तीसरा आसमान पार हो चुका था।
चौथा आसमान आने वाला था।
सबके दिल धड़क रहे थे।
मोना चौधरी ने सबको एक ही जगह इकट्ठा कर लिया था। उनमें सरजू, दया और मिट्टी के बुत वाली युवती भी मौजूद थे। हर कोई सवालिया निगाहों से एक-दूसरे को देख रहा था।
कुछ दूरी पर हवा में काली बिल्ली मौजूद थी। कभी वो बैठी रहती तो कभी हवा में इस तरह चहल-कदमी करने लगती जैसे गहन सोच-विचार में व्यस्त हो। कभी-कभार वो ऊपर की तरफ मुंह उठाकर तेज आवाज में म्याऊं की आवाज निकाल देती।
गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल, उसके करीब ही हवा में थी।
सबको देखने के बाद मोना चौधरी की नज़रें, नगीना पर जा टिकीं।
नगीना का मस्तिष्क अब पेशीराम की आत्मा की पकड़ से आजाद था। बिल्ली से बहसबाजी समाप्त होते ही पेशीराम ने नगीना के मस्तिष्क को अधिकार मुक्त कर दिया था।
“नगीना!” मोना चौधरी गम्भीर थी-“तुम एक बार फिर सोच लो। देवराज चौहान की आत्मा, शैतान की कैद में पहुंच चुकी है। शैतान के वहां जाने क्या-क्या होगा। सीधा रास्ता नहीं होगा। कई रुकावटें आयेंगी। कभी भी, कुछ भी हो सकता है। शैतान के आसमान पर, उसके हाथ से कुछ निकालना आसान काम नहीं-।”
“तुम कहना क्या चाहती हो-?”
“यही कि तुम देवराज चौहान की आत्मा को शैतान के कब्जे से ले आओगी क्या?”
“मोना चौधरी! सवाल ये नहीं है कि मैं अपने पति की आत्मा को शैतान के कब्जे से ला पाऊंगी या नहीं। सवाल तो ये है कि मेरे अलावा इस काम के लिये और जो भी जायेगा। मारा जायेगा। ग्रहों के हिसाब से मैं ही जाऊं तो मेरे जिन्दा वापस आने के आधे चांसेज हैं।”
“सच कह रही हो?” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली।
“हां...।” नगीना सिर हिलाकर रह गई।
“बहना! देवराज चौहानो तो दुनियां से गयो हो। ईव तंम भी मर गयो तो म्हारो कलेजो फट जायो।”
“दीदी को कुछ नेई होईला बाप...।” रुस्तम राव दांत भींचकर कह उठा-“दीदी बचेला।”
“शैतान से टक्कर लेना।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा-“उसके कब्जे से देवराज चौहान को आत्मा को लाना। हंसी-खेल नहीं है। मेरे ख्याल में जान जाने के ज्यादा मौके आयेंगे।”
जगमोहन ने होंठ भींच लिए।
नगीना सख्त स्वर में कह उठी।
“जो होगा देखा जायेगा। ऐसी बातें पहले सोचकर मैं अपनी हिम्मत कम नहीं करना चाहती। बेहतर होगा कि इस तरह की बातें न की जायें। हमें सिर्फ काम की तरफ ध्यान देना है। उसके बारे में ही सोचना है।”
पल भर के लिये सब चुप हो गये।
“ये बताने में आपको क्या एतराज है कि किसने कहा, आपके अलावा कोई और जायेगा तो जान गंवा बैठेगा?”
“इस बारे में नहीं बता सकती।” नगीना ने कहा-“वैसे ये बात तुम बिल्ली के मुंह से भी सुन चुके हो कि मैंने सच कहा है। अगर मुझे मालूम न हो पाता तो मोना चौधरी जाने के बाद फिर कभी वापस नहीं लौटती।”
मोना चौधरी ने होंठ भींच लिए।
“सरजू...!” दया बोली-“इसके भीतर किसी की आत्मा आई
“हाँ...।” सरजू ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।
“मुझे, डर लग रहा है कि आत्मा...।”
“वो अच्छी आत्मा होगी। तभी तो उसने बता दिया कि इसके सिवाय कोई और जायेगा तो मारा जायेगा। इस काम के लिये इसके ग्रह ही सबसे अच्छे हैं।” सरजू ने कहा।
“क्या भरोसा, ये वापस न आ सके। शैतान इसे मारकर, इसकी आत्मा को भी कैद कर ले।” मिट्टी के बुत वाली युवती कह उठी।
“हां। वो बता तो रही थी कि आधा-आधा चांस है।” दया ने कहा फिर बोली-“सरजू...!”
“कह दया...!”
“पहले मुझे डर लग रहा था। मेरी जान निकली जा रही थी। लेकिन अब जाने डर कहां चला गया।”
“हां दया। मेरे को भी अब डर नहीं लग रहा।” सरजू के होंठों पर मध्यम सी मुस्कान उभरी-सब को देखते हुए वो कह उठा-“हम सबके साथ ही तो हैं। ये नहीं डर रहे तो हम क्यों डरें?”
“बाप! आपुन तो बोत डरेला।” रुस्तम राव कह उठा-“दिल
जोरो से हिएला है।”
तभी राधा ने खामोश खड़ी भामा परी को देखा।
“भामा परी।” राधा बोली-“तुम जानती हो, नगीना में कोई आत्मा है?”
“मालूम है।” भामा परी ने कहा।
“किसकी आत्मा है वो?” राधा ने उत्सुकता से पूछा।
“मैं नहीं बता सकती।” भामा परी गम्भीर हो उठी-“उस आत्मा की सोचें मैं पढ़ चुकी हूं और उसकी सोचों से मैं पूरी तरह सहमत हूं कि अभी उसके बारे में किसी को न बताया जाये।”
“क्यों?”
“उसके बारे में जानकर कहीं बिल्ली का मन न बदल जाये, सहायता करने को।” कहते हुए भामा परी ने बिल्ली को देखा-“बिल्ली भी इस वक्त आत्मा के बारे में ही सोच रही है, वो किसकी आत्मा है। बिल्ली की सोचों में कईयों के नाम आ रहे हैं। वो...।”
“खामोश हो जा...।” एकाएक बिल्ली के मुंह से तीखा स्वर निकला।
भामा परी बिल्ली को देखने लगी।
“हम तेरी दुनिया में दखल नहीं देते। तू हमारी दुनिया में क्यों दखल देती है।” बिल्ली कह उठी-“मेरे विचारों को पढ़कर इन्हें क्या बता रही है।”
“तुम परीलोक में दखल नहीं दे सकते।” भामा परी ने शांत स्वर में कहा-“लेकिन हमें वरदान मिला हुआ है कि हम परीलोक वाले, तुम लोगों की बातों में दखल दे सकते हैं। फिर भी अगर तुम्हें एतराज है तो मैं तेरी सोचों को पढ़कर इन्हें नहीं बताऊंगी। लेकिन एक बात अवश्य कहूंगी।”
“क्या?”
“तेरी सोचों में ये बात बार-बार आ रही है कि नगीना जिन्दा वापस नहीं लौट सकेगी।”
“हां...।”
“ऐसा क्यों सोच रही है तू?”
“क्योंकि शैतान के घर में घुसकर, उसके कब्जे से किसी आत्मा को ले आना सम्भव नहीं।”
“ये तेरी सोच है या तेरी विद्या तेरे को ऐसा बता रही है?”
“मेरी सोच है।”
“तो मेरी बात मान। ऐसी बुरी बात सोचना छोड़ दे।” भामा परी ने कहा-“सबका भला सोचते हैं।”
बिल्ली ने भामा परी को घूरा।
“तू मुझे शिक्षा देगी।”
“ये शिक्षा नहीं। अच्छी बात बता रही हूं कि किसी का बुरा नहीं सोचते।” भामा परी की आवाज सामान्य थी।
बिल्ली चमक भरी नज़रों से भामा परी को देखती रही।
भामा परी ने सब पर निगाह मारते हुए कहा।
“ये सच है कि अगर नगीना के अलावा देवराज चौहान की
आत्मा को लेने कोई और जायेगा तो कभी भी लौट नहीं पायेगा। मारा जायेगा। ये बात इस बिल्ली की सोचों में समाई हुई है।”
“ओह...!” महाजन के होंठों से निकला।
हर कोई गम्भीर सा नज़र आ रहा था।
तभी मोना चौधरी ने बिल्ली से कहा।
“शैतान का आसमान आने में ज्यादा देर नहीं है। तुम बताओ नगीना ने वहां पर क्या करना है। उसके बाद हम क्या करेंगे। हम सब बातों से अंजान हैं।”
“मैं भी नहीं जानती कि मेरे सामने क्या परेशानियां आयेंगी।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“कुछ मुझे भी बताओ कि शैतान की वजह से मैं कहां फंस सकती हूं। देवराज चौहान की आत्मा कहां कैद है और...।”
“ये बातें तुम उस आत्मा से पूछो, जो तुम्हारे भीतर छिपी हुई
है।” बिल्ली ने तीखे स्वर में कहा।
“वो नहीं जानती। वो आगे नहीं देख पा रही। भविष्य की बातों से अंजान है।”
बिल्ली ने कुछ नहीं कहा।
“तुमने बताया नहीं कि नगीना को वहां क्या करना होगा?” राधा अब कुछ व्याकुल-सी नज़र आने लगी थी
बिल्ली की चमकती निगाह, नगीना पर जा टिकी।
“जो आत्मा तुम्हारे शरीर में मौजूद है।” बिल्ली ने कहा-“क्या
वो जानती है शैतान ने देवा की आत्मा को कहां रखा है?”
