स्टार नाइट क्लब एक शानदार जगह थी।

भीतर प्रवेश करने के बाद वो तीनों बिखर गए और अपने-अपने तौर पर वहां की जानकारी इकट्ठी करने लगे। चूंकि अभी शाम के आठ बजने वाले थे। क्लब के हिसाब से वक्त ज्यादा ना हुआ था, ऐसे में अभी ज्यादा लोग नहीं थे वहां।

भीतर प्रवेश करने पर सामने लाऊंज था, जहां कीमती गद्देदार सोफे पड़े थे। वातावरण में ए.सी. की ठण्डक थी और तीव्र रोशनियों से वो जगह चमक रही थी। फर्श पर गद्देदार कालीन बिछा था। सोफों पर यहां-वहां लोग बैठे थे जो कि शायद अपने साथियों के इंतजार में थे। एक तरफ काफी लंबा रिसेप्शन डेस्क था, जिसके पीछे दो खूबसूरत युवतियां मौजूद थीं। वहां तीन लोग खड़े हुए थे। उनसे अपने काम की जानकारी ले रहे थे। लाऊंज से निकलते लोग इधर-उधर आ-जा रहे थे। दिल लुभाने वाला नजारा था।

वहां से एक रास्ता सीधे आगे आठ फीट चौड़ी गैलरी आगे जाकर एक शानदार बाररूम में निकलती थी। बाररूम देखते ही बनता था। वहाँ की हर चीज को कलर फुल रखने की कोशिश की गई थी। विशाल, लंबा बार काउंटर कई रंगों में बना हुआ था। उसका डिज़ाइन तैयार करने में काफी मेहनत की गई लगती थी। काउंटर के पीछे खूबसूरत रैकों में बोतलों के लिए शानदार स्टैण्ड बने थे। काउंटर के पीछे चार बारमैन मौजूद थे। इसके अलावा क्लब की यूनिफार्म में वेटर इधर-उधर आते-जाते दिख रहे थे। वहां पर इस वक्त भी तीस से चालीस लोग भौजूद थे। जबकि चार सौ लोगों के बैठने का इंतजाम था। बाथरूम की रोशनियां मध्यम थी। टेबल-कुर्सियां कई रंगों में मौजूद थीं। फर्श पर कालीन न होकर खास तरह की टाइलें थीं जो कि बहुत अच्छी लग रही थी। अभी क्लब की शाम जवान होने में वक्त बाकी था। महफिल धीरे-धीरे लगनी थी, जमनी थी। दो बार मैनेजर इधर-उधर टहलते दिखाई दे रहे थे। जो कि हर तरफ नज़र रखे हुए थे और जहां वे जरूरत समझते उस तरफ फौरन वेटर को भेज देते।

हम वापस लाऊंज में पहुंचते हैं। जहां से एक रास्ता नाइट क्लब के कक्ष की तरफ जा रहा था। वो भी चमकती रोशनियों से भरी आठ फीट चौड़ी गैलरी थी। जिसकी छत पर रंग-बिरंगी रोशनियां नीचे चमक फेंक रही थी। फर्श पर मोटा कालीन था कि उस पर पांव रखते-रखते ही जैसे उनके नीचे धंस जाने का एहसास होता। पंद्रह फीट लंबी गैलरी के किनारे पर शीशे का डिज़ाइन वाला दरवाजा लगा था और होटल का एक कर्मचारी खड़ा आने वालों को स्वागत से भरी मुस्कान देता और दरवाजा खोल देता।

दरवाजे के पास एक लंबा और चौड़ा हॉल था। जहां पर मध्यम सी रोशनी फैली हुई थी। सिलसिलेवार गोल और चौड़ी टेबलें लगी हुई थीं। बहुत ही अच्छे ढंग से टेबलों को सजाया गया था। और वहां करीब तीन सौ लोगों के बैठने का इंतजाम था।

लाऊंज से ही एक रास्ता अन्य हॉल में जा खुलता था। यहां डी-जे था। डांस करने के लिए फ्लोर था। बैठने के लिए कुर्सियां और टेबलें लगी हुई थीं। माईक भी मौजूद था अगर कोई गाना गाना चाहे। एक तरफ वीडियो गेम्स की मशीनें लगी थीं। जिनकी आवाजें रह-रहकर वातावरण में गूंज रही थी। यहां पर आने वाले को पारिवारिक माहौल मिलता। बच्चे वीडियो गेम्स खेलते। फलोर पर डांस करते। गाना गाते। इस हॉल में अक्सर महिलाओं और बच्चों का मेला ज्यादा लगा रहता था। अगर कोई इस हॉल में खाना खाना चाहे तो या पीना चाहे तो उन्हें सामान यहां पर भी सर्व कर दिया जाता था।

लाऊंज से ही चौथा और अंतिम रास्ता इसी तरह एक गैलरी में ही जाता था, जिसके बाहर मोटे-मोटे शब्दों में प्राइवेट लिखा था। यहां पर नाइट में क्लब की देखभाल करने वाले कर्मचारियों के ऑफिस थे जैसे कि नाइट क्लब का मैनेजर देशमुख वागले। क्लब के छः असिस्टेंट मैनेजर। एकाउंट डिपार्टमेंट के लोग। सब अन्य काम करने वाले कर्मचारी, गैलरी पार करते ही सब से पहले मैनेजर देशमुख वागरे का आफिस था, जो कि पचास बरस का एक सेहतमंद व्यक्ति था। उसे क्लब में टहलते कम ही देखा जाता था। अधिकतर तो वो अपने ऑफिस में ही मौजूद रहता था। और सी.सी.टी.वी. कैमरे द्वारा स्क्रीन पर क्लब का हाल-चाल देखता रहता।

देशमुख वागरे इस वक्त भी अपने ऑफिस में मौजूद था । और टेबल पर रखी दो फाइलों को देखने में व्यस्त था। फिर एकाएक फाइलें वहीं छोड़कर उठा और आफिस का दरवाजा बंद करने के पश्चात् दीवार में लगी लकड़ी की अलमारी की तरफ बढ़ गया। अलमारी को खोला तो सामने शैल्फों में फाइलों को लगे पाया। उसने हाथ बढ़ाकर फाइलों की शैल्फों को दाईं तरफ धकेला तो वो एक तरफ सरक गईं और सामने नीचे जाने की सीढ़ियां नज़र आईं। वहां मध्यम सी पर्याप्त रोशनी थी।

देशमुख वागरे आगे बढ़ा और सीढ़ियां उतरकर एक छोटे से हॉल में जा पहुंचा। वहां का नजारा देखते ही बनता था। उस जगह पर करीब बीस टेबलें मौजूद थीं। हर टेबल के पीछे छः कुर्सियां मौजूद थीं। होटल की यूनिफार्म में करीब दस आदमी वहां मौजूद थे। एक कोने में छोटा-सा बार बना हुआ था। इस वक्त चार टेबलों पर बैठे लोग ताश खेलने में व्यस्त थे। उनकी टेबलों पर रंग-बिरंगे टोकनों का ढेर लगा हुआ था। वहां व्हिस्की के गिलास भी मौजूद थे। यहां शौकिनों को जुआ खिलाया जाता था। परंतु ये बात हर किसी को मालूम नहीं थी। क्लब के खास मैम्बरों को ही पता थी। या पुलिस को पता थी जिसके पास देशमुख वागरे ठीक वक्त पर हफ्ता पहुंचा देता था। देशमुख ने सब काम ठीक से संभाल रखे थे। विलास डोगरा को उससे कोई शिकायत नहीं थी।

देवराज चौहान, जगमोहन और हरीश खुदे क्लब में रात साढ़े ग्यारह बजे तक रहे। पूरा क्लब उन्होंने देख लिया कि कौन-सा रास्ता किधर को जाता है। अपने काम की हर जानकारी हासिल की। ग्यारह बजे वे क्लब के रेस्टोरेंट में मिले। और एक साथ उन्होंने वहां खाना खाया। खाना बढ़िया था। उसके बाद वे बाहर निकले और होटल की तरफ पैदल ही चल पड़े।

"मेरे ख्याल में देशमुख वागरे डोगरा से अपने ऑफिस में मिलेगा।" जगमोहन बोला--- “वो आसानी से हमारे हाथ लग जाएगा।"

"वो डोगरा से पहली मंजिल पर भी मिल सकता है।" देवराज चौहान ने कहा--- "पहली मंजिल पर बारह कमरे बने हुए हैं। हो सकता है कि डोगरा ने रात वहीं पर ही बिताने की सोच रखी हो।"

"पहली मंजिल पर क्या होता है?"

"कुछ नहीं, वहां सजे-सजाए कमरे हैं। कहीं बैड है तो कहीं कुर्सियां, टेबल। वहां के एक हिस्से में एकाउंट्स डिपार्टमेंट काम करता है और एक कमरा ऐसा है जहां क्लब का कैश रखा जाता है। वो स्ट्रांग रूम जैसा कमरा है ।"

“फिर तो देशमुख डोगरा के साथ वहीं मिलेगा? शायद डोगरा रात को भी वहीं रहे।" जगमोहन बोला।

"क्लब इतना बड़ा नहीं है कि डोगरा के आने पर हम उस तक ना पहुंच सकें।" देवराज चौहान का स्वर कठोर हो गया।

“हम उसे पकड़ लेंगे।" जगमोहन गुर्रा उठा--- "बचेगा नहीं वो।"

"कल हम क्लब में हर तरफ नज़र रखेंगे।"

“ये संभव नहीं।” हरीश खुदे कह उठा।

"क्यों?" देवराज चौहान ने उसे देखा।

"क्लब में प्रवेश करने के तीन रास्ते हैं। मुख्य दरवाजा तो वही है, जहां से हम निकले हैं। और जहां से हमने प्रवेश किया था। परंतु क्लब के पीछे की ओर दाएं और बाएं कोने में भी प्रवेश का एक-एक रास्ता है। उन दोनों रास्तों में करीब डेढ़ सौ फीट का फर्क है। मतलब कि एक आदमी उन दोनों रास्तों पर नज़र नहीं रख सकता। मान लो कि सामने के दरवाजे पर मैं मौजूद रहता हूं तो पीछे के दरवाजे पर भी दो लोग हमें चाहिए। जो नज़र रख सकें। क्या पता डोगरा किस दरवाजे से भीतर प्रवेश करता है। ऐसे में सोचना ये है कि कल शाम को कैसे काम होगा। तुम दोनों क्लब के भीतर रहोगे या बाहरी दरवाजों पर नज़र रखोगे ?” हरीश खुदे ने सोच भरे स्वर में कहा।

"हम दोनों तो भीतर होंगे।" जगमोहन बोला।

“फिर बाहर के बाकी दो रास्तों पर कौन होगा, क्या पता डोगरा कौन-से रास्ते से भीतर प्रवेश करता है। जब तक हमारे पास डोगरा के आने की खबर नहीं होगी, तब तक हम क्या कर सकते हैं? ये काम ऐसा भी नहीं कि हम किसी को भी पकड़ कर वहां की निगरानी पर लगा दें। हमें ऐसे लोग चाहिए जो डोगरा को पहचानते हों और सारा काम खामोशी से कर सकें।"

"तुम तो बहुत समझदार हो खुदे।" जगमोहन कह उठा।

"मुझे समझदारी दिखाने का तुम लोगों ने मौका ही कहां दिया है।" खुदे ने गहरी सांस ली।

“ये बात सोचने लायक है कि क्लब में प्रवेश करने वाले रास्तों पर नज़र कौन रखेगा?" देवराज चौहान बोला ।

"वैसे पीछे के दरवाजे लोगों के लिए नहीं हैं, होटल के कर्मचारियों के लिए हैं।” खुदे बोला--- "लेकिन वहां से कोई भी क्लब में आ-जा सकता है।"

"इसके लिए कुछ तो रास्ता निकालना होगा।" जगमोहन ने कहा।

तभी खुदे ने पलटकर पीछे देखा। चलता रहा।

पीछे कुछ लोग थे जो फासला रखकर चले आ रहे थे। खुदे ने उन्हें पहचाना कि आगे मोना चौधरी, पारसनाथ और महाजन थे। उनसे कुछ पीछे चार लोग थे, परंतु अंधेरे में वो पहचान में नहीं आए। खुदे ने मुंह घुमा लिया।

“पीछे मोना चौधरी आ रही है।"

“मोना चौधरी ?" जगमोहन ने पल भर के लिए पीछे देखा--- "हम मोना चौधरी से बात कर सकते हैं कि वो कल...।"

"वो हमारा साथ नहीं देगी।" देवराज चौहान कह उठा।

"क्लब में प्रवेश करने वाले रास्तों पर नज़र ही तो रखनी है।" जगमोहन बोला।

"वो हमारा साथ नहीं देगी। हमने उसकी जान लेने की कोशिश की थी।"

"अब वो जान चुकी है उसमें हमारी कोई गलती नहीं थी। मैं उससे बात करता हूं।"

"कोई फायदा नहीं होगा ।"

जगमोहन ठिठक गया।

देवराज चौहान और खुदे आगे बढ़ते गए।

मोना चौधरी, महाजन आर पारसनाथ उसके पास पहुंचे। वे उसे देखकर रुकने लगे तो जगमोहन बोला।

चलते-चलते बात करते हैं।" कहने के साथ ही जगमोहन उनके साथ चल पड़ा।

"क्या बात है?" महाजन बोला।

"डोगरा कल अपने स्टार नाइट क्लब में पहुंचेगा। हमने उस पर हाथ डालना है।" जगमोहन ने कहा।

"डालो, हमें क्या?" महाजन का स्वर शांत था।

"क्लब में प्रवेश करने के तीन रास्ते हैं। हमने क्लब के भीतर भी नज़र रखनी है। ऐसे में हमें उन रास्तों पर नज़र रखने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत है जो डोगरा को पहचानते हों और उसके आते ही हमें खबर कर दें।"

"तुम्हारा मतलब है कि ये काम हम करें।" महाजन कह उठा।

"मामूली काम है। थोड़ी देर की बात है।"

"बेबी की हां के बिना मैं तुम्हारा काम नहीं कर सकता।" महाजन ने स्पष्ट कहा।

जगमोहन ने चलते-चलते अंधेरे में मोना चौधरी को देखा।

"हमें तुम्हारे से थोड़ी-सी सहायता की जरूरत है मोना चौधरी ।" जगमोहन बोला।

"मुझसे कोई आशा मत रखो।"

"ऐसी क्या नाराजगी कि...?"

