होटल का डायनिंग हाल आधा खाली पड़ा था ।
विकास दरवाजे पर ही ठिठक गया। उसकी निगाह पैनी होती हुई सारे हाल में फिर गई ।
दरवाजे से थोड़ा परे एक टेबल पर उसे शबनम दिखाई दी। वह लगभग पचास साल के सूरत और रखरखाव से बहुत समृद्ध लगने वाले एक आदमी के साथ बैठी हुई थी और बहुत घुट-घुट कर उससे बातें कर रही थी ।
अच्छा ही हुआ था जो उसने पैसेन्जर ट्रेन से समझौता करने की कोशिश नहीं की थी । वहां तो पैसेन्जर ट्रेन भी बुक दिखाई दे रही थी ।
उसने देखा शबनम की टेबल के ऐन पीछे की टेबल खाली थी ।
वह चुपचाप उस टेबल पर इस प्रकार जा बैठा कि शबनम की पीठ की तरफ उसका मुंह हो गया ।
शबनम का उसकी तरफ कतई ध्यान नहीं था ।
वेटर आया तो उसने उसे ड्रिंक का आर्डर दिया । वह कान खड़े करके शबनम और उसके बकरे में हो रहा वार्तालाप सुनने की कोशिश करने लगा ।
वेटर उसे ड्रिंक सर्व कर गया ।
इतनी उसे गारन्टी थी कि वह मोटा आदमी बकरा था जिसे शबनम और मनोहर जिबह करने के लिए तैयार कर रहे थे । विकास को इस बात में कोई शर्म या झिझक नहीं
महसूस हो रही थी कि वह उन दोनों की बातें सुनने की कोशिश कर रहा था । वह जानता था कि उसकी कोई चाल जानने के लिये वैसी ही कोई कोशिश शबनम और मनोहर भी कर सकते थे। वे उसका टेलीफोन टेप कर सकते थे, उसकी डाक हथिया कर उसे खोल सकते थे, उसकी गैरहाजिरी में उसके होटल के कमरे में घुस सकते थे, कुछ भी कर सकते थे । वह ठगी का धन्धा था और उसमें जायज और नाजायजत में तमीज करने का रिवाज नहीं था। दूसरे का खेल न बिगड़े, यह कोशिश जरूर की जाती थी लेकिन दूसरे के खेल की खबर भी न ली जाये यह मूर्खता मानी जाती थी क्योंकि यह भी तो हो सकता था कि दूसरे के फेल हो जाने की सूरत में आप उसी बकरे को हलाल करने में कामयाब हो जायें । कहने का तात्पर्य यह था कि पेशे की ईमानदारी उस धन्धे की कोई विशेषता नहीं थी। ठग भी ठगा जा सकता था ।
विकास वास्तव में न उनका खेल बिगाड़ना चाहता था और न उन्हें ठगना चाहता था । वह अकेले काम करने का आदी था । उस वार्तालाप को वह केवल इसलिए सुनने की कोशिश कर रहा था क्योंकि ऐसा करने में कोई हर्ज नहीं माना जाता था और वह बोर हो रहा था ।
शबनम कह रही थी - "काटजू साहब, आज की दुनिया में जिस औरत को बिजनेस की समझ न हो, उसके लिए यह फैसला करना बड़ा मुश्किल होता है कि वह क्या करे और क्या न करे । जब मेरा पति जिन्दा था, तब इनवैस्टमेंट के सारे बखेड़े वही हैंडल करता था इसलिए मैंने शेयर मार्केट को समझने की कभी कोशिश ही नहीं थी ।" - वह एक खनकती हुई हंसी - हंसी- " अगर कर्नल साहब मेरे रहनुमा न होते तो अब तक मैं किसी बेईमान दलाल के हत्थे चढ चुकी होती और अपनी सारी नहीं तो लगभग सारी पूंजी तो जरूर लुटा चुकी होती ।"
काटजू के नाम से पुकारे जाने वाले मोटे आदमी ने बड़ी संजीदगी से सहमति में गर्दन हिलाई और बोला- "पूंजी लगाने का सबसे सुरक्षित रास्ता तो सरकारी शेयर ही हैं । "
“सरकारी शेयर !"
