किराए की कार एक पब्लिक टेलीफोन बूथ के समीप खड़ी थी—उसकी पिछली गद्दी पर सुपर रघुनाथ का बेहोश जिस्म लुढ़का पड़ा था और बूथ के अन्दर किसी से सम्बन्ध स्थापित करने के बाद तबस्सुम ने कहा—"रेहाना हियर डार्लिंग...।"

"न—न—न—न—।" दूसरी तरफ से कहा गया—"फोन पर मेरा नाम न लेना रेहाना।"
"क्यों डार्लिंग?"
"विजय और विकास बहुत चालाक हैं।"
"उनकी सारी चालाकी तुम्हारे प्लान के सामने धरी रह गई है।"
"काम बोलो।"
"मैं तुमसे मिलना चाहती हूं।"
"क्यों?"
"समय कम है—इस वक्त इस एक प्रकार से मैं खतरे में भी हूं—काम जरूरी है—सुपर रघुनाथ इस वक्त मेरे साथ है—पूरी रिपोर्ट मिलने
पर ही दूंगी।"
एक पल के लिए दूसरी तरफ सन्नाटा छाया रहा, जैसे कुछ सोचा जा रहा हो, फिर आवाज उभरी—"तुम जी.टी. रोड की तरफ चलो—रास्ते में कहीं भी मेरे आदमी मिल जाएंगे—वे तुम्हें तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांधकर मेरे पास ले आएंगे।"
"अब भी पट्टी बंधवाने की जरूरत रह गई है, डार्लिंग?"
"हां।"
"क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है?"
"ऐसा मत कहो, रेहाना—तुमसे ज्यादा विश्वास तो मुझे खुद पर भी नहीं है, लेकिन...।"
"लेकिन क्या?"
"तुम फील्ड में काम कर रही हो और मैं नहीं चाहता कि जितने भी लोग फील्ड में काम कर रहे हैं, उन्हें अड्डे का पता रहे—वे बहुत खतरनाक हैं—विकास किसी से भी वह बात उगलवाने में माहिर है, जो बात किसी को पता हो—तुम फील्ड में हो—किसी भी समय उसके चंगुल में फंस सकती हो—तुम जानती हो, मैं रिस्क लेने की स्थिति में नहीं
हूं।"
"जैसी तुम्हारी इच्छा—पट्टी बांधकर ही सही—कम-से-कम तुमसे मुलाकात तो होगी।"
"तुम जी.टी. रोड की तरफ बढ़ो।" कहने के साथ ही दूसरी तरफ से कनेक्शन कट कर दिया गया—रिसीवर हैंगर
पर लटकाकर वह बूथ से बाहर निकल आई।
वह ठीक विकास जितना ही लम्बा था, जिसने अपने सामने खड़ी तबस्सुम से कहा—"तुम उसे यहां क्यों ले
आई, रेहाना?"
"उसने मोन्टो की हत्या कर दी है।"
"मैं जानता हूं—पागल हो गया है, साला—मगर मैंने तुमसे कहा था कि बिना मेरे आदेश के तुम्हें कुछ भी नहीं
करना है, फिर भी तुम...।"
"मैं क्या करती, डार्लिंग—यदि वह सड़कों पर घूमता रहता तो गिरफ्तार हो जाता।"
"यही तो मैं चाहता हूं।"
"क्या मतलब?"
"अब अगले ही कुछ दृश्यों में मेरी योजना का क्लाइमैक्स आने वाला है—मेरा प्रतिशोध पूरा होने वाला है, रेहाना—सॉरी—मैं थोड़ा गलत बोल गया—मुझे ये कहना चाहिए कि मेरे प्रतिशोध का एक हिस्सा अगले दृश्यों में पूरा होने वाला है।"
"मैं समझी नहीं।"
"भूल गई—मैंने कहा था न कि मेरा मकसद रघुनाथ को विजय की गोली से मरवाना है।"
"याद है—लेकिन वह होगा कैसे?"
"जैसे अब तक सिर्फ वही हुआ है, जैसा मैंने चाहा या सोचा है—इस वक्त उसे यहां नहीं, राजनगर की सड़कों पर होना चाहिए—वहां बहुत से भूखे दरिन्दे हाथों से रिवॉल्वर लिए उसकी तलाश कर रहे होंगे—उन्हीं में से एक विजय भी होगा।"
"म...मगर—क्या उस वक्त मेरा इसके साथ होना जरूरी है?"
"हां।"
"क्यों?"
"ये मैं समझता हूं, रेहाना डार्लिंग, और तुम शुरू से अब तक देखती आ रही हो कि मेरा कहीं भी कुछ सोचना व्यर्थ नहीं हुआ है—तुम डर क्यों रही हो—ओह, समझा—तुम शायद यह सोच रही हो कि विजय की गोली से उसकी मृत्यु के बाद वहां तुम्हारा क्या होगा?"
"हां।"
"उसके मरते ही तुम घटनास्थल से खिसकने की चेष्टा करोगी, यदि न खिसक सको, यानि पुलिस के हाथ लग जाओ, तब भी फिक्र की कोई बात नहीं है—समय रहते हुए मैं तुम्हें उनके पंजे से निकल लूंगा—मेरे रहते तुम्हारा कोई बाल भी बांका नहीं कर सकेगा, रेहाना।"
उसने शंकित स्वर में पूछा—"तुम ठीक कह रहे हो न डार्लिंग?"
"क्या तुम्हें मुझ पर शक है?"
"न...नहीं।" वह दौड़कर लम्बे लड़के से लिपट गई, बोली—"बस—थोड़ा डर लग रहा है।"
उसकी पीठ थपथपाते हुए सात फुटे ने कहा—"डरो मत—हौसला रखो।"
"तुम रघुनाथ के मरने के बाद भारत से निकल चलोगे न?"
"नहीं तो क्या भारत में रहकर मुझे मरना है?"
"क्या मतलब?"
उसने कहा—"तुम जानती हो कि जो कुछ हुआ है, वह सब कुछ मैंने किया है और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि आगे सिर्फ वही होगा, जिसकी पृष्ठभूमि मैंने तैयार की है—इतने बड़े और दिलचस्प खेल में मैं किसी डायरेक्टर की तरह पर्दे के पीछे रहा हूं—यह मेरी कार्य-प्रणाली के बिल्कुल विपरीत है, रेहाना—मैं खुला खेल फरक्काबादी खेलने का आदी हूं। इस बार भी ऐसा ही कर सकता था, लेकिन नहीं किया—कारण एक ही है—यदि मेरा नाम सामने आ जाए तो वे सतर्क हो जाएंगे और उनके काम करने का तरीका ही दूसरा हो जाएगा—इस वक्त मेरे बारे में ख्वाब में वे भी नहीं सोच सकते—कामयाब होने के बाद भी मैं ये चाहूंगा कि कभी किसी को यह पता न लगे कि यह सब कुछ मैंने किया था, क्योंकि मेरा नाम बाद में खुलने पर भी काफी लफड़े हो सकते हैं—विजय और विकास बहुत चालाक हैं। यदि मैं ज्यादा दिन यहां रहा तो वे न सिर्फ मेरा नाम जान सकते हैं, बल्कि मुझ तक पहुंच भी सकते हैं। रघुनाथ की मौत के बाद ही मेरा काम खत्म हो जाएगा—वह कत्ल विजय की गोली से होगा और इसी वजह से विजय और विकास में ठन जाएगी—बस, मैं तुम्हें साथ लेकर यहां से निकलूंगा—जिन्दगी में विकास कभी सोच भी नहीं सकेगा कि यह सब मैंने किया था।"
"तब ठीक है, मैं आगे भी वैसा ही करूंगी—जैसा तुम कहोगे।"
"उसके दिमाग में मास्टर वाली कहानी फिक्स रहनी चाहिए। अब तुम उसे यह शो करोगी जैसे उसे यहां लाने के कारण मास्टर तुमसे नाराज हो गया है।"
"मैं विस्तार से तुम्हारी योजना सुनना चाहूंगी।"
जिसके जिस्म पर चुस्त काले चमड़े की पतलून और जाकेट थी—जिसने आंखों पर काले लैंसों वाला चश्मा लगा रखा था—जिसका वास्तविक चेहरा घनी और नकली दाढ़ी-मूछों के नीचे छुपा था—जिसने दस नम्बर के काले चमकदार जूते पहन रखे थे—उसी ने तबस्सुम या रेहाना को धीरे-धीरे वे बातें समझाईं, जो रघुनाथ को सुनाने के लिए करनी थीं।
अन्त में रेहाना ने पूछा—"वह कहां है?"
