मुम्बई में बंसीलाल उस वक्त अपने बार एण्ड रेस्टोरेंट में मौजूद था। शाम के आठ बज रहे थे। वहां बढ़ रही भीड़ को देखकर बंसीलाल के चेहरे पर तसल्ली के भाव उभरे हुए थे। उसका बार एण्ड रैस्टोरेंट के ऊंची सोसाईटी में प्रिय था और वो यहां कभी भी ऐसा कोई शोर-शराबा नहीं होने देता था कि जिससे लोग आने में परहेज करें।


तभी बार एण्ड रेस्टोरेंट के मैनेजर ने पास आकर कहा । “बंसी भाई! गोवा से राधेश्याम का फोन है। वो लाईन पर है।"


“कौन से फोन पर लाईन हैं?" बंसीलाल ने उसे देखा। 


"आपके ऑफिस में।" बंसीलाल फौरन अपने ऑफिस में पहुंचा और कुर्सी पर बैठते रिसीवर उठाया। 


“राधेश्याम-।”


"बंसी भाई!" राधेश्याम का स्वर कानों में पड़ा-“वो लड़का और लड़की, जो हिप्पी बनकर होटल में जा ठहरे थे। उन्हें दिन में ड्रग्स के मामले में पुलिस गिरफ्तार करके थाने में ले गई।"


“तो?" बंसीलाल के माथे पर बल पड़े। 


“वो दोनों पुलिस स्टेशन के लॉकअप में बंद है।" 


"डेविड क्या कर रहा है।" बंसीलाल उखड़े स्वर में कह उठा। 


“वो और उसके आदमी मेरे साथ ही हैं। वो - " 


“अकल से काम लो राधेश्याम । डेविड से कहो कि उन्हें पुलिस स्टेशन से निकलवाकर - ।”


“डेविड ने कोशिश की। इन्स्पैक्टर को पैसे का लालच दिया। लेकिन वो उन दोनों को नहीं छोड़ रहा।"


बंसीलाल के होंठ सिकुड़ गये ।


“राधेश्याम:” बंसीलाल एक-एक शब्द चबाकर कह उठा- "पैसे लेकर पुलिस वाला उन दोनों को लॉकअप से बाहर निकालने को तैयार नहीं तो समझो उन दोनों ने ज्यादा पैसा उस पुलिस वाले को दिया है । " 


“क्या मतलब ?”


“मतलब कि वो दोनों जान चुके हैं कि तुम लोग उनके पीछे हो । उन्हें पकड़ना चाहते हो। ऐसे में उन्होंने खुद को बचाने का इन्तजाम उन्होंने कर लिया, पुलिस को बुलाकर। पुलिस को खिलाकर- ।”


“परवाह नहीं बंसी भाई। ऐसा है तो भी वो दोनों नहीं बचेंगे। कब तक थाने में रहेंगे। कभी तो बाहर निकलेंगे। या फिर सुबह इन्स्पैक्टर उन दोनों को कोर्ट में पेश करने ले जायेगा तो रास्ते में।”


“मेरे ख्याल में वो दोनों तुम लोगों के हाथ नहीं आयेंगे । ” बंसीलाल ने कहा- “पुलिस वाला उनकी सहायता कर रहा है। तुम लोगों से वो उसे बचा रहा है तो वो बचा ले जायेगा। " 


“ऐसा नहीं होगा बंसी भाई हम - ।”


“मेरे ख्याल में तो ऐसा ही होना चाहिये।" बंसीलाल ने सोच भरे स्वर में कहा - "तुमने दिन में बताया था कि होटल सी-व्यू की पार्किंग से वो युवक कार में बैठकर रवाना हुआ था, जो उस कमरे से निकलकर होटल के पीछे वाले रास्ते से निकला । "


“यही कहा था ।”


“वो थापर भी कुछ देर बाद होटल की पार्किंग में चला था।"


“हां।"


“उनकी कारों के रंग याद हैं " 


"बिल्कुल याद हैं । थापर वाली कार का रंग तो क्या नम्बर भी याद है ।"


