एम्बेसी से दूर खड़ी कार में जुगल किशोर जा बैठा तो जैकी ने कार दौड़ा दी।

"क्या रहा?" जैकी ने पूछा।

"डॉयरी ले आया।" जुगल किशोर के होंठों पर मुस्कान थी। उसने अपनी पैंट का वो हिस्सा थपथपाया, जहां डॉयरी थी।

"मेरी तो जान ही सूख गई थी--- ये सोच कर कि तुम वापस लौट भी पाते हो या नहीं।" जैकी ने गहरी सांस ली।

"आसानी से काम हो गया।" जुगल किशोर खुश था।

"हुआ क्या वहां?"

जुगल किशोर ने सारी बात बताई।

"अब क्या करोगे?"

"हिटन से फोन पर बात करूंगा।" कहने के साथ ही जुगल किशोर ने मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।

"तुमने खामखाह का खतरा लिया।"

"ऐसे खतरे मैं लेता रहता हूं। मुझे डर नहीं लगता।" जुगल किशोर ने फोन कान से लगाया।

जैकी सड़क पर तेजी से कार दौड़ा रहा था।

"हैलो...।" जुगल किशोर के लगे कानों में उधर से आवाज उभरी।

"हिटन से मेरी बात कराओ।"

"तुम वो ही हो, मैंने तुम्हारी आवाज...।"

"सुधीर कश्यप...।"

"एक मिनट रुको। हिटन साहब तुम्हारे लिए परेशान हो रहे हैं।" आवाज कानों में पड़ी।

जुगल किशोर ने मोबाइल कान से लगाए रखा।

कार दौड़े जा रही थी।

"मिस्टर कश्यप!" हिटन की आवाज कानों में पड़ी।

"यस मिस्टर हिटन, मैं ही हूँ।"

"तुम कहां चले गये? मैं तुम्हें ढूंढता फिर रहा हूं...।"

"मैं एम्बेसी से बाहर आ चुका हूं।"

"ऐसा तुमने क्यों किया?"

"काम की बात करो हिटन।"

"तो वो तुम ही हो जिस ने रिचर्ड जैक्सन को उठाया? तुमने अपहरण की झूठी कहानी सुनाई।"

"सही समझे...।"

दो पलों की खामोशी की खामोशी के बाद हिटन कि आवाज आई---

"रिचर्ड जैक्सन के ऑफिस में रहकर क्या किया?"

"कुछ भी नहीं।"

"तुमने वहां कुछ किया है--- तभी तुमने वहां बैठने को कहा और बाद में चुपके से वहां से चले गए। तुमने वहां से कुछ लिया है?"

"नहीं। परन्तु मुझे लगा कि कहीं तुम मुझे फँसा न दो। इसलिए वहां से आ गया। तुमने फिरौती के लिए अमेरिका बात की?"

"हां। तुम्हारा काम हो जाएगा। उन्होंने दस करोड़ की फिरौती की बात मान ली।"

"कोई चालाकी नहीं होनी चाहिए हिटन।"

"कोई चालाकी नहीं होगी।"

"कब मिलेगा पैसा?"

"इतने डॉलर का फौरन इंतजाम कर पाना संभव नहीं। हमें चार या पांच दिन चाहिए। डॉलर अमेरिका से आयेंगे।"

"चार या पांच दिन में?"

"हां। ज्यादा से ज्यादा हम पांच दिन का वक्त लेना चाहते हैं।"

"ठीक है। मैं तुमसे बात करता रहूंगा। बेहतर होगा कि हमारे बीच पुलिस या कोई ना आये।"

"ऐसा ना तो पहले हुआ है, ना अब होगा। हम रिचर्ड जैक्सन को सही-सलामत वापस चाहते हैं।"

"दस करोड़ डॉलर जब दोगे, तो अगले पांच घंटे में रिचर्ड जैक्सन तुम तक पहुंच जायेगा।"

"हम आमने-सामने सौदा करना चाहते हैं। डॉलर लेकर उसी वक्त रिचर्ड को हमारे हवाले कर दो।"

"ये संभव नहीं।"

"क्यों?"

"हमारा आदमी डॉलरों को चेक करेगा कि वो असली हैं कि नहीं। इसलिए हमें वक्त लगेगा रिचर्ड जैक्सन को आजाद करने के लिए।"

"हम गलत डॉलर नहीं देंगे।"

"हमें किसी पर विश्वास नहीं। तुम हम पर दबाव मत डालो रिचर्ड जैक्सन को आजाद करने के लिए। हमारी डील ठीक से पूरी हो गई तो रिचर्ड जैक्सन छः घंटों में तुम तक पहुंच जाएगा। काम वैसे ही होगा जैसे हम चाहेंगे।"

"अब रिचर्ड कैसा है?"

"मजे में है।"

"डॉलर देने से पहले उससे बात करना चाहूंगा।"

"एक बार तुम्हारी बात करा दी जायेगी। सिर्फ एक बार। डॉलर लेने से पहले।"

"तुम अपने बारे में नहीं बताओगे कि तुम लोग कौन हो?"

"हम लोग इसी तरह के काम करके दौलत कमाते हैं। तुम लोग इसी तरह की बात करके रिचर्ड जैक्सन को वापस पाने की सोचो। दस करोड़ डॉलर को लाने की सोचो। हमारे बारे में सोचोगे तो काम गड़बड़ हो सकता है। मैं तुम्हें फिर फोन करूंगा। याद रखना, तुमने ज्यादा से ज्यादा पांच दिन का वक्त लिया है, डॉलर देने के लिए। वक्त बढ़ना नहीं चाहिए।"

"तुम अपना फोन नंबर दे दो...मैं...।"

"मैं तुम्हें पांच दिन तक दिन में एक बार फोन करता रहूंगा।" जुगल किशोर ने कहा और फोन बंद कर दिया।

"वो पैसे देने के लिए तैयार हैं?" जैकी ने बेसब्री से पूछा।

"हां। हमें  दस करोड़ डॉलर मिल रहे हैं। अगले पांच दिनों में।"

"पक्का?"

"हां, पक्का मिल रहे हैं।"

जैकी ने चैन की सांस ली।

जुगल किशोर ने मेनन को फोन किया। बात हुई।

"अमरीका वाले रिचर्ड जैक्सन को वापस पाने के लिए दस करोड़ डॉलर देने को तैयार हैं।" जुगल किशोर ने बताया।

"ये अच्छी खबर है।" मेनन की खुशी से भरी आवाज कानों में पड़ी--- "कब?"

"अगले पांच दिन में ये काम खत्म हो जाएगा।"

"हुर्रे...।" उधर से मेनन हँसकर बोला--- "यार, खुशी से मेरी टांगें कांप रही हैं।"

"संभाल अपने को, अभी काम खत्म नहीं हुआ है।" जुगल किशोर ने मुस्कुरा कर कहा--- "शिकार का ध्यान रखना।"

"उसकी फिक्र मत कर।"

"मैं और जैकी दिल्ली में ही रहेंगे। हमें फिरौती के लिए उन लोगों से बात करनी होगी।"

"ठीक है।" जुगल किशोर ने फोन बंद किया तो जैकी कह उठा---

"अमरीका के लोग इतनी आसानी से दस करोड़ देने को कैसे तैयार हो गये?"

'मैंने पहले ही कहा था कि वो देंगे।"

"उन्होंने रकम को जरा भी कम कराने की कोशिश नहीं की?" जैकी शक भरे स्वर में बोला।

"नहीं।"

"इसका एक ही मतलब है कि रिचर्ड जैक्सन की उन्हें ज्यादा जरूरत होगी।"

कुछ देर के बाद वो करोल बाग के होटल के बाहर जा पहुंचे।

"तू कॉफी के लिए बोल कमरे में पहुंचकर। मैं अभी आया।

कुछ आगे जाकर जुगल किशोर ने पीछे देखा, फिर मोबाइल निकालकर वीरा त्यागी को फोन किया।

"काम कहां तक पहुंचा?"

"तू दिल्ली पहुंच...।"

"समझ गया।"

जुगल किशोर कमरे में पहुंचा तो पीछे-पीछे वेटर भी आ गया था, कॉफी लेकर। वेटर गया, दोनों ने कॉफी का घूंट भरा। जैकी की सोच भरी निगाह जुगल किशोर पर टिकी थी, वो होंठ सिकोड़कर कहा---

"डॉयरी दिखा।"

"वो सिर्फ मेरी है। उसका काम से कोई मतलब नहीं।" जुगल किशोर बोला।

"जब तुम एम्बेसी में गए थे तो तुम्हें बचाने के लिए मैं बाहर कार में बैठा था।"

"ये सारी मेहनत तुम दस करोड़ के लिए कर रहे हो, उसमें से तुम्हें ढाई करोड़ का हिस्सा मिलेगा।"

"ठीक है। उस डॉयरी को मैं देख सकता हूं...।"

"जरूर। मैंने भी नहीं देखी। हम दोनों देखते हैं।"

कॉफी का प्याला रखकर जुगल किशोर ने पैंट में फंसा रखी डॉयरी निकाली और उसे खोला। डॉयरी के पन्ने सादे थे। प्लेन पेपर थे और उन कागजों पर कुछ लिखा हुआ था। ये अरबी भाषा थी। दोनों को ही वो भाषा समझ में नहीं आई। परन्तु डॉयरी के आखिर में जिल्द के गत्ते पर एक काफी बड़ा नक्शा चिपका हुआ था। जो कि इस प्रकार तह लगा था कि डॉयरी बंद होने पर वो कागजों का हिस्सा लगता था।

"ये नक्शा कैसा है?" जैकी ने पूछा।

जुगल किशोर की आंखें सुकड़ी हुई थीं।

"ये खास है।" जुगल किशोर ने कहा--- "तभी तो रिचर्ड जैक्सन डॉयरी पाने को मरा जा रहा है।"

"क्या ये किसी खजाने का नक्शा है?"

"हो सकता है। ये भाषा हमारी समझ में नहीं आ रही। पूरी डॉयरी लिख-लिख कर भरी हुई है। इस भाषा का जानकार ही बता पाएगा कि ये सब क्या है। परन्तु ये तो स्पष्ट है कि ये डॉयरी का नक्शा खास है।" जुगल किशोर ने कहा और खुले नक्शे को बंद करके, डॉयरी को बंद किया और उसे वापस कमीज के भीतर पैंट में फंसा लिया।

"ये गलत बात है। डॉयरी का मामला भी हमारा होना चाहिए।" जैकी बोला।

"ढाई करोड डॉलर बहुत होता है। तुम ऐसे ही संभाल लो तो तुम्हारे लिए बहुत है।" जुगल किशोर ने कहा।

"वो अमरीकी फिरौती दे देंगे ना?" जैकी बोला।

"जो हो रहा है, तुम्हारे सामने हो रहा है। तुम हर वक्त मेरे साथ हो, देखते रहना।"

"डॉलर बराबर ही बंटेंगे। सबका हिस्सा बराबर होगा ना?"

"हां। ये बात हममें पहले ही हो चुकी है।" जुगल किशोर उठा और बेड पर जा लेटा।

■■■

अगले दिन!

दिल्ली।

देवराज चौहान एयरपोर्ट से वापस लौट रहा था। साथ में विनायक का मैनेजर हेमराज था। जगमोहन और विनायक चीन गए थे। विनायक जगमोहन को अपने साथ ले गया था। विनायक का पैसा चीन में फँस गया था। उसे पैसे को वहां से सही-सलामत निकालकर हिन्दुस्तान में लाना था जगमोहन ने।

विनायक को अक्सर देवराज चौहान की जरूरत पड़ती थी। इस काम में देवराज चौहान की जरूरत नहीं थी। जगमोहन ने ही काम को निपटा देना था। इसलिए देवराज चौहान साथ नहीं गया था।

"ये लोग चीन से कब वापस लौटेंगे?" हेमराज ने पूछा।

"हफ्ता-दस दिन लगा सकते हैं।" देवराज चौहान ने कहा।

"तब तक तुम दिल्ली ही रहोगे?"

"सोचा नहीं...।"

"विनायक साहब के गेस्ट हाउस पर तुम ठहर सकते हो। तुम्हारी जरूरत का पूरा ध्यान रखा जाएगा।"

"मैं ऐसे ही ठीक हूं। तुम मुझे बसंत बिहार उतार देना।" देवराज चौहान ने कहा।

"वहां तुम्हारी पहचान वाला है क्या?" हेमराज ने पूछा।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा। सिगरेट सुलगा ली।

हेमराज ने देवराज चौहान को एक-दो बार देखा, फिर कह उठा---

"जगमोहन के वापस आने तक तुम फुर्सत में हो, ऐसे में तुम्हें कोई काम मिल जाए तो करोगे?"

"तुम खामख्वाह ही फिक्र कर रहे हो।"

"मैं तुम्हें काम दिला सकता...।"

"मुझे बसंत विहार उतार देना और मुझसे बात मत करो।" देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा।

हेमराज गहरी सांस लेकर रह गया।

जल्दी ही बसंत बिहार आ गया। हेमराज ने कार रोकी तो देवराज चौहान दरवाजा खोलकर बाहर निकला।

"तुम्हें कैसे पता चलेगा कि जगमोहन और विनायक साहब वापस आ गए हैं? अगर तुम अपना फोन नंबर दे दो तो...।"

"मुझे पता चल जाएगा।" देवराज चौहान ने कहा और दरवाजा बंद करके आगे बढ़ गया।

कार में बैठा हेमराज, देवराज चौहान को जाते देखता रहा, फिर मोबाइल निकाला और नंबर मिलाने लगा।

"हैलो...।" तुरन्त ही उधर से आवाज कानों में पड़ी।

"वीरा त्यागी।" हेमराज बोला।

"हां। तुमने बात की देवराज चौहान से?"

"मैंने कहा कि मेरे पास एक काम है--- परन्तु उसने मेरी बात की परवाह नहीं की।" हेमराज ने कहा।

"कोई बात नहीं। देवराज चौहान को हम संभाल लेंगे।"

"अब कहां हो तुम?"

