समतल आकार का वो पत्थर था। उसका जो हिस्सा धरती से टकराया था, वो एकदम सपाट और पंद्रह-बीस फुट के घेरे में था किनारों की तरफ से टूटा-फूटा था। ऊपर से जैसे पत्थर का कूबड़ निकला हुआ था। वो किसी पहाड़ी चट्टान से अलग हुआ पत्थर का टुकड़ा लगता था जो कि आसमान की तरफ से आया था। यकीनन ओहारा का इरादा डुमरा को इस पत्थर से कुचल देने का था। ये ओहारा जैसी बड़ी ताकत का वार था डुमरा पर।
अगर डुमरा उस गड्ढे जैसी जगह में न समा जाता तो उसी पल कुचला गया होता। अब भी डुमरा की खैर नहीं थी। पता नहीं गड्ढे में वो जिंदा रहा था या मर गया था। जहां डुमरा था, वहां बड़ा-सा पत्थर पडा हुआ था।
एकाएक ओहारा ठहाका लगाकर हंस पड़ा था।
एक तरफ खडे सोमाथ के चेहरे पर व्याकुलता के भाव आ गए थे।
दोती और मोरगा के चेहरों पर प्रसन्नता से भरी चमक आ गई थी।
“अब तक तो मर गया होगा डुमरा।” ओहारा हंसते हुए कह उठा-“मेरे वार से बचना मुश्किल नहीं।”
“पर वो तो गड्ढे में था।” मोरगा कह उठी।
“उससे क्या फर्क पडता है।” ओहारा कड़वे स्वर में बोला-“इतना भारी पत्थर वो हटा नहीं सकता। गड्ढे में ही जान गंवा देगा। जो ओहारा से टक्कर लेगा, उसका ये ही हाल होगा।”
“तो क्या अब शक्तियां उसे बचा नहीं सकतीं।” मोरगा ने पूछा।
“किसी भी हाल में नहीं। इतना भारी पत्थर शक्तियां नहीं हटा सकतीं। वैसे भी कुछ ही देर का वक्त बचा है, अगर डुमरा नहीं मरा तो दम घुटने से अभी मर जाएगा। दम घुट रहा होगा उसका। तड़प रहा होगा।” ओहारा की आंखों में तीव्र चमक थी।
“तो डुमरा की मौत का जश्न आज रात जरूर होगा।” मोरगा खुशी से बोली।
“जरूर होगा।”
मोरगा ने दोती को इस तरह देखा, जैसे कह रही हो, आज रात तो मैं ही कारू पिलाऊंगी ओहारा को।
“ओहारा हमेशा की तरह आज रात भी मेरे हाथों ही कारू पिएगा।” दोती कह उठी-“मैंने ठीक कहा न ओहारा? डुमरा पर इन वारों की कड़ी तैयार करने में मैंने तुम्हारे साथ कितनी मेहनत की थी।”
“तुम तो मेरी सबसे खास हो।”
“मैं कुछ भी नहीं?” मोरगा जल्दी से कह उठी।
“तुम भी बढ़िया काम करती हो।”
“तो कारू आज मैं पिलाऊंगी तुम्हें।”
“दोती से बात करो। उसे एतराज नहीं तो तुम ही रात मुझे कारू पिलाना।”
“इसे क्यों न एतराज होगा।” मोरगा ने कटाक्ष किया-“तुम क्या दोती से डरते हो जो...।”
“दोती मेरी ताकतों में भरपूर हिस्सा लेती है। ये बहुत आगे तक जा चुकी है और तुम काफी पीछे हो मोरगा। अगर मुझे हक से पाना है तो तुम्हें अपने काम में बहुत मेहनत करके आगे जाना होगा।”
मोरगा का चेहरा उतरा गया।
“हिम्मत मत हारो।” दोती ने कहा-“खूब मेहनत करो। एक दिन तुम मेरे से भी आगे निकल जाओगी।”
“ठीक है। डुमरा तो मारा गया।” मोरगा ने कहा-“अब यहां से चलें?”
“चलना चाहिए।” दोती ने ओहारा को देखा।
ओहारा ने उसी पल दायां हाथ हवा में लहराया और कुछ बड़बड़ा उठा।
अगले ही पल ठीक सामने हवा में ही एक तस्वीर उभर आई। अस्पष्ट-सी अंधेरे में डूबी तस्वीर जोकि कुछ हिलती-सी लग रही थी। ओहारा आंखें सिकोड़े कई पलों तक उस हिलती तस्वीर को देखता रहा फिर बोला।
“अभी जिंदा है।”
“ये किसकी तस्वीर है?” मोरगा कह उठी।
“पत्थर के नीचे गड्ढे में पड़े डुमरा की तस्वीर है।” दोती बोली।
“ओह।” मोरगा ने गहरी सांस ली-“अभी तो जिंदा है ये।”
“मर जाएगा।” ओहारा ने कठोर स्वर में कहा-“आज डुमरा की मौत का जश्न जरूर होगा।”
तभी तस्वीर रोशन हो उठी।
अंधेरे की वजह से डुमरा अस्पष्ट नजर आ रहा था, अब वो रोशनी में पूरी तरह स्पष्ट दिखा।
“डुमरा ने रोशनी का इंतजाम कर लिया है।” मोरगा बोली।
“डुमरा की शक्तियां अभी भी काम कर रही हैं।” दोती ने कहा।
“ये कब मरेगा।” व्याकुल-सी मोरगा कह उठी।
“बहुत जल्द।” ओहारा का स्वर कठोर हो गया-“ज्यादा देर जिंदा नहीं रहेगा।”
“तो हम चलें ओहारा।” दोती ने ओहारा को देखा।
“डुमरा की मौत के बाद ही यहां से जाएंगे। खुंबरी को पक्की खबर देनी है कि डुमरा की जान चली गई है।” इसके साथ ही ओहारा ने हाथ को हवा में लहराया तो हवा में लटकती नजर आती तस्वीर गायब हो गई।
सोमाथ पत्थर के पास पहुंचा और झुककर उसे धकेलने की चेष्टा की।
परंतु सोमाथ के लिए ये मजाक-सा हो गया। पत्थर हिला तक भी नहीं। सोमाथ की आंखों में चिंता झलक उठी । नजरें पत्थर पर ही थीं कि दोती की हंसी आवाज कानों में पड़ी।
“तुम कृत्रिम इंसान, इतने बहादुर नहीं हो कि इस पत्थर को हटा दो। सौ आदमी भी इसे नहीं हटा सकते।”
सोमाथ सीधा खड़ा हुआ और दोती को देखते मुस्कराकर बोला।
“मैं जानना चाहता था कि पत्थर कितना भारी है।”
“अच्छा।” दोती व्यंग्य से बोली-“मैं समझी तुम पत्थर को हटा रहे हो।“
“क्या लगता है कि डुमरा मर गया होगा।” सोमाथ ने शांत स्वर में पूछा।
“तुम क्या सोचते हो कि वो बच जाएगा।” दोती ने गर्व भरे स्वर में कहा-“इतने भारी पत्थर को हटाकर वो गड्ढे के भीतर से नहीं निकल सकता। कुछ ही देर में दम तोड़ देगा। बेवकूफ खुंबरी से दुश्मनी लेता था। बच कैसे सकता है।”
सोमाथ ने ऊपर पेड़ों और आसमान की तरफ देखा फिर दोती से कहा।
“इतना बड़ा और भारी पत्थर आसमान से कैसे गिरा?”
“ये ताकतों का खेल है। उनके लिए मामूली बात है ये।” मोरगा ने जवाब दिया-“ओहारा ने ताकतों को हुक्म दिया कि ऐसा पत्थर डुमरा पर फेंकना है कि वो कुचलकर मर जाए। ताकतों ने ऐसा ही किया।”
“तो ताकतें ये पत्थर हटा भी सकती हैं?” सोमाथ ने पूछा।
“बेशक।”
“डुमरा मर जाएगा। ताकतों से कहकर पत्थर हटा दो।”
मोरगा हंस पड़ी।
ओहारा मुस्कराया।
“डुमरा यहां खुंबरी को मारने आया था। साथ में तुम सबको भी लाया था। डुमरा ने खुंबरी को श्राप देकर पांच सौ सालों के लिए सदूर से बाहर निकाल दिया था और तुम कहते हो कि डुमरा को बचा लें।” दोती तीखे स्वर में बोली-“डुमरा को मौत देना ही तो हमारा लक्ष्य है। खुंबरी बहुत खुश होगी, डुमरा की मौत के बारे में सुन कर।”
सोमाथ ने झुककर पुन: पत्थर को हिलाना चाहा।
लेकिन टनों भारी पत्थर कहां हिलता।
“कृत्रिम इंसान तू क्यों परेशान हो रहा है डुमरा के लिए?”
“मुझे डुमरा का मरना पसंद नहीं।”
“तेरे में भावनाएं हैं?”
“मेरे में हर वो चीज है जो इंसानों में होती है। मैं हर चीज समझ और महसूस कर सकता हूं।” सोमाथ बोला।
“फिर तो तेरे को डुमरा की मौत का दुख होगा। वे अब पत्थर के नीचे दबकर मरने ही वाला होगा।”
सोमाथ असहाय-सा खामोश खड़ा रहा।
दोती ने ओहारा से कहा।
“देखो तो। अब तक तो डुमरा तड़प कर मर गया होगा।”
ओहारा ने अपनी हाथ हवा में लहराया तो एकाएक सामने तस्वीर उभर आई।
तेज रोशनी में डुमरा दिखा। उसके होंठ हिल रहे थे। जैसे वो किसी से बातें कर रहा हो।
ओहारा कड़वी मुस्कान लिए हवा में लटकी तस्वीर पर नजरें टिकाए था।
“ये तो अभी तक जिंदा है।” मोरगा कह उठी।
“मर जाएगा।” ओहारा की मुस्कान गहरी हो गई।
“लगता तो नहीं।” दोती के माथे पर बल नजर आने लगे थे।
ओहारा ने हाथ घुमाया तो तस्वीर गायब हो गई।
“कुछ देर में मर जाएगा। वो अपनी शक्तियों से बातें कर रहा है। लेकिन कोई भी शक्ति उसे बचा नहीं सकती। डुमरा को मरना ही होगा। ओहारा के हाथों ही डुमरा का मरना लिखा था।” ओहारा विश्वास भरे स्वर में कह उठा।
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डुमरा के लिए वो एक मिनट का वक्त भूचाल जैसा था। गड्ढे में गिरते ही ऊपर, सतह पर भारी पत्थर जबर्दस्त धमाके के साथ बिछ गया और जमीन कांपने के साथ ही वो अंधेरे में गुम हो गया था। अंधेरा भी ऐसा कि हाथ को हाथ दिखाई देना सम्भव नहीं था। कई लम्बे पलों तक वो जमीन में कम्पन महसूस करता रहा था।
कई क्षण गहरी खामोशी में बीत गए।
डुमरा गड्ढे में पड़ा सोचने लगा कि अगर ठीक वक्त पर गड्ढा उसे ने मिला होता तो इस पत्थर ने उसे पीस देना था। जान चली जाती। किस कदर खामोशी के साथ इतना बड़ा पत्थर आसमान से आया था कि उसे आभास भी नहीं हो सका था। ओहारा ने बहुत ही जबर्दस्त वार किया था उस पर। पहले पिंजरे से जकड़कर उसकी जान ले लेना चाहता था, जब वो वार रोक दिया गया तो दूसरे वार के रूप में बहुत बड़े पत्थर से उसकी जान लेने की कोशिश की, परंतु शक्तियों ने ठीक समय पर उसके लिए गड्ढा तैयार करके उसे बचा लिया। बड़ी शक्तियां पहले ही जान गईं थी कि अब कौन-सा वार होने वाला है।
डुमरा ने सोमाथ के बारे में सोचा?
क्या वो बच गया होगा?
हां। उसे तो उसने पहले ही सतर्कतावश दूर कर दिया था। वो बच गया होगा।
एकाएक डुमरा को दम घुटता महसूस हुआ। उसने अपने गले में पड़ा पवित्र शक्तियों वाला लॉकेट टिटोला। फौरन ही लॉकेट हाथ में आया तो उसे मुट्ठी में दबा लिया। ऐसा करते ही घुटते दम को राहत मिलने लगी। गहरे अंधेरे में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। वो जानता था कि वो कप जैसे गड्ढे में है, जिसके ऊपर समतल जैसा भारी पत्थर बिछ चुका है जिसे कि हटा पाना सम्भव ही नहीं है।
तो क्या वो यहीं फंसा रहेगा। पवित्र शक्तियों वाले लॉकेट के माध्यम से, दम घुटने से वो नहीं मरेगा। शक्तियां उसकी सांसों को संभाले रखेंगी। परंतु यहां से निकलेगा कैसे? वो तो...।
“डुमरा।” तभी उसके कानों में तोखा की आवाज पड़ी।
तोखा? ओह, तोखा को तो वो भूल ही गया था। बातें करने के लिए उसके पास तोखा है।
“तू ठीक है तोखा?” डुमरा बोला।
“मुझे क्या होना है। मैं तो तुम्हारे कंधे पर सवार हूँ।” तोखा के स्वर में चिंता थी-“पर अब हम क्या करेंगे। बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है। मैं भी कहीं नहीं जा सकता।”
“मैं भी ये ही सोच रहा हूं।”
“हम यहां से निकलने का कोई प्रयास नहीं कर सकते?” तोखा स्वर कानों में पड़ा।
“रोशनी तो कर।”
“ओह, मै भूल ही गया।” कहने के साथ ही डुमरा ने हाथ में पकड़े लॉकेट में पड़े एक मोती को दबाया। जो कि दबाते ही थोड़ा भीतर धंसा और एकाएक लॉकेट से तीव्र प्रकाश निकलने लगा।
वो सारी जगह एकाएक रोशन हो गई।
डुमरा ने देखा, वो कुछ खुला गड्ढा था। उसमें लेटने-बैठने की सुविधा थी। परंतु हर तरफ मिट्टी की दीवार ही नजर आ रही थी। निकलने का कोई रास्ता होना सम्भव ही नहीं था।
“ये तो फंस गए डुमरा।” तोखा ने कहा।
“बड़ी शक्तियां ही कुछ करेंगी।” डुमरा रोशनी में नजरें दौड़ाता कह उठा।
“क्या वो ये पत्थर को हटा देंगी?”
