सोमवार : 30 दिसम्बर
शाम को कुशवाहा ने लोटस क्लब में कदम रखा और सीधा भीतर जाकर गुरबख्शलाल के हुजूर में पेश हुआ ।
“क्या बात है, भई ?” - गुरबख्शलाल शिकायत भरे स्वर में बोला - “अब शक्ल दिखाई सारे दिन के बाद !”
“सारा दिन होटल ताजमहल को खंगालने में गर्क हुआ, लाल साहब ।” - कुशवाहा बोला ।
“नतीजा क्या निकला ? कुछ हाथ भी आया या नहीं ?”
“अभी यकीनी तौर पर कुछ कहना मुहाल है ।”
“क्या मतलब ?”
“लाल साहब, वहां से ये तो थोड़ी-सी ही कोशिश से मालूम हो गया था कि वहां अरविन्द कौल या सोहल नाम का कोई शख्स नहीं ठहरा हुआ था लेकिन सोहल की सूरत का हवाला देकर पूछताछ करने में सारा दिन लग गया था ।”
“मालूम क्या हुआ ?”
“यही कि उस सूरत का कोई शख्स वहां नहीं ठहरा हुआ था ।”
“फिर क्या बात बनी ?”
“मेहनत से तो बिल्कुल नहीं बनी, लाल साहब लेकिन हार मान के अब मैं वहां से वापिस लौटने लगा था तो इत्तफाक से बात बन गयी ।”
“मतलब !”
“लाल साहब, वो क्या है कि कौल के साथ दो हमशक्ल लड़कों का हवाला कई बार पेश हुआ था जो कि बकौल लूथरा, उसके बाडीगार्ड मालूम होते थे । वो लड़के जरूर जुड़वां भाई हैं जिन्हें कौल के साथ मैंने भी कल सुमन वर्मा नाम की उसकी पड़ोसिन के फ्लैट में देखा था । होटल से मायूस होकर मैं लौटने ही लगा था कि एकाएक खामखाह ही मुझे सूझा कि मैं उन हमशक्ल लड़कों की बाबत दरयापत करूं । पूछा तो जवाब चौंका देने वाला मिला । पता लगा कि होटल के सात सौ बारह नम्बर कमरे में वो दोनों ठहरे हुए थे । अब उन गटर के कीड़ों की अपने आप में तो फाइव स्टार होटल में ठहरने की औकात हो नहीं सकती थी...”
“वो सोहल के बाडीगार्ड हैं” - गुरबख्शलाल बेसब्रे स्वर में बोला - “तो उसी ने उनकी औकात बनायी होगी ।”
“जाहिर है । फिर उनकी होटल बुकिंग के बारे में पूछताछ करने पर ये बात साबित हो गयी ।”
“कैसे ?”
“लाल साहब, होटल के रजिस्ट्रेशन के रिकार्ड के मुताबिक सातवीं मंजिल का सात सौ बारह नम्बर कमरा और उसके ऐन सामने का सात सौ चौदह नम्बर कमरा दोनों एक ही आदमी के नाम बुक हैं और उस आदमी का नाम है पेस्टनजी नौशेरवानजी घड़ीवाला ।”
“ये क्या बला हुई ?”
“लाल साहब, ये ही शख्स सोहल हो सकता है । जब वो बाडीगार्ड छोकरे वहां मौजूद हैं तो वो बाडी भी तो वहीं उनके करीब ही कहीं होनी चाहिये न जिसे कि उन्होंने गार्ड करना है ?”
“हूं । तो इस घड़ीवाला को थाम ।”
“वो होटल में नहीं है ।”
“उन छोकरों को थाम और उनसे पूछ कि वो घड़ीवाला कौन है और कहां पाया जाता है ।”
“वो भी होटल में नहीं हैं ।”
“फिर क्या बात बनी ?”
“लेकिन उन सब का होटल में लौटना लाजमी है ।”
“हूं ।”
“मैंने ऐसा इन्तजाम किया है कि इस पेस्टनजी नौशेरवानजी घड़ीवाला के होटल में कदम रखते ही खबर मेरे तक पहुंच जायेगी । फिर मैं खुद जाके इस बात की तसदीक करूंगा कि वो सोहल है या नहीं ।”
“वो मेकअप में होगा ।”
“यकीनन मेकअप में होगा । तभी तो सीधे-सीधे उसकी वहां मौजूदगी की किसी ने हामी न भरी । लेकिन लाल साहब वो दो बार मेरे से मुलाकात कर चुका है । वो कैसे भी शानदार मेकअप में क्यों न हो, ये नहीं हो सकता कि आपका खादिम दो बार जिसके रूबरू हो चुका हो, वो उसे न पहचान पाये ।”
“पहचानकर क्या करेगा ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है ! मैं देखते ही शूट कर दूंगा उसे । उसे भी और उसके बाडीगार्डों को भी ।”
“होटल में सरेआम !”
“आप इन बातों की फिक्र न करें । बस इस बात की तसदीक होनी चाहिये कि घड़ीवाला ही सोहल है, फिर उसकी जिन्दगी खत्म ।”
“वो न हुआ सोहल तो ?”
“तो फिर आप वाली राय पर अमल करेंगे । फिर सोहल के बाडीगार्ड उन हमशक्ल छोकरों को थाम लेंगे और उन्हीं से कबुलवायेंगे कि सोहल कहां है ।”
“जो काम पहले हो जाये वो करना । वो छोकरे पहले हाथ में आ जायें तो भी चलेगा ।”
“ठीक है ।”
तभी फोन की घन्टी बजी ।
“देख, कौन है ।” - गुरबख्शलाल अनमने स्वर में बोला ।
कुशवाहा ने फोन उठाकर कान से लगाया । वो कुछ क्षण दूसरी ओर से आती आवाज सुनता रहा और फिर माउथपीस को हाथ से ढककर बोला - “झामनानी है उसे अभी हिसार वाले हादसे की खबर लगी है । अफसोस जाहिर कर रहा है ।”
“मादर... जले पर नमक छिड़क रहा है ।” - गुरबख्शलाल भुनभुनाया ।
“और पार्टी की बाबत पूछ रहा है ।”
“क्या पूछ रहा है पार्टी की बाबत ?”
“होगी या नहीं ।”
“कमीना ! कुत्ता ! सिर्फ नमक नहीं छिड़क रहा जले पर ! इसे मसल भी रहा है जख्म के अन्दर तक ।”
“मैं क्या बोलूं उसे ?”
“उसे बोल, ऐसे छोटे-मोटे हादसों से गुरबख्शलाल की पर्टियां नहीं टलती । कल आठ बजे तक पहुंच जाए फरीदाबाद ।”
कुशवाहा ने सहमति में सिर हिलाया और फिर फोन में अपने बॉस का निर्देश दोहराने लगा ।
***
“नामंजूर” - मुबारक अली पुरजोर लहजे में बोला - “बाप, तेरा अकेला उदर जाना एकदम नामंजूर । कतई नामंजूर ।”
रात के आठ बजे थे जब कि मुबारक अली, अली मोहम्मद, वली मोहम्मद और विमल उसके होटल के कमरे में मौजूद थे ।
“और कोई तरीका नहीं, मुबारक अली” - विमल बोला - “जो तरीका सामने है, उससे मैं ही भीतर पहुंच जाऊं तो बहुत बड़ी बात समझना ।”
“लेकिन तू अकेला...”
विमल ने अटट्हास किया और बोला - “मैं सवा लाख ।”
“बाप” - मुबारक अली बेहद चिन्तित भाव से बोला - “वो क्या कहते है अंग्रेजी में, संजीदा बात कर ।”
विमल तत्काल गम्भीर हुआ ।
“मियां” - वो बोला - “सौ वाहे गुरू की, तुम लोगों को साथ ले जाने में कोई गुरेज नहीं । तेरे धोबियों की पूरी पलटन साथ ले जाने में भी मुझे कोई गुरेज नहीं । लेकिन ऐसा मुमकिन भी तो हो किसी तरीके से ! उस कोठी की चारदीवारी के करीब भटकने भर से तो इमारत की घन्टियां बजने लगती हैं । किसी तरह से चारदीवारी लांघ भी जाये तो कोठी में दाखिल होने की कोशिश करने पर खतरे की घन्टियां सिर्फ वहीं नहीं बजतीं बल्कि करीबी थाने पर भी बजती हैं । मालूम हुआ है कि उस थाने को गुरबख्शलाल ने अपनी मेहरबानियों से यूं लादा हुआ है कि घन्टी बजते ही दर्जनों की तादाद में हथियारबन्द पुलसिये वहां पहुंच जाते हैं । मियां, इतने इन्तजामात में तेरी या तेरे इन जियाले भांजों की या तेरे धोबियों की जोर-जबरदस्ती नहीं चल सकती ।”
“क्यों नहीं चल सकती ?” - मुबारक अली ने जिद की - “चल सकती है हिसार में भी तो चली थी । वहां क्या कम इन्त्तजाम थे ! वहां क्या कम हथियारबन्द आदमी थे !”
“वहां की बात और थी ।”
“क्यों और थी ?”
“वहां तूने सब कुछ फूंक के रख दिया था। मुकम्मल तबाही मचा दी थी । कुछ नहीं छोड़ा था ।”
“ऐसा ही तो अपुन इदर भी करना मांगता है । क्या वांदा है ?”
“है वान्दा ! वहां गुरबख्शलाल की कोठी में जो लोग मौजूद हैं और कल शाम की पार्टी में उसकी मौजूदगी में भी मौजूद होंगे तो सबके सब ही गुण्डे-बदमाश और कानून के दुश्मन और समाज के गुनेहगार नहीं । मियां, वहां एक मिसेज स्मिथ नाम की हाउसकीपर है, एक एलिजाबेथ नाम की उसकी नौजवान बेटी है, एक बूढ़ा नौकर तीरथ है और गुरबख्शलाल के कहर के जेरेसाया वहां तलब की गयी आधी दर्जन लड़कियां वहां होंगी जिसका गुरबख्लाल के काले कारनामों से कुछ लेना-देना नहीं और जिसमें से एक लड़की मोनिका भी है जो मेरी खातिर अपनी जान को जोखिम में डाल रही है । इतने लोग तो वो होंगे वहां कल रात जो कि तेरे हिसार मार्का हमले से बेमौत मारे जायेंगे । ऊपर से ये ट्रेजड़ी भी हो सकती है कि सब के-सब तो मारे जायें लेकिन गुरबख्शलाल जिन्दा बच जाये ।”
“खामखाह !”
“हो तो सकता है न ?”
“नेई हो सकता ।”
“हो सकता है ! पापियों की जान बड़ी मुश्किल से निकलती है, मियां ।”
“बाप, मेरा मन नहीं मानता ।”
“मना अपने मन को । ये सोच के मना कि जेवड भावे तेबर होए । जैसा उसे आता है, वैसा ही होगा । मगर मेरी मौत गुरबख्शलाल के गार्डों के हाथों उसकी कोठी के अहाते में होनी लिखी है तो वहीं होगी । कोई उसे टाल नहीं सकता ।”
मुबारक अली खामोश रहा । उसने बचैनी से पहलू बदला ।
“अब ये सोच छोड़ । हमारे यहां कहते हैं, जन की पैज रखी करतारे । ऊपर वाला ही हर जीव की इज्जत रखता है । मेरी भी रखेगा । समझा !”
मुबारक अली ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
तभी वहां मोनिका ने कदम रखा ।
***
पिछली रात वाले ही वक्त पर मोनिका ने कोठी के बन्द फाटक के सामने कार ले जाकर रोकी और हार्न बजाया ।
फाटक की झरोखे जैसी खिड़की खुली, वीरसिंह ने उसकी शिनाख्त की और फाटक खोला ।
मोनिका ने कार भीतर दाखिल की ।
तत्काल कुत्ते भौंकने लगे।
मोनिका ने कार को ब्रेक लगायी ।
“अब क्या है, डॉग मास्टर !” - फाटक बन्द करता वीरसिंह तिक्त स्वर में बोला ।
“कुत्ते भौंक रहे हैं ।” - ग्रेगरी बोला ।
“पागल हो गये हैं साले । और तू साथ में ।”
“बकवास न कर । और कार चैक कर ।”
“क्या... क्या चैक करूं कार में ?”
“तुझे पता है क्या क्या चैक करूं । गार्ड तू है ।”
“मैं कहता हूं...”
“मत कह । मुझे वाहियात बातें नहीं सुनाई देती ।”
“यार तू तो...”
“क्या आदमी है तू वीरसिंह ! दस मिनट की बहस कर लेगा, दस सेकेंड का काम नहीं करेगा । और काम भी वो जिसे करना तेरी ड्यूटी है ।”
वीरसिंह ने असहाय भाव से मोनिका की ओर देखा ।
पांव पटकती हुई मोनिका कार से बाहर निकली और उसने कार की चाबी वीरसिंह पर फेंककर मारी ।
वीरसिंह ने झुककर चाबी उठाई और आगे बढ़ा । उसने कार का पिछला दरवाजा खोलकर भीतर झांका ।
ग्रैगरी ने कुत्तों को छोड़ दिया ।
एक कुत्ता लपककर कार के पिछले दरवाजे से भीतर घुस गया और जोर से भौंकने लगा ।
दूसरा कुत्ता भौंककर जैसे उसके सुर में सुर मिलाने लगा ।
“इन्हें फिर नावाफिक मुश्क मिल रही है ।” - ग्रेगरी कार की तरफ बढ़ता हुआ अप्रसन्न स्वर में बोला ।
“जब मेरा व्यायफ्रेंड” - मोनिका भड़ककर बोली - “कार में मेरे साथ बैठेगा तो उसको मुश्क कार में नहीं होगी ?”
ग्रैगरी ने उत्तर न दिया । उसने कुत्ते को कार से बाहर धकेला और स्वयं भीतर दाखिल हुआ ।
डोमलाइट की रोशनी में उसने पिछली सीट और उसकी बैक के बीच का पतली-सी झिरी में से एक रुमाल बरामद किया ।
“सुरेश का होगा ।” - मोनिका तत्काल बोली ।
“सुरेश कौन ?” - वीरसिंह बोला ।
मोनिका ने जानबूझकर उत्तर नहीं दिया ।
“तुम्हारा ब्वायफ्रेंड ?”
मोनिका ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“वो” - वीरसिंह के स्वर में ईर्ष्या का गहरा पुट आ गया - “कार में सिर्फ पिछली सीट इस्तेमाल करने के लिए ही सवार होता है ?”
उतर देने की जगह मोनिका ने बड़ी उपेक्षा से मुंह बिचकाया ।
ग्रैगरी ने रूमाल को वापिस कार की पिछली सीट पर फैंक दिया और फिर अपने कुत्तों को पुलोवर की तरह रूमाल पर भी झपटने से रोकने लगा ।
“अभी कितनी देर और यहां ठण्ड में खड़े-खड़े ठिठुरना होगा !” - मोनिका चिड़चिड़े स्वर में बोली ।
वीरसिंह हड़बड़ाया, उसने एक बार अपने हाथ में थमी चाबी की ओर देखा और फिर चाबी वाला हाथ मोनिका की तरफ बढ़ाया । मोनिका ने उसके करीब पहुंचने के लिए आगे कदम बढ़ाया तो वीरसिंह ने एकाएक हाथ वापिस खींच लिया ।
“अब क्या हुआ ?” - मोनिका सकपकाकर बोली ।
वीरसिंह ने उत्तर न दिया । बड़े अनिश्चित भाव से वो वापिस घूमा और कार के पृष्ठभाग में पहुंचा । उसने चाबी लगा कर डिकी का ताला खोला और उसका ढक्कन ऊपर उठाया ।
कुत्ते भौंकते हुए डिकी की ओर लपके ।
ग्रैगरी अपने कुत्तों के पीछे दौड़ा । करीब आकर उसने डिकी के भीतर झांका ।
डिकी खाली थी ।
उसके चेहरे पर उलझन के बड़े गहन भाव प्रकट हुए ।
“शू ! शू !” - फिर वो कुत्तों को चुप कराने लगा - “टामी ! लियो ! शू !”
कुत्तों ने भौंकना बन्द किया ।
वीरसिंह ने डिकी को बन्द करके उसमें पूर्ववत् ताला लगाया और मोनिका के करीब पहुंचा । चेहरे पर खेदपूर्ण भाव लिये उसने चाबी मोनिका की तरफ बढ़ाई ।
मोनिका ने गुस्से में चाबी को झपट्टा सारा कार में सवार हो गयी ।
अगले ही क्षण कार तेज रफ्तार से कोठी के साइड डोर की ओर दौड़ी जा रही थी ।
वीरसिंह उसके पीछे लपका ।
उस सारी घटना के दौरान दूसरा गार्ड मांगेराम बरामदे में स्विच बोर्ड के पास रहा था लेकिन उसे लाइट्स आन करने को नहीं कहा गया था । कार साइड डोर पर पहुंच गयी तो वो स्विच बोर्ड के करीब से हट गया ।
मोनिका कार से निकलकर भीतर कोठी में दाखिल हुई तो वीरसिंह भी उसके पीछे-पीछे हो लिया ।
“अब मैं क्या करुं ?” - वो मोनिका के पीछे सीढ़िया चढता हुआ खेदपूर्ण स्वर में बोला ।
“हां, तू क्या करे !” - मोनिका भुनभुनाती हुई बोली - “है ही क्या तेरे बस का ! सियाय वाहियात बातों के ।”
“वो साला कुत्ते को खामखाह...”
“तू तो कहता था तू ग्रैगरी को समझायेगा ?”
“अब मैं क्या करुं ? वो वो...”
“गार्ड तू है या ग्रैगरी ?”
“गार्ड तो मैं हूं लेकिन वो क्या है कि न मैं ग्रैगरी से बाहर जा सकता हूं ओर न ग्रैगरी मेरे से बाहर जा सकता है ।”
“बढ़िया ! राम मिलाई जोड़ी एक अन्धा एक कोड़ी ।”
“देख, तू खामखाह नाराज...”
“शटअप !”
तभी मोनिका के पांव तीसरी मंजिल को जाती पहली सीढ़ी पर पड़े ।
“देख, तू...”
“वीरसिंह !”
वीरसिंह चौंककर ठिठका और आवाज की दिशा में घूमा ।
उसके पीछे कमर पर दोनों हाथ रखे मिसेज स्मिथ खड़ी थी और आग्नेय नेत्रों से उसे घूर रही थी ।
“वीरसिंह !” - मिसेज स्मिथ कर्कश स्वर में बोली - “छोकरी लोगों के फ्लोर पर कदम रखना नहीं मांगता । मालूम !”
“मैं तो” - वीरसिंह बोला - “सिर्फ इसे ऊपर तक पहुंचाने जा रहा था ।” 
“ये बोला तेरे को बोला ?”
“बोला तो नहीं । मिसेज स्मिथ, लेकिन...”
“ज्यास्ती बात नहीं चलो वापिस ।”
“यस, मिसेज स्मिथ ।” - फिर वो होठों में बुदबुदाया - “बुढिया सो जाये तो आता हूं ।”
“खबरदार !” - मोनिका भी वैसे ही दबे स्वर में बोली ।
“वीरसिंह !” - मिसेज स्मिथ चेतावनी भरे स्वर में बोली ।
तत्काल वीरसिंह घूमा और सीढ़ियां उतरने लगा ।
***
जैसा कि अपेक्षित था, आधे घन्टे बाद मोनिका के दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“कौन ?” - वो जानबूझ के अनजान बनती हुई बोली ।
“मैं हूं ।” - वीरसिंह की धीमी आवाज आयी - “खोल ।”
“दफा हो जा ।”
“अरे, खोल तो । तेरे फायदे की बात है ।”
“क्या मेरे फायदे की बात है ?”
“खोल, बताता हूं ।”
“वीरसिंह, अगर ये दरवाजा खुलवाने का बहाना निकला तो तेरी खैर नहीं ।”
“मंजूर ।”
मोनिका ने दरवाजा थोड़ा सा खोला और बाहर झांकती हुई बोली - “बोल ।”
“सुन ।” - वीरसिंह बोला - “तू बाहर कल को जायेगी, अपने ब्वायफ्रेंड से मिलने ?”
“हां ? कोई एतराज ?”
“कल तो लाल साहब आ रहे हैं ।”
“मैं जल्दी जाऊंगी और जल्दी ही, उनके यहां पहुंचने से पहले, लौट आऊंगी । लाल साहब साढे सात बजे आयेंगे । उनके मेहमान आठ बजे आयेंगे । लड़कियां साढे सात बजे आयेंगी । मैं सात से पहले ही लौट आऊंगी । अब बोल क्या है ?”
“तुझे तलाशी से चिढ क्यों है ?”
“मुझे तलाशी से चिड़ नहीं है, मूझे तुम लोगों के रवैये से चिड़ है । तुम सब साले बदमाश हो और समझते हो कि लाल साहब की गैरहाजिरी में तुम हम लड़कियों को हलकान कर सकते हो । तलाशी तो बहाना है । असल में तो तुम लोग हम लड़कियों को अपनी ताकत, अपना रोब दिखाना चाहते हो । मैं क्या जानती नहीं ।”
“तू गलत समझ रही है...”
