बबूसा, चबूतरे पर मौजूद देवी की लम्बी-सी मूर्ति के बगल से होता, पीछे के रास्ते पर बढ़ गया। ये रास्ता होम्बी के कमरे की तरफ जाता था। इस तरफ डोबू जाति का कोई व्यक्ति नहीं आता था। बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता दिख रही थीं। पतली-सी उस गली के आखिरी कोने पर, होम्बी के कमरे के दरवाजे जैसे रास्ते पर जा कर रुका।
“जादूगरनी।” बबूसा मध्यम स्वर में बोला-“मैं ‘बबूसा’ तुमसे मिलने आया हूं।”
भीतर से कोई आवाज नहीं आई।
बबूसा को निगाह जहां तक जा रही थी, वहां उसे होम्बी नहीं दिखी।
बबूसा भीतर प्रवेश कर गया। नजरें होम्बी पर जा टिकी ।
होम्बी पत्थर के तख्त जैसी जगह पर चादर बिछाए बैठी अपने लम्बे काले बालों में कंघा फिरा रही थी। उसका झुर्रियों से भरे चेहरे पर से, गालों का मांस लटकता, हौले-हौले हिल रहा था। उसके बूढ़े चेहरे पर सैकड़ों लकीरें नजर आ रही थीं। परंतु इस वक्त उसकी आंखों में चमक थी। वो बबूसा को देखने लगी थी।
होम्बी को देखते ही बबूसा मुस्कराया फिर दुखी होता कह उठा।
“मुझे सरदार ओमारू की मौत का बहुत दुख है।”
होम्बी, बबूसा को देखती रही।
“बोबला और बाकी सब महत्त्वपूर्ण लोगों को रानी ताशा ने मार दिया, जो हमारी जाति को संभालते थे।” बबूसा पुनः बोला।
“वो बात पुरानी हो गई।” होम्बी ने धीमे स्वर में कहा-“मैं जानती थी कि तू वापस आने वाला है।”
“तुमसे क्या छिपा है जादूगरनी।”
“मैं ये भी जान चुकी हूं कि तेरी वजह से डोबू जाति को रानी ताशा से मुक्ति मिलने वाली है।” होम्बी बोली।
“तुम तो सब कुछ जानती हो जादूगरनी। आने वाले वक्त का तुम्हें पहले ही एहसास हो जाता है।”
“अब तो तू खुश होगा।”
“वो कैसे जादूगरनी?”
“तेरे को तेरे राजा देव मिल गए।” होम्बी मुस्कराई।
“नहीं जादूगरनी। मैं उतना खुश नहीं, जितना कि मुझे होना चाहिए था।”
होम्बी ने कुछ नहीं कहा।
“मैं रानी ताशा को पसंद नहीं करता।”
“लेकिन तू उस औरत से, राजा देव को छुटकारा भी तो नहीं दिला सकता।”
“मैं-मैं इसी बात की कोशिश कर रहा हूं कि...”
“वो राजा देव से सच्चा प्यार करती है।”
“परंतु उसने राजा देव को जबर्दस्त धोखा दिया था। वो वक्त राजा देव को अभी याद नहीं आया।”
“याद आ जाएगा बबूसा।”
“कब?”
“वो वक्त आने में कुछ समय बाकी है।” होम्बी ने कहा।
“रानी ताशा, राजा देव को पोपा में बिठाकर सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है।” बबूसा परेशान हो उठा।
“वो ऐसा ही करेगी।”
“क्या वो सबको सदूर पर ले जाएगी?”
“अवश्य। ऐसा होकर रहेगा बबूसा।”
“ओह, ये तो बहुत गलत हो जाएगा।” बबूसा के होंठों से निकला।
“तू व्यर्थ ही चिंता करता है, जो होना है, वो होकर ही रहेगा।” होम्बी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तो तुमने कहा कि डोबू जाति अब आजाद होने वाली है।”
“रानी ताशा के यहां से जाते ही, डोबू जाति फिर से पहले की तरह हो जाएगी।”
“और-और हम सब भी पोपा में सदूर पर जाने वाले हैं?”
“हां। मुझे इस बात का स्पष्ट एहसास करा दिया है मेरी शक्तियों ने।”
“परंतु हम पोपा में नहीं जाना चाहते। मैं राजा देव को रानी ताशा से अलग करना चाहता हूं कि राजा देव को...”
“आने वाला वक्त बहुत बुरा होगा तुम्हारा।” होम्बी गम्भीर थी।
“बुरा होगा?” बबूसा की निगाह होम्बी के झुर्रियों भरे चेहरे पर टिक गई-“वो कैसे?”
“इस बुरे वक्त की वजह बनेगी, वो लड़की जिसे तू डोबू जाति के योद्धाओं से बचाता रहा है।”
“धरा?” बबूसा के होंठों से निकला।
“मेरी शक्तियों ने मुझे कई बातों का एहसास दिलाया है, फिर भी मैं ज्यादा नहीं जान पाई, क्योंकि ये बातें पृथ्वी से बहुत दूर, दूसरे सदूर ग्रह से वास्ता रखती हैं। लेकिन जो पूर्वाभास हुआ है, वो ही तुम्हें बता रही...”
“हैरानी है कि धरा की वजह से मुसीबत आएगी। वो तो बहुत शरीफ लड़की है।”
“वो, वो नहीं, जो तेरे को दिख रही है।”
“क्या मतलब?”
“इस वक्त धरा के पास थोड़ी-सी ताकतें हैं। उन्हीं ताकतों के दम पर वो अपनी चालें चल रही हैं।” होम्बी ने मध्यम स्वर में कहा-“धरा का असली घर, सदूर ग्रह पर है और...”
“क्या?” बबूसा चौंक पड़ा-“धरा सदूर ग्रह की है?”
“हां।” होम्बी ने अपना बूढ़ा चेहरा हिलाया तो उसके गालों का लटकता मांस हिलने लगा-“वो सदूर की है, पर किसी कारण उसे पांच सौ सालों के लिए सदूर से बाहर जाना था तो वो पृथ्वी पर आ गई थी। अब उसके पांच सौ साल पूरे होने जा रहे हैं और उसे वापस सदूर पर जाना था परंतु जाने का रास्ता वो भूल चुकी थी। लेकिन उसकी ताकतों ने उसे एहसास दिला दिया था कि सदूर ग्रह जाने का रास्ता उसे डोबू जाति से मिलेगा। ये ही वजह थी कि वो पहले हमारे ठिकाने पर आई थी, उसके बाद मुम्बई में उसे तुम मिल गए। उसकी ताकतें उसे एहसास कराती जा रही थीं कि उसे किसके साथ रहना है, कि तभी वो सदूर पर जा पाएगी। वो तुम्हारे साथ रहती रही और अब तुम लोगों के साथ ही यहां आ गई। वो जानती है कि वो अब सदूर पर पहुंच जाएगी।”
“लेकिन सदूर ग्रह पर, धरा है कौन?”
होम्बी कुछ पल चुप रही फिर कह उठी।
“ये बात मत पूछ बबूसा।”
“क्यों?”
“जब वक्त आएगा, तभी तुम्हारे लिए जानना ठीक होगा कि उस लड़की की असलियत क्या है।”
“तुम मुझे स्पष्ट नहीं बता रही जादूगरनी।”
“तुम्हारे भले के लिए। अगर ये बात तुम पहले जान गए तो तुम्हें जान का नुकसान हो सकता है मैं तुम्हारा अहित नहीं देख सकती। परंतु इतना जान लो कि उस लड़की की वजह से तुम सब लोग भारी मुसीबत में पड़ने वाले हो।”
बबूसा व्याकुल हो उठा।
“कुछ तो बताओ जादूगरनी।”
“इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकती इसी में तुम्हारा भला है। तभी तुम जिंदा रह पाओगे।”
“कौन मारेगा मुझे?”
“वो लड़की।”
“अजीब बात है, क्या उसमें इतनी ताकत है कि वो मेरी जान ले सके। वो कमजोर-सी लड़की है।”
होम्बी के चेहरे पर रहस्य से भरी मुस्कान उभरी। वो बबूसा को देखती रही।
बबूसा, होम्बी को देखता रहा। वो परेशान हो उठा था।
“तुम्हारी बातें समझकर भी मैं नहीं समझ पा रहा।” बबूसा बोला।
“आने वाला वक्त तुम्हें सब समझा देगा। तुम उस लड़की को मेरे पास ले आओ। मैंने उससे बात करनी है।”
“धरा को?” बबूसा ने अजीब-से स्वर में कहा ।
होम्बी, की नजरें बबूसा के चेहरे पर रही।
“ठीक है जादूगरनी, मैं धरा को लेकर आता हूं।” कहकर बबूसा परेशान-सा बाहर निकल गया।
होम्बी के चेहरे पर गम्भीरता नाच रही थी। वो वैसे ही बैठी रही।
दस मिनट बाद बबूसा, धरा के साथ वापस लौटा। धरा सहमी-सहमी-सी नजर आ रही थी और कई बार बबूसा से पूछ चुकी थी कि क्या बात है, उसे कहां ले जा रहे हो।
“जादूगरनी।” बबूसा पहुंचते ही बोला-“ये बहुत साधारण लड़की है। इसके बारे में तुम्हें गलती तो नहीं लगी?”
होम्बी की निगाह, धरा पर जा टिकी।
धरा भी होम्बी को देखने लगी थी।
“तुम जाओ बबूसा। बाहर खड़े होकर बातें सुनने की गलती मत कर देना।” होम्बी कह उठी।
बबूसा ने उलझन भरी निगाहों से धरा को देखा और बाहर निकल गया।
उसी पल धरा का निचला होंठ टेढ़ा हुआ और चेहरे पर तीखी मुस्कान नाच उठी।
“तू भी कुछ ताकत रखती है।” धरा कह उठी ।
जब तू पहले यहां आई तो बड़ी शराफत दिखाई ।” होम्बी ने कहा-“चुपचाप भाग गई।”
“पहले मैंने जो किया, वो वैसे ही करना जरूरी था। मेरी ताकतों ने मुझे बता दिया था कि इस तरह, मैं सदूर पर वापस जा पाऊंगी।”
“पांच सौ साल के लिए तू पथ्वी पर आई थी। तेरा वो वक्त पूरा होने जा रहा है।”
“तभी तो।” धरा हंसी-“अब वापस जाना है मुझे।”
“अगर पोपा न आता तो तू वापस कैसे जाती?”
“तब मुश्किल पड़ती, पर मुझे पता था कि सदूर पर जाने का मुझे रास्ता मिल जाएगा। ये बात तो मुझे तब ही मेरी ताकतों ने बता दी थी कि अगर मै पृथ्वी पर जाकर रहती हूं तो पांच सौ बरस बाद, सदूर पर मैं आसानी से पहुंच जाऊंगी।”
“तभी तू बबूसा के साथ रही।”
“हां। मेरी शक्तियों ने मुझे यह भी बता दिया था कि बबूसा के साथ रहकर, मैं वापस सदूर पर पहुंच जाऊंगी।”
“नाम क्या है तेरा?”
“धरा।”
“असली नाम बता।”
“खुंबरी।” धरा मुस्कराई तो उसका निचला होंठ टेढ़ा हो गया।
“उस ग्रह पर तेरी हैसियत क्या है?” होम्बी की गम्भीर निगाह, धरा पर थी।
धरा हौले से हंसी।
“बता।”
“तेरे पास ताकतें हैं, तू खुद ही पता लगा ले।” धरा होंठ टेढ़ा किए मुस्कराने लगी।
“मेरे पास ताकतें नहीं, पवित्र शक्ति है। ताकतें बुरे इंसान के पास होती हैं, जैसे कि तेरे पास हैं। मुझे पवित्र शक्तियां ही आने वाले समय का एहसास कराती हैं । पर वो जगह बहुत दूर है जहां तेरा ठिकाना है। तेरे बारे में ज्यादा पता नहीं लग रहा।”
“क्या करेगी तू मेरे बारे में ज्यादा जानकर?”
होम्बी ने उसकी आंखों में झांका।
“तेरे-मेरे रास्ते अलग-अलग हैं।” धरा बोली।
“मेरी शक्तियों ने मुझे एहसास दिलाया है कि वापस उस ग्रह पर जाकर तू मुसीबतें खड़ी करने वाली है।”
“तो तेरा क्या जाता है?” धरा का निचला होंठ टेढ़ा हो गया।
“उस ग्रह से मुझे कोई मतलब नहीं।” होम्बी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“पांच सौ साल।” धरा के चेहरे पर एकाएक क्रोध नाच उठा-“जानती है तू पांच सौ साल मैंने कैसे काटे हैं। एक-एक पल मेरे पर भारी गुजरता रहा और पांच सौ साल तो बहुत लम्बे होते हैं। डुमरा ने सोचा कि जैसे पांच सौ साल कभी पूरे ही नहीं होंगे। मैं सदूर पर आ ही नहीं पाऊंगी। परंतु मैंने पांच सौ सालों को बहुत सब्र के साथ जिया। आठ बार जन्म लिया धरती पर। जन्म न लेती तो क्या करती, मुझे भी तो वक्त बिताना था। हर नए जन्म के साथ सोचती कि पांच सौ साल कम होते जा रहे हैं। डुमरा को मैं कभी नहीं भूली। हर जन्म में वो मेरे को याद रहा। उस कमीने ने मुझे बर्बाद करने की पूरी चेष्टा की। पर खुंबरी को उसने ठीक से जाना नहीं। अब जाकर डुमरा को नाच नचाऊंगी।”
“इन पांच सौ सालों के बाद डुमरा सलामत होगा?”
