मोना चौधरी, देवराज चौहान और बबूसा के साथ मुम्बई के अपने फ्लैट पर पहुंची जो कि कुर्ला में था। रास्ते में तीनों की कोई खास बात नहीं हुई थी। फ्लैट सजा हुआ था और जरूरत का हर सामान वहां मौजूद था। बबूसा और देवराज चौहान ड्राइंग रूम के सोफों पर जा बैठे। मोना चौधरी ने उन्हें कॉफी बनाकर दी और एक प्याला खुद भी थामे सोफे पर आ बैठी। देवराज चौहान कॉफी का घूंट ले रहा था। मोना चौधरी बोली।
“ये पहली बार है कि हम इस तरह इकट्ठे बैठे हैं।”
देवराज चौहान ने सिर हिलाया मोना चौधरी को देखकर।
“मुझे बताओ क्या हालात चल रहे हैं, क्या हो रहा है अब?” मोना चौधरी ने पूछा।
“तुम बताओ बबूसा।” देवराज चौहान ने कहा।
“हालात बहुत अच्छे नहीं हैं।” बबूसा बोला-“थोड़े बिगड़े ही हुए हैं, परंतु ये अच्छी बात है कि राजा देव को सदूर का जन्म याद आना शुरू हो गया है। कई बातें इन्हें याद आ चुकी हैं।”
“मुझे ताशा के बारे में बताओ।” मोना चौधरी के स्वर में कुछ कठोरता आ गई।
“रानी ताशा।” बबूसा ने गम्भीरता से सिर हिलाया।
“तुमने बताया था कि उसने बंगले पर बेला (नगीना) जगमोहन और धरा को बंदी बना रखा है।”
“हां।”
“कैसे हुआ ये सब?”
बबूसा ने बताया।
मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया। वो देवराज चौहान से बोली।
“बेला, जगमोहन को उसने तुम्हारे ही बंगले पर बंदी बना रखा है और तुम कुछ नहीं कर रहे?”
“उन्हें कुछ नहीं होगा।” देवराज चौहान ने कहा-“ऐसा करके ताशा चाहती है कि मैं उनके लिए वहां पहुंचूं और हम मिल जाएं। मैं खुद भी ताशा से मिलना चाहता हूं, वो मेरा प्यार है, जो मुझे तलाश करता...”
“चुप रहो।” मोना चौधरी के माथे पर बल पड़े-“मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि ताशा तुम्हारा प्यार है कि नहीं। मैं तो इतना जानती हूं कि बेला तुम्हारी पत्नी है, उसे ताशा ने बंदी क्यों बना रखा है।”
“ताशा उसके साथ कुछ भी बुरा नहीं करेगी। वो सिर्फ मुझे चाहती है। वो बहुत अच्छी है, वो...”
“तुम बहकी-बहकी बातें कर रहे हो देवराज चौहान।” मोना चौधरी तीखे स्वर में कह उठी।
“मैं बहकी बातें नहीं कर रहा। मैं ठीक बातें कर रहा हूं कि ताशा बहुत अच्छी और नर्म दिल है, उससे...”
“मैं बेला के बारे में पूछ रही हूं तुमने उसे वहां से निकाला क्यों नहीं?” मोना चौधरी बोली।
“राजा देव का वहां जाना ठीक नहीं है। मैंने ही इन्हें रोका था।” बबूसा कह उठा।
“क्यों?”
“रानी ताशा ये ही तो चाहती है कि राजा देव वहां पहुंचें। राजा देव, रानी ताशा के सामने पड़े कि रानी ताशा के बस में होते चले जाएंगे। ये सदूर पर भी रानी ताशा के दीवाने रहे हैं और अब भी ऐसा ही होगा। अभी इन्हें सदूर ग्रह की थोड़ी-सी बात याद आई है। ये रानी ताशा के पास जाने को मचल रहे हैं। ऐसी हालत में इनका रानी ताशा के सामने जाना ठीक नहीं। जब सदूर ग्रह का सब कुछ याद आ जाएगा तो तब राजा देव सब मामला संभाल लेंगे।”
“तुम इन बातों को मुझसे दूर रखो। मैं सिर्फ इतना जानती हूं कि ये देवराज चौहान है और इसके बंगले पर ताशा ने मेरी बहन को जबर्दस्ती बिठा रखा है। इसने मेरी बहन को बचाने के लिए कुछ किया क्यों नहीं?”
“ये खतरनाक काम है-तुम...”
“बहुत बड़े डरपोक हो तुम।” मोना चौधरी गुर्रा उठी।
बबूसा के चेहरे पर सख्ती आ गई।
“मेरे लिए ऐसा मत कहो। अभी तुम मुझे जानती नहीं। मेरा मुकाबला करना आसान बात नहीं है।”
“तो फिर तुम ही उन्हें क्यों न आजाद करा लाए?”
“वहां पर सोमाथ है। मैं सोमाथ का मुकाबला नहीं कर सकता।” बबूसा ने कहा।
“ये है तुम्हारी बहादुरी?”
“सोमाथ को महापंडित ने सोच-समझकर बनाया है। ये सब महापंडित की चाल है। वो रानी ताशा का साथ दे रहा...”
“कुएं में गया महापंडित-मैं तुम्हें...”
“वहां पर रानी ताशा के तीन आदमी भी हैं, उनके पास जोबिना है, वो...”
“जोबिना क्या?”
“ऐसा हथियार, जिसके द्वारा सामने वाले को पलों में राख बनाया जा सकता है। हड्डियां भी राख हो जाती हैं। अगर मुझे कहीं से जोबिना मिल जाता तो मैं सोमाथ को राख बना सकता था।” बबूसा क्रोध से बोला-“सोमाथ ही मेरे लिए परेशानी बना हुआ है। जोबिना ने भी मुझे रोक रखा है, नहीं तो...”
“न तो तुम सोमाथ का मुकाबला कर सकते हो, न जोबिना का। ऊपर से कहते हो कि मेरा मुकाबला कर पाना आसान बात नहीं है। मुझे तो समझ नहीं आता कि इस मौके पर तुमने कुछ न किया तो कब करोगे?”
“मेरा काम राजा देव की सेवा करना है।”
“तो?” मोना चौधरी के दांत भिंचे हुए थे।
“राजा देव को मैंने सुरक्षित रखा हुआ है, राजा देव का रानी ताशा से सामना नहीं होने दिया, मैं अपनी कोशिश में सफल हूं। अब तो राजा देव को सदूर का जन्म भी याद आना शुरू हो चुका है, बहुत जल्दी राजा...”
“तुम बातें करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते।” बबूसा, मोना चौधरी को देखकर मुस्कराने लगा।
“मैं बेला को वहां से लेकर आती हूं, तब तुम...”
“वहां जाने की भूल मत करना।”
“तुम मुझे डरा रहे हो?” मोना चौधरी गुर्रा उठी।
“नहीं। सतर्क कर रहा हूं कि वहां मत जाना। तुम वहां कुछ नहीं कर सकती और मारी जाओगी। वहां राजा देव का दोस्त जगमोहन भी तो है। वो क्यों नहीं कुछ कर सका और बंदी बन गया-सोचो।”
“तुम्हारी बातों से मैं रुकने वाली नहीं।”
“सोमाथ तुम्हें मार देगा। तुम्हारा उग्र स्वभाव तुम्हें ले डूबेगा। हालात बुरे हैं। राजा देव को सदूर ग्रह का सब याद आ रहा है। पूरा याद आते ही, फिर वो लोग हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेंगे। राजा देव तब सब कुछ संभाल लेंगे। उस वक्त का इंतजार करो।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ये।” मोना चौधरी ने तीखी निगाहों से देवराज चौहान को देखा-“ये क्या करेगा। ये तो ताशा को बहुत अच्छी और नर्म दिल कह रहा है। उससे प्यार की बात कर रहा...”
“राजा देव की ये बातें सिर्फ तब तक के लिए है, जब तक इन्हें सदूर पर हुआ सब कुछ याद नहीं आ जाता। सब कुछ याद आते ही राजा देव रानी ताशा को छोड़ने वाले नहीं। राजा देव जब क्रोध में आते हैं तो...”
मोना चौधरी उठी और सख्त स्वर में कह उठी।
“तुम उस वक्त का इंतजार करो। मैं बेला को वहां से लेने जा रही हूं।”
“ऐसा मत करना।” बबूसा झल्लाकर बोला।
“साथ चलना चाहोगे देवराज चौहान?” मोना चौधरी ने
“साथ?” देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखा—”हां हां मैं चलूंगा।
वहां पर मेरी ताशा है, मैं उसके पास...”
“बकवास मत करो।” मोना चौधरी के दांत भिंच गए—”तुम वहां बेला को आजाद कराने जा रहे हो।”
“नगीना सुरक्षित है। ताशा उसे कुछ नहीं कहेगी। मैं अपनी प्यारी ताशा से मिलूंगा वो मुझे देखते ही...”
“तुम यहीं रहो।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर सख्त स्वर में कहा - “तुम्हें ताशा की पड़ी है और मैं बेला को छुड़ाने की बात कर रही हूं। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम वो ही देवराज चौहान हो?”
“ये राजा देव है। ये...”
“तुम भी अपनी जुबान बंद रखो।” मोना चौधरी कहकर पलटी और फ्लैट के भीतर के कमरे में गई और वहां से चाकू और रिवॉल्वर निकालकर अपने कपड़े में रखे और बाहर निकल आई। चेहरे पर खतरनाक भाव नाच रहे थे।
“तुम क्या कर रही हो?” बबूसा उसे देखकर कह उठा।
“तुम्हें मालूम है कि मैं क्या करने जा रही हूं।” मोना चौधरी ने खतरनाक स्वर में कहा।
“वहां मत जाना। सोमाथ तुम्हारी जान ले लेगा।” बबूसा ने कहा।
मोना चौधरी रुकी नहीं और दरवाजा खोलकर बाहर निकलती चली गई।
“राजा देव, उसे रोको। सोमाथ उसे मार देगा।”
“मैं मोना चौधरी के साथ जाता हूं।” कहकर देवराज चौहान ने उठने की कोशिश की
“नहीं राजा देव।” बबूसा ने देवराज चौहान का हाथ पकड़कर वापस बैठा दिया-“आप हरगिज नहीं जाएंगे।”
“ताशा, मैं ताशा के पास जाना चाहता हूं बबूसा, उसे देखना चाहता हूं, उसे बांहों में...”
“आप जल्दी रानी ताशा से मिलेंगे राजा देव। परंतु अभी नहीं, पहले आपको सब कुछ याद आ जाए।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
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नगीना और धरा ने मिलकर सुबह किचन में खाना तैयार किया था। इस दौरान सोमाथ किचन के दरवाजे पर खड़ा उनकी पहरेदारी करता रहा। खाना रानी ताशा ने भी खाया, सोमारा और उन तीनों ने भी, जो जोबिना के साथ वहां मौजूद थे। धरा, नगीना, जगमोहन ने एक साथ बैठकर खाया था। सोमाथ, रानी ताशा के पास पहुंचकर बोला।
“राजा देव अभी तक नहीं आए?”
“वो जरूर आएंगे सोमाथ।” रानी ताशा ने विश्वास भरे स्वर में कहा-“वो आएंगे।”
सोमाथ वहां से हटकर हॉल ड्राइंग रूम में टहलने लगा।
जोबिना वाले तीनों व्यक्ति कुछ हटकर कुर्सियों पर बैठे थे।
सोमारा ने रानी ताशा से कहा।
“राजा देव आपका चेहरा देख चुके हैं ताशा। ऐसा तो नहीं कि उन्हें सदूर पर, अपना जन्म याद आ गया हो।”
ताशा का चेहरा कठोर हो गया। उसने सोमारा को देखा।
“अगर उन्हें सब कुछ याद आ गया तो परेशानी खड़ी हो सकती है ताशा।”
“तुम्हारा कहना सही है। परंतु एक बार राजा देव मेरे सामने आ जाएं, उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। मैं उन्हें सदूर पर ले जाऊंगी और वहां महापंडित सब ठीक कर देगा।” ताशा कह उठी-“राजा देव मेरे लिए बहुत जरूरी हैं, मैं उनके बिना रह सकती तो पृथ्वी पर उन्हें लेने न आती। राजा देव मेरे लिए ही बने हैं। ताशा के लिए। राजा देव के बिना ताशा अधूरी है और राजा देव भी तो मेरे बिना नहीं रहते। हम दोनों का मेल होना जरूरी है। बहुत जरूरी है।”
जगमोहन, नगीना को देखकर धीमे स्वर में बोला।
“हम इनका मुकाबला नहीं कर सकते। यहां से नहीं निकल सकते। हमें बाहरी सहायता की जरूरत है।”
“बाहरी सहायता?” नगीना का स्वर गम्भीर था-“शायद बाहरी सहायता भी कुछ न कर सके।”
“क्या मतलब?”
“सोमाथ को तो तुम देख ही चुके हो कि वो साधारण इंसान न होकर रोबोट है, परंतु लगता इंसान जैसा है। सोमाथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता। वो बहुत ज्यादा ताकत रखता है। रानी ताशा भी लड़ाई के दांव-पेंच में माहिर है। मैं अभी तक उसके वारों को समझ नहीं पाई कि उसने कैसे वार मुझ पर किए थे। इनका मुकाबला करना बेहद कठिन है।”
“और वो तीन, जो हर समय चुप रहते हैं।” धरा ने कहा-“ऐसे मौके पर वो साथ हैं तो जरूर वो भी ताकत रखते होंगे।”
जगमोहन और नगीना की नजरें मिलीं।
“देवराज चौहान इस वक्त जाने किस स्थिति में होगा।” जगमोहन बोला।
“वो, ताशा का चेहरा देख चुका है। पता नहीं उन्हें कोई बात याद आई भी है या नहीं।” नगीना ने कहा।
“ऐसे मौके पर बबूसा को सामने आना चाहिए।”
“बबूसा कहता है सोमाथ की ताकत ज्यादा है।” धरा बोली-“शायद वो सोमाथ का मुकाबला न कर सके। उसे तो देवराज चौहान की चिंता है। देवराज चौहान को वो अकेला नहीं छोड़ रहा होगा।”
“मोना चौधरी ने देवराज चौहान को होटल से हटा दिया होगा?” जगमोहन ने नगीना को देखा।
“कह नहीं सकती मिन्नो ने कुछ किया भी है या नहीं। उसने कहा तो था कि सुबह मुम्बई पहुंच जाएगी।”
तभी रानी ताशा उन्हें पास आती दिखी। वे चुप होकर ताशा को देखने लगे।
पास पहुंचकर रानी ताशा अधिकार भरे स्वर में बोली।
“राजा देव के बारे में बता दो कि वो कहां पर हैं। जब तक वो नहीं मिलेंगे, तुम लोग इसी तरह हमारी कैद में रहोगे।”
“बबूसा, देवराज चौहान को लेकर कहीं गया था। हमें नहीं पता वो कहां गया है।” जगमोहन बोला।
“मेरा दिल कहता है कि तुम सबको पता है कि राजा देव कहां पर हैं।” रानी ताशा ने कठोर स्वर में कहा।
“हम नहीं जानते।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा।
उसी पल सोमाथ पास आकर बोला।
“रानी ताशा, आपका हुक्म हो तो मैं इनका मुंह खुलवाने की चेष्टा करूं?”