“मैं बिल्कुल ठीक समझ रही हूं । परसों सुबह हम सब लड़कियां मिलकर लाल साहब से तुम लोगों की शिकायत करेंगी, फिर देख लेना, तीनों के तीनों सड़क नापते दिखाई दोगे ।”
“तू खामखाह भड़क रही है ।”
“खामखाह ! उहुं !”
“तुझे पता तो है तलाशी का दस्तूर है ।”
“अजनबियों के लिए !”
“सबके लिए ।”
“लाल लाहब आयें तो उलकी भी तलाशी ले के दिखाना ।”
“वो तो मालिक है ।”
“और मैं” - मोनिका इठलाकर बोली - “मालिक की मालकिन हूं ।”
“क्या कहने !”
उसे जरा ढील देने की नीयत से मोनिका हंसी ।
“तुझे जरा-सी तलाशी से एतराज क्या है !”
“है एतराज । मुझे वहां रुक के ठन्ड में मरना पड़ता है ।”
“बस, सिर्फ यही बात है ?”
“और क्या बात होगी ! और क्या मैं अपने ब्वायफ्रेन्ड को सच में यहां लेकर आऊंगी ?”
“ठीक है । कल तू जब लौट तो गेट के भीतर दाखिल होने के बाद सीधा कोठी के साइड गेट पर लाकर ही गाड़ी रोकना ।”
“जरूर । ताकि जब मैं गाड़ी से बाहर कदम रखूं तो कुत्ते मुझे फाड़ के रख दें !”
“ऐसा कुछ नहीं होगा । तू गाड़ी खड़ी करके, उसकी चाबी भी इग्नीशन में छोड़कर कोठी के भीतर चली आना । बाद में जो होना होगा, होता रहेगा ।”
“कुत्ते मेरे पर नहीं झपटेंगे ?”
“नहीं ।”
“वो मेरे राछे कोठी में नहीं घुस पायेंगे ?”
“हरगिज भी नहीं । कुत्तों का कोठी में दाखला मना है ।”
“तुम्हारा डॉग मास्टर मेरी इज्जत तो नहीं उतार देगा । इस बात के लिए कि मैं गेट पर रुकी क्यों नहीं ।”
“उसकी ऐसी मजाल नहीं हो सकती । वो क्या जानता नहीं कि आजकल तू लाल लाहब की खास है ।”
“अगर हो गई तो ?”
“हो गई तो भी उसने जो कहना होगा, मुझे कहेगा । अब कोई बात का बतंगड़ बनेगा तो सारा इलजाम” - वो गोविन्दा की तरह एक शहीदी मुस्कराहट अपने होंठों पर लाता हुआ बोला - “मैं अपने सर ले लूंगा । मैं बोल दूंगा कि मैंने तुझे इशारा किया था बिना रुके सीधे कोठी तक चले जाने का ।”
“तू ऐसा करेगा ?”
“तेरी खातिर ! किसी और की खातिर नहीं ।”
“हाय वीरसिंह !” - मोनिका ने हाथ बड़ाकर उसके गाल पर चिकौटी काटी - “तू कितना अच्छा है ।”
वीरसिंह निहाल हो गया ।
“अब” - वो बोला - “मुझे अन्दर आने दे ।”
“खामखाह !”
“मुझे अन्दर आने दे आज वर्ना...”
“वर्ना क्या ?”
“वर्ना मैं नाराज हो जाऊंगा ।”
मोनिका ने बड़ी कठिनाई से अपनी हंसी रोकी ।
“नाराज होके क्या करेगा ?” - वो बोली - “दीवार में सिर पटकेगा या रो-रो के जान दे देगा ?”
“अब तू मेरा खिल्ली उड़ा रही है ।”
तभी सीढ़ियों पर आहट हुई ।
“मिसेज स्मिथ ।” - मोनिका से मुंह से निकला ।
“मर गए ।” - वीरसिंह बोला - “मुझे अन्दर आने दे ।”
“नहीं !”
“प्लीज । मुझे अन्दर आने दे । उसके जाते ही मैं चला जाऊंगा ।”
“वादा करता है ?”
“हां ।”
“कोई बेजा हरकत, कोई छीना-झपटी तो नहीं करेगा ?”
“नहीं ।”
मोनिका ने उसे अन्दर आ जाने दिया और फिर उसके पीछे दरवाजा बन्द करके दरवाजे के आगे पर्दा कर दिया ।
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“मोनिका बेबी !” - साथ ही मिसेज स्मिथ की आवाज आयी ।
“सत्यानाश ?” - मोनिका फुसफुसाईं - “तूने मुझे फंसवा दिया, वीरसिंह ।”
“कुछ नहीं होता ।”
“अगर उसने भीतर आने की जिद की तो ?”
“नहीं करेगी ।”
“की तो ?”
“तो मैं बाल्कनी से नीचे छलांग लगा दूंगा । अब खुश !”
“मोनिका बेबी !” - मिसेज स्मिथ की आवाज फिर आयी, साथ ही दरवाजे पर फिर दस्तक पड़ी ।
“यस, मिसेज स्मिथ !” - मोनिका बोली ।
“अभी सोया नहीं, मिस्सी बेबी !”
“बस सोने ही लगी हूं, मिसेज स्मिथ ।”
“वो वीरसिंह तो इधर नहीं आया ?”
“नहीं, मिसेज स्मिथ ।”
“वो आये तो उसे डांट के भगा देने का है ।”
“मैं ऐसा ही करूंगी, मिसेज स्मिथ ! साथ ही मैं आपको आवाज भी लगा दूंगी ।”
“ऐसा ही करना, मिस्सी बेबी । ओके !”
“यस, मिसेज स्मिथ ।”
“सीमा बेबी तो सो गया मालूम होता है ।”
“यस, मिसेज स्मिथ । मिसेज स्मिथ, आप जल्दी नीचे जाइये । नीचे आपकी बेबी एलिजाबेथ भी तो अकेली है ! कहीं वीरसिंह आपकी गैरहाजिरी में वहां... उसके कमरे में...”
“ओह, यस । ओह, यस, । हम अभी नीचे जाता । उस हलकट का कोई भरोसा नहीं ।”
उसके बाद कुछ क्षण मिसेज स्मिथ के लौटते कदमों की आवाज आयी और फिर सन्नाटा छा गया ।
वीरसिंह ने चैन की सांस ली ।
“डरता भी है हाउसकीपर से ।” - मोनिका तिरस्कार पूर्ण स्वर में बोली - “और अपनी हरकतों से बाज भी नहीं आता ।”
वीरसिंह बड़े धूर्त भाव से हंसा । उसने मोनिका को अपनी बांहों में लेने की कोशिश की ।
मोनिका बिदककर उससे परे हटी और बोली - “तूने वादा किया था कि कोई बेजा हरकत, कोई छीना झपटी नहीं करेगा !”
“मेरी जान, वक्त की नजाकत को समझ । मैं फौरन यहां से नहीं जा सकता । क्या पता वो बुढिया अभी सीढियों में ही खड़ी हो । अब तेरे इनकार कर चुकने के बाद कि मैं यहां नहीं हूं, अगर मैं उसे यहां की सीढियां उतरता दिखाई दे गया तो...”
“नहीं, नहीं । ऐसा नहीं होता चाहिये । उसने ये बात लाल साहब को बता दी तो मेरी तो जान ही चली जायेगी ।”
“मेरी भी ।”
“वीरसिंह तूने मुझे मरवा दिया ।”
“कुछ नहीं होता । कभी-कभार ही होता है जब बुढिया को नींद नहीं आती । वो अभी सो जायेगी ।”
“तब तक तू क्या करेगा ?”
“जो तू मुझे करने देगी ।”
“मेरा कहना मानेगा ?”
“हां । जरूर ।”
“उधर सोफे पर बैठ जा ।”
वीरसिंह ने आहत भाव से मोनिका की तरफ देखा लेकिन फिर बड़े ही आज्ञाकारी बालक की तरह चुपचाप जा के सोफे पर बैठ गया ।
“मैं अभी चेंज करके आती हूं ।” - मोनिका बोली और बाथरूम में दाखिल हो गयी ।
जब वो बाथरूम से बाहर निकली तो वो केवल झीनी-सी नाइटी पहने हुए थी जिसमें से उसका गोरा बदन साफ झलक रहा था ।
वीरसिंह का कलेजा मुंह को आने लगा ।
मोनिका बड़े चित्ताकर्षक भाव से मुस्कराई और फिर उसके करीब पहुंचकर उसकी गोद में ढेर हो गयी ।
“तू भी क्या याद करेगा, गोविन्दा ।” - वो भावुक स्वर में बोली । उसने अपनी बांहें वीरसिंह के गले में पिरो दीं और उसका चेहरा अपने वक्ष के साथ सटा लिया ।
वीरसिंह जैसे जन्नत में विचरने लगा ।
“अब जरा सांस तो लेने दे ।” - थोड़ी देर बाद वो बोली ।
वीरसिंह ने बड़े अनिच्छापूर्ण भाव से उसके जिस्म पर से अपनी पकड़ ढीली कर दी । लेकिन फिर ये देखकर उसने बहुत राहत महसूस की कि मोनिका ने उसकी गोद में से उठने की कोशिश न की ।
“एक बात बता ।” - मोनिका बोली ।
“दो पूछ ।”
“तू मुझे कोई अनपढ गवार लड़की तो नहीं समझता ?”
“अरे नहीं । मैं भला ऐसा क्यों समझूंगा ?”
“फिर तू मेरे से ऐसी बातें क्यों करता है जैसे मैं कोई अनपढ, गवार नासमझ लड़की होऊं ?”
“क्या मतलब ?”
“देख । एक तरफ तो तू कहता है कि रात दस बजे के बाद कोई बाहर से भीतर दाखिल होने की कोशिश करे तो यहां दस तरह के अलार्म बजने लगते हैं और दूसरी तरफ तू कहता है कि आज कल दो घण्टे बाद यहां का अलार्म सिस्टम चैक करने तू भीतर आता है । अब वीरसिंह, तू मुझे ये बता कि अलार्म क्या तेरी शक्ल पहचानते हैं जो तेरे आने से तो नहीं बजते लेकिन चोर के आने से बजते हैं !”
वीरसिंह ने जोर का अट्टहास किया ।
“धीरे ।” - मोनिका ने झिड़की दी - “धीरे ।”
“बड़ी भोली है तू ।” - वो धीरे से बोला ।
“क्यों ?”
“अरी, मैं अलार्म सिस्टम को पहले जरा-सी देर के लिए ऑफ करता हूं और भीतर दाखिल होता हूं ।”
“ओह ! यानी कि अलार्म सिस्टम को बाहर से भी आफ किया जा सकता है ?”
“हां ।”
“कहां से ?”
“तू क्यों पूछती है ?”
“यू ही । तू बेशक मत बता ।”
“नहीं, नहीं । सुन ले ।”
“जाने दे ।” - मोनिका उसकी नाक मरोड़ती हुई बोली - “अब तू समझेगा मैं किसी मकसद से पूछ रही हूं ।”
“नहीं, नहीं । इसमें तेरा क्या मकसद होगा ?”
“वही तो ।”
“वो क्या है कि साइड गेट के पहलू में जो स्विच बोर्ड लगा है न, जिसमें एक साकेट और छ: स्विच हैं, उनमें से बांयें से चौथा स्विच अगर आन करो तो अलार्म सिस्टम आफ हो जाता है । उसे आफ करो तो वो फिर से आन हो जाता है ।”
“ओह ! बस इतनी सी बात !”
“और क्या ?”
“और तू मुझे ये बात बता के ये समझ रहा होगा कि तूने मुझे कुबेर का खजाना खोलने की तरकीब बता दी !”
“अरे, नहीं ।”
“ये अलार्म और लाकिंग सिस्टम का तामझाम, मेरा मतलब है उसकी मशीनरी, उसके इन्डीकेशन लैम्प्स, उसका पावर बैक अप सिस्टम वगैरह जिसे कि आजकल तू दो-दो घन्टे बाद चैक करता है, कोठी के भीतर कहां है ?”
वीरसिंह ने तत्काल उत्तर न दिया । उसने तनिक सन्दिग्ध भाव से मोनिका की ओर देखा ।
जवाब में मोनिका ने जैसे अपनी आंखों में अपनी दिल रख के उसकी तरफ देखा ।
वीरसिंह फिर अपनी सुधबुध खो बैठा । उसका एक हाथ मोनिका की नाइटी के गिरेबान में सरक गया और दूसरे से उसने उसकी गर्दन नीचे झुकाई और बड़े आतुर भाव से उसके होंठ चूमने लगा ।
मोनिका ने एतराज न किया ।
थोड़ी देर बाद उसकी पकड़ जरा ढीली हुई तो वो बोली - “दरअसल ऐसा कोई इलैक्ट्रानिक अरेंजमेंट मैंने पहले कभी देखा नहीं । फिल्मों में भी नहीं ।”
“दिखा देंगे ।” - वीरसिंह बड़ी शान से बोला ।
“अभी दिखा ।” - मोनिका इठलाकर बोली ।
“अरे वो ग्राउन्ड फ्लोर पर किचन की बगल में स्टोर में है । अभी कैसे देखेगी ?”
“अभी दिखाने में ही तो तेरी बहादुरी है । तभी तो असली पता लगेगा कि तू मिसेज स्मिथ से कितना डरता है ।”
“तब तुझे भी तो मेरे साथ नीचे आना पड़ेगा । अभी मिसेज स्मिथ आ गयी थी तो रोने लगी थी कि तूने मुझे फंसवा दिया वीरसिंह मिसेज स्मिथ ने फिर देख लिया तो ?”
“ये बात तो है ।”
“मैं तुझे वो मशीनरी कल दिखाऊंगा ।”
“कल कब ?”
“ग्यारह बजे नीचे आना । उस वक्त तीरथ अपनी झाड़ पोंछ में लगा होता है और मां बेटी किचन में लंच पकाने की तैयारी कर रही होती हैं ।”
“ठीक है ।” - मोनिका बोली और एकाएक उसकी गोद में से उतर गयी ।
“ये क्या हुआ !” - वीरसिंह हकबकाकर बोला ।
“अब तू जा ।” - मोनिका ने नकली जमहाई ली - “मुझे नींद आ रही है ।”
“हद है तेरे वाली भी ! पहले यो आग भड़का देती है और फिर...”
“बस यहीं खराबी है तेरे में, वीरसिंह, तू कहना नहीं मानता ।”
“तू भी कहां मानती है कहना ?”
“मैं मानती हूं । तू कहता है न दिन में लंच से पहले सब जने बिजी होते हैं ?”
“हां ।”
“और उस स्टोर में जहां वो इलैक्ट्रानिक सिस्टम है, कोई आता-जाता भी नहीं होगा ! जबकि यहां कोई भी आ सकता है । दिन में भी और रात में भी । ठीक !”
“वो तो है ।”
“इसी बात की नजाकत को समझकर अब तू मेरा कहना मान और यहां से जा । कल जब तू स्टोर में मिलेगा तो वहां फिर मैं जानू या तू जाने ।”
“मैं जानूं या तू जाने !” - उसने बड़े मुदित भाव से दोहराया ।
“हां ।”
“वादा ?”
“हां ।”
“कल मैं कोई हील हुज्जत नहीं सुनूंगा ।”
“मैं कोई हील हुज्जत करूंगी ही नहीं ।”
“जीती रह, पट्ठी ।”
वीरसिंह वहां से विदा हो गया ।
मंगलवार : इकत्तीस दिसम्बर
शाम के करीब साढे छ: बज चुके थे जबकि मोनिका कोठी के फाठक के सामने पहुंची और उसने हार्न बजाया ।
हमेशा की तरह पहले फाटक की झरोखे जैसी खिड़की और फिर फाटक खुला ।
मोनिका ने कार को फाटक के भीतर दखिल किया । खुली खिड़की में से उसके फाटक का बल्ला थामे वीरसिंह की ओर हाथ हिलाया और कार आगे दौड़ा दी ।
कार फाटक और कोठी के बीच का आधे का रास्ता पार भी कर गयी तो ग्रैगरी को सूझा कि मोनिका का तो कम्पाउन्ड में गेट के करीब रुकने का कोई इरादा ही नहीं था । उसने तत्काल अपने कुत्तों के गले से जंजीर निकाली और तीखे स्वर में बोला - “टॉमी ! लियो ! शू !”
“अबे, ये क्या करता है !” - वीरसिंह घबराकर बोला ।
ग्रैगरी ने जवाब तक न दिया ।
“मांगेराम, फाटक बन्द कर ।” - वीरसिंह चिल्लाया और कुत्तों के पीछे दौड़ा ।
मोनिका ने बड़ी दक्षता से साइड डोर के सामने कार को यू टर्न दिया और उसे यूं रोका कि उसका पृष्ठभाग ऐन दरवाजे के सामने हो गया ।
“जल्दी ! जल्दी !” - वह भयभीत भाव से बोली ।
डिकी का ढक्कन उठा और काली पोशाक पहने और गले में एक झोला लटकाये विमल बाहर निकला । उसने डिकी का ढक्कन वापिस नीचे गिराया और बगूले की तरह साइड डोर से भीतर दाखिल हो गया ।
दायीं तरफ किचन ! - मोनिका ने उसे बताया था - उसकी बगल में स्टोर जिसका दरवाजा खुला होगा ।
वो सांस रोके बाहर से अपेक्षित आवाज सुनाई देने की प्रतीक्षा करने लगी ।
“हाय मर गयी ।” - कुछ ही क्षण बाद उसके कानों में मोनिका का आतंकित स्वर पड़ा - “हाय ! बचाओ ! बचाओ !”
फिर कुत्ते भौंकने लगे ।
“बचाओ ! बचाओ ! हाय मैं मरी !”
बाहर ड्योढ़ी में कई कदमों की आवाजें पड़ने लगी ।
विमल ने कुछ क्षण और प्रतीक्षा की और फिर दरवाजा खोलकर सावधानी से बाहर झांका ।
बाहर कोई नहीं था ।
मोनिका के कथनानुसार उस वक्त मिसेज स्मिथ और उसकी बेटी ने किचन में और तीरथ ने सीमा के साथ फ्रंट हाल में होना था और उसकी चीख-पुकार की आवाजें सुनकर सबने साइड डोर से बाहर कम्पाउन्ड में निकल आना था । तब वो बेरोकटोक कोठी के अग्रभाग की ओर जाते गलियारे में से होता हुआ उधर मौजूद लिफ्ट तक पहुंच सकता था जो कि दूसरी मंजिल तक जाती थी । दूसरी मंजिल के गलियारे से होता हुआ वो पीछे उन्हीं सीढियों तक पहुंच सकता था जो कि साइड डोर के सामने से ऊपर तक आती थीं जहां सीढियां खत्म होते ही दाईं ओर वाला पहला कमरा मोनिका का था ।
विमल निर्विघ्न मोनिका के कमरे तक पहुंच गया ।
मोनिका की इच्छा कुत्तों के करीब पहुंच पाने से पहले कोठी में दाखिल हो जाने की थी लेकिन ऐसा न हो सका । एक कुत्ता तो जैसे हवा से बात करता हुआ वहां पहुंचा और कार से निकल कर दरवाजे की ओर झपटती मोनिका और दरवाजे के बीच में आ गया ।
यही गनीमत था कि विमल उसके आगमन से पहले भीतर दाखिल होने में कामयाब हो गया था ।
कुत्ते इतने तेज रफ्तार से निकलेंगे ये उसने सपने में नहीं सोचा था ।
अब अपने सामने दीवार बनकर खड़े कुत्ते की तरफ झांकने से भी उसके प्राण कांपते थे । कुत्ता अगली टांगों को तनिक झुकाये अगले पंजों पर जोर दिये और पूछ अड़ाये अपनी अंगारों जैसी आंखों से यू उसे घूर रहा था जैसे वो किसी भी क्षण उस पर झपट पड़ने वाला हो ।
तब मोनिका का सब्र का बान्ध टूट गया और वो गला फाड़कर चिल्लाई - “हाय मैं मर गई । बचाओ ! बचाओ !”
“क्या हुआ ?” - तत्काल भीतर से मिसेज स्मिथ की आवाज आयी - “क्या हुआ ?”
“बचाओ ! बचाओ !”
दूसरा कुत्ता तब तक कार के डाइविंग सीट की ओर वाले खुले दरवाजे से कार के भीतर दाखिल हो गया था और सामने की सीट फांदकर पीछे कूद गया था जहां कि वो बार-बार हवा को सूंघ रहा था और गुर्रा रहा था ।
दौड़ता हुआ वीरसिंह कार के करीब पहुंचा ।
“वीरसिंह !” - मोनिका रोती हुई बोली - “मुझे बचा ।”
“तू घबरा नहीं” - वीरसिंह बोला - “और चुपचाप खड़ी रह । कुत्ते को तेरी पहचान है । ये तुझे कुछ नहीं कहेगा ।”
“आज नहीं छोड़ेगा ये मुझे ।”
“तू बिल्कुल न घबरा । बोला न !”
तभी हांफती हुई मिसेज स्मिथ साइड डोर से बाहर निकली, सब्जी काटने वाली एक छुरी तब भी उसके हाथ में थी ।
उसके पीछे-पीछे ही उसकी बेटी ऐलीजाबेथ थी ।
“मिसेज स्मिथ” - मोनिका ने फरियाद की - “देखो तो कैसे इन लोगों ने मेरे ऊपर कुत्ते छोड़े हुए हैं !”
