कुल तीन कारें थीं ।



एक पब्लिक टेलीफोन बूथ से कुछ दूर पहले और दूसरी कुछ दूर आगे उसी साइड में फुटपाथ के पास जा रुकी ।



तीसरी कार सड़क पार बूथ के ठीक सामने रुक गयी ।



काफी रात गुजर चुकी होने के बावजूद दुबई की उस सड़क पर आगे जाकर चौराहे पर वाहनों का शोर गूंज रहा था ।



पीटर डिसूजा ने अपनी रिस्टवाच पर दृष्टिपात किया ।



टेलीफोन कॉल तीन मिनट में आनी चाहिये । कम्युनीकेशन सिस्टम इसी तरह चलता था ।



काल करीमगंज से आनी थी । होटल के अपने कमरे में मौजूद दिनेश ठाकुर आप्रेटर द्वारा इस पब्लिक टेलीफोन का नम्बर मिलाया जाने का इंतजार कर रहा होगा । क्योंकि वह बिजनेसमैन के रूप में इंडिया में बिज़नेस ट्रिप पर था, इसलिये उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जायेगा । उसे कोई दिक्कत पेश नहीं आयेगी ।



पीटर डिसूजा क्योंकि कुख्यात आदमी था । दुबई पुलिस के अलावा दूसरी गवर्नमेंट एजेंसियों की नजर भी उस पर थी । फोनवार्ता को टेप न किया जा सके इसलिये यह तरीका अपनाया जाता था । अपने शानदार बंगले में डिसूजा सिर्फ वे ही कॉल अटैंड किया करता था जो औपचारिक और सामान्य होती थीं और जिनका धंधे या धंधे वाले लोगों से दूर का भी कोई वास्ता नहीं होता था । यही वजह थी उसके ज्यादातर आदमी जेबों में चेंज भरे घूमते थे और स्थानीय और लांग डिसटेंस कॉल के पब्लिक टेलीफोन बूथ के नम्बर और उनकी लोकेशन उन्हें याद रखने पड़ते थे । पीटर डिसूजा ने आगे झुककर कार की अगली सीट पर बैठे अपने आदमियों से धीरे से कुछ कहा ।



ड्राइवर ने हैडलाइट्स एक बार तेजी से चमका दी ।



सड़क पार पिछली कार ने भी उसी तरह रोशनी चमका कर सिग्नल का जवाब दे दिया । जबकि बूथ के आगे कार की सिर्फ पार्किग लाइट टिमटिमाकर रह गयी ।



डिसूजा की कार में ड्राइवर की बगल में बैठे भारी बदन के आदमी ने अपना रिवाल्वर होलेस्टर से निकालकर घुटनों पर रख लिया ।



तीनों कारों में मौजूद आदमी पूर्णतया सतर्क हो गये ।



पीटर डिसूजा कार से उतरने वाला था और अगले चंद मिनटों तक उसने ओपन में रहना था और रात में रोशन टेलीफोन बूथ में बंद किसी भी शख्स को दूर से भी आसानी से ठिकाने लगाया जा सकता था । इसलिये अहतियात जरूरी थी । अण्डरवर्ल्ड में डॉन का दर्जा रखने वाले डिसूजा के दुश्मनों और राइवलों की कोई कमी नहीं थी ।



डिसूजा ने पिछली सीट से उतरकर दरवाज़ा धीरे से बंद कर दिया । सधे हुये कदमों से बूथ की ओर बढ़ गया ।



ज्योंही कांच के दरवाजे पर पहुंचा, घण्टी बजने लगी ।



* * * * * *



एंबेसेडर होटल में ।



दिनेश ठाकुर अपने कमरे में बिस्तर पर फैला हुआ था । पास ही रखे टेलीफोन उपकरण को वह यूं घर रहा था जैसे कोई नाग अपने शिकार पर फन फैलाये घात लगाता है । उसके चेहरे पर बेचैनी पुती थी और आंखों में चिंता झलक रही थी ।



घंटी बजते ही उसने रिसीवर उठा लिया ।



–"यूअर कॉल टू दुबई, सर !" टेलीफोन आप्रेटर ने कहा ।



–"थेंक्यू !" वह बोला ।



दूसरी ओर तीसरी दफा घण्टी बजते ही रिसीवर उठा लिया गया । साथ ही डिसूजा का फुसफुसाता–सा स्वर उभरा ।



–"दिनेश !"



