अगले रोज ।
विशालगढ़ पहुंच कर अजय होटल सिद्धार्थ के संमुख टैक्सी से उतरा । आमतौर पर वह उस सात मंजिला होटल में ही ठहरा करता था । इसलिए वहां का अधिकांश स्टाफ उससे परिचित था ।
वह अपने सामान सहित रिसेप्शन पर पहुंचा तो युवक रिसेप्शनिस्ट ने मुस्कराते हुए उसका स्वागत किया ।
–'आइए मिस्टर अजय कुमार । मिस नीलम कपूर ने आपके लिए पहले ही कमरा रिजर्व करा दिया था–टॉप फ्लोर पर रूम नम्बर एट ।'
–'रिजर्वेशन कब कराया था उसने ?' अजय के पूछा ।
–'करीब साढ़े छह बजे ।'
–'साढ़े छह बजे । आज सुबह ?'
–'नहीं कल शाम ।'
अजय तनिक चकराया ।
–'लेकिन आज यहां आने का फैसला तो मैंने कल शाम सात बजे के बाद किया था । फिर उसे साढ़े छह बजे ही कैसे पता चल गया ?'
–'इसका बेहतर जवाब तो मिस कपूर ही दे सकती है ।'
–'ठीक है । मैं उसी से पूछता हूं ।'
अपना सामान वहीं छोड़कर अजय लॉबी में बने पब्लिक टेलीफोन बूथ्स में से एक में जा घुसा ।
उसने 'थंडर' के स्थानीय ऑफिस का नंबर डायल किया ।'
नीलम से संबंध स्थापित होने पर बोला–'अजय स्पीकिंग ।'
–'तुम आ गए ।' नीलम द्वारा उत्साहित स्वर में पूछा गया ।
–'तुम्हें कैसे पता चला मैंने आना था ?
नीलम हँसी ।
–'मुझे इल्हाम हुआ था ।'
–'बेकार की बातें मत करो ।'
–'ओ. के. । तो फिर सीधी बात यह है तुम्हारी खसलत से मैं बखूबी वाकिफ हूँ । मैं जानती थी नलिनी जैसी कयामत खेज हसीना तुम से यहां आने को कहेगी तो तुम सर के बल दौड़े चले आओगे ।'
–'तो फिर यह भी बता दो उस कयामखेज हसीना को बाकायदा प्लेट में सजाकर मेरे सामने पेश करने की मेहरबानी तुमने क्यों की ?'
–'उसने मुझे लगभग पूरा यकीन दिला दिया था मनमोहन सहगल की हत्या की गई थी ।'
–'लेकिन पुलिस तो इसे सुसाइड मानकर केस क्लोज कर चुकी है ।'
–'इसीलिए तो तुम्हें बुलाया गया है ।'
–'तुम्हारे पास ऐसी कोई जानकारी है जिसे इस मामले में बतौर लीड इस्तेमाल किया जा सके ।'
–'नहीं । लेकिन इसे मर्डर मानने वाली अकेली नलिनी ही नहीं है । मंजुला सक्सेना भी यही समझती है ।'
–'मंजुला सक्सेना वह कौन है ?'
–''विशालगढ़ टाइम्स' की एक रिपोर्टर । बेहतर होगा तुम उस से मिल लो ।'
–'ठीक है ।' अजय ने पूछा–'फिल्म स्टार अमरकुमार का पता बता सकती हो ?'
नीलम ने पता बताकर पूछा–'उससे भी मिलना चाहते हो ?'
–'हाँ ।'
–'मुझसे कब मिलोगे ?'