“अरे वीरसिंह !” - मिसेज स्मिथ चिल्लाई - “ये क्या गलाटा है ?”
तभी सीमा और तीरथ भी आगे-पीछे दौड़ते हुए वहां पहुंचे । सीमा, जो दरवाजा लांघने तक तीरथ से आगे थी, कुत्तों के तेवर देखते ही डरकर तीरथ के पीछे हो गयी ।
तब ग्रैगरी बड़े आराम से टहलता हुआ वहां पहुंचा ।
“तू तो यार, तमाशा देख रहा है ।” - वीरसिंह गुस्से से बोला ।
“इससे पूछ” - ग्रैगरी सख्ती से बोला - “इसने तमाशा क्यों खड़ा किया है ! गेट पर रुकी क्यों नहीं ये ?”
“मुझे कब इनकार था रुकने से !” - मोनिका रुंआसे स्वर में बोली - “क्या रोज नहीं रुकती ?”
“तो आज क्यों नहीं रुकी ?” - ग्रैगरी बोला ।
“मुझे इसने” - मोनिका का कांपता हाथ वीरसिंह की ओर उठा - “इशारा किया था बिना रुके गुजर जाने का ।”
“झूठ ।”
“किया तो था मैंने ऐसा इशारा ।” - वीरसिंह बोला ।
“क्यों भला ?” - ग्रैगरी सकपकाकर बोला ।
“अरे खिड़की का ड्राइविंग साइड का शीशा खुला था । दिख तो रहा था कि कार में कोई नहीं था ।”
“वीरसिंह, तेरे को किसी को यूं गुजर जाने देने का कोई हक नहीं ।”
“अरे, कोई तबाही आ गयी है ?”
“ड्यूटी में ऐसी तरफदारी नहीं चलती । मैं आज ही लाल साहब से इस बाबत बात करूंगा ।”
वीरसिंह का दम खुश्क हो गया ।
“अरे, क्यों बात का बतंगड़ बनाता है, ग्रैगरी भाई !” - वो खुशामदभरे स्वर में बोला - “कुछ हुआ भी है ! लड़की तेरे सामने है । गाड़ी तेरे सामने है । समझ ले चैकिंग गेट पर न हुई यहां हो गयी ।”
“ये गलत है और कायदे के खिलाफ है ।”
“अच्छा भई, गलती हो गयी मेरे से । दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी । अब मेरा गलती की सजा इस बेचारी लड़की क्यों देता है ?”
“हां ।” - तत्काल मिसेज स्मिथ बोली - “बेबी को पनिशमेंट किस वास्ते ? ये साला हलकट, हमेशा छोकरी लोगों के पीछे पड़ा रहता है और उनके लिए प्राब्लम खड़ी करता है ।”
“फिर नहीं करूंगा, मिसेज स्मिथ ! कान पकड़ता हूं ।”
“आगे याद रखना मांगता है ।”
“बिल्कुल याद रखूंगा, मिसेज स्मिथ ।”
“ग्रैगरी ! अपने कुत्ता लोगों को सम्भाल ।”
ग्रैगरी के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव आये ।
“अब जाने भी दे यार ।” - वीरसिंह ने याचना की - “अब क्या मेरी नौकरी छुड़वा के ही मानेगा ?”
“ऑल राइट ।” - ग्रैगरी बोला और फिर अपने कुत्तों को पुकारने लगा ।
वीरसिंह ने मोनिका की ओर देखा और बड़े धूर्ततापूर्ण भाव से एक आंख दबायी ।
मोनिका परे देखने लगी ।
वीरसिंह उसके करीब पहुंचा और मिसेज स्मिथ को सुनाता हुआ मोनिका से - “चाबी दे ।”
“इग्नीशन में ही है ।” - मोनिका हिचकी-सी लेती हुई बोली ।
“कुत्ता फिर बैक सीट के पीछे पड़ा हुआ है ।” - वो धीमे स्वर में बोला ।
“तो क्या हुआ ?”
“परसों पिछली सीट पर से तेरे ब्वायफ्रेंड का पुलोवर निकला था, कल रूमाल निकाल, आज क्या निरोध निकलेगा ?”
“शटअप !”
“तू जा ।” - वीरसिंह उच्च स्वर में बोला - “मैं कार को गैरेज में खड़ी कर आऊंगा ।”
मोनिका के सशंक भाव से ग्रैगरी की ओर देखा ।
ग्रैगरी ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिला दिया ।
मोनिका घूमी और दरवाजे की ओर बढी । उसके दरवाजे को धक्का देते ही कुत्ता फिर जोर से भोंकने लगा ।
“लियो !” - ग्रैगरी बोला - “शू ! शू !”
कुत्ता मोनिका के पीछे दरवाजे की ओर बढा ।
“अरे ग्रैगरी !” - तत्काल मिसेज स्मिथ बोली - “पकड़ अपने लियो को । कुत्ता लोग भीतर नहीं जाना मांगता है ।”
चेहरे पर उलझन के भाव लिये ग्रैगरी ने आगे बढकर कुत्ते को उसके कालर से थामा ।
सब लोग भीतर दाखिल हो गये और उसके पीछे साइड गेट बन्द हो गया ।
तब कुत्ते का भौंकना कुनमुनाने में तब्दील हो गया ।
ग्रैगरी ने उस कुत्ते को फाटक की ओर भगा दिया और फिर दूसरे कुत्ते की ओर आकर्षित हुआ ।
“मैं डिकी खोलता हूं ।” - वीरसिंह कार में हाथ डालकर इग्नीशन में से चाबी बाहर निकालता हुआ बोला ।
ग्रैगरी ने बड़े अप्रसन्न भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
वीरसिंह कार के पीछे पहुंचा । वो डिकी के ताले को चाबी लगाने लगा तो उसने पाया कि ताला पहले ही खुला था । वो सकपकाया । उसकी निगाह स्वयंमेव ही साइड गेट की ओर उठ गयी जिसके पीछे कि कुछ ही क्षण पहले मोनिका गायब हुई थी ।
फिर उसने डिकी का ढक्कन उठाया ।
दूसरा कुत्ता - टॉमी - जो उसी क्षण ग्रैगरी के निकाले कार से बाहर निकला था, भौंकता हुआ डिकी की ओर झपटा । उसने खाली डिकी से छलांग लगा दी और बेचैनी से नथुने फुलाने लगा और भौंकने लगा ।
“अब तू फिर कहेगा कि इसे कोई नावाकिफ मुश्क मिल रही है ।” - वीरसिंह तनिक हंसकर बोला - “भई, लड़की के ब्वायफ्रेंड की मुश्क ही कार में रची बसी मालूम होती है । उसने अपना कोई सामान डिकी में रखा होगा और क्या ?”
“वीरसिंह, तू फिर लड़की का हिमायती बन रहा है ।”
“यार, एक बात बता ! कितनी बोर नौकरी है ये ! जिन्दगी का कोई रस है इस नौकरी में ! अब ऐसी नौकरी में थोड़ी-सी पुचपुच से एक खूबसूरत लड़की फंसती है तो तुझे एतराज है ?”
“तू पागल है ! ये साहब लोगों की मिस्ट्रेस हैं । ये तेरे मेरे जैसे ऐरों-गैरों में फंसने वाली नहीं हैं ।”
“मुझे सबका नहीं पता लेकिन मोनिका फिदा है मेरे पर ।”
“वो तुझे उल्लू बना रही होगी ।”
“काहे को ?”
“ये तू जाने ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।”
“वीरसिंह, अंग्रेजी में कहावत है, वैन ए सैक्स गॉडेस इज काइन्ड टु ए नोबॉडी विदाउट एनी रीजन, देयर इज आलवेज ए रीजन ।”
“क्या मतलब हुआ इसका ?”
“अब कोई हसीना किसी तेरे जैसे मामूली शख्स पर बिना वजह मेहरबान होती है तो जरूर कोई वजह होती है ।”
वीरसिंह एक क्षण को संजीदा हुआ और फिर खोखली हंसी हंसता हुआ बोला - “विलायती कहावत है न इसलिये विलायत में ही ऐसा होता होगा । यहां हिन्दोस्तान में...”
“गाड़ी गैरेज में खड़ी करके गेट पर पहुंच ।” - ग्रैगरी उसकी बात काटता हुआ शुष्क स्वर में बोला - “लाल साहब के आने का वक्त हो रहा है ।”
फिर उसने कुत्ते को कालर से थामकर कार की डिकी में से निकाला और उसके साथ फाटक की ओर बढ चला ।
वीरसिंह ने डिकी का ढक्कन गिराया । वो ताले में चाबी फिराने लगा तो उसका हाथ क्षण भर को फिर ठिठका ।
फिर वो आगे जा के कार में सवार हो गया ।
***
“हे भगवान !” - मोनिका पत्ते की तरह कांप रही थी और बार-बार दोहरा रही थी - “हे भगवान ! हे भगवान !”
विमल ने मुस्कराते हुए बड़े सांत्वनापूर्ण भाव से उसका कन्धा थपथपाया ।
“वो कुत्ते तो तेज रफ्तार में चीते को पछाड़ देने वाले थे । भीतर दाखिल हो जाने में तुमने जरा भी देर की होती तो वो तुम्हारे सिर पर सवार होते ।” - उसके शरीर ने फिर जोर की झुरझुरी ली - “बहुत खतरनाक तरीका चुना तुमने यहां पहुंचने का ।”
“अन्त भला सो भला ।”
“अभी अन्त कहां आ गया ! अभी तो समझो कि शुरूआत भली-भली हुई ।”
“शुरुआत का अन्त तो भला हुआ । दादा लोगों की निगाह में जिस जगह के भीतर परिन्दा पर नहीं मार सकता, वहां मैं पहुंच भी चुका हूं ।”
“अब आगे जो कुछ करना होगा, तुम्हें खुद ही करना होगा । मैं शायद ही तुम्हारी कोई मदद कर सकूं । बाकी लड़कियों के स्वागत में उनके साथ नीचे मौजूद रहना होगा । एक बार नीचे पहुंच जाने के बाद लौट के ऊपर आने का मौका मुझे मिलेगा या नहीं, ये पार्टी के मूड पर मुनहसर है । ...क्या टाइम हो गया ?”
“सात बजने वाले हैं ।”
“ओह माई गॉड । मैंने तो अभी ड्रैस भी चेंज करनी है ।”
वो झपटकर वार्डरोब के करीब पहुंची, वहां से उसने अपना सूटकेस निकाला और उसके समेत बाथरूम में दाखिल हो गयी ।
विमल खामोशी से कुर्सी पर बैठा रहा ।
वहां पहुंचने में थोड़ी देर होने के पीछे ये भी वजह थी कि होटल में ये सन्देशा पहुंचने में थोड़ा वक्त लग गया था कि उस रोज शाम को छ: बजे तक लोटस क्लब के दरवाजे पर सफेद झण्डा नहीं लगा था ।
उसके झोले में एक साइलेंसर लगी रिवॉल्वर, एक स्टेनगन और छ: हथगोले थे जबकि वो वाहे गुरु से प्रार्थना कर रहा था कि रिवॉल्वर के अलावा किसी भी चीज के इस्तेमाल की - रिवॉल्वर की भी केवल गुरबख्शलाल पर इस्तेमाल की - नौबत न आये ।
मोनिका की गैरहाजिरी में वो कमरे का मुआयना करता रहा था और मुआयने ने उसे बहुत विचलित किया था । कोई गड़बड़ हो जाने की सूरत में वो कमरा पक्का डैथ ट्रेप था । उसके प्रवेश द्वार के अलावा वहां से निकासी का कोई रास्ता नहीं था । कमरे में बाल्कनी थी लेकिन उधर से कहीं कूच कर जाना नामुमकिन था । बाल्कनी का रुख, मोनिका ने उसे होटल में ही बता दिया था, बैकयार्ड की ओर था इसलिए उसका एक दूसरा इस्तेमाल वो मुबारक अली के साथ पहले से ही निर्धारित करके आया था । उधर से वो मुबारक अली को सिग्नल दे सकता था कि कब अलार्म बजने के सन्देशे के बिना उधर से चारदीवारी के करीब पहुंचा जा सकता था ।
स्टोर में लगे अलार्म सिस्टम के स्विचों की बाबत मोनिका ने जो कुछ दिन में वीरसिंह से जाना था, वो वह उसे बता चुकी थी ! अलबत्ता बावजूद इमारत में दाखिल होते ही स्विचों के करीब पहुंचा होने के, वो उनका मुआयना नहीं कर सकता था ।
आइन्दा हालात से जूझने की तैयारियां उसने कम नहीं की थीं लेकिन फिर भी वो जानता था कि बहुत कुछ अचानक होने वाला था और एकाएक होने वाला था । वो ये भी जानता था कि यूं होने वाले कामों का नतीजा उल्टा भी हो सकात था ।
वाहे गुरु सच्चे पातशाह - वो मन-ही-मन बोला - तू मेरा सखा सबनी थाही ।
तभी मोनिका बाथरूम से बाहर निकली ।
वो सलमे सितारों से जड़ा जगमग करता एक काला गाउन पहने थी जो टखनों तक आता था लेकिन घुटनों से ऊपर से लेकर गर्दन तक जिस्म पर चमड़ी की तरह मढा मालूम होता था । उसके नीचे की ओर दायें-बायें दोनों की तरफ लम्बी झिरी थी जिसमें से उसकी टांगें जांघों तक नुमाया हो रही थीं और उसके गिरहबान की ‘वी’ इतनी गहरी कटी हुई थी कि उसमें से उसकी दुधिया छातियां तीन चौथाई बाहर झांक रही थीं ।
उसका मोनिका से निगाह मिली तो वो तत्काल परे देखने लगा ।
“पहनना पड़ता है” - मोनिका धीरे-से बोली - “गैंडे की पसन्द है ।”
“आई सी ।”
“ये तो कुछ भी नहीं है । आधी रात तक तो यहां हव्वा की चोटियां हव्वा वाली ही पोशाक में पहुंच जायेंगी । नये साल का स्वागत वासना के नंगे नाच के बिना नहीं हो सकता है ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
“दरवाजे में बिल्ट इन लॉक है जो छेद में चाबी डालकर दोनों तरफ से खोला जा सकता है । ये चाबी है ।” - उसने विमल को एक चाबी थमा दी - “पास रख लो ।”
“चाबी तुम्हारे पास भी है ?”
“नहीं । ये एक ही चाबी है जो मुझे ताले में अटकी मिली थी । और चाबी हाउसकीपर मिसेज स्मिथ के पास होगी तो सही लेकिन वो उससे मांगी नहीं जा सकती !”
“तुम ताले को बन्द करके और दरवाजे खिड़कियों पर पर्दे डालकर भीतर बैठना । रोशनी बेशक जली रहे लेकिन आहट न हो वैसे तो मेहमानों के पहुंच चुकने के बाद इस फ्लोर पर शायद ही कोई आवाजाही हो या कोई मौजूद हो लेकिन फिर भी ये सावधानी बरतना ।”
“तुमने यहां आना हुआ तो कैसे आओगी ?”
“मैं दरवाजे पर दस्तक दूंगी । ऐसे ।” - उसने एक विशेष तरीके से मेज को ठकठका के दिखाया - “ऐसी दस्तक सुनो तो दरवाजा खोल देना ।”
“मैं भीतर न हुआ तो ?”
“दरवाजा को ताला लगाकर चाबी डोरमैट के नीचे छोड़ के जाना ।”
“ठीक है !”
“अब मैं जाती हूं । गुड लक ।”
“थैंक्यू । आई नीड इट ।”
उसने अपना सूटकेस वापिस वार्डरोब में रखा और वहां से रुखसत हो गयी ।
विमल ने पीछे दरवाजा बन्द कर लिया ।
सात बजे चकाचौंध कर देने वाली पोशाकों में लपटी चार लड़कियां वहां पहुंची ।
साढे सात बजे अपने लावलश्कर से घिरा गुरबख्शलाल जब वहां पहुंचा तो उसके साथ कुशवाहा के अलावा उसकी ताजातरीन पसन्द ‘शाहनशाह’ की नयी कैब्रे सैन्सेशन सलोमा भी थी जिसकी वजह से दिल्ली से फरीदाबाद के सफर में कुशवाहा को आगे ड्राइवर के साथ बैठना पड़ा था ताकि उसका बॉस उस लड़की को अपनी बगल में दबोचे रह पाता ।
सवा आठ बजे तक जुदा-जुदा गाडि़यों में उसके पांचों बिरादरी भाई वहां पहुंच गये और फिर सब लोग दुल्हन की तरह सजे मेन हाल में जमा हो गये ।
मेहमानों के साथ उनके ड्राइवर थे और गुरबख्शलाल का अपना लावलश्कर तो था ही इसलिए उनके जश्न का इन्तजाम फाटक के करीब के काटेज में करा दिया गया ।
सवा आठ बजे फाटक पक्के तौर से बन्द कर दिया गया - क्योंकि कोई और मेहमान अब वहां अपेक्षित नहीं था - और कोठी के भीतर के आलार्म सिस्टम छोड़कर सारे अलार्म सिस्टम चालू कर दिये गये ।
फिर नये साल के स्वागत के लिए सजायी गयी शराब और शबाब की महफिल रफ्ता-रफ्ता जोश में आने लगी ।
साढे नौ बजे नशे में थर्राता गुरबख्शलाल झामनानी के गले पड़ गया । वो साफ-साफ उस पर इल्जाम लगाने लगा कि वो सोहल से मिला हुआ था और उसके खिलाफ सोहल की हर मदद पहुंचा रहा था ।
“वडी, साईं ।” - झामनानी भी बिफरा - “ये तूने मेरे को इधर दावत के लिए बुलाया है कि बिरादरी भाइयों में मेरी इज्जत उतारने के लिए बुलाया है ? मुझे दुश्मन मानता है तो यारी का पाखण्ड क्यों करता है, नी ?”
“गुरबख्शलाल पाखन्ड नहीं करता ।”- गुरबख्शलाल गर्जा - “समझा ?”
“करता है पाखण्ड भी करता है और बेएतबारी भी दिखाता है । हाथ मिलाता है तो फर्जी । गले मिलता है तो फर्जी !”
“झामनानी !” - सलीम खान ने उसे टोका ।
“वडी, खान साईं, मैं एकदम ठीक बोला, नी । ये तो मेरे को अपना बिरादरी भाई कबूल तक करने को तैयार नहीं । इतनी बेएतबारी है इसे कि...”
“कैसे जान ली तूने मेरी बेएतबारी ?” - गुरबख्शलाल बोला ।
“जान ली ।” - झामनानी बोला - “झामनानी अन्धा नहीं है इसलिए जान ली । वडी साईं, तू हाथ रख अपने सीने पर और कसम खा के बोल कि शुक्रवार सत्ताईस तारीख को साउथ एक्सटेंशन में तेरे डालहौजी बार में हुई बिरादारी की मीटिंग के बाद से ही तूने अपने आधी दर्जन आदमी मेरे पीछे नहीं लगाये हुए जो कर्मामारे झामनानी का साया बने हुए हैं ?”
“कौन कहता है ?”
“मैं कहता हूं और कौन कहता है ?”
“तू झूठ कहता है ।”
“ठीक है । अगली बार जब वो मुझे अपने पीछे दिखाई देंगे जो कि जरूर दिखाई देंगे, तो मैं उन्हें पकड़ के तेरे पास ले आऊंगा ।”
“ले आना । ऐसा कोई शख्स होगा तो लायेगा न ?”
“होगा भी और लाऊंगा भी । वडी, बिरादरी भाइयों की हाजिरी में लाऊंगा, नी ।”
“सोहल से मिलने होटल ताजमहल नहीं गया ?”
“वडी साईं, कैसे मालूम है तेरे को ?” - झामनानी गुरबख्शलाल की नाक के आगे अपना हाथ नचाता हुआ बोला - “कैसे मालूम है तेरे को कि झामनानी किधर गया और किससे मिलने गया ? बोल, कैसे मालूम है ?”
गुरबख्शलाल के मुंह से बोल न फूटा।
“वडी, अब देक्खो नी, शकल इसकी !” - झामनानी अपने बिरादरी भाइयों की तरफ घूमकर विजेता के से स्वर में बोला ।
बिरादरी भाइयों के सिर बड़ी संजीदगी से हिले ।
गुरबख्शलाल ने पनाह मांगने के अन्दाज से परे खड़े कुशवाहा को देखा ।
कुशवाहा ने असाहय भाव से कन्धे झटकाये । अपने बास की हिमायत में एक बार मुंह फाड़ के बिरादरी के वो कोप का भाजन बन चुका था, अब दोबारा उसकी पहले से ज्यादा दुर्गति हो सकती थी ।
बिरादरी का हमदर्दी भरा झुकाव झामनानी की तरफ होता जाता पाकर गुरबख्शलाल हत्थे से उखड़ गया ।
“मादर...” - गुरबख्शलाल गला फाड़कर चिल्लाया - “मेरे हिसार वाले ठीये का पता सोहल को तूने नहीं बताया ?”
“गाली देता है !” - झामनानी दहाड़ा - “घर बुला के मां की गाली देता है, साईं !”
“गुरबख्शलाल ।” - पवित्तरसिंह ने सबसे पहले एतराज किया - “ऐ नहीं ठीक, वीरा ।”
“भई गुरबख्शलाल” - सलीम खान बोला - “ये बात तो इमान कसम, मेरे को भी नागवार गुजरी है ।”
भोगीलाल और ब्रजवासी के सिर भी सहमति में हिले ।
“झामनानी ।” - गुरबख्शलाल बोला - “यूं मेरा सवाल नहीं टलने वाला । समझा ?”
