मोना चौधरी अगले दिन दस बजे ही पारसनाथ के रेस्टोरेंट पहुंच गई। इस वक्त रैस्टोरेंट खाली था और वहां सफाई हो रही थी। वो सीढ़ियां तय करके ऊपर पहुंची।
पारसनाथ बैड टी ले रहा था। उसके चेहरे से लग रहा था कि वो अभी नींद से उठा है। मोना चौधरी को देखते ही उसने इन्टरकॉम पर चाय के लिए कहा। तभी फोन की बेल बज उठी
“हैलो।” पारसनाथ ने रिसीवर उठाया। दूसरी तरफ से जो कहा गया, वो पारसनाथ ने सुना। उसके बाद चाय का प्याला रखकर पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा।
“अभी इस काम से पीछे मत हटो। कोई खबर अवश्य मिलेगी। फोन पर मुझे बता देना, कोई खास बात हो तो।” इसके साथ ही पारसनाथ ने रिसीवर रखकर मोना चौधरी को देखा।
मोना चौधरी उसे ही देख रही थी।
“मैंने रात ही अपने दो आदमियों को महाजन की तलाश पर लगा दिया था।” पारसनाथ ने चाय का प्याला उठाते हुए सपाट स्वर में कहा- “अभी उन्हीं का फोन था। महाजन की कोई खबर नहीं मिली।”
“पारसनाथ!” मोना चौधरी का चेहरा सख्त हो गया- “महाजन, विक्रम दहिया के बारे में छानबीन कर रहा था। वो कहीं भी गायब नहीं हो सकता। उसकी खबर मिलनी चाहिये।”
“महाजन के साथ विक्रम दहिया की भी कोई खबर नहीं। कुछ दिन पहले वो अकेला ही कहीं गया था। उसके बाद वापस नहीं आया। मेरे आदमी इन दोनों की खोज-खबर पाने की कोशिश में हैं और मैं खुद महाजन की तलाश में निकलने जा रहा हूं।” पारसनाथ की आवाज में गम्भीरता थी।
“महाजन, विक्रम दहिया या उसके आदमियों के हाथों में लग गया हो सकता है।” मोना चौधरी का स्वर सख्त ही था- “इसके अलावा वो कहीं और गायब नहीं हो सकता। वो उनकी कैद में होगा या...”
आगे के शब्द मोना चौधरी ने अधूरे छोड़ दिए।
पारसनाथ का चेहरा और भी सख्त हो गया।
“अगर महाजन ठीक है तो मैं हर हाल में उसे ले आऊंगा।” चाय समाप्त करके पारसनाथ उठ खड़ा हुआ- “ये जानकर मुझे अजीब-सा लगा कि सतीश ठाकुर का मामला बख्तावर सिंह जैसे इन्सान से वास्ता रखता है और ललित परेरा-सावरकर, दोनों ही उसके लिए काम करते थे। तुम्हारी जान के पीछे बख्तावर सिंह ही है।”
“बख्तावर सिंह की मुझे परवाह नहीं ।” मोना चौधरी भिंचे स्वर में कह उठी- “अव मुझे मालूम हो गया है कि मेरे पीछे कौन है। ऐसे में मेरे लिए पहले जैसा खतरा नहीं था, परन्तु मामला और भी उलझ गया है। सतीश ठाकुर ने केबिन की दीवार पर बख्तावर सिंह, सावरकर के साथ तीन ट्रकों के स्कैच भी बनाये हैं। ट्रकों के स्कैच बनाने के पीछे अवश्य कोई खास वजह होगी, जिसके बारे में जानना जरूरी है।”
वेटर मोना चौधरी के लिए चाय रख गया।
पारसनाथ कुछ कहने लगा कि तभी इंस्पेक्टर मोदी ने भीतर प्रवेश किया। वो सादे कपड़ों में था।
“ऊपर आने से पहले तुम्हें आने की खबर करनी चाहिये। पारसनाथ ने मोदी को देखा।
“सॉरी।” मोदी मुस्करा पड़ा- “भविष्य में मैं इस बात का ध्यान रखूँगा।”
“तुम बातें करो।” पारसनाथ ने मोना चौधरी से कहा- “मैं तैयार होता हूं।” इसके साथ ही वो कमरे से बाहर निकल गया।
मोना चौधरी ने मोदी को देखा।
मोदी ने सिग्रेट सुलगाकर गहरी सांस ली फिर बोला।
“ललित परेरा के भाई, अविनाश परेरा के बारे में मैने छानबीन की है। वो ललित परेरा का भाई नहीं है। सच्चे-झूठे कागजों द्वारा उसने साबित किया है कि वो ललित परेरा का भाई है।”
“मोदी। सच्चे-झूठे कागजों से ये बात साबित नहीं की जा सकती।”
मोना चौधरी ने उसे घूरा।
“कुछ भी साबित करना कठिन नहीं है।” मोदी ने कश लेकर गम्भीर स्वर में कहा- “मेरे पास इस बात की पक्की रिपोर्ट है कि पुलिस को, अविनाश परेरा ने तगड़ा पैसा दिया है। ऐसे में पुलिस ने अविनाश परेरा के सामने आने वाली सारी परेशानियों को दूर कर दिया है। ये भी सुनने को मिला है कि धारा होटल जल्दी ही अविनाश परेरा के नाम ट्रांसफर हो जायेगा। इसलिए कि वो ललित परेरा का भाई है।”
“मतलब कि तुम्हारे डिपार्टमैंट ने दिल खोलकर अविनाश परेरा की सहायता की।”
“हां।”
“तुम अगर इस मामले में तगड़ा एतराज उठाओ तो, अविनाश परेरा का मामला खुल सकता है।”
“मैं पागल नहीं हूं।” मोदी ने मोना चौधरी को देखा- “अगर मैंने ऐसा कुछ करने की कोशिश की तो मेरे डिपार्टमैंट वाले ही मुझे गोली मार देंगे। पुलिस वाला अगर, पुलिस वालों की करतूतों का पर्दाफाश करने लगे तो उसे जिन्दा नहीं छोड़ा जाता। उधर अविनाश परेरा भी मुझे तुरन्त खत्म करवा देगा। ये बड़ा मामला है। इसमें बड़े ऑफिसर शामिल हैं। मैं किसी भी कीमत पर इस मामले में दखल नहीं दे सकता।”
मोना चौधरी सोच भरी निगाहों से मोदी को देखती रही।
“सुना है कल रात निगाह क्लब में मालिक सावरकर को उसके आफिस में शूट कर दिया गया।” मोदी बोला।
“हां।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा- “मैंने ही उसके माथे में गोली मारी थी।”
“तुमने?” मोदी चौंका।
“शक है तुम्हें?”
“सुना तो ये है कि कोई चालीस बरस की औरत जो...”
“साड़ी पहने थी। वो सावरकर को गोली मार गई।” मोना चौधरी ने टोका।
“हां।” मोदी के होंठों से निकला- “क्या वो तुम थीं?”
“मैं ही थी वो।”
मोदी कई पलों तक मोना चौधरी को देखता रहा।
“सावरकर को क्यों मारा?” मोदी ने गहरी सांस ली।
कुछ पलों की खामोशी के बाद मोना चौधरी कह उठी।
“मोदी! सतीश ठाकुर की हत्या का मामला, जिसे कि मैं मामूली समझ रही थी। वो मामूली नहीं बल्कि बहुत ही खतरनाक मामला है। जो कि हर किसी को नहीं बताया जा सकता।”
“मेरे ख्याल में मैं हर किसी में नहीं आता।”
“तुम पुलिस वाले हो।” मोना चौधरी ने उसकी आंखों में देखा- “और पुलिस वालों को मेरी जरूरत है।”
“ये बात ठीक है।” मोदी ने कश लेकर धीमे स्वर में कहा- “लेकिन मामला सतीश ठाकुर से वास्ता रखता है जो कि मेरी खास पहचान वाला था। इस मामले में तुम मुझ पर पूरा भरोसा कर सकती हो।”
“तुम्हें रिश्वत लेने की आदत होगी और इस मामले में कोई भी तुम्हें नोट दिखा सकता है कि तुम मामले से पीछे हट जाओ या मेरी जान ले लो।” मोना चौधरी ने सामान्य स्वर में कहा।
“मोना चौधरी। क्या मैं तुम्हें ऐसा लगता हूं।”
“ये तुम जानो।”
“कम से कम मैं तुमसे धोखेबाजी नहीं कर सकता।” मोदी के होंठों पर मुस्कान उभरी- “तुम्हारे साथ कुछ बुरा किया तो कमीश्नर दीवान मेरा बुरा हाल कर देंगे। तुम कभी उनके काम आई थीं और।”
“तो तुम्हें वो बात अभी तक याद है।”
“पुलिस वाले ऐसी बातें कभी नहीं भूलते।”
मोना चौधरी ने कुछ नहीं कहा।
चुप्पी लम्बी हुई तो मोदी कह उठा।
“सतीश ठाकुर का सारा मामला तुम मुझे बता सकती हो।”
“मुझे बताने में कोई हर्ज नहीं। लेकिन सुनने के बाद, इस मामले में तुम्हें मेरे कुछ काम करने होंगे। उसके लिए तुम्हें कानून के दायरे से बाहर भी पांव रखना पड़ सकता है।” मोना चौधरी गम्भीर थी।
“तुम्हारे फायदे के लिए?”
“नहीं। इसमें मेरा कोई फायदा नहीं। इसमें पुलिस का फायदा है। देश का फायदा है। फायदा और भी बढ़ सकता है। मेरी दिलचस्पी सतीश ठाकुर के हत्यारे तक पहुंचने की है। उसे पहचान चुकी हूं मैं।”
“ओह!” मोदी के होंठ सिकुड़े- “तुम्हारी सहायता करके, मैं किसी की नज़र में आऊंगा?”
“शायद नहीं।”
“तो तुम्हारी सहायता करने में मुझे कोई एतराज नहीं ।” मोदी ने पक्के स्वर में कहा- “बताओ, क्या बात है?”
मोना चौधरी के चेहरे पर गम्भीरता नज़र आने लगी।
“बख्तावर सिंह को जानते हो?”
“बख्तावर सिंह?”
“मतलब कि नहीं जानते।” मोना चौधरी की निगाह, मोदी के चेहरे पर जा टिकी।
“नाम।” मोदी की आंखें सिकुड़ चुकी थीं- “नाम तो सुना लगता है। याद नहीं आ रहा कि...”
“ये बख्तावर सिंह पाकिस्तानी मिल्ट्री में कोई ऊंचा ओहदा...”
“हां।” मोदी के होंठों से निकला- “देश में तोड़-फोड़ के सिलसिले में, दो-चार लोगों को अलग-अलग वक्त पर पकड़ा था। उन्होंने बख्तावर सिंह का नाम ही लिया था कि...”
“अच्छा हुआ तुम्हें याद आ गया। उसके बारे में तुम्हें बताने की जरूरत नहीं पड़ी। मैं उसी बख्तावर सिंह की बात कर रही हूं। सतीश ठाकुर की हत्या, बख्तावर सिंह के इशारे पर हुई है।”
“क्या?” मोदी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे। नज़रें मोना चौधरी के चेहरे पर जा टिकी- “बख्तावर सिंह का सतीश ठाकुर से क्या वास्ता। इन दोनों में कोई वास्ता।”
“जब सारी बात सुनोगे तो किसी भी सवाल को पूछने की जरूरत महसूस करोगे।” मोना चौधरी के चेहरे पर छाई गम्भीरता स्पष्ट नज़र आ रही थी- “दोनों में कोई वास्ता नहीं था। और वास्ता पैदा हो गया।”
मोदी की प्रश्नभरी निगाह, मोना चौधरी के चेहरे पर जा टिकी।
मोना चौधरी ने सतीश ठाकुर से वास्ता रखता सारा मामला बताया। ललित परेरा के बारे में बताया। रात क्लब में केबिन और सावरकर से मुलाकात के बारे में फिर उसे शूट करने के बारे में बताया। मोदी गम्भीरता से मोना चौधरी का एक-एक शब्द सुनता रहा। मोना चौधरी के चुप होते ही वहां गहरी चुप्पी सी छा गई।
तभी पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया। वो तैयार था।
दोनों की निगाह पारसनाथ की तरफ उठी।
“अगर मेरी जरूरत न हो तो मैं जाऊं मोना चौधरी?” पारसनाथ बोला।
“मेरे काम में तुम्हारी कोई जरूरत नहीं।” मोना चौधरी ने कहा। “अगर मुझे कुछ मालूम हो तो, उस स्थिति में तुमसे कैसे बात होगी?” पारसनाथ ने पूछा।
“राधा को खबर दे देना। मैं उसे फोन कर लूंगी।”
पारसनाथ बाहर निकल गया।
मोना चौधरी ने मोदी को देखा।
“मेरे ख्याल में अब तुम सारे हालातों से वाकिफ हो गये होंगे।”
“हां।” मोदी के चेहरे पर गम्भीरता नज़र आ रही थी।
“मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में कोई बड़ा या खास काम करने आया है।” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द पर जोर देकर कहा- “इस मामले को पुलिस नहीं संभाल सकती। जब तक देश का खुफिया विभाग, बख्तावर सिंह के मामले में काम शुरू करेगा, तब तक बख्तावर सिंह अपना काम करके इस देश से बाहर भी निकल जायेगा। बख्तावर सिंह जैसे इन्सान की घुसपैठ देश के हर महत्वपूर्ण विभाग में होगी। यानि कि बख्तावर सिंह की तरफ चुप्पी के साथ बढ़ा जाये तो, शायद वो हाथ लग जाये।”
“लगता है बख्तावर सिंह के साथ तुम्हारी कोई दुश्मनी है।” मोदी के होंठों से निकला।
“है भी नहीं भी।” मोना चौधरी की आवाज कड़वापन आ गया- “उसके साथ कई बार मेरी झड़प हो चुकी है। मेरे हाथों वो कई बार नुकसान उठा चुका है। मुझे खत्म करने का मौका अगर बख्तावर को मिला तो वो चूकेगा नहीं।”
मोदी, मोना चौधरी को देखता रहा। मोना चौधरी पास रखे फोन का रिसीवर उठाया और मिस्टर पहाड़िया का सीक्रेट नम्बर मिलाया।
फौरन बाद ही मिस्टर पहाड़िया की आवाज कानों में पड़ी।
“यस?”
