आज अमन ओबराय की आंखों की पट्टी खुलने जा रही थी।
सुबह के 9.30 बजे थे।
हॉस्पिटल के कमरे में अमन ओबराय बैड पर टेक लगाये बैठा था। पचपन वर्षीय डॉक्टर भूटानी खुद वहां मौजूद था। दो अन्य डॉक्टर और नर्स मौजूद थी। इसके अलावा जिसकी मौजूदगी जरूरी थी, वो भी थी। यानी कि रानी ओबराय।
उसने जबरदस्त परन्तु हल्का मेकअप कर रखा था। वो इंतहाई खूबसूरत लग रही थी। घुटने तक जाती ब्राऊन स्कर्ट। एड़ी वाली बैली और हल्के पीले रंग के टॉप में खूब जंच रही थी वो। रानी को अपने जरूरत से ज्यादा खूबसूरत लगने का एहसास था। गले में हीरों का कीमती हार और बाईं कलाई पर वैसा ही, हीरों जड़ा कंगन पहन रखा था। उसके होंठों पर मुस्कान और आंखों में चमक थी।
“सिस्टर।” डॉक्टर भूटानी बैड के ठीक सामने खड़ा होता बोला--- "ओबराय साहब की आंखों की पट्टी खोलो।"
"यस डॉक्टर।" एक नर्स आगे बढ़ी और बैड के पास पहुंचकर वो अमन ओबराय की पट्टी खोलने लगी।
कमरे में सन्नाटा सा आ ठहरा था।
“मैं देख सकूंगा डॉक्टर ?” अमन ओबराय की आवाज में हल्का सा कम्पन था।
“श्योर मिस्टर ओबराय।" डॉक्टर भूटानी ने कहा--- “आपको अच्छी और स्वस्थ आंखों का जोड़ा मिल गया है। उन आंखों में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। तुम्हारी आंखों की जगह का साइज भी, उन पुतलियों जैसा ही था। सब कुछ बहुत अच्छे से हुआ था तो तुम क्यों नहीं देख सकोगे। मिनट भर में तुम मुझे देख लोगे।"
रानी ओबराय की चमकती आंखें, अमन ओबराय के चेहरे पर थी।
नर्स ने पट्टी खोल दी।
अब आंखों पर रूई के पीस, टेप से चिपका रखे थे।
“मिस्टर ओबराय। आप एक दम से आंख नहीं खोलेंगे। धीरे-धीरे आहिस्ता-आहिस्ता आंखें खोलेंगे। कमरे में काफी हद तक हमने अंधेरा कर रखा है कि तेज रोशनी से आंखों को परेशानी न हो।" कहने के साथ डॉक्टर भूटानी ने नर्स को इशारा किया।
नर्स ने पहले एक आंख पर से टेप हटाकर रूई हटाई फिर दूसरी आंख से ।
अब अमन ओबराय का खूबसूरत, गोरा चेहरा सामने था। आंखें बंद थी उसकी।
"गुड ।” डॉक्टर भूटानी गम्भीर स्वर में बोला--- “एक दम से आंखें मत खोलना। धीरे-धीरे पलकें हिलाओ। धीरे-धीरे आंखें की पुतलियां हिलाओ और फिर इसी तरह जरा-जरा करके पलकें खोलो। आराम से, कोई जल्दी नहीं करना। अगर किसी प्रकार की कोई तकलीफ हो तो बता देना। लेकिन ऐसा नहीं होगा। जैसा मैंने कहा है वैसा करो मिस्टर ओबराय ।"
अमन ओबराय की बंद पलकें हिलाने लगा। कंपकपाने लगा।
बंद आंखों के पीछे पुतलियां धीरे-धीरे हरकत करती दिखाई दे रही थी।
फिर धीरे-धीरे वो पलकें खोलने लगा खोलने लगा खोलने लगा और आंखें खुल गई।
अमन ओबराय आंखें खोले सामने देखा रहा था।
सामने डॉक्टर भूटानी खड़ा व्याकुलता छिपाते, चेहरे पर मुस्कान लिए उसे देख रहा था।
"मिस्टर ओबराय, क्या तुम देख रहे हो---देखो मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूं।" भूटानी बोला।
अमन ओबराय ने पलकें झपकी।
“क्या तुम मुझे देख रहे हो, बोलो मिस्टर ओबराय---मैं तुम्हारे सामने...।"
“उल्लू के पट्ठे ।" एकाएक अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- "देख-देख क्या कह रहा है। मैं क्या अंधा हूं जो तू मुझे दिखाने की कोशिश कर रहा है। अमन ओबराय की नज़रें सब पर गई--- "तुम लोगों ने मझे घेर क्यों रखा है। मैं किधर हूँ ?" ओबराय के चेहरे पर ढेर सारा गुस्सा नजर आ रहा था।
"मिस्टर ओबराय आप...।" डॉक्टर भूटानी ने कहना चाहा।
"ओबराय-ओबराय क्या लगा रखी है।" अमन ओबराय गुर्राया--- "मैं हरीश खुदे हूं।" परन्तु अमन ओबराय के होंठों से आवाज अमन ओबराय की ही निकल रही थी--- “समझे, हरीश खुदे हूँ मैं---।"
डॉक्टर भूटानी की आंखों में हैरानी उभरी ।
अमन ओबराय के बदले व्यवहार पर सब चौंके।
रानी हक्की-बक्की रह गई।
“मिस्टर ओबराय ।" रानी कह उठी--- "मैं, रानी। आपके छोटे भाई की पत्नी---आपकी भाभी...।"
"रानी।" एकाएक अमन ओबराय के होठों से नर्म सी आवाज उभरी--- "हां तुम...।"
"चुप कर साले।" उसी पल अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- "तुम कौन है?"
"मैं अमन ओबराय हूं।" अमन ओबराय के होंठ हिले--- "तू मेरे भीतर कैसे आ गया---मैं---।"
“मैं किसी के भीतर नहीं आया। मैं हरीश खुदे हूं। पर तू कैसे मेरे भीतर आ गया?"
"ये मेरा शरीर है।"
"बकवास मत कर। जब मैं यहां हूं तो शरीर तेरा कैसे हो गया।" अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- "पता नहीं साले तू कौन है, चला जा यहां से। नहीं तो तेरा बुरा हाल कर दूंगा। अभी तू मुझे जानता नहीं।"
“ये मेरा शरीर है।" अमन ओबराय के होंठों से गुस्से भरी आवाज निकली--- "मेरी आंखों का ऑप्रेशन हुआ है।"
दोनो आवाजें अमन ओबराय के होंठों से निकल रही थी।
आवाज एक जैसी ही थी लेकिन लहजा अलग-अलग महसूस हो रहा था। पल-पल अमन ओबराय के चेहरे के भाव बदल रहे थे।
"बाई गॉड।" डॉक्टर भूटानी के होंठों से हैरानी भरा स्वर निकला--- "ये क्या हो रहा है।"
“क्या बात है डॉक्टर ?" उलझन में पड़ी रानी बोली--- "ओबराय साहब को क्या हो गया है।"
"मिसेज ओबराय मैं पागल हो जाऊंगा।" डॉक्टर भूटानी का चेहरा देखने लायक था--- "मिस्टर अमन ओबराय को जिसकी आंखें लगाई गई उस आदमी का नाम हरीश खुदे था और--और अब मिस्टर अमन ओबराय खुद को हरीश खुदे कह रहे हैं। कभी-कभी तो लगता है जैसे एक ही मुँह से दो आदमी बातें कर रहे हों। बाई गॉड मैं---।"
"बाई गॉड के लगते चाचे।" अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- “ये क्या बात कर रहा है कि मेरी आंखें तूने किसी और को लगाई, ऐसा है तो मैं कैसे देख रहा हूं। तू चूतिया डॉक्टर है। डॉक्टरी तेरे बस की नहीं है बेटे। कोई और धंधा कर ले। चल फूट यहां से और तू ।" अमन ओबराय ने रानी से गुस्से से कहा--- "तू लाल-पीली होकर, सज-धज के यहां खड़ी क्या मुझे देख रही है। फूट ले यहां से। मैं शादीशुदा हूं। मेरी पत्नी है टुन्नी। मुझे वो ही अच्छी लगती है।" अमन ओबराय ने गहरी सांस ली--- "वो मेरा इन्तजार भी कर रही होगी। मुझे उसके पास जाना है।"
रानी ओबराय हक्की-बक्की रह गई अमन ओबराय के होंठों से निकले शब्दों को सुनकर।
“कौन टुन्नी ?" रानी परेशान सी कह उठी।
“मेरी पत्नी टुन्नी और कौन?" अमन ओबराय मुंह बनाकर तीखे स्वर में बोला ।
“तूने शादी कब की ?" रानी की आंखें फैली हुई थी।
"सात-आठ साल हो गये।"
डॉक्टर भूटानी और बाकी सब हैरानी से उनकी बातें सुन रहे थे।
“सात-आठ साल---पर तुमने तो...।"
“नहीं रानी मैंने शादी नहीं की।" तभी अमन ओबराय के होंठों से दूसरे लहजे में शब्द बाहर निकले।
“अभी तो तुम कह रहे थे कि तुमने शादी...।"
“वो मैं नहीं हरीश खुदे कह रहा था--वो... ।”
“हरीश खुदे ?" रानी हैरानी में लुढ़कती कह उठी--- “उसी की आंखें तुम्हें लगाई हैं और वो तो मर चुका है।”
“वो-वो मेरे भीतर है।" अमन ओबराय ने कहा।
"ये कैसे हो सकता है।" रानी के होंठों से फटा-फटा सा स्वर निकला।
"अभी वो ही बात कर रहा...।"
“मैं फिर आ गया हूं।" अमन ओबराय के होंठों से दूसरे लहजे में आवाज निकली--- "मैंने कहाँ जाना है। तू जो भी है मेरे शरीर से निकल जा। मैं बहुत खराब बंदा हूँ। बहुत मारूंगा तुझे। अभी तो आराम से बात कर रहा हूं। चला जा---।"
"तू मेरे शरीर में है। मैं अमन ओबराय हूं।" अब दूसरे लहजे में आवाज निकली होठों से।
"तो तू इस तरह नहीं मानेगा।" अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली।
"मैं अमन ओबराय हूँ तू मेरे शरीर में है।" इस बार आवाज में गुस्सा था।
डॉक्टर भूटानी ने नर्स के कान में कहा।
"नींद का इंजैक्शन लाओ। जल्दी।"
नर्स फौरन बाहर निकल गई।
रानी हक्की-बक्की सी खड़ी अमन ओबराय को देख रही थी।
बाकी सब का भी ये ही हाल था।
स्पष्ट लग रहा था कि अमन ओबराय के होठों से अलग-अलग इन्सान बातें कर रहे हैं। उनके लिए ये अजूबा था। ऐसा तो उन्होंने कभी सुना भी नहीं था।
“तू जरूर मेरे से मार खायेगा।" अमन ओबराय के होंठों से खतरनाक आवाज निकली--- "और वो बैड से नीचे उतरा और दोनों बांहें हिलाकर चिल्लाया--- "हरामजादे सामने आ, मैं तेरी...।"
“सामने कैसे आऊं।” अमन ओबराय के होठों से दूसरे लहजे में आवाज निकली--- “ये मेरा शरीर है और तू मेरे भीतर आ गया है। तू बाहर निकलकर सामने आ।"
“ये मेरा शरीर है।" अमन ओबराय पांव पटक कर गुर्राया ।
तभी नर्स ने भीतर प्रवेश किया उसके हाथ में भरी हुई सीरिंज थी।
“सुनो।" डॉक्टर भूटानी बोला--- "तुम जो भी हो, ये इंजैक्शन लगवा लो।"
“क्यों?" हरीश खुदे गुर्राया ।
"मैं डॉक्टर हूं। तुम्हारा इलाज कर रहा हूं। तुम्हें दवा की जरूरत---।"
"मेरी सेहत तेरे से कहीं ज्यादा अच्छी है और तू बोत घटिया डॉक्टर है।” अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- “मेरी मान तो ये इंजेक्शन तू अपने को लगा ले। मैं तो चला टुन्नी के पास...।"
"रानी।" उसी पल अमन ओबराय के होंठों से दूसरे लहजे में आवाज निकली--- "टुन्नी इसकी पत्नी है, मेरी नहीं। मैंने तो अभी तक शादी भी नहीं की। तेरे को सब पता....।"
"अबे चुप।" अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- "तेरे को तो मैं सीधा करूंगा और---।"
“पकड़ लो इसे।" डॉक्टर भूटानी चिल्लाया।
दोनों डॉक्टर और नर्स अमन ओबराय पर झपट पड़े। अमन ओबराय को धक्का लगा, वो बैड पर जा गिरा। डॉक्टरों और नर्स ने उसे इस तरह जकड़ लिया कि वो हिल ना सके ।
“साले कुत्ते। एक को चार-चार पड़ते हो।" अमन ओबराय के होंठों से गुर्राहट निकली--- “हरीश खुदे को अभी जानते नहीं, तभी दादागिरी दिखा रहे हो। दो-दो करके आओ तो।"
"डॉक्टर भूटानी के इशारे पर डरी सी नर्स आगे बढ़ी और अमन ओबराय की बांह पर इंजेक्शन लगा दिया।
रानी फटी-फटी आंखों से अमन ओबराय को देखे जा रही थी।
अमन ओबराय आजाद होने के लिए तड़पता रहा, परन्तु उसे नहीं छोड़ा गया।
पांच मिनट बीतते-बीतते अमन ओबराय शांत पड़ने लगा नींद के इंजेक्शन का असर होने लगा था और अगले तीन चार मिनट में अमन ओबराय गहरी नींद में डूबता चला गया।
डॉक्टर भूटानी ने रूमाल निकाल कर माथे पर आया पसीना पौंछा।
कमरे में मौजूद हर कोई हक्का-बक्का था।
"डॉक्टर ।" रानी ओबराय घबराहट भरे स्वर में कह उठी--- "ये-ये अभी क्या हो रहा था?"