“वडी, टालना कौन चाहता है तेरा सवाल ?” - झामनानी बोला ।
“तो जवाब क्यों नहीं देता ? बोल, मेरे हिसार वाले ठीये का पता सोहल को तूने नहीं बताया ?”
“नहीं । मैंने नहीं बताया, नी ।”
“तू झूठ बोलता है ।”
“किधर से झूठ बोलता हूं ? कैसे झूठ बोलता हूं ?”
“वो ठीया गुरबख्शलाल की रीढ की हड्डी का दर्जा रखता था, ये बात तेरे सिवाय कोई नहीं जानता ।”
“वडी क्यों, नी ? ये तेरा” - झामनानी ने खंजर की तरह एक उंगली परे खड़े कुशवाहा की ओर भोंकी - “कुशवाहा नहीं जानता !”
गुरबख्शलाल हड़बड़ाया ।
उससे ज्यादा कुशवाह हड़बड़ाया ।
“बोल, साईं, जानता है कि नहीं ?”
“पागल हुआ है ? ये मेरा पूरे भरोसे का आदमी है ।”
“वडी, साईं” - झामनानी बड़े व्यंग्यपूर्ण ढंग से कुशवाहा से सम्बोधित हुआ - “कोई सनद मिली कहीं से तेरे को भरोसे की ? या तेरे माथे पर भरोसे का बोर्ड लगा है जो मुझे दिखाई नहीं दे रहा !”
“झामनानी, तू इधर मेरे से बात कर !”
“क्या बात करूं, नी, तेरे से ।”
“कुशवाहा मेरा परखा हुआ आदमी है, वो मेरे से बाहर नहीं जा सकता । समझा ?”
“नहीं समझा ।” - झामनानी पूरी ढिठाई से बोला ।
“क्या !”
“वडी, साईं, मेरे को नहीं पता कि ये कर्मामारा तेरे से बाहर नहीं जा सकता था तेरे से अन्दर नहीं जा सकता । मेरे को बस ये पता है कि तू मेरे को बोला कि मेरे अलावा तेरे हिसार वाले ठीये का पता कोई नहीं जानता । और मैंने तेरी बात गलत साबित करके दिखाई । साईं, दूसरा आदमी ये है जो तेरे उस ठीये का पता जानता है । अभी गर्जना-बरसना बन्द करेगा और मुझे और मौका देगा तो मैं तेरे को तीसरा, चौथा और पांचवा आदमी भी ढूंढ के दूंगा ।”
“भौंक ले । जितना मर्जी भौंक ले लेकिन आज रात तू...”
तभी कुशवाहा का सिखाया तीरथ गुरबख्शलाल के पहलू में पहुंचा ।
“क्या है ?” - गुरबख्शलाल कड़क के बोला ।
“फोन है, मालिक ।” - तीरथ बोला ।
“किसका ?”
“मालूम नहीं ।”
“पूछ के आ ।”
“वो नहीं बताता ।”
“तो फिर ।”
गुरबख्शलाल एकाएक खामोश हुआ । कुशवाहा उसे कोई गुप्त इशारा कर रहा था ।
“कहां है ?” - वो अपेक्षाकृत शान्त स्वर में बोला ।
“स्टडी में ।”
“मैं फोन सुनके आता हूं ।” - गुरबख्शलाल ने घोषित किया और फिर लम्बे डग भरता हुआ वहां से बाहर को चल दिया ।
कुशवाहा उसके पीछे लपका ।
गुरबख्शलाल के स्टडी के करीब पहुंचने से पहले ही वो उसके पास पहुंच गया ।
“फोन नहीं है ।” - वो धीरे से बोला ।
“क्या !”
“वो आप को बाहर बुलाने का बहाना था ।”
“बहाना था ! क्यों बुलाना चाहता था मुझे बाहर ?”
“ताकि मैं आपसे बात कर सकूं । वो बात कर सकूं जो वही सबके सामने नहीं हो सकती थी ।”
“क्या ? क्या बात ?”
“लाल साहब, मौजूदा माहौल आपके खिलाफ जा रहा है । आपके बिरादरी भाइयों की हमदर्दी वो कमीना झामनानी जीत रहा है । मौजूदा माहौल में उससे और पंगा लेना ठीक नहीं । अब आप जितना ज्यादा बोलेंगे, उतनी ही ज्यादा बिरादरी की राय आपके बारे में बिगड़ती चली जायेगी । झामनानी को चित करने की आपने कोशिश की, वो कामयाब नहीं हुई । अब इस बात को आप यहीं खत्म कर दीजिये ।”
“ये साला कैसा आदमी है झामनानी ?” - गुरबख्शलाल बोला - “कैसी कतरनी चलती है कंजर के बीज की । मैं जब भी इसकी तरफ उंगली उठाता हूं, ये उसे मोड़ के मेरी तरफ कर देता है ।”
“अभी ये किस्सा बिल्कुल छोड़ दीजिये और भीतर जो माहौल आपके खिलाफ गर्मा रहा है, उसे ठण्डा करने की कोशिश कीजिये ।”
गुरुबख्शलाल ने अनिश्चित भाव से उसकी तरफ देखा ।
“और झामनानी की लाश आज रात यहीं गिरा देने का खयाल तो बिल्कुल छोड़ दीजिये ।”
“क्या !”
“जरूरी है, लाल साहब ।” - कुशवाहा गिड़गिड़ाता सा बोला - “इस वक्त हमारी जो पोजीशन है, उसमें अगर बिरादरी भी हमारे खिलाफ हो गयी तो ये मुखालफत हमें सोहल की दुश्मनी से भी भारी गुजरेगी । सोहल जो एक वक्ती तूफान है वो जैसे आया है, वैसे गुजर भी जायेगा । लेकिन बिरादरी के साथ तो हमने हमेशा-हमेशा रहना है । इतने दुश्मन एक साथ बना लेना समझदारी नहीं होगी, लाल साहब ।”
“तू चाहता है कि मैं झामनानी को बख्श दूं ?”
“बिल्कुल नहीं । झामनानी उसी सजा के काबिल है जो आप उसे देना चाहते हैं ।”
“तो फिर ?”
“बाद में । बाद में मैं उसे ऐसा गायब करूंगा उसे दुनिया के तख्ते से, कि लोग उसे ढूंढते ही रह जायेंगे । अभी आप भीतर जाइये और झामनानी के लिए अपनी मेहमाननवाजी की बदमजा जिम्मेदारी को भुगताइये । किसी तरह से अमन और भाईचारे का माहौल फिर जमाइये । लाल साहब, बिरादरी की और झामनानी को भरमाने के लिए ये जरूरी है ।”
“बात तो तू ठीक कह रहा है ।”
कुशवाहा की जान में जान आयी ।
“ठीक है । करता हूं मैं यह जहरमार ।”
गुरबख्शलाल वापिस लौटा ।
***
ग्यारह बजे मोनिका तीसरी मंजिल पर पहुंची ।
उसने डोरमैट को उठाकर नीचे झांका तो पाया चाबी वहां नहीं थी ।
यानी कि विमल कमरे में था ।
उसने एक बार बड़े सशंक भाव से सीढियों की तरफ देखा और फिर हौले से पूर्वनिर्धारित तरीके से दरवाजे पर दस्तक दी ।
तत्काल दरवाजा खुला ।
वो जल्दी से भीतर दाखिल हुई । उसने अपने पीछे दरवाजा बन्द किया और फिर विमल की ओर घूमी ।
“तब से यहीं हो ?” - वो बोली ।
“नहीं ।” - विमल बोला - “दो बार नीचे का चक्कर लगाने जा चुका हूं । दोनों बार लौट आना पड़ा । हालात माफिक नहीं दिखाई दिये दोनों बार ।”
“हूं ।”
“एक बार तो पहली मंजिल से ही लौट आना पड़ा । तब बड़ा मुश्किल से बचा मैं मिसेज स्मिथ की निगाहों में आने से ।”
“ओह !”
“नीचे का क्या हाल है ?”
“अब तो ठीक है हाल और जोरों पर है पार्टी । पहले साढे नौ बजे के करीब गैंडे में और झामनानी में ऐसी जोर की तकरार हुई थी कि एकबारगी तो लगा था कि खून-खराबा हुआ कि हुआ । अब सब कुछ ठीक है ।” - वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - “मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने आयी हूं जो मुझे लगता है तुम्हें माफिक आ सकती है ।”
“क्या ?” - विमल आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“नीचे गैंडा अपनी आयी पर आया हुआ है । पूरी तरह से टुन्न है और नयी लड़की सलोनी के पीछे ऐसा पड़ा हुआ है कि हाल में सबके सामने ही उसके कपड़े फाड़ने पर आमादा है । ये कोई नयी बात नहीं । ये गैंडे का आम और जाना-पहचाना व्यवहार है ।”
“क्या ? सबके सामने हो वो...”
“वो नौबत उसकी लेफ्टीनेंट कुशवाहा नहीं आने देता । ऐसे में वो जाके उसके कान में कोई फूंक मारता है और गेंडा सम्भल जाता है ।”
“क्या सम्भल जाता है ? खयाल छोड़ देता है बद्फेली का ?”
“पागल हुए हो !”
“तो फिर ?”
“अपनी तफरीह के लिए वो लड़की को अलग ले जाता है ।”
“कहां ?”
“या फर्स्ट फ्लोर पर स्थित अपने मास्टर बैडरूम में और या फिर ग्राउन्ड फ्लोर पर इमारत के पृष्ठभाग में स्थित अपनी स्टडी में । अभी क्योंकि सबको हैप्पी न्यू ईयर विश करने के लिए आधी रात को हाल में उसकी हाजिरी जरूरी होगी इसलिये अभी ज्यादा सम्भावना उसके स्टडी में जाने की है ।”
“उस लड़की को साथ लेकर ?”
“जाहिर है ।”
“और ?”
“और ये रख लो । शायद तुम्हारे काम आये ।”
विमल ने देखा मोनिका उसे कागज में से कटा एक शेर का मुखौटा और सुनहरे कागज की ही बनी एक रंगीन टोपी थमा रही थी ।
“आधी रात के वक्त” - वो बोली - “नीचे सब जने ये पहने होंगे ।”
“गुड !”
“आयेगा ये सामान तुम्हारे किसी काम ?”
“पता नहीं । देखेंगे ।”
“अब मैं जाती हूं । मेरा नीचे से ज्यादा देर गैरहाजिर रहना मेरे लिये मुसीबत बन सकता है ।”
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
“जो करना, सावधानी से करना । प्लीज ।”
“तू फिक्र न कर ।”
“अच्छा । जाती हूं ।”
मोनिका घूमकर दरवाजे पर पहुंची । उसने दरवाजा खोला तो चिहुंककर एक कदम पीछे हटी ।
“अरे इतना क्यों घबरा रही है ! मैं ही तो हूं !”
विमल सकपकाया ! वो तत्काल दीवार के साथ चिपक गया । उसने व्याकुल भाव से कमरे में चारों ओर निगाह दौड़ाई । बाल्कनी में खुलने वाला दरवाजा प्रवेशद्वार के ऐन सामने था इसलिए उधर का रुख करने का तो सवाल ही नहीं था, बाथरूम का दरवाजा उससे काफी परे था और उस घड़ी उधर कदम बढाना भी खतरनाक हो सकता था ।
उसे वार्डरोब में ही कोई सम्भावना दिखाई दी ।
दीवार के साथ चिपका-चिपका वो वार्डरोब की ओर सरकने लगा । उसने देखा मोनिका दरवाजा बन्द करने की कोशिश कर रही थी लेकिन कामयाब नहीं हो पा रही थी ।
“वीरसिंह !” - वो फुसफुसाईं - “बाज आ जा ।”
“क्या बाज आ जाऊं मेरी जान !” - वीरसिंह गोविन्दा की तरह चहका - “क्या किया है मैंने ?”
“और दफा हो जा ।”
“कहां दफा हो जाऊं ?”
“कहीं भी जा के मर । यहां से टल ।”
वीरसिंह बड़ी अदा से हंसा ।
“वीरसिंह, यहां से टल वर्ना ।”
“वर्ना तू क्या करेगी ?”
“वर्ना मैं शोर मचा दूंगी । वीरसिंह, इतने से ही तेरी ऐसी-वैसी फिर जायेगी कि तू इमारत के भीतर यहां तीसरी मंजिल पर है ।”
“तू शोर मचा देगी ?”
“हां । और ये न भूल कि आज लाल साहब भी यहां मौजूद हैं ।”
“तू शोर मचा देगी तो क्या होगा ?”
“अरे कमीने ! ये तू मेरे से पूछ रहा है ?”
“हां । तेरे से पूछ रहा हूं लेकिन सही जवाब तुझे नहीं मालूम तो कोई बात नहीं, मैं बता देता हूं ।”
“तू बता देता है ?”
“हां ।”
“तू क्या बता देता है ?”
“यही कि तू शोर मचायेगी तो क्या होगा ।”
“क्या होगा ?”
“तो तेरा यार पकड़ा जायेगा ।”
“क्या ?”
“जो इस वक्त भीतर मौजूद है ।”
मोनिका सिर से पांव तक कांप गयी । तत्काल उसके मुंह से कोई बोल न फूटा ।
विमल ने वार्डरोब का एक पल्ला धीरे-से खोला और वार्डरोब के भीतर सरक गया । अपने पीछे उसने हौले से पल्ला वापिस खींच लिया ।
उस घड़ी उसकी ये भी बद्किस्मती थी कि वो निहत्था था । हथियारों वाला उसका झोला उस घड़ी पलंग के पायताने में कम्बल के नीचे पड़ा था ।
वाहे गूरु सच्चे पातशाह ! तू मेरा राखा सबनी थाहीं ।
“प-पागल हुआ है, वीरसिंह !” - मोनिका बड़ी कठिनाई से बोल पाई ।
“मेरी जान !” - वीरसिंह ऐसे रंगीले अन्दाज से बोला जैसे सिचुएशन तो वो गाने की थी लेकिन वो डायलाग से ही काम चला रहा था - “मुझे भीतर आने दे वर्ना तू क्या, मैं शोर मचा दूंगा ।”
फिर वो जबरन भीतर घुस आया । वो दरवाजा बन्द करके उसके साथ पीठ लगा के खड़ा हो गया और बड़ी शान से हंसा ।
मोनिका हकबकाई सी उसे देखती रही । वीरसिंह का वहां अकस्मात आगमन उसे उतना त्रस्त नहीं कर रहा था जितना कि उसका व्यवहार उसे उलझन में डाल रहा था । कोई बाहरी आदमी मोनिका की मदद से बॉस लोगों की मौजूदगी में उस इमारत की सारा सिक्योरिटी सिस्टम भेदकर भीतर दाखिला हासिल कर चुका था, इस खयाल से ही गार्ड वीरसिंह के छक्के छूटे होने चाहिये थे लेकिन वो था कि हंस रहा था ।
वो नहीं जानती थी कि वीरसिंह वहां मौजूद शख्स की कल्पना सच में ही उसके ब्वायफ्रैंड के रूप में कर रहा था तफरीह के लिये जिसे वो खुद वहां ले आयी थी या जो जबरन उसके साथ चिपका चला आया था । उस वक्त हीरो ‘गोविन्दा’ सिर्फ ये जानने के लिये उत्सुक था कि उसके सामने खड़ी उसकी हीरोइन का दूसरा हीरो (सलमान खान ! या चंकी पांडेय ! ) उससे किस कदर बेहतर था ! उसको एक क्षण के लिए भी वे खयाल आया होता कि भीतर मौजूद शख्स उसके बॉस का कोई दुश्मन हो सकता था तो हंसना तो दूर, उसने वहां अकेले कदम रखने की भी जुर्रत न की होती ।
“कहां छुपाया ?” - वीरसिंह चारों तरफ निगाह दौड़ाता हुआ बोला - “मेरा मतलब है अपने दिल के अलावा ?”
“वीरसिंह !” - अन्दर से आतंकित मोनिका प्रत्यक्षत: झुंझलाती हुई बोली - “तू पागल हो गया है । तू जागते में भी सपने देखता है । अरे कैसे आ सकता है मेरा ब्वायफेंड यहां ?”
“तेरे लिये आ सकता है ।”
“मैं तेरे सामने अकेली नहीं आयी थी ?”
“नहीं आयी थी ।”
“क्या !”
“दिखाई अकेली दे रही थी लेकिन थी नहीं अकेली ।”
“क्या बकता है ?”
“वो कार की डिकी में था । वो कार के इमारत के साइड डोर पर पहुंचते ही डिकी में से निकलकर इमारत के भीतर घुस गया था । इसी वजह से डिकी का ताला बन्द नहीं था । इसी वजह से तूने आज कार को यू-टर्न देकर साइड डोर पर रोका था ताकि डिकी कार के अगले हिस्से की ओट में आ जाती । इसी वजह से कुत्ते खासतौर से डिकी पर और साइड पर भोंक रहे थे ।”
मोनिका सिर से पांव तक कांपी ।
“कह कि मैं गलत कह रहा हूं !”
“वीरसिंह !” - वो हिम्मत करके बोली - “तेरा दिमाग खराब हो गया है ।”
“वैसे” - वीरसिंह अपना लालसापूर्ण निगाहें उसके जिस्म पर दौड़ता हुआ बोला - “लग बला की हसीन रही है तू इस सलमे सितारे वाली ड्रेस में ।”
“मेरे पास तेरी बकवास सुनने का वक्त नहीं । मुझे नीचे जाना है ।”
“जा । किसने रोका है ?”
“तू भी तो टल ।”
“मेरे यहां होने या न होने से तुझे क्या फर्क पड़ता है ? तेरी गैरहाजिरी में मैं क्या तेरा कंघी-शीशा चुराकर ले जाऊंगा ?”
“तू... तू चाहता क्या है ?”
“तुझे चाहता हूं ।”
“अरे, इस वक्त चाहता क्या है ?”
“इस वक्त भी तुझे ही चाहता हूं ।”
“वीरसिंह, एक तरफ तो कह रहा है कि मेरा ब्वायफ्रेंड यहां है और दूसरी तरफ ऐसी वाहियात बातें कर रहा है । मेरा ब्वायफ्रेंड अगर यहां है तो वो तेरी बातें सुन नहीं रहा होगा ?”
“सुन रहा होगा तो सुन रहा होगा । मुझे कौन-सी परवाह है ? तू ही तो कहती थी कि वो अभी ब्वायफ्रेंड ही है, खसम नहीं । आगे तू ही तो कहती थी कि खसम की तरह ब्वायफ्रेंड भी एक ही हो, ऐसा विधान नहीं है भारत में । भूल गयी ?”
मोनिका खामोश रही ।
“अब ये न कह देना कि जैसी आजादखयाल तू है, वैसा ही आजादखयाल तेरा ब्वायफ्रेंड नहीं है ।”
“तू समझता है कि मेरे बारे में जैसे इरादे तू जाहिर कर रहा है, उनको जानते हुए वो तेरे से मिलकर खुश होगा ?”
“खुश नहीं होगा तो अहसानमन्द तो होगा ।”
“क्या मतलब ?”
“भई, वो चूहे की तरह यहां फंसा हुआ है । तेरे फंसाने और वहां से निजात पा सकता है, मेरे दिलाये । सिर्फ मेरे दिलाये ।” - उसने आंखें मटकाई - “क्या समझी ?”
मोनिका ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“अब उसे बुलाती है या खुद बरामद करूं उसे यहां से ।”
“वीरसिंह” - मोनिका गिड़गिड़ाती हुई बोली - “कसम उठवा ले । यहां कोई नहीं है ।”
“ठीक है मैं खुद ही मिलता हूं अपने ब्वायफ्रेंड इन-ला से ।”
उसने मोनिका को परे धकेला और दृढता से आगे बढा ।
मोनिका ने व्याकुल भाव से इधर-उधर देखा । करीब ही एक स्टूल पड़ा था । उसने स्टूल उठा लिया और उसे दोनों हाथों से थामकर सिर के ऊपर उठाया । वीरसिंह की खोपड़ी की लक्ष्य बनाये अभी उसका हाथ नीचे आना शुरू भी नहीं हुआ था कि एकाएक वीरसिंह घूरा ।
मोनिका को जैसे सांप सूंघ गया । स्टूल थामे, हवा में उठे उसके हाथ जैसे हवा में ही फ्रीज हो गये ।
वीरसिंह पलक झपकते समझ गया कि मोनिका क्या करने जा रही थी । तत्काल उसके मिजाज में इंकलाबी तब्दीली आयी उसके चेहरे से कहर बरसने लगा । वर्दी के बैल्ट होलस्टर में लगी रिवॉल्वर जैसे जादू के जोर से उनके हाथों में पहुंच गयी ।
“ठहर जा साली !” - वो सांप की तरह फुंफकारा और मोनिका पर झपटा ।
मोनिका के मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली । वीरसिंह ने खाली हाथ एक झपटटे से स्टूल को उसके हाथों में से नोच कर परे फेंक दिया और उसे इतनी जोर का धक्का दिया कि वो पीछे बन्द दरवाजे से जाकर टकराई और भरभराकर वहीं ढेर हो गयी ।
दरवाजे में चाबी ताले के छेद में भीतर की तरफ से लगी हुई थी । वीरसिंह ने चाबी ताले में घुमाकर ताला बन्द किया और चाबी वहां से निकाल ली । उसने घूमकर पांव की ठोकर से स्टूल को परे धकेल दिया और लाल-लाल आंखों से उकड़ू-सी बैठी मोनिका को घूरता हुआ बड़े हिंसक भाव से बोला - “अब खबरदार जो वहां से हिली ।”
आतंकित मोनिका निगाह तक न उठा पायी ।
वीरसिंह वापिस घूमा । उसकी निगाह दायें-बायें फिरने लगी । फिर हाथ में थमी रिवाल्वर अपने सामने ताने सबसे पहले वो बाल्कनी में पहुंचा ।
बाल्कनी के बाद बाथरूम की बारी आयी जिसके दरवाजे से ही उसने भीतर झांका ।
फिर पलंग के नीचे ।
आखिर में वो वार्डरोब की ओर आकर्षित हुआ ।
अब क्योंकि वो छुपने लायक आखिरी जगह थी इसलिये उसके चेहरे पर और कठोरता आ गयी । रिवाल्वर ताने दृढ कदमों से वो वार्डरोब की ओर बढा ।
मोनिका की सांसे सूखने लगी । उसने अपनी जगह से उठने का उपक्रम किया तो वीरसिंह ने तत्काल घूमकर पीछे देखा ।
“खबरदार !” - वो दांत पीसता हुआ बोला - “खबरदार !”