“मैं बोल रही हूं।” मोना चौधरी का लहजा सामान्य था।
“ओह, बेटी तुम। कैसी हो?” मिस्टर पहाड़िया की आवाज मोना चौधरी के कानों में पड़ी।
“ठीक हूं। बख्तावर सिंह इस वक्त हिन्दुस्तान में है। आपको मालूम है?”
“हां। ये खबर है मेरे पास-।” मिस्टर पहाड़िया का गम्भीर स्वर सुनाई दिया- “लेकिन वो कहां पर है। इस बात की कोई खबर नहीं है। मेरे एजेन्ट बख्तावर सिंह की खबर पाने की कोशिश कर रहे हैं।”
“ये भी नहीं मालूम कि बख्तावर सिंह किस काम के लिए हिन्दुस्तान आया है?”
“नहीं।
लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रही।”
“इत्तफाक से ही मैं बख्तावर सिंह के मामले में दखल दे बैठी हूं। हिन्दुस्तान में वो कहां है। मुझे उसकी तलाश है। मैंने सोचा कि शायद आपको इस बारे में जानकारी हो।”
“बख्तावर सिंह के बारे में कोई खबर मिली तो तुम्हें फोन कर दूंगा। लेकिन तुम।”
“इससे ज्यादा मैं अभी आपसे बात नहीं कर सकती। मेरे पास कोई पुलिस वाला बैठा है।”
“ओह!”
“मैं बाद में फुर्सत मिलने पर बात करूंगी।” कहने के साथ ही मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।
“किससे बात कर रही थीं तुम?” मोदी के होंठों से निकला।
“तुम अपनी बात करो। सब कुछ तुमने सुना। अब इस मामले में क्या करना चाहोगे?” मोना चौधरी बोली।
मोदी ने कश लेकर सिग्रेट ऐशट्रे में डाली फिर कहा।
“इस मामले के बारे में मुझसे ज्यादा बेहतर तुम सोच सकती हो। क्योंकि इस पर तुम पहले ही काम कर रही हो।”
“मैंने सोच रखा है कि क्या करना है।”
“जो व्यक्ति अविनाश परेरा बना हुआ है। उसका अपहरण करना है।” कहते हुए मोना चौधरी के दांत भिच गये।
मोदी की आंखें फौरन सिकुड़ीं।
“तुम पुलिस वाले से अपहरण की बात कर रही हो।” मोदी कह उठा।
“अब पुलिस वाले बन गये और सतीश ठाकुर की मौत को भूल गये। ये भूल गये कि ये मामला बख्तावर सिंह जैसे, देश के दुश्मन से वास्ता रखता है, जो यहां मौजूद है और।”
“ठीक है। ठीक है। मैं समझ गया।” मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा- “अविनाश परेरा के अपहरण से कोई फायदा हो सकता है। इस बारे में अच्छी तरह सोच-समझ लो कि...”
“बहुत फायदा हो सकता है।” कहते हुए मोना चौधरी के दांत भिंच गये- “धारा होटल और उसके धंधे बख्तावर सिंह ने जिस व्यक्ति के हवाले किए है। जिसे अविनाश परेरा बनाया है, वो यूं ही राह चलता नहीं होगा। बख्तावर सिंह का खास होगा। इस हद तक तो खास होगा कि, उसे मालूम
हो कि बख्तावर सिंह कहां मिलेगा। शायद वो ये भी जानता हो कि बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में किस काम की खातिर मौजूद है।”
मोदी ने समझने वाले ढंग में सिर हिलाया।
“लेकिन अविनाश परेरा का अपहरण करना आसान काम नहीं।” मोदी बोला।
“तुम्हारे साथ होने पर ये काम आसान हो सकता है।”
मोना चौधरी ने मोदी को बताया कि कैसे आसानी से उसका अपहरण किया जा सकता है।
मोदी के चेहरे पर गम्भीरता थी।
“शायद ऐसे आसानी से कामयाबी मिल जाये।” मोना चौधरी की बात सुनकर मोदी बोला।
“अगर अंधेरा होने पर ये काम किया जाये तो ज्यादा बेहतर रहेगा।” मोना चौधरी ने कहा।
“ठीक है। शाम ढलते ही तुम कहां मिलोगी?”
“धारा होटल के बाहर, नज़र मार लेना।”
“अविनाश परेरा पर हाथ डालने में कामयाब रहे तो, उसे रखने के लिए जगह चाहिये।”
“उसकी तुम फिक्र मत करो। सब इन्तजाम है।”
मोदी उठ खड़ा हुआ।
“शाम को मुलाकात होगी।”
“किसी को बता मत देना कि तुम क्या करने जा रहे हो।”
“बेवकूफों वाली बात मत कहो। पुलिस वाला हूं। कब क्या करना-कहना है। मुझे समझाओ मत।”
मोदी के जाने के बाद, मोना चौधरी इस सारे मामले के पहलू पर गौर करने लगी। आखिरकार इसी नतीजे पर पहुंची कि बख्तावर सिंह जिस काम की खातिर हिन्दुस्तान आया है, वो काम सावरकर द्वारा पूरा करवाने जा रहा था, परन्तु सावरकर के न रहने पर वो अपने दूसरे आदमी से काम करवायेगा और दूसरा आदमी अविनाश परेरा भी हो सकता है। लेकिन जो भी हो, बख्तावर सिंह, सावरकर की हत्या के बाद सतर्क हो गया होगा। वो किसी काम की खातिर हिन्दुस्तान में है। ऐसे में वो अपने काम को पूरा करना चाहेगा। उससे झगड़ा करके वक्त खराब नहीं करना चाहेगा। हिन्दुस्तान में अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं कराना चाहेगा। शायद यही वजह है कि बीते एक-दो दिन में उस पर हमले कम हो गये थे। शायद उसकी तरफ से बख्तावर सिंह ने वक्ती तौर पर अपना ध्यान हटा दिया था और पूरी तवज्जो अपने काम की तरफ लगा दी थी।
तभी फोन की बेल बजी।
“यस।” मोना चौधरी ने रिसीवर उठाया।
“बेटी!” मिस्टर पहाड़िया की आवाज कानों में पड़ी- “अब फुर्सत में हो क्या?”
“आप?” मोना चौधरी दो पलों के लिए सकपका सी गई- “आपको कैसे पता चला कि मैं इस नम्बर पर हूं?”
“कुछ देर पहले तुमने इसी नम्बर से मुझे फोन किया था।”
“ओह!” मोना चौधरी जानती थी कि मिल्ट्री सीक्रेट सर्विस के चीफ मिस्टर पहाड़िया के यहां आने वाली फोन कॉल फौरन दर्ज हो जाती थी कि, वो किस नम्बर से की गई है।
“इस वक़्तअकेली हो”
“यस मिस्टर पहाड़िया।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“तो बख्तावर सिंह के बारे में वो सब बताओ जो तुमने इन दिनों जाना है।”
मोना चौधरी ने सब कुछ बता दिया कि वो कैसे इस मामले में आई।
“तो ये नहीं मालूम कि वो किस काम के लिए हमारे देश में आया है।” मिस्टर पहाड़िया का स्वर गम्भीर था।
“मैं यही बात जानने की कोशिश कर रही हूं।”
“कुछ देर पहले ही पाकिस्तान में मौजूद हमारे एजेन्ट ने खबर दी है कि बख्तावर सिंह बहुत ही खास काम की खातिर हिन्दुस्तान गया है। वो पाकिस्तान से ही इस बारे में मालूम करने की कोशिश कर रहा है कि बख्तावर सिंह किस काम के फेर में है।” मिस्टर पहाड़िया की आवाज कानों में पड़ी।
“आपके एजेन्ट ने ये बताया कि बख्तावर सिंह हिन्दुस्तान में कहां मिलेगा?”
“इस बारे में कोई खबर नहीं। मैंने तुम्हें ये कहने के लिए फोन किया था कि दलावर सिंह के मामले में तुम्हें, किसी तरह की सहायता की जरूरत हो तो, मुझे तुरन्त कह देना।”
“जी। मैं ऐसा ही करूंगी।”
“कोई खास बात हो तो मुझे अवश्य बताना।”
“ओ०के० मिस्टर पहाड़िया।”
लाईट कट गई। मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।
मोना चौधरी को इस बात का स्पष्ट अहसास हो चुका था कि बख्तावर सिंह इस बार जरूरत से ज्यादा ही सतर्कता इस्तेमाल कर रहा है। मतलब कि वो किसी बहुत ही खास काम को अंजाम दे रहा है। दूसरे ही पल मोना चौधरी का ध्यान महाजन की तरफ चला गया।
तीन दिन से महाजन की तरफ से कोई खबर नहीं आई थी। यानि कि वो विक्रम दहिया के जाल में फंस चुका है। अगर महाजन सलामत है तो, मोना चौधरी को विश्वास था कि विक्रम दहिया से उसे वापस ले आयेगी। पारसनाथ महाजन की खोज-खबर लेने गया था। लेकिन देर करना भी ठीक नहीं था। वो लोग भी आखिर कब तक महाजन को कैद में रखेंगे।
लम्बी सोचों के बाद मोना चौधरी ने अपनी खास पहचान वाले को फोन करके विक्रम दहिया का फोन नम्बर लिया और उसका नम्बर मिलाने लगी।
दो-तीन बार मिलाने के बाद लाईन मिली। बात हुई।
“हैलो।” दूसरी तरफ से रिसीवर उठाया गया।
“विक्रम दहिया के यहां से बात कर रहे हो।” मोना चौधरी ने सीधे-सीधे पूछा।
क्षणिक चुप्पी के बाद आवाज आईं।
“हा। तुम कौन हो?”
“मेरा नाम मोना चौधरी है। मैं विक्रम दहिया से फौरन बात करना चाहती हूं।”
“मोना चौधरी?” उधर आने वाले स्वर में उलझान आ गई।
“नाम सुन रखा होगा।”
“समझा। तो तुम वो ही मोना चौधरी हो।” स्वर से उलझन दूर हो गई थी- “क्या बात करना चाहती हो?”
“तुम विक्रम दहिया हो?”
“नहीं।”
“मैं सिर्फ विक्रम दहिया से ही बात करना चाहती हूं।”
“दहिया साहब से तुम्हारी बात नहीं हो पायेगी। वो शहर से बाहर गये हुए हैं।”
“दूसरा फोन नम्बर दे दो।” मोना चौधरी ने शब्दों पर जोर दिया- “मेरा, दहिया से बात करना बहुत जरूरी है।”
“सॉरी। तुम्हारा मैसेज शायद उन तक पहुंचाया जा सकता है। इस वक्त इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता।”
मोना चौधरी ने होंठ भींच लिए।
“कुछ और कहना है तुमने?”
“दहिया कब लौटेगा?”
“ऐसी बातें दहिया साहब से पूछने की इजाजत नहीं है हमें।” से आवाज आई।
“तुम्हारे पास इस बात का अधिकार है कि मुझसे कुछ खास बातें कर सको।” मोना चौधरी ने कहा।
“जरूरत समझूंगा तो तुम्हें, तुम्हारी बात का जवाब अवश्य दूंगा। मेरे अधिकार की बात मत करो।”
कुछ पल मोना चौधरी के होंठ भिंचे रहे फिर कह उठी।
“मेरा खास साथी, दोस्त नीलू महाजन को जानते हो?”
“हां।” कानों में पड़ने वाले स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था- “इस वक्त वो हमारी ही कैद में है।”
“क्या?” मोना चौधरी के होंठों से निकला- “तुम्हारी कैद में....?”
“तुम तो ऐसे हैरान हो रही हो जैसे, मैंने बहुत ही अजीब बात कह दी हो।” आने वाली आवाज शांत थी।
“क्यों कैद किया उसे?”
“तुमने नीलू महाजन के बारे में क्यों पूछा। क्या कहना चाहती थीं तुम?”