“डॉक्टर।" दूसरे डॉक्टर ने भूटानी को अजीब सी निगाहों से देखा--- "पेशेंट को क्या हुआ था अभी, वो कैसी बातें कर रहा था।"
डॉक्टर भूटानी हैरानी से नींद में डूबे अमन ओबराय को देखे जा रहा था।
“बाई गॉड।" भूटानी बड़बड़ाया--- "ये सच नहीं हो सकता।"
"क्या डॉक्टर?" रानी ने उसकी बड़बड़ाहट सुन ली थी।
“वो-वो...।" भूटानी ने उल्टी हथेली से माथे पर उभरे पसीने को पुनः पोंछा--- “नहीं, ये नहीं हो सकता।” भूटानी ने परेशान हाल में जेब से मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा। साथ ही कुछ बड़बड़ाता जा रहा था।
"डॉक्टर भूटानी।" रानी कह उठी--- "आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं...।"
“प्लीज मिसेज ओबराय।" भूटानी मोबाइल कान से लगाता कह उठा--- "जो कुछ हुआ, वो सबके ही सामने था। मैं मामले को समझने की कोशिश कर रहा हूं। मिस्टर ओबराय के होंठों से दो इन्सानों के लहजे में स्वर निकल रहे थे। एक स्वर का लहजा ओबराय साहब जैसा था और दूसरा स्वर, दूसरे स्वर को मैं नहीं जानता, शायद वो लहजा हरीश खुदे का होगा।"
“हरीश खुदे... ?"
"जिसकी आंखें ओबराय साहब को लगाई गई हैं।"
“वो तो ठीक है, पर हरीश खुदे का लहजा अमन के होंठों से कैसे निकलने...।"
"मैं इसी बात को समझने की कोशिश...।" तभी कान से लगा रखे फोन से आवाज आई--- “हैलो!"
“डॉक्टर विनायक, मैं डॉक्टर भूटानी बोल रहा हूं।" भूटानी व्याकुल सा बोला।
"हैलो डॉक्टर भूटानी। सब ठीक...।"
“विनायक ।" भूटानी ने कहा--- "यहां बहुत अजीब से हालात पैदा हो गये हैं। मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ रहा।"
"क्या बात है डॉक्टर ?"
“कुछ दिन पहले हरीश खुदे की डेड बॉडी से आंखें निकालकर, अमन ओबराय को लगाई...।"
"यस डॉक्टर। सब याद है मुझे। पांच-छः दिन पहले की ही तो बात है। क्या वो आंखें सैट नहीं हो पाई ?”
भूटानी ने लम्बी सांस लेकर खुद को संयत किया और बोला ।
"अभी अमन ओबराय की पट्टी खोली गई। आंखें सैट है, परन्तु-परन्तु...।”
“आप इतने घबराये हुए क्यों हैं?"
“अमन ओबराय के शरीर के भीतर हरीश खुदे की आत्मा आ गई लगती है जैसे।"
“बकवास ।" उधर से डॉक्टर विनायक तीखे स्वर में बोला--- "तुम पागलों की तरह बातें कर रहे हो।"
"तुमने देखा होता तो तुम भी पागलों की तरह बातें करते।" भूटानी ने जल्दी से कहा--- "अमन ओबराय के होंठों से दो लहजों वाले स्वर निकल रहे हैं। एक अमन ओबराय का लहजा है दूसरा शायद हरीश खदे का---।"
"कौन मानेगा तुम्हारी बात को ?”
"इस बात को यहां सबने देखा हुआ है।" भूटानी यकीन दिलाने वाले स्वर में कह उठा।
चंद पलों की खामोशी के बाद उधर से डॉक्टर ने कहा।
"मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नहीं। अब क्या पोजिशन है ?"
"किसी तरह मिस्टर ओबराय को नींद का इंजेक्शन देकर सुलाया है। मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि ये क्या हुआ था अभी। कभी-कभी तो देखा-सुना सब कुछ मुझे धोखा लगता है। हो सकता है जागने पर वो सामान्य हो जाये।"
"नींद के इंजैक्शन का असर कब तक खत्म होगा ?"
"छः-सात घंटे।"
“मैं दो-तीन घंटों में तुम्हारे पास पहुंचता हूं। मैं खुद देखूंगा अमन ओबराय को।"
"आ जाओ। उसके होश आने पर सब ठीक रहा तो मुझे खुशी होगी।" भूटानी ने कहकर फोन बंद कर दिया।
कमरे में गहरी खामोशी छाई हुई थी।
अमन ओबराय बैड पर गहरी नींद में डूबा पड़ा था।
"आप क्या कह रहे थे डॉक्टर कि हरीश खुदे की आत्मा, ओबराय साहब में आ गई है।" रानी कह उठी।
रानी ओबराय ने होंठ भींच लिए।
“मैं आत्मा को नहीं मानती डॉक्टर।" रानी ने दृढ़ स्वर में कहा।
“मैं भी नहीं मानता।" भूटानी परेशान सा कह उठा--- "ये आत्मा का मामला नहीं है। मैंने गलत कह दिया था।"
"तो फिर क्या हो रहा है ये?"
भूटानी ने रानी को देखा। दोनों डॉक्टरों और दोनों नर्सों को देखा।
“मिसेज ओबराय अभी किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए मुझे वक्त चाहिये। अब मुझे इसके होश में आने का इन्तजार है।"
“तब क्या होगा?"
“सम्भव है होश में आने पर ये सामान्य दिखे, पहले जैसा ।"
"परन्तु अब क्या हुआ था मिस्टर अमन को ये...।"
"इनके होश में आने से पहले मैं कुछ नहीं कह सकता। एक मिनट, अमन साहब किसी हरीश खुदे को जानते थे?"
"मेरे ख्याल में तो नहीं। परन्तु मैं अमन साहब के बारे में ज्यादा नहीं जानती।" रानी बोली--- “ये मेरे पति के बड़े भाई हैं। इनके बारे में एक हद तक ही जानकारी है मुझे। लेकिन ये तो पक्का है कि अमन के होंठों से दो लहजों में आवाजें निकल रही थी। एक लहजा अमन जी का था और दूसरा बदतमीजी भरा लहजा किसी और का था जो अपने को हरीश खुदे कह रहा था। ऐसा कैसे हो सकता है डॉक्टर ?"
"मेरे ख्याल में सब ठीक हो जायेगा। ओबराय साहब को होश आने दीजिये।"
"आंखों का काम तो ठीक हुआ ना डॉक्टर?" रानी ने पूछा।
"हां। ओबराय साहब सबको देख रहे थे। मेरी आशा से कहीं बढ़िया ऑप्रेशन हुआ। इस बारे में मुझे पूरी तसल्ली है। "
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इंस्पेक्टर किशन दारूवाला, पुलिस स्टेशन में अपने ऑफिस में बैठा फाइल पढ़ रहा था कि तभी सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे ने भीतर प्रवेश किया। दारूवाला ने नज़रें उठाकर उसे देखा ।
“सर। मैं मरने वाले हरीश खुदे की पत्नी टुन्नी के ब्यान ले आया हूँ।"
“ब्यान में कोई बात ?" दारूवाला ने उसे बैठने का इशारा किया।
“नहीं सर ।" मोरे कुर्सी पर बैठता कह उठा--- "हरीश खुदे की पत्नी नहीं जानती थी कि उसका पति किस फेर में है। उसका कहना है कि वो शाम को सब्जी लेने गया था फिर नहीं लौटा। उसका मोबाइल भी नहीं लगा। सारी रात वो फोन ट्राई करती रही और सुबह चार बजे जब फोन लगाया तो उस कॉल को सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे, यानी कि मैंने रिसीव किया। इससे पहले हरीश खुदे अण्डरवर्ल्ड के साठी ब्रदर्स के लिए काम करता था और कुछ महीनों से उसका काम छोड़कर घर में बैठा हुआ था।"
“उसकी पत्नी देवराज चौहान के बारे में कुछ नहीं जानती ?" दारूवाला ने पूछा।
"नहीं सर। वो देवराज चौहान को नहीं जानती ।" मोरे बोला।
इंस्पेक्टर दारूवाला ने सिग्रेट सुलगा ली।
"अब तो ये केस साफ है सर। बजरंग कराड़े और सोनी के पकड़े जाने से हमारी कई मुश्किल आसान हो गई। उन्होंने अपना मुंह खोल दिया है। सब साथियों के नाम बताये हैं और डकैती का सारा हाल बताया है। डकैती मास्टर देवराज चौहान इस डकैती का सरगना था। और उसके साथ जगमोहन भी था। जो कि देवराज चौहान का खास माना जाता है। साथ में सोहनलाल नाम का आदमी था जो कि ताले खोलने में माहिर है। बजरंग और सोनी का कहना है कि बैंक के वाल्ट के लॉक सोहनलाल ने ही खोले। इस डकैती में हरीश खुदे था, बजरंग और सोनी का कहना है कि देवराज चौहान, हरीश खुदे के लिए ये डकैती कर रहा था। वो हरीश खुदे को वाल्ट में पड़ा हीरा देकर, उसका कोई एहसान उतारना चाहता था।"
"वो हीरा सौ करोड़ से ज्यादा की कीमत का था और वो हमारे हाथ नहीं लगा।" दारूवाला बोला।
“मेरे ख्याल में देवराज चौहान ले गया है उस हीरे को।"
“सम्भव है।" दारूवाला ने सिर हिलाया--- "बजरंग और सोनी का कहना है कि वो हरीश खुदे को मारना नहीं चाहते थे परन्तु मजबूरन उस पर गोली चलानी पड़ी। यूं वो उसे बेहोश करने का इरादा रखते थे। वो बैंक का पचास करोड़ से ज्यादा का कैश ले भागे थे जो कि उनके साथ ही हमें मिल गया। परन्तु वो हीरा मिलना जरूरी है मोरे ।”
“उसे तो देवराज चौहान ले गया होगा। देवराज चौहान तो हाथ आने वाला नहीं।" सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे ने सोच भरे स्वर में कहा--- "बजरंग और सोनी के मुताबिक इस डकैती में पूरन दागड़े, उस्मान अली और सतीश बारू नाम के लोग थे। पूरन दागड़े और उस्मान अली के बारे में हम कुछ नहीं जान पाये, परन्तु दोनों ने सतीश बारू के फ्लैट के बारे में बता दिया, जहां उनकी मीटिंग हुआ करती थी। बारू के फ्लैट पर पुलिस गई तो बारू वहां नहीं मिला। उस फ्लैट में हीरा भी नहीं मिला। बारू के बारे में पता लगा है कि वो सालों से ड्रग्स का धंधा किया करता था। उसकी तलाश की जा रही हैं, परन्तु अभी तक तो नहीं मिला वो।"
"सतीश बारू कहां का रहने वाला है?"
“मैंने जानने की काशिश की सर। परन्तु नहीं पता चल सका। आस-पास के लोगों ने बताया कि कुछ सालों से बारू को अकेला ही देखा करते थे फ्लैट में। उसका परिवार या नजदीकी रिश्तेदार उसके पास कभी नहीं दिखा।"
"तो हमें क्या करना चाहिये मोरे?"
"सर मेरे ख्याल में तो मामले में जान नहीं रही। सब कुछ खुल गया है। डकैती करने वाले बाकी लोगों को वांटेड लिस्ट में डाल देते हैं। कभी इनके बारे में खबर लगी तो पकड़ लेंगे।"
"और वो हीरा?"
