विकास इस समय विजय की कार की डिक्की में था । कार विद्युत गति से अनजाने लक्ष्य की ओर अग्रसर थी । आज रविवार होने के नाते विकास के कॉलेज का अवकाश था- अत: वह विजय से मिलने उनकी कोठी पर पहुंचा । उस समय विजय कहीं जाने की तैयारी कर रहा था । विकास का दिमाग का शरारती कीड़ा कुलबुलाया- अत: वह स्वयं को छिपाकर अपने झकझकिए अंकल की प्रत्येक हरकत देखने लगा ।
विजय, विकास की उपस्थिति से एकदम अनभिज्ञ था । अत: वह मस्ती में सीटी बजाता हुआ उंगली में कार की चाबी घुमाता हुआ गैरेज तक आया । गैरेज से कार निकालकर चला, किंतु इसका क्या किया जाए कि विकास तब तक कार की डिक्की में स्वयं को सुरक्षित कर चुका था और तब से अब तक वह डिक्की में था । कार विश्वत गति से फर्राटे भरती हुई निरंतर अग्रसर थी। कार का लक्ष्य क्या है? इस बात से विकास बिल्कुल अनभिज्ञ था, किंतु वह भी मस्त बैठा था-सांस लेने के लिए उसे पर्याप्त वायु की प्राप्ति होती रहे, इसलिए उसने डिक्की में एक झिरी उत्पन्न कर दी थी जिसमें आंख सटाकर कभी-कभी वह बाहर का दृश्य भी देख लेता था । इस समय जब उसने देखा तो अनुभव किया कि कार किसी सुनसान सड़क पर दौड़ रही है, क्योंकि इस सड़क पर आवागमन अत्यधिक कम था । कभी कोई भूला भटका वाहन गुजर जाता ।
निश्चित तो विकास कुछ नहीं कह सकता था, किंतु इतना अनुमान उसने अवश्य लगा लिया था कि कार लगभग तीस मिनट पश्चात थम गई । कुछ देर तक विकास शांत बैठा रहा और फिर डिक्की से बाहर झांका । अवसर अच्छा था --अतः डिक्की से निकलकर एक ओर को रेंग गया । न जाने इस समय उसके दिमाग में यह कौन-सा कीड़ा कुलबुला रहा था । उसने देखा । जहां कार खड़ी थी उसके दाई ओर एक विशाल और सुंदर कोठी थी । उसने झाड़ियों से छुपकर देखा कि विजय उसी कोठी की तरफ बढ़ा । उस कोठी के मेन गेट पर एक पठान चौकीदार स्टूल पर बैठा था ।
विजय उस चौकीदार के निकट जाकर बोला - "क्यों प्यारेलाल-क्या प्रोफेसर हेमंत अंदर हैं? ।।
"यस सर...!" पठान ने स्टूल से खड़े होकर उत्तर दिया ।
." उनसे मिलाने का क्या लोगे? " विजय मुस्कराकर मूड में बोला ।
- "अरे वल्ला - हम रिश्वत नहीं लेता है । " वह पठान थरथराती-सी 'आवाज में बोला- "आइए, मेरे साथ आइए । यह समय उनका मेहमानों से मिलने का ही है । " -
विजय मुस्कराया और पठान के साथ चल दिया। इधर विकास दबे पांव स्वयं को छुपाता उनके पीछे चल दिया । जबकि वे एक गैलरी में पहुंचे। पठान विजय से बोला"इस कमरे में साहब हैं।" उसका संकेत पास वाले कमरे की ओर था । तब,
-"ठीक है।" विजय ने कहा और कमरे की ओर बढ़ गया । पठान वापस लौटने लगा--विकास ने फुर्ती और चतुरता के साथ स्वयं को छिपा लिया । मस्ती में झूमता हुआ पठान उसके निकट से गुजर गया, किंतु उसकी नजर विकास पर नहीं पड़ी । उसके गुजरने के बाद विकास ने झांककर विजय की ओर देखा जो उस कमरे की घंटी बजा रहा था। तभी दरवाजा खुल गया - विजय की आवाज विकास के कानों तक पहुंची ।
-"गुड मॉर्निंग प्रोफेसर साहब!"