“नहीं सोमाथ।” रानी ताशा वहां से हटती कह उठी-“ये लोग राजा देव के करीबी हैं और मैं नहीं चाहती कि राजा देव इस बात से नाराज हों कि मैंने इन्हें तकलीफ पहुंचाई है।”
रानी ताशा सोफे पर जा बैठी।
“जाने राजा देव और बबूसा हमें मिलेंगे या नहीं?” सोमारा बोली।
“जरूर मिलेंगे।”
“आपको किलोरा के द्वारा भैया (महापंडित) से सम्पर्क बनाकर पूछना चाहिए कि राजा देव कहां पर हैं।”
“महापंडित को राजा देव के बारे में बताने में जरूर समस्या आ रही होगी, वरना वो बता चुका होता कि राजा देव कहां पर हैं।”
रानी ताशा के शब्द पूरे हुए ही थे कि तभी कानों में कार के इंजन की तेज आवाज पड़ी। कोई कार बंगले के भीतर आई थी।
रानी ताशा की आंखों में चमक उभरी। वो खड़े होते तेज स्वर में बोली।
“र-राजा देव आ गए। मेरा देव आ गया सोमारा।”
“बबूसा भी साथ में होगा।” सोमारा भी तुरंत खड़ी हो गई।
उसी समय कार के पोर्च में आ पहुंचने और रुकने की आवाज आई।
जगमोहन और नगीना की नजरें मिलीं।
“कौन आया हो सकता है?” धरा के चेहरे पर उलझन के भाव आ गए-“कहीं बबूसा और देवराज चौहान तो नहीं आ गए?”
सबकी निगाहें मुख्य द्वार पर जा टिकीं।
अगले ही पल दरवाजे पर मोना चौधरी दिखी। चेहरे पर कठोरता। दृढ़ इरादा। वो भीतर प्रवेश करते ही ठिठक गई और क्षणों में ही उसकी नजरें हर तरफ देखती चली गईं।
“ये यहां क्यों आ गई?” जगमोहन होंठ भींचकर कह उठा।
नगीना के चेहरे पर भी चिंता दिखी।
“तुमने अपनी बहन को यहां आने को कहा था?” धरा बोली।
जवाब में नगीना के होंठ भिंच गए थे।
“कौन हो तुम?” रानी ताशा की आंखें सिकुड़ गई थीं मोना चौधरी को देखकर।
“मोना चौधरी।” मोना चौधरी के शब्दों में कठोरता थी।
“ये मेरी बहन है।” नगीना फौरन कह उठी।
“तुम्हारी बहन?” रानी ताशा ने नगीना पर निगाह मारी फिर मोना चौधरी को देखा।
“तुम कौन हो?” मोना चौधरी आगे बढ़ती, रानी ताशा से बोली।
“मैं रानी ताशा हूं...”
“तो तुम हो रानी ताशा जो देवराज चौहान को अपना पति कहती है।”
मोना चौधरी कड़वे स्वर में कह उठी-“बहुत सुना है तेरे बारे में। माना कि तू खूबसूरत है। पर देवराज चौहान की पत्नी बेला है।”
“राजा देव सिर्फ मेरे हैं।”
“ये तमाशा छोड़ और बता कि देवराज चौहान को कब से जानती है?”
मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा-“क्या रिश्ता है तेरा देवराज चौहान से और किस मकसद से तू उसके पीछे पड़ी है।”
“राजा देव मेरे पति हैं।”
“बकवास मत कर। वो बेला का पति है। तुम...”
“जुबान संभालकर बात कर।” रानी ताशा गुर्रा उठी-“देव मेरे हैं। वो सिर्फ मेरे हैं। सदूर पर हमारा मिलन हुआ था और वो मेरी गलती की वजह से सदूर से निकलकर पृथ्वी पर आ पहुंचे अब मैं उन्हें वापस ले जाने आई हूं। तुम...”
मोना चौधरी, जगमोहन, नगीना और धरा के पास पहुंचकर बोली।
“ये लोग तुम्हारे घर में क्या कर रहे हैं। इन्हें बाहर क्यों नहीं निकाला?”
“इन्होंने हमें बंदी बना रखा है मिन्नो।” नगीना ने कहा।
“बंदी? किस दम पर?”
“ये लोग ताकतवर हैं और सोमाथ तो...”
“उठो।” मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा-“मेरे साथ चलो। मैं तुम लोगों को लेने आई हूं।”
नगीना, जगमोहन, धरा की नजरें मिलीं।
चंद कदमों के फासले पर खड़ी रानी ताशा के चेहरे पर मुस्कान उभरी।
“ये खतरनाक है मोना चौधरी।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“हम यूं ही नहीं, यहां फंस गए।”
“तुम तीनों मेरे साथ चलो।” मोना चौधरी गुर्रा उठी-“मैं देखूंगी कि ये कितने खतरनाक...”
“तुम मेरा मुकाबला कर सकती हो?” एकाएक रानी ताशा ने कहा।
मोना चौधरी पलटकर रानी ताशा को घूरने लगी।
“तुम करोगी मेरा मुकाबला?” मोना चौधरी के दांत भिंच गए।
“आओ, करके देखो।” रानी ताशा ने व्यंग्य भरे स्वर में कहा।
“मिन्नो, ये खतरनाक है।” नगीना कह उठी।
“अगर तू हार गई तो?” मोना चौधरी ने सुलगते स्वर में कहा।
“तो वापस सदूर पर चली जाऊंगी, अपने देव के बिना।” रानी ताशा मुस्करा रही थी।
मोना चौधरी पलटकर, रानी ताशा की तरफ बढ़ी।
“तो पहले तेरे को देख लूं।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा।
तभी रानी ताशा हवा में उछली, शरीर फिरकनी की तरह घूमा और मोना चौधरी कुछ समझ पाती जूते की ठोकर उसकी कनपटी पर पड़ी और पांच कदम दूर फर्श पर जा खड़ी हुई। ठोकर लगते ही मोना चौधरी की आंखों के सामने लाल-पीले तारे उभरे और फर्श पर गिरते हुए लुढ़कती चली गई।
मोना चौधरी ने संभलने में कुछ पल लगा दिए। फिर वो उठ खड़ी हुई। सुलगती नजरों से रानी ताशा को देखा और होंठों से गुर्राहट निकलने के साथ वो तीर की भांति रानी ताशा की तरफ दौड़ी, हवा में उछली और जब वेग के साथ वो रानी ताशा की छाती से टकराने जा रही थी तो रानी ताशा ने तुरंत अपनी जगह छोड़ दी। मोना चौधरी हवा में लहराती आगे जा गिरी, परंतु तुरंत ही संभली और पलटकर रानी ताशा को देखने लगी। इतने में ही उसे समझ आ गया था कि रानी ताशा लड़ाई के दांव-पेंचों में बहुत माहिर है। वो अब सतर्क हो गई थी। नगीना और जगमोहन के होंठ भिंचे हुए थे।
“अब क्या होगा?” धरा घबराए स्वर में कह उठी।
तभी रानी ताशा मोना चौधरी की तरफ बढ़ने लगी थी।
मोना चौधरी के चेहरे पर शिकारी चीते के जैसे भाव आ गए। वो ये समझने की चेष्टा कर रही थी रानी ताशा उस पर क्या वार करने वाली है। रानी ताशा पास पहुंची और अपना हाथ आगे बढ़ाया। मोना चौधरी ने तुरंत हाथ थामा और दूसरे हाथ घूंसा रानी ताशा के पेट में मारना चाहा, लेकिन तब तक रानी ताशा अपना वार कर चुकी थी। मोना चौधरी ने ज्योंही रानी ताशा का हाथ थामा, तो रानी ताशा ने अपने हाथ को झटका दिया। हाथ छूट गया। तब घूंसा चलाते मोना चौधरी जोरों से लड़खड़ाई कि उसी पल रानी ताशा ने किसी खिलौने की भांति, दोनों हाथों मोना चौधरी को हवा में उठाया और दूर उछाल दिया। ये सब कुछ तीन पलों में ही हो गया। परंतु मोना चौधरी खुद को संभाल चुकी थी, इससे पहले कि वो फर्श से टकराती हाथ और पैरों से खुद को बचाया और संभलकर खड़ी हो गई। चेहरा क्रोध से लाल-सुर्ख हो गया था। जबकि रानी ताशा के चेहरे पर शांत भाव फैले थे। उसी पल मोना चौधरी दांत भींचे रानी ताशा की तरफ दौड़ पड़ी। दौड़ी-दौड़ी और जब रानी ताशा से टकराने जा रही थी तो उसी पल खुद को नीचे गिरा लिया। मोना चौधरी का इरादा रानी ताशा की टांगों को पकड़कर नीचे गिरा देने का था कि वार खाली गया। रानी ताशा उछलकर चार कदम दूर जा खड़ी हुई थी। मोना चौधरी आगे खिसकती चली गई। थमी और तुरंत खड़ी होकर रानी ताशा को देखने लगी।
“तुम अभी तक मुझे छू भी नहीं पाई।” रानी ताशा ने कहा।
“सही में।” मोना चौधरी अजीब-से स्वर में कह उठी-“तुम तो बहुत काबिल लगती हो। कहां से सीखा ये सब?”
“राजा देव ने मुकाबला करना सिखाया था।” रानी ताशा ने सामान्य स्वर में कहा।
“मतलब कि देवराज चौहान ने?” मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
“हां। तब राजा देव मुझे बहुत प्यार करते थे। सदूर की बातें हैं ये सब। वो चाहते थे कि उनकी रानी होने के साथ-साथ मैं हर काम में बेहतरीन बनूं तो उन्होंने मुझे मुकाबला करना सिखाया। सदूर पर सिर्फ राजा देव ही थे, जिनका मैं मुकाबला नहीं कर सकती थी। बाकी मेरे से जीत नहीं पाते थे।” रानी ताशा की आंखों में आंसू चमक उठे-“राजा देव मुझे बहुत चाहते थे। वो मुझे बहुत प्यार करते थे परंतु मेरे से भूल हो गई। मुझे मेरा देव लौटा दो। अब भूल नहीं करूंगी। मैं राजा देव के प्यार को ठीक से समझ नहीं पाई थी। नादानी कर दी मैंने। पर अब ऐसा नहीं होगा। मैं राजा देव से अपनी गलती की माफी मांग लूंगी। मैं भी उन्हें बहुत प्यार करती हूं तभी तो सदूर से पृथ्वी पर आई हूं उन्हें लेने। मेरे देव को मुझे लौटा दो। क्यों छिपा रखा है उन्हें मेरे से। एक बार देव का चेहरा तो दिखा दो। अभी तक उन्हें देख भी नहीं पाई हूं कि वो वैसे ही हैं या बदले से दिखते हैं। देव कहां पर हैं, मुझे बता दो।” आंखों से आंसू निकलकर गालों पर आ गए थे-“अब मैं देव के बिना नहीं रह सकती। कई जन्म मैंने देव के बिना गुजारे हैं, पर अब और सहन नहीं होता। मेरे देव को मुझे लौटा दो।”
मोना चौधरी एकटक रानी ताशा को देखे जा रही थी।
उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। होंठ कांप रहे थे।
“देव के बिना मेरा जीवन नर्क जैसा है। उनके मिल जाने की आशा के सहारे ही अब तक जी रही हूं। अगर महापंडित ने मुझे बताया न होता कि राजा देव मुझे दोबारा मिलेंगे तो, मैंने हमेशा के लिए जीवन त्याग देना था। अपनी उस भूल के बाद मैंने कभी किसी मर्द का साथ हासिल नहीं किया। महापंडित मेरे जन्म करवाता रहा और मैं अपना जीवन राजा देव की याद में ही बिताती रही। अब और इंतजार नहीं होता। मेरा देव, मुझे लौटा दो।” वो रो रही थी।
मोना चौधरी एकाएक गम्भीर भाव में रानी ताशा की तरफ बढ़ी।
रानी ताशा आंसुओं भरी निगाहों से मोना चौधरी को देख रही थी। नगीना और जगमोहन, मोना चौधरी को इस तरह बढ़ते पाकर सतर्क हो गए थे।
‘ये कुछ गड़बड़ करने वाली है।’ जगमोहन बड़बड़ा उठा।
“क्या कहा?” नगीना के होंठों से निकला।
परंतु जगमोहन की निगाह मोना चौधरी पर थी और जगमोहन का ख्याल ठीक निकला। रानी ताशा के पास पहुंचते ही मोना चौधरी ने फुर्ती से रिवॉल्वर निकाली और रानी ताशा के पेट से लगा दी। मोना चौधरी के चेहरे पर खतरनाक भाव नाच उठे थे। रानी ताशा ने आंसू साफ करते हुए पूछा।
“ये क्या कर रही हो?”
“मेरे सामने आंसू बहाने से तुम्हारा काम नहीं होने वाला।” मोना चौधरी कह उठी-“तुमने मेरी बहन को बहुत परेशान कर रखा है और देवराज चौहान की हालत भी मुझे ठीक नहीं लगी। इन सबकी वजह तुम हो और...”
“ये क्या कह रही हो।” रानी ताशा कह उठी।
“अब तुमने मेरी मर्जी के खिलाफ कदम उठाया तो मारी जाओगी।”
रानी ताशा ने पेट से लगी रिवॉल्वर को देखा फिर मोना चौधरी को।
“तुम हिली तो मैं तुम्हें मार दूंगी।” मोना चौधरी गुर्रा उठी।
“पर मैंने तुम्हें ऐसा क्या कह दिया जो तुम मुझे दुश्मन मान बैठी।” रानी ताशा ने भीगे स्वर में कहा-“मैं तो सिर्फ अपने राजा देव को वापस मांग रही हूं। मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा।”
“देवराज चौहान मेरी बहन का पति है।”
“नहीं, राजा देव सिर्फ मेरे हैं, वो भी मेरे बिना नहीं रह सकते...”
“एक गोली तेरे अंदर जाएगी और जान बाहर निकल आएगी। खेल खत्म हो जाएगा तुम्हारा।” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर कहा-“एक मौका देती हूं तेरे को, चुपचाप यहां से निकल जा और फिर कभी इस रास्ते पर मत आना। फैसला तेरे हाथ में है। नाम सुना है कभी मेरा-मोना चौधरी।”
“नहीं सुना।”
“तो अब सुन लिया।” मोना चौधरी का स्वर खतरनाक था-“दूसरे ग्रह से आने वाली बातों को रहने दे। मैं नहीं जानती कि तेरी करनी के पीछे तेरा मकसद क्या है, पर मैं तुझे जरा भी पसंद नहीं करती। दोबारा नहीं देखना चाहती तुझे। बोल, सीधे-सीधे यहां से निकलती है या मरना चाहती है।”
तभी धरा धीमे स्वर में कह उठी।
“हमें मोना चौधरी की सहायता करनी चाहिए।”
“मिन्नो बहुत बड़ी गलती कर चुकी है ऐसा करके।” नगीना ने परेशान नजरों से सोमाथ को देखा जो अपनी जगह पर शांत खड़ा मोना चौधरी और रानी ताशा को देख रहा था।
“तू मेरी जान लेना चाहती है।” रानी ताशा ने शांत स्वर में कहा।
“अगर तूने मेरी बात नहीं मानी तो...”