"देवराज चौहान हाथ में आ जाने वाली चीज नहीं है। बाकी जैसा आप कहें।" मोरे ने कहा।
दारूवाला के चेहरे पर सोच के भाव नज़र आ रहे थे।
"मोरे इतनी जल्दी इस केस को बंद करना ठीक नहीं होगा। डकैती करने वाले आजाद घूम रहे हैं। हमें उनकी तलाश करनी चाहिये। ये काम तुम करोगे। महीने-डेढ बाद ही इस केस को बंद करके रिपोर्ट कमिश्नर साहब को दे देंगे। हो सकता है इस दौरान तुम डकैती करने वाले बाकी लोगों के पास पहुंच ही जाओ।" दारूवाला ने कहा।
"ठीक है सर। मैं उन लोगों को तलाश करने की कोशिश करता हूं। हवलदार सुरेन्द्र काछी को मैं इस काम में साथ रखूंगा सर।"
“क्या बात है तुम काछी को हमेशा ही साथ रखते हो।" दारूवाला मुस्कराया।
"वो मेहनती है सर। तरक्की करेगा।" मोहन मोरे भी मुस्कराया।
“ठीक है। अब तुम उस्मान अली, पूरन दागड़े और देवराज चौहान, सतीश बारू के साथ सोहनलाल को ढूंढना शुरू कर दो।"
सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे, इंस्पेक्टर दारूवाला के ऑफिस से निकला कि फोन बजने लगा।
"हैलो।" मोहन मोरे ने मोबाइल निकाल कर बात की।
"सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे।"
"यस।" मोहन मोरे को आवाज पहचानी सी लगी।
"मैं डॉक्टर विनायक बोल रहा।"
"ओह, डॉक्टर साहब, कहिये कैसे फोन किया?"
"कुछ अजीब सा मामला सामने आया है। मैं चाहता हूँ सब तुम भी देखो।" उधर से डॉक्टर विनायक ने कहा--- "तुम्हें उस बॉडी की तो याद होगी ही, जो तुम मेरे पास लाये थे और उसकी आंखों को...।"
“सब याद है मुझे, पर बात क्या है?"
“उन आंखों को अमन ओबराय नाम के आदमी को लगाई गई थी। डॉक्टर भूटानी ने अभी मुझे फोन करके बताया कि ओबराय की आंखों की पट्टी आज खोली गई। आंखें खुलते ही ओबराय खुद को हरीश खुदे कहने लगा।”
"ये कैसे हो सकता है।" मोहन मोरे हक्का-बक्का रह गया।
“अब हालात ये हैं कि अमन ओबराय के होंठों से दो लहजों में बात हो रही है। भूटानी का कहना है कि एक लहजा ओबराय का है और दूसरा लहजा हरीश खुदे का हो सकता है।" उधर से डॉक्टर की आवाज कानों में पड़ रही थी।
“असम्भव, ये नहीं हो सकता।" मोहन मोरे दृढ़ स्वर में बोला।
“मुझे डॉक्टर भूटानी का फोन आया था। उसके बाद मैं उससे दो-तीन बार बात कर चुका हूं। डॉक्टर भूटानी जैसा इन्सान कभी भी गलत बात नहीं कह सकता। कुछ तो बात है। मैं वहां जा रहा हूं, क्या तुम भी वहां चल कर देखना चाहोगे।"
"हां।" मोहन मोरे अजीब से स्वर में बोला--- "मैं आता हूं, तुम कहां हो?"
“मैं घर पर हूं।" कहकर विनायक ने अपने घर का पता बता दिया।
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दोपहर के साढ़े तीन बज रहे थे।
डॉक्टर भूटानी के ऑफिस में, भूटानी खुद मौजूद था। रानी ओबराय थी। सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे और डॉक्टर विनायक मौजूद था और सुबह वाले दोनों डॉक्टर मौजूद थे। सुबह जो हुआ, वो डॉक्टर भूटानी ने पुनः दोहरा दिया था। दोनो डॉक्टरों ने भी ये ही कहा और रानी ओबराय ने भी ये ही कहा। सुनने के बाद डॉक्टर विनायक और मोहन मोरे स्तब्ध से थे।
खामोशी सी आ ठहरी थी वहां ।
"इस वक्त।" डॉक्टर भूटानी ने पुनः गम्भीर स्वर में कहा--- “नींद की दवा में डूबे अमन ओबराय के पास दो वार्ड ब्याय मौजूद हैं और दो नर्स मौजूद है जो सुबह भी थी। अगले आधे घंटे में उसे कभी भी होश आ सकता है।"
"मुझे यकीन नहीं होता।" डॉक्टर विनायक बोला।
"तो तुम्हें लगता है मैं गलत कह रहा हूँ।" भूटानी बोला--- "ऐसी बात है ही नहीं, ये ही ना?"
"इन्होंने जो कहा, ठीक कहा है।" रानी ओबराय गम्भीर स्वर में कह उठी।
"हम सब वहां थे।" दूसरा डॉक्टर कह उठा।
"डॉक्टर।" सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे ने कहा--- "जब हरीश खुदे की आंखें निकाली तब वो मरा पड़ा था।"
"हां?" भूटानी ने सिर हिलाया--- “ये काम मैंने किया था।"
"वो ना भी मरा हो, पर...।"
"वो डैड था।" डॉक्टर विनायक ने कहा--- "इस बात की गारण्टी मैं लेता हूं। जब तुम उसे लाये तो मैंने उसे चैक किया था।"
"वो जिन्दा हो या मरा हो। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, जो मैं कहने जा रहा हूं।" मोरे ने गम्भीर स्वर में कहा--- “मेरा ये कहना है कि किसी की आंखें किसी को लगाई जाये तो ऐसा नहीं होता, जो अभी मुझे बताया गया है।"
"कभी नहीं होता।" भूटानी बोला--- “मैं ऐसे सैकड़ों ऑप्रेशन कर चुका हूं। हरीश खुदे की आंखें ओबराय के लगा दी तो, हरीश खुदे का किस्सा खत्म हो जाता है। हमारे सामने सिर्फ अमन ओबराय होना चाहिये। परन्तु वहां तो कुछ और ही हो रहा था। अमन ओबराय के होंठों से दो लहजों में बात की जा रही है। एक शालीन भाषा है जोकि ओबराय की है, दूसरी भाषा टपोरी जैसी है। वो दोनों आपस में तू-तू मैं-मैं भी करते हैं। टपोरी लहजे वाला कहता है उसकी पत्नी का नाम टुन्नी है।”
मोहन मोरे उछलकर खड़ा हो गया।
उसकी आंखें फैल गई।
सबने उसे देखा ।
“उ-उसकी पत्नी टुन्नी है। उसने-उसने टुन्नी का नाम लिया?" मोरे की हालत देखने वाली हो गई।
"हां। पर तुम्हें अचानक क्या हो गया इंस्पेक्टर ?" विनायक ने पूछा।
"मैं टुन्नी से मिल चुका हूँ। वो हरीश खदे की पत्नी है। य-ये बात अमन ओबराय को तो नहीं पता कि हरीश खुदे की पत्नी का नाम टुन्नी है, तो ये बात अमन ओबराय के होठों से कैसे निकली ?" मोहन मोरे ने व्याकुल स्वर में कहा--- "पहले तो मैं सोच रहा था कि हो सकता अमन ओबराय किसी तरह का मजाक कर रहा हो, परन्तु अब कह सकता हूं कि ये मजाक नहीं है। ये...।"
"इंस्पेक्टर।" भूटानी ने चुभते स्वर में कहा--- "ये बात तो मैं भी समझ सकता हूं कि कौन-सी बात मजाक हो सकती है और कौन-सी नहीं। मैंने यूं ही विनायक को नहीं बुलाया। मुझे मामला गम्भीर लगा तभी तो...।"
“क्या ऐसा हो सकता है कि हरीश खुदे की आंखों में उसके जीवन का असर आ गया हो।” मोरे बोला।
"ऐसा कभी नहीं हो सकता।" भूटानी ने दृढ़ स्वर में कहा।
“ये कतई सम्भव नहीं ।" विनायक ने भी दृढ़ स्वर में कहा।
"तो फिर अमन ओबराय के होठों से हरीश खुदे कैसे बात कर रहा है?" मोरे ने दोनों को देखा।
"ये ही पहेली तो समझ नहीं आ रही कि कैसे हो रहा है सब ?" भूटानी बोला ।
"सम्भव है।" दूसरा डॉक्टर बोला--- “मिस्टर ओबराय मंजे हुए एक्टर हों और हम सब से मजाक कर रहे हों। जिसे हम नहीं समझ सके।”
"अमन ओबराय गम्भीर और पढ़ा-लिखा इन्सान है।" रानी कह उठी--- "मजाक से उसका कोई रिश्ता ही नहीं है। मैंने उसे कभी भी मजाक करते नहीं देखा। वो बिजनेस में व्यस्त रहने वाला इन्सान है। वो ऐसा मजाक कभी नहीं कर सकता।" रानी पल भर के लिए ठिठक कर पुनः कह उठी--- "अमन के होठों से, दूसरा आदमी, हरीश खुदे कह रहा था खुद को। वो कहता है कि टुन्नी उसकी पत्नी का नाम है और सात-आठ साल हो गये उनकी शादी को। उसी वक्त अमन कहता है मुझे कि मैंने शादी नहीं की, टुन्नी इसकी पत्नी का नाम है। इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि अमन ओबराय के शरीर के भीतर जाने कैसे हरीश खुदे का भी वास हो चुका है, जिसकी आंखें उसे लगाई गई।"
सबने एक दूसरे को देखा।
“हरीश खुदे, अमन ओबराय के शरीर में...नहीं। ये सम्भव ही नहीं हो सकता।” विनायक दृढ़ स्वर में कह उठा ।
“पर ये हुआ पड़ा है।" भूटानी गम्भीर स्वर में बोला--- “हमने ये सब देखा है।"
विनायक इन्कार में सिर हिलाता रहा।
"अमन ओबराय की शादी नहीं हुई?" मोहन मोरे ने पूछा।
"नहीं। अभी तक तो नहीं हुई।" रानी बोली ।
"आप कौन हैं?"
“उसकी भाभी। उसके छोटे भाई की पत्नी ।"
"आपके छोटे भाई नज़र नहीं आ रहे।"
"वो बैड पर रहते हैं। साल भर पहले उनका एक्सीडेंट हो गया था रीढ़ की हड्डी टूट गई और टांग कट गई।" रानी ने बताया।
मोहन मोरे सिर हिलाकर रह गया।
“अब इस पहेली को कैसे हल किया जाये कि अमन ओबराय को क्या हुआ है।" भूटानी बोला।
"मैं इस बात को कभी नहीं मान सकता कि अमन ओबराय को हरीश खुदे की आंखें लगाते ही उसमें हरीश खुदे का वास हो गया और वो भी ओबराय के होंठों से बोलने लगा।" डॉक्टर विनायक ने स्पष्ट तौर पर इनकार किया।
"परन्तु ऐसा हो रहा है।" रानी ने बेहद शांत स्वर में कहा।
भूटानी ने दीवार घड़ी पर निगाह मार कर कहा ।
"हमें मिस्टर ओबराय के पास चलना चाहिये। उस पर से अब नींद की दवा का असर हट रहा होगा।"
"तुम क्या कहते हो इंस्पेक्टर ?" विनायक ने मोरे से पूछा।
"ओबराय को देखे बिना, सुने बिना, मैं कुछ नहीं कह सकता। सब कुछ बहुत अजीब है मेरे लिए। हरीश खुदे मर चुका है। मैंने ही उसका संस्कार टुन्नी से करवाया था। इस काम में मैं हर वक्त खुदे की पत्नी के पास रहा। अब उसकी आंखें अमन ओबराय को लगा दी गई तो खुदे ओबराय के होठों से बोलने लगा। इस बात पर कोई भी यकीन नहीं कर सकता।”
“मैंने तो सब कुछ देखा है।" भूटानी बोला--- “और देखने के बाद भी मुझे यकीन नहीं आ रहा।"
"परन्तु मुझे अब यकीन होने लगा है कि ऐसा हो रहा है।" रानी गम्भीर स्वर में बोली।
"तुम्हें कैसे यकीन ?" भूटानी ने कहना चाहा।
"डॉक्टर। अमन के होठों से निकलने वाली आवाज का लहजा अमन से बिल्कुल अलग है। मतलब कि वो अमन है ही नहीं। फिर उसका ये कहना कि उसकी शादी हो चुकी है। वो अपनी पत्नी का नाम टुन्नी बताता है और इंस्पेक्टर साहब कहते हैं कि वास्तव में उसकी पत्नी का नाम टुन्नी है। ऊपर से अमन फौरन मुझे कहता है कि उसने शादी नहीं की। टुन्नी तो इसकी पत्नी है। मतलब कि अमन को इस बात का एहसास है कि उसके शरीर में कोई और भी मौजूद है। वो दोनों आपस में झगड़ते हैं और एक दूसरे को शरीर से निकल जाने के लिए कहते हैं, ये सब बातें हमें इस ओर ले जाती हैं कि हम इस बात को स्वीकार करें कि अमन के शरीर में दो लोग हैं। एक अमन और दूसरा बेशक हरीश खुदे ही हो।"
“पर ये कैसे सम्भव हो सकता है कि आंखें लगाते ही...।" विनायक की बात बीच में ही रह गई।
तभी तेजी से दरवाजा खुला और नर्स ने भीतर प्रवेश करते कहा।
"मिस्टर ओबराय जाग गये हैं।"
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अमन ओबराय ने आंखें खोली। अगले ही पल उठ बैठा। तभी उसकी निगाह बैड के दायें-बायें खड़े दोनों वार्ड ब्वाय पर पड़ी। जो कि सेहतमंद थे और उन्हें चुन कर यहां खड़ा किया गया था कि वे अमन ओबराय को आसानी से संभाल लें। सामने की तरफ सुबह वाली दो नसों में से एक खड़ी थी और कुछ घबराई सी उसे देख रही थी। दूसरी नर्स दो पल पहले ही बाहर गई थी, जब नींद टूटने से पहले उसने हिलना शुरू किया था।
"ये दोनों आदमी तेरे लिए खड़े किए हैं।" अमन ओबराय बोला।
"इन सालों को तो मैं एक ही घूंसे में लुढ़का देता हूं।" ओबराय के होठों से, हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज निकली और साथ ही शरीर तेजी से हिला जैसे बैड से उतरने वाला हो। लेकिन उसी पल ऐसा लगा जैसे शरीर थम गया हो। जबकि उसके शब्दों को सुनकर वार्ड ब्वाय तैयार से हो गये थे।
"तूने मुझे रोका क्यों ?” हरीश खुदे ने नाराजगी से पूछा।
"तू बेवकूफ है।" अमन ओबराय आराम से बोला--- “अक्ल से काम लिया कर।"
"मेरे पास बोत अक्ल है। तू ज्यादा सयाना ना बन ।”
"ये दोनों आदमी, हम लोगों के लिए खड़े किए गये हैं। सुबह की तरह तूने पंगा खड़ा किया तो ये हमें फिर नींद का इंजेक्शन लगा कर सुला देंगे। तू मुसीबतें बड़ी खड़ी कर रहा है।"
"वो साला डॉक्टर पागल है।" हरीश खुदे ने गुस्से से कहा।
"डॉक्टर ठीक है। पर तेरी समझ में बात नहीं आ रही।" अमन ओबराय बोला ।
"क्या बात?"
