चूम लूँ होंठ तेरे

एक महीने से वीर और आदि की क्लास attendance ज़ीरो थी और कालेज present सौ प्रतिशत। जबकि नीलेश की कॉलेज और क्लास attendance दोनों ही लगभग पूरी थीं। आज भी नीलेश जब अपनी बॉटनी की क्लास अटेंड कर रहा था तब वीर और आदि, दोनों कॉरीडोर में खड़े मोबाइल पर कुछ देख रहे थे। तभी दोनों के पास दाऊद आया।

आगे बढ़ने से पहले दाऊद का परिचय कराना ज़रूरी है। दाऊद एक विचित्र प्रकार का प्राणी था, जिसका वास्तविक नाम हर्ष था। ‘दाऊद’ नाम की उपलब्धि इनको इनके साहसिक कार्यों तथा मज़बूत हौसलों के कारण मिली थी। दाऊद भी वीर और आदि की तरह ही बी.एस.सी. का छात्र था, लेकिन उसका Stream Non-Medical था। उसके क्लास present का रिकोर्ड तो इतना ख़राब था कि उसे आज तक यह भी नहीं पता था कि उसकी क्लास कहाँ लगती है। उसकी presence तो हमेशा Medical वाली क्लास के बाहर ही रहती थी। इसका कारण यह था कि वीर की क्लास में शिखा नाम की लड़की थी जो कि हर्ष को बेहद पसन्द थी। जब हर्ष पहली बार कालेज आया था, तभी उसने शिखा को देखा था। बस, तब से ही वह उसके एकतरफा इश्क़ में पड़ गया था। यही कारण था कि वह हमेशा Medical Stream की क्लास के आस-पास ही रहता था और उसके दोस्त भी Medical वाले ही बन गए थे।

शिखा से प्यार का इज़हार करने की हिम्मत हर्ष की डेढ़ साल से नहीं हुई थी और उसे भी यक़ीन था कि वो अपने प्यार का इज़हार नहीं कर पाएगा। लेकिन फिर भी वह अपने एकतरफा प्यार की क़ीमत ब़ख़ूबी जानता था। उसके कालेज आने का एकमात्र लक्ष्य यही था कि वह केवल शिखा को देख सके। उसने शिखा के नोटिस में आने के काफ़ी प्रयत्न किए, लेकिन डेढ़ साल के बाद भी नतीज़ा यह था कि शिखा हर्ष को लेशमात्र जानती थी।

सुबह कालेज के टाइम होने से पहले ही हर्ष शिखा के घर के आस-पास पहुँच जाया करता था। जब वह कालेज के लिए निकलती थी तो उसके पीछे-पीछे कालेज आता था। पूरे दिन उसे देखने भर के लिए कोशिश जारी रखता था। जब कालेज खत्म होता था तो शिखा के पीछे-पीछे जाकर उसे घर तक ड्रॉप करता था। यह सब कार्य उसके नित्य कार्य में शामिल थे।

शिखा एक बेहद ख़ूबसूरत लड़की थी। अब ख़ूबसूरती के दीवाने तो बहुत होते हैं। शिखा को पसन्द करने वालो की सूची में केवल हर्ष ही नहीं था बल्कि उसकी क्लास के कुछ लड़के और भी थे। उन लड़को को तो हर्ष ने आस-पास के कुछ लोकल बदमाशों को लाकर समझा दिया था, लेकिन हद तो तब हो गई जब उन्हीं लाए हुए बदमाशों में से एक बदमाश को शिखा पसन्द आ गई। अब उस गुंडें टाइप बदमाश को यह कहने के लिए कि शिखा केवल हर्ष की है, वह उससे बड़े गुंडों की शरण में पहुँच गया। इस तरह हर्ष की पहचान आस-पास के बदमाशों में हो गई और कुछ बदमाशों से दुश्मनी भी हो गई थी। हर्ष केवल शिखा के लिए अपनी हिम्मत से बड़ा काम कर रहा था। शिखा को लेकर न जाने कितनी ही बार उसकी बदमाशों से लडाई हुईं, लेकिन मजाल है कि उसने कभी किसी पर भी हाथ उठाया हो। हर बार हर्ष ही मार खाकर आता था। हर्ष ने हाथ उठाए केवल सामने वाले पक्ष से माफ़ी माँगने के लिए। वह उनसे वही कह देता था कि आज के बाद वह शिखा की तरफ़ देखेगा भी नहीं। लेकिन यहाँ बन्दे की हिम्मत की दाद देनी पडेगी कि इतनी बार पिटने तथा कुछ थर्ड क्लास गुंडों से बेइज़्ज़त होने के बाद भी हर्ष के दिल के अन्दर पडे एकतरफा इश्क़ के पत्थर को हिला तक न सके।

