तफ़तीश


“लो साहब, आ गया आपके सक्सेना बिल्डर्स का ऑफिस।” ड्राइवर ने ऑटोरिक्शा गेट के ठीक सामने रोकते हुए कहा।

“थोड़ा आगे ले लो,” कार्तिक पीछे की तरफ दुबककर बैठ गया और उसने हड़बड़ी में हाथ से इशारा करते हुए कहा, “जल्दी, जल्दी।”

“लेकिन आपने तो सक्सेना बिल्डर्स ही कहा था, न?” ऑटोवाले ने गर्दन घुमाकर पीछे बैठे कार्तिक और ऋचा को अपनी तिरछी नज़रों से यूँ घूरा, जैसे कोई भूखा बाघ अपने शिकार पर दृष्टि डालता है।

“हाँ, लेकिन हमें इस ऑफिस में नहीं जाना है।” कार्तिक ने अपने गोगल्स पहन लिए जैसे की वो कोई ढाल हों, जो ऑटोवाले की नज़रों की कटार से उसकी रक्षा करने की ताकत रखती हो।

“तो कहाँ जाना है?” झुंझलाये हुए ऑटोवाले ने इस बेरुख़ी से पान थूका जैसे कोई ज्वालामुखी आग उगलता है।

“वो पास में जो पान की दुकान है न, वहाँ।”

“तो पहले नहीं बोल सकते थे।”

ऑटोवाले ने पीछे बैठी सवारियों को एक बार और घूरा और ऑटो आगे बढ़ा दिया।

“अब हमें पहले से थोड़े पता था कि यहाँ ऐसी एक पान की दूकान भी है।” कार्तिक खुद से बड़बड़ाया।

ऑटो के रुकते ही, ऋचा और कार्तिक यूँ बाहर कूदे जैसे ऑटो के अंदर एक और पल बिताना उनके लिए मौत को न्योता देने जैसा हो।

“कीप द चेंज,” कहकर कार्तिक ने ऑटोवाले को थोड़े ज़्यादा पैसे दिए।

नोट गिनते हुए ऑटोवाले के मुख पर छाए क्रोध के बदल छंट गए और मीठी-सी मुस्कान की धूप खिल उठी। पैसे जेब में डालकर, वो वहाँ से ख़ुशी-ख़ुशी विदा हो गया।

“पर कार्तिक, हमें तो अरमान के बारे में पता लगाने सक्सेना बिल्डर्स के ऑफिस ही जाना है, न?” ऑटो के जाते ही ऋचा बोली।

“तुम मेरे ख़ुफ़िया प्लान को समझ नहीं पाओगी, बेबी।” कार्तिक ने अपनी नाक पर गॉगल्स को ज़रा नीचे खिसकाकर ऋचा को देखा।

“तो समझाओ, न।” हार मानते हुए ऋचा ने कहा।

“तुम बस मेरे पीछे-पीछे आओ।” उसने एक कदम आगे बढ़ाया और फिर मुड़कर पीछे खड़ी ऋचा से कहा, “तुम घूँघट कर लो।”

“मगर क्यों?”

“धीरे-धीरे तुम्हें सब समझ आ जायेगा, बेबी।” कार्तिक ने ऋचा को आंख मारी और कहा, “फिलहाल, जैसा मैं कह रहा हूँ, तुम बिना कोई सवाल किए, बस वैसा ही करती जाओ।”

ऋचा को कार्तिक की बातें बड़ी अटपटी-सी लग रही थी। पर फिर भी, उसने अपनी चुनरी से अपना चेहरा ढक लिया। कार्तिक, किसी सीक्रेट एजेंट की तरह, दबे पाँव मगर बड़ी फुर्ती से सक्सेना बिल्डर्स के ऑफिस के गेट की तरफ बढ़ा। उसकी वेश-भूषा भी बहुत-कुछ जासूसों जैसी ही थी। उसने अपने सर पर एक बड़ा-सा हैट पहन रखा था और चेहरे पर, काला चश्मा लगा लिया था। उसने लम्बा-सा ओवर कोट पहना हुआ था, जिसके कॉलर उसने खड़े कर रखे थे। हालाँकि सुबह के साढ़े दस ही बजे थे, गेट के बाहर बैठा एक अधेड़ उम्र का चौकीदार, अभी से ऊँघने लगा था।

“चौकीदार साहब,” कार्तिक, चौकीदार के पास जाकर बड़े अदब से बोला।

चौकीदार के कान पर जूँ तक न रेंगी, लेकिन अपनी नाक पर भिनभिनाती मक्खी को भगाकर वो फिर से ऊँघने लगा। कार्तिक भला कहाँ हार मानने वाला था। उसने रीडायल मोड पर रखे फ़ोन की तरह अगले ही पल फिर से संपर्क स्थापित करने का प्रयत्न किया।

“अरे! ओ, चौकीदार बाबू,” इस बार कार्तिक ने चौकीदार के कंधे पर हाथ रखकर उसे ज़ोर से हिलाया।

“कौन है?” चौकीदार यूँ हड़बड़ाकर उठा जैसे कोई भूकंप आ गया हो।

“हम दो दुखियारे आप की शरण में आये हैं।” कार्तिक ने हाथ जोड़े और रोनी सूरत बनाकर कहा।

“क्या चाहिए तुम लोगों को?” चौकीदार ने आँखें फाड़-फाड़कर शरणार्थियों को यूँ घूरा जैसे वो दोनों उसके महीने भर का राशन लूटकर ले जाने के लिए आएं हो।

“ये हमारी बबली है,” कार्तिक ने ऋचा की ओर इशारा करते हुए कहा, “इधर आओ बबली, चौकीदार बाबू के पाँव छूकर इनसे आशीर्वाद लो।”

ऋचा को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने बड़े आश्चर्य से कार्तिक की ओर देखा। कार्तिक ने उसे फिर से आंख मारी और ऋचा ने आगे बढ़कर चौकीदार के पैर छूए।