“जरूर होगा। वो कहीं पर छिपा पड़ा होगा । उसके पास पवित्र शक्तियां हैं जो उसे जिंदा रखे हुए हैं। पर इस बार डुमरा कुछ नहीं कर पाएगा। मेरी सोई ताकतें जब जागेंगी तो बहुत ताकतवर बन चुकी होंगी। पहले से कहीं ज्यादा ताकतवर। डुमरा का तो मैं वो हाल करूंगी कि उसने सोचा भी नहीं होगा।” धरा के होंठों से गुर्राहट निकली। निचला होंठ क्रोध में टेढ़ा हो चुका था-“मेरा ही राज्य होगा सदूर में, मेरे योद्धा फिर मेरे साथ होंगे। कई टुकड़ों में बंट चुका सदूर फिर से एक हो जाएगा और मेरे योद्धा मुझे वापस मिल जाएंगे। एक बात बताऊं तुझे?” धरा ने रहस्य भरे स्वर में कहा।
“कह।”
“ये रानी ताशा जो नाचती फिर रही है, ये यूं ही नहीं नाच रही। उस पर मेरी ताकतें काम कर रही हैं।”
“क्या मतलब?”
“रानी ताशा ने सेनापति धोमरा के साथ मिलकर, राजा देव को ग्रह से बाहर फेंका-पता है तुझे?”
“हां।”
“तब रानी ताशा के सिर पर, सदूर में मौजूद मेरी ताकतें सवार थीं।”
“ऐसा क्यों?”
“मेरी ताकतें मुझे वापस सदूर पर लाने के लिए रास्ता कब से तैयार कर रही थीं। मैं सदूर से बाहर आ गई तो क्या हुआ, परंतु मेरे काम कभी रुकते नहीं हैं। रानी ताशा ने राजा देव के साथ जो किया, वो मेरी ताकतों ने करवाया। तभी तो अब मेरे वापस सदूर पर जाने का रास्ता मुझे मिल सका।” धरा का निचला होंठ टेढ़ा हुआ पड़ा था।
“पर तेरी ताकतें तो अभी सदूर पर सोई पड़ी हैं। पांच सौ साल का श्राप अभी पूरा नहीं हुआ।” होम्बी ने कहा।
“बेशक मेरी ताकतें सोई पड़ी हैं, परंतु वो इतनी ताकतवर हैं कि रानी ताशा से अपना मनचाहा काम नींद में भी ले सकें। डुमरा जानता है कि रानी ताशा से वो काम, मेरी ताकतों ने ही करवाया है, परंतु वो कुछ नहीं कर सकता। चुपचाप उसे देखते रहना पड़ा। मेरी ताकतों से वो सीधी टक्कर नहीं ले सकता। मैं सदूर पर नहीं हूं तो डुमरा किससे मुकाबला करता। मेरी ताकतों पर सीधे प्रहार करने की शक्ति उसमें नहीं है।” धरा का निचला होंठ टेढ़ा हुआ पड़ा था।
“खुंबरी।”
“बोल।”
“मुझे इस बात का एहसास हो चुका है कि वापस सदूर पर जाकर तू बर्बादी फैलाने वाली है।”
धरा हंस पड़ी। होंठ टेढ़ा हुआ पड़ा था।
“ऐसा करना जरूरी है क्या?”
“बहुत जरूरी है।” धरा गुर्रा उठी-“डुमरा की ये हिम्मत कि पांच सौ सालों के लिए मुझे श्राप देकर, मुझे सदूर से बाहर जाने को मजबूर कर दे। उसे मेरे साथ झगड़ा नहीं लेना चाहिए था। मैं और मेरे योद्धा सदूर को जीत चुके थे। मैं सारे सदूर की रानी बन चुकी थी, परंतु उसने मेरा सारा खेल खत्म कर दिया। मैं धोखा खा गई। मुझे भी तो नहीं पता था कि वो इतना ज्यादा शक्तिशाली है। अगर पता होता तो उसका चुपके से कोई इंतजाम कर देती। यहीं पर तो मुझसे चूक हुई। ये पांच सौ सालों का वक्त पृथ्वी पर मैंने बहुत कष्टों में निकाला। अब वापस जाऊंगी तो डुमरा को सबक सिखाऊंगी। श्राप का वक्त खत्म होते ही मेरी ताकतें नींद से जगने लगेंगी। टुकड़े हो चुका सदूर ग्रह, वो सारे टुकड़े वापस सदूर से आ मिलेंगे, जिन पर मेरे योद्धा मौजूद हैं, सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा। सदूर पर खुंबरी का हुक्म चलेगा और...”
“जानती है कितनी बर्बादी होगी।” होम्बी बोली।
“खुंबरी ने आज तक बर्बादी ही फैलाई है। राज्य कायम करने के लिए बर्बादी जरूरी है।”
“डुमरा तेरे को रोकेगा।”
“वो इस बार मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा।” धरा हंस पड़ी नीचे वाला होंठ पुनः टेढ़ा हो गया-“मैं डुमरा को बहुत बुरी मौत दूंगी। मेरे ख्याल में तो वो मेरे से बचने की तैयारियां कर रहा होगा। पांच सौ साल...में आ रही हूं डुमरा।” वो फुंफकार उठी।
“मान जा। वैर-विरोध अपने मन से निकाल दे।
“क्यों निकालूं।” धरा गुस्से से भर उठी-“पांच सौ सालों का बदला भी ना लूं।”
“मैं डुमरा की बात नहीं कर रही।”
“तो?”
“सदूर को जीतने की बात कर रही हूं। तेरे श्राप से मुक्त होने पर, सदूर के टुकड़े वापस सदूर से आ मिलेंगे। सदूर पहले की तरह एक विशालकाय ग्रह बन जाएगा। पर तू वहां बर्बादी फैलाएगी। लोगों की जानें लेगी और...”
“तेरे को क्या तकलीफ है बुढ़िया।” धरा गुर्रा उठी।
होम्बी के झुर्रियों वाले चेहरे पर मुस्कान उभर आईं।
“मुझे तू कुछ भी कह, मैं बुरा नहीं मानूंगी। पर मुझे चिंता है खुंबरी।”
“मेरी चिंता...और तुझे?” धरा ठहाका लगा उठी।
धरा की हंसी रुकी निचला होंठ टेढ़ा हो चुका था। वो चमक भरी निगाहीं से होम्बी को देखने लगी।
“मुझे तो सबकी चिंता रहती है। मैं हूं ही ऐसी। पता हो तो सदूर की भी चिंता हो जाती है।”
“चिंता करके तू क्या करेगी?” धरा का होंठ टेढ़ा हो गया मुस्कराते हुए।
“समझा तो सकती ही हूं।”
“तू मुझे समझाएगी बुढ़िया। खुंबरी बहुत समझदार है, डुमरा से एक बार मात खा गई धोखे में, अब नहीं?”
“मुझे तेरी चिंता है।”
धरा की नजरें होम्बी पर टिक गई।
“मेरी शक्तियां मुझे एहसास करा चुकी हैं कि तू सदूर पर जाकर जो करेगी, उसमें तेरा भला भी नहीं होने वाला।”
“तेरा मतलब क्या है? तू सोचती है कि मैं मर जाऊंगी। डुमरा फिर मुझ पर भारी पड़ेगा।”
“ये तो मैं नहीं जानती। मैं नहीं जानती कि क्या होगा। पर मैंने आने वक्त का एहसास पाया है, तेरे को दुखी देखा है।”
“खुंबरी कभी दुखी नहीं हो सकती। मैं तो बहुत खुश हूं कि पांच सौ सालों का श्राप समाप्त होने जा रहा है। मेरी ताकतें मेरा सबसे बड़ा सहारा हैं। जब सदूर के टुकड़े वापस सदूर से आ मिलेंगे तो, मेरे योद्धा फिर से मेरा सहारा बनेंगे। उसके बाद सदूर पर वो ही होगा, जो मैं चाहूंगी। खुंबरी राज्य करेगी, सदूर पर।”
“बबूसा और बाकी सब का क्या होगा?”
“परवाह नहीं, खुंबरी की नजरों में इन लोगों का कोई महत्व नहीं है।” धरा ने जहरीले स्वर में कहा।
“ये भूल है तेरी।”
“भूल?” धरा का निचला होंठ टेढ़ा हो गया।
“राजा देव सदूर का राजा है।”
“वो अब पृथ्वी का है और उसका नाम देवराज चौहान है।”
“इस तरह तो तू भी पृथ्वी की हुई। राजा देव ने तो तेरे बाद पृथ्वी पर जन्म लिया था।”
“तू बोलती बहुत है बुढ़िया।” धरा का स्वर कठोर हो गया।
“देवराज चौहान को तू जानती है कि अगर उससे किला छीनेगी तो वो चुप नहीं बैठेगा।”
“मैं उसे मार दूंगी।”
“और बबूसा को?”
“उसे भी मार दूंगी।”
होम्बी के चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई।
“क्यों मुस्कराती है बुढ़िया।”
“तेरी राह आसान नहीं है खुंबरी।” होम्बी ने कहा-“मेरी बात सदूर पर तुझे याद जरूर आएगी।”
“तू मेरी ताकतों के भूल रही है। जब मेरी ताकतें मेरे पास होंगी तो कौन करेगा मेरा मुकाबला?”
“इसका जवाब तो तुझे सदूर पर ही मिलेगा।”
“तू मुझे धमका रही है बुढ़िया।”
“मैंने तेरे को समझाना चाहा, परंतु तू नहीं समझी। मेरी बात मानेगी तो आराम रहेगा तुझे।”
“खुंबरी को आराम ही आराम है। तू चिंता न कर।” धरा हंसी। होंठ टेढ़ा हो गया।
“महापंडित को तू भूल गई?”
धरा के चेहरे पर सख्ती उभरी। निचला होंठ एक तरफ झुक गया।
“नहीं भूली मैं। डुमरा का बेटा है महापंडित।” धरा ने शब्दों को चबाकर कहा-“डुमरा ने ही अपने बेटे को शक्तियां दी हैं कि वो विद्वान बन बैठा। परंतु महापंडित से मेरी कोई दुश्मनी नहीं। अगर वो मेरे रास्ते में आया तो देख लूंगी उसे।”
“महापंडित के पिता डुमरा का तू मुकाबला करेगी तो महापंडित चुप नहीं बैठेगा।”
“फिर तो मुझे महापंडित की भी जान लेनी होगी।” धरा गुर्रा उठी।
“महापंडित के साथ ढेर सारी शक्तियां हैं। डुमरा और महापंडित एक साथ हो जाएंगे। तब तू क्या करेगी?”
“बहुत चिंता हो रही है बुढ़िया को मेरी।” धरा हंस पड़ी।
“अपने इरादे से पीछे हट जा और सदूर पर चैन से रह। तेरी बुरी ताकतें, तेरे को भी बर्बाद कर देंगी।” होम्बी ने कहा।
“तू मुझे बहुत समझा रही है।” धरा का स्वर जहरीला हो गया-“अब बस कर, मैं तेरी बात मानने वाली नहीं।”
होम्बी उसे देखती रही। कहा कुछ नहीं।
“अब मुझे मत बुलाना।” धरा ने तीखे स्वर में कहा, निचला होंठ टेढ़ा हुआ-“तेरे से बात करना मुझे पसंद नहीं।”
जवाब में होम्बी ने कुछ नहीं कहा।
धरा पलटी और बाहर निकल गई।
“बहुत बुरा होने वाला है।” होम्बी बड़बड़ा उठी।
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बबूसा, देवी की मूर्ति के पीछे की तरफ, पीठ पर हाथ बांधे गम्भीर मुद्रा में टहल रहा था। मन में ढेर सारी उलझन थी कि होम्बी ने धरा को क्यों बुलाया और उनमें क्या बातें हो रही हैं। आखिर धरा, होम्बी, के लिए इतनी महत्वपूर्ण कैसे हो गई कि उससे अकेले में बात कर रही है। बात क्या है? होम्बी ने कहा कि धरा, सदूर पर मुसीबतें लाने वाली है। बबूसा को होम्बी की बात पर भरोसा नहीं हो रहा था, परंतु होम्बी की बात को वो हल्के में नहीं ले सकता था। होम्बी को आने वाले वक्त का पूर्वाभास हो जाता है। वो कभी भी गलत बात नहीं कहती। बबूसा को याद नहीं था कि होम्बी ने कभी कुछ कहा हो और वो गलत निकला हो। इन सब बातों की वजह से बबूसा व्याकुल हुआ जा रहा था। बार-बार उसकी निगाह होम्बी के कमरे की तरफ जाते रास्ते पर उठ जाती। उसे धरा की वापसी का इंतजार था।
तभी सोमारा उसके पास आ पहुंची।
बबूसा ने उसे देखा।
“धरा कहां है?” सोमारा ने पूछा।
“होम्बी के पास।”
“तो तू यहां क्यों है बबूसा? उसके पास क्यों नहीं है?”