“पूछना चाहती थी कि कहीं वो विक्रम दहिया की कैद में तो नहीं है। वो जान लिया।”
“बंद करूं।”
“मैं जानना चाहती हूं कि महाजन को क्यों कैद किया?”
“तुम्हें अवश्य मालूम होगा।”
“मैं तुमसे रही हूं।”
“मेरे पास इसका जवाब नहीं है।”
“विक्रम दहिया से बात करके मुझे जवाब दो।” मोना चौधरी ने कहा।
“दहिया साहब से बात करने में वक्त लगेगा।”
“कब फोन करूं?”
“दो-तीन घंटे बाद फोन करना।” कहने के साथ ही उधर से लाईन काट दी गई।
मोना चौधरी ने रिसीवर रखा। भिंचे हुए होंठ। कठोर चेहरा। आंखों में सोच के भाव।
तो महाजन विक्रम दहिया की कैद में पहुंच चुका था? यानि कि विक्रम दहिया को वास्तव में महाजन पर किसी तरह का शक-शक?
मोना चौधरी की सोचें रूकीं। दहिया जैसे इन्सान को महाजन पर शक हो गया था और महाजन उसकी हद में था तो वो उसे कैदे क्यों करेगा? सीधे-सीधे उसे खत्म करवा देगा।
मोना चौधरी की सोचें रफ्तार पकड़ने लगीं। महाजन को कैद में रखकर, जिन्दा रखने के पीछे अवश्य कोई खास बात है। यकीनन इस बात में दहिया का कोई मतलब हल होता है?
मोना चौधरी को महसूस होने लगा कि मामला और भी उलझ गया है। इधर बखावर सिंह के बारे में नहीं समझ पा रही थी कि वो हिन्दुस्तान में किस फेर में है और इधर महाजन विक्रम दहिया जैसे खतरनाक इन्सान की कैद में जा पहुंचा है और दोनों तरफ के मामलों को उसने ही सुलझाना था।
जबकि तीसरा वो भी था जिसने विक्रम दहिया की हत्या के लिए सत्तर लाख रुपये का उसे ठेका दिया था।
☐☐☐
मोना चौधरी ने वहीं लंच लिया और बैड पर जा लेटी। आंख लग गई।
ज उठी तो शाम के चार बजने जा रहे थे। उसने रिसीवर उठाकर दहिया का नम्बर मिलाया। उसी व्यक्ति की आवाज कानों में पड़ी, जिससे पहले बात की थी।
“दहिया से पूछा कि उसने महाजन को क्यों कैद किया है?” उसकी आवाज पहचानते ही, मोना चौधरी ने पूछा।
“दहिया साहब का कहना है कि जब मोना चौधरी उसकी हत्या का ठेका ले सकती है तो तुम्हारे खिलाफ वो जो कुछ भी करें, वो कम है।” शांत स्वर मोना चौधरी के कानों में पड़े।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये।
“दहिया इतने यकीन के साथ कैसे कह सकता है कि मैंने उसकी हत्या का...”
“दहिया साहब की कही बात झूठी नहीं होती मोना चौधरी। आगे बात करो।”
“मैं चाहती हूं, तुम लोग महाजन को छोड़ दो।”
“अन्दर की बात है। नो नहीं चाहिये, फिर भी कह देता हूं। मेरा ख्याल है कि दहिया साहब कभी भी कह सकते हैं कि नीलू महाजन को शूट कर दिया जाये।” सख्त शब्द कानों में पड़े।
“दहिया का दिमाग खराब हो गया है।” मोना चौधरी के होंठों से तेज स्वर निकला- “महाजन को कुछ नहीं होना चाहिये। मैं यकीन दिलाती हूं कि दहिया की जान लेने की कोशिश नहीं करूंगी।”
“तुम्हारे यकीन का एतबार कौन करेगा।”
“दहिया से मेरी बात कराओ। मैं...”
“अभी तो दहिया साहब से तुम्हारी बात नहीं हो सकती। वो शहर से बाहर है। फिर भी मैं उन्हें ये कह दूंगा कि अगर महाजन को खत्म करने का इरादा हो तो, एक बार मोना चौधरी से बात कर लीजिये।”
मोना चौधरी के होंठ भिंच गये।
“कब तक आयेगा दहिया?”
“वो तो मन के राजा है। उन्हें पूछने वाला कोई नहीं। हो सकता है कि अभी आ जायें या फिर दस दिन न अयें। लेकिन तुम्हारा मैसेज अभी उन तक पहुंच जायेगा और मैं आशा करता हूं कि बार-बार फोन करके तुम मुझे परेशान नहीं करोगी। कोई फायदा नहीं होगा।”
“फोन तो मुझे करना ही पड़ेगा महाजन के लिए।”
“एक-दो दिन बाद फोन करना । खास जरूरी हुआ तो हम तुमसे सम्बन्ध बना लेंगे।”
“मुझसे ? मुझसे कहां मिलोगे? क्या मालूम मैं कहां।”
“तुम जहां भी जाओ, हमारे हाथों से दूर नहीं हो।” इसके साथ ही लाईन कट गई।
मोना चौधरी रिसीवर पकड़े खड़ी रह गई।
इन शब्दों से ये भी जाहिर हो गया था कि विक्रम दहिया के आदमी उस पर नज़र रख रहे हैं। ऐसा है तो दहिया ने उसे खत्म क्यों नहीं करवाया? वो तो दहिया को खत्म करने की एवज़ में पैसे भी ले चुकी है। तो फिर देर किस बात की?
इतना कुछ होने के बाद दहिया रुकने वाला नहीं।
वो क्यों रुका हुआ है?
उलझ गई थी मोना चौधरी।
मोना चौधरी ने रिसीवर रखा। सोचों में डूब उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। ये बात भी उसे समझ नहीं आ रही थी कि दहिया को कैसे पता चला कि वो उसकी हत्या की तैयारी कर रही है। जबकि ये बात महाजन के अलावा किसी को नहीं मालूम थी और महाजन दहिया को ये बात बतायेगा नहीं?
☐☐☐
शाम के छः बजे पारसनाथ वापस लौटा।
मोना चौधरी आराम करने की मुद्रा में सोफे पर पसरी हुई थी।
उसने पारसनाथ को देखा। लेकिन उठी नहीं। पारसनाथ ने ठिठककर सिग्रेट सुलगाई और कुर्सी पर बैठता हुआ सपाट स्वर में कह उठा।
“महाजन इस वक्त विक्रम दहिया की कैद में है। बहुत ही कठिनता से ये मालूम हो सका है। इसके लिए किसी के द्वारा, दहिया के खास आदमी से, मैंने बात की।”
मोना चौधरी ने पुनः पारसनाथ को देखा।
“इत्तफाक से महाजन के बारे में मुझे मालूम हो गया है।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा।
पारसनाथ की नजरें, मोना चौधरी के चेहरे पर ठहर गईं।
“कैसे मालूम हुआ?”
मोना चौधरी ने बताया कि कैसे मालूम हुआ और क्या मालूम हुआ।
“मैं पक्के विश्वास के साथ कह सकती हूं कि विक्रम दहिया, महाजन को कैद करके, अपने ही किसी फेर में है। वरना वो इस तरह महाजन को कैद न करता। और इतनी आसानी से मुझे बताया भी न जाता। दहिया किस चक्कर में है? ये बात किसी मुनासिब वक्त पर दहिया ही बतायेगा।” मोना चौधरी ने अपने शब्दों पर जोर देकर कहा।
पारसनाथ अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा।
“तुम क्या कहते हो इस बारे में?” मोना चौधरी ने पूछा।
“मैं सोच रहा हूं कि महाजन कहां कैद है? मालूम करके, उसे वहां से छुड़ाया।”
“नहीं।” मोना चौधरी ने फौरन इन्कार में सिर हिलाया- “ये तो और भी गलत हो जायेगा। इससे महाजन को ज्यादा खतरा पैदा हो सकता है। अगर वो महाजन को खत्म नहीं करना चाहते, तो भी ये सब होता पाकर, महाजन को शूट कर देंगे और फिर ये मत भूलो कि मैं भी दहिया के आदमियों की नज़रों में हूं। दहिया के किसी ठिकाने पर, हमने कुछ करने की कोशिश की तो, जाने कहां से निकलकर दहिया के आदमी मुझे भून देंगे। अब वो शायद तुम पर भी नज़र रखे। यानि कि हम जो भी करेंगे, उसे पहले ही खबर हो जायेगी।”
“तुम्हारा मतलब कि महाजन को दहिया की कैद में रहने दें?”
पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा।
“मेरे ख्याल में इस वक्त ऐसा करना ही ठीक है।” मोना चौधरी होंठ भींचे कह उठी- “दहिया ने अगर महाजन को कोई नुकसान पहुंचाना होता तो वो पहले ही पहुंचा देता। अभी तक कैद में रखा हुआ है तो वो उसे नुकसान नहीं पहुंचाना चाहता। जो चाहता है, वो जल्द ही सामने आ जायेगा। इस वक्त हमारे चुप बैठने में ही हमारी भलाई है। मेरी बात तुम्हें गलत लगे तो कह सकते हो।”
पारसनाथ ने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरकर कश लिया।
कुछ पलों के लिए वहां चुप्पी सी छा गई।
“ठीक है।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा- “एक-दो दिन का इन्तजार कर लेने में कोई हर्ज नहीं कि दहिया महाजन के बारे में करता है या नहीं।”
“तुम ये मालूम करने की कोशिश करो कि विक्रम दहिया कहां गया है।” मोना चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “वो अकेला गया है। हो सकता है कहीं पर उसका परिवार हो। बच्चे हों। जिसके बारे में कोई न जानता हो। अगर दहिया ऐसी जगह पर है और हमें मालूम हो जाता है तो उस पर बहुत आसानी से काबू पाया जा सकता है । लेकिन ये सब मालूम करने में बहुत ही सतर्कता इस्तेमाल करनी होगी पारसनाथ । महाजन भी इसी बारे में छानबीन कर रहा था और दहिया की कैद में पहुंच गया।”
“मैं कोशिश करूंगा कि दहिया मेरी भागदौड़ के बारे में न जान पाये।” पारसनाथ ने हौले से सिर हिलाया।
मोना चौधरी सोफे पर सीधी होकर बैठी और कह उठी।
“अंधेरा होने के बाद यहां पर एक मेहमान लेकर आ रही हूं। रैस्टोरेंट के पीछे वाली गली का दरवाजा खुला रखना।”
पारसनाथ की शांखें सिकुड़ीं।
“मेहमान? कौन है वो?”
“अविनाश परेरा, जो कि ललित परेरा का भाई बनकर धारा होटल में जम चुका है।” मोना चौधरी ने कड़वे स्वर में कहा।
“उसका क्या करोगी?”
“वो बख्तावर सिंह का आदमी है और यहां आकर वो बतायेगा कि बख्तावर सिंह कहां है और वो हिन्दुस्तान में क्या करने आया है।”
मोना चौधरी दांत भींचे एक-एक शब्द चबाकर कह उठी।
☐☐☐
मोना चौधरी आज भी मेकअप में थी।
जीन की पैंट की ऊपर, ढीली ढाली बड़े-बड़े फूलों के छापे वाली सिल्की कमीज पहन रखी थी। सिर पर विग डाल रखी थी। विग के बाल कंधों तक फैले, चलने पर बराबर हिलते थे। मेकअप ऐसा कर रखा था कि वो कोई कॉलेज में पढ़ने वाली आवारागर्द युवती लग रही थी।
रात के नौ बजे धारा होटल की पार्किंग में वो इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी से मिली । उसके सामने ही मोदी सड़क पर ऑटो से उतरा था। ऑटो वाले को पैसे देकर पार्किंग की तरफ बढ़ आया था। इस वक्त वो इंस्पेक्टर की वर्दी में था। होंठों पर बड़ी-बड़ी मूंछें और गाल पर बड़ा सा तिल लगा रखा था। पार्किंग में आकर मोना चौधरी की तलाश में इधर-उधर नज़रें घुमाई। उसे देखा भी।
लेकिन पहचान नहीं पाया।
मोना चौधरी उसके पास पहुंची।
“आ गये।”
“ओह तुम!” मोदी ने उसे देखा- “मैने तो तुम्हें कोई आवारा लड़की समझा था।”
“मुझे मालूम है, ऐसी ही दिख रही हूं मैं। अपना काम याद है तुम्हें?”
“हाँ।”
“अविनाश परेरा को हर हाल में बाहर लाना है मोदी। वरना बात नहीं बनेगी।” मोना चौधरी गम्भीर थी।
“मैं इस बात की पूरी कोशिश करूंगा कि....”
“उसे बाहर लाना है।” कहते हुए इस बार मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
मोदी ने गम्भीर निगाहों से मोना चौधरी के कठोर चेहरे को देखा।
“तुम्हारी कार कहां है?”