“अखंड सौभाग्यवती रहो, बेटी।” चौकीदार ने उसके सर पर हाथ रखकर कहा।

हैरान ऋचा ने एकदम से पलटकर कार्तिक को देखा तो वो अपने मुँह पर हाथ रखकर अपनी हँसी को छुपाने में लगा हुआ था।

“ये आशीर्वाद तो आपने हमें दिया।” कार्तिक एक मंद मुस्कान के साथ बोला, “अपनी बिटिया को भी तो कुछ दीजिये, न।”

“दूधो नहाओ,” चौकीदार ने अपना हाथ दोबारा ऋचा के सर पर रखा और कहा, “पूतो फलो।”

ऋचा, मारे शर्म के पानी-पानी हो गयी। उसने बड़ी क्रूरता से कार्तिक को घूरा।

“चलो अच्छा है,” कार्तिक बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी दबाकर ऋचा के कान में फुसफुसाया, “शादी भी हो गयी और फेमिली प्लानिंग भी।”

फिर कार्तिक झट से घुटनों के बल बैठ गया और चौकीदार के पाँव पकड़कर बोला, “अब एक काम और कर दीजिये बाबू, हम जीवन भर आपका ये उपकार नहीं भूलेंगे।”

“हम भला क्या कर सकते हैं?” चौकीदार की बूढी आँखें शरणार्थियों के इरादे को भाँपने की कोशिश कर रही थी।

“अपनी बबली को इस बड़े-से दफ्तर में कोई छोट-सी नौकरी दिला दीजिये, बाबू।” कार्तिक ने सक्सेना बिल्डर्स के ऑफिस की ऊँची इमारत की तरफ उँगली से इशारा करते हुए कहा।

“तो ये बात है!” रहस्य पर से पर्दाफाश होते ही चौकीदार की जान में जान आयी, “तो सीधे-सीधे बोलो न, नौकरी चाहिए।”

“लो, सीधे-सीधे भी बोल देते हैं, नौकरी चाहिये।” कार्तिक खड़ा हुआ और हाथ जोड़ते हुए बोला, “अब तो दिला दीजिये।”

“कहाँ तक पढ़ी-लिखी है, तुम्हारी बबली?” चौकीदार ने घूँघट में छुपी ऋचा को एक नज़र देखा और कार्तिक से पूछा।

“मेरी बबली, सी. ए. है।” कार्तिक ने बड़े गर्व से कहा।

“बस! सी. ए.?” चौकीदार ने मुँह बनाया और कहा, “मेरा भांजा इससे भी ज़्यादा पढ़ा-लिखा है, पर फिर भी सक्सेना साहब ने उसे नौकरी नहीं दी। तो फिर, तुम्हारी इस बबली को कहाँ से मिल जाएगी नौकरी?”

“अच्छा?” कार्तिक को बड़ी जिज्ञासा हुई तो उसने पूछ ही ड़ाला, “आपका भांजा कहाँ तक पढ़ा है?”

“उसने बी. ए. किया है।” चौकीदार ने अपनी मूछों पर हाथ फेरते हुए कहा, “आखिर, बी. ए. के बाद ही आता है न, सी. ए. का नंबर।”

उन परमज्ञानी महापुरुष की बात सुनकर ऋचा को हँसी आ गयी। उसने अपनी चुनरी से अपना मुँह दबाया और हँसने लगी।

“बिल्कुल, सोलह आने सच बात कही आपने,” कार्तिक ने चौकीदार के सुर में सुर मिलाया, “लेकिन, हम बड़ी मुश्किल में है और नौकरी की हमें बड़ी सख्त ज़रूरत है। हम अगर, सक्सेना साहब के आगे हाथ-पाँव जोड़े तो क्या वो मान जायेंगे? वैसे, वो किस तरह के इंसान हैं?”

ऋचा ने कार्तिक को देखा और धीमे से मुस्कुरायी। उसे अब जाकर समझ आया की कार्तिक ये सारी नौटंकी, आखिर क्यों कर रहा है। उसे अरमान सक्सेना के बारे जानकारी इस तरीके से हासिल करनी थी कि किसी को उन पर शक़ न हो।

“अब, क्या बतायें?” चौकीदार ने दायें-बायें नज़र दौड़ाकर इस बात की तसल्ली कर ली कि आस-पास कोई नहीं है, “आज से दो-तीन साल पहले तक एक मामूली से ठेकेदार थे ये, सक्सेना साहब। बस दो ही साल में, कहाँ से कहाँ पहुँच गए।”

“तब तो बड़े ज़हीन और मेहनती इंसान होंगे।” कार्तिक ने सक्सेना के ऑफिस की तरफ बड़ी श्रद्धा से देखा और कहा, “हम जैसे लोगों को उनकी कामयाबी से सीख लेनी चाहिए। ये तो सच-मुच एक आदर्श महापुरुष हैं।

“अरे! काहे का महापुरुष?” चौकीदार चिढ के बोला, “चार साल पहले ये महाशय बैठकर जेल की हवा खा रहे थे।”

“क्या?” ऋचा और कार्तिक ने चौंककर एक साथ पूछा।

“राम कसम, हम बिलकुल सच कह रहें हैं।” चौकीदार अपने दिल पर हाथ रखकर बोला, “हमारे गाँव के सरपंच का बेटा छोटू, मार-पीट के मामले में एक महीने के लिए जेल गया था। उसे, इन्ही के सेल में रखा गया था। पिछले साल, जब वो हमसे मिलने आया तो सक्सेना साहब को देखकर दंग रह गया। हाँ, वो बात अलग हैं की साहब ने छोटू को पहचानने से भी इंकार कर दिया। खैर, ये तो दुनिया की रीत ही है, जिन लोगों का हाथ कामयाबी थाम लेती है, वो अपने पुराने साथियों का साथ छोड़ देते हैं।”