"हॉल में—आओ, चलें।"
मगर चलने से पहले रेहाना उससे लिपट गई, बोली—"होंठ नीचे करो लम्बू।"
वह हंसता हुआ झुका—रेहाना पंजों पर खड़ी हो गई और फिर उसने होंठों को इस तरह चूमा—जैसे कई जन्मों की मुराद पूरी हुई थी।
तबस्सुम ने उस सात फुटे लड़के के साथ हॉल में प्रवेश किया—हॉल काफी बड़ा था—भरपूर प्रकाश से जगमगा भी रहा था—दीवारों के सहारे बहुत-से व्यक्ति हाथों में राइफल लिए सावधान की मुद्रा में खड़े थे—लम्बे लड़के को देखकर उनके जिस्मों में कुछ और तनाव आ गया।
हॉल के फर्श पर बीचो-बीच औंधे मुंह रघुनाथ पड़ा था।
एक तरफ सनमाइका की चमकदार और बहुत बड़ी मेज पड़ी थी और उस मेज के पीछे एक बेहद ऊंची पुश्तगाह वाली रिवॉल्विंग चेयर थी—उसी कुर्सी की तरफ बढ़ते हुए लड़के ने आदेश दिया—"सुपर रघुनाथ को होश में लाया जाए।"
एक डॉक्टर सरीखा व्यक्ति तुरन्त आगे बढ़ा—रघुनाथ के जिस्म के समीप पहुंचा—बूट से उसे सीधा किया और जेब से निकालकर जाने क्या सुंघाया कि अगले ही पल रघुनाथ के जिस्म में हरकत हुई—तबस्सुम उसके समीप ही मेज की तरफ मुंह किए खड़ी थी।
लड़का रिवॉल्विंग चेयर पर बैठ चुका था।
जब रघुनाथ कुनमुना रहा था, तब लड़के ने ऊंची, कठोर और डांट-भरी आवाज में कहा—"हम पूछते हैं कि तुम इसे यहां लाईं ही क्यों?"
"व...वो मास्टर—बात यह थी कि...।"
"हर सिर्फ अपने सवाल का जवाब चाहते हैं।"
डॉक्टर सरीखा व्यक्ति अपना काम करके वहां से हट चुका था—रघुनाथ की चेतना लौटती हुई-सी महसूस हो रही थी, जबकि तबस्सुम कांपने का सफल अभिनय करती हुई बोली—"द...दरअसल इसने मोन्टो की हत्या कर दी—पुलिस भूखे भेड़िये की तरह सारे राजनगर में इसे तलाश कर रही थी—मैंने सोचा कि ये आपके काम का है, कहीं पुलिस के हाथ न लग जाए—बस, यही सोचकर—।"
"ख...खामोश—।" हलक फाड़कर चिल्लाने के साथ ही लड़का एक झटके से कुर्सी से खड़ा हो गया—कुर्सी अपने स्थान पर घूमती रह गई—लड़का गुर्रा रहा था—"भले ही कैसे भी हालात थे, मगर हमारी इजाजत के बिना तुमने इसे यहां लाने की हिम्मत कैसे की?"
तब तक रघुनाथ खड़ा हो चुका था, बोला—"जवाब मैं दूंगा, मास्टर।"
"त...तुम-तुम क्या जवाब दोगे?"
"दरअसल मुझे नहीं मालूम था कि मोन्टो को मारना किसकी जानवर को मारना नहीं, बल्कि किसी इंसान की हत्या करने जैसा है—ये तो मुझे तब पता लगा, जब तबस्सुम ने बताया—मैं चकराकर रह गया—मेरे पास कोई ऐसी जगह नहीं थी, जहां मैं पुलिस की पहुंच से दूर और सुरक्षित रहता—मैंने तबस्सुम के सामने समस्या रखी—इसने आपका नाम लिया और यह शर्त लगाई कि यहां आने से पहले मुझे बेहोश होना पड़ेगा—मैंने वह शर्त मानी और...।"
"वैसे भी आपने कहा था कि इकबाल तब आपके काम का है, जबकि किसी तरह उसकी खोई हुई स्मृति लौट आए—इस वक्त यह रघुनाथ नहीं, इकबाल ही है—इसे अपने रघुनाथ होने की याद नहीं, जबकि इकबाल से सम्बन्धित एक-एक घटना आप इससे पूछ सकते हैं।"
"इसका ये मतलब तो नहीं कि तुम हमारी इजाजत के बिना ही इसे यहां उठा लाओ!"
कांपती हुई तबस्सुम ने कहा—"भूल हो गई, मास्टर।"
"इस भूल को तुम्हें सुधारना होगा—इसी वक्त इसे लेकर निकल जाओ।"
रघुनाथ एकदम कह उठा—"ऐसा गजब न कीजिए, मास्टर—यदि उन लोगों ने मुझे...।"
"तुम बिल्कुल खामोश रहोगे, रघुनाथ।" लड़के ने उसे डांटा।
"मैं रघुनाथ नहीं, मास्टर—इकबाल हूं।"
"हां-हां—जानते हैं, लेकिन हम तुमसे बात नहीं कर रहे हैं—तुम खामोश रहो—हम तुमसे कह रहे हैं तबस्सुम-सुना तुमने—इसे लेकर इसी वक्त यहां से निकल जाओ।"
"म...मगर मास्टर—अच्छा यही होता कि इस बेचारे को आप यहीं रख लेते—बाहर निकलते ही या तो यह मारा जाएगा या पुलिस इसे गिरफ्तार कर लेगी।"
"ऐसा कुछ नहीं होगा।"
"हम समझे नहीं।"
"पुलिस से बहुत ज्यादा इकबाल की हमें जरूरत है—हम वचन देते हैं कि पुलिस तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगी—हमारी सम्पूर्ण ताकत हमेशा इसके चारों तरफ मौजूद रहकर इसकी मदद करेगी।"
तबस्सुम ने कहा—"मुझे आपकी ताकत पर भरोसा है, मास्टर।"
"तो जाओ—हमारे आदमी तुम्हारी आंखों पर पट्टी बांधकर यहां से कहीं दूर छोड़ देंगे—तुम्हारी कार भी तुम्हारे साथ ही होगी—अपनी कार के जरिए वहां से तुम सीधे सम्राट होटल यानि अपने कमरे में पहुंचोगे—हमारा अगला संदेश तुम्हें वहीं टेलीफोन पर मिलेगा।"
"ओ.के. मास्टर।"
रघुनाथ कुछ नहीं बोला—जैसे मिट्टी का माधो हो।
रोती हुई रैना ने जो कुछ बताया, उसे सुनकर विजय जहां खड़ा था, वहीं जड़ होकर रह गया—उसके जिस्म की एक-एक नस में तनाव उत्पन्न हो गया—जबड़े कस गए—मुट्ठियां खुद-ब-खुद ही कसती चली गईं—विजय का चेहरा कठोर हो गया—आंखें दहककर अंगारे बन गईं—उस वक्त वह उत्तेजित नजर आ रहा था, जो कभी उत्तेजित नहीं हुआ।
छोटी-छोटी बातों पर उत्तेजित होना विकास का काम था—उसी का खून जब उबाल मारता था तो वह पागल हो जाता था—दीवाना हो जाता था।
विजय उसे समझाया करता था।
यही कि उत्तेजना या क्रोध ठीक नहीं होता—वैसी मानसिक स्थिति में अधिकांशतः ऊट-पटांग काम ही होते हैं—मगर मोन्टो की हत्या की बात सुनकर—।
धनुषटंकार की लाश देखकर वह स्वयं उत्तेजित हो उठा।
अपनी शिक्षा खुद ही भूल गया विजय—जो हर मुसीबत में—हर खतरे में फंसा सिर्फ हंसता था—कहकहे लगाता था, वह उस वक्त गुस्से की ज्यादती के कारण खड़ा कांप रहा था।
रैना मोन्टो की लाश को छाती से लगाए रोए जा रही थी।
एकाएक विजय घूमा—और फिर तेजी के साथ पोर्च में खड़ी अपनी कार की तरफ बढ़ा।
"विजय भइया।" पीछे से रैना ने पुकारा।
वह घूमा—बोला कुछ नहीं।
परन्तु उसके चेहरे पर मौजूद भाव बहुत कुछ कह रहे थे।
"कहां जा रहे हो?"
