अगले दिन सुबह दस बजे नींद से जागा देवराज चौहान । इंटरकॉम द्वारा कॉफी लाने को कहा और सिगरेट सुलगाने लगा तो ठिठक गया। तारिक मोहम्मद क्या मालूम सिगरेट पीता है या नहीं ?
"ये ही सोचकर उसने सिगरेट लगाने का इरादा छोड़ दिया ।
अब वो देवराज चौहान नहीं तारिक मोहम्मद था । अब उसे तारिक मोहम्मद जैसा ही व्यवहार करना था। बाद में अगर इस बारे में उसके बारे में कोई पूछताछ करे तो कोई ऐसी बात पता न चले कि कोई उस पर शक कर सके। परंतु एक बात का खतरा तो तलवार की तरह सिर पर मंडरा रहा था कि अगर हामिद अली ने अपने कांटेक्ट को सातों की तस्वीरें भेज रखी है तो उसका खेल खत्म होने में देर नहीं लगेगी। हो सकता है उस स्थिति में अपनी जान भी न बचा सके। इतने बड़े खतरे के आ जाने का उसे पूरा आभास था, परंतु एकमात्र ये ही प्लान उसे बढ़िया लगा था कि इस तरह उन लोगों में घुस सकता है ।
इस वक्त देवराज चौहान के पास न तो रिवॉल्वर था न उसका मोबाइल फोन ।
तारिक मोहम्मद के रूप में इस वक्त उसे इसी तरह होना चाहिए।
तभी वेटर कॉफी दे गया ।
कॉफी के घूंट लेते देवराज चौहान आगे के बारे में विचार करने लगा। मार्शल ने उसे मुफ्ती इसरार का कहा बताया था कि होटल में ठहरने के दो दिन पश्चात उन्हें उस दिए नम्बर पर फोन करना था ।
देवराज चौहान ने एक रात बिता ली थी ।
यानी कि आज रात के बाद कल सुबह वो उस नम्बर पर फोन कर सकता था, जो नम्बर उसे मार्शल से पता लगा था और उस पर अपना कोड शब्द बोलना था। परंतु देवराज चौहान ने फैसला किया वो कल सुबह नहीं, कल दोपहर के बाद फोन करेगा। हौले-हौले आगे बढ़ेगा और तब तक अपना समय होटल के कमरे में बंद रहकर ही बिताएगा। क्योंकि इस वक्त वो तारिक मोहम्मद था और तारिक मोहम्मद चोरी-छिपे हिन्दुस्तान में आ पहुंचा था। ऐसे में शुरू-शुरू में यकीनन वो सड़कों पर घूमने से कुछ डरेगा कि किसी को पता न चल जाए वो पाकिस्तानी है। ये डर धीरे-धीरे ही कम होगा ।
देवराज चौहान तारिक मोहम्मद के रूप में अपनी सोचों को संवारता रहा ।
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आमिर रजा खान ।
जगमोहन वीरगंज से मुम्बई तक आमिर रजा खान के पीछे-पीछे आया था। बसों का लम्बा और थका देने वाला सफर था। परंतु जगमोहन को हर पल इस बात का एहसास रहा कि ये पाकिस्तान से आया खतरनाक आतंकवादी है और हामिद अली जैसे इंसान ने भेजा है, जो पहले भी दिल्ली और मुम्बई पर हमला कर चुका है ।
ये कुल सात लोग हैं ।
जगमोहन ने कहीं भी कोई लापरवाही न बरती कि आमिर रजा खान निगाहों से ओझल हो सके। वैसे भी उसे पता नहीं चला कि कोई उस पर नजर रखे है, उसके साथ-साथ ही यात्रा कर रहा है। यानी कि इस मामले में आमिर रजा खान हद से ज्यादा लापरवाह रहा था। फिर वो वक्त भी आया जब वे मुम्बई पहुंचे थे। जगमोहन, आमिर रजा खान की हरकतें देखता रहा था । मुम्बई पहुंचने के बाद उसने दो-तीन लोगों से कुछ पूछा । जगमोहन का ख्याल था कि वो होटल के बारे में पूछ रहा है । फिर उसने एक टैक्सी ली और चल पड़ा । जगमोहन दूसरी टैक्सी में उसके पीछे हो गया ।
अमीर रजा खान को टैक्सी वाले ने कुर्ला के एक साधारण-से होटल में पहुंचा दिया ।
जगमोहन होटल के बाहर ही रहा और मार्शल को फोन किया ।
"आमिर रजा खान कुर्ला के बसंत होटल में ठहरा है ।"
"मैं अभी किसी को भेजता हूं। वो तुम्हारी जगह लेकर उस पर नजर रखेगा। तुम कहां हो ?" उधर से मार्शल ने पूछा ।
"होटल के बाहर ।" जगमोहन ने कहा--- "क्या सातों अब नजर में हैं?"
"नहीं। सिर्फ तीन ही दिखे। या तो चोर रास्तों से हिन्दुस्तान में प्रवेश कर आए हैं या हमारी निगाहों के सामने से बच निकले ।"
"चार-चार लोग हमारी निगाहों से बच नहीं सकते। यकीनन उन्होंने चोर रास्ता इस्तेमाल किया होगा ।"
"सम्भव है ।"
"नेपाल गए सब लोग वापस आ गए ?" जगमोहन ने पूछा ।
"आज वहां से चल पड़ेंगे । वैसे तीन लोग आ गए हैं । तुम वहीं रहो। तुम्हारी जगह लेने के लिए मैं किसी को भेज रहा हूं ।"
एक घंटे में वहां मार्शल का एजेंट पहुंचा। उसके पास आमिर रजा खान की तस्वीर थी ।
जगमोहन वहां से चल पड़ा और जेब से मोबाइल निकाल कर देवराज चौहान को फोन किया ।
दूसरी तरफ बेल तो गई परंतु फोन रिसीव नहीं किया गया ।
देवराज चौहान व्यस्त होगा, ये सोचकर जगमोहन ने दस मिनट बाद पुनः फोन किया।
परंतु इस बार भी ऐसा ही हुआ ।
जगमोहन ने मार्शल को फोन किया ।
"कहो ।" मार्शल का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा ।
"मैं देवराज चौहान को फोन कर रहा हूं । वो कॉल रिसीव नहीं कर रहा । कहां है वो ?" जगमोहन ने पूछा ।
"कहीं व्यस्त होगा ।" मार्शल का स्वर गम्भीर था--- "मैं अपना आदमी भेज रहा हूं। वो तुम्हें मेरे पास ले आएगा ।"
■■■
डेढ़ घंटे बाद जगमोहन, मार्शल के सामने थे।
"तुम थके लग रहे हो ।" मार्शल शांत भाव में मुस्कुराया ।
"वीरगंज से मुम्बई तक का सफर, बसों पर बहुत लम्बा और थका देने वाला था ।" जगमोहन बोला--- "देवराज चौहान से बात हुई ?"
मार्शल ने जगमोहन को देखा और कह उठा ।
"हमने एक को पकड़ लिया है ।"
"एक को पकड़ लिया है ।" जगमोहन की आंखें सिकुड़ी...किसे ?"
"तारिक मोहम्मद को। दस मिनट पहले ही उसे यहां लाया गया है । अभी मैं उससे मिला नहीं...।"
"तारिक मोहम्मद को पकड़ लिया ।" जगमोहन के मस्तिक को तीव्र झटका लगा--- "ये-ये वो ही है न जिसके बारे में देवराज चौहान कह रहा था कि उसकी कद-काठी उसके जैसी है। वो ही है न तारिक मोहम्मद ?"
"वो ही है ।" मार्शल गम्भीर था ।
"देवराज चौहान कहां है ?" जगमोहन हक्का-बक्का रह गया ।
मार्शल ने जगमोहन को देखा फिर गम्भीर स्वर में कह उठा ।
"ये देवराज चौहान की मर्जी, उसका प्लान था। तुम सही सोच रहे हो जगमोहन। देवराज चौहान ने तारिक मोहम्मद की जगह ले ली है, जैसा कि लेने को कह रहा था। इस वक्त देवराज चौहान, तारिक मोहम्मद के रूप में, कहां पर है, हम नहीं जानते। वीरगंज में ही उसने मेरे दो एजेंटों को तारिक मोहम्मद के साथ अपनी रिवॉल्वर और मोबाइल दे दिया। वो अपने प्लान पर काम करना चाहता...।"
"तुमने उसे रोका क्यों नहीं ?" जगमोहन के होंठों से फटा-फटा सा स्वर निकला ।
"रोका । मैंने उसे बताया कि इस तरह से काम करने के क्या अंजाम हो सकते हैं । देवराज चौहान हर खतरे को बखूबी समझ रहा था परंतु उसने हामिद अली का भेजा लड़का तारिक मोहम्मद बनना बेहतर समझा ।" माशल गम्भीर स्वर में कह रहा था--- "देवराज चौहान का कहना था कि जब तक उन लोगों के बीच नहीं घुसेगा, तब तक उनके मिशन के बारे में नहीं जान...।"
"तु...म-तुम पागल हो ।" जगमोहन गुस्से से गुर्रा उठा--- "पागल हो तुम। तुम कमीने हो, ये तो मैं जानता था, परंतु इतने बड़े लालची भी हो कि अपने मतलब की खातिर तुमने देवराज चौहान को मौत के मुंह में धकेल दिया ।
"लालच ?"
"ये लालच नहीं तो और क्या है कि अपने इस प्लान पर काम करके वो तुम्हारे लिए बढ़िया खबर ला सकता है। तुमने उसे नहीं रोका होगा। मैं शर्त लगाकर कह सकता हूं कि तुम जैसा कमीना, मतलबी इंसान...।"
"मैंने उसे रोका था।" मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा और आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा--- "मैंने उसे ये भी कहा कि इस प्लान पर काम करें, मुझे ऐतराज नहीं, परंतु जगमोहन से जरूर सलाह ले ले ।"
"तुमने ऐसा कहा ?" जगमोहन के होंठ भिंचे हुए थे ।
"हां । देवराज चौहान से पूछ लो ।"
"उससे कहा पूछुंगा, उसे तो तुमने मौत के मुंह में भेज दिया । वो वहां मर गया तो ?" जगमोहन की आंखों में आंसू भर उठे--- "हामिद अली ने पाकिस्तान से, अपने मुम्बई वाले बंदे को उन सातों की तस्वीर भेज दी तो गया न देवराज चौहान। देख मार्शल, ऐसा हुआ तो तू गया । मैं तुझे अपने हाथों से बहुत बुरी मौत मारूंगा। मैं तुझे...।"
"तुम ये क्यों सोचते हो कि देवराज चौहान को कुछ होगा ।" मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा--- "ये सोचो कि वो अपने काम की जानकारी हासिल करेगा और उनके मिशन को फेल करके, उन सब को मेरी शिकंजे में फंसा देगा ।"
"तुम तो सच में बहुत कमीने हो मार्शल ।" जगमोहन दांत किटकिटा उठा--- "मुझे समझाने की अपेक्षा तुम ये सोचो कि वो देर- सबेर में आसानी से देवराज चौहान को पहचान लेंगे और उसे कुत्ते की मौत मारकर, उसके शरीर के टुकड़े चील-कौओं को डाल देंगे। इस तरह सोचो तो तुम्हें मेरे दिल का हाल पता चलेगा। अभी भी तुम सोचते हो कि देवराज चौहान जो कर रहा है सही कर रहा है ।"
"जो भी कर रहा है। उसमें मेरी मर्जी जरा भी शामिल नहीं है। मैंने उसे रोका था। वो नहीं रुका। वो बच्चा तो नहीं कि जिसकी बाहं पकड़ कर रोक लूं। वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है और मौत से खेलने की उसकी आदत रही है साथ ही...।"
"इस बार वो मौत से नहीं खेल रहा। बल्कि मौत के कुएं में छलांग लगा दी है। जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है ।" जगमोहन तड़प उठा--- "तुमने मुझे क्यों नहीं बताया जब वो ऐसा करने वाला था ।"
"तब तुम आमिर रजा खान के पीछे मुम्बई आ रहे थे । उस वक्त तुम से बात करने का कोई फायदा नहीं था ।"
"तो कुछ देर के लिए रोक लेता उसे--- "मैं आ ही तो रहा था ।" जगमोहन ने गीली आंखें साफ की।
मार्शल गम्भीर निगाहों से उसे देखता रहा फिर बोला ।
"मैं तुम्हारी हालत अच्छी तरह समझ रहा...।"
"चुप हो जाओ ।" जगमोहन ने पांव पटके--- " बोले तो सिर तोड़ दूंगा ।"
मार्शल खामोश-सा उसे देखता रहा।
मिनट भर की खामोशी के बाद जगमोहन थके स्वर में बोला ।
"तुम क्या सोचते हो कि देवराज चौहान के बच आने के चांस कितने हैं ?"
"वो सौ प्रतिशत जान गंवा देगा या सौ प्रतिशत जिंदा लौट आएगा ।" मार्शल ने भावहीन स्वर में कहा ।
"मतलब कि फिफ्टी-फिफ्टी चांस हैं बचने के और मरने के ।" जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा ।
मार्शल खामोश-सा देखता रहा ।
"अब वो कहां है ?"
"ये किसी को नहीं मालूम ।" मार्शल ने इंकार में सिर हिलाया ।
"तो पता कैसे चलेगा कि वो कहां है, या उसके साथ कुछ हो तो नहीं गया ?" जगमोहन ने मार्शल को घूरा।
"जिंदा रहा तो देवराज चौहान फोन करेगा। मरने वाले फोन नहीं करते ।" मार्शल की आवाज में बेचैनी उभरी।
"तुम इस तरह हाथ झाड़कर आराम से नहीं बैठ सकते। ये देवराज चौहान की जिंदगी का सवाल है। वो मेरा सब कुछ है ।"
"तो क्या करूं ?"
"मुफ्ती इसरार के संपर्क में रहो। उससे कहो कि हर तरह की खबर हमें देता रहे। देवराज चौहान के साथ कुछ होता है तो ये खबर पाकिस्तान हामिद अली के पास भी पहुंचेगी। मुफ्ती हमें देवराज चौहान की खबर दे सकता है ।"
"ये बात कल रात मैंने मुफ्ती को समझा दी थी कि हमें पाकिस्तान और मुम्बई की हर तरह की खबर चाहिए ।" मार्शल बोला--- "परंतु मुफ्ती का कहना है कि पाकिस्तान में उसका काम खत्म हो चुका है । हामिद अली कभी भी उसे वापस जाने को कह सकता है।
"अभी कहा तो नहीं ।" जगमोहन ने कठोर स्वर में कहा--- "उसे कहो हमें हर तरह की खबरें दे। कब फोन आता है उसका ?"
"हर रात को । शायद रात को फोन करना उसे सुरक्षित लगता हो ।"
"कस दो मुफ्ती को। समझे न। मुझे हर तरह की खबर चाहिए। जो हामिद अली जानता हो, वो हमें भी जानना है ।"
"ऐसा ही होगा ।" मार्शल चेहरे पर गंभीरता समेटे उठा और टेबल पर रखा लिफाफा उठाकर जगमोहन के पास पहुंचा--- "इसमें देवराज चौहान का सामान है। रिवॉल्वर, मोबाइल और दूसरी तरह की चीजें। ये उसने तुम्हें देने को कहा था ।"
"तुम सच में कमीने हो मार्शल।" जगमोहन ने लिफाफा थामते गुस्से से भरे स्वर में कहा ।
"मैं उस पाकिस्तानी तारिक मोहम्मद के पास जा रहा हूं । तुम भी साथ...।"
"तुम जाओ ।" जगमोहन बहुत परेशान और तनाव में आ चुका था ।
"इस कमरे से तुम्हें बाहर आना होगा ।" मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा--- "यहां पर देश और दुनिया के ऐसे-ऐसे राज रखे हैं कि मेरी गैर-मौजूदगी में यहां कोई भी नहीं आ सकता। तुम साथ वाले कमरे में रहो। वहां तुम्हारे आराम की हर चीज मौजूद है ।"
"मुझे आराम नहीं, देवराज चौहान चाहिए । जिंदा और सही सलामत ।" जगमोहन ने मार्शल को खा जाने वाली निगाहों से देखा फिर दरवाजे की तरफ बढ़ गया। मार्शल उसके पीछे था।
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दो दिन होटल में रहने के बाद जब देवराज चौहान नहाकर, नाश्ता करके होटल से बाहर निकला तो दिन के साढ़े बारह बज रहे थे। सड़क के किनारे-किनारे ही वो आगे बढ़ने लगा। हर जगह को कुछ इस तरह देख रहा था कि जैसे पहली बार यहां आया हो। ऐसा इसलिए कर रहा था कि अगर कोई उस पर नजर रख रहा हो तो उसे सब कुछ ठीक लगे। परंतु वो ये जानता था कि इस वक्त उस पर नजर रखता कोई नहीं हो सकता।
कुछ देर पैदल चलने के बाद उसे एक दुकान के बाहर लगा बूथ दिखा ।
अब फोन करने का वक्त आ गया था ।
ठिठका-सा देवराज चौहान कुछ पल बूथ को देखता रहा फिर सिक्के के लिए जेब में हाथ डाला। परंतु जेब मे रेजगारी नहीं थी । देवराज चौहान ने दस का नोट निकाला और कई दुकानों पर कोशिश करने के बाद उसे रेजगारी मिली। सिक्के मिले तो वो उस पब्लिक फोन के पास आ गया । रिसीवर उठाकर डायल टोन सुनी फिर मार्शल का बताया नम्बर डायल करने से पहले सिक्का डाला ।
फौरन ही दूसरी तरफ बेल जाने लगी ।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता नजर आ रही थी ।
"हैलो ।" उसी पल दूसरी तरफ से मर्द की भारी आवाज कानों में पड़ी ।
"मैं आ गया हूं ।" देवराज चौहान ने साधारण से स्वर में कहा ।
दो पलों की खामोशी के बाद आवाज पुनः सुनाई दी ।
"मैंने तुम्हें पहचाना नहीं। अपना नाम बताओ ।"
"तारिक मोहम्मद ।"
"कहां से आए हो ?"
"पाकिस्तान से। हामिद अली ने भेजा।" कहते हुए देवराज चौहान ने अपनी आवाज को धीमा कर लिया था ।
"कहां से बात कर रहे हो ?"
"एक दुकान के बाहर पब्लिक बूथ का डिब्बा लगा है। वहां से...।"
"तुम्हारा कोड शब्द क्या है ?"
"मैं पाकिस्तानी ।"
"एक मिनट होल्ड करो ।"
लाइन पर खामोशी छा गई ।
देवराज चौहान रिसीवर कान से लगाए रहा ।
लगभग मिनट बाद ही उसके कानों में फिर आवाज पड़ी ।
"तुम्हारा स्वागत है दोस्त। तुम कहां ठहरे हो ?"
देवराज चौहान ने जगह और होटल का नाम बताया ।
"कोई तुम पर नजर नहीं रख रहा?"
"मैंने अच्छी तरह जांच किया है। सब ठीक है ।"
"हमें और भी सावधानी बरतनी है। खतरे बहुत हैं। अभी तुम होटल में ही रहो। हम देखेंगे कि सब ठीक है। तुम किसी की नजर में तो नहीं हो।"
"मुझे कितनी देर होटल में रहना होगा ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"दो दिन ।"
"दो दिन से तो मैं होटल में ही रुका हुआ...।"
"दो दिन और रुकोगे। होटल के बाहर घूमोगे । किसी बाजार में जाओगे। खाना खाओगे । इस दौरान हमारे लोग तुम पर नजर रख ये जानने की चेष्टा करेंगे कि तुम पर कोई नजर तो नहीं रख रहा ।"
"बहुत ज्यादा सावधानी बरत रहे हो ।"देवराज चौहान ने कहकर सांस ली ।
"काम भी तो बड़ा है ।"
"हामिद अली ने काम के बारे में नहीं बताया । तुम बताओगे क्या काम करना है मुझे ?"
"फोन पर तुम्हें ज्यादा बातचीत नहीं करनी चाहिए ।"
"ओह । ठीक है । तो अब मैं तुम्हें कब फोन करूं ?"
"परसों। अब तुम होटल में जाओ। लंच के वक्त बाहर निकलना। तब मेरे आदमियों की नजर में होगे ।"
"मुझे पहचानोगे कैसे, क्या मेरी तस्वीर है तुम्हारे पास ?" देवराज चौहान ने भोलेपन से पूछा ।
"तस्वीर की मुझे जरूरत नहीं। तुम ठीक दो बजे होटल से बाहर निकलना। मेरे आदमी तुम्हें पहचान लेंगे ।"
"तुमने अपना नाम नहीं बताया ?"
