देवराज चौहान, सोहनलाल के साथ मुंबई-खंडाला रोड पर उस जगह पहुंचा, जहां नसीमा ने युवराज पाटिल का फार्म हाउस बताने की बात कही थी।

पाटिल के फार्म हाऊस को तलाश करने में उन्हें कोई खास दिक्कत नहीं आई। फार्म हाऊस की दस फीट ऊंची चारदीवारी और उस पर लगी पांच फीट ऊंची कांटेदार तारों की बाड़ ने, फार्म हाऊस की पहचान अच्छी तरह करवा दी थी। वहां, आसपास और भी छोटे-बड़े फार्म हाऊस थे।

पाटिल वाला फार्म हाऊस मुख्य सड़क से हटकर, काफी भीतर जाकर था।

मुख्य सड़क से खुद की बनाई आठ फीट चौड़ी सड़क भीतर दूर तक जा रही थी और करीब आधी किलोमीटर आगे जाकर उस सड़क पर लोहे का गेट लगा था। वहां छोटा-सा बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था कि ये सड़क प्राईवेट है। आगे जाना सख्त मना है। गेट पर पहरेदारी के तौर पर यहां व्यक्ति मौजूद थे। सड़क गेट पार जाती नजर आ रही थी। और आगे जाकर पाटिल के फार्म हाऊस की चारदीवारी शुरू होती थी। वहां कुछ-कुछ फासले पर फार्म हाऊस बने हुए थे। बीच की खाली जगह में खेत थे।

ऐसे फार्म हाऊसों के भीतर जो भी हो, बाहर किसी को खबर नहीं हो सकती थी।

देवराज चौहान और सोहनलाल ने कार को दूर छोड़कर पैदल ही, सावधानी से पाटिल के फार्म हाऊस का बाहरी चक्कर लगाया। इस तरह कि वो किसी की नजरों में ना आ सके। भीतर प्रवेश करने के लिए लोहे का भारी गेट था। बारह फीट ऊंचा। जिस पर लोहे की चादर थी कि बाहर से भीतर की कार्यवाईयों को देखा-सुना न जा सके। उस गेट के अलावा हर तरफ दीवार और दीवार पर तारें थीं। गेट के बाहर कुर्सियों पर बैठे दो व्यक्ति नजर आए जो कि यकीनन पाटिल के शूटर्स ही थे।

"पूरी किलेबंदी कर रखी है पाटिल ने।" सोहनलाल ने नजरें दौड़ाते हुए कहा।

"जरूरी है।" देवराज चौहान की निगाह भी इधर-उधर जा रही थी--- "पाटिल अंडरवर्ल्ड का बड़ा है। उसके दुश्मनों की गिनती नहीं होगी। अंडरवर्ल्ड के लोगों ने हम लोगों पर जो जुल्म किए हैं, वो भी उसके मरने की दुआएं मांगते होंगे। ऐसे में अपनी सुरक्षा के उपाय करना उसके लिए जरूरी है। वरना अगले ही मिनट कोई भी उसे खत्म कर सकता है।"

"ऐसे लोग जब जीते हैं तो शान से।" सोहनलाल बोला--- "और मरते बुरी मौत हैं।"

"ऐसा ही होता है। वैसे हर किसी को नहीं मालूम कि ये पाटिल का फार्म हाऊस है।"

"ये कैसे कह सकते हो?"

"क्योंकि जब राम दा फार्म हाऊस या उसके स्ट्रांग रूम के बारे में नहीं जानता तो दूसरे लोगों को भी ये जानकारी नहीं मिल सकती। वरना आप तक जाने कितनी बार फार्म हाऊस पर हमला हो चुका होता।"

"हां। ये बात तो है।"

दूर फार्म हाऊस की दीवार नजर आ रही थी। वो पेड़ की छाया में खड़े थे।

"जब तक फार्म हाऊस के भीतरी रास्तों के बारे में पूरी तरह ना मालूम हो। तब तक फार्म हाऊस में जाना खतरनाक है। पांच हजार गज में फैला है, फार्म हाऊस। चोरी-छिपे भीतर प्रवेश करने वाला इतनी बड़ी जगह में आसानी से भटक सकता है कि उस वक्त उसे किधर जाना है, क्या करना है।"

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।

"फिर तो हमें भी फार्म हाऊस के भीतरी रास्तों की जानकारी होनी चाहिए।" सोहनलाल कह उठा।

"हां।"

"कहां से लेंगे ये जानकारी हम?"

"नसीमा को क्यों भूल रहे हो। वो फार्म हाऊस में जा चुकी है।" देवराज चौहान ने कहा।

"ओह! नसीमा का तो ध्यान नहीं रहा।"

"तुम यहीं रुको। मैं अभी आया।" कहने के साथ ही देवराज चौहान सावधानी से दूर नजर आ रही, पाटिल के फार्म हाऊस की दीवार की तरफ बढ़ने लगा। फार्म हाऊस के बंगले की छत पर कभी-कभार कोई शूटर्स टहलता नजर आ जाता था। देवराज चौहान इस बात की पूरी कोशिश कर रहा था कि शूटर्स की निगाह उस पर न पड़ सके। पेड़ों और खेतों की ओट में देवराज चौहान आगे बढ़ता रहा।

करीब डेढ़-दो घंटे बाद देवराज चौहान वापस लौटा।

"बहुत देर लगा दी। क्या काम था?"

"एक बार फिर सारी चारदीवारी को देखने गया था।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा--- "आओ, चलें।"

■■■

देवराज चौहान और सोहनलाल जब बंगले पर लौटे तो शाम हो चुकी थी।

"पूरा दिन लगा दिया। जगमोहन उन्हें देखते ही बोला--- "सब ठीक रहा।"

देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया और कुर्सी पर जा बैठा।

सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली।

नसीमा सोफा चेयर पर बैठी खामोशी से देवराज चौहान को देख रही थी।

"राम दा से बात हुई?" जगमोहन ने पूछा।

"हां। एस्सल वर्ल्ड में मिला था वो।" देवराज चौहान ने कहा--- "सब ठीक रहा।"

"लेकिन तुम जो भी कर रहे हो। मुझे कुछ भी पता नहीं चल रहा। कुछ मालूम है तो कुछ नहीं।"

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा फिर गंभीर स्वर में कह उठा

"मैं जो कर रहा हूं वो मुझे पूरा कर लेने दो। उसके बाद सब बताऊंगा। सुन लेना। कोई कमी लगे तो बता देना। मैं जो करना चाहता हूं पहले उसे अपने मस्तिष्क में स्पष्ट कर लूं।"

जगमोहन गहरी सांस लेकर रह गया।

देवराज चौहान ने नसीमा को देखा।

"पाटिल का फार्म हाऊस देखा आज।" देवराज चौहान गंभीर था--- "वहां भीतर प्रवेश करना आसान नहीं है। जैसा कि तुमने बताया कि अंधेरा होने पर भूखे कुत्ते छोड़ दिए जाते हैं। दिन में दीवार और तारें पार करके भीतर जाने की चेष्टा की जाए तो, भीतर फैले शूटर्स देख लेंगे।"

"हां।" नसीमा ने व्याकुलता से सिर हिलाया--- "मैंने तो पहले ही कहा था कि ये असंभव काम है।"

"मेरी मानो तो दस अरब में तिजोरी का सौदा कर लो या तिजोरी को नाले में फेंक दो।" जगमोहन ने तीखे स्वर में कहा।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा फिर नसीमा से कह उठा।

"तुम जब पाटिल के फार्म हाऊस में गई थीं तो पूरा फार्म हाऊस देखा था?"

"हां।" नसीमा की निगाह देवराज चौहान पर जा टिकी--- "पाटिल ने खुद मुझे सारा बंगला और फार्म हाऊस दिखाया था। उस दिन मैं वास्तव में थक गई थी। एक रात वहां रही भी थी।"

"वहां के रास्ते याद हैं तुम्हें?"

नसीमा का सिर सहमति से हिला।

"कागज पर फार्म हाऊस के भीतरी रास्तों और बंगले के भीतर का नक्शा बना सकती हो?" देवराज चौहान ने पूछा।

"बना सकती हूं।" नसीमा के होंठों से निकला--- "लेकिन वहां जाना बहुत खतरनाक है।"

"जगमोहन!" देवराज चौहान का स्वर स्पष्ट हो गया--- "इसे कागज-पैन दो। ये फार्म हाऊस के भीतरी रास्तों और बंगले के भीतरी हिस्सों और रास्तों का नक्शा बताएगी।" कहकर देवराज चौहान ने नसीमा को देखा--- "पाटिल का बैडरूम किधर है। स्ट्रांग रूम किस तरफ है। यानि कि कोई भी चीज छूटनी नहीं चाहिए।"

"कुछ नहीं छूटेगा।" नसीमा के गम्भीर स्वर में विश्वास के भाव थे--- "चार-पांच घंटे लगेंगे। सब कागज पर उतार दूंगी।"

जगमोहन कागज-पैन लेने कमरे की तरफ गया तो सोहनलाल पीछे आया।

"दिन तो मजे से बीता होगा।" सोहनलाल ने होंठ सिकोड़कर कहा।

"क्यों?" जगमोहन ने सोहनलाल को देखा--- "आज कोई खास बात थी क्या?"

"ये कम खास बात है कि वो सारा दिन, खाली बंगले पर, तुम्हारे साथ रही और...।"

"और कुछ नहीं।" जगमोहन व्यंग्य भरे स्वर में कह उठा--- "अपनी खोपड़ी सुधारो। समझे।"

"मैंने तो सोचा था तुम कोई मसालेदार खबर सुनाओगे।" सोहनलाल ने गहरी सांस ली और बाहर निकल गया।

■■■

नसीमा के बनाए नक्शे पर, सुबह चार बजे तक देवराज चौहान नजरें दौड़ाता रहा। कागज पर नसीमा ने बहुत स्पष्ट नक्शा बनाया था। बंगले के भीतर कौन-सा रास्ता कहां जाना है। किसका कमरा किधर है। किस कमरे में क्या होता है। या फिर बंगले के बाहर फार्म हाऊस के पगडंडी जैसे रास्तों को स्पष्ट दर्शाया गया था। चार-चार फीट की पगडंडियां थीं। एक तरफ दीवार के साथ शिकारी कुत्तों के रहने का बड़ा-सा कमरा था।

नक्शे की हर बात समझने के बाद ही देवराज चौहान सोया।

सुबह दस बज रहे थे।

देवराज चौहान के हाथों में बैड-टी का प्याला था। सामने जगमोहन बैठा था।

"तुमने कुछ तो सोचा होगा कि क्या करना है, कैसे करना है?" जगमोहन कह उठा।

"बहुत कुछ सोच लिया है।" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"क्या?"

"आज बताऊंगा। राम दा के सामने।"

"राम दा के सामने?"

"हां। उससे आज बात करनी है, तुम भी पास रहोगे।" देवराज चौहान ने चाय का घूंट भरा।

"ठीक है। कब मिलोगे, राम दा से?"

"अभी उससे फोन पर बात करता हूं। उसके बाद ही आगे की बात तय होगी।"

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

"नसीमा कहां है?"

"हॉल में। सोहनलाल उसके पास है।" जगमोहन बोला।

देवराज चौहान चाय समाप्त करके उठा और जगमोहन के साथ ड्राइंग हॉल में पहुंच गया।

उसे देखते ही नसीमा ने पूछा।

"नक्शा समझ में आ गया था?"

"हां।"

"पूछने लायक कोई बात?"

"नक्शे से वास्ता रखती तो नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुमने अपनी बातों में इस बात का जिक्र नहीं किया कि फार्म हाऊस के बंगले पर पाटिल ने किसी औरत को रखा हुआ है?"

"किसी को तो क्या।" नसीमा बोली--- "फार्म हाऊस पर कोई भी औरत नहीं है।"

"कोई भी औरत नहीं है?" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े।

"नहीं।" नसीमा ने इंकार में सिर हिलाया--- "वहां न तो पाटिल ने कोई औरत रखी हुई है और न ही वहां वर्कर के तौर पर कोई औरत है। इस बारे में पाटिल का ख्याल है कि फार्म हाऊस पर औरतों की मौजूदगी, वहां की सुरक्षा-व्यवस्था को कमजोर कर देगी। शूटर्स औरतों की वजह से अपने फर्ज के प्रति लापरवाह हो सकते हैं।"

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।

"वहां क्या करने की सोच रहे हो?" नसीमा ने पूछा।

"आज मालूम हो जाएगा।" देवराज चौहान फोन की तरफ बढ़ गया।

सोहनलाल टांगे फैलाये सोफे पर बैठा, सिग्रेट के कश ले रहा था।

देवराज चौहान ने फोन पर राम दा से बात की।

"मुझे तुम्हारे ही फोन का इंतजार था। कब-कहां मिल रहे हो?" राम दा की आवाज कानों में पड़ी।

"खार के तीसरे रास्ते पर कब तक पहुंच जाओगे?" देवराज चौहान ने कहा।

"ज्यादा से ज्यादा पैंतालीस मिनट तक।"

"कल मेरे साथ जो था, उसके साथ जगमोहन भी होगा।" देवराज चौहान बोला।

"समझा।"

"तुम्हें मेरे पास ले आएंगे।"

"ठीक है।"

"लेकिन आज अकेले आना होगा।"

"अकेले ही आऊंगा। कल पहली मुलाकात थी, इसलिए साथ में बंदा लाया था।"

"मेरे साथी जिस तरह तुम्हें लाएं, वैसे ही तुम्हें आना है।"

"अच्छी बात है।"

"एक घंटे बाद खार के तीसरे रास्ते पर मिलना।" कहकर देवराज चौहान ने रिसीवर रखा। सोहनलाल और जगमोहन पर नजर मारकर बोला--- "खार के तीसरे रास्ते पर राम दा मिलेगा। उसे यहां लाना है। लेकिन आंखों पर पट्टी बांधकर। वो इस बंगले को न पहचान सके।"

■■■

जगमोहन और सोहनलाल, आंखों पर पट्टी बांधकर राम दा को बंगले पर लाए और भीतर पहुंचकर ही उसकी आंखों से पट्टी खोली। आंखों पर पट्टी बंधवाने के लिए एक-दो बार राम दा ने एतराज उठाया था। लेकिन जब उसने एतराज को बेकार पाया तो आंखों पर पट्टी बंधवा ली थी।

इस बीच देवराज चौहान नहा-धोकर तैयार हो चुका था।

राम दा की निगाह देवराज चौहान पर पड़ी तो नाराजगी भरे स्वर में कह उठा।

"मेरी आंखों पर पट्टी बांधने की क्या जरूरत थी?"

"बहुत जरूरत थी।" देवराज चौहान शांत भाव में मुस्कुराया--- "वक्त का कुछ पता नहीं चलता। आज हम साथ काम करने जा रहे हैं। कल को हो सकता है कि कहीं एक-दूसरे के खिलाफ न काम करना पड़े। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरा ठिकाना देखो। हम सिर्फ इसी काम के लिए साथ हैं।"

राम दा गहरी सांस लेकर रह गया। तभी उसकी निगाह नसीमा पर पड़ी।

"तुम नसीमा हो ना?" राम दा के होंठों से निकला।

"तुमने ही मुझे फोन पर खबर दी थी कि पाटिल के पास, पाटिल की स्मैक के दो बोरे---।"

"हां।" नसीमा की निगाह राम दा पर थी।

"फोन आया था पाटिल का। पूछ रहा था कि मुझे किसने खबर दी। तब भी मैं जानता था कि मुझे खबर देने वाली तुम ही हो। लेकिन मुझे क्या जरूरत पड़ी थी बताने की।" राम दा ने मुंह बिचकाकर कहा।

नसीमा कुछ नहीं बोली।

"मेरे साथ काम करना शुरू कर दो। पाटिल के बारे में तो मैंने पक्का सोच लिया है, उसकी जड़ें उखाड़ फेंकूंगा।"

"मैंने आगे क्या करना है, इस बारे में मैंने अभी कुछ नहीं सोचा।" नसीमा ने गंभीर स्वर में कहा।

"मेरे साथ काम करने की इच्छा हो तो फोन कर देना मुझे।" राम दा बोला--- "सुना है पाटिल तेरे को मारने जा रहा था।"

"ठीक सुना।"

"समझदारी दिखाई तूने, जो बच गई।" कहते हुए पाटिल की निगाह कुछ दूर पड़ी तिजोरी पर गई तो मुस्कुराकर देवराज चौहान को देखते हुए कह उठा--- "वो ही तिजोरी है। पाटिल वाली?"

"हां।"

"तो इसमें है पचास अरब का माल। मजा आ गया। तगड़ी चोट पड़ी पाटिल को। अब तो इससे भी बड़ी चोट पड़ेगी। तुमने आज आगे की बात करनी है।" राम दा ने देवराज चौहान से कहा।

"बैठो।"

उसके बाद सब सोफों पर जा बैठे।

माहौल में गंभीरता आ गई थी।

"अपने आदमी तैयार किए तुमने?" देवराज चौहान ने पूछा।

"तैयार ही तैयार। शेरों को शिकार करने के लिए मुंह धोने की जरूरत नहीं पड़ती।" राम दा गंभीर था।

"कितने आदमी?"

"इस काम के लिए पचास आदमी छांटे हैं। सब अच्छी तरह हथियार चला लेते हैं। पीठ दिखाकर नहीं भागेंगे। एक से एक बढ़कर है। मेरे आदमियों के बारे में निश्चिंत रहो।" विश्वास था राम दा के स्वर में।"

"हथियार क्या है?"

"सब के पास गनें होंगी। आधे से ज्यादा के पास रिवाल्वर भी होगी। बढ़िया होगा सब।"

"हथियार वहां शोर करेंगे। मैं चाहता हूं वहां कम से कम शोर हो।" देवराज चौहान ने कहा।

"तीस-पैंतीस आदमियों से निपटना है तो शोर होगा ही।"

"हथियारों के साथ साइलेंसरों का इस्तेमाल होना चाहिए।"

राम दा ने कुछ पल सोच भरी निगाहों से देवराज चौहान को देखा फिर सिर हिलाकर कह उठा।

"ठीक है। इतने ज्यादा साइलेंसरों का इंतजाम करने में कुछ वक्त लगेगा। मैं अभी फोन कर देता हूं। शाम तक तो इंतजाम पक्का हो जाएगा।" कहने के साथ ही राम दा ने जेब से मोबाइल फोन निकाला और उस पर किसी को साइलेंसरों का इंतजाम करने को कहा, उन हथियारों के लिए, जिन्हें इस्तेमाल करना था। फिर फोन बंद करके देवराज चौहान से बोला--- "वो जगह कहां है, जहां मेरे आदमियों ने एक्शन में आना है?"