गम्भीर एवं सपाट स्वर—"अपने वफादार मोन्टो के हत्यारे की तलाश में।"
"व...विजय भइया।"
"वह भले ही मेरी बहन की मांग का सिन्दूर हो—भले ही उसके मरने पर मेरी बहन अपने हाथ की सारी चूड़ियां तोड़ डाले—यदि मैंने अपने बेजुबान मोन्टो की मौत का बदला नहीं लिया तो धिक्कार है मुझ पर।"
"भइया।"
"बहुत हो लिया!" विजय अचानक फट पड़ने वाले ज्वालामुखी के समान लावा उगलता ही चला गया—"अब रघुनाथ की बदतमीजियां मैं ज्यादा सहन नहीं कर सकता—अपनी मांग का सिन्दूर पोंछ डालो, रैना बहन—गले में पड़े मंगलसूत्र को नोच कर फेंक दो—अब जब तुम्हारा विजय भइया लौटेगा तो तुम विधवा हो चुकी होगी।"
कहने के बाद विजय जबरदस्त फुर्ती के साथ कार के समीप पहुंचा।
रैना को अचानक ही जाने क्या हुआ कि मोन्टो की लाश को एक तरफ फेंककर वह आंधी-तूफान की तरह विजय के पीछे लपकी—जोर से चीखी—"स...सुनो, विजय भइया—मेरी बात तो सुनो—यदि तुम मेरी बात सुने बिना चले गए तो गजब हो जाएगा—वे तो...।"
मगर—विजय की कार स्टार्ट होकर एक झटके के साथ पोर्च से बाहर निकल गई—मुंह खोले कई पल तक तो रैना अपने स्थान पर हक्की-बक्की खड़ी रह गई—फिर जैसे उसके मस्तिष्क को कोई झटका लगा हो।
तेजी से दौड़ी।
गैराज से कार निकाली और कुछ ही देर बाद रैना की कार आंधी-तूफान के-से वेग से उसी दिशा में दौड़ रही थी, जिधर विजय गया था, परन्तु सड़क पर दूर-दूर तक भी कहीं विजय की कार नहीं चमक रही थी—रैना के पैर का दबाव एक्सीलेटर पर बढ़ता ही चला गया।
"क...क्या—?" विकास कुर्सी से उछल पड़ा।
ब्लैक ब्वॉय ने कहा—"हां—विक्रम ने यही रिपोर्ट दी है।"
"न...नहीं।" विकास चीख पड़ा—"डैडी ऐसा नहीं कर सकते—वे मोन्टो को नहीं मार सकते, अंकल-अभी वे इतने पागल नहीं हुए हैं।"
"ये सच है, विकास।"
"ये झूठ है—ये झूठ है।" विकास इतनी जोर से हलक फाड़कर चिल्ला उठा कि वह पूरी इमारत झनझनाकर कांपती हुई सी महसूस हुई, जिसमें भारतीय सीक्रेट सर्विस का ऑफिस था—न सिर्फ चेहरा ही, बल्कि सात फुटे का समूचा जिस्म पसीने-पसीने हो उठा।
"काश, यह झूठ होता, विकास।" ब्लैक ब्वॉय जैसे लौह पुरुष की आवाज भी भर्रा गई।
"न...नहीं अंकल-प्लीज—इससे आगे एक शब्द भी न कहना।"
"बात मोन्टो के कत्ल से भी बहुत आगे निकल चुकी है—विक्रम ने रिपोर्ट दी है कि मोन्टो की लाश को देखकर कभी भावुक न होने वाले विजय भी भावुक हो उठे हैं—रैना बहन से सब कुछ सुनने के बाद उन पर खून सवार हो गया है—मोन्टो की लाश की कसम खाकर वे निकल पड़े हैं—उन्होंने निश्चय कर लिया है कि तब तक चैन से नहीं बैठेंगे, जब तक कि रघुनाथ से मोन्टो की मौत का बदला नहीं ले लेंगे।"
"न...नहीं।" विकास हड़बड़ा गया।
चिंतित एवं दु:ख भरे स्वर में ब्लैक ब्वॉय कह उठा—"भगवान ही जाने कि क्या अनर्थ होने जा रहा है।"
"न...नहीं—कुछ नहीं होगा—मैं कुछ नहीं होने दूंगा।" कहने के तुरन्त बाद लम्बा लड़का तेजी से बाहर की तरफ बढ़ गया। ब्लैक ब्वॉय ने जल्दी से कहा—"कहां जा रहे हो, विकास?"
"किसी अनर्थ को होने से रोकने।"
"म...मगर अभी तुम्हारी जमानत नहीं...।"
उसका पूरा वाक्य बिना सुने ही विकास गुप्ता भवन के उस साउन्ड प्रूफ ऑफिस से बाहर निकल चुका था—ब्लैक ब्वॉय ठगा सा खड़ा रह गया—उसके मस्तक पर चिंता की ढेर सारी लकीरों ने जाल-सा बना दिया।
विजय के चेहरे पर अजीब-सी कालिमा उभर आई थी—आंखें दहक रही थीं—जिस्म की एक-एक नस में तनाव था—जबड़ों के मसल्स रह-रहकर फूल और पिचक रहे थे—गाड़ी पहले ही बहुत तेज रफ्तार से दौड़ रही थी, फिर भी एक्सीलेटर पर उसके पैरों का दबाव निरन्तर बढ़ता गया।
सड़क छोड़कर कार मानो हवा में उड़ने लगी।
उसका रुख 'सम्राट' होटल की तरफ था—एक चौराहे पर पहुंचकर अचानक ही उसे पूरी ताकत से ब्रेक मारने पड़े—चीखती-चिल्लाती हुई कार रुक गई।
सामने लाल बत्ती चमक रही थी।
जाने किस झुंझलाहट में विजय ने स्टेयरिंग पर बहुत जोर से घूंसा मारा—दाईं तरफ का ट्रैफिक उस वक्त चौराहे से गुजर रहा था—एकाएक ही विजय की नजर रघुनाथ की किराए वाली कार पर पड़ी—वह दाईं तरफ के ट्रैफिक के साथ चौराहा पार करके विजय के ठीक सामने वाली सड़क पर मुड़ना चाहती थी।
विजय को जाने क्या हुआ कि उसने एक झटके से गाड़ी गियर में डाली—फिर लाल बत्ती के बावजूद विजय की कार अर्जुन के तीर की तरह सर्र-र्र से रघुनाथ की कार की तरफ लपकी।
अभी कोई कुछ समझ भी नहीं पाया था कि 'धड़ाम'।
एक कर्णभेदी विस्फोट।
विजय की कार का अगला हिस्सा ठीक रघुनाथ की कार के बीच में जा टकराया—रघुनाथ की कार के उस दिशा के दोनों पहिए हवा में उठे—दूसरी तरफ के दोनों पहियों पर कार विपरीत दिशा में कुछ दूर तक घिसटती चली गई—फिर उलट गई और उलटते ही एक और पलटा खाकर कार सीधी हो गई।
रघुनाथ की कार का बीच का हिस्सा पिचक गया था।
विजय की कार के बोनट ने मुंह फाड़ दिया—मुंह फाड़े कार फिर रघुनाथ की कार की तरफ बढ़ी, मगर इस बार रघुनाथ की कार ने बड़ी तेजी से दौड़कर अपना स्थान छोड़ दिया।
कुछ आगे बढ़कर कार सम्भली—घूमी और इस बार वह कार भी आक्रामक रुख अपनाकर विजय की कार की तरफ लपकी—विजय की कार ने कन्नी काटी, मगर फिर भी कारें टकरा ही गईं।
इसके बाद—।
खुले चौराहे पर कारों के युद्ध का बड़ी ही अजीब और रोमांचकारी दृश्य उपस्थित हो गया—चौराहे पर उन दो कारों के अतिरिक्त कुछ नहीं था—हर वाहन अपनी-अपनी दिशा में खड़ा उस रोंगटे खड़े होने वाले दृश्य को देख रहा था।
मानो एक साथ हर तरफ की सिर्फ लाल बत्ती ही ऑन हो उठी हो।
घूम-घूमकर कारें एक-दूसरे से टकरा रही थीं—धमाके गूंज रहे थे—दोनों की ही बॉडियां बुरी तरह पिचक गई थीं—देखने वाले दिल थामे उस भयानक दृश्य को देख रहे थे।
फिर एक बार।
रघुनाथ की कार दूर तक लुढ़कती चली गई—जब रुकी तब सीधी खड़ी थी—परन्तु उसमें आग लग चुकी थी—कार के सीधी होते ही उसके दो दरवाजे एक साथ खुले—एक में से स्वयं रघुनाथ ने बाहर जम्प लगाई, दूसरे से तबस्सुम ने—दोनों ने एक दूसरे का हाथ, हाथ में लिए एक तरफ को दौड़ना शुरू कर दिया, लेकिन अभी वे मुश्किल से पांच कदम ही दौड़ सके थे कि—
विजय की कार ने उनका रास्ता रोक लिया।
बौखलाए से वे ठिठक गए—पलक झपकते ही कार का दरवाजा खुला और उनके सामने प्रकट होकर विजय किसी जिन्न के समान खड़ा था। रघुनाथ कह उठा—"त...तुम?"
