देवराज चौहान और जगमोहन रेस्टोरेंट ऑफ माईकल पहुंचे तो दोपहर का एक बज रहा था। रेस्टोरेंट हॉल में आधे से ज्यादा टेबलें भरी हुई थीं। मध्यम-सा शोर गूंज रहा था। वेटर्स फुर्ती के साथ लंच सर्व करने में व्यस्त थे। कल वाला आदमी ही कैश काउंटर के पीछे मौजूद था। रोजमर्रा के सामान्य हलचल आज भी वहां थी।
देवराज चौहान और जगमोहन ने एक टेबल संभाल ली। दोनों की छिपी निगाहें वहां के माहौल को पहचानने का प्रयत्न कर रही थीं।
तभी एक वेटर ट्रे में पानी का जग और दो गिलास लिए आया। उन्हें टेबल पर रखकर मीनू कार्ड, मुस्कुराकर उनके सामने रख दिया।
देवराज चौहान और जगमोहन मेकअप में थे। जगमोहन ने हिप्पियों जैसी वेशभूषा बना रखी थी।गोवा में कदम-कदम पर उस जैसे हुलिए के विदेशी-देश लोग थे, इसलिए शक का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। देवराज चौहान ने भी लंबे बालों की विग, लगा रखी थी। चेहरे पर हल्की दाढ़ी-मूछें और आंखों पर चश्मा था। उसे यहां, इस हुलिए में देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि यही कल, यहां मदन मेहता यानी ब्रिंगेजा से मिला था। जिसकी ठुकाई करके बाहर निकाल दिया गया था और फिर यहां न आने की धमकी दी गई थी।
मीनू कार्ड, रखकर वेटर जाने लगा तो जगमोहन ने टोका।
"ऑर्डर लेते जाओ---।"
"यस सर---।" वेटर ने मुस्कुराकर सिर हिलाया।
जगमोहन ने मीनू कार्ड खोला और वेटर को लंच का ऑर्डर दे दिया।
वेटर चला गया।
"यहां किसको टिटोलें? जगमोहन ने पूछा।
"देखते हैं।"
उसके बाद उनके बीच कोई खास बात नहीं हुई।
दस मिनट बाद ही वेटर लंच सर्व कर गया।
दोनों लंच करने लगे। निगाहें बराबर इधर-उधर फैल रही थीं। तब लंच समाप्ति पर था कि उन्होंने देखा, हरा सूट पहने, पचास वर्षीय, स्वस्थ्य कद-काठी का व्यक्ति रेस्टोरेंट के भीतरी हिस्से से निकला और टहलता हुआ कैश काउंटर के पास आ खड़ा हुआ। उसे समीप पाकर काउंटर पर मौजूद व्यक्ति चुस्त-सा नजर आने लगा।
हरे सूट वाले की सरसरी निगाह रेस्टोरेंट में बैठे आदमियों पर फिर रही थी। एक-दो बार उसने काउंटर पर मौजूद व्यक्ति से बात भी की।
तभी वेतन पास पहुंचा।
कुछ और सर?"
"नहीं। खाना अच्छा है यहां का?" देवराज चौहान मुस्कुराकर बोला।
"यस सर। यहां का खाना मशहूर है। जो एक बार आता है, वो बार-बार आता है।" वेटर मुस्कुराया।
"तुम ठीक कह रहे हो।" देवराज चौहान पुनः बोला--- "हम रात को भी डिनर लेने यहीं आएंगे।"
"वैलकम सर---।"
"वो साहब कौन हैं, हरे सूट वाले?" देवराज चौहान ने उधर देखा--- "मुझे लगता है, मैंने उन्हें पहले भी कहीं देखा है।"
"जरूर देखा होगा सर! वो माईकल साहब हैं। रेस्टोरेंट के मालिक---।"
"हां याद आया। दो महीने पहले मैंने माईकल साहब को यहीं देखा था।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "हमारा खाना समाप्त हो रहा है। कुछ देर बाद 'बिल' ले आना।"
"राईट सर।" वेटर चला गया।
"तो वो हरे सूट वाला माईकल है?" जगमोहन कह उठा।
"हां---।" खाने के दौरान देवराज चौहान बोला--- "इधर-उधर से मदन मेहता के बारे में पूछने से बेहतर है कि सीधे-सीधे माईकल से बात की जाए।"
जगमोहन की आंखें सिकुड़ी।
"इसमें खतरा है।"
"खतरा उठाये बिना मदन मेहता तक नहीं पहुंच सकते।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"तुम क्या समझते हो, माईकल बता देगा कि मदन मेहता को कैसे पकड़ा जाए?" जगमोहन की निगाह माईकल की तरफ गई--- "देखने में ही सख्त किस्म का इंसान लगता है।"
तभी उनके देखते-ही-देखते माईकल काउंटर के पास से हटा और वापस उसी तरफ बढ़ गया, जिधर से वो आया था। जगमोहन की उस तरफ पीठ थी। देवराज चौहान की निगाहें माईकल का पीछा करती रहीं। फिर देखते-ही-देखते उसने एक दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गया। दरवाजा बंद हो गया।
जगमोहन की निगाह देवराज चौहान पर थी।
"यहां के स्टाफ के किसी ऐसे बंदे को पकड़ते हैं, जो हमारे काम की बात बता सके।"
देवराज चौहान ने खाना समाप्त करते हुए कहा।
"हम माईकल को ही घेरेंगे। वो उस दरवाजे से भीतर गया है। वो उसका ऑफिस हो सकता है। तुम यहीं रहकर, उस तरफ नजर रखोगे। मेरे भीतर प्रवेश करने के बाद, कोई भी भीतर आए और मामला ठीक न लगे तो तुम भीतर आ जाना।"
"माईकल से बात करने में खतरा है।" जगमोहन ने पुनः कहा।
"देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। कुर्सी से उठा और एक तरफ नजर आ रहे वॉश बेसिन की तरफ बढ़ गया। उसके उठते ही जगमोहन अपनी कुर्सी छोड़कर देवराज चौहान वाली कुर्सी पर आ बैठा, ताकि वहां से उस तरफ सीधी निगाह रखी जा सके।
वेटर पास पहुंचा।
"कुछ और सर?"
"कॉफी ले आओ। एक कॉफी।"
"यस सर।" वेटर चला गया।
फौरन ही अन्य कर्मचारी आया और टेबल पर मौजूद बर्तन समेट कर ले गया।
देवराज चौहान हाथ धोने के बाद, लापरवाही भरे अंदाज में उस तरफ बढ़ गया, जिस दरवाजे के भीतर माईकल गया था। चलते समय उसके हाव-भाव में लापरवाही थी। वैसे भी किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं था।
जगमोहन की निगाह, देवराज चौहान पर टिकी हुई थी।
उस दरवाजे के पास पहुंचकर, देवराज चौहान रुका नहीं, सीधे-सीधे दरवाजा खोलकर भीतर प्रवेश करता चला गया। दरवाजा धीरे-धीरे खुद-ब-खुद ही बंद होता चला गया।
देवराज चौहान का भीतर प्रवेश करते देखकर, जगमोहन सतर्क हो चुका था। आंखों में व्याकुलता भर आई थी। इस तरह सीधे-सीधे माईकल के पास जाकर मदन मेहता के बारे में बात करना, खतरे से खाली नहीं था।
जगमोहन की छिपी निगाह दरवाजे पर टिकी रही।
वेटर कॉफी रख गया।
■■■
भीतर प्रवेश करते ही देवराज चौहान ठिठका।
यह ऑफिस ही था और टेबल के पीछे बैठा माईकल फोन पर किसी से बात कर रहा था। टेबल पर नोटों की गड्डियां पड़ी थीं। माईकल ने उसे भीतर प्रवेश करते पाकर, खास तवज्जो नहीं दी और फोन पर ही बात करता रहा, परन्तु उसकी निगाह देवराज चौहान पर ही थी।
देवराज चौहान आगे बढ़ा और कुर्सी पर जा बैठा। यह देखकर माईकल की आंखें थोड़ा-सा से सिकुड़ी, फिर बात समाप्त करके रिसीवर रखा और देवराज चौहान से बोला।
"कितने डॉलर, नोटों में बदलने हैं?"
"मैं इस काम के लिए नहीं आया।" देवराज चौहान ने कहा।
"सॉरी। मेरे पास तुम जैसे हुलिए के लोग विदेशी करेंसी को भारतीय करेंसी में बदलने अक्सर आते रहते हैं।" माईकल टेबल पर पड़ी नोटों की गड्डियों को समेटते हुए लापरवाही से उठा और पीछे नजर आ रही लोहे की छोटी-सी सेफ की तरफ बढ़ा, जो खुली हुई थी। उसने गड्डियों को तिजोरी में रखा और बंद करके वापस कुर्सी की तरफ बढ़ते हुए बोला--- "किस काम के लिए मेरे पास आए हो?" इसके साथ ही वो वापस कुर्सी पर आ बैठा।
"तुम माईकल हो?" देवराज चौहान बोला।
"हां।" माईकल की निगाह देवराज चौहान के चेहरे पर जा ठहरी।
"इस रेस्टोरेंट के मालिक हो?"
"हां।" माईकल की आंखें सिकुड़ी--- "तुम कौन हो? तुम्हारी दाढ़ी-मूछें और सिर के बाल नकली हैं।"
देवराज चौहान के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।
"बहुत पैनी नजर रखते हो।"
माईकल गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा।
"मदन मेहता के क्या हाल हैं?"
एकाएक माईकल का जिस्म तन गया। आंखें सिकुड़ी।
"मदन?" माईकल के होंठों से निकला।
देवराज चौहान, माईकल को देखता रहा।
"कौन हो तुम?"
"मुझे मदन मेहता की सख्त जरूरत है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "और अच्छी तरह जानते हो कि मदन तक कैसे पहुंचा जा सकता है। तुम चाहो तो मुझे मदन से मिलवा भी सकते हो।"
माईकल के चेहरे पर सख्ती उभरने लगी।
"कौन हो तुम?"
"मुझे मदन मेहता चाहिए माईकल।" देवराज चौहान की आवाज में सख्ती उभरने लगी--- "तुम्हारे हाथ पकड़कर मैं मदन मेहता तक पहुंच सकता हूं। इसी वजह से तुम्हारे पास आया हूं। तुम---।"
"मैं किसी मदन को नहीं जानता?" माईकल ने होंठ सिकोड़कर कहा।
"ब्रिंगेजा को भी नहीं जानते?"
माईकल के होंठ भिंच गए।
दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे।
"कल ब्रिंगेजा यहां आया था दोपहर को। मदन मेहता बनकर वो मुझसे मिला।" उसकी आंखों में झांकता देवराज चौहान कह उठा--- "मेहता ने तुम्हारे रेस्टोरेंट का नंबर लोगों को दे रखा है। मदन मेहता के मैसेज यहां रिसीव करके, उस तक पहुंचाये जाते हैं। मदन मेहता का इस रेस्टोरेंट में पूरा हाथ है और तुम कहते हो कि किसी मदन को नहीं जानते। झूठा विश्वास दिला रहे हो मुझे?"
माईकल मुस्कुराया।
"तुम हो ही कौन जो मैं तुम्हें झूठा-सच्चा विश्वास दिलाऊंगा। मेरी बला से कि तुम्हारी सोचों का पेड़, बेशक आसमान तक ही क्यों न पहुंच जाए।" माईकल ने हौले से हंसकर लापरवाही से कहा--- "तो कल तुम यहां आकर ब्रिंगेजा से मिले थे। कल हुई ठुकाई से शायद तुम्हें समझ नहीं आया कि तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था। दाढ़ी-मूंछें लगाकर तुम मुझे धोखा नहीं दे सकते। बहरहाल मैं तुम्हारे चेहरे से कल भी अंजान था और आज भी। दाढ़ी-मूंछें हटा दो, कम-से-कम तुम्हारा असली चेहरा तो देखूं।"
देवराज चौहान उसे देखता रहा।
जबकि माईकल अजीब-सी मुस्कान लिए, उस पर निगाहें टिकाए रहा।
"अपना चेहरा दिखाओ। दाढ़ी-मूंछें हटाओ।"
"तुम मुझे मदन मेहता से मिला रहे हो या नहीं?"
"मतलब कि तुम मुझे अपना चेहरा नहीं दिखाओगे?" माईकल के चेहरे की मुस्कान गायब हो गई।
देवराज चौहान ने बिना कुछ करे दाढ़ी-मूंछें और विग उतार दीं।
माईकल ने उसके चेहरे को देखा। गौर से देखा। पहचान के भाव नहीं उभरे।
"देख लिया मेरा चेहरा। अब मुझे मदन मेहता---।"
"कौन हो तुम?" माईकल ने उसकी बात काटकर कहा--- "जो भी हो, कम-से-कम बेवकूफ नहीं हो और हिम्मतवाले हो। यहां तक आए हो तो कम-से-कम मेरे बारे में जानकार ही आए होंगे। मदन मेहता से मिलने की कोशिश में हो तो, उसके बारे में भी पूछताछ कर ली होगी। कल ब्रिंगेजा से तुम्हारी बढ़िया मुलाकात रही, फिर भी दोबारा यहां आने में तुम्हें डर नहीं लगा? आखिर हो कौन तुम?"
देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"देवराज चौहान।"
"देवराज चौहान?" माईकल के चेहरे पर उलझन उभरी।
दोनों कई पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे।
दूसरे ही पल माईकल के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
"तुम---।" उसके होंठों से निकला--- "देवराज चौहान, वो देवराज चौहान तो नहीं जो डकैती मास्टर है? माना हुआ डकैती मास्टर है? वो-वो---?"
"वही देवराज चौहान हूं मैं---।" देवराज चौहान का स्वर कठोर था--- "और मुझे हर हाल में मदन मेहता चाहिए माईकल। और उसे पाकर रहूंगा।"
ये महसूस करके कि उसके सामने बैठा, इंसान देवराज चौहान है। माईकल अब सतर्क-सा नजर आने लगा था। उसकी एकटक निगाह, देवराज चौहान पर टिक चुकी थी।
"मुझे हैरानी है कि मेरे सामने देवराज चौहान जैसी शख्सियत बैठी है। ये बात हजम करने में मुझे वक्त लगेगा।" माईकल ने संभले स्वर में कहा--- "तुम गोवा में क्या दम रखते हो या क्या नहीं, मैं नहीं जानता। लेकिन मेरा ख्याल है कि तुमसे उलझना तभी चाहिए, जब बहुत जरूरत पड़े। मदन मेहता की तुम्हें क्या जरूरत पड़ गई जो इस तरह उसकी तलाश में बेसब्र हो रहे हो?"
"मदन मेहता ने मुंबई में धोखे से, मेरे ग्रुप में सुधाकर बल्ली नाम के आदमी को डालकर मुझसे धोखेबाजी की है। मेरे पचास करोड़ पर हाथ मारा। और मौका देखकर मदन मेहता पचास करोड़ को ले उड़ा। बात यहीं तक रहती तो, ये बड़ी आफत नहीं थी।" देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कठोर स्वर में बोला--- "पचास करोड़ तो जाने के साथ-साथ उसने मेरे एक साथी को मार दिया। पुलिस वाले की बीवी के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या कर दी। मामला उलझाने के लिए बाद उसने अपने ही आदमी सुधाकर बल्ली को भी खत्म कर दिया। हत्या और बलात्कार का दोषी पुलिस मुझे समझ रही है और ऐसी गिरी हुई हरकतें मैं नहीं करता। जो काम मैंने किया हो, मैं उसे ही अपने सिर पर लेता हूं। दूसरों के इल्जाम अपने सिर पर लेकर, मुझे घूमने की आदत नहीं है। ये सब करने के बाद मदन मेहता मुंबई से भागकर गोवा छिपा। ये है सारा मामला। मुझे हर हाल में मदन मेहता चाहिए। ताकि पुलिस रिकॉर्ड में मेरी फाइल में ये बात दर्ज न हो सके कि मैं बलात्कार करके हत्या भी करता हूं। या तो मदन मेहता खुद मेरे सामने आ जाए या फिर उसकी गर्दन पकड़े बिना मैं गोवा से बाहर जाने वाला नहीं। गोवा में कौन कितनी ताकत रखता है, मुझे इस बात से कोई वास्ता नहीं। मैं तो सिर्फ अपने काम से मतलब रखता हूं और उसे पूरा करना भी जानता हूं।"
माईकल के चेहरे पर सोच के भाव उभरे। वो देवराज चौहान को देखता रहा।
"ये खबर मेरे लिए नई है।" माईकल ने कहा--- "तुम तीन घंटे बाद यहीं पर मेरे से मिलना---।"
"क्यों?"
"मैं इस बारे में मदन मेहता से बात करूंगा। तभी कुछ कह सकूंगा।" माईकल ने पूर्ववतः स्वर में कहा।
"मैं तुम्हारे साथ मदन मेहता से मिलूंगा, ताकि---।"
"नहीं।" माईकल ने ठोस स्वर में कहा--- "मदन मेहता से मैं ही बात करूंगा। बीच में तुम्हारी जरूरत नहीं। तीन घंटे बाद मुझसे मिलना। तब हम इस बारे में बात करेंगे।"
देवराज चौहान दांत भींचे माईकल को घूरने लगा।
तभी दरवाजा खुला और जगमोहन नजर आया।
दोनों की निगाह उस तरफ उठी।
"बहुत देर लगा दी---।" जगमोहन वहां का माहौल महसूस करने की चेष्टा कर रहा था।
देवराज चौहान की निगाह पुनः माईकल पर जा टिकी।
"ठीक है माईकल।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर कहते हुए उठा--- "मैं तीन घंटे बाद तुमसे यही मिलूंगा।"
माईकल सिर्फ सिर हिलाकर रह गया।
देवराज चौहान ने दाढ़ी-मूंछें और विग लगाई और जगमोहन के साथ बाहर निकलता चला गया।
■■■
तीन घंटे बाद देवराज चौहान माईकल के ऑफिस में, रेस्टोरेंट में पुनः उससे मिला। माईकल को वैसे ही बैठे पाया। एकबारगी तो ऐसा लगा कि वो तीन घंटे से अपनी जगह से उठा ही नहीं। देवराज चौहान को देखते ही उसने खुली फाइल बंद करके एक तरफ सरकार दी।
"आओ।"
देवराज चौहान आगे बढ़कर कुर्सी पर जा बैठा।
"तुम्हारा साथी कहां है?" माईकल ने बंद दरवाजे को देखा--- "उसका नाम शायद जगमोहन है।"
"वो दरवाजे के बाहर है।" देवराज चौहान शब्दों को चबाकर कह उठा--- "अगर इस वक्त के लिए तुमने कोई इंतजाम तैयार किया है तो वो उस इंतजाम का इंतजाम कर सके।"
माईकल ने इंकार में सिर हिलाया।
"ऐसा कुछ नहीं है।" वह बोला--- "मदन मेहता कहता है कि उसने तुम्हारे काम में कोई दखल नहीं दिया।"
देवराज चौहान के जिस्म में सख्ती से भरी लहर दौड़ गई।
"वो झूठ बोलता है।" देवराज चौहान के दांत भिंच गए।
"मेरे ख्याल में मदन मेहता मेरे से झूठ नहीं बोलेगा।" माईकल ने गंभीर स्वर में कहा--- "उसका कहना है कि सुखदेव से कहकर, सुधाकर बल्ली का उसने काम कराया था। उसे यह भी मालूम था कि सुधाकर बल्ली, देवराज चौहान के साथ काम कर रहा है। क्या काम कर रहा है? यह भी उसे मालूम था। इस मामले से उसका इतना ही वास्ता था। उसके बाद क्या हुआ और क्या नहीं, वो कुछ नहीं जानता।"
"वो झूठ बोलता है।" देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा।
दो पल की खामोशी के बाद माईकल ने गंभीर स्वर में ही कहा।
"जो उसने बोला, वो मैंने तुम्हें बता दिया। अगर वो झूठ बोलता है तो ये बात वो ही जाने---।"
"मदन मेहता मुंबई से क्यों भागा?" देवराज चौहान ने भिंचे स्वर में पूछा।
"मैंने ये बात उसी से की, लेकिन उसने जवाब देने से मना कर दिया।" माईकल ने उसे देखा।
"क्यों?"
"वही जाने। जो बातें तुमने मेरे से कही, वही मदन मेहता से कही। सुधाकर बल्ली को तुमसे मिलाने तक तो वो हर बात मानता है। लेकिन उसके बाद जो हुआ, कहता है उससे कोई वास्ता नहीं। माईकल शांत था।
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता सिमटी रही।
"मैं तुमसे पूछता हूं कि क्या तुम विश्वास के साथ कह सकते हो कि मदन मेहता ने सच कहा है?" देवराज चौहान बोला।
माईकल, देवराज चौहान को देखता रहा।
"जवाब दो।"
"मैं कुछ नहीं जानता। जो तुमने कहा, वो उसे बता दिया। जो उसने कहा, तुम्हें बता दिया।" माईकल ने अपने दोनों हाथों को टेबल पर फैलाकर कहा--- "मुझे सच-झूठ की तह में पहुंचने की दिलचस्पी नहीं है।"
"और मुझे इस वक्त सबसे ज्यादा दिलचस्पी है।" देवराज चौहान एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "तुम मुझे मदन मेहता से मिलवाओ। मैं उससे बात करना चाहता हूं।"
"ये बात मेरी हद से बाहर है।" माईकल ने शांत स्वर में कहा--- "उसके आने-जाने वाले मैसेजों का लेन-देन तो मेरे रेस्टोरेंट द्वारा होता है। क्योंकि वो मेरा बचपन का दोस्त है। जरूरत पड़ने पर मैं उसकी सहायता करता हूं और जब मुझे जरूरत होती है तो वो मेरी सहायता करता है। किसी को उस तक ले जाना, मेरी दोस्ती में नहीं आता।"
"मतलब कि तुम मुझे मदन मेहता तक नहीं ले जाओगे?"
"नहीं। तुम्हारा जितना काम कर सकता था, मैंने कर दिया। बस और नहीं।"
देवराज चौहान ने माईकल की आंखों में झांका।
"मदन मेहता इस वक्त वहीं, अपनी मछुआरों की बस्ती में छिपा हुआ है।"
माईकल के होंठ भिंच गए।
"जवाब दो।"
"हां।" माईकल के होंठ हिले--- "लेकिन उधर जाने की कोशिश मत करना। तुम नहीं जान सकते कि मदन मेहता वहां कहां है। वहां पहुंच भी गए तो वो बस्ती तुम्हारे लिए पिंजरा साबित होगी। जहां तुम्हें सिर्फ मौत ही मिलेगी। आज तक मदन मेहता के लिए जो भी उसकी तलाश में वहां गया, उसकी लाश समंदर में ही मिली, जो नहीं मिली, मछलियां उसके शरीर को खा गईं। यानी कि दोबारा उस इंसान को कभी नहीं देखा गया।"
"तुम मुझे धमकी दे रहे हो।"
"नहीं। बात को गलत मत लो। मैं सिर्फ तुम्हें सतर्क कर रहा हूं। माना कि तुम जानी-मानी हस्ती हो। देवराज चौहान हो। लेकिन मदन मेहता की मछुआरों की बस्ती कई देवराज चौहान को अपने में समेटकर गुम कर सकती है। मेरी बात को अभी तक तुम इसलिए हल्का ले रहे हो कि वहां के बारे में ठीक से नहीं जानते।" माईकल ने टेबल पर फैले अपने हाथों को समेटते हुए कहा--- "मैं तो यही कहूंगा कि मदन मेहता को भूल जाओ। उसने क्या किया और क्या नहीं, अपने दिमाग से ये बात झाड़ दो। तभी सब ठीक रहेगा।"
देवराज चौहान की आंखों में सुर्खी चमकी।
"तो तुम कैसे वहां, मदन मेहता के पास पहुंच जाते हो?"
"मैं तो बचपन से वहां जाता हूं। मदन मेहता से मेरा दोस्ताना है। सब जानते हैं। वहां के मछुआरे मुझे अपना ही मानते हैं। मेरे लिए यहां और वहां में कोई फर्क नहीं।" माईकल ने शांत स्वर में कहा।
"इसका मतलब तुम्हारे साथ वहां कोई जाए तो बिल्कुल सुरक्षित होगा?"