"ये ही कि ये मेरा शरीर है। तू मेरे शरीर से चला जा। भला एक शरीर में दो लोग कैसे रह सकते हैं।"
"नहीं रह सकते। तभी तो कहता हूं कि तू मेरे शरीर से चला जा।" हरीश खुदे बोला।
“ये मेरा शरीर है।" अमन ओबराय ने कहा।
"ये मेरा शरीर है।"
"ये हाथ देख।" अमन ओबराय ने दोनों हाथ आगे किए--- "क्या ये तेरे हाथ हैं।"
"बस, ये शरीर मेरा है।" हरीश खुदे ने पांव पटकने वाले स्वर में कहा।
"तूने अपना नाम हरीश खुदे बताया था ना?" अमन ओबराय बोला।
"हां और तू अमन ओबराय है।"
"बिल्कुल हूँ। पर एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही।" अमन ओबराय बोला ।
“जो समझ में ना आये वो मेरे से पूछ लिया कर।"
अमन ओबराय के होंठ तेजी में हिल रहे थे। क्योंकि दोनों लहजे वाले शब्द ओबराय के होठों से निकल रहे थे। जबकि दोनों वार्ड ब्वाय और नर्स हैरानी, परेशानी से उनकी बातें सुन रहे थे।
"तू मेरे शरीर में कैसे आ गया?"
“मैं नहीं तू मेरे शरीर में आया है।"
"जो भी समझ। हम एक ही शरीर में कैसे इकट्ठे हो गये। भगवान ने एक शरीर एक के लिए बनाया है।"
"ये मैं नहीं जानता कि हम इकट्ठे कैसे हो गये।" अमन के होठों से हरीश खुदे के लहजे में शब्द निकले--- “मुझे ये समझ नहीं आ रही कि मैं यहां पर क्या कर रहा हूं। मुझे टुन्नी के पास जाना है।"
“टुन्नी। तेरी पत्नी है ना?"
"हां।"
"खूबसूरत है?"
"बहुत। मैंने उसे घर से भगाकर शादी की थी।"
"पर तू टुन्नी के पास जाकर क्या करेगा। ये शरीर तो मेरा है।"
"नहीं। मेरा है। मैं टुन्नी के पास जा रहा हूं।"
अगले ही पल अमन ओबराय का शरीर बेड से उतरने के लिए हिला।
फिर थम गया।
"तू मुझे रोकता क्यों है।” हरीश खुदे ने झल्ला कर कहा।
"कोई उल्टी हरकत मत कर।"
"पत्नी से मिलना क्या उल्टी हरकत है?"
“वो बात नहीं। हम अपना फैसला तो बाद में भी कर लेंगे। पर ये हॉस्पिटल है। मैं डॉक्टर की देख-रेख में हूं। वो इस तरह मुझे नहीं जाने देंगे। तू कोई पंगा खड़ा करेगा तो इस बार ये मेरे साथ और भी सख्ती करेंगे। ये जो दो आदमी यहां पर खड़े हैं ये हमें यहां से बाहर नहीं जाने देंगे।" अमन ओबराय ने कहा।
“इन्हें तो मैं अभी संभाल लेता।"
"संभालना नहीं है। चालाकी से काम लेना है।" अमन ओबराय ने कहा ।
"वो कैसे?” हरीश खुदे ने पूछा।
“तू बिल्कुल चुप हो जा। चुप ही रहना। डॉक्टर आयेगा, मैं बात करूंगा। वो मेरी आंखें चैक करेगा मेरा हाल-चाल पूछेगा। तसल्ली से चला जायेगा और कल तक मुझे यहां से छुट्टी भी मिल जायेगी। फिर यहां से बाहर जाकर हम आपस का मामला सुलझा लेंगे। ये ही एक रास्ता है यहां से निकलने का।"
दोनों वार्ड ब्वॉय अमन ओबराय को घूरे जा रहे थे।
नर्स परेशान सी खड़ी अमन ओबराय को देख रही थी।
“ये कैदखाना है या हॉस्पिटल। जहां से जाने के लिए उस पागल डॉक्टर से इजाजत लेनी पड़ेगी।"
"डॉक्टर से इजाजत लेना जरूरी है।"
“समझ में नहीं आता, मैं कहां आ फंसा हूं।"
“अभी कुछ मत समझ। जैसा मैं कहता हूं वैसा कर। यहां से निकल कर हम आपस में बात कर लेंगे।"
“ठीक है।" हरीश खुदे ने गहरी सांस ली।
“तो अब तू नहीं बोलेगा ना?" अमन ओबराय ने कहा।
"नही बोलता ।"
"बिल्कुल चुप रहना। डॉक्टर अभी जरूर आयेगा। उससे सिर्फ मैं ही बात करूंगा।"
"मानी तेरी बात। मैं चुप रहूंगा।"
"अभी से चुप कर जा। मैं इन लोगों से बात करता हूं।" अमन ओबराय बोला।
हरीश खुदे की आवाज नहीं आई।
अमन ओबराय ने बैड के आस-पास खड़े दोनों आदमियों को देखा और नर्स से कहा।
"सिस्टर पानी देना।"
नर्स हिचकिचाई सी खड़ी अमन ओबराय को देखती रही।
नर्स को देखते हुए अमन ओबराय के चेहरे पर मुस्कान उभरी।
तभी वार्ड ब्वाय ने जग से पानी का गिलास भरा और अमन ओबराय को दिया।
ओबराय ने पानी पीकर गिलास वापस रख दिया फिर नर्स से बोला ।
"मुझे भूख लग रही है। खाने को यहां क्या-क्या मिलेगा?"
"सब कुछ मिलेगा सर।" नर्स ने हिम्मत करके कहा--- "जो भी आप कहेंगे, वो मिलेगा।"
"दो सैंडविच और दो कटलेट के साथ कॉफी...।"
"ये क्या बेकार की चीज मंगा रहे हो ।" हरीश खुदे कह उठा।
"तू फिर बोला ।"
"बोलूंगा नहीं। तेरा खाने का टेस्ट बहुत घटिया है। सैंडविच कटलेट। इन्हें खाकर पेट भरेगा क्या। मक्खन वाले नान मंगवा। डोसा या भटूरे मंगा। कम से कम पेट तो भरे। ये अंग्रेजों वाले खाने में मेरा कुछ नहीं होगा।"
"तो तू चुप नहीं करने वाला।" अमन ओबराय ने नाराजगी से कहा।
"मैं तो तेरा ऑर्डर दुरस्त कर रहा...।"
"कुछ भी दुरस्त करने की जरूरत नहीं है। तू चुप रहेगा तभी हमें यहां से आजादी मिलेगी। तू बोलेगा तो डॉक्टर समझेगा मुझे कोई नई बीमारी लग गई है जो मैं उल्ट-पुल्ट बोल रहा हूं। वो मेरे चैकअप के लिए किसी और डॉक्टर को बुला लेगा या एम्बूलेंस मंगवा कर मुझे किसी दूसरे अस्पताल भेज देगा।"
"हमारी मर्जी के बिना वो ऐसा नहीं कर सकता। बिल किससे लेगा।" हरीश खुदे ने कहा।
"उसे पैसे की फिक्र नहीं। वो जानता है कि मैं करोड़पति हूँ। मेरे पास बहुत दौलत है।"
"अच्छा। तू करोड़पति है।"
"हां।"
"पर मुझे अपने बारे में कुछ याद क्यों नहीं आ रहा कि मैं कितना करोड़पति हूं...।"
"मैं तुझे...।"
तभी दरवाजा खुला और नर्स के साथ डॉक्टर भूटानी ने भीतर कदम रखा उसके पीछे डॉक्टर विनायक और सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे था और फिर सुबह वाले दोनों डॉक्टर ।
"डॉक्टर आ गया है।" अमन ओबराय ने धीमें से कहा--- “अब चुप रहना।"
हरीश खदे की आवाज नहीं आई।
“मिस्टर ओबराय अब कैसे हैं सिस्टर ?" डॉक्टर भूटानी ने भीतर प्रवेश करते ही नर्स से पूछा।
"ठ-ठीक हैं डॉक्टर।" नर्स की निगाह अमन ओबराय पर गई।
"कुछ बात की?"
"खाने के लिए कह रहे थे सैंडविच-कटलेट और कॉफी---।" नर्स बोली।
"कैंटीन में इन्टर कॉम करो मिस्टर ओबराय के लिए।" डॉक्टर भूटानी राहत की सांस लेता बोला--- “कुछ और खास?"
"पेशेंट अपने आप से ही बातें करता रहा है। धीमी आवाज में बोलता रहा है।" नर्स बोली।
डॉक्टर भूटानी की निगाह अमन ओबराय पर जा टिकी।
"आप कैसे हैं मिस्टर ओबराय ?" भूटानी ने पूछा ।
"आई एम फाइन डॉक्टर, मैं अब फिर से देखने लगा...।" कहते-कहते एकाएक अमन ओबराय का चेहरा गुस्से से भर गया। और उसके होठों से हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज निकली। वो डॉक्टर विनायक और सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे को देख रहा था--- "मुझे सब याद आ गया है। मुझे गोलियां लगी थी। मैंने बैंक में डकैती की थी। ये पुलिस वाला। इसका नाम मोहन मोरे है। हां--मोहन मोरे। जब ये मुझे पुलिस वैन में हॉस्पिटल ले जा रहा था तो मेरे मोबाइल पर टुन्नी का फोन आया था। इसने टुन्नी से बात की थी।" फिर हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज ने वो सब बातें बताई जो तब मोरे ने टुन्नी से की थी।"
मोहन मोरे के चेहरे पर हैरानी फैलती चली गई।
"तुम कौन हो?" सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे ने पूछा।
“अब तू मुझे भी नहीं पहचान रहा। मैं हरीश खुदे हूं।" गुस्से से कहा खुदे ने ।
“तू फिर बोला।” अमन ओबराय ने कहा--- "मैंने तुझे चुप रहने को कहा था।"
“तू चुप रह ।” हरीश खुदे के लहजे की गुर्राहट भरी आवाज, अमन ओबराय के होंठों से निकली--- “मुझे सब याद आ गया है कि मैं---।"
“तुमने ठीक वो ही बातें बताई जो मैंने तेरी पत्नी से की थीं।" मोहन मोरे सम्भल कर बोला--- “पर ये बातें तो मैंने तब की, जब तू मर चुका था। तब तेरी लाश को मैं हॉस्पिटल ले जा रहा था। फिर तुझे कैसे---।"
"लाश?” अमन ओबराय के होंठों से हरीश खुदे की लहजे वाली आवाज निकली--- “मेरी लाश?"