“आज के ज़माने में जेल जाना कौन-सी बड़ी बात है। सारे बड़े-बड़े नेता, अभिनेता, सब जेल की हवा खा चुके है। और आगे चलकर यही लोग दौलत और शौहरत कमाते हैं। मेरा तो ये मानना है कि कामयाब बनने के लिए आपको एक-आध बार जेल की रोटी का स्वाद तो चखना ही चाहिए।” अरमान के अतीत के बारे जानकर कार्तिक को हैरानी ज़रूर हुई मगर उसने ये चौकीदार पर ज़ाहिर नहीं होने दिया।

“अब क्या कहें? घोर कलियुग है, भैया।” चौकीदार ने ठंडी आह भरी।

“वैसे किस मामले में अंदर गए थे, सक्सेना साहब?” इससे पहले की बात बदल जाए, कार्तिक ने फौरन पूछ डाला।

“ये तो मुझे ठीक से नहीं मालूम।” चौकीदार ने थोड़ी देर सोचकर कहा, “की होगी कोई हेरा-फेरी। नहीं तो कोई सिर्फ दो साल के अंदर इस मुक़ाम तक कैसे पहुँच सकता है?”

“कितने साल की सजा हुई थी उन्हें?” हमेशा बात को घुमा-फिरा कर पूछनेवाले कार्तिक ने इस बार सीधा ही पूछ लिया।

“मैंने तो कभी नहीं पता किया।” चौकीदार ने मुँह फेरते हुए कहा, “जिन बातों से हमारा कोई लेना-देना नहीं, उनके बारे में पता करने की क्या ज़रूरत है।”

“हाँ, ये बात भी सही है। हमें तो बस नौकरी मिलने से मतलब है।” जब कार्तिक को लगा कि चौकीदार से सीधा सवाल करना खतरनाक हो सकता है तो उसने पैंतरा बदल दिया, “हमारे एक चाचा है जो सुसनेज में रहते हैं। अपने सक्सेना साहब भी तो वहीं के रहने वाले हैं। हो सकता है, चाचा जी की जान-पहचान हो सक्सेना साहब के साथ और उनके कहने पर सक्सेना साहब, बबली को नौकरी दे दें।”

कार्तिक ने बड़ी चालाकी से जाल बिछाया। असल में, कार्तिक ये जानना चाहता था की अरमान कहाँ का रहने वाला है ताकि वो अरमान के बारे में और ज़्यादा जानकारी हासिल कर सके।

“अरे! नहीं, नहीं, तुमको गलतफहमी हुई है।” चौकीदार ने ज़ोर से अपना हाथ हिलाया और कहा, “सक्सेना साहब सुसनेज से नहीं हैं। वो तो रठोलिया के रहनेवाले हैं।”

“रठोलिया?” कार्तिक ने हैरान होकर ऋचा को देखा और फिर वापस चौकीदार की तरफ मुड़कर पूछा, “ये रठोलिया कौन सी जगह है? हमने तो कभी नाम भी नहीं सुना, ऐसी जगह का। क्यों है न, बबली?”

“यहाँ पास ही में तो है, रठोलिया।” चौकीदार ने बस स्टॉप की ओर इशारा करते हुए कहा, “वहाँ जो बस खड़ी है न, उसमें बस दो घंटे ही लगेंगे रठोलिया पहुँचने में।”

“अच्छा, बाबू जी, अब हम चलते है।” ऋचा का हाथ पकड़कर कार्तिक वापस जाने को मुड़ा।

“अरे! कहाँ जा रहें है?” चौकीदार उन्हें यूँ वापस जाते देख अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ, “सक्सेना साहब से नहीं मिलेंगे? नौकरी नहीं चाहिए क्या?”

“पहले हम अपनी बबली को बी. ए. करवाएंगे और तब वापस आएंगे।” कार्तिक ने जाते-जाते मुड़कर देखा और कहा, “अभी तो बेचारी सिर्फ सी. ए. है। इसे कहाँ नौकरी मिलने वाली है?”

वो दोनों जल्दी से पास खड़े ऑटोरिक्शा में बैठे और घर वापस चल दिए। जब वो वहाँ से थोड़ी दूर निकल आये तो दोनों ने एक-दूसरे को देखा। उनकी नज़र मिलने की देर थी कि दोनों ठहाके मारकर हँसने लगे।

* * *

थैंक गॉड!” कार्तिक अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोला, “हम रठोलिया पहुँच गए। अगर एक मिनट और इस बस में सफ़र करना पड़ता न तो मेरी कमर किसी काम की न रहती।”

“अब, चलो उतरो।” मंज़िल पर पहुंचते ही ऋचा अपनी सीट से फुदककर खड़ी हो गयी।

ऋचा अब इस मिशन में काफ़ी रुचि लेने लगी थी। हर नए दिन, उनकी तहकीकात एक नया मोड़ लेती और कहीं ज़्यादा दिलचस्प हो जाती। तहकीकात के बहाने ऋचा को कार्तिक के साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा वक़्त बिताने का मौका भी तो मिल रहा था। इस कारण, वो बहुत खुश भी थी और अपने आप को सुरक्षित भी महसूस करती थी। अब उसे किसी का डर नहीं था और चुनौतियाँ उसे रोमांचित करने लगी थी।

“अरे! ऋचा, रुको तो सही।” कमर के दर्द से परेशान कार्तिक ने, तेज़ी से आगे चलती हुई ऋचा को पुकारा।

“जल्दी चलो, न,” ऋचा रुक गयी और उसने मुड़कर कार्तिक से कहा, “क्या, कछुए की चाल चल रहे हो?”