"जाहिर है।"
अगले ही पल देवराज चौहान के हाथ में रिवाल्वर नजर आने लगी।
माईकल के होंठ सिकुड़े। चेहरा शांत ही रहा।
"तुम मुझे मछुआरों की बस्ती में, मदन मेहता के पास लेकर जाओगे।" देवराज चौहान खतरनाक स्वर में गुर्रा उठा।
"ये तुमने कैसे सोच लिया?" माईकल गंभीर था।
"मैं तुम्हें अभी शूट कर दूंगा अगर तुमने इंकार किया तो---।" देवराज चौहान पहले जैसे स्वर में कह उठा।
माईकल मुस्कुराया।
"तुम क्या समझते हो मैं सिर्फ रेस्टोरेंट चलाता हूं। मेरे पास कई तरह के बंदे आते हैं और इस तरह अगर हर कोई माईकल पर रिवाल्वर तानने लगा तो, मैं कब का मर गया होता। मेरा नामोनिशान मिट गया होता। रिवाल्वर जेब में रख लो।"
"लगता है तुम अब और नहीं जीना चाहते---।" देवराज चौहान ने रिवाल्वर सीधी कर ली।
"ऐसा मत कहो। मुझ में जीने की ख्वाहिश बहुत है। तभी तो मैंने ऐसे वक्त के लिए, अपने बचाव के लिए इंतजाम कर रखे हैं। ये रिवाल्वर किसी और ने यहां बैठकर मेरी तरफ की होती तो कब का निपटारा हो चुका होता। लेकिन मैं देवराज चौहान जैसे इंसान से झगड़ा मोल लेकर अपने शांत दिमाग और ठीक-ठाक धंधे को खराब नहीं करना चाहता। इसलिए---।"
तभी दरवाजा खुला।
भीतर प्रवेश करने वाला जगमोहन था। उसके पीछे चार व्यक्ति थे। रिवॉल्वर थामें उन्होंने जगमोहन को कवर कर रखा था। भीतर प्रवेश करते ही, दो करीब पहुंचे और रिवॉल्वरें देवराज चौहान की तरफ कर दीं।
देवराज चौहान और माईकल की आंखें मिलीं।
"मैं गोवा में कोई फसाद नहीं खड़ा करना चाहता।" देवराज चौहान ने दांत भींचकर कहा--- "वरना दूसरे हालातों में तुम्हारे ये चारों आदमी बेकार साबित होते। मैं नहीं चाहता कि कोई झगड़ा खड़ा हो और मदन मेहता तक पहुंचने में मुझे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़े।" इसके साथ ही देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ।
"तुमने मुझ पर रिवाल्वर कर दी तो मुझे भी बचाने को कुछ करना था। मेरे ये आदमी एक केबिन में हर वक्त मौजूद रहते हैं और केबिन की बैल बजने का इंतजार करते हैं, जिसका बटन इस टेबल के नीचे है। बैल बजते ही ये समझ जाते हैं कि यहां गड़बड़ है और आधे मिनट में साजो-सामान के साथ हाजिर हो जाते हैं। जैसे कि अब हो गए।" माईकल ने शांत स्वर में कहा--- "ये सब इंतजाम रखने पड़ते हैं। मजबूरी है।"
देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ। रिवाल्वर जेब में डाल ली।
"एक बार फिर सलाह देता हूं। मदन मेहता की तरफ कदम उठाने की चेष्टा मत करना---।" माईकल का स्वर बेहद शांत था--- "कुछ हासिल नहीं होगा, सिवाय मौत के---।"
"मदन मेहता से बोलना, वो जहां भी है, मैं बहुत जल्द उसके पास पहुंच जाऊंगा।" देवराज चौहान ने दरिंदगी भरे स्वर में कहा और पलटकर जगमोहन को साथ लेता हुआ बाहर निकल गया।
दोनों रेस्टोरेंट के पार्किंग में खड़ी अपनी कार में पहुंचे।
देवराज चौहान ने कम शब्दों में बता दिया था कि माईकल से क्या बात हुई।
"यानी कि मामला वहीं का वहीं रहा।" जगमोहन बोला।
"हां।" देवराज चौहान ने चेहरे पर सख्ती समेटे सिगरेट सुलगाई--- "इसमें कोई शक नहीं कि मदन मेहता तक पहुंचना आसान नहीं और हमें हर हाल में उस तक पहुंचकर उस पर काबू पाना है।"
दोनों कार में बैठे। जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी। वो सड़क पर आ गई।
"मदन मेहता इस वक्त अपनी मछुआरों की बस्ती में छिपा हुआ है।" देवराज चौहान ने कहा--- "हमें वहां जाकर बस्ती का जायजा लेना चाहिए। तभी इस मामले में आगे कुछ सोचा जा सकता है।"
"मैं अभी मालूम करता हूं कि मदन मेहता वाली बस्ती कहां है?" जगमोहन बोला।
फिर रास्ते में एक जगह रुककर बस्ती के बारे में पूछा। तभी देवराज चौहान की निगाह राजन राव पर पड़ी। जो एक तरफ खड़ी कार में बैठा उन्हें देख रहा था।
"वो देखो।" देवराज चौहान ने आंखें सिकोड़कर कहा--- "काली कार में जो बैठा इधर देख रहा है, वो राजन राव ही है। जो मुझे कल अपने आदमियों के दम पर अपने साथ ले गया था।"
जगमोहन ने उधर देखा। राजन राव को देखा।
"मैं अभी आया---।" कहने के साथ ही देवराज चौहान कार से बाहर निकला और काली कार की तरफ बढ़ा।
काली कार के भीतर बैठा, राजन राव शांत निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था।
देवराज चौहान, काली कार के करीब पहुंचकर ठिठका और चुभते स्वर में बोला।
"तुम मेरा पीछा कर रहे हो?"
"हां। ये जानने की चेष्टा कर रहा हूं कि तुम क्या करने की कोशिश कर रहे हो।" राजन राव के स्वर या चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं था--- "लेकिन तुम्हारे किसी मामले में मेरा दखल देने का कोई इरादा नहीं है।"
"मुझ पर नजर रखकर तुम्हें क्या हासिल होगा?"
"उत्सुकता।" राजन राव के चेहरे पर मुस्कान उभरी--- "ये जानने की उत्सुकता कि आखिर तुम मेरी सहायता के बिना मदन मेहता तक कैसे पहुंचते हो। जो कि मुझे किसी भी तरह से संभव नहीं लगता।"
देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता सिमट आई।
"अब मेरा पीछा मत करना।" स्वर में खतरनाक भाव थे।
"अच्छी बात है। मान ली तुम्हारी बात---।" राजन राव ने फौरन सहमति दे दी।
देवराज चौहान वापस पहुंचकर कार में बैठा। जगमोहन ने कार आगे बढ़ा दी।
राजन राव की कार वहीं खड़ी रही। उसने पीछा नहीं किया।
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समुंदर के किनारे से कुछ हटकर वो बस्ती शुरू हो जाती थी। समुंदर की सतह से टकराकर आती नम हवा की खुशबू बहुत अच्छी लग रही थी। तट पर छोटी-बड़ी नौकाएं, बहुत ज्यादा संख्या में मौजूद थीं, जिन्हें बांध रखा था कि हवा या पानी की लहरें उन्हें समुंदर में न ले जाएं। वहीं कुछ स्ट्रीमर भी खड़े नजर आ रहे थे।
मछुआरों की उस बस्ती तक एक मुख्य सड़क आती थी। उसके बाद वो सड़क छोटी-बड़ी कच्ची-पक्की सड़कों में बदलती हुई बस्ती में प्रवेश करती जा रही थी। भीतर प्रवेश करते ही वहां बहुत बड़ा मच्छी बाजार था। हर तरफ स्मैल मौजूद थी।
बाजार में बहुत भीड़ थी।
वहां कई टेंपो छोटे-छोटे ट्रक मौजूद थे। जिनमें मछलियों से भरे टोकरे लादे जा रहे थे। सब काम तेजी से हो रहा था। वहां आवाजों का शोर इस कदर था कि किसी की भी स्पष्ट बात कानों में नहीं पड़ रही थी। मर्द-औरतें हर कोई अपने काम में व्यस्त थे। किसी को किसी की तरफ ध्यान देने की फुर्सत नहीं थी।
मछुआरों की बस्ती में कच्चे और पक्के मकान बने नजर आ रहे थे। और कोई कच्चा मकान एक कमरे का भी था तो कोई बंगले जैसा बना हुआ था। चूंकि ये बस्ती गोवा की सबसे पुरानी बस्ती थी, इसलिए वहां मूलरूप से सुविधाएं न के बराबर थीं। छोटी-छोटी गलियां, कोई चार फीट की, तो कोई पांच फीट की। किनारों पर छोटी-छोटी नालियां, हर तरफ मछलियों की स्मैल ही व्याप्त थी। गंदगी के ढेर बेपनाह थे वहां। गलियां और बस्ती की भीतरी कच्ची-पक्की सड़कें अधिकतर ऐसी थीं कि जहां कभी धूप ही न पहुंची हो।
गलियों और सड़कों का वहां ऐसा जाल बिछा हुआ था कि कोई नया व्यक्ति वहां प्रवेश कर जाए तो उनकी भूल-भुलैया में ऐसा भटके कि शायद बाहर निकलने का रास्ता ही न मिले। हर एक-दो गली के पश्चात दारू का अड्डा मौजूद था। ऐसे अधिकतर ठिकाने मकानों के भीतर ही थे। और बाहर बोर्ड लगा होता था कि फलाने का दारू का ठिकाना तो फलाने का। दिन में तो ये जगहें अधिकतर शांत रहतीं, परन्तु शाम होते ही वहां पीने के बाद शोर-शराबा, गाली-गलौज होना बेहद आम बात थी। ऐसा कुछ हो जाए तो कोई ध्यान भी नहीं देता था।
सड़क समाप्त होते ही उन्होंने कार रोक दी थी। इंजन बंद करके बाहर निकले और सामने नजर आ रहे मच्छी बाजारों को देखने लगे। दोपहर के तीन बज चुके थे। हर तरफ लोग टैम्पो, मिनी ट्रक और उन पर लादे जा रहे मछलियों के टोकरे ही नजर आ रहे थे।
"यहां से सीधे मछलियां ले जाते होंगे लोग।" जगमोहन बोला-- "सस्ती मिलती होंगी।"
"हां। गोवा में लोग अधिकतर मच्छी के शौकीन हैं और यहां मच्छी सस्ती है, इसलिए ग्राहक भोजन में इसे ही खाना पसंद करते होंगे।" देवराज चौहान की निगाहें हर तरफ फिर रही थीं--- "आओ भीतर चलें।"
"भीतर?" जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।
"हां। सबसे पहले हमें बस्ती के भीतर प्रवेश करके रास्तों की और भीतर के हालातों की जानकारी लेनी है। कोशिश करनी है कि मदन मेहता के बारे में कुछ मालूम हो सके।" देवराज चौहान ने कहा।
"अब तक जो कुछ भी मदन मेहता के बारे में सुना है, उसे याद करके तो कह सकता हूं कि यहां मदन मेहता के बारे में पूछताछ करना खतरे से खाली नहीं। लेकिन ऐसा करना भी जरूरी है।"
दोनों आगे बढ़े और टहलने के अंदाज में बाजार में प्रवेश कर गए। इस तरह कि जैसे देख रहे हों, कि कहां पर मच्छी बढ़िया और ताजी हैं, और इसी तरह वे बाजार में काफी आगे बढ़ गए। रास्ते में उन्हें मच्छी का ग्राहक समझकर दो-तीन लोगों ने अच्छी मच्छी दिखाने की बात कही।
धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए देवराज चौहान और जगमोहन उस बाजार को पार कर गये। अब वो मच्छी बाजार लगभग समाप्त हो गया था और दूसरे सामानों की दुकानें नजर आने लगीं, जिन पर वहां के लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों का सामान मिल रहा था। इस वक्त बहुत कम थी भीड़ वहां। मच्छी की स्मैल जैसे बस्ती की हवा में पूरी तरह रची हुई थी। कुछ दुकानें पार करने के बाद उन्हें छोटी-सी चाय की दुकान नजर आई तो दोनों बाहर ही मौजूद टूटी-फूटी कुर्सियों पर बैठ गए।
चाय के लिए कहा।
बूढ़ा-सा व्यक्ति चाय बना रहा था और एक जवान लड़की, जो कि मच्छी पकड़ने वाले लिबास में थी, वो वहां बैठे लोगों को चाय और बिस्कुट-फैन सर्व कर रही थी। उनमें से कोई कभी-कभार उससे हंसी-ठिठोली भी कर लेता था।
देवराज चौहान और जगमोहन की खोज भरी निगाहें हर तरफ फिर रही थीं।
"अब क्या--- किधर?"
"सीधा ही चलेंगे। ये बाजार ज्यादा लंबा नहीं चलने वाला। उसके बाद हम बस्ती के भीतरी हिस्से में पहुंच जाएंगे। तब किसी से मदन मेहता के बारे में पूछताछ करेंगे कि---?"