तभी नगीना के मस्तिष्क में पेशीराम के स्वर की फुसफुसाहट हुई।
“मुझे मालूम है देवा की आत्मा को शैतान ने कहां रखा है।”
“हां।” उसी पल नगीना के होंठ हिले-“उस आत्मा को मालूम है।”
“वो आत्मा तेरे साथ ही रहेगी क्या?” बिल्ली की आंखें चमक रही थीं।
“हां...।” नगीना के होंठों से निकला।
“उस आत्मा से कह कि अगर तेरे को कुछ हुआ तो शैतान उस आत्मा को भी कैद कर लेगा।” बिल्ली बोली-“वो साथ न जाये तो शैतान की कैद में जाने से बच सकती है।”
नगीना ने होंठ भींच लिए।
“मैं तेरे साथ ही रहूंगा नगीना बेटी।” नगीना के मस्तिष्क की तरंगों से पेशीराम के शब्द टकराये।
“लेकिन बाबा मेरे साथ रहने में आपको खतरा है। मुझे कुछ हुआ तो शैतान आपकी आत्मा को भी कैद कर लेगा। आप साथ नहीं रहे तो ठीक होगा।” नगीना होंठों ही होंठों में बुदबुदा उठी।
“मैं अच्छा काम करने जा रहा हूं। शैतान का डर मुझे मत दिखाओ।”
“बाबा।” नगीना के होंठ हिले-“आपने पहले ही मेरी बहुत
सहायता की है। अब आप...।”
“मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा बेटी।” पेशीराम का स्वर सख्त हो गया था।
नगीना एकाएक कुछ न कह सकी।
“तुमने जवाब नहीं दिया नगीना।” बिल्ली कह उठी।
हर कोई नगीना और बिल्ली को देख रहे थे ।
“वो आत्मा मेरे साथ ही रहेगी।” नगीना ने कहा। चेहरे पर बेचैनी सी उभर आई थी।
“मेरे ख्याल में तुम्हें पसन्द नहीं कि वो आत्मा साथ रहे।” बिल्ली की आंखें चमक उठीं।
“मैं अपने काम में किसी को खतरे में डालना ठीक नहीं
समझती।”
“तो मना कर दो उस आत्मा को कि...।”
“वो नहीं मानती...।”
बिल्ली ने कुछ नहीं कहा। चमक भरी निगाहों से नगीना को देखती रही।
“छोरे...!” बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।
“बाप...!” रुस्तम राव के होंठ उलझन भरे ढंग में चिपके हुए थे।
“म्हारे को यो आत्माओं का फेर समझ में न आयो हो...।”
“बाप ये बड़ा रगड़ा होईला। आपुन दूर रहेला।”
बांकेलाल राठौर की निगाह कालीन पर पड़ी, देवराज चौहान की लाश पर गई। सटा रखी गर्दन अब अलग होकर पास ही लुढ़की हुई थी। खून बहकर अब सूखने को हो रहा था।
“छोरे...!” बांकेलाल राठौर का स्वर भर्रा उठा-“वो अपणो देवराज चौहान को सीधो करियो...।”
“क्या सीधेला बाप?” रुस्तम राव के होंठ पीड़ा भरे अंदाज में भिंच गये। उसने उधर देखा।
“देवराज चौहान का खोपड़ो अलग हो गयो। वो जोड़ो के राव...।”
“क्यो अपने को धोखा देईला बाप।” रुस्तम राव तड़प उठा। आंखों में आंसू चमक उठे-“वो पूरी तरह मरेला। जिन्दा नेई होईला।”
दोनों की आंसुओं भरी निगाहें मिलीं।
“छोरे! बहना जायो देवराज चौहान की आत्मो लायो। म्हारी तो खोपड़ी में कुछो पड़ो ना।”
“आपुन के भेजे में भी कुछ नेई घुसेला।” रुस्तम राव आंखों से आंसू साफ करते हुए कह उठा।
“वो तो ठीको हौवे। अंम सोचो कि अगर बहनो, आत्मो ले आयो तो का देवराज चौहान जिन्दो हो जायो।”
“ऐसा कैसे होएला बाप। गर्दन कटेला। खून पूरा शरीर से निकेला। नेई बाप। देवराज चौहान जिन्दा नेई होईला।”
“रुस्तम!” नगीना के होंठों से कठोर स्वर निकला-“बुरी बात मत बोल। भूल गया पहले जन्म को। उसने हमेशा तेरी सहायता की और तू भी उसके लिये जान देने को तैयार रहता था...।”
रुस्तम राव की निगाह नगीना के गुस्से से भरे चेहरे पर गई।
“पहला जन्म?” रुस्तम राव के होंठों से निकला।
“भूल गया अब तू। तेरे को सब याद आया था, जब तू देवराज चौहान के साथ, नगरी को समय चक्र से निकालने गया था। जब तुम सबने मिलकर हाकिम और दालूबाबा को मारा। लाडो से मिला। सब भूल गया।”
“ला...लाडो। याद होईला।” रुस्तव राव के होंठ भिंच गये-“बाकी कुछ समझ में नेई आएला। धुंधला होएला।”
“अम तो सीधो-सीधो बंदो हौवो। म्हारे को क्या मालूम पैले-दूसरो जन्मों के बारो में।”
“बांके!” नगीना के होंठों से निकला-“तेरा कसूर नहीं। जब तेरे को याद आयेगा, तब समझ में आयेगा, मैं क्या कह रही हूं।”
“छोरे...!”
“बाप...!”
“म्हारे को कुछो मालूम नेई तो अंम काये को बहस करो हो।”
“परफैक्ट कहेला है बाप। अब नेई बात करने का।”
“पण बात तो बीचो में पक्को हौवे। नेई तोयो बात ही क्यों हौवे?”
“आपुन तेरी बात मानेला बाप...।”
नगीना ने गर्दन घुमाकर काली बिल्ली को देखा।
काली बिल्ली अजीब-से ढंग से मुँह बनाये उसे देख रही थी।
“किसकी आत्मा है तेरे में?” बोली बिल्ली। आवाज में अजीब-से भाव थे।
“तेरे को अच्छी तरह मालूम है कि मैं तेरे इस सवाल का जवाब नहीं दूंगी।”
“तू ही है, वो आत्मा?”
“हां।”
“तेरा सम्बन्ध गुरुवर से है!”
“कैसे कहती है तू?” नगीना के होंठ हिले। उसकी आंखों की चमक बढ़ चुकी थी।
“तूने जो बातें कहीं, वो कभी नगरी में हुई थीं। बाहरी आत्मा ये बातें नहीं जान सकती।”
“ज्यादा कुरेदने की कोशिश न कर। अब मैं तेरे से बात नहीं करूंगी।” नगीना के होंठों से निकला। इसके साथ ही नगीना के मस्तिष्क को मध्यम सा झटका लगा और वो खुद को आजाद सी महसूस करने लगी।
बिल्ली की नज़रें नगीना पर थीं।
सब नगीना को देख रहे थे।
न समझ में आने वाला अजीब सा माहौल वहां बना हुआ था।
“वो आत्मा मेरे साथ हर पल ही रहेगी।” नगीना बोली-“अब बता शैतान के आसमान पर क्या होगा?”
“मैं तेरे को अदृश्य कर दूंगी। हर कोई तेरे को नहीं देख सकेगा। नहीं पहचान सकेगा।” काली बिल्ली की आवाज में अब गम्भीरता आ गई थी-“कोई बड़ी शैतानी शक्ति ही तेरे को पहचान पायेगी कि तू अदृश्य है या तेरे शरीर में दूसरी आत्मा भी है। मैं नहीं जानती कि तू कब तक बच पायेगी। वो आत्मा ही तेरे को रास्ता बताती जायेगी कि शैतान ने देवा की आत्मा को कहां कैद कर रखा है। बीच में जिन खतरों से तेरा सामना होगा, उनके बारे में मुझे ज्ञान नहीं। अगर तेरे भीतर मौजूद उस आत्मा को इस बारे में ज्ञान है तो वो तेरे को बता देगी। ये तेरी और उस आत्मा की बात है।”
नगीना के होंठ भिंच गये।
“अगर मैं देवराज चौहान की आत्मा को ले आई।” नगीना के शब्दों में कंपकंपाहट थी-“तो देवराज चौहान जिन्दा कैसे होगा?”
“मैं करूंगी। गुरुवर की शक्तियां इस वक्त मेरे पास हैं। उनकी तरफ से मुझे इजाजत है कि हर मुनासिब जगह पर तुम लोगों का भला करना चाहूं तो कर सकती हूं। तुम देवा की आत्मा को लाओ। उसे मैं जिन्दा कर दूंगी।”
नगीना ने आंखें बंद कर लीं। आंखों के कोनों से पानी चमक उठा।
“गुरुवर की शक्तियां तुम्हारे पास हैं।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“अगर तुम उन शक्तियों को हमारे हवाले कर दो
तो देवराज चौहान की आत्मा को शैतान के पास से लाने में नगीना को ज़रा भी परेशानी नहीं होगी।”
“तुम ठीक कहती हो। ऐसा कर सकती हूं मैं।” काली बिल्ली के होंठों पर मुस्कान उभरी। आंखों में छाई चमक में बढ़ोतरी हो गई-“लेकिन ऐसा करूंगी नहीं मैं...।”
“क्यों?”
“सब कुछ मैं ही कर दूंगी तो तुम क्या करोगे। मैं तुम्हें रास्ता बता सकती हूं। राहें आसान कर सकती हूं। लेकिन कर्म तो तुम लोगों ने ही करना है। तभी तो कर्मों का फल लेने का हकदार बनोगे।”
मोना चौधरी काली बिल्ली को देखती रही।
“क्या देख रही हो मिन्नो?”