"तुमने और देवराज चौहान ने मेरी जान लेने की कोशिश की थी।" मोना चौधरी का स्वर तख्त हो गया।

"की होगी। परंतु हमें तो वो वक्त भी याद नहीं। हम अपने होश में कहां थे। कठपुतली नाम के नशे ने हमारे होश छीन रखे थे। मुझे तो वो वक्त भी याद नहीं कि तुम कब की बात कर रही हो। हमारे लिए तो सब सुनी-सुनाई बातें हैं।"

"पर मैंने उस वक्त तो भुगता है।"

"तुम्हें अपने मन से मैल निकाल देनी...।"

"तुम्हारे और देवराज चौहान के लिए अभी इतना ही काफी है कि मैं तुम लोगों के पीछे से हट गई हूं।" मोना चौधरी ने सख्त स्वर में कहा--- “अगर मैं पीछे ना हटती तो तुम लोग इस वक्त भी भागे फिर रहे होते और जो कर रहे हो, वो कभी ना कर पाते। ऐसे में तुमने कैसे सोच लिया कि मैं तुम्हारी सहायता करूंगी?"

"मैंने तो सोचा था कि मामूली सा काम है। तुम्हें एतराज नहीं।"

"काम बेशक बड़ा भी होता, मुझे कोई एतराज नहीं था, परंतु अभी भी  मुझे पूरी तरह भरोसा नहीं है कि तुम लोगों ने सच में कठपुतली के असर में मेरी जान लेनी चाही। मैं अभी उलझन में ही हूं तभी तो तुम लोगों पर नज़र रख रही हूं।"

"ये तो तुम हमसे ज्यादती वाली बात कर रही हो।" जगमोहन ने गहरी सांस ली।

"लेकिन मुझे इन पर पूरा भरोसा है मोना चौधरी कि तब ये अपने होश में नहीं थे। कठपुतली नाम का नशा ही इन्हें नचा रहा था।" पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा--- "मैंने अब्दुल्ला से पूछताछ की थी और सारी बातें सामने आई। विलास डोगरा के पीछे पड़कर ये ठीक रास्ता अपना रहे हैं। डोगरा इनका ही नहीं, तुम्हारा भी दुश्मन है। डोगरा ने इनके हाथों तुम्हें खत्म कर की चेष्टा की थी, अब्दुल्ला से तुमने बात की होती तो ये बातें ज्यादा बेहतर ढंग से पता होती।"

“डोगरा ने सीधे-सीधे मुझे कुछ कहा।" मोना चौधरी बोली।

"सीधे ना सही, देवराज चौहान और जगमोहन को कठपुतली नामक के नशे का सेवन करा कर तुम्हारी हत्या के लिए भेज दिया। ये भी तो एक तरह से डोगरा का तुम पर हमला हुआ।" पारसनाथ बोला ।

"अभी मैं इस बात पर पूरी तरह विश्वास नहीं कर पाई।" मोना चौधरी ने कहा।

"लेकिन मुझे भरोसा है। मैं इसमें इनका साथ देना चाहता हूं।" पारसनाथ गम्भीर था।

"मुझे एतराज नहीं, अगर तुम चाहो।" मोना चौधरी कह उठी।

"जगमोहन।" पारसनाथ ने कहा--- "मैं तुम लोगों का साथ दूंगा।"

"शुक्रिया!" जगमोहन के होंठों से निकला।

"हम तुम्हारे ही होटल में सोलह नम्बर कमरे में हैं, जब भी मेरी जरूरत हो बुला लेना।"

"कल बैठकर प्रोग्राम बनाएंगे।" जगमोहन बोला फिर महाजन से कहा--- "तुम भी मेरा साथ दे रहे...।"

"जब तक बेबी नहीं कहती, तब तक मैं तुम्हारा कोई काम नहीं करूंगा।" महाजन बोला।

जगमोहन ने मोना चौधरी को देखा।

खामोश सी आगे बढ़ती मोना चौधरी ने उसकी तरफ नहीं देखा।

“ठीक है पारसनाथ। कल मिलते हैं।" कहने के साथ जगमोहन तेज-तेज कदमों से देवराज चौहान की तरफ बढ़ गया।

जगमोहन देवराज चौहान के पास पहुंचा कि देवराज चौहान का फोन बजा ।

देवराज चौहान ने बात की। दूसरी तरफ नगीना थी।

"आप कोल्हापुर पहुंच गए?" नगीना ने उधर से पूछा।

"हां। हमने स्टारनाइट क्लब का मुआयना किया है। अब वापस लौट रहे हैं। वहां की क्या खबर है?"

"डोगरा के बारे में कोई हवा नहीं है।"

"साठी का परिवार?"

"वो वैसे ही है। सोहनलाल और रुस्तम राव वहां हैं।" उधर से नगीना कह रही थी--- "साठी से दोपहर में ही बात हो गई थी वो मेरे साथ चलने को मान गया है। मेरे साथ बांके और सरबत सिंह हैं। अगले दो घंटे तक हम, देवेन साठी के साथ उसकी ही गाड़ी में कोल्हापुर के लिए रवाना होंगे। सुबह नौ-दस बजे वहां पहुंचेंगे।"

देवराज चौहान ने अपने होटल के बारे में बताकर कहा।

"सीधे यहीं आना।"

"हम पहुंच जाएंगे। कल अगर डोगरा वहां ना पहुंचा तो?"

“मेरे पास पक्की खबर है। फिर भी ना पहुंचा तो कोई दूसरा रास्ता देखेंगे।” देवराज चौहान बोला।

"साठी पूरी कोशिश कर रहा है कि अपने परिवार को ढूंढ ले।"

“उसे कोशिश करने दो। तुम लोग कोल्हापुर पहुंचो। मोना चौधरी भी मेरे होटल में मौजूद है। वो मुझ पर नज़र रख रही है। उसे अभी तक पूरा भरोसा नहीं कि मैंने सच में कठपुतली के नशे में उसे मारना चाहा था और ये सब डोगरा का खेल था।"

“वो आपके रास्ते की रुकावट तो नहीं बन रही है?"

"नहीं। चुप है और देख रही है।"

बातचीत खत्म हो गई। देवराज चौहान ने फोन बंद करके जेब में रखा।

“मोना चौधरी हमारा साथ देने को तैयार नहीं, पर पारसनाथ हमारा साथ देने को तैयार है।" जगमोहन बोला ।

“मोना चौधरी ने पारसनाथ को रोका नहीं?" खुदे बोला।

“नहीं। वो बोली पारसनाथ अगर सहायता करता है तो उसे एतराज नहीं।"

"हम साठी के उन आदमियों की सहायता नहीं कर सकते, जो हमारे पीछे...।" खुदे ने कहना चाहा।

"नहीं खुदे ।" देवराज चौहान बोला--- “वो नासमझ लोग हमारा खेल बिगाड़ सकते हैं।"

खुदे सिर हिलाकर रह गया।

"क्लब में हमें ऐसे कई लोग नहीं दिखे जो वहां नज़र रखने को तैनात हों।" जगमोहन ने कहा--- "ऐसे में हमें वहां पर काम करने में परेशानी नहीं आएगी। डोगरा दिख गया तो हम आसानी से उसे संभाल लेंगे।"

"कल कुछ इंतजाम हो सकता है वहां। विलास डोगरा ने कल आना है।" देवराज चौहान बोला।

■■■

अगले दिन ।

शाम पांच बजे ।

पुरानी सी क्वालिस गाड़ी कोल्हापुर के एक होटल के बाहर रुकी। क्वालिस की हालत बाहर से बेहतर नहीं लग रही थी। जगह-जगह डैंट ठीक होने के निशान पड़े थे। उसे दया चला रहा था। विलास डोगरा और रीटा पीछे बैठे थे।

विलास डोगरा ने नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया।

बेल गई फिर बेहद शांत एक मर्दाना आवाज कानों में पड़ी।

"हुक्म डोगरा साहब।”

"कहां हो टूडे ?" विलास डोगरा की नज़रें क्वालिस के बाहर फिर रही थीं।

“आपकी गाड़ी से सौ गज पीछे, रुका हूं, आप क्यों रुक गए?" रमेश टूडे की आवाज कानों में पड़ी।

" अभी वक्त है मेरे पास। मैं होटल जाकर कुछ आराम करूंगा। फिर नहा-धोकर आठ बजे क्लब पहुंचूंगा। शायद होटल में मुझे कोई ना पहचाने। पहचान भी ले तो कोई फर्क नहीं पड़ता।" विलास डोगरा ने कहा--- "तू क्लब जा और हर तरफ देख, रास्ता ठीक है। देवराज चौहान का कोई निशान तो नहीं वहां ?"

“समझ गया। तो आपको अकेला छोड़ दूं?" रमेश टूडे ने उधर से कहा।

"मेरे ख्याल में यहां सब ठीक है।"

"ठीक है। मैं क्लब जाता हूं।"

"जा। मैं आठ बजे आ जाऊंगा।" कहकर डोगरा ने फोन बंद किया।

दया स्टेयरिंग सीट पर बैठा था।

“तेरे को लगता है दया कि कोई हमारे पीछे है?" डोगरा ने पूछा।

"कोई भी पीछे नहीं है।" दया ने बिना पीछे देखे कहा।

"तो होटल में ले चल गाड़ी को।"

दया ने क्वालिस को आगे बढ़ा दिया।

"हमें कोई नहीं पहचान सकता रीटा डार्लिंग। क्योंकि हम ऐसी गाड़ी में हैं, कि कोई सोच भी नहीं सकता।"

"वो तो ठीक है डोगरा साहब। पर इस होटल में रहने की क्या जरूरत है? क्लब के ऊपर रहने को बढ़िया जगह...।"

“अभी हम वहां नहीं जा सकते। टूडे लाइन क्लीयर बोलेगा तो उधर जाएंगे। टूडे उधर सारे इंतजाम कर देगा।"

"इस बार तो आप बहुत सावधानी इस्तेमाल कर रहे हैं।"

"देवराज चौहान के कारण।"

"उसे क्या पता होगा कि हम कोल्हापुर आ पहुंचे हैं।"

"प्रकाश दुलेरा को मत भूलो, जो देवराज चौहान के हाथों मारा गया। क्या पता उसने दुलेरा का मुंह खुलवा लिया हो। वैसे दुलेरा मुँह खोलने वाला नहीं, पर क्या भरोसा । सतर्कता बरतनी जरूरी है।" डोगरा ने कहा।

"आप तो देवराज चौहान से ज्यादा डर रहे हैं।"

"इसे डरना नहीं कहते रीटा डार्लिंग ये तो खेल होता है।" विलास डोगरा ने मुस्कराकर कहा--- "मौत का खेल। और इस खेल में जो जरा भी  लापरवाह हुआ, समझो वह मर गया। वैसे देवराज चौहान की मुझे जरा भी परवाह नहीं है। बहुत जल्द साठी अपना धैर्य खो देगा और वह अपने परिवार की परवाह न करते हुए उसे और जगमोहन को मार देगा।"

क्वालिस होटल के प्रवेश द्वार के सामने पहुंचकर रुक गई।

विलास डोगरा और रीटा बाहर निकले तो क्वालिस पार्किंग की तरफ बढ़ गई।

रीटा डोगरा की बांह में बाहें डालते हुए कह उठी।

“अच्छा होता अगर आप ही देवराज चौहान को निपट लेते।"

"हम जब वापस मुम्बई पहुंचेंगे तो देवराज चौहान का नाम खत्म हो चुका होगा।"

"वो बेचारा तो साठी को यह समझाने की कोशिश कर रहा होगा कि इस मामले के पीछे आप हैं।"

दोनों होटल के भीतर की तरफ को बढ़ गए।

"इस बात को कोई नहीं मानेगा। पूरबनाथ साठी को देवराज चौहान ने गोली मारी थी। गवाह है इस बात का। साठी मेरे बारे में कभी भी नहीं सोचेगा कि मैं इस मामले में हो सकता हूं।” विलास डोगरा मुस्कराया।

"आप भी तो कमाल की चाल सोचते हैं डोगरा साहब।" रीटा मुस्करा पड़ी।

“तू मेरे साथ रहती है रीटा डार्लिंग। मुझे एनर्जी मिलती है। मैं एकदम बढ़िया बातें सोच लेता हूं। रीटा डार्लिंग, अगर तुम ना होती तो मेरा जाने क्या होता? तुमने ही तो मुझे संभाल रखा है।"

"आपका भी जवाब नहीं।" रीटा हंसी--- “मैं तो खुद आपके भरोसे हूं।"

"ये तो मेरा दिल ही जानता है कि तुम मेरे लिए क्या हो ?" कहते हुए डोगरा रिसैप्शन की तरफ बढ़ते हुए रुका और जेब से मोबाइल निकालकर नम्बर मिलाया और फोन कान से लगा लिया।

दूसरी तरफ बेल बजते ही देशमुख वागरे की आवाज कानों में पड़ी।

"हैलो।"

“देशमुख ।” डोगरा शांत स्वर में बोला ।

"ओह डोगरा साहब, कोल्हापुर आ गए आप?"