“मेरा भरोसा कर, अपने देव को लेकर मैं यहां से हमेशा-हमेशा के लिए चली जाऊंगी।” रानी ताशा ने कहा।
“तो मरने का मन बना लिया है।” मोना चौधरी के दांत भिंच गए।
रानी ताशा ने सोमाथ को देखकर सामान्य स्वर में कहा।
“इसे समझा सोमाथ। इसके मन में मेरे लिए जहर भरा है। ये मुझे मारना चाहती है।”
उसी पल सोमाथ, उनकी तरफ बढ़ने लगा।
“वहीं रुक जा।” मोना चौधरी गुर्रा उठी।
परंतु सोमाथ नहीं रुका।
मोना चौधरी ने रिवॉल्वर उसकी तरफ की और फायर कर दिया।
तेज आवाज के साथ गोली सोमाथ के माथे के बीचोंबीच जा लगी।
सोमाथ के कदम थम गए।
ये देखकर जगमोहन के होंठ व्याकुल भाव में भिंच गए।
नगीना परेशान दिखने लगी थी।
“क्या इस बार ये मर जाएगा?” धरा कह उठी।
तभी मोना चौधरी ने महसूस किया जैसे सोमाथ अपने भीतर ही भीतर जोर लगा रहा हो। चंद पल उसकी ये हालत रही कि तभी माथे से गोली बाहर आकर, फर्श पर आ गिरी। मोना चौधरी ने गोली को देखा तो उसकी आंखें हैरानी से फैल गईं। फिर जब सोमाथ के माथे पर निगाह पड़ी तो, वहां पर गोली के निशान को गायब पाया। माथा पूरी तरह सामान्य हो चुका था।
मोना चौधरी हक्की-बक्की रह गई।
सोमाथ पुनः मोना चौधरी की तरफ बढ़ने लगा।
मोना चौधरी रानी ताशा को तो जैसे भूल ही गई थी। अजीब-से हाल में फंसी मोना चौधरी ने हाथ को सोमाथ की तरफ उठाया और एक के बाद एक फायर करती चली गई। चार गोलियां सोमाथ के पेट और छाती पर लगी। वो पुनः आगे बढ़ता थम गया। मोना चौधरी की निगाह एकटक उस पर थी। उसे सोमाथ के नीचे गिरकर मर जाने का इंतजार था परंतु अगले ही पल पहले की तरह, गोलियां एक-एक करके शरीर से बाहर गिरने लगीं और गोली वाली जगहें, पुनः सामान्य होते पाकर, मोना चौधरी ठगी-सी रह गई।
“ये इंसान नहीं, रोबोट जैसा है।” जगमोहन ने ऊंचे स्वर में कहा-“गोलियों से इसका कुछ नहीं बिगड़ता।”
मोना चौधरी उसी हाल में सोमाथ को देखे जा रही थी।
सोमाथ पुनः मोना चौधरी की तरफ बढ़ा। फासला बहुत कम, बाकी था।
मोना चौधरी को जैसे होश आया, वो फुर्ती से पीछे हटने लगी और रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा करके, सोमाथ की आंख का निशान लेते हुए एक साथ दो फायर कर दिए। परंतु दोनों गोलियां आंख से चूक गईं। एक माथे के बीच लगी, दूसरी माथे के किनारे पर।
सोमाथ पुनः थम गया। चंद पल बीते कि एक-एक करके दोनों गोलियां फर्श पर आ गिरी और क्षतिग्रस्त हो गया उसका चेहरा। देखते-ही-देखते सामान्य होता चला गया। सोमाथ मोना चौधरी को देखकर हल्के-से मुस्कराया।
“तुम मुझे नुकसान नहीं पहुंचा सकतीं।”
“तुम-तुम रोबोट हो? कैसे रोबोट हो, रोबोट ऐसा नहीं होता, वो...”
“मैं भी तुम्हारी तरह इंसान हूं।” सोमाथ आगे बढ़ा।
“तुम इंसान नहीं हो। तुम कुछ खास हो। बहुत ही खास, तुम...”
तभी सोमाथ ने मोना चौधरी को पकड़ने के लिए झपटा मारा। मोना चौधरी अपनी जगह से उछली और उस सोफे पर जा गिरी, सोमारा बैठी थीं सोमारा की तेज चीख गूंजी और सोफा पीछे को पलटता चला गया। मोना चौधरी गिरते ही फुर्ती से खड़ी हो गई। रिवॉल्वर हाथ से छूट गई थी।
सोमारा ने अपने को संभाला और उठते हुए बोली।
“ताशा। इस पर जोबिना चला दो।”
जोबिना चलाने वाले तीनों व्यक्ति हुक्म के इंतजार में शांत खड़े थे।
“नहीं सोमारा। ये राजा देव की पत्नी की बहन है पृथ्वी ग्रह पर।” रानी ताशा ने शांत स्वर में कहा-“इनकी जान लेकर मैं राजा देव को दुखी नहीं करना चाहती। परंतु ये सब मेरे साथ सदूर पर जाएंगे। महापंडित इनके दिमागों की खराबी निकाल देगा और सदूर पर ये मेरे सेवकों के रूप में काम करेंगे और राजा देव भी खुश रहेंगे कि ये लोग उनके साथ ही हैं। मैं राजा देव के लिए कुछ भी कर सकती हूं। वो मेरा देव है। मेरा प्यारा देव।” रानी ताशा की आंखें भर आईं।
सोमाथ पुनः मोना चौधरी की तरफ बढ़ा।
मोना चौधरी सतर्क हो गई और जूते में फंसा चाकू निकाल लिया।
“कोई फायदा नहीं होगा। सोमाथ को इन हथियारों के वारों से कुछ फर्क नहीं पड़ेगा।” जगमोहन बोला।
“हमें मोना चौधरी की सहायता करनी चाहिए।” धरा कह उठी।
“जाओ, उसकी सहायता करो।” जगमोहन ने तीखी नजरों से धरा को देखा।
“मैं-मैं अकेली क्यों-तुम दोनों भी साथ चलो। वैसे भी मुझे लड़ाई-झगड़ा कहां आता है।” धरा बोली।
“चुपचाप बैठी रहो।” जगमोहन गम्भीर स्वर में बोला-“सोमाथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता।”
“वो मोना चौधरी की जान ले लेगा।”
“नहीं लेगा। तुमने सुना नहीं कि ताशा हमें सदूर पर ले जाकर अपना सेवक बना लेना चाहती है।”
तभी नगीना उठी और तेजी से आगे बढ़ती सोमाथ से कह उठी।
“ठहरो सोमाथ।”
परंतु सोमाथ तो सिर्फ रानी ताशा का हुक्म मानना जानता था। वो मोना चौधरी की तरफ बढ़ता रहा।
चाकू थामे मोना चौधरी, सोमाथ पर नजर रखो, पीछे होती रही।
“सोमाथ को रोको ताशा।” नगीना कह उठी-“मैं मिन्नो से बात करती हूं।”
रानी ताशा ने मुस्कराकर नगीना को देखा, कहा कुछ नहीं।
नगीना, रानी ताशा के पास पहुंचकर गुस्से से बोली।
“तुम सोमाथ को रुकने के लिए क्यों नहीं कहती?”
“राजा देव को मुझे वापस दे दो। मैं चली जाऊंगी।” रानी ताशा ने शांत स्वर में कहा।
“मैं नहीं जानती कि देवराज चौहान कहां है।”
“मतलब कि तुम्हें कोई एतराज नहीं कि अगर मैं राजा देव को सदूर पर ले जाऊं।”
नगीना ने होंठ भींचकर रानी ताशा को देखा फिर कह उठी।
“देवराज चौहान मेरा पति है। वो तुम्हारा नहीं है।” स्वर में कठोरता भर आई थी।
तभी मोना चौधरी ने चाकू थामे सोमाथ पर छलांग लगा दी। वो सीधा सोमाथ से आ टकराई और चाकू का निशान, दिल वाली जगह थी। चाकू का छ: इंच का फल सोमाथ के दिल वाली जगह पर धंसता चला गया।
सोमाथ ने फुर्ती से मोना चौधरी को दोनों बांहों में भर लिया।
मोना चौधरी छटपटाई। परंतु सोमाथ की पकड़ तो लोहे की बांहों से भी मजबूत थी। चाकू का पूरा फल, मूठ तक सोमाथ के दिल वाले हिस्से में धंसा था और सोमाथ बेपरवाह-सा, मोना चौधरी को बांहों के घेरे में, अपनी छाती से सटाए हुए था। खुद को आजाद कराने के लिए मोना चौधरी हाथ-पांव मार रही थी। तभी मोना चौधरी को एहसास हुआ कि सोमाथ की बांहों का शिकंजा, उसके शरीर के गिर्द कसता जा रहा है। उसने छूटने के लिए पुनः पूरी ताकत लगा दी, लेकिन कोई फायदा नहीं होना था। मोना चौधरी बेबस होकर रह गई।
“वो उसे मार देगा।” जगमोहन चीख उठा। उसने कसते बांहों के शिकंजे को महसूस कर लिया था।
नगीना, रानी ताशा से कह उठी।
“मिन्नो की जान क्यों लेती हो?”
“सोमाथ।” रानी ताशा ने शांत स्वर में कहा-“इसे छोड़ दो।”
अगले ही पल सोमाथ ने अपनी बांह खोल दी।
मोना चौधरी ‘धड़ाम’ से नीचे जा गिरी और गहरी-गहरी सांसें लेने लगीं।
“मिन्नो।” नगीना तुरंत पास पहुंची-“तुम ठीक तो हो?”
“हां।” मोना चौधरी सांसों पर काबू पा रही थी-“ये कैसा इंसान है। गोलियां इस पर असर नहीं करतीं। चाकू दिल के हिस्से में धंसा है, परंतु इसे कोई फर्क नहीं पड़ा। कैसा रोबोट है ये?”
सोमाथ ने दिल वाले हिस्से में धंसे चाकू को निकालकर एक तरफ फेंक दिया। चंद पलों में ही छाती पर सुरंग की तरह दिख रहा सूराख खुद-ब-खुद ही भर गया और वो जगह सामान्य दिखने लगी।
“ये-ये सब कैसे कर लेता है। गोलियां कैसे बाहर आ गिरती हैं टूट-फूट चुका शरीर ठीक कैसे हो जाता है।” मोना चौधरी बोली।
“महापंडित का कमाल है ये।” रानी ताशा कह उठी-“महापंडित ने इसे ऐसा ही बनाया है। महापंडित कहता है कि सोमाथ मर नहीं सकता। इसकी ताकत का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। ये बात तुम देख भी चुकी हो। समझदारी इसी में है कि मेरा मुकाबला मत करो। जो मैं कहती हूं वो मान लो। उसी में तुम सबका भला है। इसे तो मैं सदूर पर ले जाकर, अपनी खास सेविका बनाऊंगी। मेरे पैर धोया करेगी ये।”
मोना चौधरी ने रानी ताशा को देखा। दांत भिंच गए थे।
“खामोश रहो।” नगीना धीमे स्वर में बोली-“हम इनका मुकाबला नहीं कर सकते।”
“तो क्या ये सोचकर हथियार डाल दें।” मोना चौधरी ने सुलगते स्वर में कहा।
“हमारे पास ऐसा कोई हथियार है ही नहीं, जो इन पर असर करे।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“ये लोग हर तरफ से हम पर भारी हैं चुप रहो और हालातों के हिसाब से चलो, हम इन्हें...”
“लेकिन कब तक हम...” मोना चौधरी ने कहना चाहा।
“तेरे को बोला है मिन्नो कि अभी चुप कर जा। तेरे को यहां आना ही नहीं चाहिए था।” नगीना ने गहरी सांस ली-“मेरे ख्याल में अब कुछ हो सकता है तो वो बबूसा ही कर सकता है।”
“बबूसा?”
“एक वो ही है जो हालातों को हमसे बेहतर समझता है, परंतु हमने ठीक से उस पर विश्वास नहीं किया। वो ठीक था। तुम ही सोचो कि इस हाल में, देवराज चौहान रानी ताशा के हाथ लग जाता है तो क्या होगा? क्या हम इन्हें रोक सकते हैं कि देवराज चौहान को न ले जाएं। हम इनके आगे बेबस हैं। बबूसा कहता था कि देवराज चौहान को अगर सदूर के जन्म की याद आ जाती है तो...”
“उसे याद आ गया है।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“क्या?” नगीना चौंकी।
“देवराज चौहान को याद आ गया है, परंतु मुझे उसकी हालत ठीक नहीं लगी। दीवानों जैसा हाल देखा मैंने उसका। वो ताशा को याद कर रहा है। उससे मिलना चाहता है, उसे प्यार करना चाहता है।” मोना चौधरी बोली।
“ऐसा देवराज चौहान ने कहा?” नगीना चिंतित हो उठी।
“हां। देवराज चौहान ने कहा। बबूसा उसे संभाले हुए है। परंतु बबूसा का कहना है कि अभी उसे पूरी बातें याद नहीं आई हैं। सब कुछ याद आते ही देवराज चौहान सब ठीक कर लेगा।”
नगीना, मोना चौधरी को देखने लगी। कुछ चुप्पी के बाद, रानी ताशा पर निगाह मारकर, नगीना धीमे स्वर में बोली।
“देवराज चौहान कहां है?”
“मेरे फ्लैट पर। बबूसा भी वहीं है।”
“वो सोमारा है।” नगीना ने सोमारा पर निगाह मारकर कहा-“महापंडित की बहन और कहती है बबूसा हर जन्म में उसका पति बनता है। वो बबूसा से मिलने के इंतजार में बैठी है।”
“बबूसा जानता है कि सोमारा भी यहां है?” मोना चौधरी ने पूछा।
“शायद नहीं जानता।”
“तेरे को सदूर ग्रह की बातों पर भरोसा है?”
“पहले नहीं था। परंतु अब होता जा रहा है। पृथ्वी वाले सोमाथ जैसा इंसान (रोबोट) नहीं बना सकते।”
मोना चौधरी ने कठोर निगाहों से कुछ दूर खड़ी, रानी ताशा को देखा।
“पर मुझे सदूर ग्रह की बातों पर विश्वास क्यों नहीं आता?”
“मुझे तो खुद नहीं समझ आ रहा मिन्नो कि ये क्या हो रहा है। अचानक ही ये सब...”
“मैं रानी ताशा को कामयाब नहीं होने दूंगी कि वो देवराज चौहान को ले जाए।”
“कुछ गलत मत कर बैठना। इनका कोई भरोसा नहीं कि क्या कर दें। अभी तो हमें इसलिए कुछ नहीं कह रहे कि हम देवराज चौहान के करीबी हैं। ज्यादा कुछ किया तो इनके विचार बदल सकते हैं हमारे बारे में। देवराज चौहान को सब कुछ याद आ लेने दो। बबूसा ठीक ही कहता होगा कि तब देवराज चौहान सब कुछ संभाल लेगा। हमें आने वाले वक्त का इंतजार करना चाहिए।” नगीना ने धीमे किंतु गम्भीर स्वर में कहा।
“और वो प्राइवेट जासूस अर्जुन भारद्वाज-वो...”
“मेरे ख्याल में वो इस मामले में अब कुछ नहीं कर सकता। मैंने तो उसे इस काम पर इसलिए लगाया था कि रानी ताशा कोई फ्रॉड है और वो उसकी असलियत जान सके। परंतु अब हालात दूसरे हो चुके हैं। इस काम में अर्जुन भारद्वाज की जरूरत नहीं रही। इसे अब बबूसा और देवराज चौहान ही संभाल सकते हैं।” नगीना ने व्याकुल स्वर में कहा।
“मुझे चलना चाहिए...” मोना चौधरी ने उठना चाहा।
“चलना?” नगीना के होंठों से निकला।
“मुझे देवराज चौहान और बबूसा के पास जाना होगा। उन्हें यहां के हालात...”
