प्राचीन काल की महारानी

मेंजर और सोनिया खाना खा चुकने के बाद मेहमानखाने में बैठे विश्राम कर रहे थे। मेजर को किसी गहरे सोच में डूबा हुआ देखकर सोनिया ने शिकायत की, "आपको समझना किसी पुराने जमाने का हस्तलेख पढ़ने की तरह है। आप पल में तोला पल में माशा होते हैं और कभी तो घटकर रत्ती भर रह जाते हैं। आप तो कह रहे थे कि आप किसी विशेष काम से दिल्ली आये हैं । फिर आपने भिड़ों के छत्ते में क्यों हाथ डाल दिया है ? "


"मनुष्य के जीवन में संयोग बहुत शक्तिशाली होते हैं। मैं जिस विशेष काम दिल्ली से आया था। वह संयोग से इसी इण्टरनेशनल म्यूजियम में बनता दिखाई दे रहा है । "


इण्टरनेशनल म्यूजियम में इन्स्पेक्टर धर्मवीर बड़ी अधीरता से मेजर बलवन्त की प्रतीक्षा कर रहा था । डाक्टर बनर्जी अभी तक सोए पड़े थे। राजेश और मिसेज रजनी अभी वापस नहीं आए थे । फोटोग्राफर लाश के चित्र ले चुका था और जंगलियों के निशानों का माहिर भी अपना काम समाप्त कर चुका था। तभी मेजर और सोनिया आ पहुंचे ।


"हमें कोताही से काम नहीं लेना चाहिए ।" मेजर ने कहा । 


मेजर डाक्टर बनर्जी के पढ़ने के कमरे से गुजरकर उनके सोने के कमरे तक पहुंच गया जिसका दरवाजा भीतर से बन्द था। उसने बाहर की पीतल की कुंडी ज़ोर से खटखटाई | 


कुछ क्षणों बाद कमरे के भीतर से चटख की आवाज़ के साथ दरवाजा खोला गया । दरवाजे के पीछे चालीस की उम्र का एक व्यक्ति खड़ा था । उसने गहरे नीले रंग का नाइटसूट पहन रखा था। उसके बाल बिखरे हुए थे और आंखें नींद के बोझ से मिच्ची हुई थीं। क्षण भर के लिए वह सब पहचानने की कोशिश करता रहा जब वह ठीक ढंग से देखने के योग्य हो गया। अपने सामने तरह-तरह के लोगों को देखकर चकित रह गया। 


"आह !" उसके मुंह से निकला, "दोपहर हो चुकी है। आज तो मैं बहुत देर तक सोता रहा। क्षमा कीजिए, आप सब मेरे लिए अपरिचित हैं। खैर, आइए । आपका स्वागत करता हूं।" 


डाक्टर बनर्जी पढ़ने के कमरे में प्रविष्ट हुआ और उसने सबको बैठ जाने का संकेत किया, "मुझे डाक्टर बनर्जी कहते हैं।" उसने बैठते हुए कहा। इंस्पेक्टर धर्मवीर ने अपना, मेजर और सोनिया का परिचय कराया ।


"क्या हुआ है ? क्या रात को चोरी तो नहीं हो गई ! " परिचय के बाद डाक्टर बनर्जी ने आश्चर्य से पूछा, "मैं हमेशा डरता रहता हूं, लेकिन दीवान साहब चौकीदार रखना पसन्द ही नहीं करते।"


"डाक्टर साहब, चोरी की वारदात तो नहीं हुई, लेकिन...” इन्स्पेक्टर धर्मवीर अपनी बात कहते-कहते रुक गया, क्योंकि मेजर डाक्टर के पैरों की ओर देख रह था । इस्पेक्टर भी डाक्टर के पैरों की ओर देखने लगा। उसे बड़ी निराशा हुई क्योंकि डाक्टर ने टेनिस शू नहीं, बल्कि कपड़े के स्लीपर पहन रखे थे ।


डाक्टर साहब, चोरी की वारदात तो नहीं हुई, लेकिन उससे भी ज्याद दुःखद दुर्घटना हो गई है।" इन्स्पेक्टर ने बात जारी रखते हुए कहा, "आप जरा नीचे अजायबघर में चलिए। हमें आपकी सहायता की जरूरत है।"


"दुर्घटना ! कैसी दुर्घटना ?" डाक्टर ने उठते हुए कहा ।


सीढ़ियां उतरते हुए मेजर ने कहा, "दीवान सुरेन्द्रनाथ की मृत्यु हो गई है ।” 


"दीवान सुरेन्द्रनाथ की मृत्यु ?" डाक्टर ने आश्चर्य से कहा, "नहीं नहीं ऐसा कैसे हो सकता है ! अभी तो रात को मैंने उनसे भेंट का समय तय किया था । उनको सुबह नौ बजे मेरे पास आना था-ओह, दीवान साहब की मृत्यु हो गई है ? मेरे काम का क्या होगा ! मेरा तो जीवन ही नष्ट हो जाएगा !"