“जो उन्हें ठीक लगेगा। वो ही करेंगी।”
“बड़ी शक्तियों को ये तो पता ही होगा कि तुम्हारे साथ क्या हो रहा है।”
“पूरी खबर होगी उन्हें।”
“क्या पता वो ऊपर पड़ा पत्थर न हटा सकें।”
“ताकतें अगर पत्थर गिरा सकती हैं तो शक्तियां पत्थर हटा भी सकती हैं।”
“इतनी ताकत है बड़ी शक्तियों में?”
“इससे भी ज्यादा। तुम उनके बारे में जानते ही क्या हो।” डुमरा ने विश्वास के साथ कहा।
“अब तक शक्तियों को कुछ कर देना चाहिए था। तुम्हें सांसें मिल रही है?”
“पूरी तरह। मैंने पवित्र शक्तियों वाला लॉकेट थाम रखा है। मुझे कुछ नहीं होगा।”
“ओहारा तो खुश हो रहा होगा कि तुम मर गए।”
“ओहारा काफी ताकत रखता है जो उसने इतना बड़ा वार कर दिया।” डुमरा बोला।
“उसे खुश हो लेने दो। अब हम क्या करें?”
“इंतजार करो और देखो कि पवित्र शक्तियां हमें कैसे बचाती हैं।” डुमरा ने कहा और गड्ढे की दीवार से टेक लगाकर लेट गया।
“मुझे तो समझ में नहीं आता कि शक्तियां तुम्हें यहां से कैसे बाहर निकाल सकती हैं। मुमकिन नहीं दिखता मुझे।”
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उस जगह से डेढ़ सौ कदम दूर जंगल में शांति छाई हुई थी। धूप पेड़ों से छनकर जमीन पर कहीं-कहीं पड़ रही थी। हवा न के बराबर थी। गर्मी का एहसास हो रहा था। एक पेड़ की टहनी नीचे को झुकी, जमीन के करीब पहुंची हुई थी। उस पर दस-बारह पत्ते थे। टहनी के किनारे का पत्ता जैसे जमीन को छूता-सा लग रहा था। अचानक ही उस पत्ते के आकार बढ़ने लगा। लम्बाई-चौड़ाई फैलती चली गई। देखते-ही-देखते वो छ: फुट लम्बा और दो फुट चौड़ा हो गया और टहनी से अलग होकर जमीन पर गिर पड़ा।
दो पल भी नहीं बीते कि उस लम्बे-चौड़े पत्ते का रूप बदला।
देखते-ही-देखते वो अजीब-से जानवर में परिवर्तित होता गया।
वो सच में अजीब-सा जानवर था। छ: फुट लम्बा। सेहतमंद। तगड़ा। उसकी पूंछ नहीं थी। उसकी चारों टांगों के पंजों के नाखून छुरियों की तरह थे एक पंजा भी किसी को मारे तो उसका सीना फाड़ दे। तीन-तीन इंच लम्बे दांत उसके मुंह से झांक रहे थे। जो कि बेहद नुकीले थे। नाक की जगह दो छेद नजर आ रहे थे। चार आंखें थीं उसकी। दो तो सामान्य ढंग से सामने की तरफ थीं, अन्य दो कानों वाले हिस्से पर दाएं-बाएं दिखाई दे रही थीं। कान नजर नहीं आ रहे थे। कानों की जगह कहीं छेद हो तो वो नहीं दिख रहे थे। कभी वो शेर की तरह लगता तो कभी चीते की तरह। कभी लोमड़ी की तरह तो कभी सियार की तरह।
उसका रूप किसी से भी नहीं मिल रहा था। रंग उसका पीला, मटमैला था।
उस जानवर ने आगे-पीछे के पंजों को फैलाकर अंगड़ाई ली और उस तरफ देखा जहां डुमरा पत्थर के नीचे दबा था। कई पलों तक वो इसी स्थिति में रहा फिर आराम से एक तरफ बढ़ा। इस प्रकार चलते हुए उसकी मांसपेशियों की हरकत स्पष्ट झलक रही थी। उसका रंग-रूप और आकार खौफ पैदा कर रहा था।
एक जगह वो ठिठका और पंजों के छुरियों जैसे नाखूनों से जमीन खोदने लगा। वो नाखून किसी औजार की तरह काम कर रहे थे और गड्ढा तैयार होता जा रहा था। उसके आगे के दोनों पंजे बेहद तेज रफ्तार से चल रहे थे। उस जानवर के शरीर का हर हिस्सा बेहद तेजी से हरकत कर रहा था।
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ओहारा ने अपना हाथ हवा में लहराया तो हवा में डुमरा की स्थिति की तस्वीर नजर आने लगी। ये देखकर ओहारा के माथे पर बल पड़ गए कि डुमरा निश्चिंत-सा गड्ढे में टेक लगाए बैठा है। उसने गले में पड़ा लॉकेट थाम रखा है। गड्ढे में पर्याप्त रोशनी हुई पड़ी है।
“ये क्या ओहारा। ये तो अभी तक जिंदा है।” दोती कह उठी।
“डुमरा शक्तियों का सहारा ले रहा है।” ओहारा शब्दों को चबाकर कह उठा।
“वो कैसे?”
“अब तक। इसका दम घुट जाना चाहिए था। ये जिंदा न रहता। परंतु इसे शक्तियों का साथ मिल गया है। ये पर्याप्त ढंग से सांसें ले रहा है। तभी तो निश्चिंत बैठा है।” ओहारा का स्वर सख्त था।
“डुमरा के पास शक्तियां हैं।” मोरगा बोली-“ये बात हमें ध्यान रखनी चाहिए थीं।”
“लेकिन शक्तियां गड्ढे में उसका साथ कैसे दे सकती हैं?” दोती ने कहा।
“शक्तियां उसके पास पहुंच गई होंगी।”
“नहीं मोरगा।” ओहारा ने दृढ स्वर में कहा-“इस स्थिति में डुमरा के पास शक्तियां नहीं पहुंच सकती। डुमरा बुरी तरह फंसा पड़ा है। उसके पास जो शक्तियां मौजूद हैं, उन्हीं को वो इस वक्त काम में ला सकता है।”
“कितनी शक्तियां होंगी डुमरा के पास?” दोती ने पूछा।
“काफी होंगी। वो खुंबरी को मारने के इरादे से जंगल में आया।” ओहारा की निगाह तस्वीर पर थी।
“इस स्थिति में डुमरा को खाना मिल सकता है।”
“नहीं मिल सकता। ये काम तो बाहरी शक्तियां कर सकती हैं और वो डुमरा तक पहुंच नहीं सकतीं। बाहरी शक्तियों के पास इतना दम है कि वो पहाड़ के इस पत्थर को हटा सकें। परंतु ऐसा कर नहीं पाएंगी वो।”
“क्यों?”
“क्योंकि मेरी छोड़ी ताकतें उस पत्थर पर बैठी हैं। जब तक वो पत्थर को छोड़ती नहीं, तब तक शक्तियां पत्थर को हिला भी नहीं सकतीं। इस तरह ताकतों की मौजूदगी में, शक्तियां आगे नहीं बढ़ सकतीं। उन्होंने ऐसा किया तो ताकतों और शक्तियों में लड़ाई शुरू हो जाएगी और शक्तियां ऐसे वक्त में लड़ाई करना नहीं चाहेंगी।”
“शक्तियों को डुमरा की चिंता है?” मोरगा ने पूछा।
“शक्तियां डुमरा की चिंता जरूर करेंगी।” दोती बोली-“शक्तियां डुमरा के सहारे ही तो लोगों का भला करती हैं। कब से डुमरा शक्तियों से जुड़ा हुआ है। वो उसे आसानी से नहीं मरने देंगी।”
ओहारा ने हाथ हिलाया तो तस्वीर गायब हो गई।
“परंतु इस बार डुमरा को बचाना शक्तियों के लिए सम्भव नहीं लगता।” ओहारा ने कहा-“मेरे इस वार की काट नहीं होगी शक्तियों के पास। वो जरूर परेशान होंगी कि डुमरा को कैसे बचाया जाए।”
“तुमने कहा था कि डुमरा को बाहरी सहायता नहीं मिल सकती।” दोती बोली।
“हां।”
“तो डुमरा को खाने को कुछ नहीं मिलेगा और वो मर जाएगा।”
“शक्तियों को कम मत आंको।” ओहारा गम्भीर स्वर में कह उठा।
“तुम्हारा मतलब कि शक्तियां अभी भी डुमरा को बचाकर ले जा सकती हैं।”
“ऐसा सम्भव नहीं लगता, परंतु शंका मन में खड़ी हो ही गई है।”
“इस स्थिति में डुमरा पर ऐसा वार नहीं हो सकता कि वो मर जाए।” मोरगा ने कहा।
“अभी उस पर कोई वार नहीं हो सकता। मेरे ख्याल में वो जान गंवा बैठेगा।”
“तो क्यों न हम यहां से चलें। डुमरा भूखा रहकर मर जाएगा।”
ओहारा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“मैं डुमरा की मौत देखकर ही जाऊंगा।” ओहारा बोला।
“डुमरा की शक्तियां उसे सांसें दे रही हैं। वरना अब तक तो मर ही गया होता।”
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“डुमरा। बहुत देर हो रही है।” तोखा की आवाज कानों
पड़ी-“अभी तक कुछ हुआ नहीं।”
डुमरा ने कुछ नहीं कहा।
“क्या पता शक्तियां कुछ कर भी रही हैं या नहीं। तुम ऐसे ही मर गए तो?”
“शक्तियां अपना काम जरूर कर रही होंगी।”
“फिर इतनी देर क्यों हो रही है?”
“तुम इतने व्याकुल क्यों हो?”
“मैं तुम्हारे कंधे पर बैठा हूं। मुझे भी तो अपनी चिंता है। मैं भी बाहर नहीं निकल सकता।”
डुमरा मुस्करा उठा।
“अगर तुम मरे तो कैसे मरोगे? सांसें तो तुम्हें मिल रही हैं?”
“भूखे पेट रहने की वजह से मेरी मौत होगी।”
“ये तो बहुत बुरा होगा।”
“परंतु ऐसा कुछ भी नहीं होगा। शक्तियां मुझे मरने नहीं देंगी।”
“कहीं तुम्हारा भरोसा टूट न जाए।”
“ओहारा ने जबर्दस्त वार किया है मुझ पर। उसे बहुत ज्ञान है ताकतों का इस्तेमाल करने का।”
“मैं ठोरा के बारे में सोच रहा हूं जो कि की सबसे बड़ी ताकत है। मान लो ठोरा मैदान में आ जाता है तो तुम उसका मुकाबला नहीं कर सकोगे। ओहारा के पास इतनी ताकत है तो ठोरा तुम्हें कंपाकर रख देगा।”
“ठोरा सामने पड़ा तो बड़ी शक्तियां सामने आ खड़ी होंगी।” डुमरा बोला।
“पहले यहां से तो बचें।”
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जानवर कहीं नजर नहीं आ रहा था। परंतु जहां से उसने पंजों व नाखूनों जैसे चाकुओं से जमीन को खोदना शुरू किया था। वहां तीन फुट लम्बी-चौड़ी सुरंग का मुहाना नजर आ रहा था। स्पष्ट था कि जानवर सुरंग के भीतर था और जमीन को खोदते हुए, रास्ता बनाते आगे बढ़ा जा रहा था कि एकाएक जानवर उसी सुरंग जैसे रास्ते से बाहर निकला। वो मिट्टी में लिपटा हुआ था। अब उसने अगले पंजों से मिट्टी को भीतर से बाहर फेंकना शुरू कर दिया था। इस काम में वो पीछे वाले पंजों की भी सहायता ले रहा था। बहुत रफ्तार से वो जानवर ये काम कर रहा था।
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काफी देर बीत जाने पर ओहारा ने अपना हाथ हवा में लहराया तो उसी पल डुमरा की तस्वीर सामने दिखने लगी। वो तेज रोशनी वाले गड्ढे में बैठा हुआ था।
ओहारा के चेहरे पर उखड़ेपन के भाव उभरे।
“ये तो वैसे का वैसा ही है।” मोरगा बोली-“इसे तो कुछ हुआ ही नहीं।”
“ओहारा।” दोती ने कहा-“इसके मरने के इंतजार में तो सारा दिन बीत जाएगा, फिर भी इसकी जान जल्दी जाने वाली नहीं। सांसें इसे मिल रही हैं। भूख से तो ये कई दिन लड़ सकता है।”
“जब तक ये मरेगा नहीं, मैं यहीं रहूंगा। इसकी मौत देखकर ही जाऊंगा।” ओहारा कह उठा।
“फिर रात के जश्न का क्या होगा?” मोरगा कह उठी।
“चुप कर। तुझे जश्न की पड़ी है।”
“क्यों न पड़े मुझे। आज मैंने ओहारा को कारू पिलानी है।” मोरगा ने मुंह बनाकर कहा।
एकाएक ओहारा गहरी-गहरी सांसें लेता इधर-उधर देखने लगा।
ओहारा की बेचैनी देखकर दोती बोली।
“क्या बात है?”