"वक्त आने पर उसके बारे में भी जान जाओगे।" देवराज चौहान ने नसीमा का बनाया नक्शा जेब से निकाला और टेबल पर फैलाते हुए बोला--- "ये एक फार्म हाऊस का नक्शा है। इस वक्त पाटिल भी यहीं है और वो स्ट्रांग रूम भी फार्म हाउस में ही है। फार्म हाऊस के बंगले में और...।"

"फार्म हाऊस में स्ट्रांग रूम?" माथे पर बल डालकर राम दा ने देवराज चौहान को देखा--- "अजीब बात है। सुरक्षा के लिहाज से तो फार्म हाऊस सबसे कमजोर जगह है।"

"ये तुम कह सकते हो। क्योंकि स्ट्रांग रूम तक पहुंचने में कैसी परेशानियां हैं। उनके बारे में तुम्हें जानकारी नहीं।"

"जरा बताओ तो?"

"इस बारे में तुम्हें बताना, वक्त की बर्बादी होगी। तुमने हमारे साथ ही रहना है। तब जो भी होगा, तुम्हारे सामने होगा।" देवराज चौहान ने कहा--- "इस वक्त तुम्हें उस काम के बारे में जानना चाहिए, जो तुम्हारे हवाले हैं।"

"बोलो।"

"तुम्हारे आदमियों ने फार्म हाऊस पर कब्जा करना है। और इस काम में सबसे बड़ी परेशानी आएगी कि फार्म हाऊस का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है। पांच हजार गज में फैला है वो। वैसे में फार्म हाऊस के भीतरी रास्तों की जानकारी हो तो ये काम करने में आसानी हो जाएगी।" देवराज चौहान ने कहा।

राम दा ने सहमति से सिर हिलाया।

"हां। तब तो पता होगा कि निशाना किस तरफ लगाना है। काम बढ़िया और जल्दी हो जाएगा।"

"तो इसके लिए नक्शा समझो। फार्म हाऊस के रास्ते और वहां के बंगले का भूगोल सुन लो। ये सारी बातें तुम्हें अच्छी तरह समझकर अपने उन आदमियों को समझानी हैं, जिन्होंने उस वक्त वहां काम करना है।"

राम दा ने सिर हिलाया।

"समझाओ नक्शा।"

देवराज चौहान ने टेबल पर फैले छोटे से नक्शे को देखा।

सबकी निगाहें नक्शे पर जा टिकीं।

"ये देखो।" देवराज चौहान नसीमा के बनाए नक्शे पर उंगली रखता हुआ बोला--- "ये सारा फार्म हाऊस है। फार्म हाऊस के आसपास खेत हैं। और जरा-जरा की दूरी पर वहां अन्य फार्म हाऊस भी फैले हैं। इस तरफ मुख्य सड़क है वहां से, छोटी सड़क, भीतर की तरफ मुड़ती है और आगे जाकर, सड़क पर गेट लगा है। जहां पाटिल के दो शूटर्स बैठे हैं। वहां पर लोहे का फाटक वाला काफी बड़ा गेट लगा है। वहीं से चारदीवारी शुरू हो जाती है, जो कि दस फीट ऊंची और उस पर पांच कांटेदार तारें लगी हैं। खास स्थिति में उन तारों में दिन में करंट दौड़ाया जाता है। वरना शाम ढलने पर ही उन तारों में करंट चालू किया जाता है कि कोई अंधेरे का फायदा उठाकर भीतर न आ सके। भोर का उजाला होते ही, तारों में दौड़ता करंट बंद कर दिया जाता है।"

देवराज चौहान ठिठका। राम दा को देखा।

"समझ रहे हो?"

"बहुत अच्छी तरह।" राम दा मुस्कुराया--- "तुम बताते रहो।"

"अब मैं चारदीवारी के भीतर की स्थिति बताता हूं।" देवराज चौहान नक्शे पर उंगली फिराता पुनः कह उठा--- "शाम होते ही जब दीवार पर लगी कांटेदार तारों में करंट दौड़ाया जाता है तो उसके साथ-साथ ही भूखे शिकारी कुत्तों को वहां छोड़ दिया जाता है जिनकी संख्या दस के आसपास होती है। और दिन भर वहां पहरा देने वाले शूटर्स आराम करने चले जाते हैं और पांच-सात की संख्या में शूटर्स रात भर के पहरे के लिए वहां आ जाते हैं। उनकी संख्या तब ज्यादा भी हो सकती है। वो पेड़ों पर बैठकर भी पहरा देते हैं और टहलकर भी। रात के पहरे में भूखे-शिकारी कुत्ते, पहरे में उनकी सहायता करते हैं।"

"तुम कैसे कह सकते हो कि वो शिकारी कुत्ते शाम को भूखे होते हैं?" राम दा बोला।

"कुत्तों को दिन में सुबह एक बार खाने को दिया जाता है। जब भोर होती है तो एक तरफ बने अपने कमरे में पहुंच जाते हैं। जहां उनके खाने का सामान रख दिया जाता है। वो जितना खा सकते हैं, खाते हैं। उसके बाद दिन भर में खाने को कुछ भी नहीं दिया जाता, ताकि भूखा पेट होने की वजह से रात को सोएं नहीं और अगर कोई भीतर पहुंच जाए तो उसे चीर-फाड़ कर खत्म कर दें।"

देवराज चौहान के खामोश होते ही, राम दा ने सिर हिलाया।

"समझा।"

देवराज चौहान ने नक्शे पर उंगली रखकर कहा।

"फार्म हाऊस के मुख्य द्वार से हजार गज आगे बंगला बना है। बंगले के सामने खूबसूरत छोटा-सा पार्क है। गेट तक जाने के दो रास्ते हैं। पाटिल के शूटर्स इस तरह पहरा देते हैं कि हर तरफ का नजारा उन्हें नजर आता रहे। वो लापरवाह नहीं होते। बंगले के दाएं-बाएं भी शूटर्स मौजूद रहते हैं। बंगले में पीछे की तरफ, बंगले से तीन रास्ते दूर तक खुली जगह में जाते हैं। उस तरफ पेड़ ही पेड़ खड़े हैं। कहीं-कहीं सब्जियां भी उगा रखी हैं। चूंकि पीछे की तरफ ज्यादा खाली जगह है, इसलिए वहां ज्यादा शूटर्स होते हैं और आगे की अपेक्षा वहां ज्यादा सख्ती से नजर रखी जाती है। सावधानी के नाते कुछ शूटर्स पेड़ों पर बैठकर भी पहरा देते हैं। फार्म हाऊस की पहरेदारी उनका रोजमर्रा का नियम है। लेकिन वो ये सोच कर कभी लापरवाह नहीं होते कि वहां कोई नहीं आ सकता।"

राम दा के चेहरे पर गंभीरता के भाव नजर आ रहे थे।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाकर कश लिया फिर कह उठा।

"बंगले के भीतर सामने से प्रवेश किया जाए तो पहले एक कमरा है वहां दो शूटर्स मौजूद होते हैं। यानि कि उनकी निगाहों में आए बिना, कोई भीतर नहीं जा सकता। बंगले के पीछे की तरफ से भीतर जाने का सीधा रास्ता है। नीचे एक हॉल के अलावा छः कमरे हैं। सातवें कमरे के बंद दरवाजे के बाहर कुर्सियों पर दो शूटर्स हमेशा मौजूद रहते हैं।"

"वो क्या पाटिल का कमरा---।" राम दा ने कहना चाहा।

"नहीं।" देवराज चौहान ने टोका--- "वहां से स्ट्रांग रूम तक पहुंचने का रास्ता है। लेकिन वो दरवाजा या दीवारें स्टील की हैं तोड़ी नहीं जा सकतीं। बंगले के ऊपरी हिस्से में चौदह कमरे बने हुए हैं। वहां पर जरूरत के मुताबिक शूटर्स पहरा देते हैं। सीढ़ियों से जब हम पहली मंजिल पर पहुंचते हैं बाएं हाथ की तरफ छटा कमरा पाटिल का है और दाएं हाथ के पहले कमरे को कंट्रोल रूम कहा जाता है।"

राम दा ने कुछ कहना चाहा कि देवराज चौहान बोला।

"सुनते रहो। नक्शे पर ध्यान दो। नक्शे पर सारे कमरे तुम्हारे सामने हैं। भीतर के रास्तों को समझो और जो भी पूछना हो, वो बाद में पूछना। तुम्हें पूरा वक्त मिलेगा। तो मैं कंट्रोल रूम के बारे में बता रहा था। वहां से स्ट्रांग रूम के रास्तों पर नजर रखी जाती है उन रास्तों पर वीडियो कैमरे लगे हैं। किसी प्रकार का खतरा पाकर कंट्रोल रूम में अवश्य अलार्म बजने की भी व्यवस्था होगी कि, दूसरों को सतर्क किया जा सके। कंट्रोल रूम में एक या दो आदमी होते हैं। उसके पास से ही छत पर जाने के लिए सीढ़ियां हैं। छत पर चौबीसों घंटे दो-तीन शूटर्स मौजूद रहते हैं और आसपास निगाह रखते हैं। इन सब बातों के बीच मैं ये बात फिर कहना चाहूंगा कि पाटिल के शूटर्स फार्म हाउस पर बेहद सतर्क रहते हैं। वक्त-वक्त पर अपनी ड्यूटियां बदल कर पहरा देते हैं।"

देवराज चौहान के खामोश होते ही वहां पर चुप्पी छा गई।

राम दा की गंभीर निगाह टेबल पर पड़े नक्शे पर घूम रही थी।

सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाकर जगमोहन को देखा, जो कि व्याकुल नजर आ रहा था।

"अब तुमने जो भी पूछना हो, पूछ सकते हो।" देवराज चौहान की निगाह राम दा के चेहरे पर जाने पर जा टिकी।

राम दा ने नक्शे पर से नजरें हटाकर देवराज चौहान को देखा।

"अभी तो कुछ नहीं पूछना।"

"ठीक है।" देवराज चौहान ने सिर हिलाया--- "अब मैं बात आगे बढ़ाता हूं। तुमने कल कहा था कि मैं अपने ढंग से ये काम करूंगा। सब-कुछ तुम्हें बता दिया है कि मैं वहां पर क्या-क्या कैसे इंतजाम है। अब तुम मुझे अच्छी तरह सोच-समझ कर बताओ कि पाटिल के शूटर्स का किस तरह सामना किया जाएगा?"

राम दा की गंभीर निगाह पुनः नक्शे पर जा टिकी।

चुप्पी छा गई वहां।

कोई कुछ नहीं बोला।

पांच मिनट के बाद राम दा ने नक्शे पर से नजरें हटाकर, होंठ सिकोड़े, देवराज चौहान को देखा।

"पांच हजार गज जगह पर पाटिल के शूटर्स फैले हैं। राम दा ने गंभीर स्वर में कहा--- "वे छत पर भी हैं। पेड़ों पर भी हैं। फार्म हाऊस उनकी अपनी जगह है, वो किसी और जगह भी हो सकते हैं। यानि कि वहां पर उन्होंने पूरी तरह मोर्चा संभाला हुआ है। हर तरफ उनकी नजर है।"

"हां। और ये भी ध्यान रखना कि जब हमने वहां हमला बोलना है तो तब पाटिल ने भी वहीं होना है। जाहिर है कि ऐसे में वहां की सुरक्षा व्यवस्था और भी सख्त हो जाएगी।"

तभी नसीमा कह उठी।

"एक बात और बताना चाहती हूं।"

सबकी नजरें नसीमा की तरफ उठीं।

"कंट्रोल रूम से बंगले के बाहर के हिस्से पर नजर रखी जाती है। बंगले के आगे-पीछे, दाएं-बाएं हर तरफ एक-एक वीडियो कैमरा लगा है। उन कमरों का संबंध कंट्रोल रूम में मौजूद टी•वी• स्क्रीनों से है। बाहर क्या होता है, हो रहा है? भीतर में देखा जा सकता है।" नसीमा ने देवराज चौहान और राम दा पर नजर मारकर कहा।

"ऐसे में तो हालात और और भी खतरनाक हो जाते हैं।" देवराज चौहान ने राम दा को देखा--- "भीतर वाले फौरन जान जाएंगे कि बाहर बहुत-से लोगों ने हमला बोल दिया है। ऐसे में भीतर वाले सतर्क हो जाएंगे। खुद को सुरक्षित कर लेंगे और मुकाबले की पूरी तैयारी कर लेंगे। फोन से तो लोग बाहरी सहायता भी मंगा सकते हैं।"

राम दा बेचैन-सा नजर आने लगा।

"इस बात को भी मेरी कही बातों में मिला लो और ठंडे दिमाग से सोचो कि कैसे फार्म हाऊस के हालातों पर काबू पाया जा सकता है। मैं जानना चाहता हूं कि तुम ये काम कैसे करोगे?" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा।

राम दा की निगाहें पुनः टेबल पर खुले नक्शे पर जा टिकीं।

"पांच हजार गज जगह में बिखरे हथियारबंद लोगों से निपटना है।" राम दा धीमें से व्याकुल स्वर में कह उठा--- "उनमें से वो छत पर भी हैं। बंगले के भीतर भी हैं। भीतर कमरे से बाहर की हरकतों को भी देखा जा सकता है। एक ही बार में ये सब संभाल पाना आसान नहीं। कहीं भी चूक हो सकती है।"

"चूक होने का मतलब है, सारा प्लान फेल।" देवराज चौहान बोला--- "जो कि नहीं होना चाहिए।"

"मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि कैसे काम किया जाए?"

"राम दा!" देवराज चौहान ने कश लिया--- "कमांड ना हो तो बढ़िया से बढ़िया फौज भी बेकार हो जाती है। फौज से काम लेना आना चाहिए।"

"आता है काम लेना। फौज को संभालना ही मेरा काम है।" राम दा कह उठा--- "लेकिन इस मामले में मैं अटक रहा हूं कि अपने आदमियों से यहां पर कैसे काम लूं कि---।" कहते-कहते राम दा ठिठका। गहरी सांस ली फिर कह उठा--- "मैं शायद इस मामले में अटैक की योजना नहीं बना पाऊंगा देवराज चौहान। ये काम मैं तुम पर छोड़ता हूं तुम जो करोगे। जैसे कहोगे--- मेरे आदमी, वैसे ही करेंगे।"

राम दा की निगाहें, देवराज चौहान के चेहरे पर जा टिकीं।

देवराज चौहान नक्शे को देखने लगा।

जगमोहन, सोहनलाल, नसीमा कभी देवराज चौहान को देखते तो कभी राम दा को। तीनों ही गंभीर थे। अलबत्ता जगमोहन कभी-कभी बेचैन हो उठता था। वो ये काम करने को सहमत नहीं था। लेकिन उसकी कोई सुन नहीं रहा था। देवराज चौहान इस काम को करने का पक्का फैसला करके, कदम आगे बढ़ा चुका था।

कुछ पलों की खामोशी के बाद देवराज चौहान गंभीर स्वर में कह उठा।

"राम दा! पाटिल के फार्म हाऊस पर करीब तीस से चालीस शूटर्स के होने का अनुमान है। पाटिल अब फार्म हाउस पर है तो उसके साथ भी कुछ गनमैन गए होंगे।" देवराज चौहान ने नसीमा पर निगाह मारी।

नसीमा फौरन उसकी नजरों का मतलब समझकर कह उठी।

"बारह आदमी, नम्बरी निशानेबाज, पाटिल के साथ रहते हैं, जब वो कहीं जाता है।"

"बारह आदमी।" देवराज चौहान कह उठा--- "तो फिर हमें ये सोच कर चलना चाहिए कि फार्म हाउस पर पाटिल की मौजूदगी की वजह से पैंतालीस के करीब हथियारबंद लोग वहां हो सकते हैं। यानि कि पैंतालीस का मुकाबला करने के लिए, उन पर हमला करने के लिए पचास आदमी कम हैं राम दा।"

"आदमियों की कोई कमी नहीं।" राम दा ने कहा--  "आसानी से इंतजाम कर लूंगा मैं।"

"ठीक है। अब मेरी बात ध्यान से सुनो कि फार्म हाउस पर कैसे हमला करना है।" देवराज चौहान कह उठा। उसकी उंगली पुनः नक्शे पर फिरने लगी--- "चूंकि पीछे जगह ज्यादा है। यहां पर पाटिल के शूटर्स ज्यादा फैले होते हैं। ऐसे में तुम्हारे पन्द्रह आदमी हथियारों के साथ पीछे की चारदीवारी से भीतर आएंगे।"

"लेकिन ये काम होगा कब?" दिन में--- रात में और फिर पन्द्रह फीट ऊंचाई को कैसे पार किया जाएगा?" राम दा ने कहा--- "ये काम तब फौरन होना चाहिए। एक के बाद एक मिनट भर में ही तब पन्द्रह के पन्द्रह आदमी भीतर होने चाहिए कि भीतर वालों को सतर्क होने का मौका नहीं मिले।"

"जब मैं अपनी बात खत्म कर लूं। तब बताना कुछ बाकी रह जाए तो ये सब सवाल करना। अब मैं जो कह रहा हूं वो समझो और जो न समझ में आए, वो  पूछो।" देवराज चौहान ने कहा।

राम दा कुछ नहीं बोला

"तुम्हारे पन्द्रह आदमी फार्म हाउस के पीछे वाली दीवार से भीतर जाएंगे। दस दाएं से। पन्द्रह आदमी बाईं तरफ से। ये सब लोग एक ही वक्त में भीतर जाएंगे, ताकि भीतर वालों को एक साथ मिलकर मुकाबला करने का मौका न मिले और वो बौखला से जाएं। ठीक इसी वक्त तीन आदमी फार्म हाउस के सामने के गेट से यूं ही फायरिंग शुरू कर देंगे, ताकि सामने की तरफ वाले शूटर्स, सामने ही उलझ जाएं और उन्हें बंगले के पीछे मौजूद शूटर्स की सहायता करने का मौका ना मिले। तब तक हर तरफ फायरिंग शुरू हो चुकी होगी। बाईं तरफ से जो पन्द्रह आदमी दीवार फलांग कर भीतर जाएंगे, उनमें से पांच की ड्यूटी तुमने---।" कहते हुए देवराज चौहान नक्शे पर बने एक चकोर खाने पर उंगली रखता हुआ बोला--- "इस कमरे में मौजूद दस शिकारी कुत्तों को खत्म करने पर लगा देनी है कि कोई शूटर्स, कुत्तों के कमरे का दरवाजा ना खोल दे। अगर वो शिकारी कुत्ते कमरे से बाहर आ गए तो हमला नाकाम हो सकता है।"

राम दा ने सिर हिलाया।

"समझा। इस बात का मैं खास ध्यान रखूंगा।"

"दस आदमी दाईं तरफ दीवार के पास खड़े, फायरिंग की आवाज सुनने का इंतजार कर रहे होंगे। जब फायरिंग शुरू होगी तो तब वो दीवार फलांग कर भीतर आएंगे। उन्हें इस लड़ाई में हिस्सा नहीं लेना है। उन्हें वहां चल रही गोलियों से बचते हुए सीधा बंगले के भीतर जाना है। ऐसे में हाल में सोच कर चलते हैं कि उन दस में से सात बंगले के भीतर पहुंच जाएंगे। तीन को गोलियां लग जाएंगी।"

राम दा ने होंठ सिकोड़कर सिर हिलाया।

"इस काम में तुम्हारी आदमियों की जानें जाएंगी।" देवराज चौहान गंभीर था।

"कोई बात नहीं। मेरे आदमियों की जानें जाती रहती हैं।" राम दा मुस्कुराया--- "वो लोग जीने के लिए नहीं मेहनत करते। पैसे के लिए मेहनत करते हैं और मैं उन्हें पैसे की कमी नहीं रखता।"

"वो तुम जानो।" देवराज चौहान ने अपनी निगाहें नक्शे पर लगा दीं--- "तो मैं कह रहा था कि दस में से कम से कम सात आदमी बंगले के भीतर पहुंच जाएंगे। बंगले के भीतर का नक्शा उन्हें समझा देना।"

"पीछे की तरफ से उन्हें बंगले में प्रवेश करना है?"