–"यस, सर !"



–"कैसा चल रहा है ?"



"बहुत बुरा ।"



–"बताओ ।"



–"वे दगाबाज निकले ।"



–"कैसे ?"



–"पूरी खेप को ड्राइवर समेत उड़वा दिया ।"



–"क्या हुआ ?"



–"ड्राइवर और चार पुलिसिये मारे गये । कार पर बम फेंका गया था ।"



–"ओह !"



–"एक और बुरी खबर है ।"



–"क्या ?"



–"विक्टर और लिस्टर मारे गये ।"



–"क्या ? शहर में ? नहीं, नहीं !"



–"अपने होटल रूम में ।"



–"विक्टर और लिस्टर ! नामुमकिन !"



–"ऐसा हो चुका है ।"



–"कैसे सुअरों से पाला पड़ा है हमारा ?"



–"बेहद खतरनाक और कमीने हैं ।"



–"उन्हें पता है तुम वहां हो ?"



–"मुझे नहीं लगता ।"



–"क्या वे समझौते को मानने से इंकार कर रहे हैं ?"



–"विक्टर और लिस्टर के साथ जो हुआ, उससे उनकी नीयत साफ जाहिर है ।"



–"ओह, लिस्टर मेरी मौसी का दामाद था ।"



–"जानता हूं ।"



–"क्या तुम उनसे निपट सकते हो ?"



–"आप–खत्म कराना चाहते हैं ?"



–"उन दोनों को नहीं । उनके किसी ऐसे नज़दीकी को जिसकी सीधी चोट उन्हें पहुंचे । फिर दोबारा धंधे की बात शुरू करो ।"



–"ठीक है ।"



–"दो रोज बाद मुझे रिपोर्ट देना । चौथे नम्बर पर ।"



–"समझ गया ।"



–"काम सफाई से होना चाहिये ।"



–"आप फिक्र न करें, मेरा ख्याल है वे समझते हैं विक्टर और लिस्टर यहां अकेले ही आये थे ।"



–"उन्हें अपनी भाषा में समझाओ ।"



–"ओ० के० सर ।"



* * * * * *



टेलीफोन की घण्टी ठीक उस वक्त बजी जब रंजीत स्नानादि से निबट कर बेडरूम में पहुंचा और धूप को अंदर आने से रोकने के लिये खिडकियों के पर्दे सही कर रहा था । वह समझ गया अब उसे सोना नसीब नहीं हो सकेगा ।



–"हैलो ।" रिसीवर उठाकर बोला ।



जवाब में एस० पी० मदन पाल वर्मा का स्वर सुनाई दिया ।



–"सो रहे थे ?"



–"जी नहीं । बस लेटने वाला था ।"



–"मैंने डिस्टर्ब कर दिया ?"



–"जी हां ।"



–"फिर भी अपने एस० आई० मनोज तोमर की तरह गुस्सा नहीं कर रहे हो । मुझे लगता है बिस्तर में वह अकेला नहीं था...कोई सहेली साथ थी ।"



–"वह जवान और हैंडसम है जैसे मैं हुआ करता था ।"



वर्मा हंसा ।



–"किसी जमाने में ?"



–"नहीं, सिर्फ डेढ़ महीने पहले तक ।



–"तुम्हारे साथ वाकई बुरा हुआ ।"



–"यह सब तो जिंदगी में चलता ही रहता है । आप बताइये कैसे याद किया ?



—"तुम्हें ऑफिस आना पड़ेगा ।"



–"अभी ?"