"वाघमरे को बोल देना कि मैं आ गया हूं। और उसी प्रोग्राम के अनुसार शाम को तुम्हारे पास होऊंगा।” कहने के साथ ही विलास डोगरा ने फोन बंद कर दिया और वह रीटा के साथ रिसैप्शन जा पहुंचा।

■■■

देवेन साठी की आंख खुली तो शाम के पांच बज रहे थे। सामने बांकेलाल राठौर को बैठे देखा। वो सुबह ग्यारह बजे कोल्हापुर आ पहुंचे थे। रात जागते बीती थी। इसलिए आते ही साठी सो गया था। उसके साथ तीन आदमी अपने थे। जो कि दूसरे कमरे में ठहरे थे। नगीना और सरबत सिंह अन्य कमरे में थे। ये होटल देवराज चौहान वाला ही था।

"तुम मेरी निगरानी कर रहे हो?" देवेन साठी ने शांत स्वर में कहा।

“महारे को जगहों न मिललो हो तो मनने सोचा थारे कमरे में ही टिका जावे।" बांकेलाल राठौर मुस्कराया।

साठी उठा और बाथरूम में चला गया।

हाथ-मुंह धोकर वापस आया तो नगीना को वहां पाया।

"मैं तुम्हें नींद से जगाने ही आई थी साठी ।" नगीना कह उठी।

"चलना कब है?" साठी ने पूछा।

"हम साढ़े सात बजे गाड़ी में यहां से चलेंगे। डोगरा का क्लब पास में ही है, जहां वो आएगा।"

"उसके वहां पहुंचने की खबर पक्की है?"

"खबर है, पक्की है कि नहीं, ये वहां चलकर ही पता लगेगा।" नगीना बोली।

"मैं तुम्हारे साथ इस तरह यहां-वहां नहीं भटक सकता।" साठी का स्वर सख्त हो गया था।

"अपने परिवार को सलामत रखने के लिए तुम्हें ऐसा करना होगा।"

देवेन साठी के होंठ भिंच गए।

नगीना गंभीर दिखी।

"तुम देवराज चौहान, जगमोहन और खुदे की जान के पीछे हो और हमने ये सच्चाई तुम्हारे सामने लानी है कि ये सब डोगरा ने धोखे पे करवाया था। तुम इस बात पर तब ही यकीन करोगे जब डोगरा तुम्हारे सामने ही ये बात कबूल करेगा। इसी बात की कोशिश में हैं परंतु अभी पता नहीं आगे क्या होता है। ये भी तो हो सकता कि विलास डोगरा की और तुम्हारी मुलाकात का न हो सके डोगरा पहले ही मारा जाए।"

साठी कुछ नहीं बोला।

"तुम्हें हमारे साथ सहयोग करना चाहिए तुम्हारे भाई का असल हत्यारा डोगरा ही है।"

"तुम्हारी इस बकवास पर मैं भरोसा नहीं कर सकता।"

"जब डोगरा तुम्हारे सामने कहेगा तब भरोसा करोगे।"

"देवराज चौहान ने मेरे भाई को गोली मारी थी तो डोगरा...?"

“ये ही तो तुम्हें समझाना...।"

साठी का फोन बजने लगा।

"हैलो...।" देवेन साठी ने बात की।

“साठी साहब।” दूसरी तरफ देवेन साठी का आदमी गोकुल था--- "मैंने अभी डोगरा को देखा है।"

"कोल्हापुर में?" साठी की आंखें सिकुड़ी।

"जी हां...। देवराज चौहान तो अभी होटल में है। शेखर, शिंदे और घंटा उस पर नज़र रखे होटल में फैले हैं। मुझे कुछ काम था तो कार लेकर निकल गया। एक होटल के सामने मैंने पहले दया को देखा, वो पुरानी क्वालिस की ड्राइविंग सीट पर बैठा था। उसी की वजह से मैंने क्वालिस के भीतर झांका तो डोगरा को अपनी माशूका के साथ भीतर बैठे देखा। मैं रुका नहीं आगे बढ़ गया।

"कब की बात है ये?"

"दस मिनट पहले की अब मैं वापस होटल पहुंचने वाला हूँ।" गोकुल की आवाज आई।

"ठीक है, तुम्हारे हवाले जो काम है, वो करो।" कहकर साठी ने फोन बंद कर दिया और नगीना से बोला--- “डोगरा कोल्हापुर में है।"

नगीना के होंठ भिंच गए।

"ईब तो छुरियां चललो ही चललो साठी ।" बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया--- "सबो को वड दवांगे।"

"अच्छी खबर दी तुमने।” नगीना पलटती हुई बोली--- “मुझे ये खबर देवराज चौहान को देनी चाहिए।"

■■■

"हम नगीना, सरबत सिंह और बांके को भूल गए थे।" देवराज चौहान ने कहा--- "क्लब के पीछे वाले रास्तों पर वो नज़र रख सकते हैं। शायद हमें पारसनाथ की जरूरत नहीं पड़ेगी।"

"वो डोगरा को पहचानते हैं?" खुदे ने पूछा।"

"नगीना तो नहीं पहचानती, परंतु बांके और सरबत सिंह जरूर पहचानते होंगे। उनसे ये बात अभी पूछ लेते हैं।"

तभी नगीना दरवाजा खोलकर भीतर आ गई।

तीनों की निगाहें उस पर गई।

"विलास डोगरा कोल्हापुर पहुंच चुका है। ये बात अभी साठी ने किसी का फोन आने पर मुझे बताई थी।"

देवराज चौहान और जगमोहन के चेहरे खतरनाक भावों से भर उठे।

हरीश खुदे गंभीर दिखने लगा।

"मन में यह शंका भी थी कि कहीं उसने प्रोग्राम बदल न दिया हो। वो यहां न पहुंचा तो हमारी सारी मेहनत खराब हो जाएगी।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा--- "पर अब ठीक है। अब हम और भी बढ़िया ढंग से काम कर सकते हैं। उसका आठ बजे ही नाइट क्लब पहुंचने का प्रोग्राम तय है। वो उसी हिसाब से चलेगा। प्रकाश दुलेरा ने भी बताया था कि डोगरा एक-डेढ़ घंटे से ज्यादा वहां नहीं रुकेगा और गोवा के लिए हाथों-हाथ चल देगा। यहां से गोवा का रास्ता ढाई घंटे का है। उस क्लब में हमारे पास एक घंटा होगा कि हम विलास डोगरा को खत्म कर सकें और...।"

"विलास डोगरा को मारने से पहले, साठी के सामने, उसके मुंह से सच निकलवाना है।" नगीना बोली।

"कोशिश तो ये ही होगी परंतु ये सब उन हालातों पर निर्भर हे कि वहां पर तब क्या हालात होंगे?"

"साठी की निगाहों में आपको, अपने को निर्दोष साबित करना है।" नगीना ने गंभीर स्वर में कहा--- "ऐसा ना किया गया तो फिर साठी के साथ झगड़ा खड़ा हो जाएगा। तब वो मामला खतरनाक मोड़ ले सकता है।"

"मैं पूरी कोशिश करूंगा कि डोगरा की मुलाकात, साठी से करा सकूं।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "परंतु मैं खुद नहीं जानता कि क्लब में डोगरा हमें दिखेगा या नहीं, हम उसे पकड़ पाएंगे या नहीं।"

"हम उसे पकड़ लेंगे।” जगमोहन के होंठों से गुर्राहट निकली।

“ये आसान नहीं होगा जगमोहन।" खुदे ने सिर हिलाकर कहा--- "तुम विलास डोगरा को कम क्यों समझ रहे हो? कई मामलों में वो साठी से भी ज्यादा खतरनाक है। उसकी ताकत कम नहीं है। फिर ये क्यों भूलते हो कि वो क्लब उसकी जगह है। और उसे पता है कि तुम उसके पीछे हो। वो सतर्क होगा। उस पर हाथ डालना बेहद तकलीफ का सौदा भी हो सकता है।"

"हम उस पर हाथ डाल लेंगे।"

“ये तो अच्छा होगा अगर ऐसा हो गया तो।" खुदे बोला।

देवराज चौहान ने जगमोहन से कहा।

"पारसनाथ से कह दो कि हमारे साथी आ गए हैं। अगर जरूरत पड़ी तो उसे कहा जाएगा।"

जगमोहन ने सिर निकालते हुए मोबाइल निकाला और नम्बर मिलाने लगा।

"तुम सरबत सिंह और बांके को मेरे पास भेजो। उनसे शाम को काम लेना है। बात करनी है।" देवराज चौहान ने नगीना से कहा।

नगीना फौरन कमरे से बाहर निकल गई।

देवेन साठी के कमरे में पहुंची।

साठी कॉफी पी रहा था और बांके डबल बैड पर लेटा था।

"बांके भैया, देवराज चौहान ने तुम्हें और सरबत सिंह को बुलाया है।" नगीना ने कहा।

बांके फौरन उठ खड़ा हुआ।

"अंम अभ्भी उसी के पासो पौंचो हो।"

"सरबत सिंह को भी साथ ले जाना।"

बांकेलाल राठौर बाहर निकल गया। देवेन साठी, नगीना से बोला।

"तुम लोगों का वादा है कि विलास डोगरा की मौत के बाद मेरे परिवार को आजाद कर दोगे।"

"हम अपना वादा पूरा भी करेंगे।" नगीना ने गंभीर स्वर में कहा--- "डोगरा के मरते ही उसे छोड़ देंगे।"

"डोगरा अगर रात को क्लब में मारा गया तो?"

"तो एक घण्टे में मुम्बई में तुम्हारा परिवार आजाद हो जाएगा।" नगीना सख्त स्वर में कह उठी--- "देवराज चौहान को थोड़ी फुर्सत मिल सके इसी कारण तुम्हारे परिवार को बंधक बनाया है। डोगरा के मरते ही देवराज चौहान की फुरसत खत्म हो जाएगी।"

"मान लो।" साठी बोला--- "डोगरा पहले मारा जाता है। मेरे से उसकी बात नहीं हो पाती तो?"

"इसमें तुम्हारे परिवार की आजादी पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।" साठी को देखते ही नगीना ने कहा--- “बस यही फर्क पड़ेगा कि हम जो बात तुम्हें समझाना चाहते थे, वो नहीं समझा सके। उसके बाद तुम देवराज चौहान से अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहोगे और बचाव में देवराज चौहान तुम्हें खत्म कर देना चाहेगा कि ये मामला खत्म हो जाए। कठपुतली वाले नशे की बात तुम्हारी समझ में नहीं आ रही है, या तुम समझना नहीं चाहते। अगर तुम समझना चाहते हो तो मोना चौधरी की तरह काफी कुछ समझ चुके होते।"

साठी नगीना को देखता रहा फिर बोला ।

"अब मोना चौधरी पीछे ना हटती तो तुम लोग क्या करते ?"

