श्रीकांत मेनन के टेलीफ़ोन की घंटी बजी। वह अपने ऑफिस में एक फ़ाइल में उलझा हुआ था। उसने फोन की स्क्रीन पर देखा। आईबी डायरेक्टर राजीव जयराम का नंबर फोन की स्क्रीन पर फ्लैश हो रहा था। उसने फोन अटेंड किया।

“हैलो श्रीकांत! तैयार हो जाओ और अगली फ्लाइट से मुंबई पहुँचो। मोस्ट अर्जेंट।” डायरेक्टर राजीव जयराम का स्वर उभरा।

“यस सर। एनीथिंग इंट्रेस्टिंग। हुआ क्या ?”

राजीव जयराम ने बताया

“वहाँ अंधेरी में एसीपी आलोक देसाई तुम्हारे साथ फील्ड वर्क में सहयोग करेंगे। टेक सपोर्ट के लिए नैना दलवी तुम्हारे साथ रहेंगी। वो यहाँ की टीम के साथ कॉन्टैक्ट में रहेगी और इंटेल इनपुट तुम्हें देती रहेंगी।”

“इतनी सारी भागदौड़ इसलिए कि एक नेता का बेटा नहीं मिल रहा?”

“नेता का बेटा नहीं पूरी की पूरी बस नहीं मिल रही... बस तो मिल गयी है पर सवार गायब हैं। मुंबई पुलिस इसे अब तक अपनी रूटीन के हिसाब से डील कर रही थी पर अब लश्कर-ए-जन्नत का दखल होने के बाद हमें इसे सीरियसली लेना पड़ेगा।”

श्रीकांत मेनन का दिमाग उस परिस्थिति का जायजा लेने लगा जिसमें कई आयाम जुड़े थे। श्रीकांत मेनन के लिए यह कोई नयी बात नहीं थी। इससे पहले भी वह देश-विदेश में ऐसे कई प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक निपटा चुका था।

राजीव जयराम ने उसके ईमेल पर सारी जानकारी भेज दी थी। इसके साथ ही में उसे एक फ़ाइल मिली जिसमें उसके लिए सारे जरूरी कागजात थे और उसकी फ्लाइट की टिकिट भी उसमें झाँक रही थी। वह तुरंत एयरपोर्ट के लिए रवाना हुआ।

फ्लाइट में बैठने के कुछ देर बाद अपनी बगल वाली सीट पर किसी के आने के एहसास से उसकी तंद्रा भंग हुई।

“हैलो मिस्टर मेनन। आई एम नैना। नैना दलवी।”

उसने ऊपर सिर उठा कर देखा। उसे लगा कि जैसे पूरी की पूरी बहार वहाँ चली आयी थी।

“ओह! हैलो नैना! मैं भी सोच रहा था कि कौन होगा मेरा हमसफर। पर इतना हसीन साथ होगा इसकी तो मुझे उम्मीद नहीं थी।”

“आप श्रीकांत मेनन हैं या मुझे सरनेम गलत बताया है... आप शायद श्रीकांत अख्तर हैं या रोमियो मेनन!”

“अरे नहीं, आप को सही नाम बताया गया है और जो मैंने कहा है उसमें मेरा कसूर नहीं है। जहाँ तक अंदाज़ की बात है तो वह सिर्फ़ फ्लाइट तक है। खैर छोड़िए... आप अपनी सीट लीजिये। अपना डिपार्टमेंट भी अपने लोगों का पूरा ख्याल रखता है।”

“मतलब ?”

“मतलब ये है कि हम लोग फ्लाइट से जा रहे हैं। और साथ में जा रहे हैं। क्विक एंड प्रॉम्प्ट एक्शन।” श्रीकांत मेनन ने विनोद पूर्ण स्वर में कहा।

फिर सारे सफर में उन दोनों के बीच कोई खास बात नहीं हुई। दोनों अपनी आगे की मंजिल के बारे में सोच रहे थे।

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मुंबई

पुलिस कमिश्नर धनंजय रॉय ने उस महत्वपूर्ण टेलीकॉन्फ्रेंस के बाद तुरंत अंधेरी पुलिस स्टेशन की तरफ रुख किया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अभिजीत देवल जैसा ऑफिसर जब उससे टेलीकॉन्फ्रेंस के माध्यम से इस मामले में आपातकालीन वार्तालाप करता है तो इसका मतलब यह था कि यह मामला जितना दिखाई दे रहा था, उससे ज्यादा गंभीर था।