तभी युवती उन्हें चाय के गिलास दे गई।
दोनों चाय पीते इधर-उधर निगाह दौड़ाते रहे। आते-जाते लोगों को देखकर वहां के माहौल से दिमागी तौर पर पहचान बढ़ाने की चेष्टा करते रहे। चाय समाप्त करके पैसे चुकाये और वहां से आगे बढ़ गए। देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे। दस मिनट बाद ही दुकानें समाप्त हो गईं और अब बस्ती की गलियां और मकान स्पष्ट नजर आने लगे। लोगों का आना-जाना बराबर जारी था। कुछ आगे जाने पर दोनों एक गली में प्रवेश कर गए। जो कि काफी तंग थी। वो गली आगे जाकर कई गलियों में बदल रही थी। हर जगह सीलन-सी व्याप्त थी। यहां अधिकतर बेहद पुराने और तंग मकान थे। इस वक्त इस गली में, कोई और नहीं दिखा।
"ओ हीरो---।"
दोनों ठिठके। उनकी निगाह ऊपर उठी। वो एक कमरे का तंग मकान था। जिसके ऊपर एक और कमरा डाल रखा था। इसी कमरे की छोटी-सी बॉलकनी थी। जिस पर कठिनता से दो व्यक्ति ही खड़े हो सकते थे। वहां पच्चीस वर्षीय युवती टाईट धोती और टाईट ब्लाउज पहने, थोड़ी-सी नीचे झुकी उन्हें देख रही थी। उसकी आधे से ज्यादा छातियां स्पष्ट तौर पर झलक रही थीं।
"आ-जा। बहुत मजा दूंगी। याद करेगा। माल भी ज्यादा नहीं लगेगा। पहली धार का माल तेरे लिए संभाल रखा है। पचास रुपये उसके, मेरे को जो खुशी से देगा ले लूंगी।" कहकर उसने आंख दबाई।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं।
"सोचता क्या है हीरो! आगे मेरे जैसी नहीं मिलेगी। एक बार मुझे आजमाकर देख। पक्का, फिर आएगा।"
"तुम यहीं ठहरो।" देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा और सामने नजर आ रही डेढ़ फीट बड़ी-बड़ी सीढ़ियां चढ़ते हुए ऊपर के कमरे में जा पहुंचा।
तब तक वो दरवाजे तक आ पहुंची थी।
"आ-जा। आ-जा। शर्मा मत। मैं भी तेरी। ये जगह भी तेरी। चला आ---।"
होंठ सिकोड़े देवराज चौहान कमरे में प्रवेश कर गया।
कमरे में पुरानी-सी अलमारी के अलावा एक फोल्डिंग बेड था। जिस पर चादर बिछी थी। दो कुर्सियां और टेबल की छोटी-सी तिपाई मौजूद थी।
"बैठ-बैठ। कुर्सी पर बैठ। पहली धार की फेनी पिलाती हूं---। वो खास है। मैं हर किसी को नहीं पिलाती।" कहने के साथ ही उसने देवराज चौहान का हाथ थामकर कुर्सी पर बिठाते हुए ऐसे झुकी कि, टाईट ब्लाउज से झांकती उसकी छातियों को पूरी तरह दिखा सके।
देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर टिकी रही।
वो खिलखिलाते हुए पलटी और अलमारी के पीछे रखी बोतल और दो गिलास उठा लाई। आधी भरी बोतल थी। गिलास-बोतल तिपाई पर रखती हुई, देवराज चौहान की गोद में बैठने लगी।
"कुर्सी पर बैठो---।"
"क्यों---।" वो हंसी--- "धीरे-धीरे खुलेगा क्या?"
"कुर्सी पर बैठो---।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।
"ठीक है हीरो। माल पेट में जाएगा तो तू सीधा मेरी टांगों पर आ बैठेगा।" हंसते हुए वो कुर्सी पर बैठी और बोतल खोलकर गिलासों में फेनी डालती हुई बोली--- "रानी है मेरा नाम। तेरे को पहले नहीं देखा?"
"पहली बार आया हूं यहां---।"
"ऐसा ही लगा तेरे को देखकर। देखना अब तू अक्सर मुझसे मिलने आया करेगा। नाम क्या है तेरा?" कहने के साथ ही उसने फेनी का भरा गिलास देवराज चौहान की तरफ बढ़ाया।
देवराज चौहान ने गिलास थामा और वापस तिपाई पर रख दिया।
"चढ़ा जा हीरो। खाली कर दे गिलास को।" उसने आंखें दबाकर कहा--- "चिंता मत कर। भरी बोतल और पड़ी है। माल देगा तो उसका भी ढक्कन खोल दूंगी।" कहकर उसने अपना गिलास उठाया और दो तगड़े घूंट भरे--- "साली बोत तीखी है। पहली धार के माल में यही खराबी है।" वो बड़बड़ाई।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"ओ हीरो। तू बुत-सा बना क्या बैठा है। शुरू कर। मामला निपटा। मैं तेरे को लेकर ही, सारा वक्त थोड़े न बिता दूंगी। धंधे का वक्त है। और वो हलकट, लाला भाई आने वाला है। मुफ्त की पीकर, मजे लेकर चला जाता है। खतरनाक बंदा है। उसे तो जूती मारने की भी हिम्मत नहीं होती।"
"हजार रुपया कमाना चाहती हो?"
रानी की निगाह देवराज चौहान पर टिकी।
"हजार?"
"हां।"
"अरे वाह! अपना हीरो तो माल-पानी वाला है। चिंता मत कर। हजार रुपए में तू सुबह तक मेरे पास रह सकता है। दो फेनी की बोतल तेरे पर वारी। कसम से, एक बार उतारूंगी तो, सुबह तक नहीं पहनूंगी।"
"कुछ भी उतारना-पहनना नहीं पड़ेगा। मैं, तुम्हारे पास फेनी या तुम्हारे लिए नहीं आया।" देवराज चौहान ने कहा--- "कुछ मालूम करना है। वो बता और नोट ले ले।"
"मालूम करना है। क्या?"
"मदन मेहता को जानती होगी?"
रानी के माथे पर बल पड़े।
"हां। उसे यहां कौन नहीं जानता। एक-दो बार देखा है उसे। क्यों?" उसने देवराज चौहान को देखा।
"मदन मेहता इस वक्त बस्ती में है। लेकिन मैं नहीं जानता, वो कहां है। अगर तुम मुझे बता दो कि वो कहां हो सकता है या उसके बारे में कौन खबर दे सकता है, तो हजार रुपया तुम्हारा।" देवराज चौहान ने कहा।
रानी के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
"तू पागल है क्या?" रानी की आवाज में तीखापन आ गया--- "जो बस्ती में आकर मदन के बारे में पूछ रहा है, मरना है क्या? तेरी लाश भी नहीं मिलेगी, बाहर वालों को, देखने को।"
"तुम नहीं जानती कि मदन मेहता कहां है?" देवराज चौहान ने उसे देखा।
"मालूम होता तो भी न बताती। नोटों से ज्यादा मुझे अपनी जान प्यारी है। तू है कौन?"
उसकी बात पर ध्यान न देकर देवराज चौहान बोला।
"तुम कम-से-कम ये तो बता सकती हो कि मुझे मेहता के बारे में कौन पूरी जानकारी रखता है?"
रानी, देवराज चौहान को घूरती रही। फिर कह उठी।
"मेरी बात मान। चला जा यहां से। मदन के बारे में किसी से पूछकर अपनी मौत को न बुला लेना। बाहरी लोग तो क्या, बस्ती वाले भी आपस में मदन के बारे में ज्यादा बात नहीं करते। समझा क्या? अगर तूने मरना ही है तो मर। लेकिन मुझे मत मार। मेरे साथ मजे लेने हैं तो ले, नहीं तो जा। टेम खोटा मत कर---।"
देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान नाच उठी।
"दो हजार दूंगा।"
"पागल हो गया है तू?"
"पांच हजार---।"
रानी ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी और हाथ में पकड़ा गिलास एक ही सांस में खाली कर दिया। उसकी सांसों में तेजी आ गई थी। बांह से उसने फेनी के गीले होंठों को पोछा।
"दौलत का लालच देकर क्यों मुझे मौत के रास्ते पर भेज रहा है।" वो हांफने वाले ढंग से कह उठी--- "पांच हजार मेरे लिए बहुत बड़ी रकम है। चला जा यहां से---।"
"सात हजार।"
रानी ने आंखें बंद कर लीं। तेरी सांसें लेने की वजह से उसकी छातियां जोरों से ऊपर नीचे हो रही थीं। देवराज चौहान की निगाह एकटक उस पर थी। फेनी के और सात हजार के असर से उसका चेहरा तो तपने-सा लगा था। ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद पर काबू पाने की चेष्टा कर रही हो। अगले ही पल उसने आंखें खोलीं और तिपाई पर पड़ा देवराज चौहान वाला गिलास उठाकर, आधा एक सांस में खाली किया और बाकी का तिपाई पर वापस रखा।
"दस हजार---।" देवराज चौहान की निकाह एकटक रानी पर थी। रानी ने लंबी सांस ली। देवराज चौहान को देखा। फेनी का असर उसके चेहरे पर नजर आना शुरू हो गया था। तपता चेहरा, भारी पोपटे और आंखों में कशमकश थी।
"मैं-मैं मदन के बारे में कुछ नहीं जानती।" रानी हांफते हुए कह उठी।
"कोई बात नहीं।" देवराज चौहान शांत स्वर में बोला--- "किसी ऐसे को तो जानती होगी, जो मुझे मदन के बारे में बता सके। मदन तक पहुंचा सके। उससे ही मुझे मिलवा दो।"
"इतना करने के---के दस हजार मिलेंगे मुझे---?" उसके शब्दों में अविश्वास था।
"हां?"
"किसी को मालूम हो गया तो, मेरी---मेरी जान ले ली जाएगी। मैं---।"
"किसी को नहीं मालूम होगा।"
"निकाल दस हजार---।" कहने के साथ ही उसने हाथ बढ़ाया।
देवराज चौहान ने कमीज में हाथ डाला और पैंट के भीतर की तरह फंसा रखी नोटों की गड्डी निकालकर, रानी की बढ़ी हथेली पर रख दी।
रानी ने अविश्वास भरी निगाहों से हथेली पर पड़ी सौ की गड्डी को देखा फिर उसे मुट्ठी में भींचकर कुर्सी से उठी तो नशे की वजह से जोरों से लहराई लेकिन संभल गई। वो आगे बढ़ी और छोटी-सी अलमारी को खोलकर उसमें गड्डी को रखा और अलमारी बंद करके पलट आई।
देवराज चौहान की निगाह एकटक रानी पर ही थी।
"देख---।" रानी कुर्सी पर बैठते हुए कह उठी--- "ये मत बताना। मैंने तेरे को कुछ बोला है।" उसके स्वर में नशा था।
"नहीं बताऊंगा---।"
"तू नहीं पिएगा क्या?" कहने के साथ ही तिपाई पर पड़ा गिलास रानी ने उठा लिया।
"नहीं। तुम ले लो---।"
रानी ने वो गिलास भी खाली किया।
"सुन। वो हरामी लाला भाई मेरे पास आने वाला है। जिसके बारे में तेरे को पहले बताया था। वो---वो मदन मेहता के लिए काम करता है। फेनी चढ़ाकर जब मेरी गोद में बैठता है, तो बहुत बोल जाता है। मैं सुनती हूं और भूल जाती हूं। क्योंकि वो मदन मेहता के लिए काम करता है। समंदर से तस्करी का माल लाता है। स्मैक को गोवा और मुंबई भेजता है। वो तेरे को, मदन के बारे में बता सकता है।"
"लाला भाई?"
"हां---।"
"अभी आएगा?"
"आएगा जरूर। सुबह बाजार में मिला था। बोला था, पक्का आऊंगा।" रानी का चेहरा नशे में तमतमा रहा था--- "उसे मुफ्त में बर्दाश्त करना पड़ता है। खतरनाक आदमी है। कभी-कभार ज्यादा पी ले तो नोट भी दे जाता है। लेकिन कोई भरोसा नहीं, उससे माल वसूली होती है या नहीं।"
"वो न आया तो?"
"आएगा। हराम का माल किसे बुरा लगता है। फिर भी, नहीं आया तो बता दूंगी कि रात को वो किसके ठिकाने पर बैठा---मरा पी रहा होगा।" कहकर वो हंसी--- "जब तक वो नहीं आता, तब तक मौज-मस्ती कर ले हीरो। दस हजार में तो तुमने मुझे खरीद लिया है। जब भी आएगा। मुफ्त सेवा करूंगी। आ---।"
"आराम से बैठो।" कहने के साथ ही देवराज चौहान उठा और नीचे मौजूद जगमोहन को भी ऊपर बुला लिया। जगमोहन को देवराज चौहान ने लाला भाई के बारे में बताया।
दोनों लाला भाई का इंतजार करने लगे।
रानी दस हजार और फेनी के नशे में मस्त-मस्त थी।
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अंधेरा घिर चुका था।
मछुआरों की बस्ती की दिन-भर की हलचल में अब बदलाव आ गया था। वहां से कहीं दूर, मछुआरों के गीत गाने की आवाज आ रही थी। यदा-कदा मोटर बोट की आवाज कानों में पड़ जाती या फिर किसी के चिल्लाने-पुकारने की आवाजें।
कभी-कभार गली से गुजरने वाले किसी शराबी की बड़बड़ाहट या नशे से भरी आवाज में गाना कानों में पड़ जाता। इसके अलावा हर तरफ खामोशी-शांति ही थी।
कुर्सियों पर बैठे देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
जगमोहन ने कलाई घड़ी पर निगाह मारी।
"साढ़े आठ बज रहे हैं।" देवराज चौहान ने रानी को देखा।
रानी के पेट में गई दो गिलास फेनी का नशा टूटने लगा था। उसने फोल्डिंग पर लेटे-लेटे भारी आंखों से दोनों को देखा फिर बैठते हुए बोली।
"कैसे लोग हो तुम? मैं हूं। वक्त है। नशा है। फिर भी घंटों से बेवकूफों की तरह बैठे हो। इतनी देर में क्या कुछ नहीं हो सकता था। मजा बेकार कर दिया।"
"लाला भाई नहीं आया?" देवराज चौहान ने शांत स्वर में पूछा।
"आ जाएगा।" रानी ने लापरवाही से कहा।
"नहीं आया तो कहां मिलेगा?"