“होम्बी, धरा से अकेले में बात कर रही है।”
“होम्बी डोबू जाति में क्या महत्व रखती है। मैंने उसके बारे में कभी सुना नहीं?” सोमारा ने कहा।
“वो जादूगरनी है और अपने आप में ही रहती है। डोबू जाति की बातों में दखल नहीं देती। आने वाले वक्त का उसे पूर्वाभास हो जाता है और जो बात जाति के भले के लिए होती है, वो पहले ही बता कर सतर्क कर देती है।”
“ओह। लेकिन धरा से जादूगरनी का क्या वास्ता?”
“ये ही तो मैं समझ नहीं पा रहा। परंतु जादूगरनी ने एक बात कहकर मुझे परेशान कर दिया।”
“क्या?”
“वो कहती है धरा की वजह से सदूर पर मुसीबतें आने वाली हैं।”
“धरा की वजह से सदूर पर मुसीबतें? ये कैसे हो सकता है?”
“जादूगरनी ने कहा और उसका कहना कभी गलत नहीं होता।” बबूसा का स्वर गम्भीर था।
“तुझे जादूगरनी से पूछना चाहिए कि ऐसा क्या होगा सदूर पर कि...”
“जादूगरनी उतना ही बताती है, जितना बताना होता है। वो कहती है, इससे ज्यादा मुझे जानकरी हुई तो धरा मुझे मार देगी। हैरत की बात है कि जादूगरनी के मुताबिक धरा मुझे मार सकती है।”
“ये तो मैं अजीब बातें सुन रही हूं।” सोमारा ने अजीब से स्वर में कहा।
बबूसा गम्भीर-सा, चुप-सा रहा। फिर कह उठा।
“समझ में नहीं आता कि धरा और जादूगरनी इतनी देर क्या बातें कह रहे हैं।”
“तेरे को दरवाजे के बाहर रहकर उनकी बातें सुननी चाहिए थीं।”
“मैं ऐसा ही करता परंतु जादूगरनी ने मुझे ऐसा करने को मना कर दिया था।” बबूसा कह उठा।
“धरा पहले जादूगरनी से मिल चुकी है?”
“नहीं, ये उनकी पहली मुलाकात...”
“वो आ गई।” सोमारा के होंठों से निकला।
बबूसा की निगाह घूमी तो रास्ते से धरा को इसी तरफ आते पाया। धरा के चेहरे पर मासूमियत नजर आ रही थी। भोली-भाली। जैसे कोई बात ही न हो। पास पहुंचते-पहुंचते वे मुस्कराने लगी।
“जादूगरनी ने तुमसे क्या बात की?” बबूसा उसके पास आते ही पूछ बैठा।
“वो मेरी मां की मौत का अफसोस जता रही थी। जिसे डोबू जाति के योद्धाओं ने मार दिया था।” धरा ने सामान्य स्वर में कहा।
बबूसा की आंखें सिकुड़ीं।
“बस?”
“हां इतना ही।” धरा बोली-“वो बहुत अच्छी है। ममतामयी। कहने लगी मैं उसे अपनी मां मान लूं।”
“सदूर के बारे में कुछ बात नहीं की?” बबूसा तगड़ी उलझन में था।
“ये ही कहा कि सदूर ग्रह पर तेरा मन लगेगा। वहां तेरे को अपने मिलेंगे।” धरा ने भोलेपन से कहा।
“इतना ही।”
“और भी बातें हैं, तू ही उससे पूछ ले बबूसा।” धरा ने मीठी मुस्कान के साथ कहा।
बबूसा धरा को कई पलों तक देखता रहा।
“क्या हुआ बबूसा?” धरा कह उठी।
“तू मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रही?”
“मैं तेरे से छिपाऊंगी।” धरा ने चेहरे पर हैरानी समेट ली-“कैसी बात करता है बबूसा। चल, तेरे के उसके सामने कराती हूं।”
“इसकी जरूरत नहीं। सोमारा, तुम दोनों उसी कमरे में जाओ, मैं जादूगरनी के पास जा रहा हूं।”
“चल।” सोमारा ने धरा को देखा।
दोनों एक तरफ बढ़ गईं। धरा की निगाह हर तरफ जा रही थी। डोबू जाति के लोग अपने कार्यों में व्यस्त आ-जा रहे थे। बातें कर रहे थे। उनके बीच रानी ताशा के आदमी नजरें जमाए, सतर्कता से पहरा दे रहे थे।
“क्या कहा जादूगरनी ने?” सोमारा ने धरा से पूछा।
“बताया तो, उसने कहा सदूर पर तू जरूर जाना। वहां जाकर तेरे को अच्छा लगेगा।” धरा मुस्कराकर बोली।
“सदूर तेरे को जरूर अच्छा लगेगा ।” सोमारा बोली-“पर मेरे को तो पृथ्वी ज्यादा अच्छी लगी। यहां के लोग...”
“अब तेरे को सदूर भी ज्यादा अच्छा लगना शुरू हो जाएगा सोमारा।”
“अब क्या खास बात है?”
“क्योंकि।” धरा मुस्कराई, उसका निचला होंठ कुछ टेढ़ा-सा हुआ-“अब मैं भी सदूर पर रहूंगी।”
“ये तो कोई खास बात नहीं हुई...”
“सदूर पर पहुंचकर तेरे को समझ आने लगेगी कि मेरा वहां पहुंच जाना ही, खास बात बन जाएगा।”
“तेरी बातें अजीब-सी हैं। तू तो ऐसे बात करती है जैसे मैं सदूर को जानती नहीं।”
“सही कहा।” धरा का निचला होंठ मुस्कराते हुए कुछ टेढ़ा हुआ-“मैं तेरे से ज्यादा सदूर को जानती हूं। वो मेरा है। मेरा वहां पर खास ठिकाना है। मेरा घर सदूर में ही है। पृथ्वी पर तो मैं वक्त बिताने आई थी।”
सोमारा ने तीखी निगाहों से धरा को देखकर कहा।
“तू तो पागलों जैसी बातें कर रही है जैसे सदूर पर ही रहती आई हो।”
धरा मुस्कराती रही। निचला होंठ टेढ़ा ही रहा।
qqq
बबूसा ने होम्बी के कमरे में प्रवेश किया और ठिठक गया।
होम्बी सोच भरी आंखों से अपने लम्बे काले बालों को हाथों से सहला रही थी। उसने नजरें घुमाकर बबूसा को देखा। बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।
“बोल बबूसा।” होम्बी कह उठी।
“धरा से तेरा क्या वास्ता है जादूगरनी?”
“कुछ भी नहीं।”
“फिर तूने धरा से क्या बात की अकेले में?”
“वो तेरे जानने लायक नहीं।”
“क्यों?”
“अगर वो बातें तेरे को पता चल गईं तो धरा तेरी जान ले लेगी।”
बबूसा लम्बे पलों तक होम्बी को देखता रहा फिर कह उठा।
“वो मुझे नहीं मार सकती।”
“तू अभी उसकी ताकतों से अनजान है।”
“ताकतें?” बबूसा की आंखें सिकुड़ी।
होम्बी खामोश रही।
“मुझे बता जादूगरनी, मैं सब कुछ जान लेना चाहता हूं।”
“जिद मत कर बबूसा। मेरे बताते ही उसे आभास हो जाएगा और वो तुझे इसलिए मार देगी कि सदूर पहुंचने से पहले उसका राज न खुल पाए। उसका मुकाबला करना तेरे बस का नहीं है।”
“ऐसा क्या है उसमें कि वो मेरे से ज्यादा ताकतवर है।”
होम्बी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला फिर चुप हो गई।
“मुझे सब बता जादूगरनी।”
“तेरे को मुझ पर भरोसा नहीं रहा कि मैं सच कह रही हूं।”
“मुझे मालूम है जादूगरनी कि तेरी बात कभी भी झूठ नहीं होती।”
“तो मेरी बातों पर यकीन रख और मुझसे कुछ मत पूछ। इसी में तेरा और सबका भला है।”
“मैं तेरी बातें सुनकर बेचैन हो रहा हूं जादूगरनी।”
होम्बी खामोश रही।
“अब मुझे क्या करना चाहिए होम्बी?” कुछ पलों बाद बबूसा ने कहा।
“मैं तेरे को ज्यादा नहीं बता सकती, क्योंकि ये सदूर ग्रह की बातें हैं और जानकारी मुझे भी ज्यादा नहीं है। परंतु ये बत मन में बिठा ले कि उस लड़की की वजह से, सदूर पर तूफान उठने वाला है।”
“यकीन नहीं होता।” बबूसा ने परेशानी से कहा।
होम्बी कुछ क्षण बबूसा को देखती रही फिर मुस्करा पड़ी।
“ऐसा है तो मैं धरा को साथ नहीं ले जाता।” बबूसा ने कहा।
“अब तेरे बस में कुछ नहीं रहा। सदूर तक जाने में जो रुकावट बनेगा, उसे वो लड़की खत्म कर देगी। इतना आगे आकर वो वापस पलटने वाली नहीं। उसकी निगाहों में, उसका सदूर पर जाना बहुत जरूरी है।”
“ऐसा क्यों?”
“क्योंकि कभी वो सदूर ग्रह से ही पृथ्वी पर आई थी। अब तुम लोग पोपा में बैठकर सदूर जाओगे तो ये खेल भी उसकी ताकतों द्वारा है खेला गया है, इस खेल की शुरूआत तब हुईं थी जब रानी ताशा ने, राजा देव को सदूर ग्रह से बाहर फेंक दिया था। वो सब कुछ इसी लड़की की ताकतों ने किया था।” होम्बी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ये क्या कह रही हो जादूगरनी?” बबूसा हैरान हो गया।
होम्बी खामोश रही।
“तुम्हारा मतलब कि रानी ताशा ने अपने होशोहवास में राजा देव को ग्रह से बाहर नहीं फेंका था?” बबूसा के होंठों से निकला।
“सही समझा तू। तब रानी ताशा के सिर पर, इसी लड़की की सहायक ताकतें सवार थीं। रानी ताशा के तो पता भी नहीं था कि क्या हो रहा है। होश उसे तब आई, जब उसके सिर से, इस लड़की ताकतें हट गईं। तब उसको पता चला कि उसने क्या कर डाला है। लेकिन वो सब तो उन ताकतों ने कराया था। इस वक्त की तैयारी इस लड़की ने ढाई सौ साल पहले ही, शुरू कर दी थी, ऐसे में न तो तू इसे पीछे हटा सकता है, न ही वो पीछे हटने वाली।”
“ले-लेकिन वो है कौन जादूगरनी? ऐसा क्यों कर रही है?” बबूसा हक्का-बक्का था।
“इस बारे में तेरे को स्पष्ट कुछ नहीं बताऊंगी, नहीं तो वे तुझे मार देगी। वो कत्लेआम मचा देगी। तेरे सब सवालों का जवाब देकर, तेरी जान जाने की वजह में नहीं बनना चाहती।” होम्बी ने गम्भीर स्वर में कहा।
“मैं तेरी बातें सुनकर हैरान हो रहा हूं, जादूगरनी।”
होम्बी चुप रहीं।
“इतना तो बता जादूगरनी कि अब मुझे क्या करना चाहिए?”
“मैं सलाह नहीं दूंगी। तेरे को अपने विवेक से काम लेना होगा तेरे में तो समझ बहुत है बबूसा।”
बबूसा, होम्बी को देखता रहा फिर बोला।
“तो क्या उस धोखे के प्रति रानी ताशा निर्दोष है?”
“पूरी तरह। रानी ताशा तो इस बात को लेकर आज तक परेशान है कि उसने ये क्या कर डाला। वो सोच भी नहीं सकती कि कुछ ताकतों ने उससे ये काम करवाया था। इन बातों का आभास मुझे हाल ही में हुआ है।”
“परंतु मेरा फर्ज है कि राजा देव को उस वक्त की याद जरूर दिलाऊं। मैं राजा देव का सेवक हूं जादूगरनी।”
“जो तेरा विवेक कहता है वो कर। इतना जान ले कि रानी ताशा, राजा देव से सच्चा प्यार करती है।”
“मैं अपना फर्ज निभाऊंगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“जब राजा देव के सब कुछ याद आ जाएगा, तब राजा देव से ये बात अवश्य कहूंगा कि रानी ताशा ने जब ये सब किया तो वो अपने होश में नहीं थी।”
होम्बी चुप रही।
“मैं सोमाथ को रास्ते से हटा देना चाहता हूं। क्या इस कोशिश में मुझे सफलता मिलेगी?” बबूसा ने पूछा।
होम्बी के झुर्रियों कर चेहरे पर मुस्कान फैल गई।
बबूसा, होम्बी के देखता रहा।
“जवाब दे होम्बी?”