"फोन बंद करो और होटल में जाओ। सब ठीक रहा तो हम परसों मुलाकात करेंगे। तब जो पूछना हो, पूछ लेना ।"
देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया ।
सब ठीक रहा था। बढ़िया बात हो गई थी ।
पहली सीढ़ी पर चढ़ गया था वो।
वहां से देवराज चौहान पैदल चलता वापस होटल पहुंचा । कमरे में पहुंचकर कॉफी मंगवाई। एक बज रहा था। कॉफी के घूंट लेते देवराज चौहान सोचों में डूबा था। ये तो पता चल गया था कि हामिद अली ने मुंबई कांटेक्ट कोई तस्वीरें नहीं भेजी थी। ये उसके लिए अच्छी बात थी। अगर उसे कहा गया होता की तस्वीरें उसके पास है तो देवराज चौहान को खड़े पैर अपनी योजना से पीछे हट जाना पड़ता। परंतु ऐसी कोई बात नहीं थी और वो सुरक्षित था। तारिक मोहम्मद का आवरण ठीक से उस पर चढ़ा हुआ था। परंतु खतरा कभी भी उसके सामने प्रकट हो सकता था। कभी भी बाजी उलट सकती थी या फिर सब ठीक रहेगा और अपने मिशन में कामयाब हो जाएगा ।
देवराज चौहान को नहीं पता था कि आने वाले वक्त में जो होगा, उसके हक में होगा या खिलाफ होगा।
इस मिशन पर वो अकेला था।
किसी का साथ मिलने की उम्मीद नहीं थी। जब तक उसे तारिक मोहम्मद समझ जाता रहेगा, तब तक तो वो सुरक्षित है और तारिक मोहम्मद का वेश खुलते ही मौत उसके गले आ लगेगी । इन लोगों के बीच अपना बचाव भी नहीं कर सकेगा।
लेकिन देवराज चौहान प्लान पर इस विश्वास के साथ काम कर रहा था कि सब ठीक रहेगा ।
ठीक दो बजे देवराज चौहान होटल से बाहर निकला और पैदल ही बाजार की तरफ बढ़ गया। वो जानता था कि अब उस पर नजर रखी जा रही है। उसने नहीं देखने की चेष्टा की कि कौन लोग उस पर नजर रखे हैं । बाजार में पहुंचकर दुकानें देखने लगा फिर एक रेस्टोरेंट में लंच लिया । उसके बाद कुछ देर और टहला फिर वापस होटल की तरफ चल पड़ा ।
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मार्शल ने उस कमरे में प्रवेश किया, जिसमें जगमोहन मौजूद था ।
जगमोहन कमर पर हाथ बांधे बेचैनी-भरे अंदाज में टहल रहा था ।
"नई खबर ?" ठिठकते हुए जगमोहन ने मार्शल से पूछा ।
"अभी तक कोई खबर नहीं आई है । मुफ्ती का फोन कल रात के बाद से नहीं आया । वो ही नई खबर देगा ।"
"कल तक जलालुद्दीन, अब्दुल रज्जाक और आमिर खान ने मुम्बई कांटैक्ट को फोन कर लिया था ।" जगमोहन बोला ।
"हां । मुफ्ती ने रात ये ही बताया ।"
"चार लोग अभी बाकी हैं ।" जगमोहन ने उसे देखा--- "उनमें देवराज चौहान तारिक मोहम्मद के रूप में भी हैं ।"
मार्शल ने सिर हिलाया ।
"तुमने अपने तौर पर पता करने की चेष्टा की कि देवराज चौहान किस होटल में ठहरा हो सकता।
"ऐसा करना खतरनाक होगा ।" मार्शल कह उठा--- "मुफ्ती ने कल बताया था कि उन तीनों के ठहरने का पता लेने के बाद, उन पर नजर रखी जा रही है कि वो किसी की नजर में तो नहीं हैं। ऐसे में हमारा देवराज चौहान के पास फटकना भी गलत होगा ।"
जगमोहन ने होंठ भिंच लिए ।
"वो लोग जरूरत से ज्यादा सावधानी बरत रहे हैं। अभी तक वे पाकिस्तान से आए लोगों से मिले नहीं, वे अपनी तसल्ली कर लेना चाहते हैं कि सब ठीक है। ऐसे में बेहतर होगा कि हम देवराज चौहान को उसके हाल पर छोड़ दें ।"
"तुम्हें देवराज चौहान को रोक लेना चाहिए था। इस तरह उन लोगों में पहुंच जाना, मौत को गले लगाने के बराबर है।"
"मेरे ख्याल में तुम भी रोकते तो वो नहीं रुकता। इस प्लान पर काम करने का उसका इरादा दृढ़ था ।"
जगमोहन ने मार्शल को कठोर निगाहों से देखा फिर कह उठा ।
"हमें तुम्हारे लिए काम नहीं करना चाहिए था। तुम्हारे पास मुसीबतों के अलावा कुछ नहीं है। पहले भी तुम्हारी वजह से हम कितनी बार मौत के मुंह में जाने से बचे और अब फिर वो ही हो रहा है। मैंने गलती कर दी, तुम्हारे काम की हां करके ।"
"तुम्हारी चिंता जायज है । परंतु वक्त से पहले चिंता मत करो। अभी सब ठीक है ।"
"तुम तो ऐसे ही कहोगे।" जगमोहन ने उसे घूरा--- "क्योंकि तुम्हारा कोई खास इस मामले में नहीं फंसा। एक बात तो बताओ मार्शल।"
"क्या ?"
"अगर देवराज चौहान इस काम में जान गंवा बैठे तो तुम पर क्या फर्क पड़ेगा ?"
"मुझे दुख होगा उसके मर जाने का । परंतु एक-दो दिन में ही मैं उसे भूल जाऊंगा और मेरे काम चलते रहेंगे ।" मार्शल ने गम्भीर स्वर में कहा--- "ये दुनिया देवराज चौहान के कंधों पर नहीं टिकी कि वो मर गया तो दुनिया के काम रुक जाएंगे ।"
"कमीना ।" जगमोहन के होंठों से निकला ।"
"ये सच्चाई है जगमोहन ।" मार्शल ने शांत लहजे में कहा--- "काम चलते रहते हैं। मैं नहीं रहूंगा, तब भी ये एजेंसी इसी प्रकार चलती रहेगी ।"
"देवराज चौहान को कुछ हो गया तो मैं उसकी मौत के बारे में सोच-सोच कर मर जाऊंगा ।"
"कोई किसी के साथ नहीं मरता ।
"लेकिन मैं...।"
"लगता ऐसा ही है, परंतु ऐसा होता कभी नहीं । धीरे-धीरे वक्त के साथ इंसान सब कुछ भूलने लगता है और उसकी जिंदगी जमाने के साथ होने लगती है। वक्त, बड़े से बड़ा जख्म भर देता है, बेशक मरने वाला कितना भी अपना हो ।" मार्शल का स्वर गम्भीर था--- "मेरे एजेंट अक्सर मर जाते हैं । तुम क्या समझते हो कि मुझे उनसे प्यार नहीं होता। बहुत होता है। हर एक मौत मेरे दिल का एक नया जख्म बना जाती है। परंतु सब कुछ सहना पड़ता है। काम को जारी रखना पड़ता है। उसे भूलना पड़ता है। न भुला पाए तो उसकी याद को दिल की तहों में दबा देना पड़ता है । किसी मरे हुए को याद रख कर आगे के काम नहीं हो सकते ।"
"तुम्हारा कोई करीबी मरा है ?"
"खास करीबी तो नहीं ।"
"जब कभी ऐसा होगा तो तब तुम्हें मेरी बात समझ आएगी ।" जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला ।
"मुझे तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। आदत-सी हो गई है ये सब देखने और सहने की ।"
जगमोहन कुछ पल खामोश रहकर कह उठा ।
"तारिक मोहम्मद ने कुछ बताया ? कोई काम की बात ?"
"कुछ नहीं। वो जितना जानता है अपने बारे में बता रहा है । वो पाकिस्तान के शहर बन्नो का रहने वाला है । बाकी सब बातें उसने अपने बारे में बताई। मेरे ख्याल में देवराज चौहान के पास अधूरी जानकारी है । वो मुसीबत में फंस सकता है ।" मार्शल ने कहा ।
"क्या मतलब ?"
"देवराज चौहान तारिक मोहम्मद बनकर उन लोगों में शामिल होने जा रहा है परंतु उसे तारिक मोहम्मद के परिवार के बारे में कुछ नहीं पता। अगर वहां इस तरह की पूछताछ हो गई तो देवराज चौहान का फंस जाना लाजमी है ।"
जगमोहन के चेहरे पर परेशानी नजर आने लगी।
■■■
रात ग्यारह बजे जगमोहन मार्शल के कमरे में ही मौजूद था । इंतजार था पाकिस्तान से मुफ्ती इसरार के फोन के आने का। पन्द्रह मिनट बाद ही मुफ्ती का फोन आ गया। मार्शल ने पांच मिनट बात करके फोन बंद किया और बोला ।
"खेल शुरू हो चुका है । आज बाकी के चारों ने हामिद अली के कांटेक्ट को फोन कर दिया है ।"
"देवराज चौहान ने भी...।"
"तारिक मोहम्मद के रूप में देवराज चौहान ही तो है ।"
"तो उनसे क्या बात हुई ?"
"उन्हें अभी दो दिन वहीं रुके रहने को कहा गया है, जहां वे रुके हैं। अब उन पर नजर रखी जाएगी कि कोई उनका पीछा तो नहीं कर रहा। सब ठीक रहा तो फिर वे लोग अपने काम को आगे बढ़ाएंगे ।" मार्शल ने कहा ।
"मान लो उन्हें पता चलता है कि कोई किसी पर नजर रख रहा है तो वे क्या करेंगे ?"
"मेरे ख्याल में वे उसे, उसके हाल पर छोड़ देंगे ।"
"छोड़ देंगे ?"
"हां। मुम्बई में हिन्दुस्तान में अकेला रह जाएगा । उसके साथ जो भी हो, उन्हें कोई मतलब नहीं होगा ।"
"तुम्हारा मतलब कि अपने साथी को...।"
"साथी ?" मार्शल जगमोहन को देख कर मुस्कुराया--- "किसी साथी की बात कर रहे हो तुम । आतंकवाद के धंधे में कोई किसी का साथी नहीं होता। एक की या दो की खातिर अपने मिशन को खतरे में नहीं डालेंगे । हामिद अली के लिए इन लोगों की कोई कीमत नहीं है । ये वो भोले लोग हैं जो किसी-न-किसी वजह से हामिद अली के जाल में फंस गए। अब मौत के साथ ही इनकी कहानी शुरू होगी । देश के नाम पर, पैसे के नाम पर या फिर भावनात्मक रूप से इन्हें फंसा कर इनसे काम लिया जा रहा है। आत्मघाती कह सकते हो इन लोगों को। क्योंकि ये अब वापस पाकिस्तान नहीं जा सकेंगे। हामिद अली के काम को करते हुए अपनी जान गंवानी ही, अब इनका नसीब है ।"
जगमोहन गहरी सांस लेकर बोला ।
"ये लोग हामिद अली जैसे लोगों के जाल में क्यों फंसते हैं ?"
"इस सवाल का जवाब पाना आसान नहीं है। हर किसी की अपनी व्यक्तिगत मजबूरी होती है। हामिद अली इन की कमजोर नस को पकड़ लेता है और उसे दबा कर इन्हें फंसा लेता है ।" मार्शल ने कहा--- "खेल चलता रहेगा ।"
जगमोहन परेशान-सा बैठा रहा ।
"क्या सोच रहे हो ?"
"देवराज चौहान के बारे में कि अगले दो दिन में पूरी तरह इन लोगों में घुस जाएगा। तब खतरे में होगा ।"
"शायद सब ठीक रहे ।"
"मार्शल । तुम ये सोच रहे हो, परंतु मैं नहीं सोच सकता।" जगमोहन बोला--- "क्योंकि कभी भी ऐसा कुछ हो सकता है कि देवराज चौहान का भेद खुल जाए और वो पकड़ा जाए । ये योजना खतरे से भरी है । देवराज चौहान को, इस योजना पर काम नहीं करना चाहिए था ।"
"अब आगे की सोचो ।"
"मेरा यही मानना है कि तुम चाहते तो देवराज चौहान को इस तरह काम करने से रोक सकते थे ।"
"नहीं रोका जा सकता था । वो सोचे बैठा था कि मुझे इसी तरह काम करना है ।"
"कब तक तुम झूठ बोलोगे ?"
"जब देवराज चौहान आए तो ये बात उससे पूछ लेना। मैंने उसे रोका था ।"
"वो वापस आ गया तो तब मुझे किसी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं रहेगी ।" जगमोहन ने गहरी सांस ली ।
"ये चिंता की बात है । पर तुम जरूरत से ज्यादा चिंता कर रहे...।"
"बात को समझो मार्शल ।" जगमोहन कुर्सी से उठ खड़ा हुआ--- "अगर देवराज चौहान पकड़ा गया तो हमें उसके बारे में कुछ भी पता नहीं चलेगा कि उनके साथ क्या हुआ ?" वो कब मरा । उसे मारने वाले कौन थे और किन हालातों में वो...।"
"इन बातों के साथ ये भी सोचो कि सब ठीक रहेगा और वो काम करके लौट आएगा ।" मार्शल बोला ।
जगमोहन ने कुछ नहीं कहा और कमरे से बाहर निकल गया।
■■■
दो दिन बाद दोपहर को ही देवराज चौहान ने पब्लिक बूथ से उसी पर फोन किया ।
"हैलो ।" वो ही आवाज कानों में पड़ी ।
"मैं तारिक मोहम्मद...।" देवराज चौहान ने कहना ।
"कोड शब्द बोलो ।"
"मैं पाकिस्तानी ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"कैसे हो दोस्त ?" उधर से कहा गया ।
"ठीक हूं मुझे कब तक इसी होटल में रहना...।"
"तुम्हारी लाइन क्लियर है। तुम हमारे पास आ सकते हो। तुम पर किसी की नजर नहीं है। एक पता नोट करो ।"
"बोलो ।"
"बोरी-बंदर की लाल बत्ती के पास पहुंचकर...।"
"इस तरह लाल बत्ती ढूंढने में मुझसे गलती हो सकती है । जगह का नाम और नम्बर...।"
"बोरी-बंदर जगह का नाम है ।" उधर से कहा गया ।
"तो इस तरह कहो न ।"
"बोरी-बंदर की एक ही बड़ी-सी लालबत्ती है । वो तुम्हें आसानी से मिल जाएगी। उसी चौराहे पर एक तरफ भीतर जाती सीधी सड़क पर दुकानें बनी तुम्हें दिख जाएंगी । समझ रहे हो न ?" उधर से पूछा गया ।
"हां ।"
"उन्हीं दुकानों में आकर आगे जाकर गफ्फार बूट हाउस नाम से दुकान है ।"
"गफ्फार बूट हाउस। समझ गया।"
"वहीं पहुंचना है तुम्हें । दुकान पर गफ्फार होगा । पूछ लेना । उसे अपना शब्द कोड बता देना ।"
"फिर ?"
"फिर तू हम तक आ पंहुचेगा। कुछ और पूछना है तो पूछ ले ।" उधर से शांत स्वर में कहा गया ।
"बोरी-बंदर की लाल बत्ती तक मैं कैसे पहुंचूंगा ?"
"बस ले ले । ऑटो टैक्सी ले ले । जो तेरा मन करे, वो कर । चिंता मत कर। चार दिन से तू मुम्बई में है । अब तेरे को कोई माई का लाल हाथ नहीं लगाने वाला । पुलिस का डर मन से निकाल दे।"
"ठीक है ।"
"पहुंच उधर ।" इसके साथ ही उधर से फोन बंद कर दिया गया।
देवराज चौहान ने रिसीवर रखा। वापस होटल पहुंचा। रिसैप्शन पर बताया कि वो कमरा खाली कर रहा है बिल तैयार कर दे। कहकर अपने कमरे में गया अपना सामान बैग में डालने लगा ।
आधे घंटे बाद बैग कंधे पर लादे होटल से बाहर निकला ।
जल्दी ही टैक्सी मिल गई । उसे बोरी-बंदर चलने को कहकर भीतर बैठ गया ।
■■■
चालीस मिनट बाद टैक्सी ने देवराज चौहान को बोरी-बंदर की लालबत्ती पर छोड़ा। किराया चुकता करके वो पास ही नजर आ रही मार्केट की तरफ बढ़ गया। बाजार में भीड़ थी। दोपहर के तीन बज रहे थे। तीखी गर्मी पड़ रही थी।
देवराज चौहान दुकानों के नाम पढ़ता आगे बढ़ता रहा। वो इस बारे में पूरी तरह सतर्क था कि उस पर नजर रखी जा रही, हो सकती है। खुद को अनजान-सा दिखा रहा था इस जगह से । रास्ते में उसने गफ्फार बूट हाउस के बारे में दो लोगों से पूछा ।
चालीस दुकानें पार करने के बाद गफ्फार बूट हाउस नजर आ गया ।
वो काफी बड़ा जूते का शो-रूम था। शीशे के दरवाजे लगे थे । एक गार्ड दरवाजा खोलने के लिए खड़ा था ।
देवराज चौहान आगे बढ़ा। उसे आता पाकर गार्ड ने दरवाजा खोल दिया। वो भीतर प्रवेश कर गया ।
ए.सी. की ठंडी हवा उसके पसीने से भरे चेहरे से टकराई ।
चंद पल ठिठककर इधर-इधर नजर दौड़ाई। दुकान पर दस-पन्द्रह ग्राहक थे। सेल्समैन उन्हें जूते बेचने में व्यस्त थे। तभी एक सेल्समैन उसके पास आ पहुंचा। देवराज चौहान ने कंधे पर पड़े बैग को संभाला ।
"मैं क्या सेवा कर सकता हूं आपकी ?"
"गफ्फार भाई से मिलना है ।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।
"वो उधर बैठे हैं। काउंटर के पीछे।" उसने एक तरफ इशारा किया ।
देवराज चौहान सिर हिला कर उधर बढ़ गया ।
काउंटर के पार बैठा व्यक्ति उसे ही देख रहा था । वो पचास वर्ष का मोटे से चेहरे वाला, सांवले रंग का था ।
देवराज चौहान काउंटर के पास पहुंचकर रुका फिर कह उठा ।
"गफ्फार भाई से...।"
"मैं ही हूं । हुकुम कीजिए ।"
"मैं पाकिस्तानी ।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।
उसने देवराज चौहान को गहरी निगाहों से देखा फिर गर्दन घुमा कर, बाहर शीशे के पार देखा ।
"जवाब में पाकिस्तानी...।" देवराज चौहान ने फिर कहा ।
उसने हाथ उठाकर उसे खामोश रहने को कहा फिर मोबाइल निकाल नम्बर मिलाया। बात की ।
"मेरे पास आ ।" इतना कहकर उसने फोन बंद करके जेब में रखा और उससे पूछा--- "पानी लोगे ?"
"हां ।" देवराज चौहान ने तुरंत सिर हिलाया।
जब तक पानी आया। देवराज चौहान ने पिया। तब तक तीस वर्ष का एक युवक वहां आ पहुंचा ।
"हां।" उसने गफ्फार भाई से कहा ।
"इसे ले जा।" गफ्फार भाई ने धीमे स्वर में कहा--- "ये उन्हीं में से है ।"
वो तुरंत देवराज चौहान से बोला ।
"मेरे साथ चलो। अपना बैग मुझे दे दो ।"
देवराज चौहान ने अपना बैग उसे दिया और उसके साथ दुकान से बाहर आ गया। दोनों भीड़-भरे बाजार में पैदल ही आगे बढ़ने लगे ।
"मैं अंसारी हूं ।" वो चलते-चलते देवराज चौहान से बोला--- "हिन्दुस्तान में ही पैदा हुआ था ।"
"मैं पाकिस्तानी हूं । पाकिस्तान के बन्नू शहर में रहता हूं ।" देवराज चौहान बोला ।
तभी पीछे से एक लड़का आया । चलते-चलते अंसारी ने उसे देवराज चौहान का बैग थमा दिया । वो बैग लेकर वहां से चला गया । बाजार में शोर-शराबा, भीड़ बहुत हो रही थी। अंसारी ने देवराज चौहान का हाथ थाम लिया ।
दस मिनट बाद वे उसी बाजार की एक गली में प्रवेश कर गए। वो गली पांच फुट चौड़ी थी, तंग थी । गंदगी का आलम था । सामने से दो-तीन लोग आ रहे थे। देवराज चौहान कह उठा ।
"यहां तो बिल्कुल पाकिस्तान जैसा ही लग रहा है ।
"फर्क कुछ भी नहीं है। वही बोलचाल। वो ही खाना-पीना। वो ही जमीन। सिर्फ लोगों का फर्क है ।" अंसारी बोला--- "हिन्दू और मुसलमान का फर्क है । धर्म का फर्क है । बंटवारे से पहले तो ये भी फर्क नहीं था ।"
"तुम्हें यहां अच्छा लगता है, हिन्दुस्तान में ?"