"बता दूंगी। दस बजे तक इंतजार कर लो।" रानी ने खाली होती बोतल को देखा--- "उसे आना होता तो दस बजे तक आ जाता है। दस तक नहीं आया तो उसके बाद नहीं आता। कहीं और फिट हो जाता है।" कहकर बोतल में बची फेनी को गिलास में डाला तो जगमोहन ने सख्त स्वर में टोका।
"तुम और नहीं पियोगी। हमारे जाने के बाद पीती रहना।"
"क्यों?"
"मैं नहीं चाहता कि तुम नशे में हमें बताना भूल जाओ कि लाला भाई कहां मिलेगा।" जगमोहन ने उसे घूरा।
रानी खिलखिलाई।
"बच्चे हो। अभी रानी को नहीं जानते। मैं जितनी भी पी लूं। बेशक आवाज लड़खड़ा जाए। चलना कठिन हो जाए। लेकिन दिमाग बंद नहीं होता। दिमाग बंद होने लगे तो रानी का धंधा कैसे चलेगा। तुम लोग तो एकबारगी नशे में बहक सकते हो। लेकिन रानी नहीं, रानी तो नशे में होकर, बहक चुके लोगों को संभालती है।" कहने के साथ ही उसने गिलास उठाया और एक ही सांस में खाली कर दिया।
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा और गहरी सांस लेकर रह गया।
"रानी। कहां मर गई तू---।"
तभी नशे से भरा हुआ स्वर तीनों के कानों में पड़ा।
"आ गया हरामखोर।" रानी हौले से हंसी, फिर वहीं बैठे-बैठे ऊंचे स्वर में बोली--- "गला क्यों फाड़ रहा है, नीचे खड़ा-खड़ा। आ-जा ऊपर सीढ़ियां चढ़ लेगा या सहारा दूं?"
"साली---।" अब उसके सीढ़ियां चढ़ने की आवाज आने लगी--- "मुझे सहारा देगी।"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
तभी देवराज दरवाजे की चौखट पर वो आ पहुंचा। उसका डील-डोल ठीक-ठाक था। साढ़े पांच फीट कद होगा। शरीर पर कीमती सूट था, परन्तु मैला-सा हो रहा था। पैंतालीस-पचास की उम्र होगी। उसके चेहरे पर किसी पुरानी चोट का निशान था, परन्तु वो बुरा नहीं लग रहा था। शक्लो-सूरत सही थी, परन्तु समझदार इंसान उसे पहचानने में गलती नहीं कर सकता था कि वो खतरनाक है। हाथ में फेनी की बोतल थी जो आधी से ज्यादा खत्म हो चुकी थी। नशे की वजह से उसकी आंखें भारी हो रही थीं।
"आ लाला भाई! आज तो बोतल साथ लेकर आया है। मुफ्त की पड़ी मिल गई क्या?" रानी हंसकर बोली।
लाला भाई ने देवराज चौहान और जगमोहन को देखा।
"तेरे को मालूम था कि मैं आने वाला हूं। फिर इन मच्छरों का यहां क्या काम? भगा इन्हें यहां से।"
"क्या बोला तू। मैंने बिठा रखा है।" रानी आंखों में तीखापन भर लाई--- "आज से पहले कभी ऐसा हुआ है कि तूने आना हो और यहां कोई बैठा मिले। ज्यादा चढ़ गई आज क्या?"
"क्या मतलब?" लाला भाई के नशे से भरे चेहरे पर उलझन नजर आने लगी।
"ये दोनों तो, तेरा नाम लेकर तीन घंटे से मेरे पास बैठे हैं।"
"मेरा नाम लेकर?" लाला भाई के चेहरे के भाव बदले।
"हां। ये बोले कि तुमने इन्हें यहां भेजा है कि तुम बाद में आओगे।"
लाला भाई एकाएक सतर्क-सा नजर आने लगा। नशे की मस्ती चेहरे पर से कम हो गई।
"मैंने तो किसी को नहीं भेजा---!"
"तुम्हारे सामने हैं, बात कर लो। मैं भला तुम्हें गलत क्यों कहने लगी। बल्कि तुम्हारे नाम पर मैं चुप रह गई, वरना मैं मुफ्त में इनको कुर्सियों पर भी बैठने देती क्या?" रानी ने तीखे स्वर में कहा।
लाला भाई की निगाहें देवराज चौहान और जगमोहन पर जा टिकीं।
"कौन हो तुम लोग?" उसकी आवाज में मौजूद नशा गायब हो चुका था।
"आराम से बैठ जाओ।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "तुमसे बात करनी है।"
वो वहीं खड़ा शक भरी निगाहों से दोनों को देखता रहा।
"तुम लोगों को कैसे मालूम हुआ कि आज मैं रानी के पास आने वाला हूं?"
"क्या ये बात तुमने अपने किसी आदमी को नहीं बताई। किसी से इस बात का जिक्र नहीं किया?" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा और सिगरेट सुलगा ली। हाव-भाव में लापरवाही के भाव थे।
लाला भाई की आंखें सिकुड़ी।
"तुम लोग मुझे ठीक नहीं लग रहे...।"
"जन्मपत्री दिखाऊं क्या?" जगमोहन ने व्यंग्य से कहा।
"क्या मतलब?"
"भाई मेरे, भीतर आ। बैठ। तभी बात होगी। तू तो मीलों दूर खड़ा हांक लगाए जा रहा है।" जगमोहन ने मुंह बनाकर कहा--- "आ-जा,आ-जा। तेरे ही बंदे से सुना था कि आज तू रानी के पास आएगा तो हम यहां आकर तेरा इंतजार करने लगे।" ये शब्द उसने इसलिए कहे कि वो रानी पर किसी तरह का शक न कर सके।
लाला भाई ने सोच भरी निगाहों से दोनों को देखा और भीतर आ गया।
रानी फोल्डिंग पर एक तरफ सरकते हुए बोली।
"आ बैठ। तेरे कोई खास लोग हैं क्या?"
लाला भाई ने रानी को देखा फिर दोनों को।
"मैं आज इन्हें पहली बार देख रहा हूं---।"
"अजीब बात है। ये तो कह रहे थे कि तुम इनके खास दोस्त हो। लेकिन मामला तो कुछ और ही लग रहा है।"
लाला भाई की निगाह देवराज चौहान और जगमोहन पर जा टिकी। हाथ में पकड़ी फेनी की बोतल तिपाई पर रख दी। उसका चेहरा नशे में अवश्य नजर आ रहा था, परन्तु दिमागी तौर पर वो चौकस था।
"कौन हो तुम लोग?"
"मेरे ख्याल में ये जानाना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "अगर कुछ देर के लिए इसे बाहर कर दो तो हम आराम से बात कर लेंगे।"
लाला भाई ने रानी को देखा।
"सुना तूने। बाहर निकल। इधर बात होनी है। सीढ़ियों के नीचे जाकर बैठ जा। ऊपर मत आने देना किसी को।"
रानी मुंह बनाकर उठी।
"दो घंटे मत लगा देना---।" कहने के साथ ही उसने लाला भाई की लाई बोतल उठाई और बाहर निकल गई।
"अब बोलो।"
"सुना है तुम मदद मेहता के खास काम करते हो।" देवराज चौहान की निगाह उसके चेहरे पर टिक गई।
लाला भाई की आंखें सिकुड़ी।
"देर से सुना। ये बात तो ढेरों लोग जानते हैं। काम की बात करो।" मदन मेहता का जिक्र आते ही लाला भाई सतर्क हो उठा था। मस्तिष्क से नशा पूरी तरह हट चुका था।
"मुझे मदन मेहता की जरूरत है। और तुम मुझे उस तक पहुंचा सकते हो।"
लाला भाई के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
"शेर की मांद में घुसकर, शेर का गला पकड़ने की फिराक में हो।" लाला भाई ने देवराज चौहान और जगमोहन पर निगाह मारी--- "यहां तक आ गए हो तो मदन मेहता के दम-खम के बारे में पूरा मालूम होगा।"
"हां---।"
"कौन हो तुम लोग?"
"हम कौन हैं, ये जानना जरूरी नहीं, पहले भी कह चुका हूं।" देवराज चौहान ने शब्दों पर जोर देकर कहा--- "अगर तुम मदन मेहता तक हमें पहुंचा सकते हो तो तुम्हें ठीक-ठाक रकम मिल सकती है।"
"माल का आना किसे बुरा लगता है।" लाला भाई पैनी निगाहों से दोनों को देख रहा था--- "लेकिन मौत के मुंह में छलांग लगाना जिंदा इंसान को बहुत बुरा लगता है। इधर मैंने मुंह खोला, उधर मैं खत्म। ऐसे में तुमसे पैसे लेकर क्या करूंगा।"
"किसी को नहीं मालूम होगा कि मदन मेहता तक पहुंचने का रास्ता तुमने मुझे बताया है।" देवराज चौहान बोला।
लाला भाई संभलकर, सोच-समझकर बात कर रहा था।
"सब मालूम हो जाता है। यहां की हवाओं के बारे में तुम नहीं जानते। कुछ नहीं छिप पाता। मैं नहीं जानता तुम लोग कौन हो और मामला क्या है। लेकिन इतना जरूर कहूंगा की जान नहीं गंवाना चाहते तो इस बस्ती से बाहर निकल जाओ।"
"ये सीधे-सीधे नहीं मानेगा।" जगमोहन का स्वर तीखा हो गया।
देवराज चौहान ने कुर्सी पर पसरते हुए शांत स्वर में कहा।
"मदन मेहता के बारे में तो तुम्हें मुंह खोलना ही पड़ेगा।"
"जबरदस्ती है?" लाला भाई का चेहरा कठोर हो गया।
उसी पल जगमोहन ने रिवॉल्वर निकालकर, उसका रुख लाला भाई की तरफ कर दिया।
लाला भाई की आंखें सिकुड़ी। होठ सिकुड़े। उसने जगमोहन को सख्त निगाहों से देखा।
"अब समझ में आ गया होगा कि जबरदस्ती ही है।" जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
लाला भाई ने कुछ नहीं कहा। उसी तरह बैठा सोचता रहा। बारी-बारी उन्हें देखता रहा। जब चुप्पी लंबी होने लगी तो जगमोहन रिवाल्वर हिलाकर, पहले वाले स्वर में कह उठा।
"तुम्हारा चुप बैठना मुझे अच्छा नहीं लगता। बोलते रहो।"
"इसे वापस रख लो। वैसे भी मुझे अच्छा नहीं लगता, कोई रिवाल्वर मेरी तरफ करे।" लाला भाई का स्वर तीखा था--- "आराम से एक बार फिर बात करते हैं।"
जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा। देवराज चौहान का इशारा पाकर उसने रिवाल्वर वापस रख ली।
"तुम दोनों की बेताबी से लग रहा है कि मदन मेहता के बिना तुम लोगों की जान निकली जा रही है। बताओगे नहीं कि असल मामला क्या है? क्यों उसकी तलाश में मौत के दरवाजे पर आ पहुंचे हो---?"
"आगे बोलो---।" देवराज चौहान ने उसे घूरा।
कुछ पल की चुप्पी के बाद लाला भाई बोला।
"मदन मेहता के बारे में मुंह खोलने में खतरा बहुत है। मेरी जान जा सकती है। तुम माल देने को कह रहे थे।"
"कितना चाहते हो?"