“उधर, वो पीले रंग वाली।”
मोदी ने कार की तरफ देखा फिर मोना चौधरी को।
“मैं भीतर जा रहा हूं।”
मोना चौधरी, इंस्पेक्टर मोदी को देखती रही।
“इस वक्त मैं तुम्हारी सहायता नहीं कर सकती। तुम पुलिस वाले हो। वर्दी में हो । कोई तुम्हारी तरफ ध्यान भी नहीं देगा। मूंछे और तिल लगाकर तुमने अपना चेहरा बदल लिया है। ये अच्छी बात है। अगर मैं तुम्हारे साथ भीतर गई तो हर किसी की नज़र हमारी तरफ जायेगी कि...”
“मैं समझता हूं। वैसे भी मैं जो करने जा रहा हूं, वो मैं ही कर सकता हूं।” मोदी ने धीमे स्वर में कहा।
“कितनी देर लगेगी?”
“कह नहीं सकता। अविनाश परेरा तक पहुंचने के बाद, शायद मुझे ज्यादा देर न लगे।”
“तुम जब भी आओगे। मैं तुम्हें कार के पास ही मिलूंगी।”
मोदी सिर हिलाकर पलटा और होटल के प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया। जब वो भीतर चला गया तो मोना चौधरी लापरवाही भरे ढंग से आगे बढ़ी और कुछ ही देर बाद होटल की लॉबी में मौजूद थी।
लॉबी में ज्यादा भीड़ नहीं थी।
दो-तीन लोग रिसैप्शन पर व्यस्त नज़र आ रहे थे। कुछ लॉबी में मौजूद गद्देदार सोफों पर बैठे थे। रह-रहकर लोगों का आना-जाना वहां लगा ही हुआ था। शांत माहौल था। मोना चौधरी आगे बढ़ी और एक आरामदेह सोफा चेयर पर जा बैठी। नज़रें हर तरफ जाने लगीं। मोदी, अविनाश परेरा को लेकर कभी भी आ सकता था। दूसरे ही मिनट उसकी निगाह प्रवेश द्वार पर पड़ी तो चेहरे पर अजीब-से भाव उभरे। उसके देखते ही देखते गुलशन वर्मा ने भीतर प्रवेश किया। आगे बढ़ते हुए वो सामान्य ढंग से इधर-उधर देख रहा था कि तभी उसकी निगाह मोना चौधरी पर पड़ी तो वो ठिठका। फिर उसके होंठों पर मुस्कान उभरी और उसकी तरफ बढ़ने लगा।
मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये।
“वाह!” गुलशन वर्मा उसकी बगल में पड़े सोफा चेयर पर बैठता हुआ बोला- “कल तुम मेकअप में निगाह क्लब में मिली और आज धारा होटल में, दूसरे मेकअप में? आखिर बात क्या है? कहीं तुम मेरा पीछा तो नहीं कर रही। अगर ऐसी कोई बात है तो मैं तुम्हें पहले ही कह देता हूं कि मेरे से तुम्हें कुछ भी हासिल नहीं होगा। लड़कियों का ब्याह मैं कर चुका हूं। उम्र तुम मेरी देख ही रही हो कि शादी-ब्याह के लायक नहीं हूं मैं और किसी जवान युवती के लायक खास दौलत भी नहीं है।”
मोना चौधरी उन्हीं नजरों से उसे देखती रही।
“अब ये मत पूछना कि मैंने तुम्हें पहचाना कैसे। पूछोगी तो वही कहूंगा कि तुमने मेकअप तो किया लेकिन लैंस लगाकर आंखों को नहीं बदला। ऐसे में तुम्हें फौरन पहचान लिया।” वर्मा के होंठों पर मुस्कान थी।
मोना चौधरी के होंठों पर शांत मुस्कराहट उभरी।
“वर्मा साहब मुझे तो लगता है कि आप मेरे पीछे हैं। कल मैं क्लब में थी तो आप वहां। आज मैं धारा में हूं तो आप यहां। आप मेरे पीछे-पीछे क्यों?”
“मोना जी! आप भी क्या बात करती हैं। मेरी उम्र है क्या आपका या किसी का भी पीछा करने की। इन मामलों से तो मैं रिटायर्ड हो चुका हूं। कल क्लब से तुम अचानक कहां चली गईं। मैंने तुम्हें जाते देखा था।”
“देखा था?”
“हां। उसके बाद सुना कि सावरकर की किसी ने हत्या कर दी है। शूट कर दिया उसे।”
“अच्छा!” मोना चौधरी ने उसकी आंखों में झांका- “मैंने तो ये खबर नहीं सुनी।”
“तुम्हारे जाने के बाद ही ये खबर आम हो गई थी।”
“हो सकता है।” मोना चौधरी ने लापरवाही से कहा..”
“मुझे खबर नहीं।”
“मैंने तो ये भी सुना कि कोई औरत नीली साड़ी में उसके आफिस में गई थी। उसके बाद ही सावरकर की हत्या की खबर सुनी। तुमने भी कल नीली साड़ी पहनी थी। हुलिया भी कल के मेकअप से मिलता था।”
“हुलिया समझने में लोगों को अक्सर धोखा हो जाता है।”
“हां। मैंने भी बाद में यही सोचा कि मोना जी भला किसी की हत्या कैसे कर सकती हैं।”
मोना चौधरी के चेहरे पर तीखे भाव उभरे।
“वर्मा साहब! आपका यूं हर जगह मुझसे मिलना सिर्फ इत्तफाक नहीं हो सकता।”
“तो फिर क्या हो सकता है?” वर्मा मुस्करा रहा था।
“यही तो मैं समझने की कोशिश कर रही हूं।”
“बेकार की कोशिश है। दिमाग को ठीक रास्ते पर लगाना चाहिये।” गुलशन वर्मा ने गहरी सांस लेकर कहा- “तुम्हें बख्तावर सिंह के बारे में सोचना चाहिये। महाजन के बारे सोचना चाहिये। ये सोचना चाहिये कि अगर विक्रम दहिया ने तुम्हारे खिलाफ डण्डा उठा लिया तो फिर तुम किस-किस से निपटोगी। कौन सा काम पहले करोगी और कौन सा बाद में। महाजन को बचाने में लगोगी तो बख्तावर सिंह आसानी से अपना काम कर जायेगा। बख्तावर सिंह के पीछे रहोगी तो महाजन की जान को खतरा पैदा हो सकता है। विक्रम दहिया को तुम पर भी गुस्सा आ सकता है तुम उसकी हत्या सत्तर लाख में कर रही हो और पैंतीस लाख पहले ले चुकी हो।”
मोना चौधरी ठगी-सी बैठी, वर्मा को देखती रह गई। चेहरे पर अजीब-से भाव आ ठहरे थे।
वर्मा की शांत निगाह, मोना चौधरी पर थी।
“मिस्टर वर्मा आप तो बहुत कुछ जानते हैं। सब कुछ जानते हैं।” मोना चौधरी ने खुद को संभालने की चेष्टा की।
“हां। मैं वास्तव में सब कुछ जानता हूं।” गुलशन वर्मा ने कहकर सिग्रेट सुलगाई।
“कौन हैं आप?”. मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी- “आपकी असलियत कुछ और है।”
“तुम मेरी नकली असलियत नहीं जानती तो असली असलियत कैसे जान जाओगी।” गुलशन वर्मा के चेहरे पर गम्भीरता के भाव आ गये थे- “मोना चौधरी, मैं जानता हूं कि ललित परेरा को तुमने नहीं मारा। सावरकर की हत्या तुमने की है। मैं और भी कई बातें जानता हूं।”
मोना चौधरी के होंठ अजीब-से अंदाज में सिकुड़ गये।
“ऐसा है तो मिस्टर वर्मा, आप अवश्य मेरे से कोई बात भी करना चाहते होंगे।”
“हां।” गुलशन वर्मा ने गम्भीर स्वर में कहते हुए कश लिया- “मैंने तुम्हारे बारे में सुन रखा है मोना चौधरी। तुम दौलत के लिए काम करती हो। और इस वक्त तुम जो भागदौड़ कर रही हो, मैं तुम्हारी उस भागदौड़ को समझने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर तुम इस मामले से चाहती क्या हो?”
“किस मामले से?”
“बख्तावर सिंह के मामले से?” गुलशन वर्मा ने मोना चौधरी की आंखों में झांका- “तुम बख्तावर सिंह तक क्यों पहुंचने की कोशिश कर रहे हो। मैं जानता हूं कि सतीश ठाकुर तुम्हें कुछ बताने से पहले ही मर गया था।”
“तुम्हारा इस मामले से क्या वास्ता?”
“अपने सवाल का जवाब पूछने के बाद वास्ते के बारे में बताऊंगा मोना चौधरी।”
मोना चौधरी कुछ पल वर्मा को देखती रही। चेहरे पर सोच के भाव थे।
“आपको कैसे पता कि महाजन, विक्रम दहिया की कैद में है?” मोना चौधरी ने पूछा।
“पहले मेरा सवाल कि बख्तावर सिंह के मामले में दखल देकर, उसकी तलाश करके, उस तक पहुंचकर तुम उससे कितनी दौलत झाड़ना चाहती हो कि, वो जिस काम की खातिर हिन्दुस्तान आया है। उस काम को वो आसानी से कर सके या उस काम में तुम उसकी सहायता करो।” मोना चौधरी ने कुछ कहने को मुंह खोला कि ठिठक गई। नज़रें इंस्पेक्टर मोदी पर पड़ी जो कि किसी व्यक्ति के साथ बाहर निकलने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था।
तो मोदी, अविनाश परेरा को ले आया?
वक्त कम था।
“वर्मा साहब! आप मुझे कल इसी वक्त यहीं पर मिलो।” मोना चौधरी उठते हुए कह उठी- “मैं आपके सब सवालों का जवाब दूंगी। इस वक्त मेरा जाना जरूरी है।”
गुलशन वर्मा की नजरें भी मोदी और अविनाश परेरा को देख चुकी थी। इससे पहले कि वो कुछ कहता, मोना चौधरी बाहर निकलने वाले दरवाजे की तरफ बढ़ती चली गई।
☐☐☐
इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी होटल में प्रवेश करने के बाद सीधा रिसेप्शन काऊंटर पर पहुंचा था। पुलिस की वर्दी में वो वहां, अलग ही नज़र आ रहा था। धारा होटल ऐसी जगह थी, जहां पुलिस का आना पसन्द नहीं किया जाता था। रिसैप्शनिस्ट का ध्यान फौरन मोदी पर गया।
“गुड ईवनिंग सर।”
“ईवनिंग।” मोदी ने मुस्कराकर कहा- “मिस्टर अविनाश पटेल से मुलाकात करवाइये।”
“शायद वो व्यस्त हैं।” रिसैप्शनिस्ट ने कहा- “आपकी क्या अप्वाइंटमैंट है?”
“नहीं। लेकिन मिलना जरूरी है। सवाल कम करो।” मोदी ने मुस्कराकर पुलिसिया स्वर में कहा।
“मैं अभी मालूम करती हूं।” कहने के साथ ही उसने इन्टरकॉम का रिसीवर उठाया और बात की- “सर, कोई पुलिस आफिसर आपसे मिलना चाहते हैं। काम-काम तो नहीं बताया....वो।”
तभी मोदी बोला।
“रिसीवर मुझे दो। मैं बात करता हूं।”
“सर! वो खुद बात करना चाहते हैं।” रिसैप्शनिस्ट ने कहा। उधर से कुछ कहा गया तो उसने रिसीवर मोदी की तरफ बढ़ाते हुए मुस्कराकर कहा- “लीजिये, सर से बात कीजिये।”
मोदी ने रिसीवर लेकर मीठे स्वर में बात की।
“अविनाश परेरा साहब से बात कर रहा हूं क्या?”
“जी हां। मैं शायद आपसे पहले कभी नहीं मिला।” आवाज मोदी के कानों में पड़ी।
“कोई बात नहीं। कभी तो मुलाकात होनी ही थी। हम पुलिस वाले तो आपकी, आप जैसे लोगों की सेवा के लिए होते हैं। वैसे आपके आफिस का रास्ता किस तरफ से है?” मोदी ने मीठे स्वर में कहा।
“फोन पर बात नहीं हो सकती क्या?”
“ऐसी बात का क्या फायदा परेरा साहब कि दूसरे भी सुनें । मुझे कोई एतराज नहीं। आप कहें तो...”
“ठीक है। आप आ जाइये। रिसैप्शन से बात कराइये।”
मोदी ने रिसैप्शनिस्ट को रिसीवर थमाया।
“सर!” रिसैप्शनिस्ट के होंठों से निकला।
“इंस्पेक्टर साहब को मेरे पास भेज दो।”
“यस सर!” रिसैप्शनिस्ट ने रिसीवर रखा और पास से गुजरते होटल के कर्मचारी को बुलाकर कहा- “इंस्पेक्टर साहब को ‘सर’ के पास ले जाओ।”
इस तरह इंस्पेक्टर मोदी, अविनाश परेरा के पास पहुंचा।
कर्मचारी मोदी को वहां छोड़कर चला गया था।
अविनाश परेरा!
छः फीट का लम्बा-चौड़ा पचास बरस का सेहतमंद व्यक्ति। चेहरे और हाव-भाव में पूरी तरह आत्मविश्वास भरा हुआ था। उसने मुस्कराकर मोदी से कहा।
“वैलकम इंस्पेक्टर साहब! बैठिये।”
“जरूर बैठता परेरा साहब ! अगर अकेला होता। फुर्सत में होता। मैं....”