“हां। तब तुम मर चुके थे। तुम्हारी लाश मेरे सामने पड़ी थी फिर इन बातों का तुझे कैसे पता?” मोरे हक्का-बक्का था।
अमन ओबराय के होंठ कुछ देर बंद रहे। सोचें चेहरे पर दिखी।
"जब मैंने तुम्हारी पत्नी से बात की तब तुम जिन्दा नहीं थे, फिर तुम्हें कैसे पता कि---।"
"हां। याद आया, मैं तो मर गया था तीन गोलियां मुझे मारी गई थी।" हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज में सोच के भाव स्पष्ट दिख रहे थे--- “एक गोली पीठ पर और दो छाती पर। तब मैं बजरंग कराड़े का मुकाबला कर रहा था कि सोनी ने मुझ पर गोलियां चला दी। साले, गद्दार, हरामजादे, कुत्ते जरूर पैसे लेकर भाग गये होंगे।" खुदे की आवाज गुर्रा उठी।
मोहन मोरे पैनी नज़रों से अमन ओबराय को देख रहा था।
“तुम मर चुके थे फिर तुम्हें कैसे पता कि मैंने तुम्हारी पत्नी से क्या बात... ।"
“सही कह रहे हो पुलिस वाले। तब मैं मर चुका था।” हरीश खुदे का स्वर तेज हो गया--- “परन्तु मेरी ज़िन्दा आंखें सब देख रही थी। कान सुन रहे थे। मेरा दिमाग ठीक से काम कर रहा था। मैं सब कुछ...।"
"ये कैसे हो सकता है।" मोरे के होंठों से निकला।
“ये ही हुआ था। मेरे दिल की धड़कन जरूर रुक चुकी थी। मेरे हाथ-पैर शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। देखने में मृत था परन्तु मेरा दिमाग बढ़िया काम कर रहा था। मेरी आंखें मरने के बाद भी खुली रह गई थी। मेरे कान सामान्य तौर पर काम कर रहे थे। मैं अपनी आंखें नहीं घुमा सकता था देखने के लिए। परन्तु जो मेरी आंखों के सामने आ जाता, उसे मैं देख सकता था। मैं तुम्हें भी तब देख लेता जब तुम मेरी आंखें के सामने आ जाते थे। मैं सब देख-समझ रहा था पलिस वाले।"
सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे हैरान सा अमन ओबराय को देख रहा था।
बाकी सब भी बुरे हाल में खड़े थे।
“तु-तुम सच में हरीश खुदे हो?" मोरे ने अजीब से स्वर में कहा।
"हां। मैं ही खुदे हूं।"
"तुम्हारे शरीर का संस्कार तो मैंने ही किया...।"
"तू बहुत कमीना पुलिस वाला है और ये डॉक्टर।" अमन ओबराय का हाथ डॉक्टर विनायक की तरफ उठा। होंठों से आवाज हरीश खुदे के लहजे वाली ही निकल रही थी--- "ये डॉक्टर भी हरामजादा है। मुझे जब तुम हॉस्पिटल लेकर आये तो, इस डॉक्टर ने मेरा चैकअप किया। मुझे मरा पाकर ये तुमसे मेरी आंखें का सौदा करने लगा और तुम भी तैयार हो गये। मेरी आंखें अमन ओबराय को लगायी जानी थी। इसके लिए तुमने बीस लाख लिया। अपने साथी पुलिस वाले को पांच लाख दिलवाया और टुन्नी के लिए दस लाख लिया। टुन्नी का पैसा भी तुम खा गये होगे या उसे पांच लाख ही दिया होगा।"
"मैंने तुम्हारी पत्नी को दस लाख दिया है।” मोरे के होंठों से निकला।
"फिर तो बहुत बड़ा जिगरा दिखाया तुमने।” हरीश खुदे का स्वर कड़वा हो गया।
मोहन मोरे से कुछ कहते ना बना।
कमरे में सन्नाटा ठहरा हुआ था।
"ये जो जो भी कह रहा है वो सही है ?" भूटानी ने मोरे और विनायक को देखा।
"इसकी हर बात सही है।" मोरे की निगाह अमन ओबराय पर थी।
"मैं तुम्हारी आंखें चैक करना चाहता हूं मिस्टर ओबराय ।" भूटानी बोला।
"अपनी आँखें चैक करा तू ।” गुर्रा उठा हरीश खुदे--- "तू बेकार का डॉक्टर है। मुझे नहीं लगता कि तेरी आंखें ठीक हैं। मेरी आंखें एकदम सही हैं। मेरी आंखों को कभी कोई बीमारी नहीं हुई ।"
"प्लीज मिस्टर ओबराय मैं---।"
"चुप कर साले।" हरीश खुदे ने दांत भींचकर कहा--- “मैं हरीश खुदे हूं ओबराय नहीं ।"
खामोशी ठहर चुकी थी कमरे में।
किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है ।
हैरत का आलम सबके दिमागों पर छाया हुआ था।
"तुम मानते हो ना, मर गये थे तुम ।" मोहन मोरे ने गम्भीर स्वर में कहा।
"हां तीन गोलियां लगी थी मुझे। दगाबाजी में मारा गया।"
"फिर अब अमन ओबराय के शरीर में कैसे पहुंचे गये?"
"ज़िन्दा आंखों के कारण।"
"ज़िन्दा आंखें?"
"हां। मेरी आंखें कभी मरी ही नहीं थी। वो सब देख रही थीं कान सुन रहे थे। दिमाग ठीक से काम कर रहा था। परन्तु मेरा शरीर मर चुका था। दिल की धड़कन रुक चुकी थी। आंखें जो देखती हैं, उसका सिगनल दिमाग को जाता है और शरीर उसी हिसाब से काम करता है। मेरी जिन्दा आँखें दिमाग को सिगनल तो दे रही थी परन्तु शरीर काम करने की स्थिति में नहीं था। इसलिए मैं बेबस सा पड़ा सब देखता-सुनता रहा। फिर मेरी आंखें निकालकर एक शीशी में बंद कर दी गयी। मुझे सुनना और समझना बंद हो गया। आंखों के शीशी में बंद हो जाने के बाद मैं देख तो सब कुछ रहा था परन्तु समझ नहीं रहा था क्योंकि मेरे पास दिमाग नहीं था तब। उसके बाद मेरी आंखें इस डॉक्टर ने अमन ओबराय के चेहरे पर फिट कर दी। आंखों पर पट्टी बांध दी। मझे दिखना बंद हो गया। फिर लम्बे समय तक मैंने कुछ नहीं देखा। जब आंखों पर से पट्टी हटाई गई तो मैंने देखना शुरू कर दिया। परन्तु मेरी सोचें बिखर चुकी थी। मुझे ठीक से अपने बारे में कुछ भी याद नहीं आ रहा था कुछ ही बातें मुझे याद रही। परन्तु अब धीरे-धीरे मुझे सब याद आ गया है। मैंने अमन ओबराय के दिमाग के एक हिस्से पर अपने लिए काबू पा लिया था। दिमाग दो हिस्सों में बंटा होता है। दाईं तरफ का दिमाग बाईं तरफ का दिमाग। इस वक्त एक तरफ का दिमाग मैं इस्तेमाल कर रहा हूं और दूसरी तरफ का दिमाग अमन ओबराय इस्तेमाल में ला रहा है। मैं मर गया था परन्तु मेरी आँखों ने मुझे जिन्दा रखा। हरीश खुदे मर कर भी नहीं मरा पुलिस वाले। मेरी आंखों ने मुझे जिन्दा रखा। देख लो, इस वक्त मैं तेरे से बात कर रहा हूँ।"
सब सन्न थे।
मोहन मोरे हैरान सा अमन ओबराय को देख रहा था।
डॉक्टर भूटानी, विनायक सब बुरे हाल में थे।
रानी ओबराय सब कुछ देख-सुनकर ठगी सी खड़ी थी ।
किसी को इन हालातों पर भरोसा नहीं हो रहा था। परन्तु जो था सामने था इस सच को झुठलाया भी नहीं जा सकता था।
“म-मैं तुम्हें हरीश खुदे नहीं मान सकता।" डॉक्टर भूटानी के होठों से निकला ।
"तेरी परवाह ही कौन करता है। मैं हरीश खुदे हूँ। तेरे ठप्पे की जरूरत नहीं है मुझे।"
"ऐसा कभी नहीं हो सकता, जो तुमने कहा है। इन्सान मर जाता है तो उसकी आंखें भी मर जाती---।"
"मेरी आंखें नहीं मरी। मेरी आंखें हर पल जिन्दा रही। गोलियां लगने के बाद मेरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया परन्तु आंखें दिमाग और कान काम करते रहे। अब मेरी आंखें बंच गई क्योंकि इन्हें निकाल कर तुमने सुरक्षित रख लिया था। तुमने मेरी आंखों को ओबराय पर लगा दीं। आंखें खुली तो मेरी आंखों ने देखना शुरू कर दिया। आंखें जो देखती है वो दिमाग को सिगनल देती है। और इस प्रकार आंखें दिमाग पर कब्जा किए रहती है। दिमाग पूरे शरीर को कंट्रोल करता है इस प्रकार इन्सान का शरीर चलता है। और सब काम होते हैं। मैं जिन्दा हूँ मैं कभी भी नहीं मरा। हरीश खुदे सलामत है।"
“परन्तु ये शरीर तुम्हारा नहीं है।"
"तो क्या हो गया। इस पर लगी आंखें तो मेरी हैं। सब कुछ मैं पहले की तरह देख रहा हूं।" हरीश खुदे हंसा--- "ये तो करिश्मा हो गया। इसे तुम आंखें का करिश्मा भी कह सकते हो। ये देखकर तुम सब हैरान हो रहे हो, परन्तु मुझे कोई हैरानी नहीं हो रही। क्योंकि मैं तो पहले की ही तरह सामान्य ढंग से दुनिया देख रहा हूं।"
सबकी सांसें थमी हुई थी हरीश खुदे की बातें सुनकर।
किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
सामने अमन ओबराय था। सामने हरीश खुदे भी था खुदे इस हाल में था कि उसे नाकारा भी नहीं जा सकता था। उसकी बातों को नज़रअंदाज भी नहीं किया जा सकता था।
"मैं अमन ओबराय से बात करना चाहता हूं।" डॉक्टर भूटानी परेशान सा कह उठा ।
"कर लो।” हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज ने कहा।
"कहो डॉक्टर।" तभी अमन ओबराय की शांत आवाज सबने सुनी।
"तुम अमन ओबराय हो?" भूटानी ने व्याकुल स्वर में पूछा।
"यस डॉक्टर। मैं ओबराय हूँ।"
"यहां जो भी हो रहा है तुम्हें पता है?" भूटानी ने पूछा।
“क्यों नहीं पता। सब पता है मुझे। जो भी हो रहा है मेरे शरीर के भीतर हो रहा है।"
“ये हरीश खुदे क्या कहता है कि---।"
"वो जो भी कह रहा है ठीक कहता है। मैं उसे अपने शरीर में महसूस कर रहा हूं। उसने मेरे आधे दिमाग पर कब्जा कर लिया है और दिमाग के उस हिस्से से मेरे सोच-विचार निकाल कर दिमाग के दूसरे हिस्सों में डाल दी है। समझो कि दिमाग का आधा हिस्सा उसने ले लिया है और आधा मेरा है।" अमन ओबराय ने शांत स्वर में कहा।
“मतलब कि तुम मानते हो कि हरीश खुदे तुम्हारे भीतर है।"
"कोई मेरे शरीर के हर हिस्से का इस्तेमाल कर रहा है। वो इस शरीर का हिस्सा बन गया है।"
“तुम्हारा मतलब कि एक शरीर में अब तुम दो हो। अमन ओबराय भी हरीश खुदे भी।" भूटानी परेशान सा बोला।
“हां।"
"ये कैसे सम्भव है कि---।"
"सम्भव के बारे में मैं नहीं जानता। परन्तु ये सच है। मेरे शरीर में हरीश खुदे बस चुका है। कितनी बार तो तुमने उससे बातें की। उसकी बातें सुनी। क्या तुम्हें विश्वास नहीं हुआ अभी तक।"
“मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं किस पर भरोसा करूं और किस पर नहीं। ऐसा कभी नहीं होता कि जिस इन्सान की आँखें लगाई जायें, वो इन्सान भी शरीर के भीतर आ बसे। असम्भव है।"
“परन्तु अब मैं इसे सच मानता हूं।" अमन ओबराय ने कहा।
"क्या तुम्हें ये सब पसन्द है?"
"क्या?"
"हरीश खुदे का इस तरह तुम्हारे भीतर आ जाना?"
"मुझे नहीं पसन्द ।"
"तो उसे अपने शरीर से बाहर निकाल दो।"
“कैसे निकालूं?"
