अब चौंकने की बारी राधा और कन्हैय्या की थी।
मुश्किल से वो बीस मिनट घटनास्थल से दूर रहे थे और इतनी ही देर में राक्षस जाने कहाँ गायब हो चुका था।
आधे घंटे तक वो इधर उधर हाथ पाँव मरते रहे पर कुछ हासिल नहीं हुआ। जैसा इंजेक्शन राधा ने उसे दिया था उसे तीन घंटे तक होश आनेवाला नहीं था।
तो फिर वो कहाँ गायब हो गया था?
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राक्षस को जब होश आया उसने खुद को एक पिंजरें में पाया।
वो सच में छह बाई छह का एक पिंजरा ही था जो एक विशाल सीलन भरे कमरे के बीच में मौजूद था।
आज का दिन उसके लिए शर्मनाक रहा था। आज फिर वह एक साधारण इंसान से हार गया था।
क्या उसे अपनी ताकत पर ज़रुरत से ज्यादा घमंड हो गया था? उन लोगों को बुलाकर उसने मानों आफत को निमंत्रण दे दिया था।
और फिर किस इंसान में इतनी ताक़त पैदा हो गयी थी कि उसे उठाकर यहाँ तक लाने की हिम्मत दिखाई? दोनों छोरे या फिर वो पुलिस इंस्पेक्टर या फिर उसका नया प्रतिद्वन्द्वी जिसका वो चेहरा भी नहीं देख सका था।
पिंजरे के जंगले को पकड़कर उसने झकझोरा तो मानों छत हिलती महसूस हुई। डर था कि कहीं जंगले के हिलने से कहीं छत ही न गिर जाये। जंगला ऊपर छत तक चला गया था। कमरे में एक छोटा सा जंगला था जिससे बाहर की हलकी रौशनी अन्दर आ रही थी। कमरे से बाहर निकलने के लिए एक ही दरवाजा था जो दूसरी तरफ से बंद था।
दरवाजा खोलकर जो शख्स प्रविष्ट हुआ उसकी उम्मीद राक्षस ने सपने में भी नहीं की थी।
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“नमस्कार ताशी महोदय।” कहते हुए अल्फांसे उसके आश्रम स्थित कमरे में प्रवेश कर चुका था।
“तुम...आप...।”
“अरे आप तो मुझे देखकर नर्वस हो रहे हैं। आपके जैसे ज्ञानी आदमी को ये शोभा नहीं देता।” कहते हुए अल्फांसे कमरे में मौजूद कुर्सी पर जम चुका था।
ताशी उर्फ़ चेंग लेई ने खुद को संभाला। अभी तक ऐसी कोई बात नहीं हुई थी कि जिससे अल्फांसे के दिमाग में उसके प्रति शक पैदा हो।
“वो ज़रा मैं बाहर निकने वाला था।”
“पर मैं कुछ ज़रूरी बात करने आया था। अगर आपके पास वक़्त नहीं तो चला जाता हूँ।” अल्फांसे ने उठने का उपक्रम किया।
अब तक ताशी संभल चुका था। पलंग पर बैठते हुए उसने अपने होंठों पर मुस्कान बिखेरी और कहा, “नहीं नरेन्द्र जी। आपके जैसे साधक से बातचीत का मौका मैं कैसे छोड़ सकता हूँ।” अन्दर से वो पूरी तरह सावधान हो चुका था। हर परिस्थिति के लिए वो खुद को तैयार कर चुका था।
“और कहिये नरेन्द्र जी कैसी चल रही है साधना आपकी।”
“जैसी आपकी चल रही है ताशी महोदय। कुछ ज़रूरी काम से आया था आपके पास।”
“कहिये। हम किस काम आ सकते हैं आपके?”
“सोच रहा हूँ कहाँ से शुरू करूं। ऐसा करता हूँ वहीँ से शुरू करता हूँ चेंग बेटे जहाँ से आपने छोड़ा था।”
चेंग के लिए अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी। पलक झपकते हीं चेंग ने खड़े होकर अपने पैरों का जोरदार प्रहार अल्फांसे के सीने पर किया। अल्फांसे ने सोचा नहीं था कि वह इतनी ज़ल्दी हरकत में आएगा। वह कुर्सी लिए उलट गया। अभी चेंग अल्फांसे से लड़ने के मूड में नहीं था इसलिए तेजी से बाहर की ओर लपका। अल्फांसे को भी सँभालने में वक़्त नहीं लगा था। चेंग दरवाजे से लगभग बाहर निकल ही चुका था पर उसका कपडा अल्फांसे के हाथ में आ गया।
बस इतना हीं काफी था। चेंग उछलता हुआ पलंग से टकराकर गिर पड़ा। दरवाजे को बंद कर अल्फांसे ने उस पर छलांग लगाई पर तब तक चेंग अपना स्थान छोड़ चुका था। चेंग ने अपने पैर की ज़ोरदार ठोकर उसके सर पर मारी। अल्फांसे का सर झनझना गया पर तब तक चेंग का पैर उसके हाथ में आ चुका था। अल्फांसे ने उसके पैर को जोरदार झटका दिया। उसका बैलेंस बिगड़ गया और गिरते गिरते उसका सर दीवार से जा टकराया। उसे अपनी चेतना लुप्त होती महसूस हुई। अल्फांसे फिर उस पर लपका पर चेंग ने अपने हाथ खड़े कर दिए मानों सरेंडर कर रहा हो।
“प्लीज...।” चेंग के होंठों से निकला। “प्लीज अल्फांसे। मैं तुमसें बात करना चाहता हूँ।”
अल्फांसे वहीँ रुक गया।
कुछ देर बाद दोनों आमने सामने बैठे थे।
“देखो अल्फांसे। अभी मेरा तुमसे भिड़ने का कोई मूड नहीं है।”
“शुरुआत तुमनें की थी।”
“वैसे तुमने मुझे पहचाना कैसे?”
“बस पहचान लिया।”
“ठीक है। ये सब बातें छोडो। पहले ये बताओ कि तुम यहाँ कर क्या रहे हो?”
“यही सवाल मैं तुमसे करना चाहता था।”
चेंग मुस्कुराया। “मतलब दोनों कि हालत एक जैसी है।” अगर यहाँ के लोगों को तुम्हारी असलियत मालूम हो जाये तो तुम जेल के अन्दर होंगे।”
“तुम्हारा भी ये लोग फूल माला से स्वागत करने वाले नहीं हैं। रही बात जेल की तो फिर ये बात तुम भी जानते हो कि दुनिया में ऐसी कोई जेल नहीं बनी जो मुझे बाँध कर रख सके।”
“इसलिए बेहतर यही है कि तुम अपना खेल खेलो और मैं अपने काम से मतलब रखता हूँ। न तुम मेरा रास्ता काटोगे न मैं तुम्हारा रास्ता काटूँगा।”
“तुम समझते हो कि मैं तुम्हारी बात पर विश्वास कर लूं?”
“यही बात मैं भी कह सकता हूँ। पर इसके सिवा हम दोनों के पास और कोई रास्ता नहीं है।”
चेंग सही कह रहा था।
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ताशी के लिए राहत कि बात थी कि उसकी सहायता के लिए चार चीनी जासूस उसके पास पहुँच चुके थे। इन चारों में से तीन तो पहले से ही कई महीनों से भारत में मौजूद थे और उन हजारों अवैध नागरिकों में शामिल थे जो बिना किसी पहचान के भारत में रहते हैं। केवल चौथी बांग्लादेश के रास्ते भारत में दो दिन पहले हीं पहुंची था और वो मीमी के नाम से जानी जाती थी और बहुत ही क्रूर जासूस के रूप में उसकी ख्याति थी। इस वक़्त चारों एक साधारण से होटल में मौजूद थे और हिंदी में ही बात कर रहे थे। चाइनीज़ भाषा में बात करने से स्थानीय लोगों का ध्यान आकर्षित हो सकता था। शक्ल सूरत से कोई विशेष परेशानी नहीं थी और उनके नार्थ ईस्ट के होने का आभास होता था। इस वक़्त ताशी उर्फ़ चेंग ली उन्हें अगले सात दिन में उनके रोले लके बारे में समझा रहा था।
“इन सात दिनों में हमें बहुत कुछ करना है।”
“करने को तो हम लोग सब कुछ कर लेंगे। छह महीने से हम तीनों बस खाली हाथ बैठे हैं। बस यहाँ की खबर को वहां पहुंचा रहे है। बोर हो गए हैं हम लोग। बाकी मीमी ने क्या किया ये हम लोगों को पता नहीं।”
“जासूसी से ज्यादा बोरियत का काम कुछ नहीं है ठक्कर बाबा, “ताशी ने उसे भारतीय नाम से संबोधित किया”, सही वक़्त के इंतज़ार में कभी कभी वर्षों तक हम लोगों को छुपा रहना पड़ता है। खुद मैं ६ महीने से सबके सामने दांत नीपोड़ने का काम कर रहा हूँ। अगर एक्शन लेने कि बात होती तो मैं कब का ऐसे ऐसे १० आश्रम को निपटा देता।”
“तो कर दो न। कौन रोकेगा तुम्हें”, मीमी ने कहा, “खुद हमारे सर्विस के चीफ भी तुम्हारे इशारों पे चलते हैं।”
“अब इतना भी महत्वपूर्ण नहीं हैं हम।”
“सुना है चेंग भाई आप १० साल के उम्र से जासूसी कर रहे हो।” शेरिंग के नाम से जाने जानेवाले जासूस ने कहा।
“इसका मतलब २५ साल से ऊपर हो गए होंगे इस प्रोफेशन में।” तीसरा जासूस शेन बोला। अन्य दोनों कि तरह वो भी ताशी के साथ कम करके खुद को रोमांचित महसूस कर रहा था। चेंग लेई का दर्ज़ा चीन में जासूसों के भगवान का था।
चेंग मुस्कुराया।
“अगर इनके बारे में डिस्कशन किया जाये तो महीनों गुज़र जायेंगे। इससे बेहतर है कि केस के बारे में बात करें जिसके लिए हम इकट्ठे हुए हैं।” मीमी बोली।
मीमी के साथ वो कई अभियान में जा चुका था।
“अभी के आपके रोल समझाने से पहले अगर इस केस को तफसील से समझा दूं तो कैसा रहेगा?”