."अरे... विजय बेटे, तुम... तुम आज इधर का रास्ता कैसे भूल 1 गए?'' विकास के कान में प्रोफेसर हेमंत के ये शब्द पड़े तो अवश्य, किंतु वह हेमंत को देख नहीं सकता था । तभी प्रोफेसर हेमंत आगे बोले- "अरे खड़े क्यों हो? आओ, अंदर आओ।"
विकास के देखते-ही-देखते विजय मुस्कराता हुआ कमरे में दाखिल हो गया। उसके अंदर प्रविष्ट होते ही विकास सावधानी के साथ अपने स्थान से हटा और फुर्ती के साथ दरवाजे तक पहुंचकर उसने 'की होल' में आंख लगा दी । अंदर का सीमित दृश्य वह स्पष्ट देख रहा था । उसने देखा... ।
प्रोफेसर हेमंत का ऊपरी शरीर अभी नग्न ही था वे अपनी शर्ट पहन रहे थे । जिसकी वे अभी बाहें ही पहन पाए थे । हेमंत की पीठ को वह स्पष्ट देख सकता था । अगले ही पल हेमंत ने शर्ट पहनी । फिर हेमंत का स्वर विकास के कानों से टकराया । 'कहो, ठाकुर के क्या हाल है? " प्रोफेसर हेमंत विजय से कह रहा था ।
- ''उनके हाल तो आप ही मुझसे बेहतर जान सकते होंगे-वैसे इन आग के बेटी ने सभी के हाल खस्ता कर रखे है।" विजय की मुस्कराती-सी आवाज ।
विकास की छोटी बुद्धि ने उनकी बातों का यही परिणाम निकाला कि प्रोफेसर हेमंत उसके दादाजी यानी विजय के पिता, शहर के इंस्पेक्टर जनरल के पुराने मित्र हैं, तभी तो उन्होंने मिलते ही ठाकुर साहब के हाल पूछे । उसके कान अभी भी अंदर ही लगे हुए थे प्रोफेसर हेमंत कह रहे थे ओह ! तो अब समझा कि तुम यहां किसलिए आए हो ?"
-'"क्या समझ गए ?'' विजय भी मुस्कराकर बोला । विकास
उनके वार्तालाप का एक-एक शब्द सुन रहा था ।
- "यही कि तुम मेरे पास अपने मतलब से आए हो! और वह मतलब यह हैकि तुम आग के बेटी के विषय में कुछ जानना चाहते हो ।'' प्रोफेसर हेमंत हंसते हुए बोले ।
- "आप ठीक समझे-वास्तव में मैं इसीलिए आपके पास आया हूं।''
"लेकिन मैं तुम्हें इस तरह कुछ भी नहीं बताने वाला ।" हेमंत बोला- "पहले तुम्हें चाय पीनी होगी, उसके बाद इस विषय पर बातें होंगी । "
- "चाय तो हम भी पिएंगे अंकल ।" विकास की इस आवाज ने उन दोनों को चौंका दिया। विजय की आंखें एक बार फिर आश्चर्य से फैल गई । उसे लगा कि किसी दिन यह लड़का उसके लिए भयानक खतरा बन सकता है। उसके मुख से अनायास ही निकला ?"