–'जब चाहो, आ सकती हो ।'
–'शाम सात बजे आऊंगी ।'
–'ठीक है ।'
अजय संबंध विच्छेद करके बूथ से बाहर आ गया ।
रिसेप्शनिस्ट से अपना सामान कमरे में पहुंचवाने के लिए कह कर वह प्रवेश द्वार की ओर बढ़ गया ।
* * * * * *
'विशालगढ़ टाइम्स' के ऑफिस में ।
अपने छोटे से केबिन में मौजूद मंजुला सक्सेना की उंगलियां तेजी से टाइपराइटर के कीबोर्ड पर फिसल रही थी ।
वह कोई पैंतीसेक वर्षीया, सांवले रंग और औसत कद–बुत वाली औरत थी । दस्तक दिए जाने, दरवाजा खुलने और कदमों की आहट सुनने के बाद भी अपने काम में लगी रही ।
आगंतुक अजय था । कई पल चुपचाप खड़ा रहने से बाद उसने धीरे से डेस्क ठकठकाया ।
–'कहिए ?' पूर्ववत् टाइप करती मंजुला ने लापरवाही से पूछा ।'
अजय अपना परिचय देकर बोला–'मुझे नीलम कपूर ने भेजा है ।'
की बोर्ड पर फिसलती मंजुला की उंगलियों में अचानक ब्रेक लग गया और उसने सर उठाकर गौर से उसे देखा ।
–'आपके काफी चर्चे सुने हैं और कारनामे भी पढ़े हैं । वह निरुत्साहित स्वर में बोली–'तशरीफ़ रखिए ।'
अजय एक कुर्सी खींचकर बैठ गया ।
–'मैं मनमोहन सहगल के केस के बारे में आपकी राय जानना चाहता हूँ ।'
मंजुला ने गहरी सांस ली ।
–'मेरी राय की कोई अहमियत अब नहीं है ।'
–'क्यों ?'
–'इसलिए कि हप्ता भर पहले मनमोहन की लाश का अंतिम संस्कार किया जा चुका है । और पुलिस इस केस को क्लोज कर चुकी है । उन लोगों को यकीन है उसने आत्महत्या की थी ।'
–'लेकिन आप ऐसा नहीं समझती ?'
–'पुलिस से कोई दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहता । मंजुला तनिक आगे झुककर बोली–'बाई दी वे, आप क्या चाहते हैं ?'
–'सबूत ।' अजय ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।
–'कैसा ?'
–'खुदकुशी का–अगर उसने वाकई खुदकुशी की थी । या फिर हत्या का–अगर उसकी वाकई हत्या की गई थी ।
–'और यह सबूत आपको चाहिए किसलिए ? मेरा मतलब है, आप इसमें क्यों दिलचस्पी ले रहे हैं ?'
–'अपने अखबार के लिए । अजय धैर्यपूर्वक बोला–'तुम्हारी तरह मैं भी एक प्रेस रिपोर्टर हूँ ।'
मंजुला की निगाहें उसके चेहरे पर जमी थीं ।
–'तुम झूठ बोल रहे हो ।' वह बोली–'अगर मेरा अनुमान गलत नहीं है तो तुम नलिनी प्रभाकर की वजह से इसमें दिलचस्पी ले रहे हो ।'
अजय मन ही मन उसकी काबिलियत और तजुर्बे की तारीफ किए बिना न रह सका ।
–'तुम्हारे ऐसा समझने की वजह जान सकता हूँ ?' उसने पूछा ।
–'जरूर । नंबर एक, अगर तुम सिर्फ अपने अखबार के लिए काम कर रहे होते तो तुमने हफ्ता भर चुप नहीं बैठना था । नंबर दो, मैं जानती हूँ कि नलिनी प्रभाकर, नीलम की क्लासमेट रह चुकी है और आज भी उसकी सहेली है । और आखिरी वजह है–मेरे दिमाग में यह बात बैठाने वाली, कि मनमोहन की हत्या की गई थी, नलिनी प्रभाकर ही थी । उसने पुलिस और सी० आई० डी० वालों तक को भी यही समझाने की कोशिश की मगर उन लोगों ने उसकी बात सुनने से इंकार कर दिया । क्योंकि मनमोहन की हत्या के लिए वह अमरकुमार को जिम्मेदार ठहरा रही थी । जबकि अमरकुमार उस रात यहाँ से सैकड़ों मील दूर विराटनगर में था । मनमोहन की मृत्यु का पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में जो अनुमानित समय निर्धारित किया गया था । उस वक्त की भी बड़ी ठोस एलीबी अमरकुमार के पास है ।'
–'यानी पुलिस को अमरकुमार के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला ।'
–'हाँ ।'
–'नीलम ने बताया था ।' अजय ने कहा–'तुमने अपने तौर पर भी इस मामले की छानबीन की थी ।'
–'हाँ, लेकिन किसी ठोस नतीजे पर मैं नहीं पहुंच सकी । सिवाय इसके कि अमरकुमार का शमशेर सिंह के साथ अजीब सा कोई कॉन्ट्रैक्ट है अमरकुमार उसकी मर्जी के बिना कुछ नहीं कर सकता । और मनमोहन सहगल, जो कि वास्तव में शमशेर सिंह का आदमी था, अमरकुमार का सेक्रेटरी, मैनेजर वगैरा सब कुछ था । असल में, मनमोहन इस शहर में शमशेर सिंह के हितों की रक्षा करने वाला एक बेहद सुलझा हुआ आदमी था । अमरकुमार को फ्रंटमैन बनाकर उन लोगों ने करोड़ों की संपत्ति यहाँ इकट्ठा कर ली है । और मनमोहन की मौत ने शमशेर सिंह के लिए बड़ी भारी परेशानी पैदा कर दी है ।'
–'तुम शमशेर सिंह को टटोलना चाहती हो ?'