“तौबा। इसमें तफसील वाली कोई बात भी है!”
“तफसील वाली बात नहीं है तो मैं यहाँ इतनें दिनों से क्या झख मार रहा हूँ?”
“हो सकता है।” मीमी ने झट से कहा।
चेंग ने मुस्कुराते हुए अपनी बात शुरू की,
“आप सबने पिछले साल ल्हासा में हुए उस बम विस्फोट के बारे में सुना होगा जिसमें हमारे ८० सैनिकों की मृत्यु हो गयी थी।”
“२० सितम्बर को वो घटना घटी थी। उस घटना की जांच के लिए मुझे भी भेजा गया था।” मीमी ने कहा।
“तब तो उसके बारे में तुम्हें विस्तार से मालूम होगा ही।”
“बहुत भयानक घटना थी वो। विस्फोट उस मेस में किया गया था जिसमें करीब हमारे १०० से ऊपर सैनिक और आठ सिविलियन भी मौजूद थे। बाकी लोग बड़ी मुश्किल से बच सके थे।”
“और उस घटना का जिम्मेदार हमारा ही एक ऑफिसर निकला था जिसका दर्ज़ा फ़ौज में कप्तान का था। उसने खुद इस घटना की जिम्मेदारी ली थी।”
“विस्फोट में जिस विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था वो उस वक़्त तक हमारे देश में भी उपलब्ध नहीं था। और अंतररास्ट्रीय बाजार में उसकी कीमत १०० मिलियन डॉलर से ऊपर थी। ऐसी ही कोशिश दो महीने बाद तिब्बत के अन्य शहर बामदा में की गयी पर समय रहते हमारे जांबाज सैनिकों ने विस्फोटक को खोज निकाला वरना इस बार २०० से ऊपर सैनिकों कि जान जाती।”
“और इस बार भी जिम्मेदार ऑफिसर हमारा ही निकला जो पैसे के दबाव में बिक गया था।”
“हाँ। टॉर्चर के बाद उसने कुबूला किया कि उसे इस काम के लिए १० मिल्लियन डॉलर दिए गए थे जो उसके अमेरिका स्थित अकाउंट में जमा किये गए थे। और ये सब जाहिर है तिब्बत में हमारी सरकार को अस्थिर करने कि साजिश के तहत किया गया।”
ये तो केवल दो घटना थी जो हमारे सामने खुल कर आयी। पर सम्भावना इस बात कि थी कि और भी कई लोगों को पैसे का लालच देकर अपने में मिलाया गया हो। हमारे आई टी सेल को भी इस काम में लगाया गया। जितने भी ऑफिसर यहाँ तैनात थे सबके ई-मेल और फेसबुक आदि अकाउंट को खंघला गया। कुछ महीने तक कोई नतीजा नहीं निकला। उन लोगों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा जिनका सम्बन्ध तिब्बत और भारत दोनों से था। पिछले नवम्बर में हमें सुखद परिणाम मिला जब हमारे एक अतिरिक्त सचिव के सी टी ए यानी सेंट्रल तिबेतन एडमिनिस्ट्रेशन के अधिकारी के साथ काठमांडू में गुप्त मुलाक़ात की खबर मिली। इस मीटिंग में एक तीसरा शख्स भी मौजूद था जिसकी पहचान आज तक नहीं हो सकी है।
सभी ध्यान से चेंग ली की बात सुन रहे थे।
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उस कमरे में प्रवेश करने वाला शख्स आकर राक्षस के सामने फर्श पर बैठ गया था।
“यहाँ मुझे अपहरण कर लाने वाले तुम हो?” राक्षस ने आश्चर्य से कहा।
“नहीं साहब, इतनी हिम्मत मुझमें नहीं की आपका अपहरण कर सकूँ।” सेवाराम ने कहा।
“तो फिर इस पिंजरे में मुझे रखने का क्या मतलब?”
“वो तो बस आपसे बातचीत करने की मोहलत चाहता था इसलिए आपको उन लोगों से बचाकर यहाँ ले आया। वरना मेरी इतनी हिम्मत कहाँ की आपसे पंगा ले सकूं। अगर मुझ पर विश्वास नहीं तो इस लोहे के पिंजरे का दरवाजा चेक कर सकते हो साहब जिसे मैंने बंद लॉक नहीं किया।” सेवाराम को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वो सामने वाले से इतने आराम से बात कर पा रहा है।
राक्षस को आश्चर्य हुआ कि उसने अभी तक इस पिंजरे का दरवाजा चेक नहीं किया था।
“पर तुमने मुझे यहाँ पहुँचाया कैसे और ये जगह कौन सी है?”
“सब मालूम हो जायेगा साहब। पहुँचाने का काम तो मैंने खुद किया है। आपको अपने कंधे पर उठाकर ले आया।”
राक्षस को आश्चर्य हुआ कि कहीं ये सेवाराम नशे में या किसी सम्मोहन में तो नहीं है?
“पर तुम मुझे यहाँ लाये क्यों?”
“आप पर एहसान करने के लिए साहब। अगर मैं आपको यहाँ नहीं लाता तो वो लोग आपको उठाकर जेल में डाल देते। तो कहो मैंने आप पर एहसान किया की नहीं?” सेवाराम का मूड राक्षस के समझ से परे था।
“और हमनें तो ये भी सुना है कि अगर किसी असली तांत्रिक पर कोई एहसान करता है तो वो बदला ज़रूर चुकाता है?”
सेवाराम की बात में बचपने की झलक थी। पर ये बात भी सही थी कि अगर वो उन लोगों के चंगुल में फंस जाता तो उसके लिए मुश्किल हो सकती थी। पता नहीं वो किस तरह उसे उन लोगों से बचा कर ले आया था।
“ठीक है कहो मुझसे तुम चाहते क्या हो?”
सेवाराम खुश हो गया। उसे विश्वास नहीं था कि राक्षस इतनी आसानी से उसकी सहायता के लिए तैयार हो जायेगा।
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चेंग का कहना जारी था।
“इस तरह जांच आगे बढ़ी और चंद पेंच खुलते गए। अपने अतिरिक्त सचिव पर पहले निगरानी रखी गयी फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उसने बहुत कुछ कबूला। उसके काठमांडू स्थित अकाउंट में भरी रकम पहुंचाई गयी थी। टॉर्चर के समय दम तोड़ने से पहले उसने ये भी कबूला की कई ज़रूरी दस्तावेज सी टी ए को सौंपा था।”
“सी टी ए अकेले अपने दम पर तो सबकुछ नहीं कर रही होगी। इंडियन सिक्यूरिटी एजेंसी का भी तो हाथ ज़रूर रहा होगा।” शेरिंग ने कहा।
“हो सकता है, पर ऐसे कोई सबूत हाथ नहीं लगे जिसके आधार पर पक्के तौर पर ऐसा कहा जा सके। और जिस ज़रूरी दस्तावेज की कॉपी ट्रान्सफर की गयी थी उसका सम्बन्ध तिब्बत से ही रहा था।”
“पर अगर देखा जाये तो मामले में नया कुछ नहीं था। ऐसी कोशिश तो सी टी ए के स्थापना से ही चल रही है। दुनिया भर से पैसे इकट्ठे कर फ्री तिब्बत के नाम पर सी टी ए तक पहुंचाए जा रहे हैं। उससे निपटने के लिए तो हमारी अलग ही विंग है। अगर तुम्हें इस मामले में लगाया गया है तो इसका कुछ अलग ही एंगल रहा होगा।”
“सही कहा तुमने मीमी। लगभग आठ हमारे एक फील्ड ऑफिसर जिसकी नियुक्ति हमारे जासूसी संस्था के ऑफिस में थी कि हार्ट अटैक मृत्यु हो गयी। दो साल पहले उसे भारत में बोधगया भेजा गया था। उसकी मौत के बाद ये सनसनीखेज खुलासा हुआ कि वो हमारा आदमी न होकर उसके भेष में कोई इंडियन था।”
सभी भौंचक्के रह गए।
मीमी के होंठ खुले, “मतलब भारत हमारा फील्ड ऑफिसर आया था और यहाँ से जो लौटा वो कोई इंडियन था!”
“उफ़। इतना बड़ा खेल इन कमीनों ने किया?”
“ये जासूसी कि दुनिया है प्यारे। कभी उनकी तो कभी हमारी चल जाती है। अब हम लोगों का टारगेट था इन लोगों के मजबूत बनते चैनल को तोडना।”
“हाँ। मैं लगभग छह महीने तिब्बती स्कॉलर के रूप में इंडिया पहुंचा। कुछ समय बोधगया में रहा पर कोई सबूत हाथ नहीं लगा। फिर वहां से धर्मशाला गया जो सी टी ए का हेडक्वार्टर है। वहां से बहुत सारे इनफार्मेशन मिले पर बात नहीं बनी।”
इसी बीच हमारे देश में आई टी सेल को बड़ी कामयाबी हाथ लगी। उस इंडियन के पर्सनल ई-मेल एड्रेस पर नए ई-मेल भेजे गए। जिस सिस्टम से वो ई-मेल भेजे गए थे उस का आई पी एड्रेस चांदीपुर का था।”
“पर ऐसे लोग अपने आई पी एड्रेस को आसानी से छुपाकर रखते हैं।”
“कोशिश तो ऐसी ही थी। पुराने ईमेल के बेसिस पर तो हम आई पी एड्रेस पता नहीं कर सके थे पर उस इंडियन के मौत की खबर को छुपाकर रखना हमारे काम आया। उसकी जगह पर उसके भेष में हमारा अन्य फील्ड ऑफिसर काम कर रहा था। उसके ई-मेल को हम ट्रैक करते रहे और नया ई-मेल मिलते ही हमारे एक्सपर्ट्स अपने काम से सफल रहे।”
“ग्रेट। इस तरह महान जासूस चेंग लेई यहाँ पहुंचा।”
“पर यहाँ पाकिस्तानी जासूसों का क्या दखल था?”