"हां। बंगले के सामने की तरफ से आसानी से भीतर नहीं प्रवेश किया जा सकता।" देवराज चौहान ने कहा--- "ऐसा किया गया तो वक्त और आदमियों की बर्बादी होगी।"

राम दा ने कुछ नहीं कहा।

"बंगले में प्रवेश करके तुम्हारे आदमी, जो भी नजर आएगा। उसे शूट करते चले जाएंगे। उनकी गनों के मुंह बंद नहीं होने चाहिए। उनका मकसद पहली मंजिल पर पहुंचना है। ध्यान रखना बाईं तरफ छटा कमरा पाटिल का है और दाईं तरफ पहला कमरा कंट्रोल रूम है। समझा देना उन्हें।"

राम दा ने गंभीरता से, समझने वाले भाव में सिर हिलाया।

"अगर पाटिल को शूट कर दिया गया तो समझो, आधी से ज्यादा जीत उसी समय ही दर्ज हो गई।"

"हां।"

देवराज चौहान ने पुनः कहना शुरू किया।

"जब तीनों तरफ से तुम्हारे आदमी भीतर जाएंगे। उसके ठीक दस मिनट बाद तीनों दीवारों की तरफ से पांच-पांच आदमी और भीतर जाएंगे। ये दोबारा जाने वाले आदमी, पहले भीतर गए आदमियों की सहायता के लिए होंगे। जो मर गए होंगे, ये उनकी जगह भरेंगे और दूसरा फायदा ये होगा कि नए आए को देखकर पाटिल के शूटर्स में घबराहट अवश्य फैलेगी कि इनके अलावा बाहर और भी आदमी हो सकते हैं। हमला बहुत ज्यादा आदमियों के साथ किया गया है। ऐसे में अवश्य ही उनकी हिम्मत कुछ कम होगी कि अभी दीवार पार करके और भी भीतर आ जाएंगे और वे कब तक मुकाबला करेंगे। इस दौरान अगर बाहर का मामला काबू में होता नजर आया तो तुम्हारे कुछ आदमी बंगले के भीतर, भीतर वालों की सहायता के लिए पहुंच जाएंगे। वहां की सारी स्थिति पर हर हाल में काबू पाना है। भीतर जाने वालों को ये भी बता देना कि दो शूटर्स छत पर रहते हैं। उन्हें जल्दी से जल्दी खत्म करना है। वरना वे ऊपर रहकर, नीचे वालों को आसानी से निशाना बनाते रहेंगे। मात्र वो दो शूटर्स हमें तगड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं।"

राम दा ने खामोशी से सिर हिला दिया।

"यानि कि इस हिसाब से सत्तर आदमी तुम्हें हर हाल में चाहिए।" देवराज चौहान ने कहा।

"कोई दिक्कत नहीं।"

"सब के हथियारों में साइलेंसर लगा होना चाहिए। तब सिर्फ पाटिल के शूटर्स के फायरों की आवाजें ही गूंजेगी। साइलेंसर लगा होने की वजह से शोर होने से बहुत बचत होगी।"

"फिक्र मत करो। मेरे आदमियों के हथियारों पर साइलेंसर लगे होंगे।"

"मैंने जो बताया है। उन बातों में से कोई बात तुम्हें समझ ना आई हो तो पूछ लो।" देवराज चौहान ने कहा।

"सब समझ गया हूं। मेरे पास कुछ भी नहीं है, पूछने को।"

"तो अब मैं आगे बढ़ता हूं।" देवराज चौहान, राम दा को देखता हुआ कह उठा--- "खास बात ये है कि ये काम कब शुरु करना होगा। रात को या दिन में? तो मेरे हिसाब से इस काम के लिए सबसे सुरक्षित वक्त है सुबह का। जब दिन का उजाला फैलता है। कुत्ते अपने कमरे में चले जाते हैं और खाने में व्यस्त होते हैं। उस वक्त उनके सामने एक ही काम होता है कि भूखा पेट भरना है, तब रात भर पहरा देने वाले शूटर्स थके होंगे और उनकी जगह लेने वाले शूटर्स, ठीक तरह से अपनी पोजीशन भी नहीं ले सके होंगे। कुछ बंगले के भीतर तब नींद में भी होंगे। यानि कि उस वक्त फार्म हाउस में सुस्ती का माहौल होगा। दिमागी तौर पर तगड़े टकराव के लिए कोई भी तैयार नहीं होगा। उस वक्त उन्हें दो-चार मिनट तो समझने में ही लग जाएंगे कि क्या हो रहा है।"

"रही बात ये कि दस फीट ऊंची दीवार पर पांच फीट की कंटीली तारें लगी हैं। यानि कि पन्द्रह फीट की ऊंचाई को आनन-फानन कैसे पार करना है तो इसके लिए पन्द्रह-पन्द्रह फ़ीट की तीन सीढ़ियां साथ ले जानी हैं। जो कि दीवार के साथ लगा दी जाएंगी। उनके सहारे आसानी से ऊंचाई को फलांग कर नीचे छलांग लगाई जा सकती है। सीढ़ियां कहां-कहां लगानी हैं, ये बात मैं वहीं बता दूंगा।" देवराज चौहान ने राम दा को देखा।

"पन्द्रह फीट ऊंची तीन सीढ़ियों का इंतजाम हो जाएगा। साथ भी ले चलेंगे।" राम दा ने सोच भरे स्वर में कहा--- "लेकिन तारों में तो करंट दौड़ रहा होगा।"

"दिन का उजाला फैलते ही करंट बंद कर दिया जाता है।" देवराज चौहान ने कहा--- "अगर उस वक्त करंट चालू होगा तो, तारों में करंट बंद होने का हमें इंतजार करना होगा।"

राम दा ने सिर हिलाया।

"आधी रात के बाद, बिना किसी तरह के शोर-शराबे के हम वहां पहुंचेंगे। गाड़ियों को दूर छोड़ दिया जाएगा। इतना रास्ता हमें पैदल तय करना होगा कि फार्म हाउस में मौजूद लोगों को हवा भी ना लग सके कि कोई वाहन-कार उस तरफ आई है।"

"काम करना कब है?" राम दा ने पूछा।

"ये तुम पर निर्भर करता है कि अपने आदमियों को कब तक सब-कुछ समझा देते हो। साइलेंसर लगे हथियारों का इंतजाम कर लेते हो। सीढ़ियों का इंतजाम कर लेते हो।"

"आज का पूरा दिन पड़ा है।" राम दा ने कहा--- "ये सारे काम तो शाम तक पूरे हो जाएंगे।"

"ऐसा है तो पाटिल के फार्म हाउस पर हम आने वाली रात को, यानि कि कल सुबह योजना के मुताबिक हमला कर देंगे।" देवराज चौहान का स्वर सपाट हो गया।

"मुझे मंजूर है।" राम दा की आवाज में दृढ़ता आ गई।

"तुमने अपने किसी आदमी को नहीं बताना कि ये हमला पाटिल के खिलाफ---।"

"मुझे याद है। ये बात तुम मुझे पहले ही समझा चुके हो।" राम दा मुस्कुराया--- "किसी को भी ये बात मालूम नहीं होगी। सिर्फ उन दस को मौके पर बताया जाएगा, जिन्होंने बंगले की भीतर प्रवेश करना है और पाटिल को शूट करना है।"

"गुड।"

कुछ पल खामोशी रही।

"कुछ और पूछना चाहते हो तो पूछ सकते हो।" देवराज चौहान ने राम दा से कहा।

"मैं सिर्फ ये कहना चाहता हूं कि जब हमला किया जाएगा तो हम बाहर रहेंगे। मरने-मारने के लिए फौज को आगे किया जाता है। हम क्यों आगे जाकर मरें।" राम दा बोला।

"राम दा!" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "यहां तक का काम तुम्हारे हवाले है। जो भी मैंने बताया है, वो तुमने निपटाना है। मेरा काम इसके बाद शुरू होगा। तुम्हारे आदमी हैं। तुम उनके साथ रहो या आगे-पीछे रहो। इन बातों से मेरा कोई वास्ता नहीं।"

"बढ़िया।" राम दा उठ खड़ा हुआ--- "मैं चलता हूं। तैयारी पूरी करवाता हूं।"

"इस बात का ध्यान रखना राम दा दोबारा याद दिला रहा हूं अपने आदमियों को भी समझा देना। ये डकैती नहीं है कि हमारे पास काम करने का भरपूर वक्त हो। ये 'डाका' है।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "वहां हमला बोलकर जल्दी से हमें भीतर प्रवेश करना है और फौरन ही वहां से हमें निकलने की तैयारी भी करनी है। जबकि भीतर कुछ रुकावटें हैं, जिन्हें दूर करने में शायद वक्त लग जाए। फायरिंग की आवाज ज्यादा गूंजी तो आसपास के फार्म हाउस वाले, पुलिस को भी फोन कर सकते हैं। ऐसे में अपने आदमियों को ये समझा देना कि गोलाबारी का खेल कुछ मिनटों से ज्यादा लंबा ना चले।"

"समझा दूंगा।"

देवरान चौहान ने जगमोहन और सोहनलाल को देखा।

"इसे यहां से ले जाओ। रास्ते में जहां कहें वहीं उतार देना।"

चेहरे पर गंभीरता समेटे जगमोहन आगे बढ़ा और राम दा की आंखों पर पट्टी बांध दी फिर सोहनलाल को साथ लिए, राम दा को बाहर लेता चला गया।

"इस तरह तुम सफल हो जाओगे?" उनके जाते ही नसीमा ने पूछा।

"शायद, हां।' देवराज चौहान सपाट स्वर में बोला।

"लेकिन स्ट्रांग रूम के आगे, पांच फीट की जगह में बारूद बिछा है, वहां।"

"उसका भी इंतजाम हो जाएगा।"

नसीमा, देवराज चौहान को चिंता भरी निगाहों से देखती रही। बोली कुछ नहीं।

■■■

जगमोहन और सोहनलाल राम दा को छोड़कर वापस लौटे।

"ये खतरनाक काम है।" जगमोहन ने वहां पहुंचते ही कहा--- "राम दा के आदमी शायद सब-कुछ न संभाल पाएं।"

"राम दा जैसे गैंगस्टर के पास एक से बढ़कर एक आदमी होंगे।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "और वो अच्छी तरह समझ रहा है कि कितने बड़े मामले को उसने संभालना है। ऐसे में वो बढ़िया आदमी इकट्ठे करेगा।"

"मुझे शक है कि राम दा इस काम में सफल हो सकेगा।"

"मेरे ख्याल में राम दा सफल रहेगा।" सोहनलाल ने गंभीर स्वर में कहा।

जगमोहन बेचैनी से होंठ भींचकर रह गया।

"अगर सब ठीक रहा तो मेरे साथ सोहनलाल फार्म हाउस में जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"मतलब कि मैं नहीं।" जगमोहन के होंठों से निकला।

"फार्म हाउस के भीतर तुम्हारा कोई काम नहीं होगा तब।" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"मैं साथ ही जाऊंगा। बाहर रहने की मेरी कोई जरूरत नहीं। भीतर कहीं भी मेरी जरूरत पड़ सकती है।" जगमोहन ने एक-एक शब्द चबाकर कहा--- "खतरे में मैं तुम्हें अकेले नहीं जाने दूंगा।"

"मैंने उस वक्त भीतर जाना है, जब राम दा के आदमियों ने वहां के हालातों पर काबू पा लेना है। तब...।"

"मैं कुछ नहीं जानता। मैं तुम्हारे साथ ही फार्म हाउस में जाऊंगा।" जगमोहन कह उठा।

"इधर आओ।"

देवराज चौहान, जगमोहन के साथ, नसीमा और सोहनलाल से, दूर पहुंचकर धीमे स्वर में बोला।

"बाहर तुम्हारे पास बहुत ही जरूरी काम होगा जगमोहन।"

"क्या?"

"नसीमा।"

जगमोहन आंखें सिकोड़ कर देवराज चौहान को देखने लगा।

"पाटिल के फार्म हाउस पर हमला करने का ये बहुत ही नाजुक वक्त है। हमें ये सोचकर चलना चाहिए कि नसीमा की सोचें कभी भी बदल सकती हैं और वो फिर से पाटिल की सगी बनने के लिए, उसे इस हमले के बारे में खबर दे सकती है। तब पाटिल ऐसा इंतजाम कर लेगा कि हम अपनी कोशिश में सफल ही न हो सकें।"

जगमोहन, देखता रहा देवराज चौहान को।

"ऐसे में तुम्हें हर वक्त नसीमा के साथ रहना है। उसके पास मोबाइल फोन है। उस फोन का वो गलत इस्तेमाल न कर सके। इन सब बातों का ध्यान रखना है तुम्हें।" देवराज चौहान ने कहा।

"अच्छी बात है। मैं नसीमा के साथ फार्म हाउस के बाहर ही रहूंगा ल।" जगमोहन बोला--- "वहां तक साथ चलने में तो तुम्हें एतराज नहीं होना चाहिए।"

"कोई एतराज नहीं। उस वक्त तुम फार्म हाउस के बाहर मौजूद रह सकते हो।"

■■■

शाम को देवराज चौहान ने राम दा से फोन पर बात की।

"तैयारी हो गई?" देवराज चौहान ने पूछा।

"लगभग हो गई। जो कमी है वो एक-दो घंटे में पूरी हो जाएगी।" राम दा का स्वर कानों में पड़ा।

"तो रात को हम अपना काम कर सकते हैं।"

"पक्का।"

"तो आधी रात के बाद, अपने आदमियों के साथ कहां मिलना है, उस जगह के बारे में सुन लो।"

"बोलो।"

देवराज चौहान ने जगह बताई।

"कितने बजे?" राम दा ने पूछा।

"ठीक तीन बजे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने रिसीवर रख दिया।

सोहनलाल, नसीमा और जगमोहन सोफों पर पसरे पड़े थे।

"सोहनलाल!" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम अपनी तैयारी कर लो। अगर फार्म हाऊस के भीतर पहुंच गए तो अपना काम जल्दी पूरा करने की कोशिश करनी है।"

"कोशिश करूंगा कि काम जल्दी हो।" सोहनलाल ने गहरी सांस ली--- "लेकिन ये बात मैं पहले ही कह चुका हूं कि कम्बीनेशन नम्बरों की पहचान करने में कुछ वक्त लग सकता है।"

तभी जगमोहन कह उठा।

"हो सकता है कम्बीनेशन नम्बरों की पहचान न हो सके। दरवाजे न खुलें।"

"ये भी हो सकता है।" सोहनलाल बोला--- "लेकिन मैं कोशिश करूंगा कि ऐसा न हो।"

"मतलब कि अगर तुम दरवाजे खोलने में सफल न हो सके तो सारी मेहनत बेकार?"

जवाब में सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा।

"बेहतर होगा कि किसी और तालों के एक्सपर्ट को साथ ले लिया जाए।" नसीमा ने जगमोहन को देखा।

"कोई फायदा नहीं।" जगमोहन ने कहा--- "सोहनलाल ही बहुत है। काबिल आदमी है।"

सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली।

"देवराज चौहान तुम्हें कोने में ले जाकर क्या कह रहा था?" पूछते हुए नसीमा एकाएक मुस्कुरा पड़ी थी।

जगमोहन ने नसीमा को देखा फिर देवराज चौहान को।

देवराज चौहान के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभरी।

"इस सवाल का मतलब?" जगमोहन की निगाह नसीमा पर जा टिकी।

"यूं ही।" नसीमा अभी भी मुस्कुरा रही थी।

"मैं समझ रहा हूं तुम्हारे सवाल का मतलब।" जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर कहा।

"सतर्क रहना अच्छी आदत है। इतनी जल्दी किसी पर विश्वास नहीं किया जा सकता। मैं तुम लोगों के लिए बिल्कुल नई हूं। ऐसे में मुझ पर नजर रखना बुरी बात नहीं है।" नसीमा ने मुस्कुरा कर कहा।

"तुम्हारा ख्याल सुनकर मुझे अच्छा लगा।" जगमोहन ने कहा--- "ऐसे में तुम इस बात का अवश्य ध्यान रखोगी कि सपने में भी हमारे खिलाफ कोई गलत काम करने की कोशिश नहीं करनी है।"

"मैं दिल से तुम लोगों के साथ हूं। मेरी वजह से तुम लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी।"

■■■

तीन बजे, आधी रात के बाद के, सन्नाटे का दौर चल रहा था।

खंडाला रोड के शुरू होते ही देवराज चौहान ने कार की रफ्तार धीमी कर दी। कार में जगमोहन, सोहनलाल और नसीमा भी मौजूद थी। सड़क पर अंधेरा छाया हुआ था। कुछ आगे जाने पर, सड़क के किनारे तीन बंद वैनें और दो कारें खड़ी नजर आईं। देवराज चौहान ने उनके आगे कार रोकी और छोटा-सा हॉर्न बजाया।

"कोई जरूरी तो नहीं कि वैनें और कारें राम दा की ही हों।" नसीमा कह उठी।

"तीनों वैनों की छत पर तीन सीढ़ियां बांध रखी हैं। और किसी भी सीढ़ी की लंबाई पन्द्रह फीट से कम नहीं है।"

"ओह!"