“सोच रही हूं कि तू कितनी बदल गई है।” मोना चौधरी गम्भीर थी।
“मैं नहीं बदली। मेरा जीवन बदल गया। मेरे कर्म बदल गये। मैं तो वहीं हूं। बिल्ली...।”
मोना चौधरी ने फिर कुछ नहीं कहा।
“नगीना भाभी तो देवराज चौहान की आत्मा लेने चली जायेगी।” जगमोहन कह उठा-“शैतान के आसमान पर पहुंचकर हम क्या करेंगे। तुम हमारी क्या सहायता कर सकती हो?”
“जरूरत के मुताबिक कुछ शक्तियां मैं तुम लोगों में डाल दूंगी।” काली बिल्ली ने गम्भीर स्वर में कहा-“बचने की कोशिश कर सको तो कर लेना। मेरे ख्याल में शैतान के आसमान पर पहुंचकर, बच नहीं सकोगे। फिर भी एक मौका होगा तुम सबके पास बचने का-।”
“कैसा मौका?” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“शैतान का ये काला महल, गुरुवर की शक्तियों के कब्जे में है। इस महल पर शैतान का कोई वार नहीं चल सकता। उसकी कोई भी शक्ति महल पर या महल के भीतर असर नहीं दिखा सकती। जो भी महल के भीतर रहेगा, वो पूरी तरह सुरक्षित होगा। शैतान और उसके आदमियों के हाथों बचा रहेगा।”
“थारो मतलब हौवे कि अंम महल के भीतर रहो तो बचो रहो शैतान से?”
“हां।”
“तो हम कब तक भीतर रह सकते हैं।” महाजन बोला-“महल से कभी तो बाहर निकलना ही होगा। हम ये भी नहीं जानते कि महल को वापस कैसे ले जाया जा सकता है।”
“मैं इस काले महल को वापस मोड़ सकती हूं।” बिल्ली मुस्करा कर कह उठी-“गुरुवर की शक्तियों में एक शक्ति ऐसी भी है, जो हर चीज का रूख मोड़ सकती है। तुम लोग कहो तो मैं अभी महल को वापस ले चलती हूं।”
“वापस किधर चलईला?”
“जहां तुम कहो तुम लोगों की दुनिया में। गुरुवर की नगरी में या जहां से महल चला था। वहां वापस।” बिल्ली कह रही थी-“मुझे जैसा कहोगे में वैसा कर दूंगी।”
बिल्ली के शब्द पूरे होते ही हर कोई एक-दूसरे को देखने लगा।
“सरजू-।” दया का स्वर खुशी से कांप उठा-“हम वापस चले जायेंगे।”
“हां दया-।” सरजू ने दया का हाथ थाम लिया-“हम अपनों के पास पहुंच जायेंगे।”
“बिल्ली-।” दया ऊंचे स्वर में कह उठी-“महल को वापस मोड़ लो। हम वापस जाना चाहते हैं?”
काली बिल्ली का चेहरा मुस्कराहट के रूप में फैल गया। आंखों में चमक बढ़ गई।
“छोरे-।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर पहुंच गया-“यो बिल्ली तो म्हारो को वापस ले चलने को कहो।”
रुस्तम राव के दांत भिंच गये।
“तंम म्हारी बात का जवाब न दयो हो।”
रुस्तम राव के दांत भिंच गये।
जगमोहन की आंखें सिकुड़ चुकी थीं।
सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगा ली।
महाजन ने बोतल से एक साथ दो घूंट भरे।
मोना चौधरी के चेहरे पर मुस्कराहट आ ठहरी थी।
पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा था।
भामा परी शांत-सी खड़ी सबको देख रही थी। मिट्टी के बुत वाली युवती की निगाह देवराज चौहान के मृत शरीर पर जा टिकी थी।
नगीना का चेहरा बेहद कठोर हो चुका था।
“कहो मुझसे-।” बिल्ली पुनः कह उठी-“महल को वापस ले लूं?”
“नीलू-।” राधा कह उठी-“कह दे वापस चलने को। शैतान से झगड़ा करने का क्या फायदा। वैसे भी बुरे लोगों के मुंह नहीं लगते। हम शरीफ लोग हैं। मैं तो वापस जाकर कोने वाले हलवाई के समोसे खाऊंगी।”
महाजन के दांत भिंच गये।
“क्या हुआ।” बिल्ली के होंठों से निकला-“तुम सब खामोश क्यों हो गये?”
“चालाक बनने की कोशिश मत करो।” मोना चौधरी ने शांत स्वर में कहा-“तुम्हारी बातों में कोई नहीं आयेगा।”
“क्यों?”
“देवराज चौहान की लाश लेकर कोई भी वापस जाना पसन्द नहीं करेगा। वो जिन्दा हमारे साथ था। वापस जायेंगे तो उसे जिन्दा लेकर।” मोना चौधरी के गम्भीर स्वर में दृढ़ता आ गई-“या फिर शैतान को खत्म करके नहीं तो शैतान के हाथों अपनी जान गंवा देंगे।”
काली बिल्ली अजीब-से ढंग में हौले-से हंसी।
“शैतान कभी नहीं मरता। तुम लोग उसे खत्म करने का वहम मन से निकाल दो।” बिल्ली ने व्यंग्य से कहा-“देवा की आत्मा को वापस लाना लगभग असम्भव कार्य है। और आखिरी रास्ता बचता है, अपनी जान गंवाने का।”
“हमें वही रास्ता मंजूर है।” जगमोहन के होंठों से खतरनाक गुर्राहट निकली।
“तुम लोगों की मर्जी। मैंने तो हर रास्ता सामने रख दिया है।” काली बिल्ली ने लापरवाही से कहा।
“नीलू-।”
सब इकट्ठे बैठे इन्हीं बातों में व्यस्त थे कि शैतान को शिकस्त देने के लिये उनके आसमान पर क्या किया जा सकता है। उन्हें क्या-क्या करना चाहिये।
नगीना खामोश थी। चुप थी। कभी सामान्य हो जाती तो कभी खतरनाक भाव चेहरे पर फैल जाते। वो कभी बैठ जाती तो कभी मुट्ठियां भींचते चहलकदमी करने लगती।
“नीलू, तू सुनता क्यों नहीं।” पास बैठी राधा ने कोहनी मारी।
“क्या है?”
“मेरी एक बात मानेगा?”
“बोल-।”
“ये बिल्ली बहुत चौड़ी हो रही है। क्योंकि इसके पास गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल है।” राधा बोली।
महाजन ने राधा को देखा।
“तो?”
“तू किसी तरह इस बिल्ली को पकड़ ले। मैं इसके गले में रस्सी डालकर महल की खिड़की से नीचे लटका दूंगी। बाल हमारे कब्जे में आ जायेगी फिर-।”
“राधा-।” महाजन ने टोका।
“हां।”
“तू चुप नहीं रह सकती-।”
“क्यों, मेरी आवाज तेरे को अच्छी नहीं लगती क्या?” राधा ने उसे देखा-“तू तो कहता था, मेरी आवाज बहुत अच्छी है जब मैं बोलती हूं तो तेरे को बहुत सुकून मिलता है।”
महाजन के चेहरे पर सकपकाहट के भाव उभरे।
बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछों पर पहुंच गया।
“राधा, समझा कर-।” महाजन ने हड़बड़ाकर कहा।
“क्या समझूँ-?”
“हमारी बातें अन्दर की बातें हैं सबके सामने क्यों करें-।”
“यहां भी तो सब अपने हैं। सबको तो हम जानते-?”
“चुप कर-।” महाजन ने तीखे स्वर में कहा।
राधा ने फौरन होंठ भींच लिये फिर धीमे स्वर में बोला।
“नीलू! मैंने कुछ गलत कर दिया क्या?”
“हां-।”
“ठीक है। मैं नहीं बोलती।” कहने के साथ ही राधा ने होंठ भींच लिए।
जगमोहन ने गम्भीर निगाहों से टहलती नगीना को देखा।
“भाभी! बैठ जाओ।”
नगीना ने ठिठककर जगमोहन को देखा। फिर अपने चेहरे पर उभरे भावों को सामान्य किया और पास आकर उनके बीच आ बैठी। चेहरे पर गम्भीरता था। आंखों में कभी-कभार व्याकुलता उछाले मारने लगती थी।
“अगर इनके साथ अदृश्य होकर कोई दूसरा भी, देवराज चौहान की आत्मा लेने जा सकता तो ज्यादा अच्छा रहता।” पारसनाथ ने गम्भीर स्वर में कहा-“एक को दूसरे की मौजूदगी का सहारा रहता है।”
नगीना ने पारसनाथ को देखा। कहा कुछ नहीं।
“नगीना एक नहीं, दो हैं।” मोना चौधरी ने शब्दों पर जोर देकर, पारसनाथ से कहा।
“क्या मतलब?”
“मत भूलो कि नगीना के साथ कोई आत्मा भी है, जो उसका भला चाहती है। उसे रास्ता दिखायेगी। हो सकता है रास्ते में आने वाली मुसीबतों से भी इसे बचाये।” मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे।
“ओह-!” पारसनाथ ने अपना खुरदरा चेहरा हिलाया-“मैं तो
भूल ही गया था।”
तभी नगीना ने मोना चौधरी को देखकर कहा।
“मुझसे ज्यादा आशा मत लगाओ मोना चौधरी। मैं एक हद से ज्यादा सहायता नहीं कर पाऊंगी नगीना की।”
सबकी निगाह फौरन नगीना की तरफ उठी।
वो समझ चुके थे कि नगीना के भीतर मौजूद दूसरी आत्मा ने ये शब्द कहे हैं।
“तुम।” मोना चौधरी ने नगीना को गहरी निगाहों से देखा-“मुझे मिन्नो क्यों नहीं कहती-?”
