हल्के से झटके के साथ लिफ्ट रुकी । दरवाजे के दोनों पल्ले खुले । महाजन बाहर निकला । ये गैलरी थी । सन्नाटा फैला था । कहीं से कोई आवाज नहीं उभर रही थी । महाजन की सतर्क निगाहें हर तरफ जा रही थीं ।
सन्नाटा जैसे उसे सावधान रहने का इशारा कर रहा था । महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकाली और घूँट भरा । साथ ही ऐसी कोई आवाज सुनने की चेष्टा करने लगा कि मालूम हो की मोना चौधरी किस तरफ है ।
कई पल बीत गये ।
कोई आहट, आवाज नहीं उभरी ।
महाजन दबे पाँव से एक तरफ बढ़ा । उसके कदमों की मध्यम-सी आवाज उठने लगी । महाजन के दाँत भिंचे हुए थे । वह स्पष्ट तौर पर नहीं जानता था कि रहस्यमय जीव कहाँ, किस ऑफिस में हैं ? बाहर से इमारत की किस खिड़की पर वह दिखाई दिया था, उस खिड़की के ऑफिस को इस तरह ढूँढ़ पाना आसान नहीं था ।
गैलरी में आगे तक बढ़ गया महाजन ।
परंतु रहस्यमय जीव किधर है, इस बात का अहसास नहीं हो सका ।
आखिरकार महाजन ने वहाँ के खुले ऑफिसों के भीतर देखना शुरू किया । ज्यादातर ऑफिस खुले हुए थे । कुछ बंद थे तो पूरी तरह बंद थे । चूँकि सोनी की मौत की बात, ऑफिस खुलने के वक्त से पहले ही खुल गई थी । इसीलिए ज्यादा ऑफिस नहीं खुल पाये थे ।
महाजन को रहस्यमय जीव की तलाश में आधा घंटा बीत गया ।
रहस्यमय जीव की तलाश लम्बी होने पर महाजन के शरीर में तनाव बढ़ने लगा ।
और तब वह एक बंद ऑफिस के दरवाजे के सामने से गुजरा था कि तभी उस ऑफिस के दरवाजे पर जोरों से धक्का दिया गया । महाजन ठिठक गया । नजरे उस दरवाजे पर जा टिकीं ।
तभी दूसरी टक्कर भीतर से मारी गई । वह दरवाजा इतना दमदार नहीं था कि उन जबरदस्त चोटों को सह पाता । दूसरी चोट लगते ही दरवाजा भीतर से थोड़ा-सा टूटकर अलग हुआ ।
दरवाजे की टूटी जगह से उस जीव का शरीर दिखा ।
महाजन पहचानने में गलती नहीं कर सकता था । वह उस जीव का ही शरीर था । लेकिन पहले उसने दरवाजा क्यों नहीं तोड़ा ? अब क्यों दरवाजा तोड़ रहा है । खासतौर से तब, जब वह दरवाजे के पास... ?
इन्हीं सोचों के साथ महाजन के होंठ भिंच गये ।
वह दरवाजे के पास था । उसके शरीर की महक को रहस्यमय जीव ने महसूस कर लिया होगा । तभी तो वह दरवाजा तोड़ रहा था ।
यानी कि दरवाजा भीतर की तरफ से बंद है ।
मोना चौधरी कहाँ है ?
क्या भीतर ?
भीतर है तो दरवाजा भीतर से बन्द क्यों है ?
उसी पल दरवाजे से जोरों से धक्का दिया गया ।
दरवाजा टूटकर खुलने लगा ।
वह नजर आया । चमकती आँख उस पर टिकी थी ।
उस पर निगाह पड़ते ही महाजन का दिल जोरों से धड़का । आँखों में दहशत नाच उठी । उसके देखते-ही-देखते उस जीव ने दरवाजे के पल्लों को पूरी तरह रास्ते से हटाया और कदम उठता हुआ बाहर आ गया ।
महाजन से वह मात्र दो-तीन कदमों की दूरी पर रुका । एकटक महाजन को देख रहा था । उसे इतने करीब पाकर महाजन की साँसें जैसे थमने लगी थीं । चेहरे पर भय के भाव आ ठहरे थे । वह भूल गया था कि मोना चौधरी के पीछे-पीछे आया है । यही सोच उसके जेहन पर हावी हो गई कि इसका मुकाबला नहीं किया जा सकता । गोली से इसकी जान को कुछ नहीं होता और ताकत से इसे परास्त नहीं किया जा सकता ।
महाजन को अपनी मौत आँखों के सामने दिखाई दे रही थी । बचने का कोई रास्ता अब नहीं था । हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा और पीछे हटा ।
रहस्यमय जीव उसे एकटक देख रहा था ।
महाजन ने उसके पार ऑफिस के भीतर झाँकना चाहा । मोना चौधरी को देखना चाहा, परन्तु ऐसा कुछ भी न दिखा । महाजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और निगाहें पुनः रहस्यमय जीव पर टिका दीं । तभी पीछे दीवार से उसकी पीठ जा सटी और उसका पीछे होना रुक गया ।
महाजन ने मौत को बेहद करीब महसूस किया । हाथ में पकड़ी बोतल से घूँट भरा । होंठ भिंचे और पैनी निगाह पाँच-छः कदमों की दूरी पर मौजूद जीव पर थी ।
एकाएक रहस्यमय जीव मुस्कुराया । उसके मोटे-भद्दे होंठ फैल गए ।
महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे । आँखें फैलकर चौड़ी-सी हो गई । उसके मुस्कुराने को महाजन समझ नहीं पाया था । कैसी मुस्कान थी उसकी ? क्यों मुस्कुरा रहा था वह ?
तभी उसने अपनी बाँह आगे की ओर हैलो के ढंग में हिलाता महाजन की तरफ बढ़ा ।
महाजन के मस्तिष्क को तीव्र झटका लगा ।
ये हैलो करना चाहता है ।
वह दो कदम पहले ठिठका । वैसे ही मुस्कुरा रहा था । हाथ आगे की तरफ बढ़ा हुआ था ।
महाजन के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे । वह ठगा-सा खड़ा देखता रह गया रहस्यमय जीव को । एक बार भी कोशिश नहीं की उसका बढ़ा हाथ थामने की ।
उसी पल रहस्यमय जीव ने अपना बढ़ा हुआ हाथ आगे किया और महाजन का हाथ थामकर हैलो के ढंग में हिलाने लगा । महाजन हक्का-बक्का-सा रहस्यमय जीव को देखे जा रहा था ।
रहस्यमय जीव ने उसका हाथ छोड़ दिया । चेहरे पर वैसी ही मुस्कान फैली रही ।
महाजन की समझ में न आया कि ये क्या हो रहा है ? रहस्यमय जीव ने तो उसे देखते ही खत्म कर देना था । लेकिन ये तो हाथ मिला रहा है । दोस्ताना माहौल पैदा कर रहा है । क्यों ? कहीं ऐसा तो नहीं, इसकी नाराजगी मोना चौधरी के प्रति हो । उसके लिए न हो ।
महाजन नहीं समझ पाया कि वह कितना सही सोच रहा है और कितना गलत ?
उसे सिर्फ इतना ही ध्यान था कि वह बच गया । रहस्यमय जीव ने उसकी जान नहीं ली ।
तभी रहस्यमय जीव ने पुनः हाथ आगे बढ़ाया । हाथ हिलाया । महाजन ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और तीव्र हिचकिचाहट के साथ हाथ आगे बढ़ाया तो उसने महाजन का हाथ थामकर हिलाया फिर छोड़ दिया । उसके हाथ की खुरदुरी चमड़ी का एहसास महाजन को हुआ । वह अपनी हथेली पैंट के साथ रगड़ते उसे देख रहा था ।
रहस्यमय जीव के चेहरे पर मुस्कान थी । वह महाजन को देख रहा था ।
उसी पल महाजन अपनी जगह से हिला और उस जीव के बगल से होकर आगे बढ़ा और उस ऑफिस में चला गया, जिसका दरवाजा तोड़कर वह जीव बाहर निकला था ।
भीतर कटा हुआ, नाइलोन की डोरियों वाला जाल पड़ा था । महाजन के दाँत भिंच गए । उस कटे जाल को देखकर वह समझ चुका था कि कुछ लोगों ने इसे जाल में कैद किया होगा और यहाँ ले आये, परन्तु ये आजाद हो गया । जिस युवती की हत्या करके शव खिड़की से नीचे फेंका था, क्या वह युवती भी इसे कैद करने वाले लोगों में थी ?
महाजन हर बात, हर सोच से अंजान था । परन्तु इस बात से राहत मिली थी कि मोना चौधरी यहाँ नहीं आई थी । उसे कोई खतरा नहीं । वह जहाँ भी है ठीक है ।
महाजन ने रहस्यमय जीव को देखा ।
वह गैलरी में खड़ा उसे देख रहा था । महाजन ऑफिस से बाहर निकला । उसके पास पहुँचा और मुस्कराकर उसकी तरफ हैलो के ढंग में हाथ बढ़ाया तो जीव ने उसका हाथ थाम लिया ।
सब ठीक था ।
महाजन का मन पूरी तरह तसल्ली से भर चुका था । लेकिन अब क्या करे ? ये जीव यहाँ है । बाहर इसकी ताक में पुलिस है । पुलिस इसे नहीं छोड़ेगी । वह इसे कैद करना चाहेगी । नहीं तो खत्म करने की कोशिश करेगी । जो भी होगा, ठीक नहीं होगा । इसकी जान लेना आसान नहीं था । मरने से पहले जाने कितनों की जानें लेगा ।
अच्छी बात तो ये थी कि ये पुलिस के सामने न पड़े ।
महाजन का मस्तिष्क तेजी से सोचों के साथ दौड़ रहा था ।
एक ही रास्ता था कि रहस्यमय जीव को, किसी की निगाहों में आये बिना यहाँ से निकाल ले जाये । लेकिन ऐसा कैसे सम्भव था । बाहर हर तरफ पुलिस-ही-पुलिस थी । उनकी निगाहों में आये बिना इसे बाहर निकाल ले जाना सम्भव नहीं था । ये पुलिस वालों की निगाहों में आ गया तो जो भी होगा, बहुत गलत होगा ।
महाजन ने पुनः रहस्यमय जीव को देखा ।
अपने को देखता पाकर रहस्यमय जीव मुस्कुराया ।
उसे देखते हुए महाजन गहरी सोच में डूबा रहा । इस दौरान रह-रहकर बोतल से घूँट भरे । एकाएक वह ठिठका । आँखें सिकुड़ीं । बोतल को वापस पैंट में फँसा लिया । इतनी बड़ी इमारत से बाहर निकलने का इमरजेंसी रास्ता भी होगा । आपातकाल के लिए अवश्य लिफ्ट होगी । वहाँ से निकला जा सकता था । कोई ये सोचा भी नहीं सकता कि ये जीव उस रास्ते से निकलेगा ।
ऐसे में वह रास्ता हर खतरे से परे होगा ।
महाजन के होंठ भिंच गए ।
इस रास्ते से इस जीव को ख़ामोशी से बाहर ले जाया जा सकता था । तब शायद उन्हें कोई नहीं देख पायेगा । देखा भी तो सब को मालूम होने से पहले, वक्त रहते, जीव को लेकर दूर निकल जायेगा ।
लेकिन इमरजेंसी रास्ता है किधर ?
एक घण्टा होने को आ रहा था महाजन को आठवीं मंजिल पर इमरजेंसी रास्ता तलाश करते हुए । रहस्यमय जीव उसके साथ पीछे-पीछे था । वह ज्यादा पीछे रह जाता तो महाजन उसे साथ आने का इशारा करता । वह जल्दी से करीब आ जाता । महाजन की मौजूदगी से जीव उत्साह में लग रहा था ।
आख़िरकार आठवीं मंजिल के एक कोने में बन्द लिफ्ट दिखाई दी । जिस पर ‘आपातकालीन रास्ता’ की पट्टी लगी हुई थी । महाजन जल्दी से पास पहुँचा । लिफ्ट के दोनों ग्रिल गेट बन्द थे । उस पर जंजीर लपेटकर छोटा-सा ताला लगा रखा था । महाजन ने ताला चेक किया । वह हल्की-सी चोट से टूटने वाला ताला था । महाजन जल्दी कहीं से लकड़ी की फट्टी तलाश कर ले आया और ताले पर हौले-हौले चोटें मारने लगा ।
ज्यादा देर नहीं लगी । पाँच-सात चोटों में ही ताला टूट गया ।
☐☐☐
सात पुलिस कमिश्नरों में एक रामकुमार भी था । उनके पास मौजूद पुलिस इंस्पेक्टर में एक इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी भी था ।
एक तरफ खड़े वे सब बातचीत में काफी देर व्यस्त थे ।
उनकी बातचीत का मुख्य मुद्दा रहस्यमय जीव ही था जो कि इमारत में मौजूद था और उस पर काबू कैसे पाया जाये ? क्योंकि काफी वक्त बीत चुका था, वह बाहर नहीं निकला था । आठवीं मंजिल की खिड़की से झाँकते उस जीव को दो-तीन बार अवश्य देखा था ।
“वो अभी तक बाहर नहीं निकला है ।” एक पुलिस कमिश्नर ने गंभीर स्वर में कहा, “उसे अभी तक बाहर आ जाना चाहिए था ।”
“कोई जरूरी तो नहीं कि वो बाहर आये ।” दूसरे पुलिस कमिश्नर ने बगल में खड़े पुलिस वाले को देखा ।
“लेकिन हम कब तक यहाँ खड़े रहेंगे ।” तीसरा पुलिस कमिश्नर बोला, “उसे बाहर निकालना चाहिए ।”
“उसे बाहर निकालने के लिए भीतर जाना पड़ेगा ।” कमिश्नर रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “और ऐसा कौन है जो अपनी जान खतरे में डालकर उस जल्लाद के सामने जाना चाहेगा, जबकि कुछ घण्टे पहले ही उसने एक युवती को वहशी ढंग से मारकर आठवीं मंजिल की खिड़की से नीचे फेंका है ।”
“एक बात समझ में नहीं आ रही ।”
“क्या ?”
