अँधेरे में सीटी की गूँज

चाँद लगभग पूरा निकल आया था। चमकीली चाँदनी से पूरा रास्ता नहाया हुआ था। लेकिन पेड़ों की परछाइयाँ मेरा पीछा कर रही थीं, सिन्दूर के पेड़ों की कुटिल शाखाएँ मुझ तक बढ़ रही थीं—कुछ धमकाती हुई सी कुछ ऐसे जैसे उन्हें साथ की तलाश हो।

एक बार मैंने सपना देखा कि पेड़ चल सकते हैं। ऐसी ही एक चाँदनी रात में उन्होंने खुद को अपनी जड़ों से थोड़ी देर के लिए अलग कर लिया, एक-दूसरे से मिले और पुराने दिनों को याद किया—क्योंकि उन्होंने बहुत सारे लोग और घटनाएँ देखी हुई थीं, खासकर पुरानी। और फिर सुबह होने से पहले वे उसी जगह पर लौट आते हैं जहाँ वे बड़े होने के लिए अभिशप्त थे। रात के एकाकी प्रहरी और यह उनके घूमने के लिए एक बेहतर रात थी। वे घूमने के लिए बेताब थे—पत्तों की बेचैन सरसराहट, पेड़ के तनों की चरचराहट—ये वे आवाज़ें थीं जो उनके अन्दर से उस रात की खामोशी में आ रही थीं…

कभी-कभी कोई और घूमने वाला अँधेरे में मेरे पास से गुज़र जाता था। अभी ज़्यादा रात नहीं हुई थी, सिर्फ़ आठ बजे थे और कुछ लोग घर लौटने के रास्ते में थे। कुछ शहर में घूमते चमकती रोशनी, दुकानों और रेस्तराँ का आनन्द ले रहे थे। उस अँधेरे रास्ते पर मैं किसी को पहचान नहीं पा रहा था। उन्होंने भी मुझ पर ध्यान नहीं दिया। मुझे बचपन का एक पुराना गीत याद आया। धीरे-धीरे मैं उसे गुनगुनाने लगा और जल्दी ही शब्द मुझ तक वापस आने लगे—

हम तीन

हम नहीं हैं एक भीड़;

हम लेकिन साथ भी नहीं—

मेरी प्रतिध्वनि,

मेरी परछाईं,

और मैं…

मैंने अपनी परछाईं को देखा, शान्ति से मेरे साथ चलती हुई। हम अपनी परछाईं को कोई महत्त्व नहीं देते। यह हमेशा हमारे साथ रहती है, बिना कोई शिकायत किये जीवन भर का साथ, मूक और असहाय होकर हमारे हर जुड़ाव और अलगाव की साक्षी बनी रहती है। इस चमकती चाँदनी रात में मैं खुद को रोक नहीं पाया तुम पर ध्यान देने से, मेरी परछाईं और मैं माफ़ी चाहता था कि तुम्हें इतना कुछ देखना पड़ा जिसके लिए मैं शर्मिंदा था, लेकिन खुश भी कि तुम साथ थीं जब मुझे मेरे हिस्से की छोटी जीतें मिलीं। और मेरी प्रतिध्वनि का क्या? मैंने ज़ोर से आवाज़ लगानी चाही यह देखने के लिए कि मेरी पुकार मुझ तक वापस आती है कि नहीं; लेकिन खुद को ऐसा करने से रोक लिया क्योंकि मैं पहाड़ों की उस पूर्ण निःशब्दता और पेड़ों के वार्तालाप को भंग नहीं करना चाहता था।

रास्ता ऊपर पहाड़ी पर जाकर खत्म होता था और ऊँचाई पर समतल हो आया था, जहाँ यह लम्बे देवदारों के बीच चाँदनी का रिबन लगता था। एक चंचल गिलहरी सड़क के बीच उछलती-कूदती, एक पेड़ से दूसरे पेड़ तक आ-जा रही थी। एक रात की चिड़िया ने पुकार लगायी। बाकी सन्नाटा था।