"इंसान जहां रहता है, वहां अच्छा लगता ही है । परंतु अपने लोग तो पाकिस्तान में हैं ।" अंसारी मुस्कुराया--- "दो बार वहां गया। दिल तो वहीं लगता है । यहां तो वक्त बिताना है । बढ़िया बीत रही है ।"
उस गली के भीतर एक और तंग गली थी । वे उस गली में पहुंचे और पास ही पुरानी इमारत के बेसमेंट में जाने के लिए सीढ़ियां थी। अंसारी ठिठककर देवराज चौहान से कह उठा ।
"इधर, नीचे जाना है बेसमेंट में । संभल कर उतरना सीढ़ियां सीधी है। पेर टेड़ा पड़ेगा तो गिरने का खतरा है।"
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।
"दोनों, एक-एक करके सीढ़ियां उतरे। दस सीढ़ी उतरने के बाद लोहे का बंद दरवाजा था। अंसारी ने खास अंदाज में दरवाजा खटखटाया तो फौरन खोल दिया गया। दोनों भीतर प्रवेश कर गए । दरवाजा बंद हो गया ।
ये काफी बड़ा हॉल था । वहां बल्ब जल रहे थे । फर्श पर गद्दे बिछा रखे थे सोने के लिए । एक तरफ किचन जैसी जगह थी, जहां बीस वर्ष के दो लड़के कुछ पकाने में व्यस्त थे। छत पर पंखे लगे हुए थे। वहां तीन और दिखे जो अलग-अलग गद्दों पर बैठे हुए थे। शांत माहौल था वहां का। जिस युवक ने अंसारी से बैग लिया था। वो भी वहां था। अंसारी ने प्रशन-भरी निगाहों से उसे देखा तो उसने इशारा कर दिया कि बैग ठीक है । उसमें कोई भी गड़बड़ सामान नहीं है।
अंसारी देवराज चौहान से बोला ।
"इन गद्दों पर निश्चिंत होकर आराम करो । तुम्हारा बैग वो रखा है ।" उसने एक तरफ इशारा किया--- "तुम लोगों के लिए रात का खाना बन रहा है । खाना बनाने वाले अपना काम करके चले जाएंगे । हम रात को आएंगे और तब बाकी बात होगी ।"
"ये लोग कौन हैं ?" देवराज चौहान ने गद्दों पर बैठे तीन अन्य व्यक्तियों की तरफ इशारा किया ।
"ये उन्हीं सातों में से हैं जो तुम्हारे साथ ही पाकिस्तान से चले थे।" अंसारी बोला--- "लेकिन मुझे कहा गया है तुम सबको बता दूं कि आपस में कोई भी बात नहीं करनी है । सिर्फ आराम करना है । रात को तुम लोगों से कोई मिलने आएगा ।"
देवराज चौहान ने सिर हिला दिया ।
अंसारी चला गया । बैग वाला वो युवक भी चला गया ।
दो लड़के किचन रूपी उस जगह पर खाना पकाने बनाने में लगे हुए थे ।
देवराज चौहान ने उन तीनों पर नजर मारी जो अलग-अलग बैठे थे फिर एक तकिया सरका कर लेट गया ।
■■■
शाम के आठ बज गए थे । बाहर अंधेरा हो चुका था । खाना बनाने वाले दोनों लड़के जा चुके थे और अंसारी एक-एक करके तीन और को छोड़ गया था । मतलब कि सातों पाकिस्तानी पहुंच चुके थे । लेकिन मना करने के कारण वे आपस में बात-चीत नहीं कर रहे थे । एक तरफ बाथरूम था । जिन्होंने नहाना था वे नहा रहे थे ।
अंसारी नौ बजे आया । वो मुस्कुराकर कह उठा ।
"वो सामने विदेशी व्हिस्की की पेटी रखी है। आप लोग उसका पूरा लुफ्त ले सकते हैं । लेकिन थोड़ी देर बाद । अभी बड़े भाई आ रहे हैं आप सबसे बात करने के लिए । वो पन्द्रह मिनट से ज्यादा नहीं ठहरेंगे । बड़े भाई, एक जगह पर कभी भी ज्यादा देर नहीं ठहरते । कई स्टे्टों की पुलिस को बड़े भाई की तलाश है । इसलिए जरा सतर्क रहते हैं।"
"बड़े भाई करते क्या हैं ?" अब्दुल रज्जाक ने पूछा ।
"पाकिस्तान की बेहतरी के लिए काम करते हैं । कहने को तो पाकिस्तान आजाद है, परंतु ये धोखा है। आजाद नहीं है पाकिस्तान । इधर अपने लड़के पाकिस्तान भेजता रहता है, वो पाकिस्तान में विस्फोट करते हैं । कत्ले-आम करते हैं । हमारे पाकिस्तानी भाई मारे जाते हैं तो हिन्दुस्तान कहता है पाकिस्तान अस्थिर है । उधर से हिन्दुस्तान की शह पर अमेरिका पाकिस्तान को कर्ज के नाम पर पैसा देता है और हिन्दुस्तान के हक में काम करने को कहता है । आजाद नहीं है पाकिस्तान । बल्कि हिन्दुस्तान की चालों का शिकार है । हर पाकिस्तानी पिस रहा है और पीसने वाला है हिन्दुस्तान । हमें हिन्दुस्तान से बदला लेना है।"
"जरूर लेंगे ।" जलालुद्दीन जोश-भरे स्वर में कह उठा ।
"इसलिए तो हम पाकिस्तान से यहां आए हैं । बताओ हमें क्या करना होगा ?" सरफराज हलीम बोला ।
"ये सवाल बड़े भाई से करना ।" अंसारी बोला ।
"हमारा कश्मीर भी तो ले रखा है हिन्दुस्तान ने ।" मोहम्मद डार कह उठा।
"कश्मीर हमारा है ।" अंसारी दोनों हाथ हिलाकर गुस्से से कह उठा--- "ये बात सारी दुनिया जानती है लेकिन हिन्दुस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करके, पाकिस्तान को नीचा दिखा रखा है । जो कश्मीर हमारे पास बचा रह गया, हिन्दुस्तान कहता है कि पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा कर रखा है । वो तो है ही हमारा । हमने कब्ज़ा क्या करना है । जब-जब पाकिस्तान में नई सरकार बनी, सबसे पहले कश्मीर की ही बात उठी। क्योंकि वो हमारा है । लेकिन हिन्दुस्तान की अकड़ का आलम ये है कि कश्मीर में वो दमन फैला रहा है । वहां के सैनिक हमारे भाइयों को दिन-दहाड़े गोलियों से उड़ा रहे हैं और हम कुछ नहीं कर पा रहे । हमें इसका जवाब हिन्दुस्तान को देना...।"
तभी सरफराज हलीम उठकर गुर्रा उठा।
"हम हिन्दुस्तानियों को गोलियों से भून देंगे । सबको मार देंगे ।"
"मैं भी ।" गुलाम कादिर भट्ट भी खड़ा हो गया ।
तभी देवराज चौहान खड़ा होते कह उठा ।
"हम ये ही सब काम करने आए हैं, परंतु सही ये ही होगा कि हमें कैसे काम करना है, बताया जाए ।"
"सही बात बोली ।" अंसारी कह उठा--- "तुम सातों ने कैसे काम करना है, ये बात बड़े भाई ही बताएंगे ।"
"क्या हम पूरे हिन्दुस्तान को तबाह नहीं कर सकते ?" आमिर रजा खान ने कहा ।
"हममें इतनी ताकत नहीं कि पूरे हिन्दुस्तानको तबाह कर दें ।" अंसारी दांत भींचकर कह उठा--- "परंतु जब कोई चीज बेहद मजबूत हो तो उसे भीतर से खोखला करते रहना चाहिए । इस प्रकार वो मजबूत चीज एक दिन टूट कर बिखर ही जाएगी । हम हिन्दुस्तान के भीतरी हिस्सों पर चोट मार रहे हैं । तुम लोग भी चोट मारने आए हो । इस तरह एक दिन हिन्दुस्तान खोखला होकर बिखर जाएगा और तब तक हमारा पाकिस्तान मजबूत देश के रूप में खड़ा होगा और हिन्दुस्तान को अपने में मिलाकर, पाकिस्तान नए रंग-रूप, नए आकार में दुनिया के सामने खड़ा हो जाएगा । इसके लिए पाकिस्तान को तुम जैसे जोश से भरे लड़कों की जरूरत है ।"
"हम अपने देश की सेवा हर तरह से करने को तैयार हैं ।" मोहम्मद डार दृढ़ स्वर में कह उठा।
"हामिद अली का कहना है कि उसके भेजे सातों लड़के किसी तूफान से कम नहीं है ।" अब ये बात तुम लोगों ने साबित करके दिखानी है, कहीं ऐसा न हो कि मौके पर हामिद अली का सिर शर्म से झुक जाए कि उसके लड़के कमजोर निकले।"
"अंसारी भाई ।" देवराज चौहान गुर्रा उठा--- "तुम हमें मौका देकर तो देखो । हम हिन्दुस्तान की ईंट से ईंट बजा देंगे ।"
"हम हिन्दुस्तान की बुनियादें हिला कर रख देंगे ।" अब्दुल रज्जाक भी गुर्रा उठा ।
"जो हमारे पाकिस्तान को टेढ़ी आंख से भी देखेगा, हम उसकी आंखें निकाल लेंगे ।" गुलाम कादिर भट्ट ने दांत किटकिटाकर कहा--- "एक बार हमें आजमा कर तो देखो । हम पाकिस्तान से यहां यूं ही तो नहीं पहुंचे ।"
"इस काम में किसी की जान चली गई तो ?" अंसारी ने सब पर नजरें मारी।
"देश पर जान कुर्बान हो तो इससे बढ़िया और क्या होगा । वो खुशनसीब होता है जो देश पर मरता है ।"
"शाबाश ।" अंसारी अपनी छाती पर हाथ मार कर बोला--- "मैं ये ही सुनना चाहता था। अगर देश कुर्बानी भी मांगे तो पीछे नहीं हटना है बल्कि हिन्दुस्तान को दिखा देना है कि पाकिस्तान में सरफरोश भी पैदा होते हैं ।"
"हमें जल्दी से कुछ करने का मौका दो अंसारी ।" सरफराज सलीम ने दांत किटकिटाकर कहा ।
"जल्दी काम शैतान का होता है । हमें बहुत सोच-समझकर योजना पर काम...।"
"योजना क्या है ?" मोहम्मद डार बोला--- "हमें बताओ ।"
"इस बारे में जब भी बताया जाएगा, बड़े भाई बताएंगे । मैं भी नहीं जानता की योजना क्या है ।" अंसारी ने कहा--- "तो मैं कह रहा था, हमने हिन्दुस्तान को ऐसा झटका देना है, जो पिछले झटके से भी भारी हो । ऐसे में सोच समझकर हमें हर काम करना है । हम नहीं चाहते कि तुम में से किसी की जान जाए । जान जाए तो उसकी कीमत भी हमें मिलनी चाहिए।"
"सही कहा तुमने ।" देवराज चौहान बोला ।
"हमें हमारे लड़कों की जान बहुत प्यारी है। हम नहीं चाहेंगे कि कोई हम से जुदा हो । परंतु जो भी काम तुम लोगों के हवाले किया जाए, उसे पूरा करने में अगर जान भी देनी पड़े तो पीछे नहीं हटना है।"
"हम जान भी दे देंगे और हिन्दुस्तान को हरा देंगे । हम पाकिस्तानी हैं, दिखा देंगे ।" गुलाम कादिर भट्ट गुर्रा उठा ।
"पाकिस्तान की असली निशानी ये ही है वो देश पर जान देता है । जब-जब भी युद्ध हुआ सीमा पर हिन्दूस्तानी सैनिक अपने हथियार छोड़कर भाग निकले थे । हमारे सैनिक आगे बढ़े तो चौकियां-चौकियां खाली पड़ी थी। सच बात तो ये है कि हिन्दुस्तानियों ने अकड़ का कवच डाल रखा है, जबकि भीतर से ये कीड़े की तरह कमजोर हैं। इन्हें कोई ऐसा चाहिए जो इनके सिर पर वार करे और वो करने के लिए तुम लोग आ...।"
तभी एक कोने में मौजूद लोहे का दरवाजा खटखटाया गया ।
सबकी नगाह उधर उठी । बातें रुक गई ।
"शायद बड़े भाई आ गए ।" कहने के साथ ही अंसारी तेज-तेज कदमों से लोहे के दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
■■■
वो सांवले रंग का पक्के चेहरे वाला था । सिर के बाल छोटे थे और गालों पर सफेद दाढ़ी थी । वो आठ वर्ष की उम्र का लग रहा था । शरीर पर सफेद कुर्ता-पायजामा पहन रखा था । पांवो में काले जूते थे। उसके हाथ मोटे और भारी थे।
उसे देखते ही फौरन इस बात का पता चला जाता था कि वो जिंदगी भर दौड़ता ही रहा है, कभी कहीं टिका नहीं । वो अकेला आया था। अंसारी ने अदब से उसके सामने सिर झुकाया। उसने ठिठककर अंसारी को देखा और धीमे स्वर में कहा ।
"सब ठीक है ?"
"बहुत बढ़िया है बड़े भाई ।" अंसारी का स्वर भी धीमा था--- "लोहा गरम है ।"
उसने सिर हिलाया और शान से चलता उन सब की तरफ बढ़ गया ।
सबकी निगाह उस पर थी । वे अपनी जगहों से खड़े हो चुके थे।
वो पास जाकर रुका और दोनों हाथ उठाते, मुस्कुराते हुए बोला।
"हिन्दुस्तान में आप सब का स्वागत है दोस्तों ।"
देवराज चौहान ने पहचाना कि ये वो ही आवाज थी, जिससे फोन पर बात हुई थी ।
"आप मुझे बड़ा भाई कह सकते हैं । समझो ये ही मेरा नाम है । ये ही मेरी निशानी है । वो पुनः बोला ।
"आप से मिलकर खुशी हुई बड़े भाई ।" आमिर रजा खान ने कहा ।
"हम तो कब से आपसे मिलने को बेताब थे ।" अब्दुल रज्जाक ने कहा ।
"मैं भी बे-सब्र था । आप सब को मिलने के लिए ।" बड़े भाई ने मुस्कुरा कर कहा--- "यहां पर आप सब मेरे हवाले हैं । हामिद अली ने आप सब को मेरे पास ही भेजा है । आगे का काम आप लोग मेरे साथ ही करेंगे ।"
"आपके साथ काम करके हमें खुशी होगी बड़े भाई ।" जलालुद्दीन बोला ।
"हमसे कोई ऐसा काम लीजिए कि हिन्दुस्तान कि नाक तोड़ सकें। गुलाम कादिर भट्ट बोला--- "हिन्दुस्तान को अभी तक पाकिस्तान ने मुंहतोड़ जवाब नहीं दिया । ये काम हम करके दिखाना चाहते हैं ।"
बड़े भाई के पक्के चेहरे पर मुस्कान उभरी । वो बोला ।
"ये काम आसान नहीं है ।"
"हम ये काम कर देंगे ।" सरफराज सलीम ने कहा फिर सब को देख कर बोला---"क्या ख्याल है सबका ?"
"हम हिन्दुस्तान की नाक तोड़ने का फैसला लेकर ही पाकिस्तान से आए हैं ।"
"ये बात सच है ।" मोहम्मद डार कह उठा ।
"दोस्तों । अगर आप सब के हौसले बुलंद हैं । तो हर काम को पूरा कर सकते हैं। हमें कोई नहीं रोक सकता । बातों का सिलसिला शुरू करने से पहले मैं आप सबके मुंह से कोड शब्द सुनना चाहता हूं । सब अपना-अपना कोड वर्ड दोहराओ ।"
"पाकिस्तान से लड़ना महंगा पड़ेगा ।" जलालुद्दीन ने कहा।
"पाकिस्तान महान है।" आमिर खान बोला ।
"सलाम पाकिस्तान ।" अब्दुल रज्जाक ने कहा ।
"मैं पाकिस्तान ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"पाकिस्तान ताकतवर है ।" गुलाम कादिर बोला।
"पाकिस्तान परमाणु युद्ध लड़ने को तैयार है ।"
"पाकिस्तान आया है ।" सरफराज हलीम ने बाँह उठा कर कहा।
"खूब । बहुत खूब । आप लोगों के कोडवर्ड सुनकर मन खुश हो गया । अगर हर पाकिस्तानी की जुबान पर ऐसे ही शब्द हो तो हिन्दुस्तान हमारे सामने कहां टिक पाएगा । उसे तो डर कर छिपने की जगह नहीं मिलेगी ।" बड़े भाई ने कहा ।
"हम हिन्दुस्तान को पीसकर रख देंगे ।"
"मैं भी पाकिस्तानी हूं दोस्तों, तुम्हारी तरह । ग्यारह साल पहले सरहद पार करके हिन्दुस्तान आया था । कुछ साल कश्मीर में रहकर काम किया फिर हिन्दुस्तान के बाकी शहरों में जाने लगा। मुझे फख्र है कि अपने देश की खातिर, पाकिस्तान के लिए मैंने हिन्दुस्तान को इन ग्यारह सालों में पचासों बार खोखला करने की चेष्टा की और सफल रहा । जाने कितनी बार दहलाया है मैंने हिन्दुस्तान को । और अब तक मेरे कारनामों से हिन्दुस्तान मन-ही-मन सहम चुका है । उसे हमेशा डर लगा रहता है कि बड़े भाई फिर हिन्दुस्तान के किसी शहर में कहर न बरपा दे । पुलिस और हिन्दुस्तान की सीक्रेट एजेंसियां मेरी तलाश में मारी-मारी फिरती रहती है । लेकिन आज तक बड़े भाई की तस्वीर भी नहीं मिल पाई हिन्दुस्तान की सरकार को। ये मेरी कामयाबी की निशानी है दोस्तों और मैं चाहता हूं कि तुम लोग भी मेरी तरह इस हिन्दुस्तान को कंपाकर रख दो । ऐसा करो कि थर्रा उठे हिन्दुस्तान ।"
सबके चेहरों पर जोश दिखने लगा ।
"हम ऐसा ही करेंगे ।" देवराज चौहान ने कहा।
"हम आपसे भी बढ़िया कारनामा कर दिखाएंगे ।" सरफराज सलीम ने कहा।
"खूब ।" बड़ा भाई ताली ठोककर कह उठा--- "बहुत खूब ।"
"हम साबित कर देंगे कि हम भी कुछ हैं ।"
"यही मेरी इच्छा है। अपने दोस्तों से मेरी ये ही आशाएं हैं । मैं अब भागदौड़ करते-करते थक चुका हूं और मेरी ख्वाहिश है कि तुममें से किसी काबिल युवक को अपने साथ लगा लूं, ताकि मेरे कंधों का बोझ कुछ हल्का हो सके । अब देखना ये है कि तुम में से सबसे काबिल कौन बनता है । ऐसा कौन होगा, जो मेरा साथी बनने का हौसला रखता है । ये बात काम के दौरान ही तुम्हें देखकर तय की जाएगी । जो सबसे बढ़िया काम करेगा, वो बड़े भाई के साथ काम करेगा ।"
खामोशी आ ठहरी वहां ।
सबके चेहरे कुछ कर-गुजरने के लिए जोश से भरे हुए थे ।
अंसारी, बड़े भाई के पीछे हाथ बांधे खड़ा था।
"ये हिन्दुस्तान नहीं, पाकिस्तान की छाती पर बने नासूर का नाम है हिन्दुस्तान ।" बड़ा भाई ऊंची आवाज में कह उठा--- "हमने पाकिस्तान की छाती से नासूर को हटाना है। पाकिस्तान तभी कुछ कर-गुजरने के लायक होगा, हिन्दुस्तान सिमट जाएगा । बहुत जुल्म ढाए हैं हिन्दुस्तान ने पाकिस्तान पर । अब वक्त आ गया है कि हिन्दूस्तान को मजा चखाया जाए ।"
"हम अपनी जान देकर भी हिन्दुस्तान को सबक सिखाने को तैयार हैं ।"
"ख्वाहिश है हामिद अली की कि पूरे हिन्दूस्तान को बर्बाद करके उसकी जमीन को पाकिस्तान में मिला लिया जाए । सिर्फ एक शहर ही हिन्दुस्तान का छोड़ा जाए । वो भी याद के तौर पर कि यहां कभी हिन्दुस्तान होता था । जो भी देश पाकिस्तान से टकराएगा, उसका यही अंजाम होगा । साबित कर देना है हमें कि पाकिस्तान का हर लड़का जांबाज है जो पाकिस्तान के लिए कुछ भी कर सकने को तैयार हैं । मौत भी आ जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता । क्योंकि मरने के बाद हमने फिर पाकिस्तान में जन्म लेना है । होश संभालने पर फिर हिन्दुस्तान को खत्म करने की कोशिश करनी है। ये सब तब तक चलेगा, जब तक कि हिन्दुस्तान खत्म न हो जाए । दुनिया के नक्शे पर पाकिस्तान को बहुत बड़ा दिखना चाहिए । इतना बड़ा कि हमारा सीना गर्व से फूल जाए और अमेरिका भी हम से डर कर बात करे ।"
"ऐसा ही होगा ।"
"हम हिन्दुस्तान को तबाह करके ही वापस जाएंगे ।"
"पाकिस्तान का सिर दुनिया-भर के सामने हम ऊंचा करके रहेंगे।"
"मुझे और हामिद अली को तुम सातों दोस्तों से ये ही आशा है । तभी तो हामिद अली ने तुम लोगों को मुम्बई पहुंचाया ।" बड़े भाई ने मुस्कुरा कर कहा--- "तुम लोगों ने साबित कर दिखाना है कि पाकिस्तान के सच्चे बेटे हो । देश के लिए लड़ने वाला कभी मरता नहीं है, वो फिर जन्म लेता है । जन्नत और जहन्नुम नहीं है, इस जमीन पर । देश के लिए काम करोगे-तो जन्नत नसीब होगी। जान-माल की परवाह नहीं करनी है। तुम लोग सिपाही हो । सिपाही के नाते अपने धर्म और फर्ज को पूरा करो । कश्मीर में जो हो रहा है उसका बदला लो। बहुत शानदार मौका मिला है तुम लोगों को देश की सेवा करने का। कुर्बान हो जाओ पाकिस्तान के नाम पर। ताकि नए युवकों को सबक मिले कि देश की कीमत उनके आगे कुछ भी नहीं। तुम लोग जाओ तो और लड़के आगे आ जाएं । हिन्दुस्तान एक दिन हमारे हाथों मर कर रहेगा ।"
"मसल देंगे हम हिन्दुस्तान को ।"
"पाकिस्तान के लिए जान की बाजी लगा देंगे ।"
"बड़े भाई । हमें करना क्या होगा ?"
