भूतों का अस्पताल

कानून और विज्ञान, भूत, प्रेत और आत्मा, जैसी पारलौकिक बातों को नहीं मानता है। फिर भी दुनिया में कई लोग हैं, जिन्होंने पारलौकिक घटनाओं का सामना किया है और असामान्य अनुभव से गुजरे हैं। उनका मानना है कि दुनिया में हम मानव ही अकेले नहीं हैं, कोई और भी हमारे आसपास मौजूद है।
जीवन और मृत्यु, पृथ्वी पर जीवन का अटल सत्य है। जो जीव जन्म लेता है, वह एक ना एक दिन मृत्यु को प्राप्त होता ही है। एक मानव अपने जन्म से मरण तक के सफर में हँसता है, रोता है, इच्छा करता है, सफलता प्राप्त करता है, असफल भी होता है, निराश होता है, भावुक होता है, क्रोधित होता है, रुष्ट होता है, कामना करता है, और त्याग भी करता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने जीवन काल में अधूरी रह जाने वाली कामनाओं की पूर्ति करने के लिए जीव-आत्मा, मृत्यु के बाद भी भटकती रहती है।
‘जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल’, 1987 में पटना रेलवे स्टेशन से 5 कि.मी. दूर, राजेन्द्र नगर से 2 कि.मी. की दूरी पर, कंकड़बाग नामक जगह पर बने इस अस्पताल के बनने के बाद, होने लगी थीं डराने वाली घटनाएं। कहते हैं कि यह भूतों का अस्पताल है, जहाँ से रात को अक्सर आती हैं खौफनाक आवाजें। दीवारों पर पक्षी तक नहीं बैठते।
अजय कुमार ने अभी हाल में ही जमशेदपुर टाटा से, बायो मेडिकल की पढ़ाई पूरी की और उसकी नौकरी ‘जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल’ में बायो मेडिकल इंजीनियर के तौर पर हो गयी। अजय बहुत खुश था। वह उस अस्पताल से 12 कि.मी. दूर इन्द्रपुरी नामक मोहल्ले में शिफ्ट हो गया था।
इतनी दूर कमरा लेने की वजह उसके बड़े भाई बिमल किशोर थे। वह अजय को अपने छोटे पुत्र की भांति प्यार करते थे और वह उस जगह पर पिछले 5 सालों से अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ इन्द्रपुरी मोहल्ले में ही रहते थे।
अजय बचपन से ही शॉर्ट टेम्पर वाला शख्स था। उसे छोटी सी छोटी बातों पर भी गुस्सा आ जाता था, इस वजह से उसके बहुत कम मित्र थे। शायद इसी कमी की वजह से वह जवानी में लड़कियों के मामले में खुद को ठन-ठन गोपाल समझता था। उसको कभी अपने इस रवैये पर गुस्सा भी आता, लेकिन वह जैसा है, बेस्ट है , यह खुद को समझा कर अपनी नाक चढ़ा लेता था।
आज ‘जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल’ में उसका पहला दिन था। वह आज समय से पहले ही तैयार हो गया था। जैसे ही वह बाहर जाने के लिए अपने कदमों को बढ़ाता है, तो उसे ऐसा एहसास होता है कि कोई उसकी तरफ आ रहा है। उसका ध्यान बैठे-बैठे उस पायल की मधुर ध्वनि की तरफ खींचा चला जाता है।
वह शख़्स उसके सामने आ जाता है, “अरे देवर जी! ऐसे कैसे जा रहे हैं? आज आपका पहला दिन है। चलिए, जल्दी से मुँह खोलिए।”
यह कहने के साथ अजय की भाभी, जिनका नाम कुसुमलता है, वे उसके मुँह में चम्मच से दही और चीनी डाल देती हैं।
“अरे, भाभी! इसकी क्या आवश्यकता थी। मैं कोई परीक्षा देने थोड़े जा रहा हूँ, जो आप....”
“चुप चाप खा लो, आप। पता है ना आपको, कोई शुभ काम करने जाने से पहले दही खाना शुभ होता है।”, भाभी अजय की बातों को बीच से ही काटते हुए बोली।
“आप से भइया नहीं जीत पाए, भला फिर मैं किस खेत की मूली हूँ।”,
दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े। अभी हँसी का सिलसिला चल ही रहा था कि वहाँ बिमल किशोर भी आ जाते हैं।
“क्या गुफ्तगू चल रही देवर-भाभी के बीच और कौन किस से जीत नहीं पाया, हमें भी तो बताओ।”
“अजी, कुछ नहीं! मैं तो इसे दही खाने के फायदे समझा रही थी।”
“अच्छा! अच्छा!! अब बस भी करो। बेचारे का पहला दिन है, क्यों परेशान कर रही हो। इसका लंच बॉक्स तैयार किया या नहीं?”
“ओह हो! बातों में मैं तो भूल ही गई। किचन में ही पड़ा है, अभी लाती हूँ।”, यह कहकर कुसुमलता किचन की तरफ दौड़ पड़ती है।
बिमल किशोर कुछ आगे बढ़ते हैं और अपनी जेब में हाथ डालते हुए कुछ निकालते हुए, अजय की जेब में रखते हैं।
“अरे भइया! इसकी क्या ज़रूरत है। मेरे पास अभी पड़ा हुआ है।”
अजय ने अपनी जेब में देखा तो 2 हजार के दो नोट पड़े थे, जो अभी बिमल ने उसकी जेब में डाले थे।
“मुझे वैसे भी ज़रूरत होती है तो आपसे मांग ही लेता हूँ।”
“मुझे पता है! लेकिन तेरी आज से जिम्मेदारियां बढ़ गई है, इसलिए ज़िन्दगी को जीना भी सीखो।”, यह कहते हुए बिमल ने अजय की पीठ थपथपाया।
“अगर ज्यादा हो रहे तो मुझे दे दो।”, कुसुमलता लंच बॉक्स हाथ में लेकर वहीं खड़ी थी और यह कहकर हँस पड़ी।
“अच्छा भइया! मुझे देर हो रही है, अब मुझे चलना चाहिए।”, अजय हड़बड़ाते हुए अपनी भाभी के हाथ से लंच बॉक्स लपकते हुए कहा।
“रुको! मैं बाइक से पानी टंकी तक छोड़ देता हूँ, फिर वहाँ से ऑटो से चले जाना।”, बिमल किशोर ने अजय का हाथ पकड़ते हुए कहा और उसको बाइक पर बैठा कर, पानी टंकी तक छोड़ दिया।
अगले 45 मिनट में ही अजय पुछते-पुछाते हुए एक बड़ी सी बिल्डिंग के सामने था। बिल्डिंग के सबसे ऊपर ‘जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल’ लाल सुर्ख रंग से अंकित था। चेहरे पर मुस्कान लिए वह उस अस्पताल के अंदर दाखिल हुआ। एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में अपनी रिपोर्टिंग ‘शिवानी रॉय’ को करते हुए, उसे उसके कार्यों का विवरण दिया गया।
दो हफ्ते में ही वह अपने काम में अभ्यस्त हो चुका था, जैसे मानो वह इस अस्पताल में कोई पुराना कर्मचारी हो। एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट से शिवानी रॉय और उसी अस्पताल की डायटीशियन ‘रूपाली चक्रवर्ती’ से अच्छी खासी दोस्ती हो गयी थी।
अब अजय के पास जॉब के साथ-साथ कुछ महिला मित्र भी हो गयी थी। इस नौकरी के साथ उसकी ज़िन्दगी का सूनापन भी कहीं कोसो दूर चला गया था। अच्छा खासा समय गुज़र रहा था।
◆◆◆
एक दिन अचानक शिवानी रॉय ने अजय को बुलाया।
“हाँ शिवानी, बोलो! मुझे क्यों याद किया? कोई इमरजेंसी है क्या?”