-"यस अंकल ! मैं यानी विकास - आप मुझे हर जगह देखकर हैरान क्यों हो जाते है ?" उछलता हुआ विकास उनके निकट आ गया । प्रोफेसर हेमंत तो अभी कुछ समझ भी न पाए थे- अत: वह मुंह बाए उस गोरे-चिट्टे सुंदर लड़के को देख रहे थे और कुछ समझने का प्रयास कर रहे थे ।
- "मियां दिलजले...!" विजय अपने आश्चर्य पर काबू पाते हुए बोला- ''तुम प्रगट ही ऐसी जगह होते हो कि बिना आश्चर्य किए यह बात कंठ से नीचे नहीं उतरती कि तुम यहां हो सकते हो ।"
- " आप तो बेकार में आश्चर्य करते हैं अंकल-मैं तो आपको सिर्फ एक दिलजली सुनाने आया था। यहां आकर चाय की बात सुनी तो हमने भी चाय पीने के लिए कह दिया ।" शब्द कहते समय मानो विश्व की समस्त मासूमियत सिर्फ विकास के मुखड़े के पर ही आकर एकत्रित हो गई थी । विकास का मुखड़ा इतना मासूम था कि विजय के होंठों पर भी मुस्कान आ गई । वह प्रोफेसर हेमंत से बोला । ।
- "इसे पहचाना आपने प्रोफेसर?" उसका संकेत विकास की ओर था ।
- "नहीं तो भाई-कौन है, हम इसे नहीं पहचाने! " प्रोफेसर हेमंत कुछ उलझ-से गए ।
-"आप पहचानते भी कैसे? आप कभी इसकी बर्थ-डे पर नहीं आए वरना अधिकांश भारतीय ही नहीं - विश्व के अधिकांश लोग इसे पहचानते हैं । " विजय ने कहा ।
- "अरे.. . कहीं ये रघुनाथ का लड़का विकास तो नहीं है?' प्रोफेसर हेमंत ने जैसे उसे एकदम पहचान लिया ।
-"ठीक पहचाना अंकल ।" विजय बोला- 'यह वही शैतान है.. . अब देखिए ना- मुझे मालूम भी नहीं और जनाब मेरी डिक्की में बैठकर यहां तक आ गए ।" विजय विकास को घूर रहा था । .
-"अरे अंकल!" विकास भी आश्चर्य के साथ बोला- "आप तो जानते है कि मैं आपकी कार की डिक्की में था ।"
- ''मैं तुम्हारा अंकल हूं बेटे ।" मुस्कराते हुए विजय ने कहा । विजय के उपरोक्त वाक्य पर न सिर्फ हेमंत और विकास ने ठहाका लगाया, बल्कि स्वयं विजय भी हंस दिया । ठहाका लगाने के बाद हंसते हुए प्रोफेसर हेमंत बोले- " अब याद आया । ऐसा लग रहा था जैसे तुम्हें कहीं देखा हो, अब पहचान लिया-तुम्हारा फोटो मैंने कई बार अखबार में देखा था ।'' ये शब्द प्रोफेसर हेमंत ने विकास से कह रहे थे- "मेरे ख्याल से मर्डरलैंड को और वहां की राजकुमारी जैक्सन को, जो कि विश्व के लिए खतरा बन चुकी थी, तुम्हीं ने समाप्त किया था ।"
- "यस दादाजी - आपने ठीक पहचाना ।" विकास उछलता हुआ बोला- "अब क्या आप चाय नहीं पिलाएंगे?" विकास की इस बात पर विजय और हेमंत दोनों ही हंस दिए उसके बाद प्रोफेसर हेमंत ने अपने नौकर को चाय लाने का आदेश दिया । चाय आने तक विकास अपनी चटपटी बातों से उनको हंसाता रहा । कुछ समय बाद चाय आ गई- चाय की चुस्की लेता हुआ विजय प्रोफेसर हेमंत की ओर देखता हुआ बोला. 'क्यों प्रोफेसर? आपके ख्याल में ये आग के बेटे हैं क्या ?"