लाला भाई, सोच भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा।
"अपनी जरूरत के मुताबिक खुद ही मेरे इस जवाब की कीमत लगा लो। कहो, मदन मेहता के बारे में बताने की एवज में क्या देते हो। मैं, तुम लोगों को सिर्फ इतना बता सकता हूं कि मदन मेहता कहां मौजूद है। आगे तुम जानो। तुम्हारा काम। और वायदा करना होगा कि किसी से नहीं कहोगे कि हम एक-दूसरे को जानते भी हैं।"
"तुम्हारा नाम बीच में नहीं आएगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "पचास हजार तुम्हारा मुंह खुलते ही मिल जाएंगे।"
"पचास हजार---। बस---।" लाला भाई का स्वर तीखा हो गया--- "इतनी रकम में मैं अपना मुंह नहीं खोल सकता।"
"तो और क्या चाहते हो?" जगमोहन उखड़े लहजे में कह उठा।
"रियायती से रियायती दर भी एक लाख होगा। एक फटा रुपया भी कम नहीं होगा।"
"एक लाख वो भी रियायती दर में---।" जगमोहन ने उसे घूरा--- "दिमाग तो नहीं खराब हो गया तुम्हारा। इसमें तुम्हारा लगना ही क्या है, मुंह खोला और माल जेब में। साठ हजार ले लेना---।"
"पूरा एक लाख---।" लाला भाई पक्के स्वर में बोला।
जगमोहन ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि देवराज चौहान ने टोका।
"ठीक है लाख तुम्हारा। मदन मेहता के बारे में बोलो, वो कहां मिलेगा---?"
"खाली-खाली लाख मेरा नहीं। जब लाख दोगे, तभी बात आगे बढ़ेगी---।" लाला भाई ने शुष्क स्वर में कहा।
देवराज चौहान ने कमीज में हाथ डाला और पैंट में फंसा रखी, पांच-पांच सौ की दो गड्डियां निकालीं और तिपाई पर रख दीं।
"पूरा लाख है।"
लाला भाई ने दांत फाड़े और दोनों गड्डियां फौरन उठा लीं।
ज्यादा मुंह मत फाड़।" जगमोहन तीखे लहजे में कह उठा।
लाला भाई ने दोनों गड्डियों को फौरन अपनी जेब में ठूंस लिया।
"बोलो---।" देवराज चौहान की निगाह उस पर थी।
"अब इंकार कैसा!" लाला भाई खुश नजर आ रहा था--- "ये बताओ कि तुम किस रास्ते से बस्ती में आए हो?"
"बड़ी सड़क वाले मुख्य रास्ते से---?"
"मच्छी बाजार की तरफ से। समझा।" लाला भाई ने सिर हिलाया--- "ठीक है। आधे घंटे के बाद तुम दोनों उसी सड़क पर अंधेरे में मुझे मिलना।"
"क्या मतलब?"
"मतलब ये कि हर बात हर जगह नहीं की जाती। यहां रानी है और मामला मदन मेहता का है। रानी एक नंबर की चालू है। हम लोगों में हुई बातें रानी सुन सकती है और बस्ती में रात के इस वक्त किसी अजनबी से बात करना ठीक नहीं होगा। कोई भी शक खा जाएगा। इसलिए मदन मेहता के बारे में जो कुछ भी बताऊंगा, वो बस्ती के बाहर, वीराने में चुपके से बताऊंगा। तुम दोनों वहीं पहुंचो।"
"और तुम?" देवराज चौहान ने पूछा।
"मैं भी वहीं पहुंच रहा हूं। दूसरे रास्ते से तुम लोगों से पहले वहां पहुंच जाऊंगा।" लाला भाई उठा।
नोटों की गड्डियां मेरे हवाले करो---।" जगमोहन ने एकाएक कहा।
"क्या?" लाला भाई अचकचाया।
"हम बस्ती के बाहर, आधे घंटे बाद मिल रहे हैं। वहां तुम्हें गड्डियां मिल जाएंगी।" जगमोहन ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा--- "तुम्हारा क्या भरोसा, यहां से निकले और दोबारा नजर ही नहीं आए।"
लाला भाई के माथे पर बल नजर आने लगे।
"कान खोलकर सुन लो, लाला भाई खोटा धंधा जरूर करता है, लेकिन हेराफेरी नहीं करता खोटे धंधे में। रही बात नोटों को वापस देने की तो समझदार लोग, माल देने के बाद, न तो नोट वापस लेते हैं और लेने वाला समझदार हो तो वो कभी भी नोट वापस नहीं करेगा। समझा क्या?"
"नोट जेब में पहुंचते ही आंखे दिखानी शुरू कर दीं। कुछ देर पहले तो दांत दिखा रहा था।" जगमोहन बोला।
"तब तुमने नोट दिए थे और बिना वजह वापस मांग रहे हो। मैं जा रहा हूं। आधे घंटे बाद वहीं मिलना, जहां मिलने को कहा है।" लाला भाई ने लापरवाही से कहा और बाहर निकलता चला गया।
जगमोहन ने फौरन देवराज चौहान को देखा।
"ये तो लाख भी ले गया और बताया भी कुछ नहीं।"
"हां---।" सिर हिलाकर देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ--- "लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते। मदन मेहता तक पहुंचने के लिए अंधेरे में हाथ-पांव मार रहे हैं। ऐसे में किसी पर तो विश्वास करना ही पड़ेगा।"
"अगर लाला भाई लाख के साथ खिसक गया, तो दोबारा उसे कहां ढूंढेंगे।"
"फिर लाला भाई जैसे किसी और को पकड़ेंगे।" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।
जबकि जगमोहन खींझकर रह गया।
दोनों कमरे से बाहर निकले और सीढ़ियां उतरने लगे। नीचे की आखिरी सीढ़ी पर रानी नशे में बेसुध पड़ी थी। हाथ में लाला भाई वाली फेनी की खाली बोतल दबी थी।
"ये तो रात भर के लिए नक्की हो गई---?" जगमोहन बड़बड़ाया।
दोनों ने सीढ़ी पर मौजूद रानी को पार किया और गली में पहुंचकर बाहर की तरफ बढ़ गए। रात के दस बज रहे थे। बस्ती में अधिकतर हर तरफ सन्नाटा ही था। कभी-कभार कुत्तों के भौंकने की आवाज या फिर किसी नशेड़ी की चीखो-चिल्लाहट कानों में पड़ जाती।
■■■
देवराज चौहान और जगमोहन बीस मिनट में ही बस्ती के बाहर वाली सड़क पर पहुंच गए। मच्छी बाजार बंद हो चुका था। दुकानों के बाहर, कई जगह मध्यम प्रकाश के बल्ब टिमटिमा रहे थे। कुछ दूर समंदर की उछलती लहरों की मध्यम-सी आवाजें कानों में पड़ रही थीं। दो-चार दुकानें अभी भी खुली थीं। टोकरी में भरी, मछलियां उन पर लादी जा रही थी। बहुत कम शोर हो रहा था। किसी ने उनकी तरफ ध्यान नहीं दिया।
वे दोनों कुछ दूर अंधेरे में खड़ी अपनी कार के पास पहुंच गए।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"लाला भाई देखने में ही हरामी लगता था। लाख रुपया लेकर गोल हो जाएगा।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा--- "साला अब नहीं आने वाला। अब तक तो दारू की नई बोतल भी खरीदकर खत्म कर दी होगी।"
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।
आधा घंटा बीत गया।
लाला भाई नहीं आया।
"उसने आधे घंटे में आने को कहा था।" जगमोहन झल्लाकर कह उठा--- "हमसे अलग हुए एक घंटा होने को आ रहा है। मान लो मेरी बात, वो हमें बेवकूफ बना गया है।"
"हो सकता है तुम ठीक कह रहे हो। मैंने, तुम्हें गलत नहीं कहा।" देवराज चौहान बोला--- "ये मामला ही ऐसा है कि मदन मेहता तक पहुंचने के लिए हमें दस बार भी बेवकूफ बनना पड़े तो चुपचाप बनना पड़ेगा। इसके अलावा हमारे पास कोई रास्ता नहीं, और---।"
कहते-कहते देवराज चौहान खामोश हो गया। उसकी आंखें सिकुड़ी। जगमोहन का हाथ जेब में पड़ी रिवाल्वर की तरफ सरक गया।
अंधेरे में वे स्पष्ट तो नहीं देख पाए कि वो कितने लोग थे? परन्तु पांच-सात का तो उन्हें आभास पा लिया था। वे लोग सड़क के दोनों तरफ अंधेरे में से निकले और उन्हें घेरने के अंदाज में आगे बढ़ने लगे। उनका आगे बढ़ने का ढंग बता रहा था कि उनके इरादे ठीक नहीं हैं।
दोनों की पैनी निगाहें अंधेरे में उन पर फिर रही थीं।
देवराज चौहान का हाथ भी जेब में पड़े रिवाल्वर तक पहुंच गया था।
वे सब, उनसे चार कदम पहले ही ठिठक गये। उनकी वेशभूषा मछुआरों वाली ही थी। वे बस्ती के ही लोग थे। किसी के हाथ में मच्छी काटने वाला चौड़ा छुरा था तो किसी के हाथ में लाठी। कुछ ने लंबे छुरे थाम रखे थे। उनकी चमकदार आंखें, खतरनाक भाव लिए चमक रही थीं।
"ये लाला भाई की करामात है।" जगमोहन दांत भींचकर कह उठा।
"ठीक समझे बच्चे। लाला भाई ऐसे ही कमाल दिखाता है।"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें घूमीं।
दायीं और पीछे की तरफ दोनों हाथ कमर पर रखे लाला भाई खड़ा था।
देवराज चौहान के जबड़ों में कसाव आ गया।
"बस्ती में आकर, नोट देकर मदन मेहता के बारे में पूछता है कि वो कहां है।" लाला भाई कहर भरे स्वर में कह उठा--- "पागल हो तुम दोनों। लाला भाई के बारे में जान तो लेते कि वो चीज क्या है। मदन साहब के लिए हम जान दे सकते हैं और ले भी सकते हैं। फिर नोट क्या चीज है। तुम्हारे रंग-ढंग देखकर ही मैं समझ गया था कि मदन साहब के बारे तुम दोनों के इरादे ठीक नहीं हैं। लेकिन बस्ती में शोर-शराबा करना मैंने ठीक नहीं समझा। मरो सालों और समंदर में फेंकेंगे तुम्हारी---।" इसके साथ ही लाला भाई ऊंचे स्वर में चिल्लाकर कह उठा--- "मारो इन हरामियों को। फेंक दो लाशें इनकी समंदर में इतनी दूर कि कोई जान ही न सके कि कभी ये यहां आए...।"
उसी पल देवराज चौहान के हाथ में रिवाल्वर नजर आई। रुख लाला भाई की तरफ हुआ और धमाके की तीव्र आवाज दूर-दूर तक गूंजती चली गई। इसके साथ ही लाला भाई की चीख गूंजी और तड़पकर वो नीचे गिरा और छाती पर हाथ रखे छटपटाने लगा।
उधर देवराज चौहान हरकत में आया, उधर उन्हें घेरे आदमी उन पर अपने-अपने हथियारों सहित झपट पड़े। दोनों काम एक साथ हुए थे।
जगमोहन ने फुर्ती के साथ अपनी तरफ झपट रहे आदमियों पर गोलियां चलाईं। उसकी रिवाल्वर से दो मरे थे। इससे पहले कि देवराज चौहान भी उन पर गोलियां चला पाता, अंधेरे में कहीं से गोलियों की बाढ़ आई उन्हें घेरे आदमियों के जिस्म में धंसती चली गई, परन्तु उन्हें एक भी गोली नहीं लगी। जाहिर था कि जिन्होंने भी ये गोलियां चलाई थीं वो अचूक निशानेबाज थे।
देवराज चौहान और जगमोहन की समझ में दो पल के लिए कुछ नहीं आया।
सेकंडो में ही हालात बदल चुके थे। जो उन्हें घेरे खड़े थे, वे नीचे पड़े थे। कुछ मर चुके थे और कुछ तड़प रहे थे। लाला भाई का शरीर कब का शांत पड़ चुका था।
तभी अंधेरे में से राजन राव निकलकर उनके पास पहुंचा।
"जल्दी से निकल जाओ यहां से। रात के वक्त गोलियों की आवाज दूर-दूर तक गई है। मिनटों में यहां बस्ती की भीड़ होगी। उनके हाथ मत पड़ जाना। वो दुकानों वाले भी इधर ही देख रहे हैं।" राजन राव जल्दी से बोला।
"तुम?" देवराज चौहान की आंखें सिकुड़ी।
"वक्त बर्बाद मत करो। निकल जाओ।" राजन राव बेसब्र-सा कह उठा।
तभी सड़क के किनारे अंधेरे में से कार के स्टार्ट होने की आवाज आई और फिर वो कार उनके पास सड़क पर आकर रुकी। भीतर चार आदमियों की मौजूदगी की झलक मिली। दरवाजा खुला और देखते-ही-देखते राजन राव भीतर बैठा। तब कार की हैडलाइट ऑन हुई।
"अपनी मौत के इंतजार में यहां खड़े हो क्या?" राजन राव तेज स्वर में बोला--- "सुना नहीं भाग जाओ यहां से। लाला भाई, मदन मेहता का खास आदमी था। बस्ती वाले आ गए तो---।" राजन राव के शब्द पूरे होने से पहले ही, उस कार को चलाने वाले ने तेजी से कार आगे बढ़ा दी।
"जगमोहन।" देवराज चौहान दांत भींचकर बोला--- "निकलो यहां से---।"
अगले ही पल दोनों कार में बैठे। कार स्टार्ट करते ही जगमोहन ने कार दौड़ा दी। सामने---- दूर राजन राव वाली कार की टेल लाइटें चमक रही थीं।
काफी देर तक उनके बीच खामोशी रही।
जब वे दूर निकल आए और किसी को पीछे आता न पाया तो, जगमोहन बोला।
"हमारा सब कुछ किया-धरा बेकार गया। कोई भी फायदे वाली बात पल्ले नहीं पड़ी। मदन मेहता तक पहुंचना तो दूर रहा। लेकिन एक बात समझ में नहीं आई---।"
देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।
"राजन राव यहां क्या कर रहा था?"
