“मैं क्या-क्या काम करूँ हैदर ?" गुलजीरा ने तीखी नज़रों से मोना चौधरी को देखकर कहा--- "इतना सब कुछ संभालना अकेले मेरे बस का नहीं है। तुम्हें हर समय काम के लिये मौजूद रहना चाहिये।"
हैदर खान ने मोना चौधरी को देखा तो वो कह उठी---
"मैं अभी आई... जयन्त के पास जा रही हूँ...।" कहकर वो बाहर निकल गई।
हैदर खान ने कुर्सी खींची और उस पर बैठकर गुलजीरा खान को देखा।
गुलजीरा खान के चेहरे पर गुस्सा था।
“गुस्सा कम कर और आराम से बता, क्या बात है।"
“तुम इस पक्की कुतिया के साथ क्यों चिपके हुए...।"
"काम की बात कर! ये पूछना तेरे अधिकार-क्षेत्र में नहीं आता।" हैदर खान ने लापरवाही से कहा।
गुलजीरा खान के होंठ भिंच गए।
"जैसे कि आरिफ के बारे में कुछ कहना मेरे अधिकार-क्षेत्र में नहीं आता।"
"तुम आरिफ से जलते क्यों हो?" गुलजीरा खान झल्लाई।
"तुम भी तो मोना चौधरी से जलती हो?"
"उसने मेरा गला पकड़ा था। आरिफ ने तुम्हारा गला तो नहीं पकड़ा...।" गुलजीरा खान ने तेज स्वर में कहा।
"तुम उस वक्त मोना चौधरी को आजमा रही थीं जबकि...।"
"चुप रहो। इन बातों का कोई फायदा नहीं। शमशेर दोपहर से गायब है। उसकी कोई खबर किसी को नहीं है। उसके आदमियों ने मुझे जो बताया, सब कुछ बताया। वो तुम भी सुन लो।" कहकर गुलजीरा खान ने सब कुछ बताया।
"तो वो कार, जिसमें शमशेर उन लोगों के साथ बैठकर गया था, शमशेर के ठिकाने के बाहर खड़ी पाई गई?”
"हाँ...।"
"इसका क्या मतलब हुआ?"
"इसका मतलब साफ है कि शमशेर किसी मुसीबत में पड़ गया है। मैं दोपहर से उसे फोन कर रही हूँ। परन्तु वो कॉल रिसीव नहीं कर रहा। बेल जाती रहती है। कुछ देर पहले से तो बेल बजनी भी बंद हो गई है। फोन की चार्जिंग खत्म हो गई है शायद.... ।”
"तुम कहना क्या चाहती हो?" हैदर खान की आंखें सिकुड़ीं।
"या तो शमशेर को मार दिया गया है या वो किसी की कैद में है।" गुलजीरा खान दाँत भींचकर कह उठी।
"उसका मारा जाना तो ठीक है।" हैदर खान बोला--- "परन्तु किसी की कैद में रहना ठीक नहीं। वो हमारे बारे में सब कुछ जनता है। लेकिन ये सब किया तो किसने किया? ऐसा कौन है जो हमारे काम में टांग फंसायेगा ?"
"तुम भूल रहे हो कि हमारे नाम पर ड्रग्स लूटी जा चुकी है। तुम भूल रहे हो कि हमारा 1000 करोड़ की कीमत की ड्रग्स वाला गोदाम जला दिया गया। जब हमने बाजार की ड्रग्स मोना चौधरी द्वारा खरीदनी चाही तो किसी ने इस बात की खबर उन सब ड्रग्स डीलरों को दे दी। यानि कि अब अचानक ही हमारे ठीक चलते काम बिगड़ने लगे हैं। जब से मोना चौधरी के पाँव पड़े हैं तब से हमें परेशानी....।"
“मोना चौधरी के पीछे मत पड़ो। काम की बात करो। हमें शमशेर के बारे में सोचना चाहिये कि उस पर कौन हाथ डाल सकता है...।"
"आदमियों का कहना है कि वो अपनी मजी से उन दोनों के साथ कार में बैठकर गया है।"
"तो फिर क्या हुआ होगा?"
"यही तो समझ नहीं आ रहा कि क्या...।"
"सब्र रखो। रात भर और इन्तजार करो। शायद सुबह तक शमशेर की कोई खबर मिले।"
"लाली को शमशेर के बारे में बताना होगा?"
"सुबह तक का इन्तजार कर लो। तब शायद शमशेर वापस आ जाये।"
"ठीक है। मैं तुम्हारी बात मान लेती हूँ। लेकिन मुझे नहीं लगता कि शमशेर वापस आयेगा। उसके पास हमारी सब खबरे हैं। किसी दुश्मन के हाथ वो लग गया तो वो उसके मुँह से सब निकलवा लेंगे और फिर वो उन बातों का फायदा उठायेंगे ।"
"दुश्मन किसे कहती हो तुम?" हैदर खान ने पूछा।
"वो सब दुश्मन ही हैं जिनसे मोना चौधरी जबरदस्ती ड्रग्स खरीद लाई है। वो हमारा भला क्यों चाहेंगे?"
“देखते हैं।” हैदर खान ने सोच भरे स्वर में कहा--- “मुम्बई में किसे ड्रग्स भेजनी है?"
"पाटिल सालेस्कर को । तेरह सौ किलो स्मैक और एक किलो स्मिथ मंगवाई है। उसने ड्रग्स को आगे विदेशी पार्टी के हवाले करना है। विदेशी पार्टी ने ड्रग्स को योरोप पहुँचाने का इन्तजाम कर रखा है। वो जल्दी माल चाहता है।"
“मोना चौधरी जल्दी माल पहुँचा देगी मुम्बई।"
गुलजीरा खान ने व्यंग भरी निगाहों से हैदर खान को देखा।
"क्या है?"
“इतनी जल्दी मोना चौधरी के बारे में गारण्टी देने लगे?"
"इस बारे में मोना चौधरी से मेरी बात हो चुकी है और तुम कान खोलकर सुन लो कि वो मुझे अच्छी लगती है।" हैदर खान के माथे पर बल पड़े।
"जादू कर दिया उस पक्की कुतिया ने तुम पर!" कड़वे स्वर में कह उठी गुलजीरा खान।
"पाटिल सालेस्कर से हमने पहले का भी पैसा लेना है।"
"डेढ़ करोड़। वो कहता है कि अब भेजे जाने वाले माल की कीमत के साथ डेढ़ करोड़ दे देगा।"
"पेमेंट काफी भारी हो जाएगी। कैसे देगा वो पेमेंट?"
"डायमंड और गोल्ड में। कुछ नकद भी देगा।"
"तो पेमेंट लाने का काम भी करना है। इस बारे में हमें मोना चौधरी से बात कर लेनी चाहिये। माल की क्या पोजीशन है ?"
"माल वैन में रखकर इसी ठिकाने पर लाया जा रहा है। दो घंटे तक वैन यहाँ पहुँच जायेगी।"
■■■
मोना चौधरी कमरे में जयन्त के पास पहुँची ।
जयन्त उसे देखते ही गहरी सांस लेकर मुस्कराया। मोना चौधरी उसके पास जा बैठी।
“मैंने तो सोचा था कि तुम आज भी नहीं आओगी।" जयन्त ने धीमे स्वर में कहा।
"लैला को फोन कर और पूछ कि महाजन ने जो ड्रग्स वैन से लूटी थी, वो उसके पास किस हालत में है?" मोना चौधरी ने आहिस्ता से कहा।
"क्या मतलब?" जयन्त ने उसे गहरी निगाहों से देखा ।
"वो ड्रग्स हमारे द्वारा, गुलजीरा खान तक वापस पहुंचेगी।"
"ऐसा क्यों?"
"ताकि उसे लगे कि हम उनके सगे हैं।"
"वो तो उसे पता चल ही चुका है। हमने अफगानिस्तान के डीलरों की ड्रग्स लाकर उसके हवाले की है।"
"थोड़ी-थोड़ी हरकत बीच में भी जारी रहे तो हमारे हक में बेहतर होगा।"
"महाजन ने शमशेर को उठा लिया है।" जयन्त ने धीमें स्वर में बताया।
“लाली खान का पता पूछने के लिये ?"
“हाँ। शाम को लैला से मेरी बात हुई थी। तब मुझे इस बात का पता चला।"
"लैला ने ड्रग्स के उन तीन गोदामों का पता किया?"
"कर रही है।"
"उसे फोन करके पूछो कि वो ड्रग्स किस हाल में है?"
जयन्त ने लैला को फोन किया और बात करने के बाद मोना चौधरी से कहा---
"वो कहती है कि वो ड्रग्स वैसी की वैसी ही पैक एक जगह पर रख छोड़ी है।"
तभी कदमों की आहट गूंजी और एक आदमी ने भीतर प्रवेश किया।
"मैडम आप लोगों को बुला रही हैं।" उसने कहा।
"हम आ रहे हैं।" मोना चौधरी ने कहा।
वो वापस चला गया।
अपना फोन कान से लगा कर धीमे स्वर में कहा---
"लैला ! तुमसे बाद में बात करूँगा।"
■■■
मोना चौधरी और जयन्त उस कमरे में पहुंचे जहाँ गुलजीरा खान और हैदर खान मौजूद थे।
"बैठो।" गुलजीरा खान ने शांत स्वर में कहा।
तब तक वे कुर्सियों पर बैठ चुके थे।
"अर्जेन्ट माल को मुम्बई पहुँचाना है।" गुलजीरा खान ने कहा।
"कितना अर्जेन्ट ?"
"बहुत। कुछ ही देर में माल वैन में यहाँ पहुँच जायेगा।" गुलजीरा खान ने कहा--- "तेरह सौ किलो माल है। पूरी सुरक्षा के साथ माल मुम्बई पहुँचना चाहिये। इस बार के काम में खास ये है कि वहाँ से पेमेंट के रूप में डायमंड, गोल्ड और कुछ कैश मिलेगा। उसे ठीक से हिफाजत के साथ वापस लाना है।"
"पेमेंट को लाना ज्यादा जिम्मेवारी वाला काम है।" मोना चौधरी ने कहा--- "इसकी अलग से कीमत होगी।"
"क्या चाहती हो?"
“सात हजार प्रति किलो के पीछे तो हमें माल पहुँचाने का मिलता है, लेकिन पेमेंट का दस परसेंट हमें अलग से दिया जाए।"
"दस परसेंट ?" गुलजीरा खान के माथे पर बल पड़े--- "ये तो बहुत ज्यादा हो जायेगा।"
"खतरा भी तो बहुत है। माल को पहुँचाया-लाया जा सकता है, परन्तु पेमेंट को लाना ले जाना ज्यादा खतरनाक होता है।”
"पेमेंट का पाँच परसेंट ठीक रहेगा।" गुलजीरा खान ने कहा।
"दस से कम नहीं...।" मोना चौधरी ने इन्कार में सिर हिलाया— “बेहतर होगा कि पेमेंट तुम अपने आदमियों से मंगवा लो।"
गुलजीरा खान मोना चौधरी को देखती रही।
"तुम्हें सात परसेंट दिया जायेगा मोना चौधरी ।" हैदर खान ने कहा।
"आठ...।" मोना चौधरी ने हैदर खान को देखा।
“ठीक है।” हैदर खान बोला--- "माल को कैसे मुम्बई पहुँचाना है?"
"फिक्र मत करो। ये हमारा काम है।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा--- "मोटे तौर पर माल को पाकिस्तान के करांची शहर तक ले जाया जायेगा और वहां से समन्दर के रास्ते मुम्बई तक ले जाया जायेगा। वापसी भी ऐसे ही होगी।"
दो पलों के लिये खामोशी रही, फिर मोना चौधरी उठते हुए बोली---
"हमें इस काम की तैयारी करनी है।"
जयन्त भी उठ गया।
"इस बार माल ज्यादा है और वापसी पर पेमेंट भी लानी है। क्या तुम दोनों माल के साथ जाओगे?" गुलजीरा खान ने पूछा।
"अभी तय नहीं किया।" इसके साथ ही मोना चौधरी और जयन्त वहाँ से निकल गये।
"बहुत पक्की कुतिया है।" गुलजीरा खान दाँत भींचकर कह उठी--- "पेमेंट का दस परसेंट मांगती है।"
“वो काम पूरा करने की जिम्मेवारी भी लेती है।" हैदर खान बोला--- “वो अपने को साबित करके दिखा चुकी है। हमें ऐसे लोग ही चाहिये थे।"
"तुम पक्की कुतिया की तरफदारी मत करो।" गुलजीरा खान ने तीखे स्वर में कहा।
“मैं जाऊँगा अब... ।”
“शमशेर की चिन्ता करो। उसका पता लगाओ।"
हैदर खान सिर हिलाकर बाहर निकल गया।
■■■
कमरे में पहुँचकर मोना चौधरी ने जयन्त से कहा---
“तुम माल के साथ मुम्बई जाओगे और वापसी पर पेमेंट लाओगे। पैसा ठीक से वापस आना चाहिए। तभी यहाँ हमारी गाड़ी चलेगी।"
जयन्त ने सिर हिलाया।
“तुमने अपने एजेन्ट को लाली खान के पति फिरोज शाह की तलाश में लगाया?"
“हां... ।"
"अपने चीफ से लाली खान की बेटी मासो को ढूंढने के लिये कहा, जो दिल्ली के किसी स्कूल के हॉस्टल में रह रही है?"
"कह दिया...।" जयन्त बोला और हाथ में पकड़े मोबाइल से नम्बर मिलाने लगा--- "मैं अपने लोगों को तैयार रहने को कह दूँ।"
"हिन्दुस्तान की सीमा पर तुम्हें रॉ के एजेन्ट होने का फायदा मिलेगा और वहाँ आने-जाने में कोई परेशानी नहीं आयेगी।"
"चीफ को बताना पड़ेगा। फिर वो सब कुछ खुद ही संभाल लेंगे। हमारे लिये मुम्बई तक पहुँचने का रास्ता साफ मिलेगा।"
"पाँच मिनट में जयन्त ने दो-तीन जगह फोन किया, फिर कह उठा---
"सब तैयार हैं। एक घंटे तक मेरे लोग चलने को तैयार हो जाएंगे।"
■■■
मोना चौधरी अगले दिन आठ बजे उठी।
रात जयन्त माल के साथ चला गया था। उसके जाने से पहले मोना चौधरी ने फोन पर लैला से बात की थी और उसे सब बताया था कि आज उसने क्या करना है। मोना चौधरी नहा-धोकर तैयार हुई। कपड़े बदल लिये थे। नाश्ते के लिये कहा तो नाश्ता मिल गया था उसे। फिर जब कमरे से बाहर निकली तो पता चला कि हैदर आया हुआ है।
मोना चौधरी उस कमरे में पहुँची जहाँ गुलजीरा खान मिला करती थी। वो वहीं थी। साथ में हैदर खान भी था। दोनों के चेहरों पर परेशानी साफ नज़र आ रही थी। मोना चौधरी कह उठी---
"क्या बात है? दोनों ही परेशान हो...?"
गुलजीरा खान के होंठ भिंच गये थे उसके सवाल पर ।
“शमशेर का कुछ पता नहीं चल रहा।" हैदर खान ने गम्भीर स्वर में कहा।
"ऐसा पहले कभी हुआ ?" मोना चौधरी बैठते हुए कह उठी--- "कि वो गायब हो गया हो ?"
"पहली बार ऐसा हुआ है।"
“लेकिन इतनी चिन्ता करने की क्या बात है हैदर ?"
मोना चौधरी के उसे 'हैदर' कहने पर गुलजीरा खान जल-भुन गई।
“शमशेर का ओहदा ऐसा है कि वो हमारे बारे में, ड्रग्स के धन्धे के बारे में सब कुछ जानता है। अगर वो किसी दुश्मन के हाथ पड़ गया तो हमें काफी नुकसान हो सकता है। लेकिन अब ये तो पक्का है कि वो या तो मर चुका है या किसी दुश्मन के हाथ लग चुका है।"
"उसके मोबाइल पर बात करने की कोशिश की?"
"की। कल रात तक तो उसके फोन पर बेल जाती रही। बाद में वो भी बंद हो गई।"
"मुझे बताओ कि मैं इस काम में तुम्हारी क्या सहायता कर सकती हूँ।” मोना चौधरी ने कहा।
"कुछ नहीं।" हैदर खान गम्भीर स्वर में बोला--- “तुम इस मामले से दूर ही रहो।"
“ठीक है।" मोना चौधरी ने गुलजीरा खान को देखा--- "मैं कुछ देर के लिए बाहर यूं ही जाना चाहती हूं। परन्तु यहां के रास्ते मुझे कुछ खास नहीं पता। तुम अगर किसी को मेरे साथ कर दो तो... ।"
"सुल्तान है बाहर। उसे अपने साथ ले जाओ।" गुलजीरा खान ने शुष्क स्वर में कहा।
"ठीक है।" मोना चौधरी उठ खड़ी हुई।
"जयन्त की कोई खबर ली कि माल के साथ वो कहां है?" गुलजीरा खान ने पूछा।
"वो अपना काम ठीक से करेगा।"
“इतना भरोसा है उस पर?"
"वो मेरा सिखाया है और मेरे बताये रास्ते से ही मुम्बई जा रहा है। रास्ते में मेरे अपने कनेक्शन हैं, जिन्हें सतर्क कर दिया गया है। वो माल को किसी तरह की परेशानी नहीं आने देंगे।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।
"वापसी पर आते समय वो पेमेंट लेकर कहीं खिसक गया तो?"
"मेरे आदमी जयन्त पर नजर रखे हुए हैं।" मोना चौधरी ने कहा और बाहर निकल गई।
गुलजीरा खान ने हैदर को देखा।
“मोना चौधरी हर काम सोच समझकर करती है। मुझे इस पर पूरा भरोसा है।"
"भरोसा क्यों नहीं होगा...।" गुलजीरा खान ने व्यंग से कहा--- “तुमसे तो बहुत मीठे स्वर में बात करती है हैदर... ।"
"तुमसे भी मीठा बोलेगी... अगर तुम अपना दिमाग ठीक रखो।"
"पक्की कुतिया का रंग तुम पर चढ़ गया है...।"
"हमें शमशेर के बारे में लाली से बात करनी चाहिये। तुम बताओ उसे।" हैदर खान ने कहा।
गुलजीरा खान ने फोन उठाया और नम्बर मिलाकर उसे कान से लगा लिया।
बेल गई, फिर लाली का स्वर कानों में पड़ा---
“बोल गुल ?"
''शमशेर कल दोपहर से लापता है और उसका कुछ पता नहीं चल रहा।" गुलजीरा खान ने कहा ।
"ये तो बुरी खबर है। उसकी तलाश में क्या किया जा रहा है ?"