“क्यों कहूं-?”
“बिल्ली के मुताबिक तेरा वास्ता गुरुवर से है।” मोना चौधरी उसे ही देख रही थी।
“तो-?” नगीना के होंठ हिले।
“फिर तो मैं तेरे लिये मिन्नो ही हुई-।”
“हां। लेकिन मैं तेरे को इस नाम से नहीं पुकार सकती। इस नाम से पुकारूंगी तो बिल्ली मेरी आत्मा की असलियत जान जायेगी। बिल्ली को मेरी असलियत मालूम होना, इस वक्त के लिये ठीक नहीं होगा।”
तभी बिल्ली ने अपना चेहरा ऊपर को किया। मुंह खोला।
“म्याऊं-।”
कईयों की निगाह बिल्ली की तरफ गई।
“ये क्या कर रही है?” मोना चौधरी की नजरें नगीना पर थीं।
“ये परेशान हो रही है कि इसे मेरे बारे में नहीं मालूम हो पा रहा।” नगीना ने भी बिल्ली को देखा।
“तो तुम भाभी की ज्यादा सहायता नहीं कर पाओगी?” जगमोहन ने पूछा।
“नहीं। वहां कई जगहों पर मैं भी मजबूर हो जाऊंगी।”
“क्यों?”
“मेरी शक्तियां नीचे मेरे शरीर के पास मौजूद हैं। आत्मा शक्तियों को अपने साथ नहीं ला सकती। ऐसे में मैं नगीना की खास सहायता नहीं कर पाऊंगा।”
“तो रास्ते में आने वाले खतरों में भाभी को कौन बचायेगा?” जगमोहन के माथे पर बल उभरे।
क्षणिक खामोशी के बाद नगीना के होंठ हिले।
“मुद्रानाथ की तलवार इसकी सहायता करेगी। जितना हो सकेगा मैं इसकी सहायता करूंगा। ये खुद अपनी सहायता करेगी। शैतान के आसमान पर इसी तरह काम चलाना होगा। वहां बहुत खतरे हैं। नगीना के होंठों से गम्भीर स्वर निकला।
“गुरुवर की शक्तियों भरो बाल बिल्ली के पासो हौवे।” बांकेलाल राठौर ने कहा-“बालों की शक्तियों म्हारे को दे दयो तो बहना, कमो से कम देवराज चौहान की आत्मो को तो शैतान के कब्जे से निकाल लावो।”
जवाब में नगीना के होंठ हिले।
“बिल्ली के पास इस तरह के अधिकार नहीं हैं कि गुरुवर की शक्तियों को इस्तेमाल कर सके। उसे जो अधिकार है, वो अपने अधिकारों में रहकर ही बात कर रही है। उतनी ही सहायता दे रही है। अगर गुरुवर की शक्तियों को ज्यादा इस्तेमाल किया तो, बिल्ली को इसके लिये सख्त सजा भुगतनी पड़ सकती है।”
“लेकिन हम तो शैतान के खिलाफ काम कर रहे हैं।” मोना चौधरी कह उठी-“गुरुवर को इसमें क्या एतराज हो सकता है।”
“बहुत एतराज है। शक्तियों को यूं ही इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। प्रलय आ जायेगी। ये क्यों भूल जाते हो कि शैतान भी इस सृष्टि का ही एक हिस्सा है। शैतान को ज्यादा छेड़ना सृष्टि को ही छेड़ना है। हर कोई एक-दूसरे से बंधा हुआ है। शक्ति को कब कहां, कितना इस्तेमाल करना है। इसका पैमाना तुम लोगों के पास नहीं है।” नगीना के होंठों से निकलता जा रहा था-“शक्ति को कम इस्तेमाल कर लिया तो जबर्दस्त हार और अगर ज्यादा इस्तेमाल कर लिया तो अदृश्य शक्ति द्वारा बनाई सृष्टि का नाप तौल घटने-बढ़ने लगेगा, जो कि सबके लिये नुकसानदेह होगा और शैतान की इसमें जीत हो जायेगी।”
“जीत कैसे?” सोहनलाल के होंठों से निकला।
“शैतान यही तो चाहता है कि बरबादी हो। तबाही हो। वो तो चाहता है कि उस पर बड़ा वार किया जाये। इससे उसे अवश्य नुकसान होगा। परन्तु सृष्टि से बंधी डोर के कोने टूटने शुरू हो जायेंगे। शक्तियों को अपने पांवों पर खड़े होना कठिन हो जायेगा। शैतान खुद बरबाद होगा और उसके साथ दूसरे भी हो जायेंगे।”
“ये जरूरी है?” पारसनाथ के होंठों से निकला।
“हां। ऐसा ही होगा।”
“तो क्या शैतान को मारा नहीं जा सकता-।”
इस बार नगीना के होंठ नहीं हिले।
“तुमने जवाब नहीं दिया।”
“तुम लोगों से, इससे आगे बात करने का मुझे अधिकार नहीं है।” नगीना के होंठों से निकला।
नगीना को देखते हुए महाजन ने घूंट भरा।
तभी बिल्ली का तेज स्वर वहां गूंजा।
“नगीना के शरीर में बैठकर अपनी मनमानी तो कर रही है। लेकिन इसके लिए गुरुवर से इजाजत ली है तूने? क्या तू गुरुवर से पूछ कर आई है नगीना के शरीर में-?”
“अपने काम से मतलब रख।” नगीना ने उसे देखा-“गुरुवर से मैं बात कर लूंगी।”
“मतलब। तूने इन कामों के लिए गुरुवर की इजाजत नहीं ली?” बिल्ली बोली-“अपने शरीर को कहां छोड़ा है?”
“तेरे को क्या?”
“तेरा शरीर मुझे बता देगा कि तू कौन है।”
“मेरे लिये तो पलों का खेल है, वापस अपने शरीर में चले जाना। इस तरह तेरे को कभी पता नहीं चलेगा।”
बिल्ली के चेहरे पर गुस्सा-सा नजर आने लगा।
“गुरुवर की शक्तियों के बारे में तेरे को बहुत ज्ञान है। तू गुरुवर की करीबी है कोई-।”
नगीना उसे देखती रही।
“तू-।” बिल्ली ने जोरो से अपनी पूंछ हिलाई-“या तो पेशीराम है। या मुद्रानाथ। अगर इन दोनों में से कोई नहीं है तो तेरे बारे में जल्दी ही जान लूंगी।”
“बेकार की बातें मत कह। तू बहुत छोटी है मुझसे। तेरी शक्ति बहुत कमजोर है मेरे सामने।”
बिल्ली गुस्से से नगीना को देखती रही। बोली कुछ नहीं।
तभी नगीना के मस्तिष्क को झटका लगा। वो अपने दिमाग को आजाद सा महसूस करने लगी। पेशीराम की आत्मा ने बिल्ली से जो बातें कीं, उन सब बातों को सुना था उसने। उसके मस्तिष्क पर पेशीराम अधिकार पाकर जो भी बात करता था, उन सब बातों से वो वाकिफ रहती थी।
नगीना ने सोच भरी गम्भीर निगाहों से सबको देखा।
“बिल्ली से जो बातें हो रही हैं, उस तरफ कोई ध्यान न दें।” नगीना के स्वर में गम्भीरता थी-“ये बात तुम सब भी समझ चुके हो कि वो मैं नहीं करती। कोई दूसरा ही कर रहा है।”
“तुम जानेला की, वो कौन होएला?” रुस्तम राव की आंखें सिकुड़ी हुई थीं।
“हाँ। लेकिन उसके बारे में बता नहीं सकती-।” कहते हुए नगीना ने इन्कार में सिर हिलाया-“उसके बारे में बताने में नुकसान है। हमारा काम अधूरा रह सकता है।”
“यो बिल्लो की वजहो से-।” बांकेलाल राठौर के होंठों से निकला।
“ऐसा ही समझ लो-।”
बांकेलाल राठौर ने बिल्ली को देखा। हाथ मूंछों पर पहुंच गया। “थारी वजहो से म्हारो काम रुको तो अंम थारो गलो ‘वड’ दयो।”
जवाब में बिल्ली का मुंह इस तरह खुला कि वो मुस्कराती-सी दिखी।
“हमें शैतान के बारे में सोचना चाहिये कि उसके आसमान पर पहुंचकर क्या करें। कैसे करें?” सोहनलाल बोला।
“इस बारे में सोचने की जरूरत ही क्या है।” राधा ने कहा-“बिल्ली के पास इतनी शक्ति है कि महल में किसी शैतानी शक्ति को आने नहीं देगी। हम यहीं बैठे गप्पे मारेंगे। नगीना, देवराज चौहान की आत्मा को ले आयेगी।”
“और अगर मैं वापस न आ सकी। शैतान ने मुझे मारकर मेरी आत्मा को कैद कर लिया तो?” नगीना ने राधा को देखा।
राधा एकाएक व्याकुल सी दिखी।
“तब तो नीलू से पूछना पड़ेगा कि क्या करना होगा।” राधा ने होंठ भींचकर कहा।