“यहां कोई और भी है।”
“कोई और?”
“मैंने हवा के संग आती गंध को महसूस किया है। वो गंध ताकतों की नहीं है।” ओहारा सतर्क हो गया था।
“ताकतों की नहीं है, से तुम्हारा क्या मतलब?”
“मैंने जो गंध महसूस की हैं वैसी गंध शक्तियों की होती हैं।”
“ओह, तो ओहारा को बचाने शक्तियां आ गई हैं।” दोती चौंकी।
“शक्तियां पत्थर तो हटा नहीं सकतीं। उस पर ताकतें बैठी हैं।” मोरगा बोली।
“पर शक्तियां जरूर कुछ करेंगी।” ओहारा बोला-“सबके पास अपने रास्ते होते हैं।” कहने के साथ ही ओहारा ने हवा में मौजूद डुमरा की तस्वीर को देखा-“ओहारा बहुत निश्चिंत दिख रहा है। जरा भी बेचैन नहीं है।”
“इसका मतलब उसे पता होगा कि शक्तियां उसे बचाने आ गई हैं।” मोरगा की निगाह भी तस्वीर पर थी।
दोती की नजरें जंगल में हर तरफ घूम रही थीं। उसे कोई दिखाई नहीं दिया।
“अगर शक्तियां आस-पास हैं तो नजर क्यों नहीं आ रहीं। उन्हें पत्थर के पास आना चाहिए।” दोती बोली।
“वो जरूर अपनी चाल चल रही होंगी, डुमरा को आजाद कराने के लिए।” मोरगा ने कहा।
“उनकी कोई चाल कामयाब नहीं होगी। डुमरा किसी भी हाल में बच नहीं सकता।”
ओहारा पुन: हवा में मुंह उठाकर सूंघने लगा।
“इससे क्या पता चलेगा ओहारा?”
“मैं जानने की चेष्टा कर रह हूं कि गंध किस दिशा की तरफ से आ रही है।”
“हमें सतर्क हो जाना चाहिए। शक्तियां हम पर भी हमला कर सकती हैं।” दोती ने कहा।
“हम तो छाया के रूप में यहां मौजूद...।”
“बड़ी शक्तियां छाया को बंधक बना लेती हैं। तब हमें शरीर के साथ ही काम करने पड़ेंगे।”
“हैरानी है कि शक्तियां छाया को बंधक बना लेती हैं।”
“अभी तुझे बहुत कुछ जानना है मोरगा। ओहारा का साथ पाने के लिए तुझे बहुत कठिन काम करने होंगे।” कहते-कहते एकाएक दोती चौंकी। नजरें तस्वीर पर थीं-“तस्वीर देखो ओहारा।” दोती चीख ही पड़ी।
ओहारा और मोरगा की निगाह तस्वीर पर जा टिकी।
जो दृश्य नजर आया वो चौंकाने के लिए काफी था।
जिस गड्ढे में डुमरा फंसा बैठा था, उसके एक तरफ की दीवार भुरभुराकर ढह रही थी। तस्वीर में डुमरा स्वयं उलझन भरी निगाहों से उस दीवार को देख रहा था।
“ये क्या?” मोरगा के होंठों से निकला।
“शक्तियों का काम है ये। वो डुमरा को बचाने जा रही हैं।” ओहारा दांत किटकिटाकर कह उठा-“जमीन के भीतर से रास्ता बनाकर शक्तियां डुमरा तक पहुंची हैं और उसी रास्ते से उसे बाहर ले जाएंगी।”
“लेकिन शक्तियों ने रास्ता बनाया कहां से? हम उस रास्ते को बंद कर सकते हैं।” दोती बोली।
“ये बढ़िया बात कही तूने।” मोरगा तुरंत कह उठी।
“चल आ।”
दोनों जाने लगीं तो ओहारा बोला।
“शक्तियों के सामने मत पड़ जाना। वो तुम्हें कैद कर लेंगी।”
दोनों तुरंत आसपास की जगह को देखती आगे बढ़ने लगीं।
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डुमरा आंखें सिकोड़े मिट्टी की उस दीवार को टूटते देख रहा था। इतना तो वो जान चुका था कि दीवार के उस पार कोई है जो गड्ढे में पहुंचना चाहता है।
“डुमरा।” तोखा की गम्भीर आवाज कानों में पड़ी-“मेरे ख्याल में ये ताकतों का अगला वार है।”
“नहीं।” डुमरा के होंठों से निकला-“शक्तियां हमें बचाने आ पहुंची है।”
“मुझे तो खतरा लग रहा है। ये ताकतों का अगला वार है।”
डुमरा ने कुछ नहीं कहा। नजरें मिटटी की दीवार पर थीं।
एकाएक मिट्टी की दीवार भरभरा कर गिर गईं। वहां बड़ा-सा छेद दिखा फिर खतरनाक पंजे दिखे जो कि मिट्टी को हटा-हटाकर नीचे बिछा रहे थे। उसके बाद जानवर का चेहरा दिखा।
डुमरा ने ऐसा जानवर पहले कभी नहीं देखा था।
जानवर की आंखों से आंखें मिलीं।
ऐसा लगा जैसे जानवर मुस्कराया हो। पर डुमरा को वहम लगा ये।
“बाहर आ जा डुमरा।” जानवर के होंठों से जो आवाज निकली उसे सुनकर डुमरा चौंका।
“सलूरा।” डुमरा के होंठों से निकला-“तुम?”
“क्या करूं, तुम्हें मरने के लिए छोड़ भी नहीं सकता।” जानवर पुन: बोला-“मेरे पीछे-पीछे इसी रास्ते से बाहर आ-जा। खतरा टला नहीं है। ओहारा बाहर ही मौजूद है। उसने जो वारों की कड़ी तैयार की है, उसमें दो वार अभी बाकी हैं। तू यहां से निकलेगा तो वो वार तुझ पर होंगे।” कहने के साथ ही जानवर पलटा और उस रास्ते में आगे बढ़ गया।
डुमरा ने देर नहीं की और उस रास्ते में प्रवेश कर गया। खोदी मिट्टी नीचे ही बिछी होने के कारण रास्ता तंग हो गया था। उस कच्ची सुरंग से डुमरा रेंगता हुआ आगे बढ़ने लगा।
“सलूरा ने तो कमाल कर दिया डुमरा।” तोखा की आवाज कानों पड़ी-“तुम्हें बचाने आ ही गया।”
“सलूरा न आता तो वजू आता। शक्तियां इतनी जल्दी मुझे मरने नहीं देतीं।”
“मैं तो सोच रहा था कि मिट्टी के रास्ते ओहारा ने अगला कोई वार कर दिया है।”
“मैंने तो ऐसी बात सोची भी नहीं।”
“सलूरा का कहना है कि बाहर ओहारा मौजूद है। उसके वारों की कड़ी में अभी दो वार बचे हुए हैं। तुम्हें ओहारा के अगले वारों से बचना होगा। ओहारा ने तो तुम्हें परेशान कर दिया है डुमरा।”
“सलूरा के होते तो मुझे जरा भी चिंता नहीं है।” पेट के बल मिट्टी की सुरंग में सरकते डुमरा ने कहा।
“सलूरा तुम्हारा साथ देगा अभी?”
“वो आया है तो इस तरह वापस जाने वाला नहीं। मुझे सुरक्षित करके ही जाएगा। सलूरा और वजू मेरे पिता की तरह हैं। वो मेरा अहित नहीं देख सकते। इस बात से नाराज जरूर हैं कि उनसे पूछे बिना मैंने खुंबरी को श्राप दे दिया था।”
“मुझे तो नहीं लगता कि तुमने बुरा किया श्राप देकर।”
“अगर पांच सौ सालों बाद सदूर पर वापस न लौटती, लौटती तो ताकतों से जुदा हो चुकी होती, तब मेरे श्राप को सब सही मानते। परंतु खुंबरी तो पांच सौ सालों के बाद मन में बदले की भावना लिए लौटी। ऐसे में खुंबरी से झगड़ा होने का मतलब है शक्तियों का समय व्यर्थ में खर्च होना।”
“पर तुम, तुमने तो लोगों के भले के लिए ही खुंबरी को श्राप देकर, सदूर से बाहर जाने को कहा था।”
“मैंने तो को मौका भी दिया था कि वो ताकतों का साथ छोड़ दे और सदूर की रानी बनकर रहे । लेकिन ताकतों के नशे में चूर थी और मेरी बात नहीं मानी। उसे ताकतों की मालकिन बने रहना पसंद है। पर मैं उसे छोड़ने वाला नहीं। वो ताकतों से, मासूम लोगों पर जुल्म ढाती है।”
“दोलाम अगर की जान ले ले तो अच्छा रहे।”
“तब दोलाम ताकतों का मालिक बनेगा और उससे झगड़ा..।” डुमरा ने कहना चाहा।
“मेरे ख्याल में दोलाम समझदार है। होकाक ने बताया तो था कि उसने रानी ताशा से तय कर लिया है कि वो खुंबरी को मारने का मौका उसे देगा और बदले में वो सदूर का राज्य दोलाम के हवाले कर देगी। दोलाम ने रानी ताशा से ये सौदा इसलिए किया कि ताकतों के इस्तेमाल के बिना, सदूर का राजा बन जाए और तुमसे दुश्मनी न हो।”
“पहले इन हालातों से निबट लूं। उसके बाद होकाक से पता करूंग कि खुंबरी के ठिकाने पर क्या हो रहा है।” डुमरा ने शांत स्वर में कहा और कच्ची मिट्टी में रेंगता आगे बढ़ा जा रहा था।
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दोती और मोरगा को सुरंग जैसी जगह ढूंढने में देर नहीं लगी। उस जगह के आसपास ताजी मिट्टी का ढेर लगा हुआ था। फौरन ही वो जगह नजर में आ गई थी।
“तो यहां से रास्ता बनाकर कोई भीतर, डुमरा तक जा पहुंचा है।” मोरगा बोली।
“ये किसी बड़ी शक्ति का काम है। छोटी शक्तियां इस तरह रास्ता नहीं बना सकतीं।” दोती ने कहा-“हमें ये रास्ता बंद कर देना चाहिए मिट्टी से गड्ढे को भर देते हैं कि कोई बाहर न निकल सके।”
मोरगा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“ये बात जंची नहीं।” मोरगा ने दोती को देखा।
“क्यों?”
“वो बड़ी शक्ति भीतर ही है। उसने जमीन में से रास्ता बनाया है। हमारी डाली मिट्टी को तो वो आसानी से हटा देगा।”
“क्या पता न हटा सके। हमारा मतलब तो डुमरा से है कि वो मर जाए। हमें मिट्टी जरूर गड्ढे में डाल देनी चाहिए।”
“पर कैसे? इस वक्त तो हम अपनी छाया के रूप में हैं।” मोरगा ने गहरी सांस ली।
“ये काम तो मैं अभी कर देती हूं।” कहने के साथ ही दोती ने दाएं हाथ की उंगली गड्ढे की तरफ की और होंठों ही होंठों में कुछ बुदबुदाई। हाथ की उंगली गड्ढे की तरफ ही रही।
एकाएक गड्ढे के आसपास ढेर लगी मिट्टी सरक-सरककर गड्ढे में भरने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई तूफान आया हो और हवा का रुख गड्ढे की तरफ हो हवा सब कुछ गड्ढे में डाल रही हो।
चंद पल बीते कि गड्ढा मिट्टी से ऊपर तक भर गया।
दोती ने हाथ नीचे कर लिया। बोली।
“अब डुमरा बाहर नहीं निकल सकता।”
“और वो बड़ी शक्ति?”