बड़े भाई ने दोनों हाथ उठाकर उन्हें शांत रहने का इशारा किया फिर बोला ।
"तुम लोगों के लिए मेरे पास बहुत ही शानदार योजना है कि हिन्दुस्तान एक बार फिर कांप उठेगा और पाकिस्तान का सीना गर्व से तन जाएगा। ऐसे मौके बार-बार तुम लोगों के हाथ नहीं आएंगे। इसलिए काम को सोच-समझकर, मन लगाकर करना है । जरूरत पड़ने पर मैं तुम दोस्तों से मुलाकात करता रहूंगा । आखिर हम लोगों ने बड़े काम को अंजाम देना है । बेशक काम शुरू करने में कुछ दिन लग जाएं, परंतु जब काम शुरू करेंगे तो बाजी अपने हाथ में होगी । पहले सबको वो जगह देखने का मौका दिया जाएगा, जहां काम किया जाएगा । वक्त आने पर सब बताया जाएगा । कल सुबह अंसारी ।" बड़े भाई ने अंसारी की तरफ इशारा किया--- "तुम लोगों को एक जगह के बारे में बताएगा तो कल अलग-अलग तुम लोगों को वहां जाना है। वो जगह वहां के रास्ते, सब कुछ अपने दिमाग में बैठा लेना है । उसके बाद बाकी की बात होगी । मैं अक्सर आता रहूंगा और इसी तरह हम बातें करते रहेंगे ।"
"हम कल से काम शुरू नहीं कर सकते ?" अब्दुल रज्जाक ने कहा ।
"जल्दी मत करो । जहां काम करना है, पहले वो जगह देखो । वहां की सिक्योरिटी देखो कि वक्त आने पर तुम लोगों को कोई परेशानी न हो और सब संभाल सको । मैं जानता हूं कि जब तुम लोग काम पूरा करके पाकिस्तान लौटोगे तो हामिद अली तुम सबको पचास-पचास लाख रुपया देगा। अगर तुम लोगों ने काम को शानदार ढंग से किया तो मैं अपने फंड से भी तुम लोगों को पच्चीस-पच्चीस लाख रुपया दूंगा ।"
"हम बहुत बढ़िया काम करेंगे ।"
"बड़े भाई जिंदाबाद ।"
"वो वक्त जल्दी से आ जाए जब हमें काम शुरू करना है ।"
"जल्दी आ रहा है वो वक्त। बड़े भाई ने हाथ ऊंचे करके कहा ।
"हमें हथियारों की जरूरत होगी ।"
"तुम लोगों के लिए हथियार तैयार रखे हैं । चीन की ऐसी मारक गने हैं जो हिन्दुस्तान में हर कोई इस्तेमाल नहीं करता । वो महंगी बहुत होती हैं । एक बार ट्रेगर दबाओगे तो पचासों गोलियां निकल कर इधर-उधर बिखर जाएंगी । सिंगल मोड पर सैट करेंगे तो एक-एक गोली निकलेगी । ऑटोमैटिक कर दोगे तो जब तक ट्रेगर दबाए रखोगे, गोलियां निकलती ही रहेंगी । ऐसी शानदार गनें तुम लोगों ने पहले इस्तेमाल नहीं की होगी ।" बड़े भाई ने ऊंचे स्वर में कहा ।
"फिर तो हम सब को खत्म कर देंगे ।"
"ऊपर वाला आपकी इच्छा पूरी करे ।" बड़े भाई ने कहा--- "कल जब आप लोग यहां से बाहर निकलेंगे तो अपनी हिन्दुस्तान आई-डी के दम पर एक-एक मोबाइल कनैक्शन ले लेगा लेना। ताकि हम जब भी चाहे, तुम लोगों से बात कर सकें। कोई दिक्कत आए तो इस बारे में अंसारी आपकी सहायता करेगा। अब मैं चलूंगा। मुझे कहीं और जाना है । वो लोग मेरा इंतजार कर रहे होंगे । तुम सबको जैसे काम करने को कहा जाए, वैसे ही करते जाओ। फतेह हमारी होगी ।"
"बड़े भाई जिंदाबाद ।"
"ऐसा मत कहो । मैं तो तुम जैसा ही हूं । पाकिस्तान जिंदाबाद कहो । तुम लोग देश के लिए काम कर रहे हो । देश ही तुम लोगों का धर्म है । देश ही कर्म है । जान लगा दो देश के लिए । खुदा हाफिज ।" बड़े भाई ने कहा और पलटकर लोहे के दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
अंसारी उसके पीछे चल पड़ा। दरवाजा खोला गया । बाहर निकलते समय बड़े भाई ने धीमे स्वर में अंसारी से कहा ।
"इनके जोश को ठंडा मत होने देना अंसारी ।"
"जी।"
"इनका खून गर्म रहेगा तो हम अपने मिशन में सफल रहेंगे ।" इन्हें कहते रहो कि ये पाकिस्तान के हीरो हैं । हवा देते रहो ।"
"ऐसा ही करूंगा ।" अंसारी ने फौरन सिर हिलाया ।
बड़ा भाई बाहर निकल गया । अंसारी ने दरवाजा बंद किया और पलट कर उन सबके पास पहुंचकर बोला ।
"बड़े भाई तुम लोगों की तारीफ कर रहे हैं कि ये लड़के पाकिस्तान का सिर दुनिया-भर में ऊंचा करेंगे ।"
"हम ऐसा ही करेंगे ।"
"काम की बातें खत्म ।" अंसारी व्हिस्की की पेटी की तरफ इशारा करके कह उठा--- "वहां से बोतलें निकालो और पियो । मौज- मस्ती करो मैं भी तुम लोगों के साथ पिऊंगा । खाने-पीने का भरपूर सामान किचन में पड़ा है । तो मौज-मस्ती शुरू करो दोस्तों ।"
■■■
वहां से निकलने के बाद बड़ा भाई इस बाजार में पैदल ही चला जा रहा था । रात होने की वजह से बाजार की रौनक और भीड़ भी बढ़ गई थी। हर कोई अपने में व्यस्त मस्त दिखाई दे रहा था। चलते-चलते बड़े भाई ने कुर्ते की जेब से फोन निकाला और नम्बर मिलाकर कान से लगा लिया ।
परंतु फोन नहीं लगा । बड़े भाई ने दो-तीन बार वो नम्बर ट्राई किया । परंतु कोई फायदा नहीं हुआ ।
फिर बड़े भाई ने दूसरा नम्बर मिलाया ।
चंद सेकेंडों बाद ही दूसरी तरफ बेल जाने लगी ।
"हैलो ।" मुनीम खान की आवाज कानों में पड़ी ।
"कैसे हो मुनीम खान साहब । चलते-चलते बड़े भाई ने मुस्कुरा कर कहा ।
"ओह, जनाब सलीम खान साहब । कैसे मिजाज हैं ?"
"दुरुस्त हैं। सेहतमंद हूं। तुम अपनी कहो।"
"ऊपर वाले की दुआ से बहुत बढ़िया हूं ।" मुनीम खान का स्वर आया--- "लड़के मिल गए ?"
"मिले । बढ़िया लग रहे हैं लड़के ।"
"बहुत काम के हैं । उन्हें मैंने छांट कर तराशा है । मजा कर देंगे मुम्बई में।"
"उनका जोश बढ़िया है। मुझे भरोसा है कि वो कुछ करेंगे ।" सलीम खान ने कहा ।
"काम शुरू हो गया ?"
"कल सुबह से शुरू हो जाएगा ।"
"एक्शन किस दिन होगा ?"
"पांच-छः दिन लग जाएंगे ।"
"काम बढ़िया ढंग से करना सलीम साहब । हमीद अली की निगाहें लगी है इस काम पर ।
"सलीम अपना हर काम बढ़िया ढंग से करता है। हामिद अली साहब का फोन नहीं लग रहा ।"
"हथियारों का इंतजाम करने चीन गए हैं । कल तक लौट आएंगे।"
"मेरा सलाम कहिए उन्हें । इस काम के बाद में पाकिस्तान आऊंगा ।" सलीम खान बोला ।
"खैर तो हैं ?"
"खैर ही खैर है। अपने मुल्क को देखें मुद्दत हो गई। हिन्दुस्तान में क्या रखा है ।" सलीम खान हंस कर कह उठा--- "जब तक लाहौर के मुल्तानी चौक से, हैदर भाई के होटल में खाना न खा लें, तब तक यकीन नहीं होता कि पाकिस्तान आ गया हूं ।"
"वैसे खाना तो हिन्दुस्तान में भी मिल...।"
"पाकिस्तान में बैठकर खाना खाने की बात ही कुछ और है। स्वाद आ जाता है। वैसे भी बेगम नाराज हो रही थी कि मुलाकात किए तीन साल हो गए हैं तो सोचा बेगम को सलाम ठोक आऊं ।" सलीम खान हंसा ।
"जरूर-जरूर आपके आने का मुझे इंतजार रहेगा ।" उधर से मुनीम खान ने कहा ।
"बस, ये काम करके पाकिस्तान पहुंचा सलीम खान ।"
"इस काम से हिन्दुस्तान हिलेगा कि नहीं ?"
"हिलेगा खान साहब । पहले से ज्यादा जोर से हिलेगा । सलीम पर भरोसा कायम रखें ।"
"ऐसा न हुआ तो हामिद अली साहब को मजा नहीं आएगा ।"
"चिंता न करें। पूरा मजा दिला देंगे । इस बार तो सातों लड़के पहुंच गए । कोई पकड़ा नहीं गया ।"
"हामिद अली साहब को इस बात की खुशी है । हथियार हिफाजत से रखे हैं न ?"
"पूरी तरह ।"
"वो ही हथियार लड़कों को देना । उससे ज्यादा लोग मरेंगे । दहशत खूब फैलेगी ।"
"आपके मुंह में घी-शक्कर ।" सलीम खान ने हंसकर कहा--- "वो ही हथियार उन्हें देंगे ।"
"हामिद अली साहब मुझसे सलाह ले रहे थे कि क्या आपको कश्मीर में भेजना सही होगा ।"
"वहां जरूरत है तो वहां चले जाते हैं । हुकुम कीजिए ।" सड़क पर चलते-चलते फोन पर सलीम खान हंसा ।
"ये काम निपटा कर जब आप पाकिस्तान आएंगे तो इस पर बात करेंगे । कश्मीर में फिर से शान बहाल हो रही है । ये ठीक बात नहीं है। वहां पर हर समय आग लगी रहे तो ये हमारे हक में अच्छा है । तुम ऐसे काम बखूबी करते हो ।"
"सलीम खान तो हर तरह के काम कर लेता है । कश्मीर हो या मुम्बई, सलीम खान को तो काम ही करना है ।"
"जल्दी मिलेंगे।"
"अल्लाह ने चाहा तो अगले हफ्ते पाकिस्तान में मिलेंगे ।" सलीम खान ने कहा और फोन बंद कर दिया । तब तक वो बाजार की सड़क से बाहर चौराहे के पास आ गया था । एक तरफ छोटी-सी पार्किंग में खड़ी नीले रंग की कार के पास पहुंचा । कार के पास ही तीस वर्ष का युवक कमीज-पैंट पहने खड़ा था । उसने तुरंत पिछला दरवाजा खोलते हुए कहा ।
"बैठिए जनाब ।
सलीम खान भीतर बैठता हुआ कह उठा ।
"चल अहमद । वरसोवा पहुंचना है जल्दी । वहां लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे ।"
■■■
अगले दिन वो सातों सुबह आठ बजे तक उठ गए थे । वो सब नहा-धोकर तैयार हुए । अंसारी भी वहीं था । नाश्ते का सामान एक लड़का वहां पहुंचा गया था। सब ने नाश्ता किया। वे लोग आपस में बातचीत नहीं कर रहे थे। ऐसा करने के लिए उन्हें मना किया हुआ था। नाश्ते के बाद अंसारी उनसे कह उठा।
"आज से आप लोगों का काम शुरू होता है । मैं आप लोगों को इस इमारत के बारे में बताऊंगा जो कि दस मंजिला है और बहुत बड़ी जगह में फैल कर बनी हुई है। बांद्रा वेस्ट में सावित्री हाउस नाम से है ये इमारत । बहुत मशहूर है और हिन्दुस्तान की बड़ी-बड़ी कंपनियों के ऑफिस यहां पर हैं । इस इमारत की चौथी मंजिल तक आप लोगों में से चार लोग जाएंगे और इस नजरिए से वो सारी जगह को देखेंगे कि अगले कुछ दिनों में उस जगह को कब्जे में लेना है।"
"चौथी मंजिल पर कुछ खास है क्या ?" आमिर रजा खान ने पूछा ।
"हां। वहां पर एक ही कॉर्पोरेट कंपनी का ऑफिस है, पूरी मंजिल पर। करीब आठ सौ लोग वहां काम करते हैं। आठ सौ लोगों को कब्जे में लेना एक बहुत ही बड़ी बात होगी । इतने लोगों को बंधक बने देखकर हिन्दुस्तान के हाथ-पांव फूल जाएंगे ।"
"तुमने कहा चार लोग जाएंगे । सात क्यों नहीं ?"
"एक बार में चार लोग अलग-अलग तरह से, अपने तौर पर सावित्री हाउस की चौथी मंजिल तक जाएंगे। वहां तक जाने के रास्ते देखेंगे । कहां-कहां से निकला या प्रवेश किया जाता है । ये सब पहचानना है आप लोगों को क्योंकि जब सावित्री हाउस में काम किया जाएगा तो ये जानकारी तब बहुत अहम होगी ।" अंसारी ने कहा ।
"ये बात तो तुम भी देख सकते...।"
"हमने सब देख रखा है ।" अंसारी मुस्कुराया--- "परंतु तुम लोगों का उस जगह से पहचान हो जाना बहुत जरूरी है, जहां पर काम करना है । इसलिए अपने ढंग से चौथी मंजिल पर जाकर जगह देखो । हर रास्ता पहचानो याद रखना चारों ने अलग-अलग जाना है । कहीं मुलाकात हो तो बात नहीं करनी है ।
"बाकी के तीन कहीं और जाएंगे ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"बाकी के तीन भी यहीं जाएंगे । परंतु दोपहर के बाद, जब पहले चार इमारत से बाहर आ जाएंगे । सावधानी के नाते ऐसा किया जा रहा है कि वहां पर एकदम ज्यादा अजनबी न दिखें । वैसे इन बातों की परवाह उधर कोई नहीं करता । सैकड़ों लोग सुबह से शाम तक उस दस मंजिला इमारत में आते-जाते हैं। परंतु हम कुछ सावधानी बरत रहे हैं ।"
"मतलब कि सातों को उस सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर कब्जा करके आठ सौ लोगों को बंधक बनाना है ।" सरफराज हलीम कह उठा--- "ये काम तो बहुत आसान है अंसारी साहब।"
"आठ सौ लोगों को बंधक बनाने में तुम आसान काम कह रहे हो ।" अंसारी बोला ।
"सच में आसान है ।" सरफराज सलीम खतरनाक मुस्कान के साथ कह उठा--- "हमारे पास खतरनाक से खतरनाक हथियार होंगे । वो हमारा मुकाबला कहां कर पाएंगे । उन्हें डराने के लिए पांच-दस को मार दिया जाएगा तो उनकी हवा गुल हो जाएगी । ऐसा कोई बेवकूफ तो है नहीं कि जो हथियारों के सामने कुछ करने की कोशिश करेगा ।"
"ये बात सही है ।" देवराज चौहान शांत स्वर में कह उठा--- "हम उन पर काबू पा लेंगे ।"
"माना कि सही है, परंतु इतना आसान भी नहीं है ये काम ।" अंसारी गंभीर स्वर में कह उठा--- "सरफराज हलीम ठीक कहता है कि पांच-दस को मार देंगे तो उनके मन में दहशत भर जाएगी, परंतु ऐसे मौके पर कई लोग चालाकी करने या हिम्मत करने की चेष्टा कर सकते हैं । बहुत संभलकर करने वाला काम है ये । खैर, इस बारे में तब की तब बात की जाएगी जब एक्शन लेने का वक्त आ जाएगा । अभी तो वहां का सारा भूगोल देख कर आओ ।"
"वहां पहुंचकर ये काम दो-तीन घंटों में हो जाएगा ।"
"लंच के बाद बाकी तीन भी वहां पहुंच जाएंगे ।"
"पहले चार कौन होंगे ।"
"मोहम्मद डार, गुलाम कादिर भट्ट और तारिक मोहम्मद तीन बजे सावित्री हाउस में प्रवेश करेंगे ।" अंसारी बोला ।
किन चार ने पहले जाना है ये तय हो गया था ।
"अच्छी तरह देखनी है वो इमारत । खासतौर से चौथी मंजिल । आने-जाने का हर रास्ता ।
"मोबाइल फोन कहां से लेने हैं ?" जलालुद्दीन ने पूछा।
"यहां से निकल कर जब बाजार में पहुंचोगे तो वहां मोबाइल फोन की कई दुकानें दिख जाएंगी । नया नम्बर भी मिल जाएगा। इसके लिए तुम लोगों को ड्राइविंग लाइसेंस की फोटो कॉपी और अपनी तस्वीर देनी होगी । फोटो ग्राहक की दुकान भी बाजार में है । तलाश करके फोटो खिंचवा लेना । अगर कोई दिक्कत हो तो कहो, मैं कोई लड़का तुम लोगों के साथ कर देता हूं ।"
"क्या जरूरत है ।" अब्दुल रज्जाक बोला--- "ये काम हम खुद कर लेंगे ।"
"ठीक है ।" अंसारी गम्भीर स्वर में कह उठा--- "अब खास बात सुनो । वैसे तो इस बात का चांस नहीं है । परंतु तुम में से कोई पुलिस के हाथ लग जाता है तो किसी भी हाल में इस जगह के बारे में, बड़े भाई के बारे में, मेरे बारे में मुंह नहीं खोलोगे ।"
"वो हम समझते हैं ।" देवराज चौहान बोला--- "पर क्या तुम्हें लगता है कि ऐसा हो सकता है ?"
"ऐसा नहीं होगा । ये बात मैं सावधानी के तौर पर कह रहा हूं कि जिस मिशन के लिए पाकिस्तान से मुम्बई तक पहुंचे हो, उसे किसी भी हालत में खराब नहीं होने देना है। पाकिस्तानी हो तुम लोग । देश के लिए काम कर रहे हो । मुंह खोलने से अच्छा है कि देश के लिए जान दे दो कि मिशन किसी भी हाल में न रुक सके । दुनिया में एकमात्र पाकिस्तानी ही हैं जो हौसले वाले होते हैं और वक्त आने पर जान की परवाह नहीं करते ।" अंसारी शब्दों को चबा कर कह उठा ।
■■■
दिन के साढ़े ग्यारह बजे देवराज चौहान उस ठिकाने से निकला। वो आखिरी था, वहां से निकलने वाला । अंसारी ठिकाने पर ही था । अब उसका पहला काम था मोबाइल फोन खरीदना । नया कनैक्शन (नम्बर) लेने के लिए उसके पास अपना ड्राइविंग लाइसेंस था । जिसके आधार पर वो नया नम्बर ले सकता था । इसके बाद वक्त बिताते हुए उससे बांद्रा वेस्ट में सावित्री हाउस ही इमारत पर, तीन बजे के बाद पहुंचना था और चौथी मंजिल को चैक करना था।
देवराज चौहान मार्केट में पहुंचा।। सबसे पहले उसने फोटोग्राफर की दुकान तलाश की । वहां से फोटो खिंचवाई । दस मिनट में ही तस्वीर की चार कॉपियां मिल गई तो ऐसी दुकान तलाश की, जहां से नया फोन और नम्बर ले सके । अपने लाइसेंस की फोटो कॉपी करा कर उस दुकान में गया और चार हजार का फोन खरीदा । नया नम्बर लेने के लिए उसने लाइसेंस की फोटो कॉपी दी । जिस पर सुरेंद्र पाल नाम लिखा था । एक फार्म भरा और नया नम्बर मिल गया । वो दुकान से बाहर आ गया । दुकानदार ने कहा था कि पन्द्रह मिनट में चालू हो जाएगा ।
बाजार में पैदल ही आगे बढ़ता रहा देवराज चौहान । तेज धूप थी। गर्मी थी। लेकिन देवराज चौहान के मस्तिष्क में तो अपना ही ताना-बाना चल रहा था । मोबाइल फोन मिल जाना, उसके लिए खुशी की बात थी । अब यहां की खबरें आसानी से मार्शल को दे सकता था । इससे मार्शल उसकी स्थिति को अच्छी तरह से समझ सकेगा ।
पन्द्रह मिनट चलकर देवराज चौहान मार्केट के आखिरी छोर पर पहुंचा जहां लाल बत्ती थी । चंद पल वहीं खड़ा रहा फिर पैदल ही एक तरफ चल पड़ा । वो इस बात की तसल्ली कर लेना चाहता था कि कोई उसके पीछे तो नहीं है । अंसारी ने कहीं उन सब पर नजर रखने को लोग लगा रखे हों ।
कुछ आगे जाकर उसने टैक्सी ली । ध्यान पीछे ही रहा ।
"कहां चलना है साब ?" ड्राइवर बोला । टैक्सी आगे बढ़ा दी थी।
"तीन बजे मुझे बांद्रा की सावित्री हाउस पर पहुंचना है ।" देवराज चौहान बोला ।
"उधर तो चालीस मिनट में पहुंच जाएगा । ये तीन बजे का मतलब समझ में नहीं आया ।"
"मैं मुम्बई में नया हूं । मुझे मुम्बई दिखाओ और तीन बजे बांद्रा वेस्ट के सावित्री हाउस पर छोड़ देना ।"
"समझ गया । पर साब दो-ढाई घंटों में क्या दिखाऊं ?"