"हां—मैं।" कहने के साथ ही विजय ने उछलकर एक जबरदस्त घूंसा रघुनाथ के जबड़े पर मारा—मुंह से चीख निकली, दोनों पैर जमीन से उखड़ गए—हवा में लहराकर वह दूर सड़क पर जा गिरा।
कुछ दूर तक घिसटता चला गया रघुनाथ।
रुका—अपनी तरफ से काफी जल्दी सम्भलकर खड़ा हो गया, लेकिन विजय ने झपटकर दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ लिया—दांत भींचकर गुर्राया—"तुम भले ही तुलाराशि सही—भले ही रैना बहन के सुहाग सही, लेकिन तुम्हें बेजुबान मोन्टो के खून की एक-एक बूंद का हिसाब देना होगा रघुनाथ—मरते समय अपने ऊपर हुए जुल्म का बदला लेने का वचन भी जो किसी से नहीं ले सकता था—उसी मोन्टो की कसम-उसकी चिंता के साथ ही तुम्हें भी जलाकर राख कर दिया जाएगा।"
रघुनाथ ने सम्भलकर कहने की कोशिश की—"व...वह जानवर...।"
विजय के सिर की टक्कर धड़ाम से उसकी नाक पर पड़ी—वातावरण में रघुनाथ की बिलबिलाहटयुक्त चीख गूंजती चली गई—उसकी नाक फट गई थी—सारा चेहरा खून से पुत गया—वह सड़क पर पड़ा चीख रहा था, जबकि विजय गुर्राया—"उससे बड़े जानवर तो तुम हो तुलाराशि।"
फिर—विजय पर मानो खून सवार था—वह बराबर आक्रामक रुख अपनाए था, जबकि रघुनाथ की सारी शक्ति उसके वारों से खुद को बचाने की असफल कोशिश में ही जाया हो रही थी—चौराहे पर ऐसी जबरदस्त फाइटिंग हो रही थी कि देखने वालों ने किसी फिल्म में भी नहीं देखी थी।
एक तरफ खड़ी तबस्सुम थर-थर कांप रही थी।
¶¶
रैना ने दूर ही से देख लिया कि वाहनों की जबरदस्त भीड़ ने सारा रास्ता ब्लॉक कर रखा था—कार की तो बात ही दूर—किसी साइकिल तक के पार निकल जाने की जगह तक नहीं थी—विवश रैना को भीड़ के इस सिरे पर कार रोकनी पड़ी—पहले उसने सोचा था कि ये सब वाहन रेड लाइट के कारण रुके पड़े हैं, मगर शीघ्र ही उसका भ्रम टूट गया।
हर कोई अपने वाहन के ऊपर खड़ा चौराहे की तरफ देख रहा था।
रैना ने भी ऐसा ही किया और जब उसने चौराहे का दृश्य देखा तो दहल उठी—अपनी कार के बोनट पर खड़ी वह वहीं से चीख पड़ी— "र...रुक जाओ, विजय भइया।"
भीड़ ने चौंककर उसकी तरफ देखा।
किन्तु विजय ने मानो वह आवाज सुनी ही नहीं।
रैना कार से कूदी—भीड़ ने काई की तरह फटकर उसे जगह दी—चीखती-चिल्लाती वह वाहनों के बीच में गुजरती हुई चौराहे पर पहुंची—वह बार-बार विजय को रुक जाने के लिए कहती हुई विजय और रघुनाथ की तरफ बढ़ी—विजय ने पलटकर उसकी तरफ देखा।
उसी क्षण—रघुनाथ ने उछलकर एक फ्लाइंग किक उसके सीने पर जड़ दी—पहली बार विजय अपने मुंह से चीख निकालता हुआ सड़क पर जा गिरा—रघुनाथ सम्भला—अवसर मिलते ही वह अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाल चुका था—रैना उसकी तरफ बढ़ रही थी।
उसने रैना पर ही रिवॉल्वर तान दिया।
ठिठककर रैना चीख पड़ी—"ये आप क्या कर रहे हैं—क्या बेवकूफी है—आप विजय भइया को सब कुछ बता क्यों नहीं देते कि...।"
विजय की ठोकर ने रघुनाथ को उठाकर दूर फेंक दिया।
मगर रघुनाथ ने अपने हाथ में दबे रिवॉल्वर को नहीं निकलने दिया—सड़क पर गिरते ही उसने विजय पर फायर किया—विजय फुर्ती से हवा में उछलकर स्वयं को बचा गया—रघुनाथ ने एक ही क्षण बाद रिवॉल्वर घुमाकर रैना पर फायर कर दिया।
परन्तु—विजय पहले ही रैना को एक तेज धक्का दे चुका था।
एक चीख के साथ रैना लड़खड़ाकर सड़क पर गिरी—गोली हवा में सन्नाकर रह गई, लेकिन रघुनाथ ने दूसरे फायर के लिए रिवॉल्वर सीधा किया—इस बीच अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाल कर विजय चीख पड़ा—"रुक जाओ रघुनाथ—वरना...।"
'धांय—धांय।'
एक साथ दो फायर।
पहला रघुनाथ के रिवॉल्वर से—दूसरा विजय के।
रघुनाथ का निशाना चूक गया था, यानि रैना को गोली नहीं लगी, परन्तु विजय का निशाना चूकने का तो कोई मतलब ही नहीं था—दहकता हुआ अंगारा सीधा रघुनाथ के दिल में जा धंसा—उछलकर जिस्म जब सड़क पर गिरा तो—।
उसमें कोई हरकत नहीं थी—बिल्कुल निश्चल पड़ा रहा।
हाथ में रिवॉल्वर लिए विजय ठगा-सा खड़ा था—रैना मानो अचानक ही किसी संगमरमरी मूर्ति में बदल गई—आंखें फाड़े वे दोनों सड़क पर पड़े रघुनाथ के जिस्म को देख रहे थे—जख्म से गाढ़ा-लाल और गर्म खून तेजी से बह रहा था—सारी सड़क रंगती चली गई।
चारों तरफ भयावह खामोशी छा गई, जबकि—''स...स्वामी।"
उस खामोशी के बीच रैना की चीख अंधेरे में अग्निशिखा के समान उभरी—वह दौड़ी—करीब पहुंची—ठोकर लगी—लहराकर वह ठीक रघुनाथ के जिस्म पर जा गिरी—बड़ी फुर्ती से उसने रघुनाथ की नब्ज टटोली—स्पन्दनहीन—अगले ही क्षण रैना की दहाड़—"न...नहीं।"
ठगे से खड़े विजय के हाथ से रिवॉल्वर छूटकर सड़क पर गिर गया।
"स...स्वामी—स्वामी।" दहाड़कर रैना ने अपनी दोनों कलाइयां सड़क पर दे मारीं—खनखनाकर चूड़ियां टूट गईं—चारों तरफ कांच झनझनाया—लाश के चारों तरफ टूटी चूड़ियों के टुकड़े बिखर गई—रैना का रुदन देख लोगों के रोंगटे खड़े हो गए—जिन्दगी में पहली बार विजय ने अपनी टांगों में हल्का-सा कम्पन महसूस किया।
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ही इतनी तेजी से यह क्या हो गया—अभी ठीक से वह कुछ सोच भी नहीं पाया था कि अचानक ही रघुनाथ की लाश के पास रुदन करती हुई रैना उसकी तरफ देखकर चीख पड़ी—"य...ये तूने क्या कर दिया, कमीने—इ...इन्हें मार डाला—अपनी बहन का सुहाग उजाड़ दिया?"