“इस बारे में पहले बात करना ठीक नहीं कि शैतान के आसमान पर पहुंचकर हमें क्या करना है।” मोना चौधरी शब्दों पर जोर देकर कह उठी-“हम नहीं जानते वहां पर कैसा माहौल होगा। हमें क्या देखने को मिलेगा। शैतान को पूरी खबर होगी कि हम आ रहे हैं। ऐसे में हमारे लिये कोई इन्तजाम अवश्य कर रखा होगा उसने-।”
सबके चेहरे बता रहे थे कि वो मोना चौधरी की बात से सहमत है।
“बिल्ली महल को वापस ले जा सकती है तो, हम वापस क्यों नहीं चल रहे-।” सरजू एकाएक तेज स्वर में कह उठा।
“तेरे को वापस जाना है।” जगमोहन एकाएक दांत भींचकर, भड़क कर कह उठा।
“हां। मैं दया के साथ वापस जाना चाहता हूं-।”
“तो इस खिड़की से या कोई दरवाजा खोल लो और दया को लेकर नीचे कूद जाओ।” जगमोहन क्रोध से उबलते कह उठा। “मैं-मैं महल वापस ले जाने के लिये कह रहा हूं-।” सरजू भी गुस्से से कह उठा।
“महल वापस नहीं जायेगा-।” मिट्टी के बुत वाली युवती कह उठी।
“क्यों?” सरजू ने उसे देखा।
“देवराज चौहान की आत्मा लिए बिना, उसे जिंदा किए बिना, वापस नहीं जायेंगे।” मिट्टी के बुत वाली युवती का स्वर सामान्य था-“मैं मिट्टी की थी। तिलस्म में, कमरे में, बिना जान की, सट कर खड़ी हुई थी। मेरे में देवराज चौहान ने ही जीवन डाला। मैं भी तुम जैसों की तरह हो गई। देवराज चौहान मेरा जीवनदाता है। उसके जीवन के लिये मैं अपने शरीर के प्राण तक दे सकती हूं। और इन लोगों को मैंने अब तक जिस हद तक पहचाना है, उसके दम पर ये कह सकती हूं कि अगर देवराज चौहान के जिन्दा होने की आशा है तो इनमें से कोई भी यूं ही वापस जाना पसन्द नहीं करेगा।”
“कोई जरूरी तो नहीं कि देवराज चौहान की आत्मा को लाया जा सके।” सरजू गुस्से में भरा हुआ था।
“कोशिश करने में क्या जाता-।”
“बेकार की कोशिश में मेरी जान जायेगी। दया की जायेगी। तुम लोगों का क्या-तुम तो-।”
तभी बांकेलाल राठौर उठा और सरजू पर झपट पड़ा।
“थारे को अपणो जान बोत प्यारो हौवे। ला, अंम अम्भी इसो को ‘वड’ दयो। साले-कुत्ते।” बांकेलाल राठौर, सरजू को लिए नीचे जा गिरा और उसका गला दबाने लगा-“थारे को अंम नेई दिखो कि हम भी हौवे। अपनी जान बोत प्यारो लगो हो। थारी तो अंखियों को नोच के बारो को काड़ दूं-।”
“सरजू को क्यों मार रहे हो?” दया चीख कर दौड़ी और सरजू के ऊपर पड़े बांकेलाल राठौर को पीछे करने लगी-“मत मारो मेरे सरजू को। बचाओ इसे। तुम सब क्या देख रहे हो।”
गला दबने की वजह से सरजू का चेहरा लाल सुर्ख हो उठा था।
“मूंछों वाले। छोड़ दे अब। बच्चे की जान लेगा क्या?” राधा हाथ हिलाकर तेज स्वर में कह उठी।
“बाप-।” रुस्तम राव आगे बढ़ा और बांकेलाल राठौर को पीछे खींचता कह उठा-“छोड़ेला बाप। गुस्सा नेई करेला।”
“हट जा छोरे। अंम इसो को ‘वड’ दयो। म्हारे देवराज चौहान के जिन्दो होने को चांस हौवे। इसो को अपनी जान के पड़ो हो। का म्हारी सबो की जान कीमती न हौवो-।”
“छोड़ेला बाप-।”
“बांके छोड़।” नगीना कह उठी-“छोड़ दो इसे।”
“अंम इसी को वडेला-।”
सबने मिलकर बांकेलाल राठौर को सरजू पर से हटाया।
सरजू दोनों हाथ गले पर रखे, गहरी-गहरी सांसें लेने लगा।
चेहरा सुर्ख था उसका।
“सरजू-सरजू-।” दया की आंखों से आंसू बह रहे थे-“तुम-तुम ठीक तो हो-।”
“ह-हां-।” सरजू मुंह खोले हांफ रहा था।
बिल्ली का चेहरा मुस्कराहट के रूप में फैला हुआ था।
कई पलों तक वहां चुप्पी रही।
इस बीच सरजू बहुत हद तक सामान्य हो चुका था।
परेशान से, गम्भीर से जगमोहन ने भामा परी को देखा।
“शैतान के आसमान पर तुम हमारी क्या सहायता कर सकोगी-?” जगमोहन ने पूछा।
“मैं इस काबिल नहीं कि शैतान की जमीन पर तुम लोगों की कोई सहायता कर सकूं।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा। “क्या मतलब?”
“शैतान की धरती पर हम मासूम-हमदर्द परियों की नहीं चल सकती।” भामा परी ने गहरी सांस ली-“वहां हवा में शैतानी
आत्माओं की पहरेदारी होगी। परियां तो वैसे भी शैतानों का प्रिय भोजन है। शैतानों को मालूम हो गया कि उनकी धरती पर कोई परी आ पहुंची है, तो मुझे खाने के लिये, उनके बीच मार-काट हो जायेगी। मुझे यहां बहुत खतरा है।”
“इसका मतलब तुम महल में रहोगी।” महाजन बोला।
कुछ चुप्पी के बाद भामा परी ने कहा।
“अभी मैं कुछ नहीं कर सकती। जैसा वक्त आयेगा, वैसा ही करूंगी। लेकिन वहां मुझे पक्का जान का खतरा है।”
उन्हें महसूस हो गया था कि भामा परी की जान शैतान के आसमान पर सुरक्षित नहीं रहेगी।
“तुम महल में ही रहना।” राधा बोली।
भामा परी ने उसे देखा। चेहरे पर शांत-सी मुस्कान उभरी। कहा कुछ नहीं।
“भामा परी की बात, कोई बड़ा मसला नहीं है।” जगमोहन ने सोच भरे स्वर में कहा-“ये महल में रहकर भी अपनी जान बचा सकती है। अगर महल के भीतर भी खतरा होता तो, फिर सोचने वाली बात थी।”
“मुझे दुःख है कि शायद मैं शैतान की दुनिया में तुम लोगों के काम न आ सकूं।” भामा परी ने अफसोस भरे स्वर में कहा।
रुस्तम राव की तीखी नजरें बिल्ली पर जा टिकीं।
“तुम सच कहेला है कि शैतान के आसमान पर, महल के के भीतर कोई खतरा नेई होएला-।”
“मैं झूठ नहीं बोलती-।” बिल्ली ने शांत स्वर में कहा-“कहूंगी तो सच ही कहूंगी।”
“म्हारे को तो ये नम्बरी लागो हो। सचो तो इसो को दूरो का भी रिश्तोदारो न लागे म्हारे को।” बांकेलाल राठौर ने बिल्ली को घूर कर कहा-“छोरे थारे को तो विश्वास हौवो कि अंम सचो कहो हो।”
रुस्तम राव होंठ भींचकर रह गया।
“ये सच कहे या झूठ।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा-“हम इस वक्त मजबूर हैं, इसकी बात मानने के लिये।”
“इसका सच-झूठ जानने का हमारे पास कोई रास्ता भी तो नहीं।” पारसनाथ ने कहा।
“ये जो कहेगी सच कहेगी।” एकाएक नगीना कह उठी-“गुरुवर के चरणों में रहकर, झूठ नहीं बोल सकती। बोलेगी तो गुरुवर से हासिल सारी विद्या इससे दूर हो जायेगी। ये सामान्य बिल्ली बन जायेगी।”
“तुम्हारा मतलब कि ये जब भी बोलेगी, सच ही बोलेगी-।” राधा ने नगीना को देखा।
“मेरा ये मतलब नहीं कहने का।” नगीना का स्वर शांत था-“ये झूठ भी बोल सकती है। लेकिन उस झूठ में सामने वाले का फायदा होना चाहिये। दूसरे का नुकसान नहीं होना चाहिये।”
“ओह-!” महाजन ने सिर हिलाया।
“तुम आत्मा हो ना?” राधा ने आंखें सिकोड़कर पूछा-“जो नगीना के भीतर घुसी हुई हो।”
“हां-।”
“तुम नगीना के शरीर के भीतर हो। इससे नगीना को दर्द नहीं होता-।”
“दर्द कैसा?” नगीना के होंठों पर मुस्कान फैल गई-“मैं तो हवा हूं। हवा किसी को दर्द नहीं देती।”
“छोरे-!”
“बाप-!”