“हम उसे वहाँ ढूँढ़ रहे थे । वो यहाँ कैसे आ पहुँचा ? किसी को इधर आते वो दिखा भी नहीं ।”
“नहीं नजर आया होगा । आया होता तो पुलिस को खबर अवश्य मिल जाती ।”
सब पुलिस वाले गंभीर से एक-दूसरे को देख रहे थे ।
कुछ पलों के लिए चुप्पी छा गई थी उनके बीच ।
“कुछ जवानों को भीतर भेजना चाहिए । आठवीं मंजिल पर ।” एक पुलिस कमिश्नर ने कहा ।
“भीतर ?” दूसरे कमिश्नर ने उसे देखा, “वो क्यों ?”
“उस जल्लाद को खत्म करने के लिए या उसे इमारत से बाहर निकालने के लिए ।”
इन शब्दों के बाद वे एक-दूसरे को देखने लगे ।
“उस जल्लादी जीव को गोलियाँ लगी हुई हैं ।” कमिश्नर रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा, “परन्तु गोलियों का असर उस पर नहीं हुआ । वो नहीं मरा । सामने वाले को मार देता है वो । सब के सामने वो दो पुलिस वालों को मार गया था । हथियारबंद अन्य पुलिस वाले भी वहाँ थे । कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सका । ऐसे में अगर अब पुलिस वाले भीतर जायेंगे तो वो कुछ भी नहीं कर सकेंगे । उसे नहीं मार सकेंगे । अपनी ही जान गँवा बैठेंगे ।”
रामकुमार की बात सही थी ।
सब एक-दूसरे को देखने लगे ।
“बात तो तुम्हारी ठीक है रामकुमार ! लेकिन हम कब तक यहाँ खड़े रहेंगे ?”
“जब तक वो खुद ही बाहर नहीं आता ।”
“माना । बाहर आ गया तो उसका क्या किया जायेगा ?”
सब पुलिस वाले उस कमिश्नर को देखने लगे ।
“मैंने पूछा है रामकुमार कि अगर वो बाहर आ गया तो क्या होगा ? क्या तब हम उस पर गोलियाँ चलाएँगे ? गोलियाँ तो उस पर असर नहीं करतीं । ऐसे में वो फिर पुलिस वालों को या अन्य लोगों को मारता हुआ भाग खड़ा होगा ।”
रामकुमार के चेहरे पर बेबसी से भरी सख्ती छा गई ।
“तो तुम क्या सोचते हो कि पुलिस वालों को भीतर भेजा जाये ।”
“मैं ये नहीं कहता । मेरा तो मतलब है कि उस जल्लादी जीव के बारे में कुछ किया जाये ।”
“क्या करूँ ?” अन्य पुलिस कमिश्नर बोला, “गोलियाँ उस पर असर नहीं करतीं । उसके सामने कोई जाये तो वो उसे मार देता है । इसके अलावा कोई तीसरा रास्ता है नहीं कि उस पर अमल किया जा सके ।”
वे एक-दूसरे को देखने लगे ।
“मैं भीतर जाऊँगा सर !” तभी इंस्पेक्टर मोदी कह उठा ।
सब की निगाह मोदी की तरफ उठी ।
“तुम ?” रामकुमार की आँखें सिकुड़ीं ।
“यस सर !”
“क्या करोगे भीतर जाकर ?”
“मैं उसे अपने पीछे किसी तरह बाहर लाने की कोशिश करूँगा ।” मोदी ने भिंचे स्वर में कहा ।
“बाहर फिर क्या होगा ?” अन्य पुलिस कमिश्नर ने कहा, “यहाँ आकर तो... ।”
“जब तक वो बाहर आएगा ।” मोदी ने उस कमिश्नर को देखा, “तब तक आप सब उसे कैद करने का इंतजाम करेंगे । उसे बाहर तक लाने में कुछ वक्त लगेगा । तब तक इंतजाम किया जा सकता है ।”
“कैसा इंतजाम ?” रामकुमार ने कहा, “वो ताकतवर है । उसे नहीं पकड़ा... ।”
“सर !” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “बेकाबू, वहशी जानवरों को पकड़ा जा सकता है तो इस जीव को क्यों नहीं पकड़ा जा सकता । सोच-समझकर कोशिश किया जाये तो ये काम मुश्किल नहीं ।”
रामकुमार होंठ भींचें मोदी को देखता रहा ।
“वहशी जानवरों को पकड़ने वाला लोहे का मजबूत पिंजरा फौरन मँगवाना चाहिए ।” एक इंस्पेक्टर कह उठा, “जब वो जीव इमारत से बाहर निकले तो उसे पिंजरे में फँसाने की चेष्टा करनी चाहिए ।”
रामकुमार ने उस इंस्पेक्टर को देखा ।
अन्य कमिश्नर भी उसे देखने लगे ।
“तुम ठीक कहते हो । उसे मजबूत पिंजरे में फँसाया जा सकता है ।” एक कमिश्नर ने कहा ।
“लोहे का मजबूत पिंजरा कब तक यहाँ मँगवाया जा सकता है ?”
“आधा घण्टा लगेगा ।”
“ये काम जल्दी करो ।”
तुरन्त ही तीन पुलिस वाले वहाँ से हटकर एक तरफ बढ़ गए । रामकुमार ने इंस्पेक्टर मोदी को देखा ।
“मोदी !” रामकुमार का स्वर गंभीर था, “वो जल्लाद तुम्हारा शिकार भी कर सकता है ।”
“यस सर !” मोदी के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान उभरी, “खतरा है । लेकिन मैं उसे बाहर भी ला सकता हूँ ।”
“अगर हम उसके बाहर आने का इंतजार करें तो शायद ज्यादा बेहतर... ।”
“आप ठीक कह रहे हैं ।” मोदी ने हौले से सिर हिलाया, “लेकिन क्या मालूम वो रात तक भी बाहर न निकले । ऐसे में हम कब तक यहाँ खड़े रहेंगे । वैसे भीतर देखने वालों की निगाहों में तो वो सिर्फ साधारण जीव ही है । कल के अख़बारों में यकीनन पुलिस वालों के खिलाफ ये बात होगी कि वो रहस्यमय जीव इमारत के भीतर था । पुलिस बाहर डेरा डाले रही परन्तु जीव को पकड़ने भीतर नहीं गई । ऐसे में हमारी क्या स्थिति होगी ?”
“लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि पुलिस वाले भीतर जाकर जान गँवा दें ।” दूसरे कमिश्नर ने कहा ।
“मैं जान गँवाने नहीं जा रहा । अपने फर्ज को पूरा करने जा रहा हूँ ।” मोदी कह उठा, “उस रहस्यमय जीव को इमारत से बाहर निकालना है कि उसे पकड़ सकें । अगर उसे पकड़ने सब भीतर गए तो वो कइयों की जानें ले लेगा ।”
“तुम कैसे इमारत से बाहर ले आओगे ? वो आठवीं मंजिल पर है ।” रामकुमार ने कहा ।
“इस बारे में तो सोचा नहीं सर !” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “मेरे ख्याल में वो मेरे पीछे-पीछे ही बाहर आएगा । जब वो मेरे को देखेगा तो मुझे पकड़ना चाहेगा । उससे बचकर मैं बाहर की तरफ भागूँगा । वो मेरे पीछे होगा । कुछ इसी तरह उसे बाहर लाने की कोशिश करूँगा । शायद कोई और रास्ता भी समझ में आ जाये ।”
“लेकिन इसमें तुम्हें खतरा है । वो जीव तुम्हें पकड़ सकता है । मार सकता है ।” अन्य इंस्पेक्टर कह उठा ।
“खतरा तो हर काम में है । खतरे की वजह से हाथ-पर-हाथ रखे बैठा नहीं जा सकता ।”
“अकेले भीतर जाओगे ?' रामकुमार ने गंभीर स्वर में पूछा ।
“यस सर ! मैं अपने साथ चलने के लिए किसी को मजबूर नहीं... ।”
“मैं तुम्हारे साथ चलूँगा इंस्पेक्टर मोदी !” दुलानी कह उठा । मोदी ने उसे देखकर सिर हिलाया ।
“मोदी !” रामकुमार का स्वर गंभीर ही था, “मैं भी तुम्हारे साथ... ।”
“नो सर ! दो से ज्यादा को भीतर नहीं जाना चाहिए । ज्यादा लोग होंगे तो जान जाने का खतरा है । कोई-न-कोई उस जीव की पकड़ में आ जायेगा । इंस्पेक्टर जयंत मेरे साथ जा रहा है । ये ठीक है । हम पहले भी एक साथ काम कर चुके हैं । एक-दूसरे को समझते हैं ।” इंस्पेक्टर मोदी का स्वर भी गंभीर था ।
कमिश्नर रामकुमार होंठ भींचकर रह गया । मोदी ने ठीक ही तो कहा था कि ज्यादा लोगों का साथ में भीतर जाना खतरा पैदा कर सकता था । एक-दो लोग तो जीव से खुद को आसानी से बचा सकते हैं ।
“इंस्पेक्टर मोदी, मैं भी तुम्हारे साथ जाऊँगा !” अन्य इंस्पेक्टर ने कहा ।
“मैं भी साथ चलूँगा ।” दूसरा इंस्पेक्टर कह उठा ।
एक और इंस्पेक्टर ने भी साथ चलने को कहा ।
लेकिन इंस्पेक्टर मोदी ने स्पष्ट तौर पर उन्हें साथ चलने को मना किया और बोला ।
“सर ! मैं इंस्पेक्टर जयंत के साथ भीतर जा रहा हूँ ।”
“बचकर रहना मोदी !” रामकुमार ने व्याकुल निगाहों से उसे देखा, “वो जीव जल्लाद है । जयंत, तुम भी ।”
“हम सतर्क रहेंगे सर !”
“लोहे का पिंजरा कुछ देर में यहाँ पहुँच जायेगा ।” रामकुमार के होंठ भिंच गए ।
“सर !” इंस्पेक्टर मोदी ने रामकुमार को देखा, “अगर वो जीव बाहर आ जाये तो किसी भी स्थिति में उस पर गोली चलाने की कोशिश न की जाये । गोली लगने की स्थिति में वो और भी जल्लाद-सा हो जाता है ।”
“ठीक है ! ये ऑर्डर हर पुलिस वाले तक पहुँच जायेगा ।” रामकुमार कहते हुए सिर हिला उठा ।
मोदी ने जयंत को देखा ।
“आओ जयंत !”
दोनों इमारत के भीतर की तरफ बढ़ गए । गंभीर चेहरों पर दृढ़ता लिए ।
☐☐☐
“मोदी !” इमारत के भीतर प्रवेश करके दोनों ठिठके । इंस्पेक्टर जयंत बोला, “किधर से जाना है, लिफ्ट से या सीढ़ियों से ?”
होंठ भींचें मोदी ने पहले सामने दिखाई दे रही सीढ़ियों को, फिर दायीं तरफ लिफ्ट को देखा ।
“क्या सोच रहा है ?” जयंत ने उसे देखा ।
“जयंत !” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “हमारा मुकाबला अपराधियों से नहीं बल्कि ऐसे जीव से है । जो खतरनाक है, जल्लाद है और उसके बारे में हम ज्यादा जानकारी भी नहीं रखते । बहुत सोच-समझकर चलना है हमें ।”
“मैंने अखबार में उस जीव की तस्वीर देखी है ।” कहने के साथ ही जयंत ने गहरी साँस ली, “कितना अजीब है वो । ऐसा जीव तो मैंने पहले कभी देखा-सुना नहीं ।”
“मैंने उसे एक दिन अपनी आँखों से देखा था, जब पुलिस वालों ने उसे घेरा था ।”
“तब मैं वहाँ नहीं था । उसे देखकर तुम्हें डर नहीं लगा ?”
“डर लगने का समय नहीं मिला ।” मोदी ने इंकार में सिर हिलाया, “मैं तो उसकी विचित्र बनावट को ही देखता रह गया । मुझे तो पूरा विश्वास है कि वो हमारी जमीन का नहीं है ।”
“ओह !”