कोई उसकी कितनी भी धुलाई करे, कितना भी बेइज़्ज़त कर ले, वो स्वयं कितना भी झूठ बोल ले कि वह कभी भी अब शिखा की तरफ़ देखेगा भी नहीं, लेकिन उसने साबित किया कि शारिरिक तथा मानसिक दर्द से कहीं बढ़कर होता है दिल का दर्द। जो भी कोई उससे यह कहता था कि उसे शिखा की तरफ़ दोबारा देखना भी नहीं तो बन्दा किसी के सामने भी मार खाने के लिए फ़िर से तैयार हो जाता था। इसी प्रकार अपने एकतरफा इश्क़ को बचाने के लिए किसी के सामने भी खड़ा होने की काबिलियत के कारण ही उसका नाम दाऊद पडा। वह नाम हर्ष को भी इतना पसन्द आया कि उसने अपनी बाइक के Wind Screen पर भी ‘दाऊद’ नाम लिखवा लिया था।

कॉरीडोर में खडे वीर और आदि जब मोबाइल पर कुछ देख रहे थे तो उनके पास दाऊद आया और वीर से कहा कि भाई, माया से कोई लड़का नीचे क्लास के बाहर बात कर रहा है।

“कौन लड़का? कहाँ पर ?” वीर से पहले आदि ने कहा।

“आदि, जब मैं शिखा की एक झलक देखने के लिए उसकी क्लास के बाहर खड़ा नाकाम कोशिश कर रहा था तो वहीं मुझे माया दिखी जो किसी लड़के से बात कर रही थी।” दाऊद ने कहा।

“हाँ तो उसकी क्लास का होगा कोई बन्दा।” वीर ने कहा।

“चल न, देख के आते हैं। पता तो चले है कौन?” आदि ने कहा।

जब तीनों कॉरीडोर के दूसरी तरफ़ पहुंचे तो दूर से ही उनको माया और वो लड़का बातें करते हुए दिख गए।

“भैंचो, ये तो रवि है। मेरी ही क्लास का बन्दा है। एकदम Imposter टाइप का बन्दा है। सबके सामने साला अच्छा बनता है और पीछे से उनकी ही लंका लगाता है। लेकिन वीर यह माया से क्यूँ बात कर रहा है?” आदि ने कहा।

अब मुझे कैसे पता होगा? मैं तो यहीं तेरे साथ खड़ा हूँ। हो सकता है, कोई काम हो।” वीर ने कहा।

“भाई, इसे हर बन्दी से बिना काम ही कोई काम होता है। आज कालेज के बाहर लपेट लेते है इसको।” आदि ने कहा।

“छोड़ ना। ऐसा कुछ नहीं है।” वीर ने कहा।

रात को जब वीर की माया से बात हुई तब न तो माया ने वीर को बताया कि रवि उससे क्यूँ बात कर रहा था और न ही वीर ने माया से पूछना ज़रूरी समझा। वीर ने अगले दिन माया से मिलने के लिए कह दिया था। माया से मिले हुए काफ़ी दिन हो गए थे। ऐसा नहीं था कि वो बिल्कुल भी नहीं मिले थे। सिटी हार्ट रेस्त्रां में मिलना तथा कसाटा आईसक्रीम खाना तो बहुत बार हो चुका था, लेकिन वीर अब माया से किसी एकान्त जगह पर मिलना चाहता था ताकि वह उसे अपने करीब बैठाकर बात कर सके।

अगले दिन जब वीर और आदि नीलेश के साथ कालेज पहुँचे तो रवि माया के साथ कॉरीडोर में खड़ा था। वीर को यह बर्दाशत नहीं हुआ और उसने आदि से कहा कि यार, इस रवि को कुछ ज़्यादा ही काम हो रखा है माया से। लगता है, अब इसे समझाना पड़ेगा। जब रवि वहाँ से जाए तो उसे कालेज के बाहर ले आना। इतना कहकर वीर और नीलेश कालेज से बाहर चले गए। वीर ने अजय को फ़ोन कर कालेज बुला लिया था।