"एयरपोर्ट से हम तुम्हारे पीछे ही थे। अब देवराज चौहान के पीछे हैं।" वीरा त्यागी की आवाज कानों में पड़ी।

"ओह! तुमने मुझे पचास हजार देने का वादा किया था...।"

"किया था--- परन्तु तुम देवराज चौहान को हमारे पास नहीं ला सके।"

इसके साथ ही फोन कट गया।

हेमराज को अफसोस हुआ कि पचास हजार हाथ से निकल गया।

■■■

देवराज चौहान ने हेमराज की कार छोड़ने के बाद आगे जाकर स्टैंड से टैक्सी ली और राजेंद्र प्लेस स्थित सिद्धार्थ होटल के लिए चल दिया। शाम हो रही थी। सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ गया था। देवराज चौहान ने मन ही मन तय कर लिया था कि सप्ताह-दस दिन दिल्ली में रहने का कोई फायदा नहीं। कल वो वापस मुंबई चला जाएगा और वहां के कामों को पूरा करेगा। जगमोहन जब चीन से लौटेगा तो उसे खबर कर देगा।

टैक्सी मोती बाग की रेड लाइट पर रुकी। आसपास और वाहन भी रुक चुके थे।

दो पल भी नहीं बीते कि तभी टैक्सी का पीछे का दरवाजा खोला और एक चालीस बरस का व्यक्ति भीतर आकर बैठ गया। दरवाजा बंद कर लिया। देवराज चौहान ने आंखें सिकोड़ कर उसे देखा।

टैक्सी ड्राइवर कह उठा---

"नीचे उतरिये साहब। देखते नहीं कि टैक्सी में सवारी बैठी है!"

वो मुस्कुराया और देवराज चौहान से कह उठा---

"इससे कह दो कि हम पहचान वाले हैं देवराज चौहान।"

अजनबी के मुंह से अपना नाम सुनकर देवराज चौहान चौंका।

"लेकिन मैंने तुम्हें पहले कभी नहीं देखा?" देवराज चौहान ने कहा।

"मैं तुम्हें जानता हूं। बातें होंगी तो तुम भी मुझे जान लोगे।" वो शांत स्वर में कह उठा।

"नीचे उतरिये साहब...।" टैक्सी ड्राइवर पुनः बोला।

"कह दो इसे...।" वो पुनः देवराज चौहान से कह उठा।

"अगर मैं तुमसे बात ना करना चाहूं तो?" देवराज चौहान ने कहा।

"मैं मुंबई से तुम्हारे पीछे हूं...।" उसने कहा।

देवराज चौहान ने उसे गहरी निगाहों से देखा, फिर ड्राइवर से कहा---

"ठीक है तुम चलते रहो...।"

तभी ग्रीनलाइट हो गई। टैक्सी आगे बढ़ने लगी।

"मुंबई से मेरे पीछे हो?" देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।

"हां। दिल्ली आकर तुम विनायक नाम के आदमी से मिले। अब जगमोहन और विनायक चीन गए हैं। मैंने विनायक के मैनेजर को कहा था कि तुम्हें तैयार करे कि तुम हमारे लिए काम करो। परन्तु वो तैयार नहीं कर सका।"

"उसने मुझसे कहने की कोशिश की थी किसी काम के बारे में, परन्तु अभी दिल्ली में मैं कोई काम नहीं करना चाहता।"

"तुम्हारी पसंद का काम है।"

"मुंबई में मेरे कई काम अधूरे हैं। बेहतर होगा कि तुम टैक्सी से उतर जाओ।"

"दस करोड़ डॉलर का काम है।"

"दस करोड़ डॉलर?" देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

"काफी बड़ी रकम है।"

"तुम कौन हो?"

"वीरा त्यागी नाम है मेरा। मैं...।"

"दस करोड़ डॉलर सच में बड़ी रकम है। परन्तु इस वक्त मैं कोई काम नहीं कर सकूंगा। मुझे मुंबई पहुंचना है।"

"काम तो हम करेंगे देवराज चौहान।" वीरा कह उठा--- "तुम्हें कुछ नहीं करना। तुम सिर्फ हमारे सलाहकार रहोगे और बदले में तुम्हें दो करोड़ डॉलर मिलेंगे। काम आसान है। सब कुछ हमारी आंखों के सामने है। तुम्हारा वक्त बर्बाद नहीं होगा। मेरे ख्याल में अगले पांच-छः दिन में हम आसानी से दस करोड़ डॉलर हासिल कर लेंगे।"

"इतनी बड़ी रकम आसानी से हासिल नहीं होती।" देवराज चौहान ने कश लिया।

"मुश्किल भी नहीं है। हम पहले से ही काम पर लगे हुए हैं।"

"कितने हो?" देवराज चौहान ने पूछा।

"तीन।"

"इस वक्त दो पीछे हैं?"

"एक है।"

देवराज चौहान ने खिड़की से बाहर देखा। रात की रोशनियाँ दिल्ली को जगमगाती आरम्भ हो चुकी थीं।

"अपनी कार में चलें? पीछे ही है।"

"जरूरी तो नहीं कि मुझे तुम लोगों का काम पसन्द ही आये?" देवराज चौहान ने कहा।

"हमारा काम पसन्द न आया तो तुम्हें मजबूर नहीं किया जायेगा कि तुम हमारे साथ काम करो। वैसे भी तुम जानी-मानी हस्ती हो। ऊंची चीज हो। तुम्हारा-हमारा मुकाबला ही क्या?" वीरा त्यागी ने शांत स्वर में कहा--- "एक बार ये जान लो कि हम क्या करने जा रहे हैं। उसके बाद जैसा तुम्हारा मन कहे, वैसा ही करना।"

■■■

मदनगीर इलाके का छोटा सा घर।

पांच लोग वहां मौजूद थे।

देवराज चौहान और वीरा त्यागी से तो आप मिल ही चुके हैं।

तीसरा था नारायण टोपी।

पैंतीस बरस का नारायण टोपी हेराफेरी करने में उस्ताद था। चालाकी, जालसाजी, चूना लगाना उसका मुख्य काम था। करोड़ों की जालसाजियां कर चुका था, परन्तु पैसा कभी इकट्ठा नहीं किया। खाया-पिया बर्बाद कर दिया। परिवार के नाम पर उसकी तीस बरस की पत्नी सिमरन थी। सिमरन अच्छे घर की थी। परन्तु खुद को करोड़पति दर्शाकर सिमरन से दोस्ती की। उसे महंगे-महंगे तोहफे दिए और फिर घर से भागकर उससे शादी कर ली। छः महीने बीतते-बीतते सिमरन को पता चल गया कि नारायण टोपी की हकीकत क्या है? परन्तु नारायण टोपी उसे पसन्द था, इसलिए अब उसके साथ खुश थी और जरूरत पड़ने पर नारायण टोपी के काम में उसका साथ भी देती थी। ये मदनगीर वाला घर नारायण टोपी का ही था।

चौथा था प्रेम सिंह।

तीस बरस का प्रेम सिंह बेहद फुर्तीला इंसान था। वो एक शातिर चोर था। पाईपों के सहारे सेकेंडों में दसवीं मंजिल तक चढ़ जाना खेल था उसके लिए। छोटे-मोटे ताले-तिजोरी को आसानी से खोल लेता था। आज तक कभी भी कानून के हाथों में नहीं फँसा था। किसी ने पकड़ने की कोशिश की तो मछली की तरह हाथों से छूटकर भाग जाता था। वो अपनी जिंदगी से खुश था। पैसे की उसे कभी कमी नहीं रही थी। परन्तु अब छोटी रकमों से उसे तसल्ली नहीं मिलती थी। बड़ा हाथ मारने की फिराक में था वो--- और अब वीरा त्यागी के साथ मौजूद था।

वीरा त्यागी यूँ तो दिल्ली का ही था। बीस साल पहले मुंबई में हीरो बनने की इच्छा से गया था। परन्तु कोई काम नहीं मिला और पैसे की कमी की वजह से अपराध करने लगा। पहले छोटे-छोटे अपराध और फिर उसके अपराध बड़े होते चले गए। डकैतियों और अपहरणों तक में उसने हिस्सा लिया और अब वो शातिर खिलाड़ी था। मुंबई में उसका फ्लैट था। ड्रग्स का काम करता था मुख्य तौर पर।

इस समय सिमरन को छोड़कर चारों एक कमरे में डायनिंग टेबल पर बैठे थे।

शाम के साढ़े आठ बज रहे थे।

"इन सबका परिचय मैं तुमसे करा चुका हूँ देवराज चौहान और अपने बारे में भी तुम्हें बता चुका हूँ।" वीरा त्यागी ने कहा--- "अब मैं तुम्हें मुख्य बात बताना चाहता हूँ। मुझे तुम पर भरोसा है इसलिए तुम्हें सबकुछ बता रहा हूँ। काम आये तो हमारे साथ काम करना। न पसन्द आये तो तुम्हारी मर्जी। मुझे विश्वास है कि बाहर जाकर तुम हमारे बारे में किसी को बताओगे नहीं...।"

देवराज चौहान ने सिर हिलाकर कहा---

"तुमने बताया कि तुम मुंबई से मेरे पीछे हो।"

"हाँ। मैं मुंबई में ही रहता हूँ। कुर्ला में।"

"मुझे कहाँ से ढूंढा कि तुम मेरे पीछे लगे?" देवराज चौहान ने पूछा।

"दिल्ली आने से दो दिन पहले तुम टी•वी• स्टेशन पर किसी से मिले थे।"

"हाँ...।"

"तब मैं भी स्टेशन पर ही था और तुम्हें देख लिया। मैं तुम्हारा चेहरा पहचानता था और जो काम मैं करने जा रहा था, उसमें तुम्हारा साथ मिल जाये तो इससे बढ़िया कोई बात नहीं सकती। ये ही सोचकर मैं तुम्हारे पीछे लग गया। तुमसे बात करना चाहता था अपने काम के बारे में। परन्तु उन दो दिनों में मुझे मौका नहीं मिला और तुम जगमोहन के साथ प्लेन में सवार होकर दिल्ली आ गए। ये देखकर मैंने नारायण टोपी को फोन किया। नारायण टोपी एयरपोर्ट से ही तुम लोगों पर नजर रखने लगा। साथ में प्रेम सिंह था। इस बीच मैं दिल्ली आ पहुंचा।"

"तो तुमने मेरा मुंबई वाला बंगला भी देखा?" देवराज चौहान की निगाह वीरा त्यागी पर जा टिकी।

"हाँ।" वीरा त्यागी ने गम्भीर स्वर में कहा--- "मुझ पर भरोसा करो। किसी भी स्थिति में ये बात किसी को बताने वाला नहीं कि डकैती मास्टर देवराज चौहान का मुंबई में ठिकाना कहां है।"

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कहा---

"काम की बात पर आ जाओ।"

"मैं बोलूं...?" नारायण टोपी कह उठा।

"तुम चुप रहो।" वीरा त्यागी ने हाथ हिलाकर कहा और देवराज चौहान को देखा--- "दो दिन पहले अमेरिकन राजदूत रिचर्ड जैक्सन का शिमला जाते हुए कुछ लोगों ने अपहरण कर लिया।"

"अमेरिकन राजदूत?" देवराज चौहान ने वीरा त्यागी को देखा।

"हाँ। कहने को वो राजदूत है, परन्तु अमेरिका का जासूस है और उसे वहीं भेजा जाता है, जहाँ उसने काम करना हो।"

"हूं... आगे?"

"रिचर्ड जैक्सन का अपहरण करने वालों ने फिरौती के तौर पर दस करोड़ डॉलर मांगे हैं और अमेरिकन एम्बेसी वाले रिचर्ड जैक्सन को छुड़ाने के लिए 10 करोड़ डॉलर की फिरौती देने जा रहे हैं।"

"और यह खबर इतनी आम हो गई कि तुम लोगों को पता चल गई?"

"ये बात नहीं है।" वीरा त्यागी ने गर्दन हिलाकर कहा--- "सच बात तो ये है कि ये खबर गुप्त रखी गई है। अमेरिकन एम्बेसी वालों ने ये खबर बाहर नहीं जाने दी। भारत सरकार को भी खबर नहीं है। अखबारों में इतना छपा कि शिमला के समरहिल के पास अमरीकन एम्बेसी की एक कार चार गनमैनों सहित गहरी खाई में जा गिरी। बाकी दो कारों का ट्रक के साथ जबर्दस्त एक्सीडेंट हुआ। ट्रक का ड्राइवर फरार बताया गया है।"

"समरहिल पर रिचर्ड जैक्सन का अपहरण हुआ?"

"हां। परन्तु ये बात कोई नहीं जानता। क्योंकि अमरीकन एम्बेसी वालों ने ऐसा कुछ नहीं स्वीकारा। रिचर्ड जैक्सन के बारे में उन्होंने कुछ नहीं कहा। परन्तु हमें पता है कि अपहरण करने वालों ने दस करोड़ डॉलर की मांग की है।"

"कैसे पता?"

"मेरी पुरानी पहचान का आदमी इस वक्त एम्बेसी में गार्ड का काम कर रहा है। ये बात उसने फोन करके बताई और उस दस करोड़ डॉलर को लूटने का प्रस्ताव मेरे सामने रखा। उसका कहना है कि जानकारी वो देगा और लूटेंगे हम। वो सारे मामले पर नजर रख रहा है। हमें सारी खबर दे रहा है। बदले में वो बराबर का हिस्सा लेगा ये है सारी बात। अमरीकन एम्बेसी वाले रिचर्ड जैक्सन को आजाद कराने के लिए दस करोड़ डॉलर की फिरौती देने जा रहे हैं, और हम उस दस करोड़ डॉलर को फिरौती देने से पहले ही लूट लेंगे। इस वक्त एम्बेसी वाले अमेरिका से दस करोड़ डॉलर नकद मंगवा रहे हैं। हमारी जानकारी के अनुसार, वो कल प्लेन से लाये जा रहे हैं। जब डॉलर एयरपोर्ट से एम्बेसी लाये जाएंगे तो तब उन्हें नहीं लूटा जा सकता, क्योंकि तब सख्त पहरे में एम्बेसी ले जाये जाएंगे।"

"तो तुम उन डॉलरों पर तब हाथ डालोगे जब अपहरणकर्ताओं को देने के लिए डॉलर ले जाये जाएंगे?" देवराज चौहान ने कहा।

"सही कहा।"

"इस तरह तो काम कठिन रहेगा।" देवराज चौहान ने कश लिया।

"वो कैसे?"