–"हां ! दस मिनट पहले ड्यूटी रजिस्टर से तुम्हारा नाम काट दिया गया है । ए० सी० पी० तुम्हें कोई खास काम सौंपना चाहता है ।



रंजीत तनिक मुस्कराया ।



'क्योंकि मैंने अपनी रिपोर्ट में लिख दिया लिस्टर को पहचानता हूं ।"



एस० पी० ने चटकारा–सा लिया ।



–"वह दुबई के मामलात में तुम्हें एक्सपर्ट मानता है ।"



–"तब तो मैं भी उसे निराश नहीं करुंगा । उसके इस यकीन को और पुख्ता कर दूँगा ।"



–"तो तुम आ रहे हो ?"



–"जी हां ।"



* * * * * *



ए० सी० पी० दीवान अपने डेस्क के पीछे खड़ा था ।



उसमे सामने एस० पी० मदन पाल वर्मा, एस० आई० मनोज तोमर और इंपेक्टर रंजीत मलिक मौजूद थे ।



रंजीत अपनी कुर्सी में आराम से पसरा था जबकि बाकि दोनों सीधे तने बैठे थे ।



–"मुझे अफसोस है, तुम दोनों को नाइट ड्यूटी के फ़ौरन पर बाद बुलाना पड़ा और इतने शार्ट नोटिस पर दोबारा ड्यूटी के लिए कहना पड़ रहा है ।" दीवान का स्वर अनपेक्षित रूप से नर्म था । उसने बारी–बारी से रंजीत और मनोज पर नजर डाली–"तुम हाल ही में पकड़ी गयी ड्रग की खेप के मामले से पूरी तरह वाक़िफ़ हो । शहर के बाहरी भाग में हेरोइन का मोटा कंसाइन्मेंट पकड़ा गया था और बाद में चार पुलिसकर्मी और राकेश मोहन नाम का सस्पेक्ट मारे गये ।"



तीनों ने लगभग एक साथ सर हिलाकर सहमति दे दी ।



–"कल रात अकबर होटल में हुई शूटिंग के बारे में तुम्हारी रिपोर्ट मैंने पढ़ी है ।" दीवान तनिक रुककर बोला–"हमारे दो पुलिस अफसरों ने अपने लोकल सोर्सेज से पता लगाकर जानकारी दी है कि राकेश मोहन हसन भाइयों फारूख और अनवर का साथी था । उनके अड़ंगे वाले कामों के वक्त ड्राइवर का काम करता था ।"



इस नई खबर ने सबको चौंका दिया । फारूख और अनवर को हसन कजिन्स के नाम से जाना जाता था । स्थानीय अण्डरवर्ल्ड की सबसे बड़ी तोप वे दोनों भाई इतने कमीने, मक्कार, खतरनाक और ताक़तवर थे कि शहर का हर एक समर्पित पुलिस अफसर उन्हें कानून के शिकंजे में जकड़कर नाम कमाने के लिये कुछ भी कर सकता था ।



झुग्गी झोंपड़ी की पैदावार दोनों लड़के बचपन से ही गलत राह पर चल निकले थे । मारा–मारी, स्ट्रीट फाइटिंग, लूटपाट करते हुये जवान हुये । पैसे की ख़ातिर बेहिचक जुर्म करना उनकी खास लत बन गयी । वे बाक़ायदा पेशेवर मुज़रिम बन गये । स्थानीय अपराध जगत में सिर्फ उन्हीं का बोलबाला था । तथ्यों और प्रकरणों को छिपाने की कला में वे माहिर थे । इसका कोई ठोस सबूत तो नहीं था लेकिन सब जानते थे शहर के चार बड़े क्लबों के असली मालिक हसन कजिन्स ही थे । जुये के अड्डे, शराब की स्मगलिंग, कॉलगर्ल्स रैकेट वगैरा जैसे सभी गैरकानूनी धंधों में उनका भारी दखल था । उनके खिलाफ सबूत इकट्ठा करना और उन्हें अदालत में पहुंचाना एक अलग और अभी तक तकरीबन नामुमकिन समझी जाने वाली बात रही थी ।



