अगली सुबह ।
अखबार आने से पहले ही विक्रम ने बिना कुछ बताए मार्निंग वाक के लिए जाने के बहाने होटल छोड़ दिया ।
मेन रोड्स पर आने की बजाय वह देर तक पिछली गलियों में भटकता रहा ।
लगभग नौ बजे, उसने एक रिक्शेवाले के जरिए सुलेमान के पास मैसेज भिजवाया कि एक घण्टे बाद वह जॉन के रेस्टोरेंट के पिछले कमरे में आकर उससे मिले ।
जॉन का रेस्टोरेंट उसी इलाके में था, जहां विक्रम की रिहाइश थी । मगर उसके निवास-स्थान से दूर था ।
लेकिन सुलेमान का बुक स्टाल-कम-सॉफ्ट ड्रिंक्स कॉर्नर उस मकान के लगभग सामने था, जिसमें विक्रम रहता था ।
करीब तीस वर्षीय सुलेमान पहले शातिर जेबकतरा हुआ करता था । पढ़ा-लिखा और हौसलामंद होने के साथसाथ अच्छी सूझबूझ का मालिक भी वह था । बुनियादी तौर पर वह एक अच्छा आदमी था । लेकिन बेकारी, अभावों और बुरी सोहबत ने उसे वो पेशा अपनाने पर मजबूर कर दिया था ।
विक्रम की पुलिस की नौकरी के दौरान से ही सुलेमान के उससे सम्बन्ध थे । दरअसल सुलेमान उसके उन कांटेक्ट्स में से था जिन्हें वह एमरजेंसी में ही इस्तेमाल किया करता था ।
जेबकतरे से दुकानदार बनने में, विक्रम ने हर तरह का सहयोग उसे दिया था । दुकानदार बनने के बाद सुलेमान ने अपने पुराने पेशे से तो हमेशा के लिए तौबा कर ली थी । मगर उसकी मिलनसारिता की वजह से अंडरवर्ल्ड के लोगों से उसके ताल्लुकात उसी तरह बने हुए थे ।
वह खुद को विक्रम का शुक्रगुजार समझता था । और अपनी मामूली हैसियत के बावजूद उसके लिए सब कुछ करने को तैयार रहा था । विक्रम को भी बड़ा पूरा भरोसा उसके ऊपर था ।
जहां तक जॉन का सवाल था वह गैर कानूनी ढंग से शराब बेचने का धन्धा किया करता था । असलियत यह थी, उस धन्धे के मालिक और ही लोग थे । जॉन को, वे लोग बतौर आड़ इस्तेमाल करते थे । जब भी पुलिस रेड होती जॉन को ही बलि का बकरा बनाया जाता था । ऐसा करते रहने के पीछे जॉन की अपनी मजबूरी थी । पैसे की तंगी की वजह से जॉन कई साल पहले तीन ब्लू फिल्मों में काम कर चुका था । उन्हीं की बिना पर जॉन को ब्लैकमेल करके उससे वो काम वे लोग करा रहे थे ।
एक बार रेड के दौरान कुछ ऐसी बातें विक्रम के सामने आईं जिनसे पता चलता था कि धन्धे का असली मालिक जॉन नहीं था ।
विक्रम ने उसे प्रत्येक प्रकार की सुरक्षा एवं सहायता का आश्वासन दिया तो जॉन ने असलियत बता दी । जॉन को सरकारी गवाह बनाकर मामले को मय ठोस सबूत, जिन्हें जुटाने में भी जॉन ने मदद की थी, अदालत में पेश किया गया तो असली मालिकान को सजा हो गई ।
फिर विक्रम के प्रयासों और मदद से जॉन ने आरम्भ में चाय की दुकान शुरू की जो धीरे-धीरे औसत दर्जे के एक रेस्टोरेंट का रूप ले चुकी थी ।
जॉन खुद को तहेदिल से विक्रम का अहसानमंद समझता था ।
जब विक्रम रेस्टोरेंट के पिछले कमरे में पहुंचा तो सुलेमान को उसने अपना इंतजार करता पाया ।
सुलेमान ने बताया कि पुलिस उसके फ्लैट की निगरानी कर रही थी । सादा लिबास में दो पुलिसिए इलाके में भी चक्कर लगा रहे थे ।
विक्रम को सुनकर ताज्जुब नहीं हुआ । वह जानता था, पुलिस उसे पकड़ने की हर सम्भव कोशिश करेगी । पुलिस विभाग में नौकरी कर चुकने की वजह से ज्यादातर पुलिस वाले उसे पहचानते थे । इस असलियत को एक पल के लिए भी वह नहीं भूला था । यही वजह थी कि, एहतियातन, उसने सुलेमान से मुलाकात का यह तरीका इख्तियार किया था ।
"तुम्हें दिन में इस तरह खुलेआम नहीं घूमना चाहिए विक्रम !" सुलेमान ने मत व्यक्त करते हुए कहा ।
विक्रम मुस्कराया ।
"जानता हूं । लेकिन मजबूरी में सब करना पड़ता है ।" कहकर उसने पूछा-"परवेज आलम के बारे में कुछ सुना तुमने ?"