"अचानक ही तुम्हें, हमारा आदमी खबर देगा कि कब, कहां, कैसे फिरौती दी जा रही है। क्या पता फिरौती देने वाले किस रास्ते पर जायें? तुम लोग उसे देखकर उसका पीछा करोगे तो कभी भी वो तुम्हारी नजरों से ओझल हो सकते हैं। ये तो कच्चा प्लान है।"

"कल दस करोड़ डॉलर एम्बेसी पहुंचेंगे।" वीरा त्यागी ने कहा--- "उसके बाद हम में से दो लोग हर वक्त एम्बेसी पर नजर रखेंगे। ताकि जब हमें खबर मिलेगी कि वो लोग फिरौती देने के लिए एम्बेसी से चलने वाले हैं तो हम आसानी से उनका पीछा कर सकें।"

"इस तरह काम आसान नहीं रहेगा।" देवराज चौहान बोला--- "कुछ अंदाजा है कि फिरौती कहां दी जाएगी?"

"इस बारे में अभी कोई खबर नहीं है।"

देवराज चौहान ने नारायण टोपी और प्रेम सिंह को देख कर कहा---

"ये दोनों कहां के हैं?"

"दिल्ली के...।" वीरा त्यागी बोला।

"ये मेरा ही घर है।" नारायण टोपी ने कहा---

तभी सिमरन ने कमरे में प्रवेश करके कहा---

"खाना आ गया है। लगा दूं?"

सबकी निगाह सिमरन की तरफ उठी।

शायद अभी खाने के लिए कोई तैयार नहीं था। तो नारायण टोपी कह उठा---

"बाद में खायेंगे। बता देंगे।"

सिमरन वापस चली गई।

चारों ने एक-दूसरे को देखा।

"देवराज चौहान!" वीरा त्यागी कह उठा--- "तुम हिन्दुस्तान के नंबर वन डकैती मास्टर हो। तुम्हारे सामने हम कुछ भी नहीं। दस करोड़ डॉलर का सवाल है। चूकना नहीं चाहता। सब कुछ कैसा है, तुम्हें बता दिया है। अब तुम इस तरह सोचो कि जैसे ये काम तुम्हें करना हो। ये काम हमारे लिए अहम है। अगर हम इसमें सफल हो जाते हैं तो सोचा कि इस पैसे से बाकी की जिंदगी आराम से बिताएंगे। इस मामले में तुम्हें सलाहकार का काम करना है। तुमको हमें बताना है कि हम कैसे, क्या करें? अगर मामले में आकर हमारी सहायता करना चाहो तो ये भी अच्छा होगा।"

देवराज चौहान खामोश रहा।

"हमारा बेड़ा पार करवा दो।" प्रेम सिंह ने कहा--- "तुम्हारी बहुत मेहरबानी होगी।"

"इस काम में बहुत कमियां हैं।"

"वो कैसे?"

"इस मामले को तुम मेरी नजर से नहीं देख सकोगे।"

"तभी तो तुमसे बात की है कि तुम सब कुछ ठीक से करा दो।" नारायण टोपी कह उठा।

"करवा दो हमारा बेड़ा पार।" प्रेम सिंह पुनः कह उठा।

"मुझे सोचने का वक्त दो।" देवराज चौहान ने कहा।

"अभी वक्त है हमारे पास। तुम सोच सकते हो देवराज चौहान।" वीरा त्यागी ने कहा।

"मैं सिमरन को खाना लगाने के लिए कहता हूं---।" नारायण टोपी ने वीरा त्यागी को देखा।

वीरा त्यागी ने सहमति से सिर हिला दिया।

नारायण टोपी उठा और बाहर निकल गया।

"किन लोगों ने रिचर्ड जैक्सन का अपहरण किया?" देवराज चौहान ने पूछा।

"ये हम नहीं जानते।" प्रेम सिंह ने कहा।

"उन लोगों से हमारा कोई मतलब नहीं दस करोड़ डॉलर तो हम एम्बेसी के लोगों से छीनेंगे।" वीरा त्यागी बोला।

"ठीक है। मैं सब हालातों को ध्यान में रखकर योजना तैयार करके देखता हूं।"

"हमें हर हाल में सफल होना है देवराज चौहान।" वीरा त्यागी कह उठा।

"इस बात का जवाब मैं कल तक दूंगा।"

"हम लोगों के भविष्य का दारोमदार इसी दस करोड़ डॉलर पर है।" प्रेम सिंह ने कहा--- "हम लोगों ने सोचा है कि हम इस लूट के बाद अपने-अपने हिस्से से नई जिंदगी शुरु...।"

"तुम लोगों का भविष्य का प्लान क्या है, उससे मुझे कोई मतलब नहीं।" देवराज चौहान ने कहा--- "मेरी कोशिश होगी कि इस काम को सफल बना सकूं।" फिर वीरा त्यागी से बोला--- "एम्बेसी में तुम्हारा जो आदमी है, उससे वहां के हालातों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी लो। छोटी बात भी जान लो। कोई भी बात हमारे लिए फायदेमंद हो सकती है।"

"ठीक है।" वीरा त्यागी ने सिर हिलाया।

"हम सफल रहेंगे ना?" प्रेम सिंह ने पूछा।

"मालूम नहीं। मैं जानता नहीं जानता कि आने वाला वक्त कैसा होगा?" देवराज चौहान ने कहा।

तभी नारायण टोपी ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा।

"अब कुछ देर के लिए डायनिंग टेबल खाली कर दो--- ताकि सिमरन खाना लगा सके।"

वो सब डायनिंग टेबल से उठ खड़े हुए।

■■■

सोनीपत के पास छोटा सा घुंघरू गांव।

घुंघरू गांव में जुगल किशोर के ताऊ का मकान था। ताऊ अपने परिवार के साथ विदेश में जा बसा था, परन्तु मकान की देख-रेख के लिए अपने भाई को चाबी दे गया था। रिचर्ड जैक्सन को अपहरण के बाद इसी मकान में लाया गया। गांव में ये खुला-बड़ा मकान था। इस काम के लिए बेहतर था।

जुगल किशोर और जैकी दिल्ली में टिके, अमरीकन एम्बेसी से फिरौती की बातचीत में व्यस्त थे। और सोहनलाल, अजहर मेनन, रिचर्ड जैक्सन की देखभाल कर रहे थे गांव के मकान में।

रिचर्ड जैक्सन के हाथ पीठ की तरफ करके बांध रखे थे। वो फर्श पर बैठा था। रात हो रही थी। मेनन ने रात का खाना बनाया था। सोहनलाल रिचर्ड जैक्सन के सामने बैठा गोली वाली सिगरेट पीता रहा था।

"मेरी कलाईयां दर्द कर रही हैं।" रिचर्ड जैक्सन ने कहा--- "मेरे हाथ खोल दो।"

सोहनलाल ने कुछ नहीं कहा।

"मैं भागूंगा नहीं।" वो पुनः बोला--- "मेरा विश्वास करो।"

"मैंने सुना है कि तुम खतरनाक आदमी हो।"

"गलत कहा गया है मेरे बारे में। मैं खतरनाक कैसे हो गया? मैं एम्बेसी में काम करने वाला कर्मचारी हूं।"

"जुगल किशोर ने कहा कि...।"

"मैं जुगल किशोर को नहीं जानता। कौन है ये?"

सोहनलाल खामोश रहा।

तभी अजहर मेनन वहां पहुंचा।

"खाना तैयार है।" मेनन ने बैठते हुए कहा।

"मुझे खोल दो।" रिचर्ड जैक्सन बोला।

अजहर मेनन ने उसे देखा, फिर सोहनलाल से कहा---

"खोल दे इसे।"

"क्या जरूरत है?"

"खोल दे, कोई फर्क नहीं पड़ता। अब खाना भी तो खाना है।"

"जुगल किशोर कहता था कि ये खतरनाक है।"

"चिंता मत कर। कुछ करेगा तो मरेगा।" रिचर्ड जैक्सन को घूरते कड़वे स्वर में कहा।

"मैं कुछ नहीं करूंगा।"

"खोल दे।" मेनन ने कहा।

सोहनलाल उठा और रिचर्ड जैक्सन की कलाइयों पर बंधे बंधन खोल दिए।

आजाद होते ही वो वहीं बैठा अपनी कलाइयां मसलने लगा।

सोहनलाल वापस आ बैठा।

"जुगल किशोर का फोन आया?" मेनन ने पूछा।

"दोपहर को ही आया था।"

"तब उसने कहा था कि दस करोड़ डॉलर अमरीका से मंगवाए जा रहे हैं।"

"हां। कल किसी प्लेन से आ रहे हैं।"

"तुम्हें लगता है कि हमें शराफत से फिरौती दे दी जायेगी?" मेनन ने पूछा।

'क्या पता! एम्बेसी वालों से तो जुगल किशोर बात कर रहा है।"

"क्या ये इतना कीमती है कि अमेरिका वाले इस पर दस करोड़ डॉलर खर्च करें?"

"जुगल किशोर कहता है कि ये कीमती है। इसका अपहरण करने का प्लॉन जुगल किशोर ने ही बनाया था। वो कहता है कि ये अमरीकी सरकार का खास है। हमारी मांग जरूर पूरी की जाएगी।"

"कहीं ऐसा तो नहीं कि कल के प्लेन से अमरीका अपने बंदे भेज रहा हो कि हमसे निपटा जा सके?"

मेनन मुस्कुराकर सोहनलाल को देखने लगा।

"ये हमारे हक में अच्छा हुआ कि इसके अपहरण की बात फैली नहीं। पुलिस और अखबार वालों को कुछ नहीं पता। एम्बेसी के लोगों ने इसके अपहरण की बात को फैलने नहीं दिया कि कहीं इसकी जान खतरे में ना पड़ जाये।"

"मुझे अभी भी भरोसा नहीं कि इसके लिए अमरीकी सरकार हमें दस करोड़ डॉलर देगी।" मेनन बोला।

"पता नहीं। ये जुगल किशोर का तय किया काम है। देखते हैं कि क्या होता है!"

तभी रिचर्ड जैक्सन कह उठा---

"तुम लोगों को पैसा दिया जाएगा।"

"दस करोड़ डॉलर?" मेनन ने उसे देखा।

"हां। मेरी सरकार मुझे बचा लेना चाहेगी।"

"एम्बेसी के कर्मचारी के लिए अमरीकी सरकार इतना पैसा क्यों देगी?"

"देगी। मैं सीनियर ऑफिसर हूं और अमरीकी सरकार मेरी कीमत जानती है।"

मेनन ने सोहनलाल से कहा---

"तभी जुगल किशोर विश्वास के साथ कहता था कि दस करोड़ डॉलर की फिरौती आसानी से मंजूर हो जाएगी।"

"उसे पता होगा कि ये सच में कीमती है।"

"उन्होंने क्या कहा कि वो पैसा कब देंगे?" रिचर्ड जैक्सन ने पूछा।

"वो कह रहे हैं कि कल के प्लेन से दस करोड़ डॉलर अमेरिका से आ रहा है।" सोहनलाल ने बताया।

"फिर तो परसों काम हो जाएगा।"

"तुम आजाद होना चाहते हो?"

"कौन नहीं चाहेगा!" रिचर्ड जैक्सन ने कहा।

"तुम्हारे लोग हमें बेवकूफ बना सकते हैं।"

"वो कैसे?"

"वो कोई ऐसा इंतजाम कर रहे हों कि हमें घेर सकें।" सोहनलाल बोला।

"वो ऐसा कुछ नहीं करेंगे।"

"क्यों?"

"इस मुद्दे को वो उछालना नहीं चाहेंगे। तुमने ही बताया कि अखबार और पुलिस को मेरे अपहरण के बारे में नहीं पता।"

"हां। पता होता तो अब तक हंगामा पैदा कर दिया होता अखबार और टी•वी• वालों ने।"

"इसी से समझ जाओ कि अमरीकी सरकार इस काम को खामोशी से कर देना चाहती है।"

"चलो।" मेनन सोहनलाल से कह उठा--- "खाना खा लिया जाये।"

"पहले जुगल किशोर से बात करें। शायद वो कुछ नया बताये।" सोहनलाल ने मोबाइल निकालते हुए कहा।

"कर लो।"

सोहनलाल ने जुगल किशोर का नंबर मिलाया। फौरन ही बेल जाने लगी।

"हैलो।" जुगल किशोर की आवाज सोहनलाल के कानों में पड़ी।

"क्या खबर है?" सोहनलाल ने पूछा।

"अभी तक तो सब कुछ शांत है। पार्टी कैसी है?"

"ठीक है। कल डॉलर आ रहे हैं?"

"हां। उन लोगों ने तो मुझे ये ही बताया है।"

"लेन-देन कब होगा? परसों?"

"शायद कल शाम या रात को भी हो जाये। इस बारे में कल बात होगी।"

"कहीं वो हमसे कोई चालाकी तो नहीं चल रहे?"

"रिचर्ड जैक्सन उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। वे उसे हर हाल में वापस पाना चाहेंगे। इस बात की तसल्ली करने के बाद ही मैंने तुम सबको इस काम में शामिल किया था।" जुगल किशोर का दृढ़ स्वर कानों में पड़ा।

"तुम अब उनसे कब बात करोगे?"

"कल बारह बजे...।"

"हमें बता देना कि पार्टी को लेकर हम कब दिल्ली पहुँचें?"

"कल बात होगी उनसे।"

"तुम दोनों उसी होटल में हो?"