“आप तो अकेले ही हैं।”
“नहीं। बाहर गाड़ी में कमीश्नर साहब मौजूद हैं। वो आपसे अकेले में दो मिनट की बात करना चाहते हैं। वो नहीं चाहते थे कि उनकी और आपकी मुलाकात को कोई जाने । इसलिए मुझे भेजा।”
“कमीश्नर साहब?” अविनाश परेरा की निगाह, मोदी पर ठहर गई।
“जी हां, वो कह रहे थे, मिनट भर की बात है। आईये बाहर चलते हैं।”
“बाहर कहां?”
“पार्किंग में। जल्दी कीजिये। कमीश्नर साहब ने स्टाफ मीटिंग में पहुंचना है।” मोदी ने सामान्य स्वर में कहा।
चेहरे पर सोच के भाव समेटे परेरा उठा।
“आपको मालूम है कमीश्नर साहब को मुझसे क्या काम पड़ गया?”
“अब परेरा साहब!” मोदी ने गहरी सांस ली- “बड़े लोगों की बातें आप जानें। कमीश्नर साहब बड़े हैं। इधर आप बड़े। मैं तो बीच में लुढ़कने वाली गेंद की तरह हूं।”
परेरा के होंठों पर शांत मुस्कान उभरी।
दोनों बाहर निकलकर, बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ बढ़ गये। जब रिसैप्शन लॉबी से निकले तो, मोना चौधरी उन्हें देखकर पीछे हो गई। जबकि मोना चौधरी के मस्तिष्क में वर्मा की बातें छा चुकी थीं। मोदी, परेरा के साथ बाहर निकलकर बोला।
“उधर । पार्किंग में, कार में कमीश्नर साहब मौजूद हैं। आईये।”
मोदी, अविनाश परेरा को साथ लेकर, कार तक पहुंचा। पीछे आती मोना चौधरी को वो देख चुका था। ज्योंहि वो कार के पास पहुंचे। पीछे से मोना चौधरी ने अविनाश परेरा की गर्दन पर जोरदार घूँसा मारा कि उसके होंठों से कराह निकली। बेहोश होकर वो नीचे गिरने लगा कि, मोदी ने उसे थामा। मोना चौधरी ने तुरन्त कार का दरवाजा खोला तो मोदी ने परेरा के बेहोश शरीर को भीतर धकेला और खुद भी साथ बैठकर दरवाजा बंद कर लिया। मोना चौधरी ड्राइविंग सीट पर बैठी और कार स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी।
यहां जो भी हुआ। किसी ने कुछ नहीं देखा।
परन्तु पार्किंग में, अंधेरे में मौजूद गुलशन वर्मा ने सब देखा था।
☐☐☐
अविनाश परेरा को जब होश आया तो उसने खुद को एक छोटे से कमरे में पाया। कोने में रखे सिंगल बैड पर वो मौजूद था। बीचो-बीच टेबल के गिर्द चार कुर्सियां पड़ी थीं। जिन पर मोना चौधरी पारसनाथ और मोदी बैठे उसे देख रहे थे।
मोना चौधरी की आंखों में तब-तब बेचैनी नज़र आने लगती, जब-जब गुलशन वर्मा की बातें उसे ध्यान आतीं। शायद वर्मा से कोई काम की बात मालूम होती, परन्तु तब वक्त नहीं था, उससे बात करने का। आखिर गुलशन वर्मा की असलियत क्या थी?
अविनाश परेरा चेहरे पर परेशानी के भाव लिए बैड से उठ खड़ा
“तुम-तुम नकली पुलिस वाले हो।” अविनाश परेरा के होंठों से निकला।
कोई कुछ नहीं बोला।
“कौन हो तुम लोग?” वो व्याकुल सा बोला- “मुझे इस तरह उठा लाने का क्या मतलब है?”
“बैठ जाओ।” मोना चौधरी तीखे स्वर में कह उठी- “यहां तुमने सिर्फ हमारी सुननी है। सच बात तो ये है कि बख्तावर सिंह के आदमी को जिन्दा छोड़ना हम पसन्द नहीं करते।”
“बख्तावर सिंह!” उसके होंठों से अजीब-सा स्वर निकला।
“अगर तुम अपनी जान बचना चाहते हो तो हमारे सवालों का ठीक जवाब देते जाओ।” मोना चौधरी के स्वर में तीखापन आता चला गया था- “रही बात इस पुलिस वाले की तो, ये जान लो कि ये असली पुलिस वाला है। इसका नाम विमल कुमार मोदी है। मोदी, इसे अपना कार्ड दिखा दो।”
मोदी ने सकपकाकर मोना चौधरी को देखा।
“जो मैंने कहा है, वो करो।”
“मेरे बारे में तुमने इसे क्यों बताया? ये बता देगा कि मैंने इसका अपहरण...” मोदी ने कहना चाहा।
“किसे बतायेगा?” मोना चौधरी का स्वर कड़वा हो गया- “बख्तावर सिंह को?”
होंठ भींचे मोदी ने नकली मूंछ और तिल उतारा फिर खड़ा होते हुए, आई० कार्ड निकालकर परेरा के पास पहुंचा और काई उसके सामने किया।
परेरा ने कार्ड पर निगाह मारी। सूखे होंठों पर जीभ फेरकर मोना चौधरी को देखा।
कार्ड जेब में डालकर उखड़ा-सा मोदी वापस कुर्सी पर आ बैठा था।
“तुम--तुम मोना चौधरी हो?” उसके होंठों से घबराया-सा स्वर निकला।
“तो बख्तावर सिंह ने तुम्हें मेरे बारे में बता रखा है।” मोना चौधरी की आवाज में जहरीलापन आ गया- “अब इस बात का हिसाब लगाओ कि मेरे साथ इस मामले में पुलिस भी है। ललित परेरा का भाई बनाकर, बख्तावर सिंह ने तुम्हें धारा होटल में बिठा दिया। लेकिन हर पुलिस वाला रिश्वत नहीं लेता। हर जगह बख्तावर सिंह की नहीं चल सकती।” मोना चौधरी खामोश हुई।
उसके चेहरे पर कई रंग आये और कई चले गये।
“सबसे पहले तो अपना नाम बताओ कि कौन हो तुम? बोलते जाओ।” मोना चौधरी का स्वर सख्त था।
उसने सूखे होंठों पर जीभ फेरी। चेहरा पीला-सा पड़ने लगा था।
“इस बात का ध्यान रखना कि यहां पर सिर्फ हमारी चलेगी। बाहर से यहां कोई नहीं आ सकता।” मोना चौधरी के स्वर में खतरनाक भाव झलक उठे- “और हमारी मर्जी के बिना तुम बाहर जा नहीं सकते। बचने का सिर्फ एक ही रास्ता है कि हमारे सवालों का जवाब देकर हमसे दोस्ती कर लो। वरना जवाब तो तुम्हें देने ही हैं, जान भी जायेगी!”
“बख्तावर सिंह!” वो फक्क स्वर में बोला- “मुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगा। वो बहुत खतरनाक।”
“क्या तुम ये देखना चाहते हो कि हम कितने खतरनाक हैं?” मोना चौधरी ने दरिन्दगी से कहा।
वो पीले पड़े चेहरे से मोना चौधरी को देखता रहा।
“पारसनाथ!” मोना चौधरी के होंठों से हल्की-सी गुर्राहट निकली। पारसनाथ उसी पल उठा। आगे बढ़ा। होंठ भींचे उसने, उसकी कमीज का कॉलर पकड़कर उठाया और अपने लौह हाथ का घूँसा उसके पेट में लगा दिया।
उसे लगा जैसे कोई डण्डा पेट में घुस गया हो। वो चीखकर दोहरा हो गया। उसी पल पारसनाथ ने उसके सिर के बाल पकड़े और पूरी ताकत से घुमाकर छोड़ा तो लड़खड़ाते हुए, वो जोरों से दीवार से जा टकराया। होंठों से पुनः चीख निकली। फिर गहरी-गहरी सांसें लेते हुए दीवार के साथ ही नीचे बैठ गया।
“यहां तुम्हारी चीख सुनने वाला भी कोई नहीं।” मोना चौधरी ने मौत भरे सर्द स्वर में कहा- “अगर धीरे-धीरे तुम्हारा गला रेता जाये और तुम जी भर कर चीखो, तब भी तुम्हारी आवाज बाहर नहीं जायेगी।”
तब तक पारसनाथ पुनः उसके करीब पहुंच चुका था। खुरदरे चेहरे पर खतरनाक भाव समेटे पारसनाथ ने झुककर उसकी बांह पकड़ी तो मोना चौधरी कह उठी।
“ठहरो। चाकू निकालो और उसकी खाल उधेड़नी शुरू करो।”
मोना चौधरी के स्वर में वहशी भाव झलक रहे थे- “सबसे पहले पेट से खाल को छीलना। मोदी तुम पारसनाथ की सहायता करो।”
मोदी कुर्सी से उठा और उसकी तरफ बढ़ गया।
पारसनाथ उसकी बांह छोड़कर, छोटा-सा, तेज चाकू जेब से निकाल चुका था। ये सब देखकर उसका चेहरा पीला होकर नींबू की तरह निचुड़ा- सा लगने लगा था। आंखों में खौफ के साये स्पष्ट नज़र आ रहे थे।
रह-रहकर उसका बदन कांप रहा था।
“ये सब मेरे साथ मत करो। मैं।”
मोदी ने झुककर उसकी बांहों को अपनी गिरफ्त में ले लिया। पारसनाथ चाकू को खोल चुका था, जिसका तीन इंच लम्बा फल चमकने लगा था। उसी पल फुर्ती के साथ पारसनाथ उसकी टांगों पर बैठ गया कि वो अपने बचाव को चेष्टा न कर सके।
मौत के खौफ से उसकी आंखें फैलकर चौड़ी हो गई थीं। पारसनाथ और मोदी के दरिन्दगी से भरे चेहरों को देखकर ही उसकी जान निकलने लगी थी।
“मुझे मत मारो। छोड़ दो। जो पूछोगे, वही बताऊंगा।”
हांफते-कांफते स्वर में वो कह उठा।
पारसनाथ का चाकू वाला हाथ रुक गया।
मोना चौधरी कुर्सी से उठी और पास आकर पहले वाले स्वर में कह उठी।
“तुम क्या समझते हो, कि हम तुमसे झूठ कह रहे थे कि तुम्हारी जान ले लेंगे। कल रात सावरकर ने भी यही समझा था और इसी गलतफहमी में मारा गया।”
“सा-सावरकर को तुम लोगों ने मारा है?” उसके होंठों से फटी-सी आवाज निकली।
“मैंने मारा है। सिर्फ मैं थी उस वक्त उसके पास।” मोना चौधरी ने अपनी आवाज में और भी मौत के भाव भर लिए- “वो बेवकूफ रिवॉल्वर निकालकर मुझे मारने जा रहा था तो मैंने उसकी रिवॉल्वर छीनकर उसे ही शूट कर दिया। मैं बख्तावर सिंह के हर उस आदमी का मार दूंगी, जो मेरी बात नहीं मानेगा।”
“मुझे कुछ मत कहो।” वो कांपते हुए जल्दी से कह उठा- “मैं तुम्हें सब कुछ बता दूंगा।”
“छोड़ दो इसे।” मोना चौधरी ने भिंचे स्वर में कहा- “जवाब देने में जब भी ये रुकता नज़र आये, खत्म कर देना।”
मोदी ने उसकी बाहें छोड़ दी।
पारसनाथ चाकू थामे उसके ऊपर से उठा और दो कदम पीछे हट गया।
वो गहरी-गहरी, मुसीबत से भरी लम्बी सांसें लेने लगा। कुछ उठ बैठा। ज़रा सी टेक दीवार से लगा ली। चेहरे पर अभी भी मौत से भरी घबराहट थी।
पारसनाथ ने सिग्रेट सुलगा ली। मोदी एक तरफ खड़ा उसे देख रहा था।
मोना चौधरी वापस कुर्सी पर जा बैठी।
“बख्तावर सिंह ने तुम्हें मेरे बारे में क्या बताया है?” मोना चौधरी ने एक-एक शब्द चबाकर पूछा।
“यही कि तुम बहुत खतरनाक हो। अक्सर उसके रास्ते में आती हो। तुम्हें खत्म करने के लिए मुझे वो बाद में कहेगा। अभी तुम्हें नहीं छेड़ना है। वो जो काम करने आया है, पहले वो पूरा हो जाये।” वो एक ही सांस में कहता चला गया- “इस वक्त तुम्हें कुछ न कहा जाये ताकि तुम बख्तावर सिंह के काम में दखल न दे सको। उसका कहना है कि सतीश ठाकुर को शूट करने के बाद तुम्हें नहीं छेड़ना चाहिये था। तुम्हें छेड़कर गलती कर दी कि तुम उसकी टोह में लग गईं। अब तुमसे दूर रहा जाये।”
“तुम्हारा नाम क्या है?”