“पता नहीं मेरी इस हरकत का उस पर क्या प्रभाव पड़ता है।” दोती ने सोच भरे स्वर में कहा।
“इंतजार करते हैं और देखते हैं कि कोई बाहर निकल पाता है कि नहीं।” मोरगा ने सिर हिलाया-“तूने कौन-सी ताकत का इस्तेमाल किया मिट्टी के गड्ढे में भरने के लिए। मुझे भी बता दे।”
“मेहनत कर। सब पता चल जाएगा।”
“तू नहीं बताएगी?” मोरगा ने मुंह बनाया।
“मैं क्यों बताऊं। ये तो मेरी मेहनत का नतीजा है। तू भी मेहनत काम करेगी तो तेरे को पता चल जाएगा।”
“मैं समझ गई। तू मुझे कुछ नहीं बताने वाली।” मोरगा ने मुंह बनाकर कहा-“देखना अब मैं बहुत मेहनत करूंगी और तेरे से बहुत आगे निकल जाऊंगी। तब ओहारा सिर मुझे ही पसंद करेगा। तुझे नहीं।”
“बहुत मेहनत करनी होगी। तेरे तो पसीने छूट जाएंगे।”
“मैं...।” मोरगा कहते-कहते ठिठकी फिर सतर्क स्वर में बोली-“देख तो गड्ढे से कोई बाहर आ रहा है।”
दोती की कठोर निगाह गड्ढे पर जा टिकी।
गड्ढे में पड़ी मिट्टी हटती जा रही थी फिर मिट्टी में से जानवर का चेहरा बाहर निकला। साथ ही उसकी आगे की दोनों टांगें बाहर आ गईं। वो गले तक बाहर निकल आया था। उसने सामने खड़ी दोती और मोरगा को देखा।
दोनों उस जानवर को देखकर हैरान हो गई थीं।
“ये कैसा जानवर है।” मोरगा के होंठों से निकला-“ऐसा जानवर मैंने पहले कभी नहीं देखा।”
“ये जानवर नहीं, शक्तियों की चाल है।” दोती बोली-“किसी बड़ी शक्ति ने अपना रूप बदल रखा है। इसके पंजों के नाखूनों को तो देख, ये किसी औजार से कम नहीं लगते। इसी से इसने जमीन में रास्ता बनाया और...।”
तभी जानवर की दोनों टांगें रबड़ की तरह लम्बी हुईं और दोती-मोरगा की तरफ लपकी।
दोनों को संभलने का मौका ही नहीं मिला और लम्बी होती बांहों ने दोनों को अपने घेरे में लिया और अगले ही पल दोनों हवा में उछलीं और कई कदम दूर जा गिरीं।
जानवर बाहर निकल आया। वो मिट्टी से भरा हुआ था कि एकाएक जानवर का रूप बदलना शुरू हो गया। वो जानवर से इंसान में परिवर्तित होने लगा। देखते-ही-देखते वो सलूरा के रूप में सामने खड़ा था। उसके हाथ में पेड़ का पत्ता दबा था, जिसका सहारा लेकर, उसने अपना रूप बदला था।
सलूरा की शांत निगाह दोती और मोरगा की तरफ थीं।
गिरते ही दोनों जमीन पर लुढ़कती चली गईं फिर संभलते ही मोरगा कह उठा।
“ये क्या। हम तो पारदर्शी रूप में हैं। फिर हमें इसने कैसे उठाकर फेंक दिया।”
“वो कोई बड़ी शक्ति है।”
“तो हमारे पारदर्शी रूप पर कैसे वार कर सकती है।”
“कर सकती है मोरगा। बड़ी शक्तियां बहुत पहुंची हुई होती हैं।”
“वो देख।” मोरगा बोली।
दोती और मोरगा की निगाह सलूरा पर जा टिकीं।
“तो ये है बड़ी शक्ति का असली रूप।” दोती के होंठों से निकला।
“तू पहचानती है इसे?”
“नहीं। मैंने इसे पहले कभी नहीं देखा।”
उनके देखते-ही-देखते सलूरा ने नीचे झुककर गड्ढे में पड़ी मिट्टी को चुटकी में थामा और कुछ बड़बड़ाकर, मिट्टी को वापस फेंका तो उसी पल गड्ढे में पड़ी, मिट्टी बाहर को निकलने लगी।
“उसने मिट्टी हटाकर फिर रास्ता तैयार कर लिया।” दोती बोली।
“मैं अभी इसे चक्कर में लेती हूं।” मोरगा ने कहा।
“बड़ी शक्तियां पारदर्शी शरीर को कैद भी कर लेती हैं।” दोती ने बताया।
“पारदर्शी शरीर को कैद?” मोरगा ने दोती को देखा।
“हां। बड़ी शक्तियां ऐसा कर सकती हैं। हमारे पारदर्शी शरीर को कैद कर लिया तो फिर हम पारदर्शी शरीर नहीं तैयार कर सकतीं। तब हमें जहां जाना होगा, शरीर के साथ ही जाना होगा।” दोती गम्भीर दिख रही थी।
“तू डर रही है। मैं अभी इसे चक्कर में लेती हूं।” कहकर मोरगा आगे बढ़ गई।
दोती भी साथ चल पड़ी और धीमे-से बोली।
“सतर्क रहना।”
पास पहुंचते मोरगा कह उठी।
“तू तो बहुत स्वस्थ मर्द है।” मोरगा दस कदम पहले ही रुक गई-“मैं तुम जैसा मर्द ही ढूंढ रही थी।”
सलूरा शांत भाव से मुस्कराया।
“तेरे में कितनी ताकत है कि तूने जमीन में गड्ढा खोद लिया। मैं तो हैरान रह गई।”
सलूरा उसी प्रकार मुस्करा रहा था।
“डुमरा को बचाने आया है।”
सलूरा ने कुछ नहीं कहा।
“अच्छा हुआ जो तू आ गया। मैं भी चाहती थी कि डुमरा को कुछ हो। अब वो बाहर आ रहा है न?”
“हां।” सलूरा ने बेहद प्यार से कहा।
“मैं तुझ जैसे मर्द से ही ब्याह करना चाहती थी। बोल, मुझसे ब्याह करेगा। सब ही मुझे पसंद कर लेते हैं, क्योंकि मैं खूबसूरत हूं। तूने भी मुझे देखते ही पसंद कर लिया होगा। मैंने भी तुझे पसंद किया। नाम क्या है तेरा?”
“सलूरा।”
“सलूरा। तेरा नाम भी मुझे अच्छा लगा। अब ब्याह कर...।”
“चली जाओ यहां से। वरना मैं तुम दोनों के पारदर्शी शरीर को कैद कर लूंगा।” सलूरा ने कहा।
“तो तू मेरे से ब्याह करने का इरादा नहीं रखता।” मोरगा नाराजगी से बोली-“मैं तुझे बहुत खुश रखूंगी।”
“मैं फिर कहता हूं। चले जाओ तुम दोनों और दोबारा मेरे सामने मत...।”
कहते-कहते सलूरा ठिठक गया। फौरन दाईं तरफ गर्दन घुमाई।
वहां अभी-अभी ओहारा आ खड़ा हुआ था और सलूरा को घूर रहा था।
सलूरा बेहद शांत भाव से ओहारा की तरफ पलटा।
उसी पल गड्ढे में से रेंगता हुआ, डुमरा बाहर निकला और खड़ा हो गया। उसके कपडे मिट्टी में सन चुके थे। सिर के बालों और चेहरे पर भी मिट्टी लगी थी। डुमरा सलूरा को देखते ही चौंका।
“सलूरा तुम?”
सलूरा, डुमरा को देखकर मुस्कराया।
“हैरानी है।” तोखा की आवाज डुमरा के कानों में पड़ी-“सलूरा स्वयं तुझे बचाने आया है।”
तभी डुमरा ने ओहारा को और दोती-मोरगा को देखा।
“ओहारा भी यहां है।” तोखा ने कहा-“इसका सलूरा से झगड़ा हो सकता हैं।”
डुमरा गम्भीर दिखने लगा।
“तो सलूरा तुम हो।” ओहारा बोला-“मैं नहीं जानता था कि सलूरा जैसी बड़ी शक्ति डुमरा को बचाने आएगी।”
“तुमने गलत सोचा कि डुमरा की जान लेने में कामयाब हो जाओगे।” सलूरा ने कहा।
“जान तो मैं अब भी ले लूंगा सलूरा।”
“क्योंकि तेरे वारों की कड़ी में अभी दो वार होने बाकी हैं।”
“मुझे मालूम है तू सब जानता है।”
“मुझे ये भी पता है कि तेरे वार किस रूप में होने वाले हैं।”
ओहारा का चेहरा कठोर हो गया।
तभी मोरगा ऊंचे स्वर में कह उठी।
“इसे कुछ मत कहना ओहारा। सलूरा मुझसे ब्याह करने जा रहा है।”
“चुप कर। सलूरा को तू अपनी बातों के चक्कर में नहीं ले सकती।” दोती बोली।
“कोशिश तो करने दे। क्या पता उसे मेरी कौन-सी अदा भा जाए।” मोरगा ने गहरी सांस ली।
“बेवकूफ है तू। वो बड़ी शक्ति है।”
ओहारा बेहद सख्त स्वर में बोला।
“तेरे को मेरे रास्ते में नहीं आना चाहिए था। मैं बड़ी ताकत हूं।”
“तू कुछ नहीं कर सकता। डुमरा जिंदा रहेगा। ठोरा को भेज। वो मेरे से टक्कर लेगा।”
“मेरे होते ठोरा की क्या जरूरत है।” ओहारा ने दांत भींचकर कहा और काले मोतियों की माला हवा में उछाली और लपक ली।
सलूरा मुस्कराया।
तभी जमीन में से लम्बे कीलों की नोंकें निकलने लगीं।
कीलों की चुभन होते ही डुमरा बचने के लिए उछला कि जमीन से कीलों की नोंक उठती जा रही थीं। बाहर आती जा रही थीं। उसी पल सलूरा की बांह लम्बी हुईं और डुमरा के करीब पहुंच गईं।
डुमरा फौरन उसको बांह थामे लटक गया।
सलूरा ने बांह ऊपर कर ली। जमीन पर, हर तरफ लम्बे-लम्बे, नोंक उठाए कील खड़े दिख रहे थे। कीलों से बचने की कोशिश में डुमरा उछलता और अंत में उसने कील पर गिर जाना था। लम्बे कील जिस्म में जगह-जगह घुस जाते थे। परंतु सलूरा ने डुमरा को बांह का सहारा देकर ओहारा के वार को विफल कर दिया।
ओहारा क्रोध में नजर आने लगा।
“मेरे रास्ते में आकर तूने बहुत गलत किया सलूरा।” ओहारा गुर्रा उठा।
सलूरा मुस्कराता, ओहारा को देखता रहा।
“तू डुमरा को बचा नहीं सकता।”
“इस वक्त तेरे वारों की कड़ी में आखिरी वार बचा है ओहारा। वो भी करके देख ले।” सलूरा बोला।
“तेरे को बहुत घमंड है अपने पर।”
“शक्तियां घमंड करें तो हमारी शक्तियां कमजोर हो जाती हैं। हम कभी भी घमंड नहीं करते।”
“ले अब बच के दिखा।” कहने के साथ ही काले मोतियों की माला ओहारा ने हवा में उछालकर लपक लीं।
तभी आग का तूफान उठ खड़ा हुआ।
देखते-ही-देखते सलूरा और डुमरा उस आग के तूफान में घिर गए।
डुमरा की चीख सुनाई दी।
फिर एकाएक सब कुछ शांत पड़ गया।
ओहारा की आंखें सिकुड़ी।
दोती और मोरगा चौंकी, क्योंकि सलूरा-डुमरा वहां थे ही नहीं। आग का तूफान अपनी जगह खड़ा हुआ था। भभक रहा था। तभी दोती के होंठों से निकला।
“ओहारा। तुम्हारे पीछे।”
ओहारा फुर्ती से पलटा।
बीस की दूरी पर सलूरा और डुमरा को खड़े पाया। डुमरा अपना हाथ मसल रहा था। वहां आग का भभका टकराया था। ओहारा के चेहरे पर क्रोध नाच उठा। उसने आग के बीच हाथ में दबी काले मोतियों की माला उछाल दी। जिसके आग में प्रवेश होते ही आग का वो तूफान गायब हो गया।
“तेरे वारों की कड़ी खत्म हो गई ओहारा।” सलूरा ने कहा-“मैं चाहूं तो तेरे इस पारदर्शी शरीर को अभी कैद कर सकता हूं और तुझे भागने का मौका भी नहीं मिलेगा।”
“वहम है तेरा ये कि मेरे पारदर्शी शरीर को तू कैद कर लेगा।” ओहारा गुर्राया।
सलूरा मुस्कराया। ओहारा को देखता रहा।
“कैद कर मुझे।”
“मेरी बात सुनते ही तूने अपने गिर्द ताकतों के साये फैला लिए हैं ताकि शक्तियां तेरा कुछ न बिगाड़ सकें।”
“तू मेरा मुकाबला नहीं कर सकता सलूरा।”
“ऐसा मत कह। इस वक्त मैं तेरा मुकाबला करने में, अपना वक्त नहीं खराब करना चाहता।” सलूरा ने डुमरा पर नजर मारकर कहा-“मेरे पास कई जरूरी काम करने को रखे हैं।”
“तेरी वजह से डुमरा बच गया, वारों की कड़ी से।” ओहारा क्रोध में था।
“तू गुणी इंसान है ओहारा। ताकतों का साथ छोड़कर शक्तियों की शरण में आ जा।” सलूरा ने कहा।
ओहारा हंस पड़ा।
सलूरा के चेहरे की मुस्कान गहरी हो गईं।
“मेरी बात पसंद नहीं आई?”
“सलूरा। तू जानता है कि मैं तेरी बात कभी नहीं मानूंगा। फिर ऐसी बात कहने का फायदा भी क्या? ताकतों और शक्तियों के जीवन में बहुत फर्क होता है। हमारा रहन-सहन तुमसे बहुत अलग है। शक्तियां, ताकतों का जीवन नहीं जी सकतीं। ताकतें, शक्तियों का जीवन नहीं जी सकतीं। हम दुश्मन हैं और दुश्मन ही रहेंगे।”
“तूने तो आज सोच रखा होगा कि डुमरा का अंत यकीनन हो जाएगा।”
“हां। ऐसा होता भी अगर तू बीच में न आता।” ओहारा तड़पकर बोला-“पर इस बार मैं और भी तैयारी करके आऊंगा। ओहारा कभी हारता नहीं। तेरे को डुमरा का अंत करके दिखाऊंगा।”
“ठोरा को मेरे सामने आने को क्यों नहीं कहता?”
