हो सकता है ।”

“हूं ।”

“पर वो पहले मिले तो सही !”

“ये गारंटी कि है वो आइलैंड पर ही ?”

“हां । मेन पायर पर मैंने वाच का इंमजाम किया हुआ है ।

“आइलैंड से निकलने के लिये उधर पहुंचना जरूरी है । अभी तक नहीं पहुंचा ।”

“वांदा नहीं । मैं वेट करता है । अभी मेरे काम का बोलो ।”

“मैं हवलदार जगन खत्री को लगाता हूं ।”

“पण...”

“बॉस, वो पर्फेक्‍ट काम करेगा । मैं उसकी जिम्‍मेदारी लेता हूं । कोई फच्‍चर पड़े तो मेरे को पनिश करना । भले ही गोली मार देना ।”

“हूं । ओके ।”

महाबोले ने चैन की सांस ली ।गार्ड्

***

उस घड़ी नीलेश कोस्‍ट गार्ड्‌स की छावनी में डिप्‍टी कमांडेंट की स्‍पैशल टेलीफोन लाइन पर मुम्‍बई, डीसीपी नितिन पाटिल से बात कर रहा था ।

जायंट कमिश्‍नर मोरावाला और डीसीपी पाटिल पिछले राजे ही मुम्‍बई लौट गये हुए थे ।

लाइन पर डिस्‍टर्बेंस थी इसलिये नीलेश को ऊंचा बोलना पड़ रहा था, दोहरा कर बोलना पड़ रहा था ।

“सर” - वो कह रहा था - “यही टाइम है स्‍ट्राइक का । अब जरा भी देरी ठीक न होगी ।”

“अभी मुमकिन नहीं । ऐसे आपरेशंस को सैट करने में टाइम लगता है ।”

“सर आवाज नहीं आ रही ।”

“वेट करना पडे़गा ।”

“वेट से काम खराब हो सकता है, सर । आइलैंड का माहौल खराब है । स्‍टॉर्म वार्निंग की वजह से इधर भगदड़ मची है । यहां की त्रिमूर्ति भी किसी भी घड़ी इधर से पलायन कर सकती है ।”

“महाबोले ऐसा नहीं कर सकता । वो सरकारी आदमी है । सरकारी हुक्‍म के बिना उधर से नहीं हिल सकता, चाहे कुछ हो जाये ।”

“ले‍किन, सर...”

“तुम समझते नहीं हो । ऐसी बातों में टाइम लगता है । तैयारी में भी और स्‍ट्राइक की बाकायदा परमिशन हासिल करने में भी । ये काम मेरे खुद के करने का होता तो मैं उधर से जाता ही नहीं ।”

“मैं समझता हूं, सर, लेकिन...”

“मैं वार फुटिंग पर तैयारी कराता हूं । तुम बस दो घंटे इंतजार करो ।”

“उतने में वो कहीं के कहीं होंगे ।”

लाइन पर खामोशी छा गयी 

“तुम उन पर वाच रखो ।” - ‍आखिर डीसीपी बोला - “अगर वो पलायन करेंगे तो इकट्‌ठे करेंगे । मैं डिप्‍टी कमांडेंट अधिकारी को इधर से स्‍पैशल ऑर्डर जारी करवाने का इंतजाम करता हूं कि इमरजेंसी में कोस्‍ट गार्ड्‌स पुलिस का काम करें, तुम्‍हारी मदद करें ।”

“अच्‍छा !”

“यूं तुम्‍हारे हाथ मजबूत होंगे और सूझबूझ से काम लोगे तो तुम्‍हीं वो सब कर गुजरोगे जो हमने वहां आकर करना है । ऐसा कर सके तो तुम्‍हारे और सिर्फ तुम्‍हारे सिर कामयाबी का सेहरा होगा ।”

“मैं अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोङूंगा, कोई कोशिश उठा नहीं रखूंगा ।”

“यस, दैट्स दि स्पिरिट ।”

“सर, मौसम खराब है, और खराब होता जा रहा है, आप लोग इधर पहुंच सकेंगे ?”

“पहुंचना ही होगा, चाहे तबाही आ जाये ।”

“थैंक्‍यू, सर ।”

डीसीपी नितिन पाटिल जायंट कमिश्‍नर बोमन मोरावाला के कमरे में पहुंचा ।

“सर, क्‍या हो रहा है ?” - उसने चिंतित भाव से पूछा ।

“स्‍ट्राइक की रिटन परमिशन आ गयी है ।” - मोरावाला बोला - “जवान तैयार हैं ।”

“गुड ! फिर देर किस बात की है ?”

“मूवमेंट में फच्‍चर है ।”

“जी !”