“अगर उसे जिन्दा पकड़ लिया गया तो अच्छी तरह मालूम हो सकेगा कि वो क्या है ।” मोदी की निगाह जयंत पर आ ठहरी, “हम सीढ़ियाँ तय करके ऊपर चलें तो ज्यादा ठीक रहेगा ।”
“लिफ्ट से हम जल्दी आठवीं मंजिल पर पहुँच सकते हैं ।” जयंत ने मोदी को देखा ।
“हम उस जीव के पास पहुँचना चाहते हैं । आठवीं मंजिल जल्दी और देर से पहुँचने से हमें कोई मतलब नहीं होना चाहिए । क्या वो जीव लिफ्ट का इस्तेमाल कर सकता है ?” मोदी के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभरी ।
“वो जीव लिफ्ट ?” जयंत के होंठों से निकला, “नहीं तो, वो भला लिफ्ट को क्या जाने ?”
“ठीक कहते हो । यही मैं कह रहा हूँ ।” मोदी ने उसे देखा, “अगर वो नीचे आ रहा हो तो हमें मालूम हो सके । कहीं ऐसा न हो कि हम लिफ्ट से ऊपर पहुँचें और वो सीढ़ियों से नीचे आकर बाहर पहुँच जाये ।”
“ठीक कहते हो ।” जयंत ने सिर हिलाया, “हम सीढ़ियाँ तय करके ही आठवीं मंजिल पर पहुँचेंगे । आओ ।”
दोनों सीढ़ियों के पास पहुँचे और सावधानी से ऊपर चढ़ने लगे ।
“वो बहुत फुर्तीला है जयंत !” मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “इन्सानों की तरह चलता-भागता भी है और जानवरों की तरह भी । हम इंसान उसका मुकाबला नहीं कर सकते । वो सामने पड़े तो उस पर आक्रमण करने की, हमला करने की मत सोचना । बल्कि खुद को बचाने की सोचना ।”
जयंत ने गंभीर निगाह मोदी पर मारी ।
“लगता है तुम उसके बारे में काफी कुछ जानते हो ।”
“कुछ-कुछ । कोटेश्वर बीच पर उसने जो किया, वहाँ की खबरें मँगवाई हैं । उसी से मुझे पता चला । सच बात तो ये है कि हम मौत के मुँह में जा रहे हैं ।” मोदी ने होंठ भींचकर कहा, “देखते हैं, क्या होता है ।”
जब दोनों आठवीं मंजिल पर पहुँचे तो हाँफ रहे थे । कपड़ों के भीतर पसीने की लकीरें चल रही थीं । चेहरे पर भी पसीना स्पष्ट नजर आ रहा था । बीते एक-दो दिन से भागदौड़ जारी थी । थकान तो पहले से ही थी । अब सीढ़ियाँ चढ़ने से टाँगों में कम्पन का एहसास हो रहा था ।
परन्तु उनका ध्यान अपनी थकान की तरफ नहीं था । रहस्यमय जीव की तरफ था । जो कि उन्हें सीढ़ियों पर तो नहीं मिला था ।
दोनों की नजरें मिलीं ।
“पहुँच गए ।” इंस्पेक्टर जयंत ने सतर्क निगाहों से हर तरफ देखा ।
“धीरे बोल ।” मोदी ने भिंचे स्वर में कहा, “वो पास में भी कहीं हो सकता है ।”
दोनों की नजरें हर तरफ थीं ।
सामने ही काफी खुली जगह थी । खुली जगह के पास तीन अलग-अलग दिशाओं की तरफ गैलरियाँ जाती नजर आ रही थीं । वहाँ कोई न दिखा । कोई आहट भी नहीं थी। जाहिर था कि सब लोग जीव के डर की वजह से यहाँ से निकल चुके थे ।
“वो किधर होगा ? किधर जाएँ ?” जयंत ने मोदी को देखा ।
“उधर ।” मोदी ने गंभीरता से एक गैलरी की तरफ इशारा किया, “जिस खिड़की पर वो नजर आया था, वो इधर है । ये हिस्सा सड़क की तरफ पड़ता है ।”
“आओ ।” जयंत के दाँत भिंच गए ।
दोनों उस गैलरी की तरफ बढ़े ।
“जयंत !” मोदी ने दाँत भींचकर कहा, “अब वो हमें कभी भी मिल सकता है । याद रखना कि हमें किसी भी स्थिति में उसका मुकाबला नहीं करना है । हम उसका मुकाबला नहीं कर सकते । मैं तुम्हें बार-बार ये बात इसलिये कह रहा हूँ कि भूल से भी किसी हथियार का इस्तेमाल उस पर मत कर देना, वरना वो और भी वहशी हो जायेगा ।”
“ये बात तुम इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हो ?” जयंत ने पूछा ।
“कोटेश्वर बीच पर इंस्पेक्टर दुलानी इस रहस्यमय जीव के केस पर था ।” मोदी ने मोना चौधरी और महाजन के बारे में उसे नहीं बताया, “दुलानी से मेरी बात हुई है । उसने ही सब कुछ बताया है ।”
“मतलब कि दुलानी का पाला इस जीव से पड़ चुका है ।”
“हाँ, ये बातें बाद में करना । सामने ध्यान दो ।” गैलरी में आगे बढ़ते हुए दोनों धीमे स्वर में बात कर रहे थे, “वो सामने दिखे तो पलटकर भाग लेना । अपने पीछे-पीछे भगाकर, उसे नीचे तक बाहर ले जाना ।”
“वो हमारे पीछे आकर हमें पकड़ भी सकता है ।” जयंत ने टोका ।
“हाँ, और तब कोई गारन्टी नहीं कि उसके हत्थे चढ़ने वाला जिन्दा बच पाये या नहीं !” मोदी एक-एक शब्द पर जोर देकर कह उठा, “इसलिए उसके हाथ नहीं पड़ना है ।'
इंस्पेक्टर गहरी साँस लेकर रह गया ।
“क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं !” जयंत ने कहा, “खूँखार-चोर-डाकू भी होता तो उसका मुकाबला कर लेते, परन्तु इस तरह के रहस्यमय जीव का क्या मुकाबला करें, जिसके बारे में कुछ जानते भी नहीं !”
तभी मोदी ठिठका ।
“क्या हुआ ?” कहने के साथ ही जयंत ने सामने देखा ।
एक ऑफिस के दरवाजे का कुछ टूटा हिस्सा गैलरी के बीच पड़ा था ।
“ये क्या है ?”
“किसी के ऑफिस का, लकड़ी का दरवाजा है ।” मोदी की आँखें सिकुड़ी हुई थीं, “लेकिन ये गैलरी में क्यों ?”
दोनों की नजरें मिलीं ।
“वो यहाँ तो नहीं है ?” जयंत के होंठों से निकला ।
“शायद ।” मोदी ने धीमी किन्तु सतर्क आवाज में कहा, “तुम यहीं ठहरो । मैं आगे जाता हूँ ।”
“खतरा है ।” जयंत के दाँत भिंच गए ।
“जो आगे जायेगा, उसके लिए खतरा तो होगा ही ।” मोदी का लहजा गंभीर था, “मुझे देखने दो । जरा भी गड़बड़ लगे तो भाग लेना । बहादुर बनने की बेवकूफी मत कर देना ।”
“हो सकता है, वो जीव यहाँ हो ही नहीं !” जयंत कह उठा ।
मोदी ने कुछ नहीं कहा और दबे पाँव आगे बढ़ गया ।
हर तरफ सूनसानी छाई थी । कहीं से कोई आहट नहीं उठ रही थी ।
मोदी गैलरी में पड़े लकड़ी के दरवाजे के पास पहुँचा, परन्तु उसकी निगाह उस ऑफिस के भीतर थी, जिस ऑफिस का वह दरवाजा टूटा हुआ था ।
वह राहुल आर्य का ही एडवरटाइजिंग का ऑफिस था, जहाँ रहस्यमय जीव को कैद किया गया था । किसी की आहट न पाकर, कोई नजर न आता पाकर, मोदी भीतर प्रवेश करता चला गया ।
भीतर प्रवेश करते ही वह ठिठका ।
सामने ही रिसेप्शन जैसी छोटी जगह पर बिछे कालीन पर कटा हुआ जाल पड़ा था । दो कदम की दूरी पर कालीन का एक हिस्सा खून से सुर्ख पड़ा था । लगता था जैसे वहाँ किसी का मर्डर किया गया हो । सामने ही छोटे से सोफे पर लेडीज बैग पड़ा था । मोदी को समझते देर न लगी कि जिसकी लाश नीचे पड़ी मिली थी । उसी को यहाँ मारा गया है । इसी दिशा की तरफ खिड़की पड़ती थी, जिस पर वह रहस्यमय जीव नीचे से दिखाई दिया था । तभी मोदी की निगाह भीतर की तरफ खुल रहे दरवाजे पर गई जो कि खुला हुआ था ।
मोदी फौरन आगे बढ़ा और दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया ।
ये ऑफिस जैसा कमरा था । टेबल और उसके गिर्द पड़ी कुर्सियाँ । एक तरफ अलमारी और... ।
मोदी की निगाह एक तरफ खुली खिड़की पर पड़ी । वह आगे बढ़ा और पास पहुँचकर नीचे झाँका । यही वह खिड़की थी, जिस पर उस रहस्यमय जीव को देखा गया । नीचे ढेरों पुलिस वालों की और लोगों की भीड़ नजर आई । उसे खिड़की पर देखकर कई पुलिस वाले हाथ हिलाते दिखे ।
उसी वक्त मोदी को बाहर शोर-सा महसूस हुआ ।
मोदी उसी पल खिड़की से हटा और पलटकर बाहर की तरफ भागा । उस केबिन से निकलकर छोटे से रिसेप्शन को पार करके टूटे दरवाजे पर पहुँचा तो ठिठका ।
सामने ही गैलरी में इंस्पेक्टर जयंत ने किसी व्यक्ति को बाँह में पकड़ रखा था । वह व्यक्ति खुद को छुड़ाने की चेष्टा कर रहा था । उसके चेहरे पर दहशत और खौफ के साये नाच रहे थे ।
मोदी जल्दी से उनके पास पहुँचा ।
“ये क्या हो रहा है ?” मोदी के होंठों से निकला, “कौन है ये ?”
“मोदी !” जयंत ने कहा, “इसे सामने वाले ऑफिस में छिपे देखा मैंने । थोड़ा-सा दरवाजा खोले, नीचे लेटा बाहर का नजारा देख रहा था कि मेरी नजर पड़ गई । मैंने पकड़ा तो अब छूटकर भागने की कोशिश में है ।”
दूसरे पुलिस वाले को सामने पाकर उस व्यक्ति ने भाग निकलने का इरादा बन्द कर दिया था ।
“छोड़ दो इसे ।” मोदी ने उस व्यक्ति को घूरा ।
“ये भाग जायेगा ।”
“नहीं भागेगा जयंत ! भागा तो मैं इसे गोली मार दूँगा । छोड़ दो इसे ।”
जयंत ने उसे छोड़ दिया ।
वह भागा नहीं, बल्कि आतंकित निगाहों से बारी-बारी दोनों को देखने लगा ।
मोदी ने उसे सिर से पाँव तक देखा ।
वह पैंतीस बरस का सेहतमंद व्यक्ति था । साढ़े पाँच फीट लम्बा था वह । सिर के बाल छोटे-छोटे थे । पैंट-कमीज में था । वह जूते पहने था । चेहरा भय से पीला दिखाई दे रहा था ।
“तुम हमसे घबरा क्यों रहे हो ? हमारी वर्दी देखो । पुलिस वाले हैं हम । तुम्हें नुकसान पहुँचाने नहीं आये ।” मोदी ने बेहद शांत स्वर में कहा, “तुम्हारा इस ऑफिस में छिपे रहना हमारे लिए हैरानी की बात है । क्योंकि सामने वाले ऑफिस में वो रहस्यमय जीव मौजूद था । तुमने अवश्य देखा होगा उसे । क्यों देखा था ?”
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और मोदी को देखता रहा ।
“ये ऐसे नहीं बोलेगा ।” जयंत ने उखड़े स्वर में कहा ।
“तुम खामोश रहो । मुझे बात करने दो ।” मोदी ने कहा फिर उस व्यक्ति को देखा, “क्या नाम है तुम्हारा ?”
वह चुप रहा ।
“जवाब दो ।” मोदी ने उसकी आँखों में झाँका, “हम जानते हैं कि वो जीव अभी भी आठवीं मंजिल पर ही है । तुम्हारी खामोशी की वजह से वो कहीं दूर निकल गया तो फिर हमें तुम पर गुस्सा भी आ सकता है ।”
“म... मेरा कोई कसूर नहीं ।”
“नाम क्या है तुम्हारा ?”
“प्रेम सिंह ।”
“कब से यहाँ हो तुम ?”
“रात दस बजे से ।” उसके होंठ मशीनी अंदाज में हिले ।
“सामने वाला ऑफिस किसका है ?”
“राहुल आर्य का । एडवरटाइजिंग का काम करता है वो ।” प्रेमसिंह की हालत ऐसी थी जैसे उसे लम्बे समय बाद होश आ रहा हो ।
“यहाँ पर तुमने क्या-क्या देखा ? सब बताओ मुझे ।”
प्रेम सिंह के होंठ हिले । कहा कुछ नहीं ।
“बोलो, क्या देखा ?”
“म... मैं रात को ओवर टाइम लगा रहा था । बहुत काम था । उसे निपटाना था । आधी रात का वक्त होगा तब, जब मैंने बाहर आहट सुनी । तब थोड़ा-सा दरवाजा खोलकर बाहर देखा तो राहुल आर्य को अपने ऑफिस का दरवाजा खोलते पाया । साथ में कोई और भी था और... ।”
“तुम्हारा मतलब कि इस ऑफिस के मालिक राहुल आर्य ने खुद अपने ऑफिस को आधी रात को खोला था ?”