अर्धविक्षिप्त-सी रैना चीखती हुई उसकी तरफ बढ़ी।
विजय हिला तक नहीं।
समीप पहुंचते ही रैना ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा—बुरी तरह झंझोड़ती हुई चीखी—"हरामजादे, कमीने, ये तूने क्या किया—बोल-बोल।"
"म...मगर रैना बहन—इसने हमारे मोन्टो को...।"
"वह झूठ था—गलत था—मोन्टो नहीं मरा है, कुत्ते।" रैना पागल-सी होकर चीख पड़ी—"वह इनकी चाल थी—ये इकबाल भी नहीं बने थे—जीप एक्सीडेण्ट के बाद कुछ भी नहीं हुआ था इन्हें।"
"क...क्या?" विजय के पैरों तले से धरती खिसक गई।
"मोन्टो जिंन्दा है।"
बौखलाकर विजय चीख पड़ा—"न...नहीं।"
"म...मगर तून इन्हें मार डाला—खुद को सबसे ज्यादा चालाक समझता था न तू—इनकी छोटी-सी चाल को नहीं समझ सका—मुजरिमों तक पहुंचने के लिए ही ये इकबाल बन थे—अपने पद से इस्तीफा देना—मुझे तलाक देना—मोन्टो को मारना—सब एक चाल थी—मुजरिमों तक पहुंचने के लिए इनकी चाल।"
"न...नहीं-नहीं।" विजय मानो सचमुच पागल हो गया—"त...तुलाराशि चाल नहीं चल सकता—म...मैं धोखे में नहीं आ सकता—ये गलत है, रैना बहन—ये गलत है।"
"ये...यह ठीक है, कुत्ते—म...मगर तूने मेरा सुहाग उजाड़ दिया।" कहने के साथ ही रैना उसका गिरेबान छोड़कर सड़क पर पड़े रिवॉल्वर पर झपटी—पलक झपकते ही उसने रिवॉल्वर उठाया और सिंहनी के समान गुर्राई—"म...मैं तुझे जिन्दा नहीं...।"
"र...रैना—म...मेरी बात सुनो, रैना बहन।"
"अपनी नापाक जुबान से मुझे बहन मत कह, कुत्ते—मत कह।" कहने के बाद थरथराती हुई रैना ने अन्धाधुन्ध फायरिंग शुरू कर दी—मगर संग आर्ट का माहिर विजय ठीक किसी बन्दर की तरह उछल-उछलकर खुद को बचा गया—रिवॉल्वर खाली हो गया—इसके बावजूद भी रैना ने जब विजय को सामने खड़े देखा तो उसने रिवॉल्वर ही खींच मारा—विजय झुका।
रिवॉल्वर उसके सिर के ऊपर से गुजर गया।
यही क्षण था, जबकि वातावरण में पुलिस सायरन की आवाज गूंज उठी—विजय बौखला गया—सचमुच उसकी समझ में यह नहीं आया कि वो सब क्यों हो गया था—इतनी तेजी से और इतनी महत्वपूर्ण घटनाओं ने घटकर सचमुच उसे हड़बड़ा दिया था —विजय की जिन्दगी का ऐसा शायद वह पहला ही अवसर था, जबकि वह इतनी बुरी तरह से चकराया—पुलिस सायरन की आवाज सुनकर उसके दिमाग में बिजली की तरह सिर्फ एक ही विचार कौंधा—भाग विजय—भाग जा—तूने सुपर रघुनाथ की हत्या कर दी है—किसी बहुत ही बड़े और चालाक मुजरिम की साजिश का शिकार हो गया है तू—भाग...भाग जा।'
चीखती-चिण्घाड़ती रैना ने उसके चेहरे पर घूंसा जड़ दिया।
एक चीख के साथ विजय लड़खड़ाया।
उधर—वाहनों की भीड़ काई के समान फटी—एक जीप बड़ी तेजी से चौराहे पर आकर रुकी—पुलिस फोर्स के साथ उसमें से ठाकुर साहब कूदे—होल्स्टर से रिवॉल्वर निकाला, विजय की तरफ तानकर गरजे—"हाथ ऊपर उठा लो, विजय—यदि भागने के लिए एक कदम भी उठाया तो हम तुम्हें गोली मार देंगे।"
बौखलाया-सा विजय उनकी तरफ घूमा।
रैना चीख पड़ी—"इसे मार डालो, चाचा जी—इसने आपके दामाद को गोली से उड़ा दिया है।"
"क...क्या?" ठाकुर साहब ने चौंककर रैना की तरफ देखा।
वही वो क्षण था, जबकि विजय ने चीते की तरह झपटकर न सिर्फ ठाकुर साहब से रिवॉल्वर छीन लिया, बल्कि किसी के कुछ समझने से पहले ही रिवॉल्वर उनकी कनपटी पर रखकर गुर्राया—"यदि कोई भी हिला तो मैं ठाकुर साहब को गोली मार दूंगा—हटो, रास्ता दो।"
ब्लेड की धार-सा सन्नाटा।
ठाकुर साहब बिफर पड़े—"यू ब्लेडी फूल-ईडियट।"
"हिलो मत, बापूजान।" विजय दांत भींचकर गुर्राया—"जो अपनी बहन का सुहाग उजाड़ सकता है, उसके लिए बापूजान की खोपड़ी में छेद कर देना कठिन काम नहीं है।"
"यू चीट।" ठोकुर साहब कसमसा उठे—"तुम बच नहीं सकोगे।"
"फिलहाल तो अपनी फिक्र कीजिए, डैडी प्यारे।" विजय ने कहा और फिर ठाकुर साहब को मार डालने की धमकी देकर उस जीप में बैठा—ड्राइविंग सीट पर उसने ठाकुर साहब को बैठाया—स्वयं रिवॉल्वर सम्भाले उनके सिर पर सवार।
जीप चौराहा पार करके एक तरफ को दौड़ गई।
जिसे रास्ते से ठाकुर साहब की जीप चौराहे पर पहुंची थी, उसी रास्ते से दनदनाती हुई विकास की कार भी पहुंची—चौराहे का दृश्य देखते ही वह भौंचक्का रह गया—रैना सड़क पर पड़े रघुनाथ के जिस्म से लिपट-लिपटकर रो रही थी—उसका पैर स्वयं ही ब्रेकों पर जा जमा।
कार रुकी—लम्बा लड़का कूदा।
चीखा—"क्या हुआ, मां?"
रैना ने एक झटके से चेहरा उठाकर उसकी तरफ देखा—विकास अपनी मां के पीछे हुए सिन्दूरी सूरज और सूनी कलाइयों को देखता रह गया—रैना का सारा चेहरा आंसुओं में डूबा था।
बुरी तरह रो रही थी वह।
लम्बे लड़के का दिल बड़ी जोर-जोर से धड़क उठा—जब न रहा गया तो पागलों की तरह चीख ही तो पड़ा जालिम-"क्या हुआ मां—बोलती क्यों नहीं—क्या हुआ डैडी को?"
रघुनाथ के खून में सने दोनों हाथ हवा में उठाकर रैना कह उठी—"ख...खून—तेरे डैडी का खून हो गया है, विकास—ये देख—ये—तेरे बाप का खून।"
"न...नहीं।" विकास के कंठ से वातावरण को दहला देने वाली चीख निकल गई—सुनकर दो कदम पीछे हटा वह—चेहरा पसीने-पसीने हो गया—आंखें हैरत के कारण फटी-की-फटी रह गईं।
जबकि खून से लथपथ हाथ लिए रैना खड़ी हो गई, बोली—"ये सच है विकास—खून झूठ नहीं बोलता—देख—आगे बढ़कर खुद ही देख, मेरे लाल-तेरे पिता के सीने में एक भी धड़कन नहीं है।"
विकास सचमुच जल्दी से आगे बढ़ा—सड़क पर पड़ी लाश के समीप बैठा—कलाई अपने हाथ में लेकर नब्ज देखी—अगले ही पल चीखता हुआ कलाई छोड़कर इस तरह उछल पड़ा, जैसे शक्तिशाली स्प्रिंग ने उसे उछाल दिया हो—उसका सारा जिस्म थरथरा उठा था—फटी-फटी-सी आंखों से वह सिर्फ रघुनाथ की लाश को देख रहा था—वह यकीन नहीं कर पा रहा था कि उसके डैडी नहीं रहे थे।
"व...विकास—।" रैना ने पुकारा।
घूमकर कह उठा विकास—"क...किसने—ये जुल्म किसने किया है, मां?"
"व...विजय ने।"
"ग...गुरू?" सारा जिस्म पसीने से नहा गया।
"हां—तेरे गुरू ने।" रैना दांत भींचकर कह उठी—"उसने—जो तेरा आदर्श है—जो तेरी ताकत है—उसने, सामने पहुंचते ही तू जिसके चरण छूता है।"
"म...मगर—।"
"बोल-चुप क्यों हो गया—जुबान तालू से क्यों चिपक गई विकास—तेरा वो जोश—तेरा वो चीख पड़ना कहां चला गया?—कहता क्यों नहीं कि तू अपने पिता की मौत का बदला लेगा—लहू का टीका अपने मस्तक पर लगाकर ये कसम क्यों नहीं खाता कि तू अपने डैडी के हत्यारे को चीर-फाड़कर सुखा देगा—उसकी नंगी लाश गिद्धों के झुंड में डाल देगा?"
"म...मां।"
"इसलिए न—इसलिए न कि वह तेरा गुरू है?"
"न...नहीं मां—ऐसा मत कहो—पैदा करने वालों से बढ़कर तो कोई नहीं, मगर—ग...गुरू ने भी तो कुछ सोचा होगा—ये इकबाल बन चुके थे—मोन्टो को मार डाला था इन्होंने।"
"ये गलत है—झूठ है—मोन्टो जिन्दा है—ये कभी इकबाल नहीं बने थे—वह सब कुछ तो एक चाल थी—मुजरिम को धोखे में रखने के लिए।"
"य...ये तुम क्या कह रही हो, मां?"
"म...मगर—विजय ने इन्हें सचमुच मार डाला—मैं मना करती रह गई—रोकती रह गई, लेकिन उस कमीने ने एक न सुनी—उस पर तो खून सवार था—मेरी आंखों के सामने उस कुत्ते ने मेरे सुहाग के परखच्चे उड़ा दिए।"
"म...मां—।" विकास के जबड़े भिंचते चले गए—आवाज थरथरा गई।
रैना ने दृढ़तापूर्वक पुकारा—"व...विकास।"
"बोल मां।"
"त...तूने इसी गर्भ से जन्म लिया है न—तुझे यकीन है न कि तूने इसी कोख में पैर पसारे हैं?"
तड़प-तड़पकर कह उठा विकास—"कैसी बात कर रही हो, मां?"
"म...मेरा एक कर्ज है तुझ पर।"
"क...कर्ज?"
"हां—मेरा खून पिया है तूने—मेरे स्तनों से निकलने वाले दूध को पीकर सात फुटा बना है तू—मेरा कर्ज तुझे लौटाना होगा, विकास—मेरे दूध की एक-एक बूंद की कीमत देनी होगी तुझे—बोल-लौटाएगा न मेरा कर्ज—मेरे दूध को लजाएगा तो नहीं तू?"
"व...विकास के खून का हर कतरा तेरे दूध से ही तो बना है मां।" लड़का बिलख पड़ा।
"तो जा—अपने खून के एक-एक कतरे को राजनगर की सड़कों पर बहा दे—मेरा कर्ज चुका—मुझे अपने सुहाग का हत्यारा चाहिए, विकास—जिन्दा नहीं—मुर्दा—हां, चौंककर पीछे क्यों हट गया—मुझे विजय की लाश चाहिए—बोल-ला सकेगा—चुका सकेगा मेरे दूध का कर्ज?"