“रानी ताशा अगर हमें जाने देती तो हम कब के यहां से जा चुके होते। तुम अब नहीं जा सकोगी। इनका मुकाबला करके तुम देख ही चुकी हो कि इन्हें जीता नहीं जा सकता। जैसे यहां खामोशी से बैठे हैं, वैसे तुम भी...”
मोना चौधरी उसी पल उठी और रानी ताशा से बोली।
“मैं जा रही हूं यहां से।”
“तुम जानती हो राजा देव कहां हैं?” रानी ताशा ने पूछा।
“नहीं।”
“तो तुम कहीं नहीं जाओगी। यहीं रहोगी। देर-सवेर में राजा देव यहीं आ जाएंगे।”
“मैं तुम्हारे लिए देवराज चौहान की तलाश करूंगी।” एकाएक मोना चौधरी मुस्कराकर कह उठा।
“तुम राजा देव की पत्नी की बहन हो। तुम मेरे लिए राजा देव को तलाश क्यों करोगी।” रानी ताशा ने तीखे स्वर में कहा-“झूठ को पहचानना मुझे आता है। तुम यहीं रहोगी, अपनी बहन के पास।”
मोना चौधरी ने रानी ताशा को घूरा। नगीना, मोना चौधरी की कलाई पकड़े जगमोहन, धरा की तरफ ले जाते बोली।
“अपने पर काबू रखो। कुछ मत कहना। चुप रहो। आने वाले वक्त का इंतजार करो कि शायद सब ठीक हो जाए। हम इनका मुकाबला नहीं कर सकते। कोशिश की तो ये हमारी जान भी ले लेंगे।”
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रात के दस बज गए थे।
बबूसा और देवराज चौहान, मोना चौधरी के फ्लैट के बेडरूम में मौजूद थे। दिन में जो घर में थोड़ा-बहुत खाने को पड़ा था, वो खाकर काम चला लिया था। चूंकि मुम्बई के फ्लैट में मोना चौधरी स्थाई रूप से रहती नहीं थी इस कारण खाने-पीने का सामान ज्यादा नहीं था। समस्या तो रात को आई कि खाने को कुछ नहीं था और मोना चौधरी भी नहीं लौटी थी। दोनों को भूख लगी थी। देवराज चौहान ने बबूसा से कहा।
“तुम बाजार से खाने को ले आओ।”
“मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा।” बबूसा ने इंकार में सिर हिलाया।
“क्यों?”
“कहीं आप रानी ताशा से मिलने न चले जाएं।”
“मैं यहीं रहूंगा। तुम अपने लिए कारू (शराब) भी ले आना।” देवराज चौहान ने कहा।
“इन हालातों में मैं कारू नहीं पिऊंगा। मदहोशी आ गई तो आपका ध्यान कैसे रखूंगा?” बबूसा बोला।
“मुझे भूख लगी है।”
बबूसा खामोश रहा।
“हम दोनों बाजार चलते हैं। खाने को कुछ ले आते हैं।” देवराज चौहान ने कहा।
“पीछे से वो मोना चौधरी आ गई तो? उसे घर में कोई नहीं मिलेगा तो वो...”
“दरवाजा खुला छोड़ देते हैं। हम भी जल्दी लौट आएंगे।”
बबूसा ने सोच भरे अंदाज में सिर हिलाया।
“ये ठीक रहेगा राजा देव।”
“तुम पहले से बहुत बदल गए हो बबूसा। सदूर पर तुम ऐसे तो नहीं थे।” देवराज चौहान बोला।
“मैं नहीं बदला राजा देव। मैं वो ही बबूसा हूं परंतु यहां हालात बदले पड़े हैं। रानी ताशा अपने किए पर पर्दा डालना चाहती है और आपको पहले की तरह पा लेना चाहती है। वो आपको सदूर पर ले जाना चाहती...”
“ताशा।” देवराज चौहान ने गहरी सांस लेकर कहा-“मेरा मन नहीं लग रहा ताशा के बिना।”
बबूसा, गहरी निगाहों से देवराज चौहान को देखने लगा। वो महसूस कर चुका था कि जब से राजा देव को सदूर का जन्म याद आना शुरू हुआ है, तब से राजा देव में बहुत बदलाव आ गया है। उनकी बातों में फर्क आ गया है। वो ताशा के प्रति नर्म विचार रखते हैं। परंतु बबूसा जानता था कि सब कुछ याद आने पर राजा देव ऐसे नहीं रहेंगे। वो फिर पहले जैसे हो जाएंगे। राजा देव को झूठ और धोखे से नफरत थी। जब उन्हें रानी ताशा के दिए धोखे की याद आएगी तो तब मंजर कुछ और ही होगा।
“अपना ध्यान सदूर की तरफ लगाइए राजा देव। वहां की यादों के करीब जाने की कोशिश कीजिए। सब कुछ याद आते ही मैं आपको रानी ताशा के पास ले चलूंगा। तब जो आप कहेंगे, वैसा ही होगा।” बबूसा ने देवराज चौहान से कहा।
उसके बाद बबूसा और देवराज चौहान बाजार से खाना ले आए। बबूसा देवराज चौहान पर कड़ी नजर रख रहा था। देवराज चौहान ने बबूसा से पुनः कहा कि वो कारू ले ले, परंतु बबूसा ने सख्ती से इंकार कर दिया।
फ्लैट पर पहुंचे तो मोना चौधरी को वापस आया नहीं पाया।
दोनों ने खाना खाया।
“मोना चौधरी अभी तक क्यों नहीं आई?” एकाएक देवराज चौहान कह उठा।
“वो नहीं आएगी। रानी ताशा ने उसे भी कैद कर लिया होगा।” बबूसा का स्वर गम्भीर था-“वो चाहती है कि उन सब की खातिर आप वहां जाएं और रानी ताशा से आपका सामना हो जाए। परंतु मैं उसकी चाल सफल नहीं होने दूंगा।”
“ताशा कितनी अच्छी है बबूसा। तुम मुझे जाने नहीं दे रहे, वरना मैं तो कब का चला गया...”
“अपने पर काबू रखिए राजा देव।” बबूसा ने होंठ भींचकर कहा-“रानी ताशा के सामने तो आपने जाना ही है। परंतु अभी वो वक्त नहीं आया। जब तक रानी ताशा के पास जोबिना चलाने वाले लोग हैं या सोमाथ है तब तक उसे जीता नहीं जा सकता।”
“मैंने रानी ताशा को जीतना क्यों है। मैं तो उससे प्यार करता...”
“अभी आप हकीकत से अंजान हैं। रानी ताशा का प्यार, आपके जैसा नहीं है। आप दिल के अच्छे हैं, परंतु रानी ताशा का मन चालों से भरा हुआ है। वो प्यार भी करती है तो शतरंज की चालों पर। वो भरोसे के काबिल नहीं। रानी ताशा के बारे में सदूर ग्रह की सारी बातें आपको याद आएंगी तो तब आप सब कुछ समझ जाएंगे।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
वक्त बीतने लगा। रात का एक बज चुका था। देवराज चौहान बेड पर आंखें बंद किए लेटा था। बबूसा ने नाइट बल्ब ऑन कर दिया था कि देवराज चौहान सो सके, जबकि खुद वो बेड के दूसरे हिस्से पर बैठा था। उसका नींद लेने का इरादा नहीं लग रहा था। उसे डर था कि कहीं राजा देव, रानी ताशा के पास जाने का प्रयास न करें। बंद आंखों के पीछे, देवराज चौहान को ताशा ही नजर आ रही थी। हंसती-मुस्कराती, कभी उसके पास आती तो कभी दूर जाती। ताशा की अठखेलियां उसे बहुत भली लग रही थीं। ताशा उसका प्यार थी, उसका जीवन थी। उसका सब कुछ थी। ताशा की यादों में फंसे, एकाएक देवराज चौहान की बंद आंखों के पीछे सफेद चमकते सितारे नाचने लगे। कुछ पल ये ही आलम रहा, उन सितारों के बीच भी उसे जैसे ताशा का मुस्कराता चेहरा नजर आ रहा था। फिर एकाएक ही सदूर ग्रह के जन्म की यादें उसके मस्तिष्क में अपनी जगह बनाने लगीं। यादों की बारात पुनः चल पड़ी।
ताशा और देव की मुलाकातें हर रोज होने लगी। बग्गी में वो जंगल में जाते और घंटों बैठे वो बातें करते रहते। देव, ताशा का चेहरा निहारता रहता। ताशा मुंह फुलाकर कहती।
“तुम हमेशा मुझे देखते ही क्यों रहते हो?”
“तुम इतनी सुंदर क्यों हो?”
“हूं तो हूं-तुम्हें क्या?”
“तुम मेरे लिए सुंदर बनी हो। तुम्हें देखते रहने का मन करता है।” देव ने प्यार से कहा-“तुमने मेरा चैन छीन लिया।”
“जैसे तुमने मेरा चैन नहीं छीना।” ताशा मुस्कराकर बोली-“हर रोज पिता मुझे सुबह उठाता है, नहीं तो पहले मैं ही उठ जाया करती थी। रात को नींद कहां आती है। तुम ही तो आंखों में बसे रहते हो।”
“सच ताशा।”
“तो क्या मैं झूठ बोलूंगी। जब से तुमसे मिली हूं कुछ होश ही नहीं रहता। पिता ने आज पूछा था कि क्या हो गया है तुझे, पहले से आदतें कुछ बदल आई हैं। अब खोई-खोई सी रहती हो।” ताशा ने बताया।
“तो तुमने क्या कहा?”
“मैं क्या कहती। तुम्हारे बारे में थोड़े न बता सकती थी।”
“रात को मेरी आंखों में भी नींद की जगह, तुम आ जाती हो। बस तुम्हें देखता हूं। तुमसे बातें करने लगता हूं, उसके बाद कब नींद आती है, पता नहीं चलता। सुबह उठता हूं तो लगता है जैसे रात भर जागता रहा। आंखें खुलते तुम्हारा चेहरा सामने आ जाता है। फिर तो मन में एक ही बात होती है कि तुमसे जल्दी मिलूं।”
“एक बात तो बताओ। तुम रोज ही मुझसे मिलते हो। सारा दिन मेरे पास रहते हो। काम क्या करते हो?”
“काम होता रहता है।” देव मुस्कराया।
“कैसे?”
“सेवक करते हैं।”
“इसका मतलब तुम्हारे पास धातु बहुत ज्यादा है जो तुमने सेवक रखे हुए हैं।” ताशा कह उठी।
“मेरे लिए सबसे जरूरी काम है तुमसे मिलना। तुम्हें देखना। तुमसे बातें करना।” देव ने ताशा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और उसके खूबसूरत चेहरे को निहारता बोला-“जीवन में अब तुम मेरे लिए सबसे जरूरी हो।”
ताशा खिलखिलाकर हंस पड़ी फिर बोली।
“तुम तो दीवाने हो गए हो।”
“प्यार में इंसान दीवाना ही होता है। जो दीवाना न हो जाए, वो प्यार कैसा।” देव ने प्यार भरे स्वर में कहा।
“वो तुम्हारा कोचवान दिन भर खड़ा रहता है जंगल के किनारे। क्या वो इंतजार से तंग नहीं आ जाता?”
“उसका नाम बबूसा है। वो मेरा सबसे अच्छा और विश्वसनीय सेवक है।” देव ने कहा-“मेरी खुशी में ही उसे खुशी मिलती है। वो खुश है कि मुझे कोई लड़की पसंद आ गई है। लड़की मतलब कि तुम...” देव ने ताशा का गाल थपथपाया।
ताशा, देव को देखने लगी। देव, ताशा को देखता रहा।
“पहली बार जाना है मैंने कि प्यार ऐसा होता है। प्यार में पागल कैसे होते हैं, तुम्हें देख रही हूं।”
“क्या तुम्हें अच्छा नहीं लगता कि मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं।”
“बहुत अच्छा लगता है। एक नया एहसास होता है मुझे। वक्त कैसे बीतता है, पता ही नहीं चलता।”
उस दिन वापस जाते वक्त बबूसा ने देव से कहा।
“मैं आपसे नाराज हूं राजा देव।”
“क्यों बबूसा?”
“आपने किले के कामों की तरफ ध्यान देना छोड़ दिया है। जनता की समस्याओं को भी नहीं सुलझा रहे। हर रोज आप ताशा से मिलने चले जाते हैं और पूरा दिन वहीं बिता देते हैं।” बबूसा ने बग्गी दौड़ाते कहा।
“कर्मचारी सब काम पूरे करते रहते हैं बबूसा।” देव ने कहा।
“आपके और कर्मचारियों के काम करने में फर्क है। कर्मचारियों पर आपकी भी नजर होनी चाहिए। पहले आप कर्मचारियों से पूछते थे कि दिन भर में उन्होंने क्या-क्या किया? जनता की शिकायतें क्या थीं, समस्याएं कैसे हल कीं। परंतु जब से आपने ताशा से मिलना शुरू किया है, कर्मचारियों से पूछताछ करनी छोड़ रखी है। किले के काम भी कर्मचारी ही पूरे करते हैं। इस हद तक आपका दीवाना हो जाना ठीक नहीं राजा देव। आप सदूर के राजा हैं।”
“ताशा के अलावा मुझे किसी और बात का ख्याल ही नहीं आता।” देव मुस्कराकर बोला।
“ये गलत बात है।” बबूसा ने नाराजगी से कहा।
“ठीक है। तुम्हारी बात मानी। आज से मैं किले के और जनता के कामों पर नजर रखूंगा।”
किले पर पहुंचकर देव ने ताशा की यादों में गुम न होते हुए, कर्मचारियों को तलब किया और उनके कामों का लेखा-जोखा देखने-पूछने लगा। बबूसा बराबर साथ रहा। कई काम बिगड़े हुए दिखे तो उन्हें संवारा निर्देश दिए कर्मचारियों को। रात के खाने तक देव इन्हीं कामों में व्यस्त रहा। बबूसा खुश था कि राजा देव ने लापरवाही छोड़ दी है। इसी तरह दिन तेजी से बीतते चले गए। सुबह ताशा से मिलना और शाम को कर्मचारियों के कामों को देखना। परंतु समय का मौका मिलते ही ताशा उसके मस्तिष्क में सवार हो जाती थी। वो जितना ताशा से मिलता, उससे मिलने की ललक उतनी ही बढ़ती जाती थी। ताशा उसके रोम-रोम में बस गई थी। उस दिन देव ताशा से मिलने जाने की तैयारी कर रहा था कि सेनापति धोमरा आ पहुंचा। बबूसा ने धोमरा के आने की खबर दी। देव, किले के एक बड़े कमरे में धोमरा से मिला। बबूसा भी वहां था।
“राजा देव।” धोमरा ने कहा-“विद्रोही नेता तोलका के इशारे पर पिछले पांच दिनों, ऐसे सत्रह लोगों को तलवार से मार दिया जो उसके विद्रोह में शामिल होने को तैयार नहीं थे।”
“बबूसा।” देव ने कहा-“तुमने ये बात मुझे नहीं बताई?”