रंजीत ने उनकी फाइलें पढ़ी थीं । उनसे जुड़ी दर्जनों दूसरी बातें भी सुनी थीं । लेकिन मामूली अफ़वाह के तौर पर भी यह कभी सुनने में नहीं आया कि दोनों भाइयों का ड्रग्स के धंधे से दूर का भी वास्ता था । यह अपने आपमें नई खबर थी ।



–"एक और दिलचस्प तथ्य भी सामने आया है ।" दीवान का कथन जारी था–"अकबर होटल में मारे गये दोनों आदमियों के बारे में हालांकि नई दिल्ली से अभी कोई जानकारी हमें नहीं मिली हैं, लेकिन होटल स्टाफ के चार आदमियों–एक पोर्टर, दो वेटरों और एक लिफ्ट ऑपरेटर–का कहना है कि तीन महीने पहले अपने पिछले दौरे के दौरान विक्टर और लिस्टर ने दो बार हसन भाइयों को होटल में एंटरटेन किया था । तीन रोज पहले जिस रात विक्टर और लिस्टर यहां पहुंचे तब भी उन्होंने हसन भाइयों से मुलाकात की और उन्हें एंटरटेन किया था । होटल स्टाफ ने फारूख और अनवर की फोटएं देखकर उनको पक्की शिनाख़्त की है ।"



तीनों एक बार फिर चौंके ।



यह नई जानकारी भी अपने–आप में सनसनीखेज थी । इसे बुनियाद बनाकर उनके खिलाफ कार्यवाही भले ही न की जा सके लेकिन कुछ तो किया ही जा सकता था ।



– "इन दोनों भाइयों के खिलाफ अभी तक पुलिस खास कुछ नहीं कर पायी है । हर एक मुमकिन कोशिश के बावजूद कोई सही नतीजा सामने नहीं आ सका ।" दीवान कह रहा था–"आज सुबह उच्चाधिकारियों की एक एमरजेंसी मीटिंग के दौरान तय किया गया कि इस मामले में एक विशेष अभियान चलाया जाये । उस स्पेशल आप्रेशन की पूरी जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है । ताजा जानकारी द्वारा खोले गये नये एरिया समेत हम सब कुछ कवर करेंगे । इस आप्रेशन का इंचार्ज होगा–एस० पी० मदनपाल वर्मा । वह सीधा मुझे जवाबदेह होगा । नारकोटिक्स डिपार्टमेंट से भी दो अफसर भेजे जायेंगे । वर्मा चाहता है तुम इंसपेक्टर मलिक और एस० आई० तोमर भी उसके साथ मिलकर काम करो । तुम दोनों मिलकर अपनी टीम खुद बना सकते हो । अपने विभाग से जो आदमी चाहोगे तुम्हें दे दिये जायेंगे । ऑफिस स्पेस और दूसरी जरूरी सहूलियात भी मुहैया करा दी जायेंगी...।"



–"एक्सक्यूज मी, सर ।" वर्मा उसे टोकता हुआ बोला–"मैं हैडक्वार्टर्स की इमारत से बाहर किसी दूसरी जगह से काम करना ज्यादा पसंद करुंगा । क्या आप मुझे दो–एक रोज का वक्त दे सकते हैं यह सब तय करने के लिये ?"



–"तुम अपने बॉस खुद ही रहोगे । दो रोज बाद आकर मुझसे मिल लेना ।



–"थैंक्यू सर ।"



–"अब स्टाफ के बारे में बताओ ।"



वर्मा ने कुछ नाम बता दिये फिर रंजीत की ओर देखा ।



–"तुम्हें कोई चाहिये ?"



–"सिर्फ क्लर्क के तौर पर एक आदमी चाहिये ।"



–"कोई खास आदमी है ?"