“एक्चुअली अजय, कल से एक महीने तक तुम्हारी नाइट शिफ्ट होगी।”, शिवानी ने अजय की तरफ मासूमियत भरे स्वर में कहा।
“ओह्ह नो शिवानी! प्लीज ट्राय टू अंडरस्टैंड। आई एम नॉट हैबिटुअल ऑफ ईट।”
“सॉरी अजय! आई कान्त हेल्प यू। इट्स एन इमरजेंसी एंड आई हैव टू डू दिस।”
“चलो, ठीक है! वैसे भी अब एक ही महीना बचा है ट्रेनिंग का। वैसे टाइमिंग क्या होगी?”
“रात 8 बजे से सुबह 8 बजे की शिफ्ट होगी।”, शिवानी ने प्रिंट आउट अजय के सुपुर्द करते हुए कहा।
अजय ने उस पर अपने दस्तखत किए और एक प्रति शिवानी को और एक प्रति अपने पास रखते हुए, मुँह लटका कर वापिस चला गया।
अगली शाम ठीक 8 बजे अजय तय वक़्त पर अस्पताल आ गया।
“नमस्कार साहब, आप अजय बाबू हैं क्या?”
“हाँ! लेकिन तुम कौन?”
“साहब, मैं इस अस्पताल का गार्ड हूँ।”
“लेकिन तुम्हें पिछले पाँच महीनों से तो देखा नहीं।”
“साहब, मेरी हमेशा नाइट ड्यूटी ही होती है। दिन में मैं अपनी दुकान में रहता हूँ।”
“ओह! तभी इतने लंबे वक्त के बाद आज मुलाकात हुई।”
“जी साहब, लेकिन आप...!”
“क्या? बोलो...”
“कुछ नहीं, साहब! अभी आप नए हो, छोड़ो! वक़्त पर आपको खुद पता चल जाएगा।”
“क्या पता चल जाएगा? खुल के बोलो, तुम क्या कहना चाहते...”
“हे मिस्टर अजय! यू हैव टू गो टू आई.सी.यू.। देयर इज एन इमरजेंसी।”
अजय की बात को बीच में ही काटते हुए, नाईट शिफ्ट के एडमिनिस्ट्रेशन में आए रंजन चतुर्वेदी ने कहा।
अजय भागता हुआ आई.सी.यू. में दाखिल हुआ। वहाँ बेड नंबर 313 में भर्ती हुए मरीज की ई.सी.जी. मशीन काम नहीं कर रही थी। फटाफट रिप्लेस करने के बाद उसने राहत की सांस ली।
कुछ देर बाद ही रंजन की कॉल आई, “हेलो अजय, व्हेर आर यू?”
“आई एम एट आई.सी.यू. ।”
“इफ यू हैव कंप्लीटेड योर वर्क, देन कम हियर।”
“ओके! आई एम कमिंग।”, यह कहकर अजय ग्राउंड फ्लोर पर एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में चला जाता है।
“वेलकम अजय, हाऊ आर यू?”
“आई एम फाइन, थैंक यू! एंड व्हाट अबॉट यू?”
“सेम हियर। आई होप यू आर एंजॉइंग योर जॉब!?”
“यस, ईट्स माई फर्स्ट ओपरचुनिटी टू प्रूव माइसेल्फ।”
“देट्स ग्रेट।”
“इज देयर एनी प्रॉब्लम?”, अजय ने संशय भरी नजर में रंजन की तरफ कहा।
“नो! नॉट एट ऑल, मिस्टर अजय। कूल डाउन। एक्चुअली मैंने आपको यहाँ कुछ बताने के लिए बुलाया है।”
“जी, बताइए।”
“हम्म! वेल आई वांट टू से दैट, इफ यू आर फीलिंग टायर्ड, देन यू कैन रिलैक्स एट 5 th फ्लोर।”
“नहीं... नहीं... मैं बिल्कुल ठीक हूँ। यदि ऐसा होगा तो मैं बता दूंगा।”
“आप समझें नहीं! मैं यह कहना चाह रहा हूँ कि अब हॉस्पिटल की सारी मशीनें ठीक हैं और नाइट शिफ्ट में कोई उतना काम होता नहीं है। इसलिए आपको पर्सनली एक रूम मिला हुआ है, जो 5 th फ्लोर पर है। वहाँ रूम नंबर 509 है, जहाँ आप रेस्ट कर सकते हो, जब भी नाइट शिफ्ट हो आपकी।”
“थैंक यू सो मच। एक्चुअली मुझे रात काम करने की आदत नहीं है। चलिए, अच्छा हुआ कि यहाँ एक रूम मेरे लिए स्पेशल है।”, यह कहकर अजय ने धीमी मुस्कान के साथ अपने कदम लिफ्ट की तरफ कर दिए।
“साहब, रात को लिफ्ट के कनेक्शन कट होते हैं इसलिए आपको सीढ़ी से ही जाना होगा।”, लिफ्ट के पास खड़े सिक्योरिटी इंचार्ज ने कहा।
“ईट्स ओके! नो प्रॉब्लम।”, यह कहकर अजय सीढ़ियों से पाँचवीं मंजिल की तरफ बढ़ चला।
जैसे ही वह चौथी मंजिल पर पहुँचा था, उसने देखा कि सारा फ्लोर एकदम सुनसान पड़ा था। चारों तरफ नीरव अंधेरा पसरा हुआ था। उसने देखा तो वहाँ से आगे का रास्ता पता नहीं लग रहा था।
अजय ने मोबाइल से फ़्लैश लाइट ऑन किया और पाँचवीं मंजिल की तरफ बढ़ चला। जैसे ही पाँचवीं मंजिल पर पहुँचा, तो उसने राहत की सांस ली।
“वो रहा, कमरा नम्बर 509!”, यह कहते ही उसने अपनी जेब से चाभी निकाल के की-होल में लगा कर दरवाजा खोल दिया।
अंदर एक टेबल और उसके साथ दो आरामदायक कुर्सी थी। वहाँ से थोड़ी दूरी पर एक बेड भी लगा हुआ था।
दरवाजे को बंद करने के बाद कुर्सी पर आकर फैल गया और दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए अंगड़ाइयां लेने के बाद, सारी उंगलियों को चटकाया और जूते को खोलने के बाद बेड पर जाकर बैठ गया।
“आह! रात का असली मजा तो बेड पर ही है।”, यह कहने के बाद वह जैसे ही बेड पर लेटने को होता है, तभी दरवाजे पर खट-खट के शोर के साथ किसी की दस्तक होती है।
“इस वक़्त कौन हो सकता है? कहीं फिर से कोई मशीन तो खराब नहीं हो गई।”, यह बड़बड़ाते हुए अजय दरवाजा खोलता है, लेकिन वहाँ किसी को ना पाकर बड़ा अचरज करता है।
“कमाल है! कौन हो सकता है? भला इतनी रात गए, कौन है जो मज़ाक कर रहा हैं?”