"बताओ।"


"युवक वाली कार का रंग ब्राऊन है। वो इंडिका कार है और थापर की विदेशी रंग की सफेद लम्बी कार है। " 


"उस युवक का हुलिया बताओ।"


राधेश्याम ने देवराज चौहान का हुलिया बता दिया। " 


सुरेन्द्र पाल के नाम से कमरा बुक था। मालूम किया सुरेन्द्र पाल कौन है। ये युवक था वो जो, लड़की के साथ लॉकअप में है। "


“वक्त ही कहां मिला ये सब जानने का। डेविड के साथ काम पर लग गया था।” राधेश्याम की आवाज कानों में पड़ी - "वैसे कमरा मिसेज एण्ड मिस्टर सुरेन्द्र पाल के नाम से बुक था । लॉकअप वाला ही सुरेन्द्र पाल हो । लेकिन आप ये सब क्यों पूछ रहे हैं बंसी भाई । कोई खास बात ?”


"तुम - डेविड के साथ उन दोनों पर ध्यान रखो।" बंसीलाल ने गम्भीर स्वर में कहा- “थापर और उस युवक को मैं देखता हूं। शायद वो गोवा से मुम्बई ही आ रहे हो। ऐसा हुआ तो उनके मुम्बई पहुंचने में अभी दो-चार घंटे बाकी हैं । ”


“थापर का वापस आना मेरी नजरों में जरूरी है। उसकी मौजूदगी में होटल के कमरे में दो हत्याएं हुईं। ऐसे में वो गोवा में ठहरना पसन्द नहीं करेगा। शायद दूसरा भी मुम्बई ही आ रहा है। थापर अवश्य खास काम के लिये ही गोवा गया है। वरना चोरी-छिपे वो रात को गोवा की तरफ रवाना नहीं होता वो भी सिर्फ एक ड्राईवर के साथ।" राधेश्याम की तरफ से आवाज नहीं आई।


“तुम, डेविड के साथ उन दोनों पर ध्यान दो।" "डेविड से बात कर लो बंसी भाई। वो पास में है। " “उसे कहो, पहले ठीक से मेरा काम करे। तब बात करूंगा।" कहने के साथ ही बंसीलाल ने रिसीवर रख दिया।


बंसीलाल ने सामने बैठे दोनों व्यक्तियों को देखा। एक की उम्र पैंतीस थी। दूसरे की पंचास। दोनों ही क्रूरता के दूसरे चेहरे लग रहे थे। वो कमीज-पैंट में थे। भीतर आते ही दोनों कुर्सियों पर बैठ गये थे। बंसीलाल इन दोनों को अपने बेहतर निशानेबाज मानता था। दोनों जिस काम के लिये निकलते थे, पूरा करके ही आते थे। पैंतीस उम्र वाले को दोसा कहते थे और पचास वाले को बाटला ।


बंसीलाल ने उन दोनों पर निगाह मार कर सिग्रेट सुलगाई। 


"हमें बुलाया है तो किसी खास बंदे को ही साफ कराना होगा ।" 


दोसा मुस्कराया उसके आगे के दो दांत नजर आने लगे। जिससे वो और भी खतरनाक लगने लगा था।


“बोलो बंसी भाई !” बाटला कह उठा- “किसका नम्बर लगाना है।"


“गोवा से दोहपर की चली दो कारें, अगले दो-तीन घंटों में मुम्बई में प्रवेश कर सकती है। यकीन तो नहीं लेकिन इस बात की आशा है कि ऐसा हो। मैं तुम्हें उन दोनों व्यक्तियों के हुलिये और कारों के रंग बता देता हूं। गोवा से आकर मुम्बई में प्रवेश करने वाले रास्तों पर अपने आदमी लगवा दो। खुद भी वहीं रहो। इन दोनों को पकड़ना है। अगर ज्यादा मुसीबत बन जाये तो बेशक खत्म कर देना।"


“इनको आप जिन्दा चाहते हैं।” दोसा फिर उसी अंदाज में मुस्करा पड़ा।”


“यही तो बोला है बसी भाई ने।” बाटला ने अपने बाल खुजलाये ।


“ठीक है। ये दोनों जिन्दा ही मिलेंगे बंसी भाई को। हमारे लिये भला कौन मुसीबत बनेगा।"


“जब काम हो जाये तो मेरे को मोबाईल पर खबर कर देना।" बंसीलाल ने गम्भीर स्वर में कहा ।


“मुर्गों को ले जाना कहां है?”