“तेरे लिए ठोरा ज्यादा हो जाएगा सलूरा। मैं ही बहुत हूं तेरा मुकाबला करने के लिए। अगर मुझे पता होता कि सलूरा बीच में आ जाएगा तो तेरा भी इंतजाम करके आता। मैं जल्दी लौटूंगा डुमरा।” ओहारा की सुलगती निगाह डुमरा पर जा टिकी-“मैं तेरी जान लेकर ही रहूंगा।”
“ये बता दे कि खुंबरी इस जंगल में कहां रहती है?”
परंतु तभी अपनी जगह से ओहारा का पारदर्शी शरीर गायब हो गया।
दोती और मोरगा ने एक-दूसरे को देखा।
“तू बहुत खुश होगी।” मोरगा के स्वर में तीखे भाव थे।
“क्यों?”
“डुमरा जिंदा है। रात उसकी मौत का जश्न नहीं होगा और मोरगा कारू नहीं पिला सकेगी ओहारा को।”
“मुझे दुख है कि डुमरा जिंदा है।”
“ऊपर-ऊपर से कह रही है तू ।”
“सच में। दिल से कह रही हूं तेरी कसम।” दोती ने मुंह बनाकर कहा।
“मेरी कसम मत खा। जानती हूं तेरे को। तू बहुत चतुर है। दिल में कुछ, होंठों पर कुछ...।”
“सलूरा हमें ही देख रहा है। इससे पहले कि वो हमें कैद कर ले निकल चलते हैं।” दोती बोली।
पहले दोती फिर मोरगा का पारदर्शी शरीर एकाएक गायब हो गया।
डुमरा की निगाह सोमाथ की तलाश में घूमी।
सोमाथ दिखा। वो तीस कदम दूर एक पेड के पास खड़ा उसे ही देख रहा था।
“अब सब ठीक है डुमरा।” सलूरा ने कहा।
“तुम्हें यहां देखकर मुझे खुशी हुई सलूरा।” डुमरा ने कहा-“मुझे यकीन नहीं था कि तुम या वजू मुझे बचाने आओगे।”
“क्यों न आते। तुम शक्तियों के लिए कीमती हो।” सलूरा ने गम्भीर स्वर में कहा।
“तुम अन्य किसी बड़ी शक्ति को भी भेज सकते थे।”
“हां। लेकिन मैंने स्वयं ही आना ठीक समझा। क्योंकि ओहारा कमजोर नहीं है। वो भी बड़ी ताकत है।”
“वो फिर तैयारी करके मुझ पर हमला करेगा। मुझे ज्यादा शक्तियां चाहिए।”
“हम भी तो नियमों से बंधे हैं डुमरा। अगर तुमने हमसे पूछकर खुंबरी को पांच सौ सालों का श्राप दिया होता तो हम तेरे को भरपूर शक्तियां सौंप देते। तुम्हारी इसी गलती की वजह से हम खुलकर तुम्हारा साथ नहीं दे सकते। खुंबरी का मामला एक तरह से तुम्हारा व्यक्तिगत हो गया है। परंतु हमारी यही कोशिश होगी कि तुम खतरे में पड़ो तो तुम्हें बचा लें।”
“मेरे लिए इतना ही बहुत...।”
तब तक सोमाथ पास आ गया था।
सलूरा ने सोमाथ को देखते ही डुमरा से कहा।
“तो ये है कृत्रिम इंसान।”
“हाँ सलूरा।”
“अब मैं जाता हूं। मैं जिस काम के लिए आया था, वो पूरा हो गया।”
“तुमने मेरी जान बचा ली।” डुमरा मुस्कराया।
“तुमने भी तो कई बार शक्तियों को मुसीबत में पड़ने से बचाया है। तुम और शक्तियां मिलने पर ही, हम पूरक हैं।” कहने के साथ ही सलूरा जंगल में एक दिशा की तरफ बढ़ता चला गया।
तभी सोमाथ बोला।
“ये कौन था?”
“बड़ी शक्ति। सलूरा।” डुमरा ने सोमाथ को देखा।
“मुझे तो साधारण-सा इंसान ही लगता है।”
डुमरा ने मुस्कराकर, सलूरा के जाने की दिशा में देखा।
परंतु सलूरा कहीं भी नहीं दिखा। एकाएक वो गायब हो गया था।
“तुम तो उस पत्थर के नीचे गड्ढे में दबे थे।” सोमाथ ने पूछा-“फिर यहां कैसे पहुंच गए?”
“सलूरा ने बचाया।”
“कैसे?”
“जमीन में रास्ता बनाकर।” कहते हुए डुमरा ने कुछ दूर नजर आते सुरंग जैसे गड्ढे की तरफ इशारा किया।
सोमाथ उस तरफ बढ़ गया।
“डुमरा।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी-“मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा कि हम बच गए हैं। मैं तो ये ही सोच रहा था कि हमारी जान गई। वहां से हम बच भी तो नहीं सकते थे। भला हो सलूरा का कि उसने बचा लिया।”
“मुझे यकीन था कि शक्तियां मुझे बचाने जरूर आएंगी।”
“सलूरा कहीं आता-जाता नहीं। लेकिन तुम्हें बचाने आ गया।”
सोमाथ वापस आकर बोला।
“वो जगह सलूरा ने अकेले तैयार की है?”
“हां।”
“परंतु ये तो कई लोगों का काम लगता है। वो तो अकेला था। अकेला इंसान इतनी जल्दी कैसे ये सब...।”
“सलूरा बड़ी शक्ति है। वो ऐसे हैरानी से भरे काम कर सकता है।” डुमरा ने कहा।
“वो सुरंग यह थी जो नीचे तक जा रही है। तुम इसी रास्ते से बाहर निकले।”
“हां। अब मेरी बात सुनो। यहां मुझे कोई नया खतरा आ सकता है। इसलिए इस जगह से दूर चले जाना है ठीक रहेगा। आओ यहां से चलें। किसी ठीक जगह पर कुछ देर आराम करूंगा।”
“मैं भी ये ही कहने वाला था कि इस जगह से दूर निकल जाना चाहिए।” तोखा की आवाज कानों में पड़ी।
“चलो।” सोमाथ ने सिर हिलाया।
दोनों तेजी से एक दिशा की तरफ चल पड़े।
“मैं अभी तक हैरान हूं कि इतना बड़ा पत्थर आसमान से आकर तुम पर गिरा।” सोमाथ बोला।
“बड़ी ताकतों के लिए ये काम कर जाना, मामूली बात होती है।”
“तुमने मुझे अपने से दूर करके, तब अच्छा किया था। नहीं तो पत्थर मेरी मशीन कुचल देता।”
वे तेजी से आगे बढ़ते रहे। पेड़ों से छनकर धूप जमीन पर पड रही थी।
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काफी देर तक लम्बा रास्ता तय करने के बाद डुमरा ने सोमाथ से कहा।
“मैं कुछ देर आराम करूंगा।”
“जानता हूं इंसान, मशीन से कमजोर होता है। मैं जरा भी नहीं थका।” सोमाथ बोला।
“पर मैं थक गया हूं। गड्ढे में फंसे रहना। फिर तंग रास्ते में सरककर बाहर आना। फिर ओहारा के वार होना।” कहते हुए डुमरा एक छायादार पेड़ के नीचे जा बैठा-“मुझे आराम की जरूरत है।”
“तुम्हारे कपड़े गंदे हो चुके हैं।
“कोई बात नहीं।” डुमरा की निगाह दूर तक शांत पड़े जंगल में दौड़ी।
“तुम्हारे पास खाने को भी कुछ नहीं है। तुम्हारा खाने का थैला तो पत्थर के नीचे दब गया था।”
डुमरा ने कुछ नहीं कहा।
“तुम्हें भूख लगी होगी। जंगल में तो फलदार वृक्ष भी नहीं हैं।”
“मुझे भूख नहीं लगी। ये सूखा जंगल है। यहां फल वाले पेड नहीं हैं।” डुमरा ने कहा।
“भूख लगेगी तो क्या करोगे?”
“तुम मेरी फिक्र मत करो। मैं भूखा रह लूंगा।” कहने के साथ डुमरा घास पर लेट गया।
सोमाथ कुछ पल खड़ा रहा फिर आसपास ही टहलने लगा।
डुमरा ने आंखें बंद कर लीं।
‘डुमरा।” तोखा की धीमी आवाज उसके कान में पड़ी-“भूखे पेट तुम कब तक रह सकोगे?”
“पता नहीं।” डुमरा ने कहा।
“ओहारा ने जबर्दस्त वारों की कड़ी तुम पर चलाई। ये तो अच्छा रहा कि तुम बच गए।”
“वो वक्त मुझे याद न दिलाओ।”
“ओहारा चुप नहीं बैठने वाला। वो फिर आएगा।”
“बड़ी शक्तियां मेरे साथ हैं। खुंबरी की ताकतें मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। अब ये भी एहसास होने लगा है कि खुंबरी का ठिकाना ढूंढा नहीं जा सकता। वो बहुत सुरक्षित जगह रह रही है। ये जंगल भी बहुत बड़ा है। मुझे तो अब उन सबकी चिंता होने लगी है, जो खुंबरी की कैद में फंसे हैं।” डुमरा ने कहा।
“तुम हारी हुई बात कह रहे हो।”
“मैं सच कह रहा हूं तोखा। शायद मैं खुंबरी तक न पहुंच सकूं।”
“हिम्मत क्यों हारते हो, कोशिश जारी रखो। उधर खुंबरी भी खुश हालात में नहीं होगी। होकाक ने उसके ठिकाने के हालात बताए ही हैं कि वहां क्या हो रहा है। इस वक्त खुंबरी उलझी पड़ी होगी।”
“उसके बाद तो होकाक नहीं आया?”
“नहीं।” तोखा के स्वर में सोच के भाव थे-“दोलाम जरूर कुछ करके रहेगा।”
“अगर वो खुंबरी की जान ले ले तो...।”
“दोलाम ने रानी ताशा से वादा किया है कि वह खुंबरी को मारने मौका उसे देगा और वो सदूर का राज-पाठ दोलाम को दे देगी।”
“रानी ताशा ये नहीं समझती कि खुंबरी को हथियारों के दम पर जीत पाना आसान नहीं।”
“रानी ताशा भी कम नहीं है। वो जबर्दस्त लड़ाका है। फिर वहां बबूसा भी है जिसे धरा कह चुकी है कि वो दोलाम को मार दे तो उसके सब साथी आजाद कर दिए जाएंगे। बबूसा ने ये बात दोलाम से कह दी है।”
“सच में विचित्र हालात हो चुके हैं खुंबरी के ठिकाने के।” डुमरा ने कहा।
“इंतजार करो और देखो कि खुंबरी के ठिकाने पर आने वाले वक्त में क्या होता है।”
“खुंबरी किसी भी हाल में जगमोहन को छोड़कर, दोलाम का हाथ नहीं थामेगी।”
“क्योंकि वो दोलाम को मात्र अपना सेवक समझती है। वो दोलाम से प्यार करने वाली नहीं। जबकि ताकतों ने दोलाम को अपने परिवार में शामिल कर लिया है। दोलाम ताकतों का बड़ा ओहदेदार बन चुका है।”
“पर खुंबरी दोलाम को ऊंचा दर्जा देने को तैयार नहीं।”
“ये ही तो बात...” कहते-कहते तोखा ठिठका फिर बोला-“कौन आया है।”
“कौन?” डुमरा ने फौरन कहा।
चंद पल तोखा की आवाज नहीं आई। फिर आई।
“होकाक आया है। तुमसे बात करना चाहता है।”
“आने दो। वो जरूर कोई नई खबर लाया होगा।”
कुछ क्षणों के बाद होकाक के शब्द डुमरा के कानों में पड़े।
“मैं सीधा खुंबरी के ठिकाने पर से ही आ रहा हूं। सब कुछ वैसा ही है, जो पहले था। तब से खुंबरी अपने रूप (धरा) के साथ ठिकाने से बाहर घूमने निकली हुई है। इसलिए कोई नई बात नहीं हुई उस ठिकाने पर।”
“सब कैद में हैं?” डुमरा ने पूछा।
“हां, पहले की तरह।”
“बबूसा क्या कर रहा है?”
“वो देर से खाने वाले कमरे की कुर्सी पर बैठा है। जगमोहन अपने कमरे में है। दोलाम अपने कमरे में सोचों में है। वो जरूर कोई चाल सोच रहा है खुंबरी के खिलाफ। उसने एक बार भी बाहर आकर बबूसा से बात नहीं की।”
“बबूसा, खुंबरी को मारने की सोच रहा है?”
“ख्याल तो उसका ये ही है। तभी तो उसने धरा की कही बात दोलाम को बता दी कि धरा उसे कह रही थी कि दोलाम को मार दे। तभी से दोलाम अपने कमरे में, सोचों में उलझा है।”
“जगमोहन ने बबूसा से क्या बात की?”
“अभी तो कुछ नहीं। खुंबरी और धरा के बाहर जाने पर, सब कुछ शांत-सा दिख रहा है, ठिकाने पर। पर कुछ भी शांत नहीं है। हर किसी को मन में चालें सूझ रही हैं।” होकाक की आवाज कानों में पड़ी।
डुमरा के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“जगमोहन ने।” होकाक बोला-“खुंबरी से कहा था कि वो स्वयं बबूसा से बात करेगा। परंतु अभी तक की नहीं।”
“मुझे समझ नहीं आता कि जगमोहन खुंबरी के प्यार में क्यों पड़ गया?” डुमरा बोला।
“तभी तो खुंबरी के करीब पहुंच सका है वो।”
“फिर उसे चाहिए कि खुंबरी को मार दे।”
“जगमोहन ऐसा कभी नहीं करेगा। वो सच में खुंबरी से प्यार करता है। खुंबरी का अहित नहीं देख सकता।”
“जगमोहन और खुंबरी के प्यार का अंत क्या होगा?”