“जंग में अगर कोई सिपाही घायल हो जाये तो उसे क्या यूँ बेसहारा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है?” अपनी कमर को पकड़कर कार्तिक वहीं खड़ा हो गया।

“अच्छा, बाबा,” ऋचा, कार्तिक के पास लौट आयी और कहा, “मैं तुम्हारी मदद करती हूँ।”

ऋचा ने कार्तिक की बाँह पकड़कर उसे सहारा दिया। वो दोनों कच्ची सड़क पर धीरे-धीरे आगे बढ़े। वो कुछ ही कदम आगे चलें होंगे कि एक आदमी उनके सामने से गुज़ारा।

“भाई साहब,” ऋचा ने फौरन उस आदमी से पूछा, “क्या आप बता सकते हैं कि अरमा... “

“शिव मंदिर कहाँ है?” कार्तिक ने जल्दी से ऋचा की बात काट दी।

“इस सड़क पर सीधे चलते जाइये।” वो आदमी उन दोनों को बारी-बारी से देखते हुए बोला, “यहाँ से दस मिनट की दूरी पर बाएँ हाथ की तरफ आपको शिव मंदिर दिखाई देगा।”

“अच्छा, भाई साहब, आपका बहुत, बहुत शुक्रिया।” कार्तिक ने उस आदमी से हाथ मिलाते हुए कहा।

“तुम्हें उस आदमी से अरमान के बारे में पूछने की क्या ज़रूरत थी?” जब वो आदमी थोड़ी दूर निकल गया तो कार्तिक ने धीमे स्वर में ऋचा से पूछा।

“फिर, हम अरमान का घर कैसे ढूंढेंगे?”

“हम जिस बस में आये थे, उसके कंडक्टर से मैंने बातों-ही-बातों में पता किया था न कि अरमान का घर किसी बड़े से शिव मंदिर के पास है। तो फिर, हर आते-जाते इंसान को ये बताने की क्या ज़रूरत है कि हम अरमान का घर ढूँढ़ रहे हैं? शिव मंदिर ढूंढो, अरमान का घर खुद-ब-खुद मिल जायेगा।”

“अरे! हाँ कार्तिक,” ऋचा को अपनी गलती का एहसास हुआ, “तुम्हारी बात सही है। आगे से ऐसा ही करूँगी।”

“एक बात हमेशा याद रखना, ऋचा।” कार्तिक ने चेतावनी दी, “ये अरमान का ठिकाना है। अगर, उसे हमारे मिशन का पता चला तो वो हमें ही ठिकाने लगा देगा। फिर, हमारा ये मिशन हमेशा के लिए 'इम्पॉसिबल' रह जायेगा।”

“यस, बॉस!” ऋचा ने फौजियों की तरह कार्तिक को सलामी दी।

ऋचा और कार्तिक उस सड़क पर चलते-चलते थोड़ी दूर निकल आये। तभी उन्हें किसी मंदिर की घण्टियों की आवाज़ सुनाई दी। दोनों ने, चारों तरफ नज़र घुमाकर देखा।

वहाँ हर जगह, पथरीली रेत और उस बंजर ज़मीन पर उगी झाड़ियों के अलावा कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था।

“कार्तिक, देखो,” ऋचा ने हाथ उठाकर ऊपर की ओर इशारा किया, “वहाँ उस पहाड़ी के ऊपर है, शिव मंदिर।”

“मंदिर तो पहाड़ के ऊपर है लेकिन अरमान का घर नीचे ही हो तो अच्छा है।” कार्तिक ने फिर से अपनी कमर पकड़ ली, “पहाड़ के ऊपर चढ़ने की हालत में नहीं हूँ, फिलहाल।”

“आओ, पता करते हैं।” शिव मंदिर को देखते ही ऋचा को ये एहसास हो गया कि उसकी मंज़िल अब दूर नहीं है। वो कार्तिक की बाँह पकडे उस तरफ चल पड़ी।

शिव मंदिर एक ऊँची पहाड़ी पर था इसलिए वहाँ तक पहुँचने के लिए भक्तों को दो सौ से ज़्यादा सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती थी। उन सीढ़ियों की श्रृंखला को देखते ही कार्तिक के पसीने छूट गए। लेकिन, भगवान शिव के दर्शन करने आये श्रद्धालु बड़ी ही आसानी से, हाथों में पूजा की थाली लिए, सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे थे। जिनके मन में अपार श्रद्धा और भक्ति का भाव हो, उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं। पहाड़ी के नीचे कुछ दुकानें थी, जिनमें पूजा की सामग्री मिलती थी।

“चलो, उस दुकान पर जाकर पूछते हैं।” कार्तिक ने ऋचा से कहा।

“सुनिए, भाई साहब,” कार्तिक ने एक मध्य वयस्क दुकानदार से पूछा, “वो अपने अरमान का घर कहाँ है?”

दुकानदार देखने में काफी हृष्ट-पुष्ट था और फूलों की माला बनाने में व्यस्त था। हालांकि, उसकी दुकान पर ग्राहक तो नदारद थे, पर उसके चेहरे पर भाव ऐसा था कि उसे काम से पल भर की भी फुर्सत नहीं मिलती।

“घर तो वो सामने वाला है।” दुकानदार ने हाथ से इशारा किया और फिर से माला बनाने में जुट गया, “लेकिन, अब वो लोग वहाँ नहीं रहते।”

“अरे!” कार्तिक ने हैरान होने का नाटक किया, “मुझे तो किसी ने बताया ही नहीं। मैं कुछ सालों के लिए दुबई क्या चला गया, लोग तो मुझे भूल ही गए। अरमान, मेरे साथ कॉलेज में पढ़ता था। पढ़ाई पूरी होते ही मुझे दुबई में नौकरी मिल गयी और मैं वहाँ चला गया। पिछले हफ्ते लौट कर आया तो सोचा पुराने दोस्तों की खोज-खबर ली जाये। इसलिए, उसे ढूंढते हुए यहाँ आ गया। वैसे, अरमान अब कहाँ रहता है?”

“क्या पता?” दुकानदार ने कार्तिक की काल्पनिक आत्मकथा पर कोई ध्यान न दिया और पूजा की सामग्री को थाली में सजाने में लगा रहा।

“मतलब?” कार्तिक ने सीमेंट के उस पक्के दो मंज़िले मकान को देखते हुए पूछा, जिसे उस दुकानदार ने अरमान का बताया था, “आपकी दुकान उसके घर के इतने पास है और आपको पता ही नहीं?”