"सब आदमी उसे ही ढूंढ रहे हैं, परन्तु अभी तक उसकी कोई भी खबर नहीं मिली। कल दोपहर वो अपने आदमियों के साथ कार में जा रहा था कि रास्ते में दो लोग मिले और शमशेर उनकी कार में बैठकर चला गया। उसने आदमियों को वापस भेज दिया था। बाद में वो कार, जिस पर शमशेर गया था, शमशेर के ठिकाने के बाहर मिली। वो खाली थी और शमशेर लापता था।"
"किसी ने शमशेर का अपहरण कर लिया है।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी।
"या मार दिया है...।"
"कुछ भी हो सकता है। उसकी तलाश जारी रखो और अपने हर ठिकाने पर सख्त पहरेदारी लगवा दो। शमशेर हमारी भीतर की बातें भी किसी को बता सकता है। उसका मुंह खुलवाया जा सकता है। कोई नई खबर हो तो मुझे फौरन बताना।" कहकर लाली खान ने उधर से फोन बंद कर दिया।
गुलजीरा खान ने मोबाइल टेबल पर रखते हैदर खान से कहा---
“शमशेर को ढूंढो हैदर। उसे ढूंढ निकालना बहुत जरूरी है।"
■■■
मोना चौधरी, सुल्तान के साथ कार पर थी। सुल्तान कार चला रहा था।
"किसी ऐसे बाजार में ले चलो, जहां से मैं कपड़े खरीद सकूं... ।”
"कोई फायदा नहीं होगा। तुम जैसे कपड़े पहनती हो, वैसे कपड़े शायद यहां न मिलें।" सुल्तान बोला।
“बढ़िया मार्किट में चलो। देख लेते हैं।" मोना चौधरी कार से बाहर, वहां के नजारे देखती कह उठी।
सुल्तान खामोशी से कार चलाता रहा।
"पता चला कि शमशेर कल से गायब है।" मोना चौधरी ने एकाएक कहा।
"हां।"
"दोनों भाई-बहन इस बात को लेकर परेशान हैं।"
"शमशेर काम का आदमी है। उसका इस तरह गायब हो जाना, हम सबके लिये तकलीफदेह हो सकता...।"
तभी वातावरण में गोलियों की आवाजें गूंज उठीं।
उनकी कार पर गोलियां चलाई गई थीं।
मोना चौधरी समझ गई कि लैला ने उसके कहे मुताबिक अपना काम शुरू कर दिया है।
मोना चौधरी फुर्ती से नीचे झुकी। सुल्तान ने दांत भींचकर कार को दौड़ा दिया। परन्तु कार के टायर बेकार हो चुके थे। कार भाग न सकी और रुकती चली गई। मोना चौधरी ने तुरन्त रिवाल्वर निकाल ली ।
"दुश्मन हैं सुल्तान।" मोना चौधरी गुर्राई--- "खत्म करना है सबको।"
सुल्तान के हाथ में भी रिवाल्वर आ चुकी थी। नीचे झुके दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।
मोना चौधरी ने सिर ऊपर उठाया और बाहर देखा। उसी पल पुनः फायरिंग हुई। मोना चौधरी ने सिर नीचे कर लिया। इतने में वो देख चुकी थी कि वो सफेद रंग की मीडियम साईज की मैली सी वैन थी। उस पर से ही गोलियां बरसाई जा रही थीं।
तभी कार की तरफ से गोलियां चलीं। मोना चौधरी समझ गई कि सुल्तान फायरिंग कर रहा है।
जवाब में उस सफेद वैन की तरफ से गोलियां चलीं।
उसी पल मोना चौधरी ने दरवाजा खोला और फुर्ती से बाहर निकलकर सड़क किनारे खोखों की तरफ भागती चली गई। इस दौरान उस पर फायर किया गया। परन्तु उसका कुछ नहीं बिगड़ा। मोना चौधरी ने भी पोजीशन ले ली और वैन पर फायर करने लगी।
गोलियां चलते पाकर लोग इधर-उधर भाग कर दुबक गए थे।
सुल्तान बराबर वैन पर गोलियां चलाये जा रहा था। मोना चौधरी भी फायर कर रही थी।
तभी तेजी से आती एक कार वैन के पास आकर रुकी। ब्रेक चीखे। वैन का दरवाजा खोलकर दो आदमी बाहर कूदे और तुरन्त कार के खुले दरवाजों से भीतर जा घुसे। कार पुनः रफ्तार के साथ वहां से भागती चली गई।
गोलियां चलनी बंद हो गई। शान्ति छा गई।
दो मिनट के इन्तजार के बाद मोना चौधरी ओट से निकली और सावधानी से रिवाल्वर थामे उस कार की तरफ बढ़ने लगी। उसने सुल्तान को देखा। वो भी कार की ओट से बाहर आ गया था। रिवाल्वर थामे सतर्क सा वैन तरफ आने लगा था। मोना चौधरी वैन के पास पहुंची और सावधानी से भीतर झांका। चालक वाला हिस्सा खाली था।
“वो भाग गये हैं...।” सुल्तान कह उठा--- “वो शायद तुम्हें मारना चाहते थे।"
“मुझे?" मोना चौधरी ने उसे देखा ।
“हाँ। तुम मशहूर जो हो गई हो... अफगानिस्तान में ड्रग डीलरों से तुमने हथियारों के दम पर उनकी मर्जी के खिलाफ, ड्रग्स को खरीदा। तुम्हारे कई दुश्मन हो गये होंगे, जो तुम्हें मार देना चाहते होंगे।" सुल्तान नै गम्भीर स्वर में कहा और वैन के पिछले हिस्से पर पहुंचा। वैन के पीछे के दोनों पल्ले कुंडा लगाकर बंद कर रखे थे और उस पर ताला लगा हुआ था।
मोना चौधरी भी उसके पास पहुंच गई।
सुल्तान ने ताले पर गोली चलाई तो ताला टूटकर, छिटककर दूर जा गिरा...।
सुल्तान ने वैन को खोला और भीतर निगाह पड़ते ही उसकी आंखें सिकुड़ीं।
भीतर छः बैग पैक किए दिखे थे।
"ड्रग्स होगी इनमें...।" मोना चौधरी कह उठी।
"ये तो हमारी पैकिंग है। हमारी ड्रग्स !" सुल्तान के होंठों से निकला--- "ये शायद वो ड्रग्स है जो पन्द्रह-सत्रह दिन पहले हिन्दुस्तानी ने उस आदमी से लूटी, जो हमसे ड्रग्स लेकर जा रहा था। वो भी ड्रग्स छः बैग्स ही थे...।"
■■■
मोना चौधरी, सुल्तान के साथ ठिकाने पर वापस पहुंची। उस वैन में से वो छः बैग भी लेते आये थे । सुल्तान भीतर गया और गुलजीरा खान को बाहर ले आया। गुलजीरा खान ने उन बैग्स को देखा। उसके होंठ सिकुड़े।
"ये तो हमारा ही लूटा हुआ माल है... वो ही छः बैग्स....।" वो कह उठी।
"हाँ, मैडम।"
गुलजीरा खान ने मोना चौधरी को देखा और शांत स्वर में कह उठी---
"जब से तुम हमसे जुड़ी हो, तब से वो सब बातें होने लगी हैं, जो हमारे साथ कभी नहीं हुई।"
"तुम्हें खुश होना चाहिए कि तुम्हारा माल तुम्हें वापस मिल गया...।" मोना चौधरी बोली।
“खुशी से ज्यादा मुझे हैरानी है, लूटी ड्रग्स के बैगों का इस तरह मिल जाना। वो भी वैसे के वैसे सीलबंद । तो वो लोग तुम्हें मारने आये थे और अपने साथ ड्रग्स भी रखे हुये थे? कोई ड्रग्स के पास होते हुए, किसी से झगड़ा क्यों करेगा?"
मोना चौधरी ने सिर हिलाया और सोच भरे स्वर में कह उठी---
"मेरे ख्याल में वो लोग मुझ पर हमला करने के लिये नहीं निकले थे। वो ड्रग्स को कहीं ले जा रहे थे। परन्तु इसी बीच रास्ते में उनकी नजर कार में जाती मुझ पर पड़ गई। मैंने शायद उन्हें नुकसान पहुंचाया होगा। तभी तो वो मुझे देखते ही गोलियां चलाने लगे....।"
"विश्वास नहीं होता।" गुलजीरा खान ने कहा और भीतर की तरफ़ बढ़ गई।
मोना चौधरी ने गहरी सांस लेकर गर्दन घुमाई और सुल्तान को देखा ।
जवाब में सुल्तान के होंठों पर शांत मुस्कान आ ठहरी।
■■■
वो गहरे हरे रंग की वैन थी।
जिसके फर्श पर बंधा हुआ शमशेर पड़ा था। उसके हाथों के अलावा पांव भी बांधे हुए थे और आंखों पर पट्टी बांध रखी थी, ताकि आंखें खुली होने पर वो कोई शरारत की न सोचे। जब भी वो तकलीफ में होता तो गालियां देने लगता था। परन्तु उसके होंठों से निकलने वाले शब्दों की कोई परवाह नहीं कर रहा था। जौहर वैन चला रहा था और महाजन उसकी बगल वाली सीट पर बैठा था।
वे जलालकोट आ पहुंचे थे।
दिन के बारह बज रहे थे।
"पूछ इससे, अब कहां जाना है?" जौहर ने महाजन से कहा।
महाजन उठा और सीटों के बीच में से निकलता वैन के पीछे वाले हिस्से में आया और उसकी आंखों पर बंधा कपड़ा खोलने लगा। शमशेर छटपटा कर कह उठा---
"तुम मेरे साथ गलत सलूक कर रहे हो। जानवर की तरह बांधकर रखा है मुझे।"
"तुम्हे खुश होना चाहिए कि अभी तक तुम जिन्दा हो ।" महाजन ने उसकी आंखों से कपड़ा हटाकर कहा।
शमशेर ने आंखें मिचमिचाकर उसे देखा ।
महाजन ने उसकी टांगों पर बंधी डोरी भी खोली।
शमशेर ने राहत की सांस ली और कह उठा--
"ये हाथ भी खोल दो... कुछ देर तो मैं आराम से रह सकूं...।"
महाजन ने उसकी बांह पकड़कर उसे खड़ा किया और सीट पर बिठा दिया।
शमशेर ने खिड़की के शीशे से बाहर देखते हुए पूछा---
"हम कहां हैं?"
"जलालकोट...।" महाजन उसके सामने बैठता कह उठा।
शमशेर ने गर्दन घुमाकर महाजन को देखा।
"बोल।" महाजन ने कहा--- "लाली खान का ठिकाना किधर है?"
"तुम ये काम मुझसे क्यों करवाना चाहते हो?"
"मरना है क्या?" महाजन सख्त स्वर में कह उठा ।
"ठीक है। पश्चिम की तरफ से जलालकोट से बाहर निकलो तो वहां बामुरा गांव आयेगा। उसी गांव में हमने जाना है।" शमशेर बोला।
"सुना जौहर...?”
“सुन लिया। मेरा एक कान पीछे भी लगा है, लेकिन वो किसी को दिखता नहीं।" जौहर हंस कर बोला--- "बामुरा गांव का पता है मेरे को। आधे घंटे में हम वहां पहुंच जायेंगे।"
"लाली खान वहां मिल गई तो क्या करोगे?" शमशेर ने व्याकुल स्वर में पूछा।
“देख लेना।" महाजन ने सख्त स्वर में कहा।
आधे घंटे में वैन जलालकोट के साथ लगते बामुरा गांव जा पहुंची।
"गांव के भीतर मत ले जाओ वैन को।" महाजन ने कहा--- "यहीं रोक दो ।"
जौहर ने वैन को एक सुरक्षित सी जगह पर रोक दिया।
यहां से गांव स्पष्ट नजर आ रहा था। गांव में कुछ पक्के मकान बने भी नजर आ रहे थे जिन पर गहरे रंग पोते दिखाई दे रहे थे। बड़े-बड़े झोंपड़े, गाय-भैंसें, ट्रैक्टर-ट्राली, भैंसा-बुग्गी बहुत कुछ दिखाई दे रहा था।
शमशेर खिड़की से गांव की तरफ ही देख रहा था।
"बता। लाली खान का ठिकाना कहां है गांव में?" महाजन ने पूछा।
"कौन सा पक्का मकान है उसका ?" जौहर ने गांव की तरफ देखते हुए कहा।
"तो ?"
"तुम लोग क्यों मुझे परेशानी में डाल रहे हो... ?” शमशेर चीखा--- "वो मुझे मार देगी... ।”
तभी महाजन का जोरदार घूंसा शमशेर के चेहरे पर जा पड़ा।
शमशेर चीखा। उसका सिर खिड़की से जा टकराया।
"अब इसकी सुई ठिकाने पर आ गई होगी।" जौहर बोला--- "इसे हर दस मिनट बाद ठोकते रहो तो ये फिट रहता है।"
"तुम उतना ही बोलों जितना तुम्हें बोलने को कहा जाये।" महाजन ने गुर्राकर कहा--- "लाली खान का ठिकाना बता।"
शमशेर ने गहरी-गहरी सांसें लीं। बुरा हाल हो रहा था उसका। बाहर गांव की तरफ देखा उसने ।
"बता!” महाजन गुर्राया ।
"वो जो, नीला-हरा मकान दिख रहा है, उसके पीछे कुंआ है। गांव में एक ही कुंआ है।” शमशेर गहरी सांसें लेता कह उठा--- "उस कुएं के सामने पश्चिम की तरफ देखें एक बड़ा सा झोंपड़ा दिखेगा। निशानी ये है कि उस झोंपड़े के बाहर एक तन्दूर है। वहां गाय-भैंसें और बकरियां भी बंधी हैं। वो लाली खान का ठिकाना है।"
"वहां रहती है लाली खान?" जौहर अजीब सा मुंह बनाकर कह उठा।
"वो सुरक्षित ठिकाना है उसका। कभी-कभी वहां आती है।" शमशेर ने हड़बड़ाए से स्वर में कहा--- "ऐसी जगह पर रहने से कोई सोच भी नहीं सकता कि वो वहां रह सकती है। ऐसे कई ठिकाने हैं उसके।"
"क्या उसके साथ और लोग भी रहते हैं?" महाजन ने पूछा।
"तीन आदमी लाली खान के साथ हमेशा रहते हैं। लाली खान उन पर पूरा भरोसा करती है।"
"कौन से आदमी?"
"इकबाल। याकूब और मेमन। मेमन साठ बरस का खूंखार आदमी है। वो लाली खान की मां के वक्त से इस धंधे में, इन लोगों के साथ हैं। सुनने में आता है कि मेमन के सम्बन्ध लाली खान की मां के साथ थे। वो हर समय लाली खान के पास रहकर उसे सुरक्षा देता है। वो ऐसा इन्सान है कि लाली खान भी उसका दबदबा मानती है। वो सच में दरिन्दा है।"
"इकबाल और याकूब?" महाजन ने पूछा।
"वो दोनों भी मेमन की तरह खतरनाक हैं। वो तीनों मिल जायें तो किसी फौज से कम नहीं हैं। उनके पास होने पर लाली खान खुद को पूरी तरह सुरक्षित समझती है। मेरी बात मानो तो इस चक्कर में न पड़ो। अपने साथ-साथ मुझे भी मुसीबत में डाल रहे हो....।"
"फिर बोला तू!” महाजन गुर्राया।
शमशेर ने होंठ भींच लिए।
"चुप रहना तेरी सेहत के लिए अच्छा है। ये बता कि अगर वहां पर लाली खान नहीं हुई तो कौन होगा?"
"मैं नहीं जानता।" शमशेर ने गहरी सांस ली।
महाजन ने जौहर को देखकर कहा---
"इसे संभाल! मैं वहां होकर आता हूं।"
"तुम्हारा अकेले जाना ठीक नहीं...।" जौहर कह उठा--- "मैं साथ में...।"
"मैं वहां झगड़ा करने नहीं जा रहा। टोह लेने जा रहा हूं... ।" महाजन बोला।
"झगड़ा हो गया तो?"
"मैं संभाल लूंगा। तू इसका ध्यान रख। ये हाथ से नहीं जाना चाहिये।" कहने के साथ ही महाजन ने वैन का दरवाजा खोला और बाहर निकलकर गांव की तरफ बढ़ता चला गया। जिस्म पर पठानी सूट। चेहरे पर दाढ़ी। इस वक्त महाजन भी यहां के लोगों जैसा ही लग रहा था। महाजन का रुख उस नीले-हरे मकान की तरफ था, जो कि दूर से ही नजर आ रहा था।
दूर पांच-सात मिनट में ही महाजन उस मकान के पास जा पहुंचा।
आस-पास कच्चे मकान भी थे। बड़े झोंपड़े और छोटी झोपड़ियां भी थीं।
महाजन उस मकान के गिर्द घूमता पीछे की तरफ बढ़ा। वहां और लोग भी थे। उसे देखा भी, परन्तु किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया। मकान के पीछे पहुंच कर पल भर के लिये रुका। सामने कुआं था। दो आदमी पानी निकाल रहे थे।
महाजन की निगाह पश्चिम की तरफ घूमी तो एक बड़े से झोंपड़े पर नजर जा टिकी।
उस झोंपड़े के बाहर तन्दूर लगा नजर आ रहा था। वो बड़ा, ज्यादा बड़ा झोंपड़ा था।
महाजन ने हर तरफ निगाह मारी और लापरवाही भरी चाल से उस तरफ बढ़ गया। दिन का वक्त होने और तेज धूप निकली होने की वजह से कम लोग ही बाहर दिखाई दे रहे थे।
वो तन्दूर के पास पहुंचा और भीतर झांका।
होंठ सिकुड़े। तन्दूर खाली था। इसी से स्पष्ट हो गया कि लाली खान यहां नहीं है।
महाजन ने पुनः हर तरफ नजर मारी और झोंपड़े के दरवाजे की तरफ बढ़ गया। झोंपड़े की ऊंची जाती दीवारें ईंट और मिट्टी के लेप वाली थीं। छत पर घास-फूस डाला हुआ था। लकड़ी का मजबूत दरवाजा था वो। उस पर ताला लटका था। ताले को देखने के बाद महाजन ने आसपास देखा तो एक मजबूत डण्डा पड़ा दिखा।
महाजन ने वो डण्डा उठाया और पूरी ताकत के साथ ताले पर मारा।
ताला टूटकर लटकने लगा ।
महाजन ने डण्डा नीचे रखा। ताला निकाल कर एक तरफ फेंका और दरवाजा खोल कर भीतर प्रवेश होने के पश्चात दरवाजा भीतर से बंद करके वहां नजर मारी।
झोंपड़ा 16 फीट लम्बा और 12 फीट चौड़ा था।
भीतर काम चलाऊ फर्नीचर था, परन्तु बेहतर था।
डबल बैड लगा था। सोफा चेयर थी। एक तरफ लम्बा शीशा था, खुद को निहारने के लिए। एक टेबल पर विदेशी व्हिस्की की कुछ बोतलें पड़ी थीं। महाजन पास पहुंचा और सीलबंद बोतल खोलकर घूंट भरा, फिर उसकी निगाह झोंपड़ में घूमने लगी। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि लाली खान यहां रहती होगी। परन्तु झोंपड़े में रखे सामान की बेहतर हालत देखकर उसका विचार बन रहा था कि लाली खान यहां आती होगी। क्योंकि झोंपड़े में ऐसे सामान होना जंच नहीं रहा था। महाजन ने पुनः घूंट भरा और बोतल टेबल पर रखकर झोंपड़े की तलाशी लेने लगा।
तलाशी में ऐसा सामान दिखा, जिन्हें औरतें ही इस्तेमाल करती थीं। परन्तु ऐसा कुछ न मिला कि जिससे उसे यकीन आता कि यहाँ लाली खान आकर रहती होगी।
तभी दरवाजे पर आहट सी हुई।
महाजन ने ठिठक कर दरवाजे की तरफ देखा। सतर्क हुआ, फिर दबे पांव दरवाजे के पास आ पहुंचा। दरवाजे पर कान लगाकर बाहर से आहट सुनने की चेष्टा की।
बाहर से आहट मिली।
कोई था बाहर ।
महाजन के होंठ सिकुड़ गये। चेहरे पर कठोरता आ गई।
झोंपड़े में कोई और रास्ता नहीं था आने-जाने का।
बाहर इसी दरवाजे से निकलना था। यानि कि बाहर जो भी था, उससे सामना होना ही था।
कौन हो सकता है बाहर? लाली खान खुद है या फिर उसका कोई आदमी ?