"हाँ...। पार्टी का ध्यान रखना, वो शातिर इंसान है। साधारण नहीं है।"

"पार्टी को संभालना हमारा काम है। तुम कल फोन करके बताना।" सोहनलाल ने कहा और फोन बंद कर दिया।

"क्या कहता है?" मेनन ने पूछा।

"कल हालात स्पष्ट होंगे।" सोहनलाल बोला--- "तुम खाना डालो। मैं इसके पास रहूंगा।"

मेनन उठा और किचन की तरफ बढ़ गया।

सोहनलाल ने गोली वाली सिगरेट सुलगाई और रिचर्ड जैक्सन से बोला---

"मेरे ख्याल में भविष्य में अब तुम कभी भी शिमला नहीं जाना चाहोगे।"

रिचर्ड जैक्सन ने गहरी सांस ली और मुंह फेर लिया।

■■■

दिल्ली।

रात के ग्यारह बज रहे थे।

करोल बाग के एक होटल के कमरे में जुगल किशोर और जैकी मौजूद थे। कुछ देर पहले ही उन्होंने डिनर किया था।

उसके बाद कॉफी का दौर चल रहा था। जैकी कह उठा---

"हो सकता है कल हमारे हाथ दस करोड़ डॉलर आ जायें...।"

"हाँ। मुमकिन है।" जुगल किशोर मुस्कुरा पड़ा।

"हो सकता है अमरीकन एम्बेसी वाले कोई चाल चल दें और हम फंस जायें।"

"सोहनलाल भी ऐसी आशंका जाहिर कर रहा था, परन्तु ऐसा कुछ नहीं होगा।"

"तुम्हें भरोसा है।"

"हाँ। रिचर्ड जैक्सन अमरीकी सरकार के लिए महत्वपूर्ण है। ये पता करके ही मैंने उस पर हाथ डालने का प्लान बनाया था।"

"मुझे यकीन नहीं आता कि फिरौती देने के लिए कल अमेरिका से डॉलर आ रहे हैं।"

"एम्बेसी वालों ने मुझे ये ही कहा है। मेरे ख्याल में वो झूठ नहीं बोलेंगे।"

"हिस्सा बराबर का होगा।" जैकी ने जैसे उसे याद दिलाना चाहा।

"बिल्कुल होगा। हममें पहले ही बात हो चुकी है। ढाई करोड़ डॉलर हर एक के। सबने बराबर की मेहनत की है।"

तभी जुगल किशोर का फोन बज उठा। फोन निकालकर उसने बात की।

उधर से सुनता रहा, फिर बोला---

"मैं आ रहा हूँ...।" कहकर उसने फोन बंद कर दिया।

"किसका फोन था?"

"मामा का लड़का है। दिल्ली में रहता है। उसकी तबीयत ठीक नहीं। अभी बुला रहा है वो।"

"तुम्हें नहीं जाना चाहिए। कल हमें भागदौड़ करनी पड़ सकती है।" जैकी बोला।

"उसे दवा चाहिए। दवा का नाम बता दिया है। बाजार से खरीदकर उसे देकर, एक-डेढ़ घंटे में वापस आ जाऊंगा।"

"मैं तुम्हारे साथ...।"

"कोई जरूरत नहीं।" जुगल किशोर उठता हुआ बोला--- "तुम आराम करो। मैं जल्दी लौट आऊंगा।"

■■■

जुगल किशोर होटल से बाहर निकला और पैदल ही आगे बढ़ गया।

साढ़े ग्यारह का वक्त होने जा रहा था। परन्तु सड़कों पर रौनक थी। वाहन आ-जा रहे थे। जुगल किशोर करीब दस मिनट तक आगे जाता रहा। ये करोल बाग की मार्केट थी। दुकानें बंद थीं। कुछ खाने-पीने की दुकानें अभी भी खुली हुई थीं, जो कि बंद होने की तैयारी पर थीं। दिन में तो इस बाजार में पांव रखने की भी जगह नहीं मिलती थी। फिर एक चौराहे के पास पहुंचकर जुगल किशोर ठिठक गया। नजरें हर तरफ घुमाईं---

परन्तु वो नहीं दिखा, जिसका उसे इंतजार था।

जुगल किशोर इंतजार करने लगा। चेहरा शांत और गंभीर था।

दस मिनट उसे वही खड़े रहना पड़ा फिर एक कार पास आकर रुकी। जुगल किशोर ने कार के भीतर देखा और आगे बढ़कर कार का दरवाजा खोलकर भीतर जा बैठा।

ड्राइविंग सीट पर वीरा त्यागी बैठा था।

दोनों एक-दूसरे को देखकर मुस्कुराये।

"कैसे हो?" वीरा त्यागी ने हँसकर पूछा।

"बढ़िया...।" जुगल किशोर मुस्कुराया।

वीरा त्यागी ने कार आगे बढ़ाई और सड़क के किनारे रोक दी।

दोनों कार में बैठे बातें करने लगे।

"खास काम था, जो अब बुलाया?" जुगल किशोर ने पूछा।

"तुमसे मिलने का दिल कर रहा था। एक बात तुम्हें बताना भी चाहता था।"

"क्या?"

"डकैती मास्टर देवराज चौहान को भी मैंने साथ में ले लिया है।" वीरा बोला।

"ओह!" जुगल किशोर के होंठ सिकुड़े।

"मैं असफल नहीं होना चाहता। दस करोड़ डॉलर खोना नहीं चाहता।"

"और बाद में इन डॉलरों को हम आधे-आधे बांट लेंगे।" जुगल किशोर ने गहरी सांस ली।

"पांच करोड़ तुम्हारे, पांच मेरे।"

"ऐसा ही होगा। तुम मेरे खास दोस्त हो।" जुगल किशोर कह उठा--- "मैंने ही तुम्हें इस सारी योजना से वाकिफ कराया। मैंने दो योजनाएं तैयार कीं। पहली योजना थी--- रिचर्ड जैक्सन के अपहरण की--- और दूसरी योजना तुम्हारे द्वारा तैयार की--- कि तुम फिरौती में मिलने वाले दस करोड़ डॉलर, पहले ही ले उड़ोगे।"

"हाँ। इस काम के लिए मेरी तैयारी पूरी है। मैं काबिल लोगों की पार्टी तैयार कर चुका हूँ। मेरी पार्टी में देवराज चौहान जैसा डकैती मास्टर शामिल हो चुका है। दस करोड़ डॉलर हम पहले ही ले उड़ेंगे।"

"मैं तुम्हें सारी योजना बताता रहूंगा कि डॉलर किस हाल में है। हमें फिरौती कब और कहां मिलने वाली है। वो लोग दस करोड़ डॉलर लेकर किस रास्ते से निकलेंगे!"

"रास्ता तुम्हें कैसे पता चलेगा?" वीरा कह उठा।

"उनका रास्ता मैं ही तय करूंगा। वो मेरी बात मानेंगे। क्योंकि उन्हें रिचर्ड जैक्सन सलामत वापस चाहिये।"

"हूं। जुगल किशोर तुम तो वास्तव में कमाल के हो।" वीरा मुस्कुराया।

"मेरे ख्याल में डकैती मास्टर देवराज चौहान को इस काम में साथ लेने की जरूरत नहीं थी।" जुगल किशोर ने कहा।

"वो क्यों?"

"खतरनाक है वो। जबकि मैंने और तुमने अपने-अपने साथियों को धोखा देना है। डॉलर लेकर हमने भाग जाना है। देवराज चौहान को इस काम में साथ ना ही लेते तो अच्छा रहता।"

वीरा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।

"जुगल किशोर।" कुछ पल ठहर कर वीरा कह उठा--- "तुम ठीक कहते हो, हमारे साथी हमारे लिए बाद में मुसीबत खड़ी करेंगे। सब साले खतरनाक हैं। जिंदगी के किसी मोड़ पर मिल गए तो छोड़ेंगे नहीं।"

"मैंने भी इस बारे में सोचा है।"

"तो क्या करें?"

"सबको खत्म करना होगा।"

"सबको?"

"हाँ। तभी हम डॉलरों का मजा ले कर आराम से जिंदगी बिता पाएंगे।"

"लेकिन सबको कैसे खत्म किया जाएगा? यह तो मुसीबत वाला काम है। कोई भी हमें खत्म कर देगा तब...।"

"मैं सोचूंगा इस बारे में।" जुगल किशोर ने गंभीर स्वर में कहा।

"ये बाद की बातें हैं। सबसे पहले हमें डॉलरों पर कब्जा जमाना।"

"हमें नहीं, तुम्हें डॉलरों पर कब्जा जमाना है। तब मैं तुम्हारे साथ नहीं होऊंगा।" जुगल किशोर बोला--- "तब तुम्हारे साथ नारायण टोपी, प्रेम सिंह होंगे। देवराज चौहान होगा। तुम लोगों ने उनसे डॉलर छीनने हैं। योजना मैं तुम्हें बता दूंगा कि एम्बेसी वाले दस करोड़ डॉलर लेकर कब और किस रास्ते से गुजर रहे हैं।"

"देवराज चौहान मेरे साथ है। अब तो ये काम आसानी से हो जाएगा।" वीरा बोला।

"मत भूलो कि बाद में तुमने उनसे डॉलर लेकर, उन्हें खत्म करना है।"

"ये सच में मुसीबत वाला काम है। इससे तो आसान है डॉलर लेकर खिसक जाना।"

"उन्हें जिंदा छोड़ दोगे तो वे तुम्हें जिंदगी के किसी भी मोड़ पर शूट कर देंगे। उन्हें खत्म करना जरूरी है।" जुगल किशोर ने कहा।

"ठीक है। खत्म कर दूंगा उन्हें। तुम भी अपने साथियों को खत्म करोगे?"

"जरूरी है।"

"अब कल का क्या प्लॉन है?"

"एम्बेसी वालों से बात करूंगा कल दिन में।"

"डॉलर तो कल ही आ रहे हैं ना?" वीरा ने मुस्कुराकर पूछा।

"एम्बेसी वालों का ये ही कहना है।"

"तुम उन पर बहुत यकीन कर रहे हो?"

"एम्बेसी वाले मेरे से चालाकी नहीं कर सकते। रिचर्ड जैक्सन उनके लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति है। वो कोई पंगा खड़ा नहीं करना चाहेंगे। रिचर्ड जैक्सन के बारे में अच्छी तरह जानने के बाद ही मैंने उसके अपहरण के बारे में सोचा था।"

"हम दोनों पांच-पांच करोड़ डॉलरों के मालिक बनने वाले हैं।" वीरा हँस पड़ा।

"खुश बाद में होना। पहले सारे काम ठीक से निपटा लो।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा।

"क्या तुम्हें शक है कि काम में कहीं रूकावट आ सकती है?"

"कोई रुकावट नहीं आयेगी। बस तुम कोई गलती मत कर देना।" जुगल किशोर ने उसे देखा। फिर दरवाजा खोलता कह उठा--- "अपने कामों की तरफ ध्यान दो। बाकी जो भी बात होगी, कल तुम्हें फोन पर बता दूंगा।"

■■■

अगले दिन रात को जुगल किशोर ने वीरा को फोन किया।

"क्या रहा?"

"डॉलर आज शाम को आ पहुंचे हैं। मेरी बात हो गई है एम्बेसी वालों से। वो कल डॉलर लेकर निकलेंगे।"

"तब रास्ता किधर का लेंगे वो?"

"ये मैंने उन्हें कल बताना है। परन्तु तुम रास्ता सुन लो कि मैंने उन्हें किस रास्ते से आने को कहना है। उसी के हिसाब से तुम अपने साथियों के साथ मिलकर प्लॉन बना लो। याद रखना--- कि वो डॉलर तुमने हर हाल में उन लोगों से लेने हैं।"

"मैं अपना काम पूरा करके दिखाऊंगा।" उधर से वीरा ने दृढ़ स्वर में कहा।

जुगल किशोर, वीरा को रास्ते के बारे में समझाने लगा।

■■■

वीरा ने देवराज चौहान को फोन किया।

"कल हमें काम करना है। एम्बेसी में जिससे मुझे खबरें मिल रही हैं, उसने बताया कि दस करोड़ डॉलर की फिरौती कल दी जायेगी। पैसे लेकर वो लोग किस रास्ते से निकलेंगे, ये भी उसने मुझे बताया।"

"कल कितने बजे वो चलेंगे?" उधर से देवराज चौहान ने पूछा।

"ग्यारह बजे वो एम्बेसी से निकलेंगे। जिस कार पर वो निकलेंगे उसका नंबर भी पता है मुझे।"

"फिर तो हमें रात को ही मिलना पड़ेगा।"

"तभी तो मैंने फोन किया है। तुम ही यहां आ जाओ तो ज्यादा ठीक होगा। यहां सब हैं, मिलकर कोई प्लॉन बना लेंगे।"

"मैं दो घंटे में वहां पहुंच रहा हूं।" उधर से देवराज चौहान ने कहकर फोन बंद कर दिया।

■■■

जुगल किशोर का फोन अजहर मेनन को मिला।

"कल हमें दस करोड़ डॉलर मिल रहे हैं।" जुगल किशोर ने उधर से कहा।

"विश्वास नहीं आता।" मेनन हँसकर कह उठा।

"मैं कह रहा हूं, इसलिए विश्वास कर लो।"

"फिरौती तुम और जैकी लोगे?"