मोनिका फिर गुच्छा-मुच्छा हो गयी ।
“यहीं है न वो ?”
मोनिका ने उत्तर न दिया ।
“अभी मालूम हुआ जाता है ।”
मोनिका को अब वो जनाना जिस्म पर लार टपकाने वाला और फिल्मी लटकों-झटकों के बिना बात न कर पाने वाला गोविन्दा नहीं लग रहा था, अब वो उसे साक्षात मौत का प्रतिरूप कोई ऐसा कमान्डो लग रहा था जो दुश्मन को कहीं से भी खोद निकालने में सक्षम था ।
रिवाल्वर सामने ताने उसने वार्डरोब का एक पल्ला खोला ।
भीतर दूसरी पल्ला खोलने के लिए हाथ बढाया तो पल्ला पहले ही खुल गया और भड़ाक से पहले उसके रिवाल्वर वाले हाथ से और फिर उसके चेहरे से टकराया । साथ ही कोई भारी चीज - जो कि वार्डरोब में पड़ा मोनिका का सूटकेस था - उसके रिवाल्वर वाले हाथ से टकरायी । रिवाल्वर उसके हाथ छिटक कर परे जा गिरी । विमल ने उस पर छलांग लगा दी और साथ ही तीखे स्वर में बोला - “मोनिका ! रिवाल्वर थाम !”
मोनिका में हिलने की भी हिम्मत न हुई ।
आपस में गुत्थमगुत्था हुए विमल और वीरसिंह फर्श पर लुढकने लगे । जल्दी ही विमल को महसूस होने लगा कि वीरसिंह उससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली था और वो ज्यादा देर तक उसके साथ अपना निहत्था मुकाबला जारी नहीं रख सकता था ।
“मोनिका !” - विमल तीखे स्वर में बोला ।
“खबरदार साली” - वीरसिंह गुर्राया - “जो हिली भी तो ।”
अभी गनीमत थी कि वीरसिंह को गला फाड़कर चिल्लाने लगने का खयाल नहीं आया था । उस घड़ी उसकी वो हरकत भी विमल के लिये मौत का परवाना साबित हो सकती थी ।
दोनों आपस में उलझे, एक दूसरे पर आक्रमण करने की कोशिश में कभी नाकाम तो कभी कामयाब होते, पलंग के करीब पहुंचे । तब विमल ने क्षण भर को अपना दायां हाथ आजाद किया और उसे पलंग पर पड़े कम्बल के नीचे डालकर अपने झोले को टटोला ।
झोले में हर बार उसका हाथ हैंड ग्रैनेड पर पड़ा ।
रिवाल्वर की तलाश का खयाल छोड़कर उसने एक हैन्ड ग्रैनेड काबू में किया और हाथ वापिस खीचा । उसने हैण्ड ग्रेनेड को पूरी शक्ति से वीरसिंह के माथे से टकराया ।
हैण्ड ग्रेनेड के लोहे के खोल के एक ही वार ने वीरसिंह का माथा फोड़ दिया, उसके मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली और फिर उसका शरीर शिथिल पड़ने लगा ।
विमल ने एक भीषण प्रहार और किया ।
तत्काल वीरसिंह की आंखें उलट गयीं ।
विमल हांफता हुआ उस पर से उठकर खड़ा हुआ । उसने दरवाजे की तरफ निगाह उठाई तो पाया कि मोनिका अभी भी उसके साथ लगी फर्श पर गुच्छा-मुच्छा हुई थी । विमल ने हैण्ड ग्रेनेड को वापिस झोले के भीतर डाला और फिर आगे बढकर वीरसिंह की रिवाल्वर काबू में की ।
फिर वो मोनिका के करीब पहुंचा और उसे उठाकर उसके पैरों पर खड़ा किया ।
वो थरथर कांप रही थी और विस्फारिस नेत्रों से वीरसिंह की ओर देख रही थीं ।
“हौसला रख !” - विमल सांत्वनापूर्ण स्वर में बोला - “खतरा टल गया है ।”
“ये... ये...”
“बेहोश है । फिलहाल कोई उत्पात करने के काबिल नहीं ।”
“अब क्या होगा ?”
“बाबे दी मेहर होई, तो जो होगा अच्छा होगा ।”
“ल... लेकिन...”
“तुझे नीचे जाने की जल्दी है । भूल गयी !”
“ये यहां...”
“यहां मैं सब सम्भाल लूंगा । तू जा । लेकिन पहले अपने हवास काबू में कर । ऐसे ही जायेगी तो तेरी इस वक्त की सूरत ही होता काम बिगाड़ देगी । समझी ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया फिर धीरे-धीरे उसके फक चेहरे पर रंगत लौटने लगी । उसने अपनी पोशाक को अपने जिस्म पर व्यवस्थित किया और अपने बाल ठीक किये ।
विमल ने वीरसिंह की वर्दी की जेब से दरवाजे की चाबी बरामद की, उसने दरवाजे का ताला खोला और स्वयं दरवाजे से परे हट गया ।
मोनिका ने हैंडल घुमाकर दरवाजे को थोड़ा-सा खोला और बाहर झांका ।
“जाती हूं ।” - फिर वो काफी हद तक सुसंयत स्वर में बोली ।
विमल ने सहमति में सिर हिलाया ।
वो चली गयी तो विमल ने उसके पीछे दरवाजा बन्द कर लिया और वापिस घूमकर फिर वीरसिंह की ओर आकर्षित हुआ ।
बहुत बड़ी बला टल गयी थी ।
अलबत्ता वीरसिंह के वहां अप्रत्याशित आगमन से बहुत कीमती वक्त फिर भी जाया हो गया था ।
उसने वीरसिंह का फिर मुआयना किया ।
वो पूरी तरह से बेहोश था और जल्दी होश में नहीं आने वाला था ।
फिर भी उसे यू ही वहां छोड़ जाना खतरे को खुला बुलावा देना साबित हो सकता था ।
विमल ने बाल्कनी के दरवाजे के आगे पड़े भारी पर्दे की डोरी निकाल ली और उससे अचेत वीरसिंह की मुश्कें कस दीं । उसने उसका रूमाल उसकी जेब में से निकालकर उसके मुंह में ठूंस दिया और अपने रूमाल की पट्टी-सी बनाकर उसके मुंह पर बांध दी फिर बड़ी मुश्किल से उसे घसीटकर वो वार्डरोब तक लाया और उसे उसके भीतर बन्द कर दिया ।
मोनिका का सूटकेस उसने पलंग के नीचे सरका दिया ।
फिर वो बाथरूम में पहुंचा और वहां लगे बाल साइज मिरर में उसने अपने कपड़ों का बड़ी बारीकी से मुआयना किया ।
यह देखकर उसे बड़ी राहत महसूस हुई कि वीरसिंह के फूटे माथे से उछले खून के छींटे उसके उस स्याह काले लबादे पर ही पड़े थे जो कि वो अपने सूट के ऊपर पहने था ।
उसने वो लबादा उतारकर में एक ओर डाल दिया ।
नीचे वो शानदार काला सूट, सफेद कमीज और लाल टाई पहने था । उसने टाई की गांठ ठीक की और अपने बाल संवारे ।
वीरसिंह की भारी रिवाल्वर और मोनिका को दिया शेर का मुखौटा और टोपी उसने अपने झोले में डाल ली और झोले में मौजूद अपनी रिवाल्वर वहां से निकालकर उसने अपनी पतलून की बैल्ट में खोंस ली और ऊपर कोट के बटन बन्द कर लिये ।
फिर झोला सम्भाले वो वहां से बाहर निकला ।
उसने दरवाजे को बाहर से ताला लगाकर चाबी पायदान के नीचे रख दी ।
दबे पांव सीढियां उतरकर वो निर्विघ्न पहली मंजिल पर पहुंच गया ।
मोनिका ने उसे अच्छी तरह समझा दिया था कि वहां मास्टर बैडरूम कहां था ।
उसने मास्टर बैडरूम का दरवाजा बन्द पाया । उसने की होल से कान लगाया तो उसे भीतर से कैसी भी कोई आवाज आती न सुनाई दी ।
उससे सावधानी से पीछे खाली गलियारे में दूर तक झांका और फिर की-होल में आंख लगायी ।
भीतर रोशनी थी । की-होल से आधे से ज्यादा बैडरूम उसे खाली दिखाई दे रहा था । जो हिस्सा उसे की-होल में से दिखाई दे रहा था, उसमें वो विशाल पलंग भी लगा हुआ था जो कि खाली था ।
विमल उठकर सीधा हुआ । उसने हौले से हैंडल को घुमाकर दरवाजे को भीतर को धक्का दिया ।
तभी पीछे लिफ्ट के उस फ्लोर पर पहुंचने की मध्यम-सी आहट हुई ।
विमल बौखलाया ।
उसने व्याकुल भाव से एक बार दायें-बायें देखा तो पाया कि उस क्षण छुपने के लिये उपलब्ध जगह मास्टर बैडरूम ही थी जिसका कि वो उस घड़ी हैंडल थामे खड़ा था ।
वो निशब्द खुले दरवाजे से भीतर सरक गया, उसने दरवाजा बन्द किया, जल्दी से चारों तरफ निगाह दौड़ाकर एक बार फिर तसदीक की कि बैडरूम खाली था और फिर नीचे झुककर की होल में आंख लगाकर बाहर झांकने लगा ।
उसे लिफ्ट में से तीरथ निकलता दिखाई दिया जो कि तत्काल मास्टर बैडरूम की ओर बढने लगा था ।
वो वहीं आ रहा था ।
विमल सीधा हुआ और लपपकर भीतर के एक बन्द दरवाजे की ओर बढा । उसने उसका दरवाजा खोलकर भीतर झांका तो अपेक्षानुसार वो बाथरूम निकला । वो भीतर दाखिल हो गया ।
जिस वक्त वो बाथरूम का दरवाजा बन्द कर रहा था, ऐन उसी वक्त मास्टर बैडरूम का दरवाजा खुल रहा था ।
विमल ने दरवाजे और चौखट में एक बारीक-सी झिरी छोड़ दी और फिर उसमें आंख लगाकर सांस रोके बाहर झांकने लगा ।
तीरथ ने भीतर कदम रखा । वो सीधा पलंग के पहलू में वाल-कैबिनेट के करीब पहुंचा, उसने कैबिनेट का एक दराज खोला और उसमें से सिगारों का एक डिब्बा बरामद किया । फिर वो उस डिब्बे के साथ उल्टा पांव वहां से रुखसत हो गया ।
विमल ने चैन की लम्बी सांस ली और बाथरूम से बाहर निकला ।
पलंग के करीब उस ओर की साइड टेबल पर एक ऐश ट्रे पड़ी थी जिसके भीतर की कटोरी पीतल की थी और गोलाकार थी लेकिन जिसका बाहर का हिस्सा लकड़ी का था और चौकोर था ।
उसने वो ऐश ट्रे उठा ली ।
वो लिफ्ट के सामने पहुंचा । उसने लिफ्ट की उस मंजिल पर बुलाने का बटन बजाया और सांस रोके प्रतीक्षा करने लगा ।
वो घड़ी खतरे की थी ।
कोई सीढियों के रास्ते वहां प्रकट हो सकता था ।
कोई ऊपर आती लिफ्ट में ही मौजूद हो सकता था ।
वो मन-ही-मन वाहे गुरु को याद करने लगा ।
लिफ्ट का खाली पिंजरा ऊपर पहुंचा । उसके स्वचलित दरवाजे के दोनों पट उसके सामने खुले ।
विमल ने बाहर खड़े-खड़े ही भीतर हाथ डालकर भीतर की ओर से ग्राउन्ड फ्लोर का बटन दबा दिया ।
दरवाजे के पट बन्द होने लगे ।
जब वो दोनों पट एक दूसरे के करीब पहुंचने लगे तो विमल ने उनके रास्ते में खड़ी करके के ऐशट्रे रख दी ।
दोनों पट ऐशट्रे के दोनों पहलुओं तक पहुंचे और वहीं ठिठककर रह गये । अब तक उनमें ऐश ट्रे फशी हुई थी वो आपस में जुड़ नहीं सकते थे और ऐसा हुए बिना स्वचलित लिफ्ट चालू नहीं हो सकती थी ।
यानी कि उस हालत में लिफ्ट को अब ग्राउन्ड फ्लोर पर वापिस नहीं बुलाया जा सकता था ।
वो सीढियों की ओर बढा । उनके दहाने पर पहुंचकर उसने पहले सावधानी से नीचे झांका और फिर दबे पांव सीढियां उतरने लगा ।
अब उसका लक्ष्य ग्राउन्ड फ्लोर पर मौजूद गुरबख्शलाल की स्टडी था यहां या तो वो पहुंच चुका था और या पहुंचने वाला था ।
***
मुरगाबी की तरह सलोनी को दबोचे गुरबख्शलाल ने अपनी स्टडी में कदम रखा । पीछे खुले दरवाजे से हाल की रोशनी स्टडी में दाखिल हो रही थी, उसी सीमित रोशनी में वो स्टडी की दीवार के साथ लगे दीवान तक पहुंचा, सलोमी को लिये-लिये उस पर ढेर हो गया और यूं उसे भंभोड़ने लगा जैसे कोई जंगली सूअर जमीन भंभोड़ता है ।
“ड्रैस फट जायेगी ।” - सलोमी ने फरियाद की ।
“तो क्या हो जायेगा, साली !” - गुरबख्शलाल भैंस की तरह डकराया ।
“फिर मैं पार्टी में वापिस कैसे जाऊंगी ?”
“जैसे मर्जी जाना । अपनी पार्टी है । अपने लोग हैं । क्या फर्क पड़ता है ।”
“मैं एक सैकेंड में उसे उतार लूंगी । आपको भी अच्छा लगेगा ।”
“ठीक है ।” - गुरबख्शलाल बड़ी दयानतदारी से बोला - “उतार ।”
सलोमी उससे अलग होकर दीवान से नीचे उतरी और अपने पैरों पर खड़ी हुई । फिर वो खुले दरवाजे की ओर बढी ।
“उधर कहां जाती है ?” - गुरबख्शलाल गुर्राया ।
“दरवाजा बन्द करने जा रही हूं ।” - सलोमी धीरे से बोली ।
“क्यों ? यहां डाकू पड़ रहे हैं !”
“लाल साहब कोई आ जायेगा ।”
“खामखाह ! साली, मेरे भीतर होते मेरी इजाजत के बिना किसी की यहां कदम रखने की हिम्मत हो सकती है ?”
“नहीं हो सकती । मुझे मालूम है नहीं हो सकती । मरना है किसी ने ऐसी हिम्मत करके !”
“तो !”
“लाल साहब, कोई दरवाजे पर पहुंचेगा तो इजाजत लेगा न ?”
“ठीक है । करले बन्द दरवाजा ।”
“थैंक्यू, सर ।”
“अब नखरे न झाड़ और फुर्ती दिखा ।”
“यस, सर ।”
“दरवाजा बन्द कर, कपड़े उतार, बत्ती जला और यहां आ फौरन ।”
“यस, सर । फौरन ।”
वो लम्बे डग भरती हुई दरवाजे पर पहुंची और उसने दरवाजे को भीतर से बन्द करके उसकी चिटकनी चढा दी । फिर उसने दीवार के पहलू में बने स्विचबोर्ड पर लगे दो-तीन बटन दबाये और अपनी पीठ के पीछे हाथ ले जाकर अपने गाउन की जिप खोलने का उपक्रम करने लगी ।
स्टडी में दो तरफ दो डबल ट्यूब लाइट जलीं । स्टडी प्रकाशित हो गयी ।
तभी सलोमी के मुंह से एक घुटी हुई चीख निकली, उसके फौरन अपने हाथ जिप पर से वापिस खींच लिए और फटी-फटी आंखों से स्टडी में लगी विशाल आफिस टेबल की ओर देखने लगी ।
“क्यों चीख रही है, हरामजादी !” - गुरबख्शलाल गुर्राया - “बिच्छू ने काट खाया या अपनी पहली बार याद आ रही है ।”
सलोमी के मुंह से बोल न फूटा । पूर्ववत् सामने देखते हुए उसने अपनी कांपती हुई उंगली टेबल की ओर उठायी ।
गुरबख्शलाल ने उसकी उंगली का अनुसरण किया तो वो हड़बड़ाकर सीधा हुआ । उसने देखा मेज के पीछे उसकी एग्जीक्यूटिव चेयर पर कोई बैठा हुआ था ।
गुस्से से गुरबख्शलाल का चेहरा लाल हो गया । उस घड़ी उसे एक ही बात सूझी ।
किसकी मजाल हुई थी उसकी स्टडी में घुसकर उसकी चेयर पर बैठने की !
ऐसी जुर्रत करने वाले को अपनी ठोकरों से रौंद देने की नीयत से वो दीवार पर से उठकर टेबल की ओर लपका ।
आधे रास्ते में ही वो यूं थमकर खड़ा हो गया जैसे सामने कोई अदृश्य दीवार आ गयी हो ! उसने बड़े अविश्वासपूर्ण भाव से अपनी तरफ तनी रिवाल्वर की ओर देखा ।
कोई उसकी तरफ - गुरबख्शलाल की तरफ - रिवाल्वर ताने बैठा था ।
“कौन है बे तू ?” - गुरबख्शलाल दहाड़ा ।
“सोच !” - जवाब मिला ।
“साले ! पहेलियां बुझाता है ? मैं तुझे...”
“गैंडे ! याददाश्त कमजोर मालूम होती है तेरी । मैंने तुझे कहा था तेरी-मेरी मुलाकात एक ही बार होगी - जब तू मुझे रिवाल्वर की नाल मैं से दिखाई देगा ।”
तत्काल गुरबख्शलाल को जैसे सांप सूंघ गया ।
“जैसे कि इस वक्त तू मुझे दिखाई दे रहा है ।”
“तू... तू” - गुरबख्शलाल हकलाया - “सोहल है ?”
“कोई एतराज ?”
“और यहां पहुंचा हुआ है !” - गुरबख्शलाल के हकलाते स्वर में भी स्पष्ट अविश्वास का पुट था - “चारदीवारी के अन्दर ! इमारत के अन्दर ! मेरी स्टडी में !”
“हैरानी हो रही है न ?”
“कैसे पहुंच गया ?”
विमल ने उत्तर न दिया । उसने देखा गुरबख्शलाल की पीठ पीछे सलोमी दरवाजे के करीब सरक गयी थी और अब धीरे-धीरे उसकी चिटखनी खीलने की कोशिश कर रही थी ।
“देवीजी !” - विमल कर्कश स्वर में बोला - “आप जरा दरवाजे से ठहर जाइये । मेरा मतलब है, अगर जिन्दा रहना चाहती हैं तो !”
सलोमी ने चिटकनी पर से यूं हाथ खींचा जैसे वो एकाएक तपने लगी हो ।
“अपने बॉस से पहले मरना चाहती हैं तो जो जी में आये कीजिये ।”
सलोमी तत्काल दरवाजे पर परे हट गयी ।
“यस, दैट्स लाइक ए गुड गर्ल ।”
सलोमी आतंकित भाव से कभी गुरबख्शलाल को तो कभी विमल को देखने लगी ।
“अब जरा और ज्यादा गुड बन के दिखाइये और चुपचाप जा के दीवान पर बैठ जाइये । बल्कि आंखें बन्द करके समाधि लगा लीजिये । इसी में आपका कल्याण है ।”
तत्काल सलोमी दीवान पर चढ गयी और आलथी-पालथी मारकर बैठ गयी, अलबत्ता आंखें उसने बन्द न कीं । उस घड़ी इतना मीठा-मीठा बोलने वाला वो युवक उसे गुरबख्शलाल से कहीं ज्यादा खतरनाक लग रहा था ।
विमल कुर्सी पर से उठा । मेज का घेरा काटकर वो गुरबख्शलाल के सामने पहुंचा । उसने साइलेंसर लगी रिवाल्वर की नाल गुरबख्शलाल की छाती पर तान दी ।
गुरबख्शलाल का तमाम नशा हिरण हो गया । उसके सारे शरीर में स्पष्टतय: सिहरन दौड़ गयी ।
“मरने से डरता है !” - विमल धीरे-से बोला - “मारने से नहीं डरता !”