महाजन वहां से हटा और आगे बढ़कर टेबल से बोतल उठाई और घूंट भरा। झोंपड़े पर निगाह मारी। यहां उसके काम का कुछ नहीं था। बाहर से अब निकलना ही था। उसने जेब में पड़ी रिवाल्वर को थपथपाया, दो पल की सोच के बाद महाजन बोतल थामें दरवाजे की तरफ बढ़ा और कुंडी हटाकर दरवाजा खोल दिया।
सतर्क था महाजन कि कुछ हो तो बचाव कर सके।
सामने छः फीट लम्बा आदमी, पठानी सूट में खड़ा था। उसका चेहरा बेहद सख्त, चट्टान की तरह लग रहा था।
उसे देखकर महाजन ने बोतल से घूंट भरा और कह उठा---
"माफ करना, मैं तुम्हारे झोंपड़े में बिना इजाजत घुस आया। भूख बहुत लग रही थी। परन्तु खाने को तो कुछ न मिला, ये बोतल मिल गई। बढ़िया शराब है। इसका स्वाद ही अलग है। जब कभी मेरे पास पैसे आये, चुका जाऊंगा।"
वो महाजन को घूरता रहा।
महाजन आगे बढ़ा और उसकी बगल से होकर बाहर निकल जाना चाहा।
"कौन हो तुम?" उस आदमी ने महाजन की बांह पकड़ ली।
"चोर...।"
“तुम किसी भी तरफ से चीर नहीं लग रहे।” कहकर उसने महाजन की बांह को तीव्र झटका दिया।
महाजन लड़खड़ाकर झोंपड़े में वापस आ गिरा। बोतल हाथ से छूट गई।
वो भीतर आया और दरवाजा बंद कर लिया। उसकी खतरनाक निगाह महाजन पर थी।
महाजन संभला और उठ खड़ा हुआ।
"कौन है तू?"
"उखड़ क्यों रहा है? चोर हूं। एक बोतल चुराने की तो कोशिश की थी और तू....।"
वो आगे आया और महाजन के पास आ खड़ा हुआ।
"तू चोर नहीं है। बता... ।"
"यकीन कर मेरा... मैं...।"
तभी उसका भारी हाथ हिला और महाजन के सिर पर जा लगा।
महाजन को लगा जैसे कोई भारी चीज उसके सिर से टकराई हो। चकरा कर वो नीचे जा गिरा। इसी के साथ वो समझ गया कि इस आदमी में ताकत बहुत है। इसका मुकाबला नहीं कर पायेगा । नीचे गिरते ही उसने फुर्ती से रिवाल्वर निकाली और उसकी तरफ कर दी। रिवाल्वर देखकर उसके होंठ भिंच गये।
"तो मेरा ख्याल ठीक ही रहा... कि तू चोर नहीं है।"
"हां।" महाजन खड़ा हो गया, रिवाल्वर उसकी तरफ कर रखी थी--- "ठीक समझा। मैं चोरी जैसा घटिया काम नहीं करता। लाली खान का क्या हाल है? उसने मुझे यहां मिलने को कहा था।"
वो चौंका।
महाजन समझ गया कि उसका तीर निशाने पर बैठा है।
"बता ! लाली खान किधर है?" जबकि महाजन जानता था कि ये सिर्फ यहां का रखवाला है। लाली खान के बारे में इसे खबर नहीं हो सकती कि वो कहां पर है।
"लाली खान से मुझे क्या काम है ?"
“उसी ने मुझे यहां आने को कहा था।"
"तू जो भी है।" वो गुर्रा उठा--- "यहां से जिन्दा नहीं जा पायेगा।"
"क्यों ?"
"क्योंकि लाली खान यहां पर किसी से नहीं मिलती। यहां के बारे में कोई नहीं जानता। तू कोई शातिर है जो लाली खान को ढूंढता हुआ यहां तक आ पहुंचा। अब तू मेरे से नहीं बच सकेगा।" वो गुर्रा उठा।
महाजन ने ट्रेगर दबा दिया।
गोली उसके घुटने के ऊपर जा लगी। वो तड़पकर चीखा और नीचे जा गिरा।
"कम-से-कम तेरे पास ख़बर नहीं हो सकती कि लाली खान कहां पर मिलेगी। तू एक घटिया सा नौकर है, जिसे लाली खान ने अपने झोपड़े की रखवाली के लिए छोड़ रखा है।" कहकर महाजन दरवाजे के पास जा पहुंचा। रिवाल्वर जेब में रख ली थी।
फिर महाजन ने उसे देखा।
"जा रहा हूं मैं... लाली खान को मेरी नमस्ते कहना....।"
"तू है कौन?" वो चीख उठा।
महाजन बाहर निकला और झोंपड़े के दरवाजे को बाहर से बंद करके वापस चल पड़ा। कुएं के पास चार-पांच लोग खड़े इधर ही देख रहे थे। महाजन तेजी से आगे बढ़ता चला गया।
महाजन वापस वैन पर पहुंचा।
जौहर ने शमशेर को बांध कर वैन के फर्श पर डाल रखा था।
"क्या रहा?" जौहर उसे देखते ही कह उठा---
"वो लाली खान का ही ठिकाना है। परन्तु वो वहां नहीं मिली। उसका एक आदमी था पहरे पर।"
"फिर?"
“उसने मुझे पकड़ लिया था। टांग पर गोली मारकर निकलना पड़ा।" महाजन बोला।
"लाली खान अब हममें से किसी को भी जिन्दा नहीं छोड़ेगी।" शमशेर चीख कर कह उठा।
"तू फिर बोला!" महाजन ने कठोर स्वर में कहा।
शमशेर कसमसाकर रह गया।
"यहां से चलो।" महाजन बोला--- “कम-से-कम इतना तो पता चल गया कि ऐसी जगहों पर, पहरेदारी के लिये लाली खान ने किसी को छोड़ा हुआ है।"
जौहर ने वैन स्टार्ट की और आगे बढ़ा दी।
"तुम लोगों ने मेरी अच्छी-भली चलती जिन्दगी को नर्क बना दिया है।" शमशेर गुस्से से कह उठा।
"कहां चलना है?" जौहर ने पूछा।
“महमुडे राकी। वहां का ठिकाना देखते हैं।"
"व्हिस्की पी तूने?" जौहर ने मुस्करा कर उसे देखा।
"हां यार... बढ़िया व्हिस्की थी।" महाजन ने गहरी सांस ली--- "साले ने ऐसा धक्का दिया कि बोतल ही गिरा दी...।"
■■■
"मुझे फोन दे दो। कोई भी।" मोना चौधरी, गुलजीरा खान के पास पहुंची--- "जयन्त से बात करूंगी। वैसे भी मेरे पास फोन होना चाहिये। कभी सुनने की भी जरूरत पड़ सकती है।"
गुलजीरा खान ने ड्राज खोला और एक मोबाइल निकाल कर उसकी तरफ बढ़ाया।
मोना चौधरी मोबाइल थामते कह उठी---
“शमशेर की कोई खबर मिली ?”
"नहीं... ।"
"उसकी लाश भी नहीं मिली?"
"नहीं।" गुलजीरा खान के चेहरे पर बेचैनी आ ठहरी--- "लाश मिल जाती तो इस बात की तसल्ली रहती कि उसने किसी के सामने हमारे बारे में ज्यादा मुंह नहीं खोला होगा। अब मुझे गलती का अहसास हो रहा है।"
"कैसी गलती ?"
“शमशेर को हमने बहुत पावर दे रखी थी। किसी एक आदमी के पास इतनी पावर नहीं होनी चाहिये। ऐसा होने पर या तो वो इस बात का गलत फायदा उठा सकता है, या कोई उठाकर उससे सारी जानकारी ले सकता है।"
"कई बातों की समझ वक्त आने पर ही लगती है।"
"मोबाइल इसलिये लिया है कि हैदर से बातें कर सको...।" गुलजीरा खान ने चुभते स्वर में कहा।
"हैदर मुझे पसन्द करता है और मैं उसे पसन्द करती हूं। तुम क्यों परेशान होती हो?” मोना चौधरी ने कहा।
"वो मेरा भाई है। औरतों के मामले में नामसझ है, इसलिये उसकी चिन्ता होनी लाजिमी है।"
"वो औरतों के मामले में बहुत समझदार है। तुम उसकी चिन्ता करनी छोड़ दो।" कहने के साथ ही मोना चौधरी बाहर निकल गई।
"पक्की कुतिया है हरामजादी ... ।” गुलजीरा खान बड़बड़ा उठी।
मोना चौधरी अपने कमरे में पहुंची और लैला का नम्बर मिलाया।
बात हुई तो मोना चौधरी ने बेहद धीमे स्वर में बात की।
"कहो।" लैला बोली।
"तुमने ड्रग्स के नये ठिकानों का पता लगाया?"
"हाँ...। दो ठिकाने काबुल में हैं और तीसरा ठिकाना बराली राजन शहर में है।"
"बराली राजन कहाँ पड़ता है?"
"काबुल से पांच-छः घंटों का रास्ता है।" लैला की आवाज कानों में पड़ी
"इन्तजाम क्या कर रखे हैं ड्रग्स की पहरेदारी पर?" मोना चौधरी ने आहिस्ता से पूछा।
"इन तीनों ठिकानों को पूरी तरह तबाह करना है। कैसे होगा ये काम ? तुम करोगी या मैं करूँ?"
"पहरेदारी तगड़ी होने की वजह से काम कठिन है, लेकिन किसी के द्वारा किराये के आदमी भेजकर, मैं ये काम करवा दूंगी। खून-खराबा होगा।"
"मुझे ड्रग्स के ये तीनों ठिकाने बरबाद चाहिये। इस तरह कि वहाँ ड्रग्स का एक दाना भी न बचे...।"
"समझ गई।" लैला का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा--- "काम हो जायेगा। लेकिन तीन-चार दिन लग जायेंगे।”
"कोई बात नहीं।"
“उन तीनों ठिकानों पर मुझे एक ही दिन, एक ही वक्त में हमला करना होगा। ताकि लाली खान को कुछ भी करने का मौका न मिल सके। अगर एक-एक करके ठिकाने तबाह करने की सोची तो बचे ठिकानों पर लाली खान तगड़ा पहरा बढ़ा देगी।"
“जैसे तुम्हें ठीक लगे, वैसे काम करो। काम होना चाहिये।”
"काम हो जायेगा।"
“आगे सुनो। अपने किसी आदमी से एक फोन गुलजीरा खान को कराना है।"
"क्या मतलब?"
मोना चौधरी धीमें स्वर में उसे समझाने लगी।
■■■
गुलजीरा खान का मोबाइल बजने लगा ।
"हैलो...।" गुलजीरा खान ने बात की।
"गुलजीरा खान बोल रही है तू?" उधर से किसी आदमी का गुस्से से भरा स्वर कानों में पड़ा।
"हाँ।" गुलजीरा खान के माथे पर बल पड़े।
“मोना चौधरी से बात करा मेरी।" उसी लहजे में कहा गया--- "आज तो वो बच गई, परन्तु दोबारा नहीं बचेगी। बात करा...।"
"कौन हो तुम?"
"सुना नहीं तूने, बात करा!"
"जो बात करनी है, मुझसे करो....।"
"मैं मोना चौधरी से ही बात करूँगा। उस हरामी से मैंने सौदा करना है। मानेगी तो ठीक, नहीं तो बहुत कुछ होगा।"
गुलजीरा खान के माथे के बल गहरे हो गये।
"रुको जरा...।" गुलजीरा खान उठते हुए बोली।
"जल्दी बात करा।" गुर्राहट भरे स्वर में कहा गया।
गुलजीरा खान बाहर निकली और उस कमरे में जा पहुँची, जहाँ मोना चौधरी थी।
मोना चौधरी आराम करने के अन्दाज में बैड पर लेटी हुई थी।
"तुम्हारे लिए फोन है।" पास पहुँचती गुलजीरा खान ने कहा--- "बात करो।"
“हैरानी है!" मोना चौधरी उठ खड़ी हुई--- "मेरे से कौन बात करना चाहेगा?"
गुलजीरा ने फोन उसे थमा दिया।
“हैलो।" मोना चौधरी ने बात की।
“मोना चौधरी है तू... ।” उधर से गुर्राहट भरे स्वर में कहा गया।
गुलजीरा खान की निगाह मोना चौधरी पर थी।
“हाँ...! तुम कौन हो?"
"आज बच गई तू। लेकिन बार-बार नहीं बचेगी।”
"तुमने मुझे मारने की कोशिश की?" मोना चौधरी का चेहरा सख्त हो गया।
“हाँ। अब की बार तो तू मर के ही रहेगी।"
"क्यों मारना चाहते हो मुझे? मैं तो तुम्हें नहीं जानती... ।"
"तुमने मेरी ड्रग्स जबरदस्ती ली। मैं लाली खान को नहीं बेचना चाहता...।"
"बकवास मत करो। तुम जैसों से मैं फोन पर भी बात नहीं करती।" मोना चौधरी ने तीखे स्वर में कहा।
"मैं वो सारी ड्रग्स बरबाद कर दूंगा। लाली खान उस ड्रग्स का फायदा नहीं उठा सकेगी।"
"तुम कुछ नहीं कर सकते...।"
"मेरे से सौदा कर लो... तो तुम्हारी जान बच जायेगी और ड्रग्स भी...।"
"कैसा सौदा ?”
"मेरे एक साथी को लाली खान ने कैद कर रखा है। उसे आजाद कर दो। मैं सब कुछ भूल जाऊँगा।”
"तुम्हारा साथी?"
“पारसनाथ नाम है उसका। हिन्दुस्तानी है।"
"सुनो!" मोना चौधरी कठोर स्वर में बोली--- "तुम्हारे सौदे में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। तुम मुझे खत्म कर देना चाहते हो, लेकिन मैं खुद को बचा लूंगी। रही बात ड्रग्स की तो वो लाली खान की है, मेरी नहीं। बेहतर होगा कि तुम गुलजीरा खान से बात करो।” कहकर मोना चौधरी ने फोन को गुलजीरा खान की तरफ बढ़ा दिया ।
गुलजीरा खान ने फोन पर बात की।
"क्या कह रहे हो तुम?”
"मैं मोना चौधरी की जान नहीं लूंगा। तुम लोगों के ड्रग्स के तीनों ठिकाने भी तबाह नहीं करूँगा, अगर मेरा साथी मुझे लौटा दो।”
“पहले हमारा ड्रग्स का ठिकाना तुमने ही तबाह किया था ?” गुलजीरा खान सख्त स्वर में बोली।
"सही समझी तू । मैं अब भी तुम्हारे तीनों ठिकाने फिर से बरबाद करने की सोच रहा हूं। सौदा करेगी तो बच जायेगी।" उधर से बेहद खतरनाक स्वर में कहा गया--- "मेरे साथी पारसनाथ को छोड़ दो।"
"पारसनाथ?"
"हाँ, जिसे तुमने हिन्दुस्तान में पकड़ा था। उसे छोड़ दोगी तो मैं सब कुछ भूल जाऊँगा।”
"तुम जो भी हो, गलतफहमी में जी रहे हो। हमने किसी हिन्दुस्तानी को कैद नहीं कर रखा।"
"पारसनाथ नाम है उसका... ।"
"इस नाम को तो मैंने पहली बार सुना है।" गुलजीरा खान कह उठी।
"बकवास मत करो। अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो मैं मोना चौधरी को गोली मार दूंगा। ड्रग्स के तीनों नये ठिकानों को तबाह कर दूंगा।"
गुलजीरा खान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
"मैं पता करूँगी पारसनाथ के बारे में...।"
"कर। मैं तेरे को फिर फोन करूँगा।" इसके साथ ही लाईन कट गई।
कान से फोन हटाकर गुलजीरा खान ने मोना चौधरी को देखा।
"वो मुझे मारने को और ड्रग्स के तीनों गोदामों को बरबाद करने को कह रहा है...।" मोना चौधरी बोली।
"उसके पास इस बात की जानकारी है कि हमने ड्रग्स को तीन गोदामों में रखा है।" गुलजीरा खान गम्भीर स्वर में बोली--- "वो कहता है कि पहला गोदाम भी उसने ही बरबाद किया था।"
"ड्रग्स के गोदामों की पहरेदारी सख्त कर दो।"
"पहरेदारी पहले से ही सख्त है।" गुलजीरा खान ने विश्वास भरे स्वर में कहा।
मोना चौधरी ने सिर हिला दिया।
“लेकिन वो किस पारसनाथ की बात कर रहा है, ये मेरी समझ में नहीं आई।"
"मैं नहीं जानती।"
"वो खामखाह तो कहेगा नहीं... ।”
"हमारे पास पारसनाथ नाम का कैदी न तो पहले था, ना अब है।" गुलजीरा खान ने सोच भरे स्वर में कहा--- “अगर ऐसा कोई कैदी लाली के पास होता तो वो मुझे खबर जरूर करती। पूछती हूँ... ।”
गुलजीरा खान हाथ में पकड़े फोन से नम्बर मिलाने लगी।
मोना चौधरी शांत सी बैठी उसे देख रही थी।
फोन लगा। बात हो गई।
“बोल गुल....।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी--- “शमशेर मिला?"
"नहीं। उसकी कोई खबर नहीं।" गुलजीरा खान ने कहा ।
"ये तो बहुत गलत बात हो गई... ।"
“तेरे पास पारसनाथ नाम का कोई कैदी है? वो हिन्दुस्तानी है।"
“पारसनाथ ! नहीं--ये नाम तो मैंने पहली बार सुना है।" लाली खान की आवाज कानों में पड़ी--- "मामला क्या है?"