"यूं ही सड़कों पर घुमाते रहो। आज इतना ही देख लेता हूं ।"
आधे घंटे बाद देवराज चौहान को यकीन हो गया कि उसका पीछा नहीं किया जा रहा ।
"कहीं, कुछ खिला-पिला दो ।" एक घंटे बाद देवराज चौहान बोला ।
"क्या खाएगा साब ?"
"रैस्टोरेंट में ले चलो ।"
पन्द्रह मिनट बाद टैक्सी वाले ने एक रैस्टोरेंट के सामने टैक्सी रोक दी।
"ये बढ़िया रैस्टोरेंट है ।" ड्राइवर बोला--- "खाने को सब कुछ मिलेगा। मैं, इधर इंतजार करता हूं ।"
देवराज चौहान रैस्टोरेंट में प्रवेश कर गया। एक टेबल संभाली और अंसारी के दिए नंबर पर फोन किया ।
"हैलो ।" कानों में अंसारी की आवाज पड़ी ।
"मैं पाकिस्तानी ।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।
"कहो तारिक मोहम्मद ?"
"तुमने कहा था कि नया नम्बर लेकर, मुझे नम्बर बता देना । अब तुम्हारे फोन में मेरा नम्बर आ गया है । नोट कर लो ।"
"ठीक है । इस वक्त तुम कहां हो ?"
"एक रैस्टोरेंट में । जगह पता नहीं कौन-सी है । मैंने टैक्सी कर रखी है । टैक्सी तीन बजे मुझे बांद्रा वेस्ट वहीं पर पहुंचा देगी ।"
"ठीक है । सतर्क रहना ।" इतना कहकर अंसारी ने फोन काट दिया था ।
उसी पल वेटर पास आ पहुंचा ।
"क्या लेंगे सर ?"
देवराज चौहान ने छोटा-सा ऑर्डर दे दिया ।
"रैस्टोरेंट में चहल-पहल थी । मध्यम-सा शोर उठा हुआ था । वेटर सामान सर्व करने दौड़ रहे थे । वहां पर देवराज चौहान ने पूरी निगाह मारी । सब ठीक ही लगा । हर कोई अपने में मस्त लग रहा था।
देवराज चौहान हाथ में दबे फोन से मार्शल का नम्बर मिलाने लगा ।
फिर फोन कान से लगा लिया। दूसरी तरफ जाने लगी थी ।
कई सेकेंड तक बेल जाती रही । इस तरह फोन करके वो खतरा मोल ले रहा था। अगर उस पर नजर रखी जा रही है तो उससे पूछा जा सकता था कि किस से बात कर रहा था । ऐसा होते ही उसने फंस जाना था ।
परंतु ये खतरा उठाना भी जरूरी था । इस वक्त उसके काम का हिस्सा था ।
"हैलो ।" तभी मार्शल की आवाज कानों में पड़ी ।
"मार्शल । देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा ।
पल-भर की खामोशी के बाद मार्शल का चौंका स्वर कानों में पड़ा ।
"देवराज चौहान ?"
"हां, मैं...।"
"तुम कहां हो ?"
"मेरी बात सुनो मार्शल । वक्त बर्बाद मत करो । फोन पर इस तरह बात करके मैंने खतरा उठाया है ।"
"ओह, कहो।" अब मार्शल का स्वर सतर्क था ।
"जब मैंने उस नम्बर का फोन किया तो मुझे बोरी-बंदी की लाल बत्ती के की मार्केट में गफ्फूर बोट हाउस पर पहुंचने को कहा गया ।"
"समझ गया ।"
"वहां पहुंचा तो गफ्फूर नाम के आदमी ने किसी को बुलाकर मुझे उसके साथ भेज दिया । जगह उसी मार्केट के पीछे की तरफ किसी इमारत का बेसमेंट है, जहां वो सारे पाकिस्तानी टिके हुए हैं ।"
"फिर ?"
"वहां अंसारी नाम का आदमी है जो कि सबके मन में हिन्दुस्तान के लिए नफरत भड़काता रहता है । ऐसा इसलिए करता है कि जब काम करने का वक्त आए तो वे लोग, हिन्दुस्तान के प्रति ढेर सारी नफरत लेकर, वहशी ढंग से काम करें।"
"ऐसा ही करते हैं वे । तुम पर किसी तरह का शक तो नहीं हुआ ?"
"नहीं । अब उनका प्लान भी सुन लो । वे लोग बांद्रा वेस्ट की सावित्री हाउस की इमारत की चौथी मंजिल पर कब्जा करना चाहते हैं । बताया गया है कि काम के समय वहां आठ सौ आदमी मौजूद रहते हैं ।
"ओह । तो वो एक बार फिर दहशत फैलाना चाहते हैं ।"
"उनका इरादा सैकड़ों जानें लेने का है । वे सब खतरनाक हैं ।"
"लेकिन मुम्बई में इस सारे मामले को कौन संभाल रहा...।"
"मैं उसका नाम तो नहीं जानता । देखा भी कभी नहीं। वो आया था । और खुद को बड़ा भाई कह...।"
"बड़ा भाई ।" उधर से मार्शल चौंका ।
"तुम जानते हो ?"
"हां । इसका नाम सलीम खान है । ये पाकिस्तानी है और लंबे समय से देश में आतंक फैला रहा है। पांच में से चार आतंकी वारदातों में इसका हाथ होता है । कानून को इसकी लंबे समय से तलाश है । परंतु इसके हाथ न लगने की वजह ये है कि इसकी कोई तस्वीर पुलिस के पास नहीं है । क्या ये भी उसी बेसमेंट में मौजूद रहता है ?"
"नहीं। ये कल शाम को सिर्फ पन्द्रह मिनट के लिए आया था और बातचीत करके चला गया ।"
"सावित्री हाउस की चौथी मंजिल को अपने कब्जे में करने का प्लान कब का है ।" उधर से मार्शल ने पूछा ।
"फिक्स कुछ नहीं है । परंतु बातों से मुझे एहसास हुआ कि इस काम को पांच दिन का वक्त लग सकता है ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम इसके मिशन के बारे में जानना चाहते थे ये जानना चाहते थे कि यहां पर इन पाकिस्तानियों को कौन संभाल रहा है। अब ये बातें तुमने जान ली हैं। जब भी इनकी धर-पकड़ करना चाहो, कर लो। मैं तुम्हें बेसमेंट के ठिकाने के बारे में ठीक से बता देता हूं ।"
मार्शल की आवाज नहीं आई ।
तभी वेटर आर्डर का सामान सर्व करके चला गया ।
"मार्शल ।" देवराज चौहान बोला--- "जल्दी करो। मैं ज्यादा बात नहीं कर सकता। मुझे फोन बंद करना है "
"मैं सलीम खान को पकड़ना चाहता हूं ।" मार्शल का शांत स्वर कानों में पड़ा ।
"लेकिन...।"
"ये बहुत जरूरी है देवराज चौहान । सलीम खान बहुत ही खतरनाक आतंकवादी है । मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकता कि इसने कितने बड़े-बड़े कारनामे किए हैं । सैकड़ों लोगों की मौत इसके सिर पर है । ये आजाद रहा तो अभी और सैकड़ों को मारेगा ।"
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए । बोला ।
"मुझे इसका ठिकाना नहीं पता। ये वहां पर सिर्फ पन्द्रह मिनट के लिए कल शाम को आया था ।"
"उस अंसारी को पता हो सकता है ?" उधर से मार्शल ने पूछा ।"
"मेरे ख्याल में उसका पता अंसारी को भी नहीं होगा ।" देवराज चौहान ने सोच-भरे स्वर में कहा ।
"तो उसका पता लगाओ । सलीम खान की गिरफ्तारी देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।"
"इतना वक्त नहीं है मार्शल । करीब पांच दिन बाद वे लोग सावित्री हाउस पर...।"
"पांच दिन बहुत होते हैं देवराज चौहान ।" मार्शल की आवाज कानों में पड़ी ।
"मेरे काम में ये बात शामिल नहीं थी कि...।"
"ये जरूरी है । तभी तो...।"
"ठीक है । मैं देखूंगा इस बारे में तुम्हें फिर फोन...।"
"तुम किस फोन से बात कर रहे...।"
"हम सब को बाजार से फोन और एक नया नम्बर लेने को कहा गया है । मैं उसी फोन से बात कर रहा हूं । परंतु तुम किसी भी हाल में इस पर फोन मत करना । इस तरह मैं फंस जाऊंगा ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"ठीक है ।" मार्शल की आवाज कानों में पड़ी--- "तुम अपने काम की बात जान लो । इस वक्त तुम तारिक मोहम्मद बने हुए हो । ऐसे में तुम्हें पता होना चाहिए कि तारिक मोहम्मद की पिछली जिंदगी क्या है । कभी भी इस बात की तुम्हें जरूरत पड़...।"
"जल्दी बताओ ।"
"तारिक मोहम्मद ड्राई फ्रूट का व्यापारी था । बन्नू में । उसका बंगला था, परिवार था । पत्नी, बेटी, बेटा परिवार में थे । एक रात उनके घर में लूट हुई । घर में पड़ा सत्तर लाख रुपए लुटेरे ले गए और उसकी पत्नी, बेटी, बेटे को मार गए वो सत्तर लाख लोगों को देना था । इस तरह देनदारी में बंगला और दुकान बिक गई । वो पूरी तरह बर्बाद हो गया । पुलिस उन लुटेरों को नहीं पकड़ सकी । उसके बाद तारिक मोहम्मद ड्राई फ्रूट की दलाली करके अपनी जिंदगी बसर करने लगा । इसी दौरान वो हामिद अली के आदमियों के संपर्क में आया और इस रास्ते पर चल पड़ा ।"
"अब हमारी बात खत्म हुई । मौका मिलने पर दोबारा फोन करूंगा ।" कहकर देवराज चौहान ने फोन बंद किया । फिर बटनों से खेल कर फोन में आ चुका मार्शल का नम्बर मिटा दिया कि कोई उसका फोन चैक करे तो सब ठीक लगे उसे ।
■■■
शाम को वो सब उसी इमारत के बेसमेंट में फिर से मौजूद थे ।
खाना बनाने वाले लड़के, खाना बना कर जा चुके थे ।
शाम सात बजे अंसारी आया ।
"तो आप सबने सावित्री हाउस की चौथी मंजिल की छानबीन कर ली होगी ।" अंसारी ने कहा ।
"हां ।"
"वहां क्या-क्या देखा । उधर के रास्तों के बारे में एक-एक करके सब बताएंगे और जब कोई एक बता रहा हो तब बाकी लोग उसकी की बात को ध्यान से समझेंगे। ताकि किसी की नजर से कुछ देखना बाकी रह गया हो तो, वो भी उसे पता चल जाए ।"
उसके बाद एक-एक करके सातों ने बताया कि सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर रास्ते कहां-कहां थे कहां से उसने प्रवेश किया । बाकी सब उसकी बात सुनते रहे । उसकी बात पूरी होने पर दूसरा बताने लगा ।
इस तरह सातों ने वहां का आंखों देखा हाल बताया ।
उनकी बात पूरे होने पर अंसारी मुस्कुरा कर कह उठा ।
"सबने सबकी बातें सुनी । अगर कोई कुछ जानना भूल गया होगा तो वो उसे पता चल गया होगा । भीतर जाने में कोई परेशानी तो नहीं आई होगी । हालांकि वहां रास्तों पर गार्ड मौजूद रहते ।"
"मुझे मामूली-सी परेशानी आई ।" अब्दुल रज्जाक कह उठा--- "एक गार्ड ने मुझे रोका कि मैं भीतर क्यों जाना चाहता हूं किससे मिलना है । मैंने यूं ही कोई नाम ले लिया और किसी तरह भीतर जा सका ।"
"ये मामूली बात है ।" अंसारी ने सबको देखा--- "इस बारे में कोई और, कुछ कहना चाहता है ?"
सब खामोश रहे ।
"ठीक है । अब आगे बात करते हैं ।" अंसारी कह उठा--- "आप लोगों ने वहां के स्टाफ को देखा ? चौथी मंजिल के हॉल को दो भागों में बांटा हुआ है । परंतु बीच में रास्ता होने की वजह से वो जगह एक ही हो जाती है । हर रोज वहां आठ सौ लोग बैठते हैं। सुबह 9 बजे से शाम छः बजे तक । उसके बाद स्टाफ चला जाता है और सौ-डेढ़ सौ लोग ही रह जाते हैं । वो भी रात के दस-ग्यारह बजे तक धीरे-धीरे चले जाते हैं । अब मैं आप लोगों से ये पूछना चाहता हूं कि क्या आसानी से उन आठ सौ लोगों को बंधक बनाया जा सकता है ?"
"ये काम जरा भी मुश्किल नहीं है ।" जलालुद्दीन कह उठा ।
"ये काम किया जा सकता है ।" मोहम्मद डार ने कहा ।
बाकी सबने भी सहमति से सिर हिलाया ।
अंसारी के चेहरे पर मुस्कान थी ।
"आज का काम खत्म हुआ । अब आप सब मौज-मस्ती कीजिए । विदेशी व्हिस्की पेटी वो पड़ी है, खाने-पीने का सामान उधर है । मैं आज भी कल की तरह आप लोगों में शामिल रहूंगा। तो जशन शुरू करें ?" अंसारी ने कहा--- "जश्न के दौरान कोई भी काम की बात नहीं करेगा । ये वक्त सिर्फ मौज-मस्ती का होगा ।"
"हम लोगों को आपस में बात क्यों नहीं करने दी जा रही ?" सरफराज सलीम कह उठा ।
"वक्त आने पर आप लोगों को बात करने की इजाजत होगी और...।"
"वो वक्त कब आएगा ?"
"जब आप लोग, सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर कब्जा कर चुके होंगे । लोगों को बंधक बना चुके होंगे । तब आप सब ने ही सब संभावना है । तब आप लोग एक-दुसरे से बातें कर पाएंगे । इस वक्त बातें करके, दोस्त बनने का नुकसान है काम में । आप लोग काम के लिए खुद को तैयार करें । बेकार की बातों को न सोचें । सिर्फ काम को लेकर ही सोचें ।
■■■
सब व्हिस्की पी रहे थे । आपस में बात करने की अपेक्षा वे अंसारी से बात कर रहे थे ।
देवराज चौहान को न चाहते हुए भी पीनी पड़ रही थी । एक पैग खत्म करके, दूसरा बना चुका था । अंसारी भी सबके साथ हंस-खेल रहा था । इस बीच अंसारी को फोन आते रहे । वो अलग जाकर बात करता रहा ।
"बड़े भाई कब आएंगे ?" एकाएक देवराज चौहान ने अंसारी से पूछा ।
"उनका कुछ पता नहीं । वो कभी भी आ सकते हैं । जब उन्हें जरूरत महसूस होगी पहुंच जाएंगे ।"
"आने से पहले तुम्हें खबर नहीं करते ?"
"कभी करते भी हैं तो कभी नहीं ।" अंसारी ने मुस्कुराकर देवराज चौहान की बात का जवाब दिया ।
"अंसारी भाई ।" तभी नशे में पहुंच चुका अब्दुल रज्जाक बोला--- "तुम देखना मैं सबसे बढ़िया काम करके बड़े भाई का खास आदमी बनूंगा । फिर उनके साथ काम करूंगा ।"
"नहीं ।" गुलाम कादिर हाथ हिलाकर कह उठा--- "ये बात तो मैं सोच रहा हूं कि...।"
"आप लोगों के कहने-सोचने से कुछ नहीं होगा ।" अंसारी कह उठा--- "आप लोगों को देखकर इस बात का फैसला बड़े भाई ही करेंगे कि कौन उनके काम का है । इसलिए दिल लगाकर काम करना । दूसरे से बेहतर काम करने की कोशिश करना । अभी कई बातें तुम लोगों को बतानी है । प्लान समझना...।"
"बताओ ।"
"जब वक्त आएगा, इस बारे में भी बात हो जाएगी । इस हॉल में तो सब बात जरा भी नहीं होगी । ये मौज करने का वक्त है । इस वक्त पियो, खाओ और सो जाओ । ये ही मौज है ।" अंसारी हाथ में थमा गिलास ऊपर उठाकर बोला ।
जलालुद्दीन ने एक ही सांस में गिलास खाली किया और पास ही प्लेट में रखे मुट्ठी भर काजू उठाकर मुंह में डाले और गद्दे से उठा । तभी नशे की वजह से डगमगाया फिर संभल गया । उसके बाद संभला-सा वो देवराज चौहान की तरफ बढ़ा। वो सब गद्दों पर बैठे थे । अंसारी उनके बीच गिलास लिए घूम रहा था ।
जलालुद्दीन देवराज चौहान के पास पहुंचकर बोला ।
"तू कौन है ?"
इस सवाल पर देवराज चौहान अचकचाया फिर कह उठा ।
"तारिक मोहम्मद ।"
"तू वो इंसान नहीं है जिससे मैंने बात की थी ।" जलालुद्दीन नशे में था ।
"क्या मतलब ?" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।
अंसारी की निगाह भी उन पर टिकी ।
बाकी सबकी नजरें भी उस तरफ हो गई ।
जलालुद्दीन उसी तरह नशे में देवराज चौहान से कह रहा था ।
"हमने चेहरों पर नकाब डाले, हामिद अली के ठिकाने पर बातें की थी । जब मुफ्ती इसरार और मुनीम खान हमारी क्लास ले रहे थे । मैं सबसे बातें करता था । हम एक-दूसरे का चेहरे नहीं पहचान सकते, क्योंकि चेहरों पर नकाब था परंतु आवाजें तो पहचान सकते हैं । मैंने वहां पर तेरी आवाज वाले से बात नहीं की थी । तेरी आवाज मैंने पहले कभी नहीं सुनी ।"
देवराज चौहान को मामला गड़बड़ होते लगा ।
अब हालात किसी तरफ भी पलटी खा सकते थे ।
उसका खेल खत्म हो सकता था।
"मैं तारिक मोहम्मद हूं और आज तेरी आवाज को अच्छी तरह पहचान रहा हूं, तू जलालुद्दीन है न ?" देवराज चौहान बोला ।
"लेकिन तेरी आवाज को मैंने पहले नहीं सुना ।" जलालुदीन हाथ हिलाकर कह उठा ।
"तू गलती कर रहा है ।" देवराज चौहान थोड़ा गर्म दिखा--- "मैं तारिक मोहम्मद नहीं तो और कौन हूं। तेरा दम दिमाग खराब हो गया है। मुझे तो लगता है, नशे में तेरा दिमाग खराब हो गया है जो ऐसी बात कर रहा है।"
"इसे चढ़ गई लगती है।" अब्दुल रज्जाक कह उठा ।
"ये तारिक मोहम्मद ही है । जलालुद्दीन को नशा चढ़ गया है ।" आमिर रजा खान कह उठा--- "कम पिया कर।"
जलालुद्दीन गुस्से में आ गया ।
"तुम लोग मेरी बात को इस तरह नहीं उड़ा सकते । ये नशे वाली बात नहीं है ।" जलालुद्दीन अपने शब्दों पर जोर देकर कह उठा--- "यहां पर पहुंचने के बाद जब मैंने पहली बार इसकी आवाज सुनी तो तब भी मुझे यही लगा कि हामिद अली के ठिकाने पर मैंने जिस तारिक मोहम्मद से बात की थी, वो ये आवाज नहीं थी । ये ही बात अब मैं दावे से साथ कहता हूं कि...।"
"एक मिनट रुको ।" तभी अंसारी हाथ उठाकर कह उठा ।
जलालुद्दीन गुस्से में होंठ बंद करके रह गया ।
"सब मेरी बात सुनो । जो बात जलालुद्दीन ने महसूस की, वो क्या तुम लोगों ने भी महसूस की है ?"
"नहीं ।"
"मुझे तो ऐसा नहीं लगा ।"
"ये तारिक मोहम्मद ही है ।"
बाकी पांचो ने ऐसा कोई शक नहीं जताया ।
"मैं गलती नहीं कर सकता ।" जलालुदीन गुर्रा उठा--- "मुझे गलत मत कहो ।"
"चुप हो जाओ जलालुद्दीन ।" अंसारी ने शांत स्वर में कहा--- "लगता है व्हिस्की ज्यादा पी ली...।"
"बकवास मत करो ।" जलालुद्दीन पांव पटक कर बोला ।
"नाराज मत हो ।" अंसारी मीठे स्वर में बोला--- "पीने के बाद ऐसी किसी भी गम्भीर मामले को नहीं उठाना चाहिए । क्योंकि पिए इंसान की बात की कीमत ज्यादा नहीं होती। जो भी बात करनी हो, सुबह करना ।"
"तो तुम समझते हो कि मैं नशे में हूं ।" जलालुद्दीन गुस्से से कह उठा ।
"नशे में तो हो ही ।"
"मेरे हाथ-पांव में है । पर मेरा दिमाग अपनी जगह पर कायम है। मैं होशो-हवाश में हूं ।"
"ये तुम कहते हो, परंतु सामने वाला तो नहीं मानेगा । वो तुम्हें नशे में ही कहेगा । तुम सब पाकिस्तान से निकल कर मुम्बई आ पहुंचे हो । सही वक्त पर सब मुम्बई पहुंचे हैं । ऐसे में ये संभव कैसे हो सकती है कि हमारे पास आते-आते तारिक मोहम्मद बदल जाए ।" अंसारी मुस्कुराया--- "ये संभव ही नहीं लगता।
"तुम मुझे झूठ कह रहे हो।" जलालुद्दीन चीखा।
"मैं झूठ नहीं कह रहा । कह रहा हूं कि इस बारे में सुबह बात करना ।"
"इतनी मत पिया करो ।" अब्दुल रज्जाक हंस कर कह उठा ।
"तू चुप रह।" जलालुद्दीन भड़का ।
"इस मामले में कोई दूसरा नहीं बोलेगा ।" अंसारी ने गंभीर स्वर में कहा ।
फिर वे इस मामले में नहीं बोले । परंतु जलालुद्दीन ने देवराज चौहान से कठोर स्वर में कहा ।
"तू तारिक मोहम्मद नहीं है ।"
"तो कौन हूं मैं ?" देवराज चौहान हौले-से हंसा--- "मेरी आवाज सुनो, कहीं मैं मुनीम खान तो नहीं ।"
जलालुद्दीन दांत पीस उठा ।
दो-तीन स्वर हंसी के उभरे ।
"ये बात यहीं खत्म कर दो । इस बारे में किसी को बात नहीं करनी हो तो सुबह करें । पीना चालू रखो और ज्यादा मत पीना।"
"वे पुनः पीने पानी में लग गए ।
परंतु देवराज चौहान के लिए खतरे की घंटी बज चुकी थी ।
"ये तो अच्छी बात थी कि जलालुद्दीन का साथ किसी और ने नहीं दिया, वरना उसकी स्थिति और भी खराब हो जाती । जो भी हो उस पर उंगली तो उठ चुकी थी । वो सबकी निगाहों में आ गया था । पीने-पिलाने के वक्त में उसकी बात को गम्भीरता से नहीं लिया गया था । लेकिन आने वाले वक्त में जलालुद्दीन उसके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता था ।
■■■
रात 9 बजे मार्शल ने जगमोहन के कमरे में प्रवेश किया तो जगमोहन कह उठा ।
"दोपहर बाद में तुम कहां थे ?" तुम्हारे लोगों से कितनी बार तुम्हारे बारे में पूछा ।"
"मैं काम में व्यस्त था ।"
"कैसा काम ?"