“यो फिरो खतरनाक बातों का सिलसिलो शुरू हो गयो।”
“आत्मा का चक्कर होईला बाप। ये शांत आत्मा होईला। तम्भी दीदी को दर्द नहीं होईला।” रुस्तम राव गम्भीर था-“अगर बुरी आत्मा होईला तो दीदी के साथ बोत बुरा होईला-।”
“तुम नगीना के शरीर में रहकर क्यों मेरी बातें कर रही हो-।” बिल्ली का स्वर वहां गूंजा।
नगीना की निगाह बिल्ली की तरफ उठी।
“मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा।” नगीना के होंठ हिले।
“सच भी क्यों कह रही हो। इन्हें ये बताने की क्या जरूरत है कि मैं झूठ नहीं बोलती।”
“ये कहने में हर्ज ही क्या है।” नगीना के मुंह से निकला-“साधारण बात है। जब मैं तुम्हारे भीतर की बात इन्हें बताऊं तो तुम मुझसे शिकायत करने की हकदार हो।”
“तुम्हारी बातों से पूरी तरह स्पष्ट हो चुका है कि तुम गुरुवर की शिक्षा की पूरी जानकारी रखते हो।”
“मेरे बारे में जानने की चेष्टा मत करो। तुम्हें सफलता नहीं मिल सकेगी।”
“गुरुवर से मैं तुम्हारे बारे में अवश्य बात करूंगी।”
“अभी उनका यज्ञ समाप्त होने में वक्त है।” नगीना ने होंठ भींचकर कहा।
“यज्ञ पूर्ण होने पर जब उन्हें पहली फुर्सत मिलेगी, तभी तुम्हारे बारे में बात होगी।” बिल्ली ने नगीना को घूरते हुए कहा-“गुरुवर तो अवश्य जानते होंगे कि तुम कौन हो?”
नगीना का चेहरा मुस्कराहट भरे अंदाज में दिखाई देने लगा।
“गुरुवर बेशक अभी यज्ञ में व्यस्त हैं।” नगीना के होंठ हिले,“परन्तु उन्हें हर बात की खबर है। वो जानते हैं कि यहां क्या हो रहा है। उनके पास इतनी शक्ति अभी भी है कि वो जहां चाहे वहां देख सकते हैं।”
“यज्ञ में व्यस्त होने पर भी गुरुवर को हर तरफ की खबर है?” बिल्ली के होंठों से निकला।
“हां। उनसे कुछ भी नहीं छिपा। तुम्हारी विद्या बढ़ती जायेगी तो सब कुछ समझ आता जायेगा।” उसी पल बिल्ली ने अपनी चमक भरी नजरें पलकों के पीछे छिपा लीं। ऐसा लगा जैसे दो चमकते सितारे कहीं लुप्त हो गये हों। दो क्षणों के बाद पलकें हटीं और बिल्ली की चमक भरी आंखें नजर आने लगी। “शैतान का आसमान आने वाला है।” बिल्ली का मुंह हिला। इन शब्दों के साथ ही वहां सनसनी फैल गई।
वे एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
“कितनी देर है शैतान का आसमान आने में?” सोहनलाल ने पूछा।
बिल्ली ने आंखें बंद कीं। पुनः खोली और बोली।
“तुम्हारी दुनिया के वक्त के हिसाब से डेढ़ घंटा बाकी है।”
“डेढ़ घंटा-?” रुस्तम राव के होंठों से निकला-“फंसेला बाप-।” अजीब-सा एहसास उनके दिलो-दिमाग में भरने लगा।
भामा परी ने गहरी सांस ली। वो बहुत ही ज्यादा गम्भीर दिखने लगी थी।
सोहनलाल ने बांकेलाल राठौर को देखा। वो मूंछ को बल देता, आंखें सिकोड़े बिल्ली को देख रहा था।
“छोरे-!” बांकेलाल राठौर ने उसी मुद्रा में कहा-“अंम इसो, बिल्ली को भूनो के खाईयो।”
“ये गुरुवर की शिष्य बिल्ली होएला-।” रुस्तम राव ने गम्भीर स्वर में कहा-“ऐसा नेई कहेला बाप-। गुरुवर को अच्छा नेई लगेईला। आपुन को भी तेरी बात अच्छी नेई लगेईला।”
“छोरे! अम गुरुवर से कछो न बोलो हो। अंम बिल्ली को बोलो हो। वो म्हारे को घूरो हो।”
“भामा परी-।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“मालूम नहीं क्या हो। तुम अपने को बचा लो।”
“मैं समझी नहीं-।” भामा परी ने जगमोहन को देखा।
“शैतान के आसमान पर तुम्हें खतरा है।” जगमोहन ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा-“और तुम इस बात को कबूल कर चुकी हो कि शैतान के यहां तुम किसी की सहायता नहीं कर सकतीं। ऐसे में हमारे साथ रहकर, क्यों अपनी जान गंवाती हो। बेहतर है कि यहां से चली जाओ। कम से कम तुम तो बच सको मौत के खतरे से।”
“मैं इस तरह नहीं जा सकती-।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा-“तुम सब लोगों ने मुझे अस्सी बरस की तकलीफदेह कैद से मुक्ति दिलाई। नहीं तो मैं आज भी चिड़िया ही रहती। कारी राक्षस का तीर अभी भी मेरे जिस्म में धंसा होता। अब तुम लोग मुसीबत में हो तो मैं अपनी जान बचाने की खातिर यहां से चली जाऊं-। ये ठीक नहीं होगा।”
“भामो परी। थारी खोपड़ी में अकल हौवे के न।” बांकेलाल राठौर कह उठा-“थारा यां पे कोई काम न हौवे। तंम म्हारो काम न आ सको। तो काये को अपणो जाणो को खत्म करवाईयो-।”
“तुम नहीं समझोगे।” भामा परी के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई-“ये बात मैं पहले भी कह चुकी हूं कि मुझे वापस अपने परीलोक जाकर इस बात का भी जवाब देना है कि जिन्होंने मुझे कैद से मुक्ति दिलाई, मैंने उन लोगों का क्या भला किया। जब उन्हें पता चलेगा कि मैं, अपने पर एहसान करने वाले इन्सानों को मुसीबत में फंसा छोड़कर अपनी जान बचाकर भाग आई हूं, तो मुझे और मेरे परिवार को, देवता बहुत बुरी सजा देंगे।”
“सजा-?” रुस्तम राव के होंठों से निकला।
“हां। मेरे और मेरे परिवार के लोगों के पंख काट दिये जायेंगे। हमसे परीलोक में शान से रहने का सारा रुतबा छीन लिया जायेगा। लोगों के छोटे-छोटे काम हमसे लिए जायेंगे। ऐसा बुरा जीवन मैं और मेरे परिवार वाले नहीं बिता सकते। परीलोक की भामा जाति से हैं हम। ऊंची जाति है हमारी-।”
“तो इस डर से तुम वापस नहीं जा रहीं-।” राधा बोली।
“ये बात नहीं है।” भामा परी बोली-“परियों का जो धर्म होता है, मैं उसे निभा रही हूं-। हमारा धर्म भला करना है। कोई हमारा भला कर दे तो हम उसके लिये अंत तक कुछ करने को तैयार रहती हैं।”
“तुम्हारी मर्जी होईला बाप-।” रुस्तम राव गम्भीर स्वर में कह उठा।
“नीलू-!”
“हां-।”
“जब तू मुझे प्लेन पर ले गया था और प्लेन नीचे उतरने वाला था तो आवाज आई थी कि विमान नीचे उतरने वाला है। अपनी-अपनी बेल्टें बांध लीजिये। तब तुमने अपनी और मेरी पेटी बांध दी थी-।”
“तो?” महाजन ने राधा को देखा।
“जब ये महल शैतान के आसमान पर उतरेगा तो क्या तब भी वैसी ही आवाज आयेगी-।”
महाजन सकपकाया फिर उखड़े स्वर में कह उठा।
“चुप कर-।”
“क्यों-मैंने क्या गलत बोला। मैं तो-।”
“चुप-।”
राधा ने फ़ौरन होंठ भींच लिये।
☐☐☐
तभी खिड़की से धुंध-कोहरा भीतर आने लगा।
ये देखते ही सबके दिल धड़क उठे।
शैतान का आसमान आ गया था।
सबकी निगाह खिड़की से भीतर आती धुंध-कोहरे पर जा टिकीं। ऐसा कोहरा पहले भी भीतर आया था। परन्तु इस बार कोहरे को देखते ही अजीब-सी सनसनाहट उनके मस्तिष्कों में दौड़ने लगी थी।
हर किसी के जेहन में शैतान का अनदेखा रूप चमक मारने लगा कि वो कैसा होगा। उनके लिये कैसा इन्तजाम कर रखा होगा, अपने आसमान पर। पक्का खूनी खेल होगा। भय-खौफ और मौत का जलजला हर तरफ होगा, कब उनकी जान चली जाये, कुछ पता नहीं।
खिड़की से आता कोहरा अब महल के हॉल में फैलता जा रहा था। कोहरे पर से नजरें हटाकर वे एक-दूसरे को देखने लगे थे।
उनके चेहरों पर और आंखों में सवाल ही सवाल थे। अपने सवालों को वे खुद भी समझ नहीं पा रहे थे। ऐसे में जवाब कहां से मिलता।
सरजू और दया के चेहरों पर खौफ की परछाईयां नाच रही थीं। चेहरे पीले पड़ गये थे।
हर कोई गम्भीर-परेशान और व्याकुल नजर आ रहा था।
कोहरा अब पूरी तरह महल के हॉल में फैलने लगा था।
दिल-दिमाग को चीरने वाला सन्नाटा व्याप्त था वहां।
“छोरे-!”
“बाप-!”
“म्हारे को लागो, शैतान के झोंपड़ो को प्लेटफार्मो आ गयो।” कहते हुए उसका हाथ मूंछों पर पहुंच गया।
“पक्का आईला बाप।”
“तू क्यों चुप है।” राधा ने बिल्ली को देखा-“बताती क्यों नहीं कि शैतान के यहां हम पहुंच गये क्या?”