गुरबख्शलाल ने जोर से थूक निगली ।
“जिस्म से ही गैंडा है ! अन्दर से चूहा निकला !”
गुरबख्शलाल ने फिर थूक निगली ।
“क्या हुआ ?” - विमल बोला - “सांप सूंघ गया ?”
“तू... तू क्या चाहता है ?”
“तेरी याददाश्त वाकई कमजोर है । कुछ याद नहीं रहता तुझे !”
“तू मेरे ड्रग्स के धन्धे का सर्वनाश करना चाहता था । वो तो तू कर चुका ।”
“तेरा सर्वनाश अभी बाकी है ।”
“उससे अब तुझे क्या मिलेगा ? जब गुरबख्शलाल का धन्धा ही नहीं रहा तो गुरबख्शलाल किस काम का ?”
“तू धन्धा फिर खड़ा कर लेगा । तू खुद भी फिर खड़ा हो जायेगा । तू वो प्रेत है जो कब्र से उठ के खड़ा हो जाता है । तुझे गहरा दफनाना जरूरी है । तू उस कोयले की तरह है जो दहका हो तो छूने से जला देता है, ठन्डा हो तो हाथ काले करता है और राख हो तो वो उड़ के मुंह-सिर पर आ के पड़ती है । तेरा समूल सर्वनाश जरूरी है ।”
गुरबख्शलाल के गले की घन्टी जोर से उछली ।
“तू कुत्ते की दुम है, गुरबख्शलाल जो कभी सीधी नहीं हो सकती । तू बदी का रास्ता कभी नहीं छोड़ सकता । तेरी ऐसी नीयत होती तो तूने अपने उन दर्जनों वफादारों की मौत से सबक लिया होता जिसका खून तेरी और तेरे धन्धे की खातिर बहा, तो अपनी लोटस क्लब पर अमन का झन्डा फहराने की मेरी आखिरी पेशकश को तूने नजरअन्दाज न किया होता ।”
“मेरे से गलती हुई ।”
“फोन पर तो बब्बर शेर की तरह गरजता था ! अब बकरी की तरह मिमिया रहा है ! ऐसा क्यों, दादा गुरबख्शलाल ?”
“मैं कोई दादा-वादा नहीं ।” - गुरबख्शलाल गिड़गिड़ाया - “या तो समझ ले अब नहीं हूं । तू मेरी खता माफ कर ।”
“खता को माफी नहीं” - विमल ने धीरे से रिवॉल्वर का कुत्ता खींचा - “सजा मिलती है ।”
“ग... ग... गोली न चलाना !” - गुरबख्शलाल बड़े दयनीय स्वर में बोला ।
“क्यों ?”
“म... मैं मरना नहीं चाहता ।”
“कौन मरना चाहता है ?”
“मैं... मैं... मरना... नहीं चाहता ।”
“मरेगा तू जरूर । खुद ही तो चुना है तूने अपने लिए मौत का रास्ता ।”
“सिर्फ मैंने ! तूने नहीं ?”
“मैंने भी । फर्क सिर्फ ये हैं कि तेरा इस रास्ते का आखिरी पड़ाव आ गया है और मेरा आना अभी बाकी है ।”
गुरबख्शलाल के मुंह से बोल न फूटा । उसके गले की घन्टी फिर उछली ।
“रण्डी के धन्धे से भी जलील धन्धे में गले-गले डूबे हुए दादा गुरबख्शलाल, अपने स्मैकिये भांजे के करीब पहुंचने के लिए तैयार हो जा ।”
विमल ने दो बार रिवॉल्वर का घोड़ा खींचा । दोनों गोलियां गुरबख्शलाल की छाती में उसके दिल के करीब धंस गयीं ।
गुरबख्शलाल पछाड़ खाकर स्टडी के कालीन बिछे फर्श पर गिरा ।
खौफजदा सलोमी ने जोर से आंखे मींच ली ।
विमल गुरबख्शलाल के सिर पर पहुंचा । उसने एक फायर और किया ।
तीसरी गोली गुरबख्शलाल के माथे में धंस गयी ।
विमल ने उसकी आंखों से जीवन ज्योति बुझती साफ देखी ।
सुपर गैंगस्टर अन्डरवर्ल्ड डान नाटकानिक्स किंग ड्रग लार्ड गुरबख्शलाल की हस्ती मिट गयी ।
अपनी जिन्दगी में था वो बहुत बड़ा तीसमारखां लेकिन मौत ने सब फर्क बराबर कर दिये । मिट्टी और मिट्टी में फर्क न छोड़ा ।
विमल दीवान के करीब पहुंचा । उसने सलोमी का कन्धा छुआ ।
सलोमी ने अचकचाकर आंखें खोली । उसने आतंकित भाव से विमल की ओर देखा । फिर उसकी निगाह विमल के चेहरे से फिसलकर फर्श पर पड़े गुरबख्शलाल पर जाकर ठिठकी ।
“मर गया ?” - वो फुसफुसाई ।
“हां ।” - विमल बोला ।
“तुमने उसे मार डाला ?”
“अफसोस है तुम्हें इसकी मौत का ?”
सलोमी ने बेहिचक इनकार में सिर हिलाया ।
“जिस हथ जोर कर वेखे सोई” - विमल धीरे बोला - “नानक उत्तम नीच न कोई ।”
सलोमी ने असमंजसपूर्ण भाव से उसकी ओर देखा ।
“सब ताकत का कमाल है । जिसके हाथ में ताकत आ जाती है वो आजमा के देखता ही है । इसके हाथ में ताकत थी तो इसने आजमायी । मेरे हाथ में ताकत आयी तो मैंने आजमायी । इसने अपनी ताकत से लाखों लोगों की सर्वनाश के मुंह में धकेला । मैंने अपनी ताकत से इसको मौत के मुंह में धकेला । क्या बुरा किया ?”
“कोई बुरा नहीं किया ।” - सलोमी बोली - “धरती का बोझ हलका किया ।”
“शुक्रिया । ऐसा कहकर तुमने मेरे गुनाह का बोझ हल्का किया ।”
“तुम कौन हो ?”
“फैंटम । घोस्ट हू वाक्स ।”
“मजाक कर रहे हो ।”
“छोड़ो । मतलब की बात करो । अब तुम्हारा क्या इरादा है ?”
“मेरा इरादा ?”
“हां ।”
“मेरे इरादे की क्या औकात है ? सवाल तो तुम्हारे इरादे का है । मेरी बाबत । तुम चाहोगे तो मैं जिन्दा बचूंगी, नहीं चाहोगे तो मैं यहीं, इसी के साथ मरी पड़ी होऊंगी ।”
“मेरी वजह से तुम्हें कुछ नहीं होने वाला । मैं तुम्हारी लम्बी उम्र की कामना करता हूं ।”
उसने उलझनपूर्ण भाव से विमल की ओर देखा ।
“ये तुम्हारे गले में क्रास है ?” - विमल बोला ।
“हां ।” - सलोमी अनजाने मैं गले में पहनी सोने की जंजीर टटोलती हुई बोली ।
“क्रास को हाथ में थामो ।”
सलोमी ने क्रोस को हाथ में थामा ।
“कसम खाके कहो कि जैसा मैं कहूंगा, वैसा ही करोगी । वादा खिलाफी नहीं करोगी ?”
“जो कहोगे करूंगी । आई स्वयिर बाई माई गॉड ! मैं वादाखिलाफी करूं जो मेरी आत्मा जहन्नुम की आग में झुलसे ।”
“मुझे तुम पर विश्वास है । अब सुनो । मैं ये चाहता हूं कि और थोड़ा अरसा इस शख्स की मौत की खबर बाहर जश्न मनाते इसके मेहमानों को न लगे । ऐसा तभी मुमकिन हो सकता है जबकि इसके साथ-साथ तुम भी किसी को दिखाई न दो । यूं यही समझा जायेगा कि तुम्हारे साथ मौजमस्ती में ये ऐसा गर्क हो गया था कि इसे अपने मेहमानों की सुध लेना भूल गया था । अभी” - उसने स्टडी में लगी वाल क्लॉक पर निगाह डाली - “ग्यारह पच्चीस हुए हैं । अब कम-से-कम आधा घण्टा तुमने मेहमानों में पेश होने से परहेज रखना है ।”
“मैं” - वो घबराकर बोली - “मैं यहां... इस लाश के साथ...”
“जरूरी है ।”
“सर । सर । मैं यहां लाश के साथ पायी गयी तो मेरे से ये सवाल नहीं होगा कि मैंने शोर क्यों नहीं मचाया ?”
विमल सोचने लगा ।
“पहले कभी यहां आयी हो ?” - फिर कुद क्षण बाद वो बोला ।
“नहीं ।”
“पहली मंजिल पर फ्रंट में गलियारे के दहाने पर जो दरवाजा है, वो मास्टर बैडरूम का है । तुम चुपचाप उस बैडरूम में पहुंच जाओ । जब कोई जवाबतलबी की नौबत आये तो कह देना कि लाल साहब तुम्हारे साथ वहां आये थे और फिर तुम्हें वहां छोड़कर ‘स्टडी से हो के आता हूं’ कहकर वहां से गये थे और तब तक नहीं लौटे थे ।”
“ये ठीक है ।” - वो तत्काल सहमति में सिर हिलाती हुई बोली ।
“वहां बड़ी हद इसका नौकर तीरथ आयेगा लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि अपने अतिविलासी मालिक के बैडरूम में किसी खूबसूरत लड़की की मौजूदगी से उसके कान पर जूं भी नहीं रेंगेगी ।”
“अगर उसने मेरे से कोई सवाल किया तो ?”
“अव्वल तो वो ऐसी जुर्रत करेगा नहीं, फिर भी सवाल करें तो उसे भी वो ही जवाब देना जो तुमने औरों को देना है । ओके !”
“ओके ।”
“जाओ, अब ।”
सलोमी उठके उसके साथ हो ली ।
***
मेन हाल में जश्न का माहौल पूरा जोर पकड़ चुका था । सीमा और एक और लड़की लगभग नग्नावस्था में पहुंची हुई मेहमानों के बीच और मोनिका और बाकी तीन लड़कियों के बीच झूमझूम के नाच रही थी । उस घड़ी किसी को ध्यान तक नहीं था कि उनका मेजबान उनके बीच में नहीं था ।
सिवाय कुशवाहा के ।
उसने अपने कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि पौने बारह बज चुके थे ।
और दस मिनट में - उसने मन ही मन सोचा - लाल साहब का जरूर-जरूर वहां आ जाना चाहिए था ।
तभी तीरथ वहां पहुंचा ।
“मांगेराम !” - वो कुशवाहा के कान में फुसफुसाया - “आपसे मिलना चाहता है ।”
“क्यों ?” - कुशवाहा ने पूछा ।
“कहता है आपको ही बतायेगा ।”
“कहां है ?”
“पीछे । किचन के पास ।”
कुशवाहा तीरथ से पहले वहां से निकला और लम्बे डग भरता हुआ पिछली ड्योढी में पहुंचा जहां कि वहां का गार्ड मांगेराम खड़ा था ।
“क्या है ?” - कुशवाहा ने उसके करीब पहुंचकर पूछा ।
“वीरसिंह गायब है ।” - मांगेराम बेचैनी से बोला ।
“गायब है क्या मतलब ?”
“पांच मिनट में आता हूं, कहकर काटेज से गया था, अभी तक नहीं लौटा ।”
“कितनी देर हो गयी ?”
“आधे घन्टे से ज्यादा हो गया है -”
“कहां जाने को बोलकर गया था ?”
“कहीं को भी नहीं । मैंने सोचा था कि यहां चोरी-छिपे” - वो एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “छोकरियां झांकने आया होगा । या बड़ी हद किचन में गया होगा । लेकिन वो तो पता ही नहीं कहां चला गया ?”
“यहां से बाहर तो नहीं चला गया ?”
“नहीं । फाटक तो बन्द है और चाबी मेरे पास है । बाहर कहां चला जायेगा ?”
“पी रहा था ?”
“हां । पी तो रहा था ।”
“तो कहीं नशे में ढेर हो गया होगा । जाके कहीं टायलेट-वायलेट में ढूंढ ।”
“इतना टुन्न नहीं था वो ।”
“तो कहां गया ?”
मांगेराम ने उत्तर न दिया ।
कुशवाहा कुछ क्षण सोचता रहा ।
“मिसेज स्मिथ कहां है ?” - फिर वो बोला ।
“किचन में ।”
“और उसकी लड़की ? एलिजाबेथ ?”
“उसका तो पता नहीं ।”
“चुपचाप दूसरी मंजिल पर जाके एलिजाबेथ को ढूंढ । उस कमीने औरतखोर ने उसे सांठ लिया होगा और अब उसी के साथ कहीं पड़ा होगा ।”
“ऐसा न हुआ तो !”
“तो दो आदमी और पकड़ना और काटेज में, कम्पाउन्ड में इमारत में हर जगह उसे तलाश करना । मिल जायेगा ।”
मांगेराम ने सन्दिग्ध भाव से सहमति में गर्दन हिलायी ।
“जब मिल जाये तो पकड़ के मेरे पास लाना । साले की चमड़ी उधेड़ दूंगा । गार्ड की ड्यूटी और ऐसी कोताही !”
मांगेराम खामोश रहा ।
“चल भई, अब हाथ-पांव हिला कोई ।”
मांगेराम तत्काल सीढियों की ओर बढा ।
कुशवाहा ने स्टडी के बन्द दरवाजे की ओर देखा । उसे मालूम था कि लाल साहब वही थे क्योंकि उसने अपनी आंखों से उन्हें सलोमी के साथ स्टडी में दाखिल होते देखा था ।
क्या वो उन्हें खबरदार करे कि मेहमानों को नये साल का मुबारकबाद देने का वक्त करीब आ रहा था !
दो वजह से उसने फौरन वो इरादा छोड़ दिया । एक तो उसे पूरी उम्मीद थी कि लाल साहब बिना किसी के चेताये, वक्त रहते अपने मेहमानों के बीच पहुंच जाने वाले थे, दूसरे उसे अन्देशा था कि उसके बॉस को अपनी मौज में किसी का - अपने खास लैफ्टीनेन्ट कुशवाहा का भी - विघ्न बर्दाश्त नहीं होने वाला था ।
असहाय भाव से कन्धे झटकाता वो हाल में लौटा ।
सलीम खान उसे देखकर उसके करीब पहुंचा और बोला - “अमां, यार, कहां है हमारा मेजबान ।”
कुशवाहा ने होठों पर एक अश्लील मुस्कराहट लाकर बड़े अर्थपूर्ण भाव से उसकी तरफ देखा ।
“तौबा !” - सलीम खान ने मुंह बिगाड़ा - “अभी तक पिला हुआ है ।”
“लाल साहब आ जायेंगे ।” - कुशवाहा आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला ।
“वडी, साईं, न भी आये तो क्या है !” - झामनानी बोला - “वो क्या समझता है जैसे झामनानी को धमका लिया । वैसे वक्त को भी धमका लेगा कि उसके आने तक वो थमा क्यों नहीं रहा । वक्त तो नहीं मानने वाला गुरबख्शलाल का हुक्म ।”
हर कोई नशे में था इसलिये झामनानी की जल भुनकर कही उस बात को हर किसी ने मजाक में लिया ।
बल्कि ब्रजवासी तो तरह देता हुआ बोला - “मुर्गा बांग न दे तो सवेरा नहीं होता !”
“अरे, कुशवाहा ।” - भोगीलाल बोला - “मैं तेरे से पुच्छु सू कि तू कह तो नहीं देगा जाके कि अपना बिरजवासी तेरे साब को मुर्गा कह रिया था !”
जोर का अठ्टहास हुआ ।
कुशवाहा ने भी हंसी में सबका साथ दिया ।
“वीर भ्रावो ।” - पवित्तर सिंह बोला - “पंज मिन्ट रै गये सिर्फ बारह बज्जन विच ।”
“लगता है” - सलीम खान बोला - “नये साल का इस्तकबाल हमें अपने मेजबान के बिना ही करना होगा ।”
“जो कि” - झामनानी व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “बहुत मुश्किल होगा हमारे वास्ते ।”
“नहीं, नहीं । ऐसी कोई बात नहीं । हजरत, इस साल की आखिरी जाम हो जाये ।”
सबके हाथों में नये जाम पहुंच गये ।
जाम कुशवाहा ने भी थामा लेकिन उसके जाम में ओरेंज जूस था ।
“चियर्स !” - सलीम खान बोला ।
“चियर्स ।” - सब समवेत स्वर में बोले ।
“अलविदा 1991 !”
“अलविदा 1991 !”
“अब बारह बजने में एक मिनट पर कुशवाहा यहां तमाम रोशनियां बन्द कर देगा और ठीक एक मिनट गुजर जाने के बाद जब रोशनियां दोबारा आन करेगा तो नया साल हमारे सामने होगा ।”
“बढिया ।”
“कुशवाहा, घड़ी देख ले ।”
“देख लो, खान साहब ।”
“आगे तुझे मालूम है तूने क्या करना है ।”
“मालूम है, खान साहब ।”
ठीक बारह बजने में एक मिनट पर कुशवाहा ने वहां की सभी बत्तियां बन्द कर दीं ।
हाल में घुप्प अन्धेरा छा गया ।
वो सैकेण्ड गिनने लगा ।
एक दो तीन चार...
बाहर काटेज की ओर से अब किसी प्रकार के शोर-शराबे की आवाज वहां वहीं पहुंच रही थी । शायद वहां मौजूद सब जने भी नये साल के स्वागत में थोड़ी देर के लिये खामोश हो गये थे ।
सत्तावन, अट्ठावन, उनसठ, साठ ।
उसने तमाम बत्तियां आन कर दीं ।
“हैप्पी न्यू ईयर टु ऐवरीबाडी ।” - सलीम खान उच्च स्वर में बोला ।
“हैप्पी न्यू ईयर ।” - सब बोले ।
“गया दिसम्बर ।” - सीमा तरन्नुम में बोली ।
“जाने दो ।” - बाकी लड़कियां ने कोरस में दोहराया ।
“आई जनवरी !”
“आने दो ।”
“सबको मुबारक नया साल ये नया साल ।”
“सबको मुबारक नया साल ये नया साल ।”
तभी कुशवाहा की निगाह एक कोने की लान की ओर खुलने वाली खिड़कियों के करीब लगी विशाल डायनिंग टेबल पर पड़ी ।
वहां कोई बैठा था । उसके चेहरे पर शेर का मुखौटा चढा हुआ था और वो सिर पर रबड़बैंड द्वारा ठोडी पर बंधने वाला रंगीन टोपी पहने था । उसके जिस्म पर काले रंग का सूट, सफेद कमीज और लाल टाई थी ।
लाल साहब ! - उसने आशापूर्ण भाव से सोचा ।
नहीं, नहीं - तत्काल उसने अपने उस खयाल को जेहन से झटका - वो लाल साहब कैसे हो सकते थे ! वो तो कोई दुबला लम्बा नौजवान था । जबकि लाल साहब तो...
उसका ध्यान हाल में मौजूद लाल साहब के मेहमानों की की ओर गया ।
ये भोगीलाल, ये सलीम खान, वो झामनानी वो पवित्तर सिंह और वो ब्रजवासी पांचों-के-पांचों तो वहां मौजूद थे ।
तो... तो... वो आदमी कौन था ।
एकाएक कुशवाहा के सारे शरीर में ठण्डक की लहर दौड़ गयी । तत्काल उसने अपना ऑरेन्ज जूस का गिलास एक करीबी साइड टेबल पर रख दिया और चुपचाप दरवाजे की ओर सरकने लगा ।
“वहीं रुक जा, कुशवाहा !”
स्वर में कोड़े की-सी फटकार थी और वो कोड़े की ही तरह उसकी चेतना से टकराया । उसका अगला कदम उठाने की हिम्मत न हुई । वो वहीं थमकर खड़ा हो गया । अब वो जानता था कि वो शख्स कौन था ।
उसने कौल की आवाज साफ पहचानी थी ।
तत्काल हाल में खामोशी छायी और सबकी तवज्जो शेर के मुखौटे वाले शख्स की तरफ हुई ।
“यहां से” - विमल बोला - “जिन्दा घर लौटने के ख्वाहिशमन्द साहबान बराये मेहरबानी अपने-अपने हाथ खड़े करें ताकि मैं उन खुशकिस्मत लोगों को नये साल की मुबारक बाद दे सकूं ।”
सब हकबकाये से एक-दूसरे का मुंह देखने लगे ।
लड़कियों के चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगीं ।
मोनिका जानती थी कि वो कौन था, फिर भी उत्कन्ठा से उसे अपनी सांस रुकती महसूस हो रही थी ।
“ओये” - फिर पवित्तर सिंह सख्ती से बोला - “केड़ा ए ओए तू ?”
“दाढी चिट्टी हो गई, गुरमुखो ।” - विमल खेदपूर्ण स्वर में बोला - “पर तमीज नाल गल्ल करनी नई आई ।”
“ओए तेरी मैं भैन दी ओये...”