"यूनिट | यूनिट ट्रस्ट आफ इन्डिया के यूनिट ।”
" 'ओह, वह । यूनिट भी हैं मेरे पास । लेकिन उनकी रकम से शेयर बाजार में जुआ खेलने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती । उस रकम को तो कर्नल साहब मुझे हाथ भी नहीं लगाने देंगे।"
"वह सिक्केबन्द इनवेस्टमेंट है । "
" एग्जैक्टली । लेकिन उस पर ब्याज बहुत कम मिलता है न । सिर्फ नौ प्रतिशत ।"
"अब दस प्रतिशत हो गया है । "
“दस सही । दस ही कौन सा ज्यादा है। मेरे पास पचास हजार रुपये हैं जो मुझे अपने पति की रामपुर वाली जमीन बेचने से हासिल हुए हैं। मैंने कर्नल साहब को कहा है कि उस रकम के भी यूनिट खरीदने की जगह मैं उसे शेयर मार्केट में लगाना चाहती हूं, ताकि मैं कुछ कमाई भी कर सकूं ।”
"लेकिन उसमें रिस्क भी तो है ।"
"आम तौर पर होता है, लेकिन जब कर्नल साहब की सरपरस्ती हासिल हो तो नहीं होता । शेयर मार्केट का उनसे बेहतर दुनिया में कोई नहीं समझता । इतनी उम्र हो गई है उनकी, आज तक उनकी शेयर मार्केट से ताल्लुक रखती कोई टिप गलत साबित नहीं हुई है ।"
"मैं तो शेयर मार्केट को कतई नहीं समझता । वैसे मैंने जनरल मोटर्स और टाटा स्टील के कुछ शेयर खरीदे तो हुए हैं लेकिन धन्धे की वाकफियत न होने की वजह से इस सिलसिले में ज्यादा रकम लगाने का मेरा हौसला नहीं होता । मेरा तो सारा पैसा मेरे बिजली के पंखे बनाने के धन्धे में ही लगा हुआ है।"
"वह तो बहुत कमाई का धन्धा होगा ?"
“बहुत कमाई का धन्धा यह कभी था, अब नहीं है । एक तो यहां सीजनल काम है। ऊपर से कम्पीटीशन बहुत हो गया है।”
"ओह !"
"इसलिए मैं भी कई बार सोचता हूं कि मैं शेयर मार्केट ट्राई करके देखूं । "
"तो करते क्यों नहीं ? किसी धंधे को जानने वाले आदमी की राय लीजिए और कोई सेफ इनवेस्टमेंट कर दीजिये ।"
"मैं तो किसी धन्धे को जानने वाले आदमी को जानता नहीं ।" - वह एक क्षण ठिठका और बोला - "ये आपके कर्नल साहब... कैसे आदमी हैं ये ?"
"बहुत राजा आदमी हैं। मेरे पति के दोस्त थे और मुझे अपनी औलाद की तरह मानते हैं । गढ़वाल रेजीमेंट में कर्नल थे, हाल ही में रिटायर हुए हैं। स्टाक ब्रोकर का धन्धा पेशे के तौर पर अख्तियार कर लें तो लाखों कमायें लेकिन कहते हैं कि इस धन्धे के अपने ज्ञान को वे बेचना नहीं चाहते । पैसे की उनकी कोई कमी नहीं, ऊपर से पेंशन भी आती है । अपने लिए शेयरों की खरीद फरोख्त करते ही रहते हैं इसलिए जिन्दगी बहुत मजे में चल रही है। उनके यार दोस्त उनकी राय पर अमल करके शेयर मार्केट से भरभूर फायदा मुफ्त में उठा रहे हैं । शेयर मार्केट का बच्चा-बच्चा इस हकीकत से वाकिफ है कि इस धन्धे का कर्नल साहब जैसा स्पैशलिस्ट कोई नहीं । आपने भी कर्नल जे एन एस चौहान का नाम जरूर सुना होगा ।"
“जे एन एस चौहान ?” - वह सोचता हुआ बोला ।
“जगन्नाथ सिंह । जगन्नाथ सिंह चौहान | "
" शायद सुना हो । लेकिन इस वक्त ध्यान नहीं पड़ रहा है।"
" जरूर सुना होगा । यह हो ही नहीं सकता कि शेयर मार्केट के इतने बड़े ज्ञाता का नाम आपने न सुना हो ।"
"ये कर्नल साहब आजकल हैं कहां ?"