गुलजीरा खान ने बताया ।
"मैं पारसनाथ को नहीं जानती... ।”
“वो कहता है कि हमने उसे हिन्दुस्तान से पकड़ा था।” गुलजीरा खान ने कहा।
"हमने किसी को नहीं पकड़ा।"
"तो फोन करने वाले को इतनी बड़ी गलती कैसे लग सकती है।"
"उसके फोन की परवाह मत करो।" लाली की आवाज कानों में पड़ी।
"वो कहता है कि हमारे ड्रग्स के तीनों गोदाम तबाह कर देगा। अगर हमने पारसनाथ को उसके हवाले नहीं किया तो।"
“गोदामों पर तगड़ा पहरा है। तुम उसे भूल जाओ। वो नहीं कर सकता।" कहकर लाली ने उधर से फोन बंद कर दिया था।
गुलजीरा खान ने गहरी सांस ली और फोन कान से हटा लिया।
"क्या हुआ?" मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में पूछा।
“लाली कहती है कि उसने पारसनाथ का नाम पहली बार सुना है। इस नाम का कोई कैदी हमारे पास नहीं है।"
मोना चौधरी शांत सी उसे देखती रही।
"तुम सतर्क रहना।" गुलजीरा खान पलटते हुए बोली--- "तुम पर फिर से गोलियाँ बरसाई जा सकती हैं।"
“मैं सतर्क रहूँगी...।”
गुलजीरा खान बाहर निकल गई।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये। आँखें भी सिकुड़ीं।
इन लोगों ने पारसनाथ को नहीं पकड़ रखा। ये जानते भी नहीं पारसनाथ को। जबकि रॉ के चीफ गोपालदास का उसे कहना था कि पारसनाथ लाली खान के कब्जे में है और वो पारसनाथ को छुड़ाने का दावा कर रहा है।
तो क्या उससे रॉ ने झूठ बोला, पारसनाथ के लिये ?
कहीं रॉ ने उससे ये काम लेने की खातिर, पारसनाथ को मोहरा तो नहीं बनाया?
मोना चौधरी की सोचों को पंख लग गये थे।
■■■
वो कार काबुल के एक इलाके की चौड़ी गली में जा रुकी। गली में दोनों तरफ मकान बने हुए थे। गली में ही कहीं-कहीं गायें-भैंसें बांधी हुई थीं। कुछ बच्चे खेल रहे थे। इक्का-दुक्का लोग आ-जा रहे थे। कार के दरवाजे खुले और चार लोग बाहर निकले। तीन स्थानीय थे और एक हिन्दुस्तानी लग रहा था। ये चारों रॉ के एजेन्ट थे। चारों ने सामने बने मकान को देखा। जो कि बड़ा था और अच्छे हाल में था।
"यही है फिरोज शाह का मकान।" एक ने कहा--- "उसके बूढ़े माँ-बाप और बहन अपने पति के साथ इसी घर में रहते हैं। उसके दो बच्चे हैं।"
"वो घर में नहीं होगा।" हिन्दुस्तानी ने कहा--- "परन्तु उसके बारे में हमें जानकारी मिल सकती है।"
वे चारों आगे बढ़े और मकान का गेट खोलकर भीतर प्रवेश कर गये।
सामने ही दो चारपाइयों पर एक बूढ़ा-बूढ़ी बैठे थे। वे उनके पास पहुँचे।
"अन्दर कहाँ चले आ रहे हो?" बूढ़े ने कहा--- "किससे मिलना है?"
"हम फिरोज के दोस्त हैं।"
"अच्छा... पर वो तो है नहीं... ।" बूढ़े ने कहा--- “पानी पिओगे?"
"फिरोज से हमें बहुत जरूरी काम है। वो कहाँ मिलेगा हमें?"
"मैं नहीं जानता। वो कई दिन से घर नहीं आया। फोन पर एक-दो बार बात हुई थी।”
"उसका फोन नम्बर होगा आपके पास?"
“हाँ। वो तुम्हें बता देता हूँ।" फिर उसने अपनी बेटी को कुछ आवाजें दीं तो वो अपने बच्चे को गोद में उठाये आई।
"इन्हें फिरोज का नम्बर बता दे बेटी...।"
उस औरत ने फिरोज का मोबाइल नम्बर बता दिया।
वो चारों बाहर आ गये। फिरोज शाह का फोन नम्बर मिल जाना उनके लिये कामयाबी थी।
बाहर आकर उनमें से एक ने लैला को फोन किया।
“फिरोज शाह का मोबाइल नम्बर मिला है हमें। वो खुद कई दिनों से घर पर नहीं है।"
“हूँ....।” लैला का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा ।
"हम फिरोज से बात करें कि... ।”
"तुम नम्बर मुझे दो।" लैला की आवाज कानों में पड़ी।
उसने लैला को फिरोज का नम्बर बता दिया।
“ये पक्का है कि वो अपने घर पर नहीं है।"
"हमने घर की तलाशी नहीं ली। अब ले लेते हैं तलाशी... ।"
“रहने दो। हम फिरोज को डराना नहीं चाहते। इस तरह वो हमारे हाथ नहीं लगेगा। एक को उसके घर की निगरानी पर लगा दो। अगर वो फिरोज को लौटता देखे तो तुरन्त मुझे फोन पर खबर दे। लैला की आवाज कानों में पड़ी।
"ठीक है।"
■■■
शाम सात बजे जब अंधेरा होने लगा तो वे महमूडे राकी शहर पहुंचे।
शमशेर पूरे सफर के दौरान बंधी हालत में वैन के फर्श पर पड़ा ही इधर-उधर लुढ़कता रहा। चीखता रहा। गुस्से में गालियां देता रहा। परन्तु उसकी गालियों की वे परवाह नहीं कर रहे थे।
"पूछो इससे कि यहाँ किधर है लाली खान का ठिकाना।"
महाजन सीट से उठा और वैन के पिछले हिस्से में पहुँच कर शमशेर की टांगों के बंधन खोलने लगा।
जवाब में शमशेर गालियां देने लगा।
"चुप कर !” महाजन गुर्रा उठा ।
"क्यों चुप रहूँ? सुबह से खाली पेट रखा है मुझे... और ऊपर से सफर करा रहे हो। हाथ बंधे-पांव बंधे। मेरी बुरी हालत हो गई है।"
"पांव खोल दिए हैं।"
"हाथ भी खोल...।"
"बाद में। हम महमुड़े राकी आ पहुँचे हैं। कहाँ जाना है?" महाजन ने कहा।
"पहले मुझे खाने को दो... ।" शमशेर चीखा।
"खाने को मिलेगा। पहले रास्ता बता... ।”
बुरे हाल में फंसे शमशेर ने वैन की खिड़की के बाहर देखा और रास्ता पहचानने के बाद बोला---
"सीधे चलो। हमें महमुड़े शहर से बाहर निकलना है।"
जौहर ने वैन को सीधे दौड़ा दिया ।
"रास्ता बताते रहना।" महाजन उसके सामने बैठता बोला।
"मुझे भूख लग रही है।" शमशेर गुस्से में चीखा।
"जौहर ।" महाजन ने कहा--- "रास्ते में कहीं खाने-पीने की जगह आये तो रोकना।"
दस मिनट बाद ही जौहर ने वैन को एक सड़क के किनारे रोका। अंधेरा छा चुका था।
"सामने है खाने-पीने की दुकान। रेस्टोरेंट जैसा कुछ है।" जौहर ने कहा।
"मैं इसके खाने को कुछ लेकर आता हूँ--तू इसका ध्यान रख...।"
"अपने लिए भी लेते आना। रात निकालनी है।"
महाजन वैन से उतरकर दुकान की तरफ बढ़ गया।
जौहर ने शमशेर की तरफ मुंह किया और मुस्करा कर बोला---
"कैसा लग रहा है अफगानी भाई...।"
"तुम लोग गलत कर रहे हो...।" शमशेर गुर्राया।
"वो तो है।" जौहर हंसा।
"लाली खान के रास्ते से हट जाओ बेवफूक... और मुझे छोड़ दो। मैं तुम दोनों के बारे में किसी से कुछ नहीं कहूँगा।"
"नहीं तू कह! तुझे रोकता कौन है!"
"मेरी बात को मजाक में मत लो।" शमशेर झल्ला उठा।
"मैं गम्भीर हूं। मजाक कहाँ कर रहा हूं।" जौहर पुनः हंसा ।
शमशेर दांत भींच कर रह गया।
"तूने कभी सोचा नहीं होगा कि तेरा ये हाल होगा।" जौहर बोला।
शमशेर खा जाने वाली नजरों से देखता रहा। वैन के भीतर अंधेरा था। सड़क पर आते-जाते वाहनों की रोशनी से वैन के भीतर रोशनी हो जाती थी। कम वाहन ही आ-जा रहे थे।
"ये तो बता दो कि लाली खान के पीछे क्यों पड़े हो?" शमशेर बोला।
"ये तो मुझे भी नहीं पता। तू मेरे साथी से क्यों नहीं पूछता। वो सब कुछ जानता है।"
शमशेर समझ गया कि उसकी किसी बात का जवाब नहीं मिलेगा।
दस मिनट में महाजन लौटा। हाथ में खाने के दो लिफाफे थे। एक उसने जौहर को थमा दिया।
"मेरे लिए?" जौहर खुश हो उठा।
महाजन ने दूसरा लिफाफा सीट पर रखा और शमशेर के हाथ खोलता बोला---
"तेरे हाथ खोल रहा हूं और रिवाल्वर हाथ में ले रहा हूं कि तू कोई गड़बड़ करे तो तुझे गोली मार दूं।"
हाथ खुलने पर शमशेर ने राहत की सांस ली। अपनी कलाइयां मसलने लगा।
ड्राईविंग सीट पर बैठे जौहर ने तो खाना भी शुरू कर दिया था।
"बहुत हो गया...।" महाजन ने शमशेर से कहा--- "जल्दी से खाना शुरू कर। फिर तेरे हाथ बांधू और आगे चलें...।"
शमशेर ने लिफाफा खोला और खाने का सामान निकालकर खाने लगा।
महाजन उसके सामने सतर्कता से रिवाल्वर थामे बैठा रहा।
"आखिर लाली खान के पीछे क्यों हो तुम?" शमशेर ने पूछा।
"सवाल तब पूछना, जब तेरे हाथ बंधे हों। अभी चुपचाप खा।" महाजन ने सख्त स्वर में कहा।
पन्द्रह मिनट बाद वैन पुनः चल पड़ी।
शमशेर के हाथ-पाँव बांध कर उसे सीट पर बिठा दिया गया था। वो गुस्से में गालियां देने लगा था। महाजन जौहर के साथ आगे वाली सीट पर जा बैठा था। और लिफाफे से सामान निकाल कर खाने लगा था।
शमशेर उखड़े अन्दाज में रास्ता बताता रहा।
पौन घंटे के बाद शमशेर के कहने पर वैन को रोका गया। जहां वैन रोकी थी, वहां गहरा अंधेरा था और कुछ दूर मध्यम सी रोशनियों का सिलसिला देखकर महसूस किया जा सकता था कि वहां कालोनी है।"
"वो गाँव है। उसी गांव में एक कच्चे मकान में लाली खान कभी-कभार आती है।” शमशेर बोला--- “मुझे मरवा के ही रहोगे। लाली खान के हाथ बहुत लम्बे हैं। वो हमें हर हाल में ढूंढ निकालेगी...।"
"वो कच्चा मकान किधर है?" महाजन ने पूछा।
"गांव के बीचों-बीच छोटी सी मस्जिद है। उस मस्जिद के पास ही वो घर है। उस घर की निशानी ये है कि वहां नीम का पेड़ लगा हुआ है। पास के किसी घर में कोई पेड़ नहीं है। मेरे हाथ खोल दो । बहुत तकलीफ हो रही है।"
जौहर ने महाजन से कहा---
"अब क्या करना है?"
"इस बार खतरा ज्यादा हो सकता है।" महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा--- “जलालकोट के गांव में मैंने जिस आदमी की टांग पर गोली मारी थी, उसने किसी तरह ये खबर लाली खान तक पहुंचा दी होगी कि कोई उसे ढूंढ रहा है। हो सकता है सावधानी के तौर पर लाली ने अपनी ऐसी सारी जगहों पर कोई इन्तजाम कर दिया हो।"
"हो सकता है। वो कम थोड़े ही ना है!"
"तुम्हें मेरे साथ चलना होगा।" महाजन बोला--- "तुम पीछे रह कर मुझे कवर करो। अगर मैं खतरे में पड़ूं तो मुझे वहां से निकालोगे। हो सकता है कि ऐसा कुछ भी न हो वहां। परन्तु हमें तैयार रहना हैं।"
"इसका क्या करें ?" जौहर ने नजर घुमा कर, सीट पर बैठे जौहर को देखा।
"मुझे ऐसे ही बैठा रहने दो। जब तुम दोनों वापस आओगे तो मैं ऐसे ही बैठा मिलूंगा।"
"इसे नीचे गिरा कर, रस्सी लेकर सीट के नीचे के पाईपों के साथ इसे इस तरह बांध दे कि ये हिल भी न सके। उसके बाद इसकी आंखों पर पट्टी बांध देना।" महाजन ने कहा ।
जौहर दरवाजा खोलकर बाहर निकला और पीछे की तरफ बढ़ गया।
"क्यों मुझे मारने पर लगे हो। इस तरह तो मेरी जान निकल जायेगी। क्या पता तुम दोनों ही मारे जाओ... और वापस न लौट सको। मुझे रुलाने पर क्यों लगे हो...।"
जौहर ने पिछला दरवाजा खोला और वैन के भीतर आ गया।
शमशेर चीखता-चिल्लाता रहा।
जौहर ने उसे उसी तरह बांध दिया, जैसे कि महाजन ने कहा था।
"मर जाऊंगा मैं...। कुछ तो ढीला करो।" शमशेर चीखा।
परन्तु उसकी परवाह दोनों को नहीं थी।
“अगर कोई गड़बड़ हुई तो तुम्हारा काम रिवाल्वर से नहीं चलेगा।" महाजन बोला--- “रिवाल्वर के साथ गन भी ले लो। गन को अपने कपड़ों में छिपा लेना। अंधेरा है। कोई हमारी हरकतों को नहीं देख सकेगा ।"
■■■
महाजन अंधेरे में आगे था।
जौहर उससे पचास कदम पीछे रहकर बढ़ा आ रहा था।
रास्ते में कहीं भी रोशनी नहीं थी। नये रास्ते थे। देखकर, समझ कर आगे बढ़ना पड़ रहा था।
गांव के भीतर तक आ पहुंचा था महाजन ।
गांव की भीतरी कच्ची गलियों में थोड़ी बहुत रोशनी थी, जो कि गांव के घरों से बाहर आ रही थी। इक्का-दुक्का और लोग भी कभी-कभार आते-जाते नजर आ जाते थे। उसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं था। महाजन ने किसी से मस्जिद के बारे में पूछना ठीक नहीं समझा और आगे बढ़ता, गलियां तय करता मस्जिद तलाश करता रहा। जो कि कुछ देर बाद उसे दिखाई दे गई।
महाजन सतर्क हो उठा।
वो छोटी सी मस्जिद थी, जो कि गाँव वालों के सहयोग से ही बनाई गई थी।
शमशेर ने ठीक ही कहा था कि वहां एक पेड़ था। जो कि एक मकान के आंगन में खड़ा नजर आ रहा था।
महाजन शांत भाव से पेड़ वाले मकान की तरफ बढ़ने लगा। उसकी पैनी निगाह हर तरफ जा रही थी। मस्जिद की बाहर तक आती रोशनी में काफी कुछ स्पष्ट नजर आ रहा था।
महाजन को उस मकान में या आसपास कोई संदिग्ध बात नहीं दिखी।
मकान में रोशनी हो रही थी।
तो क्या लाली खान है भीतर ?
महाजन के शरीर में तनाव और उत्तेजना की रेखा दौड़ती चली गई।
अगर लाली खान मकान के भीतर थी तो उसके तीनों वफादार साथी इकबाल मेमन और याकूब भी पास ही कहीं होंगे। महाजन ने आस-पास देखा और अंधेरे में डूबी मस्जिद की दीवार के साथ सटकर बैठ गया और मकान पर नजरें टिका दीं। वो इस कदर अंधेरे में था कि कोई सामने से निकलता तो उसे नहीं देख पाता।
वक्त बीतने लगा।
महाजन की नजरें उस मकान पर टिकी रहीं, जिस अहाते में पेड़ था।
आधा-पौन घंटा बीत गया।
परन्तु उस मकान में कोई हलचल न दिखाई दी। न कोई भीतर आया, ना बाहर गया।
एक घंटा बीत गया।
सब कुछ पहले की ही तरह रहा।
अब महाजन ने और रुकना ठीक न समझा। उसने पीछे नजर मारी। परन्तु जौहर कहीं न दिखा। महाजन जानता था कि वह जहाँ भी होगा, उस पर नजरें रखे होगा। महाजन ने रिवाल्वर निकाली। आसपास देखा, फिर उठा और सीधे-सीधे उस मकान की तरफ बढ़ गया। सब तरफ शान्ति थी। कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाज सुनाई दे जाती थीं।
महाजन गेट के पास पहुंच कर ठिठका। बे-आवाज आहिस्ता से गेट खोला और भीतर सामने नजर आ रहे कमरे की तरफ बढ़ा। जिसके भीतर रोशनी थी। दरवाजा खुला था, और पर्दा लटका झूल रहा था।
महाजन ने सतर्कता से रिवाल्वर हाथ में थाम रखी थी। दबे पांव उठाता वो पर्दे तक जा पहुंचा था। फिर वहीं पर ठिठका भीतर की आहटें लेता रहा। खामोशी थी भीतर।
तभी भीतर से आहट उठी, जैसे किसी ने कोई चीज रखी हो।
महाजन के दांत भिंच गये।
लाली खान हो सकती थी भीतर। कुछ भी हो सकता था।
महाजन ने खुद को तैयार किया और पर्दा हटाकर भीतर प्रवेश कर गया। कमरे में पूरा प्रकाश था। वो बड़ा कमरा था। एक तरफ सोफा चेयर और दूसरी तरफ डबल बैड था। टेबल पर रखी व्हिस्की की बोतलें। यहां का काफी कुछ जलालकोट वाले झोंपड़े से मिलता जुलता था। परन्तु महाजन की निगाह तो उस पर टिक चुकी थी।
वो तीस-बत्तीस बरस की खूबसूरत युवती थी। गहरे रंगों की चमकदार कमीज-सलवार पहना था। गले में दुपट्टा फंसा था। होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी। कानों में लटकते झुमके। वो सोफे की एक कुर्सी पर धंसी थी। सामने टेबल पर व्हिस्की का भरा आधा गिलास था। उसकी नशीली आंखों में डबल नशा चमक रहा था। उसने महाजन को देखा। महाजन के हाथ में दबी रिवाल्वर को देखा, फिर गिलास उठाकर घूंट भरा और शांत स्वर में बोली---
"कौन हो तुम?"