‘सिग्मा ट्रेवल्स’ के ड्राइवर राकेश की लाश की बरामदगी की सूचना उसे आलोक देसाई के मार्फत मिल चुकी थी। फोन पर ही उसने आलोक देसाई को भी अंधेरी पहुँचने के लिए कह दिया था। साथ में ही उसने मुंबई के डीसीपी साइबर क्राइम और डीसीपी क्राइम डिटेक्शन ब्रांच को अंधेरी पुलिस स्टेशन में एक घंटे के भीतर एक टेंपरेरी यूनिट स्थापित करने के लिए आदेश दे दिये थे। जब धनंजय रॉय अंधेरी पुलिस स्टेशन पहुँचे तो उससे कुछ देर पहले ही सुधाकर शिंदे और मिलिंद राणे वहाँ पर पहुँचे थे।

मुंबई के पुलिस कमिश्नर को इस वक्त सामने देख सुधाकर शिंदे को बड़ा आश्चर्य हुआ। अभी कल ही तो वह उससे रूबरू हुआ था। आलोक देसाई भी कमिश्नर के साथ-साथ ही पुलिस स्टेशन पहुँचा। कमिश्नर धनंजय रॉय सीधा सुधाकर के ऑफिस में पहुँचे।

“क्या नीलेश केस में कल से आगे कोई प्रोग्रेस हुई है, सुधाकर?” कमिश्नर रॉय ने सुधाकर से पूछा।

“सर, राकेश की लाश मिलने के बाद हमने सोमू से मिली जानकारी पर काम करते हुए राहुल तात्या नाम के एक आदमी का पता लगाया है। इस आदमी ने ही सोमू को सिग्मा ट्रैवल के बस चलाने के लिये एक दिन की दिहाड़ी पर रखवाया था”

“तो फिर अब कहाँ है वो आदमी?”

“सर वो आदमी पिछले तीन दिन से गायब है। उसके आसपास के लोग कहते हैं कि अपने गाँव गया है।”

“गाँव यहीं कहीं मुंबई के आसपास है तो पकड़ो उसे। चाहे कहीं भी हो ढूँढो।”

“सर, उसका गाँव उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के पास है, तुग़लक पुर।”

“हमारे आदमी वहाँ जाकर इस बात की पड़ताल करें तो काफी समय लग सकता है। इतना समय नहीं है हमारे पास। आलोक सहारनपुर के एसपी को काल करो और मेरी बात करवाओ उनसे।”

इतना सुनकर आलोक देसाई अपने फोन पर उलझ गया। नेट से नंबर लेकर उसने फोन मिलाया। सहारनपुर के एसपी का नाम रजनीश उपाध्याय था। तीन-चार बार फोन कीघंटीजाने पर भी जब फोन नहीं उठाया गया तो उसने ऑफिस के नंबर पर फोन मिलाया।

वहाँ पर स्टेनो ने फोन उठाया तो आलोक देसाई ने उसे मामला समझाया और कहा कि अपने एसपी को उसका फोन नंबर बताकर यह आगाह कर दे की फोन कहाँ से आ रहा था और उसे उठाने की हिदायत दे दे। उससे बात करने के पाँच मिनट के बाद आलोक ने फिर एसपी सहारनपुर को फोन मिलाया। अब की बार उसका फोन तुरंत उठाया गया। आलोक ने धनंजय रॉय की तरफ देखा। राय ने फोन उसे देने का इशारा किया।

“हैलो मिस्टर रजनीश। इट्स धनंजय रॉय, पुलिस कमिश्नर, मुंबई। असल में आपसे हमें एक आदमी राहुल तात्या के बारे में जानकारी चाहिए। वो यहाँ पर एक वारदात में संलिप्त है। हो सके तो आज ही उसके बारे में हमें उसका कच्चा चिट्ठा मिल जाना चाहिए। इट्स वेरी-वेरी अर्जेंट।”

“यस सर। आज हो जाएगा। जब आप खुद इस बारे में बात कर रहें हैं तो मैं समझ सकता हूँ कि मामला कितना संगीन होगा।”