तभी कार में से राम दा निकलकर, उनके पास पहुंचा।

"मैं पन्द्रह मिनट पहले ही यहां पहुंच गया था।" राम दा बोला।

"तैयारी पूरी है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां।"

"बंदे?"

"वैनों और कारों में घुसे हुए हैं। सबके पास साइलेंसर लगी गनें हैं।" राम दा ने कहा।

"मैं कार आगे बढ़ा रहा हूं।" देवराज चौहान ने कहा--- "मेरे पीछे आते रहो।"

"बढ़िया।" कहने के साथ राम दा पलटा और कारों की तरफ बढ़ गया।

कुछ पलों बाद देवराज चौहान ने कार आगे बढ़ाई।

पीछे की दो कारें और वैनें भी पीछे चल पड़ीं। हैडलाइटें रोशन हो गईं।

"देवराज चौहान!" नसीमा गंभीर स्वर में कह उठी--- "मेरे ख्याल में तुम पाटिल को कम समझ रहे हो।"

"मैं सामने वाले को कभी भी कम नहीं समझता।"

"पाटिल को बहुत अच्छी तरह जानती हूं मैं। वो पहले ही कई कदम आगे सोच लेता है।"

"तभी तो आज अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा बना हुआ है।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

"ये कहने का मेरा मतलब है कि इस बात को मद्देनजर रखकर चलो की पाटिल ये सोच सकता है कि तुम रिमोट लेने के लिए फार्म हाउस पर आने की कोशिश कर सकते हो।"

"मैं हर तरफ सोच कर चल रहा हूं।" देवराज चौहान ने कार ड्राइव करते हुए कहा--- "इस काम में आधा चांस हारने का है और आधा चांस जीतने का। लेकिन मैं कोशिश अवश्य करना चाहता हूं कि सफल हो सकूं। कदम आगे न बढ़ाया जाए तो नतीजा सामने कैसे आएगा। मैं कोशिश करने में विश्वास रखता हूं।"

नसीमा फिर कुछ नहीं बोली।

कार में खामोशी छाई रही।

पीछे कारें और वैनें नजर आ रही थीं।

पच्चीस मिनट बाद देवराज चौहान ने सड़क के किनारे कार रोक दी। इस वक्त बहुत कम वाहन वहां से निकल रहे थे। अधिक संख्या ट्रकों की ही थी।

पीछे वाली कारें और वैनें भी रुक गईं।

राम दा कार से निकलकर, पास आया।

"यहां, कहां?" उसने पूछा।

"यहां पर हमें गाड़ियां छोड़नी हैं।" देवराज चौहान ने कहा--- "गाड़ियों की हैडलाइटें या इंजन की आवाजें उन लोगों को सतर्क कर सकती हैं। हथियार और सीढ़ियां थामें, यहां से पैदल आगे चलेंगे। कुछ लंबे रास्ते का इस्तेमाल करेंगे, ताकि कोई भी, हम लोगों को न देख सके।"

"बढ़िया। कितनी देर चलना होगा?"

"करीब, बीस-तीस मिनट।"

"और ये गाड़ियां?"

"सड़क से नीचे उतारनी हैं। मेरे पीछे-पीछे अपनी गाड़ियां ले आओ। यहां से सड़क छोड़ने पर आगे पेड़ों के झुंड हैं। वहां गाड़ियां खड़ी की जा सकती हैं। अपने आदमियों को अच्छी तरह समझा देना कि चलते वक्त न तो कोई बात करेगा और न ही कोई सिग्रेट सुलगाएगा।"

"बढ़िया।" राम दा कहने के साथ ही पलट गया।

देवराज चौहान ने हैडलाइट ऑफ की और कार आगे बढ़ाते हुए सड़क के किनारे ढलान पर से नीचे उतार ली। आगे का कच्चा रास्ता उबड़-खाबड़ था। मिनट भर बाद, चंद्रमा की रोशनी में पेड़ों के साए नजर आने लगे। उन्हीं पेड़ों के बीच देवराज चौहान ने कार रोकी और इंजन बंद करते हुए बोला।

"निकलो।"

कुछ ही देर में दोनों कारें और तीनों वैनें भी वहां आकर रुक गईं।

तीनों वैनों से, कारों से राम दा के आदमी निकलने लगे। अंधेरे में भी उनके हाथों में दबे हथियार स्पष्ट झलक रहे थे। देखते ही देखते छोटी-सी फौज वहां नजर आने लगी। राम दा धीमी आवाज में उन्हें निर्देश देने लगा कि उन्हें कैसे आगे बढ़ना है। सिग्रेट नहीं सुलगानी। बात नहीं करनी। इसके बाद उसने वैनों की छतों पर बांध रखी सीढ़ियां उतारने को कहा।

■■■

देवराज चौहान, जगमोहन, सोहनलाल और नसीम आगे-आगे चल रहे थे। उनके पीछे राम दा और फिर राम दा के करीब सत्तर आदमी। आगे बढ़ने के दौरान गहरी खामोशी रही। जूतों की मध्यम आवाजें ही वहां गूंज रही थीं।

रास्ता ठीक नहीं था। बहुत संभल कर आगे बढ़ना पड़ रहा था।

अधिकतर रास्ता खेतों में से होकर था। कहीं खेत सूखे थे। कहीं पानी से भरे कीचड़ वाले। चंद फार्म हाउसों को भी उन्होंने खामोशी से पार किया।

करीब पैंतीस मिनट बाद उनका आगे बढ़ना रुका।

सुबह चार के आसपास का वक्त हो रहा था।

राम दा पास पहुंचते हुए कह उठा।

"अब?"

"वो देखो।" देवराज चौहान ने एक तरफ इशारा करते हुए कहा--- "ऊंची-सी दीवार के पार, भीतर की तरफ लाइट जलती नजर आ रही है।"

"ओह हां।" राम दा के होंठों से निकला--- "वो है हमारी मंजिल?"

"हां।" देवराज चौहान ने धीमे स्वर में कहा--- "पाटिल भी इस वक्त वहां मौजूद है।"

"फिर तो मजा आ जाएगा, होली खेलने का।" राम दा की आवाज में खतरनाक भाव थे।

"सुबह के चार बज चुके हैं।" देवराज चौहान ने कहा--- "हमारे पास सिर्फ एक घंटा है, सारा इंतजाम करने का। यहां से हमें दीवार तक पहुंचना है परंतु फार्म हाऊस के बंगले की छत पर मौजूद शूटर्स अंधेरे में भी हम लोगों की मौजूदगी का एहसास पा सकते हैं। ऐसे में यहां से हम इकट्ठे नहीं। बिखरकर, थोड़े-थोड़े आदमी आगे बढ़ेंगे।"

"बढ़िया। मैं अपने आदमियों को समझा देता हूं।" राम दा की आवाज में मौजूद खतरनाक भावों में कोई कमी नहीं आई थी--- "चुन-चुन कर लाया हूं सालों को। खूब खेलेंगे, पाटिल के फार्म हाऊस पर, खून की होली।"

आधा घंटा लगा, सबको फार्म हाऊस की दीवार तक पहुंचने में। वहां तक पहुंचने में सबने सावधानी इस्तेमाल की थी। सब ठीक रहा।

हर कोई चुप्पी और दबे पांवों का इस्तेमाल कर रहा था।

गहरी खामोशी थी वहां।

देवराज चौहान, राम दा को साथ लेकर, कुछ आगे दीवार के पास रुका।

"यहां पर दीवार के साथ एक सीढ़ी लिटाकर रख दो।" देवराज चौहान ने कहा--- "सीढ़ी को तभी दीवार के साथ खड़ा किया जाए, जब भीतर जाना हो। और यहां पर पन्द्रह आदमी खड़े करो। दस पहले जाएंगे और बाकी के पांच, उनके जाने के ठीक दस मिनट बाद।"

"सब-कुछ समझा चुका हूं।" बहुत ही धीमे स्वर थे उनके।

"जो मैं कह रहा हूं, वो काम हाथों-हाथ करते जाओ।"

राम दा वहां से हटकर कुछ कदमों की दूरी पर मौजूद अपने आदमियों के पास पहुंचा। दो मिनट में ही वापस आया और बोला।

"कर दिया इंतजाम।"

"बाकी आदमियों को साथ लेकर आओ। दीवार के साथ-साथ ही आगे बढ़ना। चलने के लिए रास्ता साफ है।" देवराज चौहान ने कहा और अंधेरे में सावधानी से आगे बढ़ने लगा।

जगमोहन, सोहनलाल, नसीमा साथ थे।

राम दा अपने आदमियों के साथ पीछे था। कोई आवाज नहीं। आहट नहीं।

देवराज चौहान पिछवाड़े की दीवार के खास हिस्से के पास पहुंचकर ठिठका।

"यहां से सीढ़ी लगाई जाएगी।"

दो आदमियों ने थाम रखी सीढ़ी को बे-आवाज वहीं लिटा दिया।

"यहां पर बीस आदमी रहेंगे। पन्द्रह पहले भीतर जाएंगे। बाकी के, ठीक दस मिनट बाद।"

राम दा ने उन आदमियों में से बीस को वहां छोड़ते हुए कहा।

"आपस में तय कर लेना कि कौन पांच लोग, दस मिनट बाद भीतर जाएंगे।"

वो वहां से पुनः आगे बढ़े।

दीवार के साथ-साथ चक्कर काटकर मुड़े और दीवार के आधे से ज्यादा हिस्से को पार करके देवराज चौहान ठिठका तो वे सब भी रुक गए।

"तीसरी सीढ़ी यहां लगेगी। यहां से भीतर जाया जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा।

फौरन सीढ़ी वहां रख दी गई।

"राम दा!"

"हां।"

"यहां तीस आदमी चाहिए।"

"गिनकर लाया हूं। बंदे कम नहीं पड़ेंगे।"

"यहां से पन्द्रह आदमी पहले भीतर जाएंगे। जिनमें से पांच पहले कुत्तों को खत्म करेंगे। कुत्तों वाला कमरा इस दीवार के पार, भीतर की तरफ दीवार के साथ बना हुआ है।" देवराज चौहान ने कहा--- "जब फायरिंग को शुरू हुए पांच मिनट बीत जाएं तो दस आदमी और भीतर कूदेंगे। जिनका काम बंगले के भीतर पहुंचकर, वहां के हालातों को अपने कंट्रोल में लेना होगा।"

"ठीक है।"

"राम दा, इन दस को अकेले में समझा देना कि बंगले के भीतर क्या करना है।"

"अभी समझा दूंगा।"

"और बाकी के जो पांच रह जाएंगे, वो पहले वाले पन्द्रह आदमियों के भीतर जाने के ठीक दस मिनट बाद भीतर जाएंगे। जैसे मैंने कहा है, फौरन वैसा करो राम दा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान, तीनों के साथ वहां से हट गया।

राम दा ने दो मिनट में ही अपने आदमियों को समझा कर वहां सैट किया। फिर दस को अलग ले जाकर बताया कि ये फार्म हाऊस युवराज पाटिल का है। पाटिल भी भीतर है। उन्हें सीधा बंगले में पहुंचकर, पाटिल सहित सब को खत्म कर देना है। और पाटिल वाली बात किसी को ना बताएं।"

चौथे मिनट ही राम दा देवराज चौहान के पास था।

"सारा मामला फिट कर दिया।" राम दा ने कहा।

"तुम्हारे पैंसठ आदमी अपनी जगहों पर टिक चुके हैं?" देवराज चौहान ने कहा।

"पांच बाकी हैं अभी।"

"पांच को लेकर आओ।"

उसके बाद वे फिर आगे बढ़े।

फार्म हाउस के लोहे के फाटक वाले गेट से काफी पहले रुक गए।

"उधर।" देवराज चौहान ने हाथ से इशारा किया--- "फार्म हाऊस का फाटक जैसा ऊंचा-बड़ा गेट है।"

"कुछ-कुछ नजर आ रहा है।" एक ने कहा।

"तुममें से तीन यहीं पर छिपकर रहेंगे और गेट की तरफ नजर रखेंगे। उसके बाहर दो आदमी हथियारों के साथ मौजूद हैं। जब फायरिंग शुरू होने की आवाजें सुनो तो उन दोनों को फौरन निशाना बनाना है। और भीतर के लिए जहां से भी जगह मिले, गन की नाल रखकर गोलियां चलानी शुरु कर देनी हैं। तुम लोगों को यहां इस तरह गोलियां चलानी हैं कि बंगले के सामने की तरफ जो भी शूटर्स हों, वो तुम लोगों के साथ व्यस्त हो जाएं। पीछे वालों की सहायता करने ना जा सकें। तुम सब दीवार की तरफ सड़क जाओ। मैं बाकी बचे दो को इनकी जगह दिखाकर आ रहा हूं।"

कहने के साथ ही देवराज चौहान बाकी बचे दो आदमियों के साथ आगे बढ़ गया।

गेट पीछे रह गया

कुछ आगे जाकर छोटी-सी सड़क पर लगा गेट नजर आया। उसके पास ही एक आदमी कुर्सी पर बैठा नजर आ रहा था। दूसरा टहल रहा था।

"उन दोनों को देख रहे हो?" देवराज चौहान ने कहा।

"हां।"

"वो दोनों यहां पर पहरा दे रहे हैं कि कोई गलती से इस तरफ आ जाए तो उसे वहीं वापस भेज दिया जाए। जब वो फायरिंग की आवाज सुनेंगे तो अपने साथियों की सहायता के लिए गेट की तरफ भागेंगे।"

"हां।"

"मतलब कि ये दोनों, तुम्हारे तीन साथियों को पीछे से आकर मार देंगे। जो गेट से भीतर फायरिंग कर रहे होंगे।"

"समझ गया।"

"गोलियां चलने की आवाज सुनते ही, तुम दोनों ने फौरन इन्हें शूट करना है। लापरवाही मत कर जाना।" देवराज चौहान ने कहा--- "इन्हें शूट करने के बाद, अपने साथियों की सहायता के लिए गेट पर पहुंच जाना।"

"ठीक है।" कहने वाले की आवाज में खूंखारता आ गई।

"छिपने के लिए जगह ढूंढ लो। दिन का उजाला फैलने वाला है।"

देवराज चौहान के वापस पहुंचते ही राम दा कह उठा।

"एक्शन में कब आना है, मेरे आदमियों को ये बात कौन बताएगा?"

वो सब वापस उसी रास्ते पर चल पड़े, जिधर से आए थे।

आगे दीवार के साथ सटे तीस व्यक्ति खड़े थे। वे सब उन्हें पार कर गए और पीछे वाले हिस्से में दीवार के कोने तक पहुंचकर देवराज चौहान ठिठका तो सब रुक गए।

"इस हमले की शुरुआत वहां से होगी, जहां तीस आदमी मौजूद हैं। मैं उनके पास रहूंगा। और राम दा तुम यहीं पर इस कोने में खड़े रहोगे और मेरे इशारे का इंतजार करोगे। सोहनलाल दीवार के उस कोने पर खड़ा तुम्हारे इशारे का इंतजार करेगा। बीच में जो आदमी है, वो भी तुम्हें इशारा करते पाकर फौरन हरकत में आ जाएंगे और तुम्हारा इशारा पाकर सोहनलाल दीवार के उस तरफ मौजूद आदमियों को इशारा करेगा।" देवराज चौहान ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा--- "और मैं इस बात की तसल्ली करने के बाद इशारा करूंगा कि दीवार के ऊपर लगी तारों का करंट बंद कर दिया गया है या नहीं।"

"बढ़िया।" राम दा ने सिर हिलाया--- "मैं अपने आदमियों को समझा देता हूं इशारे के बारे में।"

"जल्दी करो। दिन की रोशनी फैल रही है।"

राम दा फौरन दीवार के साथ-साथ आगे बढ़ गया।

"सोहनलाल तुम दीवार के उस कोने पर पहुंच जाओ और राम दा के इशारे का इंतजार करना।" देवराज चौहान ने कहा--- "जब काम खत्म हो जाए तो, इधर ही मेरे पास आ जाना।"

सोहनलाल बिना कुछ कहे, उस तरफ बढ़ गया।

तभी पास खड़ा जगमोहन गंभीर स्वर में कह उठा।

"एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही।"

"क्या?"

"अगर ये सब-कुछ करने में सफलता मिल भी गई तो भीतर क्या करोगे?" जगमोहन बोला।

दिन का उजाला फैलना शुरू होने लगा था।

"क्या मतलब?"

"पहली बात तो ये है कि सोहनलाल शायद कम्बीनेशन नम्बर वाले डोर लॉक न खोल सके। अगर खोल भी लिए गए। स्ट्रांग रूम वाली गैलरी में भी पहुंच गए तो वहां दरवाजे से पहले फर्श पर बारूद बिछा है। ऐसे में उस दरवाजे के पास भी नहीं पहुंचा जा सकता। वहां पर कैसे रास्ता बताओगे।" कहते हुए जगमोहन व्याकुल हो उठा।

"जगमोहन की बात से मैं सहमत हूं।" नसीमा गंभीर स्वर में कह उठी।

"युवराज पाटिल भी तो स्ट्रांग रूम में जाता है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

"हां।" नसीमा बोली--- "वो कंट्रोल रूम से कुछ स्विच ऑफ करता है कि फिर दवाब पड़ने में वो बारूद नहीं फटता।"

"हम भी तो ऐसा कर सकते हैं।" देवराज चौहान ने मध्यम से उजाले में दोनों के चेहरों पर नजर मारी।

"लेकिन तुम्हें कैसे मालूम होगा कि कौन-से स्विच ऑफ करने---।"

"जब सब-कुछ अपने कंट्रोल में होगा तो ये बात जानना, मामूली बात है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

जगमोहन और नसीमा की नजरें मिलीं।

"चिंता मत करो। मेरे ख्याल में वहां तक पहुंचने की नौबत ही नहीं आएगी।" नसीमा गहरी सांस लेकर कह उठी--- "पाटिल के आदमियों ने, राम दा के आदमियों को सफल ही नहीं होने देना है।"

"कम से कम ऐसा तो मत बोलो।" जगमोहन ने कहा।

"मैं पाटिल के आदमियों को जानती हूं। वो कभी भी कमजोर नहीं होंगे।"

देवराज चौहान के चेहरे पर शांत मुस्कान उभरी।

"राम दा के आदमियों को जानती हो?" देवराज चौहान बोला।

"नहीं।" नसीमा ने देवराज चौहान को देखा।

"मैं भी नहीं जानता। मैं दोनों के आदमियों को नहीं जानता। इसलिए इस मुकाबले का अंत मेरे लिए दिलचस्प होगा।"

नसीमा ने कुछ नहीं कहा।

कुछ ही देर में राम दा लौट आया।

"इशारे के बारे में मैं अपने आदमियों को समझ आया हूं।" वहां पहुंचते ही राम दा बोला।

"अब यहीं खड़े हो जाओ। यहां से तुम्हें दीवार के उस कोने में खड़ा सोहनलाल स्पष्ट नजर आ रहा है। मेरा इशारा पाकर, तुमने तुरंत उसे इशारा करना है। और मैं उस तरफ खड़े आदमियों के पास जा रहा हूं।"

"बढ़िया।"

देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।

"जब फायरिंग शुरू हो तो तुम, नसीमा को लेकर इस दीवार से दूर, उधर खेतों की तरफ चले जाना। तुम दोनों का दीवार के पास रहना ठीक नहीं होगा।"

जगमोहन ने सोच भरे ढंग में सिर हिलाया।

देवराज चौहान दीवार के साथ-साथ आगे बढ़ गया। जहां तीस आदमी साइलेंसर लगी गनें थामें, पक्के इरादों के साथ दीवार से सटे खड़े थे। दिन का उजाला पूरी तरह फैल चुका था।

नसीमा ने जगमोहन को देखा।

"अभी भी मेरी पहरेदारी की जरूरत है।"

"अब तो सबसे ज्यादा जरूरत है।" जगमोहन ने होंठ सिकोड़कर कहा।

"वो कैसे?"