“रघुवीर सिंह।
“क्या करते हो?” मोना चौधरी उसे खा जाने वाली निगाहों से देख रही थी।
“वैसे तो पास ही के छोटे से शहर में यूं ही दुकान चलाता हूं।”
रघुवीर सिंह ने सूखे होंठों पर जीभ फेरकर कहा- “असल में बख्तावर सिंह के लिए काम करता हूं। कोई काम हो या न हो। उसका आदमी हर महीने मोटी रकम दे जाता है। अब ललित परेरा का मर्डर हुआ तो उसने मुझे अविनाश परेरा बनाकर होटल का मालिक बना दिया। बख्तावर सिंह के कहे मुताबिक कुछ बातें मैंने संभाली कि मैं ललित परेरा का भाई हूं। बाकी के सारे मामले उसने ही संभाले। उसके आदमियों ने संभाले। अब तो सब ठीक हो गया था।”
मोदी ने पारसनाथ को देखा फिर रघुवीर सिंह पर नज़रें लगा दी।
“बख्तावर सिंह किस काम के लिए हिन्दुस्तान आया है?”
“मैं नहीं जानता।”
“पारसनाथ!” मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“सच में मुझे कुछ नहीं मालूम।” रघुवीर सिंह हाथ जोड़कर कह उठा- “बातों-बातों में एक बार बख्तावर सिंह ने कहा था कि कश्मीर से आने वाले मिल्ट्री के दो-तीन ट्रकों पर हाथ डालना है। इसके अलावा मैं और कुछ नहीं जानता। कसम ले लो। लेकिन मुझे मारना नहीं।” वो कांप रहा था।
“तीन ट्रक ।” मोना चौधरी दांत भींचे कह उठी- “सतीश ठाकुर ने दीवार पर तीन ट्रकों के स्कैच बनाये थे। और क्या जानते हो इस बारे में?”
“कुछ नहीं।” उसकी आवाज खौफ के मारे खुश्क हो रही थी- “बख्तावर सिंह कल दिन में ही इस हशर से चला गया था। वो सावरकर के कुछ बढ़िया आदमी और कुछ धारा होटल से आदमी ले गया था। जो अच्छा निशाना लगाना जानते हो। दस के करीब आदमी लेकर गया है वो।”
“तीन ट्रकों पर हाथ डालने के लिए दस आदमी बहुत कम होते हैं।” मोना चौधरी ने रघुवीर सिंह को देखा-फिर रघुवीर सिंह से पूछा- “कहां गया है बख्तावर?”
“मैं नहीं जानता।”
“तुमने धारा होटल नया-नया संभाला है। ऐसे में वो अपना पता जरूर बताकर गया होगा कि जरूरत पड़ने पर तुम उससे कहां बात कर सकते हो। वो एकदम गायब नहीं हो सकता।”
“मेरे को होटल के सिलसिले में कोई परेशानी आये तो उसके लिए दूसरे लोग हैं, परेशानी दूर करने के लिए। लेकिन वो अपने बारे में थोड़ा सा मुझे बताया गया है कि तुम्हारे बारे में कोई खास खबर हो तो वहां बता दूं।”
“वहां-कहां?”
“जम्मू का एक फोन नम्बर है।” कहने के साथ ही रघुवीर सिंह ने जम्मू का फोन नम्बर बताया।
दो पलों के लिए वहां चुप्पी रही।
रघुवीर सिंह गहरी-गहरी सांस लेता, तीनों को देखता रहा बारी-बारी।
“इस फोन नम्बर पर कौन मिलेगा?” मोना चौधरी ने शांत स्वर में पूछा।
“सूरज पाहवा नाम बताया था बख्तावर सिंह ने कि उससे पूंछु।”
“और कुछ है बताने को?”
“नहीं। मैंने सच-सच सब कुछ बता दिया है। कुछ भी नहीं छिपाया।” रघुवीर सिंह जल्दी से बोला।
मोना चौधरी के चेहरे पर जहरीले भाव नाच उठे।
“तुम जैसे गद्दार-कमीने ही देश को खराब करते हैं। मां की छाती पर बैठकर, वहीं छेद करते हो। देश के गद्दार होकर, देश की ही छाया में बैठते हो। तुम जैसे तो कभी-कभार ही सामने आते हैं।”
रघुवीर सिंह की आंखें खौफ से फैल गईं।
“प्लीज। मुझे माफ कर दो। आज के बाद मैं...”
“आज के बाद की तो मैं गारण्टी लेती हूं कि तुम धरती मां के दुश्मनों का साथ कभी नहीं दोगे।” मोना चौधरी के होंठों से फुफकार निकल रही थी- “तुम जीने के हकदार नहीं हो।”
“नहीं मुझे मत...”
“पारसनाथ!” मोना चौधरी के स्वर में मौत थी।
उसी पल पारसनाथ के हाथ में दबा छोटा सा चाकू बे-आवाज सा हवा को चीरता हुआ दीवार के साथ सटे बैठे रघुवीर सिंह की कनपटी में जा धंसा । रघुवीर सिंह के शरीर को तीव्र झटका लगा और वो शांत पड़ता चला गया। उसकी फटी आंखों से ऐसा एहसास हो रहा था कि जैसे उसे पहले ही महसूस हो गया था कि वो शायद जिन्दा न रहे। वहां पैना सन्नाटा छा चुका था।
“मोदी।” चौधरी ने गम्भीर स्वर में कहा- “जाते वक्त लाश को कार में डालकर लेते जाना। रास्ते में कहीं फैंक देना। मामूली काम है तुम्हारे लिए।”
“पुलिस वाले को लाश ठिकाने लगाने को कह रही।”
“तुम कौन से दूध के धुले हो। और ये कोई काम नहीं है तुम्हारे लिए।
पारसनाथ आगे बढ़ा और रघुवीर सिंह की कनपटी में फंसे चाकू को, तीव्र झटके के साथ खींचा और फल पर लगे खून को उसकी कमीज़ साफ किया और बंद करके चाकू जेब में डाल लिया।
“अब तुम क्या करोगी?” मोदी की निगाह मोना चौधरी पर जा टिकी।
“मैंने।” मोना चौधरी ने दांत भींचकर कहा- “बख्तावर सिंह तक पहुंचना है। कोशिश करनी है कि वो जिन्दा पाकिस्तान न लौट सके। ये जानना है कि वो क्या करना चाहता है।”
“तुम्हारी बखावर सिंह से ऐसी क्या दुश्मनी है कि सारे काम छोड़कर तुम उसके?”
“कुछ ऐसी भी बातें होती हैं जो समझाई नहीं जा सकतीं।” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली-मेर ख्याल में यहां से आगे के मामले में तुम्हारा दखल देना ठीक नहीं। तुम कानून की हद में बंधे हुए हो।”
मोदी ने कुछ नहीं कहा।
“पारसनाथ! इसे एक कार दे दो। कल वापस दे देगा। ये लाश
कार की डिग्गी में ठूंस देना। रास्ते में मोदी लाश को कहीं फैंक देगा।” मोना चौधरी के चेहरे पर गम्भीरता थी।
पारसनाथ सिर हिलाकर कमरे से बाहर निकल गया।
“सतीश ठाकुर ने अपनी जान अवश्य गवां दी।” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा- “अगर मैं बख्तावर सिंह को उसके काम में रोकने में कामयाब रही तो समझो सतीश ठाकुर की जान बेकार नहीं गई। क्योंकि बख्तावर सिंह मिल्ट्री के तीन ट्रकों पर हाथ डालना चाहता है। जाहिर है कि उन ट्रकों में कुछ खास है। बख्तावर सिंह सफल रहा तो हमारे देश को नुकसान होगा। और मैं पूरी कोशिश करूंगी कि बख्तावर सिंह सफल न हो।”
“वो सफल भी हो सकता है। मोदी ने गम्भीर स्वर में कहा- “मैंने सुना
है बख्तावर सिंह को खतरनाक माना जाता है।”
मोना चौधरी ने दृढ़ता भरी निगाहों से मोदी को देखा।
“मैं कोशिश करूंगी कि बख्तावर सिंह अपनी कोशिश में सफल न हो और उसे खत्म कर सकू।”
मोना चौधरी के चेहरे के भाव देखकर मोदी ने कुछ भी कहना ठीक नहीं समझा।
तभी पारसनाथ ने भीतर प्रवेश किया। साथ में दो आदमी थे। दोनों आगे बढ़े और रघुवीर सिंह की लाश उठाने लगे।
☐☐☐
मोदी, रघुवीर सिंह की लाश के साथ, वहां से जा चुका था।
पारसनाथ ने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरकर मोना चौधरी को देखा। जो कि गम्भीर नज़र आ रही थी।
“अब तुम क्या करना चाहती हो मोना चौधरी?” पारसनाथ ने मोना चौधरी से पूछा।
“पारसनाथ!” मोना चौधरी ने धीमे स्वर में कहा-- “इन हालातों से मैं बहुत उलझी हुई थी कि अब एक और नई बात मेरे सामने आ गई है। गुलशन वर्मा, जिसके बारे में तुम्हें पहले भी बता चुकी थी कि वो अक्सर हर जगह टकरा है। कभी-कभी मुझे उस पर शक होता है। अपहरण के वक्त धारा हाटल में वो फिर मुझसे मिला और इस बार उसने खुलकर बात की।”
“क्या?”
मोना चौधरी ने वर्मा के साथ हुई बातचीत बताई।
“यानि कि वर्मा स्पष्ट तौर पर ये बात जानना चाहता है कि तुम बख्तावर सिंह को क्यों तलाश करना चाहती हो। उसे ढूंढकर, उसे
ब्लैकमेल करके उससे नोट झाड़ना चाहती हो। मेरे ख्याल में वर्मा यही सोच रहा है और तुमसे बात करके ये तय करना चाहता था कि वो ठीक सोच रहा है या गलत।” पारसनाथ ने कहा।
“मैं भी इसी नतीजे पर पहुंची हूं। लेकिन हैरान-परेशान तो इस बात को लेकर हूं कि गुलशन वर्मा आखिर है कौन जो शुरू से लेकर अंत तक की हर बात जानता है, जो मैं जानती हूं।” मोना चौधरी ने गहरी सांस ली कहते हुए- “वो मेरे बारे में जानता है। ये भी जानता है कि विक्रम दहिया की हत्या का सौदा मैंने सत्तर लाख में किया है और पैंतीस लाख मैं एडवांस ले चुकी हूं। सब मालूम है उसे कि मैं किस तरह की भागदौड़ कर रही हूं और क्यों कर रही हूं। बख्तावर सिंह तक पहुंचना चाहती हूं। मैं जहां भी जाती हूं, वहीं वर्मा पहुंच जाता है और जैसा भी मेकअप किया हो, वो पहचान लेता है मुझे। जाहिर है कि मुझ पर नज़र रखी जा रही है। लेकिन अपने आसपास मुझे कोई नज़र नहीं आता कि, जो मुझ पर नज़र रख रहा हो।”
पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर भावहीन-सी मुस्कान उभरी।
“इससे जाहिर है कि वो कोई पहुंचा हुआ, घिसा बंदा है।”
“हां।” मोना चौधरी ने फौरन सिर हिलाया- “अब मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं कि वर्मा वास्तव में पुराना खिलाड़ी है। वरना कोई आम आदमी मुझसे इस तरह बात नहीं कर सकता। उसकी में विश्वास भरा होता है, ये जानते हुए भी कि वो मुझसे बात कर रहा है। अब मुझे याद आता है कि जब मैं पहली बार धारा होटल के बार रूम में थी तो वर्मा खुद मेरे पास आया था। वो जानता था कि मैं मोना चौधरी हूं। यानि कि सतीश ठाकुर की हत्या होने के समय से, या फिर उससे पहले से ही वो मुझ पर नज़र रखवा रहा था।”
“ऐसा वो क्यों करेगा?” पारसनाथ की आंखें सिकुड़ीं।
“मैं नहीं जानती कि- “ कहते-कहते मोना चौधरी ठिठकी। उसके होंठ सिकुड़ते चले गये- “पारसनाथ, वर्मा वो इन्सान हो सकता है जिसने विक्रम दहिया की हत्या का ठेका मुझे दिया। मैंने उसे देखा नहीं। उससे सिर्फ फोन पर ही बात हुई थी। वो मुझ पर नज़र रखवा रहा होगा कि दहिया को खत्म करने के सिलसिले में मैं कुछ कर रही हूं या नहीं। ऐसे में बाकी बातें भी वो जानता चला गया कि...”
“अगर तुम्ही इस बात को ठीक माना जाये तो बात ये उठती है कि जब तुम वर्मा से पहली बार मिली तो तभी तुम्हें उसकी आवाज पहचान लेनी चाहिये कि दहिया की मौत का सौदा इसी ने तुम्हारे साथ किया था।” पारसनाथ बोला।
मोना चौधरी कुछ पल पारसनाथ को देखती रही फिर सिर हिलाकर धीमे स्वर में कह उठी।
“कोई जरूरी तो नहीं गुलशन वर्मा ने ही मुझसे बात की हो। वो किसी और से भी फोन करवा सकता है। कुछ देर के लिए आवाज बदलकर भी फोन पर मुझसे बात कर सकता है। तुम्हारी बात में कोई दम नहीं।
“शायद तुम ठीक कहती हो मोना चौधरी।” पारसनाथ ने सोच भरे स्वर में कहा- “गुलशन वर्मा वो इन्सान हो सकता है जिसने तुमसे विक्रम दहिया की मौत का सौदा किया था और तुम पर नज़र भी रखवाने लगा कि कहीं तुम तीस लाख लेकर बैठ तो नहीं गईं। यही वजह है कि वो सारे हालातों से वाकिफ होता चला गया। और...”