वह वापिस जाकर बेड पर जैसे ही बैठने को होता है, फिर से वही दस्तक होती है। इस बार अजय गुस्से से दरवाजे की तरफ लपकता है और झट से दरवाजे को खोलता है।
सामने एक वार्डबॉय खड़ा रहता है, जो दरवाजे के खुलते ही बोलता है, “सर, कृपया शोर न कीजिए। आपकी वजह से नीचे वाले फ्लोर पर मरीज को परेशानी हो रही है।”
“लेकिन मैंने कब शोर किया। मैं तो चुप चाप अपने बेड.... सॉरी चेयर पर बैठा था।”, अजय ने खीझकर बोला और अपनी कुर्सी की तरफ इशारा किया।
जब वापिस पलट कर देखता है तो वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था। यह देख कर वह थोड़ा झेंप सा गया।
अगले पल खुद से ही बड़बड़ाया, “हद है! इतनी जल्दी कहाँ चला गया ये। शायद इसे वापिस जाने की जल्दी हो। चलो, अब बेड पर आराम किया जाए।
◆◆◆
अजय, अगली सुबह 7 बजे उठता है तो उसे बड़ा अचरज होता है। जिस कमरे में वह सोया था, उस कमरे के दरवाजे की कुंडी खुली है और दरवाजे के दोनों पाले भी बाहर की तरफ खुले हुए थे।
“ओह! लगता है कल रात टॉयलेट कर के, जल्दबाजी में दरवाजे में कुंडी ही लगाना भूल गया। हवा चलने की वजह से दरवाजे के पल्ले भी खुल गए होंगे।”
वह झटपट अपनी जगह से उठा और आई.सी.यू. और अन्य जगह की मशीन की अपडेट्स लेते हुए, 8 बजे इन्द्रपुरी निकल जाता है।
उस दिन भी अजय तय वक़्त पर ठीक रात 8 बजे अस्पताल पहुँच जाता है और जरूरी निरीक्षण करने के पश्चात 5 th फ्लोर पर जाने लगता है।
वह जैसे ही 4 th फ्लोर पर पहुँचता है, फिर से वही सन्नाटा पसरा हुआ देखता है। वह जैसे ही मोबाइल से फ़्लैश लाइट ऑन करता है, अगले क्षण में मोबाइल ऑफ हो जाता है।
“ओह! आज जल्दबाजी में मोबाइल चार्ज करना ही भूल गया। अब मुझे अंधेरे में ही अंदाजा लगा कर ऊपर तक जाना होगा।”, यह कहकर अजय दीवार के सहारे ही आगे बढ़ने की कोशिश करने लगा।
अभी कुछ दूर चला ही था कि उसे बहुत तेज बदबू आयी। ऐसी तीक्ष्ण बदबू जैसे कि वह अगले ही पल उलटी कर दे। अजय ने खुद को संभालते हुए अपने कदम वापिस मोड़ दिए।
अभी कुछ दूर चला ही था कि उसको ऐसा एहसास हुआ कि जैसे उसके पीछे कोई चला आ रहा हो। वह जैसे-जैसे अपने कदम बढ़ाता, वह दूसरे कदम को वैसे-वैसे अपने करीब आता महसूस कर रहा था। अब अजय का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
अचानक अजय ने अपनी रफ्तार बढ़ाई और भाग के वापस पीछे 3 rd फ्लोर पर आ गया। उसने थोड़ी देर वहाँ वक़्त बिताने के बाद सोचा कि उसके मन का कोई वहम होगा। कुछ देर खुद को सामान्य करने के बाद ऊपर की तरफ बढ़ चला।
वह जैसे ही 4 th फ्लोर पर आता है, तो देखता है कि सीधी पर मध्यम रोशनी में एक बल्ब जल रहा है।
वह खुश होकर आगे बढ़ता है और अपने कमरे में आ कर कुर्सी पर बैठ जाता है।
कुछ देर वहीं बैठने के बाद वह फटाफट अपने जूते खोलता है। पहला जूता खोलकर वह कोने की तरफ फेंकता है, तभी उसे कल की घटना याद आती है। कल उसकी इस हरकत से नीचे मरीजों को परेशानी झेलनी पड़ गयी थी। उसने इस बार संभाल कर दूसरा जूता खोला और आराम से जाकर कोने में बिना आवाज के ही रख दिए।
घड़ी में वक़्त देखा तो ठीक 10 बजे का वक़्त हो रहा था। वह अपने बेड पर जाकर लेट गया। अचानक दरवाजे पर दस्तक होती है। ठक-ठक की आवाज से उसकी नींद खुल जाती है। वह जल्दी से जाकर दरवाजा खोल देता है।
“हद है! आज भी कोई नहीं। क्या मजाक बना कर रखा हुआ है यहाँ। जो भी है, आज इसे छोडूँगा नहीं।”
यह कहते हुए वह झुंझलाते हुए दाएं छोर से बाएं छोर तक सूक्ष्म निरीक्षण करके आ गया। लेकिन वहाँ इर्दगिर्द कोई भी नहीं दिखा। वह थक-हार कर अपने बेड पर आकर पसर गया। जैसे ही वह बिस्तर पर लेट कर आँखें बंद करता, उस अनहोनी दस्तक ने फिर से अजय की नींद में खलल डाल दी।
इस बार गुस्से से तिलमिलाया वह दरवाजे की तरफ बढ़ता है और अगले ही पल झट से दरवाजा खोल देता है। जैसे ही वह दरवाजा खोलता है, यह देख कर अवाक रह जाता है कि सामने एक मरीज अपनी हाथों में बैंडेज लपेटे खड़ा है।
अजय को देखते ही बोल पड़ता है, “साहब, आप जल्दी से दूसरा जूता शांति से रखिए। हमें डिस्टर्बेंस हो रही है। बाकी के मरीजों को लंबी नींद भी लेनी है।”
“अरे! वह तो कबका मैंने कोने में रख दिया है। यकीन मानो! वह देखो, कोने में पड़ा हुआ है। लेकिन तुमलोगों को मेरे जूते से क्या प्रॉब्लम हो...”
कोने में पड़े अपने जूते को दिखाते हुए वह जैसे ही उस मरीज की तरफ पलटा, उसकी सिट्टी -पिट्टी गम हो गई। वहाँ वह मरीज नहीं था।
“आखिर यह अस्पताल है या कोई नमूना? अपनी बात बोलकर सब अचानक कहाँ अदृश्य हो जाते हैं? पहली बार वाला कौन है, जो दरवाजा खटखटा कर भाग भी जाता और दिखता भी नहीं?”
“और भला मेरे जूते रखने से इतनी डिस्टर्बेंस कैसे हो सकती है? हद है! यह बंदा इतनी देर तक घंटे तक मेरे दूसरे जूते का नीचे रखने का इंतज़ार कर रहा था?”
यह कहकर अजय अपना दिमाग खुजाने लगा। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उसे इस वक़्त क्या प्रतिक्रिया देनी चाहिए। अजय यही सब सोचता हुआ सो गया।
सुबह उसकी नींद खुली तो देखा कि घड़ी में 8 बजे का वक़्त हो चला है। अचानक उसकी नजर सामने की तरफ पड़ती है तो वह उछल के अपनी जगह पर बैठ जाता है।
“अरे! हद है। ऐसा कैसे हो सकता है। मुझे तो अच्छी तरह से याद है कल रात मैंने दरवाजे में कुंडी और छिटकनी, दोनों लगाई थी। फिर कैसे दरवाजा खुला रह सकता है? कहीं कल रात वाले उस गुमनाम व्यक्ति की हरकत तो नहीं?”