“आपके साथ व्यस्त होने की वजह से मैं इन बातों की तरफ ध्यान नहीं दे पाया।” बबूसा ने सामान्य स्वर में कहा-“दिन भर तो आपके साथ व्यस्त रहता हूं।”
देव के चेहरे पर गम्भीरता आ गई।
“तोलका के खिलाफ क्या कार्यवाही की गई धोमरा?” देव ने पूछा।
“कुछ भी नहीं। मैं और मेरे खास आदमी तोलका के दल की गतिविधियां नोट करने में व्यस्त रहे। मेरे तीन आदमी पहाड़ों में छिपे तोलका के पास, कुछ ही दूरी पर मौजूद हैं। उनमें से एक संदेश लेकर आया है कि तोलका के साथ पचास विद्रोही मौजूद रहते हैं। अगर हम संख्या में ज्यादा हों तो उन्हें जीत सकते हैं।”
“हमारे पास सैकड़ों सिपाही हैं धोमरा।” देव बोला।
“आपकी इजाजत की जरूरत है। मैं आज ही तोलका को खत्म करने चला जाता हूं।”
“तुम?”
“हां राजा देव। मैं सेनापति हूं और ये काम मेरे लिए मामूली है। तोलका पहाड़ों के पास ठिकाना बनाए हुए है और मेरे आदमी वहां पर नजर रखे हुए हैं। मैं वहां घेराबंदी करके तोलका को खत्म कर दूंगी।”
देव के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“इसमें हमारे सिपाही भी मारे जा सकते हैं।” देव बोला।
“अवश्य। नुकसान तो हमें होगा परंतु जनता के लिए, तोलका को मार देना ही ठीक रहेगा।” धोमरा ने कहा।
“धोमरा ठीक कहता है राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“तोलका लोगों को विद्रोही बनाकर अपनी ताकत बढ़ाता जा रहा है। कहीं ऐसा वक्त न आ जाए कि वो आप पर भारी पड़ने लगे। उसे खत्म कर देना ही बेहतर है।”
“चलने की तैयारी करो धोमरा। मैं भी साथ चलूंगा।” देव ने सख्त स्वर में कहा।
“आप? आपके साथ जाने की क्या जरूरत है, ये काम तो मैं ही...।”
“मैं साथ चलूंगा धोमरा । तुम काबिल सेनापति हो। इसमें कोई शक नहीं। परंतु ये तोलका का मामला है। वो सदूर का राजा बनना चाहता है और लोगों में विद्रोह फैला रहा है। मैं उसे देखना भी चाहता हूं कि वो कैसा है।”
“जैसा आप ठीक समझें राजा देव।”
“अगर तोलका और उसके साथी हमारी पकड़ में आ जाते हैं तो तब उनकी जान नहीं लेनी। उन्हें बंदी बनाकर यहां लाना और पाइप के रास्ते ग्रह से बाहर फेंक देना है। मैं नहीं चाहता कि ग्रह की जमीन किसी के खून से लाल हो। किसी की जान लेना मुझे अच्छा नहीं लगता।” देव ने कहा और उठ खड़ा हुआ।
“मैं चलने की तैयारी करता हूं। शाम तक हम चल देंगे।” कहकर धोमरा चला गया।
“तोलका को खत्म करना अब जरूरी हो गया है राजा देव।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“आपकी तलवारें, खंजर तैयार करता हूं। उनकी साफ-सफाई और उनकी धारें तेज करवा देता हूं।”
“हां। ऐसा ही करो।” देव का चेहरा सख्त था-“आज मैं ताशा के पास नहीं जा सकूँगा। शाम को हमने पहाड़ों की तरफ चल देना है। मेरे वहां न पहुंचने पर ताशा परेशान हो जाएगी।”
“हुक्म राजा देव।”
“तुम जाओ और ताशा को खबर कर दो कि कुछ दिन हम नहीं मिल सकेंगे।”
“मैंने आपकी तैयारी का साथ देना है। मेरे पास काम बहुत है। मेरा ताशा के पास जाना जरूरी न हो तो मैं सोमारा को समझाकर ताशा की तरफ भेज देता हूं। वो आपका संदेश दे देगी। सोमारा, ताशा से मिल भी लेगी।”
“ये बेहतर रहेगा।” देव ने सिर हिलाकर कहा।
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रोज की तरफ ताशा चौराहे पर पहुंची तो बग्गी को खड़े पाया। वो बग्गी की तरफ बढ़ी और पास पहुंचने पर जब कोचवान पर नजर पड़ी तो ठिठक गई। कोचवान की जगह पर बबूसा को न पाकर वो समझ नहीं पाई कि बग्गी में बैठे कि नहीं बैठे। तभी भीतर से देख रही सोमारा ने पर्दा हटाकर उससे कहा।
“तुम ताशा हो?”
ताशा ने ‘हां’ में सिर हिलाया।
“आ जाओ। मैं तुमसे ही मिलने आई हूं। राजा देव ने तुम्हारे लिए संदेश भेजा है।” सोमारा ने कहा।
“राजा देव?” ताशा के चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे।
“वो ही देव।” सोमारा हंसी-“जिससे तुम रोज मिलती हो। उसी की बात कर रही हूं।”
“तुम कौन हो?”
“राजा देव की कर्मचारी।”
“फिर राजा देव, तुम क्या कह रही हो?”
“भीतर तो आओ।”
हिचकिचाते हुए ताशा बग्गी के भीतर, सोमारा के पास आ बैठी।
सोमारा ने कोचवान को कहा कि बग्गी छोड़कर दूर खड़ा हो जाए। जब कोचवान चला गया तो सोमारा, ताशा के इंतेहाई खूबसूरत चेहरे को देखने लगी। देखती रही।
“ऐसे क्या देख रही हो?”
“ये देख रही हूं कि आखिर तुम में ऐसा क्या है जो राजा देव तुम्हारे दीवाने हो गए।” सोमारा हंसी-“परंतु राजा देव गलत नहीं हैं। तुम सच में राजा देव के काबिल हो। बहुत खूबसूरत हो। बबूसा ठीक कहता था कि...”
“बबूसा?”
“वो मेरा पति है।”
“ओह, पर तुम देव को बार-बार राजा देव क्यों कह रही हो?” ताशा ने सोमारा को देखते हुए कहा।
“क्योंकि वो राजा देव हैं।” सोमारा ने हंसकर कहा-“बबूसा ने मुझे बता रखा है कि ये बात तुझे नहीं बताई है राजा देव ने। पर मैंने तेरे को सच-सच बता दिया। राजा देव ने भी तो एक दिन तुझे ये बात बतानी ही थी।”
ताशा भौंचक्की रह गई। सोमारा को देखती रही। उसकी नीली आंखें हैरानी से फैल चुकी थीं।
“क्या देख रही है?”
“द-दे-व, क्या राजा देव है। सदूर का मालिक?” ताशा के होंठों से घबराया-सा स्वर निकाला।
“हैरान हो गई न?” सोमारा पुनः हंसी-“तू तो किस्मत वाली निकली जो राजा देव की नजर तुझ पर पड़ी और उन्होंने तेरे को पसंद कर लिया। तेरे नसीब कितने अच्छे हैं। बबूसा बता रहा था कि राजा देव तुझे किले की रानी बनाने वाले हैं।”
“कि-कि-ले की रानी?” ताशा को अपनी सांसें रुकती-सी महसूस हुई। हाथ दिल पर रख लिया।
“पानी पिलाऊं?” सोमारा ने कहते हुए नीचे रखा पानी का बर्तन उठाना चाहा।
ताशा ने सोमारा की बांह पकड़ ली।
“तू मुझे पागल कर रही है अपनी बातों से। देव सदूर का राजा नहीं हो सकता।” ताशा अजीब-से स्वर में बोली।
“तेरे को ये पता है न कि उनका नाम देव है?”
“ह-हां।”
“तो मेरी बात भी सुन ले। घबरा मत। वो सदूर के मालिक, राजा देव हैं। सोमारा नाम है मेरा और बबूसा की पत्नी हूं। किले में ही रहती हूं। मेरी बात का भरोसा न हो तो तेरे को किले पर ले चलती...”
“नहीं-नहीं, मुझे किले पर नहीं जाना।” ताशा ने जल्दी से कहा। हाथ अभी भी दिल पर था।
सोमारा, ताशा के खूबसूरत चेहरे को देखने लगी, जहां पर अजीब-अजीब भाव आ रहे थे।
“तेरी तबीयत तो ठीक है?” सोमारा ने पूछा।
“ह-हां...”
“तू घबरा क्यों रही है?”
“तेरी बातें सुनकर। देव, राजा देव है। मुझे भरोसा नहीं हो रहा। व-वो तो मुझे कहीं से भी राजा देव नहीं लगे। वो तो कहते थे कि वो साधारण-से व्यापारी हैं। वो तो आम लड़कों की तरह ही बातें करते थे और...”
“राजा देव ऐसे ही हैं। मन के साफ। दिल के अच्छे।” सोमारा ने हाथ हिलाकर कहा-“उनके पिता जरूर कुछ कठोर थे, परंतु राजा देव बिल्कुल शांत और मधुर हैं, लेकिन ऐसा भी नहीं कि कोई उन्हें बेवकूफ बना जाए। बहुत चालाक और तेज भी हैं। सदूर के सबसे ताकतवर इंसान हैं। उन्हें ऐसे ही समझने की भूल मत कर बैठना।”
“कहां राजा देव और कहां मैं।” ताशा की आंखें भर आईं-“ये सम्बंध कैसे बन सकता है।”
“क्यों नहीं बन सकता। राजा देव तेरे से प्यार करते हैं। बबूसा कहता है कि राजा देव, ताशा के दीवाने हो चुके हैं।”
“मुझे नहीं पता था कि वो राजा देव है।” ताशा भीगे स्वर में बोली।
“दिल को क्यों लगाती है ये बात।” सोमारा, ताशा के कंधे पर हाथ रखते कह उठी-“अगर राजा देव तेरे को पहली बार में ही बता देते कि वो राजा देव है तो तू संभल जाती। फिर वो कैसे जान पाते कि तू उन्हें चाहती है कि नहीं। इसी कारण उन्होंने ये बात छिपाकर रखी कि पहले वो तेरे दिल में झांक लें। वो तो अब उन्होंने झांक ही लिया है। मैं तो कब से तेरे से मिलना, तेरे को देखना चाहती थी, परंतु कोई मौका ही नहीं बन पा रहा था। परंतु आज मौका बना तो दौड़ी चली आई-ओह, मैं बातों में लग गई और तेरे को राजा देव का संदेश देना ही भूल गई। राजा देव ने कहा है कि कुछ दिन वो मिलने नहीं आ सकेंगे।”
“क्यों?” ताशा के होंठों से निकल गया।
“पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं। विद्रोही नेता तोलका को खत्म करने। वो जनता को दुख पहुंचाने लगा है।”
“तोलका से लड़ेंगे देव?” ताशा कह उठी-“देव को कुछ हो गया तो?”
“राजा देव को कुछ नहीं होगा। सदूर पर कोई उनका मुकाबला नहीं कर सकता।”
“परंतु देव कैसे तोलका का मुकाबला करेंगे। तोलका के और भी साथी होंगे। वो राजा देव को...”
“तो राजा देव कौन-से अकेले जा रहे हैं।” सोमारा ने कहा-“सेनापति धोमरा साथ में हैं। बबूसा भी है और ढेरों सिपाही भी जा रहे हैं। किले पर चलने की तैयारी हो रही है। लेकिन तू ये बात किसी से कहना नहीं। सब कुछ गुपचुप ढंग से हो रहा है कि कहीं तोलका तक ये खबर न पहुंच जाए। जब राजा देव वापस आएंगे तो मैं तेरे को बताने आ जाऊंगी।”
“जरूरी आएगी न?”
“जरूर।” सोमारा मुस्कराई-“तू मुझे पसंद आई ताशा।”
“मेरा तो दिल डूबा जा रहा है कि मेरा देव ही राजा देव है। विश्वास नहीं आता। देव ने मुझे बताया ही नहीं कि वो राजा देव है।”
“बहुत नसीबों वाली है तू जो तेरे को राजा देव मिले। संभालकर रखना उन्हें। वे बहुत गुणवान हैं। ऐसा इंसान जिसे मिल जाए वो धन्य हो जाता है। बबूसा तो चाहता है कि हर जन्म में राजा देव की सेवा में रहे।”
“द-देव तोलका से लड़कर सही-सलामत वापस आ जाएंगे न?” ताशा घबराए स्वर में कह उठी।
“तू हमारे राजा देव को क्या समझती है। कुछ ही दिनों में सदूर से तोलका का नाम खत्म हो जाएगा। विद्रोह के बहाने वो ग्रह का राजा बनना चाहता है। राजा देव उसका ऐसा हाल करेंगे कि फिर सदूर पर कोई विद्रोह करने की हिम्मत नहीं कर पाएगा।
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किले पर बबूसा सारा दिन देव के हथियारों की साफ-सफाई करवाने में व्यस्त रहा। देव जरूरत का सामान बबूसा को याद दिलाता रहा, जिसकी पहाड़ों पर जरूरत पड़ सकती थी। देव के दिमाग से ताशा निकल चुकी थी अब उसे सिर्फ तोलका का ही ख्याल आ रहा था कि उसे खत्म करना है। सालों पहले तोलका के आदमी द्वारा ही उसके पिता मारे गए थे। अब तोलका पहले से ताकतवर हो गया था। उसने अपने विद्रोही दल के साथ काफी नए लोगों को मिला लिया था। देव को अपने विचार जंचे कि तोलका को खत्म करने का ये समय सही था, वरना आने वाले वक्त में तोलका और भी शक्तिशाली होकर किले पर हमला कर सकता था। जबर्दस्ती सदूर का राजा बनने की कोशिश कर सकता था।
आधे दिन के बाद देव ने एक कर्मचारी को भेजकर सेनापति धोमरा को बुलाया।
“हुक्म राजा देव।” धोमरा किले पर पहुंचकर राजा देव से मिला।
“तैयारी हो गई?”
“चल रही है। शाम तक हम यहां से रवाना हो जाएंगे।” धोमरा ने कहा।
“कैसे जाना है पहाड़ों तक?” राजा देव ने पूछा।
“घोड़ों और बग्गियों द्वारा हम...”