एक पुराना कब्रिस्तान मेरे सामने पड़ा। यहाँ कई पुरानी कब्रें थीं—कुछ बड़ी और स्मारकीय—और कुछ नयी कब्रें भी थीं, क्योंकि कब्रगाह अभी भी इस्तेमाल में लायी जा रही थी। मैं उनमें से एक पर बिखरे हुए फूल देख सकता था—कुछ पुराने डेहलिया और लाल साल्विया के फूल। थोड़ा आगे, चारदीवारी के पास, कब्रगाह की बची हुई दीवार तेज़ मानसून बारिश में ढह गयी थी। कुछ कब्रों पर लगे पत्थर भी दीवार के साथ ही निकल आये थे। एक कब्र खुली पड़ी थी। एक सड़ा हुआ ताबूत और कुछ बिखरी हुई हड्डियाँ किसी की आखिरी स्मृति के रूप में बचे थे जो मेरी और तुम्हारी तरह जीता और प्यार करता था।

कब्र पर लगे पत्थर का कुछ हिस्सा सड़क पर गिरा था और उसकी लिखावट धूमिल पड़ गयी थी। मैं कोई विकृत इन्सान नहीं लेकिन किसी चीज़ को देखकर मैं झुक गया और एक नरम, गोल हड्डी का टुकड़ा उठाया, शायद एक खोपड़ी का हिस्सा। मेरे हाथों का दबाव पाकर हड्डी टुकड़ों में चूर हो गयी। मैंने उसे घास पर गिरने दिया। मिट्टी, मिट्टी में।

और फिर कहीं से, बहुत दूर से नहीं, किसी के सीटी बजाने की आवाज़ आयी। पहले मुझे लगा कि मेरी ही तरह कोई देर शाम घूमने वाला व्यक्ति सीटियाँ बजा रहा है, जैसे मैं पुराने गीत गुनगुना रहा था। लेकिन सीटी बजाने वाला बहुत जल्दी सामने आया—सीटी की आवाज़ तेज़ और खुशमिज़ाज थी। एक लड़का साइकिल चलाता हुआ तेज़ी से गुज़रा। मैं उसकी बस एक झलक ही देख पाया, जब तक उसकी साइकिल सड़क पर परछाइयाँ बुनती आगे बढ़ गयी।

लेकिन कुछ ही मिनटों में वह वापस आया। इस बार वह मुझसे कुछ फीट दूर रुका और उसने मेरी ओर एक प्रश्नवाचक, अधूरी मुस्कान फेंकी। एक दुबला-पतला, साँवला चौदह या पन्द्रह साल का लड़का। उसने स्कूल की ब्लेज़र और पीला स्कार्फ़ पहन रखा था। उसकी आँखों में चाँदनी अपनी पूरी तरलता के साथ चमक रही थी।

“तुम्हारी साइकिल में घंटी नहीं है,” मैंने पूछा।

उसने कुछ नहीं कहा, बस अपने सिर को एक तरफ़ हल्का झुकाते हुए मुझे देखकर मुस्कुराया। मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मुझे लगा कि वह मुझसे हाथ मिलायेगा। लेकिन तभी अचानक, एकदम से वह फिर आगे बढ़ गया, प्रफुल्लित होकर सीटी बजाते हुए हालाँकि बिना लय के। एक सीटी बजाता हुआ स्कूली लड़का। उसके लिए बाहर घूमने के लिए थोड़ी देर हो चुकी थी, लेकिन वह आज़ाद किस्म का बन्दा लग रहा था।

सीटी की आवाज़ मंद पड़ने लगी, फिर बिलकुल ही सुनाई देनी बन्द हो गयी। एक गहन, नीरव शान्ति ने जंगल को घेर लिया। मैं और मेरी परछाईं घर की ओर चल पड़े।

अगली सुबह मैं एक अलग तरह की सीटी की आवाज़ से जागा—खिड़की के बाहर एक चिड़िया के गीत से।