"मोबाईल फोन तुम्हारे पास है। इस नाजुक मौके पर धोखाधड़ी करके, पाटिल को तुम सावधान कर सकती हो।"

"मोबाईल फोन तुम रख लो।"

"नहीं तुम मेरे साथ रहो, इतना ही बहुत है।" जगमोहन ने नसीमा को घूरा।

नसीमा के होंठों पर मुस्कान उभर आई।

"तुम कब से मेरे साथ हो?" नसीमा बोली।

"तो?"

"और अभी तक तुमने मुझे, मेरी गर्दन के नीचे नहीं देखा।"

"मेरा दिमाग खराब नहीं है।"

"तो खराब दिमाग वाले, औरतों की गर्दन के नीचे देखते हैं।" नसीमा खुलकर मुस्कुरा पड़ी।

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा और दूसरी तरफ देखने लगा।

दिल का उजाला फैले जब पन्द्रह से ज्यादा मिनट बीत गए तो देवराज चौहान ने साथ लाए, जेब से लोहे की छोटी-छोटी दो पत्तियां निकालीं और तार का निशाना लेकर हौले से उछला। लोहे की पत्ती तार को लगी, परंतु कोई भी चिंगारी नहीं पैदा हुई। देवराज चौहान ने दूसरी लोहे की पत्ती फेंकी। तार से टकराई। इस बार भी कोई चिंगारी नहीं उभरी।

स्पष्ट था कि तारों में दौड़ता करंट बंद कर दिया गया है। रास्ता साफ था। हमला किया जा सकता था।

देवराज चौहान ने राम दा पर निगाह मारी। जो दूर दीवार के कोने में खड़ा इधर ही देख रहा था। होंठ भींचे देवराज चौहान ने हाथ उठाकर इशारा किया तो राम दा ने फौरन हाथ उठाकर वैसा ही इशारा आगे कर दिया।

"सीढ़ी लगाओ।" देवराज चौहान ने वहां मौजूद आदमियों से भिंचे स्वर में कहा--- "कूद जाओ भीतर। जैसे राम दा ने समझाया है, वैसे ही करना।"

देवराज चौहान के कहने की देर थी कि वे सब तूफानी रफ्तार से हरकत में आ गए।

■■■

राम दा के आदमियों के लिए ये सुखद संयोग ही था कि फार्म हाउस पर कठिनता से पाटिल के पन्द्रह आदमी ही मौजूद थे। जिनमें आठ गनमैन तो वे थे, जो उसके कहीं जाने के दौरान साथ रहते थे। उन पन्द्रह में से पांच बंगले के भीतर थे और दस बंगले के आगे-पीछे इधर-उधर थे।

सुबह का वक्त होने पर वे खास सतर्क नहीं थे। मुकाबला करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे। कुछ रात भर जागते रहने की वजह से थके हुए थे और कुछ नींद से उठे थे। रात भर छत पर पहरा देने वाले तब नीचे आ चुके थे। कुत्ते अपने कमरे में पहुंचकर, भूखा पेट भरने में व्यस्त थे।

यानि कि हमले का वक्त बहुत ही ठीक चुना गया था।

राम दा के आदमियों की गनों पर तो साइलेंसर थे। इसलिए फायरिंग की आवाज कम ही हुई। क्योंकि पाटिल के शूटरों को फायरिंग करने का ज्यादा मौका नहीं मिला। आनन-फानन वहां मौजूद पन्द्रह में से ग्यारह को शूट कर दिया गया। बाकी के चार ने हथियार हाथ खड़े कर दिए।

उन चारों को बेहोश करके एक कमरे में बंद कर दिया गया।

योजना के मुताबिक शिकारी कुत्तों को खत्म कर दिया गया था।

एक्शन में आने के चौथे मिनट बाद ही सब ठीक हो गया था। फार्म हाउस पर राम दा के आदमियों का कब्जा हो चुका था।

लेकिन एक बात, जिसे भारी गड़बड़ भी कहा जा सकता है, या फिर अजीब बात थी कि युवराज पाटिल हमला होने पहले बंगले में ही था। ये तो पक्का था लेकिन वो फार्म हाउस तो क्या, बंगले से भी बाहर नहीं निकला। बहरहाल पाटिल नहीं मिला। उसे कोई नहीं देख पाया।

पाटिल के वो चार आदमी, जिन्हें बेहोश करके, कमरे में बंद कर दिया गया था, बेहोश होने से पहले उनसे अच्छी तरह पूछताछ की गई थी। उनके मुताबिक पाटिल साहब भीतर, बंगले में ही नींद ले रहे हैं, परंतु पाटिल ढूंढने पर भी कहीं नहीं मिला। सिर्फ यही एक बात उनके हक में नहीं रही थी।

देवराज चौहान, सोहनलाल, राम दा भीतर आ चुके थे।

राम दा के आदेश के मुताबिक फार्म हाऊस पर, उसके आदमी सतर्कता से फैल कर पहरा देने लगे थे।

"देवराज चौहान!" राम दा खुशी से कह उठा--- "ये सब बहुत आसानी से हो गया।"

"हां। कभी-कभी वक्त ज्यादा साथ दे देता है।" देवराज चौहान ने इधर-उधर देखते हुए गंभीर स्वर में कहा--- "इस बात को इत्तेफाक ही माना जा सकता है कि फार्म हाऊस पर आदमी कम थे।"

"हमारा काम हो गया।" राम दा हौले से हंसा--- "आदमी कम हों या ज्यादा हमें क्या!"

"युवराज पाटिल नहीं मिला?" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"नहीं। वो---।"

"बंगले में चलो।" देवराज चौहान ने कहा।

तीनों बंगले की तरफ बढ़ गए।

"तुम्हारे आदमी क्या कहते हैं पाटिल के बारे में?" देवराज चौहान के होंठों में कसाव आ गया था।

"वो कहते हैं, बंगले का जर्रा-जर्रा देख लिया, परंतु पाटिल नहीं मिला।" राम दा के चेहरे पर भी व्याकुलता आ गई थी--- "उनका कहना है कि पाटिल बंगले में नहीं था। लेकिन---।"

"लेकिन क्या?"

"पाटिल के जो चार आदमी पकड़े हैं वो कहते हैं कि पाटिल बंगले में ही था। अपने कमरे में सोया था।"

"वो ठीक कह रहे हैं।" देवराज चौहान की आवाज सख्त हो गई।

"तो क्या मेरे आदमी गलत कह रहे हैं कि---।"

"तुम्हारे आदमी भी सही कह रहे हैं।"

चलते-चलते राम दा ने देवराज चौहान के चेहरे पर निगाह मारी।

"मैं समझा नहीं।"

"मेरे ख्याल में खतरे के वक्त, बचने के लिए पाटिल ने फार्म हाऊस में कोई खुफिया जगह बना रखी है। खतरे को महसूस करते ही वो, उसी खुफिया जगह पर जा छिपा होगा।" देवराज चौहान के स्वर में दृढ़ता थी।

"ओह! यही हुआ होगा।" राम दा के होंठों से निकला--- "हम आसानी से उस जगह को ढूंढ लेंगे।"

"शुक्रिया। उस जगह को आसानी से नहीं ढूंढा जा सकता।" सोहनलाल कह उठा।

"ठीक बोला। बढ़िया।" राम दा के दांत भिंच गए थे--- "फिर भी कोशिश तो की जा सकती है।"

"जगह-जगह पर रामदा के आदमी फैले नजर आ रहे थे।

"डटे रहो।" राम दा चिल्लाकर बोला--- "साला कोई भीतर आना चाहे तो, भून देना।"

वे तीनों बंगले में प्रवेश कर गए।

बंगले के भीतर भी राम दा के आदमियों का कब्जा था।

"सोहनलाल!"

"हां।"

"इस तरफ है स्ट्रांग रूम में जाने का रास्ता। पहला दरवाजा तुम्हें उधर ही मिलेगा।" देवराज चौहान ने एक तरफ देखते हुए कहा--- "कम्बीनेशन नम्बर प्लेट को देखकर दरवाजे को पहचान जाओगे। तुम अपने काम पर लगो। मैं बंगले पर नजर मार लूं।"

"ठीक है।" कहने के साथ ही सोहनलाल उस तरफ बढ़ गया।

"ये बहुत काबिल आदमी होगा, जो उसे साथ लिए घूम रहे हो।" राम दा ने कहा।

राम दा की बात का जवाब न देकर देवराज चौहान पहली मंजिल पर पहुंचा। राम दा बराबर उसके साथ था। वहां राम दा के आदमी नजर आ रहे थे। देवराज चौहान बायीं तरफ से छटे दरवाजे पर ठिठका और खुले दरवाजे से भीतर प्रवेश करके ठिठक गया।

निगाहें हर तरफ घूमने लगीं।

"ये पाटिल का कमरा है।" राम दा कह उठा।

"हां।" देवराज चौहान की निगाहें बैड पर जा टिकी थीं। बैड पर मौजूद चादर पर उभरी सिलवटें इस बात को स्पष्ट दर्शा रही थीं कि रात भर वहां कोई सोया है। तकिया भी टेढ़ा पड़ा था। लिहाफ भी खुला इस बात को पक्का कर रहा था कि उसे ऊपर लिया गया है।

"साला, गया कहां?" राम दा बड़बड़ा उठा।

बैड पर से निगाह हटाकर देवराज चौहान आगे बढ़ा। बैड के पास ही खूबसूरत तिपाई पर फोन के अलावा ऐश ट्रे मौजूद थी। ऐश ट्रे में सिग्रेट के तीन फिल्टर वाले टुकड़े और सिग्रेट की राख पड़ी हुई थी। ऐश ट्रे को अच्छी तरह देखने के पश्चात देवराज चौहान ने कहा।

"हमला बोलने तक पाटिल यहीं, इसी कमरे में था।"

"ये बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?" राम दा ने होंठ सिकोड़ कर उसे देखा।

"सिग्रेट के टुकड़ों पर नजर मारो। कागज और फिल्टर नया है। राख के पीस भी अभी अपने आकार में हैं। अगर ये पुराने होते तो, पीस टूट चुके होते। मामूली सी राख ही ऐश ट्रे में बिखरी होती।"

"अगर ये बात तो है तो फिर पाटिल गया कहां? मेरे आदमियों की निगाहों से बचकर वो निकल नहीं सकता।"

"खतरा महसूस होते ही पाटिल अपने छिपने की जगह पर पहुंच गया। वो बंगले में ही कहीं छिपा हुआ है।" देवराज चौहान ने कमरे में निगाहें दोड़ाते हुए कहा--- "किसी ऐसी जगह, जहां हमारा पहुंचना आसान नहीं।"

"अपने कुछ आदमियों को पाटिल को तलाक करवाने के काम पर लगाता हूं।"

"पाटिल जहां भी छिपा है, अगर वो वहां से हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकता तो हमें परवाह नहीं कि वो कहां छुपा है। जब तक हम यहां है, वो बाहर नहीं निकलेगा। वहीं छिपा रहेगा।" देवराज चौहान ने कहा।

"वो छिपकर, हमें भला क्या नुकसान पहुंचा सकता है?"

देवराज चौहान की निगाह राम दा पर गई।

"अगर उस जगह पर उसके पास कुछ करने की पावर है तो वो हमें वहां से भी नुकसान पहुंचा सकता है।"

"बढ़िया!" राम दा के चेहरे पर खतरनाक भाव उभरे--- "मैं अभी अपने आदमी, बंगले के किसी खुफिया जगह को तलाश करवाने पर लगाता हूं। साला चूहा बना किसी कोने में पड़ा होगा। हाथों-हाथ अगर पाटिल का भी काम आज खत्म हो जाए तो मामला बढ़िया से भी बढ़िया हो जाए।"

देवराज चौहान ने कमरे को अच्छी तरह चैक करने के बाद अटैच बाथरूम को देखा। सब-कुछ सामान्य ही नजर आया। चेहरे पर सोचों को समेटे देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगा ली।

"चलें यहां से। सोहनलाल को देखते हैं कि...।"

"राम दा!" देवराज चौहान ने कश लेकर कहा--- "खतरे के वक्त, खुफिया जगह जाने के लिए मेरे ख्याल में पाटिल कमरे से बाहर आने की बेवकूफी नहीं करेगा।"

"क्या बोला? मैं समझा नहीं?"

"मेरे ख्याल में उस खुफिया जगह तक जाने का रास्ता इस कमरे से होना चाहिए।"

राम दा होंठ सिकोड़े देवराज चौहान को देखने लगा।

"बढ़िया बोला। फिट बोला तू। खतरा महसूस करके पाटिल कमरे से बाहर क्यों निकलेगा। ये बात तो पक्की है कि खुफिया जगह पर जाने का रास्ता इसी कमरे से होएगा।" राम दा के होंठों से निकला--- "ढूंढने पर यहां से रास्ता मिलेगा देवराज चौहान। पाटिल साला बचेगा नहीं। देखो तो रास्ता किधर से है।"

"इतना आसान नहीं है रास्ता तलाश करना।" देवराज चौहान ने कहा--- "वैसे, कोई जरूरी भी नहीं है कि पाटिल जहां छिपा है, वहां का रास्ता इसी कमरे से हो। कहीं और से भी हो सकता है।"

"तुम तो दोनों तरफ की बात करता है देवराज चौहान।"

"मैं सिर्फ बात कर रहा हूं। दोनों तरफ सोच रहा हूं। किसी फैसले पर नहीं पहुंचा हूं। आओ, कंट्रोल रूम में चलते हैं। इस कमरे के दरवाजे को बाहर से बंद कर देना।"

दोनों बाहर निकले।

राम दा ने कमरे का दरवाजा बंद किया और चिटकनी चढ़ा दी।

■■■

सामान्य साईज के छोटे-से कमरे को कंट्रोल रूम का रूप दे रखा था। वहां दो टी•वी• थे, जो कि इस वक्त बंद थे। बड़ा-सा बोर्ड भी, जिस पर ढेर सारे स्विच और कई तरह की नॉबें लगी हुई थीं। बिजली का और भी कई तरह का सामान, जरूरत के मुताबिक फिट कर रखा था।

देवराज चौहान पास पहुंचकर बोर्ड को, स्विचों को और नॉबों को देखने लगा।

"स्विच दबाकर देखो कि...।" राम दा ने कहना चाहा।

"ऐसी गलती मत कर बैठना। बोर्ड के सर्किट से हम अंजान है। किसी गलत स्विच के दबाए जाने से किसी भी तरह की गड़बड़ हो सकती है।" देवराज चौहान ने कहा--- "पाटिल के जो चार आदमी बेहोश किए गए हैं, उन्हें होश में लाकर पूछो कि कौन कंट्रोल रूम को ऑपरेट करना जानता है।"

"बढ़िया।" कहने के साथ ही राम दा पलटा और बाहर निकल गया। मिनट भर में ही भीतर आ गया--- "अपने बंदों को बोल दिया है। वो गए हैं चारों के पास---।"

देवराज चौहान की निगाह बोर्ड पर ही थी।

"चलें?" पास पहुंचकर राम दा बोला।

"कहां?" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"सोहनलाल के पास। वो स्ट्रांग रूम तक पहुंच चुका होगा।" राम दा ने कहा।

देवराज चौहान के होंठों पर, शांत-सी छोटी सी मुस्कान उभरी।

"चिंता मत करो। सोहनलाल दरवाजे के ताले तो खोल सकता है। लेकिन स्ट्रांग रूम तक नहीं पहुंच सकेगा।"

"स्ट्रांग रूम के सामने फर्श पर, पांच फीट की लंबाई में बारूद बिछा है। वहां पर दबाव पड़ते ही बारूद फटेगा और वहां मौजूद शायद कोई भी व्यक्ति न बचे।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

"ओह!" राम दा का मुंह खुला का खुला रह गया--- "फिर-फिर, तुम कैसे...?"

"मालूम हो जाएगा। देखते रहो।" देवराज चौहान ने कहा--- "इस कमरे के बाहर दो आदमी खड़े कर दो कि भीतर कोई न जाए। मैं सोहनलाल के पास जा रहा हूं। तुम उन चारों को देखो कि होश आने पर क्या कहते हैं। कंट्रोल रूम के बारे में कुछ जानते हैं या नहीं?"

"ठीक है। साथ ही मैं कुछ को खुफिया रास्ता तलाश करने पर लगाता हूं, जहां पाटिल छिपा हो सकता है।"

सोहनलाल दरवाजे पर लगी कंबीनेशन नंबर की प्लेट पर व्यस्त था। उसकी उंगलियां फुर्ती के साथ, नंबर वाले बटनों के साथ खेल रही थीं और कान दरवाजे से सटाकर, दबने वाले बटनों की आहट सुनने का प्रयत्न कर रहा था।

देवराज चौहान उसके पास पहुंचा।

"क्या लगता है?" देवराज चौहान बोला--- "खुल जाएगा?"

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा फिर कह उठा।

"खुल तो जाएगा। कितना वक्त है हमारे पास?"