-"विजय!" हेमंत ने गंभीर स्वर में कहा- ''जिस दिन से आग के बेटे देखे गए हैं अथवा जिस दिन से इनका आतंक राजनगर में फैला है... उसी दिन से मैं एक वैज्ञानिक होने के नाते उनके विषय में काफी सोच रहा हूं। मैं ये सोच रहा हूं कि आखिर ये आग के बेटे लपलपाती हुई भयानक आग में जलते क्यों नहीं... जीवित कैसे रहते हैं? ये सब क्या रहस्य है? अभी तक किसी परिणाम व निश्चय पर पहुंचने में असमर्थ हूं किंतु पूर्ण आशा करता हूं कि शीघ्र ही मैं इस रहस्य की तह तक पहुंच जाऊंगा। वैसे मैंने आंशिक रूप से सफलता भी अर्जित की है, किंतु अभी विश्वास के साथ नहीं कह सकता कि जो प्रयोग मैं कर रहा हूं वह एकदम सही है।"
- "यह आंशिक सफलता क्या है प्रोफेसर ? " विजय ने प्रश्न किया । विकास इस समय एक गंभीर बालक की भांति उन दोनों का वार्तालाप सुन रहा था- किंतु न जाने कभी-कभी वह प्रोफेसर हेमंत की ओर एक विशेष दृष्टि से देखता...ऐसी दृष्टि से जैसे हेमंत से पहले जन्म की शत्रुता रही हो ।
- "वह सफलता तुम्हें मैं अभी नहीं बता सकूंगा ।" प्रोफेसर हेमंत बोले-' 'अभी संयम रखो । कल नहीं तो परसों तक मैं इस रहस्य तक पहुंच ही जाऊंगा और सारे विश्व को बता दूंगा--आग के बेटों को परास्त करने का वैज्ञानिक आविष्कार भी कर लूंगा ताकि ये आग के बेटे अब अधिक समय तक आतंक न फैला सकें । यह मैं विश्वास करता हूं ।" प्रोफेसर हेमंत ने बताया ।
विजय जानता था कि अधिकांश वैज्ञानिक तब तक अपने रहस्य को किसी को नहीं बताते जब तक कि वे अपने आविष्कार को पूर्ण नहीं कर लेते । अत: वह चुप रह गया।
चाय का अंतिम घूंट लेकर उसने कहा ।
'अच्छा तो प्रोफेसर... मैं अब परसों आऊंगा ।"
- ''मैं आशा करता हूं कि परसों तुम्हें मेरी सफलता पर हर्ष होगा ।" हेमंत गंभीर स्वर में बोला ।
- " अब आप ही लोग बात करते रहेंगे अथवा मैं भी भाग ले सकता हूं ?'' विकास ने खाली कप मेज पर रखते हुए कुछ इस प्रकार कहा विजय और हेमंत हंसे बिना न रह सके, किंतु अगले ही पल विकास अपनी प्यारी मासूम-सी आंखों से हेमंत को खूंखार तरीके से घूरता हुआ बोला ।
- ''मैं तुम्हें पहचान चुका हूं बूढ़े -- ।"
उसके इस वाक्य पर दोनों इस प्रकार उछले कि मानो बिच्छू ने डंक मार दिया हो । विजय को विकास की इस बेहूदगी पर अत्यधिक क्रोध आया.. .हेमंत का चेहरा भी कनपटी तक लाल हो गया । वास्तव में यह विकास की अत्यंत ही बेहूदगी-भरी हरकत थी । इतनी बेहूदगी-भरी कि विजय विकास को कभी माफ नहीं कर सकता था । प्रोफेसर से बोलने का भला ये क्या ढंग था? इससे पूर्व कि उन दोनों में से कोई कुछ कह सके । विकास ने एक अत्यंत अश्लील हरकत की । उसने कहा ।
- " टमाटर की तरह लाल क्यों हुए जा रहे हो बूढे, तुम्हें मैं पहचान चुका हूं ।'
-"विकास !" विजय सख्ती के साथ बोला- "यह क्या बेहूदगी है ?'' वास्तव में अब वह विकास को क्षमा नहीं कर सकता था । अब विकास की हरकतें इतनी बढ़ती जा रही थी कि उन्हें क्षमा नहीं किया जा सकता था। प्रोफेसर का क्रोध भी सातवें आसमान पर पहुंचा- वे लगभग अपनी पूरी शक्ति से चीखे ।
- "यह क्या बदतमीजी...!"
- "तुम अपने-आपको विजय अंकल से छुपा सकते हो से, लेकिन मैं तुम्हें अच्छी तरह पहचान चुका हूं।" विकास उसी प्रकार हेमंत को घूरता हुआ बोला ।
-"विकास...! " विजय कर्कश शब्दों में चीखा- "अब हरकत हद से अधिक बढ़ती जा रही है, जानते हो ये कौन हैं ?"