वह एक खुशनुमा दिन था, सूरज की रोशनी गर्म और लुभावनी थी, और मैं बाहर निकलने के लिए मचल उठा, लेकिन कुछ काम खत्म करने थे, कुछ प्रूफ़ सही करने थे, चिट्ठियाँ लिखनी थीं। और कुछ दिनों बाद ही मैं पहाड़ की चोटी तक जा सका, देवदारों के नीचे उस शान्त, एकाकी विश्राम स्थल पर। यह बात मुझे विचित्र लगी कि जिन्हें बर्फ़ में चमकती चोटियों का अद्भुत दृश्य देखने का अवसर मिला हुआ है, वे कई फीट नीचे दबे हुए हैं।

वहाँ कुछ मरम्मत का काम चल रहा था। कब्रगाह की बची हुई दीवार खड़ी की जा रही थी, लेकिन ओवरसियर ने मुझे बताया कि क्षतिग्रस्त कब्रों को ठीक करने के लायक पैसे नहीं हैं, चौकीदार की मदद से मैंने बिखरी हुई हड्डियों को समेट कर टूटी हुई कब्र के पास हुए एक छोटे गढ्डे में डाला और उसे कुछ पैसे दिये ताकि वह खुली हुई कब्र को घेर दे।

कब्र के पत्थर पर लिखा नाम मिट गया था, लेकिन मैं तिथि पढ़ पाया—20 नवम्बर 1950—कोई पचास साल पहले, लेकिन इतना पहले भी नहीं कि कब्र के पत्थर ही निकल जायें…

मुझे चर्च में दफ़न व्यक्तियों के ब्योरे का रजिस्टर मिला और मैंने इसके पीले पन्नों को 1950 की तरफ़ पलटा, जब मैं खुद भी एक स्कूली लड़का ही था। मुझे वहाँ नाम मिला—माइकल दत्ता, उम्र पन्द्रह साल—और मौत का कारण—रोड एक्सीडेंट।

मैं सिर्फ़ अनुमान ही लगा सकता था और सम्भावना की पुष्टि के लिए मुझे यहाँ रहने वाले किसी पुराने व्यक्ति का पता लगाना था, जिसे वह लड़का या उस एक्सीडेंट के बारे में कुछ याद हो।

पाइन टॉप पर बूढ़ी मिस मार्ले रहती थीं। वुडस्टॉक स्कूल की सेवानिवृत्त शिक्षिका और उनकी याद्दाश्त बहुत बेहतरीन थी और वह वहाँ पचास वर्षों से भी ज़्यादा समय से रह रही थीं।

उजले बालों और नरम गालों वाली मिस मार्ले की नीली आँखें जिज्ञासा से भरी थीं, उन्होंने अपने पुराने फैशन के चश्मे को नाक पर चढ़ाकर मुझे उदारता से देखा।

“माइकल एक प्यारा लड़का था—उदारता से भरपूर, हमेशा सहायता के लिए तैयार। मेरे बोलने की देर होती कि मुझे अखबार चाहिए या एस्परीन, और वह अपनी साइकिल पर सवार हो चल देता, इन खड़ी ढाल की सड़कों पर बेफ़िक्री से साइकिल दौड़ाता हुआ, लेकिन ये पहाड़ी सड़कें और इसके चौंकाने वाले घुमाव साइकिल पर दौड़ लगाने के लिए नहीं हैं।

“वे मोटरों की आवाजाही के लिए सड़कों को चौड़ा कर रहे थे, और एक ट्रक ऊपर पहाड़ पर आ रहा था, पत्थरों से लदा, जब माइकल घुमाव के पास आया तो अनियन्ति्रत होकर ट्रक से टकरा गया। उसे हॉस्पिटल ले जाया गया और डॉक्टरों ने भी पूरी कोशिश की, लेकिन उसे होश नहीं आया। तुमने ज़रूर उसकी कब्र देखी होगी। तभी तुम यहाँ हो। उसके माता-पिता? वे थोड़े दिनों बाद ही यहाँ से चले गये, विदेश, मुझे लगता है…एक प्यारा लड़का, माइकल, लेकिन थोड़ा ज़्यादा ही लापरवाह। तुम्हें पसन्द आता वह, मुझे लगता है।”