“अब जा बबूसा। मुझे आराम करने दे।” होम्बी ने शांत स्वर में कहा।
बबूसा खामोशी के साथ बाहर निकल गया। परंतु परेशान लग रहा था वो। होम्बी की बातें उसके दिमाग में घूम रही थीं। वो खुद को अजीब से जंजाल में फंसा महसूस कर रहा था। वो वापस उस कमरे जैसी जगह में पहुँचा जहां जगमोहन, मोना चौधरी, नगीना, धरा और सोमारा थी। धरा की निगाह बबूसा पर पड़ी तो वो मुस्कराई। निचला होंठ टेढ़ा हो गया।
“तुम क्या करते फिर रहे हो बबूसा?” जगमोहन ने पूछा।
“सोलाम के आने का इंतजार। रात को उसके आने पर ही विचार-विमर्श होगा।” बबूसा ने शांत स्वर में कहा फिर धरा से कह उठा-“तुम मेरे पास आओ।” बबूसा उस जगह के एक कोने की तरफ बढ़ गया।
धरा उसके पास जा पहुंची।
दोनों सबसे हटकर नीचे जा बैठे। बबूसा की पैनी निगाह धरा पर थी।
तभी सोमारा भी वहां आकर बोली।
“तुम इसके साथ अकेले में क्या बात करने वाले हो बबूसा?” सोमारा बोली।
“बैठ जा सोमारा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
सोमारा भी बैठ गई।
बबूसा ने धरा को देखा। धरा के चेहरे पर टेढ़े होंठ वाली मुस्कान नाच रही थी।
“तेरी उस जादूगरनी ने तुझे कुछ नहीं बताया बबूसा।” धरा हंसकर कह उठी।
बबूसा ने धरा को गहरी निगाहों से देखा।
“क्या देखता है?” धरा ने आंखें नचाईं। निचला होंठ जरा से टेढ़ा हो गया-“कुछ समझ नहीं आया तुझे?”
“तेरे को पता है जादूगरनी ने मेरे से क्या बात की?”
“नहीं पता, पर मेरे बारे में कोई खास बात की होती तो मुझे पता चल जाता। एहसास हो जाता तेरी जादूगरनी है समझदार। वो जानती है कि तेरे को कुछ बताया तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा।” धरा मुस्करा रही थी।
“तू है कौन?”
“कमाल है। मुझे नहीं पहचानता, मैं धरा हूं, तेरी दोस्त।”
“पर पहले तू ऐसी बातें नहीं करती थी।”
“जरूरत नहीं पड़ी ऐसी बातें करने की। पर अब वक्त नजदीक आता जा रहा है तो ये बातें शुरू हो गईं।”
“कैसी बातें?”
“सदूर की। मैं तो चुप थी परंतु तेरी जादूगरनी के सामने कुछ भी छिप न सका। उसे बहुत कुछ पता है।”
“पर उसने मुझे नहीं बताया।”
“बोला तो, अगर बता देती तो अंजाम बुरा होता।”
उसने मुझे बताया कि तू सदूर की ही रहने वाली है और ढाई सौ साल पहले ही तेरी ताकतों ने तेरी वापसी का रास्ता तैयार करना शुरू कर दिया था। रानी ताशा ने राजा देव के साथ जो किया वो उससे तेरी ताकतों ने कराया।”
“तभी तो आज मुझे रास्ता मिल रहा है वापस सदूर पर जाने का। नहीं तो मैं कैसे वापस जाती?”
“क्या असलियत है तेरी?”
धरा हंसी। होंठ टेढ़ा हो गया।
“बहुत व्याकुल है मेरे बारे में जानने को?”
“क्यों न होऊंगा। बता कौन है तू और सदूर से तेरा क्या नाता है?”
बबूसा ने गम्भीर स्वर में पूछा।
सोमारा की निगाह धरा पर टिकी थी।
“तू चाहता है मैं तेरे को बता दूं?” धरा मुस्कराई।
“बता।”
“अभी नहीं।” धरा ने चंचल स्वर में कहा। निचला होंठ टेढ़ा था-“जब पोपा चल पड़ेगा तो रास्ते में बताऊंगी।”
“अभी क्यों नहीं?”
“नहीं तो नहीं। बाद में बताऊंगी।” धरा बोली-“अभी बताने का वक्त नहीं आया।”
“जादूगरनी कहती है कि तू सदूर पर पहुंचकर तूफान खड़ा कर देगी। मुसीबतें आ जाएंगी।”
“अच्छा।” धरा हंसी-“ऐसा कहा उसने। वैसे तेरी जादूगरनी है बहुत समझदार।”
बबूसा गम्भीर निगाहों से धरा को देखता रहा।
“ये कुछ नहीं बताएगी बबूसा। मैं इसकी आंखों में शैतानी देख रही हूं।” सोमारा बोली।
“तू सदूर की है?” बबूसा ने पूछा।
“हाँ-हूँ। सदूर पर तो मेरी प्यारी दुनिया बसती है।” धरा ने कहा।
“फिर पृथ्वी पर कैसे आ गई?”
“आना पड़ा। मेरी ताकतों ने मेरी सहायता की। मुझे कहीं तो रहना था।” धरा गम्भीर हो गई।
“तू किन ताकतों की बात कर रही है?”
“सदूर ग्रह पर पहुंचकर तेरे को पता चल जाएगा।”
“मेरे से मिलना भी तेरी चाल थी?”
“मेरा डोबू जाति में आना, मेरी चाल का हिस्सा था। उसके बाद जो किया मेरी ताकतों ने किया। याद है मेरे पास डोबू जाति के वो पत्ते थे जो कि यहां की देवी की मूर्ति के सामने रखे थे। मैं वो पत्ते ले गई थी यहां से।”
(विस्तार से जानने के लिए पढ़ें पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा’)
“मेरी ताकतों ने मुझे एहसास करा दिया था तब कि उन पत्तों को ले जाने से मुझे, सदूर तक पहुंचने में सहायता मिलेगी। ऐसा ही हुआ, मैं मुम्बई पहुंची और उन पत्तों की गंध पाकर, तुमने मुझे ढूंढ निकाला। वो सब मेरी ताकतों का असर था। जिन्होंने मुझे तुम तक पहुंचाया और फिर मैं तुम्हारे साथ-साथ ही रही।”
“तुम मेरे लिए रहस्यमय बनती जा रही हो धरा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
धरा, बबूसा को देखती मुस्कराती रही।
“तुम मुझे कुछ भी नहीं बता रही।”
“पोपा में बैठकर बताऊंगी।”
“मैं तुम्हें अभी मार भी सकता हूं।” बबूसा ने एकाएक चुभते स्वर में कहा।
“तू कुछ नहीं कर सकता बबूसा।” धरा ने मुस्कराकर कहा-“तू मुझे नहीं मार सकता। जादूगरनी ने ये बात तेरे को नहीं बताई क्या? सदूर मेरी जगह है वहां मैं सही-सलामत पहुंच जाऊंगी। मेरी ताकतें मेरी सहायता कर रही हैं।”
बबूसा होंठ भींचकर उठा और वहाँ टहलने लगा। सोमारा पास पहुंचकर बोली।
“ये धरा कैसी बातें कर रही है बबूसा।”
बबूसा ने ठिठककर सोमारा से गम्भीर स्वर में कहा।
“ये धरा, वो धरा नहीं रही, जिसे मैं डोबू जाति के योद्धाओं से बचाता फिर रहा था। अब ये बहुत बदल गई है। मेरे ख्याल में अब इसका असली रूप सामने आने लगा है। ये कोई खतरनाक ‘शय’ है। अभी मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूं।”
“ये कौन हो सकती है, जो अपने को सदूर की वासी बताती है।” सोमारा के होंठ भिंच गए।
“ये ही तो मैं समझने की कोशिश कर रहा हूं।”
और अपनी जगह पर बैठी धरा दोनों को देखती मुस्कराती रही थी। निचला होंठ लटककर कुछ टेढ़ा-सा हुआ पड़ा था। उसकी आंखों में खतरनाक चमक लहरा रही थी, जैसे कह रही हो, देखना सदूर पर क्या होगा।
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पोपा में प्रवेश करते ही देवराज चौहान खुशी से झूम उठा। जो चीज उसने ढाई सौ साल पहले बनाई थी और जिसका मजा नहीं ले सका था, वो सब कुछ आज फिर उसके सामने था। देवराज चौहान पोपा में भागता फिरा। सब कुछ उसे याद था कि क्या चीज-पोपा में कहां है। रानी ताशा उसके साथ थी और देवराज चौहान, रानी ताशा को पोपा में लगी चीजों के बारे में बताता जा रहा था। उसे इतना खुश पाकर रानी ताशा की आंखें छलछला उठी। इस वक्त वो देवराज चौहान से कहीं ज्यादा खुश थी। इतनी खुश कि कभी-कभी उसे यकीन नहीं आ रहा था कि उसने राजा देव को वापस पा लिया है। पोपा में मौजूद लोग देवराज चौहान का प्रसन्नता से स्वागत कर रहे थे। वो भी खुश थे कि उन्हें राजा देव मिल गए। देवराज चौहान सबसे खुशी से मिल रहा था। रानी ताशा ने किलोरा से मुलाकात करवाते हुए कहा।
“ये किलोरा है। मेरा मुख्य सहायक और पोपा को भी ये ही चलाता है।”
“ओह किलोरा।” देवराज चौहान ने उसे गले से लगाया-“पोपा, चलाने में कैसा है?”
“बहुत अच्छा है राजा देव।”
“कोई समस्या तो नहीं आती?”
“शुरू में कुछ समस्या थी परंतु जम्बरा ने उस समस्या को दूर कर दिया था।”
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“मुझे याद आ रहा है कि पोपा के कुछ लीवर अटक रहे थे उड़ान के दौरान।” देवराज चौहान के स्वर में एकाएक उत्साह भर आया था-“मैंने जम्बरा से नये लीवर तैयार करने को कहा और किले की तरफ, तुमसे मिलने चल पड़ा था।”
“ओह देव।” रानी ताशा फौरन कह उठी-“उन बातों को छोड़ो...अब की बात...”
“ताशा। मेरी प्यारी ताशा।” देवराज चौहान एकाएक उलझन में पड़ गया-“मैं उस दिन बग्गी में बैठकर किले की तरफ चल पड़ा था। पर मुझे आगे की बात याद नहीं आ रही कि मैं तुमसे मिला कब था और...”
रानी ताशा के चेहरे पर बेचैनी दौड़ी, वो देवराज चौहान का हाथ पकड़ कर बोली।
“मेरे देव। अब हमें खुश होना चाहिए कि हमने एक-दूसरे के ‘पा’ लिया।” स्वर में मिठास थी।
देवराज चौहान ने मुस्कराकर रानी ताशा को देखा।
“हां ताशा। हम मिल गए। इससे अच्छी बात और क्या होगी।”
“रानी ताशा आपको ढूंढ़ निकालने के लिए बहुत बेचैन थी राजा देव।” किलोरा कह उठा।
“मैं समझ सकता हूं।” देवराज चौहान ने रानी ताशा के खूबसूरत चेहरे को देखा।
रानी ताशा प्यार भरी निगाहों से देवराज चौहान को देख रही थी।
“मैं बहुत खुश हूं ताशा तुम्हें पाकर।”
“मेर भाग्य अच्छा है कि तुम मुझे मिल गए देव।” रानी ताशा भावुक हो उठी।
तभी किलोरा ने कहा।
“राजा देव। अभी भी पोपा पर ऐसी कई चीजें हैं, जिन्हें हम इस्तेमाल करने की स्थिति में नहीं हैं।”
“ऐसा क्या है?”
“आइए मैं आपको दिखाता हूं।” किलोरा ने आगे बढ़ते हुए कहा।
रानी ताशा और देवराज चौहान उसके पीछे चल पड़े।
“तुमने पोपा बनाकर कितना अच्छा किया देव।” रानी ताशा हाथ थामे, चलते हुए कह उठी।
“तुम्हारे लिए तो बनाया था ताशा कि हम दोनों पोपा में बैठकर बादलों के पार की सैर किया करेंगे। किसी ग्रह पर और भी लोग रहते हैं हम उनसे मिलेंगे। अपने ग्रह पर बुलाएंगे उन्हें। क्या जम्बरा ने ऐसा कुछ किया?”
“जम्बरा ने ऐसा करने को कहा तो था लेकिन मैंने इंकार कर दिया।”
“क्यों?”