- "ये जो भी हैं अंकल, लेकिन इनका जो रूप मैं पहचान गया हूं, उसे आप नहीं जानते। क्यों बे बूढ़े, मैं ठीक कह रहा हूं ना?'' एक बार फिर विकास ने वही बेहूदगी-भरे शब्द बोले ।
अपना इतना अपमान प्रोफेसर हेमंत सहन न कर सके । उनका क्रोध सातवें आसमान पर जा पहुंचा और विकास को पकड़ने के लिए वे उस पर झपटे, किंतु तभी विकास ने अपनी पैंट की जेब से न जाने क्या चीज निकाली और अपनी छोटी और गोरी हथेली के बीच में फंसाकर प्रोफेसर हेमंत के सामने अपनी हथेली कर दी। हथेली पर मौजूद वस्तु को विजय न देख सका, अगले क्षण उसने जो परिवर्तन महसूस किया, उससे उसकी भी आंखें आश्चर्य से फैल गई।
प्रोफेसर हेमंत ने विकास की हथेली देखी। उसकी हथेली के बीच एक 'स्टार' फंसा हुआ था । यह कोई विशेष स्टार नहीं था, बल्कि साधारण सिगरेट के पैकिट के कागज को काटकर एक 'स्टार' की शक्ल दे दी गई थी। प्रोफेसर हेमंत ने विकास की हथेली के बीच फंसा वह स्टार देखा और एकदम ठिठक गया । उसकी आंखें स्टार पर जमी रह गई । स्टार को देखते ही हेमंत की आंखें आश्चर्य से फैलती चली गई । क्षणमात्र में उसकी आंखों में मौत के भय की परछाइयां तैरने लगीं । उसका सुर्ख चेहरा एकदम हल्दी की भांति पीला पड़ता चला गया । भय से हेमंत थरथर कांपने लगा । उसके होंठ फड़फड़ाने लगे...उसकी स्थिति ऐसी हो गई- मानो उसे कोई भयानक यातनाएं दी जा रही हो । न जाने इस स्टार में ऐसी क्या बात थी कि हेमंत भयभीत होकर न सिर्फ कांपने लगा-बल्कि गिड़गिड़ाने लगा ।
-"प्लीज.. प्लीज... इसे मेरे सामने से हटा लो ।"
-"हा-हा-हा " एकाएक विकास ने पागलों की भांति कहकहा लगाया और बोला- "क्यों बूढ़े... मैं पहचान गया न तुम्हें... अब बोलो - तुम्हारा क्या किया जाए?"
-"नहीं...नहीं!" प्रोफेसर गिड़गिड़ाया - "ये मेरे सामने से हटा लो ।"
लेकिन विकास ने उछलकर उसे चिढ़ाया । प्रोफेसर इस प्रकार डर रहा था मानो शेर के सामने कोई बुजदिल और निहत्था व्यक्ति ! हेमंत की हालत वास्तव में ही बड़ी आश्चर्यजनक थी ।
विजय...!
वह अलग आश्चर्य के सागर में गोते लगा रहा था । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या है...? इतना अनुमान तो वह लगा ही चुका था कि हेमंत का कोई ऐसा रहस्य है जिससे वह परिचित नहीं है और किसी तरह विकास जान गया है । वह हेमंत की स्थिति में परिवर्तन स्पष्ट महसूस कर रहा था-मानो साक्षात मौत उसके सामने खड़ी हो । विजय भी यह भी न देख पाया कि विकास की हथेलियों के बीच आखिर है क्या? किंतु व इतना अनुमान लगा सकता था कि विकास के हाथ में कोई ऐसी वस्तु अवश्य है जिसका हेमंत के जीवन से गहरा संबंध है । उसे तो आश्चर्य हो रहा था विकास पर, आखिर लड़का है क्या? आखिर वह हेमंत के किसी रूप से कैसे परिचित हो गया जबकि वह उनसे पहली बार मिल रहा है । विजय की समझ में कुछ नहीं आया । उसकी समझ में नहीं आया कि हेमंत इतना घबरा क्यों रहा है? ये विकास आखिर है क्या? उसकी समझ में नहीं आ रहा था । प्रत्येक कदम पर उसे विकास एक नए रूप में नजर आता । रूप भी ऐसा जो रहस्यपूर्ण होता । हैरतअंगेज होता! आखिर ये लड़का बना किस मिट्टी का है?