“यहीं ले आना। बैसमैंट में उन्हें रख लेंगे। रात मैं यहीं पर हूं- " 


“चल बाटला ।” दोसा खड़े होते हुए कह उठा- “आदमी इकट्ठे करके काम पे लगते हैं।” 


बाटला खड़ा हो गया।


उन दोनो के बाहर निकलने के बाद बंसीलाल ने सिग्रेट ऐशट्रे में डाली और कुर्सी की पुश्त से सिर लगा लिया। उसकी खुली आंखों में सोच के भाव थे ।

“साहब!” एकाएक ड्राईवर कह उठा- “दो कारें हमारे पीछे लग गई हैं।”

थापर ने फौरन पलट कर पीछे देखा । तीव्र हैडलाईट की रोशनी से पल भर के लिये उसकी आंखें चौंधियां गईं।

“कब से ये पीछे हैं?” थापर होंठ भींच कह उठा।

" दो-तीन मिनट पहले मुझे लगा था कि ये कारें हमारे पीछे है। तब हमने मुम्बई में प्रवेश किया था।" ड्राईवर बोला- "जब विश्वास हो गया तो मैंने ये बात आपसे कही।”

थापर समझ चुका था कि ये हर हाल में बंसीलाल के आदमी ही होंगे।

“पीछे लगी कारों से पीछा छुड़ाओं ।”

"जी-।"

तभी सामने से आती कार की तीव्र हैडलाईट चमकी। वो कार ठीक सड़क के बीच थी। ड्राईवर ने सामने आती कार की साईड से बच कर निकलने की कोशिश की तो वो कार भी उस तरफ आ गई। ड्राईवर ने फौरन ब्रेक लगा दिये । पहिये चीखे। तीव्र झटके के साथ कार रुक गई।

थापर के शरीर को तीव्र झटका लगा। कार रुकने पर वो संभला। उसने सब कुछ देख लिया था और समझ चुका था कि बहुत सोच समझकर उसे घेरा गया है।

“साहब जी!” ड्राईवरों ने घबरा कर कहा-“ये लोग-।”

“चुप रहो।” मैं देख रहा हूं।

पीछे वाली कारें भी, पीछे आ रुकी थीं।

तीनों कारों से ग्यारह आदमी उतरे और फुर्ती के साथ कार को घेर लिया, सात-आठ के हाथों में रिवाल्वरें दवी थीं। उनमें दोसा भी था। दोसा आगे बढ़ा और थापर की कार का, पीछे वाला दरवाजा खोला और थापर की कमीज का कॉलर पकड़कर बाहर खींच लिया। 

वहां के हालातों को देखकर थापर समझ चुका था कि वो बचाव में कुछ नहीं कर सकता। 

"गोवा की हवा ख़ाकर आ रहा है।" वह कह कर दोसा मुस्कराया तो हैडलाईट की रोशनी में उसके आगे के टूटे दांत चमक उठे।

थापर होंठ भींचे, उसे देखता रहा। आते-जाते वाहनों के लिये सड़क पर जगह थी। इधर हो रहे मामले को, कारों से निकलने वाले लोग भांप रहे थे, परन्तु वो रुक कर मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते थे ।

“क्यों वे - ।" दोसा ने कार में बैठे ड्राईवर से सख्त स्वर में
कहा- “ गोवा कैसा लगा?”

“ब-बहुत अच्छा - ।" ड्राईवर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। 

“तेरा मालिक कौन है । थापर या सुरेन्द्र पाल?" 