“ये बात तो मैं नहीं जानता।”
“बबूसा किस बात का इंतजार कर रहा है। वो ही खुंबरी की जान ले ले।”
“मेरे ख्याल में बबूसा को इस बात का इंतजार है कि दोलाम कुछ करे। उसे विश्वास है कि दोलाम जल्दी कुछ करेगा।”
“इस विश्वास की वजह?”
“अगर दोलाम ने कुछ न किया तो खुंबरी ने दोलाम की जान ले लेनी है। ये बात दोलाम जानता है।”
“बहुत उलझन है खुंबरी के ठिकाने पर।”
“बहुत ज्यादा। मुझे तो वहां के हालातों को देखकर मजा आ रहा है। बहुत दिलचस्प हो रहा है उधर।”
“मुझे खुंबरी की मौत की खबर दे।”
“ऐसा होगा तो खबर दूंगा।”
“तूने कहा कि खुंबरी अपने रूप धरा के साथ ठिकाने के बाहर घूमने निकली हुई है।”
“बहुत देर से। मेरे ख्याल से घूमना तो बहाना है वो आपस में दोलाम को मारने का विचार कर रही होंगी। खुंबरी चाहती है कि दोलाम नाम की मुसीबत तुरंत उसकी नजरों से दूर हो जाए। वो दोलाम पर जल्दी वार करेगी।”
“ये बता कि खुंबरी और धरा इस वक्त कहां घूम रही हैं जंगल में?”
“आते समय मुझे तो दोनों जंगल में नहीं दिखीं।”
“होकाक त कोई भी काम की नहीं बता रहा।”
“तू सब बातें काम की ही तो बता रहा हूं। तुझे खुंबरी के ठिकाने का सारा हाल बता दिया। ये छोटी बात तो नहीं। तू चाहता है कि मैं सीधा तेरे को खुंबरी के पास पहुंचा दूं तो ये करना अभी मुमकिन नहीं।”
डुमरा ने कुछ नहीं कहा।
“वैसे भी खुंबरी अगर तेरे सामने पड़ गई तो तू क्या करेगा। वो फौरन ‘बटाका’ थाम कर सुरक्षित हो जाएगी।”
“वो सुरक्षित नहीं हो सकेगी।” डुमरा ने गम्भीर स्वर में कहा-“मैं ऐसा वार तैयार करके लाया हूं कि खुंबरी के सुरक्षित होने पर भी, मेरा वार उस पर असर कर देगा।”
“ओह, तो तुमने अपने वार में शक्तियों के कण मिला लिए हैं। हैरानी है कि शक्तियों के कण तुम्हें कहां से मिले?”
“कुछ कण मुझे मिल गए थे। मैंने उन्हें सैकड़ों बरसों से संभाल रखा था।” डुमरा ने बताया।
“बड़ी शक्तियों के ये बात पता है?”
“उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैंने अपनी मेहनत से शक्तियों के कण हासिल किए थे।”
“इसका मतलब खुंबरी तेरे सामने पड़ गई तो वो बचने वाली नहीं।” होकाक के शब्द कानों में पड़े।
“अब कोई काम की बात कहने को हो तो तभी आना।” डुमरा बोला।
होकाक की आवाज नहीं आई।
डुमरा ने लेटे ही लेटे गर्दन घुमाकर सोमाथ को देखा, जो कुछ दूरी पर टहल रहा था।
तभी तोखा की आवाज कानों में पड़ी।
“मैं सब सुन रहा था। होकाक ने कोई काम की बात नहीं बताई।”
“खुंबरी और धरा जंगल में घूम रही हैं। इतना बड़ा जंगल है। ये पता लगाना आसान भी तो नहीं कि वो कहां पर हैं।”
“मैं तो ओहारा के बारे में सोच रहा हूं कि वो तुम पर नए वार की तैयारी कर रहा होगा। वो जल्दी कुछ करेगा डुमरा।”
“अभी मुझे आराम करने दे।” डुमरा ने कहा और पुनः आंखें बंद कर लीं।
फिर तोखा की आवाज भी कानों में पड़ी।
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खुंबरी और धरा को उस ठिकाने से बाहर निकले बहुत देर हो चुकी थी। वो दोनों जंगल में पेड़ों की छांवों के नीचे टहलती रहीं। बातें करती रहीं। उनकी बातों का केंद्र दोलाम ही था। कभी-कभार बातें बबूसा की तरफ मुड़ जातीं। इन्हीं बातों में डूबी तब तक टहलती रही, जब तक कि थकान न होने लगी। फिर धरा ने कहा।
“चल वापस चलते हैं।”
“अभी मन नहीं है वापस जाने का।” खुंबरी ने कहा-“मैं दोलाम के बारे में ही सोच रही हूं कि जब तक उससे छुटकारा नहीं मिलता, मुझे चैन नहीं मिलेगा। कोई उत्तम विचार भी तो नहीं आ रहा मन में।”
“क्या पता अब तक जगमोहन ने बबूसा से बात कर ली हो और बबूसा ने दोलाम को मार भी दिया हो।”
“ऐसा हुआ होता तो ताकतें मुझे जरूर इस बात की खबर दे देतीं।”
“आ उधर छांव में बैठते हैं।” धरा एक फैले पेड़ की छांव की तरफ बढ़ती कह उठी।
दोनों पेड़ की छांव में जा बैठीं। हर तरफ शांति थी और धूप की लकीरें जमीन से टकराती नजर आ रही थीं। चारों तरफ गहरे पेड़ों का फैलाव देखना भला लग रहा था।
“तेरे को पता है, हम अपने ठिकाने से बहुत दूर निकल आई हैं।” धरा बोली।
“तो क्या फर्क पड़ता है।”
“डुमरा इसी जंगल में भटकता हमें ढूंढ़ रहा है। वो दिख गया तो?”
“मेरे पास बटाका है।”
“वो तो मेरे पास भी है।” धरा ने गले में लटक रहे बटाका को
छुआ।
“हमारी ऐसी किस्मत कहां कि डुमरा दिख जाए। वो दिख गया तो उसका अंत कर दूंगी।”
“ओहारा ने आज डुमरा पर वार करना था। इतना दिन बीत गया। अभी तक डुमरा के मरने की खबर क्यों नहीं आई। तू आराम से क्यों बैठी है। ओहारा से पूछ तो कि वो डुमरा को मारता क्यों नहीं?”
“ओहारा खुद ही बता देगा।”
“पर तेरा भी तो पूछना बनता है।”
खुंबरी ने गले में पड़ा बटाका थामा और ओहारा को पुकारा।
परंतु जवाब में कोई आवाज उसके कानों में न पड़ी।
खुंबरी के माथे पर बल उभरे और इस बार तेज स्वर में ओहारा को पुकार लगाई।
“हुक्म महान खुंबरी।” अगले ही पल दोती की आवाज कानों में पड़ी।
“मैंने तुझे नहीं, ओहारा को पुकारा है।”
“ओहारा ने ही मुझे भेजा है। इस वक्त ओहारा बहुत ज्यादा व्यस्त है, डुमरा पर वारों की कड़ी तैयार करने में।”
“तो अभी तक उसकी तैयारी ही चल रही है।” खुंबरी की आवाज में गुस्सा आ गया-“डुमरा पर वार नहीं किया अभी तक।”
“वार हो चुके हैं महान खुंबरी। कुछ देर पहले की ही बात है।” दोती की आवाज कानों में पड़ रही थी-“ओहारा अब तक सफल हो चुका होता। डुमरा मर चुका होता अगर सलूरा, डुमरा को बचाने न आ गया होता।
“सलूरा? वो बड़ी शक्ति?” खुंबरी के होंठों से निकला।
“वो ही। उसने ओहारा के जानलेवा वारों से डुमरा को बचा
लिया।”
“पूरी बात कह।”
दोती की आवाज खुंबरी के कानों में पड़ने लगी।
धरा भी कान लगाए सब सुन रही थी।
दोती की बात पूरी होते ही खुंबरी सख्त स्वर में कह उठी।
“मेरे पास तो खबर थी कि बड़ी शक्तियां, इस बार डुमरा का साथ नहीं दे रहीं।”
“ये सब कहने की बातें थीं।” दोती की आवाज कानों में पड़ी-“सलूरा ने ओहारा का सारा काम बिगाड़ दिया। अब ओहारा बड़ी शक्तियों से टकराने वाले वारों की कड़ी तैयार करने में व्यस्त है कि इस बार सलूरा या कोई बड़ी शक्ति डुमरा को बचाने को सामने आती है तो उसे करारा जवाब दिया जा सके।”
खुंबरी के चेहरे पर सोच के भाव उभरे।
“डुमरा के साथ कृत्रिम मानव सोमाथ भी तो था?” धरा ने पूछा।
“वो हमें कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता। ताकतों के वार भी उस पर सफल नहीं हो सकते।”
“ठोरा को कहूं डुमरा को मारने के लिए?” खुंबरी बोली।
“ये काम ओहारा ही कर देगा। ठोरा को तकलीफ देने की क्या जरूरत है।” दोती की आवाज कानों में पड़ी-“इस बार ओहारा काफी बड़ी तैयारी कर रहा है। मैं उसका हाथ बंटा रही हूं। डुमरा को बचाने बड़ी शक्ति भी इस बार सामने आई तो उसे भी कोई तकलीफ भुगतनी होगी। ओहारा इस बार तो सफल होगा ही।”
“डुमरा जंगल में कहां है?” धरा ने पूछा।
“इस बारे में अभी वक्त नहीं जानने का। ओहारा मुझे पुकार रहा है। मेरे बिना उसका कोई काम रुका रहा होगा। जाऊं?”
“जा।”
उसके बाद दोती की आवाज नहीं आई।
“ये तो बुरा हुआ ओहारा के वारों से डुमरा बच गया।” खुंबरी बोली।
चेहरे पर सोच थी।
“सलूरा जो बीच में आ गया।” धरा ने चिढ़कर कहा।
“डुमरा ज्यादा देर तक बचे रहने वाला नहीं। तू मुझे बता दोलाम से कैसे पीछा छुड़ाऊं?”
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जगमोहन कमरे से बाहर निकला और आगे बढ़ गया। चेहरा सोचों से भरा हुआ था। वो कुछ सुस्त लग रहा था क्योंकि देर तक पलंग पर आंखें बंद किए लेटा रहा था। खुंबरी से कहा था कि अगर मन किया तो वो भी बाहर आ जाएगा परंतु उसका मन नहीं किया था बाहर जाने का। सिर में दोलाम ही नाचता रहा। उसे लग रहा था कि उसकी और खुंबरी की अच्छी पट रही थी लेकिन दोलाम की हरकतों ने जैसे उनके प्यार को छिन्न-भिन्न कर दिया था। उसे देवराज चौहान की भी चिंता थी कि खुंबरी ने उसे कैद में रखा हुआ है। वो चाहता था कि देवराज चौहान और बाकी सब कैद से आजाद हो जाएं। इस बारे में खुंबरी पर दबाव डालना भी ठीक नहीं था कि वो सबको आजाद कर दे। देवराज चौहान की कैद को लेकर
मन में चैन नहीं था। वो किसी मुनासिब वक्त का इंतजार कर रहा था कि तब खुंबरी से कह सके कि वो सबको कैद से आजाद कर दे। अब खुंबरी और धरा चाहती थीं कि वो बबूसा से बात करे।
बबूसा से कहे कि वो दोलाम को खत्म कर दे।
दोलाम का अंत वो भी चाहता था। परंतु मन में शंका थी कि बबूसा ऐसा करने के लिए मान जाएगा। वो जानता था कि बबूसा अपने मन की करता है। वो जिद्दी है।”
लेकिन अपनी तरफ से बबूसा को तैयार करने की कोशिश अवश्य करना चाहता था।
जगमोहन उस जगह पहुंचा जहां खाने का टेबल था।
बबूसा वहीं कुर्सी पर बैठा था। आहट पाकर उसने सिर घुमाकर
जगमोहन को देखा।
“आओ जगमोहन।” बबूसा बरबस ही मुस्करा पड़ा-“तुम तो खुंबरी के सरताज बन गए हो।”
जगमोहन बबूसा के पास ही कुर्सी पर बैठता बोला।
“कैसे हो बबूसा?”
“मैं ठीक हूं। तुम्हारी वजह से कैद से निकल आया। पर ये जगह भी मुझे कैद जैसी ही लगती है।”
“ऐसा मत कहो। तुम आजाद हो।”
जवाब में बबूसा मुस्कराया।
“दोलाम कहां है?” जगमोहन ने आसपास नजरें घुमाईं।
“अपने कमरे में होगा। देर से वो मेरे पास तो आया नहीं।”
“दोलाम मुझे पसंद नहीं करता। सही कहा न मैंने।”
“क्या पता।” बबूसा ने लापरवाही से कहा।
“तुम्हें तो सब पता होगा। दोलाम से तुम्हारी बात तो होती है।”
बबूसा ने जगमोहन को देखा और शांत स्वर में कह उठा।
“तुम मुझसे क्या जानना चाहते हो?”