"कुछ ? मैं सिर्फ सुन ही उसके बारे में रहा हूं । उसके अलावा शहर में किसी और की चर्चा है तो बस तुम्हारी है । वे लोग बुरी तरह तुम्हें तलाश कर रहे हैं । यह तो तुम जानते ही हो ?"
"हां, लेकिन तुम्हें ज्यादा जानकारी है ।"
सुलेमान ने सिर हिलाकर सहमति दी ।
"मानता हूं । क्योंकि मैं लोगों की बातें सुनता रहता हूं ।" वह बोला-"लेकिन मैं आफताब आलम नहीं हूं । पहले सिर्फ परवेज आलम की बात थी मगर पिछली रात जहूर आलम भी मारा गया । यानी दो रोज में उसके दो भाई मारे गए और दोनों की मौत के लिए वह तुम्ही को जिम्मेदार ठहरा रहा है । वह तुम्हारी तिक्का-बोटी कर डालना चाहता है ।"
"जानते हो ।" विक्रम ने उसके कथन को नजरअंदाज करते हुए पूछा-"मैंने तुम्हें क्यों बुलाया है ?"
"मैं नजूमी तो हूं नहीं जो बिना बताए जान लूंगा ।"
"मुझे तुम्हारी मदद चाहिए । करोगे ?"
"जरूर । हुक्म करो ।"
"यह तो तुम जानते ही हो कि सारा बखेड़ा परवेज की हत्या के बाद खड़ा हुआ है । और यह भी कि उसकी हत्या मैंने नहीं की । तुम पूछताछ करके पता लगाने की कोशिश करो कि उसकी हत्या किसने की थी ?"
"जिस जगह परवेज की लाश पड़ी पाई गई थी वो एक सुनसान और अंधेरी गली है । रात की बात तो अलग रही दिन में भी वहां आमदरफ्त ना के बराबर रहती है । इसलिए मुझे नहीं लगता कि किसी ने उसकी हत्या की जाती हुई देखी होगी या हत्यारे को आते-जाते देखा होगा ।" सुलेमान विचारपूर्वक कह रहा था और मान लो वहां आसपास किसी रहने वाले ने कुछ देखा भी था तो इस वक्त हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि वह उस बारे में अपनी जुबान कतई नहीं खोलेगा ।"
मैं जानता हूं, यह काम आसान नहीं है ।"
सुलेमान मस्कराया ।
"लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि मैं कोशिश नहीं करूंगा । मैं अपनी ओर से कोई कसर बाकी नहीं छोडूंगा ।" वह बोला-"अब यह बताओ, पहले किससे जान छुड़ाना चाहते हो-पुलिस से या आफताब आलम से ?"
विक्रम हंसा ।
"जिससे भी छूट जाए । फिलहाल तो किसी से भी छूटती नजर नहीं आ रही है ।"
"तुम खुद एक पुलिस अफसर रह चुके हो । फिर भी अपनी बेगुनाही का यकीन उन्हें नहीं दिला सकते ।"
"नहीं ।"
"क्यों ?"
"पहली वजह तो यह है कि मुझसे खुन्नस रखने वाले अभी भी कई अफसर यहां मौजूद हैं । दूसरे मामला हत्या का है । आफताब आलम ने बाकायदा मेरे नाम की रिपोर्ट लिखाई है कि परवेज की हत्या मैंने की थी । इसलिए रिपोर्ट पर कार्यवाही तो की ही जाएगी ।"
"यानी इस मामले में कुछ नहीं किया जा सकता ?"
"जो किया जा सकता है, मैं वही कर रहा हूं । असली हत्यारे को मय ठोस सबूत पुलिस के हवाले करके ही मैं खुद को बेगुनाह साबित कर सकता हूं ।"
सुलेमान कुछ देर खामोश बैठा रहा फिर पूछा-"कोई और सेवा ?"