"उसे भी पीछे हटना पड़ता।” नगीना ने सख्त स्वर में कहा--- "हम पारसनाथ और महाजन को बंधक बनाने जा रहे थे, कि मोना चौधरी के कदमों को रोक सकें। परंतु उससे पहले ही वो पीछे हट गई।"

"मैंने पहले भी कहा है कि अगर डोगरा को खत्म करना है तो अपने परिवार की खातिर मैं उसे खत्म कर...।"

"हमें अपने काम करने आते हैं साठी। तुम्हें तकलीफ करने की कोई जरूरत नहीं है।" नगीना ने कहा--- "हम तुम्हें दो दिनों से ये समझाने की चेष्टा कर रहे हैं कि तुम्हारे भाई की मौत का खेल डोगरा ने खेला था, तुम क्या समझते हो कि हम तुम्हें यह बात इसलिए समझा रहे हैं कि हमें तुम्हारा डर है? ऐसा तुम सोचते हो तो ये भूल है तुम्हारी। हम सिर्फ बेकार का खून-खराबा नहीं करना चाहते। हालातों को संभालने की चेष्टा कर रहे हैं...।"

"मेरे भाई को देवराज चौहान ने गोली मारी थी।" देवेन साठी गुर्रा उठा ।

"इसी लकीर को पीटते रहोगे तो बात तुम्हारी समझ में नहीं आएगी।" नगीना शांत स्वर में कह उठी--- "अगर मामला इसी तरह बिगड़ा रहा तो वक्त आने पर तुम पछताओगे कि हमारे लाख कहने पर भी तुमने सच को नहीं समझा।"

"मेरे भाई का हत्यारा देवराज चौहान है।" साठी सख्त स्वर में कह उठा।

"ऐसा ही सही। बाकी आने वाला वक्त बताएगा कि क्या होता है।" नगीना ने कहा और कमरे से बाहर निकल गई।

■■■

शाम के साढ़े आठ बज रहे थे। अंधेरा घिर चुका था। परंतु वातावरण में अभी भी गर्मी मौजूद थी। पसीना रह-रहकर बह रहा था। हवा ना के बराबर चल रही थी। परंतु स्टार नाइट क्लब के भीतर ए. सी. की ऐसी ठंडक मौजूद थी कि वहां आ जाने के बाद महसूस ही नहीं होता था कि बाहर गर्मी हो सकती है। क्लब की रौनक रोज की तरह उफान पर थी, कोई नहीं जानता था कि शायद आज क्लब में रंग में भंग पड़ जाए। बांकेलाल राठौर और सरबत सिंह क्लब के पीछे के उन रास्तों पर नज़र रख रहे थे जो कि वर्करों के काम में आते थे। एक तरफ के दरवाजे पर बांके लाल राठौर जमा हुआ था तो दूसरे पर सरबत सिंह निगाह रख रहा था। क्लब के सामने के दरवाजे पर हरीश खुदे नज़र रखे था। नीचे पार्किंग में खड़ी एक कार में देवेन साठी बैठा था और नगीना कार से टेक लगाये बाहर खड़ी थी। विलास डोगरा से मुलाकात कराने का मौका अगर मिलता तो उन्हें देवराज चौहान का फोन आ जाना था कि आ जाओ। वो उस फोन के इंतजार में थे ।

देवराज चौहान और जगमोहन क्लब के भीतर थे।

देवराज चौहान लाऊंज में मौजूद था और क्लब में आने वाले लोगों पर नज़र टिकाए बैठा था। जबकि जगमोहन क्लब के भीतर इधर-उधर घूमता हर तरफ नज़र रखे हुए था। सारा काम गुपचुप से चल रहा था परंतु देवराज चौहान और जगमोहन की निगाहें भाप ढंग चुकी थीं कि आज क्लब में कल जैसा माहौल नहीं है। क्लब में यहां-वहां काले सूट वाले आदमी बिखरे खड़े हैं। उनमें से कुछ तो चेहरे से खतरनाक लग रहे हैं। क्लब की तरफ से तैयारी पूरी कर ली गई थी कि डोगरा के आने पर अगर किसी भी तरह की गड़बड़ होती है तो फिर उसे संभाला जा सके। देवराज चौहान सोच रहा था कि ऐसे हालातों में काम करने के लिए सतर्कता बरतनी होगी। डोगरा पर हाथ डालते वक्त काले सूट वाले लोग रास्ते में आ सकते थे। तभी उसे जगमोहन अपनी तरफ आता दिखाई दिया और वो पास आकर बैठ गया।

"पूरे क्लब में करीब बीस आदमी यहां-वहां काले सूटों में खड़े हैं।" जगमोहन बोला--- "वो हथियारबंद हैं। उन्हें खासतौर से आज के लिए पहरे पर खड़ा किया गया है। वो हमारे लिए अड़चनें पैदा कर सकते हैं।"

"डोगरा दिख गया तो हमें हर हाल में काम निपटाना है।" देवराज चौहान प्रवेश द्वार पर नज़र रखे हुए बोला।

“उसकी साठी के साथ हम मुलाकात करा पाएंगे या नहीं ?"

"पता नहीं, ये तो आने वाले वक्त पर निर्भर है।"

“आठ बजे का वक्त था, साढ़े आठ हो चुके हैं।" जगमोहन ने नज़रें दौड़ाते हुए कहा।

"वो आने ही वाला होगा। तुम सतर्क रहो।"

जगमोहन वहां से उठकर क्लब के भीतर की तरफ बढ़ गया।

देवराज चौहान की निगाहें प्रवेश द्वार पर थीं।

दस मिनट और बीत गए थे।

तभी कोई देवराज चौहान के करीब सोफे पर आ बैठा। देवराज चौहान ने पल भर के लिए सिर घुमाकर उसे देखा। वो उसके लिए अजनबी था। परंतु वो रमेश टूडे था। देवराज चौहान ने वापस सिर घुमा लिया। पास बैठा व्यक्ति उसके दिमाग से निकल चुका था कि मिनट भर भी नहीं बीता था कि और कमर में रिवॉल्वर की नाल लगी पाकर वह चौंक उठा।

देवराज चौहान ने फौरन सिर घुमाकर रमेश टूडे को देखा।

"कौन हो तुम?" रमेश टूडे का स्वर बेहद धीमा था।

देवराज चौहान ने उसकी आंखों में छाए खतरनाक भाव को पहचाना। होंठ भिंच गए उसके ।

"कौन हो तुम?" रमेश टूडे ने पुनः अपना सवाल दोहराया।

"मैं हूं देवराज चौहान।" देवराज चौहान के होंठों से मध्यम सी गुर्राहट निकली।

"मेरा भी यही ख्याल था कि तू देवराज चौहान ही है। पता नहीं, कब, कहां, कैसे देखा होगा तुझे, या तेरी तस्वीर कभी देखी होगी। मेरा काम ही ऐसा है कि मुझे जानी-मानी हस्तियों के चेहरें याद रखने पड़ते हैं, कि पता नहीं कब किसकी जरूरत पड़ जाए। जैसे कि अब तेरी पड़ गई। मुझे तो नहीं जानता होगा तू?"

देवराज चौहान होंठ भींचे बैठा रहा।

कमर में रिवॉल्वर की नाल चुभ रही थी।

"रमेश टूडे हूँ मैं। विलास डोगरा मुझे तब अपने पास रखता है, जब वो खुद को मुसीबत में महसूस करता है। तूने तो डोगरा की नींद हराम कर दी। उसके काफी आदमियों को मारा। बहुत नुकसान पहुंचाया है उसे।"

"उस हरामजादे ने मेरी मौत का सामान इकठ्ठा कर...।"

"उसकी मुझे परवाह नहीं कि डोगरा ने क्या किया? वो तो ऐसे काम करता ही रहता है। और जब कि काम बिगड़ जाए तो उसे मैं ही संभालता हूं। हैरानी है कि तू मेरे बारे में कुछ नहीं जानता।”

"चाहता क्या है तू?” देवराज चौहान गुर्राया।

"तू डोगरा के इंतजार में है न?"

"तो?"

“यहां कुछ घुटन सी महसूस हो रही है। डकैती मास्टर देवराज चौहान जी।” रमेश टूडे सर्द स्वर में बोला--- “ए.सी. की ठंडक मुझे रास नहीं आ रही है। ज़रा बाहर की हवा खाकर मजा ले लें। उठ ।"

देवराज चौहान के होंठों से गुर्राहट निकली।

"वैसे मुझे यहां भी गोली मारने में एतराज नहीं, आगे तेरी मर्जी।" टूडे की आवाज में दरिंदगी भरी पड़ी थी।

देवराज चौहान उठ खड़ा हुआ। उसने जगमोहन की तलाश में नज़रें घुमाई । परंतु वो कहीं नहीं दिखा। ये नाजुक वक्त था। इस वक्त को वो बरबाद नहीं होने देना चाहता था। परंतु अब किया भी क्या जा सकता था। रिवॉल्वर उससे सटी थी और इस खतरनाक आदमी के इरादों को वो भांप चुका था।

"मेरी रिवॉल्वर तेरे से लगी रहेगी।" टूडे मौत भरे स्वर में कह उठा--- "परंतु ये बात किसी को पता नहीं चलेगी कि मैंने तेरे से रिवॉल्वर लगा रखी है। हम दोस्तों की तरह बाहर की तरफ चलेंगे, ज़रा भी गड़बड़ी की तो शूट कर दूंगा।"

देवराज चौहान का चेहरा सपाट और आंखों में वहशी भाव नाच रहे थे।

"चलो।" टूडे ने भिंचे स्वर में कहा।

दोनों एक दूसरे से सटे दरवाजे की तरफ बढ़ गए। आस-पास से लोग आ जा रहे थे परंतु किसी को हवा भी नहीं लगी कि इन दोनों के बीच क्या हो रहा है। दोनों दोस्तों की तरह चल रहे थे। रिवॉल्वर के नाल की चुभन बराबर देवराज चौहान को अपनी कमर में महसूस हो रही थी।

"तेरे पास रिवॉल्वर तो होगी ही। आखिर तू डोगरा का शिकार करने आया है।" टूडे बोला।

देवराज चौहान खमोशी से चलता रहा।

“उसे बाहर निकालने की गलती मत करना।" टूडे पुनः बोला।

वे दोनों क्लब के दरवाजे से बाहर निकलकर ठिठक गए।

सामने से विलास डोगरा कार से उतर रहा था। फिर रीटा उतरी और रीटा ने डोगरा की बांह थाम ली तब तक वो भी उन दोनों को देख चुके थे। दया क्वालिस को आगे बढ़ा ले गया।

“देख ले डोगरा को।" टूडे सर्द स्वर में बोला--- “दर्शन कर ले डोगरा के आखिरी।"

देवराज चौहान का शरीर सुलग उठा विलास डोगरा को देखते ही।

विलास डोगरा उन्हें देखकर मुस्कराया और रीटा के साथ आ पहुंचा।

"रीटा डार्लिंग " विलास डोगरा ने प्यार के साथ कहा।

"ओह डोगरा साहब।" रीटा देवराज चौहान और टूडे को देखती मुस्कराई।

"दोनों की जोड़ी कितनी अच्छी लग रही है। इतनी अच्छी तो हमारी जोड़ी भी नहीं है।" डोगरा कहर से मुस्करा रहा था।

"बात तो आपकी सही है पर मुझे नहीं लगता कि जोड़ी ज्यादा देर सलामत रह पायेगी ।" रीटा ने गहरी सांस ली--- "देवराज चौहान का तो काम होने वाला लगता है। ये तो दुनिया से गया अब ।"

"भीतर चलें रीटा डार्लिंग।” डोगरा उसी भाव में कह उठा--- "हमें बहुत काम करने हैं।"

विलास डोगरा और रीटा क्लब में प्रवेश करते चले गये।

रमेश टूडे, देवराज चौहान को लिए दाईं तरफ बढ़ गया, जहाँ आगे अंधेरी गली थी।

"कैसा लग रहा है देवराज चौहान।" टूडे बेहद सतर्क था।

देवराज चौहान के होंठ भिंचे रहे। वो मात्र दो पल के लिए मौका चाहता था कि टूडे की रिवॉल्वर कमर से हटा सके। परन्तु रमेश टूडे पुराना खिलाड़ी था। वो कोई मौका नहीं दे रहा था उसे। चलते-चलते रमेश टूडे ने उसकी जेबें टटोली और रिवॉल्वर निकाल कर एक तरफ अंधेरे में फेंकते बोला।

"वो सामने गली है। वहाँ चलेंगे देवराज चौहान और अपनी दोस्ती को हमेशा के लिए मजबूत कर लेंगे।"

हरीश खुदे की आंखें फटी सी थी। वो सब कुछ देख रहा था। पहले उसने रमेश टूडे को देवराज चौहान के साथ देखा और समझते देर ना लगी कि टूडे ने देवराज चौहान की कमर से रिवॉल्वर लगा रखी है। अभी वो इस झटके से बाहर नहीं निकला था कि उसने डोगरा को एक कार से उतरते देख लिया था।

खुदे का दिल जैसे धड़कना भूल गया।

वो समझ नहीं पाया कि क्या करे?