–"बहुत दिनों से एस० आई० दिनकर चौहान मेरे साथ काम कर रहा है । वह अधेड़ आदमी जरूर है लेकिन मेरी आदतों से वाक़िफ़ है और मेहनती होने के साथ–साथ अपने काम की भी पूरी समझ उसे है ।"



–"ठीक है ।"



–"थैंक्यू सर ।"



वर्मा ने तोमर की ओर देखा ।



–"तुम्हें भी कोई चाहिये ?"



–"जी नहीं, शुक्रिया !"



इस स्पेशल आप्रेशन को लेकर सब उत्साहित थे ।



–"आप कुछ और कहना चाहते हैं, सर ?" वर्मा ने पूछा ।



–"उन्हें कानून के शिकंजे में जकड़ लो ।"



* * * * * *



तीनों ने आपस में मिलकर तय किया वर्मा, तोमर और दिनकर चौहान टीम को ऑर्गेनाईज करेंगे और रिकार्ड सैक्शन से हसन भाइयों की फाईलें मंगवायेंगे ।



जबकि रंजीत मलिक रिंग रोड पर मृतक राकेश मोहन के अपार्टमेंट में चल रही छानबीन का मुआयना करेगा ।



वह आधा घण्टे में रवाना हो गया ।



अखबारों के दफ्तरों के बाहर स्पॉट–न्यूज में एक ही खबर थी ।



पुलिस हंट फॉर अकबर होटल किलर्स



डबल मर्डर इन अकबर होटल ।



किलिंग्स इन होटल...किलर्स गॉन



अकबर होटल : पुलिस इन किलर हंट



रंजीत ने अपनी कार में पिछली सीट से ये सुर्खियाँ पढ़ीं । इनके नीचे अखबारों में छपी खबरों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता था ।



उसके दिमाग में एक बार फिर होटल के कमरे में पड़ी लाशों का नज़ारा घूम गया । वह उन्हीं के बारे में सोचता रहा ।



कार रुकते ही उसकी विचारतंद्रा भंग हो गयी ।



वह नीचे उतरा ।



अपार्टमेंट हाउस, जहां राकेश मोहन रहा करता था, उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा शानदार निकला । जाहिर था, हसन भाई से राकेश को मोटा पैसा मिलता था । यह अपने आप में इस बात का भी सबूत था कि राकेश उनके लिये कोई खास ही काम करता था ।



पुलिस हैडक्वार्टर्स से चलने से पहले रंजीत ने उस इलाके के पुलिस स्टेशन इंचार्ज को फोन किया था । इंचार्ज ने उसे यकीन दिला दिया था उसके साथ पूरा सहयोग किया जायेगा । वहां जांच करने गये इंस्पेक्टर को भी रंजीत के पहुंचने की सूचना दे दी गयी थी ।



प्रवेश द्वार पर मौजूद वर्दीधारी कांस्टेबल पुलिस कार से उतरते रंजीत को देखकर उसके पास आ गया ।



–"आप इंसपेक्टर रंजीत मलिक हैं, सर ?" उसने सैल्यूट मारकर पूछा ।



रंजीत धीरे से सर हिलाकर इमारत में दाखिल हुआ और लिफ्ट की ओर बढ़ गया ।



राकेश मोहन के अपार्टमेंट में पुलिस दल अपने काम में लगा था । उन सब वर्दी वालों के बीच एक युवती की मौजूदगी सरासर अनपेक्षित थी ।



रंजीत ठिठककर रुक गया ।



युवती की उम्र कोई पच्चीसेक साल थी । बड़ी–सी लेदर चेयर में वह यूं बैठी थी मानों अचानक उसमें गिर गयी थी । खिड़की से आती धूप काले चमड़े और उसकी बैंगनी रंग की पोशाक में कंट्रास्ट पैदा कर रही थी ।



भरे–पूरे जवान शरीर के मुकाबले में उसका सुन्दर चेहरा किसी किशोर उम्र की लड़की का सा लगता था । गालों की रंगत गायब थी । आँखें नम और सुर्ख़ घने काले बालों को सहलाते गुलाबी हाथ की लम्बी–पतली उंगली में फंसी अंगूठी पर अजीब–सा डिज़ाइन बना था ।



पास ही ऊँचे कद और भारी बदन–का थकी–सी आंखों वाला एक बावर्दी इंसपेक्टर खड़ा था । रंजीत पर नजर पड़ते ही वह तनिक चकराया । फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया ।



–इंसपेक्टर मलिक ?"