“यहीं हैं । "
"मुझे मिलवाइएगा उनसे ?"
“क्यों ? आपको भी शेयर मार्केट की कोई टिप चाहिए ?
"नहीं, नहीं । यह बात नहीं । मैं तो वैसे ही उनसे मिलना चाहता हूं । ऐसे गुणी आदमी से तो मिलना ही चाहिए |"
"और उसके गुणों का फायदा उठाना चाहिये ।"
“अगर ऐसा मुमकिन हो तो क्या हर्ज हैं ?"
"मुमकिन क्यो नहीं होगा? बस, दिक्कत जरा कर्नल साहब को टिप देने के लिए पटाने में आती है।"
"क्यों ?"
"वे अजनबियों से ज्यादा बात नहीं करते ।"
"लेकिन जब आप मुझे उनसे मिलवायेंगी तो मैं अजनबी कहां रह जाऊंगा ।"
"यह भी ठीक है ।”
तभी वेटर उनके लिये काफी ले आया ।
विकास ने उनकी तरफ से ध्यान हटा लिया और वेटर को बुला कर डिनर का आर्डर देने लगा ।
जो जाल शबनम फैला रही थी, उसे विकास खूब समझता था । शबनम अपने आपको कोई रईस विधवा और मनोहर लाल को कोई शेयर मार्केट का स्पेशलिस्ट बता रही थी । मनोहरलाल की गुणवत्ता का पर्याप्त बखान हो चुकने के बाद वहां एन्ट्री होती, वह शबनम को शेयर मार्केट की कोई सिक्के बन्द टिप देता जिसमें काटजू भी रस लिये बिना न रह पाता । फिर शबनम के इसरार पर, काटजू द्वारा बात को गुप्त रखने के वादा हो चुकने के बाद और भी कई तरह की हील हुज्जत के बाद वह उसे भी उस टिप में शामिल करने को तैयार हो जाता । ड्रामा इतना शानदार होता कि काटजू इस बात को अपना सौभाग्य मानता कि उन लोगों ने उसे अपना राजदार बनाना स्वीकार कर लिया था ।
जब तक विकास को डिनर सर्व हुआ, तब तक शबनम और उसका बकरा काफी समाप्त कर चुके थे। फिर ऐन उस वक्त जब बकरा शबनम से विदा लेने का उपक्रम कर रहा था, मनोहर लाल ने हाल में कदम रखा ।
मनोहर उस वक्त भी फुल कर्नल की यूनीफार्म में था और यूं तन कर चल रहा था जैसे परेड ग्राउंड में मार्चिंग कर रहा हो । विकास जानता था कि ठग होने के साथ-साथ वह कितना बड़ा अभिनेता भी था । तभी तो वह फौज का मुंह भी न देखा होने के बावजूद भी शतप्रतिशत फौजी बन कर दिखा सकता था ।
मनोहर लाल जब उसकी मेज के समीप से गुजर रहा था तो विकास ने सिर उठाया । हालांकि निगाह शबनम और काटजू पर ही टिकी हुई थी लेकिन विकास के सिर की हरकत की वजह से उसका ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हो गया । उस की विकास से निगाह मिली ।
हैरानी से उसका निचला जबड़ा लटक गया और आंखें गोल हो गई ।
विकास ने अपने चेहरे पर पहचान के कोई भाव न आने दिये । उसने अपना सिर झुका लिया और बड़े निर्विकार भाव से भोजन करता रहा ।
मनोहर अपनी शाक की हालत से उभरा और फिर आगे बढ गया । वह शबनम की टेबल के पास पहुंच कर ठिठका । उसके होंठों पर एक मीठी मुस्कराहट आई और वह बोला - "हल्लो माई डियर !"