इन्स्पेक्टर ने देखा कि डाक्टर की टांगें कांप रही थीं और वह बड़ी मजबूती से रेलिंग का सहारा लेकर सीढ़ियां उत्तर रहा था।


"उनकी हत्या कर दी गई है।" इन्स्पेक्टर ने कहा ।


"हत्या —ओह, नहीं ! "


अजायबघर में पहुंचकर डाक्टर को अफ्रीकी देवी-देवताओं की मूर्तियों वाले कमरे में ले जाया गया और मेजर दीवान सुरेन्द्रनाथ की लाश की ओर संकेत किया । 


डॉक्टर दो मिनट तक निश्चेष्ट-सा एकटक दीवान साहब की लाश की ओर देखता रहा। फिर उसकी नजरें देवी की मूर्ति पर जमकर रह गई। इस बीच में हव्शी सिद्दीकू भी दवे पांव वहां चला आया था।


डॉक्टर ने उसे देखा तो उसके तन-बदन में जैसे आग लग गई, "सिद्दीकू..।" उसने कर्कश स्वर में कहा, "इसका क्या मतलब है ? तुमने मेरे जीवन को नरक बना दिया है। तुम हमेशा मेरे रास्ते में बाधाएं खड़ी कर देते हो। तुम मेरे विरुद्ध मेरी पत्नी के कान भरते रहते हो। मेरी पत्नी तुम पर विश्वास करती है। उसे तुमसे कुछ लगाव भी है। इसीलिए मैं तुम्हें सहन करता आ रहा हूं, वर्ना..." 


डाक्टर होंठों से निकलते झाग पौंछने के लिए रुका, “जो व्यक्ति मेरे जीवन की सबसे बड़ी आकांक्षा पूरी कर सकता था, उसकी हत्या कर दी गयी है। बताओ, किसने दीवान साहब की हत्या की है ?"


हब्शी ने दबते हुए किंचित तीखे स्वर में कहा, "मैं उनकी हत्या के बारे में कुछ नहीं जानता । मैं तो बस इतना ही समझ सका हुं कि देवी जुम्बी ने बदला लिया है।" 


"जूम्बी ! एक पत्थर की मूर्ति किसी से क्या बदला ले सकती है ? सुनो सिद्दीकू ! तुम इस समय हब्शियों और जंगलियों के संसार में नहीं हो । तुम एक सभ्य सुसंस्कृत दुनिया में सांस ले रहे हो | सच बताओ, दीवान साहब की हत्या की है ?


"मैं तो अपने कमरे में बीमार पड़ा था । " 


"तुम झूठ बोलते हो ।" डाक्टर बनर्जी क्रोध में सिद्दीकू की ओर बढ़ा, लेकिन मेजर ने उसे बांह से पकड़ लिया और कहा - "डाक्टर साहब ! हम जानते हैं कि इस समय आपके दिल की क्या हालत हो रही है, लेकिन इस तरह उत्तेजित होने से मामला सुलझ नहीं सकेगा।"


"आप नहीं जानते, यहां जरूर कोई फितना जगाया जा रहा है।" 


"जगाया क्या जा रहा है, फितना जाग चुका है।" मेजर ने कहा, "आप जरा शांत हो जाइए और यह बताइए कि आज रात आप किस समय सोए थे । "


“रात-भर नहीं सो सका था। कहीं सुबह जाकर मेरी आंख लगी थी — और सोने से पहले रूपा दो टोस्ट और काफी बनाकर मेरे लिए लाया था।" !


" उस समय कितने बजे थे ? "


"छः बजे होंगे । टोस्ट मुझसे खाएं नहीं गए-काफी मैंने जरूर पी ली थी । बस मुझे इतना याद है । "


"आप रात-भर क्यों नहीं सोए थे ?"


"मुझे दीवान् साहब के लिए एक रिपोर्ट तैयार करनी थी। मुझे क्या खवर थी कि जब मैं सोकर उठूगा तो अपने उपकारी से वंचित हो जाऊंगा । आह ! " 


“आपने अपनी रिपोर्ट किस समय पूरी की थी ? " मेजर ने पूछा । " 


"सुबह साढ़े पांच बजे ।" 


“वह रिपोर्ट कहां है ?" 