"ये तुम्हें पता होगा।"
"मुझे नहीं पता मैं कैसे खुदे को अपने शरीर से बाहर निकाल सकता हूँ।" अमन ओबराय ने कहा ।
तभी हरीश खुदे हंसा
"हंसे क्यों तुम।" भूटानी ने पूछा।
“मैं नहीं, हरीश खुदे हंस रहा है तुम्हारी बातें सुनकर।"
भूटानी ने होंठ भींच लिए। फिर बोला।
“हरीश खुदे के तुम्हारे भीतर आ जाने से तुम्हें क्या परेशानी हो रही है ओबराय ?"
"बहुत परेशानी है।" अमन ओबराय ने कहा--- "पहले मैं पूरी तरह आजाद था। मेरा शरीर मेरा था, पर अब इसमें हरीश खुदे भी आ गया है। मैं जो सोचता हूं वो ये भी समझ जाता है और ये जो सोचता है, वो मैं समझ जाता हूं। ये मेरे लिए परेशानी ही तो है ।"
"तुम इसे अपने शरीर से बाहर भी तो निकाल सकते हो।" भूटानी बोला ।
"कैसे?"
"ये तो तुम्हें पता होगा।"
"मुझे नहीं पता। पर मैं इसी बारे में सोच रहा हूं कि कैसे करूं। मैंने सैंडविच कटलेट के साथ कॉफी लेनी है और ये कुछ खाने को कह रहा है।" अमन ओबराय ने कहा।
"इसे कहने दो। तुम जो चाहते हो, वो खाओ।"
"तब ये मुझे खाने नहीं देगा।"
"तो क्या इसे भूख नहीं लगती ?"
"भूख तो हम दोनों को ही लगती है। पेट खाली होगा तो दोनों को तकलीफ होगी।"
डॉक्टर भूटानी वहां खड़े लोगों पर नज़र मारता बोला।
"मेरी जिन्दगी का ये हैरान कर देने वाला केस है। मुझे जरा भी समझ में नहीं आता कि ये सब कैसे हो सकता है। जो भी हो मैं ये बात हरगिज़ नहीं मान सकता कि हरीश खुदे मिस्टर ओबराय के शरीर में आ गया है, आंखें लगा देने से।"
"लेकिन भूटानी, सब कुछ तुम्हारे सामने तो है।" विनायक बोला ।
“ये फरेब है। मैं इसे सच नहीं मानता।" भूटानी ने इन्कार में सिर हिलाया।
"क्या मतलब है तुम्हारा फरेब से?"
"मेरा ख्याल है कि मिस्टर ओबराय ही कोई ड्रामा कर रहे हैं।" भूटानी ने कहा।
"ये क्या कह रहे हो डॉक्टर, मैं खुद ही बुरी तरह फंसा पड़ा हूं।"
तभी हरीश खुदे हंसा ।
"तुम दांत मत फाड़ो।" अमन ओबराय झल्ला कर बोला।
"मुझे बहुत मजा आ रहा है।" ओबराय के होठों से हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज निकली।
"इसमें मजे की कौन-सी बात है ?"
"सबके सिर घूमे पड़े हैं कि ये क्या हो रहा है। जबकि इस सच को तुम और मैं ही समझ सकते हैं।"
"तुम मेरे शरीर को छोड़ कर चले क्यों नहीं जाते ?"
"ये भी तुम्हारे हाथ में है।"
"क्या?"
"तुम चाहोगे तो मेरे से मुक्ति पा जाओगे।"
"वो कैसे?"
"अपने चेहरे पर लगी आंखें निकालकर किसी कूड़े के ड्रम में फेंक दो तो मेरे से भी पीछा छूट जायेगा।"
"तुम चाहते हो कि मैं फिर से अंधा हो जाऊं?" अमन ओबराय कह उठा।
"फिर नई आंखें लगवा लेना ।"
"क्या पता वो आंखें मुझे 'सूट' ना करें। नहीं, मैं ये आँखें नहीं निकलवाऊंगा ।"
"फिर तो मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा। तुम मेरे से पीछा नहीं छुड़ा सकते। तुम मेरी आंखों का इस्तेमाल करो और मैं तुम्हारे शरीर का। ऐसे ही बाकी की जिन्दगी कटेगी।” हरीश खुदे ने कहा।
"तो तुम हर वक्त मेरे साथ चिपके रहोगे।"
"तुम भी तो मेरे साथ चिपके हुए हो।"
"इस तरह जीना तो कठिन हो जायेगा।"
"चिन्ता मत करो। धीरे-धीरे तुम्हें आदत पड़ जायेगी। हम दो हैं, परन्तु हमें एक ही शरीर का इस्तेमाल करना है ।"
"तुम मेरी सोच समझ जाते हो ।"
"ऐसा तो मेरे साथ भी हो रहा है। पर मैं परवाह नहीं करता।"
"तुम बुरे इन्सान हो। मैं बिजनेसमैन अमन ओबराय हूँ। हम दोनों एक साथ नहीं रह सकते।"
"मैं बुरा हूँ?"
"हां। तुमने अभी डकैती की। उसी कारण तो तुम मारे गये थे और---।"
"हर इन्सान बुरा होता है।"
"बकवास ।"
"सच कह रहा हूँ। हर इन्सान बुरा होता है। किसी की बुराई नज़र आ जाती है तो किसी की नहीं। इन्सान दो रूपों में जिन्दगी जीता है, उसका एक रूप दुनिया के सामने रहता है और दूसरा रूप वो छिपा कर जीता है। उसे हमेशा इस बात की चिन्ता रहती है कि उसके दूसरे रूप के बारे में दुनिया ना जान ले। क्योंकि दूसरे रूप में बुराइयां होती हैं। इसलिए सब इन्सान ही बुरे होते हैं। तुम भी मेरी तरह बुरे हो।"
"मेरे में क्या बुराई है?"
"अभी तो हम दोनों का नया नया साथ जुड़ा है। धीरे-धीरे तुम्हारी बुराइयां भी मैं जान जाऊंगा परन्तु एक बुराई तो मैं तुम्हारी सोचों से जान चुका हूं। बेहतर होगा कि सबके सामने उस बारे में मत पूछो।"
अमन ओबराय की नज़रें रानी की तरफ उठी।
“सही समझे।" हरीश खुदे की आवाज निकली ओबराय के होठों से--- "परन्तु इस बारे में बाद में बात करेंगे। मैं तुम्हें सबके सामने नंगा नहीं करना चाहता। ये आपस की बात है।"
"तुम बहुत घटिया इन्सान हो।"
"तुम कौन-से बढ़िया हो। कपड़ों के नीचे तो सब नंगे ही होते हैं, बेशक कितने भी कीमती कपड़े पहन लिये जायें।"
"बात मत करो मुझसे।"
हरीश खुदे हंसा ।
सब ऑबरॉय के होंठों से निकलने वाली बातें सुन रहे थे।
परन्तु बातें उनकी समझ में नहीं आ रही थी।
“अब तुम इस बारे में क्या कहते हो इंस्पेक्टर।" भूटानी ने पलट कर सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे को देखा।
अमन ओबराय पर व्याकुल सी नजरें टिकाये मोरे बोला।
“ये मेरा केस नहीं है। पुलिस केस भी नहीं है। तुम डॉक्टर हो। तुम ही ने अमन ओबराय की आंखों का ऑपरेशन किया है। अब इस बारे में तो तुम ही कुछ कह सकते हो। लेकिन मैं हैरान हूं जो मैं समझ पाया, उससे ।"
"तुम क्या कहते हो विनायक कि ये---।"
"मेरी समझ में तो अभी तक कुछ नहीं आ रहा।" विनायक परेशान स्वर में कह उठा--- "मुझे विश्वास नहीं, इन बातों का।
रानी ओबराय, अमन ओबराव को देखे जा रही थी। उसकी बिल्लौरी आंखें सिकुड़ी पड़ी थी।
"हरीश खुदे ।" सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे बोला।
"बोल पुलिसवाले।" अमन ओवराय के होठों से हरीश खुदे के लहजे वाली आवाज निकली।
“तो तुम हरीश खुदे हो।”
"हां-हूं।" अमन ओबराय का सिर हिला ।
“तुमने नैशनल बैंक में डकैती की।”
"मैंने नहीं, देवराज चौहान ने की। डकैती मास्टर देवराज चौहान ने। मैं तो उसके साथ था।"
मोरे ने गहरी सांस ली। बोला।
"तुम ठीक कहते हो कि उस डकैती में देवराज चौहान था। वो कहां रहता है?"
"देवराज चौहान ?"
"हां---।"
"मैं तुम्हें उसके ठिकाने के बारे में नहीं बता सकता।” हरीश खुदे ने फौरन इन्कार किया।
"क्यों?"
"वो अच्छा बंदा है।" खुदे गम्भीर हो गया--- “वो सिर्फ मेरे लिए ये डकैती कर रहा था। उसने डकैती करके, सौ करोड़ के ऊपर की कीमत का हीरा 'स्टार डायमंड' मुझे देना था। क्योंकि मैं पीछे उसके काम आया था। वो अपना वादा पूरी तरह निभा रहा था वो बंदा गुड है पुलिस वाले। मैं तुम्हें उसका पता बताने से रहा---।"
मोहन मोरे, अमन ओबराय को देखता रह गया।
"क्यों सोचो में डूबे हो पुलिसवाले ?"
"तुमने ये बात भी ठीक कही। उसने तुम्हें हीरा देना था।" मोरे ने कहा।
"तुम्हें कैसे पता?"
"बजरंग कराड़े और सोनी पकड़े जा चुके हैं। उन्होंने अप बयान में ये बात बताई।"
"पकड़े गये ?" अमन ओबराय के होंठों से निकला।
“हां। तुम्हें शूट करके और सतीश बारू को बेहोश करके पैसों वाली वैन ले भागे थे।"
"हरामजादे। मेरा भी ये ही ख्याल था।"
“गाली मत दे।" अमन ओबराय कह उठा ।
"तू चुप कर साधू संत कहीं के। तू कौन सा भला इन्सान है। पूरा हरामी है तू भी।"
"गाली मत दिया कर ।"
“मैं दूंगा, तुझे क्या अपने काम से मतलब रख। हां तो पुलिस वाले, वो दोनों कमीने पकड़े गये ?"
"हां। वो महाराष्ट्र से, मध्य प्रदेश में नोटों से भरी वैन साथ प्रवेश करने जा रहे थे कि शहाडा में सीमा पर पुलिस ने बैरियर लगा रखा था और वो पुलिस के हाथ लग गये।" मोहन मोरे ने कहा।
"मैं तो सोच रहा था कि दोनों को ढूंढकर गोली मार दूंगा पर वो पकड़े गये।"
"मेरे साथ रहना है तो खून-खराबा नहीं होगा।" अमन ओबराय ने कहा।
"चुप कर तू।" हरीश खुदे ने कहा--- "तेरे से तो मैं बाद में बात करूंगा।"
"तू मेरे लिए मुसीबतें खड़ी करेगा।"
“अभी चुपकर। पुलिस वाले से बात करने दे।" फिर खुदे ने मोरे से कहा--- “वो कितना लम्बा नपेंगे ?"
"उम्र भर। उनका जुर्म संगीन है।" मोरे ने कहा--- "डकैती के साथ उन्होंने तुम्हारा मर्डर भी किया है।"
"मेरा मर्डर।" हरीश खुदे हंसा--- "क्या कहने, तो वो बूढ़े होकर जेल से निकलेंगे।"
"हां।"
"तो उन्हें भूल जाना होगा मुझे। और तो कोई नहीं पकड़ा गया?" हरीश खुदे ने पूछा।
"नहीं।"
अमन ओबराय का सोचों से भरा चेहरा हिला ।
"तेरे को बता देना चाहिये कि देवराज चौहान का ठिकाना कहां है।" मोरे ने कहा।
"कभी नहीं। मुझे कमीना मत समझ। देवराज चौहान के बारे में मैं तुझे कुछ नहीं बताऊंगा।"
"उसके पास वो हीरा है।"
"तो हीरा ले गया देवराज चौहान ?"
“हां। हीरा पुलिस को नहीं मिला। वो देवराज चौहान के पास ही होगा।"
"ये तो अच्छी बात है। पर तू मेरे से कुछ भी पता नहीं कर पायेगा। बजरंग और सोनी से पूछ ले।"
"वो देवराज चौहान का ठिकाना नहीं जानते। उन्होंने सिर्फ सतीश बारू के फ्लैट के बारे में ही बताया है।"
"वो ठीक कहते हैं। उन्हें देवराज चौहान के ठिकाने का नहीं पता। बारू के घर पर ही हमारी मीटिंग हुई थी।"
मोहन मोरे गम्भीर निगाहों से अमन ओबराय को देखता रहा फिर बोला ।
“पूरन दागड़े। उस्मान अली और सतीश बारू के अलावा और कौन लोग डकैती में शामिल थे?"