“तुम्हें सब पता है कि यहां क्या चल रहा है।”
“जानता हूं।”
“हम साथी हैं बबूसा। तुम्हें मेरा काम करना चाहिए। मेरी परेशानी कम करनी चाहिए।”
“मैं तुम्हें राजा देव की वजह से जानता हूं।” बबूसा बोला।
“तो?”
“राजा देव कैद में हैं और तुम मजे से खुंबरी के साथ रह रहे हो। इससे स्पष्ट हो गया कि हम साथी नहीं हैं।”
“साथी हैं, हम तो...”
“हममें जो रिश्ते का आधार है, यानी कि राजा देव, वो कैद में हैं। तुमने उन्हें आजाद नहीं कराया।”
“देवराज चौहान को आजाद कराने में समस्या आ रही है। वो खुंबरी के लिए मन में वैर रखता है। न भी रखता हो। परंतु वो मुंह से नहीं कह रहा कि खुंबरी को उसने माफ किया। ये ही बात...”
“तुम खुंबरी से कहकर राजा देव को आजाद करा सकते हो।”
“नहीं करा सकता।”
“क्यों?”
“क्योंकि खुंबरी और मेरे बीच ये बात तय है कि हम दोनों एक-दूसरे के कामों में दखल नहीं देंगे। खुंबरी बुरी नहीं है बबूसा। वो बहुत अच्छी है। मैंने अभी तक खुंबरी में कोई बुराई नहीं देखी।”
“तो अब तुम्हें राजा देव से ज्यादा खुंबरी भाने लगी।” बबूसा मुस्कराया-“अब तो खुंबरी ही तुम्हारे सिर पर चढ़कर बोल रही है। औरत में इतना भी जादू नहीं होता कि आदमी के सिर पर जा बैठे। ऐसा होता है तो समझो आदमी की कमजोरी है।”
“तुम मेरी मजबूरी समझो कि...”
“हम यहां क्यों आए थे?”
जगमोहन ने बबूसा को देखा।
“हम इस जंगल की तरफ क्या करने आए थे?” बबूसा ने पुनः पूछा।
जगमोहन बेचैन दिखा।
“हम यहां राजा देव और रानी ताशा का बदला लेने आए थे कि खुंबरी ने अपने स्वार्थ की खातिर राजा देव और रानी ताशा को अलग कर दिया। इस काम में हमने डुमरा की सहायता भी ली। परंतु यहां पहुंचकर तुमने क्या किया? जिसे मारने आए थे उसी से प्यार करने लगे। ये तो शर्म वाली बात हो गई।”
“तुम गलत कह रहे हो बबूसा।”
“क्या गलत है?”
“मैं और खुंबरी सच्चा प्यार करते हैं। मैंने ऐसा नहीं सोचा था। बस हो गया।”
“ये बात तो समझ में नहीं आई।” बबूसा मुस्करा पड़ा।
“मैं तुमसे सहायता की आशा लेकर आया हूं बबूसा।”
“तुम्हें भला मेरी सहायता की जरूरत क्या पड़ गई?”
“जरूरत है। तुम मेरी समस्या को आसानी से दूर कर सकते हो।”
“करो।”
“मेरी खातिर दोलाम को मार दो।”
बबूसा खुलकर मुस्कराया।
“तुम ऐसा करोगे तो देवराज चौहान और बाकी सबको खुंबरी कैद से आजाद कर देगी। तुम सबको यहां से जाने देगी।” जगमोहन का चेहरा और हाव-भाव बेचैनी से भरे हुए थे। नजरें बबूसा पर थीं-“तुम सोमारा को भूल गए। वो भी कैद में है और खुंबरी उन सबकी जान लेने का विचार कर रही है। अगर तुमने दोलाम की जान ले ली तो सब ठीक हो जाएगा। सब आजाद हो जाएंगे। मैं भी जिस समस्या में घिरा हूं, वहां से निकल जाऊंगा।”
“तुम्हारा क्या ख्याल है कि मैं तुम्हारी बात मान जाऊंगा?”
“मेरे ख्याल में नहीं मानोगे।” जगमोहन गम्भीर था।
“फिर कहा क्यों?”
“इसी में हम सबका देवराज चौहान, रानी ताशा, मोना चौधरी, सोमारा और नगीना भाभी का भला है।”
“तुम्हें इनकी इतनी चिंता नहीं है जितनी कि खुंबरी की है।”
“मैं समझा नहीं।”
“तुम्हें धरा ने मेरे पास भेजा है।”
जगमोहन बबूसा को देखने लगा।
“धरा मेरे पास आई थी कि मैं दोलाम को मार दूं। ये बात तुम्हें जरूर पता होगी।”
“मालूम है।”
“धरा को ठीक से कोई जवाब नहीं मिला तो अब उसने तुम्हें भेज दिया। तुम और धरा खुंबरी के इशारे पर काम कर रहे हो। तुम्हें राजा देव की नहीं, खुंबरी की चिंता है।” बबूसा का स्वर शांत था-“अपनी चिंता है। तुम्हारे और खुंबरी के बीच दोलाम अपनी टांग फंसा रहा है। तुम परेशान हो रहे हो कि दोलाम रास्ते से हट जाए।”
“सच कहा तुमने। परंतु मुझे देवराज चौहान और सबकी भी चिंता है।”
बबूसा ने जगमोहन को घूरा।
“तुम मुझे बेवकूफ समझते हो जगमोहन।”
“क्या मतलब?”
“तुम मेरे हाथों दोलाम की जान लेना चाहते हो। जबकि मैं खुंबरी की जान लेने का ख्वाहिशमंद हूं।”
जगमोहन की आंखें सिकुड़ीं। होंठ भिंच गए।
“गुस्सा आ गया।”
“बात को समझो बबूसा। दोलाम को मार दो।”
“तुम्हारे लिए ये काम मामूली है। तुम ही क्यों नहीं मार देते उसे।”
“मैं ऐसा ही करता, परंतु खुंबरी ने रोक दिया।”
“वजह भी मैं जानता हूं। ताकतों ने दोलाम की सेवा से प्रभावित होकर, उसे अपने परिवार में शामिल कर लिया है। ऐसे में कोई दोलाम की जान लेता है तो ताकतें उसे नहीं छोड़ेंगी। इसलिए खुंबरी ने तुम्हें ये काम करने से रोका और कहा कि बबूसा को तैयार करो। बाद में ताकतों ने बबूसा को मार दिया तो खुंबरी को क्या फर्क पड़ता है।”
“तुम्हें ताकतें कुछ नहीं कहेंगी। मैं खुंबरी से कहकर, तुम्हें ताकतों से बचा लूंगा।”
“खुंबरी खुद ही क्यों नहीं मार देती दोलाम को। दोलाम को मारना जरा भी कठिन नहीं है उसके लिए।”
“उसकी कोई मजबूरी है कि वो ऐसा नहीं कर रही।”
“मतलब कि अब तुम्हें इस काम के लिए मैं ही नजर आया हूं।” बबूसा मुस्कराया।
“समझा करो बबूसा। राजा देव और बाकी सब कैद से छूट जाएंगे।”
“मेरे से ये आशा मत रखो कि मैं दोलाम की जान लूंगा। खुंबरी की जान लेने को कहते तो शायद...”
“तुम खुंबरी का बुरा करने की सोचोगे भी नहीं।” जगमोहन सख्त स्वर में कह उठा।
“तकलीफ हुई?” बबूसा हौले से हंसा।
“तुम्हारे विचार खुंबरी को पता लग गए तो वो तुम्हें फिर कैद में डाल देगी।”
“मतलब कि खुंबरी ने तुम्हें खिलौना बना रखा है। खुंबरी पर तुम्हारा इतना भी बस नहीं कि उन सबको कैद से छुड़ाने को कहो और वो तुम्हारी बात मान ले। तुम खुंबरी के लिए जरा भी महत्व नहीं रखते। प्यार-प्यार ज्यादा दिन नहीं चलता जगमोहन। एक-दूसरे को समझना जरूरी होता है। तुम खुंबरी पर फिदा हो और खुंबरी तुम्हारे साथियों को कैद में रखे हुए है। ये बात तो मुझे समझ में नहीं आई। अब तुम खुंबरी के पिट्ठू बनकर मेरे पास आ गए।”
जगमोहन होंठ भींचे बबूसा को देखने लगा। आंखों में बेचैनी आ गई थी।
“बबूसा कभी भी किसी के दबाव में कोई काम नहीं करता। मैं वो ही करता हूं जो मुझे बेहतर लगता है। महापंडित ने मेरा ये जन्म कराते समय मेरे में राजा देव जैसी ताकत और उनके ही गुण डाले थे। इसलिए तुम बबूसा को अपनी बातों में फंसा ही नहीं सकते। मैं दोलाम के साथ हूं और खुंबरी के खिलाफ हूं।”
“सतर्क रहना।” जगमोहन ने गम्भीर स्वर में कहा-“तुम्हारे ये विचार खुंबरी के कानों तक न पहुंचें।”
बबूसा चुप रहा।
“और खुंबरी का बुरा करने की सोच कर, अपने को खतरे में मत डालना। ये खुंबरी का ठिकाना है। पलक झपकते ही खुंबरी के हुक्म पर तुम्हारी जान ताकतें ले लेंगी। अपने को संभाल के रखो।” जगमोहन कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
“तुम सोचो कि तुम क्या कर रहे हो। खुंबरी ताकतों की मालिक है। ताकतें बुरी हैं और वो ही बुराई खुंबरी में भी समा चुकी है, जो इस वक्त, खुंबरी की खूबसूरती की वजह से तुम्हें नजर नहीं आ...”
“गलत बात मत कहो बबूसा।” जगमोहन होंठ भींचकर कह उठा।
“ये सच है। अगर खुंबरी वास्तव में तुमसे प्यार करती है तो तुम्हारे एक बार कहने पर ही राजा देव और सबको आजाद कर देगी। वो ऐसा नहीं करती तो समझ लेना, तुम दोनों में प्यार नहीं, जिस्म की चाहत भर है।” बबूसा बोला।
“तो तुम दोलाम की जान नहीं लोगे?”
“कभी नहीं।”
जगमोहन तेज-तेज कदम उठाता वापस चला गया।
बबूसा चेहरे पर गम्भीरता लिए वहीं बैठा रहा कि तभी एक कमरे से दोलाम निकला।
बबूसा ने उसे देखा तो नजरें उस पर ही ठहर गईं।
दोलाम बेहद शांत नजर आ रहा था। उसने एक निगाह उस रास्ते पर
मारी, जिस तरफ जगमोहन गया था। वो नजर नहीं आया। दोलाम आगे
बढ़ा और बबूसा के पास आ गया।
“तूने सब सुना?” बबूसा ने पूछा।
दोलाम ने सहमति से सिर हिला दिया।
“मुझे नहीं मालूम था कि तू बातें सुन रहा है।” बबूसा
ने गहरी सांस
ली।
“तू सच में मुझे नहीं मारेगा?” दोलाम स्थिर-सा बोला।
“हम दोस्तों की तरह हैं। तूने मेरा कोई नुकसान नहीं किया।” बबूसा
ने कहा।
दोलाम ने सिर हिलाया।
“लेकिन तेरी खैर नहीं लगती। खुंबरी तेरे को जल्दी ही रास्ते से हटा
देने का इरादा रखती है। इससे पहले कि खुंबरी तेरी जान ले ले। तेरे को
ही कुछ कर देना चाहिए।” बबूसा ने दोलाम को देखा।
“मैं करूंगा। अब मैं ही करूंगा।” दोलाम ने दृढ़ स्वर में कहा-“जब तक खुंबरी जिंदा है, मैं ताकतों का मालिक नहीं बन सकता। मुझे खुंबरी के शरीर में कोई दिलचस्पी नहीं है। इस वक्त तो दिलचस्पी खुंबरी के मर
जाने में है। जब तक वो जिंदा है मेरे काम नहीं बनेंगे और अब तो ये डर
और बढ़ गया है कि कहीं खुंबरी ही पहले मेरी जान न ले ले।”
“जगमोहन से सतर्क रहना। परंतु जगमोहन की जान मत ले लेना।”
बबूसा ने कहा।
“मुझे सिर्फ खुंबरी ही नजर आ रही है।”
“तू दोलाम...”
“धरा।” एकाएक खुंबरी सोच भरे स्वर में कह उठी-
को मार सकती है।”
“मैं?” पेड़ की छांव में बैठी धरा ने फौरन खुंबरी को देखा।
“हां तू। तू ये काम कर सकती है। दोलाम को मारने के तेरे पास आसान मौके...”
“दोलाम को ताकतों ने परिवार में शामिल कर लिया...”
“तो उससे क्या फर्क पड़ता है। क्या तेरे को ताकतों का डर है?”
धरा कुछ बेचैन हुई।
“कह दे।”
“ताकतों को ये कभी भी अच्छा नहीं लगेगा कि मैंने दोलाम की जान ली। परिवार में झगड़ा...”
“ताकतें मुझे कह चुकी हैं कि वो इस मामले में नहीं आएंगी। ये मामला
हम ही निबटाएं।” खुंबरी ने कहा।
“क्या मैं दोलाम को मार पाऊंगी?”