फिर उसने एक प्रश्नसूचक निगाह काटजू पर डाली ।
"कर्नल चौहान, मिस्टर काटजू ।" - शबनम ने दोनों का परिचय कराया ।
"ऐट ईज, सर ।" - काटजू ने उठने का उपक्रम किया तो मनोहर हाथ हिला कर उसे बैठे रहने का संकेत करात हुआ बोला- "मैं खुद किसी के लिये उठ कर खड़ा नहीं होता । मेरा मतलब है सिवाय महिलाओं के और तिरंगे झण्डे के मैं और किसी के लिये उठकर खड़ा होना जरूरी नहीं समझता । रोज इतने लोगों से मुलाकात होती हैं, जनाब, यूं तकल्लुफ में पड़ने से तो आदमी ऊपर नीचे फुदकता ही रहेगा ।"
काटजू मुस्काराया और वापिस अपनी सीट पर जम गया । उसके चेहरे के भाव इस बात की साफ चुगली कर रहे थे कि वह मनोहर से बहुत प्रभावित हुआ था । उस उस्ताद ठग का व्यक्तित्व था ही ऐसा । उसका रोब लोगों पर गालिब होना लाजमी होता था । जब तक वह अपना ठगी की जाल समेट कर गायब नहीं हो जाता था, तब तक हर कोई उसे बहुत पसन्द करता था लेकिन उसके गायब होते ही हर कोई उसकी तत्काल मृत्यु की कामना करने लगता था ।
"बैठिए कर्नल साहब ।" - काटजू बोला- "और काफी मंगाते हैं ।”
मनोहर ने एक ऐसी गुप्त निगाह विकास की टेबल की तरफ डाली जिसे काटजू तो न भांप सका लेकिन शबनम फौरन भांप गई । उसने अपने पीछे निगाह डाली । विकास पर निगाह पड़ते ही हैरानी से उसके नेत्र फैल गये।
"चलिए लाउन्ज में चलकर बैठते हैं।" - मनोहर बोला “काफी के साथ एक-एक ब्रांडी भी हो जायेगी ।"
“ठीक है।" - शबनम बोली और फौरन उठ खड़ी हुई ।
काटजू के इशारे पर वेटर बिल ले आया । काटजू को बिल अदा करता छोड़कर वह मनोहर के साथ आगे बढी । विकास के पास से गुजरते समय उसने नाक चढाकर उसकी तरफ देखा और फिर बिना ठिठके आगे बढ़ गई ।
काटजू भी उन दोनों के पीछे लपका ।
रहा। विकास निर्विकार भाव से सिर झुकाये भोजन करता
भोजन के बाद जब वह वहां से निकल रहा था तो उसने लाउन्ज में एक निगाह डाली ।।
वहां एक तनहा कोने में शबनम, मनोहर और काटजू बैठे थे | मनोहर कुछ कह रहा था और उनका ताजा बकरा, पंखों का व्यापारी, स्टाक एक्सचेंज में माल कमाने का तलबगार, काटजू बड़ी तन्मयता से उसके मुंह से निकला एक-एक शब्द सुन रहा था ।
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उसी रात साढ़े ग्यारह बजे के करीब जब विकास अपने कमरे में बैठा एक उपन्यास पढ रहा था तो दरवाजे पर एक हल्की सी दस्तक पड़ी ।
उसने एक असमंजसपूर्ण निगाह दरवाजे पर डाली । फिर उसने उपन्यास एक ओर रख दिया और पलंग से उतर आया । उस वक्त वह एक पजामा कुर्ता पहने था। नंगे पांव वह दरवाजे तक पहुंचा।
उसने दरवाजा खोला ।
सामने शबनम खड़ी थी ।
उसे वहां आया देखकर विकास को कोई खास हैरानी नहीं हुई ।
"हल्लो, पीपिंग टॉम ।" - वह बोली ।
"हल्लो।" विकास जबरन मुस्कराता हुआ बोला ।
शबनम ने पंजों पर उचक कर एक बाद भीतर कमरे में झांका और फिर बोली- "अकेले हो ?"
"हां ।" - वह बोला, और दरवाजे से एक ओर हट गया
वह भीतर दाखिल हुई ।
विकास ने उसके पीछे दरवाजा बन्द कर दिया ।
शबनम कमरे के बीचों-बीच जा खड़ी हुई थी और कमर पर हाथ रखे हुए चारों तरफ निगाह दौड़ा रहीं थी ।
"क्या खिदमत करू मैं अपने हसीन मेहमान की ?" - वह बोला - "ड्रिंक मंगवाऊं ?"