पवित्तर सिंह विमल की ओर झपटा लेकिन फौरन ही जैसे उसके पांव में बेड़ियां पड़ गयीं ।
अब मुखौटे वाले युवक के हाथ में स्टेनगन दिखाई दे रही थी ।
स्टेनगन की नाल कैमरे की तरह पैन होती हुई बायें से दायें और दायें से बायें घूमी ।
सबको जैसे लकवा मार गया ।
“अमां, यार” - सलीम खान बोला - “कौन हो तुम जो आधी रात को हमारे से मसखरी कर रहे हो ?”
विमल उठकर खड़ा हुआ ।
तब सबने देखा कि उसके कोट की दायीं जेब से रिवाल्वर का दस्ता झलक रहा था और उसकी पतलून की बैल्ट के साथ कई हैण्ड ग्रेनेड लटक रहे थे ।
विमल ने अपना मुखौटा चेहरे से उतारकर एक ओर फेंक दिया ।
“सोहल !” - न चाहते हुए झामनानी के मुंह से निकल गया ।
सबको जैसे सांप सूंघ गया ।
“सोहल ! सोहल !” - फिर सब एक साथ फुसफुसाने लगे - “यहां कैसे पहुंच गया !”
“क्या इन्तजाम है गुरबख्शलाल का !”
“चाहता क्या है ये ?”
“भई” - फिर भोगीलाल विमल से सम्बोधित हुआ - “के चइये तन्ने !”
“क्या चाहते हो, मियां ?” - उसने प्रेरित होकर सलीम खान ने भी सवाल दोहराया ।
और कोई कुछ न बोला ।
“सबसे पहले” - विमल बोला - “मैं दरख्वास्त करना चाहता हूं कि आप लोग बैठ जायें ।”
“बैठ जायें ?” - ब्रजवासी ने दोहराया ।
“हां । यूं मुझे आप पर निगाह रखने में सहूलियत होगी । आप पहुंचे हुए दादा लोग हैं, इसलिये आप में से हर कोई अपने अपने तरीके से मुझे मजा चखाने की जुगत कर रहा होगा । कहने की जरूरत नहीं कि आपमें से किसी को ऐसी कोई भी हरकत हिमाकत ही होगी लेकिन सिर्फ कहने भर से कौन मान जाता है ! बहरहाल कहना मैं ये चाहता हूं कि अगर मुझे स्टेनगन से अन्धाधुन्ध गोलियां चलानी पड़ी तो आप सबके सब मारे जायेंगे आप बैठ जायेंगे तो आपमें से होशियारी दिखाने पर आमादा शख्स मुझे आसानी से दिखाई दे जायेगा । फिर सिर्फ उसी की जान जायेगी ।”
“बहुत बढ-बढके बोल रहे हो, भैय्या ।” - ब्रजवासी बोला
“जानते नहीं हो कि कहां आ फंसे हो ।”
“गलत ! आप नहीं जानते कि आप कहां आ फंसे हैं ।”
ब्रजवासी फिर न बोला ।
“प्लीज सिट डाउन ऐवरीबडी ।”
सारी लड़कियां एक झुंड में एक विशाल सोफे पर बैठ गयीं और दादा लोग एक दूसरे से अलग होकर जहां स्थान दिखाई दिया बैठ गये । कुशवाहा दरवाजे के करीब ही एक साइड टेबल पर बैठ गया ।
तब तक जश्न का माहौल अकाल मौत मर चुका था और सबके नशे हिरण हो चुके थे । जिनके हाथों में गिलास थे, उन्हें गिलास को होठों तक ले जाने की सुध नहीं थी । सबकी निगाहें विमल पर टिकी हुई थीं ।
“थैंक्यू ।” - विमल बोला - “अब मैं आप साहबान को उन हालात से आगाह करना चाहता हूं जिनके जेरेसाया आप लोग यहां मेरे सामने मौजूद हैं । सबसे पहले आपकी जानकारी के लिए गुजारिश है कि यहां के तमाम सिग्नल काटे जा चुके हैं । किसी के कम्पाउन्ड की बाउन्ड्री वाल के करीब आने पर या यहां इस इमारत में दाखिल होने की कोशिश करने पर यहां या नजदीकी थाने में कोई अलार्म बैल नहीं बजने वाली । नम्बर दो यहां के खास पहरेदार टॉमी और लियो नाम के दोनों खूंखार कुत्ते कम्पाउन्ड के फाटक के पास मरे पड़े हैं । नम्बर तीन, यहां मौजूद लोग, आप लोगों के साथ आये तमाम लोग और गुरबख्शलाल के साथ आया सारा लावलशकर मेरे आदमियों की गिरफ्त में है...”
किसी के चेहरे पर विश्वास के भाव न आये ।
“कहने का मतलब ये है” - विमल पूर्ववत् सुसंयत स्वर में कहता रहा - “कि इस उम्मीद से तो आप लोग अभी किनारा कर लें कि आपको बाहर से कोई मदद हासिल हो जायेगी ।”
“गुरबख्शलाल !” - सलीम खान बोला - “गुरबख्शलाल कहां है ?”
“वो अपनी स्टडी में मरा पड़ा है ।”
सबके मुंह से सिसकारी निकला ।
“नामुमकिन ।” - सलीम खान बोला ।
“और भैय्या” - ब्रजवासी बोला - “वो बाकी सब कुछ भी मुमकिन नहीं जो तुमने अभी कहा । तुम खुद किसी तरह से यहां घुस आये हो और हमारे सामने झूठ का जाल फैलाकर हमें डराने की कोशिश कर रहे हो ।”
“सब झूठ है ?”
“हां ।”
“ये स्टेनगन भी झूठ है जो मेरे हाथ में है !”
“तुम यहां इसे चलाने की हिम्मत नहीं...”
बाकी शब्द ब्रजवासी के मुंह में ही रह गये । स्टेनगन से गोलियों की एक कतार छूटी और फर्श पर उनके सामने छेद ही छेद बनाती चली गयी ।
स्टेनगन खामोश हुई तो हाल में मरघट का सा सन्नाटा था ।
“इस बार स्टेनगन का रुख फर्श की ओर था” - विमल कहर भरे स्वर में बोला - “अगली बार जरा-सा ऊंचा होगा और आप सब लोग यहां मरे पड़े होंगे । ऐनी प्राब्लम ?”
किसी के मुंह से बोल न फूटा ।
“मैंने भूल की । इस बार स्टेनगन का रुख जरा ऊंचा होना चाहिये था ।” - फिर विमल ब्रजवासी के स्वर की नकल करता हुआ उससे सम्बोधित हुआ - “क्या कहते हो भैय्या ?”
ब्रजवासी ने जोर से थूक निगली ।
“जिन्दगी से बेजार मालूम होते हैं आप लोग जो वक्त की नजाकत नहीं पहचानना चाहते, जो इतनी सी बात नहीं समझना चाहते कि मैं आप लोगों को जिन्दा रहने का मौका देने की कोशिश कर रहा हूं ।”
कोई कुछ न बोला ।
“ओके ! मैं पहले आप लोगों को अपनी बातों की तकदीक का मौका देता हूं । कुशवाहा !”
कुशवाहा ने सिर उठाकर उसकी तरफ देखा ।
“पहले अपने बॉस की स्टडी में जा और फिर बाहर का एक चक्कर लगाकर आ ।”
कुशवाहा उठकर दरवाजे की ओर बढा ।
“कहीं भाग सके तो बेशक भाग जाना । कहीं से मदद बुला सकता हो तो कोशिश कर देखना । मेरी तरफ से तुझे खुली छूट है ।”
कोई उत्तर दिये बिना कुशवाहा वहां से रुखसत हो गया ।
“साहबान” - विमल बोला - “कुशवाहा के लौटने तक नये जाम नोश फरमाइये । नये साल का पहला जाम, सोहल की तरफ से आपके नाम ।”
उस प्रस्ताव में किसी ने कोई दिलचस्पी न दिखाई । नशे से आनन्दित होने की स्थिति में कोई भी उस घड़ी अपने आपको नहीं कर पा रहा था ।
“यानी कि” - विमल मीठे स्वर में बोला - “आप लोग मुझे इस इज्जत के काबिल नहीं समझते कि मैं आपके साथ चियर्स बोल सकूं ।”
“नहीं-नहीं, साईं” - जवाब में झामनानी बोला - “वडी, ऐसी बात नहीं है, नी । मैं” - उसने अनुमोदन के लिये अपने बिरादरी भाइयों की तरफ देखा - “मैं सबके लिये जाम बनाता हूं नी ।”
सबके सिर अनुमोदन में हिले ।
झामनानी उठकर ड्रिंक्स की टेबल पर पहुंचा । उसने छः जाम तैयार किये और उन्हें ट्रे में रखकर सबसे पहले विमल के पास पहुंचा । विमल ने एक गिलास ले लिया तो वो ट्रे के साथ अपने बिरादरी भाइयों में घूमा, फिर ट्रे का आखिरी गिलास उसने खुद थामा और ट्रे को तिलांजलि दे दी ।
“चियर्स !” - विमल बोला ।
“चियर्स !” - झामनानी के अलावा सब बेमन से बोले ।
“हैप्पी न्यू ईयर !”
“हैप्पी न्यू ईयर !”
“नये साल की सलामी में यहां एक गाना भी तो गूंज रहा था । कौन गा रहा था ?”
“लड़कियां ।” - सलीम खान बोला ।
विमल ने लड़कियों की ओर देखा ।
“सीमा गा रही थी ।” - मोनिका बोली - “इसी को आता है ।”
“क्या था वो गाना सीमा !”
सीमा हौले-हौले गुनगुनाने लगी - “गया दिसम्बर जाने दो ।”
“ये मुड़ कर के क्यों देख रहा है ?” - ब्रजवासी धीरे से बोला ।
“शायद जोड़ीदार बनना चाहता है हमारा ।” - भोगीलाल बोला - “बिरादरी में शामिल होना चाहता है ।”
“पाखण्डी ए माईयवां ।” - पवित्तर सिंह नफरत भरे स्वर में बोला ।
“सरदार ठीक कहता है ।” - सलीमखान बोला - “हमें बौरा रहा है । उल्लू बना रहा है । हमारे बीच अपनी इमेज बनाने की कोशिश कोशिश कर रहा है ।”
“वडी, किसलिये नी ? - झामनानी बोला - “इसे क्या मिलेगा ऐसा करने से ?”
“तू बता ?”
“वडी, मैं बताऊं, नी ?” - झामनानी हड़बड़ाया ।
“इसकी हिमायत जो कर रहा । शायद तुझे मालूम हो इसके इस मीठे व्यवहार की वजह !”
“मैं क्यों हिमायत करूंगा, नी, इसकी ? मेरा क्या ये सगे वाला है ?”
सलीम खान ने उत्तर न दिया ।
फिर कोई कुछ न बोला ।
गाने की कोरस बनाने में कोई लड़की सीमा का साथ नहीं दे रही थी । अकेली उस गाने को गाती सीमा यूं लग रही थी जैसे किसी का मसिया पढ रही हो । फिर कुशवाहा को लौटा पाकर वो खामोश हो गयी ।
सबकी प्रश्नसूचक निगाहें कुशवाहा की ओर उठ गयीं ।
“इसने जो कुछ भी कहा है, ठीक कहा है ।” - कुशवाहा मातमी लहजे में बोला - “लाल साहब स्टडी में मरे पड़े हैं और वह जगह मुकम्मल तौर से इसके धोबियों के कब्जे में है ।”
सबके चेहरे घुटनों तक लटक गये ।
“साहबान ।” - विमल बड़ी संजीदगी से बोला - “मेरी आप लोगों से कोई अदावत नहीं । होती तो आप सब लोग कब के जहन्नुम रसीद हो चुके होते और वहां अपने चीफ खलीफा को हैप्पी न्यू ईयर बोल रहे होते । मेरी गुरबख्शलाल से भी कोई अदावत नहीं थी लेकिन उसने खामखाह अदावत का माहौल पैदा किया, जिसकी वजह से उसका जो अंजाम हुआ उसकी तसदीक अभी आपने कुशवाहा की जुबानी सुनी । आप सब लोग यहां से चल के जायेंगे या अपने-अपने प्यादों के कन्धों पर सवार हो के जायेंगे, ये अब मुकम्मल तौर से आप लोगों की मर्जी पर मुनहसर है ।”
“क्या मतलब ?”
“साहबान, आपमें से जो कोई भी नारकाटिक्स‍ किंग गुरबख्शलाल की नशे की बादशाहत पर काबिज होने के ख्वाब देख रहा हो, वो अभी इसी घड़ी अपने आपको मरा समझ ले । आप सभी यही ख्वाब देख रहे हैं तो बरायमेहरबानी सबके सब इस अंजाम तक पहुंचने के लिये तैयार हो जायें ।”
कोई कुछ न बोला ।
“साहबान, ड्रग्स का धन्धा नहीं । उसमें शिरकत नहीं । उसकी मदद नहीं । उससे इत्तफाक नहीं । आप लोगों की जानबख्शी की यही मेरी शर्त है । कोई इन शर्तों से झूठी हामी भरेगा तो वो सिर्फ चन्द रोज और जी लेगा लेकिन फिर वो गुरबख्शलाल से भी ज्यादा बुरी मौत मरेगा । ये मेरा वादा है झूठी हामी भरने वाले से ।”
“तू हमें सुधारना चाहता है ?” - सलीम खान बोला ।
“इस नाममुमकिन काम को मैं अंजाम दे सकता हूं ऐसा खुश फहम मैं नहीं । तुम जैसे लोगों को तो खुदा नहीं सुधार सकता । आप लोग अपने लिये जैसे-जैसे दोजख छांट चुके हैं, आप बखुशी उसमें गर्क रहिये लेकिन ड्रग्स का धन्धा नहीं । सलीम खान, खूब भेजो जाली पासपोर्टों के जरिये लोगों को इंगलैंड और जर्मनी और कैनेडा और अमेरिका, खूब-खूब सप्लाई करो अपनी बहन बेटियों को अरब देशों के बूढे शेखों को लेकिन ड्रग्स का धन्धा नहीं । जवाब हां या न में दो ।”
“ड्रग्स का धन्धा नहीं ।” - सलीम खान धीरे से बोला, पता नहीं क्यों जवाब देने से पहले वो अपने शरीर में अजीब-सी भय की लहर दौड़ती महसूस कर रहा था । कैसा था वो जिसकी आवाज ही उसे डरा रही थी ।
“भोगीलाल, शहर में इतनी झुग्गियां डलवा कि शहर की कोई सड़क, कोई गली ऐसी बाकी न रहे जो झुग्गियों से भरी न हुई हो, नकली शराब जोरों से बना ताकि उसे पीकर हजारों की तादाद में झुग्गी-झोपड़ी वाले मरें और तेरी फीस भरकर यूं खाली हुई झुग्गियों में बसने के लिये हजारों की तादाद में और बंगलादेशी राजधानी में आन बसें, अगुवा और खूरेजी का अपना शगल भी बाकायदा जारी रख लेकिन ड्रग्स का धन्धा नहीं । क्या ?”
“बिल्कुल नई, जी ।” - भोगीलाल बोला - “मन्ने तो पहले ही धन्धे से...”
“शटअप !”
भोगीलाल सहमकर चुप हो गया ।
“आपके कारनामों से भी मैं नावकिफ नहीं, गुरमुखो ।” - विमल पवित्तरसिंह से सम्बोधित हुआ - “बिना पासपोर्ट लोगों को बाहर बॉर्डर कराने के स्पैशलिस्ट बताये जाते हैं आप । सोने की स्मगलिंग करते हैं और उग्रवादियों को हथियार बेचते हैं । इतने कुकर्मो से मुंह काला करने के बाद भी दाढी सफेद रह गयी । अभी ड्रग्स के धन्धे पर भी काबिज होना चाहते होंगे ?”
“ओये नई, पुतरा ।” - पवित्तरसिंह मक्खन से लिपटे स्वर में बोला ।
“मेरा बाप”- विमल बड़े हिंसक भाव से बोला - “कोई वतनफरोश जमीरफोश स्मगलर नहीं था ।”
पवित्तरसिंह की सफेद दाढी जोर से हिली । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“ड्रग्स का धन्धा नहीं, गुरमुखो ।”
“नई ।” - पवित्तरसिंह थूक निगलता हुआ बोला ।
“ब्रजवासी, लैंड ग्रैब से, इललीगल कन्स्ट्रक्शन और फोर्सड वैकेशन से, दुकानदारों और कारखानेदारों से हफ्ता वसूलने से और अगुवा और फिर फिरौती जैसे कामों से क्या ढेरों पैसा नहीं कमाता ?”
“कमाता हूं, भैय्या ।” - ब्रजवासी व्यग्र भाव से बोला ।
“फिर भी ड्रग्स के धन्धे पर निगाह रखता है ?”
“अब नहीं रखता ।”
“अब तक रखता था ?”
“अब नहीं रखता, कसम उठवा ले गंगा मैया की ।”
आखिर में विमल की निगाह झामनानी पर पड़ी ।
“वडी, साईं” - विमल के मुंह खोलने से पहले ही वो बोल पड़ा - “मैं ध्यान भी करूं ड्रग्स के धन्धे का तो झूलेलाल के कहर की बिजली अभी, इसी वक्त यहीं मेरे सिर पर गिरे ।”
“गुड ! आई एम ग्लैड । अब एक सबक और ज्ञान की बात । आप लोगों के सामने सबक और ज्ञान की बात कोई बात करना भैंस के आगे बीन बजाना साबित हो सकता है लेकिन फिर भी कहता हूं । जब सैलाब आता है तो बड़े बड़े पेड़ उखड़कर उसके साथ बह जाते हैं लेकिन पेड़-पौधे, झाड़-झंखाड़ सैलाब के रुख के साथ झुक जाते हैं । और सैलाब गुजर जाने बाद फिर सिर उठाकर खड़े हो जाते हैं । गुस्बख्शलाल बड़ा पेड़ था जो सैलाब के सामने न टिक सका । आप टिक सकते हैं । कैसे टिक सकते हैं, यही आप को बताने की कोशिश मैंने अभी की है ।”
सबके सिर सहमति में हिले ।
“गुड ! गुरबख्शलाल से ज्यादा समझदार आदमी हैं आप आप लोग ।” - विमल एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “अब याद रखियेगा साहबान, अपना वादा भी और मेरा नाम भी । सोहल नाम है मेरा । जिस किसी ने भी मेरे साथ वादाखिलाफी की, उसे खबर भी नहीं होगी कि मैं प्रेत बनकर उसके सिरहाने खड़ा होऊंगा । उसे उसकी वादाखिलाफी की सजा देने के लिए । उस की जिन्दगी पर अपना दावा पेश करने के लिये ।” - विमल ने जोर से दान्त किटकिटाये - “जहन्नुम रसीद करने के लिये ।”
हाल में मरघट का सन्नाटा छा गया ।
विमल ने अपना जाम खाली किया और खाली गिलास मेज पर रख दिया । फिर जैसे जादू के जोर से उसके चेहरे पर एक मधुर मुस्कराहट उत्पन्न हुई ।
“एण्ड नाओ ।” - वो बोला - “लेडीज एण्ड जैन्टलमैन, आई विश यू आल ए वैरी हैप्पी एण्ड प्रासपरस न्यू ईयर ।”
***
विमल गुरबख्शलाल की स्टडी में उसकी एग्जीक्यूटिव चेयर पर बैठा पाइप पी रहा था कुशवाहा उसके पहलू में खड़ा था । कोने में एक सेफ खुली पड़ी थी मुबारक अली के देखरेख में अली वली जिसमें से नोटों की गड्डियां निकाल-निकाल कर दो बड़े-बड़े सूटकेसों में भर रहे थे ।
“धोबियों की फीस” - विमल कुशवाहा से बोला - “और वो खर्चा जो तेरे साहब की वजह से इन लोगों को करना पड़ा कोई एतराज ?”
कुशवाहा ने इनकार में सिर हिलाया । उसका मालिक अभी भी वहां के फर्श पर मरा पड़ा था और अब उनकी आंखों के सामने उसका माल भी लूटा जा रहा था ।
“सेफ का पता कैसे लगा ?” - फिर अनायास ही उसके मुंह से निकल गया ।
“इत्तफाक से ।” - विमल बोला - “स्टोर में चार स्विच हैं । उनमें से एक से चारदीवारी का अलार्म सिस्टम आफ-आन होता है, दूसरे से इमारत का और तीसरे से नजदीकी थाने में बजने वाली घण्टी का अलार्म सिस्टम आफ-आन होता है । वहां एक चौथा स्विच और है जिससे प्रत्यक्षत: कुछ होता नहीं मालूम होता । फिर भी जब मैंने अलार्म सिस्टम के तीन स्विच आफ किये थे तो मैंने वो चौथा स्विच भी आफ कर दिया था । बाद में जब मैं यहां इस कुर्सी पर आकर बैठा था तो मुझे मेज के नीचे घुटने के करीब लगा वैसा ही एक और स्विच दिखाई दिया था । जो कि सच पूछो तो मेरा घुटना लगाने से इत्तफाक से दब गया था । उस स्विच के दबते ही पूरी दीवार में बनी चार वाल कैबिनेटों में से एक निशब्द गोल घूमने लगी । तो आधा दायरा काट चुकी तो कैबिनेट तो मेरी निगाह से गायब हो गयी और उसकी जगह मेरे सामने ये सेफ प्रकट हो गयी । मैंने फिर बटन दबाया तो कैबिनेट घूमकर वापिस अपनी जगह पहुंच गयी और सेफ उनके पीछे जा छुपी ।”
“सेफ की चाबिया ?”