विजय जितना उसके विषय में सोचता, उतना ही उलझता जाता । जब उसकी समझ में नहीं आया कि यह चक्कर क्या है तो उसने फिर अपना ध्यान उस ओर लगाया ।
विकास अभी तक प्रोफेसर हेमंत को परेशान कर रहा था । हेमंत उसी प्रकार भय से थर-थर कांप रहा था। एकाएक वह उछला और विकास की ओर झपटता हुआ चीखा ।
- "विकास, दे क्या बदतमीजी है?"
- " अभी ये रहस्य तो मैं आपको भी नहीं बताऊंगा अंकल।"
विकास फुर्ती के साथ कमरे से बाहर हो गया। विजय ने भी फुर्ती का परिचय दिया और गैलरी से जब बाहर आकर देखा- विकास तेजी से भागता चला जा रहा था । वह उसके पीछे दौड़ा, किंतु वह उस समय आश्चर्यचकित रह गया जब किसी जिन्न की भांति विकास को भागते देखा । विजय उसके पीछे दौड़ा नहीं बल्कि उसी स्थान पर खड़ा भागते विकास को देखता रहा । उसने देखा...! -
भागते हुए विकास को देखकर अचानक पठान चौकीदार उठ खड़ा हुआ और उसका रास्ता रोक लिया, किंतु उस समय उसको न सिर्फ आश्चर्य हुआ, बल्कि उसका पहाड़-सा जिस्म धड़ाम से धरा पर गिरा - जब विकास की फ्लाइंग किक आश्चर्यपूर्ण ढंग से उसके चेहरे पर पड़ी । वह पठान इस बालक से कदापि इतनी खतरनाक हरकत की आशा नहीं करता था, किंतु इसका क्या किया जाए कि विकास उसे धूल चटाता हुआ गजब की जंपों के साथ कोठी से बाहर हो गया । अगले ही पल-इससे पूर्व कि पठान उठे-विकास ने विजय की कार स्टार्ट की और दूसरे ही पल विकास ने विजय की तरफ हाथ हिलाकर कहा ।
-"टाटा... अंकल... फिर मिलेंगे ।" और अगले ही पल कार तीव्र वेग से दौड़ती चली गई। पठान उठकर कार तक भागा भी, किंतु वह कर भी क्या सकता था!
विजय अपने स्थान पर खड़ा विकास के बारे में सोचता रहा । आखिर ये लड़का है क्या...? तभी वह चौंका- आखिर वह कार कैसे ले गया, उसने तो ताला लगाया था। तभी उसने जेब टटोली - चाबी जेब से नदारद मिली । एक बार फिर वह आश्चर्यचक्ति होकर रह गया । उसे जरा भी आभास न हो सका था कि विकास उसकी जेब से चाबी कब खिसकाकर ले गया । वह सोचता ही रह गया कि अलफांसे ने विकास को कितने कामों में दक्ष कर दिया? विकास को उसने कितना खतरनाक बना दिया था ?
- वह वापस लौटा-उसने प्रोफेसर हेमंत से काफी पूछा कि आखिर विकास के हाथों में क्या था? वह भयभीत क्यों हो गया? आखिर ये रहस्य क्या है? किंतु हेमंत ने किसी भी बात का उत्तर नहीं दिया । उसने सिर्फ विजय को अपनी कोठी से चले जाने के लिए कहा। विजय ने लाख प्रयास किया किंतु प्रोफेसर हेमंत ने उसके किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया । निराश होकर विजय वहां से चला आया, किंतु उसके दिमाग में इस विचित्र केस की कई ऐसी गुत्थियां घूम रही थी, जो रहस्य से परिपूर्ण थी । इन गुत्थियों के अतिरिक्त एक अन्य इंसान उसके मस्तिष्क में था । वह था विकास!