“हां-।” बिल्ली के मुंह से गम्भीर स्वर निकला-। उसकी आंखों की चमक बेहद तीव्र हो गई थी।
मोना चौधरी के दांत भिंचने लगे।
नगीना की आंखों में दृढ़ता से भरी, वहशी चमक उछाले मारने लगी थी।
महल के हॉल में पूरी तरह कोहरा फैल गया। किसी को कुछ नजर नहीं आ रहा था। कोई बोला नहीं। परन्तु उस कोहरे में इतनी ताकत नहीं थी कि बिल्ली की चमकती आंखों को अपने में छिपा सके। फैले कोहरे में अंगरे बनी बिल्ली की आंखें, तीव्र चमक के बीच सबको नजर आ ही थीं।
दस मिनट लगे कि धीरे-धीरे वो धुंध-वो कोहरा कम होने लगा। अंत में सबने कोहरे को, बादलों को खिड़की से बाहर निकलते देखा, जैसे उसे कोई बाहर खींच रहा हो।
सब वैसे ही खड़े थे।
चुप्पी-खामोशी-सन्नाटा और अजीब सा तनाव वहां व्याप्त था।
घने कोहरे के बीच भी सबको बिल्ली की चमकती आंखें दिखाई देती रही थीं, जो कि रोमांचित करती रही थीं उन्हें।
“म्याऊं-।”
बिल्ली का तेज स्वर गूंजा।
सबने देखा। बिल्ली ने अपना मुंह छत की तरफ उठा रखा था। फिर उसने चेहरा नीचे करके बारी-बारी सबको देखा और कह उठी।
“तुम सब शैतान के आसमान की जमीन पर पहुंच चुके हो।” बिल्ली के होंठ खुले।
तभी उन सबको हल्का सा झटका लगा।
वो जरा से हिले, फिर पहले की तरह सामान्य हो गये।
“छोरे-!” बांकेलाल राठौर की आंखें सिकुड़ी हुई थीं। होंठ भिंचे हुए थे-“महल शैतानों की जमीन पर लैंड कर गया।”
“आपुन को भी ऐसा ही लगेला। महल जब ऊपर बढ़ेला तो तब भी ऐसा ही झटका लगेईला बाप-।”
नगीना की दृढ़ता भरी निगाह रुस्तम राव की तरफ उठी।
“रुस्तम! तलवार मुझे दो-।”
तलवार थामे रुस्तम राव फौरन नगीना के पास पहुंचा।
“लो दीदी-।”
नगीना ने तलवार थामी। सख्त निगाहों से उसे देखने लगी।
“अपना ख्याल रखेला दीदी।” रुस्तम राव के होंठों पर कम्पन उभरा।
नगीना ने रुस्तम राव को देखा फिर उसकी निगाहें देवराज चौहान की लाश की तरफ उठीं। चेहरे पर परेशानी और दुःख आ ठहरा था। आंखों में दृढ़ता भरे खतरनाक भाव मौजूद थे।
“नगीना बेटी-।” नगीना के मस्तिष्क में पेशीराम के शब्द गूंजे।
“बाबा।”
“बिल्ली से कहो कि तुम्हें देवराज चौहान की आत्मा लेने भेजे-।”
“अभी कहती हूं बाबा। लेकिन तुम एक बार फिर सोच लो।” गम्भीरता में डूबे नगीना के होंठों से बड़बड़ाहट के रूप में शब्द
निकले-“शैतान तुम्हारी आत्मा को कैद कर सकता है। फिर कभी आजाद नहीं हो सकोगे।”
“ऐसा हो गया तो कोई दुःख नहीं होगा। देवा-मिन्नो के तीन जन्मों से मैं गुरुवर के श्राप से मुक्ति पाने के लिये भटक रहा हूं। देवा की मौत से, इस जन्म की आस भी खत्म हो गई कि श्राप से मुक्ति पा सकूँगा। इतनी लम्बी भाग-दौड़ की वजह से थकान सी होने लगी है मुझे। अब या तो देवा जिन्दा हो जायेगा। तुम आत्मा को ले आओगी या फिर तुम्हारे साथ-साथ मेरी आत्मा भी शैतान की कैद में चली जायेगी।”
“क्या तुम अभी नहीं बता सकते कि हम अपने काम में सफल होंगे या नहीं?” कहते हुए नगीना के होंठ भिंच गये।
“शैतान की धरती पर मैं भविष्य में नहीं झांक पा रहा हूं-।” नगीना की नजरें बिल्ली की तरफ उठीं।
“बिल्ली जानती है ये बात?”
“हां। इसके पास कई बातों का जवाब है। क्योंकि गुरुवर की कई शक्तियां ये अपने इस्तेमाल में ले रही है। परन्तु भविष्य की बात ये किसी भी कीमत पर नहीं बतायेगी। गुरुवर से ऐसा आदेश नहीं है इसे-।”
“ओह-!”
“बिल्ली से कहो कि तुम्हें देवा की आत्मा की तलाश में भेजे-।”
नगीना की निगाहें, बिल्ली की तरफ उठीं।
बिल्ली की चमक भरी निगाह, नगीना पर ही थी।
अन्यों की नजरें नगीना की तरफ उठ रही थीं। नगीना के हिलते होंठों और बुदबुदाहट से उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि वो अपने शरीर में मौजूद दूसरी आत्मा से बात कर रही है।
मोना चौधरी के होंठ भिंचे हुए थे।
“शैतान की जमीन पर महल रुक चुका है।” नगीना ने कहा-“मैं देवराज चौहान की आत्मा लेने के लिये जाना चाहती थे।
बिल्ली का मुंह खुला। वो हंसी।
“मर जायेगी। तेरी आत्मा को भी शैतान कैद कर लेगा। फिर तेरे को शैतानी जिस्म देगा। तू उसके लिये शैतानी कर्म करेगी। बहुत पछतायेगी तू। अभी भी वक्त है। ये काम मत कर।”
“तू अपने काम से मतलब रख। मेरे को डरा मत।” नगीना ने दांत भींचकर कहा।
“मर्जी तेरी। अच्छी सलाह देना मेरा काम है।” बिल्ली के स्वर में गम्भीरता आ गई-“तो तू तैयार है-?”
“हां-।” नगीना की एकटक निगाह बिल्ली पर थी।
बिल्ली चमक भरी नजरों से नगीना को देखती रही।
हर कोई धड़कते दिल के साथ कभी बिल्ली को तो कभी नगीना को देख रहा था।
मोना चौधरी के दांत भिंचे हुए थे। जगमोहन की हालत भी जुदा नहीं थी। सोहनलाल और महाजन के चेहरों पर ऐसे भाव थे, जैसे वे खुद को बेबस महसूस कर रहे हों।
पारसनाथ के दांत भिंचे हुए थे। चेहरा सपाट-कठोर हो चुका था।
सरजू-दया एक-दूसरे का हाथ पकड़े सहमे से बैठे थे।
मिट्टी के बुत वाली युवती के चेहरे पर गम्भीरता थी।
बांकेलाल राठौर का दायां हाथ मूंछ पर टिका हुआ था। रुस्तम राव की हल्की नीली आंखें बिल्ली और नगीना पर जा टिकी थीं।
वो व्याकुल-सा था। तभी बिल्ली ने अपनी चमकपूर्ण आंखें बन्द कर ली। ऐसा लगा जैसे सुलगते दो अंगारे लुप्त हो गये हों।
ठीक इसी पल बिल्ली के पास मौजूद, हवा में लहराती गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल, धीरे-धीरे सुर्ख होने लगी। देखने वालों के चेहरों पर हैरानी सी उभरने लगी।
“बाप-।” रुस्तम राव के होंठों से निकला-“ये क्या होईला-?” बांकेलाल राठौर के होंठ भिंचे रहे। कहा कुछ नहीं।
सबकी निगाह सुर्ख होती बला पर थी। जो कि धीरे-धीरे आग का गोला बनती जा रही थी। वो बिल्ली के करीब थी। बिल्ली की आंखें अभी तक बंद थीं।
मिनट भर ही हुआ होगा कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल आग की तरह लाल सुर्ख हो गई। वो छोटा सा सूर्य लगने लगी थी। परन्तु उसकी रोशनी नहीं फैली थी। सिर्फ वो ही लाल थी। उसी पल उसकी लाली कम होने लगी। जैसे-जैसे उसकी लाली बढ़ी थी। वैसे-वैसे ही कम होती चली गई। मिनट भर ही लगा बाल को अपने पहले वाले दूधिया रूप में आने में।
बाल जब पूरी तरह अपने रूप में आ गई तो बिल्ली ने आंखें खोल लीं। इस वक्त उसकी आंखों में इतनी चमक थी कि देखने वालों को अपनी आंखें चौंधियाती सी महसूस हुईं। धीरे-धीरे उसकी आंखों की चमक पहले की तरह होने लगी। फिर सब कुछ पहले की तरह होता चला गया।
“नगीना कहां गई?” एकाएक मोना चौधरी के होंठों से निकला।
सबने नगीना की तरफ देखा किसी को भी नगीना दिखाई नहीं दी।
“बहना! गायब हो गयो का?” बांकेलाल राठौर हड़बड़ाया। “हां बाप-।”
“नीलू! ये बिल्ली तो बहुत खराब है। नगीना को कैसे गायब
कर दिया। देख तो-।” राधा के होंठों से निकला।
सोहनलाल ने जगमोहन के कान में कहा।
“नगीना भाभी देवराज चौहान की आत्मा को लेने चली गई है शायद-।”
जगमोहन के होंठ भिंचे रहे।
पारसनाथ की मुख-मुद्रा में कोई फर्क नहीं आया था।
“मैं गायब कहां हुई हूं। मैं तो तुम सबके सामने हूं-।” नगीना का स्वर सबके कानों में पड़ा।
“नगीना-!” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“भाभी-!”
“बहना-!”
“दीदी-!”