"तुम... लाली खान....।" महाजन ने होंठ सिकोड़कर कहा--- "तो मैं लाली खान से मिल रहा हूं।"
वो मुस्करा पड़ी। लेकिन वो लाली खान नहीं थी।
"हैरानी है कि कोई मेरे लिए यहां तक भी आ पहुंचा। क्या चाहते हो? रिवाल्वर क्यों पकड़ रखी है?"
महाजन ने पुनः वहां नजरें दौड़ाई और उसे देख कर पूछा--- "तुम्हारे तीनों साथी कहां हैं?"
"मेमन, इकबाल और याकूब की बात कर रहे हो ?"
"हां...।"
"बहुत जानकारी रखते हो मेरे बारे में? बैठो। वो भी यहीं हैं। तुम्हें वो दिखे नहीं, जब भीतर आये?" वो मुस्कराई।
"नहीं दिखे...।"
"लेकिन उन्होंने तुम्हें देख लिया होगा...।" वो हंस पड़ी। गिलास उठाकर घूंट भरा।
महाजन फौरन पास आया और उसके सिर से रिवाल्वर लगा दी।
"हिलना मत...।"
"डर गये!" उसने कड़वे स्वर में कहा--- “चिन्ता मत करो। उन तीनों में से कोई भी यहां नहीं है। जलालकोट में भी तुम ही गये थे?"
"हाँ...।"
"वहां एक आदमी को गोली मारी ?"
"हां... ।"
"क्या चाहते हो? क्यों मुझे ढूंढते फिर रहे हो?" उसने शांत स्वर में पूछा--- "रिवाल्वर हटा लो, यहां मेरे अलावा कोई नहीं है।"
परन्तु महाजन ने रिवाल्वर नहीं हटाई।
"कौन हो तुम?"
"नहीं बताऊँगा।" महाजन को न जाने क्यों गड़बड़ का एहसास होने लगा था।
"मुझे क्यों ढूंढ रहे हो?"
"पता चल जायेगा तुम्हें...।"
"वो कौन है जो तुम्हें मेरे ठिकाने बता रहा है? क्या वो शमशेर है?" वो बोली ।
महाजन चौंका। तुरन्त ही अपने पर काबू पाकर कह उठा---
"कौन शमशेर ?"
"नहीं जानते?"
"नहीं।"
"हैरानी है कि लाली खान को ढूंढते फिर रहे हो और शमशेर को नहीं जानते। तुम्हारी बात पर कोई यकीन नहीं करेगा।"
“उठो!” महाजन ने कठोर स्वर में कहा--- “तुम्हें मेरे साथ चलना है।"
“हिम्मत का काम कर रहे हो। लाली खान का अपहरण! कोई सुनेगा तो विश्वास नहीं करेगा।"
"उठ जाओ।" महाजन गुर्रा उठा ।
उसने घूंट भरा और गिलास टेबल पर रखकर कह उठी---
"बैठ जाओ। मैं तुम्हारे लिये व्हिस्की का गिलास तैयार करती हूं। अब तुम यहां से बाहर नहीं जा सकते।"
"क्यों?" महाजन के होंठों से निकला।
"क्योंकि बाहर मेरे आदमी हैं।" वो उठ खड़ी हुई--- "व्हिस्की का गिलास बनाऊं तुम्हारे लिए...।"
महाजन ने रिवाल्वर उसकी तरफ रखी। दरवाजे की तरफ देखा।
"मेरा यकीन करो । दरवाजे के पर्दे के बाहर आदमी है। अब तुम बाहर नहीं जा सकते।” वो शांत अन्दाज में महाजन को देखती कह उठी--- "बैठ जाओ। मैं तुम्हें व्हिस्की का गिलास पेश करती हूँ...।”
महाजन उनके पास पहुँचा और रिवाल्वर की नाल उसके पेट पर लगा दी।
"गोली मत चला देना...।" वो मुस्कराई।
“जब तक तुम मेरे पास हो कोई मुझ पर गोली नहीं चलाएगा। अब तुम मेरे साथ यहाँ से चलोगी। चलो...।" महाजन का स्वर कठोर था।
वो दरवाजे की तरफ देखकर कह उठी---
"अन्दर आ जाओ.... ।"
महाजन के देखते ही देखते पर्दा हटा और एक के बाद एक चार आदमियों ने भीतर प्रवेश किया। दो के हाथों में गनें थीं। दो के पास रिवाल्वरें। महाजन के होंठ भिंच गये। उसने फौरन उस औरत को अच्छी तरह कवर कर लिया।
“मैं लाली खान को अपने साथ ले जा रहा हूँ।" महाजन ने खतरनाक स्वर में कहा--- "हमें जाने का रास्ता दे दो। किसी ने चालाकी की तो मैं इसे गोली मार दूंगा। हट जाओ... ।” आखिरी शब्दों पर महाजन गुर्रा उठा ।
"बेवकूफ ! मैं लाली खान नहीं हूँ...।" वो औरत हंस पड़ी--- "मैं तो उसके पांवों की धूल भी नहीं हूँ। वाह ! शिकार की पहचान नहीं और चला है शिकार करने! जब से तूने जलालकोट के ठिकाने पर पंगा किया है, तब से पता चलते ही लाली खान ने अपने हर ठिकाने पर तेरे लिए कोई न कोई इन्तजाम कर दिया है कि तू आये और तू फंसे... और तू इस ठिकाने पर आ गया। फंस गया बच्चू अब तो... ।"
ये सुनकर महाजन को लगा जैसे उसके पाँवों के नीचे से जमीन निकली जा रही हो।
"रिवाल्वर हटा ले मुझ पर से!" वो व्यंग भरे स्वर में कह उठी।
"हिलना मत...।" एकाएक महाजन दांत भींचकर कह उठा।
"तो बल नहीं गये तेरे...।" वो मुस्कराते स्वर में बोली---फिर अपने आदमियों से कहा--- "पकड़ लो इसे...।"
"खबरदार!" महाजन ने खतरनाक स्वर में कहा--- "कोई आगे बढ़ा तो मैं इसे शूट कर दूंगा।"
वे चारों आगे बढ़ते-बढ़ते ठिठके ।
"मेरी परवाह मत करो।" अब उसके स्वर में गुस्सा आ ठहरा था--- "मेरे जैसी हजारों शकीला, लाली खान पर कुर्बान... आगे बढ़ो...।"
बेचारे आगे बढ़े।
महाजन दांत पीसकर रह गया।
अगर शकीला को गोली मारता, तो भी बच न पाता।
पास पहुँचकर एक ने उसकी कमर से रिवाल्वर लगा दी।
दूसरे ने उसके सिर पर रिवाल्वर की नाल रख दी।
सारे हालात महाजन के खिलाफ हो चुके थे। फंस गया था वो।
“अपनी रिवाल्वर हमें दें।" एक ने कठोर स्वर में कहा--- "गोली चलाई तो तू नहीं बचेगा।"
उनकी बात मानने के अलावा महाजन के पास, दूसरा रास्ता नहीं था ।
महाजन ने शकीला पर से रिवाल्वर हटाई तो एक ने उसके हाथ से रिवाल्वर ले ली।
“वैसे तू है शेर ।" शकीला ने मुस्करा कर कहा और टेबल पर पड़ा गिलास उठाकर एक ही सांस में खत्म करके वापस रखा और पलट कर महाजन को देखा--- “तूने सोचा कि इस जगह पर जो भी औरत होगी, वो लाली खान ही होगी? मैं व्हिस्की पी रही थी तो तेरे को पक्का पता चल गया कि मैं ही लाली खान हूँ। क्यों---यही बात थी ना?"
महाजन होंठ भींचे शकीला को देखता रहा।
"नाराज लगता है बच्चा मेरा।" शकीला का स्वर कड़वा हो गया--- "तलाशी लो इसकी...।"
गन महाजन की कमर से लगी रही।
एक ने आगे बढ़कर उसकी तलाशी ली।
कुछ भी नहीं निकला तलाशी में।
“इसकी दाढ़ी मुझे अटपटी लग रही है...।" शकीला ने कहा--- "देखो, नकली है क्या?"
एक ने उसकी दाढ़ी-मूंछें चेक की और खींचकर अलग कर दीं।
"असली की तरह थी नकली दाढ़ी-मूछें।" शकीला ने व्यंग से कहा--- "इसके हाथ पीछे बांध दो...।"
महाजन के दोनों हाथ पीछे किए गए... और डोरी से बाँध दिए गये।
महाजन कसमसा कर रह गया।
"तो तू लाली खान को अपने साथ ले जाना चाहता था? क्यों, दिल आ गया है लाली खान पर...?" शकीला हंसी।
महाजन शांत भाव से मुस्करा पड़ा।
“अफगानी नहीं लगता तू। शायद हिन्दुस्तानी है---क्यों?"
महाजन पुनः मुस्कराया।
"पहले तो ये बता कि लाली खान के इन कच्चे-पक्के ठिकानों का तेरे को कैसे पता चला?"
महाजन शकीला को देखता रहा।
"शमशेर ने बताया ?"
महाजन चुप।
"तेरे पास है शमशेर ?"
महाजन शांत भाव में मुस्कराया।
“शमशेर ही ऐसा इन्सान है जो लाली खान के ठिकानों के बारे में जान सकता है। क्योंकि उसका काम ही छिपी बातों पर नज़र रखना है। लाली खान ने उसे पूरी छूट दे रखी है। फिर वो अचानक गायब हो गया...और अगले ही दिन लाली खान के जलालकोट के गुप्त ठिकाने पर तू पहुँचा और एक आदमी को गोली मार दी। लाली खान को समझने के लिये इतना ही बहुत था कि शमशेर गलत हाथों में जा पड़ा है। क्यों....?" शकीला ने आँखें नचाई--- "मैंने ठीक कहा ना ?"
"ठीक कहा।”
"तो तू मानता है कि शमशेर तेरे पास है?"
“हाँ... ।"
"उसी ने तेरे को लाली खान के इन ठिकानों के बारे में बताया?"
"हाँ... ।"
"और तू अकेला ही लाली खान को पकड़ने चल पड़ा। कम से कम साथ में दो चार आदमी तो ले लेता।"
महाजन शकीला को देखता रहा।
शकीला ने अपना गिलास उठाया और उस टेबल के पास पहुँची, जहाँ बोतलें पड़ी थीं।
"और लोग भी हैं तेरे साथ?" शकीला फिर से पैग बनाते बोली।
"नहीं...।"
"तू अकेला है?"
"हाँ...।"
"तो अब शमशेर कहाँ है?"
"मैंने उसे एक जगह पर कैद कर रखा है। तुम लाली खान की चमची हो?"
“हाँ। चमची हूं। अपनी बता कि तू लाली खान से चाहता क्या है?"
"मैं उससे शादी करना चाहता हूँ...।"
"इस तरह जबरन उठाकर ?” शकीला ने व्यंग से कहा और घूंट भरा।
“हाँ। वो मशहूर औरत है। मेरा उस पर दिल आ गया और...।"
“बेकार की बातें मुझे न सुना...।" शकीला ने मुँह बनाया--- "अपना नाम बता?"
"नहीं बताऊँगा।"
"ये नहीं बतायेगा कि लाली खान के पीछे क्यों पड़ा है?"
"बताया तो उससे शादी...।"
"ये हरामी बंदा है...।" शकीला अपने चारों साथियों से बोली--- "इसकी इस तरह पिटाई करो कि ये मरे नहीं, घातक चोट न लगे और इसे तकलीफ ज्यादा पहुँचे। इसे नानी याद आ जानी चाहिये।"
उसी पल चारों ने हथियार एक तरफ रखे और महाजन पर झपट पड़े।
हाथ बंधे होने की वजह से महाजन बचाव में सकता कुछ नहीं कर था।
महाजन की चीखें गूंजने लगीं।
शकीला ने घूंट भरा और आगे बढ़ कर सोफे पर जा बैठी। मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाने लगी।
"कह शकीला...।" कुछ पलों बाद मोबाइल द्वारा लाली खान की आवाज कानों में पड़ी।
"शिकारी, शिकार हो गया। यहाँ आया वो...।"
"खूब!" लाली खान का स्वर शांत था--- "कौन है वो ?"
"बताया नहीं। बतायेगा। ठुकाई हो रही है।" शकीला ने पिटते महाजन पर निगाह मारी।
“शमशेर उसी के पास होगा?"
"हाँ, ये बात कबूल कर ली उसने। शमशेर को उसने कहीं कैद कर रखा है। शमशेर ने मुँह खोला तो, उसे यहाँ का पता चला।"
"उसके मुँह से निकलवा कि शमशेर कहाँ है?"
"अभी बोलेगा।"
“उसके और साथी भी होंगे...।"
"कहता तो है कि वो अकेला है।"
"झूठ कहता है। मुझे ढूंढने निकला है तो वो अकेला नहीं हो सकता।" लाली खान का दृढ़ स्वर कानों में पड़ा--- "उसके और साथी भी होंगे। पता कर। मुँह खुलवा उसका।"
"अब ये ही काम करना है।"
"बाहर नजर मार। बाहर हो सकते हैं उसके साथी... ।" इसके साथ ही उधर से लाली खान ने फोन बंद कर दिया था।
शकीला ने कान से मोबाइल हटाया और उसे पिटते देखने लगी। चेहरे पर गम्भीरता था। फिर वो उठी और आगे बढ़ी। पास जा पहुँची। महाजन की चीखें गूंज रही थीं। बंधे हाथ। ऊपर से पिटाई। बुरा हाल होने लगा था उसका।
"ठहरो... ।"
शकीला की आवाज पर वो चारों ठिठके ।
महाजन नीचे पड़ा गहरी-गहरी सांसें लेने लगा था।
"बाहर नज़र मारो। बाहर इसके साथी हो सकते हैं।"
चारों ने अपने हथियार उठाये और बाहर निकल गये।
महाजन के शरीर के कई हिस्सों में दर्द हो रहा था। खासतौर पर पेट और चेहरे पर ज्यादा घूंसे मारे गये थे। होंठों के कोनों से खून छलक आया था। एक आँख पर भी उसे सूजा-सूजा लग रहा था।
“अब क्या हाल है मेरे बच्चे का ?" शकीला झुकती हुई उसके बालों को खींचते कह उठी।
“ज्यादा तकलीफ तो नहीं हुई?"
"तुम्हारे आदमियों को मारना भी नहीं आता...।" महाजन कराहते हुये कह उठा।
"कोई गुस्ताखी कर दी क्या?"
"उन्हें समझाओ कि टांगों के बीच नहीं मारते हैं।"
"ओह, ये तो उन्होंने सच में गलत किया।” शकीला मुँह बनाकर बोली--- “ज्यादा चोट तो नहीं लगी?"
"उल्लू की पट्ठी... ।" महाजन ने उसे घूरा।
"पक्के हिन्दुस्तानी हो। यहाँ ये ही गाली देते हैं।" शकीला हंस पड़ी, फिर बोली--- "अच्छा सुन, मजाक बहुत हो गया। ये सब बातें बंद कर। अपना मुंह खोल। सबसे पहले ये बता कि बाहर तेरे आदमी हैं?"
"नहीं...।"
"अभी पता चला जायेगा।" शकीला ने सिर हिलाया--- "शमशेर को तूने कहाँ रखा है--वो जगह बता ।"
"कभी नहीं बताऊँगा।"
"बतायेगा। तेरे को सेवा की जरूरत है। वैसे तू चाहता क्या है लाली खान से?"
"शादी करना...।"
"पक्की जान वाला लगता है तू... ।" शकीला ने महाजन को घूरा--- "इतनी पिटाई से तो तेरी तय बैठी ही लगती है। खुराक और चाहिये तुझे।"
"लाली खान है कहाँ ?"