“इस दराज में थी । दराज की चाबी तेरे साहब की जेब में मौजूद चाबियों के गुच्छे में थी । ईजी !”
कुशवाहा ने एक आह-सी भरी ।
“मैं” - वो धीरे से बोला - “लाल साहब की हर स्याह-सफेद हरकत में शरीक था लेकिन इस सेफ की खबर मुझे भी नहीं थी ।”
“ओह नो ।”
“मैं सच कह रहा हूं ।”
“कमाल है ।”
“इतना खुफिया इन्तजाम और इतनी आसानी से उसकी पोल खुल गयी ।”
“सिर्फ इसलिये क्योंकि तेरा साहब एक निहायत मगरूर और बेहद खुशफहम आदमी था । लोगों को कीड़े-मकोड़े समझता था और खुद को शायद खुदा से भी दस इंच ऊंचा समझता था । वो कभी सपने में नहीं सोच सकता था कि उसकी गैरहाजिरी में कोई उसकी स्टडी में कदम रखने की जुर्रत कर सकता था । किसी की मेज वाले इस स्विच पर निगाह पड़ भी जाती तो उसको उसे छूने की मजाल नहीं हो सकती थी । वो मजाल भी हो जाती तो इस स्विच को चलाने से कुछ होने वाला नहीं था क्योंकि ये तभी चलता है जब कि इससे सम्बद्ध स्टोर वाला स्विच आफ किया जा चुका हो । मैंने आजमाया नहीं लेकिन कोई बड़ी बात नहीं कि स्टोर वाले स्विच को आफ किये बिना इस स्विच को छूने भर से ही यहां से ही यहां कोई आलार्म बैल बज पड़ती हो ।”
“ओह ।”
“फिर तेरा साहब ये भी सोचता होगा किसी को पता भी लग जाता कि यहां इस इमारत में कोई सेफ मैजूद थी जो कि स्टोर चौथे अलार्म से सम्बद्ध थी तो वो सेफ को अलार्म स्विच के करीब हो वहीं स्टोर में ही, ढूंढने की कोशिश करता । यानी कि किसी को ये न सूझता कि सेफ स्टोर से इतना परे यहां स्टडी में भी हो सकती थी” - विमल ने सेफ की ओर निगाह दौड़ाई - “कितना माल होगा ये ?”
“क्या पता ? जब मुझे सेफ का ही खबर नहीं तो माल की क्या खबर होगी !”
“कोई अन्दाजा ?” 
कुशवाहा ने अनभिज्ञता से कन्धे लटकाये ।
“अब तू क्या करेगा ?” - विमल ने पूछा ।
“मैं क्या करूंगा ?”
“मेरे से पूछ रहा है ।”
कुशवाहा ने कोई उतर न दिया । उसकी निगाह स्वयं ही उस दिशा में उठ गयी जिधर गुरबख्शलाल की लाश पड़ी थी । फिर उसकी आंखें डबडबा आयी ।
“मैं” - विमल धीरे से बोला - “तेरे जज्बात की, तेरी वफादारी की कद्र करता हूं । आज के जमाने में ऐसी वफादारी एक दुर्लभ गुण है । गुरबख्शलाल बहुत खुशकिस्मत था जो उसे तेरे जैसे वफादार शख्स की खिदमत हासिल थी । लेकिन होनी सिर्फ वफादारी से नहीं रुकती । और फिर गुरबख्शलाल के साथ कोई अनहोनी तो हुई नहीं । पाप का घड़ा कभी तो फूटना ही होता है । तेरी वफादारी तेरी जुबान को भले ही ताला लगा दे लेकिन दिल से तो तू भी जानता है कि गुरबख्शलाल अपनी तिजोरी भरने के लिए मुल्क की नौजवान नस्ल को विनाश के रास्ते पर धकेल रहा था । ड्रग एडिक्ट नौजवानों के मुर्दा जिस्मों की बुनियाद पर वो अपनी समर्थ और सम्पन्नता का महल खड़ा कर रहा था । कभी तो ऐसे आदमी ने अपने उस अंजाम तक पहुंचना ही था जिस तक कि वो पहुंचा । तू अपने मालिक का वफादार है । गुरबख्शलाल कैसा भी था, तुझे उसकी मौत का अफसोस है । तेरे मन में ये ख्वाहिश जाग सकती है - जाग ही चुकी होगी ताकि तू उस शख्स को नेस्तानाबूद कर दे जिसने तेरे मालिक की जान ली । मैंने गलत कहा ?”
कुशवाहा ने उत्तर न दिया ।
“ऐसी ख्वाहिश करते वक्त एक बात याद रखना । तेरी ये ख्वाहिश तुझे भी वहीं पहुंचा देगी जहां तेरा मालिक इस वक्त पहुंचा हुआ है ।”
“मुझे कोई एतराज नहीं ।” - वो रुधे कंठ से बोला ।
“मुझे एतराज है ।”
कुशवाहा ने चौक कर उसकी तरफ देखा ।
“मुझे एतराज है क्योंकि मेरी निगाह में तेरा एक रोल है जिसका वजह से तेरा जिन्दा और सलामत रहना जरूरी है ।”
“क... क्या ?”
“हाल में जो गुरबख्शलाल के बिरादरी भाई बैठे हैं, वो सब के सब घिसे हुए दादा हैं जो गुरबख्शलाल से किसी कदर भी कम नहीं । तू समझता है कि मुझे उनके वादे पर एतबार आ गया है तो ये तेरी गलतफहमी है यारमारी और वादाखिलाफी उन लोगों की फितरत है जो उनके भीतर गहरी बैठ चुकी है । मेरे खौफ ने उन्हें एक वादा करने पर मजबूर किया है । मेरे खौफ का साया हटते ही वो शेर हो जायेंगे और अपनी मनमानी पर उतर आयेंगे । ऐसा होने में समय लग सकता है । लेकिन ऐसा होगा जरूर । तब तक वादाखिलाफ लोगों से मुझे अपना वादा निभाना पड़ेगा जो कि अभी मैंने इनसे किया है । जब वो वक्त आयेगा तब मुझे इस शहर में तुम्हारे जैसे किसी आदमी - किसी हिमायती की सख्त जरूरत होगी ।”
“मैं बिरादरी भाइयों से दगा करूंगा ?”
“वो तेरे बिरादरी भाई नहीं हैं । वो गुरबख्शलाल के बिरादरी भाई थे । और वो कैसे बिरादरी भाई हैं, ये क्या तू जानता नहीं । इनमें से कौन है जो गुरबख्शलाल की जिन्दगी में उसकी पीठ में छुरा घोंपने के लिए कोई मुनासिब जगह नहीं टटोल रहा था ? इसी बिरादरी का एक भाई झामनामनी गुरबख्शलाल के खिलाफ मेरा साथ न देता तो क्या मैं इतने बड़े पहाड़ को गिरा पाया होता ? तू क्यों समझता है कि बाकि चार जने वो भोगीलाल, वो पवित्तर सिंह, वो सलीम खान, वो ब्रजवासी - झामनानी, से किसी कदर बेहतर हैं ! सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं । सब अपने से जबर का मैला चाटते हैं और अपने से कमजोर को ठोकर मारते हैं । यही कायदा है, यही दस्तूर है दादा लोगों की बिरदरी का ।”
“जिसका कि तुम एक हिस्सा हो ।”
“नहीं हूं । नहीं हूं मैं दादा लोगों की बिरादरी का हिस्सा । इसलिये नहीं हूं मैं दादा नहीं हूं । ”
“दादा नहीं हो तो क्या हो ?”
“हूं वाहे गुरू का एक गुनहगार बन्दा जो कुत्ते जैसी दुर-दुर करती जिन्दगी जीते रहने के बाद, दर-दर की बेशुमार ठोकरें खाते रहने के बाद अभी भी अपने मुकाम की तलाश में है । मैं वो शख्स हूं जिसे ऊपर वाले ने अपनी रजा की असली जामा पहनाने के लिये चुना है उसकी मुतवातर सजा के तौर पर । वही होता है जो वो चाहता है । अगर वो चाहता था कि गुरबख्शलाल कैंसर या तपेदिक से न मरे, मेरे हाथों मरे तो ऐसी ही होना था । जिस दिन वो चाहेगा कि सरदार सुरेन्द्र सोहल दिल्ली के दादा लोगों के हाथों मरे या गुरबख्लाल मरहूम के लेफ्टीनेंट के हाथों मरे तो ऐसा भी होगा । जिस तिसु भावे तिवें चलावे, जिंव होते फरमान ।” 
कुशवाहा के मुंह से बोल न फूटा ।
कई क्षण खामोशी रही जिसके दौरान विमल बड़े संजीदा अन्दाज से अपने पाइप कश के लगता रहा ।
“मैं क्या करूं ?” - आखिरकार कुशवाहा बोला ।
“गुरबख्शलाल का कोई वारिस है ?”
“शकुन्तला नाम की उनकी एक विधवा बहन है । बड़ी । लाल साहब से दस साल बड़ी । सुन्दरलाल स्मैकिये की मां थी ।”
“और कोई ?”
“और कोई नहीं ।”
“फिर तेरे गुरबख्शलाल की बादशाहत पर काबिज होने में क्या दिक्कत है ?”
“कोई दिक्कत नहीं ।”
“तो हो काबिज ।”
“ठीक है ।”
“शुक्रिया । दिल से कह रहा हूं । मैं तेरे जैसे शख्स को अपने से बाहर नहीं, अपने साथ देखना चाहता था । तूने मेरी मुराद पूरी की । शुक्रिया ।”
“अब एक बात मैं बोलू ?”
“बोल ।”
“मुझे लगता है कि आपकी और लाल साहब की लड़ाई ताकत की नहीं तकदीर की थी । लाल साहब ताकत से नहीं तकदीर से हारे - अपनी बुरी और आपकी अच्छी तकदीर से हारे । इस लड़ाई लाल साहब की तकदीर ने हमेशा उन्हें दगा दिया । आखिर में लुहार की एक जैसी चोट का सामना हुआ था तो उसकी नौबत ही न आयी ।”
“क्या मतलब ?”
“हमें आपके” - अब कुशवाहा के स्वर में अदब का ऐसा पुट था जैसे उसके गुरबख्शलाल के मुखातिब होने पर होता था - “मौजूदा मुकाम की खबर थी ।”
“क्या !”
“आप होटल ताजमहल के कमरा नम्बर सात सौ बारह में पेस्टनजी नोशेरबान जी घड़ीवाला के नाम से ठहरे हुए हैं ।”
विमल बुरी तरह चौका ।
“कैसे जाना ?” - फिर उसके मुंह से निकला ।
“इन हमशक्ल भाइयों की वजह से जाना ।” - कुशवाहा ने अली वली की ओर इशारा किया - “जो उसी होटल में आपके आपके कमरे के ऐन सामने वाले कमरे में ठहरे हुए थे । यहां आपने अपनी शक्ल तो छुपा ली लेकिन अपने बाडीगार्ड बने इन जुड़वां भाइयों की शक्ल छुपाने का कोई इन्तजाम न किया जो कि हमशक्ल होने की वजह से ही कहीं भी पहचान लिये जाते हैं ।”
“ओह !”
“आप जब भी कदम रखते तो वहां आपको बिना अंजाम की परवाह किये शरेआम शूट कर दिया जाता । आप कदम न रखते तो इन हम शक्ल छोकरों को थाम लिया जाता और फिर इनसे आपका पता कुबुलवाया जाता ।”
“ओह ! तो ये थी लुहार की एक जो मेरे सिर पर पड़ने से रह गयी !”
“जी हां । अफसोस है कि इस आखरी बार भी लाल साहब की तकदीर ने उसका साथ नहीं दिया ।”
“अफसोस है ?”
“मेरा मतलब यह था अब तो वो कहानी खत्म हो गयी ।”
“अब तो वो लुहार की एक मेरे सिर पर नहीं पड़ेगी न ?”
“नहीं । मैं अभी फोन करके अपने सब आदमियों को वहां से वापिस वुला लेता हूं ।”
“थैंक्यू ।”
तभी मुबारक अली उनके करीब पहुंचा ।
“निपट गये ?” - विमल बोला ।
“हां ।” - मुबारक अली बोला ।
“सब समेट लिया ?”
“हां ।”
“कुशवाहा जरा मोनिका को बुला के ला ।”
सहमति में सिर हिलाता कुशवाहा वहां से रुखसत हुआ ।
एक मिनट बाद मोनिका वहां पहुंची ।
उस घड़ी एग्नीक्यूटिव चेयर पर बैठे विमल का उस पर ऐसा रोब गालिव हुआ कि बड़े अदब से उसके सामने खड़ी हो गयी ।
“मैंने तुम्हें” - विमल गम्भीरता से बोला - “तुम्हारी नियति से निजात दिलाने का वादा किया था । अब मेरा सवाल ये है कि तुम वाकई अपने जिस्मफरोशी के धन्धे से निजात पाना चाहती हो या तो वक्ती जज्बात की रौ में बहकर कही गयी थियेट्रिकल बात थी ?”
“मैंने जो कहा था, दिल से कहा था ।” 
“यानी कि वाकई सुधरना चाहती हो ?”
“हां ।”
“सुधरी हुई जिन्दगी में मेहनत और जांमारी ज्यादा होती है । वो मेहनत, वो जांमारी कर सकोगी ?”
“कर सकूंगी । करूंगी ।”
“जिस्म का सौदा हर कोई ही मजबूरी में नहीं करता । बाज लड़कियां इसे सहूलियत का काम मानती हैं, बिना मेहनत और जांमारी के आसानी से पैसा कमाने का जरिया मानती हैं । ऐयाशों की महफिल में नौजवान जनाना जिस्म की बहुत उंची बोली लगती है । ईजी मनी का ये इजी जरिया त्याग सकोगी ?”
“हां ।” - वो दृढ स्वर में बोली ।
“एकमुश्त कितनी रकम मिले तो तुम अपनी मौजूदा दुश्वारियों से निजात पा सकती हो और अपने भविष्य की भी लोक परलोक सुधार सकती हो ?”
मोनिका कुछ क्षण सोचती रही और फिर बड़े संकोचपूर्ण स्वर में बोली - “चार लाख ।”
“इतनी रकम से तुम्हारे कन्धों पर जो सलीब लदा है उससे निजात पा जाओगी ?”
“हां ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“गलतबयानबाजी का अंजाम जानती हो ? फरेब की सजा जानती हो ?”
“जानती हूं ।” - उसने गुरबख्शलाल की ओर निगाह उठाई - “खूब जानती हूं ।”
“गुड ! मुबारक अली, लड़की को छ: लाख रुपये दे ।”
मुबारक अली ने सहमति में सिर हिलाया । उसने अली वली को इशारा किया ।
मोनिका कुछ क्षण भौचक्की-सी विमल को देखने लगी, फिर उसकी आंखों में आसुओं की अविरल धारा बहने लगी । फिर एकाएक वो आगे बढी और विमल के करीब जाकर उसके कदमों से लिपट गयी ।
“ये क्या करती है ?” - विमल हड़बड़ाया - “पागल हुई है ? उठ के खड़ी हो ।”
वो न उठी, उसके आंसू टप-टप विमल के जूतों पर टपकते रहे ।
विमल कुर्सी से उठा, उसने जबरन मोनिका को उठाकर उसके पैरों पर खड़ा किया और अपने हाथों से उसके आंसू पोंछे ।
“खबरदार, जो दोबारा राई तो ।”
“तुम” - वो भावविहल स्वर में बोला - “जादूगर हो ।”
“क्या ?”
“शुक्रवार को मेरे घर पर तुमने कहा था कि मुझे मेरी दुश्वारियों से निजात दिलाने के लिये जब होगा वो कोई जादू ही होगा । ठीक कहा था तुमने । जादू ही हुआ ।”
विमल तनिक हंसा ।
“ऐसा जादू भगवान ही कर सकता है । तुम भगवान हो ।”
“मैं एक मामूली इंसान हूं ।” - विमल संजीदगी से बोला - “तेरे ही जैसा, तेरे ही जितना, खुदा का एक गुनहगार बन्दा ।”
“लेकिन मेरे लिए तुम...”
“छोड़ ये बातें । बाहर जा और बाहर जाके अपनी सहेलियों की नीयत का पता कर । जिसकी ख्वाहिश तेरे जैसी हो, उसे साथ लेके आ ।”
मोनिका गयी ।
जब वो लौटी तो उसके साथ सिर्फ सलोमी थी ।
विमल ने प्रश्नसूचक नेत्रों से मोनिका की ओर देखा ।
“वो कहतीं है” - मोनिका खेदपूर्ण स्वर में बोली - “कि वो वैसे ही ठीक हैं ।”
“अच्छा !”
“कहते शर्म आती है लेकिन सीमा तो कह रही थी कि छ: लाख कौन-सी बहुत बड़ी रकम ! इतना तो वो छ: महीने में कमा लेगी ।”
“जिसका मन काला हो, जिसने जिस्मफरोशी को अपना हथियार माना हुआ हो, उसके लिए कोई भी रकम बड़ी नहीं । ऐसी लड़की को कुबेर का खजाना सौंप दिया जाये तो भी वो अपनी जात दिखाने से बाज नहीं आयेगी इसलिए कहते हैं कि कुत्ता राज बिठालिये मुड़ चक्की चट्टे ।”
दोनों लड़कियां खामोश रही ।
“लेकिन” - विमल सलोमी से सम्बोधित हुआ - “तुम्हारे ऐसे ख्यालात नहीं ?”
मोनिका ने पुरजोर अंदाज में इनकार में सिर हिलाया ।
“गुड । आई एम ग्लैड ।” 
***
सुबह के चार बजे विमल माडल टाउन पहुंचा ।
कालबैल के जवाब में सुमन ने उसे दरवाजा खोला ।
“हैपी न्यू ईयर ।” - विमल बोला ।
“थैंक्यू !” - सुमन बोली - “सेम टू यू । वैलकम ।”
विमल भीतर दाखिल हुआ ।
“नीलम कैसी है ?” - उसने पुछा ।
“ठीक है ।” - सुमन बोली ।
“सो रही है ?”
“हां । जगाऊं ?
“नहीं । हरगिज नहीं । अब मैं आ ही गया हूं । जब खुद जाग जायेगी तो बात करेंगे ।”
सुमन ने सहमति से सिर हिलाया ।
“वैसे तबीयत तो ठीक है न उसकी ?”
“हां । बिल्कुल । फिलहाल कोई प्राब्लम नहीं ।”
“गुड ।”
“आपकी एक चिट्ठी है ।”
“चिट्ठी ।”
“मैं शाम को गोल मार्केट गयी थी । वहां आपके लेटरबक्स में पड़ी थी । निकाल लाई ।”
“किसकी चिट्ठी है ? क्या लिखा है ?”
“मालूल नहीं ।”
“नीलम ने नहीं पढी ?”
“नहीं । चिट्ठी आपके नाम थी, उन्होंने नहीं खोली । बाहर भेजने वाले का कोई अता-पता नहीं लिखा था ।”
“मुझे कौन चिट्ठी लिखेगा ?” - विमल बड़बड़ाया ।
सुमन ने अनभिज्ञता जताई ।
“जरा ला तो चिट्ठी ।”
सुमन चिट्ठी लेकर आयी ।
विमल ने कुछ क्षण चिट्ठी को उलटा-पलटा और फिर उसे खोला ।
वो बम्बई से आयी तुकाराम की चिट्ठी थी ।
उसने जल्दी-जल्दी चिट्ठी को पढा ।
आखिरकार उसने चिट्ठी बन्द की तो सुमन से उत्सुक भाव से पूछा - “क्या है ?”
“कुछ नहीं ।” - विमल धीरे से बोला - “मूवमेंट आर्डर है ।”
“क्या ?”
“रवानगी का परवाना । कूच का हुक्म ।”
सुमन चेहरे पर उलझन के भाव लिए उसकी तरफ देखती रही ।
विमल ने उसकी उलझन रफा करने का कोई कोशिश न की । वो सोच रह था कि अब वो माडल टाउन पहुंचा था तो सब कुछ कितना शान्त लग रहा था उसे ! नीलम की तबीयत की बाबत गुड न्यूज सुनकर कितना चैन महसूस किया था उसने !
लेकिन कहां थी शान्ति ?
कहां था चैन ?
उसका संसार तो एक नित्य जलते हुए घर के सामान था जहां सुख-शान्ति और चैन की कल्पना करना भी अपराध था ।
वो शान्ति वैसी ही थी जैसे किसी बड़े तूफान के आगमन से पहले वातावरण सहसा स्तब्ध हो जाता था ।
उसने चिट्ठी को तह करके जेब में रख लिया ।
अच्छा था कि नीलम ने वो चिट्ठी खोल के पढ नहीं ली थी ।
उसके मुंह से एक आह-सी निकली ।
मेरो मन अपन कहां सुख पावै ज्यों उड़ि के जहाज का पंछी पुनि जहाज पै आवै !
समाप्त