“क्योंकि तब तुम मेरे पास नहीं थे देव। तुम्हारे बिना मेरा मन कहीं भी नहीं लगा। परन्तु जम्बरा अपने कामों में लगा रहा। उसने अपने जैसे वैज्ञानिक और भी तैयार कर लिए। उसने रोशनी के बक्से बनाए। उसने वाहन बनाए। और भी चीजों का निर्माण वो और उसके साथी करते रहे। आज सदूर का रूप पूरी तरह बदल चुका है। जम्बरा ईमानदार और काबिल था, इसी कारण महापंडित उसका जन्म बार-बार कराता रहा। जम्बरा ने सदूर को संभालने में मेरा बहुत साथ दिया। इस वक्त सदूर को उसी के हवाले करके, पृथ्वी पर आईं थी।”
“जम्बरा ने मुझे याद किया?”
“बहुत याद किया। वो कहता था कि अगर राजा देव यहां होते तो अब तक जाने क्या-क्या चीजें बना चुके होते। वो कहता है में इतना नहीं सोच सकता निर्माण के बारे में, जितना राजा देव सोच लेते थे। पोपा बनाने के बारे में भी आप ही ने सोचा देव और जम्बरा शुरू-शुरू में तो अपकी सोच से सहमत नहीं था। लेकिन वो अक्सर कहता कि राजा देव की वजह से ही पोपा तैयार हो सका। जे रोशनी के डिब्बे जम्बरा ने बनाए, उसके बारे में भी जम्बरा कहता है कि ये सब राजा देव की सोचों का ही नतीजा है।” रानी ताशा ने कहा।
“हां। मैं जम्बरा को रोशनी के डिब्बे बनाने के बारे में बताया करता था। मैं मशालों के प्रकाश से छुटकारा पाना चाहता था। मैं दूसरी तरह की रोशनी का निर्माण करना चाहता था।” देवराज चौहान ने कहा।
“अब तो आप सदूर को और भी शानदार बना देंगे।”
“अब ऐसा क्या हो गया जो...”
“पृथ्वी ग्रह आपका बहुत देखा भाला है। ऐसी बहुत-सी चीजें पृथ्वी पर होंगी, जो सदूर पर नहीं हैं। आप उन चीजों का निर्माण करेंगे तो सदूर कितना शानदार होता चला जाएगा।” रानी ताशा ने खुशी से कहा।
“हां। ताशा। मैं अपने सदूर को और भी अच्छा बना दूंगा।”
दोनों किलोरा के पीछे चलते जा रहे थे।
किलोरा इस वक्त सुरंग जैसी राहदारी में आगे बढ़ा जा रहा था। जल्दी ही वे खत्म हो गई और वे पोपा के पीछे वाले खुले हिस्से में जा पहुंचे। यहां कमरे भी बने हुए थे और काफी खुली जगह थी। किलोरा दीवार पास जाकर रुका। वहां पर चार फुट चौड़ा और आठ फुट ऊंचा दरवाजा नजर आ रहा था। उसके पास ही दीवार पर पीले रंगों के बारह बटन लगे थे। देवराज चौहान की निगाह उन बटनों पर जा टिकी। होंठ सिकुड़ गए।
“राजा देव। ये दरवाजा हम आज तक नहीं खोल सके।” किलोरा कह उठा।
“बबूसा इस दरवाजे को खोलना जानता है। मैंने उसे बताया था कि किन बटनों को क्रमवार, कितनी बार दबाने पर ये दरवाजा खुलेगा।” देवराज चौहान ने रानी ताशा को देखा-“बबूसा से नहीं पूछा ताशा?”
“पूछा था। वे मेरे से नाराज है, शायद इसीलिए उसने कहा था कि उसे इस बारे में पता नहीं है।” रानी ताशा बोली।
“कई बातें जम्बरा को नहीं बता सका था, क्योंकि तब हम सब व्यस्त चल रहे थे। जब मैं किले की तरफ रवाना हुआ था तो जम्बरा तब भी पोपा के निर्माण के कामों में व्यस्त था। वो उसके हिस्से के काम थे। लेकिन बबूसा पोपा के निर्माण में बराबर मेरे साथ रहा और मैं उसे सब कुछ बताता रहा था।” कहने के साथ ही देवराज चौहान आगे बढ़ा और पीले बटनों के पास पहुंच कर उंगली से उन बटनों को तेजी से दबाने लगा। कई बटन एक बार दबाया तो कोई दो-तीन बार।
इस काम से फुर्सत पाकर देवराज चौहान हटा ही था कि एकाएक दरवाजे में हलचल पैदा हुई और देखते ही देखते बाहर की तरफ खुलने लगा। इसके साथ ही उस मोटे दरवाजे से सीढ़ियां निकलीं और नीचे की तरफ फैलती चली गईं। दरवाजा पूरा खुल गया और सीढ़ियां जमीन पर जा लर्गी।
सामने बर्फ का पहाड़ दिखा। किलोरा और रानी ताशा मुस्करा पड़ी।
किलोरा ने फौरन आगे पहुंचकर बाहर झांका।
ठंडी हवा का झोंका पोपा के भीतर प्रवेश कर आया।
“तो ये दरवाजा भी बाहर जाने का रास्ता है।” किलोरा कह उठा।
“हां। पोपा से बाहर निकलने के दो रास्ते हैं आगे भी पीछे भी।” देवराज चौहान बोला।
“हमें ये बात पता नहीं थी।” रानी ताशा ने मुस्कराकर कहा।
“राजा देव।” किलोरा पलटकर बोला-“इस दरवाजे के बटनों के बारे में मुझे समझा दीजिए।
“अब मैं तुम लोगों के साथ ही हूं।” देवराज चौहान ने कहा-“सब बता दूंगा।” उसके बाद देवराज चौहान ने उन पीले बटनों के पुन: कई बार दबाया तो दरवाजे की सीढ़ियां दरवाजे में सिमट आईं और दरवाजा बंद होता चला गया।
“ऐसी और भी दो-तीन बातें हैं जो आप ही हल कर सकते...”
“किलोरा।” रानी ताशा कह उठी-“हम लम्बे सफर से आए हैं, राजा देव को आराम करना है।”
“ठीक है रानी ताशा।” किलोरा ने कहा-“मैं राजा देव से फिर बात कर लूंगा।”
किलोरा चला गया।
“हम कमरे में चलें देव?”
“पहले में सारा पोपा देखना चाहूंगा।”
“जरूर देव। मैं भी तुम्हारे साथ हूं।”
देवराज चौहान, रानी ताशा के साथ पोपा का पूरा चक्कर लगाने लगा। सब कुछ देखकर देवराज चौहान खुश हो रहा था। दोनों ने एक-दूसरे का हाथ थाम रखा था। पोपा को देखते देवराज चौहान उत्साह से भरा था।
“अपने देव के साथ पोपा में टहलते मुझे बहुत अच्छा लग रहा है।” रानी ताशा कह उठी।
“मुझे भी ताशा। तुम नहीं समझ सकतीं, पोपा बनाना मेरा सपना था।” देवराज चौहान खुशी से कह उठा-“परंतु अभी तक मैंने इसकी सैर नहीं की कि बादलों में ये कैसी उड़ान भरता है।”
“बहुत अच्छी उड़ान भरता है देव। जिस रफ्तार से ये बादलों के पार जाता है, उस रफ्तार का पीछा, नजरें भी नहीं कर सकतीं। अद्भुत चीज है थे। आपने बहुत शानदार बनाया है पोपा को।” रानी ताशा खुशी से कह उठी।
घंटा भर देवराज चौहान पोपा को ही भीतर से देखता रहा।
“तुम जानती हो ताशा।” देवराज चौहान ने पोपा देखने के बाद
कहा-“मैंने पोपा को छः हिस्सों में बांटकर बनाया है। उड़ान के दौरान अगर पोपा के किसी हिस्से में खराबी आ जाती है और वो खराबी ठीक नहीं हो पाती और पोपा को उससे खतरा पैदा हो जाता है तो चालक कक्ष में बैठे-बैठे, वहां के सिस्टम से पोपा के खराब हिस्से को अलग करके फेंका जा सकता है।”
“जम्बरा ने ये बात बता रखी है परंतु उसका कहना है कि उसे उस सिस्टम की जानकारी नहीं है। राजा देव ने उस सिस्टम का निर्माण किया था, परंतु उन्हें बताने का वक्त नहीं मिला।” रानी ताशा ने कहा।
“हां। मैंने जम्बरा को उस दिन बुलाया था, उस सिस्टम के बारे में बताने को, परंतु वो अपने हिस्से के कामों को करने में इतना व्यस्त था कि उसे आने में वक्त लग गया, जबकि तब मैं किले की तरफ रवाना होने वाला था। तब मैंने उससे कहा था कि किले से वापस आकर बताऊंगा।” देवराज चौहान कह उठा।
रानी ताशा, देवराज चौहान से आ सटी।
देवराज चौहान ने प्यार भरे अंदाज में रानी ताशा को बांहों के घेरे में ले लिया।
“मेरी ताशा।” देवराज चौहान की आवाज कांप उठी।
“मेरे देव।” रानी ताशा ने देवराज चौहान की छाती को चूमा-“कमरे में आराम करते हैं।”
“पहले मैं महापंडित और जम्बरा से बात करना चाहता हूं।”
“आओ। वो खुश हो जाएंगे राजा देव से बात करके।”
रानी ताशा और राजा देव पोपा के भीतर के रास्तों को तय करके पांच मिनट बाद वे उस हाल में जा पहुंचे, जहां एक तरफ बने काउंटर पर स्क्रीन लगी थी और सामने ढेरों बटन लगे थे। वहां दीवार के साथ रखी कुर्सियों पर रानी ताशा के पांच आदमी बातें कर रहे थे और उन्हें आया पाकर, फौरन उठ खड़े हुए थे।
“महापंडित से सम्पर्क बनाओ।” रानी ताशा ने एक से कहा।
“ये काम मैं खुद कर लूंगा।” आगे बढ़ते देवराज चौहान ने कहा।
देवराज चौहान बटनों-स्विच और लीवरों में व्यस्त हो गया। हेडफोन कानों पर लगा लिया था। रानी ताशा पास ही रही। लम्बी कोशिश के बाद भी महापंडित से सम्पर्क नहीं हो सका।
“महापंडित के यंत्रों में कोई समस्या है।” देवराज चौहान बोला-“उससे सम्पर्क नहीं हो पा रहा।”
“महापंडित के यंत्रों में कई बार ऐसी समस्याएं आ जाती हैं।” रानी ताशा बोली।
देवराज चौहान ने जम्बरा से सम्पर्क बनाया तो, तुरंत बात हो गई।
“जम्बरा बात कर रहा है।” उधर से आवाज आई।
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान फैल गई। जम्बरा की आवाज उसने पहचान ली थी।
“जम्बरा, तुम कैसे हो जम्बरा?” देवराज चौहान की आवाज कांप उठी।
“कौन-राजा देव तो नहीं बोल रहे?” जम्बरा को आवाज में खुशी के भाव थे।
“हां जम्बरा, मैं राजा देव हूं। मैंने तुम्हारी आवाज पहचान ली है।” देवराज चौहान प्रसन्नता से कह उठा।
“ओह राजा देव, मैं कितना है खुशनसीब हूं कि मैं आपसे फिर बात कर रहा हूं। आप कैसे हैं राजा देव। जैसे पहले दिखते थे, क्या अब भी वैसे दिखते हैं। मैं आपको पहचान लूंगा न?” जम्बरा के स्वर में कम्पन भरा था।
“हम जल्दी मिलेंगे जम्बरा। मैं वापस सदूर पर आने वाला हूं।”
“सच राजा देव। मैं आपको बता नहीं सकता कि मुझे कितनी खुशी हो रही है आपसे बात करके। मैं तो सोच रहा था कि शायद रानी ताशा आपको तलाश न कर सके। अब तक आप पृथ्वी ग्रह पर रहते रहे हैं?”
“हां जम्बरा...”
“पृथ्वी ग्रह कैसा है?”
“बहुत ही शानदार। बहुत ही बढ़िया।” देवराज चौहान मुस्कराकर बोला-“तुम्हारी सोच से कहीं ज्यादा अच्छा। मुझे पता लगा है कि रोशनी के डिब्बे बना लिए हैं तुमने। अब रोशनी के लिए मशालें इस्तेमाल नहीं होतीं?”