ड्राईवर कुछ समझा नहीं, परन्तु उसके होंठों से निकला । “थापर साहब मेरे मालिक हैं।"

"तेरे से ये जवाब पूछता तो, जवाब मिलने में वक्त लग सकता था। इधर वक्त फालतू का नहीं है। मेरे को मालूम करना था कि मैंने गलत बंदे को तो नेई पकड़ा।" 

फिर दोसा अपने आदमियों से बोला- "इसके हाथ-पांव बांधकर, कार के पीछे वाली सीट पर डाल दो। सिर्फ एक कार चलाने के लिये यहां रहो। बाकी अपने रास्ते पर जाओ और खा-पीकर मोज करो।"

चार ने झपट कर थापर को पकड़ा और खींचते हुए पीछे वाली कार की तरफ ले गये।

***
साढ़े दस बजे थे जब देवराज चौहान ने कार को मुम्बई स्थित अपने बंगले के पोर्च में ले जा रोका। दिन भर के सफर से वो थकान महसूस कर रहा था। लॉक खोलकर बंगले में प्रवेश किया और लाईटें ऑन करने के पश्चात्, सीधा बाथरूम में जा पहुंचा।

पन्द्रह मिनट बाद ही नहा धोकर दूसरे कपड़े पहन चुका था । उसके बाद किचन में पहुंचकर चाय बनाई और घूंट भरता हुआ ड्राईंग हाल में आ गया। उसकी सोचों में बासा बंसीलाल था । जो थापर के पीछे पड़ा था। जिसने मासूम लकड़ी का अपहरण किया। उससे बलात्कार करता रहा। फिर उसकी हत्या कर दी। देवराज चौहान की निगाहों में ऐसी हरकत करने वाले को जिन्दा रहना गलत था।

देवराज चौहान को इस वक्त सबसे जरूरी काम बंसीलाल को खत्म करना लग रहा था। चाय समाप्ति के बाद वो फौरन बंसीलाल के लिये निकल जाना चाहता था।

"देवा - "

इस शब्द के साथ ही देवराज चौहान चौंका। हाथ में पकड़ चाय का प्याला छलका । उसे टेन पर रखकर, देवराज चौहान तुरन्त खड़ा हो गया। निगाह हर तरफ घूमी। लेकिन कोई नजर नहीं आया "मुझे ढूंढ रहा है देवा -।" आवाज पुनः कानों में पड़ी ।

“फकीर बाबा!” देवराज चौहान के होंठों से निकला- “पे - पेशीराम - "

“हां देवा ।” वो ही शांत स्वर पुनः कानों में पड़ा-- “पेशीराम हूं मैं। जानता था तू-पहचान लेगा।"

"सामने आओ पेशीराम। तुम दिखाई नहीं दे रहे ।" 

देवराज चौहान अभी तक खुद पर काबू नहीं पा सका था। वो इस वक्त अपनी ही उलझनों में था। फकीर बाबा तो उसकी सोचों से, जेहन से कोसों दूर था।

"अभी मैं अपने शरीर के साथ तुम्हारे सामने नहीं आ सकता।" फकीर बाबा की आवाज सुनाई दी- “मैं इस वक्त तपस्या में हूं। चंद दिनों में मेरी तपस्या पूर्ण हो जायेगी। अगर मजबूरी न होती तो मैं अपनी तपस्या के कुछ हिस्से में विघ्न डालकर, आत्मा के रूप में तुम्हारे सामने न आता।”

देवराज चौहान अब संभलने लगा था।

“ऐसी क्या मजबूरी आ गई पेशीराम ?” देवराज चौहान बोला। 

“तीन जन्मों से मैं भटक रहा हूं। मुझ पर दया करो देवा ।"

गुरुवर के श्राप से मुझे मुक्ति दिलाओ।"

देवराज चौहान कुछ नहीं कह सका।

“मिन्नो से दोस्ती कर लो। तुम दोनों की दोस्ती से, मैं गुरुवर के श्राप से मुक्त हो जाऊंगा।” 