काफी देर तक वह उस खुले दरवाजे को देखकर, वहीं बैठे यही सब सोचता रहता है। तभी घड़ी पर नजर पड़ी तो देखा कि सवा आठ का वक़्त हो चला था।
“ओह! आज देर हो गयी। नींद इतनी गहरी थी कि पता ही नहीं लगा। मुझे अब जल्दी से निरीक्षण करके, निकलना चाहिए यहाँ से।”, यह कहकर अजय अपने काम में लग गया और साढ़े आठ तक वह अस्पताल से इन्द्रपुरी के लिए निकल गया।
◆◆◆
“ऐसा चलेगा तो कैसे काम चलेगा, आप कुछ बोलते क्यों नहीं?”, कुसुमलता तिलमिलाई हुई अंदाज से अपने पति से बोलती है।
“अरे भाग्यवान! पहले भी तो घर चल रहा था न, अब अचानक क्या हो गया है तुम्हें?”, बिमल किशोर ने धीरज से कहा।
“आपके कान पर तो जूँ तक नहीं रेंगता। कितनी बार कहा है कि महंगाई बढ़ चुकी है। यहाँ चार लोगों का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था कि एक जनाब और आ गए।”, इस बार कुसुमलता ने आक्रोश भरी निगाहों से देखते हुए बोला।
“अरे! हद करती हो, कुछ तो शर्म करो। कोई भला अपने छोटे भाई से भी पैसे मांगता है क्या?”
“वह सब मैं नहीं जानती! यहाँ रहना है तो बराबर खर्चा उठाना ही होगा।”
अजय दरवाजे से बाहर खड़ा, यह सब बड़े ध्यान से सुन रहा था। वह बोझिल मन से अंदर दाखिल होता है। अपना थैला एक किनारे रखकर अपने कमरे की तरफ जाने लगता है।
“अरे! देवर जी, क्या हुआ? कोई बात हो गई क्या अस्पताल में?”
अजय कोई जवाब नहीं देता है। वह खामोश ही रहता है।
“बोलिए न, देवर जी। कोई बात है तो बताइए?”
“भाभी! मुझे अगले हफ्ते सैलरी मिल जाएगी, तब आप ले लेना।”, यह कहकर अजय खामोश हो जाता है।
“अरे! पागल हो क्या? कोई अपने देवर से पैसे लेता है क्या? आपसे मैंने कभी मांगा है क्या?”, कुसुमलता अजय की तरफ धीमी और दबी मुस्कान के साथ बोली।
“वो... भाभी! मैंने आप दोनों की बातें सुन ली थी।”
“अरे! आपके भइया भी ऐसे ही हैं। मैं तो उनको समझा रही थी कि अजय तो अपना ही है। लेकिन वे ही कह रहे थे कि अभी नई-नई नौकरी लगी है, इतना बड़ा अमाउंट रखने में दिक्कत हो रही होगी तो....!”
“भाभी! मैं रात भर जगा हूँ। अगर आप बुरा न माने तो थोड़ी देर के लिए मुझे सोने दीजिए।”, अजय कुसुमलता की बात को बीच में ही काटकर बोला।
“हाँ! हाँ!! क्यों नहीं! आप थोड़ी देर आराम कर लो, तब तक मैं आपके लिए खाने का कुछ प्रबंध कर देती हूँ।”, कुसुमलता मुँह सिकोड़ते हुए, वहाँ से पैर पटकते हुए बाहर निकल जाती है।
◆◆◆
अजय शाम 7 बजे अस्पताल के लिए निकल जाता है। ठीक पौने आठ बजे जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल के अंदर जाने को होता है तो कोने में ही खड़े गार्ड पर नजर पड़ती है उसकी। वह गार्ड अजीब सी रहस्यमयी मुस्कान लिए उसकी तरफ देखता हैं। अजय उसकी इस हरकत का कुछ अनुमान लगाए, उससे पहले ही वह उसे नजरंदाज करके अंदर की तरफ चल जाता है।
हमेशा की तरह अस्पताल की सारी मशीनों की रिपोर्ट लेकर और कुछ मशीनों को ठीक करने के बाद, ऊपर कमरे में आराम करने की सोचता है। घड़ी पर नजर पड़ी तो देखा कि रात के ठीक 1 बजे का वक़्त हो रहा था।
“ओह! आज ज्यादा वर्कलोड होने की वजह से समय का बिल्कुल भी एहसास नहीं हो पाया। अब ऊपर कमरे में थोड़ी देर आराम कर लेना चाहिए।”, यह बड़बड़ाते हुए वह ऊपर जाने लगा।
जैसे ही वह हमेशा की तरह, चौथी मंजिल पर पहुँचा, तो अनायास ही बोल पड़ा, “यार! ये चौथी मंजिल का क्या माजरा है? यहाँ हमेशा अंधेरा ही क्यों रहता है? कल सुबह ही इसकी जानकारी लेता हूँ।”, यह बोलता हुआ अजय अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर फ़्लैश लाइट ऑन कर लेता हैं।
“आज सावधानी से अपने जूते उतारने होंगे, नहीं तो कहीं पिछले दिनों की तरह वह रहस्यमयी इंसान न आ जाए।”, यह कहता हुआ वह मंद-मंद मुस्कुराने लगा और जूतों को खोल के आराम से रखते हुए सो गया।
लगभग रात 3 बजे, अजय को प्रेशर आता है और वह टॉयलेट जाने की सोचता है। टॉयलेट उसके रूम नंबर 509 के बिल्कुल सामने ही था। वह जैसे ही उठने को होता है कि उसे कुछ हलचल सुनाई देती है। वह फटाफट दरवाजे के पास खड़ा हो जाता है।
“आज यदि वह शख्स होगा तो उसे छोडूंगा नहीं। आ जाए! आज उसकी खैर नहीं। बस एक बार खटखटा दरवाजा।”, अजय मन ही मन बुदबुदाता हुआ, अपने आप को हिम्मत देने की निरंतर कोशिश में लगा हुआ था।
दरवाजे पर खट-खट की दस्तक होती है। अगले पल ही अजय पूरे जोर से दरवाजे की कुंडी खोलने के बाद, दरवाजे को बल लगा कर खोलने का यत्न करता है, “ये दरवाजा खुल क्यों नहीं रहा? क्या हो गया इसे? ओह... इसने दरवाजा बाहर से बंद कर दिया।”
“ओए! दरवाजे की कुंडी खोल, आज बताता हूँ तुझे। तेरी आज अक्ल ठिकाने न लगा दी तो मेरा नाम भी अजय नहीं।”, अजय गुस्से में बिलबिलाया।
जोर-जोर से चीखते हुए दरवाजे पर लात मारता है लेकिन दरवाजा टस से मस नहीं होता है। वह थोड़ी देर तक और प्रयास करता है, लेकिन उसे कोई कामयाबी नहीं मिलती।
लगभग एक घंटे तक वह वहीं दरवाजे पर ही खड़ा रहता है। समय के साथ उसका प्रेशर बढ़ता ही जाता है। अब यह दर्द असहनीय हो जाता है।
“अरे यार! मोबाइल में नेटवर्क भी कहाँ गायब हो गया। साला! क्या नौटंकी है ये?”
