कुछ देर बाद एक पुलिस जीप बन्दूकवाला को लेकर वहां पहुंच गई । वह अब भी गिड़गिड़ाकर खुद को बेगुनाह बता रहा था। उसे मालूम नहीं था कि यहां क्या कुछ हो गया है। ठकरियाल ने ही नहीं, खुद राजदान और देवांश ने भी उससे लड़की के बारे में तरह-तरह के सवाल किये । वह लड़की का हुलिया कम, उसके लिबास और बातों के बारे में ज्यादा बता रहा था। साथ ही बता रहा था लिबास के अंदर से उसका कौन-सा अंग कैसे चमक रहा था । अंत में ठकरियाल ने पूछा----“अगर वह तेरे सामने आ जाये तो क्या तू उसे पहचान लेगा?”


“ लाखों की भीड़ में इंस्पेक्टर साहब । लाखों की भीड़ में।”


“कैसे पहचानेगा- - उसका चेहरा देखकर या कुछ और देखकर?”


“च-चेहरा ही देखकर पहचान लूंगा साब ।” बन्दूकवाला उसके व्यंग्य का अर्थ समझ कर बौखला गया ---- “श-शुरू में तो मैंने उसका चेहरा ही देखा था । ”


“इसका मतलब ये हुआ बन्दूकवाला कि कोई लड़की तुझे लिफ्ट मारे तो...


“नहीं साब । कान पकड़ता हूं । कसम खाता हूं । अब अगर किसी लड़की ने मुझे लिफ्ट मारी तो मैं उसे लात मारूंगा । अब बस एक ही रिक्वेस्ट है आपसे । जो कुछ हुआ वो मेरी है बन्दूकवाली के कानों तक न पहुंच जाये । सुनते ही मुझे तलाक दे देगी।”


उसकी इस बात पर सब हंस पड़े ।


ठकरियाल ने राजदान से कहा---- “सर, मेरे ख्याल से इतना बुरा नहीं है बन्दूकवाला! जो कुछ इसके साथ हुआ वही एक दिन ऋषि विश्वामित्र के साथ भी हुआ था । जब वही बहक गये तो ये बेचारा क्या चीज है। कम से कम नौकरी न छीनें इसकी।”


बन्दूकवाला 'खटाक' से ठकरियाल के कदमों में गिर गया।


“अबे, मेरे नहीं, राजदान साहब के पैर पकड़ ।” और बन्दूकवाला पलटकर राजदान के कदमों में जा पड़ा । देवांश ने कहा ---- “चल | सीट संभाल अपनी ।”


ठकरियाल ने कहा----“आप लोग चाहें तो जा सकते हैं।”


“तुम यहां क्या करोगे?”


“बम स्क्वॉयड आने वाला है। वे यह जानने की कोशिश करेंगे इस्तेमाल हुआ बम कहां बना । मुमकिन है उसी में से मेरे लिए भी कोई रास्ता निकल आये। वैसे अगर मुझे कुछ और जरूरत पड़ी तो आपको कष्ट देने राजदान विला पर आऊंगा। याद रखिए - - - - जो शख्स आपकी रामनाम सत्य का तलबगार है, वह एक हमला नाकाम होने के बाद दूसरा और दूसरा नाकाम होने के बाद तीसरा भी कर सकता है। जब तक वह पकड़ा नहीं जाता तब तक आपको सतर्क रहने की जरूरत है। "


राजदान उसकी बात पर खास ध्यान दिए बगैर मर्सडीज की तरफ बढ़ गया।


“मिस्टरा देवांश ।” ठकरियाल ने राजदान की प्रतिक्रिया से असंतुष्ट होकर कहा ---- “मिस्टर राजदान इस बात के प्रति उदासीन लग रहे हैं। वास्तव में ये ठीक नहीं है। ऐसी अवस्था में आपकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है।"


"फिक्र मत करो इंस्पेक्टर ।” देवांश के दांत भिंच गए ---- “मेरे रहते मेरे भैया का कोई बाल बांका नहीं कर सकता।”


“कहें तो दो-चार सिक्योरिटी गार्ड लगा दूं?”