"ज्यादा वक्त नहीं है।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाई।

"फायरिंग का शोर तो ज्यादा नहीं गूंजा। शायद पुलिस को किसी फार्म हाउस वाले ने फोन न किया हो।"

"कह नहीं सकता। लेकिन पुलिस के साथ पाटिल के आदमियों के भी आ जाने का खतरा है। पाटिल हाथ नहीं लगा। वो बंगले में ही कहीं छुप गया है और उसे तलाश करना, वक्त गंवाना है।"

देवराज चौहान ने स्पष्ट रूप में कहा--- "तुम अपना काम जल्दी निपटाने की कोशिश करो।"

सोहनलाल ने कंबीनेशन नंबरों वाली प्लेट पर नजर मारते हुए कहा।

"इसी दरवाजे पर दिक्कत आएगी। इसके खुलते ही बहुत हद तक स्पष्ट हो जाएगा कि इस कंबीनेशन प्लेटों में किस तरह का लॉक सिस्टम इस्तेमाल किया गया है।"

"जल्दी करो। मैं नसीमा से बात करके आता हूं।"

"नसीमा? वो तो बाहर है, जगमोहन के साथ।" सोहनलाल कह उठा।

"हां। शायद उसे उस खुफिया जगह के बारे में कुछ पता हो। जहां पाटिल जा छुपा है या फिर फार्म हाउस से बाहर निकलने का कोई गुप्त रास्ता भी हो सकता है। पाटिल फार्म हाउस से निकल गया भी हो सकता है।" कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ गया।

तभी सामने से राम दा आता दिखाई दिया। वो पास आता कह उठा।

"उन चार में से एक को होश आया है। वो तो कंट्रोल रूम के बारे में कुछ नहीं जानता, परंतु अन्य एक बेहोश व्यक्ति की तरफ इशारा करके कहा है, कभी-कभी वो कंट्रोल रूम में रहा करता था। अब उसे होश लाया जा रहा है।" राम दा पास आकर ठिठका--- "और मैंने कुछ आदमियों को उस खुफिया जगह की तलाश में लगा दिया है, जहां पाटिल छिपा हो सकता है। पाटिल का काम आज ही निपट जाए तो बढ़िया हो जाए।"

"पाटिल को खत्म करने के लिए बहुत उतावले हो रहे हो।" बरबस ही देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा।

"पाटिल का, मेरे हाथों खत्म होने का मतलब है, अंडरवर्ल्ड में मेरी धाक पैदा होना। पाटिल के धंधे और उनके बंदे मेरी सरपरस्ती में आ जाएंगे। पाटिल की जगह लेने में मुझे कोई खास परेशानी नहीं आएगी।" राम दा भी मुस्कुराया।

"उसके बाद एक दिन फिर दूसरा कोई ताकत इकट्ठे करके, तुम्हें खत्म करेगा और वो तुम्हारी जगह ले लेगा। ये एक ऐसा अंतहीन सिलसिला है, जो खून बहाता रहेगा और कभी भी खत्म नहीं होगा राम दा।" कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ गया। चेहरे पर सख्ती सी नाच रही थी।

राम दा गंभीर निगाहों से देवराज चौहान को जाते देखता रहा।

"वास्तव में।" राम दा गहरी सांस लेकर बड़बड़ा उठा--- "ये अंतहीन सिलसिला कभी भी खत्म नहीं होगा।"

नसीमा, फार्म हाउस के किसी भी खुफिया रास्ते से वाकिफ नहीं थी। देवराज चौहान, नसीमा से बात करके फार्म हाउस में आ गया। जगमोहन भी भीतर आना चाहता था, परंतु देवराज चौहान ने ये कहकर मना कर दिया कि वो बाहर रहकर बाहर के हालातों पर निगाह रखे। भीतर उसका कोई काम नहीं है।

युवराज पाटिल के हाथ ना लगने की बात सुनकर नसीमा अवश्य कुछ परेशान हो उठी थी। पाटिल की मौत की खबर सुनकर उसे इस बात से राहत मिलनी थी कि अब उसकी जिंदगी को कोई खतरा नहीं रहा।

बंगले में पहुंचकर देवराज चौहान, सोहनलाल के पास पहुंचा।

"ज्यादा से ज्यादा दस दिन में, ये दरवाजा खुल जाएगा।" उसे देखते ही सोहनलाल ने कहा।

"मैं अभी आया।" कहने के साथ देवराज चौहान वहां से हटा और पहली मंजिल पर स्थित कंट्रोल रूम में पहुंचा।

वहां राम दा अपने दो आदमियों के साथ मौजूद था और पाटिल का एक आदमी, जो कि घबराया सा नजर आ रहा था। सिर पर मारी गई चोट से बहा खून, धार बनकर कान के पास रुका, सूख सा गया था।

"मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था।" राम दा कह उठा--- "नसीमा ने कुछ बताया कि---।"

"वो किसी खुफिया रास्ते के बारे में नहीं जानती।" देवराज चौहान कह उठा।

"ये पाटिल का आदमी है। मैंने इससे पूछा तो ये भी नहीं जानता।" राम दा ने उस व्यक्ति की तरफ इशारा किया--- "लेकिन कंट्रोल रूम को पूरी तरह संभालना जानता है।"

देवराज चौहान ने उसे देखा।

"मुझे मत मारना। मैं मरना नहीं चाहता।" वो घबराकर कह उठा।

"फिक्र मत करो।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा--- "यूं ही किसी की जान लेने में हमें मजा नहीं आता।"

ये शब्द सुनकर उसकी हालत कुछ संभली।

"कंट्रोल रूम का सिस्टम इस वक्त ऑफ क्यों है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"मालूम नहीं।" वो बोला--- "शायद यहां हुए हमले की वजह से, सिस्टम बंद करके, ड्यूटी वाले बाहर गए होंगे।"

"यहां का सिस्टम चालू करो।"

वो तुरंत आगे बढ़ा और उसकी उंगलियां स्विच बोर्ड के बटनों से खेलने लगीं।

देखते ही देखते बंद टी•वी• स्क्रीन रोशन होने लगी। वो बोर्ड पर ही व्यस्त रहा। तभी एक टी•वी• स्क्रीन पर फार्म हाउस पर घूमते राम दा के आदमी नजर आने लगे। दूसरी टी•वी• स्क्रीन पर सोहनलाल नजर आया जो कि एक दरवाजा खोल चुका था और अब वो कमरे के भीतर दूसरे दरवाजे पर लगी नंबरों वाली कंबीनेशन प्लेट के बटनों पर व्यस्त था।

"एक दरवाजा खोल लिया इसने।" स्क्रीन पर निगाह पड़ते ही राम दा के होंठों से निकला--- "बढ़िया। बढ़िया हो गया।"

देवराज चौहान ने उस व्यक्ति से बोला।

"दृश्यों को बदलने के लिए क्या करना पड़ता है?"

"इन नॉबों को घुमाना पड़ता है। नजर रखने के लिए नॉब को धीरे घुमाना पड़ता है और फौरन किसी जगह को देखना है तो नॉब को जल्दी से घुमाया जाता है।" उसने जवाब दिया।

देवराज चौहान आगे बढ़ा और एक नॉब को पकड़कर धीमे से घुमाने लगा। ऐसा करते ही स्क्रीन पर नजर आता सोहनलाल गायबहो गया और अब स्क्रीन पर सीढ़ियां नजर आईं। कुछ और नॉब घुमाने पर गैलरी स्पष्ट नजर आने लगी। कुछ और नॉब घुमाई तो गैलरी का थोड़ा सा हिस्सा और सामने दरवाजा नजर आने लगा। दरवाजे पर नंबरों वाली कंबीनेशन प्लेट लगी स्पष्ट नजर आई।

देवराज चौहान होंठ सिकोड़े कई पलों तक टी•वी• स्क्रीन को देखता रहा।

"ये स्ट्रांग रूम का दरवाजा है?" देवराज चौहान बोला।

"हां।" उस व्यक्ति ने सिर हिलाकर कहा।

"पाटिल जब स्ट्रांग रूम में जाता है तो बारूद ना फटे, इसके लिए क्या करते हो?" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"बारूद का फर्श से जुड़ा कनेक्शन ऑफ कर दिया जाता है। फिर इससे बारूद नहीं फटता और स्ट्रांग रूम में आया-जाया जा सकता है।" उसने कहा--- "मुझे यहां के बारे में काफी जानकारी है।"

"बारूद का कनेक्शन कैसे ऑफ किया जाता है?"

"यहां से।" कहकर वो कमरे के कोने में पहुंचा। जहां दो फीट चौड़ा और चार फीट लंबा बोर्ड था। जिस पर कई तरह के स्विच और तीन नॉबें लगी थीं--- "यहां से कनेक्शन काट दिया जाता है?"

"करो।" देवराज चौहान की निगाह बोर्ड पर थी।

उसने दोनों हाथ आगे बढ़ाए। उंगलियां स्विच बोर्ड पर काम करने लगीं। फिर बोला।

"अब स्ट्रांग रूम के सामने फर्श पर बिछा बारूद दबाव पड़ने से नहीं फटेगा। बारूद का कनेक्शन, फर्श से हटा दिया गया है।"

"ये बात कैसे पक्के तौर पर पता चलेगी कि वास्तव में कनेक्शन हट गया है?" देवराज चौहान बोला।

"एक मिनट।" उसने सिर हिलाकर कहा--- "ये देखो, बोर्ड पर लाल रंग का छोटा-सा बल्ब लगा है। जो कि इस वक्त बंद है।" इसके साथ ही उसकी उंगलियों ने बोर्ड के स्विच और नॉबों को छेड़ा तो बल्ब रोशन हो उठा--- "बल्ब जल उठने का मतलब है कि बारूद का कनेक्शन फर्श से जुड़ गया है और वह दबाव पड़ने से फट जाएगा।"

"ये कैसा फर्श है जिस पर दबाव पड़ने से, नीचे बिछे बारूद पर दबाव पड़ेगा?"

"इस बारे में तो मुझे भी पूरी जानकारी नहीं है। शायद ये मजबूत प्लास्टिक की ऐसी शीट का फर्श है, ऐसी शीट जो देखने में सामान्य फर्श जैसी लगती है, लेकिन जब इस पर दबाव पड़ता है तो करीब तीन-चार इंच नीचे दब जाती है। इसी कारण नीचे मौजूद, फिट कर रखे बारूद पर दबाव पड़ता है और वो फट जाएगा। वो बारूद तारों से एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है और तारों के अंत में बारूद को कनेक्शन देने वाली तारों को कंट्रोल करने वाला मॉनिटर लगा है। यहां से कनेक्शन ऑफ करते ही, वो मॉनिटर काम करना बंद कर देता है और बारूद नहीं फटता।"

देवराज चौहान ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।

"कनेक्शन ऑफ कर दो कि बारूद ना फटे।" देवराज चौहान ने कहा।

उसने कनेक्शन ऑफ कर दिया। बोर्ड पर रोशन लाल बल्ब बंद हो गया।

"इस कमरे के दरवाजे की चाबी कहां है?" देवराज चौहान ने पूछा।

"वहां। ड्राअर में।"

"निकालो।"

"वो तुरंत आगे बढ़ा और स्विच बोर्ड के नीचे बने ड्राअर में से चाबी निकालकर देवराज चौहान को थमा दी। देवराज चौहान ने राम दा से कहा।

"ये दरवाजा बंद करके चाबी, मैं अपने पास रखूंगा। इसके बावजूद भी तुम्हारे चार आदमी बंद दरवाजे के पास पहरा देंगे, ताकि कोई दरवाजा खोलकर बारूद सिस्टम को ऑन करने की कोशिश ना करे। क्योंकि पाटिल जाने कहां छिपा हुआ है। वो कैसी भी गड़बड़ करने की कोशिश कर सकता है।"

"बढ़िया। समझ गया। अभी करता हूं ये इंतजाम।"

"बाहर निकलो।"

सब बाहर निकले।

देवराज चौहान ने दरवाजा बंद किया और चाबी से लॉक करके चाबी अपनी जेब में डाल ली।

"तुमने।" देवराज चौहान ने पाटिल के आदमी से कहा--- "ये सच कहा है कि अब बारूद नहीं फटेगा?"

"हां। बारूद का कनेक्शन फर्श से हटा दिया गया है। मॉनिटर ऑफ हो गया है।" वो बोला ।

"अच्छी बात है। तुम मेरे साथ रहोगे और सबसे पहले तुम ही बारुद वाले फर्श पर पांव रखोगे।" देवराज चौहान ने कहा।

"मैं?" वो हड़बड़ाया।

"घबरा क्यों गए?" देवराज चौहान ने उसे घूरा।

"ऐसी कोई बात नहीं।" उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी--- "डर तो लगता ही है।"

"पाटिल जब भीतर जाता है तो, बारूद का कनेक्शन इसी तरह ऑफ किया जाता है।" देवराज चौहान ने पूछा।

"हां।"

"फिर तो तुम्हें जरा भी घबराने की जरूरत नहीं है।"

वो चुप रहा।

"बारूद वाले फर्श पर, पहले तुम्हें जाने में कोई ऐतराज है?"

"कनेक्शन ऑफ हो चुका है। बारूद नहीं फटेगा।" वो धीमे स्वर में बोला--- "फिर मुझे क्यों एतराज होगा।"

"राम दा! यहां चार आदमियों का पहरा बिठा कर जाओ। मैं सोहनलाल के पास हूं।"

"बढ़िया।"

देवराज चौहान, उसे लेकर आगे बढ़ गया।

"तुम स्ट्रांग रूम के भीतर जाओगे?" साथ चलते उस व्यक्ति ने पूछा।

"हां।"

उसके बाद उसने कुछ नहीं कहा।

■■■

एक दरवाजा खोलने के पश्चात सोहनलाल कमरे के भीतर, दूसरे दरवाजे पर लगी कंबीनेशन प्लेट के नंबरों पर अपनी उंगलियों का इस्तेमाल कर रहा था।

देवराज चौहान, राम दा और पाटिल का आदमी पास खड़ा था।

"नाम बता अपना।" राम दा ने उस व्यक्ति से कहा।

"नाथ कहते हैं मुझे।" वो बोला।

"कब से पाटिल के साथ है?"

"चार बरस हो गए।"

"पाटिल का खेल खत्म हो गया है। तू देख ही रहा है। उसे पूरा उजाड़ कर ही दम लूंगा। उसके बाद तेरे को रोटी-पानी की दिक्कत आए तो मेरे पास अपनी अर्जी लगा देना।"

नाथ सिर्फ सिर हिलाकर रह गया।

देवराज चौहान ने घड़ी में वक्त देखा। सुबह के सात बज चुके थे।

"इसमें कितनी देर लगेगी?" देवराज चौहान ने पूछा।

"खुलने वाला है। एक नंबर नहीं मिल रहा। अभी मिल जाएगा।" सोहनलाल अपने काम में व्यस्त बोला--- "भीतर फर्श के नीचे बिछे बारूद का क्या इंतजाम सोचा है?"

"बारूद अब नहीं फटेगा। उसका कनेक्शन पीछे से ऑफ कर दिया गया है।" देवराज चौहान ने कहा।

"हो सकता है कनेक्शन ऑफ ना हुआ हो।"

"ये चैक करने के लिए पाटिल का आदमी साथ है। इसने ही कनेक्शन ऑफ किया है।" सपाट स्वर में कहते हुए देवराज चौहान ने नाथ पर निगाह मारी--- "सबसे पहले कंट्रोल रूम के दरवाजे तक ये जाएगा।"

"ये जाने को तैयार है?"

"हां।"

"तब तो पक्का कनेक्शन ऑफ हो गया होगा।"

पांच मिनट और लगे और वो दरवाजा भी खुल गया। सामने नीचे उतरने के लिए सीढ़ियां थीं।

चारों नीचे उतरे। सीढ़ियां खत्म होते ही सामने गैलरी थी और गैलरी के अंतिम छोर पर दरवाजा नजर आ रहा था। वहां सन्नाटा छाया हुआ था। दरवाजे को देखते ही राम दा कह उठा।

"वो स्ट्रांग रूम का दरवाजा है?"

"हां।" देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े हुए थे।

"बढ़िया। ये तो मजा ही आ गया। याद है ना तेरे को देवराज चौहान।" राम दा के स्वर में खुशी थी--- "भीतर मौजूद सिर्फ रिमोट कंट्रोल तेरा है। बाकी जो भी कुछ है, मेरा होगा।"

"जो कह दूं, उसे भूलता नहीं। तुम पहले भी ये बात कह चुके हो।"

"पहले मुझे मालूम नहीं था कि तुम अपनी कही बात याद रखते हो। अब नहीं कहूंगा।"

देवराज चौहान ने नाथ को देखा।

"जाओ। आगे बढ़ो और स्ट्रांग रूम के दरवाजे को छुओ। कुछ पल वहीं खड़े रह कर वापस आओ।"

पल भर के लिए नाथ हिचकिचाया फिर आगे बढ़ने लगा।

तीनों की निगाह नाथ पर थी।

"फर्श के नीचे बिछे बारूद का कनेक्शन ऑफ है। वरना ये आगे ना बढ़ता।" राम दा कह उठा।

कोई कुछ नहीं बोला।

सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगा ली।

देखते ही देखते नाथ स्ट्रांग रूम के दरवाजे के पास जा पहुंचा। उसने दरवाजे को छुआ। वहीं खड़ा रहा।

"सब ठीक है। आओ।" देवराज चौहान ने कहा।

तीनों आगे बढ़ गए।

नाथ दरवाजे के पास से हटकर आगे आ गया।

"इस दरवाजे को खोलने में कितनी देर लगेगी?" देवराज चौहान ने पूछा।

"इसे खोलने में कुछ वक्त लग सकता है।" सोहनलाल ने सोच भरे स्वर में कहा--- "उसकी कंबीनेशन प्लेट पर अंग्रेजी के छब्बीस अक्षर हैं। और नंबर भी लम्बा है। कंबीनेशन प्लेट को चालू हालत में लाने के लिए पहले छब्बीस अक्षरों में से चार सही अक्षरों को सिलसिलेवार दबाना है। उसके बाद दरवाजे का लॉक हटाने के लिए छः अक्षरों की क्रम से श्रंखला ढूंढनी है। मालूम नहीं कितना वक्त लगे।"

कुछ ही देर में सोहनलाल दरवाजा खोलने पर लग गया।

"मैं जाऊं?" नाथ बोला।

"तू कहां जाएगा साले।" राम दा ने उसे घूरा--- "बाहर कौन बैठा है तेरा?"