इतना कहते ही उसे एहसास होता है कि दरवाजे पर कुंडी खुल चुकी है। वह लपक कर दरवाजे को खोलता है और वहाँ उसे कोई भी मौजूद नहीं मिलता है। वह दौड़ कर टॉयलेट करके, वापिस अपने कमरे में जा पहुँचता है।
“आखिर ये माजरा है क्या? मैं आज पता करके ही रहूँगा। हो न हो, इसका कनेक्शन चौथे फ्लोर से हैं, क्योंकि वह बन्दा कह रहा था कि उसे ज़रा सी आवाज पर भी डिस्टर्बेंस हो रही थी। हम्म! ऐसा करता हूँ कि जाकर आज मुआयना कर आता हूँ।”, यह कहता हुआ अजय नीचे चौथे फ्लोर पर जा पहुँचता है।
“उफ्फ! यहाँ तो चारों ओर अंधेरा ही छाया हुआ है। मैं आज यहाँ की शिकायत किए बिना नहीं रहूँगा।”, यह कहते हुए वह मोबाइल से फ्लैश लाइट को चालू कर आगे बढ़ता है।
मुश्किल से अभी कुछ कदम ही आगे बढ़ा था कि उसे किसी की मौजूदगी का एहसास हुआ। वह अपने कदम वहीं रोक कर कोने में दुबक जाता है और अपने मोबाइल की लाइट बन्द कर देता है।
थोड़ी देर वहाँ कोने में छिपे रहने के बाद, वह उस आवाज का पीछा करता हुआ, दबे पांव से आगे बढ़ता जाता है। आवाज का पीछा करते-करते वह किसी कमरे के बाहर था। उस कमरे के दरवाजे के ऊपरी हिस्से में कांच लगे थे और उस हिस्से से अंदर का प्रकाश बाहर आ रहा था। वह उस दरवाजे के ऊपर वाले हिस्से से अंदर का जायजा लेने लगा।
अगले ही क्षण, सामने का नजारा देख कर उसके होश उड़ जाते हैं। उसका मुँह खुला का खुला ही रह जाता है। वह पसीने से तर-बतर हो जाता है और खड़े- खड़े अपनी जगह पर ही काँपने लग जाता है।
“ओह माय गॉर्ड! आई कान्ट बिलिव दिस। ऐसा कोई कैसे कर सकता है? इ... इ... इस इंसान के तो सिर ही नहीं हैं। कितना बेरहम है, ये इसके सिर को अलग करके, उसके जिस्म को क्यों फाड़ रहा है?”
अजय यह भयानक मंज़र काफी वक्त देखते ही रह जाता है। अंदर कमरे में किसी इंसान का जिस्म लिटाया हुआ था, जिसका सिर उसके जिस्म के बाजू में ही रखा हुआ था। एक इंसान उस जिस्म को बेरहमी के साथ किसी धारदार हथियार से चीरने में लगा हुआ था।
अजय के कदम उस जगह पर जम गए। जिस व्यक्ति का पोस्टमार्टम हो रहा था, अचानक वह उठ कर बैठ गया और अपने बाजू को उठाते हुए अजय की तरफ इशारा करता है। खौफ का सिलसिला यहीं नहीं थमा। जो व्यक्ति धारदार हथियारों से पोस्टमार्टम कर रहा था, वह धीरे-धीरे अजय की तरफ बढ़ने लगा।
यह देखकर अजय वहाँ से भागना तो दूर की बात, उसकी मुँह से चीख भी नहीं निकल रही थी। अचानक दरवाजा खुला और अजय उसे देखते ही गिर पड़ा। उस शख्स ने अजय की एक टांग पकड़ी और पोस्टमार्टम वाले कमरे में घसीटने कर ले जाने लगा।
अजय चाह कर भी न तो चीख पा रहा था, न ही उस पकड़ से खुद को मुक्त करवा पा रहा था। मानो जैसे किसी ने उस पर काला जादू कर दिया हो और उसकी शक्तियों को अपने नियंत्रण में कर लिया हो।
अगले ही पल अजय अब वहाँ लेटा हुआ था, जहाँ कुछ देर पहले वह शख्स पड़ा हुआ था, जिसके धड़ से सिर अलग करके पोस्टमार्टम का काम जारी था। जिस शख्स ने अजय को एक ही हाथ से पकड़ कर लाया था, उसने दूसरे हाथ से एक धारदार हथियार जकड़ा हुआ था। अब अजय के चेहरे पर खौफ साफ तौर पर देखा जा सकता था। उसकी मजबूर होने के सुबूत उसकी आँखों से पानी बह कर निकल रहे थे।
अजय ने मन ही मन 16 कोटि देवी देवताओं को क्षण भर में ही याद कर लिया। अब वह मन ही मन तय कर चुका था कि यह उसका आखिरी पल है। उस शख्स से ने पूरे दम से हथियार को ऊपर उठाया ही था कि अजय के आँखों के सामने अंधेरा छा गया और वह बेहोश हो गया।
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“गुड मॉर्निंग अजय! अब कैसा महसूस कर रहे हो?”
“मुझे क्या हुआ है? मैं यहाँ कैसे?”
“बी केयरफुल! जैसे हो, लेटे रहो। तुम कल 4 th फ्लोर पर बेहोश मिले थे। वो तो शुक्र है कि तुम्हें ढूंढते हुए उस जगह पहुँच गए, नहीं तो सुबह तक वहीं पड़े रहते।”
अजय उसी अस्पताल में भर्ती था। थोड़े देर में उसके भइया और भाभी उसे वापिस लेकर घर चले जाते हैं। अजय अब घर में सोया हुआ था।
“यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है। तुमने उसपर पैसे का दबाव डाला और वह टेंशन में चला गया, जिसकी वजह से वह बेहोश हो गया होगा।”
“हम्म! तुम्हें तो सारी खामियां मुझमें ही नजर आती है। मैं तो उसकी दुश्मन हूँ ना?”, यह कहते ही कुसुमलता बिलख-बिलख कर रोने लगती है।
“देखो! मैं इस बार तुम्हारे आँसुओं के आगे पिघलने वाला नहीं हूँ। अजय को अभी आराम करने दो, इस तरह हंगामा मत खड़ा करो।”, बिमल इस बार अपनी लाल आँखों को दिखाते हुए बोला।
उसकी इस हरकत से कुसुमलता छत की तरफ चल पड़ती है। बिमल किशोर भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ता है।
वह उसके बाजू को पकड़ते हुए बोलता है, “तुम समझती क्यों नहीं? तुम्हारे सिवा मेरा ख्याल रखने वाला है ही कौन? मैं तुम्हारे भले के लिए ही तो बोलता हूँ। तुम समझने की कोशिश तो किया करो कभी।”
यह सुनते ही कुसुमलता पिघल गयी और बिमल के बाजुओं में काफी देर तक लिपटी रही।
शाम ठीक साढ़े छः बजे, अजय तैयार होकर अस्पताल की तरफ जाने लगता है।
“अरे! तुम जाने भी लग गए। तुम्हारी तबीयत ठीक है क्या? तुम्हें नहीं लगता कि कम से कम एक दिन का रेस्ट लेना आवश्यक है।”
“नहीं भइया! मैंने पूरे दिन आराम किया है और लेटे-लेटे बोर हो गया हूँ। चिन्ता करने की कोई बात नहीं है, मैं अब बिल्कुल फिट हूँ।”
“अच्छा! जैसा तुम्हें ठीक लगे। लेकिन अपना ख्याल रखना।”
अजय थोड़ी देर के अंतराल के पश्चात ‘जगदीश मैमोरियल हॉस्पिटल’ पहुँच जाता है। आज उसकी नजरें उस गार्ड को तलाश रही थी। वह आस पास कहीं नजर नहीं आता। पूछताछ वाले काउंटर से वह पता करता है तो पता चलता है कि गार्ड आज नहीं आया है।
अजय फिर अपने कामों में लग जाता है। उस रात उसके साथ कोई अप्रिय घटना नहीं होती है। उसे बड़ा अचरज होता है। अगली सुबह वह इन्द्रपुरी के लिए निकल जाता है।
अगली शाम तय वक़्त पर फिर अजय अस्पताल की तरफ रुख करता है। उसके मन में बहुत से सवाल उधेड़बुन में लगे रहते हैं। वह ख्यालों में बहुत दूर तक चला जाता है। उसके मन में बहुत से सवाल हिलोरे मार रहे थे।
“साहब! क्या हुआ? आज उतरना नहीं है क्या?”