“उसकी खोज-खबर तो उसका अपना परिवार नहीं रखता, फिर हम क्यों रखें?”

“क्यों?” कार्तिक ने बड़ी कौतुकता से दुकानदार को देखा, “कोई मन-मुटाव हो गया था क्या उसका अपने परिवार से?”

“जो बचपन में ही अनाथ हो गया हो, वो तो दूसरों पर बोझ ही होगा न?” दुकानदार ने पल भर के लिए पूजा की थाली से नज़र उठाकर कार्तिक को देखा।

“अनाथ मतलब?” कार्तिक इस बार सच मुच हैरान था, “अभी तो आपने कहा उसका एक परिवार है।”

“जब अरमान एक साल का था, तभी उसके माँ-बाप एक रेल दुर्घटना में चल बसे थे।” दुकानदार ने थाली को एक लाल कपड़े से ढँक दिया और अपना पूरा ध्यान कार्तिक पर केंद्रित किया, “उसके मामा उसे यहाँ ले आये। उसकी मामी को वो फूंटी आँख नहीं भाता था। वैसे वो था भी ऐसा ही, एक नंबर का छटा बदमाश। पढ़ाई में तो बिल्कुल मन नहीं लगता था, उसका। बारहवीं कक्षा में फेल होने के बाद तो पढ़ाई ही छोड़ दी, उस नालायक ने।”

कार्तिक की टाँग खींचने का मौका, भला ऋचा कैसे जाने देती। उसने कार्तिक को कोहनी मारी और उसके कान में धीरे से कहा, “तुम तो कह रहे थे, तुम्हारे साथ कॉलेज में था।”

कार्तिक ये सुनकर झेंप ज़रूर गया पर वो ऋचा की बात को नज़रअंदाज़ कर दुकानदार की बातें ध्यान-मग्न होकर सुनने लगा।

“उसके मामा ने उसे, अपनी पहचान के एक ठेकेदार के यहाँ काम पर लगा दिया। वो अपने शर्मा जी हैं न, उनके यहाँ।”

“हाँ, हाँ,” कार्तिक ने इस उत्साह के साथ सर हिलाया जैसे वो सच-मुच शर्मा जी को जानता हो, “वो अपने शर्मा जी के यहाँ, न? हाँ, फिर क्या हुआ?”

“लेकिन, वो निकला पक्का आस्तीन का साँप ही।” दुकानदार का चेहरा गुस्से से लाल-पीला हो गया, “अपने मालिक की इज़्ज़त पर ही डाका ड़ाल दिया।”

“क्यों? क्या किया उसने?”

“कुछ दो-तीन साल तो शर्मा जी के यहाँ ठीक-ठाक काम किया उसने। ये देखकर, शर्मा जी उस पर विश्वास भी करने लगे थे। अगर, घर से उन्हें कोई चीज़ मंगवानी होती तो वे अरमान को ही भेजते थे। इस तरह, अरमान का उनके घर आना-जाना लगा ही रहता था। फिर पता चला कि उसने शर्मा जी की बेटी पर ही डोरे डालने शुरू कर दिए। उनकी बेटी सलोनी भी, अरमान के प्यार में पूरी तरह पागल हो चुकी थी। अब, शर्मा जी ठहरे खानदानी रईस। वे भला इस अनाथ को अपना दामाद कैसे बनाते? इसलिए, उन्होंने अपनी जान-पहचान के किसी पुलिस अफसर से सलाह-मश्वरा कर के अरमान को जेल भिजवा दिया और अपनी लड़की की शादी एक पैसेवाले घर में करवा कर निश्चिन्त हो गए।”

“इंटरेस्टिंग!” कार्तिक मुस्कुराया और पूछा, “जेल से बाहर निकलने के बाद क्या अरमान यहाँ नहीं आया?”

“आता तो उसके मामा उसकी जान न ले लेते?” दुकानदार ने पूरी कहानी सुनाकर एक लम्बी सांस ली, “अब तो उसके मामा-मामी, अपनी बेटी के यहाँ पुणे में रहते हैं। अरमान कहाँ चला गया, कुछ पता नहीं।”

“ज़रा ये फोटो देखकर बताइये, भैया,” ऋचा ने अपने बैग से अपनी और अनाया की एक फोटो निकाली, जो मंजू ने अनाया के जन्मदिन की पार्टी पर खींची थी, “जो औरत, इस तस्वीर में बैंगनी साडी पहने हुए है, क्या आप उसे जानते है?”

दुकानदार ने एक मोटा-सा चश्मा लगाया और ऋचा के हाथ से फोटो ले लिया। पूरे पांच मिनट तक, उस फोटो का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने में संलग्न रहे।

“नहीं,” दुकानदार ने अपना चश्मा उतारा और सर हिलाया, “बैंगनी साडीवाली को तो मैं नहीं जानता। हाँ, लेकिन जो उसके साथ खड़ी है, वो ज़रूर हमारे चौबे जी की बहु जैसी लग रही है।”

“हैं?” हैरान ऋचा ने वो फोटो, दुकानदार से झपटकर ले लिया और उसे वापस अपने बैग में रख लिया।

“अरमान से मिलने के अरमान तो अरमान ही रह गए।” कार्तिक ने ऋचा को हाथ से इशारा कर चलने का सिग्नल दिया और फिर दुकानदार से कहा, “अच्छा भैया, अब हम चलते हैं।”

“तुम बड़े शरीफ लगते हो, बाबू।” दुकानदार ने कार्तिक को सर से पाँव तक देख कर अपनी टिपण्णी दी, “हम तो तुम्हें यही सलाह देना चाहेंगे कि उस दग़ाबाज़ अरमान से दूर रहने में ही तुम्हारी भलाई है।”

“हमें भी अब कुछ ऐसा ही लगने लगा है, भैया।” कार्तिक ने दुकानदार से हाथ मिलाते हुए कहा, “वैसे सलाह देने के लिए शुक्रिया।”

