बाहर का दृश्य देखकर वह यह तो समझ गया कि बाहर कोई अप्रिय घटना घटित हो गई है-----परंतु यह न जान सका कि बात क्या है?
उसने देखा कि बाहर लोगों की भीड़ का जत्था खड़ा है। वे लोग एक स्थान पर बुत बने खड़े थे और आपस में घेंपे-घेंपे कर रहे थे।
विजय यह तो जान गया कि लोगों के वृत्त के भीतर कोई ऐसी वस्तु है, जिसने उन्हें यहां एकत्रित होने के लिए बाध्य कर दिया है, परंतु विजय यह न देख सका कि वस्तु है क्या।
यही जानने हेतु उसने पैरों में चप्पल डालीं और बाहर आया।
भीड़ के निकट जाकर ज्यों ही उसकी दृष्टि भीड़ के बीच पड़ी वस्तु पर पड़ी तो वह चौंक पड़ा।
एक बार फिर उसे ऐसा महसूस हुआ, जैसे उसकी खोपड़ी हवा में चकरा रही हो ।
लोगों के बीच वही व्यक्ति पड़ा था, जिसे कल टुम्बकटू पार्टी से उठाकर ले गया था।
वैसे विजय के चौंकने का कारण यह नहीं था कि वह व्यक्ति यहां कैसे आ गया? बल्कि उसके चौंकने का कारण था --- उस व्यक्ति की स्थिति !
एक बार को तो उसकी स्थिति देखकर विजय के होंठों पर मुस्कान उभर आई----- लेकिन अगले ही पल उसके होंठ सीटी बजाने की शक्ल में सिकुड़ गए।
वह जान गया कि टुम्बकटू अब शायद समूचे विश्व में आतंक मचाना चाहता है। परंतु इस आतंक के पीछे आखिर उसका उद्देश्य क्या है?
इस प्रश्न का उत्तर कम-से-कम उसके पास तो था नहीं ।
लोगों की भीड़ के बीच वह व्यक्ति नग्न पड़ा था। बिल्कुल इस प्रकार नग्न मानो अभी पैदा हुआ हो। किंतु उसके समूचे जिस्म को किसी गाड़ी काली स्याही से पोत दिया गया था। ऊपर से नीचे तक वह काला स्याह था । बालों पर शायद उस्तरा फेरकर सपाट कर दिया गया था। नाक से नीचे चॉक से मूंछें बना दी गई थी।
इस स्थिति को देखकर तो विजय के होंठों पर मुस्कान आई थी, परंतु उस समय उसके होंठ सीटी बजाने की स्थिति में सिकुड़ गए जब उसने उसके काले स्याह बदन पर ये शब्द लिखे देखे-----'छलावा अपराधी टुम्बकटू का शिकार ।'
विजय चुपचाप कोठी में आ गया और फोन उठाकर उसने इस घटना की सूचना रघुनाथ को दे दी।
वह अभी टुम्बकटू के विषय में कुछ सोचना ही' चाहता था कि तभी अखबार वाला अखबार डाल गया।
फर्श पर पड़े अखबार के मेन हैडिंग पर दृष्टि पड़ते ही विजय चौंक पड़ा।
मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था:
'विश्व को चैलेंज ।'
शीर्षक ही ऐसा था कि विजय का हाथ स्वयमेव ही बढ़ गया। उसने अखबार उठाकर ज्यों ही पहली तह खोली तो उसकी दृष्टि टुम्बकटू के चित्र पर पड़ी, जो खड़ा हुआ ठीक ऐसा लग रहा था मानो तीन गन्नों को एकत्रित करके खड़ा कर दिया हो । टुम्बकटू के अधरों पर वही मुस्कान थी, जो कल विजय ने पार्टी में देखी थी।
विजय जान गया कि यह चित्र रिपोर्टर ने पार्टी में ही लिया होगा। विचित्र - सी दृष्टि से वह उस मरियल-से टुम्बकटू के चित्र को घूरता रहा, उसे तो अब भी विश्वास नहीं आ रहा था कि यह जोकर- सा नजर आने वाला पतला-दुबला व्यक्ति वह सब कर भी सकता है, जो कल उसने पार्टी में किया।
फिर विजय ने वह 'विश्व को चैलेंज' वाला शीर्षक पढ़ा और फिर समूचा पढ़ विवरण पढ़ गया, जिसका सारांश कुछ इस प्रकार था ।
'राजनगर... कल हमारे विशेष संवाददाता द्वारा विशेष समाचार मिला है कि सुपरिंटेंडेंट रघुनाथ के लड़के विकास के जन्मावसर पर एक विचित्र अपराधी ने विश्व को विचित्र चैलेंज दिया है। वह विचित्र व्यक्ति अपना नाम छलावा अपराधी टुम्बकटू बताता है।'
उसके बाद रिपोर्टर ने वह सब लिखा था, जो कल पार्टी में हुआ था। वह सब लिखने के पश्चात उसने कुछ इस प्रकार टुम्बकटू के विषय में अपने विचार प्रस्तुत किए थे।
'विश्व को इतना भयानक चैलेंज देने वाला यह मरियल-सा हंसमुख, किंतु अत्यंत खतरनाक व्यक्ति आज से पूर्व कभी कहीं नहीं देखा गया। यह व्यक्ति अपने अंदर कुछ ऐसी विशेषताएं समेटे हुए है कि आश्चर्य होता है। कल यह लगभग पांच- सात मिनट पुलिस को नचाता रहा। उसमें सबसे उल्लेखनीय और आश्चर्यजनक बात तो ये है कि इसने किसी हथियार का प्रयोग नहीं किया और न ही किसी को मुक्का मारा। यह जिसको भी मारता, सिर्फ चपत ही मारता, परंतु इसका प्रत्येक चपत इतना शक्तिशाली था कि लोग लगते ही अचेत हो जाते। विश्वास नहीं होता कि यह पतला-दुबला व्यक्ति इतनी शक्ति रखता है। इसने वहां उपस्थित लोगों को सिर्फ परेशान किया, किसी को इतनी हानि न पहुंचाई, जिससे उस पर कोई कड़ी कानूनी दफा लग सके। ये भी पता नहीं लग सका कि इस प्रकार की हरकतों के पीछे उसका उद्देश्य क्या है? वह माइक्रोफिल्म वाली बात कहां तक
सत्य है? उस खजाने में वह कौन-सी वस्तु है, जिसका प्राप्ति पर टुम्बकटू के कथनानुसार मानव ईश्वर पर विजय प्राप्त कर लेगा? ऐसा लगता है, जैसे यह विचित्र व्यक्ति टुम्बकटू भविष्य में वास्तव में एक परेशानी बन जाएगा।'
संपूर्ण विवरण पढ़ने के पश्चात विजय की दृष्टि फिर टुम्बकटू के चित्र पर जम गई और वह उसे देखकर फिर अचंभे में रह गया कि आखिर यह गन्ने जैसा व्यक्ति इतना खतरनाक कैसे हो सकता है? उसने सब कुछ अपनी आंखों से देखा था, परंतु फिर भी...