“ओह! अस्पताल आ गया, मुझे पता ही नहीं लगा। ये लो, किराया।”, अजय हड़बड़ाया हुआ ऑटो से निकलता है और अस्पताल की तरफ तेज कदमों से बढ़ पड़ता है।
थोड़ी देर में ही वह अस्पताल के गेट के सामने था। उसने नजरें घुमा कर गार्ड की तरफ की तो देखा कि गार्ड उसे देखकर घबरा रहा था। अजय को यह देखकर अजीब लगा। वह अंदर न जाते हुए गार्ड के तरफ बढ़ने लगा।
गार्ड ने यह भाँप लिया और वह घबराते हुए अस्पताल के पिछले हिस्से की तरफ बढ़ने लगा। अजय जैसे-जैसे गार्ड की तरफ बढ़ रहा था, गार्ड उससे दुगनी गति से आगे चलने लगा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे अब बस भागने ही वाला हो।
“अरे भाई! कहाँ तक भागोगे, आगे दीवार बन्द है। बेहतर होगा कि अपनी जगह पर रुक जाओ।”
यह सुनते गार्ड वहीं खड़ा हो गया, “साहब! मैं कुछ नहीं जानता। मुझे छोड़ दो, जाने दो!”
“अरे! मैंने अभी कुछ पूछा ही नहीं तो तुम्हें पूछने से पहले कैसे पता लग गया कि तुम्हें नहीं पता। अब मेरा यकीन पुख्ता हो गया है कि जिन घटनाओं ने मेरा दिमाग घुमा के रखा हुआ है, उन सब घटनाओं का तुम से भी जरूर कोई सरोकार है।”
यह सुनते ही गार्ड घबरा गया और बोला, “साहब! मैं सब बता दूंगा, लेकिन कृपया किसी को बताना मत। नहीं तो यह हम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा और...”
“वो सब छोड़ो और जो सच है, वह बताओ। उसके बाद मैं फैसला करूँगा की मुझे करना क्या है?”
“साहब, यह बात बड़ी ही पुरानी और अजीब है। भूत-प्रेत की कहानियां को बचपन से हम अक्सर अपने दादा-दादी, नाना-नानी से सुनते चले आ रहे है।”
“पर साहब, कंकड़बाग के अस्पताल वाले भूत के बारे में दावा किया जाता है कि यह किस्सा नहीं बल्कि सच्चाई है। इसी से समझा जा सकता है कि आज भी शाम होने पर, गाँव में बच्चों को इस अस्पताल वाले भूत से डराकर चुप कराया जाता है। लोग भी कहते हैं कि यहाँ से ऐसी आवाजें आती हैं कि गाँव के लोगों के लिए रात काटना मुश्किल हो जाता है। किसी में आज तक हिम्मत नहीं हुई कि वह अस्पताल में जाकर देखे कि कराहने की और खौफनाक आवाजें, कहाँ से आती हैं। सबसे ज्यादा खौफ की बात तो यह है कि यह आवाज अस्पताल की चारदीवारी से बाहर लोगों को सुनाई देती है, अस्पताल के अंदर लोगों को नहीं।”
“क्या बात करते हो? आखिर यह कैसे सम्भव हो सकता है? यह सब मनगढ़ंत बातें बनाकर, तुम सच्चाई पर पर्दा डालना चाहते हो बस।”, अजय खीझता हुए बोला।
“साहब, जब तक आप पूरी कहानी नहीं सुन लेते, तब तक आपको यही लगेगा। लेकिन मेरा यकीन मानो, मैं जो भी कह रहा हूँ, सब सच कह रहा हूँ।”, गार्ड ने इस बार अपने दोनों हाथों को जोड़ते हुए, अजय की तरफ देखते हुए कहा।
“ठीक... ठीक है! तुम अपनी कहानी पूरी करो।”
“साहब! आज अस्पताल के भूत का सच, मैं आपके सामने लाकर रहूँगा। मैं यहाँ पिछले तकरीबन 15 सालों से गार्ड की नौकरी कर रहा हूँ। इससे पहले मेरे पिता जी ने भी यही काम किया था।”
“एक वक्त था, जब यह अस्पताल ग्रामीणों को इलाज की सुविधा के लिए बना था। पर क्या पता था कि इस अस्पताल में जिंदों का नहीं, मुर्दों का इलाज होगा।”
“जब कल रात आप बेहोश मिले थे, तब मैं अपने पिताजी से मिलने गया था, जो कि यहीं पास के दूसरे गाँव में ही रहते हैं। उन्हें मैंने कल रात वाली सारी घटना के बारे में बताया तो उन्होंने बहुत अहम जानकारी दी, जिसे सुनते ही मेरा सिर चकरा गया।”
उन्होंने कहा, “बेटा, बात पुश्तों की है। जब गाँव में रहने वाले दो पट्टीदारों के बीच आपसी लड़ाई हुई तो एक की मौत, इलाज के अभाव में हो गयी। इसके कुछ दिनों बाद, गाँव में उन्हें इसी स्थान पर बैठे देखे जाने की बातें कही जाने लगीं। कहा जाता है कि वह किसी से कुछ बोलते नहीं। पर बचाओ-बचाओ की आवाजें जरूर आतीं है। किसी की हिम्मत नहीं होती कि वहाँ जाए।”
“इस घटना के कुछ दिन बाद, उनका पड़ोसी जिसने झगड़ा किया था, वह भी गाँव छोड़कर भाग गया और उसके परिवार का आज तक पता नहीं, जाने कहाँ चले गए? उसके बाद से जिनकी मौत हुई, वह कभी यहाँ या फिर गाँव के आसपास ही दिखायी पड़ने लगा।”
यह सुनते ही अजय बोला, “क्या बात कर रहे हो!? जब यह सरकारी चिकित्सा केंद्र था, तो फिर इसका नाम जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल क्यों है?”