"हां। कहां पर फिरौती लेनी है, ये उन्हें सुबह फोन करके बताऊंगा।"

"ये काम खत्म होगा तो मुझे अच्छा लगेगा।"

"मैं तुम्हें एक फोन नंबर देता हूं, वो नंबर हिटन नाम के अमरीकी का है। हिटन, फिरौती देने से पहले अपनी तसल्ली करना चाहता है कि रिचर्ड जैक्सन ठीक-ठाक है कि नहीं।"

"समझ गया। मैं अभी बात करा...।"

"बीस सेकेण्ड से ज्यादा की बात नहीं होनी चाहिए।"

"ऐसा ही होगा...।"

"सुबह बात करूंगा।" कह कर उधर से जुगल किशोर ने फोन बंद कर दिया।

"क्या हुआ?" पास ही में सोहनलाल खड़ा था, उसने पूछा।

"कल हमें फिरौती मिल रही है।"

"शुक्र है।" सोहनलाल ने चैन की सांस ली।

"इसकी एक नंबर पर बात करानी है। जुगल किशोर ने नंबर देकर ऐसा करने को कहा है ।" मेनन बोला।

सामने ही फर्श पर बंधा हुआ रिचर्ड जैक्सन पड़ा था।

"फिरौती लेकर मुझे छोड़ दोगे ना?" पूछा रिचर्ड ने।

"हाँ। तुम्हें एम्बेसी वालों के हवाले नहीं करेंगे। ये हमारा वादा है।"

"थैंक्स।" रिचर्ड जैक्सन ने कहा--- "मेरे को बढ़िया मौका मिल जायेगा अपनी मौत को रचने का। परन्तु वो काली जिल्द वाली...।"

"डॉयरी की बात हमसे मत करो। हमें अपना काम कर लेने दो।"

रिचर्ड जैक्सन के चेहरे पर सोच के भाव उभरे, फिर कह उठा।

"ठीक है। डॉयरी पाने के लिए मैं कोशिश करूंगा। लेकिन वो चाबी तो मुझे दे दो।"

"चाबी जुगल किशोर के पास है, तुम्हें दे दी जाएगी।"

मेनन ने नंबर मिलाते हुए रिचर्ड जैक्सन से कहा।

"हिटन को जानते हो?"

"हाँ, वो एम्बेसी का फर्स्ट ग्रेड ऑफिसर है। मैंने तुम लोगों को उसका नंबर भी दिया था।"

"हिटन तुमसे बात करके तसल्ली करना चाहता है कि तुम सही-सलामत हो।" मेनन ने मोबाइल कानों से लगाया--- "क्या बात करनी है, वो तुम जानते ही हो। दस सेकेण्ड मिलेंगे तुम्हें बात करने को।" फिर वो कान में लगे फोन पर बोला--- "मिस्टर हिटन!"

"यस।" हिटन की आवाज मेनन के कानों में पड़ी।

"रिचर्ड जैक्सन से बात करना चाहते हैं आप?"

"हाँ। तुम्हारे पास है वो?"

"लो, बात कर लो।" कहकर मेनन ने अपने कान से फोन हटाया और रिचर्ड के कानों से लगा दिया।

"हैलो... मैं...।" रिचर्ड जैक्सन ने कहना चाहा।

"तुम कैसे हो रिचर्ड?" हिटन का तेज स्वर कानों में पड़ा।

"जिंदा हूँ--- पर बहुत तकलीफ में हूँ। मुझे यहां से निकलवा लो हिटन...।"

"चिंता मत करो। कल हम इन्हें फिरौती दे रहे हैं। कल जरूर हमारी मुलाकात होगी।"

"ओह, तब कितना अच्छा लगेगा मुझे... तुम तो...।"

तभी मेनन ने उसके कान से फोन हटाया और बंद कर दिया।

■■■

सुबह आठ बजे जुगल किशोर का वीरा को फोन आया।

"हैलो।" वीरा ने बात की।

"तैयारी हो गई?"

"हाँ...।" वीरा सामने मौजूद देवराज चौहान, नारायण टोपी, प्रेम सिंह पर निगाह मारकर कह उठा।

"प्लॉन बनाया कि कैसे काम करना है?"

"हाँ।"

"याद है--- तुम्हें हर हाल में उनसे डॉलर छिनने हैं।"

"रास्ता वो ही है ना जो रात को तुमने बताया था?" एम्बेसी से निकलकर वो रास्ता तो नहीं बदलेंगे?"

"रास्ता वो ही रहेगा उनका, जो मैं बता चुका हूँ।"

"ठीक ग्यारह बजे...।"

"बढ़िया। अब बाद में बात होगी।" वीरा ने कहकर फोन बंद कर दिया और बोला--- "सब ठीक है।"

"ये कौन था?" देवराज चौहान ने पूछा।

"एम्बेसी में काम करने वाला वो ही गार्ड, जो मुझे वहां की खबरें दे रहा है।" वीरा ने बताया।

"उसे तुमने क्या देना है?"

"ये मेरी और उसकी बात है। मैं अपने हिस्से में से उसे कुछ दे दूंगा। सोचने वाली बात नहीं है ये।"

"देवराज चौहान।" प्रेमसिंह ने कहा--- "हम सफल हो जायेंगे ना?"

"पूरी तरह।" देवराज चौहान ने विश्वास के साथ कहा--- "तुम अब लोगों को काम ठीक ढंग से करना है।"

■■■

सुबह नौ बजे।

करोल बाग का होटल।

"हमें निकल चलना चाहिए...।" जैकी ने जुगल किशोर से कहा--- "जहां फिरौती लेनी है, वहां हमें पहले पहुँचकर कोई जगह देखनी है छिपने के लिए, और आने वालों पर निगाह रखने के लिए। फरीदाबाद सूरजकुंड पहुँचने में भी आधा घण्टा लग जायेगा।"

"चलो...।"

"तुमने इतनी दूर की जगह क्यों तय की, फिरौती लेने के लिए?"

"वो जगह ठीक है, सूनसान है। पहाड़ियां और जंगल हैं उधर। वहां लोगों का आना-जाना नहीं है। अगर हमें धोखा देने के लिए फालतू के लोग वहां पहुंचे तो वो फौरन हमारी नजरों में आ जायेंगे।"

"क्या तुम्हें पता नहीं कि फिरौती देने के बदले वो गड़बड़ कर सकते हैं?"

"लगता तो नहीं।" तभी जुगल किशोर का फोन बजने लगा--- "परन्तु हमें हर तरफ देखकर चलना है।"

फिर जुगल किशोर ने मोबाइल निकालकर बात की।

"हैलो...।"

"मिस्टर जुगल किशोर।" जाकिर का शांत स्वर कानों में पड़ा--- "हमारा काम कहाँ तक पहुंचा?"

"होल्ड करो।" फिर जुगल किशोर ने जैकी से कहा--- " तुम नीचे कार तक पहुँचो, मैं अभी बात करके आया।"

"काम के वक्त लड़की का फोन आना ठीक नहीं...।" जैकी ने मुँह बनाकर कहा और बाहर निकल गया।

जुगल किशोर ने आगे बढ़कर दरवाजा बंद किया, फोन पर बोला---

"कब कहो।"

"हम तुम्हें दस करोड़ एडवांस में दे चुके हैं।"

"मैंने कब इंकार किया?"

"तुमने हमें फोन करके बताया नहीं कि हमारा काम कहाँ तक पहुंचा।" कानों में पड़ने वाली आवाज शांत थी।

"मैं तुम्हारे काम पर ही लगा हुआ...।"

"मिस्टर जुगल किशोर!" हुसैन की पूर्ववत आवाज सुनाई दी--- "अब वक्त आ गया है कि हमें स्पष्ट बात करनी चाहिए।"

"कैसी बात?" जुगल किशोर की आँखें सिकुड़ी।

"रिचर्ड जैक्सन के बारे में बात। तुम क्या समझते हो कि हमने तुम्हें दस करोड़ रुपया एडवांस देकर जाने दिया? इतनी बड़ी रकम किसी को देकर, उसकी तरफ से आँखें बंद नहीं की जा सकतीं।"

जुगल किशोर के शरीर में चीटियां दौड़ती चली गईं।

"तुम्हारा मतलब कि---।" जुगल किशोर ने कहना चाहा।

"ये तुम्हें पहले ही सोच लेना चाहिए था कि हम हर पल तुम पर नजर रखवा रहे हैं। ये जुदा बात है कि तुम अपने पर नजर रखने वालों को देख नहीं सके। ऐसा ही तुम चाहते थे और हमने ऐसा ही किया।"

जुगल किशोर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

"म...मैंने तुम्हें कहा था कि तुम मुझ पर नजर मत...।"

"वो बात पीछे ही छूट चुकी है। तुम्हें तो कोई नजर रखने वाला, पीछा करने वाला नहीं दिखा। बात ये है कि तुमने हमसे दगाबाजी की है। रिचर्ड जैक्सन को उठाये तुम्हें कई दिन हो गए। परन्तु तुमने उसे हमारे हवाले नहीं किया। हम समझना चाहते हैं कि तुम आखिर करना क्या चाहते हो, लेकिन हमें आज तक समझ नहीं आया कि सोनीपत के घुंघरू गांव में तुमने रिचर्ड जैक्सन को बंधक बनाकर क्यों रखा है--- और खुद दिल्ली में क्या कर रहे हो? एक बार तुम अमरीकन एम्बेसी भी गये। हमारी हैरत का ठिकाना नहीं रहा। क्या तुम रिचर्ड जैक्सन की फिरौती के लिए एम्बेसी वालों से बात कर रहे हो?"

जुगल किशोर के मस्तिष्क में धमाके फूटने लगे।

"जवाब दो। हम सीधी बात का सीधा जवाब चाहते हैं। क्या तुम फिरौती लेने वाले हो उनसे?"

जुगल किशोर ने खुद को संभाला। हिम्मत इकट्ठी की---

"मैं... मैं तुम्हारी सौ बातों के बदले एक ही जवाब दे सकता हूँ कि आज शाम तुम्हें रिचर्ड जैक्सन मिल जायेगा।"

"ये सब हम तब मानते जब तुमने हमें फोन करके कहा होता। परन्तु फोन तो हमने किया है। हमने तुम्हारी चोरी तुम्हारे सामने रखी और हम पूछताछ कर रहे हैं। इसलिए हमें जवाब दो कि क्या तुम रिचर्ड जैक्सन की फिरौती लेने वाले हो?"

"तुम ऐसे सवाल की जगह रिचर्ड जैक्सन से मतलब रखो। वो तुम्हें शाम को मिल जायेगा।"

"हमारा सवाल अभी भी अपनी जगह पर कायम है।"

"तुम मेरा वक्त बर्बाद कर...।"

"तुमने उस सौदे को बर्बाद किया है जो हमारे और तुम्हारे बीच तय हुआ था। सौदा ये था कि तुम रिचर्ड जैक्सन का अपहरण करके उसे हमारे हवाले कर दोगे। तीस करोड़ सौदे का और दस करोड़ तुम्हें एडवांस में दे दिया गया। बाकी का बीस हमने तैयार कर रखा हुआ है। परन्तु अब हम सोचते हैं कि तुमने हमसे सौदेबाजी की। रिचर्ड जैक्सन का अपहरण करके तुमने उसे अपने पास बंधक बना रखा है--- और हमारे ख्याल से तुम उसकी फिरौती लेने के चक्कर में हो। ये बात हमारे सौदे में नहीं थी मिस्टर जुगल किशोर।"

"मैंने कब मना किया है कि मैं तुम लोगों को रिचर्ड जैक्सन नहीं दूंगा?" जुगल किशोर बोला।

"तुमने सप्ताह भर से उसे क्यों रखा हुआ है? अपहरण करके उसे हमारे हवाले क्यों नहीं किया है?"

"तब ठीक है। किसी तरह के शक में न पड़ो। तुम लोगों ने सही सोचा कि मैं एम्बेसी वालों से फिरौती ले रहा हूँ--- परन्तु रिचर्ड जैक्सन को वापस करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। उसे मैंने तुम्हारे हवाले करने को सोच रखा था।"

"चोरी पकड़ी गई तो ऐसा कह रहे हो...।"

"आज मुझे फिरौती मिलने वाली है अमेरिकन एम्बेसी से।" जुगल किशोर ने दिल पर पत्थर रखकर बताया।

"ओह...।"

"शाम को मैंने रिचर्ड जैक्सन को तुम लोगों के हवाले करना ही था। मैंने सोचा, रिचर्ड हाथ में आया है तो क्यों न मैं दो पैसे ज्यादा कमा लूँ। मेरे पास मौका था अमेरिकन को बेवकूफ बनाने का और वही कर रहा हूँ।"

"ऐसी बात थी तो तुम हमसे बात कर सकते थे।"

"क्या मतलब?"

"रिचर्ड जैक्सन से हमें सिर्फ तीन-चार दिन का ही काम था। हमें उससे एक डॉयरी लेनी है, जोकि काली जिल्द की---।"

"काली जिल्द की डॉयरी?" जुगल किशोर के होंठों से निकला।

"तुम जानते हो डॉयरी के बारे में?"

"न...नहीं। मुझे क्या पता!" जुगल किशोर कठिनता से कह सका।

"उससे डॉयरी लेकर हम उसे तुम्हारे हवाले कर देते--- और तुम उसका जो भी करते!"

"मगर...मगर तुमने तो कहा था कि तुम उसे ईराक ले जाना चाहते हो--- और ये साबित करना चाहते हो कि सद्दाम हुसैन को फांसी नहीं दी गई, बल्कि अमेरिका ने उसकी हत्या करवाई है।"

"हम जो भी कहें। रिचर्ड जैक्सन का कुछ भी करें--- तुम्हें इससे कोई मतलब नहीं। तुम्हें अपनी बात करनी चाहिए थी कि तुम रिचर्ड जैक्सन की फिरौती लेने का इरादा रखते हो तो हम तुम्हें सच बता देते कि...।"

"वो...वो उस डॉयरी में क्या है जो तुम तीस करोड़ खर्च कर...।"

"इन बातों को छोड़ो और ये सोचो कि तुमने हमसे गद्दारी...।"

"मैंने कुछ भी गद्दारी नहीं की।" जुगल किशोर के दिमाग में काली जिल्द वाली डॉयरी घूम रही थी, जोकि इस वक्त उसकी कमीज के भीतर पैंट के बीच में फंसी हुई थी--- "सिर्फ इतना ही गलत किया कि रिचर्ड जैक्सन को पांच-सात दिन अपनी कैद में रख लिया है, तुम लोगो के हवाले ना करके। ये मामूली बात है। तुम इसकी परवाह क्यों करते हो? शाम के लिए जगह और वक्त तय कर लो, जहां पर मैं तुम्हें रिचर्ड जैक्सन दूँगा।"

"तुम हमारी नजरों में हर वक्त हो। हमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं। हमारे आदमी होटल के बाहर पहुंच चुके होंगे तुम्हें पकड़ कर लाने के लिए--- और हम तुम्हें बतायेंगे कि हमसे गद्दारी कितनी महंगी...।"

"नहीं--- तुम ऐसा नहीं कर सकते। ऐन मौके पर तुम मेरा खेल नहीं बिगाड़---।"

"हम सबकुछ कर सकते हैं। एक बात तुम्हें बताना भूल गए कि हम लोग बहुत खतरनाक लोग हैं। हमारे संगठन का नाम सुनकर ईराक में अमेरिकी भी डर जाते हैं। हमें जानते होते तो यूँ हमसे गद्दारी न करते---।"

"मैंने कोई गद्दारी नहीं की।" जुगल किशोर चीखा--- "तुम बात को समझते क्यों नहीं--- कि मैंने जो किया, उससे तुम लोगों का कोई नुकसान नहीं हुआ। सिर्फ पांच-सात दिन ज्यादा ही तो मैंने रिचर्ड जैक्सन को रखा है। मैंने कितनी कठिनाई से उसका अपहरण किया है। ये ठीक है कि तुम इस काम के तीस करोड़ रुपये दे रहे हो, परन्तु कुछ दिन उसे रख लेने का मेरा भी हक बनता है।"

हुसैन की आवाज नहीं आई।

"तुम अपने आदमियों को रोक लो, जो होटल के बाहर आ गए हैं। आज तुम्हें रिचर्ड जैक्सन मिल जायेगा। सच बात तो ये है कि मैंने फिरौती लेने का ड्रामा किया है, परन्तु ले नहीं रहा। अमेरिकी फिरौती की दौलत के साथ एम्बेसी से निकलेंगे और रास्ते में उन्हें कोई और ही लूट लेगा।"

"खूब! तो लूटने वाले आदमी तुम्हारे ही होंगे।"

"हाँ। वो सबकुछ मेरे ही इशारे पर हो रहा है।"

"तुम तो सच में कमीने हो। कोई भी मौका नहीं छोड़ रहे। इतनी दौलत का क्या करोगे?"