“मेरे पढ़ने के कमरे की मेज पर | ठहरिए, मैं वह रिपोर्ट लाता हूं।" डाक्टर जाने लगा तो मेज़र ने हाथ के संकेत से उसे रोक लिया ।


“वह रिपोर्ट मेरे पास है । यह रिपोर्ट दीवान साहब की मुट्ठी में थी ।" मेजर ने जेब से रिपोर्ट का कागज निकालते हुए कहा ।


डाक्टर बनर्जी ने उस कागज की ओर देखा और उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं, "यह कागज दीवान साहब की मुट्ठी में था ? "


"जी हां, ऐसा मालूम होता है कि जब आप सो रहे थे तो कोई आपकी मेज़ पर से यह रिपोर्ट उठा लाया था।"


" हो सकता है कि स्वयं दीवान साहब उठा लाए हों । " डाक्टर ने कहा । 


"क्या आप अपने पढ़ने के कमरे का दरवाजा खुला रखते हैं ? " 


"जी हां, लेकिन मैं यह पूछना चाहता हूं कि मेरी मेज पर से रिपोर्ट उठाई किसने ?”


"यही तो हम भी जानना चाहते हैं । " मेजर ने कहा, "डाक्टर साहब, आप बता सकते हैं कि राजेश कहां गया है ? वह सुबह से घर में नहीं है।"


"मैंने कल रात उससे कहा था कि वह सर्वे विभाग में जाये और वहां से कश्मीर के इलाके का नक्शा नकल करके लाए जहां हम पुरातत्त्व अवशेषों की खुदाई शुरू करना चाहते हैं। राजेश भी मेरी इस मुहिम में बड़ी दिलचस्पी दिखा रहा था इसलिए वह सुबह ही घर से निकल गया होगा।"


"वह अभी आया क्यों नहीं ?


“काम समाप्त करके ही आएगा। वह बड़ा जिम्मेदार युवक है।"


धर्मवीर को लगा कि वह डाक्टर से प्रश्न पूछने में पीछे रह जाता है, इसलि उसने प्रश्न किया, "डॉक्टर साहब, आपके पास एक टाई पिन है जो नेरान्बू जाति के सरदार वोरगेवो की मुहर का बना हुआ है ?"  


"मेरे मोने के कमरे में होगा। आप उसे देखना चाहते हैं ?"


"वह टाई पिन हमारे पास है-और दीवान साहब की लाश के पास पड़ा हुआ था।"


"मेरी तो बुद्धि काम नहीं कर रही ।" डाक्टर बोला ।


"सुनिए, हम यहां यह जानने के लिए आये हैं कि दीवान साहब की हत्या किसने की है।" इन्स्पेक्टर ने किंचित कड़े स्वर में कहा, "इस समय तक हमें जो कुछ मालूम हुआ है उससे यही सिद्ध होता है कि आपके सिवा और किसी ने दीवान साहब की हत्या नहीं की। आपकी रिपोर्ट और आपके टाई पिन की बात अलग रही, लाश से सीढ़ियों तक खून लगे कदमों के निशान भी मौजूद हैं।"


मेजर ने हस्तक्षेप करते हुए कहा, "इन्स्पेक्टर साहब, आप बिलकुल ठीक कहते हैं, लेकिन डाक्टर साहब को इस प्रकार परेशान करने से कुछ लाभ नहीं होगा।"


क्या आप समझते हैं कि मैंने दीवान साहब की हत्या की है ?" डाक्टर ने इन्स्पेक्टर से सम्बोधित होते हुए कहा, "मैं आप को यह बता दूं कि मैं आज सुबह छ: बजे से सोया पड़ा हूँ। मुझे तो इस बात का भी ज्ञान नहीं कि दीवान साहब कब यहां आए और कब उनकी हत्या कर दी गई।"


इतने में बाहर कुछ शोर हुआ और फिर एक नारी-स्वर सुनाई दिया, "यह है ? यह मेरा घर है और मुझे अपने घर में नहीं घुसने दिया जा रहा।"


कुछ क्षण बाद सत्ताईस अट्ठाईस वर्ष की एक अत्यन्त रूपवती स्त्री ने कमरे में प्रवेश किया। उसने बहुत ही चुस्त वस्त्र पहन रखे थे जिनमें से उसके शरीर का अंगबंग फूटा पड़ता था। उसके सिर पर जो टोपी थी, वह किसी प्राचीन रोमन महारानी के ताज जैसी थी। उसने वहां अपरिचित व्यक्तियों की मौजूदगी की कोई परवाह न की और आते ही अपने पति के गाल पर चुम्बन देकर बोली, "यहां यह क्या हो रहा है ?" फिर एकाएक उसकी नजर दीवान सुरेन्द्रनाठ की लाश पर पड़ी और वह अपनी छाती पर हाथ रखकर मौन हो गई । 


रजनी के गालों पर आंसू ढलक आये ।


“ये लोग कह रहे है कि तुम्हारे चाचा की हत्या कर दी गई है— और हत्यारा मुझे समझा जा रहा है।"


मेजर ने फिर हस्तक्षेप किया, "देखिए, डाक्टर साहब गलतवयानी से काम ले रहे हैं। हमने इन पर ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया। हम इस दुःखद दुर्घटना की छानबीन कर रहे है। बात यह हुई है कि इनका टाई पिन हमें दीवान साहब की लाश के पास मिला।"


"टाई पिन मिला है तो इससे क्या होता है ?"