आने वाले स्वर में दर्द के भाव आ गये थे- "कभी तीन जन्म पहले मैंने ही तुम दोनों में दुश्मनी की बुनियाद डाली थी और-।"

“पेशीराम!” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा- “मोना चौधरी से मैं दोस्ती कर सकता हूं। तुम्हारी तकलीफ का एहसास है मुझे। लेकिन हालात कभी ऐसे नहीं हुए कि मैं तुम्हारी बात पूरी कर सकूं।"

"हालातों पर तो तुम काबू पा लेते हो देवा । सहन शक्ति है तुममें। मेरी खातिर मिन्नो से दोस्ती करके मुझे गुरुवर के श्राप से मुक्ति दिला दो ! मैंने हमेशा तुम्हारा भला चाहा है। तुम भी मेरा भला करो।"

"मैं कोशिश करूंगा पेशीराम।"

“कोशिश नहीं। वायदा करो।"

“मैंने तुम्हारी हमेशा इज्जत की है। अब भी करता हूं।” देवराज चौहान गम्भीर था- "लेकिन ऐसा वायदा मुझसे मत लो, जिसका अंत मुझे खुद भी पता नहीं हो। अंधेरे में बैठकर मैं वायदा नहीं करता। इधर मैं तुमसे वायदा करूं और उधर मोना चौधरी मेरी गर्दन काटने पर आ जाये। ये गलत बात होगी। तुम्हें याद होगा पेशीराम कि आखिरी मुलाकात में मोना चौधरी ने क्या कहा था ?” 

“यही कि एक बार वो तुम्हें हरायेगी। उसके बाद ही वो दोस्ती के लिये सोचेगी।"

“ऐसे में तुमसे कैसे वायदा कर सकता हूं कि मोना चौधरी के खिलाफ कोई काम नहीं करूंगा।"

कुछ पलों के लिये पेशीराम की आवाज नहीं आई। अजीब-सी चुप्पी छा गई वहां । 

"मेरी एक बाद तो मान सकता है देवा ।" पेशीराम की आवाज पुनः कानों में पड़ी।

“कैसी बात?”

"इस वक्त तू जो कर रहा है, वो काम छोड़ दे।” देवराज चौहान के माथे पर बल उभरे। चेहरे पर अजीब से भाव आ गये।

“मैं क्या कर रहा हूं पेशीराम ?” 

“बंसीलाल के पीछे पड़ गया है तू। इस काम से हट जा बंसीलाल से कुछ मत कह।” 

"क्यों?"

“सवाल मत पूछ देवा। तेरे से एक छोटी सी बात कही है। वो मान ले।”

एकाएक देवराज चौहान का चेहरा सख्त होता चला गया।" 

"नहीं पेशोराम! मैं तेरी ये बात किसी भी हाल में नहीं मान सकता। बंसीलाल जैसे इन्सान को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं, जो मासूमों की इज्जत और जान से खेलता फिरे दरिन्दा है वो मैं उसे- ।" 

“देवा!” फकीर बाबा की आवाज उसे सुनाई दी- "बुरे की गाड़ी ज्यादा देर नहीं चलती। तू इस काम से पीछे हट जा। कोई दूसरा देर-सवेर में बंसीलाल को उसकी करनी के फल की सजा दे देगा ।"

“नहीं पेशीराम!” मैं किसी दूसरे का इन्तजार नहीं करूंगा।" देवराज चौहान का चेहरा कठोर हुआ पड़ा था- "मैंने मन में ये बात रखती हैं कि बंसीलाल को खत्म करना है, उसे खत्म करके ही रहूंगा।" 

"मेरी बात नहीं मानेगा?"

“नहीं।”

"मैं जानता था। जानता था देवा ।” कानों में पड़ने वाला पेशीराम का स्वर अब गम्भीर हो गया था - "तू मेरी बात नहीं मानेगा। ये तेरा नहीं वक्त का फेर है। मेरा जन्म तुझे चैन से नहीं बैठने देगा। मुझे तीन जन्म पहले के कर्म खाये जा रहे हैं। बात पूरी होने से पहले ही बिखर जाती है।  

"मैं समझ नहीं पेशीराम-?"