गार्ड ने धीरज से अजय की बातों को सुनने के बाद कहा, “साहब, जब 1982 में यह चिकित्सा उपकेन्द्र बनकर तैयार हुआ, तो कुछ दिन बाद ही टूटने-फूटने की आवाजें आने लगीं। कुछ दिन तो लोगों ने नजर अंदाज किया। पर बाद में ये बढ़ता गया। यहाँ अजीब-अजीब सी घटनाएं होती चली गयी।
“यहाँ तक बताया गया कि जब अस्पताल के डॉक्टर चले जाते तो रात में अस्पताल का दरवाजा अपने आप खुल जाता। कुछ दिनों तक ऐसा लगा कि लापरवाही में डॉक्टर से खुला रह गया होगा। पर थोड़े दिनों बाद जब यह घटना सही लगने लगी तो रात के समय तेज रोने की आवाजें भी सुनायी पड़ने लगीं। अस्पताल के डॉक्टर भी परेशान हो गए।”
“यहाँ मरीजों के साथ भी अजीब-अजीब घटनाएं होने लगी। जिस मरीज की इलाज के दौरान यहाँ मृत्यु हो जाती थी, वह रात को यहीं भटकते हुए दिखाई देने लग जाते थे। जिससे इस जगह का नाम और भी बदनाम होने लगा था।”
“गाँव के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग वाले लोगों ने इसकी शिकायत बड़े अफसरों को कि और इस अस्पताल के सूरत-ए-हाल से अवगत कराते हुए बताया कि जब से यह अस्पताल बना है, बंद ही चल रहा है।”
“अस्पताल दिखने में नया जैसा लगता है पर अंदर सारे मेडिकल उपकरण बेकार पड़े हैं। गाँव के लोगों ने अधिकारी के सामने दावा किया कि इन सामानों से भूतों का इलाज होता है।”
“उस अधिकारी को भी इस अस्पताल की हकीकत का पता था, इसलिए उसने तत्काल ही जांच के आर्डर दे दिए। कुछ दिनों बाद ही अस्पताल की जांच करने के लिए एक टीम गठित की गई। वह दल कुछ दिनों में ही कंकड़बाग में स्थित इस अस्पताल में जांच करने को आए।”
“उस जांच दल ने गाँव के प्रधान से अस्पताल के बारे में हाल लेना चाहा। ग्राम प्रधान उन्हें बताते है कि यहाँ पर खौफ का आलम यह है कि वर्तमान में तैनात मेडिकल विभाग की मिडवाइफ यहाँ कभी नहीं आती।”
“प्रधान की बातें सुनने के बाद, जब पड़ताल की गयी तो अस्पताल की बिल्डिंग के आसपास, यहाँ तक कि दरवाजे के पास भी लोगों के मलमूत्र फैले हुए थे। वहाँ जाना भी कठिन था, गंदगी के चलते। उपकेन्द्र पर तैनात मिडवाइफ गाँव में तो आती है पर अस्पताल नहीं जाती क्योंकि लोग कहते हैं कि वहाँ भूत रहता है।”
“खौफ की बढ़ती लहर की वजह से सरकार ने फैसला लिया कि यह अस्पताल बन्द कर दिया जाए। अगले ही दिन वह अस्पताल सीज करके बंद कर दिया गया।”
“कंकड़बाग गाँव में बना यह सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र अस्पताल, काफी वक्त तक खण्डहर की तरह खड़ा रहा। उस वक़्त यहाँ का मंज़र झाड़ियों और खण्डहर के चलते डरावना लगता था। दिन में भी लोग इस रास्ते से गुजरने से डरते थे। घनी झाड़ियों के बावजूद रास्ता इतना साफ दिखता है, जैसे अभी किसी ने साफ किया हो, जबकि बताते हैं कि वहाँ सफाई नहीं होती।”
“कुछ सालों बाद ही, 1997 में जाने माने उद्योगपति ‘तूलिका भक्त’ ने यह जगह सरकारी दाम में लीज पर लेकर, यहाँ नए तरीके से और आधुनिक उपकरण का इस्तेमाल करते हुए, अपने बेटे जगदीश के नाम पर इसको ‘जगदीश मेमोरियल हॉस्पिटल’ के नाम से एक प्राइवेट अस्पताल खोल दिया।”
“अस्पताल खुलने के ढाई सालों तक तो बहुत ही बढ़िया चल रहा था। अचानक यहाँ ऐसी गतिविधियां हुई कि जिसकी वजह से आज भी इस अस्पताल का नाम बदनाम है।”
यह सुनते ही अजय ने अपना धीरज खो दिया और बोल पड़ा, “आखिर क्या हुआ ऐसा? क्या यहाँ फिर से बुरी आत्माओं का वास हो गया?”
गार्ड ने सुनने के बाद कहा, “साहब! यहाँ जो मरीज अपने आखिरी चरण में होते थे या जिनकी मौत होने वाली होती थी, उस व्यक्ति को पोस्टमार्टम वाले कमरे में ले जाते थे और वहाँ ले जाकर उस मरीज के किडनी और लीवर को निकाल लिया करते थे। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि वह पोस्टमार्टम रूम आज भी इस अस्पताल के चौथे मंजिल में है।”
यह सुनते ही अजय का डर उस पर हावी हो गया और लड़खड़ाती जबान से बोला, “तो इसका मतलब, जो मैंने कल रात देखा, वह सच था। वे सच में किसी इंसान की किडनी निकाल रहे थे? लेकिन चंद कागज के टुकड़ों के लिए, इस तरह निर्मम हत्या करना, कहाँ का न्याय है? लोग यहाँ अपना इलाज करवाने आते हैं भरोसे से, लेकिन यहाँ तो....!”
“नहीं साहब! आपने जो कल देखा, वह बिल्कुल भी सच नहीं था?”
“अरे! तुम ऐसा कैसे कह सकते हो? मैंने अपनी आँखों से देखा है।”
“साहब, मैं जानता हूँ कि वह भयंकर मंज़र आपने बहुत करीब से देखा है। लेकिन इसके पीछे की सच्चाई कुछ और है। जो उस दिन आपने देखा था, वह घटना 12 साल पहले घटित हुई थी। काफी लोगों ने उसी घटना को बार-बार देखा है।”
अजय यह सुनते ही आँखें फाड़-फाड़ कर देखने लगा और कहता है, “क्या कहा? 12 साल पहले घटित हुई थी वह घटना। लेकिन कल जब देखा तो ऐसा लग रहा था कि सब कुछ जैसे सच ही हो।”
गार्ड बोला, “साहब, यहाँ आपसे पहले भी एक बायोमेडिकल इंजीनियर आया था। उसके साथ भी ऐसी ही अजीब घटनाएं घटित हुई।
“वह एक दिन कहीं अचानक ड्यूटी करता हुआ गायब हो गया। कुछ दिन बाद ही उसी पोस्टमार्टम वाले कमरे से उसकी लाश को बरामद किया गया था। उसके शरीर को भी उसी तरह चीरा फाड़ा गया था। उसको तो पहचानना भी मुश्किल हो रहा था।”
अजय, “तब फिर यह कैसे कह सकते हो कि वह व्यक्ति वही था?”
गार्ड, “साहब, उसके कुछ पहचान चिन्हों और ज़रूरी जांच से पता लगा कि वह वही शख्स था। वह तो आपकी किस्मत इतनी बुलंद है कि आप जीवित हो।”
अजय, “ओ माई गॉड! यह तो बहुत ही डरावनी जगह है। मैं इसे अपने मन का वहम मानने की बहुत बड़ी भूल कर रहा था। लेकिन जब इतने सालों से यह सब अजीब घटनाएं हो रही तो तुम इसको छोड़ते क्यों नहीं?”
गार्ड, “साहब, मैं बहुत गरीब परिवार से ताल्लुकात रखता हूँ। मेरी दो बेटियां हैं, जिनकी शादी करवानी है।”
अजय, “तुमने मुझे यह सब बातें पहले क्यों नहीं बताई? तुम्हें नहीं लगता कि यह तुमने मुझे पहले बताया होता तो आज मैं खुद को सुरक्षित रख पाता।”
गार्ड ने कहा, “साहब, यह बात मैंने आप से पहले काम करने आए इंजीनियर को भी बताया था, लेकिन उन्होंने मेरा मजाक बनाते हुए एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में शिकायत कर दी थी कि मैं उन्हें डराने की कोशिश कर रहा हूँ। अस्पताल से मुझे आखिरी चेतावनी मिली थी कि मैंने अगली बार इस अस्पताल की कोई भी प्राइवेसी या कोई ऐसी हरकत करता पाया जाऊंगा, जिससे इस अस्पताल का नाम खराब हो, तो मुझे नौकरी से फौरन निकाल देंगे, साथ ही मान-हानि का केस भी कर देंगे। साहब, मैं गरीब आदमी, नौकरी से निकाले जाने के लिए उतना आहत नहीं होता लेकिन कोर्ट कचहरी में लोगों की जायदाद बिकते देखी है, इसलिए मैं सहम गया और क्षमा मांग ली।”
अजय, “लेकिन मैं क्या करूँ? मैं भी विवश हूँ, चाह के भी नौकरी नहीं छोड़ सकता अब। बहुत मुश्किल से मुझे यह नौकरी मिली है। वह भी ऐसी जगह जहाँ से भइया भाभी का भी घर नजदीक पड़ता है।”
“समझ नहीं आ रहा, अब मुझे क्या करना चाहिए?”