"म...मां।"
"क...कांप गया—हट गया न पीछे—इसीलिए, क्योंकि वह तेरा गुरू है—यदि यही जुल्म किसी और ने किया होता—तो मैं जानती हूं कि आगे बढ़कर तू खुद ही कभी का यह कसम खा चुका होता—म...मगर अब हिचक रहा है—वो तेरा गुरू सही, लेकिन ये तेरा पिता था—मैं तेरी मां हूं—मेरे दूध की लाज तुझे रखनी होगी—मुझे विजय की लाश चाहिए—जा—चला जा यहां से—यदि तू उसकी लाश लाकर मेरे कदमों में नहीं डाल सका तो मैं तुझे कभी अपना दूध न बख्शूंगी।"
"म...मां।"
रैना आगे बढ़ी—विकास के सामने पहुंची—खून से रंगे हाथ ऊपर उठाए—अंगूठे से विकास के मस्तक पर लहू का टीका लगाया, बोला—"मां का हर कर्ज तुझे चुकाना होगा—दूध की हर बूंद का हिसाब देना होगा—तुझे दूध न बख्शूंगी तब तक-जब तक कि मेरे सुहाग का हत्यारा खत्म नहीं होगा।"
"म...मां।" विकास के जिस्म का रोयां-रोयां खड़ा हो गया।
लहराकर रैना ने दोनों हाथों से उसका गिरेबान पकड़ा—फिर उसके हाथ कमीज फाड़ते हुए नीचे की तरफ गए—विकास ने उसे सम्भालने की कोशिश की, मगर—।
रैना धम्म से सड़क पर गिर पड़ी।
"म...मम्मी—मम्मी।" विकास चीखता हुआ झुका, किन्तु रैना बेहोश हो चुकी थी—लड़के की मुट्ठियां कसती चली गईं—जबड़े भिंच गए।
"तुम कानून के लम्बे हाथों से बचकर नहीं निकल सकोगे, विजय।" जीप ड्राइव करते हुए ठाकुर साहब ने कहा—"वैसे भी—ऐसे किसी मुजरिम को पुलिस पाताल से भी ढूंढ निकालती है, जिसने किसी पुलिस अफसर की हत्या की हो—भागने की कोशिश बेकार है—आत्मसमर्पण कर दो—मुमकिन है कि कानून तुम्हारे साथ उदारता बरते।"
ठाकुर साहब की कनपटी पर रिवॉल्वर रख विजय बोला—"जब शरीफ बच्चे कोई काम कर रहे होते हैं, बापूजान, तब बोलते नहीं हैं और इस वक्त आप जीप चला रहे हैं।"
"विजय।"
"वैसे भी—मरने से पहले अपना तुलाराशि सुपरिंटेंडेण्ट के पद से इस्तीफा दे चुका था।"
"व...वह—"
"वह रघुनाथ कम, इकबाल ज्यादा था—सच, मुझे बहुत दु:ख है कि वह मेरी गोली से मारा गया—खैर—अब हम काफी दूर निकल आए हैं—आप एक काम करें।"
"क्या?"
"अच्छे बच्चों की तरह चलती जीप से बाहर जम्प लगा दें।"
"क...क्या—?" ठाकुर साहब चौंक उठे—"इतनी तेज जीप में से?"
"क्या करूं बापूजान—? कानून के हाथ साले बहुत लम्बे हैं न—जीप रोक नहीं सकते, क्योंकि जीप के रुकते ही वे हमारी गर्दन पर पहुंच सकते हैं—इसलिए कूदो—हां—शाबाश—आप तो बहुत अच्छे बच्चे हैं न—अच्छा, मैं गिनती गिनता हूं—आपको तीन पर कूद जाना है—वन—टू—थ्री—।"
"मैं आ गया हूं गुरू—यदि मर्द के बच्चे हो और अपनी कोठी के किसी कोने में छुपे हो तो सामने आओ—मैं अपने पिता की मौत का बदला लेकर रहूंगा—यदि आप मेरी आवाज सुन रहे हैं और फिर भी सामने नहीं आ रहे तो मैं दावा कर सकता हूं कि आप किसी मर्द की औलाद नहीं हैं।" यूं ही अनाप-शनाप चीखता हुआ विकास विजय की कोठी में दाखिल हुआ।
जवाब में चारों तरफ सन्नाटा ही छाया रहा।
लम्बे—लम्बे कदमों के साथ एक से दूसरे कमरे में पहुंचता हुआ विकास चीख रहा था—"सामने आओ गुरू—यूं चेहरा छुपाकर आप बहुत दिन तक बच नहीं सकोगे।"
"क्या हुआ, विकास बेटे?"
लड़का बिजली के बेटे की तरह घूमा—कमरे के दरवाजे पर विजय का एकमात्र बूढ़ा नौकर पूर्णसिंह खड़ा था—कंधे पर अँगोछा डाले—उसकी तरफ बढ़ते हुए विकास ने पूछा—"क्या कुछ ही देर पहले यहां विजय गुरू आए थे, पूर्णसिंह काका?"
"न...नहीं—तो बेटे—लेकिन क्यों—तुम मालिक को इस तरह क्यों पुकार...?"
उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही विकास के दाएं हाथ की हल्की-सी कराट पूर्णसिंह की कनपटी पर पड़ी—पूर्णसिंह के कंठ से चीख निकली और वह लड़खड़ाकर फर्श पर ढेर हो गया।
उसे देखते ही ब्लैक ब्वॉय सीट से लगभग उछल पड़ा—"व...विकास।"
"गुरू कहां हैं, अंकल?"
"म...मुझे नहीं पता, लेकिन...।"
"ऐसा नहीं हो सकता, चीफ—ये नहीं हो सकता कि आपको गुरू का पता न हो—राजनगर की सारी पुलिस उन्हें ढूंढ रही है—राजनगर से बाहर निकलने वाला हर रास्ता बन्द कर दिया गया है—पुलिस से बचने के लिए वे सीधे यहीं आए होंगे।"
"यह तुम्हारा वहम है, विकास—वे यहां नहीं आए—मगर क्यों—तुम उन्हें इस तरह क्यों पूछ—"
"ख...खामोश रहो, चीफ।" गुर्राने के बाद एकाएक ही विकास चीख पड़ा—"खामोश रहो—यदि आपने बचने की कोशिश की तो अच्छा नहीं होगा—मैं जानता हूं कि आप सब कुछ जानते हैं—विक्रम, नाहर, परवेज, अशरफ या आशा में से किसी ने आपको रिपोर्ट जरूर भेज दी होगी—मैं ये हरगिज नहीं मान सकता कि इस कुर्सी पर बैठकर आप उससे अनजान हैं, जो हुआ है।"
"त...तभी तो कह रहा हूं—वह ठीक नहीं है, जो तुम कर रहे हो।"
कठोर स्वर—"ये मुझे आपसे नहीं पूछना चीफ कि क्या गलत और क्या सही है।"
"फिर भी—यदि तुम बहको तो तुम्हें सही मार्ग बताना हमारा फर्ज है।"
"मुझे विजय गुरू चाहिए, चीफ—बस।"
"ल...लेकिन क्यों?"
"क्योंकि मेरी मां को उनकी लाश चाहिए।"
ब्लैक ब्वॉय कह उठा—"तुम पागल हो गए हो क्या—उसे मारोगे, जिसने तुम्हें ताकत बख्शी?"
"उसके लिए, जिसने मुझे दूध बख्शा।"
"म...मगर—वह तुम्हारे गुरू हैं—तुम्हारे आदरणीय हैं, उन्होंने कदम-कदम पर हमेशा तुम्हारी प्राणरक्षा की है—याद करो विकास—क्या तुम्हें याद नहीं है कि उन्होंने तुम्हारे लिए क्या-क्या किया है?"
"याद है—सब कुछ याद है।"
"तो फिर?"
"उस सबका ये मतलब तो नहीं कि वे मेरे पिता की हत्या ही कर दें—मेरी मां की मांग में सिन्दूर की जगह खाक भर देने का अधिकार तो नहीं मिल गया उन्हें—वे मेरे गुरू हैं, मगर वह मेरा पिता था चीफ, जिसकी लाश चौराहे पर पड़ी रह गई—वह मेरी मां है, जिसकी चूड़ियों का कांच सड़क पर बिखर गया।"
"म...मगर—।"
"ग...गुरू—गुरू की जगह रहा, लेकिन पैदा करने वालों से बड़ा तो नहीं है—मुझे ये नहीं सोचना है कि वे मेरे गुरू हैं—मुझे सिर्फ इतना पता है कि उन्होंने मेरे पिता को मारा है और मुझे जन्म देने वाली मां ने अपने पति के हत्यारे की लाश मांगी है—दूध का वास्ता दिया है मुझे—इसी दूध की कसम चीफ, मां कर्ज मांगा नहीं करती, लेकिन जब मांगा है तो उसे हर हालत में मिलेगा।"
"ल...लेकिन तुम यह क्यों नहीं सोचते कि रघुनाथ इकबाल बन चुका था।
"वह सब नाटक था—एक ड्रामा।"
"लेकिन उन्हें नहीं मालूम था—जिस तरह सब धोखे में थे, उसी तरह वे भी धोखे में थे।"
"इसका ये मतलब तो नहीं कि उन्हें गोली ही मार दी जाए?"