"जब मैं ही नहीं समझा ये कर्मों और जन्मों का चक्कर, तो फिर तू क्या समझेगा। हर जन्म में इन्सान भागता फिरता है पूछो कि क्यों भाग रहा है तो कहता है मालूम नहीं क्यों? 

क्या पाने को भाग रहा है। स्वयं उसे भी नहीं पता । जिसे पता है उसकी कोई सुनता नहीं। मैं तो तुमसे और मिन्नो से, तीन जन्म पहले गुरुवर से जो श्राप मिला था, उससे मुक्ति दिलाने को कितनी बार कह चुका हूं। तुम दोनों दोस्ती कर लो तो मेरे अगले जन्म की राहें आसान हो जायेंगी। लेकिन क्यों मानेगा कोई पेशीराम की बात मैं हूं ही क्या। 

गांव-गांव घूमकर हाथ में पेटी थामे लोगों की हजामत बनाता था जो खाने को देता था। खा लेता था। दोपहर में सोने को किसी ने चारपाई दे दी तो पेड़ के नीचे बिछाकर कुछ देर सुस्ता लेता। ऐसे में ठाकुर विश्राम सिंह का बेटा मेरी बात क्यों मानेगा? मैं कोई ऊंची जात का तो- "

"नहीं पेशीराम।" देवराज चौहान के होंठों से निकला- "ऐसा मत कहो। तुम मेरी निगाहों में क्या अहमियत रखते हो। बहुत अच्छी तरह जानता हूं मैं। एक तुम ही तो हो जिसकी वजह से मैं तीन जन्मों पहले के मां-बाप भाई-बहन, अन्य परिवार वालों से मिल सका। पूरा गांव तिलस्म में कैद था। उन्हें आजाद करा- ।”

"तुम्हारे परिवार वाले आज भी, तेरा इन्तजार कर रहे हैं देवा पेशीराम का गम्भीर स्वर सुनाई दिया- “तुम उनसे कहकर आये कि सारा तिलस्म तोड़कर वापस आओगे।"

“हां । लेकिन-लेकिन ।”

“लेकिन उनके पास नहीं पहुंच सके। मिन्नो भी नहीं पहुंच सकी अपने पूर्वजन्मों के परिवार के पास। सब वायदा कर गये कोई तो वापस नहीं आया । वो लोग मेरे से पूछते हैं, जब कभी वहां से गुजरता हूं। लेकिन उन्हें क्या समझाऊं कि कर्मों की बात। अभी पूर्ण मिलन का वक्त नहीं।"

“पेशीराम ” देवराज चौहान कह उठा- “तुमने कहा था कि तुम मुझे पूर्वजन्मों के बारे में - "

“हां । तुम्हें ही नहीं मिन्नो को भी बताऊंगा। जग्गू को, नील को, परसू को, बाकी सबको भी पूर्वजन्मों की सब बातें बताऊंगा कि क्या हुआ था जो तुममें और मिन्नो में जन्मों-जन्मों की दुश्मनी की नींव पड़ी। क्यों गुरुवर ने मुझे श्राप दिया। उसके बाद तुम लोग कौन-कौन से जन्म में गये? वहां क्या-क्या किया? हर जन्म में तुम और मिन्नो किस तरह दुश्मनी की परम्परा कायम रखे रहे ।"

पेशीराम का व्याकुल सा स्वर देवराज चौहान के कानों में पड़ रहा था। 

"लेकिन अभी सितारों की दशा ठीक नहीं है। तुम नहीं देख रहे उस तूफान के गुब्बार को, जो मुझे नजर आ रहा है देवा । मेरी मान लो देवा। बंसीलाल को- ।”

"तुम ये बात मानने के लिये मुझे क्यों जोर देर दे रहे हो?” एकाएक देवराज चौहान कह उठा।