“वही ड्रग्स और हथियारों का मामला। नेपाल बॉर्डर से करीब होने के कारण इंडिया में ड्रग्स और हथियारों की आवाजाही आराम से हो जाती है। इसी काम को सिकंदर और उसका भाई वसीम जो दयाल के नाम से अंजाम दे रहा था। दयाल १२ घंटे कि ड्यूटी आश्रम के भीतर करता और बाकी समय भाई की सहायता करता। वैसे लड़का बुरा नहीं था। लोकल हेल्प के लिए मैंने पाकिस्तानी इंटेलीजेन्स से सहायता मांगी थी, इसके लिए उन्होंने सिकंदर को इन्फॉर्म कर दिया। सिकंदर के द्वारा ही मुझे सरस्वती कि असलियत पता चली जो आश्रम के आड़ में अपने मेहमानों को ब्लैकमेल भी करती है। पर शायद मामला कुछ और ही था।”
“और उस राक्षस का इसमें क्या दखल है?”
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उधर सेवाराम का व्यवहार राक्षस के समझ से परे था। वो विश्वास नहीं कर पा रहा था कि सिंगल पसली का ये आदमी उसे अकेले उठाकर लाया है।
“मुझे जो चाहिए वो बस आप ही दे सकते हो साहब।”
राक्षस ने धैर्य बनाये रखते हुए कहा, “देखो सेवाराम, “अगर जो तुम्हें चाहिए वो मेरे बस में है तो मैं ज़रूर तुम्हारी सहायता करूँगा।”
“मुझे मंदा चाहिए।” सेवाराम ने छूटते ही कहा।
राक्षस हक्का बक्का रह गया। उसने सेवाराम के चेहरे को ध्यान से देखा।
उसे पहले ही समझ जाना चाहिए था कि सेवाराम किसी अदृष्ट शक्ति के प्रभाव में है। ये वो सेवाराम नहीं था जिसे उसने आश्रम में उस रात देखा था, जो राक्षस को देखकर ही भयभीत हो गया था। अगर दो दिन पहले उसकी मुठभेड़ नहीं हुई होती तो उसे सेवाराम के मानसिक हालत को समझने में मुश्किल हुई होती। अब जिस मानसिक हालत में सेवाराम था उस पर किसी भी डांट फटकार या मारपीट का भी कोई असर नहीं होने वाला था। ये बिलकुल साफ़ था कि मंदा की दृष्टि उस पर दफनायें जाने के पहले पड़ चुकी थी। ये भी हो सकता था कि मंदा का कोई जेवर इस लड़के के पास था। अगर ऐसा था तो स्थिति बहुत खतरनाक थी। वो इस लड़के से कुछ भी करवा सकती थी।
और शायद ऐसा ही हुआ था।
“क्या हुआ साहब? मुझे मंदा मिलेगी न?”
“पर मंदा तुम्हें चाहिए क्यों? तुम्हें मालूम भी है कि मंदा क्या क्या चीज है?”
“क्या कहूँ साहब। जब से उसे देखा है हर पल उसी का ख्याल आता है। उसने मेरे दिल ओ दीमाग पर मानों कब्ज़ा कर लिया है।”
“सही कह रहे हो। मंदा चीज ही ऐसी है। एक बार किसी के पीछे पड़ गयी पीछा नहीं छोडती। उसे बर्बाद करके ही छोडती है।”
“मेरे जैसे बर्बाद को कोई क्या बर्बाद करेगा साहब। बस इतना बता दो कि आप सहायता करोगे या नहीं। आपने तो सहायता का वचन दिया है। अगर सहायता नहीं करोगे तो आपका धर्म भ्रष्ट होगा।”
राक्षस की इच्छा हुई कि अपना सर पीट ले।
“पर तू जानता भी है कि मंदा होती क्या है?”
राक्षस के दिमाग में अपने गुरु के बताये हुए चंद अलफ़ाज़ गूंज उठे,
“जब तूने इस आलौकिक जगत से सम्बन्ध स्थापित करने कि शुरुआत कर ही दी है तो इतना समझ ले कि तेरा पाला ऐसी ऐसी आलौकिक शक्तियों से पड़ेगा जिसकी तू कल्पना भी नहीं कर सकता। जगत में जितना दिखाई देता है वो अनदेखी शक्तियों का एक प्रतिशत भी नहीं है। तंत्र अनदेखे जगत का द्वार खोल देता है और कई शक्तिशाली अशरीरी शक्तियां हमारे संपर्क में आने लगती है। इनमें कुछ हमारी साधना के लिए सहायक होती है तो कुछ शक्तियां हमें गलत दिशा की ओर ले जाने के लिए प्रेरित करती है। चूँकि उन्हें अपनी शक्ति का उपयोग करने के लिए माध्यम कि जरूरत होती है। वो माध्यम कभी हमारा शरीर होता है और कभी हमारा मस्तिष्क। मंदा उन्हीं में से एक ऐसी शक्ति है जो इंसानों के शरीर या मस्तिष्क दोनों का इस्तेमाल करने में माहिर होती है। अगर किसी भी तरह इन्हें इनकी ज़रूरत के मुताबिक प्राण शक्ति मिल जाये फिर ये खुद को मनचाहा आकर दे देती है। मंदा को छोटी सुहागिन का रूप बहुत पसंद है इसलिए प्रकट होने पर वो इसी रूप में दिखाई देती है। ऐसी ही शक्तियों से बचने के लिए श्मशान सिद्धि में सबसे पहले वातावरण और मन के शुद्धि की ज़रूरत होती है।”
“वैसे शरीर से ज्यादा मन कि पवित्रता काम आती है। अगर तेरा मन विकारों से परे है तो ऐसी कोई भी शक्ति तेरा कुछ बिगड़ नहीं सकती।”
उसके बाद गुरु ने मंदा को सिद्ध कर दिखाया था और फिर उसे नियंत्रित करने की विधि भी बताई थी।
प्रकट में राक्षस ने कहा, “ठीक है। पर मंदा को जीवित करने के लिए मुझे अगले अमावस्या को साधना में उतरना होगा।”
सेवाराम खुश हुआ। मंदा ने भी तो ऐसा ही कहा था।
अगले अमावस्या में अभी लगभग १५ दिन बाकी थे। तब तक राक्षस को उसकी हर निशानी को दफ़नाने का इन्तेजाम करना था। अगर ऐसा नहीं हुआ तो उसे मंदा को जीवित करने में सहभागी बनाना पड़ता।
“तो मैं यहाँ से जा सकता हूँ न?” राक्षस ने प्रश्न किया?
“जी आपको कौन रोक सकता है।” सेवाराम श्रधाभाव से बोला।
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चेंग का कहना जारी था।
“उसी ने मेरे लिए मुश्किल पैदा की। उस कमबख्त ने आश्रम के कैम्पस में एक हत्या कर दी जिस कारण पुलिस कि चहल पहल वहां बढ़ गयी। फिर उस पाकिस्तानी जासूस की हत्या हो गयी और दिल्ली से दो घाघ जासूस पहुँच गए और वहां अनावश्यक दौड़ भाग और जांच शुरू हो गयी।”
“दिल्ली से दो ही जासूस पहुंचे हैं या फिर और भी हैं?”
“हो सकता है कि और हों। पर नज़र के सामने तो दो ही है। डर ये है की कहीं उन पाकिस्तानियों के चक्कर में मैं भी न लपेटा जाऊं। सिकंदर के फेर में मै बाल बाल बचा था।”
“वैसे सिकंदर अभी कहाँ है?”
“उसे कन्हैय्या ने सब कुछ उगलवाने के बाद छोड़ दिया था।”
“छोड़ दिया? अगर वो सच में भारतीय जासूस था तो फिर एक पाकिस्तानी जासूस को पकड़ने के बाद छोड़ देने कि बात गले से नहीं उतरी।”
“हो सकता है कि उसके पीछे अपने आदमी लगा दिए हों। या फिर कोई चिप वगैरह उसके शरीर में फिट कर दिया गया हो।”
“ये खबर पक्की है न कि उस इंडियन जासूस का सम्बन्ध इस आश्रम से ही था जो चीन में रहा था?”
“सौ फीसदी। दो दिन पहले भी उसी आई पी एड्रेस से मेल भेजा गया है और उसका लोकेशन निश्चित तौर पर इसी आश्रम से भेजा गया है और इंडियन करेंसी के हिसाब से पचास करोड़ रूपये किसी क्रिप्टोकर्रेंसी खाते से उसके स्विस खाते में ट्रान्सफर किये गए हैं। अब कोई बेमतलब का तो इतने पैसे बर्बाद नहीं करेगा। उस पर से उन दोनों मेहमानों के यहाँ आने कि खबर से ये बात और पक्की हो चुकी है कि यहाँ के लोगों का तिब्बत के मामले में खास दखल है।”
“पर सवाल ये है कि कुछ लोग इस आश्रम का तिब्बत में देशविरोधी गतिविधि के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर पूरा आश्रम ही इस गतिविधि में संलग्न है?”