गार्ड ने कहा, “साहब, मेरी मानो तो आप कहीं और नौकरी देख लो। ज़िन्दगी रही तो लाखों पाओगे।”
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अजय के हाथ में एक लैटर था और वह उसने एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के हेड ‘रंजन चतुर्वेदी’ को थमा दिया।
लेटर पढ़ने के बाद रंजन बोला, “हेव यू गॉन मेड? ओनली सेवन डेज रिमेनिंग टू कॉम्प्लीट योर ट्रेनिंग पीरियड। आफ्टर दैट, यू आर फ्री टू सर्वाइव हीयर एट एनी सिचुएशन।”
अजय, “आई नो दैट वेरी वेल बट आई हेव टू लीव दिस जॉब।”
राजीव चतुर्वेदी, “ओके यंग मैन! एज यू विश। आई कांट फ़ोर्स यू। विशिंग यू फ़ॉर ब्राइट फ्यूचर।”
अजय की यह आखिरी बातचीत थी, जो उस वक़्त रंजन से हुई थी। उसके बाद वह नौकरी छोड़कर वापिस अपने भइया-भाभी के पास इन्द्रपुरी के लिए निकल पड़ता है।
चेहरे के हाव-भाव से तो साफ पता चलता है कि वह नौकरी को पाने में उतना प्रफुल्लित नहीं था, जितना आज उसका त्याग करने पर। लेकिन दिल ही दिल में बहुत सी परिस्थितियों का सामना करता हुआ, सड़क पर ऑटो के लिए बेधड़क बढ़ता चला जा रहा था।
वह इसी उधेड़बुन में चला जा रहा था कि उसको ज़रा सा भी इल्म नहीं हुआ कि वह मेन रोड के बीचों-बीच चौराहे पर जा पहुँचा था। सामने से एक बड़ा ट्रक आ रहा था। जब तक अजय खुद को ट्रक से बचाने की कोशिश करता या ट्रक ब्रेक मारकर अजय को बचाने की कोशिश करता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
अगले ही पल बहुत तेज की आवाज के साथ अजय सड़क के पार टकरा कर जा गिरा था और उसके जिस्म और सिर के अनेक हिस्सों से लहू की धारा फुट पड़ी थी।
अस्पताल नजदीक होने की वजह से स्थानीय लोगों ने फटाफट उसे अस्पताल पहुँचा दिया। अब यह कहना इतना आसान नहीं था कि अजय की जान बच पाएगी या नहीं क्योंकि इतनी तेज टक्कर होने की वजह से किसी का भी बचना इतना आसान नहीं होता है।
अजय को जब होश आता है तो अपने इर्दगिर्द भइया और भाभी को पाता है।
“यंग मैन! यू आर सो लकी। पूरे तीन दिन आई.सी.यू. में रहने के बाद आपको होश आया है। सच कहूं तो ऐसी कंडीशन्स में 90% चांस होता है कि पेशेंट नहीं बच पाता। बट आई एम सो हैप्पी कि आपने मौत को भी मात दे दी।”, डॉक्टर यह कह कर बाहर चले जाते हैं।
उनके बाहर जाते ही बिमल किशोर और कुसुमलता के आँखों में आँसू आ जाते हैं।
“तुम इससे बातें करो, मैं अभी डॉक्टर से यहाँ से डिस्चार्ज के बारे में पूछ कर आता हूँ।”, यह कहकर बिमल किशोर डॉक्टर के पीछे जा पड़ते हैं।
थोड़ी देर में मायूस शक्ल लेकर वह अजय के पास आते हैं।
उन्हें इस हाल में देख कर कुसुमलता बोलती है, “क...क्या हुआ? आपका मुँह क्यों लटका हुआ है? डॉक्टर ने क्या कहा?
बिमल किशोर, “डॉक्टर का कहना है कि इसे बहुत गहरी चोट आई है, जिसकी वजह से बहुत सारे आपरेशन करने होंगे।”
कुसुमलता, “क्या कहा! आपरेशन करने होंगे? आपने ठीक से पूछा तो है न?”
बिमल किशोर, “हाँ भाग्यवान! उनका कहना है कि टक्कर इतनी तेज हुई कि इसे गंभीर चोट आई है। इसके दाहिने पैर के घुटने की हड्डी चकनाचूर हो गई है। इसके दाहिने कंधे में फ्रैक्चर है, बाएं हाथ की कलाई से लेकर टखने तक आपरेशन करके रॉड डाली जाएगी। इसके लिए कम से कम इस अस्पताल में इसे 20 दिनों तक तो रहना ही पड़ेगा। वह तो शुक्र है कि यह अस्पताल वही है, जिसमें अपना अजय काम करता है, इसलिए इसको फाइनल बिल में 50% का डिस्काउंट भी मिलेगा।
यह सुनते ही कुसुमलता के आँखों में सैलाब आ गया। आज उसे अपने छोटे देवर पर बहुत ही ज्यादा तरस आ रहा था। अजय ने जैसे ही अस्पताल का नाम सुना, उसके तोते उड़ गए। उसकी अचानक हार्ट-बीट बढ़ने लगी। उसकी इस हालत को देखते ही बिमल किशोर डॉक्टर के पास भागे-भागे गए।
उन्होंने अजय की तबियत अचानक खराब होने की बात कही तो फटाफट कुछ वार्डबॉय आ गए और कहने लगे, “आपलोग कृपया यहाँ से बाहर निकलें। हम पेशेंट को 4 th फ्लोर पर ले जा रहे हैं। वहीं बाकी के आपरेशन होंगे और 20 दिनों तक वहीं शिफ्ट कर रहे हैं।”
यह आवाज कानों में पड़ते ही अजय की हालत और भी खराब होती चली गयी। उसकी सांसे और भी ऊपर नीचे होने लगी, जैसे मानो की उसने खुद का पोस्टमार्टम होते हुए देख लिया हो।
जैसे ही वार्डबॉय उसे लेकर जाने लगे तो जाते-जाते अजय ने कुसुमलता का पल्लू पकड़ लिया। उससे ज़बरदस्ती पल्लू छुड़ाया गया।
जब उसने पल्लू छोड़ा तो उसके आँखों से केवल आँसू बह रहे थे, जिसे देखकर यह लग रहा था कि मानो अजय कह रहा हो कि “मुझे यहाँ से ले चलो, नहीं तो यह मुलाकात आज आखिरी मुलाकात होने वाली है।”
दुर्भाग्य देखो कि उसके जज्बातों को समझने वाला कोई भी नहीं था। ऐसी विडंबना थी कि उसके साथ अब जो भी होने वाला था, अब उसका एक मात्र गवाह वह खुद ही था, जिसका राज़ अतीत के पन्नों में कहीं खो जाने वाला था।
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