* * *

“अरमान जेल ज़रूर गया था,” बहुत देर ख्यालों में खोये रहने के बाद ऋचा ने अपनी चुप्पी तोड़ी, “पर मुझे नहीं लगता उस घटना का चिराग की हत्या से कोई लेना-देना है। जिस जुर्म को छुपाने के लिए उन्हें चिराग को रास्ते से हटाना पड़ा, वो कुछ और है।”

“मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता है।” कार्तिक बहुत धीमी गति से अपनी कार चला रहा था।

हालांकि, दिल्ली में तो उसकी कार हवा से बातें करती थी पर सुसनेज की सड़कों की दुरावस्था को देखते हुए, तेज़ गति से यात्रा करने की कल्पना करना भी नामुमकिन था। अरमान के अतीत के बारे में पता करने के बाद, अब वो दोनों अनाया के घर जा रहे थे। लेकिन इस बार कार्तिक ने कसम खा ली थी कि अब वो कभी भी, स्टेट ट्रांसपोर्ट की बस में यात्रा नहीं करेगा। परसो, एक ऐसी ही बस में रठोलिया तक यात्रा करने के बाद उसकी कमर की जो दुर्दशा हुई थी, उसे वो ज़िन्दगी भर नहीं भूल पायेगा। इसलिए, अपनी तहकीकात के अगले भाग को अंजाम देने, सुसनेज जाने के लिए उसने एक कार भाड़े पर ले ली।

“मैंने, मंजू दीदी को कहते सुना है कि अनाया का अपने पिता के यहाँ आना-जाना कम ही है।” ऋचा ने कार का रेडियो बंद किया और कहा, “उसके पिता अपने बंगले में अकेले रहते हैं। एक नौकरानी है जो उनका ख्याल रखती है। सुना तो ये भी है कि उनकी याद्दाशत भी बहुत कमज़ोर है। पता नहीं, उनसे हमें कितनी जानकारी मिल पायेगी?”

“देख लेते हैं।” कार्तिक का पूरा ध्यान इस बात पर था कि सड़क के गड्ढों से अपनी कार को कैसे बचाकर निकाले, “कोशिश करने में क्या हर्ज़ है।”

“वो देखो!” ऋचा ने सड़क की ओर इशारा किया, “थोड़ा आगे, सड़क के बायीं ओर एक बोर्ड लगा है, जिस पर 'त्रिपाठी निवास' लिखा है। यही नाम बताया था मंजू दीदी ने अनाया के बंगले का। वहाँ से अंदर की तरफ एक कच्ची सड़क दिख रही है, यही होगा बंगले तक जाने का रास्ता।”

“हाँ, शायद यही है।” कार्तिक ने कार कच्ची सड़क पर मोड़ दी।

उस सड़क पर थोड़ा आगे उन्हें एक पुराना बंगला नज़र आया। वो बंगला था तो बहुत विशाल पर देख रेख के अभाव में अपनी खूबसूरती खो बैठा था। बंगले के गेट पर ज़ंग लगा हुआ था, दीवारों पर धूल-मिट्टी जमी हुई थी और लकड़ी के नक्काशीदार दरवाज़े भी बेनूर हो गए थे।

कार्तिक ने कार बंगले की गेट के बाहर ही रोक दी और वे दोनों अध-खुले गेट से होते हुए अंदर आ गए। ऋचा ने कॉलिंग बेल बजायी पर कोई आवाज़ न हुई। शायद बेल खराब थी।

दो-तीन बार दरवाज़ा खटखटाने के बाद, एक बूढी नौकरानी ने दरवाज़ा खोला।

“क्या हम त्रिपाठी जी से मिल सकते हैं?” ऋचा ने पूछा।

“हैं?” नौकरानी ने अपने कान की तरफ इशारा कर पूछा।

ऋचा समझ गयी कि वो ज़रा ऊँचा सुनती है। उसने ऊँची आवाज़ में अपना प्रश्न दोहराया। इस पर, नौकरानी ने अपना सर हिलाया और हाथ से दोनों को अंदर आने का इशारा किया। वो उन्हें अंदर बैठक में ले गयी जो काफी बड़ा था। उसे देखकर ऋचा को लगा कि कभी किसी ज़माने में ये बैठक काफी शानदार रहा होगा। पर, अब वो भी पूरे बंगले की तरह खासी दुरावस्था में था। नौकरानी उन्हें बैठने के लिये कहकर अंदर चली गयी। थोड़ी देर बाद, एक बूढ़ा आदमी आँखों पर ऐनक लगाए, लाठी के सहारे धीरे-धीरे चलता हुआ बैठक में आ गया।

“क्या आप ही त्रिपाठी जी हैं?” ऋचा उस बुज़ुर्ग व्यक्ति को आते देखकर उठ खड़ी हुई।

“जी, हाँ,” त्रिपाठी जी कुर्सी पर बैठते हुए बोले, “माफ़ कीजिये, पर मैंने आप लोगों को पहचाना नहीं। उम्र हो गयी है न, मेरी। अब कुछ याद भी तो नहीं रहता। वैसे, आपको क्या काम है मुझसे?”

“मैं अनाया की सहेली हूँ, अंकल।” ऋचा ने मुस्कुराते हुए कहा।

त्रिपाठी जी ने ऋचा को ग़ौर से देखकर, पहचानने की कोशिश की। मगर उनकी धुंधलाती हुई याद्दाश्त ने उनका साथ न दिया।

“मुझे कुछ याद तो नहीं आ रहा, बिटिया।” त्रिपाठी जी ने हार मानकर सर हिला दिया और कहा, “खैर, तुम बताओ कैसे आना हुआ?”