जब आदि रवि को कालेज के बाहर बुला कर लाया तब वीर, नीलेश और अजय बाहर ही खड़े उसका इन्तज़ार कर रहे थे।

“देख भाई, एक बात पूछता हूँ। साफ-साफ बता देना कि तू माया से क्यूँ बात कर रहा था?” वीर ने रवि के कॉलर को ठीक करते हुए कहा।

“तुम लोगों से मतलब? मैं किसी से भी बात करूँ। भारत एक आजाद देश है। यह हमें किसी से भी बात करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।” रवि ने जवाब दिया।

“ओ तेरी, अबे किस टाइप का बंदा है ये? वीर, ये ऐसे नही मानेगा। इसके दो-चार कंटाप रख देते हैं। साला, ये इन टाइप के लौंडों की नस्ल बहुत ख़राब होती है जो बकचोदी में भी ज्ञान पेलते है। जब तक इनके शरीर में दो-चार झटके न लगे तो इनका दिमाग़ ही नही चलता।” अजय ने कहा।

“मित्र, कैसी बात कर रहे हो मुझसे? एक तो मैं तुम लोगों को इतना जानता भी नहीं हूँ और दूसरा यह कि मैं उस टाइप का लौंडा, ओ सॉरी, व्यक्ति तो कतई नही हूँ जैसा कि आप मुझे बता रहे हो। आप लोगों को कोई ग़लतफ़हमी हुई है।” रवि ने वीर और अजय दोनों से मुख़ातिब होकर कहा।

“वीर, मैंने पहले ही कहा था न कि यह साला एकदम Imposter टाइप है। साला मुंह में राम, बगल में छुरी। यहाँ ऐसी ज्ञान की बातें कर रहा है, वहाँ हँसकर बातें कर रहा था और यहाँ से जाने के बाद तो अलग ही ढंग से बात करेगा। अबे, अगर दाढ़ी बढ़ाने से ही ज्ञान आता न तो बकरियों की आधी आबादी विद्वान होती, समझा।”आदि ने कहा।

“देख रवि, ऐसा है कि तू अभी कालेज में नया आया है, लेकिन माया मेरी गर्लफ्रेंड़ है। तो आज के बाद उसके आस-पास अगर नज़र भी आया ना तू, तो कसम से तुझे बहुत दिक्कत हो जाएगी। और दोबारा अगर मैंने ऐसे देखा तो मैं तुझे बाहर बुलाकर नहीं समझाऊँगा, वहीं क्लास में सबके सामने आकर तुझे ठीक से समझाऊँगा।” वीर ने रवि को चेतावनी दी।

“मैं तो केवल काम से उससे बात कर रहा था। उसके कुछ टॉपिक्स में प्रॉब्लम थी तो मैं वहीं समझा रहा था।” रवि ने जवाब दिया।

“हां-हां ठीक है। बस, आगे से ध्यान रखना। और अगर दिमाग़ में कुछ ऐसा-वैसा सोच रखा है तो फिर ठीक नहीं होगा। समझा, अब निकल।” वीर ने हाथ से जाने का इशारा करते हुए कहा।

“अबे जाने क्यूँ दिया? दो-चार झापड़ तो रख ही देने थे। ऐसे लोग काम के नाम पर काम-वासना फैलाते है।” अजय ने कहा।

“छोड़ ना, जाने दे। अगर आगे ऐसा कुछ होता है तो फिर देखते हैं। अब तुम लोग जाओ। मुझे और आदि को कुछ काम है।” वीर ने कहा।

अजय और नीलेश कालेज से जा चुके थे। वीर और आदि वहीं पर थे। उनके जाने के कुछ देर बाद वीर ने आदि से कहा कि कालेज ख़त्म होने के बाद माया को लेकर घर पर आ जाना। मैंने माया से कह दिया है कि आदि के साथ आ जाना।