“मेरे हिसाब से ऐसा हो ही नहीं सकता कि आश्रम प्रमुख की जानकारी के बिना ऐसा हो रहा हो।” मीमी ने टोका, “खासकर करमापा वाले मामले में मीटिंग फिक्स होने के बाद मुझे तो पूरा विश्वास है कि ये सारा कराया धराया उसी का है। जहाँ एक ओर धरमशाला में ये लोग सी टी ए की सरकार चला रहे हैं वहीं जो काम वे लोग खुलकर नहीं कर सकते उसके लिए सारा कार्यक्रम यहाँ से चलाया जा रहा है।”
“पर कमाल तो ये है कि मैंने आश्रम के सारे कंप्यूटर को खंघाल डाला पर किसी कंप्यूटर में ऐसा कोई इनफार्मेशन नहीं मिला जो हमारे ज़रुरत से मतलब रखता हो या जिसका आई पी एड्रेस हमारे काम का हो।”
“हो सकता है कि कोई सिस्टम आपसे छुपा रह गया हो।”
“हो सकता है। इसलिए तो तुम लोगों को बुलाया गया है। ये बात हम लोगों के हक में है कि मीटिंग का स्थल आश्रम न होकर बारासाहब कि हवेली में रखा गया है जिसे हाल ही में आश्रम ट्रस्ट ने खरीद लिया है। ऐसे मौके पर हम आश्रम की तलाशी का काम आराम से कर सकते हैं। लोकल पुलिस के साथ साथ एस पी भी अपने टीम के साथ हवेली में ही होगा। एस पी वैसे तो अश्रम्वालों से चिढ़ता है पर ऊपर से प्रेशर के कारण अपनी ड्यूटी में कोताही नहीं बरतेगा। हमें विशेष खतरा जासूसों कि टीम के साथ साथ सुधीर से भी हो सकता है।”
“ये सुधीर कौन हुआ?”
“सुधीर गुप्ता यहाँ का एस आई है पर जिस तरह से वो इस केस के पिछे पड़ा है वो भी हमारे लिए खतरनाक हो सकता है। रही बात ए एस आई की तो वो अपना आदमी है। पहले वो सिकंदर के लिए काम कर रहा था, अब हमारे टुकड़ों पर पल रहा है। इतना पैसा उसे दे चुका हूँ कि वो हमारे लिए कुछ भी कर सकता है।”
“बढियां। सुधीर को ट्राई नहीं किया?”
“नहीं। वो अलग किस्म का जीव है। वैसे तो वो भी आश्रम का भक्त है पर अपने ईमान की कीमत पर नहीं। उसका प्रोफाइल पता कर चुका हूँ।”
“इस काम का शोर्ट कट तरीका और भी है।” मीमी बोली।
“क्या?”
“आश्रम के खास लोगों को पकड़ मंगाते हैं और गर्दन पकड़कर सब कुछ उगलवा लेते हैं।”
“क्या बात है। तुम पर बलिहारी। इतने इंटेलिजेंट जवाब कि तुमसे उम्मीद नहीं थी।”
मीमी हंसी।
“तो हमारी कार्यसूची में सबसे प्रमुख है आश्रम को खंघालना। सारे ख़ास लोगों का प्रोफाइल पता करना।”
“और ये सब काम हमें चुपचाप करना है। हाँ अगर सारे इन्फोरमेशन मिल जाते हैं तो सारे आश्रम में ४-५ बमब्लास्ट को पूरी तरह मटियामेट कर चल देंगे।” चेंग ने आराम से कहा।
“वैसे सबसे बड़े खतरे के बारे में तो तुमने हम लोगों को बताया हीं नहीं।” मीमी ने कहा।
“वो क्या?”
“आश्रम में अल्फांसे भी मौजूद है।”
चेंग लेई हकबकाया।
“इस बारे में तुम्हें कैसे मालूम?”
“भूल गए कि मैं कल इस शहर में पहुंची हूँ। इतना समय काफी था आश्रम की रेकी के लिए। ये तो आश्चर्य कि बात ही होगी कि तुम दोनों एक दूसरे से टकराए नहीं होंगे।”
“ऐसा ही हुआ है। ये तो बेहतर है कि वो मुझे पहचानता नहीं है। पर तुम्हें तो वो पहचानता है। हमें कोशिश करनी है की हम दोनों उसकी लाइन को क्रॉस नहीं करें। केस ख़त्म होने के बाद उसके साथ जो करना है कर दिया जायेगा, उसका स्वर खूंखार हो उठा।”
“खैर वो बाद की बात है। पहले ये बताओ अभी क्या करना है?”
“सबसे पहले दोनों जासूसों को यहाँ से बाहर करना होगा।”
“उसकी चिंता मत करो। हम लोग ऐसी स्थिति पैदा कर देंगे की उन्हें खुद ही ये शहर छोड़कर जाना होगा।” शेरिंग ने विश्वास से कहा।
“और सुधीर की मैं ऐसी हालत कर दूँगी की वो सारा इन्वेस्टीगेशन भूल जायेगा।”
“ये तुम लोग सोचो। मैं चलता हूँ। बहुत सारे काम बाकी हैं अभी। अगर चाहो तो पाकिस्तानी जासूसों से मदद ले सकते हो। कम से कम तीन तो मेरे संपर्क में हैं।”
थोड़ी देर मीटिंग और चलने के बात बर्खास्त हो गयी थी।
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जून ३०, सुबह १२ बजे
डीजीपी का चांदीपुर में देखा जाना एक बड़ी खबर हो सकती थी पर अगले सप्ताह चीन के विदेश मंत्री की होने वाली यात्रा के मद्देनज़र ये एक ज़रूरी घटना थी। एक बड़ी मीटिंग बुलाई गयी थी जिसमें जिले के सभी महत्वपूर्ण अधिकारी शामिल थे। मीटिंग के बाद जब एस पी गौतम को कहा गया कि डी जी पी अकेले में उनसे मुलाक़ात करना चाहते हैं तो उसे अंदाज़ा नहीं था कि उसे विदेश मंत्री की यात्रा से इतर किसी और बात के लिए बुलाया गया है।
“तुम्हारे एस आई सुधीर के खिलाफ बहुत सारी शिकायतें हैं। “
“मैं समझा नहीं सर। सुधीर तो हमारे विभाग का सबसे जहीन ऑफिसर में से एक है। पिछले केस में तो खुद आपने भी उसकी तारीफ़ की थी।”
“मुझे याद है। पर लगता है कि ज्यादा तारीफ़ से उसका दीमाग ख़राब हो गया है। मैंने तुमसे पहले भी कहा था कि आश्रम वाले मामले में एहतियात से काम लिया जाये। पर आजकल तुम्हारा एस आई हर जगह जेम्स बांड बना फिर रहा है। बेहतर होगा कि उसे इस केस से हटाने का आर्डर जारी कर दो।”
“सॉरी सर, पर वो डिपार्टमेंट के लिए काम कर रहा है मेरे लिए नहीं। वो मेरा एस आई नहीं है। और फिर उसनें ऐसा क्या कर दिया?”
“अपने पोस्ट से ज्यादा आगे बढ़कर काम कर रहा है। आश्रम से जुड़े हर किसी का पीछा करता फिर रहा है। दो दिन पहले आश्रम वाले महंत जी का पीछा करते करते काठमांडू पहुँच गया। सुनने में आया है उसने महंत जी को धमकी भी दी है।”
“कहाँ से आपने ऐसा सुना सर?”
“डोंट ट्राई तो ओवरस्मार्ट सचदेवा।”
“आई ऍम नॉट ओवरस्मार्ट बट स्मार्ट एनफ टू नो फ्रॉम वेयर यू आर टॉकिंग। यहाँ पहुँचने पर सबसे पहले उस महंत और को मिलने का टाइम दिया था। क्या ये दो कौड़ी के आश्रमवाले हम पुलिस ऑफिसर से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट हो गए? एक लड़का इमानदारी से केस को सोल्व करने के लिए जान प्राण लगा दे रहा है और हमारे डिपार्टमेंट के लोग ही उसकी टांग खींचने में लगे हैं। आखिर क्या खास बात है इस आश्रमवालों में कि एक छोटे से मर्डर केस को हमें इन्वेस्टिगेट नहीं करने दिया जा रहा है? इतनी ऊपर तक पहुँच है इन आश्रमवालों की? क्या हम जानते नहीं कैसे कैसे जरायमपेशा लोग यहाँ आकर छुप कर रहते हैं? वो पाकिस्तानी जासूस एक साल से यहाँ छुपकर रह रहा था और हम लोगों को पता भी नहीं चला। केवल यहीं नहीं किसी भी आश्रम को छान लो २-४ घुसपैठिये ज़रूर मिल जायेंगे। पर हमारे नेता लोग शह देते रहते हैं ऐसे लोगों को और हम लोग ऐसे लोगों के तलवे चाटते रहते हैं।” अपनी बात पूरी करते करते एस पी हांफने लगा था।
“तुम इमोशनल हो रहे हो सचदेवा।”
“सही कहा आपने सर। पर एमोशन के बिना आदमी की हैसियत क्या है सर।”
“मैं तुम्हरी मनः स्थिति समझ रहा हूँ। मैं भी सुधीर के कैलिबर का कायल हूँ। वो तीन चार इने गिने एस आई में से है जिसकी मैं सच में सहायता करना चाहता हूँ, उसे आगे बढ़ते देखना चाहता हूँ। पर इस मामले में ऊपर से मंत्रियों का प्रेशर कुछ ऐसा है कि मैं फिलहाल कुछ नहीं कर सकता। अगर सुधीर को रोका नहीं गया तो हो सकता है कि उसका ट्रान्सफर चौबीस घंटे के अन्दर ऐसे डिपार्टमेंट में कर दिया जाये जहाँ वो बस लोगों को परेड करता फिरे। और ऐसा तुम भी नहीं चाहोगे।”
“ठीक है, मैं देखता हूँ।” एस पी ने भी मानों हथियार डाल दिए थे।
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“तो इसमें टेंशन कि क्या बात है सरस्वती जी। किसी न किसी को तो आना ही था अब चीनी विदेश मंत्री ही सही।”
“तुम मामले कीई गंभीरता नहीं समझ रहे हो अल्फांसे। जिस काम के लिए तुम्हें २ महीने से यहाँ रखा गया था वो दिन बस आने ही वाला है। जहाँ तक हमारी सेटिंग थी उस हिसाब से दोनों मेहमानों के दिल्ली से चीनी राजदूत का आना तय था जैसा कि तुम्हें मैंने बताया भी था। यहाँ तक कि अगर चीन से कोई बड़ा ऑफिसर भी आता तो उसे किडनैप करना तुम्हारे लिए आसान होता। उसकी अनुपस्थिति में ये मीटिंग आचार्य जी के अध्यक्षता में आराम से हो सकती थी।”
“तुम्हारा मामला तुम ही समझो। अगर दोनों तिब्बतियों को मीटिंग ही करनी थी तो दुनिया के किसी भी हिस्से में कर सकते थे। दुनिया में ऐसी कई जगहें हैं जहाँ इन्हें चीन के विरोध का सामना भी नहीं करना पड़ता। या फिर कहीं ऐसा तो नहीं ........।”
अल्फांसे बोलते बोलते चौंका।
सरस्वती मुस्कुराई।
“अब तुम ठीक समझे। दरअसल ये मीटिंग एक तरह से चीन खुद करवा रहा है। शोर्ट कट में कहें तो चीन चाहता है कि सी टी ए करमापा ओग्येन को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दें। जबकि दलाई लामा ऐसा नहीं चाहते। चीन ये मीटिंग धरमशाला में करवाना चाहता था। पर सी टी ए ने इससे इनकार कर दिया क्योंकि ऐसा होने से उस पर मीटिंग को प्रभावित करने का आरोप लगता। उसका कहना था कि अगर ये मीटिंग न्यूट्रल जगह पर हो तो बेहतर होगा। ये संजोग ही था कि मीटिंग का स्थल चांदीपुर में फिक्स हो गया।”
“और फिर संजोग से तुम्हारी मुझसे मुलाक़ात हो गयी और संजोग से मैं यहाँ आने को तैयार हो गया। बेवकूफ मत बनाओ।”
सरस्वती हंसी। “तुम्हें कौन बेवकूफ बना सकता है अल्फांसे। बस यूँ ही कोशिश कर रही थी। सच बात ये है कि बड़ी मेहनत से मैंने ये मीटिंग का लोकेशन धरमशाला से यहाँ फिक्स किया है। और कुछ?”