"मुझे पचासों काम होते हैं ।" मार्शल ने मुस्कुरा कर कहा--- "अब तुम्हें किस काम के बारे में बताऊं ?"
"मुझे तुम्हारे कामों से कोई मतलब नहीं । मुझे देवराज चौहान की चिंता...।"
"देवराज चौहान का फोन आया था ।"
"क्या ?" जगमोहन चौंका--- "देवराज चौहान का फोन आया ?"
"हां-वो...।"
"कब ?"
"शायद एक बजा होगा दोपहर का ।"
"तब तो तुम यहीं थे । डेढ़ बजे तुम मुझसे मिले थे । तब क्यों नहीं बताया ?"
"वक्त नहीं था । मुझे कहीं पहुंचना था और तभी मैं चला गया था ।" मार्शल ने कहा और कुर्सी पर आ बैठा--- "तुम देवराज चौहान की चिंता न करो वो ठीक है और अपना काम कर रहा है। वो उन लोगों में मिक्स हो चुका है।"
"क्या बात की देवराज चौहान ने ?" जगमोहन ने बेचैनी से पूछा।
"उसने बताया कि किस प्रकार वो उन लोगों तक पहुंचा । वो कहां है और वहां क्या हो रहा है ।"
"मतलब कि वो एकदम ठीक हाल में है ।"
"पूरी तरह ।"
"और ?"
"उसने बताया कि जो उन लड़कों से काम ले ले रहा है, उसे वहां के लोग बड़ा भाई कह कर बुलाते हैं । वो आदमी सलीम खां है। पाकिस्तानी है और हमारे देश में आतंकवादी वारदातें करके सैकड़ों जाने ले चुका है । कभी ये कश्मीर में था परंतु कई सालों से ये देश के अन्य शहरों में आतंकी कामों को अंजाम दे रहा है।" मार्शल ने कठोर स्वर में कहा---"हिन्दुस्तान कि सरकार को उसकी तलाश है । परंतु वो कभी हाथ नहीं आया । उसकी तस्वीर कभी भी हमारे हाथ नहीं लगी । वो कैसा दिखता है, हमें नहीं पता ।"
"तुमने देवराज चौहान को बताया वो सलीम खान है ?"
"हां ।"
"कुछ और कहा देवराज चौहान ने ?"
"उसने बताया कि बांद्रा वेस्ट में सावित्री हाउस नाम की इमारत की चौथी मंजिल पर वो वारदात करने की तैयारी कर रहे हैं । वो इमारत मशहूर बिजनेस सैंटर है । चौथी मंजिल पर बहुत बड़ी कंपनी का ऑफिस है और दिन में वहां आठ सौ आदमी काम करते हैं । वो उन लोगों को बंधक बनाने की प्लानिंग कर रहे हैं ।"
"ओह । और ?"
"मैंने उसे बताया कि तारिक मोहम्मद की फैमिली पाकिस्तान में क्या थी और...।"
"अब ये बताने की जरूरत क्या थी ।"
"क्या मतलब ?"
"तुम जो जानते थे वो काम हो गया । तुम उसका मिशन जानना चाहते थे । तुम ये जानना चाहते थे कि हामिद अली का ऐसा कौन-सा आदमी हिन्दुस्तान में है जो उन सातों से काम लेगा । वो भी पता चल गया। अब तुम्हें बिना देर किए उन सबको पकड़ लेना चाहिए। उनका ठिकाना तो देवराज चौहान बता ही चुका...।"
"सलीम खान वहां हमेशा मौजूद नहीं रहता " मार्शल बोला।
"तो ?"
"उस पर हाथ डालने के लिए...।"
"हममें ये बात तो तय नहीं हुई थी ।" जगमोहन कह उठा ।
"तब सलीम खान का नाम सामने नहीं आया था । अब पता चला तो...।"
"हमें सलीम खान से क्या मतलब ?" तुम जो चाहते थे वो काम हो गया। काम खत्म हो गया...।"
"सलीम खान की सरकार को सख्त जरूरत है । ये इंसान आजाद रहा तो अभी जाने कितनों की जानें ले लेगा ।"
"अगर वहां देवराज चौहान का राज खुल गया तो वो उसे मार डालेंगे ।" जगमोहन ने गुस्से से कहा ।
"तुम नाहक डर रहे हो । देवराज चौहान वहां अच्छी तरह जम चुका है । उसे कोई खतरा नहीं है। अब मामूली-सा काम बाकी है । सलीम खान जब वहां आने वाला होगा, देवराज चौहान मुझे खबर कर देगा और हम वहां पहुंच जाएंगे ।"
"मतलब कि सलीम खान कभी-कभी वहां आता है ।" जगमोहन बोला ।
"ऐसा ही कहा देवराज चौहान ने ।"
"जो भी हो, तुम काम को लंबा खींच रहे हो । तुमने जो कहा था, वो पूरा हो चुका है ।"
"सलीम खान को पकड़वाने की भी कीमत ले लेना ।" मार्शल मुस्कुराया ।
"यहां पर सवाल पैसे का नहीं है, देवराज चौहान की जिंदगी का है, वो अगर फंस...।"
"वो सैट है । वहां उसकी फिक्र करना छोड़ दो ।" कहने के साथ ही मार्शल उठ खड़ा हुआ ।
"मुफ्ती की तरफ से कोई खबर आई ?"
"अभी कोई भी खबर नई नहीं है । वो ही समझ सब कुछ है । रात बात होगी मुफ्ती से ।" कहने के साथ मार्शल बाहर निकल गया ।
"कमीना।" जगमोहन बड़बड़ाकर रह गया।"
■■■
अगले दिन वे सब देरी से जागे ।
अंसारी भी उनके साथ वहीं पर सो गया था ।
मोहम्मद डार ने सबके लिए चाय बनाई । चाय पीने के बाद दौरान जलालुद्दीन देवराज चौहान को बार-बार देखे जा रहा था। देवराज चौहान ने इस बात को महसूस कर लिया था, परंतु अंजान-सा बना रहा ।
उसके बाद सब नहा-धोकर तैयार हुए । दिन के बारह बज गए थे ।
तब तक खाना बनाने वाले लड़के नाश्ता तैयार कर लाए और छोड़ कर चले गए ।
वो लोग अपना-अपना नाश्ता बर्तनों में डालकर खाने लगे । पूरी, आलू की सब्जी छोले और दही के साथ अचार-प्याज था। अंसारी ने भी उनके बीच बैठ कर नाश्ता किया था।
जब अंसारी पानी की बोतल निकालने फ्रिज के पास गया तो जलालुद्दीन वहां आ पहुंचा ।
"कैसे हो जलालुद्दीन ।" अंसारी मुस्कुराया--- "रात तुम्हें चढ़ गई थी क्या ?"
"अब तो मैंने पी नहीं रखी ।" जलालुद्दीन गम्भीर स्वर में बोला ।
"नहीं ।"
"होश में हूं न ?"
"पूरी तरह ।"
"तो मेरी बात का यकीन कर लो कि दाऊद खेल में मैंने तारिक मोहम्मद की जो आवाज सुनी थी, वैसी आवाज नहीं है इसकी अब ।"
"तुम्हें गलतफहमी हो रही...।"
"ये गलतफहमी किसी और के बारे में क्यों नहीं हुई ?" जलालुदीन तीखे स्वर में बोला ।
"भूल जाओ इस बात को कि...।"
"मेरी बात का भरोसा कर अंसारी । जलालुदीन कभी धोखा नहीं खाता ऐसी बातों में ।"
"तो तू कहना चाहता है कि रास्ते में तारिक मोहम्मद बदल गया। ये कोई दूसरा इंसान है ?" अंसारी मुस्कुराया ।
"ये तुम जानो ।"
"अभी तुमने कहा कि जलालुद्दीन धोखा नहीं खाता । कहा न ?"
"हां ।"
"तो ये बताओ की तारिक मोहम्मद हकीकत की कद-काठी में कोई फर्क है, जो तुमने दाऊद खेल में देखी थी ।"
जलालुद्दीन ने दूर बैठे देवराज चौहान पर नजर मार कर कहा ।
"कद-काठी तो वही है । वैसी ही है ।"
"सिर्फ आवाज बदल गई ।" अंसारी पुनः मुस्कुराया ।
"हां ।"
"क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम गलती के दौर से गुजर रहे हो। ऐसा सोचकर । कद-काठी वो ही । तारिक मोहम्मद वो ही। उसका कोड वर्ड वो ही। उसी ने हमसे संपर्क किया । सब कुछ ठीक चल रहा है और तुम कह रहे हो कि उसकी आवाज ।"
"तुम मेरी बात को गम्भीरता से नहीं ले रहे ।" जलालुद्दीन ने नाराजगी-भरे स्वर में कहा ।
"तुम्हारी बात ही ऐसी है कि गम्भीरता से न लेने पर मैं मजबूर हूं।
अगर तुम कहते कि कद-काठी में भी फर्क है तो मैं जरूर सोचता । परंतु ऐसा कुछ नहीं है । तुम्हें इस बात को भूल जाना चाहिए ।"
"तुमने तो खड़े पांव मुझे गलत ठहरा दिया ।" एकाएक जलालुद्दीन ने कहा ।
अंसारी खामोश रहा ।
"मुझे उससे बात करने की इजाजत दो ।"
"क्यों ?"
"मैं उससे वो बातें करूंगा जो उससे दाऊद खेल में की थी । मुझे देखना है कि उन बातों का उसे पता है या नहीं ?"
"तुम बात को बढ़ा रहे...।"
"जो मैंने कहा है । उसका मुझे मौका दो । क्या पता मुझे गलती हो रही हो । सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा ।"
"तुम्हारे अलावा किसी ने नहीं कहा कि तारिक मोहम्मद की आवाज बदली हुई है ।"
"लेकिन मुझे लगा ।
"एक तुम्हीं सही हो बाकी पांचों गलत हो गए ।" अंसारी ने शांत स्वर में कहा--- "ये बात यहीं खत्म कर दो जलालुद्दीन ।"
जलालुद्दीन ने होंठ सिकोड़कर गहरी सांस ली।
तभी अंसारी का फोन बजा । उसने फोन निकालकर स्क्रीन पर देखा फिर बोला ।
"जाओ । बड़े भाई का फोन है । मुझे बात करने दो ।"
जलालुद्दीन वहां से हट गया।
अंसारी ने मिनट-भर बात की फिर फोन बंद करके आगे बढ़ा और सबसे कह उठा ।
"बड़े भाई का कहना है कि आज फिर आप लोग कल की तरह बांद्रा वेस्ट की सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर जाएंगे और जो कल देख लेना रह गया हो, वो आज देख लो । बड़े भाई चाहते हैं कि आप अच्छी तरह उस जगह को देख लें, जहां पर काम करना है । जो सुबह वहां गया था, वो आज शाम को जाएगा और जो शाम को गया था, वो अभी यहां से चल पड़ेगा। उसके पास सीधा यहीं पहुंचना है। हर चीज को पैनी-पक्की नजरों से देखो और अपने दिमाग में बसा लो । ताकि काम करने के दौरान तुम सबको लगे कि जगह तुम लोगों की अच्छी तरह जानी-पहचानी है। अपने दिमाग से वहां की तस्वीरें ले लो कि अंधेरे में भी अगर काम करना पड़े तो रास्ते की कोई परेशानी न आए। याद रखना उस जगह पर तुम लोगों को पन्द्रह दिन भी रहना पड़ सकता है । आने वाले वक्त में वो जगह दुनिया का केंद्र बनने जा रही है और पाकिस्तान का सिर फख्र से ऊंचा हो जाएगा ।"
■■■
शाम सात बजे तक वो सब वहीं बेसमेंट में पहुंच चुके थे ।
खाना बनाने वाले दोनों लड़के खाना बनाने में व्यस्त थे । कोई उनसे बात करता भी था तो वे कम शब्दों में जवाब देकर, अपने काम में व्यस्त रहते । शायद उन्हें चुप रहने की हिदायत दी गई थी ।
अंसारी वहां नहीं था ।
ऐसे में वे सब चुपचाप अपने कामों को कर रहे थे । कोई नहाकर फारिग हुआ था तो कोई आराम कर रहा था । परंतु वे आपस में बात नहीं कर रहे थे । देवराज चौहान अभी-अभी नहा कर लौटा था तो जलालुद्दीन को अपनी तरफ देखते पाया। आंखें मिलने पर भी जलालुद्दीन उसे देखता रहा तो देवराज चौहान उसके पास पहुंचकर बोला ।
"तू मुझे क्या देखता रहता है ?"
बाकी सबकी निगाह भी उनकी तरफ उठ गई ।
"मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि तारिक मोहम्मद की वो आवाज, इस आवाज से नहीं मिलती ।" जलालुद्दीन कड़वे स्वर में कह उठा ।
"मुझे देखना बंद कर दे ।" देवराज चौहान सख्त स्वर में कहा--- "नहीं तो तेरा मुंह तोड़ दूंगा ।"
"तू सच में वो तारिक मोहम्मद नहीं है ।" जलालुद्दीन ने पुनः दृढ़ स्वर में कहा ।
देवराज चौहान बाकी सबकी तरह पलट कर बोला ।
"तुम लोगों को भी जलालुद्दीन जैसा लगता है।"
"नहीं ।" आमिर रजा खान कह उठा।
"लेकिन आमिर रजा खान ।" देवराज चौहान उससे कह उठा--- "मुझे तुम्हारी आवाज नहीं लगती जो मैंने दाऊद खेल में सुनी थी ।"
"क्या ?" आमिर रजा खान हड़बड़ा उठा ।
"जवाब दो ।"
"क्या जवाब दूं तुम तो बेवकूफों वाली बात कर रहे हो । मैं तो वो ही हूं ।" आमिर रजा खान झुंझलाया-सा कह उठा।
"मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं कि जलालुद्दीन कितनी बड़ी वाहियात बात कर रहा है ।" देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा--- "ये कहना चाहता है कि मैं तारिक मोहम्मद नहीं हूं । अब तुम लोग ही बताओ कि क्या ऐसा हो सकता है ।"
"इसका दिमाग खराब हो गया है ।" अब्दुल रज्जाक कह उठा ।
"लगता है रात की चढ़ी अभी उतरी नहीं ।" गुलाम कादिर बोला।
जवाब में जलालुद्दीन मुस्कुराया। चुप रहा।
"तुम इसकी बात की तरफ ध्यान मत दो ।" सरफराज हलीम ने कहा--- "अपने आप चुप हो जाएगा।"
"चुप हो गया लगता है ।" गुलाम कादिर ने कहा ।
तभी जलालुद्दीन मुस्कुरा कर बोला ।
"तुम लोग कुछ भी कहो । बेशक तब मेरा मजाक उड़ा लो । परंतु जलालुद्दीन कभी गलत नहीं कहता। ये खासियत है जलालुद्दीन की की वो ही बात मुंह से निकालता है जो उसे पता होती है कि ऐसा ही है । जब मैंने इसकी आवाज यहां पहली बार सुनी थी तो तभी से दिमाग में जोरों की घंटी बजी थी कि ये आवाज मैंने पहले कभी नहीं सुनी। परंतु मैं खामोश रहा ।"
"खामोश क्यों रहे, तभी कहते तो...।"
"मैं कुछ कहने से पहले पूरी तरह अपनी तसल्ली कर लेना चाहता था कि मैं जो कह रहा हूं जो मैंने महसूस किया है, क्या वो सच में सही है। जब मुझे अपनी बात का यकीन हुआ तो तभी मैंने बात मुंह में से निकाली ।"
"जलालुद्दीन ।" सरफराज हलीम बोला--- "तू सच में पागल है । थोड़ा नहीं, पूरा पागल है ।"
"पागल तो मैं हूं ही जो पाकिस्तान के सिर ऊंचा रखने के लिए मुम्बई आ गया । तुम लोग भी तो पागल हो जो देश की खातिर कुछ कर जाना चाहते हो। परंतु मैंने तारिक मोहम्मद के बारे में जो बात कही है, वो सही है । मैं अभी साबित कर सकता हूं ।"
"कैसे ?" अब्दुल रज्जाक बोला ।
"इससे जरा-सी बात करके ।"
"ठीक है ।" अब्दुल रज्जाक बोला--- "साबित करके दिखाओ ।"
जलालुद्दीन, देवराज चौहान को देखता कह उठा ।
"तुम तारिक मोहम्मद हो ?"