“संगीन नहीं बेहद संगीन। आइ होप टु हियर सम न्यूज़ फ्राम यूअर साइड। नाऊ मिस्टर आलोक देसाई विल प्रोवाइड यू आल द पर्टिकुलर्स रिगार्डिंग दिस पर्सन।”

इसके बाद आलोक देसाई ने फोन पर सारी डिटेल और उसके घर से बरामद फोटो रजनीश उपाध्याय के फोन पर भेज दी।

“आलोक, अब तुम इस ऑपरेशन के इंचार्ज हो। जो भी तुम्हें जरूरत हो उसके लिए तुम्हें उसकी पूरी छूट है। डीसीपी साइबर क्राइम और डीसीपी क्राइम डिटेक्शन ब्रांच को यहाँ पर एक घंटे के भीतर टेंपरेरी यूनिट स्थापित करने के लिए आदेश दे दिये हैं। जरूरत पड़े तो एटीएस से भी तुम सपोर्ट ले लेना।”

“यस सर। मैं आपको कुछ कहना चाहता था।”

“बोलो। फ़ाइनेंस की हेल्प के लिए भी तुम सीधे मुझसे बात करना। आई विल सी टू इट। और कुछ?”

“मुझे इस ऑपरेशन में एक आदमी चाहिए।”

“कौन?”

“नागेश कदम!”

नागेश कदम का नाम सुनकर धनंजय रॉय के साथ-साथ सुधाकर शिंदे भी चौंका।

नागेश कदम मुंबई पुलिस का जाँबाज लेकिन सबसे विवादित पुलिस इंस्पेक्टर था। वह अपराधियों के लिए काल का स्वरूप था। फिलहाल उसे एक एनकाउंटर के सिलसिले में सस्पेंड किया हुआ था। उसके दोस्त और दुश्मन दोनों तरफ थे। पुलिस में भी और अंडरवर्ल्ड में भी। सुधाकर का वह जिगरी दोस्त था और उसे ‘भाऊ’ कहकर बुलाता था।

“नागेश कदम। देट ब्रूटल एंड इनसेन मैन। जो लोगों से बात बाद में करता है, गोली पहले मारता है। द मोस्ट कॉन्ट्रोवर्सियल एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ऑफ मुंबई पुलिस। ही इज़ सस्पेंडेड अंडर इंक्वायरी। ऐसे आदमी को तुम अपने साथ इस मिशन में रखना चाहते हो।” कमिश्नर रॉय हैरानी से बोले।

“जी सर। इन तमाम खामियों के बावजूद मैं उसे इस मिशन में अपने साथ रखना चाहता हूँ। वो एक जाँबाज पुलिस ऑफिसर है और उसका खुफिया नेटवर्क हमारे बहुत काम आएगा। अगर हमारे पास समय की कमी नहीं होती तो मैं आपसे ये बात न कहता।” आलोक देसाई ने अपना पक्ष रखा।

“लेकिन वो आदमी सस्पैंड है और उसके खिलाफ हत्या के मामले में इंक्वायरी चल रही है जिसे वह एनकाउंटर बताता है। मानवाधिकार आयोग के लोग उसे पानी पी-पी के कोसते हैं। ऐसे आदमी को खड़े पैर मैं इस मामले में काम करने की इजाजत नहीं दे सकता। नो... नेवर।”

आलोक देसाई ने असहाय भाव से अपनी गर्दन हिलाई।

“मुझे एक घंटे में हाई अथॉरिटीज को जवाब देना है। कीप मी इन्फॉर्म्ड आलोक।”

इतना कहकर धनंजय रॉय ने हवा के बगोले की तरह वहाँ से प्रस्थान किया। उसके जाने के बाद आलोक देसाई ने अपना फोन निकाला और नागेश कदम का नंबर मिलाया। सुधाकर शिंदे के चेहरे पर एक मुस्कान दिखने लगी।

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‘विस्तारा’ की फ्लाइट ने ‘छत्रपति शिवाजी टर्मिनल’ के रनवे को कोई सवा दो घंटे बाद छुआ। श्रीकांत मेनन और नैना दलवी को रिसीव करने के लिए कमिश्नर ऑफिस के मार्फत गाड़ी पहले से वहाँ पर मौजूद थी जो उन्हें लेकर सीधा अंधेरी पुलिस स्टेशन पहुँची।