आपने बिल्कुल ठीक कहा है कि लाश के पास डाक्टर साहब के टाई पिन का मिलना इनको अपराधी नहीं बना देता, क्योंकि कोई व्यक्ति भी वह टाई पिन उठाकर लाश के पास रख सकता था।"


रजनी के स्वर में फिर दुःख-दर्द सिमट आया, "जिस कमीने से भी यह अत्याचार किया है, मैं चाहती हूं कि उसे तुरन्त गिरफ्तार किया जाए। मैं आपकी हर संभव

सहायता करने के लिए तैयार हूं।"


“धन्यवाद ! " मेजर ने कहा, "अगर आपकी सहायता की जरूरत पड़ी तो जरूर आपको कष्ट दिया जाएगा। इस समय आपकी सहायता की जरूरत नहीं है । आप जाकर आराम कीजिए । थोड़ी देर के बाद मैं आपसे कुछ पूछने के लिए आऊंगा ।" 


रजनी चली गई तो हब्शी सिद्दीकू भी उसके पीछे-पीछे हो लिया। दस मिनट के भीतर-भीतर दीवान सुरेन्द्रनाथ की लाश अजायबघर से उठाकर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दी गई ।


मेजर अब उस, अलमारी को ध्यान से देख रहा था जिस पर बदले या प्रतिशोध की देवी जूम्बी की मूर्ति रखी गई थी। फिर वह अलमारी के पीछे लटके हुए पर्दे को गह्ररी नजरों से देखने लगा । उसकी नजर उस गोल और लम्बी लकड़ी पर जमी हुई थी जिसमें पड़े हुए पीतल के छल्लों से पर्दा टंगा हुआ था । मेजर की नजरें पर्दे पर से घूमती हुई जमीन पर जमे हुए खून के बहुत बड़े धब्बे पर आकर रुक गई । 


ऐसा मालूम होता था कि वह नजरों ही नजरों में पर्दे और खून के उस धब्बे के बीच का फासला माप रहा था । “आश्चर्य है ! " मेजर बड़बड़ाया । 


इसके बाद उसने एक कुर्सी वहां रख दी जहां अलमारी के सामने सुरेन्द्रनाथ का फटा हुआ सिर पड़ा रहा था । इसके बाद वह कुर्सी पर चढ़कर अलमारी के ऊपरी भाग का निरीक्षण करने लगा । "आश्चर्य है ! विल्कुल अचम्भा ! " मेजर फिर बड़बड़ाया । उसने अपनी जेब से फिर सूक्ष्मदर्शक यन्त्र निकाला और अपनी दाईं आंख पर उस शीशे को टिकाकर अलमारी का ऊपरी भाग बड़े गौर से देखने लगा । फिर उसने अलमारी के ऊपरी भाग से कोई चींज उठाई और जल्दी से अपनी जेब में डाल ली ।


" हत्या की यह बहुत ही अनोखी वारदात है !" उसने कुर्सी पर से उतरते हुए कहा ।


कुछ क्षण वाद राजेश ने अजायबघर में प्रवेश किया । वह क्रोध से लाल हो रहा था । उसने डाक्टर बनर्जी को सम्बोधित करते हुए कहा, "इन लोगों को यहां आने की किसने इजाजत दी है ? ऐसा मालूम होता है कि इन्होंने हमारे मकान पर कब्जा कर लिया है— यह क्या हिमाकत है ?" 


मेजर ने राजेश को सिर से पांव तक देखा । 



“राजेश ! तुम्हारे चाचा की किसी ने हत्या कर दी है और ये लोग यहां तफतीश के लिए आए हैं। अभी पन्द्रह मिनट पहले तुम्हारे चाचा की लाश यहीं इस कमरे में पड़ी थी ।" डॉक्टर बनर्जी ने कहा ।


"मेरे चाचा की हत्या कर दी गई है ! " राजेश ने धीमे स्वर में कहा और उसका रंग पीला पड़ गया। वह अलमारी के सामने रखी हुई कुर्सी पर जा बैठा । कुर्सी पर बैठते ही वह धम् से फर्श पर गिर पड़ा । वह बेहोश हो चुका था ।


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