“हाँ ! तब मैंने सोचा कोई जरूरी काम होगा । ऑफिस में कोई जरूरी चीज़ लेने आया होगा ।” प्रेम सिंह के स्वर में घबराहट भरी हुई थी, “लेकिन असल बात कुछ और थी । राहुल आर्य के साथ चार लोग और भी थे, जिनमें एक लड़की भी थी । मैंने उन सबको पहले भी देखा हुआ था । वे कभी-कभार राहुल आर्य के ऑफिस में आते रहते थे । उन लोगों ने बहुत बड़े जाल में किसी को फँसा रखा था । मैं जरा-सा दरवाजा खोले झिर्री में से सब देख रहा था । जाल में फँसे विचित्र जीव को मैं फौरन पहचान गया, क्योंकि सुबह ही अखबार में छपी उसकी तस्वीर देखी थी । तब मैं दहशत से भर उठा कि इतना खतरनाक जीव इन लोगों की कैद में है । परन्तु ये सब क्या कर रहे हैं ? मैं उत्सुकता से भर उठा । वो सब जाल में फँसे जीव को ऑफिस के भीतर ले गए और दरवाजा बन्द हो गया ।” इतना कहने के पश्चात प्रेम सिंह खामोश हो गया । चेहरे पर घबराहट थी ।
इंस्पेक्टर मोदी और इंस्पेक्टर जयंत की नजरें मिलीं ।
“आगे बोलो ।” जयंत ने कहा ।
“ये तो हो ही नहीं सकता कि तुमने भी अपना दरवाजा बन्द कर लिया हो ।” मोदी बोला, “फिर क्या किया तुमने ?”
“कुछ नहीं, वैसे ही झिर्री में से बाहर देखता रहा । कुछ देर बाद युवती सहित तीनों बाहर निकले । राहुल आर्य भी उनके साथ था और चले गए । बन्द ऑफिस में उस जीव के साथ सिर्फ एक ही व्यक्ति रह गया था । उसके बाद सुबह होने तक सब कुछ शांत रहा । सुबह सात बजे के करीब, रात वाली युवती आई तो रात भर से रुका व्यक्ति वहाँ से चला गया । मतलब कि तब वो युवती उस विचित्र जीव के पास रही । उसके जाने के दस-पंद्रह मिनट बाद ही मुझे राहुल आर्य के ऑफिस से शोर-सा उठता महसूस हुआ । युवती की कुछ चीखें भी सुनाई दीं । मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं वहाँ जाकर देख पाता कि क्या हुआ ? यहीं छिपा रहा मैं । ऑफिस से ही सब को फोन कर दिया कि कोई भी यहाँ न आये, खतरा है ।”
मोदी और इंस्पेक्टर जयंत की नजरें पुनः मिलीं ।
“तुम क्यों नहीं गये यहाँ से ?” जयन्त ने आँखें सिकोड़े पूछा ।
“म... मैं बस सामने देखता रहा । विचित्र जीव को लेकर मैं उत्सुकता में था । उसे अपनी आँखों से देखना चाहता था ।”
“वो दिखा ?” मोदी के होंठों से निकला ।
“ह... हाँ !”
“कब ?''
“कुछ देर पहले ।” उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी, ''आधा घंटा या उससे कुछ ज्यादा वक्त हो गया होगा । यहाँ पर एक आदमी पहुँचा तभी वो जीव राहुल आर्य के ऑफिस का दरवाजा तोड़कर बाहर यहाँ गैलरी से निकल आया था । दोनों का आमना-सामना हुआ ।”
“फिर क्या हुआ ?” मोदी के होंठों से निकला ।
“उस व्यक्ति के चेहरे पर घबराहट मैंने स्पष्ट देखी, परंतु वो भागा नहीं । वो जीव और वो व्यक्ति एक-दूसरे को कुछ पल देखते रहे, फिर उस जीव ने आगे बढ़कर उस व्यक्ति से हाथ मिलाया ।”
“हाथ मिलाया ?” मोदी के होंठों से अजीव-सा स्वर निकला ।
“हाँ !”
“तुम्हें गलतफहमी हुई होगी देखने में ।” इंस्पेक्टर जयन्त अविश्वास भरे स्वर में कह उठा ।
“मैंने अपनी आँखों से देखा था । उन्होंने दो बार हाथ मिलाया था ।” प्रेम सिंह की घबराहट भरी आवाज में विश्वास था, ''ये सब देखने में मेरी आँखें इतना बड़ा धोखा नहीं खा सकतीं ।”
जयन्त कुछ कहने लगा कि मोदी बोला ।
“फिर... फिर क्या हुआ ?
“फिर वो व्यक्ति और वो जीव यहाँ से चले गए ।”
“किधर ?”
“उस तरफ ।”
दोनों ने उसकी बताई दिशा की तरफ देखा । दूर तक गैलरी और फिर गैलरी के दायें-बायें मोड़ था ।
“गैलरी में उधर कहाँ गए ?”
“म... मैं नहीं जानता ।”
“वहाँ है क्या ?”
“रास्ते हैं, आठवीं मंजिल पर इधर-उधर जाने के लिए ।”
कुछ पलों के लिए वहाँ चुप्पी रही ।
“वो चले गए तो तुम यहाँ क्या कर रहे थे ?”
“म... मैं भी अब यहाँ से बाहर निकल जाना चाहता था, परन्तु खतरा था कि कहीं उनके सामने न पड़ जाऊँ । कुछ वक्त बीत जाये । यही सोचकर मैं ऑफिस में छिपा बाहर देख रहा था कि आप लोग आ गए ।”
इंस्पेक्टर जयंत ने इंस्पेक्टर मोदी को देखा ।
“वो व्यक्ति कौन हो सकता है, जिसके साथ रहस्यमय जीव ने हाथ हिलाया ?” जयंत ने पूछा ।
मोदी होंठ भींचें जयंत को देखता रहा ।
जयंत ने प्रेम सिंह से पूछा ।
“उन्हें यहाँ से गए कितनी देर हो चुकी है ?”
“आधे घण्टे से ज्यादा । पैंतालीस मिनट हो गए होंगे ।”
“पैंतालीस मिनट !” जयंत ने गैलरी की उस दिशा की तरफ देखा, “उधर नीचे जाने का रास्ता है ?”
“रास्ता तो हर तरफ से है । गैलरी में चलते जाओ तो किसी-न-किसी तरफ से रास्ता आ जायेगा ।”
पल भर के लिए वहाँ खामोशी-सी उभरी ।
“रहस्यमय व्यक्ति ने जिस व्यक्ति से हाथ मिलाया । वो देखने में कैसा लगता था ? उसका हुलिया क्या था ?” मोदी ने पूछा ।
“हुलिया ?” प्रेम सिंह हड़बड़ाया ।
“हाँ ! तुमने उसे देखा था प्रेम सिंह ?”
“देखा तो था, लेकिन तब मैं घबराहट में था । ठीक से देख नहीं पाया उस व्यक्ति को । सामने आने पर उसे पहचान... ।”
“वो व्यक्ति जितना भी याद है, उतना ही बताओ ।”
“साफ़ रंग था उसका ।” प्रेम सिंह सोच भरे स्वर में बोला, “लम्बाई छः फुट को छू रही थी । सिर के बाल... ।”
“उसकी कोई खास निशानी, जिससे कि उसकी पहचान हो सके ?” मोदी ने टोका ।।
“खास निशानी क्या होगी ! जैसे दूसरे लोग होते हैं, वैसे ही वो था ।”
“मोदी !” जयंत ने कहा, “इससे तो बाद में भी बात हो सकती है । उधर देखते हैं, वो जीव कहाँ गया ?”
“ठीक है ।” फिर मोदी ने प्रेम सिंह से कहा, “तुम जब भी यहाँ से निकलो तो बाहर मौजूद पुलिस के पास पहुँच जाना । कहना इंस्पेक्टर मोदी से बात करनी है । जब मैं बाहर आऊँगा, पुलिस वाले तुम्हें मुझ तक पहुँचा देंगे ।”
“म... मैं तुमसे क्या बात करूँगा ।” प्रेम सिंह जल्दी से बोला ।
“तुम नहीं ! मैं तुमसे बात करूँगा ।” मोदी ने कहा, “रहस्यमय जीव से वास्ता रखता तुम्हारा आँखों देखा बयान नोट करना है । राहुल आर्य और उसके साथियों के बारे में तुमने रिपोर्ट के तौर पर सब कुछ बताना है ।”
“बाद में मुझे पुलिस स्टेशन के चक्कर काटने... ।”
“फिक्र मत करो । ऐसी कोई बात नहीं होगी । जब जरूरत पड़ेगी, मैं तुम्हारे पास पहुँच... ।”
“झूठ बोलते हो । बाद में तुम पुलिस वाले थाने बुलाते हो और घण्टों बिठाये रखते हो ।”
“ये बात कभी भुगते हो ।” जयंत ने दाँत भींचकर कहा ।
“नहीं, लेकिन सुना है कि... ।”
“जब भुगतो, तब कहना । सुनी बात आगे नहीं करते ।”
“मतलब कि अब तुम भुगाओगे मुझे ।”
“तुम बाहर मिलना, तब बात करेंगे । आओ जयंत ।” मोदी तेज स्वर में बोला ।
मोदी और जयंत तेजी से उस तरफ बढ़े, जिधर प्रेम सिंह ने दोनों के जाने के बारे में कहा था ।
“सुनो !”
मोदी और जयंत ने पलटकर उसे देखा ।
“रहस्यमय जीव ने जिससे हाथ मिलाया था, उसकी एक बात याद आई है ।”
“क्या ?”
“उस व्यक्ति ने पैंट में बोतल फँसा रखी थी । बोतल से वो यदा-कटा घूँट भर लेता था ।”
“महाजन । नीलू महाजन ।” इंस्पेक्टर विमल कुमार के होंठों से बरबस ही निकला ।
जयंत ने आँखें सिकोड़कर उसे देखा ।
“महाजन, कौन महाजन ?” जयंत के होंठों से निकला ।
“रास्ते में बताऊँगा । जल्दी आओ ।” मोदी बेसब्री से बोला, “महाजन खतरे में... । नहीं, वो खतरे में कैसे हो सकता है ? इस जीव ने उसके साथ हाथ मिलाया था । कुछ समझ में नहीं आ रहा था । जल्दी आओ जयंत । उन्हें ढूँढ़ना है ।”
“लेकिन ?”
“यहाँ से आओ । सब बता दूँगा तुम्हें ।”
दोनों जल्दी से गैलरी में आगे बढ़ते चले गए ।
मोदी और जयंत की निगाह तब महाजन और रहस्यमय जीव पर पड़ी जब लिफ्ट का दरवाजा बन्द हो रहा था । मोदी ने लिफ्ट के भीतर खड़े रहस्यमय जीव और महाजन की झलक पायी, तभी दरवाजा बन्द हो गया ।
“वो दोनों उस इमरजेंसी लिफ्ट से नीचे जा रहे हैं ।” मोदी के होंठों से तेज स्वर निकला ।
“लेकिन वो इमरजेंसी लिफ्ट से नीचे क्यों था ?”
“महाजन, उस जीव को किसी तरह यहाँ से बचाकर निकाल ले जाना चाहता है ।” मोदी दाँत भींचकर कह उठा, “आओ, उस तरफ की लिस्ट से हमें उनके साथ-साथ ही नीचे पहुँचना है ।”
दोनों गैलरी के दूसरी तरफ भागे ।
वहाँ उभरी खामोशी में उनके कदमों की आवाज गूँज रही थी ।
जल्दी ही वह लिफ्ट के पास थे । लिफ्ट वही थी ।
महाजन उस पर आठवीं मंजिल पर पहुँचा था ।
दोनों लिफ्ट में प्रवेश हुए । मोदी ने बटन दबाया तो लिफ्ट के दरवाजे बंद होने के बाद वह नीचे सरकने लगी ।
“मुझे ये नहीं समझ आ रहा कि वो महाजन, उसे वहाँ से चुपचाप निकाल क्यों ले जाना चाहता हैं ?” जयन्त ने पूछा ।
मोदी दाँत भिंचे, सोचों में दिखा ।
“बता मोदी, वो... ।”
“तेरे को बताया है कि महाजन उसे पुराना जानता है ।” मोदी के सिर के बालों से पसीना बहकर गालों पर लकीर के रूप में आ रहा था, ''तभी उस जीव ने हाथ मिलाया । वो जीव गोलियाँ लगने से नहीं मरता, बल्कि और भी हिंसक हो उठता है । जल्लाद बना, लोगों की जाने लेने लगता है । पुलिस वालों ने ये जगह घेर रखी है । जाहिर है कि देर-सवेर में जब वो जीव काबू में नहीं आयेगा तो उस पर गोलियाँ चलाई जायेंगी । ऐसा वक्त न आये । शायद ये सोचकर महाजन उसे यहाँ से निकाल ले जाना चाहता हो ।”
“ये क्या बात हुई ।” इंस्पेक्टर जयन्त भड़ककर कह उठा, “महाजन उसे यहाँ से बचाकर ले जाना चाहता है । उसने ये नहीं सोचा कि यहाँ से निकल जाने के बाद वो जाने कितनों की जान लेगा ।”
मोदी गहरी साँस लेकर रह गया ।
“तुम तो ये भी कहे रहे थे कि रहस्यमय जीव से महाजन और मोना चौधरी को खतरा है ।”
“हाँ !''