आलोक देसाई अभी अंधेरी पुलिस स्टेशन पर ही मौजूद था। उसने श्रीकांत मेनन और नैना दलवी को ऑफिस में रिसीव किया। एक अलग रूम में उनकी टीम का वर्किंग स्टेशन सेट कर दिया गया था।

“तो आप लोग इस केस पर पहले से लगे हुए हैं मिस्टर आलोक?” श्रीकांत बोला।

“जैसी अर्जेंसी कमिश्नर साहब ने दिखाई है, उस को देखते हुए लगता है मामला बहुत गंभीर है। इसीलिए हम पहले से ही यहाँ पर काम कर रहें है।” आलोक ने श्रीकांत को देखते हुए कहा।

“हमारे लिए तो सब कुछ ही गंभीर होता है। एक आदमी की बात होती तो और बात थी पर यहाँ पर एक नेता का बेटा लापता हो गया है और उसका अभी कुछ अता-पता नहीं है। साथ में रिपोर्ट मिली है कि उसके साथ और लोग भी गायब हैं तो मामला गंभीर ही है। सो लेट्स डू दिस जॉब। नैना, टेक यूअर चार्ज एंड अपडेट मी अबाउट द रूट्स टेकेन बाई दैट बस।” श्रीकांत ने अपने हाथों को झटकते हुए कहा जैसे अपनी थकान को उतार रहा हो।

नैना सहमति में सिर हिलाती हुई उस रूम में लगे उस एरिया में चली गयी जहाँ पर कंप्यूटर स्क्रीन जगमगा रही थी। उसने वहाँ काम कर रहे कंप्यूटर ऑपरेटर को उन जगहों की ट्रैफिक की रिकॉर्डिंग को चेक करने के लिए कहा जहाँ से वह बस गुजरी थी। ट्रैफिक की रिकॉर्डिंग देखने के लिए टाइम फ्रेम सुबह और शाम की ऑफिस टाइमिंग ही रखी गयी थी।

“आलोक, उस बस के पैसेंजर्स को ढूँढने के लिए हमें फोर्स लगानी पड़ेगी। सभी बैरियर्स से रिपोर्ट सीधा हमारे पास आए, ऐसा कंट्रोल रूम को बोल दो। मुंबई से बाहर जाने वाले वाहन की बारीकी से जाँच होनी चाहिए।” श्रीकांत ने कहा।

“इस बात के लिए हमने कल ही सभी को सतर्क कर दिया था। कंट्रोल रूम इंचार्ज को मैं बोल देता हूँ कि वो सीधा यहाँ अंधेरी पुलिस स्टेशन के टच में रहे।” आलोक देसाई ने जवाब दिया।

“मुझे अंधेरी वेस्ट से लेकर पनवेल तक के ऐसी सभी जगहों की लिस्ट चाहिए जहाँ पर गोदाम या गैरेज टाइप के स्टोर हों। दूसरा अपने सभी कॉन्टैक्ट्स को एक्टिव कर दो कि कहीं से भी किसी ढाबे या होटल से पंद्रह-बीस लोगों की खाने की या इस तरह की डिमांड एक दम से बढ़ती नज़र आये तो तुरंत यहाँ पर खबर करें।” श्रीकांत ने सुझाया।

“ठीक है। मैं अपने आदमियों को इस काम पर लगाता हूँ। ये भी तो हो सकता है उन पंद्रह आदमियों को किसी बस में ही कहीं ले जाया गया हो।” नैना ने अपनी राय रखी।

“हम्म, हमने इस बारे में जानकारी जुटाई थी। लेकिन मुझे नहीं लगता कि वो लोग इस बारे में इतना बड़ा रिस्क लेंगे। बस जैसा व्हीकल तो बड़ी आसानी से नोटिस में आ सकता है। मुंबई में खुलेआम ऐसा करना मुमकिन नहीं लगता।” आलोक ने तुरंत जवाब दिया।

“फिर अगर ऐसा नहीं है तो हो सकता है उन पंद्रह आदमियों को छोटे ग्रुप्स में अलग किया गया हो?” श्रीकांत बुदबुदाया।