"नहीं | जरूरत नहीं । लेकिन एक सिगरेट चलेगा ।"
विकास ने मेज पर पड़ा अपना सिगरेट का पैकेट और लाइटर उठाया और उसे एक सिगरेट पेश किया । शबनम ने सिगरेट होंठों से लगा लिया तो उसने लाइटर जलाकर उसे सुलगा दिया ।
शबनम ने सिगरेट का एक लम्बा कश लगाया और फिर बड़े तजुर्बेकार ढंग से नाक से धुंए की दोनाली सी छोड़ी । फिर उसके नेत्र सिकुड़ गये और वह बड़े गौर से विकास का मुआयना करने लगी ।
जवाब में विकास ने भी वैसी ही तीखी और बेबाक निगाहों से उसकी तरफ देखा । वह एक टखनों तक लम्बा गाउन पहने थी जिसमें से उसकी बांहे, कंधे और उरोजों का तीन चौथाई उभार बाहर दिखाई दे रहा था ।
" बैठ जाओ।" - वह बोला ।
"नहीं।" - वह बोली- "मैं जा रही हूं। मैं तो सिर्फ एक मिनट के लिए आई थी।"
“अच्छा !"
"मै तुम्हें एक टिप देने आई थी ।”
"टिप !"
"हां ।”
"कैसी टिप ?"
“इस शहर में कोई कलाबाजी मत खा जाना, विकी ।"
"मेरा ऐसा कोई इरादा तो नहीं है लेकिन तुम ऐसा क्यों कह रही हो ?"
"तुम्हें अगाह करने की खातिर कह रही हूं । बाहर से आये लोगों के साथ यहां कि पुलिस बड़ा अजीब रवैया अख्तियार करती है। बाहर से आया कोई आदमी यहां फंस जाये तो यहां उसे ज्यादा से ज्यादा लम्बा नापने की कोशिश की जाती है । इस शहर में गुंडे बदमाशों की बहुत चलती है और ग्राफ्ट और करप्शन का बोलबाला है। यहां बख्तावार सिंह नाम के एक दादा की बहुत चलती है । वह तो नहीं कहता कि वह दादा है लेकिन मैं तुम्हें बता रही हूं कि वह दादा है और यहां के तमाम बड़े पुलिस अधिकारियों, विधायकों और अन्य महत्वपूर्ण लोगों को अपनी जेब में रखे होने का दावा करता है । स्थानीय बदमाशों को बख्तावर सिंह का संरक्षण प्राप्त है इसलिये पुलिस की उन पर बहुत कम पेश चलती हैं। इस बात की कसर वे बाहर से आये आदमी को लम्बा फंसा कर पूरी करते हैं ताकि पब्लिक को उनको अकर्मण्यता की तरफ उंगली उठाने का मौका न मिले । यहां हर उस आदमी की शामत है जिसे स्थानीय दादा लोगों का संरक्षण नहीं हासिल या जो दादा लोगों की कोई खिलाफत करने की वजह से उनकी निगाहों से गिर चुका हो । मेरी बात को और अच्छी तरह समझना चाहते हो तो आज का अखबार पढ़ लेना ।"
"क्या है उसमें ?"
"उसमें जगतपाल नाम के एक आदमी की खबर है जिसने एक फेंस को लूटने की हिमाकत कर डाली थी । चोरी का माल ठिकाने लगाने वाले आदमी को हर शहर में जरायमपेशा लोगों का संरक्षण प्राप्त होता है। उसके बिना दोनों का धन्धा नहीं चलता । इसलिये फेंस पर कभी कोई हाथ नहीं डालता । लेकिन जगतपाल ने राजनारायण नामक एक स्थानीय फेंस पर हाथ डालने की गलती की। किसी वजह से जगतपाल गिरफ्तार हो गया लेकिन माल उसके पास से बरामद न हो सका। पुलिस उसके खिलाफ कोई मजबूत केस बनाने में नाकामयाब रही थी, इसीलिये आज शाम को वह जमानत पर छोड़ दिया गया था । शाम आठ बजे की खबरों के मुताबिक जब वह पुलिस हेडक्वार्टर की इमारत से निकला था तो एक कार उसके समीप आकर रुकी थी । एक चश्मदीद गवाह का कहना है कि कार की आगे-पीछे दोनों तरफ की नम्बर प्लेंटों पर यूं मिट्टी थुपी हुई थी कि नम्बर नहीं पढ़ा जा सकता था और कार के भीतर अन्धेरा था । लेकिन गवाह ने स्ट्रीट लाइट की रोशनी में इतना फिर भी देखा था कि कार की पिछली सीट पर जो आदमी बैठा था, उसके हाथ में रिवाल्वर थी और वह जगतपाल को कार में बैठने के लिये जबरन मजबूर कर रहा था । अब क्या यह कहने की जरूरत है कि और दो दिन बाद जगतपाल की लाश नदी में से बरामद होगी ?"