"तुम्हारे न कहने से, मैं कोई और नही बन जाऊंगा ।" देवराज चौहान ने उसे घूरा ।
"तो मुझे बताओ। दाऊद खेल में हामिद अली के ठिकाने पर मैंने तुमसे पहली बात क्या की थी ?" जलालुद्दीन ने पूछा ।
देवराज चौहान एकाएक मुस्कुरा पड़ा।
"जवाब दो, अगर तुम वास्तव में तारिक मोहम्मद हो तो जरूर बता दोगे ।" जलालुद्दीन कड़वे स्वर में बोला ।
"जवाब सुन लो ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान अब्दुल रज्जाक की तरफ पलट कर बोला--- "दाऊद खेल में, हामिद अली के ठिकाने पर हममें पहली क्या बात हुई थी अब्दुल रज्जाक ।"
"मुझे क्या पता । ऐसी बातें याद थोड़े न रहती हैं ।"
देवराज चौहान ने जलालुद्दीन की तरफ पलट कर कहा ।
"सुन लिया तुमने । ये ही मेरा जवाब है । ये ही सब का जवाब होगा । ये ही सवाल तू किसी से भी कर, वो तेरे को ऐसा ही कहेगा । इसका ये मतलब तो नहीं कि हर कोई दूसरे पर उंगली उठाने लगे कि...।"
"हममें-मेरा मतलब है कि तारिक मोहम्मद और मेरे में कोई खास बात हुई थी । वो भूली नहीं जा सकती ।"
"हमारे बीच ऐसी कोई खास बात नहीं हुई थी । सबके चेहरों पर नकाब पड़े थे । ऐसे में नाम का भ्रम हो सकता है ।" देवराज चौहान ने सख्त स्वर में कहा--- "अगर तुमने फिर ऐसा बोला तो मैं तुम्हारा सिर तोड़ दूंगा । पाकिस्तान से मुम्बई तक का सफर मैंने ये बातें सुनने के लिए नहीं किया ।
तुमने अपनी जुबान बंद न की तो मैं तुम्हारी जान ले लूंगा ।"
"उससे पहले मैं तेरी गर्दन तोड़ दूंगा ।" जलालुद्दीन गुर्रा उठा ।
"शांत शांत ।" तभी मोहम्मद डार आगे आता कह उठा--- "मेरे भाइयों हम एक ही हैं । हममें लड़ाई कैसी । हम तो हिन्दुस्तान को सबक सिखाने आए हैं । लेकिन तुम दोनों दिशा भटक रहे हो। जलालुद्दीन तुम अपने पर काबू रखो । इस तरह किसी पर उंगली उठा देना अच्छी बात नहीं है । तारिक मोहम्मद हमारा भाई है । हम वतन है । पाकिस्तानी है और...।"
"ये तारिक मोहम्मद नहीं है ।" जलालुद्दीन दृढ़ स्वर में बोला--- "मेरे भाइयो ये तारिक मोहम्मद हो ही नहीं सकता । क्योंकि तारिक मोहम्मद से पहली मुलाकात में मैंने जो बात की थी, उसे कोई नहीं भूल सकता । तो ये कैसे भूल सकता है। वो बात अब तक इसे पचासों बार यूं ही याद आ जानी चाहिए थी ।"
"तुम इस बात को इतना बढ़ावा क्यों दे रहे हो ?" मोहम्मद डार ने पुनः कहा ।
"क्योंकि ये तारिक मोहम्मद नहीं है ।"
"अब तुम हद से ज्यादा बढ़ रहे हो जलालुद्दीन ।" सरफराज हलीम उखड़े स्वर में बोला--- "खामोश रहो ।"
"मुझे समझ नहीं आता कि तुम लोग मेरी बात को गम्भीरता से क्यों नहीं दे रहे ?" जलालुद्दीन झल्लाया ।
"क्योंकि तुम्हारी बात में किसी तरह का दम नहीं लगता । बे-फिजूल की बात है ये ।"
"तुमने ये बात अंसारी से भी की । जब उसने इस बात की परवाह नहीं की तो तुम्हें तभी समझ जाना चाहिए कि...।"
"अंसारी का दिमाग खराब हो गया है ।" जलालुद्दीन दांत भींचकर कह उठा ।
सब एक-दूसरे को देखने लगे ।
"तुम बड़े भाई के खास आदमी के लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हो ।" आमिर रजा खान गम्भीर स्वर में बोला।
जलालुद्दीन होंठ भींचे सब को देखता रहा ।
"तुम यहां का माहौल खराब कर रहे हो । जबकि जल्दी ही हम काम शुरू करने वाले हैं । बड़े भाई को ये सब अच्छा नहीं लगेगा ।" अब्दुल रज्जाक ने कहा--- "तुम्हें अपने पर काबू पा लेना चाहिए और अपने दिमाग को समझाना चाहिए कि तुम गलत राह पर हो ।"
ठीक इसी समय लोहे वाले दरवाजे पर थपथपाहट हुई ।
सब चौंके। एक-दूसरे को देखने लगे ।
खाना बनाने वाले दो में से एक दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
वो सातों अलग-अलग होकर, कोई बैठ गया तो कोई खड़ा रहा।
दरवाजा खुला और उन्होंने अंसारी को भीतर प्रवेश करते देखा। वो अकेला नहीं था । उसके साथ पैंसठ वर्ष का एक व्यक्ति और था जो कि पांच फुट का होगा । वो थोड़ा मोटा था और पेट निकला हुआ था । क्लीन शेव्ड था। शरीर पर कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था । सांवले रंग का था । उसकी सफेद चमकती निगाह हर तरफ घूम रही थी ।
"वो दोनों पास पहुंचे । आगे अंसारी था और मुस्कुरा कर सब से कह उठा ।
"तुम लोगों ने अपना आज का काम पूरा कर लिया होगा । खैर इसके बारे में बाद में बात करेंगे । जनाब से मिलिए ।" अंसारी ने अपने साथ आए व्यक्ति की तरफ इशारा किया--- "अहमद साहब हैं ये। इनकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है । वैसे ये मास्टर जी के नाम से भी जाने जाते हैं । इनका काम लोगों को समझाना-बताना होता है, सामने वाले को सही राह पर डालना होता है । बड़े भाई ने भेजा है इन्हें कि आपको कुछ समझा सके ।"
सबने अहमद साहब को सलाम किया ।
अहमद साहब आगे बढ़कर सबके गले लगे । फिर उनके बीच ही बैठ गए। अंसारी एक तरफ गद्दे पर बैठ गया । माहौल में मौजूद तनाव गायब हो चुका था । सबकी निगाहें अहमद साहब पर टिक चुकी थी ।
"मेरे बच्चों ।" अहमद साहब सबको देखते प्यार-भरे स्वर में कह उठे--- "आज तुम लोग जहां तक पहुंच चुके हो, यहां तक पहुंचने का मौका किस्मत वालों को ही मिलता है । तुम सबका नसीब बहुत तेज है जो इस काम के लिए चुने गए । तुम्हारी तरह ही जवान मेरे दो बेटे थे । बहुत ही होनहार । कमाल का निशाना लगाते थे । देखकर सीना गर्व से फूल जाता । परंतु वो पाकिस्तान के नाम पर शहीद हो गए । कुछ साल पहले पूना में पुलिस वालों ने उन्हें ढेरों गोलियां मार दी । दुख है तो इस बात का कि कायर पुलिस वालों ने उनकी पीठ पर गोलियां मारी । सीने पर मारते तो, ये बूढ़ा और भी खुश हो गया होता ।"
"क्या कर रहे थे वे ?" सरफारज हलीम ने पूछा ।
"टूरिस्टों की एक बस पर कब्जा जमा लिया था और उन्हें छोड़ने के बदले, जेल से कुछ लोगों को छुड़ाने की मांग रखी । काम हो गया होता, पर पुलिस वालों ने चाल चलकर उन्हें फंसाया और मार दिया ।"
"उन्हें पुलिस की जाल में नहीं फंसना चाहिए था ।" आमिर रजा खान ने कहा ।
"मैं भी यही सोचता हूं परंतु उस वक्त वे दोनों जाने क्यों बहक गए और गोलियों का शिकार हो गए । तीन पुलिसवाले थे जिन्होंने मेरे बेटे पर गोलियां चलाई थी और तरक्की पा ली थी। वे मेरे बेटे न होते तो तब भी उनका वो ही अंजाम होता जो हुआ। हमारे लिए तो सभी हमारे बेटे हैं ।" अहमद साहब ने गम्भीर स्वर में कहा ।
"क्या अंजाम हुआ उनका ?"
"हमारे लोगों ने उन तीनों पुलिस वालों को, उनके परिवार सहित, गोलियों से भून दिया ।"
"अच्छा किया ।" अब्दुल रज्जाक दांत भींच कर कह उठा ।
"हम अपने बच्चों के चले जाने के बाद, उन्हें मारने वालों से सख्ती से बदला लेते हैं । एक दिन ऐसा आएगा कि पुलिस वाले हमारे बच्चों को मारने से डरने लगेंगे कि बाद में वो नहीं बचेंगे।"
"सब हमसे डरा करेंगे ।" जलालुद्दीन कह उठा ।
"जरूर डरेंगे । वे अब भी डरते हैं । बड़े भाई से डरते हैं । हामिद अली से डरते हैं । इनके नाम सुनकर ही पुलिस वाले कांपते हैं परंतु आपस में वो ये ही दिखाते हैं कि उन्हें किसी का खौफ नहीं है। यहां के क़ानून को बड़े भाई की सख्त जरूरत है । ये सिर्फ कागजी बातें है । हकीकत ये है कि बड़े भाई का पुलिस वालों के साथ मिलना अक्सर होता रहता है । वे आपस में दोस्त हैं, क्योंकि बड़े भाई उन्हें नोट देते हैं । कौन-से नोट ? पाकिस्तान में छपते हैं । नकली नोट परंतु वो असली से भी बेहतर होते हैं । उन नोटों को देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि वो नकली है ।"
"नकली नोट मुफ्त में हिन्दुस्तान को देने में पाकिस्तान का क्या फायदा है ?" देवराज चौहान ने पूछा ।
"बहुत फायदा है । सरकार उतने ही नोट बाजार में भेजती है जितनी की जरूरत होती है। ताकि बाजार में संतुलन कायम रहे। ज्यादा नोट बाजार में आ जाने से संतुलन बिगड़ जाता है । अर्थव्यवस्था बिगड़ जाती है । बाजार में नोट ज्यादा पहुंच जाएंगे तो बिकने वाला सामान कम पड़ने लगेगा । यानी कि इस तरह देश खोखला होने लगता है । दुश्मन देश की सरकार पर ये भी जबरदस्त वार माना जाता है ।"
सबकी निगाह अहमद साहब पर थी ।
"ये अंसारी ।" अहमद साहब ने अंसारी की तरफ इशारा किया--- "ये भी एक दिन तुम लोगों की जगह पर बैठा था । परंतु आज बड़े भाई का खास बना हुआ है । जब ये कम उम्र का था तो इसे एक मंत्री की जान लेने के लिए भेजा गया। ये अकेला ही गया था । वो मंत्री अपने हर भाषण में पाकिस्तान के खिलाफ बोलता था। हामिद अली को ये बात पसंद नहीं थी उस वक्त अंसारी पाकिस्तान का साथ देने के लिए हम लोगों के पास आ गया था । तो अंसारी अकेला गया उस मंत्री को मारने । जानते हो इसने क्या किया ?"
"क्या ?"
"मंत्री के ऑफिस में जा घुसा । किसी की परवाह नहीं की और मंत्री की छाती में गोलियां चला कर भाग निकला । पाकिस्तान महान होने के नारे के साथ भाग निकला और साफ बच गया । इसकी बहादुरी पर बड़े भाई इतने खुश हुए कि उन्होंने इसे अपने साथ रख लिया । आज भी पुलिस को अंसारी की तलाश है लेकिन बड़े भाई की सरपरस्ती में कोई डर नहीं है । बड़े भाई जिसके सिर पर हाथ रख दें उसका कहना ही क्या ? मैंने सुना है कि बड़े भाई, तुममें से सबसे काबिल लड़के को अपने साथ रखेंगे ।"
"हां ।"
"तो सोचते क्या हो, ये तो बेहतरीन मौका है तुम लोगों के पास । अपने को साबित करके दिखाओ और बड़े भाई का साथ पा लो। बड़े भाई का साथ खुशनसीब को ही हासिल होता है । लेकिन ये आसान बात नहीं है । खुद को साबित करने के लिए तुम सबको जान की बाजी लगानी होगी । ये सोच कर काम करना होगा कि काम में शहीद हो जाना है। तभी कमाल हो पाएगा । बड़े भाई की नजरों में आने के लिए मौत से खेलना होगा । हिन्दुस्तान को दिखा देना होगा कि हम पाकिस्तानी बेहतरीन हैं। हिन्दुस्तानी हमारे सामने सामने कुछ भी नहीं है । ये हिन्दुस्तान, पाकिस्तान को बहुत तंग कर रहा है । रोज नए-नए इल्जाम लगाते हैं हम पर । पाकिस्तान इन सब बातों से तंग आ चुका है । हम हिन्दुस्तान को बता देना चाहते हैं कि वो हमारे देश में दखल न दें ।"
"ऐसा किस तरह होगा ?"
"इसके लिए हमें हिन्दुस्तान को बार-बार चोट पहुंचानी होगी । उसे दर्द देना होगा। तभी वो तड़पेगा और समझेगा कि पाकिस्तान को तंग नहीं करना है और कश्मीर को भी पाकिस्तान के हवाले कर देना है । कश्मीर में हिन्दुस्तान ने दमन चक्र फैला रखा है । कल ही मैं कश्मीर से लौटा हूं । वहां के लोगों की बातें, तुम लोग सुनोगे, तभी समझोगे । इस बात के बाद मैं तुम लोगों को कश्मीर लेकर जाऊंगा, वहां खुद ही देखना सुनना कि उधर के लोगों का क्या हाल है । दंगे होते हैं । हमारे मुसलमान भाई ही दंगे करते हैं । वो छटपटा रहे हैं और चाहते हैं कि कश्मीर को हिन्दुस्तान आजाद कर दे । वहां आजादी की लड़ाई छिड़ी हुई है ।
"हमें कश्मीर को, हिन्दुस्तान के कब्जे से आजाद कराना चाहिए।" गुलाम कादिर जोश-भरे स्वर में कह उठा ।
"ये काम अब तुम लोगों के हवाले किया जाएगा ।"
"हम लोगों के ?" मोहम्मद डार कह उठा ।
"हां । बड़े भाई ने फैसला किया है कि अगर सावित्री हाउस में तुम लोगों ने सब कुछ अच्छे से संभाला तो कश्मीर को आजाद कराने का काम तुम लोगों के हवाले करके, सबको कश्मीर भेज दिया जाएगा । तुम लोग ही हिन्दुस्तान की नाक में दम करा कर कश्मीर को आजाद कराना । इसके लिए हामिद अली तुम लोगों को आदमी, बारूद , बम, गनें हर चीज देगा । जिनके दम पर तुम लोग कश्मीर में आजादी की जंग लड़ोगे और कश्मीर को आजाद कराओगे ।"
"हां, हम कश्मीर को आजाद करा लेंगे ।" जलालुद्दीन हाथ उठाकर बोला--- "क्यों दोस्तों ?"
"हम आसानी से कश्मीर को आजाद करा लेंगे ।" देवराज चौहान कह उठा।
"और कश्मीर पाकिस्तान का हो जाएगा ।" अब्दुल रज्जाक जोश-भरे स्वर में कह उठा।
"तुम लोगों का जोश काबिले तारीफ है ।" अहमद साहब मुस्कुरा कर कह उठे--- "हामिद अली और मुनीम खान ने यूं ही नहीं कहा था कि वो पाकिस्तान के सात हीरे भेज रहा है । वो हर काम कर दिखाएंगे ।"
"हम हर काम करेंगे अहमद साहब ।" देवराज चौहान बोला ।
"मुझे भी अब यकीन हो गया है कि तुम लोग कमाल करके दिखाओगे । कहर बरपा दोगे हिन्दुस्तान पर । मुम्बई को एक बार फिर हिला कर रख देंगे। पाकिस्तान को खुश कर दोगे। पाकिस्तान से आंखों का नगीना बन जाओगे तुम सब । मैं बता नहीं सकता कि तब बड़े भाई और हामिद अली के अलावा पाकिस्तान की जनता कितनी खुश होगी । मालूम है जब दिल्ली की संसद पर हमला हुआ था वो सब लड़के वहां जाने से पहले मुझसे ही मिले थे । मैंने ही उन्हें समझाया था कि अपने देश के लिए कुछ करके दिखाओ । तभी नाम होगा इन्होंने किया। परंतु शहीद हो गए । हामिद अली ने अपनी डायरी में उनका नाम सुनहरे शब्दों में लिखा हुआ है और हर रोज अल्लाह के बाद उन्हें सलाम करता है ।"
सबके चेहरे पर जोश नजर आ रहा था ।
"जब मुम्बई पर हमला हुआ तो उन लड़कों को मैंने ही समझाया था कि ऐसा कुछ करो कि सब तुम्हें याद रखें । उन्होंने भी कमाल कर दिखाया । वो शहीद हो गए परंतु आज भी हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के लोगों की जुबां पर उनका नाम है । ऐसा ही हमला जब दिल्ली में भी हुआ था तो वहां भी कहर बरपा दिया था । उस बारे में जब भी सोचते हैं तो हमारा सीना फख्र से चौड़ा हो जाता है । शहीद बनने के लिए, नाम को सुनहरे अक्षरों में लिखवाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है।"
"हम भी ऐसा ही करेंगे ।" मोहम्मद डार दृढ़ स्वर में कह उठा ।
"हमारा कारनामा सबसे बेहतरीन होगा ।" सरफराज हलीम बोला--- "मैं शहीद हो जाऊंगा ।"
"हम जान दे देंगे, पर पाकिस्तान का सिर नहीं झुकने देंगे ।" गुलाम कादिर भट्ट गुर्रा उठा ।
"ये ही जोश चाहिए ।" अहमद साहब हाथ उठा कर उठे--- "ऐसी ही आवाज चाहिए । तभी कुछ होगा । जो बचेगा बड़े भाई उसे छाती से लगा लेंगे। हामिद अली उस के गले में हार डालेगा और जो शहीद हो जाएगा, उसका तो कहना ही क्या । उसका नाम तो हर किसी के दिल पर लिखा जाएगा । वो सबका लाड़ला बन जाएगा ।"
"हम हिला देंगे हिन्दुस्तान को ।"
"मुम्बई कांप उठेगी ।"
"शाबाश ।" अहमद साहब उनकी पीठ थपथपाने वाले अंदाज में बोले--- "इतिहास गवाह है कि हर बड़ा काम करवाने मांगता है । अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड टावर से उन जियालों ने प्लेन टकरा दिए । तब भी मैं वहीं था और उससे पहली रात मैं उन लड़कों के साथ ही रहा । मैंने उन्हें समझाया था कि अगर हमेशा के लिए जिंदा रहना चाहते हो तो दिखा दो अमेरिका को कि पाकिस्तान से बड़ा कोई नहीं है। हिला दो अमेरिका को । अमेरिका ने अपने यहां बसने वाले हमारे भाइयों को तंग कर रखा है । अक्सर वे हमारे भाइयों को पकड़ते हैं और झूठे इल्जाम लगाकर जेलों में ठूंस देते हैं । हम चुप कैसे रह सकते हैं। वर्ल्ड ट्रेड टावर से विमान टकराकर अमेरिका की अक्ल सीधी कर दी। पूरा अमेरिका कांप उठा था और आज भी उस घटना को सोच-सोच कर कांप रहा है । ये काम करने वाले लड़के कभी भी नहीं मर सकते। मर कर भी वो जिंदा हैं। उनका नाम हर किसी की जुबान पर है । शानदार काम किया उन्होंने कि सैकड़ों बरसों तक भुलाया नहीं जा सकता । अमेरिका के बच्चे बड़े होंगे तो वे अपने बच्चों को वर्ल्ड ट्रेड टावर गिरने की कहानी सुनाया करेंगे । उधर पाकिस्तान में चोरी-छिपे बच्चों को पढ़ाया जाता है कि देखो, अपने देश की शान को, इज्जत को सलामत रखने के लिए, कैसे देश की सेवा की जाती है ।"
"हम भी ऐसा ही करेंगे ।"
"ऊपर वाले ने चाहा तो तुम लोगों को भी पूरा मौका मिलेगा ।" अहमद साहब कह उठे--- "याद रखो अब जो तुम लोगों को मौका मिलने जा रहा है, वैसा मौका हर किसी को नहीं मिलता। मुकद्दर वालों को ही ऐसा मौका मिलता है । लोगों के दिल पर और इतिहास के पन्नों पर अपना नाम लिखाने का शानदार मौका तुम लोगों की गोद में आ पहुंचा है । कर दो कमाल। ऐसे बड़े काम हर किसी के नसीब में नहीं आते । तुम लोगों के नसीब में मौका आया है तो फायदा उठाओ। दिखा दो दुनिया को कि जो पाकिस्तान से टकराएगा, वो चूर-चूर हो जाएगा । ये हाल कर दो हिन्दुस्तान का कि दिवाली पर बम फोड़ने से डरने लगें। धमाकों से कांपने लगें । पाकिस्तान का नाम सुनते ही माफी मांगने लगें ।" अहमद साहब कहते जा रहे थे--- "पाकिस्तान को इतने दुख दिए हैं कि पाकिस्तान को तब तक चैन नहीं आएगा जब तक कि हिन्दुस्तान के नाम पर पाकिस्तान के नाम का ठप्पा नहीं लग जाएगा । पाकिस्तान बड़ा हो जाएगा और हिन्दुस्तान छोटा-सा, तब हमारे मन...।"
"हम ऐसा क्या करें कि हमारा भी नाम हो जाए ।" सरफराज हलीम कह उठा ।
"हमें राह दिखाइए अहमद साहब ।" गुलाम कादिर बोला ।
"इसलिए तो मैं आया हूं ।" अहमद साहब ने गम्भीर स्वर में, सिर हिलाया ।
तभी अंसारी उठा और अहमद साहब के लिए गिलास में पानी ले आया ।
अहमद साहब ने पानी पिया ।
सबकी निगाह अहमद साहब पर थी।
"जो काम बढ़िया ढंग से करता है, हम उसे शेर कहते हैं ।" अहमद साहब ने कहा--- "तुम लोग पाकिस्तान से मुंबई तक आ पहुंचे हो तो शेर बनकर दिखाओ। दिखा दो कि पाकिस्तान कितना बड़ा दिल रखते हैं ।
'हम तैयार हैं ।" देवराज चौहान ने कहा ।
"सिर्फ तैयार होने से कुछ नहीं होगा। अपने मन में ये बात बसा लो कि ये काम करके शहीद होने जा रहे हो, तभी कुछ कर सकोगे। कमाल तभी होते हैं, जब सिर पर कफन बांधे हो। मन में जान बचाने की इच्छा हो तो फिर कुछ भी नहीं किया जा सकता। हारे हुए जुआरी बन जाओ। जो इंसान जिंदगी से हार चुका हो, वो कभी किसी से नहीं डरता। क्योंकि उसके पास हारने को कुछ नहीं होता। मन में ये रख लो कि इस काम में शहीद होने जा रहे हो ।"
"हम ये ही बात मन में रखेंगे ।"
"मैंने तो पहले ही ये बात रखी है मन में ।"
"जीने की चिंता नहीं । बस मेरा नाम शहीदों में आ जाना चाहिए।"
अहमद साहब मुस्कुराकर कह उठे ।
"ऐसे विचार मन में हो तो फिर कोई काम कठिन नहीं । मंजिल खुद ही पास चली आती है। ऐसी स्थिति में ऐसा कौन-सा काम है जो मन की इच्छा के हिसाब से पूरा न हो । मेरे बच्चे बहादुर हैं और सच्चे नागरिक हैं पाकिस्तान के, जो अपने देश की खातिर शहीद होने को तैयार हैं । ऐसा होने पर जो पैसा तुम लोगों को देने का वादा किया है वो तुम लोगों के घर वालों को दिया जाएगा। तुम लोगों के परिवारों का हामिद अली पूरा ध्यान रखेगा। आज तक जो भी हामिद अली के कहने पर शहीद हुए हैं, उनके परिवार वाले पाकिस्तान में बंगलों में ऐशो-आराम से रह रहे हैं । हामिद अली उन्हें कोई तकलीफ नहीं होने देता ।"
"हम भी शहीद बनेंगे।"
"हम मरने के लिए काम करेंगे । बच गए तो ऊपर वाला मालिक।"
"ये हुई बात । बिल्कुल ये ही बात मैं कहना चाहता हूं ।" अहमद साहब कह उठे--- "काम करो, ये सोचो कि शहीद होना है अगर बच गए इसमें भी कोई फायदा होगा। दिल लगाकर काम करना है । जिंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ होती है । वो जिसे चाहेगा अपने पास जन्नत में जगह दे देगा, या फिर किसी को अभी पाकिस्तान की सेवा के लिए जमीन पर ही रखेगा । ये सोचना तुम लोगों का काम नहीं । ऊपर वाले का काम है । तुम लोग सिर्फ अपना काम करो ।"
सबकी निगाह अहमद साहब पर थी ।
चंद पलों की खामोशी के बाद अहमद साहब पुनः बोले ।
"आप सब बच्चों के हवाले जो काम किया जा रहा है, वो बहुत जिम्मेवारी वाला और महत्वपूर्ण है । ये आप लोगों की परीक्षा नहीं है, हम लोगों का भी इम्तिहान है कि हमने जिन लोगों को इस काम के लिए चुना है, वो सही है ये काम करने के लिए । हामिद अली और मुनीम खान का दावा है कि आप में से एक-एक लड़का कयामत बरपा देगा सावित्री हाउस में। मुझे यकीन है कि गलत नहीं सोच रहे। सोच-समझकर ही आप लोगों का चुनाव उन्होंने किया है ।"
सब मंत्रमुग्ध से अहमद साहब की बात सुन रहे थे।
"सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर जाकर आप लोगों ने देखा ?" अहमद साहब ने पूछा ।
"हां, देखा ।"
"सब कुछ देख लिया । हर रास्ता, हर जगह ।"
"अच्छा किया ।" अहमद साहब ने गम्भीरता से कहा--- "कल आप लोगों को अंसारी सावित्री हाउस की चौथी मंजिल का नक्शा दिखा कर वहां के रास्तों के बारे में समझाएगा ।"
"हम समझ चुके हैं ।"
"फिर भी अंसारी वहां के रास्ते के बारे में एक बार फिर सबको नक्शा दिखाएगा, समझाएगा और ये भी बताएगा कि काम के वक्त आप लोगों ने कैसे भीतर प्रवेश करना है । कैसे दहशत फैलानी है । कैसे सब पर काबू करना है और मौत के खेल को कैसे आगे बढ़ाना है। कल का पूरा दिन अंसारी इसी बात को आपको यहीं पर समझाएगा ।"
सबके सिर हिले ।
"मेरे बच्चों ।" अहमद साहब ने कहा--- "मैं फिर कहता हूं कि जान गंवा देना आसान है परंतु शहीद बनना आसान काम नहीं है ।" लेकिन मुझे पूरी आशा है कि तुम लोग बहुत बढ़िया काम करोगे । अभी से मन में एक बात रख लो ।"
"क्या ?"