–'उससे भी क्या होगा ? पुलिस, यह मानकर कि मनमोहन ने सुसाइड की थी केस क्लोज कर चुकी है ।' मंजुला अपने माथे पर खिसक आई बालों की एक लट को हटाती हुई बोली–'पुलिस के पास इसे सुसाइड समझने की वजह भी है–मनमोहन अर्से से अमर कुमार के एकाउंट्स में भारी घोटाला करता आ रहा था और इनकम टैक्स वालों ने उसे पकड़ लिया था । लिहाजा जेल जाने की जिल्लत उठाने से उसने मर जाना बेहतर समझा ।'
–'लेकिन पुलिस की इस थ्यौरी से तुम सहमत नहीं हो ।' अजय बोला–'नीलम का कहना है तुम्हारे विचार से मनमोहन की हत्या की गई थी ?'
–'हाँ ।'
–'जाहिर है तुम्हारे ऐसा समझने की जरूर कोई ठोस वजह रही होगी ?'
–'हां है ।' मंजुला ने संक्षिप्त मौन के बाद उत्तर दिया–'लेकिन इतनी ठोस वजह वो नही है कि उसके दम पर केस को रीओपन कराया जा सके ।' फिर तनिक रुककर बोली–'जिस रात मनमोहन की मौत हुई वह अपने अपार्टमेंट में अकेला नहीं था–दो आदमी और वहां मौजूद थे । उनमें से एक का नाम रोशनलाल खुराना है । वह अमरकुमार का बॉडीगार्ड हुआ करता था ।'
–'और दूसरा कौन था ?'
–'उसके बारे में कुछ नहीं जानती ।'
–'यह तुम्हें कैसे पता लगा ?'
अपने एक भरोसेमंद सोर्स से ।'
–'तुमने पुलिस को इस बारे में बताया था ?'
–'नहीं ।'
–'क्यों ?'
–'जब मुझे यह पता लगा तब तक पुलिस सुसाइड की पक्की राय कायम कर चुकी थी । और मेरी इस बात से उन लोगों की राय जरा भी नहीं बदलनी थी । साथ ही मुझे डर था पुलिस मेरे उस सोर्स का पता पूछने के लिए मुझ पर दबाव डाल सकती थी । उस सूरत में वह बेचारा नाहक मुसीबत में पड़ जाता । मुझे अफसोस है मेरे पूरी कोशिश करने के बावजूद कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ सका । वैसे, इस मामले में जहां तक मेरी जाती राय का सवाल है, मैं अभी भी यही समझती हूँ मनमोहन का मर्डर किया गया था । लेकिन समझना और साबित करना दो बिल्कुल अलग–अलग बातें हैं ।'
–'जानता हूँ ।' अजय बोला–'फिर भी तुम्हें पुलिस की जानकारी में यह बात लानी चाहिए थी ।'
–'तो तुम भी मेरी राय से सहमत हो कि उसका मर्डर ही किया गया था ?'