उसकी समझ में नहीं आया कि आखिर ये लड़का है क्या? वह शीघ्र ही कोठी पर पहुंचना चाहता था, ताकि विकास किसी रहस्य से पर्दा उठा सके ।
इस केस की प्रत्येक घटना विजय के मस्तिष्क में एक रहस्य बनकर कुलबुला रही थी। उसके लिए सबसे पहला रहस्य तो वह लड़की थी जो रिजर्व बैंक के मैनेजर के पास आई और बाद में आग के बेटी का पत्र देकर धुंआ बन गई । आखिर कौन थी वह लड़की वह धुंआ कैसे बन गई? उसका धुएं में परिवर्तित होने का रहस्य क्या है? आग के बेटे, आग की लपटों में भी रहते हुए भी जीवित कैसे रहते हैं? वे अपने-आपको जनकल्याणकारी किस आधार पर कहते हैं ? सागर में जाकर वे कहां और किस प्रकार विलुप्त हो जाते हैं? बैंक में पंखों के पास वह अचानक कैसे अचेत हो गया? उसके बाद उस गली में आग के पांच बेटे आश्चर्यपूर्ण ढंग से कैसे मर गए? उन्हें मारने वाला तो कोई नजर नहीं आया था-फिर उन पांचों की हत्या क्यों और किसने की? वह खद्दरधारी अधेड़ कौन था? उसका इस केस से कितना गहरा संबंध है? वह कौन है? वह आग के बेटों का साथी तो लगता नहीं था फिर वह किस उद्देश्य से गली में उपस्थित था? और सबसे अंतिम रहस्य सबसे अधिक रहस्य-भरा और आश्चर्य से परिपूर्ण था - वह यह कि प्रोफेसर हेमंत की वास्तविक जिंदगी क्या है? विकास ने उसे क्या दिखाया था ? वह वस्तु क्या थी? उसे देखकर प्रोफेसर हेमंत इस बुरी तरह से भयभीत होकर क्यों कांपने लगा? उस वस्तु का रहस्य क्या है? इत्यादि-इत्यादि अनेक रहस्यों से भरे प्रश्न थे, जो उसके मस्तिष्क में रहस्य बने हुए थे। इनसे भी अधिक रहस्य उसके लिए बना हुआ था, वह ग्यारह वर्ष का खूंखार लड़का विकास ।
वास्तव में विकास भी एक रहस्य ही था । कदम-कदम पर वह नए-नए रूपों में सामने आ रहा था। उसे याद आया, समस्त राजनगर के साथ उसका भयानक मजाक और दूसरी ओर प्रोफेसर हेमंत के साथ घटी घटना । न जाने यह खतरनाक लड़का प्रोफेसर हेमंत के जीवन में किस रहस्य तक कैसे पहुंच गया? वास्तव में विकास प्रत्येक घटना के साथ नया रूप धारण करता जा रहा था और निरंतर विजय के दिल में इस विचार को दृढ़ करता जा रहा था कि वक्त आने पर विकास अपराधियों की मौत बन सकता है । वह अपराधी जगत में एक भय बन सकता है ।
इस समय विजय टैक्सी में बैठा रघुनाथ की कोठी की ओर बढ़ रहा था । उसका दिमाग तेजी से सोच रहा था । कुछ समझने के स्थान पर वह उलझता ही जाता । सबसे अधिक उसके मस्तिष्क को यह अंतिम घटना कचोट रही थी । आखिर विकास ने किस प्रकार प्रोफेसर हेमंत को इतना भयभीत कर दिया?