“तो फिर उसने महाजन से हाथ क्यों मिलाया ?”
“कह नहीं सकता ।” मोदी भिंचे स्वर में कह उठा, '' शायद मोना चौधरी को वो ख़त्म करना चाहता हो । महाजन को नहीं ।”
“मालूम नहीं ! हालात मेरे सामने स्पष्ट नहीं हैं ।” मोदी भारी तौर पर उलझन में दिखने लगा ।
सख्त-सी नजरों से इंस्पेकटर जयन्त, मोदी को देखता रहा फिर बोला ।
“मैं तो इतना जानता हूँ कि महाजन ने पुलिस के कार्य में दखल दिया है ।”
मोदी ने जयन्त को देखा ।
“क्या मतलब ?”
“पुलिस के काम में दखल देने का मतलब तुम अच्छी तरह जानते हो मोदी !” जयन्त ने उसे घूरा ।
“तुम महाजन को कुछ नहीं कहोगे ।” मोदी एकाएक तेज स्वर में कह उठा ।
“मैंने कहा है कि उसने पुलिस के काम में दखल दिया है ।”
“और मैंने कहा है कि तुम उसे कुछ नहीं कहोगे ।” मोदी एकाएक शब्द चबाकर बोला ।
“क्यों ?”
दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे ।
“क्योंकि !” मोदी शब्दों को चबाकर कह उठा, “मैंने कभी सर रामकुमार से वादा किया था कि कभी भी मोना चौधरी के रास्ते में नहीं आऊँगा । जब आऊँगा तो बहुत बड़ी मजबूरी में ही मोना चौधरी की राह रोकूँगा । मोना चौधरी कभी कमिश्नर रामकुमार के बहुत काम आई थी । जब हमारे डिपार्टमेंट ने उनके बेटे के हत्यारे पर हाथ डालने से मना कर... ।”
“लेकिन मोदी !” जयंत बोला, “महाजन को तो इस वक्त मैं घेर... ।”
“तुम इस वक्त मेरे साथ ही तो हो ।” मोदी बोला, “तुम जो करोगे, जिम्मेदारी मुझ पर आएगी । मोना चौधरी को मैं कभी भी विश्वास नहीं दिला पाऊँगा कि तुमने अपनी मर्जी से महाजन पर हाथ डाला ।”
“लेकिन मोदी... ।” इंस्पेक्टर जयंत ने कहना चाहा ।
“जयंत !” मोदी गंभीर स्वर में बोला, “हम पहले भी एक साथ काम कर चुके हैं । जब एक साथ काम किया जा सकता है तो एक-दूसरे की माननी पड़ती है ।”
तभी लिफ्ट को हल्का-सा झटका लगा । वह रुकी । उसके दोनों पल्ले बे-आवाज खुलते चले गए । मोदी जल्दी से बाहर निकला और सामने दिखाई दे रही गैलरी में दौड़ा ।
इंस्पेक्टर जयंत भी उसके पीछे दौड़ा ।
“मोदी ! उधर कहाँ जा... ।”
“महाजन और वो जीव इधर ही होंगे । इमरजेंसी लिफ्ट आठवीं मंजिल पर इस तरफ ही थी ।”
उनके दौड़ते क़दमों की आवाज गूँज रही थी ।
बाहर घेरा डाले पुलिस वालों का मध्यम-सा शोर कभी-कभार कानों में पड़ जाता था ।
☐☐☐
इमरजेंसी लिफ्ट ग्राउंड फ्लोर पर रुकी । उसका दरवाजा खुल गया । महाजन ने रहस्यमय जीव को पीछे आने का इशारा किया और बाहर निकला ।
वह जीव भी बाहर आ गया ।
महाजन की नजरें आसपास फिरीं ।
स्पष्ट था कि पास ही कहीं बाहर निकलने का रास्ता होना चाहिए; क्योंकि इमरजेंसी लिफ्ट यहाँ आकर रुकी थी । तभी महाजन की निगाह सामने की दीवार पर ठहरी । वहाँ तंग-सी गली जैसा रास्ता जा रहा था । उस पर बाहर जाने का रास्ता लिखा था, परन्तु वक्त बीतने के साथ-साथ वह लिखावट इतनी फीकी पड़ गई थी कि एक ही बार में उस पर नजर नहीं पड़ती थी ।
महाजन ने रहस्यमय जीव को पुनः आने का इशारा किया और उधर बढ़ा । महाजन सतर्क था । चेहरे पर गंभीरता थी । वह जानता था कि जो करने जा रहा है, वह भारी खतरे का काम है । बाहर हर तरफ पुलिस फैली थी । पुलिस की निगाहों से बचकर इस जीव को यहाँ से ले जाना सम्भव-सा नहीं था ।
महाजन ने रहस्यमय जीव पर निगाह मारी ।
वह खुश-सा नजर आ रहा था । महाजन करीब था, शायद इसलिए ।
महाजन के होंठों से फँसी-फँसी साँस निकली । मोना चौधरी पास होती तो सब निपट लेती । उसके लिए ये सब भारी पड़ रहा था, लेकिन मोना चौधरी का पास होना भी खतरनाक था । ये जीव मोना चौधरी के पीछे था । ऐसी स्थिति में वह इस जीव का मुकाबला न कर पाती ।
स्पष्ट था कि हर तरफ के हालात खतरनाक थे ।
महाजन दो कदम ही आगे बढ़ा होगा कि ठिठका ।
उसके कानों में दौड़ते कदमों की आवाजें पड़ने लगीं ।
महाजन की आँखें सिकुड़ गयीं । आवाजें इधर ही आ रही थीं ।
आवाजों से वह इतना समझ चुका था कि आवाजें एक से ज्यादा व्यक्तियों के कदमों की थीं ।
उसे रुकते पाकर रहस्यमय जीव भी रुका ।
खतरे का एहसास पाते ही महाजन ने रिवॉल्वर निकाल ली । चेहरे पर सख्ती उभर आई । बायीं तरफ वाली गैलरी से आवाजें आ रही थीं । महाजन की निगाह उधर ही जा टिकी ।
महाजन के हाथ में रिवॉल्वर देखकर रहस्यमय जीव के चेहरे के भाव बदले । उसकी आँख एक कान से दूसरे कान तक तेजी से माथे की पट्टी पर फिरने लगी । उसके मोटे भद्दे होंठ भिंच से गए थे ।
महाजन की निगाह जीव पर पड़ी तो सकपकाकर एक कदम पीछे हटा । उसके क्रोध से भरे चेहरे को पल भर में पहचान चुका था । ऐसा चेहरा उसने पहले भी देखा था ।
तभी दौड़ते कदमों की आवाज करीब आ गई ।
महाजन की निगाह गैलरी की तरफ उठी ।
देखते-ही-देखते वहाँ से मोदी और जयंत निकले । उन दोनों को सामने देखकर दोनों ठिठके । वह मात्र पाँच कदमों की दूरी पर थे । रहस्यमय जीव को इतने करीब पाकर, उन्हें अपने होश गुम होते महसूस होने लगे ।
इंस्पेक्टर जयंत की हालत तो ज्यादा बुरी नहीं थी ।
इंस्पेक्टर मोदी की हालत कुछ बुरी थी, क्योंकि वह इस जीव का कारनामा देख चुका था । जब उसने खुलेआम सड़क पर तीन पुलिस वालों को निर्ममता से मारा था । इसकी ताकत और इसके जल्लादीपन का एहसास था उसे । रुकते ही वह एक कदम हड़बड़ाकर पीछे हट गया ।
मोदी को सामने पाकर महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।
“तुम ?” महाजन के होंठों से निकला ।
मोदी और जयंत को पुलिस की वर्दी में देखकर रहस्यमय जीव के होंठों से अजीब-सी आवाज निकली । वह गुस्से से भरा दिखाई देने लगा । भयानक लगने लगा था वह ।
जयंत उसका रूप देखकर काँपती टाँगों से दो कदम पीछे हटा ।
महाजन ने फौरन हाथ बढ़ाकर रहस्यमय जीव का कन्धा थपथपाया । जीव ने उसी अंदाज में महाजन को देखा । महाजन ने पुनः उसका कन्धा थपथपाया । ये जुदा बात थी कि महाजन की हालत भी ज्यादा ठीक नहीं थी । जीव के चेहरे पर उभरा क्रोध कम होता पाकर, महाजन ने राहत की साँस ली ।
मोदी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी ।
“गोली मत चलाना ।” महाजन रिवॉल्वर को वापस जेब में रखता बोला ।
मोदी ने इंकार में सिर हिलाया । नजरें जीव पर गयीं ।
“अपने साथी को भी समझा दो ।” महाजन ने कहा, “अगर इसे छेड़ा तो फिर ये मेरी बात नहीं मानेगा ।”
“इ... इसे पहले ही बता चुका हूँ ।” मोदी सूखे स्वर में कह उठा ।
जयंत, मोदी से दो कदम पीछे खड़ा था । घबराया-सा ।
“यहाँ कैसे आये ?” महाजन ने गंभीर स्वर में पूछा, “और पुलिस वाले भी हैं यहाँ ?”
“म... मैं इसके लिए यहाँ... ।” मोदी जीव के करीब होने की दहशत की वजह से कह न सका ।
“तुम्हें पहले सावधान कर दिया था कि इसे कुछ नहीं कहना है, वरना... ।”
“मैं इसे कुछ कहने नहीं आया ।” मोदी के होंठों से निकला, “इसे यहाँ से किसी तरह बाहर निकलवाने आया... ।”
“सो तुम इसे बाहर निकाल लोगे ?” महाजन के स्वर में चुभन-सी आ गई ।
मोदी होंठ भींचकर रह गया ।
जयंत कभी मोदी को देखता तो कभी महाजन को ।
“तुम्हारा मतलब है कि हम इसे बाहर नहीं निकाल सकते ।” जयंत कह उठा ।
“मैंने तुम्हें रोका नहीं । कोशिश करके देख लो ।” महाजन ने जयंत को घूरा ।
जयंत कुछ कहने लगा कि मोदी ने टोका ।
“तुम चुप रहो ।”
“क्यों ?” जयंत उखड़े स्वर में कह उठा, “मैं क्यों चुप रहूँ ? ये खुद को ज्यादा बहादुर समझ रहा है और हमें... ।”
“समझा करो जयंत !” मोदी अपने गुस्से पर काबू पाता कह उठा, “जीव के साथ इसकी पुरानी पहचान है ।”
“तो पुरानी पहचान का फायदा उठा रहा है ।” जयंत ने महाजन को घूरा ।
“इसे समझा ले मोदी ! इसकी आवाज मुझे ठीक नहीं लग रही ।” महाजन के चेहरे पर गुस्सा नजर आने लगा ।
“ये बीच में नहीं आयेगा ।” मोदी ने रहस्यमय जीव को देखते हुए सूखे होंठों पर जीभ फेरी, ''अपनी बताओ कि तुम क्या कर रहे हो ? पहले तो कह रहे थे कि ये जीव तुम्हारी जान के पीछे है । लेकिन तुम इसके पास हो और ये तुम्हें कुछ नहीं कह रहा । मुझे तो तुम दोनों ही खुश नजर आ रहे हो ।”
“पहले मैं यही समझा था कि ये मुझे मारना चाहता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, ''मेरे ख्याल में ये बेबी के पीछे है । इसे बेबी की तलाश है ।”
“अब तुम क्या कर रहे हो ?”