“धोमरा।” देव ने गम्भीर स्वर में कहा-“अगर हम एक साथ घोड़ों और बग्गियों पर अपने सिपाही लेकर रवाना होंगे तो ये खबर तोलका तक भी पहुंच सकती है। वो जान सकती है कि हम उसकी तरफ आ रहे हैं।”
“ये बात तो आपने सही कही।” धोमरा ने फौरन सिर हिलाया।
“तुम सिपाहियों का वहां तक का सफर, अलग-अलग दिशाओं में भेजकर पूरा कराओ। एक बार में पांच-छः सिपाही से ज्यादा नहीं होने चाहिए। एक बग्गी में पांच-छ: सिपाही हथियारों के साथ भेजना शुरू करो। इसी तरह पांच-छ: घुड़सवार एक साथ रवाना करो, परंतु घुड़सवार सिपाहियों के पास हथियार न दिखे। उनके हथियार बग्गियों में भेजो। मैं नहीं चाहता कि तोलका तक इस बात की हवा भी पहुंचे कि हम उसकी तरफ बढ़ रहे हैं।”
“मैं ऐसा ही करता हूं।”
“रुक-रुककर सिपाहियों को उस तरफ भेजना शुरू कर दो। पहाड़ों में कोई एक जगह तय कर लो। वहां पर खामोशी से सबको इकट्ठे होना है। इसी तरह तुम भी एक बग्गी में बैठकर रात तक वहां के लिए निकल चलना। मैं बबूसा के साथ यहां से चलूंगा। मुझे बता दो कि पहाड़ों के किस तरफ हम मिलेंगे।”
धोमरा ने बताया और किले से चला गया।
देव किले में टहलता ये ही सोचता रहा कि वहां पर काम कैसे करना है। धोमरा के सिपाहियों ने बताया था कि तोलका के साथ वहां पचास के करीब साथी हैं। ये एक अंदाजा था। सही में उनकी संख्या कितनी है ये जानना जरूरी था। ऐसा न हो कि ठीक मौके पर तोलका उन पर भारी पड़ जाए।
तभी सोमारा से देव का सामना हो गया।
“राजा देव, आप यहां हैं और मैंने आपको कहां-कहां नहीं ढूंढा।” सोमारा फौरन कह उठी-“ताशा से मिल आई हूं मैं।”
देव मुस्कराया। परंतु उनकी मुस्कान कठोरता से भरी थी, क्योंकि उसका पूरा ध्यान तोलका की तरफ था। इस वक्त वो सिर्फ तोलका के बारे में ही सोच रहा था।
“मैंने आपका संदेश ताशा को दे दिया कि आप कुछ दिन उससे नहीं मिल सकेंगे। ताशा तो सच में बहुत खूबसूरत है, वो तो सिर्फ आपके लिए ही बनी है। ऐसी सुंदरता मैंने कभी सदूर पर नहीं देखी।”
देव मुस्कराता रहा। सोमारा को देखता रहा।
“पर एक गलती हो गई राजा देव।” सोमारा मुंह फुलाकर कह उठी-“क्षमा मिले तो बता दूं कि मैंने ताशा से कह दिया कि आप राजा देव हैं। मेरे मुंह से निकल गया। बबूसा ने मुझे समझाया भी था कि ये बात ताशा को न बताऊं पर क्या करूं मुंह से निकल ही गया कि आप विद्रोही तोलका का खत्म करने पहाड़ों पर जा रहे हैं।”
मुस्कराते हुए देव ने सिर हिलाया।
“मुझसे गलती हो गई न राजा देव।”
“तुमसे गलती जरूर हुई है पर तुमने सोच-समझकर गलती की है सोमारा।” राजा देव ने हौले-से हंसकर कहा-“तुम ताशा को बता देना चाहती थी कि मैं ही राजा देव हूं। ये बात तुम्हारे मन में घूम रही थी।”
सोमारा सकपका उठी। थोड़ी-सी मुस्कराई।
“माफी चाहती हूं राजा देव।” सोमारा धीमे से बोली।
“कोई बात नहीं।” देव ने शांत स्वर में कहा।
“राजा देव।” सोमारा की हिम्मत फिर वापस आ गई-“ताशा को तो भरोसा ही नहीं हुआ कि आप राजा देव हैं। वो तो दिल थामकर बैठ गई। मुझे तो डर लगा कि उसे कुछ हो न जाए। बहुत मासूम और खूबसूरत है ताशा।”
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अंधेरा हो जाने के बाद देव ने बग्गी में पहाड़ों की तरफ का सफर शुरू किया। कोचवान बग्गी को दौड़ा रहा था। बबूसा बग्गी के भीतर ही, देव के साथ बैठा था। बग्गी में लकड़ी का बड़ा-सा बक्सा भी रखा था जिसमें देव के हथियार और उसकी बताई जरूरत का सारा सामान भी था। धोमरा की तरफ से खबर आ गई थी कि उसने डेढ़ सौ सिपाही थोड़े-थोड़े गुट में, पहाड़ों की तरफ रवाना कर दिए हैं और खुद भी रवाना हो रहा है। रात के इस वक्त ठंडी हवा चल रही थी। आसमान में तारे चमक रहे थे।
“राजा देव।” बबूसा बोला-“सोमारा ने ताशा को बता दिया है कि आप ही राजा देव हैं।”
“सोमारा से मेरी बात हो गई है।” देव ने कहा।
“मैंने सोमारा को खूब डांटा कि उसने ऐसी शरारत क्यों की।”
“बबूसा। मेरा ध्यान तोलका की तरफ ही रहने दो।” ताशा की बात अभी मत करो।” देव गम्भीर था।
“ऐसा ही होगा राजा देव।” बबूसा ने फौरन कहा-“मुझे इस बात का डर है कि हमारी हरकतों की खबर तोलका को न मिल जाए। अगर वो पहले ही सतर्क हो गया तो मुकाबले की तैयारी कर लेगा।”
“ये बात इस पर निर्भर है कि हम पहाड़ों पर किस जगह डेरा डाल रहे हैं। उनके आदमी पहाड़ों पर आते-जाते रहते होंगे। वो सिपाहियों को देख सकते हैं।” देव ने कहा।
“धोमरा ने ठीक ही जगह चुनी होगी, पहाड़ों पर रुकने के लिए।”
देव खामोश-सा बैठा रहा फिर बबूसा से बोला।
“कारू (शराब) का एक गिलास तैयार करो।”
बबूसा ने बग्गी में रखे कारू के बर्तन से गिलास तैयार करके देव को दिया।
देव ने घूंट भरा।
बग्गी तेजी से दौड़ रही थी। कभी-कभी कारू गिलास से छलक उठती थी।
“राजा देव। आपने-अपने तैयार किए सामान में कुछ अजीब-सी चीजें रखवाई हैं। वो मैं समझ नहीं पाया।” बबूसा बोला।
“उन चीजों का महत्व तुम्हें पहाड़ों पर पहुंचकर समझ में आएगा।” देव ने कहा।
बबूसा सिर हिलाकर रह गया।
“मैं तोलका के ठिकाने पर जाऊंगा बबूसा।” देव ने कहा।
“तोलका के ठिकाने पर? मैं समझा नहीं, वो तो सिपाहियों ने जाना ही है।”
“पहले मैं अकेला जाऊंगा। वहां की टोह लूंगा। ऐसा न हो कि तोलका की तैयारी कुछ ज्यादा हो।”
“ये आप कैसी खतरनाक बात कर रहे हैं राजा देव। आप वहां फंस सकते हैं। कोई भी आपको पहचान लेगा कि आप राजा देव हैं। तोलका तो उसी पल आपको खत्म कर देगा। वहां जाने की सोचिए भी मत।”
“तोलका के आदमियों की संख्या देखनी है पास जाकर। उनके हथियारों की तैयारी देखनी है। दुश्मन पर तभी वार करो, जब उसके बारे में जान लो कि उसका दम क्या है। सिपाहियों के साथ रखकर हमें ये नहीं सोचना चाहिए कि हम ताकतवर हैं। तोलका विद्रोही है और वो हमसे ताकतवर भी हो सकता है।”
“तो आप क्यों जाते हैं तोलका के ठिकाने पर, किसी और को...”
“ये नाजुक मामला है। किसी और को भेजा और वो पकड़ा गया तो बता देगा कि किले के सिपाही उन पर हमला करने वाले हैं। वो कहां पर रुके हुए हैं। ऐसे में तोलका तैयारी के साथ पहले ही हम पर हमला कर देगा।”
“धोमरा को तोलका के ठिकाने पर भेजिए। वो मुंह नहीं खोलेगा।”
“धोमरा पहचाना जा सकता है।”
“पहचाने तो आप भी जा सकते हैं राजा देव।”
“जब तुम मेरी तैयारी देखोगे तो तब ये बात कहना। बक्से में रखे जिस सामान को तुम ठीक से समझ नहीं पा रहे हो उसे कल समझ जाओगे।” देव ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं कभी शिकार पर जाता नहीं। जाता हूं तो खाली हाथ वापस लौटना मुझे पसंद नहीं। तोलका की जान लेने से मैं बेहतर समझता हूं कि उसे जिंदा पकडूं और ग्रह से बाहर फेंक दूं। इसी कारण पाइप द्वारा मैंने वो रास्ता बना रखा है कि मुझे किसी की हत्या न करनी पड़े।”
“तोलका खतरनाक है। उसे जिंदा पकड़ पाना कठिन होगा।” बबूसा गम्भीर था।
“जिंदा पकड़ने की स्थिति नहीं हुई तो मार दिया जाएगा उसे।”
“और तोलका के साथी?”
“पहाड़ों पर उसके साथ जो रहते हैं वो पक्के विद्रोही हैं। उन्हें छोड़ना ठीक नहीं होगा।” देव ने सख्त स्वर में कहा-“जो अन्य लोग तोलका के साथ मिल चुके हैं, वो तोलका का अंत देखकर खुद-ब-खुद ही पीछे हट जाएंगे। तोलका के अंत के बाद सदूर के लोगों को ये खबर दे दी जाएगी कि जो भी विद्रोही बनने की कोशिश करेगा, उसे मार दिया जाएगा। सदूर का राजा बनना है तो मैदान में आकर, देव से मुकाबला करो। जो जीतेगा, वो सदूर का राजा बनेगा।”
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दिन निकलने में कुछ वक्त बाकी था और वे पहाड़ों के पास आ पहुंचे थे। धोमरा बता गया था कि वे कहां पर मिलेंगे। वे पहाड़ों के उसी हिस्से में पहुंचे, जहां धोमरा, सिपाहियों के साथ पहले ही पहुंच चुका था। सावधानी के नाते वहां पर रोशनी वाली मशालें नहीं जलाई गई थीं कि तोलका को उनकी मौजूदगी का एहसास न हो जाए। पहाड़ों पर हल्की-हल्की ठंड थी। परंतु ऐसी भी नहीं कि वहां रुकने में परेशानी आए। देव उन दो आदमियों से मिला, जो कि धोमरा के सिपाही थे और जिन्होंने तोलका के ठिकाने के बारे में, खबर दी थी।
“तोलका का ठिकाना, यहां से कितनी दूर है?” देव ने उनसे पूछा।
“पैदल चले तो वहां पहुंचने में आधा घंटा लग जाएगा।” एक ने कहा-“वो सामने जो पहाड़ से देखें तो, वो नजर आते हैं।”
“वो इस तरफ नहीं आते?” देव ने पूछा।
“नहीं।”
“वो पहाड़ पर तो नहीं चढ़ते। उनके रास्ते उस तरफ से जाते हैं और वो घोड़ों का इस्तेमाल करते हैं।”
“तुम लोगों ने तोलका को देखा?”
“नहीं देखा राजा देव। परंतु वो उसी जगह पर है। तोलका के आदमी रात को भी वहां पहरा देते हैं। दिन में भी पहरा देते हैं। ठिकानों से कुछ दूर पहाड़ पर वे हर समय पहरा देते हैं और दूर से आते लोगों को पहले ही देख लेते हैं।”
“उनकी संख्या कितनी है?”
“हमारा अनुमान है कि पचास हैं।”
“ज्यादा भी हो सकती है।”
“ज्यादा भी हो सकती है राजा देव।” दूसरे ने कहा।
“तुम लोग पचास कहते हो तो उनकी संख्या अस्सी हो सकती है ज्यादा से ज्यादा।” देव ने सोच भरे स्वर में कहा-“सौ से ज्यादा तो वो हो ही नहीं सकते। उनके पास हथियार क्या हैं?”
“सब तरह के हथियार हमने देखे हैं। तलवारें-भाले, खंजर, जहरीले तीर तो वो हर समय तैयार करते रहते हैं जैसे वे किसी लड़ाई की तैयारी कर रहे हों। उनके पास बस्ती की तरफ से अक्सर लोग आते रहते हैं। हर रोज लोग आते हैं और मुलाकात के बाद चले जाते हैं। वो तोलका के बस्तियों में रहने वाले साथी होंगे। हम कई दिन से उन पर नजर रख रहे हैं। हम उन पर हमला करेंगे तो, वो पूरी तरह से हमारा मुकाबला करेंगे। अगर उन्हें पहले पता चल गया कि हम ऐसा करने वाले हैं तो वो बस्तियों से अपने और लोगों को भी बुला सकते हैं।”
“इसका मतलब हमें सतर्कता और चुप्पी से काम लेना होगा।”
बाकी की बची थोड़ी रात देव ने बग्गी में सोकर बिताई। दिन निकला तो धोमरा पास आया-“राजा देव।” धोमरा बोला-“हमारे सिपाही उत्साह में हैं कि आपके साथ वो तोलका को मारने जा रहे हैं। ये ठीक होगा कि हम तोलका के ठिकाने पर हमला कर दें। सुबह का वक्त है, वे ज्यादा भी नहीं होंगे।”
“मैं इस प्रकार उन पर सीधा हमला नहीं करना चाहता। पहले उनके ठिकाने पर जाकर देखूंगा।”
“ये आप क्या कह रहे हैं राजा देव।” धोमरा चौंका-“वो लोग आपको फौरन पहचान लेंगे।”
“वो मुझे नहीं पहचान सकेंगे। मैंने तैयारी कर रखी है। अपना चेहरा बदल लूंगा।”
“इसका मतलब आपने पहले ही योजना बना रखी है।” धोमरा कह उठा।
“हां।”
“आप उनके पास किस तरह जाएंगे। वो...”
देव ने धोमरा को अपनी योजना बताई।
सब कुछ सुनने के बाद धोमरा गम्भीर-सा कह उठा।
“इसमें खतरा बहुत है।”
“तुम्हें जो समझाया है वो याद रखो।” देव ने कहने के बाद बबूसा से कहा-“धोमरा कुछ भूलने लगे तो तुम इसे याद दिलाना।”
“अवश्य राजा देव।” बबूसा चिंतित था-“परंतु बेहतर होगा कि धोमरा को तोलका के ठिकाने पर जाने दें।”
“मैं तैयार हूं।” धोमरा तुरंत बोला।
“ये काम मैं ही करूंगा।” देव ने फैसले वाले स्वर में कहा।
दिन निकलने के बाद सिपाही हमलों के लिए रवाना होने का इंतजार कर रहे थे, परंतु धोमरा ने उन्हें बता दिया कि आज हमला नहीं होगा तो खाना बनाने की तैयारी होने लगी। खाना बनाने वाले सिपाहियों के साथ ही आए थे कि उन्हें भूखा न रहना पड़े। पच्चीस सिपाही पहरे के तौर पर इधर-उधर फैल गए थे और हर तरफ नजर रखने लगे थे। सदूर के किनारे पर अब सूर्य का हो गया था। परंतु पहाड़ों पर ठंडी हवा भी चल रही थी। सारे काम खामोशी से हो रहे थे। कहीं भी ज्यादा शोर-शराबा नहीं उठ रहा था।
देव, बग्गी के भीतर बबूसा के साथ बैठा आगे के काम की तैयारी कर रहा था। बक्सा खोल रखा था। भीतर से एक खास तरह के बालों का गुच्छा निकाला था जो कि सदूर के एक जानवर के बाल थे और इंसान के बालों से वो बाल बहुत दिखना शुरू मेल खाते थे। देव वालों को तेज धार वाले खंजर से अपनी जरूरत के मुताबिक काटने लगा। देव के कहने पर बबूसा एक पौधे की टहनियां तोड़ लाया था, उन टहनियों को तोड़ो तो बीच में से गोंद जैसा पदार्थ निकलता था। उससे किसी चीज को चिपकाना बहुत आसान होता था। देव ने उसी पदार्थ के दम पर उन बालों को दाढ़ी-मूंछों के रूप में होंठों और गालों पर चिपकाया। बबूसा ने इस काम में देव की पूरी सहायता की। काफी देर बाद देव जब बग्गी से निकला तो उसके शरीर पर सामान्य लोगों की तरह बेहद साधारण कपड़े थे। चेहरे पर दाढ़ी-मूंछे दिख रही थीं, गोंद जैसा पदार्थ सूख चुका था। देव अब पहचाना नहीं जा रहा था। देव ने पेटी से आईना निकालकर देखा। कुछ देर अपना चेहरा देखते रहने के बाद आईना एक तरफ रखते बबूसा से कहा।
“मेरे सिर के बालों के साथ ये बाल इस तरह चिपकाओ कि बाल लम्बे लगें।” कहने के साथ ही देव ने बालों के गुच्छे में से तीन-तीन इंच लम्बे बालों के गुच्छे काट दिए।
बबूसा ने अपना काम फुर्ती से बढ़िया ढंग से पूरा किया। जिस पदार्थ के साथ बालों को चिपकाया गया था, वो तभी उतरता था जब उसपे पानी लगे, नहाया जाए। जब धोमरा ने देव को देखा तो हैरान हो गया।
“आप तो पहचाने ही नहीं जा रहे राजा देव।” मोमाथ बोला।
देव ने दाढ़ी पर हाथ फेरा। सिर के बाल कुछ लम्बे लग रहे थे।
शरीर पर बेहद साधारण कपड़े थे। धोमरा अपलक-सा देव को देखता रहा। देव बिल्कुल बदल गया था। उसके बाद वो पहाड़ का लम्बा चक्कर काटकर उस रास्ते पर पहुंचा जो रास्ता तोलका के ठिकाने तक जाता था। उसी रास्ते पर वो आगे बढ़ गया। वो जानता था कि तोलका के पहरेदार उसे पहले ही देख लेंगे। ऐसा ही हुआ। करीब एक घंटे बाद जब वो पैदल ही आगे बढ़ा जा रहा था तो एक पहरेदार उसके सामने आ खड़ा हुआ। उसके हाथ में तलवार थी।
“कौन हो तुम?” पहरेदार ने सख्त स्वर में पूछा।
“मेरा नाम जकाथ है। मैं तोलका को ढूंढ़ रहा हूं, सुना है वो इन्हीं पहाड़ियों में कहीं रहता है।” देव बोला।
“क्यों ढूंढ़ रहे हो तोलका को?” वो बोला।
“क्यों बताऊं?”