“मुमकिन है! पर इसके लिए तो ज्यादा आदमी और व्हीकल भी ज्यादा चाहिए। मुझे नहीं लगता कि वो लोग इतना रिस्क उठाएँगे। मान लो कि कोई सेवन सीटर या एट सीटर वो लोग लेते है तो उन्हें कम से कम एक ड्राइवर और ड्राइवर के साथ दो या तीन आदमियों की जरूरत पड़ेगी और इस हालत में वो लोग तीन से ज्यादा लोगों को साथ नहीं ले जा सकते हैं। इस हिसाब से पंद्रह से सोलह आदमियों का ग्रुप इस वारदात को अंजाम देने के लिए चाहिए।” आलोक ने अंदाजा लगाने की कोशिश की।

“पंद्रह सोलह आदमी। किडनैप जैसी वारदात के लिए इतने आदमी मुमकिन तो नहीं लगते। मेरे ख्याल से तो आदमी कम से कम होने चाहिए और वो लोग कहीं पर बंधक होने चाहिए।” श्रीकांत ने सिर खुजाते हुए कहा।

“तो हम लोग तलाशी से शुरुआत करते हैं और नाकाबंदी तो हमने कर ही दी है। मेरे आदमी सभी टोल ब्रिज पर वीडियो फुटेज खंगाल रहे हैं कि कोई संदिग्ध गाड़ी और खासतौर पर वो स्केच वाला आदमी तो कहीं से मुंबई से बाहर तो नहीं निकला।” आलोक ने बताया।

“उन्हें कहो कि अपना ध्यान बड़ी सवारी गाड़ी पर खास तौर पर रखें।” श्रीकांत ने कहा। “और वह स्केच नैना को दो। नैना, अपने डेटाबेस में देखो। ये आदमी कौन है?” श्रीकांत बोला।

सुधाकर ने वह स्केच नैना को दिया और उसने अंधेरी से पनवेल तक के रास्ते में आने वाले उन गोदामनुमा इमारतों की लिस्ट दी जो उसने पिछली वारदातों को मद्देनज़र रखते हुए एक बार पहले तैयार की थी।

आलोक ने ऐसे सभी ठिकानों की तलाशी के लिए अंधेरी से पनवेल के थानों में निर्देश जारी करवा दिये। उन्हें तलाश एक ऐसी जगह की थी, जहाँ पर पंद्रह आदमियों को बंधक बना कर एक जगह पर रखा गया हो।

सुधाकर और मिलिंद राणे ने अंधेरी में ऐसे ठिकानों की तलाशी का अभियान शुरू किया। साथ में उन्हें उस आदमी की भी तलाश थी जिसने सिग्मा की बस को सोमू को सौंपा था।

इस बात की तफतीश के लिए सुधाकर ने एक बार ‘विस्टा टेक वर्ल्ड’ के ऑफिस में, जो कि नवी मुंबई में बेलापुर रोड़ पर तुर्भे में सैक्टर ट्वेंटी टू में था, जाने का निश्चय किया।

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दिल्ली

अभिजीत देवल और राजीव जयराम के बीच में संसद मार्ग पर अभी मीटिंग चल ही रही थी कि अभिजीत देवल का फोन बजा। फोन पर नंबर देख कर उन्होंने तत्काल कॉल को रिसीव किया। फोन पर बात मुकम्मल हो जाने पर उन्होंने राजीव जयराम को अपनी कार्यवाही जारी रखने के लिए कहा और खुद नॉर्थ ब्लॉक पर स्थित केंद्रीय सचिवालय की तरफ रवाना हो गए जहाँ गृहमंत्री उनका इंतजार कर रहे थे।

ऑफिस में पहुँचने पर गृहमंत्री के सचिव ने उन्हें रिसीव किया। जब वे मीटिंग हॉल में पहुँचे तो वहाँ पर गृहमंत्री के साथ ‘जन विकास पार्टी’ का सुप्रीमो योगराज पासी भी मौजूद था।

योगराज उत्तर भारत की राजनीति में अच्छा खासा दखल रखता था। उसकी पार्टी ने पिछले कुछ सालों में अपने वोटरों में अच्छी ख़ासी जगह बना ली थी और हर बार उसका वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ रहा था। ‘जन विकास पार्टी’ ने अबकी बार इतने सांसद पार्लियामेंट में भेजे थे कि उसके समर्थन के बिना केंद्र में सरकार चलना मुश्किल थी।