–"यस ।"



रंजीत उसकी ओर बढ़ गया ।



इंसपेक्टर ने औपचारिक ढंग से हाथ मिलाकर अपना परिचय दिया फिर अपने एक मातहत को लड़की पर नजर रखने का इशारा करके पुनः रंजीत से मुखातिब हुआ ।



–"अकेले में कुछ बातें करनी हैं । मेरे साथ आओ ।"



रंजीत उसके पीछे चल दिया ।



दोनों किचिन में जा खड़े हुये ।



–"मैंने पुलिस स्टेशन फोन कर दिया है ।" इंसपेक्टर बोला–"इस लड़की को संभालने के लिये एक लेडी कांस्टेबल आने वाली है ।"



–"किस्सा क्या है ?" रंजीत ने पूछा–"यह लड़की कौन है ?"



–"मरहूम राकेश की सहेली ।"



–"यहां क्या करने आयी है ?"



–"राकेश से मिलने ।"



रंजीत चकराया ।



–"क्या मतलब ? इसे पता नहीं वह मर...!"



–"इसका कहना है कि पिछले दो रोज से न तो उसने कोई अखबार पढ़ा और न ही रेडियो या टी० वी० पर ख़बरें सुनी हैं । आज तीसरे पहर इसने राकेश से मिलना था । इनकी यह डेट कई रोज पहले फिक्स हुई थी । इसलिये यहां आ पहुंची...!"



–"इसकी हालत खस्ता लगती है ।



–"इसे यहीं आकर अपने चहेते की मौत का पता चला है । सुनते ही तगड़ा शॉक लगा । संभलने में थोड़ा वक्त लगेगा ।"



–"इसने अपना नाम–पता बताया ?"



–"नाम रजनी राजदान है । शंकर रोड पर रहती है । किसी पब्लिशर के लिये काम करती है । बातचीत से पढ़ी–लिखी...!"



–"इसका क्या करना है ?"



–"लेडी कांस्टेबल के आते ही इसे पुलिस स्टेशन भिजवा दूँगा ताकि इसका बयान लिया जा सके ।"



–"फिर घर भेज दोगे ?"



–"इसकी मर्जी है, जहां भी जाना चाहे लेकिन इतनी ताकीद । जरूर की जायेगी कि हमें बताये बगैर शहर से बाहर जाने की कोशिश न करे । क्यों ?"



रंजीत मुस्कराया ।



–"मेरी एक सलाह मानोगे ?"



–"जरूर । बोलो ।"



–"जब तक मैं पुलिस स्टेशन न पहुंचू इसे जाने न दिया जाये । वहीं रोके रखना । मैं अपने ढंग से पूछताछ करके इसे घर छोड़ दूँगा ।"



"ठीक है । लेकिन जल्दी पहुँचना । बेवजह ज्यादा देर तक इसे रोकना ठीक नहीं होगा । अगर किसी अखबार वाले को पता चल गया तो खामख्वाह बात का बतंगड़ बन जायेगा ।"



–"जानता हूं ! एक और बात ।"



–"क्या ?"



–"राकेश के बारे में वो बात सही है ?"



–"कौन–सी ?"



–"जो तुम्हारे आदमियों ने पता लगायी थी ।"



–"तुम्हारा मतलब है, वह हसन भाइयों का ड्राइवर था ।"



–"हां ! कितना दम है उसमें ?"