"तुम अपने आदमियों से कह दो कि मुझे कुछ न कहें। मुझे शाम का वक्त दे दो। उसके बाद तुम्हारे पैर धोकर पियूंगा।"

"हूं।" हुसैन का सोच भरा स्वर कानों में पड़ा--- "तुम्हारा आज का प्रोग्राम क्या है? मुझे बताओ।"

जुगल किशोर उसे प्रोग्राम बताने लगा।

जुगल किशोर का पूरा प्रोग्राम सुनने के बाद कहा हुसैन ने---

"ठीक है। मैं तुम्हें कुछ घण्टों के लिए आजाद करता हूँ।"

"मुझे बताओ, मैं रिचर्ड जैक्सन को लेकर कहाँ पर...।"

"उसकी तुम फिक्र न करो। हम सही वक्त पर उससे मिल लेंगे।" इसके साथ ही हुसैन ने फोन बंद कर दिया था।

जुगल किशोर के चेहरे पर बेचैनी नाच रही थी। वो पास की कुर्सी पर बैठ गया। मोबाइल अभी भी उसके हाथ में था। वो परेशान था कि वो लोग उस पर शुरू से ही नजर रखे हुए हैं। वो जानते हैं कि उसने रिचर्ड जैक्सन को कहां रखा है। मन ही मन उसने तय किया कि दस करोड़ डॉलर उसके हाथ आते ही, रिचर्ड जैक्सन को उन लोगों के हवाले करके बाकी के बीस करोड़ ले लेगा।

जुगल किशोर इन्हीं सोचों, इन्हीं उधेड़बुन में लगा रहा।

तभी जैकी ने दरवाजा खोलकर कमरे में कदम रखा।

जुगल किशोर ने थकी सी निगाह उठाकर जैकी को देखा।

"क्या हुआ?" जैकी उसके चेहरे के बिगड़े भाव को देखकर कह उठा।

"सब ठीक है।" जुगल किशोर ने गहरी सांस ली। फोन जेब में रखकर उठ खड़ा हुआ।

"लड़की से पंगा हो गया क्या... शादी की बात नहीं बनी?"

"नहीं। उसका बाप उसकी शादी कहीं और कर रहा है। लड़की ने मुझसे शादी करने को मना कर दिया है।"

"हिम्मत क्यों हारता है। किसी और से कर लेना। ये मामूली बातें हैं। काम की तरफ ध्यान दे। आज हम दस करोड़ डॉलर की फिरौती लेने वाले हैं। ढाई-ढाई करोड़ हम सबको मिलेगा। इतनी दौलत तो पचास शादियों के बराबर होती है। तुम जितनी चाहें कर लेना। कब निकल लें। हमें वक्त पर वहां पर पहुंचना है।" जैकी ने मुस्कुरा कर कहा।

■■■

हिटन ने कलाई पर बंधी घड़ी में देखा। 10:55 हुए थे। सामने खड़े एक व्यक्ति को देखकर कहा---

"चलने की तैयारी करो...।"

वो सिर हिलाकर बाहर निकल गया।

हिटन ने मेज की ड्राज खोली और रिवाल्वर निकालकर जेब में रखी। उसने काली पैंट और आधी बाँह की स्कीवी डाल रखी थी, जो कि पैंट से बाहर झूल रही थी। अपने ऑफिस से निकल कर वो बाहर की तरफ बढ़ता चला गया। चेहरे पर गंभीरता नाच रही थी। हाव-भाव से वो सतर्क लग रहा था।

उसी पल उसका मोबाइल बजा।

"हैलो।" फोन निकालकर हिटन ने बात की।

"अगले दो मिनट में तुम्हें चल देना चाहिए मिस्टर हिटन।" जुगल किशोर की आवाज कानों में पड़ी--- "ग्यारह बज रहे हैं।"

"मैं निकल रहा हूं...।"

"गाड़ी का रंग और नंबर?"

"सिल्वर कलर की होंडा सिटी है, नंबर है 336...।"

"दस करोड़ डॉलर लेना मत भूलना?"

"वो कार की डिग्गी में...।"

"किसमें रखा है डॉलरों को?"

"एक सूटकेस। मीडियम साईज का मोटा सूटकेस है।"

"उसमें दस करोड़ डॉलर आ गये?"

"हाँ। तुम देखोगे तो समझ जाओगे। बेहतर होगा कि अगर तुम रिचर्ड को साथ ले आते।"

"मेरा वादा है कि डॉलर देने के बाद छः घंटों के भीतर वह तुम्हारे पास होगा।" इसके साथ ही इधर से जुगल किशोर ने फोन बंद कर दिया था।

हिटन इमारत से बाहर निकला। सामने ही सिल्वर कलर की होंडा सिटी कार तैयार खड़ी थी।

■■■

जुगल किशोर ने वीरा को फोन किया।

"कहां हो तुम और बाकी सब लोग?" जुगल किशोर ने पूछा।

"हम देवराज चौहान के प्लॉन के मुताबिक काम कर रहे हैं। सब बढ़िया है। हम डॉलर ले लेंगे।"

"अब सुनो। हिटन दस करोड़ डॉलर लेकर निकला है अभी-अभी एम्बेसी से।" जुगल किशोर की आवाज वीरा के कानों में पड़ी--- "डॉलरों से भरा एक ही सूटकेस कार की डिग्गी में पड़ा है। सिल्वर कलर की होंडा सिटी कार का नंबर 336 है, जिस पर वो आ रहा है। रास्ता वो ही है जो मैं तुम्हें बता चुका हूं। मेरे कहे मुताबिक वो दो लोग ही होंगे। एक हिटन और दूसरा कार चलाने वाला। कार चलाने वाला साधारण ड्राइवर ना होकर हथियारबंद व्यक्ति होगा। उससे भी तुम लोगों को सावधान रहना है।"

"हमारा आदमी नारायण टोपी ठीक काम कर रहा है। क्योंकि उसने अभी-अभी फोन पर बताया कि हिटन सिल्वर कलर की हौंडा सिटी कार में निकला और...।"

"वो तो कब से एम्बेसी के लोगों की पहचान पर लगा था मेरे कहने पर। मैंने उसे तब से ही काम पर लगा दिया था, जब से तुम दिल्ली आए थे। वो रिचर्ड जैक्सन को भी पहचानता है। अब नारायण टोपी कार पर सिटी होंडा के पीछे-पीछे आ रहा है।"

तभी वीरा ने देवराज चौहान को अपनी तरफ बढ़ते देखा।

"मैं तुमसे फिर बात करूंगा।" वीरा ने कहा और फोन बंद करके पास आ चुके देवराज चौहान से कहा--- "एम्बेसी से उसी गार्ड का फोन था। वो बता रहा था कि दस करोड़ डॉलर एक सूटकेस में रखकर, जो कि डिग्गी में रखा है, कार बाहर निकली है। उसने भी सिल्वर कलर की होंडा सिटी बताई है, जो नारायण टोपी ने बताया। नारायण टोपी सही जा रहा है।"

देवराज चौहान ने सिर हिलाकर सिगरेट सुलगाई, फिर बोला---

"तुम्हारा आदमी बहुत सटीक खबरें दे रहा है, जबकि वो वहां मात्र गार्ड है?"

"वो जानता है कि मैं उसे अच्छे पैसे दूंगा।" वीरा मुस्कुरा पड़ा।

इस वक्त वे फरीदाबाद और दिल्ली की एक ऐसी सड़क पर खड़े थे जो इन दोनों जगहों को जोड़ती थी। ये जगह एक मोड़ पर थी और मोड़ भीड़-भाड़ वाला था। कुछ दूरी पर सड़क किनारे एक मोटरसाइकिल खड़ी थी। जिस पर जुगल किशोर और देवराज चौहान बैठ कर आये थे। हिटन की होंडा सिटी कार को यहीं से बड़कल लेक होते हुए अरावली की पहाड़ियों की तरफ जाना था, जहां पहुंचने को जुगल किशोर ने हिटन से कहा था।

■■■

सिल्वर कलर की होंडा सिटी फरीदाबाद के उस चौराहे के पास पहुंच चुकी थी। भीड़ भरा चौराहा था। कारें रुक-रुक कर मध्यम गति से आगे बढ़ रही थीं। सिर्फ तीस कदम आगे चौराहा था। हिटन कार की पिछली सीट पर बेचैनी से भरा बैठा था। कार के शीशे चढ़े हुए थे। ए•सी• चल रहा था।

"कितनी देर का रास्ता है?" हिटन ने पूछा।

"इस चौराहे से निकलने के बाद पच्चीस मिनट लगेंगे।" कार चलाने वाले ने कहा।

हिटन पुनः कार के शीशे के बाहर देखने लगा।

तभी धड़ाम की जोर की आवाज के साथ कार को तीव्र झटका लगा। कार रुक गई।

"क्या हुआ?" हिटन हड़बड़ा कर कह उठा।

"किसी ने टक्कर मार दी है।"

एक कार उनकी कार के अगले हिस्से से टकराई थी जो कि सामने से आ रही थी। उस कार की ड्राइविंग सीट पर प्रेम सिंह बैठा था। इस टक्कर के लगते ही रेंगता ट्रैफिक जाम हो गया था।

"निकलने की कोशिश करो। हमें वहां वक्त पर पहुंचना है।" हिटन ने होंठ भींचकर कहा।

"टक्कर जानबूझकर मारी गई है सर।" कार चलाने वाला कह उठा।

"क्या?" हिटन चौंका और जेब से रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली--- "सावधान रहो।"

कार चलाने वाले ने भी रिवाल्वर निकाल ली। उसकी निगाह प्रेम सिंह पर थी, जो कि कार से निकलने के बाद तेजी से एक तरफ खिसक कर कारों की भीड़ में नजरों से ओझल हो गया।

"मुझे कुछ गड़बड़ लग रही है सर।" कार चलाने वाला बोला।

"क्या गड़बड़...?"

तभी हिटन की तरफ का पीछे का शीशा खटखटाया गया।

हिटन ने फौरन गर्दन घुमा कर देखा। चढ़े शीशे के पास देवराज चौहान खड़ा था। उसने पुनः शीशा खटखटाया।

हिटन ने हाथ आगे बढ़ाया और शीशा नीचे करने के लिए बटन दबा दिया। शीशा नीचे सरका।

देवराज चौहान को उसके हाथ में दबी रिवाल्वर दिखी तो कह उठा---

"आपने रिवाल्वर क्यों पकड़ रखी है?"

"वो... यूं ही...।"

"बाहर आ जाइये। आपकी कार का एक्सीडेंट हो गया है। गलती आपकी कार की है।"

"ये क्या बकते हो?" हिटन ने कहा--- "उस कार ने हमारी साइड आकर टक्कर मारी है।"

"बाहर आइये और रिवाल्वर जेब में रखें। मैं पुलिस वाला हूं। आपको रिवाल्वर का लाइसेंस दिखाना होगा।"

"लाइसेंस मेरे पास है। मैं अमेरिकन एम्बेसी का...।"

"रिवाल्वर जेब में रखें, गोली चल सकती है।" देवराज चौहान इस बार कठोर स्वर में बोला।

हिटन ने रिवाल्वर जेब में वापस रखी।

"तुम भी...।" देवराज चौहान ने कार चलाने वाले को देखा---

"रिवाल्वर वापस रखो और हाथ स्टेयरिंग पर रख लो।"

उसने ऐसा ही किया।

"सुनो। मुझे कहीं पर जल्दी पहुंचना है, बहुत जरूरी काम---।"

देवराज चौहान ने रिवाल्वर निकाली और हाथ को कार के भीतर कर लिया।

हिटन की आंखें सिकुड़ी।

"तुम दोनों में से कोई भी ना हिले।" देवराज चौहान ने कठोर स्वर में कहा--- "हिलना मत। मैं पुलिस वाला नहीं हूं।"

हिटन जैसे हक्का-बक्का रह गया।

यही हाल कार चलाने वाले का था।

"क...कौन हो तुम?"

तभी फायर की आवाज उभरी। डिग्गी की तरफ से जबरदस्त खड़का हुआ।

"ये क्या...?" हिटन घबरा उठा।

"तुम्हारी कार की डिग्गी का ताला तोड़ा गया है। ताकि दस करोड़ डॉलर का बैग निकाला जा सके।"

"क्या?" हिटन चिंहुक उठा।

"सीधी तरह बैठे रहो।" देवराज चौहान गुर्राया।

कार चलाने वाला स्टेयरिंग पर हाथ रखे, सीट पर बेबस-सा  बैठा था।

देवराज चौहान के हाथों में दबी रिवाल्वर के सामने दोनों ही बेबस थे।

"तुम... तुम जुगल किशोर के आदमी हो?"