“मैं इसे यहाँ से सुरक्षित बाहर ले जाने की कोशिश कर रहा हूँ ।” कहने के साथ ही महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकाली और घूँट भरा ।
“यहाँ से सुरक्षित ले जाना चाहते हो, जबकि इसके लिए बाहर सैकड़ों पुलिस वाले खड़े हैं ।”
“तभी तो इसे यहाँ से सुरक्षित निकाल ले जाना चाहता हूँ ।” महाजन ने मोदी की आँखों में देखा ।
“ताकि बाद में ये मासूम निर्दोष लोगों को मारता रहे ।” मोदी ने शब्दों को चबाकर कहा ।
महाजन ने इंकार में सिर हिलाकर कहा ।
“ऐसा करके मैं सबका भला कर रहा हूँ । मालूम नहीं, तुम पुलिस वाले इसे खत्म कर सको या नहीं, परन्तु ये कई पुलिस वालों की जान ले लेगा । बहुत खतरनाक, फुर्तीला और वहशी है ये ।”
“तुम खामख्वाह इसे बढ़ा-चढ़ाकर बता रहे हो ।” जयंत कह उठा, “पुलिस की गोलियों से ये बच नहीं सकता । कब तक जिन्दा रहेगा । जब इसके जिस्म के जर्रे-जर्रे में गोलियाँ धँसी होंगी ।”
“ठीक कहते हो ।” महाजन कड़वे स्वर में कह उठा, “जब इसके शरीर में गोलियाँ-ही-गोलियाँ धँसी होंगी, तो कब तक जिन्दा रहेगा । लेकिन जब तक जिन्दा रहेगा, तब तक कितनों की जान ले लेगा । ये तुम सोचो । इस बात को ध्यान में रखकर सोचो कि अभी भी इसके शरीर में गोलियाँ धँसी हैं और ये मस्ती से घूम-फिर रहा है ।”
इंस्पेक्टर जयंत के होंठ भिंच गए ।
“इस वक्त मैं पास हूँ तो तुम लोग सलामत हो, वरना पुलिस की वर्दियों को ये बखूबी पहचानता है । इन वर्दियों से इसे इसलिए नफरत है कि ये जानता है ऐसे कपड़े पहनने वाले लोग उसे नुकसान पहुँचाना चाहते... ।”
“इसे वर्दियों की पहचान कैसे हो गई ?” जयंत ने उखड़े स्वर में कहा ।
“कोटेश्वर बीच पर पुलिस वालों ने ही इसे अच्छी तरह समझा दिया था कि ऐसे कपड़े पहनने वाले, तुम्हारे लिए खतरनाक हैं । ये तुम्हारे दुश्मन हैं ।” महाजन जहरीले ढंग में बोला, “ऐसी बातों को ये भूलता नहीं ।”
मोदी ने गंभीर स्वर में जयंत से कहा ।
“तुम खामोश रहो ।”
“क्यों ? मैं... ।”
“विचित्र जीव का मामला अभी शुरू नहीं हुआ । बहुत पहले से शुरू हुआ है ।” मोदी बोला, “मैं तुम्हें बता चुका हूँ । ये जीव वास्तव में खतरनाक है । अभी तुम बखूबी हालातों से वाकिफ नहीं हो ।”
जयंत होंठ भींचकर रह गया । मोदी ने महाजन को देखा ।
“महाजन ! तुम इसे यहाँ से निकाल ले जाओगे ?”
“कोशिश करूँगा ।” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा ।
“बाहर पुलिस है । इसकी वजह से तुम भी खतरे में पड़ सकते हो । गोलियाँ तुम्हें भी लग सकती हैं ।”
“मालूम है ।” महाजन ने हौले से सिर हिलाया, “लेकिन इस काम में मैं पीछे नहीं हट सकता ।”
“क्यों ?”
“अगर मैं पीछे हटा तो तुम लोग जीव को खत्म करना चाहोगे । जीव तुम सबको मारना चाहेगा । ऐसे में ये तो जाने कब मरेगा, लेकिन ये पक्का है कि ये जाने कितने पुलिस वालों को मार देगा ।” गंभीरता से कहा महाजन ने, “जैसे मैं यह नहीं चाहता कि पुलिस वालों की जान जाये । उसी तरह मैं ये नहीं चाहता कि इसकी भी जान जाये या इसे नुकसान हो ।”
“इसके साथ हमदर्दी क्यों ?” जयंत ने पूछा ।
“तुम्हारे साथ मैं हमदर्दी क्यों दिखा रहा हूँ ?” महाजन ने पूछा ।
“क्योंकि हम इंसान हैं ।”
“हाँ ! हम इंसान हैं, लेकिन उसमें भी जान है । मैं उसे पहले से जानता हूँ । ये भी जानता हूँ कि ये किसी को कुछ नहीं कहता जब तक कि इसे तकलीफ न दी जाये । पहले सरकारी गनमैनों ने इस पर गोलियाँ बरसाईं, ये वहशी बन गया ।”
“तब जैसे-तैसे ठीक करके इसे संभाला कि पुलिस वालों ने इसे गोलियाँ मारीं । ये फिर से लोगों की जान लेने लगा । ये अच्छा दोस्त है अगर इसे तकलीफ न दी जाये और दुश्मन भी बहुत अच्छा है । अंत तक दुश्मनी निभाता है ।”
जयंत ने मोदी के गंभीर चेहरे पर निगाह मारी ।
“तुम इसे यहाँ से निकालकर नहीं ले जा सकते ।” मोदी बोला, “बाहर पुलिस है । तुम शायद पीछे की तरफ से निकल जाना चाहते हो, लेकिन सफल नहीं हो सकते । उधर भी पुलिस है ।”
“जो भी हो, मैं कोशिश करूँगा ।” महाजन दृढ स्वर में कह उठा ।
“क्यों खुद को खतरे में डालते हो ?”
“मैं इस जीव को खतरे में छोड़कर नहीं जा सकता । खासतौर से जानते हुए कि इसे जल्लाद बनने पर मजबूर किया गया है ।”
“तुम मरोगे महाजन !” मोदी होंठ भींचकर बोला, “बाहर बहुत सख्ती है ।”
महाजन होंठ भींचकर रह गया ।
“तुम इसे क्यों बचाना चाहते हो ?” जयंत पूछा ।
“यूँ ही ।” मोदी ने गहरी साँस ली, “काम जो भी करता हो । बन्दा बुरा नहीं है ।”
“एक रास्ता है मेरे पास कि शायद ये यहाँ से बचकर निकल सके ।”
“कैसा रास्ता ?”
“सोच लो कि इसे वास्तव में बचाना चाहते हो ।”
“हाँ ! मुझे महाजन की ज्यादा चिंता है । इस जीव की नहीं । तुम रास्ता बताओ ।”
“ये जीव बहुत हद तक हम इन्सानों जैसा ही है ।” इंस्पेक्टर जयंत बोला, “अगर इसे कपड़े पहना दिये जाएँ तो ये आसानी से पहचाना न जा सकेगा, जब तक कि कोई इसे पास आकर न देखे ।”
मोदी के होंठ भिंच गए ।
महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।
“ओह ! इस तरह तो मैंने सोचा ही नहीं था ।” महाजन के होंठों से निकला ।
“लेकिन इन हालातों में इसके लिए कपड़े का इंतजाम कहाँ से होगा ?” मोदी बोला ।
“इसके कपड़े जोड़-तोड़ करके इसे आ सकते हैं ।” महाजन की निगाह जयंत पर थी ।
“मेरे कपड़े ?” जयंत के होंठों से निकला ।
“हाँ ! तुम्हारी सेहत, आकार-प्रकार बहुत हद तक इससे मिलता है ।” मोदी ने सिर से पाँव तक जयंत को देखा ।
“लेकिन... लेकिन मैं क्या पहनूँगा ?”
इंस्पेक्टर जयंत की वर्दी, उस रहस्यमय जीव को पहनाने में उन्हें बहुत परेशानी आई ।
जयंत किसी भी हाल में अपनी वर्दी नहीं उतारना चाहता था, परन्तु महाजन और मोदी के बार-बार कहने पर उसे वर्दी उतारनी पड़ी ।
जयंत अब सिर्फ अंडरवियर में था ।
तीनों ने जैसे-तैसे रहस्यमय जीव को वह कपड़े (पैंट-कमीज) पहनाये । कभी तो उसे ये सब करने में मजा आता था और कभी वह गुस्से में आ जाता तो महाजन मुस्कराकर उसे शांत करता ।
पैंट और कमीज रहस्यमय जीव के शरीर पर फँसी-फँसी-सी आई थी ।
“काम चल जायेगा ?” मोदी उस जीव को सिर से पाँव तक देखता हुआ बोला ।
“हाँ !” महाजन ने होंठ सिकोड़े कहा, “इन कपड़ों में से इसे यहाँ से निकालकर ले जा सकता हूँ ।” कहने के साथ ही आगे बढ़कर महाजन ने इंस्पेक्टर जयंत के सिर से कैप उतारी और जीव के सिर पर रख दी । कैप का आगे का हिस्सा इस तरह आगे झुका दिया कि कुछ दूरी से देखने पर वह पहचाना न जा सके ।
“अब ठीक है ।” मोदी के होंठों से निकला ।
“मैं इसे यहाँ से ले जाऊँगा ।” महाजन के स्वर में दृढ़ता के भाव थे ।
तभी इंस्पेक्टर जयंत ने तीखे स्वर में कहा ।
“मेरा क्या होगा मोदी ?”
“तुम्हारा ?” मोदी ने जयंत को देखा ।
“हाँ ! मैं इस बात का जवाब क्या दूँगा कि मेरे कपड़े कैसे जीव के शरीर पर पहुँचे ?” जयंत उखड़े स्वर में कह उठा, “बाद में तो ये बात खुलेगी कि इसके शरीर पर पुलिस की वर्दी थी जो कि मेरी ही थी । मुझे यहाँ से इसी अंडरवियर में बाहर जाना पड़ेगा । बाहर जाकर क्या कहूँगा कि मेरी वर्दी कहाँ गई ?”
इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी के चेहरे पर गंभीरता आ ठहरी ।
महाजन ने घूँट भरा ।
“इसका जवाब तो एक ही है कि इसने तुम्हें अकेले में घेरा और बेहोश कर दिया । जब तुम्हें होश आया तो इस हालत में थे ।”
“कौन विश्वास करेगा ?”
“जब मैं कहूँगा कि मैंने तुम्हें इसी हालत में बेहोश पाया तो सब विश्वास करेंगे ।” मोदी ने कहा ।
जयंत के होंठ भिंच गए ।
मोदी ने महाजन को देखा ।
“तुम जाओ ।”
महाजन गंभीर निगाहों से मोदी और जयंत को देखने लगा ।
रहस्यमय जीव बार-बार अपने शरीर पर डाले कपड़ों को देख रहा था । खुश हो रहा था, मुस्कुरा रहा था । उसकी एक मात्र आँख एक कान से दूसरे कान तक तेजी से आ-जा रही थी ।
महाजन ने हाथ बढ़ाकर रहस्यमय जीव का कंधा थपथपाया । जीव ने उसे देखा तो महाजन ने उसे साथ आने का इशारा किया । तभी मोदी गंभीर स्वर में बोला ।
“ये सब करके भी तुम शायद यहाँ से निकल न सको । पकड़े जाओ ।”
महाजन ने कुछ नहीं कहा और जीव के साथ उस तरफ बढ़ गया, जिधर पीछे से बाहर निकलने का रास्ता था । महाजन के जूतों की आवाज उनके कानों में पड़ती रही ।
“ये तूने ठीक नहीं किया मोदी ।” जयंत कह उठा ।
मोदी ने जयंत को देखा ।
“क्या ठीक नहीं किया ?”
“उन दोनों को निकल जाने देना । मेरी वर्दी उस जीव को पहनाना ।” जयंत का गंभीर स्वर धीमा था ।
“ऐसा करना मेरी मजबूरी थी । इसे हमदर्दी मत समझो ।”
“क्या मतलब ?”
“पहली बात तो ये कि मैं महाजन को नुकसान नहीं पहुँचाना चाहता था । ऐसी कोई महत्वपूर्ण वजह नहीं है मेरे पास कि महाजन को नुकसान पहुँचाऊँ ।” इंस्पेक्टर मोदी ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया, “दूसरे, मैं या हम, उस जीव का मुकाबला नहीं कर सकते थे । अपनी जान ही गँवाते । महाजन की वजह से उस जीव ने हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया । यानी कि कुल मिलाकर, महाजन की सहायता करना हमारी मजबूरी ही रही ।”
“अगर हम उस जीव को पकड़ लेते तो हम अपने डिपार्टमेंट में हीरो बन जाते ।” जयंत ने कहा ।
मोदी ने जयंत को घूरा ।
“तुम पकड़ सकते थे उसे ? मार सकते थे उसे ?” मोदी ने शब्दों को चबाकर पूछा ।
“कोशिश करते तो... ।”
“हम उसे नहीं पकड़ सकते थे । मार नहीं सकते थे । ये सब इतना आसान होता तो पुलिस वाले इस तरह घेरा बाँधे न खड़े रहते । कब के भीतर आ गए होते ।” मोदी ने उसे घूरा, “मैंने तुम्हें समझाया था कि वो जीव कैसा खतरनाक है । शायद तुमने मेरी बात को गंभीरता से नहीं सुना ।”
जयंत होंठ भींचकर रह गया ।
मोदी ने कश लिया ।
“चलें बाहर ?” जयंत ने धीमे स्वर में मोदी से कहा ।
“हम अभी बाहर नहीं जायेंगे ।” मोदी ने उसे देखा, “तुम्हारे शरीर पर वर्दी न देखकर, वो अवश्य सोचेंगे कि तुम्हारी वर्दी को क्यों उतारा और किसने उतारा, क्या वजह थी कि... ।”
“हाँ ! ऐसे में हमारे डिपार्टमेंट वाले हर वर्दी वाले को चेक करेंगे कि... ।”
“कुछ देर हम यहीं रुकेंगे ताकि महाजन, रहस्यमय जीव के साथ यहाँ से निकल जाये ।”
“तुम देखना ।” जयंत ने गहरी साँस ली, “वो जीव अब जाने कितने इन्सानों की जानें लेगा ।”
मोदी ने सोच में डूबे कश लिया ।
“जो होगा सामने आ जायेगा ।” मोदी ने कहा, “हमें ये भी मालूम करना है कि रहस्यमय जीव इस इमारत की आठवीं मंजिल तक कैसे पहुँचा ? वहाँ कटा हुआ जाल यही बताता है कि उसे जाल में फँसाकर वहाँ लाया गया । जिस ऑफिस में जीव था, वो राहुल आर्य नाम के किसी व्यक्ति का है । प्रेम सिंह के मुताबिक राहुल आर्य के साथ तीन व्यक्ति और थे । साथ में एक युवती भी थी, जिसे मारकर जीव ने खिड़की से नीचे फेंक दिया ।”
“यहाँ से निकलने के बाद सब मालूम कर लेंगे ।” जयंत ने कहा ।
☐☐☐
बाहर हर तरफ पुलिस की वर्दियाँ दिखाई दे रही थीं । पुलिस सायरनों की आवाजें रह-रहकर सुनाई दे रही थीं । पुलिस ने जनता को खतरे की चेतावनी देते हुए दूर धकेल दिया था ।
हर कोई अपने में व्यस्त नजर आ रहा था ।
मोना चौधरी और पारसनाथ व्याकुल से लोगों की भीड़ में खड़े थे ।
“महाजन अभी तक बाहर नहीं आया मोना चौधरी !” पारसनाथ अपने खुरदुरे गालों पर हाथ फेरते चिंता भरे स्वर में कह उठा ।
“शायद अब वो बाहर आये भी नहीं !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा ।
दोनों की निगाहें मिलीं ।
“जीव ने महाजन को खत्म कर दिया होगा ।” मोना चौधरी पुनः बोली ।
“फिर भी हमें ऐसा कुछ करना चाहिए कि महाजन और जीव के हालात मालूम हो सकें ।” पारसनाथ ने कहा ।
“इमारत के भीतर जाये बिना हम कुछ नहीं कर सकते ।”
“भीतर ?” पारसनाथ के होंठों से निकला । नजरें मोना चौधरी के चेहरे पर जा टिकी ।
वे कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे ।
“इमारत के सामने वाले हिस्से से भीतर जाना ठीक नहीं होगा । पीछे पुलिस कम नहीं होगी ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“वो जीव तुम्हें देखते ही मार देगा ।”
“ये खतरा तो अब उठाना ही पड़ेगा ।”
दोनों लम्बा चक्कर काटते हुए इमारत के पीछे की तरफ जाने लगे ।
“पीछे से कोई रास्ता है इमारत में प्रवेश करने का ? पारसनाथ ने पूछा ।
“रास्ता अवश्य होगा । तलाश करना पड़ेगा ।” मोना चौधरी ने कहा ।
“उधर पुलिस भी होगी । ऐसे में प्रवेश करना ।”
“उधर जाकर ही देखेंगे कि क्या, कैसे करना है ।”
लम्बा चक्कर काटकर दोनों इमारत के पीछे की तरफ पहुँचे ।
पीछे पुलिस थी, लेकिन बहुत कम ।
“पुलिस कम क्यों है पीछे ?” पारसनाथ ने दौड़ते हुए पूछा ।
“शायद इसलिए कि पुलिस का ख्याल होगा की रहस्यमय जीव पीछे से बाहर निकालने का रास्ता तलाश नहीं कर पायेगा । वो इमारत के सामने की तरफ से ही... ।”
“तुम्हें यहाँ देखकर हैरानी हुई मोना चौधरी !”