–'नहीं ।' अजय हिचकिचाता सा बोला–'उस रात अमरकुमार के बॉडीगार्ड मनमोहन के अपार्टमेंट में उससे मुलाकात करने का मतलब यह भी तो सकता है उससे मुलाकात के बाद ही मनमोहन ने खुदकुशी करने का फैसला किया था । मसलन, अमरकुमार का बॉडीगार्ड मनमोहन को यह बताने गया हो सकता था कि एकाउंटस और टैक्स के लफ़्ड़े समेत मनमोहन की सभी कारगुजारियों की पोल वह खोलने वाला है । नतीजतन, मनमोहन बुरी तरह डर गया और उसने खुदकुशी कर ली ।'
–'मुझे ताज्जुब है तुम जैसा आदमी भी ऐसी लचर दलील पेश कर रहा है ।'
खुद अजय को भी अपनी इस दलील में खास दम नजर नहीं आया ।
–'मैंने सिर्फ एक संभावना जाहिर की है ।' वह बोला–'क्योंकि एक और आदमी के साथ रोशनलाल की उस रात वहाँ मौजूदगी की वजह से ही यह नहीं कहा जा सकता कि मनमोहन का मर्डर किया गया था...।'
–'ठहरो ।' मंजुला ने हाथ उठाकर उसे रोका, फिर ड्राअर से पोस्टकार्ड साइज की एक फोटो निकालकर डेस्क पर रख दी–'यह घटनास्थल से हटाए जाने से पहले खींची गई मनमोहन की लाश की फोटो है । इसे देखकर फैसला करो ।'
अजय फोटो उठाकर गौर से देखने लगा ।
मनमोहन की लाश पांचवें खंड पर एक प्रोजेक्शन पर पीठ के बल पड़ी थी । उसका एक हाथ प्रोजेक्शन से बाहर लटक रहा था दूसरी बाँह जिस्म के साथ फैली हुई थी । और सीधी फैली टाँगों के बीच थोड़ा सा फासला था । उसके सर के पृष्ठभाग के आस–पास काला सा एक दायरा बना नजर आ रहा था । जो कि निश्चय ही खून से बना होगा ।
–'पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मनमोहन की मौत की वजह क्या थी । उसने फोटो से निगाहें हटाए बगैर पूछा ।
–'सर में गहरी चोट आना और तेजी से बहुत ज्यादा खून बह जाना ।' मंजुला ने जवाब दिया ।
अजय पुनः देर तक फोटो को देखता रहा ।
–'इंटरेस्टिंग ।' अंत में वह बोला ।
मंजुला ने उसे घूरा ।
–'तुम्हें लाश की फोटो देखना भी इंटरेस्टिंग लगता है ?'
–'मेरा यह मतलब नहीं था ।' अजय बोला–'मैं इस जगह की बात कर रहा हूँ जहाँ लाश पड़ी है । यह क्या है ?'
–'इसे प्रोजेक्शन कह सकते हो ।' मंजुला ने कहा–'यह नौ मंजिला इमारत है । फिफ्थ फ्लोर की इस तरफ खुलने वाली । बाल्कनियों को चौड़ाई में तकरीबन आधा कवर करता हुआ यह इमारत की इस साइड के साथ–साथ चला गया है । ऊपर की बाकी मंजिलों की बालकनियाँ दूसरी साइड में खुलती हैं ।'
–'इस प्रोजेक्शन की चौड़ाई कितनी है ?'
–'यही कोई चार–पांच फुट । क्यों ?'
अजय ने फोटो डेस्क पर रख दी ।
–'मेरा भी यही ख्याल था ।'
मंजुला के चेहरे पर खीज भरे भाव उत्पन्न हो गए ।
–'तुम कहना क्या चाहते हो ?'
–'मुझे तुम्हारी राय से पूरा इत्तिफाक है ।' अजय विचारपूर्ण स्वर में बोला–'मनमोहन का मर्डर ही किया गया था ।'
–'यह तुम कैसे कह सकते हो ?'