डोगरा आया परन्तु देवराज चौहान पर रमेश टूडे जैसे खतरनाक हत्यारे ने कब्जा जमा लिया। खुदे को रमेश टूडे का खौफ था। उसके देखते ही देखते विलास डोगरा, रीटा के साथ क्लब में प्रवेश कर गया और रमेश टूडे देवराज चौहान को लिए क्लब की साइड की तरफ बढ़ने लगा था। खुदे को अपनी टांगें कांपती सी महसूस हुई। उसने जल्दी से मोबाइल निकाला और जगमोहन का नम्बर मिलाने लगा। परन्तु नम्बर नहीं लगा।

दो-तीन बार कोशिश की, लेकिन जगमोहन को फोन नहीं लग पाया और उसके पास बांके लाल राठौर या सरबत सिंह का नम्बर नहीं था कि उन्हें फोन कर पाता। अब ज्यादा सोचने का वक्त नहीं था। देवराज चौहान और टूडे काफी आगे चले गये थे। हरीश खुदे सावधानी से उस तरफ बढ़ गया, जिधर वो दोनों गये थे। वो जानता था कि टूडे, देवराज चौहान को खत्म करने वाला है। उससे ये ही आशा की जा सकती थी।

■■■

रीटा ने विलास डोगरा की बाँह पकड़ी हुई थी। क्लब के भीतर पहुँच कर वो उस तरफ के रास्ते पर बढ़ रहे थे जहाँ देशमुख वागरे का ऑफिस था। परन्तु वागरे तक उनके आने की खबर पहुँच गई थी। जब वो उनके स्वागत के लिए बाहर निकला तो वे उसके ऑफिस वाली गैलरी में आ चुके थे।

"ओह, आप आ गये डोगरा साहब ।" देशमुख वागरे फौरन आगे बढ़कर प्रसन्नता भरे स्वर में कह उठा।

"कैसे हो देशमुख?" डोगरा रुका नहीं आगे बढ़ता रहा।

"आपकी छत्रछाया में ठीक हूँ।" साथ चलता देशमुख कह उठा--- “सब कुछ एकदम फिट है।” आगे बढ़कर देशमुख ने आफिस का दरवाजा खोल दिया।

विलास डोगरा और रीटा ने भीतर प्रवेश किया।

देशमुख ने दरवाजा बंद कर दिया।

"कमिश्नर तुम्हें पूरा सहयोग दे रहा है ना?" डोगरा बोला।

"आपका हुक्म होगा तो वो सहयोग क्यों नहीं देगा। परन्तु वो हफ्ता बढ़ाने को कह रहा था।"

"कितना?"

"दस परसैंट।"

“बढ़ा दो। ऐसी मामूली बातों की परवाह मत करो। काम ठीक से चलना चाहिये। पुलिस की सहायता के बिना हमारे काम नहीं चल सकते। जहाँ तक सम्भव हो, पुलिस वालों से दोस्ती बनाए रखो।" डोगरा बोला।

"मैं ऐसा ही करता हूँ। बैठिये आप और बताइये क्या लेंगे ? रात तो यहीं रुकेंगे ना?"

"मैं आधे घंटे से ज्यादा नहीं रुकूंगा।"

"ओह ।"

“घोरपड़े की वजह से मुझे आना पड़ा। वो कहाँ है ?"

“जुआघर वाले ऑफिस में बैठा आपका इन्तजार कर रहा है।"

"उसने आने में कोई परेशानी खड़ी तो नहीं की?"

"नहीं डोगरा साहब। एक बार फोन किया तो वो वक्त पर आ गया।"

"चाहता क्या है?"

"आपसे मिलने की जिद्द कर रहा है। सत्तर करोड़ ले लिया, परन्तु माल नहीं दिया। पन्द्रह दिन से ऊपर हो गये, पैसा दबाये बैठा है और कहता है पहले आपसे मिलेगा फिर माल देने की सोचेगा।" देशमुख ने कहा ।

"घोरपड़े के पास चलो।”

वे उसी अलमारी के रास्ते नीचे जुआघर में पहुँचे। वहाँ टेबलों पर भीड़ थी। वेटर ड्रिंक्स सर्व करने के लिए भागे फिर रहे थे। सिग्रेट का धुआँ वहाँ फैला था। उनकी तरफ किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। वे तीनों वहाँ से दाईं तरफ गये और एक बंद दरवाजे को धकेल कर भीतर प्रवेश कर गये।

ये शानदार ऑफिस था। टेबल कुर्सी के अलावा वहाँ सोफे भी बिछे थे।

चालीस बरस का घोरपड़े वहाँ मौजूद था। वो फौरन मुस्करा कर उठा और आगे बढ़कर डोगरा से हाथ मिलाया। रीटा को हैलो की। डोगरा सिर हिलाकर बोला।

"कैसे हो घोरपड़े?"

"बढ़िया ।" घोरपड़े ने सिर हिलाया।

"धंधा कैसा चल रहा है?"

"वो भी बढ़िया।” घोरपड़े ने पुनः सिर हिलाया।

"बैठ।” कहने के साथ डोगरा बैठा। रीटा डोगरा के पीछे खड़ी हो गई।

देशमुख और घोरपड़े भी बैठे।

"मुझे तेरी वजह से आना पड़ा घोरपड़े। तूने सत्तर करोड़ क्यों दबा रखा है।"

"मेरा बस चलता तो मैं देशमुख को भी दबाकर बैठ जाता।" घोरपड़े ने देशमुख को घूरा

देशमुख के चेहरे पर उखड़े भाव उभरे। जबकि डोगरा मुस्करा पड़ा।

"ऐसा क्या हो गया?" डोगरा बोला।

"मैं देशमुख को क्लब के लिये प्योर माल देता हूँ। एक दम बढ़िया स्मैक। कोकीन ऐसी कि कहीं ना मिले। तभी तो सालों से मैं ही माल सप्लाई कर रहा हूँ इधर कभी कोई शिकायत मिली?" देशमुख सिर हिलाकर बोला।

डोगरा ने देशमुख से कहा।

"इसकी बात का जवाब दे।"

"कोई शिकायत नहीं थी ।"

"तो अब साल भर से क्या हो गया जो देशमुख मुझे शिकायत करने लगा कि कस्टमर को माल में मजा नहीं आ रहा। मैं ठीक माल नहीं दे रहा। महीने में दो बार इसी बारे में फोन खटखटा देता है।" घोरपड़े ने सिर हिलाया।

"साल भर से इसका माल ठीक नहीं जा रहा। कस्टमर शिकायत करते हैं।"

"ये गलत है। मेरा माल ठीक है। वो कभी खराब नहीं हो सकता।” घोरपड़े ने दृढ़ स्वर में कहा--- "देशमुख को मैंने हमेशा ही बढ़िया माल दिया है। मैं इस बारे में बड़ी से बड़ी शर्त लगा सकता हूं।"

देशमुख ने कुर्सी पर पहलू बदला।

"माल ठीक नहीं होता इसका ।” देशमुख बोला।

परन्तु डोगरा, देशमुख को शांत निगाहों से देखता रहा।

"मैं बताता हूँ।” कहने के साथ ही घोरपड़े ने जेब से दो पुड़िया निकाली और एक पुड़िया खोलता हुआ बोला--- "इसमें वो माल है जो देशमुख अपने कस्टमर को देता है और इस पुड़िया में वो माल है जो मैं देशमुख को देता हूँ। मैंने एक कस्टमर द्वारा ये पुड़िया देशमुख से हासिल की है। मेरे से लेकर जो माल ये कस्टमर को देता है उसमें फिफ्टी परसेंट की मिलावट कर देता है तो कस्टमर की शिकायत आयेगी ही और सारा दोष ये मेरे सिर पर लगा देता है कि मैं माल ठीक नहीं दे रहा। बेईमान है ये और उंगली मेरी तरफ उठाता है। यही कारण था कि जब इसने मुझे सत्तर करोड़ दिया तो वो पैसा मैंने दबा लिया और आपसे मिलने को कहा। मैं ये बात आपकी जानकारी में लाना चाहता था कि देशमुख क्या गुल खिला रहा है। अगर मेरी बात का भरोसा नहीं तो अब भी इसके पास कस्टमर को देने वाला माल पड़ा होगा और मेरा दिया माल भी रखा होगा। इससे पूछिये कि ये कहाँ पर मिलावट का काम करता है। दोनों माल को मिलाकर देख लीजिये।” घोरपड़े ने सिर हिलाया।

विलास डोगरा ने देशमुख को देखा।

देशमुख का चेहरा फीका पड़ चुका था।

"डोगरा साहब।" रीटा, डोगरा के कंधों को दबाती कह उठी--- “आपके भी गुरु भरे पड़े हैं धंधे में।"

"तेरा क्या कहना है देशमुख ?" डोगरा ने शांत स्वर में पूछा।

"म-मैं माफी चाहता हूँ।" देशमुख धीमें स्वर में कह उठा।

“दिल से माफी मांगता है।" डोगरा बोला।

"जा-जी।"

“ड्रग्स में कब से मिलावट कर रहा है?" विलास डोगरा का स्वर शांत था।

“च-चार साल से ।” देशमुख का सिर झुका हुआ था। वो व्याकुल दिख रहा था।

"कितना कमाया?"

"तीन-चार करोड़।"

"वो सब तेरे को मेरे हवाले करना होगा।”

“कर दूंगा। मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था। पता नहीं कैसे हो गया।" देशमुख कह उठा।

"कोई बात नहीं। गलती हम इन्सानों से ही होती है।" डोगरा मुस्कराया--- "चार करोड़ कब देगा?"

“चौबिस घंटे दे दीजिये मुझे।"

“परसों बारह बजे का वक्त ठीक रहेगा?" डोगरा ने पूछा।

"जी। परसों बारह बजे मैं चार करोड़ तैयार रखूंगा डोगरा साहब।" देशमुख कह उठा ।

“विनय खरड़ तेरे पास पैसा लेने आयेगा। उसे दे देना।"

"जी। आपने मुझे माफ कर दिया डोगरा साहब?" देशमुख हाथ जोड़कर कह उठा ।

डोगरा मुस्कराया और कंधे पर पड़े रीटा के हाथ पर हाथ रखकर कहा।

"रीटा डार्लिंग।"

“जी डोगरा साहब।" रीटा प्यार से कह उठी।

"मैं नाराज हुआ देशमुख पर?"

"नहीं तो। "

"फिर माफ करने की बात कहाँ से आ गई।"

“देशमुख भरोसे का आदमी है। पुराना आदमी है आपका। आप क्यों नाराज होंगे?" रीटा कह उठी।

“सुना देशमुख ।"

“आपका दिल कितना बड़ा है डोगरा साहब।” देशमुख सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा--- "मैं कभी भी आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। ये भूल जाने कैसे मुझसे हो गई। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिये था।"

"तुम चार सालों से ड्रग्स में मिलावट करके बेच रहे हो।" रीटा कह उठी--- "इतने लम्बे वक्त तक की गई बात को भूल तो नहीं कहा जा सकता। तुम कहते हो कि चार सालों में चार करोड़ कमाया, ये आंकड़ा तीस के पार होना चाहिये।"

देशमुख के चेहरे का रंग पीला पड़ गया।

डोगरा की निगाह देशमुख पर थी।

घोरपड़े शांत बैठा था।

"वक्त है अभी तेरे पास देशमुख।" डोगरा बोला--- "तेरे को सच बात कह देनी चाहिये। कितना कमाया ?"

"य-याद नहीं। शायद-शायद पच्चीस करोड़।” देशमुख का चेहरा निचुड़ गया था।

"रीटा डार्लिंग तीस कहती है।"

“शायद तीस ही हो। म-मेरे पास जितना है, मैं सब ला दूंगा। मुझे माफ़ कर दीजिये। मेरे से बहुत बड़ी भूल हो गई। मेरा दिमाग खराब हो गया था। मैं पागल हो गया था।" देशमुख की आँखें भर आई डर से।

"ये तो भावुक हो गया डोगरा साहब ।"

“डर रहा है।" डोगरा मुस्कराया।

"इसमें डरने की क्या बात है। ड्रग्स में मिलावट करके आपको तीस करोड़ कमाकर ही तो दे रहा है।" रीटा ने कहा।

विलास डोगरा ने घोरपड़े को देखा।

घोरपड़े संभला ।

"हुक्म डोगरा साहब।" घोरपड़े बोला।

"अब तू क्या करेगा?"