विजय को लग रहा था कि यह विचित्र नमूना शीघ्र ही समूचे विश्व के लिए एक समस्या बन जाएगा। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे। उसे मालूम था कल के अखबारों में इस घटना को, जो उसके बाहर हो रही है, जिससे कम-से-कम राजनगर में तो आतंक फैल ही जाएगा।
जब विजय को कुछ नहीं सूझा तो उसने नौकर से चाय के लिए कहा।
कुछ देर पश्चात नौकर चुपचाप चाय मेज पर रखकर चला गया।
अभी कप उठाने के लिए उसने हाथ बढ़ाया ही था कि एकाएक वह बुरी तरह चौंक पड़ा।
अचानक उसके सिर पर एक चपत लगी।
विजय की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाच गए। अगले ही पल उसके कानों से टिम्बकटू की विचित्र आवाज टकराई- -" बड़ी गलत बात है विजय... अकेले चाय पीते हो।"
विजय ने चारों ओर दृष्टि मारी।
"इधर-उधर क्या देख रहे हो?" टुम्बकटू की आवाज - "मैं यहां हूं तुम्हारे पीछे।" 1
विजय फुर्ती के साथ पीछे घूमा।
पीछे रिक्त स्थान !
तभी उसके सिर से एक और चपत टकराई, फिर टुम्बकटू की आवाज!
"अगर घूमने में इतनी देर लगाओगे तो मैं हर बार तुम्हारे पीछे ही होऊंगा।"
विजय फिर घूमा।
किंतु फिर उसके सिर के पिछले भाग में एक चपत पड़ा। इस बार भी देर हो गई।
विजय बौखलाकर पीछे घूम गया।
परंतु फिर उसके पीछे से एक चपत पड़ा।
"यही चपत इतनी शक्ति से भी मार सकता हूं कि तुम अचेत हो जाओ।"
टुम्बकटू की इन हरकतों से विजय की बौखलाहट चरम सीमा पर पहुंच गई थी, लेकिन इस बार उसने एक शातिराना चाल चली।
उसने तेजी से पीछे घूमने का उपक्रम किया।
टुम्बकटू ने छलावे की-सी फुर्ती का परिचय देते हुए उसके ऊपर से होकर उसके पीछे पहुंच जाना चाहा, किंतु इस बार टुम्बकटू मात खा गया।
अगले ही पल टुम्बकटू के छोटे-से जबड़े पर विजय का शक्तिशाली घूंसा पड़ा।
टुम्बकटू का गन्ने जैसा जिस्म गार्ड की झंडी की भांति लहराया और मेज से उलझता हुआ धड़ाम से कमरे के फर्श पर गिरा।
विजय जानता था कि टुम्बकटू फुर्ती की दृष्टि से किसी प्रकार छलावे से कम नहीं है और उसे संभलने का अवसर देना मूर्खता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है, अत: टुम्बकटू को कोई भी अवसर दिए बगैर उसने टुम्बकटू पर जंप लगा दी।
किंतु वह रिक्त फर्श से टकराया।
"मानता हूं कि तुम लड़ने के अच्छे तरीके जानते हो।" सहसा विजय के कानों से फिर टुम्बकटू की आवाज टकराई ---- -"लेकिन अभी फुर्ती की दृष्टि से बच्चे हो ।'
यूं विजय भी किसी छलावे से कम नहीं था। ये तो बस अवसर था, जो अभी तक टुम्बकटू का साथ दे रहा था।
अगले ही पल विजय भी फुर्ती के साथ खड़ा हो गया था।
उसका विचार था कि शीघ्र ही टुम्बकटू उसके सिर पर चपत मारेगा, किंतु इस बार ऐसा न हुआ तो वह थोड़ा चौंका।
तभी टुम्बकटू की आवाज!
"मैं यहां हूं।" पलक झपकते ही विजय आवाज की ओर घूम गया। टुम्बकटू को सामने देखकर उसे कुछ संतोष-सा हुआ। वह सामने के सोफे पर बैठा विचित्र ढंग से मुस्करा रहा था।
0 Comments