“वो जहाँ भी है, मजे से है। तो तू मुँह खोलेगा ?" शकीला की आवाज में कठोरता आ गई।
तभी उन चारों ने भीतर प्रवेश किया।
“बाहर कोई नहीं है। अकेला आया लगता है ये।" एक ने कहा।
“पूरा शेर है, शेर... ।" शकीला ने व्यंग से कहा--- “ये मुँह खोलने को तैयार नहीं।"
“अभी तैयार हो जायेगा। इसे हमारे हवाले कर दीजिये।” दूसरे ने खतरनाक स्वर में कहा।
"मरना नहीं चाहिए...।" शकीला ने हरी झंडी दिखा दी।
वो चारों पुनः महाजन पर टूट पड़े।
■■■
जौहर तो तब ही सतर्क हो गया था जब महाजन उस मकान के सामने मस्जिद की दीवार के साथ अंधेरे हिस्से में छिपा था। जौहर ने साथ वाले कच्चे मकान की छत से एक सिर को झांकते देख लिया था। यानि कि लाली खान ने खतरे के अंदेशे से अपने आदमियों को पोजीशन दिला रखी थी।
जौहर को महसूस हो गया था कि महाजन को देख लिया गया है।
परन्तु वो महाजन को सतर्क करने की स्थिति में नहीं था। सतर्क करता तो वो खुद भी नज़रों में आ जाता और फायदा कुछ नहीं होता। छत पर मौजूद लाली खान के आदमी उन पर गोलियाँ चला देते।
जौहर की निगाह आसपास के बाकी मकानों की छतों पर जाने लगी।
वो देख लेना चाहता था कि कितने लोग हैं, जो महाजन को देख रहे हैं।
पहले दो दिखे। फिर वो कुल तीन हो गये।
चार, पाँच भी हो सकते हैं।
जौहर समझ गया कि महाजन भारी खतरे में घिर चुका है। वो स्वयं दूर था और गहरे अंधेरे में था। अगर ज़रा भी लापरवाह होता तो, वो भी नज़रों में आ गया होता।
वहीं टिका रहा जौहर, हालातों पर नज़र रखता रहा। वो महाजन को सावधान करना चाहता था, परन्तु ऐसा हो नहीं पा रहा था। छतों पर मौजूद लोगों की नज़रों में वो भी आ जाता, अगर ऐसा करता तो।
फिर उसने महाजन को उस मकान के गेट की तरफ बढ़ते देखा ।
जौहर के दाँत भिंच गये कि वो शेर की मांद में घुसा जा रहा है।
जौहर ने कपड़ों में छिपा रखी गन निकाल कर हाथ में ले ली। नज़रें महाजन पर थीं जो भीतर कमरे में खुले दरवाजे पर पहुँच गया था, जहाँ पर्दा झूल रहा था, फिर महाजन को उसने कमरे में प्रवेश करते देखा।
जौहर गन थामें हर तरह के हालातों के लिए तैयार था।
कुछ पल बीते । शान्ति रही। सब ठीक रहा।
गन थामे जौहर अंधेरे में डूबा था, नजरें कमरे पर थीं और उन आदमियों पर थीं, जिनके सिर आस-पास की छतों से नजर आ रहे थे। कई पल बीतने के पश्चात उसने छतों से उन लोगों को कूद कर नीचे आते देखा।
वो चार थे।
जौहर ने दूर से भी पहचान लिया था कि दो के पास गनें हैं। और दो के पास रिवाल्वर ।
जौहर ने गहरी सांस ली। वो समझ गया कि महाजन तो गया ।
जौहर ने आस-पास नजर मारी। कुछ पलों तक इन्तजार किया।
परन्तु उन चार के अलावा उसे और कोई न दिखा।
जौहर ने अपनी जगह छोड़ी और दबे पाँव भागता वहां पहुंचा, जहां दीवार के पास अंधेरे में महाजन छिपा था।
गन थामें जौहर सतर्क था। कुछ क्षण बीत गये। सब ठीक रहा। इसका मतलब वो कुल चार आदमी ही बाहर थे।
जौहर की निगाह वहां से नजर आते कमरे के खुले दरवाजे पर जा टिकी, जहा पर्दा झूल रहा था। वो सोच रहा था कि भीतर कितने लोग हो सकते हैं। क्या लाली खान भीतर है? चार लोगों से तो उसे मुकाबला करना पड़ेगा, अगर महाजन को छुड़ाना है...और वहां और भी हो सकते हैं। जौहर हालातों का जायजा लेने के लिये वहीं बैठा रहा।
कुछ मिनट बाद उसे महाजन की एक-दो मध्यम सी चीखें सुनने को मिलीं।
जौहर समझ गया कि महाजन उनकी पकड़ में आ गया है।
जौहर के दांत भिंच गये। वहीं बैठा रहा वो।
कुछ मिनट और बीते तो एकाएक उसने उन चारों आदमियों को बाहर निकलते देखा। हथियार हाथ में थे। वे मकान के गेट से बाहर आ गये। कुछ ढूंढ रहे थे वो ।
जौहर को लगा कहीं उसे न ढूंढ रहे हों। महाजन ने उसके बाहर होने के बारे में बता ना दिया हो। परन्तु वो नहीं बतायेगा कि उसका साथी बाहर है। जौहर वहीं अंधेरे में दुबका पड़ा रहा। एक आदमी तो उससे चार-पांच कदमों की दूरी तक आ पहुंचा था। लेकिन सब ठीक रहा। वो वहां से चला गया था।
कुछ मिनटों बाद उसने उन चारों को वापस कमरे में जाते देखा।
जौहर ने राहत की सांस ली। उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा था। वो महाजन को बचाने के लिए फौरन कुछ करना चाहता था, लेकिन उसे ये भी महसूस रहा था कि जल्दबाजी अच्छी नहीं।
तभी भीतर से महाजन की चीखें सुनाई देने लगीं उसे ।
"ये तो मार-मार कर उसका बुरा हाल कर देंगे।” जौहर परेशान सा बड़बड़ा उठा। परन्तु वहीं बैठा रहा ।
■■■
महाजन का बुरा हाल हो चुका था।
उसकी इतनी पिटाई की गई कि वो बेहोश हो गया था।
बंधे हाथ। गुड़मुड़ पड़ा बेहोश शरीर।
"होश में लाओ इसे।" शकीला कह उठी।
महाजन को होश में लाया गया। पानी के छींटे मारे जाने लगे।
पांच-सात मिनट की कोशिशों के बाद महाजन कराह कर आंखें खोलीं। उसके जिस्म का एक-एक हिस्सा दर्द कर रहा था। चेहरा भनभनाया हुआ था। बंधे हाथ उसे और भी परेशानी दे रहे थे।
"क्या हाल है मेरे राजा?" शकीला ने व्यंग से कहा।
महाजन ने उसे देखा।
"जो मैं पूछ रही हूं, वो बता दे। उसके बाद तेरे को छोड़ दिया जायेगा।" शकीला ने कहा--- "सिर्फ दो बातों का ही जवाब तो देना है तूने। पहली यह कि शमशेर कहां है। दूसरी यह कि लाली खान से क्या चाहता है तू?"
महाजन मुस्करा पड़ा। बोला कुछ नहीं।
"जवाब दे!" शकीला का स्वर कठोर हो गया।
"तुम मुझसे कुछ नहीं जान सकतीं...।" महाजन ने गहरी सांस लेकर कहा।
“मुझे समझ नहीं आता कि तू अकड़ क्यों रहा है? फंसा पड़ा है तू। हमारे रहमो करम पर है।"
महाजन ने कुछ नहीं कहा।
"मुंह खोलेगा तो तेरे को लाली खान दोस्त बना लेगी।"
महाजन ने कुछ नहीं कहा और करवट ले ली।
"ये बता कि तू जो भी कर रहा है, अपने लिए कर रहा है या किसी और के लिये ?”
"अपने लिए...।"
"तू हिन्दुस्तानी है। तेरी क्या दुश्मनी लाली खान से? क्या कभी उसने तेरा नुकसान किया ?"
"तेरे से मैं कोई बात नहीं करूंगा। जो करूंगा लाली खान से ही बात करूंगा।"
"क्यों---मैं तेरे को पसन्द नहीं आई क्या?" शकीला हंसी।
"तेरे में पसन्द आने लायक कुछ भी नहीं है।"
"इस बार तू तगड़ा ठुकेगा, अगर मेरे सवालों का जवाब न दिया। यातना मिलेगी। तू सह नहीं सकेगा।" शकीला का स्वर कड़वा हो गया।
"मैं सह लूंगा।"
"तेरे में सच में अक्ल नहीं है।" फिर शकीला अपने आदमियों से बोली---“इसे इस तरह टार्चर करो कि बिना पूछे बताने लगे।”
महाजन गहरी सांस लेकर रह गया।
तीन आदमी महाजन की तरफ बढ़े। चौथा एक कुर्सी उठा लाया।
"तुम लोहे की सलाखें गर्म करो।" एक ने दूसरे से कहा और महाजन के हाथ खोलने लगा।
वे लोग अपनी तैयारियों में लग गये। महाजन को कुर्सी पर बिठा दिया गया। एक आदमी रस्सियों का गुच्छा ले आया और महाजन को बांधा जाने लगा।
तभी पर्दा हिला और जौहर ने गन थामे भीतर कदम रखा।
"बस करो...।" जौहर के होंठों से दरिन्दगी भरा स्वर निकला--- "सब अपनी जगह पर खड़े रहो।"
वे सब चौंके। ठिठके ।
शकीला के दांत भिंच गये। वो अपने आदमियों से गुस्से से कह उठी---
"इसका साथी बाहर था---तुम लोगों ने इसे देखा क्यों नहीं?"
महाजन ने जब जौहर की आवाज सुनी तो चैन की सांस ली।
जौहर गन थामे सतर्क था। नजर हर तरफ जा रही थी।
तभी एक आदमी हथियारों की तरफ दौड़ा।
जौहर ने होंठ भींच कर उसकी तरफ गन करते, ट्रेगर दबा दिया।
तड़-तड़-तड़ की तेज आवाज उभरी और उसके शरीर में कई गोलियां जा लगीं। वो चीखकर नीचे जा गिरा। बाकी सब सन्न रह गये। शकीला के चेहरे पर दरिन्दगी आ ठहरी।
"मैंने पहले ही कहा था कि सब अपनी जगह पर खड़े रहो।" जौहर ने दांत पीस कर कहा--- "मैंने गन को डराने के लिए नहीं पकड़ा हुआ है। तुम लोग समझ गये होगे कि ये चलती भी है।"
सब ठिठके से खड़े थे।
“इसे खोलो...।" जौहर गुर्राया। गन हिला कर महाजन की तरफ इशारा किया।
उन तीनों आदमियों ने घबराये अन्दाज में शकीला को देखा।
"जानते हो तुम क्या कर रहे हो?" शकीला धमकी भरे स्वर में, जौहर से कह उठी।
“खोलो इसे...।" जौहर ने मौत भरे स्वर में कहा और गन को शकीला की तरफ कर दिया।
“खोल दो...।” शकीला होंठ चबाकर कह उठी।
महाजन को खोल दिया गया।
महाजन कुर्सी से उठा। बुरा हाल हो रहा था। पूरे शरीर में पीड़ा भरी हुई थी। उसने कहर भरी नजरों से शकीला को देखा और जौहर के पास जा पहुंचा।
"वक्त पर आया तू...।" महाजन ने आभार भरे स्वर में कहा।
"मैं तो समझा... देरी हो गई मुझे।" सतर्क खड़ा जौहर बोला--- “लाली खान का क्या करना है?"
"ये लाली खान नहीं शकीला है। मुझे फंसाने के लिये चारा डाल रखा था।"
"ओह! तो लाली खान जानती है कि तू उसकी तलाश में है!"
"नहीं जान पाती अगर मैंने जलालकोट में, उस आदमी के सिर में गोली मारी होती तो....।"
जौहर कमरे में नजरें दौड़ाता कह उठा---
"हमें वैन तक पहुंचना है। रास्ता थोड़ा सा ज्यादा है और ये हमें वहां तक नहीं जाने देंगे। खत्म करना होगा इन्हें ।"
"कर दे...।" महाजन की आंखों में वहशी भाव उभरे--- “शकीला को अपने साथ ले चलना है।"
"इस पर दिल आ गया क्या?"
"ये बतायेगी कि लाली खान किधर मिलेगी।" महाजन ने खतरनाक स्वर में कहा।
जौहर ने उसी पल उन आदमियों पर गन खोल दी।
तड़-तड़-तड़ की आवाजें उभरी और तीनों तड़पकर नीचे गिरते चले गये।
शकीला का चेहरा क्रोध और भय से भर उठा।
महाजन आगे बढ़ा और उसके पास पहुंच कर तलाशी लेने लगा ।
"अच्छी तरह टटोलना ।" जौहर बोला--- "सारी हसरतें पूरी कर लेना।"
महाजन ने उससे मिली पिस्टल और मोबाइल बरामद किया। जिसे दूर फेंक दिया।
"मुझसे कुछ नहीं जान सकोगे।" शकीला गुर्रा उठी।
"यहां से चल।" महाजन खतरनाक स्वर में बोला--- "बातें बाद में करेंगे।"
"नहीं चलना चाहती तो इसे भी मार दूं क्या?" बोला जौहर ।
शकीला ने उसी पल कदम आगे बढ़ा दिया।
■■■
शकीला को लिए वो गांव की सीमा पर खड़ी कर रखी वैन तक पहुंचे।
शकीला तड़पड़ा रही थी। लाली खान के नाम की धमकियां दे रही थी। जौहर उसकी कमर पर गन रखे उसे वैन तक लाया था। शमशेर वैसे ही बंधा था जैसे उसे बांध के गये थे। उन्हें देखते ही वो गालियां निकालने लगा।
महाजन ने शमशेर को खोला। अब सिर्फ उसके हाथ बंधे हुए थे।
शकीला को वैन में चढ़ाया गया।
"ये कौन है?" गालियां देनी छोड़कर शमशेर के होंठों से निकला।
"तेरे को पूछ रही थी।" जौहर ने कहा--- "इसे तेरे पास ही ले आये कि तेरा दिल लगा रहेगा।"
महाजन भी वैन में आ गया। शकीला को बिठाया और उसके हाथ पीछे करके बांधने लगा।
"मेरे को पूछ रही थी?” शमशेर कह उठा--- "लेकिन ये हैं कौन?"
“अब ये तेरे साथ ही है। गर्मी भी लेना इसके शरीर की और पूछ भी लेना।" जौहर ने हंस कर कहा।
महाजन शकीला के हाथ बांध रहा था।
"तुम शमशेर हो?" शकीला ने पूछा।
"हां। तुम कौन हो?"
"शकीला । लाली खान की खास... ।"
"मैंने तुम्हारी आवाज सुन रखी है।" शमशेर ने फौरन कहा।
"मैंने कई बार तुमसे फोन पर बात की है...।"
"ओह, याद आया...।”
“दोनों में बढ़िया पट रही है और आगे भी पटेगी।" जौहर हंसकर कह उठा--- “लगे रहो।"
“तुम।" शमशेर के हाथ पीछे बंध गये थे।" वो महाजन पर गुर्रा उठी--- "बहुत बुरी मौत मरोगे।”
"अपनी फिक्र करो कि अब तुम्हारे साथ क्या होने वाला है!” महाजन ने कठोर स्वर में कहा और जौहर से बोला--- "दरवाजा बंद करके कुंडा चढ़ा दे, फिर इधर आ जा...।" इसके साथ ही महाजन आगे की सीटों की तरफ बढ़ा और अपनी सीट पर जा बैठा।
जौहर ने वैन का पीछे का दरवाजा बंद किया और स्टेयरिंग सीट पर आ बैठा।
गन को महाजन के पैरों की तरफ रख दिया।
शमशेर और शकीला बातों में लग चुके थे।
महाजन ने घड़ी में वक्त देखा, रात के बारह बजने जा रहे थे।
"अब क्या करना है?" जौहर ने पूछा।
"मोबाइल दे?"
जौहर ने अपना मोबाइल महाजन को दिया तो महाजन ने लैला से बात की।
"कहाँ हो तुम?” उसकी आवाज सुनते ही लैला ने पूछा।
"मुहमुडे राकी में...। यहां एक ठिकाने से एक औरत हाथ लगी है... जो कि लाली खान की खास है। वो लाली खान के ठिकाने के बारे में बता सकती है। परन्तु हमारे पास पूछताछ का ना तो वक्त है और ना ही जगह... ।"
“उसे मेरे हवाले कर दो...।"
"इसीलिये तुम्हें फोन किया है। अब हम महमुडे से नांगारहार जा रहे हैं। वहां तुम अपने आदमी भेजो, जो हमसे उस औरत को लेकर तुम तक पहुंचा दें।" कहते हुए महाजन का हाथ अपने चेहरे पर गया जहां से दर्द की टीस उठी थी।
"नांगारहार में मेरे आदमी मौजूद हैं। तुम वहां पहुंचते ही मुझे फोन करना।" लैला की आवाज कानों में पड़ी।
"ठीक है। इस औरत पर रहम करने की जरा भी जरूरत नहीं है। मैं एक घंटा इसकी कैद में रहा तो इसने मेरा बुरा हाल कर दिया।"
"मैं संभाल लूंगी उसे। जो भी इसके भीतर होगा, बाहर आ जायेगा।"
"नांगारहार पहुंच कर तुम्हें फोन करता हूं... ।” कहकर महाजन ने फोन बंद कर दिया।
"नांगरहार चलना है?" जौहर वैन स्टार्ट करता कह उठा ।
"हां। कितनी देर का रास्ता है यहां से?"
"चार-पांच घंटे का।"
“तो हम सुबह तक पहुंचेंगे?"
"अगर रास्ते में आराम न किया तो । मुझे नींद की जरूरत महसूस हो रही है।” जौहर ने वैन आगे बढ़ाते हुए कहा।
“यहां से चलो। रास्ते में सुरक्षित जगह देख कर नींद भी ले लेना।" कहने के साथ ही महाजन ने पीछे देखा।
शमशेर वैन के फर्श पर पड़ा था।
शकीला पीठ पीछे बंधे हाथों की वजह से सीट पर आगे को होकर बैठी थी।
दोनों बातें कर रहे थे।
महाजन के पीछे देखने पर शकीला खतरनाक स्वर में कह उठी---
“तुम नहीं जानते कि तुम किससे उलझ रहे हो...।"
महाजन ने कुछ नहीं कहा और मुंह घुमाकर सामने देखने लगा।
■■■
रात दस बजे गुलजीरा खान, मोना चौधरी के कमरे में पहुंची।
खाना खाने के बाद मोना चौधरी किसी किताब के पन्ने पलट रही थी। उसने नजर उठाकर गुलजीरा खान को देखा।
"अभी मुम्बई से फोन आया था कि आधा घंटा पहले माल डिलीवर हो गया और पेमेंट कर दी गई।" गुलजीरा खान मुस्करा कर बोली।
“ये तो होना ही था।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा।
"तुम्हारे काम करने के ढंग से मैं प्रभावित हुई...।"
"मतलब कि तुम अभी तक मेरे काम से प्रभावित नहीं हुई थीं जब कि मैंने तुम्हें अफगानिस्तान की ड्रग्स गन प्वाइंट पर लाकर दी ?"
"तुमने हमारी सप्लाई का काम अच्छे ढंग से संभाल लिया है।"
"शुक्रिया।" मोना चौधरी का लहजा सामान्य था ।
"तुम यहां बैठी हो और तुम्हारा साथी सब कुछ कर रहा है। आखिर कैसे हो जाता है ये सब?"
"मैंने पहले ही कहा था कि मेरे काम करने के अपने सीक्रेट हैं।"
"तुम हमारे साथ काम करके बहुत अच्छा पैसा बना लोगी।”
मोना चौधरी ने मुस्कराकर उसे देखा।
"तुम चुटकियों में काम कर देती हो कि किसी तकलीफ का एहसास ही नहीं हो पाता।"
"इसी बात का मैं पैसा लेती हूं। ड्रग्स इकट्ठी करने का अभी तुमने पैसा देना है मुझे...।"
“हाँ। शमशेर ने मुझे हिसाब दे दिया था। परन्तु तब तक तुम मेरे भाई के साथ घूमने चली गई थीं। अब इकट्ठा मिल जायेगा पैसा ।"
“शमशेर की खबर मिली?" मोना चौधरी ने पूछा।
"नहीं.. वो...।"
तभी गुलजीरा खान के हाथ में दबा मोबाइल बजने लगा।
गुलजीरा खान ने स्क्रीन पर आया नम्बर देखा और कालिंग स्विच दबाकर फोन कान से लगाया।
"बोल लाली...।"
"शमशेर को किसी हिन्दुस्तानी ने कैद कर रखा है। वो शमशेर के दम पर मुझ तक पहुंचने की कोशिश में है। एक ठिकाने पर वो मेरे आदमी को गोली मारकर चला गया। परन्तु दूसरे पर वो मेरे लोगों के हाथ लग गया।" लाली की आवाज कानों में पड़ी।
"ये तो अच्छी खबर बताई। उसने शमशेर के बारे में बताया कि वो कहां है?"
"मेरे आदमी उससे पूछताछ कर रहे हैं।"
"वो है कौन जो...।"
"अभी कुछ नहीं पता, लेकिन जल्दी ही सब कुछ पता चल जायेगा।"
“ठीक है। मोना चौधरी ने माल मुम्बई पहुंचा दिया और पेमेंट पार्टी से ले ली गई है।"
"मैंने पहले ही कहा था कि मोना चौधरी काम की है।" इसके साथ ही लाली खान ने फोन बंद कर दिया था।
गुलजीरा खान ने कान से फोन हटाया तो मोना चौधरी कह उठी---
"शमशेर की क्या बात हो रही थी?"
“शमशेर को किसी हिन्दुस्तानी ने पकड़ रखा है। परन्तु वो हिन्दुस्तानी अब लाली के लोगों के हाथों में पड़ गया है...।"
"शाबाश ...।" मोना चौधरी के होंठों से निकला, परन्तु मन ही मन सत्यानाश कह उठी--- "अब वो बता देगा कि शमशेर कहाँ है।"
“जरूर बतायेगा।” गुलजीरा खान कड़वे स्वर में कह उठी--- "जो हमारे रास्ते में आता है, वो कभी बचता नहीं।"
"बचना भी नहीं चाहिये।" मोना चौधरी ने मुस्करा कर कहा ।
"ड्रग्स डिलीवरी का काम तो तुम्हारा साथी जयन्त भी बढ़िया ढंग से संभाल सकता है।"
"तो ?"