इस बात की अहमियत को योगराज भी समझता था और केंद्र सरकार भी। इसी कारण योगराज आज गृह मंत्रालय के मीटिंग कक्ष में बैठा था और उसके सामने केंद्रीय सरकार में नंबर दो का दर्जा रखने वाले गृहमंत्री विराजमान थे। अभिजीत देवल ने जब कक्ष में कदम रखा तो वहाँ पर एक अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था। योगराज तक उसके बेटे के अचानक गायब होने की सूचना पहुँच चुकी थी।

“आओ अभिजीत, हम तुम्हारा ही इंतजार कर रहे थे। योगराज जी से मिलो।” गृहमंत्री ने दोनों का परिचय करवाते हुए कहा।

“मैं इनसे पहले मिल चुका हूँ। हम अच्छी तरह से जानते हैं इनको। मंत्री मंडल की शपथ के दौरान इनसे मुलाक़ात हुई थी।” योगराज ने अभिजीत देवल का अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा।

“तो फिर हम सीधा मुद्दे की बात पर आते हैं। अभिजीत, मामला हमारी नज़र में बेहद गंभीर है। गृहमंत्री होने के नाते भारत के हर नागरिक की सुरक्षा की जिम्मेवारी हमारी है। इस तरह की घटना से हमारे ऊपर, हमारे विभाग के ऊपर सवालिया निशान खड़े हो जाएँगे कि सरकार जब अपने ही एक सहयोगी के परिवार की रक्षा नहीं कर सकती है तो आम आदमी को कैसे सुरक्षित रख सकती है। नीलेश का इस तरह से गायब होना निश्चय ही हमारे लिए चिंता का विषय है।” गृहमंत्री ने गंभीर स्वर में कहा।

“हमने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है। मैंने अपने सबसे काबिल अफसरों को इस काम पर लगा दिया है। मुंबई पुलिस कमिश्नर से भी इस बारे में बात हुई है और मैंने उन्हें हर एक घंटे में इस मामले की प्रोग्रेस रिपोर्ट देते रहने के लिए कहा है कि वे लोग इस मामले में क्या कदम उठा रहें है।” अभिजीत देवल ने अपनी बात रखी।

“आप जो कार्यवाही कर रहे हैं, क्या अभी तक उसका कोई नतीजा निकला है? मेरा बेटा कहाँ है? किस हाल में है? ये अभी तक किसी को पता चला! नहीं न! हद है! क्या हमारे देश की पुलिस और खुफिया एजेंसी इतनी नकारा और निकम्मी है कि दो दिन होने को आये और हमारे बेटे नीलेश के बारे में किसी को कुछ पता ही नहीं?” योगराज ने कलपते हुए स्वर में कहा।

“इस मामले में शुरू से हमारा दखल नहीं है। आज सुबह तक मुंबई पुलिस इस मामले को देख रही थी। जिस मुंबई पुलिस ने इतने बड़े-बड़े हमलों का दिलेरी से सामना किया हो, उसे हम एक दम से खारिज नहीं कर सकते हैं। किसी जुर्म को अंजाम देने से पहले किसी मुजरिम ने कितने दिन तैयारी की है, कितना वक्त लगाया है, यह कोई नहीं जानता लेकिन पुलिस, खुफिया एजेंसियों और आर्मी को कोई वक्त देने के लिए तैयार नहीं होता है। मुजरिम को जान लेने में कोई मनाही नहीं है पर हमें आखिरी दम तक ये कोशिश करनी पड़ती है कि कोई जान से ना जाये।” अभिजीत ने इस बात का प्रतिवाद करते हुए कहा।

“अभिजीत, योगराज जी के बेटे नीलेश का केस अलग है। इनकी पार्टी हमारी सरकार में सहभागी है। इस मामले को जितनी जल्दी सुलझाया जाए उतना ही अच्छा है वरना विपक्ष इस बात को लेकर जम कर हंगामा करेगा। इसका सीधा दायित्व हमारे मंत्रालय पर आता है। तुम्हें जितनी फोर्स और जो भी सहायता मुंबई पुलिस को देना पड़े, उन्हें दो। लेकिन किसी भी आदमी की जान पर संकट नहीं आना चाहिए। नीलेश और उसके साथियों की सकुशल वापसी ही हमारे इस मिशन का उद्देश्य होना चाहिए।” गृहमंत्री ने गंभीर स्वर में कहा।