मोन चौधरी और पारसनाथ फौरन पलटे ।
पीछे पास ही इंस्पेक्टर दुलानी सादे कपड़ों में खड़ा था ।
“तुम ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
दुलानी के चेहरे पर गंभीरता थी ।
“यहाँ क्या कर रही हो ?” दुलानी ने पूछा ।
“यही मैं तुमसे पूछना चाहती थी ।”
“इस वक्त मेरा इधर होना मामूली बात है । यहाँ हर तरफ पुलिस है ।” दुलानी ने इधर-उधर नजर आते पुलिस वालों पर नजरें दौड़ाते कहा, “लेकिन तुम्हारा यहाँ आना मुझे बहुत अजीब-सा लगा ।”
“क्यो ?”
“इमारत के पीछे की तरफ ऐसा क्या है, जो तुम इधर आई ?”
“महाजन इमारत के भीतर है ।” मोना चौधरी ने दाँत भींचकर कहा ।
“भीतर !” दुलानी की आँखें सिकुड़ीं, “भीतर कहाँ है ?”
“जाहिर है, वो जीव के साथ ही होगा ।”
“नहीं ! वो जीव महाजन को खत्म कर देगा ।” दुलानी के होंठों से निकला, “वो तुम लोगों को खत्म करने दिल्ली आया है ।”
मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे ।
“अब तक महाजन अवश्य उस जीव के पास पहुँच गया होगा ?” पारसनाथ ने खुरदरे स्वर में कहा ।
दुलानी ने एक बार फिर दोनों पर व्याकुलता भरी निगाह मारी ।
“मोदी जी इमारत के भीतर जा चुके है ।” दुलानी कह उठा ।
“मोदी ?” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
“हाँ ! वो... ।”
“मोदी क्यों भीतर गया ?”
“उस विचित्र जीव को किसी तरह भीतर से बाहर निकालने ।”
“मालूम है ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला, “वो मोदी को मार देगा ।”
“मोदी के साथ इंस्पेक्टर जयंत भी गया है ।
“नहीं बच सकते वो दोनों । महाजन भी जान गँवा बैठा होगा । गुस्से में पागल हुआ पड़ा है रहस्यमय जीव । उसके ज़िस्म में धँसी गोलियाँ उसे दर्द का अहसास करा रही है ।” मोना चौधरी बोली, “तभी दूसरों की जान... ।”
“खास बात तो ये है कि वो कोटेश्वर बीच से यहाँ तुम्हारी जान लेने आया है ।” दुलानी ने टोका ।
“ये सब तुम लोगों की गलती की वजह से हुआ ।” मोना चौधरी ने कठोर निगाहों से उसे देखा, “मैं उसे ठीक-ठाक हालात में तुम्हारे हवाले करके आई थी फिर पुलिस वालों ने उस पर गोलियाँ क्यों चलाई ?”
“मैं पहले ही बता चुका हूँ, वो सारी गलती सब-इंस्पेक्टर... ।”
“किसी कि भी गलती से हुआ हो । मुसीबत तो अब फिर सामने आ गई ।” मोना चौधरी ने दाँत पीसे ।
दुलानी गुस्से और बेबसी से मुट्ठियाँ भींचकर रह गया ।
“वो देखो ।” पारसनाथ ने कहा, “इमारत से एक पुलिस वाला और एक व्यक्ति निकले हैं ।”
मोना चौधरी और दुलानी ने उधर देखा ।
“वो महाजन है ।” मोना चौधरी ने होंठों से निकला ।
“महाजन ?” पारसनाथ की आँखें सिकुड़ी, “ओह... ।”
“महाजन के साथ जाने कौन-सा पुलिस वाला है । मुझे लगता है, मैंने उसे कहीं देखा है ।” दुलानी कह उठा ।
“हैरानी की बात है मोना चौधरी कि महाजन ठीक हालत में बाहर... ।”
“महाजन के साथ पुलिस वाले को देखकर लगता है जैसे उसके चलने के ढंग से वाकिफ हूँ । मैंने उसे कहीं देखा है ।” मोना चौधरी के होंठों से निकला ।
“कम-से-कम वो इंस्पेक्टर मोदी नहीं है ।” पारसनाथ बोला ।
“यस !” दुलानी ने सिर हिलाया, “वो मोदी नहीं है ।”
“सामने पुलिस कार है ।” इंस्पेक्टर दुलानी ने आँखें सिकोड़े कहा, “वो दोनों बातें करते, उसी तरफ बढ़ रहे हैं ।”
“पारसनाथ !” मोना चौधरी की आँखें एकाएक फैलती चली गई । स्वर में अजीब-से भाव आ गये थे ।
पारसनाथ ने फौरन मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी का चेहरा हैरानी से भरा देखा ।
“क्या हुआ ?” पारसनाथ का हाथ अपने खुरदरे चेहरे पर जा पहुँचा ।
“वो... वो वही है ।” मोना चौधरी की आँखें हैरानी से फैली थीं ।
“कौन वही ?”
“रहस्यमय जीव । व...वर्दी में । पुलिस की वर्दी में ।”
“क्या ?” दुलानी का मुँह खुल गया, “ओह ! तभी तो मुझे उसकी चाल पहचानी-सी लग रही थी । सच में वो वही जीव है । हे भगवान ! ये... ये पुलिस की वर्दी में कैसे ?”
अजीब-सी सनसनी उभर आई थी उनके बीच ।
कुछ पलों के लिए तो समझ नहीं पाए कि क्या करें ?
उनके देखते-ही-देखते दोनों कार तक पहुँचे । महाजन ने पीछे वाला दरवाजा खोला, परंतु वर्दी में वह रहस्यमय जीव खड़ा था । महाजन ने जबरदस्ती ही उसे कार में धकेला था । कार का दरवाजा बंद करके, वह खुद ड्राइविंग सीट पर जा बैठा था ।
“महाजन उसे कहीं ले जा रहा था है ।” दुलानी के होंठों से निकला ।
“महाजन... !” मोना चौधरी चीखी ।
पारसनाथ तेजी से कार की तरफ भागा ।
कार अपनी जगह से हिली और आगे बढ़ गई ।
“महाजन !” पारसनाथ ने ऊँचे स्वर में पुकारा ।
जगह-जगह फैले पुलिस वाले मामला समझने की चेष्टा कर रहे थे ।
कार उनकी पहुँच से बहुत दूर होने लगी ।
महाजन ने किसी की आवाज नहीं सुनी थी । इनमें से किसी को नहीं देख पाया था ।
“मोना चौधरी !” दुलानी के होंठों से अजीब-सा स्वर निकला, “महाजन उसे कहाँ ले जा रहा है ?”
होंठ भिंचे मोना चौधरी खड़ी पुलिस कार को देखती रही, जिसमें महाजन और वह जीव थे गली के किनारे पर पहुँचकर वो मुड़ने वाली थी ।
तभी पारसनाथ के पास तीन पुलिस वाले पहुँच गये थे । पूछने के लिए की क्या बात है ?
“इसे क्या पकड़ रहे हो ।” दुलानी उसकी तरफ भागते हुए सीखा, “उस पुलिस कार में रहस्यमय जीव गया है । वो कार गली से मुड़ने वाली है । उधर देखो । पकड़ो उसे ।”
महाजन जो काम चुपके से कर रहा था, उस काम का ढोल बज गया ।
पुलिस वालों में शोर पैदा हुआ ।
पारसनाथ की तरफ से सबका ध्यान हट गया ।
पारसनाथ, पुलिस वालों की भागदौड़ देखता रहा । महाजन वाली पुलिस कार मुड़कर नजर आनी बंद हो गई थी । कुछ पुलिस कारें उधर बढ़ गई थीं । पुलिस सायरनों की आवाजें गूँजने लगी थीं ।
एकाएक ही भाग-दौड़ मच गई थी ।
दुलानी पुलिस वालों के बीच जाने कहाँ खो गया था ।
तभी पारसनाथ के पास एक कार आकर रुकी । ड्राइविंग सीट पर मोना चौधरी को बैठे पाकर पारसनाथ जल्दी से भीतर बैठा । मोना चौधरी ने कार आगे बढ़ा दी ।
“महाजन खामोशी से उस जीव को यहाँ से बाहर ले जाना चाहता था ।” पारसनाथ बोला, “उसने यही सोचा था ।”
“दुलानी ने सब गड़बड़ कर दिया ।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह उठी, “ऊँचे स्वर में उसने सबको बता दिया ।”
मोना चौधरी वाली कार गली के किनारे तक पहुँच गई थी ।
“कार कहाँ से ली ?”
“उस तरफ खड़ी थी ।” मोना चौधरी बोली, “उठा ली ।”
“महाजन और विचित्र जीव साथ हैं ।” पारसनाथ बोला, “जीव ने महाजन को कुछ नहीं कहा ।”
मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे । मोड़ आते ही मोना चौधरी ने कार को उस तरफ मोड़ा जिधर महाजन कार को ले गया था । कई पुलिस कारें तेजी से उस तरफ जा रही थी ।
“पुलिस वाले महाजन का पीछा नहीं छोड़ेंगे ।” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा ।
“मुझे समझ नहीं आ रहा मोना चौधरी, कि जीव ने महाजन को कैसे छोड़ दिया ?”