“मैं तोलका का पहरेदार हूं। तुम्हें मेरी बात का जवाब देना होगा, वरना मार दिए जाओगे।”
“तुम तोलका के पहरेदार हो।” देव खुश हो गया-“इसका मतलब तोलका पास में ही है।”
“जवाब दो। तुम्हें तोलका से क्या काम है?”
“मैं तोलका के साथ शामिल होना चाहता हूं। मैं तोलका को सदूर का राजा बना देखना चाहता हूं।”
“क्यों?”
“मुझे राजा देव पसंद नहीं।”
“क्यों नहीं पसंद?”
“वो मुझे अच्छे नहीं लगते। तोलका मुझे अच्छा लगता है कि उसमें विद्रोह करने की ताकत है। मैं तोलका का साथ दूंगा और उसे सदूर का राजा बनाने में सहायता करूंगा।” देव प्रसन्न भाव में बोल रहा था।
“तुम करते क्या हो?”
“मैं किले पर काम किया करता था। बबूसा है न, जो कि राजा देव का खास सेवक है। वो मेरा भाई है। उसी ने मुझे काम दिलवाया था किले में। कुछ महीने मैंने किले पर काम किया। राजा देव को करीब से जानने का मौका मिला, परंतु वो मुझे अच्छे नहीं लगे। कहीं से भी सदूर के राजा बनने के काबिल नहीं लगे। तब मैंने सोचा कि तोलका को सदूर का राजा बनना
चाहिए। मैंने किले का काम छोड़ दिया और वहां से चला आया कई दिनों से तोलका से मिलने को भटकता रहा। फिर पता चला कि तोलका का ठिकाना इधर पहाड़ों में कहीं है तो कई दिनों से पहाड़ों में भटकते यहां पहुंच गया। बहुत भूख लगी है। कई दिन से कुछ भी खाया नहीं। तुम मुझे तोलका के पास ले चलो। मैं उसकी सेवा में रहना चाहता हूं।”
तभी पास में छिपा अन्य पहरेदार सामने आ गया।
“इसे ले जाओ।” वो बोला-“पहले इसे खाना खिलाओ, फिर तोलका से इसके बारे में बात करना।”
पहले वाला पहरेदार, देव को लेकर चल पड़ा। पहाड़ों के तंग और खराब रास्तों से होता हुआ वो कुछ देर बाद एक खुले मैदान जैसी जगह में पहुंचा। वहां कपड़े के तम्बू बहुत ज्यादा संख्या में लगे हुए थे। काफी लोग नजर आ रहे थे। एक तरफ बड़े पत्थरों पर बड़े-बड़े बर्तन रखे थे और उनके नीचे आग जल रही थी। देव समझ गया कि खाना बनाया जा रहा है। कुछ लोग पहाड़ी पत्थर के बर्तन में टाकोली (ऐसा फल जो सूख जाए तो उसे पीसकर आटा बनाकर, फिर उसकी रोटी बनाई जाती है) को पीस रहे थे। एक तरफ ढेर सारी तलवारें, भाले और खंजर रखे थे कि जरूरत पड़ जाने पर उन्हें वो फौरन हाथों में ले सकें। देव की नजरें हर तरफ जा रही थीं। वो तोलका के
ठिकानों को समझने की चेष्टा कर रहा था। पहरेदार ने उसे एक आदमी के हवाले करते, आदमी से कहा।
“इसे खाना खिलाओ। मैं अभी आता हूं।”
“ये कौन है?”
“हमारा साथी बनने आया है। तोलका ही इसका फैसला करेगा।” कहकर वो एक तम्बू की तरफ बढ़ गया। देव को खाना खिलाया गया। देव ने खाना खाया। यूं भी सुबह से उसने कुछ नहीं खाया था। खाने के दौरान वो यहां की गतिविधियां देखता रहा। लोगों की संख्या के बारे में उसने अनुमान लगाया कि वो सौ से कहीं ज्यादा हैं। वहां पर बीस-तीस औरतें और कुछ बच्चे भी थे। वे सब खुले आसमान के नीचे अपने कामों में व्यस्त थे। खाना खाने के बाद पानी पिया। उसे ऐसे पहरेदार भी दिखे, जो सामने के पहाड़ के ऊपर चढ़े रास्ते पर नजर रख रहे थे। एक तरफ बड़े-बड़े ढके बर्तन रखे थे और वो काफी ज्यादा बर्तन थे। उन्हीं में से पानी भरकर उसे दिया गया।
“पानी कहां से लाते हो?” देव ने पूछा।
“नीचे नदी बहती है।” खाना खिलाने वाले आदमी ने बताया-“सब लोग, सुबह एक-एक बर्तन वहां से भरकर लाते हैं। पानी की हमें कोई कमी नहीं है। यहां हम आराम से रह रहे हैं।”
तभी वो पहरेदार आकर बोला।
“खाना खा लिया तुमने?”
“हां। बहुत दिनों बाद पेट भर के खाया है।” देव ने चैन भरे स्वर में कहा।
“चलो, तोलका तुमसे बात करेगा।”
पहरेदार उसे एक ऐसे तम्बू में ले गया जो काफी बड़ा था और वहां दो पलंग लगे हुए थे। एक औरत भी वहां थी और दो बच्चे भी पास में खेल रहे थे। देव ने अनुमान लगा लिया। कि वो औरत तोलका की पत्नी होगी और बच्चे भी तोलका के होंगे। उसने सोचा कि सीधे-सीधे तोलका पर हमला न करके अच्छा ही किया वरना औरतें और बच्चे भी हमले में मारे जाते। हमले जैसे वक्त में ये नहीं देखा जाता कि सामने कौन है, तब तो सिपाहियों के सिर पर खून सवार होता है और तलवारें रफ्तार से घूमती रहती हैं।
तोलका चालीस बरस का सेहतमंद सांवले रंग का रौबीला व्यक्ति था।
शरीर भरा हुआ और फुर्तीला दिखता था। सामान्य कद था उनका। देव ने उसे पहली बार देखा था। तोलका कुर्सी पर बैठा था और पैनी नजरों से उसे देख रहा था। देव ने दोनों हाथ जोड़े और तोलका के सामने, जमीन पर आ बैठा।
“महान तोलका की जय हो।” देव ने आदर भरे स्वर में कहा।
“नाम क्या है तुम्हारा?”
“जकाथ।”
“मुझे बताया गया है कि तुम बबूसा के भाई हो और किले पर काम करते थे।”
“हां-तोलका।”
“तुम कोई चाल चलने तो मेरे पास नहीं आए। राजा देव ने तो तुम्हें मेरे पास नहीं भेजा?”
“ये तुम कैसी बातें कर रहे हो तोलका। मैं राजा देव को पसंद नहीं करता। वो घमंडी इंसान हैं। किले के भीतर वो हर कर्मचारी को डांटते रहते हैं। वो अच्छे राजा नहीं हैं। मैं चाहता हूं कि तुम राजा बनो।”
तोलका ने हौले-से सिर हिलाया।
“तो तुम मुझे राजा बनते देखना चाहते हो?” तोलका बोला।
“हां।”
“तुमने ठीक कहा कि राजा देव अच्छा राजा नहीं है। उसने मेरे भाई की जान ले ली थी।” तोलका ने कहा।
“आपके भाई की जान? वो कैसे?”
“मेरे भाई ने राजा बनने के लिए राजा देव को चुनौती दी थी। मैदान में मुकाबला हुआ और मेरे भाई की जान ले ली। राजा देव ने।” तोलका गुस्से में भर गया-“तभी मैंने सोच लिया था कि मैं सदूर का राजा बनूंगा। तभी मैंने विद्रोह किया और लोगों को अपने साथ मिलाने लगा। राजा देव मुझे जहर की तरह लगते हैं।”
“तुम्हारे पास तो राजा बनने का पूरा मौका है।”
“वो कैसे?”
“तुम राजा देव का मैदान में मुकाबला करो और उन्हें मारकर राजा बन जाओ।”
“ये नहीं हो सकता। राजा देव ताकतवर है। उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता। अपने भाई की तरह मैं भी अपनी जान नहीं गंवाना चाहता। परंतु मैं राजा जरूर बनूंगा सदूर का। तुम मेरी क्या सहायता कर सकते हो?”
“जो तुम कहो तोलका।”
“राजा देव को खत्म करने के लिए मैं किले पर हमला करने की योजना बना रहा हूं।” तोलका ने कहा।
“किले पर हमला?”
“हां। मैं राजा देव को खत्म कर देना चाहता हूं। मेरे साथ मेरे सैकड़ों साथी होंगे। हम किले में घुस जाएंगे और राजा देव को मार देंगे। किले पर अधिकार कर लेंगे। इस प्रकार मैं राजा बनने की घोषणा कर दूंगा और...”
“इस तरह तुम सफल नहीं हो सकते।” देव ने सोच भरे स्वर में कहा।
“क्यों?”
“सेनापति धोमरा तुम्हें राजा नहीं बनने देगा। तुम राजा देव को मार चुके तो, धोमरा सिपाहियों के साथ किले पर आ जाएगा। वो खुद राजा बनने की सोचेगा तुम्हें क्यों राजा बनने देगा।” देव ने कहा।
तोलका कुछ बेचैन दिखा।
“धोमरा के अधीन हजार सिपाही हैं। पर्याप्त हथियार हैं। इस तरह तो तुम हार जाओगे।”
“मैं हारना नहीं चाहता।”
“तुम्हारे पास कितने लोग हैं?”
“पांच हजार लोग हैं, परंतु उनमें से सात-आठ सौ ही हथियार चलाना जानते हैं।”
“तो बाकी लोगों को भी हथियार चलाना सिखाओ, नहीं तो उनका क्या फायदा?” देव ने कहा।
तोलका देव को देखने लगा।
“तो किले पर हमला न करूं?”
“कोई फायदा नहीं होगा। धोमरा खुद राजा बनना चाहेगा और तुम्हें और तुम्हारे साथियों को मार देगा।”
“तो हम धोमरा को भी मार देते हैं।” तोलका ने सोच भरे स्वर में कहा।
“क्या ये काम तुम कर पाओगे? राजा देव को मारना, धोमरा को खत्म करना। वो सेनापति है, हर वक्त सिपाही उसके पास रहते हैं। ये बड़ा काम है। तुम्हारे पास धोमरा के सिपाहियों से ज्यादा लोग होने चाहिए।”
तोलका कुर्सी से उठा और तम्बू में ही टहलने लगा। उसकी पत्नी खामोश बैठी उनकी बातें सुन रही थी। वो गम्भीर दिखी। देव ने उसकी पत्नी को देखा। वो तोलका से कह उठी।
“ये क्यों भूलते हो कि इस काम में तुम भी मारे जा सकते हो।”
तोलका ने ठिठककर अपनी पत्नी को देखा।
“तुम ये सब करना छोड़ क्यों नहीं देते। आराम से अपनी जिंदगी बिताओ। राजा बनना आसान नहीं है। राजा देव का मुकाबला कर पाना बहुत कठिन है। कितने साल हो गए और तुम कुछ नहीं कर सके।”
“तुम चुप रहो। मैं राजा जरूर बनूंगा।” तोलका ने होंठ भींचकर विश्वास भरे स्वर में कहा।
“मुझे तो लगता है कि तुम अपनी जान गंवा बैठोगे।” उसकी पत्नी नाराजगी से बोली।
तोलका वापस कुर्सी पर आ बैठा और देव से बोला।
“जकाथ। बबूसा तुम्हारा भाई है। तुम मेरी क्या सहायता कर सकते हो?”
“जो तुम कहो। मेरे से जो हो सकेगा मैं तुम्हारे लिए जरूर करूंगा।” देव ने सिर हिलाकर कहा।
“तुम मुझे राय दो।”
देव कुछ पल चुप रहकर बोला।
“राजा देव को किले में घुसकर मारना आसान नहीं होगा। उनकी जान तब लो जब वो किले से बाहर जाते हैं।”
“तब तो राजा देव के साथ पहरेदार होते हैं।”
“कभी-कभी जैसे वो अक्सर बबूसा के साथ बग्गी में अकेले बाहर जाते रहते हैं।”
“तुम सच कह रहे हो?” तोलका की आंखें चमक उठीं।
“मैं गलत क्यों कहूंगा। जब वो बबूसा के साथ बग्गी में निकलें तो उन्हें कहीं भी घेरकर खत्म कर दो। बहुत आसान होगा ये। ये बात कोई भी नहीं जानता कि राजा देव इस तरह अकेले भी किले से बाहर जाते हैं।”
“बबूसा, राजा देव के प्रति क्या विचार रखता है?” तोलका ने सोच भरे स्वर में पूछा।
“वो तो राजा देव के साथ वक्त बिता रहा है। किले के बाहर राजा देव का और रूप है। लोग उन्हें बहुत अच्छा समझते हैं, परंतु किले के कर्मचारियों के साथ उनका व्यवहार बुरा ही रहता है।” देव बोला।
“फिर तो बबूसा हमारी सहायता कर सकता है।' “
“कैसी सहायता?”
“वो हम तक खबर पहुंचा सकता है कि कब राजा देव उसके साथ अकेले बाहर निकलेंगे।” तोलका ने कहा।
“ये काम तो वो जरूर कर देगा। मेरा भाई है, मेरी बात जरूर मानेगा।”
“तो तुम जाकर बबूसा से बात करो कि वो मेरे साथ मिल जाए। राजा बनने के बाद मैं तुम्हें और बबूसा को बहुत ज्यादा धातु दूंगा।”
“सच तोलका?”