“उधर मौसम इतना खराब हो गया है कि हैलीकाप्‍टर से नहीं पहुंचा जा सकता । स्‍ट्राइक के तमाम साजोसामान के साथ और जवानों के साथ वहां के मौजूदा मौसम में, जो कि अभी और बिगड़ रहा है, पांच हैलीकाप्‍टर उधर लैंड नहीं कर सकते । कोशिश के डिजास्‍ट्रस रिजल्‍ट्स हो सकते हैं ।”

“फिर ?”

“कमिश्‍नर साहब नेवी की मदद हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं । नेवी की कोई स्‍ट्रांग, वैदरप्रूफ वैसल हमें उधर पहुंचा सकती है ।”

“सर, वो मदद तो हासिल होते होते होगी, तब तक क्‍या होगा ?”

“इंतजार के सिवाय कोई चारा नहीं पाटिल, वुई ऑर टु वेट ।”

“सर, एक घंटा पहले डिप्‍टी कमांडेंट हेमंत अधिकारी को आर्डर इशु कराये जाने की बात हुई थी !”

“उसमें तो और भी बड़ा फच्‍चर पड़ा है ।”

“क्‍या ?”

“हेमंत अधिकारी को हुक्‍म हुआ है कि वो फौरन चौकी खाली कर दे । अपने तमाम के तमाम आदमियों के साथ एक मिनट भी जाया किये बिना आइलैंड से सेफर प्‍लेस के लिये कूच कर जाये ।”

“ओह, नो ।”

“दिस इज राइट फ्रॉम हार्सिज माउथ । कोस्ट गार्ड्‌स का टॉप बॉस खुद मेरे को इस आर्डर की बाबत बोला ।”

“सर, वुई आर लैटिंग डाउन अवर मैन देयर ।”

“वाट्स दैट ?”

“गोखले वहां अकेला है । बेमददगार है । मैंने उसे इस उम्‍मीद पर अपने बलबूते पर एक्‍ट करने को बोला था कि तब तक उसे कोस्‍ट गार्ड्‌स की आफिशियल मदद हासिल हो जायेगी । उसे नहीं मालूम फिलहाल ऐसी कोई मदद उसे हासिल नहीं होने वाली । मैंने उसे भरोसा दिलाया था हम दो घंटे में वहां होंगे, अब लगता है कि वो भी नहीं हो पायेगा ।”

“मजबूरी है ।”

“हमारी मजबूरी है और गोखले की जान सूली पर है । वो बेमौत मारा जायेगा ।”

“उसको खबरदार करो । बोलो फिलहाल कोई कदम न उठाये । आस्‍क हिम टु होल्‍ड ऐवरीथिंग ।”

“अब ये भी मुमकिन नहीं । खराब मौसम की वजह से उधर से हमारा हर कांटैक्‍ट टूट गया है ।”

“हमने उस आदमी को मौत के मुंह में धकेला ।”

“नाहक जज्‍बाती हो रहे हो, पाटिल । ये असाइनमेंट कुबूल करने से पहले वो उसके हर अंजाम से वाकिफ था । उसको साफ बोला गया था, बाकायदा खबरदार किया गया था कि वो शेर की मांद में कदम रखने जा रहा था, जिंदा लौटने की कोई गारंटी नहीं थी । हमने कोई जोर नहीं दिया था, कोई दबाव नहीं डाला था, उसके सामने खुली आप्‍शन थी असाइनमेंट को नाकबूल करने की । उसने अपने कंधों पर सलीब उठाया है तो वो ही तो ढ़ोयेगा !”

“अभी तो उसके साथ धोखा हुआ ! हमने उसे आश्‍वासन दिया कि उसे कोस्‍ट गार्ड्‌स की मदद मुहैया होगी...”

“क्या फर्जी आश्‍वासन दिया ? कया ऐसा करते वक्‍त तुम्‍हारी जुबान पर कुछ और था, मन में कुछ और था ?”

मशीनी अंदाज से डीसीपी का सिर इंकार में हिला ।

“ऐसा करते वक्‍त तुम्‍हें इल्‍म था कि कोस्‍ट गार्ड्‌स को फौरन चौकी खाली कर देने का आर्डर हो जायेगा ?”

“नहीं । कैसे हो सकता था ?”

“क्‍या हमारे पास उस आर्डर को रिवर्स करने की अथारिटी है ?”

“नहीं ।”

“तो फिर ?”

“सर, आई स्टिल फील गिल्‍टी । अवर ऑपरेशन इज डूम्‍ड । अवर मैन इज डूम्‍ड ।”

“आल पार्ट आफ गेम, पाटिल, आल पार्ट आफ प्रोविडेंस ।”  

“कैसी मजबूरी है !” - डीसीपी आह भर कर बोला - “हम उसकी कोई मदद नहीं कर सकते।”

“गॉड विल हैल्‍प हिम ।”