"सत्तर करोड़ आपका मेरे पास है। उसका माल सप्लाई करूँगा।" घोरपड़े ने कहा।

"अगले सप्ताह सप्लाई करना। जैसा बढ़िया माल देता रहा है आगे भी वैसा करना। हम कस्टमर से ऊँची कीमत वसूल करते हैं ड्रग्स की इसलिये नहीं कि उन्हें गलत माल दें। वो हम पर इस बात का भरोसा करते हैं कि माल तो ठीक होगा।"

“मैं हमेशा बढ़िया माल देता रहूँगा डोगरा साहब।”

"निकल ले अब तू ।"

घोरपड़े उठा और बाहर निकल गया।

"विनय खरड़ परसों बारह बजे आयेगा, हेरा-फेरी से कमाया माल उसके हवाले कर देना।"

"जी-जी।"

डोगरा उठा तो देशमुख भी फौरन खड़ा हो गया।

"दोबारा कभी गड़बड़ करने की सोचना भी मत। मौके बार-बार नहीं मिलते।" विलास डोगरा कह उठा।

"फिर कभी ऐसी भूल नहीं होगी।" देशमुख की टांगें काँप सी रही थी।

"मैं जा रहा हूँ। मुझे अभी आगे जाना है।” डोगरा ने कहा--- "फिर मिलेंगे देशमुख ।"

देशमुख, डोगरा को बाहर तक छोड़ने आया।

रीटा, दया को फोन कर चुकी थी। दया क्वालिस लेकर बाहर मौजूद था। वो दोनों भीतर बैठे तो क्वलिस चल पड़ी। डोगरा ने सिग्रेट सुलगाई और कहा ।

"रीटा डार्लिंग। खरड़ को फोन लगा।"

रीटा ने फोन लगाया और विलास डोगरा को दे दिया।

"हैलो।" डोगरा के कानों में मर्द की भारी आवाज पड़ी।

"खरड़।"

"हुक्म डोगरा साहब ।"

"तेरे को परसों बारह बजे कोल्हापुर के नाइट क्लब में पहुँचना है। यहाँ देशमुख तेरे को पच्चीस तीस करोड़ की रकम देगा। वो रकम लेने के बाद तूने देशमुख को क्लब से दूर ले जाना है और उसे मार देना है। देखने पर उसकी लाश ऐसी लगे कि वो एक्सीडेंट में मारा गया है। हत्या नहीं लगनी चाहिये?"

“समझा।” खरड़ की आवाज आई--- “परसों दिन के बारह या रात के बारह पहुँचना है।"

"दिन के बारह। ये काम निपटा कर तू क्लब का मैनेजर बन जाना। बाकी सब मैं ठीक कर दूंगा।"

"समझ गया।"

"परसों शाम मैं तुझे फोन करूँगा तेरा हाल पूछने के लिए।" कहकर डोगरा ने फोन बंद किया और कश लिया।

“डोगरा साहब, लोग बेईमान क्यों हो जाते हैं। बरसों की वफादारी क्यों एक तरफ रख देते हैं।" रीटा कह उठी।

"लोग बेईमान नहीं होते रीटा डार्लिंग। परन्तु नोटों का रंग उन्हें मजबूर कर देता है कि वो बेईमान हो जाये।"

"लोग ही बेईमान होते हैं डोगरा साहब। नोटों का रंग मुझे बे-ईमान नहीं बना सकता।"

"तूने तो अपने रंग से मुझे बेईमान बना रखा है रीटा डार्लिंग।” डोगरा हंस पड़ा।

"छोड़िये भी। मौका मिला नहीं कि लगे मुझे तंग करने।" रीटा ने नखरे से भरे स्वर में कहा।

"तू है ही ऐसी। हर पल मेरे दिमाग में घुसी, मुझे बेईमान करती रहती है।" डोगरा ने हाथ बढ़ाकर रीटा की कमर पर हाथ डाला और उसके होंठों को चूमा--- "हर समय आग भरी रहती है तुझमें।"

“आपकी ही आग है, आपका ही पानी। जब चाहें बुझा लीजिये डोगरा साहब।"

डोगरा हंसा।

“तेरी जैसी दूसरी नहीं रीटा डार्लिंग। तू एक ही है जो ऊपर वाले ने मेरे लिए बनाई है। हमारा साथ तो जन्मो-जन्मो का है। हम कभी भी जुदा नहीं होंगे। अब अपने हाथों से बढ़िया सा पैग बना कर दे।"

रीटा ने पीछे हाथ डालकर बोतल, गिलास, सोडा उठाया और गिलास तैयार करती बोली।

"डोगरा साहब। मेरा ख्याल है कि देशमुख ने तीस से ज्यादा माल कमाया है ड्रग्स में मिलावट करके ।"

"जानता हूँ।" डोगरा ने शांत स्वर में कहा।

"तो फिर आपने उससे बात क्यों नहीं की?"

"क्योंकि देशमुख का अंजाम मौत ही है। ऐसे में वो जो भी दे रहा है ले लो। मैं उसे ये सोचने का मौका नहीं देना चाहता कि वो मरने वाला है। पैसा तो आता जाता रहता है लेकिन बंदा जब जाता है तो दोबारा नहीं आता। अब देशमुख के ऊपर चले जाने में ही भलाई है। उसका नीचे का काम तब ही खत्म हो गया था जब घोरपड़े ने उसके बारे में मुँह खोला।"

“लीजिये आपका गिलास।" रीटा ने उसे गिलास थमाया।

क्वालिस सामान्य गति से सड़कों पर दौड़े जा रही थी। विलास डोगरा ने घूंट भरा और रीटा के कंधे पर हाथ रखता कह उठा।

"अगर तू ना होती रीटा डार्लिंग तो मैं बे-मौत ही मर गया होता। तू मेरा कितना ध्यान रखती है।"

"आपकी सेवा के लिए तो मैं इस दुनिया में आई हूँ और अपना धर्म निभा रही हूँ।" रीटा ने उसके गाल पर उंगली लगाई।

"तेरी ये ही अदा तो मेरी जान निकाले रहती है।"

"रमेश टूडे को भूल गये क्या?" रीटा ने जैसे याद दिलाया।

"वो भूलने वाली चीज नहीं है।" डोगरा घूंट भरता कह उठा--- "देवराज चौहान को तो उसने कब का खत्म कर दिया होगा और अब हमारे पीछे गोवा पहुँचने की तैयारी में चलने वाला होगा।"

"एक फोन तो कर लीजिये टूडे को ।"

"आ जायेगा उसका फोन। तुम मेरे से सटकर बैठो रीटा डार्लिंग। मैं दुनिया भूल जाना चाहता हूँ।"

■■■

देवराज चौहान कुछ कर जाने का मौका ढूंढ रहा था। परन्तु रमेश टूडे उसे किसी भी तरह का मौका देने को तैयार नहीं था। रिवॉल्वर उसने देवराज चौहान की कमर से लगा रखी थी और उंगली ट्रेगर पर थी। वो देवराज चौहान के साथ सटा चल रहा था कि देवराज चौहान कुछ करना चाहे तो उसे फौरन पता चल जाये। उधर देवराज चौहान सोच रहा था कि अगर उन दोनों में कुछ फासला होता तो वो अब तक कोशिश कर चुका होता। टूडे ने जिस तरह उसे कवर कर रखा था, उससे देवराज चौहान समझ गया था कि उसका वास्ता किसी खिलाड़ी से पड़ा है। दोनों मध्यम गति से आगे बढ़े जा रहे थे।

"तो तुम डोगरा को मारने आये थे यहाँ।" टूडे शांत स्वर में बोला।

"हां।"

"तुम्हें कैसे पता कि डोगरा आज शाम यहाँ आने वाला है। किसने बताया कि वो कोल्हापुर आयेगा।"

"पता चल गया ।"

"दुलेरा से जाना होगा?”

"नहीं। देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "किसी और से पता लगा।" जानबूझ कर देवराज चौहान ने गलत कहा।

"किससे?"

देवराज चौहान चुप रहा। एक ही बात उसके दिमाग में दौड़ रही थी कि ये उसे जिन्दा छोड़ने वाला नहीं। उसकी रिवॉल्चर पहले ही निकालकर फेंक चुका था। उसे कुछ करना होगा, वरना मारा जायेगा। मन में हल्की सी आशा खुदे की तरफ से भी थी जो क्लब के प्रवेश गेट के आस-पास कहीं था। अगर उसने उन्हें देख लिया है तो वो जरूर कुछ करेगा। वो इस आशा से उसके साथ लगा हुआ था कि कल को वो डकैती करेगा और उसे मोटी रकम देगा। ऐसे में वो उसे कुछ नहीं होने देगा, बशर्ते कि उसने, उन्हें देखा हो। ये मात्र सोच थी देवराज चौहान की, जबकि वो जानता था कि कुछ कर जाने का वक्त करीब आ गया है। समय कम था।

"मैं जानता हूँ तुम क्या सोच रहे हो?" रमेश टूडे ने ठंडे स्वर में कहा।

"मैं तुमसे बचने का रास्ता तलाश कर रहा हूँ।" देवराज चौहान बोला।

"ये मौका तुम्हें नहीं दूंगा।" टूडे की आवाज में खतरनाक भाव थे।

दोनों गली के किनारे पर जा ठिठके ।

गली का हाल देखते ही देवराज चौहान के होंठ भिंच गये जबकि रमेश टूडे सर्द स्वर में बोला ।

"गली कितनी अच्छी लग रही है। जरा भी रोशनी नहीं। पूरी तरह अंधेरे में डूबी है। तुम्हारी मौत के लिए ये बढ़िया जगह है। सुबह से पहले तुम्हारी लाश भी कोई नहीं देख पायेगा। गली में कभी लाइट तो जरूर रही होगी, परन्तु किन्हीं शरारती बच्चों ने तोड़ दी होगी। चलो, अब गली में चलो। तुम्हारा काम निपटा कर मुझे और भी काम करने हैं। तुम्हारी वजह से ही मुझे डोगरा के साथ आना पड़ा। अब मैं यहाँ से वापस मुम्बई जाऊंगा। चलो भी।"

दोनों गली में प्रवेश कर गये।

गली में इस कदर घुप्प अंधेरा था कि पता ही नहीं लग रहा था कि पाँव कहाँ पड़ रहा है। उन्हें आँखें फाड़कर देखते हुए चलना पड़ रहा था। रमेश टूडे ठण्डे स्वर में कह रहा था।

"अगर मैं तुम्हें गली के किनारे पर ही गोली मारता तो आवाज क्लब तक पहुँच जाती । परन्तु गली के भीतर चली गोली की आवाज कोई ठीक से सुन नहीं पायेगा। ये साथ में तेल की मिल है। आठ बजे बंद हो जाती है। ऐसे अंधेरे में मुझे कत्ल करने का बहुत मजा आता है। कुछ भी नज़र नहीं आता। गोली चलाओ और... ।”

कहते-कहते रमेश टूडे ठिठका। देवराज चौहान की बाँह उसने पकड़ रखी थी। वो भी रुका।

पीछे हल्का-सा खटका हुआ था। उसकी गर्दन फौरन घूम गई थी।

गहरा सन्नाटा छाया हुआ था गली में।

अंधेरे में चंद पल टूडे घूरता रहा परन्तु कोई भी नहीं दिखा।

"यहाँ कोई है।" टूडे ने अपने आपसे कहा--- "कोई हमें देख रहा है। मेरे कान आवाज सुनने में धोखा नहीं खा... ।”

इसी पल देवराज चौहान ने तेजी से घूमते हुए उसे धक्का दिया और भाग कर गली के अंधेरे में कूदता चला गया और उसी जगह पर एकाएक थम गया जैसे हिलने का इरादा ना हो। देवराज चौहान जानता था कि ऐसे अंधेरे में आँखें नहीं आहट काम करती है। अगर उसकी तरफ से आवाज उभरी तो डोगरा का हत्यारा उसे गोली से उड़ा देगा। वो चालाक शिकारी था।

उधर देवराज चौहान के धक्का देते ही टूडे पीछे को गिरने को हुआ। उसने खुद को बहुत संभाला परन्तु पीछे को जा ही गिरा लेकिन अगले ही पल उछल कर खड़ा हो गया।

परन्तु तब तक अंधेरे में देवराज चौहान का शरीर थम चुका था।

टूडे रिवॉल्वर थामें खतरनाक निगाहों से गली में देखने की चेष्टा करने लगा। परन्तु अंधेरा आड़े आ रहा था। वो जानता था कि देवराज चौहान कहीं दूर नहीं है। पास ही अंधेरे में दुबका हुआ है। वो ये भी जानता था कि चिन्ता की कोई बात नहीं है। वो उसे आसानी से ढूंढ कर, उसका शिकार कर लेगा। टूडे निश्चिंत इसलिये था कि उसे मालूम था कि देवराज चौहान के पास रिवॉल्वर नहीं है। वो खाली हाथ है। वो उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

टूडे की आँखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थी, परन्तु गली में अंधेरा ऐसा स्याह था कि हर चीज अंधेरे का हिस्सा बनी हुई थी। गली के दोनों तरफ ऊँची-ऊँची दीवारें उठी हुई थी। टूडे ज़रा-ज़रा करके आगे बढ़ने लगा। उस की नज़र हर तरफ जा रही थी रिवॉल्वर ज़रा से अंदेशे पर चलने को तैयार थी।

लेकिन हर तरफ की चीज स्थिर थी।

तभी उसके कानों में मध्यम सी आहट पड़ी।

टूडे ठिठक कर गर्दन घुमाकर पीछे देखने लगा। अंधेरे से गहरी गली में कुछ ना दिखा।

"पीछे कोई है।" टूडे ने मन में कहा--- "इसी का ही कोई साथी होगा। उसके पास हथियार हो सकता है। ये तो मेरे लिए फंसने वाली बात हो गई। दोनों मुझ पर झपट पड़े तो मैं कुछ नहीं कर सकूंगा।" टूडे पुनः धीमे-धीमे, जरा-जरा आगे बढ़ने लगा।