"उन्होंने...।"
"चीफ—।" एकाएक ही विकास का स्वर अत्यन्त ठण्डा हो गया—"मैं किसी बहस में नहीं पड़ना चाहता—मुझे सिर्फ अपने सवाल का जवाब चाहिए—विजय गुरू कहां हैं?"
"कह चुका हूं कि वे यहां नहीं आए हैं।"
"पुलिस से बचने के लिए उनके पास इससे बेहतर जगह नहीं है।"
"फिर भी—वे यहां नहीं आए।"
"मुझे उम्मीद है कि वे जरूर आए हैं—यदि वे गुप्त भवन में कहीं हैं तो मेरी आवाज भी सुन रहे हैं।" कहने के बाद विकास अचानक ही ऊंची आवाज में चीखा—"अगर यदि यहां कहीं छुपे आप मेरी आवाज सुन रहे हैं गुरू, तो सुनो—इस तरह मुंह छुपा लेने से आप ज्यादा दिन तक नहीं बच सकेंगे—मेरा सामना करना होगा आपको—या तो मैं रहूंगा या आप—सामने आइए—वरना आपको सामने लाने के लिए मैं इस गुप्त भवन को जलाकर राख कर सकता हूं—आपकी कोठी में आग लगा सकता हूं—सामने आओ गुरू—वरना राजनगर में तबाही मचा डालूंगा मैं।"
"वे यहां नहीं हैं, विकास।"
"नहीं हैं तो आएंगे—आपसे सम्बन्ध स्थापित जरूर करेंगे वे—जो आपने सुना है—उनसे कहना—मुझे उनकी लाश चाहिए—बेहतर है कि वे आत्महत्या कर लें।" कहने के बाद वह मुड़ा और बाहर निकलने के लिए तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ गया।
"व...विकास।"
वह ठिठका—घूमा—"कहिए।"
"ये सब कुछ ठीक नहीं हो रहा है—खुद को सम्भालो, बेटे—अनर्थ हो जाएगा।"
"यह सब कुछ तो मेरी डैडी को मारने से पहले विजय गुरू को सोचना चाहिए था।"
"म...मगर—तुम सिर्फ किसी के बेटे ही नहीं हो—भारतीय सीक्रेट सर्विस के सदस्य भी हो तुम-बल्कि सबसे पहले तुम सीक्रेट सर्विस के सदस्य हो—बाद में कुछ और—मैं यानि सीक्रेट सर्विस का चीफ तुम्हें हुक्म देता हूं कि तुम विजय पर कोई आक्रमण नहीं करोगे।"
"और मैं—यानि रैना का बेटा यह आदेश मानने से इंकार करता हूं।"
"विकास!"
"कल शाम तक मेरा इस्तीफा आपकी टेबल पर पहुंच जाएगा।" एक झटके के साथ कहने के बाद विकास मुड़ा और फिर तेज कदमों के साथ वहां से निकल गया।
"मैं आपसे पूछता हूं, अशरफ अंकल-बोलो—विजय गुरू कहां हैं?"
"मैं नहीं जानता।"
कठोर स्वर—"आपको बताना होगा।"
"क्या मतलब—जब मैं कुछ जानता ही नहीं हूं तो बताऊंगा क्या?"
लम्बे लड़के ने एक एकदम बढ़ाया और झपटकर दोनों हाथों से अशरफ का गिरेबान पकड़ लिया, गुर्राया—"आप जानते हैं, अंकल, लेकिन आप बता नहीं रहे हैं।"
"इस बेहूदगी का क्या मतलब, विकास?" अशरफ दहाड़ा।
"मेरे मस्तक पर लगा टीका देख रहे हैं आप?"
"हां।"
"काहे का है?"
"लहू का।"
"नहीं।" विकास चीख पड़ा—"ये दूध का टीका है—मां के दूध का।" 
कहने के साथ ही विकास ने अशरफ के जबड़े पर इतनी जोर से घूंसा मारा कि हवा में उछलकर अशरफ अपने कमरे में पड़े सोफे से उछलकर फर्श पर जा गिरा और कदाचित् ऐसा इसलिए हो गया था, क्योंकि अशरफ को उससे इस किस्म की हरकत की बिल्कुल उम्मीद नहीं थी—इससे पहले कि वह सम्भलता, लम्बे लड़के की टांग चली—बूट की एक भरपूर ठोकर पड़ी।
एक चीख के साथ अशरफ लुढ़क गया।
उसके बाद—अशरफ ने उसे सम्भलने का एक भी मौका नहीं दिया—अशरफ यह सोचता-सोचता ही बेहोश हो गया कि विकास को आखिर हो क्या गया था?—फर्श पर बेहोश पड़े अशरफ को घूरता हुआ विकास बोला—"कुछ भी सही अंकल-गुरू तुम्हें मेरी कैद से छुड़ाने जरूर
आएंगे।"
"अरे!" फर्श पर गिरते ही विक्रम कह उठा—"तुम पागल हो गए हो क्या, विकास?"
"हां।" कहने के बाद विकास आगे बढ़ा—उसके नजदीक पहुंचा—झुका—एक हाथ से उसका गिरेबान पकड़कर ऊपर उठाता हुआ बोला—"मैं पागल हो गया हूं, अंकल-इसलिए कि मेरे डैडी मरे हैं—इसलिए कि मेरी मां ने दूध का वास्ता दिया है।"
"म...मगर—।"
विकास के घूंसे ने उसे पुनः हवा में उछाल दिया।
विकास ने सुनसान इलाके में स्थित एक पुराने मॉडल की इमारत के पोर्च में कार रोक दी—कार के रुकते ही चारों तरफ देखती हुई आशा कह उठी—"ये तुम मुझे कहां ले आए हो, विकास?"
"क्या आपको मुझ पर यकीन नहीं है, आन्टी?"
"अविश्वास का सवाल ही कहां है?"
"तो आइए—मैं यहां आपको एक तमाशा दिखाने लाया हूं।"
कार का दरवाजा खोलकर बाहर निकलती हुई आशा ने कहा—"यह तो तुम तभी से कह रहे हो, जब मुझसे मिलने मेरे फ्लैट पर पहुंचे—यह कहकर तुम मुझे अपने साथ लाए हो कि मुझे कोई बहुत बड़ा तमाशा दिखाने जा रहे हो, परन्तु एक बार भी मेरे इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि आखिर वह तमाशा क्या है?"
"कुछ ही देर बाद जवाब खुद मिल जाएगा—मेरे साथ चलिए।" कहने के साथ ही उसने कसकर आशा की कलाई पकड़ी और इमारत के गेट की तरफ बढ़ गया—असमंजस में फंसी आशा उसके साथ खिंचती चली गई—गेट पर एक मोटा ताला लगा था।
विकास ने जेब से एक चाबी निकालकर उसे खोला।
फिर विकास उसे सुनसान पड़ी एक बारहदरी से गुजारता हुआ इमारत के अन्दर ले गया—विकास की पकड़ इतनी सख्त थी कि आशा को अपनी कलाई किसी फौलादी पंजे में फंसी महसूस हो रही थी—इमारत के विभिन्न हिस्सों में से गुजरते हुए वे एक कमरे में पहुंच गए।
विकास ने आशा को फर्श के ठीक बीच में खड़ा किया और बोला—"यहां खड़ी रहो आन्टी—कुछ ही देर बाद आपको एक दिलचस्प तमाशा देखने को मिलेगा।"
उलझन में फंसी आशा उस स्थान पर खड़ी रही।
विकास कमरे की एक दीवार में लगे स्विच बोर्ड की तरफ बढ़ा—इधर उसने एक स्विच ऑन किया और उधर—आशा के पैरों तले का फर्श छोटे-छोटे दो किवाड़ों की तरह नीचे की तरफ खुल गया।
एक लम्बी चीख के साथ आशा उसमें समा गई।
स्विच ऑफ करते ही किवाड़ यथास्थान फिक्स हो गए—विकास के होंठों पर जहरीली मुस्कान नाच रही थी और उसकी आंखों में चमक रही थी—हिंसक चमक।
सिर्फ एक क्षण तक हवा में लहराने के बाद उसके जिस्म को झटका-सा लगा—वह किसी डनलप के गद्दे पर गिरी थी—उसी पर झूलती हुई-सी आशा ने अपने ऊपर छोटे-छोटे दो किवाड़ों को बन्द होते देखा—उसके चेहरे पर हैरत, अविश्वास, भय एवं उलझन के संयुक्त भाव थे।
"वैलकम आशा—वैलकम।"
नाहर की आवाज सुनकर आशा इस तरह उछल पड़ी, जैसे अचानक ही उसे किसी बिच्छू ने डंक मार दिया हो—बड़ी तेजी से उसने आवाज की दिशा में देखा—नाहर पत्थर के बने एक चबूतरे पर लेटा मुस्करा रहा था—अभी आशा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि परवेज की आवाज—"यहां पड़े हम यही सोच रहे थे आशा कि आखिर अभी तक तुम यहां क्यों नहीं पहुंची हो?"