"कौन जुगल किशोर--- मैं किसी जुगल किशोर को नहीं जानता।" उसी पल वीरा की आवाज कानों में पड़ी---

"चलो...।"

"हम जा रहे हैं।" देवराज चौहान चेतावनी भरे स्वर में कहा उठा--- "परंतु हमारे दो आदमी यहीं पर हैं। दस मिनट तक तुमने कुछ करने की चेष्टा की तो तुम दोनों को मार देंगे।" इतना कहने के साथ ही देवराज चौहान पलटा और कारों के बीच में से निकलता हुआ तेजी के साथ एक तरफ बढ़ता चला गया। चंद पलों में ही वो एक मोटरसाइकिल के पास था।

वीरा उस भारी सूटकेस को उठाये मोटरसाइकिल के पास पहुंच चुका था। देवराज चौहान ने फुर्ती से मोटरसाइकिल स्टार्ट की तो तब तक वीरा सूटकेस को सीट पर रख चुका था। साथ ही वो खुद भी बैठा और देवराज चौहान का कंधा पकड़ा। उसी पल देवराज चौहान ने मोटरसाइकिल को दौड़ा दिया। ट्रैफिक जाम था वहां, परन्तु मोटरसाइकिल कारों के बीच में से इधर-उधर से रास्ता बनाती फौरन ही नजरों से ओझल होती चली गई।

■■■

80 की स्पीड से मोटरसाइकिल को दौड़ा रहा था देवराज चौहान। पीछे वीरा बैठा था और बीच में मोटा-सा सूटकेस रखा था। वीरा देवराज चौहान को कंधों से थामे ना होता तो कब का नीचे गिर चुका होता। क्योंकि सूटकेस रखने के बाद वीरा के बैठने के लिए वहां जगह नहीं बची थी।

वीरा ने ही देवराज चौहान को बताया कि इस तरफ जाना है। ये सड़क फरीदाबाद की बड़कल लेक की तरफ जाती थी। उस चौराहे को अब तक तीन-चार किलोमीटर पीछे छोड़ आए थे।

तभी पीछे से एक तेज रफ्तार कार उनके पास से से निकली। नारायण टोपी चला रहा था कार को। प्रेम सिंह उसकी बगल वाली सीट पर बैठा था। उन्हें ओवरटेक करते ही प्रेम सिंह मुँह और हाथ बाहर निकाल कर चिल्लाया---

"कार में आ जाओ...।"

इसके साथ ही कार सड़क के किनारे होती हुई रूकती चली गई।

सड़क पर और भी ट्रैफिक निकल रहा था। परन्तु वो नहीं जानते थे कि चार किलोमीटर दूर चौराहे पर क्या घटना घटी है। देवराज चौहान ने कार के पीछे मोटरसाइकिल रोक दी। तब तक प्रेम सिंह कार से निकलकर इनकी तरफ आ गया था। नारायण टोपी भी बाहर निकला और कार की डिग्गी खोल दी।

वीरा और प्रेम सिंह सूटकेस संभाले आये और उसे डिग्गी में रखकर डिग्गी बंद कर दी।

देवराज चौहान ने मोटरसाइकिल को सड़क के किनारे खड़ा रहने दिया। उसके बाद सब कार में बैठे और नारायण टोपी ने कार को वापस मोड़कर दौड़ा दिया।

"दस करोड़ डॉलर अब हमारे हो गये।" प्रेम सिंह खुशी से कह उठा।

"सब के ढाई-ढाई करोड़ डॉलर।" नारायण टोपी खुशी से स्टेयरिंग पर हाथ मारता कह उठा।

"अभी खुश होने की जरूरत नहीं।" देवराज चौहान बोला--- "हम सड़क पर हैं। जब तक...।"

"हमें अब कोई छू भी नहीं सकता। पन्द्रह मिनट में हम ऐसी जगह पर पहुंच जायेंगे,जहां कोई भी नहीं आता।"

"कैसी जगह?" देवराज चौहान ने वीरा को देखा।

"अभी देख लेना...।"

"लेकिन हमें वापस अपने ठिकाने पर जाना चाहिए। नारायण टोपी के घर।" देवराज चौहान बोला--- "क्यों किसी और जगह पर?"

"वो वीरान जगह है, मैंने पहले ही चुन रखी थी।" वीरा मुस्कुरा कर बोला--- "वहां पर हम अपना-अपना हिस्सा लेंगे और अलग हो जायेंगे। काम खत्म हो चुका है। नारायण टोपी के घर जाकर करना भी क्या है।"

"बात तो सही है।" प्रेम सिंह कह उठा।

नारायण टोपी ने भी सिर हिलाया।

देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा।

वीरा रास्ता बताता रहा, नारायण टोपी उसके बताये रास्ते पर कार को दौड़ाता रहा।

■■■

जुगल किशोर उस वीरान जगह पर अकेला मौजूद था। सामने ऊंची उठी पहाड़ियां थीं। इस तरफ सारा जंगल था। कहीं-कहीं तो जंगल गहरा और घना था। पेड़-झाड़ियां और-तो-और इस जंगल में जंगली जानवर भी पाये जाते थे। हिरणों के झुंड। शेर, सांभर, हर तरह के जानवर यदा-कदा देखने को मिल जाते थे। चूंकि ये जंगल का शुरुआती हिस्सा था, इसलिए इस तरफ कम ही जानवर आते थे।

जुगल किशोर इस वक्त ऊंचे-घने पेड़ पर चढ़ा उस रास्ते पर नजर रख रहा था जहां से आने वाले अक्सर भीतर आते थे। चेहरे पर गंभीरता और बेचैनी उछालें मारती दिख जाती थी।

उसी पल उसका मोबाइल बजा।

"हैलो।" जुगल किशोर ने फोन निकाल कर बात की।

"मिस्टर जुगल किशोर...।" हिटन की बौखलाई आवाज कानों में पड़ी--- "तुम... तुम कहां हो?"

"मैं वहीं पर हूँ हिटन साहब, जहां मैंने मिलने...।"

"किसी ने मेरे से दस करोड़ डॉलर छीन लिए। उन्होंने---।"

जुगल किशोर के होंठों पर मुस्कान नाच उठी।

ये ही खबर सुनने को तो वह बेताब हो रहा था। परन्तु दिखावे के तौर पर बोला---

"ये आप क्या कह रहे हैं मिस्टर हिटन?"

"अभी फरीदाबाद चौक पर, उन लोगों ने एक्सीडेंट करके मेरा ध्यान बंटाया और... वो कई लोग थे। डिग्गी के लॉक पर फायर करके, उन्होंने डॉलरों वाला बैग निकाल लिया और भाग गये...।"

जुगल किशोर को ये सब सुनने में बड़ा मजा आ रहा था।

"मुझे लगता है कि तुम फिरौती की रकम देने से कतरा रहे हो। रिचर्ड जैक्सन की मौत देखना चाहते...।"

"मैं सच कह रहा हूं। मेरा यकीन करो। यहां बहुत भीड़ है। पुलिस भी आने वाली है। तुम उनसे पूछ लेना।"

"मुझे अपने दस करोड़ डॉलरों से मतलब है। बेकार की बातों में...।"

"तुमने किसी को बताया कि मैं डॉलर लेकर निकलूंगा?"

"मैं क्यों बताऊंगा।"

"परन्तु वे लोग सब कुछ जानते थे। तभी तो उन्होंने कार को रोका। डिग्गी से सूटकेस निकाला...।"

"यानि कि आप मुझे दस करोड़ डॉलर नहीं दे रहे? सौदा कैंसिल...।"

"न...नहीं।" हिटन की तेज आवाज आई--- "ये बात नहीं। पैसे तो हम तुम्हें देंगे। परन्तु कौन हमसे पैसे छीनकर ले गये...। मैंने तो सोचा वो तुम्हारे आदमी होंगे। तुम इस ढंग से रकम लेना चाहते...।"

"क्या बकवास कर रहे हो?" जुगल किशोर ने झल्लाहट दिखाई--- "तुम मेरी तरफ उंगली उठा रहे हो?"

"गलत मत समझो। मैं बहुत परेशान---।"

"अगर ये सब करके तुम कोई चाल चल रहे हो--- तो उससे तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा।"

"मैं कोई चाल नहीं चल रहा, मैं तो तुम्हें बता रहा हूं कि मेरे साथ क्या हो गया है...।"

"बकवास कर रहे हो तुम। मैं नहीं मानता। इन बातों का मैं ये मतलब निकालूं कि तुम फिरौती नहीं दे रहे?"

"अभी तो नहीं दे सकता। मुझे अमेरिका बात करनी होगी। क्या पता वो दोबारा डॉलर भिजवाते हैं कि नहीं--- मैं तो परेशान...।"

जुगल किशोर ने फोन बंद कर दिया।

उसे इस बात की तसल्ली थी कि सारा काम वैसे ही हो रहा था, जैसे वो चाहता था। फोन जेब में डालकर जुगल किशोर ने चारों तरफ नजर मारी। अब योजना के मुताबिक वीरा उन सबको लेकर यहीं आ रहा होगा। आगे का काम भी अब निपटाना था। जुगल किशोर ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली। मन में बेचैनी थी कि कहीं शेख, हुसैन, जाकिर, मौला उस पर यहां भी निगाह ना रखवा रहे हों। परन्तु ऐसा कुछ दिखा नहीं उसे। वो सच में खतरनाक लोग थे। जुगल किशोर ने मोबाइल निकालकर जैकी को फोन किया, जो कुछ दूर एक अन्य पेड़ पर मौजूद था। फौरन ही जैकी की आवाज कानों में पड़ी---

"क्या एम्बेसी के लोग फिरौती लेकर आ पहुंचे हैं?"

"अभी नहीं...।" जुगल किशोर बोला--- "परन्तु वो आ रहे हैं। फोन पर अभी मेरी उनसे बात हुई है।"

"मतलब कि सब ठीक है।"

"ठीक क्यों न होगा...। तुम सतर्क रहो...।" कहकर जुगल किशोर ने फोन बंद कर दिया। परन्तु अब एक नई चिंता सिर पर सवार होने लगी थी। चिंता का नाम था देवराज चौहान। वो जानता था कि देवराज चौहान खतरनाक इंसान है, परन्तु वीरा ने उसे शूट करना था। नारायण टोपी और प्रेम सिंह को भी शूट करना था। नारायण टोपी और प्रेम सिंह को भी शूट करना था। ताकि 10 करोड़ डॉलरों के हिस्सेदार खत्म हो सकें।

"पता नहीं सब ठीक होगा कि नहीं...।" जुगल किशोर बड़बड़ाया।

■■■

जुगल किशोर से बात करने के पश्चात जैकी ने यूं ही सोहनलाल का नंबर मिलाया।

"फिरौती मिली?" उसकी आवाज सुनते ही सोहनलाल ने पूछा।

"अभी नहीं। परन्तु वो लोग पहुंचने वाले हैं।" जैकी बोला--- "हम उनका इंतजार कर रहे हैं। शिकार का क्या हाल है?"

"बढ़िया है। हाथ-पांव बांधकर एक कोने में डाल रखा है।"

"तुम्हें शायद पता नहीं, रिचर्ड जैक्सन जिस काली जिल्द वाली डॉयरी की बात कर रहा था, जुगल किशोर के पास है।"

"क्या...जुगल किशोर के पास... कैसे?" सोहनलाल के स्वर में हैरानी आ ठहरी थी।

"जुगल किशोर ने तुम्हें बताया नहीं कि वो एम्बेसी गया था? वहां जाकर हिटन से बात की और किसी तरह डॉयरी ले आया।"

"मुझे नहीं पता क्या है। क्या है डॉयरी में?"

"नक्शा जैसा कुछ है। अरबी भाषा में डॉयरी लिखी है। समझ में नहीं आया।"

"मुझे नहीं पता। क्या है डॉयरी में?"

"नक्शा जैसा कुछ है। अरबी भाषा में डॉयरी लिखी है। समझ में नहीं आया।"

"छोड़ो। हमें 10 करोड़ डॉलर के  बारे में सोचना चाहिए। जब काम हो जाये तो मुझे फोन कर बता देना।"

"ठीक है।" कहकर जैकी ने फोन बंद कर दिया।

■■■

सोहनलाल ने फोन बंद करके मेनन को देखा, जो उसे ही देख रहा था।

"वो डॉयरी की क्या बात हो रही थी?" मेनन ने पूछा।

"काली जिल्द वाली डॉयरी, जिसे रिचर्ड जैक्सन मांग रहा था। वो जुगल किशोर ने हासिल कर ली है।" सोहनलाल ने बताया।

"तो वो एम्बेसी गया था?"

"हाँ...।"

"बेवकूफ! अगर फंस जाता तो।"

"सब ठीक है। बात को खत्म करो। 10 करोड़ डॉलर मिल जाने के बाद रिचर्ड जैक्सन को डॉयरी देकर आजाद कर देंगे।"

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जंगल में पहुंच कर, वीरा ने कार रोक दी।

देवराज चौहान आँखें सिकोड़कर बाहर देखने लगा। यहां हर तरफ सन्नाटा था।

प्रेमसिंह गर्दन घुमाकर पीछे, वीरा को देखकर बोला---

"ये तू हमें कहाँ ले आया?"