"नहीं, शुक्रिया ।"
"अपने फ्लैट से कोई चीज मंगानी है ।"
"नहीं । जरूरत पड़ने पर मैं खुद भी वहां जा सकता हूं । लेकिन ख्वामख्वाह मुसीबत मोल लेना समझदारी नहीं है इसलिए वहां न जाना ही बेहतर है ।"
"ठीक है । दोबारा कब मुलाकात होगी ?"
"कह नहीं सकता । अलबत्ता तुमसे सम्पर्क बनाए रखूगा । तुम्हारे मकान मालिक का फोन नम्बर मेरे पास है ।"
"और अगर मुझे कोई जानकारी हासिल हो जाए ?"
"तो तुम स्टैंडर्ड में अमरनाथ को मैसेज दे देना ।"
सुलेमान खड़ा हो गया ।
"ठीक है । आज का अखबार तो पढ़ लिया होगा ?"
"नहीं"
सुलेमान ने अपनी जेब से मुड़ा-तुड़ा अखबार निकालकर मेज पर डाल दिया ।
"पढ़ लो ।" उसने कहा-"मैं चलता हूं ।" और बाहर निकल गया ।
विक्रम ने मुड़ा-तुड़ा अखबार खोलकर सीधा किया । वास्तव में, वो पूरा अखबार न होकर मुख्य पृष्ठ वाला भाग था ।
मुख्यपृष्ठ का लगभग चौथाई हिस्सा विक्रम की पब्लिसिटी से भरा हुआ था ।
संक्षेप में, समाचार के अनुसार, पिछली रात एक संदिग्ध हत्यारे को पकड़ने के प्रयास में पुलिस की उस आदमी के साथियों के साथ मुठभेड़ हो गई थी । दोनों ओर से गोलियां चलने के परिणामस्वरूप चार व्यक्ति मारे गए और कई जख्मी हो गए थे । मृतकों में एक कुख्यात अपराधी आफताब आलम का छोटा भाई जहूर आलम था और दो उसके गैंग के बदमाश कांती और मोती थे । चौथे मृतक के बारे में सिर्फ इतना ही पता चल सका कि उसका नाम लालाराम था ।
गोली-बारी में इनवाल्व तीन आदमी भागने में कामयाब हो गए थे । उन तीनों में से एक भूतपूर्व सब-इंस्पेक्टर ऑफ पुलिस विक्रम खन्ना भी था । जिसके बारे में संदेह किया जाता है कि उसने दो रोज पहले परवेज आलम नामक, ड्रग्स का बड़े पैमाने पर धन्धा करने वाले, आदमी की हत्या की थी ।
जख्मी होने वालों में सिर्फ किरण वर्मा के बारे में ही दिया हुआ था । उसे चिन्ताजनक हालत में सिविल हास्पिटल ले जाया गया था । उसकी कण्डीशन अभी भी सीरियस थी ।
उसके बारे में इतना और छपा था कि वह विदेश मंत्रालय के एक विभाग में स्टेनो थी ।
समाचार के अन्त में विक्रम का हुलिया दिया हुआ था । साथ ही जनता से अपील थी कि उसे पकड़वाने में पुलिस की मदद करें ।
गनीमत सिर्फ इतनी थी कि उसकी फोटो अखबार में नहीं छपी थी । जबकि पुलिस विभाग के रिकार्ड में, नौकरी के दौरान की, उसकी कई तस्वीरें मौजूद थीं ।
हालांकि समाचार काफी नमक-मिर्च लगाकर छापा गया था । लेकिन खुलेआम एक रेस्टोरेंट के बाहर हुई शूटिंग की इतनी बड़ी और सनसनीखेज वारदात का जो ब्यौरा दिया हुआ था वो अपने आपमें न तो पर्याप्त था और न ही सही मायनों में तर्क पूर्ण ।
समाचार के अनुसार, एक ओर तो विक्रम को जहूर आलम और उसके आदमियों का सम्भावित शिकार बताया गया था । दूसरी ओर कहा गया था कि वे लोग विक्रम के ही साथी थे । और उसे भागने का मौका देने की खातिर पुलिस का ध्यान बंटाने के लिए उन्होंने ही फायरिंग शुरू की थी ।
ऐसा लगता था कि असलियत कोई नहीं समझ पाया था और अगर किसी ने समझी थी भी तो प्रेसरिपोर्टर्स को इस बारे में कुछ नहीं बताया था ।
बहरहाल, जो भी था, विक्रम हर तरफ से पूरी तरह फंसा हुआ था । उसके चारों ओर खतरा-ही-खतरा था । हर कोई उसकी जान लेना चाहता था ।
इन हालात में भी उससे अपेक्षा की गई थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी एक सूचना को वह सही व्यक्ति तक पहुंचा देगा ।