“दरअसल, मैं अनाया से मिलने आयी थी। यहाँ आयी तो पता चला कि उसकी शादी हो गयी।” ऋचा ने नज़रें झुका ली। वो झूठ बोल रही थी इसलिए उसकी हिम्मत न हुई कि वो त्रिपाठी जी से नज़रें मिला सके, “कुछ साल पहले, मेरे पापा का तबादला दिल्ली हो गया था इसलिए हम सब वहाँ चले गए। हो सकता है, उसने अपनी शादी का न्योता भेजा हो और मुझे मिला न हो।”

“नहीं, बेटा,” त्रिपाठी जी ने एक लम्बी साँस ली और कहा, “मुझे नहीं लगता उसने तुम्हें अपनी शादी का न्योता भेजा होगा। तुम्हें तो क्या, किसी को भी नहीं बुलाया होगा उसने। उसने तो खुद ही मजबूरी में आकर ये शादी की थी।”

“लेकिन,” ऋचा और कार्तिक ने चौंककर एक-दूसरे को देखा, “ऐसा क्या हुआ था, जो उसे मजबूरी में शादी करनी पड़ी?”

“मैंने ही उस पर दबाव डाला था, शादी के लिए।” पुरानी बातें सोचकर भावुक हुए त्रिपाठी ने अपनी छड़ी को कसकर पकड़ लिया, “भला, मैं भी क्या करता? व्यापार में मुझे बहुत बड़ा नुकसान हुआ और मैंने अपनी सारी दौलत गवाँ दी। बेटी को दहेज में, मैं क्या देता? लेकिन, सारी ज़िन्दगी उसे कुँवारी भी तो नहीं रख सकता था। कोई अच्छा खानदान देखकर उसकी शादी करवाना भी तो ज़रूरी था। अनाया, बेहद सुन्दर थी और साथ ही पढ़ी-लिखी और गुणवती भी। उसके लिए रिश्ते तो बहुत आये, पर सब लोग दहेज में बहुत बड़ी रकम मांगते थे। मैं कहाँ से लाता इतना दहेज? इसलिए, जब अनाया के लिए विवेक का रिश्ता आया तो मैंने उसकी शादी करवा दी।”

“विवेक?” ऋचा को लगा याद्दाश्त कमज़ोर होने की वजह से त्रिपाठी ने अनाया के पति का गलत नाम ले लिया है, “उनका नाम तो अरमान सक्सेना है, न?”

“वो तो उसका दूसरा पति है।” अरमान का नाम सुनते ही त्रिपाठी जी ज़रा खीज उठे, “मैंने तो उसकी शादी, विवेक शास्त्री से करवाई थी। बड़ा अच्छा लड़का था विवेक, शांत, सुशील, पढ़ा-लिखा और देखने में भी सुन्दर था। बस, एक ही खामी थी इस रिश्ते में। विवेक की एक बार पहले भी शादी हो चुकी थी। उसकी पत्नी का देहांत हो चुका था। मगर, पहली पत्नी से विवेक का एक तीन साल का बेटा था।”

“क्या?” कार्तिक और ऋचा दोनों एक साथ बोले, “चिराग, अनाया का बेटा नहीं है?”

“नहीं,” त्रिपाठी ने सर झुका लिया, “विवेक के परिवार ने दहेज़ माफ़ कर दिया तो मैं इस शादी के लिए राज़ी हो गया। अपनी कसम देकर मैंने अनाया को भी राज़ी करवा लिया। एक साल तक तो सब ठीक चला उन दोनों के बीच। लेकिन फिर एक दिन, विवेक अपने बिज़नेस के सिलसिले में अहमदाबाद गया और कभी लौट कर ही नहीं आया। जब बहुत दिनों तक उसका कुछ पता न चला तो अनाया, चिराग को लेकर यहाँ आ गयी। फिर एक दिन, अरमान हमारे घर आया और हमसे कहा कि वो विवेक का दोस्त है। उसने बताया कि विवेक ने बहुत लोगों से कर्ज़ा लिया था। उसकी कंपनी ठप्प हो चुकी थी और वो उधार लिया हुआ पैसा वापस करने की स्थिति में नहीं था। अरमान को अपना घर, ऑफिस, सब कुछ बेचकर, विवेक फ़रार हो गया है और अब कभी भी वापस नहीं आएगा। ये सब सुनकर मुझे ऐसा सदमा लगा कि मैं कुछ दिनों तक बिस्तर से उठ ही न पाया। मुझे अपनी बेटी के भविष्य की चिंता सताने लगी। फिर कुछ महीनों बाद, अरमान दोबारा लौटकर आया और उसने अनाया से शादी का प्रस्ताव रखा। मुझे तो अरमान बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। न बात करने का सलीका था उसे, न कोई शील-संस्कार। मुझे लगा, अनाया इस रिश्ते के लिए कभी राज़ी नहीं होगी। पर, अनाया ने तो फौरन 'हाँ' कर दी। फिर, भला मैं क्या करता? मेरी उम्र हो चुकी थी। जाने कब ईश्वर के घर से बुलावा आ जाये? जवान बेटी को, अपने पीछे, अनाथ छोड़कर तो नहीं जा सकता था न। इसलिए, अनमने मन से ही सही, मैंने उसकी शादी अरमान से करवा दी।”

“तो ये बात है।” कार्तिक चुटकी बजाते हुए बोला। उसका जासूसी दिमाग काम पर लग गया था।

“क्या बात है, बेटा?” कार्तिक का उत्साह देखकर त्रिपाठी जी दंग रह गए।

“बात ये है, अंकल,” ऋचा ने जल्दी से बात बदल दी, “कि मेरी एक किताब, अनाया के पास है। मैं वही लेने आयी थी। अगर, आप इजाजत दें तो मैं वो किताब ले लूँ?”

“शायद, अनाया ने अपने कमरे में रखी होगी।” त्रिपाठी जी बड़ा यत्न कर कुर्सी से उठने लगे, “ढूंढनी पड़ेगी।”

“आप क्यों कष्ट करते है, अंकल?” ऋचा अपनी कुर्सी से उठी और त्रिपाठी जी को वापस उनकी कुर्सी पर ही बिठा दिया, “मैं देखती हूँ, न।”

“ये ठीक रहेगा।” त्रिपाठी जी ने एक ठंडी आह भरी और कहा, “तुम्हारी किताब है, तुम्ही को पता होगा। मैं कहाँ से ढूँढ़ कर लाऊंगा?”