“तूने तो अपना पुलिस थाना खोल लिया मेरे सामने।” हरीश खुदे हंसा--- "पूछताछ शुरू कर दी।"
“क्योंकि तू भी उस डकैती में शामिल था।"
"तो गिरफ्तार कर ले मुझे।" खुदे ने हंस कर कहा।
मोहन मोरे ने गहरी सांस ली।
"मैं भी डकैती में था तो तू मुझे गिरफ्तार क्यों नहीं कर रहा?" हरीश खुदे ने व्यंग भरे स्वर में कहा।
"ये कुछ नहीं कर सकता।" अमन ओबराय बोला--- "तू मेरे भीतर है। तेरा शरीर तो है नहीं जो मुझे गिरफ्तार कर ले।"
"मुझे मत बता। सब जानता हूं। मुझे पढ़ाना बंद कर ।" खुदे ने उखड़े स्वर में कहा।
"मेरे में आकर तू बच गया। वरना पकड़ा ही जाता।" अमन ओबराय बोला ।
“अगर मेरा शरीर मेरे पास होता तो मैं इस पुलिस वाले को मुंह ही क्यों लगाता। टुन्नी के साथ किसी शानदार होटल में बैठा मजे मार रहा होता। बजरंग कराड़े और सोनी ने गद्दारी करके मेरे साथ बहुत बुरा किया।” हरीश खुदे ने बेमन से कहा--- "मुझे टुन्नी के पास जल्दी पहुंचना है वो मेरा इन्तजार कर रही होगी।”
"वो तेरा इन्तजार नहीं कर रही।"
"तुझे कैसे पता?"
“तू मर चुका है। तुझें फूंक-फांक कर अब वो शांत होकर बैठी होगी कि तू मर चुका है। ये पुलिस वाला बता तो रहा था कि तेरे संस्कार में इसने टुन्नी की पूरी सहायता की।" अमन ओबराय ने कहा।
"ये तो अच्छा हो गया कि पुलिस की नज़रों में मर गया। अब पुलिस मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। और टुन्नी के साथ पूरी ऐश करूंगा। मजा ही मजा होगा और मस्ती होगी।" हरीश खुदे हंस पड़ा।
"तू ऐश नहीं कर सकता। क्योंकि तेरे पास शरीर नहीं बचा।"
"ओह। ये तो मैंने सोचा नहीं। तो क्या हो गया। तेरा शरीर तो है ना। अब वो भी मेरा है।"
"तू पागल है।" अमन ओबराय मुस्कराया।
"क्यों ?"
"तेरे को टुन्नी पहचानेगी कैसे ?"
हरीश खुदे कुछ पल चुप रहकर बोला।
"मैं टुन्नी को समझा लूंगा। टुन्नी मुझे बहुत प्यार करती है। वो मेरी बात समझ जायेगी।"
"लेकिन मैं तो उसके लिए पराया मर्द रहूंगा। ये मेरा शरीर है। वो कैसे विश्वास कर लेगी कि तू इस शरीर में है।"
"बोला तो समझा लूंगा उसे ।"
"नहीं समझा सकता वो...।"
"चुप कर।" हरीश खुदे गुस्से से चिल्ला उठा--- "मैं उसे समझा लूंगा। वो समझ जायेगी। तुझे क्या---।"
"तू तो बात-बात पर नाराज हो जाता---।"
"चुप रह मेरा दिमाग मत खा। हम फुर्सत मिलने पर बाद में बात करेंगे।" खुदे के स्वर में अभी भी गुस्सा था।
"जब तू टुन्नी के पास जायेगा, तब देखूंगा तेरे नजारे---।"
"तू ज्यादा बोला तो मैं तेरी पोल खोल दूंगा सबके सामने।"
"कैसी पोल?"
"वो ही---।" इसके साथ ही अमन ओबराय का चेहरा रानी की तरफ घूमा।
"बड़ा कमीना है तू ।" अमन ओबराय ने कहा--- "जो ऐसी बातों पर उतर आया।"
हरीश खुदे ने कुछ नहीं कहा।
तभी सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे कह उठा।
"खुदे ।"
"बोल पुलिस वाले।"
"देवराज चौहान के बारे में तू नहीं बतायेगा ?"
“कभी नहीं।” हरीश खुदे ने दृढ़ स्वर में कहा।
“तो उस्मान अली, पूरन दागड़े और सतीश बारू के बारे में बता दे ।" मोरे बोला।
“क्या बता दूं?”
“उन्हें कहां पकड़ सकता हूं। वो कहां रहते हैं।"
"तेरा मतलब कि मैं कमीनेपन पर आ जाऊं...।"
"कमीनापन तो तू अभी मेरे साथ भी कर रहा था।" अमन ओबराय बोला।
"तू चुप रह। तेरे से बाद में बात करूंगा।" खुदे ने झल्ला कर कहा। नज़रें मोहन मोरे पर थी--- “मैं उनके बारे में तुम्हें बताकर उन्हें फंसाना नहीं चाहता। ये तो सरासर गद्दारी होगी। मैं घटिया इन्सान नहीं हूं।"
“तू जानता है कि वो तीनों कहां मिल सकते हैं?" मोरे ने पूछा।
"उस्मान अली और पूरन दागड़े के बारे में जानता हूं। बारू के बारे में नहीं ।" खुदे बोला ।
"तू तो मर चुका है।”
"तो?"
"फिर तेरे को उनके बारे में बताने में क्या हर्ज...।"
"ये तू कहता हैं कि मैं मर चुका हूं। पूरन दागड़े उस्मान अली कह सकते हैं कि मैं मर चुका हूं पर ये बात मैं अपने बारे में नहीं कह सकता। क्योंकि मैं अपने को मरा हुआ मानता ही नहीं ।" हरीश खुदे बोला।
"मैंने तेरी सोचों में महसूस कर लिया है कि उस्मान अली और पूरन दागड़े कहां मिलेंगे।" अमन ओबराय ने कहा--- "तेरी सोचों से मैंने देवराज चौहान का ठिकाना भी देख लिया है। उसके बारे में भी मुझे पता चल गया है।"
"तो फिर?" हरीश खुदे गुस्से से बोला--- “अब क्या करेगा तू?"
"तू बहुत जल्दी नाराज हो जाता है।" अमन ओबराय मुस्कराया--- "मैं पुलिस वाले को नहीं बताने जा रहा।"
"बता के तो देख। मैं तेरी टांगें तोड़ दूंगा।"
"टांगे तोड़ेगा।" अमन ओबराय हंसा--- "कैसे तोड़ेगा। मेरी टांग अब तेरी बन चुकी है। तू लंगड़ा हो जायेगा।"
"चुप हो जा तू। तेरे को कितनी बार कहा है कि तेरे से बाद में बात करूंगा।" खुदे ने दांत भींच कर कहा।
"हमने अब बातें ही तो करनी है।" अमन ओबराय ने गहरी सांस ली--- "तेरे से पीछा भी नहीं छुड़ा सकता।"
“भूल जा कि मेरे से पीछा छुड़ा सकेगा।” खुदे बोला और मोरे से कहा--- "कुछ और कहना है पुलिस वाले।"
"तुम मुझे उस्मान अली और पूरन दागड़े का पता बता दो।"
“कभी नहीं। ऐसा करके मैं गद्दार नहीं बनना चाहता।"
"मैं किसी से नहीं कहूंगा कि ये बात मुझे तेरे से पता चली।"
"मेरा जिक्र अब सिर्फ मरों में आयेगा पुलिस वाले। अगर मैंने तेरे को कुछ बताया तो, तू किसी को कुछ भी कह, कोई नहीं मानेगा कि खुदे ने तुझे कुछ बताया है। मरे हुए इन्सान, कभी किसी को कुछ बताया नहीं करते।"
मोहन मोरे, हरीश खुदे को देखता रहा।
“पुलिस वाले, तेरे को यकीन है कि मैं हरीश खुदे ही हूं?" हरीश खुदे ने पूछा।
"हां। मुझे पूरा यकीन है इस बात पर।" मोहन मोरे ने दृढ़ स्वर में कहा।
"कैसे यकीन हुआ ?"
"हमने जो बातें की, उस वजह से यकीन हुआ।" तुम हरीश खुदे ही हो।"
“तो ये बात इन सब लोगों को क्यों समझ नहीं आ रही?"
मोरे ने डॉक्टर भूटानी, विनायक और रानी को देखा फिर बोला।
"ये सब भी हकीकत समझ रहे हैं, परन्तु उस पर यकीन करने में वक्त ले रहे हैं।"
"ना भी यकीन करें तो मेरा क्या।" हरीश खुदे ने हंस कर कहा--- "मैं-मैं हूं। क्यों ओबराय ।"
अमन ओबराय गहरी सांस लेकर रह गया।
"मैं हमेशा तेरे को इसी अमन ओबराय के भीतर मिलूंगा पुलिस वाले। जब भी मेरे से बात करने का मन हो, आ जाना।"
"तू मुझे डकैती करने वाले अपने साथियों के बारे में बता देता तो मुझे खुशी होती।"
"पुलिस वालों की खुशी की मैं कभी परवाह नहीं करता। खासतौर से तुम्हारी परवाह तो जरा भी नहीं करता मैं। तुम घटिया इन्सान हो, मेरे मरते ही मेरी आंखों का सौदा कर लिया।"
"मैंने सही किया। तुम तो मर गये थे। तुम्हारी आंखों से किसी और को रोशनी मिल जाये तो इसमें बुरी बात क्या है।"
"कोई बुरी बात नहीं, परन्तु तुमने हां करने के बीस लाख लिए। इस डॉक्टर को भी मोटा पैसा मिला होगा।" हरीश खुदे ने विनायक से कहा--- “क्यों डॉक्टर तुम्हें कितना माल मिला?"
डॉक्टर विनायक बेचैनी से मोरे को देखने लगा।
"तुम शांत रहो।” मोरे ने विनायक से कहा--- "वो कहने के अलावा कुछ नहीं कर सकता। वो मर चुका है।"
"वहम है तुम्हारा कि मैं मर चुका हूँ।" हरीश खुदे ने कड़वे स्वर में कहा--- “मैं जिन्दा हूं। पहले की ही तरह हूं। सिर्फ मेरा शरीर बदल गया है। अब मैं अमन ओबराय के शरीर में आकर रहने लगा हूं।"
मोरे गम्भीर निगाहों से अमन ओबराय को देखने लगा।
"ओबराय ।" अमन ओबराय के होंठों से खुदे का लहजा निकला।
"हां।"
"हम यहां क्या कर रहे हैं। तेरी आंखों का ऑप्रेशन हो गया। तुझे आंखें मिली और मुझे शरीर। हम पूर्ण हो गये। यहां से चलते हैं। मुझे टुन्नी से मिलना है। भूख भी लगी है। बाहर चल के नॉन खाते हैं।"
"सैंडविच और कटलेट...।"
"ये भी भला कोई खाने वाली चीज है। इससे पेट नहीं भरता। इस बार तू मेरी बात मान ले। अगली बार मैं तेरी बात मान लूंगा। मिल-मिलाकर ही अब हम दोनों को जिन्दगी बितानी है। एक-दूसरे की बातें तो माननी ही होगी।"
"पता नहीं ऐसी जिन्दगी मैं बिता पाऊंगा कि नहीं?"
"तूने तो अभी से दिल छोटा कर लिया।" खुदे हंस पड़ा--- "मैं तुझे सहते रहने की सोच रहा हूं तो तू भी मुझे सहते रहने की सोच ले। एक-दूसरे के कूल्हों को सहला कर ही अब वक्त कटेगा।"
अमन ओबराय बैड से नीचे उतरा। डॉक्टर भूटानी से कहा।
"मैं जा रहा हूं डॉक्टर। 'बिल' तुम्हें रानी दे देगी।”
"मिस्टर ओबराय मुझे 'बिल' की चिन्ता नहीं है। मुझे तो आपकी चिन्ता है। सोचता हूं किसी डॉक्टर को बुलाऊं कि वो आपका चैकअप करके देख सके कि ऐसी क्या गड़बड़ हो गई जिसकी वजह से...।"
"मैं ठीक हूं डॉक्टर ।" अमन ओबराय ने नर्स से कहा--- "मेरे कपड़े ले आओ।"
इस वक्त अमन ओबराय के शरीर पर हॉस्पिटल के कपड़े थे ।
नर्स अचकचाई सी खड़ी उसे देखती रही।
“रानी।” अमन ओबराय बोला--- “मुझे यहां से जाना है। मेरे कपड़े कहां है?"