विक्रम गहरी सांस लेकर खड़ा हो गया ।
अखबार को छोटे-छोटे टुकड़ों में फाड़कर वह टॉयलेट में गया । उन्हें कमोड में डालकर फ्लश कर दिया ।
कमरे से निकलकर वह जॉन के पास पहुंचा । उसे बता कर, कि जा रहा था, वह रेस्टोरेंट के पिछले दरवाजे से निकल कर गली में पहुंचा और सावधानीपूर्वक दायीं ओर चल दिया ।
गली के बाहर सड़क पर मुश्किल से एक फर्लांग दूर पोस्ट ऑफिस था ।
वह, वहां मौजूद तीन पब्लिक काल बूथ्स में से एक में जा घुसा ।
डायरेक्ट्री से पता करके उसने सिविल हास्पिटल का नम्बर डायल किया ।
सम्बन्ध स्थापित होने पर दूसरी ओर से आपरेटर का स्वर सुनाई दिया ।
"सिविल हास्पिटल ।"
"गुड मार्निंग, मैडम !" विक्रम ने शिष्ट स्वर में कहा । फिर झूठ का सहारा लेता हुआ बोला-"मेरा नाम विजय कुमार है । मैं पी. टी. आई. का संवाददाता हूं । और पिछली रात शूटिंग में जख्मी हुई किरण वर्मा की कण्डीशन के बारे में जानना चाहता हूं । वह इसी हास्पिटल में एडमिट है ।"
"होल्ड ए मोमेंट, प्लीज । आयम कनेक्टिग यू टू एमरजेंसी इंक्वायरी !"
"थैंक्यू, मैडम ।"
लाइन पर कनेक्शन जुड़ने की आवाज सुनाई दी फिर एक दक्षिण भारतीय नारी स्वर उभरा ।
"एमरजेंसी इंक्वायरी ।"
विक्रम ने पुन: अपना सवाल दोहराया ।
जवाब में कहा गया कि मिस किरण वर्मा की कण्डीशन सीरियस थी और उससे मिलने की किसी को इजाजत नहीं थी ।
विक्रम ने धन्यवाद देकर फोन डिसकनेक्ट कर दिया ।
फिर उसने पुलिस स्टेशन में एस. आई. चमनलाल से सम्बन्ध स्थापित किया ।
'एस० आई० चमनलाल स्पीकिंग ।" दूसरी ओर से कहा गया ।
"विक्की बोल रहा हूं, चमन !" विक्रम ने कहा ।
लाइन पर पल भर खामोशी छायी रही फिर कहा गया-"जिन्दा हो ?"
"अभी तक तो हूं ।"
"कहां से बोल रहे हो ?"
"एक पब्लिक फोन से ।"
"यह पब्लिक फोन है कहां ?"
विक्रम हंसा ।
"यह जानकर क्या करोगे । जब तक तुम या कोई और यहां पहुंचेगा, मैं बहुत दूर जा चुका होऊंगा ।"
"यानीकि तुम खुद को हमारे हवाले करना नहीं चाहते ?"
"अभी नहीं । पहले मुझे कुछ और जरूरी काम करना है ।"
"क्या ?"
"यह तुम्हें नहीं बता सकता ।"
"अच्छा-ऐसी बात है ?"
"हां ।" विक्रम ने जवाब दिया-"अब तुम ध्यान से मेरी बात सुनो । परवेज आलम की हत्या के मामले में मुझे फंसाने की कोशिश में अपना वक्त जाया मत करो । उसकी हत्या करना तो दरकिनार रहा, उस पचड़े से कुछ भी लेना-देना मुझे नहीं है । तुम उस मामले पर किसी और एंगिल से गौर करो तो बेहतर होगा । मेरी तरफ से बिल्कुल ध्यान हटाकर और पहलुओं से सोचोगे तो जरूर किसी सही नतीजे पर पहुंच जाओंगे ।"
लाइन पर कुछ देर खामोशी छायी रही फिर चमनलाल का शांत स्वर सुनाई दिया ।
"मैं मानता हूं, हालात को देखते हुए तुम पर परवेज की हत्या का सन्देह तो किया जा सकता है, लेकिन उसकी हत्या तुमने नहीं की, विक्की ! मगर तुम खुद इस महकमे में रह चुके हो । पुलिस की नौकरी का मुझसे ज्यादा तजुर्बा भी तुम्हें है और इस शहर के तमाम हालात से मेरे मुकाबले में तुम ज्यादा वाकिफ हो । इसलिए अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारे खिलाफ आफताब आलम ने जो नामजद रिपोर्ट लिखवाई है उस पर कार्यवाही तो करनी ही पड़ेगी । वैसे तो मौजूदा हालात में तुम्हारे लिए पुलिस कस्टडी में रहना ज्यादा फायदेमंद है ।"
"क्यों ?"