“हां।” तोलका मुस्कराया-“धातु के साथ महत्त्वपूर्ण ओहदा भी दूंगा।”
“तुम कितने अच्छे हो तोलका।”
“तुम जाकर बबूसा को संभालो जकाथ और मुझे खबर दो राजा देव के अकेले किले से बाहर निकलने की।”
“परंतु इसके लिए तो बेहतर होगा कि तुम अपने आदमी किले के पास ही कहीं रखो कि राजा देव बाहर निकलें तो उन्हें घेर कर खत्म कर दिया जाए।” देव ने सलाह दी।
“ऐसा बाद में करूंगा। पहले बबूसा से बात कर लो कि वो मेरा साथ देगा?”
“जरूर देगा। फिर भी मैं बबूसा से बात कर लूंगा।”
“बबूसा का साथ मिल जाए तो तब किले पर हमला करने की जरूरत नहीं रहेगी और...”
“धोमरा का क्या करोगे। वो आसानी से हाथ नहीं आएगा। जब तक वो है तब तक तो राजा बनना कठिन होगा।”
तोलका के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
उसी पल उसकी पत्नी कह उठी।
“इस रास्ते में बड़ी मुश्किलें है। कितना समझाया है तुम्हें कि ये काम नहीं हो सकेगा।”
“ये आपकी पत्नी है?” देव कह उठा।
“हां।”
“तो आपका हौसला बढ़ाने की अपेक्षा, आपकी हिम्मत कम क्यों कर रही है ऐसा कहकर।”
“मैं इसकी बातों की परवाह नहीं करता। इसे तो हर काम मुश्किल लगता है।” तोलका ने लापरवाही से कहा-“जब ये रानी बनेगी सदूर की तो तब इसे पता चलेगा कि मैंने कितना बड़ा काम कर दिया है।”
“धोमरा के बारे में क्या सोचा तोलका?” देव ने पुनः कहा।
“तुम ही बताओ कि धोमरा को कैसे घेरा जाए?” तोलका ने पूछा।
देव ने कुछ पल चुप रहकर कहा।
“ये बात मैं बबूसा से पूछंगा। वो बेहतर जानता होगा।”
“अगर बबूसा मेरा साथ देने को तैयार हो जाए तो मेरी राह बहुत आसान हो जाएगी।” तोलका बोला
“बबूसा तैयार क्यों नहीं होगा। मेरा भाई है।” देव ने छाती फुलाकर कहा-“इस वक्त मैं थका हुआ हूं, दिन भर आराम करूंगा और रात को खाना खाकर, बबूसा से मिलने जाऊंगा। तुम मुझे घोड़ा दे सकते हो। सफर लम्बा है। मुझे वापस भी आना होगा। पैदल जाऊंगा तो कई दिन का वक्त लग जाएगा।”
“घोड़ा दे दूंगा। तुम जल्दी से वापस आना और बताना कि बबूसा मेरा साथ देने को तैयार है या नहीं।”
दिन भर देव तोलका के ठिकाने पर घूमता रहा। सब कुछ देखता रहा। कुछ देर उसने एक तम्बू में आराम भी किया था। परंतु वो सोच रहा था कि तोलका और उसके साथियों को कैसे जीता जाए। उसे औरतों और बच्चों की चिंता थी कि इस लड़ाई में उन्हें नुकसान नहीं होना चाहिए। तोलका के साथी अपने काम पूरे कर रहे थे। उन्हें मालूम था कि उन्हें क्या काम करने हैं। यहां पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। देव ने पास जाकर, एक जगह इकट्ठे कर रखे हथियारों को देखा। ये ही सोचा कि अगर इनके हथियार तैयार नहीं होते तो, ये आसानी से काबू में आ जाते। वो कोई आसान रास्ता सोचता रहा कि खून-खराबा न हो और तोलका भी पकड़ में आ जाए। जब अंधेरा हुआ तो कई जगह रोशनी वाली मशालें जला दी गईं। उसके बड़े-बड़े चूल्हों में भी आग जल उठीं। आज दिन में आठ लोग तोलका से मिलने आए थे। देव को नहीं पता आने वालों ने तोलका से क्या बातें की। तभी एक आदमी ने कहा कि तोलका उसे बुला रहा है तो देव, तोलका के पास जा पहुंचा। तोलका के तम्बू में रोशनी वाली मशाल जल रही थी। तब उसकी पत्नी और बच्चे वहां नहीं थे। तोलका पलंग पर बैठे कारू का गिलास थामे हुए था, कारू की महक वहां फैली थी।
“बैठो जकाथ।” तोलका ने मुस्कराकर कर कहा।
देव नीचे बैठने लगा तो तोलका ने कहा।
“कुर्सी पर बैठो।”
देव कुर्सी पर बैठ गया। मन ही मन सोच रहा था कि अगर तोलका को पता चल जाए कि वो राजा देव है तो पलक झपकते ही उसे खत्म कर देगा। तब इसकी सारी रात जश्न में बीतेगी कि राजा देव को इसने खत्म कर दिया है। देव जानता था कि यहां आकर उसने बहुत बड़ा खतरा मोल लिया है। परंतु दाढ़ी रूपी गालों के बालों ने, उसके सिर के कुछ लम्बे बालों ने उसे पूरी तरह बदलकर रख दिया था कि कोई भी उसे पहचान नहीं सका दिन भर में। देव ने तोलका के उन खास आदमियों को पहचाना था, जिन्हें खत्म करना जरूरी था। वरना तोलका के बाद वो सिर उठा सकते थे। ऐसे लोगों की संख्या बीस से ऊपर थी।
“तो आज रात तुम बबूसा के पास जा रहे हो?” तोलका ने पूछा।
“हां। खाना खाकर मैं निकल जाऊंगा।”
“तुम्हारे लिए घोड़ा तैयार करवा दिया है। कल रात तक वापस लौट आओगे?”
“हां, कल रात तक जरूर वापस आ जाऊंगा। बबूसा से बात ही तो करनी है।”
“वो तैयार न हो तो उसे तैयार कर लेना, मेरा साथ देने को।”
“बबूसा तैयार हो जाएगा। मैं उससे धोमरा के बारे में पूछंगा कि उस पर कैसे काबू पाया जाए। धोमरा के पास सारे सिपाहियों की फौज रहती है। वो राजा देव से भी खतरनाक हो सकता है, वक्त आने पर।”
“तुम ठीक कहते हो। धोमरा के बारे में तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। धोमरा के बारे में बताकर तुमने अच्छा किया। मैंने तुम्हें अपने लोगों में शामिल कर लिया है। इसी तरह काम करते रहे तो मेरे खास बन जाओगे।”
“मैं तुम्हारा खास जरूर बनूंगा तोलका।” देव ने कहा-“जितने लोग तुम्हारे विद्रोह में शामिल हैं, उन्हें हथियार चलाना सिखाओ ताकि वक्त पर वो तुम्हारे काम आ सकें।
“मैं तुम्हारी ये सलाह जरूर मानूंगा।” तोलका ने मुस्कराकर कहा।
“जब तुम राजा बन जाओ तो धातु के साथ मुझे बहुत सारी जमीन भी दे देना। मैं खुश हो जाऊंगा।”
“तब तो तुम्हें दिल से लगाकर रखूंगा जकाथ।” तोलका हंस पड़ा।
रात खाना खाने के बाद देव ने घोड़ा लिया और तोलका के ठिकाने से चल पड़ा। कुल पच्चीस मिनट घोड़ा दौड़ाने के बाद वो पहाड़ों के उस हिस्से में जा पहुंचा जहां सिपाही डेरा डाले हुए थे। धोमरा और बबूसा बेसब्री से उसके आने की राह देख रहे थे। उसके पास आते ही धोमरा कह उठा।
“हम तो विचार कर रहे थे राजा देव कि अगर आप रात भर न लौटे तो सुबह हम हमला कर देंगे। हमें लगा कि तोलका ने आपको पहचान लिया और पकड़ लिया होगा।”
“सब ठीक है। हमें आज रात तोलका के ठिकाने पर हमला करना है।” देव ने कहा।
“आज रात?” धोमरा तुरंत सतर्क हो गया।
“लेकिन राजा देव आप वहां से घोड़ों पर निकल कैसे आए?” बबूसा ने पूछा।
देव ने सारी बात बताई। फिर कहा।
“मैं अभी फिर वापस जा रहा हूं। वापस लौटने का कोई बहाना लगा दूंगा। जबकि मेरा इरादा तोलका को तब तलवार की नोक पर रखने का है, जब तुम लोग हमला करो। वहां पर घेरा डालो। तोलका को मेरी तलवार की नोंक पर देखकर उसके साथी मुकाबला करने की चेष्टा नहीं करेंगे। मैं चाहता हूं कि मुकाबले की नौबत ही न आए, क्योंकि वहां काफी संख्या में औरत और बच्चे भी हैं। वो मारे जा सकते हैं।”
“आपकी योजना क्या है?”
देव ने अपनी योजना बताई।
धोमरा और बबूसा ने सब सुना।
“जहां तक हो सके, खून-खराबा नहीं करना है। वहां कई लोग ऐसे हैं जो तोलका को हमारे शिकंजे में देखेंगे तो विद्रोह का रास्ता छोड़ देंगे। तोलका ने लोगों को बहकाकर अपने साथ लगा रखा है। सामने वाले पहाड़ को पार करके हमारे सिपाही वहां नहीं पहुंचेंगे। पहाड़ सफेद रंग के हैं और रात को वहां से आने के बारे में उन्हें पहले ही पता चल सकता है धोमरा! आधे लोग यहां से घूमकर पहाड़ की बाईं तरफ से और आधे लोग दाईं तरफ से वहां पहुंचेंगे। मुख्य रास्ते पर पहरा है। वो रास्ता इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अगर कोई मुकाबले की पहल करे तो उसे फौरन खत्म कर दिया जाए। तोलका को हमारे काबू में देखकर वो लोग जरूर रुक जाएंगे। तुम लोग जब वहां पहुंचोगे तो मैं तोलका पर काबू पा लूंगा। इसी वक्त सिपाहियों की रवानगी शुरू कर दो।”
“अभी सिपाहियों को समझा कर भेजता हूं।” कहकर धोमरा चला गया।
“तुम पीछे ही रहना बबूसा। मैं नहीं चाहता कि तुम्हें कोई नुकसान हो।” देव ने कहा।
“महापंडित ने मुझे क्यों नहीं तलवारबाज बनाया?” बबूसा कह उठा।
“इसका जवाब तो महापंडित ही दे सकता है।” देव मुस्कराया और घोड़े पर सवार होकर वापस चल पड़ा।
देव वापस तोलका के ठिकाने पर जा पहुंचा। तोलका से मिला।
“तुम वापस क्यों आ गए?” तोलका ने हैरानी से कहा।
“मैंने सोचा दिन में सफर करना ठीक होगा। आज रात गहरी नींद लेना चाहता हूं।” देव ने सामान्य स्वर में कहा-“अगर तुम्हें मेरी बात पसंद नहीं आई तो मैं अभी चला जाता हूं।”
“कोई बात नहीं।” तोलका ने सिर हिलाया-“रात आराम करो। कल सुबह रवाना हो जाना।”
देव खुले में आ गया। कई लोग कपड़े के तम्बू में न सोकर, बाहर खुले में नींद ले रहे थे। रात के इस वक्त ठंडी हवा चल रही थी। हल्की ठंडक भी थी। कुछ जगह रोशनी वाली मशालें रोशन थीं। देव एक जगह बैठ गया और वक्त बीतने का इंतजार करने लगा। कोई शक न करे, इसलिए कुछ देर बाद लेट गया। वक्त सरकता रहा। रात बीतती रही। तारों को देखता देव रात कितनी बीती, का हिसाब लगा रहा था और सोच रहा था कि सिपाही कहां तक आ पहुंचे होंगे? फिर जब देव को एहसास हुआ कि सिपाही अब पहुंचने ही वाले हैं तो वो उठा और तोलका के तम्बू की तरफ बढ़ गया तोलका के तम्बू में अंधेरा छाया हुआ था। वहां दो पलंग थे। अंधेरा था। देव समझ नहीं पाया कि तोलका किस पलंग पर है, उसे पता था कि रोशनी वाली मशाल किधर है। उसने वो मशाल जलाकर रोशनी कर दी और ये पता था कि तोलका की तलवार कहां पर रखी है, देव ने वहां से तलवार उठा ली। तब तक रोशनी की वजह से तोलका की आंख खुल गई। वो उठ बैठा। देव को वहां देखकर, हाथ में तलवार देखकर उसकी आंखें सिकुड़ी।
“ये तुम क्या कर रहे हो जकाथ?”
तभी दूसरे पलंग पर बच्चों के साथ सोई उसकी पत्नी भी उठ बैठी।
देव तलवार थामे तोलका की तरफ बढ़ता बोला।
“तुम मुझे पहचान नहीं सके तोलका।”
“क्या मतलब?” तोलका सतर्क हो गया। वो पलंग से उठा कि पास पहुंचकर देव ने तलवार की नोंक उसकी छाती से लगा दी।
तोलका के होंठ भिंच गए। वो क्रोध से भर उठा।
“तुम्हारी ये हिम्मत-तुम।”
“मैं राजा देव हूं तोलका।” देव ने सख्त स्वर में कहा।
“क्या?” तोलका का मुंह खुला-का-खुला रह गया-“त-तुम राजा देव हो?”
“हां।” देव ने कठोर स्वर में कहा-“तुम्हारी हरकतों की वजह से मुझे तुम्हारी तलाश में निकलना पड़ा। तुमने पंद्रह लोगों की जान ले ली और अब तुम किले पर हमला करने की सोच रहे थे, मैं सही वक्त पर आया तुम्हारे पास।”
“तुम...तुम यहां ये बचकर नहीं जा सकते राजा देव। मैंने दाढ़ी के पीछे तुम्हारे चेहरे को अब पहचाना है। यहां आकर तुमने बहुत बड़ी हिम्मत दिखा दी। अब तुम...”
“यहां मेरे सिपाहियों का घेरा पड़ने जा रहा है।” देव ने कठोर स्वर में कहा-“वो संख्या में तुम लोगों से दुगने हैं। परंतु यहां औरतें और बच्चे भी हैं। मैं नहीं चाहता कि वो मरें। मेरी कोशिश ये ही होगी कि उन्हें बचाया जा सके। तुम्हारा परिवार भी है। बच्चे भी हैं। क्या तुम चाहते हो कि वो मारे जाएं।”
तोलका के चेहरे का रंग उड़ चुका था।
“तुम झूठ कह रहे हो। यहां तुम्हारे सिपाही नहीं हैं।”
“वो पहुंच रहे हैं। धोमरा उनके साथ है। उनके आने तक तुम मेरी तलवार पर रहोगे। अगर जरा भी चालाकी दिखाने की कोशिश की तो अपनी जान गंवा दोगे।” फिर देव ने कठोर स्वर में तोलका की पत्नी से कहा-“तुम मेरी बात सुनो। यहां से बाहर जाओ और सबसे कह दो कि राजा देव ने तोलका को अपनी तलवार पर रखा हुआ है। अगर किसी ने सिपाहियों का मुकाबला करने की चेष्टा की तो तोलका को मार दिया जाएगा।”
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