–"बड़ा पूरा । वह बात बिल्कुल सही है । हमारे वे दोनों आदमी ऐसी अंदर की बातें सूंघने और अपने ढंग से पुष्टि करने के बाद ही रिपोर्ट देते हैं ।"



रंजीत इस जानकारी की अहमियत को समझता था । शायद यही वजह थी कि उसने अपने अंदर अजीब–सी उत्तेजना महसूस की । उसे पेशेवर मुजरिमों से नफरत थी–खासतौर पर हसन भाइयों जैसे मुजरिमों से, जो खुद को अण्डरवर्ल्ड में मजबूती से स्थापित करके कानून और कानून के रखवालों को अपने इशारों पर नचाने की हिमाकत किया करते हैं । ऐसे लोगों को कानून की गिरफ़्त में लेने या खत्म करने के लिए गैरकानूनी तरीके अख्तियार करने में भी कोई परहेज उसे नहीं था ।



दोनों वापस ड्राइंगरूम में आ गये ।



पुलिस दल छानबीन के अपने रूटीन काम में मसरूफ था । हर एक चीज की बारीकी से जांच की जा रही थी ।



नये क्लु, लीड और सबूत की तलाश जारी थी ।



लेडी कांस्टेबल आ पहुंची थी । कद–बुत से वह किसी पहलवान या वेट लिफ्टर की बेटी लगती थी और हावभाव से कठोर और बदमिज़ाज ।



रजनी राजदान अब और ज्यादा सफेद पड़ गयी नजर आयी । उसके चेहरे से जाहिर था, इस बीच एक बार फिर रो चुकी थी ।



इंसपेक्टर ने लेडी कांस्टेबल को समझा दिया क्या करना था ।



वह रजनी के पास पहुंची । उसे दिलासा देकर कुर्सी से उठाया और साथ लिये बाहर निकल गयी ।



इंसपेक्टर अपने मातहतों से बातें करने के लिये रंजीत के पास आ गया ।



–"लेडी कांस्टेबल को तो मैंने सब समझा दिया है । कुछ और चाहते हो ?"



–"यहां कुछ मिला ?" रंजीत ने पूछा ।



–"नहीं । कोई लिंक नहीं । कोई कनेक्शन नहीं । कुल मिलाकर सिर्फ इतना कहा जा सकता है यहां एक ऐसा युवक रहता था जिसे विदेशी कारों से प्यार था और कार ड्राइविंग का शौक और खूबसूरत लड़कियों का सही कद्रदान था । पैसे की कोई कमी उसे नहीं थी ।"



–"सही कद्रदान से क्या मतलब है ?"



–"कुछ लेडीज चीजें यहां मिली हैं–दो सलवार सूट, एक स्कर्ट–ब्लाउज, नाइटीज, पेंटीज, ब्रेसियर्स, शूज, मेकअप का सामान और गोलियां । अगर मेरा अंदाजा सही है तो ये सब सामान उसी लड़की का है ।"



–"गोलियां कैसी हैं ?"



–"गर्भ निरोधक–एक महीने का पूरा कोर्स । सिर्फ तीन गोलियां कम हैं । इम्पोर्टेड निरोध के पैकेट भी मिले हैं ।"



–"ऐसी कोई चीज नहीं है जो हसन भाइयों से उसका रिश्ता जोड़ सके ?"



–"अभी तो नहीं मिली और ऐसी उम्मीद भी नहीं है कि मिलेगी । वह आदमी बहुत ही चालाक था । ऐसा कोई चिन्ह यहां नहीं मिला है, जो उस लड़की के अलावा किसी भी और चीज या शख्स से उसका रिश्ता जोड़ सके ।"



रंजीत करीब आधा घण्टा और वहां ठहरा । कुछ बातें नोट की । इंसपेक्टर ने वादा किया, सभी डिटेल्स इन्फारमेशन सीधी एस० पी० वर्मा को भेज दी जायेंगी ।