“हां राजा देव। बिजली का छोटा-सा बक्सा हर घर में लगा है। वो ही रोशनी देते हैं। किले पर भी ऐसा ही है। सदूर अब पहले जैसा नहीं रहा। यहां पर बग्गी की जगह छोटे-छोटे वाहन चलते हैं। दो लोग उसमें बैठ सकते हैं। मैंने आपके लिए भी एक ऐसा वाहन बनाया है, जिसमें छः लोग बैठ सकते हैं। मैंने एक उड़ने वाले वाहन का निर्माण भी किया है। परंतु वो सदूर के लोगों के लिए नहीं बनाया। अगर उड़ने वाला वाहन सबके पास होगा तो वो हवा में ही एक-दूसरे से टकराकर नीचे गिर कर मर सकते हैं। अब आप आ रहे हैं तो इसका फैसला आप ही कीजिएगा। सदूर के रास्ते पक्के और शानदार बना दिए गए हैं। यहां अब धातु की तरह सिक्के चलते हैं। मैंने सिक्कों के लिए एक नई तरह के पदार्थ की ईजाद की है। आप सदूर को पहचान ही नहीं पाएंगे राजा देव।” उत्साह में भरी थी जम्बरा की आवाज।
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान थी।
“तुमने सदूर के लिए बहुत मेहनत की है जम्बरा।” देवराज चौहान ने कहा।
“राजा देव आप यहां होते तो जाने किस-किस, कैसी चीजों का निर्माण कर देते। मैंने तो कुछ भी नहीं किया।” जम्बरा ने तेज स्वर में कहा-“क्या पृथ्वी पर भी ऐसी चीजें हैं?”
“बहुत। पृथ्वी हमारे सदूर से बहुत ज्यादा आगे है।”
“फिर तो आप ग्रह पर आकर कई नई चीजों का निर्माण कर देंगे जो पृथ्वी पर आपने देखी हैं।”
“तुम्हारी सहायता के बिना मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा जम्बरा।”
“मैं तो हर वक्त आपकी सेवा में मौजूद हूं। मुझे अभी भी यकीन नहीं आ रहा कि रानी ताशा ने आपको ढूंढ़ निकाला है।”
“हम जल्दी मिलेंगे जम्बरा।”
“पृथ्वी से पोपा में कब रवाना हो रहे हैं?”
“बहुत जल्दी। अब यहां कोई काम नहीं बचा।”
“मैं आपके आने की खुशी में किले को रोशनी से सजा दूंगा राजा देव।”
“शुक्रिया। महापंडित से सम्पर्क नहीं हो पा रहा?” देवराज चौहान ने पूछा।
“उसकी तारों में कुछ समस्या आ रही है। वो उन्हें ठीक कर रहा है। अब तो महापंडित ने बहुत बड़ी बिल्डिंग का निर्माण कर लिया है। वो उसी में रहता है। मैं आपके लिए नया किला बनाना चाहता था, परंतु रानी ताशा ने इंकार कर दिया कि वो उसी किले में रहेंगी, जहां वो रहती रही हैं। लेकिन आप जरूर चाहेंगे कि नए किले का निर्माण हो जो कि पहले किले से कहीं ज्यादा लाजवाब होगा।” जम्बरा बहुत ज्यादा उत्साह में था।
“हां जम्बरा। हम बहुत शानदार किला बनाएंगे।” देवराज चौहान ने मुस्कराकर कहा।
पास खड़ी रानी ताशा के चेहरे पर मीठी मुस्कान तैर गई।
बातें समाप्त करके देवराज चौहान ने हैडफोन उतारकर रखा।
“मुझे कितना अच्छा लग रहा है देव कि तुम मेरे करीब हो।” रानी ताशा की आंखें भर आईं-“जम्बरा ने बहुत कहा कि नया किला बनाया जाए, परंतु पुराने किले में तुम्हारी यादें थीं देव। जिनके सहारे मैं जी रही थी। मैं उन्हें अपने से दूर नहीं करना चाहती थी। अब तुम आ गए हो तो, जो अच्छा लगे वो करो। मुझे तो बस तुम्हारा साथ चाहिए।”
देवराज चौहान ने रानी ताशा का हाथ थाम लिया। प्यार भरी निगाहों से उसे देखा।
“मुझे भी तो तुम्हारा साथ चाहिए ताशा। तुम्हारे बिना मैं सांसें भी नहीं लेना चाहूंगा।”
“अब हमारा वक्त बहुत अच्छा निकलेगा देव।”
“हां, बहुत अच्छा होगा आने वाला वक्त।”
तभी हम्बस ने वहां प्रवेश किया और पास आकर बोला।
“राजा देव, आपके वापस आ जाने से मुझे बहुत खुशी हुई।”
देवराज चौहान ने हम्बस को देखते हुए कहा।
“मैंने तुम्हें पहचाना नहीं?”
“देव।” रानी ताशा कह उठी-“ये हम्बस है। किलोरा के बाद, पोपा का महत्वपूर्ण आदमी।”
देवराज चौहान ने, हम्बस को गले लगाया।
फिर हम्बस ने रानी ताशा से कहा।
“किलोरा कह रहा था कि मुझे कुछ साथियों के साथ डोबू जाति में छोड़कर पोपा चला जाए और हम डोबू जाति को चलाएंगे।”
“पहले ऐसा ही सोचा था हम्बस।” रानी ताशा ने कहा-“परंतु अब विचार बदल गया है। सदूर पर पहुंचकर राजा देव इतने व्यस्त हो जाएंगे कि शायद हम दोबारा पृथ्वी पर न आ सकें। आएं तो जाने कब आएं। ऐसे में राजा देव ने फैसला लिया है कि हम सब ही वापस सदूर चले जाएंगे। यहां कोई नहीं रहेगा।”
“अगर कभी दोबारा हमें पृथ्वी पर आना हुआ तो पोपा कहां पर उतरेगा। हम कहां पर रहेंगे?” हम्बस बोला।
रानी ताशा ने देवराज चौहान को देखा।
“आप इस बात का जवाब दीजिए राजा देव।” रानी ताशा ने कहा।
“पोपा यहीं डोबू जाति में उतरेगा।” देवराज चौहान बोला।
“परंतु डोबू जाति वालें एतराज कर सकते हैं। क्योंकि हमने यहां कई महत्वपूर्ण लोगों की जान ली है।”
देवराज चौहान के चेहरे पर सोच के भाव उभरे फिर कह उठा।
“इस समस्या का हल निकल जाएगा। मैं बबूसा से बात करूंगा।”
“तो ये बात पक्की है कि हममें से यहां कोई नहीं रहेगा।” रानी ताशा बोली।
देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिला दिया।
“ये बात आप इसलिए कह रहे हैं कि क्योंकि बबूसा नहीं चाहता डोबू जाति बंधक रहे हमारी।”
“डोबू जाति को कोई तकलीफ देना गलत होगा। उन्हें बंधक बना लेना, धोखा देने जैसा है। वो तुम्हारे दोस्त रहे हैं। अब तक जो हो गया, वो तभी ठीक होगा जब हम डोबू जाति को आजाद कर दें।” देवराज चौहान ने कहा-“वैसे भी सदूर पहुंचने के बाद हमें इतना वक्त ही नहीं मिलेगा कि हम पलटकर पृथ्वी की तरफ देख सकें। मुझे सदूर में ऐसी बहुत चीजों का निर्माण करना है जो पृथ्वी पर है पर सदूर पर नहीं है। हम सब ही यहां से सदूर जाएंगे ताशा।”
“सुन लिया हम्बस।”
“जी रानी ताशा। कब चलेंगे हम यहां से?”
रानी ताशा ने देवराज चौहान को देखा।
“जल्दी ही यहां से चल देंगे हम्बस।” देवराज चौहान ने कहा-“यहां अब हमें कोई काम नहीं रहा।”
हम्बस चला गया।
रानी ताशा ने मधुर मुस्कान से देवराज चौहान को देखा।
देवराज चौहान मुस्कराया। नजरों में प्यार भरा था।
“कमरे में चलकर आराम करते हैं। मैं आपका साथ पाने को बेचैन हूं।”
रानी ताशा का स्वर लरज-सा रहा था।
“आओ ताशा।” देवराज चौहान ने ताशा का हाथ थामा-“अब मैं तुम्हें अपने से दूर नहीं होने दूंगा।” इसके साथ ही देवराज चौहान उसकी नीली आंखों में, उसके चेहरे की खूबसूरती को टकटकी बांधे देखने लगा।
“इस तरह देखकर फिर मुझे तंग करने लगे हो देव।” रानी ताशा ने शरारत से कहा-“अब बस भी करो।”
देवराज चौहान के होंठों पर मधुर मुस्कान नाच उठी।
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बबूसा कमरे में नहीं था।
धरा कुछ अलग बैठी थी।
सोमारा एक तरफ दीवार से टेक लगाए अकेले ही आंखें बंद किए बैठी थी कि मोना चौधरी जगमोहन और नगीना के पास से उठी और सोमारा के पास जा बैठी सोमारा ने आंखें खोलीं।
“क्या बात है?” मोना चौधरी की निगाह सोमारा पर थी।
सोमारा ने मोना चौधरी को देखा। कहा कुछ नहीं।
“मुझे बताओ क्या बात है?” मोना चौधरी ने पुनः कहा।
“मैं समझ नहीं पाई कि तुम क्या कह रही हो?” सोमारा बोली।
“बबूसा को अभी मैंने परेशान देखा था।” मोना चौधरी ने कुछ दूर बैठी धरा पर नजर मारी-“जब तुम दोनों धरा से बातें कर रहे थे। मुझे बताओ क्या हो रहा है?”
सोमारा चुप रही।
“धरा अभी कहां गई थी?”
“जादूगरनी के पास।”
“कौन जादूगरनी?”
“डोबू जाति की है वो। सब उसे जादूगरनी कहते हैं। नाम उसका होम्बी है। आने वाले वक्त का उसे पहले ही आभास हो जाता है। उसने बबूसा से कहकर धरा को अपने पास बुलाया था।”
“उसे भला धरा से क्या काम?”
“मुझे क्या पता।” सोमारा ने बेमन से कहा।
“अब तो पता चल गया होगा कि उसने धरा से क्या बातें कीं?” मोना चौधरी ने कहा।
“नहीं पता। जादूगरनी ने बबूसा को बाहर जाने को कह दिया था।”
“ठीक है, पर तुम और बबूसा क्यों परेशान लग रहे हो?”
“मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहती।”
“मुझे बताओ शायद मैं कुछ बता सकूं, जिन बातों में तुम लोग उलझे हो।”
“मेरे से तुम कुछ भी नहीं जान सकोगी।” सोमारा ने स्पष्ट कहा।
“तो कौन बताएगा मुझे?”
“धरा से पूछ लो, पर वो कुछ भी बताने वाली नहीं।” सोमारा का स्वर शांत था।
“ऐसी क्या बात है जो तुम बताना नहीं चाहती और धरा भी बताने वाली नहीं।” मोना चौधरी के होंठ सिकुड़े।
सोमारा ने कुछ नहीं कहा।
मोना चौधरी उठी और धरा की तरफ बढ़ गईं।
धरा की निगाह मोना चौधरी पर थी। वो मुस्कराई, निचला होंठ टेढ़ा हो गया। मोना चौधरी के पास आते ही वो सामान्य दिखने लगी। उसके पास बैठती मोना चौधरी कह उठी।
“बबूसा और सोमारा से तुम्हारी क्या बात हुई थी धरा?"
“क्यों?” धरा मुस्करा पड़ी-“सोमारा ने नहीं बताया?”
“तभी तो तुमसे पूछ रही हूं।”
धरा हौले से हंसी फिर कह उठी।
“कोई बात नहीं है।”
“बात तो जरूर है। बबूसा और सोमारा गम्भीर दिख रहे हैं। बबूसा ज्यादा परेशान था। पर तुम सामान्य हो।”
“तो तू जानना चाहती है कि बबूसा और सोमारा क्यों परेशान है।” धरा मुस्कराई। निचला होंठ टेढ़ा हो गया।
“हां।”
“अभी नहीं बताऊंगी।” धरा बोली-“जब सदूर पर पहुंच जाऊंगी, तब बताऊंगी।”
“तब क्यों-अभी क्यों नहीं?”
“वो सदूर वो वास्ता रखती बात है न, इसलिए।” धरा सहज स्वर में बोली।
“तू मुझे टाल रही है।”
“नहीं मोना चौधरी। मैं तो तेरे को स्पष्ट बता रही हूं कि कब बताऊंगी।”
मोना चौधरी कुछ पल धरा को देखती रही फिर बोली।
“तू यहां क्यों बैठी है। हमारे साथ वहां बैठ।”
“मुझे अकेला रहना ही अच्छा लगता है। जब जरूरत थी तो तुम लोगों के साथ थी।”
“तुम्हारी बातें अजीब-सी होने लगी हैं धरा।”
धरा मुस्कराई। मोना चौधरी को देखती रही। निचला होंठ थोड़ा-सा टेढ़ा हो गया था। मोना चौधरी ने गर्दन घुमाकर सोमारा को देखा, वो इधर ही देख रही थी। मोना चौधरी उठी और जगमोहन, नगीना की तरफ बढ़ गई। दोनों की निगाह पहले से ही मोना चौधरी पर थी। वो जब पास बैठी तो नगीना ने पूछा।
“क्या हुआ?”