“मैं तेरे को हथियार दूंगी।” खुंबरी की आंखें चमक रही थीं।
“ये काम त क्यों नहीं करती?” धरा बोली।
“मेरे को दोलाम मौका नहीं देगा हमला करने का। मुझे देखते ही वो सतर्क हो जाएगा। परंतु उसे तेरे से डर नहीं है। तू एकाएक उस पर वार कर सकती है।” खुंबरी ने कहा-“मुझे पूरा विश्वास है कि इस वक्त दोलाम भी ऐसा ही कुछ सोच रहा होगा कि मुझ पर वार कर सके। दोलाम हालातों को पूरी तरह समझ रहा है। उसने जानबूझकर ये झगड़ा खड़ा किया
है। वो जगमोहन को पसंद नहीं करता और अगर दोलाम मुझे मारने में
कामयाब रहा तो यकीनन वो ही ताकतों का मालिक बन जाएगा। इसलिए
वो मुझे मार देने की जोरदार कोशिश करेगा।”
“ये बात तो है। पर क्या पता मुझे कुछ करने की जरूरत ही न पड़े।
बबूसा ही दोलाम को मार दे।”
“तेरा मतलब कि जगमोहन ने बबूसा को इस काम के लिए राजी कर
लिया होगा?”
“सम्भव है, ऐसा हो गया हो और जब हम वापस पहुंचें, दोलाम मर
चुका हो।”
“चल, वापस चलते हैं।” खुंबरी उठ खड़ी हुई—”देखते हैं कि ठिकाने पर कुछ हुआ है कि नहीं। अगर दोलाम जिंदा है तो आज रात तू दोलाम को मारेगी। मैं तुझे बेहतरीन तलवार दूंगी।”
धरा भी उठी और एक दिशा की तरफ बढ़ी तो खुंबरी बोली।
“इधर से नहीं, इधर से चलते हैं। यहां से रास्ता छोटा पड़ेगा।”
दोनों तेजी से आगे बढ़ गईं।
“कैदियों के बारे में क्या सोचा है?” धरा ने पूछा।
“उन्हें मार दूंगी कि वो कभी मेरे रास्ते में न आ सकें।” खुंबरी ने
सख्त स्वर में कहा।
“जगमोहन उनकी मौत नहीं चाहेगा।”
“उसकी तुम फिक्र मत करो।” खुंबरी हंस पड़ी-“वो तो मेरे प्यार के शिकंजे में फंसकर सब कुछ भूल चुका है। अब मैं जल्दी से ठिकाने पर पहुंचकर देखना चाहती हूं कि दोलाम जिंदा है या बबूसा ने उसे मार दिया।”
दोनों तेजी से घने पेड़ों के बीच में से आगे बढ़ती जा रही थीं। धूप छनकर पेड़ों के बीच में से लकीरों की भांति जमीन से टकरा रही थी। हवा नहीं बह रही थी परंतु पेड़ों की छांव में गर्मी भी नहीं लग रही थी। दोनों के चेहरों पर सोचों के भाव उभरे पड़े थे। खुंबरी कुछ बेचैन दिख रही थी। वो जानती थी कि जब तक दोलाम जिंदा है, उसे चैन नहीं मिलेगा। जैसे हो इस काम को वो पूरा कर देना चाहती थी। इन्हीं विचारों में उलझी, तेजी
से कदम बढ़ाती खुंबरी ने यूं ही नजरें घुमाईं जंगल में।
अगले ही पल थम से रुक गई।
धरा भी ठिठकी और बोली।
“रुकी क्यों?” पूछते हुए उसने खुंबरी के चेहरे पर निगाह मारी।
आंखें सिकोड़े खुंबरी एक दिशा की तरफ देखे जा रही थी।
धरा की निगाह भी उसी तरफ घूम गई।
कुछ पल खामोशी से बीते कि धरा के होंठों से निकला।
“वो तो सोमाथ है।”
“जानती हूं।” खुंबरी बोली-“पृथ्वी ग्रह से सदूर तक आने का, तेरे दिमाग का सारा विवरण मेरे दिमाग में भी मौजूद है। उस पर नजर पड़ते ही मैं समझ गई थी कि वह कृत्रिम इंसान सोमाथ है।”
“उस पर ताकतों का वार नहीं चल सकता।” धरा ने कहा।
“मैं कुछ और सोच रही हूं।”
“क्या?”
“दोती ने बताया था कि ओहारा के वारों के समय, डुमरा के साथ सोमाथ भी था। तो क्या ये सम्भव है कि अब भी दोनों एक साथ हों। डुमरा भी सोमाथ के करीब हो।” खुंबरी ने धरा को देखा।
धरा फौरन कह उठी।
“पेड़ की ओट में हो जा। वो भी हमें देख सकता है।”
दोनों तुरंत पेड़ की ओट में हो गईं।
खुंबरी की आंखों में तीव्र चमक उभरी हुई थी।
“सम्भव है कि डुमरा और सोमाथ साथ ही हों।” कहते हुए धरा के होंठ भिंच गए।
दोनों की नजरें मिलीं।
“आ, पास से देखते हैं।” खुंबरी सरगोशी के से स्वर में बोली।
“पास जाने में खतरा है।” धरा ने कहा।
“डुमरा को तो मैं पलक झपकते ही संभाल लूंगी। मेरे पास बटाका...”
“ज्यादा खतरा सोमाथ से है। उस पर ताकतों का असर नहीं होता और वो इतना ताकतवर है कि हम हाथ-पांवों से उससे बराबरी नहीं कर सकते। सोमाथ हमारे लिए मुसीबत बन सकता है।” धरा ने विचार भरे स्वर में कहा।
“हम दो हैं। इस वक्त जो ताकत मुझमें है वो ही तेरे में है। हम दोनों सोमाथ से भिड़ सकती हैं।” खुंबरी बोली।
“तुम्हें सोमाथ की ताकत का एहसास नहीं है। तभी तू ऐसी बातें कर रही है।”
“समझ गई। पता तो मुझे भी है कि सोमाथ का मुकाबला करना
नामुमकिन है।” खुंबरी ने पेड़ के तने से दूर, सोमाथ की तरफ झांका। वो एक छोटे-से दायरे में टहलता दिख रहा था।
“मुझे तो वो अकेला ही लगता है।” धरा कह उठी।
“पास चलकर देखते हैं। दबे पांव जाएंगे। इस तरह कि सोमाथ को हमारे करीब आने का पता न लगे।”
“सोच ले खुंबरी। जल्दी मत कर। हमें सोमाथ से खतरा भी आ
सकता है।”
“तू यहीं रह। मैं वहां होकर आती हूं।”
“डरपोक नहीं हूं। मैं भी साथ चलूंगी।” धरा ने कहा।
फिर खुंबरी और धरा घने पेड़ों के तनों की ओट लेती दूर दिखते सोमाथ की तरफ बढ़ने लगी।
बीच-बीच में पूरी तरह किसी तने की ओट लेकर रुक जाती थीं।
पुनः आगे बढ़तीं।
ये सिलसिला कुछ देर तक चला और खुंबरी-धरा उस जगह के पास जा पहुंची जहां सोमाथ टहल रहा था। तभी दोनों का दिल ‘धक’ से थम-सा गया।
डुमरा पर दोनों की निगाह पड़ गई थी।
डुमरा पेड़ के नीचे आंखें बंद किए, नींद लेने वाले अंदाज में लेटा था।
“डुमरा है वो।” धरा फुसफुसाई।
“पहचान चुकी हूं उसे।” खुंबरी ने धीमे स्वर में कहा। उसकी आंखों की चमक बढ़ गई थी-“ये तो मुझे बहुत ही अच्छा मौका मिल रहा है डुमरा की जान लेने का। इससे पहले कि वो सावधान हो, ताकतें खामोशी से उस पर वार कर देंगी। डुमरा सोमाथ की मौजूदगी की वजह से, निश्चिंत-सा नींद में डूबा पड़ा है।”
धरा की गम्भीर निगाह सोमाथ पर थीं। बोली।
“डुमरा को तो हम संभाल लेंगी। वो बचने वाला नहीं। पर सोमाथ का क्या करें?”
खुंबरी की नजर भी सोमाथ पर जा टिकी।
“पर मुझे सोमाथ की चिंता इतनी नहीं है जितनी कि डुमरा से चिंता है।” धीमे स्वर में खुंबरी गुर्रा उठी-“डुमरा ने मेरे साथ बहुत बुरा किया था। मुझे श्राप दे दिया था। जिसकी वजह से मुझे पांच सौ सालों के लिए सदूर को छोड़कर पृथ्वी ग्रह पर जाना पड़ा और वहीं जन्म लेने लगी। मेरा शरीर सदूर पर दोलाम की देखरेख में बेजान-सा पड़ा रहा। अगर मुझे ताकतों और दोलाम का सहारा न होता तो मेरा शरीर सड़कर खत्म हो गया होता। उस वक्त डुमरा ने अपनी ताकत दिखाई थी। उसे तब मौका मिल गया था, परंतु आज चुपके से मुझे मौका मिल रहा है डुमरा को खत्म करने का।”
“बात वहीं की वहीं है कि सोमाथ से कैसे निबटे?” धरा ने पुनः कहा।
“मैं ठोरा से बात करती हूं।” खुंबरी के चेहरे पर खतरनाक भाव मचल रहे थे-“मैं उससे सलाह लूंगी।”
“ठोरा को बुलाएगी?”
“इस मौके पर ठोरा को न बुलाया तो ठोरा का क्या फायदा।” खुंबरी ने उसी पल बटाका थामकर धीमे-से पुकारा-“ठोरा।”
अगले ही पल उसके कानों में आवाज पड़ी।
“हुक्म महान खुंबरी।”
खुंबरी और धरा अब पूरी तरह पेड़ के मोटे तने की ओट में हो गईं थीं।
“डुमरा मेरे सामने है ठोरा। उसकी जान ली जा सकती है।” खुंबरी बोली।
“आसानी से। वो लापरवाह है जैसे कि कभी तुम लापरवाह थीं और डुमरा ने तुम्हें श्राप दे दिया था। डुमरा की जान लेना बहुत आसान है। हुक्म हो तो मैं डुमरा की मौत का कुछ इंतजाम...”
“तुम कुछ नहीं करोगे ठोरा।” खुंबरी ने सख्त स्वर में कहा।
“क्यों?”
“डुमरा को मैं अपने हाथों से मारूंगी तो मुझे बहुत चैन मिलेगा।”
“कोई खास हथियार दूं?”
“हथियार तो पलक झपकते ही मेरे हाथों में दिखने लगेंगे। इस वक्त असली समस्या सोमाथ की है।”
“वो कृत्रिम इंसान?”
“वो ही। उस पर हमारी ताकतों का वार नहीं चल पाएगा। वो ताकतों से पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि वह महापंडित की बनाई इंसानी मशीन है। वो काफी ताकत रखता है और हम उसका मुकाबला नहीं कर सकतीं। वो रानी ताशा के हक में काम करता है। रानी ताशा मुझे दुश्मन मानती है कि कभी मैंने उसे और राजा देव को अलग कर दिया था। ऐसे में सोमाथ मुझे देखेगा तो अवश्य मुझे मार देना चाहेगा, जबकि डुमरा पर वार करने के लिए मुझे आगे जाना होगा। तुम कहो, मैं क्या करूं?”
“कृत्रिम इंसान के बारे में मैं महान खुंबरी को कोई राय नहीं दे सकता।” ठोरा की आवाज कानों में पड़ी।
“तुम उसे कुछ नहीं कर सकते?”
“कृत्रिम इंसान पर ताकतों के वार नहीं चल सकते। परंतु मैं एक बात अवश्य कहूंगा कि इस वक्त तुम डुमरा को मारने का विचार छोड़ दो। मैं आगे के वक्त में देखने की कोशिश कर रहा हूँ पर हर तरफ अंधेरा ही कायम है।”
“तुम्हें आगे के वक्त में अंधेरा क्यों दिख रहा है ठोरा?”
“मैं नहीं जानता। ऐसा कम ही होता है। शायद कुछ ठीक नहीं होने वाला, तभी अंधेरा कायम है। मेरी राय है कि तुम डुमरा को अभी मत मारो। शायद ये वक्त ठीक नहीं...”
“तो तुम चाहते हो कि खुंबरी, सबसे बड़े दुश्मन को मारने का मौका छोड़ दे। असम्भव ठोरा। ये नहीं हो सकता।”
“मुझे इस वक्त का भविष्य नहीं दिख रहा, इसलिए...”
“तुम सोमाथ का कोई अहित नहीं कर सकते?”
“नहीं महान खुंबरी। ये मेरे बस से बाहर की बात है।” ठोरा की मध्यम आवाज कानों में पड़ी-“इंसान रूपी मशीनों पर ताकतें असर नहीं...”
“तुम जाओ ठोरा।” खुंबरी ने आदेश भरे सख्त स्वर में कहा।
ठोरा की आवाज दोबारा नहीं आई।
खुंबरी और धरा की नजरें मिलीं। जहां धरा गम्भीर थी वहीं खुंबरी की आंखों में खतरनाक चमक लहरा रही थी।
“इंतजार कर।” खुंबरी शब्दों को चबाकर कह उठी।
“क्या मतलब?”
“मौके का इंतजार कर कि डुमरा पर हम जानलेवा वार कर सकें।”
“परंतु सोमाथ?”
“वही तो कह रही हूं कि इंतजार कर, सोमाथ नाम का ये कृत्रिम इंसान टहलते हुए इधर-उधर जाएगा तो हमें डुमरा की जान लेने का मौका मिल जाएगा। वार करके निकल जाने के लिए हमें कुछ पल ही तो चाहिए। वो आसानी से मिल जाएंगे।”
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