"तुम चाहो तो शमशेर की जगह ले सकती हो। ऐसा करके हमारी खास बन जाओगी।”
“जो काम शमशेर करता है, वो मैं नहीं कर सकती।”
"कर सकती हो!"
“वो यहां का स्थानीय आदमी है। यहां का जर्रा-जर्रा जानता है। यहां के लोगों की सोच जानता है। अफगानिस्तान की जमीन के बारे में सब कुछ जानता है---और मैं ऐसा कुछ नहीं जानती, जिन्हें जानना जरूरी है।"
"कुछ वक्त लगेगा, परन्तु अफगानिस्तान के बारे में सब कुछ जान जाओगी।"
"नहीं। इतना वक्त नहीं है मेरे पास। ये सब मैं नहीं संभाल सकती। मैं ड्रग्स सप्लाई का काम ही संभालूंगी। मेरी भी जरूरत होती है इस काम में । जैसे कि इस बार जयन्त गया है, इसी तरह कभी मुझे भी जाना पड़ सकता है। दो अलग-अलग काम करक मैं खुद को असफल नहीं बनाना चाहती।" मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा।
"वो तुम्हारी मर्जी। जो मेरे मन में आया वो मैंने तुम्हें बता दिया।" कहने के साथ ही गुलजीरा खान चली गई।
मोना चौधरी चिन्तित हो उठी।
महाजन लाली खान के आदमियों के हाथों में पड़ गया था---कहाँ? नहीं मालूम। गुलजीरा खान से ऐसी बात पूछी भी नहीं जा सकती थी। लाली खान वहशी खतरनाक औरत थी। उससे रहम की उम्मीद करना बेकार था। वो महाजन का मुंह खुलवायेगी। महाजन मुंह नहीं खोलेगा तो उसे यातना देकर मार देगी। खोल देगा, तब ही मार देगी।
महाजन खतरे में था।
कुछ करना चाहिये उसे... लेकिन जब तक ये न पता हो कि महाजन कहां है तब तक...।
उसी पल कदमों की आहटें उसके कानों में पड़ीं।
मोना चौधरी की सोचें टूटीं । दरवाजे की तरफ देखा ।
देखते-ही-देखते हैदर खान ने भीतर प्रवेश किया। हैदर खान मुस्करा रहा था।
मोना चौधरी भी उसे देखकर मुस्कराई।
"क्या बात है, तुम तो मुझे भूल ही गई। एक भी फोन नहीं किया...।” कुर्सी पर बैठता हैदर खान कह उठा।
“ये शिकायत तो मैं तुमसे करने वाली थी।" मोना चौधरी बोल पड़ी।
"मैं शमशेर की तलाश में व्यस्त था। अभी आया तो गुल से पता चला कि शमशेर की कुछ जानकारी मिली है। एक हिन्दुस्तानी के कब्जे में है... और वो लाली के लोगों के हाथ में जा पड़ा है।"
"हां, अभी कुछ देर पहले ही तुम्हारी बहन ने मेरे सामने, इस बारे में फोन पर बात की।"
"तुम्हारी तबीयत तो ठीक है?" हैदर खान ने अपनेपन से पूछा।
"क्यों-क्या हुआ?"
"तुम कुछ परेशान लग रही हो।"
"मेरी अपनी भी सोचें हैं। कई काम करने होते हैं मुझे...।" मोना चौधरी मुस्कराई।
हैदर खान ने मोना चौधरी का हाथ थाम लिया और प्यार भरे स्वर में कह उठा---
"मैं चाहता हूं कि तुम सदा खुश रहो और मेरे साथ रहो। मैं तुम्हें हंसते-खेलते देखना चाहता हूँ।"
"बहुत प्यार आ रहा है मुझ पर...।"
"तुम भी कम नहीं हो।" मौना चौधरी ने उसके गालों को छुआ।
हैदर खान की आंखों में प्यार छलक रहा था।
"तुमसे एक दिन दूर रहा तो ऐसा लग रहा है जैसे तुमसे मिले साल भर हो गया...।"
"तुम अपनी बातों से किसी भी लड़की को फंसाने की काबलियत रखते हो।" मोना चौधरी हंस पड़ी।
“तुम्हारी कसम मोना चौधरी ऐसी बातें मैंने किसी से नहीं की। कोई मिली ही नहीं...।"
"तो मैं पहली हूं?" मोना चौधरी मुस्करा पड़ी थी।
“ऐसी बातों के लिए... मुझे पहली मिली हो, जिसे देखकर मेरा दिल धड़कता है। कुछ डर सा उठता है मन में...।"
"बनाओ मत... ।"
"तुम्हारी कसम । मेरा यकीन करो... ।”
मोना चौधरी कुछ पल हैदर खान की आंखों में देखती रही, फिर धीमे स्वर में बोली---
“कसम वाली एक बात मैं भी कहूं...।”
“क्या?"
"मुझे भी पहली बार कोई अच्छा लगा है---वह तुम हो।”
“कसम से?"
“हां, कसम वाली बात...।" मोना चौधरी के चेहरे पर प्यार और गम्भीरता थी।
“फिर तो हमें हमेशा के लिए एक साथ रहना चाहिए।"
"ये शायद न हो सके।"
"क्यों?" हैदर खान तड़पने वाले ढंग से कह उठा।
"हमारा धंधा ही ऐसा है। आने वाले पल का भरोसा नहीं होता तो जिन्दगी भर हम साथ रहने का वादा कैसे कर सकते हैं।"
“मैं ये धंधा छोड़ दूंगा तुम्हारे साथ रहने के लिए... ।”
"तुम्हारी बहनें तुम्हें ऐसा नहीं करने देंगी।"
"मुझे नहीं रोक सकतीं।"
"वो बहुत कुछ कर सकती हैं, और ये बात तुम भी समझते हो हैदर...।"
"हम चुपचाप कही भाग सकते हैं जहाँ...।"
"बच्चों जैसी बातें मत करो। ये सब आसान नहीं है।" मोना चौधरी ने अपना हाथ छुड़ाया।
"तुम दिल तोड़ने वाली बात मत करो...मैं इस बारे में कुछ सोचूंगा।"
“ठीक है। इस बारे में फिर कभी बात करेंगे। कोई और बात करो।" मोना चौधरी कह उठी।
"मैं तुम्हें अपने उसी फ्लैट पर ले जाना चाहता हूँ...।"
"अभी नहीं। मैं सोना चाहती हूं। लेकिन कल के लिये पक्का रहा।" मोना चौधरी मुस्कराई।
"पक्का ?"
“बिल्कुल पक्का।”
"गुल ने बताया कि माल मुम्बई पहुंच गया और जयन्त पेमेंट लेकर आ रहा है। तुम्हारा काम करने का ढंग बहुत अलग है।"
"रास्ते में जो भी देश रक्षक एजेन्सियां पड़ती हैं, उन सब का मैंने महीना बांधा हुआ है। यूं ही वो नहीं जाने देते माल को।"
"उन्हें संभालना भी आसान नहीं होता होगा ?"
'बहुत कठित है ये काम। लोग बदल जाते हैं। नये आ जाते हैं। कोई मेरी बात नहीं भी मानता।"
"फिर तुम क्या करती हो?"
"समझाना पड़ता है उसे, बेशक कैसे ही समझाऊं...।"
"तुम आज फ्लैट पर चलती तो मुझे बहुत अच्छा लगता...।"
"कोई फायदा नहीं। कल आऊंगी। आज मेरा दिमाग व्यस्त है। कुछ नहीं कर पाऊंगी।"
बातचीत करके एक घंटे बाद हैदर खान चला गया।
मोना चौधरी उठी और कमरे के बाहर जाकर नजरें दौड़ाईं। कोई नहीं दिखा। फिर वो वापस कमरे में पहुंची और मोबाइल उठाकर लैला का नम्बर मिलाने लगी। महाजन के बारे में उसे बताना जरूरी था कि वो फंस गया है। उसकी आवाज सुनते ही उधर से लैला कह उठी--- “मैं तुम्हें फोन करना चाहती थीं, पर मेरे पास तुम्हारा कोई नम्बर नहीं था।"
"मैं जिस फोन से बात कर रही है, ये तुम्हारे फोन में आ गया है। ये ही मेरा नम्बर है।" मोना चौधरी बेहद धीमे स्वर में बात कर रही थी--- "मेरे पास बुरी खबर ये है कि यहां से मुझे पता चला कि महाजन लाली खान के लोगों के हाथों में पड़ गया है...।"
"ऐसा हुआ था पर अब वो आजाद है।"
"तुम्हें कैसे पता?"
"अभी-अभी महाजन ने मुझसे बात की है।"
"ओह!" मोना चौधरी ने चैन की सांस ली।
"उसके पास लाली खान की कोई खास औरत है जो कल सुबह वो नांगारहार में मेरे आदमियों के हवाले करेगा ताकि मैं उससे पूछताछ कर सकूं। लाली खान को खबर लग गई है कि कोई हिन्दुस्तानी, शमशेर को पकड़े उसे तलाशता फिर रहा है।"
“तब तो महाजन को सावधान रहना चाहिये।"
"वो ठीक है। तुम उसकी फिक्र मत करो। उसके साथ मेरा खास आदमी है जो हर हाल में, हर जगह उसकी मदद करेगा। जयन्त ने मुम्बई में ठीक जगह ड्रग्स डिलीवर कर दी है और पेमेंट लेकर वापसी के लिए चल पड़ा है।"
“हां। गुलजीरा खान ने ये बताया मुझे...।"
"कोई और नई खबर ?"
"अभी तक तो नहीं।" मोना चौधरी बोली--- "ड्रग्स के तीनों ठिकानों के बारे में तुमने क्या सोचा?"
"उन्हें बरबाद करने की तैयारी चल रही है। इस काम के लिये मुझे कम से कम सौ आदमी चाहिये। जो कि टुकड़ियों में उन ठिकानों पर हमला करके, उन्हें तबाह कर सकें। आज बाहर के 60-65 आदमी इकट्ठे किए हैं। बाकी कल तक हो जायेंगे। उसके बाद प्लान बनेगा, फिर हमला होगा। अगले दो दिनों में कुछ तस्वीर सामने आयेगी।"
"उन ठिकानों को तबाह करने की जल्दी करो।"
"वो मेरा काम है। मेरे पास लाली खान के पति फिरोजशाह का फोन नम्बर है। वो तो अभी हाथ नहीं लगा...।"
"उसका फोन नम्बर बताओ और उसकी तलाश जारी रखो।" लैला ने उधर से फिरोजशाह का नम्बर बताया।
बात समाप्त होने पर मोना चौधरी ने फिरोजशाह का नम्बर मिलाया।
"हैलो!" उधर से नींद से भरा स्वर मोना चौधरी के कानों में पड़ा।
"फिरोज शाह ?"
"हाँ....।" स्वर में कुछ नींद गायब हुई।
"लाली खान के पति हो तुम?"
"तुम कौन हो ?"
"जो मैंने पूछा है, पहले उसका जवाब दो।"
"ठीक कहा तुमने कि मैं लाली खान का पति था कभी... तुम बताओ कि...।"
“मेरे बारे में जानने की कोशिश छोड़कर अपने फायदे की सुनो...।"
“मैं तुम्हें तुम्हारी बेटी मासो वापस दिला सकती हूं...।"
"सच... ?"
"हां। मैं ये भी जानती हूं कि इस वक्त वो कहां पढ़ रही है और...।"
“तुम जानती हो?” फिरोजशाह का स्वर खुशी से भर उठा--- "मुझे बता दो... मैं उसे... ।"
"जल्दी मत कर फिरोजशाह... ।” मोना चौधरी ने कहा।
"क्या मतलब?”
"ये काम इतना आसान नहीं है, जितना कि तू सोच रहा है। जब तक लाली खान जिन्दा है, ये मुमकिन नहीं। तूने मासो को छुआ भी तो वो तेरी जान ले लेगी। लाली खान को तू जानता नहीं क्या ?"
"मतलब क्या है तेरा?"
“मैं तेरे को मासो वापस दिलाऊंगी। लेकिन तब तक तू शांत बैठेगा। जैसे पहले हैदर खान पर हमला किया, वैसा कुछ नहीं करेगा।"
"ये सब तू क्यों करेगी? तू है कौन?"
"मैं तेरे को अपना नाम नहीं बता सकती। क्योंकि मेरा नाम सुनकर तू परेशान हो जायेगा। रही बात कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूँ तो इसकी ये वजह है कि मैं चाहती हूं कि माँ के न रहने पर मासो, अपने बाप के पास रहे।"
"मां के न रहने पर?"
"लाली खान बहुत जल्दी मरने वाली है।"
"क्या?" उधर से फिरोजशाह का हक्का-बक्का स्वर आया--- "ये बात तो मैं सोच भी नहीं सकता...।"
उधर से फिरोशाह के गहरी सांस लेने की आवाज कानों में पड़ी।
“मुझे यकीन नहीं आ रहा। आखिर-आखिर तुम हो कौन ?”
"जो मैंने कहा है, वो तूने सुनकर अच्छी तरह समझ लिया होगा।" मोना चौधरी का स्वर बेहद शांत था।
"हां, लेकिन यकीन नहीं आ रहा कि लाली... लाली मर जायेगी।"
"मैं उसे मारने जा रही हूं... । इस बारे में बहुत जल्दी तू खबर सुन लेगा। याद रख, अब तू हैदर खान या किसी और पर हमला नहीं करेगा। मैं नहीं चाहती कि लाली खान के आदमी तेरे को मार दें और मासो अकेली पड़ जाये... ।”
"ठीक है। मैं ऐसा ही करूंगा। लेकिन तुम हो कौन जो...।"
"अपना फोन खुला रखना। मैं जल्दी ही तेरे से फिर कभी बात करूंगी।"
"अच्छा-ठीक है। मैं ऐसा ही करूंगा।"
मोना चौधरी ने फोन बंद कर दिया।
अब मोना चौधरी को इन्तजार था जयन्त के आने का।
■■■
महाजन और जौहर नांगारहार पहुंचे तो दिन के 9.30 बज रहे थे ।
रात को रास्ते में सुरक्षित जगह वैन रोक कर उन्होंने तीन घंटे की नींद ली थी। शकीला बैठे-बैठे थक गई तो वो वैन के फर्श पर, शमशेर के पास जा लेटी थी। वो भी बंधे-बंधाये नींद में जा डूबे थे।
नांगारहार पहुंचने तक उनकी नींद कुछ-कुछ पूरी हो गई थी। अब वे काम कर सकते थे।
महाजन ने लैला को एक घंटा पहले ही फोन कर दिया था और जगह तय हो गई थी कि जहां शकीला को, उसके आदमियों के हवाले करना था। जौहर वैन को पहले वहीं ले गया, जहां लैला के आदमी मिलने थे।
"मुझे छोड़ने की एवज में मैं तुम्हें अच्छी रकम दे सकती हूं।" शकीला बंधनों में जकड़ी कसमसा कर कह उठी।
"लाली खान के बारे में बताने के लिये मैं तुम्हें अच्छी रकम दे सकता हूं।" महाजन बोला।
"तुम बहुत कमीने हो!" शकीला दांत पीस उठी।
महाजन ने कुछ नहीं कहा।
"ये सब करके तुम अपनी मौत को बुला रहे हो।"
महाजन चुप रहा।
जौहर वैन को शहर की सड़कों पर दौड़ाये जा रहा था।
"आखिर ये तो बता दो कि तुम लाली खान के पीछे क्यों पड़े हो?"
"क्या करोगी जानकर ?"
"दिल को तसल्ली मिलेगी कि मैंने ये बात जान ली...।"
"तुम कैद में हो और तुम्हे आजाद होने के बारे में सोचना चाहिये। मैं तुम्हें ऐसे हाथों के हवाले कर रहा हूँ कि जहां से निकल पाना सम्भव नहीं। शायद तुम्हारी जान भी चली जाये। तुम ये सोचो कि वहां से तुम्हें कैसे बचना है...।"
शकीला होंठ भींचकर रह गई।
"मैं तुम्हें बताऊँ कि तुम वहां से कैसे बच सकती हो ?"
"बोलो.... ।"
“तुमसे जो पूछा जाये, वो बता देना। नहीं तो यातना के लिये और मरने के लिए तैयार रहना।"
"तुम सच में कमीने हो!"
"तुमने तो मुझे मारने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी---एक घण्टे में मुझे तारे दिखा दिए...।"
“अफसोस तो इस बात का है कि तुम्हें तब गोली क्यों ना मार दी!" शकीला गुर्रा उठी।
"वो वक्त निकल चुका है, अब आगे की सोचो।"
“ये घिसा हुआ इन्सान है।" शमशेर कड़वे स्वर में बोला--- "तुम इससे बातें मत करो।"
फिर जौहर ने वैन वहां ले जाकर रोकी, जहां की जगह तय थी लैला के आदमियों से मिलने की।
वो वहां पहले ही मौजूद थे। तीन थे वे और वैन में आये थे।
शकीला को उनके हवाले कर दिया गया। वो चले गये।
"पहले वैन में तेल डलवाना है।" जौहर बोला और वैन आगे बढ़ा दी। फिर कहा--- “शमशेर... ।"
"क्या है?"
“शकीला के चले जाने से तू तो उदास हो गया होगा? रात तो खूब घुट-घुट कर बातें हो रही थीं...।" जौहर ने हंस कर कहा।
शमशेर ने कुछ नहीं कहा। बंधे हाथों से चलती वैन पर कैद रहने से वो थक चुका था। शरीर जगह-जगह से टूट रहा था। उसकी हिम्मत जवाब देती जा रही थी।
जौहर ने एक टूटे-फूटे पैट्रोल पम्प से पैट्रोल डलवाया।
"अब बोल...।" महाजन ने कहा--- "नांगारहार में कहां लाली खान का ठिकाना है?"
"तुम बेकार ही कोशिश कर रहे हो। लाली खान अब तुम्हें किसी ऐसे ठिकाने पर नहीं मिलेगी, जिसकी जानकारी मुझे हो।"
"जानता हूं।" महाजन बोला--- "लेकिन उसके हर ठिकाने पर पहुंचना है मैंने। ताकि उसे एहसास होता रहे कि हम उसे छोड़ने वाले नहीं...।"
"इस तरह तो वो हाथ नहीं आयेगी।"
“तू क्यों चिन्ता करता है?” जौहर बोला– “तू लाली खान के ठिकाने के बारे में बता।"
“मुझे बिठाओ। ताकि मैं बाहर देख कर बता सकूं...।"
महाजन उठा और सीटों के बीच में से निकलकर पीछे पहुंचा। शमशेर को उठाकर सीट पर बिठाया।
"कुछ देर के लिए मेरे हाथ खोल दो। बुरा हाल हो गया है मेरा.... ।” शमशेर बोला ।
“तुम बंधे ही अच्छे हो।” महाजन उसके सामने बैठता कह उठा।
"नांगारहार शहर में है ठिकाना या पास के किसी गांव में?"