"इसलिए कि वही एक जगह है जहां तुम आफताब आलम से महफूज रह सकते हो ।"
"उसकी फिक्र तुम मत करो । मुझे उसकी कोई परवाह नहीं है ।"
"अच्छा ? लेकिन मैं उसकी ओर से बेफिक्र नहीं हो सकता । उसकी हालत पगलाए सांड जैसी हो रही है ।"
"होने दो ।" विक्रम ने लापरवाही से कहा फिर पूछा, "किरण वर्मा का क्या किस्सा है ?"
"क्या मतलब ? उसका क्या किस्सा होना है ?"
"उसने कुछ बताया था ?"
"किस बारे में ?"
"यही तो मैं जानना चाहता हूं ।"
"पहेलियां मत बुझाओ, विक्की !"
"पहेलियां नहीं, चमन, पिछली रात हुए काण्ड के लिए सिर्फ मैं ही जिम्मेदार नहीं हूं । वह भी पूरे तौर पर उसमें शामिल है । यह सही है कि आफताब आलम के आदमी रेस्टोरेंट के बाहर मेरा इंतजार कर रहे थे । लेकिन वह भी अलादीन के चिराग के जिन्न की तरह न जाने कहां से ऐन वक्त पर हाजिर हो गई थी ।"
"सॉरी, मैं इस बारे में कतई कुछ नहीं जानता ।"
"तुम्हारा न जानना ही बेहतर है ।"
विक्रम ने सम्बन्ध-विक्छेद कर दिया ।
अब स्थिति और बदल गई थी ।
अभी तक चमनलाल के विचारानुसार, किरण वर्मा का पिछली रात रेस्टोरेंट में उसके साथ आ बैठना महज इत्तिफाक था । विक्रम सोच रहा था । और किरण वर्मा ने बाहर जो हंगामा खड़ा किया था, उसका फायदा उठाकर वह रेस्टोरेंट से भागने में कामयाब हो गया था । लेकिन अब चमनलाल समझने पर मजबूर हो गया होगा कि वह किसी तगड़े फेर में था ।
एक हिसाब से देखा जाए तो यह भी उसके हक में फायदेमंद ही था । क्योंकि इस तरह, जरूरत पड़ने पर, वह इंटेलीजेंस ब्यूरो की मदद भी हासिल कर सकता था । विक्रम ने मन-ही-मन कहा और पब्लिक काल बूथ से निकल कर सावधानीपूर्वक सड़क पर चल दिया ।
चन्द क्षणोपरान्त उसने एक खाली जाता ऑटोरिक्शा रोका और होटल विश्राम कहता हुआ उसमें सवार हो गया ।
ऑटोरिक्शा अपनी मंजिल की ओर दौड़ने लगा ।
करीब दस मिनट बाद, विक्रम होटल विश्राम जा पहुंचा ।
बीच के दर्जे के उस होटल का मैनेजर ललितराज नामक अधेड़ उम्र का एक ऐसा कांईया आदमी था जो हर तरह के फसाद से खुद को दूर रखना चाहता था । वह पुलिस और अपराधियों दोनों से समान रूप से बचता था । सम्भवतया अकेला विक्रम ही कुछ हद तक इसका अपवाद था ।
कोई दो साल पहले, ललितराज की बेटी एक ऐसे युवक के साथ भाग गई थी । जिसका काम जवान खूबसूरत लड़कियों को प्रेम का नाटक करके शादी के बहाने या फिल्मों में हीरोइन का चांस दिलाने के बहाने उनके घर से भगा ले जाना था । दरअसल वह युवक एक ऐसे गिरोह के लिए काम करता था जो जवान लड़कियों को खाड़ी के देशों में बेचने का धन्धा करता था ।
0 Comments