नाथ खामोश हो गया।

"यहीं टिका रहे।

देवराज चौहान ने सिग्रेट सुलगाई।

"देवराज चौहान, मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि मैं पाटिल के किले में मौजूद हूं।" राम दा बोला।

"जब यहां से ठीक-ठाक निकल जाओ, तो ही इन बातों पर विश्वास करना।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा।

"क्या मतलब?"

"इस बात को हमेशा याद रखो कि पाटिल अभी सलामत है। वो बंगले में किसी गुप्त जगह पर छिपा हो सकता है। या फिर किसी खुफिया रास्ते से यहां से निकल गया हो सकता है।" देवराज चौहान ने पहले वाले स्वर में कहा--- "ऐसे में पाटिल बड़ी मुसीबत बनकर, वापस लौट सकता है।"

"डरा रहे हो।"

"मैं वो सच तुम्हारे सामने रख रहा हूं, जिसके प्रति तुम बेखबर हो।" देवराज चौहान ने कहा--- "हो सकता है कुछ भी न हो। लेकिन सतर्कता के नाते इन बातों को हर समय ध्यान में रखना है।"

"मतलब कि जब तक यहां है, तब तक खतरे में हैं।" राम दा ने होंठ सिकोड़े।

देवराज चौहान ने जवाब में कुछ नहीं कहा।

"तेरे को पता ही होगा कि खतरे के वक्त पाटिल ने खुद को बचाने के लिए कौन सा रास्ता बना रखा है?" राम दा ने नाथ को देखा।

"इस बारे में मुझे कुछ नहीं मालूम।"

"उड़ती-उड़ती कभी खबर ही सुनी हो?"

"नहीं।"

"हर वक्त फार्म हाउस पर रहते हो और मामूली सी बात नहीं पता।" राम दा ने तीखे स्वर में कहा--- "ये तो तेरे को मालूम ही होगा कि स्ट्रांग रूम में क्या, क्या माल मौजूद है?"

"नहीं मालूम।"

"क्यों तू कंट्रोल रूम में बैठा, इधर देखता नहीं, जब पाटिल स्ट्रांग रूम में जाता है।"

"भीतर का कुछ नजर नहीं आता।" नाथ ने कहा।

"स्ट्रांग रूम में सामान को जाते तो देखा ही होगा कि भीतर क्या-क्या सामान ले जाया जाता है?"

"ऐसे वक्त में हमें कैमरे बंद करने का आदेश दे दिया जाता है। पाटिल साहब के पुराने और खास अंगरक्षक ही सामान को कंट्रोल रूम में रखते हैं।" नाथ ने राम दा को देखा।

"चुप कर। कोई भी काम की बात नहीं बताता और बोले जा रहा है।"

■■■

दिन के ग्यारह बज गए।

सोहनलाल बिना रुके अपने काम में लगा, दरवाजे के कंबीनेशन अक्षरों को मिलाने की चेष्टा में व्यस्त था। वो थकान महसूस करने लगा था, लेकिन काम रोकने का उसका कोई इरादा नहीं था।

"तेरे बस का नहीं लगता मुझे।" आखिरकार राम दा उखड़े में कह उठा।

देवराज चौहान, नाथ और राम दा गैलरी के फर्श पर, दीवार से टेक लगाए बैठे थे। राम दा के शब्दों पर देवराज चौहान ने उसे देखा, परंतु कहा कुछ नहीं।

सोहनलाल ने अपना काम छोड़ा और पलट कर, राम दा को घूरा।

"क्या बोला तूने?" सोहनलाल के माथे पर स्पष्ट तौर पर बल नजर आ रहे थे।

"मैंने बोला ये तेरे बस का नहीं लगता। हमें दिखाने के लिए तू खामखाह इधर-उधर के बटन दबाए जा रहा है।"

"तो सच बात तू समझ ही गया राम दा।" सोहनलाल का लहजा तीखा हो गया।

"मैंने गलत कहा, क्या?"

"ठीक बोला तू।" सोहनलाल ने उसी ढंग में कहा।

"वो तो मेरे को पहले ही लग रहा था। कहते-कहते मेरे से देर हो गई कि---।"

"तू आ जा।" सोहनलाल ने गोली वाली सिग्रेट सुलगाई।

"क्या?"

"मैंने कहा तू आ जा। मेरी जगह तू काम कर ले। मैं आराम कर लेता हूं।"

"मैं-मैं क्या खोलना जानूं इन चीजों को।" राम दा उखड़े स्वर में कह उठा।

"तो उल्लू के पट्ठे, बीच में बकवास क्यों करता है। जैसा काम चल रहा है, चलने दे।"

"गाली देता है तू मेरे को। राम दा को।" राम दा एकाएक गुर्रा उठा। उछलकर खड़ा हुआ। रिवाल्वर हाथ में नजर आने लगी। चेहरा क्रोध से सुर्ख पड़ गया था--- "मैं तेरे को---।"

"रिवाल्वर मेरे पास भी है राम दा।" सोहनलाल ने उसे खा जाने वाली निगाहों से देखा--- "ट्रेगर दबाना मुझे भी आता है। लेकिन मैंने रिवाल्वर निकाली नहीं।"

"दरवाजा बेशक मत खुले।" राम दा ने मौत भरे स्वर में कहा--- "मैं तेरे को गोली---।"

"राम दा!" देवराज चौहान ने कहा।

राम दा ने भिंचे दांतो से देवराज चौहान को देखा। दूसरे ही पल उसकी आंखें सिकुड़ी।

देवराज चौहान के हाथ में दबी रिवाल्वर का रुख उसकी तरफ था।

"एक तरफ बैठ जा और इसे जेब में डाल ले।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "होते काम में रुकावट मत डाल।"

कुछ पलों तक राम दा, देवराज चौहान को देखता रहा। फिर गहरी सांस लेकर रिवाल्वर जेब में रखी और एक तरफ बैठ गया। कुछ पलों के लिए वहां खामोशी छा गई।

"देर लगती देखकर मुझे गुस्सा आ गया था।" राम दा कह उठा।

"वो जानबूझकर देर नहीं लगा रहा।" देवराज चौहान ने कहा।

"लेकिन उसे गाली नहीं देनी चाहिए थी। मुझे ऐसे शब्द सुनने की आदत नहीं है।" राम दा बोला।

"तुमने उसे जो कहा, वो गाली से भी बढ़कर था। सोहनलाल मेरा आदमी है और उसे मैं अच्छी तरह जानता हूं, वो कैसा काम करता है। तुम्हें उससे कोई परेशानी हो रही थी तो मुझसे बात करते।"

"अब ऐसा ही करूंगा।"

देवराज चौहान ने भी रिवाल्वर वापस रख ली थी।

सोहनलाल पुनः अपने काम में व्यस्त हो गया।

"मेरे आदमी रात भर से जगे हुए हैं।" राम दा एकाएक कह उठा--- "इसकी तो कोई परवाह नहीं। लेकिन उनके खाने-पीने का कोई इंतजाम करना चाहिए। चाय भी उन्हें नसीब नहीं हुई।"

"किसी को भेजकर खाने-पीने का सामान मंगवा लो।" देवराज चौहान ने कहा।

"भेजना क्या है।" राम दा जेब से मोबाइल फोन निकालता हुआ बोला--- "अपने आदमियों को फोन करता हूं। वो खाने-पीने का सामान लेकर यहां---।"

"इसकी कोई जरूरत नहीं।" सोहनलाल बोला। वो अपने काम में व्यस्त था।

उनकी निगाह सोहनलाल की तरफ गई।

"जरूरत क्यों नहीं है?" राम दा कह उठा।

"मेरा काम पूरा होने वाला है। दो-चार मिनट की बात है।"

"बढ़िया।" राम दा के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। मोबाईल फोन जेब में डाल लिया--- "ये कहकर दिल खुश कर दिया मेरा। मजा ही आ गया। बहुत काम का बंदा है तू।"

"अभी तो तू मुझे गाली गोली मार रहा था।" सोहनलाल व्यंग से बोला।

"गोली कहां मार रहा था। मजाक कर रहा था। मेरे मजाक का बुरा मत माना कर।"

"मैंने कौन-सी तेरे से रिश्तेदारी गाठनी है जो तेरे मजाक का बुरा मानूं।"

जवाब में राम दा हंसकर रह गया।

दस मिनट और लगे।

"खुल गया।" राम दा खुशी से चीख उठा।

देवराज चौहान और नाथ उठ खड़े हुए।

भीतर अंधेरा था। कुछ भी नजर नहीं आ रहा था।

इससे पहले कोई कुछ कहता-करता।

युवराज पाटिल का स्वर वहां गूंज उठा।

■■■

"कोई भी अपनी जगह से मत ले। ये बात मैं सावधानी के नाते कह रहा हूं। सोहनलाल, अगर अपनी जिंदगी सलामत चाहते हो तो सिर्फ छः इंच पीछे होकर, दोनों पैर जोड़कर खड़े हो जाओ।"

युवराज पाटिल की आवाज सुनकर दो पलों तक तो सब हक्के-बक्के रह गए।

देवराज चौहान के होंठ भिंच चुके थे। आंखें सिकुड़ चुकी थीं।

"पाटिल!" राम दा के होंठों से निकला--- "तू स्ट्रांग रूम के भीतर छिपा हुआ है।"

जब कि देवराज चौहान की गैलरी की दीवारों पर फिरने लगी थी।

"सोहनलाल! छः इंच पीछे हटो सीधे-सीधे खड़े हो जाओ। वरना जान से हाथ धो बैठोगे।"

"पाटिल जो कह रहा है वो करो।" देवराज चौहान बोला।

सोहनलाल छः इंच पीछे हुआ और सावधानी से दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।

अगले ही पल दरवाजे से पांच फीट का फर्श, धीरे-धीरे लाल सुर्ख होने लगा।

"ओह!" नाथ ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। घबराकर दो कदम पीछे हट गया।

देवराज चौहान और राम दा की निगाहें, नाथ के घबराए चेहरे पर गईं।

"क्या हुआ?" देवराज चौहान ने पूछा।

"बारूद। बारूद फटने का सिस्टम ऑन हो गया है।" नाथ के होंठों से हड़बड़ाया सा स्वर निकला--- "फर्श के नीचे से जो लाली नजर आ रही है, वो बारूद की है। मॉनिटर ने अपना काम करना शुरू कर दिया है।"

"ये कैसे हो सकता है?" राम दा दांत भींचे कह उठा--- "तुमने अपने हाथों से मॉनिटर ऑफ किया था। यहां आकर चैक भी किया। कोई बारूद नहीं फटा। और अब स्ट्रांग रूम का दरवाजा खुलते ही---।"

"मैं कुछ नहीं जानता। जो है, तुम लोगों के सामने है।"

"मैं अभी ऊपर जाकर देखता हूं कि वहां कोई गड़बड़ तो नहीं हुई।" राम दा शब्दों को पीसते हुए बोला।

सोहनलाल बुत की तरह अपनी जगह पर खड़ा था। उसके आसपास, हर जगह का फर्श लाल सुर्ख हो रहा था। एक-दो जगह थी, जहां सुर्खी नहीं थी। यानि कि वहां बारूद नहीं था, परंतु सोहनलाल के सामने ऐसा कोई रास्ता या जगह नहीं थी कि उस पर पांव रखकर बारूद के घेरे से बाहर आ पाता।

"सोहनलाल!" देवराज चौहान गंभीर-सख्त स्वर में बोला--- "अपनी जगह से हिलना नहीं।"

सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा।

राम दा जाने लगा तो देवराज चौहान कह उठा।

"ऊपर सब ठीक है। पाटिल कहीं और से ये सब चीजें कंट्रोल कर रहा है।"

राम दा ठिठक गया। दूसरे ही पल वो दहाड़ उठा।

"हरामजादे! कुत्ते पाटिल! चूहे की औलाद बाहर निकल। सामने आकर मुकाबला कर।"

जवाब में पाटिल के हंसने की आवाज आई।

"अब बाजी पलटी तो गालियों पर उतर आए। पहले तो बहुत खुश थे।" पाटिल का स्वर कानों में पड़ा।

"तू...स्ट्रांग रूम में छुपकर---।"

"वो स्ट्रांग रूम में नहीं है।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में टोका--- "वो कहीं और है। छत की तरफ ध्यान से देखो। दो-तीन जगह छोटे-छोटे 'होल' हैं। वहां से आवाज आ रही है। वहां स्पीकर फिट है।"

"तुमने ठीक कहा देवराज चौहान। मैं इसी बंगले पर मौजूद हूं। यहां एक मास्टर कंट्रोल रूम है। बुरे हालातों के लिए ये जगह मैंने बनाई थी कि वहां छिप भी सकूं और, हालातों को काबू में भी कर सकूं। आज मेरा मास्टर कंट्रोल रूम बहुत काम आ रहा है। मैं बिल्कुल सुरक्षित बैठा हूं और तुम लोग मेरे निशाने पर हो। आजाद होकर भी अब तुम लोग मेरी कैद में हो।"

"बकवास मत कर।" राम दा गुर्राया--- "तू हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।"

जवाब में युवराज पाटिल की हंसी सुनाई दी।

"ज्यादा मत बोल राम दा। इससे तेरे को फायदा नहीं होगा और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।"

राम दा दांत पीसकर रह गया।

"देवराज चौहान!" युवराज पाटिल की आवाज कानों में पड़ी--- "जब तुमने तिजोरी का सौदा करने से इंकार कर दिया तो मैं तभी समझ गया था कि अब तुम हर हाल में रिमोट हासिल करने की कोशिश करोगे। माने हुए डकैती मास्टर तो हो ही। ऐसे में अगर तुम्हें मालूम हो जाए कि रिमोट कहां है तो पीछे हटने वाले नहीं। आखिर तिजोरी में बंद पचास अरब के हीरे-जवाहरातों का सवाल है। ऐसे में तिजोरी को सड़क पर तो फेंकोगे नहीं। तुम्हें मालूम हो जाए कि रिमोट कहां है, इसी कारण मैंने ठाकुर या वजीर शाह के सामने इस बात का जिक्र किया कि रिमोट मैंने यहां स्ट्रांग रूम में रख दिया है।"

"उनके सामने जिक्र करने का फायदा?" देवराज चौहान बोला।

"फायदा सामने है। तुम लोग यहां हो।" पाटिल का मुस्कुराता स्वर सुनाई दिया--- "मैं अच्छी तरह जानता हूं कि ठाकुर या वजीर शाह में से कोई एक नसीमा तक मेरी खबरें पहुंचा रहा है और नसीमा तुम्हारे साथ है। वही हुआ जो मैंने सोचा था। उन दोनों में से किसी एक ने नसीमा को ये बात बताई। नसीमा ने तुम्हें और तुम यहां रिमोट हासिल करने के लिए आ गए। लेकिन एक जगह मेरी सोच अवश्य गलत हुई।"

"क्या?"

"मैं तो सिर्फ तुम्हें और तुम्हारे साथियों के आने का इंतजार कर रहा था। लेकिन तुम तो राम दा और इसके ढेरों आदमियों को भी साथ ले आए। ये बात मुझे अभी भी समझ में नहीं आई।"

"मजबूरी थी।" देवराज चौहान ने सोहनलाल पर निगाह मारी--- "नसीमा ने यहां की सुरक्षा प्रबंध के बारे में जो बताया था, उसके हिसाब से भीतर प्रवेश करना संभव नहीं था, इसलिए।"

"तुम अपनी जगह ठीक हो।" पाटिल का स्वर कानों में पड़ा--- "लेकिन मैंने तुम्हारी आसानी  के लिए यहां पर अपने आदमी कम कर लिए थे। उन्हें किसी काम पर भेज दिया था।"

"ये खबर मुझे नहीं मिली।" देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी--- "लेकिन तुमने ऐसा क्यों किया?"

"इसलिए कि तुम आओ और अपना काम करो। मैं देखना चाहता था कि तुम कैसे दरवाजे खोलते हो। स्ट्रांग रूम खोल पाते हो या नहीं। मैंने सब देखा। तुम वास्तव में सफल हो गए।"

"कोई भी डकैती मैंने अकेले नहीं की। सब काम मिलकर ही होते हैं पाटिल। मैं डकैती की योजना बना सकता हूं। रास्ते में आने वाली रुकावट को दूर करने का रास्ता निकाल सकता हूं। इस काम में मेरे साथी मेरी मदद करते हैं और आखिर में सोहनलाल का काम आता है। अगर ये असफल रहे तो, सारी मेहनत बेकार हो जाती है। यानि कि मेरे द्वारा की गई डकैतियों का श्रेय, मुझे नहीं सबको मिलना चाहिए। मैं और मेरे साथी एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। जीत का सेहरा सिर्फ मेरे माथे पर बांधना गलत होगा।

"मत भूलो नाम तुम्हारा ही आता है।"

"इस बात का जवाब तो पुलिस ही दे सकती है।"

"पुलिस वाले अपनी जगह ठीक हैं देवराज चौहान। अगर तुम सशक्त योजना ही न बनाओ। डकैती की सोचो ही नहीं तो तुम्हारे साथी कभी भी डकैती नहीं डाल सकते।"

"मैं बेकार की इस बहस में नहीं पड़ना चाहता।" देवराज चौहान ने कहा।

तभी राम दा भड़क कर कह उठा।

"तुम तो इस तरह बात कर रहे हो, जैसे पाटिल तुम्हारा दोस्त हो।"

"तो क्या करूं?" देवराज चौहान मुस्कुराया।

जवाब में राम दा दांत पीसकर रह गया।

पाटिल का हंसने का स्वर आया।

नाथ एक तरफ सहमा-सा खड़ा था।

"ठाकुर और वजीर शाह में से कौन नसीमा को भीतरी खबरें दे रहा है, देवराज चौहान?"