"गांव में...।"
"क्या अजीब ठिकाने बना रखे हैं।" जौहर कह उठा।
"मेरी मानो तो तुम लोग लाली खान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा लो। उसकी दोस्ती भी मिलेगी और पैसा भी। लाली खान जिस पर मेहरबान हो जाये, वो रातो-रात पैसे वाला बन जाता है। उससे दुश्मनी मत लो।"
"सलाह मत दे।" महाजन मुस्करा कर कह उठा।
"तुमने शकीला को किसके हाथों में दिया है?"
"तुम्हें क्या?"
“मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हारे कितने लोग अफगानिस्तान में हैं और...।"
"बाहर देख। रास्ता बता। बातें मत कर... ।”
शमशेर ने बाहर देखा और रास्ता बताने लगा।
बारह बजे वे नांगारहार शहर के बाहर पास ही के गांव में जा पहुंचे। गांव की सीमा पर ही जौहर ने वैन रोक दी थी। यहां तक पहुंचने के लिए शमशेर रास्ता बताता रहा था, साथ में नसीहतें भी देता रहा था कि लाली खान से मत उलझो।
जौहर इंजन बंद करता कह उठा---
"इधर कहां है लाली खान का ठिकाना।"
"वो मुझे छोड़ेगी नहीं...।" शमशेर ने गहरी सांस लेकर कहा।
"उससे पहले हम तेरे को मार देंगे... अगर तू हमें बुरा लगने लगा। ठिकाना बता।" महाजन ने सख्त स्वर में कहा।
शमशेर ने खिड़की के बाहर गांव पर नजर मारी। दिन के वक्त गांव स्पष्ट नजर आ रहा था। हलचल थी वहां। लोग आ-जा रहे थे। पुरानी सी गाड़ियां भी आते-जाते देखीं। कच्चे मकान, बड़े-बड़े झोंपड़े व कुछ पक्के मकान दिख रहे थे।
"वो मीनार सी देख रहे हो?" शमशेर बोला।
महाजन और जौहर की निगाह मीनार पर गई, जो कि करीब सौ फीट ऊंची थी। गोल-गोल ऊपर जाती, मंजिलों की तरह बनी हुई थी। नीचे मोटी थी, ऊपर जाती वो पतली दिख रही थी।
"हां... ।" जौहर बोला।
“उस मीनार से आगे निकल जाना। मैं एक ही बार यहां का ठिकाना देखने आया था, चुपचाप। मीनार से काफी आगे जाकर, गांव का बड़ा सा चौराहा आयेगा। चौराहा नहीं छः राहा। छः रास्ते वहां से इधर-उधर जा रहे हैं। बायीं तरफ से चौथे रास्ते में चले जाना। वहां पर कहीं मकान तो कहीं झोंपड़ा है। कुछ आगे जाओगे तो एक ऐसा झोंपड़ा दिखेगा, जिसके साथ झोंपड़े जैसा ही छप्पर डाल रखा है, गाड़ी खड़ी करने के लिये। बिल्कुल गैराज जैसा। वो ही लाली खान का ठिकाना है।"
"बांध इसे, सीट के नीचे वाली रॉडों से...।" जौहर ने कहा।
"नीचे बैठ...।” महाजन बोला।
"क्यों मुझे बांधते हो... हाथ तो बांध ही रखे हैं। जब तुम आओगे तो मैं यहीं बैठा मिलूंगा... ।”
"क्यों नहीं! जमाने भर की शराफत जैसे तेरे में आ घुसी है।" महाजन ने उसे नीचे गिराया और रस्सी के सहारे उसे सीट के नीचे की रॉडों के साथ बांधने लगा ।
"इस तरह मर जाऊंगा मैं...।" शमशेर तड़प कर बोला--- “अब तो मेरी हिम्मत भी जवाब देती जा रही है...।"
"मर गया तो तेरी लाश लाली खान तक पहुंचा देंगे।"
महाजन ने मजबूती से उसे बांधा कि बंधनों को खोल न सके।
“दिन का वक्त है। गन को कैसे साथ ले जाना है?" जौहर बोला।
"कपड़ों में ही छिपा। बगल में अटका कर हाथ से सहारा दे ले। यहां गन को मामूली चीज समझा जाता है। हर दूसरे इन्सान के पास गन है। कोई देख भी लेगा तो परवाह नहीं करेगा।" महाजन ने कहा।
ये भी ठीक है।" जौहर हंस कर कह उठा।
महाजन और जौहर ठिठक गये।
दोपहर का एक बज रहा था। सूर्य सिर पर था। तेज धूप पड़ रही थी।
सामने ही वैसा झोपड़ा नजर आ रहा था, जैसा कि शमशेर ने बताया था। खुले में बना काफी बड़ा झोंपड़ा था वो। उसकी बगल में छप्पर डालकर गाड़ी रखने की जगह बना रखी थी और वहां इस वक्त काले रंग की गाड़ी भी खड़ी थी। काली वैन। यहां आठ-दस आदमी भी इधर-उधर अपने कामों में व्यस्त दिखाई दे रहे थे। वे सब हथियारबंद थे।
महाजन और जौहर उस झोपड़े के ठीक सामने एक कच्चे से मकान की ओट से ये सब देख रहे थे।
"यहां की हलचल से लगता है कि लाली खान यहां हो सकती। है।" जौहर बोला।
"लाली खान यहां आने की गलती नहीं करेगी जौहर...।" महाजन सोच भरे दृढ़ स्वर में कह उठा।
"तो फिर ये लोग, वो काली गाड़ी... ?"
"ये सब हमें धोखा देने और फंसाने के लिये है। लाली खान ने अब तक जान लिया होगा कि मुहमुड़े राकी शहर के ठिकाने पर उसके चार आदमी मारे गये और हम शकीला को साथ लेकर गये हैं। तो अब हमें फंसाने के लिये पक्के इन्तजाम किए जा रहे हैं कि हम उसके किसी ठिकाने पर पहुंचें और बुरी तरह फंस जायें। जब शकीला ने बताया था कि लाली खान के हर ठिकानों पर, ऐसा इन्तजाम हो चुका है कि हम वहां पहुंचें तो बच न सकें।" महाजन ने सामने नजरें टिकाए कहा।
"ऐसा है तो फिर ये पक्का है कि यहां लाली खान नहीं होगी। ये सब चारा है हमारे लिए।" जौहर बोला।
तभी दोनों चौंके
उनके देखते ही देखते एक औरत झोंपड़े से बाहर निकली थी।
वो तीस बरस के आस-पास थी। लम्बी-चौड़ी बेहद खूबसूरत। चाल-ढाल में रौबीलापन। काले रंग का सूट पहन रखा था, जिस पर बड़े-बड़े फूलों का काम किया गया था। वो सूट उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। उसके लम्बे सुनहरी बाल खुल हुए कमर तक जा रहे थे। रंग गोरा था। होठों पर लिपस्टिक थी और आंखों पर काला चश्मा था।
कई पलों तक तो उस पर से उनकी नजरें ही न हटीं।
वो इन्तहाई खूबसूरत थी।
"माशा अल्लाह!" जौहर के होठों से निकला--- "बनाने वाले ने भी इसे क्या फुर्सत में बनाया है...।"
"ये लाली खान हो सकती है?" महाजन ने गहरी सांस ली।
"बिल्कुल हो सकती है।" जौहर के होंठ सिकुड़ गये।
“नहीं भी हो सकती। शकीला की तरह ये भी, हमें फांसने के लिये चारा हो सकती है।"
“ये बात भी ठीक कही।"
वो औरत वहां खड़े आदमियों से कुछ कह रही थी।
उसका कहा फौरन माना जा रहा था।
“ये लाली खान हो सकती है।" जौहर ने कहा।
“लेकिन हमें इस बात का यकीन नहीं कि ये लाली खान है या नहीं।" महाजन बोला।
“किसी से पूछना भी बेवकूफी होगी।"
“पूछा जा सकता है।” महाजन के होंठ भिंचने लगे।
“किससे?” जौहर ने महाजन को देखा।
"उन्हीं हथियारबंद आदमियों से जो हमें नजर आ रहे हैं।" महाजन का स्वर खतरनाक हो उठा था।
जौहर की निगाह महाजन के चेहरे पर जा टिकी।
महाजन के चेहरे पर खूंखारता भरे भाव रेंग रहे थे।
“क्या है तुम्हारे दिमाग में?” जौहर बोला ।
"वो ही, जो इन हालातों में होना चाहिये।” महाजन ने जौहर को देखकर कहा--- "हमें कुछ तो करना ही है। वापस तो हम जायेंगे नहीं। ऐसे हालात में हमारे पास एक ही रास्ता बचता है कि हमला कर दिया जाये। इन्हें संभलने का मौका ही न दें....।"
"ये आत्महत्या करने वाली बात होगी....।"
"क्यों ?"
“इनकी संख्या ज्यादा है। ये आठ-दस हैं।
गन के सामने दस हों या बीस, कोई फर्क नहीं पड़ता। सब लपेटे में आ जाते हैं।" महाजन ने दांत भींच कर कहा।
"हम शिकार हो सकते हैं।"
"ये काम हमें करना ही है।" महाजन उधर निगाह मारता कह उठा--- "वो सब लापरवाह हैं। ऐसा कुछ नहीं लगता कि उन्हें किसी हमले की आशंका हो। हथियार अवश्य हैं उनके पास। परन्तु कंधों पर लटके हैं। जब तक उनके हथियार कंधों से निकल कर हाथों में आयेंगे, तब तक हम बहुत कुछ कर जायेंगे। शायद तब तक कोई जिन्दा ही न बचे।"
जौहर ने गम्भीरता से सिर हिलाकर कहा।
"हमें आठ-दस नजर आ रहे हैं। वो ज्यादा भी हो सकते हैं। परन्तु हम संभाल लेंगे।"
"तुम गन मुझे दो... मैं...।"
"नहीं। गन का इस्तेमाल मैं ही करूँगा।"
"क्यों?" महाजन बरबस मुस्कराया।
"रिवाल्वर से मुझे मजा नहीं आता। एक-एक गोली निकलती है। इतना सब्र ही कहाँ है मेरे पास ! गन से ही खेला हूं मैं। एक बार गन शुरू हो जाये तो फिर गोलियाँ निकलती ही रहती हैं। सिर्फ गन का मुँह ही घुमाते जाना है और मैदान साफ!" जौहर हंस पड़ा।
महाजन ने गहरी सांस ली।
“ठीक है। तुम गन ही संभालो। ऐसे में तुम्हारी जिम्मेवारी ज्यादा हो जायेगी कि एक भी न बचे... ।" महाजन ने कहा।
"वो मुझ पर छोड़ दो।" जौहर का स्वर खतनाक हो गया--- "मैं सारी जिम्मेवारी लेता हूं।" कहने के साथ ही जौहर ने बगल में दबा रखी गन, कपड़ों के भीतर से निकाली और हाथ में ले ली।
दोनों ने सामने देखा ।
वो औरत वापस झोंपड़े में चली गई थी।
हथियारबंद आदमी बाहर ही थे। तीन एक जगह खड़े आपस में बात कर रहे थे। दो-तीन मिट्टी ढोने के काम पर लगे थे। एक तरफ से मिट्टी लाकर, दूसरी तरफ डाल रहे थे। दो गनमैन अलग-अलग खड़े इधर-उधर देख रहे थे... और दो उस फूस के गैराज में खड़ी गाड़ी को साफ करने, चमकाने का काम कर रहे थे।
"इन सब को तो मैं एक ही बार में गन के लपेटे में ले लूंगा।” जौहर दरिन्दगी से कह उठा।
“ठीक है। तैयार हो जा।" महाजन रिवाल्वर निकालता कह उठा--- "पहले मैं उस तरफ जाऊंगा। वहाँ मिट्टी की दीवार की आड़ में जब जाकर रुक जाऊं तो तब तू गन के साथ वहां आएगा और फायरिंग शुरू कर देगा।"
"तू पहले क्यों जायेगा वहाँ ?" जौहर ने महाजन का देखा ।
"क्योंकि मेरे पास रिवाल्वर है। ऐसे मौके पर रिवाल्वर काम नहीं करेगी, क्योंकि उनकी संख्या ज्यादा है। मैं इस पर ध्यान रखूंगा कि कोई तुम पर फायर करना चाहे तो मैं सिर्फ उसे संभाल सकूं।" महाजन ने कहा।
"ठीक है।" जौहर के होंठ भिंच गये थे--- "चल शुरू हो जा...।"
महाजन ने उसका कंधा थपथपाया।
"छोड़ना मत किसी को...।"
"कोई नहीं छूटेगा।" खतरनाक स्वर में कह उठा जौहर।
महाजन ने रिवाल्वर संभाली और वहां से उल्टी तरफ बढ़ता चला गया। उधर के कुछ मकानों को पार करके गली में लापरवाही से आगे की तरफ बढ़ने लगा।
कुछ आगे आया तो जौहर को नजर आने लगा।
गन संभाले जौहर, महाजन को आगे बढ़ता देखता रहा।
जब महाजन उधर, उस जगह के काफी करीब आ गया तो एकाएक जौहर गन पकड़े उस कच्चे मकान की ओट से निकला और तीर की रफ्तार से सीधा आगे बढ़ता चला गया। नजरें झोंपड़े के आसपास टहलते, नजर आते आदमियों पर थीं।
तभी उसने महाजन को झोंपड़े के बाहर कच्ची दीवार की ओट में बैठते देखा।
वहाँ मौजूद आदमियों की नजर गन थामे भागकर आते जौहर पर नहीं पड़ी थी और जब नजर पड़ी तो कुछ देर हो चुकी थी। दोनों हाथों से गन थामे जौहर ने दौड़ते-आते गन का मुँह खोल दिया।
तड़-तड़-तड़ की आवाजों से वातावरण गूंज उठा।
कई चीखें वहाँ गूंजी।
तब तक महाजन भी दीवार की ओट से खड़ा हो चुका था।
गोलियां चलाता जौहर पास आ पहुंचा था।
तड़-तड़-तड़ की आवाजें रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। जौहर की गन हर दिशा में घूमती जा रही थी। कई गोलियां झोंपड़े के भीतर भी गईं। इसी बीच महाजन ने देखा एक को, जो गन हाथों में लेकर जौहर पर फायरिंग करने जा रहा था।
महाजन ने उसी पल उनके सिर का निशाना लेकर गोली चला दी।
गोली उसके सिर में जा लगी। गन हाथ से छूट गई। वो नीचे जा गिरा था।
जौहर गन का मुंह खोले भीतर प्रवेश कर चुका था।
सब आदमी उसने साफ कर दिये थे। वहां खड़ी काली कार में भी कई गोलियां जा धंसी थीं। वहां मौजूद दो आदमियों में से एक तो गोलियों का शिकार हो गया था, दूसरा उस कार के पीछे जा छिपा था।
“उस कार के पीछे एक आदमी है। तुम उसे संभालो!" जौहर ने चीखकर कहा और सीधा झोंपड़े में प्रवेश कर गया।
झोंपड़े में उसके प्रवेश करते ही एक गोली चली। जो कि उसकी बांह को छीलते हुए निकल गई।
सामने एक आदमी था, उसके हाथ में रिवाल्वर थी। परन्तु वो दूसरी गोली न चला सका ।
जौहर ने दांत भींचे गन का मुंह खोल दिया।
तड़-तड़ की आवाजें गूंजी और वो आदमी उलट कर नीचे जा गिरा।
तभी बाहर एक साथ दो गोलियां चलने की आवाजें गूंजीं ।
गन थामें जौहर की खतरनाक निगाह उस औरत को तलाश कर रही थी, जो कि उसने एक तरफ नीचे गिरी पड़ी देखी। वो घायल थी। उसके पेट में और बांह में गोलियां लगी थीं। जौहर जानता था कि उसकी गन की कई गोलियां झोंपड़े के भीतर भी आई हैं। ये औरत उन्हीं गोलियों का शिकार हुई होगी।
तभी रिवाल्वर थामें महाजन ने भीतर प्रवेश किया।
"बाहर सब ठीक है?" जौहर ने औरत पर नज़रें टिकाए कहा।
“हाँ।"
"तुम बाहर ही रहो। इसे मैं देखता हूँ।”
महाजन बाहर निकल गया।
जौहर गन थामें उस औरत के पास जा पहुँचा।
नीचे पड़ी औरत की आँखें बंद थीं। उसके पेट और बाँह से काफी खून निकल चुका था।
"तुम होश में हो?" जौहर ने दाँत भींच कर कहा।
उस औरत ने आँखें खोलीं। थोड़ा सा हिली।
"लाली खान हो तुम?"
"न...हीं...।" औरत के होंठों से धीमा सा स्वर निकला।
"तो तुम लाली खान के ठिकाने पर क्या कर रही हो?"
"लाली खान ने मुझे यहाँ भेजा था कि शायद तुम लोग आओ और तुम्हें पकड़ा या मारा जा सके।"
"लाली खान कहाँ मिलेगी ?"
"उसके कई ठिकाने हैं... किसी को पता नहीं होता कि वो कहां होगी...।" उसने पीड़ा भरे स्वर में धीमे से कहा।
"लाली खान का सबसे खास ठिकाना बताओ।"
वो चुप रही।
"बता...।" जौहर गुर्राया।
“नहीं….. ।” वो पीड़ा में डूबी धीमें स्वर में कह उठी--- "तुम मुझसे कुछ नहीं जान सकते...।"
"अगर नहीं बताया तो मैं तुझे भून दूंगा। तेरे सारे आदमी मर चुके हैं।” जौहर ने दाँत भींच कर कहा-- "लाली खान का वो ठिकाना बता, जो कि उसका खास हो, बोल...।"
"न... हीं...।" उसने पीड़ा भरे धीमे स्वर में कहा और आँखें बंद कर लीं।
जौहर ने उसकी तरफ गन की और भिंचे दाँतों से ट्रेगर दबा दिया।
तड़-तड़-तड़ गोलियों का छोटा सा ढेर निकला और उस औरत के शरीर में प्रवेश कर गया। चंद पलों के लिए वो छटपटाई, फिर शांत पड़ती चली गई। जौहर ने झोंपड़े पर निगाह मारी, फिर बाहर आ गया। सामने महाजन था। हर तरफ लाशें बिखरी हुई थीं। आस-पास लोग अपने घरों से सहमें से झांक रहे थे।
"निकल ले...।" जौहर ने भिंचे स्वर में कहा।
दोनों बाहर निकले और गली में आगे बढ़ गये।
जौहर ने खुल्लम-खुल्लाह गन थाम रखी थी।
महाजन के हाथ में भी रिवाल्वर दबी थी।
लोग उन्हें देख रहे थे।
"उसने कुछ बताया?" महाजन ने पूछा।
"वो मुंह खोलने को तैयार नहीं थी।" जौहर गुर्राया--- "मार दिया उसे...।"
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