“नीलेश मेरी एक मात्र औलाद है। अगर उसे ही कुछ हो गया तो मैं और मेरा वजूद किसी काम का नहीं। फिर ये राजनीति और ये सरकार मेरे किस काम की। अगर उसे कुछ हो गया तो इस देश की तवारीख बदलते देर नहीं लगेगी। आपकी सरकार इस वक्त मेरे कंधों के सहारे खड़ी है। आपको पता है कि राजनीति की फिसलन भरी जमीन पर कोई दूसरा बैसाखियाँ भी नहीं देने वाला। या तो आप मेरे बेटे का पता कल तक लगा लें या फिर उनकी माँगे क्या है मुझे बताएँ। जितना पैसा उन्हें चाहिए मैं उन्हें दूँगा। अरे, अभिजीत बाबू आप कुछ मुझे बताएँ तो सही कि क्या चाहिए उन्हें?” योगराज ने रोष भरे लहजे में कहा।

गृहमंत्री ने अभिजीत देवल की तरफ सवालिया नजरों से देखा। आँखों के इशारे से अभिजीत देवल को वो बात कहने के लिए कहा जिसके बारे में उसकी राजीव जयराम और गोविंद श्रीवास्तव से अभी थोड़ी देर पहले मीटिंग हो कर हटी थी।

“योगराज जी, नीलेश की रिहाई के बदले कादिर मुस्तफा को छोड़ने की माँग हुई है।” अभिजीत देवल ने शांत स्वर में कहा।

“कादिर मुस्तफा? ये आप क्या मज़ाक कर रहें हैं। मेरे बेटा मुंबई में लापता हुआ है और उसके मामले का इस दुर्दांत आतंकवादी से क्या लेना देना। आप लोगों को कहीं कोई गलतफहमी तो नहीं हुई...” योगराज ने हैरानी से कहा।

अभिजीत देवल ने योगराज को सारी बात बतायी और गृहमंत्री ने इस तरह से सुना जैसे उन्हें पहली बार इस विषय में पता चल रहा हो।

सारी बात सुनकर योगराज के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलकने लगीं।

“इसका मतलब मेरा बेटा अब इन आतंकवादियों के कब्जे में है। आप लोग तो इस इत्मीनान से बैठे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं। अरे, देवल साहब, मेरे बेटे के लिए कुछ करो। मुझे समझ नहीं आता कि...” योगराज फफक कर रोने लगा।

“अगर लश्कर-ए-जन्नत की मेल सही निकलती है और उन लोगों की तरफ से फिर कोई संदेशा आता है तो ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है, योगराज जी। इसका निर्णय बहुत ही सोच विचार कर किया जाएगा। आप तो जानते हैं कि फिर गृह मंत्रालय के अलावा रक्षा मंत्रालय और आर्मी चीफ़ से भी इस मामले में मंत्रणा करनी पड़ेगी। इस विषय में प्रधानमंत्री ही कोई अंतिम निर्णय करेंगे।” गृहमंत्री ने चिंता जताते हुए कहा।

“आप लोग मंत्रणा करेंगे और जिसका बेटा सूली पर टँग गया है उस आदमी से कोई कुछ नहीं पूछेगा। कमाल है, मैं इस सरकार को मंत्रणा करने लायक छोड़ूँगा ही नहीं। मुझे मेरा बेटा वापस चाहिए। हर हालत में और हर कीमत पर। चाहे जो भी हो।” योगराज ने प्रलाप करते हुए कहा।

“अभी इस बारे में...” अभिजीत ने कुछ बोलना चाहा तो उसका फोन वाइब्रेट हुआ। राजीव जयराम का मैसेज था।

“अर्जेंट... कॉल मी।"

अभिजीत देवल गृहमंत्री से इजाजत लेकर मीटिंग रूम से बाहर आए। उन्होंने राजीव जयराम को तुरंत कॉल की।

“क्या हुआ?” देवल ने पूछा।

“वही, जिस बात का ड़र था। एक वीडियो मेल से आया है। मैंने उसे आपकी मेल पर भेज दिया है। आप देख लें।” राजीव जयराम ने संक्षिप्त उत्तर दिया।