“क्या कहूँ । ये बात तो मुझे भी समझ नहीं आ रही ।” मोना चौधरी होंठ भिंचे कह उठी, “उसे इस तरह यहाँ से ले जाने के ढंग से स्पष्ट है कि महाजन उसे खामोशी से यहाँ से निकाल ले जाना चाहता था कि कहीं पुलिस और जीव का सामना न हो जाये ।”
“लेकिन पुलिस की वर्दी उसने कहाँ से ली ? वो तो... ।”
“इंस्पेक्टर मोदी अन्य पुलिस वाले के साथ भीतर गया था । दुलानी ने ये बात बताई थी ।” मोना चौधरी होंठ भींचें सोच भरे स्वर में कह उठी, “जीव पर पड़ी वर्दी उन्हीं में से किसी की होगी ।”
कार तेजी से भाग रही थी ।
कभी किसी पुलिस कार को पीछे छोड़ देते तो कभी पुलिस कार उनसे आगे निकल जाती । हर तरफ पुलिस सायरनों की आवाजों की गूँज थी ।
सब महाजन वाली उस पुलिस कार को पकड़ लेना चाहते थे, जिसमें वह रहस्यमय जीव भी था ।
इमारत को घेरे खड़ी सब पुलिस कारों को फौरन ही मैसेज मिल गया था कि रहस्यमय जीव इमारत से पीछे वाले रास्ते से निकल भागा है । कोई उसके साथ है जो उसे पुलिस कार में ले भागा है । ये मैसेज मिलने की देर थी कि पुलिस कारें उस तरफ भागी, जिधर महाजन कार ले गया था ।
हर तरफ भागा-दौड़ का माहौल पैदा हो गया था ।
हर कोई सबसे पहले महाजन की पुलिस कार तक पहुँच जाना चाहता था ।
महाजन के माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही थी । दाँत भिंचे हुए थे । वह बहुत सावधानी के साथ और बहुत तेजी से कार ड्राइव कर रहा था । सड़कों पर भीड़ थी, लेकिन वह जैसे-तैसे रास्ता बना रहा था ।
पुलिस सायरनों की तीखी आवाजें बराबर उसके कानों में पड़ रही थी ।
रहस्यमय जीव कार की पीछे वाली सीट पर पसरा-सा बैठा था । कभी-कभार उसके भद्दे होंठ मुस्कुराहट के रूप में फैल जाते । वह गर्दन घुमाकर कार की खिड़की से इधर-उधर बाहर देखने लगता ।
महाजन पुलिस वालों की नजरों से बचकर निकल जाना चाहता था, लेकिन जितनी कोशिश की थी, उतनी ही पुलिस की नजरों में आ गया था । पुलिस कार में बैठते वक्त उसने किसी के पुकारने की आवाज सुनी थी । तब इधर-उधर ध्यान न देकर, उसने निकल जाना ही बेहतर समझा ।
लेकिन सब कुछ बेकार गया ।
कुछ पलों बाद ही उसके कानों में पुलिस सायरनों की आवाजें पड़ने लगी थी । वह समझ गया कि पुलिस की निगाहों में आ गया है । पुलिस वाले जान चुके हैं कि रहस्यमय जीव उसके साथ हैं । अब वे पीछे थे और कम-से-कम रहस्यमय जीव को तो पकड़ ही लेना चाहते हैं । पुलिस के हाथ पड़ गया तो वह भी फँसा ।
महाजन ने सोच लिया था कि पुलिस के हाथ नहीं लगेगा ।
वह अगर कार को बीच सड़क पर छोड़कर चल दे तो पुलिस का ध्यान उस पर से हटकर कार में बैठे रहस्यमय जीव पर चला जायेगा । वह तो बच जायेगा, लेकिन उसके बाद जो भी होगा, बुरा होगा ।
पुलिस वाले रहस्यमय जीव पर हर हाल में कब्जा करना चाहेंगे । इन हालातों में जीव क्रोध में पुलिस वालों की, लोगों की जान लेगा । खून-खराब होगा । रहस्यमय जीव जाने मारा जायेगा है या नहीं ?
यानी कि रहस्यमय जीव को इस तरह कार में छोड़कर जाना ठीक नहीं था । इसका सामना पुलिस वालों से नहीं होना चाहिए । पुलिस वाले इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे कि इस पर काबू पाना असंभव-सा है । वह अपनी करेंगे और नतीजा बहुत बुरा होगा ।
महाजन तेजी से कार दौड़ाए जा रहा था ।
आगे वाहनों की भीड़ दिखी । लालबत्ती हुई थी । महाजन ने फौरन आसपास देखा । पास ही गली नजर आई तो कार को उस गली की तरफ मोड़ दिया । दो मिनट में ही गली पार हुई और कार दूसरी तरफ की सड़क पर पहुँचकर दौड़ने लगी ।
पुलिस सायरनों की आवाजें बराबर सुनाई दे रही थी ।
परेशान-सा महाजन समझ नहीं पा रहा था कि कैसे पुलिस वालों से पीछा छुड़ाये ? पीछे पुलिस की एक कार होती तो पीछा छुड़ा भी लेता, लेकिन पीछे तो कई पुलिस कारें थी । तभी उसे अपने कंधे पर हाथ महसूस हुआ । महाजन ने फौरन पीछे की तरफ गर्दन घुमाई ।
रहस्यमय जीव खुशी भरे अंदाज में मुस्कुराकर उसे देख रहा था ।
महाजन ने जबरन चेहरे पर मुस्कान लाया फिर सामने देखने लगा । जीव ने उसके कंधे से अपना हाथ हटा लिया । तेजी से कार दौड़ाते महाजन समझ नहीं पा रहा था कि क्या करें ?
पाँच मिनट इसी तरह की भागा-दौड़ में बीते होंगे कि एकाएक पुलिस सायरनों की आवाजों में तेजी आ गई । उसने बैक मिरर में नजर मारी । पीछे दूर पुलिस कारें उतनी ही दूरी पर थी । फिर अचानक पुलिस सायरनों की आवाजों में तेजी क्यों आ गई ? गूँज ज्यादा क्यों बढ़ गई ?
फिर महाजन को समझ आया ।
सामने की तरफ से भी पुलिस आ रही थी । सड़क पर आते-जाते लोग और वाहन तेजी से किनारों की तरफ होते जा रहे थे । यानी कि उसे घेरने की पूरी कोशिश कर ली गई है ।
महाजन के दाँत भिंच गये ।
सामने से आती पुलिस कारें नजर आने लगी ।
महाजन समझ गया कि अब निकलने का कोई रास्ता नहीं रहा । बैक मिरर में देखा । पीछे भी पुलिस कारें थी । उसने जल्दी से इधर-उधर देखा कि कोई रास्ता मिल सके ।
परन्तु इस वक्त सड़क के दोनों तरफ इमारतें थीं । जब सामने से आती पुलिस कारें पास आ पहुँची तो महाजन फौरन कार को एक बिल्डिंग के खुले गेट के भीतर ले गया और खुले-से पोर्च में कार जा रोकी । इंजन बंद किया । जल्दी से बाहर निकला । तब उसे पता लगा कि ये स्कूल की बिल्डिंग थी । भीतर से बच्चों की आवाजें आ रही थीं । कुछ बच्चे इधर-उधर घूमते नजर आ रहे थे । उसने पीछे का दरवाजा खोला और रहस्यमय जीव की बाँह पकड़कर उसे बाहर खींचा । जीव ने उसका इशारा समझा और कार से बाहर निकल आया ।
बाहर सड़क पर पुलिस सायरनों की आवाजों में तेजी आ रही थी । यानी कि पुलिस कारें सड़क पर रुक रही थी । तभी महाजन के देखते-ही-देखते एक पुलिस कार स्कूल गेट के भीतर प्रवेश कर आई थी । कार के ऊपर लगी बत्ती तेजी से जल-बुझ रही थी । सायरन की आवाज तीखी-सी कानों में पड़ रही थी ।
महाजन दाँत भींचें पास आती पुलिस कार को देखता रहा ।
रहस्यमय जीव ने भी उधर देखा ।
पुलिस कार पास आकर रुकी । फौरन उसके दरवाजे खुले और दो पुलिस वाले बाहर निकले । हाथों में रिवॉल्वरें थमी थीं । रिवॉल्वरों का रुख इसी तरफ था ।
“खबरदार, अगर तुम दोनों में से किसी ने हिलने की कोशिश की ।” एक पुलिस वाले ने कठोर आवाज में चेतावनी दी ।
हाथों में रिवॉल्वर देखकर , जीव के चेहरे पर गुस्सा दिखाई देने लगा ।
पुलिस कार का ड्राइवर भीतर ही बैठा । वह जीव को देख रहा था, जिसके शरीर पर पुलिस की वर्दी मौजूद थी । सिर पर रखी कैप माथे पर कुछ ज्यादा ही झुकी हुई थी ।
“यहाँ मत रुको ।” महाजन ने उखड़े स्वर में पुलिस वालों से कहा, “खैर चाहते तो चले जाओ ।”
“यही इस जीव को भगा ले जा रहा था ।” दूसरे पुलिस वालों ने खा जाने वाली निगाहों से महाजन को देखा, “ हमने इसे मौके पर पकड़ लिया । नहीं तो इन दोनों ने हाथ नहीं आना था ।”
“बकवास मत करो ।” महाजन ने खा जाने वाली निगाहों से दोनों पुलिसवालों को देखा, “मैं तुम लोगों को बचा रहा हूँ और तुम बेकार की बकवास कर रहे हो ।”
“सुना तूने ।” एक पुलिस वाले ने व्यंग्य भरे स्वर में दूसरे से कहा, “ये हमें बचा रहा है ।”
“पुलिस वालों को बचाने वाले पैदा हो गये ।” दूसरा कड़वे स्वर में कह उठा ।
“रिवॉल्वर हमने पकड़ रखी है, वर्दी हमारे शरीर पर है और ये हमें बचा रहा है ।”
“घबराहट में इसे पता नहीं चला कि ये क्या कर रहा है ।” दाँत भींचें महाजन दोनों को बारी-बारी देख रहा था ।
“वर्दी तो इसने भी पहन रखी है ।” महाजन ने कड़वे स्वर में जीव की तरफ इशारा किया ।
दोनों पुलिस वालों ने मुस्कराकर एक-दूसरे को देखा ।
“सुना तूने ।” एक बोला, “ये हमें जानवर के शरीर पर पड़ी वर्दी का रौब दिखा रहा है ।”
“दिमाग खराब हो गया है इसका ।”
“ये जानवर नहीं है ।” कठोर स्वर में कहा महाजन ने, “तुम लोगों से ज्यादा समझदार है ।”
दोनों पुलिस वाले हँस पड़े ।
“हमसे ज्यादा समझदार सही । हमें क्या इनाम लेना है । तेरे को तो हम नहीं छोड़ेंगे ।”
“तुम दोनों इस वक्त मेरी वजह से बचे हुए हो ।” महाजन शब्दों को चबाकर कह उठा, “वरना ये जीव किसी भी ऐसे इंसान को पसंद नहीं करता जिसने रिवॉल्वर या गन पकड़ रखी हो । ये अब तक... ।”
“अच्छा, बता क्या करता ये हमारा ?”
“तुम दोनों को चीर-फाड़कर मार देता ।”
“रिवॉल्वरें नहीं देखी तुमने हमारे हाथों में ।” एक ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा, “जब तक यह हम तक पहुँचेगा तब तक तो सारी गोलियाँ हम इसके शरीर में उतार देंगे ।”
“गोलियाँ इसके शरीर में धँस जायेगी, लेकिन इसका कुछ नहीं बिगड़ेगा ।”
दोनों पुलिसवालों ने व्यंग भरी नजरों से एक-दूसरे को देखा ।
“सुना तूने, गोलियाँ इसके शरीर पर असर नहीं करती ।” एक पुलिस वाले ने कहा ।
“ये बात है तो चैक करना चाहिए । चलाऊ गोली ?”
“ये गलती मत कर देना ।” महाजन ने हड़बड़ाकर कहा ।
स्कूल के प्रवेश द्वार पर ढेरों पुलिस वाले खड़े इधर ही देख रहे थे ।
सायरनों की आवाजें तीखी-सी कानों में पड़ रही थी ।
“सुना तूने ।” एक पुलिस वाले ने दूसरे से कहा, “गोलियाँ इस पर असर नहीं करती फिर भी गोली चलाने को मना कर रहा है ।”
“इस जीव का जो भी हो, लेकिन ये नहीं बचने वाला । ये तो लम्बा ही जेल में जायेगा ।”
तभी पुलिस कार की ड्राइविंग सीट पर मौजूद पुलिस वाला चिल्लाकर बोला ।
“जल्दी निपटाओ मामले को । क्यों वक्त बर्बाद कर रहे हो ।”
रहस्यमय जीव गुस्से से भरी नजरों से पुलिस वालों को देख रहा था ।
“वो ठीक कहता है । मार गोली ।”
“नहीं !” महाजन गुर्राकर बोला ।
तब तक दूसरे पुलिस वाले ने ट्रिगर दबा दिया था ।
फायर की तेज आवाज हुई । गोली जीव के पेट में जा धँसी ।
महाजन स्तब्ध-सा खड़ा रह गया ।
रहस्यमय जीव का चेहरा गुस्से से भर उठा । उसने एक बार अपने पेट की तरफ नजर मारी फिर मुँह आसमान की तरफ करके होंठों से तीव्र आवाज निकाली ।
आवाज में ऐसा तीखापन था कि पुलिस वाले ने घबराकर सारी गोलियाँ चला दी । एक के बाद एक धमाके होते चले गये । दो गोलियाँ जीव को लगी । बाकी खाली गई ।
महाजन ने खुद को कठिनता से बचाया ।
तभी रहस्यमय जीव गुस्से से दो पुलिसवालों पर झपट पड़ा ।
वे चाहकर भी खुद को न बचा पाये और जीव की गिरफ्त में आ गये । कार की ड्राइविंग सीट पर बैठा पुलिस वाला कार स्टार्ट करके उसे बाहर की तरफ ले भागा ।
महाजन अपनी जगह पर ठगा-सा खड़ा रह गया ।
देखते-ही-देखते दो मिनट में ही दोनों पुलिसवालों की विछिप्त-सी लाशें पड़ी थी । खून बह रहा था । खून के छींटे इधर-उधर पड़े थे । दूर स्कूल के गेट पर खड़े पुलिस वाले हक्के-बक्के से सब देख रहे थे । किसी की हिम्मत इस तरफ आने की नहीं हुई ।
महाजन, रहस्यमय जीव को लेकर स्कूल के भीतर प्रवेश कर गया ।
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