उसे आशा थी कि देवराज चौहान जरा सा हिलेगा। कहीं से आहट उभरेगी। परन्तु कुछ नहीं हुआ ऐसा।

दो पल ही बीते होंगे कि पीछे से बेहद स्पष्ट आहट उसके कानों में पड़ी। उसने घूमना चाहा।

तभी उसकी पीठ पर पूरे साईज की ईंट आकर लगी। वो ईंट खुदे ने फेंकी थी। गली के फर्श के किनारे लेटे खुदे के हाथ ईंट लग गई थी। वो तो गोली चलाना चाहता था परन्तु उसे स्पष्ट रूप से कुछ नहीं पता था कि देवराज चौहान कहाँ है, कहीं उसे गोली ना लग जाये। परन्तु ये बात तो वो पक्की तरह जानता था कि वो अंधेरे में खड़ा था, ज़रा-ज़रा उसे दिख रहा था, वो रमेश टूडे ही है।

वो भारी ईंट काफी तेजी से टूडे की पीठ से टकराई थी।

रमेश टूडे के होंठों से कराह निकली और भयंकर पीड़ा की वजह से रिवॉल्वर उसके हाथ की उंगलियों से निकल कर छिटकी और अंधेरे में कहीं गुम हो गई। वो पीड़ा फौरन ही काबू में आती चली गई। लेकिन रिवॉल्वर हाथ से जा चुकी थी। ऐसा होते ही उसे लगा वो घिर गया है। आगे कहीं देवराज चौहान था और पीछे उसका कोई साथी।

उसी पल अंधेरे में नीचे पड़ा देवराज चौहान का शरीर हिला और चीते की तरह टूडे पर छलांग लगा दी। देवराज चौहान उसे साथ लेता नीचे गली में जा गिरा। टूडे के होठों से चीख निकली। दोनों अंधेरे में गुत्थमगुत्था हो गये। ये महसूस करके हरीश खुदे अपनी जगह से उठा और दो कदम आगे बढ़ आया। अभी उनके और खुदे के बीच छः कदमों का फासला था। अंधेरे में खुदे को समझ नहीं आ रहा था कि कौन भारी पड़ रहा है, कौन हल्का है। वो मात्र एक छोटे से ढेर को हिलते देख रहा था और उनकी हाथा-पाई की मध्यम सी आवाजें उभर रही थी। उसी पल वो कह उठा।

“देवराज चौहान, मैं हूँ। तुम घबराना मत। इस हरामजादे को मार दो। ये खतरनाक है। मैं इसे जानता हूँ।"

खुदे रिवॉल्वर थामें अंधे दर्शक की भांति सतर्क सा खड़ा रहा। तभी खुदे ने एक के शरीर को दो कदम दूर गिरते देखा। अब वो दोनों अलग-अलग थे। परन्तु खुदे नहीं जानता था कि कौन देवराज चौहान है और कौन रमेश टूडे। ये पता करने का उसे वक्त भी नहीं मिला और दोनों के पुनः खतरनाक अंदाज में टकरा जाने का एहसास हुआ और उनकी गुर्राहटें वहाँ गूंजने लगी। तभी देवराज चौहान की कराह खुदे के कानों में पड़ी। अगले ही पल रमेश टूडे चीखा। परन्तु वे दोनों जैसे एक-दूसरे को मार देना चाहते हो। इस तरह वे गुत्थमगुत्था हुए पड़े थे।

अंधेरा हरीश खुदे के लिये, गोली चलाने के लिए दीवार बन कर खड़ा था। वो ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था कि देवराज चौहान की जान को खतरा हो। उसकी चलाई गोली कहीं देवराज चौहान को लग जाये।

उसी समय किसी की तीव्र कराह गूंजी। खुदे को लगा वो देवराज चौहान की चीख थी। परन्तु उसे पक्का यकीन नहीं था। रिवॉल्वर थामें वो अंधेरे में यूं ही खड़ा था कि उसके कानों में ऐसी आवाजें पड़ीं जैसे दो सांड आपस में टकरा गये हों। उठने वाली आवाजों में डरावना तूफान था जैसे खुदे का मन चाहा कि आगे बढ़कर बीच में दखल दे दे, परन्तु इस गहन अंधेरे में वो कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता था। वो नहीं चाहता था कि रमेश टूडे अंधेरे का फायदा उठाकर उसकी रिवॉल्वर झपट ले और उन दोनों को शूट कर दे।

तभी खुदे ने किसी एक को देखा जो तेजी से गली में लुढ़कता चला गया था।

दूसरा एकाएक गली के दूसरी तरफ भागने लगा था।

खुदे दो पलों के लिए हक्का-बक्का रह गया।

उसी वक्त नीचे गिरने वाला जल्दी से उठा और बोला ।

"उसे गोली मार।" ये आवाज देवराज चौहान की थी--- "वो भाग रहा है।"

ये पता चलते ही कि भागने वाला रमेश टूडे है खुदे ने उस पर फायर किया। परन्तु वो काफी दूर पहुँच चुका था और अंधेरे में ठीक से नज़र भी नहीं आ रहा था।

खुदे ने दूसरा फायर किया।

परन्तु तब तक वो गली के दूसरी तरफ निकल कर गुम हो गया था। उसके दौड़ते कदमों की आवाज आनी बंद हो गई। सन्नाटा सा छा गया गली में। खुदे उसके पास पहुँचता हुआ बोला ।

"तुम ठीक हो देवराज चौहान ?"

"हां।" देवराज चौहान गहरी-गहरी सांसें ले रहा था।

"वो भाग क्यों गया ?"

"तुम्हारी वजह से। शायद उसे पता होगा कि तुम्हारे पास रिवॉल्वर हो सकती है। मुझे पार कर भी लिया तो तुम शूट कर दोगे ।”

"वो खतरनाक था---है ना?"

“हाँ।" देवराज चौहान अभी भी सांसों को काबू पाने की चेष्टा में था--- "वो जो भी है, हिम्मत वाला है।"

"वो रमेश टूडे था। मैंने उसे देखा हुआ है। वो डोगरा के खास खतरनाक लोगों में से एक है और बहुत खतरनाक है। हत्याएं करना उसका पेशा है। मैं तो उसे देखकर ही काँप गया था कि वो कहाँ से आ गया ।"

“वो लड़ने में भी माहिर था।"

“उसके पास रिवॉल्वर हो तो फिर वो किसी के काबू में नहीं आता। परन्तु मेरे ईंट मारने से, उसके हाथ से रिवॉल्वर गिर गई।"

“अपनी रिवॉल्वर मुझे दो और तुम क्लब में जाओ। डोगरा क्लब में ही होगा। जगमोहन को साथ लो और डोगरा को खत्म करो। बांके और सरबत को भी बेशक साथ में ले लेना।" देवराज चौहान ने कहा।

"तुम नहीं चलोगे?"

"मेरी हालत क्लब में प्रवेश करने वाली नहीं रही।"

"जख्मी हो क्या?"

"तुम जाओ। रिवॉल्वर मुझे।"

"रिवॉल्वर मेरे ही पास रहने दो। क्लब में जरूरत पड़ सकती है। तुम्हारी रिवॉल्वर कहाँ है।"

"मेरी रिवॉल्वर ? ठीक है। मैं उसे तलाश करने की कोशिश करता हूँ।" देवराज चौहान ने कहा--- "तुम फौरन जाओ।"

हरीश खुदे पलट कर तेजी से गली के बाहर की तरफ बढ़ गया। उसके कदमों की आवाजें देवराज चौहान के कान में पड़ती रही फिर सुनाई देनी बंद हो गई। देवराज चौहान ने गली के दोनों तरफ देखा। अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं दिखा तो वो उस तरफ बढ़ गया जिधर खुदे गया था। गली के बाहर पहुँचा तो इधर-उधर की रोशिनयाँ दिखाई देने लगी।

देवराज चौहान उस तरफ बढ़ा जिधर टूडे ने उसकी रिवॉल्वर फेंकी थी। उसके चेहरे पर कई जगह जलन का एहसास हो रहा था । छाती और पीठ पर से भी दर्द की लहरें रह-रह कर उठ रही थी। बड़े मजबूत दुश्मन से उसका वास्ता पड़ा था। अगर उसे सही मौका मिलता। तो उसने उसे हाथों के वार से ही मार देना था। वो हार मानने वाले लोगों में से नहीं दिखा। वो पक्के इरादे वाला ऐसा इन्सान था जो अपना काम पूरा करना जानता था। चेहरा, पीठ और छाती कई जगह से जख्मी महसूस हो रही थी। उस पर टूडे ने कई खतरनाक दाँव खेलने की कोशिश की थी, परन्तु उसने उसका दाँव चलने नहीं दिया था ।

देवराज चौहान उस जगह पर आकर अपनी रिवॉल्वर ढूंढने लगा।

पाँच मिनट की कोशिश के बाद उसे रिवॉल्वर मिली तो उसे जेब में डाल लिया। फिर क्लब की तरफ देखा जो कि डेढ सौ कदम दूर था और रोशनियों में चमक रहा था। देवराज चौहान ने अपनी कमीज पर नज़र मारी जो जगह-जगह से फट चुकी थी। उसके चेहरे पर कठोरता ठहरी हुई थी। परन्तु वो ये भी जानता था कि बुरा बचा है। खुदे की फेंकी ईंट की वजह से टूडे के हाथों से रिवॉल्वर ना गिरी होती तो खेल कब का खत्म हो चुका होता। खुदे हर कदम पर ईमानदारी से उसका साथ दे रहा था।

तभी देवराज चौहान का फोन बजने लगा।

"हैलो।" देवराज चौहान ने बात की।

"डोगरा क्लब से दस मिनट पहले ही गया है। अब वो वापस नहीं लौटेगा।" खुदे की आवाज कानों में पड़ी।

देवराज चौहान के दाँत भिंच गये।

"वो गोवा गया है।" देवराज चौहान ने शब्दों को चबाकर कहा--- "अब हमें गोवा जाना होगा। जगमोहन कहाँ है?"

"मेरे पास।"

“उसे फोन दो।"

दो पलों के बाद ही जगमोहन की सख्त आवाज कानों में पड़ी।

“विलास डोगरा यहाँ से निकल कर गोवा गया है। बांके और सरबत सिंह को नगीना के पास भेज दो। उन्हें भी गोवा पहुँचने को कह दो। वो लोग साठी के साथ गोवा पहुँचें। उसके बाद मेरे पास आ जाना। खुदे जानता है कि मैं किस तरफ मिलूंगा।"

■■■

रात बारह बजे विलास डोगरा गोवा के 'डी-गामा' होटल पहुँचा। जो कि थ्री स्टार होटल था और उसका आधा मालिक था वो। गोवा के एक व्यवसायी के साथ मिल कर आधे-आधे की हिस्सेदारी में ये होटल बनाया था, परन्तु ये बात जगजाहिर नहीं थी। दिखावे के तौर पर डोगरा की जगह, एक अन्य कम्पनी आधे हिस्से की मालिक थी।

गोवा पहुँचने तक डोगरा तगड़े नशे में आ चुका था परन्तु वो पूरे होश में था। रीटा ने आदत के अनुसार उसकी बाँह थाम रखी थी। होटल के स्टॉफ ने उन्हें शानदार सुईट में पहुँचा दिया था। रीटा ने फौरन खाने का ऑर्डर दे दिया।

“रीटा डार्लिंग ।” डोगरा नशे से भरे स्वर में बोला--- "गोवा पहुँच कर तो मजा आ गया ।"

"आपने ज्यादा पी ली। मैंने कितना रोका था आपको।" रीटा उससे सटकर बैठती कह उठी।

"गोवा आऊँ और पेट भर कर ना पिऊँ। ये कैसे हो सकता है। तेरे को तो सब पता है। गोवा में पीने का मजा ही कुछ और है।"

“पर गोवा तो अब पहुँचे हैं आप... ।"

“तभी तो नशा चढ़ा हुआ है।" डोगरा हंसा।

"रमेश टूडे को फोन नहीं किया आपने।"

"मैं जानता हूँ उसे। देवराज चौहान का काम निपटा दिया होगा उसने। बुरी मौत मारा होगा उसे।"

"टूडे का भी फोन नहीं आया।"

“सुबह आयेगा।” डोगरा ने लापरवाही से कहा--- “इस वक्त तो वो गोवा पहुँचने के रास्ते में होगा। देवराज चौहान मर गया। अब मजे में हैं हम। वैसे मैं चाहता था कि वो साठी के हाथों मरे। कमीना क्लब में मेरा इन्तजार कर रहा था।"

"प्रकाश दुलेरा ने मरने से पहले आपके प्रोग्राम के बारे में मुँह खोल दिया होगा।" रीटा बोली।

"ये ही हुआ होगा। तभी तो देवराज चौहान कोल्हापुर के क्लब में पहुँचकर मेरे आने का इन्तजार कर रहा था।"

"कल का प्रोग्राम क्या है डोगरा साहब।"

"दोपहर एक बजे विपुल कैस्टो से बीच रैस्टोरेंट में मिलना है। उसके साथ लंच करना है और बातचीत करनी है।" डोगरा बोला।

"वो मानेगा आपकी बात ?"