“बस कुछ बातें अभी भी समझ में नहीं आया। जैसे की ये सारा चक्कर तुम्हारा चलाया हुआ है या आचार्य जी का या फिर किसी और का? और दूसरी बात, तुम्हारे तिब्बत से इतनी मोहब्बत का कारण क्या है?”
“वक़्त आने पर सब कुछ समझ में आ जायेगा। फिलहाल तुम्हें ये सोचना है कि ऐसा क्या किया जाये कि ये चीनी मंत्री यहाँ नहीं पहुंचे। या पहुंचे भी तो मीटिंग का हिस्सा नहीं बने। और बने भी तो जैसा हम चाहते हैं वैसे स्टेटमेंट जारी करे।”
“सोचना हमारा काम है देवी जी। आखिर इस काम की मैं एडवांस फीस ले चुका हूँ। और अल्फांसे जिस काम के पैसे लेता है उसे पूरा करके ही छोड़ता है।”
“तो मैं निश्चिंत रहूँ?”
“बिलकुल। अब अगर चीनी राष्ट्रपति भी पूरी सेना लेकर पहुँच जाये तो भी अल्फांसे उसे अपने क़दमों पर झुककर रहेगा।”
सरस्वती अब कुछ आश्वस्त नज़र आ रही थी। अल्फांसे को इस समय अपने दोस्त विजय कि याद आ रही थी। अगर वो साथ होता तो उसका काम आसन हो जाता। चीनी मंत्री के साथ साथ उसे चेंग पर भी ध्यान देना था। चेंग अकेला ही दस के बराबर था और उम्मीद थी कि वो इस बड़े मिशन पर अकेला नहीं होगा।
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सुधीर हर पल सावधान था। इस वक़्त वो रजनी से मिलकर आ रहा था। रजनी के मामले में उसे पूरा विश्वास था कि सारा कराया धराया महंत का ही था और उस आनंद ने ही उस पर हमला किया था। इस मामले में वो आचार्य जी से भी कई बार मिलने कि कोशिश कर चुका था पर ऐसा नहीं हो पाया था। जैसी खबर उसे मिल रही थी उसके अनुसार आचार्य जी इन दिनों किसी से भी नहीं मिल रहे थे। आज तो सुबह से दो बार उसने आश्रम में प्रवेश कि कोशिश की थी पर उसे सख्ती से यह कहकर मना कर दिया गया था कि आश्रम में कुछ अंदरूनी काम चल रहा है और उसे अन्दर जाने कि इजाज़त नहीं है।
यानी महंत जी की उसने जिस तरह छीछालेदर की थी उसने असर दिखा दिया था। एस पी गौतम ने भी उसे डी जी पी से हुई बातचीत का ब्यौरा दे दिया था। मतलब उसे अब मामले से दूर रहना था। अपने मोटरसाइकल को उसने अपने घर कि तरफ मोड़ दिया।
थोड़ी देर के लिए वो अपने सोचों में यूँ डूब गया था की सामने से आते ट्रक के बारे में उसे देर से मालूम हुआ जो अपना ट्रैक छोड़कर उसके तरफ तेजी से बढ़ी चली आ रही थी।
अब उसके पास सोचने को बहुत कम वक़्त था। बायीं तरफ खेत था पर रोड का लेवल उससे ५-६ फीट ऊँचा था। पर ट्रक से बचने के लिए कोई और रास्ता नहीं था।
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डी जी पी के मोबाइल पर एस पी का नंबर उभरा। उसकी आवाज सुनकर डी जी पी महोदय समझ गए कि वो कितने खतरनाक मूड में है।
“सर जी। सुधीर के एक्सीडेंट को खबर आपको मिल ही गयी होगी। वो जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है। अगर वो मर गया तो मैं सारे आश्रम को आग लगा दूंगा।”
डी जी पी के कुछ कहने से पहले हीं एस पी ने फोन काट दिया।
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हमेशा की त्तरह शरवन पुरे मार्किट का चक्कर लगाकर घर लौटा। आज किसी ने उसे उधार में दारू नहीं दिया था। इस वक़्त शरवन घर में अकेला था। पिछले बार उस लम्बे बाल वाले आदमी ने छोटे काम के लिए पूरे दस हज़ार सौंपे थे। अब सारे पैसे ख़त्म हो चुके थे। हमेशा की तरह पैसे नहीं होने पर वो सेवाराम के कमरे से पैसे निकल लेता था।
आज पहली बार उसका कमरा लॉक था।
“आज ऐसी क्या बात हो गयी ये कंगाल भी कमरे बंद रखने लगा।” शरवन बुदबुदाया।
‘पर ताले तो शरीफ लोगों से बचने के लिए होते हैं हमारे जैसे लोगों से बचने के लिए नहीं।’ कुछ ही देर में उसने ताला खोल लिया था। कमरे में प्रवेश कर सीधे वो दरवाजे के साइड में पड़े टेबल के तरफ लपका। टेबल के दराज में हमेशा कुछ न कुछ पैसे पड़े रहते थे।
दराज़ में पड़े १०० रुपये के नोट कि तरफ ख़ुशी ख़ुशी उसने हाथ बढाया। तभी उसे ऐसा लगा कि कोई उसे देख रहा है। या ये उसका भरम था? उसने कमरे में चारो तरफ नज़र घुमाई। उसकी नज़र आख़िरकार टेबल पर रखी हुई गुडिया पर पड़ी। दृष्टि उसी पर टिकी रह गयी। ऐसा लगा कि वो उसे आँखें तरेर रही हो। आम गुड़ियों की तरह इसने फ्रॉक नहीं बल्कि साड़ी पहन रखी थी।
गुडिया रखी थी या खड़ी थी वो तय न कर पाया। उसे ऐसा लगा कि ये कोई हाड़ मॉस की जीव हो। ये सेवाराम को गुड़ियों का शौक़ कबसे हो गया?
अनायास ही उसने गुडिया कि तरफ हाथ बढाया।
गुडिया सज्जन मालूम होती थी। उसका छोटा सा हाथ भी शरवन की तरफ बढ़ने लगा।
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“एक छोटा सा काम है दिवाकर। पर पैसे बड़े मिलेंगे।”
दिवाकर ने सर उठाकर देखा। पुलिस स्टेशन में वो अकेला ही था। इस आदमी को वो पहचानता था। सिकंदर ने परिचय करवाया था। नाम बिल्लू बताया था। सिकन्दर के लिए उसने कई काम किये थे। रकम भी अच्छी मिली थी। पैसे पहुँचाने का काम बिल्लू ही करता था इसलिए इस पर वो विश्वास कर सकता था।
“ये काम अकेले होने वाला नहीं है। दो चार आदमी रख सकते हो।”
“पैसे कितने मिलेंगे?”
“दो लाख।”
ये उसकी उम्मीद से बहुत ज्यादा थे।
बिल्लू ने काम बताया। काम उसकी उम्मीद से कम खतरनाक था। कम से कम अभी तो उसे ऐसा ही लग रहा था।
“कब करना है काम?”
“अभी।”
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अपने छोटे हाथ से गुड़िया ने शरवन के तर्ज़नी अंगुली को थाम लिया था। उसे ऐसा लगा कि बच्चे के हाथ में उसकी अंगुली आ गयी हो। हाथ में उस्नता थी। शरवन कि आंखें मानों गुडिया की आँखों में क़ैद होकर रह गयी थी।
क्या ये सम्मोहन था?
पकड़ सख्त होती जा रही थी।
अपने दूसरे हाथ से उसने अपनी अंगुली छुड़ाना चाहा। पर कोशिश व्यर्थ रही। उलटे दूसरे हाथ से उसने शरवन के बाएँ हाथ की तर्जनी को थाम लिया। अब उसके समझ में आया कि उसके साथ कुछ अनहोनी होने जा रही थी। वो कोई बच्चों वाली गुडिया नहीं थी बल्कि कोई और ही बला थी। भय से उसके होश फाख्ता हो गये। जुबान मानों तालू से जा चिपकी थी।
अब गुडिया मुस्कुराई। उसके होंठ हिले, “मेरा नाम मंदा है। मेरे साथ खेलोगे?”