–'इस प्रोजेक्शन की चौड़ाई पाँच फुट से ज्यादा नहीं है ।' अजय बोला–'यह फिफ्थ फ्लोर है । मनमोहन नौवीं मंजिल की छत पर बने अपने अपार्टमेंट पर रहता था । छत पर चारों ओर मुंडेर है । जाहिर है खुदकुशी करने के लिए उसने मुंडेर पर खड़े होकर नीचे छलांग लगानी थी । उस सूरत में उसके जिस्म ने इमारत के साथ–साथ नीचे आने की बजाय इमारत से कई फुट के फासले पर जा गिरना था । इस प्रोजेक्शन पर इस तरह आ गिरने की सिर्फ एक ही सूरत हो सकती है–उसे मुंडेर पर से इमारत के साथ–साथ नीचे गिराया गया था । और इसका सीधा सा मतलब है उसकी हत्या की गई थी ।'
मंजुला फोटो उठाकर देखने लगी ।
–'मैंने भी इसी से अनुमान लगाया था । लेकिन मेरी इस बात पर किसी ने ध्यान नहीं दिया । यहां तक कि हमारे अख़बार के एडीटर ने भी नहीं ।'
–'अजीब बात है । एडीटर को तो तुम्हारी हौसला अफजाई करनी चाहिए थी ।
मंजुला ने फोटो वापस ड्राअर में रख दी ।
–'हमारा अखबार 'थंडर' की तरह राष्ट्रीय स्तर का नहीं है ।' वह बोली–'तुम अच्छी तरह जानते हो कि अखबार चटपटी खबरों या सनसनीखेज कहानियों के दम पर नहीं चल सकते । अखबारों की जान होते हैं–विज्ञापन । विज्ञापन मिलने बन्द तो अखबार बंद । इस मामले में यही हुआ । इसमें इनवाल्व आदमियों पर तथाकथित बड़े और साधन सम्पन्न लोगों ने बेहद मोटी इनवेस्टमेंट्स की हुई हैं । और जो मैं चाहती थी, उसे छापने का मतलब था–स्कैंडल । और स्कैंडल का सीधा सा मतलब था–उन साधन संपन्न लोगों को नाराज कर देना । और उनकी नाराजगी का अर्थ था–विज्ञापन मिलने बंद । यानी अखबार बंद । और अपने अच्छे खासे चलते अखबार को बंद कराना समझदारी नहीं है । क्योंकि हमारा एडीटर भी बेवकूफ नहीं है । इसलिए मेरी यह थ्योरी सुनने के बाद उसने कह दिया अखबार की नौकर छोड़कर मुझे जासूसी कहानियाँ लिखनी चाहिएँ ।'
–'यानी तुम्हें इस मामले की आगे छानबीन करने से रोक दिया गया ।'
–'हाँ ।'
–'तुम्हारा वो सोर्स रोशनलाल खुराना को जानता है ?'
–'हाँ ।'
–'उस सोर्स का नाम–पता मुझे बता सकती हो ?'
मंजुला ने सर हिलाकर इंकार कर दिया ।
–'क्या करोगे जानकर ? इससे फायदा तो कुछ नहीं होगा । उल्टे उस बेचारे की जान को खतरा पैदा हो जायेगा । मेरे पास उसका दस्तखत शुदा लिखित बयान है । अगर कभी वक्त आया और कोई और ठोस सबूत मेरे हाथ लगा तो मैं उसे जरूर इस्तेमाल करूंगी । लेकिन मौजूदा हालात में क्योंकि पुलिस सुसाइड मानकर केस को क्लोज कर चुकी है । इसलिए रोशनलाल का उस रात या किसी भी रात मनमोहन से मिलने जाना कोई जुर्म नहीं था ।'
अजय को बहस करना बेकार लगा ।
–'उस बयान को हिफाजत से रखना ।' वह बोला–'मुझे उसकी जरूरत पड़ सकती है ।'
–'वो अकेला अपने आप में कोई हथियार नहीं है ।' मंजुला निराश स्वर में बोली–'तुम समझते हो मनमोहन की हत्या की गई थी । मैं भी यही समझती हूं । लेकिन हम लोगों के समझने भर से कुछ नहीं होने वाला । क्योंकि अपनी इस बात को साबित हम नहीं कर सकते ।'
अजय उठकर खड़ा हो गया ।
–'ठीक कहती हो ।' उसने कहा–'सहयोग के लिए धन्यवाद । फिर मिलेंगे ।' और पलटकर केबिन से बाहर निकल गया ।'
0 Comments