देवांश के कुछ कहने से पहले गाड़ी के नजदीक पहुंच चुका राजदान तेज़ी से घूमकर बोला ---- “उसकी कोई जरूरत नहीं है इंस्पेक्टर, सुरक्षा गार्ड जब इंदिरा गांधी और जनरल वैद्य को नहीं बचा सके तो किसी और को क्या बचायेंगे? सदियों से एक ही बात साबित होती आई है ---- जिसका - जिसका बुलावा आ गया, उसे दुनिया से जाना ही होगा ।”


“इन सिद्धान्तों के रहते सुरक्षा का दामन तो नहीं छोड़ सकते हम ?”


“ आ छोटे ! उसे बकने दे।” कहने के साथ राजदान गाड़ी में बैठ गया ।


देवांश को आज्ञापालन करना पड़ा।


मर्सडीज और उसके पीछे स्टॉफ कारों का काफिला चल पड़ा । दिव्या और राजदान पहले की तरह पिछली सीट पर अगल-बगल बैठे थे। देवांश आगे, बांयी सीट पर । ड्राइविंग सीट पर बन्दूकवाला था । राजदान सिगार में कश लगा रहा था । गाड़ी में खामोशी थी और राजदान विला के सामने पहुंचने तक खामोशी ही रही । सफेद संगमरमर से बनी शानदार विला के ब्रास वाले गेट पर पहुंचते ही राजदान ने कहा- “एक मिनट यहीं रोको बन्दूकवाला ।”


बन्दूकवाला ने तुरन्त ब्रेक मार दिए । देवांश ने पूछा- "क्यों भैया?”


“मैं बबलू से मिलकर आता हूं।” कहने के साथ राजदान दरवाजा खोलकर बाहर निकल गया ।


“ओफ्फो !” दिव्या कह उठी ---- “ऐसा भी क्या है बबलू में कि आप घर जाने से पहले...


“प्लीज दिव्या ।”


“ओ. के. ।” देवांश अपनी तरफ का गेट खोलकर बाहर निकलता बोला- “मैं साथ चलता हूं।”


“नहीं छोटे, बबलू के पास मुझे अकेले ही जाना होगा। तुम अपनी भाभी के साथ अंदर चलो । मैं बस दस मिनट में आता हूं।”


“ आप शायद भूल गये इंस्पैक्टर ने क्या कहा था ? हमला दुबारा - तिबारा भी हो सकता है। इन हालात में मैं आपको अकेला नहीं छोड़ सकता । "


“क्यों बच्चों जैसी बातें कर रहे हो ? कम से कम बबलू के पास कोई खतरा नहीं हो सकता मुझे । ”


“फिर भी, मैं आपके साथ चलूंगा ।”


“ मैंने कहा न छोटे, तुम्हारी मौजूदगी में मेरे और उसके बीच "ऐसी क्या बातें करते हैं आप बबलू से जो मेरे या भाभी के सामने नहीं हो सकतीं?”


“जिद मत करो छोटे । कह जो दिया कि तुम मेरे साथ नहीं आओगे।” कड़े स्वर में कहने के बाद राजदान सड़क के पार बनी उन इमारतों की तरफ बढ़ गया जिनमें हर फ्लैट दो कमरों वाला था । जिस ढंग से राजदान ने इंकार किया था, उसके बाद देवांश में उसके पीछे जाने की हिम्मत नहीं थी । हां, यह सवाल जरूर काला नाग बन उसके दिमाग पर डंक मार रहा था, जो शख्स उससे और अपनी पत्नी से कुछ नहीं छुपाता, वह बबलू से अपने सम्बन्धों को इतने पर्दे में क्यों रखता है ?