"पैसा बांटने और अलग-अलग हो जाने के लिए ये जगह बेहतर है।" वीरा मुस्कुराकर बोला।

देवराज चौहान ने भी वीरा को देखा और मुस्कुराकर कह उठा---

"इतने पैसे के साथ हमें इस जगह पर नहीं आना चाहिए था।"

"हम चार हैं, डरते क्यों हो कि कोई आ जायेगा!" वीरा छाती फुलाकर बोला।

"फिर भी इन हालातों में हमें यहां नहीं आना चाहिए था।"

नारायण टोपी स्टेयरिंग डोर खोलता कह उठा---

"डॉलरों वाला सूटकेस निकालो और बंटवारा करो। अपना-अपना हिस्सा लेकर हमें अपने रास्तों पर चल देना चाहिए।"

"ढाई करोड़ डॉलर...।" प्रेमसिंह खुशी से हँसकर बोला--- "मैं सारी जिंदगी ऐश से रहूंगा।"

नारायण टोपी कार से बाहर आ गया था।

"मैं सूटकेस बाहर निकालता हूँ।" प्रेमसिंह ने कहते हुए कार का दरवाजा खोला और बाहर निकल गया।

तभी वीरा ने बैठे-बैठे जेब से रिवाल्वर निकाली और देवराज चौहान की कमर से लगा दी।

देवराज चौहान चौंका।

वीरा के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नाचने लगी।

"डकैती मास्टर देवराज चौहान!" वीरा ने खतरनाक स्वर में कहा--- "कैसे मिजाज हैं?"

देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव आ ठहरे।

"ये क्या कर रहे हो?"

"तुम्हें शूट करने जा रहा हूँ।"

"पागल मत बनो! ये तो...।"

"देवराज चौहान, मेरी यही प्लानिंग शुरू से थी।" वीरा ने कहर भरे स्वर में कहा और ट्रिगर दबा दिया।

'धायं' गोली का तेज धमाका गूंजा। गोली देवराज चौहान की कमर में धंसती चली गई। देवराज चौहान के शरीर को तीव्र झटका लगा। सिर कार की भीतरी बॉडी से जा टकराया। आँखों के आगे लाल-पीले तारे नाचे और गोली के दर्द का एहसास होने से पहले ही वो बेहोशी में डूबता चला गया।

वीरा जो कि दूसरी गोली चलाने जा रहा था, देवराज चौहान को बेसुध होते पाकर ठिठक गया। यही समझा उसने कि देवराज चौहान मर गया है। तभी नारायण टोपी की घबराई आवाज उसके कानों में पड़ी---

"ये तुमने क्या कर दिया है?"

वीरा ने चौंककर नारायण टोपी को देखा, जो कि कार की खुली खिड़की से भीतर देखता हक्का-बक्का खड़ा था।

"इसे क्यों मारा?" प्रेमसिंह, नारायण टोपी के पीछे खड़ा दिखा।

"एक हिस्सेदार कम हो गया।" वीरा सामान्य स्वर में बोला--- "तुम लोगों का हिस्सा बढ़ गया है।"

नारायण टोपी के होंठों से कुछ न निकला।

वीरा ने कार का दरवाजा खोला और बाहर निकल आया।

नारायण टोपी और प्रेमसिंह अभी तक हैरान खड़े थे।

वीरा की आँखों में एकाएक कहर के भाव नाचे। उसने रिवाल्वर सीधी की और एक के बाद एक ट्रिगर दबाता चला गया। तीन गोलियाँ नारायण टोपी को लगीं, दो प्रेमसिंह को। जंगल गोलियों की आवाज से गूंज उठा।

नारायण टोपी और प्रेमसिंह के शरीर जमीन पर गिर चुके थे।

नारायण टोपी की आंखें फटी हुई थीं, जबकि प्रेमसिंह गहरी नींद में लग रहा था। दोनों मर चुके थे।

रिवाल्वर थामें वीरा के होंठों से गुर्राहट निकली और पलटकर उसने कार के भीतर देवराज चौहान को देखा।

देवराज चौहान उसी मुद्रा में बेसुध पड़ा था। कमर पर से खून बह रहा था। कपड़े लाल हो रहे थे।

"मर गये साले...।" वीरा सीधा हुआ और जंगल में हर तरफ नजर मारी। फिर कार की डिग्गी के पास पहुंचा। डिग्गी खुली पड़ी थी और सामने रखा सूटकेस नजर आ रहा था।

"पांच लाख डॉलर...।" वीरा लालच भरे स्वर में बड़बड़ा उठा।

तभी तेज आवाज के साथ एक गोली वीरा के सिर में आ लगी।

वीरा के शरीर को तीव्र झटका लगा। मुँह खुल गया। आँखें फटी की फटी रह गईं। रिवाल्वर हाथ में पकड़ी थी। चंद क्षणों बाद वो गिरा और कार से टकरा कर जमीन पर लुढ़कता चला गया। सिर से निकलता खून जमीन को गीला करने लगा था। अभी भी उसकी आँखें फटी हुई थीं, जैसे अपनी मौत पर यकीन न हुआ हो।

पीछे की झाड़ियों और पेड़ों के बीच में से जुगल किशोर निकलकर वहां आ पहुंचा। रिवाल्वर उसके हाथ में दबी हुई थी। चेहरे पर दरिंदगी और होंठों के बीच वहशी मुस्कान नाच रही थी। फिर वह नाल को दूसरे हाथ से छूकर बड़बड़ाया---

"एक गोली चलने से भी नाल बहुत गर्म हो जाती है।"

पास पहुंच कर उसने वीरा की लाश को देखा।

"दोस्त!" जुगल किशोर बड़बड़ाया--- "यही मेरा प्लान था। मैं तो नोटों का पुजारी हूँ--- फिर तुझे कैसे हिस्सा दे देता। मुझे ये बात कभी भी पसन्द नहीं आती कि कोई मेरे साथ नोटों की हिस्सेदारी करे।"

जुगल किशोर, प्रेमसिंह और नारायण टोपी की लाशों की तरफ बढ़ा।

दोनों की लाशें देखीं।

"बेचारे...।" अगले ही पल चौंका--- "देवराज चौहान कहाँ है?" एकाएक वो सतर्क दिखने लगा था।

जुगल किशोर ने आसपास नजरें दौड़ाईं कि कहीं पर देवराज चौहान की लाश पड़ी हो।

फिर उसे कार के भीतर मौजूद देवराज चौहान दिख गया। दूसरी तरफ कार का दरवाजा खोला और झुककर देवराज चौहान के शांत पड़े चेहरे को देखा, फिर कमीज की तरफ जो खून से रंग चुकी थी, हाथ बढ़ाकर उसने देवराज चौहान की कमीज कमर से उठाई और गोली का निशाना देखकर तसल्ली की। इसके बाद वह कहने लगा---

"डकैती मास्टर तो आसानी से मर गया। वीरा ने सही वक्त पर इसे संभाल लिया होगा, नहीं तो साला मुसीबत खड़ी कर देता।"

तभी जुगल किशोर को अपने पीछे आहट महसूस हुई।

रिवाल्वर थामे जुगल किशोर फुर्ती से पलटा।

चार कदमों के फासले पर जैकी को खड़े पाया। वो हैरान-परेशान सा लाशों को देख रहा था।

जुगल किशोर ने गहरी सांस ली।

"ये...ये क्या है जुगल किशोर?" जैकी के होंठों से निकला।

"मैं तेरे को कोई नई कहानी सुनाकर तेरा वक्त खराब नहीं करूंगा।" जुगल किशोर ने शांत स्वर में कहा।

"क्या मतलब?" जैकी की निगाह लाशों पर से उठी और जुगल किशोर के चेहरे पर जा टिकी।

जुगल किशोर ने रिवाल्वर वाला हाथ सीधा किया। जैकी की आँखें फैल गईं।

"ये...ये क्या...।" उसने कहना चाहा।

धायं...धायं।

दो फायर हुए और दोनों गोलियाँ जैकी की छाती पर जा लगीं।

जैकी के चेहरे पर पीड़ा के भाव आ ठहरे। वो दोनों हाथ फैलाये जुगल किशोर को ऐसी निगाहों से देख रहा था, जैसे उसे हरामजादा कह रहा हो। जबकि जुगल किशोर के चेहरे पर खतरनाक मुस्कान नजर आ रही थी।

तभी जैकी के घुटने मुड़े। वो नीचे बैठता चला गया। फिर एक तरफ नीचे लुढ़क गया।

जुगल किशोर ने आसपास देखा, रिवाल्वर जेब में रखकर कार की खुली डिग्गी के पास पहुंचा। डिग्गी के भीतर रखे सूटकेस को सीधा किया और उसे खोला।

जुगल किशोर की आँखें चमक उठीं।

सूटकेस लबालब डॉलरों की गड्डियों से भरा हुआ था।

"दस करोड़ डॉलर...।" जुगल किशोर हँसकर कह उठा--- "क्या हाथ मारा है जुगल किशोर तूने! मान गये उस्ताद...।"

जुगल किशोर के चेहरे के जर्रे-जर्रे से खुशी टपक रही थी।

"सारी जिंदगी के कलेश कट गये जुगल किशोर तेरे तो। खामखाह ही छोटी-छोटी हेराफेरियों में पड़ा रहा जिंदगी भर।" कहने के साथ ही जुगल किशोर ने कमीज के भीतर हाथ डाला और पैंट में फंसी डॉयरी निकालकर डॉलरों के ऊपर रखी और सूटकेस बंद कर दिया। फिर डिग्गी बंद की। वो देवराज चौहान की लाश नीचे गिराकर इसी कार को ले जाना चाहता था। जिस कार में वो आया था, उसमें पैट्रोल कम था और जुगल किशोर रास्ते में कहीं भी रुकना नहीं चाहता था। जिंदगी बसाने का ठिकाना उसने इंदौर शहर को बनाने की सोची। क्योंकि इंदौर में कभी उसने फसाद खड़ा नहीं किया था।

अपनी खुशी में वो जाकिर, शेख, हुसैन और मौला को भूल गया था, जो उसे कह भी चुके थे कि वो उनकी नजरों में है। परन्तु ये बात तो जैसे जुगल किशोर सिरे से ही भूल गया था।

डिग्गी बन्द करके एक कदम ही आगे बढ़ा था कि ठिठका। किसी के कुछ कदम दूर खड़े होने की उसे झलक मिली थी। उसने फुर्ती से रिवाल्वर निकाली और उधर देखा। अगले ही पल उसके मस्तिष्क को झटका लगा।

वो वजीर खान था, जो उसे रीगल सिनेमा के पास मिला था। हाथ में गन दबी थी।

"कैसे हो मिस्टर जुगल किशोर?"

ये आवाज सुनते ही जुगल किशोर तुरन्त पीछे घूमा।

दस कदम दूर मौला खड़ा उसे देख रहा था।

फिर जुगल किशोर को जाकिर, शेख और हुसैन भी दिखे।

जुगल किशोर के मस्तिष्क में गड़बड़ के धमाके गूंजने लगे। रिवाल्वर थामे बेजान और बेचैन सा बारी-बारी सबको देखने लगा। तभी हुसैन आगे बढ़ा और उसके पास आकर उसकी रिवाल्वर की नाल थामकर बोला---

"रिवाल्वर छोड़ दो मिस्टर जुगल किशोर।"

जुगल किशोर ने रिवाल्वर छोड़ दी। वो अभी तक सकते की हालत में था।

"मैंने तुम्हें कहा था कि हम बहुत खतरनाक हैं और हमारे हाथ बहुत लंबे हैं। हम कहते ही नहीं करके भी दिखाते हैं। देख लो, हमने अपना वादा पूरा निभाया। जब तक तुम्हारे पास दस करोड़ डॉलर नहीं आये, तब तक हम तुम्हारे सामने नहीं आये। ये ही चाहते थे न तुम? तुमने इतना ही वक्त मांगा था हमसे और हमने तुम्हें शराफत से दिया।" हुसैन ने शांत स्वर में कहा।

"इसमें कोई शक नहीं कि तुम महाकमीने इंसान हो। परन्तु हमें इस बात से कोई वास्ता नहीं कि तुम कैसे हो। हमें सिर्फ हमारे काम से मतलब है। हमारा काम यानि कि रिचर्ड जैक्सन...।" मौला हाथों को आपस में रगड़ता कह उठा।

जुगल किशोर ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

उसका दिमाग फिर से चलने लगा था। समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे? वो तो दस करोड़ डॉलर लेकर चंपत हो जाना चाहता था। परन्तु ये लोग उसे छोड़ने वाले नहीं।

"क्या कहते हो मिस्टर जुगल किशोर? रिचर्ड जैक्सन के पास चलें अब?" शेख बोला।

"त...तुम लोग जानते हो कि रिचर्ड जैक्सन कहाँ है।" जुगल किशोर के होंठ खुले।

"तो?"

"वहाँ से ले लो...।"

"अगर इस तरह लेना होता तो कब का ले चुके होते।" जाकिर ने कहा--- "परन्तु हमने तो तीस करोड़ में सौदा तुमसे किया था। क्या तुम बाकी के बीस करोड़ नहीं लेना चाहते?"

"न...नहीं...।"

"पेट भर गया लगता है दस करोड़ डॉलर से...।"

वजीर खान रिवाल्वर थामें पास आ गया था। हुसैन, जुगल किशोर के पास से हट गया।

"मुझे मत मारना।" जुगल किशोर चीखा।

"वजीर खान को शूट करने में बहुत मजा आता है। अगर तुमने रिचर्ड जैक्सन के पास चलने को इंकार किया तो...।"

"मैं...मैं चलूंगा। च...चलो।" जुगल किशोर सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कह उठा।

"मौत के डर से तो भूत भी बात मान जाते हैं।" वजीर खान खतरनाक स्वर में बोला।

"म...मैं वो डॉलरों वाला सूटकेस साथ ले...।"

"वो तुम वापस आकर भी ले सकते हो।"

"वापस आकर?" जुगल किशोर हड़बड़ाया--- "तब तक तो इसे ले कोई और ले जायेगा।"

"इस जगह पर कोई नहीं आयेगा। जंगल है। वीरान है और फिर हमें तुम्हारी चीजों से कोई मतलब भी नहीं।" वजीर खान ने दांत भींचे खतरनाक स्वर में कहा और गन की नाल उसकी छाती पर रख दी--- "ये सूटकेस यहीं रहेगा और तुम हमारे साथ रिचर्ड जैक्सन के पास तक चलोगे। उसके बाद तुम वापस आकर ये सूटकेस लेकर कहीं भी जा सकते हो। इंकार किया तो अभी मारे जाओगे।"

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