"इसलिये कि तुम जिस रास्ते पर चल रहे हो, वो आगे चलकर बहुत भयानक अंजाम का जिम्मेवार बनेगा। अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी। बंसीलाल को अपनी सोवों से नहीं निकाला तो बहुत जल्द मिन्नो से तुम्हारा भयानक टकराव होगा। उसी टकराव को रोकने के लिये तुम्हें पीछे हटने को कह रहा हूं - "

देवराज चौहान का चेहरा और भी कठोर पड़ गया।

“बंसीलाल के काम में मोना चौधरी कहां से आ गई पेशीराम ?” 

“यही तो सितारों का खेल है देवा ।” पेशीराम की आवाज में गहरी सांस लेने के भाव थे- “जिसे आम इन्सान नहीं समझ सकता। ये सितारे ही हैं जो अच्छा-बुरा करते हैं। वो तुम्हारी और मिन्नो की दुश्मनी को बनाये रखना चाहते हैं। क्योंकि ये करना उनका काम है। नई बातें नहीं होगी तो वक्त का पहिया रुक जायेगा। ऐसा हो जाना सितारों को पसन्द नहीं आता। इसलिये वो वक्त का पहिया अपनी ताकत के चलाये रहते हैं लेकिन जानता है देवा - " 

“क्या ?”

“तेरी और मिन्नो की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुकसान मेरा होगा। अगर तुम दोनों में से एक भी मर गया तो फिर मुझे तुम दोनों के अगले जन्म का इन्तजार करना पड़ेगा ! मतलब कि गुरुवर के श्राप में जकड़े एक जीवन मुझे और निकालना पड़ेगा। मैं नहीं चाहता कि मिन्नो के साथ तुम्हारा झगड़ा हो । तुम दोनों दोस्तो करो और मुझे गुरुवर के श्राप से मुक्ति दिलाओ।"

“पेशीराम--!” देवराज चौहान का स्वर सपाट हो गया - “वंसीलाल को मैं खत्म करूंगा तो मैं ही करूंगा। उस दरिन्दे को राजा देने में पीछे नहीं हटूंगा। अगर बीच में मोना चौधरी आती है - तो ये उसकी गलती होगी ।”

“किसी की गलती नहीं है।” पेशीराम की आवाज सुनाई दी - "सब सितारे करवा रहे हैं। ठीक है देवा। चलता हूं।” “तुमसे कुछ कहने आया था, परन्तु मेरी बात नहीं मानी तुमने ।"

देवराज चौहान के होंठ भिंच रहे ।

कुछ पल खामोशी में बीत गये ।

“पेशीराम- ।” देवराज चौहान ने पुकारा।

कोई जवाब नहीं मिला।

देवराज चौहान समझ गया कि पेशीराम की आत्मा जा चुकी है। देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई और चेहरे पर गम्भीरता समेटे सोफा चेयर पर बैठ गया। पेशीराम ने बताया कि मोना चौधरी से उसकी बहुत जल्दी टक्कर होने वाली है। ये कोई ठीक बात नहीं थी। जब-जब भी मोना चौधरी से टक्कर हुई, उसे और मोना चौधरी को भारी नुकसान और खतरों का सामना करना पड़ा था। इस टक्कर से बचने का एक मात्र वही रास्ता था कि वो बंसीलाल का पीछा छोड़ दे। यही कहा था पेशीराम ने और देवराज चौहान अब कदम उठाने के बाद, कदम को वापस नहीं खींच सकता था। बंसीलाल को खत्म करने की सोच चुका था दो। देवराज चौहान ने बंसीलाल की तलाश के लिये अभी निकलना था। लेकिन अचानक ही थकान हावी होती महसूस हुई। सिग्रेट समाप्त करके देवराज चौहान आराम करने की सोच कर सोफे पर ही टांगें फैलाकर लेट गया। जेहन से पेशीराम के शब्द टकरा रहे थे । कुछ देर बाद देवराज चौहान नींद में जा डूवा।

***