“ये भूत तो नहीं बन गई-।” राधा के होंठ हिले।
“आप कहां हैं?” पारसनाथ के होंठों से निकला।
“मैं तुम सबके सामने हूं। क्या हो गया है सबको।” नगीना की आवाज पुनः सुनाई दी।
दो पलों के लिये किसी के मुंह से बोल नहीं फूटा।
“लगता है भाभी गायब हो गई है।” जगमोहन ने होंठ भींचकर कहा-“तभी मुझे दिखाई नहीं दे रही।”
“ओह-!”
“छोरे! जगमोहन सचो कहो हो। बहना को बिल्लो ने गुरुवर की शक्तियों से अदृश्य करो हो। तभी बहनो ने दिखे अंम सबो को। और बहनो सबो को पैले की तरहो देखो हो।”
मोना चौधरी सख्त निगाहों से बिल्ली को देख रही थी।
“तुमने नगीना को हमारी निगाहों से लुप्त कर दिया है।” मोना चौधरी बोली।
“हां-।”
“कहां है नगीना?” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर पूछा।
“वहीं पर, जहां पहले थी।”
मोना चौधरी ने वहीं देखा। नगीना नजर नहीं आई।
“कुछ बुरा तो नहीं किया तुमने नगीना के साथ-”
“मैं बुरा नहीं कर सकती मिन्नो। जिसे गुरुवर का आशीर्वाद प्राप्त हो, वो बुरे रास्ते पर नहीं चल सकता।”
“नगीना तुम ठीक हो?” मोना चौधरी ने शब्दों को चबाकर पूछा।
“हां।” नगीना का स्वर गूंजा-“मैं बिल्कुल ठीक हूं-। पहले की तरह हूं। लेकिन तुम लोगों को नजर नहीं आ रही। मेरे बारे में किसी तरह की फिक्र मत करो बिल्ली ने मुझे अदृश्य कर दिया है।”
नगीना के शब्द सुनकर सबने राहत की सांस ली।
बिल्ली गम्भीर नजर आ रही थी। सब पर निगाह मारने के पश्चात उसने नगीना को देखा।
नगीना की आंखें बिल्ली की चमक भरी आंखों से नज़रें टकराईं।
गम्भीर थी नगीना।
“बाबा-।” नगीना होंठों ही होंठों में बुदबुदाई-“क्या अब हम चलें?”
“बिल्ली से बात करो।” पेशीराम के शब्द मस्तिष्क से टकराये।
नगीना की नजरें पहले ही बिल्ली पर थीं।
“क्या अब मैं जाऊं देवराज चौहान की आत्मा लेने-।”
सबके कानों में नगीना के शब्द पड़ रहे थे, परन्तु वो किसी को दिखाई नहीं दे रही थी।
“हां-।” बिल्ली के होंठ हिले। आवाज सबने सुनी-“तू अब अदृश्य हो चुकी है। तेरे को कोई नहीं देख सकता। लेकिन खुद कभी भी सुरक्षित मत समझना। शैतान की कई शक्तियां, उसकी धरती पर मौजूद हैं, जो अदृश्य चीजों को देख सकती है। जब-जब भी ऐसा वक्त आया, तेरे को उनसे मुकाबला करना होगा। मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार के अलावा तेरे पास कोई हथियार नहीं है या फिर तेरे साथ वो आत्मा है जो इस वक्त तुझे राह दिखा रही है। मैं नहीं जानती कि वो कितनी ताकत रखती है। लेकिन लड़ाई में वो भी तेरा साथ नहीं दे सकेगी। करना तो सब कुछ तेरे को ही होगा। मुझे नहीं लगता कि तू देवा की आत्मा को शैतान के कब्जे से निकाल कर ला सकेगी। तू खुद मर जायेगी।”
“बकवास मत कर।” जगमोहन भड़क उठा-“भाभी के बारे में कोई गलत बात कही तो-।”
“जगमोहन-।” नगीना ने जगमोहन को देखा।
जगमोहन को नगीना नजर नहीं आ रही थी।
“तुम बीच में मत बोलो। ये जो कहती है, कहने दो।”
“लेकिन-।”
“खामोश रहो।”
जगमोहन होंठ भींचकर रह गया।
नगीना ने पुनः बिल्ली को देखा।
“तुम बार-बार मुझे ये बताने-समझाने की चेष्टा मत करो कि मेरे साथ क्या होगा और क्या नहीं। वो ही बात करो जो बताने लायक हो। मैं देवराज चौहान की आत्मा को लेने जल्दी जाना चाहती हूं-।”
“जाओ। तुम अदृश्य हो चुकी हो। तुम्हारे पास ये शक्ति रहेगी कि जब तुम चाहो, तब अपने ऊपर से अदृश्य की चादर हटा सकती हो। सब तुम्हें देख सकेंगे। जब चाहोगी, अदृश्य हो सकोगी।” बिल्ली ने सामान्य स्वर में कहा।
“ऐसा मैं कैसे कर पाऊंगी?”
“जैसा सोचोगी वैसा ही होगा।”
नगीना की निगाहें बिल्ली पर थीं।
“सब मुझे देख सकें।” नगीना होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई।
उसी पल नगीना सबको नजर आने लगी।
“भाभी-।” जगमोहन हक्का-बक्का रह गया।
सबकी हालत ऐसी ही थी।
“बहना-! तंम तो म्हारे को नजर आवो।”
“मेरे को भी नगीना दिखाई दे रही है। राधा खुशी से कह उठी।
मोना चौधरी गम्भीर निगाहों से नगीना को देख रही थी।
सबको देखने के बाद नगीना ने बिल्ली को देखा।
“तुमने मेरी जितनी सहायता की, उसके लिये मेहरबानी-।”
“मैंने कुछ नहीं किया।” बिल्ली ने सामान्य स्वर में कहा-“गुरुवर की इच्छा से ही ये सब हुआ है। अब तुम जब भी चाहो, देवा की आत्मा को तलाश करने जा सकती हो। जो आत्मा तुम्हारे शरीर में छिपी हुई है, वो तुम्हें रास्ता बताती रहेगी। उसमें जितनी शक्ति होगी, उतनी सहायता वो अवश्य करेगी। वो तुम्हारा भला ही चाहती है कि तुम देवा की आत्मा लाने में सफल हो सको।”
नगीना उसे देखती रही।
“लेकिन मैं नहीं बता सकती कि आने वाले वक्त में क्या होगा।” बिल्ली ने पुनः कहा।
“मतलब कि तुम जानती हो।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“ऐसी कोई भी बात करने की मुझे इजाजत नहीं है।” बिल्ली का स्वर सामान्य था-“अदृश्य होने वाली गुरुवर की शक्ति जो तुम्हारे पास है, वो वापस ले ली जायेगी तुमसे। जब तुम देवा की आत्मा को वापस लाने की चेष्टा में मारी जाओगी या अपने काम में सफल हो जाओगी। इन दोनों में से कोई भी बात होते ही, ये शक्ति वापस बाल में आ जायेगी।”
“मुझे सिर्फ अपने काम में दिलचस्पी है बिल्ली-।” नगीना ने गम्भीर स्वर में कहा-“इसके अलावा किसी दूसरी चीज में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं। बेशक वो कितनी ही बड़ी शक्ति न हो।”
“मैं जानती हूं। तेरा मन, तेरी सोचें, सब मेरे सामने ही हैं।” बिल्ली का स्वर गम्भीर था।
“मैं जाऊं?” नगीना ने पूछा।
“जा-।”
नगीना ने बिल्ली पर से नज़रें हटाकर सबको देखा।
सबकी गम्भीर-परेशान-व्याकुल नजरें नगीना पर थीं।
नगीना ने उन्हें देखते हुए अपने हाथ जोड़े।
“भाभी-!” जगमोहन की आवाज कांपी-“मेरा दिल नहीं मान रहा है कि आप जायें-।” आंखों में आंसू चमक उठे थे।
“मुझे जाना ही है जगमोहन-।” नगीना ने शांत स्वर में कहा।
जगमोहन ने होंठ भींच लिये।
“अपना ध्यान रखना नगीना-।” मोना चौधरी ने बेबस स्वर में कहा।
जवाब में नगीना के चेहरे पर गम्भीर मुस्कान उभरी।
“बहना!” बांकेलाल राठौर की आवाज भर्रा उठी-“म्हारे को बोत दुःख हौवे कि अंम थारे साथ न जा सको हो।”
“मजबूरी है बांके भैया।” नगीना ने धीमे स्वर में कहा-“जहां जाना है, वहां मैं अकेली ही जा सकती हूं। आप सबके गुरुवर का ही आदेश है ये। वरना मैंने किसी को कहां मना किया है साथ चलने में।”
सब नगीना को देख रहे थे।
“अब मैं सबसे विदा लेती हूं।” हाथ जोड़े नगीना ने कहा।
“भाभी-।”
“दीदी-।”
“नगीना-।”
“मैं किसी को नजर न आऊं-।” नगीना होंठों ही होंठों में बड़बड़ाई।
उसी क्षण नगीना सबकी निगाहों से लुप्त हो गई।
“बाबा!” नगीना बुदबुदाई-“अब चलें?”
“चल बेटी। महल का दरवाजा उधर है। उसे खोलकर बाहर निकल जा।” पेशीराम का गम्भीर स्वर नगीना ने अपने मस्तिष्क में गूंजता महसूस किया।
नगीना के कदम दरवाजे की तरफ बढ़ गये। हाथ में मुद्रानाथ की पवित्र शक्तियों वाली तलवार दबी थी। दृढ़ता भरे अंदाज में भिंचे होंठ। आंखों में कर गुजरने की चमक भर आई थी।
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