मंदा ने दोनों हाथों को झटका दिया। शरवन के क़दमों ने ज़मीन का साथ छोड़ दिया।
अब मंदा क्रॉस हाथों को ही धीरे धीरे हिलाए जा रही थी और शरवन उछल रहा था।
“बड़ा मज़ा आ रहा है न?” मंदा बोली।
इसी वक़्त दिवाकर ने बाहर से आवाज दी।
“शरवन ओ शरवन...दिवाकर मानों इस वक़्त उसके लिए फ़रिश्ता बनकर आया था। मंदा ने मानों घबराकर उसका हाथ छोड़ दिया। वो जान प्राण लेकर बाहर की ओर दौड़ा। बाहर निकलकर दिवाकर का हाथ पकड़कर दौड़ता चला गया।
इधर मंदा फिर टेबल के एक कोने में खड़ी हो गयी थी।
“हूंह। ठीक से खेलने भी नहीं देते लोग।” मंदा बोली। “चलो फिर से बुत बन जाती हूँ।”
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ये संजोग ही था की जब आचार्य जी सुधीर को देखने हॉस्पिटल पहुंचे तो उस वक़्त एस पी वहां मौजूद था। ये अलग बात थी कि उसने वहां पर मौजूद सिपाहियों को ये आदेश दे रखा था कि आश्रम से आने वाले किसी भी व्यक्ति को उससे मिलने न दिया जाये चाहे वो आचार्य जी ही क्यों न हो। आचार्य जी के साथ आनंद भी मौजूद था।
“मैंने सुना था की आपने इन दिनों किसी से भी मिलना बंद कर दिया है। बहुत व्यस्त हैं आप? फिर इधर का रास्ता कैसे भूल गए?”
एस पी के व्यंग का आचार्य जी पर कोई असर नहीं हुआ।
“कैसी तबियत है सुधीर की?”
“बच गया। आश्चर्य की बात है न? इतने भयानक दुर्घटना के बाद भी बच गया।”
“मारने वाले से बचाने वाला सदा बड़ा होता है।”
“मारने वाला कौन है इस विषय में तो मुझे थोडा बहुत ज्ञान है।”
“तो फिर उसे पकड़ने में देरी क्यों? आखिर हमला एक पुलिस वाले पे हुआ है। सुधीर जैसे कर्मनिष्ठ पुलिस ऑफिसर बहुत कम होते हैं।”
“क्योंकि उसे बड़ों बड़ों कि सरपरस्ती हासिल है। इसी शहर का रहने वाला है वो। आप भी जानते हैं उसे।”
“किसकी बात कर रहे हैं आप?”
“महंत की बात कर रहा हूँ। आपके आश्रम के महंत की।” कहते वक़्त एस पी गौतम सचदेवा की दिलेरी में कोई कमी नहीं आयी थी।
उसे उम्मीद थी कि आचार्य ब्रह्मदेव को भड़काने में कामयाब हो जायेगा, पर आचार्य जी निष्प्रभावित रहे। टहलते हुए वो एस पी के पास पहुंचे।
बिलकुल पास। दोनों के लम्बाई में कोई अंतर नहीं था। बिलकुल बराबर। हाथ बढाकर एस पी के कंधे पर रखा, “एस पी साहब। आप शायद इसलिए ऐसा कह रहा हैं क्योंकि महंत जी आज सुबह डी जी पी साहब से मिलने गए थे। खुद मैंने महंत जी को भेजा था सुधीर जी की शिकायत के लिए। अगर सुधीर जी हमारे आश्रम में इन्वेस्टीगेशन के लिए आते तो हमें कोई शिकायत नहीं होती। पर वो अपनी स्मार्टनेस दिखने के लिए आ रहे थे। अगर उनके पास आश्रम के खिलाफ कोई प्रूफ है तो उसे लेकर सीधे हमारे पास भी आ सकते हैं। कानूनी तरीके से वो हमारे पास आता तो कोई बात नहीं। पर आपके एस आई साहब फ़िल्मी अंदाज़ से आयेंगे तो हम भी उनकी शिकायत करने के लिए स्वतंत्र हैं। हाँ अगर आप ये जानना चाहते हैं कि एक्सीडेंट में किसका हाथ है तो इसके लिए आप ट्रक ड्राईवर से पूछताछ कीजिये। वो तो आपके कब्जे में आ ही चुका है। आश्रम का काम लोगों को जिंदगी देना है लेना नहीं। सुधीर बाबू को कुछ होने वाला नहीं। मेरी शुभकामना उनके साथ है।”
आचार्य जी ने हाथ जोड़ा और चल दिए। उनके पीछे पीछे आनंद भी था।
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शाम के साढ़े छ: बज चुके थे। बड़ी मुश्किल से शरवन और दिवाकर अपने दो साथियों के साथ गुफा के ऊपर का पत्थर हटाने में कामयाब हुए। नीचे जाने के लिए कोई सीढ़ी का इंतेजाम नहीं था, दोनों फर्श पर कूद गए।
गुफा में साजों सामान के नाम पर कुछ विशेष नहीं था। ऊपर का पत्थर हटने के बाद शाम के धुंधलके की अन्दर हलकी रौशनी आ रही थी। चबूतरे पर किसी योगी का हस्त निर्मित पेंटिंग थी। एक कोने में बड़ा सा रिचार्जेबल लैंप रखा था। दिवाकर ने आगे बढ़कर रिचार्जेबल लैंप ऑन कर दिया।
बगल वाली गुफा से ताशी उर्फ़ चेंग लेई शेरिंग के साथ सारे दृश्य का आनंद ले रहा था। बस अब ग्यारह बजने का इंतज़ार था। उसने ग्यारह बजे से पहले राक्षस को कभी भी गुफा में आते नहीं देखा था। वो ये भी पता लगाने में असमर्थ रहा था कि ये राक्षस आता कहाँ से है? राक्षस कि पहली दृष्टि आश्रम वाले कांड के दो दिन पहले पड़ी थी। आज उसका यहाँ देर तक रुकने का इरादा नहीं था इसलिए शेरिंग को निर्देश देकर वो बाहर निकल आया।
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अल्फांसे ने दो बार ताशी का पीछा करने की कोशिश की थी पर कामयाब नहीं हो पाया था। हर बार वो मेढक की तरह उछलते उछलते गायब हो जाता था।
आज भी वो चांदीपुर से बाहर जाने वाले रास्ते के पास खड़ा था जो आश्रम के पीछे वाले फाटक से होकर गुज़रता था। एक रास्ता सीधे दूसरे शहर की ओर चला जाता था जिसका दर्ज़ा स्टेट हाईवे का था। यही रास्ता आगे जाकर बाईं ओर मुड़ जाता था और नदी के किनारे किनारे घने जंगले से होते हुए श्मशान की ओर चला जाता था। दाईं ओर एक पगडण्डी थी जो ऊपर पहाड़ी की और बढ़ जाती थी जहाँ छोटे बड़े बहुत सारे पहाड़ों का जाल था।
अल्फांसे निश्चित नहीं था कि यहाँ तक आने के बाद ताशी उर्फ़ चेंग किधर गया था। जाने किस फेर में था वो। चीनी मंत्री के यहाँ आने से उसका कोई न कोई सम्बन्ध अवश्य था।
आज भी वो जाने किन झाड़ियों में गायब हो गया था।
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“तो ये बात कन्फर्म है कि सिकंदर हथियारों के स्मगलर न होकर पाकिस्तानी सीक्रेट सर्विस का एजेंट था।”
“जी कैप्टेन। मैंने तो यूँ ही ये खबर फैलाई थी कि दयाल पाकिस्तानी जासूस है ताकि जिस काम के लिए मैं यहाँ आया हूँ उस पर पर्दा पड़ा रहे। सिकन्दर खुद को छोटा मोटा स्मगलर प्रकट करता रहा इसलिए उसे सीरियसली नहीं लिया गया। अगर दयाल का भेद नहीं खुलता तो ये ग़लतफ़हमी बनी रहती।
“और तुम दोनों की बेवकूफी से सिकंदर हाथ से निकल गया। हम लोग उसके बहाने पाकिस्तान को एक्सपोज कर सकते थे।”
इतने सारे आतंकवादी को पकड़कर भी हम लोग पाकिस्तान का ठेंगा नहीं उखाड़ सके और एक सिकंदर को पकड़कर क्या उखाड़ लेते, कन्हैय्या बुदबुदाया।
दूसरी तरफ वाले शख्स ने आँखें तरेर कर कन्हैय्या को देखा।
शाम के सात बजे थे। इस वक़्त दोनों एक ढाबे के पीछे एक पेड़ के नीचे लगे साधारण से टेबल चेयर पर मौजूद थे। जिसे वे सर कहकर संबोधित कर रहे थे उसका दर्जा एच आई जी के डिप्टी डायरेक्टर का था और वे किसी ऑफिस के नुमाईंदे मालूम हो रहे थे। पास में दो तीन फाइल्स रखे थे जिसमें एक उसी नाम के एक कंपनी के पेपर्स थे।
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बैठे बैठे राक्षस को ऐसा लगा मानों किसी ने उसके समूचे हृदय को मरोड़ कर रख दिया हो। अपनी दोहरी जिंदगी से वो परेशान था पर अभी कुछ दिन वो और इसी तरह अपने दिन बिताना चाहता था। सामान्यतः वो रात साढ़े दस के बाद ही गुफा का रुख करता था और अभी तो सात ही बजे थे। आराम से वो अपनी ज़िन्दगी बिता रहा था और लगभग तीन महीने पहले उसकी याददाश्त वापस आ गयी थी। अगर भुवन मोहिनी सामने नहीं आती तो वो जान भी नहीं पता कि उसका अतीत क्या है।
दिन भर वो अपनी सामान्य जिंदगी जीता और फिर रात होते ही दिन भर का चोला उतारकर अपने पुराने लिबास में आ जाता।
पर आज एकाएक उसे न जाने क्यों ऐसा लगने लगा कि उसे अभी गुफा में पहुँच जाना चाहिए था। गुफा का लोकेशन ऐसा नहीं था कि लम्बे समय तक उसे बाकी की नज़रों से बचाया जा सकता था।
गुफा तक का एक रास्ता पीछे कि तरफ गहन जंगल से होता था जिसका इस्तेमाल यदा कदा ही लोग करते थे क्योंकि इधर जंगली जानवरों की भरमार थी। राक्षस की आवाजाही इसी रास्ते से होती थी। निर्दिष्ट जगह पर पहुंचकर एक वृक्ष के खोह में उसने अपने कपड़ों कि तिलांजलि दी और अपने गुफा की तरफ बढ़ गया।
अभी वह गुफा से कुछ दूर ही था जब उसकी दृष्टि दूर जाते एक आदमी पर पड़ी जो दायें बायें देखता हुआ तेजी से बढ़ता चला जा रहा था। एक पल के लिए उसने पलटकर देखा था।
गुफा के अन्दर की हालत अपनी राम कहानी स्वयं कह रही थी। उसके गुरुदेव कि तस्वीर के अधजले टुकड़े चबूतरे पर पड़े थे। बाकी की कहानी सर्च लाइट में छुपे कैमरे ने बयान कर दी थी।
बहुत देर तक राक्षस यूँ ही ठगा सा गुफा में खड़ा रहा।
कुछ देर बाद वो बाहर की तरफ दौड़ पड़ा। वो भूल चुका था की उसके नाम का वारंट है। वो ये भी भूल चुका था कि पब्लिक में इस तरह उसका आना उसके जान के लिए खतरा बन सकता है। उसके दिमाग में बस यही बात थी कि चंद कमीनों ने उसके गुरु के तस्वीर को जला डाली है!