“यह सजा उसे इसलिये मिली क्योंकि उसने एक फेंस पर हाथ डाला था ?"
"हां ।”
"लेकिन यह बात मुझ पर कैसे लागू होनी है ?"
"मैंने तुम्हें एक मिसाल दी है । जगतपाल ने फेंस को लूट कर स्थानीय दादाओं के बनाए एक नियम की खिलाफत की और उसका यह अन्जाम हुआ। तुम्हें स्थानीय दादाओं का संरक्षण हासिल नहीं इसलिए फंस जाने पर तुम्हारा भी बुरा अंजाम हो सकता है । इसलिए तो कह रही हूं कि कहीं इस शहर में कलाबाजी न खा जाना ।”
"चेतावनी के लिए शुक्रिया । मैं सावधान रहूंगा।"
“एक बात और । प्रकाश देव महाजन नाम के एक आदमी से भी जरा दूर-दूर ही रहना । "
विकास को रिचमंड रोड पर स्थित 'कार बाजार' की याद आई जिसके बोर्ड पर उसने प्रोप्राइटर की जगह प्रकाश देव महाजन का नाम लिखा देखा था ।
"वह कौन है ?" - प्रत्यक्षतः उसने अनजान बनते हुये पूछा।
"वह यहां का एक कार डीलर है और ..."
"तुम्हारा बकरा बनने वाला है ?"
" बनने वाला था लेकिन हमने उस पर से हाथ खींच लिया है। ज्यों ही हमें मालूम हुआ कि असल में वह क्या चीज था, हम उससे यूं अलग छिटके थे जैसे उसे छूत की बीमारी हो । "
"मतलब ? वह कार डीलर होने के अलावा और भी कुछ है ?"
"यहां के व्यापारियों ने मिलकर एक अपराध निरोधक कमेटी बनाई है जिसका कि प्रकाश देव महाजन चेयरमैन है । यह कमेटी हाल ही में स्थापित हुई है और वह नगर पर गुण्डों के प्रभुत्व और पुलिस करप्शन के खिलाफ आवाजें उठा रही है।"
“कोई कामयाबी हासिल हुई ?"
"फिलहाल नहीं । दरअसल यहां बख्तावर सिंह का बहुत मजबूत होल्ड है । व्यापारियों की उस अपराध निरोधक कमेटी की बख्तावर सिंह के आगे पेश नहीं चल रही इसलिए फिलहाल वे छोटे-मोटे अपराधियों के खिलाफ जेहाद बोलकर अपनी झेंप मिटा रहे हैं । अगर तुम अपनी ठगी की किसी कोशिश में यहां पकड़े गये तो प्रकाश देव महाजन के हाथ एक मौका आ जायेगा अपनी कमेटी का जहूरा दिखाने का । वह जी जान से इस बात की कोशिश करेगा कि तुम्हें सख्त से सख्त सजा हो ताकि और छोटे-मोटे अपराधी उसकी कमेटी का खौफ खा जायें ।"
“अगर यह इतना ही खतरनाक शहर है तो तुमने और मनोहर ने इसे क्यों चुना ?"
"जहां बकरा मिलता हो, वहां तो जाना ही पड़ता है।"
“बकरा तो सारे हिन्दोस्तान में मिलता है।"
शबनम खामोश रही ।
विकास हौले से हंसा
"हंस क्यों रहे हो ?”
"जानेमन, मुझे ये सारी बातें बताने का बहाना करके यहां आने की जरूरत नहीं थी । तुम बिना बहाने के भी यहां आ सकती थीं ।"
"क्या मतलब ?"
“अब क्या खाका खींच कर समझाऊं ?"