“धरा, सोमारा और बबूसा में कोई बात हुई है।” मोना चौधरी बोली-“उस बात के बाद सोमारा और बबूसा परेशान हो गए हैं। मैंने सोमारा से जानना चाहा कि क्या बात है तो उसने कुछ नहीं बताया। धरा कहती है कि सदूर पर पहुंचकर बताऊंगी कि कया बात है। कुछ अजीब-सा चल रहा है।”
नगीना और जगमोहन की निगाह धरा की तरफ उठी।
“धरा बेहद शांत-सी बैठी थी।”
“धरा हमसे दूर क्यों बैठी है?” एकाएक जगमोहन ने कहा।
“वो कहती है मुझे अकेला रहना अच्छा लगता है।” मोना चौधरी ने बताया।
“वो ऐसा कैसे कह सकती है।” जगमोहन कहते हुए उठा और धरा के पास जा पहुंचा-“तुम अकेले क्यों बैठी हो?”
“मेरी मर्जी।” धरा ने सिर हिलाया।
“मोना चौधरी कहती है कि कोई बात है, पर तुम बता नहीं रहीं। बबूसा, सोमारा से क्या बात हुई तुम्हारी?”
“वो अभी बताने वाली बात नहीं है।”
“क्यों?”
“बबूसा और सोमारा से पूछ लो, मेरे से ही क्यों पूछ रहे हो।”
“तुम मुझे बदली-बदली सी लग रही हो।”
“अच्छा।” धरा के मुस्कराते ही नीचे वाला होंठ टेढ़ा हो गया।
जगमोहन ने गहरी निगाहों से उसे देखा। फिर कहा।
“पहले तो तुम बहुत प्यार से पेश आती थी। यहां आते ही तुम्हें क्या हो गया?”
“पहले।” धरा हौले-से हंसी-“मुझे अपना मतलब निकालना था। शराफत दिखानी जरूरी थी।”
“मैं तुम्हारी बात नहीं समझा।”
“अब मतलब निकल गया। मेरा रास्ता साफ हो गया।”
“कैसा रास्ता?”
“सदूर पर जाने का। वो ही रास्ता बनाने को तो मैं तुम सबके साथ जुड़ी हुई थी।”
“तुम तो सदूर ग्रह पर जाना ही नहीं चाहती थी। वो तो हमारे कहने पर जाने को तैयार हुई हो और...”
“सब दिखावा था। बोला तो में अपना रास्ता तैयार कर रही थी जो कि हो गया।”
“मैं।” जगमोहन की आंखें सिकुड़ी-“तुम्हारी बातें नहीं समझ पा रहा।”
“वो तो तभी समझेगा जब मैं सीधी बात कहूंगी।” धरा मुस्कराई तो निचला होंठ टेढ़ा-सा दिखने लगा।
“तो सीधी बात कह...”
“अभी नहीं। सदूर पर पहुंचने के बाद। अभी मेरा चुप रहना ही बेहतर हैं।”
“ऐसी बातें करके तुम अपने को रहस्यमय बना रही हो।”
“अभी तुम कुछ नहीं समझोगे। इस बारे में सदूर पर पहुंच कर बात करेंगे।”
“तुम सदूर पर क्यों जाना चाहती हो?”
“अपने घर कौन नहीं जाना चाहता। वहां मेरा घर है। मेरा सब कुछ है। वहां तो मैं जरूर जाऊंगी।” कहते हुए धरा गर्दन हिलाने लगी-“मुझे अकेला छोड़ दे। बहुत ताने-बाने बुनने हैं मैंने और वक्त कम है मेरे पास।”
उलझन में फंसा जगमोहन वहां से हटकर सोमारा के पास पहुंचा।
“धरा कैसी अजीब-सी बात कह रही है।”
“क्या कहा?”
“कहती है सदूर पर मेरा घर है। मेरा सब कुछ है।”
“उसकी बातों की परवाह मत करो।” सोमारा बात टालते हुए बोली-“वो इसी तरह की बहकी-बहकी बातें कर रही है।”
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रानी ताशा और देवराज चौहान के चेहरे पर मस्ती के भाव दिख रहे थे। वो पोपा की पहली मंजिल पर, पोपा के बीचोंबीच स्थित, ऐसे कमरे में थे जिसे रानी ताशा इस्तेमाल करती थी। बाहर शाम का अंधेरा फैलने लगा था। कड़ाके की सर्दी थी। परंतु पोपा के भीतर का मौसम सामान्य था। वे जबसे इस कमरे में आए थे तभी से वे एक-दूसरे में गुम, प्यार के पलों में खोए हुए थे। अब वे फुर्सत में थे। एक-दूसरे का साथ पा लेने की वजह से वे खुश थे। उनकी बातें ही खत्म न हो पा रही थीं। एक-दूसरे को देखते रहने के बावजूद भी उनके दिल न भर रहे थे। वे आंखें खोले ऐसे सपनों में खोए हुए थे कि जिनका कोई नाम नहीं था। प्यार के ये पल सब पर आते हैं सब पर ऐसा वक्त आता है, परंतु इन दोनों की दुनिया एक-दूसरे में बसी थी। दोनों का प्यार पंख लगाकर, लम्बी उड़ान पर था।
“ताशा।” देवराज चौहान ने रानी ताशा का हाथ चूमते हुए कहा-“तुम अब मेरे पास ही रहना।”
“मेरे देव।” रानी ताशा ने प्यार में डूबे स्वर में कहा-“अब मैं तुम्हें कभी भी अकेला नहीं छोड़ने वाली।”
“मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।”
“मैं भी कहां तुम्हारे बिना जी सकूंगी। तुमसे बिछुड़कर मेरा जो हाल हुआ, वो तो मैं ही जानती हूं देव। तुम तो पृथ्वी पर जन्म लेने लगे। सदूर को भूल गए, परंतु मैं तो सदूर पर जन्म ले रही थी। मुझे तो सब याद था। मैं तो तुम्हें कभी नहीं भूली। तुम्हारी याद हर पल सताती रही मुझे। मैंने बहुत कष्ट उठाकर वो समय बिताया है। अब तुम्हें किसी भी हाल में नजरों से दूर नहीं होने दूंगी। तुम्हारे बिना अब मैं पागल हो जाऊंगी देव।”
“ऐसा नहीं होगा ताशा। मैं हमेशा तुम्हारे पास रहूँगा।”
“हम इसी तरह एक-दूसरे को प्यार करेंगे देव। बेपनाह मुहब्बत।”
“हाँ ताशा।” देवराज चौहान का स्वर कांप उठा-“हम संग-संग जिएंगे।”
“सदूर पर हमारा पहले जैसा वक्त लौट आएगा। हम...”
“मैं सदूर पर भव्य किला बनवाऊंगा ताशा। बहुत ही शानदार। बहुत है। बड़ा। हम वहां रहा करेंगे।”
“तुम जहां कहोगे, वहीं रहूंगी। जहां तुम खुश, वहीं मैं खुश रहूंगी।” ताशा की आंखें भर आईं।
“तुम कितनी अच्छी हो ताशा।”
“मुझसे अच्छे तो आप हैं। मैं तो आपके सामने कुछ भी नहीं। जब आप सदूर पर नहीं थे तो वीराने जैसा लगता था सारा सदूर। किले की दीवारें मुझे जैसे खा जाना चाहती हों। कहीं भी मन नहीं लगता था। तुम्हारे बिना मेरा वक्त नर्क की तरह बीता है। जाने कैसे हर जन्म में जिंदा रही मैं। सिर्फ हमें याद करती रही।”
“वो बुरे दिन बीत चुके हैं ताशा।”
“हां। अब तो आप मेरे पास हैं, वो बुरे दिन चले गए।”
“मेरी प्यारी ताशा।” देवराज चौहान ने पुनः ताशा का हाथ चूमा।
“देव।” रानी ताशा बोली-“अब हमें यहां से सदूर की तरफ चल देना चाहिए। यहां हमारा काम ही क्या?”
“हां। ताशा। सदूर हमारा इंतजार कर रहा है। वहां हम दोनों का खुशहाल जीवन है। वहां...”
तभी पास रखे ताशा के यंत्र से आवाजें उठने लगी।
रानी ताशा ने यंत्र उठाकर बात की, उस तरफ किलोरा था।
“रानी ताशा।” किलोरा की आवाज कानों में पड़ी-“बबूसा, पोपा में आना चाहता है। मैंने इंकार किया, परंतु वो कहता है कि राजा देव ने उसे पोपा में आने की इजाजत दे रखी है। क्या उसे आने दूं?”
रानी ताशा ने देवराज चौहान से कहा।
“बबूसा, पोपा में आना चाहता है।”
“उसे आने दो ताशा।”
“किलोरा। बबूसा को पोपा में आने दो।” कहकर रानी ताशा ने यंत्र को बंद करके रखा और बोली-“आपने बबूसा को सिर पर चढ़ा रखा है। पोपा में उसे काम ही क्या है।”
“बबूसा को मेरे से ज्यादा कोई नहीं जानता। वो मेरे लिए हमेशा ही महत्वपूर्ण रहा है।” देवराज चौहान बोला-“उसे मेरी चिंता रहती है। वो हमेशा ही मेरे करीब रहने की चेष्टा में रहता है।”
“लेकिन बबूसा ने आपको मेरे पास नहीं आने दिया था। रुकावटें डालता रहा।” ताशा नाराजगी से कह उठी।
“उसकी सोच के मुताबिक वो जरूरी था, तभी तो उसने ऐसा किया होगा।”
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बबूसा ने पोपा के भीतर प्रवेश किया, किलोरा ने पोपा का प्रवेश द्वार बंद कर दिया।
“तुम कौन हो?” बबूसा ने किलोरा से पूछा।
“किलोरा नाम है मेरा और पोपा पर मेरा नियंत्रण है।” किलोरा ने कहा।
“पोपा को चलाता कौन है?”
“ये काम भी मैं करता हूँ।”
बबूसा ने सिर हिलाया और सामने जाते रास्ते पर बढ़ गया।
किलोरा उसके पीछे आने लगा तो ये देखकर बबूसा ठिठका और पलटकर बोला।
“तुम मेरे साथ क्यों चल रहे हो?”
“तुम्हें रास्ता दिखाने की जरूरत पड़ेगी।” किलोरा ने कहा।
“पोपा के चालक हो और तुम्हें ये किसी ने नहीं बताया कि राजा देव ने जब पोपा का निर्माण किया तो मैं उनके साथ रहा था। पोपा को जितना बेहतर मैं जानता हूं उतना तुम भी नहीं जानते।” बबूसा ने कहा।
“परंतु मुझे तुम्हारे साथ रहना है।”
“क्यों?”
“सोमाथ ने कहा था कि बबूसा जब पोपा पर आए तो उस पर नजर रखी जाए।”
“सोमाथ कहां है?”
“वो आराम कर रहा है।”
“कहां?”
“अपने कमरे में।”
“परंतु उसे तो आराम की जरूरत ही नहीं पड़ती।”
“वो अपनी बैट्री चार्ज कर रहा है।” किलोरा बोला।
बबूसा मुस्कराया।
“तुम्हें पता है कि सोमाथ आधा पागल है।”
“वो हमारी तरह दिखता है। हमारी तरह सोचता है। वो बहुत समझदार है।”
“मेरी नजरों में वो बेवकूफ है।”
किलोरा चुप रहा।
“सोमाथ के शरीर में किस जगह बैट्री लगी है?” बबूसा ने पूछा।
“मैं नहीं जानता।”
“ठीक है। पर मैं नहीं चाहता कि कोई मेरे पीछे-पीछे आए। क्या इस बारे में राजा देव से बात करूं?”
“तुम पोपा में क्या करने आए हो?”
“जरूरी नहीं कि तुम्हारी बात का जवाब दूं। यहां पर मेरी हैसियत तुमसे बड़ी है। फिर भी बता देता हूं कि महापंडित से बात करने आया हूं।”
“चलो मैं तुम्हें वहां तक पहुंचा दूं जहाँ से बात की जाती है।”
“परंतु मैंने अकेले में बात करनी है। तब मेरे पास कोई न रहे।”
“मैं चला जाऊंगा।”
दोनों आगे बढ़ गए।
“राजा देव कहां हैं?”
“ऊपर, बीच वाले कमरे में।”
“हां, वो कमरा, राजा देव ने अपने और रानी ताशा के लिए ही बनवाया था।” बबूसा कह उठा।
किलोरा, बबूसा को लेकर उस छोटे-से गोल कमरे में पहुंचा, जहां स्क्रीन लगी थी। बटनों और लीवरों से भरा बोर्ड दिख रहा था। उस वक्त वहां दीवार के साथ सटी कुर्सियों पर दो व्यक्ति बैठे थे।
“ये ठीक है।” बबूसा बोला-“मैं इन यंत्रों को इस्तेमाल जानता हूं। तुम जाओ और इन दोनों की भी ले जाओ।”
किलोरा उन दोनों के साथ जाने लगा तो बबूसा बोला।
“क्या तुम सोमाथ की बात हमेशा मानते हो?”