डोगरा ने नशे भरी आँखों से रीटा को देखकर कहा।

"क्यों नहीं मानेगा?"

“आपकी बात मानने में उसे नुकसान है।"

"नहीं मानेगा तो उसे नुकसान है। मैंने अपना सोचना है रीटा डार्लिंग।" डोगरा ने सिर हिलाया।

रीटा के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी।

"कैस्टो ताकत भी रखता है।"

"मुझसे ज्यादा?"

"ये गोवा का मामला है। गोवा में उसके पास ताकत है। आपके पास मुम्बई में ताकत है।"

"रीटा डार्लिंग।" विलास डोगरा कहर भरे अन्दाज में मुस्करा पड़ा--- "मुम्बई और गोवा में ज्यादा फर्क नहीं है। चौबिस घंटों में मेरी सारी ताकत गोवा पहुँच जायेगी। कैस्टो मेरा मुकाबला नहीं कर सकता।"

"फिर भी कैस्टो कम नहीं है।" रीटा ने जैसे डोगरा को समझाने की चेष्टा की।

तभी दो वेटर ट्राली धकेलते डिनर ले आये और टेबल पर लगाने लगे।

"कैस्टो को मेरी बात माननी ही पड़ेगी।"

"अगर मैं कैस्टो की जगह होती तो आपकी बात कभी नहीं मानती।" रीटा कह उठी।

"क्यों ?" डोगरा ने रीटा को देखा।

"कैस्टो सोच रहा होगा कि गोवा किसी के बाप का तो है नहीं ।" रीटा बोली--- "बाकी फैसला ताकत करेगी।"

“और ताकत में मैं भारी पड़ूंगा।" विलास डोगरा सख्त स्वर में कह उठा।

"ये तो झगड़े वाली बात हो गई। क्या झगड़ा होना ठीक रहेगा। इस तरह तो गोवा का बिजनेस हाथ से निकल सकता है।"

"रीटा डार्लिंग ।" डोगरा बड़े प्यार से बोला--- "गोवा में उसी का काम चलेगा, जिसका कि पुलिस चाहेगी। मैं कितना भी जोर लगा लूं। कैस्टो कितने भी घोड़े खोल ले। काम उसी का चलेगा, जिस पर गोवा पुलिस का हाथ होगा। समझी कि नहीं।"

"गोवा पुलिस को कैस्टो भी अपनी तरफ कर सकता है। वो गोवा का ही है।"

"पुलिस को इस बात से कोई मतलब नहीं कि कौन गोवा का है और कौन बाहर का। उसे सिर्फ ज्यादा नोटों और शान्ति से मतलब है। ये दोनों बातें डोगरा उन्हें दे सकता है। कैस्टो भी दे सकता है। परन्तु पुलिस मेरा साथ देना पसन्द करेगी।"

"मेरा तो कहने का मतलब है कल विपुल कैस्टो से सोच समझ कर बात कीजियेगा। वो कम नहीं है।"

तभी होटल के कर्मचारी ने पास आकर कहा कि डिनर लग गया है ।

अगले दिन सुबह नौ बजे डोगरा उठा। धूप निकली हुई थी और खिड़की से धूप कमरे तक पहुँच रही थी। रीटा खुली खिड़की से बाहर देख रही थी। उसने पायजामा-कमीज़ पहन रखी थी। बाल कंधों पर बिखर रहे थे।

"ओह माई रीटा डार्लिंग।" डोगरा अधखुली आँखों से कह उठा।

“उठ गये डोगरा साहब।” रीटा फौरन पल्टी और पास जा पहुँची ।

डोगरा ने उसका हाथ पकड़ कर चूमा और मीठे स्वर में बोला।

"सुबह कितनी हसीन है।"

रीटा भी मुस्कराई और कह उठी।

“आज विपुल कैस्टो से मिलना है आपने।"

"तुम उसकी ज्यादा चिन्ता कर रही हो।” डोगरा उठ बैठा।

"मैंने तो आपको याद दिलाया है।" रीटा ने कहा--- "टूडे पन्द्रह मिनट से आपके इन्तजार में बैठा है।"

"रमेश टूडे---यहाँ ?" डोगरा की आँखें सिकुड़ी।

"उधर ड्राइंगरूम में।"

"क्या बात है?" डोगरा बैड से उतरता कह उठा।

"मुझे नहीं पता।"

डोगरा ने स्लीपर पहने और सुईट के ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ गया। रीटा उसके पीछे थी ।

ड्राइंगरूम में पहुँचते ही विलास डोगरा ठिठका। उसके होंठ सिकुड़ गये। नज़रें टूडे पर टिक गईं।

रमेश टूडे की हालत ज्यादा बेहतर नहीं दिखी। उसके चेहरे पर मारपीट के निशान नज़र आ रहे थे। कमीज़ के भीतर छाती पर भी जख्म का निशान दिखा। होंठ एक तरफ से कटा सा लग रहा था।

टूडे बैठा डोगरा को देखता रहा ।

"देवराज चौहान को मार दिया?" विलास डोगरा सिर हिलाता कह उठा ।

“वो बच गया।" टूडे शांत स्वर में बोला ।

"हैरानी है कि वो बच गया।" डोगरा गम्भीर स्वर में उसे देखता बोला।

“वो बहुत हिम्मती है।" टूडे ने टांगें फैलाते कहा--- "हारने वालों में से नहीं है।"

"तुम उसकी तारीफ कर रहे हो।"

“कल हालात ऐसे बन गये कि मुझे भागना पड़ा। अगर मैं उसे मार भी देता तो भी मैं नहीं बचता। पास ही में उसका कोई साथी था उसके पास रिवॉल्वर जरूर थी। वो मुझे गोली मार देता। वहाँ बहुत अंधेरा था। अंधेरे ने नुकसान दिया तो भागने में फायदा भी दिया।"

"मैं तो सोच रहा था कि देवराज चौहान कोल्हापुर में ही खत्म हो गया।" डोगरा ने गहरी सांस ली।

"ऐसा पहली बार हुआ है कि शिकार मेरे हाथ से बचा हो।"

“पर उसका बचना मुझे पसन्द नहीं आया।"

"मुझे भी नहीं आया।" टूडे के चेहरे पर सख्ती उभरी--- "लेकिन अब वो गोवा में है।"

"कैसे पता?"

“कोल्हापुर के क्लब में वो ठीक वक्त पर इसलिये पहुँच गया कि उसने दुलेरा का मुँह खुलवाकर उससे आपके प्रोग्राम के बारे में जान लिया था। ऐसे में देवराज चौहान को ये भी जरूर पता होगा कि कोल्हापुर से आपने गोवा जाना है।"

"ये मैंने रात ही सोच लिया था।"

"मेरे पास अभी भी पूरा मौका है देवराज चौहान को खत्म करने का। आपका प्रोग्राम क्या है?" टूडे ने पूछा।

डोगरा ने रीटा को देखा तो रीटा कह उठी ।

"बारह चालीस पर हम होटल से निकलेंगे और एक बजे बीच रेस्टोरेंट में मौजूद होंगे।"

"ये खतरनाक होगा। देवराज चौहान उसके साथी आपका कहीं भी निशाना ले सकते हैं।" रमेश टूडे बोला--- “उनके पास आपका प्रोग्राम है। वो सब जानते हैं। विपुल कैस्टो से मुलाकात के लिए, कोई और जगह रखी जा सकती है?"

"क्यों नहीं रखी जा सकती।" रीटा बोली ।

"तो कोई और जगह रखो। मुझे बताओ। डोगरा साहब का प्रोग्राम मैं बनाऊँगा।" टूडे बोला।

डोगरा के चेहरे पर सोच भरी गम्भीरता नाच रही थी।

"मेरा फोन ।” डोगरा बोला।

रीटा ने तुरन्त फोन लाकर दे दिया।

डोगरा नम्बर मिलाने लगा। रीटा कह उठी।

“सम्भव है देवराज चौहान या उसके साथी, इस होटल के बाहर हों और हम पर नज़र रख रहे हों।"

"ऐसा जरूर हो रहा होगा।" टूडे ने कहा।

डोगरा ने फोन कान से लगा लिया।

"हैलो।" उधर से भारी सी आवाज डोगरा के कानों में पड़ी।

"ओह कैस्टो, कैसे हो।" डोगरा एकाएक मुस्कराया--- "मैं तुम्हारी आवाज सुनना चाहता था।"

"आज हम मिलने वाले हैं ना?

"जरूर। पर मैं चाहता हूं हम जगह बदल लें।"

"वो जगह ठीक है। मेरे आदमी वहाँ मौजूद रहेंगे।"

"फिर भी मैं जगह बदलना चाहता हूँ। जो भी जगह तुम्हें पसन्द हो।" डोगरा बोला।

"मेरे किसी ठिकाने पर आने में कोई एतराज तो नहीं?"

"कोई ऐसी जगह जो ना तुम्हारी हो ना मेरी।"

“ठीक है।" विपुल कैस्टो का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा--- "करवार में बीच पर मिलते हैं। वहाँ ग्लोब रैस्टोरेंट है बीच पर ही बना हुआ। वक्त वो ही रहेगा। मुझे आशा है कि हममें आज अच्छी बातचीत होगी।"

"क्यों नहीं। एक बजे करवार के ग्लोब रैस्टोरेंट में।" कहकर डोगरा ने फोन बंद कर दिया और टूडे से बोला--- “करवार में, बीच पर ग्लोब रैस्टोरेंट की जगह तय हुई है। वो मेरी देखी जगह है। एक घंटा लगेगा वहाँ पहुँचने में।"

"ये ठीक है।" रमेश टूडे उठता हुआ बोला--- “आप वहाँ होटल की किसी गाड़ी में पहुँचेंगे, जिसके शीशे काले होंगे। गाड़ी जब होटल से बाहर निकले तो काले शीशों के होने के बावजूद भी नीचे झुके रहिये। निकलने से पहले मुझे फोन कर देना। मैं होटल से कुछ दूरी पर मौजूद रहूँगा। आपके पीछे आऊँगा। दया क्वालिस के साथ होटल में ही रहेगा, जबकि वो लोग क्वालिस के बाहर निकलने के इन्तजार में रहेंगे। मैं उन्हें आपके पीछे नहीं आने देना चाहता।"

“इस तरह तुम देवराज चौहान को कैसे पकड़ पाओगे ?" डोगरा बोला ।

"वो लोग किसी होटल में ही रुके होंगे। गोवा स्थित हमारे पन्द्रह आदमी सुबह से ही उनके रहने का ठिकाना मालूम कर रहे हैं। दिनभर में कोई नतीजा सामने आ जायेगा। देवराज चौहान मेरा शिकार है। उसे मैं देख लूंगा।" टूडे शांत स्वर में बोला।

विलास डोगरा ने सिर हिलाया।

“कब तक आप यहाँ से करवार के लिए निकलेंगे ?"

"करीब ग्यारह पचास पर।" डोगरा ने कहा।

“आप विपुल कैस्टो से मुलाकात कर लें। उसके बाद मेरा पूरा ध्यान देवराज चौहान पर होगा।" कहने के साथ ही रमेश टूडे दरवाजे की तरफ बढ़ा---  "देवराज चौहान खतरनाक है। कोई लापरवाही मत कर बैठियेगा।” वो बाहर निकल गया।

"मैं जानता हूँ देवराज चौहान खतरनाक है।" डोगरा गम्भीर स्वर में बोला।

"देवराज चौहान से टूडे काफी ठुकाई करा बैठा है डोगरा साहब।" रीटा कह उठी।

"देवराज चौहान गम्भीर मामला है। टूडे की ऐसी हालत पहली बार हुई है।" डोगरा ने रीटा को देखा।

"कहीं देवराज चौहान कोई मुसीबत खड़ी ना कर दे।"

“टूडे निपट लेगा उससे। मुझे टूडे पर भरोसा है।" डोगरा मुस्करा पड़ा।

"मुझे हैरानी है कि टूडे के हाथ लगकर भी देवराज चौहान बच निकलने में कामयाब रहा।"

"जरूर कोई खास गड़बड़ हो गई हो होगी। वरना टूडे को ये काम दोबारा ना करना पड़ता।" डोगरा कह उठा--- “रूम सर्विस को कॉफी के लिए कहो। मैं तो निश्चिंत था कि देवराज चौहान मर गया होगा।"

इन्टरकॉम की तरफ बढ़ती रीटा कह उठी।

"देवराज चौहान को कुछ देर के लिए छोड़िये और विपुल कैस्टो की तरफ ध्यान लगायें। अगर उससे बात ना बनी तो---।"

"ओह रीटा डार्लिंग। तुम कैस्टो की फिक्र करना छोड़ दो। सब ठीक रहेगा।"

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