"तुम लोग सावित्री हाउस में देश की खातिर जान कुर्बान करने जा रहे हो ।"
"हम तैयार हैं ।"
"ये जरूरी नहीं कि तुम लोगों की जान कुर्बान हो । पुलिस के बड़े लोग, बड़े भाई की मुट्ठी में है । बल्कि वे भी जानते हैं कि अगले तीन दिन में सावित्री हाउस में क्या होने वाला है । तुम लोग बेखौफ होकर काम करना और जब वक्त आएगा, बड़े भाई की पहचान वाले पुलिस के लोग तुम लोगों को वहां से निकाल लेंगे ।"
"ये तो बहुत अच्छी बात है ।"
"परंतु ये बहुत बाद में होगा । उससे पहले तो तुम लोगों ने शहीद बनने के लिए, उसी अंदाज में काम करना है । ये मत भूलना कि तब सब पर मेरी, हामिद अली की, बड़े भाई की नजरें लगी होगी । तब तुम लोगों के पास सैटेलाइट फोन होंगे, जिससे हम लोगों से बात हो सकेगी और हम तुम सब को बताते भी रहेंगे कि अब तुम लोगों ने क्या करना है । हिन्दुस्तान को हर तरफ मौत ही मौत नजर आनी चाहिए ।"
"हम वहां कयामत बरपा देंगे ।"
"जानते हो वहां पर कितने लोगों को तुम सबने बंधक बनाना है।"
"आठ सौ ।"
"गलत ।" अहमद खान सख्त स्वर में कह उठा--- "आठ सौ लोगों को बंधक बनाकर हमने क्या करना है । भूख-प्यास से तंग आकर वो लोग तुम पर ही हमला करें देंगे । ये तो खामखाह का खतरा उठाने वाली बात होगी । वहां पर पचास लोगों से ज्यादा को बंधक नहीं रखना है । उस जगह पर कब्जा करते हुए अपनी ऑटोमैटिक गनों के मुंह खोल देने हैं और सात सौ से ज्यादा लोगों को हाथों-हाथ मार देना है । वहां पर लाशें ही लाशें, खून ही खून नजर आना चाहिए । वो सब हिन्दुस्तानी हैं उनका खून हिन्दुस्तानी है । हिन्दुस्तान सिर्फ खून की भाषा ही समझता है । हो सकता है ये सब होने के बाद ही हिन्दुस्तान कश्मीर पाकिस्तान के हवाले कर दे। दहशत फैला देनी है वहां। एक-एक हिन्दुस्तानी हमारा दुश्मन है । उनसे कोई बात नहीं करनी है । सबको गोलियों से भूनते जाना है।। अपनी तरफ से तो कोशिश करना है कि एक भी न बचे । परंतु जो पचास-साठ लोग बचे रहे जाएं उन्हें बंधक बना लेना है और वक्त-वक्त पर धीरे-धीरे उन्हें भी मारते जाना । नाम कमा लो ये शानदार मौका तुम सबको मिल रहा है । सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर कब्जा कर लेना है तुम लोगों ने । खाने-पीने का सामान साथ ले जाने को दे दिया जाएगा । वैसे उसकी चिंता मत करो । बड़े भाई के इशारे पर तुम लोगों को पुलिस वाले खाने का सामान पहुंचाते रहेंगी। बड़े भाई ने सब इंतजाम पक्के कर रखे हैं । सैटेलाइट फोन पर तुम लोगों से बातचीत होती रहेगी । एक वक्त ऐसा भी आएगा जब हिन्दुस्तान के बड़े पुलिस वाले घबराकर तुम लोगों से पूछेंगे कि तुम लोगों की मांगे क्या है, तब सैटेलाइट फोन पर हम तुम लोगों की मांगे बताई जाएंगी ।"
"हम वहां किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ेंगे ।" सरफराज सलीम चीखा।
"एक-एक हिन्दुस्तानी को कुत्ते की मौत मारेंगे ।" गुलाम कादिर भट्ट गुर्रा उठा।
"हमारा कारनामा हिन्दुस्तान और पाकिस्तान याद रखेगा । हर तरफ हम मौत बरसा देंगे । हम वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से भी भयानक स्थिति सावित्री हाउस में पैदा कर देंगे कि हिन्दुस्तान पागल हो जाएगा ।" जलालुद्दीन ने दांत किटकिटाकर कहा ।
"वहां कोई भी जिंदा नहीं रहेगा ।" देवराज चौहान ने जोश भरे स्वर में कहा ।
बाकी भी बोले ।
अहमद साहब चमकती निगाहों से उन सब को देखते रहे ।
सबके चेहरों पर पागलपन से भरा जोश दिखाई दे रहा था ।
वे कुछ कर गुजरने को पागल होते दिख रहे थे ।
"मेरे प्यारे बच्चों ।" अहमद साहब उठते हुए बोले--- "मैं अब चलूंगा । तुम लोग तो इतने समझदार हो कि, मेरे समझाने की जरूरत ही नहीं थी फिर भी मैं आकर तुम लोगों के पास बैठा, ये अच्छा लगा मुझे ।"
"अहमद साहब, आप देखना कि सावित्री हाउस में दहशत वाला खेल हम कैसे खेलते हैं ।" अब्दुल रज्जाक बोला।
"शानदार लड़के हो तुम सब ।" अहमद साहब उठ खड़े हुए थे--- "अंसारी ।"
"जी जनाब ।" अंसारी फौरन पास पहुंचा ।
"मेरे बच्चों को कल सारा प्लान समझा देना । सब कुछ अच्छी तरह से बताना ।"
"जी जनाब ।"
"परसों इन्हें सावित्री हाउस भेज दिया जाएगा । ये बच्चे तो सच में इतने काबिल है कि हिन्दुस्तान को जड़ से उखाड़ फेंकने का दम रखते हैं। इस काम के बाद इन्हें कश्मीर आजाद कराने का काम दे देना।"
"जी जनाब ।"
उसके बाद अहमद साहब वहां से चले गए।
अंसारी खुशी से भरे चमकते चेहरे से सबको देखता कह उठा ।
"अहमद साहब तुम लोगों से खुश होकर गए हैं । बहुत कम ही ऐसा होता है कि अहमद साहब किसी से खुश हो। मुझे लगता है कि तुम लोगों की हिम्मत उन्होंने पहचान ली है हकीकत कुछ कर दिखाओगे तुम सब ।"
"क्या हम परसों सावित्री हाउस को बंधक बनाएंगे ?" अब्दुल रज्जाक कह उठा।
"अहमद साहब कह रहे हैं तो हमें ऐसा ही करना होगा ।"
"हम कल ही क्यों नहीं सावित्री हाउस पर...।"
"कल तुम लोगों को मेरा समझाना-बताना बाकी रह गया है ।" अंसारी ने कहा--- "अहमद साहब ने बता भी दिया है कि कल मैंने तुम लोगों को क्या बताना है ।"
"वो बातें हमें आज रात ही बता दो ।" गुलाम कादिर ने कहा--- "कल दिन में सावित्री हाउस पर हमला कर...।"
"जल्दी का काम शैतान का होता है ।" अंसारी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "जहां इतने दिन हो गए, वहां एक दिन और सही । हड़बड़ाहट में जो काम करते हैं वो कहीं-न-कहीं फेल हो जाते हैं, जबकि हमें सफल होना है ।"
"हिला देना है हिन्दुस्तान को ।" मोहम्मद डार कह उठा ।
"इस बार हिन्दुस्तान नहीं बचेगा ।" आमिर रजा खान ने हाथ उठाकर कहा--- "एक-एक को मार देंगे ।"
"मौत भी कांप उठेगी ।"
अंसारी ने मुस्कुरा कर सबको देखा फिर कह उठा ।
"मुझे भी ये ही लगता है इस बार हिन्दुस्तान तुम लोगों के हाथों से नहीं बचने वाला ।" इसके साथ ही अंसारी पलटा और खाना बनाने वाले लड़कों की तरफ बढ़ गया । वे खाना बना चुके थे और जाने को तैयार थे।
अंसारी उसने पांच मिनट तक बात करता रहा फिर वे लड़के चले गए ।
अंसारी वापस उन सबके पास आया तो चेहरे पर नाराजगी के भाव थे ।
"मुझे पता चला कि तुम लोग आपस में बातचीत कर रहे थे ।" अंसारी बोला ।
चंद पलों के लिए वहां खामोशी छा गई।
"तुम लोगों को मना कर रखा था। मेरी बात माननी चाहिए थी तुम सबको ।" अंसारी की निगाह बारी-बारी सबके चेहरों पर जा रही थी--- "ये बड़े भाई का हुकुम था और कुछ सोच कर ही उन्होंने ऐसा करने को कहा था। बड़े भाई नहीं चाहते कि काम से पहले तुम लोगों से दोस्ती हो। खामखाह की बातें हों। सिर्फ सावित्री हाउस में काम के दौरान ही तुम लोगों को बातचीत की इजाजत थी ।"
"जलालुद्दीन की वजह से बात शुरू हुई।" गुलाम कादिर बोला।
"मैंने बात नहीं शुरू की ।" जलालुद्दीन ने स्पष्ट इंकार किया ।
"तारिक मोहम्मद ने बात शुरू की थी ।" सरफराज हलीम कह उठा
अंसारी की नजरें देवराज चौहान पर जा टिकीं ।
"तुमने बातें क्यों शुरू की ?"
"जलालुद्दीन कल से मुझे घूरे जा रहा है । मैंने इसे ऐसा करने को मना किया तो मुझ पर फिर से इल्जाम लगाने लगा कि मैं तारीक मोहम्मद नहीं हूं। ऐसे में बाकी लोग भी बातों में आ गए ।" देवराज चौहान गम्भीर स्वर में कह उठा--- "ये बार-बार मुझ पर झूठा संदेह क्यों कर रहा है । तुम्हें चाहिए कि इसे चुप रहने को कहो ।"
अंसारी ने जलालुदीन को देख कर कहा ।
"तारिक मोहम्मद सही कह रहा है ?"
"हां ।"
"तुम्हें, इसे तरह नहीं बोलना चाहिए । ये गलत बात है जलालुद्दीन ।"
"तुम मेरी बातों को गम्भीरता से क्यों नहीं ले रहे ?" जलालुद्दीन नाराजगी से बोला--- "मेरी बात पर यकीन करो कि जलालुद्दीन को कभी इतनी बड़ी गलती नहीं लगती । पर तुम तो मेरी बात की परवाह ही नहीं कर रहे ।"
"तुम कहते हो कि ये तारिक मोहम्मद नहीं है ।" अंसारी गंभीर था ।
जलालुद्दीन ने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा फिर अंसारी से बोला।
"कुछ तो गड़बड़ है । इसकी जो आवाज मैंने हामिद अली के ठिकाने पर सुनी थी। इस वक्त इसकी आवाज नहीं है। फिर सबसे बड़ी बात है हामिद अली के ठिकाने पर जब इससे पहली-पहली बात हुई तो मैंने इसे कुछ खास कहा था, बात ऐसी है कि जिसे तारिक मोहम्मद नहीं भूलेगा और ये कहता है कि इसे याद नहीं मैंने, तब क्या कहा था ।"
"जरूरी तो नहीं कि इसे हर बात याद...।"
"मैंने कहा है कि वो बात ये भूलेगा नहीं ।" जलालुद्दीन ने कहा ।
"तो तुम्हारा दावा है कि ये वो तारिक मोहम्मद नहीं है ।" अंसारी बोला ।
"दावा ही समझो ।"
"तुमने अपनी बात मुझे कह दी । उसके बाद दोबारा इस बारे में बात नहीं होनी चाहिए।"
"मेरी बात सुनकर तुमने क्या किया ?"
"ये देखना-सोचना, हमारा काम है। तुम्हें इस बारे में तनाव में नहीं आना चाहिए ।"
"बड़े भाई कब आएंगे ।" जलालुद्दीन ने गम्भीर स्वर में पूछा ।
"उनके आने की अभी तक मेरे पास कोई खबर नहीं है । खबर आई तो तुम्हें बता दूंगा ।"
"इससे कहो दो कि अब मुझे न घूरे ।" तारिक मोहम्मद बोला--- "मुझे गुस्सा आ गया तो...।"
"मैं तुम्हारी तरफ देखूंगा भी नहीं ।" एकाएक जलालुद्दीन ने ये कहकर बात खत्म की।
देवराज चौहान ने मुंह फेर लिया ।
"जलालुद्दीन ने अब ठीक कहा ।" अंसारी मुस्कुरा कर बोला--- "तुम सब इकट्ठे काम कर रहे हो। सिर्फ काम के बारे में सोचो और कुछ भी मत सोचो । हमने अपने काम में विजय हासिल करनी है ।"
सब चुप रहे ।
"एक बार फिर शाम आ गई है । जश्न की शाम ।" अंसारी कह उठा--- "व्हिस्की में डूब जाओ । मस्ती करो । इतनी पियो कि सुबह आंख खुले । कल सुबह मैं तुम लोगों को प्लान के बारे में बताऊंगा । परसों के मुबारक दिन हमें काम शुरू करना है ।" सावित्री हाउस की चौथी मंजिल पर हमला करना है । सबको मार देना है जो बच्चे उन्हें बंधक बना लेना है । मैं तो सोच-सोच कर खुश हो रहा हूं कि हिन्दुस्तान का क्या हाल होगा जब वहां सात सौ से ऊपर लाशें पड़ी होंगी । ये शानदार कारनामा होगा तुम सातों का । अपना नाम तुम इतिहास में दर्ज करा लोगे । चलो, बोतलें खोलो ।"
सब खुशी से पीने-बोतले खोलने में व्यस्त होने लगे।
जश्न की उनकी ये तीसरी शाम थी।
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान थी । गिलास और बोतल थामे उसने अपना गिलास तैयार किया ।
अंसारी भी उनमें शामिल हो गया था और मजाक की बातों का दौर चालू हो गया। परंतु भीतर ही भीतर देवराज चौहान तनाव में आ चुका था। उसे आने वाले वक्त में खतरा लग रहा था । जलालुद्दीन बड़े भाई के आने के बारे में पूछ रहा था । वो अपनी बात बड़े भाई के सामने रखना चाहता था । देवराज चौहान ने पहचान लिया था कि जलालुद्दीन के मन में क्या है। यकीनन जलालुद्दीन उसके लिए मुसीबत खड़ी करेगा। जबकि उसे ये जानने का इंतजार था कि बड़ा भाई यानी कि सलीम खान यहां पर कब आ रहा है कि वो मार्शल को खबर कर सके। ये मामला सलीम खान की गिरफ्तारी के साथ ही, इन सबकी गिरफ्तारी के साथ खत्म हो जाए । देवराज चौहान की निगाह में ये अच्छी बात थी कि अंसारी ने अभी तक किसी को हथियार नहीं दिए थे। परंतु जलालुद्दीन उसके लिए मुसीबत खड़ी करने पर उतारू था ।
एक पैग के बाद दूसरे पैग का दौर चला, दूसरे से के बाद तीसरे का ।
नशे का सफर जारी था । अंसारी हंसी-खुशी का माहौल रखकर, सबको खुश रख रहा था। क्योंकि वो आपस में तो बात नहीं कर रहे थे । उनसे बात करने के लिए अंसारी मौजूद था । साथ में नमकीन काजुओं से भरी प्लेटों का मजा ले रहे थे । बीच-बीच में अंसारी उन्हें बताने लगता कि हिन्दुस्तानी कितने घटिया लोग हैं । वो हर संभव कोशिश में था कि इन सबके मन में हिन्दुस्तान के प्रति नफरत की आग जलाए रखे। उसे हवा देता रहे कि सावित्री हाउस में ये बढ़िया कारनामा कर दें ।
तभी देवराज चौहान अपनी जगह से उठा । वो नशे में लग रहा था
"संभलकर तारिक ।" मोहम्मद डार कह उठा--- "लगता है ज्यादा ले ली ।"
"ज्यादा कहां ।" देवराज चौहान नशे से भरे स्वर में कहा उठा--- "अभी तो पीनी है । बाथरूम जा रहा हूं ।"
देवराज चौहान नशे में चलता बाथरूम की तरफ बढ़ गया, जो कि उस हॉल के कोने में था और वहां से पच्चीस कदम दूर था । बाथरूम का दरवाजा खुला हुआ था। वो भीतर प्रवेश कर गया। भीतर प्रवेश करते ही वो एकदम चौकस नजर आने लगा । उसने दरवाजा भीतर से बंद किया और मोबाइल निकालकर मार्शल के नंबर मिलाने लगा ।
दो बार कोशिश करने पर मार्शल का नम्बर लगा ।
फोन कान से लगा लिया । दूसरी तरफ बैल जा रही थी ।
"हैलो ।" तभी मार्शल की आवाज कानों में पड़ी ।
"मार्शल--- मैं हूं ।" देवराज चौहान फुसफुसाहट भरे स्वर में बोला।
"कहो देवराज चौहान वहां की क्या पोजीशन...।"
"मेरी बात सुनो मार्शल ।" देवराज चौहान कह उठा--- "तारिक मोहम्मद से पता करके रखो कि उसमें और जलालुद्दीन के बीच, हामिद अली के ठिकाने पर, पहली बार क्या खास बात हुई थी।"
"कोई बात है क्या ?"
"हां । तुम ये पता करो । मौका मिलने पर मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा ।" फुसफुसाहट-भरे स्वर में कहने के बाद देवराज चौहान ने फोन बंद किया फिर फोन में मौजूद मार्शल के नम्बर को डिलीट (साफ) किया और फोन जेब में रखने के बाद, उसने बाथरूम का दरवाजा खोला, बाहर निकलने को हुआ कि ठिठक गया ।
सामने जलालुद्दीन खड़ा उसे ही पैनी निगाहों से देख रहा था ।
देवराज चौहान उसकी परवाह न करके जाने लगा जलालुद्दीन बोला ।
"तुम किससे बात कर रहे थे ?" आवाज में नशा था।
देवराज चौहान ठिठकर मुस्कुरा पड़ा। बोला ।
"मैं अकेला हूं बाथरुम में। किससे बात करूंगा ?"
"फोन पर तो बात कर सकते हो । ठीक कहा न मैंने । मैंने तुम्हारी धीमी-सी आवाज सुनी थी ।"
"मैं गाना गा रहा था ।"
"गाना ?" जलालुदीन तीखे स्वर में बोला--- "कौन-सा गाना ?"
"पाकिस्तानी गायिका यानी कि अपने देश की सिंगर नर्गिस का गाना ।"
"कौन-सा वाला ?"
"सोन दी हनेरी विच दो अनार हिलदे ।"
"मैंने सुन रखा है । बहुत मशहूर गाना है । वैसे नरगिस भी कम खूबसूरत नहीं...।"
देवराज चौहान जाने लगा तो जलालुद्दीन बोला ।
"तुम फोन पर बात कर रहे थे । जलालुद्दीन को ऐसी बातों का धोखा नहीं होता।"
"भाड़ में जाओ।। मैं नरगिस से फोन पर बात कर रहा था ।" कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ता चला गया । परंतु वो जानता था कि जलालुद्दीन की निगाह उसकी पीठ पर ही टिकी है ।
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