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“आपनी गलती स्वीकार करना सीखो।”
कन्हैय्या ने सर झुका लिया।
“और फिर दयाल को जान से मारने कि ज़रुरत क्या थी?”
राधा ने आश्चर्य से कहा, “आपने ही तो कहा था कैप्टेन।”
“तो क्या हुआ। कभी कभी अपने दिमाग का भी इस्तेमाल करना चाहिए। हो सकता है कि उसके बहाने हमें कुछ और इन्फोरमेशन मिलती। आखिर वो एक पाकिस्तानी एजेंट का भाई था।”
“आपको पहले बताना था न सर की उसका भाई एजेंट था।” कन्हैय्या सादगी से बोला।
“तो हमें भी कहाँ मालूम था!”
“हाँ ये बात सही है।”
“पर टोर्चेर भी ऐसे करते हैं भला। मैंने सारे फोटो देखे थे जो तुमनें भेजे थे। पूरे शरीर का भुरता बना दिया था। आखिर एक लड़की हो।”
“अच्छा हुआ आपने याद दिला दिया। मैं कब की भूल गयी थी।”
“तो सिकंदर के बारे में तुम्हें इन्फोरमेशन कहाँ से मिली?”
“बताया था न। भूल जाते हैं आप। यहाँ के ए एस आई पर हमें शक था। ३-४ दिन पहले उससे मुठभेड़ हुई थी। मौका पाकर उसके मोबाइल में आपका वाला सॉफ्टवेर डाल दिया था ताकि उसके सारे कॉल को सुन सकूं।”
“पर उस पर शक क्यूँ हुआ? बाकी लोग पर क्यों नहीं हुआ?”
राधा मुस्कुराई। वो इंसान जिसका दर्जा एच आई जी में नंबर दो का था किसी खूसट की तरह उससे सवाल कर रहा था। यही उसका अंदाज़ था। देखने में किसी सरकारी दफ्तर का रिटायर्ड किरानी लगता था।
“क्योंकि थाने के ड्राईवर ने बताया की उसके सिकंदर से खास सम्बन्ध हैं। और थाने के ड्राईवर से इसलिए पूछा क्योंकि किसी के बारे में जानने के लिए उसके ड्राईवर पर हाथ धरना चाहिए। और फिर ड्राईवर ने इसलिए बताया क्योंकि मैंने उसे पचास हज़ार रुँपये घूंस दिए थे।”
“तौबा। ये काम तो बीस हज़ार में ही हो जाता।”
“ओके बाकी पैसे मेरी तनखाह में से काट लेना।”
“और अगर ये सब हमें फ़साने की साजिश हुई तो?”
“क्यों खामखाह। और फिर दूसरी तरफ वाली आवाज सिकंदर की थी। मैंने उसकी लोकेशन ट्रेस करवाई है। वो कॉल काठमांडू से ही किया जा रहा था।”
“सही पकडे हो। वो काठमांडू में एक प्राइवेट हाउस में है। मैंने दो जासूस वहां रख छोड़े हैं।”
“तो फिर इतनी देर से हमारे साथ कबड्डी खेल रहे थे?”
“परीक्षा ले रहा था।”
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वो सड़क पर दौड़ा जा रहा था। इस वक़्त दस बजने को थे और सड़क पर ज्यादा लोग मौजूद नहीं थे। ये चांदीपुर की मुख्य सड़क थी। कुछ साईकिल सवारों से उसकी टक्कर भी हुई पर उसे मानों कुछ होश नहीं था।
उसे दौड़ते हुए लगभग १५ मिनट हो चुके थे। जहाँ जहाँ से वो गुज़र रहा था पब्लिक में दहशत का माहौल पैदा करता जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि आदिम युग का कोई व्यक्ति शहर में घुस आया हो। एक चौक पर पहुँच कर वो ठिठका फिर एक तरफ दौड़ता चला गया।
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“पर वो लोग वहां कर क्या रहे हैं?”
“हम लोगों को रोकने कि कोशिश। तुम्हें मालूम ही है कि हमारे देश में घुसपैठ के लिए पाकिस्तान कश्मीर का इस्तेमाल करता रहा है। पर हमारी सेना के सख्त होने से अब वो नेपाल का ज्यादा इस्तेमाल कर रहा है और इसके लिए उसे चीन कि शह प्राप्त है। नेपाल में चीन की बढती पैठ जग जाहिर है। उससे निपटने के लिए हमारे एच आई जी ने नेपाल में एक हेडक्वार्टर बना रखा है जो एक छोटे से फ़ूड कोर्ट के रूप में काम कर रही है जो वहां के एअरपोर्ट से कोई दो किलोमीटर की दूरी पर है। वहां के सारे स्टाफ हमारे मुलाजिम हैं। इसकी एक ब्रांच एअरपोर्ट लाउन्ज के अन्दर भी है। इनका काम विदेशी पर्यटकों पर नज़र रखना है और अब तक कई पाकिस्तानी जासूसों को पकडवाने या देश में प्रवेश करने में हमारी मदद कर चुके हैं। इस फ़ूड कोर्ट का नाम ‘ट्राफीक जाम’ है और टाउन में इसका एक बाकायदा ऑफिस भी है जहाँ से इसे कण्ट्रोल किया जाता है। दुर्भाग्यवश इस ऑफिस पर पाकिस्तानी जासूसों की नज़र पड़ चुकी है। उसके पास ही इन लोगों ने एक छ: सात कमरे का घर किराये पर ले लिया है, उसी घर का मालिक सिकंदर है।”
“और उस घर को हमारे जासूस तबाह कर देंगे जो उसकी निगरानी कर रहे हैं। वाह वाह ये तो बहुत अच्छा आईडिया है।”
“उन जासूसों का काम इनफार्मेशन देना है मारपीट करना नहीं। ये काम तुम दोनों में से एक को करना होगा।”
“क्यों?” बहुत देर बाद राधा बोली, “दोनों के एक साथ जाने से क्या परेशानी है?”