"तैयार रखे हैं।” नर्स बोली--- "अभी लाती हूं।" कहकर वो बाहर निकल गई।
“डॉक्टर।” अमन ओबराय ने भूटानी से कहा--- “अब आप लोग भी जायें। मुझे अकेला छोड़ दें।"
"श्योर कि आप ठीक हैं मिस्टर ओबराय ?" भूटानी हिचकिचा कर बोला।
"हां। मैं ठीक हूं।"
"वो हरीश खुदे जो आपके भीतर--।"
"मेरे भीतर कोई नहीं है।" अमन ओबराय ने मुस्कराकर भूटानी को देखा--- "तुम्हें दिख रहा है कोई? सिर्फ मैं ही हूँ। किसी से इस बारे में जिक्र करोगे तो पागल लगोगे। मैं अमन ओबराय हूँ और अमन ओबराय ही रहूंगा। रही बात हरीश खुदे की तो उसकी तुम जरा भी फिक्र मत करो। वो मेरी समस्या है और मैं उस समस्या से निपट लूंगा।"
"तुम बढ़िया ढंग से बात करते हो ओबराय ।" खुदे बोला--- “एकदम कड़क। सुनकर मुझे मजा आया।"
"मैं ऐसे ही बात करता हूं।"
"तेरी मेरी खूब जमेगी। जमानी पड़ेगी। अब तो एक-दूसरे के गले जो पड़ चुके हैं।"
तभी नर्स प्रेस कर रखे अमन ओबराय के कपड़े ले आई।
"थैंक्यू सिस्टर ।" अमन ओबराय कपड़े लेते बोला फिर भूटानी से कहा--- "डॉक्टर, मुझे अकेला छोड़ दीजिये।"
भूटानी ने अनमने ढंग से सबसे कहा।
"चलिये। मेरा पेशेंट एकान्त चाहता है।"
सब कमरे से बाहर जाने लगे।
परन्तु सब-इंस्पेक्टर मोहन मोरे वहीं खड़ा अमन ओबराय को देखे जा रहा था।
"प्लीज इंस्पेक्टर ।" डॉक्टर भूटानी ने कहा--- "हमें चलना होगा।"
अमन ओबराय मोरे को देखकर मुस्करा पड़ा।
मोरे बिना कुछ कहे पलटा और बाहर चला गया।
डॉक्टर भूटानी भी चला गया।
अब वहां अमन ओबराय और रानी ही रह गये थे।
अमन ओबराय ने मुस्कराकर, प्यार से रानी को देखा।
रानी फौरन आगे आई, करीब पहुंचकर वो अमन ओबराय से सट गई और सरसराते स्वर में बोली।
"जान। तुम कैसे हो?"
"मैं एकदम ठीक हूं। अब मैं तुम्हें और तुम्हारी खूबसूरती को देख सकता हूं।" कहने के साथ ही अमन ओबराय ने रानी के होठों को चूमा--- "तुम्हें प्यार करने का बहुत मन कर रहा है।"
"मैं भी तुम्हारे बिना मरी जा रही हूं।” रानी का स्वर सरसरा रहा था--- "ये हरीश खुदे का क्या चक्कर है ?"
"कुछ भी नहीं।" अमन ओबराय मुस्कराया और कपड़े बदलने लगा ।
"तो क्या ये सब तुम यूं ही ड्रामा कर रहे थे?" रानी की खूबसूरत आंखें फैल गई।
"हां।" अमन ओबराय के होठों पर मुस्कान ठहरी हुई थी--- "देख पाने की खुशी में मैंने यूं ही ये सब किया। तुमने देखा होगा कि सब कैसे चक्कर खा गये।"
“पर-पर तुमने इंस्पेक्टर की बातों का जवाब कैसे दिया?"
"ये राज की बात है।"
“मुझे भी बताओ कैसे...।"
"इस बारे में फिर बात करेंगे रानी।" अमन ओबराय कपड़े पहनता कह उठा— “अभी मुझे जाना है। कुछ काम करने---।"
“ये क्या कह रहे हो। मैं तुम्हें लेने आई हूं। विनोद तुम्हारा इन्तजार कर रहा है--।"
"उसे कहना रात को मिलूंगा। मुझे कुछ काम है। तुम डॉक्टर भूटानी का 'बिल' चुकता करो। घर पहुंचो, आज की रात हमारी है। वैसी ही रंगीन रात। जिसका खुमार अगले दिन भी रहे।"
"ओह जान---।" रानी अमन ओबराय से लिपट गई।
अमन ओबराय ने उसे बांहों में भींच लिया।
“रात को मिलेंगे रानी।" अमन ओबराय ने उसे थपथपा कर अलग किया--- “एक महीने में तुम और भी खूबसूरत हो गई हो और तुम्हारी बिल्लौरी आंखों का तो मैं तब से दीवाना हूं जब से तुम्हें पहली बार देखा---।"
"हटो भी। तुम तो मेरी तारीफ ही करते रहते---।"
“तुम हो ही ऐसी। तो अब मैं चलूं?" अमन ओबराय ने उसका गाल थपथपाया।
"रात को जल्दी आना।" रानी ने सरसराते स्वर में कहा--- "मैं तुम्हारी पसन्दीदा बोतल तैयार रखूंगी।"
"मैं बहुत जल्दी आऊंगा। तुम भूटानी का ‘बिल' दे दो।”
“चैक साइन कर दो जान।" रानी ने अपना पर्स खोला--- "कैश खत्म हो गया है।"
रानी ने पर्स से चैक बुक निकाली। पैन निकाला।
अमन ओबराय ने चैक साइन कर दिया।
"बाय रानी। रात को मिलते हैं।"
"बाय जान ।"
अमन ओबराय हॉस्पिटल से बाहर निकल आया। शाम के छः बज रहे थे। सूर्य की मध्यम सी धूप अभी भी फैली थी। नई आंखों से दुनिया के नजारें एक बार फिर देखकर अमन ओबराय को चैन मिला।
अमन ओबराय हॉस्पिटल की पार्किंग की तरफ बढ़ा कि खुदे बोला।
"इधर किधर?"
"मेरी कार और ड्राइवर पार्किंग में...।" ओबराय ने कहना चाहा।
अगले ही पल अमन ओबराय ठिठका और सड़क की तरफ बढ़ गया।
"कार ले लेते...।" ओबराय ने पुनः कहना चाहा।
“कोई जरूरत नहीं। हम टैक्सी लेंगे। मैं अभी तुम्हारी कार इस्तेमाल नहीं करना चाहता।"
"अजीब बात है।"
अमन ओबराय मुख्य सड़क के फुटपाथ पर आ गया और फुटपाथ पर चलने लगा। सड़क पर से वाहनों का ढेर जा रहा था। इंजन हार्न की आवाजें गूंज रही थीं।
“मेरी आंखों से दुनिया देखकर तुम्हें कैसा लग रहा है?"
"बहुत बढ़िया।" अमन ओबराय खुश था।
“और मेरा साथ पाकर कैसा लग रहा है?"
"उलझन में हूं अभी ।"
“दो दिन में आदत पड़ जायेगी और उलझन चली जायेगी। जैसी उलझन तुझे है, वैसी मुझे भी है। परन्तु मैं समझ चुका हूं कि हमें एक-दूसरे को सहना ही होगा, तभी गाड़ी चलेगी। तेरी तरह मैं भी नहीं चाहता कि मेरे साथ कोई चिपका रहे।"
“तू मुझे छोड़ नहीं सकता।"
"मुझसे अलग होना चाहता है तू?"
"हां।"
"तो मेरी आंखों से छुटकारा पा ले। आंखों के माध्यम से ही मेरा प्रवेश तेरे भीतर हो सका है। आंखें नहीं रहेंगी तो मैं भी नहीं रहूंगा।"
"आंखें निकाल दी तो मैं अंधा हो जाऊंगा।"
“ये मेरी समस्या नहीं है। तू जाने।"
अमन ओबराय फुटपाथ पर आगे बढ़ रहा था। बातें करने की वजह से उसके होंठ तेजी से हिल रहे थे।
“ये खेल नहीं है कि मैं तेरी आंखें निकलवा कर दूसरी आंखें लगवा लूं। मैंने पढ़ रखा है कि जरूरी नहीं कि जो भी आंखें लगाई जायें, वो सैट बैठें। ये ऑप्रेशन बार-बार होना खतरनाक है। ये भी हो सकता है कि मैं फिर देख ना सकूं और हमेशा के लिए अंधा हो जाऊं। ये तो किस्मत की बात है कि ऑप्रेशन पूरी तरह सफल रहा। भूटानी बढ़िया डॉक्टर है।"
"मतलब कि हम दोनों को अब एक ही शरीर में, एक साथ रहना होगा।"
अमन ओबराय ने गहरी सांस ली।
"मेरी शराफत देखी।"
"शराफत कैसी?"
"जब तूने रानी से बात की तो मैं जरा भी बीच में नहीं आया। लेकिन एक बात मुझे खराब लगी।"
“क्या?"
"वो तेरी भाभी है। तूने भाभी से रिश्ता बना रखा।"
"मैं कुछ भी गलत नहीं कर रहा। तुमने मेरे भाई की हालत नहीं देखी। वो लाश की तरह बैड पर पड़ा है।"
"तो ?"
"मेरा भाई विनोद किसी काम का नहीं रहा और रानी जवान है। उसकी अपनी जरूरतें हैं। उसे तो खुराक चाहिये ही। उसका जवान शरीर मांगता है खुराक। मैं उसकी जरूरत पूरी नहीं करूंगा तो वो बाहर से अपनी जरूरतें पूरी करवायेगी। ऐसा करने से खानदान का नाम बदनाम होगा। इसलिए जो हो रहा है ठीक हो रहा है। इससे मेरी जरूरत भी पूरी हो जाती है।"
"अपने घर के हालात तुम बेहतर समझते हो कि क्या ठीक है क्या गलत।" खुदे बोला।
"मैं तुम्हारा दिमाग पढ़ रहा हूं। तुम टुन्नी के पास जा रहे हो।"
"हां---।"
"टुन्नी के पास जाने में समस्या है दोस्त। वो तुम्हें पहचानेगी भी कैसे। तुम तो मेरे भीतर हो। ये शरीर टुन्नी के लिए नया है।"
“फिक्र मत करो। वो मैं टुन्नी को समझा दूंगा।"
"क्या समझा लोगे?"
“यही की मैं जिन्दा हूं। मरा नहीं। बस मैंने शरीर बदल लिया है ।"
“वो समझ जायेगी ?"
“क्यों नहीं। वो मुझसे प्यार करती है। मेरी पत्नी है वो। रानी की तरह नहीं है कि---।"
"रानी कुछ भी गलत नहीं कर रही। उसे बीच में मत लाओ। टुन्नी की बात करो।" ओबराय बोला।
"टुन्नी बहुत खुश होगी मुझे देखकर।"
"तुम्हारी बातें मेरी समझ से तो बाहर है कि मैं उसके पास जाकर कहूंगा कि मैं उसका पति हूं तो वो मुझे गले लगा---।"
"तुम नहीं, मैं कहूंगा।"
"बेशक तुम कहोगे। परन्तु उसके सामने तो मेरा ही शरीर होगा। वो अमन ओबराय को ही देखेगी।"
“टुन्नी मेरी बातों से समझ जायेगी कि मैं ही उसका पति हूँ। लेकिन पहले मैं खाना खाता हूं।"
"खाना? नॉन खाना चाहते हो?"
"इस वक्त तो कुछ भी मिल जाये। खाकर, घर पहुंच जाना चाहता हूं। इधर आगे जाकर एक ढाबा है, वहां से दाल फ्राई और परांठे खाऊंगा। उसका माल अच्छा होता है।"
"ढाबा ?"
“छोटा सा होटल--वो---।"
“तो तुम क्या समझते हो कि मैं ऐसी जगह बैठकर खाना खाऊंगा।" अमन ओबराय उखड़ गया।
"क्यों नहीं खा सकते...?"
"मैं फाईव स्टार में खाना खाने वाला इन्सान हूं और तुम मुझे ढाबे पर ले जा रहे--।"
"तुम नहीं, मैं वहां खा रहा हूं।"
“पर मेरा शरीर ही तो उस ढाबे में जायेगा। किसी ने मुझे पहचान लिया तो मेरी खिल्ली उड़ेगी कि---।"
"चुप रहो।" हरीश खुदे ने गुस्से से कहा--- "मुझे वहां का खाना अच्छा लगता है। इस बार तुम मेरी बात मानो तो अगली बार मैं तुम्हारी बात मानूंगा। मुझे कुछ करने से मना मत किया करो।"
"तुम मेरी इज्जत मिट्टी में मिला दोगे।" अमन ओबराय ने नाराजगी से कहा।
"मैं साथ हूं तो तेरी इज्जत पे चार चांद लगने से रहे। ये तेरे को पहले ही समझ जाना चाहिये था।"
"तुम डकैती करने वाले बुरे इन्सान। मैं करोड़पति बिजनेसमैन अमन ओबराय । हम एक साथ नहीं रह सकते।" ओबराय उखड़ा।
"तो आत्महत्या कर ले।"
"मैं क्यों करूं, तू कर।"
"जो भी करे। मरेंगे तो हम दोनों ही। क्योंकि हम एक ही शरीर में रहते हैं।"
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