मैंने उस प्रेत साइकिल सवार को फिर कुछ दिनों तक नहीं देखा, हालाँकि मैंने उसकी उपस्थिति कई बार महसूस की। और जब सर्दी की एक एकाकी शाम को मैं उस निर्जन कब्रगाह के पास से गुज़र रहा था, मुझे लगा कि मैंने उसकी सीटी की आवाज़ दूर से आती सुनी है लेकिन वह सामने नहीं आया, शायद यह बस एक सीटी की प्रतिध्वनि थी, जो मेरी अवास्तविक परछाईं से संवाद कर रही थी।

कुछ महीने बाद मैंने उस मुस्कुराते चेहरे को दोबारा देखा और यह मेरे सामने कुहरे से निकल कर आया जब मैं भिगो देने वाली मानसून की बारिश में घर लौट रहा था। पुराने कम्युनिटी सेंटर में मैं एक रात्रि भोज के लिए गया था और एक बहुत ही सँकरे और भवों की तरह खड़े रास्ते से घर की ओर लौट रहा था। शाम से ही भयंकर तूफ़ान अपने आने की चेतावनी दे रहा था। पहाड़ों की तरफ़ गहरा कुहासा छाया हुआ था। यह इतना घना था कि मेरी टॉर्च की रोशनी उससे टकरा कर लौट रही थी। आकाश में बिजली चमक रही थी और बादल पहाड़ों के बीच गरज रहे थे। बारिश बहुत तेज़ हो गयी थी। मैं धीरे-धीरे, सावधानी से पहाड़ों की तरफ़ से आगे बढ़ रहा था। तभी बादल गरजे और मैंने उसे कुहासे से निकल मेरे आगे खड़ा पाया—बिलकुल वही दुबला-पतला, साँवला लड़का जिसे मैंने कब्रगाह के पास देखा था। वह मुस्कुराया नहीं। इसकी बजाय उसने अपना हाथ ऊपर मुझे देख कर विदा में हिलाया। मैं थोड़ी देर असमंजस में स्थिर खड़ा रहा। कुहासा थोड़ा छंटा और मैंने देखा कि वह रास्ता गायब था। मेरे कुछ फीट आगे की जगह खाली थी। और चट्टान के नीचे लगभग सौ फीट की खाई।

जैसे ही कँटीली झाड़ियों का सहारा लेते हुए पीछे की ओर बढ़ा, वह लड़का गायब हो गया था। मैं लड़खड़ाते हुए कम्युनिटी सेंटर की ओर वापस लौट गया और रात लाइब्रेरी में कुर्सी पर बैठ कर काटी।

मैंने उसे फिर नहीं देखा।

लेकिन एक हफ़्ते से जब मैं तेज़ बुखार में बिस्तर पर पड़ा था, मैंने नीचे खिड़की पर उसकी सीटियों की आवाज़ सुनी। ‘क्या वह मुझे अपने पास बुला रहा था,’ मैंने सोचा, ‘या बस वह यह दिलासा देने की कोशिश कर रहा था कि सब ठीक है।’ मैं बिस्तर से उठा और बाहर झाँका, लेकिन मुझे कोई दिखाई नहीं दिया। समय-समय पर मैं उसकी सीटियों की आवाज़ सुनता रहा, लेकिन जैसे-जैसे मैं ठीक होता गया, यह आवाज़ मंद पड़ते-पड़ते, फिर एकदम से बन्द हो गयी।

पूरी तरह ठीक होने के बाद मैं पहाड़ की चोटी पर फिर से घूमने जाने लगा। हालाँकि मैं अँधेरा होने तक कब्रिस्तान के पास घूमता रहता और निर्जन सड़क पर चहलकदमी करता रहता लेकिन मैंने उसे दोबारा नहीं देखा या उसकी सीटी की आवाज़ नहीं सुनी। मुझे अकेलापन महसूस हुआ, मुझे एक दोस्त की ज़रूरत हुई, भले ही वह एक प्रेत साइकिल सवार ही क्यों न हो। लेकिन वहाँ सिर्फ़ पेड़ थे।

और इस तरह हर शाम मैं अँधेरा होने पर घर की ओर लौटता इस पुराने गीत का अन्तरा गाता रहा—

हम तीन

हम नहीं हैं एक भीड़;

हम लेकिन साथ भी नहीं—

मेरी प्रतिध्वनि,

मेरी परछाईं,

और मैं…