आशा ने चकित दृष्टि से उधर देखा और फिर उसी कमरे में अशरफ और विक्रम को देखकर तो वह चौंक ही पड़ी। मुंह से बरबस ही निकला—"तुम सब यहां!"
"एक-एक करके सभी पहुंच गए।"
"म...मगर तुम्हें यहां किसने पहुंचाया?"
विक्रम ने बताया—"जिसने तुम्हें पहुंचाया है।"
"व...विकास ने?"
उनमें से कोई कुछ नहीं बोला—वह काफी बड़ा और गोल कमरा था—कमरे का व्यास बीस फुट तो रहा ही होगा—दीवारों के सहारे पत्थर के चबूतरे बने हुए थे—चारों ने एक-एक चबूतरा कब्जा रखा था—सारे कमरे में चार इंच मोटा डनलप का एक गद्दा बिछा हुआ था—उन्हें देखती हुई वह स्वयं ही बोली—"ल...लेकिन—हम सबको यहां एक ही स्थान पर इकट्ठा करने के पीछे विकास का मकसद क्या है?"
"उसने हमें इकट्ठा नहीं—कैद किया है।"
"क्यों?"
"कमाल है! उसने तुम्हें नहीं बताया—वैसे भी तुम होशो-हवास में इस तहखाने में गिरी हो, इससे लगता है कि विकास का तुम्हें यहां लाने का तरीका सबसे जरा अलग रहा है।"
"मैं समझी नहीं।"
"हमारी आपस की बातों से जो निचोड़ निकला है, वह यह है कि उसने हम सबके फ्लैटों पर जाकर अलग-अलग सबको बेहोश किया—जब आंखें खुलीं तो हमने खुद को इसी कैद में पाया, लेकिन तुम अपने होशो-हवास में यहां पहुंची हो—जाहिर है कि उसका तुम्हें यहां लाने का तरीका जरा अलग रहा।"
"मुझे तो वह यह कहकर लाया था कि कोई तमाशा दिखाने ले जा रहा है और फिर धोखे से यहां फंसा दिया।"
"इसीलिए तुम्हें नहीं मालूम कि हम सबको कैद करने के पीछे उसका क्या मकसद हैं!"
"क्या मतलब?"
"उसे विजय चाहिए, आशा—रघुनाथ की हत्या करने के बाद विजय गधे के सींग की तरह गायब हो गया है—रैना ने दूध का वास्ता देकर विकास से विजय की लाश मांगी है—विकास पागलों की तरह विजय को ढूंढता फिर रहा है—हमें उसने दो बातें सोचकर कैद किया है, पहली तो यह है कि यदि हम आजाद रहे तो उसके ख्याल से विजय की मदद कर सकते हैं—दूसरे, उसका अनुमान ये है कि विजय हमें इस कैद से निकालने की कोशिश जरूर करेगा।"
"अजीब घटनाएं घट रही हैं!" आशा बोली—"क्या तुम्हारी समझ में कुछ आ रहा है, अशरफ—ये सब क्या चक्कर चल रहा है—पहले रघुनाथ इकबाल बन गया—उसने मोन्टो तक को मार दिया—फिर विजय ने रघुनाथ को ही गोली मार दी—क्यों अशरफ—आखिर क्यों—उत्तेजित होकर विकास से इस किस्म की हरकत की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन विजय से नहीं—फिर उसने ऐसा क्यों कर दिया?"
"मैं क्या करता, गुलफाम? मैं क्या करता?" दांत भींचकर कसमसाते हुए विजय ने दो-तीन मुक्के जोर से दीवार में मारे—"मोन्टो की लाश देखकर मैं अपने होशो-हवास में न रहा—रघुनाथ से बदला लेने के लिए निकल पड़ा—फिर भी मैं उसे जान से मारने की बेवकूफी नहीं कर सकता था—मैं उस पर अपना गुस्सा उतारकर—उसे पुलिस को सौंप देना चाहता था, किन्तु उस कम्बख्त ने रैना बहन पर ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं—मैं क्या करता, गुलफाम-तू ही सोच—जिसने बिना हिचक के मोन्टो को मार डाला—उसे भला रैना को मारने में क्या देर लगती—उस वक्त मैं सिर्फ इतना ही सोच सका कि यदि मैं चूक गया तो अगले ही पल मुझे मोन्टो की तरह रैना बहन की लाश भी देखनी होगी।"
"ल...लेकिन मास्टर—रैना बहन का कहना तो ये है कि रघुनाथ नाटक कर रहा था।"
"यही सुनकर तो मेरे पैरों तले से धरती खिसक गई है—होशो-हवास उड़ गए—मेरा दिमाग चकरा गया, गुलफाम-मैं ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि अपना तुलाराशि कोई चाल भी चल सकता है—चाल भी ऐसी—इतनी खतरनाक-उफ्—अपने जीवन के आखिरी क्षणों में कहीं अपने तुलाराशि का दिमाग तो खराब नहीं हो गया था?"
"अब क्या करने का इरादा है, मास्टर?"
विजय घूमा—उसका सारा चेहरा आंसुओं में डूबा हुआ था—आंखें जी भरकर रोने के कारण बुरी तरह सुर्ख और सूजी हुई थीं—गुलफाम की तरफ देखता हुआ वह बोला—"वह मेरा दोस्त ही नहीं गुलफाम-मेरी सबसे प्यारी बहन का पति भी था और मैंने उसका सुहाग उजाड़ दिया है—उफ्फ—एक भाई ने अपनी बहन की मांग में खाक भर दी है—ऐसे भाई को इस दुनिया में रहकर एक भी सांस लेने का हक नहीं है, गुलफाम-दूसरी तरफ तुम्हारे आदमियों ने रिपोर्ट दी है कि रैना ने विकास को दूध का वास्ता देकर मेरी लाश मांगी है—ऐसे हालातों में जी तो यह चाहता है कि या तो स्वयं ही अपने मस्तक में गोली उतार लूं या उस सात फुटे के सामने जाकर सीना तान दूं—कहूं कि—ले—इस सीने के परखच्चे उड़ा दे—दूध की कीमत चुका दे—विजय नामक इस कुत्ते की लाश ले जाकर रैना बहन के चरणों में डाल दे।"
"म...मास्टर।" गुलफाम तड़प उठा—"प...प्लीज—ऐसा मत कहो, मास्टर।"
"मैं क्या करूं—? मैं क्या करूं, गुलफाम?" विजय चीख पड़ा।
"उस मुजरिम का पता लगाइए मास्टर, जिसकी वजह से यह सब कुछ हुआ है—सुपरिंटेंडेण्ट साहब को गोली आपने नहीं, उसने मारी है—उसी के फैलाए हुए जाल में फंसकर आपने—।"
"य...यह भी तो मेरा गुनाह है गुलफाम कि मैं किसी के जाल में फंसा—मैं, जो यह समझता था कि किसी के जाल में नहीं फंस सकता—उल्टे किसी को जाल में फंसा सकता हूं।"
"आप इंसान हैं, मास्टर—भगवान तो नहीं, जो कभी धोखा खा नहीं सकता।"
"मैं तो इंसान भी नहीं रहा, गुलफाम।"
"मास्टर।"
"लेकिन दिल में उसे देखने—उससे टकराने और उसकी लाश बिछा देने की तमन्ना जरूर है, जिसने यह सब कुछ किया है—बस, अपनी इस आखिरी तमन्ना को पूरी करने के बाद मैं खुद को विकास के हवाले कर दूंगा।"
गुलफाम की आवाज भर्रा गई—"आप ऐसा क्यों कहते हैं, मास्टर?"
"क्या तुम मेरी कुछ मदद नहीं कर सकते, गुलफाम?"
"सवाल पूछकर—कम-से-कम मेरा अपमान करने का हक तो आपको बिल्कुल नहीं है, मास्टर।"
"मुझे आदमी चाहिए।"
"गुलफाम के हाथ से आपने चाकू जरूर छीन लिया, मास्टर—आपने एक ऐसे गुण्डे को जीने का सही मकसद जरूर बता दिया, जिसके कहर से कभी सारा राजनगर कांपता था, किन्तु राजनगर में आज भी जरायमपेशा में एक भी आदमी ऐसा नहीं है, जो गुलफाम की इज्जत न करता हो। आप जितने आदमी चाहेंगे—प्रबन्ध हो जाएगा।"
"मुझे सिर्फ दो हरफनमौला चाहिएं।" 
"अभी लो मास्टर।" कहकर गुलफाम ने ऊंची आवाज में अपने गुर्गों को पुकारा—"अबे जो टिंकू और टिंगा—कहां मर गए सालो?"
दो लड़के सामने आ खड़े हुए।