“तो, क्या हम अनाया के कमरे की तलाशी ले सकते हैं, त्रिपाठी जी?” कार्तिक बड़े उत्साह के साथ अपनी कुर्सी से फुदककर खड़ा हो गया।

“क्या?” त्रिपाठी जी चौंक गए, “तलाशी?”

“मतलब, तलाश,” ऋचा ने बिगड़ती बाज़ी को संभाला और कहा, “क्या हम अनाया के कमरे में अपनी किताब को तलाश कर सकते हैं?”

“हाँ, बेटा,” त्रिपाठी जी ने बड़े प्यार से ऋचा के सर पर हाथ रखकर कहा, “जाओ, देख लो।”

* * *

“चिराग, अनाया का बेटा नहीं है, ऋचा।” कार की स्टीयरिंग व्हील की ओर अचरज भरी निगाहों से देखते हुए कार्तिक ने कहा, जैसे वो स्टीयरिंग व्हील से ही बात कर रहा हो।

“पता है, कार्तिक,” ऋचा सामने सड़क को ही देखती रही, “जब से हम अनाया के घर से निकले हैं, तुम बस इसी बात को मंत्र की तरह जप रहे हो।”

“क्यों न कहूँ? तुम्हें अंदाजा नहीं है, ये बात जानकर मैं कितना शॉक्ड हो गया हूँ। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि ...”

कार्तिक ने बगल में बैठी ऋचा को देखा। वो कार्तिक के 'मंत्र-जाप' से तंग आकर, अपने सर पर हाथ रखे बैठी थी।

“अच्छा, ठीक है।” कार्तिक ने कार की हेड लाइट्स चालू कर दी। रात होने वाली थी और सड़क अँधेरे की गिरफ्त में जा रहा था, “अब, चिराग वाली बात नहीं कहूँगा। चलो, कुछ और बात करते हैं। इस पूरी तहकीकात के दौरान मेरा ध्यान कभी अनाया के पहले पति की तरफ गया ही नहीं। क्या, तुमने कभी सोचा इस बारे में?”

“नहीं,” ऋचा, अँधेरी सड़क पर कार के लाइट्स द्वारा बनाये प्रकाश के छोटे से घेरे को देखती ही रही, “देखो कार्तिक, ये सड़क पूरी तरह से अँधेरे में डूबी हुई है। बस जहाँ पर भी कार की लाइट पड़ती है, वहीं प्रकाश है। हम इंसानों की सोच भी ऐसी ही है। हम, हमारी समझ के एक छोटे से घेरे में रहकर सोचते हैं। इस घेरे के बाहर जो अज्ञात अँधेरा है, उसमें कितने राज़ छुपे हैं, क्या पता?”

“तुम तो बिलकुल फिलॉसोफर बन गयी हो, यार ऋचा।” कार्तिक को ऋचा पर व्यंग्य कसने का सुनहरा मौका मिल गया, “वैसे, त्रिपाठी जी से मिलकर भी हमें अनाया और अरमान के बारे कुछ ख़ास जानकारी नहीं मिल पायी, है न? सवाल तो अब भी हमारे सामने वैसे का वैसा ही खड़ा है। वो क्या जुर्म था, जिसे छुपाने के लिए उन्होंने चिराग को मार डाला? अच्छा ये बताओ, तुम बड़ी जेम्स बॉन्ड की तरह अनाया के कमरे की तलाशी ले रही थी न। कुछ हाथ लगा या नहीं, मैडम बॉन्ड?”

“लगा, न?” ऋचा बड़े गर्व से मुस्कुरायी।

“क्या?”

“ये!” ऋचा ने अपना बैग खोल कर उसमें से एक डायरी निकाली।

“ये क्या है?”

“अनाया की डायरी।” डायरी पर उँगलियाँ फेरते हुए ऋचा बोली, “इसी की तलाश में ही तो मैं सुसनेज गयी थी।”

“पर, तुम्हें कैसे पता कि अनाया डायरी लिखती थी?”

“मैं जब अनाया से पार्टी पर मिली थी, तो उसने मुझे बताया था कि उसे कहानियाँ पढ़ने का शौक है। इस पर, मैंने उससे पूछा क्या आपको लिखने का शौक भी है? तो उसने हँसते हुए कहा कि हर रात सोने से पहले वो अपनी डायरी में उस दिन का पूरा ब्यौरा लिखती है। जिन लोगों को डायरी लिखने की आदत होती है न कार्तिक, वो हर बात अपनी डायरी में लिख देते हैं। चाहे वो उनका किया कोई जुर्म ही क्यों न हो। जैसे हमें किसी के साथ दिल की बात कह कर हल्कापन महसूस होता है, इन लोगों को वो सुकून डायरी में लिखकर मिलता है। और, मुझे ये भी लग रहा था कि जिस डायरी में उसने इतने गहरे राज़ के बारे में लिखा होगा, उसे वो ज़रूर किसी सुरक्षित जगह छुपाकर रखेगी। अनाया के लिए अपने पिता के बंगले से अच्छी जगह और कौन सी हो सकती है? वहाँ आजकल कोई आता जाता नहीं है। मुझे पूरा यकीन है कि ये डायरी हमारे सारे सवालों के जवाब दे देगी।”

“अरे वाह! ऋचा,” कार्तिक ने मुस्कुराते हुए ऋचा की पीठ थपथपाई, “तुम तो जेम्स बॉन्ड की भी नानी निकली।”

“अब जल्दी घर चलो, राज़ पर से पर्दा उठाने का वक़्त आ गया है।” ऋचा ने डायरी को देखते हुए कहा, “इस डायरी को हमसे बहुत कुछ कहना है, कार्तिक।”