“जयराम। इस चूहे-बिल्ली के खेल में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। मैं यहाँ मीटिंग में हूँ। श्रीकांत मेनन को कहो कि फील्डिंग की जमावट करना और देखना बंद करे। मुझे अब रिज़ल्ट चाहिए।” इतना कहकर अभिजीत ने कॉल ख़तम कर दी।

अभिजीत ने तुरंत मेल पर आया हुआ वीडियो देखा।

एक आदमी को नकाब से ढके हुए चार लोगों ने घेर रखा था। उस आदमी के चेहरे से नकाब हटाया गया। नकाब के पीछे से निकले चेहरे को देख कर अभिजीत देवल बुरी तरह से चौंक गए। वह युवक योगराज का लापता लड़का नीलेश था। उसके सिर पर एके सैंतालीस तान कर कादिर मुस्तफा की रिहाई की माँग की गयी। रिहाई कब और किस तरह से होगी इस बारे में अगली मेल तक का इंतजार करने के लिए कहा गया। माँग न मानने की सूरत में नीलेश का सिर धड़ से अलग करने की चेतावनी के साथ वीडियो ख़तम हो गया।

इस वीडियो को देख कर अभिजीत देवल के माथे पर भी चिंता की लकीरें खिंच गयी। ये मामला अब और गंभीर होता जा रहा था। उसने चिंता में डूबे हुए एक बार फिर कॉन्फ्रेंस रूम में कदम रखा।

गृहमंत्री योगराज से कह रहे थे...

“इस बारे में जो भी उपयुक्त कदम होगा, वो सरकार अवश्य उठाएगी...”

“आप लोग किसी भी तरह मेरे बेटे को सही सलामत वापस ले कर आएँ। चाहे इसके लिए कुछ भी कीमत हमें देनी पड़े। कोई भी कदम क्यों न उठाना पड़े। आप तुरंत कादिर मुस्तफा की रिहाई का आदेश दें। अरे, वो फिर पकड़ा जाएगा। कम से कम मेरा बेटा तो बच जाएगा।” योगराज अपने इकलौते बेटे की सलामती के लिए बेहद उतावला हो रहा था।

“आदेश तो वक्त आने पर दे दिये जाएँगे। अभी तो वो लोग सिर्फ़ दबाव बढ़ाने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहें हैं। आपको परेशान... आपकी हालत हम समझते हैं।” गृहमंत्री ने धैर्य से कहा।

“कादिर मुस्तफा को छोड़ना किसी भी हालत में देश के लिए घातक होगा। हम ऐसी गलती एक बार पहले कर चुके हैं। हाफ़िज़ सईद को छोड़ने की कीमत आज भी हमारी सेना के जवान और हमारी जनता अपनी जान देकर हर रोज चुका रही है। कादिर मुस्तफा को पकड़ने के लिए हमारे छह जवानों को अपनी जान गँवानी पड़ी थी। इससे पहले वो घाटी में नौजवानों को बरगला कर सीमा पार पहुँचा कर जिहाद के नाम पर सैकड़ों लोगों को हलाक करवा चुका है। उस जैसे ही दूसरे अजगर को फिर खुला छोड़ देना देश के अमन चैन के लिए आग में घी डालने के बराबर होगा।” अभिजीत देवल के स्वर में क्रोध झलकने लगा था।

“हर देश की सेना इसी बात के लिए लड़ती है और जवान शहीद होते हैं। इसमें इतनी भाषणबाजी की जरूरत क्या है? बात मेरे बेटे की सलामती की हो रही है और इसके लिए चाहे कादिर मुस्तफा को छोड़ना पड़े तो छोड़ो। अगर आप मेरी बात नहीं मानेंगे तो मुझे फिर प्रधानमंत्री महोदय से बात करनी पड़ेगी।” योगराज अपनी कुर्सी छोड़ता हुआ बोला।

“ये एक बेहद नाजुक मसला है योगराज जी और हमें बड़े ही धैर्य से इसे सुलझाना होगा। भारत के हर नागरिक की जान कीमती है और आशा है, आप हमें इसमें सहयोग करेंगे।” गृहमंत्री पूरी तरह से संयम रखते हुए बोले।

योगराज पूरी तरह से आवेश में पैर पटकता हुआ वहाँ से रवाना हो गया। योगराज के जाने के बाद अभिजीत ने नीलेश के वीडियो के बारे में गृहमंत्री को बताया।