जवाब में देवराज चौहान होंठ भींचकर रह गया।
■■■
गोवा के शहरी हिस्से में पहुंचकर रेस्टोरेंट में उन्होंने डिनर लिया। तब रात के बारह बज रहे थे। लेकिन गोवा की रंगीन शाम अपने उफान पर थी। नाइटक्लब होटलों के भीतर के हंगामे गुजरते अंधेरे के साथ जवान हो रहे थे। समुंदर तट पर युवक-युवतियां रात में चंद्रमा की रोशनी में समंदर में तैरने का मजा ले रहे थे। ये कुछ जोड़े ठंडी रेत पर बातों में गप्पों में व्यस्त थे तो कहीं ग्रुप में लोग नाचने-गाने में व्यस्त थे।
रास्ते में उनके बीच मदन मेहता को लेकर कोई खास बात नहीं हुई। देवराज चौहान कश लेता गहरी सोच में डूबा था। चेहरे पर कठोरता नजर आ रही थी। उस वक्त रात का एक बजने जा रहा था। जब कार होटल के पार्किंग में पहुंची और फिर कार छोड़कर होटल के भीतर प्रवेश कर गए। इस वक्त भी होटल में चहल-पहल बरकरार थी। दोनों सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए। पहली मंजिल पर पहुंचकर आगे बढ़ते हुए अपने कमरे के दरवाजे के सामने रुके। जगमोहन चाबी से दरवाजा खोलने लगा कि ठिठक गया। उसकी आंखें सिकुड़ी।
"क्या हुआ?" देवराज चौहान ने उसके बदलाव को फौरन महसूस किया।
"दरवाजा खुला है। कोई भीतर है।" जगमोहन दांत भींचकर फुसफुसाया।
देवराज चौहान के चेहरे पर सख्ती नजर आने लगी। उसने गैलरी में नजरें दौड़ाईं। कोई नजर नहीं आया। अगले ही पल जेब से रिवाल्वर निकाली और जगमोहन को पीछे हटाकर, दरवाजे का हैंडल पकड़ा और फुर्ती के साथ एक ही झटके के साथ खोलते हुए भीतर प्रवेश कर गया। रिवाल्वर वाला हाथ आगे था, किसी को भी निशाना बनाने के लिए---। फौरन हरकत में आने के लिए।
लेकिन अगले ही पल ठिठका। आंखें सिकुड़ी। चेहरे पर अजीब-से भाव आकर ठहर गए।
सामने ही कुर्सी पर वानखेड़े मौजूद था।
दोनों की निगाहें मिलीं। तब तक जगमोहन भी हाथ में रिवाल्वर दबाए भीतर आ चुका था।
"तुम?" उसे देखते ही जगमोहन के होंठों से निकला।
वानखेड़े ने शांत स्वर में सिर हिलाया।
"शाम से ही तुम लोगों के इंतजार में यहां बैठा हूं---।"
"यहां तक कैसे पहुंचे?" देवराज चौहान जेब में रिवाल्वर रखता हुआ बोला।
"तुमने तो बता ही दिया था कि गोवा जा रहे हो। तो मैं भी यहां चला आया। कल से ही तुम दोनों की तलाश में गोवा के छोटे-बड़े होटल और गेस्ट हाउसों को छान रहा हूं। तुम दोनों के हुलिए बताकर मालूम करने की कोशिश में लगा हूं कि तुम लोग कहां ठहरे हो। आखिरकार हुलिए के मुताबिक पता चला कि तुम दोनों इस होटल में इस कमरे में ठहरे हो। लेकिन कमरे में मौजूद नहीं हो। मैं चाहता तो घेराबंदी करके तुम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए यहां सारा इंतजार कर सकता था।" वानखेड़े का स्वर शांत था--- "लेकिन इस हालातों में तुम्हें गिरफ्तार करना मुझे ठीक नहीं लगा। मैं चाहता हूं कि तुम खांडेकर की पत्नी के मामले में खुद को बेगुनाह या गुनेहगार में से कुछ भी साबित करो। अगर बेगुनाह साबित नहीं कर सके तो, मजबूरी में मुझे तुम्हारी फाइल में ये मामला, तुम्हारे कारनामे के रूप में चढ़ाना पड़ेगा। मामले की गंभीरता तुम बखूबी समझ रहे हो।"
देवराज चौहान सख्त लहजे में कह उठा।
"मैंने खांडेकर की बीवी का बुरा नहीं किया---।"
"मानता हूं। बल्कि विश्वास ही है कि तुम ऐसा गिरा हुआ काम नहीं कर सकते। लेकिन मुझे भी ऊपर वालों को जवाब देना है। उसके लिए मामला साफ-स्पष्ट तो होना चाहिए।" वानखेड़े ने गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा--- "तुमने कहा था कि खांडेकर की बीवी का जुर्मी गोवा में मौजूद है। कहां है वो, कौन है, पकड़ा उसे?"
देवराज चौहान के जबड़ों में कसाव आ गया। बोला कुछ नहीं।
वानखेड़े ने जगमोहन को देखा।
"चोरी-छिपे तुम दोनों के इंतजार में घंटों से यहां बैठा हूं। कम-से-कम चाय तो पिला दो।" वानखेड़े बोला।
जगमोहन ने रूम सर्विस में इंटरकॉम पर तीन चाय का आर्डर दिया।
वानखेड़े की निगाह देवराज चौहान पर टिक चुकी थी।
"तुमने जवाब नहीं दिया मेरी बात का?"
"तुम्हें कुछ भी बताना ठीक नहीं।" देवराज चौहान की आवाज सख्त ही थी।
"क्यों?"
"सब कुछ जानकर तुम कोई हरकत करके मेरे काम में अड़चन डाल सकते हो। तुम---।"
"सुनो---।" वानखेड़े ने टोका--- "मैं जानता हूं मेरे से ज्यादा, इस बात की जरूरत और दिलचस्पी तुम्हें है कि खांडेकर की पत्नी के साथ जिसने बुरा किया है, तुम सामने लाकर, उसे बेनकाब कर सको। तुम ऐसा कोई भी बुरा दाग अपने सिर-माथे पर नहीं लेना चाहोगे, जिससे तुम्हारा कोई वास्ता ही न हो। इसी कारण तुम गोवा पहुंचे हो। तुम इस वक्त जिस कोशिश में हो, वह काम कानून के हक में ही जाता है। मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं देवराज चौहान, अगर बहुत ज्यादा जरूरत न पड़ी तो मैं कानून को या खुद को इस वक्त, तुम्हारी हरकतों के बीच में नहीं लाऊंगा।"
देवराज चौहान ने वानखेड़े की आंखों में झांका।
"अगर मैंने तुमसे कभी झूठ बोला हो। तुम्हारे साथ गलत किया हो तो बेशक मेरी बात को सच मत मत मानना। मैं किसी भी बात को तुम पर जबरदस्ती लादूंगा नहीं।" वानखेड़े गंभीर था।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली।
"हो सकता है इस मामले में किसी सीढ़ी पर कानून के रूप में तुम्हारे काम आ जाऊं। क्योंकि खांडेकर की पत्नी के बलात्कारी और हत्यारे को मैं कानून के पंजे में देखना चाहता हूं---।" वानखेड़े की आवाज में सख्ती आ गई।
"खांडेकर का क्या हाल है?" एकाएक देवराज चौहान ने पूछा।
"खास ठीक नहीं है। जबसे उसके साथ हादसा पेश आया है। उसका दिमाग कंट्रोल में नहीं है। ड्यूटी पर नहीं आ रहा। छुट्टियां ले रखी हैं। घर में बैठे चौबीसों घंटे पीता रहता है।" वानखेड़े ने दुखी स्वर में कहा--- "जानते हो उसने छुट्टियां क्यों लीं? तुम लोगों की जान लेने के लिए। अपनी पत्नी के हत्यारों से बदला लेने के लिए---।"
"लेकिन हमने उसकी पत्नी के साथ बुरा नहीं---।" जगमोहन ने कहना चाहा।
"ये तो तुम कहते हो। वो कहता है तुम लोगों ने ही सब कुछ किया है। कौन समझाए उसे।" वानखेड़े के स्वर में गंभीरता आ गई--- "मुंबई छोड़ने से पहले तुम दोनों ब्लू स्टार होटल गए थे। तब वो टेलिस्कोप गन के साथ, सामने वाली बिल्डिंग की छत से, तुम लोगों का निशाना लेने जा रहा था। वो कामयाब भी हो जाता। परन्तु मैंने उस पर पुलिस की निगरानी लगा रखी थी, उन्होंने खांडेकर को ऐन मौके पर रोक दिया। मेरे समझाने पर वो और उखड़ गया और उसके बाद अपने घर में, गुस्से से ऐसा बंद हुआ, चौबीसों घंटे पीने लगा। घर से बाहर निकलता है तो सिर्फ व्हिस्की की बोतल लाने के लिए। खाना मिले या न मिले कोई परवाह नहीं।"
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
"खांडेकर के साथ जो भी हुआ। बुरा हुआ। इसका मुझे वास्तव में दुख है वानखेड़े।" देवराज चौहान बोला।
"तुम्हारे होंठों से निकलने वाले ये शब्द उसकी जिंदगी की खुशियां नहीं लौटा सकते।" वानखेड़े ने गहरी सांस ली--- "हां अगर, उसकी बीवी का मुजरिम कानून के पंजे में आ जाता है तो शायद उसे सुकून मिले।"
देवराज चौहान ने कश लिया।
तभी दरवाजा थपथपाकर वेटर ने भीतर प्रवेश किया और चाय के तीन प्याले रख गया।
तीनों प्याले उठाकर चाय का घूंट भरने लगे।
"तुमने बताया नहीं कि खांडेकर की पत्नी का हत्यारा कौन है और गोवा में कहां है?" वानखेड़े ने दोनों पर निगाह मारी--- "मुंबई में क्या---कैसे हुआ। खुलकर बताओगे। तुम्हारे द्वारा दी जानकारी का बेजा इस्तेमाल नहीं करूंगा।"
"मेरी बात पर विश्वास करोगे?" देवराज चौहान ने पूछा।
"विश्वास है तभी तो पूछ रहा हूं---?"
देवराज चौहान ने मुंबई में हुई सारी घटनाएं बताईं।
वानखेड़े ने गंभीरता से सुना।
"तुम्हारा मतलब कि तुम्हारा साथी सुधाकर बल्ली शुरू से ही तुम्हारे साथ धोखेबाजी कर रहा था। काम तुम्हारे साथ मिलकर कर रहा था। लेकिन खबरें, मदन मेहता तक पहुंचा रहा था।" वानखेड़े बोला।
"हां।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "मदन मेहता को जब मालूम हुआ होगा कि सुधाकर बल्ली मेरे साथ मिलकर काम कर रहा है तो उसे लगा पचास करोड़ हाथ आ जाएंगे। तब वो सुधाकर बल्ली द्वारा मेरी हरकतों पर नजर रखने लगा और मौका मिलने पर वो पचास करोड़ ले उड़ा। अंकल चौड़ा की हत्या करना उसकी मजबूरी रही होगी। खांडेकर की बीवी के साथ बलात्कार और फिर हत्या इसलिए की कि पुलिस मुझे दोषी मानकर मेरे पीछे लग जाए और मुझे इतना वक्त न मिले कि उस इंसान की तलाश कर सकूं, जिसने ये सब किया है और अपने ही साथी सुधाकर बल्ली की हत्या उसने दो वजहों से की। एक तो ये कि पचास करोड़ में से उसे हिस्सा न देना पड़े। दूसरे, सुधाकर बल्ली को रास्ते से हटाकर, उसने अपनी सोच के मुताबिक सारे खतरे को हटा दिया कि अब कोई गवाह नहीं रहा जो ये साबित कर सके कि इस मामले में उसका हाथ है।"
वानखेड़े के चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी।
"कोई भी काम---।" कहते हुए देवराज चौहान के होंठ भिंच गए--- "कितनी भी सफाई से किया जाए, चूक अवश्य रह जाती है। मदन मेहता की चूक जगनलाल और सुखदेव रहे। वो ये नहीं सोच सका कि मैं जगनलाल और सुखदेव से सुधाकर बल्ली पर शक करके पूछताछ कर सकता हूं। इसी पूछताछ के तहत मालूम पड़ा कि ये सब किया-धरा मदन मेहता का है।"
वानखेड़े ने चाय का प्याला खाली करके टेबल पर रखा।
"तो मदन मेहता मुंबई से गोवा भाग आया---।" वानखेड़े ने सिगरेट सुलगाई।
देवराज चौहान ने भी चाय का प्याला खाली करके टेबल पर रखा।
"यूं समझो गोवा में वो हमारे लिए मुसीबत बना पड़ा है।" जगमोहन दांत भींचकर बोला।
"क्या मतलब?"