लगभग पैंतालीस मिनट पश्चात उसकी टैक्सी सुनाय की कोठी पर थमी । उतरकर बिल चुकाया और अंदर गया । वैसे उसे कहीं भी अपनी कार नजर नहीं आई, विकास उसे अंदर नहीं मिला । रैना ने इतना ही बताया कि वह तुम्हारी ही कोठी पर गया है। विजय लौट गया। उसने रैना को कुछ नहीं बताया । इन्हीं बातों में उलझा विजय अपनी कोठी पर पहुंचा-वह थोड़ा चौंका, क्योंकि उसकी कार वहीं खड़ी थी । उसके कदम स्वयं अपने कमरे की ओर बढ़े ।
- "आइए अंकल, आइए ।" उसके कमरे में प्रविष्ट होते ही विकास की आवाज कमरे में पूंजी । विजय ने विकास को देखा तो देखता ही रह गया । विकास आराम से सोफे पर बैठा चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसे देखकर वह कुछ
विचित्र ढंग से मुस्कराया और बोला ।
-"अंकल । यहां आपकी प्रतीक्षा कर रहा था, इसलिए सोचा कि क्यों न भोलू से एक कप चाय बनवाकर पी जाए।"
-"वो तो ठीक है प्यारे दिलजले ।" विजय मुस्कराकर उसके सामने वाले सोफे पर बैठता हुआ बोला- "लेकिन तुम्हारी हरकतें अब हद से बाहर होती जा रही हैं वो साला तुलाराशि दोष मुझे देगा ।"
-" अंकल... आप नहीं जानते प्रोफेसर हेमंत को मैं उसे पहचान गया ।'' विकास का लहजा गंभीर था ।
- "पहले ये बताओ कि ऐसा कागज टाइप करके मेज पर क्यों नहीं रखा - जैसा कहा था ?"
. " - "जिस कमरे में टाइप रखी थी अंकल-वहां मिलिट्री का पहरा था । " विकास प्रत्येक बात का उत्तर न जाने क्यों गंभीरता के साथ देता जा रहा था। इस समय उसके चेहरे पर मासूमियत थी, मानो उससे अधिक भोला आज तक पैदा ही न हुआ हो । एक बार को तो विजय को उसका थोबड़ा देखकर क्रोध आया, किंतु वह बोला ।
- 'खैर, ये तो अच्छा हुआ वहां हुई घटनाओं से पुलिस और जनता यही समझ रही है कि आग के बेटों ने प्रयास किया था, किंतु सफल नहीं हुए, लेकिन तुम दूसरी बात का तो जवाब दो ।"
- "वह क्या अंकल विकास के गुलाबी अधरों पर धीरे-धीरे शरारत उत्पन्न होती जा रही थी ।
- "देखो, किसी प्रकार की शैतानी दिखाई तो बहुत पिटाई होगी ।" विजय, विकास के चेहरे पर उत्पन्न चंचलता के भाव पड़ चुका था । अत: चेतावनी- सी देकर बोला- "ये प्रोफेसर हेमंत का क्या चक्कर है?" .
- "ये चक्कर बड़ा प्यारा है अंकल । "
- ''बोलो, क्या है?'' विजय कुछ डपटकर बोला ।
-"अच्छा अंकल... ।' विकास लाइन पर आता हुआ बोला. "रहस्य कान में बताने वाला है। हमारे और तुम्हारे अतिरिक्त अभी इस रहस्य से कोई परिचित नहीं होना चाहिए और आप जानते हैं कि दीवारों के भी कान होते हैं । अत: मैं आपके कान में बता सकता हूं।"
विजय को लगा कि लड़का फिर कोई शरारत करने के मूड में है । अत: विशेष दृष्टि से घूरते हुए बोला-' 'अगर कोई शरारत... । "
." ओफ्फो अंकल.... मैं शरारत नहीं करूंगा... ।" विकास, विजय का वाक्य बीच में ही काटकर बोला - "आप कान इधर लाइए ।"
विजय रहस्य जानने के लिए अत्यधिक उत्सुक था । अत: विवशता थी । उसने कान विकास के सामने कर दिया । विकास भी बड़े अंदाज के साथ आगे आया और अपना मुंह विजय के कान से सटाकर अत्यंत ही धीमे स्वर में न जाने क्या फुसफुसाने लगा। लगभग दो मिनट तक उनकी यही स्थिति रही, विकास निरंतर उसके कान में कुछ कहे जा रहा था। समय के साथ विजय की आखें हैरत से फटती जा रही थीं । उसकी आंखों से अनंत आश्चर्य झोकने लगा और जब ।
विकास ने अपनी बात पूरी करके मुंह हटाया तो उसे समय विजय गहन आश्चर्य में गोते लगा रहा था । वास्तव में विकास ने जो कुछ बताया था, वह हैरतअंगेज था । वह निश्चय नहीं कर पा रहा था कि वह कैसे विकास की बातों का विश्वास करे, किंतु विश्वास करने के लिए बाध्य था ।
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