“घर पर कोई नहीं है क्या?” आदि ने पूछा।

“नही, कोई नहीं है। सब बाहर गए हुए हैं तो सोचा कि माया से मिल लूँ।” वीर ने कहा।

“क्या बात है? अकेले में? हम्ममम...।”आदि ने चुटकी ली।

“अरे ऐसी कोई बात नहीं है जो तू सोच रहा है और ऐसा सोचना भी मत। बस, ले आना उसे।” वीर ने कहा।

“ठीक है। ले आऊँगा।”आदि ने जवाब दिया।

​ आदि माया को लेकर वीर के घर पहुँच चुका था। माया को छोड़कर आदि अपने घर निकल गया था। माया अन्दर आई और उसने वीर से पूछा कि यह किसका घर है? यहाँ क्यूँ मिलने के लिए बुलाया है?

“ये अजय का घर है। बहुत बार हम रेस्टोरेंट में मिल चुके हैं, लेकिन मैं आज यहाँ अकेले में तुमसे मिलना चाहता था।” वीर ने जवाब दिया।

वीर अपने घर के बारे में माया से झूठ नहीं बोलना चाहता था, लेकिन अनायास ही वीर के मुँह से झूठ निकल गया था। वह माया को सच बताना चाहता था, लेकिन उसने सोचा कि माया उसे झूठा समझेगी, इसलिए वीर ऩे माया को सच नहीं बताया।

“ओके... लेकिन मुझे यहाँ मिलना ठीक नहीं लग रहा है।” माया ने कहा।

“यहाँ कोई चिन्ता की बात नही है। तुम एकदम Comfortable होकर बैठो। अच्छा, एक बात बताओ कि वो रवि तुमसे रोज़ क्यूँ बात करता है?” वीर ने पूछा।

​ “क्यूँ...jealous फील कर रहे हो क्या?” माया ने कहा।

“हां, jealous फील कर रहा हूँ। बस, पता नहीं क्यूं जब भी कोई तुम्हारे करीब होता है तो मुझे क्या हो जाता है? मैं यह नहीं कहता कि हर कोई ग़लत सोच के साथ तुमसे बात करता है, लेकिन बस, मुझे बहुत बुरा लगता है।” वीर ने कहा।

वीर अब माया को कैसे समझाए कि कोई भी उसके करीब आता है तो भैंचो उसकी झांटें सुलग जाती हैं। उसे बहुत बुरा लगता है। वो बार-बार यही सोचता है कि माया को देखने का हक़ केवल उसका ही है।

“ऐसा क्यूँ ?” माया ने वीर से पूछा।

वीर माया के बहुत करीब आया और उसने कुछ देर तक माया को बड़े प्यार से निहारा। उसके बाद उसने माया का हाथ अपने हाथ में लिया और माया से कहा कि शायद मैं दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार करता हूँ तुमसे। मैं तुम्हारे करीब केवल ख़ुद को देख सकता हूँ, और किसी को भी नहीं। और वैसे भी इन रवि जैसे लड़को से मुझे कोई insecurity नहीं है क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम भी मुझसे बहुत प्यार करती हो, लेकिन फिर भी इस तरह के लड़को से तुम कम ही contact रखो तो अच्छा है। 

“हाँ, प्यार तो करती हूँ मैं तुमसे और वो भी बहुत ज़्यादा, लेकिन अब यह क्या बात हुई कि अगर कोई मुझसे आकर बात करे तो मैं उससे बात ही न करूँ। क्या तुम शक़ कर रहे हो मुझ पर?” माया ने पूछा।

“मैं यह नही कह रहा कि तुम बात न करो किसी से। बस, मैं तो तुम्हें केवल सचेत कर रहा हूँ। और वैसे भी बात शक़ की नहीं, हक़ की है।” वीर ने कहा।

“तो तुम मुझ पर अपना हक़ समझते हो?” माया ने कहा।

“हाँ, प्यार ही इतना करता हूँ तुमसे कि हक़ तो है ही हमारा एक-दूसरे पर। बोलो है या नहीं हक़?” वीर ने माया को अपनी तरफ़ खींचते हुए कहा।