“आप तो जानते हैं की हम दोनों को अकेले रहने से परेशानी होती है। डर लगता है।” कन्हैय्या ने कहा।
“मैं भी नहीं चाहता कि तुम लोग अलग अलग काम करो। पर अभी स्थिति ये है कि उन लोगों ने अपना जाल यहाँ तक बिछा रखा है इसलिए तुम दोनों की ज़रुरत दोनों जगह है। यानी तुम्हें टीम बनाकर ही काम करना होगा। बस एक को यहाँ और एक को काठमांडू में रहना होगा। हर हालत में तुम्हें चीनी मंत्री की यात्रा के पहले ही ये मिशन ख़त्म कर देना है ।”
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दिवाकर को पहली बार पैसे खटक रहे थे। जो काम चार मजदूरों से पांच हज़ार में करवाया जा सकता था उसके लिए उसे दो लाख दिए गए थे।
इस वक़्त रात के नौ बजे थे और वो अपने बाकी साथियों के साथ रोहिणी बार में मौजूद था। हर बार उलटे सीधे काम करने के बाद वे अलग अलग दिशाओं में निकल जाते थे पर आज उन्होंने इसकी ज़रुरत नहीं समझी थी। बस बिना किसी की नज़र में आये एक तस्वीर में आग लगाने का काम किया था। एक ही बात उसके दिमाग में घूम रही थी कि कहीं गुफा में किसी कैमरे का तो अस्तित्व नहीं था जो उसकी पहचान उजागर कर दे।
आज हर काम में सबसे आगे रहने वाले शरवन को न जाने क्या हो गया था! पहले तो अपने घर से उसका हाथ पकड़कर यूँ दौड़कर भागा था मानों पीछे कोई भूत पड़ गया हो। बार बार पूछने पर भी कुछ नहीं कहा था बड़ी मुश्किल से काम के लिए तैयार हुआ था। यहाँ बार में भी उसका मन नहीं लगा था और ज़ल्द ही यहाँ से मानों भाग निकला था।
बार में आने वाले सभी रेगुलर कस्टमर हीं थे। कुल मिलाकर ९-१० ग्राहक मौजूद थे इस बार का दर्ज़ा बाकी बारों से थोड़ा ऊपर था इसलिए यहाँ शांति का माहौल रहता था। काउंटर पर मौजूद शख्स बिल्लू ही था जो यहाँ का मेनेजर, कैशिअर अकाउंटेंट सब कुछ था।
जब कापालिक यहाँ प्रविष्ट हुआ तो उसके अजीब सी वेशभूषा ने सभी का ध्यान स्वाभाविक रूप से आकर्षित किया था।
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चेंग शैतान चौकड़ी यानी ठक्कर, शेन, मीमी और शेरिंग के साथ मौजूद था।
“तो दोनों जासूस आज रात या कल सुबह काठमांडू के लिए निकल जायेंगे। बस हमें यह कन्फर्म करना है कि जब तक यहाँ की मीटिंग ख़त्म नहीं हो जाये तब तक वो दोनों लौट नहीं पाएं।” शेरिंग बोला।
“इतना तो वे पाकिस्तानी कर ही सकते हैं। सुना है पूरे दस बारह लोगों की टीम इकठ्ठा कर रखी है उन लोगों ने।”
“पर एक बात समझ में नहीं आई। इतना इंटरेस्ट क्यों है इन लोगों का सिकंदर में?” शेरिंग बोला।
“इंटरेस्ट खुद सिकंदर ने पैदा करवाया है। इन जासूसों के नज़र में वे लोग नेपाल के रास्ते भारत में बहुत बड़ी गड़बड़ी पैदा करवाना चाहते हैं। पहले मुझे ये सिकंदर कोई परले दर्जे का बेवकूफ लगा था। पर अब मालूम हुआ की वो भी हम लोगों की तरह अच्छा खासा कमीना है। वो जानता है कि इन लोगों से नेपाल में अच्छी तरह निपट सकता है।”
सभी लोगों ने ठहाका लगाया।
“एक और खतरनाक जीव सुधीर था। वो भी १०-१२ दिन तक तो अपनी टट्टी भी साफ़ नहीं कर सकता। हॉस्पिटल के डॉक्टर से बात की थी मैंने। वहां उसका बेचारा बाप दहाड़ मार रहा था।” ठक्कर ने कहा।
“मुझे पता नहीं था कि तू ट्रक ड्राईवर भी है।” चेंग ने मीमी से कहा।
“अगर उसके मोटरसाइकिल का बैलेंस नहीं बिगड़ता तो उसे कुचलकर ही दम लेती। सही समय पर चेंग ने उसके हॉस्पिटल से निकलने का समय बताया और मेरा काम आसन हो गया। अब किसी ढाबे पर खड़े ट्रक को उड़ाना कौन सा मुश्किल काम था।
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सुधीर ने मुस्कुराते हुए खुद को आईने में देखा। सर पर अधपके हुए से खिचड़ी बाल, उसी तरह कि सफेदी झलकाती हुई हलकी दाढ़ी, पीले दांत और शरीर पर कुर्ता पजामा।
यानी कि त्रिलोचन गुप्ता। सुधीर गुप्ता का पिता। ये उसका पसंदीदा मेकअप था। यहाँ तक कि एस पी भी उसके इस रूप से अनजान था।
जबसे उसने महंत को भड़काया था तबसे ही उसे अंदेशा था कि उस पर वार हो सकता है। सबसे पहले उसने अपने परिवार को अपने साले के पास दिल्ली भेजा और फिर अपने पर होने वाल हमले के इंतज़ार में लग गया था। अपने बाइक को जिस तरह नीचे सड़क से गिराया था उसके लिए वो अपनी पीठ ठोक सकता था।
पर अगर इन सब के लिए एस पी साहब का साथ नहीं होता तो वो कुछ नहीं कर सकता था।
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“अब बची बात राक्षस की। अब तक तो उसने दो चार लोगों का सफाया कर दिया होगा।” शेरिंग ने कहा।
“इसके लिए भी हमें शेरिंग का आभार मानना होगा। इसी ने ये आईडिया दिया कि अगर राक्षस दो चार लोगों को टपका दे तो शहर का माहौल मदमस्त हो जाएगाI”
ठहाके का फिर एक और दौर चला।
“पर अभी हमारा इरादा शहर का माहौल बिगाड़ने का नहीं है। अगर माहौल बिगड़ा तो मीटिंग की डेट आगे बढ़ जायेगी। बस हमारे आका का आदेश था कि इस राक्षस कि कहानी ज़ल्द ख़तम हो जाए वरना कहीं मीटिंग के समय ये पहुँच गया तो गड़बड़ी फैला देगा।”
“अब बस इस शहर में हमारे लिए एक ही खतरा बचा है, यानी की अल्फांसे।” मीमी बोली, “अगर उसे भी नेपाल भेज दें तो हमारे लिए मैदान साफ़ हो जायेगा।”
“फिर हम लोग खुले मैदान में कबड्डी खेल सकेंगे।”
“अगर मैं उसे लेकर हनीमून के लिए काठमांडू निकल जाऊं तो कैसा रहेगा।”
चेंग उर्फ़ ताशी हंसा। “अल्फांसे केवल लाशों के साथ हनीमून मनाता है।”
“क्या बात है चेंग? ऐसा लगता है कि अल्फांसे नाम का खौफ तुम पर बढ़ चढ़ कर सवार हो गया है।” ठक्कर ने कहा।
“तुम ऐसा इसलिए कह रहे हो क्योंकि इस अल्फांसे से तुम्हारा पाला नहीं पड़ा है।”
“बहुत नाम सुना है मैंने पर किसी को ख़त्म करने के लिए बस एक मौके की ज़रुरत होती है।”
“बस वही एक मौका तो नहीं देता कमबख्त।” मीमी बोली।
“अगर ऐसा है तो हम दोनों को मौका दो। ठक्कर और मैं एक दिन में उसे उसकी औकात बता देंगे।” शेंग बोला।
“अभी का समय अपना जौहर दिखने का नहीं है शेंग। आगे पांच दिन में ऐसे बहुत से मौके मिलेंगे। पहले मैं उस कापालिक को बचा कर आता हूँ।”
“तो तुम निश्चित हो कि राक्षस को ब्रह्मदेव से भिड़ाने में सफल हो जाओगे?”
“सौ प्रतिशत।”
“और अगर राक्षस तुम्हारे हाथ से निकल गया तो?”
“अव्वल तो ऐसा होगा नहीं। और अगर हो भी गया तो उसके असली रूप को सबके सामने ला दूंगा।” चेंग धूर्त भाव से मुस्कुराया।
तीनों एक साथ चौंके।
“तो क्या राक्षस के भेस में कोई और है?” शेरिंग ने कहा।
“नहीं। राक्षस तो उसका असली चेहरा है। या यूँ कहें कि उसके दोनों चेहरे असली हैं। पर इस बारे में अभी कुछ भी कहना नहीं चाहता।” चेंग के होंठो पर मुस्कराहट थी।
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अन्दर आकर सबसे पहले राक्षस ने बार का दरवाजा अन्दर से बंद कर दिया। उसका शिकार उसके सामने था।
दिवाकर इतना बेवकूफ नहीं था कि उसके समझ में नहीं आता कि उसने किस्से पंगा ले लिया है। तुरंत उसने अपने पॉकेट से रेवोल्वर निकालकर निशाना लगाया। इतने पास से उसका निशाना चूक गया था! इससे पहले की वो अगला निशाना लगा पाता राक्षस के हाथ का एक तमाचा उसके गाल पर पड चुका था। कुर्सी लिए हुए वो उलट गया।
वहां भगदड़ मच चुकी थी। कुछ लोग दरवाजे कि तरफ लप्के पर राक्षस की वहां आवाज गूंजी, “कोई भी बाहर नहीं जायेगा।”
“और कौन था तेरे साथ?”
दिवाकर ने अपने दोनों साथी की और इशारा कर दिया। शरवन और उसका पता बताने में भी दिवाकर ने देर नहीं की।
“पर मेरी कोई गलती नहीं। उस कमबख्त ने मुझे ऐसा करने को कहा था। बिल्लू के तरफ उसने इशारा किया जो काउंटर के पीछे छुपा पड़ा था।
राक्षस तीनों पर बुरी तरह टूट पड़ा। जो भी उसके हाथ आ रहा था उसी से वो तीनों को मारे जा रहा था। बाद में बिल्लू की भी बारी आयी।
भुवन मोहिनी की हत्या का तो कोई प्रमाण नहीं था पर यहाँ उसने चार चार हत्या की थी जो वहां मौजूद सी सी टी वी में ही नहीं बल्कि कुछ लोगों के मोबाइल में भी क़ैद हो चुका था।
बात फैलने में देर नहीं लगती। बाहर अच्छे खासे लोग जमा हो चुके थे। अगर वो लम्बे बालों वाला मोटरसाइकिल सवार उसे वहां से ले नहीं जाता तो शायद भीड़ उसे पकड़ सकती थी। बाद में कुछ लोगों ने पुलिस को बताया की उस मोटरसाइकिल वाले ने राक्षस को धीरे से कुछ कहा था जिसके बाद वो तुरंत उसके साथ बैठकर जाने कहाँ चला गया।
त्रिलोचन बना हुआ सुधीर भी वहां मौजूद था पर वह भी कुछ नहीं कर सका। पर उसने मोटरसाइकिल स्वर को पहचानने में कोई गलती नहीं की थी। वह तो उसी समय उसे पहचान गया था जब वह अपने बाइक पर बैठकर यूँ दर्शा रहा था मानों बाकी लोगों की तरह वो भी राहगीर हो। उसे इस बात का अफ़सोस था कि उसने उस दिन राक्षस को क्यों जाने दिया था। पर वह राक्षस का एक अच्छा सा विडियो बनाने में सफल हो चुका था।
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