किलोरा, बबूसा को देखता रहा।
“उसकी बातों पर ध्यान मत दिया करो। उसका दिमाग ठीक काम नहीं करता।” बबूसा मुस्करा पड़ा और फिर यंत्रों पर व्यस्त हो गया। हेडफोन जैसी चीज कानों में लगा ली। वो बटनों और लीवरों से खेलने लगा। सामने लगी स्क्रीन रोशन हो उठी थी। इस वक्त बबूसा के चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी।
किलोरा और वो दोनों व्यक्ति वहां से जा चुके थे।
दस मिनट की चेष्टा के बाद ही महापंडित से सम्पर्क बन सका। एकाएक सामने की स्क्रीन पर महापंडित का चेहरा दिखा। पहले कुछ धुंधला था फिर चेहरा स्पष्ट होता चला गया।
“कैसे हो महापंडित?” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“अच्छा हूं।” महापंडित कुछ उलझन में दिख रहा था।
“हम सब सदूर पर वापस आ रहे हैं।”
“जान चुका हूं मैं।”
“राजा देव ने बताया?”
राजा देव से मेरी बात नहीं हुई। मेरी मशीनों ने मुझे बता दिया था।”
“मैं तुम्हें सजा दिलवाऊंगा राजा देव से।”
महापंडित की तरफ से आवाज नहीं आई।
“तुमने रानी ताशा का खूब साथ दिया। राजा देव को सदूर वाले जन्म की पूरी याद नहीं आने दी। उससे पहले ही तुमने राजा देव को रानी ताशा तक पहुंचा दिया। तुम नहीं जानते कि तुमने कितना गलत किया।”
“मैंने कुछ नहीं किया।”
“तुमने किया महापंडित । मैं तुम्हें राजा देव से सजा दिलवाकर रहूंगा।” बबूसा गुस्से में आ गया।
“सजा की मुझे चिंता नहीं है। मैंने कुछ नहीं किया। मैं चाहता तो रानी ताशा को तुरंत राजा देव तक पहुंचा सकता था परंतु मैंने चाहा कि राजा देव को उस जन्म की याद आ जाए। मैं भी तुम्हारी तरह ही सोच रहा था।”
“तुम मुझसे चालाकी से बात करने लगे हो।”
“मैं तुमसे स्पष्ट बात कर रहा हूं। तुम...”
“अब राजा देव, रानी ताशा से मिल चुके हैं और राजा देव को याद नहीं कि रानी ताशा से वो कैसा धोखा खा चुके हैं।”
“राजा देव को सब कुछ आ जाता अगर उस दिन सुबह राजा देव, तुम्हारे पास से न निकले होते।”
“तब मैं राजा देव पर नजर रखे हुए था परंतु तुमने चालाकी की, मेरे सिर पर नींद सवार करा दी। मैं सो गया, और उधर तुमने राजा देव को जगा दिया कि वो निकल जाएं।” बबूसा ने सख्त में कहा-“तुमने मेरे खिलाफ सोमाथ का निर्माण कर दिया कि सोमाथ मुझे मार सके। क्या नहीं किया तुमने?”
“मैंने जो भी करना चाहा, वो नहीं हो सका बबूसा।”
“क्या मतलब?”
“तुम जो भी कह रहे हो, वो मैंने नहीं किया। मैं न तो रानी ताशा के खिलाफ हूं न ही राजा देव के और तुम्हारे खिलाफ तो हो ही नहीं सकता। मैं भी चाहता था कि राजा देव को सब कुछ याद आ जाए। इसी इंतजार में था कि वो सब होता चला गया, जो कि मैं चाहता ही नहीं था। तुम नहीं जानते कि मैं कितना परेशान हूं।”
“हैरानी है कि महापंडित परेशान है।”
“राजा देव की किसी बात की चिंता न करो। उन्हें सदूर पर बिताया जन्म पूरी तरह याद आ जाएगा। जब भी ये वक्त सामने आएगा तो तुम भी देखोगे। मैं इन बातों की वजह से चिंता में नहीं हूं।”
“तो?”
“मुझे उस लड़की को लेकर चिंता है जिसे तुम लोग पोपा में बिठाकर सदूर पर ला रहे हो।”
“धरा?” बबूसा के होंठों से निकला।
“मैं उसका नाम नहीं जान पाया परंतु मेरी मशीनों ने मुझे स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि उसके सदूर पर आते ही सदूर नई तरह की मुसीबतों में घिर जाएगा। उसे अपने साथ मत लाओ।” महापंडित की आवाज कानों में पड़ी।
बबूसा फौरन कुछ न कह सका।
“मेरी मशीनों ने मुझे बताया कि राजा देव और रानी ताशा को मिलाने में उसी लड़की का हाथ है। वो कुछ ताकतें रखती है। उसी की ताकतों की कोशिश का नतीजा है कि राजा देव, रानी ताशा के पास पहुंच गए।”
“उसने ऐसा क्यों किया?” बबूसा के होंठों से निकला।
“वो चाहती थी कि रानी ताशा और राजा देव मिल जाएं ताकि उसे सदूर पर पहुंचने का मौका मिले।”
“वो सदूर पर क्यों जाना चाहती है महापंडित?”
“अभी ये बात मेरी मशीनें नहीं बता पाईं। परंतु मशीनों ने संकेत दे दिए हैं कि सदूर पर पहुंचकर, उस लड़की की ताकतें बढ़ जाएंगी। जिन पर काबू पाना कठिन हो जाएगा। मैं इस बारे में चिंतित हूं।”
“और क्या बताया तुम्हारी मशीनों ने?”
“मशीनें इस काम पर लगी हैं, लेकिन मुझे उनसे कोई जवाब नहीं मिल पा रहा। पता नहीं वो लड़की कौन है।”
“मेरी उससे बात हुई।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“क्या?”
“जादूगरनी से भी उस बारे में बातें हुईं। परंतु वो मुझे कुछ भी बताने को तैयार नहीं।”
“मुझे बताओ वो बातें।”
“धरा मेरे लिए रहस्य बन गई है महापंडित। मैं उसे सीधी-सीधी लड़की समझता था। परंतु उसका जो रूप मेरे सामने आया है, वो हैरान कर देने वाला है। मैं भी उसे लेकर बहुत चिंतित हूं।”
“अगर तुम्हारे पास बताने को कुछ है तो मुझे बताओ बबूसा। वो बातें मैं मशीनों को बताऊंगा तो उन्हें सहायता मिलेगी अपना काम करने को। वो जल्दी किसी नतीजे पर पहुंच जाएंगी।” महापंडित की आवाज कानों में पड़ी-“मुझे तो हैरानी है कि मशीनें मुझे उस लड़की के बारे में बताने में इतनी देर लगा रही है।”
“धरा कहती है कि वो सदूर की है और अब वापस सदूर जा रही है।” बबूसा बोला।
“उसकी बात पर मुझे हैरानी हुई।”
“वो कहती है कि डोबू जाति इसलिए गई थी कि उसकी ताकतों ने उसे बता दिया था कि डोबू जाति जाने पर ही, सदूर जाने का उसका रास्ता खुलेगा और ऐसा हुआ भी। मैं उसे मिला और...”
“वो सब मुझे पता है।”
“जादूगरनी कहती है कि अगर मैंने तुझे धरा के बारे में बता दिया तो इसका पता उसे चल जाएगा और वो मेरी जान ले लेगी कि मैं कहीं दूसरों के सामने ये बात वक्त से पहले न खोल दूं। जादूगरनी ने मुझे बताया कि ढाई सौ साल पहले धरा की ताकतों ने सदूर वापसी का रास्ता तलाशना शुरू कर दिया था। रानी ताशा ने उस जन्म में राजा देव के साथ जो धोखा किया, वो सब धरा की ताकतों ने ही, रानी ताशा से करवाया था।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“ओह, ये तो बहुत बड़ी बात बताई बबूसा।” महापंडित की आवाज कानों में पड़ी।
“मैंने इस बारे में धरा से बात की तो उसने कहा तभी अब उसे सदूर जाने का रास्ता मिल रहा है।”
“तो वो ये खेल सैकड़ों बरस से खेल रही है कि वापस सदूर पहुंच सके।”
“हां।”
“तुमने उससे पूछा कि वो कौन है?”
“पूछा। पर उसका कहना है कि जब पोपा उसे लेकर चल देगा तो तब अपने बारे में बताएगी।”
“जरूर इसमें कोई खास बात है।”
“महापंडित उसके पास कैसी ताकतें हैं?”
“मेरे पास अभी इन बातों का कोई जवाब नहीं है।”
“वो शैतान की तरह लगती है कभी-कभी, तो कभी मासूम दिखती है।”
बबूसा ने होंठ भींचकर कहा-“पर मुझे आभास होने लगा है कि बात जरूर कुछ है। होम्बी गलत बात कभी नहीं कहेगी और तुमने भी कहा कि वो लड़की मुसीबतें खड़ी करेगी।”
“सदूर किसी तरह से मुसीबत में न पड़े, इसके लिए तुम कोशिश कर सकते हो बबूसा।”
“कैसी कोशिश?”
“उसे सदूर पर मत आने दो। पृथ्वी ग्रह पर छोड़ दो उसे।”
बबूसा के होंठ भिंच गए।
“क्या सोचने लगे?”
“शायद ये सम्भव नहीं होगा महापंडित।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा-“धरा ढाई सौ सालों से सदूर पर जाने की तैयारी कर रही है और अब वक्त आया तो, क्या वो रुक पाएगी, जबकि जादूगरनी ने उसके पास ताकतें होने का भी जिक्र किया है।”
“ये सोचना तुम्हारा काम है।”
“मैं-मैं इस बारे में जादूगरनी से बात करूंगा।” बबूसा ने सोच भरे स्वर में कहा।
“जादूगरनी से उस लड़की के बारे में कुछ और जानने की चेष्टा भी करना।” महापंडित ने उधर से कहा।
“मुझसे इस बारे में कुछ हो सका तो मैं जरूर करूंगा।”
“राजा देव कैसे हैं?”
“बेहतर। पहले की तरह ही हैं।”
“मेरी उनसे बात हो सकती है?”
“वो रानी ताशा के साथ कक्ष में हैं। जैसा कि धरा ने कहा कि ढाई सौ साल पहले सदूर पर रानी ताशा ने राजा देव के साथ जो किया, वो धरा की ताकतों के प्रभाव में किया, वो ताकतें रानी ताशा से ये सब करा रही थीं। ऐसे में राजा देव को वो सब याद आया तो वो रानी ताशा को कठोर से कठोर सजा देंगे। वो एक न सुनेंगे कि तब रानी ताशा, धरा की ताकतों के प्रभाव में थी। ये तो फिर रानी ताशा के साथ नाइंसाफी हो जाएगी महापंडित।”
“राजा देव के साथ भी तो नाइंसाफी हुई है।”
“परंतु रानी ताशा का क्या कसूर, वो तो धरा की ताकतों के कब्जे में थी। सच में ये मामला बहुत गम्भीर है। तुम ठीक कहते हो कि धरा अब कई तरह की नई मुसीबतें खड़ी करेगी सदूर पर पहुंचकर।”
“मुसीबतों से भी ज्यादा। मेरी मशीनें इस बारे में संकेत देती जा रही हैं।”
बबूसा के चेहरे पर चिंता दिखने लगी।
“तुम कुछ करो बबूसा। उसे सदूर पर मत पहुंचने दो।” महापंडित ने उधर से कहा।
“इसका फैसला तो जादूगरनी से बात करके ही होगा कि मैं कुछ कर सकता हूं या नहीं।”
दोनों की बातचीत खत्म हो गई।
बबूसा वहां से बाहर निकलकर वापस बढ़ा। चेहरे पर सोचें थीं। कुछ आगे जाने पर किलोरा मिला।
“तुम्हारा कमरा तैयार कर दिया है बबूसा।” किलोरा ने कहा-“आराम कर सकते हो।”
“कमरा तैयार ही रखो। इस वक्त मैंने पोपा से बाहर जाना है।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला।
“मैंने तो सोचा था कि रात पोपा में ही बिताओगे।” किलोरा ने सामान्य स्वर में कहा-“आओ।” फिर वो उस तरफ बढ़ गया, जिस ओर पोपा से बाहर जाने का दरवाजा था।
“सदूर पर जाना कब तय हुआ है।” बबूसा ने पूछा।
“अभी इस बारे में मुझसे कुछ नहीं कहा गया।”
किलोरा ने पोपा का दरवाजा खोला। सामने सीढ़ियां बिछ गई थीं।
बबूसा बाहर निकलता चला गया। कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। चारों तरफ बर्फ फैली थी। इस अंधेरे में भी वह सफेदी के रूप में चमक रही थी। परंतु बबूसा अपनी ही सोचों में खोया हुआ था।
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