कुछ देर तक दोनों एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे। दोनों की पलकों की लहरें अपनी-अपनी जगह उठने-गिरने लगीं। फिर माया ने अपना चेहरा वीर के सीने में छुपा लिया और कहा कि बिल्कुल हक़ है तुम्हारा। वीर ने माया के चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ा और उसके होंठों को चूम लिया। दोनों एक-दूसरे को किस कर रहे थे। माहौल पूरा रोमांटिक हो रखा था। जब वीर ने माया को पहली बार चूमा तो दोनों की आँखें सीपियों की तरह मूंद गई थी। वीर ने माया के होंठों को चूमने के बाद उसके ललाट को चूमा। वैसे भी जब प्रेमी अपनी प्रेमिका के ललाट को चूमता है तो प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर होता है।

जब वीर के फ़ोन पर अजय का कॉल आया तब फ़ोन की आवाज से दोनों का ध्यान किस से हटकर मोबाइल पर गया। वीर ने देखा कि अजय का कॉल आ रहा है तो उसने फ़ोन काट दिया और अपने अंतर्मन में अजय को दो-चार गालियाँ भी दी। वीर माया को दोबारा अपनी बाँहों में भरना चाह रहा था। जब वीर ने माया को अपने नज़दीक किया तो माया ने वीर को यह कहकर रोक दिया कि प्यार का मतलब ठहराव है। शान्त नदी की तरह ठहराव। प्यार तो पेड़ की छाया की तरह सुकून देने वाला होता है। उसे धूप की चिलचिलाहट नहीं बनने देना चाहिए। हम दोनों एक-दूसरे से इतना प्यार करते है कि हमें अपने प्यार में सुकून चाहिए न कि जल्दबाज़ी।

थोड़ी देर बाद माया वहाँ से चली गई। माया के जाने के बाद वीर ने अजय को फ़ोन किया और उसे मिलने के लिए घर पर बुलाया। कुछ देर बाद जब अजय वीर के घर पर आया तो वीर ने अजय का हाथ पकड़कर अपने दिल पर रखा, जो ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।

“अबे, क्या हुआ? ठीक तो है?” अजय ने अपना हाथ हटाकर कहा।

“अजय मेरे भाई, मै अभी माया से मिला था। अभी थोड़ी देर पहले ही गई है। तूने देखा न कि मेरा दिल कितने ज़ोर से धड़क कर अपनी खुशी व्यक्त कर रहा है? आज पता चला कि इंसान को जब प्यार होता है तो वह हर वक़्त प्यार के नशे में क्यूँ रहता है? पता है, जब माया मेरे बहुत करीब आई तो मैं अपना संतुलन खो बैठा और आगोश में आकर उसे किस कर दिया। तब से यह दिल बहुत ज़ोरो से धड़क रहा है। आज बहुत अच्छा महसूस हो रहा है।” वीर ने अपनी खुशी जाहिर की।

“जिओ मेरे लाल..आगे क्या हुआ?” अजय ने कौतुकता से पूछा।

“किसके आगे?” वीर ने अजय से पूछा।

“अबे, किस के बाद क्या हुआ?”

“किस के बाद कुछ नहीं हुआ। भाई, ये दिल इतनी ही खुशी बर्दाश्त कर सकता था। अगर आगे बढ़ते तो ये दिल साला सीना चीर के बाहर आ जाता। और वैसे भी ठरकी, सच्चा प्यार करने वाली का प्यार आसमान से टूटे तारे की तरह होता है। वह लूटने की चाहत रखने वाले को कभी नहीं मिलता। हमारा प्यार तो इतना पवित्र है कि जिसमें एक-दूसरे को पाना है, लूटना नहीं, समझा?” वीर ने जवाब दिया।

“साला, यहाँ अकेले में बुलाकर कौन-सी पवित्रता दिखा रहा था?” अजय ने तंज़ कसा।

“भाई, तू नहीं समझेगा। यह सब छोड़। चल चाय-सुट्टा पीकर आते है।” वीर ने घर का मेन गेट लॉक करते हुए कहा।

“ये आज तक समझ नहीं आया कि तेरे में सारी कमियाँ हैं। सिगरेट की, बीयर की, और भी बहुत है जो बता नही सकता। ये एक प्यार का fault कैसे रह गया तेरे अन्दर?” अजय ने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा।

वीर और अजय, दोनों उसी चाय की दुकान पर पहुँच चुके थे जहाँ उनके चाय और सुट्टे का खाता चलता था।