“पारसनाथ!” मोना चौधरी ने टोका- “इस वक्त मेरे सामने तीन काम बहुत जरूरी हैं। एक तो कल रात धारा होटल में वर्मा से मिलना और उससे बातचीत में ये जानने की कोशिश करनी कि बख्तावर सिंह के बारे में ऐसी कोई बात जानता है कि जो हमारे काम आ सके।”
“दूसरी बात?”
“महाजन!” कहते हुए मोना चौधरी के दांत भिंचते चले गये-“वो, विक्रम दहिया की कैद में है। दहिया शहर से बाहर है। यानि कि महाजन का मामला जल्दी निपटता नज़र नहीं आता और इस तरह महाजन को, दहिया की कैद में ही छोड़कर बखतावर सिंह के लिए जम्मू चले जाना गलत होगा और ये और भी गलत होगा कि जम्मू देर से पहुंचूं। कहीं बख्तावर सिंह तब तक अपना काम न निपटा ले। यानि कि ये तीनों बातें अपनी जगह जरूरी हैं। जबकि इन तीनों का फौरन निपट जाना सम्भव नहीं लगता। क्योंकि बख्तावर सिंह यहां से दूर जम्मू या जम्मू के आसपास कहीं है। मैं समझ नहीं पा रही कि से इन कामों को...”
तभी फोन की घंटी बज उठी।
पारसनाथ ने रिसीवर उठाया।
“हैलो।”
“मोना चौधरी को फोन देना।” आवाज पारसनाथ के कानों में पड़ी।
“कौन हो तुम?” पारसनाथ के माथे पर बल नज़र आये।
“गुलशन वर्मा।”
पारसनाथ ने रिसीवर नीचे किया और बोला।
“गुलशन वर्मा तुमसे बात करना चाहता है।”
मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे। पारसनाथ से रिसीवर लेकर उसने बात की।
“कहिये वर्मा साहब!” मोना चौधरी का लहजा सामान्य था- “मैं आपको याद ही कर रही थी।”
“मैं जानता हूं।” वर्मा की आवाज में मुस्कराहट थी। तुम अवश्य मुझे याद कर रही होगी।”
“आप शाम को बख्तावर सिंह के बारे में बात...”
“मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं है बात करने का।”
“लेकिन जो बात में कर रही हूं वो, बहुत जरूरी है। मैं...”
“मेरी बात सुनकर, जरूरी बात को भूल जाओगी तुम।” वर्मा के शब्द सुनकर, दो पल के लिए मोना चौधरी कुछ कह नहीं सकी।
“अविनाश परेरा को भी खत्म कर दिया तुमने। कुछ देर पहले ही इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी ने सुनसान जगह पर कार की डिग्गी में से लाश निकालकर फेंकी है।” वर्मा का स्वर कानों में पड़ा।
“आप मुझ पर पूरी तरह नज़र रखवा रहे हैं कि में क्या कर रही...”
“अब तक तो ऐसा ही था। लेकिन मैं तुम पर से नज़र हटवा रहा हूं।” वर्मा के स्वर में गम्भीरता आ गई थी- “फुर्सत का वक्त नहीं रहा अब मेरे पास।”
“आपकी असलियत क्या है मिस्टर वर्मा?”
“मेरे ख्याल में तुम महाजन के बारे में खबर सुनना ज्यादा पसन्द करोगी।
“महाजन-कैसी खबर?” मोना चौधरी के दांत भिंच गये।
“वो इस वक्त मेरे पास खड़ा है। मैंने उसे विक्रम दहिया की कैद से छुड़ा लिया है। पब्लिक बूथ से इस वक्त बात कर रहा हूं।” वर्मा का शांत स्वर कानों में पड़ा- “और...।”
“तुमने, दहिया की कैद से महाजन को छुड़ा लिया।” मोना चौधरी के होंठों से निकला।
“हां।”
“विश्वास नहीं आता कि तुम ये काम कर सकते...”
“ये काम मेरे कुछ आदमियों ने किया है। दहिया शहर में नहीं है। उसके आदमी लापरवाह थे कि महाजन को छुड़ाने कोई नहीं आ सकता। उनकी लापरवाही का फायदा मेरे आदमियों ने उठाया और महाजन को वहां से निकाल लाये।” वर्मा के स्वर में लापरवाही थी- “दूसरी खबर तुम्हारे काम की ये है कि बख्तावर सिंह इस वक्त में मौजूद है और अपने काम को अंजाम देने की तैयारी में लगा हुआ है।”
“क्या-क्या करना चाहता है बख्तावर?” मोना चौधरी की आवाज सख्त हो गई।
“तुम जानकर क्या करोगी?”
“वो जो भी काम करेगा। देश के खिलाफ करेगा। मैं उसके काम को पूरा नहीं होने...”
“तुम तो खुद गैरकानूनी काम करती हो। तो फिर बख्तावर के मामले में...”
“वर्मा साहब!” मोना चौधरी गुरां उठी- “मेरे गैरकानूनी काम देश के खिलाफ नहीं होते। देश की जड़ों को खोखला नहीं करते। जबकि वख्तावर सिंह का काम, देश को बड़े-से-बड़ा नुकसान पहुंचायेगा। मैं बहुत अच्छी तरह से जानती हूं बख्तावर सिंह को। उसके और मेरे बीच मौत का खेल चलता ही रहता है।”
“तुम ठीक कहती हो। ये बात मैंने मालूम करने के लिए किसी को कह रखी थी और यही रिपोर्ट मुझे मिली है कि बख्तावर सिंह और तुम, एक-दूसरे को खत्म कर देना चाहते हो। तभी तुम सारे काम छोड़कर, हाथ धोकर बख्तावर सिंह की तालश में लग गईं और हिन्दुस्तान में बिछे उसके मोहरों को खत्म करने लगी। ये बात मैं पहले नहीं जानता था।”
गुलशन वर्मा की आवाज में गम्भीरता आ गई थी- “जो रिपोर्ट मुझे मेरे
आदमी ने दी। कुछ वैसा ही महाजन ने मुझे बताया है। वरना पहले मैं समझ रहा था कि तुम बख्तावर सिंह के पास पहुंचकर, उसके काम में सहायता करके या उसे ब्लैकमेल करके, उससे नोट झाड़ना चाहती हो।”
वर्मा खामोश हुआ तो मोना चौधरी कह उठी।
“बख्तावर सिंह क्या करना चाहता है?”
“इसके लिए तुम्हें जम्मू जाना होगा। वहीं बताऊंगा।”
“लेकिन तुम्हें कैसे मालूम होगा कि मैं जम्मू में कहां...”
“मैंने तुम पर से निगरानी हटाई है। नज़र नहीं हटाई। जम्मू पहुँचों। बात हो जायेगी।”
“तुम हो कौन?” मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव थे।
“कम से कम, इस वक्त तो तुम्हारा दुश्मन नहीं हूं।” वर्मा की लापरवाही से भरी आवाज कानों में पड़ी- “ये भी जान लो कि महाजन मेरे साथ ही जम्मू जा रहा है।”
“क्या? वो तुम्हारे साथ क्यों जायेगा जम्मू?”
“उसकी मर्जी।” इस बार वर्मा की आवाज में मुस्कराहट आ गई थी।
“महाजन से मेरी बात कराओ।” कहते हुए मोना चौधरी के होंठ सिकुड़ गये।
दो पलों बाद ही महाजन का स्वर कानों में पड़ा।
“कैसी हो बेबी?”
“अब ठीक हूं। वरना पहले तुम्हें लेकर परेशान थी।” मोना चौधरी के होंठों से गहरी सांस निकली।
“मैं ठीक हूं। तुम...”
“इसने तुम्हें अपना क्या नाम बताया है, जो अभी मुझसे बात कर रहा था।”
“गुलशन वर्मा।”
“इसके बारे में कुछ और जानते हो?”
“नहीं। नाम के अलावा कुछ नहीं जानता। घंटा भर पहले ही इसस मुलाकात हुई है। इसके आदमियों ने ही मुझे दहिया की कैद से छुड़ाया है। वरना मैं अभी तक वहीं, कमरे में बंद पड़ा होता।”
“जम्मू क्यों जा रहे हो इसके साथ?”
“इसने मुझे छुड़ाया है। वरना मैं दहिया की कैद से नहीं निकल सकता था। उसके बाद इसने सव यातें बताकर मुझे जम्मू साथ चलने को कहा तो मैंने ये सोचकर हां कर दी कि बख्तावर सिंह भी जम्मू में है।”
“ये चाहता क्या है?”
“वही, जो तुम चाहती हो। बख्तावर सिंह के काम को खराब करना या उसे खत्म करना।”
“तुम्हें इसने बताया कि बजावर सिंह क्या करने जा रहा है?” मोना चौधरी ने पूछा।
“हां। लेकिन तुम्हें बताने को मना करा है कि तुम्हें जम्मू में ही बताया जायेगा। वजह के तौर पर ये जवाब मिला कि मोना चौधरी के मुंह से बात बाहर निकलकर बख्तावर सिंह तक पहुंच गई तो वो सतर्क हो सकता है कि हम उसके पीछे है। तब उस पर हाथ डालना आसान नहीं होगा।
“इस बेवकूफ को ये नहीं बताया कि मोना चौधरी के होंठों से वही बात निकलती है, जो वो निकालना चाहती है।” कहते हुए मोना चौधरी का स्वर कड़वा हो गया- “जब तक इसकी असलियत सामने न आये, तब तक इस पर पूरा विश्वास मत करना। ये बहुत चालाक है। मेरा वास्ता इससे पड़ चुका है।”
“तुम कब जम्मू पहुंच जाओगी?”
“मैं अभी यहां से चल दूंगी।”
“मैं कल दिन में चलूंगा। कुछ काम है, वो अभी तुम्हें बता नहीं सकता। वर्मा ने मना किया है और ये मेरे पास ही खड़ा है। अब ये मुझे इशारा कर रहा कि फोन बंद कर दूं।”
“ठीक है। जम्मू में मिलेंगे। तुम राधा को फोन करो। उससे बात करी। वो तुम्हारी बहुत चिन्ता।”
“तुम उसे कह देना कि मैं ठीक- “महाजन ने कहना चाहा।
“मेरे कहने से कुछ नहीं होगा। तुम्हारी आवाज सुनकर उसे चैन-सकून मिलेगा। अच्छी तरह जानते हो कि वो तुम्हें कितना चाहती है। मैं उससे मिली थी। तुम्हारे इन्तजार में उसका चेहरा उतरा रहता...”