"गोवा में मदन मेहता बहुत प्रभाव रखता है। उसे पकड़ना, पाना तो दूर, उसे देखना तक असंभव-सी बात है।"
"क्यों?" वानखेड़े की सिकुड़ चुकी निगाह जगमोहन पर टिक चुकी थी--- "इतना सुरक्षित तो कोई भी अपराधी कहीं नहीं हो सकता।"
"लेकिन मदन मेहता गोवा में इससे कहीं ज्यादा सुरक्षित है।" जगमोहन ने भिंचे स्वर में कहा--- "उसे तलाश करने की चेष्टा करना भी मुसीबत के मुंह में कूदना है। यहां वो बहुत दम रखता है।"
"मैं अभी भी नहीं समझा कि तुम क्या कहना चाहते हो? ऐसा क्या है गोवा में मदन मेहता के पास?" वानखेड़े ने उलझन भरे स्वर में कहा--- "अगर वो कोई गोवा का खास नामी होता तो, उसका नाम मैंने अवश्य सुन रखा होता।"
जगमोहन ने वानखेड़े को मदन मेहता के बारे में और यहां की अपनी भागदौड़ की सारी बातें बताई। परन्तु इन बातों में जगमोहन ने राजन राव का जिक्र नहीं किया।
सुनकर वानखेड़े गंभीर हो गया।
"पुलिस फोर्स मछुआरों की बस्ती में ले जाकर, मदन मेहता को पकड़ा जा सकता है।" वानखेड़े बोला।
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर वानखेड़े को देखा।
"तुमने हमारे मुंह से मदन मेहता के बारे में जो सुना है, वो कुछ भी नहीं है।" देवराज चौहान बोला--- "मदन मेहता के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करो। गोवा के लोगों या गोवा पुलिस में। उसके बाद तुम्हारे सामने मदन मेहता के बारे में तस्वीर साफ होगी। जहां मछुआरों की बस्ती में वो मौजूद है, उस बस्ती में, उसका दम और बस्ती के बारे में मालूम होगा। तब ये कहना कि तुम पुलिस फोर्स के साथ बस्ती में जाकर, मदन मेहता के बारे में कोई जानकारी पा सकते हो। उसे पकड़ना तो दूर रहा।"
वानखेड़े सोच भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा।
"ये हम ही जानते हैं कि मछुआरों की उस बस्ती से हम कैसे बच कर निकले हैं।" देवराज चौहान ने कहा--- "वहां कोई भी मदन मेहता के बारे में जानकारी देने को तैयार नहीं। उसके बारे में किसी से पूछना खतरे से खाली नहीं। मछुआरों की बस्ती में मदन मेहता की बहुत इज्जत है और लोग उससे डरते भी हैं। जब ये दोनों बातें एक ही जगह इकट्ठी हो जाएं तो, हालात काफी खतरनाक हो जाते हैं। इस बात को कुछ देर पहले ही हमने महसूस किया है।"
वानखेड़े ने बेचैनी से पहले बदला।
"पुलिस वाला होने के नाते, मैं नहीं समझता कि मदन मेहता इस हद तक सुरक्षित हो सकता है।" वानखेड़े बोला।
"लेकिन हम अच्छी तरह समझ सकते हैं कि मदन मेहता इस वक्त किस हद तक सुरक्षित है।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा--- "क्योंकि गैरकानूनी काम करने वालों के दो नहीं, सैकड़ों हाथ होते हैं और पुलिस वाले वर्दी और फर्ज की मजबूरी में, दो से ज्यादा हाथों का इस्तेमाल नहीं कर सकते।"
वानखेड़े के चेहरे पर तीखापन उभरा।
"भूल में हो। पुलिस वालों के दो हाथ सिर्फ दिखावे के लिए होते हैं। जरूरत पड़ने पर, अपराधी की गर्दन पकड़ने के लिए जब ये दो हाथ वर्दी से बाहर जाते हैं तो फिर कोई इनकी ताकत, इनका मुकाबला नहीं कर सकती।"
"ये बात मदन मेहता पर लागू नहीं होती।" देवराज चौहान मुस्कुराया।
"मैं मालूम करूंगा।" वानखेड़े ने कहा--- "तुम वहां कई आदमियों को शूट कर आए हो। जबकि ये भी कहते हो कि मदन मेहता खतरनाक है। ऐसे में वो या उसके आदमी मेरे ख्याल में तुम दोनों को ढूंढेंगे। तुम दोनों को---।"
"जिन्होंने हमें देखा है, वो सब जान गंवा बैठे हैं। ऐसे में हमें ढूंढना इतना आसान नहीं।" जगमोहन बोला--- "रानी नाम की युवती हमारे रंग-रूप से वाकिफ है। लेकिन वो अपना मुंह इसलिए नहीं खोलेगी कि लाला भाई के बारे में बताने की एवज में उसने दस हजार रुपये लिए है। मुंह खोला तो वो भी फंसेगी। वैसे भी हम असल चेहरे में न होकर मेकअप में हैं। इसलिए हमें इस बात की चिंता नहीं कि वे हमें ढूंढ रहे हैं या नहीं।"
वानखेड़े ने सोच भरी निगाहों से दोनों को देखा।
"तुम लोग कहते हो कि मदन मेहता तक पहुंचना लगभग असंभव काम है।" वानखेड़े ने कहा।
देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिलाया।
"तो फिर खुद को खांडेकर की पत्नी के मामले में निर्दोष कैसे साबित करोगे? जब तक मदन मेहता हाथ नहीं आता, कानून और सबकी निगाहों में तुम लोग ही मुजरिम हो। और इस बात को तुम लोग ज्यादा लंबा भी नहीं खींच सकते। खांडेकर की पत्नी के बारे में जो भी असलियत है, वो जल्दी ही सामने न आए तो तुम्हें ही इस हत्या, बलात्कार का मुजरिम माना जाएगा।"
"हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं कि मदन मेहता तक पहुंच सकें।" देवराज चौहान ठोस स्वर में कह उठा--- "दो-चार दिन में कोई-न-कोई नतीजा तो सामने आएगा।"
वानखेड़े चेहरे पर सोच के भाव लिए उठ खड़ा हुआ।
"मैं मदन मेहता के बारे में जानकारी प्राप्त करता हूं। उसके बाद इस बारे में बात करूंगा।"
"तुम हमारी हरकतों में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हो?" जगमोहन कह उठा।
वानखेड़े ने गहरी निगाहों से दोनों को देखा।
"इस वक्त मेरी दिलचस्पी, खांडेकर की पत्नी के बलात्कारी और हत्यारे को कानून की सीखचों के पीछे देखने की है।" वानखेड़े का स्वर कठोर हो गया--- "खांडेकर मेरा साथी है। पुलिस वाला है। हमारे डिपार्टमेंट का है। पुलिस वाले के साथ हुई नाइंसाफी, हम लोग अपने साथ हुई नाइंसाफी समझते हैं। इसलिए ऐसे किसी मुजरिम को तो हम सबसे पहले पकड़ने की चेष्टा करते हैं, जिसने खाकी वर्दी की तरफ हाथ उठाया हो। ताकि दूसरे, खाकी वर्दी पर हाथ डालने की चेष्टा न कर सकें। हमारा डर अपराधियों पर रहेगा तो तभी वो कानून से खौफ खाएंगे। जिस दिन अपराधियों में खाकी वर्दी का खौफ खत्म हो गया, वो दिन देश की तबाही का होगा। जनता को सुरक्षा हम तभी दे सकते हैं जब हम खुद को, खाकी वर्दी को सुरक्षा देने के काबिल हों---।"
देवराज चौहान या जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।
"गैरकानूनी काम करने वाले, कई तरह के होते हैं। कुछ को फौरन पकड़ना जरूरी है। जो जनता के लिए खतरनाक होते हैं। कुछ कभी भी कुछ भी कर सकते हैं। ऐसों के पीछे पुलिस हाथ धोकर पड़ जाती है और उन्हें पकड़कर या फिर शूट करके ही चैन लेती है।" वानखेड़े ने देवराज चौहान और जगमोहन को गहरी निगाहों से देखा--- "तुम दोनों गैरकानूनी काम अवश्य करते हो। लेकिन जनता के लिए खतरनाक नहीं हो। तुम लोगों से जनता को कोई खतरा नहीं है। ऐसों पर कानून खासतौर पर हाथ डालने के लिए नहीं दौड़ता। किसी मौके पर हाथ लग जाएं तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। लेकिन खांडेकर की पत्नी के साथ जो हुआ, वो हादसा तुम्हारी फाइल में दर्ज हो जाता है तो उस स्थिति में तुम दोनों को भी, जनता के लिए खतरनाक श्रेणी में रख दिया जाएगा। यानी कि इस मामले में खुद को निर्दोष कहना, तुम दोनों के लिए बहुत जरूरी है। और मेरी दिलचस्पी लेने की वजह ये है कि मैं जानता हूं, ये काम तुम लोगों ने नहीं किया। नहीं किया, इस बात के सबूत तुम ही हासिल करोगे। क्योंकि इस मामले में पुलिस के पास जो सबूत हैं, वो तुम लोगों के खिलाफ हैं।"
देवराज चौहान के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान उभरी।
जबकि जगमोहन दांत पीसकर कह उठा।
"बहुत चालबाजी और सोच-समझकर हमें इस मामले में फंसाया गया है।"
"अब ये तुम जानो---। वैसे कुछ सोचा कि कैसे मदन मेहता तक पहुंचोगे या उस तक नहीं पहुंच पाओगे?"
"वानखेड़े, अभी इस बारे में सोचने का वक्त नहीं मिला। जल्दी ही कुछ फैसला करेंगे।" देवराज चौहान ने कहा।
"मैं जा रहा हूं। मेरी वजह से होटल बदलकर कोई और ठिकाना मत बनाना। मामले में मेरे से तुम दोनों को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और धोखे में रखकर तुम लोगों को गिरफ्तार करने करने की चेष्टा नहीं करूंगा। फिलहाल तो मैं खांडेकर की बीवी के हत्यारे को कानून की गिरफ्त में देखना चाहता हूं---।" वानखेड़े ने गंभीर स्वर में कहा।
देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें मिलीं।
"अगर तुम हमारे मामले में दखल नहीं देते। हमारे काम में अड़चन नहीं बनते, तो हमसे यहीं मिल सकते हो। हम ये जगह नहीं छोड़ेंगे। लेकिन हमारे बारे में किसी पुलिस वाले या और से जिक्र करने की कोशिश मत करना---।"
"तुम लोगों का जिक्र मेरे होंठों पर नहीं आएगा।" वानखेड़े बोला--- "मदन मेहता के बारे में मालूमात हासिल करके कल आऊंगा दिन में। शायद कोई काम की बात हाथ लगे।" इसके साथ ही वानखेड़े बाहर निकल गया।
देवराज चौहान और जगमोहन की नजरें मिलीं। देवराज चौहान ने नई सिगरेट सुलगाई।
"मदन मेहता पर हाथ डालना तो हमारे लिए समस्या बन गया है।" जगमोहन बोला।
"तुम ठीक कहते हो।" देवराज चौहान ने कश लिया--- "लेकिन अब जो रास्ता है। वही इस्तेमाल करेंगे।"
"कैसा रास्ता?" जगमोहन ने उसे देखा।
"राजन राव---।"
जगमोहन ने चौंककर देवराज चौहान को देखा।
"राजन राव---?"
"हां। मैं नहीं चाहता था कि उसे इस मामले में लूं। उसकी सहायता लूं। क्योंकि मेरी सहायता करने के पीछे उसका जाने क्या मतलब है? परन्तु हालातों को देखते हुए अब उसकी सहायता लेनी पड़ेगी। उसका कहना है कि वो मुझे मदन मेहता तक पहुंचा सकता है। इस बारे में अब कल, राजन राव से ही बात करनी पड़ेगी।"
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