“हां ।”
“डार्लिंग, ये सारी बातें गैरजरूरी हैं । ये बातें सुबह भी हो सकती थीं । जरूरी बात सिर्फ यह थी कि इतनी रात गये तुम मेरे कमरे में आना चाहती थीं । जो बातें तुमने मुझे सुनाई हैं, उनको तुमने यहां तक आने का महज जरिया बनाया है।"
उसका चेहरा लाल हो गया और आंखें जलने लगीं । उसने हाथ में थमे सिगरेट को नीचे फेंका और उसे यूं मसला जैसे वह सिगरेट को नहीं विकास को अपने पैरों तले रौंद रही हो ।
फिर वह जमीन को रौंदती हुई दरवाजे की तरफ बढी ।
गया । विकास बन्द दरवाजे के साथ पीठ लगाकर खड़ा हो
“यू सन आफ बिच !" - वह गुर्राई ।
विकास बड़े धूर्ततापूर्ण ढंग से मुस्कराया ।
"रास्ता छोड़ो ।" - वह बिफर कर बोली ।
"गुस्से में तो तुम एकदम लाल मिर्च हो जाती हो, शब्बो रानी ।"
शबनम एकदम उसके सामने आ खड़ी हुई और एक-एक शब्द चबाती हुई बोली- "मैंने कहा है, मेरा रास्ता छोड़ो।"
उत्तर देने या रास्ता छोड़ने के स्थान पर विकास ने दोनों हाथ बढाकर उसे उसके कन्धों से थाम लिया और धीरे से आपनी तरफ खींचकर उसे छाती से लगा लिया । अब वह मुस्करा नहीं रहा था । शबनम ने एतराज नहीं किया लेकिन उसके जिस्म में कोई आमन्त्रणपूर्ण हरकत भी न हुई ।
विकास कुछ क्षण उसे अपने साथ लगाये रहा, फिर वह बड़े मीठे स्वर में बोला - "जानती हो ?"
"क... क्या ?”
"तुम्हारे आने की मुझे बहुत खुशी हुई है ।" वह खामोश रही ।
विकास का एक हाथ उसके कन्धे से हटा और उसकी गर्दन के पीछे जाकर उसके बालों में लिपट गया। उसने बालों को दबोच कर बड़ी बेरहमी से नीचे को एक झटका दिया । बाल पीछे को खींचने की वजह से शबनम का मुंह ऊपर उठ गया । विकास ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये । उसके होंठों के बर्बर दबाव से शबनम के होंठ खुल गये ।
फिर एकाएक शबनम के अब तक निर्जीव से बने जिस्म में जैसे करेन्ट दौड़ गया। उसकी दोनों बांहें ऊपर उठीं और विकास के गिर्द लता की तरह लिपट गई ।
कितनी ही देर यूं ही दोनों एक-दूसरे के आलिंगन में जकड़े खड़े रहे ।
फिर विकास ने उसके तड़पते होंठों पर से अपने होंठ हटाये । शबनम तब भी बड़े आतुर भाव से उसके साथ सटी रही । विकास ने उसे गोद में उठा लिया । उसे उठाये-उठाये वह पलंग के पास पहुंचा। फिर उसने गेंद की तरह उसे पलंग पर उछाल दिया । पलंग के सम्पर्क में आते ही शबनम का शरीर एक बार उछला और फिर स्थिर हो गया । शबनम ने अपने हाथ-पांव ढीले छोड़ दिये और आमन्त्रणपूर्ण निगाहों से विकास की तरफ देखा ।
उसकी आंखों में वासना के गुलाबी डोरे तैर रहे थे ।
विकास पलंग की तरफ बढ़ने के स्थान पर वापिस घूमा और उस दीवार की तरफ बढा जहां बिजली का स्विच था।
उसने बत्ती बन्द कर दी ।
अन्धेरे में पलंग की तरफ बढ़ते समय उसे कपड़ों की सरसराहट-सी सुनाई दी।
वह पलंग पर पहुंचा ।
शबनम ने उसे अपनी फैली हुई बांहों में दबोच लिया ।
विकास ने महसूस किया, उसके शरीर पर कपड़े की एक धज्जी भी नहीं थी ।
"विकी !" - वह उसके कान में बोली ।
"हां।" - विकास उसके नग्न उरोजों पर अपना चेहरा रगड़ता बोला ।
"तू बहुत कुत्ती चीज है । "
"अच्छा !"
"सब कुछ भांप जाता है। मैं वाकई बहाना बनाकर यहां आई थी ।”
विकास ने जवाब नहीं दिया। अपने मुंह से वह उस वक्त बोलने से ज्यादा जरूरी काम ले रहा था ।
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