“ठीक है। महाजन के गहरी सांस लेने का स्वर कानों में पड़ा- “करता हूं उसे फोन।”
मोना चौधरी ने रिसीवर रख दिया।
सिर से चिन्ता का बोझ उतर गया था। महाजन का भी और वर्मा से भी बात हो गई थी। पारसनाथ मोटे तौर पर सारी बातें समझ चुका था। फिर भी मोना चौधरी ने उसे सारी बातचीत बताई।
“तो अब तुम जम्मू जाओगी।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।
“मेरे साथ तुम भी चलोगे पारसनाथ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर खतरनाक स्वर में कह उठी- “ये मामला बख्तावर सिंह से वास्ता रखता है। आने वाले वक्त में हालात जाने क्या रंग दिखाते हैं।”
☐☐☐
महाजन ने बहुत कठिनता से राधा को समझाया कि वो ठीक है। किसी खास काम में व्यस्त है और आने में अभी कुछ दिन और लग जायेंगे। राधा थी कि फोन बंद करने का नाम नहीं ले रही थी। वो बार-बार यही रट लगाये थे कि घर आओ नीलू।
महाजन ने किसी तरह समझाकर रिसीवर रखा। वो इस वक्त पब्लिक बूथ बाक्स में गुलशन वर्मा के साथ खड़ा था। जिन लोगों ने उसे विक्रम दहिया की कैद से निकाला था। वो उसे, वर्मा के हवाले करके कब के जा चुके थे। महाजन ने वर्मा को थमा रखी बोतल लेकर घूँट भरा।
“अब?” वर्मा बोला।
“क्या अब?” महाजन के चेहरे पर सोच के भाव उभरे हुए थे। स्ट्रीट लाईट की रोशनी बूथ बॉक्स के भीतर आ रही थी।
“तुमने कहा था कि तुम्हारे पास कुछ ऐसे लोग हैं जो देश की खातिर अपनी जान की बाजी लगा सकते हैं। तुम उन्हें इकट्ठा कर लोगे। जम्मू में बख्तावर सिंह के खिलाफ हम उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।”
“इस्तेमाल नहीं।” महाजन की आवाज में तीखापन आ गया- “उनके साथ मिलकर देश के लिए हम काम कर सकते हैं।”
“सॉरी।” गुलशन वर्मा ने सिर हिलाया- “मैंने गलत शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्हें इकट्ठा कर लो तो जम्मू चल पड़ते हैं।”
महाजन ने गहरी निगाहों से वर्मा को देखा।
“आदमी तो तुम्हारे पास भी हैं। इस काम में उनका इस्तेमाल क्यों नहीं कर लेते।” महाजन ने कहा।
“जरूरत पड़ी तो अपने आदमियों का इस्तेमाल भी कर लूंगा। वैसे मेरी कोशिश यही होगी कि अपने आदमियों का इस काम में इस्तेमाल करने से बचूं। इसका कारण पूछने की चेष्टा मत करना।”
गम्भीर स्वर में गुलशन वर्मा ने कहा।
“मुझे समझ नहीं आती कि तुम्हें अपने बारे में बताने में क्या हर्ज है?” महाजन कह उठा।
“कोई तो बात है ही, जो मैं अपने बारे में नहीं बता रहा। जब वक्त आयेगा तो बता दूंगा।” वर्मा ने शांत स्वर में कहा- “तुम अपने लोगों को इकट्ठा करो। जम्मू पहुंचने में देर हो गई तो सब मेहनत बेकार हो जायेगी।”
महाजन ने सोचों में डूबे बोतल से धूंट भरा और वर्मा को बोतल थमा कर जेब से सिक्का निकाला और रिसीवर उठाकर नम्बर डायल करने लगा।
कुछ पलों बाद ही उसके कानों में जाना-पहचाना स्वर पड़ा।
“हैलो। आधी रात को भी चैन नहीं आता लोगों को।”
महाजन के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभरी। सिक्का बॉक्स में डालने के पश्चात बात की।
“दिल के मरीज को चौबीस घंटे जागना चाहिये अजीत सिंह।” महाजन के स्वर में मुस्कान थी।
“अच्छा!” दूसरी तरफ से व्यंग से भरा स्वर, महाजन के कानों में पड़ा- “यार मेरे, ये कोई बहुत ही सीक्रेट बात होगी, जो कि तू आधी रात को फोन करके मुझे बता रहा है। हिन्दुस्तान का कोई बंदा गुप्त रूप से मंगल ग्रह पर जाकर, वापस लौट आया है क्या?”
“इस बात का मंगल ग्रह से क्या वास्ता?” महाजन कह उठा।
“इतनी बढ़िया राय मुझे दे रहा है। मैं दिल का मरीज। जिसे चौबीस घंटे जागते रहना चाहिये। ऐसी राय तो मंगल ग्रह के वासी ही, चुपके से हिन्दुस्तान वासियों को दे सकता है।” अजीत सिंह का स्वर बराबर कानों
में पड़ रहा था- “कहीं ऐसा तो नहीं, कहीं उड़नतश्तरी मंगल ग्रह से आई
हो और दिल के मरीजों के वास्ते ये राय दे गई हो।”
“सच में ये ही बात है।”
“एक काम कर मेरे भाई।” अजीत सिंह का तीखा स्वर, महाजन के कानों में पड़ा- “उस उड़नतश्तरी को रोककर रखना। मैं मंगल ग्रह के बंदे से हाथ मिलाना चाहता हूं। सुना है दूसरे ग्रह के वासी से हाथ मिलाने से दिल की बीमारी ठीक हो जाती है और दूसरे ग्रह के वासी को हो जाती है।”
“ये कोई छूत की बीमारी है जो।”
“तू जाने या...”
“मालूम नहीं रख दे बंदे । जो सुना-पढ़ा तेरे को बता दिया। आगे मंगल ग्रह के वासी ने एक बात और भी कही है।”
गुलशन वर्मा शांत निगाहों से, महाजन को देख-सुन रहा था।
“क्या? बोल, वो भी बता?”
“मंगल ग्रह के वासी का कहना है कि उन्हें अपनी उड़नतश्तरी हिन्दुस्तान में उतारने में मजा नहीं आता।”
“ऐसी क्या नाराजगी हो गई उन्हें हिन्दुस्तान से। दुश्मनों ने भड़का दिया होगा।”
“मंगल ग्रह के वासी कहते हैं कि अजीत सिंह से कहो कि हिन्दुस्तान की सीमा ईरान तक पहुंचा दे। वो हिन्दुस्तान को पहले की तरह लम्बा-चौड़ा देखना चाहते।”
“यारा!” अजीत सिंह की कांपती सी खुशी से भरी मध्यम सी आवाज कानों में पड़ी- “महाजन तू। सच में तेरी आवाज सुनकर मुझे इतनी खुशी हुई, जितनी कि मंगल ग्रह वासियों को देखकर नहीं होती। लेकिन सच में, तेरे से तो बोत नाराजगी है। झूठा भी बहुत है तू।”
“क्यों? क्या किया मैंने?”
“करना क्या है? तूने कहा था कि बहुत जल्द दूसरा काम करने को बतायेगा, देश के वास्ते। न तूने काम बताया। न फोन किया। अपना पता-फोन दिया नहीं कि…”
“कोई काम होता तो तेरे को बताता। अब तेरे को फोन किया ना?”
“बल्ले-बल्ले तो काम हत्थे चढ़ ही गया। बोल हां।”
“हां।” महाजन के होंठों के बीच मुस्कान उभर आई।
“हुक्म कर।”
“कर ले इकट्ठा सबको?”
“सब रहे ही कहां।” अजीत सिंह के गहरी सांस ने की आवाज आई- “रूपमदास, सतीश ठाकुर और लल्लू सिंह झा ने तो पहले ही मैदान मार लिया था।”
“कृष्णपाल। गौरव शर्मा । बलविन्दर सिंह और वजीर सिंह।”
“समझ गया। गौरव शर्मा और बलविन्दर सिंह का फोन नम्बर है मेरे पास है। कभी-कभी उनसे बात भी हो जाती है। कृष्णपाल के घर का भी पता है। वजीर सिंह के बारे में, इन तीनों में कोई जानता होगा।”
“अजीत!” महाजन ने गम्भीर स्वर में कहा- “इनमें से अगर कोई न आना चाहे तो जबर्दस्ती मत करना।”
“समझ गया। मिलना कहां है?”
महाजन ने मिलने की जगह बताकर कहा।
“यहां पर कब पहुंचेगा?”
“रात तो बहुत हो गई है। सबको इकट्ठा करने में सुबह के आठ-नौ तो बज ही जायेंगे।”
“ठीक है। जो जगह मैंने बताई है, नौ बजे मैं वहीं मिलूंगा।”
“इस बार जाना कहां है?”
“जम्मू? पहले भी तो उसी तरफ।”
“इस बार भी बख्तावर सिंह का मामला है।”
“वो बख्तावर सिंह, जो अबोटाबाद में, अपने ठिकाने से, हमारे डर से भाग गया था। भरा नहीं अभी तक। इस बार नहीं छोड़ेगा। उसके तो दर्शन भी नहीं किए अभी तक मैंने। फिर उसने कोई पंगा खड़ा कर दिया।”
“इस बारे में मिलने पर बात होगी। सुबह वक्त पर आ जाना।” कहने के साथ ही महाजन ने रिसीवर रख दिया।
अजीत सिंह के बारे में जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्वप्रकाशित मीना चौधरी सीरीज का उपन्यास ‘एक अनार, सौ बीमार।’
“कौन हैं ये लोग, जिन्हें तुम इकट्ठा कर रहे हो।” गुलशन वर्मा कह उठा।
“सुबह मिल लेना।”
“विश्वास के काबिल है क्या?” वर्मा गम्भीर था।
“ये लोग हर चीज के काबिल है। विश्वास तो इनके लिए मामूली चीज है।” महाजन ने मुस्कराकर दृढ़ता भरे स्वर में कहा- “ये वो लोग हैं जो देश को अपने से भी ज्यादा चाहते हैं। देश के लिए सब कुछ कर गुजर जाना चाहते हैं। इसी जज्बे के साथ, देश के सेवा के लिए मिल्ट्री में गये। लेकिन मायूस होकर इन्हें लौटना पड़ा। एक दिल का मरीज था। तो दूसरे की दोनों बांहों की लम्बाई में आधा इंच का फर्क था। तीसरे को इन्टरव्यू में पहुंचने में देरी हो गई कि अस्पताल में उसका पिता दम तोड़ रहा था। उसके बाद दोबारा इन्टरव्यू देने की उम्र निकल चुकी थी। यानि कि ऐसी छोटी-छोटी परेशानी की वजह से, ये लोग देश की सेवा करने से रह गये। जबकि इनके भीतर देश के लिए कुछ कर गुजरने की आग जल रही है।”
गुलशन वर्मा ने हौले से समझाने वाले ढंग में सिर हिलाया।
“साल भर पहले मैंने, बहुत जरूरत पड़ने पर इन लोगों को जैसे-तैसे तलाश करके इकट्ठा किया था।” महाजन का स्वर गम्भीर हो गया- “ये आठ थे और मैंने आठों को ब्रिगेड का नाम दे दिया था। जितना सोचा था उनसे ज्यादा पाया इन्हें। हर कोई एक-दूसरे से पहले अपनी जान देश के नाम लिख देना चाहता था। सच पूछो तो वक्त आने पर ये मेरे बस से भी बाहर हो गये थे और तब शायद मुझे लगा था कि इन सबको इकट्ठा करके मैंने गलती तो नहीं कर दी। लेकिन जो भी हो। सब खरा सोना निकले थे।” महाजन के स्वर में अफसोस झलक
उठा- “इनमें से तीन काम आ गये थे। रूपमदास, सतीश ठाकुर, लल्लू
सिंह झा। बाकी के पांच बचे थे। जिन्हें सुबह तुम देख ही लोगे। कोई नहीं आया या नहीं मिल पाया तो जुदा बात है।”
महाजन की ब्रिगेड के बारे में जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का, मोना चौधरी सीरीज का पूर्वप्रकाशित उपन्यास ‘एक अनार, सौ बीमार।’
“ये लोग हथियार चलाना जानते हैं?” वर्मा ने पूछा।
“बहुत बढ़िया ढंग से।”
“हथियार चलाना मामूली बात नहीं। कई तरह के हथियार होते हैं जो...’
“गुलशन वर्मा!” महाजन ने वर्मा की आंखों में देखा- “ये लोग तुमसे भी बढ़िया ढंग से हथियार चला लेते हैं। जो हथियार तुम नहीं चला सकते। वो हथियार ये चला सकते हैं। एक तरह से यूं समझो कि जो ट्रेनिंग मिल्ट्री वालों के पास होती है। वो इनके पास है।” महाजन ने, मिस्टर पहाड़िया से कहकर गुप्त रूप से इन लोगों को मिल्ट्री वालों से इन बातों की ट्रेनिंग दिलवाई थी। ये ‘एक अनार, सौ बीमार’ में दर्ज है। महाजन ने पुनः कहा।
“अब ये तुमने देखना है कि जो काम करना है, उसके लिए कितने आदमी चाहिये।
“इन पांचों की तुम जितनी तारीफ कर रहे हो। वो इसी लायक है तो फिर हमें ज्यादा आदमियों की जरूरत नहीं पड़ेगी।” गुलशन वर्मा ने गम्भीर स्वर में कहा- “जम्मू पहुंचकर, इस बारे में सोचा जायेगा।”
“वहां तुम्हें आदमी कहां मिलेंगे?”
“वहां मेरे आदमी पहुंच चुके हैं और मेरा इन्तजार कर रहे हैं।” वर्मा ने कहा।
महाजन के होंठ सिकुड़े।
“तुम अपने बारे में नहीं बताओगे।”
“बताऊंगा। लेकिन अभी नहीं।”
“मेरे साथियों को वहां हथियारों की जरूरत पड़ेगी।” महाजन बोला।
“सब इन्तजाम हुआ पड़ा है। काम कैसे करना है। सिर्फ इस पर गौर करना है।”
“अभी तुमने मुझे आधा-अधूरा ही बताया है कि जम्मू के आगे।”
“इतना ही बहुत है। कुछ बातें जम्मू के लिए भी रहने दो।” गुलशन वर्मा ने लापरवाही से कहा।
“यहां से जाने के लिए किसी बड़ी कार की जरूरत पड़ेगी। उसका इन्तजाम।”
“किसी बात की फिक्र मत करो।” लेकर घूँट भरा- “नींद आ रही है।”
“बाकी रात कहां बितानी है?” महाजन ने वर्मा के हाथ से बोतल वर्मा ने सड़क पर खड़ी कार पर निगाह मारी।
“कार की पीछे वाली सीट पर नींद ले लेना। मैं तुम्हें अपनी किसी जगह पर ले जाना ठीक नहीं समझता।”
“तुम्हारी बातें कभी-कभी मुझे समझ नहीं आतीं।” महाजन ने मुंह बनाकर कहा और बोतल से घूँट भरता हुआ, बूथ का दरवाजा खोलकर बाहर निकला और कार की तरफ बढ़ गया।
वर्मा के होंठों पर मुस्कान उभरी। वो भी बूथ से बाहर आ गया।
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