"पाटिल!" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "मुझसे सिर्फ मेरी ही बात करो।"

पाटिल की आवाज नहीं आई।

देवराज चौहान ने सोहनलाल को देखा। कुछ आगे बढ़कर रुका।

"सोहनलाल!" देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता और नजरें फर्श पर थीं। जहां अधिकतर लाली ही नजर आ रही थी। जो कि नीचे बारूद होने की निशानी थी--- "तुम इस तरफ तो आ नहीं सकते।"

"नहीं।" सोहनलाल ने इंकार में सिर हिलाया--- "दोनो टांगें जोड़े खड़ा हूं। ऐसे में चार फीट की छलांग लेने में भारी खतरा है। शायद छलांग ना ले पाऊं।"

"लेकिन स्ट्रांग रूम में छलांग ले सकते हो। सिर्फ एक फीट का फासला है। स्ट्रांग रूम में पहुंचते ही तुम बारूद के खतरे से दूर हो जाओगे।" देवराज चौहान ने कहा।

सोहनलाल नीचे देखते हुए कह उठा।

"हां। एक लंबा कदम उठाकर ही मैं स्ट्रांग रूम में---।"

तभी युवराज पाटिल का स्वर वहां गूंजा।

"गलती मत कर बैठना सोहनलाल।"

"क्यों?" देवराज चौहान के होंठों से निकला।

उसी क्षण चार जगह से दो इंच के व्यास में दीवार का प्लास्टर तोड़ती हुई गनों की चार नालें झलक उठीं। एक नाल तो सोहनलाल के बेहद करीब थी। दरवाजे की तरफ।

देवराज चौहान के होंठ भिंच गए

"हरामजादा।" राम दा गुस्से से कह उठा।

सोहनलाल ने देवराज चौहान को देखा।

"देवराज चौहान!" पाटिल का गंभीर स्वर सबके कानों में पड़ा--- "अगर सोहनलाल अपनी जगह से हिला तो अपनी मौत का खुद जिम्मेवार होगा। मेरी उंगली ऐसी बटन पर है कि जिसे दबाते ही गनों से फायरिंग शुरू हो जाएगी और तब तक होती रहेगी जब तक मैं स्विच ऑफ न कर दूं। और गनें इस तरह फिट हैं कि पांच फीट के बारूद वाले हिस्से में जो भी हो बचेगा नहीं।"

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

"मात्र पांच फीट का बारूद वाला है। स्ट्रांग रूम का दरवाजा खुल चुका है। ऐसे में छलांग मारकर बहुत ही आसानी से उस हिस्से को पार करके, स्ट्रांग रूम के भीतर जाया जा सकता है। और बाहर आया जा सकता है। ऐसा ना हो, इसके लिए ही ये गनें फिट की गई थीं।"

"बहुत सोच-समझकर सारा इंतजाम किया गया है।" देवराज चौहान ने कहा।

"करना पड़ता है। तुम जैसे शातिरों को भी तो ऐसे मौके पर रोकना होता है।" कहकर पाटिल हौले से हंसा।

देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव दौड़ रहे थे।

"आज मुझे मालूम हो गया कि स्ट्रांग रूम तक पहुंचने का मेरा इंतजाम पर्याप्त नहीं है। यहां पहुंचा जा सकता है सोहनलाल जैसा एक्सपर्ट कम्बीनेशन को समझ सकता है। अब मैं यहां की सुरक्षा का इससे भी बढ़िया इंतजाम करूंगा, ताकि दोबारा कभी सोहनलाल को लेकर आओ तो, सफल न सको।" आवाज में मुस्कुराहट आ गई थी।

"साले, हरामजादे पाटिल।" राम दा गुर्रा उठा--- "काम की बात कर।"

"बहुत नाराज लग रहे हो राम दा।" पाटिल के हंसने का स्वर आया।

"एक बार सामने आ जा। फिर---।"

"देवराज चौहान!" पाटिल की आवाज आई--- "मैं तुम्हारा बहुत ही शुक्र गुजार हूं कि तुमने राम दा को मेरे सामने ला दिया। मुझे बहुत तलाश थी इसकी लेकिन ये हाथ ही नहीं लगता था। ये हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ है। मुझे बड़े-बड़े नुकसान पहुंचाता है। मुझे खत्म करना चाहता है।"

"तो अब तू मेरा क्या कर लेगा। बोल। छुप कर बैठा है और बड़े-बड़े बोल बोल रहा है। याद रखना पाटिल, तेरी मौत मेरे ही हाथों होगी। मैं ही तुझे मारूंगा।" राम दा दांत पीस कर कह उठा।

सोहनलाल ने वहीं खड़े-खड़े गोली वाली सिग्रेट सुलगाई और कश लिया।

"देवराज चौहान!" पाटिल के स्वर में गंभीरता आ गई--- "अब काम की बात करें?"

"करो।"

"लेकिन साथ ही इतना जान लो कि तुम लोग मेरे निशाने पर हो। मैं जब भी चाहूं, तुम लोगों की जान ले सकता हूं। यहां से बाहर जाने की कोशिश की तो, पीछे के जो दरवाजे तुम्हें खुले नजर आ रहे हैं, वो मेरे एक बटन दबाने से बंद हो जाएंगे। इसलिए वापस जाने की कोशिश मत करना।"

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभर आई।

"पाटिल! मेरा साथी बारूद के घेरे में फंसा हुआ है।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम मुझे यहां से भेजने की लाख कोशिश कर लो। मैं यहां से नहीं जाऊंगा। अपने साथी को लेकर ही जाऊंगा। ऐसे में तुमने कैसे सोच लिया कि मैं यहां से जाने की कोशिश कर सकता हूं।"

"ये बात तुम्हारे लिए ही नहीं। राम दा के लिए भी कह रहा हूं।"

राम दा दांत भींचे खड़ा रहा।

"तुम यहां रिमोट लेने आए हो, ताकि तिजोरी में लगे, बम को बेकार करके तिजोरी खोली जा सके और उसमें मौजूद पचास अरब के हीरे-जवाहरात पा सको।" पाटिल का स्वर कानों में पड़ा।

"ऐसा ही समझ लो।" देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी।

"तुम्हें रिमोट मिल सकता है। लेकिन मेरी कुछ बातें मानने के बाद।"

"कैसी बातें?"

"पहली बात तो ये है कि राम दा को अभी इसी वक्त शूट कर दो।" पाटिल की आवाज शांत थी।

राम दा इस तरह उछला जैसे सांप पर पैर पड़ गया हो। जल्दी से उसने रिवाल्वर निकाली और देवराज चौहान की तरफ कर दी। खतरनाक भाव आ गए थे चेहरे पर।

"खबरदार, देवराज चौहान।" राम दा सख्त स्वर में कह उठा--- "अगर तुमने---।"

"रिवाल्वर जेब में रख लो राम दा।" देवराज चौहान का स्वर शांत था।

"नहीं। तुम मुझे मार---।"

"मैं तुम्हारी जान नहीं ले रहा। तुमने जो सुना, पाटिल ने कहा वो। मुझे बात करने दो।"

राम दा के दांत भिंचे रहे। रिवाल्वर हाथों में रही। चुप सा, उसे देखता वहीं खड़ा रहा।

"पाटिल!" देवराज चौहान बोला।

"कहो, देवराज चौहान!"

"राम दा इस वक्त, काम में मेरे साथ है। मेरे साथ यहां आया है। मैं इसकी जान नहीं ले सकता और ना ही इसकी जान लेने की कोई वजह है मेरे पास।" देवराज चौहान के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था।

"वजह है देशराज चौहान। मेरी एक-दो बातें मानने के बाद तुम्हें वो रिमोट मिल सकता है।"

"नहीं पाटिल।" देवराज चौहान ने इंकार में सिर हिलाया--  "राम दा को मैं नहीं मार सकता।"

"जल्दी जवाब देने की जरूरत नहीं है। सोच लो।" युवराज पाटिल का स्वर कानों में पड़ा--- "दूसरी बात भी सुन लो। सिर्फ दो बातें मानने पर तुम यहां से रिमोट लेकर, अपनी और अपने साथियों की जान बचाकर सुरक्षित यहां से जा सकते हो। वरना, जानते ही हो, मैं क्या करूंगा।"

"दूसरी बात भी कहो।"

"नसीमा को मेरे हवाले कर दो। नसीमा का जिंदा रहना मेरे लिए ठीक नहीं और उससे मुझे ये भी मालूम करना है कि ठाकुर और वजीर शाह में से कौन, उससे मिला हुआ है। ये मेरा अपना मामला है। इस मामले में से तुम्हें कोई वास्ता नहीं होना चाहिए।" पाटिल के स्वर में सख्ती आ गई थी।

"मैं तुम्हारी बात से सहमत हूं कि नसीमा तुम्हारे साथ काम करती थी। उसका असल वास्ता तुम्हारे साथ ही है। लेकिन वो भी इस वक्त, मेरे काम में, मेरे साथ है।" देवराज चौहान ने सपाट स्वर में कहा--- "ऐसे में नसीमा को तुम्हारे हवाले नहीं कर सकता। जब वो मुझसे अलग हो जाए तो फिर बेशक नसीमा के साथ तुम कैसा भी व्यवहार कर सकते हो। तब इस मामले से मेरा कोई वास्ता नहीं होगा।"

"देवराज चौहान तुम जवाब देने में जल्दबाजी कर रहे हो।"

"तुमने जो दो बातें कहीं, उनका जवाब देने के लिए मुझे सोचने की जरूरत नहीं है। इस काम में राम दा और नसीमा मेरे साथी हैं। जो तुम चाहते हो, वो नहीं हो सकता।"

"जो मैंने कहा है, वो तो तुम्हें मानना ही पड़ेगा देवराज चौहान।"

देवराज चौहान के होंठों पर मुस्कान उभरी।

"इस तरह मुस्कुराने से काम नहीं चलेगा।" पाटिल की आवाज सुनाई दी--- "मेरी बातों पर गौर करो। वक्त है तुम्हारे पास। सोच लो हम फिर बात करेंगे। कुछ देर बाद। आधे घंटे बाद।"

"कोई फायदा नहीं होगा, ये वक्त देने का।"

"फिर भी मैं वक्त दे रहा हूं कि तुम ये ना कहो कि मुझे सोचने का मौका नहीं दिया। लेकिन याद रखना तुम्हारा ये इंकार तुम्हारी और सोहनलाल की जान ले सकता है। मेरी बातों पर ठंडे दिमाग से गौर करना।" युवराज पाटिल कि वहां गूंज रही आवाज में धमकी का स्पष्ट भाव झलक रहा था।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

"मैं फिर बात करूंगा, देवराज चौहान। और सोहनलाल तुम अपनी जगह से हिलने की कोशिश मत करना। वरना मारे जाओगे। मेरी बात को सिर्फ धमकी मत समझना।" इसके बाद आवाज आनी बंद हो गई।

कई पलों तक वहां खामोशी-चुप्पी रही।

राम दा दांत किटकिटाकर कह उठा।

"अब तुम क्या करोगे देवराज चौहान?"

"कुछ नहीं।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा।

"तो अब मेरे से चालबाजी खेलने की सोच रहे हो।" राम दा पहले वाले स्वर में कह उठा।

"क्या मतलब?" देवराज चौहान ने राम दा को देखा।

"मुझे बेवकूफ मत समझो देवराज चौहान।" राम दा एक-एक शब्द चबाकर कह उठा--- "पाटिल ने साफ-साफ कहा है कि अगर तुमने मुझे गोली नहीं मारी तो वो तुम्हें और सोहनलाल को मार देगा और तुम कभी भी मरना नहीं चाहोगे। ऐसे में जाहिर है कि तुम मुझे खत्म करोगे ही।"

"निश्चिंत रहो राम दा। तुम तो इस वक्त मेरे साथी हो। अगर साथी नहीं भी होते और पाटिल खामख्वाह तुम्हें मारने को कहता तो, तब भी अपनी जान बचाने के लिए तुम्हें नहीं मारता।" देवराज चौहान बोला।

"मुझे तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं।" राम दा कठोर निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था।

"एक ही बात को क्यों बार-बार बोल रहा है।" सोहनलाल कह उठा--- "देवराज चौहान कह रहा है तो मान ले मेरी बात को। वैसे भी रिवाल्वर तूने पकड़ रखी है। जब भी गड़बड़ लगे, तो ले चला देना।"

"मैं तेरे से बात नहीं कर रहा।" राम दान ने खा जाने वाले स्वर में कहा।

"मैं कहां बात कर रहा हूं। मैं तो तेरे को समझा रहा हूं। बिन मांगी राय दे रहा हूं।" सोहनलाल मुस्कुराया।

देवराज चौहान के प्रति सतर्क, राम दा रिवॉल्वर थामे खड़ा रहा।

"अब क्या करना है?" सोहनलाल ने पूछा।

"करने को मेरे पास बहुत कुछ है सोहनलाल।" देवराज चौहान ने गंभीर स्वर में कहा--- "लेकिन कुछ कर नहीं सकता। पाटिल ने जैसे मेरे पांवों को बांध दिया है।"

"मैं समझा नहीं।"

"अगर कुछ करता हूं तो कम से कम तुम बच नहीं सकोगे। बारूद में घिरे हुए हो तुम। ऊपर से पाटिल के गनों में तुम्हें निशानों पर तो रखा है। ऐसे में मैं कुछ नहीं कर सकता।"

"देवराज चौहान! इस वक्त तुम्हें पाटिल की दोनों बातों को मान लेना चाहिए। अगर नहीं मानोगे तो उस स्थिति में वो हम सब को खत्म कर देगा।" सोहनलाल ने गंभीर स्वर में कहा--- "अगर उसकी बात मानने का इरादा न हो तो मुझे मेरे हाल पर छोड़कर, जो करना चाहो, वो करो। किसी एक की तो जान बचेगी। कुछ ना करने से, कुछ करना ही बेहतर होगा।"

"नहीं।" देवराज चौहान ने मुस्कुराकर शांत भाव में सिर हिलाया--- "ना तो मैं राम दा और नसीमा को पाटिल के हवाले कर सकता हूं। ना ही तुम्हें खतरे में छोड़कर कोई हरकत कर सकता हूं। यहां पर मैं रिमोट लेने आया हूं, लेकिन पाटिल ने इस कदर जाल में फंसा लिया कि कुछ नहीं कर पा रहा हूं।"

एकाएक राम दा गुर्रा उठा।

"अगर तुमने अपनी जान बचाने के लिए, मेरी जान लेने की कोशिश की तो तुम सफल नहीं हो सकोगे। मैं पहले ही तुम्हें गोली मार दूंगा।" राम दा दांत किटकिटाकर कह उठा--- "मत भूलना राम दा हूं मैं। अंडरवर्ल्ड में नाम है मेरा। डरते हैं लोग मुझसे और यहां हर तरफ मेरे आदमी फैले हुए हैं।"

"लेकिन इस वक्त तेरी बहादुरी नहीं चल सकती राम दा।" सोहनलाल कह उठा।

"मैं अभी भी बहुत कुछ कर सकता हूं।"

"तो बुला अपने आदमियों को, जो बाहर हैं। उन्हें कह हमें बचा लें।" सोहनलाल का स्वर कड़वा हो गया।

राम दा होंठ भींचकर रह गया।

"नहीं बुला सकता। ऐसा करने की कोशिश की तो पाटिल उन दरवाजों को, अपनी जगह बैठे-बैठे पुनः बंद कर देगा जिन्हें मैंने खोला है। और ये जगह हमारे लिए मौत का बंद कमरा बन जाएगी।"

राम दा के चेहरे पर विवशता झलकने लगी।

"कोई तो रास्ता निकालना ही होगा।" सोहनलाल ने गंभीर नजरों से देवराज चौहान को देखा।

"इन हालातों में कोई रास्ता नहीं निकाला जा सकता।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम बारूद के घेरे में नहीं फंसे होते तो अब तक कोई ना कोई रास्ता निकल चुका होता।"

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"मेरे ख्याल में जरूरत से ज्यादा देर हो चुकी है।" जगमोहन ने कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह मारते हुए कहा--- "ग्यारह से ऊपर का वक्त हो चुका है। अब तक तो तीन बार काम निपटाकर उन्हें बाहर आ जाना चाहिए।"

जगमोहन और नसीमा, फार्म हाउस की दीवार से दूर खेतों के किनारे बैठे, दीवार को ही देख रहे थे। सूर्य भी अब आसमान के बीच की तरफ खिसकने लगा था।

"देर होने की वजह एक ही हो सकती है।" नसीमा ने कहा।

"क्या?"

"वो दरवाजे न खुले हों। सोहनलाल, कंबीनेशन नंबरों की कड़ी ना तलाश कर पा रहा हो।"

"अगर ऐसा होता तो अब तक ये खबर बाहर आ चुकी होती।" जगमोहन ने गंभीर स्वर कहा--- "वैसे सोहनलाल काबिल बंदा है अपने काम में। हर तरह के लॉक खोलने में माहिर है।"

"हो सकता है, इस बार फंस गया हो।"

"हो भी सकता है।" जगमोहन के चेहरे पर सोच के भाव नजर आने लगे।

"और युवराज पाटिल को तुम क्यों भूल रहे हो। वो बंगले के भीतर ही कहीं छिपा है और वो जहां भी होगा। खामोशी से तो बैठेगा नहीं। उसके लिए कोई भी मुसीबत खड़ी कर सकता है।" नसीमा ने जगमोहन को देखा।

दोनों की निगाहें मिलीं।

"मेरे ख्याल में अब तुम पर नजर रखने की कोई जरूरत नहीं है।" जगमोहन खड़ा होते हुए बोला।

"नजर रखने की तो पहले भी जरूरत नहीं थी। लेकिन सावधानी के नाते ठीक किया।" नसीमा मुस्कुराई

"मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूं।" जगमोहन ने उसे देखा।

नसीमा वैसे ही नीचे बैठी थी।

"क्या अभी भी मुझ पर यकीन नहीं है?" नसीमा मुस्कुराई।

"है। तभी पूछ रहा हूं।"

"तो क्या करना होगा मुझे?"

"मैं भीतर जा रहा हूं और तुम यहीं रहोगी। किसी भी हालत में भीतर आने की कोशिश नहीं करोगी।"

"मेरे भीतर जाने में तुम्हें एतराज है कोई?"

"मैं अकेले ही भीतर जाना चाहता हूं।"

"ठीक है जाओ। मैं यहीं बैठी रहूंगी और जब वापस आओगे, यहीं मिलूंगी।" नसीमा ने कहा।

"विश्वास कर लूं?"

"पक्का कर लो। मैंने भला कहां जाना है!"

जगमोहन ने उसे देखा फिर दीवार की तरफ बढ़ गया। जहां सीढ़ी लगी थी। सीढ़ी के पास पहुंचकर उसने गर्दन घुमाकर दूर बैठी नसीमा को देखा फिर सीढ़ी पर चढ़ गया। भीतर राम दा के आदमियों को सतर्कता से पहरा देते पाया। जगमोहन भीतर की तरफ कूद गया। पांव नीचे लगते ही, जरा लड़खड़ा गया, फिर संभल गया।

कईयों की निगाह उस पर गई।

"सब ठीक है?" जगमोहन ने सामने मौजूद व्यक्ति से पूछा था।

"हां।"

"वो लोग कहां हैं?"

"भीतर।"

"इतनी देर क्यों लग रही है?" जगमोहन ने इधर-उधर नजर मारी।

"मालूम नहीं। हमारी ड्यूटी यहां है।"

"भीतर जाने का रास्ता किधर से है?"

"उधर से।"

जगमोहन उसी तरफ बढ़ गया।

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